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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

Raj_sharma

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Raj_sharma

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Sushil@10

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#139.

चैपटर-13
पुनर्जन्म रहस्य:
(14 जनवरी 2002, सोमवार, 18:30, मायावन, अराका द्वीप)

तौफीक ने एक स्थान पर आग जला दी थी। सुयश सहित बाकी सभी उसी आग के चारो ओर गोला बना कर बैठे थे।

“पिछले कुछ दिनों से हमने इस जंगल की प्रत्येक मुसीबत को सफलता पूर्वक पार किया है।” सुयश ने कहा- “अब देखते हैं कि यह तिलिस्मा क्या बला है?”

“मैं तो यही सोचकर परेशान हूं कैप्टेन, कि स्पाइनोसोरस, टेरोसोर, ड्रैगन, रेत मानव, ज्वालामुखी, झरना सब तो देख लिया, फिर भला तिलिस्मा में इससे बढ़कर क्या परेशानियां हो सकती हैं?” क्रिस्टी ने कहा।

तभी एक अंजानी आवाज ने सभी को आश्चर्य में डाल दिया- “यह बात मैं बताता हूं।”

सभी की दृष्टि आवाज की दिशा में घूम गई। उन्हें एक पेड़ की ओर से चलकर आता हुआ युगाका दिखाई दिया।

“पहले तो देर से आने के लिये क्षमा चाहता हूं दोस्तो.....दरअसल मेरी बहन की शादी फाइनल हो गयी थी, इसलिये मेरे ऊपर काम का बोझ कुछ ज्यादा ही पड़ गया था।” युगाका ने कहा।

“अरे वाह! तुमने तो पहले बताया नहीं था कि तुम्हारी कोई बहन भी है?” जेनिथ ने कहा।

“मेरी बहन से आप पहले ही मिल चुकी हो, याद करिये उस तालाब के पास की घटना, जब आप को रात में दूसरी क्रिस्टी दिखाई दी थी, अरे वही तो मेरी बहन थी।”

“अच्छा तो आप की बहन भी रुप बदल लेती है।” जेनिथ ने युगाका को घूरते हुए कहा।

“हां, हम दोनों भाई-बहनों को रुप बदलना आता है।” युगाका ने कहा - “मगर उस समय हमें आप लोगों के बारे में पता थोड़े ही था।”

जेनिथ का फिलहाल युगाका से अब दुश्मनी करने का कोई मन नहीं था, इसलिये वह चुप रही।

"वैसे आज तो हर तरफ से खुशियों की ही खबर आ रही है।” शैफाली ने टॉपिक को चेन्ज करने के उद्देश्य से कहा।

“और किसने दी खुशियों की खबर?” युगाका ने हैरानी से शैफाली को देखते हुए कहा।

“आपकी देवी शलाका ने।” शैफाली ने मुस्कुराते हुए कहा।

“देवी शलाका!” शलाका का नाम सुन युगाका आश्चर्य से भर उठा- “क्या तुम लोगों ने उन्हें देखा?”

“देखा भी...और रिश्ता भी जोड़ लिया।” क्रिस्टी ने हंसते हुए कहा।

“कैसा रिश्ता?” युगाका के लिये हर एक समाचार किसी भूकंप से कम नहीं था।

आखिरकार सुयश से आज्ञा लेकर शैफाली ने युगाका को आर्यन और वेदालय की पूरी कहानी सुना दी।

पूरी कहानी सुनकर युगाका खुशी से भर उठा।

“लगता है अब सब कुछ अच्छा होने वाला है। एक-एक कर रहस्य के सारे पर्दे खुल रहे हैं।” युगाका ने कहा।

“अरे दोस्त, सारे पर्दे खुल गये हों तो मेरा एक छोटा सा दोस्त जो तुम्हारी वजह से पता नहीं कहां गायब हो गया, अब उसे भी ढूंढ दो।” क्रिस्टी ने मुंह बिचकाते हुए कहा- “देवी शलाका भी उसे नहीं ढूंढ पायी, पता नहीं पृथ्वी के कौन से कोने में चला गया?”

जिस भी कोने में था, बस हर पल तुम्हें ही याद कर रहा था।”

यह आवाज शत-प्रतिशत ऐलेक्स की थी।

यह आवाज सुनते ही क्रिस्टी की आँखों से खुशी के मारे आँसू निकलने लगे।

“ऐलेक्स....क्या यह तुम ही हो?.. ..और तुम दिखाई क्यों नहीं दे रहे?” क्रिस्टी ने पागलों के समान चारो ओर देखते हुए कहा।

तभी सबके सामने ऐलेक्स प्रकट हो गया।

ऐलेक्स को सुरक्षित देख क्रिस्टी भागकर ऐलेक्स के गले लग गई।

वह अब जोर-जोर से ऐलेक्स का चेहरा चूमने लगी- “माफ कर दो ऐलेक्स...अब कभी भी नहीं लड़ूंगी तुमसे, पर अब तुम मुझे छोड़कर कहीं नहीं जाना।”

क्रिस्टी अपने भावों को बिल्कुल कंट्रोल नहीं कर पा रही थी।...... इसलिये सभी अपनी बारी आने का इंतजार कर रहे थे।

युगाका भी ऐलेक्स को देखकर खुश हो गया क्यों कि अब उसके सिर पर लगा एक दाग हट गया था।

कुछ देर तक इसी हालत में रहने के बाद क्रिस्टी थोड़ा नार्मल हुई और ऐलेक्स से अलग हो गई।

अब शैफाली जाकर ऐलेक्स के गले लग गयी- “अच्छा हुआ आप मिल गये।”

तभी ऐलेक्स की नजर सामने बैठे युगाका की ओर गई, वह युगाका को देख भड़क उठा- “यह इंसान यहां क्या कर रहा है? इसी की वजह से तो मैं मुसीबत में फंस गया था।”

इससे पहले कि ऐलेक्स युगाका पर कोई प्रहार कर पाता, सुयश ने बीच में ही उसे रोक लिया और ऐलेक्स को युगाका की सारी कहानी सुना दी। तब जाकर ऐलेक्स कहीं शांत हुआ।

ऐलेक्स ने भी अपनी पूरी कहानी शुरु से अंत तक सभी को सुना दी।

ऐलेक्स की पूरी कहानी सुन सभी हैरानी से एक-दूसरे का मुंह देख रहे थे। सबसे ज्यादा झटका शैफाली को लगा था।

“तो स्थेनो कहां है?” शैफाली ने ऐलेक्स से पूछा।

“वह अदृश्य रुप में यहीं पर हैं, पर वह प्रकट नहीं हो सकतीं, क्यों कि मेरे और शैफाली के सिवा अगर किसी ने उनकी आँखों में देख लिया, तो वह पत्थर का बन जायेगा।”

ऐलेक्स के बताने पर शैफाली चलकर स्थेनो के पास पहुंच गई और बोली- “मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं आपको क्या कहूं? पर मैं आपके गले लगना चाहती हूं।”

स्थेनो ने शैफाली को गले से लगाते हुए कहा- “अभी जिंदगी बहुत बड़ी है, हमारी बातें तो होतीं ही रहेंगी, पर पहले तुम्हारी स्मृतियों का वापस लाना बहुत जरुरी है।”

