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Incest Maa ne sudhara

Desilove

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Kahnahi bhaut dhere shuru hogi aur choti khani hai.

यह एक नई कहानी है जिसमें एक माँ और बेटे के बारे में बताया गया है।
आबिद के घर में कुल 4 सदस्य हैं: पापा, माँ, दादी और आबिद।
दादी का नाम रुकैया था। उनकी उम्र 75 साल थी।
पापा का नाम सयैद है। उम्र लगभग 55 साल होगी।

माँ का नाम रज़िया है। देखने में आम घरेलू महिला की तरह है। उम्र लगभग 48 साल होगी।

5afa8c5c838da

शरीर एक अधेड़ उम्र की महिला की तरह है। स्तन थोड़े भारी।
रंग साँवला है। माँ एक संस्कारी और धार्मिक महिला है।
कहानी का हीरो
आबिद जो 19 साल का हो गया है। देखने में सुंदर और तंदुरुस्त।
अब कहानी की शुरुआत करते हैं: -
हम लोग पाकिस्तान के एक छोटे से गाँव में रहते हैं। वहाँ हमारी थोड़ी सी जमीन है। पापा मजदूरी करके पैसे कमाते हैं। मैं बचपन से ही पढ़ाई में अच्छा नहीं था। अब मैं अपने पापा की मदद करता हूँ मजदूरी में। पिछले कुछ दिनों से पापा की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी। और हमारा घर पापा की मजदूरी से चलता है, जो कि बहुत दिक्कत हो रही है। माँ और दादी भी बहुत परेशान थीं। मैं भी परेशान हो गया था। सरकारी अस्पताल में चक्कर काटने के बाद पता चला कि पापा को डेंगू हो गया है। अब हमारे पास दवाई के पैसे कम पड़ रहे थे। तो मैंने सोचा कमाने के लिए बाहर चला जाता हूँ। मैं कमाने के लिए लाहौर अपने चाचा के पास चला जाता हूँ ताकि बाबा की दवाई और घर सही से चल सके। मैं यह बता दूँ कि यह चाचा मेरे सगे चाचा नहीं हैं, यह मेरे अब्बू के पुराने दोस्त हैं।
अब चाचा लाहौर में अपने परिवार के साथ रहते थे तो मैं उनके साथ नहीं रह सकता था। फिर उन्होंने एक बस्ती या झुग्गी में मुझे ठिकाना दिलवाया और मैं वहीं रहने लगा। फिर मैं वहाँ मैकेनिक की दुकान पर काम करने लगा और सही आमदनी कमाने लगा। वहाँ बाबा की तबीयत और खराब होती जा रही थी। माँ से डेली चाचा के फोन से बात करता पर माँ बाबा की हालत के बारे में छुपाती थी। फिर तकरीबन 6 महीने तक बाबा को आराम हो गया। मैं यहीं अच्छी कमाई की वजह से यहीं रहने लगा। फिर एक दिन मेरे पड़ोस वाले घर से फोन आता है कि बाबा का इंतकाल हो गया। मैं यह सुन ज़मीन हिल जाती है। मुझसे कुछ समझ नहीं आता। मैं अपने मालिक को सब बताता हूँ, वह मुझे कुछ पैसे देते हैं और कहते हैं हौसले से काम लो। मैं उस वक्त अपने गाँव के लिए बस पकड़कर घर पहुँच जाता हूँ। तो वहाँ दादी और माँ का बुरा हाल हो रखा था। मेरे सभी रिश्तेदार तकरीबन आ चुके थे। फिर हम बाबा को आखिरी विदाई देते हैं।
इसके बाद कुछ दिन मैं गाँव में माँ और दादी के साथ रहता हूँ। मालिक के दिए हुए पैसे मुझे गाँव में रहने के लिए काफी थे। अब एक हफ्ते बाद मैं अम्मी से कहता हूँ कि मुझे अब कराची जाना है ताकि पैसे कमा सकूँ। पर माँ मुझे मना करती है, "अब तुझे कहीं नहीं जाना है। अब तुझे जो कमाना और खाना है गाँव में रहकर ही कर।" पर माँ को मना कर देता हूँ, कहता हूँ यहाँ कोई गुजारा नहीं होगा।
आप यहाँ दादी और अपना ध्यान से रहो। जैसे ही मैं सही से रहने का ठिकाना पाऊँगा, मैं आप दोनों को यहाँ से ले चलूँगा। फिर हार कर मान जाती है। मैं कुछ दिन बाद कराची चला जाता हूँ। अब मैं वहाँ मन लगाकर मेहनत कर पैसे भेजता और बचाता हूँ ताकि माँ और दादी को साथ में रख पाऊँ। पर यह आसान नहीं होने वाला था क्योंकि कराची में घर बहुत महँगे थे। यहाँ किराए पर कमरे मुश्किल से मिलते और मिलते भी तो महँगे। तो मैं डेली और मेहनत करता।
इसी बीच मुझे चावल के बगल वाले मोहल्ले में एक लड़की मिल गई। हुआ कुछ यूँ कि एक दिन दुकान पर एक चाचा अपनी बाइक ठीक करवाने आए तो मालिक उन्हें जानते थे। उन्होंने उनसे कहा कि खान साहब आप क्यों इंतजार कर रहे हो? मैं आपकी बाइक सही करवाकर आपके घर भेजता हूँ। वह कहते हैं, "ठीक है।" जब उनकी बाइक ठीक हो जाती है, तो मालिक मुझे बताते हैं उनका घर उधर है, उनका पता बताते हैं। फिर मैं उनके घर जाकर उनकी बाइक चाबी देने के लिए घंटी बजाता हूँ तो बाहर एक लड़की आती है। वह देखने में इतनी सुंदर कि कोई भी उसे देखे तो देखता रह जाए। किसी हूर से कम नहीं। मैं थोड़ी देर उसे देखता रहता हूँ।

