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Incest Oh maa (complete )

Rabia

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घर के मुख्य दरवाजे पर हुए पुनः आघात के परिणामस्वरूप वैशाली उस आघात को सीधे अपने धुकनी समान धड़कते दिल पर महसूस करती है और एकाएक एकसाथ उसके मन-मस्तिष्क मे कई तरह की सकारात्मक व नकारात्मक संभावनाएं जन्म लेने लगती हैं।

"कौ ...कौन हो सकता है?" वह बाईं हथेली से तत्काल अपने माथे पर पनपे पसीने को पोंछते हुए फुसफुसाई।

"कोई जान-पहचान वाला, कोई अपरिचित ...अभिमन्यु! अभिमन्यु तो नही" वह कांपते हुए सोफे से उठ खडी़ हुई, जब इसबार भी दरवाजे पर लगातार थापें पड़ना शुरू हो जाती हैं। कुछ वक्त पीछे इसी को अपने बेटे की बेचैनी समझ उसने बिना सोचे-विचारे नग्न ही दरवाजा खोल दिया था और जिसके नतीजन बीते जीवन मे पहली बार उसे अपने पति के समक्ष आंतरिक शर्म का अहसास हुआ था। अपनी जिस संस्कारी विवाहित छव पर उसे ताउम्र गर्व होता रहा था, इस तात्कालिक समय मे उसकी वह मर्यादित छव जैसे खंड-खंड हो चुकी थी।

"कहीं यही तो वापस नही लौट आए? कहीं इन्हें मुझपर कोई शक तो नही हो गया? कहीं मणिक मुझे परखना तो नही चाहते कि उनकी गैरहाजिरी मे उनकी बीवी क्या पापी गुल खिला रही है? आवाज देकर कन्फर्म भी तो नही कर सकती कि दरवाजे के उसपार कौन है, पहले भी मैंने कहाँ कन्फर्म किया था?" अपने ही संशित प्रश्नों से आप थर्रा उठी वैशाली सहसा अपने दोनो हाथों से अपने बाल नोचते हुए सीधे अपने बेडरूम की दिशा मे दौड़ पड़ती है मगर अभी वह हॉल के बीचों-बीच भी नही पहुँच सकी थी कि मुख्य दरवाजे के उसपार से गूंजे अभिमन्यु के ह्रदयविदारक स्वर ने उसके तीव्र कदमों को वहीं जमा कर रख दिया था।

"घबराओ मत माँ, मैं अकेला हूँ। तुम दरवाजा नही खोल रहीं, शायद तुमने मेरी कसम तोड़ दी। अगर ऐसा है तो मैं वापस लौट रहा हूँ, तुम्हें मेरी वजह से और ज्यादा परेशान होने की जरूरत नही है" वह एक अंतिम थाप दरवाजे पर देते हुए बोला और ना जाने उसके स्वर मे ऐसा क्या मर्म छुपा था जिसे महसूस कर वैशाली की अपनी नग्नता को लेकर सारी लज्जा पल
मे हवा हो गई और उसी क्षण पलटकर वह उतनी ही तेजी से घर के मुख्य दरवाजे की ओर दौड़ पड़ने पर विवश हो जाती है।

"एक माँ अपने बेटे की कसम कभी नही तोड़ सकती मन्यु। देखो ना, मैं सिर से लेकर पांव तक नंगी हूँ और तुम वापस लौटने की बात कर रहे हो" अतिशीघ्र वैशाली ने बिना किसी अतिरिक्त झिझक के दोबारा घर के मुख्य दरवाजे को खोल दिया और उसपार खड़े अपने बेटे को अपने अनैतिक कथन का साक्ष्य, अपनी पूर्णनंगी अवस्था से परिचित करवाते हुए बोली। उसकी मंद-मंद मुस्कुराहट दो पाटों मे बंटी उसकी आंतरिक व्यथा की सफल परिचायक थी, जिसमे यकीनन निरंतर तेजी से बदलते जा रहे उसके अनेकों भावो का समावेश शामिल था।

"ओह माँ! ओह माँ! ओह माँ! आई लव यू, सच मे बहुत प्यार करता हूँ मैं तुमसे" अभिमन्यु अपनी माँ के अश्लील कथन और उसके अपनी सुडौल नंगी काया के लज्जाहीन प्रदर्शन से मन्त्रमुग्ध होते हुए सिसका और तीव्रता से फ्लैट के भीतर प्रवेश कर जाता है, तत्पश्चात उसने उसी तीव्रता से घर के मुख्य द्वार को लॉक किया और दो-चार कदम पीछे हट चुकी अपनी माँ के गौरवर्णी नग्न रूप-स्वरूप का वह अत्यंत बेशर्मी से चक्षुचोदन करने लगा। उसने स्पष्ट देखा कि उसकी माँ का चेहरा नीचे को झुक गया था, अपनी दाहिनी हथेली को अपने सपाट चिकने पेट पर रखे शर्म से लाल पड़ी वह अपने बाएं हाथ की उंगलियों के नुकीले नाखूनों से अपनी बाईं जांघ की बेहद कोमल त्वचा को हौले-हौले कुरेदे जा रही थी। जबतक वह अपने पैरों के पंजों पर भी खड़ी हो जाती जो प्रत्यक्ष प्रमाण था कि वह अपने लगातार तेजी से ऐंठते जा रहे नग्न बदन की कष्टकारी ऐंठन से मुक्त होने का हरसंभव प्रयत्न करने को विवश थी।



क्या तुम मुझसे ...अपने सगे बेटे से शर्मा रही हो मम्मी?" वह आगे बढ़कर अपनी दाईं हथेली से वैशाली की ठोड़ी को पकड़, उसका पसीने से तर-बतर चेहरा ऊपर उठाते हुए सीधे उसकी सुर्ख लाल आँखों मे झांककर पूछता है। उसकी आँखों मे तैरतीं उसकी काली गोल दोनो पुतलियां कुछ इस तरह हिल रही थीं जैसे ठहरे हुए पानी की सतह पर बारम्बार भूचाल आ रहा हो, निश्चित जिनकी गहराई मे अभी वासना से कहीं अधिक शर्म का वास था। वह अपने बाएं हाथ को अपनी माँ के जूड़ाबंद बालों पर रख अपनी उंगलियों की मदद से एकाएक उन्हें खोल देता है जो तत्काल उसकी माँ की नंगी पीठ, उसके नग्न कंधे और उसके अत्यंत सुंदर चेहरे पर चहुं ओर बिखर जाते हैं, फौरन उसने वैशाली की लंबी लटों को उसके कानों के पीछे दबाया तत्पश्चात वह उसके माथे पर एक लघु चुम्बन अंकित कर मुस्कुराने लगता है।

"मन्यु तुम्हारे ...." अपने बेटे के हाथों का स्पर्श अपने चेहरे पर महसूस कर वैशाली ने कुछ कहने के लिए अपने होंठ खोले ही थे कि तुरंत अभिमन्यु अपना दायां अंगूठा उसके खुले होंठों के मध्य रख उसे वहीं चुप करवा देता है।

"शश्श्श्श्श् माँ! कुछ ना कहो। तुम कांप रही हो, जोरों से हांफ रही हो, तुम्हारी आँखें खुली नही रह पा रहीं, तुम अंगड़ाई लेने को मचल रही हो, तुम्हारे निप्पल बेहद कड़क हो चुके हैं, चूत से निकलकर तुम्हारा रस तुम्हारी नंगी जांघों तक बहा चला आया है, तुम्हारी गांड तुम्हारे लाख रोकने के बाद भी हिलना बंद नही कर रही और मैं बेवकूफ पूछ रहा हूँ कि तुम मुझसे शर्मा तो नही रहीं" अभिमन्यु उसके नाजुक होंठों पर अपने अंगूठे का घर्षण देते हुए बोला। दाएं से बाएं, बाएं से दाएं वह गोल-गोल आकृति मे लगातार अपना अंगूठा अपनी माँ के नर्म दोनो होंठों पर दबा रहा था, रगड़ रहा था, उन्हें उमेठ रहा था। अपने बेटे के मुंह से अपनी तात्कालिक उत्तेजित स्थिति की अनैतिक प्रशंसा सुन वैशाली की चूत के सूजे होंठ भी स्वतः ही फड़क उठे थे जैसे वह अपने अंगूठे से उसके उन्हीं सूजे होठों का मर्दन किए जा रहा हो, उस माँ को अपनी लज्जित परिस्थिति पर बेहद अचंभा होता है जब ना चाहते हुए भी अपने बेटे की निकृष्ट हरकत के समर्थन मे वह एकाएक उसके अंगूठे को अपने होंठों के बीच फंसा लेती है और अविलंब उसे बलपूर्वक चूसना शुरू कर देती है।






उस छाले का दर्द अब मेरे लंड पर पहुँच चुका है माँ, अगर मेरे अंगूठे के बजाय तुम मेरे लंड को चूसोगी तो शायद मुझे इससे ज्यादा राहत मिलेगी" दुष्ट हँसी हँसते हुए अभिमन्यु बिना किसी झिझक के बोला, उसके कथन मे शामिल उसकी पापी चाह के फलस्वरूप तत्काल वैशाली की चूत की अंदरूनी गहराई मे इस कदर स्पंदन होना आरंभ हो जाता है, जिससे अतिशीघ्र राहत पाने की आकांक्षा मे वह सबकुछ भूलकर अपने निचले धड़ को बेशर्मों की तरह अपने बेटे की मर्दाना जांघ पर घिसने लगती है। उसका अंगूठा चूसती वह अधेड़ नंगी माँ अचानक किसी बेल समान उसके बलिष्ठ शरीर से लिपट गई थी और कब धड़ाधड़ वह अपनी झरने--सी बहती चूत को अपने बेटे की कठोर बाईं जांघ पर अत्यंत बेचैनीपूर्वक ठोकने लगी थी, उसे स्वयं पता नही चल पाता।

"मन्यु! ओह मन्यु, तुम्हारे उफ्फऽऽ ...तुम्हारे ..." अपने जबड़े भींच वैशाली अपने बेटे को कुछ वक्त पीछे घटी घटना से परिचित करने का हरसंभव प्रयास करती है, अपने पति के अकस्मात् घर लौट आने के विषय मे वह अभिमन्यु को बताना चाहती थी मगर अपनी दयनीय परिस्थिति के हाथों मजबूर उसके मुंह से उसकी जोरदार सीत्कारों के सिवाय यदि कुछ बाहर निकला था तो वह था उसकी गाढ़ी लार से भीगा उसके बेटे का दायां अंगूठा जिसे वह एकाएक पुनः मूक हो जाने के पश्चात दोबारा तीव्रता से चूसने लगी थी।





शश्श्श्श्! मैंने कहा ना, कुछ ना कहो और यह भी बता चुका हूँ कि दर्द मेरे अंगूठे मे नही, मेरी जींस और जॉकी के अंदर खड़े मेरे लंड मे हो रहा है। उन्ह! मैं अब और इंतजार नही कर सकता मॉम, मुझे मेरे तड़पते हुए लंड पर तुम्हारे इन मुलायम होठों की सख्त जरूरत है। मैं उसकी दर्द भरी जकड़न से जल्द से जल्द बाहर आना चाहता हूँ, अपने वीर्य भरे टट्टों को तुरंत खाली करना चाहता हूँ" उद्विग्न स्वर मे ऐसा कहते हुए अभिमन्यु अपने सूखे होंठों पर जीभ फिराने लगा और अपनी थूक से उन्हें अच्छी तरह भिगोने के उपरान्त फौरन वह नीचे झुककर अपने गीले होंठ सीधे वैशाली के तनकर पत्थर हो चुके बाएं निप्पल से सटा देता है। कुछ देरतक अपने गहरे व लंबे शीतल चुंबनों से वह अपनी माँ के निप्पल की असीमित कठोरता का अनुमान लगता रहा और जब मनभरकर वह उसे चूम चुका तब बिना किसी अग्रिम संकेत के अपना अंगूठा वह अपनी माँ के रसीले होंठो से बाहर खींच लेता है।

"चलो तुम्हारे बेडरूम मे चलें मम्मी। तुम्हारे अपने बिस्तर पर जी भरकर तुम्हारी चूत चाटूँगा, तुम्हारा मन्यु आज तुम्हारी सारी तड़प चूसकर पी जाएगा क्योंकि तुम्हारी तड़प ...अब अकेली तुम्हारी नही रही माँ, उसकी अपनी तड़प मे शामिल हो चुकी है" विश्वास से प्रचूर स्वर मे ऐसा कहकर वह फौरन अपने बाएं हाथ से अपनी माँ की मांसल पिछली जांघे पकड़ लेता है और साथ ही दाहिने को उसने उसकी नंगी पीठ पर कस दिया, उसके जरा से बलप्रयोग से हतप्रभ वैशाली तत्काल उसकी बलिष्ठ भुजाओं पर टिक गई थी और अपने बीते बचपन समान वह उसे अपनी गोद मे उठाकर सरलतापूर्वक अपने कदमों को चलायमान कर देता है, बस अंतर था तो महज इतना कि बचपन मे स्वयं वह नंगा हुआ करता था मगर वर्तमान मे उसकी माँ नंगी थी।



तुम्हारी वजह से मैं अपने बीते हुए बचपन को फिर से जी पा रहा हूँ माँ। खैर मुझे तो याद नही पर शायद उस वक्त तुम मुझे ऐसे ही अपनी गोद मे उठाकर इधर-उधर घूमती रहती होगी मगर देखो ना, आज मैंने तुम्हें अपनी गोद मे उठा रखा है। मैं बहुत खुश हूँ मॉम, बहुत खुश" अपने माता-पिता के बेडरूम के समीप पहुँचकर अभिमन्यु चिंहकते हुए कहता है, यकीनन उसके कथन समतुल्य उसकी प्रसन्नता का जैसे कोई पारावार शेष नही था।

"बचपन मे तुम नंगे रहा करते थे आज तुम्हारी बूढ़ी माँ नंगी है, फर्क सिर्फ इतना है मन्यु" वैशाली सामान्य स्वर मे बोली, काफी देर बाद उसके मुंह से स्पष्ट कुछ बाहर आ सका था। किसी जवान मर्द की मजबूत बाहों मे झूला झूलने का गर्व संसार की किस स्त्री को नही होगा और फिर वह जवान मर्द कोई अन्य नही आपका अपना लल्ला हो तो कहने ही क्या? वह अपने बेटे के अतुल्य बल पर सम्मोहित--सी हो गई थी, यह तक भुला बैठी थी कि अब से कुछ क्षणों बाद उसका वही बेटा उसकी चूत को जी भरकर चाटने व चूसने का अत्यंत पापी कार्य शुरू करने वाला था।

"हाँ तुमने बिलकुल सही कहा मम्मी, तुम नंगी मेरे हाथों मे हो यह कोई छोटी-मोटी बात नही। किसी बेटे और उसकी सगी माँ के बीच अगर कभी ऐसा हुआ हो तो उसे केवल उन दोनो का एक-दूसरे पर बेशुमार प्यार और भरोसा ही माना जाएगा मगर तुम बूढ़ी हो यह मैं नही मान सकता क्योंकि तुम्हारे बदन मे हड्डियों के अलावा अभी भी काफी चर्बी चढ़ी हुई है और तभी मैं सोचू कि ... उफ्फऽऽ! मैंने कितना भारी वजन उठा रखा है" हँसते हुए ऐसा कहकर उसने वैशाली को एकाएक उसके गद्देदार बिस्तर पर छोड़ दिया, हालांकि यह उसने बेहद सोच-विचारकर किया
था और इस विशेष बात का भी पूरा ध्यान रखा था कि उसकी माँ को उतनी ऊंचाई से नीचे गिरने के बाद कोई चोट-वोट ना आ सके।

"आईऽऽ! नालायक कहीं के, कोई इतनी बेरहमी से अपनी माँ को नीचे पटकता है भला" बिस्तर पर गिरने के उपरान्त सहसा वैशाली के मुंह से निकल जाता है, वह क्रोधित नही थी पर बुरी तरह चौंक जरूर गई थी। बिस्तर के मुलायम गद्दे पर एकदम से गिर पड़ने के नतीजन उसका सम्पूर्ण गुदाज बदन दोबारा ऊपर उछालते हुए बेहद कामुकतापूर्वक हिल उठा था, उसके गोल-मटोल मम्मे उसके चेहरे से जा टकराए थे जैसे अपनी स्वामिनी की एकाएक नाराजगी से क्रोधित स्वयं उसके मुख पर थप्पड़ लगा रहे हों।

"अले अले, क्या मम्मा को पोंद मे लग गई?" पूछते हुए अभिमन्यु की हँसी से पूरा बेडरूम गूंज उठता है और यही वह अद्भुत क्षण था जब बेटे के बचपने को देख वैशाली भी खुद को हँसने से रोक नही पाती, बचपन मे अधिकतर बच्चे सभ्य भाषा मे 'गांड' को 'पोंद' कहकर सम्बोधित करते हैं और यही कारण था जो दोनो माँ-बेट एकसाथ खुलकर हँसे जा रहे थे।

"मैं नालायक हूँ, घटिया हूँ, बेशर्म हूँ, बहुत ...बहुत गंदा हूँ। तुम मुझे डांट सकती हो, गाली दे सकती हो, मार-पीट सकती हो ...चाहो तो दोबारा मेरी पॉकेटमनी बंद कर देना मगर मुझसे कभी रूठना नही, कभी खुद से अलग मत करना। मेरे दिल के इतने करीब आजतक कोई नही आ पाया, जितना इन दो दिनों मे तुम आ चुकी हो और मैं तुम्हें कभी खोना नही चाहता माँ ...कभी खोना नही चाहता" कहते है कि जो जितना हँसता है बाद मे उतना ही रोता है, कुछ ऐसा ही अचानक अभिमन्यु के साथ हुआ और बोलते-बोलते कब उसके हँसते स्वर एकाएक भर्रा उठते है वह स्वयं नही जान पाता। उसकी आँखों नम हुईं और फिर जैसे आँसुओं का सैलाब उमड़ पड़ता है, जिसे देख वैशाली की हँसी भी तत्काल रुक गई थी। जवान हो चुकने के उपरान्त शायद यह पहली बार था जो वह प्रत्यक्ष अपने बेटे को रोता हुआ देख
देख रही थी, जबकि वह तब भी नही रोया था जब उसकी इकलौती प्यारी बहन अनुभा उनके घर से हमेशा-हमेशा को रुखसत हुई थी।

