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Incest Oh maa (complete )

Rabia

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Rabia

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हैविंग फन मॉम, हुंह!" वैशाली के कानों मे जब यह मर्दाना आवाज गूंजी, एकाएक उसका सम्पूर्ण शरीर सुन्न पड़ जाता है। जिस विशेष नाम से उसे पिछले बाईस सालों से पुकारा जा रहा था, वह मर्दाना आवाज उसके इकलौते बेटे के अलावा और किसकी हो सकती थी?

"इसका मतलब पापा फिर से टूर पर चले गए, हम्म! तभी स्वीट ममा मैस्टबेट करके अपना गुस्सा जता रही हैं, वह भी यूं खुलेआम" अपनी माँ को सम्बोधित करता अभिमन्यु का यह लगातार दूसरा अश्लील कथन था और अपने इस दूसरे कथन को कहकर फौरन वह अपनी आँखें वैशाली के चेहरे से हटाकर उसकी नंगी जांघों की जड़ से जोड़ देता है। उसकी माँ के बाएं हाथ की तीन उंगलियां उसकी झांटों से भरी चूत की गहराई मे भीतर तक घुसी हुई थीं और बाएं हाथ के अंगूठे और प्रथम उंगली के बीच उसकी माँ ने ब्लाउज के ऊपर से ही अपने दाहिने निप्पल को मरोड़ा हुआ था, जो कि साफ दर्शा रहा था कि ब्लाउज के अंदर उसने कोई ब्रा नही पहन रखी थी।

अपने जवान बेटे की आश्चर्य से फट पड़ी आंखों को अपने नंगे निचले धड़ से चिपके देख अकस्मात वैशाली होश मे आई और तत्काल अपने बाएं हाथ को अपने दाहिने निप्पल से हटाकर उसने सर्वप्रथम अपनी अधखुली साड़ी को पेटीकोट समेत नीचे खींचने का प्रयत्न किया मगर हड़बडी़ मे यह भूल गई कि उसके दाएं हाथ की तीनों उंगलियां अब भी उसकी चूत के भीतर घुसी हुई थीं।

"त ...तु ...तुम घर के अंदर कैसे आए? कॉलेज! क ...कॉलेज से इतने जल्दी" तीव्रता से अपने सिर को ऊपर उठाकर वैशाली अपने निचले धड़ की वर्तमान हालत पर गौर करते हुए हकलाई। अपने पहले ही प्रयत्न मे बिस्तर पर लेटी वह माँ अपने निचले नंगे धड़ को अपनी मांसल जाघों के अंत तक ढांकने मे सफल रही थी, साथ ही इसके उपरान्त उसने अपने उसी बाएं हाथ की मदद से अपना पल्लू भी अपने ब्लाउज पर रख लिया था।

"अचानक तुम इतनी घबरा क्यों गईं? अपनी माँ के प्रश्नों के जवाब ना देकर अभिमन्यु उलटा उसीसे सवाल पूछ लेता है, उसके चेहरे पर एक ऐसी दुष्ट हँसी पनप चुकी थी जिसे देखकर वैशाली शर्म से पानी-पानी हो जाती है। वह अपने जवान बेटे के समक्ष यूं खुलेआम मुट्ठ मारते हुए पकड़ी गई थी और ऐसी शर्मनाक परिस्थिति मे भी जानबूझकर बेटे द्वारा माँ की घबराहट के विषय मे पूछना उसके लिए उस शर्मनाक परिस्थिति से भी कहीं अधिक शर्मसार कर देने वाला क्षण था। वह गूंगी हो गई थी, एक शब्द तक उसके मुंह से बाहर नही आ सका था।

"घबराने की कोई जरूरत नही माँ, वैसे भी यह पहली बार नही जो मैंने तुम्हें मैस्टबेट करते हुए देखा है" अपनी माँ का हलक चिपकता महसूस कर अभिमन्यु ने अत्यंत-तुरंत एक और विस्फोट कर दिया और हँसते हुए वह बिस्तर पर वैशाली की अधनंगी टांगों के समीप ही बैठ जाता है।

"कब देखा? नही! नही! ऐसा नही हो सकता। आज से पहले नही ...तुम झूठ बोल रहे हो मन्यु" बेटे के दूसरे विस्फोट पर वैशाली ने चौंकते हुए कहा और साथ ही वह उससे उसके पिछले कथन का स्पष्टीकरण भी मांगती है। हालत का खेल था जो महज एक गलती पर आज बेटा स्वयं अपनी माँ पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहा था, उसे प्रत्यक्ष शर्मिंदा कर रहा था मगर फिर भी वैशाली पूरी तरह से आश्वस्त थी कि अभिमन्यु साफ झूठ कह रहा है।

"घर-घर की यही कहानी है मम्मी! पति को पैसे कमाने से फुर्सत नही, बीवी उंगलियों से काम चला रही है और मजे कोई तीसरा शख्स आकर ले जाता है। खी ..खी ..खी ..खी" पुनः अपनी माँ के प्रश्न का उत्तर देने की बजाय अभिमन्यु ने नया राग अलाप दिया, उसकी दुष्ट हँसी बिलकुल उसके अश्लील संवादों की ही परिचायक थी।

"बेशर्म! ऐसा कहीं नही होता, अपनी माँ के सामने इस तरह की गंदी बात कहते हुए तुम्हें ....." क्रोध से तिलमिते हुए वैशाली अपना यह कथन पूरा कर पाती, इससे पहले ही अभिमन्यु उसे टोक देता है।

"हाँ मॉम! लज्जा आज कॉलेज नही आई वर्ना उसे तुमसे मिलवाने आज मैं घर लाने वाला था। अम्म! ठीक ही हुआ जो वह ऐब्सन्ट थी, नही तो ...." हँसते हुए अपने दांए हाथ से उसने अपनी माँ की अस्त-व्यस्त हालत की ओर इशारा किया और कहीं ना कहीं उसका यह नटखटी संकेत वैशाली की समझ मे भी आ जाता है मगर इस बार उसके चेहरे पर ना ही क्रोध था और ना ही शर्म, वह हौले से मुस्कुरा उठी थी।

"हँसी तो फँसी! हे ..हे ..हे ..हे, खैर गुस्सा ना करो तो तुम्हारे पिछले सवाल का जवाब देता हूँ। मैं पहले भी कई बार तुम्हें मैस्टबेट करते हुए देख चुका हूँ पर शायद आज की तरह उन बीते शोज़ को कभी अॉडियन्स का इंतजार नही रहा था" कहने को अभिमन्यु ने अपना यह कथन पूरा तो कर दिया था मगर साथ ही एकाएक उसके टट्टे भी कड़क हो गए थे। कुछ उत्तेजना कि उसके ठीक सामने बिस्तर पर लेटी उसकी माँ का दायां हाथ अब भी उसकी नंगी चूत से चिपका हुआ है या ऐसा भी हो सकता है कि उसकी तीनों उंगलियां अबतक ज्यों की त्यों उसकी चूत के भीतर घुसी हुई हों। कुछ स्वीकारने का भय कि वह छुप-छुपकर अपनी माँ को मुट्ठ मारते हुए देखता है और उसने उसपर पर यह इल्जाम भी लगा दिया कि उसकी माँ आज जानबूझकर यूं खुलेआम मुट्ठ मार रही थी ताकि अपने जवान बेटे के हाथों पकड़ी जा सके।

"चोर-उचक्के कहीं के! तुम मेरी जासूसी करते हो, अपनी माँ की जासूसी, जिसने तुम्हें पैदा किया अपनी उस सगी माँ की जासूसी। उफ्फ! क्या करूँ मैं इस बेशर्म का। मन्यु! यू हर्ट मी, यू रियली हर्ट योर मदर" वैशाली जैसे बरस पड़ी, अपने बेटे को चमाट लगाने के लिए वह फौरन बिस्तर से उठना चाहती थी पर उसे यह भी ख्याल था कि उठकर बैठने से पूर्व उसे अपने दाहिने हाथ को उंगलियों समेत अपनी नंगी चूत की पहुंच से दूर करना पड़ेगा, यहां तक कि हाथ अपनी साड़ी से भी बाहर निकालना होगा। कहीं उसके ऐसा करने से उसके बेटे को यह आभास ना हो जाए कि उसकी माँ उसके साथ बातचीत जारी रहने के दौरान भी अपनी चूत से खेल रही है, उंगलियों के अलावा उसका पूरा दाहिना पंजा उसकी चूत से उमड़े कामरस से भीगा हुआ था और जो उसके हाथ के साड़ी से बाहर आने के उपरान्त निश्चित ही उसके समीप बैठे अभिमन्यु को नजर आ जाता।

"चलो यह जासूसी वाली बात तुमने खुद ही मान ली तो मैंने तुम्हें माफ किया मगर तुम मुझपर, अपनी माँ पर ऐसा दोष कैसे लगा सकते हो कि मैंने तुम्हें, अपने सगे बेटे को रिझाने के लिए अपने कपड़े उतार फेंके?" अभिमन्यु के चेहरे की हवाइयां उड़ी देख वैशाली अपना अगला कथन और उसमे शामिल प्रश्न बेहद शांत स्वर मे पूरा करती है।

अभिमन्यु भी उन्हीं अनगिनती जवान होते मर्दों मे शामिल था जिनसे विपरीत लिंग का आकर्षक जरा-सा भी नही झेला जाता, जिनके मन-मस्तिष्क मे जनाना अंगों के सिवाय कुछ अन्य घूमता ही नही है। एक पढ़ी-लिखी समझदार औरत होने के नाते वैशाली अपने बेटे के इस लाइलाज मर्ज को बहुत पहले ही समझ चुकी थी, उस माँ की चौकस व परिपक्व आँखों को अभिमन्यु की बेचैनी की मुख्य वजह दर्जनो बार सबूत सहित देखने मिली थी। न्यूड मैगजीन्स, इंटरनेट पॉर्न, रोलप्लेज़, सैक्स चैट यहां तक की कई बार उसने अपने बेटे की मौजूदगी को परदे के पीछे, बंद दरवाजे की निचली सांस और की-होल आदि से महसूस किया था और वह भी तब जब वह मुट्ठ मारने या नहाने-धोने जैसे एकांत कार्यों मे व्यस्त रहा करती थी।
 
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Rabia

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और सैक्स की जिन गंदी-गंदी कहानियों को पढ़कर कुछ देर पहले तुम अपनी माँ को अपने बहतरीन सामाजिक ज्ञान का एक बढ़िया--सा एक्जाम्पल दे रहे थे, तो बेटा जी! वह पति, उसकी बीवी और उस तीसरे शख्स को तुम्हें उन्हीं कहानियों मे जाकर दोबारा खोजना चहिए क्योंकि इस घर की कहनी तुम्हारे ज्ञान के मुताबिक कभी नही होगी" जब अभिमन्यु उस शर्मसार हालत मे पहुँच गया जिस हाल से कुछ वक्त पीछे उसकी माँ जूझ रही थी तब वैशाली अपने बाएं पैर के अंगूठे से उसकी कमर को गुदगुदाते हुए बोली।

"एक तो चोरी ऊपर से सीना जोरी, हम्म! तो तुम्हें बारे मे पूरी जानकारी है। सॉरी मम्मी! पर मैंने सोचा था कि लाइफ मे पहली बार मौका लगा है तो क्यों ना मैं भी तुमसे माफी मंगवा लूं" अभिमन्यु गुदगुदी के अहसास से बिस्तर पर लोट लगाते हुए बोला।

"कैसी माफी और किस बात की माफी?" बिस्तर पर लोट लगाते अभिमन्यु के चूतड़ के नीचे वैशाली की काली कच्छी दबी हुई थी और जिसपर नजर पड़ते ही यौवन से भरपूर उस अत्यंत कामुक माँ की रुकी हुई उत्तेजना मे एकाएक पुनः उबाल आ गया, एक ऐसा अमर्यादित क्षण कि सभ्य और संस्कारी वैशाली बिना कच्छी के अपने जवान बेटे के समक्ष विचरण कर रही है।

"तुम्हारी दोस्त मिसिज मेहता की झूठी शिकायत को शायद तुम भूल गई मॉम, जिसकी वजह से तुमने बेवजह मेरी पॉकेटमनी बंद कर दी और घर से बाहर जाना बंद किया सो अलग" अभिमन्यु ने उसे बीस दिनों पहले बीती घटना को याद दिलाते हुए कहा।

"झूठी वह नही तुम हो, वह तो शुक्र करो कि तुम्हारी गंदी करतूत तुम्हारे पापा तक नही पहुँची वर्ना हमेशा के लिए तुम्हें घर से बाहर निकाल देते" बोलते हुए वैशाली की नजर अब भी बेटे के चूतड़ के नीचे दबी अपनी कच्छी पर थी।

"तुम ऐसी गलत हरकत कैसे कर सकते हो मन्यु? हम बहुत पुराने दोस्त है, तुम्हारी माँ समान है वह" उसने अपने पिछले कथन मे जोड़ा और इस पूरे घटनाक्रम मे पहली बार बेटे की मौजूदगी मे ही उसके दाएं हाथ की तीनों निर्जीव उंगलियां उसकी नंगी चूत के भीतर एकदम से सजीव हो उठती हैं।

"मैंने नही चुराई उनकी पेंटी, मैं पहले भी कई बार सफाई दे चुका हूँ" अभिमन्यु की तेज व उत्साहित मर्दाना आँखें तुरंत ताड़ जाती हैं कि साड़ी के भीतर घुसे उसकी माँ के दाहिने हाथ मे अचानक से हलचल होनी शुरू हो गई है, जिसके परिणाम स्वरूप वह बिना किसी अतिरिक्त झिझक के अपनी माँ के अधनंगे बाएं पैर को उठाकर उसे सीधे अपनी गोद के बीचोंबीच रख लेता है

"बिलकुल ठीक कहा तुमने, उसी सफाई के कारण ही तुम्हारी मेहरा आंटी की पेंटी आज मुझे तुम्हारे स्टडी ड्रॉअर मे मिल गई" वैशाली के कथन को सुन अभिमन्यु के पसीने छूट गए। अपने जिस तने हुए लंड की कठोरता का स्पर्श वह अपनी माँ के बाएं तलवे से करवाने का इच्छुक था, उसकी कठोरता शीघ्रता से घटने लगती है।

"चलो इस गलती के लिए भी मैंने तुम्हें माफ किया पर क्या तुम मुझे यह समझाओगे कि तुम्हें अपनी उम्र की लड़कियों मे दिलचस्पी क्यों नही है?" वैशाली ने पूछा और अपना बायां हाथ वह पुनः अपने दाएं मम्मे पर रख लेती है। शिकार और दाना! यह दोनो शब्द अर्थ मे भले ही एक-दूसरे से कितने अलग क्यों ना हों मगर फिर भी इन्हें समानार्थक शब्दों मे गिना जाता है, ठीक उसी तरह यदि अभिमन्यु के मन-मस्तिष्क को भेदना था तो उसके लिए वैशाली को सीधे उसकी जवान फितरत पर वार करना था और जो वह हौले-हौले करने भी लगी थी।

