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Health with ayurveda

Lutgaya

Well-Known Member
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बहुत ही बढ़िया thread है
मुझे बिल्कुल भी नही पता था कि xforum पर ऐसा thread भी हो सकता है ।
ऐसी जानकारी सब लोगों को देने के लिए धन्यवाद मित्र ।
आपके प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद मित्र
ऐसे ही निरन्तर सहयोग बनाए रखें
 

Lutgaya

Well-Known Member
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आ_गया_मौसम_सभी_स्वस्थ_व_अस्वस्थ_इंसान
हेतु_अमृत_तुल्य_पेय_अर्जुन_छाल_का_समय
#हृदय_रोग की महान औषधि

*खून में कचरा (Acidity) की वजह से आता है हार्ट अटैक, अर्जुन की छाल से ऐसे करे कण्ट्रोल*

*वागभट्ट जी के किसी भी सूत्र और शास्त्र में चाय का उल्लेख नहीं किया क्योंकि बाग़भट्ट जी 3500 वर्ष पहले हुए और चाय 250 साल पहले अंग्रेजों के द्वारा लाइ गयी*

*हाँ लेकिन उन्होंने काढ़े का जीक्र किया है वो कहते हैैं जो काढ़ा हमारे वात पित्त और कफ को कम करे ऐसा कोई भी काढ़ा सुबह दूध में मिलाकर पिया जा सकता है जैसे कि अर्जुन की छाल का काढ़ा वात को सबसे ज्यादा कम करता है यह रक्त की एसिडिटी को कम करता है जो की शरीर की एसिडिटी से भी ज्यादा खतरनाक होती है और हार्ट अटैक का कारण बनती है अर्जुन की छाल सबसे तेजी से रक्त की एसिडिटी को ख़त्म करता है इसलिए अर्जुन की छाल का काढ़ा पीयें*

*नवम्बर दिसम्बर जनवरी और फ़रवरी में वात सबसे ज्यादा होता है ठण्ड के दिनों में वायु का प्रकोप सबसे ज्यादा होता है और इस समय में अर्जुन की छाल का काढ़ा गर्म दूध में मिलकर पीयें तो औषधि का काम करेगा. याद रहे की यह काढे की तासीर हमेशा गर्म होती है इसलिए इसे ठण्ड के समय में ही प्रयोग करें हमारे देश में कोई भी ठंडा काढ़ा नही होता यदि आप सुबह दूध पीना ही चाहते है तो अर्जुन की छाल के काढ़े के साथ पीयें.*

*इससे आपको दो फायदे होंगे भविष्य में आपको हार्ट अटैक कभी नही होगा और अब तक आपने जो बेकार चीजें खाई हैं ये उसे शरीर से साफ़ कर देगा क्योंकि यह छाल का काढ़ा रक्त को साफ़ करता है और शरीर में सबसे ज्यादा कचरा (कोलेस्ट्रोल) रक्त में ही होता है*

*सबसे बड़ी बात तो ये है कि अर्जुन का क्वाथ बनाकर सेवन करना आपके चाय व कॉफी से अधिक गुणकारी रहेगा इसलिए सुबह ठण्ड में चाय की जगह अर्जुन की छाल का काढ़ा दूध के साथ पीयें*

*किस तरह करें सेवन*

*एक गिलास दूध और आधा चम्मच अर्जुन की छाल का पाउडर और अगर इसमें गुड़ मिलायेंगे तो बहुत अच्छा यदि गुड़ न मिले तो काकवी(तरल गुड़)का यूज कर सकते है यदि ये भी न मिले तो खांड या फिर बुरा(राजस्थान,बिहार,यू.पी. वाला चीनी वाला नही). ध्यान रहे चीनी का इस्तेमाल न करे अगर मिश्री मिले तो वह गुड़ से भी अच्छा होता है अगर सोंठ है तो उसे भी मिलाया जा सकता है जिससे वह और भी उत्तम क्वालिटी का बन जायेगा क्योंकि अर्जुन छाल दालचिनी और सोंठ तीनो ही वात नाशक है*

*जाने कोन से रोगों से मिलेगा छुटकारा*

*इसे पीने से शरीर के वात ले सभी रोग जैसे घुटने का दर्द, कंधे का दर्द, डाईबीटीस, हार्ट अटैक ये सब वात के रोग हैं*

*अर्जुन छाल के चमत्कारी औषधिय प्रयोग व फायदे*

*अर्जुन वृक्ष :अर्जुन का पेड़ आमतौर पर सभी जगह पाया जाता है। परंतु अधिकांशत: यह मध्य प्रदेश, बंगाल, पंजाब, उत्तर प्रदेश और बिहार में मिलता है। अक्सर नालों के किनारे लगने वाला अर्जुन का पेड़ 60 से 80 फुट ऊंचा होता है। इस पेड़ की छाल बाहर से सफेद, अंदर से चिकनी, मोटी तथा हल्का गुलाबी रंग लिए होती है। छाल को गोदने पर उसमें से एक प्रकार का स्राव (द्रव) निकलता है। इसके तने गोल और मोटे होते है तथा पत्ते अमरूद के पत्तों की तरह 4 से 6 इंच लंबे और डेढ़ से दो इंच चौड़े होते हैं। सफेद रंग के डंठलों पर बहुत छोटे-छोटे फूल हरित आभायुक्त सफेद या पीले रंग के और सुगन्धित होते हैं। फल 1 से डेढ इंच लंबे, 5-7 उठी हुई धारियों से युक्त होते हैं जो कि कच्चेपन में हरे और पकने पर भूरे लाल रंग के होते हैं। इसकी गंध अरुचिकर व स्वाद कसैला होता है तथा फलों में बीज न होने से ये ही बीज का कार्य करते हैं।*

*गुण-धर्म:*

*★ अर्जुन शीतल, हृदय के लिए हितकारी, स्वाद में कषैला, घाव, क्षय (टी.बी.), विष, रक्तविकार, मोटापा, प्रमेह, घाव, कफ तथा पित्त को नष्ट करता है।*

*★ इससे हृदय की मांसपेशियों को बल मिलता है, हृदय की पोषण क्रिया अच्छी होती है।*

*★ मांसपेशियों को बल मिलने से हृदय की धड़कन सामान्य होती है।*

*★ इसके उपयोग से सूक्ष्म रक्तवाहिनियों का संकुचन होता है, जिससे रक्त, भार बढ़ता है। इस प्रकार इससे हृदय सशक्त और उत्तेजित होता है। इससे रक्त वाहिनियों के द्वारा होने वाले रक्त का स्राव भी कम होता है, जिससे यह सूजन को दूर करता है।*

*सेवन की मात्रा :अर्जुन की छाल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम गुड़, शहद या दूध के साथ दिन में 2 या 3 बार। अर्जुन की छाल का काढ़ा 50 से 100 मिलीलीटर। पत्तों का रस 10 से 20 मिलीलीटर।*

*सर्दियों में इसका 3 माह लगातार सेवन करना सर्वोत्तम है।*.

*प्रकृति : यह गर्म प्रकृति की होती है।*

*अर्जुन छाल से विभिन्न रोगों का उपचार :*

*हड्डी टूटने पर :(Bone breakdown)अर्जुन के पेड़ के पाउडर की फंकी लेकर दूध पीने से टूटी हुई हड्डी जुड़ जाती है। चूर्ण को पानी के साथ पीसकर लेप करने से भी दर्द में आराम मिलता है।*

*प्लास्टर चढ़ा हो तो अर्जुन की छाल का महीन चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार एक कप दूध के साथ कुछ हफ्ते तक सेवन करने से हड्डी मजबूत होती है। टूटी हड्डी के स्थान पर भी इसकी छाल को घी में पीसकर लेप करें और पट्टी बांधकर रखें, इससे भी हड्डी शीघ्र जुड़ जाती है।*

*जलने पर(On burn) : आग से जलने पर उत्पन्न घाव पर अर्जुन की छाल के चूर्ण को लगाने से घाव जल्द ही भर जाता है।*

*हृदय के रोग (Heart diseases):अर्जुन की मोटी छाल का महीन चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में मलाई रहित एक कप दूध के साथ सुबह-शाम नियमित सेवन करते रहने से हृदय के समस्त रोगों में लाभ मिलता है, हृदय की बढ़ी हुई धड़कन सामान्य होती है।*

