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Adultery राजमाता कौशल्यादेवी

vakharia

Prime
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राजमाता अब हिंसक रूप से ऐसे धक्के लगा रही थी की शक्तिसिंह के सुपाड़े की चमड़ी एकदम से खींच गई। शक्तिसिंह को बेहद दर्द का अनुभव हुआ।

"राजमाता जी, मत कीजिए... !!" उसके चेहरे पर दर्द की शिकन स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थी

राजमाता ने अपने झटके जारी रखे। दर्द के कारण शक्तिसिंह के सख्त लंड में थोड़ी सी नरमी जरूर आ गई थी पर वह इतनी आगे बढ़ चुकी थी की रुकने का कोई प्रश्न नहीं था। लेकिन वह चाहती थी की लंड की सख्ती बरकरार रहे।

अपने जिस्म पर चढ़कर कूदती हुई, कराहती हुई राजमाता को देखकर शक्तिसिंह स्तब्ध सा रह गया। उनके हर झटके के साथ उनके विराट स्तन ऊपर नीचे उछलते नजर आते थे। उनकी रेशमी गोरी त्वचा का स्पर्श उसे काफी आह्लादक महसूस हो रहा था। बादामी रंग की उनकी बड़ी बड़ी निप्पल काफी आकर्षक लग रही थी।

"आह" और "ऊँहह" कर उछल रही उस स्त्री को शक्तिसिंह देखता ही रहा!! अपना समग्र ध्यान चुदाई पर केंद्रित कर रही राजमाता को उसका फल मिल रहा था। सालों बाद उनकी चुत को ढंग का स्खलन प्राप्त हो रहा था।

राजमाता का मन यह भी सोच रहा था की राजमहल में लौटकर किसी भी तरह इस नौजवान का आनंद लिया जा सके। पद्मिनी को गर्भवती बनाने की व्यवस्था जिस तरह उन्होंने सुगठित की थी, बस उसी व्यवस्था को थोड़ा सा अधिक विस्तारित ही तो करना था!!

"ईशशश... आहह.... अममम... "वह झटके लगाते हुए अस्पष्ट आवाज़े निकाल रही थी। उन्होंने सोच रखा था की शक्तिसिंह को वह सिर्फ अपने तक ही आरक्षित रखेगी। महारानी को इस पर कोई अधिकार नहीं मिलेगा। बहुत सह ली तनहाई... अब इस नए खिलौने से केवल वही खेलेगी!!

राजमाता ने अपनी आँखें खोली। शक्तिसिंह के उनके उरोजों को देखते हुए पाकर वह मुस्कुरा उठी। उन्होंने अपना जिस्म थोड़ा सा नीचे की तरफ झुकाकर स्तनों को उसके चेहरे के सामने पेश कर दिया। शक्तिसिंह आश्चर्यसह उन्हे देखता ही रहा।

"लो, यह तुम्हारे लिए ही है.." शक्तिसिंह को आमंत्रित करते हुए वह बोली। भारी और थोड़े से झुके हुए वह स्तनों को गुरुत्वाकर्षण ने शक्तिसिंह के चेहरे के बिल्कुल करीब ला दिया।

"में ये नहीं कर सकता राजमाता जी" शक्तिसिंह ने कहा

"करना ही होगा... वरना में महाराज से शिकायत कर दूँगी की तुमने उनकी महारानी को टाँगे चौड़ी कर हद से ज्यादा चोदा है" अभी भी झटके लगाते हुए वह यह कहते हुए हांफ रही थी ।

शक्तिसिंह के चेहरे पर एक कुटिल सी मुस्कुराहट छा गई। उसका लंड अब दोबारा पूर्ण रूप से सख्त होकर राजमाता के भोंसड़े में नई मंज़िलें हासिल कर रहा था। महारानी को चोदने में मज़ा आया था पर राजमाता के अनुभव का मुकाबला करने में वह सक्षम नहीं थी।

राजमाता ने अपनी चुत के स्नायु को भींच कर अपनी पकड़ को लंड पर और मजबूत कर लिया।

"यह उचित नहीं होगा राजमाता" सहम कर शक्तिसिंह ने कहा। अपने ऊपर सवार वह स्त्री, उसकी राजमाता होने के साथ साथ, उसके बचपन के दोस्त की माँ भी थी। हालांकि उसकी इस हिचकिचाहट को राजमाता के स्तन, ठुमक ठुमक कर तोड़ रहे थे।

"उचित तो यह भी नहीं है की ऐसी गरमाई औरत को तुम आनंद से वंचित रखो" अपने स्तनों को मसलते हुए और निप्पल को खींचते हुए कराहते हुए राजमाता ने कहा

"आप अतिसुंदर और कामुक है, इस बात में कोई दो राय नहीं है" राजमाता के हाथों का स्पर्श करते हुए शक्तिसिंह ने कहा "लेकिन...."!!!

"लेकिन वेकीन कुछ नहीं... उस पद्मिनी के साथ तो तुम्हें कोई संकोच नहीं हो रहा था... तो अब किस बात की झिझक है तुम्हें... अगर तुम मेरा स्वीकार नहीं करोगे तो में इसे अपना अपमान मानूँगी" मध्यम आक्रोश के साथ राजमाता ने कहा। वह उसे एक साथ धमका भी रही थी, मना भी रही थी, विनती भी कर रही थी और उत्तेजित भी कर रही थी।

शक्तिसिंह ने अपने हथियार डाल दिए... उसने अपने दोनों हाथों से उनके स्तनों को पकड़ा और निप्पलों से खेलने लगा।

"यही चाहती है न आप?" उसने नीचे से एक धक्का देते हुए कहा। हालांकि राजमाता के शरीर के वज़न के कारण वह ठीक से धक्का लगा न पाया।

उसने राजमाता के मांस के दोनों विशाल ढेरों को अपने हाथों में मजबूती से पकड़कर ऊपर की ओर धकेला। अपनी बाहें फैलाकर उन्हे अपने ऊपर उठाते हुए धक्का दिया। ऐसा करते वक्त उनके स्तनों को दबाने में उसे अत्यधिक आनंद आया।

राजमाता मुस्कुरा दी और कुछ क्षणों के लिए धक्के लगाने बंद किए ताकि शक्तिसिंह ठीक से उनके स्तनों का मुआयना कर सके।

राजमाता को रुका हुआ देख, शक्तिसिंह ने मौका ताड़कर नीचे से जोरदार धक्का लगा दिया। महारानी की सिसकी निकल गई... "आह... " करते हुए उन्होंने वापिस धक्के लगाना शुरू किया और नियंत्रण प्राप्त किया।

लकड़े में चल रही आरी की तरह शक्तिसिंह का लंड राजमाता की चुत के अंदर बाहर हो रहा था। उनका चिपचिपा स्निग्ध योनिमार्ग, लंड के इस आवागमन का योग्य जवाब दे रहा था। शक्तिसिंह के मजबूत हाथों ने अभी भी उनके स्तनों को जकड़ रखा था।

शक्तिसिंह ने बड़ी ही मजबूती से राजमाता के जिस्म को पकड़े रखा था... उनका पूरा जिस्म ऊपर उठ गया था और शरीर का निचला हिस्सा पत्थर पर टीके घुटनों के कारण संतुलित था। राजमाता ऐसे पिघल रही थी जैसे गर्मियों में बर्फ।

उनकी चुत अब काफी मात्रा में रस का रिसाव करने लगी थी। अंदर से कई धाराएँ बहती हुई दोनों की जांघों को आद्र कर रही थी। आँखें बंद कर अपना सारा ध्यान झटके लगाने पर केंद्रित कर वह अपनी निश्चित मंजिल की ओर यात्रा कर रही थी।

वह चाह रही थी की लंड को बाहर निकालकर वह अपना मन भरने तक उसे चूसे... पर कुछ ही समय पहले यह लंड महारानी की चुत के रस से सना हुआ था और वह अपनी पुत्रवधू के चुत के रस को अपने मुंह में भरना नहीं चाहती थी उस वजह से उन्होंने उस प्रलोभन को ज्यादा महत्व न दिया।

पर अब वह जिस पड़ाव पर पहुँच चुकी थी, उस तरह के विचार ज्यादा मायने नहीं रखते थे। चुदाई के नशे ने उन्हे बदहवास बना दिया था। वह कई बार स्खलन के करीब पहुंची पर स्खलित हो नहीं पा रही थी।

उनकी गर्दन अब पीछे की तरफ झुक गई... आँखें ऊपर चढ़ गई... वह अब कैसे भी कर चरमसीमा के उस महासुख को प्राप्त करने के लिए बेचैन हो उठी थी।

अपने गर्भाशय की मांसपेशियों को सिकुड़कर छोड़ते हुए उन्हे कई तरह के रस चुत में बहते हुए महसूस किए। स्खलन अभी भी करीब नजर नहीं आ रहा था। उनका चेहरा हिंसक और विकृत हो चला था और उसे देखकर शक्तिसिंह एक पल के लिए डर गया। उसे लगा शायद स्तनों पर ज्यादा जोर देने की वजह से ऐसा हुआ है। यह सोचकर उसने अपनी पकड़ ढीली कर दी।

राजमाता ने अपना सिर आगे की ओर झुकाकर अपने बालों को शक्तिसिंह के चेहरे पर गिरा दिया। बालों में डाले सुगंधित तेल की खुशबू से उसके नथुने भर गए।

राजमाता अभी भी गुर्रा रही थी... वह स्खलित होना चाहती थी... अपना सारा आवेश पिघला कर चुत से बाहर निकालना चाहती थी...