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उसकी उम्र लगभग 21 साल से कम नहीं होगी। वह मुझे देखकर कहती है, "क्या काम है?" मैं उससे कहता हूँ कि खान साहब हैं? फिर वह कहती है, "नहीं, अब्बू अभी बाहर गए हुए हैं।" मैं उसे उसकी गाड़ी की चाबी देकर कहता हूँ कि इसे अपने अब्बू को दे देना और कहना करीम मैकेनिक के नजदीक। और फिर मैं वहाँ से चला जाता हूँ। मैं आज उसे ही याद कर रहा था। उसका वह हसीन चेहरा न जाने मेरे दिमाग और मन से तो उतर ही नहीं रहा था।
ऐसा नहीं कि इससे पहले लड़कियाँ नहीं देखी थीं, पर उसका चेहरा मुझे दिमाग से नहीं उतर रहा था। अभी तक मैंने कराची में कोई शॉपिंग और फैशन नहीं किया था, पर उस लड़की के लिए मेरा मन नहीं मान रहा था। तो मैं उस मोहल्ले के छुट्टी वाले दिन चक्कर काट रहा था। मुझे पता चला कि उसके मेरी तरह बहुत दीवाने हैं, वह भी काफी पुराने। फिर पता चला लड़की की असली उम्र 21 साल है, मेरे से 2 साल बड़ी।
लड़की अभी बीए कर रही है कराची यूनिवर्सिटी से। मैं तो यह सोचकर ही हार मान लिया, एक तो 2 साल बड़ी और ऊपर से पढ़ी-लिखी। अब मैं हताश होकर अपने चाल में लेटा-लेटा उसके बारे में सोचने लगा और अल्लाह ताला से कहने लगा, "या अल्लाह मुझे यह लड़की से मिला दे।"
अब कुछ दिन खान साहब फिर गैरेज आते हैं। फिर कहते हैं, "करीम भाई इसे सही से ठीक कर दो या फिर इसे तुम रख लो।" फिर कहते हैं, "अबकी इसका सही से इलाज करके दूँगा।" फिर गाड़ी ठीक करने के बाद मालिक फिर मुझसे उनके घर भेजते हैं। मैंने अबकी सोच लिया है कि मैं अबकी उस लड़की से उसका नंबर माँगूँगा, पूरी हिम्मत के साथ।
फिर मैं उनके घर की घंटी बजाता हूँ तो किस्मत इतनी खराब कि खान साहब बाहर आते हैं और मेरा नाम लेकर कहते हैं कि आबिद तुम? मैं कहता हूँ, "खान साहब गाड़ी ठीक हो गई है आपकी।" वह कहते हैं कि पानी पीकर जाओ। खान साहब दिल के साफ आदमी हैं और वह धार्मिक आदमी हैं। वह बड़े और छोटे सभी के साथ अच्छे से पेश आते हैं। मैं फिर उन्हें मना कर देता हूँ, निराश मन से गैरेज चल जाता हूँ।
अब छुट्टी वाले दिन सामान लाने के लिए बाहर जाता हूँ। रास्ते में एक फकीर दिखता है, मैं उसे 10 का नोट दे देता हूँ। वह खुश होकर मुझे कहता है, "तेरी सब मुराद पूरी हो।" मैं वहाँ चला आता हूँ।
फिर एक दिन मुझे वह लड़की रास्ते में दिखती है अपने किसी दोस्त के साथ। मैं सोचता हूँ ऐसे रास्ते में बोलना सही नहीं होगा। फिर मैं वहाँ से चला जाता हूँ। अब एक दिन पार्क में घूम रहा होता हूँ। फिर मैं वहाँ कुछ कुत्तों को बिस्कुट खिला रहा होता हूँ। क्योंकि मेरे कराची में दोस्त बने ही नहीं थे और मैं यहाँ चाचा के अलावा किसी को नहीं जानता तो पार्क आया करता था टहलने। तो इन कुत्तों से दोस्ती हो गई थी। अब मैं जब भी पार्क आता था तो उनके लिए बिस्कुट लिया करता था। अब मैं उन्हें बिस्कुट खिला ही रहा था कि वहाँ खान चाचा की लड़की मुझे दूर से देख रही थी। मुझे यह पता नहीं चला। बस वह अपने छोटे भाई को पार्क लेकर आई थी। पार्क में उतनी भीड़ नहीं थी। अब मैं बेंच पर बैठा था तो मेरी नजर उस लड़की पर पड़ी तो मैंने सोच लिया था कि उससे आज मैं बोलकर कर रहूँगा। पर मैं सोचता हूँ कि वह पार्क अकेले तो नहीं आ गई। फिर मैं उसके आस-पास देखने लगता हूँ तो देखता हूँ कि 14 साल का लड़का उसके साथ है।
मैं अब हिम्मत करके उसके पास जाता हूँ और उसका नंबर माँगता हूँ लड़खड़ाती आवाज में। फिर पता नहीं उसने क्या सोचकर मुझे अपना नंबर दे दिया और मैं वहाँ से तुरंत चला गया। और मेरी खुशी का तो कोई ठिकाना नहीं, जैसे मुझे जन्नत मिल गया हो। मैं यह सोचता हूँ कि उसने क्या सोचकर नंबर दे दिया। अब मैं शाम के टाइम उस नंबर पर कॉल करता हूँ। अब वहाँ कॉल पिक करती है। फिर
मैं: उससे बोलता हूँ, "हेलो, मैं बोल रहा हूँ पार्क वाला लड़का।"
लड़की: वह कहती है, "अच्छा, तुम?"
मैं: "हाँ।" फिर मैं कहता हूँ कि तुम्हारा नाम क्या है?
लड़की: रुबीना। और तुम्हारा?
मैं: आबिद। मुझसे रहा नहीं जाता तो मैं उससे पूछ ही लेता हूँ कि तुम सबको अपना नंबर ऐसे ही दे देती हो क्या?
रुबीना: थोड़े गुस्से में, "नहीं। क्यों?"
मैं: "मुझे दे दिया। इसलिए पूछा, मुझे क्यों दिया बताओ?"
रुबीना: अभी नहीं, बाद में बताऊँगी।
मैं: "नहीं, बताओ।" पर रुबीना नहीं बताती और हम तकरीबन एक घंटे से ज्यादा बात करते हैं।
मुझे तो विश्वास नहीं हो रहा था कि मैं उस लड़की से बात कर पा रहा था। अब हम दोनों एक दूसरे के खाली समय पर फोन पर बात करने लगे। और मैंने इतनी सावधानी बरती कि किसी को कुछ नहीं पता चले। अब मैं उससे मिलने को बोलता हूँ तो कहती है, "मैं सिर्फ कॉलेज वाले दिन ही मिल सकती हूँ।" तो मैं उदास हो जाता हूँ.

