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very usefulअपने डॉक्टर खुद बने
1 = केवल सेंधा नमक प्रयोग करें, थायराईड, बी पी और पेट ठीक होगा।
2 = केवल स्टील का कुकर ही प्रयोग करें, अल्युमिनियम में मिले हुए लेड से होने वाले नुकसानों से बचेंगे
3 = कोई भी रिफाइंड तेल ना खाकर केवल तिल, मूंगफली, सरसों और नारियल का प्रयोग करें। रिफाइंड में बहुत केमिकल होते हैं जो शरीर में कई तरह की बीमारियाँ पैदा करते हैं ।
4 = सोयाबीन बड़ी को 2 घण्टे भिगो कर, मसल कर ज़हरीली झाग निकल कर ही प्रयोग करें।
5 = रसोई में एग्जास्ट फैन जरूरी है, प्रदूषित हवा बाहर करें।
6 = काम करते समय स्वयं को अच्छा लगने वाला संगीत चलाएं। खाने में भी अच्छा प्रभाव आएगा और थकान कम होगी।
7 = देसी गाय के घी का प्रयोग बढ़ाएं। अनेक रोग दूर होंगे, वजन नहीं बढ़ता।
8 = ज्यादा से ज्यादा मीठा नीम/कढ़ी पत्ता खाने की चीजों में डालें, सभी का स्वास्थ्य ठीक करेगा।
9 = ज्यादा से ज्यादा चीजें लोहे की कढ़ाई में ही बनाएं। आयरन की कमी किसी को नहीं होगी।
10 = भोजन का समय निश्चित करें, पेट ठीक रहेगा। भोजन के बीच बात न करें, भोजन ज्यादा पोषण देगा।
11 = नाश्ते में अंकुरित अन्न शामिल करें। पोषक विटामिन और फाइबर मिलेंगें।
12 = सुबह के खाने के साथ देशी गाय के दूध का बना ताजा दही लें, पेट ठीक रहेगा।
13 = चीनी कम से कम प्रयोग करें, ज्यादा उम्र में हड्डियां ठीक रहेंगी।
14 = चीनी की जगह बिना मसले का गुड़ या देशी शक्कर लें।
15 = छौंक में राई के साथ कलौंजी का भी प्रयोग करें, फायदे इतने कि लिख ही नहीं सकते।
16 = चाय के समय, आयुर्वेदिक पेय की आदत बनाएं व निरोग रहेंगे।
17 = एक डस्टबिन रसोई में और एक बाहर रखें, सोने से पहले रसोई का कचरा बाहर के डस्ट बिन में डालें।
18 = रसोई में घुसते ही नाक में घी या सरसों का तेल लगाएं, सर और फेफड़े स्वस्थ रहेंगें।
19 = करेले, मैथी और मूली यानि कड़वी सब्जियां भी खाएँ, रक्त शुद्ध रहेगा।
20 = पानी मटके वाले से ज्यादा ठंडा न पिएं, पाचन व दांत ठीक रहेंगे।
21 = प्लास्टिक और अल्युमिनियम रसोई से हटाएं, दोनों केन्सर कारक हैं।
22 = माइक्रोवेव ओवन का प्रयोग कैंसर कारक है।
23 = खाने की ठंडी चीजें कम से कम खाएँ, पेट और दांत को खराब करती हैं।
24 = बाहर का खाना बहुत हानिकारक है, खाने से सम्बंधित ग्रुप से जुड़कर सब घर पर ही बनाएं।
25 = तली चीजें छोड़ें, वजन, पेट, एसिडिटी ठीक रहेंगी।
26 = मैदा, बेसन, छौले, राजमां और उड़द कम खाएँ, गैस की समस्या से बचेंगे।
27 = अदरक, अजवायन का प्रयोग बढ़ाएं, गैस और शरीर के दर्द कम होंगे।
28 = बिना कलौंजी वाला अचार हानिकारक होता है।
29 = पानी का फिल्टर R O वाला हानिकारक है। U V वाला ही प्रयोग करें, सस्ता भी और बढ़िया भी।
30 = रसोई में ही बहुत से कॉस्मेटिक्स हैं, इस प्रकार के ग्रुप से जानकारी लें।
31 = रात को आधा चम्मच त्रिफला एक कप पानी में डाल कर रखें, सुबह कपड़े से छान कर इस जल से आंखें धोएं, चश्मा उतर जाएगा। छानने के बाद जो पाउडर बचे उसे फिर एक गिलास पानी में डाल कर रख दें। रात को पी जाएं। पेट साफ होगा, कोई रोग एक साल में नहीं रहेगा।
32 = सुबह रसोई में चप्पल न पहनें, शुद्धता भी, एक्यू प्रेशर भी।
33 = रात का भिगोया आधा चम्मच कच्चा जीरा सुबह खाली पेट चबा कर वही पानी पिएं, एसिडिटी खतम।
34 = एक्यूप्रेशर वाले पिरामिड प्लेटफार्म पर खड़े होकर खाना बनाने की आदत बना लें तो भी सब बीमारियां शरीर से निकल जायेंगी।
35 = चौथाई चम्मच दालचीनी का कुल उपयोग दिन भर में किसी भी रूप में करने पर निरोगता अवश्य होगी।
36 = रसोई के मसालों से बनी चाय मसाला स्वास्थ्यवर्धक है।
37 = सर्दियों में नाखून के बराबर जावित्री कभी चूसने से सर्दी के असर से बचाव होगा।
38 = सर्दी में बाहर जाते समय 2 चुटकी अजवायन मुहं में रखकर निकलिए, सर्दी से नुकसान नहीं होगा।
39 = रस निकले नीबू के चौथाई टुकड़े में जरा सी हल्दी, नमक, फिटकरी रख कर दांत मलने से दांतों का कोई भी रोग नहीं रहेगा।
40 = कभी - कभी नमक - हल्दी में 2 बून्द सरसों का तेल डाल कर दांतों को उंगली से साफ करें, दांतों का कोई रोग टिक नहीं सकता।
41 = बुखार में 1 लीटर पानी उबाल कर 250 ml कर लें, साधारण ताप पर आ जाने पर रोगी को थोड़ा थोड़ा दें, दवा का काम करेगा।
42 = सुबह के खाने के साथ घर का जमाया देशी गाय का ताजा दही जरूर शामिल करें, प्रोबायोटिक का काम करेगा।
*हृदय की बीमारी के आयुर्वेदिक इलाज
यह उनमे से ही एक सूत्र है !!
