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Fantasy राज-रानी (एक प्रेम कथा)

Naik

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राज-रानी (बदलते रिश्ते)

**अपडेट** (02)

अब तक.....

"ऐसे अद्भुत बच्चे को हिमालय में ही रखना उचित है।" रिशभ ने कहा__"वहाॅ पर अध्यात्मिक चीज़ें हैं जिसकी आवश्यकता इस बच्चे को पड़ेगी।"

रिशभ की बात से सब चुप हो गए। कदाचित उनमें से सबको रिशभ की बात और सोच सही लगी थी। फिर क्या था...वो चारो ही उस बच्चे को लेकर इंसानी दुनियाॅ में पहुॅच गए। रास्ते में वीर ने कहा कि हम हिमालय जैसी पवित्र जगह पर कैसे जाएंगे, संभव है वहाॅ पर हम पर ही न कोई मुसीबत आ जाए आखिरकार हैं तो हम शैतान ही। वीर की इस बात पर रिशभ ने मुस्कुरा कर कहा कि हम भले ही शैतान हैं मगर सोच और विचार से ग़लत नहीं हैं और वैसे भी हम एक अच्छे कार्य के लिए पाक नीयत से ही वहाॅ जा रहे हैं। इस लिए हमें किसी बात की चिन्ता नहीं करनी चाहिए।


अब आगे....

हिमालय, दुनियाॅ में शायद ही कोई ऐसा होगा जो इस नाम तथा इस नाम के बारे में विस्तार से न जानता हो। आप सबको भी हिमालय के संबंध में बहुत कुछ पता होगा।

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कहते हैं हिमालय में बडे-बडे आश्रम हैं। जहां पर आज भी सैकडों साधक अपनी-अपनी साधना में लगे हुए हैं।
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हिमालय में आज भी चमत्‍कारिक साथू संंत रहतेे हैं, वह हिमालय में तपस्या में लीन निराहार रहते है।

प्राचीन काल में हिमालय में ही देवता रहते थे। यहीं पर ब्रह्मा, विष्णु और शिव का स्थान था और यहीं पर नंदनकानन वन में इंद्र का राज्य था। इंद्र के राज्य के पास ही गंधर्वों और यक्षों का भी राज्य था। स्वर्ग की स्थिति दो जगह बताई गई है: पहली हिमालय में और दूसरी कैलाश पर्वत के कई योजन ऊपर।

दोस्तो यूॅ तो बहुत सी ऐसी बातें हैं इस हिमालय के संदर्भ में किन्तु यहाॅ पर अगर यही सब लिखा जाए तो आज का अपडेट ही नहीं बल्कि आने वाले बहुत से अपडेट सिर्फ हिमालय की गूढ़ बातों से ही भर जाएंगे, इस लिए हम अब कहानी की तरफ ही ध्यान देते हैं।


हिमालय पहुॅचते पहुॅचते सुबह का प्रथम प्रहर शुरू हो गया था। यह ब्रम्हमुहूर्त का समय था। चारो वैम्पायर इस बात को जानते थे। हिमालय जैसी पवित्र जगह पर शैतानों का आ पाना कोई आसान बात न थी, वे किसी अनहोनी की आशंका से डर भी रहे थे। उनके साथ वह बच्चा भी था जिसकी ऊम्र पाॅच साल थी और वह इस समय अचेत अवस्था में था।

"हम यहाॅ तक तो पहुॅच गए भाई लेकिन अब यहाॅ से आगे जाना हमारे लिए खतरे की बात होगी।" वीर ने रिशभ की तरफ देख कर कहा__"इस लिए हमें इसके आगे नहीं जाना चाहिए।"

"कुछ नहीं होगा वीर।" रिशभ ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा__"मुझे पूरा विश्वास है कि इसके आगे देव भूमि पर कदम रखने से हम लोगों को कुछ नहीं होगा। हम शैतान पाप से पूर्ण भले ही हैं लेकिन इस वक्त हम एक अहम और नेक काम करने आए हैं जिसके लिए हमारे मन में कोई मैल नहीं है। हम तो वैसे भी देवभूमि में ईश्वर के घर आए हैं और घर आए अतिथि का भगवान अनिष्ट नहीं करते, वो भी जानते हैं कि कोई भी शैतान बुरी नीयत से उनके पास नहीं आ सकता। इस लिए तुम लोग ब्यर्थ की चिन्ता न करो और मेरे साथ आगे बढ़ो।"

"रिशभ ठीक कह रहा है वीर।" मेनका ने कहा__"इस वक्त हम नेकनीयत से ही देवभूमि में नेक काम के लिए आए हैं। इस अवस्था में कोई भी देवता या ईश्वर हमें किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुॅचाएंगे।"

"मुझे भी इस बात का पूर्ण विश्वास है कि हमें कुछ नहीं होगा।" काया ने कहा__"और वैसे भी जब हम सब इस नेक काम को करने के लिए चल ही पड़े थे तो इसके किसी भी प्रकार के परिणाम के बारे में सोचने का अब कोई मतलब ही नहीं है।"

"तुम बिलकुल ठीक कह रही हो मेरी लाडली बहना।" रिशभ ने मुस्कुरा कर कहा__"और मुझे खुशी है कि तुम्हारा ह्रदय परिवर्तन भी हो गया है। एक बात और..अब इस कार्य में अगर हमें अपना जीवन भी दाॅव पर लगाना पड़े तो हम ज़रा भी पीछे नहीं हटेंगे। अगर तुम लोग मेरी इस बात से सहमत हो तो मिलाओ हाॅथ और चलो मेरे साथ।"

तीनों ने रिशभ के हाॅथ में अपना अपना हाॅथ रखा और फिर बिना कुछ बोले चल दिए वहाॅ से। अब उनमें से किसी के भी मन में किसी प्रकार का कोई विकार नहीं था।

हिमालय की सर ज़मीं पर बेझिझक और बिना डरे अपने अपने कदम रख कर वो चारो आगे बढ़ने लगे। इसके पहले उनमें से किसी ने कभी सोचा भी न था कि उन्हें अपने जीवन में कभी ऐसा भी कार्य करना पड़ सकता है। वे तो शैतान थे और शैतान भला ऐसे कार्य कर भी कैसे सकता है?

लगभग दो घंटे बाद हीमालय के इन दुर्गम और कष्टदाई रास्तों व ऊॅचे ऊॅचे शिखरों पर चलते हुए वो एक ऐसी जगह पहुॅचे जहाॅ के शान्त वातावरण में सिर्फ एक ही नाद गूॅज रहा था। ओऽम् का उच्चारण वहाॅ के समस्त वातावरण में एक लय और एक ही सुर में बिना किसी विघ्न बाधा के अनवरत गूॅज रहा था।

"ये कैसी ध्वनि गूॅज रही है यहाॅ के वातावरण में?" काया ने चकित भाव से इधर उधर देखते हुए कहा__"यहाॅ तो कोई दूर दूर तक दिख भी नहीं रहा है?"

"तुम भूल रही हो काया।" रिशभ ने कहा__"कि हम देवभूमि में हैं इस वक्त और यहाॅ पर बड़े बड़े ॠषि मुनि तथा अनेकों प्रकार के साधु संत करोड़ों वर्षों से ईश्वर की कठोर तपस्या व अराधना में लीन हैं। ये जो ओऽम् शब्द की ध्वनि निरंतर गूॅज रही है न ये उन्हीं तपस्वियों की है।"

"मगर वो हमें कहीं दिख क्यों नहीं रहे फिर?" वीर ने कहा__"जबकि इस ध्वनि से ऐसा लगता है जैसे वो सब हमारे आस पास ही हैं।"

"वो सब हमारे आस पास ही हैं मेरे दोस्त।" रिशभ ने कहा__"लेकिन अदृश्य रूप में। हम क्या कोई भी आम इंसान उन्हें सहजता से देख नहीं सकता।"

"ऐसा क्यों?" काया ने सवाल किया।
"वो सब सांसारिक चीज़ों से परे हो चुके हैं।" रिशभ ने कहा__"अपनी कठिन तपस्या व अराधना से वो सब देवताओं से भी ऊपर जा चुके हैं। सोचो जब हम देवताओं को नहीं देख सकते तो फिर उन्हें कैसे देख पाएंगे जो देवताओं से भी ऊपर पहुॅच चुके हैं। दूसरी बात, अदृश्य रूप से ईश्वर की तपस्या करने से उन्हें कोई देख नहीं सकता इस लिए वो किसी अन्य के द्वारा किसी भी प्रकार विचलित भी नहीं हो सकते और बगैर किसी बाधा के वो अपनी तपस्या में लगे रहेंगे।"

"ओह तो ये सब बातें हैं।" काया ने समझने वाले भाव से कहा__"ख़ैर अब हमें आगे क्या करना है?"
"हम जिस चीज़ के उद्देश्य से यहाॅ आए थे वो इसी जगह पर पूरा होगा।" रिशभ ने कहा__"इस बच्चे को यहीं रहना होगा, इन बड़े बड़े तपस्वियों के बीच।"

"तो क्या हम इस बच्चे को यूॅ ही छोंड़ कर यहाॅ से चले जाएंगे?" मेनका ने चौंकते हुए कहा।
"ये यहाॅ अकेला नहीं है मेनका।" रिशभ ने कहा__"इसके चारो तरफ अदृश्य रूप में ये सब बड़े बड़े महात्मा हैं, तपस्वी हैं। ये सब इस बच्चे की रक्षा भी करेंगे और अपने संरक्षण में इसे बड़ा भी करेंगे।"

"नहीं भाई।" मेनका कह उठी__"ये सब तो जाने कब से अपनी अपनी तपस्या में लीन हैं। इन सबका ध्यान सिर्फ अपने ईश्वर पर लगा हुआ है। ये कैसे इस बच्चे की देखभाल कर सकेंगे? जब तक कोई स्पष्ट रूप से इसकी देखरेख करने वाला नहीं मिलेगा तब तक हम इसे अकेला यूॅ छोंड़ कर नहीं जाएंगे।"

"मेनका ठीक कह रही है भाई।" वीर ने कहा__"और वैसे भी ये हमारी जिम्मेदारी है कि हम इस बच्चे का ख़याल रखें। इसे यूॅ किसी और के भरोसे छोंड़ कर यहाॅ से चले जाना उचित नहीं है। या तो हम सब यहीं रह कर इस बच्चे की देखभाल करेंगे या फिर हमें इसका कोई उचित प्रबंध करना चाहिए।"

"क्या हम लोग इन अदृश्य तपस्वियों को इनकी तपस्या से जगा नहीं सकते?" काया ने कहा__"अगर ऐसा हो जाए तो संभव है सारी समस्या का समाधान ही हो जाए।"

"तपस्वियों को उनकी तपस्या से जगाना क्या उचित होगा?" मेनका ने कहा__"और सबसे बड़ी बात हम उन्हें उनकी तपस्या से जगा पाएंगे भी कि नहीं?"

"हमें कोशिश तो करनी ही चाहिए इसके लिए।" वीर ने कहा__"हो सकता है हमें इस काम में कामयाबी मिल ही जाए।"

"मुझे तो डर लग रहा है।" काया ने अजीब भाव से कहा__"सुना है कि बड़े बड़े तपस्वियों को उनकी तपस्या भंग करके जगा देने से उनके भयंकर क्रोध का सामना भी करना पड़ जाता है, और वो तपस्वी अपने क्रोध से जगाने वाले को भस्म भी कर देते हैं।"

"ये बात तो मैंने भी सुनी है।" वीर कह उठा__"सचमुच अगर ऐसा हुआ तो फिर तो गए हम लोग काम से।"

"तुम भूल रहे हो दोस्त।" रिशभ ने कहा__"कि यहाॅ आने से पहले हम लोगों ने उस जगह क्या फैंसला किया था एक साथ? अब इस नेक काम के लिए इन तपस्वियों की क्रोधाग्नि द्वारा भस्म भी होना पड़े तो हो जाएंगे लेकिन ये काम करके ही दम लेंगे।"

"फिर ठीक है भाई।" वीर ने कहा__"अब हम सब तैयार हैं जो होगा हमें स्वीकार है। तुम इन्हें जगाने की कोशिश करो।"

"रुको।" मेनका ने सहसा कुछ सोचते हुए कहा__"मैने सुना है कि अगर हम अपने हाॅथ जोड़ कर किसी चीज़ के लिए किसी भी देवता या ईश्वर की सच्चे दिल से प्रार्थना करें तो हमारी प्रार्थना सहज ही सुन लेते हैं भगवान।"

"तुम्हारी बात में यकीनन सच्चाई है मेरी बहना।" रिशभ ने मुस्कुरा कर कहा__"अब हम सब यही करेंगे। हम सब सच्चे दिल से हाॅथ जोड़ कर इसके लिए ईश्वर से प्रार्थना करेंगे।"

फैंसला हो चुका था, इस लिए वो चारो वहीं ज़मीन पर एक लाइन से बैठ गए। चारों ने अपने अपने हाॅथ जोड़ लिए तथा अपनी अपनी आॅखें बंद करके मन ही मन ईश्वर को याद कर प्रार्थना करने लगे।

ऐसा करते करते उन्हें दो घंटे गुजर गए मगर वो चारो उसी मुद्रा में उसी तरह बैठे प्रार्थना में लीन रहे।

"आॅखें खोलो पुत्रों हम तुम्हारी इस अनूठी प्रार्थना से खुश हुए।"

अचानक ही ये वाक्य उन चारो के कानों से टकराया। सभी ने अपनी अपनी आखें धीरे धीरे खोली और सामने की तरफ देखा तो एक बहुत ही तेजस्वी ॠषी को सामने बैठा पाया।
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अपने सामने एक ॠषी को शेर की खाल के आसन पर बैठे देख चारो चौंक पड़े। उन सबकी आॅखें आश्चर्य से फैल गई। फिर जल्दी ही उन सबने खुद को सम्हाला और अपने अपने हाॅथ जोड़ कर उस ॠषि को प्रणाम किया।

"हम तुम चारो के श्रद्धा भाव से अतिप्रसन्न हैं पुत्रो।" उस तेजस्वी ऋषि ने मुस्कुरा कर कहा__"हम जानते हैं कि तुम चारो शैतान हो, मगर इस समय तुम चारो का मन निर्मल है, दोष से रहित है। हम यहीं पर अदृश्य रूप में विद्दमान थे और तुम लोग जो कुछ भी आपस में बातें कर रहे थे उसे भी सुन रहे थे। तुम लोगों ने बहुत ही समझदारी से यह काम किया। एक शैतान होते हुए भी तुम चारो ने जिस कार्य को किया है वह तुम्हारे धर्म और कर्म के विपरीत है इस लिए हम तुम चारो से अति प्रसन्न हैं।"

"हे ऋषिवर! हम चारो शैतान ज़रूर हैं मगर।" रिशभ ने कहा__"मगर आपके दर्शन से हम चारो धन्य हो गए हैं। अब ऐसा लगता है जैसे हमारे अंदर सब कुछ नया और खास पैदा हो गया है। यहाॅ आकर तथा आपके दर्शन से ऐसा महसूस हो रहा है जैसे हम चारो का दूषित मन अब साफ और पवित्र हो गया है।"

"ये देवभूमि है पुत्रो।" ऋषि ने कहा__"और तुम लोग तो उसी समय मन से साफ और पवित्र हो गए थे जिस समय तुम लोगो ने इस बच्चे को इस प्रकार यहाॅ लाने का विचार किया था। अगर ऐसा नहीं होता तो तुम चारो यहाॅ की धरती पर कदम नहीं रख पाते।"

"आप बिलकुल सत्य कह रहे हैं भगवन।" मेनका ने कहा__"मेरे भाई को पूर्ण विश्वास था कि यहाॅ की पवित्र धरा पर कदम रखने से हम में से किसी को कुछ नहीं होगा।"

"जब मन हर विकार से रहित होकर गंगा की तरह पवित्र हो जाता है तो फिर किसी भी प्रकार संसय नहीं रह जाता।" ऋषि ने कहा__"और ये सब तो वैसे भी विधि का विधान था, जिसके परिणामस्वरूप तुम चारो आज इस बच्चे के साथ यहाॅ आए हो।"

"हे ऋषिवर! हम विधि के विधान को तो नहीं जानते कि कब क्या होगा?" रिशभ ने कहा__"हमें तो बस इतना महसूस हुआ कि इस बच्चे में कुछ ऐसी बात है जो आम इंसानों में नहीं हो सकती। इस लिए हम लोगों के मन में उस समय जैसे विचार उत्पन्न हुए वैसा ही करते चले गए।"

"सब ईश्वर की ही माया थी पुत्रो।" ऋषि ने मुस्कुराकर कहा__"जिसकी वजह से तुम चारों के मन में ऐसे विचार उत्पन्न हुए और तुम चारो इस बच्चे को यहाॅ ले आए, वर्ना बिरला ही ऐसा होता है कि कोई शैतान किसी इंसानी जीव को जीवित छोंड़ कर ऐसे विचार के तहत उसे यहाॅ ले आए।"

"आप तो सब कुछ जानते हैं मुनिवर।" वीर ने कहा__"क्या आप हमें ये बताने की कृपा करेंगे कि ये सब क्यों हुआ?"
"हम जानना चाहते हैं भगवन कि इस बच्चे में क्या खास बात है?" काया ने उत्सुकतावश पूॅछा__"जिसके लिए हम लोग एक शैतान होकर भी ये सब करते चले आए?"

"हम सब कुछ जानते हैं पुत्रो।" ऋषि ने कहा__"किन्तु भविष्य की बातें इस तरह बताई नहीं जा सकती क्योंकि ये अनुचित है और ईश्वर के बनाए गए नियमों के खिलाफ़ है। तुम लोगों को हम इतना ज़रूर बता सकते हैं कि इस बच्चे के द्वारा इस संसार का कल्याण होगा। ईश्वर इस बच्चे के द्वारा इस धरती पर बढ़ रहे पाप और बुराई का अंत करेगा।"

"ये तो बहुत अच्छी बात है भगवन।" मेनका ने कहा__"किन्तु मेरी आपसे एक विनती है।"
"कहो पुत्री।" ऋषि ने कहा__"क्या कहना चाहती हो तुम?"

"हे ऋषिवर! मेरी विनती ये है कि भविष्य में इस बच्चे द्वारा होने वाले संसार के कल्याण में मैं भी इसके साथ रहूॅ। इस बच्चे से मेरा स्नेह जुड़ गया है, वैसा ही स्नेह जैसे एक माॅ का अपने पुत्र से होता है। मैं इसकी माॅ बनकर इसके साथ ही रहना चाहती हूॅ।"

"हम तुम्हारे इस करुणामयी भाव को देखकर खुश हुए पुत्री।" ऋषि ने मुस्कुरा कर कहा__"तुम चिन्ता मत करो, अब से तुम चारो ही इस बच्चे के साथ इसका कवच बनकर रहोगे। अब तुम चारो ही अपनी शैतानी दुनियाॅ से अपना नाता तोड़ चुके हो। तुम चारो यहाॅ रह कर हमारे द्वारा बताई गई कुछ महत्वपूर्ण साधनाओं को मन लगा कर करो जिससे तुम लोग भी आम इंसानों की तरह रह सको। दिन में सूर्य की रोशनी से तुम लोगों को जो समस्या होती है उसे हमारे द्वारा बताई गई प्रक्रिया से दूर कर सकोगे।"

"आपका बहुत बहुत धन्यवाद भगवन।" रिशभ ने कहा__"हम चारो इस सबसे बहुत प्रसन्न हैं कि ईश्वर ने हमें अपने इस महान कार्य में शामिल किया।"

"अब हम तुम लोगों को रहने के लिए एक उचित और अच्छी जगह बताते हैं जहां पर तुम स्वयं अपने लिए कुटिया बना कर रह सको।" ऋषि ने कहा__"ये जगह सिर्फ ध्यान और ईश्वर की तपस्या के लिए है।"

इसके बाद ऋषि अपने आसन से उठे और एक तरफ चले। उनके पीछे पीछे वो चारो भी उस बच्चे को लेकर चल दिए।



अपडेट हाज़िर है दोस्तो.......
आप सबकी राय, सुझाव और प्रतिक्रिया का इन्तज़ार रहेगा,,,,
Bahot shaandaar mazedaar lajawab update dost
Ager saare shetaan Aise hi sudher jaye tow dunia se saari burayi ek dam khatam ho jaye
 

Naik

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राज-रानी (बदलते रिश्ते)
**अपडेट** (03)

अब तक.....

"हे ऋषिवर! मेरी विनती ये है कि भविष्य में इस बच्चे द्वारा होने वाले संसार के कल्याण में मैं भी इसके साथ रहूॅ। इस बच्चे से मेरा स्नेह जुड़ गया है, वैसा ही स्नेह जैसे एक माॅ का अपने पुत्र से होता है। मैं इसकी माॅ बनकर इसके साथ ही रहना चाहती हूॅ।"

"हम तुम्हारे इस करुणामयी भाव को देखकर खुश हुए पुत्री।" ऋषि ने मुस्कुरा कर कहा__"तुम चिन्ता मत करो, अब से तुम चारो ही इस बच्चे के साथ इसका कवच बनकर रहोगे। अब तुम चारो ही अपनी शैतानी दुनियाॅ से अपना नाता तोड़ चुके हो। तुम चारो यहाॅ रह कर हमारे द्वारा बताई गई कुछ महत्वपूर्ण साधनाओं को मन लगा कर करो जिससे तुम लोग भी आम इंसानों की तरह रह सको। दिन में सूर्य की रोशनी से तुम लोगों को जो समस्या होती है उसे हमारे द्वारा बताई गई प्रक्रिया से दूर कर सकोगे।"

"आपका बहुत बहुत धन्यवाद भगवन।" रिशभ ने कहा__"हम चारो इस सबसे बहुत प्रसन्न हैं कि ईश्वर ने हमें अपने इस महान कार्य में शामिल किया।"

"अब हम तुम लोगों को रहने के लिए एक उचित और अच्छी जगह बताते हैं जहां पर तुम स्वयं अपने लिए कुटिया बना कर रह सको।" ऋषि ने कहा__"ये जगह सिर्फ ध्यान और ईश्वर की तपस्या के लिए है।"

इसके बाद ऋषि अपने आसन से उठे और एक तरफ चले। उनके पीछे पीछे वो चारो भी उस बच्चे को लेकर चल दिए।


अब आगे......

कुछ देर उस ऋषि के पीछे पीछे चलने के बाद वो चारो शैतान(वैम्पायर)एक ऐसी जगह पहॅचे जहाॅ के वातावरण में एक मनमोहक शान्ति थी तथा यहाॅ पर किसी भी प्रकार का नाद या ध्वनि गूॅजती नहीं सुनाई दे रही थी। चारो तरफ ऊॅचे ऊॅचे पर्वत शिखर जिनके ऊपर बर्फ की सफेद चादर सी दिखती प्रतीत हो रही थी,और साथ ही सफेद बादलों जैसी कोहरे जैसी धुंध। नीचे धरती पर हर तरफ खूबसूरत पेड़ पौधे व घाॅस। कुछ ही दूरी से किसी स्वच्छ व पवित्र नदी के बहते हुए पानी का कलकल करता हुआ मधुर संगीत सुनाई दे रहा था।

इस जगह पर ऋषि के पीछे पीछे आकर चारो शैतान मंत्रमुग्ध होकर इधर उधर देखे जा रहे थे। वो बच्चा उनके साथ ही था किन्तु अभी भी वह अचेत अवस्था में ही था। जाने क्यों मगर अभी तक उसे किसी ने चेतन अवस्था में लाने के बारे में नहीं सोचा था।

"कितनी सुन्दर जगह है ये।" काया ने मुस्कुराकर कहा__"मुनिवर क्या यही है धरती का स्वर्ग?"
"हाॅ पुत्री।" ऋषि ने कहा__"ये धरती का स्वर्ग ही है। तुम सब हिमालय की गोंद में खड़े हो। यहाॅ हमेशा भगवान शिव शम्भू का वास होता है तथा सभी देवी देवता अपने अपने लोकों से यहाॅ आकर भगवान शिव की नित आराधना करते हैं। मुझ जैसे न जाने कितने ही ऋषि मुनि जाने कब से परमात्मा की तपस्या में लीन हैं।"

"हम सब कितने दुर्भाग्यशाली हैं ऋषिवर जो शैतान की योनि में फॅस गए हैं।" मेनका ने कहा__"और इतने वर्षों से उस परम पिता परमात्मा की भक्ति से वंचित हैं। जाने कब से हम इंसानी खून पी पीकर पाप कर रहें हैं, हमें कभी मुक्ति नहीं मिल सकती इस सबसे।"

"इस जीवात्मा को एक दिन हर योनि से मुक्ति मिलती है पुत्री।" ऋषि ने मुस्कुराते हुए कहा__"आत्मा किसी एक योनि में बॅध कर नहीं रहती, बल्कि समय सीमा के अनुसार तथा जीव के कर्मों के अनुसार वह अपना चोला बदलती रहती है। रही बात मुक्ति की तो मुक्ति भी मिलती है। ये अलग बात है कि इसके लिए हर प्राणी या जीव को अच्छे कर्म करने पड़ते हैं। ईश्वर की असीम भक्ति के बिना किसी भी जीवात्मा को मुक्ति नहीं मिल सकती। बल्कि प्राणी या जीव अपने अपने कर्मों के फलस्वरूप अनेकों योनियों में जन्म और मृत्यु के चक्कर में उलझा रहता है।"

"हे मुनिवर! क्या हम इस पाप योनि से मुक्त नहीं हो सकते?" रिशभ ने हाथ जोड़कर कहा__"यहाॅ आकर हमें ये एहसास हो रहा है कि हमने इस योनि में अब तक जो कुछ भी किया वह कितना बुरा और वीभत्स था। हमारे कर्म कितने बुरे थे, हमें हमारे उन बुरे कर्मों की वजह से कभी शान्ति या मुक्ति नहीं मिल सकती।"

"कोई भी योनि बुरी या पापी नहीं होती पुत्र।" ऋषि ने कहा__"ईश्वर की कोई भी रचना बुरी नहीं होती, बल्कि ईश्वर की हर रचना अद्वतीय होती है। प्राणी या जीव अपने कर्मों से उस योनि को अच्छा या बुरा बना बैठते हैं। मनुष्य योनि हर योनि से श्रेस्ठ है, तथा इस योनि को प्राप्त करने के लिए जीव को सत्कर्म करने पड़ते हैं तभी कोई जीव इस श्रेस्ठ योनि को प्राप्त कर पाता है। लेकिन इस श्रेस्ठ योनि को पाकर भी मनुष्य श्रेस्ठ कर्म नहीं करता, तो क्या तुम ये कह दोगे कि यह योनि बुरी है? नहीं पुत्र....बुरे तो सिर्फ प्राणी या जीव के कर्म होते हैं। हर योनि के प्राणी या जीवों में इतना दिमाग़ होता है कि उन्हें क्या और कैसे करना है। जिसने अच्छा कर्म किया उसे अच्छा प्रतिफल मिला और जिसने बुरा कर्म किया उसे बुरा फल मिल गया।"

"आपकी इस अमृत वाणी से हम सब धन्य हो गए भगवन।" वीर ने झुक कर ऋषि को प्रणाम करते हुए कहा__"हम सब अभी तक अज्ञान रूपी अंधकार में ही भटक रहे थे, आज आपने हमे इस ज्ञानरूपी रोशनी में नहला कर एक नया जीवन दिया है। अब से हमारा एक ही उद्देश्य रहेगा और वो है अच्छे कर्म करना तथा उस परम पिता की सच्चे मन से भक्ति करना।"

"तुम चारों ने शैतान योनि में भले ही जन्म लिया है किन्तु अब तुम शैतान नहीं रहे।" ऋषि ने कहा__"तुम चारों का मन अब साफ हो गया है, और जब किसी का मन स्वच्छ व पवित्र हो जाता है तब वह अच्छे कर्म ही करता है।"

"आज से आप ही हमारे मार्गदर्शक हैं तथा आप ही हमारे गुरू हैं।" मेनका ने कहा__"हम सब आपके ही मार्गदर्शन और आशीर्वाद से अब कोई कार्य करेंगे।"

"हाॅ ऋषिवर।" रिशभ ने कहा__"अब से आप ही हमारे गुरू हैं तथा भगवान भी। हम सब आपके द्वारा बताए गए मार्ग पर ही चलेंगे।"

"तुम चारों का ये श्रद्धा भाव देखकर हम प्रसन्न हुए पुत्रो।" ऋषि ने कहा__"हम देख रहे हैं कि आने वाले समय में ईश्वर तुम चारो के लिए क्या क्या कार्य सौंपने वाला है।"

"अब हम चारो के लिए क्या आदेश है गुरूदेव?" मेनका ने कहा__"आप ही अब आगे का रास्ता बताएॅ कि अब हम यहाॅ पर क्या करें?"

"ये स्थान तुम सबके रहने के लिए अतिउत्तम है।" ऋषि ने कहा__"अतः तुम सब यहीं पर अपने अपने लिए कुटिया बना कर रहो। ये बच्चा भी तुम सबके साथ ही रहेगा।"

"पर ये तो अभी अचेत अवस्था में है गुरूदेव।" काया ने कहा__"जब यह होश में आएगा तो जाने कैसा ब्यवहार करे? हम तो ये भी नहीं जानते कि इसके माता पिता कौन हैं तथा ये किन हालातों में हमारे पास पहुॅचा था? इसके माता पिता पर इसके गुम हो जाने पर क्या गुज़रेगी?"

"इस बच्चे की यही नियति है पुत्री।" ऋषि ने कहा__"और इसके लापता होने पर यकीनन इसके माता पिता बेहद दुखी होंगे लेकिन विधि के विधान को कोई टाल नहीं सकता। इस लिए अब किसी भी बात की ब्यर्थ चिन्ता मत करो। रही बात इसके चेतन अवस्था में आने के बाद इसके ब्यवहार की तो उसका भी समाधान है हमारे पास।"

इतना कहने के साथ ही वह ऋषि आगे बढ़ा और बच्चे के पास पहुॅचकर उसे ध्यान से देखा। कुछ देर ध्यान से देखने के बाद ऋषि ने अपने दाहिने हाॅथ को बच्चे के सिर पर रखा और अपनी आॅखें बंद कर ली। कुछ ही देर बाद उन्होने अपनी आॅखें खोल कर बच्चे के सिर से अपना हाॅथ हटाकर खड़े हो गए।

"कुछ ही देर में ये चेतन अवस्था में आ जाएगा।" ऋषि ने कहा__"उसके बाद इसका बर्ताव वैसा ही होगा जैसे यह हमेशा से यहीं रहता आया हो और तुम सबको ही अपना समझता हो। हमने इसके दिमाग़ से इसकी पिछली सब यादें मिटाकर अदृश्य कर दी हैं।"

"तो क्या अब इसे कुछ भी याद नहीं रहेगा गुरूदेव?" मेनका ने चौंकते हुए कहा__"मतलब अब ये बच्चा अपने माता पिता आदि सबको भूल चुका है?"

"हाॅ पुत्री।" ऋषि ने कहा__"इसके लिए यही उचित है और यही विधि का विधान भी है।"
"मुझे क्षमा करें गुरूदेव।" मेनका ने अजीब भाव से कहा__"किन्तु इस सबसे मुझे ऐसा लगता है जैसे इस बच्चे के दिमाग़ से इसकी पिछली सब यादें मिटा कर इस अबोध बच्चे के साथ अपराध हो गया है।"

"तुम ऐसा इस लिए कह रही हो पुत्री क्योंकि तुम इस बच्चे को अपना पुत्र मान चुकी हो।" ऋषि ने मुस्कुराकर कहा__"और तुम्हारे हृदय में अपने इस पुत्र के लिए ममता जाग चुकी है। उसी ममता के कारण तुम्हें ऐसा लगा कि तुम्हारे पुत्र की याददाश्त मिटा कर उसके साथ ग़लत किया गया। लेकिन तुम चिन्ता मत करो पुत्री क्योंकि इस सबके बाद जब तुम्हें अपने इस पुत्र द्वारा अपने लिए माॅ सुनने को तथा उसकी बाल क्रीड़ाओं का आनन्द देखने सुनने को मिलेगा तब तुम्हें एहसास होगा कि हमने जो किया वो ठीक ही था, क्योकि उस हालत में वो तुममें से किसी के पास जाता भी नहीं और अपने माता पिता की याद में रात दिन दुखी ही रहता।"

"कदाचित् आप सत्य कह रहे हैं गुरूदेव।" रिशभ ने कहा__"और वैसे भी यहाॅ से अब इस बच्चे का नये जन्म के साथ एक नया भविश्य बनने वाला है। ये सब तभी सहजरूप से संभव है जब ये बच्चा कोरे कागज़ की तरह ही हो। मन और दिमाग़ जब बिलकुल कोरे कागज़ की तरह होगा तो उस मन और दिमाग़ में जिस प्रकार भी हम जो चीज़ डालें वह अच्छी तरह ब्यवस्थित हो जाएगी।"

"तुम बिलकुल ठीक समझे हो पुत्र हम यही करना चाहते हैं।" ऋषि ने कहा__"ख़ैर अब किसी काम में विलम्ब न करते हुए तुम लोग शाम ढलने से पहले पहले अपने रहने की ब्यवस्था कर लो। हम शाम को तुम सबसे मिलने आएंगे।"

"जी गुरूदेव।" उन सबने एक साथ सिर झुकाकर कहा। जबकि ऋषि उनके सिर उठाने से पहले ही अंतरध्यान हो गए।

उन चारों ने जब अपने अपने सिर को उठाकर सामने उस ऋषि को न देखा तो चौंक गए। कुछ देर यूॅ ही बैठे रहने के बाद वो सब उठ कर खड़े हो गए।

"अब हमें भी सबसे पहले अपने अपने लिए एक कुटिया का निर्माण कर लेना चाहिए।" वीर ने कहा__"यहीं से कुछ पेड़ों को काट कर एक एक कुटिया बना लेते हैं।"

"हरे भरे पेड़ों को काटना ठीक नहीं होगा।" मेनका ने कहा__"ऐसा करना पाप है। इस लिए अगर कहीं टूटे हुए या सूखे हुए पेड़ मिलें तो उनके द्वारा ही कुटिया का निर्माण करना।"

"मुझे बहुत खुशी हुई बहना।" रिशभ ने हॅस कर कहा__"तुम अब इतना कुछ सोचने लगी हो। ख़ैर, मैं और वीर लकड़ी के लिए जा रहे हैं जबकि तुम दोनो यहीं रह कर इस बच्चे का ख़याल रखो।"

अभी कोई कुछ कहने ही वाला था कि मेनका की गोंद में लेटा हुआ वो बच्चा कसमसाते हुए होश में आ गया। अपनी नील सी झीली आॅखों से उसने इधर उधर देखा। उसकी नज़र सबसे पहले मेनका पर ही पड़ी।

"म माॅ।" उसके काॅपते होठों के बीच से ये शब्द निकला। जबकि अपने लिए बच्चे के मुख से माॅ सुनकर मेनका का हृदय गदगद हो गया। हृदय में हर्ष और ममता का एक तेज़ सैलाब उठा जिसके असर ने उसकी आॅखों को पर भर में छलका दिया।

"मे मेरे बच्चे।" मेनका ने भावना के वशीभूत होकर उसे अपने सीने से छुपका लिया और उसके चेहरे पर इधर उधर चूमने लगी।

ये देख बाॅकी तीनों की भी आॅखों में नमी आ गई। काया को उस बच्चे पर बड़ा प्यार आया उसने झुक कर उसके माॅथे पर चूम लिया।

"ये सब लोग कौन हैं माॅ?" बच्चे ने काया के साथ साथ वीर और रिशभ को भी देखकर कहा।

"वाह बेटा।" वीर कह उठा__"माॅ को पहचान लिया और हमें बेगाना बना दिया।"

वीर की इस बात से बच्चा अपनी माॅ मेनका की तरफ ना समझने वाले भाव से देखने लगा।

मेनका ने उसकी हालत को समझते हुए सबसे पहले काया की तरफ देख कर बच्चे से कहा__"ये काया है बेटा, ये तेरी मौसी है।" फिर मेनका ने रिशभ की तरफ इशारा करके कहा__"ये तेरे मामा हैं।" उसके बाद मेनका ने वीर की तरफ इशारा करके कहा__"और ये तेरे चाचू हैं।"

"मुझे भी मामा बना देना था न मेनका।" वीर ने हॅस कर कहा__"ये चाचू बड़ा ही बाबा आदम के ज़माने का शब्द लगता है, और वैसे भी मैं चाचू तो लगता नहीं। अभी तो मेरी खेलने कूदने की उमर है।"

"अच्छा जी।" काया ने हॅसते हुए कहा__"खेलने कूदने की उमर है? और जो दो सौ साल के हो गए उसका क्या?"
"मेरी उमर तो बता दिया तुमने।" वीर ने कहा__"और तुम जो दो सौ बीस की हो गई हो उसका क्या??"

"म मै दो सौ बीस की????" काया उछल पड़ी__"इस पवित्र स्थान पर आकर झूॅठ मत बोलो वीर पाप लगेगा तुम्हें। मैं तो अभी सोलह साल की ही हूॅ।"

"क् क्या????" अब उछलने की बारी वीर के साथ साथ सबकी थी। जबकि काया ने कहा__"ऐसे उछलने की कोई ज़रूरत नहीं है।"

"देख ले भाई।" वीर ने रिशभ से मुखातिब होकर कहा__"तेरी ये छोटकी कितना झूॅठ बोल रही है? इसके पहले ये मुझे ज्ञान दे रही थी कि इस पवित्र जगह पर आकर मैं झूॅठ न बोलूॅ और खुद झूॅठ की गठरी लेकर बैठ गई है।"

"तू सही कह रहा है मेरे दोस्त।" रिशभ ने वीर के कंधे को थपथपा कर अजीब अंदाज में कहा__"ये यकीनन झूॅठ बोल रही है, जबकि ये मुझसे पूरा पूरा तीन साल बड़ी है उमर में।"

"क् क्या????" इस बार तो हद ही हो गई थी। वीर, मेनका और काया आॅखें और मुॅह फाड़े रिशभ की तरफ देखने लगे थे। जबकि अपनी तरफ सबको इस तरह देखते देख रिशभ ने ना समझने वाले भाव से मूर्खों की भाॅति गर्दन लम्बी कर खड़ा रहा।

"भाई अगर मैं झूॅठ की गठरी लेकर बैठ गई हूॅ।" काया ने अपने दोनों हाॅथ कमर के दोनो तरफ रख कर कहा__"तो आप तो झूॅठ का समंदर लेकर बैठ गए हैं। खुद मुझसे बड़े हो उमर में और मुझसे छोटा बता रहे हो"

"तुम बिलकुल ठीक कह रही हो काया।" मेनका ने कहा__"ये तो शुरू से ही झूॅठ का पुतला था। माॅ पिता जी बताया करते थे कि जब मैं पैदा नहीं हुई थी तब भी ये पूरे राज्य में झूॅठ बोल कर जाने क्या क्या अफवाहें उड़ा दिया करता था।"

"क् क्या????????" सब तो उछले ही लेकिन रिशभ इस तरह उछला था जैसे अचानक ही किसी ने उसके पिछवाड़े पर गर्म सरिये से दाग़ दिया हो, फिर बोला__"हम सब तो जो कुछ थे वो थे ही लेकिन मेरी बड़ी बहना तुम तो सबकी दादी अम्मा ही बन गई। तुमने तो मुझे खुद से भी बड़ा बना दिया जबकि हम सबसे तुम ही बड़ी हो।"

"तुम सब बड़ी बड़ी फेंक रहे थे तो मैंने सोचा मैं ही क्यों पीछे रह जाऊॅ?" मेनका ने हॅस कर कहा__"आखिर सबसे बड़ी हूॅ तो सबसे बड़ी फेंकना मेरा भी फर्ज़ था।"

सब लोग हॅसी खुशी बातों में लगे थे जबकि मेनका की गोंद में लेटा बच्चा सबको बारी बारी से देखे जा रहा था।

"ओए अब बस भी करो।" सहसा काया की नज़र जब मासूम बच्चे पर पड़ी तो कह उठी वह__"देखो तो हमारी बातों को सुन कर ये कैसे देखे जा रहा है?"