वह अब अपनी हथेलियों को पत्थर पर रखकर और नीचे झुक गई...

"शक्ति बेटा... जल्दी से चोदो मुझे... " उन्होंने शक्तिसिंह के कानों में कहा

अपने लंड की भावनाओ को नजर अंदाज किए शक्तिसिंह, राजमाता की इस विकराल, भूखी अवस्था को देखने में व्यस्त था। जिस कदर वह चरमसीमा को पहुँचने के लिए तड़प रही थी, वह देखकर शक्तिसिंह अभिभूत हो गया।

उसने कमर उठाकर नीचे से झटके लगाना शुरू किया। हर झटके के साथ उसकी कमर नीचे पत्थर से टकराकर आवाज करती... उसी पत्थर पर राजमाता और महारानी के भोग का काफी रस जमा हो गया था।

राजमाता के दोनों स्तन उसकी छातियों से दब गए थे। कंधे पर अभी भी लटक रही चोली का कपड़ा, बार बार उनके बीच में आकार विक्षेप कर रहा था। शक्तिसिंह ने राजमाता की पीठ के पीछे से चोली को निकालना चाहा पर कर ना पाया। वह बिना किसी चीज की दखलंदाज़ी के, राजमाता के भरे हुए उरोजों का आनंद लेना चाहता था।

राजमाता की बस अब एक ही चाह थी... की शक्तिसिंह तीव्र गति से उन्हे चोदे और जल्द से जल्द स्खलित कर दे।

"हाँ बेटा... ऐसे ही.. अपनी राजमाता को चोदो... सुख दो उन्हे... उनके बिस्तर का सूनापन खतम कर दो.. " राजमाता भारी आवाज में बोली

शक्तिसिंह को मज़ा बहुत आ रहा था पर राजमाता ने "बेटा" शब्द का उल्लेख कर उसे थोड़ा चोंका दिया।

"यह जो कुछ भी कर रहे है हम, उसे आज तक ही सीमित रहने दीजिएगा" शक्तिसिंह ने राजमाता की आंखो में देखकर कहा

"नहीं.. में अब बिना चुदे नहीं रह सकती... " राजमाता ने शक्तिसिंह की गर्दन पर चुंबनों की वर्षा कर दी।

"आज से तुम रोज चोदोगे मुझे.. "

"लेकिन आप तो मुझे वापिस भेज रही है आज" शक्तिसिंह ने असमंजस में पूछा। उसके हाथ राजमाता के स्तनों को मसल रहे थे।

"वह इसलिए की बहु का साथ तुम्हारा काम अब समाप्त हो गया है। अब में तुम्हें अपने लिए रखना चाहती हूँ" राजमाता ने धक्के लगाते लगाते हांफते हुए कहा

इस बातचीत के कारण विचलित होने की वजह से राजमाता का स्खलन तक पहुंचना और कठिन होता जा रहा था।

"सास को बहु से जलन हो रही है... है ना!!" शक्तिसिंह ने राजमाता की चुटकी लेते हुए कहा

राजमाता ने क्रोधित होकर शक्तिसिंह के सामने देखा... उनका चेहरा गुस्से से तमतमा गया था। पर हवस उनपर इस कदर सवार हो चुकी थी की वह अब कुछ भी अतिरिक्त बोल कर अपने सफर को रोकना नहीं चाहती थी।

शक्तिसिंह ने अपना सिर ऊपर कर राजमाता की निप्पल को मुंह में ले लिया और चटकारे मारकर चूसने लगा। राजमाता उसे अपनी निप्पल से दूर करना चाहती थी पर शक्तिसिंह ने उनके चूतड़ों को इतनी मजबूती से पकड़े रखा था की वह अपनी निप्पल छुड़वा नहीं पा रही थी। उसकी चुसाई के बदौलत उनकी चुत में बाढ़ सी आ गई थी।

"आह्ह... शक्तिसिंह... "

शक्तिसिंह ने देखा तो उनका चेहरा अब छत की ओर था और वह आँखें बंद कर धमाधम उछल रही थी। उसने निप्पलों को बारी बारी चूसना जारी रखा।

शक्तिसिंह का लंड राजमाता की चुत में तूफान मचा रहा था। साथ में उनकी दोनों निप्पलों को मुंह में भरकर चूसे जा रहा था। उसके मजबूत हाथ राजमाता के भारी चूतड़ों को दबोचे हुए थे। राजमाता को अपनी मंजिल नजदीक आती नजर आई। इस पुरुष से चुदने पर, की जिसने उसकी बहु को भी उनके सामने चोदा था, राजमाता को अजीब तरह से उत्तेजित कर रहा था। और अब वह उसे अपने महल में खिलौने की तरह खेल पाएगी, इस संभावना का ज्ञान होने पर उन्हे बेहद खुशी मिल रही थी। वह अब जब चाहे अपने जिस्म को, शक्तिसिंह का उपयोग कर गुदगुदा सकती थी और संतुष्ट भी कर सकती थी।

"आहह बेटा.. हाँ... ऊई... अममम... हाय... आह्ह" राजमाता की चुत का बांध टूट गया... उनके अंदर भड़क रहे वासना के ज्वालामुखी का लावारस उनकी चुत से फव्वारे की तरह छूटा। शक्तिसिंह को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसके टट्टों पर किसी ने गरम पानी डाल दिया हो... थरथराती हुई राजमाता झटके मारते हुए स्खलित हो गई।

राजमाता थकान के मारे चूर होकर शक्तिसिंह के बगल में लाश की तरह गिरी.. उनका सम्पूर्ण शरीर क्षुब्ध हो गया था..

लेकिन शक्तिसिंह अभी स्खलित नहीं हुआ था...

वह अब राजमाता के ऊपर आ गया.. उनकी आँखें बंद थी इसलिए वह ये देख ना पाई। शक्तिसिंह ने तुरंत उनकी दोनों जंघाओं को विपरीत दिशा में खींचकर चौड़ा किया और अपना लंड एक झटके में राजमाता की शाही गुफा में अंदर तक घुसेड़ दिया।

अचानक से थकी चुत में हमला होते महसूस कर, राजमाता ने अचंभित होकर आँखें खोली। अपने ऊपर सवार इस सैनिक को देखकर वह उसकी ऊर्जा और शक्ति से अभिभूत हो गई।

शक्तिसिंह ने अब न आव देखा न ताव... जंगली घोड़े की तरह उसने राजमाता के चिपचिपे भोंसड़े में लगातार धक्के लगाने शुरू कर दिए। साथ ही वह उनके स्तनों पर भी टूट पड़ा... ताज़ा स्खलन से उभरी राजमाता की निप्पल काफी संवेदनशील हो गई थी पर इस बात से शक्तिसिंह को कोई फरक न यही पड़ता था। उसने दोनों स्तनों को जगह जगह पर चूमते और चाटते हुए निप्पलों को काटना शुरू कर दिया। राजमाता कराहने लगी... वासना का बहुत सिर से उतार जाने के बाद, इस तरह का वैशिपन बर्दाश्त करने में उन्हे कठिनाई हो रही थी... पर वह कुछ भी कर सक्ने की स्थिति में ना थी। नियंत्रण की डोर शक्तिसिंह के हाथ में थी। उसने बार बार शक्तिसिंह को अपने हाथों से रोकना चाह तब शक्तिसिंह ने मजबूती से उनके दोनों हाथों को नीचे दबा दिया और चोदने लगा।

लगातार पंद्रह मिनट तक जोरदार चुदाई के बाद शक्तिसिंह के लंड ने झाग छोड़ दिया... राजमाता का पूरा भोंसड़ा शक्तिसिंह के वीर्य से भर गया!! हालांकि रजोनिवृत्ति पार कर गई राजमाता को गर्भवती होने का कोई डर नहीं था वह गनीमत थी।

पसीने से लथबथ और हांफता हुआ शक्तिसिंह, राजमाता के बगल में सो गया... उसकी साँसे अभी भी काफी तेज चल रही थी। राजमाता ने शक्तिसिंह के लंड को प्यार से पकड़ा और उसे आहिस्ता आहिस्ता हिलाते हुए उसका बच कुछ वीर्य बाहर निकालने में मदद करने लगी। अपने वीर्य से सने हाथ उसने स्तनों पर पोंछ लिए। और फिर अपनी निप्पल शक्तिसिंह के मुंह में दे दी। काफी समय तक दोनों उसी अवस्था में पत्थर पर पड़े रहे।

राजमाता ने जैसे अपना खोया हुआ आत्मविश्वास प्राप्त कर लिया था।

"आत्मविश्वास बहाल करने के लिए संभोग और स्खलन से बेहतर और कुछ नहीं" विजयी मुस्कुराहट के साथ राजमाता सोच रही थी...

वह अब नए सिरे से पुनर्जीवित और शक्तिशाली महसूस करते हुए राज्य की जिम्मेदारियों को निभाने के लिए पुनः तैयार हो गई थी...
 

