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Bro anuj ragini part was to to short and you are writer and it's your choice that how to present a character if you shows that ragini don't have any problem to have sex with her elder son with husband and sister sister in law then why she shy or not comfortable with her other son
बहुत ही रोचक और कामुक अपडेट था मित्र, एक साथ कई कहानियां आगे चल रहीं हैं और उन्हें पढ़ कर बहुत मज़ा भी आ रहा है, हालांकि व्यक्तिगत रूप से कुछ कुछ पक्षों पर मेरे मन में कुछ मतभेद भी हैं,
जैसे कि रागिनी का दोहरा चरित्र, एक ओर आप उसे खुले विचारों की और आनंद लेने वाली महिला दिखाते हैं पर साथ ही उसे इतना बचा के रखते है, जबकि पूरे घर में चुदाई का इतना खुला वातावरण है, तो उस अनुसार अब तक छोटे बेटे और देवर आदि से उसका मिलन हो जाना चाहिए था, आपके ही जोड़ीदार ठरकी पो भाई ने भी नायक की मां को आरंभ में बचा कर रखा पर जब उन्हें सही समय लगा तो उसे भी पूरी छूट दी। पर आपकी कहानी में अभी तक वो देखने को नहीं मिला, हो सकता है ये आपकी लेखनी हो या किरदारों को लेकर इंसिक्योरिटी।
दूसरा जो किरदार चुदाई में पहले ही इतना आगे बढ़ चुके हैं उनके बीच धीरे धीरे सेडक्शन समझ नहीं आता नए किरदारों का तो बनता है अब अनुज और रागिनी दोनों ही काफी चुदाई कर भी चुके हैं और देख भी चुके है तो उनके बीच धीरे धीरे आगे बढ़ना भी मेरी समझ से परे है।
कहानी के दूसरे सीजन से मुझे आशा थी वो सब देखने को मिलेगा जो पहले में नहीं मिला, और ये सीजन कुछ ज़्यादा धमाकेदार होगा।
खैर काफी कुछ मैं चाह कर भी समझा नहीं पाया हूं ये सब मेरे व्यक्तिगत विचार हैं इन्हें अन्यथा न लें। आपकी कहानी मुझे काफी प्रिय है DREAMBOY40 इसलिए भावनाओं को रोक नहीं पाता।
आपका मित्र
Shaandar jabardast super hot Mast Lajwab Update![]()
Super
waiting for next update keep going
![]()
Jbrdast lajawaab update
Nice update broWaiting for new seen
with new members
Romanchak. Pratiksha agle rasprad update ki
बहुत ही कामुक गरमागरम और उत्तेजना से भरपूर अपडेट है अमन के तो मजे हो रहे हैं साली और सोनल के साथ दमदार चुदाई चल रही है वहीं मुरारी मंजू के पीछे पागल है शीला और रज्जो की मस्तियां शुरू हो गई है
Masaledar update![]()
Bahut khoob likha hai, murari utsuk behta hai manju ke size jaane ko...aah maza aayega agle update mai
khoob likha hai![]()
Shandaar
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से
Nice update
Waiting for update
Superb update bhai...but humme toh sonal ka intezar hai
लेखक और पाठक के बीच सीधा संवाद ही इस लोक कथा को आगे बढ़ाने में अद्भुत सहयोग प्रदान करता हैं।
इस प्रकार का यह आपसी संवाद देखकर मन का अति प्रसन्न होना अत्यंत स्वाभाविक है।
कहानी की अगली कड़ी पोस्ट कर दी गई हैbhai ultimate erotic story
UPDATE 005
प्रतापपुर
" बाउजी आपका तंबाकू तो जोर पकड़ रहा है " , रंगी अपना लंड सहलाते हुए बोला ।
बनवारी ठहाका लगाते हुए : अरे दमाद बाबू चिंता काहे करते है , दर्द है तो दवा भी है हाहाहाहाहा
रंगी पगडंडी पर चलता हुआ मुस्कुराने लगा
बनवारी उसको चुप देखकर : अरे काहे लजा रहे हो जमाई बाबू , मै छोटकी ( रागिनी ) से कुछ नहीं कहूंगा भाई , कहो जो कहना चाहते हो ।
रंगी मुस्कुरा कर आस पास खेत और अरहर की पैदावार देख रहा था , कुछ दूर दूसरी ओर गन्ने की खेत की फसल खड़ी थी : नहीं वो मै सोच रहा था कि वो जो कमरे में थी वो कौन थी ?
बनवारी ठहाका लगाते हुए : अब तुमसे झूठ क्या बोलना जमाई बाबू , रज्जो की अम्मा के जाने के बाद मै तो अपंग ही हो गया हूं तो लाठी बदलना पड़ता है हाहाहाहाहा
रंगी अपने ससुर की बात पर खिलखिला उठा : आप भी न बाउजी , तो अब तक कितनी लाठियां तोड़ चुके है आप
बनवारी रंगी के व्यंग भरे सवाल पर उसको देख कर मुस्कुरा : अह गिनती कौन करता है , बस किसी को खास नहीं बनाया है नहीं तो वो जज्बाती हो जाती । बाद विवाद बढ़ता सो अलग तो जो भी लाठी हाथ लग जाए उसे भांज लेता हु ।
रंगी : हा ये बात सही कही अपने बाउजी , मोह नहीं बढ़ना चाहिए ऐसे मामलों में नहीं तो दिक्कत हो जाती है ।
बनवारी मुस्कुरा कर : क्यों भई तुम्हारी हथेली में भी कोई लाठी चिपक गई थी क्या , बड़े अनुभवी जान पड़ते हो उम्मम
रंगी ठहाका लगाकर हस दिया : क्या बाउजी आप भी , अरे ... खैर छोड़िए
बनवारी हंसता हुआ : क्या हुआ बोलिए जमाई बाबू , अरे बात तो पूरी कीजिए
रंगी कुछ सोच कर मुस्कुराता हुआ : अह छोड़ो न बाउजी , अच्छा नहीं लगेगा ।
बनवारी : अरे भाई अच्छा बुरा आप क्यों सोचते हो , मेरा काम है वो मै तय करूंगा न और क्या पता वो बात में मुझे रस ही आ जाए । कहिए जमाई बाबू
रंगी हिचक कर : अह बाउजी क्या कहू, जिसकी रागिनी जैसी बीवी हो उसको दूसरी लाठी नहीं पकड़नी पड़ती ।
बनवारी ने भी रंगी के बात पर गला खराश कर चुप हो गया ।
कुछ दूर वो शांत ही थे और आगे चलने पर उन्हें
मक्के के खेत की तरफ कुछ हलचल दिखी
रंगी : बाउजी मक्के की कटाई करवा रहे है क्या ?
बनवारी : अरे नहीं अभी हफ्ता भर बाकी है
रंगीलाल : तो कौन घुसा है उधर
बनवारी की नजर हिलते हुए मक्के से फसलों पर गई : ये मादरचोद को और जगह नहीं मिलती गाड़ मराने को , साल भर की मेहनत के लौड़े लगा देते है
बनवारी तेजी से उसी ओर दौड़ा , पगडंडी से वो खेत के बीच 200 मीटर की दूरी होगी । बनवारी को भागता देख रंगी भी उसके पीछे गया
रंगी भागता हुआ : क्या हुआ बाउजी अरे बच्चे होंगे छोड़िए
बनवारी : अरे इन सालों ने पूरा खलिहान जोत रखा है , आज तो पकड़ के रहूंगा , जमाई बाबू तू वो बगीचे वाले रोड पर खड़े रहो मै दौड़ाता हु
बनवारी तेजी से सरकाता हुआ घुसा मक्के के लहलहाते खेत में
वही खेत में एक जगह खाली जगह थी जहां बनवारी के बेटे राजेश का अड्डा था वो आए दिन अपनी अय्याशी के लिए यहां औरते बुलाता था ।
इस वक्त राजेश एक औरत को घोड़ी बनाए उसके गाड़ में लंड पेल था था
कि तभी खेतों में हो रही सरफराहट का आभास पाते ही राजेश उठ खड़ा हुआ : भाग बहनचोद बाउजी आ रहे है
राजेश अपना अंडर गारमेंट चढ़ा कर पेंट बंद करके तेजी से अपने खुले शर्त के बटन बंद करता हुआ खेत के दूसरी तरफ ट्यूबवेल की ओर भागा । वही वो औरत बगीचे की ओर भागी
बनवारी दहाड़ता हुआ खेत में घुस गया : पकड़ मादरचोद को , पकड़
अब चुकी बनवारी ने बगीचे वाले रास्ते पर रंगीलाल को खड़ा कर रखा था तो उस औरत को दबोचने के लिए उसके पीछे भागा
उन खेतों से दूसरी तरफ बाग था और उसकी मेड पर खड़ा था रंगी लाल
खेतों में सरसराहट मची थी उसपर से बनवारी की गाली और आवाज
तभी मक्के के खेत से फसलों को चीरती हुई बड़ी ही गदराई महिला बाहर आई ,
वो अपनी साड़ी को जांघों तक उठा रखी थी और ब्लाउज में उसकी गोरी रसीली मोटी चूचियां उसके हर पैर के साथ ऊपर नीचे हो रही थी , उसके कपड़े पूरी तरह से अस्त व्यस्त थे , चर्बीदार पेट की नर्म नाभि देख कर रंगी का लंड झटके खाने लगा और ढीले ब्लाउज में उछलती उसकी मोटी मोटी चूचियां अब तब बाहर निकलने को बेताब मालूम पड़ रही थी ।
बनवारी : अरे देख का रहे हो जमाई बाबू पकड़ो हरामजादी को
रंगी का मोह भंग हुआ और वो लपक कर उस औरत की ओर बढ़ा , मगर वो औरत इतनी तेजी से आ रही थी कि रंगी के एकाएक सामने आने वो पूरी तरफ से चौक गई।
उसने पूरी तरफ से खुद को रोकने का प्रयास किया मगर रोक न सकी और पूरी तरह से रंगी को लेकर लुढ़क गई
दो चार छ: और ना जाने कितने बार कभी वो औरत रंगी के ऊपर तो कभी रंगी उस औरत के ऊपर
एक दूसरे को पकड़े हुए वो रोल करते हुए लुढ़क कर बाग में एक पेड़ से जा भिड़े
: हाय दैय्या अह्ह्ह्ह्ह मर गई , वो औरत का कूल्हा आम के पेड़ के बाहर निकले हुए शोर से हप्प से जा लगा , गनीमत रही रंगी बाल बाल बच गया ।
रंगी अपने कपड़े झाड़ता हुआ खड़ा हुआ और उस औरत को दर्द में देख कर कुछ कहने ही वाला था कि पीछे से बनवारी की आवाज आई जो पहले से ही हाफ रहा था : कमला तू ?
