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Erotica THE GIRL SCHOOL

LUCKY4ROD

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मैं राज 38 साल का होने वाला हूँ और अपना स्कूल चलाता हूँ जो देल्ही शहर के पॉश एरिया में है और इसकी गिनती शहर के सबसे अच्छे स्कूल्स में होती है. ईससी मेरे दादाजी ने शुरू किया था और उनके बाद मेरे पिताजी इससे चलाते रहे और उनके बाद करीब 14 साल पहले मेने इसकी कमान संभाली.
मेरे माता-पिताजी, मेरा छ्होटा भाई, सिम्ला से लौट रहे थे, मेरी पत्नी अपने मायके चंडीगढ़ गयी हुई थी और वो भी उनके साथ ही आ रही थी. रास्ते में अंबाला से तोड़ा आगे उनकी कार का आक्सिडेंट हो गया. रॉंग साइड पर आ रहे एक ट्रक ने उन्हे सामने से टक्कर मारी थी. ड्राइवर समेत सभी लोग वहीं मौके पर ही ख़तम हो गये, कार पूरी तरह से टूट-फूट गयी. में अकेला रह गया अपने बेटे और बेटी के साथ. लोगों ने बहुत ज़ोर डाला पर मेने दूसरी शादी नही की.
दोनो बच्चो की शादी करके मैं बिल्कुल अकेला लेकिन पूरी तरह आज़ाद हो गया. बेटी अपने पति के साथ गुड़गाँवा में रहती है और अभी कुछ महीने पहले उससने एक बेटे को जन्म दिया है. मेरा दामाद विजय अपने मा बाप की इकलौती संतान है और अपना खुद का मीडियम साइज़ कॉल सेंटर चलाता है. उसके पिता 2 महीने पहले ही रिटाइर हुए है. आइएएस क्लियर करने के बाद एजुकेशन मिनिस्ट्री में ही रहे और वहीं मेरी उनसे पहचान हुई और फिर ये पहचान रिश्तेदारी में बदल गयी. उनकी करक ईमानदारी की मिसालें दी जाती थीं, और यही हमारी दोस्ती की वजह भी बनी थी. कुल मिलाकर बेटी और उसका परिवार बहुत सुखी परिवार है और में उस तरफ से बिल्कुल निश्चिंत हूँ.

मेरा बेटा माइक्रोसॉफ्ट में सीनियर.सॉफ्टवेर इंजिनियर है और अपनी पत्नी एवं बेटे के साथ यूएसए में रहता है. 6 साल मे वो तीन बार इंडिया आया है जिसमें पहली बार आया था शादी करवाने के लिए. यानी एक साल वो आ जाता है और एक साल में च्छुतटियों में उनके पास चला जाता हूँ.

इंट्रोडक्षन तो हो गया अब शुरू करता हूँ अपनी काम यात्रा. मेरी सेक्षुयल अवेकेनिंग तो तब शुरू हुई थी जब मैं 10थ क्लास में था पर मेरा पहला सेक्षुयल एनकाउंटर हुआ था जब मैं 12थ में था. वो सब बातें में यहाँ पर लिख नही सकता एडिट हो जाएँगी और हो सकता है के बॅन भी लग जाए. उसके बाद मेरी ज़िंदगी में बहुत कुछ हुआ और वो सब मैं आपको बीच-बीच में जैसे-जैसे याद आएगा बताता रहूँगा.

पिताजी की अक्समात मृत्यु के बाद मेरे ऊपेर स्कूल की पूरी ज़िम्मेदारी आ गयी और मैं उसे पूरा करने का प्रयत्न जी-जान से करने लगा और सफल भी रहा. लेकिन मेरा स्वाभाव थोड़ा रूखा हो गया और मैं लापरवाह भी हो गया. साथ ही साथ थोड़ा चीर्चिड़ापन और सख्ती भी आ गयी. सारे टीचर्स और स्टाफ की मेरे साथ पूरी सहानुभूति तो थी ही जिसकी वजह से स्कूल की फंक्षनिंग में कोई गड़बड़ या रुकावट नहीं हुई परंतु मुझे भी महसूस होने लगा के मैं कुछ बदल सा गया हूँ.

