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Incest ♡ एक नया संसार ♡ (Completed)

आप सबको ये कहानी कैसी लग रही है.????

  • लाजवाब है,,,

    Votes: 185 90.7%
  • ठीक ठाक है,,,

    Votes: 11 5.4%
  • बेकार,,,

    Votes: 8 3.9%

  • Total voters
    204
  • Poll closed .

Johnboy11

Nadaan Parinda.
1,182
2,540
159
एक नया संसार
अपडेट........《 56 》

अब तक,,,,,,,,

"हाॅ ये तो सही कहा तुमने।" सहसा दीदी ने मेरी तरफ प्रसंसा भरी नज़रों से देखते हुए कहा___"हमने तो उनसे पूछा ही नहीं था। लेकिन सवाल तो है ही कि वो किस ज़रूरी काम से गुज़र रहे थे?"

"ओफ्फो दीदी।" मैने कहा___"आपसे ऐसे सवाल की उम्मीद नहीं थी मुझे। बड़ी सीधी सी बात है वो अपने आदमियों को इकट्ठा करने के लिए जा रहे थे।"

"ओह आई सी।" रितू दीदी ने कहा___"चल ये तो बहुत अच्छा किया तुमने जो खुद के लिए भी बैकअप का इंतजाम कर लिया है। वरना मैं तो सोच रही थी कि कहीं हम फॅस ही न जाएॅ किसी जाल में।"

"ऐसे कैसे फॅस जाएॅगे दीदी?" मैने कहा___"और फिर रिस्क तो लेना ही पड़ेगा। ये तो कुछ भी नहीं है, आने वाले समय में इससे कई गुना ज्यादा ख़तरा भी होगा जिसका हमें सामना करना पड़ेगा।"

"हाॅ ये तो है।" दीदी ने कहा____"ख़ैर अभी तो सबसे ज़रूरी यही है कि किसी तरह नीलम व सोनम सुरक्षित हमें हाॅसिल हो जाएॅ। उसके बाद की इतनी चिंता नहीं है क्योंकि तब इस बात का भय नहीं रहेगा कि हमारा कोई अपना उनके चंगुल में है।"

मैं रितू दीदी की इस बात पर बस मुस्कुरा कर रह गया। ऐसे ही बातें करते हुए हम बढ़े चले जा रहे थे माधोपुर की तरफ। हम तीनों ही पूरी तरह सतर्क थे। हम इस बात को भी बखूबी समझते थे कि ख़तरा सिर्फ अजय सिंह की तरफ बस का ही नहीं था बल्कि मंत्री दिवाकर चौधरी की तरफ से भी था। दूसरी बात अब हम पहचाने जा चुके थे दोनो तरफ इस लिए ख़तरा और भी बढ़ गया था हमारे लिए। मगर सच्चाई की राह पर चलने के लिए हम अपने अपने हौंसलों को आसमां की बुलंदियों में परवाज़ करवा रहे थे। आने वाला समय बताएगा कि इस खेल में किसको जीत मिलती है और किसे हार का कड़वा स्वाद चखना होगा??
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अब आगे,,,,,,,

नीलम व सोनम के जाने के बाद शिवा वापस पलटा और हवेली के अंदर की तरफ बढ़ चला। उसके होठों पर बड़ी ही दिलकस मुस्कान थी। ज़ाहिर था कि उसकी ये मुस्कान सोनम की वजह से थी। जिसके बारे में वो जाने क्या क्या सोचने लगा था। ख़ैर सोनम के बारे में सोचते हुए ही वह चलते हुए अंदर ड्राइंग रूम में पहुॅचा।

उधर ड्राइंग रूम में प्रतिमा अभी भी बैठी हुई थी। उसके चेहरे पर सोचों के भाव गर्दिश कर रहे थे। शिवा के अंदर आते ही वह सोचो से बाहर आई और उसने शिवा को मुस्कुराते हुए देखा तो सहसा वह चौंकी। फिर अगले ही पल सामान्य भी हो गई, कदाचित उसे शिवा की मुस्कान का राज़ पता चल गया था।

"क्या बात है बेटा।" फिर उसने बेटे की तरफ देखते हुए मुस्कुरा कर कहा___"लगता है मन में बहुत ही मीठी मीठी गुदगुदी हो रही है, है ना?"
"ग..गुदगुदी???" प्रतिमा की इस बात से शिवा एकदम से चकरा सा गया___"कैसी गुदगुदी माॅम?"

"वैसी ही बेटा।" प्रतिमा ने कहा___"जैसी तब हुआ करती है जब किसी से नया नया इश्क़ होता है। तुम्हारे होठों पर थिरक रही ये मुस्कान इस बात का सबूत दे रही है कि तुम सोनम के बारे में सोच सोच अंदर ही अंदर बेहद रोमांच सा महसूस कर रहे हो।"

"हाॅ माॅम।" शिवा की मुस्कान गहरी हो गई___"ये तो आपने बिलकुल सही कहा। मैं सचमुच सोनम के बारे में ही सोच सोच कर आनंद महसूस कर रहा हूॅ। उफ्फ माॅम मैं बता नहीं सकता कि मैं सोनम के बारे में सोच सोच कर कितना खुश हो रहा हूॅ। क्या ऐसा नहीं हो सकता माॅम कि मेरे इस दिल का ये हाल मेरे बिना बताए सोनम समझ जाए और फिर वो मेरे इस दिल की चाहत को कुबूल कर ले?"

"तुम दीवाने से होते जा रहे हो बेटे।" प्रतिमा एकाएक ही गंभीर हो गई, बोली___"जो कि बिलकुल भी ठीक नहीं है। तुम खुद ये बात अच्छी तरह जानते हो कि जो तुम चाहते हो वो इस जन्म में तो हर्गिज़ भी नहीं हो सकता। फिर इस तरह बेकार की बातें करने का तथा ऐसा सोचने का क्या मतलब है बेटा? अभी भी वक्त है तुम अपने अंदर के इस एहसास को जितना जल्दी हो सके निकाल दो। वरना देख लेना इस सबके लिए बाद में तुम बहुत दुखी होगे।"

"जिन्हें इश्क़ हो जाता है न माॅम।" शिवा ने अजीब भाव से कहा___"फिर उन्हें कोई समझा नहीं सकता और ना ही इश्क़ में पागल हो चुका ब्यक्ति किसी की बातों को समझना चाहता है। उसे तो बस हर घड़ी हर पल अपने प्यार की आरज़ू रहती है। ऐसा नहीं है माॅम कि इसमें दिमाग़ काम नहीं करता है बल्कि वो तो वैसे ही काम करता रहता है जैसे आम इंसानों का करता है मगर दिल के जज़्बातों की जब ऑधी चलती है न तो उस दिमाग़ का सारा दिमाग़ उसके ही पिछवाड़े में घुस जाता है।"

प्रतिमा के चेहरे पर एक बार पुनः हैरत के भाव उभर आए। उसे इस वक्त लग ही नहीं रहा था कि ये वही शिवा है जो इसके पहले हर लड़की या औरत को सिर्फ और सिर्फ हवश की नज़र से देखता था। बल्कि इस वक्त तो वह दुनिया का सबसे शरीफ व संस्कारी दिखाई दे रहा था।

"कहते हैं कि दुनियाॅ में कुछ भी असंभव नहीं है।" उधर शिवा कह रहा था___"अगर किसी चीज़ को पाने की शिद्दत से चाहत करो तो वो यकीनन हाॅसिल हो जाती है। आप जिस चीज़ को असंभव कह रही हैं वो चीज़ भी संभव हो सकती है माॅम, अगर आप चाहो तो।"


"ठीक है माॅम।" शिवा ने गहरी साॅस ली और फिर एकाएक ही उसके चेहरे पर दृढ़ता के भाव आए, बोला____"अगर ऐसी बात है तो ठीक है। अब मैं कभी आपसे नहीं कहूॅगा कि आप सोनम से मेरी शादी करवा दीजिए। ख़ैर एक बात कहूॅ माॅम, पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा है कि जैसे ईश्वर ने मुझे मेरे पापों की सज़ा देना शुरू कर दिया है। हाॅ माॅम, ये सज़ा ही तो है कि मुझे एक ऐसी लड़की से बेपनाह मोहब्बत हो गई जो मेरी बहन लगती है और जो मुझे नसीब ही नहीं हो सकती कभी। वरना ईश्वर अगर चाहता तो मुझे दूसरी किसी ऐसी लड़की से प्यार करवाता जो मुझे सहजता से मिल जाती। मगर नहीं उसे तो मेरे पापों की सज़ा देना था न मुझे। इस लिए ऐसा कर दिया उसने। कोई दूसरा इन सब बातों को समझे या न समझे माॅम मगर मैं अच्छी तरह समझ गया हूॅ और अगर अपने दिल की सच्चाई बयां करूॅ तो वो ये है कि मुझे ईश्वर के इस फैंसले पर कोई शिकायत नहीं है। अगर ये सब करके वो मुझे मेरे पापों की सज़ा ही देना चाहता है तो ठीक है माॅम मुझे स्वीकार है ये। हर ब्यक्ति को अपने कर्मों का फल मिलता है, फिर चाहे उसके अच्छे कर्मों का हो या बुरे कर्मों का। कितनी अजीब बात है न माॅम कि कुछ लोग सारी ज़िंदगी पाप करते हैं मगर उनको उनके पाप कर्म की सज़ा अंत में मिलती है मगर मुझे तो अभी से मिलना शुरू हो गई।"

शिवा की बातें सुन कर प्रतिमा हैरत से ऑखें फाड़े देखती रह गई उसे। उससे कुछ कहते तो न बन पड़ा था किन्तु ये समझने में उसे ज़रा भी देरी न हुई कि उसके बेटे का मानसिक संतुलन आज इस हद तक बिगड़ गया है अथवा उसकी सोच इस हद तक बदल गई है कि वो इस सबको अपने पाप कर्मों की सज़ा समझने लगा है। कहते हैं कि किसी ब्यक्ति को आप सारी ज़िदगी अच्छी चीज़ों का बोध कराते रहो मगर उसे अगर नहीं समझना होता है तो वो सारी ज़िंदगी नहीं समझता मगर वक्त और हालात के पास ऐसी खूबियाॅ होती हैं जिनके आधार पर वह पलक झपकते ही इंसान को आईना दिखा कर सब कुछ समझा देता है और मज़े की बात ये कि इंसान को समझ में भी आ जाता है। यही हाल शिवा का था। उसे सब कुछ समझ आ चुका था, मगर कहते हैं न कि "का बरसा जब कृषि सुखाने"। बस वही दसा थी उसकी।

"ख़ैर छोंड़िये इन सब बातों को माॅम।" उधर शिवा ने जैसे प्रतिमा को होशो हवाश में लाते हुए कहा___"अब से मैं कभी आपसे ऐसी बातें नहीं करूॅगा। आप ये सब डैड से भी मत बताना। वरना उन्हें लगेगा कि मैं भरपूर जवां मर्द होते हुए भी इस सबके चलते बेहद कमज़ोर हो गया हूॅ। वो इस बात को नहीं समझेंगे कि इस सबसे तो मैं और भी मजबूत हो गया हूॅ। मोहब्बत की चोंट को जो इंसान सह जाए उससे मजबूत इंसान भला दूसरा कौन हो सकता है?"

प्रतिमा को समझ न आया कि वह अपने बेटे की इन सब बातों का क्या जवाब दे। किन्तु उसकी बातें उसे आश्चर्यचकित ज़रूर किये हुए थीं। काफी देर तक वह गंभीर मुद्रा में ठगी सी बैठी रही। होश तब आया जब एकाएक ही ड्राइंग रूम में एक तरफ टेबल पर रखे लैण्ड लाइन फोन की घंटी घनघना उठी थी।

"हैलो।" शिवा अपनी जगह से उठ कर तथा फोन के रिसीवर को कान से लगाते ही कहा।
"ओह शिव बेटा।" उधर से अजय सिंह की जानी पहचानी सी आवाज़ उभरी____"मैंने तुम्हारे नाना जी को ट्रेन में बैठा दिया है और अब मैं यहीं से फैक्ट्री के लिए निकल रहा हूॅ। अतः अब शाम को ही आऊॅगा।"

"ठीक है डैड।" शिवा ने सामान्य भाव से कहा।
"ज़रा अपनी माॅम से बात करवाओ।" उधर से अजय सिंह ने कहा।
"एक मिनट डैड।" शिवा ने कहने के साथ ही पलट कर प्रतिमा की तरफ देखा और उसे बताया कि डैड उससे बात करना चाहते हैं।

"हाॅ बोलो अजय।" प्रतिमा ने शिवा से रिसीवर लेकर उसे अपने बाएं कान से लगाते हुए कहा___"क्या बता है? पापा को ट्रेन में सकुशल बैठा दिया है न तुमने?"
"हाॅ उन्हें ट्रेन में बैठा कर अभी अभी स्टेशन से बाहर आया हूॅ।" उधर से अजय सिंह ने कहा____"और अब मैं यहीं से फैक्ट्री जा रहा हूॅ। काफी दिन से नहीं गया हूॅ तो वहाॅ जाना भी ज़रूरी है। बाॅकी सब ठीक है न?"

"हाॅ बाॅकी सब तो ठीक ही है।" प्रतिमा ने कहा___"नीलम, सोनम को अपना ये गाॅव तथा अपने खेत दिखाने ले गई है। सोनम ने उससे कहा होगा कि उसे ये गाॅव और उसके खेत देखना है। अतः नीलम के साथ गई है वो।"

"ये क्या कह रही हो तुम?" उधर से अजय सिंह ने बुरी तरह चौंकते हुए कहा___"उन दोनो को तुमने जाने कैसे दिया प्रतिमा? क्या तुम्हें पता नहीं है कि वो वहाॅ से भागने के उद्देश्य से भी ये कहा होगा कि उन्हे गाॅव तथा खेत देखना है? उफ्फ प्रतिमा तुमने ये क्या बेवकूफी की?"

"फिक्र मत करो अजय।" प्रतिमा ने कहा___"उन दोनो के साथ मैने दो ऐसे आदमियों को भी भेजा है जिन आदमियों को तुम्हारे दोस्त तुम्हारी मदद के लिए यहाॅ भेज कर गए थे। उन आदमियों के रहते वो कहीं भी नहीं जा सकती।"

"अरे वो आदमी साले क्या कर लेंगे?" उधर से अजय सिंह ने खीझते हुए कहा___"तुम्हें तो पता है कि उस साले विराज ने एक साथ हमारे उतने सारे आदमियों का काम तमाम कर दिया था तो फिर ये क्या कर लेंगे उसका? ओफ्फो प्रतिमा तुम्हें उन दोनों को जाने ही नहीं देना चाहिए था। मुझे तुमसे ऐसी बेवकूफी की उम्मीद हर्गिज़ भी नहीं थी।"

"तुम बेवजह ही इतना परेशान हो रहे हो डियर।" प्रतिमा ने कहा___"मुझे भी पता है कि हालात कैसे हैं और इन हालातों में क्या हो सकता है? मैं उन दोनो को गाॅव तथा खेत देखने जाने से भला कैसे रोंक सकती थी? इसी लिए मैंने उनके साथ उन दो आदमियों को भेजा है। बात इतनी सी ही बस नहीं है बल्कि दूर का सोचते हुए मैने उनके जाने के बाद उनके पीछे लगे रहने के लिए और भी आदमियों को एक टीम बना कर भेजा है। ऐसा इस लिए कि अगर वो दोनो सचमुच यहाॅ से भागने का ही ये गाॅव तथा खेत देखने का बहाना बनाया होगा तो वो किसी भी तरह से भागने में कामयाब न हो सकेंगी। दिखावे के लिए तथा सिचुएशन को सामान्य दिखाने के लिए मैने उन दोनो के साथ सिर्फ दो ही आदमी उनकी सुरक्षा के तहत भेजे किन्तु उनकी जानकारी के बिना कुछ और आदमियों की टीम को ये सोच कर उनके पीछे भेजा कि अगर ये उनका यहाॅ से भागने का ही प्लान था तो ये भी ज़ाहिर है कि ये प्लान उन्होंने खुद नहीं बनाया होगा बल्कि यहाॅ से इस तरह निकलने का प्लान विराज ने ही उन्हें बताया होगा और कहा होगा कि वो दोनो हवेली से बाहर निकल कर किसी ऐसे स्थान पर पहुॅचेंगी जहाॅ से उन दोनो को वो बड़ी आसानी से किन्तु बड़ी सावधानी से हमारे उन दोनो आदमियों के साथ रहने के बावजूद अपने साथ ले जा सकें। विराज की इसी चाल को मद्दे नज़र रखते हुए मैने उन दोनो के पीछे कुछ और आदमियों को एक मजबूत टीम बना कर भेजा है तथा साथ ही ये भी उन्हें कह दिया है कि अगर सचमुच वहाॅ ऐसा कुछ होता दिखे तो वो बेझिझक दूसरी पार्टी यानी विराज व रितू पर गोलियाॅ चला सकते हैं। किन्तु इतना ज़रूर ध्यान देंगे कि उनकी गोलियों से उन दोनो में से किसी की भी मौत न हो जाए। बल्कि उन्हें इस स्थित में लाना है कि वो कुछ करने के लायक न रह जाएॅ। उसके बाद वो उन्हें पकड़ कर हमारे फार्महाउस पर ले आएॅगे।"

"अगर ऐसा है तो फिर ठीक है।" उधर अजय सिंह ने मानो राहत की साॅस ली थी, बोला___"मगर मुझे इस सबसे भी संतुष्टि नहीं हो रही प्रतिमा। पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लगता है कि हमारे इतने आदमियों के रहते हुए भी वो कमीना उन दोनो को अपने साथ ले जाने में कामयाब हो जाएगा।"

"ऐसा तुम इस लिए कह रहे हो डियर।" प्रतिमा ने सहसा मुस्कुरा कर कहा___"क्योंकि तुमने अभी तक इस मामले में कोई सफलता हाॅसिल नहीं की है। हर बार तुमने अपने आदमियों की वजह से नाकामी का स्वाद चखा है। इस लिए तुम्हें इस सबके बावजूद विश्वास या संतुष्टि नहीं हो रही कि हमारे आदमी विराज के मंसूबों को नाकाम कर पाएॅगे।"

"ये तो सच कहा तुमने प्रतिमा।" अजय सिंह बोला___"पर क्या करूॅ यार हालात हर दिन पहले से कहीं ज्यादा गंभीर व बदतर होते जा रहे हैं। मैं ये किसी भी कीमत पर नहीं चाहता हूॅ कि एक और नाकामी की मुहर मेरे माथे की शोभा बढ़ाने लगे। इस लिए मैं खुद ही आ रहा हूॅ वहाॅ। फैक्ट्री जाना इतना भी ज़रूरी नहीं है। मैं आ रहा हूॅ डियर। इस बार मैं उस हरामज़ादे को कामयाब नहीं होने दूॅगा।"

"ठीक है माई डियर।" प्रतिमा ने कहा___"तुम्हें जैसा अच्छा लगे करो। वैसे कब तक पहुॅच जाओगे यहाॅ?"
"जितना जल्दी पहुॅच सकूॅ।" अजय सिंह ने कहा___"ख़ैर चलो रखता हूॅ फोन।"

इसके साथ ही काल कट हो गई। अजय सिंह से बात करने के बाद प्रतिमा पलट कर वापस सोफे की तरफ आई और बैठ गई। चेहरे पर अनायास ही गंभीरता छा गई थी उसके। फिर उसने शिवा की तरफ देखते हुए कहा___"बेटा सविता से कहो कि अच्छी सी चाय बना कर लाए मेरे लिए।"
"ओके माॅम।" शिवा ने कहा और सोफे से उठ कर अंदर की तरफ चला गया।
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उधर मुम्बई में।
ब्रेक फास्ट करने के लिए सब एक साथ ही बैठे हुए थे। जिनमें जगदीश ओबराय, अभय सिंह, पवन, दिव्या, आशा तथा निधी बैठे हुए थे। गौरी, रुक्मिणी तथा करुणा सबके लिए नास्ता परोस रही थीं। ब्रेकफास्ट करते हुए सबके बीच थोड़ी बहुत बातचीत भी हो रही थी। किन्तु इस बीच आशा की निगाहें थोड़े थोड़े समय के अंतराल से निधी पर पड़ ही जाती थी।

निधी जो कि अब ज्यादातर ख़ामोश ही रहती थी। वो किसी से भी खुद से कोई बात नहीं करती थी। हलाॅकि सब यही चाहते थे कि वो सबसे बातें करे तथा अपनी शरारत भरी बातों से माहौल को सामान्य बनाए रखे मगर ऐसा हो नहीं रहा था। सबने उससे पूछा भी था कि वो अचानक इस तरह चुप चुप तथा गुमसुम सी क्यों रहने लगी है मगर उसने बस यही कहा था कि वो बस अपने भइया के चले जाने से ऐसी हो गई है। उसकी बातों को सब यही समझ रहे थे विराज जिस काम से गया है वो यकीनन बहुत ख़तरे वाला है जिसके बारे में सोच कर निधी इस तरह चुप हो गई है। आख़िर ये बात तो सब जानते ही थे कि निधी विराज की जान है तथा निधी भी अपने भाई पर जान छिड़कती है। मगर असलियत से आशा के अलावा हर कोई अंजान था।

चुपचाप नास्ता कर रही निधी की नज़र सहसा सामने ही कुर्सी पर बैठी तथा नास्ता कर रही आशा पर पड़ी तो वो ये देख कर एकाएक ही सकपका गई कि आशा उसे ही एकटक देखे जा रही है। उसके ज़हन में पलक झपकते ही सुबह का डायरी वाला सीन याद आ गया। उसके दिमाग़ ने काम किया और उसे ये सोचने पर मजबूर किया कि आशा दीदी उसे इस तरह एकटक क्यों देखे जा रही हैं। उनकी ऑखों में कुछ ऐसा था जिसने निधी को अंदर तक हिला सा दिया था और फिर एकाएक ही जैसे उसके दिमाग़ की बत्ती रौशन हुई। उसके मन में ख़याल उभरा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि आशा दीदी ने उसके सोते समय डायरी को हाॅथ ही नहीं लगाया हो बल्कि उसे पढ़ भी लिया हो। इस ख़याल के आते ही निधी की हालत पल भर में ख़राब हो गई। मन के अंदर बैठा चोर इतना घबरा गया कि फिर उसमें नज़र उठा कर दुबारा आशा की तरफ देखने की हिम्मत न हुई।

निधी ने नोटिस किया कि जिस अंदाज़ से आशा उसे देख रही थी उससे तो यही लगता है कि उसने डायरी में लिखी बातें पढ़ ली हैं और जान गई है कि उसमें लिखे गए हर लफ्ज़ का मतलब क्या है? निधी की हालत ऐसी हो गई कि अब उससे वहाॅ पर बैठे न रहा गया। उसने जो खाना था खा लिया और फिर वह एक झटके से उठी और ऊपर अपने कमरे की तरफ तेज़ तेज़ क़दम बढ़ाते हुए चली गई। कमरे में जाकर उसने स्कूल की यूनीफार्म पहनी तथा अपना स्कूली बैग उठाया और फिर फौरन ही कमरे से बाहर आ गई।

उसे इतना जल्दी बाहर आते देख हर कोई चौंका मगर चूॅकि उसके स्कूल जाने का समय होने ही वाला था अतः इस पर ज्यादा किसी ने ग़ौर न किया। उसने दूर से ही हाॅथ हिला कर सबको बाय किया और बॅगले से बाहर की तरफ बढ़ गई। बाहर आते ही उसने एक ऐसे आदमी को आवाज़ दी जो हर दिन कार से उसे स्कूल छोंड़ने और स्कूल से लाने का काम करता था। ख़ैर, कुछ ही देर में निधी कार में बैठ कर स्कूल की तरफ रवाना हो गई। किन्तु अब उसका मन बेहद अशान्त हो चुका था। उसे ये डर सताने लगा था कि अगर सचमुच आशा ने उसकी डायरी पढ़ ली होगी तो उसे यकीनन पता चल गया होगा कि वो अपने ही सगे भाई से प्यार करती है और आज कल उसी के ग़म में गुमसुम रहने लगी है।

निधी को प्रतिपल ये सब बातें और भी ज्यादा चिंतित व परेशान किये जा रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे? कैसे अब वो अपनी आशा दीदी के सामने जाएगी तथा उन्हें अपना चेहरा दिखाएगी? अगर आशा ने उससे इस बारे में कुछ पूछा तो वो क्या जवाब देगी? उसे पहली बार एहसास हुआ कि डायरी लिख कर उसने कितनी बड़ी ग़लती की है। वरना किसी को इस बात का पता ही न चलता कि उसके दिल में क्या है। मगर अब क्या हो सकता था? तीर तो कमान से निकल चुका था। अतः अब तो बस इंतज़ार ही किया जा सकता था इस सबके परिणाम का। निधी के मन ही मन ये निर्णय लिया कि अब वो आशा दीदी के सामने नहीं जाएगी और ना ही उनसे कोई बात करेगी। मगर उसे खुद लगा कि ऐसा संभव नहीं हो सकता। उसे उनका सामना तो करना ही पड़ेगा क्योंकि वो ज्यादातर उसके पास ही रहती हैं तथा रात में उसके ही कमरे में उसके साथ एक ही बेड पर सोती भी हैं।

ये मामला ही ऐसा था कि इसने निधी की हालत को इस तरह कर दिया था जैसे अब उसके अंदर प्राण ही न बचे हों। वह एकदम से जैसे ज़िदा लाश में तब्दील हो गई हो। उसके मन में ये भी ख़याल उभरा कि अगर आशा दीदी ने वो सब किसी से बता दिया तो क्या होगा? उसकी माॅ गौरी तो उसे जीते जी जान से मार देगी। कोई उसके अंदर की भावनाओं को नहीं समझेगा बल्कि सब उसे ग़लत ही समझेंगे। अगर ये भी कहें तो ग़लत न होगा कि उसने ये सब अपनी नई नई जवानी को बर्दाश्त न कर पाने की गरज़ से अपने ही भाई को फॅसाने का सोच कर किया होगा। इस ख़याल के आते ही निधी को आत्मग्लानि के चलते बेहद दुख हुआ। उसकी झील सी नीली ऑखों से पलक झपकते ही ऑसूॅ छलक कर गिर पड़े। किन्तु उसने जल्दी से उन्हें ये सोच कर पोंछ भी लिया कि कहीं ड्राइवर उसे बैकमिरर के माध्यम से ऑसू बहाते देख न ले।

सारे रास्ते इन सब बातों को सोचते हुए निधी को पता ही नहीं चला कि वो कब स्कूल पहुॅच गई? होश तब आया जब ड्राइवर ने उससे कहा कि उसका स्कूल आ गया है। ड्राइवर पचास की उमर का ब्यक्ति था। उसका ये रोज़ का ही काम था। उसे निधी से काफी लगाव भी हो गया था। उसे वो अपनी बेटी की तरह मानता था। पिछले कुछ समय से वो खुद भी देख रहा था कि निधी एकाएक ही गुमसुम सी हो गई है। उसने भी कई बार इस बारे में उससे पूछा था मगर निधी ने उससे भी यही कहा था कि वो अपने भइया के लिए दुखी रहती है। भला वो किसी से अपने गुमसुम रहने की वजह कैसे बता सकती थी?

कार से उतर कर निधी बहुत ही बोझिल मन से अपने स्कूल के मुख्य दरवाजे की तरफ बढ़ती चली गई। स्कूल में उसकी अच्छी अच्छी कई सहेलियाॅ बन गई थी। वो सब भी निधी की इस ख़ामोशी से परेशान व चिंतित थी। मगर वो कर भी क्या सकती थी?

