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Incest Oh maa (complete )

Rabia

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घर के मुख्य द्वारा से बाहर निकलकर अभिमन्यु सीधे अपनी बाइक के पास पहुँचा और उसपर बैठ क्षणिक पलों तक कुछ सोचने-विचारने मे लगा रहता है, उसके दोनो हाथ उसकी सोच के साथ ही हिलने-डुलने लगे थे जैसे उसकी सोच से मूक वार्तालाप कर रहे हों।

"हम्म! यह मस्त रहेगा, बिलकुल ठीक। हाँ यही मस्त रहेगा" वह अचानक से बड़बडा़या और सहसा उसके मायूस चेहरे पर पुनः मुस्कान लौट आती है। तत्पश्चात उसने बाइक दौड़ा दी, यकीनन उसकी सोच पूरी हो चुकी थी।
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अपने बेडरूम के बिस्तर पर बैठी वैशाली काफी देर तक अपने आँसुऔं मे ड़ूबी रही, उसे इस बात पर रोना नही आ रहा था कि उसने अभिमन्यु की चाह को अपना समर्थन नही दिया था बल्कि वह इसलिए दुखी थी कि पलभर मे कैसे एक बेटा अपनी सगी माँ की ओर इतनी गम्भीरता से आकर्षित हो गया था? स्त्रियां तो ऐसे लघु आकर्षणों पर फूली नही समातीं, काश! कि वह सिर्फ एक स्त्री ही होती तो कितना अच्छा होता मगर स्त्री होने के साथ-साथ एक विवाहित माँ होने का भी गौरव उसे प्राप्त था और ऐसे मे उसका बेटा चाहे कितना भी अधिक उसकी ओर आकर्षित हो जाता, रहता तो वह एक पराया मर्द ही।

"माँ भी तुम्हारी है अभिमन्यु क्योंकि वह भी इस घर की जायजाद मे शामिल है और जिसके इकलौते वारिस तुम ही हो बेटा, सिर्फ तुम ही हो" खुद से ऐसा बारम्बार कहते हुए वैशाली तत्काल अपने आँसुओं के पोंछ लेती है, निश्चित उसके शब्दों से उसके ममतामयी दिल का वह बोझ कम होने लगा था कि जाने-अंजाने जीवन मे पहली बार उसने स्वयं अपने बेटे का दिल तोड़ा था।

चेहरे पर टूटी-फूटी मुस्कान लिए वैशाली फौरन बिस्तर से नीचे उतरी और सर्वप्रथम उसने घर के मुख्य द्वार को लॉक किया, फिर वापस अपने बेडरूम मे लौटकर सीधे अटैच बाथरूम के भीतर घुस जाती है। अभिमन्यु ने उसे तैयार रहने को कहा था और पिछला आधा घंटा वह अपनी सोच मे ही बिता चुकी थी। अच्छे से मुंह हाथ धोकर वह अपने
वार्डरोब मे भरी पड़ी साड़ियों मे से अपनी सबसे पसंदीदा साड़ी का चुनाव करने लगती है और जल्द ही उसने उस मेहरुन रंगत की साड़ी को चुन लिया जिसे बीते मदर्स डे पर उसे उसकी बेटी अनुभा ने तोहफे मे दिया था।

"ओह हो! इस साड़ी का पेटीकोट तो मैच ही नही हो रहा और फिर पहनने को साफ-सुथरी कच्छी भी तो नही बची" वैशाली पेटीकोट का रंग साड़ी के रंग से हल्का पाकर मायूसी से बुदबुदाई, उसने सहसा गौर किया कि कैसे अब वह 'कच्छी' जैसे देशी शब्द का स्वतः ही उच्चारण करने लगी थी। शर्माते हुए पेटीकोट को बिस्तर पर फेंक उसने मैक्सी अपने गदराए बदन से अलग कर दी और ड्रेसिंग टेबल के सामने जाकर खडी़ हो जाती है।

जीवन मे दूसरी बार उसे अपने बदन मे एक अजीब-सा बदलाव नजर आ रहा था, ठीक वैसा बदलाव जैसा उसने अपनी बीती जवानी मे महसूस किया था जब वह अपने कुंवारेपन से मुक्त होने को पल-पल तड़पा करती थी। आज पुनः उसी तड़प से उसका सम्पूर्ण बदन टूट रहा है, उस तड़प के टूटने की प्रतीक्षा मे आज फिर उसका अंग-अंग बिन छुए ही फड़कने लगा है मानो किसी जवान, बलिष्ठ मर्द के नीचे दब जाने की उसकी इच्छा दोबारा जीवंत हो गई हो जिस इच्छा के तहत उसने कभी अपने भावी पति की कल्पना की थी।

कांच मे अपने अक्स को देख वह अपने बाएं हाथ की उंगलियां ब्रा के भीतर कैद अपने गोल-मटोल मम्मों के ऊपरी फुलाव पर घुमाने लगती है, उसे तत्काल वह क्षण याद आ गया जब डाइनिंग टेबल पर बैठा अभिमन्यु कितनी बेशर्मी के साथ उसके मम्मों के इसी फुलाव को खा जाने वाली नजरे घूरे जा रहा था।

"माँ के मम्मों पर बेटे का हक नही होगा तो क्या किसी माणिकचंद का होगा?" खुद के ही सवाल पर वैशाली हँसने लगी, अपने दोनो हाथ पीठ पर ले जाकर उसने अपनी ब्रा का हुक खोल दिखा और उसे हाथों से बाहर निकाल बिस्तर पर उछाल देती है।
ऐसे मत घूर बिच, अब तेरी ही बारी है" कांच मे देखते हुए वह अपने बदन पर बचे आखिरी वस्त्र, अपनी कच्छी से बोली और बड़ी अदा के साथ फौरन उसे सकराकर नीचे फर्श पर गिरने के लिए छोड़ दिया।

"बेशर्म निगोड़ी तू है मेरा मन्यु नही, मरोड़ना तुझे चाहिए उस बेचारे का कान नही। पूरे दिन से बह रही है, मेरी तीनो कच्छियों को गंदा कर डाला। अब क्या पहनूं पेटीकोट के नीचे? तेरे कारण आज पहली बार मुझे बिना कच्छी पहने घर की चौखट के बाहर कदम रखना पड़ेगा" अपने अश्लील कथन अनुसार ही वैशाली ने अपने दाएं हाथ के अंगूठे और प्रथम उंगली के बीच दिनभर से निरंतर रिस रही अपनी चिपचिपी चूत के दोनो स्पंदनशील होंठ एकसाथ भींच लिए और सिसियाते हुए बलपूर्वक उन्हें मरोड़ने लगती है, मानो सत्यता मे ही उन्हें सजा दे रही हो। उसकी कामुक हँसी का तो कोई पारावार शेष ना था, किसी भयानक मनोविकार से ग्रस्त पागल की भांति लगातार खिखियाते हुए पूरे जोशो-खरोश से वह अपनी चूत के अत्यंत सुंदर मुख को तीव्रता से उमेठे जा रही थी।

"उन्ह! उन्ह! तेरी गलती भी नही मुनिया। उफ्फ! रो-रोकर तू ...तू तो बस अपनी स्वभाविक चाह जता रही है, गूंगी जो है ठहरी। उन्ह! बोल नही सकती ना कि तेरी एक मोटे और लंबे--से लंड से चुदने की इच्छा है मगर किसके लंड से? तेरा मालिक माणिचंद तो यहाँ है नही, फिर किसके? बोल! बोल! किसके?" जो विध्वंशक, पापी शब्द उस मर्यादित माँ ने अपने सम्पूर्ण बीते जीवन मे कभी अपने होंठों पर नही आने दिए थे, सहसा उनके एकाएक मुंह से बाहर आते ही वैशाली अपने बाएं हाथ के अंगूठे और प्रथम उंगली के बीच अपने वास्तविक होंठों भी कसकर जकड़ लेती है। यह सोचकर कि अब उसके स्त्री शरीर के वह दोनो मुख्य अंग उसने हर संभव तरह से दबा दिए हैं हमेशा जिनके ही कारण यह धरती अनगिनत बार लहुलुहान हुई थी, मगर मन का क्या? वह तो पूर्व स्वतंत्र है।

आहऽऽ! अभिऽऽमन्युऽऽऽऽ" अपने चंचल मन के हाथों विवश सचमुच पापी बनने को उत्सुक, चुदाई की प्यासी वह अत्यंत कामलुलोप माँ दिन मे तीसरी बार अपने सगे बेटे के प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष स्मरण मात्र से ही स्खलित होने लगती है।

कहते हैं कि पहली बार कोई पापी कृत्य करने के उपरान्त मनुष्य ग्लानी भाव से तड़प उठता है, दूसरी बार मे उसकी ग्लानी कुछ कम हो जाती है और जब वह बारम्बार पाप करने का आदि हो जाए तब उसके भीतर किसी भी प्रकार की कोई ग्लानी शेष नही रहती। अपनी कच्छी से अपनी स्खलित चूत का गाढ़ा रस पोंछते हुए वैशाली का मन-मस्तिष्क बेहद शांत था बजाए इसके कि वह रोए, दुखी हो; वह पूर्णरूप से संतुष्ट, निश्चिंत बिलकुल मस्त मलंग थी।

धुली ब्रा, ब्लाउज और बिना कच्छी के पेटीकोट पहनकर वैशाली अपनी नई महरुन साड़ी भी पहन चुकी थी, पेटीकोट का हल्का रंग साड़ी को एक नया व काफी शानदार फेन्सी लुक दे रहा था। अपने प्राकृतिक सुंदर चेहरे के श्रृंगार के नाम पर अधिकतर वह काजल और मैचिंग लिपस्टिक का ही प्रयोग करती थी, अपनी अत्याकर्शक बड़ी-बड़ी आँखों मे काजल लगाकर उसने मूंगिया रंगत के अपने भरे हुए होंठ गहरे महरुन रंग की लिपस्टिक से रंग लिए। तत्पश्चात वार्डरोब के लॉकर से उसने अपने उन गहनों का बॉक्स बाहर निकाला जिन्हें उसने अपनी बेटी अनुभा की शादी मे स्वयं के लिए बनवाया था, खैर ज्यादा कुछ उस बॉक्स मे नही था, मणिक की आर्थिक हालत को देख एक जिम्मेदार पत्नी होने का फर्ज निभाते हुए उसने स्त्री मोह की मुख्य वस्तु का सिरे से त्याग कर दिया था। पूर्व से अपनी दायीं नाक के नथुए मे जड़ी लौंग की जगह उसने उसमे सोने का छल्ला पहन लिया, अपने कानों के टॉप्स बदलकर सोने की लटकनदार बालियां भी धारण कर लीं, शायद इसलिए क्योंकि यह छल्ला और बालियां अभिमन्यु के विशेष आग्रह पर उसने बनवाए थे। पूरी तरह से तैयार होकर एक नजर कांच मे खुद को निहारने के उपरान्त उसने अपनी मैक्सी व अन्य कपड़ो को यथोचित स्थान पर रख दिया और बेडरूम से बाहर निकल जाती है।

वैशाली को हॉल के सोफे पर बेठे-बैठे तयशुदा समय से पैंतालीस मिनट ज्यादा बीत चुके थे मगर अभिमन्यु अबतक नही लौटा था ना ही देरी होने के संबंध मे उसका कोई फोन आया था और वह खुद अपने बेटे को कॉल करना नही चाहती थी। वह नही चाहती थी कि अभिमन्यु अपनी माँ की बेसब्री का ज्ञाता हो जाए, वह जान ना ले कि उसकी माँ उसके साथ ट्रीट पर जाने के लिए मरी जा रही थी।

पैंतालीस मिनट से एक घंटा और होते-होते ढ़ाई घंटे बीत गए पर अभिमन्यु की वापसी के विषय मे उसे कुछ भी पता नही चल पाया था। पल-पल दीवार घड़ी को ताकती वैशाली की नम आँखें ना जाने कितनी बार बह जाने की कगार पर पहुँच चुकी थीं मगर एक आस कि उसका बेटा उसे ट्रीट पर जरूर ले जाएगा और कहीं आँसू बहकर उसकी आँख के काजल को धो ना दें, वह जरा भी नही रोई थी मगर उसका धैर्य अब जवाब देने लगा था। अपने बेटे की रश ड्राइविंग की जानकर वह माँ अकस्मात घड़ी से अपनी नजर हटाकर सामने की टेबल पर रखे अपने मोबाइल को घूरने लगी।

"तू तो ऐसे कर रही है जैसे यह कोई आम--सी ट्रीट नही बल्कि तेरी पहली डेट हो" अपनी सोच के समर्थन मे फीकी हँसी हँसते हुए वैशाली ने तत्काल कपड़े बदल लेने का निश्चय किया, चूंकि उसका दिल भी खट्टा हो चुका था और आगामी इंतजार उसकी सहनशक्ति से बाहर था मगर अपने बेडरूम मे जाने से पहले वह एकबार अभिमन्यु से बात अवश्य करना चाहती थी ताकि जान सके कि ऐसा कौन--सा जरूरी काम आन पड़ा था जो वह अपनी माँ से झूठ बोलकर घर से बाहर गया था। उसे यह चिंता भी थी कि कहीं वह किसी मुसीबत मे ना पड़ गया हो, उसने टेबल से अपना मोबाइल उठाया और बेटे का नम्बर डायल कर देती है।


सॉरी! सॉरी! सॉरी! सॉरी! बस दो मिनट, बस दो मिनट" पहली ही घंटी मे कॉल पिक कर अभिमन्यु ने बिना हैलो बोले सीधे माफी मांगनी शुरू कर दी और फिर फौरन कॉल कट भी कर देता है। लगभग दस मिनट बाद घर की बैल बजी तो वैशाली झूठे क्रोध के साथ दरवाजे की ओर बढ़ गई, जबकि सत्य तो यह था की एकाएक उसका रोम-रोम खिल उठा था।

"मैं खाना बनाने जा रही हूँ" बेटे के हॉल मे प्रवेश करते ही वैशाली गुस्से से बोली और मुड़कर किचन की दिशा मे चलने लगी।

"मॉम मैं इस गिफ्ट की तलाश मे लेट हो गया। आई एम सॉरी, माफ कर दो प्लीज" अपनी माँ के क्रोध को समझ अभिमन्यु उसे रोकते हुए बोला।

"कैसा गिफ्ट? और किसके लिए?" क्षणिक समय भी नही बीता कि वैशाली ने झटके से पलटते हुए पूछा, अभिमन्यु भी तबतक उसके करीब आ चुका था।

"अ रोज फॉर द मोस्ट ब्यूटिफुल एण्ड केयरिंग मदर अॉफ दिस वर्ल्ड" वह तुरंत अपने घुटनों पर बैठते हुए बोला, अपने दोनो हाथों मे पकड़ा लाल गुलाब उसने अपनी माँ की ओर बढ़ा दिया था।

"इसकी ... तलाश मे तुम्हें पूरे साढ़े तीन घंटे लग गए?" वैशाली का नकली क्रोध जारी था, गुलाब को अपने हाथ मे लेने की बजाय वह अपने दोनो हाथ कैंची के आकार मे ढ़ालकर उन्हें अपनी अपनी छाती के ऊपर रखते हुए पूछती है।
"ऐसा है और नही भी मम्मी, गुलाब तुम्हारी टक्कर का मिल सके इसी कारण मुझे देरी हो गई। वैसे एक और गिफ्ट भी लिया है मैंने" अभिमन्यु बेहद शरारती अंदाज मे बोला, अपनी माँ के भीतर आए बदलाव को समझने मे अब वह काफी तेजी से परिपक्व होता जा रहा था।


अपनी माँ की टक्कर का, हुंह! शर्म करो शर्म पाखंडी कहीं के" वैशाली तुनकते हुए बोली तभी सहसा उसकी नजर उसके बेटे के बगल से नीचे फर्श पर रखे पॉलीबैग पर पड़ी, जिसपर भूल से पहले उसने गौर नही कर पाया था।

"उसमें क्या है मन्यु?" उसने फौरन उत्सुकता से पूछा।

"लड़कियों की यही गंदी आदत मुझे बिलकुल अच्छी नही लगती मॉम, गिफ्ट मे भी हमेशा साइज को ही प्रिफ्रेंस देती है" अभिमन्यु मायूसी से भरते हुए बोला, वह जानबूझकर अपनी माँ को एक लड़की की संज्ञा देता है और जिसका प्रभाव भी उसने तुरंत देखा, उसकी माँ सचमुच किसी नवयुवती की भांति चहक उठी थी।

"तुम जैसे लफंगों को मैं अच्छी तरह से जानती हूँ जिन्हें बात-बात पर बात निकालना आता है। लाओ इसे मुझे दो और अगर तुम्हारी नौटंकी खत्म हो गई हो तो मैं अब जाऊँ किचन मे" वैशाली गुलाब को छीनते हुए बोली, खैर था तो यह उसका नाटक मात्र। जीवन मे पहली बार किसी मर्द ने उसे अपने घुटनो पर बैठते हुए गुलाब भेंट किया था और जिसके नतीजन भीतर ही भीतर उसकी प्रसन्नता का कोई पारावार शेष ना था। एकाएक वह गुलाब की सुगंध सूंघने के लिए उसे अपनी नाक के करीब ले जाने लगी मगर ज्यों ही अभिमन्यु से उसकी नजरें टकराईं, वह अपने हाथ को तीव्रता से वापस नीचे ले आती है।

"इतना इंतजार तो कभी मुझे तुम्हारे पापा ने भी नही करवाया और तुम्हारी चिंता से घिरी रही सो अलग" वह पिछले कथन मे जोड़ती है। अभिमन्यु को अपनी माँ के मुंह से जो विशेष बात सुनने की चाह थी, वह चाह अपने-आप वैशाली ने पूरी कर दी थी।

"चलो ठीक है, गुलाब के लिए शुक्रिया नही कहा तो कोई बात नही मगर यह दूसरा गिफ्ट मेरे दिल के बेहद करीब है मम्मी" पॉलीबैग को पकड़कर अभिमन्यु फर्श से खड़ा हो जाता है, उसने अपने प्यार भरे शब्दों से वैशाली की उत्सुकता को काफी अधिक बढ़ा दिया था।


पहले तुम बेशर्म थे, फिर पाखंडी, लफंगे और अब आशिकाना अंदाज मे बात करने लगे हो, जरूर इस पॉलीबैग मे कुछ तो अजीब है" कहकर वैशाली पॉलढीबैग को घूरकर देखने लगी मगर उसका रंग गहरा नीला था तो वह कोई खास अनुमान नही लगा पाती है।

"खुद ही देख लो इसमे ऐसा क्या है मम्मी जो तुम्हारे बेटे के दिल के इतना करीब है" लगभग अपने पिछले कथन को ही पुनः दोहराते हुए अभिमन्यु पॉलीबैग अपनी माँ के सुपुर्द कर देता है और उसके हाथ से गुलाब खुद ने ले लिया। वैशाली पहले पॉलबैग को ऊपर से टटोलने लगी, उसके हल्के वजन से उसे अहसास हुआ जैसे उसके भीतर कोई वस्त्र था। साड़ी का विचार मन मे आते ही वह तत्काल उसे नकार देती है क्योंकि साडी़ पहनने वाली हर स्त्री को उसके विषय मे बारीक से बारीक जानकारी रहती है। फिर इसमे क्या हो सकता है? वह अपने ही सवाल पर थोड़ा झल्ला सी गई और अंततः पॉलीबैग का मुंह खोलकर उसके भीतर झांकने लगती है।

 
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Rabia

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नही! नही! नही! नही! यह नही, बिलकुल ...यह बिलकुल नही मन्यु" पॉलीबैग के भीतर झांकते ही वैशाली मानो उछल--सी पड़ती है और फौरन पॉलीबैग के खुले मुंह को उसने लगभग चीखते हुए बंद कर दिया था।

"तुमने दिन मे कहा था कि तुम्हारी ब्रा और क ...क्च ...कच्छियों को पहनने मे तुम्हें दिक्कत होती है, कुछ साइज इश्यू के बारे मे बताया था तुमने" अभिमन्यु पूरा साहस जुटाते हुए कहता है पर फिर भी 'कच्छी' शब्द का उच्चारण करने मे वह हल्का--सा हकला ही जाता है। चलो एक बात की तसल्ली तो उसे जरूर हुई थी कि उसकी माँ ने एकाएक उसे थप्पड़ नही मारा वर्ना संसार की ऐसी कौन सी माँ होगी जो बेटे द्वारा तोहफे मे दिए गए अंतर्वस्त्रों को हँसकर कबूल कर ले।

"उससे तुम्हें कोई मतलब नही होना चाहिए अभिमन्यु" वैशाली अपने पेट मे एकदम से उठनी शुरू हुई मरूढ़ को दबाते हुए बोली। वह सकते मे तो थी मगर जाने क्यों अंदरूनी तौर पर उसे जरा--सा भी क्रोध नही आ रहा था, कोई ग्लानी महसूस नही और ना ही भय, घबराहट या झिझक का कोई अतिरिक्त अहसास। यकीनन यह उसके लगातार तीन बार प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से अपने ही सगे बेटे के बारे मे सोचते हुए मुट्ठ मारने का भीषण परिणाम था जो अनाचार की ओर तेजी से अग्रसित होती जा रही उस माँ के भीतर सिवाय शर्म मात्र के कोई अन्य भाव बिलकुल उत्पन्न नही हो रहा था।

"अगर मेरा वाकई उससे कोई मतलब नही होता तो तुम मुझसे ऐसा झूठ कभी नही बोलती" अपनी माँ की ओर से मिले सकारात्मक संकेत को महसूस कर अभिमन्यु दुष्ट हँसी हँसते हुए बोला। जाने कितने अरसे बाद उसकी माँ ने अपनी नाक और कान मे अपने बेटे के सबसे पसंदीदा आभूषण पहने थे जिन पर से अपनी नजरें हटा पाना उसके बस से बाहर हो चला था।



कैसा झूठ? म ...मैं क्यों बोलने लगी तुमसे झूठ" वैशाली हकलाते हुए पूछती है, जितनी हैरत उसे बेटे के इस अश्लील तोहफे पर नही हुई थी उससे कहीं अधिक वह उसके कथन को सुनकर चौंक पड़ी थी।

"मैं उसी साइज की ब्रा और कच्छी के तीन सेट खरीदकर लाया हूँ मॉम जिस साइज के फिलहाल तुम पहन रही हो। तुम्हें तो झूठ बोलना नही आता माँ" अभिमन्यु फौरन उसे आँख मारते हुए बोला, अब वह पूरी तरह से भय मुक्त हो चुका था।

"तुम जैसे बेशर्म लोगों की सबसे खास बात यही है मन्यु कि वह बात-बात पर बात पकड़ते हैं। अभी इसी वक्त जाओ और इन्हें वापस करके आओ, अपनी माँ को उसका बेटा इस तरह का गंदा तोहफा कभी नही दिया करता" अपनी चोरी पकड़ी जाने पर वैशाली लाज से दोहरी होती हुई बोली और पॉलीबैग तुरंत बेटे की ओर बढ़ा देती है।

"मॉम अब ये रिटर्न नही होंगे, डायरेक्ट एनामोर के आउटलेट से लाया हूँ" अभिमन्यु ने बताया।

"एनामोर? इतनी ब्रांडेड कंपनी? कहीं तुमने सारे पैसे तो खर्च नही कर दिए? फिर पॉलीबैग क्यों बदला?" वैशाली ने एकसाथ कई सवालों की झड़ी लगाते हुए पूछा। वह इस महंगे ब्रांड से तब परिचित हुई थी जब अनुभा ने अपने ससुराल जाने से पहले अपने नये अंडरगारमेंट्स एनामोर से ही खरीदे थे, वह अपनी बेटी के साथ वहाँ मौजूद थी और मात्र चार सेट का कैश मेमो लगभग साढ़े आठ हजार का बना था वर्ना इससे पहले दोनो माँ-बेटी कोई भी सस्ते अंडरगारमेंट्स पहन लिया करती थीं जैसे मिडिल क्लास की हर औरत पहनती है।




तुम्हें बिलीव नही होगा मम्मी, आउटलेट मे बाय टू गैट वन फ्री का अॉफर चल रहा था और उसमे भी थर्टीफाइव परसेंट अॉफ था। तीन सेट सिर्फ ट्वेंटी सेवन हंड्रेड मे, है ना कूल? और हाँ मैंने पॉलीबैग इसलिए बदला ताकि एकदम से तुम्हारी मार ना खा जाऊँ और फिर यह जालिम समाज, यह मल्टी वाले मुझे बेशर्म नही समझते जो मैं अपनी ही माँ के लिए ब्रा-कच्छी खरीदकर ले ले जा रहा था" कहते वक्त अभिमन्यु की शैतानी अदा देखने लायक थी, उसका अपने दांत बाहर निकालकर बेहूदगी से खिखियाना उसकी माँ को हया से गड़ा देता है। उसने एक नजर ऊपर से नीचे तक बेटे को देखा और पाया कि उसकी जींस के भीतर कैद उसका लंड पूरी कठोरता से तनकर खड़ा हो चुका था, जिसके नतीजतन उसकी जींस के ऊपर एक बड़े--से तम्बू का निर्माण हो गया था।