रंगी चौक कर कि बनवारी तो इसे जनता है : आप जानते है बाउजी
वो औरत भुनभुनाती हुई खड़ी हुई और अपने साड़ी को सही कर रही
उसका पल्लू उसके मोटे मम्मे से भरे ब्लाउज से हट कर जमीन में लसाराया हुआ था , रंगी की नजर उसके बड़े बड़े रसीले मम्में के हट ही नहीं रही थी , उसपे से उसके नरम गोरे पेट पर लगी हुई मिट्टी देख कर लग रहा था मानो छूने पर कितनी नरम होगी , पाउडर जैसे हाथ सरकेगा ।
बनवारी : तू क्या कर रही थी खेत में .
कमला अपनी साड़ी झाड़ कर अपनी छातियां ढकती हुई अपने कूल्हे झाड़ रही थी मगर कुछ बोली नहीं ।
कमला को देख कर साफ लग रहा था कि उसे बनवारी का जरा भी डर नहीं था और रंगी को ये बात कुछ अजीब लग रही थी ।
कमला : अपने लाड साहब से क्यों नहीं पूछते क्या कर रही थी मै हूह ..
ये बोलकर कमला निकल गई
रंगी उसके तुनक मिजाज से हैरान था कि बनवारी ने उसको कुछ कहा क्यों नहीं । वही उसके लालची मन की निगाहे उसके मिट्टी लगे चूतड़ों पर जमी थी जिसमें उसके साड़ी पर दाग छोड़ दिए । जिससे उसके बड़े चौड़े कूल्हे की थिरकन और भी आकर्षक दिख रही थी ।
रंगी हैरान होकर : बाउजी ये सब क्या था ? ये किसके बारे में बोल कर गई ?
बनवारी : अरे और किसके ? एक ही नालायक है घर में ?
रंगी को समझते देर नहीं लगी बनवारी उसके साले राजेश के बारे में बात कर रहा था ।
रंगी : तो साले साहब इसके साथ थे खेत में
बनवारी : अह छोड़ो न , ये पूछो गांव में किसके साथ नहीं तो शायद जवाब दे पाऊं?
रंगी : सॉरी बाउजी मेरा वो मतलब नहीं था , आप थके हुए लग रहे है आइए बैठिए
बनवारी रंगी के मीठे व्यव्हार से पिघल गया और उसे अपने गलती का अहसास हुआ कि राजेश की नादानी पर वो खामखां रंगी पर उतार रहा है ।
बनवारी : अरे नहीं नहीं जमाई बाबू , अब क्या कहूं । इतनी प्यारी चांद सी बहु है मेरी लेकिन कमीना पूरा दिन आवारा गर्दी में बिताता है । इसके नशे की आदत से बहु इसे अपने आस पास फटकने नहीं देती ।
रंगी कुछ नहीं बोला बस बनवारी की बाते सुनता रहा वही दूसरी ओर राजेश अपने बाप के डर से भागता हुआ ट्यूबवेल की ओर निकल गया ।
आमतौर वो इधर नहीं आता था क्योंकि सांझ के इस समय इधर उसकी बेटियां नहाने आती थी मगर अब बचने के लिए उसके पास और कोई चारा नहीं था ।
भागता हुआ राजेश ट्यूबवेल के पास आ गया , उसका गला बुरी तरह सूख रहा था , सांसे बैठने का नाम नहीं ले रही थी । वो लपक कर ट्यूबवेल की ओर गया और वो हाते में हाथ डालने वाले था कि झट से पीछे हो गया
ट्यूबवेल की दिवाल का सहारा लेकर वो चिपक कर खड़ा हो गया उसकी आंखों ने अभी अभी जो देखा था वो तस्वीर उसके दिलों दिमाग ने छप गई थी । उसकी सांसे और भी भारी होने लगी वो गहरी गहरी सांस लेने लगा ।
उसने अपने कलेजे को शांत किया मगर उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसने जो देखा वो कभी संभव हो सकता था ।
अपने भरम को यकीन में बदलने के लिए जैसे ही उसने दुबारा से ट्यूबवेल की दिवाल से सट कर पानी के हाते में झांका तो उसकी सांसे फिर से चढ़ने लगी । क्योंकि पानी में उसकी बेटी बबीता पूरी नंगी होकर तैर रही थी । पानी की सतह पर उसकी मुलायम चूतड उभरे हुए थे वो पूरी शांत होकर पड़ी थी पानी में मानो ।
राजेश का लंड जो कमला की अधूरी चुदाई करके पूरी तरह से सोया नहीं था एक बार फिर अपनी बेटी के नरम फुले हुए नंगे तैरते चूतड़ों को देख कर अपना सर उठाने लगा ।
मगर तभी गीता की आवाज आई : बबीता चलो देर हो रही है ।
राजेश के जहन पर छाता वासना का बादल छट गया और वो अपने होश में वापस आया । उसे अपनी ही बेटी के नरम फुले हुए नंगे चर्बीदार चूतड़ों को देख कर अपना लंड खड़ा पाना बहुत ही अफसोस जनक महसूस हुआ । उसके हिसाब से ऐसा कोई भी संजोग होना पूरी तरह से अनुचित था । मगर होनी को कौन ही टाल सकता था और वासना पर भला किसका जोर चला है ।
कुछ ही देर बबीता पानी से निकली और राजेश ना चाह कर भी खुद को अपनी बेटी को पानी से बाहर निकलते हुए देखने से नहीं रोक सका
बबिता पानी से बाहर निकल कर खड़ी थी । उसके मौसमी जैसे चूचे एकदम कड़क थे निप्पल पूरी तरफ से कड़े और नुकीले , जांघों के पास चूत के ऊपर हल्की सी झाट के रोओ की झुरमुट , एक बार फिर राजेश का लंड उससे बगावत कर बैठा ।
बबीता नंगी ही बगल के मकान में चली गई और फिर कुछ देर बाद दोनों बहने एक झोला लेकर बाते करते हुए निकल गए
राजेश झट से पानी के हाते के पास आया और अपना पूरा मुंह गर्दन तक पानी में बोर दिया और मिनट भर बाद बाहर निकाला हांफता हुआ ।
दूर उसकी बेटियां खेलती टहलती खिलखिलाती घर के लिए जा रही थी और राजेश वही खड़ा हुआ उन्हें निहार रहा था । देख रहा था कि उसकी गुड़िया अब बड़ी हो गई थी ।
शिला के घर
उम्मम फक्क मीईईई ओह्ह्ह यस्स अह्ह्ह्ह्ह, कमान उम्मम और तेज अह्ह्ह्ह उम्मम
अरुण के दोनों कानो के इयर बड्स में ये चीखे गूंज रही थी और उसके चेहरे पर वासना का शबाब छाया हुआ वो आंखे कभी कल्पनाओं से बंद कर लेता तो कभी अपने मोबाइल स्क्रीन पर चल रही चल चित्र को देखता , उसका लंड उसकी मुठ्ठी के कसा हुआ मिजा था था , वो तेजी से अपने लंड की चमड़ी आगे पीछे कर रहा था
: ओह्ह्ह ओह्ह्ह गॉड मम्मी फक्क यूं ओह्ह्ह्ह यशस्स अह्ह्ह्ह्ह सीईईई ओह्ह्ह और चोदो मेरी मम्मी हा और और ओह्ह्ह्ह्ह गॉड फक्क्क् यूयू ओह्ह्ह्ह सीईईईई अह्ह्ह्ह्ह, अरुण मोबाईल स्क्रीन पर चल रही चुदाई को देख कर बड़बड़ाया और इतने में दूसरी ओर से आवाज आई
: हा बेटा चुद रही हूं अह्ह्ह्ह्ह पेलो जेठ जी अह्ह्ह्ह्ह और तेज उम्मम अह्ह्ह्ह देख बेटा तेरी मम्मी चुद रही है अच्छा लगता है न अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म
: ओह गॉड फक्क्क् मीईईईई अह्ह्ह्ह्हमम यशस्स अह्ह्ह्ह्ह आ रहा है मेरा अह्ह्ह्ह मम्मी मुझे आपके मुंह में झड़ना है आजाओ अह्ह्ह्ह ( अरुण मोबाइल स्क्रीन पर चल रहे चुदाई को देख कर बोला और अगले पल वो औरत अपने चेहरे का मास्क मुंह से उठा कर अपने आंखों पर कर लेती है और जीभ बाहर निकाल देती और पीछे से एक आदमी ताबड़तोड़ उसकी गाड़ में अपना लंड पेले जा रहा था ।
अरुण उस औरत को देख कर रह नहीं पाता और झड़ने लगा : ओह गॉड फक्क्क् यूयू बीच उफ्फ कितनी चुदक्कड हो आंटी तुम अह्ह्ह्ह्ह सीईईई ओह्ह्ह उम्ममम
अरुण के झड़ते ही वो औरत उस आदमी को हटाती है और दोनों वीडियो काल पर होते है ।
अरुण अभी भी अपने मोबाईल का कैमरा ऑफ किए हुआ था ।
वो औरत माक्स पहने हुए ही अपने ब्लाउज के बटन लगाने लगी : क्यों बेटा मजा आया
अरुण उस औरत को वीडियो काल पर देखता हुआ : बहुत ज्यादा आंटी , वो तुम्हारी साथ वाली कहा है आज । उसकी मोटी गाड़ को देख कर मै पागल हो जाता हु । काश मैं भी तुम लोगों को ज्वाइन कर पाता ।
वो औरत : वो भी आएंगी शायद रात में लाइव होगी ।
अरुण : वाह फिर तो मजा आएगा आंटी , तुम दोनों तबाही मचा देती हो ।
औरत : हा लेकिन आज रात मै नहीं आऊंगी कोई और आयेगा
अरुण शॉक्ड होकर : कोई और मतलब , न्यू मेंबर का इंट्रो
औरत : उम्मम ऐसा ही कुछ । अच्छा चलो मै रखती हु बाय ।
अरुण मुस्कुरा कर : बाय मम्मी लव्स यू
और वो औरत हस्ते हुए फोन काट दी ।
अरुण ने काल कट किया तो चैट में उसे उस औरत को भेजे हुए पेटीएम पेमेंट की रसीद दिखाई दी , जिसमें 2000 रुपए भेजे गए थे ।
अरुण उठा और नहाने चला गया और वही छत पर टैरिस पर रज्जो और शिला बैठी हुई थी ।
शाम का वक्त हो चला था, तकरीबन पाँच बजने को थे। घर की छत पर बनी टैरिस पर दोनों सहेलियाँ, शिला और रज्जो, आमने-सामने बैठी थीं। टैरिस के चारों ओर लोहे की रेलिंग थी, जिसके बीच से नीचे गली की हलचल दिखाई दे रही थी। हवा में हल्की ठंडक थी, और आसमान पर सूरज ढलान की ओर बढ़ रहा था, जिससे नारंगी और गुलाबी रंग की छटा बिखर रही थी। शिला ने अपने हाथ में रिमोट पकड़ा हुआ था, और उसकी उंगलियाँ "High" बटन के ऊपर मँडरा रही थीं।
रज्जो दूसरी ओर एक पुरानी प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठी थी, उसकी स्थिति थोड़ी बेचैन थी, और चेहरे पर एक मिश्रित भाव था—गुस्सा, शर्मिंदगी और हँसी का अजीब सा संगम।
शिला ने रज्जो की ओर देखा, अपनी भौंहें उचकाईं, और एक शरारती मुस्कान के साथ "High" बटन दबा दिया। रज्जो ने तुरंत अपने होंठ काटे और कुर्सी की बाहों को ज़ोर से पकड़ लिया।
उसकी साँसें तेज़ हो गईं, और उसने शिला को घूरते हुए कहा, "बस कर, शिला! कोई देख लेगा तो क्या सोचेगा?" लेकिन शिला पर इसका कोई असर नहीं हुआ।
कुर्सी पकड़े हुए रज्जो ने अपनी जांघें कस ली , कमर से लेकर पेडू तक हिस्से में मानो बिजली की तेज तरंगें उसे गनगना रही थी: अह्ह्ह्ह रुक जा कामिनी कम कर न अह्ह्ह्ह
उसने अपनी कमर उठा दी और एड़ियों के सहारे कुर्सी पकड़ कर अकड़ गई: मै पागल हो जाऊंगी अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म और कोई देख लेगा बंद कर न
वह हँसते हुए बोली, "अरे, यहाँ कौन देखने वाला है? टैरिस पर तो बस हम दोनों हैं!"