यह कहकर स्थेनो ने ऐलेक्स को बोतल खोलने का इशारा किया।

ऐलेक्स ने एक झटके से बोतल के मुंह पर लगा ढक्कन हटा दिया।

ढक्कन के हटाते ही आसमान में एक जोर की बिजली कड़की और बोतल का सारा धुंआ निकलकर शैफाली के सिर पर नाचने लगा।

अब वह धुंआ धीरे-धीरे शैफाली के दिमाग में प्रवेश करता जा रहा था और इसी के साथ शैफाली के चेहरे के भाव भी बदलते जा रहे थे।

शैफाली के चेहरे के भाव को देखकर साफ लग रहा था कि उसे इस समय एक पीड़ादायक अहसास से गुजरना पड़ रहा है।

कुछ देर में पूरा का पूरा धुंआ शैफाली के दिमाग में समा गया और शैफाली जमीन पर बेहोश होकर गिर पड़ी।

क्रिस्टी ने तुरंत शैफाली के मुंह पर पानी का छिड़काव किया तो शैफाली को होश आ गया।

उसने सबसे पहले एक बार पास में खड़े सभी लोगों को ध्यान से देखा और फिर मुस्कुरा दी। उसकी मुस्कुराहट इस बात का सबूत थी कि अब वह बिल्कुल ठीक है।

शैफाली की स्मृतियां आ जाने के बाद भी वह शैफाली के जैसे ही व्यवहार कर रही थी, और यही बात सभी को भा गयी थी।

कुछ देर तक बात करने के बाद स्थेनो वहां से चली गयी।

“शैफाली, आपका पंचशूल अब किसी और को प्राप्त हो गया है।” युगाका ने कहा।

“कोई बात नहीं, अब तो कुछ दिनों के बाद काला मोती मेरे पास होगा, फिर मुझे पंचशूल की कोई आवश्यकता नहीं रहेगी और हां कैप्टेन अंकल उस खरगोश की मदद के लिये धन्यवाद, क्यों कि उसने आपको वही ‘अटलांटिस की रिंग’ दी है, जिसे पहनकर मेरी माँ ने अटलांटिस का निर्माण किया था।

"इस अंगूठी की तलाश में हजारों लोगों ने अपनी जान गंवा दी, पर किसी को इस अंगूठी के बारे में पता नहीं चला। चूंकि यह अंगूठी कोई देवकन्या ही पहन सकती थी, इसलिये यह आपकी उंगली में फिट नहीं हो पा रही थी और...और वह ज्वालामुखी में मिला ड्रैगन का सोने का सिर मेरे पिता का था, जिसे मैंने ही मैग्ना के रुप में वहां छिपाया था।” शैफाली ने कहा।

“एक बात पूंछू शैफाली।” क्रिस्टी ने कहा- “अब अगर तुम्हें सबकुछ याद आ ही गया है, तो तुम कैस्पर से कह के बिना तिलिस्मा को तोड़े ही काला मोती क्यों नहीं प्राप्त कर लेती? एक झटके से सारी समस्या ही
खत्म हो जायेगी।”

“ऐसा अब सम्भव नहीं है, कैस्पर ने पूरे तिलिस्मा का कंट्रोल एक स्वयं की बनाई हुई मशीन को दे दिया है। अब कैस्पर तिलिस्मा के कंट्रोल रुम में बैठकर सबकुछ देख तो सकता है, पर मेरी कोई मदद नहीं कर सकता और मुझे लग रहा है कि वह इस समय, मुझसे 5000 किलोमीटर से भी ज्यादा दूर है, इसलिये उसे मेरे आने का पता भी नहीं चला है। अगर वह कहीं भी पास में होता, तो तिलिस्मा में प्रवेश करने से पहले मुझसे मिलने जरुर आता।” शैफाली ने कहा।

“अच्छा अब मुझे भी जाने की आज्ञा दीजिये, अब आप लोगों से तिलिस्मा के टूटने के बाद ही मुलाकात होगी।” युगाका ने कहा।

सुयश ने सिर हिलाकर युगाका को भी जाने का इशारा कर दिया।

सुयश का इशारा पाकर युगाका भी वहां से चला गया, पर अब युगाका को पूरा विश्वास हो गया था कि तिलिस्मा अब टूटने ही वाला है और यह सारी बातें वह जल्द से जल्द कलाट को बताना चाहता था।

युगाका के जाने के बाद सभी फिर से बातें करने लगे।

“अच्छा एक बात बताओ शैफाली।” सुयश ने शैफाली से कहा- “मायावन में घुसते समय उस नीले फल वाले वृक्ष ने तुम्हें वह सारे फल क्यों दे दि ये थे?”

“वह सभी पेड़ मुझे पहचान गये थे।” शैफाली ने उत्तर दिया- “पेड़ों में बहुत सी ऐसी शक्तियां भी होती हैं, जिसे साधारण इंसान कभी जान ही नहीं पाता।”

“और वह मगरमच्छ मानव भी तुम्हें पहचान गया था क्या? जिसने जेनिथ पर आक्रमण किया था।” क्रिस्टी ने पूछा।

“जब मैंने जलोथा पुकारा, तब वह मुझे पहचान गया। मैंने ही उसे शक्तियां प्रदान कर वन के सुरक्षा के लिये झील में रखा था।” शैफाली ने कहा।

“और वह जमीन पर मिलने वाले पत्थर भविष्य कैसे बता लेते थे?” जेनिथ ने पूछा।

“मेरी माँ माया भविष्य देख लेती हैं, उन्होने ही मुझे वो सारे पत्थर दिये थे और कहा था कि इसे वन के किसी कोने में लगा देना, यह भविष्य में तुम लोगों का मार्गदर्शन करेगे।”

शैफाली ने माया को याद करते हुए कहा- “और मुझे अच्छा लगा कि वो आज भी मुझे देख रहीं हैं, तभी तो उन्होंने ऐलेक्स भैया को शक्तियां देकर मेरी स्मृति लाने नागलोक भेजा था।”

यह कहकर शैफाली ने हवा में अपनी माँ के नाम पर ‘फ्लांइग किस’ उछाल दिया।

“शक्तियों से याद आया। ऐलेक्स भैया क्या वह शक्तियां अभी भी आपके पास हैं?” शैफाली ने ऐलेक्स की ओर देखते हुए कहा।

“अभी तक तो हैं, पर जितना मैंने सुना, यह सभी शक्तियां तिलिस्मा में काम नहीं आने वालीं। वहां पर सिर्फ अपना दिमाग चलेगा।”

ऐलेक्स ने स्टाइल मारते हुए कहा- “और हां, मैं सबके मन की बातें भी सुन सकता हूं, इसलिये जरा ध्यान से मेरे बारे में सोचना।”

ऐलेक्स ने आखिरी के शब्द क्रिस्टी की ओर देखते हुए कहा।

“अच्छा तो बताओ कि मेरे मन में अभी क्या चल रहा है ऐलेक्स?” क्रिस्टी ने इठलाते हुए पूछा।

“तुम्हारे मन में चल रहा है कि..... कि....।” पर ऐलेक्स उन बातों को बोल नहीं पाया, क्यों कि क्रिस्टी उसे सबके सामने किस करने के बारे में सोच रही थी।