वैशाली क्षणभर मे कांप उठी, पहली बार प्रत्यक्ष वह अभिमन्यु के खड़े लंड को इतने नजदीक से देख रही थी। भले ही उसके बेटे का लंड अभी उसकी जींस के भीतर छुपा हुआ था मगर फिर भी अपने पूर्णविकसित आकार से उसने, अपने पति से तिरस्कृत चुदाई की इच्छुक उस कुंठित माँ को फौरन सिरहन से भर दिया था। दिन मे तीन बार स्खलित हो चुकने के बावजूद एकाएक वह अपनी चूत मे एक और नई तड़प महसूस करने को विवश हो जाती है। उसे अपनी खुद की स्थिति बहुत दयनीय नजर आने लगी जब वह चाहकर भी अपनी आश्चर्य से फट पड़ी आँखें अपने बेटे की जींस के तम्बू से हटा नही पाती।

"कुछ भी हो मन्यु तुम्हारी माँ होने के नाते मैं तुम्हारे इस तोहफे को नही ले सकती और रिटर्न यह होगा नही। अब एक ही रास्ता बचा है कि इसे मैं अपनी होनेवाली बहू के लिए संभालकर रख लूं, ताकि अभी नही तो कम से कम फ्यूचर मे इसका यूज हो जाए" एकसाथ लज्जा, गुस्सा, निराशा और अनियंत्रित कमुत्तेजना से अभिभूत वैशाली ने जैसे-तैसे अपने बेटे के तम्बू से चिपकी अपनी नीच नजरों को हटाते हुए कहा और तीव्रता से पलटकर अपने बेडरूम की ओर चल देती है।




मॉम इफ मेरी वाइफ का बदन तुम्हारे बदन की तरह ... वह क्या कहते है? हाँ छरहरा नही हुआ तो" कहते हुए अभिमन्यु भी अपनी माँ के पीछे चलने लगता है।

"प्लीज मम्मी इकसेप्ट कर लो ना मेरे गिफ्ट को, कितने प्यार से लाया हूँ" वैशाली के उसे ध्यान ना देने के बावजूद वह बोलता रहा।

"रुको तो माँ, अच्छा हम इस सब्जेक्ट पर बैठकर बात करें?" उसने चलते-चलते पूछा, दोनो माँ-बेटे बेडरूम के अंदर प्रवेश कर चुके थे।

"मॉम आई रियली लव यू, बहुत प्यार करता हूँ तुमसे। मेरी कोई गर्लफ्रेंड नही है, पहली बार किसी लड़की को गिफ्ट दे रहा हूँ। अब इसमे मेरा क्या फॉल्ट की तुम मेरी माँ हो, मेरी फीलिंग्स को कम से कम ऐसे तो न तोड़ो। प्लीज मॉम प्लीज" अभिमन्यु बिस्तर के पास पहुँचकर रुक जाता है, वैशाली अपना वार्डरोब खोल चुकी थी मगर जाने क्यों वह पॉलीबैग शेल्फ मे रख नही पाती। अपने बेटे के मुंह से ऐसी मार्मिक बातें सुनना उसे अच्छा नही लगा था, यह अवश्य था कि खुद के लिए अभिमन्यु के प्यार को वह बरसों से देखती आ रही थी और अब से थोड़ी देर पहले उसने उसकी आँखों मे स्वयं के लिए एक मर्द रूपी प्यार भी साफ महसूस किया था जब वह उसके लगातार एक ही प्रश्न पर अटके रहने के उपरान्त उसे अपना सच्चा जवाब देने की वजह से रोने लगी थी।

"तुम झूठे हो मन्यु। अगर तुम्हारी गर्लफ्रेंड नही तो तुम वर्जिन क्यों नही हो?" बिना अपना चेहरा घुमाए वैशाली ने उससे पूछा, उसे मालूम था कि ऐसी उलझी परिस्थिति मे उसके बेटे की निजता को भंग करता उसका यह सवाल बिलकुल उचित नही ठहराया जा सकता मगर सत्य जानने की इच्छा के हाथों मजबूर वह पूछ ही लेती है।






प्रॉस्टिटूट" अभिमन्यु हौले से फुसफुसाया, जवाब देते समय एकपल को भी उसने अपने जवाब की निकृष्टता पर विचार नही किया था।

"वॉट!" वैशाली चौंकते हुए अत्यंत तुरंत उसकी ओर पलट जाती है।

"मैं खुद को संभाल नही पा रहा था मम्मी और अगर मुझे किसी औरत के जिस्म का सहारा नही मिलता तो मानो या ना मानो, मैं पागल हो जाता। इसके बाद मैं कई बार उस गलत जगह पर गया और आगे भी खुद को रोक नही पाऊंगा" कहकर अभिमन्यु बिस्तर पर बैठ गहरी-गहरी सांसें लेने लगता है, उसका सिर शर्म से नीचे झुक गया था। अपने दूसरे पहलू को अपनी माँ के साथ सांझा करने के बाद उसे ऐसे विचार आने लगे थे कि काश अपने आप उसका दिल धड़कना बंद कर दे और वह अपने इस अजीब से पागलपन से पूरी तरह मुक्त हो जाए।

"ऐसे स्टाइलिश अंडरगारमेंट्स मैंने आज तक नही पहने मन्यु" वैशाली ने उसके करीब आते हुए कहा, पॉलीबैग भी उसके हाथ मे मौजूद था।

"तुम्हारे कन्फेशन पर हम जरूर बात करेंगे पर पहले यह बताओ कि कच्छी का कलर तुम सिलेक्ट करोगे या मैं करूँ?" उसने अभिमन्यु के कंधे को थपथपा कर पूछा, यह उसके बेटे की ईमानदारी का नतीजा था जो वह एकबार फिर से पिघल गई थी।



बोलो जल्दी बोलो फिर तुम मुझे ट्रीट पर भी तो ले जाओगे और बिना कच्छी पहने मैं इस घर से बाहर जाऊंगी नही" अपने कथन को पूरा करते ही वह पॉलीबैग को बिस्तर पर उलट देती है।

"मैं मुंह धोकर आता हूँ, तुम हॉल मे तैयार मिलना माँ" अभिमन्यु बिस्तर से उठते हुए बोला, वह अपनी माँ अश्लील बातों से अकस्मात् झेंप सा गया था।

"पहले अपनी माँ के लिए कच्छी तो सिलेक्ट करो, माँ पेटीकोट के नीचे नंगी है मन्यु" वैशाली सीधे उसकी आँखों मे झांकते हुए बोली। वह बिस्तर के बिलकुल करीब आकर खड़ी हुई और अभिमन्यु के अचानक बिस्तर से उठकर खड़े हो जाने से दोनो माँ-बेटे का शरीर आमने-सामने से काफी हद तक चिपक गया था। दोनो एक-दूसरे की चढ़ी सांसों को अपने-अपने चेहरे पर साफ महसूस कर सकते थे, दोनो की छातियां ओर जांघें भी आपस मे सट गई थीं और ठीक उसी पल अपने बेटे के थरथराते तम्बू का स्पर्श अपनी नाभि पाकर वैशाली के मन मे एक ऐसा पापी ख्याल पनप जाता है जिसके पूरे हो जाने के पश्चात माँ-बेटे का आगामी भविष्य निश्चित ही बदल जाना था।

"अॉन योर नीज़ मन्यु, अभी" अपने जबड़े भींचकर ऐसा कहते हुए वैशाली अपने दोनो हाथ एकसाथ बेटे के कंधों पर रख उसे नीचे फर्श पर अपने घुटनों के बल बैठने के लिए, अपने हाथों की क्रिया के साथ मौखिक दबाव भी देने लगती है। अभिमन्यु ठगा, मंत्रमुग्ध सा अपनी माँ के हाथों के हल्के दबाव से भी हौले-हौले नीचे बैठने लगता है, उसका चेहरा नीचे बैठने के दौरान उसकी माँ के शरीर से बिलकुल सट गया था और जिसके नतीजन जबतब उसके होंठ भी वैशाली की साड़ी व निर्वस्त्र बदन से रगड़ खाते जा रहे थे।








सर्वप्रथम उसके होंठों ने उसकी माँ के गोल-मटोल मम्मों के ऊपरी फूले फुलाव को छुआ और वहाँ से फिसलते हुए उसके होंठ माँ के ब्लाउज पर पहुँचे, फिर पुनः होठों को उसकी माँ की नंगी त्वचा को छू लेने का अवसर प्राप्त हुआ। वैशाली के चिकने गुदाज पेट ने तो जवान अभिमन्यु को जैसे पूरी तरह से अपने वश मे कर लिया था, वह एकाएक इतना अधिक भ्रमित हो गया कि उसे यह भी ख्याल नही रहा कि उसने अपनी माँ के नंगे पेट को चूमना भी शुरू कर दिया है। माँ की गोल गहरी नाभि को बारम्बार पटापट चूमने के उपरान्त उसके होंठों का स्पर्श दोबारा वैशाली की साड़ी से हुआ और फिर वहीं ठहरकर रह गया, यह उसकी माँ का वह वर्जित स्थान था जिसे या तो बचपन मे उसके नाना-नानी ने देखा था या शादी होने के बाद उसके पिता ने। अभिमन्यु अब पूरी तरह से फर्श पर बैठ चुका था और ज्यों ही वह अपने चेहरे को साड़ी के ऊपर से अपनी माँ की टांगों की जड़ पर दबाता है, वैशाली अपना निचला होंठ जोर से अपने दांतों के बीच फंसाकर अपनी सिसकी रोकने के असफल प्रयास से झूझने लगती है। उसकी टांगें तत्काल कुछ इस तरह से कपकपाने लगी थी मानो वह किसी चालू जनरेटर के ऊपर खड़ी हो, वह कैसे भी कर अपने बेटे के मुंह को अपनी चूत के ऊपर से हटाना चाहती थी वर्ना कुछ ही क्षणों मे उसका पतन हो जाना निश्चित था।

"बेटा, उन्ह! क ...कच्छी, माँ साड़ी के नीचे ...ओह! नीचे नंगी है" वैशाली बेटे के कंधों को बलपूर्वक झकझोरते हुए सिसयाई और अभिमन्यु भी झटके से वर्तमान मे लौट आता है। खुद को स्थिर करने हेतु उसे थोड़ा समय मिलना चाहिए था जो उसे उसकी माँ के निंदनीय कथन को सुनकर नही मिल पाया था। उसने बिस्तर पर उसके सबसे नजदीक पड़ी कच्छी पर झपट्टा मारा और बिना अपना सिर उठाए कच्छी को जकड़ने वाला अपना दायां हाथ ऊपर कर देता है।




सर्वप्रथम उसके होंठों ने उसकी माँ के गोल-मटोल मम्मों के ऊपरी फूले फुलाव को छुआ और वहाँ से फिसलते हुए उसके होंठ माँ के ब्लाउज पर पहुँचे, फिर पुनः होठों को उसकी माँ की नंगी त्वचा को छू लेने का अवसर प्राप्त हुआ। वैशाली के चिकने गुदाज पेट ने तो जवान अभिमन्यु को जैसे पूरी तरह से अपने वश मे कर लिया था, वह एकाएक इतना अधिक भ्रमित हो गया कि उसे यह भी ख्याल नही रहा कि उसने अपनी माँ के नंगे पेट को चूमना भी शुरू कर दिया है। माँ की गोल गहरी नाभि को बारम्बार पटापट चूमने के उपरान्त उसके होंठों का स्पर्श दोबारा वैशाली की साड़ी से हुआ और फिर वहीं ठहरकर रह गया, यह उसकी माँ का वह वर्जित स्थान था जिसे या तो बचपन मे उसके नाना-नानी ने देखा था या शादी होने के बाद उसके पिता ने। अभिमन्यु अब पूरी तरह से फर्श पर बैठ चुका था और ज्यों ही वह अपने चेहरे को साड़ी के ऊपर से अपनी माँ की टांगों की जड़ पर दबाता है, वैशाली अपना निचला होंठ जोर से अपने दांतों के बीच फंसाकर अपनी सिसकी रोकने के असफल प्रयास से झूझने लगती है। उसकी टांगें तत्काल कुछ इस तरह से कपकपाने लगी थी मानो वह किसी चालू जनरेटर के ऊपर खड़ी हो, वह कैसे भी कर अपने बेटे के मुंह को अपनी चूत के ऊपर से हटाना चाहती थी वर्ना कुछ ही क्षणों मे उसका पतन हो जाना निश्चित था।





मन्यु डू इट नाउ! पहना दो अपनी माँ को कच्छी, जल्दी करो ...माँ नीचे से नंगी है उसे बहुत शर्म आ रही है बेटा" वैशाली के इस घोर अश्लील कथन ने अभिमन्यु को अपनी बंद आँखें खोलने पर विवश कर दिया और अपनी खुली आँखों से जो कामुक दृश्य उसने प्रत्यक्ष देखा मानो वह अपने होश बैठता है। बड़ी-बड़ी झांटों के बीचों-बीच छुपी उसकी माँ की सांवली रंगत की अत्यंत सुंदर चूत गाढ़े लिसलिसे कामरस से सराबोर थी, चूंकि उसकी माँ के पैरों के बीच कोई खुलापन नही था तो चूत के दोनो सूजे होंठ आपस मे बुरी तरह चिपके हुए थे। जीवंत फड़कते होंठों के ऊपर शुशोभित उसकी माँ का मोटा भांगुर भी उसे स्वयं फड़फाता हुआ सा प्रतीत हो रहा था, पूरा स्थान ही भीषण अगिन--सी तपन का अहसास करवा रहा था। अभिमन्यु को अब अपने किसी भी पल झड़ जाने का कोई दुख नही रहा था, उसका लंड तो जैसे उसे महसूस भी नही हो पा रहा था इतना प्रचंड तनाव उसमे आ चुका था कि अपने-आप वह शून्य मे परिवर्तित हो चला था।

"माँ तुम बहुत ...बहुत सुंदर हो और बेहद गीली भी" अभिमन्यु ने अपना सिर ऊपर उठाया और मुस्कुराकर अपनी माँ की सुर्ख लाल आँखों मे झांकते हुए कहा, जो बरबस नशे सी खुलती व बंद होती जा रही थीं।

"बद्तमीज लड़के, तुम्हारी माँ नीचे से नंगी है और तुम्हें मजाक सूझ रहा है। अगर मनभर कर वहाँ देख लिया हो तो अब माँ को उसकी कच्छी पहना दो, माँ को सचमुच शर्म आ रही है" अपने बेटे के संतुष्ट चेहरे को देख वैशाली भी मुस्कुराते हुए बोली, एक ऐसी संतुष्टता जो अब संसार की महज उस अकेली पापिन माँ को ही महसूस हो सकती थी।

"बेटा, उन्ह! क ...कच्छी, माँ साड़ी के नीचे ...ओह! नीचे नंगी है" वैशाली बेटे के कंधों को बलपूर्वक झकझोरते हुए सिसयाई और अभिमन्यु भी झटके से वर्तमान मे लौट आता है। खुद को स्थिर करने हेतु उसे थोड़ा समय मिलना चाहिए था जो उसे उसकी माँ के निंदनीय कथन को सुनकर नही मिल पाया था। उसने बिस्तर पर उसके सबसे नजदीक पड़ी कच्छी पर झपट्टा मारा और बिना अपना सिर उठाए कच्छी को जकड़ने वाला अपना दायां हाथ ऊपर कर देता है।





साड़ी को साड़ी मे उलझा दो मम्मी और फिर रखो मेरे कंधों पर अपने दोनो हाथ, शायद मेरा बीता हुआ बचपन तुम्हें दुबारा याद आ जाए" कहकर अभिमन्यु साडी़ को साडी़ के भीतर गोल-गोल लपेटने मे अपनी माँ की मदद करने लगता है, ताकि हाथ से छोड़ देने पर साड़ी नीचे न गिर सके।

"वेट अ मिनट माँ, एकबार और तुम्हारे वहाँ देख लूं फिर पहनाता हूँ तुमको कच्छी" वह पुनः अपनी आँखे अपनी माँ की चूत पर गड़ाते हुए बोला, वैशाली को उसका अनैतिक कथन सुनकर एकाएक चक्कर से आने लगे थे।

"वाउ! मॉम मे इस वर्ल्ड मे तुम्हारे यहाँ से बाहर निकलकर आया हूँ, बिलीव मी! मुझे हम दोनो पर प्राउड फील हो रहा है। तुम बहुत! बहुत! बहुत! बहुत ज्यादा सुंदर हो माँ, मेरी सोच से भी ज्यादा सुंदर" चहकते हुए उसने पिछले कथन मे जोड़ा। नासमझी या खुशी से बेहाल वह बुद्धु यह भी स्वीकार कर गया कि वह अपनी माँ की चूत के विषय मे सोचा करता है और कमाल यह कि उस पागल को भान ही नही कि गलतीवश वह अपनी माँ से क्या अनर्थ कुबूल बैठा था। जिसे सुनकर वैशाली मन ही मन मुस्कुराने लगती है, अपने सगे बेटे मुख से अपनी चूत की प्रशंसा का हर शब्द लगातार उसके कानों मैं रस घोले जा रहा था।

"बस मन्यु अब डन, मैं अब और देर नंगी खड़ी रह सकती" कहते हुए वैशाली ने आगे को झुककर अपने दोनो हाथ बारी-बारी से अपने बेटे के कंधे पर रख दिए और अभिमन्यु भी अपनी माँ की इच्छा को सहर्ष मान लेता है।



अपना सीधा पैर उठाओ मम्मी" उसने वैशाली को आज्ञा दी, बिलकुल वैसे ही अंदाज मे जैसे हर माँ अपने बच्चों को कपड़े पहनाते वक्त देती है। अपने बेटे की आज्ञा को मानते हुए उसकी माँ से अपना दाहिना पैर फर्श से ऊपर लिया, फौरन जिसे पकड़कर अभिमन्यु कच्छी के दायं निचले छेद के भीतर कर देता है।

"अब उलटा पैर उठाऊं बेटा" बेटे के बोलने से पहले वैशाली ने स्वयं बोल दिया और एकसाथ दोनो माँ-बेटे जोरों से हँसना शुरू कर देते हैं। बायां पैर भी अब कच्छी के अंदर आ चुका था और फिर एक अंतिम नजर अपनी माँ की चिपचिपी स्पंदनशील चूत पर मायूसी से डा़ल अभिमन्यु कच्छी को तबतक ऊपर चढ़ाता गया जबतक उसकी माँ की नंगी चूत उसकी खुली आँखों से ओझल नही हो गई। मायूसी इस बात की कि शायद यह पहली और आखिरी बार था जो उसने अपनी असल जन्मस्थली के प्रत्यक्ष दिव्य दर्शन किए थे क्योंकि अपनी माँ से ना तो किसी तरह की कोई जबरदस्ती उसने भूत मे और ना ही वह आगामी भविष्य मे कभी करता, अब भविष्य तो बस उसकी माँ के अपने निजी निर्णय पर टिका रह गया था।

इसके उपरान्त वैशाली बिना कुछ कहे सीधे बेडरूम के बाथरूम मे चली जाती है, अभिमन्यु हॉल मे चला आया था और कुछ समय पश्चात उसकी माँ भी वहाँ आ गई और अंततः दोनो माँ-बेटे अपनी-अपनी सोच मे गुम घर की चौखट को पार जाते हैं।
 
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Rabia

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घर की चौखट पार कर दोनो माँ-बेटे मल्टी की सीढ़ियां उतर रहे थे, एक-दूसरे के बिलकुल समानांतर और जल्दी ही वे निचले तल पर पहुँच गए। अभिमन्यु को सहसा अहसास हुआ जैसे उसकी माँ थोड़ा लंगड़ा कर चल रही थी, अपने हर बढ़ते कदम पर कभी वह अपनी टांगों को चिपकाकर छोटे-छोटे कदमों से चलने लगती तो कभी एकदम से टांगों को चौड़ाकर लंबे-लंबे पग धरना शुरू कर देती। पार्किंग तक वह बड़े गौर से अपनी माँ की चाल मे आए अंतर का अवलोकन करता रहा मगर जब उसे लगा कि सचमुच उसकी माँ को चलने मे तकलीफ हो रही है, वह तत्काल कारण बताओ नोटिस जारी कर देता है।

"क्या हुआ मॉम, चलने मे दिक्कत हो रही है?" उसने वैशाली के सैंडि़ल की हील को देखते हुए पूछा, भले हील की ऊंचाई मीडियम थी पर हाल-फिलहाल तो उसकी लंगड़ाहट की वजह उसे यही समझ आती है।

"इतना गौर तो मैं भी तुमपर नही कर पाती जितना आजकल तुम अपनी माँ पर करने लगे हो। डिटेक्टिव मत बनो, चुपचाप बाइक चलाओ। समझे!" वैशाली मुस्कुराते हुए कहती है।

"इतना शक तो तुम अपने पति पर भी नही करती जितना आजकल अपने बेटे पर करने लगी हो। पुलिसवाली मत बनो चुपचाप बाइक पर बैठो। समझीं!" अभिमन्यु ने भी फौरन नहले पर देहला दे मारा और मल्टी के बाहर हमेशा सभ्यता से रहने वाले माँ-बेटे खुलेआम जोरों से हँसना शुरू कर देते हैं।

दोनो माँ-बेटे बाइक पर सवार हो चुके थे और जल्द ही बाइक हवा से बातें करने लगी।



मन्यु कन्ट्रोल योरसेल्फ! मैं माँ हूँ तुम्हारी, कोई गर्लफ्रेंड नही जो मुझे इम्प्रेस करने के लिए बाइक इतनी तेज चलाओगे" बाइक की तेज गति से घबराकर वैशाली ने बेटे को टोकते हुए कहा।

"मुझे कसकर पकड़ लो मॉम, मेरी तमन्ना थी कि कभी किसी लड़की को अपने पीछे बिठाकर वाकई उसे इम्प्रेस कर सकूं। डोन्ट वरी, खुद से ज्यादा मुझे तुम्हारी फिक्र है" कहकर अभिमन्यु एकाएक एक्सलरेटर बढ़ा देता है ताकि उससे दूरी बनाकर बैठी उसकी माँ खुद ब खुद उससे चिपककर बैठ जाए और हुआ भी ठीक यही, वैशाली ने फौरन अपना बायां हाथ आगे लाकर बेटे के पेट पर रख दिया और दाएं को उसकी गरदन से नीचे लाते हुए वह बलपूर्वक उसकी बाईं पसली पकड़ लेती है। जब-जब अभिमन्यु उसे एक लड़की की संज्ञा देता था जाने क्यों हरबार उसका दिल खुशी से नाच उठता था, माना अपने पति मणिक के स्कूटर के पीछे वह अनगिनत बार बैठी थी मगर जिस बुरी तरह अभी उसने अपने बेटे को जकड़ा हुआ था, अपनी उस जकड़ पर वह खुद को बेहद रोमांचित होना महसूस कर रही थी।

'कारण' या तो विधि के विधान से बनते हैं या अपनी स्वयं की करनी से। मणिक का इस अधेड़ उम्र मे अचानक से पैसे कमाने मे जुट जाना विधि का विधान था क्योंकि अपने और अपने परिवार के सुखमय भविष्य के लिए उसे घर के मुखिया होने का अपना फर्ज हर हाल मे पूरा करना था यकीनन जिस कर्तव्य के लिए ही उसका जन्म हुआ था। एक पति और पिता की भूमिका मौखिक निभाने के अलावा उसे अपने आश्रितों का हर संभव पालन-पोषण भी करना था। वैशाली जो कि अचानक अपने पति से बिछड़ गई थी, भले ही इस बिछड़न को पति-पत्नी द्वारा जानबूझकर नही रचा गया था मगर मणिक के साथ ताउम्र जीवन का निर्वाह करते हुए उसे हर विवाहित नारी की तरह अपने पति के साथ की एक चिरपरिचित आदत हो चुकी थी। पति का साथ सिर्फ उसके साथ हँस-बोल लेने या ऊपरी प्यार दर्शा लेने आदि भर से पूरा नही होता, एक पत्नी को बिस्तर पर अपने पति
रूपी मर्द के नीचे चरमरा उठने की चाह भी हमेशा रहती है और जिस चाह से वैशाली एकदम से वंचित रहने लगी थी। अब यदि ऐसे मे उसकी चाह बिस्तर पर किसी पराए मर्द का साथ चाहने लगे और वह पराया मर्द भी कोई अन्य नही उसका अपना सगा जवान बेटा अभिमन्यु तो इसे विधि का विधान कदापि नही कहा जाएगा, यह पति से तिरस्कृत अपने यौवन के हाथों मजबूर उस नारी की अपनी स्वयं की करनी थी।

"अगर मैं गिरी तो याद रखना बहुत मारूंगी तुम्हें" बाइक की गति तेज होने की वजह से वैशाली बेटे के दाएं कान मे चिल्लाते हुए बोली, सट तो वह उससे पहले से ही चुकी थी और अब उसका बायां चिकना गाल सीधे अभिमन्यु के दाएं कान से रगड़ खाने लगा था।