*अर्जुन की छाल के चूर्ण को चाय के साथ उबालकर ले सकते हैं। चाय बनाते समय एक चम्मच इस चूर्ण को डाल दें। इससे भी समान रूप से लाभ होगा। अर्जुन की छाल के चूर्ण के प्रयोग से उच्च रक्तचाप भी अपने-आप सामान्य हो जाता है। यदि केवल अर्जुन की छाल का चूर्ण डालकर ही चाय बनायें, उसमें चायपत्ती न डालें तो यह और भी प्रभावी होगा, इसके लिए पानी में चाय के स्थान पर अर्जुन की छाल का चूर्ण डालकर उबालें, फिर उसमें दूध व चीनी आवश्यकतानुसार मिलाकर पियें।*

*अर्जुन की छाल तथा गुड़ को दूध में औटाकर रोगी को पिलाने से दिल में आई शिथिलता और सूजन में लाभ मिलता है।*

*हृदय की सामान्य धड़कन जब 72 से बढ़कर 150 से ऊपर रहने लगे तो एक गिलास टमाटर के रस में एक चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण मिलाकर नियमित सेवन करने से शीघ्र ही धड़कन सामान्य हो जाती है।*

*गेहूं का आटा 20 ग्राम लेकर 30 ग्राम गाय के घी में भून लें जब यह गुलाबी हो जाये तो अर्जुन की छाल का चूर्ण तीन ग्राम और मिश्री 40 ग्राम तथा खौलता हुआ पानी 100 मिलीलीटर डालकर पकायें, जब हलुवा तैयार हो जाये तब सुबह सेवन करें। इसका नित्य सेवन करने से हृदय की पीड़ा, घबराहट, धड़कन बढ़ जाना आदि शिकायतें दूर हो जाती हैं।*

*गेहूं और इसकी छाल को बकरी के दूध और गाय के घी में पकाकर इसमें मिश्री और शहद मिलाकर चटाने से तेज हृदय रोग मिटता है।*

*अर्जुन की छाल का रस 50 मिलीलीटर, यदि गीली छाल न मिले तो 50 ग्राम सूखी छाल लेकर 4 किलोग्राम में पकावें। जब चौथाई शेष रह जाये तो काढ़े को छान लें, फिर 50 ग्राम गाय के घी को कढ़ाई में छोड़े, फिर इसमें अर्जुन की छाल की लुगदी 50 मिलीलीटर और पकाया हुआ रस तथा दूध को मिलाकर धीमी आंच पर पका लें। घी मात्र शेष रह जाने पर ठंडाकर छान लें। अब इसमें 50 ग्राम शहद और 75 ग्राम मिश्री मिलाकर कांच या चीनी मिट्टी के बर्तन में रखें। इस घी को 6 ग्राम सुबह-शाम गाय के दूध के साथ सेवन करें। यह घी हृदय को बलवान बनाता है तथा इसके रोगों को दूर करता है। हृदय की शिथिलता, तेज धड़कन, सूजन या हृदय बढ़ जाने आदि तमाम हृदय रोगों में अत्यंत प्रभावकारी योग है।:-*

*हार्ट अटैक हो चुकने पर 40 मिलीलीटर अर्जुन की छाल का दूध के साथ बना काढ़ा सुबह तथा रात दोनों समय सेवन करें। इससे दिल की तेज धड़कन, हृदय में पीड़ा, घबराहट होना आदि रोग दूर होते हैं।*

*हृदय रोगों में अर्जुन की छाल का कपड़े से छाने चूर्ण का प्रभाव इन्जेक्शन से भी अधिक होता है। जीभ पर रखकर चूसते ही रोग कम होने लगता है। हृदय की अधिक धड़कनें और नाड़ी की गति बहुत कमजोर हो जाने पर इसको रोगी की जीभ पर रखने मात्र से नाड़ी में तुरन्त शक्ति प्रतीत होने लगती है। इस दवा का लाभ स्थायी होता है और यह दवा किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाती है।*

*अर्जुन की छाल का चूर्ण 10 ग्राम को 500 मिलीलीटर दूध में उबालकर खोया बना लें। उस खोये के वजन के बराबर मिसरी का चूरा मिलाकर, प्रतिदिन 10 ग्राम खोया खाकर दूध पीने से हृदय की तेज धड़कन सामान्य होती है।*

*अर्जुन की छाल को छाया में सुखाकर, कूट-पीसकर चूर्ण बनाएं। इस चूर्ण को किसी कपड़े द्वारा छानकर रखें। प्रतिदिन 3 ग्राम चूर्ण गाय का घी और मिश्री मिलाकर सेवन करने से हृदय की निर्बलता दूर होती है।*

*एक साथ लगभग 250 मिलीलीटर दूध में उबालकर सेवन करें।*

*खूनी प्रदर : इसकी छाल का 1 चम्मच चूर्ण, 1 कप दूध में उबालकर पकाएं, आधा शेष रहने पर थोड़ी मात्रा में मिश्री मिलाकर सेवन करें, इसे दिन में 3 बार लें।*

*शारीरिक दुर्गंध को दूर करने के लिए : अर्जुन और जामुन के सूखे पत्तों का चूर्ण उबटन की तरह लगाकर कुछ समय बाद नहाने से अधिक पसीना आने के कारण उत्पन्न शारीरिक दुर्गंध दूर होगी।*

*मुंह के छाले (Mouth ulcers): अर्जुन की छाल के चूर्ण को नारियल के तेल में मिलाकर छालों पर लगायें। इससे मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।*

*पेशाब में धातु का आना : अर्जुन की छाल को कूटकर 2 कप पानी के साथ उबालें, जब आधा कप पानी शेष बचे, तो उसे छानकर रोगी को पिलायें। इसके 2-3 बार के प्रयोग के बाद पेशाब खुलकर होने लगेगा तथा पेशाब के साथ धातु का आना बंद हो जाता है।*

*अर्जुन की छाल का 40 मिलीलीटर काढ़ा बनाकर पिलाना चाहिए।*

*ताकत को बढ़ाने के लिए : अर्जुन बलकारक है तथा अपने लवण-खनिजों के कारण हृदय की मांसपेशियों को सशक्त बनाता है। दूध तथा गुड़, चीनी आदि के साथ जो अर्जुन की छाल का पाउडर नियमित रूप से लेता है, उसे हृदय रोग, जीर्ण ज्वर, रक्त-पित्त कभी नहीं सताते और वह चिरंजीवी होता है*

*श्वेतप्रदर(Blennenteria) :महिलाओं में होने वाले श्वेतप्रदर तथा पेशाब की जलन को रोकना भी इसके विशेष गुणों में है।*

*पुरानी खांसी (cough): छाती में जलन, पुरानी खांसी आदि को रोकने में यह सक्षम है।*

*हार्ट फेल : हार्ट फेल और हृदयशूल में अर्जुन की 3 से 6 ग्राम छाल दूध में उबालकर लें।*

*तेज धड़कन, दर्द, घबराहट : अर्जुन की पिसी छाल 2 चम्मच, 1 गिलास दूध, 2 गिलास पानी मिलाकर इतना उबालें कि केवल दूध ही बचे, पानी सारा जल जाये। इसमें दो चम्मच चीनी मिलाकर छानकर नित्य एक बार हृदय रोगी को पिलायें। हृदय सम्बंधी रोगों में लाभ होगा। शरीर ताकतवर होगा।*

*पेट दर्द : आधा चम्मच अर्जुन की छाल, जरा-सी भुनी-पिसी हींग और स्वादानुसार नमक मिलाकर सुबह-शाम गर्म पानी के साथ फंकी लेने से पेट के दर्द, गुर्दे का दर्द और पेट की जलन में लाभ होता है।*

*पीलिया (jaundice): आधा चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण जरा-सा घी में मिलाकर रोजाना सुबह और शाम लेना चाहिए।*

*मुखपाक (मुंह के छाले) : अर्जुन की जड़ के चूर्ण में मीठा तेल मिलाकर गर्म पानी से कुल्ले करने से मुखपाक मिटता है।*

*शुक्रमेह : शुक्रमेह के रोगी को अर्जुन की छाल या श्वेत चंदन का काढ़ा नियमित सुबह-शाम पिलाने से लाभ पहुंचता है।*

*बादी के रोग : अर्जुन की जड़ की छाल का चूर्ण और गंगेरन की जड़ की छाल को बराबर मात्रा में लेकर उसका बारीक चूर्ण तैयार करें। चूर्ण को दो-दो ग्राम की मात्रा में चूर्ण नियमित सुबह-शाम फंकी देकर ऊपर से दूध पिलाने से बादी के रोग मिटते हैं।*

*घर में छुपे सांप, चूहे, डांस, घुन, मच्छर और खटमल:अर्जुन के फूल, बायविंडग, जलपीपल, मोम, चंदन, राल, खस, कूठ और भिलावा को बराबर मात्रा में लेकर धूनी देने से मच्छर और कीड़े मर जाते हैं।*