इधर निधी के जाने के थोड़ी देर बाद ही आशा निधी के कमरे में पहुॅची। कमरे को उसने अंदर से कुंडी लगा कर बंद किया और फिर पलट कर निधी की डायरी की तलाश करने लगी। मगर बहुत ढूॅढ़ने पर भी उसे निधी की वो डायरी कहीं न मिली। उसने हर जगह बड़ी बारीकी से चेक किया मगर डायरी तो जैसे गधे के सिर का सींग हो गई थी। सहसा आशा को ख़याल आया कि निधी अपनी डायरी को ऐसी वैसी जगह नहीं रख सकती जिससे वो किसी के हाॅथ लग जाए। ज़ाहिर सी बात है कि ऐसी डायरी वो किसी के हाॅथ लगने भी कैसे दे सकती थी जिसे किसी के द्वारा पढ़ लिए जाने के बाद उस पर क़यामत टूट पड़ती। मतलब साफ है कि उसने उस डायरी को ऐसी जगह छुपा कर रखा होगा जहाॅ से मिलना किसी दीगर ब्यक्ति के लिए लगभग असंभव ही हो।

इस ख़याल के तहत आशा ने सोचा कि ऐसी जगह तो इस कमरे में कदाचित आलमारी और आलमारी के अंदर वाला लाॅकर ही हो सकता है जहाॅ पर निधी ने अपनी डायरी छुपाई हो सकती है। अतः आशा ने आगे बढ़ कर आलमारी खोला और आलमारी के अंदर मौजूद लाॅकर को चेक किया तो उसे लाॅक पाया। अंदर के उस लाॅकर की चाभी को उसने ढूॅढ़ना शुरू कर किया मगर चाभी कहीं नहीं मिली उसे। आलमारी में रखी एक एक चीज़ तथा एक एक कपड़े को उलट पलट कर देखा उसने मगर चाभी कहीं न मिली। थक हार कर फिर उसने हर चीज़ को उसी तरह जमा कर रखना शुरू किया जैसे वो पहले रखी हुई थीं उसके बाद वह बेड पर आकर धम्म से बैठ गई और गहरी गहरी साॅसें लेने लगी।

काफी देर तक बेड पर बैठी वो चाभी के बारे में सोचती रही फिर उसे लगा कि संभव है कि लाॅकर की चाभी निधी अपने पास ही रखती हो। यानी इस वक्त वो चाभी उसके पास उसके स्कूली बैग में ही होगी। बात भी सच थी आख़िर वो चाभी अपने पास ही तो रखेगी वरना ऐसे में तो कोई भी उसकी चाभी ढूॅढ़ कर लाॅकर खोल सकता था तथा उसकी डायरी निकाल सकता था और फिर उसे पढ़ भी सकता था। आशा को ये बात सौ परसेन्ट जॅची।

आशा की ऑखों के सामने सुबह ब्रेकफास्ट करते वक्त का सीन फ्लैश करने लगा। जब वो बार बार निधी की तरफ देख रही थी और फिर निधी ने भी उसको अपनी तरफ एकटक देखते हुए देखा था। उस वक्त उसकी हालत बहुत ही दयनीय सी हो गई थी। आशा को समझते देर न लगी कि निधी को उसके इस तरह देखने से ये समझ में आ गया होगा कि उसने सुबह उसकी डायरी को शायद पढ़ लिया होगा और उसका राज़ जान चुकी होगी। ये सोच ही उसकी हालत ख़राब हो गई थी। आशा जानती थी कि प्यार करना कोई जुर्म नहीं है, किन्तु यही प्यार अगर बहन अपने ही भाई से कर बैठे तो यकीनन ये अनुचित तथा ग़लत हो जाता है। कदाचित यही वजह थी कि निधी की वैसी हालत हो गई थी। उसे डर सताने लगा था कि आशा दीदी उसके बारे में क्या क्या सोचेंगी और अगर ये बात किसी को बता दिया तो इसका क्या अंजाम हो सकता है।

आशा को ये भी एहसास था कि विराज है ही ऐसा कि उससे कोई भी लड़की प्यार कर बैठेगी। फिर चाहे वो बाहरी लड़की हो या फिर खुद उसकी ही बहन। वो खुद भी तो विराज को शुरू से ही अपना सब कुछ मानती आ रही थी। उसे खुद नहीं पता था कि वो कब विराज को अपना दिल दे बैठी थी और फिर जब उसे एहसास हुआ कि वो विराज को बेपनाह प्यार करने लगी है तो एकाएक ही हॅसती खेलती आशा का समूचा अस्तित्व ही बदल गया था। आज जिस ख़ामोशी को निधी ने अख़्तियार कर लिया था उसी ख़ामोशी को एक दिन उसने भी तो ऐसे ही अख़्तियार कर लिया था। अपने प्रेम को उसने विराज के सामने कभी उजागर नहीं किया क्योंकि उसे पता था कि विराज उसे अपनी बहन ही मानता है। दूसरी बात अगर वो उससे अपने प्रेम का इज़हार करती भी तो बहुत हद तक संभव था कि विराज उसे ग़लत समझ बैठता या उसके इस प्रेम को ये कह कर ठुकरा देता वो ऐसा सोच भी कैसे सकती हैं? दूसरी बात, एक तो उमर में वो विराज से बड़ी थी दूसरे आर्थिक तंगी के चलते उसकी शादी भी नहीं हो रही थी। इस सबसे विराज को ही नहीं बल्कि सबको भी यही लगता कि आशा से अपनी जवानी की गर्मी बर्दास्त नहीं हुई इस लिए उसने विराज के साथ संबंध बनाने के लिए प्यार का नाटक शुरू कर दिया है। तीसरी महत्वपूर्ण बात वो भले ही चुलबुल व नटखट स्वभाव की थी किन्तु सिर्फ अपने भाइयों के लिए बाॅकी बाहरी लोगों के सामने उसने कभी अपना सिर तक न उठाया था। लोक लाज तथा घर की मान मर्यादा का ख़याल ही था जिसने उसके लब हमेशा के लिए सिल दिये थे।

जब उसे डायरी के द्वारा ये पता चला कि निधी अपने ही भाई से प्यार करती है तो सहसा उसे झटका सा लगा था और उसके दिल में भावनाओं और जज़्बातों का ये सोच कर भयंकर तूफान उठा था कि जिस विराज को वो अपना सब कुछ मानती आ रही है उस पर तो उसका कोई हक़ ही नहीं है। बल्कि सबसे पहला हक़ तो उसकी खुद की बहन का ही हो गया है। उसने भी सोच लिया कि चलो यही सही। प्यार मोहब्बत तो कम्बख़्त नाम ही उस बला का है जो सिर्फ दर्द देना जानती है इश्क़ करने वालों को। उसे निधी पर बेहद तरस भी आया कि इस मासूम ने उस शख्स से दिल का रोग लगा लिया जो इसका हो ही नहीं सकता। ये समाज ये दुनिया कभी भाई बहन के इस रिश्ते को स्वीकार नहीं करेगी। दुनियाॅ की छोंड़ो खुद उसके ही माॅ बाप या संबंधी इसके खिलाफ हो जाएॅगे। कहने का मतलब ये कि मोहब्बत ने एक और शिकार फाॅस लिया बेइंतहां दर्द और तक़लीफ देने के लिए।

आशा जानना चाहती थी कि निधी को अपने ही भाई से इस हद तक प्यार कैसे हो गया है? आख़िर ऐसे क्या हालात बन गए थे जिसके तहत निधी ने ये रोग लगा लिया था? दूसरी बात क्या ये बात विराज को भी पता है कि उसकी लाडली बहन उससे इस हद तक प्यार करती है? उसे पता था कि डायरी एक ऐसी चीज़ होती है जिसमें हर इंसान अपने अंदर की हर सच्चाई को पूर्णरूप से सच ही लिखता है। अतः संभव है कि निधी ने भी उस डायरी में वो सब लिखा हो जिसके तहत उसे पता चलता कि किन हालातों में ऐसा हुआ था? हलाॅकि उसे ये भी पता था कि किसी भी इंसान की पर्शनल डायरी उसकी इजाज़त के बिना पढ़ना निहायत ही ग़लत होता है मगर फिर भी वो पढ़ना चाहती थी।

आशा सोच रही थी कि ब्रेकफास्ट करते वक्त निधी की जो हालत हुई थी उससे कहीं वो कुछ उल्टा सीधा करने का न सोच बैठे। ये मामला ही ऐसा है कि वो इस सबसे बहुत डर जाएगी और किसी के पता चल जाने के डर से वो कुछ उल्टा सीधा करने का सोच बैठे। बेड पर बैठी आशा को एकाएक ही हालात की गंभीरता का एहसास हुआ। उसका दिल बुरी तरह धड़कने लगा। उसे निधी की चिंता सताने लगी। उसने फौरन ही निधी से बात करने का सोचा। किन्तु उसके पास खुद का कोई मोबाइल नहीं था।

आशा अतिसीघ्र बेड से नीचे उतरी और भागते हुए कमरे से बाहर आई और फिर नीचे की तरफ दौड़ पड़ी। थोड़ी ही देर में वो गौरी आदि लोगों के पास पहुॅच गई। उसने खुद के चेहरे पर उभर आए घबराहट के भावों को जल्दी से छुपाया और लगभग सामान्य लहजे में ही गौरी से मोबाइल फोन माॅगा। किन्तु गौरी ने बताया कि मोबाइल तो उसके पास है ही नहीं, उसे तो मोबाइल चलाना ही नहीं आता। दूसरी बात ये कि उसे मोबाइल की कभी ज़रूरत ही नहीं पड़ी। गौरी की ये बात सुनकर आशा बुरी तरह परेशान हो गई। लाख कोशिशों के बावजूद उसके चेहरे पर से परेशानी के वो भाव न मिट सके जो उसके चेहरे पर ढेर सारे पसीने में भींगे दिखने लगे थे। जिसका नतीजा ये हुआ कि गौरी पूछ ही बैठी उससे कि क्या बात है वो इतना परेशान क्यों हो गई है। गौरी की बात का उसने आनन फानन में ही जवाब दिया। तभी वहाॅ पर करुणा भी आ गई। गौरी ने कुछ सोचते हुए करुणा से कहा कि वो अपना मोबाइल फोन आशा को दे दे।

करुणा ने अपना मोबाइल फोन आशा को ये पूछते हुए दे दिया कि क्या बात है तुम इतना परेशान क्यों नज़र आ रही हो। कुछ बात है क्या? आशा ने कहा नहीं चाची ऐसी कोई बात नहीं है वो क्या है कि उसे गुड़िया को फोन करना है तथा उससे पूछना है कि आज वो इतना जल्दी स्कूल क्यों चली गई थी? आपने देखा नहीं था क्या उसने ठीक से नास्ता भी नहीं किया है आज? आशा की इन बातों से गौरी, करुणा तथा रुक्मिणी सहज हो गईं। उन्हें भी बात सही लगी। क्योंकि उन्होंने भी देखा था कि निधी ने बस थोड़ा बहुत ही खाया था और फिर स्कूल चली गई थी। ख़ैर आशा का निधी के लिए इस तरह चिंता करना उन सबको बहुत अच्छा लगा।

करुणा से मोबाइल लेकर आशा फौरन ही वापस कमरे में आई और उसने फिर से दरवाजा उसी तरह अंदर से कुंडी लगा कर बंद कर दिया। उसके बाद वो बेड पर आ कर बैठ गई। फिर जाने उसे क्या सूझा कि वह बेड से उठी और कमरे से ही अटैच बाथरूम की तरफ बढ़ गई। बाथरूम का दरवाजा अंदर से बंद कर उसने मोबाइल पर निधी का नंबर निकाला और फिर उसे काल लगा कर मोबाइल अपने कान से लगा लिया। इस वक्त उसके चेहरे पर गहन चिंता व परेशानी स्पष्ट रूप से उभर आई थी। रिंग की आवाज़ जाती सुनाई दी उसे और इसके साथ ही उसकी धड़कनें भी बढ़ गईं। मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना भी करने लगी कि सब कुछ ठीक ही हो।

"ह..हैलो।" तभी उधर से निधी का लगभग घबराया हुआ सा स्वर उभरा___"च..चाची वो मैं.....।"
"गुड़िया।" निधी की बात को काटते हुए आशा ने फौरन ही कहा___"मैं तेरी आशा दीदी बोल रही हूॅ और हाॅ फोन मत काटना तुझे राज की क़सम है।"

"द..दीदी आप??" उधर से निधी का बुरी तरह उछला हुआ किन्तु घबराया हुआ स्वर फूटा था।
"गुड़िया।" आशा ने असहज भाव से किन्तु समझाते हुए कहा___"देख तू कोई भी उल्टा सीधा करने का ख़याल अपने मन में मत लाना। अगर तू ये सोच कर डर गई है कि मुझे डायरी के माध्यम से तेरा राज़ पता चल गया है और मैं उसकी वजह से तुझे कुछ कहूॅगी या फिर वो सब किसी से कह दूॅगी तो तू उस सबकी वजह से डर मत और ना ही उससे घबरा कर कुछ ग़लत क़दम उठाने का सोचना। मैं तुझे उसके लिए कुछ नहीं कहूॅगी गुड़िया और ना ही किसी को बताऊॅगी। मुझे पता है कि ये प्यार व्यार ऐसे ही होता है जो रिश्ते नाते नहीं देखता। अतः तू इस सबके लिए बिलकुल भी मत घबराना और ना ही फालतू का टेंशन लेना। तू सुन रही है न गुड़िया???"

"हम्म।" उधर से निधी का बहुत ही धीमा स्वर उभरा।
"मुझे इस बात के लिए माफ़ कर दे गुड़िया।" आशा ने सहसा दुखी भाव से कहा___"कि मैने तेरी डायरी को छुआ और उसे खोल कर पढ़ा भी। किन्तु ये सब मैने जान बूझ कर नहीं किया था। बल्कि वो सब अंजाने में हो गया था। दरअसल जब मैं तेरे पास सुबह तेरे लिए चाय लेकर आई तो देखा कि तू उस डायरी को अपने दोनो हाॅथों से पकड़े सो रही थी। मुझे लगा ऐसी डायरी तेरी पढ़ाई में तो उपयोग होती नहीं होगी तो फिर ये कैसी डायरी है तथा क्या है इसमें जिसे इस तरह लिये तू सो रही है? बस यही जानने के लिए मैने उस डायरी को तेरे हाॅथों से लेकर उसे खोला। किन्तु मुझे उसमें वो सब पढ़ने को मिल गया। लेकिन गुड़िया मैने और कुछ नहीं पढ़ा उसमें। शुरू का ही पेज पढ़ा था और वो ग़ज़ल पढ़ी थी जिसमें तूने लिखा था___"बताना भी नहीं मुमकिन, हाॅ ऐसे ही कुछ लिखा था उसमे।"

"क..क्या आप सचमुच इस सबके लिए मुझसे नाराज़ या गुस्सा नहीं हैं दीदी?" उधर से निधी का अभी भी धीमा ही स्वर उभरा था।
"हाॅ गुड़िया।" आशा ने सहसा मुस्कुरा कर कहा___"मैं तुझसे बिलकुल भी नाराज़ नहीं हूॅ। भला मैं तुझसे नाराज़ हो भी कैसे सकती हूॅ पागल? किन्तु हाॅ इस बात से दुखी ज़रूर हूॅ कि सबको अपनी शरारतों से परेशान करने वाली मेरी ये लाडली बहन ने एकाएक ही खुद को उदासी की चादर में ढाॅफ लिया है।"

"वक्त और हालात हमेशा एक जैसे तो नहीं हो सकते न दीदी।" उधर से निधी ने अजीब भाव से कहा___"इंसान के जीवन में कभी खुशी तो कभी ग़म वाला समय तो आता जाता ही रहता है। मेरे पास इसके पहले वैसे ही वक्त और हालात थे जबकि मैं खुश रहा करती थी और शरारतें करने के सिवा कुछ नहीं आता था मुझे। मगर अब हालात बदल गए हैं। ईश्वर को मेरा खुश रहना और मेरा वो शरारतें करना शायद अच्छा नहीं लगा तभी तो उसने मुझे दिल का रोगी बना दिया। एक ऐसे इंसान के लिए उसने मेरे दिल में प्रेम का बीज बो दिया जो इंसान मेरा हो ही नहीं सकता। ख़ैर जाने दीजिए दीदी, मैने बहुत हद तक खुद को समझा लिया है। हलाॅकि ये मुश्किल तो था मगर कोई बात नहीं। इतना तो अब सहना ही पड़ेगा न मुझे। मैने भी सोचा कि ऐसे इंसान को पाने की ज़िद भी क्या करना जो मुझे मिल ही न सके और जिसकी वजह से सब कुछ नेस्तनाबूत भी हो जाए।"

निधी की इन बातों ने आशा को जैसे एकदम से ख़ामोश सा कर दिया। उसे समझ न आया कि वो उसकी बातों का क्या जवाब दे? किन्तु इतना एहसास ज़रूर हो गया उसे कि जिस लड़की को सब लोग बच्ची समझते हैं तथा जिसके बारे में ये सोचते हैं कि उसे दुनियादारी की अभी कोई समझ नहीं है वो लड़की दरअसल अब बहुत बड़ी हो गई है। कदाचित इतनी बड़ी कि अपनी इस छोटी सी ऊम्र में भी वो बड़े बड़े बुजुर्गों तथा बड़े बड़े ज्ञानियों को नसीहतें दे सकती है। क्या प्रेम ऐसा भी होता है जो अचानक ही इंसान को इतना बड़ा और इतना बड़ा ज्ञानी बना देता है जिसके चलते वो यथार्थ और ज्ञान की बातें करने लगे?

"आपने ऐसा कह कर यकीनन मेरे दिल को राहत पहुॅचाई है दीदी।" उधर से निधी कह रही थी___"वरना ये सच है कि मैं इस सबसे बहुत ही ज्यादा घबरा गई थी और चिंतित भी हो गई थी। मैं नहीं चाहती दीदी कि मेरी वजह से सब कुछ खत्म हो जाए और अगर सच में आपने किसी से वो सब कुछ बता दिया होता तो ये भी सच है कि फिर मेरे पास आत्म हत्या कर लेने के सिवा कोई दूसरा चारा न रह जाता। मैं किसी को अपना मुह न दिखा पाती और ना ही एक पल के लिए भी वैसी जलालत भरी ज़िंदगी जी पाती।"

"चुप कर तू।" आशा की ऑखों से ऑसुओं का जैसे बाॅध सा फूट पड़ा, बुरी तरह तड़प कर बोली___"ख़बरदार जो दुबारा फिर कभी आत्महत्या वाली बात की। तू सोच भी कैसे सकती है पागल कि मैं किसी से उस बारे में कुछ कह देती? इतनी पत्थर दिल नहीं हूॅ गुड़िया। मेरे सीने में भी तेरी तरह एक ऐसा दिल धड़कता है जिसमें किसी के लिए बेपनाह मोहब्बत जाने कब से अपना आशियां बना कर रहती है।"

"य..ये आप क्या कह रही हैं दीदी??" उधर से निधी का बुरी तरह चौंका हुआ स्वर उभरा___"आप भी किसी से मोहब्बत करती हैं?"
"क्यों गुड़िया?" आशा ने सहसा फीकी मुस्कान के साथ कहा___"क्या मुझे किसी से मोहब्बत नहीं हो सकती? क्या मेरे अंदर एहसास नहीं हैं? अरे मेरे सीने में भी तो ऐसा दिल है जो धड़कना जानता है रे।"

"मेरा वो मतलब नहीं था दीदी।" उधर से निधी ने मानो सकपकाते हुए कहा___"मैं तो बस आपकी इस बात से हैरान हुई थी कि आप भी किसी से मोहब्बत करती हैं। वैसे कौन है वो शख्स जिसे मेरी प्यारी सी दीदी मोहब्बत करती है? मुझे भी तो बताइये न दीदी।"

"बहुत मुश्किल है गुड़िया।" आशा के चेहरे पर एकाएक ही कई सारे भाव आ कर ठहर गए, बोली___"बस यूॅ समझ ले कि एकतरफा मोहब्बत है ये।"
"मोहब्बत तो है न दीदी।" उधर से निधी ने कहा__"इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता कि वो एकतरफ से है या फिर दोनो तरफ से। मोहब्बत तो मोहब्बत ही होती है चाहे वो किसी की भी तरफ से हो। आप बताइये न किससे मोहब्बत करती हैं आप? मुझे ये जानने की बड़ी तीब्र उत्सुकता हो रही है प्लीज़ बताइये न।"

"मुझे मजबूर मत कर गुड़िया।" आशा की आवाज़ जैसे काॅप सी गई, बोली___"वर्षों से दबे उस मोहब्बत के एहसास को दबा ही रहने दे। क्योंकि मुझे इतने की ही आदत पड़ चुकी है और इतने से दर्द को ही सहने की हिम्मत है मुझमे। वो अगर बाहर आ गई तो फिर मैं उसे और उसके असहनीय दर्द को सम्हाल नहीं पाऊॅगी। इस लिए मुझसे मत पूछ मेरी गुड़िया। मैं तुझे ही क्या उस शख्स को भी नहीं बता सकती जिसे टूट टूट कर वर्षों से चाहा है मैने।"

"हाय दीदी।" उधर से निधी की मानो सिसकी सी निकल गई। कदाचित ऐसा इस लिए क्योंकि दोनो एक ही रोग के रोगी थे। ख़ैर निधी ने कहा___"ये कैसा रोग है दीदी? ये कैसा दर्द है, ये कैसा एहसास है? न जी पाते हैं और ना ही मर पाते हैं। ना चाहते हुए भी उससे फाॅसला कर लेते हैं जिसके बिना पल भी रह नहीं पाते हैं।"

"जाने दे गुड़िया।" आशा के अंदर से एक हूक सी उठी थी जिसने उसे हिला कर रख दिया था, बोली___"ऐसी बातें मत कर वरना इनका असर ऐसा होता है कि फिर एक पल भी सुकून नहीं मिलता। इस लिए ज़रूरी है कि हम अपने मन को अथवा दिल को बहला लें किसी तरह।"

"हाॅ ये तो सच कहा आपने।" निधी ने कहा___"हमें तो हर हाल में खुद को तथा अपने दिल को बहलाना ही होता है। किन्तु अगर आप बताना नहीं चाहती हैं तो कोई बात नहीं। अगर कभी दिल करे कि आपको अपने दिल के बोझ को हल्का करना है तो मुझसे वो सब बता कर ज़रूर खुद को हल्का कर लीजिएगा।"
"चल बाय।" आशा ने गहरी साॅस ली___"अपना ख़याल रखना और हाॅ अपने चेहरे की ये उदासी को कम करने की कोशिश भी करना।"

आशा की इस बात पर उधर से निधी ने हाॅ कहा और फिर काल कट गई। बाथरूम के अंदर एक तरफ की दीवार पर लगे आईने के सामने खड़ी आशा काल कट होने के बाद कुछ देर तक आईने में खुद को देखती रही और फिर सहसा उसके लब थरथराते हुए हिले___"तुझे कैसे बता दूॅ गुड़िया कि मेरे दिल में किस शख्स के प्रति बेपनाह मोहब्बत है? अगर तुझे पता चल जाए कि मुझे भी उसी से मोहब्बत है जिससे तुझे है तो बहुत हद तक संभव है कि तेरा दिल टूट जाएगा और फिर तू सब कुछ जानते समझते हुए भी खुद को बिखर जाने से रोंक नहीं पाएगी।"

आईने में दिख रहे अपने अक्श को एकटक देखती हुई आशा की ऑखों से एकाएक ही ऑसुओं के दो मोती छलकते हुए नीचे बाथरूम के फर्स पर गिर कर मानो फना हो गए। फिर उसने जैसे खुद को सम्हाला और मोबाइल को एक तरफ रख कर उसने वाश बेसिन पर लगे नलके को चला कर उसके पानी से अपने चेहरे को धोना शुरू कर दिया। उसके बाद उसने एक तरफ हैंगर पर टॅगे टाॅवेल से अपने धुले हुए चेहरे को पोंछा और फिर मोबाइल लेकर बाथरूम से बाहर आ गई।
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उधर नीलम व सोनम की तरफ।
नीलम व सोनम जीप की पिछली सीट पर बैठी हुई थी। जीप का ऊपरी हिस्सा यानी कि छत नहीं थी। इस लिए चलते हुए खुली हवा लग रही थी दोनो को तथा इधर उधर का नज़ारा भी स्पष्ट दिख रहा था। जैसा कि पहले भी बताया जा चुका है कि हल्दीपुर गाॅव आस पास के सभी गाॅव से बड़ा था तथा आस पास के कई गाॅवों की पंचायत भी हल्दीपुर ही थी। अजय सिंह का परिवार हल्दीपुर गाॅव का सबसे ज्यादा संपन्न परिवार था।

नीलम की विराज से पहले ही सारी बातें मैसेज के द्वारा हो चुकी थी। विराज ने उसे प्लान भी समझा दिया था तथा ये भी कहा था कि गाॅव तथा खेत घूमने का बहाना करके निकलना हवेली से किन्तु गाॅव में घूमना ही बस नहीं है बल्कि ऐसी जगह आना है जिस तरफ गाॅव की सीमा का आख़िरी छोर हो तथा जिस तरफ से दूसरे गाॅव यानी कि चिमनी के पहले वाले गाॅव माधोपुर की तरफ जाने वाले रास्ते की तरफ आना है। ऐसा इस लिए कि नीलम व सोनम को गाॅव तथा खेत देखने जाने की जानकारी अगर प्रतिमा द्वारा अजय सिंह को होती है तो वो ज़रूर अपने ससुर जगमोहन सिंह को गुनगुन छोंड़ कर वापस सीघ्रता से मुख्य रास्ते से आएगा। ये भी संभव है कि वो अपने साथ मंत्री के आदमियों को अथवा कुछ ऐसे किराए के टट्टुओं को ले आए जो उन्हें रास्ते में ही मिल जाएॅ तो मुसीबत हो जाए।

इन्हीं सब बातों को सोच कर ही विराज ने नीलम से माधोपुर की तरफ ही आने को कहा था। हल्दीपुर के बगल से ही माधोपुर था उसके बाद चिमनी गाॅव। उधर विराज खुद भी गुनगुन के दस किलो मीटर पहले ही बसे गाॅव रेवती से मुख्य मार्ग से न आ कर घूमते हुए इस तरफ आने वाला था।

नीलम व सोनम दोनो ही ऐसा ज़ाहिर कर रही थीं जैसे सचमुच ही वो दोनो गाॅव देखने निकली हैं हवेली से। विराज ने ये भी कहा था कि संभव है उनके पीछे उसकी माॅम ने और भी ऐसे आदमी लगा दिये हों जो उसकी गतिविधी को नोट करते हुए छुप कर उनका पीछा कर रहे हों। अतः इस बात का ख़याल रखें और अगर वो दिखें तो उनकी वस्तुस्थित से उसे ज़रूर अवगत कराए किन्तु सावधानी से।

नीलम सोनम को बताती जा रही थी कि जब वो छोटी थी तो वो इन जगहों पर कभी कभी घूमने आया करती थी। दोनो ही बातें कर रहीं थी। अब तक दोनो ही गाॅव की सीमा के बाहर की तरफ आ गईं थी। तभी एक जगह ड्राइवर ने जीप को रोंक दिया। ये देख कर दोनो ही चौंकी।

"मैडम अब किधर जाना है?" ड्राइवर ने पीछे पलट कर उन दोनो से पूछा था___"आप तो जानती हैं कि हम दोनो खुद ही यहाॅ पर नये हैं इस लिए हमें रास्तों का कुछ पता नहीं है। अतः आपको जहाॅ जहाॅ घूमना हो हमें बता दीजिए। वैसे आपके भाई शिवा जी ने कहा था कि आपको ये सारा गाॅव देखना है और फिर खेतों की तरफ भी जाना है। इस लिए अब आप बताइये कि यहाॅ से किधर चलना है?"

ड्राइवर की बात सुन कर नीलम के दिमाग़ की बत्ती एकाएक ही रौशन हो उठी और वह मन ही मन ये सोच कर खुशी से झूम उठी कि ड्राइवर को तो यहाॅ के बारे में कुछ पता ही नहीं है। यानी वो अगर चाहे तो कहीं भी चलने को कह सकती है उसे। मगर एकाएक ही उसका मन मयूर ये सोच कर मुरझा भी गया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि इन दोनो को शिवा ने ऐसा ही कुछ पूछने के लिए कहा हो। ताकि मैं अपने तरीके से उसे उस तरफ चलने को कहूॅ जिस तरफ जाने से उसे किसी प्रकार की कोई शंका हो और फिर ये शिवा को मैसेज द्वारा इस सबके बारे में सूचित भी कर दे।

नीलम को अपना ये ख़याल जॅचा। इस लिए उसने ऐसा वैसा कुछ भी करने का ख़याल दिमाग़ से निकाल दिया। किन्तु ये भी उसे पता था कि माधोपुर की तरफ ही उसे जाना है। अतः वो उस तरफ जाने के लिए कोई बहाना मन ही मन में सोचने लगी।

"अरे नीलम।" सहसा सोनम एक तरफ हाॅथ का इशारा करते हुए बोल पड़ी___"वो उस तरफ क्या है?"
"क..कहाॅ दीदी?" नीलम ने भी जल्दी से उस तरफ देखते हुए पूछा जिस तरफ सोनम हाथ से इशारा कर रही थी।

"अरे वहाॅ पर।" सोनम ने अपने उठे हुए हाॅथ को हल्का सा मूवमेंट देते हुए कहा___"उस तरफ देख न। ऐसा लगता है जैसे वहाॅ पर कोई बड़ा सा मंदिर है।"
"अच्छा वो।" नीलम को जैसे दिख गया___"हाॅ वो मंदिर ही है। यहाॅ पर वही एक मंदिर है जो कि काफी प्राचीन मंदिर है। हर साल वहाॅ पर मेला भी लगता है।"

"मुझे उस मंदिर को देखना है नीलम।" सोनम ने सहसा जैसे रिक्वेस्ट की___"मुझे मंदिर में देवी देवताओं के दर्शन करना बहुत अच्छा लगता है। प्लीज इनसे कहो न कि ये मंदिर की तरफ चलें।"

"ठीक है दीदी।" नीलम का मन मयूर एकाएक ही खुशी से फिर झूम उठा था। दरअसल वो मंदिर बगल के ही गाॅव माधोपुर में ही स्थित था। मंदिर को देख कर सोनम ने उसे देखने की इच्छा ज़ाहिर की तो नीलम ये सोच कर खुश हो गई कि अब उस तरफ जाने का शानदार बहाना भी मिल गया है। अतः उसने तुरंत ही ड्राइवर से कहा कि जीप को मंदिर की तरफ मोड़ ले।

ड्राइवर ने ऐसा ही किया। उसे इस सबमें कुछ भी अटपटा नहीं लगा इस लिए वो भी बिना कोई भाव चेहरे पर लाए जीप को मोड़ दिया उस तरफ। इधर जैसे ही जीप माधोपुर में स्थित उस मंदिर की तरफ मुड़ कर चली तो सहसा सोनम ने बड़े ही रहस्यमय ढंग से नीलम की तरफ देखा।

नीलम उसके इस तरह देखने से अभी बुरी तरह चौंकने ही वाली थी कि सहसा उसे ख़याल आया कि ड्राइवर के पास ही लगे बैकमिरर से ड्राइवर उसे चौंकते हुए देख भी सकता है। अतः उसने जल्दी से अपने चेहरे के भावों को छुपाया और फिर सोनम को सामान्य लहजे में ही बताने लगी कि एक बार वो भी उस मंदिर में मेले के समय गई थी।

नीलम आस पास का नज़ारा देखते हुए ही थोड़ी थोड़ी देर के अंतराल में पीछे भी देख रही थी। विराज ने उससे कहा था कि संभव है कि उसके पीछे और भी कुछ आदमी छुप कर आएॅ। अतः उन्हीं को देख रही थी नीलम, मगर अभी तक उसे ऐसा कुछ नज़र न आया था। ये देख कर उसे लगने लगता कि विराज बेवजह ही इतनी दूर की सोच रहा है। जबकि यहाॅ तो ऐसा कुछ भी नहीं है और अगर होता तो क्या ऐसा कुछ नज़र न आता?