"मैं कुछ कहना चाहता हूँ मॉम पर चौंकना मत वर्ना जरूर बाइक गिर जाएगी" वह भी जोर से चिल्लाया।

"क्या कहना चाहते हो?" उत्सुकता वश वैशाली ने तुरन्त पूछा और वैसे भी जब बेटे ने उसे पहले ही चौंक ना पड़ने की चेतावनी दे दी थी तब वह अवश्य कोई ऐसी शैतानी भरी बात कहने वाला था जो यकीनन उसकी माँ को हैरत से भर देती।

"मेरी दूसरी तमन्ना भी पूरी हो गई मम्मी, मुझसे सटकर बैठने वाली लड़की के बूब्स मेरी पीठ पर गड़ रहे हैं। काश कि अभी उसने ब्रा नही पहनी होती मगर फिर भी मैं बता नही सकता मुझे कितना मजा आ रहा है ...हु! हूऽऽ!" अभिमन्यु बेशर्मों की भांति हँसते हुए बोला और अकस्मात् बाइक को और भी तेजी से भगाने लगता है।



हुंह! तुम्हारी बेशर्मी का बस चले तो अपनी माँ को नंगी ही बाइक पर बिठा लो" वैशाली ने चिढ़ने का दिखावा करते हुए कहा, साथ ही वह महसूस करती है कि अश्लीलता से प्रचूर उनके कथनों के प्रभाव से उसके निप्पल अचानक तीव्रता से तनने लगे थे और जिन पर उसके बेटे की मजबूत पीठ का दबाव उसे बड़ा सुखमय सा प्रतीत हो रहा था।

"अच्छा है मम्मी कि तुमने कपड़े पहन रखे हैं वर्ना राह चलते मर्दों को कहीं की भड़स कहीं पर निकालनी पड़ती। खीं! खीं! खीं! खीं!" वह खिखियाते हुए बोला।

"वैसे एक बताओ, क्या कभी पापा के स्कूटर पर तुम्हें इतने मजे आए हैं?" उसने पूछा तो वैशाली एकाएक गहरी सोच मे डूब गई।

घर हो या बाहर, मणिक का अनुशासन हमेशा से कड़क रहा था। वह ना तो खुद कभी फूहड़पने की बात या हरकतें करता और ना किसी अन्य का फूहड़पन कभी उसे बरदाश्त होता, अपनी मर्यादा और गरिमा दोनो को सदा एक-सा बनाए रखने वाले मणिक को उसके सभी मित्रगण और रिश्तेदार सदैव बड़ी गम्भीरता से लिया लिया करते थे। जबतब अपने बीवी-बच्चों से उसका हँसी मजाक होता भी तब भी उसके अलावा अन्य तीनों मे से किसी को हँसी नही आया करती थी, वह तो इज्जत की मजबूरी होती तो जबरन हँस दिया करते थे। पत्नी संग एकांतवास मे भी उसकी गंभीरता यूं ही बरकरार रहती मगर इसका यह अर्थ कदापि नही कि उसकी मर्दानगी मे कभी कोई कमी रही हो, बल्कि अपने बच्चों के जवान हो जाने के बावजूद वह रोजाना नियम से अपनी पत्नी की जमकर चुदाई किया करता था। 'पेट भर कौरा और कलाई भर लौड़ा' इस अत्यंत मजेदार पू्र्ण स्वदेशी कहावत का सही अर्थ वैशाली जैसी समझदार और घरेलू स्त्रियां ही जान सकती हैं, जिन्हें अपने पति द्वारा उनके विवाहित जीवन मे पेट भर खाना और संतुष्ट संभोग इन दोनो मूलभूत आवश्यकताओं की कभी कोई कमी नही रहती।



मुझे तो कोई मजा नही आ रहा, तुम्हें जरूर कोई गलतफहमी हुई है" अपनी सोच से बाहर निकल वैशाली थोड़ा क्रोधित स्वर मे बोली, एकाएक पति के स्मरण ने उसे खुद पर ही क्रोध दिला दिया था। एक उसका पति था जो अपने परिवार के साथ का त्याग कर उन सब के खुशहाल भविष्य को संजोने मे जी जान से जुटा हुआ था और एक वह थी जो अपने ही सगे बेटे संग व्यभिचार करने को उतावली हुई जा रही थी।

"झूठ! जानवर हो या इंसान, आजादी सभी को चाहिए। मैं जानता हूँ कि पापा के नाम से हम भाई-बहन के अलावा तुम्हारी भी उतनी ही फटती है मॉम, तुम्हें भी उनका अकड़ू नेचर पसंद नही लेकिन फिर भी तुम हमेशा से उसे पसंद करती आ रही हो, उसे झेलती आ रही हो क्योंकि वह तुम्हारे पति हैं" कहकर अभिमन्यु बाइक की रफ्तार को हौले-हौले कम करने लगता है। उसका कहा हर शब्द सीधे उसके दिल से निकला था, उसके उसी दिल से जिसके एक छोटे--से कोने मे नही बल्कि अब उसकी माँ उसके पूरे दिल मे ही रच-बस गई थी।

"तुम्हें अपनी जुबान पर लगाम लगाने की जरूरत है मन्यु वर्ना हम यहीं से घर लौट सकते है" यह आवाज वैशाली के दो-तरफा बंटे हुए मन से बाहर आई थी। अपने बेटे के कथन से वह पूर्णतः सहमत थी, उसे वाकई मणिक का भय जीवनपर्यंत सताता रहा था मगर अपने बहुमूल्य राज़ के अकस्मात् उजागर हो जाने से वह सहसा दुखी हो गई थी। अभिमन्यु पर उसकी कोई भी नाराजगी नही होने का प्रमाण यह था कि वह अबतक उससे उसी तरह से सटकर बैठी हुई थी जब माँ-बेटे के बीच अश्लील
वार्तालाप और उससे पनपा हँसी-मजाक शुरू हुआ था, यहां तक कि अपने दोनो हाथ भी उसने जरा भी पीछे नही खींचे थे।

"अजीब लड़की हो तुम, अपनी पहली डेट पर साथ आए लड़के को यूं बेवजह धमकाते हुए तुम्हें शर्म नही आती। पता भी है मेरा कितना खर्चा हो गया? सत्ताइस सौ के अंडरगारमेंट्स, चालीस का गुलाब, आने-जाने का डेढ़ लीटर पेट्रोल और दोबारा घर से निकलने के बाद भी लगभग आधा लीटर पेट्रोल जल चुका है। हाँ यार! लड़कियां नही हुईं आफत हो गईं" बाइक को दाएं मोड़ते हुए ऐसा कहकर वह फौरन अपनी माँ के अत्यंत कोमल होठों को चूम लेता है। उसने बिलकुल सही समय का चुनाव किया था, बाइक मोड़ते वक्त उसका चेहरा भी स्वभाविक रूप से दाहिनी और घूमा था और इससे पहले की उससे सटकर बैठी उसकी मायूस माँ को पहले से ही उसकी इस शरारत का पता चल पाता अभिमन्यु उसके रसभरे होठों का प्रथम चुम्बन लेने मे सफल हो गया था।

"ये ये क्या? उफ्फ! मैं क्या करूं इस बेशर्म लड़के का, बातें भी गंदी करता है और हरकतें तो बातों से भी कहीं ज्यादा गंदी हैं" वैशाली लज्जा से दोहरी होते हुए बोली, खुलेआम चलती सड़क पर बेटे का उसके होंठों को चूम लेना मानो पलभर मे उसकी सारी मायूसी तत्काल हवा हो जाती है। हालांकि उनका चुम्बन क्षणिक था, अहसास भी ना हो सकने जैसा मगर फिर भी दोनो माँ-बेटे खुशी से फूले नही समा रहै थे।

"नौटंकी मत करो लड़की, तुम्हें भी अच्छे से पता है कि पहली डेट पर कपल और क्या-क्या गंदे काम करते हैं" मुस्कान के साथ कड़क आवाज बनाकर ऐसा कहते हुए वह पुनः अपना चेहरा दाहिनी ओर घुमाने लगता है ताकि दोबारा अपनी माँ को चौंकने पर मजबूर कर सके। भले उसे अब और चुम्बन
नही लेने थे क्योंकि जो आंतरिक आनंद उसे अपने पहले चुम्बन मे महसूस हुआ था उतना शायद वह उनके आगामी अनगिनती चुम्बनों मे भी महसूस नही कर सकता था, एक विशेष बात और थी कि जब उसने वैशाली के होठों को चूमा था तब उसका ध्यान अपने बेटे की हरकत की ओर जरा भी नही था और वह अकस्मात् किसी दूसरी दुनिया मे पहुँच गई थी, लज्जा और बेतुकी घबराहट से उसका मुंह खुला का खुला रह गया था, वह बुरी तरह कांप उठी थी। यही उनके पहले चुम्बन की विशेषता थी जिसे सरल शब्दों मे अबोध, आश्चर्य से भरा हुआ एक निष्कपट, निष्छल कृत्य कहा जाए तो उसका सही भाव समझने मे आसानी होगी।

"लो! लो! करो ...किस करो, अब रुक क्यों गए मन्यु?" जब वैशाली को समझ आ गया कि उसके बेटे ने दूसरी बार सिर्फ उसे हैरान-परेशान करने के लिए ही अपना चेहरा दाहिनी ओर घुमाया है, वह स्वयं अपना चेहरा उसके दाएं कंधे के पार निकालते हुए बोली, पहले-पहल तो वह वास्तव मे पुनः चौंक गई थी और तीव्रता से अपना चेहरा पीछे खींच लिया था मगर सत्य जानने के उपरान्त वह खुद ही अपने होठों को सिकोड़कर उसे चिढ़ाने लगती है। सत्य तो यह भी था कि वह चाहती थी कि उसका बेटा उसके उकसावे पर दोबारा उसके होठों को चूमे मगर अभिमन्यु ने ऐसा कुछ भी ना कर उसे लगातार तीसरी बार चौंका दिया था।

"तुम्हें तो कोई शर्म है नही मम्मी मगर मुझे है, जमाना क्या सोचेगा? छि!" कहकर वह हँसने लगा और वैशाली फौरन उसकी पीठ पर मुक्के जड़ने लगती है।




वैसे जब घर पहुँच जाएंगे तब मैं पक्का बेशर्म बन जाऊँगा माँ, तब देखूँगा तुममे कितना दम है मुझे रोकने का" अभिमन्यु पहले से भी कहीं तेज हँसते हुए बोला और उसके कथन के अर्थ को सोचते ही वैशाली के खुले मुंह से एकाएक लंबी सीत्कार बाहर निकल जाती है।

"तुम्हें रोक तो मैं चाहकर भी नही सकूंगी मन्यु, क्या पता मैं ही खुद को ना रोक पाऊं" वह अपनी चूत के अंदरूनी स्पंदन को स्पष्ट महसूस करते हुए सोचती है, उसकी गांड का छेद भी स्वतः ही कुलबुलाने लगा था।

अगले कुछ क्षणों तक दोनो चुप रहे और तबतक मॉल भी नजदीक आ गया मगर हर-बार की तरह इस बार वैशाली के उतरने के लिए अभिमन्यु ने बाइक को मॉल के बाहर जरा भी नही रोका बल्कि अपने साथ वह उसे भी सीधे मॉल की भूमिगत पार्किंग के भीतर ले जाता है।

"तुम जानते हो ना कि तुम्हारे पापा मुझे और अनुभा को कभी पार्किंग के अंदर नही ले गए, फिर तुम मुझे क्यों वहाँ साथ ले जा रहे हो मन्यु?" वैशाली ने तत्काल पूछा, पार्किंग नीचे चार मालों तक थी और अभी वे दूसरे तल पर पहुँचे थे। उसका दिल धुकनी की तरह जोर-जोर से धड़कने लगता है जब उसका बेटा उसके प्रश्न का जवाब देने की बजाय बाइक को तीसरे तल पर ले जाने के लिए मोड़ने लगता है।

"मन्यु उतारो मुझे ...यहीं उतार दो, मुझे नही जाना और नीचे" किसी अनिष्ठ की कल्पना से घिरी वह माँ एकाएक इतनी अधिक घबरा जाती है कि चंद लम्हों मे उसकी कजरारी आँखों मे आँसू उमड़ने लगते हैं, सिसकियां लेनी शुरू कर चुकी वह माँ यह तक भूल जाती है कि अभी वह संसार के सबसे सुरक्षित हाथ अपने सगे बेटे के साथ है।





उतरो माँ, यहां से लिफ्ट मे साथ चलेंगे। मैंने बाइक ऊपर इसलिए नही रोकी क्योंकि मुझे तुम्हारा नेचर पता है, कोई गार्ड-वार्ड भी तुमसे अगर पुछताछ करने लगता तो तुम बेवजह घबरा जातीं" जब बाइक रोक देने के बावजूद वैशाली उसपर से नीचे नही उतरी तब अभिमन्यु ने उसे शांत स्वर मे वजह समझाते हुए कहा, बेटे की बात सुन हथप्रभ वह फौरन बाइक से उतर जाती है।

"मन्युऽऽ" वह बाइक साइड स्टेंड पर खड़ी कर पाता इससे पहले ही रोती हुई वैशाली उसकी पीठ से चिपक गई।

"माँ, तुम अचानक रोने क्यों लगीं?" अभिमन्यु ने बाइक को विपरीत दिशा मे गिरने से बचाते हुए पूछा और फिर ठीक तरह से उसे पुनः स्टेंड पर लगाकर वह अपनी माँ की ओर घूम जाता है।

"मुझे लगा ... मुझे लगा" वैशाली ने उसे अपनी मूर्खता की सत्यता से परचित करवाने लिए अपना मुंह खोला भी मगर ज्यादा कुछ वह नही कह पाती, बस उसकी बलिष्ठ छाती मे अपना चेहरा छुपाकर सिसकती रहती है।

"ओह! तो तुम्हें लगा कि मैं पार्किंग मे तुम्हारे साथ कोई जबरदस्ती करूँगा, जबरदस्ती वह भी अपनी माँ के साथ। तुम्हारे साथ हँसी-मजाक करने लगा हूँ, तुम्हें अपना दोस्त बना लिया, अम्म! कितनी बार ... हाँ याद आया, दो बार तुम्हें बिच कहकर भी बुलाया पर सैक्स तुम्हारे साथ नही करना चाहता, मैं पहले ही बता चुका हूँ। बाकी यह भी अभी से जान लो कि सैक्स के अलावा तुम्हारे साथ मैं अपनी हर वह फैंटसी पूरी करूंगा जो मेरे दिल मे है, अब जरूर तुम इसे मेरी जबरदस्ती मान सकती हो मगर फिर भी मुझे रोक नही पाओगी मॉम" अभिमन्यु ने मुस्कुराते हुए कहा, वह नही चाहता था कि अपनी माँ की बेवकूफी पर क्रोधित होकर वह उसे और भी ज्यादा रुला दे, उसे बेवजह शर्मिंदा होने पर मजबूर कर दे।




कैसी फैंटसी?" हुआ वही जैसा उसने सोचा था, उसके कथन को सुन सिसकते हुए ही वैशाली ने तत्काल अपना चेहरा उसकी छाती से ऊपर उठाते हुए पूछा।

"पहले अपने यह आँसू पोंछो बिच, फिर बताऊंगा" हँसते हुए ऐसा कहकर वह स्वयं अपनी कमीज की दाईं बांह से अपनी माँ के आँसुओं को पोंछने लगता है, उसने खास यह भी ध्यान दिया कि उसकी माँ का बचा हुआ काजल किसी भी तरह उसकी कहर ढ़ाने वाली आँखों की खूबसूरती पर यूं ही सजा रहे ताकि उनकी अकल्पनीय सुंदरता को खुद अभिमन्यु की नजर भी ना लग सके।

"शहर भर की लड़कियां मरी जा रही हैं मेरे साथ डेट पर जाने को और एक मैं हूँ जो ना जाने किस रोतलू के चक्कर मे पड़ गया। चलें रोतलू या अभी और रोना है?" ऐसा पूछकर वह अपनी माँ के कंधे पर से सरक चुके उसके पल्लू को पुनः उसके कंघे पर व्यवस्थित कर देता है।

वैशाली बेटे के मजाकिया और प्रेम भरे कथनों से फौरन सिसकना छोड़ गर्व के उस सबसे ऊँचे शिखर पर पहुँच जाती है जहां संसार की हर माँ उसे अभिमन्यु समान बेटे के लिए ही तप करती हुई नजर आती है मगर उन अनगिनती माँओं मे से तप सिर्फ उसी का पूरा हुआ जिसके फलस्वरूप उसका लाड़ला प्रत्यक्ष उसकी आँखों के समक्ष खड़ा मुस्कुरा रहा था।

"मन्यु मुझे माफ ...." वैशाली ने कहना शुरू किया था पर उसका बेटा उसे बीच मे ही टोक देता है।

"अपनी माँ से माफी मंगवाने का अधिकार मैंने किसी को नही दिया, खुद मुझे भी नही लेकिन मुझे मेरे सवालों के मुझे सही-सही जवाब चाहिए। बोलो क्या कहती हो, डन?" अपने कथन से उसने एकबार फिर से वैशाली का दिल जीत लिया, वह तत्काल अपना सिर हाँ के सूचक मे ऊपर-नीचे कर देती है।




लंगड़ाकर क्यों चल रही थीं?" उसने अपना पहला प्रश्न पूछा और जैसे सहसा उसकी माँ को सांप सूंघ जाता है, तभी पार्किंग के किसी कर्मचारी की उन्हें आवाज सुनाई पड़ती है जो चौथे माले पर बाइकों को एक--सा लगवाने का प्रयास कर रहा था।

"समय नही है जल्दी बोलो, चलने मे तुम्हें क्यों तकलीफ हो रही थी?" उसने दोबारा वही प्रश्न किया, अपनी माँ के चेहरे पर छाई सुर्खता से उसे लग रहा था कि उसकी लंगड़ाहट का कोई तो विशेष कारण अवश्य था।

"वो मन्यु वो ... जो पेंटी तुमने पहनाई थी, उसे पहनने के बाद ..." इतना कहकर वैशाली तीव्रता से अपने बाएं हाथ का पंजा अपने बोलते हुए मुंह पर रख लेती है, इसी प्रयास मे कि यदि वह अपनी बोलती जुबान को काबू मे नही कर पाई तो उसे रोकने के लिए कम से कम अपने बाएं पंजे का सहयोग वह ले सके।

"पेंटी नही कच्छी मॉम, मैंने तुम्हें कच्छी पहनाई थी। खैर चलो आगे बोलो" अभिमन्यु को जैसे जरा--सा भी सब्र नही हो रहा था, एक दुष्ट सी मुस्कान बिखेरते हुए वह बेहद अश्लीलता पूर्वक बोलता है। वहीं बेटे का कथन और उसमे शामिल घोर नंगपर से वैशाली भी समझ जाती है कि अब अभिमन्यु उससे किसी भी प्रकार की शर्म नही करेगा, फिर चाहे वह अपनी माँ से वार्तालाप करे या उसके साथ कोई कुकृत्य।

"हाँ वही! जो कच्छी तुमने अपनी माँ को खुद अपने हाथों से पहनाई थी, उसने तुम्हारी माँ को तुम्हारी तरह ही बहुत परेशान कर रखा है" वह बेटे से भी अधिक नंगपन दिखाते हुए बेझिझक कहती है, उसने साफ देखा अभिमन्यु उसके अश्लील शब्दों पर खुशी से मानो झूम सा उठा था।





उस नाचीज कच्छी की इतनी हिम्मत की मेरी माँ को परेशान करे, आई डोन्ट लाइक दिस टाइप अॉफ हिमाकत, जुर्ररत एण्ड अॉल। यू कन्टिन्यू मॉम, आई एम लिसनिंग" वह खिलखिलाकर ताली ठोकते हुए कहता है।

"अब और क्या कहूँ? बस परेशान कर रखा है" वह खुद भी हँसते हुए बोलती है।

"मगर क्यों कर रखा है परेशान, आखिर मै भी तो जानूं कि वहज क्या है?" अपने जिद्दी स्वभाव की तरह अभिमन्यु एकबार पुनः अपनी माँ के पीछे पड़ जाता है और फिर वैशाली तो माँ थी, उसका स्वभाव क्या, उसकी रग-रग से वाकिफ।

"अब अगर तुम सुनना ही चाहते हो तो सुनो। जो कच्छियां तुम अपनी माँ के लिए खरीदकर लाए हो वैसा पैटर्न उसने पहले कभी नही पहना और आज जब पहना तो ठीक से चल भी नही पा रही। जानना चाहते हो क्यों?" वैशाली के प्रश्न के जवाब मे अभिमन्यु ने फौरन अपनी गर्दन ऊपर-नीचे कर दी।

"क्योंकि ... क्योंकि कच्छी बार-बार तुम्हारी माँ की गांऽऽड मे घुस जाती है, अब चलें या मेरे मुंह से दो-चार और गंदी बातें सुनने का मन है" वैशाली ने झूठा क्रोध दिखाते हुए कहा, बल्कि इसके ठीक विपरीत वह महसूस करना अब शुरू कर चुकी थी कि उसकी चूतरस से गीली होकर उसकी कच्छी उसके चूतमुख से बुरी तरह चिपक गई है।

"वाउ! मैं अपने शब्द इसी वक्त वापस लेता हूँ। कच्छी जी, यह तुम्हारी हिम्मत का ही रिजल्ट है तो तुम्हें बार-बार हैवन मे घूमने जाने का मौका मिलता है" अभिमन्यु के ऐसा कहते ही वैशाली उसके दाएं कंधे पर लगातार घूंसे चलाने लगती है।




बेशर्म, बद्तमीज, घटिया इंसान। तुमने तो जैसे सबकुछ बेच खाया, उफ्फ! मैं क्या करूं इस ढी़ठ लड़के का, मेरा ही हाथ टूट जाएगा" वह अपनी मुट्ठी पर फूंकते हुए बोली, तभी अभिमन्यु ने उसके चोटिल हाथ को पकड़ा और सीधे उसे लिफ्ट की ओर ले जाने लगता है।

"जब तुम्हें पता है कि मैं वाकई ढ़ीठ हूँ फिर क्यों बेफालतू के हाथ-पैर चलाती हो। सच मे लगी क्या?" उसने वैशाली समेत लिफ्ट के भीतर प्रवेश करते हुए पूछा, माँ-बेटे के अलावा भी चार-पाँच लोग उनके साथ ही लिफ्ट मे घुसे थे।

"हम्म!" अपरिचितों की उपस्थिति मे वैशाली सिर्फ इतना सा जवाब देकर चुप हो जाती है, अभिमन्यु उसकी चुप्पी का कारण समझ गया और बिना किसी परवाह के वह उन अपरिचितों के सामने ही अपनी माँ की चोटिल मुट्ठी को चूमने लगता है। उसने पाया कि उसकी माँ एकाएक असहज हो गई थी और अपने हाथ को बेटे के होंठों से दूर खींचने का प्रयत्न करने लगी थी मगर उसने अपनी माँ का हाथ नही छोड़ा, बल्कि उसकी आँखों मे झांकते हुए उसे यह विश्वास दिलाता रहा कि उसके होते हुए वैशाली को किसी से भी डरने की कोई जरूरत नही है, उसके जीवित रहते कोई उसकी माँ का बाल भी बांका नही कर सकता है।

"इतनी घबराती क्यों हो? अपने बेटे पर भरोसा नही है क्या?" लिफ्ट से बाहर निकलकर अभिमन्यु ने उससे मौखिक रूप से पूछा।

"औरत हूँ, डर लगता ही है" वैशाली ने जवाब मे कहा।

"अपने इसी बेतुके डर से तुमने अपनी पूरी लाइफ घुटन और परेशानी मे बिता दी, अपने बेटे के प्यार पर भी शायद तुम्हें कोई भरोसा नही" अभिमन्यु गहरी सांसें लेते हुए शांत स्वर मे बोला।

"तुम और तुम्हारे प्यार पर भरोसा नही होता तो तुम्हारी माँ होकर भी कभी तुम्हें बेशर्मों की तरह अपने शरीर का वह अंग नही दिखाती जिसे देखने का अधिकार केवल मेरे पति को है" वैशाली भी पूरी गंभीरता से बोली।




पर एक बात तो है मॉम। जब भी तुम अपने मुंह से कच्छी, गांड, लंड और चूत जैसे देशी शब्द बोलती हो, कसम से कहर ढ़ा देती हो" अपनी माँ का मायूस चेहरा देख अभिमन्यु ने उसे लजाने के उद्देश्य से कहा, सचमुच उसकी माँ का शर्म से बेहाल चेहरा उसके दिल मे किसी नुकीली कटार--सा धंसता चला जाता था।

"कच्छी और गांड तक तो ठीक है मगर इसके आगे सिर्फ तुम्हारी गंदी कल्पना का विशाल समंदर है" वैशाली मुस्कुराते हुए बोली, धीरे-धीरे उसे भी समझ आने लगा था कि अभिमन्यु पलभर को भी उसका दुखी चेहरा नही देख पाता है फिर भले ही वह अपनी अश्लील या मजाकिया बातों से ही उसे हँसाने का प्रयास क्यों ना करे पर उसे हँसाकर ही मानता था।

