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Thriller Yamdoot ki laaparwahi [Action, Thriller, Suspense] (Completed)

Mai iske sare updates kis trah du

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And ho sake to rebu de dena
 

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“उसे करंट लगा था. कल शाम को पांच बजे जब वो हमारी कंपनी में काम कर रहा था तब. उसे अस्पताल में भरती कराया गया. लेकिन आज तड़के पांच बजे उसकी मौत हो गई. इस वक्त हमारी कंपनी में पुलिस आयी हुई है. उसकी मौत क़ी जांच करने के लिए”
“ओह अजय. आपने तो मुझे डरा ही दिया था. आपको इस तरह बात करते देख कर किसी अनहोनी क़ी आशंका में मेरा तो कलेजा हलक में आ गया था” अजय का जवाब सुना कर शीतल ने राहत क़ी साँस ली.
“ये क्या किसी अनहोनी से कम है शीतल? बेचारे गरीब मजदूर का बच्चा अनाथ हो गया” अजय ने मजदूर क़ी मौत का दुःख व्यक्त करते हुए कहा, और कार को ब्रेक लगाया.
“ओफ़्हो, अब क्या हो गया, कार क्यों रोक दी?” शीतल ने कहा.
“आ गया शोपिंग मॉल. शोपिंग करनी है क़ी नहीं करनी आपको?” अजय ने शीतल से कहा.
” ओह, में तो भूल ही गई थी. चलो चलते है”
“नहीं में नहीं चलूँगा. आपको जो कुछ लाना है ले कर आइये, में आपका इंतज़ार करता हूँ.”
शीतल अकेली ही शोपिंग के लिए माल में चली गई. लगभग पंद्रह बीस मिनट बाद वह कपडे कोस्मेटिक और अन्य जरुरी सामान ले कर वापस आयी. उसने कार का पिछला दरवाजा खोल कर सामान पिछली सीट पर रखा. पिछला दरवाजा बंद करके वह आगे क़ी सीट पर बैठते हुए बोली.
“अब चलो जल्दी घर पहुँचाना है. कोमल जाग गई तो मुझे वहां नहीं पा कर मम्मीजी और बाबूजी को परेशान करेगी”
लेकिन अजय पर मानो शीतल क़ी बात का कोई असर ही नहीं हुआ हो. वह नज़रे झुकाए ड्राइविंग सीट पर खामोश बैठा रहा.
“कहाँ खो गए अजय? में आपसे कह रही हूँ. जल्दी कार स्टार्ट करो और चलो” इस बार शीतल ने अजय को झिन्झोड़ते हुए कहा.तो अजय ने घूरती निगाहों से नजरें उठा कर शीतल क़ी तरफ देखा. अजय द्वारा इस तरह घूर कर देखना शीतल को अजीब सा लगा.
“अरे ऐसे क्या देख रहे हो? जैसे पहली बार देख रहे हो.” अजय द्वारा घूर कर देखने पर शीतल ने सवाल किया.
“नहीं पहली बार नहीं में आपको दूसरी बार देख रहा हूँ” अजय ने शीतल के सवाल का जवाब दिया.
“ओह! अजय मजाक छोडो. और चलो, जल्दी घर जाना है”
“मुझे कार चलाना नहीं आता” अजय ने कहा.
“कार चलना नहीं आता! फिर यहाँ तक कार को कौन ले कर आया है? क्यों बार बार मजाक कर रहे हो ?” शीतल अजय क़ी तरफ हैरानी से देख कर कहने लगी..
“अगर आपको लगता है कि मैं मजाक कर रहा हूँ तो मजाक ही सही. पर कार में नहीं चलाऊंगा आपको ही चलानी पड़ेगी” अजय ने जवाब दिया.