*अर्जुन के फल, भिलावा, लाख, श्रीकस, श्वेत, अपराजिता, बायविंडग और गूगल आदि को बराबर मात्रा में पीसकर रख लें, फिर इसे आग में डालकर धूनी देने से घर में छुपे सांप, चूहे, डांस, घुन, मच्छर और खटमल निकलकर भाग जाते हैं।*

*पैत्तिक हृदय की बीमारी में : 3 से 6 ग्राम अर्जुन की छाल का चूर्ण व 3 से 6 ग्राम गुड़, 50 मिलीलीटर पानी के साथ दिन में दो बार सेवन करना चाहिए।*

*गुल्यवायु हिस्टीरिया : अर्जुन वृक्ष की छाल, चौलाई की जड़, काले तिल और तीसी का लुआब 25-25 मिलीलीटर की मात्रा में लें तथा 30 ग्राम की मात्रा में मिश्री लें। इसके बाद इन सबको घोंट लें और अर्जुन के पत्ते के रस के साथ कूट करके छाया में सुखायें। इसका बारीक चूर्ण बनाकर शीशी में भरकर रख लें। अर्जुन के पत्ते के रस के साथ इस औषधि को 4-6 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम को खिलाने से हिस्टीरिया रोग ठीक हो जाता है।*

*शरीर में सूजन (Body swelling):इसकी छाल का बारीक चूर्ण लगभग 5 ग्राम से 10 ग्राम की मात्रा में क्षीर पाक विधि से (दूध में पकाकर) खिलाने से हृदय मजबूत होता है और इससे पैदा होने वाली सूजन खत्म हो जाती है।*

*लगभग 1 से 3 ग्राम की मात्रा में अर्जुन की छाल का सूखा हुआ चूर्ण खिलाने से भी सूजन खत्म हो जाती है।*

*गुर्दों पर इसका प्रभाव मूत्रल अर्थात अधिक मूत्र लाने वाला है। हृदय रोगों के अतिरिक्त शरीर के विभिन्न अंगों में पानी पड़ जाने और शरीर पर सूजन आ जाने पर भी अर्जुन की छाल के बारीक चूर्ण का प्रयोग किया जाता है।*

*खूनीपित्त (रक्तपित्त) :अर्जुन की 2 चम्मच छाल को रातभर पानी में भिगोकर रखें, सुबह उसको मसल छानकर या उसको उबालकर उसका काढ़ा पीने से रक्तपित्त में लाभ होता है।*

*रक्तपित्त या खून की उल्टी में अर्जुन के तने की छाल के बारीक चूर्ण की 10 ग्राम मात्रा को दूध में पकाकर खाने से आराम आता है। इससे रक्त की वाहिनियों में रक्त जमने लगता है तथा बाहर नहीं निकलता है।*

*कुष्ठ (कोढ) : रक्तदोष एवं कुष्ठ रोग में इसकी छाल का 1 चम्मच चूर्ण पानी के साथ सेवन करने से एवं इसकी छाल को पानी में घिसकर त्वचा पर लेप करने से कुष्ठ में लाभ होता है।*

*अर्जुन की छाल को पानी में उबालकर गुनगुने पानी में मिलाकर नहाने से बहुत लाभ होता है।*

*बुखार : अर्जुन की छाल का 40 मिलीलीटर क्वाथ (काढ़ा) पिलाने से बुखार छूटता है।*

*व्रण (घाव) के लिए :• अर्जुन छाल को यवकूट कर काढ़ा बनाकर घावों और जख्मों को धोने से लाभ होता है।*

*अर्जुन के जड़ के चूर्ण की फंकी एक चम्मच दूध के साथ देने से चोट या रगड़ लगने से जो नील पड़ जाता है, वह ठीक हो जाता है।*

*घाव में अर्जुन छाल 5 से 10 ग्राम सुबह शाम दूध में पकाकर खायें। छाल को पीसकर घाव पर बांधने से भी अच्छा लाभ होता है। सूखा पाउडर 1 से 3 ग्राम खाना चाहिए।*

*जीर्ण ज्वर (पुराना बुखार) : अर्जुन की छाल के एक चम्मच चूर्ण की गुड़ के साथ फंकी लेने से जीर्ण ज्वर मिटता है।*

*अर्जुन छाल क्षीरपाक विधि : अर्जुन की ताजा छाल को छाया में सूखाकर चूर्ण बनाकर रख लें। इसे 250 मिलीलीटर दूध में 250 मिलीलीटर पानी मिलाकर हल्की आंच पर रख दें और उसमें उपरोक्त तीन ग्राम (एक चाय का चम्मच हल्का भरा) अर्जुन छाल का चूर्ण मिलाकर उबालें। जब उबलते-उबलते पानी सूखकर दूध मात्र अर्थात् आधा रह जाये तब उतार लें। पीने योग्य होने पर छानकर रोगी द्वारा पीने से सम्पूर्ण हृदय रोग नष्ट होते है और हार्ट अटैक से बचाव होता है।*

*दमा या श्वास रोग : अर्जुन की छाल कूटकर चूर्ण बना लेते हैं। रात को दूध और चावल की खीर बना लेते हैं। सुबह 4 बजे उस खीर में 10 ग्राम अर्जुन का चूर्ण मिलाकर खिलाना चाहिए। इससे श्वांस रोग नष्ट हो जाता है।*

*उरस्तोय रोग (फेफड़ों में पानी भर जाना) : अर्जुन वृक्ष का चूर्ण, यष्टिमूल तथा लकड़ी को बराबर मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बना लेना चाहिए। इस चूर्ण को 3 से 6 ग्राम की मात्रा में 100 से 250 मिलीमीटर दूध के साथ दिन में 2 बार देने से उरस्तोय रोग (फेफड़ों में पानी भर जाना) में लाभ होता है।*

*अतिक्षुधा (अधिक भूख लगना) रोग : शालपर्णी और अर्जुन की जड़ को बराबर मात्रा में मिश्रण बनाकर पीने से भस्मक रोग मिट जाता है।*

*मल बंद (उदावर्त, कब्ज) : मूत्रवेग को रोकने से पैदा हुए उदावर्त्त को मिटाने के लिए इसकी छाल का 40 मिलीलीटर काढ़ा नियमित रूप से सुबह-शाम पिलाना चाहिए।*

*हड्डी के टूटने पर : हड्डी के टूटने पर अर्जुन की छाल पीसकर लेप करने एवं 5 ग्राम से 10 ग्राम खीर पाक विधि से दूध में पकाकर सुबह शाम खाने से लाभ होता है। मात्रा : सूखा पाउडर 1 ग्राम से 3 ग्राम खाना है।*

*मधुमेह का रोग : अर्जुन के पेड़ की छाल, कदम्ब की छाल और जामुन की छाल तथा अजवाइन बराबर मात्रा में लेकर जौकूट (मोटा-मोटा पीसना) करें। इसमें से 24 ग्राम जौकूट लेकर, आधा लीटर पानी के साथ आग पर रखकर काढ़ा बना लें। थोड़ा शेष रह जाने पर इसे उतारे और ठंडा होने पर छानकर पीयें। सुबह-शाम 3-4 सप्ताह इसके लगातार प्रयोग से मधुमेह में लाभ होगा।*

*मोटापा दूर करें : अर्जुन का चूर्ण 2 ग्राम को अग्निमथ (अरनी) के बने काढ़े के साथ मिलाकर पीने से मोटापे में लाभ होता हैं।*

*कान का दर्द : अर्जुन के पत्तों का 3-4 बूंद रस कान में डालने से कान का दर्द मिटता है।*

*मुंह की झांइयां : इसकी छाल पीसकर, शहद मिलाकर लेप करने से मुंह की झाइयां मिटती हैं।*

*टी.बी. की खांसी : अर्जुन की छाल के चूर्ण में वासा के पत्तों के रस को 7 उबाल देकर दो-तीन ग्राम की मात्रा में शहद, मिश्री या गाय के घी के साथ चटायें। इससे टी.बी. की खांसी जिसमें कफ में खून आता हो ठीक हो जाता है।*

*खूनी दस्त : अर्जुन की छाल का महीन चूर्ण 5 ग्राम, गाय के 250 मिलीलीटर दूध में डालकर इसी में लगभग आधा पाव पानी डालकर हल्की आंच पर पकायें। जब दूध मात्र शेष रह जाये तब उतारकर उसमें 10 ग्राम मिश्री या शक्कर मिलाकर नित्य सुबह पीने से हृदय सम्बंधी सभी रोग दूर हो जाते हैं। यह विशेषत: वातदोष के कारण हुए हृदय रोग में लाभकारी है।*