"हर किसी की अपनी अलग फैंन्टसी होती है। मुझे अपनी एज की गर्ल्स पसंद नही यह तुम्हें किसने कहा? मुझे लड़कियां पसंद है मगर भाभी टाइप और खासकर मॉम्स टाइप मे मेरे दिलचस्पी थोड़ी ज्यादा है। यू नो मम्मी, 'एम आई एल एफ' टाइप्स?" अभिमन्यु के चेहरे पर पसरा भय पलभर मे हवा हो गया जब उसकी माँ ने उसकी इस गंदी हरकत के लिए भी उसे फौरन माफ कर दिया और तभी वह अपनी कल्पना, अपनी निजी फैन्टसी को वैशाली के साथ सांझा करने से पीछे नही हट पाता।

"मॉम आई वुड लाइक टू फक" वैशाली अत्यंत तुरंत बेशर्मी से बोली मगर अंदर ही अंदर उसे कितनी अधिक शर्म का अनुभव हो रहा था यह उसकी कामुक अवस्था या वह स्वयं ही जान सकती थी।

"सही कहा मम्मी! कभी-कभी तुमपर मुझे बहुत ज्यादा प्यार आ जाता है। यू नो! मेरे किसी दोस्त की मॉम इतनी समझदार नही और हमारे जैसा कूल रिलेशनशिप भी किसी और का नही हो सकता" अपनी माँ के मुंह से 'फक" शब्द का उच्चारण सुन अभिमन्यु के सम्पूर्ण शरीर मे सुरसुरी छूटने लगी थी। वाकई उसकी माँ उसके सभी दोस्तों की माओं से बैस्ट थी और इस बात से हमेशा ही उसे खुद पर फक्र होता आया था।

"सो! तुम्हारी फैन्टसी मे तुम्हारी अपनी माँ का क्या रोल है" वैशाली अपनी साड़ी के पल्लू को अपने ब्लाउज पर से हटाते हुए पूछती है, उसके दाएं हाथ का अंगूठा उसकी चूत के फूले हुए भांगुर को छेड़ने लगा था।

"क्या तुम मेरे साथ, अपनी सगी माँ के साथ सैक्स करना चाहते हो? क्योंकि मुझे पता है मिसिज मेहरा की पेंटी तुमने किस कारण से चुराई थी। मैं भी तो उसी की तरह ही एक 'एम आई एल एफ' हूँ, अगर तुम्हें ऐसा लगता हो तो वर्ना मैं कितनी बूढ़ी हो चुकी हूँ मुझे पता है" अभिमन्यु के साथ वैशाली भी अपने तात्कालिक कथन पर चौंक उठी थी। वह हैरत से अपनी साड़ी के भीतर छुपे अपने दाहिने हाथ की हलचल को घूरती है, जोकि सचमुच साड़ी के ऊपर से उसके द्वारा अपनी चूत सहलाने का स्पष्ट दृश्य दर्शा रहा था। उस कुंठित माँ की उत्तेजना उस वक्त एकदम से शीर्ष पर पहुँच जाती है जब अपनी बेशर्मी को सफा त्यागकर वह अपने बाएं हाथ के अंगूठे और प्रथम उंगली के बीच खुल्लम-खुल्ला ब्लाउज के अंदर कैद अपने दाहिने निप्पल को बलपूर्वक जकड़ लेती है, अपने बेहद ऐंठे चुके निप्पल को तेजी से मसलने लगती है।

अपनी माँ के कथन और उसमे शामिल प्रश्न को सुन अभिमन्यु गहरी सोच मे पड़ जाता है। कैसे उसकी मर्यादित माँ उसकी आँखों के समक्ष ही अपने अधनंगे बदन से खेल रही थी, वह चाहकर भी वैशाली की अश्लील हरकत पर से अपनी अचरज भरी नजरें हटा नही पाता। सच कितना कड़वा होता है, वह स्वयं भी तो अपनी उत्तेजना के हाथों हमेशा हारता आया था फिर उसकी माँ कौन--सी दूसरे किसी ग्रह की प्राणी थी? मनुष्य चाहे कितनी तरक्की कर ले, लाख रोगों के इलाज ढ़ूँढ़े जा चुके हैं पर कामरोग का इलाज कोई ढ़ूँढ़ सका है भला? वह पुनः वैशाली के अधनंगे पैर को बिस्तर से उठाकर अपनी गोद के बीचोंबीच रख लेता है ताकि अपनी माँ के नंगे तलवे से अपनी पेंट के भीतर फड़फड़ाते अपने बेहद तने हुए लंड का स्पर्श करवा सके, उसके ऐसा करते ही जहां उसका लंड क्षणमात्र मे ही ठुमकी पर ठुमकी लगने लगता है वहीं वैशाली फौरन अपनी आँखें मूंद लेती है।

अपने बेटे की इन्हीं बेशर्म व ओछी हरकतों से आज वैशाली को सरेआम लज्जित होना पड़ रहा था। वह अभिमन्यु से उम्रदराज थी, परिपक्व थी, रिश्ते मे उसकी सगी माँ थी और यह अच्छे से जानती थी कि अपनी जिस निर्मल, निष्कलंक छवि का वह प्रत्यक्ष हनन कर रही है उसे कदापि उचित नही ठहराया जा सकता है। अपनी कामुत्तेजना को ढ़ाल बनाकर वह अपने इकलौते पुत्र के अंतर्मन को खंगालने की प्रयासरत थी, यह विध्वंश्क सत्य जानने की इच्छुक कि उसकी जन्मदात्री उसकी अपनी माँ के प्रति उसके विचार कितने निष्छल, निष्कपट और निस्वार्थ है। अपनी आँखें मूदकर उसने अपने मुट्ठ मारने की धीमी गति को एकाएक तीव्रता प्रदान कर दी ताकि अभिमन्यु की रही-सही झिझक का भी पूर्ण रूप से अंत हो जाए, बस उसके द्वारा पूछे गए प्रश्न का जवाबभर उसे मिल जाए फिर वह निर्णय ले सकेगी कि भविष्य मे उसे और क्या-क्या व कैसे-कैसे बदलावों से गुजरना होगा। वह यह भी सोच चुकी है कि यदि उसका बेटा सचमुच उसके साथ कौटुंबिक व्यभिचार करने का इच्छुक हुआ तो परिणामस्वरूप उसके अपना मुंह खोलते साथ ही उसे अपनी माँ के करारे थप्पड़ का सामना करना पड़ेगा और जो निश्चित उसकी घरनिकासी तक भी जा सकता था।
 
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Rabia

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मैं तुम्हारे साथ सैक्स नही करना चाहता मम्मी मगर ......" काफी सोच-विचारने के उपरान्त अभिमन्यु ने अपना अंतिम और निर्णायक फौसला सुना दिया, जिसे सुनकर वैशाली भी तत्काल अपनी मुंदी हुई आँखें खोल देती है। उसकी प्रसन्नता का कोई पार नही था जब उसे उसके बेटे द्वारा सकारात्मक उत्तर की प्राप्ति हुई लेकिन ज्योंहि उसकी नजर बेटे के चूतड़ के नीचे पूर्व से दबी अपनी कच्छी पर पड़ी उसकी प्रसन्नता मानो हवा हो गई। उसके अपनी आँखें मूंदने के पश्चात अभिमन्यु उसकी कच्छी को गायब कर चुका था और अपने इस घ्रणित कार्य को उसने बड़ी सफाई से अंजाम दिया था, जिसकी जरा--सी भी भनक आँखें मूंदे लेटी वैशाली को नही हो पाई थी।

"मगर क्या? हूं!" अपने नंगे बाएं तलवे पर अपने जवान बेटे के पूर्ण विकसित कठोर लंड का घिसाव वैशाली को अजीब-सी संसनाहट से भरने लगा था पर उस घिसाव और उससे पैदा होती संसनाहट को भुलाकर वह बेटे से ऊसके अधूरे उत्तर का स्पष्टीकरण मांगती है। अपनी तीन उंगलियों से निरंतर तेजी--से अपनी चूत को चोदती उस अत्यंत सुंदर माँ ने अपनी आँखें खेलने के उपरान्त भी अपनी अश्लील कार्यवाही को बंद नही किया था अपितु अपने दाएं निप्पल को भी वह लगातार बलपूर्वक उमेठे जा रही थी।

"मगर मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ, तुम्हें अपना सबसे करीबी दोस्त बनाना चाहता हूँ" कहते हुए अभिमन्यु वैशाली के बाएं अधनंगे पैर की घुटनों तक मालिश करना शुरू कर देता है। उसकी जवान आँखें अपनी माँ के प्रत्यक्ष मुट्ठ मारने का लुफ्त उठ रही थीं, ऐसा आनंद तो उसे तब भी कभी नही आया था जब वह छुप-छुपाकर उसे पूरी तरह से नंगी होकर मुट्ठ मारते हुए देखता था। विपरीत लिंगाकर्षण के अद्भुत प्रभाव ने उस नये-नवेले मर्द को यहां तक गिरा दिया था कि वैशाली को नग्न देखने का वह कोई मौका अपने हाथ से जाने नही देता था, फिर चाहे उसकी माँ बाथरूम मे नहाए या जबतब अपने पति से चुदवाए।

"क्या मैं तुम्हें माँ रूप मे अच्छी नही लगती जो तुम मुझ बूढ़ी को अपना सबसे खास दोस्त बनाना चाहते हो?" बेटे के बलिष्ठ हाथों की मालिश से हौले-हौले खुद को चरम पर पहुँचते महसूस कर वैशाली ने पूछा।

"इश्श्श्श्! यह क्या कर रहे हो मन्यु? उफ्फ! माँ को ...माँ को दर्द हो रहा है बेटा" हस्तमैथुन और बेटे की मालिश से उत्पन्न होती उत्तेजना को पीड़ा का नाटकीय रूप देती वह कामुक अधेड़ माँ जोर-से सिसियाते हुए बोली।

"नाटक मत करो मॉम, मुझे पता है कि तुम्हें कोई दर्द-वर्द नही हो रहा। खैर हम अगर बैस्ट फ्रेंड बनते है तो उससे हमे बहुत फायदे होंगे। एक-दूसरे से हमारी शर्म खत्म हो जाएगी, अपनी बॉडी की जरूरतों को हमे छुप-छुपाकर पूरा नही करना पड़ेगा। हम दोनो अडल्ट हैं, तुम भी जानती होगी कि मैं भी मैस्टबेट करता हूँ। तुम जानती हो ना माँ?" वैशाली के बाएं पैर को दाएं से दूर खींच अभिमन्यु ने उनके बीच एक निश्चित चौड़ाई उत्पन्न करते हुए पूछा। उसकी इस शर्मनाक हरकत के नतीजन उसकी माँ की साड़ी उसके पेटीकोट समेत उसकी ढ़की हुई मांसल जांघों के काफी ऊपर तक पहुँच जाती है, इतने ऊपर कि अब वह अपनी माँ के दाएं हाथ की तीव्रता से हिलती हुई कलाई को साफ देख सकता था।

"रुक जा वैशाली, यहीं रुक जा अब भी कुछ नही बिगड़ा। तेरे बेटे के विषय मे तू पहले से ही वह सबकुछ जानती है, जिसे जानने का स्वांग रचकर बस तू अपनी शारीरिक कामिच्छा की पूर्ति करने का उद्दंडित प्रयास कर रही है" सहसा वैशाली के कानों मे उसके अंतर्मन की यह नैतिक आवज गूंजने लगी मगर अब उस आवाज से मोल-भाव करने का वक्त बीत चुका था, तेजी-से अपनी चूत के भीतर अपनी उंगलियां हिलाती अपने पति द्वारा तिरस्कृत वह विवाहित माँ अपने अंतर्मन को यह सोचकर फौरन झुठला देती है कि उसके बेटे से उसकी पूछताछ अभी पूरी नही हो पाई है।

"उन्ह! तुम एक निहायती बेशर्म और गंदे लड़के हो मन्यु, जब तुम जानते हो कि तुम्हारी माँ तुम्हारे रग-रग से वाकिफ है फिर भी तुम यदि उसके ही मुंह से सुनना चाहते हो तो सुनो। हाँ मुझे तुम्हारी मुट्ठ मारने की घिनौनी हरकत का पता है ...ओह! उन्ह! और यह भी पता है ...उन्ह! कि मेरा बद्तमीज बेटा कभी-कभार अपनी माँ को सोचकर ही मुट्ठ मारा करता है" अब वैशाली नही मात्र उसकी उत्तेजना बोल रही थी। सिसकियां लेते हुए वह पहले से कहीं ज्यादा तीव्रता से अपनी उंगलियां अपनी निरंतर रस उगलती चूत के अंतर-बाहर करने लगी थी, जिसकी संकीर्ण गहराई मे एकाएक अधिक से अधिक गाढ़ कामरस उमड़ने लगा था। उसके निप्पल बुरी तरह से ऐंठ गए थे और साथ ही उसकी गांड के छेद मे अविश्वसनीय सिरहन की लंबी-लंबी लहरें दौड़ना शुरू हो गई थीं, कुल मिलाकर वह स्खलन से पूर्व महसूस होने वाली आनंदमयी तरंगों मे पूर्णरूप से खो चुकी थी।

"हाय मम्मी! तुम मेरे, अपने इकलौते बेटे के बारे मे इतना गलत सोचती होगी, मुझे बिलकुल नही पता था लेकिन कोई बात नही, अब हम बैस्ट फ्रेंड जो बन गए हैं। इसके अलावा मुझे लगता है कि हमें अपनी न्यूडिटी को भी कोई खासी वेल्यू नही देनी चाहिए बल्कि मैं तो कहूंगा कि अगर हमारे बीच अच्छी अंडरस्टेंडिंग है तो हम अपने मनमाने ढंग से घर मे रह सकते हैं" अपनी माँ की कामुक सिसकियों से भड़के जवान अभिमन्यु ने बेखौफ उसे अपनी उम्र मुताबिक ही अपनी कामलुलोप इच्छाएं बतना जारी रखा। फिलहाल तो बस उसे वैशाली से गहरी दोस्ती निभाने की चाह थी, एक इतनी गहराई युक्त दोस्ती जिससे वह दोनों एक-दूसरे से अपना कोई राज ना छुपा सकें और उनके मर्यादित रिश्ते मे हर संभव खुलापन आ सके। वह उसके साथ कोई जबरदस्ती नही करना चाहता था, वह चाहता था कि उसकी माँ खुद उसे आमंत्रित करे, उसे ललचाए और अगर वह स्वयं ऐसा करती है तब वह उसकी मर्जी से उसे जरूर चोदेगा।

