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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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Tiger 786

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भाग:–124


भारती, फोन लाइन काटती... “भार में गया सुरंग से जाना, अब तो सीधा सामने से घुसेंगे।”

पलक:– ये भूल कर रही हो। वह पहले से तैयारी करके बैठा है। अभी–अभी उसने हमारे 200 शिकारी को गायब कर दिया। हमारा एक भी बग अब तक ये पता नही लगा पाया की आखिर उसने महल में और उसके आस–पास कैसा ट्रैप बिछा रखा है?

भारती:– तुम अब भी नही समझ पायी की कैसा ट्रैप है तो तुम बेवकूफ हो। जो वेयरवोल्फ कमाल के हिलर हो और कभी किसी इंसान को जाने–अनजाने में अपनी बाइट से अपने जैसा वेयरवोल्फ न बनाया हो, वह पेड़–पौधों तक हील कर सकते हैं। इसके बदले उन्हें एक अनोखी शक्ति मिलती है, अपने क्ला से वो कहीं भी जड़ों को निकाल सकते है। लोगों को उन जड़ों में फसा सकते है। और ये आर्यमणि तो खुद को प्योर अल्फा कहता है, इसका मतलब समझती हो?

पलक:– क्या?

भारती:– “इसके काटने या नाखून से छीलने पर भी कोई वेयरवॉल्फ नही बनेगा। इसके पैक के जितने भी लोगों ने ब्लड ओथ लिया होगा, उन सब में ये गुण पाये जायेंगे। लेकिन ये लोग एक बात नही जानते की मैं निजी तौर पर ऐसे ही एक वेयरवोल्फ से निपट चुकी हूं, नाम था अल्फा हीलर फेहरीन।”

“इन्हे क्या पता कैसे मैने अकेले ही फहरीन को धूल चटाकर उसके पैक को खत्म की थी। इन चूतियो को क्या पता की फेहरिन जैसे मेरे पाऊं को चाटकर जिंदा छोड़ने की भीख मांगी थी, और मैने मौत दिया था। बस अफसोस की उसके बच्चे नही मिले, जिसके लिये वो गिड़गिड़ाई थी, वरना उसे तड़पाने में और भी ज्यादा मजा आता। इन चूजों (अल्फा पैक) को अपने नई शक्ति पर कूदने दो। जब मेरे शिकारी उनके जड़ों के तिलिस्म को तोड़ेंगे तब उन्हे पता चलेगा...

पलक अपने मन में सोचती..... “हरामजादी अपनी बहन को तो जड़ों के बीच से निकाल नही पायी, यहां डींगे हांकती है। जा तू फसने, तुझे भी तेरी बहन जैसी मौत मिले”.... “क्या हुआ किस सोच में पड़ गयी।”.... पलक अपने विचार में इस कदर खो गयी की वह भारती की बात पर कुछ बोली ही नही। भारती ने जब उसे टोका तब अपने विचारों के सागर से बाहर आती..... “मैं तो ख्यालों में थी कि कैसे आर्यमणि तुम्हारे सामने गिड़गिड़ा रहा है।”

भारती:– पहले उस कमीने आर्यमणि को धूल चटा दूं, फिर तुम भी उसका गिड़गिड़ाना देख लेना। चलो अब हम चलते हैं।

भारती का एक इशारा हुआ। आधे घंटे में तो जैसे वहां जन सैलाब आ गया था। 400 महा की टीम और 200 नायजो को छोड़कर 800 की टुकड़ी के साथ भारती कूच कर गयी। सभी प्रथम श्रेणी के नायजो भारती के साथ चल रहे थे। भारती हर कदम चलती अपने लोगों में जोश का अंगार भरती उनका हौसला बुलंद कर रही थी।

वहीं अल्फा पैक आराम से अपने डायनिंग टेबल पर अंगूर खाते उन्हे आते हुये देख रहा था।..... “जे मायला... इन्हे सुरंग के अंदर दबाने की योजना अब सपना हो गया।”

आर्यमणि:– अलबेली, खुद पर भरोसा करो और दुश्मन को कभी भी...

अलबेली:– कमजोर नही समझना चाहिए... चलो मेरे होने वाले सैयां (इवान), और मेरी ननद (ओजल) इन्हे पैक किया जाये।

आर्यमणि:– नही, बाहर किसी को पैक मत करना। सब अंदर आते जायेंगे और पैक होते जायेंगे। पैकिंग का काम रूही, संन्यासी शिवम सर और निशांत देखेंगे... तुम तीनो दरवाजे की भिड़ को पीछे ट्रांसफर करोगे..

ओजल, छोटा सा मुंह बनाती.... “जीजाजी नही... कितना हम दौड़ते रहेंगे।”

रूही:– ओ जीजाजी की प्यारी समझदार साली, किसने कहा पैक लोगों को कंधे पर उठाकर दौड़ लगाओ।

अलबेली:– फिर कैसे करेंगे...

