एपिसोड ४
रास्ते मे..
विष्णु ," ये क्या किये हो बाबू जी, इसका बहोत बड़ा घाटा इलेक्शन में होगा, माँसाहेब को क्या बताओगे और मैं क्या जवाब दूंगा। सारा मसला हल करने के अलावा और बिगाड़ दिया आपने।"
मैं," आपको क्या लगता है, खुर्ची जरूरी है मेरे लिए? जिस दादा ने इतना प्यार दिया, पाला उनको अचानक मेरे सामने खून से लतपत लाके रखा गया तभी सोच लिया था, इसमे जो भी है उनकी यही हालत होगी। माँ साहब क्या सोचती है उसकी चिंता तुम न करो और कार्यकर्ता हो उसी अवकात में रहो, बाप मत बनो, समझे ??"
विष्णु मेरे बर्ताव में होते बद्लाव लो देख भौचक्का तो होई रहा था पर अभी थोड़ा डर और सहम गया था। उसकी आँखों मे वो साफ दिख रहा था। उसका अगला सवाल उन मरे दो अपनेही साथियो के बारे में था ये उसकी चेहरे की हावभाव से मालूम हो रहा था, पर मेरा आक्रोश वाला बर्ताव देख उनकी हिम्मत नही हुई। पहले जो मेरे लिए उनके मन मे जो प्रेमयुक्त आदर था वो अभी डर से भरा आदर बन चुका होगा इसमे कोई दोराय नही।
काका के घर पोहोंचते ही मैं अपने कमरे में गया। सारी घटनाओ को माँसाहेब को बता दिया। माँसाहेब ज्यादा कुछ बोली नही पर सावधान रहनेका सिलाह जरूर दिया।
रात के खाने के वक्त मैं नीचे आ गया। अबतक सारे घर को ही नही तो आजूबाजू के गाँवो में भी ये नोकझोक वाली बात पोहोच गयी थी। सुबह से गुस्सा भरा हुआ मेरा दिमाग शांत हो गया था। पर मेरे इस रूप से मुझे चॉकलेट बॉय जैसा समझने वाले लोगो को अभी मेरे सख्त बर्ताव से डर सा लग रहा था।
रात 9 बजे
खाने को शुरवात हुई। आज कोई अंगप्रदर्शन, छेड़छाड़, हसि मजाक नही हो रहा था। सब सामने जैसे राजा बैठा है वैसे अदब से पेश आ रहे थे।
चुप्पी तोड़ते हुए मैन विष्णु काका से आदर से कहा, "माफ करना काका, गुस्से में मैं होश खो जाता हूं। कुछ गलत बोल गया रहूंगा तो माफ करना।"
विष्णु काका ने सास छोड़ते हुए हस्ते हुए कहा,"कोई नही बेटा, मैं समझ सकता हु। पर इस बूढ़े की एक बात सुनलो, राजनीति में इतना गुस्सा ठीक नही।शहर का सबसे बड़ा वोट बैंक आज टूटा है। ये अभी महंगा पड़ेगा अपनी पार्टी को।"
मैं कुत्सित हस्ते हुए,"क्या काका, आप इतने दिन मेरे साथ हो, मेरे टूर तरीके नही पहचानते? मेरा गुस्सा जरूर तेज है, पर मेरे काम मैं पूरा सोच समझ और दूर का सोच के करता हु। ए वोटबैंक जाएगा नही बल्कि लाइफटाइम के लिए अपने पास आएगा।"
काका अपने बेटे का मुह देखते हुए "कैसे?" की मुद्रा में सोचने लगे, मैं आगे,"जैसा मेरा बाप वैसे उसका वफादार सेवक। एक नम्बर के पिछड़े। तुम लोगो की हर बार क्यो लग जाती है उसका यही कारण है ।"
विष्णु काका," मतलब?"
मैं," मतलब काका ये लोक काफिले वाले है ही नही। ए लोग शरणार्थि है। रेफ्यूजी है रिफ्यूजी।"
विष्णु,"ये रेफ्यूजी क्या होता है?"
मैं," उसका मतलब है, जो ना घर के नजे घाट के । किसी प्रान्त से निकाले गए लोग है। यहां शरण लिए बैठे है। बांकेलाल ने उसकी सत्ता के वक्त उन्हें वो जंगल प्रदेश रहने दिया और फर्जी दस्तावेज बना दिये। क्योकि उनको इस प्रान्त में अधिकृत तरीके से लाने के लिए क्या करना होता है ये उसको मालूम ही नही, या तो वो लाना नही चाहता होगा।पर इसका फायदा हम लेंगे। "
विष्णु," पर इसका बड़े साब के मौत से क्या ताल्लुक?"