नीलम के एक हाॅथ में पहले से ही मोबाइल था। अतः उसने सामान्य तरीके से ही किन्तु सामने की सीट पर बैठे दोनो ही आदमियों की नज़रों को बचा कर मोबाइल की तरफ देखा। (यहाॅ पर मेरे पाठक पूछ सकते हैं कि सामने की सीट पर बैठे वो दोनो आदमियों की पीठ नीलम व सोनम की तरफ थी तो भला नीलम का उनकी नज़रों से बचाने की बात कहाॅ से आ गई तो दोस्तो इसका जवाब ये है कि ड्राइवर के पास ही बैकमिरर लगा होता है जिसमें वो पीछे की चीज़ें देखता है। यहाॅ पर मैं उसी की बात कर रहा हूॅ)। ख़ैर, नीलम ने बड़ी सावधानी से मोबाइल में व्हाट्सएप खोला और फिर विराज को मैसेज करके बताया कि वो अब कहाॅ पहुॅचने वाली है।
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विराज का ख़याल एकदम सही था। अजय सिंह को जब प्रतिमा के द्वारा ये पता चला कि नीलम व सोनम गाॅव तथा खेत देखने गईं हैं तो वो सचमुच गुनगुन से चल दिया था। किन्तु चलने से पहले उसने अपने एक ऐसे आदमी को भी फोन किया जो गुनगुन में ही रहता था तथा कई तरह के ग़ैर कानूनी धंधे करता था। उस आदमी का नाम फिरोज़ खान था। अजय सिंह ने फिरोज़ को फोन करके उसे सारी सिचुएशन से अवगत कराया और फिर तुरंत ही अपने गुर्गों को लेकर चलने को कहा था।

इस वक्त अजय सिंह और फिरोज़ खान दोनो एक ही कार में थे जबकि फिरोज़ खान के बाॅकी सभी गुर्गे पीछे अलग अलग तीन जीपों में थे। सभी के हाॅथों में हथियार के रूप में मौत का सामान था। अजय सिंह के पास भी एक रिवाल्वर था जो कि उसने फिरोज़ खान से लिया था।

"तो ये वही लड़का है ठाकुर साहब।" अजय सिंह की कार में पैसेंजर सीट पर बैठा फिरोज़ खान बोला___"जो आपका भतीजा है तथा जिसने आपका जीना हराम कर रखा है। आपने बताया था कि कैसे इसने आपकी फैक्ट्री में आग लगा दी थी जिसमें आपका बहुत तगड़ा नुकसान हुआ था?"

"हाॅ खान।" अजय सिंह सहसा दाॅत पीसते हुए कह उठा___"ये वही हरामज़ादा है और अब तो उसकी इतनी हिम्मत बढ़ गई है कि इसने पिछले दिन हमें अपने नकली सीबीआई के आदमियों के जाल में फाॅस कर कैद भी कर लिया था। मेरी बड़ी बेटी जो पुलिस में इंस्पेक्टर है उसे भी इस कम्बख्त ने अपनी तरफ मिला लिया है। ख़ैर, मुझे अपनी औलाद से ये उम्मीद नहीं थी खान कि वो अपने ही माॅ बाप के खिलाफ़ हो जाएगी। जैसे औलाद अगर बिगड़ी हुई हो और वो हज़ार पाप कर डाले तब भी माॅ बाप के लिए वो प्रिय ही होती है और वो उसके अपराधों को क्षमा कर देते हैं उसी तरह क्या औलाद नहीं कर सकती? मैंने जो कुछ भी किया था सिर्फ अपने बीवी बच्चों के उज्वल भविष्य के लिए ही किया था। साला अब तक तो उसी पाप के पैसों को खुश होकर उड़ाती रही थी वो। मगर आज उसे हमसे तथा हमारे उसी पैसों से नफ़रत हो गई? खान, ये मैं जानता हूॅ कि बेटी की इस बगावत से मुझे कितनी तक़लीफ हुई है। उसे इस बात का ज़रा भी ख़याल नहीं आया कि उसके द्वारा ये सब करने से उसके माॅ बाप पर क्या गुज़रेगी?"

"ये सब उस लड़के की वजह से ही हुआ है ठाकुर साहब।" फिरोज़ खान ने कठोरता से कहा___"उसी ने रितू बिटिया को बरगलाया होगा। वरना वो ऐसा कभी न करती।"

"नहीं खान।" अजय सिंह ने मजबूती से अपने सिर को इंकार में हिलाते हुए कहा___"ये सब उस लड़के के बरगलाने से नहीं हुआ है। क्योंकि इसके पहले मेरे साथ साथ मेरे बच्चे भी उस विराज से नफ़रत करते थे और उसकी तथा उसके परिवार में किसी की शक्ल तक देखना पसंद नहीं करते थे। ये सब तो किसी और ही वजह से हुआ है खान। दरअसल मेरी दोनों ही बेटियों को सच्चाई की राह पर चलना शुरू से ही पसंद था। उन्हें ये पता नहीं था कि उनका बाप वास्तव में कैसा है? ख़ैर, इस मामले में मेरा बेटा मुझ पर गया है। मुझे खुशी है कि वो मेरे जैसा है और सच कहूॅ तो मुझे उस पर नाज़ भी है। मगर अब मैने भी फैंसला कर लिया है कि मेरे इस दिल की आग तभी शान्त होगी जब उस विराज के साथ साथ मैं अपनी उन दोनो बेटियों को भी अपने हाथों से बद से बदतर मौत दूॅगा।"

फिरोज़ खान देखता रह गया अजय सिंह को। वो देख रहा था कि इस वक्त अजय सिंह के चेहरे पर ज़लज़ले के से भाव थे। यकीनन उसके अंदर गुस्सा, क्रोध व अपमान ये तीनो ही अपने पूरे जलाल पर थे।

"ख़ैर छोंड़िये इस बात को।" फिरोज़ खान ने जैसे पहलू बदला___"ये बताइये कि उन सबको पकड़ने के लिए क्या प्लानिंग की है आपने?"

"प्लानिंग में कोई कमी नहीं है खान।" अजय सिंह ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"मेरी बीवी के पास भेजा फ्राई कर देने वाला दिमाग़ है। उसने मुझे बताया था कि उसने उन दोनो के साथ पहले तो सामान्य सिचुएशन बनाए रखने के लिए दो ऐसे आदमियों को जीप में भेजा है जो तगड़े फाइटर कहे जाते हैं। उनके जाने के बाद उसने अलग से उन जैसे ही आदमियों की एक टीम बना कर उनके पीछे इस तरह लगा दिया है कि नीलम व सोनम को वो टीम नज़र ही न आए। उस टीम का काम ये है कि अगर सच में विराज नीलम व सोनम को लेने आ रहा है तो वो यकीनन पहले नीलम व सोनम के साथ गए उन दो आदमियों से भिड़ेगा। अतः हमारी टीम के वो लोग बैकअप के रूप में अपने आदमियों की मदद करेंगे। यानी इस सिचुएशन को देखते हुए ही हमारी दूसरी टीम के आदमी जल्द ही वहाॅ पहुॅच जाएॅगे। मेरी बीवी प्रतिमा के अनुसार अगर बैकअप के रूप में विराज ने भी कोई ऐसा इंतजाम किया होगा तो यकीनन वो भी विराज का पलड़ा कमज़ोर पड़ते देख कर उन सबके बीच टूट पड़ेंगे। उस सूरत में यहाॅ से हम सब भी पहुॅच जाएॅगे और विराज तथा उसके आदमियों का काम तमाम करेंगे। हम लोग एक तरह से डबल बैकअप के रूप में होंगे अपने आदमियों के पीछे। मुझे यकीन है कि इतना कुछ होने के बाद विराज एण्ड पार्टी ज्यादा देर तक हमारा सामना नहीं कर पाएगी और अंततः उन्हें हमारे सामने खुद को सरेण्डर करना ही पड़ेगा।"

"ओह।" फिरोज़ खान प्रभावित लहजे में बोला___"प्लान तो यकीनन आपका शानदार है। सचमुच इस सूरत में आपका वो भतीजा और उसके सभी आदमी घुटने टेक देंगे।"

"बिलकुल।" अजय सिंह ने कहा___"इस सबके बाद विराज और उसके साथ साथ मेरी दोनो बेटियाॅ मेरे कब्जे में होंगी। तब मैं उस हरामी के पिल्ले से अपने साथ हुए इतने भारी नुकसान का गिन गिन के बदला लूॅगा। मुम्बई में सुरक्षित बैठी उसकी माॅ बहन को यहाॅ मेरे पास मेरे पैरों तले आना ही पड़ेगा। उसके बाद तो दुनियाॅ देखेगी कि ठाकुर अजय सिंह के साथ ऐसा दुस्साहस करने वालों का क्या अंजाम होता है?"

"ऐसा ही होगा ठाकुर साहब।" फिरोज़ खान ने दृढ़ता से कहा___"आपने जिस तरह से प्लान बनाया है उस हिसाब से यकीनन आपका वो भतीजा तथा आपकी दोनो बेटियाॅ आपके चंगुल में आ जाएॅगी। मैं अपने साथ अपने लगभग बीस के आस पास आदमी लाया हूॅ। सबके सब आधुनिक हथियारों से लैश हैं। अगर ये सच है कि आपका वो भतीजा उन दोनो को लेने आ रहा है तो यकीनन तगड़ी मुठभेड़ होगी और उस मुठभेड़ में वो लोग बुरी तरह आपसे मात खाएॅगे।"

"इस बार वो हरामी की औलाद नहीं बचेगा खान।" अजय सिंह ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा___"इस बार वो मेरी मुट्ठी में ज़रूर कैद होगा और पिंजरे में कैद परिंदे की तरह फड़फड़ाएगा भी। साले की ऐसी दुर्गति करूॅगा कि मौत और रहम दोनो की ही भीख मागेगा मुझसे।"

अजय सिंह की इस बात पर फिरोज़ खान बोला तो कुछ नहीं किन्तु उसके जबड़े भिंच गए थे, जैसे जंग के लिए पूरी तरह से तैयार हो गया हो। इसके साथ ही कार के अंदर ख़ामोशी छा गई। कार हल्दीपुर की तरफ तेज़ी से बढ़ी जा रही थी। उनके पीछे पीछे तीन तीन जीपों में सवार फिरोज़ खान के गुर्गे भी चले आ रहे थे।
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कहानी अभी जारी है दोस्तो,,,,,,,,,,
अब आगे___________

इधर हम तीनों भी कार में बैठे पूरी रफ्तार से माधोपुर की तरफ बढ़े चले जा रहे थे। हम तीनो के बीच काफी देर से ख़ामोशी छाई हुई थी। कदाचित आने वाले समय के बारे में सब कोई सोचे जा रहा था। कुछ देर पहले रितू दीदी ने फोन पर किसी से बात की थी। उनकी बातें ऐसी थी जो उस वक्त मुझे बिलकुल भी समझ में नहीं आई थी। मैने फोन करके शेखर के मौसा जी से उनकी करेंट लोकेशन के बारे में पूछा था। उन्होंने बताया कि वो हमारे पीछे ही आ रहे हैं किन्तु फाॅसला बना कर।

अभी हमारे बीच ख़ामोशी ही थी कि तभी रितू दीदी का मोबाइल फोन बज उठा। रितू दीदी ने मोबाइल की स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नंबर को देखा और फिर काल रिसीव कर मोबाइल कान से लगा लिया।

"हाॅ प्रकाश बोलो।" फिर रितू दीदी ने कहा___"क्या ख़बर है वहाॅ की?"
"..............।" उधर से कुछ कहा गया।
"ओह आई सी।" रितू दीदी के होठों पर मुस्कान फैल गई___"कितने लोग हैं वो?"
"...............।" उधर से फिर कुछ कहा गया।
"चलो अच्छी बात है प्रकाश।" रितू दीदी ने कहा__"और हाॅ बहुत बहुत धन्यवाद इस ख़बर के लिए। चलो रखती हूॅ, तुम ज़रा होशियार रहना।"

"क्या बात है दीदी?" काल कट होते ही मैने उनकी तरफ देखते हुए पूछा___"किसका फोन था?"
"तुझे बताया था न मैने।" रितू दीदी ने कहा___"कि हवेली में प्रकाश नाम का एक आदमी सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करता है। ये उसी का फोन था। उसने बताया कि माॅम ने नीलम व सोनम के हवेली से निकलने के कुछ देर बाद ही दो जीपों में लगभग दस आदमी उन दोनो के पीछे लगाया है। इसका मतलब मेरा अंदाज़ा सही था। माॅम ने तुम्हारी सोच को ताड़ते हुए बैकअप के रूप में नीलम व सोनम के पीछे कुछ और आदमियों को लगा दिया है।"

"हाॅ इस बात का अंदेशा तो मुझे भी था दीदी।" मैने सामने रास्ते की तरफ देखते हुए कहा___"मुझे अंदेशा था कि बड़ी माॅ ऐसा कर सकती हैं। लेकिन फिक्र की कोई बात नहीं है दीदी। हमारे पास भी बैकअप के रूप में आदमियों की कोई कमी नहीं है।"

"तुम मेरे डैड को भूल गए राज।" रितू दीदी ने कहा___"माॅम ने इस बारे में ज़रूर बताया होगा और अब वो भी आ ही रहे होंगे गुनगुन से। संभव है कि उनके साथ भी कुछ आदमी हों।"

"बिलकुल हो सकते हैं दीदी।" मैने कहा___"इसी लिए तो मैं सीधे रास्ते से नहीं बल्कि माधोपुर वाले रास्ते की तरफ जा रहा हूॅ ताकि इस रास्ते में उनसे हमारा सामना ही न हो।"

"इसके पहले मैने जिससे फोन पर बात की थी।" रितू दीदी ने कहा___"वो एक मुखबिर था। जिसे मैने शुरू से ही डैड के पीछे लगाया हुआ था। ताकि वो डैड की हर गतिविधी के बारे में मुझे सूचित करता रहे। ख़ैर उसने बताया कि डैड मुख्य रास्ते से ही आ रहे हैं किन्तु उनके साथ काफी सारे लोग भी हैं जो आधुनिक हथियारों से लैश हैं। मतलब साफ है कि वो खुद भी पूरी तैयारी के साथ आ रहे हैं। अब तुम समझ सकते हो कि इस सबसे उनकी स्थित हमारी स्थित से ज्यादा मजबूत व भारी है।"

"अगर ऐसा है।" सहसा पिछली की शीट पर बैठा आदित्य बोल पड़ा___"तो यकीनन हम उनके बीच फॅस जाएॅगे। इस लिए हमें कुछ ऐसा इंतजाम करना पड़ेगा जिससे हमारी स्थित उनकी स्थित से बेहतर हो जाए तथा हम उन्हें हरा कर नीलम व सोनम को सुरक्षित वहाॅ से ला सकें।"

"फिक्र मत करो आदित्य।" रितू दीदी ने कहा___"उसका भी इंतजाम मैने कर दिया है और वो इंतजाम ऐसा होगा कि डैड ही क्या कोई भी कुछ नहीं कर पाएॅगा और हम नीलम व सोनम को सहज ही उनके चंगुल से छुड़ा लाएॅगे।"

"ये तो कमाल ही हो गया दीदी।" मैने मुस्कुराते कहा___"अगर ऐसा है तो फिर यकीनन फिक्र की कोई बात नहीं है। मगर सवाल ये है कि आपने ऐसा क्या हैरतअंगेज इंतजाम किया है जिसके तहत हम बड़ी सहजता से नीलम व सोनम दीदी को ले आएॅगे?"

"सब्र कर मेरे प्यारे भाई।" रितू दीदी ने मुस्कुरा कर कहा__"और बस देखता जा कि क्या होता है।"
"इसका मतलब कि आप।" मैने हॅस कर कहा___"इस बारे में हमें न बता कर हम दोनो के लिए सस्पेन्स क्रियेट कर रही हैं?"

"तू अपने आपको बड़ा तीसमारखां समझता है न।" रितू दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा___"तो फिर खुद ही सोच ले कि मैने ऐसा क्या इंतजाम किया हो सकता है कि उसकी वजह से सब कुछ सहज ही हो जाएगा। इतना ही नहीं बल्कि उस वजह से कोई कुछ कर भी नहीं पाएगा।"

"ओहो ये तो चैलेन्ज देने वाली बात हो गई दीदी।" मैंने ऑखें फैलाते हुए उन्हें देखा।
"हाॅ तो क्या हुआ?" रितू दीदी भी मुस्कुराई___"अगर तू इसे चैलेन्ज समझता है तो यही सही। अब सोच कर बता कि ऐसा क्या हो सकता है इंतजाम?"

"जाने दीजिए दीदी।" मैने नाटकीय अंदाज़ से कहा___"खामखां आपके दिमाग़ का कचरा हो जाएगा। इस लिए बेहतर है कि आप मुझसे ना ही पूछो।"
"ओये चल चल हवा आने दे।" रितू दीदी ने मानो घुड़की सी दी मुझे___"बड़ा आया मेरे दिमाग़ का कचरा करने वाला। भूल मत कि मैं उसकी बेटी हूॅ जिसके दिमाग़ को
तू खुद भी सलाम करता है।"

रितू दीदी की इस बात से मैं एकदम से चुप हो गया। सच ही तो कहा था उन्होंने। बड़ी माॅ के दिमाग़ को यकीनन सलाम करने का दिल करता था मेरा। मैं हमेशा सोचता था कि अगर उनका यही शातिर दिमाग़ अच्छाई के लिए उपयोग होता तो कितनी ऊॅची शख्सियत बन सकती थीं वो। ये उनका दुर्भाग्य था या फिर वो ऐसी ही थी। किन्तु एक बात सच थी कि अपने पति से बेहद प्यार करती थीं वो। कदाचित यही वजह है कि उन्होंने पति के कहने पर हर वो काम किया था जो कि हर तरह से अनैतिक व ग़लत था।

"क्या हुआ बच्चे?" मुझे सोचों में गुम देख सहसा रितू दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा___"मेरी माॅम का सुनकर हवा निकल गई क्या तेरी? होता है बेटा, ऐसा होता है कि ऐसी हस्तियों का ज़िक्र होते ही अच्छे अच्छों की हवा निकल जाती है। तू तो फिर भी अभी बच्चा है।"

"ये कुछ ज्यादा ही नहीं हो गया दीदी?" मैने मासूम सी शक्ल बना कर कहा।
"अब हो गया तो हो गया न।" रितू दीदी मेरे द्वारा अपनी मासूम सी शक्ल बना लेने पर मुस्कुराईं____"कम से कम तू मेरे माॅम का सुन कर अब ज्यादा उड़ेगा तो नहीं।"

"ये सच है दीदी।" मैने सहसा गंभीर होकर कहा___"कि वो भले ही बुराई का साथ दे रही हैं मगर जाने क्यों उनके लिए मेरे दिल में इज्ज़त आज भी है। हलाॅकि उन्होंने मेरी माॅ के साथ बुरा करने में कोई कसर नहीं छोंड़ी थी। फिर भी ये मेरी माॅ के दिये हुए अच्छे संस्कार ही हैं कि मैं आज भी अपने से बड़ों को सम्मान देता हूॅ, भले ही उन लोगों ने हमारे साथ कितना ही बुरा किया है।"

"मैं जानती हूॅ राज।" रितू दीदी भी गंभीर हो गई___"और मुझे इस बात की बेहद खुशी भी है कि तेरे और तेरी माॅ बहन के साथ भले ही बद से बदतर सुलूक किया था मेरे माॅम डैड ने मगर इसके बाद भी तू उनकी इज्ज़त करता है। तेरी यही खूबी तुझे सबसे अच्छा और सबसे महान बनाती है। मुझे ईश्वर से इस बात की शिकायत ज़रूर है कि क्यों उसने मुझे ऐसे इंसान की बेटी बनाया जो सिर्फ और सिर्फ पाप करना जानते हैं, मगर इस बात का उसी ईश्वर से धन्यवाद भी करती हूॅ कि उसने मुझे तेरे जैसा नेक दिल भाई दिया। आज तुझे पा कर मैं बेहद खुश हूॅ राज। मुझे पता है कि इस जंग का अंत में अंजाम क्या होगा? यानी कि अधर्म व पाप करने वाले मेरे माॅम डैड तथा मेरा वो कमीना भाई अंत में अपने अधर्म व पाप कर्म करने के चलते या तो मारे जाएॅगे या फिर हमेशा के लिए जेल की सलाखों के पीछे कैद होकर रह जाएॅगे। मुझे इस सबका दुख तो यकीनन होगा भाई क्योंकि आख़िर वो सब हैं तो मेरे अपने ही मगर ये सोच कर खुद को तसल्ली भी दूॅगी कि बुरा करने वालों की नियति तो यही होती है न। उनके बदले मुझे तू मिला है और तेरे साथ साथ गौरी चाची, करुणा चाची तथा गुड़िया जैसी बहन मिल जाएॅगी। ये सब भी तो मेरे अपने ही हैं।"

"छोंड़िये इन सब बातों को दीदी।" मैने माहौल को सामान्य बनाने की गरज़ से कहा____"मुझे भी तो इस सबका दुख होगा मगर आप भी जानती हैं कि इस सबके अलावा दूसरा कोई चारा नहीं है। इस लिए इन सब बातों पर ज्यादा सोच विचार मत कीजिए।"

अभी मैंने ये कहा ही था कि सहसा मेरे मोबाइल फोन पर मैसेज टोन बजी। जिससे मेरा ध्यान सामने ही डैसबोर्ड के पास रखे अपने मोबाइल पर गया। मैने रितू दीदी को मोबाइल उठा कर देखने को कहा। उन्होंने मेरा फोन उठाया और उसमे आए हुए मैसेज को देखने लगीं।

"नीलम का मैसेज है राज।" फिर रितू दीदी ने मुझसे कहा___"उसने मैसेज में बताया है कि वो सोनम के साथ ही माधोपुर वाले मंदिर की तरफ जा रही है।"
"ओह ये तो अच्छी बात है।" मैने कहा___"इसका मतलब उस तरफ जाने का उसने कोई न कोई बहाना बनाया होगा। किन्तु ये भी सच है कि उसके पीछे पीछे ही कोई उनके पीछे भी लगा होगा। ख़ैर ये तो होगा ही, हमें अब उन सबसे निपटने के लिए तैयार हो जाना चाहिए। हम बस पहुॅचने ही वाले हैं उस जगह।"

"क्या हम उसी तरफ जा रहे हैं राज?" पीछे से आदित्य ने सामने की तरफ इशारा करते हुए कहा___"जहाॅ पर वो ऊॅचा सा मंदिर का गुंबद दिखाई दे रहा है?"
"हाॅ दोस्त।" मैने कहा___"हम माधोपुर के उसी मंदिर के पास जा रहे हैं। लेकिन वहाॅ पर एक समस्या भी हो सकती है।"

"समस्या???" आदित्य के साथ साथ रितू दीदी भी बोल पड़ी थीं___"कैसी समस्या हो सकती है?"
"समस्या यही होगी कि हम सब मंदिर के पास ही इकट्ठा होंगे।" मैने कहा___"और मंदिर के पास ही हम सबका आमना सामना होगा। ये भी सच है कि हम सबके बीच इस लड़ाई में खून ख़राबा भी होगा जो कि मंदिर के पास नहीं होना चाहिए।"

"अरे ये तो अच्छी बात है राज।" रितू दीदी ने कहा___"देवी माॅ के सामने ही हर चीज़ का फैंसला होगा और यकीनन हमारी ही जीत होगी। यानी कि अंततः हम नीलम व सोनम को लेकर ही आएॅगे। भला देवी माॅ के सामने अधर्म व पाप की जीत कैसे हो सकेगी?"

"मैं रितू की इस बात से सहमत हूॅ भाई।" पीछे से आदित्य ने कहा___"दूसरी बात ये संयोग भी देवी माॅ ने बनाया है कि हम सब उनके सामने ही एकत्रित होंगे और हर चीज़ का फैंसला वो खुद करेंगी।"

"हाॅ यार।" मैने सहसा खुशी से कहा___"इस तरफ तो मेरा ध्यान ही नहीं था। सच कहा है बड़े बड़े संतों ने कि इस संसार में सब कुछ ईश्वर की ही मर्ज़ी से होता है। वो हमें वहीं ले जाता है जहाॅ के बारे में हमने सोचा भी नहीं होता है। सोचने वाली बात है न दीदी, मैने तो नीलम से सिर्फ यही सोच कर वहाॅ पर आने को कहा था कि सबसे निपटने के बाद हम उसी रास्ते से वापस भी हो जाएॅगे ताकि बड़े पापा से हमारा सामना ही न होने पाए। इस बारे में तो हमने सोचा ही नहीं था हर चीज़ का फैंसला करने के लिए वहाॅ पर देवी माॅ भी मौजूद होंगी। भला उनकी इच्छा के बग़ैर कोई काम कैसे हो सकता था?"

"अब हमारी जीत यकीनन होगी राज।" आदित्य ने कहा___"देवी माॅ को भी पता है कि हम धर्म की राह पर हैं। अतः उनके आशीर्वाद से सब कुछ हमारे ही हक़ में होगा और इसका मुझे पूरा विश्वास है।"

"हम सबको विश्वास है आदित्य।" रितू दीदी ने कहा__"इस लिए अब हम सब देवी माॅ को मन ही मन प्रणाम करके काम का श्रीगणेश करेंगे। बोलो जय माता दी।"
"जय माता दी।" दीदी के कहने पर हम सबने एक साथ जय माता दी कहा और फिर मैं एक्सीलेटर पर अपने पैर को और ज़ोर से दबा दिया। परिणामस्वरूप कार की रफ्तार और भी तेज़ हो गई।

कुछ ही देर में हमारी कार माधोपुर गाॅव के बाहर बने उस देवी माॅ के मंदिर के पास पहुॅच गई। उसके पहले ही मैने रितू दीदी तथा आदित्य को कार से उतार दिया था। ऐसा इस लिए कि हम तीनों का एक साथ रहना ठीक नहीं था। उससे हम एक साथ एक ही जगह पर फॅस सकते थे। इस लिए मैने रितू दीदी व आदित्य को मंदिर से लगभग पचास मीटर पहले ही उतार दिया था और खुद कार लेकर मंदिर की तरफ बढ़ चला था। मुम्बई से जब मैं चला था तो जगदीश अंकल ने मुझे तीन कवच दिये थे जो कि बुलेट प्रूफ थे। इस वक्त हम तीनो ने ही अपने कपड़ों के अंदर उस बुलेटप्रूफ कवच को पहना हुआ था। ये जगदीश अंकल की दूरदर्शिता का ही कमाल था कि उन्होंने हम लोगों की सुरक्षा का ऐसा इंतजाम किया था।

माधोपुर गाॅव में लगभग पचास या साठ के आस पास मकान बने हुए थे। देवी माॅ का ये प्राचीन मंदिर गाॅव के बाहर बना हुआ था। मंदिर से लगभग पचास या साठ मीटर के फासले से ही गाॅव की आबादी शुरू होती थी। कहने का मतलब ये कि हमारी इस मुठभेड़ में गाॅव के लोगों पर कोई आॅच नहीं आ सकती थी। ये हमारे लिए सबसे अच्छी बात थी। आस पास का इलाका दूर दूर हरे भरे तथा ऊॅचे ऊॅचे पेड़ पौधों से सुशोभित था। ये सभी गाॅव चारो तरफ के पहाड़ों से घिरे हुए थे। एक नहर थी जो कि माधोपुर और हल्दीपुर के बीच से निकलती थी। चिमनी की तरफ जाते जाते ये नहर दो भागों में बॅट जाती थी। जिसका एक भाग चिमनी की तरफ तथा दूसरा भाग एक अन्य गाॅव गुमटी की तरफ जाती थी किन्तु गुमटी के बाहरी इलाके की तरफ से। नहर के होने का सबसे बड़ा फायदा ये था कि यहाॅ के सभी गाॅवों में पानी का अभाव नहीं था। सभी गाॅवों में खेतों की सिंचाई के लिए इसी नहर के पानी का उपयोग होता था। जिसका नतीजा ये होता था कि आस पास के सभी गाॅवों में फसल की पैदावार अच्छी खासी होती थी।

मंदिर के नज़दीक ही मंदिर के पिछले हिस्से की तरफ मैने कार को रोंक दिया था। मैने देख लिया था कि मंदिर के सामने की तरफ एक ऐसी जीप खड़ी थी जिसके ऊपर छत नहीं थी। वो जीप यकीनन वही थी जिसमें नीलम व सोनम आई हुई थीं। चारो तरफ इस समय ख़ामोशी तो थी किन्तु मैं जानता था कि ये ख़ामोशी कुछ ही समय की मेहमान थी यहाॅ पर। ख़ैर, मैने देवी माॅ को प्रणाम किया और फिर धड़कते हुए दिल के साथ मंदिर के सामने की तरफ आहिस्ता आहिस्ता बढ़ने लगा।हलाॅकि मैं पूरी तरह सतर्क था तथा किसी भी खतरे से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार था।

आस पास का बहुत ही बारीकी से जायजा लेते हुए मैं मंदिर की दीवार से सट कर चलते हुए मंदिर के सामने वाले भाग की तरफ बढ़ रहा था। ये मेरे जीवन का पहला अवसर था जबकि मैं इस तरह की सिचुएशन को फेस करने वाला था और आने वाले समय की सिचुएशन को भी। थोड़ी ही देर बाद मुझे अपनी जगह पर रुक जाना पड़ा। क्योंकि मैने देखा कि मंदिर के सामने किन्तु कुछ ही दूरी पर वो जीप खड़ी थी तथा उस जीप के पास ही वो दो हट्टे कट्टे आदमी भी खड़े थे जिन्हें बड़ी माॅ ने नीलम व सोनम की सुरक्षा के रूप में भेजा था। वो दोनो आपस में बातें तो कर रहे थे किन्तु उनके हाव भाव से नज़र आ रहा था कि वो किसी भी खतरे से निपटने के लिए भी तैयार थे। यानी कि उन्हें बताया गया था कि ऐसा कुछ होगा।

मैं जानता था कि मेरे पास ज्यादा समय नहीं है क्योंकि अभी कुछ ही समय में यहाॅ पर आदमियों की फौज भी नज़र आने लगेगी। ये भी संभव था कि आ ही गई हो। हलाॅकि मैने आस पास बहुत बारीकी से देख चुका था किन्तु मुझे ऐसा कुछ नज़र नहीं आया था जिससे पता चले कि यहाॅ पर कोई और भी है।

मैने अपने पैन्ट के पीछे बेल्ट पर फॅसे रिवाल्वर को निकाला। उसके बाद मैने अपनी जैकेट से एक ऐसी चीज़ निकाली जिसे साइलेंसर कहा जाता है। मैने उस साइलेंसर को रिवाल्वर की नाल पर फिट किया। मैं चाहता था कि जो काम छुप कर हो जाए उसे अंजाम दे देना चाहिए। हलाॅकि ये तो तय था कि खुल कर मुकाबला करना ही पड़ेगा। मगर मेरी सोच थी कि दुश्मन को मौका ही क्यों दिया जाए?