"तो क्या ...तो क्या न्यूडिटी से तुम्हारा यह मतलब है कि घर पर मैं तुम्हारे सामने नंगी रहा करूं? तुम्हारी अपनी सगी माँ। ओह मन्यु! तुम सच मे एक घटिया सोच रखने वाले लड़के हो, उन्ह! उन्ह! अपनी मॉम ...आह! अपनी मॉम को घर मे नंगी होकर काम करते देख तुम्हें शर्म नही आएगी बेशर्म लड़के। उफ्फ! मैं घर मे नंगी घूमूं, जबकि मेरे साथ मेरा अपना जवान बेटा भी घर मे मौजूद हो। आह! मन्यु आह! क्या बेहुदा चाहत है तुम्हारी" वैशाली स्खलन के बेहद करीब पहुँचते हुए फुफकारी। एक तो बेटे की उपस्थिति और ऊपर से उसकी वर्जित व निषिद्ध चाहतों ने उस अबतक रही संस्कारी माँ को स्वयं निर्लज्ज बना दिया था। अभिमन्यु की सुर्ख लाल आँखों मे खुद अपनी आँखों समान तैरती वासना देख बिस्तर पर लेटी खुल्लम-खुल्ला मुट्ठ मारती वह शिष्ट माँ घबराहटवश अपना बाएं हाथ अपने कड़क निप्पल से हटाकर अत्यंत-तुरंत उसे अपने बेटे की ओर बढ़ा देती है।

"ओह! मन्यु, जब तुम्हारी बेशर्म माँ को तुम्हारे सामने यू खुलेआम मुट्ठ मारने मे शर्म महसूस नही हो रही तो क्या पता कल से वह सचमुच ही घर मे नंगी ना घूमने लग जाए और क्या पता कि आह! आह! आह! कि आगे वह तुमसे चु ......" अभिमन्यु ने ज्यों ही अपनी माँ के बाएँ हाथ को थामा, उसकी आँखों मे देखते हुए वह तीव्रता से झड़ पडी़।

"उफ्फ! मन्यु उफ्फ! आहऽऽऽऽऽऽ! आहऽऽऽऽ! अभिमन्यु मैं गई" पूरा बेडरूम वैशाली की सीत्कारों से गूंज उठा।

"कोई नही मॉम, कोई बात नही। मैं हूँ ना यहाँ, तुम्हारा बेटा तुम्हारे पास ही है घबराओ मत" कहते हुए अभिमन्यु अपनी माँ का कांपता बाएँ हाथ अपने दोनो पंजों से सहलाने लगता है।

"फिकर मत करो, मैं तुमसे सैक्स नही करना चाहता। आहां! नेवर मॉम और तुम कोई बेशर्म नही हो, बेशर्म तो मैं हूँ देखो जिसने तुम्हें रुला दिया, अपनी बैस्ट फ्रेंड को रुला दिया" कुछ मनभावन स्खलन और कुछ आंतरिक लज्जा के प्रभाव से वैशाली की आँखे बहने लगी थीं जिन्हें देख अभिमन्यु भी लगभग रोने-सा लगता है। भले ही वह जवान था, कई बार चुदाई कर चुका था मगर जिस तरह के अद्भुत, अकल्पनीय स्खलन को वह अभी तत्काल मे देख रहा था मानो उसका सम्पूर्ण शरीर एक अनजाने भर से थरथरा उठा था। उसके लंड की कठोरता सुन्न-सी हो चुकी थी, माथे से बहकर पसीना उसके गालों से होता हुआ उसकी शर्ट भिगोने लगा था।

स्खलन के दौरान वैशाली की पीठ एकाएक बिस्तर से ऊपर को उठ गई, उसके चेहरे पर गहन पीड़ा के भाव उमड़ आये थे, चीखते हुए वह रोने लगी थी, उसके शारीरिक कंपन की तो कोई सीमा ही नही रही थी और जिसे प्रत्यक्ष इतने नजदीक से देख सहसा अभिमन्यु के जबड़े जोरों से भिंच गए जैसे अपनी माँ के स्खलन के आनंद को वह दर्द स्वरूप स्वयं महसूस करने लगा था।

कुछ देर तक हांफते रहने के उपरान्त वैशाली का ऐंठा हुआ शरीर स्थिर हो गया और ज्यों ही वह शांत हुई, अभिमन्यु फौरन उसकी साड़ी को नीचे खींच उसके घुटनों तक ढांक देता है ताकि स्खलन के साथ बाहर आए अपने कामरस को देख पुनः उसकी माँ को लज्जा का सामना नही करना पड़े। वैशाली ने जब यह देखा तो उसकी नम आँखें उसके बेटे की नम आँखों से जा टकराईं और यही वह क्षण था जब क्रोधित या शर्मिंदा होने की बजाए वह अभिमन्यु को अपने बाएं हाथ से अपनी ओर खींचते हुए उसे अपने सीने से चिपका लेती है।

"लो जी करलो बात! मै तो तुम्हें काफी डेरिंग लड़का समझती थी जो कुछ दिनों पहले मेरी दोस्त, यानी कि अपनी माँ समान औरत के बाथरूम से उसकी यूस्ड पेंटी तक चुरा लाया था पर तुम तो चूहा निकले" वैशाली अपने बाएं हाथ से अभिमन्यु की पीठ सहलाते हुए बोली, उसके चेहरे पर बेहद सुंदर--सी मुस्कान छा गई थी।

"और पता है इस चूहे की सजा क्या है? उसने उसे अपने सीने से हल्का सा दूर करते हुए पूछा।

"हम्म! क्या है सजा बोलो?" अभिमन्यु धीरे से फुसफुसाया, वह अबतक अपनी माँ के उस अद्भुत स्खनल के अलावा कुछ भी अन्य सोचने-विचारने मे असमर्थ था और उसके चेहरे पर छाई परेशानी व घबराहट देख वैशाली के मन मे एकदम से कुछ ऐसा अजीब कार्य करने की इच्छा जाग्रत हुई, जो उसके माँ होने की छवि को पुनः दागदार कर दे। उसने अभिमन्यु के होंठों को चूमने का निर्णय लिया पर फिर अचानक दूसरा ख्याल मन मे आते ही उसके चेहरे पर व्याप्त उसकी सुंदर--सी मुस्कान एक दुष्ट मुस्कान मे परिवर्तित हो जाती है।

"तुम्हें तुम्हारी यह शर्ट अपने हाथों से धोनी पड़ेगी, मंजूर?" वैशाली ने पूछा तो अभिमन्यु हैरत मे पड़ गया।

"यह कैसी सजा हुई मॉम? मैंने तो सोचा था कि इसबार तुम मुझे सीधे घर से बाहर निकाल देने से कम सजा नही दोगी या फिर मेरे अगले महीने की पॉकेटमनी पर भी रोक लगा दोगी" अभिमन्यु ने उल्टा उससे प्रश्न किया।

"ऊंहूं! यह सजा उससे भी बड़ी है शैतान लड़के" हँसते हुए ऐसा कहकर वैशाली अपने दाएं हाथ को अपनी साड़ी से बाहर निकाल लेती है। उसका पूरा पंजा उसके गाढ़े व चिपचिपे कामरस से भीगा हुआ था और जिसे अपने बेटे की अचरच से फट पड़ी आँखों मे झांकते हुए वह नई-नवेली बेशर्म माँ उसकी शर्ट से पोंछने लगती है। दाईं छाती पर अपनी लिसलिसी उंगलियों को रगड़ने के उपरान्त बाकी बचा कामरस उसने दाईं छाती से पोंछ डाला।

"उफ्फ मम्मी! तुम कितनी डर्टी हो। छी! छी! छोड़ो मेरी शर्ट को यू नॉटी बिच" अभिमन्यु भी हँसते हुए बोला, वह फौरन वैशाली के गीले दाएं हाथ से दूर होने का झूठा प्रयास करने लगता है। उसकी नाक के दोनों नथुए उसकी माँ के कमरस की मादक सुगंध से तुरंत फूल गए थे, स्खलन के चरम को छू लेने के बाद उसका चेहरा पूरनमासी के चाँद--सा दमक उठा था जिस कारण अभिमन्यु की खोई उत्तेजना दोबारा लौट आती है और अपनी उसी उत्तेजना के मद मे वह कब अपनी माँ के संबोधन मे 'बिच' जैसे गंदे शब्द को शामिल कर लेता है इसका ख्याल जबतक उसे हो पाता तब तक काफी देर हो चुकी थी

"तो मैं कुतिया हूँ? घटिया इंसान, चलो अब जाओ यहाँ से, माफ किया" वैशाली ने मुस्कान के साथ कहा। उसके लगातार अभिमन्यु की छोटी-बड़ी गलतियों को यूं ही हमेशा से माफ करते जाने का परिणाम था जो आज उसे अपने इकलौते बेटे के मुंह से एक कुतिया की संज्ञा प्राप्त हुई थी और इसपर भी जैसे फौरन उसने उसे माफ भी कर दिया था, अजीब तो था मगर जानकर भी वह उस अजीब शब्द के हँसी-हँसी मे भुला देती है।

बिस्तर से नीचे उतरने से पूर्व अभिमन्यु ने वैशाली के माथे का एक छोटा--सा चुम्बन लिया और फिर बिना उसकी ओर देखे तेजी से उसके बेडरूम के खुले हुए दरवाजे से बाहर जाने लगता है।

"मुझे मेरी पेंटी धुली हुई वापस चाहिए" वह दरवाजे से मात्र दो कदम आगे निकल पाया था कि सहसा अपनी माँ की आवाज और हँसी सुनकर वहीं ठिठक जाता है।

"तुम्हें पता था माँ। ओह मॉम! यू डेम फकिंग नॉटी बिच। खैर तुमने मेरे स्टडी ड्रॉअर से मेहता आंटी की पेंटी चुराई तो मैंने तुम्हारी चुरा ली, हिसाब बराबर। अब यह पेंटी मेरी है" कहकर अभिमन्यु अपनी पैंट के अगले हिस्से के भीतर हाथ डालकर वैशाली की कच्छी को बेशर्मों की तरह वहीं उसके सामने बाहर निकाल लेता है और अपने दाएं हाथ की प्रथम उंगली के ऊपर उसे लपेट गोल-गोल घुमाते हुए हँसकर उसकी नजरों से ओझल हो जाता है। वैशाली स्तब्ध है कि उसके बेटे ने उसकी कच्छी को बिलकुल अपने लंड के ऊपर छुपाया था या शायद उसने उसे सीधे अपनी अंडरवेयर के अंदर रखा था।

"बिच! तूने अपनी इज्जत खुद अपने ही हाथों गवां दी और जो अब कभी वापस नही आएगी" वैशाली बिस्तर पर बैठे हुए यही सोच रही थी।
 
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अपने कमरे के भीतर आकर अभिमन्यु ने दरवाजा लॉक किया और उसी दरवाजे से अपनी पीठ रगड़ते हुए नीचे फर्श पर बैठ जाता है। तत्पश्चात उसने अपने दाएं हाथ मे पकड़ी अपनी माँ की काली कच्छी जोर से फर्श पर दे मारी और अपने दोनों हाथ से अपना चेहरा ढ़ांक कुछ समय पीछे घटे पूरे घटनाक्रम पर सोचने-विचारने लगता है।

"वह बिलकुल सही कहती है, मैं एक निहायती बेशर्म और घटिया इंसान हूँ" वह खुद को कोसते हुए बुदबुदाया।

वैशाली का स्वभाव हमेशा उसके गर्व का कारण रहा था, उसके साथ ही उसकी माँ ने उसकी बड़ी बहन की भी एक--सी परवरिश की थी, कभी कोई अंतर नही। हाँ यह अवश्य था कि बेटा घर का चिराग माना जाता है और इस वजह उसे भी अपने माता-पिता का अतिरिक्त स्नेह प्राप्त था पर इसका यह अर्थ कतई नही कि उन्होंने अपनी बिटिया को कभी अनदेखा किया हो, बल्कि अनुभा की भव्य शादी की गूंज सालभर बाद भी घर की चारदीवारी मे सुनाई देती थी।

पिता मणिक चंद्र जैन! जिसे कभी-कभार अभिमन्यु और अनुभा माणिकचंट गुटखा के नाम से भी संबोधित कर देते थे मगर तब, जब दोनों भाई-बहन एकांत मे वार्तालाप कर रहे हों वर्ना तो पिता के क्रोध मात्र से ही दोनों को अक्सर दस्त लग जाया करते थे। वैशाली को जब अपने पति के बिगड़े हुए नाम का पता चला तो अपने बच्चों पर गुस्सा करने से पहले वह भी दिल खोलकर हँसी थी और जब हँसते-हँसते उसके पेट मे बल पड़ गया तब वह चाहकर भी उन्हें डांट नही पाई क्योंकि अधेड़ उम्र की वह हँसमुख माँ खुद अपने बच्चों की शैतानी मे शामिल हो गई थी।

सिलसिला आगे बढ़ा और देखते ही देखते कब अनुभा अपने ससुराल रुखसत हो गई, घर मे बाकी बचे तीनो सदस्यों को पता ही नही चल पाया। मणिक सरकारी नौकर था, बीटीसी का एक पीजीटी प्रॉफेसर जिसे अक्सर ट्रेनिंग प्रोग्राम्स के चक्करों मे अन्य सरकारी विभागों मे आना-जाना होता था। पहले-पहल इन विजिटों से उसे कोई लगाव नही था, अॉफिस से सीधे घर, घर पर उसकी सुंदर--सी बीवी और दो प्यारे बच्चे, मानो यही उसका पारिवारिक और सामाजिक संसार था। अनुभा की महंगी शादी का खर्च और घर का लोन दोनों से जूझते मणिक को नये पाठ्यक्रम मे एकाएक यह खबर लगी कि बीटीसी के ट्रेनिंग प्रोग्राम की हर छोटी-बड़ी विजिट पर अब अलग से खर्च मिलेगा। टीए डीए, खाना-रहना खर्चा पहले से अधिक था और फर्जी बिल भी जो कि लगभग हर सरकारी विभाग मे मान्य हो जाते है, मणिक ने तब से एक भी विजिट अपने हाथ से नही जाने दी और पिछले सात-आठ महीनों से वह लगातर सिर्फ कमाई करने मे व्यस्त था।