"आप सब झूठ बोल रहे हैं।" सहसा बच्चे ने अपनी मासूमियत से सबको देखते हुए कहा__"अभी अभी मेरी माॅ ने मुझसे कहा कि जब मैं पैदा हुआ था तब मेरे नाना नानी भी पैदा नहीं हुए थे। मैं सच कह रहा हूॅ न माॅ??" अंतिम वाक्य बच्चे ने अपनी माॅ मेनकी से बड़े ही भोलेपन से कहा था। जिसे सुन कर मेनका ने हाॅ में अपने सिर को हिला दिया।

उधर बाॅकी सब बच्चे की ये बात सुन कर पहले तो बुरी तरह चौंके फिर जब बात समझ में आई तो सब जोर जोर से हॅसने लगे। उनमें से किसी की हॅसी ही नहीं बंद हो रही थी। हॅसते हॅसते उन सबके पेट में दर्द होने लगा।

"ये तो हम सबका दादा निकला यार।" वीर ने हॅसते हुए मेनका से कहा__"मेनका तुम्हारा ये बेटा तो हम सबके झूॅठ की धज्जियाॅ ही उड़ा दिया।"

"आखिर बेटा किसका है।" मेनका ने मानो गर्व से कहा।
"हम मान गए दीदी।" काया ने हॅसते हुए कहा__"कि ये आपका ही बेटा है। किसी दूसरे का हो ही नहीं सकता।"

"चलो अब बहुत हॅसी मज़ाक हो गया।" रिशभ ने कहा__"हमें अभी बहुत सारा काम भी करना है। शाम से पहले पहले हमें अपने अपने लिए कुटिया का निर्माण करना होगा। गुरूदेव शाम को शायद यही सब देखने आएंगे।"

"तुम ठीक कह रहे हो भाई।" वीर ने कहा__"हमे अब देर नहीं करना चाहिए। चलो अब चलते हैं।"

"मैं भी चलती हूॅ तुम लोगों के साथ।" काया ने कहा__"एक से भले दो और दो से भले तीन।"
"नहीं काया।" रिशभ ने कहा__"तुम यहीं रहो मेनका और बच्चे के पास। हम ये काम खुद कर लेंगे।"

रिशभ के कहने पर काया वहीं पर रुक गई जबकि वीर और रिशभ एक तरफ तेज़ी से बढ़ गए।

रिशभ और वीर ने अपनी मेहनत और लगन से शाम होने से पहले पहले रहने के लिए कुटिया का निर्माण कर लिया तथा कुटिया के आस पास के स्थान की साफ सफाई भी अच्छी तरह से कर ली थी जिससे वह स्थान अब देखने लायक हो गया था।
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मेनका और काया के देखते देखते कुटिया बन कर तैयार थी। दिखने में उनके हिसाब से यह अजीब तो थी किन्तु ठीक थी। दरअसल इसके पहले वो सब इस तरह के घर में नहीं रहे थे। बल्कि उनकी दुनियाॅ में उनके पिता शैतानों के राजा थे जो बेहतर तरीके से रहते थे।

"क्या हम सब इसी में रहेंगे?" काया ने कुटिया को ग़ौर से देखते हुए रिशभ से कहा__"ये तो बड़ी अजीब तरह की है।"
"अब हम पहले की तरह नहीं रहे मेरी बहन।" रिशभ ने कहा__"बल्कि अब हम इंसानी दुनियाॅ में एक साधारण मनुष्य की तरह बन गए हैं जो इस पवित्र जगह पर आकर अपने सांसारिक सुखों से दूर ईश्वर की आराधना करने आया है। और जब हम सांसारिक सुखों का त्याग करके ईश्वर की भक्ति करने लगते हैं तो फिर इन सब बातों का हमारे लिए कोई मतलब नहीं रह जाता कि हमारे लिए क्या चीज़ अच्छी है या क्या चीज़ बुरी है।"

"भाई ठीक कह रहा है काया।" मेनका ने कहा__"ऐसे पवित्र स्थान पर आकर अब हमारे मन में ईश्वर की भक्ति के सिवा किसी और चीज़ की अभिलाषा नहीं रहनी चाहिए। क्योकि किसी चीज़ की अभिलाषा या इच्छा से ईश्वर की भक्ति नहीं हो सकती। हमें अपना सुख दुख और अपनी इच्छाओं का त्याग करके सिर्फ ईश्वर की भक्ति में ही मन लगाना है।"

"मुझे माफ़ कर दो दीदी।" काया ने कहा__"कुछ देर के लिए जाने क्या सोच बैठी थी मैं? मैं ये बात भूल गई थी कि हम किस उद्देश्य से यहाॅ आए हैं।"

"कोई बात नहीं काया।" मेनका ने मुस्कुरा कर कहा__"हममें से किसी को भी अभी इस सबकी आदत नहीं है इस लिए ऐसी भूल चूक का हो जाना स्वाभाविक बात है। जब इन सब चीज़ों में मन लग जाएगा और इन सबकी आदत पड़ जाएगी तो सब ठीक हो जाएगा। और वैसे भी गुरूदेव हमें अपने रास्ते से भटकने नहीं देंगे। उनके आशीर्वाद और मार्गदर्शन से हम हमेशा ही आगे बढ़ते रहेंगे।"

इन सब के बीच ऐसी ही बातें होती रहीं। कुटिया के अंदर किसी ने अपने कदम नहीं रखे। मेनका ने कहा था कि इस कुटिया में प्रवेश करने से पहले हमें अपने गुरूदेव का आशीर्वाद लेना चाहिए। मेनका की ये राय और बात सबको उचित और ठीक लगी इस लिए सब बाहर ही बैठे बातें करते रहे। साथ ही उस बच्चे की मनोरंजन से भरपूर बातों का भी लुत्फ भी लेते रहे। बातों बातों में ही शाम हो गई। सब लोग अब गुरूदेव का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे।



दोस्तो अपडेट हाज़िर है......
आप सबकी राय और प्रतिक्रिया का बेसब्री से इन्तज़ार रहेगा.....
Bahot shaandaar update dost
 

Naik

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राज-रानी (बदलते रिश्ते)
**अपडेट** (04)

अब तक......

"भाई ठीक कह रहा है काया।" मेनका ने कहा__"ऐसे पवित्र स्थान पर आकर अब हमारे मन में ईश्वर की भक्ति के सिवा किसी और चीज़ की अभिलाषा नहीं रहनी चाहिए। क्योकि किसी चीज़ की अभिलाषा या इच्छा से ईश्वर की भक्ति नहीं हो सकती। हमें अपना सुख दुख और अपनी इच्छाओं का त्याग करके सिर्फ ईश्वर की भक्ति में ही मन लगाना है।"

"मुझे माफ़ कर दो दीदी।" काया ने कहा__"कुछ देर के लिए जाने क्या सोच बैठी थी मैं? मैं ये बात भूल गई थी कि हम किस उद्देश्य से यहाॅ आए हैं।"

"कोई बात नहीं काया।" मेनका ने मुस्कुरा कर कहा__"हममें से किसी को भी अभी इस सबकी आदत नहीं है इस लिए ऐसी भूल चूक का हो जाना स्वाभाविक बात है। जब इन सब चीज़ों में मन लग जाएगा और इन सबकी आदत पड़ जाएगी तो सब ठीक हो जाएगा। और वैसे भी गुरूदेव हमें अपने रास्ते से भटकने नहीं देंगे। उनके आशीर्वाद और मार्गदर्शन से हम हमेशा ही आगे बढ़ते रहेंगे।"

इन सब के बीच ऐसी ही बातें होती रहीं। कुटिया के अंदर किसी ने अपने कदम नहीं रखे। मेनका ने कहा था कि इस कुटिया में प्रवेश करने से पहले हमें अपने गुरूदेव का आशीर्वाद लेना चाहिए। मेनका की ये राय और बात सबको उचित और ठीक लगी इस लिए सब बाहर ही बैठे बातें करते रहे। साथ ही उस बच्चे की मनोरंजन से भरपूर बातों का भी लुत्फ भी लेते रहे। बातों बातों में ही शाम हो गई। सब लोग अब गुरूदेव का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे।


अब आगे.......

चारो वैम्पायर उस मासूम बच्चे के साथ कुटिया के बाहर यूॅ ही ज़मीन पर बैठे तरह तरह की बातों से अपना समय ब्यतीत कर रहे थे। शाम का धुंधलका छाने लगा था तथा वातावरण में ठण्ड बढ़ गई थी, वैसे भी वो जिस जगह थे वहाॅ पर हमेशा ही ठण्ड का मौसम रहता है। वैम्पायर तो ठण्ड के आदी होते हैं क्योंकि वो ऐसी ही जगह रहते हैं किन्तु वो बच्चा इस सबका आदी नहीं था। इस लिए अब वह ठण्ड से काॅपने लगा था। मेनका ने उसे अपने सीने में छुपा रखा था मगर ये काफी नहीं था उस मासूम बच्चे के लिए। शाम के बाद अब रात घिरने लगी थी किन्तु गुरूदेव अब तक नहीं आए थे। गुज़रते वक्त के साथ साथ उन सबकी ब्याकुलता और बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी।

"भाई गुरूदेव तो अब तक नहीं आए जबकि वो कह कर गए थे कि वो शाम को हम सबसे मिलने आएंगे।" वीर ने बेचैनी से कहा__"शाम से अब रात भी होने लगी है। क्या हम इसी तरह उनके इंतज़ार में यहाॅ बैठे रहेंगे?"

"गुरूदेव ज़रूर आएंगे वीर।" मेनका ने कहा__"वो हम सबसे झूॅठ नहीं बोलेंगे।हमें बस धैर्य के साथ उनकी प्रतीक्षा करते रहना चाहिए।"

"मगर कब तक मेनका?" वीर ने कहा__"इस बच्चे की हालत तो देखो, इस ठण्ड में यह बुरी तरह काॅप रहा है। तुमने मुझे अलाव भी नहीं जलाने दिया, कम से कम आग की तपिश में इस बच्चे को ठण्ड से कुछ तो राहत मिलती। कैसी माॅ हो तुम जो अपने बेटे की इस हालत को देखकर भी इसके भले के बारे में नहीं सोच रही हो?"

"मेरे माॅ होने पर सवाल मत खड़ा करो वीर।" मेनका ने कहा__"इसे इस हालत में देख कर मुझे कोई खुशी नहीं मिल रही है बल्कि इसकी इस हालत को देखकर मेरा हृदय हाहाकार कर रहा है मगर अपनी ममता तथा लाड प्यार को सख्ती से दबाकर इसे इस वातावरण में जीने के लायक बना रही हूॅ। इसे अभी से हर तरह के माहौल में कठोर परिश्रम करके आगे बढ़ना होगा। भविश्य में इसके द्वारा जो संसार का कल्याण होना है उसके लिए इसे उस लायक बनाना भी एक माॅ का फर्ज़ है।"

"यकीनन तुम्हारी बातों में बहुत बड़ी सच्चाई है बहना।" रिशभ ने कहा__"और मुझे खुशी है कि तुम इस बच्चे के लिए ऐसा सोचती हो। अपनी ममता और प्यार से इसे कमज़ोर नहीं बनाना चाहती ये बहुत अच्छी बात है।"

"लेकिन इस सबके लिए इतना भी कठोर मत बन जाना कि इसे अपनी ममता और अपने प्यार से वंचित ही कर दो।" वीर ने कहा__"क्योंकि इसके बिना इसका स्वभाव बदल जाएगा और यह किसी की भावनाओं को नहीं समझ पाएगा। भविश्य में इसके द्वारा होने वाले संसार के कल्याण में प्यार और स्नेह की भावना का ज्ञान होना भी जरूरी है। जिससे यह किसी के प्यार व स्नेह की भावना का एहसास कर भी सके और खुद भी किसी को प्यार और स्नेह दे सके।"

"इसे सबकुछ मिलेगा वीर।" मेनका ने कहा__"यह किसी चीज़ से वंचित नहीं रहेगा। हम सबके द्वारा तथा गुरूदेव के आशीर्वाद से यह यकीनन एक महान इंसान बनेगा।"

"प्यार और स्नेह हम देंगे इसे।" काया ने कहा__"और एक अच्छा इंसान तथा सभी गुणों से परिपूर्ण इसे गुरूदेव बनाएॅगे।"

"बिलकुल।" रिशभ ने कहा__"गुरूदेव की ही कृपा से यह भविश्य का महान ब्यक्ति बनेगा।"

"आप सब कितना बोलते हैं।" सहसा उस बच्चे ने मेनका के सीने से अपना सिर उठाकर कहा__"मेरे तो कानों में दर्द होने लगा।"

बच्चे की इस बात से सब हॅसने लगे। जबकि मेनका ने उसके सिर पर प्यार से हाॅथ फेर कर कहा__"अब कोई कुछ नहीं बोलेगा। अच्छा ये बताओ तुम्हें भूॅख लगी है?"

"हाॅ माॅ।" बच्चे ने बड़ी मासूमियत से कहा__"मुझे बहुत भूॅख लगी है।"
"अच्छा।" मेनका ने कहा__"क्या खाएगा मेरा बेटा?"

"मुझे नहीं पता माॅ।" बच्चे ने कहा__"बस भूॅख लगी है। कुछ खाने को दो न माॅ।"

मेनका ने हाॅ में सिर हिलाया और सबकी तरफ देखने लगी। जैसे कह रही हो कि अब क्या खिलाऊॅ इसे...क्योंकि यहाॅ पर भोजन का अभी कोई प्रबंध न हुआ था।

मेनका के मन की बात सब समझ गए, किन्तु अब कोई क्या कर सकता था इसके लिए यही सवाल खड़ा हो गया था। सब इस बात से लगभग परेशान हो गए कि बच्चे को कहाॅ से कुछ खाने को लाया जाए???

रात अब काफी गहरा चली थी किन्तु गुरूदेव का कहीं कोई पता न था। सबकी उम्मीद सिर्फ गुरूदेव पर कायम थी। ये चारो वैम्पायर चाहते तो अपनी शक्ति से कुछ तो कर ही सकते थे किन्तु मेनका ने सबको इस सबके लिए मना कर दिया था। उसका कहना था कि इस नये जीवन में वो अब अपनी किसी भी शक्ति का प्रयोग नहीं करेंगे बल्कि अब से वो भी आम इंसानों की तरह ही शारीरिक और मानसिक श्रम कर के कोई चीज़ हासिल करेंगे।

लेकिन बच्चे की भूॅख के चलते अब समस्या हो गई थी कि इस समय बच्चे के लिए भोजन का प्रबंध वो सब अब कहाॅ से और कैसे करें???

"माॅ बहुत भूॅख लगी है।" बच्चे ने फिर मेनका की तरफ देख कर कहा__"कुछ खाने को दो न।"

मेनका को अपनी बेबसी पर रोना आ गया। उसे इस बात ने रुला दिया कि उसका बेटा भूॅखा है और वह उसकी भूॅख को शान्त करने के लिए कुछ नहीं कर पा रही है।

"मैं तो कहता हूॅ कि इस वक्त सिर्फ इस बच्चे के लिए हमें अपनी शक्ति से इसके भोजन का कोई इंतजाम कर लेना चाहिए।" वीर ने कहा__"क्योंकि रात के इस वक्त कहाॅ से और कैसे हम इसके लिए कोई खाने का प्रबंध कर सकते हैं? आज रात बस की बात है कल से हम कुछ न कुछ खाने का प्रबंध कर ही लेंगे।"

"मैं वीर की बात से सहमत हूॅ बहना।" रिशभ ने कहा__"इस वक्त हमारे पास अपनी शक्तियों के प्रयोग के सिवा कोई दूसरा चारा नहीं है।"

"मैं भी वीर और भाई की बात से सहमत हूॅ दीदी।" काया ने कहा__"कल से हम कुछ उपाय ज़रूर करेंगे इस सबका।"

"हर्गिज़ नहीं।" मेनका ने मजबूती से कहा__"मैं तुम में से किसी को अपनी शक्तियों के प्रयोग की इजाज़त नहीं दे सकती। किसी भी काम में इतनी जल्दी अपनी शक्तियों का प्रयोग करने के लिए नहीं सोचना चाहिए, बल्कि उसके पहले शारीरिक और मानसिक कर्म ही करना चाहिए। जब अन्य कोई विकल्प न हो तब शक्तियों के प्रयोग का सोचो। तुम सब यहाॅ बैठै बैठै और बिना कुछ परिश्रम किये ही ये सोच बैठे कि भोजन के प्रबंध के लिए शक्तियों के प्रयोग के अलावा दूसरा कोई चारा ही नहीं है। जबकि सोचना तथा करना ये चाहिए था कि यहाॅ से उठकर आस पास जाते और वो चीज़ ढूॅढ़ते जिस चीज़ को खाने से एक इंसान अपनी क्षुधा को शान्त करता है। मुझे पता है कि यहाॅ इस वक्त इस बच्चे के लिए दाल चावल रोटी या दूध मिलना संभव नहीं है किन्तु बहुत मुमकिन है कि आस पास कहीं फल वगैरा मिल जाए जिसे ये बच्चा खा सके।"

"तुम बिलकुल ठीक कह रही हो मेरी प्यारी बहना।" रिशभ ने कहा__"हमने तो इसके बारे में सोचा ही नहीं था। इस जगह पर यकीनन कहीं न कहीं स्वादिस्ट फल मिल सकते हैं। मैं और वीर अभी जाते हैं, तुम और काया इस बच्चे का खयाल रखना। चल वीर।"

"मामा जी आप जाइए।" सहसा बच्चे ने कहा__"मैं अपनी माॅ और मौसी का अच्छे से ख़याल रखूॅगा।"

"हाहाहाहा तू सच में ख़याल रखेगा मेरे बहादुर भाॅजे।" रिशभ ने हॅसते हुए कहा और फिर बच्चे के सिर पर प्यार से हाॅथ फेर कर वीर को साथ लेकर मेनका से ये कहते हुए निकल गया कि__"गुरूदेव आएं तो उन्हें बता देना कि हम इस बच्चे के लिए भोजन का प्रबंध करने गए हैं।"

रिशभ और वीर के जाने के बाद ये तीनो आपस में बातें करने लगे।

"और तो सब ठीक है दीदी।" काया ने कुछ सोचकर कहा__"लेकिन क्या आपने इस बात पर विचार किया है कि हम लोगों के यहाॅ आ जाने के बाद हमारी उस दुनियाॅ में माॅ पिता जी क्या करेंगे जब हम लोग वापस नहीं लौटेंगे तो?"

"इस बारे में अब कुछ भी सोचने विचारने का कोई मतलब नहीं रह गया काया।" मेनका ने सहसा गंभीर होकर कहा__"यहाॅ आने के बाद अब उस दुनियाॅ से हमारा कोई नाता नहीं रहा। अब से यही हमारी दुनियाॅ है और यहीं पर हमारी कर्मभूमि है।"

"इसके पहले हममें से किसी ने ये ख़्वाब में भी नहीं सोचा था कि।" काया ने कहा__"हमारे जीवन में आगे कभी ऐसा भी समय आएगा।"

"ईश्वर सबके लिए कुछ न कुछ प्रारब्ध में लिख रखा होता है काया।" मेनका ने कहा__"इस संसार में हर प्राणी या जीव उस ऊपर वाले के ही हाॅथ का खिलौना हैं। वो जैसा चाहे वैसा ही हम सबके द्वारा खेल खेल सकता है।"

"मुझे भी खेलना है माॅ।" बच्चे ने सिर उठाकर मेनका से कहा__"लेकिन यहाॅ मैं किसके साथ खेलूॅगा?"

"तुझे तो भविश्य में बहुत बड़ा खेल खेलना है मेरे लाल।" मेनका ने मुस्कुरा कर कहा__"एक ऐसा खेल जिसे तेरे सिवा दूसरा कोई आम इंसान नहीं खेल सकता।"

"तो फिर उस खेल का क्या फायदा माॅ।" बच्चे ने बुरा सा मुह बना कर कहा था__"मैं अकेले खेलते खेलते थक जाऊॅगा। नहीं माॅ, मैं अकेले नहीं खेलूॅगा...आप भी खेलना मेरे साथ और मामा जी भी खेलेंगे और...और मौसी को भी हम साथ में खिलाएंगे...और हाॅ माॅ, चाचू को भी खिलाएंगे। बहुत मज़ा आएगा....हीहीहीही...हम सब साथ में खेलेंगे। मैं सबको हरा दूॅगा देख लेना।"

"हाॅ मेरा बेटा सबको हरा देगा।" मेनका ने बच्चे के माथे पर प्यार से चूॅम कर कहा।
"हाॅ पर तू अपनी मौसी को नहीं हरा पाएगा बच्चू लाल।" काया ने शरारत से बच्चे के गोरे गोरे और फूले फूले गालों को अपने दोनो हाॅथ की चुटकियों से हल्का सा खींच कर कहा__"तेरी मौसी तुझे ही हरा देगी, देख लेना।"

अपनी मौसी की बात सुनकर बच्चे ने अपनी माॅ की तरफ देखा फिर बड़ी मासूमियत से बोला__"मैं सबको हरा दूॅगा न माॅ??"

"हाॅ बेटे तू सबको हरा देगा।" मेनका ने कहा__"तुझसे कोई नहीं जीत पाएगा, तेरी ये मौसी भी तुझसे हार जाएगी। सब कोई तुझसे हार जाएगा मेरे बेटे।"

अपनी माॅ की ये बात सुनकर बच्चे ने काया की तरफ मुस्कुरा कर देखा फिर बोला__"सुन लिया न आपने कि मेरी माॅ ने क्या कहा? मुझसे सब कोई हार जाएगा, आप भी..हीहीहीहीही। मैं सबको हरा दूॅगा।"

"ठीक है।" काया ने मासूम सी शकल बनाकर कहा__"पर तू अपनी इस मौसी को मत हराना नहीं तो मैं रोने लगूॅगी फिर।"कहने के साथ ही काया ने रोनी सी सूरत बना ली, जिसे देख बच्चा जल्दी से अपनी माॅ की गोंद से ठण्ड लगने के बावजूद उठ कर खड़ा हुआ और काया के पास जाकर उसके खूबसूरत चेहरे को अपने छोटे छोटे हाॅथ की हथेलियों में लेकर बड़े ही मार्मिक भाव से बोला__"नहीं मौसी, आप मत रोना। मैं आपको नहीं हराऊॅगा। लेकिन बाॅकी सबको हरा दूॅगा, ठीक है न??"

बच्चे की इस क्रिया से काया के हृदय में एकाएक भावनाओं का एक तेज़ सैलाब उमड़ा जिसके असर से उसकी आॅखें छलक पड़ी और उसने उस बच्चे को तुरंत ही अपने सीने से छुपका लिया। मेनका ये सब देख मुस्कुरा रही थी।

"दीदी ये कैसा एहसास है?" काया ने बच्चे को अपने सीने से छुपकाए हुए ही मेनका की तरफ देखकर कहा__"ऐसा लगता है जैसे मेरे सीने में कोई जज़्बातों का भयंकर तूफान ताडव कर रहा है।"

"ऐसा सिर्फ तभी होता है काया जब हम किसी को सच्चे मन से अपना मान लेते हैं।" मेनका ने कहा__"जब किसी से आत्मा की गहराइयों तक रिश्ता जुड़ जाता है तथा जब किसी से अटूट स्नेह व प्यार हो जाता है। तुमने जिस भावना के बहाव में बहकर इस बच्चे को अपने सीने में जोर से छुपकाया हुआ है उससे यही पता चलता है कि तुम्हारे अंदर अब इस बच्चे के लिए एक खास स्थान हो गया है। इस बच्चे से अब तुम्हें स्नेह व प्यार हो गया है तथा इसके लिए तुम्हारे हृदय में ममता जाग गई है।"

"आप बिलकुल सत्य कह रही हैं दीदी।" काया ने कहा__"इस बच्चे से अब मेरी ममता जुड़ गई है। इसके पहले मैं सोचती थी कि आपने कैसे इसे इस तरह अपना लिया था? मगर अब मुझे एहसास हो चुका है दीदी...और अब अगर आप बुरा न मानें तो एक बात कहना चाहती हूॅ।"

"बेझिझक कहो छोटी।" मेनका ने मुस्कुरा कर कहा__"तुम्हारी किसी बात से मुझे बुरा लग जाए ऐसा नहीं हो सकता। कहो क्या कहना चाहती हो?"

"यही कि जिस तरह आपने इसे अपना बेटा मान लिया है।" काया ने हिचकिचाते हुए कहा__"तो क्या मैं भी इसे अपना बेटा मान सकती हूॅ?"

"बिलकुल मान सकती हो काया।" मेनका ने कहा__"तुम इसकी माॅ जैसी ही तो हो। मौसी(माॅसी) का अर्थ यही तो होता है। मुझे खुशी है कि मेरे बेटे की अब दो दो माॅ हो गई हैं।"

"धन्यवाद दीदी।" काया ने खुश हो कर कहा__"मैं बता नहीं सकती कि इस सबसे मैं कितना खुश हो गई हूॅ।"

मेनका ने आगे बढ़कर काया को अपने हृदय से लगा लिया। कुछ देर तक दोनो इसी तरह रहे, उनके बीच में वो बच्चा भी था। कुछ देर बाद तीनो अलग हुए।

"दीदी, गुरूदेव तो अभी तक नहीं आए?" काया ने कहा__"आधे से ज्यादा रात गुज़र चुकी है, और अब आएंगे भी या नहीं?"

"कुछ कहा नहीं जा सकता।" मेनका ने कहा__"वैसे आना होता तो शाम होने के बाद तथा रात होने से पहले ही आ जाते। किन्तु फिर भी कुछ कहा नहीं जा सकता।"

"तो क्या हमें अब रात भर उनके आने की प्रतीक्षा ही करनी पड़ेगी?" काया ने कहा।
"हो सकता है कि वो हम लोगों के धैर्य व संयम की परीक्षा ले रहे हों।" मेनका ने सोचने वाले भाव से कहा__"संभव है वो हमारे आस पास ही अदृश्य रूप में मौजूद हों और हम लोगों के क्रिया कलापों को देख रहे हों।"

"आप ठीक कह रही हैं दीदी।" काया ने कहा__"यकीनन ऐसा हो सकता है।"
"ये वीर और भाई पता नहीं कब तक आएंगे?" मेनका ने कहा__"कितनी देर हो गई उन लोगों को यहाॅ से गए हुए।"

"आते ही होंगे दीदी।" काया ने अपने सीने में छुपकाए बच्चे की तरफ एक नजर से देखने के बाद कहा__"वैसे दीदी, मैने सुना है कि रात के इस वक्त किसी भी पेड़ पौधे से फल या फूल नहीं तोड़ना चाहिए, ऐसा करना पाप होता है। फिर आपने उन लोगों को फल लाने के लिए क्यों भेज दिया था? क्या आपको ये बात पता नहीं है?"

"पता है काया।" मेनका ने मुस्कुरा कर कहा__"किन्तु अगर किसी पेड़ पौधे से उसके फल फूल तोड़ने से पहले प्रार्थना की जाए या अपने इस पाप के लिए क्षमा माॅग ली जाए तो पाप नहीं लगता। अब देखना ये है कि वीर और भाई क्या कर के आते हैं? यहाॅ से जाने से पहले मैंने उनसे ये सब करने को नहीं कहा था, मैं बस देखना चाहती हूॅ कि ये दोनो इस बात से अंजान होकर पाप करके आते हैं या फिर ये सब जानते हुए वही सब करते हैं जो वास्तव में उचित होता है।"

अभी काया कुछ कहने ही वाली थी कि रिशभ और वीर आ गए। उन दोनो के हाॅथ में कुछ न कुछ था। किन्तु मेनका और काया ये देख कर बुरी तरह चौंकी कि वीर और रिशभ दोनों के ही कपड़े कई जगह से फटे हुए थे।

"क्या हुआ तुम दोनो के साथ?" मेनका ने चिंतित भाव से पूछा__"ये तुम लोगों के कपड़े क्यों फटे हुए हैं?"
"ये क्या हाल बना रखा है आप दोनो ने?" काया ने अधीरता से कहा__"कहीं कोई घटना घटी है क्या आप दोनो के साथ?"

"ऐसी कोई बात नहीं है।" रिशभ ने कहा__"सब ठीक है। ये लो हम दोनो को ये कुछ फल मिले हैं। इनमें से जो साफ सुथरे हों उन्हें इस बच्चे को खिला दो। हम लोग इस सब में ये भूल ही गए थे कि ये बच्चा दो दिन से भूखा है।"

"लेकिन तुम दोनो ने ये तो बताया नहीं कि तुम लोगों के ये कपड़े कैसे फटे हुए हैं?" मेनका ने कहा__"सच सच बताओ कि बात क्या है?"

"अरे ये तो कॅटीली झाड़ियों की वजह से फट गए हैं बहना।" रिशभ ने कहने के साथ ही वीर की तरफ पलट कर कहा__"तू बता भाई मैं सच कह रहा हूॅ न?"

"ये ठीक कह रहा है मेनका।" वीर ने जल्दी से कहा__"वहाॅ पर बहुत ज्यादा कॅटीली झाड़ियाॅ थी। जिसकी वजह से हमारे कपड़े उन झाड़ियों में फॅस फॅस कर फट गए।"

वीर की बात सुन कर मेनका और काया ने दोनो के चेहरों की तरफ बारी बारी से अविश्वास भरे भाव से देखा।

"दीदी, ये दोनो ही हमसे झूठ बोल रहे हैं?" काया ने मेनका से कहा__"कुछ तो बात है जो ये दोनो हमसे छुपा रहे हैं।"

"इस बारे में हम बाद में बात करेंगे।" मेनका ने वीर और रिशभ की तरफ अजीब भाव से देख कर कहा__"पहले अपने बेटे की भूख को तो शान्त कर लूॅ।"

वीर और रिशभ ने राहत की साॅस ली और एक तरफ जा कर बैठ गए। जबकि मेनका और काया फलों मे से कुछ अच्छे व साफ सुथरे फल छाॅट कर रख दिया। मेनका ने देखा कि काया की गोंद मे वो बच्चा सोया हुआ है। सोते हुए बेहद मासूम नज़र आ रहा था वो। उसके होठों पर मनमोहक मुस्कान थी, कदाचित कोई सुंदर ख़्वाब देख रहा था वह।

"देखो तो कैसे भूखा ही सो गया मेरा बच्चा।" काया ने बच्चे के सिर पर प्यार से हाॅथ फेर कर कहा__"कितना प्यारा और मासूम दिख रहा है दीदी। कहीं मेरी नज़र न लग जाए इसे। हे ईश्वर! इसे हर बला से दूर रखना।"

"अभी इसे सोने देते हैं काया।" मेनका ने कहा__"इसे नींद से जगाना उचित नहीं है। जब ये दुबारा जगेगा तो हम इसे ये फल खिला देंगे जिससे इसकी भूॅख शान्त हो जाएगी।"

"दीदी, जब इसे इस हालत में देख कर हमारी ये हालत हो जाती है तो ज़रा सोचिए।" काया ने कहा__"सोचिए कि उन माॅ बाप पर क्या गुज़र रही होगी जिन्होंने इसे जन्म दिया है?"

"उस सबकी कल्पना से ही जान सूख जाती है छोटी।" मेनका ने गंभीरता से कहा__"मगर क्या किया जा सकता है? इसकी तकदीर में विधाता ने जाने क्या क्या लिख दिया है।"

काया चुप रह गई और अपनी गोंद में सोये हुए बच्चे को करुण भाव से देखती रही। कुछ ही देर में सुबह होने वाली थी। कोई नहीं जानता था कि आने वाली सुबह अपनी आस्तीन में छुपा कर क्या तोहफा लाएगी???


अपडेट हाज़िर है दोस्तो.....
आप सबकी प्रतिक्रिया का इन्तज़ार रहेगा,,,,,,
Shaandaar update dost
 

Naik

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**अपडेट** (05)


अब तक......

"देखो तो कैसे भूखा ही सो गया मेरा बच्चा।" काया ने बच्चे के सिर पर प्यार से हाॅथ फेर कर कहा__"कितना प्यारा और मासूम दिख रहा है दीदी। कहीं मेरी नज़र न लग जाए इसे। हे ईश्वर! इसे हर बला से दूर रखना।"

"अभी इसे सोने देते हैं काया।" मेनका ने कहा__"इसे नींद से जगाना उचित नहीं है। जब ये दुबारा जगेगा तो हम इसे ये फल खिला देंगे जिससे इसकी भूॅख शान्त हो जाएगी।"

"दीदी, जब इसे इस हालत में देख कर हमारी ये हालत हो जाती है तो ज़रा सोचिए।" काया ने कहा__"सोचिए कि उन माॅ बाप पर क्या गुज़र रही होगी जिन्होंने इसे जन्म दिया है?"

"उस सबकी कल्पना से ही जान सूख जाती है छोटी।" मेनका ने गंभीरता से कहा__"मगर क्या किया जा सकता है? इसकी तकदीर में विधाता ने जाने क्या क्या लिख दिया है।"

काया चुप रह गई और अपनी गोंद में सोये हुए बच्चे को करुण भाव से देखती रही। कुछ ही देर में सुबह होने वाली थी। कोई नहीं जानता था कि आने वाली सुबह अपनी आस्तीन में छुपा कर क्या तोहफा लाएगी???


अब आगे.......

इसी तरह सारी रात गुज़र गई किन्तु गुरूदेव को तो जैसे न आना था और ना ही आए। गुरूदेव के इन्तज़ार में सभी वैम्पायर्स ने यूॅ ही सारी रात वहीं ज़मीन में बैठे एक दूसरे के साथ बातों में गुज़ार दी।

सुबह हुई! एक नये दिन तथा एक नये जीवन का शुभारम्भ हुआ। हिमालय के ऊॅचे ऊॅचे पहाड़ों से छॅट कर सूरज की किरणें हर तरफ फैली हुई नज़र आने लगी थी। आस पास जहाॅ जहाॅ तक नज़र जाती थी वहाॅ वहाॅ की खूबसूरती देखते ही बनती थी। वातावरण में एक ऐसी शान्ती विद्यमान थी जो मन और आत्मा को असीम सुख और शान्ती प्रदान कर रही थी।

सभी लोग रात भर के जगे थे किन्तु उनकी आॅखों में नींद के बोझ का ज़रा भी एहसास नहीं होता था, कदाचित् इसकी वजह ये थी कि वो सब शैतान थे। उनके पास अपनी शैतानी ताकतें थीं। जिसके प्रभाव से उन्हें इस सबका ज्यादा असर नहीं होता था। वो सब इंसानी खून पीकर ही ज़िन्दा रहते थे। लेकिन अब उन सबका भी जीवन बदल चुका था। अब उन्हें भी इंसान की तरह ही जीना था इंसानी तौर तरीकों के साथ।

गुरूदेव के न आने से वो सब निराश और परेशान तो थे किन्तु इस बात का उन्हें विश्वास भी था कि गुरूदेव ज़रूर आएॅगे, चाहे देर सवेर से ही आएं।

सुबह होने पर वीर और रिशभ ने आस पास का मुआयना कर लिया था। कुटिया से कुछ ही दूरी पर एक नदी बह रही थी। उन लोगों ने बच्चे को शौच क्रिया से फारिग़ करा कर उस नदी में उसे स्नान कराया और खुद भी बेखौफ होकर नहाए, और उसी नदी के जल से सबने सूर्य देवता को जल अर्पण करके उनकी पूजा भी की। ये सब मेनका के कहने पर हुआ था।

सब कामो से फुर्सत होकर वो सब वापस कुटिया के पास आ गए, और सब वहीं ज़मीन में बैठ कर तथा अपने अपने हाॅथ जोड़ते हुए आॅखें बंद करके गुरूदेव का ध्यान करने लगे।

काफी देर तक वो सब इसी मुद्रा में बैठे रहे। उन सबको देख कर वो बच्चा भी उनकी तरह ही अपने हाॅथ जोड़े तथा आॅखें बंद किये बैठा था अपनी दोनों माॅओं के पास।

"आॅखें खोलो पुत्रो।" तभी ये कहते हुए गुरूदेव उन सबके सामने प्रकट हो गए।

इस आवाज़ को सुनते ही सबने अपनी अपनी आॅखें खोली और सामने गुरूदेव को खड़े देख सिर झुका कर उन्हें नमस्कार किया।

"हम तुम सबसे बहुत अधिक प्रसन्न हैं पुत्रों।" गुरूदेव ने मुस्कुराते हुए किन्तु मधुर स्वर में कहा__"हम देख रहे थे कि किस तरह तुम सबने अपने धैर्य और संयम के साथ हर कार्य किया। शैतान होते हुए भी तुम सबने अपने मन को काबू में रखा और अपनी शैतानी शक्तियों का कहीं भी कोई प्रयोग नहीं किया। बच्चे की भूख को शान्त करने के लिए रात्रि में कैसे वीर और रिशभ ने फल आदि ढूॅढ़ कर लाए। इस कार्य में इन दोनो को दो दो जंगली भेड़ियों का भी सामना करना पड़ा, जिसमें इन लोगों ने इंसान की तरह ही उन भेड़ियों का मुकाबला किया, इसके लिए इन दोनो ने अपनी शैतानी शक्ति का प्रयोग नहीं किया। हम देख रहे थे कि तुम लोगों ने अपने लिए जिस कुटिया का निर्माण किया उसमें अब तक प्रवेश नहीं किया, क्योंकि इसके लिए तुम सब हमारे आशीर्वाद के लिए हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे। तुम सबने एक साधारण मनुष्य की भाॅति ही आचरण किया, इस लिए पुत्रों हम तुम सबसे अति प्रसन्न हैं।"

गुरूदेव की बातें सुन कर सबके चेहरे खिल उठे। मन में एक परमसुख का एहसास हुआ उन लोगों को। हलाॅकि मेनका और काया गुरूदेव की इस बात को सुनकर बुरी तरह चौंकी थी कि रात फल लाने के चक्कर में रिशभ और वीर को जंगली भेड़ियों का मुकाबला करना पड़ा था। तभी तो इन दोनो के कपडें फटे हुए थे। लेकिन इन लोगों ने ये बात हमसे छुपाई क्यों थी? शायद इस लिए कि हम दोनों बहनें ये सब जानकर परेशान न हो जाएं। निःसंदेह यही बात थी।

"आप हम लोगों के कार्य से प्रसन्न हुए गुरूदेव।" मेनका ने कहा__"ये हम सबके लिए बहुत बड़ी बात है।"

"हर बड़े कार्य को करने से पहले इंसान को सबसे पहले अपने धैर्य और संयम की खुद परीक्षा लेनी चाहिए।" गुरूदेव ने कहा__"क्योंकि जिस मनुष्य के पास धैर्य और संयम नहीं होता वो आगे चल कर अपने ही ब्यवहार की वजह से अपना काम बिगाड़ लेता है। ख़ैर, हम इस बात से खुश हैं और उम्मींद करते हैं कि तुम लोग अपने धैर्य और संयम को आगे भी इसी तरह बरकरार रखोगे।"

"गुरूदेव।" काया ने कहा__"जैसा कि आप जानते हैं कि हम सब बिना आपके आदेश व आशीर्वाद के इस कुटिया के अंदर नहीं जाना चाहते, इस लिए कृपया अब हमें इसके लिए अपना आदेश व आशीर्वाद प्रदान कीजिए गुरूदेव।"

"अवश्य पुत्री।" गुरूदेव ने मुस्कुरा कर कहा__"आज से तुम सबका एक नया जीवन शुरू होगा। चलो हम तुम्हारी कुटिया में प्रवेश करके इसका गृह प्रवेश कर देते हैं।"

गुरूदेव के कहने पर सब अपनी अपनी जगह से उठ गए। कुछ ही पल में गुरूदेव ने उस कुटिया में प्रवेश कर अपने कमण्डल के जल को अपने दाहिने हाॅथ की अंजुली में भर कर उसे चारो तरफ छिड़कते हुए कुछ मंत्र पढ़े।

"आज से इस कुटिया में तुम सब रहोगे।" गुरूदेव ने कहा__"तथा आस पास जो भी फल मिलें उन्हीं को खाकर अपनी भूॅख मिटाओगे। अब से हर चीज़ के लिए तुम सबका एक समय निर्धारित होगा, कि कब क्या करना है।"

"जी गुरूदेव।" मेनका ने हाथ जोड़कर कहा__" आप हमें बता दें कि हमें किस प्रकार सब काम करना होगा?"
"तुम सबको सुबह ब्रम्हमुहूर्त में उठना है और नित्यकर्म आदि से फुर्सत होकर ईश्वर का ध्यान लगाना है।" गुरूदेव ने कहा__"और इस बच्चे को भी यही करना है। इसके बाद इस बच्चे को लेकर हमारे पास आओगे। हम सामने वाले पर्वत के पास मिलेंगे।"

"हम सब अब से यही करेंगे गुरूदेव।" वीर ने कहा__"हम सब इस नये जीवन से बहुत खुश हैं। हम लोग दिन में सूरज की रोशनी में नहीं निकलते थे क्योंकि सूरज की रोशनी में हमारे शरीर जलने लगते थे। लेकिन अब ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है, यानी हम बिलकुल सुरक्षित हैं। ये किसी चमत्कार से कम नहीं है गुरूदेव।"

"ये देवभूमि है पुत्र।" गुरूदेव ने मुस्कुराते हुए कहा__"और तुम सच्चे मन और भक्ति भाव से यहाॅ आए हो इस लिए ईश्वर की कृपा से तुम लोगों के शरीर अब सूर्य की रोशनी से नहीं जल रहे हैं।"

"गुरूदेव, मैं अपने इस बेटे का नामकरण करना चाहती हूॅ।" मेनका ने कहा__"यदि आप उचित समझें तो इसका नामकरण कर दें।"

"पुत्री, अभी इसका नामकरण नहीं होगा।" गुरूदेव ने कहा__"समय आने पर इस बच्चे का नामकरण भी होगा। तब तक तुम इसे जिस नाम से चाहे पुकार सकती हो।"

"माॅ तो हमेशा अपने बेटे को बेटा ही कह कर पुकारती है गुरूदेव।" मेनका ने कहा__"इस लिए मैं इसे कोई नाम न देकर बेटा ही कहूॅगी। जब समय आएगा तब आप ही इसे कोई नाम दे दीजिएगा।"

"ठीक है पुत्री।" गुरूदेव ने कहा__"अब हम चलते हैं। तुम सब आज विश्राम करो, लेकिन कल से जैसा कहा है वैसा ही करना।"
"जी बिलकुल गुरूदेव।" सबने एक साथ सिर झुका कर कहा। जबकि गुरूदेव उन्हें आशीर्वाद देकर गायब हो गए।


दोस्तो, यहाॅ से इस कहानी को बढ़ा कर आगे से शुरू कर रहा हूॅ। यहाॅ इसके बाद इन लोगों के साथ क्या क्या हुआ तथा इन लोगों ने क्या क्या गुरूदेव के कहने पर किया ये सब बाद में फ्लैशबैक के रूप में बताऊॅगा। आशा करता हूॅ आप सब को इस बात से कोई ऐतराज़ नहीं होगा।

................................

एक कमरे में एक अलीशान बेड पर एक बहुत ही खूबसूरत लड़की गहरी नीद में सो रही थी।
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नींद में वह एक ख़्वाब देख रही थी। उसके चेहरे पर कई तरह के भाव तैरते हुए नज़र आ रहे थे। उन तैरते हुए भावों में वह कभी मुस्कुरा उठती तो कभी उसकी मुस्कान ग़ायब हो जाती, तथा उसके स्थान पर दुख का भाव उत्पन्न हो जाता।


एक बहुत ही ख़ूबसूरत लड़का उसे ख़्वाब में नज़र आ रहा था। उसका रहन सहन तथा पहनावा किसी राजकुमार की तरह था। हाॅथ में तलवार लिए कोई योद्धा नज़र आ रहा था वह।
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पीठ पर लम्बे लम्बे पंख थे उसके तथा बाएं हाथ में एक ढाल। कभी वह अनगिनत लोगों से युद्ध करता नज़र आता तो कभी किसी सुनसान जगह पर अकेला किसी की यादों में बैठा नज़र आने लगता। इस स्थिति में उसका सारा हुलिया बदला हुआ नज़र आने लगता था। यानी एक साधारण इंसान की तरह दिखाई देता। उसका पहनावा और पीठ के दोनो पंख सब गायब हो जाते थे।

वह लड़का बेहद उदास सा काफी देर तक जाने किसे देखता रहता था।
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एकटक एक दिशा में देखते रहने के बाद वह अपनी आॅखें बंद कर लेता। आॅखें बंद करते ही उसकी आॅखों की कोरों से आॅसुओं की धारा सी बह कर उसके कपोलों को भिगोती चली जाती। फिर सहसा वह अपनी भीगी हुई आॅखें खोलता और गहरी साॅस लेकर अपने सर्ट के अंदर से एक तस्वीर निकालता, उस तस्वीर को एकटक देखने लगता।
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तस्वीर को देखते देखते ही वह भर्राए गले से कहने लगता......


