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इश्क मे साथ रहना जरूरी तो नहीं भाई, इश्क के अलावा और भी मजबूरी होती हैbehatreen update
kabir aur nisha ke alag hone ka karan kya ho sakta hai ?
muze nahi lagta kabir par hamla hone ke karan dono alag hue hai
बहुत खूब लिखा है
इश्क मे साथ रहना जरूरी तो नहीं भाई, इश्क के अलावा और भी मजबूरी होती हैbehatreen update
kabir aur nisha ke alag hone ka karan kya ho sakta hai ?
muze nahi lagta kabir par hamla hone ke karan dono alag hue hai
बहुत खूब लिखा है
शादी बस एक टैग है भाई, कुछ रिश्ते समय से परे होते हैpar dono ki shadi hui nahi fir bahu kaise
kya kabir bhi apne parivaar se nafrat karta hai ya fir sirf uska parivaar hi usse karta hai
हाँ सूकून तो है. परिवार की नाराजगी का कारण Flashback मे मालूम हो ही जाएगाबिन फेरे हम तेरे … गुस्सा और फ़र्ज़ का एहसास कहानी की गहराई बयान कर रहा है ।
मेरी सरकार पढ़ते ही सुकून का एहसास होता हैं ।
परिवार भी साथ नहीं है ये भी एक अलग ही मामला है ।
इस कहानी के कई रंग कई पहलू नजर आ रहे है ।
लगता नहीं लाला वाला मामला सुलट गया होगा ।
आगे देखते है क्या होता है
ThanksFABULOUS UPDATE BHAI
जंगल अपने आप मे एक दुनिया होता है भाई, ना जाने क्या छिपाया हुआ हो. कबीर और निशा क्यों अलग हुए इसका कारण आने वाले भाग मे पता लगेगा, हवेलियों की किस्मत मे वीराना ही होता हैपता नहीं क्यों मुझे लगता है कि कबीर के पिता जी ने जंगल में पक्का कोई खजाना या अनमोल चीज देखी है, और शायद इसी वजह से कबीर के ऊपर भी हमला किया गया हो।
खैर निशा और कबीर क्यों अलग हुए ये देखने लायक रहेगा।
आशा करता ये कहानी कम से कम अपने अंजाम तक पहुंचेगी, हवेली की तरह अधूरी नहीं रहेगी।
अगर वो पूछले मुझसे के किस बात का गम है,#12
“ज्यादा जल्दी है तो ऊपर से ले जा ना ” मैंने कहा और आगे बढ़ गया. नशे में मालूम ही नही था की मैं रोड के बीच में चल रहा हूँ, गाडी ने दुबारा से हॉर्न दिया.
“बहुँत दिनों बाद यादे आई थी तुमको भी बर्दाश्त नहीं है तो जाओ यार ” कहते हुए मैं पलटा ही था की दो बाते एक साथ हो गयी. एक बरसात और दूजा सनम का दीदार. गाड़ी में वो शक्श था जो कभी अपना हुआ करता था . धीमे से गाड़ी से बाहर आई वो . भीगा मौसम , भीगी धड़कन , और भीगी ये मुलाकात . कभी सोचा नहीं था की हालातो के आगे इतना मजबूर हो जायेगे, मेरा जहाँ मेरे सामने खड़ा था और हिम्मत नहीं हो रही थी उसे सीने से लगाने की.
“कबीर ” बहुत मुश्किल से बोल पायी वो . हाथ से बोतल छुट कर गिर गयी.
“मेरी सरकार ” बस इतना ही कह सका मैं क्योंकि अगले ही छाती से आ लगी थी वो . डूबती रात मे बरसते मेह में अपनी जान को आगोश में लिए बहुत देर तक रोता रहा मैं न बोली कुछ वो ना मैंने कुछ कहा. बस दिल था जो दिल से बात कर गया.
“तू मेरा कबीर नहीं है, तू वो कबीर नहीं है जिसकी बनी थी मैं ” अचानक से उसने मुझे धक्का दे दिया.
मैं- पहले जैसा तो अब कुछ भी नहीं रहा न सरकार.
निशा- तू बोल रहा है या ये नशा बोल रहा है , अरे अपनी नहीं तो अपनों का सोचा होता ,वो कबीर जो सबके लिए था वो कबीर जो सबका था वो नशे में कैसे डूब गया . किस बात का गम है तुझे जो शराब को साथी बना लिया.
“वो पूछ ले हमसे की किस बात का गम है , तो फिर किस बात का गम है अगर वो पूछ ले हमसे ” मैंने कहा.