Ajju Landwalia

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राजमाता अब हिंसक रूप से ऐसे धक्के लगा रही थी की शक्तिसिंह के सुपाड़े की चमड़ी एकदम से खींच गई। शक्तिसिंह को बेहद दर्द का अनुभव हुआ।

"राजमाता जी, मत कीजिए... !!" उसके चेहरे पर दर्द की शिकन स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थी

राजमाता ने अपने झटके जारी रखे। दर्द के कारण शक्तिसिंह के सख्त लंड में थोड़ी सी नरमी जरूर आ गई थी पर वह इतनी आगे बढ़ चुकी थी की रुकने का कोई प्रश्न नहीं था। लेकिन वह चाहती थी की लंड की सख्ती बरकरार रहे।

अपने जिस्म पर चढ़कर कूदती हुई, कराहती हुई राजमाता को देखकर शक्तिसिंह स्तब्ध सा रह गया। उनके हर झटके के साथ उनके विराट स्तन ऊपर नीचे उछलते नजर आते थे। उनकी रेशमी गोरी त्वचा का स्पर्श उसे काफी आह्लादक महसूस हो रहा था। बादामी रंग की उनकी बड़ी बड़ी निप्पल काफी आकर्षक लग रही थी।

"आह" और "ऊँहह" कर उछल रही उस स्त्री को शक्तिसिंह देखता ही रहा!! अपना समग्र ध्यान चुदाई पर केंद्रित कर रही राजमाता को उसका फल मिल रहा था। सालों बाद उनकी चुत को ढंग का स्खलन प्राप्त हो रहा था।

राजमाता का मन यह भी सोच रहा था की राजमहल में लौटकर किसी भी तरह इस नौजवान का आनंद लिया जा सके। पद्मिनी को गर्भवती बनाने की व्यवस्था जिस तरह उन्होंने सुगठित की थी, बस उसी व्यवस्था को थोड़ा सा अधिक विस्तारित ही तो करना था!!

"ईशशश... आहह.... अममम... "वह झटके लगाते हुए अस्पष्ट आवाज़े निकाल रही थी। उन्होंने सोच रखा था की शक्तिसिंह को वह सिर्फ अपने तक ही आरक्षित रखेगी। महारानी को इस पर कोई अधिकार नहीं मिलेगा। बहुत सह ली तनहाई... अब इस नए खिलौने से केवल वही खेलेगी!!

राजमाता ने अपनी आँखें खोली। शक्तिसिंह के उनके उरोजों को देखते हुए पाकर वह मुस्कुरा उठी। उन्होंने अपना जिस्म थोड़ा सा नीचे की तरफ झुकाकर स्तनों को उसके चेहरे के सामने पेश कर दिया। शक्तिसिंह आश्चर्यसह उन्हे देखता ही रहा।

"लो, यह तुम्हारे लिए ही है.." शक्तिसिंह को आमंत्रित करते हुए वह बोली। भारी और थोड़े से झुके हुए वह स्तनों को गुरुत्वाकर्षण ने शक्तिसिंह के चेहरे के बिल्कुल करीब ला दिया।

"में ये नहीं कर सकता राजमाता जी" शक्तिसिंह ने कहा

"करना ही होगा... वरना में महाराज से शिकायत कर दूँगी की तुमने उनकी महारानी को टाँगे चौड़ी कर हद से ज्यादा चोदा है" अभी भी झटके लगाते हुए वह यह कहते हुए हांफ रही थी ।

शक्तिसिंह के चेहरे पर एक कुटिल सी मुस्कुराहट छा गई। उसका लंड अब दोबारा पूर्ण रूप से सख्त होकर राजमाता के भोंसड़े में नई मंज़िलें हासिल कर रहा था। महारानी को चोदने में मज़ा आया था पर राजमाता के अनुभव का मुकाबला करने में वह सक्षम नहीं थी।

राजमाता ने अपनी चुत के स्नायु को भींच कर अपनी पकड़ को लंड पर और मजबूत कर लिया।

"यह उचित नहीं होगा राजमाता" सहम कर शक्तिसिंह ने कहा। अपने ऊपर सवार वह स्त्री, उसकी राजमाता होने के साथ साथ, उसके बचपन के दोस्त की माँ भी थी। हालांकि उसकी इस हिचकिचाहट को राजमाता के स्तन, ठुमक ठुमक कर तोड़ रहे थे।

"उचित तो यह भी नहीं है की ऐसी गरमाई औरत को तुम आनंद से वंचित रखो" अपने स्तनों को मसलते हुए और निप्पल को खींचते हुए कराहते हुए राजमाता ने कहा

"आप अतिसुंदर और कामुक है, इस बात में कोई दो राय नहीं है" राजमाता के हाथों का स्पर्श करते हुए शक्तिसिंह ने कहा "लेकिन...."!!!

"लेकिन वेकीन कुछ नहीं... उस पद्मिनी के साथ तो तुम्हें कोई संकोच नहीं हो रहा था... तो अब किस बात की झिझक है तुम्हें... अगर तुम मेरा स्वीकार नहीं करोगे तो में इसे अपना अपमान मानूँगी" मध्यम आक्रोश के साथ राजमाता ने कहा। वह उसे एक साथ धमका भी रही थी, मना भी रही थी, विनती भी कर रही थी और उत्तेजित भी कर रही थी।

शक्तिसिंह ने अपने हथियार डाल दिए... उसने अपने दोनों हाथों से उनके स्तनों को पकड़ा और निप्पलों से खेलने लगा।

"यही चाहती है न आप?" उसने नीचे से एक धक्का देते हुए कहा। हालांकि राजमाता के शरीर के वज़न के कारण वह ठीक से धक्का लगा न पाया।

उसने राजमाता के मांस के दोनों विशाल ढेरों को अपने हाथों में मजबूती से पकड़कर ऊपर की ओर धकेला। अपनी बाहें फैलाकर उन्हे अपने ऊपर उठाते हुए धक्का दिया। ऐसा करते वक्त उनके स्तनों को दबाने में उसे अत्यधिक आनंद आया।

राजमाता मुस्कुरा दी और कुछ क्षणों के लिए धक्के लगाने बंद किए ताकि शक्तिसिंह ठीक से उनके स्तनों का मुआयना कर सके।

राजमाता को रुका हुआ देख, शक्तिसिंह ने मौका ताड़कर नीचे से जोरदार धक्का लगा दिया। महारानी की सिसकी निकल गई... "आह... " करते हुए उन्होंने वापिस धक्के लगाना शुरू किया और नियंत्रण प्राप्त किया।

लकड़े में चल रही आरी की तरह शक्तिसिंह का लंड राजमाता की चुत के अंदर बाहर हो रहा था। उनका चिपचिपा स्निग्ध योनिमार्ग, लंड के इस आवागमन का योग्य जवाब दे रहा था। शक्तिसिंह के मजबूत हाथों ने अभी भी उनके स्तनों को जकड़ रखा था।

शक्तिसिंह ने बड़ी ही मजबूती से राजमाता के जिस्म को पकड़े रखा था... उनका पूरा जिस्म ऊपर उठ गया था और शरीर का निचला हिस्सा पत्थर पर टीके घुटनों के कारण संतुलित था। राजमाता ऐसे पिघल रही थी जैसे गर्मियों में बर्फ।

उनकी चुत अब काफी मात्रा में रस का रिसाव करने लगी थी। अंदर से कई धाराएँ बहती हुई दोनों की जांघों को आद्र कर रही थी। आँखें बंद कर अपना सारा ध्यान झटके लगाने पर केंद्रित कर वह अपनी निश्चित मंजिल की ओर यात्रा कर रही थी।

वह चाह रही थी की लंड को बाहर निकालकर वह अपना मन भरने तक उसे चूसे... पर कुछ ही समय पहले यह लंड महारानी की चुत के रस से सना हुआ था और वह अपनी पुत्रवधू के चुत के रस को अपने मुंह में भरना नहीं चाहती थी उस वजह से उन्होंने उस प्रलोभन को ज्यादा महत्व न दिया।

पर अब वह जिस पड़ाव पर पहुँच चुकी थी, उस तरह के विचार ज्यादा मायने नहीं रखते थे। चुदाई के नशे ने उन्हे बदहवास बना दिया था। वह कई बार स्खलन के करीब पहुंची पर स्खलित हो नहीं पा रही थी।

उनकी गर्दन अब पीछे की तरफ झुक गई... आँखें ऊपर चढ़ गई... वह अब कैसे भी कर चरमसीमा के उस महासुख को प्राप्त करने के लिए बेचैन हो उठी थी।

अपने गर्भाशय की मांसपेशियों को सिकुड़कर छोड़ते हुए उन्हे कई तरह के रस चुत में बहते हुए महसूस किए। स्खलन अभी भी करीब नजर नहीं आ रहा था। उनका चेहरा हिंसक और विकृत हो चला था और उसे देखकर शक्तिसिंह एक पल के लिए डर गया। उसे लगा शायद स्तनों पर ज्यादा जोर देने की वजह से ऐसा हुआ है। यह सोचकर उसने अपनी पकड़ ढीली कर दी।

राजमाता ने अपना सिर आगे की ओर झुकाकर अपने बालों को शक्तिसिंह के चेहरे पर गिरा दिया। बालों में डाले सुगंधित तेल की खुशबू से उसके नथुने भर गए।

राजमाता अभी भी गुर्रा रही थी... वह स्खलित होना चाहती थी... अपना सारा आवेश पिघला कर चुत से बाहर निकालना चाहती थी...