बेटी की विदाई और पति की कमाई से घर सूना सा रहने लगा, सही मायने मे अब घर मे सिर्फ माँ और बेटे ही बचे थे। वैशाली को पति के प्यार की असल कमी भी तभी खलनी शुरू हुई जब मणिक के बगैर उसकी रातें बिस्तर पर महज करवट बदलते रहने मे बीतने लगीं। हर विजिट पर जाने से पहले पत्नी का मुंह लटकते देख चुदाई के शौकीन मणिक का भी कुछ यही हाल था मगर शर्मवश कि मात्र चुदाई के चलते वह हाथ आए पैसे कमाना छोड़ दे, वैशाली ने उसके आने-जाने पर कभी कोई रोक नही लगाई और मणिक भी पत्नी की इस समझदारी को समझ संतोष कर गया। वाकई मणिक पर बहुत कर्जा हो चुका था, उसका आधा जीपीएफ भी उसने अपनी सेवानिवृत्ति से पहले ही निकाल लिया था।

चार से बचे तीन और तीन से बचे दो, जब माँ-बेटे घर पर अकेले रह गए तब वैशाली का पूरा ध्यान अपने बेटे की देखरेख पर केन्द्रित हो गया और तभी से उसे अभिमन्यु की गलत हरकतों के विषय मे पता चलने लगा, गलत हरकतें क्या वही जवान होते हर मर्द की नई-नवेली ख्वाहिशें और उन ख्वाहिशों की खानापूर्ती के जरिए को खोजने की हर संभव तलाश।

जल्द ही वैशाली को बेटे के रोजाना क्रम से मुट्ठ मारने की भनक लगी, नहाने के बाद वह अक्सर लापरवाही से अपने अंदरूनी कपड़े गीले ही बाथरूम के फर्श पर छोड़ जाया करता था और जिन्हें धोते वक्त वह हमेशा ही उन्हें चिपचिप--सा होते पाती थी। उसके बिस्तर की बेडशीट और ओढ़ने की चादर पर भी उसे पीले-पीले गाढ़े दाग लगे नजर आते थे जिसकी सत्यता आसानी से समझना उस विवाहित स्त्री के लिए कोई बड़ी समस्या नही थी। समस्या थी तो सिर्फ अभिमन्यु के नियम से मुट्ठ मारने की गंदी आदत जो की बीतते समय के साथ खुद भी तीव्रता से बढ़ती ही जा रही थी।

एक रोज वैशाली ने मल्टी की छत पर उसे पड़ोस की कामवाली के नंगे मम्मे दबाते हुए रंगे हाथों पकड़ लिया पर बेटे को समझाने के अलावा वह ठीक से डांट तक नही सकी। उसकी जवान उम्र की प्यास और दोनो मेल-फीमेल की रजामंदी ने उस क्रोधित माँ के क्रोधित मुंह को एकाएक मानो सिल--सा दिया था और परेशान सी वह वापस अपने फ्लैट मे लौट आई थी। कुछ दिनों बाद उस कामवाली ने स्वयं वैशाली से शिकायत की कि अभिमन्यु उसे राह चलते छेड़ता है, जबतब उसके गुप्तांगों को बुरी तरह से मसलना शुरू कर देता है और एक-दो दिन ही पहले पैसों का लालच देकर चुदाई करवाने का प्रस्ताव भी उसने उसके समक्ष रखा, वह कामवाली यहीं नही रुकी बल्कि खुली धमकी देकर गई कि अगली बार परेशान करने पर वह अभिमन्यु की सीधे पुलिस कमप्लेन कर देगी। उस सारी रात वैशाली अपने बिस्तर पर लेटी मात्र रोती रही थी, बेटे से इस अश्लील विषय मे बात करने मे उसे बेहद संकोच हो रहा था और अंतत: यह बात भी आई-गई सी हो गई।

अकेले रात नही काट सकने की अपनी गंभीर बीमार का इलाज वैशाली को भी जल्द से जल्द ढ़ूंढ़ना था और इस मर्ज की दवा उसे मिली उसके बेटे की पॉर्न देखने की दूसरी नियमित गंदी आदत से। पढ़ी-लिखी वैशाली जबतब घर के इकलौते कम्प्यूटर पर गेम आदि खेलकर अपना उबाऊ समय काटा करती थी और साथ ही इंटरनेट पर खाना बनाने की नई रेसेपीज देखना भी उसे काफी पसंद था। एक रोज दोपहर मे वह एकदम से दौड़कर किचन से बाहर आई और बीते दिन देखी करेले की व्यंजनविधि कम्प्यूटर की हिस्ट्री मे तलाशने लगी, जल्दबाजी मे वह यह भूल गई थी कि बीती देर रात तक कम्प्यूटर को अभिमन्यु ने यूज किया था। किचन मे बनते करेले जलकर खाक हो गए और वैशाली को रेसेपी की जगह दर्जनों पॉर्न वेबसाइट्स की लिंक देखने मिली, कौतुहल और जिग्यासावश वह उन पॉर्न वेबसाईट्स को देखने से खुद को रोक नही पाई और तभी से उसे भी मुट्ठ मारते वक्त अपने मोबाइल पर हर तरह का पॉर्न देखने की आदत सी हो गई। इसी के जरिए अभिमन्यु पर उसकी जासूसी शुरू हुई जो अबतक जारी थी, उसे पता चल चुका था कि उसके बेटे को 'एम आई एल एफ' और 'बी बी डब्ल्यू' पॉर्न देखने मे 'टीन' पॉर्न से कहीं ज्यादा रुचि है।

आगे एक रोज वह हॉल मे बैठा खुलेआम मुट्ठ मारते हुए पकड़ा गया था मगर वैशाली ने अपने आगे बढ़ते कदमों को रोक बिना कोई हलचल किए फौरन वापसी की राह पकड़ ली थी। इसके अलावा बीते कुछ महीनों से उसे संदेह था कि अभिमन्यु उसके एकांत कार्यों को छुप-छुपाकर देखने का उद्दंड करने लगा था, बाथरूम मे नहाते वक्त उसने बंद दरवाजे की निचली सांस से किसी व्यक्ति के पैरों द्वारा अवरुद्ध होती रोशनी से यह अनुमान लगाया था और उसके साथ घर मे सिर्फ उसका बेटा ही रहता है तो ऐसे मे संदेह करने की तो अब कोई गुंजाइश ही नही गई थी। यही नही अपने बेडरूम के भीतर भी उसने उसे लगातार तांका-झांकी करते हुए देखा था, पहले क्रोध फिर शर्म और अंत मे टूटकर वैशाली उसकी हरकतों की जैसे आदी-सी हो जाती है।

हाल-फिलहाल मे बीते पिछले बीस दिनों पहले वैशाली की सबसे अभिन्न महिला मित्र मिसिज मेहता अचानक से उसके घर आ धमकी और उसने वैशाली को अभिमन्यु की एक नई घ्रणित करतूत से परिचित करवा दिया की उसके घर हालचाल पूछने का बहाना बनाकर वह बाथरूम से उसकी कच्छी चुराकर ले गया है। अपने बेटे के बचाव मे मिसिज मेहता से उसकी काफी तूतू-मैंमैं हो गई थी मगर अंत तक उसने मिसिज मेहता की शिकायत को अपना विश्वास नही दिया था बल्कि उल्टे वह अपनी सबसे अच्छी दोस्त पर ही बेगैरत होने का इल्जाम लगा देती है। हालांकि उसने तत्काल अपने बेटे की पॉकेटमनी पर रोक लगा दी थी, उसका कॉलेज के अलावा कहीं और घूमने-फिरने जाना भी तब से बिलकुल बंद था और आज सुबह जब सफाई के दौरान उसे अभिमन्यु के स्टडी ड्रॉअर से वाकई मिसिज मेहता की कच्ची बरामद हो गई अत्यंत तुरंत वह खुद की ही परवरिश पर शर्मिंदा हो जाती है।

मणिक उस वक्त घर पर मौजूद था, वैशाली ने निर्णय लिया कि आज वह अपने बेटे की सभी गंदी करतूतों को अपने पति के साथ सांझा करके ही रहेगी क्योंकि पानी अब सिर के पार जा चुका था। कुछ यही सोचते हुए वह तेजी से अपने बेडरूम की दिशा मे चल पड़ी मगर चाहकर भी बेडरूम के भीतर कदम नही रख पाती और इसके दो मुख्य कारण थे :-
१) मणिक के घोर गुस्से से अभिमन्यु कहीं का नही रहता, क्या पता आज वह अपने लाडले को एक अंतिम बार देखती? या तो उसका पति उसके बेटे को जान से ही मार देता या फिर हमेशा-हमेशा के लिए उसे घर से बेदखल कर देता।
२) अभिमन्यु को बिगाड़ने मे सबसे बड़ा हाथ खुद वैशाली का ही था। यदि समय रहते वह अपने बेटे पर सख्ती करती, उसे उसके पिता का झूठा भय दिखाती या स्वयं भी उसकी पिटाई कर सकती थी मगर इन तीनों मे से वैशाली ने कुछ नही किया बल्कि बेटे की देखादाखी खुद भी रोजाना नियम से मुट्ठ मारने लगी और पॉर्न तो जैसे अब उसकी रग-रग मे बस चुका था। जैसे वह अबतक अपने बेटे की जासूसी करती आई है अब वक्त बदल गया था, उल्टा अभिमन्यु अपनी माँ की जासूसी करने लगा था और एक तरह से उसकी जासूसी मे वैशाली की सहमति भी शामिल थी वर्ना अबतक या तो वह पूरी तरह से नंगी होकर मुट्ठ मारना छोड़ चुकी होती या ठीक उसी पूर्ण नंगी हालत मे उसने बाथरूम के भीतर नहाना बंद कर दिया होता।

मणिक के घर से चले जाने के बाद वैशाली ने रोजमर्रा के सभी काम निबटाए और खुद के लिए दो परांठे बनाकर, कम्प्यूटर पर पॉर्न देखते हुए उन्हें खाने लगी। अभिमन्यु अपना लंच कॉलेज मे ही करता था तो घरपर उसके लिए सिर्फ रात का खाना बनाया जाता था। मिसिज मेहता की पेंटी वाकई बेटे द्वारा चुराए जाने को लेकर और पति के इस बार पिछले टूर से भी लंबे टूर पर चले जाने से परेशान वैशाली बिना हॉल का दरवाजा चैक किए अपने बेडरूम मे आ गई। यह सोचकर कि हॉल का दरवाजा बंद है, बिना अपने बेडरूम का दरवाजा लगाए उसने अपनी पेंटी को उतरकर फौरन अपनी गीली चूत से खेलना शुरू कर दिया। अगर अभिमन्यु अचानक से बीच मे नही आता तो कुछ ही पलों बाद हमेशा के जैसे वैशाली का पूरी तरह से नंगी होकर मुट्ठ मारने का इरादा था और जो एकाएक बाधा उत्पन्न हो जाने के कारण अधूरा रह गया था।

"शिट मैन! कितना बड़ा गधा हूँ मैं जो जानबूझकर मॉम के प्राइवेट मोमेन्ट को तबाह करने उनके बेडरूम मे चला गया था। शिट! शिट! शिट!" अपने कमरे के बंद दरवाजे से टिककर नीचे फर्श पर बैठा अभिमन्यु खुद को लताड़ते हुए बोला।

"क्या सोच रही होंगी वह मेरे बारे मे, वैसे भी मैं पहले से ही अपनी काफी इज्जत उनकी आँखों मे खो चुका हूँ और आज तो मैंने हद ही कर दी" उसने पुनः अपना चेहरा अपने दोनों हाथों से ढांक लिया।

यह बिलकुल सत्य था कि अभिमन्यु के मन-मस्तिष्क मे अपनी माँ के प्रति कोई गलत भावना नही थी, बस जबतब उसे वैशाली को देख अपनी सबसे पसंदीदा 'एम आई एल एफ' विक्की वेट्टे की याद आ जाती थी। हाँ यह जरूर सत्य था कि उसकी माँ का अत्यंत कामुक नंगा बदन उसके दिल के भीतर तक घर कर चुका था मगर इसके बावजूद उसने वैशाली पर कभी कोई जबरदस्ती नही की थी, बल्कि उसके मुट्ठ मारने या नहाने के अद्भुत दृश्य को छुप-छुपाकर देखने के उपरान्त वह भी अपनी तृष्णा को अपने मनमाने ढ़ंग से शांत कर लिया करता था।

"उनके तलवे को अपने खड़े लंड पर रगड़ा, उनकी टांगें चौडा़ईं ताकि उन्हें और शर्मिंदा कर सकूं, उन्हें भला-बुरा कह जबकि वह मे माँ हैं और तो और उनकी पेंटी तक चुरा ली मैंने" अपनी गलतियों को सोचकर वह बेहद गंभीर व भावुक हो चुका है।

"मेरे सामने नंगी होकर रहो मम्मी, छि! खुल्लम-खुल्ला मेरे सामने मुट्ठ भी मारो क्योंकि हम बैस्ट फ्रेंड हैं" खुद की निकृष्ट इच्छाओं पर अब उसे क्रोध भी आने लगा था।

"बिच, मेरी मॉम बिच। अच्छा तो फिर मैं क्या हूँ? एक कमीना, बड़ा हरामखोर बेटा" उसका सिर दर्द से फटने लगा है।

"दूरी, हाँ दूरी। बस यही मेरी सजा है कि मैं अब उनसे दूरी बना लूं ताकि उन्हें मेरा यह बेशर्म चेहरा दोबारा ना देखना पड़े" वह फर्श से उठकर सीधे अपने बिस्तर पर जा गिरा, उसे एक लंबी व गहरी नींद की सख्त आवश्यकता थी और चंद पलों मे वह सो भी गया था।

इस चूतिया से समाधान को ठीक उसी की उम्र के नौजवान निकाल सकते है क्योंकि एक ही घर मे रहते हुए वह अपनी माँ से और कितनी अधिक दूरी बना सकता था।
 
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अभिमन्यु के आँखों से ओझल होने के पश्चात वैशाली भी बिस्तर से नीचे उतरने लगती है कि सहसा उसकी नजर बेडशीट के उस बड़े--से गीले धब्बे पर पडी जो उसके कामरस के उसकी साड़ी व पेटीकोट से रिसने के बाद बेडशीट पर अंकित हुआ था। खैर यह कोई विशेष बात नही कि उसके स्खलन ने आज सुबह ही उसके द्वारा बदली गई नई बेडशीट को इतने जल्दी गंदा कर दिया था, बल्कि वैशाली को अचरज इस बात पर हुआ कि इस तरह के लंबे व अधिकाधिक रिसाव के स्खलन उसे उसकी बीती हुई जवानी मे हुआ करते थे। चूंकि अब वह जवानी की दहलीज पार कर एक अधेड़ उम्र को पा चुकी है फिर क्या कारण रहा जो एकाएक उसके स्खलन ने पुनः उसे उसकी बीती हुई जवानी मे वापस पहुँचा दिया था?