निशा- गम, दुनिया के मेले में झमेले बहुत, तू एक अकेला तो नहीं नजर उठा कर तो देख जग में अकेले बहुत है.
मैं- सही कहाँ तुमने मेरी जान, मैं अकेला था नहीं अकेला हो गया हूँ
निशा- मेरे इश्क में शर्ते तो नहीं थी , सुख की कामना तेरे साथ की थी तो वनवास तू अकेला भोगेगा कैसे सोच लिया. कितने बरस बीत गए. कोई हिचकी नहीं आई जो अहसास करा सके की कोई है जिसके साथ जीने का सपना देखा था मैंने , खुदगर्जी की बात करता है. अकेले तूने ही विष नहीं पिया कबीर .
बारिश थोड़ी तेज हो गयी थी .
“मुझे याद नहीं आई तेरी, मुझे. मेरी प्रतीक्षा इतनी की सदिया तेरा इंतज़ार कर सकू, मेरी व्याकुलता इतनी की एक पल तेरे बिना न जी सकू ” मैंने कहा .
“”
“चल मेरे साथ अभी दिमाग ख़राब है कुछ कर बैठूंगी , दिल तो करता है की बहुत मारू तुझे ” उसने बस इतना कहा और फिर गाड़ी सीधा मंजू के घर जाकर रुकी.
“आँखे तरस गयी थी तुम्हे साथ देखने को . ” मंजू ने हमें देखते हुए कहा .
निशा- भूख लगी है बहुत, थकी हुई हु. इसे बाद में देखूंगी.
निशा ने अपना बैग लिया और अन्दर चली गयी. .
मंजू- क्या कहा तूने उसे
मैं- कुछ नहीं.
हम तीनो ने खाना खाया .
मंजू- मैं दुसरे कमरे में हु तुम यही रहो.
निशा- जरुरत नहीं है. मैं बस सोना चाहती हु. अगर जागी तो कोई शिकार हो जायेगा मेरे गुस्से का.
मंजू मुस्कुरा दी. वैसे भी रात थोड़ी ही बची थी . सुबह जागा तो निशा मुझे ही देख रही थी.
“नशा उतर गया ” थोड़ी तेज आवाज में बोली वो.
मैं कुछ नहीं बोला.
निशा- बोलता क्यों नहीं
मैं- कुछ भी नहीं मेरे पास कहने को तेरा दीदार हुआ अब कोई और चाहत नहीं
निशा- फ़िल्मी बाते मत कर कुत्ते, ऐसी मार मारूंगी की सारा जूनून मूत बन के बह जायेगा
मैं- एक बार सीने से लगा ले सरकार, बहुत थका हूँ दो घडी तेरी गोद में सर रखने दे मुझे . मेरे हिस्से का थोडा सकून तो दे मुझे , ये नाराजगी सारी कागजी मेरी . इस चाँद से चेहरे को देखने दे मुझे
फिर उसने कुछ नहीं कहा मुझे , वो आँखे थी जो कह गयी निशा मेरी पीठ से अपनी पीठ जोड़ कर बैठ गयी.
“शहर में काण्ड नहीं करना था तुझे जोर बहुत लग गया तेरे फैलाये रायते को समेटने में ” बोली वो
मैं- छोटी सी बात थी हाँ और ना की बस बात बढ़ गयी.
निशा- इस दुनिया के कुछ नियम -कायदे है
मैं- तू जाने ये सब . कायदे देखता तो उस लड़की का नाश हो जाता ,इन खोखले कायदों को न कबीर ने माना है ना मानेगा
निशा- तेरी जिद कबीर, सब कुछ बर्बाद करके भी तू ये बात कहता है . इसी स्वाभाव इसी जिद के कारण देख तू क्या हो गया
मैं- जिद कहाँ है सरकार, जिद होती तो तेरी मांग सुनी ना होती , तेरे हाथो में मेरी चूडिया होती . मेरा आँगन मेरी खुशबु से महक उठता , मोहब्बत थी इसलिए तुझसे दूर हु मोहब्बत की इसलिए आज मैं ऐसा हु. सीने में जो आग लगी है ज़माने में लगाने के देर नहीं लगती
निशा- उस आग का धुआं अपनी मोहब्बत का ही तो उठता कबीर.बद्दुआ लेकर अगर घर बसा भी लेती तो सुख नहीं मिलता .
मैं- अपने हिस्से का सुख मिलेगा जरुर . वैसे ज़माने में खबर तो ये ही है की निशा ने भाग कर कबीर संग शादी कर ली
निशा- मालूम है ,पर फिर दिल इस ख्याल से बहला लिया की चलो ख्यालो में ही सही हम साथ तो है पर तू गायब क्यों था इतने दिन . कोशिश क्यों नहीं की तूने
मैंने निशा को तमाम बात बताई की उस रात क्या हुआ था .