वह अब अपनी हथेलियों को पत्थर पर रखकर और नीचे झुक गई...

"शक्ति बेटा... जल्दी से चोदो मुझे... " उन्होंने शक्तिसिंह के कानों में कहा

अपने लंड की भावनाओ को नजर अंदाज किए शक्तिसिंह, राजमाता की इस विकराल, भूखी अवस्था को देखने में व्यस्त था। जिस कदर वह चरमसीमा को पहुँचने के लिए तड़प रही थी, वह देखकर शक्तिसिंह अभिभूत हो गया।

उसने कमर उठाकर नीचे से झटके लगाना शुरू किया। हर झटके के साथ उसकी कमर नीचे पत्थर से टकराकर आवाज करती... उसी पत्थर पर राजमाता और महारानी के भोग का काफी रस जमा हो गया था।

राजमाता के दोनों स्तन उसकी छातियों से दब गए थे। कंधे पर अभी भी लटक रही चोली का कपड़ा, बार बार उनके बीच में आकार विक्षेप कर रहा था। शक्तिसिंह ने राजमाता की पीठ के पीछे से चोली को निकालना चाहा पर कर ना पाया। वह बिना किसी चीज की दखलंदाज़ी के, राजमाता के भरे हुए उरोजों का आनंद लेना चाहता था।

राजमाता की बस अब एक ही चाह थी... की शक्तिसिंह तीव्र गति से उन्हे चोदे और जल्द से जल्द स्खलित कर दे।

"हाँ बेटा... ऐसे ही.. अपनी राजमाता को चोदो... सुख दो उन्हे... उनके बिस्तर का सूनापन खतम कर दो.. " राजमाता भारी आवाज में बोली

शक्तिसिंह को मज़ा बहुत आ रहा था पर राजमाता ने "बेटा" शब्द का उल्लेख कर उसे थोड़ा चोंका दिया।

"यह जो कुछ भी कर रहे है हम, उसे आज तक ही सीमित रहने दीजिएगा" शक्तिसिंह ने राजमाता की आंखो में देखकर कहा

"नहीं.. में अब बिना चुदे नहीं रह सकती... " राजमाता ने शक्तिसिंह की गर्दन पर चुंबनों की वर्षा कर दी।

"आज से तुम रोज चोदोगे मुझे.. "

"लेकिन आप तो मुझे वापिस भेज रही है आज" शक्तिसिंह ने असमंजस में पूछा। उसके हाथ राजमाता के स्तनों को मसल रहे थे।

"वह इसलिए की बहु का साथ तुम्हारा काम अब समाप्त हो गया है। अब में तुम्हें अपने लिए रखना चाहती हूँ" राजमाता ने धक्के लगाते लगाते हांफते हुए कहा

इस बातचीत के कारण विचलित होने की वजह से राजमाता का स्खलन तक पहुंचना और कठिन होता जा रहा था।

"सास को बहु से जलन हो रही है... है ना!!" शक्तिसिंह ने राजमाता की चुटकी लेते हुए कहा

राजमाता ने क्रोधित होकर शक्तिसिंह के सामने देखा... उनका चेहरा गुस्से से तमतमा गया था। पर हवस उनपर इस कदर सवार हो चुकी थी की वह अब कुछ भी अतिरिक्त बोल कर अपने सफर को रोकना नहीं चाहती थी।

शक्तिसिंह ने अपना सिर ऊपर कर राजमाता की निप्पल को मुंह में ले लिया और चटकारे मारकर चूसने लगा। राजमाता उसे अपनी निप्पल से दूर करना चाहती थी पर शक्तिसिंह ने उनके चूतड़ों को इतनी मजबूती से पकड़े रखा था की वह अपनी निप्पल छुड़वा नहीं पा रही थी। उसकी चुसाई के बदौलत उनकी चुत में बाढ़ सी आ गई थी।

"आह्ह... शक्तिसिंह... "

शक्तिसिंह ने देखा तो उनका चेहरा अब छत की ओर था और वह आँखें बंद कर धमाधम उछल रही थी। उसने निप्पलों को बारी बारी चूसना जारी रखा।

शक्तिसिंह का लंड राजमाता की चुत में तूफान मचा रहा था। साथ में उनकी दोनों निप्पलों को मुंह में भरकर चूसे जा रहा था। उसके मजबूत हाथ राजमाता के भारी चूतड़ों को दबोचे हुए थे। राजमाता को अपनी मंजिल नजदीक आती नजर आई। इस पुरुष से चुदने पर, की जिसने उसकी बहु को भी उनके सामने चोदा था, राजमाता को अजीब तरह से उत्तेजित कर रहा था। और अब वह उसे अपने महल में खिलौने की तरह खेल पाएगी, इस संभावना का ज्ञान होने पर उन्हे बेहद खुशी मिल रही थी। वह अब जब चाहे अपने जिस्म को, शक्तिसिंह का उपयोग कर गुदगुदा सकती थी और संतुष्ट भी कर सकती थी।

"आहह बेटा.. हाँ... ऊई... अममम... हाय... आह्ह" राजमाता की चुत का बांध टूट गया... उनके अंदर भड़क रहे वासना के ज्वालामुखी का लावारस उनकी चुत से फव्वारे की तरह छूटा। शक्तिसिंह को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसके टट्टों पर किसी ने गरम पानी डाल दिया हो... थरथराती हुई राजमाता झटके मारते हुए स्खलित हो गई।

राजमाता थकान के मारे चूर होकर शक्तिसिंह के बगल में लाश की तरह गिरी.. उनका सम्पूर्ण शरीर क्षुब्ध हो गया था..

लेकिन शक्तिसिंह अभी स्खलित नहीं हुआ था...

वह अब राजमाता के ऊपर आ गया.. उनकी आँखें बंद थी इसलिए वह ये देख ना पाई। शक्तिसिंह ने तुरंत उनकी दोनों जंघाओं को विपरीत दिशा में खींचकर चौड़ा किया और अपना लंड एक झटके में राजमाता की शाही गुफा में अंदर तक घुसेड़ दिया।

अचानक से थकी चुत में हमला होते महसूस कर, राजमाता ने अचंभित होकर आँखें खोली। अपने ऊपर सवार इस सैनिक को देखकर वह उसकी ऊर्जा और शक्ति से अभिभूत हो गई।

शक्तिसिंह ने अब न आव देखा न ताव... जंगली घोड़े की तरह उसने राजमाता के चिपचिपे भोंसड़े में लगातार धक्के लगाने शुरू कर दिए। साथ ही वह उनके स्तनों पर भी टूट पड़ा... ताज़ा स्खलन से उभरी राजमाता की निप्पल काफी संवेदनशील हो गई थी पर इस बात से शक्तिसिंह को कोई फरक न यही पड़ता था। उसने दोनों स्तनों को जगह जगह पर चूमते और चाटते हुए निप्पलों को काटना शुरू कर दिया। राजमाता कराहने लगी... वासना का बहुत सिर से उतार जाने के बाद, इस तरह का वैशिपन बर्दाश्त करने में उन्हे कठिनाई हो रही थी... पर वह कुछ भी कर सक्ने की स्थिति में ना थी। नियंत्रण की डोर शक्तिसिंह के हाथ में थी। उसने बार बार शक्तिसिंह को अपने हाथों से रोकना चाह तब शक्तिसिंह ने मजबूती से उनके दोनों हाथों को नीचे दबा दिया और चोदने लगा।

लगातार पंद्रह मिनट तक जोरदार चुदाई के बाद शक्तिसिंह के लंड ने झाग छोड़ दिया... राजमाता का पूरा भोंसड़ा शक्तिसिंह के वीर्य से भर गया!! हालांकि रजोनिवृत्ति पार कर गई राजमाता को गर्भवती होने का कोई डर नहीं था वह गनीमत थी।

पसीने से लथबथ और हांफता हुआ शक्तिसिंह, राजमाता के बगल में सो गया... उसकी साँसे अभी भी काफी तेज चल रही थी। राजमाता ने शक्तिसिंह के लंड को प्यार से पकड़ा और उसे आहिस्ता आहिस्ता हिलाते हुए उसका बच कुछ वीर्य बाहर निकालने में मदद करने लगी। अपने वीर्य से सने हाथ उसने स्तनों पर पोंछ लिए। और फिर अपनी निप्पल शक्तिसिंह के मुंह में दे दी। काफी समय तक दोनों उसी अवस्था में पत्थर पर पड़े रहे।

राजमाता ने जैसे अपना खोया हुआ आत्मविश्वास प्राप्त कर लिया था।

"आत्मविश्वास बहाल करने के लिए संभोग और स्खलन से बेहतर और कुछ नहीं" विजयी मुस्कुराहट के साथ राजमाता सोच रही थी...

वह अब नए सिरे से पुनर्जीवित और शक्तिशाली महसूस करते हुए राज्य की जिम्मेदारियों को निभाने के लिए पुनः तैयार हो गई थी...