रूही:– जड़ों में लपेटो और उन्हे सीधा वुल्फ हाउस के पीछे पटको...

इवान:– नाना.. हम तीनो मिलकर जड़ों का स्कैलेटर बनायेंगे।(वह सीढ़ी जो मशीन के दम पर अपने आप चलती है।) आओ पैक हो और स्केलेटर से ट्रांसफर होते जाओ।

अलबेली:– पर बनायेंगे कैसे... गोल घूमने वाले बॉल–बेयरिंग कहां से लाओगे..

ओजल:– वो भी हम जड़ों का बना लेंगे, सोचो तो क्या नही हो सकता...

अलबेली:– हां तो ठीक है शुरू कर दो...

तीनो ने मिलकर जड़ों को कमांड दिया। दिमाग में चित्रण किया और दिमाग का चित्रण धरातल पर नजर आने लगा। 5 फिट चौड़ा और 600 मीटर लंबा स्कैलेटर तैयार था, जो बड़े से हॉल से होते हुये नीचे के विभिन्न हिस्सों से गुजरते, पीछे जंगल तक जा रहा था। पीछे का हिस्सा, वुल्फ हाउस से तकरीबन 4 किलोमीटर दूरी तक, सब आर्यमणि की निजी संपत्ति थी। हां जंगल विभाग की केवल एक शर्त थी, जंगल का स्वरूप बदले नही।

आर्यमणि ने जंगल का स्वरूप नही बदला। पीछे का पूरा इलाका तो जंगल ही था, लेकिन वुल्फ हाउस की निजी संपत्ति की सीमा पर चारो ओर से 40 फिट की ऊंची–ऊंची झाड़ की दीवार बन गयी थी। एक मात्र आगे का हिस्से से ही वुल्फ हाउस में सीधा प्रवेश कर सकते थे। पिछले हिस्सें को शायद आर्यमणि ने इसलिए भी घेर दिया था ताकि स्थानीय लोग वहां चल रहे गतिविधि को देख ना पाये। खासकर उस जंगल के रेंजर मैक्स और उसकी टीम।

वुल्फ हाउस की दहलीज जहां पर खतरा लिखा था, उस से तकरीबन 400 मीटर अंदर वुल्फ हाउस का प्रांगण शुरू होता था। वोल्फ हाउस किसी महल से कम नही था जो 4000 स्क्वायर मीटर में बना था। जैसे ही वुल्फ हाउस के प्रांगण में घुसे सभी नायजो फैल गये। घर में चारो ओर से घुसने के लिये पूरी भिड़ कई दिशा में बंट गयी। सामने से केवल भारती और उसके 200 प्रथम श्रेणी के गुर्गे प्रवेश करते। प्रवेश द्वार पर खड़ी होकर भारती ने हुंकार भरा... “आगे बढ़ो और सबको तबाह कर डालो, बस मारना मत किसी को।”

भारती की हुंकार और 16 फिट चौड़ा उस मुख्य दरवाजे से सभी नायजो घुसने लगे। भारती जब प्रवेश द्वार पर पहुंची थी, तब आंखों के सामने ही बड़े से हॉल में पूरा अल्फा पैक अंगूर खाते नजर आ रहा था। भारती का इशारा होते ही नायजो चिल्लाते हुये ऐसे भिड़ लगाकर दौड़े की भारती को हॉल के अंदर का दिखना बंद हो गया।

जो नायजो चिल्लाते और चंघारते प्रवेश द्वार के अंदर घुस रहे थे, उनका चिल्लाना पल भर में शांत हो जाता। जिस प्रकार टीवी के एक विज्ञापन में ऑल–आउट नामक प्रोडक्ट को चपाक–चपाक मच्छर पकड़े दिखाते है, ठीक उसी प्रकार नायजो की भी वो प्लास्टिक अपने सिंकांगे में ऐसा सिकोड़ लेती की उनकी हड्डियां तक कड़कड़ाकर सिकोड़ने पर मजबूर हो जाती।

हां वो अलग बात थी कि जो नियम नाक पर लागू होते थे... अर्थात वह प्लास्टिक जब सिकोड़ना शुरू करेगी और नाक पर कोई सतह न होने की वजह से वह प्लास्टिक सिकोडकर नाक के छेद के आकार से टूट जायेगी और उसके बाहरी और भीतरी दीवार से जाकर चिपकेगी। ठीक उसी प्रकार से मुंह पर भी हुआ। नाक से स्वांस लेने के अलावा मुंह से चीख भी निकल रही थी। चीख जो हड्डियां कड़कने, अपने सभी मांशपेशियों को पूरी तरह से सिकुड़ जाने और खुद को कैद में जानकर एक अनजाने भय में निकल रही थी।