अम्लता आप समझते है, जिसको अँग्रेजी में Acidity भी कहते हैं और यह अम्लता दो तरह की होती है !
एक होती है पेट कि अम्लता !
और
एक होती है रक्त (Blood) की अम्लता !
आपके पेट मे अम्लता जब बढ़ती है तो आप कहेंगे पेट मे जलन सी हो रही है, खट्टी खट्टी डकार आ रही है, मुंह से पानी निकल रहा है और अगर ये अम्लता (Acidity) और बढ़ जाये तो इसे Hyperacidity कहते हैं !
फिर यही पेट की अम्लता बढ़ते - बढ़ते जब रक्त मे आती है तो रक्त अम्लता (Blood Acidity) होती है और जब Blood मे Acidity बढ़ती है तो ये अम्लीय रक्त दिल की नलियों में से निकल नहीं पाता और नलियों में Blockage कर देता है और तभी Heart Attack होता है ! इसके बिना Heart Attack नहीं होता और ये आयुर्वेद का सबसे बढ़ा सच है जिसको कोई डाक्टर आपको बताता नहीं ! क्योंकि इसका इलाज सबसे सरल है !!
*एसीडिटी का इलाज क्या है*??
वागबट जी आगे लिखते है कि जब रक्त (Blood) में अम्लता (Acidity) बढ़ गई है ! तो आप ऐसी चीजों का उपयोग करें जो क्षारीय है !
आप जानते है दो तरह की चीजे होती है !
अम्लीय (Acidic)
और
क्षारीय (Alkaline)
अब अम्ल और क्षार (Acid and Alkaline) को मिला दें तो क्या होता है ?
हम सब जानते हैं Neutral होता है !!
तो वागबट जी लिखते हैं कि रक्त की अम्लता बढ़ी हुई है तो क्षारीय (Alkaline) चीजे खाओ ! तो रक्त की अम्लता (Acidity) Neutral हो जाएगी, और जब रक्त मे अम्लता Neutral हो गई तो Heart Attack की जिंदगी मे कभी संभावना ही नहीं होगी ।
ये है सारी कहानी !!
अब आप पूछोगे जी ऐसे कौन सी चीजे है जो क्षारीय है और हम खाये ??
आपके रसोई घर मे ऐसी बहुत सी चीजे है जो क्षारीय है ! जिन्हें अगर आप खायें तो कभी Heart Attack न आयेगा और अगर आ गया तो दुबारा नहीं आएगा !
आपके घर में जो सबसे ज्यादा क्षारीय चीज है वह है लौकी, जिसे हम दुधी भी कहते है और English मे इसे Bottle Gourd भी कहते हैं जिसे आप सब्जी के रूप मे खाते है !
इससे ज्यादा कोई क्षारीय चीज ही नहीं है इसलिये आप हर रोज़ लौकी का रस निकाल कर पियें या अगर खा सकते है तो कच्ची लौकी खायें ।
वागवतट जी के अनुसार रक्त की अम्लता कम करने की सबसे ज्यादा ताकत लौकी में ही है, इसलिए आप लौकी के रस का सेवन करें !
*कितना मात्रा में सेवन करें*
रोज 200 से 300 ग्राम लौकी का रस ग्राम पियें !
कब पिये ?
सुबह खाली पेट (Toilet) शौच जाने के बाद पी सकते है. या फिर नाश्ते के आधे घंटे के बाद पी सकते हैं!
इस लौकी के रस को आप और ज्यादा क्षारीय भी बना सकते हैं ! जिसके लिए इसमें 7 से 10 पत्ते के तुलसी के डाल लें क्योंकि तुलसी बहुत क्षारीय है !
इसके साथ आप पुदीने के 7 से 10 पत्ते भी मिला सकते है, क्योंकि पुदीना भी बहुत क्षारीय होता है।
इसके साथ आप इसमें काला नमक या सेंधा नमक भी जरूर डाले ! ये भी बहुत क्षारीय है। याद रखे नमक काला या सेंधा ही डालें, दूसरा आयोडीन युक्त नमक कभी न डालें !
ये आओडीन युक्त नमक अम्लीय है।
तो मित्रों आप इस लौकी के जूस का सेवन जरूर करे 2 से 3 महीने आपकी सारी Heart की Blockage ठीक कर देगा। 21 वे दिन ही आपको बहुत ज्यादा असर दिखना शुरू हो जाएगा और फिर आपको कोई आपरेशन की जरूरत नहीं पड़ेगी !
घर मे ही हमारे भारत के आयुर्वेद से इसका इलाज हो जाएगा और आपका अनमोल शरीर और लाखों रुपए आपरेशन के बच जाएँगे और जो पैसे बच जायें उसे अगर इच्छा हो किसी गौशाला मे दान कर दें क्योंकि डाक्टर को देने से अच्छा है किसी गौशाला दान दे !
*हल्दी का पानी*
पानी में हल्दी मिलाकर पीने से यह 7 फायदें होते है ....
1. गुनगुना हल्दी वाला पानी पीने से दिमाग तेज होता है। सुबह के समय हल्दी का गुनगुना पानी पीने से दिमाग तेज और उर्जावान बनता है।
2. आप यदि रोज़ हल्दी का पानी पीते हैं तो इससे खून में होने वाली गंदगी साफ होती है और खून जमता भी नहीं है, यह खून साफ करता है और दिल को बीमारियों से भी बचाता है।
3. लीवर की समस्या से परेशान लोगों के लिए हल्दी का पानी किसी औषधि से कम नही है क्योंकि हल्दी का पानी टाॅक्सिस लीवर के सेल्स को फिर से ठीक करता है। इसके अलावा हल्दी और पानी के मिले हुए गुण लीवर को संक्रमण से भी बचाते हैं।
4. हार्ट की समस्या से परेशान लोगों को हल्दी वाला पानी पीना चाहिए क्योंकि हल्दी खून को गाढ़ा होने से बचाती है जिससे हार्ट अटैक की संभावना कम हो जाती है.