Gazab ki update he vakharia Bhai,

Shakti singh aur rajmata ki ye chudai ki dasta ab thamne wali nahi he............raj mahal me bhi ye dastan ab roj hi dohrayi jayegi..........

Keep posting Bhai
 

sunoanuj

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राजमाता अब हिंसक रूप से ऐसे धक्के लगा रही थी की शक्तिसिंह के सुपाड़े की चमड़ी एकदम से खींच गई। शक्तिसिंह को बेहद दर्द का अनुभव हुआ।

"राजमाता जी, मत कीजिए... !!" उसके चेहरे पर दर्द की शिकन स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थी

राजमाता ने अपने झटके जारी रखे। दर्द के कारण शक्तिसिंह के सख्त लंड में थोड़ी सी नरमी जरूर आ गई थी पर वह इतनी आगे बढ़ चुकी थी की रुकने का कोई प्रश्न नहीं था। लेकिन वह चाहती थी की लंड की सख्ती बरकरार रहे।

अपने जिस्म पर चढ़कर कूदती हुई, कराहती हुई राजमाता को देखकर शक्तिसिंह स्तब्ध सा रह गया। उनके हर झटके के साथ उनके विराट स्तन ऊपर नीचे उछलते नजर आते थे। उनकी रेशमी गोरी त्वचा का स्पर्श उसे काफी आह्लादक महसूस हो रहा था। बादामी रंग की उनकी बड़ी बड़ी निप्पल काफी आकर्षक लग रही थी।

"आह" और "ऊँहह" कर उछल रही उस स्त्री को शक्तिसिंह देखता ही रहा!! अपना समग्र ध्यान चुदाई पर केंद्रित कर रही राजमाता को उसका फल मिल रहा था। सालों बाद उनकी चुत को ढंग का स्खलन प्राप्त हो रहा था।

राजमाता का मन यह भी सोच रहा था की राजमहल में लौटकर किसी भी तरह इस नौजवान का आनंद लिया जा सके। पद्मिनी को गर्भवती बनाने की व्यवस्था जिस तरह उन्होंने सुगठित की थी, बस उसी व्यवस्था को थोड़ा सा अधिक विस्तारित ही तो करना था!!

"ईशशश... आहह.... अममम... "वह झटके लगाते हुए अस्पष्ट आवाज़े निकाल रही थी। उन्होंने सोच रखा था की शक्तिसिंह को वह सिर्फ अपने तक ही आरक्षित रखेगी। महारानी को इस पर कोई अधिकार नहीं मिलेगा। बहुत सह ली तनहाई... अब इस नए खिलौने से केवल वही खेलेगी!!

राजमाता ने अपनी आँखें खोली। शक्तिसिंह के उनके उरोजों को देखते हुए पाकर वह मुस्कुरा उठी। उन्होंने अपना जिस्म थोड़ा सा नीचे की तरफ झुकाकर स्तनों को उसके चेहरे के सामने पेश कर दिया। शक्तिसिंह आश्चर्यसह उन्हे देखता ही रहा।

"लो, यह तुम्हारे लिए ही है.." शक्तिसिंह को आमंत्रित करते हुए वह बोली। भारी और थोड़े से झुके हुए वह स्तनों को गुरुत्वाकर्षण ने शक्तिसिंह के चेहरे के बिल्कुल करीब ला दिया।

"में ये नहीं कर सकता राजमाता जी" शक्तिसिंह ने कहा

"करना ही होगा... वरना में महाराज से शिकायत कर दूँगी की तुमने उनकी महारानी को टाँगे चौड़ी कर हद से ज्यादा चोदा है" अभी भी झटके लगाते हुए वह यह कहते हुए हांफ रही थी ।

शक्तिसिंह के चेहरे पर एक कुटिल सी मुस्कुराहट छा गई। उसका लंड अब दोबारा पूर्ण रूप से सख्त होकर राजमाता के भोंसड़े में नई मंज़िलें हासिल कर रहा था। महारानी को चोदने में मज़ा आया था पर राजमाता के अनुभव का मुकाबला करने में वह सक्षम नहीं थी।

राजमाता ने अपनी चुत के स्नायु को भींच कर अपनी पकड़ को लंड पर और मजबूत कर लिया।

"यह उचित नहीं होगा राजमाता" सहम कर शक्तिसिंह ने कहा। अपने ऊपर सवार वह स्त्री, उसकी राजमाता होने के साथ साथ, उसके बचपन के दोस्त की माँ भी थी। हालांकि उसकी इस हिचकिचाहट को राजमाता के स्तन, ठुमक ठुमक कर तोड़ रहे थे।

"उचित तो यह भी नहीं है की ऐसी गरमाई औरत को तुम आनंद से वंचित रखो" अपने स्तनों को मसलते हुए और निप्पल को खींचते हुए कराहते हुए राजमाता ने कहा

"आप अतिसुंदर और कामुक है, इस बात में कोई दो राय नहीं है" राजमाता के हाथों का स्पर्श करते हुए शक्तिसिंह ने कहा "लेकिन...."!!!

"लेकिन वेकीन कुछ नहीं... उस पद्मिनी के साथ तो तुम्हें कोई संकोच नहीं हो रहा था... तो अब किस बात की झिझक है तुम्हें... अगर तुम मेरा स्वीकार नहीं करोगे तो में इसे अपना अपमान मानूँगी" मध्यम आक्रोश के साथ राजमाता ने कहा। वह उसे एक साथ धमका भी रही थी, मना भी रही थी, विनती भी कर रही थी और उत्तेजित भी कर रही थी।

शक्तिसिंह ने अपने हथियार डाल दिए... उसने अपने दोनों हाथों से उनके स्तनों को पकड़ा और निप्पलों से खेलने लगा।

"यही चाहती है न आप?" उसने नीचे से एक धक्का देते हुए कहा। हालांकि राजमाता के शरीर के वज़न के कारण वह ठीक से धक्का लगा न पाया।

उसने राजमाता के मांस के दोनों विशाल ढेरों को अपने हाथों में मजबूती से पकड़कर ऊपर की ओर धकेला। अपनी बाहें फैलाकर उन्हे अपने ऊपर उठाते हुए धक्का दिया। ऐसा करते वक्त उनके स्तनों को दबाने में उसे अत्यधिक आनंद आया।

राजमाता मुस्कुरा दी और कुछ क्षणों के लिए धक्के लगाने बंद किए ताकि शक्तिसिंह ठीक से उनके स्तनों का मुआयना कर सके।

राजमाता को रुका हुआ देख, शक्तिसिंह ने मौका ताड़कर नीचे से जोरदार धक्का लगा दिया। महारानी की सिसकी निकल गई... "आह... " करते हुए उन्होंने वापिस धक्के लगाना शुरू किया और नियंत्रण प्राप्त किया।

लकड़े में चल रही आरी की तरह शक्तिसिंह का लंड राजमाता की चुत के अंदर बाहर हो रहा था। उनका चिपचिपा स्निग्ध योनिमार्ग, लंड के इस आवागमन का योग्य जवाब दे रहा था। शक्तिसिंह के मजबूत हाथों ने अभी भी उनके स्तनों को जकड़ रखा था।

शक्तिसिंह ने बड़ी ही मजबूती से राजमाता के जिस्म को पकड़े रखा था... उनका पूरा जिस्म ऊपर उठ गया था और शरीर का निचला हिस्सा पत्थर पर टीके घुटनों के कारण संतुलित था। राजमाता ऐसे पिघल रही थी जैसे गर्मियों में बर्फ।

उनकी चुत अब काफी मात्रा में रस का रिसाव करने लगी थी। अंदर से कई धाराएँ बहती हुई दोनों की जांघों को आद्र कर रही थी। आँखें बंद कर अपना सारा ध्यान झटके लगाने पर केंद्रित कर वह अपनी निश्चित मंजिल की ओर यात्रा कर रही थी।

वह चाह रही थी की लंड को बाहर निकालकर वह अपना मन भरने तक उसे चूसे... पर कुछ ही समय पहले यह लंड महारानी की चुत के रस से सना हुआ था और वह अपनी पुत्रवधू के चुत के रस को अपने मुंह में भरना नहीं चाहती थी उस वजह से उन्होंने उस प्रलोभन को ज्यादा महत्व न दिया।

पर अब वह जिस पड़ाव पर पहुँच चुकी थी, उस तरह के विचार ज्यादा मायने नहीं रखते थे। चुदाई के नशे ने उन्हे बदहवास बना दिया था। वह कई बार स्खलन के करीब पहुंची पर स्खलित हो नहीं पा रही थी।

उनकी गर्दन अब पीछे की तरफ झुक गई... आँखें ऊपर चढ़ गई... वह अब कैसे भी कर चरमसीमा के उस महासुख को प्राप्त करने के लिए बेचैन हो उठी थी।

अपने गर्भाशय की मांसपेशियों को सिकुड़कर छोड़ते हुए उन्हे कई तरह के रस चुत में बहते हुए महसूस किए। स्खलन अभी भी करीब नजर नहीं आ रहा था। उनका चेहरा हिंसक और विकृत हो चला था और उसे देखकर शक्तिसिंह एक पल के लिए डर गया। उसे लगा शायद स्तनों पर ज्यादा जोर देने की वजह से ऐसा हुआ है। यह सोचकर उसने अपनी पकड़ ढीली कर दी।

राजमाता ने अपना सिर आगे की ओर झुकाकर अपने बालों को शक्तिसिंह के चेहरे पर गिरा दिया। बालों में डाले सुगंधित तेल की खुशबू से उसके नथुने भर गए।

राजमाता अभी भी गुर्रा रही थी... वह स्खलित होना चाहती थी... अपना सारा आवेश पिघला कर चुत से बाहर निकालना चाहती थी...