हर पल तेरी याद क्यों सताती है मुझको।
दर्दे दिल बन कर क्यों रुलाती है मुझको।।

एक मुद्दत हो गई तुझसे बिछड़े हुए मगर,
तुम कहीं पास हो मेरे जताती है मुझको।।


मुझे पता है तू भी उदास है मेरी ही तरह,
तेरी ख़बर बादे सबा सुना जाती है मुझको।।

वही सूरत वही मिजाज़ ओ अदा आज भी है,
मेरी नींद हर शब तेरा अक्श दिखाती है मुझको।।

जाने क्या लिखा है खुदा ने नसीबों में मेरे,

के ज़िंदगी हर पल आज़माती है मुझको।।

किससे कहूॅ हाले दिल के ऐसा लगता है,
हर लम्हां तेरी चाहत बुलाती है मुझको।।


वो लड़का उस तस्वीर को देख अपनी नम आॅखों से यूॅ ही बड़बड़ाता और फिर शान्त हो जाता। तभी लड़की के ख़्वाब में एकाएक मंज़र बदल गया अब वही लड़का किसी अजीब सी जगह में किसी विशाल दानव की गिरफ्त में फॅसा बुरी तरह छटपटा रहा था। उसका गोरा चेहरा लाल सुर्ख पड़ा हुआ था, तथा आॅखें कभी बंद होती तो कभी खुल जाती। वो दानव अपने एक हाॅथ से उस लड़के को उसकी गर्दन से पकड़े था जबकि उसके दूसरे हाॅथ में एक बड़ी सी तलवार थी जिसे वह लड़के को मारने के लिए हवा में उठा रखा था। एकाएक उस दानव का तलवार वाला हाॅथ बिजली की तेज़ी के साथ नीचे आया और तलवार सीधा उस लड़के के सीने में घुस कर उसकी पीठ से निकल आई।

"राऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽजज।" पूरी शक्ति से चीखते हुए वह लड़की हड़बड़ा कर बेड पर उठ कर बैठ गई। पूरा चेहरा पसीना पसीना हो चुका था उसका तथा साॅसें इस तरह धौकनी की मानिंद चल रही थी जैसे मीलों दौड़ कर आ रही हो।

लड़की की ये चीख पूरे घर में गूॅजी थी तभी तो घर में सोये हुए बाॅकी लोग जो गहरी नींद में सोये हुए थे वो सब हड़बड़ा कर उठ गए। सबके सब ऊपर बने उस कमरे की तरफ भागे जिस कमरे में ये लड़की सोई हुई थी अब तक। लड़की के कमरे में पहुॅने के लिए किसी को ज्यादा समय नहीं लगा।

"क्या हुआ बेटी????" कमरे में दाखिल होते ही एक औरत ने लड़की से पूछा था__"क्या फिर से तूने वही सपना देखा है?"
"हाॅ माॅ।" लड़की तुरंत ही उस औरत से लिपट कर बोली__"मैंने फिर से वही सब देखा, लेकिन...।"

"लेकिन क्या बेटा?" पास में ही खड़े लड़की के पिता ने पूॅछा।
"आज मैंने देखा कि उस दानव ने मेरे राज को मार दिया।" लड़की ने रोते हुए बताया__"मेरे राज को मार दिया उस दानव ने....अब मैं भी अपने राज के बिना जीवित नहीं रहना चाहती पापा। मैं भी मर जाना चाहती हूॅ। मुझे ज़हर दे दीजिए...मुझे भी राज के पास जाना है, अपने राज के पास जाना है।" ये सब कहते कहते अचानक ही वह लड़की बेहोश हो गई।


उसके बेहोश होते ही लड़की की माॅ ने उसे अपने सीने से छुपका लिया और खुद भी आॅसू बहाने लगी।

"इस लड़की ने तो जीना हराम कर रखा है हमारा।" तभी कमरे में एक औरत आकर गुस्से से बोली__"आज फिर हमारी नींद का सत्यानाश कर दिया इसने। दे दो अशोक....इसे ज़हर दे दो, मर जाएगी तो मुसीबत ही दूर हो जाएगी।"

"दीदी।" लड़की को अपने सीने से छुपकाए उस औरत ने चीखते हुए कहा था__"शर्म कीजिए कुछ, अपनी ही बेटी को मारने का कह रही हैं आप? इस मासूम का भला क्या दोष है इसमें?"

"सारा दोष इसी करमजली का है सुमन।" दरवाजे के पास खड़ी उस दूसरी औरत ने कहा__"ये मनहूस मेरे बेटे को खा गई। मेरा बस चले तो अपने हाॅथों से इसका गला घोंट दूॅ।"

"ऐसे वाक्य मत बोलिए दीदी कि बाद में आपको इन्हीं वाक्यों के लिए पछताना पड़े।" सुमन ने कातर भाव से कहा था__"आपके बेटे के साथ जो हुआ उसमें इसका कोई कसूर नहीं है। ये भी तो उस वक्त बच्ची ही थी। मगर पता नहीं क्यों आप इसे ही इस सबका कसूरवार मानती हैं।"

"तुम ज्यादा इसकी पैरवी मत करो समझी।" उस औरत ने गुस्से से फुंकारते हुए कहा__"और अगर ज्यादा ही इसकी फिकर है तो इसे लेकर इस घर से जा सकती हो। मैं अब और इसे इस घर में बरदास्त नहीं कर सकती।"

"हाॅ तो चली जाऊॅगी इसे लेकर।" सुमन ने रोते हुए कहा__"जिस घर में आप जैसी माॅ अपनी ही बेटी के बारे में ऐसा ब्यवहार करती हों उस घर में एक पल भी रहना पाप है।"

"अपनी हद में रह कर बात करो तुम समझी।" औरत गुर्राई__"मत भूलो कि तुम मेरे पति की रखैल हो।"
"अब बस भी करो रेखा।" सहसा अशोक ने झुंझला कर कहा__"प्लीज शान्त हो जाओ।"

"म मैं शान्त हो जाऊॅ?" रेखा ने अशोक की तरफ देखते हुए तथा अपनी आॅखों को फैलाते हुए कहा__"तुम अपनी इस दो कौड़ी की रखैल के लिए मुझे शान्त रहने को कह रहे हो?"

रेखा की ये बात सुन कर सुमन सिसकियाॅ ले लेकर रोने लगी थी जबकी रेखा की इस बात से अशोक ने कहा__"कुछ तो शर्म करो रेखा, तुम जिसे मेरी रखैल कह रही हो वो भी तुम्हारी तरह मेरी पत्नी ही है। तुमने आज तक कभी उसे सम्मान नहीं दिया, हमेशा उसे बुरा भला ही कहा जबकि उसने कभी पलट कर तुम्हें कोई जवाब नहीं दिया। तुम्हारी बेटी को तुमसे ज्यादा उसने अपनी बेटी माना और उसे प्यार दिया। तुमने अपनी बेटी को सिवाए नफरत के कुछ नहीं दिया। सिर्फ एक बात मन में बिठा लिया है तुमने कि रानी ने तुम्हारे बेटे को खा लिया। मैं पूॅछता हूॅ कैसे खा गई वह तुम्हारे बेटे को?"

"तुम मुझसे इनके लिए बहस कर रहे हो अशोक?" रेखा ने नागवारी भरे लहजे में कहा__"ये जिसे तुम अपनी पत्नी कहते हो, ये भी मेरे बेटे को खा गई है। खुद तो बाॅझ है और मेरे बेटे को खा कर मुझे भी बाॅझ बना दिया है इस कलमुही ने।"

"रेखाऽऽऽ।" अशोक ने चीखते हुए रेखा को मारने के लिए अपना हाॅथ हवा में उठा लिया किन्तु मार न सका बल्कि जाने क्या सोचकर अपने हाॅथ को हवा में ही उठाए रखा।

"रुक क्यों गए अशोक?" रेखा की आॅखों में आॅसू आ गए, बोली__"रुक क्यों गए, मारो मुझे। अपनी इस मनहूस बेटी और इस रखैल के पीछे मारो मुझे। गला घोंट दो मेरा, मगर याद रखना मेरी ये नफरत मेरे मरने के बाद भी ज़िदा रहेगी।"

इतना कहने के बाद अपने पैर पटकते हुए रेखा वहाॅ से चली गई। जबकि अशोक बेबस सा उसे जाते देखता रह गया। फिर वह मुड़ा और आगे बढ़ कर रोती हुई सुमन के कंधे पर धीरे से हाॅथ रखते हुए बोला__"मत रो सुमन, रेखा की तरफ से मैं तुमसे इस सबके लिए माफी मागता हूॅ।"

सुमन कुछ न बोली, बल्कि उसी तरह बैठी रोती सिसकती रही। उसकी गोंद में वो लड़की अभी भी बेहोश पड़ी थी।

"तुम तो जानती हो सुमन।" अशोक कह रहा था__"रेखा दिल से बुरी नहीं है। वो तो बस अपने बेटे के ग़म में रात दिन झुलसती रहती है। उसे इस बात का अब बोध ही नहीं है कि वह किसे क्या बोल देती है? वह इस बात को समझती ही नहीं कि उसके बेटे के खो जाने में न तो खुद उसकी बेटी का कोई दोष है और ना ही तुम्हारा।"

"रहने दीजिए अशोक।" सुमन ने अपने आॅसू पोंछते हुए कहा__"अब इस सबकी सफाई देने की कोई ज़रूरत नहीं है। मेरे नसीब में तो उसी दिन दुख मिलना लिख गया था जिस दिन ईश्वर ने मुझे बाॅझ बना कर इस धरती पर भेजा था। मुझ अबला और बेबस को आपने अपनी पत्नी बना कर समाज में इज्जत से जीने का अधिकार दिया। इसके लिए मेरे दिल में आपके लिए हमेशा प्यार व सम्मान रहेगा। मगर, आज तक इस घर में दीदी के द्वारा जिल्लत ही सही है मैंने। उनकी उस बेटी को अपनी बेटी माना जिसे वो मनहूस समझती हैं। इस लिए इन सबसे अब दिल भर गया है मेरा। मुझमें अब और जिल्लत व अपमान सहने की क्षमता नहीं है अशोक। इस घर में अब मैं नहीं रहना चाहती, बल्कि अपनी इस बेटी के साथ इस घर से चली जाऊॅगी।"

"न नहीं सुमन नहीं।" अशोक ने अधीर होकर कहा__"ऐसा ग़जब मत करना। मेरी ख़ातिर इस घर में रहो। क्या मैंने तुम्हें कभी कोई दुख दिया है?"
"आज तक आप ही के कहने पर और आपके ही लिए इस घर में रखैल बन कर रही हूॅ।" सुमन ने अपने दिल के गुबार को शख्ती से दबाते हुए कहा__"पर अब नहीं अशोक। अब और नहीं रह सकती यहाॅ। मेरी आत्मा तथा मेरा ज़मीर मुझे सुकून से जीने नहीं देगा। आपको रानी की कसम है अशोक, अब आप मुझे नहीं रोकेंगे। मैं कल सुबह ही यहाॅ से कहीं दूर चली जाऊॅगी अपनी इस बेटी को लेकर।"

"मुझे कसम में क्यों बाॅध दिया सुमन?" अशोक ने भर्राए स्वर में कहा__"ये अच्छा नहीं किया तुमने।"
"मुझे माफ कर दीजिए अशोक।" सुमन ने छलक आए आॅसुओं को आॅचल से पोंछते हुए कहा__"पर मैं अब यहाॅ नहीं रुक सकती।"

"लेकिन कहाॅ जाओगी तुम?" अशोक ने कहा__"तुम जानती हो ये दुनियाॅ कितनी बुरी है। और वैसे भी रानी की तबियत ठीक नहीं रहती। कैसे सम्हालोगी उसे? नहीं नहीं सुमन, तुम इस तरह कहीं नहीं जाओगी। मैं खुद तुम दोनो के लिए कहीं रहने का इंतजाम करूॅगा और तुम दोनों की हर जरूरत को पूरा करूॅगा।"

"इसकी कोई आवश्यकता नहीं है अशोक।" सुमन ने कहा__"हम माॅ बेटी किसी तरह अपना गुज़ारा कर लेंगी।"
"नहीं सुमन।" अशोक ने कहा__"मैं इस तरह तुम दोनो को बेसहारा नहीं छोंड़ सकता। तुम्हें मेरी कसम है सुमन, तुम इस घर में नहीं रहना चाहती तो कोई बात नहीं लेकिन मेरी इतनी बात मान लो। मैं इसी शहर में किसी जगह तुम्हें रहने के लिए एक मकान की ब्यवस्था कर दूॅगा कल ही।"

सुमन कुछ न बोली बस रानी के मासूम से चेहरे को देखती रही। अशोक ने आगे बढ़ कर रानी को ठीक से बेड पर लेटा दिया तथा उसके ऊपर चद्दर डाल दिया। कुछ पल रानी के मासूम से चेहरे को देखने के बाद उसने झुक कर रानी के माॅथे को चूॅमा फिर एक नज़र सुमन को देखकर कमरे से बाहर चला गया। जबकि सुमन रानी के सिरहाने बैठ कर उसके सिर के बालों में उॅगलियाॅ फेरती रही।



दोस्तो अपडेट हाज़िर है.....
देरी के लिए माॅफी चाहता हूॅ, किन्तु देर होने की वजह मेरी अपनी समस्याएं थी। ख़ैर,,,,,

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"मुझे कसम में क्यों बाॅध दिया सुमन?" अशोक ने भर्राए स्वर में कहा__"ये अच्छा नहीं किया तुमने।"
"मुझे माफ कर दीजिए अशोक।" सुमन ने छलक आए आॅसुओं को आॅचल से पोंछते हुए कहा__"पर मैं अब यहाॅ नहीं रुक सकती।"

"लेकिन कहाॅ जाओगी तुम?" अशोक ने कहा__"तुम जानती हो ये दुनियाॅ कितनी बुरी है। और वैसे भी रानी की तबियत ठीक नहीं रहती। कैसे सम्हालोगी उसे? नहीं नहीं सुमन, तुम इस तरह कहीं नहीं जाओगी। मैं खुद तुम दोनो के लिए कहीं रहने का इंतजाम करूॅगा और तुम दोनों की हर जरूरत को पूरा करूॅगा।"

"इसकी कोई आवश्यकता नहीं है अशोक।" सुमन ने कहा__"हम माॅ बेटी किसी तरह अपना गुज़ारा कर लेंगी।"
"नहीं सुमन।" अशोक ने कहा__"मैं इस तरह तुम दोनो को बेसहारा नहीं छोंड़ सकता। तुम्हें मेरी कसम है सुमन, तुम इस घर में नहीं रहना चाहती तो कोई बात नहीं लेकिन मेरी इतनी बात मान लो। मैं इसी शहर में किसी जगह तुम्हें रहने के लिए एक मकान की ब्यवस्था कर दूॅगा कल ही।"

सुमन कुछ न बोली बस रानी के मासूम से चेहरे को देखती रही। अशोक ने आगे बढ़ कर रानी को ठीक से बेड पर लेटा दिया तथा उसके ऊपर चद्दर डाल दिया। कुछ पल रानी के मासूम से चेहरे को देखने के बाद उसने झुक कर रानी के माॅथे को चूॅमा फिर एक नज़र सुमन को देखकर कमरे से बाहर चला गया। जबकि सुमन रानी के सिरहाने बैठ कर उसके सिर के बालों में उॅगलियाॅ फेरती रही।


अब आगे......

वे पाॅच लोग थे। रात के अॅधेरे में वो पाॅचों एक अलीशान बिल्डिंग के बाएं तरफ लगे पेड़ों के नीचे इस तरह खड़े थे जैसे किसी के द्वारा देख लिए जाने का डर हो। हलाॅकि अॅधेरा बहुत ज्यादा भी नहीं था, मगर अॅधेरा तो था क्योंकि आसमान में कहीं भी चाॅद दिखाई नहीं दे रहा था। पाॅचों के शरीर पर काले कपड़े थे तथा चेहरों पर काले रंग का ही नकाब था। शरीर का कोई भी अंग नहीं दिख रहा था, बस नकाब से झाॅकती उनकी आॅखें ही नज़र आ रही थी जो बिल्डिंग के दूसरे फ्लोर पर बाहर की तरफ बनी बालकनी पर बार बार उठ रही थी।

"भाई, रास्ता तो साफ है लेकिन ज़मीन से उस बालकनी की ऊॅचाई हमारी उम्मीद से ज्यादा है।" एक नकाबपोश ने ऊपर बिल्डिंग की बालकनी को देखकर कहा__"दूसरी बात बिल्डिंग के पास कहीं कोई पेड़ भी नहीं हैं, एकदम खुला एरिया है। ऐसे में कोई भी हमें बिल्डिंग की दीवार पर चढ़ते हुए देख सकता है।"

"बिल्डिंग के पास कोई पेड़ हो ये हमारे लिए कोई ज़रूरी बात नहीं है।" दूसरे नकाबपोश ने कहा__"रही बात दीवार पर चढ़ते हुए किसी के द्वारा देख लेने की तो ऐसा संभव नहीं है। इस वक्त रात के दो बज रहे हैं, यहाॅ हर कोई अपने अपने मकान के अंदर गहरी नींद में सोया हुआ होगा। और तुम ये मत भूलो कि हमें ये काम करना ही पड़ेगा फिर चाहे जैसी भी परिस्थितियाॅ हों।"

"हाॅ ये बात तो है भाई।" पहले वाले नकाबपोश ने कहा__"हमें हर हाल में ये काम करना ही होगा, वर्ना मालिक हम सबको गोली मार देंगे।"

"अब बातों में वक्त बर्बाद मत करो और लग जाओ सब काम में।" दूसरे वाले नकामपोश ने कहा__"दो आदमी यहीं पर रह कर आस पास का मुआयना करते रहेंगे। अगर कोई परेशानी या किसी के द्वारा देख लिए जाने वाली बात होगी तो ये दोनों बिल्डिंग की दीवार पर चढ़ने वालों को ट्रान्समीटर द्वारा फौरन ही सूचित कर देगा। एक आदमी दीवार के आस पास ही कहीं छुपकर खड़ा रहेगा तथा आसपास भी नज़र रखेगा। जबकि मैं और रतन रस्सी की सहायता से उस बालकनी में जाएॅगे। बालकनी के कुछ ही दूरी पर एक खिड़की है। खिड़की पर मोटा सा काॅच लगा हुआ है। खिड़की के काॅच को कटर से काटकर हम दोनों कमरे के अंदर पहुॅचेंगे। कमरे में पहुचकर हम उसको क्लोरोफाॅम द्वारा बेहोश करेंगे और फिर उसे उठा कर कमरे से बाहर उसी खिड़की के द्वारा आ जाएॅगे।"

"भाई खिड़की से उसे कैसे निकालोगे?" एक अन्य नकाबपोश ने कहा__"मेरा मतलब अगर खिड़की का काॅच उसके नाज़ुक बदन में कहीं लग गया तो??"

"अबे चूतिये, कमरे के अंदर पहुॅचकर हम उस खिड़को को पूरा खोल देंगे।" पहले वाले नकाबपोश ने कहा__"उसके बाद ही आसानी से उसे लेकर यहाॅ आएॅगे।"

"ठीक है भाई।" अन्य नकाबपोश वाले ने कहा__"तुम लोग जाओ, हम यहाॅ पर खड़े रह कर हर तरफ नज़र रखेंगे।"

दो को छोंड़ कर बाॅकी तीनों बिल्डिंग की तरफ सावधानी से बढ़ गए। बिल्डिंग की दीवार के पास पहुॅचकर तीनो ठिठके। पहले वाले नकाबपोश ने तीसरे नकाबपोश को नीचे ही कहीं छुपकर रहने का इशारा किया। इसके बाद हाॅथ में ली हुई रस्सी को खोल कर उसके पहले सिरे को तथा कुछ और रस्सी को समेट कर एक हाॅथ से घुमाते हुए ऊपर बनी बालकनी की तरफ उछाल दिया। रस्सी का सिरा स्टील के डण्डे में ऊपर से घूमकर नीचे की तरफ झूलने लगा। नकाबपोश ने ऊपर कुछ दूरी पर झूलते रस्सी के पहले सिरे को ज़मीन से उछल कर एक हाथ से पकड़ लिया। रस्सी के पहले सिरे को उसके दूसरे सिरे से मिलाकर अच्छे बाॅध दिया।

"भाई इसे इस प्रकार बाॅधने से अच्छा था कि यहीं से फंदा बना कर ऊपर उस स्टील के डण्डे में फॅसा देते।" दूसरे नकाब वाले ने सरगोशी सी की__"उस तरह में ये ज्यादा मजबूत रहता और इधर उधर खिसकता भी नहीं।"

"अबे ढक्कन।" पहले नकाबपोश वाले ने कहा__"सारा काम हो जाने के बाद इस रस्सी को ऊपर उस डण्डे से क्या तेरी अम्मा छोरने जाती??? जबकि हमें इस रस्सी को भी उस छोकरी की तरह ही अपने साथ लेकर जाना है।"

"भाई बात तो तेरी ठीक है।" दूसरे नकाबपोश ने कहा__"लेकिन मेरी अम्मा को इसमें क्यों खींच रहा है? वो बेचारी तो मेरे बेवड़े बाप को रात दिन इस बात पर गालियाॅ देती रहती है कि मेरा बाप अब उसकी लेता ही नहीं है।"

"क्यों??" नकाबपोश चौंका__"तेरा बाप तेरी अम्मा की क्यों नहीं लेता अब?"
"अरे भाई, उसका खड़ा ही नहीं होता तो क्या करे बेचारा?" दूसरे नकाबपोश ने धीरे से हॅसते हुए कहा__"जबकि अम्मा को रोज़ रात को एक दमदार हथियार चाहिए।"

"तो तू ही दे दिया कर न अपनी अम्मा को अपना हथियार।" पहला वाला नकाबपोश धीरे से बोला__"इसमें तेरा भी भला और तेरी अम्मा का भी भला हो जाएगा।"

"साले बड़ा हरामी है तू।" दूसरा वाला आॅखें फैला कर बोला__"भला कोई अपनी अम्मा को भी अपना हथियार देता है क्या? ये तो पाप है, महापाप।"

"ज्यादा ज्ञान मत चोद तू।" पहले वाले ने कहा__"क्या तुझे पता नहीं कि हमारे मालिक का वो हरामी लड़का रोज़ अपनी अम्मा को ठोंक कर ये महापाप करता है??"

"हाॅएं।" दूसरा वाला ये सुन कर बुरी तरह उछला था, बोला__"पर साले तुझे कैसे पता ये सब?"
"मुझे सब पता है।" पहले वाले ने रहस्यमयी अंदाज़ से बोला__"दिन भर आदमीरूपी जानवर चराता हूॅ। मालिक की उस अधेड़ और छिनाल बीवी को खूब अच्छी तरह जानता हूॅ मैं और उसके उस हिजड़े बेटे को भी, जो रोज़ रात को अपनी अम्मा की ***** चाट चाट कर उसकी ***** का पानी पीता है।"

"हाए रे देवा।" दूसरे वाले ने आसमान की तरफ देखते हुए कहा__"उठा ले रे...उठा ले, अरे मेरे को नहीं रे...उन दोनो कम्बख्तों को उठा ले।"
"ओए बाबू राव की दुम।" पहला वाला घुड़का__"अब चुप कर। मैं इस रस्सी के सहारे ऊपर बालकनी में जा रहा हूॅ। मेरे ऊपर पहुॅचते ही तू भी आ जाना जल्दी, लेकिन हाॅ सम्हाल कर।"

इसके बाद पहला वाला नकाबपोश रस्सी को पकड़ कर ऊपर की तरफ जाने लगा। अॅधेरा ज्यादा नहीं था, बस इतना समझ आता था कि पाॅच फुट के फाॅसले पर कोई चीज़ है। दूसरा वाला नकाबपोश ऊपर की तरफ अपने साथी को देख रहा था। लेकिन उसका ध्यान कहीं और था, दरअसल वो अपने साथी की बातों के बारे में ही सोच रहा था कि उसके मालिक की बीवी अपने ही बेटे के साथ कैसे,,,,,तभी वह चौंका, उसने देखा कि उसका साथी ऊपर बालकनी में पहुॅच कर रस्सी हिला कर उसे ऊपर आने का संकेत दे रहा है।

दूसरा वाला नकाबपोश भी कुछ देर में रस्सी की मदद से ऊपर बालकनी में आ गया अपने साथी के पास।

"वो खिड़की किधर है?" दूसरे वाले ने पूछा।
"तेरे पीछे तरफ ही तो है साले।" पहला वाला धीरे से बोला__"चल उधर।"

दोनों खिड़की के पास पहुॅचे। दोनों ने खिड़की के अंदर की तरफ देखा किन्तु अंदर बाहर की ही तरह अॅधेरा था इस लिए कुछ नज़र नहीं आया। इतना ज़रूर समझ में आया कि खिड़की में अंदर की तरफ पर्दा लगा हुआ है। पहले वाले ने अपनी पाॅकेट से काॅच काटने वाला हीरा निकाला और बड़ी सावधानी से खिड़की पर लगे काॅच पर रख कर उसे धीरे धीरे घुमाने लगा।

"भाई तू तो कह रहा था कि इस खिड़की के शीशे को काटकर तू खिड़की को अंदर से पूरा खोल देगा।" एक ने बिलकुल धीमे स्वर में कहा__"जबकि इस खिड़की में तो खुलने वाले पल्ले हैं ही नहीं, बल्कि इस पूरी खिड़की पर ही शीशा लगा हुआ है"

"इसमें मेरी ग़लती नहीं है रे।" दूसरे ने खिड़की पर लगे शीशे को सावधानी से काटते हुए कहा__"आज दोपहर में जब मैं यहाॅ आया था तो दूर से ही देखा था इस खिड़की को। उस समय ऐसा लगा था जैसे ये खिड़की पल्ले वाली ही है। और वैसे भी खिड़कियाॅ तो होती ही पल्ले वाली हैं ताकि उसे खोल कर बाहर की रोशनी और ताज़ी हवा को कमरे के अंदर लाया जा सके। लेकिन ये खिड़की ऐसी नहीं बनाई गई तो इसमे मेरी क्या ग़लती है। ये तो साले अमीर लोगों के ही सड़े गले दिमाग़ की उपज होती है।"

"भाई एक बात बता, क्या सच में अपने मालिक का लड़का अपनी अम्मा की लेता है?" पहले वाले ने अपने मन की उलझन और उत्सुकता को मिटाने की गरज से पूछा__"मुझे तो तेरी इस बात पर ज़रा भी यकीन नहीं हो रहा। अम्मा कसम।"

"अबे साले तू अभी भी वहीं अटका हुआ है।" दूसरे वाले ने धीरे से हॅसते हुए कहा__"पर तेरी ग़लती नहीं है रे, मैंने भी जब किसी से सुना था न तो मुझे इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था। फिर एक दिन उसने मुझे खुद ही चुपके से दिखा दिया तो यकीन करना ही पड़ा भाई।"

"किसने दिखाया तुझे?" पहला वाला हैरानी से बोला__"क्या किसी और को भी ये सब पता है??"
"हम जैसे लगभग सभी आदमियों को पता है।" दूसरे ने कहा__"ऐसी बातें छुपती नहीं हैं। जैसे आज मैंने तुझे बताया इसी तरह किसी और ने भी अपने साथी से बताया। ऐसे ही सबको पता हो गई ये बात।"

"पर तुझे किसने बताया?" पहले वाले ने पूछा__"और दिखाया भी किसने??"
"अरे वो गीता है न।" दूसरे वाले ने कहा__"जो रोज़ मालिक की बीवी के बदन की मालिश करती है, उसी ने बताया और दिखाया भी।"
"अरे वो तो एक नंबर की छिनाल है साली।" पहले वाले ने बुरा सा मुॅह बनाते हुए कहा__"खुद सबसे अपनी मरवाती फिरती है और मालिक की बीवी के बारे में उलटा सुलटा बोलती है रंडी कहीं की।"

"वो छिनाल तो है भाई।" दूसरे वाले ने कहा__"लेकिन जब उसने मुझे दिखा दिया तो यकीन करना ही पड़ा न इस बात का। मैंने अपनी आॅखों से मालिक की छिनाल बीवी को अपने ही बेटे से घोड़ी बनकर अपनी पेलवाते हुए देखा है।"

"भाई मुझे भी देखना है।" पहला वाला बोला__"मैं भी देखना चाहता हूॅ कि कैसे वो छिनाल अपने ही बेटे से अपनी ***** मरवाती है?? भाई एक बार मुझे भी दिखा दे न उस रंडी को।"

"अच्छा चल ठीक है दिखा दूॅगा तुझे भी।" दूसरे वाले ने पहले वाले पर जैसे एहसान सा किया__"तू भी क्या याद करेगा कि किस दिलेर बंदे से दोस्ती की थी तूने। पर साले, तू देख कर करेगा क्या?? क्या उस छिनाल को पेलवाते हुए देख कर मुट्ठ मारेगा तू हाहाहाहा?"

"नहीं बे, तेरी ***** मारूॅगा।" पहले वाला धीरे से हॅसा__"और ऐसी मारूॅगा कि सुबह शाम हग नहीं पाएगा तू।"
"तेरी माॅ को ***** साले।" दूसरा वाला घुड़का__"मेरा हगना बंद करेगा तू?? कहीं ऐसा न हो कि मैं तेरा ही हगना बंद कर दूॅ।"

"पहले इस शीशे को तो काट।" पहले वाले ने कहा__"और वो काम कर जो यहाॅ करने आए हैं वर्ना मालिक हम सबका हगना बंद कर देगा। देख लियो।"

कुछ ही देर में खिड़की का काॅच कट गया उन दोनों ने उसे पकड़कर बड़ी सावधानी से नीचे एक तरफ फर्स पर रख दिया। अब बड़ी आसानी से खिड़की के द्वारा अंदर जाया जा सकता था। उन दोनों ने खिड़की के बाहर से ही पहले अंदर कमरे की स्थिति का मुआयना किया, जब उन्हें इत्मीनान हो गया कि अंदर कमरे में मौजूद इंसान सो रहा है और अन्य किसी प्रकार की कहीं कोई बाधा नहीं है तो वो दोनो एक एक करके खिड़की से अंदर कमरे में आ गए।

कमरे में बिलकुल अॅधेरा था। कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। हलाॅकि इन दोनो के पास पेंसिल टार्च थी, किन्तु उसका प्रयोग ये सोच कर नहीं किया कि क्या पता कमरे में मौजूद इंसान सो ही रहा हो या फिर सोने का नाटक कर रहा हो। कुछ देर खिड़की के पास खड़े रह कर दोनो ही कमरे में इधर उधर वस्तुओं को पहचानने की कोशिश करते रहे।

कुछ ही देर में उनकी आॅखें अॅधेरे में कुछ दूरी पर देख लेने के लिए अभ्यस्त हो गईं। आगे बढ़ने पर एक साइड उन्हें बेड नज़र आया तथा बेड पर मौजूद एक की बजाए दो लोगों को देख कर दोनों ही चौंके।

अलीशान बेड पर बेड की पिछली पुश्त से अपनी पीठ टिका कर तथा अधलेटी सी अवस्था में एक औरत लेटी थी। उसी औरत की गोंद में करवॅट लिए हुए एक बहुत ही सुन्दर किन्तु मासूम सी लड़की लेटी हुई थी। दूध की मानिंद गोरे जिस्म पर दूध जैसी सफेद ही कमीज पहने हुए थी वह। सुनहरे बालों की कुछ लटें उसके फूल जैसे कोमल व नाज़ुक चेहरे पर बिखरी हुईं थी।

अपने सामने इतनी खूबसूरत लड़की को देख इन दोनो की पलकें झपकना ही भूल गई। वो औरत भी खूबसूरत थी, लगभग बत्तीस या पैंतीस के आसपास की उमर थी औरत की। किन्तु फिगर ऐसा की उस लड़की की बड़ी बहन लगती थी।

कुछ देर यूॅ ही उन दोनो को देखने के बाद जैसे उन्हें वस्तुस्थिति का एहसास हुआ। दोनो ने एक दूसरे की तरफ देखा जैसे पूछ रहे हों कि अब क्या करें? फिर दोनो ने मानो कोई फैंसला ले लिया।

दोनो ने पैन्ट की जेब से क्लोरोफाॅम डाली हुई रुमाल निकाली, और आहिस्ता आहिस्ता किन्तु धड़कते दिल के साथ बेट के पास पहुॅचे। दोनो ने एक ही समय में दोनो की नाॅक के पास क्लोरोफाॅम डाली हुई रुमाल वाला हाॅथ बढ़ाया। अभी उन दोनो का हाॅथ औरत और उस लड़की के नाॅक के पास पहुॅचा ही था कि दोनो ही हवा में उड़ते हुए पीछे की तरफ दीवार से टकरा कर नीचे गिर पड़े। दोनो के हलक से घुटी घुटी सी चीख़ निकल गई।

दोनो ही कमरे की पिछली दीवार से टकराए थे और नीचे गिरने से जो आवाज़ हुई उससे बेड पर सोई हुई औरत व लड़की पर कोई फर्क नहीं पड़ा, बल्कि वो दोनो उसी तरह हर बात से बेखबर सोई रहीं।

इधर दोनों नकाबपोशों को समझ न आया कि अचानक ये उनके साथ हुआ क्या?? उन्हें इतना महसूस हुआ था कि किसी ने उन्हें पीछे की तरफ पूरी शक्ति से फेंका है। मगर किसने किया ये??? दोनो हैरान व चकित भाव से कमरे में इधर उधर देखने लगे मगर कहीं कोई नज़र न आया। बेट पर नज़र पड़ी तो औरत और वो लड़की पहले जैसी ही स्थिति में सो रहीं थी। दोनो ने एक दूसरे की तरफ देख कर इशारे से पूछा कि किसने हमें फेंका हो सकता है?

दोनो सीघ्र ही उठे, और इस बार पूरी सतर्कता से कमरे में इधर उधर देखते देखते ही बेड के पास गए। दोनो के हाॅथ में क्लोरोफाॅम डाला हुआ वो रुमाल अभी भी मौजूद था। उन दोनो ने एक बार फिर से पहली वाली क्रिया दोहराई। मतलब औरत और उस लड़की के नाक के पास अपना क्लोरोफाॅम वाला रुमाला बढ़ाया। दोनो की धड़कने इस बार बुरी तरह बढ़ी हुई थी ये सोच कर कि कहीं फिर से न कोई उन दोनो पीछे फेंक दे। और हुआ भी वही....जैसे ही उन दोनो का हाॅथ औरत और लड़की की नाॅक के पास आया उसी वक्त एक बार फिर वे दोनो हवा में उड़ते हुए पीछे की दीवार से जा टकराए।

ये कोई मामूली बात नहीं थी बल्कि हैरतअंगेज बात थी। फेंकने वाला कौंन था तथा किधर था उन्हें कहीं दिखाई ही नहीं दे रहा था। दिलो दिमाग़ कुंद सा पड़ गया। फिर जैसे एकाएक ही दोनो के दिमाग़ की बत्ती जली। दोनो के मन में ये ख़याल उभरा कि कोई भूत है यहाॅ। भूत का ख़याल आते ही दोनो की अम्माॅ मर गई। दोनो थर थर काॅपने लगे। पल भर में दोनो का चेहरा भय से पीला ज़र्द पड़ता चला गया। मुह से कुछ बोला नहीं जा रहा था, बस दोनो के होंठ जूड़ी के मरीज़ की तरह बुरी तरह कॅपकॅपा रहे थे।

दीवार से दो दो बार पूरी शक्ति से टकराने के बाद उनमें अब हिम्मत नहीं बची थी कि दुबारा वो उन दोनो औरत व लड़की को क्लोरोफाॅम सुॅघाने जाएं। किसी तरह दोनो ही फर्स से उठे तो कण्ठ से कराह निकल गई, सारा शरीर बुरी तरह दुख रहा था। दोनो जिस तरह खिड़की से आए थे उसी तरह वापस चले गए। उनके कमरे से निकलते ही कमरे के अॅधेरे में एक साया नज़र आया। उसने एक बार बेड पर सोई हुई औरतों की तरफ देखा फिर खिड़की की तरफ बढ़ गया। खिड़की के पास जाकर उसने खिड़की के कटे हुए शीशे की तरफ देख कर अपने दाएं हाॅथ को आशीर्वाद की शक्ल में टूटे हुए टुकड़े की तरफ किया। उसके ऐसा करते ही काॅच का वो बड़ा सा टुकड़ा अपने आप ही फर्स से उठ कर हवा में लहराते हुए खिड़की के टूटे हुए भाग में आकर खुद ही फिट हो गया। टुकड़े के टूटे हुए भाग में फिट होते ही उस साए ने अपने उसी हाॅथ से उस खिड़की के उन जगहों पर रख कर फेरा जिन जिन जगहों से काॅच को काटा गया था। उस साये के ऐसा करते ही खिड़की के काॅच पर पड़ी हुई दरारें अपने आप ही साफ होती चली गईं। अब खिड़की को देख कर कोई नहीं कह सकता था कि इसे कुछ देर पहले किसी ने काटा भी रहा होगा।

ये सब करने के बाद उस काले साए ने एक बार पलट कर बेड की तरफ देखकर मुस्कुराया और फिर एकाएक ही वह धुएं में बदल कर कमरे के दरवाजे की झिरियों से बाहर निकल गया।
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"बंद करो अपनी ये बकवास वर्ना हलक से ज़ुबान खींचकर तुम दोनो के हाॅथ में दे दूॅगा।" पूरी शक्ति से दहाड़ते हुए एक ऐसे शख्स ने अपने सामने हाथ बाॅधे व गर्दन झुकाए हुए खड़े अपने पालतू गुर्गों की तरफ देखते हुए कहा जिसकी आॅखें मंजी व सिर गंजा था__"तुम दोनो ये चाहते हो कि मैं तुम दोनो की इस बात पर यकीन करूॅ कि किसी भूत ने तुम दोनो को फेंक फेंक कर मारा, और उसकी वजह से ही तुम वहाॅ से अपना काम किये बग़ैर चले आए??"

"मालिक हमारी बात का यकीन कीजिए।" एक गुर्गे ने कहा__"वहाॅ सच में कोई भूत ही था। उसी ने हम पर हमला किया था। वर्ना हम अपना काम करके ही आपके पास वापस आते।"

"तुम सब के सब एक नंबर के निकम्मे और डरपोंक हो।" उस शख्स ने गरजते हुए कहा__"एक अदना सा काम सौंपा था तुम लोगों को, मगर वो भी नहीं कर सके तुम सब। बेकार में ही मैं तुम लोगों पर यकीन करके हज़ारों लाखों रूपये खर्च करता हूॅ।"

"ऐसी बात नहीं है मालिक।" दूसरे गुर्गे ने हाॅथ जोड़ते हुए कहा__"हम आपके लिए दुनिया का कोई भी काम करने को तैयार हैं, और आपके लिए अपनी जान तक दे सकते हैं। हम दोनों ने कमरे में अच्छी तरह देखा था, लेकिन हम दोनो व उन दो औरतों के सिवा तीसरा कोई नज़र नहीं आया कमरे में। और मालिक जिस तरह हम दोनो को वह फेंक रहा था उससे साफ पता चलता है कि वो बहुत ताकतवर था।"

"ये सच कह रहे हैं महेन्द्र।" एक अन्य आदमी ने कहा जो गंजे आदमी के कुछ ही फाॅसले पर खड़ा था__"और फिर भला ये झूॅठ क्यों बोलेंगे?? आज तक हर काम ये सब आदमी अपनी पूरी ईमानदारी से करते आए हैं। मेरे यार, इस बात पर ज़रा विचार करो कि ऐसा हो भी सकता है कि नहीं?? मेरा मतलब कि संभव है उस कमरे में सचमुच ही कोई भूत रहा हो।"

"तुम भी इन लोगों की बात पर यकीन कर रहे हो रंगनाथ?" महेन्द्र ने रंगनाथ की तरफ देख कर कहा__"ये सब अंधविश्वास की बातें हैं। आज के समय में कोई भूत वूत नहीं होता।"

"देखो महेंद्र, जब तक हम किसी चीज़ को अपनी आंखों से देख नहीं लेते, तब तक हम किसी के द्वारा बताई हुई उस चीज़ पर यकीन नहीं करते।" रंगनाथ ने कहा__"पर जिन्होंने उस चीज़ को अपनी आॅखों से देख लिया हो तथा उसे महसूस भी कर लिया हो उसे वो सब सच ही लगती हैं। तुम्हारे यकीन न करने से सच्चाई बदल नहीं जाएगी।"

"तुम्हारे कहने का मतलब है कि मैं इन लोगों की इस बात का यकीन कर लूॅ कि वहाॅ पर भूत था?" महेंद्र ने अजीब भाव से कहा__"और उस भूत ने ही इन दोनो को दो बार फेंका था। जिसके बाद ये डर गए और वहाॅ से अपनी जान बचा कर भाग आए??"

"बिलकुल।" रंगनाथ ने कहा__"अब ज़रा इस बात पर ग़ौर करो मेरे दोस्त कि उस कमरे में भूत क्यों था? जैसा कि तुम्हारे इन आदमियों ने बताया कि जैसे ही ये दोनो उन दोनो औरतों को बेहोश करने के लिए अपने हाॅथ में लिए क्लोरोफाॅम वाली रुमाल को उनकी नाक के पास लाए वैसे ही इन दोनो को किसी ने पूरी शक्ति से उठा कर पीछे कमरे की दीवार पर फेंक दिया। ऐसा दो बार हुआ...फेंकने वाला कहीं नज़र नहीं आया। ख़ैर, तो इसका मतलब ये हुआ कि इन दोनो को फेंकने वाला वो भूत ये नहीं चाहता था कि ये दोनो उन औरतों को बेहोश करके वहाॅ से यहाॅ ले आएं। इस बात को सोचो महेंद्र कि वो कौन था, जो ये नहीं चाहता था???"

रंगनाथ की बात सुनकर महेंद्र सोच में पड़ गया। उसे लगा बात तो ठीक ही है, अगर रंगनाथ के नज़रिये से सोचा जाए तो यकीनन इस बात में पेंच है।

"थोड़ी देर के लिए चलो मान लिया कि वो भूत नहीं था।" रंगनाथ प्रभावशाली लहजे में कह रहा था__"बल्कि कोई जीवित इंसान ही था जो किसी तरह इन लोगों को नज़र नहीं आया, लेकिन सवाल ये है कि वो अंदर बंद कमरे में आया कहाॅ से?? और अगर वह पहले से उस कमरे में था तो क्यों था वो उस कमरे में?? क्या वो उस घर का ही कोई सदस्य था?? लेकिन अगर घर का ही कोई सदस्य था तो उसमें इतनी ताकत कहाॅ से हो सकती है कि वह तुम्हारे इन दो दो मुस्टंडो को उठाकर पूरी शक्ति से फेंक दे?? इस लिए ये ख़याल ही ग़लत है कि घर का कोई सदस्य हो सकता है वो। तो फिर कौन था वो??? क्या उसे पता था कि तुम्हारे आदमी उस छोकरी को उठाने आ रहे हैं आज रात????"

"तुमने तो यार मेरा भेजा ही फ्राई कर दिया।" महेंद्र ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा__"मुझे समझ ही नहीं आ रहा अब कि उस कमरे में वो कौन हो सकता है??? कभी तुम ये साबित कर देते हो कि वह भूत ही था और कभी ये कि वो कोई घर का सदस्य। साला कौन था वो???

"कोई न कोई तो था ही वहाॅ।" रंगनाथ ने कहा__"तुम्हारे इन दोनो आदमियों की हालत बता रही है कि उस कमरे में किसी ने इन्हें बड़े अच्छे तरीके से पटकनी दी है। वर्ना क्या इन्हें कोई शौक चढ़ा था जो खुद को पटकनी देकर अपनी ये हालत बना लेते??"