मैने स्कूल के कामों में और दोनो बच्चों की तरफ ज़्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया और अपने आप को ज़्यादा से ज़्यादा बिज़ी रखने की कोशिश करने लगा और यह तरकीब काम भी कर गयी. धीरे-धीरे मैं नॉर्मल होने लगा पर मेरे व्यवहार की तल्खी कम नही हुई. इसका एक फ़ायदा भी हुआ. स्कूल चलाने के लिए स्ट्रिक्ट तो होना ही पड़ता है, इसलिए टीचर्स और स्टाफ ने भी मेरे साथ अड्जस्ट कर लिया और स्कूल में डिसिप्लिन अच्छे से कायम हो गया और दिन ठीक से बीतने लगे.

मेरी आदत थी स्कूल का राउंड लेने की और कोई फिक्स टाइम नहीं था इसके लिए. कभी-कभी मैं राउंड स्किप भी कर देता था और कभी दिन में 2 राउंड भी लगा देता था. इसका फ़ायदा यह था के स्कूल के टीचर्स और स्टाफ हर समय अलर्ट रहते के पता नही मैं कब आ जाउ राउंड पर. उन्ही दिनों की बात है कि एक दिन ऐसे ही राउंड पर मैने देखा के बाय्स लॅवेटरी में से एक लड़का निकला और मुझे देख कर कुछ ज़्यादा ही चौंक गया. यह मेरे ही स्कूल के मेद्स के सीनियर टीचर पांडेजी का बेटा दीपक था. मेरे पास पहुँचते उसने काँपते हाथों से टाय्लेट पास जेब से निकाल लिया और धीरे से गुड मॉर्निंग सर कहता हुआ निकल गया और मुझे क्रॉस करते ही तेज़ी से दूसरे मूड कर अपनी क्लास की तरफ चला गया. बाय्स लॅवेटरी अभी भी मेरे से 15-20 कदम आगे थी.

अभी मैं 2-3 कदम ही बढ़ा था के मेरे चौंकने की बारी थी. एक लड़की का सर बाय्स लॅवेटरी के दरवाज़े से बाहर निकला और उसने दोनो तरफ झाँका. जैसे ही वो सर मेरी तरफ मुड़ा वो लड़की एकदम से पीछे हट गयी. मैं तेज़ी से आगे बढ़ा और अंदर दाखिल हो गया. अंदर कोई भी नज़र नही आया. मैने दरवाज़े के पीछे झाँका तो देखा कि वो लड़की आँखे बंद किए हुए खड़ी थी और उसका चेहरा डर के मारे बिल्कुल सफेद पड़ गया था. मैने गुस्से से उससे पूछा, के वो यहाँ क्या कर रही है. उसकी घिग्घी बँध गयी और मुँह से कोई बोल ना फूटा. मैने उससे कॅड्क आवाज़ में कहा के मेरे ऑफीस में जाकर मेरा इंतेज़ार करे.

यह 12थ की स्टूडेंट प्रिया थी. बहुत ही सुंदर. गोरा रंग, तीखे नैन-नक्श और फिगर ऐसी के जैसे कोई अप्सरा धरती पर उतर आई हो. मेरे ऐसा कहते ही वो डरती हुई काँपते कदमों से मेरे ऑफीस की तरफ चल दी.

मैं कोई 10 मिनट के बाद ऑफीस में पहुँचा और देखा कि वो बाहर वेटिंग रूम
में सर झुकाए सहमी सी बैठी थी. अपनी कुर्सी पर बैठते ही मैने अपने कंप्यूटर में उसका नाम और क्लास डाली. मेरे सामने तीन चेहरे कंप्यूटर स्क्रीन पर नज़र आए, उनमें एक चेहरा यह भी था. मैने उस पर क्लिक किया तो उसकी सारी डीटेल्स मेरे सामने खुलती चली गयीं.

यह था कमाल मेरे बेटे के बनाए हुए सॉफ्टवेर का जो उसका बनाया हुआ पहला सॉफ्टवेर था और उसने बड़ी मेहनत और लगन से बनाया था. इसमें स्कूल का पूरा रेकॉर्ड था, स्टूडेंट्स का, अकाउंट्स का, टीचर्स और स्टाफ का. रोज़ इसमें नयी डीटेल्स फीड की जाती और रोज़ ही पूरा अपडेट होता था.
 

LUCKY4ROD

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मेरी नज़र उस लड़की के रेकॉर्ड पर घूमती चली गयी. अचानक में चौंक गया क्योंकि मैने देखा के वो 3 महीने पहले 18 साल की हो चुकी थी. मैने पिछला रेकॉर्ड क्लिक किया तो देखा के आक्सिडेंट और बीमारी के कारण उसने 10थ क्लास रिपीट की थी और इसलिए वो एक साल पीछे थी. वैसे वो ब्रिलियेंट स्टूडेंट थी और शुरू से ही हर क्लास में उसकी पोज़िशन टॉप 5 में ही थी.