लेकिन शिला गलत थी। ठीक उसी पल टैरिस के कोने से सीढ़ियों की आवाज़ आई, और अरुण वहाँ आ पहुँचा।
अरुण की नजरे अकड़ी हुई रज्जो पर थी , जिसके बड़े भड़कीले छातियों से उसके साड़ी का पल्लू सरक गया था , चूत में मची घरघराहट से उसके मोटे मोटे थनों के निप्पल टाइट हो आसमान की तरफ उभर गए थे , गुदाज चर्बीदार पेट नंगा था और उसकी कमर झटके खा रही थी
रज्जो के चेहरे की बेचैनी और सामने अपनी बड़ी मम्मी के चेहरे पर मुस्कुराहट से वो और भी उलझा हुआ था
रह रह कर रज्जो की सांसे ऊपर नीचे हो रहे थी , जीने की दहलीज पर खड़ा अनुज भौचक्का रज्जो को निहार रहा था मानो रज्जो के जिस्म से उसकी प्राण ऊर्जा निकल रही हो और एकदम से कुर्सी पर बैठ गई सुस्त सी पड़ने लगी
जैसे ही अरुण टैरिस पर आया, शिला ने जल्दी से रिमोट को अपनी ब्लाउज में डालने की कोशिश की, लेकिन अरुण की नज़र तेज़ थी।
"अरे मामी को क्या हुआ " , उसने मासूमियत भरे लहजे में शिला से पूछा।
रज्जो का चेहरा लाल पड़ गया, और उसने अपनी नज़रें नीचे कर लीं, जैसे छत की टाइल्स अचानक बहुत दिलचस्प हो गई हों।
शिला ने हँसते हुए बात को संभालने की कोशिश की : अरे, कुछ नहीं, वो भाभी को प्यास लग रही है बेटा जरा पानी ला देगा ।
अरुण : ओके अभी लाता हु , नींबू भी डाल दूं क्या ? ( अरुण रज्जो के बेपर्दा हुए चूचियों को ब्लाउज में कसा हुए देख कर बोला , रज्जो के बड़े बड़े मम्मे उसके पेट में हरकत पैदा कर रहे थे ।)
रज्जो ने अरुण की नजर पढ की और अपनी साड़ी सही करती हुई : हा बेटा डाल देना
फिर वो शिला को घूरने लगी ।
अरुण : आपके लिए क्या लाऊ बड़ी मां?
शिला : मुझे कुछ नहीं चाहिए बेटा , बस तू भाभी के लिए नींबू पानी लेकर आजा ।
अरुण के जाते ही
शिला और रज्जो एक-दूसरे की ओर देखकर हँस पड़ीं।
शिला ने रिमोट फिर से निकाला और बोली : मजा आया उम्मम
रज्जो : अह्ह्ह्ह्ह लग रहा था पूरे बदन में कंपकपी मची थी , रोम रोम दर्द से तड़प रहा था मेरा और पूछ रही है मजा आया , क्या चीज है ये ?
शिला : ये चूत बहलाने का औजार है मेरी जान , अंग्रेजी में इसे वाइब्रेटर कहते है हाहा
रज्जो साड़ी में हाथ घुसाती हुई : अब इसको निकालते कैसे है ?
शिला : उन्हूं रहने दो न, रूम में निकाल दूंगी
रज्जो : धत्त मुझे साफ करना पड़ेगा , रिस रहा है वहां
शिला मुस्कुरा कर : तो फिर बाथरूम में चले मै साफ कर देती हु चाट कर
रज्जो लजा कर : धत्त नहीं मुझे और नहीं तड़पना
शिला उसको छेड़ती हुई : हाय मेरी जान , जरा साड़ी उठा कर दिखा तो दो अपनी रसभरी को उम्मम
शिला ने अपने पैर से उसकी साड़ी के गैप को और खोलना चाहा मगर रज्जो ने उसको झटक दिया क्योंकि उसने छत पर वापस अरुण को आते देख लिया था ।
रज्जो ने इस बात का जिक्र नहीं किया बस अरुण से नजरे चुराती रही।
अरुण मुस्कुरा कर रज्जो को नींबू पानी का गिलास देता हुआ : हम्म्म मामी लो पी लो , एकदम ताजा है
रज्जो ने उसके शरारती आंखों में देखा और समझ गई कि अरुण ने जरूर उनकी बातें सुनी है ।
मगर अरुण के खुश होने का कारण कुछ और ही था , जैसे जैसे रज्जो नींबू पानी का ग्लास खाली कर रही थी अरुण के लंड में हरकत बढ़ रही थी और उसकी आंखे उलट रही थी । मानो रज्जो गले में नींबू पानी नहीं बल्कि उसके लंड का रस घोंट रही हो ।
चमनपुरा
लाली का घर एक टाऊन के रिहायशी इलाके में था, जहां सड़क के किनारे पेड़ों की छांव और मॉर्डन बनावट के घर एक अलग ही हलचल कर देती थी। अनुज ने दरवाजे पर दस्तक दी, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। शायद लाली कहीं व्यस्त थी। उसने सोचा कि शायद अंदर जाकर लाली को बुला ले, और दरवाजा खुला देखकर वह धीरे-धीरे अंदर चला गया। घर में हल्की-हल्की ठंडक थी, और दीवारों पर लगी पुरानी तस्वीरें उसकी नजरों से गुजरीं। उसने लाली का नाम पुकारा, लेकिन फिर भी कोई जवाब नहीं मिला। वह आगे बढ़ा और लाली का कमरा खोजने की कोशिश करने लगा।
आलीशान घर फर्श के चमचाते टाइल्स और सफेद सोफे और पर्दे देख कर अनुज को ताज्जुब हुआ , अमीर लोगों की लाइफ स्टाइल में सफेदी कुछ ज्यादा ही दिख जाती है । शीशे सी चमचमाती टेबल और सब कुछ साफ चिकना जैसे वो किसी घर में नहीं होटल में गया हो । मगर हैरत की बात थी उसे कोई नजर नहीं आ रहा था । लाली के यहां पहली बार आना उसके अंदर डर पैदा कर रहा था , कही लाली की मां या पापा ने सवाल किए । मगर लाली की दीदी यानि उसकी कालेज मिस के कहने पर वो आया तो डर उतना भी नहीं था । मगर कुछ तो था जो उसे भीतर से बेचैन किए जा रहा था । तभी उसे एक कमरे की ओर हलचल दिखी कमरे का दरवाजा हल्का भीड़का था और उसके पर्दे कमरे से आ रही हवा से गलियारे में लहरा रहे थे । अनुज उस ओर बढ़ गया ।
तभी उसकी नजर एक खुले दरवाजे वाले कमरे पर पड़ी। उसने सोचा शायद यह लाली का कमरा हो, लेकिन जैसे ही वह करीब पहुंचा, उसे अंदर का नजारा देखकर पैरों तले जमीन खिसक गई। वहां उसकी मैम—यानी लाली की दीदी—कपड़े बदल रही थीं।
वह नीचे सिर्फ काली पैंटी में थीं, और उनके नितंब इतने आकर्षक और कामोत्तेजक लग रहे थे कि अनुज की सांसें थम सी गईं। उसका चेहरा लाल हो गया, और दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसे समझ नहीं आया कि वह क्या करे। मिस की लंबी गोरी टांगे और कूल्हे पर चुस्त पैंटी जो उनके गाड़ के दरारों में गहरे घुसी हुई थी अनुज देखते ही बेचैन होने लगा । उसके पेट में अजीब सी हड़बड़ाहट होने लगी कही कोई उसे ऐसे ताक झांक करता देख न ले
उसने फौरन नजरें हटाईं और खुद को संभालते हुए पीछे हट गया। उसकी पैंट में एक अजीब सी अकड़न होने लगी थी, जो उसे और असहज कर रही थी। वह नहीं चाहता था कि कोई उसे वहां देख ले और गलत समझे , खास कर लाली । डर के मारे वह चुपचाप उस जगह से निकल गया और बाहर लॉन में जाकर खड़ा हो गया, जैसे कुछ हुआ ही न हो। उसकी सांसें अभी भी तेज थीं, और वह उस दृश्य को अपने दिमाग से निकालने की कोशिश कर रहा था।
" उफ्फ मिस तो पूरी बोल्ड है कितनी टाइट चिपकी हुई थी पैंटी उनकी गाड़ पर अह्ह्ह्ह्ह मूड गया बीसी " , अनुज खुद से बड़बड़ाया। उसने वही से वापस लाली को आवाज दी ।
कुछ ही मिनटों बाद लाली बाहर आई। उसने एक हल्का सा टॉप और कैफ़री पहन रखी थी, और अपने गीले बालों को जुड़े में बांधते हुए वह अनुज की ओर बढ़ी। उसका गोरा पेट टॉप के नीचे से हल्का-हल्का दिख रहा था, और उसकी चाल में एक सहज लापरवाही थी।
अनुज की नजर अनायास ही उसके पेट पर चली गई, और वह एक बार फिर सन्न रह गया। उसकी त्वचा की चमक और उसकी सादगी में छुपा आकर्षण उसे बेचैन कर गया।
लाली ने उसे देखकर मुस्कुराते हुए कहा : हाय , वो मै नहा रही थी , ज्यादा देर हो गई न
अनुज मुस्कुरा कर उसके गोरे चेहरे को देखता हुआ कितनी मासूम और बचपना भरा था उसमें : उम्हू इतना भी नहीं
लाली खिलकर : तो आओ चलो , तुम्हे नोटबुक देती हूं