निशा- आखिर क्या वजह हो सकती है
मैं- पता चल जायेगा वो जो भी है उसे ये मालूम हो ही गया होगा की मैं वापिस आ गया हूँ तो उम्मीद है की वो फिर कोशिश करेगा.
निशा- मुझे चाचा के घर जाना है, आज संगीत का प्रोग्राम है
मैं- मत जा , तुझे जी भर कर देखने दे
निशा- जाना पड़ेगा, घर का बेटा गायब हो जायेगा तो बहु को अपने फर्ज निभाने ही पड़ेंगे न. मैं हमेशा रहूंगी परिवार के लिए
मैंने निशा के माथे को चूमा की तभी मंजू आ गयी फिर वो दोनों चाचा के घर चली गयी . मैं हवेली चला गया एक बार फिर से पिताजी की यादो को तलाशने .................
Farz ke apne maayne hote hai bhaiSandar Update !
Nisha to bhabhi ka farj nibhane pahuch gyi
kabir bhai ka farj nibhane jayega kya ??
Aur Intezar Hai Ki Fir kab hamla hoga kabir se dubara
fir kuch chhota mota suraj hath lage !
कितना दर्द है इस सीने में.... कभी-कभी सोचता हूं कि कैसा जीवन होगा फौजी भाई का......#12
“ज्यादा जल्दी है तो ऊपर से ले जा ना ” मैंने कहा और आगे बढ़ गया. नशे में मालूम ही नही था की मैं रोड के बीच में चल रहा हूँ, गाडी ने दुबारा से हॉर्न दिया.
“बहुँत दिनों बाद यादे आई थी तुमको भी बर्दाश्त नहीं है तो जाओ यार ” कहते हुए मैं पलटा ही था की दो बाते एक साथ हो गयी. एक बरसात और दूजा सनम का दीदार. गाड़ी में वो शक्श था जो कभी अपना हुआ करता था . धीमे से गाड़ी से बाहर आई वो . भीगा मौसम , भीगी धड़कन , और भीगी ये मुलाकात . कभी सोचा नहीं था की हालातो के आगे इतना मजबूर हो जायेगे, मेरा जहाँ मेरे सामने खड़ा था और हिम्मत नहीं हो रही थी उसे सीने से लगाने की.
“कबीर ” बहुत मुश्किल से बोल पायी वो . हाथ से बोतल छुट कर गिर गयी.
“मेरी सरकार ” बस इतना ही कह सका मैं क्योंकि अगले ही छाती से आ लगी थी वो . डूबती रात मे बरसते मेह में अपनी जान को आगोश में लिए बहुत देर तक रोता रहा मैं न बोली कुछ वो ना मैंने कुछ कहा. बस दिल था जो दिल से बात कर गया.
“तू मेरा कबीर नहीं है, तू वो कबीर नहीं है जिसकी बनी थी मैं ” अचानक से उसने मुझे धक्का दे दिया.
मैं- पहले जैसा तो अब कुछ भी नहीं रहा न सरकार.
निशा- तू बोल रहा है या ये नशा बोल रहा है , अरे अपनी नहीं तो अपनों का सोचा होता ,वो कबीर जो सबके लिए था वो कबीर जो सबका था वो नशे में कैसे डूब गया . किस बात का गम है तुझे जो शराब को साथी बना लिया.
“वो पूछ ले हमसे की किस बात का गम है , तो फिर किस बात का गम है अगर वो पूछ ले हमसे ” मैंने कहा.
निशा- गम, दुनिया के मेले में झमेले बहुत, तू एक अकेला तो नहीं नजर उठा कर तो देख जग में अकेले बहुत है.
मैं- सही कहाँ तुमने मेरी जान, मैं अकेला था नहीं अकेला हो गया हूँ
निशा- मेरे इश्क में शर्ते तो नहीं थी , सुख की कामना तेरे साथ की थी तो वनवास तू अकेला भोगेगा कैसे सोच लिया. कितने बरस बीत गए. कोई हिचकी नहीं आई जो अहसास करा सके की कोई है जिसके साथ जीने का सपना देखा था मैंने , खुदगर्जी की बात करता है. अकेले तूने ही विष नहीं पिया कबीर .
बारिश थोड़ी तेज हो गयी थी .
“मुझे याद नहीं आई तेरी, मुझे. मेरी प्रतीक्षा इतनी की सदिया तेरा इंतज़ार कर सकू, मेरी व्याकुलता इतनी की एक पल तेरे बिना न जी सकू ” मैंने कहा .