*रक्तप्रदर (खूनी प्रदर) : अर्जुन की छाल का एक चम्मच चूर्ण एक कप दूध में उबालकर पकायें, आधा शेष रहने पर थोड़ी मात्रा में मिश्री के साथ दिन में 3 बार स्त्री को सेवन करायें।*

*प्रमेह (वीर्य विकार) में : अर्जुन की छाल, नीम की छाल, आमलकी छाल, हल्दी तथा नीलकमल को समान मात्रा में लेकर बारीक पीसकर चूर्ण करें। इस चूर्ण की 20 ग्राम मात्रा को 400 मिलीलीटर पानी में पकायें, जब यह 100 मिलीलीटर शेष बचे, तो इसे शहद के साथ मिलाकर नित्य सुबह-शाम सेवन करने से पित्तज प्रमेह नष्ट हीता है।

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Pallavi_housewife

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#हृदय_रोग की महान औषधि

*खून में कचरा (Acidity) की वजह से आता है हार्ट अटैक, अर्जुन की छाल से ऐसे करे कण्ट्रोल*

*वागभट्ट जी के किसी भी सूत्र और शास्त्र में चाय का उल्लेख नहीं किया क्योंकि बाग़भट्ट जी 3500 वर्ष पहले हुए और चाय 250 साल पहले अंग्रेजों के द्वारा लाइ गयी*

*हाँ लेकिन उन्होंने काढ़े का जीक्र किया है वो कहते हैैं जो काढ़ा हमारे वात पित्त और कफ को कम करे ऐसा कोई भी काढ़ा सुबह दूध में मिलाकर पिया जा सकता है जैसे कि अर्जुन की छाल का काढ़ा वात को सबसे ज्यादा कम करता है यह रक्त की एसिडिटी को कम करता है जो की शरीर की एसिडिटी से भी ज्यादा खतरनाक होती है और हार्ट अटैक का कारण बनती है अर्जुन की छाल सबसे तेजी से रक्त की एसिडिटी को ख़त्म करता है इसलिए अर्जुन की छाल का काढ़ा पीयें*

*नवम्बर दिसम्बर जनवरी और फ़रवरी में वात सबसे ज्यादा होता है ठण्ड के दिनों में वायु का प्रकोप सबसे ज्यादा होता है और इस समय में अर्जुन की छाल का काढ़ा गर्म दूध में मिलकर पीयें तो औषधि का काम करेगा. याद रहे की यह काढे की तासीर हमेशा गर्म होती है इसलिए इसे ठण्ड के समय में ही प्रयोग करें हमारे देश में कोई भी ठंडा काढ़ा नही होता यदि आप सुबह दूध पीना ही चाहते है तो अर्जुन की छाल के काढ़े के साथ पीयें.*

*इससे आपको दो फायदे होंगे भविष्य में आपको हार्ट अटैक कभी नही होगा और अब तक आपने जो बेकार चीजें खाई हैं ये उसे शरीर से साफ़ कर देगा क्योंकि यह छाल का काढ़ा रक्त को साफ़ करता है और शरीर में सबसे ज्यादा कचरा (कोलेस्ट्रोल) रक्त में ही होता है*

*सबसे बड़ी बात तो ये है कि अर्जुन का क्वाथ बनाकर सेवन करना आपके चाय व कॉफी से अधिक गुणकारी रहेगा इसलिए सुबह ठण्ड में चाय की जगह अर्जुन की छाल का काढ़ा दूध के साथ पीयें*

*किस तरह करें सेवन*

*एक गिलास दूध और आधा चम्मच अर्जुन की छाल का पाउडर और अगर इसमें गुड़ मिलायेंगे तो बहुत अच्छा यदि गुड़ न मिले तो काकवी(तरल गुड़)का यूज कर सकते है यदि ये भी न मिले तो खांड या फिर बुरा(राजस्थान,बिहार,यू.पी. वाला चीनी वाला नही). ध्यान रहे चीनी का इस्तेमाल न करे अगर मिश्री मिले तो वह गुड़ से भी अच्छा होता है अगर सोंठ है तो उसे भी मिलाया जा सकता है जिससे वह और भी उत्तम क्वालिटी का बन जायेगा क्योंकि अर्जुन छाल दालचिनी और सोंठ तीनो ही वात नाशक है*

*जाने कोन से रोगों से मिलेगा छुटकारा*

*इसे पीने से शरीर के वात ले सभी रोग जैसे घुटने का दर्द, कंधे का दर्द, डाईबीटीस, हार्ट अटैक ये सब वात के रोग हैं*

*अर्जुन छाल के चमत्कारी औषधिय प्रयोग व फायदे*

*अर्जुन वृक्ष :अर्जुन का पेड़ आमतौर पर सभी जगह पाया जाता है। परंतु अधिकांशत: यह मध्य प्रदेश, बंगाल, पंजाब, उत्तर प्रदेश और बिहार में मिलता है। अक्सर नालों के किनारे लगने वाला अर्जुन का पेड़ 60 से 80 फुट ऊंचा होता है। इस पेड़ की छाल बाहर से सफेद, अंदर से चिकनी, मोटी तथा हल्का गुलाबी रंग लिए होती है। छाल को गोदने पर उसमें से एक प्रकार का स्राव (द्रव) निकलता है। इसके तने गोल और मोटे होते है तथा पत्ते अमरूद के पत्तों की तरह 4 से 6 इंच लंबे और डेढ़ से दो इंच चौड़े होते हैं। सफेद रंग के डंठलों पर बहुत छोटे-छोटे फूल हरित आभायुक्त सफेद या पीले रंग के और सुगन्धित होते हैं। फल 1 से डेढ इंच लंबे, 5-7 उठी हुई धारियों से युक्त होते हैं जो कि कच्चेपन में हरे और पकने पर भूरे लाल रंग के होते हैं। इसकी गंध अरुचिकर व स्वाद कसैला होता है तथा फलों में बीज न होने से ये ही बीज का कार्य करते हैं।*

*गुण-धर्म:*

*★ अर्जुन शीतल, हृदय के लिए हितकारी, स्वाद में कषैला, घाव, क्षय (टी.बी.), विष, रक्तविकार, मोटापा, प्रमेह, घाव, कफ तथा पित्त को नष्ट करता है।*

*★ इससे हृदय की मांसपेशियों को बल मिलता है, हृदय की पोषण क्रिया अच्छी होती है।*

*★ मांसपेशियों को बल मिलने से हृदय की धड़कन सामान्य होती है।*

*★ इसके उपयोग से सूक्ष्म रक्तवाहिनियों का संकुचन होता है, जिससे रक्त, भार बढ़ता है। इस प्रकार इससे हृदय सशक्त और उत्तेजित होता है। इससे रक्त वाहिनियों के द्वारा होने वाले रक्त का स्राव भी कम होता है, जिससे यह सूजन को दूर करता है।*

*सेवन की मात्रा :अर्जुन की छाल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम गुड़, शहद या दूध के साथ दिन में 2 या 3 बार। अर्जुन की छाल का काढ़ा 50 से 100 मिलीलीटर। पत्तों का रस 10 से 20 मिलीलीटर।*

*सर्दियों में इसका 3 माह लगातार सेवन करना सर्वोत्तम है।*.