अनुज ने हड़बड़ाते हुए हाँ में सिर हिलाया और लाली के पीछे-पीछे चल पड़ा। जैसे ही लाली आगे बढ़ी, उसकी कैफ़री में उभरे हुए चूतड़ हल्के-हल्के मटक रहे थे। हर कदम के साथ उनकी गोलाई और लचक अनुज की नजरों में कैद हो रही थी। उसकी पैंट में अकड़न अब और बढ़ गई थी, और वह अपने आपको संभालने की कोशिश में लगा था। उसका दिमाग अभी भी उन दो अलग-अलग दृश्यों के बीच उलझा हुआ था—एक उसकी मैम का और दूसरा लाली का। दोनों ही नजारे उसे अंदर तक हिला गए थे, और वह चाहकर भी उन्हें भूल नहीं पा रहा था।
अनुज लाली के पीछे-पीछे उसके कमरे की ओर बढ़ रहा था, लेकिन उसके मन में एक अजीब सी बेचैनी हिलोरे ले रही थी। जिस माहौल और समाज में वह पला-बढ़ा था, वहाँ एक लड़के और लड़की का इस तरह अकेले एक कमरे में होना कोई आम बात नहीं थी—वह भी तब, जब घर में किसी को पता न हो। ऊपर से लाली जैसी लड़की, जो हमेशा उसके आसपास मंडराती रहती थी और जिसके इरादे अनुज को हमेशा थोड़े शक्की लगते थे। उसकी साँसें तेज थीं, और वह बार-बार अपने हाथों को रगड़ रहा था। उसकी आँखें इधर-उधर भाग रही थीं, जैसे वह जल्दी से नोटबुक लेकर वहाँ से निकल जाना चाहता हो।
लाली ने कमरे में घुसते ही अलमारी की ओर कदम बढ़ाया और पीछे मुड़कर अनुज को देखते हुए कहा : अरे, इतना घबराया क्यों रहे हो बैठो न, थोड़ा रिलैक्स करो ।
उसकी आवाज में एक शरारत थी, और वह जानबूझकर धीरे-धीरे अलमारी खोल रही थी। अनुज ने हड़बड़ाते हुए कहा, “नहीं-नहीं, बस नोटबुक दे दो , मुझे जल्दी है। घर पर कुछ काम है।”
लेकिन लाली ने उसकी बात को अनसुना करते हुए कहा, “अरे, इतनी जल्दी क्या है? अभी तो शाम ढली भी नहीं है। पहली बार आए हो बिना चाय पानी के भेजा तो दीदी मुझे धो देगी वो भी बिना साबुन के हीही
उसने अनुज को थोड़ा हल्का महसूस कराने का ट्राई किया मगर अनुज के लिए चीजे फिर भी इतनी आसान नहीं थी ।
लाली उसको बातों में उलझाने की कोशिश रही और उसकी मुस्कान से साफ था कि वह अनुज की बेचैनी को भाँप चुकी थी। अनुज ने घबराहट में अपने गले को खँखारते हुए कहा, “हाँ, ठीक है, लेकिन प्लीज नोटबुक जल्दी दे दो।” उसकी आवाज में हल्की सी कँपकँपी थी।
लाली ने खीझ कर मुंह बनाया और आलमारी की तरफ घूमकर नोट्स निकालने लगी और अनुज की नजर उसकी टॉप पर गई जो पीछे से उठी थी । नंगी गोरी कमर कितनी मुलायम और मखमली उसपे से क़ैफरी की लास्टिक के पास लाली की पिंक ब्लूमर की हल्की झलक थी शायद लैस थे जो उसकी कैफरी से बाहर आ रहे थे । अनुज की धड़कने फिर से बेकाबू होने लगी
आखिरकार नोटबुक निकाली और उसे थमाते हुए कहा: हम्ममम पकड़ों
अनुज ने जल्दी से नोटबुक ली और कमरे से बाहर की ओर बढ़ गया। लाली उसके पीछे-पीछे आई और हल्के से हँसते हुए बोली : चल, मम्मी से मिलवा दूँ। वो अभी बाहर निकलने वाली हैं।
दोनों लॉन की ओर बढ़े, जहाँ लाली की मम्मी खड़ी थीं। अनुज की नजर जैसे ही उन पर पड़ी, वह एकदम से ठिठक गया। लाली की मम्मी बला की खूबसूरत और मॉडर्न औरत थीं।
उन्होंने राउंड नेक की लाल टी-शर्ट और टाइट जींस पहन रखी थी, कलाई में एक ब्लेजर जैसा जैकेट जैसा था कुछ । फुल कमर वाली जींस में उनके बड़े, भड़कीले चूतड़ साफ उभर रहे थे। टी-शर्ट में उनके मोटे, रसीले स्तन इस तरह से नजर आ रहे थे कि अनुज की आँखें वहीं अटक गईं। उनके गोरे चेहरे पर हल्का मेकअप और बालों का खुला जूड़ा उन्हें और भी आकर्षक बना रहा था। अनुज को यकीन नहीं हो रहा था कि इस छोटे से टाउन में कोई औरत इतनी स्टाइलिश और बिंदास हो सकती है। वह लाली की मम्मी का दीवाना सा हो गया। उसकी नजर बार-बार उनके दूध जैसे उभारों पर चली जाती थी, और वह अपने आपको रोक नहीं पा रहा था।
लाली ने हँसते हुए कहा : मम्मी, ये अनुज है, मेरा क्लासमेट। नोटबुक लेने आया था।
उसकी मम्मी ने मुस्कुराते हुए अनुज की ओर देखा और कहा : अच्छा, तुम ही अनुज हो? लाली तुम्हारे बारे में बताती रहती है। मैं अभी बाहर जा रही हूँ, थोड़ा काम है।
उसकी आवाज में एक मधुरता थी, और वह पलटकर अपनी कार की ओर बढ़ गईं। जैसे ही वह चलीं, उनके बड़े, मटकते चूतड़ जींस में लहराते हुए नजर आए। अनुज बस उन्हें देखता रह गया, उसका मुँह हल्का सा खुला था, और वह उस नजारे को अपनी आँखों में कैद कर लेना चाहता था।
लाली की मम्मी के जाने के बाद अनुज ने लाली से पूछा : यार मम्मी इतनी मॉडर्न कैसे हैं? मतलब, इस टाउन में तो लोग ऐसे कपड़े पहनने की सोच भी नहीं सकता ।
लाली ने बेफिक्री से कंधे उचकाते हुए कहा : अरे, ये तो उनके लिए नॉर्मल है। मम्मी को फैशन का शौक है, और वो हमेशा से ऐसी रही हैं। मुझे तो आदत है।
अनुज ने सिर हिलाया, लेकिन उसका दिमाग अभी भी लाली की मम्मी के मॉडर्न अंदाज और उनके मटकते चूतड़ों के नजारे में उलझा हुआ था। वह सोच रहा था कि आज का दिन उसके लिए कितना अजीब और बेकाबू करने वाला रहा।
तभी लाली ने एकदम से उसका हाथ पकड़ लिया और सोफे पर बैठाती हुई : चलो बैठो मै चाय बनाती हूं
अनुज एकदम से लाली के हरकत से सकपका गया और वो अपनी कलाई छुड़ाना चाहता था मगर छूने से डर रहा था : नहीं नहीं , मुझे सच के देर ही रही है यार
तभी लाली की दीदी पीछे से लान में आती है
: अरे अनुज तुम ?
: गुड इवनिंग मिस ( अनुज और लाली दोनो एकदम से सतर्क हो गए और अनुज बड़ी सादगी से उन्हें ग्रिट किया )
: क्या यार , यहां कुछ नहीं तुम मुझे दीदी बुलाओ । पक जाती हु मै मिस किस सुन कर ( लाली की दीदी चिढ़ती हुई बोली )
जिसपे लाली अपने मुंह पर हाथ रख कर हसी रोकने की कोशिश कर रही थी वही अनुज लाली की दीदी को निहार रहा था । व्हाइट टॉप और वाइट लॉन्ग स्कर्ट में कितना बलखा कर चल रही थी । उनके चूतड़ रुक रुक कर हल्के झटके के साथ थिरक रहे थे मानो स्कर्ट के भीतर आपस में टकरा कर झनझना रहे हो ।
: क्या पियोगे अनुज, काफी चाय यार कोई ड्रिंक
: काफी चलेगी दीदी ( अनुज किचन की ओर जाती अपनी किस के झटके खाते चूतड़ों को निहारते हुए बोला )
: अच्छा बच्चू अब देर नहीं हो रही ( लाली ने उसे घूरा तो अनुज हड़बड़ा गया )
: अब मिस को कैसे मना करु यार , लेकिन सच में मुझे देर हो रही है । 6 बजने वाले और पापा भी बाहर गए है न ।
लाली तुनक कर बोली: हा हा ठीक है , सफाई मत दो
उसके नाक पर वो गुलाबी गुस्सा कितना खिल रहा था और अनुज को हसी आ रही थी ।
अनुज मुस्कुरा कर : घर नहीं दिखाओगी अपना
लाली एकदम से चहक गई : दीदी काफी लेकर ऊपर आ जाना, चलो चलो ( लाली उसका हाथ पकड़ सीढ़ियों की ओर भागी )
लाली की दीदी पीछे खड़े हुए : अरे !!!
जबतक वो लाली को रोकती दोनो जीने को फांदते हु ऊपर जा चुके थे ।
कुछ देर बाद .....
शाम ढल चुकी थी । राज अपने दुकान को बंद कर कास्मेटिक वाले दुकान की ओर जा रहा था । हाथ में टिफिन का झोला झुलाते हुए । उसमें अपनी मां रागिनी से लिपटने की बड़ी चाह सी उठ रही थी । वो इस फिराक में था कि वो गली ने मोड से देखेगा अगर दुकान खुली रही तो वो सीधा चौराहे वाले घर निकल जाएगा और अपनी मां के साथ थोड़ी अकेले में मस्ती कर लेगा ।
: भैया ...भैया .. इधर ? ( राज के कान बजे )
उसने फौरन घूम कर देखा तो पीछे से अनुज उसकी ओर ही आ रहा था
: अरे अनुज ! कहा गया था ? ( उसके हाथ में एक नोटबुक को देख कर बोला )
: वो ये नोटबुक लेने गया था ( अनुज राज के पास आता हुआ बोला )
: और मम्मी ?