 

Mayaviguru

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ठीक है, आप इस तरफ आ जाइये में चला लूंगी” शीतल कार से बाहर निकली, दूसरी तरफ ड्राइविंग सीट पर जा कर बैठ गई. अजय सरक कर दूसरी तरफ बैठ गया. शीतल कार चलाती रही, अजय दूसरी तरफ नजरें झुकाए बैठा रहा. शीतल से बात करना तो दूर, उसने शीतल क़ी तरफ नजरें उठा कर देखा तक नहीं. जेसे इन दोनों के बीच कोई रिश्ता ही नहीं हो. अजय में अचानक आया बदलाव व उसकी खामोशी शीतल को अटपटी लग रही थी. लेकिन शीतल इस ख़ामोशी के रहस्य को समझ नहीं पा रही थी. विचारों के भंवरजाल में गोते लगाते हुए, शीतल घर पहुँच गई. उसने कार पार्किंग में लगाई. कार का पिछला दरवाजा खोल कर सामान लिया. एक नजर अजय पर डाली अजय अब भी नज़रें झुकाए कार के अन्दर ही बैठा था.
“अब अन्दर भी चलेंगे या यही बैठे रहने का इरादा है. चलिए अंदर”
अजय कार से बाहर निकल कर खड़ा हो गया, लेकिन उसकी निगाहें अब भी जमीन की तरफ ही थी. वह न तो कुछ बोल रहा था. और न ही शीतल से नजरें मिला रहा था. शीतल रवाना हुई तो अजय भी शीतल के पीछे चलने लगा. लेकिन उसके चलने का तरीका भी बदल गया था. ऐसा लग रहा था जैसे वह इस जगह पहली बार आया हो. आगे कहाँ जाना है उसे कुछ पता ही न हो. शीतल ने फिर पीछे मुड़ कर देखा वह अजय के रूखे व्यवहार से आहत हो कर बोली.
“अजय! क्या हो गया है आपको? आप इस तरह उखड़े उखड़े क्यों है? अगर मुझसे कोई गलती हो गई है तो बताइए मुझे. में आपसे माफ़ी मांग लुंगी. लेकिन आपकी ये बेरुखी मुझसे बरदास्त नहीं होती.”
“नहीं तो, मैंने कब रुखा बर्ताव किया है आपके साथ. आपको ऐसे ही लग रहा है” इस बार शीतल की बात पर अजय ने अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया दी. अजय की बात सुन कर शीतल को कुछ तसल्ली हुई कि है तो सब ठीक. लेकिन अजय शीतल के पीछे चलते हुए घर के अन्दर तो चला गया, पर दरवाजे के अन्दर की तरफ जा कर फिर ठिठक गया. जैसे अन्दर जाने से डर लग रहा हो. कोई ये ना कह दे कि अरे अरे, अन्दर कहाँ चले आ रहे हो? वह इधर उधर देखने लगा. मानो सोच रहा हो अब किधर जाना है. उसके चहरे पर असहजता के भाव साफ़ नजर आ रहे थे. अजय को इस तरह खड़ा देख कर शीतल फिर हैरान हो कर उसक़ि तरफ देखने लगी. अजय की माँ शांति देवी भी उसे इस तरह खडा देख कर बोली.
“अजय बेटा,. वहां दरवाजे पर क्यों खडा है?” माँ ने पूछा, लेकिन अजय ने उसकी बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
कोमल “पापा आ गए पापा आ गए” कहती हुई दौड़ कर अजय के पास आइ, और अजय से लिपटते हुए बोली,
“पापा, कहाँ चले गए थे आप दोनों? मुझे बिना बताये ही. लेकिन मुझे मालूम है. आप दोनों मंदिर गए थे. मुझे साथ क्यों नहीं ले गए? में आप दोनों से कभी बात नहीं करुँगी.” कोमल अजय से सवाल कर रही थी. लेकिन अजय कोमल की बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा था. बस खामोश खडा था. शांतिदेवी और शीतल अजय की खामोशी को हैरानी से देख रही थी. दोनों आश्चर्यचकित थी. क्योंकि हमेशा घर में घुसते ही अजय कोमल को पुकारता था. कोमल दौड़ कर आती थी. अजय कोमल को गोद में उठा लेता था. पूरा घर खुशियों से खिलखिलाने लगता था. लेकिन आज कोमल बार बार अजय से सवाल पूछ रही थी. और अजय खामोश खड़ा था. अजय की खामोशी से पूरा घर मरघट लग रहा था. कोमल अब भी सवाल पूछ रही थी.