इसी बीच वे चलते-चलते पिज्जा हट की होस्टिंग डेस्क तक पहुंचे, कांच से अंदर देखा तो एक सिंगल टेबल भी खाली नही थी। वैशाली यह देखकर हैरान हो गई कि वहाँ उसके उम्र की कोई भी अन्य औरत किसी जवान लड़के के साथ नही आई थी, औरतें थी भीं तो उनका परिवार उनके साथ वहां मौजूद था।

"डाइन इन इज फुल, इफ देयर इज ऐनी कैन्सलेशन आई लेट यू नो। मैम! सर! विल यू प्लीज वेट देयर" कहते हुए होस्टिंग कर रही धमाल लड़की ने अपनी दाईं ओर बनी एक गोल सीमेंटेड पट्टी की ओर इशारा किया जहाँ पहले से ही वेटिंग वाले लगभग आधा दर्जन कपल बैठे हुए थे।

"सर अगर चाहें तो टेक-अवे हो जाएगा" लड़की वैशाली की नजरों को ताड़ते हुए बोली जो वेटिंग कपलों की अधिकता को देख मायूस सी हो रही थी।





ना! ना! वील वेट, थैंक्स अम्म! या थैंक्स मिस गौरी" अभिमन्यु ने लड़की के नेमबैच पर लिखे उसके नाम को पढ़ते हुए कहा और फिर अपनी माँ को उस दूसरी गोल सीमेंटेड पट्टी पर ले जाने लगता है जहाँ कोई भी मौजूद नही था। उसने पुनः गौर किया उसकी माँ लंगड़ाकर चल रही है और उसकी उस लंगड़ाहट पर वैशाली का जरा-सा भी ध्यान नही था, उसके शांत मुखमंडल पर कोई ऐसे लक्षण नही पनप रहे थे जो उसकी चाल से संबंधित उसके जबरन पाखंड को दर्शा पाते।

"तुम फिर लंगड़ाकर चल रही हो?" देर हुई नही कि उसकी शैतानी शुरू हो गई।

"अब इतनी भीड़ मे टांगें चौड़ाकर तो चल नही सकती तभी लंगड़ा रही हूँ" वैशाली सीमेंटेड पट्टी पर बैठते हुए बोली।

"ज्यादा दिक्कत हो तो टेक-अवे करवा लूं?" अभिमन्यु ने मुद्दे की गंभीरता को समझते हुए पूछा।

"अगर ऐसा कर सको तो मेरी बहुत हैल्प हो जाएगी बैटा, मुझसे अब सहा नही जा रहा और भीड़-भड़क्के मे बार-बार अपने पीछे हाथ लगा नही सकती" वैशाली उसके बाएं हाथ को सहलाते हुए कहती है, उसकी आवाज से साफ पता चल रहा था कि वह अवश्य किसी तकलीफ मे है।

"मगर बाइक पर तो कोई दिक्कत नही हुई थी" अभिमन्यु ने अपनी माँ के दाएं कंधे पर अपना सिर टिकाते हुए कहा।

"उसपर बैठी हुई थी इसलिए, चलने मे दिक्कत आती है मन्यु" वैशाली एक हाथ से उसका सिर सहलाते हुए बताती है।

"मगर बाइक तो चल रही थी ना फिर क्यों दिक्कत नही आई?" पूछकर वह हँसने लगता है और उसकी हँसी से वैशाली झेंप जाती है, फौरन उसने बेटे के सिर पर हल्की सी चपत लगा दी।

"चलो ठीक है मगर हमारी डेट" रंग बदलने मे माहिर वह उदास होते हुए बोला।

"मौका सिर्फ एकबार आकर हमेशा के लिए थोड़ी ना चला जाता है। हम घर पर अपनी डेट सेलिब्रेट करेंगे, टीवी देखते हुए" वैशाली ने उसका मन रखने के लिए आधिकारिक तौर पर उसकी डेट प्रपोजल को स्वीकारते हुए कहा।




ओके! मुझे मंजूर है मगर मेरी एक शर्त है" अभिमन्यु सहसा चहककर बोला।

"बको क्या शर्त है तुम्हारी, वैसे मुझे पता था कि तुम जात के मुताबिक पक्के बनिया हो" वैशाली मुस्कान के साथ पूछती है, अब वह अपने बेटे हर संभव समझ चुकी थी।

"घर जाकर तुम्हारी कच्छी मैं खुद अपने हाथों से उतारूंगा" अभिमन्यु जैसे कोई विस्फोट करते हुए कहता है, उसकी माँ उसकी शर्त को सुन अकस्मात् हक्की-बक्की सी उसके चेहरे को घूरने लगती है।

"नही मन्यु, जो आज हो गया वह दोबारा अब कभी नही होगा, तुम उस बीते वक्त को तुरन्त भूल जाओ" उसने घबराते हुए कहा, बेटे की सर्वदा अनुचित शर्त ने उसकी माँ को हैरानी से भर दिया था।

"तुमने भी उस वक्त को एन्जॉइ किया था मॉम, हम फिर से उसे इन्जॉइ करेंगे। प्लीज मम्मी" यह अभिमन्यु का लगातार दूसरा विस्फोट था, वैशाली पसीने से तरबतर होने लगी थी।

"मैंने तुमसे ऐसा नही कहा मन्यु, यह बस तुम्हारे शैतानी दिमाग की उपज है" वह जरा क्रोधित लहजे मे बोली और उसका क्रोध करना जरूरी भी था, यह तो सीधे उसपर झूठा इल्जाम लगाने जैसा था और जिसे वह चाहकर भी कभी स्वीकार नही करती।

"अडल्ट हूँ मॉम, सबकुछ जानता हूँ। तुमने वाकई इन्जॉय किया था और इसीलिए उस वक्त तुम्हारी चूत से झरना बह रहा था" आखिरकार अभिमन्यु तीसरा विस्फोट भी कर ही देता है और उसके कथन को सुन अब वैशाली पूरी तरह से निरुत्तर हो जाती है। अपने बेटे के बुद्धि बल का वह माँ आज लोहा मानने पर मजबूर है, जो बेटा अपनी सगी माँ को एक स्त्री के रूप मे जीत सकता है वह संसार की किसी भी अन्य स्त्री को यकीनन ही फांस सकता है।

"ओके! तो फिर मैं टेक-अवे करवा लेता हूँ" वह प्रसन्न होकर सीमेंटेड पट्टी से उठते हुए बोला, उसकी माँ की चुप्पी ने उसे पुनः जीत का स्वाद चखा दिया था।




बैठो अभी, हमारी बात पूरी नही हुई" वैशाली बलपूर्वक उसे दोबारा पट्टी पर बिठते हुए बोली।

"मौका सिर्फ एकबार आकर हमेशा के लिए थोड़ी ना चला जाता है" वह तत्काल अपनी माँ के ही कहे कथन की पुनरावृत्ति करता है और इसबार वैशाली पूर्वरूप से टूट जाती है।

"थैंक्स मॉम, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और तुम्हें कभी कोई दुख नही दूंगा" मुस्कुराते हुए ऐसा कहकर वह तेजी से होस्टिंग डेस्क पर पहुँचा और अपना अॉर्डर पंच करवाने लगता है। उसकी नजर गौरी के गौरवर्ण से हट नही पा रही थी मगर कहीं उसकी माँ उसकी हरकतों से भड़क ना पड़े वह चुपचाप अपना टेक-अवे लेकर चलता बनता है।

पार्किंग से बाइक निकालकर वह उसे पुनः हवा से बातें करवाने लगा, वैशाली पहले की तरह ही उससे चिपककर अवश्य बैठी मगर एकदम शांत थी और लौटते वक्त ना जाने क्यों अभिमन्यु भी उसे बिलकुल नही छेड़ता, बस जल्द से जल्द घर पहुँचने के इंतजार मे बाइक दौडा़ता रहता है।
 
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Rabia

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मल्टी पार्किंग मे बाइक पार्क कर अभिमन्यु और वैशाली मल्टी की सीढ़ियां चढ़ने लगते हैं, एकदम शांतिपूर्ण वातावरण मे उनके पैरों की चाप के अलावा कोई अन्य ध्वनि उस वक्त मल्टी के भीतर उत्पन्न नही हो रही थी। उनकी मल्टी का असल नाम शराफत पैराडाइस होना चाहिए था क्योंकि लगभग पूरी मल्टी ही नौकरी पेशा और व्यापारियों से भरी पड़ी थी जो कि खुद से मतलब रखने वाले लोग थे, अपनी स्वयं की उलझनों मे उलझे रहने वाले लोग। अब इससे बड़ी बात और क्या होगी कि उस मल्टी को बने डेढ़ साल बीत गया था मगर व्यवस्थापक या इंचार्ज का पद अबतक रिक्त था।

"तुम्हारी लंगड़ाहट से मुझे बहुत तकलीफ हो रही है मम्मी, फ्लैट मे पहुँचकर मैं सबसे पहले तुम्हारी कच्छी ....." अभिमन्यु ने मल्टी के शांत वातावरण मे एक और ध्वनि को जोड़ते हुए कहा, उसकी ऊंची आवाज और कथन मे शामिल अश्लीलता से घबराकर तत्काल वैशाली उसके बोलते मुंह पर अपना बायां पंजा दबा देती है और जिसमे सफल उसका बेटा बोलते-बोलते अचानक गूंगा सा हो जाता है।

"शश्श्ऽऽ मन्यु! कोई सुन लेगा तो मैं बेफालतू बदनाम हो जाऊंगी। फ्लैट के अंदर तुम्हें अपनी माँ के साथ जो भी करना हो कर लेना मगर प्लीज बेटा" वैशाली कांपती हुई--सी हौले से बुदबुदाई, सामाजिक भय की प्रचूरता से प्रभावित चंद लम्हों मे उसका अधिकांश चेहरा पसीने-पसीने हो गया था।

"तुम फिर डर गईं मॉम?" अपनी माँ के बाएं पंजे को आसानीपूर्वक अपने मुंह से दूर करते हुए अभिमन्यु ने जानकर भी अंजान बनते हुए पूछा, उसकी ऊंची आवाज मे कोई विशेष अंतर नही आया था बल्कि उसके स्वर पहले से भी कठोर हो गए थे।




डरूं नही तो क्या करूं मन्यु, किसी को हमारे बारे मे अगर भनक भी लग गई तो मेरे पास मरने के अलावा कोई दूसरा चारा नही बचेगा" वह पुनः बुदबुदाई और उनके उस बेतुके से वार्तालाप की शीघ्र समाप्ति के उद्देश्य से अपने बेटे की दाईं कलाई को थामकर बलपूर्वक उसे भी अपने चलायमान कदमों के साथ अपने पीछे खींचने का प्रयत्न करने लगती है। एक अधेड़ उम्र की कामुक स्त्री मे इतना बल कहाँ कि वह अपने से लगभग आधी उम्र के एक बलिष्ठ नौजवान पर अपनी शारीरिक क्षमता का दम-खम आजमा सके, बात यदि उसके बुद्धिबल की होती तो जरा सी साड़ी ऊंची उठाई नही कि संसार का हर मर्द स्वतः ही उसके पीछे किसी पालतू कुकुर सामान फौरन अपनी दुम हिलाता हुआ चला आता। एक! दो! तीन! चार! ऐसे ही उसके दर्जनों झटके विफल रहे, बेटे को अपने पीछे खींचना तो दूर वह उसे उसके स्थान से हिला तक नही पाती है।

"उससे पहले मैं मर जाऊंगा या उस भैन के लौड़े को मार दूंगा जो मेरी माँ की तरफ सही-गलत, अपनी उंगली भी उठाने की कोशिश करेगा। तुम्हारा डर खत्म होना जरूरी है मॉम, बहुत जरूरी है" कहकर अभिमन्यु ने उल्टे अपनी माँ को ही अपनी ओर खींच लिया और तीव्रता से उसके दूसरे हाथ मे पकड़ा हुआ टेक-अवे का पॉलीबैग छीनकर उसे नीचे फर्श पर छोड़ देता है।






क ...कैसे?" वैशाली इसके आगे कुछ और नही कह पाती जब अगले ही क्षण उसका बेटा उसके चिर-परिचत डर की मार से थरथराते अत्यंत कोमल होंठों पर अपने होंठ रखकर उनका कंपन अपने आप ही बंद कर देता है, साथ ही उसने माँ के बोलते मुंह को भी एकाएक सिल दिया था।

"ऐसे माँ ऐसे, तुम्हें यूं खुलेआम किस करके" उसने पलभर को उसके होठों को आजाद करते हुए कहा और पुनः अपने होंठ उसके होंठों से जोड़ दिए। बारम्बार वह उन्हें चूमता, भय स्वरूप उसकी भिंच चुकी मगर हिलती आँखों मे झांकता और फिर से उसके होंठों को चूमने लगता। अभिमन्यु ने जाना कि उसके लघु चुम्बनों के प्रभाव से भी उसकी माँ की सांसे निरंतर तेजी से गहरी पर गहरी होती जा रही हैं, उसकी छाती से सटे उसके मम्मों के भीतर धुकनी समान धड़कता उसकी माँ का दिल उसे स्वयं उसीके धड़कते दिल सा प्रतीत हो रहा था जो स्पष्ट प्रमाण था कि उसकी माँ ही नही घबराहटवश वह खुद भी पकड़े जाने की रोमांचक संभावना से ग्रसित था।

अपने इन्ही लघु चुम्बनों के दौरान मौका पाकर सहसा अभिमन्यु अपने सूखे होंठों पर अचानक अपनी जीभ फेरने लगता है और ज्यों ही उसके गीले होठों का परिवर्तित स्पर्श वैशाली ने अपने शुष्क होंठों पर महसूस किया उसने चौंकते हुए झटके से अपनी मुंदी आँखें खेल दीं, देखा तो उसका लाड़ला उसीके चेहरे को बड़ी बारीकी से निहारता हुआ मंद-मंद मुस्का रहा था।



सिर्फ चूमने भर को किस नही कहते गंदे लड़के, होंठों को चूसा भी जाता है" जाने क्या सोचकर वैशाली अपना यह उकसावे भरा कथन कह गई और कहने के बाद पुनः सोचे-विचारे बगैर स्वयं ही अपने बेटे के होंठों से उलझ पड़ती है। यह कुछ और नही केवल अपने जवान बेटे की ह्रष्ट-पुष्ट भुजाओं के बल के मद मे चूर चुदाई की प्यासी एक शादीशुदा किंतु पति से तिरस्कृत माँ की अखंड बेशर्मी थी जो वह भी अपने संस्कार, जीवनपर्यंत अर्जित की हुई अपनी मर्यादित छवि को सरेआम तार-तार करने पर तत्काल आमदा हो गई थी।

मल्टी के जिस सार्वजनिक स्थान पर खड़े होकर दोनो माँ-बेटे वासना का नंगा खेल खेलने मे व्यस्त थे, वह जगह उनके पडो़सी मिस्टर नानवानी के फ्लैट के मुख्यद्वार के बिलकुल करीब थी, इतनी करीब कि यदि उसके परिवार का कोई भी अमुक सदस्य एकाएक फ्लैट का मुख्य दरवाजा खोल देता तो निश्चित ही वह उन माँ-बेटे के पापी चुंबन का राजदार हो जाता। एकबार को अभिमन्यु को दोष दिया जा सकता था कि वह जवान है, अपनी बेकाबू कामुक भावनाओं पर नियंत्रण नही रख सकता मगर वैशाली तो उसकी सगी माँ थी और इसके बावजूद खुद भी अपने बेटे के साथ बहक गई, यकीनन यह विश्वास करने योग्य बात नही थी। इस सब से बेखबर अपने बेटे के चेहरे को अपने दोनो हाथों से थामकर अपने पंजों के बल खड़ी उसकी वह अधेड़ कमसिन माँ उसके होंठों का तीव्रता से रसपान किए जा रही थी, कभी ऊपरी तो कभी वह उसका निचला होंठ चूसने लगती तो कभी दोनो होंठ एकसाथ अपने नाजुक होंठों के बीच फंसाकर बलपूर्वक उन्हें चूसने भिड़ जाती।




वाउ मॉम! यू आर ...उफ्फ! यू आर फकिंग अॉसम। छत पर चलते हैं, बाकी मजा वहीं करेंगे" अचानक अपने होंठ अपनी माँ के होंठों से पीछे खींच अभिमन्यु साड़ी के ऊपर से उसकी मांसल गांड के दोनो पट अपने दोनो हाथों के पंजों मे जकड़ते हुए सिसका और फिर बिना रुके वैशाली की सुर्ख मतवाली आँखों मे झांकते हुए ही लगातार उसकी गांड को अत्यंत कठोरता से दबाने लगा, अपनी पूरी ताकत झोंककर वह उपनी माँ की गुदाज गांड के दोनो पटों को अधीरता से मसलना शुरू कर देता है।

"ओहऽऽ मन्यु! आहऽऽ ...आहऽऽ दर्द ....दर्द होता है बेटा" अपनी गांड पर अपने बेटे के जवान मर्दाने हाथों के मर्दन से वैशाली सीत्कारते हुए कहती है, वह एकदम से अभिमन्यु के ऊपर झूल--सी गई थी।

"ना कर मन्यु ...उन्ह! उन्ह! लगती है माँ को" उसने पिछले कथन मे जोड़ा जब उसका बेटा उसकी पीड़ा भरी आहों को सुनने के उपरान्त भी उसकी गांड को दबोचना नही छोड़ता।

"फिर से नौटंकी मम्मी! तुम्हें तो मेरी हर बात पर चिढ़ होती है, जबकि तुम जिसे दर्द का झूठा नाम दे रही हो मैं अच्छे से जानता हूँ वह क्या है" क्रोधित स्वर मे ऐसा कहकर अभिमन्यु ने फौरन उसकी गांड पर से अपने दोनो हाथ हटा लिए और फर्श पर पड़े टेक-अवे का पॉलीबैग उठाकर तत्काल पैर पटकते हुए बाकी की बची सीढ़ियां चढ़ने लगता है। उसके पास हमेशा उनके फ्लैट के मुख्यद्वार की चाबी मौजूद हुआ करती थी और जबतक अपनी सोच से बाहर निकलकर वैशाली भी उसके पीछे चलना शुरू कर पाती, दरवाजा खोलकर उसका बेटा फ्लैट को भीतर प्रवेश कर चुका था।






मन्युऽऽ" फ्लैट के अंदर पसरे अंधेरे और सन्नाटे के बीच वैशाली अपने बेटे को पुकारते हुए हॉल की लाइट अॉन करती है, वह रूठने के अंदाज मे हॉल के सोफे पर अपनी नाक सिकोड़े बैठा हुआ था।

"अले! अले! मेरी डेट तो लगता है नाराज हो गई" वह सोफे के करीब आकर लाड़ भरे स्वर मे बोली।

"जस्ट लीव मी अलोन मॉम! यू नो, तुम्हीं मुझे पूरे दिन से उकसा रही हो और जब भी मैं अपने मन की करने को होता हूँ, फटाक से मुझे टोक देती हो" कहकर अभिमन्यु अपना चेहरा वैशाली की विपरीत दिशा मे मोड़ लेता है।

"ठीक कहा तुमने, शुरूआत हरबार मैंने ही की थी मगर अब खाने से तुम्हारी क्या दुश्मनी है? चलो उठो, मुझे भी जोरों की भूख लगी है" कहकर वैशाली उसे उसके दाएं कंधे से ऊपर उठाने का विफल प्रयास करने लगी।

"अच्छा ...अम्म! हाँ पहले तुम माँ की कच्छी उतार दो इसके बाद ही हम अपनी डेट सेलीब्रेट करेंगे" उसने पिछले कथन मे जोड़ा जब वह थक-हारकर भी अभिमन्यु को सोफे पर से उठा नही पाती।

"देखा फिर करी ना तुमने मेरी गांड मे उंगली, दोबारा खड़े लंड पर धोखा मत करो और मुझे अकेला छोड़ दो। प्लीज!" वह खिसियाते हुए कहता है जैसे उसकी वाणी मे शामिल अश्लीलता की उसे कोई परवाह ही ना हो। ठीक भी तो था, एक जवान लड़का बार-बार कबतक अपनी घटती-बढ़ती उत्तेजना को सहता रहेगा जबकि उसकी उत्तेजना का कारण कोई और नही उसकी अपनी सगी माँ ही थी।




मैं जानती हूँ कि तुम इस वक्त क्या और कैसा फील कर रहे हो और मानो या मानो तुम्हारी माँ का भी कुछ यही हाल है। तुम्हारे पापा के अलावा इतनी फ्री मैं आजतक किसी के साथ नही हुई, अनुभा के साथ भी नही मगर जाने क्यों मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि मुझे तुम्हारे, अपने बेटे के साथ की जैसे बरसों से तलाश थी और ज्यों-ज्यों मेरी तलाश पूरी होने के करीब आती जा रही है, मैं हमारे रिश्ते तक को भूलते जाने पर मजबूर होने लगी हूँ। तुम्हारी माँ होकर भी मैं सोच-समझ नही पा रही कि क्या सही है और क्या गलत, बस पानी की धार सी बहती चली जा रही हूँ" गंभीरतापूर्वक ऐसा कहकर वह बेटे के दाएं कंधे को थपथपाने लगती है। इसी को तो हम आम भाषा मे सुख-दुख बांटना कहते हैं, अपने राज़ को स्वयं बेटे के संग सांझा कर मानो वैशाली के दिल से एक बहुत बड़ा बोझ हल्का हो गया था, कुछ विशेष नही तो कम से कम वह अपने भीतर सहसा एक अजीब--सी खुशी के प्रज्वलित होने का अहसास तो अवश्य करने लगी थी।

"तुम्हें इस बात का अफसोस है कि तुम अपने बेटे के साथ इतना फ्री क्यों हुईं?" अभिमन्यु हौले से बुदबुदाते हुए पूछता है। अपनी निजता को उसके संग बांटकर उसकी माँ ने एकाएक उसे बेहद अचंभित कर दिया था, जिसके नतीजन वैशाली के प्रति उसका प्रेम और विश्वास अब पहले से कहीं अधिक प्रगाढ़ होने लगा था।

"नही बिलकुल नही। अब मेरा यह जवाब मेरी ममता का है, मर्यादा का है, मेरे संस्कारों का है या फिर बंधनों की जंजीर मे जकड़ी आजादी की चाह रखने वाली एक आम--सी औरत का है, मैं यह नही जानती। जानती हूँ तो बस कि मुझे यह आजादी अच्छी लग रही है और मैं खुद को दोबारा से जिंदा महसूस कर पा रही हूँ" कहकर वैशाली सोफे से दूर
जाने लगती है, यकीनन उसने अपना ह्रदय स्वयं अपनी छाती को चीरकर अपने बेटे के समक्ष प्रस्तुत कर दिया था। अभिमन्यु अपना चेहरा घुमाकर अपनी माँ के चलायमान कदमों को गौर से देखने लगा, वह उसी क्षण अपनी माँ के हर आगे बढ़ते कदम को चूमने की चाह से तड़प उठा। उसकी माँ पुनः दुखी हो गई और जिसका इकलौता कारण वह खुद को मान बैठा था, एकपल को भी उसे अपने पिता का ख्याल नही आया जिसने अपनी पत्नी को कभी अपनी पत्नी--सा नही समझा, समझा तो सिर्फ अपना एक आजीवन गुलाम, नौकर या सेवक और नियम के मुताबिक संसार की हर पत्नी की भांति उसकी माँ ने भी जैसे अपने पति का ताउम्र दासत्व अपना एकमात्र भाग्य मानकर सहर्ष ही स्वीकृत कर लिया था।

"मॉम! भूख लग रही है, तुम्हारे बेडरूम मे खाएंगे" वह सोफे से उठते हुए बोला और टेक-अवे पॉलीबैग डाइनिंग टेबल से उठाकर किचन मे घुस जाता है। उसने पिज्जा माक्रोवेब मे दोबारा गर्म किया, गार्लिक ब्रेड भी और फ्रिज से कोल्ड्रिंक की बॉटल, दो तरह के सॉसेज्स आदि निकालकर अपने परिजनों के शयनकक्ष के भीतर पहुँच गया। बेडरूम के बिस्तर के बीचों-बीच प्लास्टिक की एक चौकोर शीट बिछाकर वह डिनर उसपर करीने से सजाने लगता है, बिस्तर के नजदीक चुपचाप खड़ी हतप्रभ वैशाली उनके फ्लैट की खरीदी के उपरान्त आज पहली बार डिनर को अपने बेडरूम मे लगता देख रही थी और वह भी सीधे उसके बिस्तर पर, सही मायने मे जिसपर यदि किसी का सच्चा अधिकार था तो वह था सिर्फ उसका और उसके पति मणिक का।


अपनी साड़ी और पेटीकोट उतार लो मम्मी फिर हम अपना डेट-डिनर शुरू करेंगे" वह बिना अपनी माँ की ओर देखे कहता है, निश्चित ही यह माँ-बेटे के बीच पनपे उसी समय अंतराल का भीषण परिणाम था जो अभिमन्यु को अपनी इस अनैतिक सोच को विचारने का भरपूर वक्त मिल गया था।