मैने एक बटन दबाया और गंभीर आवाज़ में प्रिया को अंदर आने को कहा, और एक और बटन को दबा दिया. दरवाज़ा क्लिक की आवाज़ के साथ खुल गया. यहाँ सब कुछ ऑटोमॅटिक था और ये एलेक्ट्रॉनिक्स का कमाल था. मेरे ऑफीस में 4 वेब कॅम लगे हुए हैं और हर आंगल से रूम की वीडियो बनती रहती है एक अलग अड्वॅन्स्ड कंप्यूटर में जिसमे 1-1 टीबी की 2 हार्ड डिस्क्स लगी हैं. मैं उसे डेली चेक कर के वापिस खाली कर देता हूँ. कोई ज़रूरी मीटिंग या बातचीत की डीटेल्स होती हैं तो उन्ह एक डिस्क में ट्रान्स्फर कर देता हूँ और दूसरी फिर से खाली करके रेकॉर्डिंग के लिए छोड़ देता हूँ.

प्रिया डरती हुई धीरे-धीरे अंदर आई और मैने आँख से उसे टेबल की साइड में आने का इशारा किया. यह सब क्या है, मैने पूछा. वो नज़रें झुकाए चुप खड़ी रही. मैने फिर कहा कि ठीक है मुझे नही बताना चाहती तो कोई बात नही, अपनी डाइयरी लेकर आओ, तुम्हारे पेरेंट्स आप पूच्छ लेंगे. इतना सुनते ही वो तेज़ी से आगे बढ़ी और टेबल की साइड से होते हुए नीचे घुटनों पर बैठ गयी और मेरी चेर पर हाथ रखते हुए धीरे से बोली के प्लीज़ सर, मेरे पेरेंट्स को पता नहीं चलना चाहिए, चाहे कुछ भी पनिशमेंट दे दीजिए पर मेरे पेरेंट्स को नहीं पता चलना चाहिए.

मैने उसकी तरफ देखा और नीचे देखते ही मेरी आँखें चौंधिया गयीं क्योंकि नज़ारा ही कुछ ऐसा था. जल्दबाज़ी में वो अपनी शर्ट के बटन लगाना भी भूल गयी थी और ऊपेर के दो खुले बटन्स के कारण उसके नीचे झुकते ही उसकी शर्ट भी आगे को हो गयी थी और उसकी दोनो गोलाइयाँ अपने पूरे शबाब पर मेरी आँखों के सामने थी मुझसे केवल 1 फुट की दूरी पर. 6 महीने से ज़्यादा समय हो गया था मुझे स्त्री संसर्ग किए हुए. इस नज़ारे ने मेरे होश उड़ा दिए थे और में एकटक बिना पलकें झपकाए देखे ही जेया रहा था.

पर 2-3 सेकेंड्स में ही अपने पर काबू करते हुए मैने उसकी तोड़ी के नीचे हाथ रख कर उससे कहा के यह क्या कर रही हो खड़ी हो जाओ. वो घबरा के खड़ी हुई और झटके से खड़े होने पर उसकी शर्ट मेरे हाथ में अटकी और तीसरा बटन जो शायद ठीक से लगा नही था खुल गया और उसके साइड में होने की कोशिश में उसकी शर्ट का राइट साइड का पल्ला मेरे हाथ में अटके होने के कारण खुलता चला गया और उसकी एक खूबसूरत गोलाई मेरे हाथ को छ्छूती हुई पूरी तरह से आज़ाद हो गयी. वो ऐसे गर्व से सर उठाए खड़ी थी जैसे कोई पहाड़ी टीला खड़ा होता है. वो स्पर्श मुझे अंदर तक हिला गया. मेरे अंदर का शैतान जिस पर मैने बड़ी मुश्किल से अपनी शादी के बाद काबू पाया था, मचलने लगा.

