Naik
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Bahot shaandaar mazedaar lajawab update dostराज-रानी (बदलते रिश्ते)
**अपडेट** (02)
अब तक.....
"ऐसे अद्भुत बच्चे को हिमालय में ही रखना उचित है।" रिशभ ने कहा__"वहाॅ पर अध्यात्मिक चीज़ें हैं जिसकी आवश्यकता इस बच्चे को पड़ेगी।"
रिशभ की बात से सब चुप हो गए। कदाचित उनमें से सबको रिशभ की बात और सोच सही लगी थी। फिर क्या था...वो चारो ही उस बच्चे को लेकर इंसानी दुनियाॅ में पहुॅच गए। रास्ते में वीर ने कहा कि हम हिमालय जैसी पवित्र जगह पर कैसे जाएंगे, संभव है वहाॅ पर हम पर ही न कोई मुसीबत आ जाए आखिरकार हैं तो हम शैतान ही। वीर की इस बात पर रिशभ ने मुस्कुरा कर कहा कि हम भले ही शैतान हैं मगर सोच और विचार से ग़लत नहीं हैं और वैसे भी हम एक अच्छे कार्य के लिए पाक नीयत से ही वहाॅ जा रहे हैं। इस लिए हमें किसी बात की चिन्ता नहीं करनी चाहिए।
अब आगे....
हिमालय, दुनियाॅ में शायद ही कोई ऐसा होगा जो इस नाम तथा इस नाम के बारे में विस्तार से न जानता हो। आप सबको भी हिमालय के संबंध में बहुत कुछ पता होगा।
कहते हैं हिमालय में बडे-बडे आश्रम हैं। जहां पर आज भी सैकडों साधक अपनी-अपनी साधना में लगे हुए हैं।
हिमालय में आज भी चमत्कारिक साथू संंत रहतेे हैं, वह हिमालय में तपस्या में लीन निराहार रहते है।
प्राचीन काल में हिमालय में ही देवता रहते थे। यहीं पर ब्रह्मा, विष्णु और शिव का स्थान था और यहीं पर नंदनकानन वन में इंद्र का राज्य था। इंद्र के राज्य के पास ही गंधर्वों और यक्षों का भी राज्य था। स्वर्ग की स्थिति दो जगह बताई गई है: पहली हिमालय में और दूसरी कैलाश पर्वत के कई योजन ऊपर।
दोस्तो यूॅ तो बहुत सी ऐसी बातें हैं इस हिमालय के संदर्भ में किन्तु यहाॅ पर अगर यही सब लिखा जाए तो आज का अपडेट ही नहीं बल्कि आने वाले बहुत से अपडेट सिर्फ हिमालय की गूढ़ बातों से ही भर जाएंगे, इस लिए हम अब कहानी की तरफ ही ध्यान देते हैं।
हिमालय पहुॅचते पहुॅचते सुबह का प्रथम प्रहर शुरू हो गया था। यह ब्रम्हमुहूर्त का समय था। चारो वैम्पायर इस बात को जानते थे। हिमालय जैसी पवित्र जगह पर शैतानों का आ पाना कोई आसान बात न थी, वे किसी अनहोनी की आशंका से डर भी रहे थे। उनके साथ वह बच्चा भी था जिसकी ऊम्र पाॅच साल थी और वह इस समय अचेत अवस्था में था।
"हम यहाॅ तक तो पहुॅच गए भाई लेकिन अब यहाॅ से आगे जाना हमारे लिए खतरे की बात होगी।" वीर ने रिशभ की तरफ देख कर कहा__"इस लिए हमें इसके आगे नहीं जाना चाहिए।"
"कुछ नहीं होगा वीर।" रिशभ ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा__"मुझे पूरा विश्वास है कि इसके आगे देव भूमि पर कदम रखने से हम लोगों को कुछ नहीं होगा। हम शैतान पाप से पूर्ण भले ही हैं लेकिन इस वक्त हम एक अहम और नेक काम करने आए हैं जिसके लिए हमारे मन में कोई मैल नहीं है। हम तो वैसे भी देवभूमि में ईश्वर के घर आए हैं और घर आए अतिथि का भगवान अनिष्ट नहीं करते, वो भी जानते हैं कि कोई भी शैतान बुरी नीयत से उनके पास नहीं आ सकता। इस लिए तुम लोग ब्यर्थ की चिन्ता न करो और मेरे साथ आगे बढ़ो।"