"इन्सेस्ट होता हो या ना होता हो मगर उसका असर जरूर होता है" वह धीरे से फुसफुसाते हुए खुद से बोली और अपने ही व्यभिचारिक कथन पर बुरी तरह से लजा जाती है। वह इतनी नादान व अपरिपक्व स्त्री नही थी जो यह जान ना सके या मान ना सके कि उसके इस मनभावन स्खलन और अधिकाधिक रिसाव का एकमात्र कारण उसका अपना सगा जवान बेटा था। बेटे की मौजूदगी मे यूं खुल्लम-खुल्ला मुट्ठ मारना सचमुच एक ऐसा विचित्र रोमांचकारी क्षण था जिसकी अकल्पनीय रोमांचकता को दुनिया की कोई भी माँ नकार नही सकती थी और फिर यह कार्य सर्वदा अनुचित भी तो था, खुद वैशाली की चूत झड़ने के उपरान्त अब भी कुलबुला रही थी जैसे दोबारा उसे अभिमन्यु की प्रत्यक्ष उपस्थिति मे झड़ने का बेसब्री से इंतजार हो।

अपने चेहरे पर शर्म और कामुकता के मिलेजुले भाव लिए वह दो अत्यंत सुंदर जवान बच्चों की अधेड़ माँ अपनी अस्त-व्यस्त साड़ी को संभालते हुए अपने बेडरूम के अटैच बाथरूम के भीतर घुस जाती है। उसने तीव्रता से खुद को नग्न किया और फिर सीधे शॉवर के नीचे आकर खड़ी हो गई, ठंडे पानी की फुहार उसके तपते बदन पर गिरते ही मानो भाष्प मे तब्दील होने लगी थी। किसी अमुक विद्वान ने बिलकुल
सही कहा है कि तन की ज्वाला, काम की अग्नि से ज्यादा ज्वलनशील अन्य कुछ भी नही, जिसने अच्छे-अच्छे ब्रह्मचारी, ऋषि-मुनियों के वर्षों के तप को भी पलभर मे जलाकर राख कर दिया। फिर वैशाली तो एक स्त्री है, हालात की मारी एक ऐसी तिरस्कृत स्त्री जिसकी कामग्नि बीते कई महीनों से शांत नही हो पाई थी, जो पति के जीवित होते हुए भी किसी विधवा की भांति बिस्तर पर लगभग अपना पूरा दिन बिता देने को बाध्य थी।


"मन्यु क्या सोच रहा होगा मेरे बारे मे? कहीं वह मेरी पेंटी को अपने लंड पर लपेटकर मुट्ठ तो नही मारने लगा होगा? वैसे लड़का है तो बड़ा बेशर्म, बद्तमीज! अपनी सगी माँ को कुतिया कहकर बुला रहा था" अपनी चूत और उसके आसपास उगी बड़ी-बड़ी घुंघराली झांटों को धोते वक्त भी वैशाली सिर्फ अपने बेटे के ही विषय मे सोच रही थी। एक अजीब--सी संनसनाहट भरा अहसास कि अपने कामरस को छुटाते हुए भी उस माँ का ध्यान अपने जवान बेटे पर से हट नही पा रहा, उस माँ की मर्यादित छवि के लिए कितना अधिक लज्जातृन था।


"क्या कोई माँ अपनी नंगी चूत को छूने के दौरान कभी अपने बेटे का ख्याल अपने मन-मस्तिष्क मे ला सकती है?" अचानक खुद से ऐसा अशिष्ट प्रश्न पूछ वैशाली की आँखें मुंद जाती हैं और सर्वप्रथम जो चेहरा उसकी बंद पलकों मे उभरा, उस चेहरे और उसपर व्याप्त हँसी को देखते ही वह तेजी से अपना हाथ अपनी नंगी चूत से दूर झटक देती है। उसने अपनी मुंदी आँखें भी तत्काल खोल लीं, निरंतर मलते हुए उन्हें ठंडे पानी से धोया मगर खुली आँखों से भी चहुं ओर उसे अपने बेटे अभिमन्यु का ही हँसता हुआ चेहरा नजर आ रहा था।


"तू अब उसकी माँ नही रही वैशाली। तेरी स्थिति वाकई तेरे बेटे के नीच संबोधन, सड़क की उस बेबस बूढ़ी कुतिया समान हो गई है जिसे जवान होकर जबतब उसका अपना पिल्ला ही चोद जाया करता है। तेरी उच्चतम पदवी, शीर्शतम रिश्ता, मान और सम्मान जैसे सबकुछ तूने स्वयं ही अपनी बेशर्मी से गंवा दिया। आज
अभिमन्यु ने तेरे मुंह पर प्रत्यक्ष तुझे कुतिया कहकर पुकारा है, वह दिन दूर नही जब भविष्य मे तुझे रंडी कहकर भी पुकारेगा" अतिशीघ्र वैशाली अपने दोनों हाथ बलपूर्वक अपने दोनों कानों पर दबा देती है। यह उसके अंतर्मन की वही आंतरिक आवज थी जिसने उस वक्त भी उसे कचोटा था जब मुट्ठ मारते हुए वह बेटे के मुंह से, अपने प्रति उसके अंदरूनी गंदे व निषिद्ध विचारों को जानने की इच्छुक थी। वैशाली उससे वर्जित पर वर्जित सवाल पूछे जा रही और अपनी माँ के समान ही बेशर्म बनकर अभिमन्यु उसे अनैतिक से अनैतिक उत्तर देते हुए बारंबार अपनी पापी इच्छाएं भी उसे बेझिझक बतलाए जा रहा था।


"कुछ ...कुछ गलत नही हुआ, सिर्फ एक छोटा--सा बदलाव ही तो आया है। पहले वह छुप-छुपाकर मुझे मुट्ठ मारते हुए देखा करता था, आज प्रत्यक्ष देख लिया। उसने सही कहा था कि हम अडल्ट हैं, एक-दूसरे केयसभी रहस्यों से पूर्ण परिचित फिर छुप्पन-छुपाई का यह बचपना खेल कबतक खेलते रहेंगे?" वैशाली ने अपने अंतर्मन से तर्क-वितर्क करना शुरू कर दिया।

"माना उसकी माँ होकर मैं उसकी एकमात्र इच्छा का समर्थन नही कर सकती, उसे कतई उचित नही ठहरा सकती, जरा--सा भी स्वीकार नही कर सकती मगर अपनी धूमिल छवि मे जरूर सुधार कर सकती हूँ। हाँ! मुझे उसकी दोस्ती के प्रस्ताव पर गहराई से विचार करने की आवश्यकता है और बस अब मैं खुद को उसी नये रूप मे ढा़लने की कोशिश करूंगी" अपने अंतर्मन को अपना अंतिम व निर्णायक निर्णय सुनाकर वह बिना कुछ और सोचे, बेहद शांति से अपना नहाना पूरा करती है और बाथरूम मे पहले से ही मौजूद तौलिए को अपने अधगीले मांसल नंगे बदन पर लपेटकर बाथरूम से बाहर निकल जाती है।

अपने बेडरूम के पूर्व से खुले हुए दरवाजे को देख सहसा वैशाली की हँसी छूट जाती है कि कैसे वह एक छोटे--से तौलिए को अपने गदराए अध्उघड़े बदन पर लपेटे सरेआम अपनी निजता को स्वयं तारतार कर रही है। अभिमन्यु घर पर मौजूद है और यह जानते हुए भी अबतक संस्कारी रही उसकी माँ यूं खुल्लम-खुल्ला

अपने अधनंगे बदन का निर्भीक प्रदर्शन कर रही है, जैसे उसे इस बात का कोई डर नही कि उसके बेडरूम का दरवाजा खुला हुआ है और उसका जवान बेटा किसी भी क्षण उसके कमरे के अंदर सरलतापूर्वक झांककर उसे उसकी इस अधनंगी कामुक हालत मे देख सकता है।


"हमें अपनी न्यूडिटी को कोई खास वैल्यू नही देनी चाहिए मॉम। ऐसी गंदी सोच रखने वाले गंदे लड़के, उफ्फ! जिसने तुम्हें पैदा किया, अपनी उसी सगी माँ को पूरी तरह से नंगी देखकर तुम्हें शर्म नही आएगी भला?" अपने खुद के विध्वंशक प्रश्न पर लंबी सीत्कार भरते हुए वैशाली फौरन अपना तौलिया अपने अधनंगे बदन से अलग कर देती है, तत्पश्चात पूर्णरूप से नंगी हो चुकी भव्य यौवन की स्वामिनी वह विवाहित माँ अपने उस छोटे--से तौलिए को एक बहुत ही निम्न स्तर की बेहुदा अदा के साथ नीचे फर्श पर गिराकर, तत्काल अपने बेडरूम के खुले दरवाजे को निहारने लगती है।


"तुम्हारी घटिया बात को मानकर तुम्हारी माँ सचमुच नंगी हो गई मन्यु। मौका है बेटा, देख सको तो देख लो" ओछी हँसी हँसते हुए इस अश्लील कथन को कहकर वैशाली ने अपने लंबे काले बालों को जोर से झटका, जिसके प्रभाव से एकाएक उसके पूर्णविकसित मम्मे भी जोरों से उछल पड़ते हैं। अपने मम्मों की अत्यंत सुंदर बनावट पर उसे शुरुआत से गुमान रहा था, लगभग हर स्त्री की भांति उसे भी अपने मम्मो का बेहद फूला व तराशा हुआ गोलाईयुक्त आकार हमेशा से भाता आया था। अपने दाएं हाथ को सीधे अपने धुकनी समान धड़कते दिल पर रखकर वह हौले-हौले बेडरूम के खुले दरवाजे की ओर अपने कंपकपाते कदम बढ़ाने लगती है, अपने जवान बेटे की घर मे मौजूदगी के कारण उसकी मंत्रमुग्ध कर देने वाली चाल सामान्य से कहीं अधिक मादक व मतवाली हो चुकी थी। उसकी गदराई मांसल गांड कुछ इस तरह से थिरक रही थी जैसे मांस की नही पारे की बनी हो और साथ ही ज्यों-ज्यों वह खुले दरवाजे के नजदीक आती जा रही थी, उसकी चूत से निरंतर बाहर उमड़ता कामरस बहकर उसकी हृष्ट-पुष्ट जांघों को भिगोने लगा था।



आजादी, उन्मुक्तता, खुलापन आदि शब्दों का सही अर्थ व मूल्य महज वही समझ सकता है, जो जन्म-जन्मांतर से बेड़ियों के अटूट बंधन मे जकड़ा रहा हो फिर वह बेड़ी और जकड़न से भरा उसका अटूट बंधन समाजिक हो, रिश्तों का हो, हैवानियत का हो, मर्यादा का हो या फिर किसी लालसा का हो। बीते जीवन मे पहली बार वैशाली स्वयं उस स्वच्छंदता, खुलेपन को प्रत्यक्ष महसूस कर रही थी, उसे लग रहा था जैसे इसी स्वतंत्रता की उसे बरसों से तलाश थी।



दरवाजे से बाहर झांकते वक्त उसका सम्पूर्ण बदन गनगना उठा और उसके मुखमंडल पर प्रसन्नता ही प्रसन्नता छा जाती है, जीवन मे प्रथम बार उसने खुलकर आजादी का स्वाद चखा था और वह पकड़ी नही गई थी। मन बावरा होता है, संतोष की प्राप्ति अमरता के वरदान की तपस्या से भी कहीं दुर्लभ है और वैशाली के संग भी तत्काल कुछ ऐसा ही हुआ। अपनी सफलता के मद मे चूर वह अपने बेडरूम के दरवाजे की निषेध दहलीज को भी पार करने का दुस्साहस कर बैठी मगर जाने क्या सोचकर वह फौरन पलटी और बेडरूम के भीतर आकर दरवाजे को लॉक करते हुए गहरी-गहरी सांसें लेने लगती है।



"धत्! तू पागल है, पूरी तरह से पागल है। पकड़ी जाती तब क्या होता?" अपनी गुलाबी जीभ को अपने मूंगिया रंगत के भरे हुए होंठों से बाहर निकालकर वैशाली अपनी गलती पर अपना माथा ठोकते हुए चहकी।



"कुछ भी कहो लेकिन मजा बहुत आया" किसी नवयुवती समान उछल-कूद करते हुए वह अपने वॉड्रोब तक आ पहुँची और रोजमर्रा मे पहने जाने वाले अपने वस्त्रों को पहनने लगती है। लाल ब्रा और बैंगनी कच्छी के पश्चात उसने उनके ऊपर अपने हल्के फ्रोजी रंग की कॉटन की मैक्सी पहन ली। अपने खुले बालों का जूड़ा बनाकर उसने ड्रेसिंग के कांच पर पहले से चिपकी एक छोटी--सी काली बिंदी को खींच, उसे अपने माथे के बीचोंबीच चिपकाया और मांग मे सिंदूर धारण कर कांच मे अपनी अधेड़ छव को घूरने लगती है।



शायद पेटीकोट की जरूरत पड़ सकती है। हुंह! हमेशा तो इसे बिना पेटीकोट के पहनती आ रही है" कांच के सामने गोल-गोल घूमते हुए अचानक वैशाली को अहसास हुआ जैसे उसकी कच्छी की बनावट उसकी मैक्सी के ऊपर से नुमाइंदा हो रही है, खास उसकी गदराई गांड का कामुक उभार उसकी कच्छी समेत मैक्सी के ऊपर से स्पष्ट नजर आ रहा है। एकपल को उसने मैक्सी के भीतर पेटीकोट पहनने का विचार बनाया मगर अगले ही पल वह अपना विचार त्याग भी देती है, यह उसकी दैनिक वेशभूषा थी और एकदम से उसमे अंतर करना उसे अपने पागलपन का शुरुआती लक्षण समझ आता है।



"मन्यु आज जल्दी कॉलेज से लौट आया था, क्या पता लंच किया भी है या नही" अपनी कामग्नि मे पिछले दो घंटों से लगातार जलने वाली वह तिरस्कृत स्त्री सहसा एक ममतामयी माँ मे तब्दील हो गई और तीव्रता से अपने बेडरूम के बाहर निकलकर वह अभिमन्यु के कमरे के बंद दरवाजे पर दस्तक देने लगती है।
 

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मन्यु! दरवाजा खोलो बेटा, मम्मी कितनी देर से खटखटा रही है" जब चार-पाँच बार दरवाजे पर थाप देने के बावजूद अभिमन्यु ने दरवाजा नही खोला तब वैशाली हाथ के थापों के साथ उसे आवाज भी देने लगी।