5. जब हल्दी के पानी में शहद और नींबू मिलाया जाता है तब यह शरीर के अंदर जमे हुए विषैले पदार्थों को निकाल देता है, जिसे पीने से शरीर पर बढ़ती हुई उम्र का असर नहीं पड़ता है। हल्दी में फ्री रेडिकल्स होते हैं जो सेहत और सौंदर्य को बढ़ाते हैं.
6. शरीर में किसी भी तरह की सूजन हो और वह किसी दवाई से ना ठीक हो रही हो तो आप हल्दी वाला पानी का सेवन करें। हल्दी में करक्यूमिन तत्व होता है जो सूजन और जोड़ों में होने वाले असहय दर्द को ठीक कर देता है। सूजन की अचूक दवा है हल्दी का पानी।
7. कैंसर खत्म करती है हल्दी। हल्दी कैंसर से लड़ती है और उसे बढ़ने से भी रोक देती है क्योंकि हल्दी एंटी - कैंसर युक्त होती है और यदि आप सप्ताह में तीन दिन हल्दी वाला पानी पीएगें तो आपको भविष्य में कैंसर से हमेशा बचे रहेगें।
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हमारे वेदों के अनुसार स्वस्थ रहने के १५ नियम हैं.....
१ - खाना खाने के १.३० घंटे बाद ही पानी पीना चाहिए।
२ - पानी घूँट घूँट करके पीना है जिससे अपनी मुँह की लार पानी के साथ मिलकर पेट में जा सके, पेट में Acid बनता है और मुँह में छार, दोनो पेट में बराबर मिल जाए तो कोई रोग पास नहीं आएगा।
३ - पानी कभी भी ठंडा (फ़्रिज़ का) नहीं पीना है।
४ - सुबह उठते ही बिना क़ुल्ला किए २ ग्लास पानी पीना चाहिए, रात भर जो अपने मुँह में लार है वो अमूल्य है उसको पेट में ही जाना ही चाहिए ।
५ - खाना, जितने आपके मुँह में दाँत है उतनी बार ही चबाना है ।
६ - खाना ज़मीन में पलोथी मुद्रा में बैठकर या उखड़ूँ बैठकर ही खाना चाहिए।
७ - खाने के मेन्यू में एक दूसरे के विरोधी भोजन एक साथ ना करे जैसे दूध के साथ दही, प्याज़ के साथ दूध, दही के साथ उड़द की दlल ।
८ - समुद्री नमक की जगह सेंधl नमक या काला नमक खाना चाहिए।
९ - रीफ़ाइन तेल, डालडा ज़हर है, इसकी जगह अपने इलाक़े के अनुसार सरसों, तिल, मूँगफली या नारियल का तेल उपयोग में लाए । सोयाबीन के कोई भी प्रोडक्ट खाने में ना ले इसके प्रोडक्ट को केवल सुअर पचा सकते है। आदमी में इसके पचाने के एंज़िम नहीं बनते हैं ।
१० - दोपहर के भोजन के बाद कम से कम ३० मिनट आराम करना चाहिए और शाम के भोजन बाद ५०० क़दम पैदल चलना चाहिए।
११ - घर में चीनी (शुगर) का उपयोग नहीं होना चाहिए क्योंकि चीनी को सफ़ेद करने में १७ तरह के ज़हर (केमिकल ) मिलाने पड़ते है इसकी जगह गुड़ का उपयोग करना चाहिए और आज कल गुड़ बनाने में कॉस्टिक सोडा (ज़हर) मिलाकर गुड को सफ़ेद किया जाता है इसलिए सफ़ेद गुड़ ना खाए। प्राकृतिक गुड़ ही खाये। प्राकृतिक गुड़ चाकलेट कलर का होता है।
१२ - सोते समय आपका सिर पूर्व या दक्षिण की तरफ़ होना चाहिए।
१३ - घर में कोई भी अलूमिनियम के बर्तन या कुकर नहीं होना चाहिए। हमारे बर्तन मिट्टी, पीतल लोहा और काँसा के होने चाहिए।
१४ - दोपहर का भोजन ११ बजे तक अवश्य और शाम का भोजन सूर्यास्त तक हो जाना चाहिए ।
१५ - सुबह भोर के समय तक आपको देशी गाय के दूध से बनी छाछ (सेंधl नमक और ज़ीरा बिना भुना हुआ मिलाकर) पीना चाहिए ।
यदि आपने ये नियम अपने जीवन में लागू कर लिए तो आपको डॉक्टर के पास जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी और देश के ८ लाख करोड़ की बचत होगी । यदि आप बीमार है तो ये नियमों का पालन करने से आपके शरीर के सभी रोग (BP, शुगर ) अगले ३ माह से लेकर १२ माह में ख़त्म हो जाएँगे।
*सर्दियों में उठायें मेथी दानों से भरपूर लाभ*
➡ मेथीदाना उष्ण, वात व कफनाशक, पित्तवर्धक, पाचनशक्ति व बलवर्धक एवं ह्रदय के लिए हितकर है | यह पुष्टिकारक, शक्ति, स्फूर्तिदायक टॉनिक की तरह कार्य करता है | सुबह–शाम इसे पानी के साथ निगलने से पेट को निरोग बनाता है, कब्ज व गैस को दूर करता है | इसकी मूँग के साथ सब्जी बनाकर भी खा सकते हैं | यह मधुमेह के रोगियों के लिए खूब लाभदायी हैं |