“बताइए न पापा, आप मुझे साथ क्यों नहीं ले गए?” पापा का जवाब नहीं मिलाने पर कोमल अपनी मम्मी शीतल के पास जा कर बोली.
“मम्मी, पापा मुझसे बात क्यों नहीं करते मम्मी?” शीतल और शान्ति खामोश खड़े अजय को अब भी हैरानी से देख रही थी कि अचानक अजय के मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी. लेकिन अजय ने फोन जेब से निकाला तक नहीं. अजय को खामोश खड़ा देख कर शीतल उसके पास आइ और बोली.
“अजय, आपके फोन की घंटी बज रही है” लेकिन शीतल की बात पर अजय ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
“कहाँ खो गए अजय? मैं आप से कह रही हूँ आपके फोन की घंटी बज रही है.” शीतल ने उसे झिंझोड़ते हुए फिर कहा.
 

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Koi rebu nhi koi bat nhi
 

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ये लो बात कर लो” अजय ने फोन जेब से निकाल कर शीतल की तरफ बढाते हुए कहा.
“अरे, मैं कैसे बात कर लूँ? कॉल आपके फोन पर आइ है. क्या बात करुँगी मैं?” शीतल ने काल रिसीव करने से इनकार कर दिया. तब तक पहली कॉल समाप्त हो गई थी. और फिर दुबारा कॉल आ गयी.
“ये लो, जो भी है उससे कह दो कि मेरी तबियत ठीक नहीं है” इस बार भी अजय ने कॉल रिसीव करने के बजाय फोन शीतल क़ि तरफ कर दिया. शीतल ने स्क्रीन पर नंबर देखा तो मालुम हुआ क़ि फोन उसके ससुर मलूकदास ने ही किया था. उसने कॉल रिसीव करके फोन कान से लगा लिया.
“हाँ बाबूजी बोलिए. मैं शीतल बोल रही हूँ.”
” बहू, अजय कहाँ है? वो फोन क्यों नहीं उठता?” सामने से मलूकदास की आवाज आयी,
“बाबूजी, अजय कह रहे है क़ि उनकी तबियत ठीक नहीं है. मुझे बोला कॉल रिसीव करने के लिए.”
“तबियत ठीक नहीं है! क्या हुआ उसे? ठीक है, में आ रहा हूँ. अभी. तुम अजय का ख्याल रखना” शीतल को सुझाव दे कर मलूकदास ने फोन कट कर दिया. शीतल फोन और मार्किट से लाइ शोपिंग का सामान अजय के हाथ में थमाते हुए बोली.
“ये लो, आपकी तबियत ठीक नहीं है, तो ये सामान पकड़ो, और कोमल को ले कर अपने कमरे में जाओ, में चाय बना कर लाती हूँ.”
“चलो पापा” कोमल अजय क़ि अंगुली पकड़ कर आगे चलने लगी, और अजय कोमल का अनुसरण करते हुए कोमल के पीछे चलने लगा. शीतल और शांति देवी फिर हैरान हो कर अजय को देखने लगी. क्योंकि हमेशा कोमल अजय क़ि अंगुली पकड़ कर उसके पीछे चलती थी, लेकिन आज कोमल अजय के आगे चलती थी जैसे घर में आये किसी अजनबी मेहमान को घर दिखाने के लिए आगे चल रही हो.
अजय अपने कमरे में जा कर सो गया. शीतल किचन में चली गयी, शान्ति देवी शीतल के पास जा कर अजय के बारे में पूछने लगी.
“बहू, अजय को हुआ क्या है? वो इस तरह खामोश क्यों है? तुम दोनों के बीच झगडा हो गया क्या?”