"अच्छा! तो तुम लड़कियों की तरह रोते भी हो। आओ ...यहाँ आओ अपनी माँ के पास" अपनी नग्नता को सिरे से नकारते हुए वैशाली ने फौरन अपनी बाहों को फैलाते हुए कहा, दिल तो उसका भी फट पड़ा था मगर जानती थी कि यदि वह खुद भी रोना शुरू कर देती तो उसके बेटे को किसी कीमत पर चुप नही करवा सकती थी। कुछ लोगों की विशेषता होती है, जबतक नही रोते तबतक रुलाए नही रोते और जब रोना शुरू करते हैं तब मानाए नही चुप होते। अपने बेटे के इस पुराने रोग की बचपन से जानकार उस माँ ने अतिशीघ्र बिस्तर के कोने मे सरककर अभिमन्यु को बलपूर्वक अपनी गोद मे खींचा और इसे महज आश्चर्य ही कहा जाएगा कि अबतक हरबार विफल रही वह माँ अपने स्त्री बलप्रयोग से आज पहली बार अपने बेटे को परास्त करने पूरी तरह से सफल हो चुकी थी।

"अगर सारा प्यार अपनी माँ पर लुटा दोगे तो मेरी होनेवाली बहू को कैसे खुश रख सकोगे? हम्म!" अपनी बाईं हथेली से वह प्रेमपूर्वक अपने बेटे की भीगी पलकों को पोंछते हुए पूछती है।

"अब तुम्हारी माँ तो पूरी तरह से नंगी है, कपड़े का एक कतरा तक उसके बदन पर मौजूद नही तो फिर कैसे वह अपने बेटे के आँसूओं को पोंछे। बताओ?" उसने मुस्कुराते हुए अपने पिछले प्रश्न मे जोड़ा और हौले--से अभिमन्यु की दोनो नम आँखों पर अपने मर्यादित ममतामयी चुम्बनों की बरसात शुरू कर देती है।



तुमने मुझसे पूछा था ना कि क्या मैं तुमसे ...अपने सगे बेटे से शर्मा रही हूँ? सच कहूँ मन्यु तो हाँ, तुम्हारे सामने जबजब मैंने अपने कपड़े उतारे हैं ...मैं हर बार शर्म से पानी-पानी हुई हूँ लेकिन यह भी सच है कि मुझे ऐसा करके उससे कहीं ज्यादा खुशी भी महसूस हुई है। जानते हो क्यों?" जब अभिमन्यु उसके पिछले प्रश्नों का कोई उत्तर नही देता तब वह आगे कहना आरंभ करती है। परिस्थिति मे एकाएक कितना अधिक बदलाव आ गया था, कुछ देर पहले सिर्फ बेटा बोले जा रहा था उसकी माँ खामोश थी और अभी सिर्फ माँ बोले जा रही थी उसका बेटा खामोश था। उनकी सहजता-असहजता मे भी काफी अंतर आया था, यकीनन घर के वातावरण मे छाई अनाचारी वासना सच्चे प्रेम मे परिवर्तित हो चली थी।

"क्योंकि ...क्योंकि यह महापाप है, गुनाह है और हम इंसानो की गंदी फितरत हमेशा ही पाप को बढ़ावा देती आई है। चाहे मर्द हो या औरत ...जानते हैं कि वह जो कर रहे हैं पूरी तरह से गलत है मगर फिर भी कीचड़ मे गंदे होने से खुद को रोक नही पाते। बात अगर केवल मेरी की जाए तो मेरा अपने जवान बेटे के सामने यूं बेशर्मों जैसे नंगी होकर बैठना मैं खुद कभी नही स्वीकार सकती पर यह सच भी नही झुटला सकती कि अभी मैं नंगी हूँ। मन्यु जाने क्यों मुझे लग रहा है कि अब से तुम जब भी अपनी माँ को देखो, उसकी इसी नंगी हालत मे देखो। मुझे कहते हुए जरा भी शर्म नही आ रही कि तुम्हारी माँ अब तुम्हारे सामने कभी कपड़े पहने हुए नही रहना चाहती, वह हमेशा नंगी ही बनी रहना चाहती है" कहकर वैशाली ने अपनी बाईं छोटी उंगली से अपनी आँखों की किनोर को पोंछा। उसे स्पष्ट अहसास हो रहा था कि भले ही अभिमन्यु गुपचुप बैठा हुआ था मगर अपनी माँ की हैरत से भरी बातों को सुनकर उसकी सिसकिया पूर्णरूप से रुक गई थीं, उसके चेहरे पर एकसाथ कई तरह के भाव उमड़ आए थे। शरीर मे होते कंपन के साथ ही उसके दिल की धड़कने भी तत्काल धुकनी मे बदल गई थी, जिनकी हर धमक को वह माँ सीधे अपनी धड़कनों से जुड़ता पा रही थी।




दिखाओ अंगूठे के छाले का दर्द कहाँ तक पहुँचा, मैं तुम्हारा लंड चूसूंगी तो नही पर उसे देखना जरूर चाहूंगी" चेहरे पर मुस्कान लाते हुए वैशाली तीव्रता से अपने बेटे की जींस की बेल्ट को खोलने लगी, अभिमन्यु ठगा सा उसे रोकने मे जरा भी सक्षम नही था जैसे अपनी माँ के सम्मोहन पाश मे पूरी तरह से बंध गया हो। बेल्ट को जींस के बक्कलों से निकालकर वह जींस का बटन और चेन भी खोल देती है और उसकी कजरारी आँखों के इशारे से कब उसका बेटा अपनी गांड को बिस्तर से उठा देता है वह स्वयं नही जान पाता। जींस के बाद बारी आई उसकी शर्ट की और अगले ही पल उसे उसकी जॉकी भी नीचे फर्श पर बिखरे पड़े उसके अन्य कपड़ो मे शामिल नजर आती है, यह सोचकर कि अब दोनो माँ-बेटे पूर्णरूप से नंगे हो चुके हैं बेडरूम का प्रेमभरा वातावरण भी पुनः अखंड वासना से प्रज्वलित हो उठता है।

"ओह माँ! इस्स्स्ऽऽ!" बेटे को खुद के समान नंगा करने के कारण वैशाली को बिस्तर के बीचों-बीच आना पड़ा था और ज्यों ही वह बिस्तर के कोने मे बैठे अभिमन्यु को सीधे उसके अधखड़े लंड से पकड़कर अपनी ओर खींचती है, अपने बेटे की कामुक व दर्दभरी सीत्कार से उस माँ की चूत का रूका हुआ स्पंदन भी मानो एकाएक बढ़ गया था।

"कितने ...कितने बड़े हो चुके हो तुम मन्यु, उफ्फ! बहुत खूबसूरत लंड है तुम्हारा, अगर आज हम पापी ना बनते तो मुझे कभी पता ही नही चलता कि अपने सगे बेटे के जवान लंड को अपनी नंगी आँखों से देखने का सुख कैसा होता है?" वह अभिमन्यु की खुली टांगों के मध्य नीचे झुकते हुए सिसकी, उसकी अत्यंत नाजुक दाहिनी मुट्ठी मे कैद उसके बेटे का अधसिकुड़ा लंड ठुमकियां लगाते हुए तत्काल तनाव से फूलने लगा था और जिसमे तीव्रता से होते जा रहे परिवर्तन को करीब से देखने की चाह मे वह माँ फौरन उस अत्यधिक ज्वलंत मूसल को अपनी मुट्ठी से आजाद कर देती है।

"माँऽऽ! ओह मम्ऽमीऽऽ!" अभिमन्यु की सीत्कारें तब एकदम से उसकी चीख-पुकार मे तब्दील हो गईं जब उसे
प्रत्यक्ष अपनी माँ का बेहद सुंदर चेहरा अपने लंड पर झुकता हुआ नजर आता है।

"यह ...यह खडा़ हो रहा है मन्यु, देखो कितनी तेजी से बड़ा हो रहा है यह। उन्ह! उन्ह! बेशर्मों की तरह कैसे झटके खा रहा है नालायक, इस्स्! क्या ...क्या तुम्हारी तरह यह भी तुम्हारी माँ से सच्चा प्यार करता है? बताओ ना मन्यु ...क्या यह मेरे लिए तन रहा है?" वैशाली बेहद उत्साहित स्वर मे पूछती है, ऐसा अद्भुत व उत्तेजक नजारा उसने अपने बीते जीवनकाल मे कभी नही देखा था, तब भी नही जब अपनी सुहागरात पर पहली बार वह अपने पति के विशाल लंड से परिचित हुई था। इसे महज अपवाद कहा जाएगा कि जहाँ अधिकतर स्त्रियां अपने कौमार्य को अपने विवाह तक संभालकर नही रख पातीं, वैशाली के संस्कार, उसकी मर्यादा, उसकी अडिग विचारधारा, यह उसके अखंड संयम का ही फल था जो मणिक को अपनी पत्नीरूप मे यौवन से भरपूर एक कुंवारी युवती की प्राप्ति हुई थी और जिसपर वह स्वयं अचंभित हुए बगैर नही रह सका था, बल्कि गर्व से आनंदित भी हो उठा था।

"हाँ माँ हाँ ...मेरी तरह यह बेशर्म भी सिर्फ तुम्हारे लिए ही खड़ा हो रहा है। देखो ...मेरे फूले ट्टटों को देखो मम्मी, आहऽऽ! तुम्हारे सच्चे प्यार, अच्छी परवरिश और देखभाल की वजह से इनमे कितना ज्यादा रस भरा पड़ा है और जो केवल तुम्हारे लिए है ...उम्म! मुझे पैदा
करनेवाली मेरी सगी माँ के लिए है" अभिमन्यु सिसियाते स्वर मे चिल्लाया। वह सचमुच नही जानता था कि उसकी भोली-भाली, सीधी-साधी सी दिखनेवाली माँ के भीतर इतनी अधिक आग भरी हो सकती है, उसकी संस्कारी व मर्यादित छव के पीछे इतनी हिंसक प्रवृत्ति छुपी हो सकती है।

"देख रही हूँ मन्यु, वीर्य ही वीर्य भरा है इनमे। तुम्हारे कड़क लंड की इन नीली-लाल-हरी नसों को भी देख रही हूँ मैं, बिलकुल मेरे अपने दिल जैसी धड़क रही हैं और ...और तुम्हारा यह चिकना सुपाडा़ ओह! अभिमन्यु तुम्हारा यह बैंगनी सुपाड़ा तो मुझे पागल ही कर देगा बेटा ...कितना प्यारा है यह, जैसे कोई छोटा सेब हो। इसमे से बहार निकलते गढ़े रस की खुशबू, आऽईऽऽ...." अतिउत्तेजित वैशाली इसके आगे कुछ और नही कह पाती, चीखते हुए अपने दोनो से वह सचमुच किसी पागल भांति अपने बालों को नोंचने लगती है।

"क्या माँ ...खुशबू क्या?" अपनी माँ के ताउम्र रहे स्वच्छ मुंह से अपने लंड की इतनी अधिक अश्लील प्रशंसा सुनकर तत्काल अभिमन्यु भी उद्विग्न स्वर मे पूछता है, अपनी माँ के हाथों से उसके केश छुड़वाकर उसने उसके तमताते चेहरे को अपनी मजबूत हथेलियों से बलपूर्वक थाम लिया था।

"मैं तुम्हारा लंड नही चूस सकती, तुम ...तुम जबरदस्ती इसे अपनी माँ के मुंह मे ठूंस दो मन्यु और फिर जितना चाहो उतना मेरे गंदे मुंह को चोदो बेटा मगर मैं ...." एक बार पुनः वैशाली बोलते-बोलते रूक गई, उसके अंतर्मन मे रह-रह कर यह विस्फोटक प्रश्न उठ रहा था कि क्या अब वह एक ऐसी नीच माँ बन जाएगी जो अपने ही सगे जवान बेटे का लंड चूसा करती है और इसी विशेष उल्लाहना से दुखी वह नंगी अधेड़ माँ चाहकर भी स्वयं अपने बेटे के अत्यंत सुंदर व विशाल लंड को अपने छोटे--से मुंह की गहराई मे नही उतार पा रही थी, अपने बेटे को अपने मुखमैथुन की परिपक्व कला से आनंदित नही करवा पा रही थी, बेटे के गाढ़े सुगंधित वीर्य को चखने का साहस नही जुटा पा रही थी, बेटे की इस पापी मांग को जरा भी स्वीकार नही कर पा रही थी





जबरदस्ती और तुम्हारे साथ ...हाँ जबरदस्ती तो मैं जरूर करूंगा मगर मेरी वह जबरदस्ती तुमसे अपना लंड चुसवाने की नही सिर्फ तुम्हारी चूत को चाटने की होगी, उसे जी भरकर चूसने की होगी माँ" मुस्कुराकर ऐसा कहते हुए अभिमन्यु ने उस तात्कालिक घटनाक्रम को एक नई दिशा प्रदान कर दी। वह वैशाली को दोबारा बिस्तर पर गिरा देता है, अंतर महज इतनी था कि कुछ वक्त पीछे उसने हँसते-हँसते उसे बिस्तर पर पटक दिया था अब उसे हल्का का धकेलने भर से उसका काम पहले से भी अधिक आसान बन गया था।

"मत ...मत मन्यु, तुम्हारे आने से पहले तुम्हारे पापा ...." वैशाली अपने कथन को पूरा कर पाती, अभिमन्यु ने फौरन उसके बोलते मुंह पर अपनी दाईं हथेली को दबा दिया।

"श्श्श् मॉम! कुछ मत कहो, मुझे सब पता है और मैं उनसे कन्फर्म भी कर चुका हूँ की वह कबतक घर लौटेंगे" उसने बताया और साथ ही बिस्तर पर नंगी लेटी अपनी माँ की जुड़ी टांगों को विपरीत दिशा मे चौडा़ते हुए अतिशीघ्र वह उनके बीच पसर जाता है।

"कबतक लौटेंगे? तुम्हें ...तुम्हें कैसे पता चला कि ...आईऽऽ मन्यु! मान जाऽऽ" एकाएक वैशाली की कामुक सीत्कार से उसका अपना बेडरूम गूंज उठता है क्योंकि उसके प्रश्न की समाप्ति से पहले ही उसके बेटे ने उसकी रस उगलती चूत के रोंएदार आपस मे चिपके दोनो सूजे होंठों पर एकसाथ अपनी गीली व खुरदुरी चपटी जीभ को पूरी लंबाई मे रगड़ दिया था।

"वह सीधे शाम को आएंगे और माँ और तुम्हारी रज बहुत गाढ़ी, बहुत ...बहुत स्वादिष्ट है" अपनी बात पूरी करने के लिए क्षणमात्र को वैशाली के भभकते चूतमुख से अपनी जीभ हाटाने के उपरान्त अभिमन्यु पुनः उसे अपनी माँ की अत्यंत मादक, सुगंधित चूत की गीली पर्त पर रगड़ना शुरू कर देता है। निश्चित अपनी माँ का ध्यान बांटने के उद्देश्य से ही उसने अपने पिता से संबंधित
जानकारी को अबतक उससे छुपाकर रखा था ताकि सही समय पर वह अपनी माँ को यथासंभव चौंका सके और जिसके परिणामस्वरूप उसका अपना बेटा होने के बावजूद भी वह उसके शरीर के सबसे वर्जित अंग, उसकी चूत से अपना मुंह बिना किसी अवरोध के सटा देने मे पूर्णरूप से सफल चुका था।

"उल्प्प्!" इसी बीच वह क्षण भी आया जिसकी अभिमन्यु जैसे अपरिपक्व जवान मर्द को कोई उम्मीद नही थी मगर वैशाली जैसी परिपक्व स्त्री को यकीनन इसी क्षण का इंतजार था। हुआ कुछ यह कि जबतक अभिमन्यु अपनी माँ की चूत के चिपके चीरे के ऊपर-ऊपर अपनी गीली जीभ फेरता रहा तबतक उसके आनंद, उसके अखंड रोमांच की कोई सीमा नही थी मगर ज्यों ही उसकी लपलपाती जीभ ने उसकी धधकती चूत के भीतर प्रवेश किया। उसकी माँ की चूत भीतर की घनघोर तपन, भरपूर चिकनापन, लिसलिसाहट, कसैला स्वाद, फड़फड़ाता अंदरूनी जीवंत मांस व एक ऐसी अजीब--सी गंध जिसमे उसकी माँ की गाढ़ी रज, उसके पसीने और उसके मूत्र का मिश्रण शामिल था; उसे एकाएक अकबकाई भर उठी थी और इससे पहले कि उसकी माँ को उसके जी मचला जाने के संबंध मे कुछ भी पता चल सके, वह दृढ़ता से प्रयत्न करता है कि वह उसके चूतमुख से अपना मुंह ना हटाए परंतु चाहकर भी वह पुनः अपनी जीभ को वैशाली की चूत के रस उगलते वर्जित छिद्र के भीतर ठेलने मे सक्षम नही हो पाता।

"चलो अब उठ जाओ, तुमने कोशिश की मुझे अच्छा लगा" अब चौंकने की बारी अभिमन्यु की थी और चौंकने से कहीं अधिक उसे अपनी माँ के कथन को सुनकर दुख पहुँचा था।



तुम्हारी चूत को चाटूंगा, जी भरकर तुम्हारी गाढी़ रज पियूंगा माँ" सुबह से दर्जनों बार अपनी माँ से कहे उसके यह खोखले शब्द तत्काल उसे कुंठा से भर देते हैं, शर्मशार वह अपनी आँखें तक मूंद लेने पर विवश हो जाता है।

"होता है मन्यु, सबके साथ ऐसा होता है। औरत हो या मर्द, एक-दूसरे के गुप्तांगों को पहली बार अपने मुंह से सुख पहुँचाने मे घिन आती ही आती है। शर्मिंदा मत हो, मुझे तुमसे कोई शिकायत नही" वैशाली प्रेमपूर्वक अपने बेटे को समझाते हुए बोली। सहसा उसे उस बीते वक्त की याद आ गई थी जब पहली बार उसने अपने पति के लंड को अपने मुंह के भीतर ठूंसा था, हालांकि वह कोई जबरदस्ती भरा कृत्य नही था बल्कि हर पतिव्रता की भांति वह भी मणिक को यौन सुख के अखंड आनंद से परिचित करवाने का अनूठा प्रयत्न कर रही थी। अभिमन्यु को महज एक अकबकाई आई थी मगर इसके विपरीत वैशाली को तत्काल उल्टियां होनी शुरू हो गई थीं, अब इसे मणिक के प्रति उसका नैसर्गिक प्रेम ही कहा जाएगा की कुछ दिनों पश्चात उसने अपने अनूठे प्रयत्न को पुनः दोहराया और तबतक दोहराती रही थी जबतक कि वह बिना किसी घृणा के उसके लंड को परिपक्व होकर चूसना नही सीख गई थी।