मैं कुछ सोचने लगता हूँ, तो मैं बीमारी का बहाना बनाकर एक दिन की छुट्टी ले लेता हूँ। हम दोनों मॉल में मिलने का सोचते हैं। फिर वह मुझसे मिलने आती है। वह नकाब और हिजाब में होती है, तो मैं उसे पहचान नहीं पाता। और वह मेरे बगल में आकर खड़ी हो जाती है। वह कहती है, "अबिद चले।" मैं कहता हूँ, "फिर हम दोनों एक साथ कहाँ?" हम दोनों एक दूसरे के करीब आते जा रहे थे। ऐसा ही कुछ दिन चलता रहा।

फिर एक दिन मैं उसे अपने चाल में आने को कहता हूँ, पर वह मना कर देती है। फिर एक दिन वह पार्क में आती है, हम दोनों साथ बैठे थे। अब मैं उसका हाथ पकड़ता हूँ और वह कुछ नहीं कहती। यह पहली बार था कि मैंने किसी लड़की का हाथ पकड़ा था। उसके हाथ इतने नरम और मुलायम कि किसी को छुए वह मदहोश हो जाए। मैं यह दिन नहीं भूल सकता था और आज मैं अपने हाथ ही देखता रहा।

अब मैं उसके पूरे शरीर को छूना चाहता था और उसे अपना बनाना चाहता था पूरी तरह से। अब इसमें बीच मेरे घर काम, पैसा भेजना और घर पर कम बातलाना मेरी माँ को मेरी फिक्र कर रही थी। और दादी वहाँ अब्बा के इंतकाल के बाद और परेशान और बीमार हो गई। और दादी का इसी बीच इंतकाल हो गया। और मेरे गाँव जाकर उनका जनाजा किया। फिर माँ अकेले अब घर नहीं रह सकती थी।
 
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Motaland2468

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यह एक नई कहानी है जिसमें एक माँ और बेटे के बारे में बताया गया है।
आबिद के घर में कुल 4 सदस्य हैं: पापा, माँ, दादी और आबिद।
दादी का नाम रुकैया था। उनकी उम्र 65 साल थी।
पापा का नाम सयैद है। उम्र लगभग 55 साल होगी।