“नहीं मम्मीजी, हमारे बीच कोई झगड़ा नहीं हुआ है. में तो खुद नहीं समझ नहीं पा रही हूँ, क़ि आखिर हुआ क्या है. मैं शोपिंग के लिए मॉल में चली गयी, और अजय कार में ही बैठे थे. जब शोपिंग करके वापस आइ तो मैंने इस तरह ये बदलाव देखा. बात करना तो दूर नजरें तक नहीं मिलाते. कार में खुद चला कर लाई हूँ.” शीतल ने शान्ति देवी से बात करते हुए चाय बनायीं. तब तक मलूकदास आ गए. आते ही अजय के बारे ने सवाल किया. फिर शीतल और मलूकदास दोनों अजय के पास गए.
“अजय बेटे क्या हुआ?” मलूकदास ने अजय से सवाल किया. लेकिन अजय खामोश बैठा रहा. उसने मलूकदास के सवाल का कोई जवाब नहीं दिया.
“अजय, बाबूजी आपसे कुछ पूछ रहे है. आप जवाब क्यों नहीं देते? क्या तकलीफ है आपको, जी मिचला रहा है, बदन दर्द हो रहा है, या कुछ और, आप बताइए बाबूजी को.”
“बैचेनी हो रही है.” शीतल द्वारा पूछने पर अजय ने जवाब दिया.
“कोई बात नहीं, मैंने डॉक्टर को फोन कर दिया है. वो आता ही होगा. अजय मैंने तुमको कल एक फाइल दी थी. वो फाइल मुझे दो. मुझे उसकी जरुरत है.”
“कौनसी फाइल?” मलूकदास ने फाइल के बारे में पूछा तो अजय ने मलूकदास से ही सवाल पूछ लिया.
“कौनसी फाइल का क्या मतलब? आप भूल गए, लेकिन मुझे मालुम है. आपने वो फाइल ब्रिफकेस में रखि है” शीतल ने फाइल क़ि जानकारी देते हुए कहा.
“तो आप निकाल कर दे दीजिये” अजय ने शीतल से कहा.
“अरे मैं कैसे दे दूँ? ब्रीफकेस का लॉक नंबर आपके पास है” शीतल इस बार बिफरने लगी थी.
“बहू रहने दे, फाइल बाद में ले लेंगे.. अभी इसकी तबियत ठीक नहीं है. अजय बेटा, तुम आराम करो” मलूकदास शीतल के साथ बाहर जाने लगा, तब कोमल दादा से पापा क़ि शिकायत करते हुए बोली.
“दादाजी, पापा मुझसे बात क्यों नहीं करते? आप समझाइए न पापा को दादाजी.”
“कोमल बेटी, पापा क़ि तबियत ठीक नहीं है. जब तबियत ठीक हो जायेगी न, तब बात करेंगे. अभी चलो बाहर चलते है. पापा को आराम करने दो.” मलूकदास कोमल को ले कर बाहर आ गया. तब तक डॉक्टर सक्सेना भी आ गया. डॉक्टर ने अजय क़ि प्राथमिक जांच क़ि और एक पर्ची पर दवाई लिख कर पर्ची मलूकदास के हाथ में थमाते हुए बोला.
“सेठजी, मैंने जांच कर के दवाई लिख दी है. कल तक इससे आपको फर्क नजर आये तो ठीक है. नहीं तो अजय को अस्पताल में दाखिल करना होगा.” डॉक्टर मलूकदास को सलाह दे कर चला गया. मलूकदास ने एक दिन तक अजय के ठीक होने का इंतज़ार किया लेकिन अजय क़ि सेहत में कोई फर्क नजर नहीं आ रहा था. उसकी खामोशी ही उसकी सबसे बड़ी बिमारी थी.
अजय की सेहत में सुधार हुआ. मलूकदास अजय को ले कर अस्पताल पहुंचे शीतल और अजय की माँ शांति देवी भी साथ में थी. अजय को अस्पताल में दाखिल कराया गया.हर तरह की जांच होने के बाद जांच डॉक्टर ने बताया की अजय को किसी भी प्रकार की शारीरिक बिमारी नहीं है.