➡ अपनी आयु के जितने वर्ष व्यतीत हो चुके हैं, उतनी संख्या में मेथीदाने रोज धीरे – धीरे चबाना या चूसने से वृद्धावस्था में पैदा होने वाली व्याधियों, जैसे घुटनों व जोड़ों का दर्द, भूख न लगना, हाथों का सुन्न पड़ जाना, सायटिका, मांसपेशियों का खिंचाव, बार - बार मूत्र आना, चक्कर आना आदि में लाभ होता है | गर्भवती व स्तनपान कराने वाली महिलाओं को भुने मेथी दानों का चूर्ण आटे के साथ मिला के लड्डू बना के खाना लाभकारी है |
*मेथी दाने से शक्तिवर्धक पेय*
दो चम्मच मेथीदाने एक गिलास पानी में ४ – ५ घंटे भिगोकर रखें फिर इतना उबालें कि पानी चौथाई रह जाय, इसे छानकर २ चम्मच शहद मिला के पियें ।
*औषधीय प्रयोग*
1. कब्ज : २० ग्राम मेथीदाने को २०० ग्राम ताजे पानी में भिगो दें. ५-६ घंटे बाद मसल के पीने से मल साफ़ आने लगता है. भूख अच्छी लगने लगती है और पाचन भी ठीक होने लगता है |
2. जोड़ों का दर्द : १०० ग्राम मेथीदाने अधकच्चे भून के दरदरा कूट लें | इसमें २५ ग्राम काला नमक मिलाकर रख लें | २ चम्मच यह मिश्रण सुबह- शाम गुनगुने पानी से फाँकने से जोड़ों, कमर व घुटनों का दर्द, आमवात (गठिया) का दर्द आदि में लाभ होता है | इससे पेट में गैस भी नहीं बनेगी |
3. पेट के रोगों में : १ से ३ ग्राम मेथी दानों का चूर्ण सुबह, दोपहर व शाम को पानी के साथ लेने से अपच, दस्त, भूख न लगना, अफरा, दर्द आदि तकलीफों में बहुत लाभ होता है |
4. दुर्बलता : १ चम्मच मेथीदानों को घी में भून के सुबह - शाम लेने से रोगजन्य शारीरिक एवं तंत्रिका दुर्बलता दूर होती है |
5. मासिक धर्म में रुकावट : ४ चम्मच मेथीदाने १ गिलास पानी में उबालें | आधा पानी रह जाने पर छानकर गर्म–गर्म ही लेने से मासिक धर्म खुल के होने लगता है |
6. अंगों की जकड़न : भुनी मेथी के आटे में गुड़ की चाशनी मिला के लड्डू बना लें | १–१ लड्डू रोज सुबह खाने से वायु के कारण जकड़े हुए अंग १ सप्ताह में ठीक हो जाते हैं तथा हाथ–पैरों में होने वाला दर्द भी दूर होता है |
7. विशेष : सर्दियों में मेथीपाक, मेथी के लड्डू, मेथीदानों व मूँग–दाल की सब्जी आदि के रूप में इसका सेवन खूब लाभदायी हैं |
*IMPORTANT*
HEART ATTACK और गर्म पानी पीना!
यह भोजन के बाद गर्म पानी पीने के बारे में ही नहीं Heart Attack के बारे में भी एक अच्छा लेख है।
चीनी और जापानी अपने भोजन के बाद गर्म चाय पीते हैं, ठंडा पानी नहीं। अब हमें भी उनकी यह आदत अपना लेनी चाहिए। जो लोग भोजन के बाद ठंडा पानी पीना पसन्द करते हैं यह लेख उनके लिए ही है।
भोजन के साथ कोई ठंडा पेय या पानी पीना बहुत हानिकारक है क्योंकि ठंडा पानी आपके भोजन के तैलीय पदार्थों को जो आपने अभी अभी खाये हैं ठोस रूप में बदल देता है।
इससे पाचन बहुत धीमा हो जाता है। जब यह अम्ल के साथ क्रिया करता है तो यह टूट जाता है और जल्दी ही यह ठोस भोजन से भी अधिक तेज़ी से आँतों द्वारा सोख लिया जाता है। यह आँतों में एकत्र हो जाता है। फिर जल्दी ही यह चरबी में बदल जाता है और कैंसर के पैदा होने का कारण बनता है।
इसलिए सबसे अच्छा यह है कि भोजन के बाद गर्म सूप या गुनगुना पानी पिया जाये। एक गिलास गुनगुना पानी सोने से ठीक पहले पीना चाहिए। इससे खून के थक्के नहीं बनेंगे और आप हृदयाघात से बचे रहेंगे।
एक हृदय रोग विशेषज्ञ का कहना है कि यदि इस संदेश को पढ़ने वाला प्रत्येक व्यक्ति इसे १० लोगों को भेज दे, तो वह कम से कम एक जान बचा सकता है।
Meri wife ke munh aur gardan par kai masse ho gaye hain?Bhai
Masso ka ayurvedic ilaaz kya hoga?