“क्या हुआ ऐलेक्स कि...कि....के बाद तुम्हारी ट्रेन पटरी से क्यों उतर गई?” क्रिस्टी ने पूरा मजा लेते हुए कहा।

ऐलेक्स ने क्रिस्टी को घूरकर देखा, पर कुछ कहा नहीं।

“चलो अब सभी लोग सो जाओ, रात काफी हो गई है।” सुयश ने सोने का ऐलान कर दिया।

सभी छोटे-छोटे ग्रुप बना कर आस-पास सो गये।

जो भी हो, आज का दिन वास्तव में खुशियों का दिन था, पर अगला दिन उनकी जिंदगी में क्या बदलाव करने वाला था? यह किसी को नहीं पता था? वह सभी तो बस आज को जी रहे थे।


जारी रहेगा_______✍️
Beautiful update and awesome story
 

Raj_sharma

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तीसरे द्वार के अंदर एक योद्धा स्त्री और पुरुष, काले रंग का धातु का कवच पहने सावधान की मुद्रा में खड़े थे। दोनों के ही कवच पर सामने की ओर एक गोले में मुंह खोले नाग का फन बना था।

दूर से देखने पर ही दोनों कोई पौराणिक योद्धा लग रहे थे।

ऐलेक्स को अपनी ओर देखता हुआ पाकर पुरुष योद्धा बोल उठा- “मेरा नाम पिनाक और इसका नाम शारंगा है। हमारे पास देव शक्तियां हैं। तुम अभी तक तो दोनों द्वार पारकर यहां आ पहुंचे हो, पर मेरा वादा है कि हम तुम्हें इस द्वार को पार करने नहीं देंगे।”

“कुछ ऐसा ही पिछले द्वार मौजूद नागफनी और प्रमाली भी कह रहे थे।” ऐलेक्स ने हंसकर कहा।

“तो फिर बातों में समय नष्ट नहीं करते हैं, तुम द्वार के अंदर घुसने की कोशिश करो और हम देखते हैं कि हम तुम्हें रोक पायेंगे कि नहीं।” पिनाक ने कहा।

“ठीक है।” यह कहकर ऐलेक्स अगले द्वार की ओर बढ़ा।

तभी पिनाक के हाथ से कई जहरीले साँप निकलकर ऐलेक्स के पैरों में लिपट गये। आगे बढ़ता हुआ ऐलेक्स लड़खड़ा कर रुक गया।

उसने एक नजर पैर में लिपटे साँपों की ओर देखा और इसी के साथ ऐलेक्स के पैर में फिर से बड़े-बड़े काँटे उभर आये। जिससे उसके पैर को बांधे हुए सभी साँप जख्मी हो गये और उन्होंने ऐलेक्स के पाँव को छोड़ दिया।

यह देख शारंगा के हाथ में एक फरसा जैसा अस्त्र नजर आने लगा, शारंगा ने वह अस्त्र ऐलेक्स पर फेंक कर मार दिया।

ऐलेक्स ने शारंगा के अस्त्र फेंकते देख लिया था, पर फिर भी उसने हटने की कोशिश नहीं की।

शारंगा का फेंका हुआ फरसा ऐलेक्स की गर्दन से आकर टकराया।

एक तेज ध्वनि के साथ ऐलेक्स के शरीर से चिंगारी निकली पर ऐलेक्स के शरीर को कोई अहित नहीं हुआ।

“इसके पास तो महा देव की शक्ति है।” शारंगा ने हैरान होते हुए पिनाक से कहा।

“ये कैसे सम्भव है? ये तो साधारण मनुष्य लग रहा है और ऊपर से दूसरे देश का भी लग रहा है, इसके पास देव की शक्तियां कैसे आयेंगी?” पिनाक ने कहा।

चूंकि पिनाक और शारंगा मानसिक तरंगों के द्वारा बात कर रहे थे इसलिये उन्हें लग रहा था कि ऐलेक्स को ये बातें सुनाई नहीं दे रही होंगी।

पर ऐलेक्स के कान की इंद्रिय की क्षमता बढ़ जाने की वजह से, वह मानसिक तरंगें तो क्या मन की बात भी सुन सकता था।

पर ऐलेक्स ने पिनाक और शारंगा पर ये बात जाहिर नहीं होने दी कि उसे उन दोनों की बात सुनाई दे रही है। वह चुपचाप से सारी बातें सुन रहा था।

लेकिन उन दोनों की बातें सुन ऐलेक्स ये समझ गया था कि यह दोनों बुरे इंसान नहीं हैं, इसलिये ऐलेक्स उन दोनों का अहित नहीं करना चाहता था।

इस बार पिनाक ने हवा में हाथ किया। ऐसा करते ही उसके हाथ एक सुनहरे रंग की रस्सी आ गयी, जिसे उसने ऐलेक्स की ओर फेंक दिया।

वह सुनहरी रस्सी किसी सर्प की तरह आकर ऐलेक्स के पूरे शरीर से लिपट गयी।

ऐलेक्स ने ध्यान से देखा, वह पाश बहुत सारे सुनहरे सर्पों से ही निर्मित था।

“यह नागपाश है। यह देवताओं का अस्त्र है। तुम अपने शरीर पर काँटे निकालकर भी इस अस्त्र से बच नहीं सकते। इस ‘पाश’ में हजारों सर्पों की शक्ति है, इस शक्ति को गरुण के अलावा कोई भी नहीं काट
सकता। तुम अपने शरीर को बड़ा छोटा भी करके इस शक्ति से नहीं बच सकते।” पिनाक के शब्द अब पूर्ण विश्वास से भरे नजर आ रहे थे।

“तुम्हें पूर्ण विश्वास है कि मैं इस शक्ति से नहीं छूट सकता?” ऐलेक्स ने पिनाक से कहा।

“हां, पूर्ण विश्वास है।” पिनाक ने अपने सिर को हिलाते हुए कहा।

“अगर मैं इस शक्ति से छूट गया तो क्या तुम मुझे वो चीज ले जाने दोगे? जो मैं लेने यहां पर आया हूं।” ऐलेक्स ने भी मुस्कुराते हुए कहा।

“ठीक है। दे दूंगा, पर अगर तुम इस शक्ति से नहीं छूट पाये तो तुम अपने आप को हमारे हवाले कर दोगे और हमसे युद्ध नहीं करोगे।” पिनाक ने कहा।

शारंगा सबकुछ शांति से बैठी सुन रही थी। वैसे उसे पिनाक की यह शर्त पसंद नहीं आयी थी, पर उसने बीच में टोकना सही नहीं समझा।

“मुझे मंजूर है।” ऐलेक्स ने शर्त को स्वीकार कर लिया।

“तो फिर तुम्हारे पास इस नागपाश से निकलने के लिये 1 घंटे का समय है। अब कोशिश करके देख सकते हो।” पिनाक ने गर्व भरी नजरों से अपने अस्त्र को निहारते हुए कहा।

शारंगा की नजरें पूरी तरह से ऐलेक्स पर थीं।

अभी 30 सेकेण्ड भी नहीं बीते थे कि उस नागपाश ने ऐलेक्स को छोड़ दिया, जबकि ऐलेक्स ने अपने शरीर से काँटे भी नहीं निकाले थे।