"बाल ...बाल मुंह मे आ गए थे मॉम, झांटे बहुत बड़ी हैं ना तुम्हारी" अभिमन्यु हकलाते हुए बोला, वह बड़े जतन से मुस्कुराने का भी अभिनय करता है मगर उसकी हकलाहट उसकी फीकी मुस्कान का भेद छुपाने मे सफा नाकाम थी। बस अपने अश्लील झूठ से उसने अपनी माँ को लज्जा से अवश्य भर दिया था और जो बिस्तर पर उसके संग स्वयं भी पूर्णरूप से नंगी होकर लेटी अपने चेहरे की सुर्खियत के कारण उसके बेटे को किसी काल्पनिक काम सुंदरी सामान नजर आने लगी थी, जिसके अतुलनीय कामुक सौंदर्य का कोई मोल नही था, कोई तोड़ नही था, कोई विकल्प नही था।







इक्स्पिरीअन्स नही मेरे पास ओरल सेक्स का मम्मी। तुम तो मुझसे बड़ी हो ...मेरी माँ हो, तुम मुझे गाइड क्यों नही करती?" शैतानीपूर्वक अपने पिछले कथन मे जोड़ वह वैशाली की दोनो पिण्डलियों को बारी-बारी थामकर उन्हें ऊपर उठाने के पश्चात उसके घुटने सीधे उसके कंधों पर दबा देता है। स्त्री मुखमैथुन व उसकी घनघोर चुदाई करने का सर्वोत्तम आसन जिसे उस जवान नवयुवक ने अनगिनती नीली फिल्मों मे देखा था, जिसमे औरत का गुप्तांग अधिकाधिक उभरकर स्पष्ट उसके प्रेमी को नजर आने लगता है।

"बेशर्म! अब क्या एक माँ खुद अपने बेटे को उसकी चूत चाटने या उसे चूसने का गाईडेन्स देगी?" अभिमन्यु की निकृष्ट मांग और उसकी शारीरिक हरकत से अत्यंत रोमांचित होते हुए वैशाली ने उल्टे उसीसे सवाल किया, उस माँ की कामुत्तेजना जैसे अकस्मात् दूनी बढ़ गई थी जब वह महसूस करती है कि उसके सगे बेटे को उसकी रस उगलती चूत के अलावा अब सिकुडन से भरा, कंपकपाता उसका कुंवारा गुदाद्वार भी प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा होगा।

"क्यों इसमे क्या बुराई है?" अभिमन्यु ने अपनी फट पड़ी आँखों को अपनी माँ के बेहद कुलबुलाते गहरे भूरे रंगत के गांड के छेद से सटाते हुए पूछा, जिसके चहुं ओर भी उसकी घनी काली झांटों का अखंड साम्राज्य मौजूद था। कुछ पसीने और कुछ उसकी माँ की चूत से बहे उसके गाढ़े कामरस से उसकी गांड की दरार पूरी तरह गीली व चिपचिपी नजर आ रही थी और उसके मलद्वार से उठने वाली तीखी गंध ने तो एकाएक पुनः अभिमन्यु को अपनी सांस रोक देने पर विवश कर दिया था।





बुराई-वुराई मैं कुछ नही जानती और अब उठो फटाफट वर्ना तुम्हारा फिर से जी मचला जाएगा और मैं नही चाहती की तुम्हारी तबियत पर इसका कोई बुरा असर पडे़" कहकर वैशाली अपने कंधों से पार निकली अपनी टांगों को अभिमन्यु की हथेलियों से मुक्त करवाने का प्रयत्न करती है मगर तभी अपने बेटे के अगले विध्वंशक कथन और उसकी विस्फोटक हरकत से उस माँ के कान क्षणभर को शून्य मे परिवर्तित हो गए। उसके पेट मे अचानक असहाय मरोड़ उठने लगी, पूरा नग्न बदन एकसाथ ऐंठ गया, चूत झड़ने को पहुँच गई और संग-संग अति-संवेदनशील उसकी गांड का छेद भी अविश्वसनीय संसनाहट से भर उठा।

"हम्फ्! हम्फ्! देखो माँ, मैं तुम्हारी गांड के छेद को सूंघ रहा हूँ, और मुझे घिन नही आ रही। हम्फ्! बिलकुल भी नही आ रही"
 

Rabia

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अभिमन्यु की अतिउत्तेजित मगर अनैतिक हरकत देख और उसके पापी कथन को सुन वैशाली के अंदर की ममता विकृत वासना मे परिवर्तित होते देर ना लगी। उसकी रक्तरंजित आंखों मे झांकते हुए उसका जवान बेटा उसके बदन का सबसे गुप्त व वर्जित अंग उसकी गांड के कुंवारे छेद को गहरी-गहरी सांसें लेते हुए सूंघ रहा था। अपने जिस गंदे मलद्वार का जीवनपर्यंत उपयोग उस माँ ने सिर्फ मल-त्याग करने के लिए किया था, अपने बेटे की नाक के दोनो फूलते-पिचकते नथुओं को उसके बेहद समीप देख वैशाली का ममतामयी अंतर्मन पुनः चीख-पुकार मचाने लगता है।

"म ...मत मन्यु, उन्घ! गंदी ...गंदी जगह है वह" वह अपने जबड़े भींचते हुए हकलाई।

"हम्फ्! माँ तुम्हारे बदन का कोई भी अंग गंदा नही। हाँ मुझे घिन आ रही है मगर तुम्हारा शिटहोल इतना ज्यादा इरॉटिक है कि मैं चाहकर भी इसकी गंध को सूंघने से खुद को रोक नही पा रहा हूँ ...हम्फ्। हम्फ्। अपनी मम्मी की गांड का छेद देख हूँ, जिसने मुझे पैदा किया अपनी उस सगी मॉम का एसहोल ...उफ्फ्फ्! नशा चढ़ रहा है मुझ पर ...हम्फ्। हम्फ्।" लगभग चीखते स्वर में ऐसा कहते हुए अभिमन्यु आखिरकार अपनी नाक की नुकीली नोंक वैशाली के अनछुए गुदाद्वार से रगड़ने लगा। अपने हाहाकारी कथन के समर्थन मे उसकी नाक के फूले नथुए स्वतः ही उसकी माँ के सिकुड़न से भरे मलद्वार की गहरी महरून रंगत की गोलाई पर मानो चिपक से जाते हैं, छेद के आसपास उगी उसकी माँ की काली झाटों पर पनपी पसीने की बूंदों को भी उसके छेद की मादक गंध के साथ अपने भीतर समाने लगते हैं।


आऽऽईऽऽऽऽ! मन्यु मा ...मान जाओ, वहाँ मत ...मत बेटा" सिसयाते हुए वैशाली छाती के पार निकली अपनी दोनों टांगों को यथासंभव पुनः सीधा करने का प्रयत्न करती है मगर बेटे के नीचे दबी होने के कारण उसके दर्जनों प्रयत्न भी पूरी तरह से विफल साबित होते हैं। उसकी गांड के छेद की कुलबुलाहट तब पहले से भी अधिक कष्टकारी मोड़ ले लेती है जब अभिमन्यु की लौटती गर्म साँसें उसके मलद्वार को एकाएक झुलसाना आरम्भ कर देती हैं, इस विस्फोटक विचार से की अब उसके संस्कारी व पवित्र शरीर का ऐसा कोई अंग नही बचा जिसे उसके इकलौते जवान बेटे ने नग्न ना देखा हो अपने बेडरूम के बिस्तर पर छटपटाती वह नंगी माँ अत्यधिक उत्तेजना के प्रभाव से जैसे बेहोशी की कगार पर पहुँच जाती है। अपनी अधेड़ उम्र तक अपने बदन के जिस अन्य सबसे अधिक संवेदनशील कामांग को सदैव तिरस्कृत होना महसूस करती आई वैशाली वर्तमान मे अपनी गांड के छेद से होती असहनीय छेड़छाड़ को कैसे बरदाश्त कर पाती जबकि उसके मलद्वार को जबरन छेड़ने वाला शख्स कोई और नहीं उसका अपना जवान खून था।

"अच्छा ...अच्छा ठीक है, नही सूंघता तुम्हारे शिटहोल को पर एक बात जरूर कहूंगा माँ की तुम्हारा पति चुदाई के मामले मे एकदम चूतिया है ...हम्फ्!" एक अंतिम बार अपनी माँ की गांड के छेद को तन्मयता से सूंघने के उपरान्त वह वैशाली की कष्टप्रद फड़फड़ाती आँखों मे झांकते हुए बोला, उत्तेजना के साथ-साथ अखंड रोमांचवश अब अभिमन्यु की घिन भी काफी हद तक समाप्ति की ओर अग्रसर हो चली थी।

"बेशर्म कहीं के ...वह बाप है तुम्हारा। एक औरत के मुंह पर उसके पति का मज़ाक उड़ाने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुयी?" अपने बेटे के नीच कथन को सुन वैशाली तत्काल क्रोध से तिलमिलाते हुए बोली।



"ह ...हा! बेशर्म तो मैं हूँ मम्मी पर उससे भी ज्यादा कमीना हूँ। मैंने तुम्हें बताया था की मैं तुम्हें चोदना नही चाहता लेकिन चोदम-पट्टी के अलावा मेरी कई फैन्टेसी हैं, तो अब अपनी गांड ...मेरा मतलब है अपने कान खोलकर सुनो की मैं कितना बड़ा बेशर्म ...मेरा मतलब की कमीना हूँ" अपनी माँ के क्रोध के जवाब में अभिमन्यु ने ठहाका लगाकर हँसते हुए कहा, अब वह उस तात्कालिक क्षण को इतना अधिक उत्तेजक बना देने को उत्सुक था कि उसकी माँ इन क्षणों को ताउम्र कभी भूल न सके, वह कमरे के गरमा-गर्म वातावरण को ज्वलनशीलता के उच्चतम शिखर पर पहुंचाने का फैसला कर चुका था।

"न ...नही मन्यु, मुझे और कुछ नही जानना। खाने का समय हो चुका है, तुम्हें भी भूख लगी होगी" वैशाली एकाएक भयभीत होते हुए बोली, वह खुदपर आशंकित थी की बहककर एक माँ से औरत बनने के उपरान्त अब बेटे के समक्ष कहीं वह किसी रंडी, छिनाल, कुलटा सामान बर्ताव ना करने लग जाए।

"मेरा खाना तो मेरे नीचे दबा पड़ा है, सोच रहा हूँ माँ की आज एक जैनी से मांसाहारी बन ही जाऊं" वह दोबारा अपना वैशाली की विपरीत दिशा में खुली टांगों के मध्य झुकाते हुए कहता है।

"तुम्हारे निप्पल चूस चुका, होंठ चख लिए, तुम्हारी चूत चाटकर उसका भी थोड़ा-बहुत स्वाद ले चुका हूँ मम्मी मगर कुछ तो कमी है ...अम्म् हाँ! तुम्हारी गांड का छेद नही चूमा मैंने, नाचीज़ को इजाज़त हो तो क्या तुम्हारे एसहोल की एक किस्सी ले लूँ? छोटू सी किस्सी?" अपने पिछले कथन में जोड़ते हुए अभिमन्यु ने व्यंगात्मक ढंग से पूछा और बिना अपनी माँ के जवाब का इंतजार किए अपने होंठों को गोलाकार आकृति मे ढाल वह उन्हें हौले-हौले उसके मलद्वार के समीप ले जाने लगा।


उई! नही मन्यु ...उई! रुक ...रुक जाओ। उफ्फ्! पागल लड़के ...मत करो ना" वैशाली तब लगातार बिस्तर पर अपनी गांड उछालते हुए चिल्ला उठती है जब उसका बेटा अपने होंठ उसकी गांड के छेद से सटा देने का भ्रम पैदा करते हुए हरबार उन्हें पीछे खींच लेता है।

"लंड नही घुसेड़ रहा तुम्हारी गांड मे जो तुम इतने नखरे चोद रही हो, सिर्फ चुम्मा लेना है माँ तुम्हारी क्यूट सी पोंद के छेद का। बोलो लूँ किस्सी की सीधा जीभ ही घुसा दूँ अंदर? फिर मत कहना कि मैंने तुम्हारे साथ कोई जबरदस्ती की है" हँसकर कहते हुए अभिमन्यु वास्तविकता मे अपनी जिह्वा को अपने सिकुड़े होंठों से बाहर निकाल देता है और ज्योंही उसकी जीभ की नुकीली नोंक को वैशाली ने अपने मलद्वार का लक्ष्य साधते देखा, मजबूरन वह माँ चीखते हुए अपने बेटे की अनैतिक इच्छा को अपनी स्वीकृति प्रदान कर बैठी।

"चूम लो मन्यु पर अंदर जीभ मत घुसाना। मेरे ...मेरे अलावा आजतक किसी और ने उस जगह को कभी छुआ तक नहीं है, मैं सहन नही कर सकूंगी बेटा ...बहुत गंदी जगह है वह" वैशाली कंपकपाते स्वर मे चीखी, उसकी चीख को पल मे और गहरा करते हुए अभिमन्यु ने तीव्रता से अपनी जीभ होंठों के भीतर कर उन्हें बिना किसी अतरिक्त झिझक के सीधे अपनी माँ की गांड के कुंवारे छेद से कठोरतापूर्वक चिपका दिया। अपनी जिह्वा को मुंह से बाहर निकालने का कारण उसका वैशाली को भयभीत करना कतई नही था बल्कि वह अपने खुश्क होंठों को अपनी लार से तर-बतर करना चाहता था ताकि उसकी माँ को उसके चुम्बन का हरसंभव स्पर्श महसूस हो सके, यह भी एहसास हो सके की उसकी गांड जोकि उसके बदन का सबसे कामुक अंग है, अब और तिरस्कृत नही रहेगा।



"ह्म्म्! ब ..बस उफ्फ्फ्!" अपने जवान बेटे के गीले होंठों के शीत स्पर्श को अपने फड़फड़ाते मलद्वार पर कसता महसूस कर एकाएक वैशाली की आँखें नाटिया गयीं और वह फ़ौरन उसकी दोनों जाँघों को बलपूर्वक थामे अभिमन्यु के हाथों की कलाई को स्वयं ताकत से जकड़ लेती है। उसका पेट तेजी से फूलने-पिचकने लगा, जिह्वा मुंह के बाहर लटक आयी, उसकी चूत के भीतर का स्पन्दन क्षणमात्र मे इतना प्रचंड हो उठता है कि उसका कामोन्माद अतिशीघ्र चरम पर पहुँच गया।

"उन्घ्! बस मन्यु ...मर जाऊंगी ओह!" सिसकते हुए उस माँ की गर्दन भी अपने आप बिस्तर से ऊपर उठ जाती है, उसके बेटे के होंठ मानो किसी जहरीली जोंक की भांति उसके अत्यन्त संवेदनशील गुदाद्वार से बुरी तरह चिपक चुके थे और इसमे भी शायद अभिमन्यु को संतोष नहीं था क्योंकि वह अपने होंठों की कड़कता से अपनी माँ की गांड के छेड़ की अतिमुलायम सिकुड़न से भरी त्वचा को जबरन अपने मुंह के भीतर खींचने का प्रयत्नशील हो चला था, यकीनन अपनी माँ को जताना चाहता था कि अब उसे वाकई अपनी जन्मदात्री के बदन के किसी भी अंग को अपने मुंह से लगाने में जरा-सी भी अकबकाई नही आ रही, कोई घिन महसूस नही हो रही।

"पुच्च्च्ऽऽ!" एक लंबी पुचकार ध्वनि के साथ ही अभिमन्यु ने अपने होंठों को अपनी माँ की गांड के छेद से पीछे खींच लिया और उसके ऐसा करते ही अविलंब आह लेती हुयी वैशाली की गर्दन पुनः बिस्तर पर गिर पड़ी।

"मुझे झड़ना है मन्यु ...आई! मुझे झड़ा दो" तत्काल वैशाली
का रुदन स्वर अभिमन्यु के कानों को थरथरा जाता है, वह स्खलन के समीप पहुँचते-पहुँचते भी स्खलित नही हो पाई थी।

अभी नही माँ, अभी वक्त है। अभी तो हमें बहुत सी बातें करनी हैं, गंदी-गंदी बातें। इतनी गंदी की तुम आज बिना किसी सहारे के झड़ोगी, वादा करता हूँ अपने आप झड़ोगी और इतना झड़ोगी कि तुम्हारी बरसों की चुदास आज बिना चुदे ही शांत हो जायेगी। आज मैं तुम्हें वह सुख दूंगा जो तुम ताउम्र अपने पति से चुदकर भी कभी ले पायीं जबकि जिसकी तुम हमेशा से हकदार थीं" दृढ़ विश्वास से भरे स्वर मे ऐसा कहकर अभिमन्यु अपनी माँ की जाँघों को अपने हाथों की पकड़ से मुक्त कर बिना किसी रुकावट के उसके नंगे बदन पर पूरी लंबाई में पसारने लगता है। वैशाली की टांगों की जड़ पूर्व से खुली होने के कारण उसके बेटे का खड़ा विशाल लंड उसकी चूत की सूजी फांकों के समानांतर उनके बीचों-बीच धंस गया, उसके वीर्य से भरे टट्टे उसकी माँ के गुदाद्वार को थपथपाने लगे। दोनों की नाभि आपस में सट गयीं, बेटे की बलिष्ठ छाती के दबाव ने उसकी माँ के गोल-मटोल फूले मम्मों को पिचकाकर रख दिया। जबड़ों से जबड़े मिल गए, होंठों से होंठ, नाक से नाक चिपक गयी और साथ ही माथे से माथा टकराने लगा।

"उम्मम्! तुम्हारी जवानी तो जैसे अब खिली है मम्मी, बहुत चुदासी हो तुम ...वैसे तुम बूढ़ी कब होगी?" किसी अत्यन्त रोमांचित नाग की भांति अपनी माँ रुपी नागिन के छरहरे नग्न बदन से लिपटते ही अभिमन्यु आहें भरते हुए बुदबुदाया।

"बूढ़ी ...बूढ़ी ही तो हूँ मन्यु। इश्श्! मैं अब जवान नही रही" वैशाली ने ज्योंही अपना कथन पूरा किया, अभिमन्यु उसकी रस उगलती चूत के चिकने होंठों पर अपने कठोर लंड के बारम्बार लंबे-लंबे घर्षण देने लगता है।

"नही मन्यु ...तुमने वादा किया था, तुम अपनी माँ को चोदना नही चाहते। उफ्फ्! मत ...अंदर मत उफ्फ्फ्फ्फ्!" वैशाली छटपटाते हुए सिसकी, आगामी भविष्य के विचार मात्र से उसकी कामपिपासा पैश्विक होते देर ना लगी।