"वैसे तो दिन मे कभी नही सोता, जरूर मुट्ठ मारने की थकान से नींद लग गई होगी बेचारे की। हाय रे मेरी पेंटी, आज बुरी फंसी तू" अपनी ही ठरकी सोच पर वैशाली की हँसी छूट जाती है, अब इसे ठरक नही कहेंगे तो और क्या कहेंगे कि बीते पिछले दो-तीन घंटे के घटनाक्रमों ने एक बेहद संस्कारी माँ को कितना अधिक बदल दिया था। तत्काल वह अपना बायां कान दरवाजे से चिपका देती है ताकि अगर उसका बेटा जानबूझकर दरवाजा नही खोल रहा हो तो वह कमरे के अंदर की हलचल सुनकर इस बात का अनुमान लगा सके।

"बेटा सो गए क्या?" अपने कान मे कोई हलचल सुनाई ना देने के उपरान्त वह फौरन अपने घुटनों के बल नीचे फर्श पर बैठ गई और की-होल से कमरे के भीतर का जायजा लेने लगती है, अभिमन्यु बिस्तर पर औंधा डला था। एकपल को बेटे की नींद का ख्याल कर उसने उसे जगाने का विचार त्याग दिया मगर उसकी भूख के विषय मे सोच फर्श पर बैठे-बैठे ही वह उसे जोरों से पुकारने लगती है।

"क्या है मॉम, मैं सो रहा हूँ यार" अभिमन्यु नींद मे कसमसाते हुए बोला, वाकई वह बहुत गहरी नींद मे था।

"यार के बच्चे, दरवाजा खोलो। मुझे तुमसे बात करनी है" जवाब मे वैशाली चिल्लाकर बोली और अपनी उसी चिल्लाहट की आड़ मे हल्के हाथों से दरवाजे का नॉब घुमा देती है।

बाद मे मम्मी, बाद मे" अभिमन्यु पुनः कसमसाया।

"मैंने कहा ना मुझे तुमसे बात करनी है। अभी, इसी वक्त खोलो दरवाजा" वैशाली ने सहसा क्रोधित होने का नाटक किया और जिसके असर से अभिमन्यु तुरंत ही उठकर बैठ गया।

"खोलता हूँ, खोलता हूँ" एक लंबी जम्हाई लेते हुए वह बिस्तर से नीचे उतरकर आड़े-टेढ़े कदमों से दरवाजे के समीप आने लगा और तभी वैशाली भी फर्श से उठकर खड़ी हो जाती है।

"गेट शायद बाहर से लॉक है माँ" वह दरवाजा खींचने का प्रयास करते हुए बोला।

"मैंने ही लॉक किया था बाहर से" वैशाली जवाब मे बोली।

"क्यों? फिर क्यों नींद खराब की मेरी, जब गेट खोलना ही नही था? फौरन अभिमन्यु ने चिढ़ते हुए पूछा।

"भाई तुम्हारा क्या भरोसा, अंदर किस हाल मे हो। कपड़े तो पहने हैं ना तुमने या फिर नंगे हो?" वैशाली ने अपनी रोके ना रुकाए हँसी को काबू मे करने की कोशिश करते हुए पूछा, यकीनन अब ठरक उसके सिर चढ़कर बोल रही थी।

"नंगा!" अपनी माँ के इस अजीब से प्रश्न पर अभिमन्यु जैसे चौंक सा जाता है, उसके हैरत से खुल चुके मुंह से मात्र इतना ही बाहर आ सका।

"अरे दिन मे तुम कुछ न्यूडिटी-व्यूडिटी की बात कर रहे थे ना तो मुझे लगा कि तुम कहीं ....." वैशाली ने अपने कथन को अधूरा छोड़ते हुए कहा।

"खोलू दरवाजा? सच मे नंगे नही हो ना?" उसने पिछले कथन मे जोड़ा और बेटे के जवाब की प्रतीक्षा किए बगैर ही झटके से दरवाजा खोल देती है।

हाय! अपनी माँ की कच्छी का यह क्या हाल कर दिया तुमने? पापी!" दरवाजा खुलते ही वैशाली की नजर सर्वप्रथम नीचे फर्श पर पड़ी अपनी कच्छी पर गई तो उसने तत्काल अपने मुंह पर हाथ रखकर आश्चर्य से भरने का नाटक करते हुए पूछा, वह जानबूझकर 'पेंटी' की जगह पूर्णदेशी शब्द "कच्छी' का इस्तेमाल करती है और साथ ही उसने कच्छी शब्द के संग 'माँ' शब्द को भी जानकर जोड़ा था।

कुछ नींद की खुमारी और कुछ अपनी माँ के प्रश्नों से हतप्रभ हुए अभिमन्यु का ध्यान फर्श पर पहले से पड़ी वैशाली की कच्छी पर नही जा सका था और अपनी माँ के तात्कालिक प्रश्न को सुनकर तो मानो जैसे उसकी सांस ही गले मे अटक जाती है।

"वो माँ ...वो मैं ...." जवाब देते हुए वह मिमियाने लगता है, उसका हलक चिपक चुका था।

"एक तो तुमने माँ की कच्छी चुराई, दूसरे उससे मजे किए और जब मजा पूरा हो गया तो आखिर मे दुत्कारकर उसे फर्श पर फेंक दिया। वाह रे मर्द! तुम सब एक जैसे होते हो" वैशाली मनमसोसने का अभिनय करते हुए बोली और एक लंबी आह भरकर कमरे से बाहर जाने लगती है। वहीं अभिमन्यु ठगा सा, एकटक फर्श पर पड़ी अपनी माँ की कच्छी को ही घूरे जा रहा था, चाहता तो था कि वैशाली को बीती सत्यता से परिचत करवा दे मगर शर्मवश वह ऐसा कर नही पाता।

"खाना लगा रही हूँ, फ्रैश होकर सीधे बाहर आओ और हाँ! जाओ माफ किया" वैशाली कमरे से बाहर जाते-जाते बोली। अभिमन्यु ने फौरन अपना सिर उठाकर उसके चेहरे देखा, पलभर को मुस्कराकर वह तेजी से आगे बढ़ गई थी।

कुछ आधे घंटे पश्चात दोनो माँ-बेटे हॉल की डाइनिंग टेबल पर साथ बैठकर खाना खा रहे थे। हमेशा बकबक, हो-हल्ला करने वाले अभिमन्यु को यूं चुपचाप खाना खाते देख वैशाली को दुख हुआ। खाने को खाने की तरह खाता तब भी ठीक था, वह तो जैसे खाना चुग रहा था।

"मन्यु" जब हॉल मे पसरा मानवीय सन्नाटा वैशाली के बस से बाहर हो गया तब वह स्वयं ही उस सन्नाटे को भंग करते हुए बेटे को पुकारती है।

हुं!" जवाब मे अभिमन्यु अपना मुंह तक खोलना पसंद नही करता, अपने गले के स्वर से बस इतना ही गुनगुनाकर वह अपनी माँ के चेहरे को देखने लगता है। उसे एकाएक अचरज तब हुआ जब हैरत से बड़ी होती जाती उसकी आँखों मे झांकते हुए वैशाली अपने बाएं की उंगलियों की मदद से अचानक अपनी मैक्सी के ऊपरी बटन को खोलने लगती है, पहले उसने एक बटन खोला तत्पश्चात दूसरे को खोलने लगी।

अभिमन्यु की घिग्घी बंधी देख वैशाली को कुछ संतोष हुआ, संतोष इसलिए नही कि उसे अपने बेटे की परेशानी, घबराहट, उसकी मायूसी से कोई अतिरिक्त खुशी मिल रही थी बल्कि इसलिए कि उसे प्रत्यक्ष प्रमाण मिल चुका कि उसके बेटे की नजरों मे उसकी इज्जत अब भी बरकरार थी, वह तो हालात का खेल था जो एक ही वक्त मे दोनो माँ-बेटे एकसाथ बेशर्म बन गए थै। अपनी मैक्सी के दूसरे बटन को खोलते समय वैशाली ने यह भी स्पष्ट देखा कि भले ही अभिमन्यु ने अत्यंत-तुरंत अपनी आँखें अपनी माँ से हटाकर विपरीत दिशा मे मोड़ दी थीं मगर उनकी किनोर से अब भी वह उसकी उंगलियों की हरकत पर ही गौर फरमा रहा था। मैक्सी के दूसरे बटन के खुलते ही वैशाली अपने उसी बाएं हाथ की उंगलियां हौले-हौले अपने मम्मों के ऊपरी फुलाव पर रगड़ते हुए पहले उन्हें अपनी मैक्सी और फिर सीधे अपनी ब्रा के दाहिने खोल के भीतर घुसेड़ देती है।

"तुम्हारी पॉकेटमनी" वैशाली बेटे का ध्यान अपनी ओर खींचते हुए बोली मगर अपना बाएं हाथ उसने अबतक अपनी ब्रा से बाहर नही निकाला था। दोनो माँ-बेटे की आँखें आपस मे जुड़ चुकी थीं और फिर कुछ ऐसा जताते हुए कि उसकी ब्रा बेहद तंग है, वह अजीब सा आड़ा-टेढ़ा मुंह बनाने लगती है।


वो काफी दिनों से शॉपिंग नही की ना तो थोड़ा साइज इश्यू है" वैशाली अपनी हरकत के समर्थन मे बोली।

"मेरी कच्छियों का भी यही हाल है" मायूसी से उसने पिछले कथन मे जोड़ा।

"कोई बात नही मॉम और वैसे भी मुझे पॉकेटमनी नही चाहिए, मेरी पनिशमेंट अभी पूरी नही हुई" अपने ठीक सामने बैठी अपनी माँ को उसकी तंग ब्रा से जूझते देख अभिमन्यु हौले से बुदबुदाया। वैशाली की लाल ब्रा उसकी बेवजह की खींचा-तानी के कारण उसकी मैक्सी के खुले गले से आधी बाहर निकल आई थी और उसके गोल-मटोल मम्मों का प्रभावशाली ऊपरी उभार अभिमन्यु को तत्काल उत्तेजना से भरने लगा था। अपनी माँ की बोली मे आए खुलेपन से भी वह थोड़ा सकते मे था।

"बस हो गया। हाँ ये लो, पूरे सात हजार हैं" वैशाली नोटों के बंडल को बेटे की ओर बढ़ते हुए बोली मगर अपने पिछले कथन पर अटल अभिमन्यु फौरन ना के इशारे मे अपना सिर हिला देता है।

"पनिशमेंट जारी थी और जारी ही रहेगी, पॉकेटमनी तुम अपने पास रख सकते हो पर तुम्हारा घर से बाहर आना-जाना बंद ही रहेगा" वह रुपयों का बंडल टेबल पर उसके सामने रखते हुए बोली।

"थेंक्स मॉम, खाली जेब मुझे कैसा फील हो रहा था मैं ही जानता हूँ" अभिमन्यु अत्यंत तुरंत बंडल पर झपटते हुए बोला, बिन पैसों के एक जवान लड़के की कैसी हालत होती है स्वयं वैशाली को भी प्रत्यक्ष समझ आ गया। अपने दोनों हाथ कैंची के आकार मे ढा़ल वह उन्हें अपनी अधखुली छाती के इर्द-गिर्द लपेटकर बैठ गई थी, जिसका दबाव उसके पुष्ट मम्मों के निचले भाग पर हो रहा था। अकस्मात् उसके मम्मों का ऊपरी उभार पहले से अधिक नुमाइंदा हो गया, जिसके नतीजतन एसी की मनभावन ठंडक वह अपने तेजी से ऐंठते जा रहे निप्पलों पर भी साफ महसूस करने लगी थी।


मुझे लगता है कि मुझे सुधा से माफी मांगनी चाहिए, आखिर यह कोई छोटी-मोटी बात नही कि तुमने बहाने से उसके घर जाकर जानबूझकर उसकी कच्छी को चुराया था" अपने बेटे की चोर नजरों को बरबस अपने अधनंगे मम्मों पर गड़ते देख वैशाली बोली।

"वह मम्मी ... वह, तुम उस बात को भूल क्यों नही जातीं, अबतक तो मिसिज मेहता भी उसे भूल ही चुकी होंगीं" आंतरिक शर्म से बेहाल अभिमन्यु हकलाते हुए बोला, उसकी शर्माहट का एक मुख्य विषय यह भी था की अपनी माँ के मम्मों की सुंदरता को निहारने का इतना करीबी मौका उसे पहली बार प्राप्त हुआ था ऊपर से वैशाली का लगातार देशी भाषा प्रयोग उसे बेहद अटपटा-सा लग रहा था, रह-रहकर उसके संपूर्ण बदन मे फुरफुरी सी छूटती जा रही थी।

"तुम्हारी माँ होने के नाते भूल जाऊँ तो मैं वाकई उसे भूल चुकी हूँ और तुम्हें माफ भी कर दिया है मगर एक औरत होकर दूसरी औरत की बेज्जती कैसे सह लूं। तुम्हें पता नही मन्यु कि तुम्हारे बचाव मे मैंने उसे क्या-क्या गलत-शलत नही बोला, यह जानते हुए भी कि गलत वह नही मेरा अपना बेटा है" वैशाली एक लंबी आह भरते हुये बोली, अपना चेहरा नीचे को झुकाकर वह अपने मम्मों के अधनंगे ऊपरी उभार और उनके बीच की खुली दरार का स्वयं अवलोकन करने लगी। उस अत्यधिक कामुक माँ ने उस वक्त अपने बेटे को जैसे चौंका ही दिया जब अपने अंगप्रदर्शन को जानकर भी कोई विशेष महत्व दिए बगैर वह तत्काल अपना चेहरा ऊपर उठाकर पुनः उसकी आँखों मे झांकने लगती है।




अगर तुम्हारी ही उम्र का कोई लड़का इस तरह की बेहूदगी से तुम्हारी अपनी माँ की कच्छी को चुरा ले जाए तब तुम्हारी माँ के दिल पर क्या बीतेगी, कभी सोचा है तुमने? फिर सुधा ने तो तुम्हारे और उसके अपने बच्चों की बीच कभी कोई फर्क नही किया" वैशाली ने शांत स्वर मे पूछा। अपनी माँ के कथन मे शामिल प्रश्न और उसमे उसका स्वयं का उदाहरण देना अभिमन्यु को स्पष्ट दर्शाता है कि वाकई अपने कथन को लेकर वह कितनी अधिक गंभीर थी। उसने सहसा निर्णय लिया कि वह अपनी माँ की अधनंगी छाती को अब और नही घूरेगा मगर पलभर भी नही बीत सका और दोबारा उसकी आँखें उसी उत्तेजक दृश्य पर वापस लौट आईं।