: दुकान पर होंगी ? ( अनुज कंधे उचका कर बोला )
राज और अनुज दुकान की ओर बढ़ गए जहां उनकी मां रागिनी ढलती सांझ में दुकान के काउंटर के पास खड़ी हुई चिंता के उनकी राह निहार रही थी ।
: कहा चला गया था तू , एक घंटा हो गया ( रागिनी ने अनुज को डांट लगाई )
: वो मम्मी मिस जी ने बिठा लिया था ( अनुज थोड़ा डर कर बोला )
: राज तूने कुछ खाया बेटा ( फिकर में रागिनी बोली )
: कहा मम्मी , पूरा दिन ग्राहको में थक गया हू जल्दी से खाना खिला दो बस ( राज बुझे हुए चेहरे से बोला )
: अरे अभी बनाया कहा ? ये पागल पता नहीं कहा चला गया था किताब लेने ( रागिनी ने गुस्सा दिखाया )
: तो चलो न मम्मी हम चलते है घर और अनुज तू दुकान बंद करके आना ( राज ने फरमान सुनाया )
फिर अपनी मां को लेकर निकल गया जल्दी से ।
अनुज को बहुत बुरा नहीं लगा बल्कि खुशी हुई कि ना राज ने और ना उसकी मां से उससे इस बारे में सवाल जवाब किया कि वो किसके घर गया था ।
अनुज समान बढ़ाने लगा और दुकान बंद करने लगा , ये सब करने में उसे कोई 20 मिनट लगे होंगे । वो खुश था आज लाली के साथ उसने लंबा समय बिताया था । शाम के कॉफी की चुस्की और लाली का साथ , लाली के घर की औरते एक से बढ़ कर एक । उस घर में उसने एक भी मर्द नहीं देखा ताज्जुब हुआ। मगर इनसब से अलग आज उसने अपनी मिस की नंगी गोरी चिकनी गाड़ देखी , कितनी मुलायम और रसीली थी । गोरी गोरी दूधिया गाड़ पर काली पैंटी कितनी खिल रही थी । अनुज का लंड अकड़ने लगा ।
वो रास्ते भर सोचता हुआ करीबन 12-15 मिनट के चौराहे वाले घर पर पहुंच गया था ।
गेट से घुस कर उसने दरवाजे का लॉक दो बार खड़खड़ाया और राज भागता हुआ आया खोलने ।
अनुज चुपचाप हाल में दाखिल हुआ तो उसकी नजर ने सबसे पहले अपनी मां को खोजा और किचन की ओर देखा तो आंखे चमक उठी
किचन में रागिनी ब्लाउज पेटीकोट के खड़ी थी खाना बना रही थी ।
जैसे ही अनुज सीढ़िया चढ़ने लगा उसने घूम कर राज को देखा और मुस्कुराने लगी ।
राज भी अनुज को ऊपर जाता देख फिर से दबे पाव अपनी मां को अपनी बाहों में भरने के लिए किचन में चला गया
जारी रहेगी
Finally Thanks For Updateकहानी की अगली कड़ी पोस्ट कर दी गई है
पढ़ कर रेवो जरूर करें
Super Update 5 Guru DevUPDATE 005
प्रतापपुर
" बाउजी आपका तंबाकू तो जोर पकड़ रहा है " , रंगी अपना लंड सहलाते हुए बोला ।
बनवारी ठहाका लगाते हुए : अरे दमाद बाबू चिंता काहे करते है , दर्द है तो दवा भी है हाहाहाहाहा
रंगी पगडंडी पर चलता हुआ मुस्कुराने लगा
बनवारी उसको चुप देखकर : अरे काहे लजा रहे हो जमाई बाबू , मै छोटकी ( रागिनी ) से कुछ नहीं कहूंगा भाई , कहो जो कहना चाहते हो ।
रंगी मुस्कुरा कर आस पास खेत और अरहर की पैदावार देख रहा था , कुछ दूर दूसरी ओर गन्ने की खेत की फसल खड़ी थी : नहीं वो मै सोच रहा था कि वो जो कमरे में थी वो कौन थी ?
बनवारी ठहाका लगाते हुए : अब तुमसे झूठ क्या बोलना जमाई बाबू , रज्जो की अम्मा के जाने के बाद मै तो अपंग ही हो गया हूं तो लाठी बदलना पड़ता है हाहाहाहाहा
रंगी अपने ससुर की बात पर खिलखिला उठा : आप भी न बाउजी , तो अब तक कितनी लाठियां तोड़ चुके है आप
बनवारी रंगी के व्यंग भरे सवाल पर उसको देख कर मुस्कुरा : अह गिनती कौन करता है , बस किसी को खास नहीं बनाया है नहीं तो वो जज्बाती हो जाती । बाद विवाद बढ़ता सो अलग तो जो भी लाठी हाथ लग जाए उसे भांज लेता हु ।
रंगी : हा ये बात सही कही अपने बाउजी , मोह नहीं बढ़ना चाहिए ऐसे मामलों में नहीं तो दिक्कत हो जाती है ।
बनवारी मुस्कुरा कर : क्यों भई तुम्हारी हथेली में भी कोई लाठी चिपक गई थी क्या , बड़े अनुभवी जान पड़ते हो उम्मम
रंगी ठहाका लगाकर हस दिया : क्या बाउजी आप भी , अरे ... खैर छोड़िए
बनवारी हंसता हुआ : क्या हुआ बोलिए जमाई बाबू , अरे बात तो पूरी कीजिए
रंगी कुछ सोच कर मुस्कुराता हुआ : अह छोड़ो न बाउजी , अच्छा नहीं लगेगा ।
बनवारी : अरे भाई अच्छा बुरा आप क्यों सोचते हो , मेरा काम है वो मै तय करूंगा न और क्या पता वो बात में मुझे रस ही आ जाए । कहिए जमाई बाबू
रंगी हिचक कर : अह बाउजी क्या कहू, जिसकी रागिनी जैसी बीवी हो उसको दूसरी लाठी नहीं पकड़नी पड़ती ।
बनवारी ने भी रंगी के बात पर गला खराश कर चुप हो गया ।
कुछ दूर वो शांत ही थे और आगे चलने पर उन्हें
मक्के के खेत की तरफ कुछ हलचल दिखी
रंगी : बाउजी मक्के की कटाई करवा रहे है क्या ?
बनवारी : अरे नहीं अभी हफ्ता भर बाकी है
रंगीलाल : तो कौन घुसा है उधर
बनवारी की नजर हिलते हुए मक्के से फसलों पर गई : ये मादरचोद को और जगह नहीं मिलती गाड़ मराने को , साल भर की मेहनत के लौड़े लगा देते है
बनवारी तेजी से उसी ओर दौड़ा , पगडंडी से वो खेत के बीच 200 मीटर की दूरी होगी । बनवारी को भागता देख रंगी भी उसके पीछे गया
रंगी भागता हुआ : क्या हुआ बाउजी अरे बच्चे होंगे छोड़िए
बनवारी : अरे इन सालों ने पूरा खलिहान जोत रखा है , आज तो पकड़ के रहूंगा , जमाई बाबू तू वो बगीचे वाले रोड पर खड़े रहो मै दौड़ाता हु
बनवारी तेजी से सरकाता हुआ घुसा मक्के के लहलहाते खेत में
वही खेत में एक जगह खाली जगह थी जहां बनवारी के बेटे राजेश का अड्डा था वो आए दिन अपनी अय्याशी के लिए यहां औरते बुलाता था ।
इस वक्त राजेश एक औरत को घोड़ी बनाए उसके गाड़ में लंड पेल था था
कि तभी खेतों में हो रही सरफराहट का आभास पाते ही राजेश उठ खड़ा हुआ : भाग बहनचोद बाउजी आ रहे है
राजेश अपना अंडर गारमेंट चढ़ा कर पेंट बंद करके तेजी से अपने खुले शर्त के बटन बंद करता हुआ खेत के दूसरी तरफ ट्यूबवेल की ओर भागा । वही वो औरत बगीचे की ओर भागी
बनवारी दहाड़ता हुआ खेत में घुस गया : पकड़ मादरचोद को , पकड़
अब चुकी बनवारी ने बगीचे वाले रास्ते पर रंगीलाल को खड़ा कर रखा था तो उस औरत को दबोचने के लिए उसके पीछे भागा
उन खेतों से दूसरी तरफ बाग था और उसकी मेड पर खड़ा था रंगी लाल
खेतों में सरसराहट मची थी उसपर से बनवारी की गाली और आवाज
तभी मक्के के खेत से फसलों को चीरती हुई बड़ी ही गदराई महिला बाहर आई ,
वो अपनी साड़ी को जांघों तक उठा रखी थी और ब्लाउज में उसकी गोरी रसीली मोटी चूचियां उसके हर पैर के साथ ऊपर नीचे हो रही थी , उसके कपड़े पूरी तरह से अस्त व्यस्त थे , चर्बीदार पेट की नर्म नाभि देख कर रंगी का लंड झटके खाने लगा और ढीले ब्लाउज में उछलती उसकी मोटी मोटी चूचियां अब तब बाहर निकलने को बेताब मालूम पड़ रही थी ।
बनवारी : अरे देख का रहे हो जमाई बाबू पकड़ो हरामजादी को
रंगी का मोह भंग हुआ और वो लपक कर उस औरत की ओर बढ़ा , मगर वो औरत इतनी तेजी से आ रही थी कि रंगी के एकाएक सामने आने वो पूरी तरफ से चौक गई।
उसने पूरी तरफ से खुद को रोकने का प्रयास किया मगर रोक न सकी और पूरी तरह से रंगी को लेकर लुढ़क गई
दो चार छ: और ना जाने कितने बार कभी वो औरत रंगी के ऊपर तो कभी रंगी उस औरत के ऊपर
एक दूसरे को पकड़े हुए वो रोल करते हुए लुढ़क कर बाग में एक पेड़ से जा भिड़े
: हाय दैय्या अह्ह्ह्ह्ह मर गई , वो औरत का कूल्हा आम के पेड़ के बाहर निकले हुए शोर से हप्प से जा लगा , गनीमत रही रंगी बाल बाल बच गया ।
रंगी अपने कपड़े झाड़ता हुआ खड़ा हुआ और उस औरत को दर्द में देख कर कुछ कहने ही वाला था कि पीछे से बनवारी की आवाज आई जो पहले से ही हाफ रहा था : कमला तू ?
रंगी चौक कर कि बनवारी तो इसे जनता है : आप जानते है बाउजी
वो औरत भुनभुनाती हुई खड़ी हुई और अपने साड़ी को सही कर रही
उसका पल्लू उसके मोटे मम्मे से भरे ब्लाउज से हट कर जमीन में लसाराया हुआ था , रंगी की नजर उसके बड़े बड़े रसीले मम्में के हट ही नहीं रही थी , उसपे से उसके नरम गोरे पेट पर लगी हुई मिट्टी देख कर लग रहा था मानो छूने पर कितनी नरम होगी , पाउडर जैसे हाथ सरकेगा ।
बनवारी : तू क्या कर रही थी खेत में .
कमला अपनी साड़ी झाड़ कर अपनी छातियां ढकती हुई अपने कूल्हे झाड़ रही थी मगर कुछ बोली नहीं ।
कमला को देख कर साफ लग रहा था कि उसे बनवारी का जरा भी डर नहीं था और रंगी को ये बात कुछ अजीब लग रही थी ।
कमला : अपने लाड साहब से क्यों नहीं पूछते क्या कर रही थी मै हूह ..
ये बोलकर कमला निकल गई
रंगी उसके तुनक मिजाज से हैरान था कि बनवारी ने उसको कुछ कहा क्यों नहीं । वही उसके लालची मन की निगाहे उसके मिट्टी लगे चूतड़ों पर जमी थी जिसमें उसके साड़ी पर दाग छोड़ दिए । जिससे उसके बड़े चौड़े कूल्हे की थिरकन और भी आकर्षक दिख रही थी ।
रंगी हैरान होकर : बाउजी ये सब क्या था ? ये किसके बारे में बोल कर गई ?
बनवारी : अरे और किसके ? एक ही नालायक है घर में ?
रंगी को समझते देर नहीं लगी बनवारी उसके साले राजेश के बारे में बात कर रहा था ।
रंगी : तो साले साहब इसके साथ थे खेत में
बनवारी : अह छोड़ो न , ये पूछो गांव में किसके साथ नहीं तो शायद जवाब दे पाऊं?