उपयोगी जानकारीआ_गया_मौसम_सभी_स्वस्थ_व_अस्वस्थ_इंसान
हेतु_अमृत_तुल्य_पेय_अर्जुन_छाल_का_समय
#हृदय_रोग की महान औषधि
*खून में कचरा (Acidity) की वजह से आता है हार्ट अटैक, अर्जुन की छाल से ऐसे करे कण्ट्रोल*
*वागभट्ट जी के किसी भी सूत्र और शास्त्र में चाय का उल्लेख नहीं किया क्योंकि बाग़भट्ट जी 3500 वर्ष पहले हुए और चाय 250 साल पहले अंग्रेजों के द्वारा लाइ गयी*
*हाँ लेकिन उन्होंने काढ़े का जीक्र किया है वो कहते हैैं जो काढ़ा हमारे वात पित्त और कफ को कम करे ऐसा कोई भी काढ़ा सुबह दूध में मिलाकर पिया जा सकता है जैसे कि अर्जुन की छाल का काढ़ा वात को सबसे ज्यादा कम करता है यह रक्त की एसिडिटी को कम करता है जो की शरीर की एसिडिटी से भी ज्यादा खतरनाक होती है और हार्ट अटैक का कारण बनती है अर्जुन की छाल सबसे तेजी से रक्त की एसिडिटी को ख़त्म करता है इसलिए अर्जुन की छाल का काढ़ा पीयें*
*नवम्बर दिसम्बर जनवरी और फ़रवरी में वात सबसे ज्यादा होता है ठण्ड के दिनों में वायु का प्रकोप सबसे ज्यादा होता है और इस समय में अर्जुन की छाल का काढ़ा गर्म दूध में मिलकर पीयें तो औषधि का काम करेगा. याद रहे की यह काढे की तासीर हमेशा गर्म होती है इसलिए इसे ठण्ड के समय में ही प्रयोग करें हमारे देश में कोई भी ठंडा काढ़ा नही होता यदि आप सुबह दूध पीना ही चाहते है तो अर्जुन की छाल के काढ़े के साथ पीयें.*
*इससे आपको दो फायदे होंगे भविष्य में आपको हार्ट अटैक कभी नही होगा और अब तक आपने जो बेकार चीजें खाई हैं ये उसे शरीर से साफ़ कर देगा क्योंकि यह छाल का काढ़ा रक्त को साफ़ करता है और शरीर में सबसे ज्यादा कचरा (कोलेस्ट्रोल) रक्त में ही होता है*
*सबसे बड़ी बात तो ये है कि अर्जुन का क्वाथ बनाकर सेवन करना आपके चाय व कॉफी से अधिक गुणकारी रहेगा इसलिए सुबह ठण्ड में चाय की जगह अर्जुन की छाल का काढ़ा दूध के साथ पीयें*
*किस तरह करें सेवन*
*एक गिलास दूध और आधा चम्मच अर्जुन की छाल का पाउडर और अगर इसमें गुड़ मिलायेंगे तो बहुत अच्छा यदि गुड़ न मिले तो काकवी(तरल गुड़)का यूज कर सकते है यदि ये भी न मिले तो खांड या फिर बुरा(राजस्थान,बिहार,यू.पी. वाला चीनी वाला नही). ध्यान रहे चीनी का इस्तेमाल न करे अगर मिश्री मिले तो वह गुड़ से भी अच्छा होता है अगर सोंठ है तो उसे भी मिलाया जा सकता है जिससे वह और भी उत्तम क्वालिटी का बन जायेगा क्योंकि अर्जुन छाल दालचिनी और सोंठ तीनो ही वात नाशक है*
*जाने कोन से रोगों से मिलेगा छुटकारा*
*इसे पीने से शरीर के वात ले सभी रोग जैसे घुटने का दर्द, कंधे का दर्द, डाईबीटीस, हार्ट अटैक ये सब वात के रोग हैं*
*अर्जुन छाल के चमत्कारी औषधिय प्रयोग व फायदे*
*अर्जुन वृक्ष :अर्जुन का पेड़ आमतौर पर सभी जगह पाया जाता है। परंतु अधिकांशत: यह मध्य प्रदेश, बंगाल, पंजाब, उत्तर प्रदेश और बिहार में मिलता है। अक्सर नालों के किनारे लगने वाला अर्जुन का पेड़ 60 से 80 फुट ऊंचा होता है। इस पेड़ की छाल बाहर से सफेद, अंदर से चिकनी, मोटी तथा हल्का गुलाबी रंग लिए होती है। छाल को गोदने पर उसमें से एक प्रकार का स्राव (द्रव) निकलता है। इसके तने गोल और मोटे होते है तथा पत्ते अमरूद के पत्तों की तरह 4 से 6 इंच लंबे और डेढ़ से दो इंच चौड़े होते हैं। सफेद रंग के डंठलों पर बहुत छोटे-छोटे फूल हरित आभायुक्त सफेद या पीले रंग के और सुगन्धित होते हैं। फल 1 से डेढ इंच लंबे, 5-7 उठी हुई धारियों से युक्त होते हैं जो कि कच्चेपन में हरे और पकने पर भूरे लाल रंग के होते हैं। इसकी गंध अरुचिकर व स्वाद कसैला होता है तथा फलों में बीज न होने से ये ही बीज का कार्य करते हैं।*
*गुण-धर्म:*
*★ अर्जुन शीतल, हृदय के लिए हितकारी, स्वाद में कषैला, घाव, क्षय (टी.बी.), विष, रक्तविकार, मोटापा, प्रमेह, घाव, कफ तथा पित्त को नष्ट करता है।*
*★ इससे हृदय की मांसपेशियों को बल मिलता है, हृदय की पोषण क्रिया अच्छी होती है।*
*★ मांसपेशियों को बल मिलने से हृदय की धड़कन सामान्य होती है।*
*★ इसके उपयोग से सूक्ष्म रक्तवाहिनियों का संकुचन होता है, जिससे रक्त, भार बढ़ता है। इस प्रकार इससे हृदय सशक्त और उत्तेजित होता है। इससे रक्त वाहिनियों के द्वारा होने वाले रक्त का स्राव भी कम होता है, जिससे यह सूजन को दूर करता है।*
*सेवन की मात्रा :अर्जुन की छाल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम गुड़, शहद या दूध के साथ दिन में 2 या 3 बार। अर्जुन की छाल का काढ़ा 50 से 100 मिलीलीटर। पत्तों का रस 10 से 20 मिलीलीटर।*
*सर्दियों में इसका 3 माह लगातार सेवन करना सर्वोत्तम है।*.