माँ का नाम रज़िया है। देखने में आम घरेलू महिला की तरह है। उम्र लगभग 48 साल होगी।

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शरीर एक अधेड़ उम्र की महिला की तरह है। स्तन थोड़े भारी।
रंग साँवला है। माँ एक संस्कारी और धार्मिक महिला है।
कहानी का हीरो
आबिद जो 19 साल का हो गया है। देखने में सुंदर और तंदुरुस्त।
अब कहानी की शुरुआत करते हैं: -
हम लोग पाकिस्तान के एक छोटे से गाँव में रहते हैं। वहाँ हमारी थोड़ी सी जमीन है। पापा मजदूरी करके पैसे कमाते हैं। मैं बचपन से ही पढ़ाई में अच्छा नहीं था। अब मैं अपने पापा की मदद करता हूँ मजदूरी में। पिछले कुछ दिनों से पापा की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी। और हमारा घर पापा की मजदूरी से चलता है, जो कि बहुत दिक्कत हो रही है। माँ और दादी भी बहुत परेशान थीं। मैं भी परेशान हो गया था। सरकारी अस्पताल में चक्कर काटने के बाद पता चला कि पापा को डेंगू हो गया है। अब हमारे पास दवाई के पैसे कम पड़ रहे थे। तो मैंने सोचा कमाने के लिए बाहर चला जाता हूँ। मैं कमाने के लिए लाहौर अपने चाचा के पास चला जाता हूँ ताकि बाबा की दवाई और घर सही से चल सके। मैं यह बता दूँ कि यह चाचा मेरे सगे चाचा नहीं हैं, यह मेरे अब्बू के पुराने दोस्त हैं।
अब चाचा लाहौर में अपने परिवार के साथ रहते थे तो मैं उनके साथ नहीं रह सकता था। फिर उन्होंने एक बस्ती या झुग्गी में मुझे ठिकाना दिलवाया और मैं वहीं रहने लगा। फिर मैं वहाँ मैकेनिक की दुकान पर काम करने लगा और सही आमदनी कमाने लगा। वहाँ बाबा की तबीयत और खराब होती जा रही थी। माँ से डेली चाचा के फोन से बात करता पर माँ बाबा की हालत के बारे में छुपाती थी। फिर तकरीबन 6 महीने तक बाबा को आराम हो गया। मैं यहीं अच्छी कमाई की वजह से यहीं रहने लगा। फिर एक दिन मेरे पड़ोस वाले घर से फोन आता है कि बाबा का इंतकाल हो गया। मैं यह सुन ज़मीन हिल जाती है। मुझसे कुछ समझ नहीं आता। मैं अपने मालिक को सब बताता हूँ, वह मुझे कुछ पैसे देते हैं और कहते हैं हौसले से काम लो। मैं उस वक्त अपने गाँव के लिए बस पकड़कर घर पहुँच जाता हूँ। तो वहाँ दादी और माँ का बुरा हाल हो रखा था। मेरे सभी रिश्तेदार तकरीबन आ चुके थे। फिर हम बाबा को आखिरी विदाई देते हैं।
इसके बाद कुछ दिन मैं गाँव में माँ और दादी के साथ रहता हूँ। मालिक के दिए हुए पैसे मुझे गाँव में रहने के लिए काफी थे। अब एक हफ्ते बाद मैं अम्मी से कहता हूँ कि मुझे अब कराची जाना है ताकि पैसे कमा सकूँ। पर माँ मुझे मना करती है, "अब तुझे कहीं नहीं जाना है। अब तुझे जो कमाना और खाना है गाँव में रहकर ही कर।" पर माँ को मना कर देता हूँ, कहता हूँ यहाँ कोई गुजारा नहीं होगा।
आप यहाँ दादी और अपना ध्यान से रहो। जैसे ही मैं सही से रहने का ठिकाना पाऊँगा, मैं आप दोनों को यहाँ से ले चलूँगा। फिर हार कर मान जाती है। मैं कुछ दिन बाद कराची चला जाता हूँ। अब मैं वहाँ मन लगाकर मेहनत कर पैसे भेजता और बचाता हूँ ताकि माँ और दादी को साथ में रख पाऊँ। पर यह आसान नहीं होने वाला था क्योंकि कराची में घर बहुत महँगे थे। यहाँ किराए पर कमरे मुश्किल से मिलते और मिलते भी तो महँगे। तो मैं डेली और मेहनत करता।
इसी बीच मुझे चावल के बगल वाले मोहल्ले में एक लड़की मिल गई। हुआ कुछ यूँ कि एक दिन दुकान पर एक चाचा अपनी बाइक ठीक करवाने आए तो मालिक उन्हें जानते थे। उन्होंने उनसे कहा कि खान साहब आप क्यों इंतजार कर रहे हो? मैं आपकी बाइक सही करवाकर आपके घर भेजता हूँ। वह कहते हैं, "ठीक है।" जब उनकी बाइक ठीक हो जाती है, तो मालिक मुझे बताते हैं उनका घर उधर है, उनका पता बताते हैं। फिर मैं उनके घर जाकर उनकी बाइक चाबी देने के लिए घंटी बजाता हूँ तो बाहर एक लड़की आती है। वह देखने में इतनी सुंदर कि कोई भी उसे देखे तो देखता रह जाए। किसी हूर से कम नहीं। मैं थोड़ी देर उसे देखता रहता हूँ।