"साड़ी, पेटी ...पेटीकोट?" वैशाली एकाएक चौंकते हुए पूछती है। यह क्या कम था जो वह उसीके बेडरूम मे, उसीके बिस्तर पर अपने सगे जवान बेटे के साथ डिनर करने को मन ही मन अपनी स्वीकृति प्रदान कर चुकी थी। अपने बेटे के महा-नीच कथन और उसमे शामिल उसकी पापी मांग ने उसकी माँ को महज चौंकाया ही नही था वरन तत्काल वह आंतरिक लज्जा से दोहरी भी हो गई थी।

"जल्दी करो मम्मी, भूख के मारे मेरी जान निकली जा रही है" वह अॉरिगेनो, वाइट पैपर और चिल्ली फ्लेक्स के पाऊच्स संभालते हुए बोला।

"मगर साड़ी और पेटीकोट ...कैसे मन्यु? मैं तुम्हारी बात को शायद ठीक से समझ नही पा रही" वैशाली अपना निचला कंपकपाता होंठ अपने मोती समतुल्य दांतो के मध्य दबाते हुए पूछती है, अपने अत्यंत नाजुक होंठ को अपने तीक्ष्ण दांतों से जैसे वह आज स्वयं ही चबाकर खा जाने पर विवश थी।

"अम्म! हाँ क्या पूछ रही हो? ओह! मुझे भी तो कपड़े उतारने थे, कंफर्ट जोन मे खाने का मजा ही कुछ और होता है। है ना मॉम?" पत्थर मे तब्दील हुई अपनी माँ से ऐसा विस्फोटक प्रश्न पूछ उसके जवाब की प्रतीक्षा किए बगैर ही अभिमन्यु फौरन बिस्तर से नीचे उतर आया और रिकॉर्ड समय मे अपनी शर्ट और फिर जीन्स उतारकर वह कई वर्षों बाद अपनी माँ के समक्ष सिर्फ अपनी अंडरवियर पहने खड़ा हो जाता है। उसकी अंडरवियर जॉकी कम्पनी की थी, फुल फ्रेंची स्टाइल और जिसके भीतर कैद उसका अधखडा़ लंड जॉकी के ऊपर एक बहुत ही
उत्तेजक बड़े--से तम्बू का निर्माण कर रहा था। हालांकि उसके अपने कपड़ों को उतारने के दौरान वैशाली ने उसे रोकने की हर संभव कोशिश की थी मगर उसके शब्द थे जो उसके गूंगे गले से बाहर ही नही निकल पाए थे मानो उसकी जुबान को एकदम से लकवा मार गया था।

"चलो अब उतारो भी, डिनर दोबारा ठंडा करना है क्या?" वह अपनी कमर के आजू-बाजू अपने दोनो हाथ रखकर किसी युवा मॉडल की भांति पोज देते हुए पूछता है। उसकी फूली नंगी छाती, बलिष्ट भुजाएं और मांस से भरी जाघों पर चहुं ओर बालों की अधिकता देख वैशाली यकीन ही नही कर पाती कि उसका बेटा आज के पश्चिमी परिवेश मे विचरण करने वाला कोई आम--सा नौजवान है, जबकि इस आधुनिक युग मे लड़कियां हों या लड़के सभी सफाचट रहना ज्यादा पसंद करते हैं। उसकी बेटी अनुभा इसका प्रत्यक्ष उदाहरण थी जिसकी पॉकेटमनी का एक बड़ा हिस्सा उसके हेयर ट्रीटमेंट पर ही खर्च हुआ करता था।

"मैं तुमपर कोई प्रेशर नही डाल रहा हूँ माँ पर अगर तुम ऐसा करोगी तो मुझे बहुत खुशी होगी और साथ मे तुम्हें भी" वह ज्यों की त्यों बुत बनी खड़ी अपनी माँ की आँखों मे झांकते हुए कहता है, उसके चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान तब व्याप्त होने लगती है जब एकाएक वैशाली का दायां हाथ उसके पेट और बाएं की उंगलियां उसके ब्लाउज के ऊपर रेंगनी शुरू हो जाती हैं।



वैसे तो तुम वाकई एक घटिया इंसान हो मन्यु पर कहीं अपना प्रॉमिज मत भूल जाना, तुमने खुद कहा है कि तुम मेरे ...यानी कि अपनी माँ के साथ सैक्स नही करना चाहते" कहते हुए शर्म से लाल पड़ी वैशाली अपने पेटीकोट मे खुरसी साड़ी को अपनी दाईं मुट्ठी मे कसकर भींच लेती है, संग-संग उसने बाएं हाथ से अपना पल्लू भी फौरन ब्लाउज से नीचे गिरा दिया।

"बिलकुल याद है मम्मी, मैं सचमुच अपनी माँ की चुदाई नही करना चाहता। एकबार फिर से कहता हूँ, मैं तुम्हें नही चोदूंगा मॉम मेरा तुमसे वादा है" अभिमन्यु उनके मर्यादित रिश्ते की पूर्णरूप से धज्जियां उड़ाते हुए बोला, उसका अश्लील संवाद इतना अधिक विध्वंशक था कि अपनी माँ के साथ वह स्वयं भी अपने ही शब्दों से थरथरा उठा था।

"मन्यूऽऽ" वैशाली चीखते हुए बोली मगर बावजूद इसके कि वह क्रोध से तिलमिला रही है, वह अपनी साड़ी पेटीकोट के बाहर खींचने से खुद को रोक नही पाती। बेटे के ज्वलंत कथन ने सहसा उसकी माँ के सम्पूर्ण बदन को बुरी तरह से झुलसा दिया था, जिसके नतीजतन वह अपने शरीर पर बारीक--सी एक साड़ी तक बरदाश्त नही कर सकी थी और तो और साड़ी के उसके पैरों के पास नीचे फर्श पर गिरते ही वह तीव्रता से अपने दाएं हाथ की प्रथम उंगली को अपने पेटीकोट के नाड़े मे उलझा लेती है।

"वाउ! माय नॉटी एण्ड सैक्सी बिच इस अॉन फायर ...आहां! यू बैटर कैरी अॉन मॉम, आइ रियली लव टू वॉच योर फकिंग अमेजिंग स्ट्रिप-टीज" अभिमन्यु ताली ठोकते हुए कहता है जैसे स्टेज पर खड़ी किसी रंडी के जल्द से जल्द नंगी हो जाने के प्रयास मे पब्लिक जोशो-खरोश से उसका
उत्साहवर्धन करने लगती है ठीक उसी प्रकार वैशाली का बेटा भी अपनी माँ का आत्मविश्वास बढ़ा रहा था। वह तत्काल बिस्तर पर पैर लटकाकर बैठ जाता है ताकि उसकी माँ को अपना पेटीकोट उतारते देखने का अद्भुत व अद्वितीय कामुक दृश्य वह बड़े गौर से और बेहद नजदीक से देख सके।

"लाइक सन लाइक मदर, लाइक मदर लाइक सन। क्या कहते हो मन्यु, खींच दूं पेटीकोट की डोरी?" कामलुलोप वैशाली सीधे अभिमन्यु की जॉकी के भीतर पूरी तरह से तनकर कठोर हो चुके उसके लंड के बड़े से तम्बू को घूरते हुए पूछती है, अपने सगे बेटे के लंड की विशालता को वह सरलतापूर्वक उसकी जॉकी के ऊपर उभरा हुआ देख पा रही थी और जिसपर होती निरंतर हलचल से उसे उसके लंड की बारम्बार ठुमकियों का भी स्पष्ट अहसास होने लगा था। अतिशीघ्र वह माँ अपने अंतर्मन की उस आवाज को बेहद फूहड़ता से हँसकर दबा देती है जो उसे निकट भविष्य मे होने वाले दुष्परिणामों से बचने का हरसंभव संकेत दे रहा था, महज इस बहकावे मे कि उसके बेटे ने उसके संग चुदाई नही करने का उसे भीष्म वचन दिया था।

"बेशर्म मम्मी! अपने जवान बेटे से ऐसा नंगा सवाल पूछते हुए क्या तुम्हें जरा सी भी लज्जा नही आ रही?" अपने पेटीकोट के नाड़े मे अपनी दाईं उंगली फंसाए खडी़ अपनी माँ को चिढ़ाने के उद्देश्य से अभिमन्यु बोला।

"तुम कम से कम पलटकर तो खड़ी हो सकती हो माँ वर्ना मैं जरूर शर्म से मर जाऊंगा" उसने नीचतापूर्ण पिछले कथन मे जोड़ा और फिर खुद ही अपने दोनो हाथ अपनी माँ की ओर बढ़ाते हुए वह उसकी पतली कमर को मजबूती से थामकर, उसे आसानीपूर्वक अर्धाकार घुमा देता है। अपनी माँ की नंगी त्वचा की अत्यधिक गरमाहट ने अभिमन्यु को विस्मय से भर दिया था, लगा जैसे वह अत्यंत तेज बुखार से तप रही हो। खुद उसका भी तो यही हाल था, जॉकी के भीतर कैद उसका फड़फड़ाता लंड बिना उसके हाथ लगाए ही झड़ पड़ने की कगार पर पहुँच चुका था। वहीं वैशाली बेटे के मजबूत हाथों के स्पर्श से एकाएक सकपका--सी गई थी, उसका बचाखुचा धैर्य बेटे के
अनैतिक, निकृष्ट कथनों ने तोड़ दिया था और इससे पहले कि वह पूरी तरह से टूट जाती या अभिमन्यु के वचन को मिथ्या साबित करने का स्वयं प्रण कर लेती, वह झटके से अपने पेटीकोट का नाड़ा खींच देती है।

"इश्श्श्ऽऽ!" एकसाथ दोनो माँ-बेटे सीत्कार उठे, किसकी सीत्कार मे ज्यादा वजन था यह पहचान पाना असंभव सा था। पेटीकोट के वैशाली की चिकनी त्वचा से नीचे फिसलते ही अभिमन्यु का कलेजा मुंह को आ गया, वह फौरन अपनी जॉकी के ऊपर से अपने कठोर लंड को बलपूर्वक उमेठ देता है ताकि तीव्रता से शून्य मे परिवर्तित होता जा रहा उसका मस्तिष्क उसके नाजुक कामांग पर किए उसके खुद के निष्ठुर प्रहार से यथासंभव जीवंत बना रह सके।

ब्लाउस से नीचे लगभग पूरी नंगी हो चुकी अपनी माँ की पीठ से अपनी फट पडी़ आँखों को नीचे लाते हुए अभिमन्यु सीधे उसकी गुदाज गांड को घूरने लगता है, उसकी माँ ने एकदम सच कहा था कि उसके द्वारा लाई गई फैशनेबल कच्छी बार-बार उसकी गांड की गहरी दरार के बीच घुस जाती है। वैशाली की गांड का दायां पट बिलकुल नंगा था और बाएं पट को भी कच्छी बेमुश्किल आधा ही ढ़ांक सकने मे सक्षम नजर आ रही थी। उसने स्पष्ट यह भी देखा कि कुछ वक्त पीछे उसके अपनी माँ की गांड को दबोचने और शक्तिपूर्वक उसे मसलने के परिणामस्वरूप गांड के दोनो गौरवर्णी पट सुर्ख लाल हो गये थे और जिनकी सुर्खियत पर एकाएक मोहित होकर अभिमन्यु बिना कोई अतिरिक्त क्षण गंवाए, बारी-बारी उसके दोनो पटों को तेजी से चूमना शुरू कर देता है।



मन्युऽऽ! ये ... ये क्या?" अपने बेटे के होंठों का स्पर्श अपनी नंगी गांड पर महसूस करते ही वैशाली अचानक से अपने पैरों को चलायमान कर देने पर विवश हो जाती है और इसके तुरंत बाद ही उसने पलटकर खडे़ होते हुए पूछा। उसे कोई विशेष परवाह नही थी कि अब अभिमन्यु कच्छी के भीतर निरंतर रस उगलती उसकी चूत पर अपनी आँखे गड़ा सकता है, यकीनन समझ भी सकता है कि उसकी माँ किस बुरी तरह से उत्तेजित हो चुकी थी।

"सॉरी! मैं बस तुम्हारे उस दर्द को कम करना चाहता था जो मैंने खुद तुम्हें दिया था" वह धीमे स्वर मे बोला, हरपल शरारत से भरा रहने वाला उसका चेहरा जैसे फौरन कुम्भला सा गया था।

"अब मैं और तुम्हारी झूठी, मक्कार बातों मे नही आनेवाली मन्यु" कहकर वैशाली नीचे फर्श पर पड़े अपने पेटीकोट को उठाने लगती है, हालांकि अपनी नंगी गांड पर उसे बेटे के होंठों का स्पर्श अंदर तक मंत्रमुग्ध कर गया था मगर वह इस सत्य को एकाएक अभिमन्यु के समक्ष कबूल भी तो नही सकती थी। जीवन मे पहली बार किसी मर्द के होठों ने उसके निचले धड़ को छुआ था और वह मर्द कोई और नही उसका अपना सगा बेटा था, उनका पवित्र रिश्ता ही एकमात्र कारण था जो उसे बेवजह बेटे पर झूठा लांछन लगाना पड़ रहा था जबकि वह अच्छे से जानती थी कि भले ही उसका बेटा दुनियाभर से झूठ कहता-फिरता हो पर अपनी माँ से कभी नही बोल सकता था और वह भी तब जब वह अपनी माँ को अपनी खुद की जान से ज्यादा चाहने लगा था, वाकई उसके सच्चे प्रेम मे पड़ गया था।

"तुम्हारे पीछे ....वहाँ पूरे मे रेड-रेड हो गया है और जो मेरी अपनी गलती की वहज से हुआ, तुमने तो मुझे रोकने की कोशिश की थी यह बाताकर कि तुम्हें वहाँ दर्द हो रहा है पर मैं कहाँ माना था। शायद इसीलिए मैंने ,,,,,,,





अभिमन्यु गहरी व लंबी-लंबी सांसें भरते हुए बोला, जाहिर था कि अपनी माँ के हाथ मे उसका उतरा हुआ पेटीकोट देख उसे जरा भी अच्छा नही लगा था परंतु इस संबंध मे वह वैशाली से कुछ नही कहता बल्कि पेटीकोट को वापस पहनने का निर्णय वह खुद उसी पर छोड़ देता है।

"कभी-कभी मुझे लगता है कि तुम एक नही दो इंसान हो जो पता नही कब हँसने लगे और कब रूठ जाए, कब शैतानी कर बैठे और कब प्यार जताने लगे। अब बोलो भी ...कि मैं पेटीकोट नही पहनूँ वर्ना सचमुच पहन लूंगी" मुस्कुराकर ऐसा कहते हुए वैशाली तत्काल अपना पेटीकोट हवा मे झुलाने लगती है वह जानबूझकर उसे बार-बार बेटे के नजदीक ले जा रही थी ताकि वह उसे जबरन अपनी माँ के हाथ से छीन ले मगर अभिमन्यु उसे सफा चौंकाकर बिस्तर पर चढ़ गया और पीछे सरकते हुए बिस्तर की पुश्त से टेक लगाकर बैठ जाता है।

"आओ माँ! आज तुम्हें अपने हाथों से खिलाऊँगा ...यहाँ आओ और अपने बेटे की टांगों के बीच आकर बैठो। घबराना मत, तुम्हें चोदूंगा नही ....तुमसे वादा जो किया है" काफी गंभीर स्वर मे ऐसा कहकर अभिमन्यु अपनी माँ की आँखों मे झांकते हुए ही जॉकी के ऊपर से अपने कठोर लंड को बड़ी बेशर्मी के साथ सहलाने लगा और जिसे देख खुद ब खुद पेटीकोट वैशाली के हाथ से पुनः नीचे फर्श पर गिर जाता है। वह माँ अपने बेटे की अश्लील वाणी से कहीं ज्यादा उसकी पापी हरकत, उसके नीच इशारे से अचंभित हुई थी। एकसाथ क्रोध, लज्जा, कुठां, कामुत्तेजना आदि कई भावों से तड़प उठी, एकाएक अत्यधिक चुदास महसूस करती वह माँ भी खुद पर संयम नही रख पाती और किसी बाजारू वैश्या की भांति अपने दाएं हाथ की मुट्ठी मे तत्काल अपनी कच्छी को बलपूर्वक भींच लेती है। उसकी कच्छी के निचोड़ से उसका ढ़ेर सार कामरस उसकी दाईं मुट्ठी मे एकत्रित होने लगा और जो शीघ्र ही उसकी उंगलियों की पोर से छलककर लिसलिसी बूंदों के रूप मे नीचे फर्श पर टपकने लगता है।



अब आती हो या फिर मैं अपनी यह जॉकी भी उतार दूं" अपनी माँ की इस विस्फोटक कार्यवाही को प्रत्यक्ष देख अभिमन्यु अखंड उन्माद से कांपते हुए बोला और तीव्रता से अपने हाथ के दोनो अंगूठे अपनी कमर के इर्द-गिर्द लाकर उन्हें अपनी जॉकी की इलास्टिक मे फंसा देता है, तत्पश्चात उसने फौरन अपनी गांड बिस्तर से पूरी तरह ऊपर उठा दी मानो सचमुच वह अगले ही पल अपनी सगी माँ के समक्ष पूर्णरूप से नंगा हो जानेवाला था।

"नही! नही! नही! ...मैं आ रही हूँ, मैं आ रही हूँ बेटा" लगभग चीखते स्वर मे ऐसा कहकर वैशाली अचानक ही बिस्तर पर कूद पड़ती है। यह दृश्य भी बहुत कामुक था, बिस्तर पर पहले से ही अधनंगे बैठे अपने अत्युत्तेजित जवान बेटे की चौड़ी छाती से टेक लगाकर बैठने के अत्यंत पापी उद्देश्य से, सिर्फ ब्लाउज और छोटी--सी कच्छी पहने एक माँ अपने घुटनों और हाथों के बल बिस्तर पर चलना शुरू कर चुकी थी। उसके हर बढ़ते कदम पर उसके गोल-मटोल मम्मे उसके ब्लाउज से बाहर निकल आने को मचल उठते, पति के जीवित होने का प्रमुख प्रमाण उसका मंगलसूत्र झूले--सा झूलता हुआ, उसकी मांसल गांड हवा मे तनी हुई, बाल कंधे और चेहरे पर बिखरे हुए, हाथों के पंजे और दोनो घुटने मुलायम गद्दे मे धंसे हुए; एक अजीब से रोमांच को जाग्रत कर देने वाला दृश्य था। अभिमन्यु के नजदीक पहुँचकर जब वैशाली ने अपने शरीर को घुमाया तब सहसा उसकी गांड बेटे के चेहरे से रगड़ खाती हुई गुजरी, उसने अपने दोनो हाथों से स्वयं अपने बेटे की टांगों को विपरीत दिशा मे चौड़ाया और अंततः वह पापिन माँ बिस्तर पर बेटे के अधनंगे बदन से टेक लगाकर बैठ जाने मे सफल हो ही जाती है।
 
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Rabia

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वैशाली के अपने बेटे अभिमन्यु की नंगी चौड़ी छाती से टेक लगाकर बैठने के उपरान्त जो कुछ बदलाव उसे तत्काल महसूस हुए उनमे मुख्यतः बेटे की छाती के भीतर तीव्रता से धड़कते उसके ह्रदय की जोरदार धमक का स्पष्ट अहसास उस माँ को अपनी पीठ पर हो रहा था, दूसरे उसके तपते और पसीने-पसीने हुए अग्र शरीर से वैशाली का ब्लाउज क्षणमात्र मे भीग चुका था। तीसरे उस अत्यंत कामलुलोप माँ को अपने जवान बेटे का बेहद कठोर व निरंतर तेजी से फड़फडा़ता लंड सीधे अपनी गुदाज गांड की गहरी दरार के भीतर प्रवेश करने का दुस्साहस करता हुआ-सा प्रतीत होने लगा था, वह तो ठीक था जो उस वक्त माँ-बेटे अपने निचले धड़ से नंगे नही थे वर्ना उनके संग वह तात्कालिक वक्त भी अपनी रही सही मर्यादा का हरसंभव त्याग कर चुका होता।

"उफफ! मॉम रिलेक्स होकर बैठो, तुम्हें कोई तकलीफ नही होने दूंगा" अपनी माँ के अधनंगे कामुक बदन का सम्पूर्ण भार अपने नंगे सीने और टांगों की जड़ पर पाकर अभिमन्यु फौरन सीतकारते हुए कहता है, वैशाली के खुले व लंबे केश उसके अपने कंधों के साथ ही जहां-तहां उसके बेटे के भी कंधों और छाती पर फैल गए थे जिसके नतीजन उसके बालों से उठती एक विशेष जनाना गंध उसके बेटे के पूरे शरीर को एकाएक आनंदित करने लगी थी। उसने सहसा अपनी बाईं हथेली को अपनी माँ के नंगे सपाट पेट पर रखकर उसे बलपूर्वक पीछे खींचा और जिससे उसकी जॉकी के भीतर ठुमकता उसका विशाल लंड उसकी माँ की छोटी--सी कच्छी मे कैद उसकी मांसल व मुलायम गांड पर बरबस ठोकरें मारने लगता है, वह तो भाग्य वैशाली के पक्ष मे था वर्ना उसके बेटे का आलूबुखारे समान अत्यंत सूजा सुपाड़ा वाकई उसकी जॉकी और उसकी माँ की पतली--सी कच्छी को छेदकर सीधे उसकी गांड की दरार को चौड़ाते हुए उसके किसी भी नाजुक अंग को बड़ी सरलता से भेद सकता था।




मन्यु ...उन्ह! मन्यु" सिसकती वैशाली तत्काल अपना निचला धड़ आगे को सरकाने का प्रयत्न करती है मगर बेटे के बाएं हाथ को अपने चिकने पेट से बलपूर्वक भी नही हटा पाती। अभिमन्यु उसकी गहरी व गोल नाभि के आसपास अपना बायां अंगूठा गोल-गोल आकृति मे घुमाने लगा था और साथ ही अपने दाएं की उंगलियों से वह अपनी माँ के रेशमी काले बालों को भी सहलाना शुरू कर देता है।

"तुम बहुत खुशबूदार बासती हो माँ, हम्म! हम्म! ...पहले पता होता हम्म! ...तो दिनभर बस तुम्हें ही सूंघता रहता" वह वैशाली के बालों मे अपना सम्पूर्ण चेहरा घुसेड़ते हुए जोरदार गहरी-गहरी सांसें खींचकर कहता है, वह यहीं रुक जाता तब भी ठीक था मगर ज्यों ही उसे अपनी नाक पर अपनी माँ की सुंदर, पतली व पसीने से लथपथ गर्दन का स्पर्श महसूस हुआ वह बिना किसी अतिरिक्त झिझक के फौरन अपने कंपकपाते होंठ उसकी गर्दन से चिपका देता है।

"उफ्फऽऽ पिज्जा ....पिज्जा ठंडा हो रहा है मन्यु" जिस तरह कोई हिंसक, शक्तिशाली पशु किसी निरीह पशु को दबोचकर उसका भक्षण करने से पूर्व उसके स्वादिष्ट कच्चे मांस की गंध को मन भरकर सूंघता है ताकि तत्काल उसकी भूख मे चौगुना इजाफा हो जाए और चाहते हुए भी उस निरीह की असहाय चीख-पुकार उसके खूंखार ह्रदय को ना पिघला सके ठीक उसी प्रकार वैशाली को भी अपने बेटे की नाक का लगातार
फुसफुसना और उसके सूंघने से पैदा होता अजीब--सा रोमांचक स्वर एकाएक असहाय, दुर्बल करने लगा था। अपना कथन कहकर वह अपनी गर्दन को झटकने लगती है मगर तभी अभिमन्यु अपना दायां अंगूठा उसकी गहरी नाभि के भीतर प्रवेश करवा देता है।

"तुम्हारा हक है माँ तो तुम ही खिलाओ मुझे" अभिमन्यु ने पुनः गहरी सांस खींचते हुए कहा, जिसके मूक उत्तर मे वैशाली उनके दाईं और रखे डिनर को खाने हेतु तैयार करने लगती है। हालांकि अभिमन्यु ने उसे स्वयं अपने हाथों से खिलाने की चाह जताई थी पर कहीं वह अपनी चाह की आड़ मे अपनी माँ से और अधिक छेड़छाड़ करना आरंभ ना कर दे कुछ ऐसा सोच वह जल्द से जल्द डिनर को निपटने मे व्यस्त हो जाती है। उसने पिज्जा के ऊपर सारी उपस्थित सीजनिंग डाली और तीव्रता से दोनो तरह के सॉसेजिस भी उड़ेलने लगती है, वहीं उसका बेटा उसकी व्यस्तता को सफलतापूर्वक भुनाने मे जुटा हुआ था। वह अपनी माँ की गर्दन को महज सूंघने के अलावा अब चूमने लगा था और साथ ही उसकी नाभि के भीतर अपने अंगूठे के नाखून की हल्की-हल्की खुरचन भी देना शुरू कर देता है।