*प्रकृति : यह गर्म प्रकृति की होती है।*
*अर्जुन छाल से विभिन्न रोगों का उपचार :*
*हड्डी टूटने पर Bone breakdown)अर्जुन के पेड़ के पाउडर की फंकी लेकर दूध पीने से टूटी हुई हड्डी जुड़ जाती है। चूर्ण को पानी के साथ पीसकर लेप करने से भी दर्द में आराम मिलता है।*
*प्लास्टर चढ़ा हो तो अर्जुन की छाल का महीन चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार एक कप दूध के साथ कुछ हफ्ते तक सेवन करने से हड्डी मजबूत होती है। टूटी हड्डी के स्थान पर भी इसकी छाल को घी में पीसकर लेप करें और पट्टी बांधकर रखें, इससे भी हड्डी शीघ्र जुड़ जाती है।*
*जलने पर(On burn) : आग से जलने पर उत्पन्न घाव पर अर्जुन की छाल के चूर्ण को लगाने से घाव जल्द ही भर जाता है।*
*हृदय के रोग (Heart diseases):अर्जुन की मोटी छाल का महीन चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में मलाई रहित एक कप दूध के साथ सुबह-शाम नियमित सेवन करते रहने से हृदय के समस्त रोगों में लाभ मिलता है, हृदय की बढ़ी हुई धड़कन सामान्य होती है।*
*अर्जुन की छाल के चूर्ण को चाय के साथ उबालकर ले सकते हैं। चाय बनाते समय एक चम्मच इस चूर्ण को डाल दें। इससे भी समान रूप से लाभ होगा। अर्जुन की छाल के चूर्ण के प्रयोग से उच्च रक्तचाप भी अपने-आप सामान्य हो जाता है। यदि केवल अर्जुन की छाल का चूर्ण डालकर ही चाय बनायें, उसमें चायपत्ती न डालें तो यह और भी प्रभावी होगा, इसके लिए पानी में चाय के स्थान पर अर्जुन की छाल का चूर्ण डालकर उबालें, फिर उसमें दूध व चीनी आवश्यकतानुसार मिलाकर पियें।*
*अर्जुन की छाल तथा गुड़ को दूध में औटाकर रोगी को पिलाने से दिल में आई शिथिलता और सूजन में लाभ मिलता है।*
*हृदय की सामान्य धड़कन जब 72 से बढ़कर 150 से ऊपर रहने लगे तो एक गिलास टमाटर के रस में एक चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण मिलाकर नियमित सेवन करने से शीघ्र ही धड़कन सामान्य हो जाती है।*
*गेहूं का आटा 20 ग्राम लेकर 30 ग्राम गाय के घी में भून लें जब यह गुलाबी हो जाये तो अर्जुन की छाल का चूर्ण तीन ग्राम और मिश्री 40 ग्राम तथा खौलता हुआ पानी 100 मिलीलीटर डालकर पकायें, जब हलुवा तैयार हो जाये तब सुबह सेवन करें। इसका नित्य सेवन करने से हृदय की पीड़ा, घबराहट, धड़कन बढ़ जाना आदि शिकायतें दूर हो जाती हैं।*
*गेहूं और इसकी छाल को बकरी के दूध और गाय के घी में पकाकर इसमें मिश्री और शहद मिलाकर चटाने से तेज हृदय रोग मिटता है।*
*अर्जुन की छाल का रस 50 मिलीलीटर, यदि गीली छाल न मिले तो 50 ग्राम सूखी छाल लेकर 4 किलोग्राम में पकावें। जब चौथाई शेष रह जाये तो काढ़े को छान लें, फिर 50 ग्राम गाय के घी को कढ़ाई में छोड़े, फिर इसमें अर्जुन की छाल की लुगदी 50 मिलीलीटर और पकाया हुआ रस तथा दूध को मिलाकर धीमी आंच पर पका लें। घी मात्र शेष रह जाने पर ठंडाकर छान लें। अब इसमें 50 ग्राम शहद और 75 ग्राम मिश्री मिलाकर कांच या चीनी मिट्टी के बर्तन में रखें। इस घी को 6 ग्राम सुबह-शाम गाय के दूध के साथ सेवन करें। यह घी हृदय को बलवान बनाता है तथा इसके रोगों को दूर करता है। हृदय की शिथिलता, तेज धड़कन, सूजन या हृदय बढ़ जाने आदि तमाम हृदय रोगों में अत्यंत प्रभावकारी योग है।:-*
*हार्ट अटैक हो चुकने पर 40 मिलीलीटर अर्जुन की छाल का दूध के साथ बना काढ़ा सुबह तथा रात दोनों समय सेवन करें। इससे दिल की तेज धड़कन, हृदय में पीड़ा, घबराहट होना आदि रोग दूर होते हैं।*
*हृदय रोगों में अर्जुन की छाल का कपड़े से छाने चूर्ण का प्रभाव इन्जेक्शन से भी अधिक होता है। जीभ पर रखकर चूसते ही रोग कम होने लगता है। हृदय की अधिक धड़कनें और नाड़ी की गति बहुत कमजोर हो जाने पर इसको रोगी की जीभ पर रखने मात्र से नाड़ी में तुरन्त शक्ति प्रतीत होने लगती है। इस दवा का लाभ स्थायी होता है और यह दवा किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाती है।*
*अर्जुन की छाल का चूर्ण 10 ग्राम को 500 मिलीलीटर दूध में उबालकर खोया बना लें। उस खोये के वजन के बराबर मिसरी का चूरा मिलाकर, प्रतिदिन 10 ग्राम खोया खाकर दूध पीने से हृदय की तेज धड़कन सामान्य होती है।*
*अर्जुन की छाल को छाया में सुखाकर, कूट-पीसकर चूर्ण बनाएं। इस चूर्ण को किसी कपड़े द्वारा छानकर रखें। प्रतिदिन 3 ग्राम चूर्ण गाय का घी और मिश्री मिलाकर सेवन करने से हृदय की निर्बलता दूर होती है।*
*एक साथ लगभग 250 मिलीलीटर दूध में उबालकर सेवन करें।*
*खूनी प्रदर : इसकी छाल का 1 चम्मच चूर्ण, 1 कप दूध में उबालकर पकाएं, आधा शेष रहने पर थोड़ी मात्रा में मिश्री मिलाकर सेवन करें, इसे दिन में 3 बार लें।*