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उसकी उम्र लगभग 21 साल से कम नहीं होगी। वह मुझे देखकर कहती है, "क्या काम है?" मैं उससे कहता हूँ कि खान साहब हैं? फिर वह कहती है, "नहीं, अब्बू अभी बाहर गए हुए हैं।" मैं उसे उसकी गाड़ी की चाबी देकर कहता हूँ कि इसे अपने अब्बू को दे देना और कहना करीम मैकेनिक के नजदीक। और फिर मैं वहाँ से चला जाता हूँ। मैं आज उसे ही याद कर रहा था। उसका वह हसीन चेहरा न जाने मेरे दिमाग और मन से तो उतर ही नहीं रहा था।
ऐसा नहीं कि इससे पहले लड़कियाँ नहीं देखी थीं, पर उसका चेहरा मुझे दिमाग से नहीं उतर रहा था। अभी तक मैंने कराची में कोई शॉपिंग और फैशन नहीं किया था, पर उस लड़की के लिए मेरा मन नहीं मान रहा था। तो मैं उस मोहल्ले के छुट्टी वाले दिन चक्कर काट रहा था। मुझे पता चला कि उसके मेरी तरह बहुत दीवाने हैं, वह भी काफी पुराने। फिर पता चला लड़की की असली उम्र 21 साल है, मेरे से 2 साल बड़ी।
लड़की अभी बीए कर रही है कराची यूनिवर्सिटी से। मैं तो यह सोचकर ही हार मान लिया, एक तो 2 साल बड़ी और ऊपर से पढ़ी-लिखी। अब मैं हताश होकर अपने चाल में लेटा-लेटा उसके बारे में सोचने लगा और अल्लाह ताला से कहने लगा, "या अल्लाह मुझे यह लड़की से मिला दे।"
अब कुछ दिन खान साहब फिर गैरेज आते हैं। फिर कहते हैं, "करीम भाई इसे सही से ठीक कर दो या फिर इसे तुम रख लो।" फिर कहते हैं, "अबकी इसका सही से इलाज करके दूँगा।" फिर गाड़ी ठीक करने के बाद मालिक फिर मुझसे उनके घर भेजते हैं। मैंने अबकी सोच लिया है कि मैं अबकी उस लड़की से उसका नंबर माँगूँगा, पूरी हिम्मत के साथ।
फिर मैं उनके घर की घंटी बजाता हूँ तो किस्मत इतनी खराब कि खान साहब बाहर आते हैं और मेरा नाम लेकर कहते हैं कि आबिद तुम? मैं कहता हूँ, "खान साहब गाड़ी ठीक हो गई है आपकी।" वह कहते हैं कि पानी पीकर जाओ। खान साहब दिल के साफ आदमी हैं और वह धार्मिक आदमी हैं। वह बड़े और छोटे सभी के साथ अच्छे से पेश आते हैं। मैं फिर उन्हें मना कर देता हूँ, निराश मन से गैरेज चल जाता हूँ।
अब छुट्टी वाले दिन सामान लाने के लिए बाहर जाता हूँ। रास्ते में एक फकीर दिखता है, मैं उसे 10 का नोट दे देता हूँ। वह खुश होकर मुझे कहता है, "तेरी सब मुराद पूरी हो।" मैं वहाँ चला आता हूँ।
फिर एक दिन मुझे वह लड़की रास्ते में दिखती है अपने किसी दोस्त के साथ। मैं सोचता हूँ ऐसे रास्ते में बोलना सही नहीं होगा। फिर मैं वहाँ से चला जाता हूँ। अब एक दिन पार्क में घूम रहा होता हूँ। फिर मैं वहाँ कुछ कुत्तों को बिस्कुट खिला रहा होता हूँ। क्योंकि मेरे कराची में दोस्त बने ही नहीं थे और मैं यहाँ चाचा के अलावा किसी को नहीं जानता तो पार्क आया करता था टहलने। तो इन कुत्तों से दोस्ती हो गई थी। अब मैं जब भी पार्क आता था तो उनके लिए बिस्कुट लिया करता था। अब मैं उन्हें बिस्कुट खिला ही रहा था कि वहाँ खान चाचा की लड़की मुझे दूर से देख रही थी। मुझे यह पता नहीं चला। बस वह अपने छोटे भाई को पार्क लेकर आई थी। पार्क में उतनी भीड़ नहीं थी। अब मैं बेंच पर बैठा था तो मेरी नजर उस लड़की पर पड़ी तो मैंने सोच लिया था कि उससे आज मैं बोलकर कर रहूँगा। पर मैं सोचता हूँ कि वह पार्क अकेले तो नहीं आ गई। फिर मैं उसके आस-पास देखने लगता हूँ तो देखता हूँ कि 14 साल का लड़का उसके साथ है।
मैं अब हिम्मत करके उसके पास जाता हूँ और उसका नंबर माँगता हूँ लड़खड़ाती आवाज में। फिर पता नहीं उसने क्या सोचकर मुझे अपना नंबर दे दिया और मैं वहाँ से तुरंत चला गया। और मेरी खुशी का तो कोई ठिकाना नहीं, जैसे मुझे जन्नत मिल गया हो। मैं यह सोचता हूँ कि उसने क्या सोचकर नंबर दे दिया। अब मैं शाम के टाइम उस नंबर पर कॉल करता हूँ। अब वहाँ कॉल पिक करती है। फिर
मैं: उससे बोलता हूँ, "हेलो, मैं बोल रहा हूँ पार्क वाला लड़का।"
लड़की: वह कहती है, "अच्छा, तुम?"
मैं: "हाँ।" फिर मैं कहता हूँ कि तुम्हारा नाम क्या है?
लड़की: रुबीना। और तुम्हारा?
मैं: आबिद। मुझसे रहा नहीं जाता तो मैं उससे पूछ ही लेता हूँ कि तुम सबको अपना नंबर ऐसे ही दे देती हो क्या?
रुबीना: थोड़े गुस्से में, "नहीं। क्यों?"
मैं: "मुझे दे दिया। इसलिए पूछा, मुझे क्यों दिया बताओ?"
रुबीना: अभी नहीं, बाद में बताऊँगी।
मैं: "नहीं, बताओ।" पर रुबीना नहीं बताती और हम तकरीबन एक घंटे से ज्यादा बात करते हैं।
मुझे तो विश्वास नहीं हो रहा था कि मैं उस लड़की से बात कर पा रहा था। अब हम दोनों एक दूसरे के खाली समय पर फोन पर बात करने लगे। और मैंने इतनी सावधानी बरती कि किसी को कुछ नहीं पता चले। अब मैं उससे मिलने को बोलता हूँ तो कहती है, "मैं सिर्फ कॉलेज वाले दिन ही मिल सकती हूँ।" तो मैं उदास हो जाता हूँ.