मैं," क्योकि दादाजी ये बात जानते थे,उन्होंने प्रयास किया था पर किसीने उनको मार डाला, उस खून खराबा का दृश्य देख पिताजी को पेरेलिसिस अटैक आया। आज का खेल सिर्फ उनको डराने का नही था, साथ मे बांकेलाल को भी छेड़ने का था।"
विष्णु," अच्छा, अब समझ गया मैं सारा का सारा माजला। आप तो आपके दादा और पिताजी से भी ज्यादा आगे निकल गए। सौभाग्य है हमारा की हम आपके साथ इस दौर में है।" इसपर बाकी लोगो ने हामी भर दी।
मैं,"ये आधुनिक काल है ,काल के साथ राजनीति के पैतरे बदलने पड़ते है। अब सुनो तुम दोनों आज ही शहर निकल जाओ। बांकेलाल कुछ सोचे उससे पहले काफिले की जगह खरीद लो। इतना बड़ा काफिला कही और बसा दे इतना जिगर बांकेलाल में नही है। उतना पैसा भी ओ डाल नही सकता,काले धन की वजह से। तो वो जगह खरीद लो किसी भी किम्मत पर। ए काम कर लोगे ना?"
दोनों पिता पुत्र," जी बाबूजी, जरूर।"इतना बोल दोनों खाने से उठे, हाथ मुह धो गाड़ी में बैठ निकल गए शहर।इधर एक एक कर सब अपने अपने रास्ते निकलने लगा। मुझे मेरे कमरे में जाते देख सीमा चाची बोली," बाबूजी कुछ चाहिए तो बोल देना।"
मैं," काम खत्म हो जाये तो थोड़ी मालिश कर देना, दिनभर बहोत थकान वाली भागदौड़ हुई है।
वो हा में मुह हिला कर किचन में चली गयी। मैं मेरे कमरे में आ गया।
काफिले पर हुए हाय होलटेज ड्रामे के बाद ये तय था कि राज्य जे हर जिल्हे, गाव में मेरा नाम फैल चुका था। यह तक कि विरोध में जो भी लोग है उनकी राजनैतिक हलचले बड़ी धीमी पैरो से आगे बढ़ रही थी। दो तीन दिन में पार्टी अध्यक्ष चुना जाने के बाद फिर उमेदवार के साथ प्रचार शुरू हो जाना बाकी था। काफिले से दुश्मनी मैंने ली थी पर नजर में तो पार्टी थी, इसलिए कोई माइका लाल अध्यक्ष बनने नही आने वाला था। इसका मतलब पार्टी अध्यक्ष बनाना तो तय था मेरा।
मैं ये सब सोच ही रहा था कि सीमा चाची कमरे में आ गयी। हाथों में तेल की शीशी और एक टॉवेल के साथ। उनको देखते ही मैं टी शर्ट निकाल सिर्फ शार्ट में पेट के बल सो गया।और आगे क्या करना है उस विचार में डूब गया। मुझे उस हालत में देख चाची उसको क्या करना है वो समझ गयी। बेड के बाजू में कोने पर बैठ उन्होंने मालिश करना शुरू कर दिया। उनके हाथ बड़े मुलायम लग रहे थे। उनके स्पर्श से मेरा सारा धतं मेरे विचारों से हट उनके ऊपर चला गया। उनके स्पर्श से नीचे तंबू फूल रहा था।
चाची," छोटे बाबू घूम जाओ, आगे भी मालिश करनी है,"
उनके कहते ही मैं घूम गया।घूम जाते ही मेरा फुला हुआ तंबू पहाड़ी के तरह दिख रहा था। शॉर्ट के ऊपर बने तंबू को देख सीमा चाची की आंखे चौड़ी हो गयी।उन्होंने मेरे हाथ अपने कंधे पर रख मालिश चालू की। मुझपर अभी वासना का प्रभाव था। मैं भी उनके कंधे को मसलने लगा।उनके गर्दन के बाजू उंगलियों की मस्ती करने लगा।उनका शरीर मचल रहा था। पर वो अपना मालिश काम करते जा रही थी।फिर उन्होंने छाती पर मालिश शुरू की। जब जब वो मेरे निपल पर मसल देती मेरे लन्ड को उससे और वासना की तलब लगती।
जैसे ही चाची ने पाव पर मसलना चालू किया मैंने उनको रोका। वो," क्या हुआ, कुछ गलती हुआ बाबूजी?" मैंने झट से शॉर्ट उतार बाजू में रख दी और कहा," यह पर मालिश कोन करेगा ?"