यह देख पिनाक के पैरों तले जमीन निकल गयी।

“यह....यह तुमने कैसे किया?” पिनाक ने अपने हथियार डालते हुए कहा।

“तुमने स्वयं मुझे इस नागपाश से बचने का तरीका बताया और स्वयं ही आश्चर्य व्यक्त कर रहे हो।” ऐलेक्स के होठों पर अब गहरी मुस्कान थी।

“मैंने!....मैंने कब बताया ?” पिनाक के चेहरे पर उलझन के भाव नजर आये।

“अरे....तुमने ही तो कहा था कि इस शक्ति को तो केवल गरुण ही काट सकता है, फिर क्या था, मैंने अपने शरीर की त्वचा को गरुण के समान बना लिया, जिससे स्वयं ही नागपाश के सभी सर्प भयभीत होकर भाग गये।”

ऐलेक्स ने कहा- “और अब शर्त के मुताबिक अब तुम मुझे आगे वाले कमरे से लाकर एक बोतल दोगे, जो विषाका यहां लाकर छिपा गया है।”

“बोतल...तुम्हें उस कमरे में रखे सैकड़ों दिव्यास्त्र के बजाय सिर्फ एक साधारण सी बोतल चाहिये?” इस बार पिनाक के साथ शारंगा भी आश्चर्य में पड़ गयी।

शर्त के अनुसार पिनाक दूसरे कमरे में रखी बोतल ले आया और उसे ऐलेक्स के हाथ में पकड़ा दिया।

“क्या मैं पूछ सकती हूं कि इस बोतल में ऐसा क्या है? जिसे लेने तुम इतनी खतरनाक जगह पर आ गये?” शारंगा ने ऐलेक्स से पूछा।

“इस बोतल में मेरी बहन की स्मृतियां हैं, जिन्हें विषाका मुझे धोका देकर लेकर भाग आया था।” ऐलेक्स ने बोतल को देखते हुए कहा।

“तुम्हारे यहां आने का उद्देश्य गलत नहीं था, तुम इंसान भी सही लग रहे हो। क्या मैं पूछ सकता हूं कि तुम्हें ये देव शक्तियां कहां से प्राप्त हुईं?” पिनाक ने ऐलेक्स को जाता देख आखिरी सवाल पूछ लिया।

“मुझे भी इन देव शक्तियों के बारे में ज्यादा नहीं पता। मुझे भी ये देव शक्तियां सिर्फ इस कार्य को पूरा करने के लिये ही मिली हैं। अच्छा अब मैं चलता हूं...और हां...विषाका मिले तो उसे बता देना कि ऐलेक्स आया था और वह यह बोतल ले गया। इसलिये जब वो किसी को मेरी कहानी सुनाए तो इस कहानी का अंत जरुर बताये।”

ऐलेक्स के ये शब्द पिनाक और शारंगा को समझ नहीं आये, पर उन्होंने ऐलेक्स को फिर नहीं टोका।

ऐलेक्स ने अब अपनी जेब से निकालकर स्थेनों का दिया दूसरा फल खा लिया और कणों में बदलकर मायावन की ओर चल दिया, पर जाते समय वह खाली हाथ नहीं था। उसके पास थी मैग्ना की स्मृतियां।

ऐलेक्स अपनी गलती को सुधार लिया था और शायद नागलोक के इतिहास के पन्नों में अपनी उपस्थिति भी दर्ज करवा दी थी।

तिलिस्मी अंगूठी:
(14 जनवरी 2002, सोमवार, 17:20, मायावन, अराका द्वीप)

सुयश सहित सभी हेफेस्टस के द्वारा बनाई गयी उन अद्भुत चीजों से झरने वाले पर्वत से उतरकर नीचे आ गये थे।

नीचे आते ही वह सभी जादुई वस्तुएं अपने आप हवा में गायब हो गईं थीं, मगर अब इन लोगों को उन जादुई वस्तुओं की जरुरत भी नहीं थी, क्यों कि एक छोटे से पहाड़ के बाद आगे पोसाईडन पर्वत नजर आने लगा था।

शाम होने वाली थी, इसलिये सभी ने उस छोटे से पहाड़ के नीचे एक हरे-भरे बाग में रात बिताने का निर्णय लिया।

उस हरे-भरे बाग में छोटे-छोटे पेड़ों के बीच कुछ गिलहरियां और खरगोश कूद रहे थे।

सूरज अब अस्त ही होने वाला था, पर आसमान में सूरज के आगे कुछ सफेद बादलों की टुकड़ी सूरज के साथ लुका छिपी का खेल, खेल रहे थे।

आज बहुत दिन बाद सुयश को थोड़ा रिलैक्स महसूस हो रहा था, शायद ऐसा शलाका के मिलने के कारण हुआ था।

तौफीक, जेनिथ, क्रिस्टी और शैफाली भी हंस-हंस कर आपस में बातें कर रहे थे।

सुयश इस समय थोड़ी देर अकेले बैठना चाहता था, इसलिये उनसे कुछ दूर आकर, एक छोटी सी चट्टान पर बैठकर, सूरज और बादल की लुका छिपी देखने लगा।

बड़ा ही अद्भुत नजारा था, कभी सूरज की किरणें आकर सुयश के माथे और आँखों पर टकरातीं तो कभी गायब हो जातीं।

तभी आसमान से सूरज की एक पतली किरण जमीन पर आयी, और एक स्थान पर गिरने लगीं।

सुयश की नजरें अनायास ही उस स्थान पर पड़ीं, जहां सूरज की किरणें गिरकर एक चमक बिखेर रही थी।

सुयश को उस स्थान पर कुछ सफेद रंग का पड़ी हुई चीज दिखाई दी।

सुयश उस चट्टान से उठा और उस चीज की ओर बढ़ चला।

पास पहुंचने पर पता चला कि वह एक सफेद प्यारा सा खरगोश था, जिसकी पीठ से खून निकल रहा था और वह जमीन पर मूर्छित पड़ा हुआ था।

“यहां इस खरगोश को किसने मार दिया?” सुयश ने यह सोच उस खरगोश को अपने हाथों में उठा लिया।

खरगोश की पीठ पर एक घाव था, जो शायद किसी हमला करने वाले पक्षी के काटने से हुआ था।

तभी सुयश को एक और नन्हा खरगोश एक छोटे से पेड़ के पास दिखाई दिया, जो अपने 2 पैरों पर खड़ा होकर सुयश की ओर ही देख रहा था।

“लगता है कि यह मादा खरगोश है और वह नन्हा खरगोश इसका बच्चा है।” कुछ सोचकर सुयश अपने दोस्तों की ओर बढ़ गया।

“अरे कैप्टेन, यह खरगोश कहां से मार लाये, आज मांसाहारी खाना खाने का मन है क्या?” तौफीक ने सुयश के हाथ में पकड़े खरगोश को देखते हुए पूछा।

“अरे नहीं-नहीं...मैंने इसे नहीं मारा, इसे शायद किसी पक्षी ने घायल कर दिया है, मैं तो इसकी ड्रेसिंग करने जा रहा हूं।” यह कहकर सुयश ने बैग खोलकर एक फर्स्ट एड का पैकेट निकाल लिया।