मैं कुछ सोचने लगता हूँ, तो मैं बीमारी का बहाना बनाकर एक दिन की छुट्टी ले लेता हूँ। हम दोनों मॉल में मिलने का सोचते हैं। फिर वह मुझसे मिलने आती है। वह नकाब और हिजाब में होती है, तो मैं उसे पहचान नहीं पाता। और वह मेरे बगल में आकर खड़ी हो जाती है। वह कहती है, "अबिद चले।" मैं कहता हूँ, "फिर हम दोनों एक साथ कहाँ?" हम दोनों एक दूसरे के करीब आते जा रहे थे। ऐसा ही कुछ दिन चलता रहा।

फिर एक दिन मैं उसे अपने चाल में आने को कहता हूँ, पर वह मना कर देती है। फिर एक दिन वह पार्क में आती है, हम दोनों साथ बैठे थे। अब मैं उसका हाथ पकड़ता हूँ और वह कुछ नहीं कहती। यह पहली बार था कि मैंने किसी लड़की का हाथ पकड़ा था। उसके हाथ इतने नरम और मुलायम कि किसी को छुए वह मदहोश हो जाए। मैं यह दिन नहीं भूल सकता था और आज मैं अपने हाथ ही देखता रहा।

अब मैं उसके पूरे शरीर को छूना चाहता था और उसे अपना बनाना चाहता था पूरी तरह से। अब इसमें बीच मेरे घर काम, पैसा भेजना और घर पर कम बातलाना मेरी माँ को मेरी फिक्र कर रही थी। और दादी वहाँ अब्बा के इंतकाल के बाद और परेशान और बीमार हो गई। और दादी का इसी बीच इंतकाल हो गया। और मेरे गाँव जाकर उनका जनाजा किया। फिर माँ अकेले अब घर नहीं रह सकती थी।
Congratulations for new story plz story puri detail mein likhna jaldbaazi main mat likhna
 
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Malik420

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Hi can u write that story in English or hinglish
 
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ayush01111

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आबिद के घर में कुल 4 सदस्य हैं: पापा, माँ, दादी और आबिद।
दादी का नाम रुकैया था। उनकी उम्र 65 साल थी।
पापा का नाम सयैद है। उम्र लगभग 55 साल होगी।

माँ का नाम रज़िया है। देखने में आम घरेलू महिला की तरह है। उम्र लगभग 48 साल होगी।

5afa8c5c838da

शरीर एक अधेड़ उम्र की महिला की तरह है। स्तन थोड़े भारी।
रंग साँवला है। माँ एक संस्कारी और धार्मिक महिला है।
कहानी का हीरो
आबिद जो 19 साल का हो गया है। देखने में सुंदर और तंदुरुस्त।
अब कहानी की शुरुआत करते हैं: -
हम लोग पाकिस्तान के एक छोटे से गाँव में रहते हैं। वहाँ हमारी थोड़ी सी जमीन है। पापा मजदूरी करके पैसे कमाते हैं। मैं बचपन से ही पढ़ाई में अच्छा नहीं था। अब मैं अपने पापा की मदद करता हूँ मजदूरी में। पिछले कुछ दिनों से पापा की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी। और हमारा घर पापा की मजदूरी से चलता है, जो कि बहुत दिक्कत हो रही है। माँ और दादी भी बहुत परेशान थीं। मैं भी परेशान हो गया था। सरकारी अस्पताल में चक्कर काटने के बाद पता चला कि पापा को डेंगू हो गया है। अब हमारे पास दवाई के पैसे कम पड़ रहे थे। तो मैंने सोचा कमाने के लिए बाहर चला जाता हूँ। मैं कमाने के लिए लाहौर अपने चाचा के पास चला जाता हूँ ताकि बाबा की दवाई और घर सही से चल सके। मैं यह बता दूँ कि यह चाचा मेरे सगे चाचा नहीं हैं, यह मेरे अब्बू के पुराने दोस्त हैं।
अब चाचा लाहौर में अपने परिवार के साथ रहते थे तो मैं उनके साथ नहीं रह सकता था। फिर उन्होंने एक बस्ती या झुग्गी में मुझे ठिकाना दिलवाया और मैं वहीं रहने लगा। फिर मैं वहाँ मैकेनिक की दुकान पर काम करने लगा और सही आमदनी कमाने लगा। वहाँ बाबा की तबीयत और खराब होती जा रही थी। माँ से डेली चाचा के फोन से बात करता पर माँ बाबा की हालत के बारे में छुपाती थी। फिर तकरीबन 6 महीने तक बाबा को आराम हो गया। मैं यहीं अच्छी कमाई की वजह से यहीं रहने लगा। फिर एक दिन मेरे पड़ोस वाले घर से फोन आता है कि बाबा का इंतकाल हो गया। मैं यह सुन ज़मीन हिल जाती है। मुझसे कुछ समझ नहीं आता। मैं अपने मालिक को सब बताता हूँ, वह मुझे कुछ पैसे देते हैं और कहते हैं हौसले से काम लो। मैं उस वक्त अपने गाँव के लिए बस पकड़कर घर पहुँच जाता हूँ। तो वहाँ दादी और माँ का बुरा हाल हो रखा था। मेरे सभी रिश्तेदार तकरीबन आ चुके थे। फिर हम बाबा को आखिरी विदाई देते हैं।
इसके बाद कुछ दिन मैं गाँव में माँ और दादी के साथ रहता हूँ। मालिक के दिए हुए पैसे मुझे गाँव में रहने के लिए काफी थे। अब एक हफ्ते बाद मैं अम्मी से कहता हूँ कि मुझे अब कराची जाना है ताकि पैसे कमा सकूँ। पर माँ मुझे मना करती है, "अब तुझे कहीं नहीं जाना है। अब तुझे जो कमाना और खाना है गाँव में रहकर ही कर।" पर माँ को मना कर देता हूँ, कहता हूँ यहाँ कोई गुजारा नहीं होगा।
आप यहाँ दादी और अपना ध्यान से रहो। जैसे ही मैं सही से रहने का ठिकाना पाऊँगा, मैं आप दोनों को यहाँ से ले चलूँगा। फिर हार कर मान जाती है। मैं कुछ दिन बाद कराची चला जाता हूँ। अब मैं वहाँ मन लगाकर मेहनत कर पैसे भेजता और बचाता हूँ ताकि माँ और दादी को साथ में रख पाऊँ। पर यह आसान नहीं होने वाला था क्योंकि कराची में घर बहुत महँगे थे। यहाँ किराए पर कमरे मुश्किल से मिलते और मिलते भी तो महँगे। तो मैं डेली और मेहनत करता।
इसी बीच मुझे चावल के बगल वाले मोहल्ले में एक लड़की मिल गई। हुआ कुछ यूँ कि एक दिन दुकान पर एक चाचा अपनी बाइक ठीक करवाने आए तो मालिक उन्हें जानते थे। उन्होंने उनसे कहा कि खान साहब आप क्यों इंतजार कर रहे हो? मैं आपकी बाइक सही करवाकर आपके घर भेजता हूँ। वह कहते हैं, "ठीक है।" जब उनकी बाइक ठीक हो जाती है, तो मालिक मुझे बताते हैं उनका घर उधर है, उनका पता बताते हैं। फिर मैं उनके घर जाकर उनकी बाइक चाबी देने के लिए घंटी बजाता हूँ तो बाहर एक लड़की आती है। वह देखने में इतनी सुंदर कि कोई भी उसे देखे तो देखता रह जाए। किसी हूर से कम नहीं। मैं थोड़ी देर उसे देखता रहता हूँ।