"क्या करूं मॉम, वादा तोड़ना तो नही चाहता मगर मजबूरन तोड़ना पड़ेगा मुझे क्योंकि तुम भी तो अपना वादा तोड़ने वाली हो। आह
चोद लेने दो मुझे अपनी माँ को, मुझे भर देने दो अपना गाढ़ा वीर्य मुझे पैदा करने वाली ...मेरी सगी माँ की चूत मे" अभिमन्यु अपने भालेनुमा दैत्य सुपाड़े से वैशाली के कुनमुनाते भंगुर को छीलते हुए बोला, साथ ही वह अपनी माँ के सिर को बिस्तर से ऊपर उठाकर उसके रेशमी मुलायम बालों के भीतर अपना संपूर्ण चेहरा घुसा देता है। उसकी कमर शीघ्र-अतिशीघ्र उसकी माँ के निचले नंगे धड़ पर स्वतः ही रगड़ खाने लगी थी, उसके गोल मांसल मम्मों को उसके बेटे की कठोर छाती ने पूर्णरूप से चपटा कर दिया था इतना चपटा की उसकी माँ के ऐंठे निप्पल उल्टे स्वयं उसीके मम्मों के मांस के भीतर दब गए थे।

"क ...कैसा वादा मन्यु, मैंने तुमसे कौन सा वादा किया जो तोड़ने वाली हूँ? इश्श्श्! अगर धोखे से भी तुम्हारा लंड मेरी चूत के अंदर घुसा मैं ...मैं रंडी कहलाऊंगी मेरे लाल, एक कुलटा बन जाऊंगी जो अपने ही सगे बेटे से चुदवाती है" वैशाली ने तड़पते हुए कहा मगर फौरन अचरज से भर उठी जब पाया कि उसकी अपनी कमर भी अपने-आप उसके बेटे की कमर से ताल मिलाते हुए जाने कब बिस्तर पर उछलने लगी थी, उसकी हथेलियां बेटे के सिर को थाम चुकी थीं और तो और बिना उस माँ के करे-धरे उसकी टांगें तक अभिमन्यु की जाँघों पर कठोरतापूर्वक कस चुकी थीं, मानो उसका उत्तेजित बदन ने उसके ममतामयी हृदय और सुलझे मस्तिष्क से पूरी तरह नाता तोड़ दिया था।

"चुदोगी तो तुम पक्का माँ, खैर कुछ देर पहले तुमने कहा था कि अब से तुम अपने बेटे ...यानी मेरे सामने हमेशा नंगी ही रहना चाहती हो। तो बताओ शाम को क्या करोगी जब तुम्हारा पति घर लौट आएगा? तब भी निभा सकोगी अपने वादे को, अपने शब्दों को?" अभिमन्यु ने विध्वंशक विस्फोट करते हुए पूछा।


वह ...वह तो मैंने ऐसे ही कह दिया था मन्यु, तुम्हारे पापा के सामने मैं कैसे..." वैशाली बेटे के अश्लील प्रश्न के जवाब में बस मिमियाकर रह जाती है। अभिमन्यु के पत्थर सामान कठोर लंड की अपनी संवेदनशील चूत के मुहाने पर रगड़, दोनों माँ-बेटे की घनी झांटों का आपसी घर्षण, उनके नग्न शरीर का एक-दूसरे से बुरी तरह गुत्थम-गुत्था होना उस माँ की शर्म को, उसकी आतंरिक लज्जा को तार-तार कर देने में पूर्णतयः सक्षम था।

"मैं आज तुम्हारे वार्डरॉब को ताला लगा देने वाला हूँ माँ, तुम अब से इस घर में नंगी रहोगी। ना ही तुम्हें ओढ़ने को चादर मिलेगी और ना ही बदन पोंछने को टॉवल मगर क्योंकि तुम मेरी माँ हो इसलिए चाहो तो अपने गहने पहन सकती हो ...हाँ! तुम्हें सैंडिल पहनने की भी छूट है, तुम भी क्या याद रखोगी किस दिलदार से पाला पड़ा है" अभिमन्यु अपनी माँ के खुले केशों से अपना चेहरा बाहर निकालते हुए बोला तत्पश्चयात सीधे उसकी नाक को अपने होंठों से चूमने लगता है।

"मम्मी चाटूँ तुम्हारी नाक को, जैसे जानवर एक-दूसरे से अपना प्यार दिखाते हैं" अपने पिछले कथन मे जोड़ वह बिना इजाज़त के वैशाली की नाक की ऊपरी सतह को अपनी गीली जीभ से चाटने लगा, जल्द ही उसकी जीभ की नोंक उसकी माँ के दोनों फूले नाथुओं के भीतर घुसने का विफल प्रयत्न शुरू कर चुकी थी।
उइईई माँ! मुझे नही पता था कि तुम इतने गंदे निकलोगे मन्यु ही ...ही, छी:! कहाँ जीभ घुसा रहे हो तुम्हें पता भी है" बेटे की बचकानी हरकत से गुदगुदी महसूस कर अचानक से वैशाली हँसते हुए कहती है।

"नमक है तुम्हारी नाक के अंदर माँ, काश कि मैं अंदर तक इसे चाट पाता। खैर तुम्हारा पसीना भी गजब है, पता है वियाग्रा का काम कर रहा है मुझपर, लग रहा है तुम्हारा पूरा शरीर ही चाट डालूं। उफ्फ्! तुम्हारे इन मुलायम रोमों को चूसूं, इनपर पनपे पसीने की हर बूँद को अपने गले से नीचे उतार लूँ" अभिमन्यु के शब्द उसके अखंड उन्माद के सफल परिचायक थे। वैशाली प्रत्यक्ष देख रही थी कि उसके गौरवर्णी पुत्र का सम्पूर्ण चेहरा लहू सामान झक्क लाल हो गया था, उसका शारीरिक कंपन और शरीर की गरमाहट तो मानो उस माँ को जबरन विचारमग्न हो जाने पर विवश करने लगी थी।

"अपनी माँ के पसीने से उत्तेजित हो रहे हो ना तुम? लो चाहो तो मेरी बगलें चाट सकते हो, हर किसी के शरीर का सबसे अधिक पसीना उसकी काँख मे ही इकठ्ठा होता है। एक कतरा भी मत छोड़ना मन्यु, साफ कर दो अपनी माँ की काँखें। चाट लो इनके अंदर उगे सारे रोमों को, हम्म्म्! उतार लो सारा पसीना अपने गले के नीचे" एकाएक वैशाली के भीतर भी उबाल आ गया, वह जबरदस्ती अभिमन्यु के सिर को अपनी बायीं काँख के ऊपर दबाते हुए चिल्लाई।


हे ...हे! आ ...आराम से हे ...हे! हे ...हे! आईईऽऽ पागल काटो ...काटो मत हे ...हे!" वैशाली के नीच कथन और उसकी अनुमति ने अभिमन्यु को जैसे सचमुच पागल बना डाला, वह तत्काल अपनी माँ की बायीं काँख पर टूट पड़ता है। पहले-पहल उसने काँख के चहुंओर चूमा, फिर अपनी जीभ को उसकी पूरी काँख के भीतर लपलपाते हुए वहाँ की कोमल त्वचा को रोमों सहित जोश-खरोश से चाटना शुरू कर देता है। उसकी उत्तेजना इस बात का प्रमाण थी की जल्द ही वह बेकाबू होकर अपनी माँ की काँख के भीतर अपने नुकीले दाँत गड़ाने लगा था, उसके नर्म रोमों को अपने दांतों की पकड़ से खींचने लगा था, उन्हें उखाड़ तक देने को उत्सुक हो चला था। वैशाली की हंसी, उसकी कामुक सिसियाहट, उसकी पीड़ा, उसकी अनय-विनय उस जवान मर्द के उत्साह को दूना कर रही थीं। अबतक उस नए-नवेले मर्द ने सिर्फ चुदाई का आनंद उठाया था, वह भी कुछेक बाजारू रंडियों के साथ मगर वर्तमान मे पहली बार वह महसूस कर रहा था कि सिर्फ चूत मार लेना सच्चा सुख नही, बल्कि सहवास जितना लंबा और गंदा होगा उतना ही आनंद पहुँचाता है।

"बस बहुत हुआ मन्यु, अब उठो फटाफट" ज्योंही अभिमन्यु ने अपना चेहरा अपनी माँ की बायीं काँख से बाहर निकाला वह बिस्तर से उठने की कोशिश करते हुए बोली।

"पहले मेरी फैंटेसी सुन लो मम्मी, पापा शाम को आएंगे और तबतक मुझे तुम्हें पूरी तरह से तैयार करना है। आखिर तुम जैसा गदराया माल कोई चूतिया ही होगा जो तुम्हें अपने नीचे लाने के बाद बिना कुछ किए छोड़ देगा" जवाब मे अभिमन्यु ने पुनः अपनी माँ को अपने शरीर के नीचे दबाते हुए कहा।


तैयार? नही मन्यु ...तुम्हारे पापा के लौट आने के बाद मैं कुछ भी गलत-शालत नही करने वाली" वैशाली अपने निचले होंठ को दांतों के मध्य भींचते हुए एलान करती है।

"तुम क्या मॉम, तुम्हारे फ़रिश्ते भी अब वही करेंगे जो तुम्हारा बेटा चाहेगा। सबसे पहले आज से इस घर के अंदर तुम नंगी ही रहोगी, चाहे घर मे मैं मौजूद रहूँ या तुम्हारा पति और या फिर हम दोनों ही मौजूद रहें" पलटवार मे अभिमन्यु भी एलान करता है।

"अब तुम्हारा दिनभर का रूटीन सुनो। सुबह नहा-धोकर सीधा तुम मेरे कमरे मे आओगी और वह भी बिना अपना गीला बदन पोंछे, एकदम नंगी। समझी मम्मी, रोज सुबह तुम्हें ऐसा ही करना होगा" उसने शैतानी मुस्कान के साथ अपने पिछले कथन मे जोड़ा।

"ऐसा कुछ नही होगा मन्यु, तु ...तुम्हारा दिमाग खराब तो नही हो गया ना" वैशाली की घबराहट उसके शब्दों की कपकपाहट से बयान हो रही थी।

"होगा मम्मी, जरूर होगा। अब आगे सुनो, मेरे कमरे मे आने के बाद तुम मुझे अपने गीले बालों, अपने गीले नंगे बदन की मदद से नींद से जगाने की कोशिश करोगी। तुम अपने गीले बदन को मेरे नंगे शरीर पर रगड़ोगी, अपने गीले बालों से निचुड़ती पानी की बूंदों को मेरे चेहरे पर टपकाओगी, मुझे प्यार से पुचकारोगी, पुकारोगी मगर मैं नही उठूँगा और पता है माँ इसके बाद तुम क्या किया करोगी?" अभिमन्यु ने अपनी माँ की आश्चर्य से फट पड़ी कजरारी आँखों मे झांकते हुए पूछा, उसके चेहरे की शैतानी मुस्कराहट ज्यों की त्यों जारी थी।

"मुझे नही पता और मुझे जानना भी नही है मन्यु, ऐसा कुछ नही होगा ...कभी नही होगा" वैशाली अपनी आँखों को दूसरी दिशा मे मोड़ने का प्रयास करते हुए बोली, वह नही चाहती थी कि उसके अनुमानित भय के अंशमात्र का संकेत भी उसके बेटे को पता चल सके।

नही पता तो पूछ लो मॉम क्योंकि कल से तुम्हें वाकई वही सब करना होगा जो मैंने तुम्हारे डेली रूटीन के लिए तय किया है" अभिमन्यु अपने चेहरे को एक बार फिर अपनी माँ के चेहरे पर झुकाते हुए कहता है ताकि वैशाली की आँखों का टूटा जुड़ाव पुनः उसकी आँखों से हो सके और ऐसा हुआ भी, अनजाने डर से घबराई उसकी माँ दोबारा उसकी आँखों में झाँकने लगी थी।

"पूछो जल्दी वरना मेरी कमर के रुके झटके फिर से चालू हो जाएंगे और फिर मुझे दोष मत देना की मैंने जानबूचकर तुम्हें चोद दिया" अपने कथन की सत्यता को प्रदर्शित करते हुए अभिमन्यु सचमुच अपनी कमर को हौले-हौले झटकने लगता है और यहीं वैशाली का साहस जवाब दे गया।

"बोलो मुझे आगे क्या करना होगा?" प्रश्न पूछते ही वैशाली की आँखें डबडबा जाती हैं मगर उस माँ के अनुमान मुताबिक उसके बेटे की वासना पर शायद उसकी नम आँखों का अब कोई प्रभाव पड़ना शेष ना था।

"ह्म्म! यह सही सवाल किया ना तुमने। तो हाँ! जब मैं नींद से बाहर नही आऊंगा तब तुम मेरे बिस्तर पर चढ़ोगी और अपने घुटने मोड़कर सीधे मेरे चेहरे के ऊपर बैठ जाओगी। तुम मेरे लंड को अपने दोनों हाथों से हिलाते हुए मेरे होंठों पर अपनी चूत रगड़ना शुरू करोगी और साथ ही तब तुम्हारी गांड का छेद बिलकुल मेरी नाक से चिपका होगा। पता है मॉम इसके बाद क्या होगा?" अभिमन्यु के इस प्रश्न के जवाब में वैशाली ने मूक इशारा करते हुए फौरन अपनी पलकें झपका दीं।

"तुम्हारा पति तुम्हें कई आवाजें देगा मगर तुम उसे कोई जवाब नही दे सकोगी क्योंकि तबतक तुम भी मेरे लंड को चूसने भिड़ चुकी होगी और इसीके साथ तुम्हारा पति शोर मचाते हुए कमरे के अंदर आ जाएगा। उसे ऑफिस जाने मे देर हो रही होगी, वह तुमपर चिल्लाएगा लेकिन तुम उसकी नही सुनोगी, जीवन भर से तो सुनती चली आ रही हो। ठीक उसी वक्त मैं भी जाग जाऊंगा और तुम्हारी गुदाज गांड को थप्पड़ लगाकर तुम्हारे एसहोल को सूंघते हुए तुम्हारी चूत चूसने लगूंगा, उसे अपनी जीभ से चाटने लगूंगा, जीभ से चोदने लगूंगा और हम तुम्हारे पति ...यानी कि मेरे पापा के सामने ही एक-दूसरे के मुँह के अंदर
हमारे अलावा भी कोई और मौजूद है, तुम मेरा गाढ़ा वीर्य पीने लगोगी और मैं तुम्हारी स्वादिष्ट रज को अपने गले के नीचे उतरने लगूंगा" बोलते-बोलते एकाएक अभिमन्यु को भी समझ नही आया कि बिना सोचे-विचारे उसने यह क्या अनर्थ कह दिया मगर तत्काल वह यह भी महसूस करता है कि स्वयं की मनघड़ंत कल्पना से उसके लंड की कठोरता जैसे कई गुना बढ़ गयी है, उसके टट्टों मे अविश्वसनीय उबाल आ गया है।

"उफ्फ्फ्! तुम्हारे पाप हम दोनों को मार नही देंगे भला?" वैशाली ने लंबी आह भरते हुए पूछा, अकस्मात् उसे भी ठीक वैसी ही कामोत्तेजना का एहसास हुआ जैसी उसके बेटे ने महसूस की थी। अपने सगे जवान बेटे के साथ रंगरेलियां मनाते हुए पकड़े जाने का रोमांच क्या होता है यह रोमांच वह कुछ वक्त पीछे झेल चुकी थी और अब तो अभिमन्यु ने उसे अपनी झूठी कल्पना के जरिए सचमुच उसके पति द्वारा पकड़वा दिया था, यह वाकई उस नारी, पत्नी व एक माँ के लिए अखंड रोमांच की पराकाष्ठा थी।

"उनसे कुछ ना हो पाएगा माँ। वह तुम्हारी जवानी का भार नही उठा पा रहे, तुम्हारी प्यास बुझाना अब उनके बस मे नही रहा। नामर्द हो गया है तुम्हारा पति, अब मुझे ही तुम्हें तृप्त करना होगा। एक तरह से अब तुम मुझे ही अपना पति मान लो, रात-दिन चोद-चोदकर मैं तुम्हारी जीवन भर की प्यास मिटा दूंगा" अब अभिमन्यु नही बोल रहा था, वासना उसके सर पर नंगी नाच रही थी।

"धत्त! वह नामर्द नही हैं" कहते हुए वैशाली के चेहरे पर चौड़ी मुस्कान छा गई, जिसे देख अभिमन्यु का दिल प्रसन्नता से झूम उठा। जहाँ एक स्त्री को अत्यन्त-तुरंत उसके पति की उपेक्षा, उसका प्रत्यक्ष अपमान करने वाले का मुंह नोंच लेना चाहिए था वहीं वैशाली के मुखमंडल पर सहसा मुस्कराहट छा जाना उसके कौटुम्बिक व्यभिचार पर पूर्णतयः अपनी मोहर लगा देने समान था।



रोज सुबह नाश्ते की टेबल पर ठीक तुम्हारे पति की कुर्सी के पास खड़े होकर मैं तुम्हारी भरपूर चुदाई किया करूंगा माँ, तुम टेबल पर नंगी लेटी हुई अपनी कामुक सिसकियों से मुझे उकसाया करोगी और मैं तुम्हारे पति की शर्मिंदा आँखों मे झांकते हुए तुम्हारी चूत के भीतर ऐसे करारे धक्के मारा करूंगा, जिससे पूरी टेबल हिल जाया करेगी। ओह! मम्मी कितना मजा आएगा जब तुम बेशर्मों की तरह चीख-चीखकर अपने बेटे का नाम लेते हुए, अपने पति की आँखों के सामने झड़ा करोगी और ...और मैं भी उसी वक्त तुम्हारी चूत की गहराइयों मे अपना वीर्य उड़ेल दिया करूंगा" कहकर अभिमन्यु अपनी दायीं हथेली की मदद से अपने कठोर लंड का बेहद सूजा सुपाड़ा अपनी माँ की चूत के रस उगलते होंठों के ठीक बीचों-बीच तेजी से रगड़ने लगता है, उसे पक्का यकीन हो चला था कि अब उसकी माँ ताउम्र उसके बस मे रहने वाली थी।

"मजा आएगा ना मम्मी, जब तुम रोज अपने नामर्द पति के सामने अपने बेटे से चुदवाया करोगी। बोलो मम्मी मजा आएगा ना तुम्हें" उसने अपने सुपाड़े के घर्षण को तीव्र करते हुए पिछले कथन मे जोड़ा।