*शारीरिक दुर्गंध को दूर करने के लिए : अर्जुन और जामुन के सूखे पत्तों का चूर्ण उबटन की तरह लगाकर कुछ समय बाद नहाने से अधिक पसीना आने के कारण उत्पन्न शारीरिक दुर्गंध दूर होगी।*
*मुंह के छाले (Mouth ulcers): अर्जुन की छाल के चूर्ण को नारियल के तेल में मिलाकर छालों पर लगायें। इससे मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।*
*पेशाब में धातु का आना : अर्जुन की छाल को कूटकर 2 कप पानी के साथ उबालें, जब आधा कप पानी शेष बचे, तो उसे छानकर रोगी को पिलायें। इसके 2-3 बार के प्रयोग के बाद पेशाब खुलकर होने लगेगा तथा पेशाब के साथ धातु का आना बंद हो जाता है।*
*अर्जुन की छाल का 40 मिलीलीटर काढ़ा बनाकर पिलाना चाहिए।*
*ताकत को बढ़ाने के लिए : अर्जुन बलकारक है तथा अपने लवण-खनिजों के कारण हृदय की मांसपेशियों को सशक्त बनाता है। दूध तथा गुड़, चीनी आदि के साथ जो अर्जुन की छाल का पाउडर नियमित रूप से लेता है, उसे हृदय रोग, जीर्ण ज्वर, रक्त-पित्त कभी नहीं सताते और वह चिरंजीवी होता है*
*श्वेतप्रदर(Blennenteria) :महिलाओं में होने वाले श्वेतप्रदर तथा पेशाब की जलन को रोकना भी इसके विशेष गुणों में है।*
*पुरानी खांसी (cough): छाती में जलन, पुरानी खांसी आदि को रोकने में यह सक्षम है।*
*हार्ट फेल : हार्ट फेल और हृदयशूल में अर्जुन की 3 से 6 ग्राम छाल दूध में उबालकर लें।*
*तेज धड़कन, दर्द, घबराहट : अर्जुन की पिसी छाल 2 चम्मच, 1 गिलास दूध, 2 गिलास पानी मिलाकर इतना उबालें कि केवल दूध ही बचे, पानी सारा जल जाये। इसमें दो चम्मच चीनी मिलाकर छानकर नित्य एक बार हृदय रोगी को पिलायें। हृदय सम्बंधी रोगों में लाभ होगा। शरीर ताकतवर होगा।*
*पेट दर्द : आधा चम्मच अर्जुन की छाल, जरा-सी भुनी-पिसी हींग और स्वादानुसार नमक मिलाकर सुबह-शाम गर्म पानी के साथ फंकी लेने से पेट के दर्द, गुर्दे का दर्द और पेट की जलन में लाभ होता है।*
*पीलिया (jaundice): आधा चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण जरा-सा घी में मिलाकर रोजाना सुबह और शाम लेना चाहिए।*
*मुखपाक (मुंह के छाले) : अर्जुन की जड़ के चूर्ण में मीठा तेल मिलाकर गर्म पानी से कुल्ले करने से मुखपाक मिटता है।*
*शुक्रमेह : शुक्रमेह के रोगी को अर्जुन की छाल या श्वेत चंदन का काढ़ा नियमित सुबह-शाम पिलाने से लाभ पहुंचता है।*
*बादी के रोग : अर्जुन की जड़ की छाल का चूर्ण और गंगेरन की जड़ की छाल को बराबर मात्रा में लेकर उसका बारीक चूर्ण तैयार करें। चूर्ण को दो-दो ग्राम की मात्रा में चूर्ण नियमित सुबह-शाम फंकी देकर ऊपर से दूध पिलाने से बादी के रोग मिटते हैं।*
*घर में छुपे सांप, चूहे, डांस, घुन, मच्छर और खटमल:अर्जुन के फूल, बायविंडग, जलपीपल, मोम, चंदन, राल, खस, कूठ और भिलावा को बराबर मात्रा में लेकर धूनी देने से मच्छर और कीड़े मर जाते हैं।*
*अर्जुन के फल, भिलावा, लाख, श्रीकस, श्वेत, अपराजिता, बायविंडग और गूगल आदि को बराबर मात्रा में पीसकर रख लें, फिर इसे आग में डालकर धूनी देने से घर में छुपे सांप, चूहे, डांस, घुन, मच्छर और खटमल निकलकर भाग जाते हैं।*
*पैत्तिक हृदय की बीमारी में : 3 से 6 ग्राम अर्जुन की छाल का चूर्ण व 3 से 6 ग्राम गुड़, 50 मिलीलीटर पानी के साथ दिन में दो बार सेवन करना चाहिए।*
*गुल्यवायु हिस्टीरिया : अर्जुन वृक्ष की छाल, चौलाई की जड़, काले तिल और तीसी का लुआब 25-25 मिलीलीटर की मात्रा में लें तथा 30 ग्राम की मात्रा में मिश्री लें। इसके बाद इन सबको घोंट लें और अर्जुन के पत्ते के रस के साथ कूट करके छाया में सुखायें। इसका बारीक चूर्ण बनाकर शीशी में भरकर रख लें। अर्जुन के पत्ते के रस के साथ इस औषधि को 4-6 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम को खिलाने से हिस्टीरिया रोग ठीक हो जाता है।*
*शरीर में सूजन (Body swelling):इसकी छाल का बारीक चूर्ण लगभग 5 ग्राम से 10 ग्राम की मात्रा में क्षीर पाक विधि से (दूध में पकाकर) खिलाने से हृदय मजबूत होता है और इससे पैदा होने वाली सूजन खत्म हो जाती है।*
*लगभग 1 से 3 ग्राम की मात्रा में अर्जुन की छाल का सूखा हुआ चूर्ण खिलाने से भी सूजन खत्म हो जाती है।*
*गुर्दों पर इसका प्रभाव मूत्रल अर्थात अधिक मूत्र लाने वाला है। हृदय रोगों के अतिरिक्त शरीर के विभिन्न अंगों में पानी पड़ जाने और शरीर पर सूजन आ जाने पर भी अर्जुन की छाल के बारीक चूर्ण का प्रयोग किया जाता है।*
*खूनीपित्त (रक्तपित्त) :अर्जुन की 2 चम्मच छाल को रातभर पानी में भिगोकर रखें, सुबह उसको मसल छानकर या उसको उबालकर उसका काढ़ा पीने से रक्तपित्त में लाभ होता है।*
*रक्तपित्त या खून की उल्टी में अर्जुन के तने की छाल के बारीक चूर्ण की 10 ग्राम मात्रा को दूध में पकाकर खाने से आराम आता है। इससे रक्त की वाहिनियों में रक्त जमने लगता है तथा बाहर नहीं निकलता है।*