रिवाल्वर की नाल पर साइलेंसर फिट करने के बाद मैने उन दोनो की तरफ देखते हुए अपने रिवाल्वर वाले हाॅथ को हवा में उठाया और फिर एक आदमी की गर्दन पर निशाना साध कर ट्रिगर दबा दिया। परिणाम स्वरूप हल्की सी पिट् की आवाज़ हुई और एक अजीब सी चीज़ पलक झपकते ही उनमें से एक आदमी की गर्दन पर जा लगी। मैने इतने पर ही बस नहीं किया बल्कि उसी पल रिवाल्वर का रुख मोड़ कर फिर से ट्रिगर दबा दिया था। दो पल के अंदर ही वो दोनो आदमी लहराते हुए जीप के पास ही कच्ची ज़मीन पर भरभरा कर गिरे और शान्त पड़ गए। उन दोनो की गर्दन से कोई खून नहीं बह रहा था बल्कि एक एक सुई चुभी हुई थी। आप समझ सकते हैं कि वो सुई क्या हो सकती थी। मेरा इरादा उन्हें जान से मारने का हर्गिज़ भी नहीं था बल्कि सिर्फ बेहोश करना था। इस लिए वो दोनो अब सुई के प्रभाव से कम से कम दो से तीन घंटे के लिए बेहोश हो चुके थे।

मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि आते ही मुझे इस तरह सहजता से पहले पड़ाव पर ही कामयाबी मिल जाएगी। मगर सबूत चूॅकि सामने ही ज़मीन पर बेहोश पड़े थे इस लिए यकीन करना ही था। उन दोनो के बेहोश ओ जाने के बाद मैने एक बार पुनः आस पास का बारीकी से जायजा लिया और फिर मंदिर के सामने की तरफ बढ़ चला किन्तौ सावधानी से ही। अभी मैं बढ़ ही रहा था कि तभी मंदिर के अंदर से घंटे के बजने की दो बार आवाज़ आई। मैं समझ गया कि नीलम व सोनम दीदी मंदिर के अंदर हैं।

मैं आस पास देखते हुए तेज़ी से आगे बढ़ा और मंदिर के जस्ट बगल पर ही सीढ़ियों के पास आ गया। एक बार पुनः आस पास का जायजा लिया और फिर मैने पैन्ट की जेब में हाॅथ डाला तो चौंक पड़ा। मैं मोबाइल कार में ही भूल आया था। इस वक्त मैं नीलम को मैसेज कर बोलना चाहता था कि वो दोनो मंदिर के बाहर आ जाएॅ और जल्दी से मेरे साथ चलें यहाॅ से। मगर मेरा मोबाइल कार में ही रह गया था। ख़ैर, मैने सोचा चलो कोई बात नहीं मंदिर के अंदर जाकर देवी माॅ के दर्शन भी तो करना चाहिए।

मैं तेज़ी से सीढ़ियाॅ चढ़ते हुए मंदिर के मुख्य दरवाजे पर पहुॅचा तो देखा कि मंदिर के अंदर नीलम व सोनम दोनो ही देवी माॅ की प्रतिमा के सामने अपने दोनो हाॅथ जोड़े खड़ी थी। ये देख कर मैं मुस्कुराया और फिर तुरंत ही मंदिर के दरवाजे की चौखट को छूकर पहले प्रणाम किया और फिर चौखट को पार गया।

अंदर आते ही मैने नीलम व सोनम दीदी के पीछे ही खड़े होकर तथा अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए देवी माॅ को असीम श्रद्धा से प्रणाम किया। मगर अगले ही पल मेरे मुख से घुटी घुटी सी चीख़ निकल गई साथ ही मैं पीछे की तरफ लहराते हुए चौखट के बाहर आकर पीठ के बल ज़मीन पर गिरा। मेरी ऑखों के सामने कुछ पल के लिए अॅधेरा सा छा गया। मेरी नाॅक से खून बहने लगा था तथा मेरे मुख के बाएॅ साइड की तरफ होंठों से भी खून बहने लगा था। किसी ने बड़ी ज़ोर से मुझ पर वार किया था।

अभी मैं अपने होशो हवाश में आते हुए ज़मीन से उठ ही रहा था कि तभी मेरे पेट में फिर से बड़े ज़ोर का प्रहार हुआ। जिसके प्रभाव से मैं किसी फुटबाल की तरह हवा में उड़ता हुआ सीधा सीढ़ियों के नीचे आ कर गिरा। इन कुछ ही पलों ये सब इतना तेज़ी से हुआ था कि मुझे कुछ समझने का मौका ही नहीं मिल पाया था। सीढ़ियों के ऊपरी भाग से सीधा नीचे कच्ची ज़मीन पर गिरने से एक बार फिर से मैं बुरी तरह दर्द से बिलबिला उठा था। किन्तु अब तक मैं समझ गया था कि ये एक जाल था जिसमें मैं फॅसाया गया था।

कच्ची ज़मीन से मैं उछल कर खड़ा हो गया और सीढ़ियों के ऊपर की तरफ देखा ही था कि पीछे से किसी ने मेरी पीठ पर ज़बरदस्त वार किया। मैं इसके लिए बिलकुल भी तैयार नहीं था और ना ही मुझे इसकी उम्मीद थी। अतः इस बार मुह के बल उसी कच्ची ज़मीन पर गिरा। मुझे एकाएक ही भारी खतरे का आभास हुआ और मैने अपनी संपूर्ण ताकत लगाते हुए फिर से उछल कर खड़ा हुआ। अभी मैं खड़ा ही हुआ था कि पलक झपकते ही मुझे नीचे भी झुक जाना पड़ा वरना पीछे की तरफ से जिसने वार किया था उसकी फ्लाइंग किक सीधा मेरी गर्दन पर पड़ती और यकीनन मेरी गर्दन की हड्डी टूट जाती।

मैने झुकने के साथ ही अपनी एक टाॅग को बिजली की सी तेज़ी से चलाया था, नतीजा ये हुआ कि फ्लाइंग किक मारने वाले का जो अकेला पैर ज़मीन पर टिका था वो ज़मीन से उखड़ गया और वो भरभरा कर ज़मीन पर गिरा। मैं ये देख कर आश्चर्य चकित रह गया कि ये तो वही आदमी था जिसे अभी थोड़ी ही देर पहले मैंने सुई के द्वारा बेहोश किया था। मुझे समझ न आया कि ये बेहोशी से होशो हवाश में कैसे आ गया। मैने पलट कर दूसरे आदमी की तरफ देखा तो वो भी एक तरफ पोजीशन लिए खड़ा मुस्कुरा रहा था। ये देख कर मेरे आश्चर्य की कोई सीमा न रही। साला ये दोनो चीज़ क्या थे कि इन पर उस बेहोश करने वाली सुई का भी असर नहीं हुआ?

सच तो ये था कि मैं कुछ भी नहीं समझ पा रहा था। एक तो इन दोनो पर सुई का असर न हुआ दूसरे मंदिर के अंदर से मुझे इस तरह बाहर लगभग फैंक दिया गया। सबसकुछ इतनी तेज़ी से हुआ कि मुझे कुछ समझ ही नहीं आया था। किन्तु अब मैं समझ चुका था कि ये सब क्या था। मतलब साफ था कि बड़ी माॅ के द्वारा भेजा गया बैकअप यहाॅ पहुॅच चुका था और उसके कुछ आदमी मंदिर के अंदर छुपे मेरे आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। मैं जैसे ही मंदिर के अंदर गया और देवी माॅ को प्रणाम करने लगा वैसे ही उन लोगों ने मुझ पर वार कर दिया था। इधर जिन्हें मैं बेहोश समझ रहा था वो होश में होते हुए मेरे इस तरह नीचे आ जाने का इंतज़ार कर रहे थे। उसके बाद जैसे ही मैं नीचे गिरा वैसे ही इन दोनो ने भी मुझ पर हमला कर दिया। कहने का मतलब ये कि कहीं से भी मुझे सम्हलने का या सोचने का मौका ही नहीं मिल पाया था।

अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कि सहसा मुझे रितू दीदी व आदित्य का ख़याल आया। मुझे उन दोनो की बेहद चिंता होने लगी। कहीं वो दोनो भी न फॅस गए हों। मैने मन ही मन देवी माॅ से कहा____"ये सब क्या है माॅ? इन लोगों ने मुझे आपको ठीक से प्रणाम भी नहीं करने दिया और आपने भी इन्हें रोंका नहीं? ऐसी तो उम्मींद नहीं मुझे? ख़ैर कोई बात नहीं, मुझे अपना आशीर्वाद दीजिए कि मैं इन सबका मुकाबला कर सकूॅ और अपने सभी चाहने वालों को यहाॅ से सुरक्षित ले जा सकूॅ।"

"कैसी लगी बच्चे?" तभी मेरे कानों में ऊपर सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए एक हट्टे कट्टे आदमी की आवाज़ पड़ी, वो मुस्कुराते हुए कह रहा था___"ज्यादा चोंट तो नहीं आई न तुम्हें? वैसे मैं हैरान हूॅ कि तुम जैसे मामूली से लड़के के लिए हमारे बाॅस इतना ज्यादा परेशान थे। सचमुच यकीन नहीं होता कि तुम जैसा पिद्दी सा लड़का हमारे बाॅस की नींदें हराम किये हुए था। जबकि तुम्हें तो जब चाहे चीटियों की तरह मसला जा सकता था। बट डोन्ट वरी, जो पहले नहीं हुआ वो अब हो जाएगा।"

"कहते हैं ऊॅट जब तक पहाड़ के नीचे नहीं आता।" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"तब तक उसे यही लगता है कि वो इस संसार में सबसे ऊॅचा है और उसकी बराबरी कोई कर ही नहीं सकता। वही हाल तुम्हारा है भाड़े के कुत्ते। अपने बाॅस लोगों के सामने कुत्तों की तरह दुम हिलाने वाले कुत्तो इस भरम में न रहो कि तुम लोगों ने मुझे इस तरह फॅसा कर कोई तीर मार लिया है। बल्कि खेल तो अब शुरू होगा।"

"काफी कड़वी ज़बान है तेरी लड़के।" सीढ़ियों से नीचे उतर आए उस आदमी ने सहसा दाॅत पीसते हुए गुस्से से कहा____"अगर बाॅस ने मना न किया होता तो यहीं पर तुझे चीटी की तरह मसल कर तेरी जीवन लीला समाप्त कर देता।"

"अगर एक ही मर्द की औलाद है।" मैने भी तैश में आकर कहा___"तो अकेले मुझसे मुकाबला कर, फिर देखना कि चींटी की तरह कौन मसला जाता है?"
"ओहो ऐसा क्या?" वो आदमी ब्यंगात्मक भाव से ऑखों को फैलाते हुए बोला___"चल ठीक है, तेरी ये इच्छा तो पूरी करनी ही चाहिए।" ये कहने के साथ ही उसने अपने बाॅकी साथियों की तरफ देखते हुए कहा___"तुम में से कोई भी इस लड़के को हाॅथ नहीं लगाएगा। ये मुझे दिखाना चाहता है कि चींटी की तरह हम दोनो में से कौन मसला जाता है। अतः अब मुकाबला सिर्फ हम दोनों के बीच ही होगा।"

उसके सभी साथियों सहमति में सिर हिला दिया। सबके होठों पर जानदार मुस्कान थी। जैसे उन्हें मेरी मूर्खता पर हॅसी आ रही हो। हलाॅकि मुझे भी पता था ये समय इस तरह के मुकाबले का बिलकुल भी नहीं है, मगर तैश में आकर मेरी ज़बान से निकल ही गया था। अतः अब बात ज़बान की थी तथा अपने स्वाभिमान की। समय ऐसा था कि अपनी जगह रुकने वाला नहीं था। हर पल के बीतने के साथ इस बात की भी संभावना बढ़ती जा रही थी कि जो यहाॅ नहीं पहुॅचे हैं वो किसी भी वक्त पहुॅच सकते हैं और फिर हालात और भी विकट हो जाएॅगे।

इधर बाॅकी सब आदमियों की सहमति मिलते ही मैने पोजीशन ले ली। जबकि छिसके साथ मेरा मुकाबला होने जा रहा था उसने झटके से अपने जिस्म के ऊपरी हिस्से के कपड़े निकाल कर अपने एक आदमी की तरफ उछाल दिया। सहसा मेरी नज़र ऊपर मंदिर के दरवाजे के बाहर खड़ी नीलम व सोनम पर पड़ी। वो दोनो ही दोनो तरफ से एक एक आदमी से घिरी हुई खड़ी थीं। उनके चेहरों पर इस वक्त डरे सहमे से भाव कायम थे। मैं उन दोनो की तरफ देख कर अजीब तरह से मुस्कुराया और फिर अपने प्रितद्वंदी की तरफ देखने लगा।

मैने देखा कि उसके जिस्म से कपड़ा हटते ही उसका हट्टा कट्टा जिस्म नुमायाॅ हो उठा। कोई आम इंसान उसकी इतनी खतरनाक बाॅडी देख कर ही डर जाए। उससे लड़ने का ख़याल तो वो आने वाले सात जन्मों में भी न करे। ख़ैर उसने अपने दोनो हाॅथो को अगल बगल उसे ऊपर उठा कर मुझे अपने डोले दिखाए। जैसे कह रहा हो कि देख बच्चे जितने मेरे ये डोले हैं उतने में तो तेरे जिस्म का कोई हिस्सा भी फिट नहीं बैठता। ये देख कर मैं मुस्कुराया और फिर अपने दोनो हाॅथों के इशारे से उसे अपनी तरफ मुकाबले के लिए बुलाया।

मेरे ऐसा करने पर उसके चेहरे के भाव एकदम से बदले और वो पलक झपकते ही गुस्से में डूबा दिखाई देने लगा। कदाचित अपने डोले दिखा कर वो मुझे डराना चाहता था मगर जब मैं उसे डरा हुआ नज़र नहीं आया तो उसे गुस्सा आ गया था।

"अपने भगवान को याद कर ले बच्चे।" फिर उसने मेरी तरफ खतरनाक भाव से बढ़ते हुए कहा___"उनसे दुवा कर कि तेरे जिस्म की हड्डियाॅ सलामत रहें।"
"ये डाॅयालग मैं भी बोल सकता हूॅ तुम्हारे लिए।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"पर ये सोच कर नहीं बोला कि फालतू की डींगें मारना मेरी फितरत नहीं है।"

मेरी ये बात सुन कर वो जैसे बुरी तरह तिलमिला गया था। मुझे पता था कि उसके सामने मैं कुछ भी नहीं हूॅ। अगर मैं एक बार भी उसके फौलादी शिकंजे में फॅस गया तो फिर शायद भगवान ही मालिक होगा मेरा। मगर मुझे खुद पर और अपने गुरू की सिखाई हुई कला पर पूर्ण विश्वास था।

वो पूरे वेग से मेरी तरफ बढ़ा और अपने दाहिने हाॅथ को भी उसी वेग से मुझ पर चलाया था। मैं फुर्ती से नीचे झुका मगर झुकते ही मेरे हलक से चीख निकल गई। कारण उसने हाॅथ चलाने के बाद ही अपने दाहिने पैर को उठाकर उसका घुटना भी चला दिया था जो सीधा मेरे झुके हुए चेहरे से टकराया था। मैं उछलते हुए सीधा हुआ ही था कि उसने बिजली की सी फुर्ती से घूम कर मेरे सीने पर फ्लाइंग किक जमा दी। नतीजा ये हुआ कि मेरे हलक से ज़ोर की हिचकी निकली और मैं पीछे की तरफ हवा में लहराते हुए ही नीचे कच्ची ज़मीन पर चारो खाने चित्त जा गिरा। गिरते ही मेरी ऑखों के सामने अनगिनत तारे नाॅच गए। कुछ पल के लिए तो ऑखों के सामने अॅधेरा भी छा गया। प्रहार इतना ज़बरदस्त था कि मुझसे तुरंत उठा न गया। सीने में बड़ी असहनीय पीड़ा महसूस हुई मुझे। मेरे कानो में नीलम व सोनम की चीखें भी टकराई। कदाचित मुझे इस तरह गिरते देख वो बेहर डर गई थी और मुझे कुछ हो जाने की आशंका से वो बुरी तरह चीखी थीं।

सहसा मेरी नज़र मेरे नज़दीक ही पहुॅच चुके उस आदमी पर पड़ी। मेरे क़रीब पहुॅचते ही उसने अपने पैर को उठाया और ज़मीन पर चित्त गिरे मेरे पेट की तरफ तीब्र वेग से चलाया। मैं बिजली की सी फुर्ती से कई पलटा खाते हुए दूसरी तरफ हो गया तथा साथ ही उछल कर खड़ा भी हो गया। ये अलग बात है इस तरह उछल कर खड़े होने से अचानक ही मुझे अपने सीने पर पीड़ा का एहसास हुआ। मैं समझ चुका था कि अगर ये आदमी इसी तरह मुझ पर और दो चार प्रहार करने में सफल हो गया तो यकीनन मेरा काम तमाम हो जाना है। अतः अब मैं उससे पूरी तरह सतर्कता से मुकाबला करने के लिए तैयार हो गया।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

दोस्तो, आप सबके सामने अपडेट हाज़िर है।
हलाॅकि मैंने अपडेट को ऐसी जगह पर रोंक दिया है जहाॅ पर रोंक दिये जाने से यकीनन आप सबका मूड ख़राब हो गया होगा। मगर क्या करता दोस्तो??

एक तो मेगा अपडेट जितना लम्बा होना चाहिए था उतना हो चुका था दूसरे इसके आगे का कुछ सस्पेन्स भी रखना था। आख़िर आप सबके मन में इस बात को जानने की उत्सुकता तो बनी ही रहनी चाहिए कि इसके आगे विराज या उसके साथ साथ बाॅकी सबका क्या हुआ???

अतः आशा करता हूॅ कि आप सब मेरी बातों को समझते हुए नाराज़ नहीं होंगे बल्कि अपडेट का आनंद लेंगे और फिर हमेशा की तरह अपनी प्रतिक्रिया देकर बताएॅगे कि ये अपडेट कैसा लगा अथवा इसमें कहाॅ पर क्या कमी नज़र आई आपको??
Mega update itna mega bhi hota h kya?????
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$uperb update.
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Sab jagah ghuma diya bhai aap ne mumbai se leke haldipur aur mandir tak.
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Pyar ka khajana hajir h yha to shiva se leke nidhi aur asha tak jiss mai asha ne phd kr dali chupane superb aur shiva ka pagalpan.
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Shiva ne to khuleaam apni maa k samne pravacan chalu kar diye aur gyani ban gya.
100 cuhe kha kr billi dakar rahi h.
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Nidhi to puri pagla gye aur asha ki tarah murjha rhi thi lekin asha ne sambhal liya. Abhi to bahut pyar ki maari honi chahiye par kya pta kya ho.
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Ritu aur raj ne dimag se to pratima aur ajay k planes counter kr liya but ab sab execution par depend krta h jo ki thoda muskil lg rha h.
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Nice bhai.
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Keep posting.
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VIKRANT

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एक नया संसार
अपडेट........《 56 》

अब तक,,,,,,,,

"हाॅ ये तो सही कहा तुमने।" सहसा दीदी ने मेरी तरफ प्रसंसा भरी नज़रों से देखते हुए कहा___"हमने तो उनसे पूछा ही नहीं था। लेकिन सवाल तो है ही कि वो किस ज़रूरी काम से गुज़र रहे थे?"

"ओफ्फो दीदी।" मैने कहा___"आपसे ऐसे सवाल की उम्मीद नहीं थी मुझे। बड़ी सीधी सी बात है वो अपने आदमियों को इकट्ठा करने के लिए जा रहे थे।"

"ओह आई सी।" रितू दीदी ने कहा___"चल ये तो बहुत अच्छा किया तुमने जो खुद के लिए भी बैकअप का इंतजाम कर लिया है। वरना मैं तो सोच रही थी कि कहीं हम फॅस ही न जाएॅ किसी जाल में।"

"ऐसे कैसे फॅस जाएॅगे दीदी?" मैने कहा___"और फिर रिस्क तो लेना ही पड़ेगा। ये तो कुछ भी नहीं है, आने वाले समय में इससे कई गुना ज्यादा ख़तरा भी होगा जिसका हमें सामना करना पड़ेगा।"

"हाॅ ये तो है।" दीदी ने कहा____"ख़ैर अभी तो सबसे ज़रूरी यही है कि किसी तरह नीलम व सोनम सुरक्षित हमें हाॅसिल हो जाएॅ। उसके बाद की इतनी चिंता नहीं है क्योंकि तब इस बात का भय नहीं रहेगा कि हमारा कोई अपना उनके चंगुल में है।"

मैं रितू दीदी की इस बात पर बस मुस्कुरा कर रह गया। ऐसे ही बातें करते हुए हम बढ़े चले जा रहे थे माधोपुर की तरफ। हम तीनों ही पूरी तरह सतर्क थे। हम इस बात को भी बखूबी समझते थे कि ख़तरा सिर्फ अजय सिंह की तरफ बस का ही नहीं था बल्कि मंत्री दिवाकर चौधरी की तरफ से भी था। दूसरी बात अब हम पहचाने जा चुके थे दोनो तरफ इस लिए ख़तरा और भी बढ़ गया था हमारे लिए। मगर सच्चाई की राह पर चलने के लिए हम अपने अपने हौंसलों को आसमां की बुलंदियों में परवाज़ करवा रहे थे। आने वाला समय बताएगा कि इस खेल में किसको जीत मिलती है और किसे हार का कड़वा स्वाद चखना होगा??
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अब आगे,,,,,,,

नीलम व सोनम के जाने के बाद शिवा वापस पलटा और हवेली के अंदर की तरफ बढ़ चला। उसके होठों पर बड़ी ही दिलकस मुस्कान थी। ज़ाहिर था कि उसकी ये मुस्कान सोनम की वजह से थी। जिसके बारे में वो जाने क्या क्या सोचने लगा था। ख़ैर सोनम के बारे में सोचते हुए ही वह चलते हुए अंदर ड्राइंग रूम में पहुॅचा।

उधर ड्राइंग रूम में प्रतिमा अभी भी बैठी हुई थी। उसके चेहरे पर सोचों के भाव गर्दिश कर रहे थे। शिवा के अंदर आते ही वह सोचो से बाहर आई और उसने शिवा को मुस्कुराते हुए देखा तो सहसा वह चौंकी। फिर अगले ही पल सामान्य भी हो गई, कदाचित उसे शिवा की मुस्कान का राज़ पता चल गया था।

"क्या बात है बेटा।" फिर उसने बेटे की तरफ देखते हुए मुस्कुरा कर कहा___"लगता है मन में बहुत ही मीठी मीठी गुदगुदी हो रही है, है ना?"
"ग..गुदगुदी???" प्रतिमा की इस बात से शिवा एकदम से चकरा सा गया___"कैसी गुदगुदी माॅम?"

"वैसी ही बेटा।" प्रतिमा ने कहा___"जैसी तब हुआ करती है जब किसी से नया नया इश्क़ होता है। तुम्हारे होठों पर थिरक रही ये मुस्कान इस बात का सबूत दे रही है कि तुम सोनम के बारे में सोच सोच अंदर ही अंदर बेहद रोमांच सा महसूस कर रहे हो।"

"हाॅ माॅम।" शिवा की मुस्कान गहरी हो गई___"ये तो आपने बिलकुल सही कहा। मैं सचमुच सोनम के बारे में ही सोच सोच कर आनंद महसूस कर रहा हूॅ। उफ्फ माॅम मैं बता नहीं सकता कि मैं सोनम के बारे में सोच सोच कर कितना खुश हो रहा हूॅ। क्या ऐसा नहीं हो सकता माॅम कि मेरे इस दिल का ये हाल मेरे बिना बताए सोनम समझ जाए और फिर वो मेरे इस दिल की चाहत को कुबूल कर ले?"

"तुम दीवाने से होते जा रहे हो बेटे।" प्रतिमा एकाएक ही गंभीर हो गई, बोली___"जो कि बिलकुल भी ठीक नहीं है। तुम खुद ये बात अच्छी तरह जानते हो कि जो तुम चाहते हो वो इस जन्म में तो हर्गिज़ भी नहीं हो सकता। फिर इस तरह बेकार की बातें करने का तथा ऐसा सोचने का क्या मतलब है बेटा? अभी भी वक्त है तुम अपने अंदर के इस एहसास को जितना जल्दी हो सके निकाल दो। वरना देख लेना इस सबके लिए बाद में तुम बहुत दुखी होगे।"

"जिन्हें इश्क़ हो जाता है न माॅम।" शिवा ने अजीब भाव से कहा___"फिर उन्हें कोई समझा नहीं सकता और ना ही इश्क़ में पागल हो चुका ब्यक्ति किसी की बातों को समझना चाहता है। उसे तो बस हर घड़ी हर पल अपने प्यार की आरज़ू रहती है। ऐसा नहीं है माॅम कि इसमें दिमाग़ काम नहीं करता है बल्कि वो तो वैसे ही काम करता रहता है जैसे आम इंसानों का करता है मगर दिल के जज़्बातों की जब ऑधी चलती है न तो उस दिमाग़ का सारा दिमाग़ उसके ही पिछवाड़े में घुस जाता है।"

प्रतिमा के चेहरे पर एक बार पुनः हैरत के भाव उभर आए। उसे इस वक्त लग ही नहीं रहा था कि ये वही शिवा है जो इसके पहले हर लड़की या औरत को सिर्फ और सिर्फ हवश की नज़र से देखता था। बल्कि इस वक्त तो वह दुनिया का सबसे शरीफ व संस्कारी दिखाई दे रहा था।

"कहते हैं कि दुनियाॅ में कुछ भी असंभव नहीं है।" उधर शिवा कह रहा था___"अगर किसी चीज़ को पाने की शिद्दत से चाहत करो तो वो यकीनन हाॅसिल हो जाती है। आप जिस चीज़ को असंभव कह रही हैं वो चीज़ भी संभव हो सकती है माॅम, अगर आप चाहो तो।"

"क्...क्या मतलब???" प्रतिमा के माथे पर सलवटें उभरीं।
"मतलब साफ है माॅम।" शिवा ने कहा___"अगर आप और डैड चाहें तो सोनम मेरी जाने हयात ज़रूर बन सकती है और मैं उसे पा कर खुश हो सकता हूॅ।"

"तुम पागल हो गए हो बेटा।" प्रतिमा के चेहरे पर गहन बेचैनी के भाव उभरे, बोली___"सब कुछ जानते व समझते हुए भी तुम बेमतलब की बातें किये जा रहे हो। तुम इस बात को समझ ही नहीं रहे कि ये कितना ग़लत है और कितना मुश्किल है। सोनम तुम्हारी बड़ी बहन है। वो तुम्हें अपना छोटा भाई ही मानती है। उसे नहीं पता है कि उसका छोटा भाई उसके प्रति कैसी सोच रखता है और क्या चाहता है?"

"आप सोनम के माॅम डैड से बात कीजिए माॅम।" शिवा ने कहा___"मैं सोनम को मना लूॅगा और अगर वो नहीं मानेगी तो उससे कहूॅगा कि वो मुझे अपने प्यार की भीख दे दे। मैं उसे बताऊॅगा कि मैं उसके बिना अब नहीं रह सकता। दूसरी बात जब उसके माॅम डैड इस रिश्ते के लिए मान जाएॅगे तो फिर उसे भी भला क्या परेशानी होगी?"