तभी शैफाली की नजर दूसरे छोटे से खरगोश पर पड़ी- “अरे यह छोटा खरगोश भी आपके पीछे-पीछे आ गया।”

“वह नन्हा खरगोश शायद इसका बच्चा है, जो इसे अकेले नहीं छोड़ना चाहता।” सुयश ने बड़े खरगोश की पीठ पर दवा लगाते हुए कहा- “माँ और बच्चे का रिश्ता इस दुनिया का सबसे प्यारा रिश्ता है। दोनों एक
दूसरे से कभी अलग नहीं होना चाहते।”

सुयश की बातें सुन शैफाली को भी मारथा की याद आ गयी- “आप सही कह रहे हैं कैप्टेन अंकल।”

सुयश उदास शैफाली को देख समझ गया कि शैफाली को अपने पैरेंट्स की याद आ रही है, इसलिये सुयश ने बात बदलने के लिये कहा-
“अरे शैफाली, देखो जरा वह नन्हा खरगोश तुम्हारे पास आता है कि नहीं?”

सुयश की बात सुन शैफाली उस नन्हें खरगोश की ओर बढ़ी, पर नन्हा खरगोश शैफाली से डरकर पीछे हटने लगा।

तब तक सुयश ने मादा खरगोश की पट्टी भी कर दी, अब वह मादा खरगोश थोड़ा चैतन्य हो गयी थी और सुयश को देख कर कुछ समझने की कोशिश कर रही थी।

“चलो, अब इसे इसके घर तक छोड़ आते हैं।”सुयश ने शैफाली को देखते हुए कहा।

“पर आप इसका घर कैसे ढूंढोगे?” शैफाली ने पूछा।

“अरे वह है ना नन्हा गाइड। देखो कैसे आगे-आगे कूद रहा है।” सुयश ने शैफाली को नन्हें खरगोश की ओर इशारा करते हुए कहा।

नन्हा खरगोश सच में इस तरह कूदते हुए आगे चल रहा था, जैसे कि वह सुयश को रास्ता दिखा रहा हो।

यह देख शैफाली मुस्कुरा दी और सुयश के पीछे-पीछे चलने लगी।

नन्हा खरगोश कुछ दूर जा कर एक पेड़ के पास बने बिल के पास रुक गया। उसने पलटकर एक बार सुयश को देखा और फिर कूदकर उस बिल के अंदर चला गया।

सुयश ने मादा खरगोश को भी धीरे से उस बिल के पास रख दिया।

मादा खरगोश उठी और धीरे-धीरे चलते हुए उस बिल के अंदर चली गयी।

“अरे वाह कैप्टेन अंकल, आपने तो आज के दिन का सबसे अच्छा काम किया है।” शैफाली ने खुश होते हुए कहा।

सुयश मुस्कुराया और उठकर वापस चलने लगा। तभी सुयश को अपने पीछे से एक ‘चूं-चूं’ की आवाज सुनाई दी।

आवाज को सुन सुयश ने पीछे पलटकर देखा, उसके पीछे वही नन्हा खरगोश था, जो अपने आगे के दोनों हाथों में कोई सुनहरी चीज पकड़े हुए था।

उसे देख सुयश ने मुस्कुरा कर कहा- “अरे वाह, हमारा नन्हा दोस्त हमारे लिये कोई गिफ्ट लाया है।” सुयश उस नन्हें खरगोश के सामने अपने घुटनों के बल बैठ गया।

नन्हा खरगोश धीरे-धीरे 2 पैरों पर चलता हुआ सुयश के हाथ के पास आया और उसने सुयश के हाथ पर कोई सुनहरी चीज रख दी।

सुयश ने उस चीज को देखा, वह एक सुनहरे रंग की धातु की बनी एक अंगूठी थी, जिसके आगे एक गोल काले रंग का रत्न लगा था।

पूरी अंगूठी तेज चमक बिखेर रही थी।

सुयश को खुश देख वह नन्हा खरगोश फुदकता हुआ, अपने बिल की ओर चल दिया। सुयश आश्चर्य से कभी उस नन्हें खरगोश को, तो कभी अपने हाथ में पकड़ी उस सुनहरी अंगूठी को देख रहा था।

“अरे वाह कैप्टेन अंकल, नन्हें दोस्त नें तो आपको बहुत ही कीमती उपहार दिया है।” शैफाली ने अंगूठी को देखते हुए कहा- “जरा पहनकर दिखाइये तो कि यह आपके हाथ में कैसी लगेगी?”

शैफाली की बात सुन सुयश ने उस अंगूठी को अपने सीधे हाथ की ‘रिंग फिंगर’ में पहनने की कोशिश की, पर वह अंगूठी उसकी उंगली में ढीली पड़ रही थी।

यह देख सुयश ने उसे ‘मिडिल फिंगर’ में पहनने की कोशिश की, पर वह उस उंगली में भी ढीली पड़ रही थी।

“यह मेरे हाथ में फिट नहीं हो रही, शायद यह किसी विशाल हाथ के लिये बनी है।” सुयश ने अंगूठी को देखते हुए कहा।

“जरा मुझे भी दिखाइये कैप्टेन अंकल।”शैफाली ने अंगूठी को देखने की रिक्वेस्ट की।

सुयश ने वह अंगूठी शैफाली को दे दी।

“वाह! कितनी सुंदर अंगूठी है, काश ये मेरी उंगली में फिट हो पाती!” यह कहकर शैफाली ने जैसे ही अपने बांये हाथ की ‘रिंग फिंगर’ में वह अंगूठी डाली, वह अंगूठी शैफाली के बिल्कुल फिट बैठ गयी।

ऐसा लग रहा था कि जैसे वह अंगूठी शैफाली के लिये ही बनी थी।
यह देख सुयश और शैफाली दोनों ही आश्चर्य से भी उठे।

“शैफाली, यह अंगूठी अब तुम अपने ही पास रख लो, यह तुम्हें अच्छी भी लग रही थी और तुम्हारी उंगली में फिट भी हो रही है। मुझे तो ऐसा लगता है कि इस अंगूठी में भी कोई रहस्य छिपा होगा?” सुयश ने
कहा।

शैफाली ने खुशी-खुशी सिर हिलाया और किसी बच्चे की तरह उछलते-कूदते जेनिथ की ओर चल दी।



जारी रहेगा
_________✍️
Alex ne shefali ki smartiya naag lok se hasil to kar li ab ye dekhna hai ki wo un sab ke paas kab pahucbta hai?
Ek baat to maan ni padegi ye alex saala hai namoona😁 khair ye ring ka kya locha hai? Jo suyash ko dheeli thi, per shefali ke najuk haath me aasani se aagai??🤔 kuch to lafda hai. Ek cheej dimaak me aa rahi hai, kahi ye wo ring to nahi jo kaala moti ke sath milkar nirmaan karti hai, jo kleeto ke pas thi??:?:🤔 awesome update and mind blowing writing bhai ji 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
 
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#138.