"रिशभ ठीक कह रहा है वीर।" मेनका ने कहा__"इस वक्त हम नेकनीयत से ही देवभूमि में नेक काम के लिए आए हैं। इस अवस्था में कोई भी देवता या ईश्वर हमें किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुॅचाएंगे।"
"मुझे भी इस बात का पूर्ण विश्वास है कि हमें कुछ नहीं होगा।" काया ने कहा__"और वैसे भी जब हम सब इस नेक काम को करने के लिए चल ही पड़े थे तो इसके किसी भी प्रकार के परिणाम के बारे में सोचने का अब कोई मतलब ही नहीं है।"
"तुम बिलकुल ठीक कह रही हो मेरी लाडली बहना।" रिशभ ने मुस्कुरा कर कहा__"और मुझे खुशी है कि तुम्हारा ह्रदय परिवर्तन भी हो गया है। एक बात और..अब इस कार्य में अगर हमें अपना जीवन भी दाॅव पर लगाना पड़े तो हम ज़रा भी पीछे नहीं हटेंगे। अगर तुम लोग मेरी इस बात से सहमत हो तो मिलाओ हाॅथ और चलो मेरे साथ।"
तीनों ने रिशभ के हाॅथ में अपना अपना हाॅथ रखा और फिर बिना कुछ बोले चल दिए वहाॅ से। अब उनमें से किसी के भी मन में किसी प्रकार का कोई विकार नहीं था।
हिमालय की सर ज़मीं पर बेझिझक और बिना डरे अपने अपने कदम रख कर वो चारो आगे बढ़ने लगे। इसके पहले उनमें से किसी ने कभी सोचा भी न था कि उन्हें अपने जीवन में कभी ऐसा भी कार्य करना पड़ सकता है। वे तो शैतान थे और शैतान भला ऐसे कार्य कर भी कैसे सकता है?
लगभग दो घंटे बाद हीमालय के इन दुर्गम और कष्टदाई रास्तों व ऊॅचे ऊॅचे शिखरों पर चलते हुए वो एक ऐसी जगह पहुॅचे जहाॅ के शान्त वातावरण में सिर्फ एक ही नाद गूॅज रहा था। ओऽम् का उच्चारण वहाॅ के समस्त वातावरण में एक लय और एक ही सुर में बिना किसी विघ्न बाधा के अनवरत गूॅज रहा था।
"ये कैसी ध्वनि गूॅज रही है यहाॅ के वातावरण में?" काया ने चकित भाव से इधर उधर देखते हुए कहा__"यहाॅ तो कोई दूर दूर तक दिख भी नहीं रहा है?"
"तुम भूल रही हो काया।" रिशभ ने कहा__"कि हम देवभूमि में हैं इस वक्त और यहाॅ पर बड़े बड़े ॠषि मुनि तथा अनेकों प्रकार के साधु संत करोड़ों वर्षों से ईश्वर की कठोर तपस्या व अराधना में लीन हैं। ये जो ओऽम् शब्द की ध्वनि निरंतर गूॅज रही है न ये उन्हीं तपस्वियों की है।"
"मगर वो हमें कहीं दिख क्यों नहीं रहे फिर?" वीर ने कहा__"जबकि इस ध्वनि से ऐसा लगता है जैसे वो सब हमारे आस पास ही हैं।"
"वो सब हमारे आस पास ही हैं मेरे दोस्त।" रिशभ ने कहा__"लेकिन अदृश्य रूप में। हम क्या कोई भी आम इंसान उन्हें सहजता से देख नहीं सकता।"
"ऐसा क्यों?" काया ने सवाल किया।
"वो सब सांसारिक चीज़ों से परे हो चुके हैं।" रिशभ ने कहा__"अपनी कठिन तपस्या व अराधना से वो सब देवताओं से भी ऊपर जा चुके हैं। सोचो जब हम देवताओं को नहीं देख सकते तो फिर उन्हें कैसे देख पाएंगे जो देवताओं से भी ऊपर पहुॅच चुके हैं। दूसरी बात, अदृश्य रूप से ईश्वर की तपस्या करने से उन्हें कोई देख नहीं सकता इस लिए वो किसी अन्य के द्वारा किसी भी प्रकार विचलित भी नहीं हो सकते और बगैर किसी बाधा के वो अपनी तपस्या में लगे रहेंगे।"
"ओह तो ये सब बातें हैं।" काया ने समझने वाले भाव से कहा__"ख़ैर अब हमें आगे क्या करना है?"
