राहत इंदौरी साहब हमारे देश के मशहूर शायरों में से एक थे। आज वो हमारे बीच नहीं रहे। उनकी ग़ज़लें अलग ही मिज़ाज की होती थी जो सीधा चाक़ ए जिगर हो जाती थी। फिल्मों में उनके गीत हमेशा सुने जाऍगे। मुशायरों में उनकी आमद से अलग ही नज़ाक़त होती थी। उनकी याद में उन्हीं की ग़ज़ल पेश करते हुए उन्हें बड़ी श्रद्धा से श्रद्धांजली अर्पित करते हैं। ईश्वर उन्हें उत्तम गति प्रदान करें।
घर से ये सोच के निकला हूँ कि मर जाना है।
अब कोई राह दिखा दे कि किधर जाना है।।
जिस्म से साथ निभाने की मत उम्मीद रखो,
इस मुसाफ़िर को तो रस्ते में ठहर जाना है।।
मौत लम्हे की सदा ज़िंदगी उम्रों की पुकार,
मैं यही सोच के ज़िंदा हूँ कि मर जाना है।।
नश्शा ऐसा था कि मय-ख़ाने को दुनिया समझा,
होश आया तो ख़याल आया कि घर जाना है।।
मिरे जज़्बे की बड़ी क़द्र है लोगों में मगर,
मेरे जज़्बे को मिरे साथ ही मर जाना है।।
*******
सूरज, सितारे चाँद मेरे साथ में रहे।
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहे।।
साँसों की तरह साथ रहे सारी ज़िंदगी,
तुम ख़्वाब से गए तो ख़्यालात में रहे।।
हर बूँद तीर बन के उतरती है रूह में,
तन्हा मेरा तरह कोई बरसात में रहे।।
हर रंग हर मिज़ाज में पाया है आपको,
मौसम तमाम आपकी ख़िदमत में रहे।।
शाखों से टूट जाएं वो पत्ते नहीं हैं हम,
आँधी से कोई कह दे के औक़ात में रहे।।
______राहत इंदौरी (RIP)