"खाने ...खाने पर कॉन्सनट्रेट किया करो मन्यु, जवान लड़के खाने से अपना जी नही छुड़ाते" हकलाते स्वर मे ऐसा कहकर वैशाली पिज्जा की एक तिकोनी स्लाइस अपनी गर्दन से चिपके उसके बेटे के दाएं कान के समकक्ष ले आई मगर जैसे उसके कथन और कार्य को सफा भुलाते हुए अभिमन्यु पर उनका कोई खास असर नही पड़ता और शीघ्र ही वह अपने होंठों को खोल अपनी गीली जीभ बाहर निकालकर, उसे लपलपाते हुए अपनी माँ की गर्दन पर निरंतर एकत्रित होते पसीने की नमकीन बूंदों को अविराम चाटने लगता है।

"मन्यु ...उन्ह! खाओ इसे, खाने पर कॉन्सन्ट्रेट करो बेटा" वह अपनी ठोड़ी और गर्दन को आपस मे दबाते हुए सिहर पड़ती है लेकिन इसका परिणाम पहले से अधिक घातक सिद्ध हुआ, अभिमन्यु का चेहरा उसकी गर्दन और ठोड़ी के बीच फंसकर रह जाता है और जिसके कारण अब उसने अपनी माँ की गर्दन की
अत्यंत नाजुक त्वचा को बेकाबू होकर चूसना भी आरंभ कर दिया था। वैशाली अपने जबड़े भींचकर अपनी चूत के अंदरूनी संकीर्ण मार्ग पर होते अविश्वसनीय स्पंदन को झेलने पर विवश थी, उसके ब्लाउज और ब्रा के भीतर कैद उसके मम्मे भी उसके निप्पल समान कठोरता पाने लगे थे और वह सहसा मात्र एक लघु अंगड़ाई लेने तक को तड़प उठती है, जो की उसके बेटे के बलिष्ठ हाथों की जकड़न से मजबूर वह चाहकर भी नही ले पाती।

"भूख ही तो मिटा रहा हूँ मॉम। अपनी और तुम्हारी, हम दोनो की" अपना चेहरा अपनी माँ की गर्दन से पीछे खींच अभिमन्यु बोला, उसका विस्फोटक कथन एकसाथ दोनो को चौंका गया था।

"लाओ लाओ खिलाओ, मैं परेशान हूँ तो जरूरी नही कि तुम्हें भी होना पड़े" अपने इस सामान्य कथन की आड़ मे वह अपने पिछले कथन की ज्वलनशीलता को कम करने का झूठा प्रयास करता है और अपनी माँ के हाथ से पिज्जा स्लाइस अपने दाएं हाथ मे लेकर वह फौरन उसे उसके बंद होंठों से सटा देता है। बड़े जतन के उपरान्त वैशाली अपने भींचे जबड़ों को ढ़ीला छोड़ पाई थी और अपने होंठ खोल पिज्जा का छोटा--सा नुकीला भाग काटकर वह पुनः अपने होंठ सी देती है।

"कैसी परेशानी? हम्म! और ऐसे काम नही चलेगा, तुम भी खाओ चुपचाप" अभिमन्यु को ना खाते देख वैशाली उसके हाथ से पिज्जा स्लाइस छीनकर उसे डांटते हुए बोली और जबरदस्ती स्लाइस उसके अधखुले होंठों के भीतर ठूंस देती है। तत्पश्चात उसने बड़ी सफाई से अपनी चौड़ी टांगों को आपस मे चिपकाया ताकि उसकी चिकनी नंगी जांघों का निचला भाग बेटे की नंगी बालों भरी जांघों के ऊपर से हट जाए, जिसपर पनपे पसीने के चिपचिपे अहसास से लगातार उसकी चूत पनिया रही थी।

अपनी माँ के कथन मे शामिल प्रश्न को सुनकर अभिमन्यु उसका जवाब सोचते हुए पिज्जा चबाने लगा, वह एकाएक इतना अधिक ध्यानमग्न हो गया था कि अपनी माँ की टांगों का एकदम से हिलना-
डुलना भी महसूस नही कर पाता और जब वैशाली उसे पुकारते हुए पुनः उसकी ओर पिज्जा बढ़ती है तब कहीं जाकर वह अपनी गहरी सोच से बाहर निकल पाता है।

"मॉम! मेरा लंड इस बुरी तरह दुखने लगा है कि मुझसे ठीक से खाया भी नही जा रहा" वह बेझिझक बोला और पिज्जा की अगली फरमाइश को फौरन ठुकरा देता है, उसके इस लज्जाहीन कथन को सुनकर तो जैसे वैशाली का रोम-रोम सिहर उठा था और स्वयं अपने बेटे समान उत्तेजित वह कामलुलोप माँ तत्काल भावनाओं के वशीभूत होकर अपनी हाल मे ही जोड़ी हुई जांघों को बलपूर्वक आपस मे घिसना शुरू कर देती है।

"माँ तुम्हारी चूत मे भी खुजली मच रही है ना? वहां, उस शीशे मे साफ दिख रहा है" अभिमन्यु ने एकाएक जोरों से हँसते हुए कहा, वह अपने दाएं हाथ की प्रथम उंगली से बिस्तर के ठीक सामने स्थापित ड्रेसिंग टेबल के बड़े--से दर्पण की ओर इशारा करता है। अपने बेटे के अश्लील प्रश्न को सुन वैशाली ने भी अत्यंत तुरंत अपनी उड़ती निगाहें उसके ड्रेसिंग टेबल के कांच पर डा़ली और उसमे खुद को अपने ही बिस्तर अपने पर सगे जवान बेटे से टिक कर बैठे देख वह आंतरिक शर्म से पानी-पानी हो जाती है, सबसे विशेष विचारने योग्य बात कि उस वक्त वह दोनो ही अपने-अपने निचले धड़ से लगभग पूरे नंगे थे जो ना तो उस वक्त के अनुकूल था और ही उसके मर्यादित पवित्र रिश्ते के। उस माँ ने अपनी और अपने बेटे की बैठक स्थिति पर भी गौर किया तो पाया कि वह किसी भी कोंण से अभी एक माँ नजर नही आ रही थी, आ रही थी तो कोई अधेड़ उम्र की वैश्या जिससे दूना छोटा उसका ग्राहक उसके पीछे बैठा उसे अपनी मजबूत बांहों मे जकड़कर उनकी आगामी चुदाई की चाह मे खुद भी बेहद उत्तेजित व उत्साहित हो रहा था।




उठने दो मन्यु, मुझे भी भूख नही है" अपने बेटे के दोनो हाथ अपने बदन से झटकने का प्रयास करते हुए वैशाली ने अपनी जगह उठना चाहा मगर हरबार की तरह इसबार भी वह अभिमन्यु पर अपने स्त्री बल का कोई खास प्रभाव नही दिखा पाती, बिस्तर से उठना तो दूर वह अपनी जगह से हिल भी नही पाई थी।

"अच्छा! अच्छा! मेरे कुछ सवालों का सही जवाब दो तो तुम्हें जाने दूंगा" कहकर अभिमन्यु ने पुनः उसे अपनी ओर खींचा और थोड़ा बहुत अंतर जो उनके शारीरिक स्पर्श मे आया था वह दोबारा से मिट जाता है, एकबार फिर माँ-बेटे एक-दूसरे से बुरी तरह चिपक जाते हैं।

"तुम कब से नही चुदी?" उसने बिना समय गंवाए पूछा।

"अठारह दिनों से, अब खुश ...अब मुझे उठने दो" समय व्यतीत करने का कोई विशेष लाभ नही मिलने की वजह से वैशाली भी बिना सोचे-विचारे अतिशीघ्र जवाब दे देती है।

"पापा तुम्हें चोदते नही क्या? वह तो इस बीच दो रातें घरपर रुके थे और अपनी ये टांगें चौड़ाओ" अभिमन्यु का अगला सवाल जैसे पहले से ही तैयार था और साथ ही वह अपने दोनो हाथ अपनी माँ की जुड़ी हुई जांघों पर रख देता है। उसने दोबारा अपना चेहरा वैशाली के खुले बालों के भीतर कर दिया और पलभर मे पुनः उसकी गर्दन को चाटना शुरू कर देता है।

"मन्यु गलत है ये, तुम मुझे कमजोर कर रहे हो। बेटा अपनी माँ से ऐसे निजी सवाल नही करता, उफ्फ! मैं क्या करूं इस लड़के का" एकसाथ कई हमलों से बहकने के चरम पर पग धरती वह माँ कुंठा भरे स्वर मे बोली। यह उसपर बेटे की कोई जबरदस्ती नही थी, जबरदस्ती तब कैसे मानी जाती जब वह अपने बेटे की निकृष्ट इच्छा व आज्ञा के समर्थन मे बिना उसकी जोर-आजमाइश के खुद ही अपनी जांघों को पहले से भी कहीं अधिक चौड़ा देने का नीच कर्म कर बैठती है, उसके बेटे ने तो अपने हाथ मानो शून्य से कर लिए थे।

"तुम कमजोर नही डरपोक हो माँ। तुम भी मेरी हो और तुमसे जुड़ी हर बात, हर चीज भी अब मेरी है। आखिर हम दोनो ही एक-दूसरे से प्यार जो करते हैं"
कहकर अभिमन्यु अपना ढ़ेर सारा लार अपनी माँ की गर्दन पर उगल देता है और फिर तत्काल वह अपनी जीभ अपनी ही लार मे लपलपाने लगा, उसे जीभ के जरिये उसकी पूरी गर्दन पर मलने लगता है और कुछ ही क्षणों बाद उने एकबार फिर से अपनी माँ की नाजुक गर्दन को तीव्रता से चूसना शुरू कर दिया था।

"वह थक गये थे इसलिए मुझे नही चोदा" कहने को तो कमुकता की चपेट मे पूर्णरूप से आ चुकी वैशाली के मुंह से अचानक 'चोद' जैसे देशी शब्द का उच्चारण हो गया था मगर कह चुकने के उपरान्त वह अब कर भी क्या सकती थी, बस अपनी जांघों की अंदरूनी मांसल त्वचा पर अपने नुकीले नाखून गड़ाते हुए वह अपनी सिस्कारियों को रोकने का व्यर्थ प्रयत्न करने लगती है। अपनी गर्दन पर अभिमन्यु के होंठों का मर्दन उससे बरदाशत कर पाना मुश्किल था और इसी बीच जाने कब निर्लज्जतापूर्ण ढ़ंग से वह अपनी कमर को पीछे धकेलते हुए अपनी गुदाज गांड बरबस अपने बेटे के खड़े कठोर लंड पर ठोकने लगती है, उसे स्वयं पता नही चल पाता।

"हमसब दो रोटी कम खा लेते, फिजूलखर्ची बंद कर देते, लोकल ट्रांसपोर्ट का यूज कर लेते, लाख तरीके हैं पैसे बचाने के मगर पापा को तो हमेशा तुम्हें सताने मे ही मजा आता है। अब देखो उनकी बीवी कितनी चुदासी हो गई है मगर चुदास बुझाने वाले वह यहाँ है नही और मैं पहले ही कह चुका हूँ कि तुम्हें चोदना नही चाहता" अभिमन्यु ने उसकी गर्दन को चूमना-चूसना कुछ पलतक रोकते हुए कहा, अपने नीच शब्दों पर वह खुद हैरान था और यह यकीनन इस बात का प्रमाण था कि अब कमरे का वातावरण कहीं से भी सामान्य या मर्यादित नही रहा था।





मत ...मत करो ऐसी गंदी बातें अपनी माँ से। तुम्हारे पापा वाकई मुझे सताते हैं मन्यु और मैं कुछ नही कर पाती" अपने बेटे के विस्फोटक कथन से एकाएक दो तरफा बंट गई वैशाली अपने बाएं हाथ के पंजे मे खुल्लम-खुल्ला अपनी कच्छी के भीतर रस उगलती अपनी अतिसंवेदनशील चूत को भींचते हुए बोली और ठीक उसी वक्त अभिमन्यु अपनी दाईं हथेली से अपनी माँ के दाहिने मम्मे को जकड़ लेता है और बाएं पंजे को वह उसकी माँ के हाथ के ऊपर रख उसके साथ स्वयं भी उसकी चूत को दबोचने लगता है। कोई संकोच नही और ना ही कोई भय, वासना की प्रचूरता मे वह बेहद निर्भीक हो चला था। पहली बार वह अपनी माँ के गदराए अधनंगे बदन को इतने करीब से महसूस कर रहा था और जिसकी तपिश ने उसके सोचने-समझने की सारी क्षमता को अपने आप ही क्षीण कर दिया था।

वहीं वैशाली का हाल इससे भी बुरा था। उसकी गर्दन पर लगातार बेटे के होंठ रेंग रहे थे, वह बलपूर्वक ब्लाउज के ऊपर से उसका दायां मम्मा मसले जा रहा था, उसकी चूत मुख को ऐंठने व भींचने मे वह दोनो ही एकसाथ व्यस्त हो गये थे और स्वतंत्ररूप से उसकी गांड जोकि अब उसके स्वयं के वश से कोसों दूर काफी तेजी से बेटे के तने हुए लंड से रगड़ खाए जा रही थी, उसपर अविराम ठोकरें मारे जा रही थी।

"मैंने गलत नही कहा माँ, तुम सचमुच चुदासी हो और इस समय तुम्हें वाकई एक लंबे, मोटे-तगड़े लौड़े की जरूरत है जो तुम्हारी चूत मे घुसकर तुम्हें पटक-पटककर चोद सके, तुम्हारी चुदास पूरी तरह से मिटा सके" अभिमन्यु शर्म और हया की सभी सीमाओं को लांघते हुए कहता है।





बोलो कि तुम चुदासी हो माँ और तुम्हें जी भरकर चुदना है, सिर्फ एक ताकतवर लौड़ा ही तुम्हारी असली प्यास बुझा सकता है और तुम्हें वह लौड़ा किसी भी हालत मे चाहिए" उसने नीचतापूर्वक अपने पिछले कथन मे जोडा़ और फिर बिना रूके पूरी शक्ति से अपनी माँ का दायां मम्मा निचोड़ने लगा, साथ ही कच्छी के ऊपर से फौरन वैशाली का हाथ झटककर अपने बाएं पंजे से स्वयं अकेले ही वह उसकी गीली चूत को रगड़ने लगता है।

"न ...नही, नही आह! नही चाहिए मुझे" सीत्कारते हुए वैशाली का मुंह खुल गया, उसकी गर्दन अकड़ने लगी और गहरी-गहरी सांसें लेती हुई वह अपने चरमोत्कर्श पर पहुँच जाने को विवश होने लगती है।

"तुम झूठी हो माँ, कहो कि तुम्हें इसी वक्त चुदना है। तुम्हें बस लंड चाहिए और कुछ नही वर्ना मैं अपने कमरे मे जाता हूँ" झूठी धमकी देकर भी अभिमन्यु उसके बदन को छेड़ना नही छोड़ता, बल्कि अब वह भी अपनी कमर हिला-हिलाकर अपनी माँ की गांड से ताल मिलाते हुए ही अपने विशाल लंड का तीव्रता से उसकी गांड पर देने लगा था।

"मत ...मत उन्ह! उन्ह! मन्यु मत ...मत" इसके आगे वैशाली की आवाज उसके गले से बाहर निकलना बंद हो जाती है और ठीक इसी निश्चित समय पर अभिमन्यु भी उसे एकदम से छोड़ देने का नाटकीय उपक्रम कर देता है।

"हाँ चाहिए मुझे लंड और मैं हूँ चुदासी, बहुत बहुत बहुत ज्यादा चुदासी है तुम्हारी माँ अभिमन्यु। मेरे लाल कुछ करो वर्ना ...." वैशाली ने सहसा चीखते हुए कहा और अविलंब बेटे के दाहिने हाथ को पकड़कर खुद अपनी कच्छी के ऊपर से अपनी गीली चूत पर पटापट थप्पड़ मारने लगी।






आईऽऽ! मैं भी उन्हीं रंडियों की तरह बेशर्म होकर चुदना चाहती हूँ जिन्हें छुपछुप कर तुम चोदने जाते हो। मुझे भी रंडी बनना है, अभी बनना है, अभी हाल बनना है मन्यु" चिल्लाते हुए वैशाली के मुंह से लार बाहर निकल आती है, अपनी ही पापी इच्छा पर वह कामांध माँ अतिशीघ्र अपने बाल नोंचने लगी थी।

"उतारो अपनी कच्छी, तुम्हें चोदूंगा नही पर देखता हूँ इसके अलावा और क्या किया जा सकता है" अपनी माँ के हाथों से उसके बाल छुड़वाते हुए अभिमन्यु का दिल अंदर ही अंदर फट पड़ा था, उसके मन-मस्तिष्क मे बस एक ही गूंज उठ रही थी कि उसके वादे-अनुसार वह किसी भी परिस्थिति मे अपनी माँ को चोद नही सकता था पर यह भी जानता था कि उसकी माँ के दर्द का एकमात्र मर्ज सिर्फ उसका अपना लंड है क्योंकि उसका पिता पैसे कमाने मे व्यस्त था और उसकी माँ घर की चारदीवारी के बाहर कभी मुंह मार नही सकती थी, यदि मुंह मारना ही होता तो इतना दर्द झेलने पर मजबूर नही होती।

वह वैशाली को आगे झुकाकर उसके पीछे से तत्काल उठ खडा़ हुआ और अपने स्थान पर अपनी माँ को टिकते हुए उसकी सुर्ख लाल आखों मे झांकने लगता है। उसकी माँ के खुले बाल, ब्लाउस के भीतर उसकी तेजी से बढ़ती-घटती सांसों के प्रभाव से लगातार ऊपर-नीचे होते उसके गोल-मटोल मम्मे, मम्मों की गहरी घाटी के बीचों-बीच फंसा उसका पतिव्रत मंगलसूत्र, सपाट पेट नंगा, बेहद पतली कमर, पसीना एकत्रित करती उसकी गोल-गहरी नाभी, पेडू से भी नीचे सरक चुकी उसकी कच्छी और कच्छी की बगलों से बाहर झांकती उसकी घनी-घुंघराली काली झांटें, मांसल चिकनी दोनो जांघें, गौरवर्णी पिडलियां, पायल से सजी एडियां और उम्र मुताबिक घिस चुके दोनो तलवे; उसकी माँ का अत्यंत कामुक अंग-अंग उसकी आँखों को बेहद आकर्षित कर रहा था, साथ ही आनंदित और आंदोलित भी।
उतारो कच्छी, अपनी टांगें क्यों मोड़ ली?" अपने बेटे की आँखों का अपनी माँ के अधनंगे बदन का यूं खुल्लम-खुल्ला शर्मनाक अवलोकन करना वैशाली सहन नही कर पाती और अपने घुटनों को मोड़ लज्जा से अपना सिर नीचे झुकाकर गुपचुप बैठ जाती है मगर जल्दबाजी मे वह यह भूल गई थी कि अपने पैरों को मोड़कर उन्हें अपनी छाती से चिपकाकर बैठने से उसने अभिमन्यु पर अचानक क्या गदर ढ़ा दिया था। उसकी कच्छी जो कि पहले से ही उसकी गांड की गहरी दरार के भीतर फंसी हुई थी उसकी तात्कालिक बैठक के बाद तो जैसे उसकी गांड के दोनो पट बिलकुल नंगे दिखाई देने लगे थे और तो और कच्छी का सेटिन कपडा व हल्के पीले रंग की रंगत के गीले हो चुकने के उपरान्त उसकी चूत का पूरा फूला उभार कच्छी के ऊपर से अभिमन्यु को स्पष्ट नजर आ रहा था, यहाँ तक की वह अपनी माँ की चूत के दोनो सूजे होंठों का निरंतर फड़फड़ना भी प्रत्यक्ष देख पा रहा था।

"उतारो ना कच्छी या कहो तो मैं खुद उतार दूँ" कहकर वह वैशाली की ओर अपने हाथ बढ़ाने लगता है।

"खबरदार मन्यु" एकाएक वह कठोर स्वर मे बोली और जिसके नतीजन सकपकाकर अभिमन्यु फौरन अपने हाथ पीछे खींच लेता है।

"चोदोगे नही तो फिर कैसे शांत करोगे अपनी माँ को? उसकी चूत मे उंगलियां डालकर या सीधे चूत को अपनी जीभ से चाटने लगोगे, होंठों से उसे चूसने लगोगे? इसके बाद कहोगे कि माँ अब तुम मेरा लंड हिलाओ या अपने मुंह से चूसकर मुझे भी शांत करो, है ना?" वैशाली ने पिछले कथन मे जोड़ा मगर इसबार उसका स्वर सामान्य था। कोई क्रोध नही, कोई शर्म नही, कोई अतिरिक्त हकलाहट भी नही; बिलकुल शांत।






देखो मन्यु! इतने दूर पहुँचकर मैं यह नही कहती कि वापस पीछे लौटो, मैं खुद नही लौट सकूंगी पर यह भी सही नही कि हम एकदम से अपने रिश्ते की पवित्र दीवार को ढ़हा दें। मुझे कुछ वक्त दो, तुम मुझे चोदना नही चाहते यह वाकई तुम्हारी तारीफ है पर मेरे बारे मे भी तो सोचो कि तुम्हारी सगी माँ होने के बावजूद कहीं मैं खुद बहक गई फिर तुम्हारे प्रॉमिज का क्या मतलब रह जाएगा?" मुस्कुराते हुए ऐसा कहकर वैशाली अपने हाथ के दोनो अंगूठे एकसाथ अपनी कच्छी की इलास्टिक के भीतर फंसा लेती है और अपनी मुड़ी हुई टांगों को हवा मे ऊपर उठाकर कच्छी को हौले-हौले अपने यथावत स्थान से उतारने लगी।

"तुम चाहो तो एकबार फिर से अपनी माँ की नंगी चूत को देख सकते हो, बल्कि मैं खुद ही चाहती हूँ कि मेरा सगा जवान बेटा सचमुच मेरी चूत को जी भर देखे" अभिमन्यु के चुपचाप बैठे रहने के कारण वह उसे उत्साहित करते हुए बोली और अपनी उतर चुकी कच्छी को सीधे अपने बेटे के चेहरे पर मारकर जोरों से हँस पड़ती है।

"नाराज मत होना मॉम बट मुझे भी टाइम चाहिए सोचने को और फिर इसे मेरी खुल्ली धमकी समझो या मेरा प्यार कि अगली बार मैं तुम्हारे रोके नही रुकूंगा, तुम्हें चोदने के अलावा तुम्हारे साथ मुझे जो कुछ करना होगा मैं वह करके ही मानूंगा" ऐसा कहकर अभिमन्यु अपनी माँ को सफा चौंकते हुए अत्यंत तुरंत बिस्तर से नीचे उतर जाता है, वैशाली के अपनी कच्छी को उतारकर अपनी टांगें विपरीत दिशा मे चौड़ा देने के बाद भी उसने अपनी एक नजर अपनी माँ की नंगी चूत पर नही डाली थी और बेटे की इसी विशेष हरकत ने उसकी माँ को सहसा अचंभित कर दिया था। वह वैशाली की कच्छी को वहीं बिस्तर पर छोड़कर अपने खुद के उतरे हुए कपड़े फर्श से उठाने लगा है और फिर धीमे स्वर मे उसे "गुड नाइट" कहकर तेजी से उसके बेडरूम से बाहर निकल जाता है।





तिरस्कार! इस शब्द से शायद ही संसार की कोई परिपक्व स्त्री अंजान होगी, पहले अपने पति मणिक के और अब अपने बेटे अभिमन्यु के हाथों तिरस्कृत होकर ना चाहते हुए भी वैशाली उसे खुद से दूर जाने से रोक नही पाती, बस हतप्रभ कभी अपनी कच्छी को तो कभी गाढ़े रस से सराबोर अपनी चूत को घूरते हुए लंबी-लंबी सांसें भरने लगती है। वहीं अपनी माँ की अंतिम बातों व तर्कों ने अभिमन्यु को एकाएक भीतर तक हिलाकर रख दिया था और पहली बार वह उनके पवित्र रिश्ते की निरंतर तीव्रता से खोती जा रही गरिमा के विषय मे सोचने पर मजबूर था, हालांकि वह तत्काल क्या सोचकर अपनी माँ के बेडरूम से बाहर निकल आया था इसका कोई कारण तो उसे नही सूझ पाता मगर अपने बिस्तर पर गिरते ही अब यकीनन वह पहले से कहीं अधिक गंभीर हो चुका था।

बिस्तर एक से परंतु उनपर लेटे प्राणियों की आँखें नींद से मीलों दूर, दिन तो बीत गया था पर यह रात थी जो बीतने का नाम ही नही लेना चाहती थी।
 
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Rabia

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प्रातःकाल अभिमन्यु की नींद जरा देर से खुली, यह कतई उसकी दिनचर्या मे शामिल नही रहा था कि बीती रात वह कितनी ही देर तक क्यों ना जागता रहा हो मगर सुबह तड़के ना उठ सके। पलकें खोल उसने दीवार घड़ी पर नजर ड़ाली और अत्यंत-तुरंत निद्रा की बची खुमारी से बाहर निकल आता है, साढ़े आठ बज चुके थे और रोज की तरह अबतक उसे कॉलेज जाने के लिए तैयार हो जाना चाहिए था।