"हम जिस चीज़ के उद्देश्य से यहाॅ आए थे वो इसी जगह पर पूरा होगा।" रिशभ ने कहा__"इस बच्चे को यहीं रहना होगा, इन बड़े बड़े तपस्वियों के बीच।"
"तो क्या हम इस बच्चे को यूॅ ही छोंड़ कर यहाॅ से चले जाएंगे?" मेनका ने चौंकते हुए कहा।
"ये यहाॅ अकेला नहीं है मेनका।" रिशभ ने कहा__"इसके चारो तरफ अदृश्य रूप में ये सब बड़े बड़े महात्मा हैं, तपस्वी हैं। ये सब इस बच्चे की रक्षा भी करेंगे और अपने संरक्षण में इसे बड़ा भी करेंगे।"
"नहीं भाई।" मेनका कह उठी__"ये सब तो जाने कब से अपनी अपनी तपस्या में लीन हैं। इन सबका ध्यान सिर्फ अपने ईश्वर पर लगा हुआ है। ये कैसे इस बच्चे की देखभाल कर सकेंगे? जब तक कोई स्पष्ट रूप से इसकी देखरेख करने वाला नहीं मिलेगा तब तक हम इसे अकेला यूॅ छोंड़ कर नहीं जाएंगे।"
"मेनका ठीक कह रही है भाई।" वीर ने कहा__"और वैसे भी ये हमारी जिम्मेदारी है कि हम इस बच्चे का ख़याल रखें। इसे यूॅ किसी और के भरोसे छोंड़ कर यहाॅ से चले जाना उचित नहीं है। या तो हम सब यहीं रह कर इस बच्चे की देखभाल करेंगे या फिर हमें इसका कोई उचित प्रबंध करना चाहिए।"
"क्या हम लोग इन अदृश्य तपस्वियों को इनकी तपस्या से जगा नहीं सकते?" काया ने कहा__"अगर ऐसा हो जाए तो संभव है सारी समस्या का समाधान ही हो जाए।"
"तपस्वियों को उनकी तपस्या से जगाना क्या उचित होगा?" मेनका ने कहा__"और सबसे बड़ी बात हम उन्हें उनकी तपस्या से जगा पाएंगे भी कि नहीं?"
"हमें कोशिश तो करनी ही चाहिए इसके लिए।" वीर ने कहा__"हो सकता है हमें इस काम में कामयाबी मिल ही जाए।"
"मुझे तो डर लग रहा है।" काया ने अजीब भाव से कहा__"सुना है कि बड़े बड़े तपस्वियों को उनकी तपस्या भंग करके जगा देने से उनके भयंकर क्रोध का सामना भी करना पड़ जाता है, और वो तपस्वी अपने क्रोध से जगाने वाले को भस्म भी कर देते हैं।"
"ये बात तो मैंने भी सुनी है।" वीर कह उठा__"सचमुच अगर ऐसा हुआ तो फिर तो गए हम लोग काम से।"
"तुम भूल रहे हो दोस्त।" रिशभ ने कहा__"कि यहाॅ आने से पहले हम लोगों ने उस जगह क्या फैंसला किया था एक साथ? अब इस नेक काम के लिए इन तपस्वियों की क्रोधाग्नि द्वारा भस्म भी होना पड़े तो हो जाएंगे लेकिन ये काम करके ही दम लेंगे।"
"फिर ठीक है भाई।" वीर ने कहा__"अब हम सब तैयार हैं जो होगा हमें स्वीकार है। तुम इन्हें जगाने की कोशिश करो।"
"रुको।" मेनका ने सहसा कुछ सोचते हुए कहा__"मैने सुना है कि अगर हम अपने हाॅथ जोड़ कर किसी चीज़ के लिए किसी भी देवता या ईश्वर की सच्चे दिल से प्रार्थना करें तो हमारी प्रार्थना सहज ही सुन लेते हैं भगवान।"
"तुम्हारी बात में यकीनन सच्चाई है मेरी बहना।" रिशभ ने मुस्कुरा कर कहा__"अब हम सब यही करेंगे। हम सब सच्चे दिल से हाॅथ जोड़ कर इसके लिए ईश्वर से प्रार्थना करेंगे।"
फैंसला हो चुका था, इस लिए वो चारो वहीं ज़मीन पर एक लाइन से बैठ गए। चारों ने अपने अपने हाॅथ जोड़ लिए तथा अपनी अपनी आॅखें बंद करके मन ही मन ईश्वर को याद कर प्रार्थना करने लगे।