"हाँ मन्यु मजा ...नही! नही! उन्घ्! कोई मजा नही। उफ्फ्फ्! मान जाओ" वैशाली को पुनः अपना चरम महसूस हुआ और वह फौरन अपनी चूत को अपने बेटे के लंड पर ठोकने लगती है, इस विचार से कि यदि वह अब नही झड़ पाई तो कहीं पागल ना हो जाए। यह ख्याल ही बहुत उत्तेजक था कि वह वास्तविकता मे अपने पति की उपस्थिति में अपने बेटे से चुदवा रही है और उसे इस नीच, पापी कार्य को करने में जरा सी भी शर्म महसूस नही हो रही।

सोचो माँ कितना मजा आएगा जब तुम घर आए मेहमानों के स्वागत के लिए नंगी ही घर का दरवाज़ा खोला करोगी। उन्हें नंगी ही चाय-नाश्ता करवाओगी, अपने मम्मों को घड़ी-घड़ी उछाला करोगी, जानबूचकर अपनी चूत को खुजाया करोगी, उनके सामने ठुमक-ठुमक कर चला करोगी। हम हर मेहमान को तुम्हारा नंगा मुजरा भी दिखवाया करेंगे, हम अनुभा ...अनुभा को भी इसमे शामिल करेंगे, तुम्हारा दामाद भी मौजूद होगा। तुम माँ-बेटी के छिनालपन की हम प्रतियोगिता रखेंगे" अभिमन्यु बोलता ही जाता अगर उसकी माँ की चीखों से पूरा बैडरूम नही गूँज गया होता।

"रंडी ...रंडी बनाना है ना अपनी माँ को, उन्घ्! अपनी बहन को भी इसमे शामिल करना है। ओह! फिर चो ...चोदो मुझे, चोदो अपनी माँ को ...आईईऽऽ! चोदो मुझे उफ्फ्फ्! और बन जाओ मादरऽऽचोदऽऽऽऽ" वैशाली की आँखों से झर-झर आँसू बह निकले, उसका गला चीखते-चीखते रुंध गया।

"पता तो चले सभी रिश्तेदारों को की तुम माँ-बेटी कितनी बड़ी छिनाल हो। यह संस्कार, मान-मर्यादा तो एक ढोंग है ...सच तो यह है माँ की तुम मर्दों से क्या, जानवरों तक से चुदवा लो। कोठे पर बेच देना चाहिए तुम रंडी माँ-बेटी को और तुम्हारे जिस्म की कमाई से ही हमारे घर का चूल्हा जलना चाहिए। तुम्हें पड़ोसियों, दुकानदारों, दूधवाले, सब्जीवाले, रद्दीवाले, पपेरवाले, धोबी ...यहाँ तक कि अपने बेटे-भाई के दोस्तों तक से चुदना चाहिए और हम बाप-बेटे तुम्हारी चुदाई को देखकर मुट्ठ मारेंगे" इसबार भी खलल पड़ा और अभिमन्यु पुनः बोलते-बोलते रुक गया मगर इसबार का खलल वैशाली की चीख के साथ उसके थप्पड़ भी थे जो वह पूरी ताकत से अपने बेटे के गालों पर अपने दोनों हाथों से जड़ती जा रही थी।

बेशर्म! तू पैदा होते ही मर क्यों नही गया हरामजादे। तेरे प्यार की वजह से तेरी माँ होकर भी मैं तेरे नीचे नंगी दबी पड़ी हूँ और तू है जो मुझे, मेरी बेटी और मेरे पति को गाली पर गाली दिए जा रहा है, हमें अपमानित कर रहा है। थू है तुझपर थूऽऽ!" रोते हुए अपने कथन को पूरा कर सत्यता मे वैशाली ने बेटे के मुँह पर थूक दिया और बिस्तर से उठने का प्रयत्न करने लगी मगर वह हिल भी ना सकी क्योंकि अभिमन्यु के लंड का घर्षण अब इतने वेग से उसकी चूतमुख पर होने लगा था कि वह उठते-उठते अपने आप दोबारा बिस्तर पर गिर पड़ी थी।

"अब तो झड़ जाओ माँ, आखिर किस मिट्टी की बनी हो तुम" यहाँ अभिमन्यु का टोकना हुआ और वहाँ वैशाली की गर्दन अकड़ जाती है।

"आईऽऽ! हट ...हट जाओ मेरे ऊपर से, उफ्फ्! लानत है तुम जैसे बेटे पर। मैं आई मन्युऽऽ ...मैं आई" जोरदार स्खलन को पाते हुए वैशाली की गांड के छेद और उसके निप्पलों मे भी सनसनाहट की तीक्ष्ण लहर दौड़ जाती है।

"झड़ो माँ खुल कर झड़ो, इसीलिए मैंने खुद को कमीना कहा था। मैं तुम्हारा बेटा हूँ कोई दल्ला नही जो दूसरों के सामने अपने घर की अमानत को परोसने में सुख महसूस करते हैं, काट कर ना फेंक दूँ जो तुमपर या अनुभा पर गलत नजर रखते हों। मैं पापा से भी उतना ही प्यार करता हूँ जितना की तुम और अनुभा करते हो मगर आज तुम्हें खुलकर झड़वाने की कोशिश में शायद मैं ही पापी बन गया, अपनी माँ की नजरों मे गिर गया। वाकई लानत है मुझपर जो मैंने तुम्हारे और अनुभा के बारे मे इतना गलत सोचा, माफ करना माँ मैं जो करना चाहता था वह कर ना सका, सब उलटा-पुलटा हो गया" कहकर अभिमन्यु अपनी माँ को उसके स्खलन के बीचों-बीच छोड़ उसके नग्न बदन से करवट लेते हुए बिस्तर से नीचे उतरने लगा मगर इससे पहले की उसके कदम फर्श को छू भी पाते वैशाली उसकी दायीं कोहनी को बलपूर्वक थाम लेती है।


सजा ...सजा सुने बैगर तुम कहीं नही जा सकते मन्यु, उफ्फ्फ्! यह ड्रामा भी तुम्हें अभी करना था। देख तो लो कि तुम्हारी माँ किसी तरह झड़ती है, उन्घ्! करीब से देखो तुम्हारी माँ ने कितनी ज्यादा रज उगली है" झड़ते हुए भी वैशाली के मुंह से शब्दों का लगातार बाहर आना अभिमन्यु के आश्चर्य का केंद्रबिंदु बन गया और ना चाहते हुए भी उसकी आँखें उसकी माँ की तीव्रता से रस उगलती चूत से चिपकी रह जाती हैं। उसकी माँ के पंजे ऐंठ गए थे, कमर स्वतः ही बिस्तर पर उछल रही थी, जाँघों का मांस ठोस हो गया था, बाएं हाथ की मुट्ठी भिंच चुकी थी।

"तुमसे नाराज नही हूँ मन्यु पर मैं वाकई डर गयी थी" स्खलन समाप्ति पर एकाएक वैशाली की जोरदार रुलाई फूट पड़ी, अभिमन्यु भी जान रहा था कि उसकी माँ को उसके इस बेतुके, बेवक़्त स्खलन का कोई विशेष आनंद नही पहुँच सका था और इसी विचार से अपना सिर खुजलाते हुए वह पुनः अपनी माँ के समीप लौट आता है।

"तुम रोती हो तो मेरा दिल जलने लगता है माँ। तुम डरा मत करो, मेरे रहते कोई भेन का लौड़ा तुम्हें चोट नही पहुंचा सकता ...तुम यह अच्छे से जानती हो" ढाढ़स बंधाते हुए अभिमन्यु पुनः अपनी माँ के ऊपर पूर्व की भांति पसर जाता है।

"तुम ही डराते हो और कहते हो यह कर दूँगा ...वह कर दूँगा आज मेरा मन खट्टा हो गया मन्यु" वैशाली प्रेमपूर्वक बेटे के गालों पर अपनी नाजुक उंगलियां फेरते हुए बोली, उसके थप्पड़ों ने सचमुच अभिमन्यु के गालों को सुर्खियत प्रदान कर दी थी।

"क्या कहा, तुम्हारा खट्टा खाने का मन है मगर हमने तो अभी चुदाई की शुरुआत की ही नही। सच-सच बताओ माँ, किसका पाप है यह" अभिमन्यु का अपनी माँ को हँसाना एकबार फिर से चालू हो गया।




मारूंगी दोबारा से" वैशाली नाक सुड़कते हुए तुनकी।

"अरे वाह माँ! अब चाटूँ तुम्हारी नाक को, अब तो बह रही है" कहते हुए अभिमन्यु ने ज्योंही अपना चेहरा अपनी माँ के चेहरे पर झुकाया, वह अपने होंठों पर जीभ फेरने लगी। इशारा तगड़ा था और निमंत्रण स्वीकारने योग्य भी, पल भर में माँ बेटे दीर्घ कालीन चुम्बन में खो जाते हैं।
 

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वैशाली और अभिमन्यु घर के मुखिया के बिस्तर पर नग्न लेटे हुए एक-दूसरे को चूमने में जैसे खो से गए थे, उनके बीच माँ-बेटे होने का अत्यंतपवित्र रिश्ता भी वासना की तपिश मे मानो उन्होंने भुला सा दिया था। अपनी-अपनी हथेलियों से एक-दूसरे का सिर थामे, दोनों विपरीत लिंग के होंठों पर अपना भरपूर दावा ठोक रहे थे। जहाँ एक अधेड़ माँ की कोमल जिह्वा उसके सगे जवान बेटे के मुंह में निरंतर मिठास घोल रही थी वहीं बेटे के कठोर निचले होंठ को उसकी माँ अपने नुकीले दांतों के मध्य दबाकर उसकी कठोरता से युद्ध करने को उत्सुक हो चली थी।

"उम्म्! पुच्च्च्!" लगातार एक-दूसरे की सुगन्धित लार को सुड़कते हुए अपने गले से नीचे उतरने के प्रयास में दोनों माँ-बेटे की आँखों का जुड़ाव उनकी उत्तेजना को हरसंभव प्रगति प्रदान करने में सक्षम था और इसीके साथ वैशाली के मन-मस्तिष्क मे कुछ देर पहले उसके बेटे द्वारा कहे गए पापी व बेहद नीच शब्दों का भान पुनः होने लगा।

"तो तुम अपनी माँ के अलावा अपनी बहन पर भी अपनी गंदी नजर रखते हो?" अचानक वैशाली ने उनके बीच काफी देर से चल रहे प्रगाढ़ चुम्बन को तोड़ते हुए पूछा, अभिमन्यु के आश्चर्य को उसकी माँ के प्रश्न ने सहसा बढ़ा दिया था।

"इंसेस्ट, एम आई एल एफ, बी टी डब्ल्यू यह मेरी फेवरेट पॉर्न थीम रही हैं माँ। अनुभा के बारे मे तो छोड़ो, जब से हम एक-दूसरे के करीब आए हैं मैंने तो हमारे बारे मे भी कभी ऐसा नही सोचा था। कल्पना कभी सच नही होती और सच कभी काल्पनिक नही होता, खैर मुझे तो अब भी यहसब सपने सा लगता है" जवाब मे अभिमन्यु बिना किसी अतिरिक्त झिझक के बोला।


फिर आज कैसे तुम्हारी जुबान पर अनुभा का नाम आ गया? मेरे साथ तो तुमने अपनी बहन और अपने पापा तक को गाली दे डाली। क्यों मन्यु? क्या मैं तुम्हारे कहे हर गंदे शब्द को सच समझूं क्योंकि तुम्हारे शब्द काल्पनिक नही थे, मेरे कानों मे वह अबतक गूँज रहे हैं" वैशाली का अगला प्रश्न उसके बेटे को पहले से कहीं अधिक शर्मसार कर देने वाला था, अभिमन्यु तत्काल समझ गया कि उसकी माँ को उसकी गलती का स्पष्टीकरण हर हाल में चाहिए और वह स्वयं भी चाहता था कि खुद को दोषमुक्त करने का मौका वह किसी भी सूरत मे ना छोड़े। आखिर चूक उसीसे हुई थी, तो अपनी उस चूक में सुधार भी उसे खुद ही करना था।

"कॅकॅल्ड, स्वॉपिंग, शेयरिंग, एक्सबिशन पॉर्न देखकर। नेट पर ऐसी थीम्स से संबंधित लाखों कहानियां भी मौजूद हैं" अभिमन्यु ने इसबार भी दृढ़ता से जवाब दिया।

"वाइफ स्वॉपिंग के बारे मे पता है मुझे, एक्सबिशन भी जानती हूँ पर यह कॅकॅल्ड क्या होता है? माँ और बहन की अदला-बदली भी होने लगी है क्या आजकल? और शेयरिंग से तुम्हारा मतलब?" वैशाली बेटे की नग्न पीठ पर अपनी दायीं हथेली फेरते हुए पूछती है, उसके सवालों से अभिमन्यु का जरा भी भयभीत ना होना उसे वैसे भी उसके निर्दोष होने का पुख्ता प्रमाण दे चुका था।

"हिजड़े हैं साले! अपने घर की औरतों को दूसरे मर्दों के सामने परोसकर, उनकी चुदाई देखते हुए मुट्ठ मारने मे ना जाने लोगों को क्या मजा मिलता है? वहाँ उनकी माँ, बहन, बेटी या बीवी दूसरे मर्दों से चुदवाते हुए जोरदार आहें भर रही होती हैं और यहाँ खुशी से अपना लंड हिलाया जाता है। कुछ लोगों को छुपछुपाकर ऐसा करने मे आनंद मिलता है तो कई सामने मौजूद रहकर इसका लुफ्त उठाते हैं" कहते-कहते अभिमन्यु तब अचानक से शांत हो जाता है जब अपनी माँ के दाएं हाथ की उंगलियों का कोमल स्पर्श बारी-बारी उसे अपनी गांड के दोनों पटों पर घूमता महसूस होता है।

हम्म! मैं सुन रही हूँ आगे बोलो" बोलकर वैशाली अपने मुखमंडल पर कोई विशेष भाव लाए बिना ही अपनी नन्ही उंगलियों को अपने बेटे की गांड की कठोर मर्दानी त्वचा पर फिसलाती रहती है। कुंठास्वरूप कि अभिमन्यु ने उसे कैसे भी कर, सही-गलत जिस भी परिस्थिति का सामना किया हो मगर अपनी माँ को स्खलित करने मे सफल जरूर रहा था लेकिन वह अपने बेटे की तड़प को जरा--सा भी कम नही कर पाई थी। उसके बेटे का लंड अब भी पत्थर समान कड़क था, जो अपने तनाव की गवाही प्रत्यक्ष उसकी चूत के होंठों के बीच धंस कर दे रहा था।

"मैं देखना चाहता था, जानना चाहता था कि मेरी उन गंदी बातों का असर तुमपर होता है या नही क्योंकि मुझे तो लोगों की ऐसी चुतियापी मानसिकता से हमेशा नफरत रही है। ऐसे लोग या तो अपनी मर्जी से छक्का बन जाएं या समाज मे उन्हें खुद को गे घोषित कर देना चाहिए या फिर सबसे बढ़िया ऑप्शन यह है कि उन्हें सचमुच अपने घर की औरतों का दल्ला बन जाना चाहिए, कम से कम इसी बहाने मुफ्त मे उनके घर का चूल्हा भी जलता रहेगा और मनमुताबिक मुट्ठ मारने का सुख मिलेगा सो अलग" एकबार फिर अभिमन्यु बोलते-बोलते रुक गया, उसकी माँ की उंगलियां एकाएक उसकी गांड की पसीने से लथपथ दरार के भीतर जो प्रवेश कर गयीं थी।

"फिर क्या देखा तुमने? क्या जाना? क्या तुम्हारी माँ पर तुम्हारी गंदी बातों का कोई असर तुम्हें समझ आया?" पूछते हुए वैशाली अपने दाएं हाथ की उंगलियों को बेटे की गांड की दरार से बाहर निकाल लेती है, जाने अकस्मात् उस माँ को क्या ठरक चढ़ी कि वह अभिमन्यु की आँखों में झांकते हुए ही एक-एक कर अपनी उन्हीं उंगलियों को अपने होंठों के भीतर ठेल बेहद कामुकतापूर्वक चूसना शुरू कर देती है।



उम्म्ऽऽ! पसीना तो तुम्हारा भी कम नशीला नही मन्यु, जब मेरी कांख के पसीने ने तुमपर वियाग्रा का काम किया था तो सोचो तुम्हारी गांड की दरार के अंदर की गंध को खुद में समेटे हुए पसीने में कितना ज्यादा नशा होगा। मैं जवानी भर से तुम्हारे पापा का लंड चूसती रही हूँ मगर किसी मर्द की गांड के छेद को कभी नही चाटा, तुमने अपनी माँ के एसहोल को किस्सी कर आज उसे एक नई सीख दी है" अश्लीलता की बीती सभी हदें पारकर वैशाली ने पिछले कथन में जोड़ा, वह अपनी दायीं सबसे बड़ी उंगली को चूसने में अधिक दमखम दिखा रही थी और ऐसा करते हुए उसके चेहरे पर वही चिरपरिचित शैतानी मुस्कान छा चुकी थी जिसे अकसर वह अपने बेटे के चेहरे पर छाते देखा करती थी।

"असर हुआ था ना, बिलकुल हुआ था माँ। यह लाल निशान यूं हीं नही मेरे गालों पर छप गये हैं" अभिमन्यु अपनी माँ की तात्कालिक नीच हरकतों पर गौर फरमाते हुए बोला।

"अब गलती करोगे तो पिटोगे ही। शुक्र करो लड़के कि सिर्फ गाल लाल हुए हैं, मेरा दिल मजबूत होता तो मार-मारकर तुम्हारी गांड भी लाल कर देती" वैशाली खिलखिलाते हुए बोली, तत्पश्चात अपनी उसी उंगली दोबारा चूसने लगती है। कुछ क्षणों तक माँ-बेटे एकटक एक-दूसरे की आँखों मे झांकते रहे, जहाँ वैशाली का बेशर्मी के साथ अपनी उंगली को चूसना लगातार जारी था वहीं अभिमन्यु अपनी माँ के सहसा बदले भावों का बारीकी से अवलोकन करने में व्यस्त हो चला था।


अपनी आँखों का जुड़ाव बेटे की आँखों से रखते हुए ही वैशाली अपनी उंगली को एक विशेष चिपचिपी ध्वनि के साथ अपने मुंह से बाहर खिंचती है और तत्काल उसका दाहिना हाथ पुनः अभिमन्यु की गांड की दिशा में आगे बढ़ जाता है। एकाएक अपनी माँ की थूक से तर उंगली को अपनी गांड की शुरूआती दरार के भीतर घुसता महसूस अभिमन्यु को सारा सार पलों में समझ आ गया। वैशाली की उंगली झांटों भरी दरार की चिकनी सतह पर फिसलती हुई सीधे उसके बेटे के कुलबुलाते मलद्वार पर आकर ठहर जाती है और तभी दोनों माँ-बेटे एकसाथ मुस्कुरा उठते हैं।