वो,"पर छोटे बाबू, मैं शादी शुदा हु। ऐसे तो मेरे पति से प्रताड़ना हो जाएगी, ये गलत है।"
मैं," मेरे पिताजी के लन्ड से तो बड़ा ही है मेरा, और बात प्रताड़ना की तो पतिव्रता वाले डायलॉग आपके मुह से अच्छे नही लगते, खासकर हमारे परिवार से आपके जो तलुक्कात है, उसके हिसाब से आपका तो इसपर मालिश करना खानदानी है।" इतना बोल के मैंने उनकी पेट पर मसल दिया।
सीमा की आंखे चौड़ी ही रह गईं । क्या बोले क्या नही उसे कुछ समझ नही आ रहा था । मेरी उनसे ऐसी बात करना उनको बहोत अजीब लगा। अपनी पोलखोल सुन उनका शरीर कांप रहा था।उनको कुछ सूझ नही रहा थाल
मैं," इसमे इतना क्या सोच रहे हो, आपके ही स्पर्श से खड़ा हुआ है लन्ड। अपने थोड़ा उसको और खुश कर दिया तो क्या बुरा होगा, पूण्य का काम है वैसे तो।" इतना बोलके मैन उनका हाथ जो जांघ पे था वो लंड पे रख दिया।
चाची का शरीर सहेर उठा, अचानक से शरीर का तापमान बढ़ने लगा। आग लग रही थी इसका मतलब। उन्होंने झिझक झिझक में ही क्यों नही पर लन्ड की मालिश, मतलब लन्ड हिलाना चालू कर दिया।मैं उनके खुले पेट,नाभि,हाथ,गर्दन,पीठ पर हाथ मसल रहा था। उसकी वजह से उनके मुह से बीच बीच मे "आह आह" निकल रहा था।
चाची पूरा लालेलाल हो गयी थी। मेरा लंड थोड़ा थोड़ा कर सख्त होता गया और अचानक से फवारा उड़ गया सीधा चाची के मुह पे। उन्होंने नेपकिन से पोंछ लिया। उन्होंने थोड़ा चखा भी ये उनके मेरे आंख ढंकने के पहले दिखी चेहरे के भाव से मुझे मालूम पड़ा।
सुबह ४ बजे…
मेरी नींद खुली तो मैं बेड पे नंगा था। बाकी सब साफ सुधरा था।मैंने शॉर्ट पहनी और मोबाइल चेक किया तो विष्णु काका और उसके बेटे के बहुत सारे मिसकॉल थे। काका के बेटे ने एक मैसेज छोड़ा जिसमे था," बाबू जी काम लग बग हो ही गया है बस और दो दिन लगेंगे दफ्तरी काम के लिए, उसके बाद हम आ जाएंगे खुश खबर के साथ।"
चलो, अभि फिलहाल सुकून हो गया और दिन की शुरुआत भी खुश खबर से हुई थी। मैं बालकनी में बैठे चाय मंगा ली। थोड़ी देर बाद एक परछाई पीछे खड़ी हुई। सुबह को रसोई वाला कोई था नही तो सिमा चाची ही लेके आई थी चाय। मैंने उनके पास देखा तो थोड़ा सिकुड़ा हुआ मुह, खुले बिखरे बाल, बेहाल साड़ी में थी वो। वैसे औरते कैसे भी हो खूबसूरत ही दिखती है । लगता है मैं इतने जल्दी उठ गया कि नोकर आये नही थे और मेरी बात कोई टाल नही सकता था इसलिए सीमा चाची आधे अधूरे नींद में चाय बना ले आई।
मैंने चाय मुह में लगा दी और फट से थूक दी।मेरे आवाज से आधी नींद में खड़ी मीना पूरी जाग गयी।
"क्या हुआ बाबूजी, कुछ गलती हो गयी हमसे।" वो हड़बड़ाहट में।
मैं," चाय में शक्कर भी होती है चाची जी।"
अब मैं कितना गुस्सा करूँगा, उसका परिणाम क्या होगा ये सोच विचार में चाची के तोते उड़ गए।
वो," माफ करना बाबूजी, आधी नींद में गलती हो गईं । दीजिये मैं नई बना ले आती हु।"
मुह तो कड़वा हो चुका था। गुस्सा बहुत आ रहा था पर सुबह का मौसम और सामने तगड़ी औरत हो तो मुड़ बिगाड़ने का मन नही किया। वैसे भी इसके घर के मर्द घर पर है नही तो कुछ मजे लिए जाए।