रंगी : सॉरी बाउजी मेरा वो मतलब नहीं था , आप थके हुए लग रहे है आइए बैठिए
बनवारी रंगी के मीठे व्यव्हार से पिघल गया और उसे अपने गलती का अहसास हुआ कि राजेश की नादानी पर वो खामखां रंगी पर उतार रहा है ।
बनवारी : अरे नहीं नहीं जमाई बाबू , अब क्या कहूं । इतनी प्यारी चांद सी बहु है मेरी लेकिन कमीना पूरा दिन आवारा गर्दी में बिताता है । इसके नशे की आदत से बहु इसे अपने आस पास फटकने नहीं देती ।
रंगी कुछ नहीं बोला बस बनवारी की बाते सुनता रहा वही दूसरी ओर राजेश अपने बाप के डर से भागता हुआ ट्यूबवेल की ओर निकल गया ।
आमतौर वो इधर नहीं आता था क्योंकि सांझ के इस समय इधर उसकी बेटियां नहाने आती थी मगर अब बचने के लिए उसके पास और कोई चारा नहीं था ।
भागता हुआ राजेश ट्यूबवेल के पास आ गया , उसका गला बुरी तरह सूख रहा था , सांसे बैठने का नाम नहीं ले रही थी । वो लपक कर ट्यूबवेल की ओर गया और वो हाते में हाथ डालने वाले था कि झट से पीछे हो गया
ट्यूबवेल की दिवाल का सहारा लेकर वो चिपक कर खड़ा हो गया उसकी आंखों ने अभी अभी जो देखा था वो तस्वीर उसके दिलों दिमाग ने छप गई थी । उसकी सांसे और भी भारी होने लगी वो गहरी गहरी सांस लेने लगा ।
उसने अपने कलेजे को शांत किया मगर उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसने जो देखा वो कभी संभव हो सकता था ।
अपने भरम को यकीन में बदलने के लिए जैसे ही उसने दुबारा से ट्यूबवेल की दिवाल से सट कर पानी के हाते में झांका तो उसकी सांसे फिर से चढ़ने लगी । क्योंकि पानी में उसकी बेटी बबीता पूरी नंगी होकर तैर रही थी । पानी की सतह पर उसकी मुलायम चूतड उभरे हुए थे वो पूरी शांत होकर पड़ी थी पानी में मानो ।
राजेश का लंड जो कमला की अधूरी चुदाई करके पूरी तरह से सोया नहीं था एक बार फिर अपनी बेटी के नरम फुले हुए नंगे तैरते चूतड़ों को देख कर अपना सर उठाने लगा ।
मगर तभी गीता की आवाज आई : बबीता चलो देर हो रही है ।
राजेश के जहन पर छाता वासना का बादल छट गया और वो अपने होश में वापस आया । उसे अपनी ही बेटी के नरम फुले हुए नंगे चर्बीदार चूतड़ों को देख कर अपना लंड खड़ा पाना बहुत ही अफसोस जनक महसूस हुआ । उसके हिसाब से ऐसा कोई भी संजोग होना पूरी तरह से अनुचित था । मगर होनी को कौन ही टाल सकता था और वासना पर भला किसका जोर चला है ।
कुछ ही देर बबीता पानी से निकली और राजेश ना चाह कर भी खुद को अपनी बेटी को पानी से बाहर निकलते हुए देखने से नहीं रोक सका
बबिता पानी से बाहर निकल कर खड़ी थी । उसके मौसमी जैसे चूचे एकदम कड़क थे निप्पल पूरी तरफ से कड़े और नुकीले , जांघों के पास चूत के ऊपर हल्की सी झाट के रोओ की झुरमुट , एक बार फिर राजेश का लंड उससे बगावत कर बैठा ।
बबीता नंगी ही बगल के मकान में चली गई और फिर कुछ देर बाद दोनों बहने एक झोला लेकर बाते करते हुए निकल गए
राजेश झट से पानी के हाते के पास आया और अपना पूरा मुंह गर्दन तक पानी में बोर दिया और मिनट भर बाद बाहर निकाला हांफता हुआ ।
दूर उसकी बेटियां खेलती टहलती खिलखिलाती घर के लिए जा रही थी और राजेश वही खड़ा हुआ उन्हें निहार रहा था । देख रहा था कि उसकी गुड़िया अब बड़ी हो गई थी ।
शिला के घर
उम्मम फक्क मीईईई ओह्ह्ह यस्स अह्ह्ह्ह्ह, कमान उम्मम और तेज अह्ह्ह्ह उम्मम
अरुण के दोनों कानो के इयर बड्स में ये चीखे गूंज रही थी और उसके चेहरे पर वासना का शबाब छाया हुआ वो आंखे कभी कल्पनाओं से बंद कर लेता तो कभी अपने मोबाइल स्क्रीन पर चल रही चल चित्र को देखता , उसका लंड उसकी मुठ्ठी के कसा हुआ मिजा था था , वो तेजी से अपने लंड की चमड़ी आगे पीछे कर रहा था
: ओह्ह्ह ओह्ह्ह गॉड मम्मी फक्क यूं ओह्ह्ह्ह यशस्स अह्ह्ह्ह्ह सीईईई ओह्ह्ह और चोदो मेरी मम्मी हा और और ओह्ह्ह्ह्ह गॉड फक्क्क् यूयू ओह्ह्ह्ह सीईईईई अह्ह्ह्ह्ह, अरुण मोबाईल स्क्रीन पर चल रही चुदाई को देख कर बड़बड़ाया और इतने में दूसरी ओर से आवाज आई
: हा बेटा चुद रही हूं अह्ह्ह्ह्ह पेलो जेठ जी अह्ह्ह्ह्ह और तेज उम्मम अह्ह्ह्ह देख बेटा तेरी मम्मी चुद रही है अच्छा लगता है न अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म
: ओह गॉड फक्क्क् मीईईईई अह्ह्ह्ह्हमम यशस्स अह्ह्ह्ह्ह आ रहा है मेरा अह्ह्ह्ह मम्मी मुझे आपके मुंह में झड़ना है आजाओ अह्ह्ह्ह ( अरुण मोबाइल स्क्रीन पर चल रहे चुदाई को देख कर बोला और अगले पल वो औरत अपने चेहरे का मास्क मुंह से उठा कर अपने आंखों पर कर लेती है और जीभ बाहर निकाल देती और पीछे से एक आदमी ताबड़तोड़ उसकी गाड़ में अपना लंड पेले जा रहा था ।
अरुण उस औरत को देख कर रह नहीं पाता और झड़ने लगा : ओह गॉड फक्क्क् यूयू बीच उफ्फ कितनी चुदक्कड हो आंटी तुम अह्ह्ह्ह्ह सीईईई ओह्ह्ह उम्ममम
अरुण के झड़ते ही वो औरत उस आदमी को हटाती है और दोनों वीडियो काल पर होते है ।
अरुण अभी भी अपने मोबाईल का कैमरा ऑफ किए हुआ था ।
वो औरत माक्स पहने हुए ही अपने ब्लाउज के बटन लगाने लगी : क्यों बेटा मजा आया
अरुण उस औरत को वीडियो काल पर देखता हुआ : बहुत ज्यादा आंटी , वो तुम्हारी साथ वाली कहा है आज । उसकी मोटी गाड़ को देख कर मै पागल हो जाता हु । काश मैं भी तुम लोगों को ज्वाइन कर पाता ।
वो औरत : वो भी आएंगी शायद रात में लाइव होगी ।
अरुण : वाह फिर तो मजा आएगा आंटी , तुम दोनों तबाही मचा देती हो ।
औरत : हा लेकिन आज रात मै नहीं आऊंगी कोई और आयेगा
अरुण शॉक्ड होकर : कोई और मतलब , न्यू मेंबर का इंट्रो
औरत : उम्मम ऐसा ही कुछ । अच्छा चलो मै रखती हु बाय ।
अरुण मुस्कुरा कर : बाय मम्मी लव्स यू
और वो औरत हस्ते हुए फोन काट दी ।
अरुण ने काल कट किया तो चैट में उसे उस औरत को भेजे हुए पेटीएम पेमेंट की रसीद दिखाई दी , जिसमें 2000 रुपए भेजे गए थे ।
अरुण उठा और नहाने चला गया और वही छत पर टैरिस पर रज्जो और शिला बैठी हुई थी ।
शाम का वक्त हो चला था, तकरीबन पाँच बजने को थे। घर की छत पर बनी टैरिस पर दोनों सहेलियाँ, शिला और रज्जो, आमने-सामने बैठी थीं। टैरिस के चारों ओर लोहे की रेलिंग थी, जिसके बीच से नीचे गली की हलचल दिखाई दे रही थी। हवा में हल्की ठंडक थी, और आसमान पर सूरज ढलान की ओर बढ़ रहा था, जिससे नारंगी और गुलाबी रंग की छटा बिखर रही थी। शिला ने अपने हाथ में रिमोट पकड़ा हुआ था, और उसकी उंगलियाँ "High" बटन के ऊपर मँडरा रही थीं।
रज्जो दूसरी ओर एक पुरानी प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठी थी, उसकी स्थिति थोड़ी बेचैन थी, और चेहरे पर एक मिश्रित भाव था—गुस्सा, शर्मिंदगी और हँसी का अजीब सा संगम।
शिला ने रज्जो की ओर देखा, अपनी भौंहें उचकाईं, और एक शरारती मुस्कान के साथ "High" बटन दबा दिया। रज्जो ने तुरंत अपने होंठ काटे और कुर्सी की बाहों को ज़ोर से पकड़ लिया।
उसकी साँसें तेज़ हो गईं, और उसने शिला को घूरते हुए कहा, "बस कर, शिला! कोई देख लेगा तो क्या सोचेगा?" लेकिन शिला पर इसका कोई असर नहीं हुआ।
कुर्सी पकड़े हुए रज्जो ने अपनी जांघें कस ली , कमर से लेकर पेडू तक हिस्से में मानो बिजली की तेज तरंगें उसे गनगना रही थी: अह्ह्ह्ह रुक जा कामिनी कम कर न अह्ह्ह्ह
उसने अपनी कमर उठा दी और एड़ियों के सहारे कुर्सी पकड़ कर अकड़ गई: मै पागल हो जाऊंगी अह्ह्ह्ह सीईईईईई उम्मम्म और कोई देख लेगा बंद कर न
वह हँसते हुए बोली, "अरे, यहाँ कौन देखने वाला है? टैरिस पर तो बस हम दोनों हैं!"