"यह तो आखिरी असर था माँ जिसने मुझे समझाया कि मेरी तरह तुम्हें भी वह चुतियापी थीम्स कुछ खासी पसंद नही आई थीं मगर उससे पहले मेरा हम-दोनों को पेला-पेली करते हुए तुम्हारे पति से रंगे हाथों पकड़वाना तुम्हें जरूर पसंद आया था। आया था ना माँ? तुम उसी वजह से अपने आप झड़ने लगी थी क्योंकि तुम्हारे पति की मौजूदगी मे हम-दोनों के चुदाई मिलाप की कल्पना को सुनकर तुम चुदासी नही, अचानक महाचुदासी बन गयी थी मम्मी। शुक्र तो अब तुम्हें मनाना चाहिए की मैंने खुद पर कंट्रोल बनाए रखा वर्ना तुम तो मुझे चोदने की इजाजत दे चुकी थी, अभी प्यासी चूत मे अपने जवान बेटे का लंड घुसवाने को तड़प उठी थी" इसबार अभिमन्यु बिना किसी रुकावट के अपना कथन पूरा करने मे सफल रहा था। अपने कथन में उसने अपने जिस कंट्रोल, जिस संयम का उदाहरण पेश किया था वह वास्तविकता मे वैशाली को आश्चर्य से भर देने को काफी था।


हे ...हे ...हे! घुसेड़ो ना अपनी उंगली मेरी गांड के छेद मे, तुम रुक क्यों गई माँ? या फिर से तुम्हारी गांड फट गई? जैसे अपने पति के हाथों पकड़े जाने की कल्पना भर से फट गई थी" हँसते हुए अभिमन्यु ने पिछले कथन मे जोड़ा, वह तो वाकई उसकी मुँहचोदी की सत्यता का प्रभाव था जो वैशाली बल लगाकर भी उसके अतिसंवेदनशील मलद्वार को अपनी उंगली से भेद नही पाई थी, अपने नुकीले नाखून की सहायता से उसकी सिकुड़ी त्वचा को कुरेदने मात्र से उस माँ को संतोष करना पड़ा था।

"तुमने सही कहा मन्यु। कोई औरत अपना मुँह काला करे और अपने पति द्वारा रंगे हाथों पकड़ी जाए, उसकी गांड फटना नेचुरल है। मैं यह भी मानती हूँ की मेरे अचानक से झड़ जाने का कारण तुम्हारे मुँह से तुम्हारे पापा का जिक्र था मगर मैंने तुम्हें मुझे चोदने की इजाजद इसलिए दी थी क्योंकि दुनिया की कोई माँ इतनी हिम्मत वाली नही हो सकती, जिसके बेटे का कड़क लंड उसकी उत्तेजित चूत से लगातार रगड़ खा रहा हो और वह टूटकर बिखरने से खुद को रोक ले" वैशाली ने भी बेहद गंभीरतापूर्वक अपने पक्ष को पेश किया और अपनी उसी गंभीरता की आड़ मे कथन समाप्ति के उपरान्त वह अपनी उंगली लगभग आधी अभिमन्यु की गांड के छेद के भीतर जबरन घुसेड़ देती है।

"आईईऽऽ! पागल ...पागल हो क्या तुम? बताकर तो घुसानी चाहिए थी दुष्ट औरत, उफ्फ्फ्! दर्द नही होता क्या मुझे" अपनी माँ की शैतानी क्रिया को समझने मे नाकाम रहे अभिमन्यु दर्द से बिलखते हुए चीखा, अब ठहाका मारकर हँसने की बारी वैशाली की थी।

"वाह बच्चू! तुम करो तो चमत्कार और हम करें तो बलात्कार" हँसते हुए वैशाली ने पुनः जोर लगाया और इसबार उसकी थूक से सनी उंगली उसके बेटे की गांड के छेद का अंदरूनी छल्ला भी पारकर जाती है।


ओह माँऽऽ!" पीड़ा से बेहाल अभिमन्यु दोबारा कराह उठा हालांकि उसकी माँ की उंगली उतनी मोटी नही थी जितने मे उसकी जान पर बन आती मगर उसके साथ यह पहली बार हुआ था जो किसी वस्तुविशेष ने उसके मलद्वार के भीतर प्रवेश किया था।

"तुमने भी जबरदस्ती अपनी माँ की पोंद के छेद को किस्सी किया था, तब तो बड़ा मजा आ रहा था" वैशाली बेटे के खुल चुके होंठों पर लघु चुम्बन अंकित करते हुए चहकी, उसके चेहरे पर छाई बचकानी हँसी से अभिमन्यु हतप्रभ हुए बगैर नही रह सका था। उसे अपनी माँ का प्रफुल्लित मुखमंडल इतना अधिक सुंदर दिखाई पड़ने लगा था कि वह तत्काल दर्दभरी झूठी आहें भरना शुरू कर देता है, इस विचार से कि कुछ वक्त और वह अपनी माँ के चेहरे को खुशनुमा होते देख सके।

"ओह! ओह! ओह! मैं ...मैं भी बदला लूँगा तुमसे मम्मी। याद रखना, उंगली से ज्यादा दर्द लंड देता है .. गांड का छेद फट जाता है, औरत हगने तक को तरस जाती है" अभिमन्यु धमकी के स्वर मे बोला। क्षणभर भी नही बीत पाया और वैशाली अपनी उंगली को झटके से बाहर खींच लेती है, उसके चेहरे की सुर्ख हँसी फक्क सफेदी में परिवर्तित हो चुकी थी।

"वहाँ नही मन्यु, वहाँ ...वहाँ नही करना" अनजाने भय की प्रचुरता से कांपते वैशाली के स्वर फूटे, अचानक अभिमन्यु को लगा जैसे वह फौरन दीवार पर अपना माथा ठोक ले।

"इतना क्यों डरती हो तुम कि मजाक और गुस्से मे अंतर भी नही कर पाती?" वह अपना दायां हाथ अपनी पीठ पर ले जाकर अपनी माँ के उसी हाथ को थामते हुए पूछता है जिसकी उंगली ने कुछ वक्त पीछे जबरन उसकी गांड के छेद को भेदा था।

"वहाँ बहुत दर्द होता है, तुम्हारे पापा ने..." वैशाली ने जवाब मे बोलना चाहा मगर अभिमन्यु के उसे बीच मे टोक देने से वह अपना कथन पूरा नही कर पाती।



जनता हूँ, तुम्हारी गांड कुंवारी है मम्मी ...लेकिन पता है ऐसा क्यों है? चलो मैं ही बता देता हूँ। तुम्हारी चूत तो मुझे वर्जिन मिल नही सकती थी खास इसीलिए पापा ने तुम्हारी गांड को वर्जिन छोड़ दिया, वह हमेशा से चाहते थे कि बड़ा होकर मैं ही तुम्हारी गांड के छेद का उद्घाटन करूं और अगर तुम्हें मुझपर यकीन ना हो तो शाम को अपने पति से कन्फर्म कर लेना, तब तुम खुद अपने बेटे से अपनी गांड मरवाने के लिए बेचैन रहने लगोगी" अभिमन्यु पुनः दुष्ट हँसी हँसते हुए बोला और अपनी माँ के हाथ को उसके मुँह के समीप लाने लगता है।

"अब अपनी इसी उंगली को सूँघो, दोबारा से इसे चूसो माँ ...आखिर तुम्हें पता होना चाहिए एक जवान मर्द की गांड के छेद के अंदर की महक और स्वाद कैसा होता है? फिर मैं तो तुम्हारा अपना बेटा हूँ, शायद तुम्हें घिन ना आए" उसने अपने पिछले कथन मे जोड़ा। अपने बेटे के सर्वदा अनुचित शब्दों के सम्मोहनपाश मे बंधकर एकाएक वैशाली स्वयं को इस बुरी तरह उत्तेजित होना महसूस करती है कि वह माँ अपनी सारी लज्जा, सारी शर्म त्यागकर बिना किसी घृणा के अपनी मैली उंगली को प्रत्यक्ष बेटे की आँखों मे झांकते हुए बड़े उत्साह से सूंघने लगी।

"हम्फ्! तुम अपनी माँ से और क्या-क्या गंदे काम करवाना चाहते हो मन्यु? हम्फ्ऽऽ! अभी बता दो बेटा ...रोज पागल होने से अच्छा है, आज ही सारी कसर निकल जाए ...हम्फ्ऽऽ! हम्फ्ऽऽ!" कहकर वैशाली ने देर नही की और किसी चरित्रहीन कुलटा की भांति अपने बेटे की गुदागंध से सनी उंगली को सीधे अपने मुंह के भीतर घुसेड़ लेती है। उसके गहरे मूँगिया रंगत के भरे हुए होंठ सिकुड़कर स्वतः ही उसकी उंगली पर कस गए थे, जिनकी अत्यंत कोमल त्वचा से व्यभिचारिणी बनने को बेहद उत्सुक हो चली वह अधेड़ माँ बहुत ही कामुकतापूर्वक अपनी गंदी उंगली को हौले-हौले चूसना प्रारंभ कर चुकी थी।


उम्मम्! तुम्हारी माँ मर्दानी महक और उसके स्वाद से एक लंबे अरसे से परिचित है मन्यु, क्योंकि मैं लंड चूसने मे एक्सपर्ट हूँ। लगभग हर चुदाई से पहले तुम्हारे पापा मुझसे अपना लंड जरूर चुसवाया करते थे, मेरे मुँह मे झड़ भी जाते। हालांकि मैं कभी उनका वीर्य अपने गले से नीचे नही उतार सकी मगर वीर्य की जो तीखी गंध मेरे मुँह के अंदर रह जाती, ना बता सकने वाला उसका अजीब--सा स्वाद जो मेरी जीभ, मेरे दांतों, मसूड़ों मे बसा रह जाता कुछ ऐसा ही स्वाद तुम्हारी गांड के छेद का है ...हाँ! उम्म्! महक वीर्य से ज्यादा तीखी और उत्तेजक है मगर ..." वैशाली बेशर्मों की भांति अपने और अपने पति के अत्यधिक गोपनीय सहवासी राज़ों को खोलती ही जाती अगर अभिमन्यु की आश्चर्य से फट पड़ी आँखों के साथ उसे हैरानीपूर्वक खुल चुका उसका मुँह भी दिखाई नही देता, उसने सहसा यह भी महसूस किया कि उसके भड़काऊ कथन और उनमे शामिल अश्लील शब्दों का सबसे ज्यादा असर उसके बेटे के लंड की कठोरता पर हुआ था, जो उसकी रसीली चूत के मुहाने पर अब भी धीरे-धीरे रगड़ खाए जा रहा था।

"मगर ...मगर क्या माँ? मगर क्या?" अभिमन्यु ने अकस्मात् बेकाबू हुई अपनी अनियंत्रित साँसों की परवाह किए बगैर पूछा। उसकी उत्सुकता, उसका परिवर्तित उन्माद उसकी कमर के धीमे झटकों को एकाएक रफ्तार प्रदान कर गया था।

"तुम अपनी माँ को चोदना नही चाहते फिर अचानक मेरी गांड मे इंटरेस्ट क्यों लेने लगे हो? चोदा तो दोनों को जाता है" अभिमन्यु के प्रश्न को नकार हड़बड़ी मे वैशाली अपना सवाल पूछ बैठी। वैसे प्रश्न तो उसका भी अत्यंत महत्वपूर्ण था, जिसके उत्तर प्राप्ति से दोनों माँ-बेटे के बीच पनपे अनाचार को सही पथ मिल जाना था, जिसपर साथ उन्हें एक अंतिम सफर तय करना शेष रह जाना था।


चोदा चूत को जाता है माँ ...हाँ! मैं तुम्हें चोदना नही चाहता लेकिन गांड चोदी नही जाती, वह मारी या मरवाई जाती है। तो चुनना अब तुम्हें है मम्मी, मुझसे अपनी चूत चुदवाओगी या फिर अपनी गांड मरवानी है? तुम्हारे दोनों छेदों मे से एक को तो हलाल होगा ही होगा, आखिरी फैसला तुमपर है" अभिमन्यु ने बिना किसी झिझक अपना अनैतिक पक्ष प्रस्तुत कर दिया। उसके शब्दों में उसकी भरपूर जवानी, उसकी मर्दानगी, उसका लक्ष्य और सबसे मुख्य उसका खुदपर अटल विश्वास, वस्तुविशेष को पाने की लालसा व जिद, विनय नही बल्कि एक आज्ञारुपी मिश्रण सम्मिलित था।

"मेरी चूत तुम चोदना नही चाहते और तुमसे अपनी गांड मैं मरवा नही पाऊंगी, तो सबकुछ यहीं रद्द हुआ समझो" वैशाली के शब्दों में भी बेटे सामान एकदम वही दृढ़ भाव शामिल थे।

"एक सवाल और है मेरा, मुझे उसका सही जवाब हर हाल मे चाहिए मन्यु। तुमने बताया कि तुम्हें घर की औरतों को बाहरी मर्दों के सामने परोसने वाले लोगों से सख्त नफरत है, तो क्या घर के अंदर रिश्तों का कोई महत्व नही? तुम्हारी नजर मे हम जो कर रहे हैं, क्या यह सही है? तुम अनुभा के संग भी यही सब करना चाहते हो ना, जो हम माँ-बेटे होकर भी कर रहे हैं?" मौके की नज़ाकत को समझ वैशाली ने बेहद तार्किक प्रश्न पूछा, उसके इस प्रश्न का उत्तर तो वह स्वयं भी नही जानती थी। हालांकि उसे मालूम था कि वह और अभिमन्यु उनके पवित्र रिश्ते की मर्यादा को तोड़कर काफी आगे बढ़ चुके हैं, अब उनका चाहकर भी पीछे लौट पाना मुमकिन नही रहा था, सिर्फ एक छोटी सी निर्णायक सहमति और दोनों के तन का मिलन निश्चित था।


तुमने भी तो कहा था कि आज के इंसान की यही सबसे बड़ी खूबी है, वह पाप की ओर पुण्य से ज्यादा आकर्षित होता है। वह सही-गलत मे फर्क जानता है, पहचानता है मगर चलता उसी राह पर है जो सरासर गलत है। मानो कल को मैं या पापा तुम्हें कोठे पर बिठा दें या घर के अंदर-बाहर तुम्हें परिचित-अपरिचितों के सामने परोस दें, ज्यादा बदनामी किसकी होगी? चोदने वाले की या चुदवाने वाले की? जाहिर सी बात है, चुदवाने वाले की। घर-परिवार के सदस्यों में अगर गलत रिश्ते बनते भी हैं तो उनके खुलासे घर की चारदीवारी के बाहर नही होते, मामले अपनों के बीच ही सुलझाये जा सकते हैं। मेरे मन में कभी ना तो तुम्हारे बारे में गलत विचार रहे और ना ही अनुभा के बारे में, गलती हम दोनों की है माँ। हम पीछे लौट सकते हैं, वक्त है हमारे पास और आपसी प्यार की इतनी ताकत मौजूद है कि आगे हम कपड़ों मे भी अपने रिश्ते को जीवनभर निभा सकेंगे मगर तुम्हीं सोचो मॉम क्या तुम इस वर्तमान समय से कभी अपना पीछा छुड़ा पाओगी? मुझे कपड़ों मे देखकर क्या तुम मेरे नंगे शरीर को भुला पाओगी? क्या यह उत्तेजक पल तुम्हारे जेहन से जा सकेंगे कि तुम्हारा सगा खून होकर भी कभी मैंने तुम्हारी नंगी चूत पर अपना खड़ा लंड रगड़ा था? क्या कभी याद नही करोगी कि तुम अपने बेटे के सामने पूरी तरह से नंगी रहने का प्रण कर चुकी थी? मेरा भी ठीक यही हाल होगा माँ, मैं भी इन पलों को कभी नही भुला सकूंगा" अभिमन्यु साँस लेने को ठहरा तो अपनी माँ को बहुत ही मायूस पाता है। जाहिर था कि उसके मुँह से निकला हर शब्द उसके दिल से होकर गुज़रा था और जो किसी नुकीले तीर समान सीधे उसकी माँ के दिल को भेद गया था, माँ-बेटे के वह दिल जो वाकई कभी दो हुआ करते थे लेकिन परिस्थिति ने आज उन्हें एक में तब्दील कर दिया था।


पापा को हमारे बारे मे पता चल सकता है और नही भी मगर वह हमारा नुकसान नही कर पाएंगे। उन्हें तुमसे आज भी उतना ही प्यार है जितना पहले था, मुझे भी वह चाहकर खुद से अलग नही कर सकेंगे क्योंकि जान हूँ मैं उनकी। हाँ! उनकी नाराज़गी कबतक रहेगी कुछ कहा नही जा सकता लेकिन नाराज़गी खत्म होते ही घर का माहौल कुछ और होगा मम्मी, फिर हम दोनों मिलकर तुम्हें बजाया करेंगे। वैसे भी औरत ऑडियो कैसेट की तरह होती है, दोनों तरफ से बजाई जाती है। रोज तुम्हारा सैंडविच बनेगा, जिसे खाने के लिए हम बाप-बेटे हमेशा भूखे रहेंगे और तुम्हारी भूख, प्यास, तड़प, चुदास सब जैसे कभी तुमतक फटका भी नही करेगी। एक जरूरी बात और मम्मी तुम्हारी उस कमीनी दोस्त मिसिज मेहता को मैं किसी भी सूरत मे नही छोड़ने वाला, तुम चाहो या ना चाहो वह तो मुझसे पक्का चुदेगी ...मेरा वादा है तुमसे" कहकर अभिमन्यु अपने दांतों को आपस में घिसने लगा, एकाएक उसके चेहरे पर क्रोधित भाव उमड़ने लगे थे।

"ऐसा शायद ही हो पाए मन्यु कि तुम्हारे पापा हम-दोनों को माफ कर सकें पर मैं यह भी सोच रही हूँ कि उन्हें हमारे बारे मे पता कैसे चलेगा? मैं बताऊंगी नही और तुम्हारी गांड सिर्फ दिखावे की है। खुश मत को इतना, सबकुछ अभी भी रद्द ही समझो और रही बात सुधा की तो तुम उसके आस-पास भी नही फटकोगे वर्ना मुझसे बुरा कोई नही होगा समझे। अब हटो मेरे ऊपर से, घंटेभर से ज्यादा हो गया तुम्हारा भार सहते-सहते" वैशाली का चेहरा कुछ क्षणों पहले उसके बेटे की गंभीर बातों को सुन मायूस होकर लटक गया था, अब उसकी मायूसी लगभग छट चुकी थी।