"हे भगवान।" प्रतिमा ने जैसे अपना माथा पकड़ लिया, फिर बोली___"कैसे समझाऊॅ इस लड़के को? तुमने ये सोच भी कैसे लिया कि सोनम के माॅ बाप इस रिश्ते के लिए मान जाएॅगे? बल्कि सच्चाई तो ये है कि वो ये सब पता चलते ही तुम्हारे साथ साथ हम सब पर भी लानत भेजेंगे और फिर कभी हमारी शक्ल तक देखना न
चाहेंगे।"

प्रतिमा की इस बात पर शिवा मन मसोस कर रह गया। एकाएक ही उसके चेहरे पर ऐसे भाव आए जैसे उसे इन सब बातों से बेहद तक़लीफ हुई हो। जबकि उसके चेहरे पर उभर आए इन भावों को बड़े ध्यान से देखते हुए तथा समझाते हुए प्रतिमा ने नम्र भाव से कहा____"देख बेटा इसमें इतना दुखी होने की ज़रूरत नहीं है। मैं अच्छी तरह तेरे अंदर का हाल समझ सकती हूॅ। मुझे इस बात का एहसास है कि सोनम के प्रति तू किस हद तक गंभीर हो चुका है। मगर बेटा सब कुछ वैसा ही नहीं हो जाया करता जैसा हम चाह लिया करते हैं। यथार्थ सच्चाई नाम की भी कोई चीज़ होती है जिसका हमें बेबस होकर ही सही मगर सामना करना पड़ता है और उसे मानना भी पड़ता है। ये तो तू भी अच्छी तरह जानता है कि सोनम तेरी बड़ी मौसी की लड़की है और रिश्ते में वो तेरी बड़ी बहन लगती है। सोनम की माॅ मेरी सगी बहन है इस हिसाब से ये रिश्ता सगा ही हो जाता है। अतः सगे रिश्ते के बीच तुम्हारी और सोनम की शादी हर्गिज़ भी नहीं हो सकती। अगर ऐसा होता कि सोनम की माॅ मेरी सगी बहन न होकर दूर के किसी रिश्ते से बहन लगती तो ऐसा हो भी सकता था। इस लिए तुम्हें इन सब बातों को सोच समझ कर अपने आपको समझाना होगा। मुझे पता है कि अभी ये सब तेरे लिए बहुत मुश्किल होगा मगर ये करना ही होगा बेटा। वरना अभी जिस बात से तुम्हें इतनी तक़लीफ हो रही है उसी बात से आगे चल कर और भी ज्यादा तक़लीफ होगी। दुनियाॅ में एक से बढ़ कर एक खूबसूरत लड़कियाॅ हैं, तू जिस लड़की से कहेगा हम उस लड़की से तेरी शादी करेंगे। मगर प्लीज सोनम का ख़याल अपने दिलो दिमाग़ से निकाल दे। इसी में सबकी भलाई है।"

"ठीक है माॅम।" शिवा ने गहरी साॅस ली और फिर एकाएक ही उसके चेहरे पर दृढ़ता के भाव आए, बोला____"अगर ऐसी बात है तो ठीक है। अब मैं कभी आपसे नहीं कहूॅगा कि आप सोनम से मेरी शादी करवा दीजिए। ख़ैर एक बात कहूॅ माॅम, पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा है कि जैसे ईश्वर ने मुझे मेरे पापों की सज़ा देना शुरू कर दिया है। हाॅ माॅम, ये सज़ा ही तो है कि मुझे एक ऐसी लड़की से बेपनाह मोहब्बत हो गई जो मेरी बहन लगती है और जो मुझे नसीब ही नहीं हो सकती कभी। वरना ईश्वर अगर चाहता तो मुझे दूसरी किसी ऐसी लड़की से प्यार करवाता जो मुझे सहजता से मिल जाती। मगर नहीं उसे तो मेरे पापों की सज़ा देना था न मुझे। इस लिए ऐसा कर दिया उसने। कोई दूसरा इन सब बातों को समझे या न समझे माॅम मगर मैं अच्छी तरह समझ गया हूॅ और अगर अपने दिल की सच्चाई बयां करूॅ तो वो ये है कि मुझे ईश्वर के इस फैंसले पर कोई शिकायत नहीं है। अगर ये सब करके वो मुझे मेरे पापों की सज़ा ही देना चाहता है तो ठीक है माॅम मुझे स्वीकार है ये। हर ब्यक्ति को अपने कर्मों का फल मिलता है, फिर चाहे उसके अच्छे कर्मों का हो या बुरे कर्मों का। कितनी अजीब बात है न माॅम कि कुछ लोग सारी ज़िंदगी पाप करते हैं मगर उनको उनके पाप कर्म की सज़ा अंत में मिलती है मगर मुझे तो अभी से मिलना शुरू हो गई।"

शिवा की बातें सुन कर प्रतिमा हैरत से ऑखें फाड़े देखती रह गई उसे। उससे कुछ कहते तो न बन पड़ा था किन्तु ये समझने में उसे ज़रा भी देरी न हुई कि उसके बेटे का मानसिक संतुलन आज इस हद तक बिगड़ गया है अथवा उसकी सोच इस हद तक बदल गई है कि वो इस सबको अपने पाप कर्मों की सज़ा समझने लगा है। कहते हैं कि किसी ब्यक्ति को आप सारी ज़िदगी अच्छी चीज़ों का बोध कराते रहो मगर उसे अगर नहीं समझना होता है तो वो सारी ज़िंदगी नहीं समझता मगर वक्त और हालात के पास ऐसी खूबियाॅ होती हैं जिनके आधार पर वह पलक झपकते ही इंसान को आईना दिखा कर सब कुछ समझा देता है और मज़े की बात ये कि इंसान को समझ में भी आ जाता है। यही हाल शिवा का था। उसे सब कुछ समझ आ चुका था, मगर कहते हैं न कि "का बरसा जब कृषि सुखाने"। बस वही दसा थी उसकी।

"ख़ैर छोंड़िये इन सब बातों को माॅम।" उधर शिवा ने जैसे प्रतिमा को होशो हवाश में लाते हुए कहा___"अब से मैं कभी आपसे ऐसी बातें नहीं करूॅगा। आप ये सब डैड से भी मत बताना। वरना उन्हें लगेगा कि मैं भरपूर जवां मर्द होते हुए भी इस सबके चलते बेहद कमज़ोर हो गया हूॅ। वो इस बात को नहीं समझेंगे कि इस सबसे तो मैं और भी मजबूत हो गया हूॅ। मोहब्बत की चोंट को जो इंसान सह जाए उससे मजबूत इंसान भला दूसरा कौन हो सकता है?"

प्रतिमा को समझ न आया कि वह अपने बेटे की इन सब बातों का क्या जवाब दे। किन्तु उसकी बातें उसे आश्चर्यचकित ज़रूर किये हुए थीं। काफी देर तक वह गंभीर मुद्रा में ठगी सी बैठी रही। होश तब आया जब एकाएक ही ड्राइंग रूम में एक तरफ टेबल पर रखे लैण्ड लाइन फोन की घंटी घनघना उठी थी।

"हैलो।" शिवा अपनी जगह से उठ कर तथा फोन के रिसीवर को कान से लगाते ही कहा।
"ओह शिव बेटा।" उधर से अजय सिंह की जानी पहचानी सी आवाज़ उभरी____"मैंने तुम्हारे नाना जी को ट्रेन में बैठा दिया है और अब मैं यहीं से फैक्ट्री के लिए निकल रहा हूॅ। अतः अब शाम को ही आऊॅगा।"

"ठीक है डैड।" शिवा ने सामान्य भाव से कहा।
"ज़रा अपनी माॅम से बात करवाओ।" उधर से अजय सिंह ने कहा।
"एक मिनट डैड।" शिवा ने कहने के साथ ही पलट कर प्रतिमा की तरफ देखा और उसे बताया कि डैड उससे बात करना चाहते हैं।

"हाॅ बोलो अजय।" प्रतिमा ने शिवा से रिसीवर लेकर उसे अपने बाएं कान से लगाते हुए कहा___"क्या बता है? पापा को ट्रेन में सकुशल बैठा दिया है न तुमने?"
"हाॅ उन्हें ट्रेन में बैठा कर अभी अभी स्टेशन से बाहर आया हूॅ।" उधर से अजय सिंह ने कहा____"और अब मैं यहीं से फैक्ट्री जा रहा हूॅ। काफी दिन से नहीं गया हूॅ तो वहाॅ जाना भी ज़रूरी है। बाॅकी सब ठीक है न?"

"हाॅ बाॅकी सब तो ठीक ही है।" प्रतिमा ने कहा___"नीलम, सोनम को अपना ये गाॅव तथा अपने खेत दिखाने ले गई है। सोनम ने उससे कहा होगा कि उसे ये गाॅव और उसके खेत देखना है। अतः नीलम के साथ गई है वो।"

"ये क्या कह रही हो तुम?" उधर से अजय सिंह ने बुरी तरह चौंकते हुए कहा___"उन दोनो को तुमने जाने कैसे दिया प्रतिमा? क्या तुम्हें पता नहीं है कि वो वहाॅ से भागने के उद्देश्य से भी ये कहा होगा कि उन्हे गाॅव तथा खेत देखना है? उफ्फ प्रतिमा तुमने ये क्या बेवकूफी की?"

"फिक्र मत करो अजय।" प्रतिमा ने कहा___"उन दोनो के साथ मैने दो ऐसे आदमियों को भी भेजा है जिन आदमियों को तुम्हारे दोस्त तुम्हारी मदद के लिए यहाॅ भेज कर गए थे। उन आदमियों के रहते वो कहीं भी नहीं जा सकती।"

"अरे वो आदमी साले क्या कर लेंगे?" उधर से अजय सिंह ने खीझते हुए कहा___"तुम्हें तो पता है कि उस साले विराज ने एक साथ हमारे उतने सारे आदमियों का काम तमाम कर दिया था तो फिर ये क्या कर लेंगे उसका? ओफ्फो प्रतिमा तुम्हें उन दोनों को जाने ही नहीं देना चाहिए था। मुझे तुमसे ऐसी बेवकूफी की उम्मीद हर्गिज़ भी नहीं थी।"

"तुम बेवजह ही इतना परेशान हो रहे हो डियर।" प्रतिमा ने कहा___"मुझे भी पता है कि हालात कैसे हैं और इन हालातों में क्या हो सकता है? मैं उन दोनो को गाॅव तथा खेत देखने जाने से भला कैसे रोंक सकती थी? इसी लिए मैंने उनके साथ उन दो आदमियों को भेजा है। बात इतनी सी ही बस नहीं है बल्कि दूर का सोचते हुए मैने उनके जाने के बाद उनके पीछे लगे रहने के लिए और भी आदमियों को एक टीम बना कर भेजा है। ऐसा इस लिए कि अगर वो दोनो सचमुच यहाॅ से भागने का ही ये गाॅव तथा खेत देखने का बहाना बनाया होगा तो वो किसी भी तरह से भागने में कामयाब न हो सकेंगी। दिखावे के लिए तथा सिचुएशन को सामान्य दिखाने के लिए मैने उन दोनो के साथ सिर्फ दो ही आदमी उनकी सुरक्षा के तहत भेजे किन्तु उनकी जानकारी के बिना कुछ और आदमियों की टीम को ये सोच कर उनके पीछे भेजा कि अगर ये उनका यहाॅ से भागने का ही प्लान था तो ये भी ज़ाहिर है कि ये प्लान उन्होंने खुद नहीं बनाया होगा बल्कि यहाॅ से इस तरह निकलने का प्लान विराज ने ही उन्हें बताया होगा और कहा होगा कि वो दोनो हवेली से बाहर निकल कर किसी ऐसे स्थान पर पहुॅचेंगी जहाॅ से उन दोनो को वो बड़ी आसानी से किन्तु बड़ी सावधानी से हमारे उन दोनो आदमियों के साथ रहने के बावजूद अपने साथ ले जा सकें। विराज की इसी चाल को मद्दे नज़र रखते हुए मैने उन दोनो के पीछे कुछ और आदमियों को एक मजबूत टीम बना कर भेजा है तथा साथ ही ये भी उन्हें कह दिया है कि अगर सचमुच वहाॅ ऐसा कुछ होता दिखे तो वो बेझिझक दूसरी पार्टी यानी विराज व रितू पर गोलियाॅ चला सकते हैं। किन्तु इतना ज़रूर ध्यान देंगे कि उनकी गोलियों से उन दोनो में से किसी की भी मौत न हो जाए। बल्कि उन्हें इस स्थित में लाना है कि वो कुछ करने के लायक न रह जाएॅ। उसके बाद वो उन्हें पकड़ कर हमारे फार्महाउस पर ले आएॅगे।"

"अगर ऐसा है तो फिर ठीक है।" उधर अजय सिंह ने मानो राहत की साॅस ली थी, बोला___"मगर मुझे इस सबसे भी संतुष्टि नहीं हो रही प्रतिमा। पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लगता है कि हमारे इतने आदमियों के रहते हुए भी वो कमीना उन दोनो को अपने साथ ले जाने में कामयाब हो जाएगा।"

"ऐसा तुम इस लिए कह रहे हो डियर।" प्रतिमा ने सहसा मुस्कुरा कर कहा___"क्योंकि तुमने अभी तक इस मामले में कोई सफलता हाॅसिल नहीं की है। हर बार तुमने अपने आदमियों की वजह से नाकामी का स्वाद चखा है। इस लिए तुम्हें इस सबके बावजूद विश्वास या संतुष्टि नहीं हो रही कि हमारे आदमी विराज के मंसूबों को नाकाम कर पाएॅगे।"

"ये तो सच कहा तुमने प्रतिमा।" अजय सिंह बोला___"पर क्या करूॅ यार हालात हर दिन पहले से कहीं ज्यादा गंभीर व बदतर होते जा रहे हैं। मैं ये किसी भी कीमत पर नहीं चाहता हूॅ कि एक और नाकामी की मुहर मेरे माथे की शोभा बढ़ाने लगे। इस लिए मैं खुद ही आ रहा हूॅ वहाॅ। फैक्ट्री जाना इतना भी ज़रूरी नहीं है। मैं आ रहा हूॅ डियर। इस बार मैं उस हरामज़ादे को कामयाब नहीं होने दूॅगा।"

"ठीक है माई डियर।" प्रतिमा ने कहा___"तुम्हें जैसा अच्छा लगे करो। वैसे कब तक पहुॅच जाओगे यहाॅ?"
"जितना जल्दी पहुॅच सकूॅ।" अजय सिंह ने कहा___"ख़ैर चलो रखता हूॅ फोन।"

इसके साथ ही काल कट हो गई। अजय सिंह से बात करने के बाद प्रतिमा पलट कर वापस सोफे की तरफ आई और बैठ गई। चेहरे पर अनायास ही गंभीरता छा गई थी उसके। फिर उसने शिवा की तरफ देखते हुए कहा___"बेटा सविता से कहो कि अच्छी सी चाय बना कर लाए मेरे लिए।"
"ओके माॅम।" शिवा ने कहा और सोफे से उठ कर अंदर की तरफ चला गया।
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उधर मुम्बई में।
ब्रेक फास्ट करने के लिए सब एक साथ ही बैठे हुए थे। जिनमें जगदीश ओबराय, अभय सिंह, पवन, दिव्या, आशा तथा निधी बैठे हुए थे। गौरी, रुक्मिणी तथा करुणा सबके लिए नास्ता परोस रही थीं। ब्रेकफास्ट करते हुए सबके बीच थोड़ी बहुत बातचीत भी हो रही थी। किन्तु इस बीच आशा की निगाहें थोड़े थोड़े समय के अंतराल से निधी पर पड़ ही जाती थी।

निधी जो कि अब ज्यादातर ख़ामोश ही रहती थी। वो किसी से भी खुद से कोई बात नहीं करती थी। हलाॅकि सब यही चाहते थे कि वो सबसे बातें करे तथा अपनी शरारत भरी बातों से माहौल को सामान्य बनाए रखे मगर ऐसा हो नहीं रहा था। सबने उससे पूछा भी था कि वो अचानक इस तरह चुप चुप तथा गुमसुम सी क्यों रहने लगी है मगर उसने बस यही कहा था कि वो बस अपने भइया के चले जाने से ऐसी हो गई है। उसकी बातों को सब यही समझ रहे थे विराज जिस काम से गया है वो यकीनन बहुत ख़तरे वाला है जिसके बारे में सोच कर निधी इस तरह चुप हो गई है। आख़िर ये बात तो सब जानते ही थे कि निधी विराज की जान है तथा निधी भी अपने भाई पर जान छिड़कती है। मगर असलियत से आशा के अलावा हर कोई अंजान था।

चुपचाप नास्ता कर रही निधी की नज़र सहसा सामने ही कुर्सी पर बैठी तथा नास्ता कर रही आशा पर पड़ी तो वो ये देख कर एकाएक ही सकपका गई कि आशा उसे ही एकटक देखे जा रही है। उसके ज़हन में पलक झपकते ही सुबह का डायरी वाला सीन याद आ गया। उसके दिमाग़ ने काम किया और उसे ये सोचने पर मजबूर किया कि आशा दीदी उसे इस तरह एकटक क्यों देखे जा रही हैं। उनकी ऑखों में कुछ ऐसा था जिसने निधी को अंदर तक हिला सा दिया था और फिर एकाएक ही जैसे उसके दिमाग़ की बत्ती रौशन हुई। उसके मन में ख़याल उभरा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि आशा दीदी ने उसके सोते समय डायरी को हाॅथ ही नहीं लगाया हो बल्कि उसे पढ़ भी लिया हो। इस ख़याल के आते ही निधी की हालत पल भर में ख़राब हो गई। मन के अंदर बैठा चोर इतना घबरा गया कि फिर उसमें नज़र उठा कर दुबारा आशा की तरफ देखने की हिम्मत न हुई।

निधी ने नोटिस किया कि जिस अंदाज़ से आशा उसे देख रही थी उससे तो यही लगता है कि उसने डायरी में लिखी बातें पढ़ ली हैं और जान गई है कि उसमें लिखे गए हर लफ्ज़ का मतलब क्या है? निधी की हालत ऐसी हो गई कि अब उससे वहाॅ पर बैठे न रहा गया। उसने जो खाना था खा लिया और फिर वह एक झटके से उठी और ऊपर अपने कमरे की तरफ तेज़ तेज़ क़दम बढ़ाते हुए चली गई। कमरे में जाकर उसने स्कूल की यूनीफार्म पहनी तथा अपना स्कूली बैग उठाया और फिर फौरन ही कमरे से बाहर आ गई।

उसे इतना जल्दी बाहर आते देख हर कोई चौंका मगर चूॅकि उसके स्कूल जाने का समय होने ही वाला था अतः इस पर ज्यादा किसी ने ग़ौर न किया। उसने दूर से ही हाॅथ हिला कर सबको बाय किया और बॅगले से बाहर की तरफ बढ़ गई। बाहर आते ही उसने एक ऐसे आदमी को आवाज़ दी जो हर दिन कार से उसे स्कूल छोंड़ने और स्कूल से लाने का काम करता था। ख़ैर, कुछ ही देर में निधी कार में बैठ कर स्कूल की तरफ रवाना हो गई। किन्तु अब उसका मन बेहद अशान्त हो चुका था। उसे ये डर सताने लगा था कि अगर सचमुच आशा ने उसकी डायरी पढ़ ली होगी तो उसे यकीनन पता चल गया होगा कि वो अपने ही सगे भाई से प्यार करती है और आज कल उसी के ग़म में गुमसुम रहने लगी है।

निधी को प्रतिपल ये सब बातें और भी ज्यादा चिंतित व परेशान किये जा रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे? कैसे अब वो अपनी आशा दीदी के सामने जाएगी तथा उन्हें अपना चेहरा दिखाएगी? अगर आशा ने उससे इस बारे में कुछ पूछा तो वो क्या जवाब देगी? उसे पहली बार एहसास हुआ कि डायरी लिख कर उसने कितनी बड़ी ग़लती की है। वरना किसी को इस बात का पता ही न चलता कि उसके दिल में क्या है। मगर अब क्या हो सकता था? तीर तो कमान से निकल चुका था। अतः अब तो बस इंतज़ार ही किया जा सकता था इस सबके परिणाम का। निधी के मन ही मन ये निर्णय लिया कि अब वो आशा दीदी के सामने नहीं जाएगी और ना ही उनसे कोई बात करेगी। मगर उसे खुद लगा कि ऐसा संभव नहीं हो सकता। उसे उनका सामना तो करना ही पड़ेगा क्योंकि वो ज्यादातर उसके पास ही रहती हैं तथा रात में उसके ही कमरे में उसके साथ एक ही बेड पर सोती भी हैं।

ये मामला ही ऐसा था कि इसने निधी की हालत को इस तरह कर दिया था जैसे अब उसके अंदर प्राण ही न बचे हों। वह एकदम से जैसे ज़िदा लाश में तब्दील हो गई हो। उसके मन में ये भी ख़याल उभरा कि अगर आशा दीदी ने वो सब किसी से बता दिया तो क्या होगा? उसकी माॅ गौरी तो उसे जीते जी जान से मार देगी। कोई उसके अंदर की भावनाओं को नहीं समझेगा बल्कि सब उसे ग़लत ही समझेंगे। अगर ये भी कहें तो ग़लत न होगा कि उसने ये सब अपनी नई नई जवानी को बर्दाश्त न कर पाने की गरज़ से अपने ही भाई को फॅसाने का सोच कर किया होगा। इस ख़याल के आते ही निधी को आत्मग्लानि के चलते बेहद दुख हुआ। उसकी झील सी नीली ऑखों से पलक झपकते ही ऑसूॅ छलक कर गिर पड़े। किन्तु उसने जल्दी से उन्हें ये सोच कर पोंछ भी लिया कि कहीं ड्राइवर उसे बैकमिरर के माध्यम से ऑसू बहाते देख न ले।

सारे रास्ते इन सब बातों को सोचते हुए निधी को पता ही नहीं चला कि वो कब स्कूल पहुॅच गई? होश तब आया जब ड्राइवर ने उससे कहा कि उसका स्कूल आ गया है। ड्राइवर पचास की उमर का ब्यक्ति था। उसका ये रोज़ का ही काम था। उसे निधी से काफी लगाव भी हो गया था। उसे वो अपनी बेटी की तरह मानता था। पिछले कुछ समय से वो खुद भी देख रहा था कि निधी एकाएक ही गुमसुम सी हो गई है। उसने भी कई बार इस बारे में उससे पूछा था मगर निधी ने उससे भी यही कहा था कि वो अपने भइया के लिए दुखी रहती है। भला वो किसी से अपने गुमसुम रहने की वजह कैसे बता सकती थी?

कार से उतर कर निधी बहुत ही बोझिल मन से अपने स्कूल के मुख्य दरवाजे की तरफ बढ़ती चली गई। स्कूल में उसकी अच्छी अच्छी कई सहेलियाॅ बन गई थी। वो सब भी निधी की इस ख़ामोशी से परेशान व चिंतित थी। मगर वो कर भी क्या सकती थी?

इधर निधी के जाने के थोड़ी देर बाद ही आशा निधी के कमरे में पहुॅची। कमरे को उसने अंदर से कुंडी लगा कर बंद किया और फिर पलट कर निधी की डायरी की तलाश करने लगी। मगर बहुत ढूॅढ़ने पर भी उसे निधी की वो डायरी कहीं न मिली। उसने हर जगह बड़ी बारीकी से चेक किया मगर डायरी तो जैसे गधे के सिर का सींग हो गई थी। सहसा आशा को ख़याल आया कि निधी अपनी डायरी को ऐसी वैसी जगह नहीं रख सकती जिससे वो किसी के हाॅथ लग जाए। ज़ाहिर सी बात है कि ऐसी डायरी वो किसी के हाॅथ लगने भी कैसे दे सकती थी जिसे किसी के द्वारा पढ़ लिए जाने के बाद उस पर क़यामत टूट पड़ती। मतलब साफ है कि उसने उस डायरी को ऐसी जगह छुपा कर रखा होगा जहाॅ से मिलना किसी दीगर ब्यक्ति के लिए लगभग असंभव ही हो।

इस ख़याल के तहत आशा ने सोचा कि ऐसी जगह तो इस कमरे में कदाचित आलमारी और आलमारी के अंदर वाला लाॅकर ही हो सकता है जहाॅ पर निधी ने अपनी डायरी छुपाई हो सकती है। अतः आशा ने आगे बढ़ कर आलमारी खोला और आलमारी के अंदर मौजूद लाॅकर को चेक किया तो उसे लाॅक पाया। अंदर के उस लाॅकर की चाभी को उसने ढूॅढ़ना शुरू कर किया मगर चाभी कहीं नहीं मिली उसे। आलमारी में रखी एक एक चीज़ तथा एक एक कपड़े को उलट पलट कर देखा उसने मगर चाभी कहीं न मिली। थक हार कर फिर उसने हर चीज़ को उसी तरह जमा कर रखना शुरू किया जैसे वो पहले रखी हुई थीं उसके बाद वह बेड पर आकर धम्म से बैठ गई और गहरी गहरी साॅसें लेने लगी।

काफी देर तक बेड पर बैठी वो चाभी के बारे में सोचती रही फिर उसे लगा कि संभव है कि लाॅकर की चाभी निधी अपने पास ही रखती हो। यानी इस वक्त वो चाभी उसके पास उसके स्कूली बैग में ही होगी। बात भी सच थी आख़िर वो चाभी अपने पास ही तो रखेगी वरना ऐसे में तो कोई भी उसकी चाभी ढूॅढ़ कर लाॅकर खोल सकता था तथा उसकी डायरी निकाल सकता था और फिर उसे पढ़ भी सकता था। आशा को ये बात सौ परसेन्ट जॅची।

आशा की ऑखों के सामने सुबह ब्रेकफास्ट करते वक्त का सीन फ्लैश करने लगा। जब वो बार बार निधी की तरफ देख रही थी और फिर निधी ने भी उसको अपनी तरफ एकटक देखते हुए देखा था। उस वक्त उसकी हालत बहुत ही दयनीय सी हो गई थी। आशा को समझते देर न लगी कि निधी को उसके इस तरह देखने से ये समझ में आ गया होगा कि उसने सुबह उसकी डायरी को शायद पढ़ लिया होगा और उसका राज़ जान चुकी होगी। ये सोच ही उसकी हालत ख़राब हो गई थी। आशा जानती थी कि प्यार करना कोई जुर्म नहीं है, किन्तु यही प्यार अगर बहन अपने ही भाई से कर बैठे तो यकीनन ये अनुचित तथा ग़लत हो जाता है। कदाचित यही वजह थी कि निधी की वैसी हालत हो गई थी। उसे डर सताने लगा था कि आशा दीदी उसके बारे में क्या क्या सोचेंगी और अगर ये बात किसी को बता दिया तो इसका क्या अंजाम हो सकता है।

आशा को ये भी एहसास था कि विराज है ही ऐसा कि उससे कोई भी लड़की प्यार कर बैठेगी। फिर चाहे वो बाहरी लड़की हो या फिर खुद उसकी ही बहन। वो खुद भी तो विराज को शुरू से ही अपना सब कुछ मानती आ रही थी। उसे खुद नहीं पता था कि वो कब विराज को अपना दिल दे बैठी थी और फिर जब उसे एहसास हुआ कि वो विराज को बेपनाह प्यार करने लगी है तो एकाएक ही हॅसती खेलती आशा का समूचा अस्तित्व ही बदल गया था। आज जिस ख़ामोशी को निधी ने अख़्तियार कर लिया था उसी ख़ामोशी को एक दिन उसने भी तो ऐसे ही अख़्तियार कर लिया था। अपने प्रेम को उसने विराज के सामने कभी उजागर नहीं किया क्योंकि उसे पता था कि विराज उसे अपनी बहन ही मानता है। दूसरी बात अगर वो उससे अपने प्रेम का इज़हार करती भी तो बहुत हद तक संभव था कि विराज उसे ग़लत समझ बैठता या उसके इस प्रेम को ये कह कर ठुकरा देता वो ऐसा सोच भी कैसे सकती हैं? दूसरी बात, एक तो उमर में वो विराज से बड़ी थी दूसरे आर्थिक तंगी के चलते उसकी शादी भी नहीं हो रही थी। इस सबसे विराज को ही नहीं बल्कि सबको भी यही लगता कि आशा से अपनी जवानी की गर्मी बर्दास्त नहीं हुई इस लिए उसने विराज के साथ संबंध बनाने के लिए प्यार का नाटक शुरू कर दिया है। तीसरी महत्वपूर्ण बात वो भले ही चुलबुल व नटखट स्वभाव की थी किन्तु सिर्फ अपने भाइयों के लिए बाॅकी बाहरी लोगों के सामने उसने कभी अपना सिर तक न उठाया था। लोक लाज तथा घर की मान मर्यादा का ख़याल ही था जिसने उसके लब हमेशा के लिए सिल दिये थे।