"शिट! आज लेट हो गया" एक जोरदार अंगड़ाई लेते हुए सहसा उसे अपनी नग्नता का अहसास हुआ और बीती रात का हर लम्हा मानो किसी चलचित्र की भांति उसके मन-मस्तिष्क मे घूमने लगता है।

उसे अच्छे से याद था कि अपने कमरे मे लौटने के पश्चात वह वापस अपनी माँ के बेडरूम की ओर गया था और इसबार वह पूरी तरह से नंगा था, हालांकि उसके बेडरूम के भीतर पुनः प्रवेश करने की उसकी हिम्मत नही हो सकी थी मगर बेडरूम के खुले दरवाजे पर वह काफी देर तक खड़ा रहा था। कमरे मे फैली नाइट बल्ब की हल्की मगर दूधिया रोशनी मे उसे उसकी माँ अपनी उसी अधनंगी अवस्था मे बिस्तर पर लेटी हुई दिखाई दी और उसकी खुली आँखों को खुद पर गड़े देख अभिमन्यु तत्काल पीछे भी नही हट पाया था।

दोनो टकटकी लगाए एक-दूसरे को ही देख रहे थे मगर उनकी सांसें, धड़कने तक स्वत: ही मूक हो गई थी। हॉल की एलईडी मे वैशाली अपने बेटे के नंगे बलिष्ठ शरीर को सरलतापूर्वक बेहद स्पष्टरूप से देख पा रही थी और समयानुसार उसकी आँखें बेटे के पेट से बारंबार ठोकर खाते उसके अत्यंत कठोर लंड से चिपककर रह जाती हैं। अभिमन्यु के शरीर के ठीक विपरीत उसका गुप्तांग पूरी तरह से रोम-मुक्त था, सूजे सुपाडे़ से लगातार बाहर छलकते चिपचिपे रस के कारण अपने सगे जवान बेटे का सुपाड़ा उस माँ को उतने दूर से भी काफी चमकता हुआ नजर आ रहा था, साथ ही उसके लंड की गोलाई उसे स्वयं अपनी कलाई समान मोटी प्रतीत हो रही थी और जिसके नीचे लटके उसके बरबस
फूलते-पिचकते टट्टे पर तो मानो एकाएक उस कामांध माँ का प्रेम ही उमड़ पडता है, उसकी निकृष्ट सोच के मुताबिक जिनके भीतर सिवाय गाढ़े वीर्य के कुछ और भरा भी नही हो सकता था।

वैशाली के ह्रदय मे अचानक टीस उठने लगी कि काश वह अपने बेटे को उसकी उसी नग्नता मे बेहद करीब से देख पाती, हालांकि अभिमन्यु के जवान होने के बाद वह उसका लंड पहले भी कई बार देख चुकी थी मगर तब हमेशा उसके अंतर्मन मे ग्लानिभाव उभर जाया करते थे और क्षणिक समय मे ही वह अपनी आँखें दूसरी दिशा मे मोड़ लिया करती थी, जो ग्लानिभाव अभी वर्तमान मे उस माँ को जरा भी महसूस नही हो रहे थे। दोनो माँ-बेटे जाने कितनी देर तक एक-दूसरे के चेहरे, नग्न बदन को घूरते रहे मगर चाहकर भी कुछ कह-सुन नही पाए थे और जब अभिमन्यु अपनी माँ की कामुक आँखों का लगातार जुड़ाव अपने खड़े लंड पर बरदाश्त नही कर पाता वह तीव्रता से अपने कमरे मे वापस लौट आया था।

"इसलिए मैं नंगा हूँ और माँ के लौड़े! तू सप्राइज मतो हो कि तू क्यों फड़फड़ा रहा है?" बीती यादों से बाहर निकल अपने लंड की कठोरता पर अभिमन्यु चूतियों जैसे उसे डांटते हुए बड़बड़ाया।

"सप्राइज!" उसका कहा यह विशेष शब्द मानो उसे बिस्तर पर उछल पड़ने पर मजबूर कर देता है क्योंकि उसके शैतानी दिमाग मे एकाएक एक ऐसा पापी ख्याल पनप चुका था कि जिसके पनपने के उपरान्त वह फौरन किसी राक्षस समान अपने नुकीले दांत बाहर निकाल देता है।

"श्श्श्! आवाज नही होनी चाहिए" बिस्तर से नीचे उतरते हुए वह हौले से फुसफुसाया और बेहद धीमी चाल चलते अपने कमरे के बंद दरवाजे के नजदीक आ जाता है। आगे वह जो कुछ भी अनर्थ करने वाला था उस पर एक अंतिम विचार करते समय उसे अहसास हुआ जैसे वह एकदम से झड़ने के करीब पहुँच गया हो, अपने ही लंड की असीम कठोरता ने आज उस जवान युवक को बुरी तरह से चौंकने पर मजबूर कर दिया था।






अभिमन्यु ने हल्के हाथ से दरवाजे का नॉब घुमाया और खटपट की कोई ध्वनि सुनाई नही देने पर उसका आत्मविश्वास पल मे दूना हो जाता है, तत्पश्चात थोड़ा पीछे हटकर वह दरवाजे को भी बिना किसी चरमराहट के खोल देने मे सफल हो गया। किस्मत उसके साथ है ऐसा सोच उसने मन के सारे नकारात्मक विचार फौरन त्याग दिए और कुछ गहरी सांसें लेकर वह नंगा ही अपने कमरे की दहलीज को लांघ जाता है।

किस्मत व भाग्य हमेशा आपके पक्ष मे हों यह जरूरी नही और यही तत्काल अभिमन्यु के साथ हुआ, अभी अपने दो कदम भी वह आगे बढ़ा नही पाया था कि सामने के दृश्य को देख उसका सर्वस्व हिल उठता है। भय, घबराहट, रोमांच, उत्तेजना एकसाथ कई भाव मिलकर उसपर टूट पड़े थे क्योंकि हॉल की डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर बैठकर आज का अखबार पढ़ता उसका पिता उसे दिखाई दे गया था। मणिक की पीठ उसकी ओर होने से वह उसे उसकी नंगी हालत मे देख तो नही सकता था पर अगले ही क्षण तब दोबारा उस नंगे नौजवान पर बिजली गिर पड़ती है जब ठीक उसी वक्त उसकी माँ भी किचन से बाहर निकल आती है।

किस्मत ने बीती रात को पुनः दोहरा दिया था परंतु कुछ बदलाव के साथ। बीती रात बीतकर सुनहरी सुबह मे तब्दील हो चुकी थी और माँ-बेटे के अलावा अब एक तीसरा शख्स भी घर के भीतर मौजूद था जो कि उम्र और रिश्ते मे उन दोनो से बड़ा था। जहाँ वह वैशाली का पति था वहीं अभिमन्यु का पिता भी और मुख्यत: इसी कारणवश बेटे के बाद अब चौंकने की बारी उसकी माँ की थी मगर फिर भी आनन-फानन मे खुद को संयत करते हुए उसने उड़ती-फिरती नजर कुर्सी पर बैठे अपने पति पर डाली जिसका चेहरा उस वक्त अखबार के पीछे छुपा हुआ था। एक माँ और एक पत्नी, दो अत्यंत महत्वपूर्ण रिश्तों का निर्वाह करने वाली वह अधेड़ स्त्री एकाएक उस तात्कालिक परिस्थिति को समझ सकने मे असमर्थ थी और लज्जा, निराशा, क्रोध, रिश्ता, संस्कार, मान-मर्यादा आदि कई भावनाओं से ग्रसित वह स्वयं अत्यधिक रोमांच से भर उठती है






अपने पति की प्रत्यक्ष मौजूदगी मे अपने सगे जवान बेटे को पूर्वरूप से नंगा देख वैशाली की चूत से जैसे क्षणमात्र मे ही भलभलाकर रस टपकने लगा, अपनी गांड के छेद पर वह असंख्य चींटियों के काटने समान पीड़ा का अनुभव करने लगी थी और जिस तक स्वतः ही अतिशीघ्र उस कामुत्तेजित माँ का दायां हाथ पहुँच जाता है। अपनी मैक्सी के ऊपर से अपनी गांड के छेद को बेशर्मीपूर्वक खुजलाना शुरू कर चुकी वह माँ अपनी नीचता की पिछली सभी सीमाओं को पार कर सीधे अपने बेटे के लगातार ठुमकियां खाते कठोर लंड को बुरी तरह घूरने लगती है, उसने एक नजर पुनः अभिमन्यु के चेहरे को ताकने तक का विचार नही किया था और लग रहा था कि जैसे अपने पति की उपस्थिति मे अपने बेटे के उत्तेजित गुप्तांग को देखना उसे बीती रात की अपेक्षा अभी ज्यादा रास आ रहा था।

अपनी माँ की लज्जाहीन आँखों का केन्द्रबिंदु बने अपने लंड पर इस प्रकार का आघात ना तो अभिमन्यु बीती रात झेल सका था और इस रोमांचक परिस्थिति मे तो उसका अपना पिता भी जाने-अनजाने उसे अपनी उपस्थिति दर्ज करवाता हुआ जान पड़ रहा था। अपनी माँ की गांड खुजाई और उसे अपना निचला होंठ चबाते हुए अपने बेटे के लंड को घूरते देख वह उसी पल अपने दोनो हाथ एकसाथ अपने खुले मुंह पर रखकर उसे बलपूर्वक बंद कर देने पर विवश हो गया क्योंकि जीवन मे पहली बार बिना हाथ लगाए ही उसका लंड अपने आप स्खलित होने लगता है। उसकी आंखों के आगे अंधेरा छा जाता है, बदन स्खलन के चरम की मार से कंपकापा उठता है, कमर स्वतः हिलने लगती है और कहीं उसके मुंह से कोई आवाज बाहर ना निकल आए वह फौरन अपने जबड़े भी भींच लेता है।





वैशाली के साथ भी एकाएक यही हुआ और वह भी अपने बाईं हथेली को शक्तिपूर्वक अपने मुंह पर दबा देती है और अपनी गांड खुजाते हुए मंत्रमुग्ध कर देने वाले अपने बेटे के लंड को प्रत्यक्ष झड़ते हुए देखने लगती है। बेटे के आलूबुखारे समान सुपाड़े से गाढ़े सफेद वीर्य की लंबी-लंबी फुहार निकालती देख तत्काल उसे भी अपना चरम महसूस होने लगा था मगर ठीक उसी क्षण मणिक ने अखबार का पन्ना पलटा और ज्यों ही उसकी नजर सामने खड़ी अपनी पत्नी पर गई वह अत्यंत-तुरंत जोरदार छींकने का अभिनय कर देती है।

"जुकाम हो गया है क्या?" मणिक फौरन पूछता है।

"और अपने वहाँ क्यों खुजा रही हो, कोई तकलीफ?" उसने लगातार पिछले प्रश्न मे जोड़ा।

"ना ही जुकाम है और ना ही कोई तकलीफ है, अब खुजली मच रही थी तो क्या खुजाऊँ नही" वैशाली ने जवाब दिया और कहीं उसके पति को उसके नाटक का पता ना चल जाए, वह तत्काल अपनी गांड खुजाना बंद नही करती। उसने आँखों के किनोर से देखा तो अभिमन्यु उसे उलटे कदमों से अपने कमरे के भीतर जाता हुआ नजर आता है और तभी वैशाली के चेहरे पर अचानक ही मुस्कुराहट फैल जाती है।

"अभिमन्यु को उठा देती हूँ, उसे कॉलेज भी जाना होगा" कहकर वह अपने स्थान से आगे बढ़ गई।

"यह भी कोई सोने का टाइम है, नालायक कहीं का" मणिक अपने चिर-परिचित अंदाज मे भड़का।

"रात चार बजे तक पढ़ता रहा था, अब क्या चार घंटे भी ना सोय" एकदम से वैशाली का स्वर भी ऊंचा हो गया और फर्श पर जहां-तहां बिखरे पड़े अपने बेटे के वीर्य को ललचाई नजरों से देखती हुई वह उसके कमरे के अंदर प्रवेश कर जाती है, उसका बेटा दरवाजे के पीछे दीवार से टिककर खड़ा गहरी-गहरी सांसें लेते हुए अपने हाथों से अपने चेहरे का पसीना पोंछ रहा था।




"हो गया" वह अभिमन्यु के लाल पड़े चेहरे को देख हौले से फुसफुसाई और कमरे के दरवाजे को आधा बंद कर सीधे अपने घुटनों के बल नीचे फर्श पर बैठ जाती है।

"कुछ खाते-पीते हो नहीं और मुट्ठ मारोगे दिन मे दस बार" मुस्कान के साथ वह पुनः धीमे स्वर मे बोली और बेटे की आँखों मे झांकते हुए ही उसके झड़ चुके लंड को उसकी जड़ से, अपने बाएं हाथ की प्रथम उंगली और अंगूठे के बीच पकड़ लेती है।

"उफ्फ! पापा ....पापा कैसे ....." अभिमन्यु मानो अबतक भय और रोमांच से कांप रहा था। उसे यह तक अहसास नही हो पाता कि जवान होने उपरान्त पहली बार उसकी सगी माँ उसके लंड का स्पष्ट स्पर्श कर रही थी, अपनी उंगलियों से उसके लंड की नग्न त्वचा को छू रही थी।

"तुम्हारी इस बेवकूफी से तो मैं बाद मे निपटूंगी, पहले यह बताओ कि तुम्हें आखिर सूझा क्या था?" कहकर वैशाली अपनी मैक्सी का पिछला अंतिम सिरा अपने दाएं हाथ से ऊपर उठाने लगी, उसने अपने घुटनों के भी ऊपर-नीचे किया और जिसके नतीजन क्षणभर मे उसकी मांसल गांड नंगी हो जाती है मगर अब उसे अपने बेटे से कोई झिझक, कोई शर्म महसूस नही हो रही थी बल्कि अपनी मैक्सी के छोर से वह प्रेमपूर्वक बड़ी नाजुकता से अभिमन्यु के वीर्य से लथपथ सुपाड़े को पोंछने लगी थी।

"पापा बाहर हैं माँ" अपने कमरे के अधखुले दरवाजे के उसपार अपने पिता की मौजूदगी का ध्यान कर वह वैशाली को रोकने के उद्देश्य से नीचे झुकते हुए बोला।

"तो होने दो, अपने बेटे के लंड को साफ कर रही हूँ इसमे उनकी क्यों जलती है" वैशाली लापरवाही से अपने दोनो कंधे उचकाकर कहती है, अभिमन्यु तो जैसे उसके कथन मे छुपे साहस से अचंभित--सा हो जाता है। कहाँ घड़ी-घड़ी रोने-धोने मे लगी रहती उसकी ड़रपोक माँ अचानक इतनी हिम्मतवाली कैसे हो गई थी, वह यही सोच रहा था।






नही! नही! पागल दोबारा नही" एकाएक बेटे के लंड मे तेजी से आते तनाव को देखकर सहसा वैशाली चिहंक पड़ती है और ठीक उसी वक्त उसके सुपाड़े से अपने मखमली होंठ सटाकर उसका एक लघु चुंबन लेने के उपरान्त वह फौरन फर्श से उठकर खड़ी हो गई।

"एक माँ कभी अपने जवान बेटे के लंड को नही चूमती पर फिर भी अपने जिगर के टुकड़े की जवानी पर निहाल होकर मैंने तुम्हारे लंड को चूमा, मेरे इस चुम्बन को कभी मत भूलना मन्यु जो तुम्हें मेरी, यानी कि संसार की सबसे ज्यादा प्यार करने वाली माँ की याद दिलाता रहेगा" कह चुकने के बाद वैशाली ने उसके माथे पर भी चूमा और पलटकर कमरे से बाहर निकल जाती है।

अभिमन्यु काफी देर तक दीवार से सटा खड़ा रहा, इसके बाद वह सीधे अपने बाथरूम मे घुस जाता है। नाश्ते के समय उसकी हल्की-फुल्की बातचीत अपने पिता से भी हुई और मणिक ने ही उसे बताया कि उसका यह टूर किसी कारणवश रद्द कर दिया गया है मगर उसके अगले टूर के बारे मे पूछने की ना तो अभिमन्यु की हिम्मत हो सकी थी और ना ही मणिक ने स्वयं उसे बताया था।

"मॉम! कॉलेज जा रहा हूँ, लंच पर घर आऊँगा आज कैंटीन बंद रहेगी" किचन मे काम करती अपनी माँ के कान खड़े करने के बाद वह तेजी से फ्लैट के बाहर निकल जाता है क्योंकि अब वही एकमात्र समय था जब उसे उसकी माँ के साथ भरपूर एकांत मिल सकता था वर्ना अपने पिता की मौजूदगी मे तो वह शायद ही फिर कभी वैशाली के करीब फटक सकता था।
 
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Rabia

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आज अभिमन्यु कॉलेज के भीतर ना जाकर, कॉलेज गेट के बाहर बने चाय-नाश्ते के टपरे पर बैठ जाता है।

"अभी तो पौने दस हुए हैं, पापा दस बजे घर से निकलेंगे" मोबाइल मे समय देखने के तुरंत बाद वह अपने लिए एक चाय बोल देता है, दो साल से ज्यादा हो चुके थे उसे इस टपरे पर पंचायत करते हुए तो स्वाभाविक था कि उसे वहाँ बैठा देख और भी कई लड़के उसके नजदीक चले आए। सभी चाय पीते हुए इधर-उधर की बातों मे लग जाते हैं पर हमेशा पंच बनने वाला अभिमन्यु आज ना जाने कहाँ खोया हुआ था और जल्द ही वहाँ बैठे रहते हुए उसे घुटन सी महसूस होने लगती है।

"तुम बैठो यारों मैं बाइक सर्विसिंग पर डाल कर आता हूँ, काका हिसाब मे जोड़ देना" झूठा बहना बना वह बाइक लेकर टपरे के ठीक पीछे बने पार्क के भीतर चला आता है, बाइक स्टेंड पर खड़ी कर वह उसी के ऊपर बैठ गया और बिना समय देखे सीधे वैशाली का नम्बर डायल कर देता है। एक, दो, तीन; पूरे पाँच बार वह उसे कॉल कर चुका था पर दूसरी तरफ से कोई रिस्पॉन्स ना मिलने के कारण उसकी घुटने जैसे दूनी बढ़ गई थी।

"हैलो माँ! म ...मैं कब से तुम्हें फोन लगा रहा हूँ" आठवीं बार मे ज्यों ही वैशाली ने उसकी कॉल पिक की वह फौरन भर्राए स्वर मे बोला।

"क्या हुआ मन्यु, तुम्हारी आवाज ...कहाँ हो तुम?" बेटे की आवाज मे शामिल गीलेपन को तत्काल समझ वैशाली ने जवाब मे पूछा, एकाएक वह घबरा सी भी गई थी।

"कॉलेज मे हूँ मॉम मगर तुम फोन क्यों नही उठा रही थी? पता है मैं कितना परेशान हो गया था" वह उलटे अपनी माँ से प्रश्न करता है।

"झूठे! तुम कॉलेज मे नही हो, अब तुम मुझे और चूतिया नही बना सकते लड़के" वैशाली हँसते हुए कहती है, इसी सोच मे कि उसकी हँसी को सुन शायद उसके बेटे की आवाज का भर्राना खत्म हो जाए।
कॉलेज के पास वाले पार्क मे हूँ, अब बताओ तुम कहाँ थी जो फोन लगाते-लगाते मेरे अंगूठे मे छाला पड़ गया?" वह भी मुस्कुराकर पूछता है। आखिर अपनी माँ की आवाज सुनने को ही तो बेचैन हुआ जा रहा था, बेचैनी के साथ-साथ उसकी घुटन भी पल मे हवा हो गई थी।

"नहा रही थी और हाँ! अपने अंगूठे के छाले की टेंशन मत लेना, तुम्हारे घर लौटने के बाद मैं उसे अच्छे से चूस दूँगी। कभी-कभी मुंह की सिकाई भी फायदेमंद होती है" वैशाली कहकहा लगाकर हँसते हुए कहती है। वह स्वयं हैरान थी कि एकाएक कैसे उसके मुंह से ऐसी गंदी-गंदी बातें निकलने लग गई हैं, इतनी बेशर्म तो वह अपने बीते जीवन मे कभी नही रही थी और सबसे विशेष बात यह कि उसके मुंह से ऐसी अनैतिक बातें सुनने वाला शख्स कोई अन्य नही उसका अपना सगा जवान बेटा था, जिसके विषय मे सोचते ही उसकी धुली-धुलाई चूत जैसे पुनः पनियाने लगी थी। वहीं दूसरी ओर अपनी माँ के अश्लील कथन को सुनकर अभिमन्यु का बायां हाथ सीधे उसके लंड पर पहुँच जाता है जो पलभर मे उसकी जॉकी के भीतर तनकर पत्थर हो गया था।

"तुम अभी नंगी हो ना माँ?" उसने जींस के ऊपर से अपने तम्बू को मसलते हुए पूछा।

"मेरे अंगूठे के छाले का दर्द एकदम से मेरे निचले शरीर पर पहुँचता जा रहा है माँ, उफ्फ! तो क्या ...क्या तुम मेरे वहाँ भी अपना मुंह लगाओगी, मेरे उसको भी चूसोगी" वह सिहरते हुए अपने पिछले प्रश्न मे जोड़ता है।

"हाँ नंगी हूँ, बिलकुल नंगी। तुम्हें अपनी माँ को नंगी देखना अच्छा लगता है ना मन्यु?" वैशाली ने बिस्तर पर लुड़कते हुए पूछा, यकीनन उसे शीघ्र-अतिशीघ्र अपनी सुबह से ऐंठी पड़ी चूत की पीड़ादाई ऐंठन से मुक्त होना था।

"अगर तुम अपने लंड के बारे मे कह रहे हो तो भूल जाओ मन्यु, मम्मियां अपने बेटों का लंड नही चूसा करतीं और वह भी खासकर तब, जब उनके बेटे मुश्टंडे गबरू जवान हो जाएं" अपने पिछले कथन मे जोड़ते हुए उसने अपनी दाहिनी दो उंगलियां एकसाथ अपनी चूत की संकीर्ण गहराई मे उतार दीं, जिसके नतीजन उसके मुंह से जोरदार सिसकी निकल जाती है।





पर मैं तो इकलौता हूँ मम्मी, तुम मुझ अकेले का लंड तो चूस ही सकती हो। तुम्हारे कौन से पाँच-सात मुश्टंडे गबरू जवान बेटे हैं, सिर्फ एक है कम से कम उसका ख्याल तो अच्छे से रखा करो और हाँ! मुझे तुम्हें नंगी देखना बहुत पसंद है पर कपड़ों मे भी, तुमसे सच्ची मोहब्बत जो करने लगा हूँ" कान से चिपके मोबाइल के स्पीकर से स्पष्ट सुनाई देतीं वैशाली की कामुक सिसकियां सुन अभिमन्यु ज्यादा देर तक अपनी बाइक पर बैठा नही रह पाता, वह फौरन नीचे धरातल पर कूदते हुए बोला।

"चल झुट्टे! अगर इतनी ही सच्ची मोहब्बत होती अपनी माँ से तो पिछली रात उसे यूं तड़पती छोड़कर भाग नही खड़े होते। क्या तुम्हें पता है मन्यु कि तिरस्कार किसे कहते है? अगर पता है तो यह भी समझते होगे कि एक औरत सबकुछ सह लेती है लेकिन किसी मर्द के हाथों अपना तिरस्कार सहन नही कर पाती" कहकर जवाब की प्रतीक्षा मे वैशाली कुछेक क्षणों के लिए अपनी चूत का मर्दन करना रोक देती है, अपने बेटे का सही उत्तर सुनने को वह बेहद उतावली थी।

"तुम्हीं ने मुझे भागने पर मजबूर किया था माँ। तुम्हें चोदकर तुम्हारी तड़प नही मिटा सकता था यह हम दोनो जानते थे मगर तुमने तो अपनी चूत चटवाने से भी इनकार कर दिया था, जबकि मैं वाकई तुम्हारी चूत को चाटता, उसे जी भरकर चूसता और तुम्हारी तड़प को पूरी तरह से मिटाने की कोशिश करता" गंभीरतापूर्ण लहजे मे ऐसा बोलकर अभिमन्यु पार्क के टॉइलेट की ओर रुखकर जाता है, वह जान गया था कि उससे बात करते हुए ही उसकी माँ अपनी उंगलियों से अपनी चूत को चोदना शुरू कर चुकी थी और अब वह भी अपने लंड के असहनीय तनाव से हरसंभव मुक्ति पाना चाहता था।




"क्या तुम्हें ओरल सैक्स पसंद है मन्यु? खैर आजकल के युवा चुदाई से ज्यादा मुखमैथुन का मजा लेते है मगर क्या तुम्हें अपनी माँ की चूत चाटने मे घिन महसूस नही होती? आखिर मुझे तुम्हारी पसंद-नापसंद से बारे मे कुछ खास पता भी तो नही। क्या पता तुम्हें मजबूरन अपनी माँ की चूत से अपने होंठ चिपकाने पड़ते जबकि तुम्हारा मन ऐसा बिलकुल नही चाहता होता" अपने दाएं अंगूठे के हल्के दवाब से वैशाली अपने अत्यंत संवेदनशील भांगुर को हौले-हौले सहलाते हुए बोली, फोन सैक्स के विषय मे आजतक उसने सिर्फ सुना ही था मगर तात्कालिक समय मे उसे इस अद्भुत खेल का भी आनंद मिलने लगा था और ऐसी उत्तेजक व बेहद गोपनीय बातें वह अपने सगे बेटे संग सांझा कर रही है, यकीनन यही विशेष बात उस नये-नवेले खेल को निरंतर अधिकाधिक रोमांच से भर रही थी।

"मेरी गर्लफ्रेंड है नही और रंडियों की चूत से अपना मुंह कोई नही लगता। माना तुम्हारी चूत वह पहली चूत होती जिसे मैं चाटता या चूसता मगर मैं ऐसा करता जरूर क्योंकि बात मेरी मम्मी की तड़प से जुड़ी थी और फिर जिससे आप बेशुमार प्यार करने लगो, उसके बदन का कोई अंग गंदा कैसे हो सकता है? नही मॉम, मुझे जरा भी घिन महसूस नही होती" अभिमन्यु जवाब मे बोला, वह पार्क के टॉइलेट के बाहर तक पहुँच तो गया था मगर आसपास अथाह गंदगी फैली देख फौरन पलट जाता है।



वैसे कोई बेटा कभी अपनी माँ का आशिक नही हो सकता, तुम्हें अपनी माँ रंडी तो नजर नही आती ना? क्योंकि सिर्फ रंडियां ही दस जगह मुंह मारती-फिरती हैं, एक शादीशुदा माँ नही" वैशाली ने जानबूझकर अभिमन्यु से ऐसा मार्मिक सवाल पूछा, वह जानने की इच्छुक थी कि अबतक हुए पापी घटनाक्रमों के उपरान्त उसकी कितनी इज्जत उसके बेटे के दिल मे बची है।

"डोन्ट एक्ट लाइक अ फूलिश टीनेजर मॉम, तुम्हारे इस बचकाने सवाल को सुनकर कौन विश्वास करेगा कि तुम अपनी बेटी तक की शादी कर चुकी हो। बी मैच्योर और तुमने कहीं दस जगह मुंह नही मारा, बस थोड़ी बहुत मिली अपनी फ्रीडम को एंजॉई कर रही हो एण्ड रियली एप्रीशियेट देट" डांटते स्वर मे ऐसा कहकर अभिमन्यु अपनी बाइक के नजदीक पार्क की एक साफ-सुथरी बेंच पर बैठ जाता है, पार्क लगभग खाली सा था और इसी एकांतवास की उसे उस वक्त सख्त आवश्यकता भी थी।

"चलो छोड़ो इन इजूल-फिजूल बातों को, यह बताओ कि क्या पापा ने कभी तुम्हारी चूत को चाटा है? मुझे पक्का यकीन है कि उन्होंने ऐसा कभी नही किया होगा" उसने बिना रुके अपने पिछले कथन मे जोड़ा, वह अच्छे से जानता था कि एकबार पुनः वह अपनी माँ की निजता से खिलवाड़ कर रहा है मगर वैशाली के साथ इतने अधिक अतरंग पलों को व्यतीत करने बाद अब निजता या गोपनीयता का कोई प्रश्न उठता भी कैसे?