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उसकी उम्र लगभग 21 साल से कम नहीं होगी। वह मुझे देखकर कहती है, "क्या काम है?" मैं उससे कहता हूँ कि खान साहब हैं? फिर वह कहती है, "नहीं, अब्बू अभी बाहर गए हुए हैं।" मैं उसे उसकी गाड़ी की चाबी देकर कहता हूँ कि इसे अपने अब्बू को दे देना और कहना करीम मैकेनिक के नजदीक। और फिर मैं वहाँ से चला जाता हूँ। मैं आज उसे ही याद कर रहा था। उसका वह हसीन चेहरा न जाने मेरे दिमाग और मन से तो उतर ही नहीं रहा था।
ऐसा नहीं कि इससे पहले लड़कियाँ नहीं देखी थीं, पर उसका चेहरा मुझे दिमाग से नहीं उतर रहा था। अभी तक मैंने कराची में कोई शॉपिंग और फैशन नहीं किया था, पर उस लड़की के लिए मेरा मन नहीं मान रहा था। तो मैं उस मोहल्ले के छुट्टी वाले दिन चक्कर काट रहा था। मुझे पता चला कि उसके मेरी तरह बहुत दीवाने हैं, वह भी काफी पुराने। फिर पता चला लड़की की असली उम्र 21 साल है, मेरे से 2 साल बड़ी।
लड़की अभी बीए कर रही है कराची यूनिवर्सिटी से। मैं तो यह सोचकर ही हार मान लिया, एक तो 2 साल बड़ी और ऊपर से पढ़ी-लिखी। अब मैं हताश होकर अपने चाल में लेटा-लेटा उसके बारे में सोचने लगा और अल्लाह ताला से कहने लगा, "या अल्लाह मुझे यह लड़की से मिला दे।"
अब कुछ दिन खान साहब फिर गैरेज आते हैं। फिर कहते हैं, "करीम भाई इसे सही से ठीक कर दो या फिर इसे तुम रख लो।" फिर कहते हैं, "अबकी इसका सही से इलाज करके दूँगा।" फिर गाड़ी ठीक करने के बाद मालिक फिर मुझसे उनके घर भेजते हैं। मैंने अबकी सोच लिया है कि मैं अबकी उस लड़की से उसका नंबर माँगूँगा, पूरी हिम्मत के साथ।
फिर मैं उनके घर की घंटी बजाता हूँ तो किस्मत इतनी खराब कि खान साहब बाहर आते हैं और मेरा नाम लेकर कहते हैं कि आबिद तुम? मैं कहता हूँ, "खान साहब गाड़ी ठीक हो गई है आपकी।" वह कहते हैं कि पानी पीकर जाओ। खान साहब दिल के साफ आदमी हैं और वह धार्मिक आदमी हैं। वह बड़े और छोटे सभी के साथ अच्छे से पेश आते हैं। मैं फिर उन्हें मना कर देता हूँ, निराश मन से गैरेज चल जाता हूँ।
अब छुट्टी वाले दिन सामान लाने के लिए बाहर जाता हूँ। रास्ते में एक फकीर दिखता है, मैं उसे 10 का नोट दे देता हूँ। वह खुश होकर मुझे कहता है, "तेरी सब मुराद पूरी हो।" मैं वहाँ चला आता हूँ।
फिर एक दिन मुझे वह लड़की रास्ते में दिखती है अपने किसी दोस्त के साथ। मैं सोचता हूँ ऐसे रास्ते में बोलना सही नहीं होगा। फिर मैं वहाँ से चला जाता हूँ। अब एक दिन पार्क में घूम रहा होता हूँ। फिर मैं वहाँ कुछ कुत्तों को बिस्कुट खिला रहा होता हूँ। क्योंकि मेरे कराची में दोस्त बने ही नहीं थे और मैं यहाँ चाचा के अलावा किसी को नहीं जानता तो पार्क आया करता था टहलने। तो इन कुत्तों से दोस्ती हो गई थी। अब मैं जब भी पार्क आता था तो उनके लिए बिस्कुट लिया करता था। अब मैं उन्हें बिस्कुट खिला ही रहा था कि वहाँ खान चाचा की लड़की मुझे दूर से देख रही थी। मुझे यह पता नहीं चला। बस वह अपने छोटे भाई को पार्क लेकर आई थी। पार्क में उतनी भीड़ नहीं थी। अब मैं बेंच पर बैठा था तो मेरी नजर उस लड़की पर पड़ी तो मैंने सोच लिया था कि उससे आज मैं बोलकर कर रहूँगा। पर मैं सोचता हूँ कि वह पार्क अकेले तो नहीं आ गई। फिर मैं उसके आस-पास देखने लगता हूँ तो देखता हूँ कि 14 साल का लड़का उसके साथ है।
मैं अब हिम्मत करके उसके पास जाता हूँ और उसका नंबर माँगता हूँ लड़खड़ाती आवाज में। फिर पता नहीं उसने क्या सोचकर मुझे अपना नंबर दे दिया और मैं वहाँ से तुरंत चला गया। और मेरी खुशी का तो कोई ठिकाना नहीं, जैसे मुझे जन्नत मिल गया हो। मैं यह सोचता हूँ कि उसने क्या सोचकर नंबर दे दिया। अब मैं शाम के टाइम उस नंबर पर कॉल करता हूँ। अब वहाँ कॉल पिक करती है। फिर
मैं: उससे बोलता हूँ, "हेलो, मैं बोल रहा हूँ पार्क वाला लड़का।"
लड़की: वह कहती है, "अच्छा, तुम?"
मैं: "हाँ।" फिर मैं कहता हूँ कि तुम्हारा नाम क्या है?
लड़की: रुबीना। और तुम्हारा?
मैं: आबिद। मुझसे रहा नहीं जाता तो मैं उससे पूछ ही लेता हूँ कि तुम सबको अपना नंबर ऐसे ही दे देती हो क्या?
रुबीना: थोड़े गुस्से में, "नहीं। क्यों?"
मैं: "मुझे दे दिया। इसलिए पूछा, मुझे क्यों दिया बताओ?"
रुबीना: अभी नहीं, बाद में बताऊँगी।
मैं: "नहीं, बताओ।" पर रुबीना नहीं बताती और हम तकरीबन एक घंटे से ज्यादा बात करते हैं।
मुझे तो विश्वास नहीं हो रहा था कि मैं उस लड़की से बात कर पा रहा था। अब हम दोनों एक दूसरे के खाली समय पर फोन पर बात करने लगे। और मैंने इतनी सावधानी बरती कि किसी को कुछ नहीं पता चले। अब मैं उससे मिलने को बोलता हूँ तो कहती है, "मैं सिर्फ कॉलेज वाले दिन ही मिल सकती हूँ।" तो मैं उदास हो जाता हूँ.