*प्रकृति : यह गर्म प्रकृति की होती है।*

*अर्जुन छाल से विभिन्न रोगों का उपचार :*

*हड्डी टूटने पर :(Bone breakdown)अर्जुन के पेड़ के पाउडर की फंकी लेकर दूध पीने से टूटी हुई हड्डी जुड़ जाती है। चूर्ण को पानी के साथ पीसकर लेप करने से भी दर्द में आराम मिलता है।*

*प्लास्टर चढ़ा हो तो अर्जुन की छाल का महीन चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार एक कप दूध के साथ कुछ हफ्ते तक सेवन करने से हड्डी मजबूत होती है। टूटी हड्डी के स्थान पर भी इसकी छाल को घी में पीसकर लेप करें और पट्टी बांधकर रखें, इससे भी हड्डी शीघ्र जुड़ जाती है।*

*जलने पर(On burn) : आग से जलने पर उत्पन्न घाव पर अर्जुन की छाल के चूर्ण को लगाने से घाव जल्द ही भर जाता है।*

*हृदय के रोग (Heart diseases):अर्जुन की मोटी छाल का महीन चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में मलाई रहित एक कप दूध के साथ सुबह-शाम नियमित सेवन करते रहने से हृदय के समस्त रोगों में लाभ मिलता है, हृदय की बढ़ी हुई धड़कन सामान्य होती है।*

*अर्जुन की छाल के चूर्ण को चाय के साथ उबालकर ले सकते हैं। चाय बनाते समय एक चम्मच इस चूर्ण को डाल दें। इससे भी समान रूप से लाभ होगा। अर्जुन की छाल के चूर्ण के प्रयोग से उच्च रक्तचाप भी अपने-आप सामान्य हो जाता है। यदि केवल अर्जुन की छाल का चूर्ण डालकर ही चाय बनायें, उसमें चायपत्ती न डालें तो यह और भी प्रभावी होगा, इसके लिए पानी में चाय के स्थान पर अर्जुन की छाल का चूर्ण डालकर उबालें, फिर उसमें दूध व चीनी आवश्यकतानुसार मिलाकर पियें।*

*अर्जुन की छाल तथा गुड़ को दूध में औटाकर रोगी को पिलाने से दिल में आई शिथिलता और सूजन में लाभ मिलता है।*

*हृदय की सामान्य धड़कन जब 72 से बढ़कर 150 से ऊपर रहने लगे तो एक गिलास टमाटर के रस में एक चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण मिलाकर नियमित सेवन करने से शीघ्र ही धड़कन सामान्य हो जाती है।*

*गेहूं का आटा 20 ग्राम लेकर 30 ग्राम गाय के घी में भून लें जब यह गुलाबी हो जाये तो अर्जुन की छाल का चूर्ण तीन ग्राम और मिश्री 40 ग्राम तथा खौलता हुआ पानी 100 मिलीलीटर डालकर पकायें, जब हलुवा तैयार हो जाये तब सुबह सेवन करें। इसका नित्य सेवन करने से हृदय की पीड़ा, घबराहट, धड़कन बढ़ जाना आदि शिकायतें दूर हो जाती हैं।*

*गेहूं और इसकी छाल को बकरी के दूध और गाय के घी में पकाकर इसमें मिश्री और शहद मिलाकर चटाने से तेज हृदय रोग मिटता है।*

*अर्जुन की छाल का रस 50 मिलीलीटर, यदि गीली छाल न मिले तो 50 ग्राम सूखी छाल लेकर 4 किलोग्राम में पकावें। जब चौथाई शेष रह जाये तो काढ़े को छान लें, फिर 50 ग्राम गाय के घी को कढ़ाई में छोड़े, फिर इसमें अर्जुन की छाल की लुगदी 50 मिलीलीटर और पकाया हुआ रस तथा दूध को मिलाकर धीमी आंच पर पका लें। घी मात्र शेष रह जाने पर ठंडाकर छान लें। अब इसमें 50 ग्राम शहद और 75 ग्राम मिश्री मिलाकर कांच या चीनी मिट्टी के बर्तन में रखें। इस घी को 6 ग्राम सुबह-शाम गाय के दूध के साथ सेवन करें। यह घी हृदय को बलवान बनाता है तथा इसके रोगों को दूर करता है। हृदय की शिथिलता, तेज धड़कन, सूजन या हृदय बढ़ जाने आदि तमाम हृदय रोगों में अत्यंत प्रभावकारी योग है।:-*

*हार्ट अटैक हो चुकने पर 40 मिलीलीटर अर्जुन की छाल का दूध के साथ बना काढ़ा सुबह तथा रात दोनों समय सेवन करें। इससे दिल की तेज धड़कन, हृदय में पीड़ा, घबराहट होना आदि रोग दूर होते हैं।*

*हृदय रोगों में अर्जुन की छाल का कपड़े से छाने चूर्ण का प्रभाव इन्जेक्शन से भी अधिक होता है। जीभ पर रखकर चूसते ही रोग कम होने लगता है। हृदय की अधिक धड़कनें और नाड़ी की गति बहुत कमजोर हो जाने पर इसको रोगी की जीभ पर रखने मात्र से नाड़ी में तुरन्त शक्ति प्रतीत होने लगती है। इस दवा का लाभ स्थायी होता है और यह दवा किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाती है।*

*अर्जुन की छाल का चूर्ण 10 ग्राम को 500 मिलीलीटर दूध में उबालकर खोया बना लें। उस खोये के वजन के बराबर मिसरी का चूरा मिलाकर, प्रतिदिन 10 ग्राम खोया खाकर दूध पीने से हृदय की तेज धड़कन सामान्य होती है।*

*अर्जुन की छाल को छाया में सुखाकर, कूट-पीसकर चूर्ण बनाएं। इस चूर्ण को किसी कपड़े द्वारा छानकर रखें। प्रतिदिन 3 ग्राम चूर्ण गाय का घी और मिश्री मिलाकर सेवन करने से हृदय की निर्बलता दूर होती है।*

*एक साथ लगभग 250 मिलीलीटर दूध में उबालकर सेवन करें।*

*खूनी प्रदर : इसकी छाल का 1 चम्मच चूर्ण, 1 कप दूध में उबालकर पकाएं, आधा शेष रहने पर थोड़ी मात्रा में मिश्री मिलाकर सेवन करें, इसे दिन में 3 बार लें।*

*शारीरिक दुर्गंध को दूर करने के लिए : अर्जुन और जामुन के सूखे पत्तों का चूर्ण उबटन की तरह लगाकर कुछ समय बाद नहाने से अधिक पसीना आने के कारण उत्पन्न शारीरिक दुर्गंध दूर होगी।*

*मुंह के छाले (Mouth ulcers): अर्जुन की छाल के चूर्ण को नारियल के तेल में मिलाकर छालों पर लगायें। इससे मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।*

*पेशाब में धातु का आना : अर्जुन की छाल को कूटकर 2 कप पानी के साथ उबालें, जब आधा कप पानी शेष बचे, तो उसे छानकर रोगी को पिलायें। इसके 2-3 बार के प्रयोग के बाद पेशाब खुलकर होने लगेगा तथा पेशाब के साथ धातु का आना बंद हो जाता है।*

*अर्जुन की छाल का 40 मिलीलीटर काढ़ा बनाकर पिलाना चाहिए।*

*ताकत को बढ़ाने के लिए : अर्जुन बलकारक है तथा अपने लवण-खनिजों के कारण हृदय की मांसपेशियों को सशक्त बनाता है। दूध तथा गुड़, चीनी आदि के साथ जो अर्जुन की छाल का पाउडर नियमित रूप से लेता है, उसे हृदय रोग, जीर्ण ज्वर, रक्त-पित्त कभी नहीं सताते और वह चिरंजीवी होता है*

*श्वेतप्रदर(Blennenteria) :महिलाओं में होने वाले श्वेतप्रदर तथा पेशाब की जलन को रोकना भी इसके विशेष गुणों में है।*

*पुरानी खांसी (cough): छाती में जलन, पुरानी खांसी आदि को रोकने में यह सक्षम है।*

*हार्ट फेल : हार्ट फेल और हृदयशूल में अर्जुन की 3 से 6 ग्राम छाल दूध में उबालकर लें।*

*तेज धड़कन, दर्द, घबराहट : अर्जुन की पिसी छाल 2 चम्मच, 1 गिलास दूध, 2 गिलास पानी मिलाकर इतना उबालें कि केवल दूध ही बचे, पानी सारा जल जाये। इसमें दो चम्मच चीनी मिलाकर छानकर नित्य एक बार हृदय रोगी को पिलायें। हृदय सम्बंधी रोगों में लाभ होगा। शरीर ताकतवर होगा।*

*पेट दर्द : आधा चम्मच अर्जुन की छाल, जरा-सी भुनी-पिसी हींग और स्वादानुसार नमक मिलाकर सुबह-शाम गर्म पानी के साथ फंकी लेने से पेट के दर्द, गुर्दे का दर्द और पेट की जलन में लाभ होता है।*

*पीलिया (jaundice): आधा चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण जरा-सा घी में मिलाकर रोजाना सुबह और शाम लेना चाहिए।*

*मुखपाक (मुंह के छाले) : अर्जुन की जड़ के चूर्ण में मीठा तेल मिलाकर गर्म पानी से कुल्ले करने से मुखपाक मिटता है।*

*शुक्रमेह : शुक्रमेह के रोगी को अर्जुन की छाल या श्वेत चंदन का काढ़ा नियमित सुबह-शाम पिलाने से लाभ पहुंचता है।*