अभिमन्यु को काफी देर तक दूसरी तरफ से कोई आवाज सुनाई नही देती, लाइन तो चालू थी परंतु उसकी माँ की धीमी सिसकियों के अलावा उसे अन्य कुछ विशेष सुनाई नही दे रहा था। जब वह बारंबार अपने उसी प्रश्न को दोहराता है तब वैशाली अपने मोबाइल का स्पीकर एक्टिवेट कर उसे अपने बिस्तर से सटी लैम्प टेबल पर रखकर, दोबारा अपनी उंगलियों से अपनी चूत को चोदना शुरू कर देती है। उसके बेटे का वही सवाल अब भी जारी था, जिसके जवाब मे वह तीव्रता से मुट्ठ मारते हुए उसे अपनी अत्यंत कामुक सीतकारों से और आंदोलित करती जा रही थी।





देखा मॉम! मैंने सही कहा था ना कि उन्हें तुम्हारी चूत से घिन आती है और वह कभी उसे अपने होंठों से प्यार नही करते होंगे। इसके उलटे तुम उनका लंड चूसती हो, तुम्हें तो उनके लंड से कोई घिन महसूस नही होती" अभिमन्यु ने हवा मे तीर छोड़ते हुए कहा। अब उसका वह काल्पनिक उड़ता तीर उसकी माँ अपनी गांड मे ले लेती या घूम-घामकर वह स्वयं उसी की गांड मे घुस जाता, यह फैसला उसने किस्मत पर छोड़ दिया था।

"उन्ह! तुम्हें ...तुम्हें कैसे पता चला कि मैं उनका उफ्फ! ल ...लंड चूसती हूँ?" अपनी माँ के सवाल और उसमे शामिल उसकी हकलाहट को सुनते ही वह जोरों से हँस पड़ता है।

"फंस गई ना, हा! हा! हा! हा! खैर तुम्हारी गलती नही है मम्मी, कुछ लोगों की आदत होती है की वह उड़ता हुआ तीर उछलकर खुद ही अपनी गांड मे ले लेते है" हँसते-हँसते अभिमन्यु बैंच पर लेट जाने को विवश हो जाता है। उसकी माँ के भीतर कोई चालाकी, कोई शातिरपन नही है। अपने वास्तविक स्वभाव समान वह अंदर से भी उतनी भोली, उतनी ही कोमल है जितनी दिखाई देती है और यह सोचकर वह वह खुदपर काबू नही रख पाता, लगभग चीखते हुए अपनी माँ के प्रति अपने नैसर्गिक प्रेम को खुलेआम जताने लगता है।

"आई लव यू माँ, आई लव यूऽऽ" उसका ऊंचा स्वर वैशाली के बेडरूम मे भी गूंज उठा था, एकाएक वह भी जोरों से हँसने लगी और हँसते-हँसते कब उसकी आँखों की किनोर पर आँसू उमड़ आते हैं वह नही जान पाती। कामुत्तेजना की चपेट से सहसा बाहर निकली अपने बिस्तर पर पूर्णरूप से नंगी लेटी वह अत्यधिक सुंदर अधेड़ माँ भावविह्वल होकर रोने लगी थी मगर उसकी सुर्ख आँखों से बहने वाला उसका हर मूक आँसू उसके हर्ष, उसकी आंतरिक खुशी को प्रमाणित कर रहा था, अपने बेटे के निश्छल व निर्विकार प्रेम को बयान कर रहा था।





मैं घर आ रहा हूँ माँ। तुम तुरंत हाथ हटाओ अपनी चूत से, तुम्हारी तड़प अब मेरी अपनी तड़प बन गई है और जबतक यह तड़प पूरी तरह नही मिटेगी, ना तुम्हें चैन पड़ेगा और ना मुझे। मैं अभी आ रहा हूँ घर" आवेश से भरकर ऐसा कहते हुए वह फौरन बैंच से उठ खड़ा होता है, कुछ वक्त पीछे समान घुटन मानो पुनः वापस लौट आई थी।

"नही मन्यु ...." वैशाली भी फुर्ती से उठकर बैठ जाती, उसने अपने बेटे को तत्काल रोकना चाहा मगर वह उसकी बात बीच मे ही काट देता है।

"तुम्हें मेरी कसम माँ। कपड़े मत पहनना और झड़ना तो बिलकुल नही, आज हम दोनो एकसाथ उस सुख को महसूस करेंगे जिसे हमने पहले कभी महसूस नही कर पाया है" बोलने के उपरान्त अभिमन्यु ने एकाएक लाइन काट दी और बाइक पर कूद पड़ता है।

फोन कट होते ही जैसे वैशाली के हाथ-पैर फूल गए, वह पागलों की भांति दीवार घड़ी को घूरने लगी, उसे अभिमन्यु के बाइक चालाने की तेज गति के विषय मे पहले से ही जानकारी थी और बीती बीती शाम को तो वह स्वयं उसके पीछे बैठकर मॉल भ्रमण पर निकली थी।

"ओह! क ... कै ...कैसे करूँगी यह सब? उफ्फऽऽ!" अपने ही प्रश्न पर उसका सम्पूर्ण बदन थर्रा उठा था। उसके बेटे ने उसे अपनी कसम दी थी कि वह उसका स्वागत अपनी नग्नता से करेगी और उसके आशय के मुताबिक इसके उपरान्त वह जी भरकर उसकी चूत को चाटेगा, उसकी गाढ़ी रज का भरपूर रसपान करेगा। जिस अकल्पनीय सुख से वह दोनो ही आजतक वंचित रहे थे अब से कुछ क्षणों बाद एकसाथ उस सुख के अथाह सागर मे आनंदतिरेक गोते लगाने वाले थे।

"उन्ह! निगोड़ी तेरे कारण ही यह सब हो रहा है" वह झुककर रस से सराबोर अपनी चूतमुख पर अपनी बाईं हथेली की हल्की थाप देते हुए सिसकी, पहले क्या वह कम रस उगल रही थी जो बेटे के आगमन की सूचना पाकर एकाएक झरने सी बहने लगी थी।





"हाँ वाकई, तेरे कारण ही तो यह संभव हुआ है" अगले ही पल वह बड़े प्यार से अपनी चूत की दोनो सूजी फांकों को अपनी दो उंगलियों की मदद से चौड़ते हुए मुस्कुराई। उसकी चूत के भीतर का गुलाबीपन मानो गहरी लालामी मे परिवर्तित हो गया था और जो अंदर किसी ज्वलंत भट्टी सा तप रहा था, वह अपने फूले भांगुर को भी बलपूर्वक मसल देती है और तभी फ्लैट के मुख्य दरवाजे पर जोरदार आघात हुआ। तत्काल वैशाली बिस्तर पर उछल पड़ी, घबराहटवश अपने आप उसका हाथ उसकी गीली चूत से अलग हो गया था और इसके साथ ही पुनः मुख्य दरवाजे पर आघात होने लगते है जो निश्चित उस माँ को अपने बेटे की बेचैनी का स्पष्ट प्रमाण समझ आता है।

"झूठा कहीं का! कॉलेज के पास वाले पार्क मे होता तो पाँच मिनट मे कैसे घर लौट आता?" वैशाली ने चिहंकते हुए अपने नंगे कंधे उछाले, उसने बिस्तर पर पड़ी टॉवल से अपना चेहरा पोंछा और फिर अभिमन्यु से अपनी उत्तेजना छुपाने हेतु वह अपनी गीली चूत की भी अच्छे से पुछाई कर लेती है। तत्पश्चात वह अपने बेडरूम से बाहर निकल आई, नंगी अवस्था मे घर के मुख्य द्वार को खोलना उसके पूरे बदन को कांपने पर मजबूर कर रहा था और साथ ही वह यह भी महसूस करती है कि उसके हर आगे बढ़ते कदम पर उसकी नग्न गदराई गांड अविश्वसनीय ढंग से हिल रही है, मटक रही है, नृत्य सा कर रही है और सहसा अपनी ही गांड की मादकता वह नंगी अधेड़ माँ इठला--सी जाती है।

दरवाजे के बिलकुल समीप पहुँचकर उसने कुछ गहरी-गहरी सांसें लेकर खुद को एक अंतिम बार संयत करने का असफल प्रयत्न किया, अपने ऐंठे दोनो निप्पलों को बारी-बारी स्वयं अपने कोमल व रसीले होंठों से चूमा और एक लंबी अंगड़ाई लेकर, अपने आधे नंगे बंदन को दरवाजे की ओट से बिना छुपाए ही वह झटके से फ्लैट का मुख्य द्वार खोल देती है।





वैशालीऽऽ" दरवाजे के बाहर खड़े अपने पति के कठोर व अत्यंत क्रोधित सम्बोधन को सुन वैशाली जैसे मूर्छित होते-होते बची मगर अपने बेटे समान अपने भावों को तत्काल बदलते हुए वह एक शैतानी मुस्कुराहट के साथ दरवाजे से पीछे हटकर उसे फ्लैट के भीतर आमंत्रित करने का सफल अभिनय करती है। हालांकि गांड तो उसकी पूरी तरह से फट चुकी थी पर अभिमन्यु के संग अश्लीलता, अनैतिकता, निकृष्टता आदि अमर्यादित खेल लगातार खेलने से उसके भीतर कोई विशेष बदलाव आया हो या नही मगर वह अब पहले की भांति डरपोक नही रही थी, यकीनन एक साहसी नारी मे तब्दील हो गई थी।

"तुम ...तुम नंगी? शर्म आनी चाहिए तुम्हें" सामाजिक भय के कारण मणिक ने कोई विलंब नही किया और अतिशीघ्र फ्लैट के अंदर आ जाता है और उतनी ही तेजी से मुख्य द्वार को बंद करते हुए उसने अपनी मुस्कराती पत्नी की ओर पलटकर पूछा।

"अपने पति का इससे बढ़िया स्वागत कोई पत्नी भला कर कभी सकती है?" मणिक के प्रश्न का जवाब देने के बजाए वैशाली सीधे उसे अपनी नंगी बाहों मे जकड़ते हुए पूछती है मगर उसका क्रोधित पति उसे खुद से दूर धकेलते हुए फौरन उसके नग्न आलिंगनपाश से मुक्त हो जाता है।

"तुम कैसे इतना श्यॉर थीं कि दरवाजे के उस पार मैं ही था, कोई और भी तो हो सकता था? अभिमन्यु भी तो लंच के लिए कॉलेज से आने वाला था अगर मेरी जगह वह होता तो सोचो उसके दिल मे तुम्हारी क्या इज्जत रह जाती? नंगी ...कैसे घर का मेन गेल खोल सकती हो तुम" मणिक ने एकसाथ कई सवालों की झड़ी लगाते हुए पूछा परंतु अपनी पत्नी के मुखमंडल पर बरकरार मुस्कुराहट देख वह चौंकाने से भी खुद को रोक नही पाता है।



नहाकर निकली, बालकनी मे कपड़े सूखने डालते समय मल्टी के एंट्रेंस पर तुम्हें और तुम्हारे स्कूटर को देखा ...." इतना कहकर वैशाली अपने गाल फुलाकर रूठने का नाटक शुरू कर देती है।

"अभिमन्यु मेरा बेटा है, मैं माँ हूँ उसकी, अपनी इसी कोख मे नौ महीने पाला है मैंने उसे। अपने सगे बेटे के समाने कैसे नंगी खड़ी रह सकती हूँ, क्या मुझे शर्म नही आएगी? उफ्फ! मेरे लिए तो यह सोचना भी पाप है, मैं नंगी ....अपने जवान बेटे के सामने छि!" अपने नग्न पेट पर दाहिना हाथ रखकर उसने स्त्री त्रिया-चरित्र का बेमिसाल उदाहरण पेश करते हुए पिछले कथन मे जोड़ा। अपनी आँखों की किनोर से वह अपने क्रोधित पति के तमतमाते चेहरे का गुपचुप अवलोकन भी कर रही थी और जिसमे एकाएक आया शीतल बदलाव तत्काल उस पापिन की गांड के छेद को मीठी-मीठी खुजाल से भर देता है।

"मुझे माफ करना वैशाली, मैंने बेवजह गुस्से मे आकर ना जाने तुमसे क्या-कुछ उलटा-सीधा कह दिया। वैसे मेरी भी गलती नही है, अपनी बीबी के ऐसे बॉम-ब्लास्ट सप्राइज से तो दुनिया का हर पति घबरा जाएगा" मणिक ने फौरन पछतावा जताते हुए कहा, उसका कठोर स्वर अचानक ही किसी याचक के नम्र स्वर मे परिवर्तित हो गया था।

"आप अगर घबरा जाते तो मुझे खुशी होती मगर आप तो हमेशा मुझे डांटते ही रहते हैं, मैंने तो सोचा था इतने दिनो बाद कुछ प्राइवेसी मिली है ...मगर आप तो मुझे हमारे बेटे के सामने नंगी ..." भर्राए स्वर मे ज्यों ही वैशाली ने अपने पति के ह्रदय पर मार्मिक आघात किया मणिक तीव्रता से आगे बढ़ उतनी ही तेजी से उसे कसकर अपने अंक मे जकड़ लेता है।

"नही वैशाली नही, मत उदास हो। मैं अच्छे से समझता हूँ कि मुझसे बिछड़कर तुम्हें कितना बुरा लगता होगा, बल्कि मैं खुद तुम्हारे बगैर कितना तड़पता हूँ बता नही सकता मगर यही बिछड़न तो सचमुच हमें जोडे़ हुए है वर्ना बताओ साथ रहने की चाह मे क्या हमारा और हमारे बेटे का भविष्य नही बिगड़ जाएगा? अरे! हमारा त्याग ही तो आगे चलकर अभिमन्यु की किस्मत बदलेगा और शादीशुदा होने के बाद अपने नन्हे-मुन्नो को वह हमारे इसी त्याग और संस्कारो के बारे मे बड़े गर्व से बताया करेगा" छाती से
लिपटी अपनी नग्न पत्नी की नंगी चिकनी पीठ पर मणिक अपनी बाईं हथेली को हौले-हौले फेरते हुए बोला। पति के सदाचारी प्यार और उसके शरीर की सात्विक तपिश से तत्काल वैशाली भीतर तक शर्मिंदगी महसूस करने लगती है, उसके बदन की सारी वासना, सारी गंध को मानो पति के एक आलिंगन ने पूरी तरह से मिटा दिया था, उसका अंग-अंग सुगंधित कर दिया था। इसी बीच मणिक का मोबाइल बज उठा और वह वैशाली को अपने ह्रदय से लगाए रखते ही कॉल पिक कर लेता है।

"हाँ तिवारी जी, बस ज्यादा से ज्यादा आधा घंटा लगेगा"

"अरे! रोकिए उस यूडीसी को तिवारी जी"

"अच्छा आज उसका हॉफ टाइम है, चलिए मैं बस बीस मिनट मे पहुँचता हूँ, बिलकुल ...बिलकुल निकल चुका हूँ घर से"

"वैशाली! मेरा चमड़े वाला हैन्ड बैग निकालो, उसमे रद्द हुए पिछले टूर के बिल रखे हैं" कॉल कट कर उसने कहा।

"मैं ...मैं कुछ पहन लूं फिर ...." अपने पति की अधेड़ बाहों से आजाद होते ही वैशाली लज्जा से भरते हुए बोली।

"समय नही है, वह बाबू बहुत जिद्दी स्वभाव का है दोबारा बिल पास करवाने मे कोई हेल्प नही करेगा" मणिक ने उसे अपनी व्यथा बतलाई।

"और वैसे भी तुम नंगी ज्यादा सुंदर लग रही हो, काश मेरा बस चलता तो मैं कभी तुम्हें कपड़े नही पहनने देता। सचमुच वैशाली यू आर लुकिंग डेम हॉट राइट नाउ" वह मुस्कुराकर अपनी नंगी बीवी को उसके सिर से लेकर पाँव तक घूरते हुए अपने पिछले कथन मे जोड़ता है।

"आप भी ना, बस ...." इसके आगे वैशाली कुछ और नही कह पाती, अपने पति के अश्लील कथन को सुनकर सहसा उसे अपने बेटे की अश्लीलता याद आ गई थी और शर्म से अचानक लाल पड़ी वह वह नंगी अधेड़ पत्नी और साथ ही दो जवान बच्चों की अत्यधिक सुंदर माँ सीधे अपने बेडरूम की ओर दौड़ लगा देती है। अपनी कामुक दौड़ से तो उसने मणिक के सीने मे जैसे कोई खंजर ही उतार दिया था और अपनी पत्नी के पीछे जोरदार आहें भरते हुए वह भी दौड़ पड़ा था।




अपने बेडरूम के भीतर आकर वैशाली ने आनन-फानन मे गॉदरेज की अलमारी खोली, अलमारी के सबसे निचले ड्राअर मे मौजूद पति के हैन्ड बैग को ड्राअर से बाहर निकाले के लिए वह बिना किसी सोच-विचार के आगे को झुक जाती है। हालांकि यह उसने जानबूझकर नही किया था पर उसके एकदम से नीचे को झुक जाने के कारण उसके पीछे खड़े मणिक को उसकी चिपकी मांसल जांघों के बीचों-बीच बाहर को उभर आई उसकी सांवली-सलोनी चूत के दुर्लभ दर्शन होने लगते है, काली घनी झाटों के मध्य उसकी चूत के बेहद सूजे होंठ उसे अब भी ठीक उतने ही कामुक नजर आते हैं जितने उनकी सुहागरत पर आए थे।

"इसकी गांड मे तो सचमुच मेरे प्राण बसते हैं" मणिक पत्नी की गांड के गौरवर्णी दोनो गुदाज पटों को घूरते हुए बुदबुदाया जिनकी गहरी दरार के भीतर उगी झांटों के संग उसे पसीने की अधिकता से चमचमाता उसका कुंवारा मलद्वार भी स्पष्ट दिखाई दे रहा था, उसका दायां हाथ स्वतः ही पैंट के ऊपर से उसके तेजी से तनते हुए लंड पर पहुंच गया और ठीक उसी वक्त वैशाली पुनः सीधी हो जाती है।

"यह लीजिए" उसने पलटकर हैन्ड बैग मणिक की और बढ़ाते हुए कहा, वह फुर्ती से अपना हाथ अपने खड़े लंड से झटकता है और अत्यंत-तुरंत वैशाली सारा मसला समझ जाती है।

"इन्हें कल कर दीजिएगा जमा" उसने मुस्कान के साथ पति की पैंट के तम्बू को निहारते हुए पिछले कथन मे जोड़ा, उसके तम्बू की विशालता को देख क्षणमात्र मे वैशाली की चूत पनियाना शुरू हो गई थी।

"रात मे मॉइ लव ... तुम्हारी सारी शिकायतें दूर कर दूंगा। प्रॉमिज!" कहकर मणिक अनमने मन से बेडरूम के बाहर जाने लगा, कितने दिनो बाद तो आज उसे अपनी पत्नी के साथ संभोग करने का सही मौका नसीब हुआ था और उसपर भी उसके पैसे कमाने की ललक ने सफा पानी फेर दिया था।

"चाहें तो चूस दूँ, ऐसी हालत मे कैसे जाएंगे?" वैशाली ने भी उसके पीछे-पीछे हॉल मे आते हुए पूछा, इस समय उसे बस अपने पति की उत्तेजना शांत करने से मतलब था इसके अलावा शर्म-बेशर्मी, मान-मर्यादा आदि की जैसे उसे कोई परवाह नही थी।



थैंक्स डार्लिंग ...रात मे" कहकर वह वैशाली के होंठ चूम लेता है।

"नंगी ही मुझे विदा करो ना" मणिक तब शैतानी मुस्कान के साथ अपने पिछले कथन मे जोड़ता है जब वैशाली एकाएक बेडरूम के भीतर जाने को मुड़ने लगी थी। बस फिर क्या था अब तो उसे अपने पति की स्वीकृति मिल गई थी और अंतत: वह मुख्य दरवाजे को पुनः खोलकर अपने पति को घर से नंगी ही रुखसत भी कर देती है।

मणिक के जाने के उपरान्त वैशाली ने दरवाजे को लॉक किया और धम्म से हॉल के सोफे पर गिर पड़ी, उसके साथ यह कैसा अजीब खेल खेल रही है उसकी किस्मत? सोफे पर बैठे एकाएक उसे रोना आ गया था, अपने बेटे या पति मे से किसी एक के चुनाव ने उसे गहरी सोच के गर्त मे ढ़केल दिया था। अपनी सोच को जल्द पूरा करने के उद्देश्य से ज्यों ही उसने अपनी पलकें बंद की तत्काल उसके पति का क्रोधित चेहरा उसकी मुंदी आंखों मे उभर आता है और जिसके भयस्वरूप वह थरथराते हुए उनके परिवार के भावी भविष्य की व्यर्थ आशंकाओं से घिर उठती है।

"आज तू बच भले गई मगर हमेशा नही बच सकेगी, पाप का घड़ा देर-सवेर पर भरता जरूर है। अगली बार अगर तू पकड़ी गई तो तेरी घर-निकासी पक्की है, तेरा पति तुझे ही दोष देगा क्योंकि तू उम्र और रिश्ते मे अभिमन्यु से बड़ी है। तेरा बेटा अभी अपने पिता पर आश्रित है, वह तुझे क्या खाक अपना पाएगा?" अपने अंतर्मन की कचोटना से पसीने-पसीने होकर वैशाली ने फौरन कपड़े पहन लेने का मन बनाया मगर सोफे उठकर वह खड़ी भी पाती इससे पहले ही घर के मुख्य द्वार पर हुए दोबारा आघात ने अकस्मात् उस नंगी अधेड़ माँ के पुनः प्राण सुखा दिए थे।
 
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