"तुम्हें उनसे माफी मांगने की कोई जरूरत नही, गलती मैंने की है तो माफी भी उनसे मैं ही मागूंगा" अभिमन्यु ने जवाब मे कहा, मानो अपनी बीती गलती और तात्कालिक गलती की वजह से खुद को लताड़ने का प्रयास कर रहा हो। स्वतः ही वह यह भी महसूस करता है कि उसकी सगी माँ के प्रति उसके मन-मस्तिष्क मे कितनी अधिक गंध भर चुकी है और जो वह चाहकर भी उस गंध को मिटा नही पाता। जहां संसार इस उदाहरण से पटा पड़ा है कि एक पुत्र का सही स्थान सदैव उसकी माँ के चरणों मे ही होता है और एक पुत्र वह स्वयं है जो अपनी माँ के चरण तो दूर, दिन-रात बस उसके नंगे बदन की ही वर्जित कल्पनाओं मे खोया रहता है।



सॉरी आंटी! मैंने आपकी कच्छी चुराई और फिर भी आपसे माफी मिलने की चाहत लिए आपके पास आया हूँ। क्या यह कहोगे उससे? वाट इज रॉंग विद यू मन्यु। माला के साथ भी तुम जबरदस्ती कर रहे थे, जबकि तुम्हें अच्छे से पता है कि वह मोहल्ले के अॉलमोस्ट हर घर मे काम करती है। तुम्हें पता नही मगर उसने मुझे खुद बताया था कि तुम उसके साथ छेड़छाड़ करते हो, उसके प्राइवेट पार्ट्स को छूते हो और पैसे का लालच देकर तुमने उससे साथ सैक्स करने की डिमांड भी की थी। तुम्हारी माँ होकर भला मैं कबतब लोगों के गंदे-गंदे ताने सुनती रहूँगी? जबकि खोट मेरी परवरिश मे नही खुद तुममे है" कहने को तो वैशाली इतनी विस्फोटक बातें कह गई मगर फौरन कुर्सी खिसकाकर वह बेटे के नजदीक आ जाती है और सीधे उसने अभिमन्यु का चेहरा अपनी अधनंगी छाती से चिपका दिया।

"मैं तुम्हारी टीन एज को नेगलेक्ट नही कर रही, मुझे सचमुच पता है बेटा कि तुम जवानी के किस नाजुक दौर से गुजर रहे हो। तुम अपनी माँ को अपना बैस्ट फ्रैंड बनाना चाहते थे तो चलो, मैंने तुम्हारा प्रपोजल ऐकसेप्ट किया लेकिन तुम्हें भी मुझसे प्रॉमिज करना होगा कि तुम अपनी इस बैस्ट फ्रैंड से कुछ भी नही छुपाओगे। नाउ कमअॉन टेल मी द ट्रुथ, तुम्हारे दिल और दिमाग मे क्या चल रहा है?" वह प्यार से बेटे के बालों मे अपनी उंगलियां घुमाते हुए बोली। माना कि इस मार्मिक क्षण मे भावुकता उत्तेजना पर भारी थी मगर कहीं ना कहीं उनके शारीरिक सम्पर्क से दोनो माँ-बेटे रोमांचित भी थे। अपने मम्मों की गहरी घाटी के बीचोंबीच अपने बेटे की गर्म सांसों के अहसास मात्र से वैशाली का दिल जोरों से थड़कने लगा और
साथ ही वह अपनी चूत की अंदरूनी गहराई मे एकाएक स्पन्दन शुरू होता महसूस करने लगती है। उनका यह शारीरिक सम्पर्क वह माँ तब झटके तोड़ने पर मजबूर हो गई जब अभिमन्यु की गीली जीभ का स्पर्श अचानक से वह अपने बाएं मम्मे के ऊपरी फूले उभार से होता पाती है।

"आई एम ... आई एम जस्ट क्यूरियस मॉम। जस्ट क्यूरियस, नथिंग एल्स" अभिमन्यु हकलाते हुए बोला, वह भी समझ गया था कि क्यों उसकी माँ ने एकदम से उसका चेहरा अपने मम्मो से दूर ढ़केला था। उसकी माँ की मैक्सी उसके बाएं कंधे से लगभग पूरी ही सरक चुकी थी और जिसके कारण उसकी लाल ब्रा का बायां स्ट्रैप भी अब स्पष्ट दिखने लगा था, यहां तक कि अगर आगामी समय मे वह थोडा--सा भी हिलती-डुलती तो उसकी ब्रा का सम्पूर्ण बाएं हिस्सा फौरन बेपर्दा हो जाना था।

"क्यूरियस अबाउट वाट? अबाउट दिस, हम्म?" अपने सगे जवान बेटे की बेशर्म आँखों को यूं खुलेआम अपने अधनंगे मम्मों गडी़ पाकर वैशाली बहुत उत्साहित थी, उसने बिना किसी अतिरिक्त झिझक के अपने दाएं हाथ से सीधे अपने अधनंगे मम्मों की ओर इशारा करते हुए पूछा।

"मॉऽऽम!" अपनी माँ के प्रश्न और उसके दाएं हाथ के इशारे को समझ सहसा अभिमन्यु कुर्सी से उछल पड़ता है, इस पूरे वार्तालाप मे मानो पहली बार उसे शर्म महसूस हुई थी।




अरे! अरे! अरे! नाउ वाट हैप्पन टू योर दोज वर्ड्स? वी बोथ आर अडल्ट मम्मी और अगर हम दोस्त बने तो हमारी शर्म खत्म हो जाएगी" वैशाली हँसते हुए बोली तो साथ मैं अभिमन्यु भी हँसने लगता है।

"तुम वाकई बहुत गंदे लड़के हो मन्यु पर क्या करूं, मेरे इकलौते बेटे हो तो मैं ठीक से तुम्हें डांट भी नही पाती" उसने पिछले कथन मे जोड़ा।

"आई नो मम्मी एण्ड देट्स वाए आई लव यू सो मच। उम्मऽऽ मुआऽऽ" अभिमन्यु ने फौरन उसकी ओर एक चुम्बन उछाल दिया।

"तो मैं सही हूँ, तुम्हारी क्युरीआसिटी औरतों के बदन से है" वैशाली ने अंधेरे मे तीर चलाते हुए कहा, हालांकि पूरी तरह से इसे अंधेरे मे तीर चलाना नही कहेंगे मगर उनके बीच चलते इस सामान्य से वार्तालाप को अब दूसरी दिशा मे मोड़ने हेतु उसे अभिमन्यु की भी सहमति की विशेष आवश्यकता थी। एक ऐसी सहमति जिसमे ना कोई शर्म हो, ना कोई हया हो महज सत्य ही सत्य हो।

"अब मैं बोलूंगा तो कहोगी मैं बेशर्म हूँ" अभिमन्यु दांत निकालते हुए कहता है। वह तो इस वक्त की प्रतीक्षा ना जाने कब से कर रहा था, जब उसकी माँ और वो दोनो ही खुलकर बातचीत कर सकते थे।

"जो लड़का किसी मजबूर कामवाली के साथ जबरदस्ती कर सकता है, अपनी माँ की बैस्ट फ्रैंड के घर से उसकी कच्छी चुरा सकता है और आज तो तुमने अपनी माँ की ही कच्छी चुरा ली। ऐसे बेशर्म को बेशर्म नही बोलूं को क्या शब्बाशी दूं" वैशाली का स्वर क्रोधित था मगर उसके भाव चहके हुए थे।




मैं खुद को बिलकुल नही रोक पाता मम्मी, जब एक बेहद सैक्सी एण्ड हॉट एम आई एल एफ दिनभर मेरे करीब रहती है। जो मुझे अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करती है, मुझे खाना खिलाती है, मेरा ख्याल रखती है, मुझे कभी नही रोने देती, टाइम से पॉकेटमनी देती है, मेरे गंदे कपड़े धोती है, मेरे ...." वह आगे बोलता ही जाता यदि वैशाली बीच मैं उसे नही टोकती।

"बस बस, बहुत मक्खन लगा लिया तुमने और मैं कोई एम आई एल ...." इस बार अभिमन्यु अपनी माँ को बीच मे टोक देता है।

"मुझे बोलने दो मम्मी। जिसे पता है कि मैं चोरी छिपे उसे नहाते देखता हूँ, उसे मुट्ठ मारते हुए देखता हूँ। जिसे पता है कि मैं खुद उसके नाम की मुट्ठ मारता हूँ, जिसे पता है कि मैं पॉर्न देखता हूँ, जिसे पता है मैं वर्जिन नही। जो मेरी रग-रग से वाकिफ है मगर फिर भी मेरी हर छोटी-बड़ी गलती को हमेशा माफ कर देती है ....." अपने बेटे के अश्लील कथन को सुनकर अकस्मात् वैशाली का सम्पूर्ण बदन कांप उठा, चेहरे पर लहू उतर आया, कमर चरमरा गई, निप्पल ऐंठ गए, कामरस से भीगी कच्छी थरथराती चूत के मुख से बुरी तरह चिपक गई और तत्काल वह झटके से कुर्सी से उठकर खड़ी हो जाती है। अभिमन्यु अब भी बोले ही जा रहा था, उसका हर शब्द वैशाली के कानों मे पिघले शीशे सा घुसता महसूस हो रहा था।

"मुझे ...मुझे काम है" कहकर वह सीधे किचन की ओर दौड़ पड़ती है।

"मैंने सिर्फ फ्रेंडशिप का प्रपोजल नही रखा था मॉम और भी बहुत से प्रपोजल थे मेरे। तो क्या मैं उन्हें भी मंजूर समझूं?" दौड़ लगती अपनी माँ को देख अभिमन्यु ने जोर से चिल्लाते हुए पूछा और उसके प्रश्न को सुन वैशाली बिना पीछे मुड़े अपने दाएं हाथ से अपना माथा ठोकते हुए मुस्कुराकर किचन के भीतर घुस जाती है।
 
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कुछ क्षणों तक किचन के बर्तनों की मिथ्या ध्वनि से खुद को व हॉल मे बैठे अभिमन्यु को भ्रमित करने का सफल अभिनय करती वैशाली जोरदार हंपाई लेती रही, अपने सगे जवान बेटे के मुंह से यूं खुल्लम-खुल्ला अपनी अश्लील प्रशंसा सुनना संसार की किस माँ को हंपाई से नही भरेगा? अपनी प्रशंसा पर प्रसन्न हो उठना तो स्त्री स्वभाव का पहला प्रमुख गुण है मगर प्रसन्न होने के साथ ही उसपर लजा भी जाना, यह अवश्य स्त्री विशेष की अत्यंत मर्यादित छवि को प्रदर्शित करता है। वैशाली उन चुनिंदा स्त्रियों मे से एक है जिसकी मर्यादित छवि के कारण उसकी लज्जा उसकी प्रसन्नता पर सदैव भारी पड़नी चाहिए और ऐसा वह प्रत्यक्ष महसूस कर भी रही थी।

"हाँ मुझे पता कि तुम अपनी माँ, अपनी सगी माँ, जिसने तुम्हें पैदा किया अपनी उसी सगी माँ के नाम की मुट्ठ मारते हो। तुम इतने बेशर्म कैसे हो सकते हो मन्यु? अपनी माँ के विषय मे सोच अपने लंड से खेलते हुए क्या तुम्हें जरा सी भी शर्म नही आती बेटा?" किचन की स्लैब पर अपने दोनो हाथ टिकाए खड़ी उस मर्यादित, संस्कारी माँ के अनैतिक बोल उस वक्त उसे और भी अधिक लज्जा से भर देते है जब चलचित्र की भांति चहुं ओर उसे मुट्ठ मारता हुआ उसका जवान बेटा अभिमन्यु ही नजर आने लगता है। माँ शब्द की रट लगाए जोरदार सिसकियां भरता हुआ वह अपने दोनो हाथों से अपने अत्यंत सुंदर व तने हुए लंड को तीव्रता से मुठिया रहा था जिसके काल्पनिक चित्रण मात्र ने कब वैशाली की लज्जा को उसकी कामुत्तेजना मे परिवर्तित कर दिया, वह नही जान सकी।

अपने आप वह स्लैब पर झुक गई, कपकपती टांगें फैलने लगीं, दायां हाथ बिना किसी अतिरिक्त रुकावट के टागों की जड़ से जोंक--सा चिपक गया, उंगलियां मैक्सी समेत कच्छी को चूतमुख पर बलपूर्वक घिसने लगीं, सूखा मुंह नमी तलाशने हेतु खुल गया, कमर धनुषाकर तन उठी, पैर के पंजे फर्श मे धंसने लगे और अंततः इन सभी लक्षणों से जोड़ से वैशाली को समझ आ गया कि जीवन मे दूसरी बार वह यूं खुलेआम मुट्ठ मारने लगी थी। अभिमन्यु हॉल मे है और किचन का दरवाजा भी खुला है, पुनः बेटे द्वारा रंगे हाथों पकड़े जाने का भय और उस भय से पैदा होता असीमित रोमांच जैसे तत्काल उस कामुक माँ को अधिकाधिक उत्साह से भरने लगा था।

"हाय रे बेशर्म, आखिरकार तुम अपनी माँ से भी तुम्हारे नाम की मुट्ठ मरवाने मे सफल हो गए। उफ्फ! आओ उन्ह! आओ मन्यु, खुद अपनी आँखों से देख लो। अब हमारे बीच कोई अंतर नही रहा, आहऽऽऽऽ! तुम्हारी माँ, उन्ह! तुम्हारी अपनी माँ भी तुम्हारी ही तरह बेशर्म, आह! सफा बेशर्म बन चुकी है मन्युऽऽ" अपने जबड़ों को भींच अपने स्वर दबाने की प्रयासरत वैशाली अगले ही क्षण स्खलन के चर्मोत्कर्ष को पाने लगती है, उसके पापी काल्पनिक चित्रण मे अभिमन्यु भी उसके साथ ही झड़ रहा था। अंतर बस इतना--सा कि वह स्वयं के स्खलन को महसूस भर कर सकती थी मगर बेटे के लंड के फूले हुए सुपाड़े से लगातार बाहर आती उसके वीर्य की लंबी-लंबी धारें वह स्पष्ट देख पा रही थी, मानो प्रत्यक्ष उसका बेटा उसके समक्ष ही स्खलित हो रहा हो

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अपने कमरे के अटैच बाथरूम मे बंद शॉवर के नीचे खड़ा अभिमन्यु अब से कुछ वक्त पहले बीती घटना पर बड़ी गंभीरता से गौर कर रहा है। हालांकि अपनी माँ के किचन मे जाते ही वह भी फौरन कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया था, वह स्वयं वैशाली के पीछे जाना चाहता था मगर चाहकर भी अपना कदम आगे नही बढ़ा पाया और इसके ठीक उलट अपने कमरे के भीतर लौट आया था।

"तुम बदल गई हो मॉम, सचमुच बदल गई हो" अपने दाएं हाथ की मुट्ठी में कैद वह अपनी माँ की कच्छी को घूरते हुए बड़बड़ाया और फिर एकाएक मुट्ठी खोलने के पश्चात कच्छी को सीधे अपनी नाक से सटाकर बारम्बार गहरी-गहरी सांसे लेने लगता है।

"उफ्फऽऽ! कहीं मैं पागल ना हो जाऊँ" अपनी माँ के बदन की सच्ची मादकता से परिचित होकर अभिमन्यु चहक उठा था, कच्छी मे रची-बसी वैशाली के तन की सुगंध सूंघते हुए वह बाएं हाथ से अपने पत्थर समान कठोर लंड को तीव्रता से मुठियाने लगता है। बीते चार-पांच घंटो से उसकी जवानी लगातार उससे रहम की भीख मांग रही थी, अब वह चाहकर भी अपने शरीर के भीतर निरंतर उबल रहे लावे को और अधिक उपेक्षित नही कर सकता था।

"मैं जानता हूँ माँ कि यह गलत है, बिलकुल गलत है पर मैं तुम्हारे इल्जाम को झूठा साबित नही होने दूंगा, आई एम सॉरी मम्मी" अपनी इसी सोच के साथ कामलुलोप अभिमन्यु फौरन अपनी माँ की कच्छी को उत्तेजना की मार से थरथराते अपने लंड के इर्द-गिर्द लपेटकर, अत्यंत आक्रमकता से मुट्ठ मारना शुरू कर देता है। अपने सूख चुके होठों पर तेजी से जीभ फिरते हुए वह अपने बाएं हाथ से, गाढ़े वीर्य से लबालब भरे अपने टट्टों को भी सहलाने लगा था।



कहते हैं पाप करना और पाप मे भागीदार बनना, दोनो की एक सी सजा होती है। एक तरफ वैशाली है जो खुलेआम किचन के भीतर पाप करने मे व्यस्त थी और ठीक उसी वक्त दूसरी तरफ अभिमन्यु है जो एकांत मे बाथरूम के अंदर उसी पापी कृत्य मे लिप्त है, सबसे बड़ी समानता यह कि दोनो ही अबोध नही बल्कि पूर्ण समझदार पापी हैं। माँ-बेटे के लिए हाथ से मिलने वाला सुख नितांत अनूठा है मगर संभोग की तृप्ति महज हाथों से मिलने लगे तो कोई पापी ही क्यों बने?