"सच कह रहे तुम।" महेंद्र ने गहरी साॅस खींचकर कहा__"लेकिन अब इस बात का कैसे पता चले कि वो कौन था जिसने मेरे काम को अंजाम तक पहुॅचने से पहले ही ख़राब कर दिया।"

"मुझे लगता है इस मामले में एक बार कृत्या से मिलना चाहिए।" रंगनाथ ने कहा__"अगर उस कमरे में कोई भूत ही था तो उसके बारे में कृत्या ही स्पष्ट रूप से बता सकती है।"

"हाॅ लेकिन हमें इसकी कीमत भी तो देनी पड़ेगी उसे।" महेंद्र ने अजीब भाव से कहा__"वो साली इस काम की कीमत हमसे अपनी***** मरवाकर ही वसूलेगी। साली में इतनी आग है कि संसार भर के मर्द एक साथ भी उसकी आग न बुझा पाएॅ।"

"सही कहते हो यार।" रंगनाथ ने हॅस कर कहा__"मगर तुम्हारी अपनी बीवी से ज़रा कम ही है। वैसे हैं कहाॅ दिख नहीं रहीं भाभी जान??"
"अंदर ही है यार।" महेंद्र ने अर्थपूर्ण भाव से मुस्कुरा कर कहा__"ऊपर अपने कमरे में अपने बेटे के साथ।"

"समझ गया भाई।" रंगनाथ हॅसते हुए बोला__"भाभी जान अपने कमरे में अपने ही बेटे के साथ मज़े लूट रही हैं। हद है यार, मतलब तुम्हें सब पता है इसके बाद भी तुम्हें इस बात से कोई ऐतराज नहीं कि वो अपने ही बेटे से ये सब करती हैं।"

"उसे अपने बेटे से इस क़दर प्यार है कि वो ये सब भूल गई है कि वो अपने ही बेटे के साथ क्या करने लगी है।" महेंद्र ने कहा__"शुरू शुरू में जब मैंने नाराज़ होकर इस सबके लिए उसे डाॅटा था तो उसने अपने हाॅथ की नस काट ली थी। कहने लगी उसका बेटा ही उसका असली पति है। अब तुम ही बताओ यार मैं क्या करता??? बदनामी के डर से चुप रह गया और उसे अपनी मनमानी करने की छूट दे दी। इतनी गुजारिश ज़रूर की उससे कि ये सब वो अपने बंद कमरे में करे और किसी को इस सबकी ख़बर न हो।"

"ओह, फिर तो तुम्हें वो अपने जिस्म पर हाॅथ भी न लगाने देती होंगी?" रंगनाथ हॅसा।
"ऐसा नहीं है दोस्त।" महेन्द्र ने कहा__"वो मुझे किसी बात के लिए मना नहीं करती। बल्कि मुझे भी उसने हर बात की छूट दे रखी है। यानी मैं जिस औरत से चाहूॅ जिस्मानी संबंध बना सकता हूॅ।"

"ओह ये तो अच्छी बात है।" रंगनाथ ने कहा__"उन्हें तुम्हारी इच्छाओं का भी ख़याल है ये अच्छी बात है। वैसे भी तुम्हें तो नई नई *****मारने का ही शौक है न।"

"ये सब छोड़ो रंगनाथ, ये बताओ कृत्या के पास कब चलें?" महेंद्र ने एकाएक पहलू बदलते हुए कहा__"तुम्हें तो पता है कि मेरे लिए ये जानना ज़रूरी है कि मेरे काम को ख़राब करने वाला कौंन था?"

"अभी तो बहुत रात हो गई है महेन्द्र इस लिए अभी जाने का कोई फायदा नहीं होगा।" रंगनाथ ने कहा__"हम यहाॅ से सुबह ही नास्ता पानी करके निकलेंगे। दो घंटे में हम उसके पास पहुॅच जाएॅगे। वो ज़रूर बता देगी कि वो भूत कौन था और उस कमरे में किस लिए आया था?"

"और अगर कृत्या ने ये बताया कि वो भूत नहीं था कोई और था तो?" महेंद्र ने शंका ज़ाहिर की__"फिर हम कैसे पता लगाएॅगे कि वह कौन था? अगर ये बात सच है कि वह नहीं चाहता कि कोई उस छोकरी को उठाए तो वो आगे भी इस सबके लिए हमारे लिए बाधा बना रहेगा।"

"सब ठीक हो जाएगा यार।" रंगनाथ ने कहा__"और वो यकीनन भूत ही था। क्योंकि किसी इंसान में इतनी ताकत नहीं हो सकती कि वो दो दो भारी भरकम आदमियों को एक साथ उठा कर इस तरह फेंक सके।"

"अब ये तो कल कृत्या के पास जा कर ही पता चलेगा भाई।" महेंद्र ने गहरी साॅस ली__"चलो मैं अब सोने जा रहा हूॅ, तुम भी जा कर सो जाओ। सुबह समय पर निकलना भी है।"

रंगनाथ ने हाॅ में गर्दन हिलाई और अंदर की तरफ बढ़ गया। वो दोनो नहीं जानते थे कि कल क्या होने वाला है??????



दोस्तो अपडेट हाज़िर है.....
आप सबकी प्रतिक्रिया का इन्तज़ार रहेगा,,,,,,,,
Shaandaar update dost
 

Naik

Well-Known Member
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राज-रानी (बदलते रिश्ते)
**अपडेट** (06)


अब तक.....

"मुझे कसम में क्यों बाॅध दिया सुमन?" अशोक ने भर्राए स्वर में कहा__"ये अच्छा नहीं किया तुमने।"
"मुझे माफ कर दीजिए अशोक।" सुमन ने छलक आए आॅसुओं को आॅचल से पोंछते हुए कहा__"पर मैं अब यहाॅ नहीं रुक सकती।"

"लेकिन कहाॅ जाओगी तुम?" अशोक ने कहा__"तुम जानती हो ये दुनियाॅ कितनी बुरी है। और वैसे भी रानी की तबियत ठीक नहीं रहती। कैसे सम्हालोगी उसे? नहीं नहीं सुमन, तुम इस तरह कहीं नहीं जाओगी। मैं खुद तुम दोनो के लिए कहीं रहने का इंतजाम करूॅगा और तुम दोनों की हर जरूरत को पूरा करूॅगा।"

"इसकी कोई आवश्यकता नहीं है अशोक।" सुमन ने कहा__"हम माॅ बेटी किसी तरह अपना गुज़ारा कर लेंगी।"
"नहीं सुमन।" अशोक ने कहा__"मैं इस तरह तुम दोनो को बेसहारा नहीं छोंड़ सकता। तुम्हें मेरी कसम है सुमन, तुम इस घर में नहीं रहना चाहती तो कोई बात नहीं लेकिन मेरी इतनी बात मान लो। मैं इसी शहर में किसी जगह तुम्हें रहने के लिए एक मकान की ब्यवस्था कर दूॅगा कल ही।"

सुमन कुछ न बोली बस रानी के मासूम से चेहरे को देखती रही। अशोक ने आगे बढ़ कर रानी को ठीक से बेड पर लेटा दिया तथा उसके ऊपर चद्दर डाल दिया। कुछ पल रानी के मासूम से चेहरे को देखने के बाद उसने झुक कर रानी के माॅथे को चूॅमा फिर एक नज़र सुमन को देखकर कमरे से बाहर चला गया। जबकि सुमन रानी के सिरहाने बैठ कर उसके सिर के बालों में उॅगलियाॅ फेरती रही।


अब आगे......

वे पाॅच लोग थे। रात के अॅधेरे में वो पाॅचों एक अलीशान बिल्डिंग के बाएं तरफ लगे पेड़ों के नीचे इस तरह खड़े थे जैसे किसी के द्वारा देख लिए जाने का डर हो। हलाॅकि अॅधेरा बहुत ज्यादा भी नहीं था, मगर अॅधेरा तो था क्योंकि आसमान में कहीं भी चाॅद दिखाई नहीं दे रहा था। पाॅचों के शरीर पर काले कपड़े थे तथा चेहरों पर काले रंग का ही नकाब था। शरीर का कोई भी अंग नहीं दिख रहा था, बस नकाब से झाॅकती उनकी आॅखें ही नज़र आ रही थी जो बिल्डिंग के दूसरे फ्लोर पर बाहर की तरफ बनी बालकनी पर बार बार उठ रही थी।

"भाई, रास्ता तो साफ है लेकिन ज़मीन से उस बालकनी की ऊॅचाई हमारी उम्मीद से ज्यादा है।" एक नकाबपोश ने ऊपर बिल्डिंग की बालकनी को देखकर कहा__"दूसरी बात बिल्डिंग के पास कहीं कोई पेड़ भी नहीं हैं, एकदम खुला एरिया है। ऐसे में कोई भी हमें बिल्डिंग की दीवार पर चढ़ते हुए देख सकता है।"

"बिल्डिंग के पास कोई पेड़ हो ये हमारे लिए कोई ज़रूरी बात नहीं है।" दूसरे नकाबपोश ने कहा__"रही बात दीवार पर चढ़ते हुए किसी के द्वारा देख लेने की तो ऐसा संभव नहीं है। इस वक्त रात के दो बज रहे हैं, यहाॅ हर कोई अपने अपने मकान के अंदर गहरी नींद में सोया हुआ होगा। और तुम ये मत भूलो कि हमें ये काम करना ही पड़ेगा फिर चाहे जैसी भी परिस्थितियाॅ हों।"

"हाॅ ये बात तो है भाई।" पहले वाले नकाबपोश ने कहा__"हमें हर हाल में ये काम करना ही होगा, वर्ना मालिक हम सबको गोली मार देंगे।"

"अब बातों में वक्त बर्बाद मत करो और लग जाओ सब काम में।" दूसरे वाले नकामपोश ने कहा__"दो आदमी यहीं पर रह कर आस पास का मुआयना करते रहेंगे। अगर कोई परेशानी या किसी के द्वारा देख लिए जाने वाली बात होगी तो ये दोनों बिल्डिंग की दीवार पर चढ़ने वालों को ट्रान्समीटर द्वारा फौरन ही सूचित कर देगा। एक आदमी दीवार के आस पास ही कहीं छुपकर खड़ा रहेगा तथा आसपास भी नज़र रखेगा। जबकि मैं और रतन रस्सी की सहायता से उस बालकनी में जाएॅगे। बालकनी के कुछ ही दूरी पर एक खिड़की है। खिड़की पर मोटा सा काॅच लगा हुआ है। खिड़की के काॅच को कटर से काटकर हम दोनों कमरे के अंदर पहुॅचेंगे। कमरे में पहुचकर हम उसको क्लोरोफाॅम द्वारा बेहोश करेंगे और फिर उसे उठा कर कमरे से बाहर उसी खिड़की के द्वारा आ जाएॅगे।"

"भाई खिड़की से उसे कैसे निकालोगे?" एक अन्य नकाबपोश ने कहा__"मेरा मतलब अगर खिड़की का काॅच उसके नाज़ुक बदन में कहीं लग गया तो??"

"अबे चूतिये, कमरे के अंदर पहुॅचकर हम उस खिड़को को पूरा खोल देंगे।" पहले वाले नकाबपोश ने कहा__"उसके बाद ही आसानी से उसे लेकर यहाॅ आएॅगे।"

"ठीक है भाई।" अन्य नकाबपोश वाले ने कहा__"तुम लोग जाओ, हम यहाॅ पर खड़े रह कर हर तरफ नज़र रखेंगे।"

दो को छोंड़ कर बाॅकी तीनों बिल्डिंग की तरफ सावधानी से बढ़ गए। बिल्डिंग की दीवार के पास पहुॅचकर तीनो ठिठके। पहले वाले नकाबपोश ने तीसरे नकाबपोश को नीचे ही कहीं छुपकर रहने का इशारा किया। इसके बाद हाॅथ में ली हुई रस्सी को खोल कर उसके पहले सिरे को तथा कुछ और रस्सी को समेट कर एक हाॅथ से घुमाते हुए ऊपर बनी बालकनी की तरफ उछाल दिया। रस्सी का सिरा स्टील के डण्डे में ऊपर से घूमकर नीचे की तरफ झूलने लगा। नकाबपोश ने ऊपर कुछ दूरी पर झूलते रस्सी के पहले सिरे को ज़मीन से उछल कर एक हाथ से पकड़ लिया। रस्सी के पहले सिरे को उसके दूसरे सिरे से मिलाकर अच्छे बाॅध दिया।

"भाई इसे इस प्रकार बाॅधने से अच्छा था कि यहीं से फंदा बना कर ऊपर उस स्टील के डण्डे में फॅसा देते।" दूसरे नकाब वाले ने सरगोशी सी की__"उस तरह में ये ज्यादा मजबूत रहता और इधर उधर खिसकता भी नहीं।"

"अबे ढक्कन।" पहले नकाबपोश वाले ने कहा__"सारा काम हो जाने के बाद इस रस्सी को ऊपर उस डण्डे से क्या तेरी अम्मा छोरने जाती??? जबकि हमें इस रस्सी को भी उस छोकरी की तरह ही अपने साथ लेकर जाना है।"

"भाई बात तो तेरी ठीक है।" दूसरे नकाबपोश ने कहा__"लेकिन मेरी अम्मा को इसमें क्यों खींच रहा है? वो बेचारी तो मेरे बेवड़े बाप को रात दिन इस बात पर गालियाॅ देती रहती है कि मेरा बाप अब उसकी लेता ही नहीं है।"

"क्यों??" नकाबपोश चौंका__"तेरा बाप तेरी अम्मा की क्यों नहीं लेता अब?"
"अरे भाई, उसका खड़ा ही नहीं होता तो क्या करे बेचारा?" दूसरे नकाबपोश ने धीरे से हॅसते हुए कहा__"जबकि अम्मा को रोज़ रात को एक दमदार हथियार चाहिए।"

"तो तू ही दे दिया कर न अपनी अम्मा को अपना हथियार।" पहला वाला नकाबपोश धीरे से बोला__"इसमें तेरा भी भला और तेरी अम्मा का भी भला हो जाएगा।"

"साले बड़ा हरामी है तू।" दूसरा वाला आॅखें फैला कर बोला__"भला कोई अपनी अम्मा को भी अपना हथियार देता है क्या? ये तो पाप है, महापाप।"

"ज्यादा ज्ञान मत चोद तू।" पहले वाले ने कहा__"क्या तुझे पता नहीं कि हमारे मालिक का वो हरामी लड़का रोज़ अपनी अम्मा को ठोंक कर ये महापाप करता है??"

"हाॅएं।" दूसरा वाला ये सुन कर बुरी तरह उछला था, बोला__"पर साले तुझे कैसे पता ये सब?"
"मुझे सब पता है।" पहले वाले ने रहस्यमयी अंदाज़ से बोला__"दिन भर आदमीरूपी जानवर चराता हूॅ। मालिक की उस अधेड़ और छिनाल बीवी को खूब अच्छी तरह जानता हूॅ मैं और उसके उस हिजड़े बेटे को भी, जो रोज़ रात को अपनी अम्मा की ***** चाट चाट कर उसकी ***** का पानी पीता है।"

"हाए रे देवा।" दूसरे वाले ने आसमान की तरफ देखते हुए कहा__"उठा ले रे...उठा ले, अरे मेरे को नहीं रे...उन दोनो कम्बख्तों को उठा ले।"
"ओए बाबू राव की दुम।" पहला वाला घुड़का__"अब चुप कर। मैं इस रस्सी के सहारे ऊपर बालकनी में जा रहा हूॅ। मेरे ऊपर पहुॅचते ही तू भी आ जाना जल्दी, लेकिन हाॅ सम्हाल कर।"

इसके बाद पहला वाला नकाबपोश रस्सी को पकड़ कर ऊपर की तरफ जाने लगा। अॅधेरा ज्यादा नहीं था, बस इतना समझ आता था कि पाॅच फुट के फाॅसले पर कोई चीज़ है। दूसरा वाला नकाबपोश ऊपर की तरफ अपने साथी को देख रहा था। लेकिन उसका ध्यान कहीं और था, दरअसल वो अपने साथी की बातों के बारे में ही सोच रहा था कि उसके मालिक की बीवी अपने ही बेटे के साथ कैसे,,,,,तभी वह चौंका, उसने देखा कि उसका साथी ऊपर बालकनी में पहुॅच कर रस्सी हिला कर उसे ऊपर आने का संकेत दे रहा है।

दूसरा वाला नकाबपोश भी कुछ देर में रस्सी की मदद से ऊपर बालकनी में आ गया अपने साथी के पास।

"वो खिड़की किधर है?" दूसरे वाले ने पूछा।
"तेरे पीछे तरफ ही तो है साले।" पहला वाला धीरे से बोला__"चल उधर।"

दोनों खिड़की के पास पहुॅचे। दोनों ने खिड़की के अंदर की तरफ देखा किन्तु अंदर बाहर की ही तरह अॅधेरा था इस लिए कुछ नज़र नहीं आया। इतना ज़रूर समझ में आया कि खिड़की में अंदर की तरफ पर्दा लगा हुआ है। पहले वाले ने अपनी पाॅकेट से काॅच काटने वाला हीरा निकाला और बड़ी सावधानी से खिड़की पर लगे काॅच पर रख कर उसे धीरे धीरे घुमाने लगा।

"भाई तू तो कह रहा था कि इस खिड़की के शीशे को काटकर तू खिड़की को अंदर से पूरा खोल देगा।" एक ने बिलकुल धीमे स्वर में कहा__"जबकि इस खिड़की में तो खुलने वाले पल्ले हैं ही नहीं, बल्कि इस पूरी खिड़की पर ही शीशा लगा हुआ है"

"इसमें मेरी ग़लती नहीं है रे।" दूसरे ने खिड़की पर लगे शीशे को सावधानी से काटते हुए कहा__"आज दोपहर में जब मैं यहाॅ आया था तो दूर से ही देखा था इस खिड़की को। उस समय ऐसा लगा था जैसे ये खिड़की पल्ले वाली ही है। और वैसे भी खिड़कियाॅ तो होती ही पल्ले वाली हैं ताकि उसे खोल कर बाहर की रोशनी और ताज़ी हवा को कमरे के अंदर लाया जा सके। लेकिन ये खिड़की ऐसी नहीं बनाई गई तो इसमे मेरी क्या ग़लती है। ये तो साले अमीर लोगों के ही सड़े गले दिमाग़ की उपज होती है।"

"भाई एक बात बता, क्या सच में अपने मालिक का लड़का अपनी अम्मा की लेता है?" पहले वाले ने अपने मन की उलझन और उत्सुकता को मिटाने की गरज से पूछा__"मुझे तो तेरी इस बात पर ज़रा भी यकीन नहीं हो रहा। अम्मा कसम।"

"अबे साले तू अभी भी वहीं अटका हुआ है।" दूसरे वाले ने धीरे से हॅसते हुए कहा__"पर तेरी ग़लती नहीं है रे, मैंने भी जब किसी से सुना था न तो मुझे इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था। फिर एक दिन उसने मुझे खुद ही चुपके से दिखा दिया तो यकीन करना ही पड़ा भाई।"

"किसने दिखाया तुझे?" पहला वाला हैरानी से बोला__"क्या किसी और को भी ये सब पता है??"
"हम जैसे लगभग सभी आदमियों को पता है।" दूसरे ने कहा__"ऐसी बातें छुपती नहीं हैं। जैसे आज मैंने तुझे बताया इसी तरह किसी और ने भी अपने साथी से बताया। ऐसे ही सबको पता हो गई ये बात।"

"पर तुझे किसने बताया?" पहले वाले ने पूछा__"और दिखाया भी किसने??"
"अरे वो गीता है न।" दूसरे वाले ने कहा__"जो रोज़ मालिक की बीवी के बदन की मालिश करती है, उसी ने बताया और दिखाया भी।"
"अरे वो तो एक नंबर की छिनाल है साली।" पहले वाले ने बुरा सा मुॅह बनाते हुए कहा__"खुद सबसे अपनी मरवाती फिरती है और मालिक की बीवी के बारे में उलटा सुलटा बोलती है रंडी कहीं की।"

"वो छिनाल तो है भाई।" दूसरे वाले ने कहा__"लेकिन जब उसने मुझे दिखा दिया तो यकीन करना ही पड़ा न इस बात का। मैंने अपनी आॅखों से मालिक की छिनाल बीवी को अपने ही बेटे से घोड़ी बनकर अपनी पेलवाते हुए देखा है।"

"भाई मुझे भी देखना है।" पहला वाला बोला__"मैं भी देखना चाहता हूॅ कि कैसे वो छिनाल अपने ही बेटे से अपनी ***** मरवाती है?? भाई एक बार मुझे भी दिखा दे न उस रंडी को।"

"अच्छा चल ठीक है दिखा दूॅगा तुझे भी।" दूसरे वाले ने पहले वाले पर जैसे एहसान सा किया__"तू भी क्या याद करेगा कि किस दिलेर बंदे से दोस्ती की थी तूने। पर साले, तू देख कर करेगा क्या?? क्या उस छिनाल को पेलवाते हुए देख कर मुट्ठ मारेगा तू हाहाहाहा?"

"नहीं बे, तेरी ***** मारूॅगा।" पहले वाला धीरे से हॅसा__"और ऐसी मारूॅगा कि सुबह शाम हग नहीं पाएगा तू।"
"तेरी माॅ को ***** साले।" दूसरा वाला घुड़का__"मेरा हगना बंद करेगा तू?? कहीं ऐसा न हो कि मैं तेरा ही हगना बंद कर दूॅ।"

"पहले इस शीशे को तो काट।" पहले वाले ने कहा__"और वो काम कर जो यहाॅ करने आए हैं वर्ना मालिक हम सबका हगना बंद कर देगा। देख लियो।"

कुछ ही देर में खिड़की का काॅच कट गया उन दोनों ने उसे पकड़कर बड़ी सावधानी से नीचे एक तरफ फर्स पर रख दिया। अब बड़ी आसानी से खिड़की के द्वारा अंदर जाया जा सकता था। उन दोनों ने खिड़की के बाहर से ही पहले अंदर कमरे की स्थिति का मुआयना किया, जब उन्हें इत्मीनान हो गया कि अंदर कमरे में मौजूद इंसान सो रहा है और अन्य किसी प्रकार की कहीं कोई बाधा नहीं है तो वो दोनो एक एक करके खिड़की से अंदर कमरे में आ गए।

कमरे में बिलकुल अॅधेरा था। कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। हलाॅकि इन दोनो के पास पेंसिल टार्च थी, किन्तु उसका प्रयोग ये सोच कर नहीं किया कि क्या पता कमरे में मौजूद इंसान सो ही रहा हो या फिर सोने का नाटक कर रहा हो। कुछ देर खिड़की के पास खड़े रह कर दोनो ही कमरे में इधर उधर वस्तुओं को पहचानने की कोशिश करते रहे।

कुछ ही देर में उनकी आॅखें अॅधेरे में कुछ दूरी पर देख लेने के लिए अभ्यस्त हो गईं। आगे बढ़ने पर एक साइड उन्हें बेड नज़र आया तथा बेड पर मौजूद एक की बजाए दो लोगों को देख कर दोनों ही चौंके।

अलीशान बेड पर बेड की पिछली पुश्त से अपनी पीठ टिका कर तथा अधलेटी सी अवस्था में एक औरत लेटी थी। उसी औरत की गोंद में करवॅट लिए हुए एक बहुत ही सुन्दर किन्तु मासूम सी लड़की लेटी हुई थी। दूध की मानिंद गोरे जिस्म पर दूध जैसी सफेद ही कमीज पहने हुए थी वह। सुनहरे बालों की कुछ लटें उसके फूल जैसे कोमल व नाज़ुक चेहरे पर बिखरी हुईं थी।

अपने सामने इतनी खूबसूरत लड़की को देख इन दोनो की पलकें झपकना ही भूल गई। वो औरत भी खूबसूरत थी, लगभग बत्तीस या पैंतीस के आसपास की उमर थी औरत की। किन्तु फिगर ऐसा की उस लड़की की बड़ी बहन लगती थी।

कुछ देर यूॅ ही उन दोनो को देखने के बाद जैसे उन्हें वस्तुस्थिति का एहसास हुआ। दोनो ने एक दूसरे की तरफ देखा जैसे पूछ रहे हों कि अब क्या करें? फिर दोनो ने मानो कोई फैंसला ले लिया।

दोनो ने पैन्ट की जेब से क्लोरोफाॅम डाली हुई रुमाल निकाली, और आहिस्ता आहिस्ता किन्तु धड़कते दिल के साथ बेट के पास पहुॅचे। दोनो ने एक ही समय में दोनो की नाॅक के पास क्लोरोफाॅम डाली हुई रुमाल वाला हाॅथ बढ़ाया। अभी उन दोनो का हाॅथ औरत और उस लड़की के नाॅक के पास पहुॅचा ही था कि दोनो ही हवा में उड़ते हुए पीछे की तरफ दीवार से टकरा कर नीचे गिर पड़े। दोनो के हलक से घुटी घुटी सी चीख़ निकल गई।

दोनो ही कमरे की पिछली दीवार से टकराए थे और नीचे गिरने से जो आवाज़ हुई उससे बेड पर सोई हुई औरत व लड़की पर कोई फर्क नहीं पड़ा, बल्कि वो दोनो उसी तरह हर बात से बेखबर सोई रहीं।

इधर दोनों नकाबपोशों को समझ न आया कि अचानक ये उनके साथ हुआ क्या?? उन्हें इतना महसूस हुआ था कि किसी ने उन्हें पीछे की तरफ पूरी शक्ति से फेंका है। मगर किसने किया ये??? दोनो हैरान व चकित भाव से कमरे में इधर उधर देखने लगे मगर कहीं कोई नज़र न आया। बेट पर नज़र पड़ी तो औरत और वो लड़की पहले जैसी ही स्थिति में सो रहीं थी। दोनो ने एक दूसरे की तरफ देख कर इशारे से पूछा कि किसने हमें फेंका हो सकता है?

दोनो सीघ्र ही उठे, और इस बार पूरी सतर्कता से कमरे में इधर उधर देखते देखते ही बेड के पास गए। दोनो के हाॅथ में क्लोरोफाॅम डाला हुआ वो रुमाल अभी भी मौजूद था। उन दोनो ने एक बार फिर से पहली वाली क्रिया दोहराई। मतलब औरत और उस लड़की के नाक के पास अपना क्लोरोफाॅम वाला रुमाला बढ़ाया। दोनो की धड़कने इस बार बुरी तरह बढ़ी हुई थी ये सोच कर कि कहीं फिर से न कोई उन दोनो पीछे फेंक दे। और हुआ भी वही....जैसे ही उन दोनो का हाॅथ औरत और लड़की की नाॅक के पास आया उसी वक्त एक बार फिर वे दोनो हवा में उड़ते हुए पीछे की दीवार से जा टकराए।

ये कोई मामूली बात नहीं थी बल्कि हैरतअंगेज बात थी। फेंकने वाला कौंन था तथा किधर था उन्हें कहीं दिखाई ही नहीं दे रहा था। दिलो दिमाग़ कुंद सा पड़ गया। फिर जैसे एकाएक ही दोनो के दिमाग़ की बत्ती जली। दोनो के मन में ये ख़याल उभरा कि कोई भूत है यहाॅ। भूत का ख़याल आते ही दोनो की अम्माॅ मर गई। दोनो थर थर काॅपने लगे। पल भर में दोनो का चेहरा भय से पीला ज़र्द पड़ता चला गया। मुह से कुछ बोला नहीं जा रहा था, बस दोनो के होंठ जूड़ी के मरीज़ की तरह बुरी तरह कॅपकॅपा रहे थे।

दीवार से दो दो बार पूरी शक्ति से टकराने के बाद उनमें अब हिम्मत नहीं बची थी कि दुबारा वो उन दोनो औरत व लड़की को क्लोरोफाॅम सुॅघाने जाएं। किसी तरह दोनो ही फर्स से उठे तो कण्ठ से कराह निकल गई, सारा शरीर बुरी तरह दुख रहा था। दोनो जिस तरह खिड़की से आए थे उसी तरह वापस चले गए। उनके कमरे से निकलते ही कमरे के अॅधेरे में एक साया नज़र आया। उसने एक बार बेड पर सोई हुई औरतों की तरफ देखा फिर खिड़की की तरफ बढ़ गया। खिड़की के पास जाकर उसने खिड़की के कटे हुए शीशे की तरफ देख कर अपने दाएं हाॅथ को आशीर्वाद की शक्ल में टूटे हुए टुकड़े की तरफ किया। उसके ऐसा करते ही काॅच का वो बड़ा सा टुकड़ा अपने आप ही फर्स से उठ कर हवा में लहराते हुए खिड़की के टूटे हुए भाग में आकर खुद ही फिट हो गया। टुकड़े के टूटे हुए भाग में फिट होते ही उस साए ने अपने उसी हाॅथ से उस खिड़की के उन जगहों पर रख कर फेरा जिन जिन जगहों से काॅच को काटा गया था। उस साये के ऐसा करते ही खिड़की के काॅच पर पड़ी हुई दरारें अपने आप ही साफ होती चली गईं। अब खिड़की को देख कर कोई नहीं कह सकता था कि इसे कुछ देर पहले किसी ने काटा भी रहा होगा।

ये सब करने के बाद उस काले साए ने एक बार पलट कर बेड की तरफ देखकर मुस्कुराया और फिर एकाएक ही वह धुएं में बदल कर कमरे के दरवाजे की झिरियों से बाहर निकल गया।
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"बंद करो अपनी ये बकवास वर्ना हलक से ज़ुबान खींचकर तुम दोनो के हाॅथ में दे दूॅगा।" पूरी शक्ति से दहाड़ते हुए एक ऐसे शख्स ने अपने सामने हाथ बाॅधे व गर्दन झुकाए हुए खड़े अपने पालतू गुर्गों की तरफ देखते हुए कहा जिसकी आॅखें मंजी व सिर गंजा था__"तुम दोनो ये चाहते हो कि मैं तुम दोनो की इस बात पर यकीन करूॅ कि किसी भूत ने तुम दोनो को फेंक फेंक कर मारा, और उसकी वजह से ही तुम वहाॅ से अपना काम किये बग़ैर चले आए??"

"मालिक हमारी बात का यकीन कीजिए।" एक गुर्गे ने कहा__"वहाॅ सच में कोई भूत ही था। उसी ने हम पर हमला किया था। वर्ना हम अपना काम करके ही आपके पास वापस आते।"

"तुम सब के सब एक नंबर के निकम्मे और डरपोंक हो।" उस शख्स ने गरजते हुए कहा__"एक अदना सा काम सौंपा था तुम लोगों को, मगर वो भी नहीं कर सके तुम सब। बेकार में ही मैं तुम लोगों पर यकीन करके हज़ारों लाखों रूपये खर्च करता हूॅ।"

"ऐसी बात नहीं है मालिक।" दूसरे गुर्गे ने हाॅथ जोड़ते हुए कहा__"हम आपके लिए दुनिया का कोई भी काम करने को तैयार हैं, और आपके लिए अपनी जान तक दे सकते हैं। हम दोनों ने कमरे में अच्छी तरह देखा था, लेकिन हम दोनो व उन दो औरतों के सिवा तीसरा कोई नज़र नहीं आया कमरे में। और मालिक जिस तरह हम दोनो को वह फेंक रहा था उससे साफ पता चलता है कि वो बहुत ताकतवर था।"

"ये सच कह रहे हैं महेन्द्र।" एक अन्य आदमी ने कहा जो गंजे आदमी के कुछ ही फाॅसले पर खड़ा था__"और फिर भला ये झूॅठ क्यों बोलेंगे?? आज तक हर काम ये सब आदमी अपनी पूरी ईमानदारी से करते आए हैं। मेरे यार, इस बात पर ज़रा विचार करो कि ऐसा हो भी सकता है कि नहीं?? मेरा मतलब कि संभव है उस कमरे में सचमुच ही कोई भूत रहा हो।"

"तुम भी इन लोगों की बात पर यकीन कर रहे हो रंगनाथ?" महेन्द्र ने रंगनाथ की तरफ देख कर कहा__"ये सब अंधविश्वास की बातें हैं। आज के समय में कोई भूत वूत नहीं होता।"

"देखो महेंद्र, जब तक हम किसी चीज़ को अपनी आंखों से देख नहीं लेते, तब तक हम किसी के द्वारा बताई हुई उस चीज़ पर यकीन नहीं करते।" रंगनाथ ने कहा__"पर जिन्होंने उस चीज़ को अपनी आॅखों से देख लिया हो तथा उसे महसूस भी कर लिया हो उसे वो सब सच ही लगती हैं। तुम्हारे यकीन न करने से सच्चाई बदल नहीं जाएगी।"

"तुम्हारे कहने का मतलब है कि मैं इन लोगों की इस बात का यकीन कर लूॅ कि वहाॅ पर भूत था?" महेंद्र ने अजीब भाव से कहा__"और उस भूत ने ही इन दोनो को दो बार फेंका था। जिसके बाद ये डर गए और वहाॅ से अपनी जान बचा कर भाग आए??"

"बिलकुल।" रंगनाथ ने कहा__"अब ज़रा इस बात पर ग़ौर करो मेरे दोस्त कि उस कमरे में भूत क्यों था? जैसा कि तुम्हारे इन आदमियों ने बताया कि जैसे ही ये दोनो उन दोनो औरतों को बेहोश करने के लिए अपने हाॅथ में लिए क्लोरोफाॅम वाली रुमाल को उनकी नाक के पास लाए वैसे ही इन दोनो को किसी ने पूरी शक्ति से उठा कर पीछे कमरे की दीवार पर फेंक दिया। ऐसा दो बार हुआ...फेंकने वाला कहीं नज़र नहीं आया। ख़ैर, तो इसका मतलब ये हुआ कि इन दोनो को फेंकने वाला वो भूत ये नहीं चाहता था कि ये दोनो उन औरतों को बेहोश करके वहाॅ से यहाॅ ले आएं। इस बात को सोचो महेंद्र कि वो कौन था, जो ये नहीं चाहता था???"

रंगनाथ की बात सुनकर महेंद्र सोच में पड़ गया। उसे लगा बात तो ठीक ही है, अगर रंगनाथ के नज़रिये से सोचा जाए तो यकीनन इस बात में पेंच है।

"थोड़ी देर के लिए चलो मान लिया कि वो भूत नहीं था।" रंगनाथ प्रभावशाली लहजे में कह रहा था__"बल्कि कोई जीवित इंसान ही था जो किसी तरह इन लोगों को नज़र नहीं आया, लेकिन सवाल ये है कि वो अंदर बंद कमरे में आया कहाॅ से?? और अगर वह पहले से उस कमरे में था तो क्यों था वो उस कमरे में?? क्या वो उस घर का ही कोई सदस्य था?? लेकिन अगर घर का ही कोई सदस्य था तो उसमें इतनी ताकत कहाॅ से हो सकती है कि वह तुम्हारे इन दो दो मुस्टंडो को उठाकर पूरी शक्ति से फेंक दे?? इस लिए ये ख़याल ही ग़लत है कि घर का कोई सदस्य हो सकता है वो। तो फिर कौन था वो??? क्या उसे पता था कि तुम्हारे आदमी उस छोकरी को उठाने आ रहे हैं आज रात????"

"तुमने तो यार मेरा भेजा ही फ्राई कर दिया।" महेंद्र ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा__"मुझे समझ ही नहीं आ रहा अब कि उस कमरे में वो कौन हो सकता है??? कभी तुम ये साबित कर देते हो कि वह भूत ही था और कभी ये कि वो कोई घर का सदस्य। साला कौन था वो???

"कोई न कोई तो था ही वहाॅ।" रंगनाथ ने कहा__"तुम्हारे इन दोनो आदमियों की हालत बता रही है कि उस कमरे में किसी ने इन्हें बड़े अच्छे तरीके से पटकनी दी है। वर्ना क्या इन्हें कोई शौक चढ़ा था जो खुद को पटकनी देकर अपनी ये हालत बना लेते??"

"सच कह रहे तुम।" महेंद्र ने गहरी साॅस खींचकर कहा__"लेकिन अब इस बात का कैसे पता चले कि वो कौन था जिसने मेरे काम को अंजाम तक पहुॅचने से पहले ही ख़राब कर दिया।"

"मुझे लगता है इस मामले में एक बार कृत्या से मिलना चाहिए।" रंगनाथ ने कहा__"अगर उस कमरे में कोई भूत ही था तो उसके बारे में कृत्या ही स्पष्ट रूप से बता सकती है।"

"हाॅ लेकिन हमें इसकी कीमत भी तो देनी पड़ेगी उसे।" महेंद्र ने अजीब भाव से कहा__"वो साली इस काम की कीमत हमसे अपनी***** मरवाकर ही वसूलेगी। साली में इतनी आग है कि संसार भर के मर्द एक साथ भी उसकी आग न बुझा पाएॅ।"

"सही कहते हो यार।" रंगनाथ ने हॅस कर कहा__"मगर तुम्हारी अपनी बीवी से ज़रा कम ही है। वैसे हैं कहाॅ दिख नहीं रहीं भाभी जान??"
"अंदर ही है यार।" महेंद्र ने अर्थपूर्ण भाव से मुस्कुरा कर कहा__"ऊपर अपने कमरे में अपने बेटे के साथ।"

"समझ गया भाई।" रंगनाथ हॅसते हुए बोला__"भाभी जान अपने कमरे में अपने ही बेटे के साथ मज़े लूट रही हैं। हद है यार, मतलब तुम्हें सब पता है इसके बाद भी तुम्हें इस बात से कोई ऐतराज नहीं कि वो अपने ही बेटे से ये सब करती हैं।"

"उसे अपने बेटे से इस क़दर प्यार है कि वो ये सब भूल गई है कि वो अपने ही बेटे के साथ क्या करने लगी है।" महेंद्र ने कहा__"शुरू शुरू में जब मैंने नाराज़ होकर इस सबके लिए उसे डाॅटा था तो उसने अपने हाॅथ की नस काट ली थी। कहने लगी उसका बेटा ही उसका असली पति है। अब तुम ही बताओ यार मैं क्या करता??? बदनामी के डर से चुप रह गया और उसे अपनी मनमानी करने की छूट दे दी। इतनी गुजारिश ज़रूर की उससे कि ये सब वो अपने बंद कमरे में करे और किसी को इस सबकी ख़बर न हो।"

"ओह, फिर तो तुम्हें वो अपने जिस्म पर हाॅथ भी न लगाने देती होंगी?" रंगनाथ हॅसा।
"ऐसा नहीं है दोस्त।" महेन्द्र ने कहा__"वो मुझे किसी बात के लिए मना नहीं करती। बल्कि मुझे भी उसने हर बात की छूट दे रखी है। यानी मैं जिस औरत से चाहूॅ जिस्मानी संबंध बना सकता हूॅ।"

"ओह ये तो अच्छी बात है।" रंगनाथ ने कहा__"उन्हें तुम्हारी इच्छाओं का भी ख़याल है ये अच्छी बात है। वैसे भी तुम्हें तो नई नई *****मारने का ही शौक है न।"

"ये सब छोड़ो रंगनाथ, ये बताओ कृत्या के पास कब चलें?" महेंद्र ने एकाएक पहलू बदलते हुए कहा__"तुम्हें तो पता है कि मेरे लिए ये जानना ज़रूरी है कि मेरे काम को ख़राब करने वाला कौंन था?"

"अभी तो बहुत रात हो गई है महेन्द्र इस लिए अभी जाने का कोई फायदा नहीं होगा।" रंगनाथ ने कहा__"हम यहाॅ से सुबह ही नास्ता पानी करके निकलेंगे। दो घंटे में हम उसके पास पहुॅच जाएॅगे। वो ज़रूर बता देगी कि वो भूत कौन था और उस कमरे में किस लिए आया था?"

"और अगर कृत्या ने ये बताया कि वो भूत नहीं था कोई और था तो?" महेंद्र ने शंका ज़ाहिर की__"फिर हम कैसे पता लगाएॅगे कि वह कौन था? अगर ये बात सच है कि वह नहीं चाहता कि कोई उस छोकरी को उठाए तो वो आगे भी इस सबके लिए हमारे लिए बाधा बना रहेगा।"

"सब ठीक हो जाएगा यार।" रंगनाथ ने कहा__"और वो यकीनन भूत ही था। क्योंकि किसी इंसान में इतनी ताकत नहीं हो सकती कि वो दो दो भारी भरकम आदमियों को एक साथ उठा कर इस तरह फेंक सके।"

"अब ये तो कल कृत्या के पास जा कर ही पता चलेगा भाई।" महेंद्र ने गहरी साॅस ली__"चलो मैं अब सोने जा रहा हूॅ, तुम भी जा कर सो जाओ। सुबह समय पर निकलना भी है।"

रंगनाथ ने हाॅ में गर्दन हिलाई और अंदर की तरफ बढ़ गया। वो दोनो नहीं जानते थे कि कल क्या होने वाला है??????



दोस्तो अपडेट हाज़िर है.....
आप सबकी प्रतिक्रिया का इन्तज़ार रहेगा,,,,,,,,
Shaandaar update dost
 

Naik

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राज-रानी (बदलते रिश्ते)
**अपडेट** (06)


अब तक.....

"मुझे कसम में क्यों बाॅध दिया सुमन?" अशोक ने भर्राए स्वर में कहा__"ये अच्छा नहीं किया तुमने।"
"मुझे माफ कर दीजिए अशोक।" सुमन ने छलक आए आॅसुओं को आॅचल से पोंछते हुए कहा__"पर मैं अब यहाॅ नहीं रुक सकती।"

"लेकिन कहाॅ जाओगी तुम?" अशोक ने कहा__"तुम जानती हो ये दुनियाॅ कितनी बुरी है। और वैसे भी रानी की तबियत ठीक नहीं रहती। कैसे सम्हालोगी उसे? नहीं नहीं सुमन, तुम इस तरह कहीं नहीं जाओगी। मैं खुद तुम दोनो के लिए कहीं रहने का इंतजाम करूॅगा और तुम दोनों की हर जरूरत को पूरा करूॅगा।"

"इसकी कोई आवश्यकता नहीं है अशोक।" सुमन ने कहा__"हम माॅ बेटी किसी तरह अपना गुज़ारा कर लेंगी।"
"नहीं सुमन।" अशोक ने कहा__"मैं इस तरह तुम दोनो को बेसहारा नहीं छोंड़ सकता। तुम्हें मेरी कसम है सुमन, तुम इस घर में नहीं रहना चाहती तो कोई बात नहीं लेकिन मेरी इतनी बात मान लो। मैं इसी शहर में किसी जगह तुम्हें रहने के लिए एक मकान की ब्यवस्था कर दूॅगा कल ही।"

सुमन कुछ न बोली बस रानी के मासूम से चेहरे को देखती रही। अशोक ने आगे बढ़ कर रानी को ठीक से बेड पर लेटा दिया तथा उसके ऊपर चद्दर डाल दिया। कुछ पल रानी के मासूम से चेहरे को देखने के बाद उसने झुक कर रानी के माॅथे को चूॅमा फिर एक नज़र सुमन को देखकर कमरे से बाहर चला गया। जबकि सुमन रानी के सिरहाने बैठ कर उसके सिर के बालों में उॅगलियाॅ फेरती रही।


अब आगे......

