- 23,205
- 62,338
- 259
भाग 247 - मेरा दिन -बूआकी लड़की पृष्ठ १५३९
अपडेट पोस्टेड,
कृपया पढ़ें, लाइक करें और कमेंट जरूर करें
अपडेट पोस्टेड,
कृपया पढ़ें, लाइक करें और कमेंट जरूर करें
Last edited:
TodayWaiting for next update mam
एकदम सही उपमा दी है आपनेजैसे शेर और शेरनियां एक बार शिकार करने के बाद हफ्ते तक आराम फरमाते हैं...
बहुत बहुत धन्यवाद, आभार१५०० पृष्ठों की हार्दिक बधाइयाँ......
जो तूफ़ान के सीने को चीर कर नाव को किनारे पहुंचा दे उसे मीनल कहते हैंनैया पूरी तरह तूफान के हवाले...
लेकिन मीनल भी बिना चोदे नहीं छोड़ने वाली...
भालू और सांड ( बीयर और बुल ) दोनों ही उसके इशारे पर नाचते हैंरिंग मास्टर हीं जंगल के शेर को भी अपने इशारे पर नचा सकता है....
लेकिन मीनल से तो मिलन हो गयाबेचारे .. जीत का जश्न बहन के साथ मनाने से महरुम रह गए...
Homeworkजाने के पहले भाई को रसगुल्लों के लिए चेतावनी दे गई...
आभार, धन्यवाद, नमन
komaalrani जी
आपके शब्दों ने मुझे सचमुच अभिभूत कर दिया—इतना कि आभार व्यक्त करने के लिए शब्द ढूँढ़ते हुए मैं भी आपकी तरह ही "सहम कर कदम रख रहा हूँ"!
आपने जिस साहस और सजगता से नई विधाओं—कारपोरेट गेम्स, फाइनेंशियल थ्रिलर, सस्पेंस—को अपनी कहानियों में समेटने का प्रयोग किया है, वह वाकई प्रशंसनीय है। और हाँ, आपका यह विचार बिल्कुल सटीक है कि "कहानी में कहानी" होना ही उसे बहुआयामी बनाता है। परंतु जैसा आपने कहा, पाठकों की अपेक्षाएँ कभी-कभी हमें एक खास ढर्रे में धकेल देती हैं। यहाँ तक कि जब हम "अडल्ट" विधा में लिखते हैं, तो इन्सेस्ट जैसे टैबू विषयों का आकर्षण (या दबाव?) इतना प्रबल होता है कि कहानी का मूल स्वर ही गौण हो जाता है। आपका इस मान्य परंपरा से हटकर मोड़ लेना न केवल ताज़गी भरा है, बल्कि इस विधा को गंभीरता से लेने वाले पाठकों के लिए एक उम्मीद भी।
मैं आपकी इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि पाठकों का समर्थन किसी प्रवृत्ति को बल देता है.. और शायद यही कारण है कि हम कभी-कभी उसी जाल में फँस जाते हैं। पर आप जैसी लेखिका जो इस जाल को काटकर नए प्रयोग करते हैं, वे न केवल अपनी कल्पना को, बल्कि पाठकों की रुचियों को भी विस्तार देते हैं। आपका यह साहसिक विचलन मुझे विशेष रूप से प्रभावित करता रहा है।
और हाँ, आपके "हुंकार" (या इस मामले में, इतने उदार शब्दों) ने मेरा हौसला बढ़ाया है.. क्योंकि एक समीक्षक या पाठक के रूप में, जब कोई लेखक हमारे विचारों को इतनी गहराई से समझता है, तो यह एक दुर्लभ आनंद देता है। मैं तो बस इतना कहूँगा: आपकी लेखनी और आपका आत्मविश्वास दोनों ही संक्रामक हैं!
आपके आभार के लिए मेरे पास भी शब्द नहीं (क्योंकि आपने तो मुझे "विज्ञ पाठक" जैसे खिताब से नवाज़ दिया.. अब मैं अपनी नाक इतनी ऊँची करके घूमूँगा कि दरवाज़े से निकलना मुश्किल हो जाए!)। परंतु सच कहूँ, तो ऐसे संवाद और सृजनात्मक आदान-प्रदान ही तो लेखन की सच्ची उपलब्धि हैं।
सादर
वखारिया