लेकिन शिला गलत थी। ठीक उसी पल टैरिस के कोने से सीढ़ियों की आवाज़ आई, और अरुण वहाँ आ पहुँचा।
अरुण की नजरे अकड़ी हुई रज्जो पर थी , जिसके बड़े भड़कीले छातियों से उसके साड़ी का पल्लू सरक गया था , चूत में मची घरघराहट से उसके मोटे मोटे थनों के निप्पल टाइट हो आसमान की तरफ उभर गए थे , गुदाज चर्बीदार पेट नंगा था और उसकी कमर झटके खा रही थी
रज्जो के चेहरे की बेचैनी और सामने अपनी बड़ी मम्मी के चेहरे पर मुस्कुराहट से वो और भी उलझा हुआ था
रह रह कर रज्जो की सांसे ऊपर नीचे हो रहे थी , जीने की दहलीज पर खड़ा अनुज भौचक्का रज्जो को निहार रहा था मानो रज्जो के जिस्म से उसकी प्राण ऊर्जा निकल रही हो और एकदम से कुर्सी पर बैठ गई सुस्त सी पड़ने लगी
जैसे ही अरुण टैरिस पर आया, शिला ने जल्दी से रिमोट को अपनी ब्लाउज में डालने की कोशिश की, लेकिन अरुण की नज़र तेज़ थी।
"अरे मामी को क्या हुआ " , उसने मासूमियत भरे लहजे में शिला से पूछा।
रज्जो का चेहरा लाल पड़ गया, और उसने अपनी नज़रें नीचे कर लीं, जैसे छत की टाइल्स अचानक बहुत दिलचस्प हो गई हों।
शिला ने हँसते हुए बात को संभालने की कोशिश की : अरे, कुछ नहीं, वो भाभी को प्यास लग रही है बेटा जरा पानी ला देगा ।
अरुण : ओके अभी लाता हु , नींबू भी डाल दूं क्या ? ( अरुण रज्जो के बेपर्दा हुए चूचियों को ब्लाउज में कसा हुए देख कर बोला , रज्जो के बड़े बड़े मम्मे उसके पेट में हरकत पैदा कर रहे थे ।)
रज्जो ने अरुण की नजर पढ की और अपनी साड़ी सही करती हुई : हा बेटा डाल देना
फिर वो शिला को घूरने लगी ।
अरुण : आपके लिए क्या लाऊ बड़ी मां?
शिला : मुझे कुछ नहीं चाहिए बेटा , बस तू भाभी के लिए नींबू पानी लेकर आजा ।
अरुण के जाते ही
शिला और रज्जो एक-दूसरे की ओर देखकर हँस पड़ीं।
शिला ने रिमोट फिर से निकाला और बोली : मजा आया उम्मम
रज्जो : अह्ह्ह्ह्ह लग रहा था पूरे बदन में कंपकपी मची थी , रोम रोम दर्द से तड़प रहा था मेरा और पूछ रही है मजा आया , क्या चीज है ये ?
शिला : ये चूत बहलाने का औजार है मेरी जान , अंग्रेजी में इसे वाइब्रेटर कहते है हाहा
रज्जो साड़ी में हाथ घुसाती हुई : अब इसको निकालते कैसे है ?
शिला : उन्हूं रहने दो न, रूम में निकाल दूंगी
रज्जो : धत्त मुझे साफ करना पड़ेगा , रिस रहा है वहां
शिला मुस्कुरा कर : तो फिर बाथरूम में चले मै साफ कर देती हु चाट कर
रज्जो लजा कर : धत्त नहीं मुझे और नहीं तड़पना
शिला उसको छेड़ती हुई : हाय मेरी जान , जरा साड़ी उठा कर दिखा तो दो अपनी रसभरी को उम्मम
शिला ने अपने पैर से उसकी साड़ी के गैप को और खोलना चाहा मगर रज्जो ने उसको झटक दिया क्योंकि उसने छत पर वापस अरुण को आते देख लिया था ।
रज्जो ने इस बात का जिक्र नहीं किया बस अरुण से नजरे चुराती रही।
अरुण मुस्कुरा कर रज्जो को नींबू पानी का गिलास देता हुआ : हम्म्म मामी लो पी लो , एकदम ताजा है
रज्जो ने उसके शरारती आंखों में देखा और समझ गई कि अरुण ने जरूर उनकी बातें सुनी है ।
मगर अरुण के खुश होने का कारण कुछ और ही था , जैसे जैसे रज्जो नींबू पानी का ग्लास खाली कर रही थी अरुण के लंड में हरकत बढ़ रही थी और उसकी आंखे उलट रही थी । मानो रज्जो गले में नींबू पानी नहीं बल्कि उसके लंड का रस घोंट रही हो ।
चमनपुरा
लाली का घर एक टाऊन के रिहायशी इलाके में था, जहां सड़क के किनारे पेड़ों की छांव और मॉर्डन बनावट के घर एक अलग ही हलचल कर देती थी। अनुज ने दरवाजे पर दस्तक दी, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। शायद लाली कहीं व्यस्त थी। उसने सोचा कि शायद अंदर जाकर लाली को बुला ले, और दरवाजा खुला देखकर वह धीरे-धीरे अंदर चला गया। घर में हल्की-हल्की ठंडक थी, और दीवारों पर लगी पुरानी तस्वीरें उसकी नजरों से गुजरीं। उसने लाली का नाम पुकारा, लेकिन फिर भी कोई जवाब नहीं मिला। वह आगे बढ़ा और लाली का कमरा खोजने की कोशिश करने लगा।
आलीशान घर फर्श के चमचाते टाइल्स और सफेद सोफे और पर्दे देख कर अनुज को ताज्जुब हुआ , अमीर लोगों की लाइफ स्टाइल में सफेदी कुछ ज्यादा ही दिख जाती है । शीशे सी चमचमाती टेबल और सब कुछ साफ चिकना जैसे वो किसी घर में नहीं होटल में गया हो । मगर हैरत की बात थी उसे कोई नजर नहीं आ रहा था । लाली के यहां पहली बार आना उसके अंदर डर पैदा कर रहा था , कही लाली की मां या पापा ने सवाल किए । मगर लाली की दीदी यानि उसकी कालेज मिस के कहने पर वो आया तो डर उतना भी नहीं था । मगर कुछ तो था जो उसे भीतर से बेचैन किए जा रहा था । तभी उसे एक कमरे की ओर हलचल दिखी कमरे का दरवाजा हल्का भीड़का था और उसके पर्दे कमरे से आ रही हवा से गलियारे में लहरा रहे थे । अनुज उस ओर बढ़ गया ।
तभी उसकी नजर एक खुले दरवाजे वाले कमरे पर पड़ी। उसने सोचा शायद यह लाली का कमरा हो, लेकिन जैसे ही वह करीब पहुंचा, उसे अंदर का नजारा देखकर पैरों तले जमीन खिसक गई। वहां उसकी मैम—यानी लाली की दीदी—कपड़े बदल रही थीं।
वह नीचे सिर्फ काली पैंटी में थीं, और उनके नितंब इतने आकर्षक और कामोत्तेजक लग रहे थे कि अनुज की सांसें थम सी गईं। उसका चेहरा लाल हो गया, और दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसे समझ नहीं आया कि वह क्या करे। मिस की लंबी गोरी टांगे और कूल्हे पर चुस्त पैंटी जो उनके गाड़ के दरारों में गहरे घुसी हुई थी अनुज देखते ही बेचैन होने लगा । उसके पेट में अजीब सी हड़बड़ाहट होने लगी कही कोई उसे ऐसे ताक झांक करता देख न ले
उसने फौरन नजरें हटाईं और खुद को संभालते हुए पीछे हट गया। उसकी पैंट में एक अजीब सी अकड़न होने लगी थी, जो उसे और असहज कर रही थी। वह नहीं चाहता था कि कोई उसे वहां देख ले और गलत समझे , खास कर लाली । डर के मारे वह चुपचाप उस जगह से निकल गया और बाहर लॉन में जाकर खड़ा हो गया, जैसे कुछ हुआ ही न हो। उसकी सांसें अभी भी तेज थीं, और वह उस दृश्य को अपने दिमाग से निकालने की कोशिश कर रहा था।
" उफ्फ मिस तो पूरी बोल्ड है कितनी टाइट चिपकी हुई थी पैंटी उनकी गाड़ पर अह्ह्ह्ह्ह मूड गया बीसी " , अनुज खुद से बड़बड़ाया। उसने वही से वापस लाली को आवाज दी ।
कुछ ही मिनटों बाद लाली बाहर आई। उसने एक हल्का सा टॉप और कैफ़री पहन रखी थी, और अपने गीले बालों को जुड़े में बांधते हुए वह अनुज की ओर बढ़ी। उसका गोरा पेट टॉप के नीचे से हल्का-हल्का दिख रहा था, और उसकी चाल में एक सहज लापरवाही थी।
अनुज की नजर अनायास ही उसके पेट पर चली गई, और वह एक बार फिर सन्न रह गया। उसकी त्वचा की चमक और उसकी सादगी में छुपा आकर्षण उसे बेचैन कर गया।
लाली ने उसे देखकर मुस्कुराते हुए कहा : हाय , वो मै नहा रही थी , ज्यादा देर हो गई न
अनुज मुस्कुरा कर उसके गोरे चेहरे को देखता हुआ कितनी मासूम और बचपना भरा था उसमें : उम्हू इतना भी नहीं
लाली खिलकर : तो आओ चलो , तुम्हे नोटबुक देती हूं
अनुज ने हड़बड़ाते हुए हाँ में सिर हिलाया और लाली के पीछे-पीछे चल पड़ा। जैसे ही लाली आगे बढ़ी, उसकी कैफ़री में उभरे हुए चूतड़ हल्के-हल्के मटक रहे थे। हर कदम के साथ उनकी गोलाई और लचक अनुज की नजरों में कैद हो रही थी। उसकी पैंट में अकड़न अब और बढ़ गई थी, और वह अपने आपको संभालने की कोशिश में लगा था। उसका दिमाग अभी भी उन दो अलग-अलग दृश्यों के बीच उलझा हुआ था—एक उसकी मैम का और दूसरा लाली का। दोनों ही नजारे उसे अंदर तक हिला गए थे, और वह चाहकर भी उन्हें भूल नहीं पा रहा था।
अनुज लाली के पीछे-पीछे उसके कमरे की ओर बढ़ रहा था, लेकिन उसके मन में एक अजीब सी बेचैनी हिलोरे ले रही थी। जिस माहौल और समाज में वह पला-बढ़ा था, वहाँ एक लड़के और लड़की का इस तरह अकेले एक कमरे में होना कोई आम बात नहीं थी—वह भी तब, जब घर में किसी को पता न हो। ऊपर से लाली जैसी लड़की, जो हमेशा उसके आसपास मंडराती रहती थी और जिसके इरादे अनुज को हमेशा थोड़े शक्की लगते थे। उसकी साँसें तेज थीं, और वह बार-बार अपने हाथों को रगड़ रहा था। उसकी आँखें इधर-उधर भाग रही थीं, जैसे वह जल्दी से नोटबुक लेकर वहाँ से निकल जाना चाहता हो।
लाली ने कमरे में घुसते ही अलमारी की ओर कदम बढ़ाया और पीछे मुड़कर अनुज को देखते हुए कहा : अरे, इतना घबराया क्यों रहे हो बैठो न, थोड़ा रिलैक्स करो ।