मैं," अभी मुह तो कड़वा हुआ है, दूसरा कुछ लाने तके अइसे ही रहूं क्या ? (गुस्से का नाटक करते हुए)
उसकी हवाइयां उड़ी थी। वो" माफ करना बाबूजी, फिरसे गलती नही होगी, मैं अभी कुछ लाती हु।" इतना बोल वो नीचे जाने लगी । तभी मैंने उसके हाथों को पकड़कर अपनी तरफ खींचा और वो सीधा मेरे गोद मे। वो सहर गयी।वो जैसे ही गोद मे गिरी उसका पल्लू कमर से नीचे जमीन पर रेंगने लगा। इसी दौरान चाय का कप टूटा ये मालूम ही नही पड़ा।
चाची," बाबूजी, ये क्या कर रहे हो। जाने दो मुझे, कुछ मीठा लेके आती हु।"
मैं," इतना समय नही मेरे पास, आप ही मेरी मिठाई हो अभी। आपसे ही मुह मीठा करूँगा मैं।
वो "कैसे "बोलने से पहले ही उसके ओंठोंको मैंने अपने ओठो से जोड़ दिया और मुह को मुह से दबोच लिया।पांच मिनिट सिर्फ पक्षियों की आवाज और कुछ हल्की सी आवाज बाकी सब सनाटा था। थोड़ी देर में कुछ चूसने की आवाज आने लगी। जी हां, मैं मेरी मिठाई चूस रहा था।
अभी धीरे धीरे धड़कनो की और बढ़ते साँसों की आवाज भी खुलने लगी थी। फिर मैंने अचानक उसे छोड़ दिया और साइड कर दिया। उनकी आंखे भौचक्की थी अभी भी। कुछ ही पलों में क्या हुआ, कैसे हुआ, कब हुआ और खत्म हुआ? ऐसे सवाल जैसे मन को टटोल रहे हों ऐसे चेहरा बनाये वो भाग खड़ी हुई। पर वो बल्किनी से दरवाजे तक जाती तब तक मैंने उन्हें पुकारा, "सीमाsss"
जी हा सही पढ़ा आपने, सीमा। अभी रिश्ता वहां तक पहुंच गया था तो वो नाता शब्दो मे तो कट गया था। वो जगह पर ही रुक गयी। उसने अभीतक कमर से नीचे फैली साड़ी भी नही ऊपर ली थी, वैसे ही घिसिटते हुए लेके भाग रही थी।
कमर खुली,उसमे गहरी नाभि, आधे खुले लटके चुचे,फैले बाल, उठी हुई गदराई गांड ,उस गांड के छेद में फंसी हुई उसकी सारी ये सबकुछ मन को और लंड को और प्रफुल्लित कर रहा था। मैं उठा और वो दरवाजे के तरफ मुह नीचा कर दोनों हाथ की मुठिया दबा खरोच स्तब्ध खड़ी थी वहां पर आहिस्ता चला गया। मेरे हर कदम पर उसके सांसो का बहाव बढ़ रहा था।
मैं पास में जाके उसके कमर लपेट पेट पर नाबी को खरोद के घेराव डाल दिया वैसे ही आह की सिसक निकल गयी।दूसरी ओर हाथ से एक बाजू बाल कर सुगंध लेते हुए गर्दन को चूम लिया।
सीमा चाची," बाबूजी ये गलत हो जाएगाsss, हमे पतिव्रता रहने दो। इतने सालों की प्रतिज्ञा को ऐसे मत छल्ली करो। हम आपसे प्रार्थना करते है।"
(*मैं मन मे हस्ते हुए-क्या लोमड़ी गाय बन रही है। खुद की प्रतिज्ञा प्रतिज्ञा, बहु की वेस्याबाजी, वाह रे न्याय।*)
इतना सोचके ही मैंने पेटिकोट का नाडा खोल लम्बा ताना और नीचे छोड़ दिया। अभी वो सिर्फ ब्लाउज और पेंटी में खड़ी थी। उसको वैसे ही घुमा कर मेरे नजरो से नजर मिले ऐसे खड़ा किया। उनकी नजर नीची झुकी थी। मैंने दोनों हांथो से मुह ऊपर कर के उन्हें दरवाजे पे चिपका दिया और उनपे सटीक जाके खड़ा हो गया।
49 की औरत जो पेंटी और ब्रामे और 23 का लड़का जो शार्ट में था एक बंद कमरे में सट के खड़े थे।तभी दरवाजा बजा।
मैं," कौन?"