“”
“चल मेरे साथ अभी दिमाग ख़राब है कुछ कर बैठूंगी , दिल तो करता है की बहुत मारू तुझे ” उसने बस इतना कहा और फिर गाड़ी सीधा मंजू के घर जाकर रुकी.
“आँखे तरस गयी थी तुम्हे साथ देखने को . ” मंजू ने हमें देखते हुए कहा .
निशा- भूख लगी है बहुत, थकी हुई हु. इसे बाद में देखूंगी.
निशा ने अपना बैग लिया और अन्दर चली गयी. .
मंजू- क्या कहा तूने उसे
मैं- कुछ नहीं.
हम तीनो ने खाना खाया .
मंजू- मैं दुसरे कमरे में हु तुम यही रहो.
निशा- जरुरत नहीं है. मैं बस सोना चाहती हु. अगर जागी तो कोई शिकार हो जायेगा मेरे गुस्से का.
मंजू मुस्कुरा दी. वैसे भी रात थोड़ी ही बची थी . सुबह जागा तो निशा मुझे ही देख रही थी.
“नशा उतर गया ” थोड़ी तेज आवाज में बोली वो.
मैं कुछ नहीं बोला.
निशा- बोलता क्यों नहीं
मैं- कुछ भी नहीं मेरे पास कहने को तेरा दीदार हुआ अब कोई और चाहत नहीं
निशा- फ़िल्मी बाते मत कर कुत्ते, ऐसी मार मारूंगी की सारा जूनून मूत बन के बह जायेगा
मैं- एक बार सीने से लगा ले सरकार, बहुत थका हूँ दो घडी तेरी गोद में सर रखने दे मुझे . मेरे हिस्से का थोडा सकून तो दे मुझे , ये नाराजगी सारी कागजी मेरी . इस चाँद से चेहरे को देखने दे मुझे
फिर उसने कुछ नहीं कहा मुझे , वो आँखे थी जो कह गयी निशा मेरी पीठ से अपनी पीठ जोड़ कर बैठ गयी.
“शहर में काण्ड नहीं करना था तुझे जोर बहुत लग गया तेरे फैलाये रायते को समेटने में ” बोली वो
मैं- छोटी सी बात थी हाँ और ना की बस बात बढ़ गयी.
निशा- इस दुनिया के कुछ नियम -कायदे है
मैं- तू जाने ये सब . कायदे देखता तो उस लड़की का नाश हो जाता ,इन खोखले कायदों को न कबीर ने माना है ना मानेगा
निशा- तेरी जिद कबीर, सब कुछ बर्बाद करके भी तू ये बात कहता है . इसी स्वाभाव इसी जिद के कारण देख तू क्या हो गया
मैं- जिद कहाँ है सरकार, जिद होती तो तेरी मांग सुनी ना होती , तेरे हाथो में मेरी चूडिया होती . मेरा आँगन मेरी खुशबु से महक उठता , मोहब्बत थी इसलिए तुझसे दूर हु मोहब्बत की इसलिए आज मैं ऐसा हु. सीने में जो आग लगी है ज़माने में लगाने के देर नहीं लगती
निशा- उस आग का धुआं अपनी मोहब्बत का ही तो उठता कबीर.बद्दुआ लेकर अगर घर बसा भी लेती तो सुख नहीं मिलता .
मैं- अपने हिस्से का सुख मिलेगा जरुर . वैसे ज़माने में खबर तो ये ही है की निशा ने भाग कर कबीर संग शादी कर ली
निशा- मालूम है ,पर फिर दिल इस ख्याल से बहला लिया की चलो ख्यालो में ही सही हम साथ तो है पर तू गायब क्यों था इतने दिन . कोशिश क्यों नहीं की तूने
मैंने निशा को तमाम बात बताई की उस रात क्या हुआ था .
निशा- आखिर क्या वजह हो सकती है
मैं- पता चल जायेगा वो जो भी है उसे ये मालूम हो ही गया होगा की मैं वापिस आ गया हूँ तो उम्मीद है की वो फिर कोशिश करेगा.
निशा- मुझे चाचा के घर जाना है, आज संगीत का प्रोग्राम है
मैं- मत जा , तुझे जी भर कर देखने दे
निशा- जाना पड़ेगा, घर का बेटा गायब हो जायेगा तो बहु को अपने फर्ज निभाने ही पड़ेंगे न. मैं हमेशा रहूंगी परिवार के लिए
मैंने निशा के माथे को चूमा की तभी मंजू आ गयी फिर वो दोनों चाचा के घर चली गयी . मैं हवेली चला गया एक बार फिर से पिताजी की यादो को तलाशने .................