“ये क्या कह रहे है आप डॉक्टर? मेरा बेटा जीते जागते इंसान से खामोश बुत बन गया है और आप कह रहे है की इसे कोई बिमारी ही नहीं है. ये कैसे हो सकता है?” मलूकदास ने हैरान हो कर डॉक्टर से कहा.
“मैं आपकी बात समझ सकता हूँ सेठजी. लेकिन आप बिमारी के जो लक्ष्ण बता रहे है वो किसी शारीरिक बिमारी के नहीं बल्कि मानसिक बिमारी के है. जैसा की आपने बताया मरीज का खामोश और अकेले बैठे रहना, किसी से भी बात नहीं करना, ये लक्ष्ण मानसिक बिमारी के है. डॉक्टर ने अजय को मानसिक बिमारी होने की आशंका जाहिर की.
“लेकिन इसकी वजह क्या हो सकती है.? मलूकदास ने फिर सवाल किया.
“वजह कोई भी हो सकती है पूरा मालूम तो किसी मानसिक डॉक्टर से सलाह लेने पर ही होगा. लेकिन कोई बात जरुर है जो मरीज के दिलो दिमाग पर हावी है और इसे परेशान कर रही है. आप किसी मानसिक डॉक्टर से सलाह लीजिये. ये ही बेहतर रहेगा. अगर सही वक्त पर इलाज नहीं हुआ तो खतरनाक हो सकता है.”
डॉक्टर सक्सेना की सलाह मान कर मलूकदास मानसिक डॉक्टर से जा कर मिले. उस डॉक्टर ने जांच करके अगले दिन जांच रिपोर्ट देने की बात कही. उसके बाद मलूकदास अजय को ले कर घर आ गए. घर आते ही अजय अपने कमरे में जा कर सो गया.
“बाबूजी डॉक्टर ने कहा है की अजय के दिलो दिमाग पर कोई बात हावी हो गई है. जो इनको परेशान कर रही है. इस बात पर मुझे एक बात याद आ रही है. चार दिन पहले हमारी कंपनी में एक मजदूर काम करते हुए करंट लगने से मर गया था. जब हम शोपिंग के लिए गए थे तब अजय को फोन पर उसके मरने की खबर मिली और अजय ने कहा था की बेचारे गरीब मजदूर का बच्चा अनाथ हो गया”
“नहीं नहीं. ऐसे थोड़े ही हो सकता है. माना की मेरा बेटा दयालु है गरीबो का हितेषी है. लेकिन किसी गैर की मौत का सदमा अपने दिमाग पर क्यों लेगा.ये हो ही नहीं सकता” मलूकदास ने शीतल की बात से असहमत हो कर कहा.
“मैं इस बात का अंदाजा लगा रही हूँ इसलिए की उसके तुरंत बाद मैंने अजय में ये बदलाव देखा है.”
“नहीं शीतल बात तो कुछ और है. लेकिन है क्या ये मैं भी समझ नहीं पा रहा हूँ” मलूकदास ने फिर शीतल से असहमत हो कर कहा.
अजय की बिमारी की खबर जब उसकी बहिन आरती को लगी तो वह भी अपने के साथ भाई से मिलाने के लिए आई. शीतल के माता पिता भी आये. आरती घर में आते ही सीधी अजय के पास पहुंची.
कैसे हो भैया? कैसी है अब आपकी तबियत? आरती ने हमेशा की तरह चहकते हुए कहा. आरती को उमीद थी की उसे देखते ही अजय खुश होगा. उसे गले से लगा लेगा. क्योंकि आरती अजय की इकलौती बहिन थी. और अजय आरती को जान से भी ज्यादा प्यार करता था. उसकी हर ख़ुशी का ख्याल रखता था. लेकिन आज अजय की खामोशी ने आरती को मायूस ही किया. वह नज़ारे झुकाए बैठा रहा
 
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