एपिसोड १
मेरे सभी वाचक दोस्तो को मेरा तहे दिल से नमस्कार और स्वागत है मेरे इस कहानी में। ये कहानी कुछ अलग अलग परिवारों से जुड़ी हुई है जिसकी कड़िया एक जगह पर आके जुड़ जाती है। इसके कुछ प्रमुख किरदारोंकी पहचान इस भाग में करवा दूंगा और अन्य किरदार और उनके किरदारि की पहचान वक्त वक्त पे कर दी जाएगी।
संजू: जाने माने राजनैतिक पार्टी के अध्यक्ष का बेटा.उम्र 23 साल.पढा लिखा, कुटिल दिमागी, होशियार,हैंडसम नौजवान.
नीलिमा: संजू की माँ और जनता पार्टी(जपा) की अध्यक्ष.उम्र 47 साल
बांकेलाल: विपक्ष नेता.
कहानी इन्ही पे शुरू इन्ही पे खतम पर अंदर घुसने वाले किरदार और घटनाओं का सिलसिला बड़ी दूर तक जाएगा।
ये सिलसिला चालू होता है संजू के पढ़ाई खत्म होने के बाद। पेरेलाइस होने के बाद ब्रिजसिंग अपने पार्टी की जिम्मेदारी अपने बीवी नीलिमा के पास छोड़ दिये थे उसे अभी अपने संजू नामक वंश को सौपने का समय आया था।पर उसमे भी देर थी। करीब 6 महीने में अगला इलेक्शन था।तबतक लोगो मे घुलने की, अपनी पहचान बढ़ाने की जिम्मेदारी संजू पर थी।
(यहां से संजू यानी "मैं"।)
नीलिमा: देख संजू, पार्टी के जिम्मेदार अध्यक्ष बनने के लिए तुम्हे खुद को उस पद के लिए साबित करना पड़ेगा।अगर 6 महीने में यह तुम नही कर पाए तो ये कुर्सी किसी और कि हो जाएगी। अभी सदियो से हमारे परिवार का आदमी ही इसपे बैठते आया है ओर अगर इस बार ये कुर्सी गयी तो खानदान की इज्जत भी गयी समझो। बस 6 महीने…
पार्टी के वफादार कार्यकर्ता जो पिताजी के खास ते उस विष्णु काका को मेरे साथ भेज उन्होंने मुझे अपना मतदाताओ से घुलने को कहा।
विष्णु काका: उम्र 52। बड़े सीधे साधे पर पार्टी के हर काम मे माहिर।
2 हप्ते तक सिर्फ गावो के गाँव घूम रहे थे। स्पीकर पर मेरी पहचान करवाई जा रही थी। बहोत अजीब लग रहा था और बेसहारा सा महसूस हो रहा था। हर बार "ब्रिजसिंग और नीलिमा देवी का बेटा बोल बोल के मेरे आत्मसन्मान को दुखा रहे थे।
पार्टी के कार्यकर्ता थके थे। कुछ दे एक जगह हम रुक गए आराम के लिए। विष्णु काका मुझे अपने घर ले गए जो पास में ही था। किसी अनजान जगह पे मेरी खातिरदारी करना मेरी मा को पसंद नही आएगा ये जानते थे। विष्णु काका का घर बड़ा सजा धजा आलीशान था। होगा क्यो नही? हमारे पार्टी में काम करते करते कुछ हाथ तो जरूर मार दिए होंगे। मेरे आते ही मेरी मेहमाननवाजी शुरू हो गयी। घर के सभी लोग ऐसे पेश आ रहे थे जैसे मैं घर का जमाई हु। जब हम खाना खाने बैठे तो विष्णु काका ने घर के सदस्यों की पहचान करवाई।
सीमा: विष्णु की पत्नी, गृहिणी, उम्र 49 लगभग।
प्रिया: विष्णु की बेटी, उम्र 30 लगभग।
सीनू: विष्णु का बेटा,पार्टी का ही कार्यकर्ता, उम्र 28।
मिना: सीनू की बीवी, गृहिणी, उम्र 27 लगभग।
सब लोगो ने नमस्ते किया। विष्णु मेरे बाये ओर ओर सीनू मेरे दाये ओर बैठा था। उनके बाजू में उनकी बीवियां और सामने प्रिया। पहले मैंने गौर नही किया था पर जब इतमिनान से बैठ कर हाय हेलो की बात आयी तो मालूम पड़ा कि विष्णु के घर की 3नो औरते अपने ब्लाउज के ऊपर से सारी हटा कर बैठे है। मैं तो शॉक हो गया। उनके घर के मर्द तो कुछ हुआ ही नही ऐसे पेश आ रहे थे।