वे पाॅच लोग थे। रात के अॅधेरे में वो पाॅचों एक अलीशान बिल्डिंग के बाएं तरफ लगे पेड़ों के नीचे इस तरह खड़े थे जैसे किसी के द्वारा देख लिए जाने का डर हो। हलाॅकि अॅधेरा बहुत ज्यादा भी नहीं था, मगर अॅधेरा तो था क्योंकि आसमान में कहीं भी चाॅद दिखाई नहीं दे रहा था। पाॅचों के शरीर पर काले कपड़े थे तथा चेहरों पर काले रंग का ही नकाब था। शरीर का कोई भी अंग नहीं दिख रहा था, बस नकाब से झाॅकती उनकी आॅखें ही नज़र आ रही थी जो बिल्डिंग के दूसरे फ्लोर पर बाहर की तरफ बनी बालकनी पर बार बार उठ रही थी।

"भाई, रास्ता तो साफ है लेकिन ज़मीन से उस बालकनी की ऊॅचाई हमारी उम्मीद से ज्यादा है।" एक नकाबपोश ने ऊपर बिल्डिंग की बालकनी को देखकर कहा__"दूसरी बात बिल्डिंग के पास कहीं कोई पेड़ भी नहीं हैं, एकदम खुला एरिया है। ऐसे में कोई भी हमें बिल्डिंग की दीवार पर चढ़ते हुए देख सकता है।"

"बिल्डिंग के पास कोई पेड़ हो ये हमारे लिए कोई ज़रूरी बात नहीं है।" दूसरे नकाबपोश ने कहा__"रही बात दीवार पर चढ़ते हुए किसी के द्वारा देख लेने की तो ऐसा संभव नहीं है। इस वक्त रात के दो बज रहे हैं, यहाॅ हर कोई अपने अपने मकान के अंदर गहरी नींद में सोया हुआ होगा। और तुम ये मत भूलो कि हमें ये काम करना ही पड़ेगा फिर चाहे जैसी भी परिस्थितियाॅ हों।"

"हाॅ ये बात तो है भाई।" पहले वाले नकाबपोश ने कहा__"हमें हर हाल में ये काम करना ही होगा, वर्ना मालिक हम सबको गोली मार देंगे।"

"अब बातों में वक्त बर्बाद मत करो और लग जाओ सब काम में।" दूसरे वाले नकामपोश ने कहा__"दो आदमी यहीं पर रह कर आस पास का मुआयना करते रहेंगे। अगर कोई परेशानी या किसी के द्वारा देख लिए जाने वाली बात होगी तो ये दोनों बिल्डिंग की दीवार पर चढ़ने वालों को ट्रान्समीटर द्वारा फौरन ही सूचित कर देगा। एक आदमी दीवार के आस पास ही कहीं छुपकर खड़ा रहेगा तथा आसपास भी नज़र रखेगा। जबकि मैं और रतन रस्सी की सहायता से उस बालकनी में जाएॅगे। बालकनी के कुछ ही दूरी पर एक खिड़की है। खिड़की पर मोटा सा काॅच लगा हुआ है। खिड़की के काॅच को कटर से काटकर हम दोनों कमरे के अंदर पहुॅचेंगे। कमरे में पहुचकर हम उसको क्लोरोफाॅम द्वारा बेहोश करेंगे और फिर उसे उठा कर कमरे से बाहर उसी खिड़की के द्वारा आ जाएॅगे।"

"भाई खिड़की से उसे कैसे निकालोगे?" एक अन्य नकाबपोश ने कहा__"मेरा मतलब अगर खिड़की का काॅच उसके नाज़ुक बदन में कहीं लग गया तो??"

"अबे चूतिये, कमरे के अंदर पहुॅचकर हम उस खिड़को को पूरा खोल देंगे।" पहले वाले नकाबपोश ने कहा__"उसके बाद ही आसानी से उसे लेकर यहाॅ आएॅगे।"

"ठीक है भाई।" अन्य नकाबपोश वाले ने कहा__"तुम लोग जाओ, हम यहाॅ पर खड़े रह कर हर तरफ नज़र रखेंगे।"

दो को छोंड़ कर बाॅकी तीनों बिल्डिंग की तरफ सावधानी से बढ़ गए। बिल्डिंग की दीवार के पास पहुॅचकर तीनो ठिठके। पहले वाले नकाबपोश ने तीसरे नकाबपोश को नीचे ही कहीं छुपकर रहने का इशारा किया। इसके बाद हाॅथ में ली हुई रस्सी को खोल कर उसके पहले सिरे को तथा कुछ और रस्सी को समेट कर एक हाॅथ से घुमाते हुए ऊपर बनी बालकनी की तरफ उछाल दिया। रस्सी का सिरा स्टील के डण्डे में ऊपर से घूमकर नीचे की तरफ झूलने लगा। नकाबपोश ने ऊपर कुछ दूरी पर झूलते रस्सी के पहले सिरे को ज़मीन से उछल कर एक हाथ से पकड़ लिया। रस्सी के पहले सिरे को उसके दूसरे सिरे से मिलाकर अच्छे बाॅध दिया।

"भाई इसे इस प्रकार बाॅधने से अच्छा था कि यहीं से फंदा बना कर ऊपर उस स्टील के डण्डे में फॅसा देते।" दूसरे नकाब वाले ने सरगोशी सी की__"उस तरह में ये ज्यादा मजबूत रहता और इधर उधर खिसकता भी नहीं।"

"अबे ढक्कन।" पहले नकाबपोश वाले ने कहा__"सारा काम हो जाने के बाद इस रस्सी को ऊपर उस डण्डे से क्या तेरी अम्मा छोरने जाती??? जबकि हमें इस रस्सी को भी उस छोकरी की तरह ही अपने साथ लेकर जाना है।"

"भाई बात तो तेरी ठीक है।" दूसरे नकाबपोश ने कहा__"लेकिन मेरी अम्मा को इसमें क्यों खींच रहा है? वो बेचारी तो मेरे बेवड़े बाप को रात दिन इस बात पर गालियाॅ देती रहती है कि मेरा बाप अब उसकी लेता ही नहीं है।"

"क्यों??" नकाबपोश चौंका__"तेरा बाप तेरी अम्मा की क्यों नहीं लेता अब?"
"अरे भाई, उसका खड़ा ही नहीं होता तो क्या करे बेचारा?" दूसरे नकाबपोश ने धीरे से हॅसते हुए कहा__"जबकि अम्मा को रोज़ रात को एक दमदार हथियार चाहिए।"

"तो तू ही दे दिया कर न अपनी अम्मा को अपना हथियार।" पहला वाला नकाबपोश धीरे से बोला__"इसमें तेरा भी भला और तेरी अम्मा का भी भला हो जाएगा।"

"साले बड़ा हरामी है तू।" दूसरा वाला आॅखें फैला कर बोला__"भला कोई अपनी अम्मा को भी अपना हथियार देता है क्या? ये तो पाप है, महापाप।"

"ज्यादा ज्ञान मत चोद तू।" पहले वाले ने कहा__"क्या तुझे पता नहीं कि हमारे मालिक का वो हरामी लड़का रोज़ अपनी अम्मा को ठोंक कर ये महापाप करता है??"

"हाॅएं।" दूसरा वाला ये सुन कर बुरी तरह उछला था, बोला__"पर साले तुझे कैसे पता ये सब?"
"मुझे सब पता है।" पहले वाले ने रहस्यमयी अंदाज़ से बोला__"दिन भर आदमीरूपी जानवर चराता हूॅ। मालिक की उस अधेड़ और छिनाल बीवी को खूब अच्छी तरह जानता हूॅ मैं और उसके उस हिजड़े बेटे को भी, जो रोज़ रात को अपनी अम्मा की ***** चाट चाट कर उसकी ***** का पानी पीता है।"

"हाए रे देवा।" दूसरे वाले ने आसमान की तरफ देखते हुए कहा__"उठा ले रे...उठा ले, अरे मेरे को नहीं रे...उन दोनो कम्बख्तों को उठा ले।"
"ओए बाबू राव की दुम।" पहला वाला घुड़का__"अब चुप कर। मैं इस रस्सी के सहारे ऊपर बालकनी में जा रहा हूॅ। मेरे ऊपर पहुॅचते ही तू भी आ जाना जल्दी, लेकिन हाॅ सम्हाल कर।"

इसके बाद पहला वाला नकाबपोश रस्सी को पकड़ कर ऊपर की तरफ जाने लगा। अॅधेरा ज्यादा नहीं था, बस इतना समझ आता था कि पाॅच फुट के फाॅसले पर कोई चीज़ है। दूसरा वाला नकाबपोश ऊपर की तरफ अपने साथी को देख रहा था। लेकिन उसका ध्यान कहीं और था, दरअसल वो अपने साथी की बातों के बारे में ही सोच रहा था कि उसके मालिक की बीवी अपने ही बेटे के साथ कैसे,,,,,तभी वह चौंका, उसने देखा कि उसका साथी ऊपर बालकनी में पहुॅच कर रस्सी हिला कर उसे ऊपर आने का संकेत दे रहा है।

दूसरा वाला नकाबपोश भी कुछ देर में रस्सी की मदद से ऊपर बालकनी में आ गया अपने साथी के पास।

"वो खिड़की किधर है?" दूसरे वाले ने पूछा।
"तेरे पीछे तरफ ही तो है साले।" पहला वाला धीरे से बोला__"चल उधर।"

दोनों खिड़की के पास पहुॅचे। दोनों ने खिड़की के अंदर की तरफ देखा किन्तु अंदर बाहर की ही तरह अॅधेरा था इस लिए कुछ नज़र नहीं आया। इतना ज़रूर समझ में आया कि खिड़की में अंदर की तरफ पर्दा लगा हुआ है। पहले वाले ने अपनी पाॅकेट से काॅच काटने वाला हीरा निकाला और बड़ी सावधानी से खिड़की पर लगे काॅच पर रख कर उसे धीरे धीरे घुमाने लगा।

"भाई तू तो कह रहा था कि इस खिड़की के शीशे को काटकर तू खिड़की को अंदर से पूरा खोल देगा।" एक ने बिलकुल धीमे स्वर में कहा__"जबकि इस खिड़की में तो खुलने वाले पल्ले हैं ही नहीं, बल्कि इस पूरी खिड़की पर ही शीशा लगा हुआ है"

"इसमें मेरी ग़लती नहीं है रे।" दूसरे ने खिड़की पर लगे शीशे को सावधानी से काटते हुए कहा__"आज दोपहर में जब मैं यहाॅ आया था तो दूर से ही देखा था इस खिड़की को। उस समय ऐसा लगा था जैसे ये खिड़की पल्ले वाली ही है। और वैसे भी खिड़कियाॅ तो होती ही पल्ले वाली हैं ताकि उसे खोल कर बाहर की रोशनी और ताज़ी हवा को कमरे के अंदर लाया जा सके। लेकिन ये खिड़की ऐसी नहीं बनाई गई तो इसमे मेरी क्या ग़लती है। ये तो साले अमीर लोगों के ही सड़े गले दिमाग़ की उपज होती है।"

"भाई एक बात बता, क्या सच में अपने मालिक का लड़का अपनी अम्मा की लेता है?" पहले वाले ने अपने मन की उलझन और उत्सुकता को मिटाने की गरज से पूछा__"मुझे तो तेरी इस बात पर ज़रा भी यकीन नहीं हो रहा। अम्मा कसम।"

"अबे साले तू अभी भी वहीं अटका हुआ है।" दूसरे वाले ने धीरे से हॅसते हुए कहा__"पर तेरी ग़लती नहीं है रे, मैंने भी जब किसी से सुना था न तो मुझे इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था। फिर एक दिन उसने मुझे खुद ही चुपके से दिखा दिया तो यकीन करना ही पड़ा भाई।"

"किसने दिखाया तुझे?" पहला वाला हैरानी से बोला__"क्या किसी और को भी ये सब पता है??"
"हम जैसे लगभग सभी आदमियों को पता है।" दूसरे ने कहा__"ऐसी बातें छुपती नहीं हैं। जैसे आज मैंने तुझे बताया इसी तरह किसी और ने भी अपने साथी से बताया। ऐसे ही सबको पता हो गई ये बात।"

"पर तुझे किसने बताया?" पहले वाले ने पूछा__"और दिखाया भी किसने??"
"अरे वो गीता है न।" दूसरे वाले ने कहा__"जो रोज़ मालिक की बीवी के बदन की मालिश करती है, उसी ने बताया और दिखाया भी।"
"अरे वो तो एक नंबर की छिनाल है साली।" पहले वाले ने बुरा सा मुॅह बनाते हुए कहा__"खुद सबसे अपनी मरवाती फिरती है और मालिक की बीवी के बारे में उलटा सुलटा बोलती है रंडी कहीं की।"

"वो छिनाल तो है भाई।" दूसरे वाले ने कहा__"लेकिन जब उसने मुझे दिखा दिया तो यकीन करना ही पड़ा न इस बात का। मैंने अपनी आॅखों से मालिक की छिनाल बीवी को अपने ही बेटे से घोड़ी बनकर अपनी पेलवाते हुए देखा है।"

"भाई मुझे भी देखना है।" पहला वाला बोला__"मैं भी देखना चाहता हूॅ कि कैसे वो छिनाल अपने ही बेटे से अपनी ***** मरवाती है?? भाई एक बार मुझे भी दिखा दे न उस रंडी को।"

"अच्छा चल ठीक है दिखा दूॅगा तुझे भी।" दूसरे वाले ने पहले वाले पर जैसे एहसान सा किया__"तू भी क्या याद करेगा कि किस दिलेर बंदे से दोस्ती की थी तूने। पर साले, तू देख कर करेगा क्या?? क्या उस छिनाल को पेलवाते हुए देख कर मुट्ठ मारेगा तू हाहाहाहा?"

"नहीं बे, तेरी ***** मारूॅगा।" पहले वाला धीरे से हॅसा__"और ऐसी मारूॅगा कि सुबह शाम हग नहीं पाएगा तू।"
"तेरी माॅ को ***** साले।" दूसरा वाला घुड़का__"मेरा हगना बंद करेगा तू?? कहीं ऐसा न हो कि मैं तेरा ही हगना बंद कर दूॅ।"

"पहले इस शीशे को तो काट।" पहले वाले ने कहा__"और वो काम कर जो यहाॅ करने आए हैं वर्ना मालिक हम सबका हगना बंद कर देगा। देख लियो।"

कुछ ही देर में खिड़की का काॅच कट गया उन दोनों ने उसे पकड़कर बड़ी सावधानी से नीचे एक तरफ फर्स पर रख दिया। अब बड़ी आसानी से खिड़की के द्वारा अंदर जाया जा सकता था। उन दोनों ने खिड़की के बाहर से ही पहले अंदर कमरे की स्थिति का मुआयना किया, जब उन्हें इत्मीनान हो गया कि अंदर कमरे में मौजूद इंसान सो रहा है और अन्य किसी प्रकार की कहीं कोई बाधा नहीं है तो वो दोनो एक एक करके खिड़की से अंदर कमरे में आ गए।

कमरे में बिलकुल अॅधेरा था। कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। हलाॅकि इन दोनो के पास पेंसिल टार्च थी, किन्तु उसका प्रयोग ये सोच कर नहीं किया कि क्या पता कमरे में मौजूद इंसान सो ही रहा हो या फिर सोने का नाटक कर रहा हो। कुछ देर खिड़की के पास खड़े रह कर दोनो ही कमरे में इधर उधर वस्तुओं को पहचानने की कोशिश करते रहे।

कुछ ही देर में उनकी आॅखें अॅधेरे में कुछ दूरी पर देख लेने के लिए अभ्यस्त हो गईं। आगे बढ़ने पर एक साइड उन्हें बेड नज़र आया तथा बेड पर मौजूद एक की बजाए दो लोगों को देख कर दोनों ही चौंके।

अलीशान बेड पर बेड की पिछली पुश्त से अपनी पीठ टिका कर तथा अधलेटी सी अवस्था में एक औरत लेटी थी। उसी औरत की गोंद में करवॅट लिए हुए एक बहुत ही सुन्दर किन्तु मासूम सी लड़की लेटी हुई थी। दूध की मानिंद गोरे जिस्म पर दूध जैसी सफेद ही कमीज पहने हुए थी वह। सुनहरे बालों की कुछ लटें उसके फूल जैसे कोमल व नाज़ुक चेहरे पर बिखरी हुईं थी।

अपने सामने इतनी खूबसूरत लड़की को देख इन दोनो की पलकें झपकना ही भूल गई। वो औरत भी खूबसूरत थी, लगभग बत्तीस या पैंतीस के आसपास की उमर थी औरत की। किन्तु फिगर ऐसा की उस लड़की की बड़ी बहन लगती थी।

कुछ देर यूॅ ही उन दोनो को देखने के बाद जैसे उन्हें वस्तुस्थिति का एहसास हुआ। दोनो ने एक दूसरे की तरफ देखा जैसे पूछ रहे हों कि अब क्या करें? फिर दोनो ने मानो कोई फैंसला ले लिया।

दोनो ने पैन्ट की जेब से क्लोरोफाॅम डाली हुई रुमाल निकाली, और आहिस्ता आहिस्ता किन्तु धड़कते दिल के साथ बेट के पास पहुॅचे। दोनो ने एक ही समय में दोनो की नाॅक के पास क्लोरोफाॅम डाली हुई रुमाल वाला हाॅथ बढ़ाया। अभी उन दोनो का हाॅथ औरत और उस लड़की के नाॅक के पास पहुॅचा ही था कि दोनो ही हवा में उड़ते हुए पीछे की तरफ दीवार से टकरा कर नीचे गिर पड़े। दोनो के हलक से घुटी घुटी सी चीख़ निकल गई।

दोनो ही कमरे की पिछली दीवार से टकराए थे और नीचे गिरने से जो आवाज़ हुई उससे बेड पर सोई हुई औरत व लड़की पर कोई फर्क नहीं पड़ा, बल्कि वो दोनो उसी तरह हर बात से बेखबर सोई रहीं।

इधर दोनों नकाबपोशों को समझ न आया कि अचानक ये उनके साथ हुआ क्या?? उन्हें इतना महसूस हुआ था कि किसी ने उन्हें पीछे की तरफ पूरी शक्ति से फेंका है। मगर किसने किया ये??? दोनो हैरान व चकित भाव से कमरे में इधर उधर देखने लगे मगर कहीं कोई नज़र न आया। बेट पर नज़र पड़ी तो औरत और वो लड़की पहले जैसी ही स्थिति में सो रहीं थी। दोनो ने एक दूसरे की तरफ देख कर इशारे से पूछा कि किसने हमें फेंका हो सकता है?

दोनो सीघ्र ही उठे, और इस बार पूरी सतर्कता से कमरे में इधर उधर देखते देखते ही बेड के पास गए। दोनो के हाॅथ में क्लोरोफाॅम डाला हुआ वो रुमाल अभी भी मौजूद था। उन दोनो ने एक बार फिर से पहली वाली क्रिया दोहराई। मतलब औरत और उस लड़की के नाक के पास अपना क्लोरोफाॅम वाला रुमाला बढ़ाया। दोनो की धड़कने इस बार बुरी तरह बढ़ी हुई थी ये सोच कर कि कहीं फिर से न कोई उन दोनो पीछे फेंक दे। और हुआ भी वही....जैसे ही उन दोनो का हाॅथ औरत और लड़की की नाॅक के पास आया उसी वक्त एक बार फिर वे दोनो हवा में उड़ते हुए पीछे की दीवार से जा टकराए।

ये कोई मामूली बात नहीं थी बल्कि हैरतअंगेज बात थी। फेंकने वाला कौंन था तथा किधर था उन्हें कहीं दिखाई ही नहीं दे रहा था। दिलो दिमाग़ कुंद सा पड़ गया। फिर जैसे एकाएक ही दोनो के दिमाग़ की बत्ती जली। दोनो के मन में ये ख़याल उभरा कि कोई भूत है यहाॅ। भूत का ख़याल आते ही दोनो की अम्माॅ मर गई। दोनो थर थर काॅपने लगे। पल भर में दोनो का चेहरा भय से पीला ज़र्द पड़ता चला गया। मुह से कुछ बोला नहीं जा रहा था, बस दोनो के होंठ जूड़ी के मरीज़ की तरह बुरी तरह कॅपकॅपा रहे थे।

दीवार से दो दो बार पूरी शक्ति से टकराने के बाद उनमें अब हिम्मत नहीं बची थी कि दुबारा वो उन दोनो औरत व लड़की को क्लोरोफाॅम सुॅघाने जाएं। किसी तरह दोनो ही फर्स से उठे तो कण्ठ से कराह निकल गई, सारा शरीर बुरी तरह दुख रहा था। दोनो जिस तरह खिड़की से आए थे उसी तरह वापस चले गए। उनके कमरे से निकलते ही कमरे के अॅधेरे में एक साया नज़र आया। उसने एक बार बेड पर सोई हुई औरतों की तरफ देखा फिर खिड़की की तरफ बढ़ गया। खिड़की के पास जाकर उसने खिड़की के कटे हुए शीशे की तरफ देख कर अपने दाएं हाॅथ को आशीर्वाद की शक्ल में टूटे हुए टुकड़े की तरफ किया। उसके ऐसा करते ही काॅच का वो बड़ा सा टुकड़ा अपने आप ही फर्स से उठ कर हवा में लहराते हुए खिड़की के टूटे हुए भाग में आकर खुद ही फिट हो गया। टुकड़े के टूटे हुए भाग में फिट होते ही उस साए ने अपने उसी हाॅथ से उस खिड़की के उन जगहों पर रख कर फेरा जिन जिन जगहों से काॅच को काटा गया था। उस साये के ऐसा करते ही खिड़की के काॅच पर पड़ी हुई दरारें अपने आप ही साफ होती चली गईं। अब खिड़की को देख कर कोई नहीं कह सकता था कि इसे कुछ देर पहले किसी ने काटा भी रहा होगा।

ये सब करने के बाद उस काले साए ने एक बार पलट कर बेड की तरफ देखकर मुस्कुराया और फिर एकाएक ही वह धुएं में बदल कर कमरे के दरवाजे की झिरियों से बाहर निकल गया।
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"बंद करो अपनी ये बकवास वर्ना हलक से ज़ुबान खींचकर तुम दोनो के हाॅथ में दे दूॅगा।" पूरी शक्ति से दहाड़ते हुए एक ऐसे शख्स ने अपने सामने हाथ बाॅधे व गर्दन झुकाए हुए खड़े अपने पालतू गुर्गों की तरफ देखते हुए कहा जिसकी आॅखें मंजी व सिर गंजा था__"तुम दोनो ये चाहते हो कि मैं तुम दोनो की इस बात पर यकीन करूॅ कि किसी भूत ने तुम दोनो को फेंक फेंक कर मारा, और उसकी वजह से ही तुम वहाॅ से अपना काम किये बग़ैर चले आए??"

"मालिक हमारी बात का यकीन कीजिए।" एक गुर्गे ने कहा__"वहाॅ सच में कोई भूत ही था। उसी ने हम पर हमला किया था। वर्ना हम अपना काम करके ही आपके पास वापस आते।"

"तुम सब के सब एक नंबर के निकम्मे और डरपोंक हो।" उस शख्स ने गरजते हुए कहा__"एक अदना सा काम सौंपा था तुम लोगों को, मगर वो भी नहीं कर सके तुम सब। बेकार में ही मैं तुम लोगों पर यकीन करके हज़ारों लाखों रूपये खर्च करता हूॅ।"

"ऐसी बात नहीं है मालिक।" दूसरे गुर्गे ने हाॅथ जोड़ते हुए कहा__"हम आपके लिए दुनिया का कोई भी काम करने को तैयार हैं, और आपके लिए अपनी जान तक दे सकते हैं। हम दोनों ने कमरे में अच्छी तरह देखा था, लेकिन हम दोनो व उन दो औरतों के सिवा तीसरा कोई नज़र नहीं आया कमरे में। और मालिक जिस तरह हम दोनो को वह फेंक रहा था उससे साफ पता चलता है कि वो बहुत ताकतवर था।"

"ये सच कह रहे हैं महेन्द्र।" एक अन्य आदमी ने कहा जो गंजे आदमी के कुछ ही फाॅसले पर खड़ा था__"और फिर भला ये झूॅठ क्यों बोलेंगे?? आज तक हर काम ये सब आदमी अपनी पूरी ईमानदारी से करते आए हैं। मेरे यार, इस बात पर ज़रा विचार करो कि ऐसा हो भी सकता है कि नहीं?? मेरा मतलब कि संभव है उस कमरे में सचमुच ही कोई भूत रहा हो।"

"तुम भी इन लोगों की बात पर यकीन कर रहे हो रंगनाथ?" महेन्द्र ने रंगनाथ की तरफ देख कर कहा__"ये सब अंधविश्वास की बातें हैं। आज के समय में कोई भूत वूत नहीं होता।"

"देखो महेंद्र, जब तक हम किसी चीज़ को अपनी आंखों से देख नहीं लेते, तब तक हम किसी के द्वारा बताई हुई उस चीज़ पर यकीन नहीं करते।" रंगनाथ ने कहा__"पर जिन्होंने उस चीज़ को अपनी आॅखों से देख लिया हो तथा उसे महसूस भी कर लिया हो उसे वो सब सच ही लगती हैं। तुम्हारे यकीन न करने से सच्चाई बदल नहीं जाएगी।"

"तुम्हारे कहने का मतलब है कि मैं इन लोगों की इस बात का यकीन कर लूॅ कि वहाॅ पर भूत था?" महेंद्र ने अजीब भाव से कहा__"और उस भूत ने ही इन दोनो को दो बार फेंका था। जिसके बाद ये डर गए और वहाॅ से अपनी जान बचा कर भाग आए??"

"बिलकुल।" रंगनाथ ने कहा__"अब ज़रा इस बात पर ग़ौर करो मेरे दोस्त कि उस कमरे में भूत क्यों था? जैसा कि तुम्हारे इन आदमियों ने बताया कि जैसे ही ये दोनो उन दोनो औरतों को बेहोश करने के लिए अपने हाॅथ में लिए क्लोरोफाॅम वाली रुमाल को उनकी नाक के पास लाए वैसे ही इन दोनो को किसी ने पूरी शक्ति से उठा कर पीछे कमरे की दीवार पर फेंक दिया। ऐसा दो बार हुआ...फेंकने वाला कहीं नज़र नहीं आया। ख़ैर, तो इसका मतलब ये हुआ कि इन दोनो को फेंकने वाला वो भूत ये नहीं चाहता था कि ये दोनो उन औरतों को बेहोश करके वहाॅ से यहाॅ ले आएं। इस बात को सोचो महेंद्र कि वो कौन था, जो ये नहीं चाहता था???"

रंगनाथ की बात सुनकर महेंद्र सोच में पड़ गया। उसे लगा बात तो ठीक ही है, अगर रंगनाथ के नज़रिये से सोचा जाए तो यकीनन इस बात में पेंच है।

"थोड़ी देर के लिए चलो मान लिया कि वो भूत नहीं था।" रंगनाथ प्रभावशाली लहजे में कह रहा था__"बल्कि कोई जीवित इंसान ही था जो किसी तरह इन लोगों को नज़र नहीं आया, लेकिन सवाल ये है कि वो अंदर बंद कमरे में आया कहाॅ से?? और अगर वह पहले से उस कमरे में था तो क्यों था वो उस कमरे में?? क्या वो उस घर का ही कोई सदस्य था?? लेकिन अगर घर का ही कोई सदस्य था तो उसमें इतनी ताकत कहाॅ से हो सकती है कि वह तुम्हारे इन दो दो मुस्टंडो को उठाकर पूरी शक्ति से फेंक दे?? इस लिए ये ख़याल ही ग़लत है कि घर का कोई सदस्य हो सकता है वो। तो फिर कौन था वो??? क्या उसे पता था कि तुम्हारे आदमी उस छोकरी को उठाने आ रहे हैं आज रात????"

"तुमने तो यार मेरा भेजा ही फ्राई कर दिया।" महेंद्र ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा__"मुझे समझ ही नहीं आ रहा अब कि उस कमरे में वो कौन हो सकता है??? कभी तुम ये साबित कर देते हो कि वह भूत ही था और कभी ये कि वो कोई घर का सदस्य। साला कौन था वो???

"कोई न कोई तो था ही वहाॅ।" रंगनाथ ने कहा__"तुम्हारे इन दोनो आदमियों की हालत बता रही है कि उस कमरे में किसी ने इन्हें बड़े अच्छे तरीके से पटकनी दी है। वर्ना क्या इन्हें कोई शौक चढ़ा था जो खुद को पटकनी देकर अपनी ये हालत बना लेते??"

"सच कह रहे तुम।" महेंद्र ने गहरी साॅस खींचकर कहा__"लेकिन अब इस बात का कैसे पता चले कि वो कौन था जिसने मेरे काम को अंजाम तक पहुॅचने से पहले ही ख़राब कर दिया।"

"मुझे लगता है इस मामले में एक बार कृत्या से मिलना चाहिए।" रंगनाथ ने कहा__"अगर उस कमरे में कोई भूत ही था तो उसके बारे में कृत्या ही स्पष्ट रूप से बता सकती है।"

"हाॅ लेकिन हमें इसकी कीमत भी तो देनी पड़ेगी उसे।" महेंद्र ने अजीब भाव से कहा__"वो साली इस काम की कीमत हमसे अपनी***** मरवाकर ही वसूलेगी। साली में इतनी आग है कि संसार भर के मर्द एक साथ भी उसकी आग न बुझा पाएॅ।"

"सही कहते हो यार।" रंगनाथ ने हॅस कर कहा__"मगर तुम्हारी अपनी बीवी से ज़रा कम ही है। वैसे हैं कहाॅ दिख नहीं रहीं भाभी जान??"
"अंदर ही है यार।" महेंद्र ने अर्थपूर्ण भाव से मुस्कुरा कर कहा__"ऊपर अपने कमरे में अपने बेटे के साथ।"

"समझ गया भाई।" रंगनाथ हॅसते हुए बोला__"भाभी जान अपने कमरे में अपने ही बेटे के साथ मज़े लूट रही हैं। हद है यार, मतलब तुम्हें सब पता है इसके बाद भी तुम्हें इस बात से कोई ऐतराज नहीं कि वो अपने ही बेटे से ये सब करती हैं।"

"उसे अपने बेटे से इस क़दर प्यार है कि वो ये सब भूल गई है कि वो अपने ही बेटे के साथ क्या करने लगी है।" महेंद्र ने कहा__"शुरू शुरू में जब मैंने नाराज़ होकर इस सबके लिए उसे डाॅटा था तो उसने अपने हाॅथ की नस काट ली थी। कहने लगी उसका बेटा ही उसका असली पति है। अब तुम ही बताओ यार मैं क्या करता??? बदनामी के डर से चुप रह गया और उसे अपनी मनमानी करने की छूट दे दी। इतनी गुजारिश ज़रूर की उससे कि ये सब वो अपने बंद कमरे में करे और किसी को इस सबकी ख़बर न हो।"

"ओह, फिर तो तुम्हें वो अपने जिस्म पर हाॅथ भी न लगाने देती होंगी?" रंगनाथ हॅसा।
"ऐसा नहीं है दोस्त।" महेन्द्र ने कहा__"वो मुझे किसी बात के लिए मना नहीं करती। बल्कि मुझे भी उसने हर बात की छूट दे रखी है। यानी मैं जिस औरत से चाहूॅ जिस्मानी संबंध बना सकता हूॅ।"

"ओह ये तो अच्छी बात है।" रंगनाथ ने कहा__"उन्हें तुम्हारी इच्छाओं का भी ख़याल है ये अच्छी बात है। वैसे भी तुम्हें तो नई नई *****मारने का ही शौक है न।"

"ये सब छोड़ो रंगनाथ, ये बताओ कृत्या के पास कब चलें?" महेंद्र ने एकाएक पहलू बदलते हुए कहा__"तुम्हें तो पता है कि मेरे लिए ये जानना ज़रूरी है कि मेरे काम को ख़राब करने वाला कौंन था?"

"अभी तो बहुत रात हो गई है महेन्द्र इस लिए अभी जाने का कोई फायदा नहीं होगा।" रंगनाथ ने कहा__"हम यहाॅ से सुबह ही नास्ता पानी करके निकलेंगे। दो घंटे में हम उसके पास पहुॅच जाएॅगे। वो ज़रूर बता देगी कि वो भूत कौन था और उस कमरे में किस लिए आया था?"

"और अगर कृत्या ने ये बताया कि वो भूत नहीं था कोई और था तो?" महेंद्र ने शंका ज़ाहिर की__"फिर हम कैसे पता लगाएॅगे कि वह कौन था? अगर ये बात सच है कि वह नहीं चाहता कि कोई उस छोकरी को उठाए तो वो आगे भी इस सबके लिए हमारे लिए बाधा बना रहेगा।"

"सब ठीक हो जाएगा यार।" रंगनाथ ने कहा__"और वो यकीनन भूत ही था। क्योंकि किसी इंसान में इतनी ताकत नहीं हो सकती कि वो दो दो भारी भरकम आदमियों को एक साथ उठा कर इस तरह फेंक सके।"

"अब ये तो कल कृत्या के पास जा कर ही पता चलेगा भाई।" महेंद्र ने गहरी साॅस ली__"चलो मैं अब सोने जा रहा हूॅ, तुम भी जा कर सो जाओ। सुबह समय पर निकलना भी है।"

रंगनाथ ने हाॅ में गर्दन हिलाई और अंदर की तरफ बढ़ गया। वो दोनो नहीं जानते थे कि कल क्या होने वाला है??????



दोस्तो अपडेट हाज़िर है.....
आप सबकी प्रतिक्रिया का इन्तज़ार रहेगा,,,,,,,,
Shaandaar update dost
राज-रानी (बदलते रिश्ते)
**अपडेट** (07)


अब तक,,,,,,,

"अभी तो बहुत रात हो गई है महेन्द्र इस लिए अभी जाने का कोई फायदा नहीं होगा।" रंगनाथ ने कहा__"हम यहाॅ से सुबह ही नास्ता पानी करके निकलेंगे। दो घंटे में हम उसके पास पहुॅच जाएॅगे। वो ज़रूर बता देगी कि वो भूत कौन था और उस कमरे में किस लिए आया था?"

"और अगर कृत्या ने ये बताया कि वो भूत नहीं था कोई और था तो?" महेंद्र ने शंका ज़ाहिर की__"फिर हम कैसे पता लगाएॅगे कि वह कौन था? अगर ये बात सच है कि वह नहीं चाहता कि कोई उस छोकरी को उठाए तो वो आगे भी इस सबके लिए हमारे लिए बाधा बना रहेगा।"

"सब ठीक हो जाएगा यार।" रंगनाथ ने कहा__"और वो यकीनन भूत ही था। क्योंकि किसी इंसान में इतनी ताकत नहीं हो सकती कि वो दो दो भारी भरकम आदमियों को एक साथ उठा कर इस तरह फेंक सके।"

"अब ये तो कल कृत्या के पास जा कर ही पता चलेगा भाई।" महेंद्र ने गहरी साॅस ली__"चलो मैं अब सोने जा रहा हूॅ, तुम भी जा कर सो जाओ। सुबह समय पर निकलना भी है।"

रंगनाथ ने हाॅ में गर्दन हिलाई और अंदर की तरफ बढ़ गया। वो दोनो नहीं जानते थे कि कल क्या होने वाला है??????


अब आगे,,,,,,,

सुबह हुई। जैसा कि रात में ही सुमन ने निर्णय ले लिया था कि वो और रानी इस घर को छोंड़ कर कहीं दूसरी जगह चली जाएंगी। इस लिए सुबह होते ही सुमन ने रात की सारी बातें रानी को बताई और उसे साथ चलने के लिए कह दिया।

रानी को इस सबसे तक़लीफ तो हुई किन्तु वो खुद इस घर में रहना नहीं चाहती थी। उसकी असली माॅ जिसने उसे जन्म दिया उसने ही उसे कभी प्यार नहीं दिया, बल्कि हमेशा उसे तरह तरह की बातों के द्वारा जलील किया था। इस लिए वह अपनी इस सौतेली माॅ के साथ यहां से चली जाना चाहती थी जिसने उसे किसी सगी माॅ से भी बढ़ कर प्यार दिया था।

अशोक ने सुबह पुनः एक बार सुमन को रुक जाने के लिए कहा किन्तु सुमन ने साफ इंकार कर दिया था। यद्यपि रेखा ने अपनी आदत से मजबूर कुछ और उल्टा सीधा बोल कर सुमन और रानी को दुखी कर दिया था। अशोक सबसे दिल से प्यार करता था इस लिए वह इस सबसे दुखी था। उसे अपनी पहली पत्नी रेखा पर बेहद गुस्सा भी आ रहा था किन्तु वह जानता था कि रेखा ये सब सिर्फ अपने बेटे के ग़म में कहती है, और अब यही सब कहना उसकी आदत बन चुकी है। उसका मन एक पल के लिए भी शान्त नहीं रहता। बल्कि रात दिन बेटे की याद में तड़पती रहती है।

माधवगढ़ में ही अशोक ने सुमन और रानी के रहने के लिए एक अच्छा सा मकान खरीद दिया था। उसका खुद का प्रापर्टी का बिजनेस था। और भी कई सारे बिजनेस थे जिससे उसकी अच्छी खासी आमदनी होती थी करोड़ों में।


दोस्तो यहाॅ पर मैं इन किरदारों का परिचय देना चाहूॅगा।

अशोक सिंह राजपूत, ये 45 साल के तन्दुरुस्त तबीयत के इंसान हैं। इनके खुद के कई बिजनेस हैं।

रेखा सिंह राजपूत, ये 40 साल की बहुत ही खूबसूरत महिला हैं। अशोक सिंह राजपूत की पहली पत्नी हैं ये। बेटे के ग़म में पिछले बारह सालों से तड़प रही हैं।

सुमन सिंह राजपूत, ये 32 साल की खूबसूरत और जवान महिला हैं। अशोक सिंह राजपूत की दूसरी पत्नी हैं ये। सुमन एक ग़रीब घर की लड़की थी। पढ़ी लिखी थी, कई जगह नौकरी के लिए धक्के खाए थे इसने। हर जगह इसे नौकरी पाने के लिए इससे अपने जिस्म को सौंपने के लिए कहा गया, मगर इसने अपना जिस्म नहीं सौंपा किसी को। ऐसे ही एक बार अशोक सिंह राजपूत की कंपनी में नौकरी मागने गई थी। अशोक इसके स्वाभाव और सादगी को देखकर प्रभावित हुआ और इसे नौकरी दे दी थी। कुछ समय बाद अशोक ने इसे अपनी पर्सनल सिक्रेटरी बना लिया। धीरे धीरे इन दोनों को ऊम्र की असमानता के बावजूद प्यार हो गया। अशोक को भी एक औरत की ज़रूरत थी। क्योंकि रेखा उससे दूर अलग कमरे में रहती थी। रेखा की रज़ामंदी के बाद ही अशोक ने सुमन से शादी की थी। लेकिन सुमन को कभी कोई औलाद नहीं हुई। डाक्टरों ने उसे बाॅझ करार दे दिया था। इस बात से सुमन बहुत दुखी हुई। सुमन ने इस दुख से खुद को उबारा और रेखा की बेटी को ही अपनी बेटी बना लिया। रेखा अपनी बेटी को दिन रात अपशब्द बोलती और मारती थी। तब सुमन ने ही उसे अपने आॅचल में छुपाया था।

रानी सिंह राजपूत, ये 17 साल की बला की खूबसूरत लड़की है। अशोक और रेखा की बेटी। पिछले दस सालों से इसे राज के सपने आते हैं कई रूपों में। उन्हीं सपनों की वजह से ये अक्सर बीमार भी हो जाती है। इसने इसी साल हायर सेकण्डरी पास किया है।

राज सिंह राजपूत, ये 17 साल का लड़का है। अशोक और रेखा का बेटा है ये जो पिछले बारह सालों से लापता है। ये और रानी दोनो ही जुड़वा हैं। राज रानी से पाच मिनट का ऊम्र में बड़ा है।

अशोक सिंह राजपूत अपने खानदान में अकेला ही था। इस लिए बाॅकी किसी का परिचय देने का सवाल ही नहीं है। अशोक सिंह की ससुराल में कौन कौन हैं ये तब बताया जाएगा जब उनका कहीं रोल आएगा।


दूसरे किरदार,,,,,

महेन्द्र सिंह, ये 45 साल का बड़ा ही कमीना इंसान है। ये कई गैर कानूनी काम करता है। बड़े बड़े लोगों और माफिया लोगों से भी इसके संबंध हैं।

महिमा सिंह, ये 40 की सुन्दर सी महिला है। महेंद्र सिंह की बीवी है ये। ये अपने बेटे को ही अपना असली पति मानती है। सेक्स की आग चौबीसों घंटे इस पर तारी रहती है।

पूरन सिंह, ये 20 साल का हट्टा कट्टा लड़का है। महेन्द्र और महिमा का बेटा है ये। कालेज में पढ़ता है। हलाॅकि इसका काम पढ़ने से ज्यादा आवारा गर्दी और गुण्डागर्दी का है। बाप के नक्शे कदम पर ही चल रहा है ये। अपनी माॅ के साथ इसके नाजायज संबंध हैं।

पूनम सिंह, ये 17 साल की बहुत ही खूबसूरत लड़की है। महेन्द्र और महिमा की लड़की है ये। ये इंदौर में अपने नाना नानी के यहाॅ रहती है और वहीं रह कर अपनी पढ़ाई करती है। इसका अपने माॅ बाप के साथ न रहने का कारण ये है कि ये अपने माॅ बाप और भाई से नफरत करती है। इसने अपने भाई को अपनी ही माॅ के साथ आपत्तिजनक हालत में देख लिया था। उसके बाद इसकी माॅ ने इससे कहा था कि ये भी उसके साथ वही सब करे। लेकिन इसने गुस्से में अपनी माॅ को बुरा भला कहा और उसी दिन अपने नाना नानी के यहाॅ इन्दौर चली गई। तब से आज तक नहीं आई ये।

रंगनाथ शर्मा, ये 45 साल का थोड़े नाॅटे कद का इंसान है। महेन्द्र सिंह का स्कूल के समय से पक्का यार है। महेन्द्र के हर गैर कानूनी काम में यह भी बराबर का साथ देता है। इसकी एक बीवी थी जो इसे छोंड़ कर इसके ही एक नौकर के साथ कहीं चली गई थी। तब से यह रॅडवा ही रहता है।


दोस्तो ये तो था अभी के किरदारों का छोटा सा परिचय। अब कहानी को आगे बढ़ाता हूॅ।

उधर सुबह नास्ता पानी करके महेन्द्र और रंगनाथ घर से कृत्या से मिलने के लिकल पड़े। लगभग दो घंटे बाद ये दोनों कृत्या के पास पहुॅचे।

कृत्या एक बहुत ही बड़ी जादूगरनी और तंत्र मंत्र करने वाली महिला थी। उसने कई तरह की सिद्धियाॅ भी प्राप्त की हुई थी। इसके बारे में कोई नहीं जानता था कि ये कहाॅ से आई थी और कब से यह इस जंगल में रहती है? माधवगढ़ के जंगल के उस पार दूसरे जंगल में इसने अपना एक घर बना रखा था। हलाॅकि माधवगढ़ का ये जंगल इतना भयावह था कि दिन में भी यहाॅ कोई आने जाने से डरता था। इसके बावजूद कृत्या इस जंगल के पार दूसरे जंगल में ही रहती थी।

दूसरे जंगल में जाने के लिए पहले वाले जंगल से ही जाना पड़ता था। पहले इस जंगल में आने जाने के लिए कोई रास्ता नहीं हुआ करता था। किन्तु अब जंगल के बीचो बीच से सरकार ने पक्की सड़क का निर्माण कर दिया था। इस जंगल से कुछ ही दूरी पर बसे आस पास के गाॅव वाले दिन में आते जाते थे जंगल की लकड़ियों के लिए। और शाम होने से पहले ही जंगल से चले जाते थे। क्योंकि शाम के बाद इस जंगल में रहने का मतलब था अपनी ज़िन्दगी से हाॅथ धो लेना।

(दोस्तो ये वही जंगल है जहाॅ पर वो चारो वैम्पायर मिले थे। जिन्होने उस बच्चे को हिमालय ले गए थे।)

कृत्या इस जंगल से पार दूसरे जंगल में रहती थी। उसके साथ कुछ लड़कियाॅ भी रहती थी जो उसकी तंत्र मंत्र की साधना में उसका सहयोग करती थी। इसके अलावा कुछ हट्टे कट्टे पहलवान टाइप के मर्द भी रहते थे जो उसके हुकुम की तामील करते थे। कृत्या के पास दूर दूर से लोग आते थे अपनी अपनी भौतिक समस्याओं को लेकर।

कृत्या उन सबकी समस्याएं दूर करती थी लेकिन बदले में वो उनसे संभोग करती थी। उसकी इस आदत के बारे में सब जानते थे। मगर कोई कुछ कहता नहीं था क्योंकि उन सबको अपनी समस्याओं से निजात मिल ही जाती थी। ऊपर से कृत्या जैसी खूबसूरत जादूगरनी से संभोग भी। इस बात से भला किस मर्द को आपत्ति होती।

महेन्द्र और रंगनाथ जब कृत्या के पास पहुॅचे तो उस समय तक दोपहर हो चुकी थी। उन्होने देखा कि वातावरण में अजीब सी शान्ति थी। जबकि उनकी जानकारी के हिसाब से यहाॅ पर काफी लोगों की मौजूदगी होनी चाहिए थी। किन्तु सारा का सारा जंगल ही शान्त था, बस जंगल में मौजूद पक्षियों के चहचहाने की आवाज़ें ही आ रही थी।

जंगल में ही कृत्या ने एक बड़ा सा मकान बनवा रखा था। किन्तु अजीब बात ये थी कि बाहर से देखने पर यह मकान एकदम से जर्जर दिखता था। जैसे किसी किले का खंडहर हो। बड़ा ही अजीब और भयावह दिखता था वह।


महेन्द्र और रंगनाथ अभी ये सब देख ही रहे थे कि उसी खंडहर से निकल कर एक हट्टा कट्टा आदमी बाहर आया और आ कर इन दोनो के पास खड़ा हो गया। काले जिस्म पर नीचे सिर्फ एक धोती थी। बाॅकी पूरा शरीर नंगा था। बड़ी बड़ी मूछें तथा लाल लाल आॅखें जैसे सैकड़ों बोतल की शराब का नशा चढ़ा हुआ हो।

"तुम दोनो को माता जी ने अंदर बुलाया है।" उस आदमी ने पत्थर जैसे कठोर लहजे में अपने दोनो हाॅथ बाॅधे हुए कहा।

उसकी इस बात से महेन्द्र और रंगनाथ दोनो ही चौंके फिर सहमति में सिर हिला कर दोनो ही उस आदमी के पीछे पीछे खंडहरनुमा उस मकान के अंदर की तरफ बढ़ गए। कुछ ही देर में ये दोनो मकान के अंदर एक बड़े से हाल में पहुॅच गए। हाल में सामने की तरफ एक बड़ा सा सिंहासन रखा था। जिस पर कृत्या विराजमान थी।

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कृत्या जिस तरह से सिंहासन पर बेपर्दा सी बैठी हुई थी उससे महेन्द्र और रंगनाथ आखें और मुख फाड़े अपलक उसे देखे ही जा रहे थे। उसके दाहिने हाथ में काॅच की एक कटोरी थी जिस पर लाल रंग की या तो कोई शराब भरी हुई थी या फिर शायद कोई इंसानी खून।

"आओ रंगनाथ आओ।" कृत्या ने कटोरी में भरे शराब या खून को एक ही झटके में पूरा पी जाने के बाद कहा__"तुम तो आज यहाॅ दूसरी बार आए हो लेकिन आज अपने साथ अपने मित्र को भी ले आए। ये अच्छा किया तुमने।"

"तुमने सच कहा कृत्या।" रंगनाथ ने खुद को उसके रूपजाल से बाहर लाते हुए कहा__"मैं आज से पहले भी यहाॅ आ चुका हूॅ। तब मैं अपनी बीवी के बारे में जानने के लिए आया था और तुमने बताया था कि वो मेरे ही एक मामूली से नौकर के साथ मुझे छोड़ कर भाग गई थी। क्योंकि उसे मेरा ये छोटा कद पसंद नहीं था। खैर, आज मैं अपने मित्र को साथ लेकर आया हूॅ।"

"क्या तुम्हारे इस मित्र की बीवी भी इसके किसी नौकर के साथ भाग गई है?" कृत्या ने मुस्कुराते हुए कहा__"अगर ऐसा है तो जाने दो रंगनाथ। क्यों उस औरत की हसरत रखना जो तुम्हारी ही न हो सकी?"