नही मम्मी, अभी नही ...पापा तो शाम को लौटेंगे, कुछ देर और मुझे तुम्हारे नंगे बदन से चिपके रहना है। तुम्हें पता नही कि तुमने मुझपर कैसा जादू कर दिया है, अब तो एक पल को भी मैं तुमसे जुदा नही रह पाऊंगा। तुमने ऐसा क्यों किया ...मेरी माँ होकर भी तुम मुझसे एक औरत की तरह प्यार क्यों करने लगीं? क्यों तुम्हारी चूत तुम्हारे अपने बेटे के बारे मे सोचकर झरने-सी बहने लगती है? क्यों तुम्हारे ममतामयी निप्पल औरतरूपी निप्पलों समान ऐंठ जाते हैं? क्यों तुम्हारी गांड का छेद कुलबुलाने लगता है? आखिर क्यों तुम इतनी चुदासी हो जाती हो माँ कि तुम्हारी ताउम्र शर्म, मर्यादा, संस्कार ...तुम्हारे कपड़ों की तरह ही तुम्हारे अपने खून के आगे खुद-ब-खुद नंगे हो जाते हैं? आखिर क्यों?" उद्विग्न स्वर मे ऐसे विस्फोटक प्रश्न पूछते हुए अचानक अभिमन्यु वैशाली से बुरी तरह लिपट जाता है। उस नए-नवेले मर्द की बलिष्ठ बाहें उसकी माँ की अत्यंत चिकनी पीठ पर बलपूर्वक कस गई थीं, उसने अपना सुर्ख तमतमाया चेहरा अपनी माँ की नग्न छाती के बीचों-बीच धांस दिया था। अपने निचले धड़ को वह उत्तेजित मर्द पागलों की भाँति अपनी माँ के निचले नंगे धड़ पर रगड़ने लगा था, अपनी माँ की स्पंदनशील चूत के सूजे होंठों पर तीव्रता से अपने पत्थर समान कठोर लंड को घिसना शुरू कर चुका था, अपने लिसलिसे फूले सुपाड़े से बारम्बार अपनी माँ के फड़फड़ाते भांगुर को छीलते हुए वह आनंदमयी सीत्कारें भरने लगा था।

"क्योंकि ...क्योंकि मैं माँ हूँ तुम्हारी ...तुम्हें पैदा करने वाली, जन्म देनेवाली ...आहऽऽ मन्यु! तुम्हारी जन्मदात्री हूँ मैं" ममतास्वरूप चीखते हुए वैशाली को एहसास हुआ जैसे सहसा उसके स्तन पहले से अधिक भारी हो गए हों, लगातार तेजी से फूलते जा रहे हों। बीते दो दशकों का उनका खालीपन पुनः भराव की ओर अग्रसित हो चला हो जिनके ऊपर शुशोभित निप्पलों से अब किसी भी पल दोबारा ढूध का उत्सर्जन हो जाने वाला हो।



हटो मन्यु ...उन्ह! मुझे जाने दो बेटा, बहुत ...बहुत प्यार कर लिया तुमने अपनी माँ से" कुछ भय, कुछ रोमांच और कुछ प्रेमरूपी भावों से सम्मिश्रण से गदगद वैशाली दोबारा चीखते हुए बोली।

"नही माँ नही, तुम कहीं मत जाओ ...मेरे पास रहो, उफ्फ्! एकबार फिर मुझे खुद मे समेट लो" अभिमन्यु की हाहाकारी सीत्कार ज्यों की त्यों बरकरार थी, बल्कि अब वह स्वयं ही खुद को अपनी माँ के भीतर पुनः समाने हेतु प्रचंड लालायित हो चुका था।

"वापस ...मैं वापस आऊंगी मन्यु, मुझसे ...मुझसे भी अब अपने बेटे से अलग होकर रहा नही जाएगा" वैशाली अनुरोध के स्वर मे बुदबुदाई।

"जब वापस आना ही है तो दूर क्यों जा रही हो माँ? मैं कहीं नही जाने दूंगा तुम्हें ...कहीं नही" अपने भावभीन स्वरों के साथ अभिमन्यु अपनी शारीरिक पकड़ भी अपनी माँ पर कसते हुए सिसियाया।

"मुझे सूसू आई है मन्यु, मैं वापस आऊंगी ना बेटा ...ओह! जल्दी वापस आ जाऊंगी" वैशाली दोबारा हौले से बुदबुदाई मगर अभिमन्यु मानो उसके नग्न बदन को छोड़ने के लिए कतई राजी नही था, बल्कि उसके थरथराते होंठों से बाहर निकले उसके अगले विध्वंशक शब्द वैशाली के मूत्रप्रवाह को अकस्मात् कष्टकारी पीड़ा मे बदल देते हैं।

"सूसू यहीं बिस्तर पर कर लो माँ, मुझे ...मुझे भी देखना है कि तुम्हारी सुदंर--सी चूत से मूत की धार कैसे बाहर निकलती है"
 

Rabia

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एक मर्यादित पति-पत्नी का सहवासी रिश्ता कहीं ना कहीं उनके शयनकक्ष तक ही सीमित माना जाता है, जिसकी चारदीवारी के अंदर का उनका संसार कैसा होता होगा? यह जानने का अधिकार शायद ही किसी अन्य को कभी रहा हो। मणिक और वैशाली ने ताउम्र अपने शयनकक्ष की गरिमा को बनाए रखा था मगर वर्तमान मे वासना का जो नंगा नाच वहाँ अपने पैर पसार चुका था, कौन कह सकता था कि अब भी उनके शयनकक्ष की वही गरिमा बरकरार थी या भविष्य में रहने वाली थी। पति-पत्नी के शयनकक्ष के बिस्तर पर आज पत्नी तो मौजूद थी लेकिन उसका पति नदारद था, पति के स्थान पर उसकी पत्नी के संग गुत्थम-गुत्था होने वाला शख्स कोई और नही उनके विवाहित जीवन का प्रेम उनका एकलौता जवान बेटा था, तो उनके शयनकक्ष की गरिमा आखिर बरकरार रहती भी कैसे?

माँ-बेटे पूर्णरूप से नंगे होकर एक-दूसरे के बदन की पापी तपन का भरपूर लुफ्त उठा रहे थे और इसी बीच वैशाली मूत्रउत्सर्जन की इच्छा से बिस्तर पर छटपटाने लगी थी, वह माँ विनयस्वरूप अभिमन्यु की मर्दाना पकड़ से खुद को मुक्त कर देने की गुहार लगाती है मगर उसका बेटा क्षणमात्र को भी अपनी माँ की जुदाई बरदाश्त करने को कतई तैयार नही होता बल्कि अश्लीलतापूर्वक उसे बिस्तर पर ही मूत देने के लिए मनाना आरंभ कर देता है, अपनी नीच मंशा के तहत कि अब वह अपनी जन्मदात्री की चूत से बहती उसकी मूत की धार को देखने हेतु बेहद लालायित हो चुका है।

"यहाँ ...यहाँ बिस्तर पर कैसे मन्यु? बिस्तर गीला हो जाएगा" वैशाली के कांपते स्वर फूटे। अपने बेटे के जिद्दी स्वभाव से अब वह काफी हदतक परिचित हो चली थी, अच्छे से जान चुकी थी कि अभिमन्यु के मन-मस्तिष्क मे एकबार कोई लालसा घर कर जाए तो उसके पूरे हो जाने तक उसका अपनी हार स्वीकारना असंभव था।

"तो क्या?" अपनी माँ के कथन को सुन अभिमन्यु तीव्रता से अपना चेहरा ऊपर उठाते हुए चहका।


तुम्हें इस बात का डर है कि तुम्हारे मूतने से बिस्तर गीला हो जाएगा ...ओह! थैंक्यू ...थैंक्यू माँ" उसने बेहतरीन चूतियापे का परिचय देते हुए पिछले कथन मे जोड़ा।

"जाहिर है गीला तो होगा ही पर तुम इतना खुश क्यों हो रहे हो और अचानक यह थैंक्यू किस लिए?" बेटे की बेवकूफी भरी बात पर चौंकते हुए वैशाली ने पूछा।

"खुश! खुश दुनिया का कौन सा बेटा नही होगा माँ और मेरा थैंक्यू मेरी उसी खुशी को जाहिर करने का जरिया है क्योंकि तुम्हें इस बात की फिक्र नही की तुम अपने बेटे की खुली आँखों के सामने मूतोगी, बल्कि तुम्हें बिस्तर के गीले हो जाने की फिक्र ज्यादा है" अभिमन्यु दाँत निकालकर हँसते हुए बोला।

"तुम्हारी बेशर्मी का कोई अंत नही मन्यु, बातें घुमाकर दूसरों को उलझाने मे तुम माहिर हो। भूल जाओ कि अब से तुम्हारी माँ तुम्हारी बातों के जाल मे दोबारा कभी फँसेगी ...मैं तुम्हारे सामने सूसू नही करूँगी! नही करूँगी! नही करूँगी" बेटे की शैतानी हँसी के जवाब मे वैशाली ने तुनकते हुए कहा। उस अधेड़ माँ के लिए यह सोच ही कितनी अधिक उत्तेजक थी कि वास्तविकता मे वह किसी लज्जाहीन वैश्या की भांति अपनी नग्न टाँगें चौड़ाए जोरों से मूत रही है और उस प्रचण्ड रोमांचक दृश्यपर अपनी आँखें गड़ाए उसका अपना जवान बेटा उसकी चूत की सूजी फांखों से भलभलाकर बाहर आते पेशाब को गहरी-गहरी आहें भरते हुए देख रहा है।

"माँ! माँ! माँ! तुम बार-बार क्यों भूल जाती हो कि अबसे तुम क्या, तुम्हारे पुरखे भी वही करेंगे जैसा मैं चाहूँगा। चलो उठो फटाफट, अभी और इसी वक्त से तुम्हारी ट्रेनिंग शुरू हुई समझो" बेहद गर्वित स्वर मे ऐसा कहकर अभिमन्यु सतर्कतापूर्वक अपनी माँ के पसीने से लथपथ नग्न बदन के ऊपर से परे हटने लगा, सतर्कता बरतने का उसका कोई खास उद्देश्य तो नही था मगर भविष्य की आनंदित सोच उसे वैशाली पर किसी भी तरह की कोई ढ़ील ना देने का भरपूर संकेत कर रही थी। उसकी माँ कहीं उसकी पकड़ से छूटकर बिस्तर से नीचे ना उतर जाए, वह बलपूर्वक सीधे उसकी बायीं पिंडली को जकड़ लेता है।


क्या तुम मुझे अपना गुलाम बनना चाहते हो?" तत्काल वैशाली अपने बेटे पर आशंकित निगाहें डालते हुए पूछती है, हालांकि अभिमन्यु की कथनी और करनी का अंतर वह बखूबी समझती थी परंतु हर बात के स्पष्टीकरण की अपनी पुरानी आदत के हाथों विवश थी।

"अपनी औरत को बस मे रखना कोई गलत बात नही" प्रत्युत्तर मे अभिमन्यु गंभीरतापूर्वक बोला।

" मैं! ...और तुम्हारी औरत?" अभिमन्यु के नीच कथन को सुन वैशाली ने लज्जित मुस्कान के साथ पूछा। उम्र के हिसाब से अपने बेटे की निपुणता, पविपक्वता का उस माँ के पास कोई उत्तर नही था और तो और उसके अत्यंत प्रभावी अश्लील वाचन की तो वह पूरी तरह से कायल चुकी थी।

"हाँ माँ! तुम मेरी ...सिर्फ मेरी औरत हो। अब सवाल चोदना छोड़कर अपनी इन छोटी-छोटी उंगलियों से अपना प्यारा--सा भोसड़ा खोलो और फटाक से अपने बेटे को मूतकर दिखाओ" अपनी अनुचित ज़िद पर टिके अभिमन्यु ने क्रोधित स्वर मे कहा। अपने पापी कथन मे शामिल अपनी माँ के कामुक बदन की अमर्यादित संज्ञा को वास्तविकता प्रदान करते हुए बारी-बारी वैशाली की दोनों हाथोलियों को चूमने के उपरान्त अतिशीघ्र वह अपने होंठ उसकी चूत के स्पंदनशील खौलते मुहाने से सटा देता है।

"आह्हऽऽ मऽऽन्युऽऽऽऽ! न ...नहीऽऽ" वैशाली की आनंदित सीत्कार से सहसा पूरा बेडरूम गूँज उठा।

"जल्दी मूतो माँ वर्ना तुम्हारी चूत पर काट लूँगा, चबा जाऊँगा इसकी दोनों फांकें ...फिर देना अपने पति को झूठा जवाब कि कीड़े ने काट खाया" कहकर अभिमन्यु सचमुच अपनी माँ की चूत की दायीं फांक अपने नुकीले दाँतों के मध्य फँसा लेता है पर चाहकर भी उसकी बेहद मुलायम त्वचा पर अपने दाँत नही गड़ा पाता। वैशाली की लंबी-लंबी कामुक सिसकारियां उसके कानों को अविश्वसनीय सुख का अनुभव करवा रही थीं परंतु अपनी माँ को मानसिक या शारीरिक कष्ट पहुंचाने मे वह पूर्ण विफल रहा था।


तो तुम ऐसे नही मानोगी क्योंकि तुम जानती हो कि मैं तुम्हें चोटिल नही कर सकता मगर मेरे पास एक मस्त-फाडू आइडिया है माँ ...क्यों ना मैं तुम्हारे यहाँ जोर से दबाऊं, तुम्हारा मूत अपने आप छूट जाएगा, हा! हा! हा! हा!" दुष्ट हँसी हँसते हुए अभिमन्यु तत्काल अपनी माँ के फूले पेडू पर अपने दाएं अंगूठे से बारम्बार दबाव देने लगता है, अपनी मर्दाना बायीं हथेली में उसने बलपूर्वक वैशाली की नाजुक दोनों कलाईयाँ एक-साथ जकड़ रखी थीं।

"मत ...मत करो मन्यु, ओह! बिस्तर गीला हो जाएगा" छटपटाती वैशाली कांपते स्वर मे चीखी, अभिमन्यु के अंगूठे के तीव्र दबाव के प्रभाव से उसके पेडू केे भीतर एकत्रित मूत्र उसकी चूत से बाहर निकल जाने पर जल्द ही आमदा हो गया था।

"शूऽऽऽ! मूतो मम्मी मूतो ...तुम्हारी क्यूट--सी चूत से तुम्हारा सूसू बाहर निकले ना निकले मगर मैं जरूर झड़ जाऊँगा। बचपन मे तुम मुझे मुतवाती थीं, देखो जवान होकर आज मैं तुम्हें मुतवा रहा हूँ ...शूऽऽ! कर दो सूसू मम्मी, शर्माओ मत। तुम्हारे बेटे के अलावा तुम्हें कोई और नही देख रहा, मूत दो बिस्तर पर ही ...शूऽऽऽऽ!" अभिमन्यु सफा नंगपन पर उतारू होते हुए बोला, उसके अत्यंत प्रभावशाली मुखमंडल पर एक अवसरवादी मर्द होने के साक्ष्य उभर आये थे। उसकी वाणी से मिलनसार होते उसके बेहतरीन अभिनय को उपेक्षित कर पाना वैशाली के बस से कोसों दूर था, उसके कथन के भीतर छुपी उसकी निकृष्ट उत्सुकता, जिज्ञासा आदि के परिणामस्वरूप वह अधेड़ नंगी माँ खुद ब खुद टूटकर बिखर जाती है।

"मैं तैयार हूँ मन्यु। मूतूंगी ...तुम्हारी आँखों के सामने मूतूूंगी लेकिन यहाँ बिस्तर पर नही, बाथरूम मे" वैशाली का थरथराता स्वर उसके खोखले विरोध का सफल परिचायक था। नारी की तो सदैव से यही इच्छा रहती है कि उसका मर्द प्रेम, भय, क्रोध, आज्ञा किसी भी भाव का प्रयोग कर उसे सदा टूटने पर मजबूर करे, इसे नारी के संकोची या दुर्बल स्वभाव से नही आँका जाना चाहिए बल्कि इसमें उसके मर्द की, मर्दानगी, बलिष्ठता, उसके प्रति हरसंभव सम्मान की भावना निहित होती है।


तुम्हारी इसी अदा का मैं दीवाना हूँ माँ। ना ना करते हुए भी आखिरकार तुम अपने बेटे के काबू मे आ ही जाती हो जैसे तुमने वाकई मान लिया हो कि अब से मैं ही तुम्हारा असली मर्द हूँ" अपनी माँ की स्वीकृति मिलते ही अभिमन्यु अपनी बाएं हथेली मे कैद उसकी दोनों कलाइयों को क्षणों मे मुक्त करते हुए चहका तत्पश्चयात फौरन उसकी दोनों पिंडलियाँ पकड़कर पीछे खिसकते हुए अपने साथ उसे भी बिस्तर के अंत तक खींच लाता है। वैशाली उसकी तीव्रता से अचानक आश्चर्य मे पड़ गई थी और जबतक उसे कुछ भी समझ आ पाता, उसके बेटे ने एकबार फिर उसकी दोनों टाँगों को ऊपर उठाते हुए बलपूर्वक उन्हें पुनः उसकी नग्न छाती से चिपका दिया था।

"यहाँ नही मन्यु ...बाथरूम ही ठीक रहेगा बेटा" असंतुष्ट वैशाली की विनय दोबारा गतिशील हो चुकी थी। अभिमन्यु ने उसके मूत्रउत्सर्जन को देखने हेतु जबरन उसे किस शर्मनाक आसान मे ढाल दिया था, माना कि अब उसके पेशाब से बिस्तर के गीले हो जाने के आसार लगभग समाप्त हो गए थे मगर बाथरूम के भीतर बैठकर मूतने और बिस्तर पर लेटे-लेते मूतने का अंतर उस माँ की मानवीय उत्तेजना को एकाएक पैश्विक हिंसा मे परिवर्तित कर जाता है।

"अब कोई ना नुकुर नही मम्मी वर्ना अब जरूर मैं तुम्हारे यह गोरे-गोरे पोंद चबा जाऊंगा या तुम्हारी गांड के इस कुँवारे छेद के अंदर जबरदस्ती अपनी जीभ घुसेड़ दूँगा। बस अब मूत दो, तुम्हारे मूत की धार को सामने की उस दीवार से टकराते हुए देखना है मुझे। मूतो माँ मूतो ...शूऽऽऽऽ" अभिमन्यु के पूर्णतः निषेध वाक् प्रयोग के जवाब मे अकस्मात् वैशाली का तन उसके मस्तिष्क का साथ छोड़ देने को विवश हो गया और एक लंबी सीत्कार के साथ उसकी चूत के आपस मे सटे होंठ भी स्वतः ही खुल जाते है।