*बादी के रोग : अर्जुन की जड़ की छाल का चूर्ण और गंगेरन की जड़ की छाल को बराबर मात्रा में लेकर उसका बारीक चूर्ण तैयार करें। चूर्ण को दो-दो ग्राम की मात्रा में चूर्ण नियमित सुबह-शाम फंकी देकर ऊपर से दूध पिलाने से बादी के रोग मिटते हैं।*

*घर में छुपे सांप, चूहे, डांस, घुन, मच्छर और खटमल:अर्जुन के फूल, बायविंडग, जलपीपल, मोम, चंदन, राल, खस, कूठ और भिलावा को बराबर मात्रा में लेकर धूनी देने से मच्छर और कीड़े मर जाते हैं।*

*अर्जुन के फल, भिलावा, लाख, श्रीकस, श्वेत, अपराजिता, बायविंडग और गूगल आदि को बराबर मात्रा में पीसकर रख लें, फिर इसे आग में डालकर धूनी देने से घर में छुपे सांप, चूहे, डांस, घुन, मच्छर और खटमल निकलकर भाग जाते हैं।*

*पैत्तिक हृदय की बीमारी में : 3 से 6 ग्राम अर्जुन की छाल का चूर्ण व 3 से 6 ग्राम गुड़, 50 मिलीलीटर पानी के साथ दिन में दो बार सेवन करना चाहिए।*

*गुल्यवायु हिस्टीरिया : अर्जुन वृक्ष की छाल, चौलाई की जड़, काले तिल और तीसी का लुआब 25-25 मिलीलीटर की मात्रा में लें तथा 30 ग्राम की मात्रा में मिश्री लें। इसके बाद इन सबको घोंट लें और अर्जुन के पत्ते के रस के साथ कूट करके छाया में सुखायें। इसका बारीक चूर्ण बनाकर शीशी में भरकर रख लें। अर्जुन के पत्ते के रस के साथ इस औषधि को 4-6 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम को खिलाने से हिस्टीरिया रोग ठीक हो जाता है।*

*शरीर में सूजन (Body swelling):इसकी छाल का बारीक चूर्ण लगभग 5 ग्राम से 10 ग्राम की मात्रा में क्षीर पाक विधि से (दूध में पकाकर) खिलाने से हृदय मजबूत होता है और इससे पैदा होने वाली सूजन खत्म हो जाती है।*

*लगभग 1 से 3 ग्राम की मात्रा में अर्जुन की छाल का सूखा हुआ चूर्ण खिलाने से भी सूजन खत्म हो जाती है।*

*गुर्दों पर इसका प्रभाव मूत्रल अर्थात अधिक मूत्र लाने वाला है। हृदय रोगों के अतिरिक्त शरीर के विभिन्न अंगों में पानी पड़ जाने और शरीर पर सूजन आ जाने पर भी अर्जुन की छाल के बारीक चूर्ण का प्रयोग किया जाता है।*

*खूनीपित्त (रक्तपित्त) :अर्जुन की 2 चम्मच छाल को रातभर पानी में भिगोकर रखें, सुबह उसको मसल छानकर या उसको उबालकर उसका काढ़ा पीने से रक्तपित्त में लाभ होता है।*

*रक्तपित्त या खून की उल्टी में अर्जुन के तने की छाल के बारीक चूर्ण की 10 ग्राम मात्रा को दूध में पकाकर खाने से आराम आता है। इससे रक्त की वाहिनियों में रक्त जमने लगता है तथा बाहर नहीं निकलता है।*

*कुष्ठ (कोढ) : रक्तदोष एवं कुष्ठ रोग में इसकी छाल का 1 चम्मच चूर्ण पानी के साथ सेवन करने से एवं इसकी छाल को पानी में घिसकर त्वचा पर लेप करने से कुष्ठ में लाभ होता है।*

*अर्जुन की छाल को पानी में उबालकर गुनगुने पानी में मिलाकर नहाने से बहुत लाभ होता है।*

*बुखार : अर्जुन की छाल का 40 मिलीलीटर क्वाथ (काढ़ा) पिलाने से बुखार छूटता है।*

*व्रण (घाव) के लिए :• अर्जुन छाल को यवकूट कर काढ़ा बनाकर घावों और जख्मों को धोने से लाभ होता है।*

*अर्जुन के जड़ के चूर्ण की फंकी एक चम्मच दूध के साथ देने से चोट या रगड़ लगने से जो नील पड़ जाता है, वह ठीक हो जाता है।*

*घाव में अर्जुन छाल 5 से 10 ग्राम सुबह शाम दूध में पकाकर खायें। छाल को पीसकर घाव पर बांधने से भी अच्छा लाभ होता है। सूखा पाउडर 1 से 3 ग्राम खाना चाहिए।*

*जीर्ण ज्वर (पुराना बुखार) : अर्जुन की छाल के एक चम्मच चूर्ण की गुड़ के साथ फंकी लेने से जीर्ण ज्वर मिटता है।*

*अर्जुन छाल क्षीरपाक विधि : अर्जुन की ताजा छाल को छाया में सूखाकर चूर्ण बनाकर रख लें। इसे 250 मिलीलीटर दूध में 250 मिलीलीटर पानी मिलाकर हल्की आंच पर रख दें और उसमें उपरोक्त तीन ग्राम (एक चाय का चम्मच हल्का भरा) अर्जुन छाल का चूर्ण मिलाकर उबालें। जब उबलते-उबलते पानी सूखकर दूध मात्र अर्थात् आधा रह जाये तब उतार लें। पीने योग्य होने पर छानकर रोगी द्वारा पीने से सम्पूर्ण हृदय रोग नष्ट होते है और हार्ट अटैक से बचाव होता है।*

*दमा या श्वास रोग : अर्जुन की छाल कूटकर चूर्ण बना लेते हैं। रात को दूध और चावल की खीर बना लेते हैं। सुबह 4 बजे उस खीर में 10 ग्राम अर्जुन का चूर्ण मिलाकर खिलाना चाहिए। इससे श्वांस रोग नष्ट हो जाता है।*

*उरस्तोय रोग (फेफड़ों में पानी भर जाना) : अर्जुन वृक्ष का चूर्ण, यष्टिमूल तथा लकड़ी को बराबर मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बना लेना चाहिए। इस चूर्ण को 3 से 6 ग्राम की मात्रा में 100 से 250 मिलीमीटर दूध के साथ दिन में 2 बार देने से उरस्तोय रोग (फेफड़ों में पानी भर जाना) में लाभ होता है।*

*अतिक्षुधा (अधिक भूख लगना) रोग : शालपर्णी और अर्जुन की जड़ को बराबर मात्रा में मिश्रण बनाकर पीने से भस्मक रोग मिट जाता है।*

*मल बंद (उदावर्त, कब्ज) : मूत्रवेग को रोकने से पैदा हुए उदावर्त्त को मिटाने के लिए इसकी छाल का 40 मिलीलीटर काढ़ा नियमित रूप से सुबह-शाम पिलाना चाहिए।*

*हड्डी के टूटने पर : हड्डी के टूटने पर अर्जुन की छाल पीसकर लेप करने एवं 5 ग्राम से 10 ग्राम खीर पाक विधि से दूध में पकाकर सुबह शाम खाने से लाभ होता है। मात्रा : सूखा पाउडर 1 ग्राम से 3 ग्राम खाना है।*

*मधुमेह का रोग : अर्जुन के पेड़ की छाल, कदम्ब की छाल और जामुन की छाल तथा अजवाइन बराबर मात्रा में लेकर जौकूट (मोटा-मोटा पीसना) करें। इसमें से 24 ग्राम जौकूट लेकर, आधा लीटर पानी के साथ आग पर रखकर काढ़ा बना लें। थोड़ा शेष रह जाने पर इसे उतारे और ठंडा होने पर छानकर पीयें। सुबह-शाम 3-4 सप्ताह इसके लगातार प्रयोग से मधुमेह में लाभ होगा।*

*मोटापा दूर करें : अर्जुन का चूर्ण 2 ग्राम को अग्निमथ (अरनी) के बने काढ़े के साथ मिलाकर पीने से मोटापे में लाभ होता हैं।*

*कान का दर्द : अर्जुन के पत्तों का 3-4 बूंद रस कान में डालने से कान का दर्द मिटता है।*

*मुंह की झांइयां : इसकी छाल पीसकर, शहद मिलाकर लेप करने से मुंह की झाइयां मिटती हैं।*

*टी.बी. की खांसी : अर्जुन की छाल के चूर्ण में वासा के पत्तों के रस को 7 उबाल देकर दो-तीन ग्राम की मात्रा में शहद, मिश्री या गाय के घी के साथ चटायें। इससे टी.बी. की खांसी जिसमें कफ में खून आता हो ठीक हो जाता है।*