*कुष्ठ (कोढ) : रक्तदोष एवं कुष्ठ रोग में इसकी छाल का 1 चम्मच चूर्ण पानी के साथ सेवन करने से एवं इसकी छाल को पानी में घिसकर त्वचा पर लेप करने से कुष्ठ में लाभ होता है।*
*अर्जुन की छाल को पानी में उबालकर गुनगुने पानी में मिलाकर नहाने से बहुत लाभ होता है।*
*बुखार : अर्जुन की छाल का 40 मिलीलीटर क्वाथ (काढ़ा) पिलाने से बुखार छूटता है।*
*व्रण (घाव) के लिए :• अर्जुन छाल को यवकूट कर काढ़ा बनाकर घावों और जख्मों को धोने से लाभ होता है।*
*अर्जुन के जड़ के चूर्ण की फंकी एक चम्मच दूध के साथ देने से चोट या रगड़ लगने से जो नील पड़ जाता है, वह ठीक हो जाता है।*
*घाव में अर्जुन छाल 5 से 10 ग्राम सुबह शाम दूध में पकाकर खायें। छाल को पीसकर घाव पर बांधने से भी अच्छा लाभ होता है। सूखा पाउडर 1 से 3 ग्राम खाना चाहिए।*
*जीर्ण ज्वर (पुराना बुखार) : अर्जुन की छाल के एक चम्मच चूर्ण की गुड़ के साथ फंकी लेने से जीर्ण ज्वर मिटता है।*
*अर्जुन छाल क्षीरपाक विधि : अर्जुन की ताजा छाल को छाया में सूखाकर चूर्ण बनाकर रख लें। इसे 250 मिलीलीटर दूध में 250 मिलीलीटर पानी मिलाकर हल्की आंच पर रख दें और उसमें उपरोक्त तीन ग्राम (एक चाय का चम्मच हल्का भरा) अर्जुन छाल का चूर्ण मिलाकर उबालें। जब उबलते-उबलते पानी सूखकर दूध मात्र अर्थात् आधा रह जाये तब उतार लें। पीने योग्य होने पर छानकर रोगी द्वारा पीने से सम्पूर्ण हृदय रोग नष्ट होते है और हार्ट अटैक से बचाव होता है।*
*दमा या श्वास रोग : अर्जुन की छाल कूटकर चूर्ण बना लेते हैं। रात को दूध और चावल की खीर बना लेते हैं। सुबह 4 बजे उस खीर में 10 ग्राम अर्जुन का चूर्ण मिलाकर खिलाना चाहिए। इससे श्वांस रोग नष्ट हो जाता है।*
*उरस्तोय रोग (फेफड़ों में पानी भर जाना) : अर्जुन वृक्ष का चूर्ण, यष्टिमूल तथा लकड़ी को बराबर मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बना लेना चाहिए। इस चूर्ण को 3 से 6 ग्राम की मात्रा में 100 से 250 मिलीमीटर दूध के साथ दिन में 2 बार देने से उरस्तोय रोग (फेफड़ों में पानी भर जाना) में लाभ होता है।*
*अतिक्षुधा (अधिक भूख लगना) रोग : शालपर्णी और अर्जुन की जड़ को बराबर मात्रा में मिश्रण बनाकर पीने से भस्मक रोग मिट जाता है।*
*मल बंद (उदावर्त, कब्ज) : मूत्रवेग को रोकने से पैदा हुए उदावर्त्त को मिटाने के लिए इसकी छाल का 40 मिलीलीटर काढ़ा नियमित रूप से सुबह-शाम पिलाना चाहिए।*
*हड्डी के टूटने पर : हड्डी के टूटने पर अर्जुन की छाल पीसकर लेप करने एवं 5 ग्राम से 10 ग्राम खीर पाक विधि से दूध में पकाकर सुबह शाम खाने से लाभ होता है। मात्रा : सूखा पाउडर 1 ग्राम से 3 ग्राम खाना है।*
*मधुमेह का रोग : अर्जुन के पेड़ की छाल, कदम्ब की छाल और जामुन की छाल तथा अजवाइन बराबर मात्रा में लेकर जौकूट (मोटा-मोटा पीसना) करें। इसमें से 24 ग्राम जौकूट लेकर, आधा लीटर पानी के साथ आग पर रखकर काढ़ा बना लें। थोड़ा शेष रह जाने पर इसे उतारे और ठंडा होने पर छानकर पीयें। सुबह-शाम 3-4 सप्ताह इसके लगातार प्रयोग से मधुमेह में लाभ होगा।*
*मोटापा दूर करें : अर्जुन का चूर्ण 2 ग्राम को अग्निमथ (अरनी) के बने काढ़े के साथ मिलाकर पीने से मोटापे में लाभ होता हैं।*
*कान का दर्द : अर्जुन के पत्तों का 3-4 बूंद रस कान में डालने से कान का दर्द मिटता है।*
*मुंह की झांइयां : इसकी छाल पीसकर, शहद मिलाकर लेप करने से मुंह की झाइयां मिटती हैं।*
*टी.बी. की खांसी : अर्जुन की छाल के चूर्ण में वासा के पत्तों के रस को 7 उबाल देकर दो-तीन ग्राम की मात्रा में शहद, मिश्री या गाय के घी के साथ चटायें। इससे टी.बी. की खांसी जिसमें कफ में खून आता हो ठीक हो जाता है।*
*खूनी दस्त : अर्जुन की छाल का महीन चूर्ण 5 ग्राम, गाय के 250 मिलीलीटर दूध में डालकर इसी में लगभग आधा पाव पानी डालकर हल्की आंच पर पकायें। जब दूध मात्र शेष रह जाये तब उतारकर उसमें 10 ग्राम मिश्री या शक्कर मिलाकर नित्य सुबह पीने से हृदय सम्बंधी सभी रोग दूर हो जाते हैं। यह विशेषत: वातदोष के कारण हुए हृदय रोग में लाभकारी है।*
*रक्तप्रदर (खूनी प्रदर) : अर्जुन की छाल का एक चम्मच चूर्ण एक कप दूध में उबालकर पकायें, आधा शेष रहने पर थोड़ी मात्रा में मिश्री के साथ दिन में 3 बार स्त्री को सेवन करायें।*
*प्रमेह (वीर्य विकार) में : अर्जुन की छाल, नीम की छाल, आमलकी छाल, हल्दी तथा नीलकमल को समान मात्रा में लेकर बारीक पीसकर चूर्ण करें। इस चूर्ण की 20 ग्राम मात्रा को 400 मिलीलीटर पानी में पकायें, जब यह 100 मिलीलीटर शेष बचे, तो इसे शहद के साथ मिलाकर नित्य सुबह-शाम सेवन करने से पित्तज प्रमेह नष्ट हीता है।