त्रिकाली का विवाह:
(14 जनवरी 2002, सोमवार, 17:50, सामरा राज्य, अराका द्वीप)

व्योम को सामरा महल में रहते आज दूसरा दिन था। सामरा राज्य का विज्ञान और वहां के लोगों का काम करने का तरीका व्योम को बहुत अच्छा लगा था।

व्योम जब भी महल में कहीं निकलता था, तो सभी सैनिक झुककर व्योम को अभिवादन करते। व्योम को यह सब किसी सपने सरीखा लग रहा था।

धीरे-धीरे व्योम को अपने अंदर की गुरुत्व शक्ति का भी अहसास हो गया था।

व्योम ने इस समय युगाका के शाही कपड़ों को पहन रखा था, जो देखने में तो अच्छे थे, पर थोड़े छोटे थे।

शायद वह कपड़े युगाका सोते समय पहनता था। इन कपड़ों में व्योम इस समय किसी ड्रामा कंपनी का नमूना दिख रहा था।

त्रिकाली ने अभी तक व्योम को अपने परिवार के किसी भी व्यक्ति से मिलाया नहीं था।

इस समय भी वह महल के एक विशाल शयनकक्ष में बैठा, अपनी पुरानी जिंदगी और इस नयी जिंदगी के परिवर्तनों को आंकने की कोशिश कर रहा था, कि तभी त्रिकाली उसके कमरे में प्रविष्ठ हुई।

त्रिकाली ने इस समय एक नीले रंग का लंबा सा गाउन पहन रखा था। उस नीले गाउन में सुनहरे सितारे जड़े हुए थे।

इस गाउन में त्रिकाली किसी स्वर्ग की अप्सरा सी प्रतीत हो रही थी।

व्योम की नजर जैसे ही त्रिकाली पर पड़ी, वह अपलक उसे निहारने लगा।

“इस तरह क्या देख रहे हो? कभी किसी सुंदर स्त्री को नहीं देखा क्या?” त्रिकाली ने अपने चेहरे पर एक शोख मुस्कान बिखेरते हुए कहा।

“सुंदर तो बहुत सी स्त्रियों को देखा है, पर किसी अप्सरा को इतने पास से कभी नहीं देखा।” व्योम ने भी अपने भावों को उजागर करते हुए कहा।

“अरे वाह! आप तो प्यार की भाषा भी जानते हैं।” त्रिकाली ने अपने माथे पर आयी लटों को, उंगली से पीछे करते हुए कहा- “अब जरा तुरंत तैयार हो जाइये....आप से मिलने बाबा और भाई आ रहे हैं।”

“मुझसे मिलने?....प...पर मैंने क्या किया है?” व्योम ने घबराते हुए कहा- “मैं उनसे साफ-साफ बोल दूंगा कि तुम ही मुझे जबरदस्ती यहां पर लायी हो।”

“पर...मैंने तो अपने बाबा से बोल दिया है कि मैंने तुम्हारे साथ शादी कर ली।” त्रिशाली ने अपनी आँखों को गोल-गोल नचाते हुए कहा।

“क्याऽऽऽऽऽ? शादी!” शादी की बात सुनकर व्योम एका एक घबरा सा गया- “मैंने नहीं की तुमसे शादी...। तुमने झूठ क्यों बोला?”

“अरे बुद्धू घबराओ नहीं...पहले जाकर 5 मिनट में तैयार हो जाओ... बाबा और भाई बस आते ही होंगे।” त्रिकाली ने व्योम को धक्का देते हुए कहा।

“पर अब तैयार क्या होना? मैं सुबह नहा चुका हूं और यह कपड़े भी मुझे आरामदायक लग रहे हैं। मैं इन्हीं कपड़ों में तुम्हारे बाबा और भाई से मिल लूंगा।”व्योम ने भी जिद पकड़ते हुए कहा।

तभी शयनकक्ष के बाहर खड़े एक सैनिक ने जोर से आवाज लगाकर कलाट और युगाका के आने की पुष्टि की।

त्रिकाली घबराकर व्योम से थोड़ा दूर खड़ी हो गई।

व्योम के चेहरे पर डर के निशान साफ दिख रहे थे।

हमेशा से ही व्योम बडे़-बड़े काम को तो आसानी से अंजाम देता था, पर लड़की के मामले में उसकी आवाज निकलनी बंद हो जाती थी।

तभी शयनकक्ष में कलाट, युगाका, किरीट, रिंजो और शिंजो ने प्रवेश किया।

व्योम ने झुककर सभी का अभिवादन किया, पर रिंजो-शिंजो को वहां देख वह अपनी हंसी रोकने की कोशिश कर रहा था।

सभी वहां रखी आरामदायक कुर्सियों पर बैठ गये। त्रिकाली कलाट की कुर्सी के पीछे जाकर खड़ी हो गयी।

कलाट की अनुभवी निगाहें और युगाका की तीखी नजरें व्योम का ऊपर से नीचे तक एक्स-रे कर रहीं थीं।

उन्हें इस प्रकार से घूरते देख व्योम बोल उठा- “जी मेरा नाम व्योम है। मैं वैसे तो मूलतः भारत का रहने वाला हूं, पर अभी अमेरिका में रह रहा हूं।”

“भारत? तुम भारत के रहने वाले हो?” त्रिकाली ने आश्चर्य से कहा- “तुमने पहले तो नहीं बताया...फिर तो तुम्हें हिन्दी भाषा भी आती ही होगी?”

“आपने मुझसे पूछा नहीं और मैंने आपको अंग्रेजी भाषा में बोलते देख, स्वयं भी अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करने लगा।” व्योम ने त्रिकाली को देखते हुए कहा- “वैसे मुझे हिन्दी भाषा आती है।”

“इसे खुश रख पाओगे?” कलाट ने त्रिकाली की ओर इशारा करते हुए कहा।

“म...म....मैं इसे...मेरा मतलब है कि इन्हें क्यों खुश रखूंगा?” व्योम ने घबराते हुए कहा।

“क्यों शादी के बाद इसे कोई दूसरा खुश रखेगा क्या?” युगाका ने व्योम को घूरते हुए कहा।

“क....किसकी शादी?” पहले व्योम को लगा था कि त्रिकाली उससे हंसी मजाक करके शादी की बात कर रही थी, पर अब उसे सब बातें सीरियस दिखने लगीं थीं।

“अरे तुम्हारी शादी, त्रिकाली के साथ.....तुम शादी कर चुके हो ना त्रिकाली के साथ? तुम्हें कुछ पता भी है या नहीं?” कलाट ने नाराज होते हुए कहा।

“म....म....मैंने कब की शादी?” अब व्योम पूरा घबरा गया।

“तुमने देवी की मूर्ति के सामने इसे रक्षा सूत्र बांधा था ना?” कलाट ने फिर जोर से पूछा- और फिर देवी से आशीर्वाद भी लिया था, फिर तुम क्यों कह रहे हो कि तुम्हारी शादी इसके साथ नहीं हुई?”