प्रिया ने शरमाते हुए अपने हाथ ऊपेर उठाने की कोशिश की. रूको, मैने उसे टोका, मुझे देखने तो दो कि आख़िर ऐसा क्या है जिसने दीपक जैसे लड़के को ग़लत हरकत के लिए मजबूर कर दिया. उसके हाथ वहीं रुक गये. मैने अपनी उंगली से प्रिया को पास आने का इशारा किया. वो डरते हुए आधा कदम आगे आई और मैने जब उसे घूरा तो वो जल्दी से मेरे एकदम पास आ गयी. मैने अपना दायां हाथ उठा कर उसके बाएँ उभार पर रख दिया जो कि शर्ट के अंदर था और दूसरे हाथ से उसकी शर्ट के बाकी बटन भी खोल दिए.
उसका उभार पूरा मेरी हथेली में फिट हो गया और मैने प्यार से उस पर थोडा सा दबाव डाला. मेरे ऐसा करते ही प्रिया चिहुनक गयी और उसके शरीर पर गूस बंप्स उभर आए. मैं समझ गया कि उसका ये एरिया बहुत ही सेन्सिटिव है और इसको छ्छूते ही उसके पूरे शरीर में जैसे करेंट की एक तेज़ लहर दौड़ गयी होगी. हू, मैं बुदबुडाया, तुम हो ही इतनी सुंदर की ऋषियों का ईमान भी डोल जाए दीपक तो बेचारा अभी बच्चा है.

उसने शर्मा के अपनी नज़रें झुका लीं. मैं उसके उभार को हाथ में लिए हुए ही खड़ा हो गया और धीरे से बोला कि अब यह तो मुझे तुम्हारे पेरेंट्स को बताना ही पड़ेगा. इतना सुनते ही वो मुझसे लिपट गयी और बोली के मैं जो भी कहूँगा वो करेगी पर उसके पेरेंट्स को पता नहीं चले, अगर उसके पिताजी को पता चला तो वो उसे जान से मार देंगे. मैने उससे कहा के ठीक है, अगर ऐसा है और वो तैयार है तो मैं किसी को भी पता नहीं लगने दूँगा परंतु उससे मेरी बात माननी होगी. उसने तुरंत सहमति में सर हिला दिया.

मेरे अंदर के शैतान ने इतनी देर में एक प्लान भी बना लिया था. मैने उससे कहा के रिसेस होने वाली है और वो रिसेस में भी क्लासरूम में ही रहे और तबीयत खराब होने का नाटक करे. अपनी शर्ट को ठीक करके वो चली गयी. उसके निकलते ही मैने घंटी बजा कर पेओन को बुलाया और उससे कहा के 12थ में से पांडेजी के बेटे दीपक को बुला के लाए बहुत जल्दी और उसके ठीक 5 मिनट बाद पांडेजी भी मेरे ऑफीस में होने चाहिएं.

वो फुर्ती से गया और दीपक को ले आया और पांडेजी को लिवाने चला गया. अंदर आते ही दीपक डरते हुए बोला के जी सर. मैने गुस्से में उससे कहा के सर के बच्चे आज तूने क्या हरकत की है, जानता है इसकी क्या सज़ा होती है. दीपक पढ़ने में तो बहुत ही होशियार था हमेशा फर्स्ट क्लास फर्स्ट लेकिन बेहद डरपोक टाइप. इतना सुनते ही मानो उसे साँप सूंघ गया उसकी टाँगें काँपने लगीं और वो धम्म से नीचे बैठ कर घुटनों में सर दे के रोने लगा.

मैने उसे ज़ोर से कहा के खबरदार अगर इस बात का ज़िकार भी कभी किया, अपने पिताजी को भी नही और उस लड़की का नाम तक नहीं लेना कभी, समझे. उसने सर उठा कर कहा के मा की सौगंध मैं इस सारी बात को ही निकाल दूँगा अपने दिमाग़ से. मैने कहा के तुम्हारी सेहत के लिए ठीक भी यही रहेगा. आखरी बात कहते पांडेजी भी ऑफीस में एंटर हो गये.

वो कुछ बोलते उसके पहले ही मैने हाथ उठाकर उन्हे चुप रहने का इशारा किया. फिर मैने दीपक को वहाँ से जाने के लिए कहा. मैने पांडेजी को बैठने का इशारा किया और अपने चेहरे पर एक भारी मुस्कान लाते हुए तसल्ली दी जैसे कुछ ख़ास नहीं हुआ है और कहा के दीपक एक बहुत होनहार लड़का है और मुझे बहुत उम्मीद है के वो मेरिट में आकर स्कूल का नाम ऊँचा करेगा.
 
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LUCKY4ROD

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दोस्तो आज के लिए इतना काफी है मिलते है फिर।।।।
 
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Skb21

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Achchhi shuruaat h or lg bhi rha kathanak bahut hi jabardast hone wala hai waiting for more n more
 
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