जब उसे डायरी के द्वारा ये पता चला कि निधी अपने ही भाई से प्यार करती है तो सहसा उसे झटका सा लगा था और उसके दिल में भावनाओं और जज़्बातों का ये सोच कर भयंकर तूफान उठा था कि जिस विराज को वो अपना सब कुछ मानती आ रही है उस पर तो उसका कोई हक़ ही नहीं है। बल्कि सबसे पहला हक़ तो उसकी खुद की बहन का ही हो गया है। उसने भी सोच लिया कि चलो यही सही। प्यार मोहब्बत तो कम्बख़्त नाम ही उस बला का है जो सिर्फ दर्द देना जानती है इश्क़ करने वालों को। उसे निधी पर बेहद तरस भी आया कि इस मासूम ने उस शख्स से दिल का रोग लगा लिया जो इसका हो ही नहीं सकता। ये समाज ये दुनिया कभी भाई बहन के इस रिश्ते को स्वीकार नहीं करेगी। दुनियाॅ की छोंड़ो खुद उसके ही माॅ बाप या संबंधी इसके खिलाफ हो जाएॅगे। कहने का मतलब ये कि मोहब्बत ने एक और शिकार फाॅस लिया बेइंतहां दर्द और तक़लीफ देने के लिए।

आशा जानना चाहती थी कि निधी को अपने ही भाई से इस हद तक प्यार कैसे हो गया है? आख़िर ऐसे क्या हालात बन गए थे जिसके तहत निधी ने ये रोग लगा लिया था? दूसरी बात क्या ये बात विराज को भी पता है कि उसकी लाडली बहन उससे इस हद तक प्यार करती है? उसे पता था कि डायरी एक ऐसी चीज़ होती है जिसमें हर इंसान अपने अंदर की हर सच्चाई को पूर्णरूप से सच ही लिखता है। अतः संभव है कि निधी ने भी उस डायरी में वो सब लिखा हो जिसके तहत उसे पता चलता कि किन हालातों में ऐसा हुआ था? हलाॅकि उसे ये भी पता था कि किसी भी इंसान की पर्शनल डायरी उसकी इजाज़त के बिना पढ़ना निहायत ही ग़लत होता है मगर फिर भी वो पढ़ना चाहती थी।

आशा सोच रही थी कि ब्रेकफास्ट करते वक्त निधी की जो हालत हुई थी उससे कहीं वो कुछ उल्टा सीधा करने का न सोच बैठे। ये मामला ही ऐसा है कि वो इस सबसे बहुत डर जाएगी और किसी के पता चल जाने के डर से वो कुछ उल्टा सीधा करने का सोच बैठे। बेड पर बैठी आशा को एकाएक ही हालात की गंभीरता का एहसास हुआ। उसका दिल बुरी तरह धड़कने लगा। उसे निधी की चिंता सताने लगी। उसने फौरन ही निधी से बात करने का सोचा। किन्तु उसके पास खुद का कोई मोबाइल नहीं था।

आशा अतिसीघ्र बेड से नीचे उतरी और भागते हुए कमरे से बाहर आई और फिर नीचे की तरफ दौड़ पड़ी। थोड़ी ही देर में वो गौरी आदि लोगों के पास पहुॅच गई। उसने खुद के चेहरे पर उभर आए घबराहट के भावों को जल्दी से छुपाया और लगभग सामान्य लहजे में ही गौरी से मोबाइल फोन माॅगा। किन्तु गौरी ने बताया कि मोबाइल तो उसके पास है ही नहीं, उसे तो मोबाइल चलाना ही नहीं आता। दूसरी बात ये कि उसे मोबाइल की कभी ज़रूरत ही नहीं पड़ी। गौरी की ये बात सुनकर आशा बुरी तरह परेशान हो गई। लाख कोशिशों के बावजूद उसके चेहरे पर से परेशानी के वो भाव न मिट सके जो उसके चेहरे पर ढेर सारे पसीने में भींगे दिखने लगे थे। जिसका नतीजा ये हुआ कि गौरी पूछ ही बैठी उससे कि क्या बात है वो इतना परेशान क्यों हो गई है। गौरी की बात का उसने आनन फानन में ही जवाब दिया। तभी वहाॅ पर करुणा भी आ गई। गौरी ने कुछ सोचते हुए करुणा से कहा कि वो अपना मोबाइल फोन आशा को दे दे।

करुणा ने अपना मोबाइल फोन आशा को ये पूछते हुए दे दिया कि क्या बात है तुम इतना परेशान क्यों नज़र आ रही हो। कुछ बात है क्या? आशा ने कहा नहीं चाची ऐसी कोई बात नहीं है वो क्या है कि उसे गुड़िया को फोन करना है तथा उससे पूछना है कि आज वो इतना जल्दी स्कूल क्यों चली गई थी? आपने देखा नहीं था क्या उसने ठीक से नास्ता भी नहीं किया है आज? आशा की इन बातों से गौरी, करुणा तथा रुक्मिणी सहज हो गईं। उन्हें भी बात सही लगी। क्योंकि उन्होंने भी देखा था कि निधी ने बस थोड़ा बहुत ही खाया था और फिर स्कूल चली गई थी। ख़ैर आशा का निधी के लिए इस तरह चिंता करना उन सबको बहुत अच्छा लगा।

करुणा से मोबाइल लेकर आशा फौरन ही वापस कमरे में आई और उसने फिर से दरवाजा उसी तरह अंदर से कुंडी लगा कर बंद कर दिया। उसके बाद वो बेड पर आ कर बैठ गई। फिर जाने उसे क्या सूझा कि वह बेड से उठी और कमरे से ही अटैच बाथरूम की तरफ बढ़ गई। बाथरूम का दरवाजा अंदर से बंद कर उसने मोबाइल पर निधी का नंबर निकाला और फिर उसे काल लगा कर मोबाइल अपने कान से लगा लिया। इस वक्त उसके चेहरे पर गहन चिंता व परेशानी स्पष्ट रूप से उभर आई थी। रिंग की आवाज़ जाती सुनाई दी उसे और इसके साथ ही उसकी धड़कनें भी बढ़ गईं। मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना भी करने लगी कि सब कुछ ठीक ही हो।

"ह..हैलो।" तभी उधर से निधी का लगभग घबराया हुआ सा स्वर उभरा___"च..चाची वो मैं.....।"
"गुड़िया।" निधी की बात को काटते हुए आशा ने फौरन ही कहा___"मैं तेरी आशा दीदी बोल रही हूॅ और हाॅ फोन मत काटना तुझे राज की क़सम है।"

"द..दीदी आप??" उधर से निधी का बुरी तरह उछला हुआ किन्तु घबराया हुआ स्वर फूटा था।
"गुड़िया।" आशा ने असहज भाव से किन्तु समझाते हुए कहा___"देख तू कोई भी उल्टा सीधा करने का ख़याल अपने मन में मत लाना। अगर तू ये सोच कर डर गई है कि मुझे डायरी के माध्यम से तेरा राज़ पता चल गया है और मैं उसकी वजह से तुझे कुछ कहूॅगी या फिर वो सब किसी से कह दूॅगी तो तू उस सबकी वजह से डर मत और ना ही उससे घबरा कर कुछ ग़लत क़दम उठाने का सोचना। मैं तुझे उसके लिए कुछ नहीं कहूॅगी गुड़िया और ना ही किसी को बताऊॅगी। मुझे पता है कि ये प्यार व्यार ऐसे ही होता है जो रिश्ते नाते नहीं देखता। अतः तू इस सबके लिए बिलकुल भी मत घबराना और ना ही फालतू का टेंशन लेना। तू सुन रही है न गुड़िया???"

"हम्म।" उधर से निधी का बहुत ही धीमा स्वर उभरा।
"मुझे इस बात के लिए माफ़ कर दे गुड़िया।" आशा ने सहसा दुखी भाव से कहा___"कि मैने तेरी डायरी को छुआ और उसे खोल कर पढ़ा भी। किन्तु ये सब मैने जान बूझ कर नहीं किया था। बल्कि वो सब अंजाने में हो गया था। दरअसल जब मैं तेरे पास सुबह तेरे लिए चाय लेकर आई तो देखा कि तू उस डायरी को अपने दोनो हाॅथों से पकड़े सो रही थी। मुझे लगा ऐसी डायरी तेरी पढ़ाई में तो उपयोग होती नहीं होगी तो फिर ये कैसी डायरी है तथा क्या है इसमें जिसे इस तरह लिये तू सो रही है? बस यही जानने के लिए मैने उस डायरी को तेरे हाॅथों से लेकर उसे खोला। किन्तु मुझे उसमें वो सब पढ़ने को मिल गया। लेकिन गुड़िया मैने और कुछ नहीं पढ़ा उसमें। शुरू का ही पेज पढ़ा था और वो ग़ज़ल पढ़ी थी जिसमें तूने लिखा था___"बताना भी नहीं मुमकिन, हाॅ ऐसे ही कुछ लिखा था उसमे।"

"क..क्या आप सचमुच इस सबके लिए मुझसे नाराज़ या गुस्सा नहीं हैं दीदी?" उधर से निधी का अभी भी धीमा ही स्वर उभरा था।
"हाॅ गुड़िया।" आशा ने सहसा मुस्कुरा कर कहा___"मैं तुझसे बिलकुल भी नाराज़ नहीं हूॅ। भला मैं तुझसे नाराज़ हो भी कैसे सकती हूॅ पागल? किन्तु हाॅ इस बात से दुखी ज़रूर हूॅ कि सबको अपनी शरारतों से परेशान करने वाली मेरी ये लाडली बहन ने एकाएक ही खुद को उदासी की चादर में ढाॅफ लिया है।"

"वक्त और हालात हमेशा एक जैसे तो नहीं हो सकते न दीदी।" उधर से निधी ने अजीब भाव से कहा___"इंसान के जीवन में कभी खुशी तो कभी ग़म वाला समय तो आता जाता ही रहता है। मेरे पास इसके पहले वैसे ही वक्त और हालात थे जबकि मैं खुश रहा करती थी और शरारतें करने के सिवा कुछ नहीं आता था मुझे। मगर अब हालात बदल गए हैं। ईश्वर को मेरा खुश रहना और मेरा वो शरारतें करना शायद अच्छा नहीं लगा तभी तो उसने मुझे दिल का रोगी बना दिया। एक ऐसे इंसान के लिए उसने मेरे दिल में प्रेम का बीज बो दिया जो इंसान मेरा हो ही नहीं सकता। ख़ैर जाने दीजिए दीदी, मैने बहुत हद तक खुद को समझा लिया है। हलाॅकि ये मुश्किल तो था मगर कोई बात नहीं। इतना तो अब सहना ही पड़ेगा न मुझे। मैने भी सोचा कि ऐसे इंसान को पाने की ज़िद भी क्या करना जो मुझे मिल ही न सके और जिसकी वजह से सब कुछ नेस्तनाबूत भी हो जाए।"

निधी की इन बातों ने आशा को जैसे एकदम से ख़ामोश सा कर दिया। उसे समझ न आया कि वो उसकी बातों का क्या जवाब दे? किन्तु इतना एहसास ज़रूर हो गया उसे कि जिस लड़की को सब लोग बच्ची समझते हैं तथा जिसके बारे में ये सोचते हैं कि उसे दुनियादारी की अभी कोई समझ नहीं है वो लड़की दरअसल अब बहुत बड़ी हो गई है। कदाचित इतनी बड़ी कि अपनी इस छोटी सी ऊम्र में भी वो बड़े बड़े बुजुर्गों तथा बड़े बड़े ज्ञानियों को नसीहतें दे सकती है। क्या प्रेम ऐसा भी होता है जो अचानक ही इंसान को इतना बड़ा और इतना बड़ा ज्ञानी बना देता है जिसके चलते वो यथार्थ और ज्ञान की बातें करने लगे?

"आपने ऐसा कह कर यकीनन मेरे दिल को राहत पहुॅचाई है दीदी।" उधर से निधी कह रही थी___"वरना ये सच है कि मैं इस सबसे बहुत ही ज्यादा घबरा गई थी और चिंतित भी हो गई थी। मैं नहीं चाहती दीदी कि मेरी वजह से सब कुछ खत्म हो जाए और अगर सच में आपने किसी से वो सब कुछ बता दिया होता तो ये भी सच है कि फिर मेरे पास आत्म हत्या कर लेने के सिवा कोई दूसरा चारा न रह जाता। मैं किसी को अपना मुह न दिखा पाती और ना ही एक पल के लिए भी वैसी जलालत भरी ज़िंदगी जी पाती।"

"चुप कर तू।" आशा की ऑखों से ऑसुओं का जैसे बाॅध सा फूट पड़ा, बुरी तरह तड़प कर बोली___"ख़बरदार जो दुबारा फिर कभी आत्महत्या वाली बात की। तू सोच भी कैसे सकती है पागल कि मैं किसी से उस बारे में कुछ कह देती? इतनी पत्थर दिल नहीं हूॅ गुड़िया। मेरे सीने में भी तेरी तरह एक ऐसा दिल धड़कता है जिसमें किसी के लिए बेपनाह मोहब्बत जाने कब से अपना आशियां बना कर रहती है।"

"य..ये आप क्या कह रही हैं दीदी??" उधर से निधी का बुरी तरह चौंका हुआ स्वर उभरा___"आप भी किसी से मोहब्बत करती हैं?"
"क्यों गुड़िया?" आशा ने सहसा फीकी मुस्कान के साथ कहा___"क्या मुझे किसी से मोहब्बत नहीं हो सकती? क्या मेरे अंदर एहसास नहीं हैं? अरे मेरे सीने में भी तो ऐसा दिल है जो धड़कना जानता है रे।"

"मेरा वो मतलब नहीं था दीदी।" उधर से निधी ने मानो सकपकाते हुए कहा___"मैं तो बस आपकी इस बात से हैरान हुई थी कि आप भी किसी से मोहब्बत करती हैं। वैसे कौन है वो शख्स जिसे मेरी प्यारी सी दीदी मोहब्बत करती है? मुझे भी तो बताइये न दीदी।"

"बहुत मुश्किल है गुड़िया।" आशा के चेहरे पर एकाएक ही कई सारे भाव आ कर ठहर गए, बोली___"बस यूॅ समझ ले कि एकतरफा मोहब्बत है ये।"
"मोहब्बत तो है न दीदी।" उधर से निधी ने कहा__"इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता कि वो एकतरफ से है या फिर दोनो तरफ से। मोहब्बत तो मोहब्बत ही होती है चाहे वो किसी की भी तरफ से हो। आप बताइये न किससे मोहब्बत करती हैं आप? मुझे ये जानने की बड़ी तीब्र उत्सुकता हो रही है प्लीज़ बताइये न।"

"मुझे मजबूर मत कर गुड़िया।" आशा की आवाज़ जैसे काॅप सी गई, बोली___"वर्षों से दबे उस मोहब्बत के एहसास को दबा ही रहने दे। क्योंकि मुझे इतने की ही आदत पड़ चुकी है और इतने से दर्द को ही सहने की हिम्मत है मुझमे। वो अगर बाहर आ गई तो फिर मैं उसे और उसके असहनीय दर्द को सम्हाल नहीं पाऊॅगी। इस लिए मुझसे मत पूछ मेरी गुड़िया। मैं तुझे ही क्या उस शख्स को भी नहीं बता सकती जिसे टूट टूट कर वर्षों से चाहा है मैने।"

"हाय दीदी।" उधर से निधी की मानो सिसकी सी निकल गई। कदाचित ऐसा इस लिए क्योंकि दोनो एक ही रोग के रोगी थे। ख़ैर निधी ने कहा___"ये कैसा रोग है दीदी? ये कैसा दर्द है, ये कैसा एहसास है? न जी पाते हैं और ना ही मर पाते हैं। ना चाहते हुए भी उससे फाॅसला कर लेते हैं जिसके बिना पल भी रह नहीं पाते हैं।"

"जाने दे गुड़िया।" आशा के अंदर से एक हूक सी उठी थी जिसने उसे हिला कर रख दिया था, बोली___"ऐसी बातें मत कर वरना इनका असर ऐसा होता है कि फिर एक पल भी सुकून नहीं मिलता। इस लिए ज़रूरी है कि हम अपने मन को अथवा दिल को बहला लें किसी तरह।"

"हाॅ ये तो सच कहा आपने।" निधी ने कहा___"हमें तो हर हाल में खुद को तथा अपने दिल को बहलाना ही होता है। किन्तु अगर आप बताना नहीं चाहती हैं तो कोई बात नहीं। अगर कभी दिल करे कि आपको अपने दिल के बोझ को हल्का करना है तो मुझसे वो सब बता कर ज़रूर खुद को हल्का कर लीजिएगा।"
"चल बाय।" आशा ने गहरी साॅस ली___"अपना ख़याल रखना और हाॅ अपने चेहरे की ये उदासी को कम करने की कोशिश भी करना।"

आशा की इस बात पर उधर से निधी ने हाॅ कहा और फिर काल कट गई। बाथरूम के अंदर एक तरफ की दीवार पर लगे आईने के सामने खड़ी आशा काल कट होने के बाद कुछ देर तक आईने में खुद को देखती रही और फिर सहसा उसके लब थरथराते हुए हिले___"तुझे कैसे बता दूॅ गुड़िया कि मेरे दिल में किस शख्स के प्रति बेपनाह मोहब्बत है? अगर तुझे पता चल जाए कि मुझे भी उसी से मोहब्बत है जिससे तुझे है तो बहुत हद तक संभव है कि तेरा दिल टूट जाएगा और फिर तू सब कुछ जानते समझते हुए भी खुद को बिखर जाने से रोंक नहीं पाएगी।"

आईने में दिख रहे अपने अक्श को एकटक देखती हुई आशा की ऑखों से एकाएक ही ऑसुओं के दो मोती छलकते हुए नीचे बाथरूम के फर्स पर गिर कर मानो फना हो गए। फिर उसने जैसे खुद को सम्हाला और मोबाइल को एक तरफ रख कर उसने वाश बेसिन पर लगे नलके को चला कर उसके पानी से अपने चेहरे को धोना शुरू कर दिया। उसके बाद उसने एक तरफ हैंगर पर टॅगे टाॅवेल से अपने धुले हुए चेहरे को पोंछा और फिर मोबाइल लेकर बाथरूम से बाहर आ गई।
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उधर नीलम व सोनम की तरफ।
नीलम व सोनम जीप की पिछली सीट पर बैठी हुई थी। जीप का ऊपरी हिस्सा यानी कि छत नहीं थी। इस लिए चलते हुए खुली हवा लग रही थी दोनो को तथा इधर उधर का नज़ारा भी स्पष्ट दिख रहा था। जैसा कि पहले भी बताया जा चुका है कि हल्दीपुर गाॅव आस पास के सभी गाॅव से बड़ा था तथा आस पास के कई गाॅवों की पंचायत भी हल्दीपुर ही थी। अजय सिंह का परिवार हल्दीपुर गाॅव का सबसे ज्यादा संपन्न परिवार था।

नीलम की विराज से पहले ही सारी बातें मैसेज के द्वारा हो चुकी थी। विराज ने उसे प्लान भी समझा दिया था तथा ये भी कहा था कि गाॅव तथा खेत घूमने का बहाना करके निकलना हवेली से किन्तु गाॅव में घूमना ही बस नहीं है बल्कि ऐसी जगह आना है जिस तरफ गाॅव की सीमा का आख़िरी छोर हो तथा जिस तरफ से दूसरे गाॅव यानी कि चिमनी के पहले वाले गाॅव माधोपुर की तरफ जाने वाले रास्ते की तरफ आना है। ऐसा इस लिए कि नीलम व सोनम को गाॅव तथा खेत देखने जाने की जानकारी अगर प्रतिमा द्वारा अजय सिंह को होती है तो वो ज़रूर अपने ससुर जगमोहन सिंह को गुनगुन छोंड़ कर वापस सीघ्रता से मुख्य रास्ते से आएगा। ये भी संभव है कि वो अपने साथ मंत्री के आदमियों को अथवा कुछ ऐसे किराए के टट्टुओं को ले आए जो उन्हें रास्ते में ही मिल जाएॅ तो मुसीबत हो जाए।

इन्हीं सब बातों को सोच कर ही विराज ने नीलम से माधोपुर की तरफ ही आने को कहा था। हल्दीपुर के बगल से ही माधोपुर था उसके बाद चिमनी गाॅव। उधर विराज खुद भी गुनगुन के दस किलो मीटर पहले ही बसे गाॅव रेवती से मुख्य मार्ग से न आ कर घूमते हुए इस तरफ आने वाला था।

नीलम व सोनम दोनो ही ऐसा ज़ाहिर कर रही थीं जैसे सचमुच ही वो दोनो गाॅव देखने निकली हैं हवेली से। विराज ने ये भी कहा था कि संभव है उनके पीछे उसकी माॅम ने और भी ऐसे आदमी लगा दिये हों जो उसकी गतिविधी को नोट करते हुए छुप कर उनका पीछा कर रहे हों। अतः इस बात का ख़याल रखें और अगर वो दिखें तो उनकी वस्तुस्थित से उसे ज़रूर अवगत कराए किन्तु सावधानी से।

नीलम सोनम को बताती जा रही थी कि जब वो छोटी थी तो वो इन जगहों पर कभी कभी घूमने आया करती थी। दोनो ही बातें कर रहीं थी। अब तक दोनो ही गाॅव की सीमा के बाहर की तरफ आ गईं थी। तभी एक जगह ड्राइवर ने जीप को रोंक दिया। ये देख कर दोनो ही चौंकी।

"मैडम अब किधर जाना है?" ड्राइवर ने पीछे पलट कर उन दोनो से पूछा था___"आप तो जानती हैं कि हम दोनो खुद ही यहाॅ पर नये हैं इस लिए हमें रास्तों का कुछ पता नहीं है। अतः आपको जहाॅ जहाॅ घूमना हो हमें बता दीजिए। वैसे आपके भाई शिवा जी ने कहा था कि आपको ये सारा गाॅव देखना है और फिर खेतों की तरफ भी जाना है। इस लिए अब आप बताइये कि यहाॅ से किधर चलना है?"

ड्राइवर की बात सुन कर नीलम के दिमाग़ की बत्ती एकाएक ही रौशन हो उठी और वह मन ही मन ये सोच कर खुशी से झूम उठी कि ड्राइवर को तो यहाॅ के बारे में कुछ पता ही नहीं है। यानी वो अगर चाहे तो कहीं भी चलने को कह सकती है उसे। मगर एकाएक ही उसका मन मयूर ये सोच कर मुरझा भी गया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि इन दोनो को शिवा ने ऐसा ही कुछ पूछने के लिए कहा हो। ताकि मैं अपने तरीके से उसे उस तरफ चलने को कहूॅ जिस तरफ जाने से उसे किसी प्रकार की कोई शंका हो और फिर ये शिवा को मैसेज द्वारा इस सबके बारे में सूचित भी कर दे।

नीलम को अपना ये ख़याल जॅचा। इस लिए उसने ऐसा वैसा कुछ भी करने का ख़याल दिमाग़ से निकाल दिया। किन्तु ये भी उसे पता था कि माधोपुर की तरफ ही उसे जाना है। अतः वो उस तरफ जाने के लिए कोई बहाना मन ही मन में सोचने लगी।

"अरे नीलम।" सहसा सोनम एक तरफ हाॅथ का इशारा करते हुए बोल पड़ी___"वो उस तरफ क्या है?"
"क..कहाॅ दीदी?" नीलम ने भी जल्दी से उस तरफ देखते हुए पूछा जिस तरफ सोनम हाथ से इशारा कर रही थी।

"अरे वहाॅ पर।" सोनम ने अपने उठे हुए हाॅथ को हल्का सा मूवमेंट देते हुए कहा___"उस तरफ देख न। ऐसा लगता है जैसे वहाॅ पर कोई बड़ा सा मंदिर है।"
"अच्छा वो।" नीलम को जैसे दिख गया___"हाॅ वो मंदिर ही है। यहाॅ पर वही एक मंदिर है जो कि काफी प्राचीन मंदिर है। हर साल वहाॅ पर मेला भी लगता है।"

"मुझे उस मंदिर को देखना है नीलम।" सोनम ने सहसा जैसे रिक्वेस्ट की___"मुझे मंदिर में देवी देवताओं के दर्शन करना बहुत अच्छा लगता है। प्लीज इनसे कहो न कि ये मंदिर की तरफ चलें।"

"ठीक है दीदी।" नीलम का मन मयूर एकाएक ही खुशी से फिर झूम उठा था। दरअसल वो मंदिर बगल के ही गाॅव माधोपुर में ही स्थित था। मंदिर को देख कर सोनम ने उसे देखने की इच्छा ज़ाहिर की तो नीलम ये सोच कर खुश हो गई कि अब उस तरफ जाने का शानदार बहाना भी मिल गया है। अतः उसने तुरंत ही ड्राइवर से कहा कि जीप को मंदिर की तरफ मोड़ ले।

ड्राइवर ने ऐसा ही किया। उसे इस सबमें कुछ भी अटपटा नहीं लगा इस लिए वो भी बिना कोई भाव चेहरे पर लाए जीप को मोड़ दिया उस तरफ। इधर जैसे ही जीप माधोपुर में स्थित उस मंदिर की तरफ मुड़ कर चली तो सहसा सोनम ने बड़े ही रहस्यमय ढंग से नीलम की तरफ देखा।

नीलम उसके इस तरह देखने से अभी बुरी तरह चौंकने ही वाली थी कि सहसा उसे ख़याल आया कि ड्राइवर के पास ही लगे बैकमिरर से ड्राइवर उसे चौंकते हुए देख भी सकता है। अतः उसने जल्दी से अपने चेहरे के भावों को छुपाया और फिर सोनम को सामान्य लहजे में ही बताने लगी कि एक बार वो भी उस मंदिर में मेले के समय गई थी।

नीलम आस पास का नज़ारा देखते हुए ही थोड़ी थोड़ी देर के अंतराल में पीछे भी देख रही थी। विराज ने उससे कहा था कि संभव है कि उसके पीछे और भी कुछ आदमी छुप कर आएॅ। अतः उन्हीं को देख रही थी नीलम, मगर अभी तक उसे ऐसा कुछ नज़र न आया था। ये देख कर उसे लगने लगता कि विराज बेवजह ही इतनी दूर की सोच रहा है। जबकि यहाॅ तो ऐसा कुछ भी नहीं है और अगर होता तो क्या ऐसा कुछ नज़र न आता?

नीलम के एक हाॅथ में पहले से ही मोबाइल था। अतः उसने सामान्य तरीके से ही किन्तु सामने की सीट पर बैठे दोनो ही आदमियों की नज़रों को बचा कर मोबाइल की तरफ देखा। (यहाॅ पर मेरे पाठक पूछ सकते हैं कि सामने की सीट पर बैठे वो दोनो आदमियों की पीठ नीलम व सोनम की तरफ थी तो भला नीलम का उनकी नज़रों से बचाने की बात कहाॅ से आ गई तो दोस्तो इसका जवाब ये है कि ड्राइवर के पास ही बैकमिरर लगा होता है जिसमें वो पीछे की चीज़ें देखता है। यहाॅ पर मैं उसी की बात कर रहा हूॅ)। ख़ैर, नीलम ने बड़ी सावधानी से मोबाइल में व्हाट्सएप खोला और फिर विराज को मैसेज करके बताया कि वो अब कहाॅ पहुॅचने वाली है।
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विराज का ख़याल एकदम सही था। अजय सिंह को जब प्रतिमा के द्वारा ये पता चला कि नीलम व सोनम गाॅव तथा खेत देखने गईं हैं तो वो सचमुच गुनगुन से चल दिया था। किन्तु चलने से पहले उसने अपने एक ऐसे आदमी को भी फोन किया जो गुनगुन में ही रहता था तथा कई तरह के ग़ैर कानूनी धंधे करता था। उस आदमी का नाम फिरोज़ खान था। अजय सिंह ने फिरोज़ को फोन करके उसे सारी सिचुएशन से अवगत कराया और फिर तुरंत ही अपने गुर्गों को लेकर चलने को कहा था।

इस वक्त अजय सिंह और फिरोज़ खान दोनो एक ही कार में थे जबकि फिरोज़ खान के बाॅकी सभी गुर्गे पीछे अलग अलग तीन जीपों में थे। सभी के हाॅथों में हथियार के रूप में मौत का सामान था। अजय सिंह के पास भी एक रिवाल्वर था जो कि उसने फिरोज़ खान से लिया था।

"तो ये वही लड़का है ठाकुर साहब।" अजय सिंह की कार में पैसेंजर सीट पर बैठा फिरोज़ खान बोला___"जो आपका भतीजा है तथा जिसने आपका जीना हराम कर रखा है। आपने बताया था कि कैसे इसने आपकी फैक्ट्री में आग लगा दी थी जिसमें आपका बहुत तगड़ा नुकसान हुआ था?"

"हाॅ खान।" अजय सिंह सहसा दाॅत पीसते हुए कह उठा___"ये वही हरामज़ादा है और अब तो उसकी इतनी हिम्मत बढ़ गई है कि इसने पिछले दिन हमें अपने नकली सीबीआई के आदमियों के जाल में फाॅस कर कैद भी कर लिया था। मेरी बड़ी बेटी जो पुलिस में इंस्पेक्टर है उसे भी इस कम्बख्त ने अपनी तरफ मिला लिया है। ख़ैर, मुझे अपनी औलाद से ये उम्मीद नहीं थी खान कि वो अपने ही माॅ बाप के खिलाफ़ हो जाएगी। जैसे औलाद अगर बिगड़ी हुई हो और वो हज़ार पाप कर डाले तब भी माॅ बाप के लिए वो प्रिय ही होती है और वो उसके अपराधों को क्षमा कर देते हैं उसी तरह क्या औलाद नहीं कर सकती? मैंने जो कुछ भी किया था सिर्फ अपने बीवी बच्चों के उज्वल भविष्य के लिए ही किया था। साला अब तक तो उसी पाप के पैसों को खुश होकर उड़ाती रही थी वो। मगर आज उसे हमसे तथा हमारे उसी पैसों से नफ़रत हो गई? खान, ये मैं जानता हूॅ कि बेटी की इस बगावत से मुझे कितनी तक़लीफ हुई है। उसे इस बात का ज़रा भी ख़याल नहीं आया कि उसके द्वारा ये सब करने से उसके माॅ बाप पर क्या गुज़रेगी?"