अब व्योम को सबकुछ समझ आ गया, जिसे वह रक्षा कवच समझ कर त्रिकाली के गले में बांध रहा था, वह रक्षा कवच नहीं बल्कि शादी का रक्षा सूत्र था और त्रिकाली ने जानबूझकर उसके साथ ऐसा किया था।

वैसे व्येाम को त्रिकाली बहुत पसंद थी, पर इस प्रकार से उसका विवाह होगा, यह बात उसे सपने में भी नहीं पता थी।

व्योम के ऐसे जवाब सुन कलाट त्रिकाली की ओर घूमकर बोला- “देवी ने इस शादी को मंजूरी दी भी थी या नहीं?....इसे तो कुछ मालूम ही नहीं है?... यह तो पूरा नमूना है। कहीं इसकी बिना जानकारी में आये तो तुमने इससे शादी नहीं कर ली?”

“उन्हें कुछ मत कहिये, उन्होंने मुझसे शादी के लिये पूछा था और मेरी मंजूरी के बाद ही हमारा विवाह हुआ था।” अचानक से व्योम का सुर बदल गया- “और हां...मैं नमूना नहीं हूं...और मेरी शादी के बाद आप
मेरी पत्नि को नहीं डांट सकते।”

व्योम के ऐसे शब्द सुन त्रिकाली हैरानी से व्योम को देखने लगी। दोनों की नजरें मिलीं, व्योम ने धीरे से अपनी पलकें झपका कर त्रिकाली को निश्चिंत रहने का इशारा किया।

त्रिकाली अब बहुत खुश थी, एक पल में ही मानों वह आसमान में उड़ने लगी थी।

“तुम कोई हथियार चला भी पाते हो? या फिर खाली हाथ ही इसकी रक्षा करोगे।” यह कहकर युगाका ने खड़े हो कर शयनकक्ष में मौजूद एक भाले को खींचकर व्योम की ओर मारा।

व्योम ने एक तरफ हटकर उस भाले से अपना बचाव किया। अब व्योम के चेहरे पर गुस्से की लकीरें उभर आयीं और उसके हाथ में अब चमकता हुआ पंचशूल प्रकट हो गया।

पंचशूल से निकल रहे तीव्र प्रकाश ने पूरे कमरे में उजाला फैला दिया। युगाका पंचशूल को देखकर अपनी पलके झपकाना भी भूल गया।

तभी कलाट के मुंह से बुदबुदाहट निकली- “महाशक्तिऽऽऽऽऽ!”

त्रिकाली ने किसी भी अनिष्ट के होने के पहले ही व्योम को चीखकर रोक दिया- “रुक जाओ व्योम, महाशक्ति का प्रयोग मत करना, युगाका मेरा भाई है।

त्रिकाली की चीख सुन व्योम का गुस्सा अब शांत हो गया। इसी के साथ व्योम के हाथ में पकड़ा पंचशूल हवा में विलीन हो गया।

युगाका का सारा घमंड अब चूर हो गया था। अब वह शांत होकर कुर्सी पर बैठ गया, पर उसके चेहरे पर अब निश्चिंतता के भाव थे। शायद वो समझ चुका था कि त्रिकाली के लिये इससे बेहतर कोई नहीं मिलता।

“बैठ जाओ बेटे...दरअसल हम तुम्हारी परीक्षा ले रहे थे।” कलाट ने व्योम को बैठने का इशारा किया- “हम हमेशा से चाहते थे कि त्रिकाली का विवाह किसी योग्य व्यक्ति के साथ हो। वैसे भी तुम्हारे सामरा राज्य में आने की सूचना हमें पहले ही महावृक्ष से मिल चुकी थी। ... तुम भी आकर व्योम के पास बैठ जाओ त्रिकाली ...आज मैं तुम लोगों के सामने कुछ रहस्य की बात बताना चाहता हूं। इस रहस्य को खोलने का ये सर्वोत्तम समय है।”

कलाट की बातें सुन त्रिकाली और युगाका दोनों ही आश्चर्य से भर उठे। वो सोचने लगे कि बाबा आज कौन सा रहस्य उनके सामने खोलने जा रहे हैं? त्रिकाली आगे बढ़कर व्योम के बगल में बैठ गई।

त्रिकाली को बैठते देख कलाट ने बोलना शुरु कर दिया- “बच्चों आज मैं तुम लोगों को एक सच्ची कहानी सुनाने जा रहा हूं, यह कहानी है हिमालय पर्वत पर स्थित 2 ऐसे राज्यों की, जिनमें आपस में वर्चस्व की लड़ाई चलती रहती थी। एक राज्य का नाम ‘हिमावत’ था और दूसरे का ‘कालीगढ़’। दोनों ही राज्य साधारण दुनिया से अलग बर्फ की घाटी में बसे थे।

"आज से 26 वर्ष पहले दोनों राज्यों के राजाओं ने इस लड़ाई को खत्म करने के लिये अपने राजकुमार और राजकुमारी की शादी आपस में तय कर दी। हिमावत का राजकुमार त्रिशाल जितना पराक्रमी था, कालीगढ़ की राजकुमारी उतना ही सौंदर्यमती और बुद्धिमान थी।

"इन दोनों की होने वाली संतान अवश्य ही विलक्षण होती, पर नियति को भला कौन रोक पाया है।
दोनों की शादी के 5 वर्ष बाद भी उनके कोई संतान नहीं हुई। दोनों इस बात से बहुत परेशान रहने लगे। एक बार उनके राज्य में एक ऋषि विश्वाकु पधारे। विश्वाकु एक बहुत पहुंचे हुए ऋषि थे। त्रिशाल और कलिका ने ऋषि विश्वाकु के सामने अपनी परेशानी को रखा। ऋषि विश्वाकु ने त्रिशाल और कलिका को संतान देने का वचन दिया, परंतु उन दोनों से ऋषि विश्वाकु ने अपना भी एक काम करवाने का वचन ले लिया।

"ऋषि विश्वाकु ने त्रिशाल को एक सुनहरा फल दिया और उसे कलिका को खिलाने को कहा। 9 माह बाद कलिका ने एक खूबसूरत सी बच्ची को जन्म दिया। त्रिशाल व कलिका ने अपने नाम के आधे अक्षरों को मिलाकर उसका नाम ‘त्रिकाली’ रखा।” यह सुनते ही वहां बैठे सभी लोग सन्नाटे में आ गये।

“इसका मतलब मैं आपकी बेटी नहीं हूं बाबा?” त्रिकाली के होंठ यह बोलते हुए कांप रहे थे। उसके पूरे शरीर में भी एक अजीब से आवेश की वजह से थिरकन होने लगी थी।

व्योम ने त्रिकाली का हाथ धीरे से अपने हाथ में ले लिया और उसे सहला कर त्रिकाली के भावों को कम करने की कोशिश करने लगा।

कलाट ने वहां के माहौल को शांत कराते हुए कहा- “अभी भावनाओं में बहने का समय नहीं है त्रिकाली... पहले पूरी कहानी सुन लो...फिर सभी लोग बैठकर शांति से बात करते हैं।”

कलाट की बात सुन त्रिकाली ने अपना सिर झुका लिया और शांत होकर बैठ गई।

कलाट ने फिर बोलना शुरु कर दिया- “जब त्रिकाली एक वर्ष की हो गई, तो ऋषि विश्वाकु, फिर त्रिशाल और कलिका के पास आये, और उन्हें अपना दिया वचन पूरा करने को कहा। वचन के अनुसार त्रिशाल और कलिका को एक राक्षस कालबाहु को जीवित पकड़ कर लाने को कहा।