उसकी आवाज में एक शरारत थी, और वह जानबूझकर धीरे-धीरे अलमारी खोल रही थी। अनुज ने हड़बड़ाते हुए कहा, “नहीं-नहीं, बस नोटबुक दे दो , मुझे जल्दी है। घर पर कुछ काम है।”
लेकिन लाली ने उसकी बात को अनसुना करते हुए कहा, “अरे, इतनी जल्दी क्या है? अभी तो शाम ढली भी नहीं है। पहली बार आए हो बिना चाय पानी के भेजा तो दीदी मुझे धो देगी वो भी बिना साबुन के हीही
उसने अनुज को थोड़ा हल्का महसूस कराने का ट्राई किया मगर अनुज के लिए चीजे फिर भी इतनी आसान नहीं थी ।
लाली उसको बातों में उलझाने की कोशिश रही और उसकी मुस्कान से साफ था कि वह अनुज की बेचैनी को भाँप चुकी थी। अनुज ने घबराहट में अपने गले को खँखारते हुए कहा, “हाँ, ठीक है, लेकिन प्लीज नोटबुक जल्दी दे दो।” उसकी आवाज में हल्की सी कँपकँपी थी।
लाली ने खीझ कर मुंह बनाया और आलमारी की तरफ घूमकर नोट्स निकालने लगी और अनुज की नजर उसकी टॉप पर गई जो पीछे से उठी थी । नंगी गोरी कमर कितनी मुलायम और मखमली उसपे से क़ैफरी की लास्टिक के पास लाली की पिंक ब्लूमर की हल्की झलक थी शायद लैस थे जो उसकी कैफरी से बाहर आ रहे थे । अनुज की धड़कने फिर से बेकाबू होने लगी
आखिरकार नोटबुक निकाली और उसे थमाते हुए कहा: हम्ममम पकड़ों
अनुज ने जल्दी से नोटबुक ली और कमरे से बाहर की ओर बढ़ गया। लाली उसके पीछे-पीछे आई और हल्के से हँसते हुए बोली : चल, मम्मी से मिलवा दूँ। वो अभी बाहर निकलने वाली हैं।
दोनों लॉन की ओर बढ़े, जहाँ लाली की मम्मी खड़ी थीं। अनुज की नजर जैसे ही उन पर पड़ी, वह एकदम से ठिठक गया। लाली की मम्मी बला की खूबसूरत और मॉडर्न औरत थीं।
उन्होंने राउंड नेक की लाल टी-शर्ट और टाइट जींस पहन रखी थी, कलाई में एक ब्लेजर जैसा जैकेट जैसा था कुछ । फुल कमर वाली जींस में उनके बड़े, भड़कीले चूतड़ साफ उभर रहे थे। टी-शर्ट में उनके मोटे, रसीले स्तन इस तरह से नजर आ रहे थे कि अनुज की आँखें वहीं अटक गईं। उनके गोरे चेहरे पर हल्का मेकअप और बालों का खुला जूड़ा उन्हें और भी आकर्षक बना रहा था। अनुज को यकीन नहीं हो रहा था कि इस छोटे से टाउन में कोई औरत इतनी स्टाइलिश और बिंदास हो सकती है। वह लाली की मम्मी का दीवाना सा हो गया। उसकी नजर बार-बार उनके दूध जैसे उभारों पर चली जाती थी, और वह अपने आपको रोक नहीं पा रहा था।
लाली ने हँसते हुए कहा : मम्मी, ये अनुज है, मेरा क्लासमेट। नोटबुक लेने आया था।
उसकी मम्मी ने मुस्कुराते हुए अनुज की ओर देखा और कहा : अच्छा, तुम ही अनुज हो? लाली तुम्हारे बारे में बताती रहती है। मैं अभी बाहर जा रही हूँ, थोड़ा काम है।
उसकी आवाज में एक मधुरता थी, और वह पलटकर अपनी कार की ओर बढ़ गईं। जैसे ही वह चलीं, उनके बड़े, मटकते चूतड़ जींस में लहराते हुए नजर आए। अनुज बस उन्हें देखता रह गया, उसका मुँह हल्का सा खुला था, और वह उस नजारे को अपनी आँखों में कैद कर लेना चाहता था।
लाली की मम्मी के जाने के बाद अनुज ने लाली से पूछा : यार मम्मी इतनी मॉडर्न कैसे हैं? मतलब, इस टाउन में तो लोग ऐसे कपड़े पहनने की सोच भी नहीं सकता ।
लाली ने बेफिक्री से कंधे उचकाते हुए कहा : अरे, ये तो उनके लिए नॉर्मल है। मम्मी को फैशन का शौक है, और वो हमेशा से ऐसी रही हैं। मुझे तो आदत है।
अनुज ने सिर हिलाया, लेकिन उसका दिमाग अभी भी लाली की मम्मी के मॉडर्न अंदाज और उनके मटकते चूतड़ों के नजारे में उलझा हुआ था। वह सोच रहा था कि आज का दिन उसके लिए कितना अजीब और बेकाबू करने वाला रहा।
तभी लाली ने एकदम से उसका हाथ पकड़ लिया और सोफे पर बैठाती हुई : चलो बैठो मै चाय बनाती हूं
अनुज एकदम से लाली के हरकत से सकपका गया और वो अपनी कलाई छुड़ाना चाहता था मगर छूने से डर रहा था : नहीं नहीं , मुझे सच के देर ही रही है यार
तभी लाली की दीदी पीछे से लान में आती है
: अरे अनुज तुम ?
: गुड इवनिंग मिस ( अनुज और लाली दोनो एकदम से सतर्क हो गए और अनुज बड़ी सादगी से उन्हें ग्रिट किया )
: क्या यार , यहां कुछ नहीं तुम मुझे दीदी बुलाओ । पक जाती हु मै मिस किस सुन कर ( लाली की दीदी चिढ़ती हुई बोली )
जिसपे लाली अपने मुंह पर हाथ रख कर हसी रोकने की कोशिश कर रही थी वही अनुज लाली की दीदी को निहार रहा था । व्हाइट टॉप और वाइट लॉन्ग स्कर्ट में कितना बलखा कर चल रही थी । उनके चूतड़ रुक रुक कर हल्के झटके के साथ थिरक रहे थे मानो स्कर्ट के भीतर आपस में टकरा कर झनझना रहे हो ।
: क्या पियोगे अनुज, काफी चाय यार कोई ड्रिंक
: काफी चलेगी दीदी ( अनुज किचन की ओर जाती अपनी किस के झटके खाते चूतड़ों को निहारते हुए बोला )
: अच्छा बच्चू अब देर नहीं हो रही ( लाली ने उसे घूरा तो अनुज हड़बड़ा गया )
: अब मिस को कैसे मना करु यार , लेकिन सच में मुझे देर हो रही है । 6 बजने वाले और पापा भी बाहर गए है न ।
लाली तुनक कर बोली: हा हा ठीक है , सफाई मत दो
उसके नाक पर वो गुलाबी गुस्सा कितना खिल रहा था और अनुज को हसी आ रही थी ।
अनुज मुस्कुरा कर : घर नहीं दिखाओगी अपना
लाली एकदम से चहक गई : दीदी काफी लेकर ऊपर आ जाना, चलो चलो ( लाली उसका हाथ पकड़ सीढ़ियों की ओर भागी )
लाली की दीदी पीछे खड़े हुए : अरे !!!
जबतक वो लाली को रोकती दोनो जीने को फांदते हु ऊपर जा चुके थे ।
कुछ देर बाद .....
शाम ढल चुकी थी । राज अपने दुकान को बंद कर कास्मेटिक वाले दुकान की ओर जा रहा था । हाथ में टिफिन का झोला झुलाते हुए । उसमें अपनी मां रागिनी से लिपटने की बड़ी चाह सी उठ रही थी । वो इस फिराक में था कि वो गली ने मोड से देखेगा अगर दुकान खुली रही तो वो सीधा चौराहे वाले घर निकल जाएगा और अपनी मां के साथ थोड़ी अकेले में मस्ती कर लेगा ।
: भैया ...भैया .. इधर ? ( राज के कान बजे )
उसने फौरन घूम कर देखा तो पीछे से अनुज उसकी ओर ही आ रहा था
: अरे अनुज ! कहा गया था ? ( उसके हाथ में एक नोटबुक को देख कर बोला )
: वो ये नोटबुक लेने गया था ( अनुज राज के पास आता हुआ बोला )
: और मम्मी ?
: दुकान पर होंगी ? ( अनुज कंधे उचका कर बोला )
राज और अनुज दुकान की ओर बढ़ गए जहां उनकी मां रागिनी ढलती सांझ में दुकान के काउंटर के पास खड़ी हुई चिंता के उनकी राह निहार रही थी ।
: कहा चला गया था तू , एक घंटा हो गया ( रागिनी ने अनुज को डांट लगाई )
: वो मम्मी मिस जी ने बिठा लिया था ( अनुज थोड़ा डर कर बोला )
: राज तूने कुछ खाया बेटा ( फिकर में रागिनी बोली )
: कहा मम्मी , पूरा दिन ग्राहको में थक गया हू जल्दी से खाना खिला दो बस ( राज बुझे हुए चेहरे से बोला )
: अरे अभी बनाया कहा ? ये पागल पता नहीं कहा चला गया था किताब लेने ( रागिनी ने गुस्सा दिखाया )
: तो चलो न मम्मी हम चलते है घर और अनुज तू दुकान बंद करके आना ( राज ने फरमान सुनाया )
फिर अपनी मां को लेकर निकल गया जल्दी से ।
अनुज को बहुत बुरा नहीं लगा बल्कि खुशी हुई कि ना राज ने और ना उसकी मां से उससे इस बारे में सवाल जवाब किया कि वो किसके घर गया था ।
अनुज समान बढ़ाने लगा और दुकान बंद करने लगा , ये सब करने में उसे कोई 20 मिनट लगे होंगे । वो खुश था आज लाली के साथ उसने लंबा समय बिताया था । शाम के कॉफी की चुस्की और लाली का साथ , लाली के घर की औरते एक से बढ़ कर एक । उस घर में उसने एक भी मर्द नहीं देखा ताज्जुब हुआ। मगर इनसब से अलग आज उसने अपनी मिस की नंगी गोरी चिकनी गाड़ देखी , कितनी मुलायम और रसीली थी । गोरी गोरी दूधिया गाड़ पर काली पैंटी कितनी खिल रही थी । अनुज का लंड अकड़ने लगा ।
वो रास्ते भर सोचता हुआ करीबन 12-15 मिनट के चौराहे वाले घर पर पहुंच गया था ।
गेट से घुस कर उसने दरवाजे का लॉक दो बार खड़खड़ाया और राज भागता हुआ आया खोलने ।
अनुज चुपचाप हाल में दाखिल हुआ तो उसकी नजर ने सबसे पहले अपनी मां को खोजा और किचन की ओर देखा तो आंखे चमक उठी
किचन में रागिनी ब्लाउज पेटीकोट के खड़ी थी खाना बना रही थी ।
जैसे ही अनुज सीढ़िया चढ़ने लगा उसने घूम कर राज को देखा और मुस्कुराने लगी ।
राज भी अनुज को ऊपर जाता देख फिर से दबे पाव अपनी मां को अपनी बाहों में भरने के लिए किचन में चला गया
जारी रहेगी