ऐसा करते करते उन्हें दो घंटे गुजर गए मगर वो चारो उसी मुद्रा में उसी तरह बैठे प्रार्थना में लीन रहे।
"आॅखें खोलो पुत्रों हम तुम्हारी इस अनूठी प्रार्थना से खुश हुए।"
अचानक ही ये वाक्य उन चारो के कानों से टकराया। सभी ने अपनी अपनी आखें धीरे धीरे खोली और सामने की तरफ देखा तो एक बहुत ही तेजस्वी ॠषी को सामने बैठा पाया।
अपने सामने एक ॠषी को शेर की खाल के आसन पर बैठे देख चारो चौंक पड़े। उन सबकी आॅखें आश्चर्य से फैल गई। फिर जल्दी ही उन सबने खुद को सम्हाला और अपने अपने हाॅथ जोड़ कर उस ॠषि को प्रणाम किया।
"हम तुम चारो के श्रद्धा भाव से अतिप्रसन्न हैं पुत्रो।" उस तेजस्वी ऋषि ने मुस्कुरा कर कहा__"हम जानते हैं कि तुम चारो शैतान हो, मगर इस समय तुम चारो का मन निर्मल है, दोष से रहित है। हम यहीं पर अदृश्य रूप में विद्दमान थे और तुम लोग जो कुछ भी आपस में बातें कर रहे थे उसे भी सुन रहे थे। तुम लोगों ने बहुत ही समझदारी से यह काम किया। एक शैतान होते हुए भी तुम चारो ने जिस कार्य को किया है वह तुम्हारे धर्म और कर्म के विपरीत है इस लिए हम तुम चारो से अति प्रसन्न हैं।"
"हे ऋषिवर! हम चारो शैतान ज़रूर हैं मगर।" रिशभ ने कहा__"मगर आपके दर्शन से हम चारो धन्य हो गए हैं। अब ऐसा लगता है जैसे हमारे अंदर सब कुछ नया और खास पैदा हो गया है। यहाॅ आकर तथा आपके दर्शन से ऐसा महसूस हो रहा है जैसे हम चारो का दूषित मन अब साफ और पवित्र हो गया है।"
"ये देवभूमि है पुत्रो।" ऋषि ने कहा__"और तुम लोग तो उसी समय मन से साफ और पवित्र हो गए थे जिस समय तुम लोगो ने इस बच्चे को इस प्रकार यहाॅ लाने का विचार किया था। अगर ऐसा नहीं होता तो तुम चारो यहाॅ की धरती पर कदम नहीं रख पाते।"
"आप बिलकुल सत्य कह रहे हैं भगवन।" मेनका ने कहा__"मेरे भाई को पूर्ण विश्वास था कि यहाॅ की पवित्र धरा पर कदम रखने से हम में से किसी को कुछ नहीं होगा।"
"जब मन हर विकार से रहित होकर गंगा की तरह पवित्र हो जाता है तो फिर किसी भी प्रकार संसय नहीं रह जाता।" ऋषि ने कहा__"और ये सब तो वैसे भी विधि का विधान था, जिसके परिणामस्वरूप तुम चारो आज इस बच्चे के साथ यहाॅ आए हो।"
"हे ऋषिवर! हम विधि के विधान को तो नहीं जानते कि कब क्या होगा?" रिशभ ने कहा__"हमें तो बस इतना महसूस हुआ कि इस बच्चे में कुछ ऐसी बात है जो आम इंसानों में नहीं हो सकती। इस लिए हम लोगों के मन में उस समय जैसे विचार उत्पन्न हुए वैसा ही करते चले गए।"
"सब ईश्वर की ही माया थी पुत्रो।" ऋषि ने मुस्कुराकर कहा__"जिसकी वजह से तुम चारों के मन में ऐसे विचार उत्पन्न हुए और तुम चारो इस बच्चे को यहाॅ ले आए, वर्ना बिरला ही ऐसा होता है कि कोई शैतान किसी इंसानी जीव को जीवित छोंड़ कर ऐसे विचार के तहत उसे यहाॅ ले आए।"
"आप तो सब कुछ जानते हैं मुनिवर।" वीर ने कहा__"क्या आप हमें ये बताने की कृपा करेंगे कि ये सब क्यों हुआ?"
