नामालूम से मिले कुछ शेर
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असीम ताकत तेरे मन के ही अंदर है,
बाहर से मत कोई, जज्बा तलाश कर।
किसकी ज़रुरत है, यहाँ हर कोई अकेला है,
मत किसी और का कंधा तलाश कर।
क्यूँ भटक रहा है चेहरों के बाजार में,
दिल मे झांक, मत आईना तलाश कर।
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धड़कनें गूँजती है सीने में क्या?
इतने अकेले हो गए हैं हम!
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रिश्तों में दुरियाँ कभी इतनी भी मत बढ़ा लेना ,
कि दरवाज़ा खुला हो फिर भी खटखटाना पडे।
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मैने खुद को तसल्ली दी है;
किसी को चाहने से कोई अपना नही होता।
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इंतजार की हद भी अजीब होती है;
ना दरवाजा बंद होने देती है और ना आँखे।
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छोटा सा शहर चंद रास्ते और वही गिनी-चुनी गलियाँ;
तुमसे टकराने का मगर कमबख्त इत्तेफ़ाक नहीं होता।
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सुकून की उड़ान है, आज परिंदों के परों में;
सारे कातिल बंद हैं, अपने अपने घरों में...!
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रेल की तरह गुज़र तो कोई भी सकती है;
इंतज़ार में पटरी की तरह पड़े रहना ही असल इश्क़ है।
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मुझको तू अक्सर मुझ में न तलाश कर,
तुझसे जुड़ा हूं तुझमें ही रहा हूं मैं।
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आइना बनके गुजारी है जिंदगी मैंने;
टूट चुका,विखरने से बचा ले मुझको।
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आँखें भूलभुलैया हैं, झाँकना नहीं;
ख़ुद को ढूँढोगे मुझे कोस कोस कर।
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कुछ तुम कहो कुछ हम कहें;
खामोशी में भी बात होती रहें।
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खामोश सा शहर और गुफ्तगू की आरज़ू;
हम किस से करें बातें, कोई दिखता ही नहीं।