मैं कुछ सोचने लगता हूँ, तो मैं बीमारी का बहाना बनाकर एक दिन की छुट्टी ले लेता हूँ। हम दोनों मॉल में मिलने का सोचते हैं। फिर वह मुझसे मिलने आती है। वह नकाब और हिजाब में होती है, तो मैं उसे पहचान नहीं पाता। और वह मेरे बगल में आकर खड़ी हो जाती है। वह कहती है, "अबिद चले।" मैं कहता हूँ, "फिर हम दोनों एक साथ कहाँ?" हम दोनों एक दूसरे के करीब आते जा रहे थे। ऐसा ही कुछ दिन चलता रहा।

फिर एक दिन मैं उसे अपने चाल में आने को कहता हूँ, पर वह मना कर देती है। फिर एक दिन वह पार्क में आती है, हम दोनों साथ बैठे थे। अब मैं उसका हाथ पकड़ता हूँ और वह कुछ नहीं कहती। यह पहली बार था कि मैंने किसी लड़की का हाथ पकड़ा था। उसके हाथ इतने नरम और मुलायम कि किसी को छुए वह मदहोश हो जाए। मैं यह दिन नहीं भूल सकता था और आज मैं अपने हाथ ही देखता रहा।

अब मैं उसके पूरे शरीर को छूना चाहता था और उसे अपना बनाना चाहता था पूरी तरह से। अब इसमें बीच मेरे घर काम, पैसा भेजना और घर पर कम बातलाना मेरी माँ को मेरी फिक्र कर रही थी। और दादी वहाँ अब्बा के इंतकाल के बाद और परेशान और बीमार हो गई। और दादी का इसी बीच इंतकाल हो गया। और मेरे गाँव जाकर उनका जनाजा किया। फिर माँ अकेले अब घर नहीं रह सकती थी।
Bhai dadi or papa ki age me only 10nyear gap not possible please make correction minimum 15 to 16 year to rakho
 
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Desilove

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Bhai dadi or papa ki age me only 10nyear gap not possible please make correction minimum 15 to 16 year to rakho
Thik bhai correct kar diya agar aur koi sujawh ho to jarur batana. Danyvad bhai❤
 
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