*खूनी दस्त : अर्जुन की छाल का महीन चूर्ण 5 ग्राम, गाय के 250 मिलीलीटर दूध में डालकर इसी में लगभग आधा पाव पानी डालकर हल्की आंच पर पकायें। जब दूध मात्र शेष रह जाये तब उतारकर उसमें 10 ग्राम मिश्री या शक्कर मिलाकर नित्य सुबह पीने से हृदय सम्बंधी सभी रोग दूर हो जाते हैं। यह विशेषत: वातदोष के कारण हुए हृदय रोग में लाभकारी है।*

*रक्तप्रदर (खूनी प्रदर) : अर्जुन की छाल का एक चम्मच चूर्ण एक कप दूध में उबालकर पकायें, आधा शेष रहने पर थोड़ी मात्रा में मिश्री के साथ दिन में 3 बार स्त्री को सेवन करायें।*

*प्रमेह (वीर्य विकार) में : अर्जुन की छाल, नीम की छाल, आमलकी छाल, हल्दी तथा नीलकमल को समान मात्रा में लेकर बारीक पीसकर चूर्ण करें। इस चूर्ण की 20 ग्राम मात्रा को 400 मिलीलीटर पानी में पकायें, जब यह 100 मिलीलीटर शेष बचे, तो इसे शहद के साथ मिलाकर नित्य सुबह-शाम सेवन करने से पित्तज प्रमेह नष्ट हीता है।

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bahut hi badhiya laga wow
 

Lutgaya

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bahut hi badhiya laga wow
धन्यवाद पल्लवी जी
अन्य सूत्र भी आपकी प्रतिक्रिया के इन्तजार में हैं।
 

Rocky.

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*क्या आप भी रात का खाना देर से खाते हैं?

1. अगर आप देर रात को भोजन करते हैं तो इसका असर आपकी पाचन शक्ति पर पड़ता है। इससे आपकी पाचन शक्ति क्षीण होती है और भोजन ठीक से नहीं पचता जिससे कब्ज, पेट साफ न होना, बवासीर एवं कोलोन व आंतों की बीमारियां हो सकती हैं।

2. देर रात खाना खाने के बाद सोना एवं भोजन का सही पाचन न होने से शरीर में बिना पचा भोजन कोलेस्ट्रॉल के रूप में जमा हो जाता है।

3. देर रात भोजन करने से न तो भोजन का पाचन होगा और ना ही आप चैन से सो पाएंगे। आपको पर्याप्त और चैन की नींद के लिए भोजन का ठीक से पाचन बेहद जरूरी है।

4. अगर आप पर्याप्त मात्रा में सुकून की नींद नहीं ले पाते, तो इसका असर आपकी मानसिक सेहत पर भी पड़ता है। दिमाग को पर्याप्त आराम नहीं मिल पाता, नतीजतन चिड़चिड़ापन पैदा होता है।

5. देर रात किया जाने वाला भोजन एसिडिटी और पेट व सीने में जलन पैदा कर सकता है, जिसका असर हृदय एवं आपके ब्लडप्रेशर पर भी पड़ता है।

6. जो लोग अपना वजन कम करना चाहते है, जिनका बैली फैट बहुत ज्यादा है वो खासतौर से शाम 7:00 से 7:30 के बीच डिनर कर ले और इन बीमारियों से बचें

This one do wonders.. ha par 7.30 tak to possible nhi, par 8.15 tak main kar leta hu..
 
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Lutgaya

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This one do wonders.. ha par 7.30 tak to possible nhi, par 8.15 tak main kar leta hu..
अच्छी बात है जी
उत्तम स्वास्थय के लिए
 
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Lutgaya

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आयुर्वेद मे तिल (sesame seed ) के प्रयोग ।
तिल को पूरे भारत मे तिल के नाम से जाना जाता है। तिल कई रंग के आते हैं जैसे काले, लाल सफ़ेद आदि। इन प्रयोगों के लिए काले तिलों का प्रयोग करें। जब भी दुकानदार से तिल खरीदें तो यह कह कर खरीदें कि “काले तिल खाने के लिए चाहिए न कि पूजा या हवन ने किए”। साफ काले तिल हर दुकान पर नहीं मिलते। पूजा के लिए बेचे जाने वाले काले तिल खाने के लिए उपयोगी नहीं हैं। जिस तिल मे कीड़ा हो या घुन लगा हो तो वह भी न लें। यदि अच्छा काला तिल न मिले तो सफ़ेद या लाल तिल ले सकते हैं। तिल को उपयोगी बनाने के लिए तिल को पानी से धो कर अच्छी तरह से सुखा लेना चाहिए। यहाँ बताए गए प्रयोगों के लिए तिल को न भुने। केवल कच्चे तिल ही गुणकारी है।
आयुर्वेद के मतानुसार तिल बलवर्धक, केशों (बालों) के लिए हितकर, स्तन मे दूध बढ़ाने वाला, व्रण रोपक (घाव को तेजी से भरने वाले), चर्मरोग मे हितकारी, दन्त रोग नाशक, कब्ज करने वाले, वातनाशक और बुद्धिवर्धक होते हैं। (वनोषधि चंद्रोदय के अनुसार)
किसे तिल नही खाने चाहिए –
1 गर्भवती स्त्री को तिल से बना हुआ कुछ भी न दे। परंतु बच्चा पैदा होने के कुछ दिन बाद तिल देना गुणकारी है। दूध बढ़ाता है।
2 स्थायी एनीमिया के रोगी को तिल बिलकुल न दें। स्थायी एनीमिया जैसे थेलिसिमिया/ एडिसनस डीजीज/ परनीसियास एनीमिया/ सिक्कल सेल एनीमिया के रोगी को तिल हानिकारक है। परंतु परेशान न हों। ये रोग केवल एक लाख मे 1 व्यक्ति को होते हैं। क्योंकि चरक संहिता मेँ पांडु रोग तिल का निषेध किया गया है और ये मेरा अनुभव भी यही है ।
3 अम्लपित्त में तिल का प्रयोग न करें।
प्रयोग –
1 पेट की गैस – अभी तक पेट की गैस पर बहुत सी दवाइयाँ प्रयोग करी। परन्तु इसके समान प्रभावशाली दवाई आज तक दूसरी नहीं मिली। यदि आप बड़े बड़े अस्पतालों के चक्कर काट कर तंग आ गए हैं तो पेट की गैस के लिए एकबार यह प्रयोग करे। आप भी मेरी तरह आयुर्वेद के भक्त बन जाएगे। -----प्रयोग मे तौल ना बदले। कोई भी मनमर्जी से दवाई ना बदले। कोई अन्य वस्तु ना मिलाए। ध्यान से बनाए और चमत्कार देखे। --------------तिल धुले हुए 100 ग्राम + गुड 50 ग्राम + सोंठ 25 ग्राम ।---------------- तिल धुले हुए (छिलका हटाए हुए ले जो रेवड़ी व गज्जक मे प्रयोग होते हैं। गुड साफ ले जिसमे बदबू ना हो। सोंठ खुद पीसे या पीसी हुई ले परन्तु वजन सौंठ के पाउडर का ही करे। प्रतिदिन 2 समय आधा से 1 चम्मच 2 समय गरम दूध से ले। पानी से ना ले। ठंडे दूध से ना ले। अच्छा होगा कि दूध मे चीनी आदि कुछ ना मिलाए। यह दवाई इतनी सुरक्षित है कि गर्भवती स्त्री को और 5 साल के बच्चे को भी दी जा सकती है।