"हम जानना चाहते हैं भगवन कि इस बच्चे में क्या खास बात है?" काया ने उत्सुकतावश पूॅछा__"जिसके लिए हम लोग एक शैतान होकर भी ये सब करते चले आए?"
"हम सब कुछ जानते हैं पुत्रो।" ऋषि ने कहा__"किन्तु भविष्य की बातें इस तरह बताई नहीं जा सकती क्योंकि ये अनुचित है और ईश्वर के बनाए गए नियमों के खिलाफ़ है। तुम लोगों को हम इतना ज़रूर बता सकते हैं कि इस बच्चे के द्वारा इस संसार का कल्याण होगा। ईश्वर इस बच्चे के द्वारा इस धरती पर बढ़ रहे पाप और बुराई का अंत करेगा।"
"ये तो बहुत अच्छी बात है भगवन।" मेनका ने कहा__"किन्तु मेरी आपसे एक विनती है।"
"कहो पुत्री।" ऋषि ने कहा__"क्या कहना चाहती हो तुम?"
"हे ऋषिवर! मेरी विनती ये है कि भविष्य में इस बच्चे द्वारा होने वाले संसार के कल्याण में मैं भी इसके साथ रहूॅ। इस बच्चे से मेरा स्नेह जुड़ गया है, वैसा ही स्नेह जैसे एक माॅ का अपने पुत्र से होता है। मैं इसकी माॅ बनकर इसके साथ ही रहना चाहती हूॅ।"
"हम तुम्हारे इस करुणामयी भाव को देखकर खुश हुए पुत्री।" ऋषि ने मुस्कुरा कर कहा__"तुम चिन्ता मत करो, अब से तुम चारो ही इस बच्चे के साथ इसका कवच बनकर रहोगे। अब तुम चारो ही अपनी शैतानी दुनियाॅ से अपना नाता तोड़ चुके हो। तुम चारो यहाॅ रह कर हमारे द्वारा बताई गई कुछ महत्वपूर्ण साधनाओं को मन लगा कर करो जिससे तुम लोग भी आम इंसानों की तरह रह सको। दिन में सूर्य की रोशनी से तुम लोगों को जो समस्या होती है उसे हमारे द्वारा बताई गई प्रक्रिया से दूर कर सकोगे।"
"आपका बहुत बहुत धन्यवाद भगवन।" रिशभ ने कहा__"हम चारो इस सबसे बहुत प्रसन्न हैं कि ईश्वर ने हमें अपने इस महान कार्य में शामिल किया।"
"अब हम तुम लोगों को रहने के लिए एक उचित और अच्छी जगह बताते हैं जहां पर तुम स्वयं अपने लिए कुटिया बना कर रह सको।" ऋषि ने कहा__"ये जगह सिर्फ ध्यान और ईश्वर की तपस्या के लिए है।"
इसके बाद ऋषि अपने आसन से उठे और एक तरफ चले। उनके पीछे पीछे वो चारो भी उस बच्चे को लेकर चल दिए।
अपडेट हाज़िर है दोस्तो.......
आप सबकी राय, सुझाव और प्रतिक्रिया का इन्तज़ार रहेगा,,,,
Ager saare shetaan Aise hi sudher jaye tow dunia se saari burayi ek dam khatam ho jaye