"आहऽऽ! इतना मजा तो उस भैन की लौड़ी सुधा की कच्छी भी नही दे पाई थी जितना मजा तुम्हारी कच्छी दे रही है माँ। आई एम सॉरी मम्मी, ओह! आई एम सॉरी" कपकपाती टांगें बीच मे कहीं उसका साथ ना छोड़ दें इस कारण अभिमन्यु दीवार से टिक गया था, रह-रहकर उसकी सुर्ख आँखों मे उसकी माँ की लाल ब्रा के भीतर कैद उसके गोल-मटोल अधनंगे मम्मे घूमने लग जाते जिसके प्रभाव से उसका दायां हाथ और तेजी से उसके लंड को पीटने लगता।

"मैं लाऊँगा तुम्हारे लिए नई ब्रा और कच्छी, उन्ह! उन्ह! तुम उन्हें पहनोगी ना माँ? आहऽऽऽऽ पहनोगी माँ, तुम उन्हें जरुर आहऽऽऽऽऽऽ!" अभिमन्यु की नीच इच्छा के समर्थन मे तत्काल उसके बेहद सूजे बैंगनी रंगत के सुपाड़े ने गाढ़े वीर्य की लंबी-लंबी फुहार उगलनी शुरू कर दी और जो तीव्रता से सीधे सामने की दीवार से टकराने लगती हैं। उसकी आंखों के समक्ष जैसे पलभर को अंधेरा सा छा गया था, निचला धड़ एक मंत्रमुग्ध कर देने वाली ऐंठन से जकड़ा हुआ और साथ ही लगातार लगते हर झटके पर उसके टट्टे पहले से कहीं अधिक मात्रा व गति से वीर्योत्सर्जन करने लगते। ग्लानिस्वरुप जो वह बार-बार अपनी माँ से माफी मांगे जा रहा था इस मनभावन स्खलन को पा लेने के उपरान्त धीरे-धीरे उसका तन और मन दोनो ही शांत होते जा रहे थे।


उफ्फ! तुम ...तुम जरूर उन्हें पहनोगी माँ" जोरदार हंपाई लेते हुए अभिमन्यु ने एक अंतिम नजर अपने अधसिकुड़े लंड और उसके घेरे पर लिपटी वैशाली की कच्छी पर डाली तो अपने आप उसके चेहरे पर पूर्व संतुष्टि के भाव उमड़ आते हैं। कच्छी की काली रंगत पर उसके सफेद वीर्य की बूंदे उसे चांद पर दाग समान नजर आती हैं जबकि असलियत मे चांद सफेद और उसपर लगा दाग काला होता है।

"हे हे ... हा हा ...हू हू" अपनी मूर्ख तुलना पर अजीब-अजीब आवाजों मे जोर से हँसता हुआ वह पागल अपने पूरी तरह से सिकुड़ चुके लंड को अपने उसी दाएं हाथ से गोल-गोल घुमते हुए फौरन नाचना शुरू कर देता है।

नहा-धोकर धुले कपड़े पहन अभिमन्यु बेझिझक सीधा वैशाली के कमरे के खुले दरवाजे के भीतर प्रवेश कर गया। बिस्तर की पुश्त से अपना सिर टिकाए लेटी उसकी माँ के माथे पर उसके दाएं हाथ की उलटी कलाई रखी देख, वह अपने चलायमान कदमों की गति मे परिवर्तन लाया और हौले-हौले कदमों से ठीक उसके बगल मे जाकर खड़ा हो जाता है। उसकी माँ ख्यालों मैं गुम थी, उसके ख्यालों की गहराई वह इस वजह से माप गया कि वह उसके बिस्तर के बेहद करीब खडा़ था और उसकी माँ को अबतक इसकी भनक तक नही लग पाई थी।

"मॉम! मैं थोडी़ देर को बाहर चला जाऊं, टाइम से लौट आऊँगा" अभिमन्यु ने ज्यों ही कहा वैशाली चौंकते हुए उठ बैठी, आखिर वह क्यों ना चौंकती? जिसके दिल मे चोर बसा हो उसका बात-बेबात चौंकना कोई विशेष बात नही और यह भी सत्य था कि चौंकने से पूर्व वह अपने बेटे के ही ख्यालों मे गुम थी।


क ...क्यों?" वैशाली ने हकलाते हुए पूछा फिर एकाएक अपनी मैक्सी की अस्त-व्यस्त हालत को सुधारने मे अपनी हकलाट को छुपाने लगती है।

"कुछ नोट्स लेने हैं और बाइक मे पेट्रोल भी भरवाना था वर्ना कल कॉलेज टाइम से नही पहुँच पाऊंगा" अभिमन्यु ने बताया।

"कैसे नोट्स? और पेट्रोल के लिए तो मैं तुम्हें लगभग रोज ही पैसे देती हूँ। कहीं नही जाना, जाओ अपने कमरे मे वापस" वैशाली अपने दाएं हाथ की प्रथम उंगली का इशारा कमरे के खुले दरवाजे की ओर करते हुए क्रोधित स्वर मे बोली, अब चौंकाने की बारी उसके बेटे की थी। हालांकि यह उसका झूठ-मूठ का क्रोध था, वह अभिमन्यु को जताना चाहती थी कि भले ही उनके रिश्ते के बीच अमान्य--सा खुलापन आया था मगर इसका प्रभाव बेटे की सजा पर जरा सा भी नही पड़ा था।

"कम अॉम मम्मी, मैं कोई छोटा बच्चा नही जिसे तुम इस बुरी तरह डांटोगी" अपनी माँ की क्रोध पर अभिमन्यु के तेवर भी एकदम बदल गए और वह वैशाली को पुनः चौंका देता है।

"सॉरी माँ, रियली सॉरी। मैं तो बस हमारे लिए रिजर्वेशन करवाने जा रहा था" उसने पिछले कथन मे जोड़ा, इस बार उसका स्वर शांत था।

"कैसा रिजर्वेशन? हम कहाँ जा रहे हैं?" वैशाली ने तत्काल पूछा, यह तीसरी बार था जो वह लगातार चौंकी थी।

"आज मेरी तरफ से ट्रीट है, पिज्जा हट मे" अभिमन्यु मुस्कुराते हुए बोला और बिस्तर पर बैठ जाता है।

"ओह! पैसे मिले नही की बर्बादी शुरू" बात वैशाली की समझ मे आते ही वह भी मुस्कुरा उठी, जाने कितना अरसा बीत गया था जब वह आखिरी बार बाहर किसी रेस्तरां मे खाना खाने गई।


मैं माणिकचंद जी के पैसों से तुम्हें ट्रीट नही दे रहा, मैं तुम्हारे ही पैसों को तुम्हारे साथ शेयर करना चाहता हूँ। मेरी पॉकेटमनी है पाँच हजार और तुमने लेट इंटरेस्ट लगाकर मुझे दिये सात हजार, तुम कितनी बड़ी मक्खीचूस हो मम्मी मैं अच्छे से जानता हूँ। यह एक्सट्रा दो हजार तुम्हारे जोड़े हुए पैसे हैं और जो पता नही तुमने मुझे क्यों दे दिए?" अभिमन्यु कुछ मजाक और कुछ प्यार मिश्रित स्वर मे बोला, जानना तो वह भी चाहता था कि हमेशा पाई-पाई जोड़ने वाली उसकी माँ ने अपने खुद के जोड़े हुए पैसे आखिर उसे क्यों दे दिए।

"इधर आओ, कान मे बताती हूँ" वैशाली प्रेमपूर्वक उसे अपने पास आने का इशारा करते हुए बोली तो फौरन अभिमन्यु अपना दायां अपनी माँ के करीब ले आता है।

"मेरे पति की बेज्जती, मेरे ही मुंह पर बेशर्म और मैं कंजूस। हम्म!" बेटे के कान मे कुछ कहने की बजाए वैशाली उसका कान मोरोड़ते हुए बोली।

"आहऽऽ मम्मी छोड़ोऽऽ" अभिमन्यु दर्द होने का नाटक करते हुए कराहा जबकि उसकी माँ ने उसका कान उतना ही मरोड़ा था जितना वह आराम से सह सकता था।

"सबकुछ तो तुम्हारा ही है मन्यु। यह घर, जायजाद, रुपया-पैसा सबकुछ तुम्हारा है बेटा" कहकर वैशाली उसके मरोड़े हुए कान को पटापट चूमने लगती है, उसकी उंगलियां हौले-हौले बेटे के बालों मे घूम रही थीं।

"और माँ तुम?" अभिमन्यु ने एकाएक अपना चेहरा मोड़ते हुए पूछा, जिसके नतीजतन उसकी माँ के होंठ उसके कान से फिसलते हुए उसके दाएं गाल और होंठों के अंत पर आकर ठहर जाते हैं। यह ना बेटे ने जानबूझकर किया था और ना ही उसकी माँ ने, तो उतने जल्दी दोनो संभल भी नही पाते।


बोलो ना माँ, और तुम?" इसी बीच अभिमन्यु ने पुनः अपना प्रश्न दोहरा दिया, जिसे पूछते वक्त उसकी गरम सांस के झोंके सीधे वैशाली की नाक के बाएं नथुएे के भीतर प्रवेश कर जाते हैं।

"वीको वज्रदंती? मी टू" जाने क्यों और कैसे अकस्मात् वैशाली ने खुद को संभाला और अपना चेहरा बेटे के चेहरे से दूर ले जाते हुए बोली।

"हा हा हा हा" बेडरूम एकसाथ दोनो की खिलखिलाहट से गूंज उठता है।

"नौटंकी नही मॉम, प्लीज आन्सर मी ना" अभिमन्यु ने अपनी रुकाय ना रूकने वाली हँसी को जबरन रोकने की कोशिश करते हुए कहा, मानो जैसे कोई जिद पकड़ गया हो। कुछ देर तक तो वैशाली अपने पेट पर हाथ रखे जोरों से हँसती रही मगर जब अचानक ही उसके बेटे ने हँसना बंद कर दिया, वह स्वयं उसकी आँखों मे झांकने लगती है।

"जवाब दो माँ, और तुम?" अभिमन्यु का वही प्रश्न जारी था। अपना पेट पकड़ कर हँसने के कारण वैशाली की आँखें नम हो गई थी और उसके खुले बात तितर-बितर होने से उनकी कुछ लटें उसके चेहरे पर भी लटक आई थीं। अभिमन्यु को तो जैसे सांप सूंघ गया, वह अपलक बस अपनी माँ के अक्लपनीय सौन्दर्य को ही घूरने लगा था। उसकी माँ उसे सुंदरता की मूरत ही नही बल्कि साक्षात कामदेवी नजर आने लगी थी और ज्यों ही उसकी माँ ने अपने बालों की एक लंबी लट अपने चेहरे के बाएं भाग से हटाई, घबराकर वह झटके से अपना दायां हाथ सीधे अपने धड़कना भूल गए दिल पर रख देता है।




"मैं ...अम्मऽऽ" अपने बेटे की तात्कालिक स्थिति की प्रत्यक्ष गवाह वैशाली की अधेड़ आँखें बिन बोले ही सबकुछ समझ गई थीं और मुस्कुराकर वह भी अपना दायां हाथ अपने दिल पर रख लेती है।

"हाँ माँ तुम?" दिल मे उठे दर्द से बेहाल अभिमन्यु ने अब भी हार नही मानी थी, अत्यंत तुरंत पूछता है। अपने बेटे की उत्सुकता ने वैशाली को अंदर तक हिलाकर रख दिया था पर वह परिपक्व स्त्री अपने अंतर्मन का हाल अपने चेहरे पर कतई नही आने देती। एकपल को उसने सोचा क्यों ना बेटे को वही सुना दे जिसे सुनने को वह इतना बेकरार था मगर चाहकर भी वह खुद को तोड़ नही पाती।

"मैं हूँ अपने पति माणिकचंद जी की" कहकर एक बार फिर से वैशाली ने हँसना शुरू कर दिया और टूटे दिल के संतोष के साथ अभिमन्यु भी झूठी हँसी हँसने लगता है। उसकी माँ ने कुछ गलत कहाँ कहा, वह सचमुच अपने पति की ही तो थी और ऐसा सोचकर वह तेजी से बिस्तर से नीचे उतर जाता है।

"तुम तैयार रहना माँ, मैं घंटे भर मे आ जाऊंगा" कहकर अभिमन्यु बिना अपनी माँ के चेहरे को देखे उसके बेडरूम से बाहर निकल जाता है, वह जानता था कि यदि कुछ पल और वह वहाँ रुकता तो पक्का रो देता। शायद यही सोचकर वैशाली ने भी उसे नही रोका वर्ना उसका बेटा जरूर उसकी आखों से झर-झर बहने लगे आँसुओं को देख लेता।
 
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