" 8th Semester " और " Atamkami " -
अपनी पुरी लाइफ में इससे बेहतर कहानी मैंने नहीं पढ़ा । कहानी निःसंदेह आला दर्जे की थी लेकिन जिस शैली में लिखा गया था , या यह कहें कि लिखने का अंदाजेबयां जो था वैसा तो मुझे याद नहीं कि कभी मैंने पढ़ा हो ।
सालों बीत गए उपन्यास पढ़ते हुए । कई हजार उपन्यास और किताबें पढ़ चुका हूं । गुलशन नंदा , रानू , ओम प्रकाश शर्मा से लेकर सुरेंद्र मोहन पाठक और वेद प्रकाश शर्मा तक के दौर के सैकड़ों उपन्यासकार को पढ़ चुका हूं पर ऐसा अद्भुत लेखनी मैंने किसी में नहीं देखा ।
अपनी लेखनी से पाठकों के चेहरे पर कभी अनायास ही मुस्कराहट ला देना... तो कभी क्रोधित हो उठना... तो कभी क्रोधित होते हुए ही मुस्करा देना... तो कभी आंखें बोझिल करके आंसू निकाल देना !
ऐसा अद्भुत करिश्मा किया है आपने ज्ञानी भाई कि मेरे पास शब्द नहीं है कि कैसे आप की बड़ाई करूं !
किसी कहानी का सबसे मजबूत पक्ष होता है उस कहानी में रीडर्स का अपडेट दर अपडेट कौतूहल पैदा करना और वो इन दोनों कहानियों में हर क्षण मौजूद था । रीडर्स बेसब्री से जानना चाहते थे कि अबकी बार अरमान क्या बवाल करने वाला है या क्या धमाल मचाने वाला है जो कि हमें बराबर अपडेट दर अपडेट देखने को मिला ।
आपने इस कहानी में इतने Quote से हमें अवगत कराया है कि सिर्फ इसके लिए अगर मेरे वश में होता तो आपको भारत रत्न की उपाधि से नवाज देता । चाहे फिजिक्स पर हो चाहे रियलिटी पर आधारित हो या चाहे सेक्सुअल Quote हो ।
मेरे लिए एक तरह से यह सब एक अविष्कार खोजने जैसा था । कोई डिस्कवरी था जो आप ने हमें थाली में परोस कर रख दिया ।
बहुत लोगों को अरमान का व्यवहार चुतियापा जैसा लगा होगा लेकिन मेरा ख्याल अलग था । शुरू से ही उसके दर्द और भावनाओं को समझने लगा था । कैसे कोई मां बाप अपने छोटे बेटे के साथ इस तरह का सौतेला व्यवहार कर सकते हैं ! वो उनका सगा बेटा था । कोई गोद लिया हुआ लड़का नहीं । वैसे तो कोई गोद लिए हुए बच्चे के साथ भी ऐसा व्यवहार नहीं करता है । अरमान सिर्फ पढ़ाई में ही ब्रिलिएंट नहीं था बल्कि स्पोर्ट्स में भी तेज था । उसे भी किसी का दर्द भी नहीं देखा जाता था ।
लेकिन उसके गार्डियन ने अपने बड़े बेटे के चक्कर में उसे हमेशा तुच्छ ही समझा । हर वक्त दुत्कारा उसे । कभी उसके फर्स्ट डिवीजन आने पर गले नहीं लगाया । कभी किसी स्पोर्ट्स में मैडल हासिल करने पर शाबाशी नहीं दी । ऐसा भला कौन मां बाप करता है ! एक नन्हें बच्चे पर इन सब चीजों से क्या असर होगा !
जब गूंगे दम्पत्ति की लाचारी की वजह से मौत हुई तब से उसके अंदर परिवर्तन आना शुरू हुआ जो उसे उसकी आखिरी सफर तय जारी रही । वैसे परिवर्तन तो उसके मां बाप के सौतेले व्यवहार के बाद ही आना शुरू हो गया था ।
कालेज में रैगिंग होती ही है । यह कोई बड़ा इशू नहीं था । उसके साथ भी रैगिंग हुई और मारपीट भी । वो सुधर सकता था बशर्ते उसे सही गाइड मिला होता । सिदर की मौत अगर नहीं हुई होती तो वो भी एक बढ़िया स्टुडेंट रहा होता और आज के तारिख में किसी अच्छी कम्पनी में नौकरी कर रहा होता । शायद सिदर उसके अभिभावक का रोल निभा रहा होता ।
" डर " मेरे नजरिए से हर इंसान में किसी न किसी व्यक्ति या किसी न किसी चीज का जरूर होना चाहिए । चाहे वो अपने गार्डियन का हो चाहे टीचर्स का हो चाहे अपनी प्रतिष्ठा का हो चाहे भगवान का हो । यह आपको बुरे कामों की ओर जाने से रोकता है ।
पर अरमान को डर था ही नहीं किसी से । जब बचपन ही ऐसा गुजरा हो तो फिर किस बात का भय !