फिसश्श्ऽऽ सश्श्श्ऽऽऽ" एक विशेष मधुर ध्वनि जिससे वैशाली का परिचय तो उसके बचपन से था मगर अभिमन्यु के कानों मे अचानक रस घुलने लगा था। उस नवयुवक के दिल की धड़कने सहसा रुक--सी जाती हैं जब वह वास्तविकता मे अपनी माँ की चूत के चिपके चीरे को चीरकर तीव्रता से बाहर निकले उसके मूत्र के लंबे फव्वारे की आरंभिक चोट को सीधे बिस्तर के सामने की दीवार से टकराते हुए पाता है, अपने मृत होते ह्रदय को जीवंत बनाए रखने के लिए वह नया नवेला मर्द बलपूर्वक अपनी छाती पर ताबड़तोड़ घूंसे जड़ने लगता है।

"मत मन्यु, मेरा ...मेरा हाथ पकड़ो" अपने बेटे को खुद की ही छाती पर मूसल आघात करते देख वैशाली उसकी ओर अपना बायां हाथ बढ़ाते हुए सिसकी और जैसे अभिमन्यु को अपनी माँ के इसी सहारे की तलाश थी, वह तत्काल उसके बाएं पंजे को अपने दोनों हाथों के बीच कस लेता है।

"अपनी माँ की बेशर्मी पर तुम्हें खुद को सजा देने का कोई हक नही मन्यु। बस चुपचाप देखो तुम्हारी माँ कैसे मूतती है, उसके फटे भोसड़े से छलककर उसका सूसू कैसे बाहर आता है" कमरे मे पसरे अत्यंत तनावपूर्ण वातावरण, अपने सहमे बेटे और स्वयं को संयत करने के प्रयास मे हँसते हुए उसने पिछले कथन मे जोड़ा मगर अभिमन्यु की फट पड़ी आँखें तो मानो उसकी माँ की चूत से भलाभल बहते उसके गरमा-गरम मूत्र की मोटी धार को विस्मय से देखते रहने में झपकना भी भूल चुकी थीं।

"मेरी सीटी तुम्हारे पापा ने पंचर कर दी है मन्यु। यह दिन हमारे जीवन मे आएगा अगर ऐसा पता होता तो अनुभा की शादी होने से पहले तुम्हें उसकी कुंवारी सीटी जरूर सुनवाती, हम माँ-बेटी एकसाथ तुम्हारे सामने मूतते और हमारे मुतास कॉम्पिटिशन के मेन जज होते तुम्हारे पापा" जाने क्या सोचकर वैशाली के मुँह से ऐसी विध्वंशक बात बाहर निकल आई और जिसे सुन तत्काल जहाँ अभिमन्यु अपनी हैरत भरी आँखें अपनी माँ की मूतती चूत से हटाकर उसकी मादक आँखों से जोड़ देने पर मजबूर हो जाता है वहीं वैशाली की गांड के छेद पर अविलंब झटके लगने लगते हैं, जो प्रमाण था कि उसके मूत्रउत्सर्जन के अब कुछ अंतिम पल ही शेष बाकी थे।
 

Rabia

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ठीक ही तो किया उन्होंने जो तुम्हारी चूत पंचर कर दी, अब यह पंचर कभी जुड़ नही सकता और ना ही इसमें आगे होने वाले पंचरों का उन्हें कभी पता चलेगा। वैसे मुझे यह ठरक तुम्हीं से मिली है माँ, लगता है अपने इस नए मर्द को तुम जल्दी ही मादरचोद भी बना दोगी" इसबार अभिमन्यु मुस्कुराते हुए बोला क्योंकि अपने ही पिछले अश्लील कथन पर उसकी माँ का सुर्ख चेहरा अचानक से पीला पड़ गया था, माँ-बेटे के बीच का ऐसा प्रेम, लगाव, खुलापन ना ही उसने कभी किसी कहानी मे पढ़ा था और ना ही किसी पोर्न वीडियो मे देखा था। वह एकाएक गर्व से भर उठता है, जब उसके बचकाने मस्तिष्क में उनका व्यभिचारी सम्बन्ध उसे कोई नया इतिहास बनाता हुआ--सा नज़र आता है।

"धत्! लगाऊंगी एक अगर फिर कभी मुझे अपनी औरत बोला तो। मैं अपने पति माणिकचंद गुटखे की थी, हूँ और हमेशा रहूंगी" वैशाली की खोई हुई हँसी भी फौरन लौट आई, कुछ असर इसका भी अवश्य था कि अब वह अनचाहे मूत्रदबाव से पूरी तरह मुक्त थी।

"एक क्या दो ...चार ...दस लगा लेना मम्मी मगर यह मत भूल जाना कि घर के भेदी ने ही कभी लंका तक की लंका लगवा दी थी। कभी माणिकचंद जी ने तुम्हारी जिस चूत मे सेंध मारी थी, मैं भी उसमें सेंध लगाने के नजदीक ही हूँ। खैर तुम्हारी दोस्त सुधा को तो मैं पक्का चोदूँगा, अब तुम्हारी चूत नही मिलेगी तो मैं कैसे अपनी गर्मी शांत करूँगा भला" अभिमन्यु अपनी माँ के टांगों पर बनाए अपनी हथेलियों के दबाव को खत्म करते हुए बोला, उसने जानबूचकर अपने कथन मे सुधा को घुसेड़ा था ताकि अपनी माँ के चेहरे पर आए या आने वाले बदलाव पर अपनी परिपक्व नजर रख सके।



किसी के पास जाने की जरुरत नही तुम्हें, मैं जल्द से जल्द तुम्हारी गर्मी शांत करने का हल भी ढूंढ लूँगी। वादा करो मन्यु, मुझसे बिना पूछे अब ना तो दोबारा तुम उन बाजारू रंडियों के पास जाओगे और ना ही उस कमीनी सुधा के पास वर्ना ...." कहते-कहते एकाएक जबड़े मिसमिसा जाने से वैशाली चुप हो गई, अभिमन्यु को जो बदलाव देखना था जाने-अनजाने उसकी माँ ने उसे दिखा दिया था। जलन की प्रारंभिक तपन से उसकी माँ को यह आभास भी नही हो पाया था कि उसकी टाँगें अबतक ज्यों की त्यों उसकी छाती से चिपकी हुई थीं जबकि अपनी हथेलियों की गिरफ्त से वह कबका उन्हें आजाद कर चुका था। उसने यह भी स्पष्ट देखा कि मनचाहे मूत्रउत्सर्जन के उपरान्त भी उसकी माँ की चूत से चिपचिपे द्रव्य का बहना निरंतर जारी था, जो कि पूर्ण साक्ष्य था कि अभी भी उसकी माँ के भीतर उत्तेजना के कण बचे थे।

"मेरी गर्मी निकालने का कोई हल निकले या ना निकले माँ पर तुम्हारी गर्मी अभी पूरी तरह से नही निकल पाई है, देखो तुम्हारी चूत अभी भी झरने सी बह रही है" कथन उवाच से पूर्व अभिमन्यु बड़ी चतुराई से बिस्तर से नीचे उतरने मे सफल हो गया था और ज्यों ही उसने अपनी विचारमग्न माँ का ध्यान उसकी रिसती चूत के मुहाने पर केंद्रित किया, इससे पहले कि वैशाली अपनी टाँगों को यथावत नीचे कर वास्तव मे अपनी चूत का मुआयना कर पाती अकस्मात् वह अपना सम्पूर्ण चेहरा अपनी माँ के वर्जित अंग से रगड़ना आरंभ कर देता है। कोई घिन नही और ना ही कोई दुर्गंध, अब तो मानो उसे अपनी माँ को अपनी जिह्वा व होंठों से मुखमैथुन का अतुलनीय सुख पहुंचाने भर से सरोकार रह गया था।

"उफ्फ् मन्यु! अगर ऐसा कर तुम्हारा मन अपनी माँ की चूत से खेलना भर है तो मैं विनती करती हूँ, मुझे वहाँ मत छेड़ो ...मैं तुम्हारी छेड़खानियां और बरदाश्त नही कर पाऊँगी बेटा"
की गर्म साँसों के असंख्य झोंके उसे अतिप्रबलता से उन्माद भरी सीत्कार भरने पर मजबूर कर गए थे, उसके निचले नंगे धड़ में अचानक अकल्पनीय लचक आने लगी थी।

"आँऽऽहाँ!" अपनी माँ की विनती के जवाब मे अभिमन्यु गुनगुनाया और अतिशीघ्र उसके लचकते निचले धड़ को स्थिर करने के उद्देश्य से वह उसकी मांसल गांड के दोनों पटों का कंकपकपाता मांस अपनी विशाल हथेलियों मे बलपूर्वक जकड़ लेता है। माना मुखमैथुन संबंधी क्रियाओं मे उस नवयुवक की परिपक्वता ना के बराबर थी मगर दृढ़ता, एकाग्रता और विश्वास उसमे कूट-कूट कर भरा हुआ था और यही कारण रहा जो वह अपने मन के घोड़ों का रुख तीव्रता से इंटरनेट पर अबतक देखे पोर्न की ओर मोड़ देता है। उसने कहीं पढ़ा था कि जो लोग रतिक्रिया की परिभाषा से अंजान रहते हैं, उत्सुकतावश उनकी पहली चुदाई ही उनके जीवन की यादगार चुदाई बन जाती है।

अभिमन्यु जानता है कि उसकी माँ कामुत्तेजना के शिखर के बेहद करीब खड़ी है, उसकी सकुचाती चूत से अनियंत्रित रस का रिसाव अभी से इतना तीव्र हो चुका है मानो उसकी लपलपाती जीभ का पहला स्पर्श भी वह नही झेल सकेगी। उसके धुकनी समान धड़कते दिल की धड़कनें तेजी से बहुत तेज होती जा रही हैं जिन्हें वह इतनी दूर से भी स्पष्ट अपने कानों मे गूंजता महसूस कर पा रहा है और उसके बदन की तपन का तो जैसे कोई पारावार ही शेष नही है।



मैंने कहा ना बंद करो ये छेड़छाड़ मन्यु। जानकार भी अनजान बनना अच्छी बात नही बेटा, मुझपर इस वक्त क्या बीत रही है तुम सोच भी नही सकते" अपने बेटे के चेहरे को अपनी चूत के मुहाने पर सोता--सा समझ वैशाली पुनः बड़बड़ाई। अपनी माँ की कष्टकारी अनय को दोबारा सुन अकस्मात् अभिमन्यु की खोई चेतना वापस लौट आती है और बिना कुछ सोचे-विचारे वह अपनी माँ की चूत के बेहद सूजे होंठों को पटापट चूमना आरंभ कर देता है, तात्पश्चयात अत्यंत तुरंत उसके होंठ खुल गए और उसकी लंबी जिह्वा उसकी माँ की चूत से बाहर बहते उसके गाढ़े रस को अविलंब चाटने मे जुट गई। उसने प्रत्यक्ष जाना कि उसकी माँ के बदन की सुगंध समान उसका कामरस भी उतना ही सुगंधित है और जिसका अहसास जल्दबाजी मे वह पहले नही कर पाया था बल्कि अकबकाई से उसके मस्तिष्क मे एक तरह की घृणा--सी पैदा हो गई थी मगर अब उसकी वही घृणा मंत्रमुग्ध कर देने वाले आनंद मे परिवर्तित हो चली थी।

"चाटो मन्यु उन्घ्! अब ...अब अधर मे मत लटकाना अपनी माँ को। बचपन मे मैंने तुम्हें अपना दूध पिलाया था आज मेरी दिली इच्छा है कि मेरा जवान बेटा मेरी चूत से बहती मेरी रज पिये। तुम ...तुम भी तो यही चाहते हो ना मन्यु, तो चूस लो सारा रस अपनी माँ का, आहऽऽ! सुखा दो आज पूरी तरह से उसकी चूत को" पराये मर्द का अनैतिक स्पर्श, आंतरिक पीड़ा, निराशा, अखंड उत्तेजना आदि मिले-जुले संगम से ओतप्रोत वैशाली जोरों से चिल्लाई। अपनी माँ की पापी इच्छा के सम्मान मे अभिमन्यु तत्काल अपनी जीभ से उसकी चूत के चिपके चीरे को चीरते हुए उसे उसके अत्यधिक संकुचित मार्ग के भीतर ठेलने का प्रयत्न करता है मगर ज्यादा भीतर तक अपनी जीभ घुसेड़ नही पाता और तभी उसे ख्याल आया कि नीली फिल्मों मे उंगलियों का भी हरसंभव प्रयोग किया जाता है, इसी विचार से वह अपनी माँ की गांड के दाएं पट को छोड़ फौरन उसकी जांघ अपने दाहिने कंधे पर टिकाने के उपरान्त अपनी दाहिनी मध्य दो उंगलियां एकसाथ कठोरतापूर्वक उसकी चूत के भीतर गहरायी तक ठूंस देता है।




आईऽऽ! तुम्हारे पापा ने मेरी चूत का ऐसा तिरस्कार किया है मन्यु कि पिछले बीस दिनों से इसका सूनापन मैं चाहकर भी भर नही पाई, मेरी ...मेरी उंगलियां छोटी हैं, अंदर तक नही जा पातीं। उफ्फ्! तुम ...अब तुम ही इसका सूनापन मिटा सकते हो मेरे लाल, उफ्फ्ऽऽ! और ...और अंदर, जबरदस्ती पूरा हाथ घुसेड़ दो अपनी माँ की चूत मे मन्युऽऽऽ" बीते एकांत समय को सोच वैशाली हाहाकार करने पर विवश हो जाती है, जिसके साथ ही अभिमन्यु अपनी उँगलियों को अपनी माँ की संकीर्ण चूत के भीतर विपरीत दिशा मे चौड़ा देता है। अकस्मात् उसे चूत की अंदरूनी बेहद लाल त्वचा स्पष्टरूप से नजर आने लगी, उसकी माँ की साँसों के लगातार उतार-चढ़ाव से उसकी चूत का अत्यंत नाजुक मांस जीवंत फड़फड़ाता महसूस होता है, जिसपर तीव्रता से होते कंपन ने उस नवयुवक के मुलायम होंठ स्वतः ही कठोर कर दिए और वह अपने होंठों की कठोरता से चूत के भीतर छुपी उसकी माँ की गाढ़ी स्वादिष्ट रज सुड़कते हुए उसे अपने मुँह मे एकत्रित करने लगता है। बिस्तर पर तड़पती वैशाली अपने बेटे के इस ज्वलंत कार्य पर अचानक रुआंसी हो पड़ी थी, उस माँ का रोम-रोम चीख-पुकार मचाने लगा था और मदहोशीवश वह अपने दांतों के मध्य अपना निचला होंठ दबाते हुए अपने दोनों मम्मों को बलपूर्वक गूंथना शुरू कर देती है।

"और ...और जोर से मन्यु, ओहऽऽ! चूसकर सुखा डालो मेरी चूत को। आईईईऽऽऽ पागल ...मैं पागल हो जाऊंगीऽऽ" वैशाली की निरंतर कामुक सिसकारियों से अभिमन्यु को अपने अपरिपक्व कार्य की इतनी मनमोहक प्रतिक्रिया मिल रही थी जिससे अभिभूत वह अपनी जीभ पहले से कहीं अधिक उत्साह से अपनी माँ की चूत के भीतर लपलपाने लगा, जल्द ही उसकी लंबी जीभ चूत को पूरी गहराई तक चाटने मे सफल होने लगी थी। उसके मुँह से संतुष्टिपूर्वक रज सुड़कने की मधुर आवाजें भी कमरे के अशांत वातावरण मे गूंजने लगी थीं। वह देख नही सकता था पर जानता था कि उसकी माँ के गोल-मटोल मम्मे उसके निप्पलों सहित स्वयं उसी के द्वारा गूंथे, मसले, ऐंठे व खींचे जाने की वजह से बेहद सुर्खियत पा चुके थे। उसकी टांगों मे होते अविश्वसनीय कंपन से उसकी अधेड़ तिरस्कृत माँ की चूत का लावा अपने आप पिघलकर उसके मुँह के भीतर किसी फुहार-सा बरसने लगा था, उसकी चूत के अंदर घुसी उसके जवान बेटे की उंगलियां भी उसके चिपचिपे रस से पूरी तरह तर-बतर हो चुकी थीं।


उफ्फ् मऽन्युऽऽ! चूत चटवाने का सुख ..." कहते हुए एकाएक वैशाली की आँखें नटियाने लगती हैं, वह अपना कथन तक पूरा नही कर पाती क्योंकि ठीक उसी क्षण उसका बेटा उसकी चूत की दोनों फांकें बारी-बारी अपने होंठों के मध्य कठोरता से भींचते हुए अपनी दोनों उंगलियों से उसकी चूत की संकीर्ण परतें अत्यधिक तीव्रता से चोदना शुरू कर देता है, साथ ही साथ वह अपनी खुरदुरी जीभ को भी उसकी चूत के अत्यंत गीले छिद्र मे पूरी जड़ तक अविलंब ठेलने का बचकाना प्रयास कर रहा था ताकि छिद्र के भीतर उमड़ते सुगंधित रस को वह सीधे अपने गले के नीचे उतार सके।

"आहऽऽ मन्यु! माफ ...माफ करना, तुम अपनी माँ को झड़वाने के लिए कितना ...ओह! कितना जतन कर रहे हो और मैं ...ओहऽऽ! मैंने तुम्हारे झड़ने के बारे मे एक भी बार सोचा ...सोचा तक नहीऽऽऽ" वैशाली पूर्व से ही बेहद उत्तेजित थी और यह सोचकर हैरान भी की उसके बेटे ने मात्र अपनी जीभ, होंठ और उंगलियों के प्रयोग से ही उसे उसके मनभावन स्खलन के कितने नजदीक पहुँचा दिया है मगर अपने बेटे के स्खलन संबंधी विषय मे उसने वाकई जरा भी विचार नही किया था। अभिमन्यु खुद उसे चोदना नही चाहता था और उसका लंड चूसने से वह काफी देर पहले ही इनकार कर चुकी थी, इसी कारणवश वह माँ अबतक अपने बेटे का भरपूर लाभ उठाती रहने के लिए बारम्बार उससे माफी की गुजारिश करने लगी थी। सहसा अभिमन्यु का ध्यान भी अपने लंड की असीमित कठोरता पर गया मगर अतिशीघ्र वह बड़ी ललचायी नजरों से अपनी माँ की चूत की ऊपरी सतह पर चमचमाते उसके मोटे भांगुर को घूरने लगता है।
 
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