"ये सब उस लड़के की वजह से ही हुआ है ठाकुर साहब।" फिरोज़ खान ने कठोरता से कहा___"उसी ने रितू बिटिया को बरगलाया होगा। वरना वो ऐसा कभी न करती।"

"नहीं खान।" अजय सिंह ने मजबूती से अपने सिर को इंकार में हिलाते हुए कहा___"ये सब उस लड़के के बरगलाने से नहीं हुआ है। क्योंकि इसके पहले मेरे साथ साथ मेरे बच्चे भी उस विराज से नफ़रत करते थे और उसकी तथा उसके परिवार में किसी की शक्ल तक देखना पसंद नहीं करते थे। ये सब तो किसी और ही वजह से हुआ है खान। दरअसल मेरी दोनों ही बेटियों को सच्चाई की राह पर चलना शुरू से ही पसंद था। उन्हें ये पता नहीं था कि उनका बाप वास्तव में कैसा है? ख़ैर, इस मामले में मेरा बेटा मुझ पर गया है। मुझे खुशी है कि वो मेरे जैसा है और सच कहूॅ तो मुझे उस पर नाज़ भी है। मगर अब मैने भी फैंसला कर लिया है कि मेरे इस दिल की आग तभी शान्त होगी जब उस विराज के साथ साथ मैं अपनी उन दोनो बेटियों को भी अपने हाथों से बद से बदतर मौत दूॅगा।"

फिरोज़ खान देखता रह गया अजय सिंह को। वो देख रहा था कि इस वक्त अजय सिंह के चेहरे पर ज़लज़ले के से भाव थे। यकीनन उसके अंदर गुस्सा, क्रोध व अपमान ये तीनो ही अपने पूरे जलाल पर थे।

"ख़ैर छोंड़िये इस बात को।" फिरोज़ खान ने जैसे पहलू बदला___"ये बताइये कि उन सबको पकड़ने के लिए क्या प्लानिंग की है आपने?"

"प्लानिंग में कोई कमी नहीं है खान।" अजय सिंह ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"मेरी बीवी के पास भेजा फ्राई कर देने वाला दिमाग़ है। उसने मुझे बताया था कि उसने उन दोनो के साथ पहले तो सामान्य सिचुएशन बनाए रखने के लिए दो ऐसे आदमियों को जीप में भेजा है जो तगड़े फाइटर कहे जाते हैं। उनके जाने के बाद उसने अलग से उन जैसे ही आदमियों की एक टीम बना कर उनके पीछे इस तरह लगा दिया है कि नीलम व सोनम को वो टीम नज़र ही न आए। उस टीम का काम ये है कि अगर सच में विराज नीलम व सोनम को लेने आ रहा है तो वो यकीनन पहले नीलम व सोनम के साथ गए उन दो आदमियों से भिड़ेगा। अतः हमारी टीम के वो लोग बैकअप के रूप में अपने आदमियों की मदद करेंगे। यानी इस सिचुएशन को देखते हुए ही हमारी दूसरी टीम के आदमी जल्द ही वहाॅ पहुॅच जाएॅगे। मेरी बीवी प्रतिमा के अनुसार अगर बैकअप के रूप में विराज ने भी कोई ऐसा इंतजाम किया होगा तो यकीनन वो भी विराज का पलड़ा कमज़ोर पड़ते देख कर उन सबके बीच टूट पड़ेंगे। उस सूरत में यहाॅ से हम सब भी पहुॅच जाएॅगे और विराज तथा उसके आदमियों का काम तमाम करेंगे। हम लोग एक तरह से डबल बैकअप के रूप में होंगे अपने आदमियों के पीछे। मुझे यकीन है कि इतना कुछ होने के बाद विराज एण्ड पार्टी ज्यादा देर तक हमारा सामना नहीं कर पाएगी और अंततः उन्हें हमारे सामने खुद को सरेण्डर करना ही पड़ेगा।"

"ओह।" फिरोज़ खान प्रभावित लहजे में बोला___"प्लान तो यकीनन आपका शानदार है। सचमुच इस सूरत में आपका वो भतीजा और उसके सभी आदमी घुटने टेक देंगे।"

"बिलकुल।" अजय सिंह ने कहा___"इस सबके बाद विराज और उसके साथ साथ मेरी दोनो बेटियाॅ मेरे कब्जे में होंगी। तब मैं उस हरामी के पिल्ले से अपने साथ हुए इतने भारी नुकसान का गिन गिन के बदला लूॅगा। मुम्बई में सुरक्षित बैठी उसकी माॅ बहन को यहाॅ मेरे पास मेरे पैरों तले आना ही पड़ेगा। उसके बाद तो दुनियाॅ देखेगी कि ठाकुर अजय सिंह के साथ ऐसा दुस्साहस करने वालों का क्या अंजाम होता है?"

"ऐसा ही होगा ठाकुर साहब।" फिरोज़ खान ने दृढ़ता से कहा___"आपने जिस तरह से प्लान बनाया है उस हिसाब से यकीनन आपका वो भतीजा तथा आपकी दोनो बेटियाॅ आपके चंगुल में आ जाएॅगी। मैं अपने साथ अपने लगभग बीस के आस पास आदमी लाया हूॅ। सबके सब आधुनिक हथियारों से लैश हैं। अगर ये सच है कि आपका वो भतीजा उन दोनो को लेने आ रहा है तो यकीनन तगड़ी मुठभेड़ होगी और उस मुठभेड़ में वो लोग बुरी तरह आपसे मात खाएॅगे।"

"इस बार वो हरामी की औलाद नहीं बचेगा खान।" अजय सिंह ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा___"इस बार वो मेरी मुट्ठी में ज़रूर कैद होगा और पिंजरे में कैद परिंदे की तरह फड़फड़ाएगा भी। साले की ऐसी दुर्गति करूॅगा कि मौत और रहम दोनो की ही भीख मागेगा मुझसे।"

अजय सिंह की इस बात पर फिरोज़ खान बोला तो कुछ नहीं किन्तु उसके जबड़े भिंच गए थे, जैसे जंग के लिए पूरी तरह से तैयार हो गया हो। इसके साथ ही कार के अंदर ख़ामोशी छा गई। कार हल्दीपुर की तरफ तेज़ी से बढ़ी जा रही थी। उनके पीछे पीछे तीन तीन जीपों में सवार फिरोज़ खान के गुर्गे भी चले आ रहे थे।
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कहानी अभी जारी है दोस्तो,,,,,,,,,,
Fabulous and mind blowing update shubham bro. Really awesome.:toohappy:

Maine pichhle update ke review me kaha tha ki mujhe samajh nahi aa raha ki update ke bare me kya bolu. Bas yahi kah sakta hu ki sab kuch lajawaab hai.:biggboss:

Aapka writing style hi itna jabardast hai ki maje me dooba rahta hai padhne wala. Har baat har seen ko ko aap itna soch samajh kar aur behtareen dhang se likhte hain ki laga karta hai ki bas ye update kabhi khatam hi na ho. Ek film hoti hai jo aankho ke samne chalti rahti hai:biggboss:

Mohabbat me doobe kirdaro ka aur unke andar ki feelings ka itna gahraayi se varnan karna itna asaan nahi hota. Ye to wahi likh sakta hai jo khud mohabbat ke dard se dooba huwa ho.:biggboss:

Nidhi, Asha, and Shiva ye sab is wakt mohabbat ke mare nazar aa rahe hain. Bhagwan jane inka kya hoga. Agar main galat nahi hu to abhi aur bhi jane kitne is mohabbat me giraftaar honge.:biggboss:

Asha ne nidhi ko samhaal liya warna sach me wo kuch galat kar baithti pol khul jane ke dar se. :biggboss:

Dimag ke is khel me chaaro taraf se shatranj ki tarah jaal buna ja raha hai. Dekhiye kiska kya anjaam hota hai:biggboss:

Superbbb bro emotions se bharpoor tha ye update.:celebconf::celebconf:
 

VIKRANT

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अब आगे___________

इधर हम तीनों भी कार में बैठे पूरी रफ्तार से माधोपुर की तरफ बढ़े चले जा रहे थे। हम तीनो के बीच काफी देर से ख़ामोशी छाई हुई थी। कदाचित आने वाले समय के बारे में सब कोई सोचे जा रहा था। कुछ देर पहले रितू दीदी ने फोन पर किसी से बात की थी। उनकी बातें ऐसी थी जो उस वक्त मुझे बिलकुल भी समझ में नहीं आई थी। मैने फोन करके शेखर के मौसा जी से उनकी करेंट लोकेशन के बारे में पूछा था। उन्होंने बताया कि वो हमारे पीछे ही आ रहे हैं किन्तु फाॅसला बना कर।

अभी हमारे बीच ख़ामोशी ही थी कि तभी रितू दीदी का मोबाइल फोन बज उठा। रितू दीदी ने मोबाइल की स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नंबर को देखा और फिर काल रिसीव कर मोबाइल कान से लगा लिया।

"हाॅ प्रकाश बोलो।" फिर रितू दीदी ने कहा___"क्या ख़बर है वहाॅ की?"
"..............।" उधर से कुछ कहा गया।
"ओह आई सी।" रितू दीदी के होठों पर मुस्कान फैल गई___"कितने लोग हैं वो?"
"...............।" उधर से फिर कुछ कहा गया।
"चलो अच्छी बात है प्रकाश।" रितू दीदी ने कहा__"और हाॅ बहुत बहुत धन्यवाद इस ख़बर के लिए। चलो रखती हूॅ, तुम ज़रा होशियार रहना।"

"क्या बात है दीदी?" काल कट होते ही मैने उनकी तरफ देखते हुए पूछा___"किसका फोन था?"
"तुझे बताया था न मैने।" रितू दीदी ने कहा___"कि हवेली में प्रकाश नाम का एक आदमी सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करता है। ये उसी का फोन था। उसने बताया कि माॅम ने नीलम व सोनम के हवेली से निकलने के कुछ देर बाद ही दो जीपों में लगभग दस आदमी उन दोनो के पीछे लगाया है। इसका मतलब मेरा अंदाज़ा सही था। माॅम ने तुम्हारी सोच को ताड़ते हुए बैकअप के रूप में नीलम व सोनम के पीछे कुछ और आदमियों को लगा दिया है।"

"हाॅ इस बात का अंदेशा तो मुझे भी था दीदी।" मैने सामने रास्ते की तरफ देखते हुए कहा___"मुझे अंदेशा था कि बड़ी माॅ ऐसा कर सकती हैं। लेकिन फिक्र की कोई बात नहीं है दीदी। हमारे पास भी बैकअप के रूप में आदमियों की कोई कमी नहीं है।"

"तुम मेरे डैड को भूल गए राज।" रितू दीदी ने कहा___"माॅम ने इस बारे में ज़रूर बताया होगा और अब वो भी आ ही रहे होंगे गुनगुन से। संभव है कि उनके साथ भी कुछ आदमी हों।"

"बिलकुल हो सकते हैं दीदी।" मैने कहा___"इसी लिए तो मैं सीधे रास्ते से नहीं बल्कि माधोपुर वाले रास्ते की तरफ जा रहा हूॅ ताकि इस रास्ते में उनसे हमारा सामना ही न हो।"

"इसके पहले मैने जिससे फोन पर बात की थी।" रितू दीदी ने कहा___"वो एक मुखबिर था। जिसे मैने शुरू से ही डैड के पीछे लगाया हुआ था। ताकि वो डैड की हर गतिविधी के बारे में मुझे सूचित करता रहे। ख़ैर उसने बताया कि डैड मुख्य रास्ते से ही आ रहे हैं किन्तु उनके साथ काफी सारे लोग भी हैं जो आधुनिक हथियारों से लैश हैं। मतलब साफ है कि वो खुद भी पूरी तैयारी के साथ आ रहे हैं। अब तुम समझ सकते हो कि इस सबसे उनकी स्थित हमारी स्थित से ज्यादा मजबूत व भारी है।"

"अगर ऐसा है।" सहसा पिछली की शीट पर बैठा आदित्य बोल पड़ा___"तो यकीनन हम उनके बीच फॅस जाएॅगे। इस लिए हमें कुछ ऐसा इंतजाम करना पड़ेगा जिससे हमारी स्थित उनकी स्थित से बेहतर हो जाए तथा हम उन्हें हरा कर नीलम व सोनम को सुरक्षित वहाॅ से ला सकें।"

"फिक्र मत करो आदित्य।" रितू दीदी ने कहा___"उसका भी इंतजाम मैने कर दिया है और वो इंतजाम ऐसा होगा कि डैड ही क्या कोई भी कुछ नहीं कर पाएॅगा और हम नीलम व सोनम को सहज ही उनके चंगुल से छुड़ा लाएॅगे।"

"ये तो कमाल ही हो गया दीदी।" मैने मुस्कुराते कहा___"अगर ऐसा है तो फिर यकीनन फिक्र की कोई बात नहीं है। मगर सवाल ये है कि आपने ऐसा क्या हैरतअंगेज इंतजाम किया है जिसके तहत हम बड़ी सहजता से नीलम व सोनम दीदी को ले आएॅगे?"

"सब्र कर मेरे प्यारे भाई।" रितू दीदी ने मुस्कुरा कर कहा__"और बस देखता जा कि क्या होता है।"
"इसका मतलब कि आप।" मैने हॅस कर कहा___"इस बारे में हमें न बता कर हम दोनो के लिए सस्पेन्स क्रियेट कर रही हैं?"

"तू अपने आपको बड़ा तीसमारखां समझता है न।" रितू दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा___"तो फिर खुद ही सोच ले कि मैने ऐसा क्या इंतजाम किया हो सकता है कि उसकी वजह से सब कुछ सहज ही हो जाएगा। इतना ही नहीं बल्कि उस वजह से कोई कुछ कर भी नहीं पाएगा।"

"ओहो ये तो चैलेन्ज देने वाली बात हो गई दीदी।" मैंने ऑखें फैलाते हुए उन्हें देखा।
"हाॅ तो क्या हुआ?" रितू दीदी भी मुस्कुराई___"अगर तू इसे चैलेन्ज समझता है तो यही सही। अब सोच कर बता कि ऐसा क्या हो सकता है इंतजाम?"

"जाने दीजिए दीदी।" मैने नाटकीय अंदाज़ से कहा___"खामखां आपके दिमाग़ का कचरा हो जाएगा। इस लिए बेहतर है कि आप मुझसे ना ही पूछो।"
"ओये चल चल हवा आने दे।" रितू दीदी ने मानो घुड़की सी दी मुझे___"बड़ा आया मेरे दिमाग़ का कचरा करने वाला। भूल मत कि मैं उसकी बेटी हूॅ जिसके दिमाग़ को
तू खुद भी सलाम करता है।"

रितू दीदी की इस बात से मैं एकदम से चुप हो गया। सच ही तो कहा था उन्होंने। बड़ी माॅ के दिमाग़ को यकीनन सलाम करने का दिल करता था मेरा। मैं हमेशा सोचता था कि अगर उनका यही शातिर दिमाग़ अच्छाई के लिए उपयोग होता तो कितनी ऊॅची शख्सियत बन सकती थीं वो। ये उनका दुर्भाग्य था या फिर वो ऐसी ही थी। किन्तु एक बात सच थी कि अपने पति से बेहद प्यार करती थीं वो। कदाचित यही वजह है कि उन्होंने पति के कहने पर हर वो काम किया था जो कि हर तरह से अनैतिक व ग़लत था।

"क्या हुआ बच्चे?" मुझे सोचों में गुम देख सहसा रितू दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा___"मेरी माॅम का सुनकर हवा निकल गई क्या तेरी? होता है बेटा, ऐसा होता है कि ऐसी हस्तियों का ज़िक्र होते ही अच्छे अच्छों की हवा निकल जाती है। तू तो फिर भी अभी बच्चा है।"

"ये कुछ ज्यादा ही नहीं हो गया दीदी?" मैने मासूम सी शक्ल बना कर कहा।
"अब हो गया तो हो गया न।" रितू दीदी मेरे द्वारा अपनी मासूम सी शक्ल बना लेने पर मुस्कुराईं____"कम से कम तू मेरे माॅम का सुन कर अब ज्यादा उड़ेगा तो नहीं।"

"ये सच है दीदी।" मैने सहसा गंभीर होकर कहा___"कि वो भले ही बुराई का साथ दे रही हैं मगर जाने क्यों उनके लिए मेरे दिल में इज्ज़त आज भी है। हलाॅकि उन्होंने मेरी माॅ के साथ बुरा करने में कोई कसर नहीं छोंड़ी थी। फिर भी ये मेरी माॅ के दिये हुए अच्छे संस्कार ही हैं कि मैं आज भी अपने से बड़ों को सम्मान देता हूॅ, भले ही उन लोगों ने हमारे साथ कितना ही बुरा किया है।"

"मैं जानती हूॅ राज।" रितू दीदी भी गंभीर हो गई___"और मुझे इस बात की बेहद खुशी भी है कि तेरे और तेरी माॅ बहन के साथ भले ही बद से बदतर सुलूक किया था मेरे माॅम डैड ने मगर इसके बाद भी तू उनकी इज्ज़त करता है। तेरी यही खूबी तुझे सबसे अच्छा और सबसे महान बनाती है। मुझे ईश्वर से इस बात की शिकायत ज़रूर है कि क्यों उसने मुझे ऐसे इंसान की बेटी बनाया जो सिर्फ और सिर्फ पाप करना जानते हैं, मगर इस बात का उसी ईश्वर से धन्यवाद भी करती हूॅ कि उसने मुझे तेरे जैसा नेक दिल भाई दिया। आज तुझे पा कर मैं बेहद खुश हूॅ राज। मुझे पता है कि इस जंग का अंत में अंजाम क्या होगा? यानी कि अधर्म व पाप करने वाले मेरे माॅम डैड तथा मेरा वो कमीना भाई अंत में अपने अधर्म व पाप कर्म करने के चलते या तो मारे जाएॅगे या फिर हमेशा के लिए जेल की सलाखों के पीछे कैद होकर रह जाएॅगे। मुझे इस सबका दुख तो यकीनन होगा भाई क्योंकि आख़िर वो सब हैं तो मेरे अपने ही मगर ये सोच कर खुद को तसल्ली भी दूॅगी कि बुरा करने वालों की नियति तो यही होती है न। उनके बदले मुझे तू मिला है और तेरे साथ साथ गौरी चाची, करुणा चाची तथा गुड़िया जैसी बहन मिल जाएॅगी। ये सब भी तो मेरे अपने ही हैं।"

"छोंड़िये इन सब बातों को दीदी।" मैने माहौल को सामान्य बनाने की गरज़ से कहा____"मुझे भी तो इस सबका दुख होगा मगर आप भी जानती हैं कि इस सबके अलावा दूसरा कोई चारा नहीं है। इस लिए इन सब बातों पर ज्यादा सोच विचार मत कीजिए।"

अभी मैंने ये कहा ही था कि सहसा मेरे मोबाइल फोन पर मैसेज टोन बजी। जिससे मेरा ध्यान सामने ही डैसबोर्ड के पास रखे अपने मोबाइल पर गया। मैने रितू दीदी को मोबाइल उठा कर देखने को कहा। उन्होंने मेरा फोन उठाया और उसमे आए हुए मैसेज को देखने लगीं।

"नीलम का मैसेज है राज।" फिर रितू दीदी ने मुझसे कहा___"उसने मैसेज में बताया है कि वो सोनम के साथ ही माधोपुर वाले मंदिर की तरफ जा रही है।"
"ओह ये तो अच्छी बात है।" मैने कहा___"इसका मतलब उस तरफ जाने का उसने कोई न कोई बहाना बनाया होगा। किन्तु ये भी सच है कि उसके पीछे पीछे ही कोई उनके पीछे भी लगा होगा। ख़ैर ये तो होगा ही, हमें अब उन सबसे निपटने के लिए तैयार हो जाना चाहिए। हम बस पहुॅचने ही वाले हैं उस जगह।"

"क्या हम उसी तरफ जा रहे हैं राज?" पीछे से आदित्य ने सामने की तरफ इशारा करते हुए कहा___"जहाॅ पर वो ऊॅचा सा मंदिर का गुंबद दिखाई दे रहा है?"
"हाॅ दोस्त।" मैने कहा___"हम माधोपुर के उसी मंदिर के पास जा रहे हैं। लेकिन वहाॅ पर एक समस्या भी हो सकती है।"

"समस्या???" आदित्य के साथ साथ रितू दीदी भी बोल पड़ी थीं___"कैसी समस्या हो सकती है?"
"समस्या यही होगी कि हम सब मंदिर के पास ही इकट्ठा होंगे।" मैने कहा___"और मंदिर के पास ही हम सबका आमना सामना होगा। ये भी सच है कि हम सबके बीच इस लड़ाई में खून ख़राबा भी होगा जो कि मंदिर के पास नहीं होना चाहिए।"

"अरे ये तो अच्छी बात है राज।" रितू दीदी ने कहा___"देवी माॅ के सामने ही हर चीज़ का फैंसला होगा और यकीनन हमारी ही जीत होगी। यानी कि अंततः हम नीलम व सोनम को लेकर ही आएॅगे। भला देवी माॅ के सामने अधर्म व पाप की जीत कैसे हो सकेगी?"

"मैं रितू की इस बात से सहमत हूॅ भाई।" पीछे से आदित्य ने कहा___"दूसरी बात ये संयोग भी देवी माॅ ने बनाया है कि हम सब उनके सामने ही एकत्रित होंगे और हर चीज़ का फैंसला वो खुद करेंगी।"

"हाॅ यार।" मैने सहसा खुशी से कहा___"इस तरफ तो मेरा ध्यान ही नहीं था। सच कहा है बड़े बड़े संतों ने कि इस संसार में सब कुछ ईश्वर की ही मर्ज़ी से होता है। वो हमें वहीं ले जाता है जहाॅ के बारे में हमने सोचा भी नहीं होता है। सोचने वाली बात है न दीदी, मैने तो नीलम से सिर्फ यही सोच कर वहाॅ पर आने को कहा था कि सबसे निपटने के बाद हम उसी रास्ते से वापस भी हो जाएॅगे ताकि बड़े पापा से हमारा सामना ही न होने पाए। इस बारे में तो हमने सोचा ही नहीं था हर चीज़ का फैंसला करने के लिए वहाॅ पर देवी माॅ भी मौजूद होंगी। भला उनकी इच्छा के बग़ैर कोई काम कैसे हो सकता था?"

"अब हमारी जीत यकीनन होगी राज।" आदित्य ने कहा___"देवी माॅ को भी पता है कि हम धर्म की राह पर हैं। अतः उनके आशीर्वाद से सब कुछ हमारे ही हक़ में होगा और इसका मुझे पूरा विश्वास है।"

"हम सबको विश्वास है आदित्य।" रितू दीदी ने कहा__"इस लिए अब हम सब देवी माॅ को मन ही मन प्रणाम करके काम का श्रीगणेश करेंगे। बोलो जय माता दी।"
"जय माता दी।" दीदी के कहने पर हम सबने एक साथ जय माता दी कहा और फिर मैं एक्सीलेटर पर अपने पैर को और ज़ोर से दबा दिया। परिणामस्वरूप कार की रफ्तार और भी तेज़ हो गई।

कुछ ही देर में हमारी कार माधोपुर गाॅव के बाहर बने उस देवी माॅ के मंदिर के पास पहुॅच गई। उसके पहले ही मैने रितू दीदी तथा आदित्य को कार से उतार दिया था। ऐसा इस लिए कि हम तीनों का एक साथ रहना ठीक नहीं था। उससे हम एक साथ एक ही जगह पर फॅस सकते थे। इस लिए मैने रितू दीदी व आदित्य को मंदिर से लगभग पचास मीटर पहले ही उतार दिया था और खुद कार लेकर मंदिर की तरफ बढ़ चला था। मुम्बई से जब मैं चला था तो जगदीश अंकल ने मुझे तीन कवच दिये थे जो कि बुलेट प्रूफ थे। इस वक्त हम तीनो ने ही अपने कपड़ों के अंदर उस बुलेटप्रूफ कवच को पहना हुआ था। ये जगदीश अंकल की दूरदर्शिता का ही कमाल था कि उन्होंने हम लोगों की सुरक्षा का ऐसा इंतजाम किया था।

माधोपुर गाॅव में लगभग पचास या साठ के आस पास मकान बने हुए थे। देवी माॅ का ये प्राचीन मंदिर गाॅव के बाहर बना हुआ था। मंदिर से लगभग पचास या साठ मीटर के फासले से ही गाॅव की आबादी शुरू होती थी। कहने का मतलब ये कि हमारी इस मुठभेड़ में गाॅव के लोगों पर कोई आॅच नहीं आ सकती थी। ये हमारे लिए सबसे अच्छी बात थी। आस पास का इलाका दूर दूर हरे भरे तथा ऊॅचे ऊॅचे पेड़ पौधों से सुशोभित था। ये सभी गाॅव चारो तरफ के पहाड़ों से घिरे हुए थे। एक नहर थी जो कि माधोपुर और हल्दीपुर के बीच से निकलती थी। चिमनी की तरफ जाते जाते ये नहर दो भागों में बॅट जाती थी। जिसका एक भाग चिमनी की तरफ तथा दूसरा भाग एक अन्य गाॅव गुमटी की तरफ जाती थी किन्तु गुमटी के बाहरी इलाके की तरफ से। नहर के होने का सबसे बड़ा फायदा ये था कि यहाॅ के सभी गाॅवों में पानी का अभाव नहीं था। सभी गाॅवों में खेतों की सिंचाई के लिए इसी नहर के पानी का उपयोग होता था। जिसका नतीजा ये होता था कि आस पास के सभी गाॅवों में फसल की पैदावार अच्छी खासी होती थी।

मंदिर के नज़दीक ही मंदिर के पिछले हिस्से की तरफ मैने कार को रोंक दिया था। मैने देख लिया था कि मंदिर के सामने की तरफ एक ऐसी जीप खड़ी थी जिसके ऊपर छत नहीं थी। वो जीप यकीनन वही थी जिसमें नीलम व सोनम आई हुई थीं। चारो तरफ इस समय ख़ामोशी तो थी किन्तु मैं जानता था कि ये ख़ामोशी कुछ ही समय की मेहमान थी यहाॅ पर। ख़ैर, मैने देवी माॅ को प्रणाम किया और फिर धड़कते हुए दिल के साथ मंदिर के सामने की तरफ आहिस्ता आहिस्ता बढ़ने लगा।हलाॅकि मैं पूरी तरह सतर्क था तथा किसी भी खतरे से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार था।

आस पास का बहुत ही बारीकी से जायजा लेते हुए मैं मंदिर की दीवार से सट कर चलते हुए मंदिर के सामने वाले भाग की तरफ बढ़ रहा था। ये मेरे जीवन का पहला अवसर था जबकि मैं इस तरह की सिचुएशन को फेस करने वाला था और आने वाले समय की सिचुएशन को भी। थोड़ी ही देर बाद मुझे अपनी जगह पर रुक जाना पड़ा। क्योंकि मैने देखा कि मंदिर के सामने किन्तु कुछ ही दूरी पर वो जीप खड़ी थी तथा उस जीप के पास ही वो दो हट्टे कट्टे आदमी भी खड़े थे जिन्हें बड़ी माॅ ने नीलम व सोनम की सुरक्षा के रूप में भेजा था। वो दोनो आपस में बातें तो कर रहे थे किन्तु उनके हाव भाव से नज़र आ रहा था कि वो किसी भी खतरे से निपटने के लिए भी तैयार थे। यानी कि उन्हें बताया गया था कि ऐसा कुछ होगा।

मैं जानता था कि मेरे पास ज्यादा समय नहीं है क्योंकि अभी कुछ ही समय में यहाॅ पर आदमियों की फौज भी नज़र आने लगेगी। ये भी संभव था कि आ ही गई हो। हलाॅकि मैने आस पास बहुत बारीकी से देख चुका था किन्तु मुझे ऐसा कुछ नज़र नहीं आया था जिससे पता चले कि यहाॅ पर कोई और भी है।

मैने अपने पैन्ट के पीछे बेल्ट पर फॅसे रिवाल्वर को निकाला। उसके बाद मैने अपनी जैकेट से एक ऐसी चीज़ निकाली जिसे साइलेंसर कहा जाता है। मैने उस साइलेंसर को रिवाल्वर की नाल पर फिट किया। मैं चाहता था कि जो काम छुप कर हो जाए उसे अंजाम दे देना चाहिए। हलाॅकि ये तो तय था कि खुल कर मुकाबला करना ही पड़ेगा। मगर मेरी सोच थी कि दुश्मन को मौका ही क्यों दिया जाए?