वह अब अपनी हथेलियों को पत्थर पर रखकर और नीचे झुक गई...

"शक्ति बेटा... जल्दी से चोदो मुझे... " उन्होंने शक्तिसिंह के कानों में कहा

अपने लंड की भावनाओ को नजर अंदाज किए शक्तिसिंह, राजमाता की इस विकराल, भूखी अवस्था को देखने में व्यस्त था। जिस कदर वह चरमसीमा को पहुँचने के लिए तड़प रही थी, वह देखकर शक्तिसिंह अभिभूत हो गया।

उसने कमर उठाकर नीचे से झटके लगाना शुरू किया। हर झटके के साथ उसकी कमर नीचे पत्थर से टकराकर आवाज करती... उसी पत्थर पर राजमाता और महारानी के भोग का काफी रस जमा हो गया था।

राजमाता के दोनों स्तन उसकी छातियों से दब गए थे। कंधे पर अभी भी लटक रही चोली का कपड़ा, बार बार उनके बीच में आकार विक्षेप कर रहा था। शक्तिसिंह ने राजमाता की पीठ के पीछे से चोली को निकालना चाहा पर कर ना पाया। वह बिना किसी चीज की दखलंदाज़ी के, राजमाता के भरे हुए उरोजों का आनंद लेना चाहता था।

राजमाता की बस अब एक ही चाह थी... की शक्तिसिंह तीव्र गति से उन्हे चोदे और जल्द से जल्द स्खलित कर दे।

"हाँ बेटा... ऐसे ही.. अपनी राजमाता को चोदो... सुख दो उन्हे... उनके बिस्तर का सूनापन खतम कर दो.. " राजमाता भारी आवाज में बोली

शक्तिसिंह को मज़ा बहुत आ रहा था पर राजमाता ने "बेटा" शब्द का उल्लेख कर उसे थोड़ा चोंका दिया।

"यह जो कुछ भी कर रहे है हम, उसे आज तक ही सीमित रहने दीजिएगा" शक्तिसिंह ने राजमाता की आंखो में देखकर कहा

"नहीं.. में अब बिना चुदे नहीं रह सकती... " राजमाता ने शक्तिसिंह की गर्दन पर चुंबनों की वर्षा कर दी।

"आज से तुम रोज चोदोगे मुझे.. "

"लेकिन आप तो मुझे वापिस भेज रही है आज" शक्तिसिंह ने असमंजस में पूछा। उसके हाथ राजमाता के स्तनों को मसल रहे थे।

"वह इसलिए की बहु का साथ तुम्हारा काम अब समाप्त हो गया है। अब में तुम्हें अपने लिए रखना चाहती हूँ" राजमाता ने धक्के लगाते लगाते हांफते हुए कहा

इस बातचीत के कारण विचलित होने की वजह से राजमाता का स्खलन तक पहुंचना और कठिन होता जा रहा था।

"सास को बहु से जलन हो रही है... है ना!!" शक्तिसिंह ने राजमाता की चुटकी लेते हुए कहा

राजमाता ने क्रोधित होकर शक्तिसिंह के सामने देखा... उनका चेहरा गुस्से से तमतमा गया था। पर हवस उनपर इस कदर सवार हो चुकी थी की वह अब कुछ भी अतिरिक्त बोल कर अपने सफर को रोकना नहीं चाहती थी।

शक्तिसिंह ने अपना सिर ऊपर कर राजमाता की निप्पल को मुंह में ले लिया और चटकारे मारकर चूसने लगा। राजमाता उसे अपनी निप्पल से दूर करना चाहती थी पर शक्तिसिंह ने उनके चूतड़ों को इतनी मजबूती से पकड़े रखा था की वह अपनी निप्पल छुड़वा नहीं पा रही थी। उसकी चुसाई के बदौलत उनकी चुत में बाढ़ सी आ गई थी।

"आह्ह... शक्तिसिंह... "

शक्तिसिंह ने देखा तो उनका चेहरा अब छत की ओर था और वह आँखें बंद कर धमाधम उछल रही थी। उसने निप्पलों को बारी बारी चूसना जारी रखा।

शक्तिसिंह का लंड राजमाता की चुत में तूफान मचा रहा था। साथ में उनकी दोनों निप्पलों को मुंह में भरकर चूसे जा रहा था। उसके मजबूत हाथ राजमाता के भारी चूतड़ों को दबोचे हुए थे। राजमाता को अपनी मंजिल नजदीक आती नजर आई। इस पुरुष से चुदने पर, की जिसने उसकी बहु को भी उनके सामने चोदा था, राजमाता को अजीब तरह से उत्तेजित कर रहा था। और अब वह उसे अपने महल में खिलौने की तरह खेल पाएगी, इस संभावना का ज्ञान होने पर उन्हे बेहद खुशी मिल रही थी। वह अब जब चाहे अपने जिस्म को, शक्तिसिंह का उपयोग कर गुदगुदा सकती थी और संतुष्ट भी कर सकती थी।

"आहह बेटा.. हाँ... ऊई... अममम... हाय... आह्ह" राजमाता की चुत का बांध टूट गया... उनके अंदर भड़क रहे वासना के ज्वालामुखी का लावारस उनकी चुत से फव्वारे की तरह छूटा। शक्तिसिंह को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसके टट्टों पर किसी ने गरम पानी डाल दिया हो... थरथराती हुई राजमाता झटके मारते हुए स्खलित हो गई।

राजमाता थकान के मारे चूर होकर शक्तिसिंह के बगल में लाश की तरह गिरी.. उनका सम्पूर्ण शरीर क्षुब्ध हो गया था..

लेकिन शक्तिसिंह अभी स्खलित नहीं हुआ था...

वह अब राजमाता के ऊपर आ गया.. उनकी आँखें बंद थी इसलिए वह ये देख ना पाई। शक्तिसिंह ने तुरंत उनकी दोनों जंघाओं को विपरीत दिशा में खींचकर चौड़ा किया और अपना लंड एक झटके में राजमाता की शाही गुफा में अंदर तक घुसेड़ दिया।

अचानक से थकी चुत में हमला होते महसूस कर, राजमाता ने अचंभित होकर आँखें खोली। अपने ऊपर सवार इस सैनिक को देखकर वह उसकी ऊर्जा और शक्ति से अभिभूत हो गई।

शक्तिसिंह ने अब न आव देखा न ताव... जंगली घोड़े की तरह उसने राजमाता के चिपचिपे भोंसड़े में लगातार धक्के लगाने शुरू कर दिए। साथ ही वह उनके स्तनों पर भी टूट पड़ा... ताज़ा स्खलन से उभरी राजमाता की निप्पल काफी संवेदनशील हो गई थी पर इस बात से शक्तिसिंह को कोई फरक न यही पड़ता था। उसने दोनों स्तनों को जगह जगह पर चूमते और चाटते हुए निप्पलों को काटना शुरू कर दिया। राजमाता कराहने लगी... वासना का बहुत सिर से उतार जाने के बाद, इस तरह का वैशिपन बर्दाश्त करने में उन्हे कठिनाई हो रही थी... पर वह कुछ भी कर सक्ने की स्थिति में ना थी। नियंत्रण की डोर शक्तिसिंह के हाथ में थी। उसने बार बार शक्तिसिंह को अपने हाथों से रोकना चाह तब शक्तिसिंह ने मजबूती से उनके दोनों हाथों को नीचे दबा दिया और चोदने लगा।

लगातार पंद्रह मिनट तक जोरदार चुदाई के बाद शक्तिसिंह के लंड ने झाग छोड़ दिया... राजमाता का पूरा भोंसड़ा शक्तिसिंह के वीर्य से भर गया!! हालांकि रजोनिवृत्ति पार कर गई राजमाता को गर्भवती होने का कोई डर नहीं था वह गनीमत थी।

पसीने से लथबथ और हांफता हुआ शक्तिसिंह, राजमाता के बगल में सो गया... उसकी साँसे अभी भी काफी तेज चल रही थी। राजमाता ने शक्तिसिंह के लंड को प्यार से पकड़ा और उसे आहिस्ता आहिस्ता हिलाते हुए उसका बच कुछ वीर्य बाहर निकालने में मदद करने लगी। अपने वीर्य से सने हाथ उसने स्तनों पर पोंछ लिए। और फिर अपनी निप्पल शक्तिसिंह के मुंह में दे दी। काफी समय तक दोनों उसी अवस्था में पत्थर पर पड़े रहे।

राजमाता ने जैसे अपना खोया हुआ आत्मविश्वास प्राप्त कर लिया था।

"आत्मविश्वास बहाल करने के लिए संभोग और स्खलन से बेहतर और कुछ नहीं" विजयी मुस्कुराहट के साथ राजमाता सोच रही थी...

वह अब नए सिरे से पुनर्जीवित और शक्तिशाली महसूस करते हुए राज्य की जिम्मेदारियों को निभाने के लिए पुनः तैयार हो गई थी...
Bhaut hi behtarin updates….
 