घर से उसके जेहन से " डर " क्या जाने शुरू हुई , कालेज के रैगिंग कांड तक पुरी तरह समाप्त हो गई । वो अक्खड़ और शुष्क स्वभाव का हो गया ।
उसकी जीवन मात्र कुछ लोगों के दायरे तक सिमट कर रह गई । जिनमें सबसे प्रमुख उसका दोस्त अरूण और पांडे जी था । प्रेम भी हुआ तो एकतरफा । उसके एटिट्यूड की वजह से आराधना की इज्जत और जान दोनों चली गई ।
अपने अहंकार की वजह से पावरफुल लोगों से दुश्मनी मोल ली । जो लड़का इंजीनियरिंग में CGPA १० में १० ला सकता था वो एक अपराधी की जीवन जीने लगा । चोरी करने लगा । राहजनी करने लगा । और अंततः हत्यारा भी बन गया ।
बदले की आग में अपना ही नहीं बल्कि कईयों की जीवन यात्रा समाप्त कर दी । गौतम , ईशा , आराधना की मौत में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अरमान का हाथ रहा ।
ईशा...जो उसकी पाक मोहब्बत थी.... जिसके चेहरे को छोड़कर उसका कोई अंग देखने की कल्पना तक नहीं की , उसे ही मृत्यु के द्वार तक पहुंचा दिया ।
कहानी में जहां एक तरफ अरमान का स्वार्थी रूप हमारे सामने आया वहीं ईशा और एंजलीना के साथ उसका निस्वार्थ प्रेम भी देखने को मिला । भले ही वो मन ही मन में उनके साथ सेक्सुअल फैंटेसी करते आया हो पर यह सच है कि वो इन्हें अपनी जान से भी बढ़कर प्यार करता था ।
कहानी के लास्ट साठ अपडेट्स में अचानक से ऐसा यू टर्न आया कि कहानी पुरी तरह इमोशनल हो गई । ईशा की मौत , अरूण की मौत , पांडे जी की सुसाइड और अंत में अरमान की मौत ने मुझे पुरी तरह झिंझोड़ दिया । मैं बहुत ज्यादा इमोशनल हो गया था । खासतौर पर लास्ट सीन में जब वो अपनी उसी जंग लगे हुए बेंच पर बैठ कर अंतिम बार दो सिगरेट सुलगा रहा था ।
चस्मा के लिए व्याकुलता और उसके डबल सिगरेट पीने का अंदाज शायद ही मैं कभी भुला सकूं ! और उसका डायलॉग.... आउटस्टैंडिंग ।
कहानी में निशा , डेविड , वरूण और सोनम को लाकर अच्छा खासा हमारा ब्रेन वाश किया आपने । पैरेलल युनिवर्स और टाइम ट्रैवल द्वारा हमें एक अलग ही दुनिया में पहुंचा दिया । एक ऐसी दुनिया जिसके बारे में बहुत ही कम लोगों की जानकारी है ।
पर जो भी हो , अरमान १ अरमान २ अरमान ३ अरमान ४ और Fifth dimensions के साथ यह कहानी और भी ज्यादा रोचक हो गई थी ।
कुछ चीजें मुझे बहुत बुरी भी लगी । एम्बूलैंस कांड , आराधना सुसाइड केस , ईशा रेप एंड मर्डर कांड , अरूण की मौत , पांडे जी की सुसाइड और अरमान की मृत्यु ।
वैसे तो गौतम की मौत भी बहुत बुरी थी पर मुझे लगता है वो एक हादसा था ।
कहानी और रियलिटी -
मुझे लगता है इस कहानी का बहुत सारा पार्ट आपके जीवन से भी जुड़ा हुआ है ।
१. आप का इंजिनियर होना ।
२. आप की होस्टल की कुछ यादें ।
३. बचपन के दिनों में किसी ऐसी लड़की से प्रेम जो अधुरी रह गई हो ।
४. गूंगे दम्पत्ति की मौत । ( मुझे लगता है वो मर्डर नहीं बल्कि एक सामूहिक सुसाइड था जो उन्होंने गरीबी की वजह से किया होगा )
ये सारी चीजें सच हो सकती हैं ।
इस कहानी में नो डाउट , अरमान मेरा फेवरेट किरदार रहा ।
लेकिन ईशा , एंजलीना और आराधना भी मेरी पसंदीदा किरदार रही ।
इसके अलावा अरूण..... मुझे नहीं लगता है कोई भी व्यक्ति अरूण को कभी भुला सकता है । बहुत बढ़िया किरदार था वो । फिर पांडे जी ने भी मेरा अच्छा खासा मन मोहा ।
डायलॉग -
इतने बेहतरीन डायलॉग है कि इस पर एक अलग से किताब लिखी जा सकती है ।
क्या कहूं ज्ञानी भाई ! यह कहानी मैं , कम से कम इस जन्म में तो कभी भी नहीं भुल सकता । काश ! मैं पब्लिशर होता और इस कहानी को छापकर पुरी दुनिया के सामने पेश कर देता । काश ! मेरे वश में होता तो ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कर देता । मैंने इस कहानी से पहले भी आप की कुछ कहानियों को पढ़ा है लेकिन यह कहानी मेरी आल टाइम बेस्ट कहानी में शुमार हो गई है । भगवान आपको लम्बी उम्र दें और ताउम्र खुश रखें ।