"नहीं कृत्या।" रंगनाथ ने कहा__"मेरे मित्र की समस्या कुछ और है। हम उसी सिलसिले में यहाॅ आए हैं। मगर आज ऐसा लगता है यहाॅ पर दरबार नहीं लगा माता जी का।"

"तुम भूल गए लगता है रंगनाथ।" कृत्या ने कहा__"यहाॅ पर रविवार या बुधवार को ही दरबार लगता है। या फिर अगर किसी को कोई ज्यादा समस्या हो तो उसके लिए अलग से दरबार लगता है। खैर, ये बताओ कि तुम्हारे मित्र की क्या समस्या है?"


रंगनाथ ने सब कुछ सच सच बता दिया जो उस रात महेन्द्र के आदमियों के साथ हुआ था। सारी बात सुनने के बाद कृत्या एकाएक गंभीर हो गई, फिर तुरंत ही नार्मल हो गई। उसने सिंहासन पर बैठे बेठे ही अपनी आॅखें बंद की और फिर कुछ देर बाद उसने अपनी आॅखें खोल दी।

"तुम्हारा ये विचार बिल्कुल सत्य है रंगनाथ कि उस रात उस कमरे में वो कोई भूत ही था।" कृत्या ने कहा__"जिसने तुम्हारे मित्र के उन दो आदमियों को कमरे की दीवार पर उस तरह फेंका था।"

"अगर वो कोई भूत ही था तो वह उस कमरे में क्यों मौजूद था?" सहसा महेन्द्र ने कहा__"उसने मेरे आदमियों को अपना काम क्यों नहीं करने दिया? इस सबका आखिर रहस्य क्या है?"

"रहस्य तो तुम्हारा भी बहुत है महेन्द्र।" कृत्या ने कहा__"मुझे मालूम है कि तुम उस लड़की को क्यों उठवाना चाहते हो? और ये भी कि उस औरत से.....।"

"क्या ये सब कहना ज़रूरी है कृत्या?" महेन्द्र ने जल्द ही कृत्या की बात काटकर कहा__"तुम अगर सब जानती हो तो उस सबको अपने अंदर ही रखो न। मुझे सिर्फ इस समस्या को दूर करने का उपाय चाहिये।"

"ये कोई मामूली समस्या नहीं है महेन्द्र।" कृत्या ने कहा__"बल्कि बहुत बड़ी समस्या है। मैं तुम्हें यही मशवरा दूॅगी कि तुम अपने इरादों को उसके अंजाम तक पहुॅचाने का ख़याल छोंड़ दो। क्योंकि इससे तुम ऐसी मुसीबत में भी फॅस सकते हो कि इसकी वजह से तुम अपना सब कुछ खो बैठो।"

"मैं कुछ समझा नहीं।" महेन्द्र के माथे पर सहसा बल पड़ा__"भला ऐसी किस मुसीबत में फॅस जाऊॅगा मैं?"

"तुमने जो कुछ भूतकाल में किया है।" कृत्या कह रही थी__"उसका परिणाम भोगने का समय अब जल्द ही आने वाला है।"
"ये तुम क्या ऊल जुलूल बातें कर रही हो कृत्या?" रंगनाथ ने कहा__"ऐसे कौन से परिणाम को भोगने का समय आने वाला है?"

"अगर सब कुछ सुनना ही चाहते हो सुनो।" कृत्या ने कहा__"ये तो तुम भी जानते हो न कि आज से बारह साल पहले तुम्हारे इस मित्र ने क्या किया था? इसने अपने ही एक मित्र जिसका नाम अशोक सिंह राजपूत है के साथ क्या किया था। आज से बारह साल पहले ये और अशोक दोनो ही बहुत गहरे दोस्त हुआ करते थे। ये अपनी बहन ऊषा का विवाह अपने दोस्त अशोक के साथ करना चाहता था। अशोक को इस रिश्ते से कोई ऐतराज़ नहीं था किन्तु एक दिन अशोक ने इसे इसकी ही सगी बहन के साथ संभोग करते हुए देख लिया, और इसने भी देख लिया कि अशोक ने सब देख लिया है। इस बात का परिणाम ये हुआ कि अशोक ने इसकी बहन से शादी करने से इंकार कर दिया। इसने अशोक को मनाने की बहुत कोशिश की...यहाॅ तक कि इसने अशोक के सामने अपनी बीवी महिमा को भी परोस देने की बात कही लेकिन अशोक एक सच्चा और शरीफ आदमी था उसने इसे नीच, गंदा और घटिया आदमी कह कर इससे दोस्ती का रिश्ता हमेशा के लिए तोड़ दिया। तुम्हारे दोस्त महेन्द्र का प्लान ये था कि अपनी बहन की शादी अशोक से करके यह अशोक की अकूत दौलत और कारोबार को धीरे धीरे हथिया लेगा। लेकिन इसके उस कृत्य की वजह से सब कुछ खत्म हो गया था। ऊपर से अशोक की दोस्ती भी हमेशा के लिए चली गई। कुछ समय बाद अशोक ने रेखा नाम की लड़की से शादी कर ली। अशोक की शादी हो जाने से इसकी बहन ऊषा ने आत्म हत्या कर ली, ऊषा मन ही मन अशोक से प्यार करने लगी थी। ऊषा की मौत से महेन्द्र को गहरा झटका लगा था, इसने प्रतिज्ञा की कि वह अपनी बहन की मौत का बदला अशोक से ज़रूर लेगा, क्योंकि ऊषा अशोक से प्यार करने लगी थी। जब उसने देखा कि अशोक ने किसी और से शादी कर ली है तो वह ये बर्दास्त न कर सकी और आत्महत्या कर ली। खैर शादी के दो साल बाद ही अशोक को दो जुड़वा बच्चे पैदा हुए। इसने अपनी बिगड़ी हुई बातों को सम्हालने की गरज से अशोक के पास बच्चे पैदा होने की खुशी में बॅधाई देने गया। लेकिन अशोक ने इसकी तरफ देखा तक नहीं। ये वहाॅ से चला आया। इस बीच ये गैर कानूनी काम भी करने लगा था और उसी में ब्यस्त रहने लगा। मगर इसके मन में हमेशा ये बात रही कि अशोक से बदला लेना है। अशोक के दोनो जुड़वा बच्चे पाॅच साल के हो गए थे और अब स्कूल जाने लगे थे। इसने प्लान बनाया कि अशोक के बेटे राज का अपहरण करके उसे जान से मार देगा, और अशोक की बेटी रानी से वह भविष्य में अपने बेटे पूरन की शादी करवाएगा। जिससे अशोक की दौलत को पाने का फिर से चाॅस बन जाएगा। कहने का मतलब ये कि जब अशोक का कोई वारिस ही नहीं होगा तो उसकी सारी दौलत उसकी बेटी की होगी और बेटी की शादी के बाद उसके पति की होगी। इसने वही किया, यानी एक दिन इसने स्कूल से आते समय अशोक के बेटे को अपने आदमियों के द्वारा अपहरण करवा लिया, जबकि अशोक की बेटी को छुआ तक नहीं। अशोक के बेटे को इसके आदमी दो दिन तक शहर से दूर इसके फार्महाउस पर छुपा कर रखे रहे। उसके बाद इसके ही हुक्म पर इसके आदमी अशोक के बेटे को मारने के लिए इसके पास उस बच्चे को लाने लगे। उस रात मौसम बहुत खराब था। भीषण तूफान और मूसलाधार बारिश हो रही थी। उस रात इसके आदमी उस बच्चे को इसके पास न ला सके। बाद में इसने जब अपने तरीके से खोजबीन की तो इसे माधवगढ़ के उस जंगल में इसके आदमियों की वैन मिली जिस जंगल में कोई दिन में भी नहीं जाता था। इसे समझते देर न लगी कि इसके आदमी उस बच्चे के साथ इस जंगल में मौत की नींद सो चुके हैं।"

कृत्या थोड़ी देर रुक कर गहरी नज़रों से महेन्द्र और रंगनाथ की तरफ देखा, फिर उसने सिंहासन से उठ कर तथा इन दोनो के पास आते हुए कहा__"क्यों महेन्द्र मैंने सबकुछ सच सच बताया है न??"

कृत्या के इस सवाल पर महेन्द्र कुछ बोल न सका, बस एकटक कृत्या के चेहरे की तरफ देखता रहा। वह हैरान था कि कृत्या ने उसकी सारी पोल खोल कर रख दी हो। जबकि,,,,,

"इंसान की अभिलाषाएं क्या क्या करवा देती हैं रंगनाथ।" कृत्या ने कहा__"इंसान अपनी चाहत में किस हद तक गुज़र जाता है इस बात का खुद उसे ही ख़याल नहीं रह जाता। वो ये भूल जाता है कि बनाने वाले ने भी तो कुछ सोच रखा होगा। कहने का मतलब ये कि इसने अशोक की बेटी से अपने बेटे पूरन की शादी करवाने के लिए क्या क्या नहीं सोचा और क्या क्या नहीं किया?? लेकिन हुआ कुछ भी नहीं....इसने सोचा था कि इसका बेटा पूरन अशोक की बेटी को अपने प्यार के जाल में फॅसा लेगा और जैसे ही अशोक की बेटी रानी अट्ठारह साल की हो जाएगी अथवा कानूनी रूप से बालिग़ हो जाएगी तो ये उन दोनो की कानूनन शादी करवा देगा। अशोक कुछ नहीं कर सकेगा उस सूरत में। मगर ऐसा हुआ ही नहीं। जैसा कि मैंने अभी कहा न कि बनाने वाले ने भी कुछ सोच रखा होगा तो हुआ वही जो बनाने वाले ने सोच रखा था। यानी अशोक की बेटी को पिछले कई सालों से उसके भाई के सपने आते हैं। दोनो भाई बहन जुड़वा थे इस लिए उनके मन और विचार बहुत हद तक समान थे। सपनों में वह हर रोज़ अपने भाई से मिलती है और अब तो आलम ये है कि वह अपने ही भाई से किसी जन्म जन्मांतर की प्रेमिका की तरह अटूट और अथाह प्रेम भी करने लगी है। उसकी इस बात को उसके माॅ बाप भी जानते हैं। तुम्हारे इस मित्र ने प्रयास तो बहुत किया मगर हुआ कुछ नहीं। इसका बेटा तो खुद ही अपनी माॅ के अलावा किसी और की तरफ न ध्यान देता है और ना ही देखता है। हलाकि इसके ज़ोर देने पर उसने भी अशोक की बेटी रानी को फॅसाने के लिए बहुत से पापड़ बेले। किन्तु वह रानी का सिर्फ एक दोस्त ही बन सका, प्रेमी नहीं। मजबूरन इसने एक बार फिर ये फैसला किया कि अशोक की बेटी को अपहरण करके अपने बेटे से उसकी ज़बरदस्ती शादी करवाएगा मगर इसमें भी इसे नाकामी मिली। इसके आदमियों को रानी के कमरे में मौजूद किसी भूत ने ही ठोंक बजाकर वापस लौटने पर मजबूर कर दिया।"

"ये सब तो ठीक है कृत्या।" रंगनाथ ने गहरी साॅस ली__"हम तुम्हारे पास इसी लिए आए हैं क्योंकि हमे जानना है कि उस कमरे में किसी भूत के होने का क्या मतलब है? हलाॅकि हमारे लिए ये एक नई बात है कि रानी को अपने ही मरे हुए भाई के सपने आते हैं और वह मूर्ख लड़की अपने ही मरे हुए भाई से प्रेम करने लगी है।"

"मूर्ख वो नहीं है बल्कि तुम दोनो हो।" कृत्या ने कहा।
"क्या मतलब???" दोनो बुरी तरह चौंके थे।
"मतलब ये कि अशोक का बेटा आज भी जीवित है।" कृत्या ने मानो ये कह कर धमाका सा किया था__"और अब वो क्या बन गया है, ये अगर तुम लोग जान लोगे न तो तुम लोगों की***** से गू निकल जाएगा।"

"ये क्या बकवास कर रही हो तुम??" महेन्द्र ने एकाएक आवेश में आकर बोला__"वो जीवित हो ही नहीं सकता। मैं हर्गिज़ तुम्हारी इस बात को नहीं मान सकता। माधवगढ़ के उस खूनी जंगल से आज तक कोई भी जीवित वापस नहीं लौटा है।"

"तुम्हारे मानने न मानने से सच्चाई बदल नहीं जाएगी महेन्द्र।" कृत्या ने कहा__"मेरे मुख से निकला हर एक शब्द सत्य ही होता है। तुमने मुझे अपने बारे में कुछ नहीं बताया इसके बावजूद मैंने तुम्हारी हर बात तुम दोनो के सामने सच सच रख दी है। और अभी जो मैंने कहा वो भी सच ही है।"

रंगनाथ और महेन्द्र अवाक से खड़े रह गए। महेन्द्र तो इस बात को पचा ही नहीं पा रहा था कि अशोक का बेटा आज भी जीवित है। और अगर जीवित है तो कहाॅ है? हलाॅकि हजम न होने वाली बात तो यही थी कि वह जीवित कैसे बच गया था?

"चलो मान लिया कि तुम्हारी कही गई हर बात सच है।" महेन्द्र ने कहा__"अब ये भी तो बताओ कि वो बच्चा जीवित कैसे बच गया और अब ऐसा क्या बन गया है जिसकी तुम बात कह रही थी?"

"अशोक का बेटा कोई साधारण बच्चा नहीं था महेन्द्र।" कृत्या ने कहा__"बल्कि वह एक दिव्य बालक था। जिस रात तुम्हारे आदमी माधवगढ़ के उस जंगल में पहुॅचे थे उस दिन वो खुद नहीं पहुॅचे थे बल्कि विधि के विधान के अनुसार ही उस जगह पहुॅचे थे। तुम्हारे दोनो आदमी तो उस रात ही शैतानों के द्वारा मारे गए थे किन्तु वह बच्चा सही सलामत ही रहा। ऐसा नहीं था कि शैतान उस बच्चे को मारना नहीं चाहते थे, बल्कि एक शैतान तो आगे बढ़ा भी था बच्चे को मारने के लिए लेकिन तभी दूसरे शैतान ने उसे रोंक लिया। उस दूसरे शैतान को महसूस हुआ कि ये बच्चा साधारण बच्चा नहीं है। वो सब मिल कर भी उस बच्चे को उस समय मार नहीं सकते थे। वो चार थे, तथा चारों के अंदर अपने पूर्व जन्मों की कुछ अच्छाईयाॅ शेष थीं जिसकी वजह से उनके मन में शैतानी प्रव्रत्ति होने के बावजूद अच्छे विचार पैदा हो गए। और चारो ही उस बच्चे को उसी रात उस मायावी व खूनी जंगल से निकाल कर हिमालय ले गए।"

"हिमालय ले गए????" रंगनाथ बुरी तरह उछला था, फिर बोला__" ये तो बड़ी ही विचित्र बात है। चार चार शैतान हिमालय जैसी पवित्र जगह पर उस बच्चे को अपने साथ ले गए। मगर सवाल ये है कि क्यों? उस बच्चे को हिमालय ही क्यों ले गए? बात कुछ समझ में नहीं आई कृत्या???"

"जैसा कि मैने कहा कि वो बच्चा साधारण बच्चा नहीं है।" कृत्या ने कहा__"ये ईश्वरी माया ही थी कि वो शैतान उस बच्चे को हिमालय ही लेकर गए। क्योंकि हिमालय में रह कर ही उस बच्चे को उस लायक बनना था जिससे भविश्य में वह इस संसार का कल्याण कर सके और इस धरती से पाप और बुराई को मिटा सके।"

"तुम्हारी तो हर बात ही विचित्र और अविश्सनीय है कृत्या।" रंगनाथ ने कहा__"समझ में नहीं आ रहा कि तुम्हारी इन सब बातों पर कैसे यकीन करें हम??"

"यकीन भी आ जाएगा रंगनाथ।" कृत्या ने मुस्कुरा कर कहा__"जल्द ही वो समय आने वाला है, तब तुम्हें मेरी इन बातों पर पूरी तरह यकीन भी होने लगेगा।"

"अगर ऐसा है तो फिर मैं कैसे वो सब कर सकूॅगा कृत्या जिसे करना मेरे जीवन का एक मात्र मकसद है?" महेन्द्र ने सहसा परेशानी वाले भाव से कहा__"मैं तुम्हारी इन बातों से अपने कदम वापस नहीं करूॅगा। मैं हर हाल में वो करूॅगा तभी मुझे शान्ति मिलेगी।"

"ये सब तुम साधारण रूप से नहीं कर सकते महेन्द्र।" कृत्या ने कहा__"क्योंकि तुम्हारा सामना भौतिक और दैविक दोनो तरह की शक्तियों से होगा। इस लिए इनसे निपटने के लिए तुम्हें भी भौतिक और दैविक रूप से सक्षम होना पड़ेगा।"

"क् क्याऽऽ???" महेन्द्र उछल पड़ा__"मैं... पर मैं कैसे इन चीज़ों पर सक्षम हो सकता हूॅ?"
"उपाय तो है।" कृत्या ने मुस्कुरा कर कहा__"अगर कर सको तो बताऊॅ???"

महेन्द्र तुरंत कुछ बोल न सका। अजीब भाव से कृत्या के खूबसूरत चेहरे पर देखता रहा। फिर जैसे उसे होश आया, उसने पलट कर रंगनाथ की तरफ देखा। रंगनाथ का भी वही हाल था।

"ऐसा क्या उपाय है भला?" फिर महेन्द्र ने शशंक भाव से पूछा।
"ये तो तुम भी जानते और समझते होगे न कि भौतिक और दैविक शक्तियों से मुकाबला करना कोई बच्चों का खेल नहीं है?" कृत्या ने अजीब भाव से कहा__"इस लिए जब इनसे मुकाबला करने की बात आएगी तब इसके लिए भी तुम्हें उसी तरह का कोई उपाय करना पड़ेगा। शक्तियाॅ दो तरह की होती हैं। एक दैवी और दूसरी आसुरी। देवी शक्तियों को पाने में बहुत समय लगता है जबकि आसुरी शक्तियों को पाने के लिए कम समय लगता है। फिर भी ये शक्तियाॅ सहज ही हासिल नहीं हो जाती। इनके लिए भी कठोर कर्म करने पड़ते हैं। आसुरी अथवा शैतानी शक्तियों को हासिल करने में अगर ज़रा सी भी भूल चूक हो गई तो तुम्हें अपनी जान से भी हाॅथ धोना पड़ सकता है।"

"अगर बात भौतिक और दैविक शक्तियों से मुकाबला करने की है तथा मेरे मकसद के रास्ते में इन शक्तियों से टकराने की है तो मुझे उस उपाय को करना स्वीकार है।" महेन्द्र ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा__"तुम मुझे बताओ कि क्या करना होगा मुझे???"

"मुझे खुश करना होगा तुम्हें।" कृत्या ने मादक भाव से कहा__"अगर तुम इसके लिए पूरे मन से तैयार हो तो तुम्हें मेरे साथ यहीं रहना होगा और यहाॅ रह कर मुझे खुश करना होगा। मेरे साथ साथ तुम्हें भी मेरे जिस्म की आग में जलना होगा। अगर तुम मुझे खुश करने में सफल हो गए तो मैं तुम्हें अपनी शक्तियों का स्वामी बना दूॅगी।"

"मुझे भी अपने मित्र की सहायता करनी है कृत्या।" रंगनाथ ने कहा__"इस लिए मैं भी वही करने को तैयार हूॅ जो मेरा मित्र करेगा।"
"अच्छी बात है।" कृत्या ने कहा__"तुम दोनो ही मुझे एक साथ खुश करोगे। अगली अमावस्या की रात को महाशैतान के लिए एक सुंदर और कुवाॅरी कन्या का भी इंतजाम करना होगा तुम्हें।"

"हमें मंज़ूर है कृत्या।" दोनो ने एक साथ कहा था।
"ठीक है आज से तुम दोनो एक हप्ते तक यहीं रहोगे।" कृत्या ने कहा__"इन एक हप्तों में तुम वही करोगे जो मैं कहूॅगी। एक हप्ते बाद अमावस्या है। उस दिन तुम दोनो यहाॅ से जाओगे और एक सुंदर व कुवाॅरी कन्या को लेकर आओगे। मगर ध्यान रहे वो कुवाॅरी लड़की या तो अमावस्या को जन्मी हो या पूर्णिमा की रात को। इन दो तिथियों में जन्मी कन्या को ही लाना है तुम्हें अन्य किसी को नहीं।"

"ऐसा ही होगा कृत्या।" दोनो ने एक साथ कहा। दोनो के चेहरों पर शैतानी मुस्कान उभर आई थी। जबकि कृत्या ने दोनो पर एक एक दृष्टि डाली और अपने बेपर्दा से जिस्म को बड़े ही मादक अंदाज़ से मटकाते हुए अंदर की तरफ कहीं चली गई।



अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,
आप सबकी प्रतिक्रिया का इन्तज़ार रहेगा।

दोस्तो आप लोग शायद ये समझते होंगे कि मैं जानबूझ कर आपको अपडेट नहीं दे रहा हूॅ, किन्तु आप सब यकीन मानिये मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है। मैं बहुत ज्यादा ब्यस्त हूॅ। आप सबसे गुज़ारिश है कि एक दो हप्ते का समय दीजिए मुझे। उसके बाद मैं बाहर के काम से फुर्सत हो जाऊॅगा और पहले की ही तरह आपके सामने अपडेट हाज़िर करता रहूॅगा।

धन्यवाद,,,,,,,
Shaandaar update dost
 

Naik

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राज-रानी (बदलते रिश्ते)
""अपडेट""
(08)

अब तक,,,,,,,

"मुझे खुश करना होगा तुम्हें।" कृत्या ने मादक भाव से कहा__"अगर तुम इसके लिए पूरे मन से तैयार हो तो तुम्हें मेरे साथ यहीं रहना होगा और यहाॅ रह कर मुझे खुश करना होगा। मेरे साथ साथ तुम्हें भी मेरे जिस्म की आग में जलना होगा। अगर तुम मुझे खुश करने में सफल हो गए तो मैं तुम्हें अपनी शक्तियों का स्वामी बना दूॅगी।"

"मुझे भी अपने मित्र की सहायता करनी है कृत्या।" रंगनाथ ने कहा__"इस लिए मैं भी वही करने को तैयार हूॅ जो मेरा मित्र करेगा।"
"अच्छी बात है।" कृत्या ने कहा__"तुम दोनो ही मुझे एक साथ खुश करोगे। अगली अमावस्या की रात को महाशैतान के लिए एक सुंदर और कुवाॅरी कन्या का भी इंतजाम करना होगा तुम्हें।"

"हमें मंज़ूर है कृत्या।" दोनो ने एक साथ कहा था।
"ठीक है आज से तुम दोनो एक हप्ते तक यहीं रहोगे।" कृत्या ने कहा__"इन एक हप्तों में तुम वही करोगे जो मैं कहूॅगी। एक हप्ते बाद अमावस्या है। उस दिन तुम दोनो यहाॅ से जाओगे और एक सुंदर व कुवाॅरी कन्या को लेकर आओगे। मगर ध्यान रहे वो कुवाॅरी लड़की या तो अमावस्या को जन्मी हो या पूर्णिमा की रात को। इन दो तिथियों में जन्मी कन्या को ही लाना है तुम्हें अन्य किसी को नहीं।"

"ऐसा ही होगा कृत्या।" दोनो ने एक साथ कहा। दोनो के चेहरों पर शैतानी मुस्कान उभर आई थी। जबकि कृत्या ने दोनो पर एक एक दृष्टि डाली और अपने बेपर्दा से जिस्म को बड़े ही मादक अंदाज़ से मटकाते हुए अंदर की तरफ कहीं चली गई।


अब आगे,,,,,,,,

उधर हिमालय में!
बारह साल बाद! तब जबकि उस बच्चे की सम्पूर्ण शिक्षा दीक्षा हो चुकी थी। गुरूदेव के निर्देशानुसार तथा उनकी छत्रछाया में वह बच्चा हर कला में दक्ष हो चुका था। गुरूदेव ने उस बच्चे को अध्यात्म ज्ञान में भी प्रवीण कर दिया था। गुरूदेव ने बताया था कि बच्चे की दैवी शक्तियाॅ उसके अट्ठारहवें साल में जागृत हो जाएॅगी। वो बच्चा क्योंकि साधारण नहीं था इस लिए उसमें पहले से ही किसी भी प्रकार की चीज़ को सीख लेने की क्षमता अद्भुत थी। उसका मन और दिमाग़ बहुत तेज़ था। उसको अट्ठारह वर्ष का होने में कुछ ही दिन शेष बचे थे। गुरूदेव जानते थे कि बच्चा जब अट्ठारह साल का हो जाएगा और जब उसकी समस्त शक्तियाॅ जागृत हो जाएंगी तो उसी समय बहुत बड़ा बदलाव भी आएगा। वो बदलाव कैसा होगा ये गुरूदेव भली भाॅति जानते थे। किन्तु वो ये भी जानते थे कि होनी को कोई नहीं टाल सकता।

चारो वैम्पायर्स यानी मेनका, काया, रिशभ और वीर ये सब भी गुरूदेव के द्वारा बताये हुए उपाय की वजह से अब इंसानों जैसे हो गए थे। इन लोगों ने इन बारह सालों में कभी भी अपनी शैतानी शक्तियों का उपयोग नहीं किया बल्कि चारों ने किसी साधारण मनुष्य की तरह ही आचरण किया था। गुरूदेव इन लोगों के सच्चे आचरण से अति प्रसन्न हुए थे।

मेनका और काया ने तो पहले ही उस बच्चे को अपना पुत्र मान लिया था इस लिए ये दोनो हमेशा बच्चे के आस पास ही रहती थी। रिशभ और वीर को भी बच्चे से बेहद लगाव था, वो उसे अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करते थे। दोनो ने मिल कर बचपन से ही उस बच्चे को हर तरह की युद्ध कलाएं सिखा सिखा कर उसे माहिर कर दिया था। जो कुछ कमिया रह गई थी वो गुरुदेव ने पूरी कर दी थी।


दोस्तो यहाॅ पर मैं संक्षिप्त रूप से इन सबका परिचय देना चाहता हूॅ यद्यपि इसकी ज़रूरत नहीं है फिर भी,,,,

मेनका......
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मेनका, वैम्पायर्स की दुनियाॅ की एक राजकुमारी थी। इसके पिता विराट वैम्पायर्स के राजा थे तथा माॅ कुसुम महारानी थी। लेकिन इस बच्चे के साथ शामिल हो जाने से इसका अब वैम्पायर्स की दुनिया से कोई संबंध नहीं है।

काया......
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काया, ये भी वैम्पायर्स की दुनियाॅ के राजा विराट की बेटी है, तथा मेनका की छोटी बहन है। इसका स्वभाव थोड़ा चंचल है किन्तु सबसे खतरनाक भी। इसका भी अपनी बड़ी बहन मेनका की तरह वैम्पायर्स की दुनियाॅ से अब कोई संबंध नहीं है।

रिशभ.....
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रिशभ, ये भी वैम्पायर्स की दुनिया के सम्राट विराट का इकलौता बेटा है तथा मेनका और काया का सगा भाई है। वैम्पायर्स की दुनिया का प्रिंस है। ये मेनका से ऊम्र में छोटा है मगर काया से बड़ा है। इसका भी अपनी बहनों की ही तरह अब शैतानी दुनियाॅ से कोई संबंध नहीं है।

वीर......
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वीर, ये भी वैम्पायर्स की दुनियाॅ से था। ये रिशभ का सबसे खास दोस्त है। इसका अपना कोई परिवार नहीं बचा था बल्कि किसी लड़ाई में इसके माता पिता तथा बहन को मार दिया गया था। रिशभ का दोस्त था इस लिए सम्राट विराट इसे भी अपने बेटे की ही तरह मानते थे। इसका भी अब अपनी वैम्पायर्स की दुनियाॅ से कोई संबंध नहीं है।

बच्चा......
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इसके बारे में तो अब आप जान ही चुके हैं। फिर भी बता देता हूॅ। ये वही बच्चा था जो आज से बारह साल पहले चारो वैम्पायर्स द्वारा हिमालय लाया गया था। ये अशोक सिंह राजपूत तथा रेखा सिंह राजपूत का बेटा था। किन्तु इस समय इसकी दो माॅ हैं.....मेनका और काया। जो इस पर अपनी जान छिड़कती हैं। ये बच्चा दैवी शक्तियों का मालिक है। गुरूदेव के अनुसार इसका जन्म संसार में ब्याप्त पाप और अधर्म को समाप्त करने के लिए हुआ है। गुरूदेव सब जानते हैं, एक बार उन्होने कहा था कि इसके जन्म के पीछे एक रहस्य है। जिसके बारे में दूसरा कोई नहीं जानता। मेनका आदि अन्य लोगों ने गुरूदेव से जब इसके जन्म के रहस्य के बारे में पूछा तो गुरूदेव ने कहा कि समय आने पर ये रहस्य भी पता चल जाएगा।


दोस्तो ये तो था इन लोगों का संक्षिप्त परिचय अब कहानी की तरफ चलते हैं।


जैसा कि बताया जा चुका है कि बच्चे की आयु जब अट्ठारह साल की हो जाएगी तभी उसके अंदर की दैवी शक्तियाॅ जागृत होंगी। किन्तु बच्चे को अट्ठारह साल का होने में अभी कुछ दिन शेष हैं। तब तक आज हम उस तरफ का भी हाल जान लेते हैं कि बारह साल पहले जब चारो वैम्पायर्स बच्चे को लेकर हिमालय आ गए थे तब उनके न लौटने पर उनकी शैतानी दुनियाॅ में क्या हुआ था?

शैतानी दुनियाॅ के सम्राट विराट बहुत ही खतरनाक थे। उनके मन में हमेशा से ये चाहत थी कि इस धरती पर हर जगह सिर्फ और सिर्फ उनका ही राज हो। यानी सम्पूर्ण धरती पर सिर्फ वैम्पायर्स का ही एकछत्र राज हो। इसके लिए उन्होंने क्या क्या नहीं किया था किन्तु वैसा न हुआ जैसा वो चाहते थे। उनके पहले जो किंग थे उन्होंने बताया था कि पाॅच सौ वर्ष बाद धरती पर एक ऐसा बालक जन्म लेगा जिसके पास दैवी शक्तियाॅ होगी। सम्पूर्ण सृष्टि में उस बालक जैसा शक्तिशाली और शूरवीर कोई दूसरा न होगा।

उन्होंने ये भी बताया था कि वह बालक जब पाॅच वर्ष का होगा तब उसे किसी शत्रुता के चलते मारने की कोशिश की जाएगी और उसके शत्रु के आदमी संयोग और भूलवश उसे हमारी यानी शैतानी दुनियाॅ में ले आएॅगे अपहरण करके। उस रात मौसम बहुत खराब होगा। हमारी दुनियाॅ में आकर शत्रु के वो आदमी तुम्हारे(विराट)बेटे बेटियों द्वारा मारे जाएंगे लेकिन वह नन्हा बालक जीवित रहेगा। क्योंकि उसे तुम्हारे बेटे बेटियाॅ तथा उनका दोस्त मार नहीं सकेंगे, बल्कि उस बालक को अपने साथ लेकर हमारी शैतानी दुनियाॅ से निकाल कर बाहरी दुनियाॅ में चले जाएॅगे।

विराट पहले वाले किंग की ये बातें सुन कर हैरान था। जबकि उसने ये भी कहा था कि यदि वो चाहे तो किसी तरह उस बालक को अपने साथ मिला ले और उसी के द्वारा अपना ये ख्वाब पूरा करे जो वह देखता रहा था वर्षों से।

शैतानों के सम्राट यानी विराट को हमेशा ये बात याद रही थी। इस लिए उसने अपनी दुनियाॅ के हर क्षेत्र में कड़ा प्रबंध कर रखा था कि अगर कभी ऐसा समय आए तो वह उस बालक को अपने पास ही रख कर उसका लालन पालन कर सके। उस सूरत में वह बालक उन्हीं को अपना समझता और जब वह बड़ा हो जाता तो वह वही करता जो करने के लिए विराट उससे कहता।

विराट हमेशा अपने बेटे बेटियों पर भी नज़र रखता था कि वो कब कहाॅ जाते हैं। उसने उनसे इस बारे में कुछ नहीं बताया था। लेकिन कहते हैं न कि होनी को कोई नहीं टाल सकता। वही विराट के साथ हुआ था। कहने का मतलब ये कि विराट के इतने कड़े प्रबंध तथा निगरानी के बावजूद वह हो गया जो ईश्वर चाहता था नाकि विराट जो चाहता था।

शेतानी दुनियाॅ में भी शैतानों की कई नश्लें होती हैं जिनके अपने विचार तथा अपनी हुकूमत होती है। अपनी सत्ता और हुकूमत को बनाए रखने के लिए बड़ा भीषण संघर्स तथा बड़ी लड़ाईयाॅ लड़नी पड़ती हैं। उस समय भी यही हुआ था। विराट अपने शत्रुओं से युद्ध करने के लिए गया हुआ था उस रात। वह अपने बेटे बेटियों पर निगरानी का प्रबंध करके गया था। इसके बावजूद होनी ने अपना काम कर दिया था।

विराट जब युद्ध से लौटा तो उसे सब पता चला। वह इस सबसे बड़ा मायूस और दुखी भी हुआ। किन्तु उसे अपने बेटे बेटियों पर गुस्सा भी आया था कि उन्होने शैतान होकर भी ऐसा काम किया बिना उसकी अनुमति के। किन्तु अब भला क्या हो सकता था? उसे नहीं पता था कि उसके अपने बच्चे धरती के किस कोने में हैं उस बालक के साथ??? उसने अपनी समस्त शक्तियों के द्वारा इस बात का पता लगाने की कोशिश भी की थी लेकिन वह कभी सफल नहीं हुआ।

वैम्पायर्स के पहले वाले किंग का नाम सोलेमान था। वह बहुत ही शक्तिशाली वैम्पायर किंग था। उसके पास बहुत सारी शक्तियाॅ थी। किन्तु वह किसी महाऋषि के श्रापवश आज से पाॅच सौ साल पहले पत्थर बन गया था। उसकी पत्नी मारिया ने अपने पति सोलेमान को बचाने के लिए उस महाऋषि से बड़ी याचना की थी। महाऋषि ने फिर दया करके श्राप की अवधि कम कर दी थी किन्तु सोलेमान को पत्थर से पुनः अपने रूप में आने के लिए एक क्रिया करने के लिए कहा था। वह क्रिया ये थी कि पूनम की अर्धरात्रि में अपने पत्थर बने पति सोलेमान के सामने किसी ऐसे इंसान के साथ संभोग करके उसका वीर्य उस पर छिड़कना जिस इंसान के पास दैवी शक्तियाॅ हों। अगर वह श्राप की अवधि समाप्त होने के तुरंत बाद ही ये क्रिया नहीं कर पाएगी तो महाऋषि का श्राप पुनः उतनी ही अवधि के लिए फिर से बढ़ जाएगा।

किंग सोलेमान ने अपने सबसे खास मित्र विराट को शैतानों का नया किंग घोषित कर महाऋषि के श्राप से पत्थर बन गया था। आज इस बात को घटित हुए पाचॅ सौ साल हो गए थे। सोलेमान की पत्नी मारिया आज भी अपने पत्थर बने पति के साथ पुराने राजमहल में रहती है और महाऋषि के श्राप की अवधि समाप्त होने का इन्ज़ार कर रही है। मारिया खुद भी बहुत शक्तिशाली थी, उसके पास उसके पति से प्राप्त बहुत सी शक्तियाॅ थी। वह अपनी उन्हीं शक्तियों के द्वारा रात दिन उस बालक की खोज में है जिसके पास दैवी शक्तियाॅ हैं। उसे ये बात पता है कि उसके पति सोलेमान ने विराट से उसके ख्वाब को पूरा करने के लिए किसी बालक के बारे में बताया था। इस लिए मारिया उसी बालक की तलाश में आज भी रातों को इंसानी दुनियाॅ में भटकती है।

उधर ये सब बातें विराट भी जानता है। वह खुद भी अपने मित्र सोलेमान को पुनः पाने के लिए उस बालक की तलाश में लगा हुआ है। वह मारिया को आज भी शैतानों की महारानी ही समझता है। ये अलग बात है कि वो इस सबका सिर्फ दिखावा करता है। हकीकत बात तो ये है कि वह अब यही चाहता है कि शैतानों का सम्राट वही बना रहे और ये तभी संभव हो सकता है जब सोलेमान हमेशा के लिए पत्थर ही बना रहे। वह उस बालक की तलाश में तो है लेकिन अपने निजी मतलब के लिए।

मारिया खुद भी विराट की इस नीयत को समझती है लेकिन वह कभी ये ज़ाहिर नहीं करती कि वह उसकी नीयत से वाकिफ है। शायद यही वजह है कि बालक को तलाश करने का काम वह खुद ही करती है अपने तरीके से।