Ek number

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राजमाता अब हिंसक रूप से ऐसे धक्के लगा रही थी की शक्तिसिंह के सुपाड़े की चमड़ी एकदम से खींच गई। शक्तिसिंह को बेहद दर्द का अनुभव हुआ।

"राजमाता जी, मत कीजिए... !!" उसके चेहरे पर दर्द की शिकन स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थी

राजमाता ने अपने झटके जारी रखे। दर्द के कारण शक्तिसिंह के सख्त लंड में थोड़ी सी नरमी जरूर आ गई थी पर वह इतनी आगे बढ़ चुकी थी की रुकने का कोई प्रश्न नहीं था। लेकिन वह चाहती थी की लंड की सख्ती बरकरार रहे।

अपने जिस्म पर चढ़कर कूदती हुई, कराहती हुई राजमाता को देखकर शक्तिसिंह स्तब्ध सा रह गया। उनके हर झटके के साथ उनके विराट स्तन ऊपर नीचे उछलते नजर आते थे। उनकी रेशमी गोरी त्वचा का स्पर्श उसे काफी आह्लादक महसूस हो रहा था। बादामी रंग की उनकी बड़ी बड़ी निप्पल काफी आकर्षक लग रही थी।

"आह" और "ऊँहह" कर उछल रही उस स्त्री को शक्तिसिंह देखता ही रहा!! अपना समग्र ध्यान चुदाई पर केंद्रित कर रही राजमाता को उसका फल मिल रहा था। सालों बाद उनकी चुत को ढंग का स्खलन प्राप्त हो रहा था।

राजमाता का मन यह भी सोच रहा था की राजमहल में लौटकर किसी भी तरह इस नौजवान का आनंद लिया जा सके। पद्मिनी को गर्भवती बनाने की व्यवस्था जिस तरह उन्होंने सुगठित की थी, बस उसी व्यवस्था को थोड़ा सा अधिक विस्तारित ही तो करना था!!

"ईशशश... आहह.... अममम... "वह झटके लगाते हुए अस्पष्ट आवाज़े निकाल रही थी। उन्होंने सोच रखा था की शक्तिसिंह को वह सिर्फ अपने तक ही आरक्षित रखेगी। महारानी को इस पर कोई अधिकार नहीं मिलेगा। बहुत सह ली तनहाई... अब इस नए खिलौने से केवल वही खेलेगी!!

राजमाता ने अपनी आँखें खोली। शक्तिसिंह के उनके उरोजों को देखते हुए पाकर वह मुस्कुरा उठी। उन्होंने अपना जिस्म थोड़ा सा नीचे की तरफ झुकाकर स्तनों को उसके चेहरे के सामने पेश कर दिया। शक्तिसिंह आश्चर्यसह उन्हे देखता ही रहा।

"लो, यह तुम्हारे लिए ही है.." शक्तिसिंह को आमंत्रित करते हुए वह बोली। भारी और थोड़े से झुके हुए वह स्तनों को गुरुत्वाकर्षण ने शक्तिसिंह के चेहरे के बिल्कुल करीब ला दिया।

"में ये नहीं कर सकता राजमाता जी" शक्तिसिंह ने कहा

"करना ही होगा... वरना में महाराज से शिकायत कर दूँगी की तुमने उनकी महारानी को टाँगे चौड़ी कर हद से ज्यादा चोदा है" अभी भी झटके लगाते हुए वह यह कहते हुए हांफ रही थी ।

शक्तिसिंह के चेहरे पर एक कुटिल सी मुस्कुराहट छा गई। उसका लंड अब दोबारा पूर्ण रूप से सख्त होकर राजमाता के भोंसड़े में नई मंज़िलें हासिल कर रहा था। महारानी को चोदने में मज़ा आया था पर राजमाता के अनुभव का मुकाबला करने में वह सक्षम नहीं थी।

राजमाता ने अपनी चुत के स्नायु को भींच कर अपनी पकड़ को लंड पर और मजबूत कर लिया।

"यह उचित नहीं होगा राजमाता" सहम कर शक्तिसिंह ने कहा। अपने ऊपर सवार वह स्त्री, उसकी राजमाता होने के साथ साथ, उसके बचपन के दोस्त की माँ भी थी। हालांकि उसकी इस हिचकिचाहट को राजमाता के स्तन, ठुमक ठुमक कर तोड़ रहे थे।

"उचित तो यह भी नहीं है की ऐसी गरमाई औरत को तुम आनंद से वंचित रखो" अपने स्तनों को मसलते हुए और निप्पल को खींचते हुए कराहते हुए राजमाता ने कहा

"आप अतिसुंदर और कामुक है, इस बात में कोई दो राय नहीं है" राजमाता के हाथों का स्पर्श करते हुए शक्तिसिंह ने कहा "लेकिन...."!!!

"लेकिन वेकीन कुछ नहीं... उस पद्मिनी के साथ तो तुम्हें कोई संकोच नहीं हो रहा था... तो अब किस बात की झिझक है तुम्हें... अगर तुम मेरा स्वीकार नहीं करोगे तो में इसे अपना अपमान मानूँगी" मध्यम आक्रोश के साथ राजमाता ने कहा। वह उसे एक साथ धमका भी रही थी, मना भी रही थी, विनती भी कर रही थी और उत्तेजित भी कर रही थी।

शक्तिसिंह ने अपने हथियार डाल दिए... उसने अपने दोनों हाथों से उनके स्तनों को पकड़ा और निप्पलों से खेलने लगा।

"यही चाहती है न आप?" उसने नीचे से एक धक्का देते हुए कहा। हालांकि राजमाता के शरीर के वज़न के कारण वह ठीक से धक्का लगा न पाया।

उसने राजमाता के मांस के दोनों विशाल ढेरों को अपने हाथों में मजबूती से पकड़कर ऊपर की ओर धकेला। अपनी बाहें फैलाकर उन्हे अपने ऊपर उठाते हुए धक्का दिया। ऐसा करते वक्त उनके स्तनों को दबाने में उसे अत्यधिक आनंद आया।

राजमाता मुस्कुरा दी और कुछ क्षणों के लिए धक्के लगाने बंद किए ताकि शक्तिसिंह ठीक से उनके स्तनों का मुआयना कर सके।

राजमाता को रुका हुआ देख, शक्तिसिंह ने मौका ताड़कर नीचे से जोरदार धक्का लगा दिया। महारानी की सिसकी निकल गई... "आह... " करते हुए उन्होंने वापिस धक्के लगाना शुरू किया और नियंत्रण प्राप्त किया।

लकड़े में चल रही आरी की तरह शक्तिसिंह का लंड राजमाता की चुत के अंदर बाहर हो रहा था। उनका चिपचिपा स्निग्ध योनिमार्ग, लंड के इस आवागमन का योग्य जवाब दे रहा था। शक्तिसिंह के मजबूत हाथों ने अभी भी उनके स्तनों को जकड़ रखा था।

शक्तिसिंह ने बड़ी ही मजबूती से राजमाता के जिस्म को पकड़े रखा था... उनका पूरा जिस्म ऊपर उठ गया था और शरीर का निचला हिस्सा पत्थर पर टीके घुटनों के कारण संतुलित था। राजमाता ऐसे पिघल रही थी जैसे गर्मियों में बर्फ।

उनकी चुत अब काफी मात्रा में रस का रिसाव करने लगी थी। अंदर से कई धाराएँ बहती हुई दोनों की जांघों को आद्र कर रही थी। आँखें बंद कर अपना सारा ध्यान झटके लगाने पर केंद्रित कर वह अपनी निश्चित मंजिल की ओर यात्रा कर रही थी।

वह चाह रही थी की लंड को बाहर निकालकर वह अपना मन भरने तक उसे चूसे... पर कुछ ही समय पहले यह लंड महारानी की चुत के रस से सना हुआ था और वह अपनी पुत्रवधू के चुत के रस को अपने मुंह में भरना नहीं चाहती थी उस वजह से उन्होंने उस प्रलोभन को ज्यादा महत्व न दिया।

पर अब वह जिस पड़ाव पर पहुँच चुकी थी, उस तरह के विचार ज्यादा मायने नहीं रखते थे। चुदाई के नशे ने उन्हे बदहवास बना दिया था। वह कई बार स्खलन के करीब पहुंची पर स्खलित हो नहीं पा रही थी।

उनकी गर्दन अब पीछे की तरफ झुक गई... आँखें ऊपर चढ़ गई... वह अब कैसे भी कर चरमसीमा के उस महासुख को प्राप्त करने के लिए बेचैन हो उठी थी।

अपने गर्भाशय की मांसपेशियों को सिकुड़कर छोड़ते हुए उन्हे कई तरह के रस चुत में बहते हुए महसूस किए। स्खलन अभी भी करीब नजर नहीं आ रहा था। उनका चेहरा हिंसक और विकृत हो चला था और उसे देखकर शक्तिसिंह एक पल के लिए डर गया। उसे लगा शायद स्तनों पर ज्यादा जोर देने की वजह से ऐसा हुआ है। यह सोचकर उसने अपनी पकड़ ढीली कर दी।

राजमाता ने अपना सिर आगे की ओर झुकाकर अपने बालों को शक्तिसिंह के चेहरे पर गिरा दिया। बालों में डाले सुगंधित तेल की खुशबू से उसके नथुने भर गए।

राजमाता अभी भी गुर्रा रही थी... वह स्खलित होना चाहती थी... अपना सारा आवेश पिघला कर चुत से बाहर निकालना चाहती थी...