रिवाल्वर की नाल पर साइलेंसर फिट करने के बाद मैने उन दोनो की तरफ देखते हुए अपने रिवाल्वर वाले हाॅथ को हवा में उठाया और फिर एक आदमी की गर्दन पर निशाना साध कर ट्रिगर दबा दिया। परिणाम स्वरूप हल्की सी पिट् की आवाज़ हुई और एक अजीब सी चीज़ पलक झपकते ही उनमें से एक आदमी की गर्दन पर जा लगी। मैने इतने पर ही बस नहीं किया बल्कि उसी पल रिवाल्वर का रुख मोड़ कर फिर से ट्रिगर दबा दिया था। दो पल के अंदर ही वो दोनो आदमी लहराते हुए जीप के पास ही कच्ची ज़मीन पर भरभरा कर गिरे और शान्त पड़ गए। उन दोनो की गर्दन से कोई खून नहीं बह रहा था बल्कि एक एक सुई चुभी हुई थी। आप समझ सकते हैं कि वो सुई क्या हो सकती थी। मेरा इरादा उन्हें जान से मारने का हर्गिज़ भी नहीं था बल्कि सिर्फ बेहोश करना था। इस लिए वो दोनो अब सुई के प्रभाव से कम से कम दो से तीन घंटे के लिए बेहोश हो चुके थे।

मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि आते ही मुझे इस तरह सहजता से पहले पड़ाव पर ही कामयाबी मिल जाएगी। मगर सबूत चूॅकि सामने ही ज़मीन पर बेहोश पड़े थे इस लिए यकीन करना ही था। उन दोनो के बेहोश ओ जाने के बाद मैने एक बार पुनः आस पास का बारीकी से जायजा लिया और फिर मंदिर के सामने की तरफ बढ़ चला किन्तौ सावधानी से ही। अभी मैं बढ़ ही रहा था कि तभी मंदिर के अंदर से घंटे के बजने की दो बार आवाज़ आई। मैं समझ गया कि नीलम व सोनम दीदी मंदिर के अंदर हैं।

मैं आस पास देखते हुए तेज़ी से आगे बढ़ा और मंदिर के जस्ट बगल पर ही सीढ़ियों के पास आ गया। एक बार पुनः आस पास का जायजा लिया और फिर मैने पैन्ट की जेब में हाॅथ डाला तो चौंक पड़ा। मैं मोबाइल कार में ही भूल आया था। इस वक्त मैं नीलम को मैसेज कर बोलना चाहता था कि वो दोनो मंदिर के बाहर आ जाएॅ और जल्दी से मेरे साथ चलें यहाॅ से। मगर मेरा मोबाइल कार में ही रह गया था। ख़ैर, मैने सोचा चलो कोई बात नहीं मंदिर के अंदर जाकर देवी माॅ के दर्शन भी तो करना चाहिए।

मैं तेज़ी से सीढ़ियाॅ चढ़ते हुए मंदिर के मुख्य दरवाजे पर पहुॅचा तो देखा कि मंदिर के अंदर नीलम व सोनम दोनो ही देवी माॅ की प्रतिमा के सामने अपने दोनो हाॅथ जोड़े खड़ी थी। ये देख कर मैं मुस्कुराया और फिर तुरंत ही मंदिर के दरवाजे की चौखट को छूकर पहले प्रणाम किया और फिर चौखट को पार गया।

अंदर आते ही मैने नीलम व सोनम दीदी के पीछे ही खड़े होकर तथा अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए देवी माॅ को असीम श्रद्धा से प्रणाम किया। मगर अगले ही पल मेरे मुख से घुटी घुटी सी चीख़ निकल गई साथ ही मैं पीछे की तरफ लहराते हुए चौखट के बाहर आकर पीठ के बल ज़मीन पर गिरा। मेरी ऑखों के सामने कुछ पल के लिए अॅधेरा सा छा गया। मेरी नाॅक से खून बहने लगा था तथा मेरे मुख के बाएॅ साइड की तरफ होंठों से भी खून बहने लगा था। किसी ने बड़ी ज़ोर से मुझ पर वार किया था।

अभी मैं अपने होशो हवाश में आते हुए ज़मीन से उठ ही रहा था कि तभी मेरे पेट में फिर से बड़े ज़ोर का प्रहार हुआ। जिसके प्रभाव से मैं किसी फुटबाल की तरह हवा में उड़ता हुआ सीधा सीढ़ियों के नीचे आ कर गिरा। इन कुछ ही पलों ये सब इतना तेज़ी से हुआ था कि मुझे कुछ समझने का मौका ही नहीं मिल पाया था। सीढ़ियों के ऊपरी भाग से सीधा नीचे कच्ची ज़मीन पर गिरने से एक बार फिर से मैं बुरी तरह दर्द से बिलबिला उठा था। किन्तु अब तक मैं समझ गया था कि ये एक जाल था जिसमें मैं फॅसाया गया था।

कच्ची ज़मीन से मैं उछल कर खड़ा हो गया और सीढ़ियों के ऊपर की तरफ देखा ही था कि पीछे से किसी ने मेरी पीठ पर ज़बरदस्त वार किया। मैं इसके लिए बिलकुल भी तैयार नहीं था और ना ही मुझे इसकी उम्मीद थी। अतः इस बार मुह के बल उसी कच्ची ज़मीन पर गिरा। मुझे एकाएक ही भारी खतरे का आभास हुआ और मैने अपनी संपूर्ण ताकत लगाते हुए फिर से उछल कर खड़ा हुआ। अभी मैं खड़ा ही हुआ था कि पलक झपकते ही मुझे नीचे भी झुक जाना पड़ा वरना पीछे की तरफ से जिसने वार किया था उसकी फ्लाइंग किक सीधा मेरी गर्दन पर पड़ती और यकीनन मेरी गर्दन की हड्डी टूट जाती।

मैने झुकने के साथ ही अपनी एक टाॅग को बिजली की सी तेज़ी से चलाया था, नतीजा ये हुआ कि फ्लाइंग किक मारने वाले का जो अकेला पैर ज़मीन पर टिका था वो ज़मीन से उखड़ गया और वो भरभरा कर ज़मीन पर गिरा। मैं ये देख कर आश्चर्य चकित रह गया कि ये तो वही आदमी था जिसे अभी थोड़ी ही देर पहले मैंने सुई के द्वारा बेहोश किया था। मुझे समझ न आया कि ये बेहोशी से होशो हवाश में कैसे आ गया। मैने पलट कर दूसरे आदमी की तरफ देखा तो वो भी एक तरफ पोजीशन लिए खड़ा मुस्कुरा रहा था। ये देख कर मेरे आश्चर्य की कोई सीमा न रही। साला ये दोनो चीज़ क्या थे कि इन पर उस बेहोश करने वाली सुई का भी असर नहीं हुआ?

सच तो ये था कि मैं कुछ भी नहीं समझ पा रहा था। एक तो इन दोनो पर सुई का असर न हुआ दूसरे मंदिर के अंदर से मुझे इस तरह बाहर लगभग फैंक दिया गया। सबसकुछ इतनी तेज़ी से हुआ कि मुझे कुछ समझ ही नहीं आया था। किन्तु अब मैं समझ चुका था कि ये सब क्या था। मतलब साफ था कि बड़ी माॅ के द्वारा भेजा गया बैकअप यहाॅ पहुॅच चुका था और उसके कुछ आदमी मंदिर के अंदर छुपे मेरे आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। मैं जैसे ही मंदिर के अंदर गया और देवी माॅ को प्रणाम करने लगा वैसे ही उन लोगों ने मुझ पर वार कर दिया था। इधर जिन्हें मैं बेहोश समझ रहा था वो होश में होते हुए मेरे इस तरह नीचे आ जाने का इंतज़ार कर रहे थे। उसके बाद जैसे ही मैं नीचे गिरा वैसे ही इन दोनो ने भी मुझ पर हमला कर दिया। कहने का मतलब ये कि कहीं से भी मुझे सम्हलने का या सोचने का मौका ही नहीं मिल पाया था।

अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कि सहसा मुझे रितू दीदी व आदित्य का ख़याल आया। मुझे उन दोनो की बेहद चिंता होने लगी। कहीं वो दोनो भी न फॅस गए हों। मैने मन ही मन देवी माॅ से कहा____"ये सब क्या है माॅ? इन लोगों ने मुझे आपको ठीक से प्रणाम भी नहीं करने दिया और आपने भी इन्हें रोंका नहीं? ऐसी तो उम्मींद नहीं मुझे? ख़ैर कोई बात नहीं, मुझे अपना आशीर्वाद दीजिए कि मैं इन सबका मुकाबला कर सकूॅ और अपने सभी चाहने वालों को यहाॅ से सुरक्षित ले जा सकूॅ।"

"कैसी लगी बच्चे?" तभी मेरे कानों में ऊपर सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए एक हट्टे कट्टे आदमी की आवाज़ पड़ी, वो मुस्कुराते हुए कह रहा था___"ज्यादा चोंट तो नहीं आई न तुम्हें? वैसे मैं हैरान हूॅ कि तुम जैसे मामूली से लड़के के लिए हमारे बाॅस इतना ज्यादा परेशान थे। सचमुच यकीन नहीं होता कि तुम जैसा पिद्दी सा लड़का हमारे बाॅस की नींदें हराम किये हुए था। जबकि तुम्हें तो जब चाहे चीटियों की तरह मसला जा सकता था। बट डोन्ट वरी, जो पहले नहीं हुआ वो अब हो जाएगा।"

"कहते हैं ऊॅट जब तक पहाड़ के नीचे नहीं आता।" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"तब तक उसे यही लगता है कि वो इस संसार में सबसे ऊॅचा है और उसकी बराबरी कोई कर ही नहीं सकता। वही हाल तुम्हारा है भाड़े के कुत्ते। अपने बाॅस लोगों के सामने कुत्तों की तरह दुम हिलाने वाले कुत्तो इस भरम में न रहो कि तुम लोगों ने मुझे इस तरह फॅसा कर कोई तीर मार लिया है। बल्कि खेल तो अब शुरू होगा।"

"काफी कड़वी ज़बान है तेरी लड़के।" सीढ़ियों से नीचे उतर आए उस आदमी ने सहसा दाॅत पीसते हुए गुस्से से कहा____"अगर बाॅस ने मना न किया होता तो यहीं पर तुझे चीटी की तरह मसल कर तेरी जीवन लीला समाप्त कर देता।"

"अगर एक ही मर्द की औलाद है।" मैने भी तैश में आकर कहा___"तो अकेले मुझसे मुकाबला कर, फिर देखना कि चींटी की तरह कौन मसला जाता है?"
"ओहो ऐसा क्या?" वो आदमी ब्यंगात्मक भाव से ऑखों को फैलाते हुए बोला___"चल ठीक है, तेरी ये इच्छा तो पूरी करनी ही चाहिए।" ये कहने के साथ ही उसने अपने बाॅकी साथियों की तरफ देखते हुए कहा___"तुम में से कोई भी इस लड़के को हाॅथ नहीं लगाएगा। ये मुझे दिखाना चाहता है कि चींटी की तरह हम दोनो में से कौन मसला जाता है। अतः अब मुकाबला सिर्फ हम दोनों के बीच ही होगा।"

उसके सभी साथियों सहमति में सिर हिला दिया। सबके होठों पर जानदार मुस्कान थी। जैसे उन्हें मेरी मूर्खता पर हॅसी आ रही हो। हलाॅकि मुझे भी पता था ये समय इस तरह के मुकाबले का बिलकुल भी नहीं है, मगर तैश में आकर मेरी ज़बान से निकल ही गया था। अतः अब बात ज़बान की थी तथा अपने स्वाभिमान की। समय ऐसा था कि अपनी जगह रुकने वाला नहीं था। हर पल के बीतने के साथ इस बात की भी संभावना बढ़ती जा रही थी कि जो यहाॅ नहीं पहुॅचे हैं वो किसी भी वक्त पहुॅच सकते हैं और फिर हालात और भी विकट हो जाएॅगे।

इधर बाॅकी सब आदमियों की सहमति मिलते ही मैने पोजीशन ले ली। जबकि छिसके साथ मेरा मुकाबला होने जा रहा था उसने झटके से अपने जिस्म के ऊपरी हिस्से के कपड़े निकाल कर अपने एक आदमी की तरफ उछाल दिया। सहसा मेरी नज़र ऊपर मंदिर के दरवाजे के बाहर खड़ी नीलम व सोनम पर पड़ी। वो दोनो ही दोनो तरफ से एक एक आदमी से घिरी हुई खड़ी थीं। उनके चेहरों पर इस वक्त डरे सहमे से भाव कायम थे। मैं उन दोनो की तरफ देख कर अजीब तरह से मुस्कुराया और फिर अपने प्रितद्वंदी की तरफ देखने लगा।

मैने देखा कि उसके जिस्म से कपड़ा हटते ही उसका हट्टा कट्टा जिस्म नुमायाॅ हो उठा। कोई आम इंसान उसकी इतनी खतरनाक बाॅडी देख कर ही डर जाए। उससे लड़ने का ख़याल तो वो आने वाले सात जन्मों में भी न करे। ख़ैर उसने अपने दोनो हाॅथो को अगल बगल उसे ऊपर उठा कर मुझे अपने डोले दिखाए। जैसे कह रहा हो कि देख बच्चे जितने मेरे ये डोले हैं उतने में तो तेरे जिस्म का कोई हिस्सा भी फिट नहीं बैठता। ये देख कर मैं मुस्कुराया और फिर अपने दोनो हाॅथों के इशारे से उसे अपनी तरफ मुकाबले के लिए बुलाया।

मेरे ऐसा करने पर उसके चेहरे के भाव एकदम से बदले और वो पलक झपकते ही गुस्से में डूबा दिखाई देने लगा। कदाचित अपने डोले दिखा कर वो मुझे डराना चाहता था मगर जब मैं उसे डरा हुआ नज़र नहीं आया तो उसे गुस्सा आ गया था।

"अपने भगवान को याद कर ले बच्चे।" फिर उसने मेरी तरफ खतरनाक भाव से बढ़ते हुए कहा___"उनसे दुवा कर कि तेरे जिस्म की हड्डियाॅ सलामत रहें।"
"ये डाॅयालग मैं भी बोल सकता हूॅ तुम्हारे लिए।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"पर ये सोच कर नहीं बोला कि फालतू की डींगें मारना मेरी फितरत नहीं है।"

मेरी ये बात सुन कर वो जैसे बुरी तरह तिलमिला गया था। मुझे पता था कि उसके सामने मैं कुछ भी नहीं हूॅ। अगर मैं एक बार भी उसके फौलादी शिकंजे में फॅस गया तो फिर शायद भगवान ही मालिक होगा मेरा। मगर मुझे खुद पर और अपने गुरू की सिखाई हुई कला पर पूर्ण विश्वास था।

वो पूरे वेग से मेरी तरफ बढ़ा और अपने दाहिने हाॅथ को भी उसी वेग से मुझ पर चलाया था। मैं फुर्ती से नीचे झुका मगर झुकते ही मेरे हलक से चीख निकल गई। कारण उसने हाॅथ चलाने के बाद ही अपने दाहिने पैर को उठाकर उसका घुटना भी चला दिया था जो सीधा मेरे झुके हुए चेहरे से टकराया था। मैं उछलते हुए सीधा हुआ ही था कि उसने बिजली की सी फुर्ती से घूम कर मेरे सीने पर फ्लाइंग किक जमा दी। नतीजा ये हुआ कि मेरे हलक से ज़ोर की हिचकी निकली और मैं पीछे की तरफ हवा में लहराते हुए ही नीचे कच्ची ज़मीन पर चारो खाने चित्त जा गिरा। गिरते ही मेरी ऑखों के सामने अनगिनत तारे नाॅच गए। कुछ पल के लिए तो ऑखों के सामने अॅधेरा भी छा गया। प्रहार इतना ज़बरदस्त था कि मुझसे तुरंत उठा न गया। सीने में बड़ी असहनीय पीड़ा महसूस हुई मुझे। मेरे कानो में नीलम व सोनम की चीखें भी टकराई। कदाचित मुझे इस तरह गिरते देख वो बेहर डर गई थी और मुझे कुछ हो जाने की आशंका से वो बुरी तरह चीखी थीं।

सहसा मेरी नज़र मेरे नज़दीक ही पहुॅच चुके उस आदमी पर पड़ी। मेरे क़रीब पहुॅचते ही उसने अपने पैर को उठाया और ज़मीन पर चित्त गिरे मेरे पेट की तरफ तीब्र वेग से चलाया। मैं बिजली की सी फुर्ती से कई पलटा खाते हुए दूसरी तरफ हो गया तथा साथ ही उछल कर खड़ा भी हो गया। ये अलग बात है इस तरह उछल कर खड़े होने से अचानक ही मुझे अपने सीने पर पीड़ा का एहसास हुआ। मैं समझ चुका था कि अगर ये आदमी इसी तरह मुझ पर और दो चार प्रहार करने में सफल हो गया तो यकीनन मेरा काम तमाम हो जाना है। अतः अब मैं उससे पूरी तरह सतर्कता से मुकाबला करने के लिए तैयार हो गया।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

दोस्तो, आप सबके सामने अपडेट हाज़िर है।
हलाॅकि मैंने अपडेट को ऐसी जगह पर रोंक दिया है जहाॅ पर रोंक दिये जाने से यकीनन आप सबका मूड ख़राब हो गया होगा। मगर क्या करता दोस्तो??

एक तो मेगा अपडेट जितना लम्बा होना चाहिए था उतना हो चुका था दूसरे इसके आगे का कुछ सस्पेन्स भी रखना था। आख़िर आप सबके मन में इस बात को जानने की उत्सुकता तो बनी ही रहनी चाहिए कि इसके आगे विराज या उसके साथ साथ बाॅकी सबका क्या हुआ???

अतः आशा करता हूॅ कि आप सब मेरी बातों को समझते हुए नाराज़ नहीं होंगे बल्कि अपडेट का आनंद लेंगे और फिर हमेशा की तरह अपनी प्रतिक्रिया देकर बताएॅगे कि ये अपडेट कैसा लगा अथवा इसमें कहाॅ पर क्या कमी नज़र आई आपको??
Ye kya ho gaya bro???????????
Pratima ne ajay singh se kaha hi tha ki viraj ki soch se chaar kadam aage ka soch kar chalna hoga. Yaha par pratima aur ajay ne yahi kiya hai. Viraj aakhir fas hi gaya jaal me.:biggboss:

Ritu and Aditya ka kahi pata nahi hai. Ya fir kahi chhup kar viraj ko maar khate dekh rahe hain. Ye to galat baat hai na bro. Unko to maidaan me aa kar viraj ki help karni hi chahiye thi.:biggboss:

Abhi ladaai khatm nahi huyi hai. Dekhte hain viraj kaise us fighter se aage ka mukabla karta hai. Kahi aisa na ho ki der ho jaye aur ajay singh bhi pahuch jaye yaha. Wo jarur shaam daam dand bhed ki neeti apnayega aur viraj ke sath sath sabko pakad lega.:biggboss:

Vaise ritu ne kaha tha ki usne kuch aisa intjaam kiya hai ki koi kuch kar hi nahi payega aur wo neelam sonam ko asaani se le jayege. Agar aisa hai to bahut hi badhiya hai bro. Lekin ye dekhne wali baat hai ki usne intjaam kya kiya hai aisa.:biggboss:

Ab to ye sab janne ki badi jaldi hai bro. Plz jaldi se next update de do. Ab to intjar nahi ho sakta.:celebconf:
:bsanta::bsanta::bsanta::bsanta::bsanta::bsanta::bsanta:
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
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हैलो दोस्तो, कैसे हैं आप सब????? आशा करता हूॅ कि आप सब बहुत अच्छे से ही होंगे।

यहाॅ पर मैं आप सबसे ये जानना चाहता हूॅ कि कहानी को मैं इसी तरह से लिखते हुए समाप्ति की ओर ले जाऊॅ या फिर मुख्य मुख्य बातें बताते हुए इसे जल्दी से समाप्त कर दूॅ????

यहाॅ के कुछ रीडर्स का कहना है कि कहानी में कुछ बातें मैं बार बार रिपीट कर रहा हूॅ जिससे कहानी वहीं पर रुकी हुई है और आगे बढ़ ही नहीं रही है। हलाॅकि जहाॅ तक मेरा मानना है तो वो यही है कि मैं सभी किरदारों को लेकर तथा सभी किरदारों के साथ न्याय करते हुए ही कहानी को आगे बढ़ा रहा हूॅ। मुझे समझ नहीं आता कि उन रीडर्स को ऐसा क्यों लगता है कि कहानी में एक ही बात बार बार रिपीट हो रही है और कहानी आगे नहीं बढ़ रही???

जिन रीडर्स को लास्ट के अपडेट का अंतिम सीन पसंद नहीं आया उनसे मैं यही कहना चाहता हूॅ कि सांसारिक जीवन में हमेशा वही नहीं होता जो हम चाहते हैं। ये बात तो हर कोई जानता है कि हम इंसान हैं और हमारी बागडोर ऊपर बैठे ईश्वर के हाॅथ में है। हमारे लिए कब क्या अच्छा रहेगा ये सब उस ऊपर वाले से बेहतर कोई नहीं जानता। दूसरी बात जल्दबाज़ी में कोई राय बना लेना भी कोई बुद्धिमानी नहीं होती। उन्हें समझना चाहिए कि मुकाबला तो अभी शुरू हुआ है। अतः संभव है कि अंत में जीत उसी की हो जिसे जीतते हुए आप देखना चाहते हैं।

अंत में यही कहूॅगा कि आप सब अपनी अपनी राय से मुझे अवगत कराएॅ। आप लोग जिस तरह चाहेंगे मैं उसी तरह से कहानी को समाप्त कर दूॅगा।

!! धन्यवाद !!
 

Hellohoney

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हैलो दोस्तो, कैसे हैं आप सब????? आशा करता हूॅ कि आप सब बहुत अच्छे से ही होंगे।

यहाॅ पर मैं आप सबसे ये जानना चाहता हूॅ कि कहानी को मैं इसी तरह से लिखते हुए समाप्ति की ओर ले जाऊॅ या फिर मुख्य मुख्य बातें बताते हुए इसे जल्दी से समाप्त कर दूॅ????

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जिन रीडर्स को लास्ट के अपडेट का अंतिम सीन पसंद नहीं आया उनसे मैं यही कहना चाहता हूॅ कि सांसारिक जीवन में हमेशा वही नहीं होता जो हम चाहते हैं। ये बात तो हर कोई जानता है कि हम इंसान हैं और हमारी बागडोर ऊपर बैठे ईश्वर के हाॅथ में है। हमारे लिए कब क्या अच्छा रहेगा ये सब उस ऊपर वाले से बेहतर कोई नहीं जानता। दूसरी बात जल्दबाज़ी में कोई राय बना लेना भी कोई बुद्धिमानी नहीं होती। उन्हें समझना चाहिए कि मुकाबला तो अभी शुरू हुआ है। अतः संभव है कि अंत में जीत उसी की हो जिसे जीतते हुए आप देखना चाहते हैं।

अंत में यही कहूॅगा कि आप सब अपनी अपनी राय से मुझे अवगत कराएॅ। आप लोग जिस तरह चाहेंगे मैं उसी तरह से कहानी को समाप्त कर दूॅगा।

!! धन्यवाद !!
Bhai aapne jesa socha he vesa likiye har ek aadmi ki ray alag alag hoti he eska ek udaharn ye he ki koi chai pitahe koi kofhi to kisiko dudh pina pasand he or aapne sahi kahahe jesa ham sochtehe kabhi usse ulta bhi hojatahe jesa upar vala chahe lekin jitti hamesa sachai hi he uparvale ke gharme der he andher nahi or jo kuch bhi hotahe usme bhi kuch bhalai chupi hotihe jo hamko dikhti nahi lekin badme pata chalta he baki aap jesa chahe likhe koi honaho me aapke sath hu or hamesa rahunga waiting for next update.
 

Jay Sutar

अहं ब्रह्मास्मि
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bohot hi badhiya update tha bhai...............aur aapne update aise moment pe aa ke rok diya ke ab intazaar karna bhi mushkil ho gaya hai........waise ane wale update mein pata chalega ke apna hero kya kay kar sakta hai apni sisters ko bachane keliye.......kaise wo ab is situation se nikalne ka rasta dhundta hai................waise lagta hai ritu aur aditya bhi next update mein apna action dikhayenge...........agar aisa hua toh aur bhi maja aayega.......har baar hero ke jeet se bhi maja nahi aata kabhi kabhi hero ki is update jaisi situation bhi maja dilati hai hai...............kya ritu kaa baap bhi ab vaha pohoch jayega coz ritu ke maa ne bheje hue aadmi un logo ke thikane ka pata zaroor usko denge aur vo ritu ke baap ko...........waise aasha bhi raj se pyar karti hai.........yeh to naya twist aa gaya story mein kya vo kabhi nidhi ko bata payegi ke vo bhi raj se pyar karti hai............well aage aane wale updates bohot sara action hone wala hai.........story aur bhi ab intense ho gayi hai............aur ha bhai story ko aap apne hi style mein puri kare.....well let's see what happens next.
PEACE:applause:.
 

Janu002

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हैलो दोस्तो, कैसे हैं आप सब????? आशा करता हूॅ कि आप सब बहुत अच्छे से ही होंगे।

यहाॅ पर मैं आप सबसे ये जानना चाहता हूॅ कि कहानी को मैं इसी तरह से लिखते हुए समाप्ति की ओर ले जाऊॅ या फिर मुख्य मुख्य बातें बताते हुए इसे जल्दी से समाप्त कर दूॅ????

यहाॅ के कुछ रीडर्स का कहना है कि कहानी में कुछ बातें मैं बार बार रिपीट कर रहा हूॅ जिससे कहानी वहीं पर रुकी हुई है और आगे बढ़ ही नहीं रही है। हलाॅकि जहाॅ तक मेरा मानना है तो वो यही है कि मैं सभी किरदारों को लेकर तथा सभी किरदारों के साथ न्याय करते हुए ही कहानी को आगे बढ़ा रहा हूॅ। मुझे समझ नहीं आता कि उन रीडर्स को ऐसा क्यों लगता है कि कहानी में एक ही बात बार बार रिपीट हो रही है और कहानी आगे नहीं बढ़ रही???

जिन रीडर्स को लास्ट के अपडेट का अंतिम सीन पसंद नहीं आया उनसे मैं यही कहना चाहता हूॅ कि सांसारिक जीवन में हमेशा वही नहीं होता जो हम चाहते हैं। ये बात तो हर कोई जानता है कि हम इंसान हैं और हमारी बागडोर ऊपर बैठे ईश्वर के हाॅथ में है। हमारे लिए कब क्या अच्छा रहेगा ये सब उस ऊपर वाले से बेहतर कोई नहीं जानता। दूसरी बात जल्दबाज़ी में कोई राय बना लेना भी कोई बुद्धिमानी नहीं होती। उन्हें समझना चाहिए कि मुकाबला तो अभी शुरू हुआ है। अतः संभव है कि अंत में जीत उसी की हो जिसे जीतते हुए आप देखना चाहते हैं।

अंत में यही कहूॅगा कि आप सब अपनी अपनी राय से मुझे अवगत कराएॅ। आप लोग जिस तरह चाहेंगे मैं उसी तरह से कहानी को समाप्त कर दूॅगा।

!! धन्यवाद !!
जैसे आपको कहानी के हिसाब से ठीक लगे वैसे ही आगे लिखो पाठकों को क्या पता कि आपने कथानक में आगे क्या सोचा हुआ l
 

Mr. Perfect

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हैलो दोस्तो, कैसे हैं आप सब????? आशा करता हूॅ कि आप सब बहुत अच्छे से ही होंगे।

यहाॅ पर मैं आप सबसे ये जानना चाहता हूॅ कि कहानी को मैं इसी तरह से लिखते हुए समाप्ति की ओर ले जाऊॅ या फिर मुख्य मुख्य बातें बताते हुए इसे जल्दी से समाप्त कर दूॅ????

यहाॅ के कुछ रीडर्स का कहना है कि कहानी में कुछ बातें मैं बार बार रिपीट कर रहा हूॅ जिससे कहानी वहीं पर रुकी हुई है और आगे बढ़ ही नहीं रही है। हलाॅकि जहाॅ तक मेरा मानना है तो वो यही है कि मैं सभी किरदारों को लेकर तथा सभी किरदारों के साथ न्याय करते हुए ही कहानी को आगे बढ़ा रहा हूॅ। मुझे समझ नहीं आता कि उन रीडर्स को ऐसा क्यों लगता है कि कहानी में एक ही बात बार बार रिपीट हो रही है और कहानी आगे नहीं बढ़ रही???

जिन रीडर्स को लास्ट के अपडेट का अंतिम सीन पसंद नहीं आया उनसे मैं यही कहना चाहता हूॅ कि सांसारिक जीवन में हमेशा वही नहीं होता जो हम चाहते हैं। ये बात तो हर कोई जानता है कि हम इंसान हैं और हमारी बागडोर ऊपर बैठे ईश्वर के हाॅथ में है। हमारे लिए कब क्या अच्छा रहेगा ये सब उस ऊपर वाले से बेहतर कोई नहीं जानता। दूसरी बात जल्दबाज़ी में कोई राय बना लेना भी कोई बुद्धिमानी नहीं होती। उन्हें समझना चाहिए कि मुकाबला तो अभी शुरू हुआ है। अतः संभव है कि अंत में जीत उसी की हो जिसे जीतते हुए आप देखना चाहते हैं।

अंत में यही कहूॅगा कि आप सब अपनी अपनी राय से मुझे अवगत कराएॅ। आप लोग जिस तरह चाहेंगे मैं उसी तरह से कहानी को समाप्त कर दूॅगा।

!! धन्यवाद !!
Shubham bhai aap apne tarike se hi likho story ko aur complete bhi karo. Reader's ye baat nahi jante ki writer apni story me kya daalna chahta hai aur kya kya karke use end karega. So bhai aapne jo kuch socha huwa hai wahi kijiye. Ab tak ki story ko padhne ke baad koi apki kaabiliyat par question mark nahi laga sakta. So carry on bhai and do the best____
 
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