दोस्तो आपके सामने छोटा सा अपडेट हाज़िर है,,,,,,,
समय की कमी थी इस लिए इतना ही लिख पाया। आशा करता हूॅ कि आप सब नाराज़ नहीं होंगे।

आज का ये छोटा सा अपडेट आप सबको कैसा लगा ये ज़रूर बताइयेगा साथ ही अपनी राय और सुझाव भी दीजियेगा।

धन्यवाद,,,,,,,
Bahot shaandaar mazedaar lajawab update dost
 

Naik

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""अपडेट"" (09)


अब तक,,,,,,,,

किंग सोलेमान ने अपने सबसे खास मित्र विराट को शैतानों का नया किंग घोषित कर महाऋषि के श्राप से पत्थर बन गया था। आज इस बात को घटित हुए पाचॅ सौ साल हो गए थे। सोलेमान की पत्नी मारिया आज भी अपने पत्थर बने पति के साथ पुराने राजमहल में रहती है और महाऋषि के श्राप की अवधि समाप्त होने का इन्ज़ार कर रही है। मारिया खुद भी बहुत शक्तिशाली थी, उसके पास उसके पति से प्राप्त बहुत सी शक्तियाॅ थी। वह अपनी उन्हीं शक्तियों के द्वारा रात दिन उस बालक की खोज में है जिसके पास दैवी शक्तियाॅ हैं। उसे ये बात पता है कि उसके पति सोलेमान ने विराट से उसके ख्वाब को पूरा करने के लिए किसी बालक के बारे में बताया था। इस लिए मारिया उसी बालक की तलाश में आज भी रातों को इंसानी दुनियाॅ में भटकती है।

उधर ये सब बातें विराट भी जानता है। वह खुद भी अपने मित्र सोलेमान को पुनः पाने के लिए उस बालक की तलाश में लगा हुआ है। वह मारिया को आज भी शैतानों की महारानी ही समझता है। ये अलग बात है कि वो इस सबका सिर्फ दिखावा करता है। हकीकत बात तो ये है कि वह अब यही चाहता है कि शैतानों का सम्राट वही बना रहे और ये तभी संभव हो सकता है जब सोलेमान हमेशा के लिए पत्थर ही बना रहे। वह उस बालक की तलाश में तो है लेकिन अपने निजी मतलब के लिए।

मारिया खुद भी विराट की इस नीयत को समझती है लेकिन वह कभी ये ज़ाहिर नहीं करती कि वह उसकी नीयत से वाकिफ है। शायद यही वजह है कि बालक को तलाश करने का काम वह खुद ही करती है अपने तरीके से।


अब आगे,,,,,,,

ऐसे ही कुछ दिन बीत गए और वह दिन भी आख़िर आ ही गया जिस दिन का कदाचित् सबको इन्तज़ार था। सबको इन्तज़ार था से मेरा मतलब है कि जहाॅ एक तरफ ईश्वर इस बात के लिए प्रतीक्षारत था कि धरती पर जन्मे उस बालक के बड़े हो जाने पर सीघ्र ही धरती से अधर्म व पाप का अंत होने लगेगा वहीं दूसरी तरफ शैतानी दुनियाॅ के कुछ लोग इस फिराक़ में थे कि धरती पर ऐसा वो दिव्य बालक कहाॅ पर मौजूद है जिसके द्वारा वो अपनी हसरतें अथवा अभिलाषाएं पूर्ण कर सकें। तो जहाॅ एक तरफ एक माॅ पल पल अपने बेटे की याद में तड़पती हुई उसको कहीं से प्राप्त कर लेने की अभिलाषा लिए बैठी थी तो वहीं एक तरफ एक प्रेम दिवानी थी जो रात दिन सिर्फ अपने प्रेमी की विरह में तड़प रही थी।

कोई नहीं जानता था कि आने वाला समय किसकी झोली में किस तरह की सौगात डालने वाला है? ख़ैर ये तो आने वाला समय ही बताएगा किन्तु आज तो खास दिन है और वह खास दिन ये है कि आज उस बालक का अट्ठारहवाॅ जन्मदिन है।

हिमालय में आज उस कुटिया के बाहर बहुत से लोग जमा हो रखे थे। मेनका, काया, रिशभ, वीर और उस बालक के अलावा इस वक्त यहाॅ पर आज कई सारे ऋषि मुनि तथा कई सिद्ध महात्मा भी मौजूद थे। कुटिया के बाहर आज बड़ा ही सुंदर कार्यक्रम चल रहा था। गुरूदेव के निर्देशानुसार आज यहाॅ पर एक यज्ञ हो रहा था। हवन कुण्ड के एक तरफ वो बालक बैठा हुआ था तो उसके सामने दूसरी तरफ गुरूदेव तथा उनके पीछे बहुत से ऋषि मुनि व सिद्ध महात्मा बैठे हुए मंत्रोच्चारण कर रहे थे।

सुबह से शाम होते होते आख़िर यह यज्ञ सम्पूर्ण हुआ। सभी ने उस बालक को आशीर्वाद दिया। जैसा कि शुरू में ही गुरूदेव ने कहा था कि उस बच्चे का नामकरण समय आने पर होगा। इस लिए आज वही समय था। गुरूदेव ने उस बच्चे का नाम करण किया जिसमें उस बच्चे का नाम राज....राजवर्धन रखा गया। गुरूदेव ने बताया कि इस बच्चे के जन्म में एक राज है किन्तु इसे पालने वाले इसके माता पिता क्षत्रिय कुल के हैं इस लिए इसका पूरा नाम राजवर्धन सिंह है। यद्यपि ये सारे संसार में सिर्फ राज के नाम से ही जाना जाएगा।

यज्ञ समाप्त होने के बाद सभी ऋषि मुनि तथा सिद्ध महा
पुरूषों ने राजवर्धन अर्थात् राज को एक से बढ़ कर एक आशीर्वाद दिया जिसमें उनके तप द्वारा अर्जित किये गए दिव्य अस्त्र शस्त्र तथा बहुत सी दिव्य कलाएं एवं सिद्धियां भी शामिल थीं। ऋषि महात्माओं के इन आशीर्वादों को प्राप्त कर राज ने अपने अंदर एक असीम शक्ति और शान्ति का आभास किया। इसके बाद गुरूदेव के अलावा बाॅकी सभी ऋषि महात्मा अपने अपने स्थान को चले गए।

उन सबके जाने के बाद कुछ देर तक हर तरफ वातावरण में एक सुखदायक शान्ति छाई रही। गुरूदेव अपने आसन पर आॅख बंद किये बैठे थे जबकि बाकी सब उनके सामने हाथ जोड़े खड़े थे।

"आज से तुम सबकी शिक्षा दीक्षा पूर्ण हो गई है इस लिए अब तुम लोगों को यहाॅ पर रहने की कोई आवश्यकता नहीं है।" गुरूदेव ने आॅखें खोल कर सबकी तरफ देखते हुए कहा__"अब से तुम सब अपनी स्वेच्छा से कहीं भी आने जाने के लिए स्वतंत्र हो। जैसा कि तुम लोग जानते हो कि राजवर्धन को ईश्वर ने संसार में पनप रहे पाप और अधर्म को मिटाने के लिए चुना है। इस लिए तुम सब इसकी हर तरह से सहायता करोगे और इसका मार्गदर्शन करोगे।"

"हम सब आपके हर आदेश का पालन करेंगे गुरूदेव।" मेनका ने कहा__"किन्तु हमारा मन यहाॅ से कहीं और जाने का नहीं कर रहा है। पिछले तेरह वर्षों से हम यहाॅ रहकर ईश्वर की तथा आप सभी गुरुओं की सेवा व प्रार्थना कर अपने मन को सुख प्रदान कर रहे थे। आप सभी गुरूजनों की अमृत वाणी से अलौकिक ज्ञान पा रहे थे इस लिए अब इस सबसे दूर जाने का लेश मात्र भी जी नहीं चाहता।"

"पुत्री, संसार में हर प्राणी को अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ना ही पड़ता है।" गुरूदेव ने मुस्कुरा कर कहा__"और फिर तुम लोगों का कर्तव्य पथ तो वैसे भी संसार के कल्याण के लिए है, इस लिए तुम सब चाह कर भी इससे विमुख नहीं हो सकते। तुम लोगों को इस बच्चे की सहायता और इसकी देख रेख के लिए खुद ईश्वर ने चुना था। ये उसी ईश्वर की इच्छा और माया थी कि उसने तुम लोगों को शैतान होते हुए भी इस सबके लिए चुना। ये तुम लोगों के लिए बड़े सौभाग्य की बात है। लाखों करोड़ों वर्षों में विरला ही किसी प्राणी को ऐसा सौभाग्य प्राप्त होता है। अतः तुम सब को इस सबके लिए उस परम् पिता परमेश्वर का धन्यवाद करना चाहिए।"

"गुरूदेव।" रिशभ ने कहा__"आपका कहना बिलकुल सत्य है कि ईश्वर ने हमें इतने बड़े और महान कार्य को करने में इस बच्चे का सहयोग करने के लिए चुना था। यकीनन इसके लिए हम अगर ईश्वर का बार बार धन्यवाद भी करें तो वह कम होगा। परंतु यहाॅ से कहीं जाने का मन भी तो नहीं करता गुरूदेव, आप सब गुरूओं की सेवा करने का सौभाग्य छिन जाएगा हमसे।"

"ये तुम कैसे कह सकते हो पुत्र कि तुमसे ये सौभाग्य छिन जाएगा?" गुरूदेव ने मुस्कुरा कर कहा__"सच्चे मन से तुम कहीं भी रह कर अपने ईश्वर व गुरुओं की पूजा अर्चना कर सकते हो। और तुम ये क्यों नहीं समझते पुत्र कि जिस कार्य को करने के लिए तुम सब अब आगे बढ़ोगे उसके लिए खुद ईश्वर ने ही तुम लोगों को चुना है। इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है भला? बल्कि इसी कार्य को अगर तुम सब सच्चे मन से करोगे तो यही तुम सबकी सबसे बड़ी भक्ति है।"

"ठीक है गुरूदेव हम आपके आदेशों का ही पालन करेंगे।" मेनका ने कहा__"अब आप ही हमें ये बताने की कृपा करें कि यहाॅ से हम सब किस जगह पर अपना बसेरा बनाएॅ ताकि हम उस कार्य को सफलतापूर्वक कर सकें?"

"तुम सबको वापस उसी स्थान पर जाना होगा जहाॅ पर राजवर्धन की जन्मभूमि है और जहाॅ पर इसके अपने रहते हैं।" गुरुदेव ने कहा__"किन्तु उनसे दूर ही तुम सब एक भव्य और शानदार घर बना कर रहोगे। वहीं पर इस बच्चे की वो शिक्षा भी शुरू होगी जो शिक्षा आज के युग में इस देश पर चल रही है।"

"आम इंसानों के बीच तुम सब भी आम इंसान बन कर ही रहोगे।" गुरूदेव ने समझाने वाले भाव से कहा__"ईश्वर की कृपा से और अपनी शक्तियों द्वारा तुम सब इसकी ब्यवस्था खुद कर लेना।"

"ठीक है गुरूदेव।" मेनका ने कहा__"हम सब ऐसा ही करेंगे।"
"इस देव भूमि से निकलने के बाद से ही तुम सबका पथ दुष्कर हो जाएगा।" गुरूदेव ने कहा__"क्योंकि यहाॅ से निकलते ही कुछ शैतानों को राजवर्धन के बारे में पता लग जाएगा और वो इसे अपने पास ले जाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। इस लिए तुम लोग इस बात के लिए सतर्क भी रहना।"

"हम सब समझ गए गुरूदेव।" रिशभ ने कहा__"और हम पूरी कोशिश करेंगे कि शैतानों की कोई भी चाल कामयाब न हो।"

"अच्छी बात है पुत्र।" गुरूदेव ने कहने के साथ ही राजवर्धन की तरफ देखते हुए कहा__"जब कभी भी तुम लोगों को हमारी आवश्यकता हो या किसी बात के लिए हमारे मार्गदर्शन की ज़रूरत हो तो तुम हमें याद कर लेना हम तुरंत ही तुम्हारे सामने प्रकट हो जाएगे।"

"मेरे लिए क्या आदेश है गुरूदेव?" राज ने विनम्रता से पूछा था।
"तुम्हारे लिए हमारा यही कहना है पुत्र कि कभी किसी के साथ बुरा मत करना, हमेशा हर उस प्राणी की सहायता या उसका दुख दूर करना जो किसी के द्वारा सताया गया हो। तुमको जो भी सच्चे दिल से चाहे उसका मान रखना तथा उसके प्रेम को स्वीकार करना।" गुरूदेव ने एक पल रुकने के बाद फिर से कहा___"नियति में जो लिखा है वो हो कर रहेगा, इस लिए अगर कभी किसी बात पर तुम किसी धर्मसंकट में पड़ जाओ तो हमें याद करना। तुम्हारे सामने ऐसे ऐसे पल भी आएंगे जो देश समाज की दृष्टि से अमान्य तथा अनैतिक होंगे किन्तु तुम्हें वो सब भी करना पड़ेगा।"

"जैसी आपकी आज्ञा गुरूदेव।" राज ने सिर झुका कर कहा__"मैं पूरे मन से ये प्रयास करूॅगा कि आपके सभी आदेशों का पालन कर सकूॅ।"

"पिछली रात्रि से तुम्हारी दिव्य शक्तियाॅ जागृत हो चुकी हैं पुत्र।" गुरूदेव ने कहा__"और वो सभी शक्तियाॅ तुम्हारे आधीन रहेंगी। तुम जब चाहो उनका प्रयोग जन कल्याण के लिए कर सकते हो। लेकिन हमेशा यही कोशिश करना कि शक्तियों का प्रयोग बेमतलब न हो और ना ही किसी के सामने हो। हलाॅकि ऐसे भी क्षण आएंगे जब तुम्हें अपनी शक्तियों का प्रयोग सबके सामने भी करना पड़ सकता है इस लिए इस सबके बाद लोगों के मन में या वहाॅ के माहौल में अशान्ति न होने पाए इसके लिए तुम उनके दिलो दिमाग़ से इन सबकी यादें व दृश्य मिटा भी सकते हो।"

"जी बिलकुल गुरूदेव।" राज ने कहा।
"ये तो तुम्हें ज्ञात हो ही चुका है कि तुम्हारे असल माता पिता कौन हैं तथा कहाॅ रहते हैं इस लिए उनका ख़याल करना।" गुरूदेव ने कहा__"क्योंकि उन पर बहुत जल्द एक बड़ा संकट आने वाला है।"

"आपने सच कहा गुरूदेव।" सहसा वीर ने कहा__"राज के असल माता पिता पर संकट तो बहुत पहले से था लेकिन अब वो संकट बहुत ज्यादा हो चुका है। आपके ही निर्देश और आदेश पर मैं उनकी रक्षा और उनकी देख रेख में तैनात था। महेन्द्र सिंह नाम का एक मनुष्य इसके परिवार से बदला लेना चाहता है। वह चाहता है कि अपने बेटे की शादी वह राज की बहन रानी से करे, क्योंकि ऐसा होने पर अशोक जी की धन दौलत उसकी ही हो जाएगी।"

"वो नादान और बड़ा नासमझ है पुत्र।" गुरू देव ने मुस्कुराकर कहा__"उसे इस बात का आभास ही नहीं है कि वो किस आग को अपनी बहू बनाना चाहता है? ख़ैर, उसे अब ये पता चल चुका है कि अशोक का वो बेटा जीवित है जिसे उसने वर्षों पहले जान से मारना चाहा था। उसे ये भी पता चल चुका है कि अशोक का वही बेटा कोई साधारण बालक नहीं है बल्कि एक दिव्य बालक है तथा असाधारण दैवी शक्तियों वाला है इस लिए वह इससे निपटने के लिए खुद भी आसुरी शक्तियों को अर्जित कर रहा है। निश्चय ही वो आसुरी शक्तियों को अर्जित कर लेगा। इस लिए उससे सावधान रहना। क्योंकि उसने जिसे अपना गुरू बनाया हुआ है वो खुद दैवी और आसुरी शक्तियों वाली है और वो हर तरह से उसकी सहायता करेगी"

"इसका मतलब यही हुआ गुरूदेव कि हम सबके यहाॅ से निकलने से पहले ही हमारे लिए जंग की विसात बिछ चुकी है।" रिशभ ने कहा__"और जिसके लिए हमें अभी से तैयार रहना होगा।"

"यही सत्य है पुत्र।" गुरूदेव ने कहा__"और दूसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि शैतानी दुनिया के तुम्हारे अपने पिता भी तुम सबको वर्षों से ढूॅढ़ रहे हैं। वहीं शैतानी दुनिया के पहले किंग सोलेमान की पत्नी मारिया भी राजवर्धन को ढूॅढ़ रही है ताकि इसके द्वारा वह अपने पत्थर बने पति सोलेमान को जीवित कर सके। हम ये सब इस लिए बता रहे हैं तुम लोगों को ताकि तुम सबको ये बातें पहले से ही विदित रहें और तुम सब पहले से ही इन सबसे सावधान रहो।"

"आपका बहुत बहुत धन्यवाद गुरूदेव जो आपने पहले से ही हमें ऐसी सभी बातों से अवगत करा दिया।" मेनका ने कहा__"मैं तो जानती ही हूॅ कि शैतानी दुनिया के मेरे पिता मेरे इस बेटे के द्वारा समस्त संसार में सिर्फ शैतानों का ही एकछत्र राज कराना चाहते हैं। हाॅ ये नहीं जानती थी कि मेरे पिता से पहले भी कोई शैतानों का किंग था जो वर्षों से पत्थर बना हुआ है और जिसे वापस जीवित करने के लिए उसकी पत्नी राज को पाना चाहती है।"

इसके बाद कुछ देर और कुछ महत्वपूर्ण बातें हुईं फिर गुरूदेव के आदेश से सब वहाॅ से निकलने के लिए तैयार हो गए। सबने गुरूदेव की पूजा अर्चना की और फिर उनका आशीर्वाद लेकर हिमालय से निकल पड़े।
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तो वहीं दूसरी तरफ,,,,
महेन्द्र और रंगनाथ ने अपनी मेहनत और लगन से आसुरी शक्तियों को अर्जित करने के अंतिम पड़ाव पर थे। जैसा कि कृत्या ने उनसे कहा था कि अमावश्या की रात अथवा पूनम की रात को ही जन्मी एक कुवारी कन्या को महाशैतान के सुपुर्द करना होगा। इस लिए दोनो ही ऐसी कन्या को लाने के लिए कृत्या के यहाॅ से चल पड़े थे। महेन्द्र जानता था कि उसकी खुद की बेटी ही अमावस्या की रात जन्मी थी तथा वह ये भी जानता था कि अशोक के दोनो बच्चे यानी राज-रानी पूनम की रात को जन्मे थे। उसने ये सब बातें अपने दोस्त रंगनाथ को भी बता दिया था। दोनो ने विचार कर ये फैसला लिया कि अशोक की बेटी को ही महाशैतान के सुपुर्द किया जाए। हलाॅकि महेन्द्र सिंह ने तो ये भी कहा कि वह अपनी बेटी को ही महाशैतान के सुपुर्द करेगा क्योंकि रानी से वह अपने बेटे की शादी कराना चाहता था और इस शादी के हो जाने पर ही उसे अशोक की धन दौलत प्राप्त होनी थी।

महेन्द्र सिंह की इस बात से रंगनाथ ने कहा था कि अब ये संभव नहीं है क्योंकि अशोक का बेटा जीवित है इस लिए अब अशोक की धन दौलत उसके बेटे के ही नाम हो जाएगी। उसने ये भी कहा कि वह अपनी ही बेटी को महाशैतान के सुपुर्द कैसे कर सकता है???

ये सब सोच विचार करने के बाद यही फैसला हुआ कि अशोक की बेटी रानी को ही महाशैतान के लिए उठाया जाए। इस फैसले के साथ ही वो दोनो वापस माधवगढ़ की तरफ बढ़ गए। अभी रात होने में बहुत समय था क्योंकि अभी तो शाम भी न हुई थी।

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तो वहीं एक तरफ रानी आज बड़ा ही खुश नज़र आ रही थी। उसका चेहरा ताजे गुलाब की तरह खिला खिला लग रहा था।
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आज कल वार्षिक परीक्षा के बाद छुट्टियाॅ चल रही थी इस लिए वह घर पर ही थी अपनी सौतेली माॅ सुमन के साथ। सुमन सौतेली माॅ ज़रूर थी लेकिन उसका रानी के प्रति प्यार और स्नेह सगी माॅ से भी बढ़ कर था।

अशोक ने माधवगढ़ में ही ये नया मकान खरीद कर इनके रहने के लिए दिया था। वह खुद भी प्रतिदिन इनसे मिलने आता था। इनकी देख रेख और घर के काम धाम के लिए दो नौकर और दो नौकरानियों को रख दिया था अशोक ने।

रानी आमतौर पर हमेशा गुमसुम और शान्त ही रहती थी। वह सिर्फ अपनी माॅ सुमन से ही ज्यादातर बोलती थी बाॅकि वह किसी से कोई बात नहीं करती थी। ऐसा नहीं था कि उसमें किसी तरह का कोई गुरूर था बल्कि असल बात ये थी कि वह बचपन से ही अपनी माॅ रेखा के प्यार व दुलार से वंचित रही थी। वह बचपन से ही अपनी माॅ के द्वारा इस बात के लिए प्रताड़ित की गई थी कि उसकी ही वजह से रेखा का बेटा और उसका बड़ा भाई कहीं लापता हो गया था। इन सब बातों ने रानी को अंदर से बहुत दुखी कर दिया था, वह कभी किसी से अपने दुखों का इज़हार नहीं करती थी बल्कि अंदर ही अंदर वह अपने इस दुख में तड़पती रहती थी। उसकी दूसरी माॅ सुमन ने उसे सगी माॅ से भी बढ़ कर प्यार व दुलार दिया था इसके बाद भी उसका स्वभाव ऐसा बन गया था कि वह हमेशा के लिए शान्त व गुमसुम सी ही हो गई थी।

लेकिन आज वही शान्त व गुमसुम रहने वाली रानी बेहद खुश नज़र आ रही थी। उसको इस तरह खुश देख कर उसकी सौतेली माॅ सुमन भी बहुत खुश थी। उसे रानी ने बताया था कि आज वह क्यों खुश है। दरअसल पिछली रात उसने फिर से अपने भाई व अपने प्रियतम का का स्वप्न देखा था, लेकिन हर बार की तरह इस बार वह बीमार नहीं हुई थी। बल्कि इस बार उसके अंदर एक नई ऊर्जा का आभास हुआ था। स्वप्न में उसने देखा था कि उसका भाई उसका प्रियतम उसके पास आ रहा है। राज ने स्वप्न में स्पष्ट कहा था कि मैं हमेशा के लिए उसके पास आ रहा हूॅ। इसी बात से रानी आज बहुत खुश थी।

इस वक्त ड्राइंग रूम में रखे सोफों पर सुमन के साथ रानी व सामने के सोफे पर अशोक बैठा था। अशोक अपने आफिस से सीधा यहीं आया था। ये उसका प्रतिदिन का नियम सा बन गया था। आज अपनी बेटी को इतने वर्षों बाद इतना खुश देख कर वह भी बेहद खुश था। वह जानता था कि उसकी बेटी रानी अपने ही भाई से बचपन से ही प्रेम करती है। लेकिन इसके लिए अशोक ने कभी भी कोई ऐतराज़ नहीं किया था, बल्कि वह खुद भी इसके लिए खुश था। ये बड़ी ही हैरतअंगेज बात थी कि वह अपनी बेटी को उसके ही सगे भाई से प्रेम संबंध की अनुमति दे चुका था। कदाचित् इसकी वजह ये थी कि वह समझता था कि स्वप्न कभी हकीक़त का रूप नहीं ले सकते। उसकी नज़र में तो उसका बेटा अब कहीं जीवित ही नहीं था। इस लिए अब उसे इस बात से कोई ऐतराज़ नहीं था। यही सब सुमन भी समझती थी। कोई भी इसमे हस्ताक्षेप इस लिए नहीं करता था क्योंकि एक तो ये रानी को बेहद प्यार व दुलार करते थे दूसरी बात वो नहीं चाहते थे कि उनके द्वारा किसी प्रकार की आपत्ति जताने पर उनकी बीमार व दुखित बेटी और भी ज्यादा दुखी हो जाए।

आज वर्षों बाद रानी को खुश देख कर अशोक व सुमन भी बहुत खुश थे। किन्तु वो भला कैसे ये समझ सकते थे कि रानी के स्वप्न में आने वाला उसका भाई उसका प्रियतम वास्तव में एक दिन उनके सामने भी आ जाएगा। रानी का स्वप्न हकीक़त का रूप भी ले लेगा एक दिन। वो सब तो इस बात को ऐसा वैसा ही समझते आ रहे थे।

"आज इतने वर्षों के बाद अपनी बेटी को इस तरह से खुश देख कर मैं बहुत ही खुश हूॅ सुमन।" सहसा अशोक ने कहा__"आॅखें तरस गईं थी इसके चेहरे पर इस तरह किन्हीं खुशियों को परवाज करते हुए देखने के लिए।"

"आप सच कहते हैं अशोक।" सुमन ने नम आॅखों से कहा__"मैं तो रात दिन ईश्वर से यही प्रार्थना करती थी कि मेरी बेटी के दुखों का तथा उसकी बीमारी का जल्द से जल्द अंत कर दे। कदाचित् ईश्वर ने मेरी वो प्रार्थना सुन ली है। पिछली रात इसने फिर से उसका स्वप्न देखा लेकिन इस बार उस स्वप्न की वजह से ये बीमार नहीं हुई बल्कि उसकी ही वजह से आज ये इतनी खुश दिख रही है। इसके पहले तो मैं उस सपने को हज़ारों बार कोसती थी कि उसकी ही वजह से मेरी बेटी बीमार हो जाती थी लेकिन आज उस सपने को कोसने की बजाय उसका शुक्रिया अदा करती हूॅ। उसी सपने ने मेरी बेटी को बीमार किया हुआ था और आज उसी ने मेरी बेटी के चेहरे को ताजे खिले गुलाब की मानिन्द खिला दिया है।"

"माॅ उन्होंने मुझसे कहा है कि वो आने ही वाले हैं मेरे पास।" सहसा रानी ने कहा, ये अलग बात है कि कहते वक्त अनायास ही उसके सुंदर और गोरे मुखड़े पर हया की वजह से लाली छाती चली गई थी, फिर भी उसने कहा था__"इस लिए मैं चाहती हूॅ कि इस घर को फूलों से सजा दिया जाए। और..और हर तरफ रास्तों में फूल बिछा दिये जाएं। मैं नहीं चाहती कि उनके स्वागत में किसी तरह की कोई कमी रह जाए।"


उसकी इस बात से अशोक और सुमन दोनो ही चौंक पड़े। पलट कर हैरानी से रानी की तरफ देखा दोनो ने। रानी के खिले हुए चेहरे पर अभी लालिमा छाई हुई थी, किन्तु उसके चेहरे पर दृढ़ आत्मविश्वास स्पष्टरूप से दृष्टिगोचर हो रहा था। अशोक और सुमन को समझ न आया कि रानी की इस बात पर वो क्या कहें? बात भी सही थी, क्योंकि वो सब तो हमेशा से यही समझते आ रहे हैं कि रानी का स्वप्न महज एक स्वप्न ही है यानी हकीक़त की दुनियाॅ से उसका कोई वास्ता ही नहीं है। रानी ने अभी जो कुछ भी करने के लिए कहा, उसे करना भी उनके लिए एक मजबूरी ही थी क्योंकि वो किसी कीमत पर नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी जो आज इतने वर्षों बाद इतनी खुश हुई है वो उनकी ही वजह से फिर से उसी ग़म में डूब जाए। इस लिए अशोक ने तुरंत ही घर के दोनो नौकरों को बुला कर कहा कि इस घर को फूल मालाओं से तुरंत ही सजाने के काम में लग जाओ। अशोक ने किसी को फोन कर उससे कुछ देर बातें की और फिर फोन रख दिया।

"लो बेटी अब वही होगा जैसा तुमने कहा है, यानी इस घर को फूलों से सजा दिया जाएगा और घर के बाहर भी रास्ते पर फूल बिछा दिये जाएॅगे।" अशोक ने मुस्कुरा कर कहा।

"ओह थैंक्यू सो मच पापा।" रानी ने खुश होकर कहा तथा साथ ही वह अशोक के गले लग गई। अशोक ने उसे अपने से छुपका कर प्यार से उसके सिर पर हाॅथ फेरा। उसकी आॅखें पलक झपकते ही भर आई थीं।
"मेरी प्यारी बेटी।" ये कहते हुए अशोक ने उसे खुद से अलग किया__"ऐसे ही खुश रहा कर तू। ताकि तुझे इस तरह खुश देख कर हम सब भी खुश रहा करें।"

"पर माॅ तो मुझसे खुश नहीं है न पापा।" रानी ने सहसा दुखी होकर कहा__"वो तो यही समझती हैं कि मेरी ही वजह से उनका बेटा लापता हुआ था। इस लिए वो मुझे ही इस सबका दोसी मानती हैं, और मुझे मनहूस कहती हैं। क्या मैं सच में मनहूस हूॅ पापा, क्या सच में मैने आपके बेटे को खा लिया है? आप तो जानते हैं कि मेरे तो सब कुछ वही हैं। मुझ पर और मेरी आत्मा पर सिर्फ उन्हीं का अधिकार है। और अब तो वो यहाॅ आ ही रहे हैं, आप खद उनसे पूछियेगा कि उनके लापता हो जाने के पीछे क्या मेरा कोई दोष था??"

अशोक का हृदय हाहाकार कर उठा था। उसने रानी की मासूम बातों को सुनकर उसे फिर से अपने सीने से ठुपका लिया। जबकि,,,,,

"जब वो आ जाएंगे।" रानी करुण स्वर में कहे जा रही थी__"तब शायद माॅ को भी लगे कि उनके बेटे के लापता होने में मेरा कोई हाथ नहीं था। वो माॅ को बताएंगे कि सच्चाई क्या थी?"

"बस कर मेरी बेटी।" अशोक का सीना छलनी सा होने लगा था, बोला__"मुझमें इतनी क्षमता और साहस नहीं है कि मैं तेरी ये सब बातें सुन सकूॅ। तेरी माॅ भले ही अपने बेटे के लिए तुझे दोषी मानती हो मगर मैं तो नहीं मानता न? मैं तो तुझसे दिलो जान से प्यार करता हूॅ न मेरी बच्ची। इस लिए बाॅकी सब तू भूल जा और इसी तरह हमेशा खुश रहा कर बेटी।"।

"जी पापा।" रानी ने अपने पिता से अलग हो कर तथा खुशी भरे भाव से कहा__"अब से तो मैं वैसे भी खुश ही रहूॅगी, क्योंकि वो मेरे पास हमेशा के लिए आ रहे हैं। अच्छा अब मैं चलती हूॅ पापा, मुझे भी तो उनके स्वागत के लिए बहुत सी तैयारियाॅ करनी है न???"

ये कह कर रानी खुशी खुशी तथा फुदकती हुई ऊपर अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। जबकि उसकी ये बातें सुन कर अशोक अवाक् सा होकर उसे जाते हुए देखता रह गया। उसके मन में हज़ारो तरह के विचार उभर कर उछल कूद मचाने लगे थे। वह समझ नहीं पा रहा था कि वह क्या करे? रानी का अपने ही भाई के प्रति इतना प्रेम और इतनी दीवानगी देख अशोक परेशान सा हो गया था। रानी अपने भाई का नाम नहीं लेती थी, तथा उसके लिए वो जिस तरह का संबोधन लगाती थी उससे साफ ज़ाहिर था कि उसने अपने भाई को अपना सब कुछ मान लिया था। ये सब बातें अभी सिर्फ घर तक सीमित थी इस लिए वह इसके लिए अभी तक निश्चिन्त था किन्तु अब और नहीं रह सकता था, क्योंकि कल को रानी की किसी से शादी भी होगी। जबकि वो तो अपने उस भाई के वापस आने की बात कर रही थी जिसका आज तेरह वर्षों से कहीं कोई पता ही नहीं था। अपने ही भाई से प्रेम करना आने वाले समय में बड़ी मुसीबत भी खड़ी कर सकता था।

"किस सोच में डूबे हैं अशोक?" सहसा सुमन ने अशोक की तरफ देखकर कहा था।
"सोच रहा हूॅ कि रानी का अपने ही भाई के प्रति एक प्रेमी प्रेमिका जैसा प्रेम आने वाले समय में हमारे सामने कितनी बड़ी परेशानी का सबब बनने वाला है।" अशोक ने धीर गंभीर भाव से कहा__"अभी तो इस बात को सिर्फ हम घर के सदस्य ही जानते हैं किन्तु रानी के दिलो दिमाग़ में अपने ही भाई के प्रति जिस तरह का प्रेम और उस प्रेम में दीवानगी दिख रही है उससे आगे क्या होगा? ये बात जब घर की चार दीवारी के बाहर लोगों तक पहुॅचेगी तब उनकी नज़र में हमारी क्या इज्ज़त रह जाएगी? लोग क्या सोचेंगे कि हमारी बेटी अपने ही भाई से दीवानगी की हद तक प्रेम करती है? जो कि सरासर ग़लत है, ये समाज और समाज में रहने वाले ये लोग सगे भाई बहन के बीच उत्पन्न हुए इस रिश्ते को पाप का ही नाम देंगे सुमन।"

"इस सबके बारे में ये सब सोच कर ऐसी बातें करने का अब समय नहीं रह गया है अशोक।" सुमन ने गंभीरता से कहा__"अब तो ये वैसी ही बात हो चुकी है कि जैसे कमान से निकल चुका तीर कभी वापस नहीं आ सकता। हमारी बेटी अपने भाई के प्रेम में उस हद तक जा चुकी है जहाॅ से उसको वापस यथार्थ के रिश्ते और दुनियाॅ में नहीं लाया जा सकता। अगर ऐसा किया तो संभव है कि हम अपनी इस बेटी को खो देंगे।"

"लेकिन सुमन जिस रिश्ते को ये देश ये कानून तथा ये समाज मान्यता नहीं देता और उसे ग़लत करार देता है तो हम कैसे उस रिश्ते को आगे बढ़ने दे सकते हैं?" अशोक ने कहा__"तुम ये बात अच्छी तरह जानती हो कि भाई बहन के बीच ऐसा रिश्ता नहीं हो सकता, बल्कि ऐसे रिश्ते के बारे में सोचना भी पाप है फिर हम कैसे रानी को इस रिश्ते के प्रति इस हद तक जाने दे सकते हैं?"

"ये बात तो पहले ही सोचनी थी।" सुमन ने कहा__"मैने तो शुरू में ही आपको इस सबके बारे में अवगत करा दिया था किन्तु तब आपने ये कह कर मेरी बातों को टाल दिया था कि अभी ये बच्ची है, ना समझ है, जब बड़ी हो जाएगी तो खुद ही इसे ज्ञान हो जाएगा कि अपने ही भाई से इसका ऐसा प्रेम करना ग़लत है। जबकि होना तो यही चाहिये था कि रानी के दिल में अपने ही भाई के लिए प्रेम के इस अंकुर को पनपने से पहले ही उसे समझाया जाता तथा उस अंकुर को वहीं समाप्त कर दिया जाता। किन्तु आपने ऐसा कुछ नहीं किया और ना ही इसके लिए मुझे कुछ करने दिया। आज अब इसके लिए परेशान होने का क्या मतलब हुआ? नहीं अशोक....अब कोई कुछ नहीं कर सकता। ये तो अच्छा है कि रानी अपने जिस भाई से प्रेम करती है वो खुद यहाॅ नहीं है और कौन जाने वो इस दुनियाॅ में है भी या नहीं वरना बहुत पहले ही लोगों को इस सबका पता चल जाता। और हम किसी के सामने मुह दिखाने के काबिल नहीं रह जाते"

"लेकिन परेशानी तो है ही सुमन।" अशोक ने चिन्ता ब्यक्त की__"भले ही राज का कहीं कोई अता पता नहीं है लेकिन रानी तो फिर भी उससे प्रेम करती है। उसका ये प्रेम कल के लिए गंभीर मुसीबत खड़ी कर देगा जब रानी की किसी से शादी होगी। हम इस बात का बखूबी आभास कर सकते हैं कि रानी किसी दूसरे लड़के से शादी करेगी भी या नहीं???"

"ग़लती तो हुई है अशोक।" सुमन ने गंभीरता से कहा__"और बहुत बड़ी ग़लती हुई है। इसके जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ आप हैं।"

"मैं मानता हूॅ सुमन कि मुझसे ही ये ग़लती हुई है।" अशोक ने कहा__मैं तो बस अपनी बेटी को किसी भी तरह से खुश देखना चाहता था। किसी बात के लिए आपत्ति जता कर या मना करके उसे और दुखी नहीं करना चाहता था। और फिर भला मैं क्या जानता था कि आगे चल कर कभी ऐसा भी हो जाएगा? हम सब तो उसके सपने को महज सपना ही समझते थे जो कि सच भी था। हमारी बेटी उस सपने की वजह से हर बार बीमार हो जाती थी। अब ऐसा तो हो नहीं सकता था कि वो ऐसा कोई सपना ही न देखती, क्योंकि सपनों पर भला उसका क्या ज़ोर हो सकता था? वह जब अपने सपने के बारे में हमसे बताती तो हम यही समझते कि ये सब तो बस सपना ही है। भला मुझे क्या पता था हमारी बेटी उन सपनो को ही सच मान कर सपने में दिख रहे अपने ही भाई से इस कदर प्रेम करने लगेगी???"

"ख़ैर आप ये बताइये कि अब आप क्या चाहते हैं?" सुमन ने पूछा।
"मैं ये चाहता हूॅ कि तुम रानी को प्यार से समझाओ।" अशोक ने कहा__"और ये तुम कर सकती हो। क्योंकि रानी सिर्फ तुम्हारी ही बात समझ सकती है और उसे मान भी सकती है।"

"अब ऐसा संभव तो नहीं है अशोक लेकिन फिर भी मैं कोशिश करूॅगी कि रानी को समझा बुझा कर उसे हकीक़त का एहसास दिला सकूॅ।" सुमन ने कहा।

"मुझे पूर्ण विश्वास है सुमन।" अशोक ने कहा__"कि तुम ये कर लोगी।"

कुछ देर ऐसी ही कुछ और बातें हुई फिर अशोक वहाॅ से चला गया। जहाॅ एक और धमाका उसका इन्तज़ार कर रहा था।

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वहीं एक तरफ शैतानी दुनियाॅ में......
इस वक्त किंग विराट का दरबार लगा हुआ था। किंग विराट अपने ऊॅचे सिंहासन पर बैठा हुआ था।
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उसके सामने तथा अगल बगल की कतारों में रखी कुर्सियों पर उसके कुछ खास लोग भी बैठे हुए थे।

"तो तुम इंसानी दुनिया से ज्योतिश और भविश्य बताने वाले उस महापंडित को अपने साथ लाए हो?" सिंहासन पर बैठे शैतानों के राजा ने अपने एक तरफ खड़े एक वैम्पायर से कहा था।

"जी सम्राट।" उस वैम्पायर ने कहा__"मैं उसे अपने साथ ही लाया हूॅ। यदि आपका हुकुम मिले तो उस महापंडित को अभी आपके सामने हाज़िर करूॅ?"
"अच्छी बात है नील।" विराट ने कहा__"तुम उसे हमारे सामने हाज़िर करो। हम खुद उस महापंडित से बात करेंगे।"

"मैं अभी उसे आपके सामने हाज़िर करता हूॅ सम्राट।" नील नाम के वैम्पायर ने कहा और दरबार के बाहर की तरफ बढ़ गया। कुछ ही देर में वह वापस आया। उसके साथ में वो महापंडित भी था जिसकी नील बात कर रहा था।
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विराट ने इंसानी दुनियाॅ से लाए गए उस पंडित को ध्यान से देखा।

"तो ये है वो महापंडित।" विराट ने रौबदार आवाज़ में कहा__"जिसके बारे में तुम बता रहे थे कि ये भूत भविश्य सब जानता है। ये भी कि यह किसी के भी बारे में एक पल का भी समय जाया किये बिना बता देगा कि फला ब्यक्ति कहाॅ पर है??"

"जी सम्राट।" नील ने कहा__"इंसानी दुनिया में इसके बारे में सब यही बताते हैं।"
"अच्छी बात है।"विराट ने कहने के साथ ही महापंडित की तरफ देखा__"तो तुम किसी के भी बारे में उसका सम्पूर्ण परिचय बता सकते हो??"

"हाॅ ये सत्य है कि मैं किसी के भी बारे में उसका सबकुछ बता सकता हूॅ।" उस महापंडित ने कहा__"ये भी कि तुम कौन हो, कहाॅ से आए हो, क्या चाहते हो, इतना ही नहीं मैं तो तुम्हारा भविश्य भी बता सकता हूॅ।"

"बहुत खूब।" विराट हॅसा__"तो फिर बताओ कि मैंने जिनकी तलाश में इतने वर्ष गुज़ार दिये वो लोग धरती पर इस वक्त कहाॅ हैं?"
"तुमने जिनकी तलाश में इतने वर्ष ब्यतीत कर दिये वो इस समय हिमालय में हैं।" उस महापंडित ने कहा__"किन्तु वो सब अब हिमालय से वापस आने वाले हैं। तुम्हारी दोनो बेटियाॅ और तुम्हारा बेटा तथा साथ में तुम्हारे बेटे का मित्र भी अपने साथ उस बालक को लेकर आने वाले हैं जिस बालक की तुम्हें अति आवश्यकता है।"

"हम खुश हुए।" विराट ने बड़ी प्रसन्नता के साथ कहा__"यकीनन तुम सब बता सकते हो पंडित। अब ये भी बताओ कि हमे जिस बालक की अति आवश्यकता है वो हमें कब और कैसे प्राप्त होगा?"

"ये तुम्हारे लिए असंभव है शैतानों के सम्राट क्योंकि उस बालक को प्राप्त करना कोई सरल काम नहीं है।" उस महापंडित ने ठोस लहजे में कहा__"दूसरी बात, उस बालक की रक्षा खुद तुम्हारे बच्चे कर रहे हैं। तुम्हारे वो सभी बच्चे अब पहले की तरह शैतान नहीं रहे बल्कि अब वो भी साधारण मनुष्य बन गए हैं।"

"ये क्या कह रहे हो तुम पंडित?" विराट बुरी तरह चौंका था, बोला__"मेरे वो बच्चे शैतानों से मनुष्य बन गए?? ये कैसे संभव हो सकता है भला?? नहीं नहीं तुम इस बारे में बिलकुल झूॅठ बोल रहे हो।"

"मुझे झूॅठ बोलने की भला क्या आवश्यकता है सम्राट?" महापंडित ने कहा__"मैंने तो वही बताया है जो सच है।"

"लेकिन ये असंभव है पंडित।" विराट ने पुरज़ोर लहजे में कहा__"हम कैसे तुम्हारी इस बात का यकीन करें?"
"तुम्हारे यकीन न करने से सच्चाई बदल नहीं जाएगी सम्राट।" महापंडित ने कहा__"पर मैं ये बता सकता हूॅ कि ये कैसे संभव हुआ है?"