वो," जी नोकरानी हु साब, चाय लेके आई थी। बड़े साब(विष्णु काका) बोल के गए थे ।"
सीमा चाची की हवाइयां उड़ी थी। मैं क्या करूँगा इसपे सोच मुझे कुछ सुझाव देती उससे पहले ही मैंने दीवार की ओर सट के दरवाजा खोल दिया। दरवाजा खोलते ही वो नोकरानी अंदर आ गयी।आवाज पहचान की थी और वही निकली जो उसदिन रात में मिली थी।
वो नोकरानी जैसे ही अंदर आई और नजारा देखा तो वो भी आंखे फाड़ देखती रही। शर्मिंदा होंकर बाहर जाने वाली थी तभी उसे रुकाते हुए बोला," क्या नाम है तुम्हारा? "
वो," जी जी जी वो बबली!!"
उसकी आवाज में घबराहट थी। बड़े घर के ऐसे मामलों में गवाह बन जाना एक तरह से बोझ रहता है आम लोगो के लिए। उसकी घबराहट जायज थी।पर अब बिजली गिरने की बारी उसकी भी थी।
मैं,"बबली हम्म... तो बबली मेरा हत्यार निकाल और हिला।"
"क्या?" दोनों ने एकसाथ बोला। दोनों एकदूसरे को देख बाद में मुझे देख रहे थे।मुझे अंदर से बहोत मजा और जमकर हसि आ रही थी पर मैंने सख्त लौंडा बनना जारी रखा।
" मैंने कहा, मेरा 'लंड' निकाल और हिला 'बबली'!!!"मैं।
और और कमर को थोड़ा साइड किया। उसने एकवार सीमा चाची की ओर देख फिर मेरे शार्ट को नीचे कर लिया। शार्ट निकलते ही मैंने उसे पूरा निकाल बाहर किया। मैं आझाद हुआ। बबली मेरा लन्ड हिला रही थी। वो इतना माहिर नही थीं पर गलत भी नही कर रही थी। मैंने उसके ही सामने सीमा चाची को किस कर दिया वो भी ओंठोंको।
मैं," बबली तुमको कुछ सवाल करूँगा, अगर सवाल दुबारा पूछना पड़े तो अपना रास्ता यहां से हमेशा के लिए नापना पड़ेगा ये ध्यान में रखना।
बबली," जी साब!!"
मैं,"मैंने तुम्हारी मेम साब को किस किया वैसे तुम्हे किसीने किया है?"
बबली," नही साब।"
मै,"कभी चुचे तुम्हारे मसले है?" इतना बोल मैंने सीमा चाची के चुचो को मसल दिया।और ब्लाउज खोल दिया।
बबली चौक के," हा, पर नही, ऐसे नही।" बबली की इस प्रतिक्रिया पर मालूम पड़ा कि उसका ध्यान कहा बैठ गया है।
मैं," तुम्हे पिछवाड़े से चुत मरवाना अच्छा लगता है या, सामने से?"
दोनों औरते एक दूसरे की आँखों में देख रही थी। उन्हें समझ मे आ रहा था कि मेरा इशारा कहा है। वो कुछ और सोचे उससे पहले मैंने दीवार को सीमा चाची को सटाया और कमर को दबोच गांड ऊपर कर दी। बबली के हाथ रुक गए, उसके हाथ कांप भी रहे थे। मैंने सीमा चाची के पेंटी को नीचे किया और लंड को छेद में घिसने लगा। वो सिस्का रही थी। बबली डर से थोड़ा पिछे हो आंख बंद कर खड़ी थी।
घिसते सिसकते सीमा चाची गीली हो चुकी थी। उधर बबली भी गर्म हो रही थी। मेरा भी सब्र टूटा और मेरा लण्ड आवेश में चाची के चूत में घुस गया।
"आह, ऊई अमा, उम्मम"
इतनसा हुआ और घोड्सवारी शुरू हुई। सीमा चाची मेरे लंड पे पूरी तरह से फिट बैठी और पूरे जोरो रे चुद रही थी।कुछ १० मिनिट नही हुए और उसने शरीर ढीला छोड़ दिया और दीवार से घिसती नीचे बैठ गयी। उसको थकान आ गयी थी। सांसो का बढ़ता बहाव अभी उसकी उम्र की असलियत बया कर रहा था। यहां बबली साड़ी के ऊपर से अपनी चुत खुजला रही थी।
"ज्यादा रंग मे न आ, मालकिन को कमरे में छोड़ और आकर ये साफ कर। चल निकल" मैं ।
बबली सीमा चाची को लेकर उनके कमरे में गयी।तभी सुबह के ६ बजे थे ।
आगे…