मैं जब हाथ धोने के लिए उठा तो काका की बीवी पहले ही खाना खत्म कर मेरे बाजू में टॉवल लेके खड़ी थी.मैंने हाथ धोते धोते आयने में देखा तो वो पीछे से मेरे पूरे शरीर को निहार रही थी। मैं हाथ मुह धो कर उनसे टॉवेल लेने के लिए पीछे मुड़ा तो भी वो मुझे नीचे से ऊपर तक निहार रही थी। मैंने गला साफ करने का आवाज निकाला तब जाके वो होश में आई।
हाथ मुह धो कर मेरे सोने का बिस्तर लगाया था वहां काका मुझे लेकर गए। मैं सोने तक काका मेरे कमरे के बाहर ही खड़े रहे। मेरे सो जाने का जायजा लेके वो वहां से निकल गए। मुझे अभी से किसी बड़े राजनीतिक नेता की जैसे फिलिंग आ रही थी। दिनभर से अभीतक के घटनाओं को सोचते सोचते हुए मुझे याद आया कि माँसाहेब को सब दिनभर का रिपोर्ट देना है।
झट से मैंने जेब मे हाथ डाले मोबाइल निकाला।दिनभर के कामकाज में याद ही नही रहा कि मोबाइल की बैटरी खत्म हो चुकी है। वही पे एक लैंडलाइन पड़ा था। उसे उठाकर कॉल करने ही वाला था कि मुझे क्रॉस कनेक्शन में कुछ सुनाई देने लगा।
" सासुजी, मुझसे ये नही होने वाला। मैं एक पतिव्रता हु और ऐसे किसी गैरमर्द के साथ… छि छि..."
"बहु, पतिव्रता हो इसलिए ये तुम्ही करना पड़ेगा। ये जो शानो शौकत है उसके लिए मैने भी वही किया है और इसे बरकरार रखने के लिए तुम्हे भी वही करना पड़ेगा।"
"बाबूजी का वक्त अलग था। मेरे पति खुद कुछ कर लेंगे। आपने किया मतलब मुझे भी करना पड़े ये जरूरी नही।"
"क्या कर लेगा तेरा पति..हुss। बतानी नही चाहिए पर तेरे पति ने ही मुझे इसके लिए तुझे तयार करने को बोला था। बोलना नही था, पर तेरे नखरे कुछ अलग ही है।"
"क्या बात कर रही हो। मतलब मतलब…"
"हा वही जो तुम अभी सुनी। ये हमारा पुश्तैनी काम है। इसीसे इतनी शानोशौकत कमाई है,जिसपर तुम मजे कर रो हो। मैं भी पहले यही रुबाब में थी। तेरे ससुर भी गए थे आत्मसन्मान कि लड़ाई लड़ने। 2,4 महीने दर दर की ठोकरे खाने के बाद घर आ गए। आखिर में बड़े साहब का बिस्तर गर्म करने के बाद जाके उन्हें वहां मेरे ससुर की जगह काम मिल गया।"
" पर सासु जी छोटे बाबू तो पढ़े लिखे अच्छे इंसान लगते है। अगर ये तरीका पलट गया तो…"
" वो अच्छे है वो हर कोई जानता है पर अगर हमें अपनी बात मनवानी हो तो कुछ तो करना पड़ेगा। तेरा पति तो निठल्ला और कम दिमाग। उसको कौन वो जगह देगा!? हमे ही कुछ करना पड़ेगा।"
"क्या करना पड़ेगा और कैसे?"
"उसके लिए मैं हु। तुम बस नखरे छोड़ और जैसे मैं बोलती हु वैसे कर,बस!!"
"अभी बात ही इतने टेढ़े मोड़ में है तो,ठीक है !! अभी बताइए क्या करना है आगे।"
"तो सुन, तेरे ससुर ने कहा है कि अगले दो दिन तक वो छोटे साहब के साथ यही पर रहने वाले है। आज अपने चुचे दिखाकर उनका ध्यान तो हमारे यौवन पे गया ही होगा। बस अभी उन्हें इतना ललचाना है कि वो हमारी कोई भी बात मानने को तैयार हो जाए। गर्म जवान और नई पीढ़ी का खून है, गाव की औरतों को कितना पसंद करता है मालूम नही पर जरूरत हमारी है तो वक्त आने पर रखेल भी बनना पड़े तो भी उनको तुम्हारा स्वाद चखा देना, उतना तो तुम जानती होगी।"
"जी, समज गई"
"अब सो जा, और मेरे बात को पूरी तरह से जहन ने डाल और कल से काम चालू कर।"
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