"हाॅ बिलकुल बताओ पंडित।" विराट ने उत्सुकता से पूॅछा__"हम भी जानना चाहते हैं कि ये असंभव संभव कैसे हुआ?"
"ये सब ईश्वर की मेहरबानियों से हुआ है सम्राट।" महापंडित ने कहा__"हिमालय में वो सब उस स्थान पर थे जहाॅ पर एक से बढ़ कर एक ऋषि मुनि तथा सिद्ध महापुरुस अदृश्य रूप में रहते हैं। उन्हीं महापुरुसों की वजह से तुम्हारे बच्चे शैतान से आज मनुष्य बन गए हैं। वहाॅ पर उन्हें जो महर्षि गुरू रूप में मिले थे वो सब जानते थे। इसी लिए उन्होने ये सब किया क्योंकि यही ईश्वर की इच्छा थी।"

"तो ये बात है।" विराट ने कहा__"ये सब उस महर्षि और ईश्वर की कृपा से संभव हुआ है। ख़ैर, हुआ जो हुआ। मुझे ये बताओ पंडित कि उस बच्चे को मैं कैसे प्राप्त कर सकता हूॅ?"

"तुम उस बच्चे को प्राप्त नहीं कर सकते सम्राट।" महापंडित ने कहा__"क्योंकि उसकी रक्षा में तुम्हारे ही बच्चे तैनात हैं। तुम अपने बल और अपनी शैतानी शक्ति से भले ही अपने बच्चों को परास्त कर दो किन्तु उस बालक का तुम बाल भी बाॅका नहीं कर सकोगे, क्योंकि उसके पास असीम ईश्वरी शक्तियाॅ हैं। इस धरती पर कोई भी उसका सामना नहीं कर सकता।"

"ये बात तो हम भी जानते हैं पंडित।" विराट ने कहा__"हम जानते हैं कि सारे संसार में कोई ऐसा शक्तिशाली नहीं है जो उस बालक से मुकाबला कर सके। इसी लिए तो हम उसे प्राप्त करना चाहते हैं, ताकि उसके ही द्वारा हम अपने सपनों को पूरा कर सकें। तुम हमें उस दिव्य और परम् शक्तिशाली बालक को हासिल करने का कोई उपाय बताओ।"


वो महापंडित कुछ देर सोचता रहा इसके बाद बोला__"एक उपाय है सम्राट।"
"सीघ्र बताओ पंडित।" विराट ने उतावलेपन से कहा__"अति सीघ्र उस उपाय को बताओ जिसके द्वारा हम उस बालक को जल्द से जल्द हासिल कर सकें।"

"जैसा कि मैं पहले ही बता चुका हूॅ कि वो बालक तुम्हारे ही बच्चों के साथ हिमालय से बहुत जल्द निकलने वाला है।" महापंडित ने कहा__"इस लिए तुम्हें भी उनके पास पहुॅच जाना चाहिए। उपाय ये है कि तुम किसी तरह अपनी दोनो बेटियों को उनके बीच से निकाल कर यहाॅ अपनी शैतानी दुनियाॅ में ले आओ।"

"इससे क्या होगा पंडित?" विराट ने ना समझने वाले भाव से पूछा__"भला मेरी बेटियों को यहाॅ ले आने से क्या होगा?"

"बहुत कुछ होगा सम्राट।" महापंडित ने मुस्कुराकर कहा__"तुमको ये पता नहीं कि तुम्हारी बेटियाॅ उस बालक के लिए कितना महत्व रखती हैं।"

"हम कुछ समझे नहीं पंडित।" विराट ने उलझनपूर्ण भाव से कहा__"ज़रा साफ साफ बताओ कि तुम कहना क्या चाहते हो?

"बात दरअसल ये है सम्राट कि तुम्हारी दोनो बेटियाॅ उस बालक की माॅ हैं।" महापंडित ने कहा__"कहने का मतलब ये कि तुम्हारी दोनो बेटियों और उस बालक के बीच माॅ और बेटे का ऐसा रिश्ता बन चुका है। इस माॅ बेटे के रिश्ते की वजह से दोनो ही एक दूसरे के बिना अब रह नहीं सकते। अब तुम खुद इस बात पर विचार कर सकते हो कि अगर तुम अपनी दोनो बेटियों को यहाॅ ले आते हो तो उस सूरत में उस बालक की क्या प्रतिक्रिया होगी? उस सूरत में तुम उस बालक को किसी भी बात के लिए मजबूर कर सकते हो।"

"वाह! बहुत खूब पंडित।" विराट ने प्रसन्नता से कहा__"सचमुच तुम्हारा ये उपाय सराहनीय है। किन्तु इसमें भी एक सवाल है, और वो सवाल ये है कि जब हम अपनी बेटियों को यहाॅ लाकर उन्हें कैद कर देंगे तो उस बालक की प्रतिक्रिया कहीं अगर ऐसी हो गई कि वह अपनी माॅ के लिए हमसे ही जंग कर दे तो??? ये तो तुमने ही कहा था न कि उस बालक का मुकाबला संसार में कोई नहीं कर सकता। इस लिए अगर उसने अपनी माॅ के लिए हमसे ही युद्ध छेड़ दिया तब हम क्या कर सकेंगे? हम तो किसी भी तरह उससे जीत नहीं सकेंगे। कहीं ऐसा न हो जाए कि तुम्हारा ये उपाय हम पर ही भारी पड़ जाए।"

"अब ये तो तुम पर और तुम्हारी कूटनीति पर निर्भर करता है सम्राट कि तुम इस सबके बाद कैसी नीति अपनाते हो अथवा कैसे उस बालक पर हावी हो सकते हो?" महापंडित ने कहा__"तुमने उपाय का पूछा था सो मैने तुम्हें उपाय बता दिया है। अब आगे कैसे क्या करना है इसके बारे में सोचना तुम्हारा काम है।"

"अच्छी बात है पंडित।" विराट ने कहा__"तुमने यकीनन हमें ये सब बता कर खुश कर दिया है। तुम हमारे लिए बड़े ही काम के आदमी हो इस लिए अगर तुम चाहो तो तुम यहाॅ हमारी दुनियाॅ में सुखपूर्वक रह सकते हो।"

"मैं अपनी दुनियाॅ में ही ठीक हूॅ सम्राट।" उस महापंडित ने कहा__"अब मुझे वापस मेरी दुनियाॅ में जाने की आज्ञा दो।"
"अच्छी बात है पंडित।" विराट ने कहा__"लेकिन तुम हमें इस बात का वचन दो कि जब भी हमें किसी प्रकार की तुम्हारी ज़रूरत पड़ेगी तो तुम हमारे पास ज़रूर आओगे।"

महापंडित ने विराट को इस बात के लिए वचन दे दिया। उसके बाद उसे वापस उसकी दुनिया में भेजने के लिए नील को कह दिया गया। किन्तु वहाॅ पर मौजूद कोई भी शैतान ये नहीं जान पाया था कि अब तक यहाॅ पर जो भी बातें हुई थी उन बातों को किसी के दोनो कानों ने भली भाॅति सुन लिया था और फिर मुस्कुराते हुए वह वहाॅ से गायब हो गया था।



दोस्तो अपडेट हाज़िर है,,,,,
आप सबकी प्रतिक्रिया का इन्तज़ार रहेगा।

दोस्तो समय की कमी के कारण मैं अपडेट नहीं दे पाता हूॅ। मैं ये भी जानता हूॅ कि आप सब बड़ी बेसब्री से अपडेट की प्रतीक्षा करते हैं। मगर क्या करूॅ दोस्तो...मेरे बस में ही नहीं है कि जल्दी जल्दी अपडेट दे सकूॅ।

धन्यवाद,,,,,,,,
Bahot shaandaar update dost
 

Naik

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अब तक,,,,,,

"अब ये तो तुम पर और तुम्हारी कूटनीति पर निर्भर करता है सम्राट कि तुम इस सबके बाद कैसी नीति अपनाते हो अथवा कैसे उस बालक पर हावी हो सकते हो?" महापंडित ने कहा__"तुमने उपाय का पूछा था सो मैने तुम्हें उपाय बता दिया है। अब आगे कैसे क्या करना है इसके बारे में सोचना तुम्हारा काम है।"

"अच्छी बात है पंडित।" विराट ने कहा__"तुमने यकीनन हमें ये सब बता कर खुश कर दिया है। तुम हमारे लिए बड़े ही काम के आदमी हो इस लिए अगर तुम चाहो तो तुम यहाॅ हमारी दुनियाॅ में सुखपूर्वक रह सकते हो।"

"मैं अपनी दुनियाॅ में ही ठीक हूॅ सम्राट।" उस महापंडित ने कहा__"अब मुझे वापस मेरी दुनियाॅ में जाने की आज्ञा दो।"
"अच्छी बात है पंडित।" विराट ने कहा__"लेकिन तुम हमें इस बात का वचन दो कि जब भी हमें किसी प्रकार की तुम्हारी ज़रूरत पड़ेगी तो तुम हमारे पास ज़रूर आओगे।"

महापंडित ने विराट को इस बात के लिए वचन दे दिया। उसके बाद उसे वापस उसकी दुनिया में भेजने के लिए नील को कह दिया गया। किन्तु वहाॅ पर मौजूद कोई भी शैतान ये नहीं जान पाया था कि अब तक यहाॅ पर जो भी बातें हुई थी उन बातों को किसी के दोनो कानों ने भली भाॅति सुन लिया था और फिर मुस्कुराते हुए वह वहाॅ से गायब हो गया था।


अब आगे,,,,,,,

शैतानों के पहले किंग यानी सोलेमान की पत्नी मारिया सारी बातें सुनने के बाद दबे पाॅव विराट के राजमहल से लौट आई थी। अपने महल में आकर वह उस जगह पहुॅची जहाॅ पर सोलेमान को बड़ी हिफाज़त से एक बड़े से संदूख के अंदर रखा गया था।

मारिया ने संदूख को खोल कर वहीं सोलेमान के सिर के पास एक स्टूल रख कर बैठ गई। संदूख के अंदर सोलेमान पत्थर के रूप में लेटा हुआ था। मारिया कुछ देर तक उसे अपनी छलक आई आॅखों से देखती रही तथा उसके सिर पर प्यार और स्नेह की भावना से हाथ फेरती रही।

"आप यहाॅ इस तरह पत्थर बने पड़े हुए हैं सम्राट।" मारिया अधीर भाव से किन्तु भारी आवाज़ में कह रही थी__"जबकि उधर आपका मित्र अपके लिए एक ऐसी कब्र खोदने के इन्तजाम में लगा हुआ है जिसमें आपको हमेशा के लिए दफना दिया जाए। देख रहे हैं न आप? आपके मित्र ने आपकी मित्रता का ये सिला देने का सोच रखा है। वो नहीं चाहता कि आप फिर से जीवित हो जाएं, और अपने राज्य को अपने उस मित्र से वापस ले लें। कितना समझाती थी मैं आपको कि आपका मित्र विराट अच्छे नेचर का नहीं है बल्कि छल कपट का जीता जागता एक पुतला है मगर आपने कभी मेरी इन बातों पर यकीन नहीं किया। आप हमेशा यही कहते थे कि आपका मित्र इस दुनिया में मित्रता का एक उदाहरण स्वरूप है।" मारिया कहते कहते कुछ पल के लिए ख़ामोश हो गई।

मारिया के चुप होते ही इतने बड़े महल में मौत जैसा सन्नाटा छा गया। इस महल में मारिया के सिवा दूसरा कोई नहीं रहता था। हलाॅकि सम्राट विराट ने सोलेमान के पत्थर बनते ही मारिया की देख रेख और उसकी उचित सेवा के लिए बहुत से मेल और फिमेल वैम्पायर्स रख दिये थे किन्तु मारिया ने ये कह कर उन सबको हटवा दिया था कि वो अपने पत्थर बन गए पति के साथ अकेली ही यहाॅ रहेगी। उसे अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए किसी की आवश्यकता नहीं है। विराट भला उसकी इन बातों को कैसे टाल देता इस लिए फिर वैसा ही हुआ जैसा मारिया चाहती थी।

दरअसल मारिया को विराट की नीयत पर पहले से ही कोई भरोसा नहीं था इस लिए जब विराट ने उसके लिए ये सब किया तो मारिया को लगा कि विराट ये सब उस पर नज़र रखने के लिए कर रहा है। इस ख़याल की वजह से मारिया ने इस सबके लिए मना कर दिया था। दूसरी बात ये थी कि वह यहाॅ अकेली रह कर ही उस बालक के बारे में पता करना चाहती थी। वह नहीं चाहती थी इस सबकी जानकारी विराट को हो। जबकि महल में बहुत से वैम्पायर्स के रहने पर उसे हमेशा ये अंदेशा रहता कि उसकी गतिविधियों की जानकारी कोई न कोई वैम्पायर विराट को ज़रूर दे देगा।

"आपको तो ये भी एहसास नहीं हुआ कभी कि आपका मित्र आपकी ही पत्नी पर हमेशा बुरी नीयत रखता था।" मारिया ने धीर गंभीर भाव से पुनः कहना शुरू किया__"वो तो अच्छा हुआ कि आपने अपनी सारी शक्तियाॅ मुझे दे दी थी जिसके डर से उसने कभी मुझ पर हाथ डालने की कोशिश नहीं की वरना वह आपके पत्थर बनते ही मुझे अपनी रखैल बना लेता। वो जानता है कि आपकी सारी शक्तियाॅ मेरे पास हैं इसी लिए उसने कभी मुझ पर ग़लत नीयत से हाथ डालने का दुस्साहस नहीं किया। उसका बस ही नहीं चलता इस बात पर कि वो मेरे रहते आपको कोई नुकसान पहुॅचा सके। वरना वो तो कब का आपको समाप्त भी कर चुका होता।" मारिया ने कहने के साथ ही झुक कर पत्थर बने सोलेमान के होठों पर चूमा और फिर बोली__"फिक्र मत कीजिए सम्राट। अब वो समय बहुत जल्द आने वाला है जब आप फिर से जीवित हो जाएंगे। आप नहीं जानते नाथ कि आपसे प्यार करने के लिए मैं कितना तड़प रही हूॅ। पाॅच सौ वर्ष बीत गए, मगर इन पाॅच सौ वर्षों में ऐसा कोई दिन ऐसा कोई पल नहीं गया जब मैने आपकी याद में आॅसू न बहाये हों। आपकी आगोश मे फिर से समाने के लिए मेरा मन और मेरा ये जिस्म कितना ब्याकुल हो चुका है, आप इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। आपके लिए इतनी मोहब्बत भला दूसरा कौन कर सकेगा इस दुनिया में?? हाॅ नाथ, ये मेरी मोहब्बत ही है जो दिन प्रतिदिन और भी बढ़ती जा रही है। कहीं ऐसा न हो कि मैं आपकी इस मोहब्बत में किसी दिन पागल हो जाऊॅ।" मारिया फूट फूट कर रो पड़ी। पत्थर बने सोलेमान के शरीर से लिपट गई वह। काफी देर तक यूॅ ही लिपटी वह रोती रही फिर वैसे ही लिपटे हुए उसने कहा__"नाथ, जब वो दिव्य बालक मुझे मिल जाएगा तब उससे मुझे आपके सामने ही संभोग करना पड़ेगा और उसी बालक के वीर्य को आपके इस पत्थर बने शरीर पर छिड़कना पड़ेगा। तभी आप इस पत्थर शरीर से जीवित हो पाएंगे। ये सब तो आप भी जानते हैं नाथ, लेकिन कैसे कर पाऊॅगी मैं ऐसा? किसी दूसरे पुरुस से संभोग करना कैसे मुमकिन होगा मेरे लिए? मेरा तन मन सब कुछ सिर्फ आपका है सम्राट। आपकी मुक्ति का ये कैसा अनुचित उपाय बताया था उस महर्षि ने? कैसे वो किसी पतिव्रता पत्नी को इस तरह किसी और से संभोग करने पर मजबूर कर सकते हैं नाथ? ये कैसा विधान है इन ऋषियों का?"

पत्थर बना सोलेमान भला मारिया की इन सब बातों या सवालों का क्या जवाब देता? लेकिन मारिया की ये बातें और उसका ये करुण विलाप कोई न कोई तो ज़रूर सुन रहा होगा। ईश्वर की बनाई इस सृष्टि में ऐसे भी प्राणी पैदा हो जाते हैं जो शैतान की योनि में होकर भी ऐसे महान बन जाते हैं। मारिया उन महान प्राणियों का एक उदाहरण थी। वो शैतान की योनि में थी लेकिन इस योनि में भी उसका मन उसकी आत्मा जैसे पवित्र थी।

"मुझे माफ़ करना नाथ।" मारिया गंभीरता से कह रही थी__"मुझे आपको फिर से जीवित करने के लिए ये कार्य करना ही पड़ेगा। लेकिन आप तो जानते हैं न कि मेरे मन मंदिर में सिर्फ आप ही हैं, दूसरा कोई नहीं। मुझे पता चल चुका है सम्राट कि वो बालक जल्द ही हिमालय से आ रहा है। इस लिए मैं उसे रास्ते में ही किसी तरह अपने बस में कर लूॅगी, और उसे यहाॅ ले आऊॅगी। आपको फिर से जीवित करने के लिए ये काम मैं ज़रूर करूॅगी नाथ, ये मेरा वचन है आपसे।"
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उधर सम्राट विराट ने उस बालक यानी राज को किसी भी कीमत पर हासिल करने के लिए बहुत कुछ किया हुआ था। उसने वैम्पायर्स की भारी सेना तैयार कर ली थी। इतना ही नहीं उसने इस सबके लिए उन शैतानों को भी शामिल कर लिया था जो खुद कभी उसके ही सबसे बड़े दुश्मन हुआ करते थे।

विराट ने समझौता कर इसमें वेयरवोल्फ के किंग अनंत को भी अपने साथ मिला लिया था। सम्राट अनंत ने शर्त रखी थी कि वो विराट की बेटी मेनका से अपने बेटे जयंत की शादी करेगा। विराट को अनंत की इस शर्त से कोई आपत्ति नहीं थी इस लिए उसने अनंत की शर्त को स्वीकार कर लिया था। अब दोनो की शक्तियाॅ मिल चुकी थी राज एण्ड पार्टी से भिड़ने के लिए। विराट को किसी भी सूरत में राज को हासिल करना था। अपने बच्चों को तो वह वैसे भी इस बात के लिए दण्ड देना चाहता था कि उन्होने उसको बिना बताए और अपनी मर्ज़ी से उस बालक यानी राज को उसकी शैतानी दुनिया से ले जाकर हिमालय पहुॅच गए थे।
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तो एक तरफ महेन्द्र और रंगनाथ माधवगढ़ के लिए रवाना हो गए थे। जहाॅ पर उन्हें अशोक की बेटी रानी को महाशैतान के लिए उठाना था। माधवगढ़ पहुॅच कर वो दोनो सबसे पहले घर गए। महेन्द्र सिंह के घर में पहुॅच कर उन लोगों ने देखा कि महेन्द्र सिंह की बेटी पूनम आई हुई थी। महेन्द्र सिंह अपनी बेटी को यहाॅ देख कर हैरान रह गया था। उसकी बेटी अब काफी जवान दिख रही थी।
ईश्वर की बनाई हुई खूबसूरत रचना थी वह। जिसकी सुंदरता में वो खुद कुछ पल के लिए सम्मोहित सा हो गया था।
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पूनम ड्राइंगरूम में रखे सोफे पर कानों में हेडफोन लगाए मोबाइल से गाने सुन रही थी। महेन्द्र सिंह पर नज़र पड़ते ही उसके हाव भाव बदल गए। वह तुरंत ही सोफे से उठ कर ऊपर अपने कमरे की तरफ तेज़ी से बढ़ गई।

अपनी बेटी को इस तरह उससे बिना कुछ बोले चले जाते देख महेन्द्र सिंह को झटका सा लगा। उसे इस बात की बड़ी तक़लीफ हुई कि उसकी बेटी ने उससे बात तक नहीं की और उसे देखते ही इस तरह ऊपर चली गई जैसे अगर वह यहाॅ पर रुकी रहती तो उसका बाप उसे नोंच कर खा जाता।

महेन्द्र सिंह कुछ कह न सका, जबकि उसके बगल से ही खड़ा रंगनाथ उसके कंधे पर सहानुभूति के अंदाज़ से अपना हाॅथ रख हल्का सा दबा दिया। दोनो पिछले एक हप्ते से कृत्या के पास थे। दोनो के चेहरों पर दाढ़ी मूॅछें बढ़ गई थी। हुलिया बड़ा ही अजीब सा हो गया था दोनो का। ऐसा जैसे किसी ने उन्हे गीले कपड़ों की तरह निचोड़ लिया था। बात भी सही थी, निचोड़ ही तो लिया था कृत्या ने उन्हें। शाम सुबह दोनो वक्त वो दोनो कृत्या की हवस को मिटाने की कोशिश करते थे। मगर कृत्या तो फिर कृत्या ही थी जिसमें हवस की आग इस तरह कूट कूट कर भरी हुई थी मानो हवस का अथाह सागर समाहित हो उसमे। जो कभी खत्म ही नहीं हो सकता था।

महेन्द्र और रंगनाथ दोनो ही अपने अपने कमरों की तरफ बढ़ गए। जहाॅ पर उन्हें अपना हुलिया दुरुस्त करना था। पूनम की बेरुखी ने महेन्द्र सिंह के दिल को ठेस ज़रूर पहुॅचाई थी किन्तु वह जानता था कि ये सब उसकी पत्नी मोहिनी और बेटा पूरन की वजह से ही हुआ था। उसका खुद का कोई दोष नहीं था किन्तु हाॅ इस सबमें ख़ामोश रहना ही जैसे उसका सबसे बड़ा गुनाह हो गया था।

पूनम गर्मियों की छुट्टियों में यहाॅ आई थी, वो भी अपने मामा जी के साथ। वह आना तो नहीं चाहती थी किन्तु मामा जी की वजह से उसे आना पड़ा था। उसने आज तक किसी को नहीं बताया था कि वह क्यों अपने माता पिता के पास नहीं रहना चाहती थी। वह हमेशा ही इस सवाल पर अपने होंठ सिल लेती थी।

अपना हुलिया सही करने के बाद महेन्द्र और रंगनाथ दोनो ही घर से निकल गए। ये बड़ी अजीब बात थी कि किसी ने उनसे कोई बात नहीं की थी। महेन्द्र का साला इस वक्त घर पर था नहीं और उसकी बीवी व बेटा कंपनी में थे। मोहिनी कभी कंपनी नहीं जाती थी किन्तु घर पर पूनम थी इस लिए वह अपने बेटे के साथ कंपनी चली गई थी। घर के नौकर चाकर से ज्यादा इन सबका मतलब नहीं होता था।

महेन्द्र और रंगनाथ दोनो ही अशोक के घर की तरफ जाने का विचार किया। मकसद वही था अशोक की बेटी को उठाना।
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अशोक जब अपने घर पहुॅचा तो पूरे घर को सुनसान पाया किन्तु अंदर कहीं से किसी के बोलने की कुछ आवाज़ें भी सुनाई दी उसे। शाम हो रही थी इस वक्त और इस वक्त घर के सभी नौकर अपना अपना काम कर रहे होते थे। किन्तु आज ऐसा नहीं था। बल्कि घर में कहीं किसी नौकर का नामों निशान तक न था। हलाकि अशोक के लिए ये कोई नई बात नहीं थी। वह जानता था कि ये सब उसकी पहली पत्नी रेखा की वजह से होता था। रेखा अपने बेटे की वजह से आज कल अर्धपागल अवस्था को पहुॅच चुकी थी। वह कब किसके साथ क्या कर दे कोई नहीं समझ सकता था। आज भी ऐसा ही हुआ था। अभी कुछ देर पहले ही रेखा ने बड़े ही अच्छे मूड में होने का सबूत दिया था। उसने ऐसा ज़ाहिर किया जैसे वह एकदम ठीक है। उसने घर के सभी नौकरों को कह दिया कि वो सब घर से कुछ ही दूरी पर बने सर्वेन्ट क्वार्टर पर अपने अपने कमरों में चले जाएं। आज वह घर का सारा काम खुद करेगी क्योंकि आज उसका वर्षों का खोया हुआ बेटा आ रहा है। इस लिए वह उसके स्वागत के लिए सब कुछ अपने हाॅथों से ही करेगी। रेखा की इस बात पर नौकर भला क्या कहते? उन्हें तो अशोक का शख़्त आदेश था कि रेखा की कोई भी बात टाली न जाए। इस लिए रेखा के ऐसा कहते ही सारे नौकर चाकर घर से चले गए थे। नौकरों को रेखा की हालत का बखूबी पता था किन्तु आज उन लोगों के लिए भी एक नई बात थी और वो ये थी कि रेखा ने आज पहली बार ये कहा था कि आज उसका बेटा आ रहा है। और जितने आत्मविश्वास तथा स्वाभाविक रूप से कहा था उससे ऐसा लग रहा था जैसे रेखा की बात एकदम सच ही हैं। पर अर्धपागल की किसी बात का भला क्या भरोसा? ये नौकर भी समझते थे इस लिए उन लोगों ने कहा कुछ नहीं और चुपचाप चले गए थे अपने अपने कमरों में।

नौकरों के जाते ही रेखा ने बड़ी खुशी से घर का सारा काम किया और एक से बढ़ कर एक पकवान बनाया। इतना सबकुछ उसने अकेले ही किया और बहुत ही कम समय में किया। उसके बाद वह अपने कमरे में पहुॅची और अपने कमरे को इस तरह सजाया जैसे उसका बेटा इसी कमरे में आकर रहेगा उसके पास।

ये सब करने के बाद रेखा ने खुद को भी अच्छी तरह किसी दुल्हन की तरह सजाया। उसके बाद वह फूलों से सजे बड़े से बेड पर जाकर बैठ गई। तकिये के नीचे से उसने फोटुओं का एक एलबम निकाला और उसे खोल कर अपने बेटे की उन तस्वीरों को देखने लगी जिनमें राज पैदा होने से लेकर पाॅच साल तक का था। राज की हर तस्वीर को वो बड़े प्यार से देखती उन्हें चूमती और फिर उन्हें अपने सीने से लगा लेती। उसकी आॅखों से आॅसू बहने लगते।

"अब जल्दी से आ जा मेरे बेटे।" रेखा भर्राए गले से कह रही थी__"अब तेरे बिना मुझसे एक पल भी जिया नहीं जाता। मैं तुझसे इतना प्यार करती हूॅ और तू.....तू अपनी माॅ को इतना सताता है, इतना रुलाता है? क्या तुझे अपनी इस दुखियारी माॅ पर थोड़ा सा भी तरस नहीं आता? इतना क्यों तड़पाता है मुझे? भला मैंने तेरा क्या बिगाड़ा है रे...जो तू मुझे हर पल इस तरह दुख देता रहता है? मैं तो तेरी माॅ हूॅ न...तेरा कुछ बिगाड़ने का मैं भला सोच भी कैसे सकती हूॅ? मैं तो तेरी तरफ आने वाली हर मुसीबत को अपने ऊपर ले लूॅ...तुझे किसी भी प्रकार की खरोंच तक न लगने दूॅ। फिर क्यों अपनी माॅ को इस तरह अपनी यादों से पल पल रुला रहा है?" रेखा ने कहने के साथ ही एक तस्वीर को देख उसे चूम लिया।

फिर उसने एलबम का एक पेज पलटा। उसकी निगाहें दूसरे पेज पर मौजूद राज की उस तस्वीर पर पड़ीं जिसमें राज बिलकुल छोटा सा था। एकदम नंगा था वह, और उसमें वह रो रहा था। ये देख कर जैसे तड़प उठी रेखा। उसने सीघ्र ही उस तस्वीर पर अपना हाथ फेरा।

"मत रो मेरे बेटे।" रेखा ने एलबम उठाकर उस तस्वीर को अपनी छलक आई आॅखों से देखकर किन्तु पुचकारते हुए कहा__"मत रो मेरे लाल, किसने रुलाया तुझे? बता मुझे, मैं उसकी टाॅगें तोड़ दूॅगी। चुप हो जा
बेटे...मत रो..मेरा राजा बेटा।"

रेखा इस तरह बर्ताव कर रही थी एलबम में अपने बेटे की तस्वीर को देख कर जैसे वह तस्वीर नहीं बल्कि सचमुच में ही उसका बेटा जीता जागता उसके सामने बैठा हो।

"तुझे पता है बेटे।" रेखा कह रही थी__"सब मुझे पागल समझते हैं। वो समझते हैं कि मैं तेरे लिए पागल हो गई हूॅ। लेकिन तू तो जानता है न मेरे लाल कि तेरी ये माॅ पागल नहीं है। बस तेरे विरह में मैं किसी से ज्यादा बात नहीं करती। क्योंकि दुनिया में अब कोई भी मुझे अच्छा नहीं लगता। मेरे लिए अब तेरे सिवा दूसरा कोई भी अपना नहीं रहा। तू मेरी जान है, तू मेरी धड़कन है, तू ही मेरा सब कुछ है। बस जल्दी से मेरे पास आ जा मेरे लाल। देख मैंने तेरे स्वागत के लिए क्या क्या इन्तजाम किया हुआ है? तेरे लिए तेरी ही पसंद का मैने हर इक पकवान अपने हाॅथों से बनाया है और अपने हाथों से तुझे खिलाऊॅगी भी। इस लिए जल्दी से आ जा बेटा.. नहीं तो सब कुछ ठंडा हो जाएगा।"

ये कहने के बाद रेखा तस्वीर में मौजूद राज को इस आशा से देखने लगी जैसे वह उसकी ये बात मान कर तुरंत ही तस्वीर से निकल कर बाहर आ जाएगा। काफी देर की प्रतीक्षा के बाद भी जब ऐसा कुछ न हुआ तो रेखा का हृदय जैसे फट पड़ा। उसकी आॅखों से झर झर करके आॅसू बहने लगे। फूट फूट कर रो पड़ी वह।

"क्यों करता है तू ऐसा?" फिर वह बुरी तरह बिफरी सी बोली__"क्यों मेरा कहा नहीं मानता तू? क्या कोई बेटा अपनी माॅ की आज्ञा का इस तरह उलंघन करता है? मैं तो हर दिन हर पल तुझे अच्छे संस्कार और शिष्टाचार सिखाती हूॅ न..फिर कैसे तू मेरे दिये हुए संस्कारों को भूल कर मेरी बात नहीं मान सकता..बता मुझे? आख़िर क्यों इतना सताता है मुझे? आज तुझे बताना ही पड़ेगा मेरे लाल। आज तुझे मेरी हर बात माननी ही पड़ेगी...वरना...वरना तू सोच भी नहीं सकता कि मैं क्या करूॅगी फिर??? आज तू हमेशा की तरह चुप नहीं रह सकता...तुझे बोलना पड़ेगा।"

अचानक ही रेखा का सिर भारी हो गया। उसकी आॅखों के सामने अॅधेरा सा छाने लगा। उसने दोनो हाॅथों से अपने सिर को थाम लिया और लहरा कर वहीं बेड पर गिर पड़ी। तभी कमरे में धुएॅ का गुबार सा फैलने लगा और देखते ही देखते उस धुएं ने एक मानव आकृति का रूप ले लिया।

अभी उस धुएॅ की मानव आकृति ने बेड की तरफ बढ़ना ही चाहा था कि बाहर से किसी के आने की आहट से वह रुक गया। उसने खुद को छिपाने के लिए जल्दी से बेड के नीचे धुएॅ के रूप में ही समा गया। बाहर से आने वाली आहट कमरे के दरवाजे पर आकर रुक गई।

दरवाजे पर दो ब्यक्ति आकर खड़े हो गए। ये दोनो कोई और नहीं बल्कि महेन्द्र सिंह और रंगनाथ ही थे। दोनो ही कमरे के दरवाजे पर आकर कमरे के अंदर की तरफ बेड पर गिरी पड़ी रेखा को देखने लगे थे। रेखा की खूबसूरती और उसके गदराए हुए मादक से जिस्म पर नज़र पड़ते ही दोनों की आॅखों में वासना और हवस के कीड़े कुलबुला उठे। दोनो पिछले एक हप्ते से दोनो टाइम कृत्या के साथ हवस का नंगा नाच करते आ रहे थे, इस लिए रेखा जैसी हुस्न की देवी को देख दोनो ही इस अवस्था में आ गए थे।

दरअसल महेन्द्र व रंगनाथ रानी को उठाने के लिए अपने घर से सीधा अशोक के घर ही आए थे। यहाॅ पहुॅच कर उन्होंने देखा कि घर का मुख्य द्वार अंदर से बंद नहीं है। इस लिए मुख्य द्वार के बाहर ही लगी बेल को बजाए बिना ही घर के अंदर आ गए थे। अंदर आ कर दोनो ने देखा कि उनकी आशा के विपरीत इस वक्त घर में कहीं कोई नौकर चाकर मौजूद नहीं है। ये देख दोनो खुश हो गए थे। उन्हें लगा जिस काम के लिए वो दोनो यहाॅ आए थे वो अब बिना किसी विघ्न बाधा के ही हो जाएगा। इस लिए वो अब रानी की तलाश में लग गए थे लेकिन किसी भी कमरे में जब दोनो ने रानी को न पाया तो खोजते खोजते रेखा के कमरे में आ गए। इस कमरे में आकर दोनो ने बेड पर जब रेखा को इस तरह बेसुध सी पड़ी देखा तो दोनो ही अपने असल मकसद को भूल कर रेखा के रूप जाल में खो से गए।

दोनो इस तरह कमरे के अंदर दाखिल होकर बेड की तरफ बढ़े जैसे दोनो पर अचानक ही किसी सम्मोहन का असर हो गया हो। बेड के करीब पहुॅच कर दोनो ही रेखा के मादकता से भरे हुए जिस्म को खा जाने वाली नज़रों से घूरने लगे।

कुछ पल इसी तरह घूरने के बाद दोनो ने बेड पर बेसुध पड़ी रेखा पर जैसे ही अपना अपना हाॅथ बढ़ाया तो उसी वक्त जैसे एकदम से कयामत सी आ गई। पल भर में दोनो के जिस्म हवा में लहराते हुए कमरे के दरवाजे पर गुड़ीमुड़ी होकर धड़ाम से गिरे। किसी अज्ञात शक्ति ने बड़ा ज़ोर का झटका दिया था उन्हें।

महेन्द्र और रंगनाथ के हलक से घुटी घुटी सी चीख निकल गई। दोनो बड़ी ही सीघ्रता से उठे। दिलो दिमाग़ में जैसे झनाका सा हुआ। दोनो को अपने आदमियों की वो बातें याद आ गईं जब उनके आदमी इसके पहले रानी को उठाने आए थे और किसी भूत ने उनके आदमियों को भी इसी तरह पटका था।

महेन्द्र और रंगनाथ ये जानकर बुरी तरह घबरा गए कि उनके साथ भी वही हुआ है लेकिन फिर तुरंत सम्हल भी गए वो। दोनो ने कमरे के अंदर बड़ी बारीकी से देखा। तभी बेड के पास उन्हें काले धुएॅ की मानव आकृति खड़ी नज़र आई। ये देख दोनो ही उछल पड़े। वो मानव आकृति अब उनकी तरफ ही बढ़ती चली आ रही थी।

महेन्द्र और रंगनाथ एकदम से सतर्क हो गए। दोनो महान जादूगरनी और काली शक्तियों वाली कृत्या के शिष्य थे। कृत्या ने अब तक उन्हें कई काली शक्तियों से निपुड़ कर दिया था। इस लिए वो दोनो ही अब उस धुए की मानव आकृति से निपटने के लिए तैयार हो गए थे।

महेन्द्र ने सीघ्र ही मुख से कुछ बुदबुदाते हुए अपने दाहिने हाथ को मानव आकृति की तरफ किया। नतीजतन उसके हाथ से एक आग का गोला निकल कर मानव आकृति की तरफ तेज़ी से बढ़ा। जबकि उसके जवाब में मानव आकृति ने भी अपने हाथ को महेन्द्र की तरफ कर दिया। नतीजतन उसके हाथ से पानी का एक गोला निकल कर महेन्द्र द्वारा फेके गए आग के गोले की तरफ तेज़ी से बढ़ गया। कुछ ही पलों में दोनो गोले आपस में टकराए और नस्ट हो गए।

इससे पहले कि महेन्द्र व रंगनाथ कुछ और करते धुएॅ की मानव आकृति ने अपने दोनो हाथों को उनकी तरफ किया। जिससे एक तेज़ बिजली निकल कर उन दोनो के जिस्मों से टकराई और दोनो ही चीखते हुए दरवाजे के उस पार कहीं दूर जा कर गिरे। मानव आकृति तेज़ी से कमरे के बाहर की तरफ बढ़ी। बाहर आकर वह उस जगह पर कुछ दूर ही रुकी जहाॅ पर महेन्द्र और रंगनाथ गिरे पड़े कराह रहे थे।

दोनो तेज़ी से फर्स पर से फिर उठे। अपने सामने वही धुएॅ की मानव आकृति को देख इस बार दोनो ने एक साथ उस पर अपनी काली शक्ति से हमला किया। जवाब में मानव आकृति ने भी हमला किया। काफी देर तक यही चलता रहा। महेन्द्र और रंगनाथ उस मानव आकृति का कुछ नहीं बिगाड़ पा रहे थे। कुछ ही देर में दोनो ही असहाय अवस्था में आ गए। चेहरों पर परेशानी व घबराहट साफ नज़र आने लगी थी।

"कौन तुम?" आख़िर महेन्द्र ने उस मानव आकृति से पूछ ही लिया__"और यहाॅ किस लिए हमसे टकरा कर इन लोगों की रक्षा कर रहे हो?"
"क्यों तुम्हारी उस गुरू ने नहीं बताया?" मानव आकृति के मुख से बहुत ही भयानक आवाज़ निकली थी__"जिसके पास तुम दोनो काली शक्तियाॅ अर्जित करने गए थे?"

"तु..तुम ये सब कैसे जानते हो?" रंगनाथ ने चौंकते हुए पूछा__"और...और कौन हो तुम?"
"मैं सबकुछ जानता हूॅ तुम दोनो के बारे में।" उस मानव आकृति ने कहा__"और तुम्हारी गुरू उस कृत्या के बारे में भी। तुम दोनो जिस रास्ते पर चल पड़े हो उस रास्ते से अपने कदम वापस कर लो और सत्य की राह पर चलो। क्योंकि इसी में तुम दोनो का कल्याण है। अन्यथा तुम दोनो का अंत हो जाना निश्चित है।"

"तुम हमें धमका रहे हो?" महेन्द्र ने सहसा आवेशयुक्त स्वर में कहा__"तुम शायद जानते नहीं कि हमारी गुरू कृत्या में कितनी शक्तियाॅ हैं। इस लिए अगर अपना भला चाहते हो तो हमारे रास्ते से हट जाओ वर्ना अंजाम अच्छा नहीं होगा।"

"हाहाहाहाहा।" धुएॅ की उस मानव आकृति ने हॅसते हुए कहा__"तुम तो अपनी गुरू का इस तरह गुणगान कर रहे हो जैसे तुम्हारी गुरू कृत्या कोई देवी है जिसे कोई मार ही नहीं सकता। अरे मूर्खो इस धरती पर पैदा होने वाले हर चर अचर जीव की नियति एक न एक दिन इस संसार से मिट जाना ही होती है। तुम्हारी गुरू कृत्या, तुम दोनो और मैं भी यहाॅ तक कि हर कोई एक दिन इस दुनिया से मिट जाएगा।"

"तुम हमें साधु संतों जैसा प्रवचन सुना रहे हो लेकिन हमें तुम्हारे इस प्रवचन से कोई लेना देना नहीं है समझे?" रंगनाथ ने कहा__"अपनी भलाई चाहते हो तो हमारे रास्ते से हट जाओ और हमें हमारा काम करने दो।"

"तुम जिस काम को करने यहाॅ आए हो उस काम में तुम कभी सफल नहीं हो सकते।" मानव आकृति ने कहा__"क्यों कि तुम उस लड़की को हाथ भी नहीं लगा सकते। अगर हाथ लगाने की कोशिश करोगे तो जल कर खाक़ में मिल जाओगे। लेकिन उससे पहले तो तुम दोनो को मुझसे सामना करना पड़ेगा तभी इस घर के सदस्यों तक पहुॅच पाओगे।"

"लेकिन तुम हो कौन?" महेन्द्र ने कहा__"और इस घर के सदस्यों से तुम्हारा क्या वास्ता है?"
"इस बात का पता बहुत जल्द ही तुम्हें चल जाएगा।" मानव आकृति ने कहा__"अब जाओ यहाॅ से। ये तुम्हारे लिए सत्य की राह पर चलने का आख़िरी अवसर है, इसके बाद भी अगर तुम दोनो ने इस घर के सदस्यों की तरफ बुरी नीयत से देखा तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।"

महेन्द्र सिंह को लगा इससे बहस करने का कोई मतलब नहीं है। दूसरी बात वो दोनो समझ भी चुके थे कि इससे टकराना अभी उनके बस का नहीं है। अभी वो इतने सक्षम नहीं हुए थे कि वो इस जैसे किसी रहस्यमय इंसान का मुकाबला कर सकें। ये सोच कर उन दोनो ने यहाॅ से चुपचाप निकल जाना ही बेहतर समझा।

दोनो चुपचाप वहाॅ से निकल गए जबकि धुएं की मानव आकृति भी देखते ही देखते अपने स्थान से गायब हो गई। इन सबके जाते ही वहीं एक कोने में दीवार के उस पार छुपा अशोक सामने आ गया। उसके चेहरे पर बारह क्या बल्कि पूरे के पूरे चौबीस बजे हुए थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा था उसकी आॅखों के सामने?? महेन्द्र और रंगनाथ को तो वह अच्छी तरह पहचान गया था किन्तु वह यह देखकर चकित था कि वो दोनो ऐसी शक्तियाॅ जानते थे और उसका प्रयोग भी उस मानव आकृति पर कर रहे थे। ये अलग बात है कि वो दोनो उस मानव आकृति से पार नहीं पा रहे थे। अशोक तो उस मानव आकृति को देख कर आश्चर्यचकित था और सोच रहा था कि ये क्या बला है? उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि ये सब किस लिए हो रहा था? दिलो दिमाग़ कुंद सा पड़ गया था उसका।
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अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,
आप सबकी प्रतिक्रिया का इन्तज़ार रहेगा,,,,,,

अब यहाॅ से जंग शुरू होगी दोस्तो,,,,
Bahot shaandaar lajawab update dost
 
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