वह अब अपनी हथेलियों को पत्थर पर रखकर और नीचे झुक गई...

"शक्ति बेटा... जल्दी से चोदो मुझे... " उन्होंने शक्तिसिंह के कानों में कहा

अपने लंड की भावनाओ को नजर अंदाज किए शक्तिसिंह, राजमाता की इस विकराल, भूखी अवस्था को देखने में व्यस्त था। जिस कदर वह चरमसीमा को पहुँचने के लिए तड़प रही थी, वह देखकर शक्तिसिंह अभिभूत हो गया।

उसने कमर उठाकर नीचे से झटके लगाना शुरू किया। हर झटके के साथ उसकी कमर नीचे पत्थर से टकराकर आवाज करती... उसी पत्थर पर राजमाता और महारानी के भोग का काफी रस जमा हो गया था।

राजमाता के दोनों स्तन उसकी छातियों से दब गए थे। कंधे पर अभी भी लटक रही चोली का कपड़ा, बार बार उनके बीच में आकार विक्षेप कर रहा था। शक्तिसिंह ने राजमाता की पीठ के पीछे से चोली को निकालना चाहा पर कर ना पाया। वह बिना किसी चीज की दखलंदाज़ी के, राजमाता के भरे हुए उरोजों का आनंद लेना चाहता था।

राजमाता की बस अब एक ही चाह थी... की शक्तिसिंह तीव्र गति से उन्हे चोदे और जल्द से जल्द स्खलित कर दे।

"हाँ बेटा... ऐसे ही.. अपनी राजमाता को चोदो... सुख दो उन्हे... उनके बिस्तर का सूनापन खतम कर दो.. " राजमाता भारी आवाज में बोली

शक्तिसिंह को मज़ा बहुत आ रहा था पर राजमाता ने "बेटा" शब्द का उल्लेख कर उसे थोड़ा चोंका दिया।

"यह जो कुछ भी कर रहे है हम, उसे आज तक ही सीमित रहने दीजिएगा" शक्तिसिंह ने राजमाता की आंखो में देखकर कहा

"नहीं.. में अब बिना चुदे नहीं रह सकती... " राजमाता ने शक्तिसिंह की गर्दन पर चुंबनों की वर्षा कर दी।

"आज से तुम रोज चोदोगे मुझे.. "

"लेकिन आप तो मुझे वापिस भेज रही है आज" शक्तिसिंह ने असमंजस में पूछा। उसके हाथ राजमाता के स्तनों को मसल रहे थे।

"वह इसलिए की बहु का साथ तुम्हारा काम अब समाप्त हो गया है। अब में तुम्हें अपने लिए रखना चाहती हूँ" राजमाता ने धक्के लगाते लगाते हांफते हुए कहा

इस बातचीत के कारण विचलित होने की वजह से राजमाता का स्खलन तक पहुंचना और कठिन होता जा रहा था।

"सास को बहु से जलन हो रही है... है ना!!" शक्तिसिंह ने राजमाता की चुटकी लेते हुए कहा

राजमाता ने क्रोधित होकर शक्तिसिंह के सामने देखा... उनका चेहरा गुस्से से तमतमा गया था। पर हवस उनपर इस कदर सवार हो चुकी थी की वह अब कुछ भी अतिरिक्त बोल कर अपने सफर को रोकना नहीं चाहती थी।

शक्तिसिंह ने अपना सिर ऊपर कर राजमाता की निप्पल को मुंह में ले लिया और चटकारे मारकर चूसने लगा। राजमाता उसे अपनी निप्पल से दूर करना चाहती थी पर शक्तिसिंह ने उनके चूतड़ों को इतनी मजबूती से पकड़े रखा था की वह अपनी निप्पल छुड़वा नहीं पा रही थी। उसकी चुसाई के बदौलत उनकी चुत में बाढ़ सी आ गई थी।

"आह्ह... शक्तिसिंह... "

शक्तिसिंह ने देखा तो उनका चेहरा अब छत की ओर था और वह आँखें बंद कर धमाधम उछल रही थी। उसने निप्पलों को बारी बारी चूसना जारी रखा।

शक्तिसिंह का लंड राजमाता की चुत में तूफान मचा रहा था। साथ में उनकी दोनों निप्पलों को मुंह में भरकर चूसे जा रहा था। उसके मजबूत हाथ राजमाता के भारी चूतड़ों को दबोचे हुए थे। राजमाता को अपनी मंजिल नजदीक आती नजर आई। इस पुरुष से चुदने पर, की जिसने उसकी बहु को भी उनके सामने चोदा था, राजमाता को अजीब तरह से उत्तेजित कर रहा था। और अब वह उसे अपने महल में खिलौने की तरह खेल पाएगी, इस संभावना का ज्ञान होने पर उन्हे बेहद खुशी मिल रही थी। वह अब जब चाहे अपने जिस्म को, शक्तिसिंह का उपयोग कर गुदगुदा सकती थी और संतुष्ट भी कर सकती थी।

"आहह बेटा.. हाँ... ऊई... अममम... हाय... आह्ह" राजमाता की चुत का बांध टूट गया... उनके अंदर भड़क रहे वासना के ज्वालामुखी का लावारस उनकी चुत से फव्वारे की तरह छूटा। शक्तिसिंह को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसके टट्टों पर किसी ने गरम पानी डाल दिया हो... थरथराती हुई राजमाता झटके मारते हुए स्खलित हो गई।

राजमाता थकान के मारे चूर होकर शक्तिसिंह के बगल में लाश की तरह गिरी.. उनका सम्पूर्ण शरीर क्षुब्ध हो गया था..

लेकिन शक्तिसिंह अभी स्खलित नहीं हुआ था...

वह अब राजमाता के ऊपर आ गया.. उनकी आँखें बंद थी इसलिए वह ये देख ना पाई। शक्तिसिंह ने तुरंत उनकी दोनों जंघाओं को विपरीत दिशा में खींचकर चौड़ा किया और अपना लंड एक झटके में राजमाता की शाही गुफा में अंदर तक घुसेड़ दिया।

अचानक से थकी चुत में हमला होते महसूस कर, राजमाता ने अचंभित होकर आँखें खोली। अपने ऊपर सवार इस सैनिक को देखकर वह उसकी ऊर्जा और शक्ति से अभिभूत हो गई।

शक्तिसिंह ने अब न आव देखा न ताव... जंगली घोड़े की तरह उसने राजमाता के चिपचिपे भोंसड़े में लगातार धक्के लगाने शुरू कर दिए। साथ ही वह उनके स्तनों पर भी टूट पड़ा... ताज़ा स्खलन से उभरी राजमाता की निप्पल काफी संवेदनशील हो गई थी पर इस बात से शक्तिसिंह को कोई फरक न यही पड़ता था। उसने दोनों स्तनों को जगह जगह पर चूमते और चाटते हुए निप्पलों को काटना शुरू कर दिया। राजमाता कराहने लगी... वासना का बहुत सिर से उतार जाने के बाद, इस तरह का वैशिपन बर्दाश्त करने में उन्हे कठिनाई हो रही थी... पर वह कुछ भी कर सक्ने की स्थिति में ना थी। नियंत्रण की डोर शक्तिसिंह के हाथ में थी। उसने बार बार शक्तिसिंह को अपने हाथों से रोकना चाह तब शक्तिसिंह ने मजबूती से उनके दोनों हाथों को नीचे दबा दिया और चोदने लगा।

लगातार पंद्रह मिनट तक जोरदार चुदाई के बाद शक्तिसिंह के लंड ने झाग छोड़ दिया... राजमाता का पूरा भोंसड़ा शक्तिसिंह के वीर्य से भर गया!! हालांकि रजोनिवृत्ति पार कर गई राजमाता को गर्भवती होने का कोई डर नहीं था वह गनीमत थी।

पसीने से लथबथ और हांफता हुआ शक्तिसिंह, राजमाता के बगल में सो गया... उसकी साँसे अभी भी काफी तेज चल रही थी। राजमाता ने शक्तिसिंह के लंड को प्यार से पकड़ा और उसे आहिस्ता आहिस्ता हिलाते हुए उसका बच कुछ वीर्य बाहर निकालने में मदद करने लगी। अपने वीर्य से सने हाथ उसने स्तनों पर पोंछ लिए। और फिर अपनी निप्पल शक्तिसिंह के मुंह में दे दी। काफी समय तक दोनों उसी अवस्था में पत्थर पर पड़े रहे।

राजमाता ने जैसे अपना खोया हुआ आत्मविश्वास प्राप्त कर लिया था।

"आत्मविश्वास बहाल करने के लिए संभोग और स्खलन से बेहतर और कुछ नहीं" विजयी मुस्कुराहट के साथ राजमाता सोच रही थी...

वह अब नए सिरे से पुनर्जीवित और शक्तिशाली महसूस करते हुए राज्य की जिम्मेदारियों को निभाने के लिए पुनः तैयार हो गई थी...
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