2 ये प्रयोग गद निग्रह रसायन तंत्र श्लोक 60 का है। गदनिग्रह आयुर्वेद का प्राचीन तथा अत्यंत विश्वनीय ग्रंथ है। यही बात भावप्रकाश मे भी कही गई है।
दिने दिने कृष्णतिलप्रकुञ्च समश्नत शीतजलानुपानम।
पोष शरीरस्य भवत्यनल्पों दृढ़ा भवन्त्यामरणाच्च दंता॥
. प्रतिदिन काले तिल चबा कर खा कर ठंडा पानी पीने से शरीर का अच्छी तरह से पोषण होता है, दाँत मजबूत होते हैं और दाँत मृत्यु तक बने रहते है। (केवल 1-2 चम्मच ही चबा कर खाएं अधिक मात्रा मे अपच करते है।)।
3 ये प्रयोग भैषज्य रत्नावली अर्श (बवासीर) चिकित्सा श्लोक 21 से है
प्रतिदिन काले तिल चबा कर खा कर ठंडा पानी पीने से यह अवश्य बवासीर को नष्ट करता है (यही प्रयोग सुश्रुत संहिता अर्श चिकित्सा मे भी लिखा है) ।यह प्रयोग शरीर को पोषण देता है और इससे दाँत दृढ़ (मजबूत)रहते है।
(ये प्रयोग उस बवासीर मे बहुत लाभ करता है जिसमे मस्सो से खून नहीं बहता और मस्से प्रायः बहुत कठोर और सूखे होते है)
4 ये प्रयोग चरक संहिता चिकित्सा स्थान अर्श रोगाधिकार का है।
काले तिल के चूर्ण मे मक्खन और मिश्री मिला कर खाने से खूनी बवासीर ठीक होती है और खून बहाना बन्द हो जाता। मक्खन केवल स्वयं का घर का बनाया ले। बाजार मे 80% मक्खन कृत्रिम (synthetic) हैं और तेल से बनाए जाते हैं। अमूल मक्खन असली हैं परंतु उसमे नमक मिलाया हुआ है।
5 -खांसी में तिल का प्रयोग- 1 चम्मच तिल+5-7 दाने काली मिर्च+10 ग्राम मिश्री या गुड़ - इसे 150 ग्राम पानी में चाय की तरह उबाले। जब अच्छी तरह उबल जाए तो छान कर गर्म ही पी ले। इसके 1 घण्टे तक ठण्डा पानी न पीए। सुखी खांसी में बहुत लाभ होता है। लगभग 7 दिन तक प्रतिदिन 2 समय ले।
6 एक विशेष प्रयोग
साफ़ तिल 100 ग्राम +मिश्री 100 ग्राम+ भृंगराज चुर्ण 100 ग्राम (व्यास कम्पनी का मिल जाएगा)+ आंवला रसायन (स्वामी रामदेव) 100 ग्राम। इसे मिलाकर रख ले 1 चम्मच सुबह खाली पेट पानी से ले। इस प्रयोग को कुछ इस तरह भी कर सकते हैं। तिल के अतिरिक्त सभी वस्तुओं को मिला कर रख ले। तिल को अलग रख ले। इन दवाओ का एक चम्मच पानी या दूध से ले। तिल को ऊपर से या अलग किसी समय मे चबा कर पानी / दूध पी ले। क्योंकि तिल मिलाकर रखने से दवाई मे 1 महीने मे ही कीड़े हो जाते हैं व लेते समय चूर्ण मे मिला हुआ तिल गले मे खारिश पैदा करता है। जवानी मे बाल सफ़ेद बाल दोबारा काले हो जाएंगे. आंखों के लिए गुणकारी है, दाँतो का हिलना रुक जाता है, पुरानी कब्ज मे लाभ होता है, शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति बढती है तथा आलस्य दूर होता है। सभी मौसम में प्रयोग कर सकते हैं।कम से कम 3 महीने प्रयोग करे।
7 – बार बार पेशाब आने के लिए।
तिल 50 ग्राम + अजवायन 10 ग्राम + गुड 100 ग्राम। तिल और अजवायन को पीस ले। गुड मिला कर रख ले। आधा चम्मच सुबह शाम पानी से ले। जिनहे रात को बार बार पेशाब के लिए उठना पड़ता है वह रात को सोने से पहले 1 चम्मच मिश्रण पानी से ले। छोटे बच्चे जो बिस्तर मे पेशाब करते हैं उन्हे आयु के अनुसार एक चौथाई चम्मच से आधा चम्मच रात को सोते समय पानी से दे। रात को दूध न पिए। 3 साल से कम के बच्चे को न यह न दे।
8- शक्तिवर्धक तिल
बाजार से 250 ग्राम धुले हुए (छिलका हटाए हुए) तिल ले। क्योकि इनपर कैमिकल लगा होता है इसलिए इन्हे गरम पानी से 3 बार धो ले। उसके बाद इन्हे रात भर पानी मे भीगने दे। सुबह निकाल कर पीस ले। फिर लौहे/ पीतल की कड़ाही मे 100 ग्राम घी मे धीमी आग पर अच्छी तरह भून ले। उसके बाद इसमे 250 ग्राम गुड कूट कर डाले। जैसे ही कड़ाही मे गुड पिघल जाए आग बंद कर दे तथा हिलाते रहे नहीं तो गुड चिपक जाएगा। ठंडा होने पर इसमे 50 ग्राम शहद मिलाए। इच्छा अनुसार इसमे पीस कर छोटी इलायची या केसर मिला सकते है।
प्रयोग का तरीका – 1-2 चम्मच दिन मे 2 बार हल्के गरम दूध से दे।
शरीर मे कैल्शियम की कमी पूरी करता है। जिनहे पेट मे गैस रहती है भोजन नहीं पचता उनको बहुत लाभ करता है। विशेष रूप से जिनको बार बार नजला जुखाम हो जाता है सिर मे दर्द रहता है सारा शरीर सुस्त रहता है काम मे मन नहीं लगता बच्चो की स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है, दाँत मे समस्या है उनके लिए चमत्कारी है। जो बच्चे को दूध पिलाने वाली माताए है उनके लिए बहुत अधिक लाभ करता है। बोर्नविटा, कोम्प्लान, हारलिक्स, कोड लीवर आयल आदि टॉनिक इसके सामने बेकार है। सर्दी मे प्रयोग करे।
9 - महिलाओं को समय पर मासिक ना आना -
काला तिल 20 ग्राम + पुराना गुड 20 ग्राम
तिल को जरा सा कूट लें. 1 कप पानी में पकाए जब 1 कप रह जाए तब छान कर गुड मिला कर पी लें. प्रतिदिन 1 बार. गुड कम से कम 1 साल पुराना हो.
 
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जिस दिन आपकी सब्ज़ी में आंवले का उपयोग होना शुरू हो गया उस दिन से आपका औषधियों पर होने वाला व्यय बहुत कम हो जाएगा। पहले भारत में सब्जी में खट्टापन लाने के लिये टमाटर के स्थान पर आंवले का प्रयोग होता था । इसलिये लोगों की हड्डियां महर्षि दधीचि की तरह कठोर होती थीं। आज तमाम तरह के कैल्शियम विटामिन्स खाने के बाद भी जवानी में ही हड्डियां कीर्तन करने लगती हैं । जिस मौसम में देशी टमाटर मिले तो ठीक लेकिन अंडे जैसे आकार के अंग्रेजी टमाटर खाने के स्थान पर आंवले का प्रयोग आपकी सब्ज़ी को स्वादिष्ट भी बनाएगा और आपको मेडिकल माफिया के मकड़जाल से भी बाहर निकालेगा ।

आंवला ही एक ऐसा फल है जिसमे सब तरह के रस होते है । जैसे आंवला, खट्टा भी है मीठा भी कड़वा भी है नमकीन भी। आँवले का सनातन संस्कृति में महत्व इतना है कि दीपावली के कुछ दिन बाद आँवला नवमी मनाई जाती है । आपको करना केवल इतना है कि साबुत या कटा हुआ आँवला बिना बच्चों और आधुनिक सदस्यों को बताए सब्ज़ी में डाल देना है । अगर आँवला साबुत डाला है तो सब्ज़ी बनने के बाद उसको ऐसे ही खा सकतें है । जब आंवला नहीं मिलता तो आँवले को सुखा कर पीस कर इसका प्रयोग उचित है ।
 
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.सूखी खांसी का इलाज
एक तवे पर 10 सबूत लौंग बिना टोपी तोड़े, 20 काली मिर्च इनको दोनोको एकसाथ अच्छे से खूब सेंक लें ।
  • अब गैस बंद करके इस गरम तवे से दोनो को एक कटोरी में निकाल ले, छीला हुआ एक अदरक पर्याप्त बड़ा टुकड़ा बंद चूल्हे के इस गरम तवे पर रख दे ।
  • फिर खरड़ के अंदर लोग और कालीमिर्च के मिश्रण को डाल कर बारीक कूट लें ।
  • अब उस अदरक को ले कर अदरक घीसनी पर घीस दे, प्राप्त बारीक टुकड़ों को एक पतले कपड़े में ले कर ताकत से पूरा निचोड़ कर रस निकाल ले ।
  • थोड़ा सा सेंधा नमक, उससे दुगनी हल्दी ले, उसमे 1.5–2 चम्मच अदरक का रस, 1 चम्मच शहद, काली मिर्च और लोंग का चुरा इन सबको मिला ले ।
हो गया चटनी तैयार

दिन में 3 बार ले, आधे घंटे पानी न पिएं, सोने के ठीक पूर्व अवश्य ले ।
 
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