"दरअसल कालबाहु ने एक समय अकारण ही ऋषि विश्वाकु के दोनों पुत्र और पत्नि को मार दिया था, तबसे ही ऋषि विश्वाकु कालबाहु को अपने सामने मरता हुआ देखना चाहते थे। परंतु कालबाहु को पकड़कर लाना इतना भी आसान नहीं था। कालबाहु को प्राप्त ब्रह्मदेव के वरदान स्वरुप, उसकी मृत्यु उस रोशनी से होनी थी, जिसमें ध्वनि का समावेश हो, और ऐसा हो पाना लगभग असंभव था। ऋषि विश्वाकु ने बताया कि कालबाहु को मारने के पहले त्रिशाल और कलिका को शक्ति लोक से प्रकाश शक्ति और यक्षलोक से ध्वनि शक्ति प्राप्त करना होगा।

"त्रिशाल और कलिका जानते थे कि इन शक्तियों को प्राप्त करने में कई वर्षों का समय लग सकता है, इसलिये उन्होंने अपनी पुत्री त्रिकाली को अपने गुरु नीमा को सौंप दिया। नीमा एक सिद्ध पुरुष थे, इसलिये वह अधिकतर योग साधना में लीन रहते थे। उनके लिये एक अबोध बालिका की देख-रेख कर पाना बहुत मुश्किल था, इसलिये उन्होंने त्रिकाली को मुझे सौंप दिया। चूंकि नीमा मेरा गुरुभाई था, इसलिये मैंने त्रिकाली को अपनी पुत्री के समान पाला और कभी भी त्रिकाली का यह रहस्य, युगाका और वेगा को पता नहीं चलने दिया।

"उधर 5 वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद त्रिशाल और कलिका ने प्रकाश शक्ति और ध्वनि शक्ति को प्राप्त कर लिया। दोनों शक्तियां प्राप्त करते समय त्रिशाल और कलिका ने देवताओं से अपनी पुत्री के लिये 2
वरदान भी मांग लिये। पहले वरदान के फलस्वरुप त्रिकाली के 20 वर्ष के पूर्ण होते ही उसे हिमालय की बर्फ की शक्तियां स्वतः मिल जातीं, दूसरे वरदान के फलस्वरुप त्रिकाली का विवाह एक महाशक्ति से होना था, जिसके पास पंचशूल हो।

"उधर त्रिशाल और कलिका अपने वचन को पूरा करने के लिये राक्षसलोक जा पहुंचे, पर कालबाहु की माता विद्युम्ना ने पहले से अपने पुत्र की सुरक्षा के लिये एक भ्रमन्तिका नाम का मायाजाल तैयार कर रखा था। त्रिशाल और कलिका महाशक्तियों के पास में होने के बाद भी, उस मायाजाल में फंस गये और आज 14 वर्षों से उसी मायाजाल में बंद हैं। मुझे इंतजार था त्रिकाली के दोनों वरदान के पूरे होने का....अब वह दोनों वरदान फलीभूत हो चुके हैं, इसलिये ही मैंने आज इन सारे रहस्यों को तुम्हारे सामने खोल दिया।”

इतना कहकर कलाट चुप हो गया और शांत भाव से त्रिकाली और व्योम को देखने लगा।

यह बातें सुन युगाका थोड़ा भावुक हो गया। वह अपनी कुर्सी से खड़ा होकर त्रिकाली के पास पहुंच गया।

युगाका ने त्रिकाली के सिर पर पर हाथ फेरते हुए कहा- “आज भले ही हमें सत्य का पता चल गया है, परंतु तुम आजीवन मेरी वैसे ही बहन रहोगी, जैसे कि पहले थी।”

फिर युगाका व्योम के गले लगते हुए बोला- “आज से मेरी बहन पर मुझसे ज्यादा तुम्हारा अधिकार है, परंतु ये याद रहे कि इसे कभी दुख मत देना। और हां....हम सब एक साथ चलेंगे, त्रिकाली के माता और पिता को राक्षसलोक से छुड़ाने के लिये।”

“नहीं भाई...अपने माता और पिता को उस कैद से छुड़ाने के लिये मैं और व्योम जायेंगे बस। यहां अराका में भी कम मुसीबतें नहीं है, आप यहां रहकर सामरा राज्य और बाबा की देखभाल करो। हम आपसे वादा
करते हैं कि जल्द ही अपने माता-पिता को छुड़ाकर वापस लौटेंगे।” त्रिकाली ने कहा।

“ठीक है, अगर तुम दोनों जाना चाहते हो तो जाओ, परंतु जाने से पहले हमें एक बार तुम्हारे विवाह का उत्सव तो मना लेने दो।” कलाट ने कहा।

“नहीं बाबा....अगर मेरे माता-पिता किसी कैद में हैं, तो ये सुनने के बाद हम उत्सव कैसे मना सकते हैं?” त्रिकाली ने कहा- “अब उत्सव तो हमारे लौटने के बाद ही मनाया जायेगा।”

त्रिकाली की बातों में सत्यता थी इसलिये कलाट ने उसकी इस बात को स्वीकार कर लिया।

“ठीक है, हम तुम्हारी सारी बात मानते हैं, पर हम चाहते हैं कि जाने से पहले तुम लोग एक बार महावृक्ष से मिलकर उनका भी आशीर्वाद ले लो और एक बार कालबाहु की माँ विद्युम्ना की शक्तियों की जानकारी भी ले लो, मुझे लगता है कि विद्युम्ना के पास कई ऐसी शक्तियां हैं जिनके बारे में कोई नहीं जानता, उसे इतना साधारण तौर पर नहीं लिया जा सकता।”

कलाट के शब्दों में कुछ ऐसे भाव थे कि त्रिकाली ने इस बात के लिये अपनी सहमति जता दी।

“तो फिर ठीक है, कल हम प्रातः काल महावृक्ष से मिलने चलेंगे, तब तक के लिये तुम लोग आराम करो।” यह कहकर कलाट सभी को लेकर शयनकक्ष से बाहर निकल गया।

अब व्योम और त्रिकाली शयनकक्ष में अकेले थे। त्रिकाली ने व्योम की आँखों में देखा, व्योम की आँखों में प्यार का समुन्दर लहरा रहा था।

त्रिकाली आगे बढ़कर व्योम के गले से लग गयी, उसकी आँखों से अश्रु की धारा बह रही थी, पर यह अश्रु एक ऐसी भावना के लिये थे, जिसने त्रिकाली को अपार शक्ति की अनुभूति कराई थी।

एक ऐसी शक्ति, जिसमें विश्वास की डोर भी थी और प्यार का अहसास भी।

एक नन्हीं तितली आज इंद्रधनुष के सारे रंगों को चुपके-चुपके चुरा रही थी..........।


जारी
रहेगा______✍️
Vyom aur trikali dono hi ke pas shaktiya hain, per kya wo vidumna se takrakar unko bacha payenge? Ye dekhne layak hoga guruji🤔
Awesome update bhai, 👌🏻 aur last ki lines to kamaal hai ☺️
एक नन्हीं तितली आज इंद्रधनुष के सारे रंगों को चुपके-चुपके चुरा रही थी..........।
:applause::applause::applause:
 
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