हो यह रहा था की एक साथ 10 लोग अंदर घुसते। घुसते वक्त युद्ध की ललकार और गुस्से की चींख होती और घुसते ही चीख दर्द और भय में तब्दील हो जाती। 10 के दर्द से चीखने की संख्या हर पल बढ़ रही थी, क्योंकि एलियन हॉल में लगातार प्रवेश कर रहे थे और प्रवेश करने के साथ ही चिपक रहे थे।

आर्यमणि:– छोटे यह बताना भूल गया की इनका मुंह भी पैक नही होता। अल्फा पैक के सभी वोल्फ, पैक हुये समान का मुंह तुम सब मैनुअल पैक करो। बाकी निशांत और शिवम् सर उन सबको पैक करेंगे...

रूही:– हुंह... और तुम डायनिंग टेबल पर टांग पर टांग चढ़ाकर गपागप अंगूर खाते रहो।

आर्यमणि:– जल्दी जल्दी काम करो... उसके बाद का इनाम सुनकर यदि तुम खुश ना हुई तो फिर कहना...

रूही:– मैं खुश ना हुई न आर्य तो तुम सोच लेना... चलो बच्चों मालिक का हुकुम बजा दे..

अब भीड़ आ रही थी और पैक होकर खामोशी से स्कैलेटर पर लोड होकर पीछे डंपिंग ग्राउंड में फेंका जा रहा था।

घर के दाएं, बाएं और पीछे से जो लोग घुसने की कोशिश कर रहे थे, वो सब एक कमांड में ही पैक होकर जमीन पर गिरे थे।.... “आर्य घर के दाएं, बाएं और पीछे के इलाकों पर पैकेज बिछ गये है। जाओ उन्हे बिनकर (पकड़कर) डंपिंग ग्राउंड में फेंक देना। ओह हां और सबके मुंह भी पैक कर देना। अभी तो भीड़ की ललकार में उस औरत (भारती) को समझ में न आ रहा की दाएं, बाएं और पिछे से उसके लोग चिल्ला रहे। लेकिन कुछ ही देर में सब जान जाएंगे।”

“ऐसे कैसे जान जायेंगे”.... निशांत की बात का जवाब देते आर्यमणि सीधा होकर बैठा और अपने लैपटॉप की स्क्रीन को एक बार देखकर अपनी आंखें मूंद लिया। देखते ही देखते जमीन पर पैक होकर पड़े सभी 600 नायजो का मुंह पैक हो चुका था और अगले 5 सेकंड में सभी नायजो को जड़ों में लपेट कर डंपिंग ग्राउंड पर फेंक दिया गया।

वहां का सीन कुछ ऐसा था.... भारती सामने से 200 लोगों को लेकर वुल्फ हाउस के प्रवेश द्वार पर पहुंची और बाकी के 600 लोग दाएं, बाएं और पिछे से घुसने की कोशिश करने वाले थे। जिस पल भारती प्रवेश द्वार के सामने पहुंची, ठीक उसी पल एक छोटे से कमांड पर घर के चारो ओर फैले नायजो पैक हो चुके थे। प्रवेश द्वार से 200 नायजो चिल्लाते हुऐ अंदर प्रवेश कर रहे थे और पैक होकर सीधा स्कैलेटर पर लोड हो जाते।

मात्र 10 सेकंड का यह पूरा मामला बना, जब आर्यमणि ने बिना वक्त गवाए बाहर की भिड़ को एक साथ डंपिंग ग्राउंड पर फेंक दिया। वहीं घर के अंदर घुस रहे लोग स्कैलेटर पर लोड होकर डंपिंग ग्राउंड तक पहुंच रहे थे। 16 फिट चौड़ा दरवाजे से आखिर 200 लोगों को अंदर घुसने में समय ही कितना लगेगा... एक मिनट, या उस से भी कम।

भीर जब छंटी तब चिल्लाने की आवाज भी घटती चली गयी और बड़े से हॉल में जब भारती ने देखा तब वहां भीर का नामो–निशान तक नही। बस दरवाजे पर मुट्ठी भर लोग होंगे जो एक बार चिल्लाए और अंदर का नजारा देखकर उनकी चीख मूंह में ही रह गयी। परिस्थिति को देखते हुये वो लोग उल्टे पांव दौड़ना शुरू कर दिये। उन भागते लोगों में भारती भी थी। सभी के पाऊं में जड़ फसा। सब के सब मुंह के बल गिरे और अगले ही पल घर के अंदर। जड़ें उन्हे खींचते हुये जैसे ही हॉल के अंदर लेकर आयी, हॉल के प्रवेश द्वार से लेकर आर्यमणि तक पहुंचने के बीच सभी प्लास्टिक में पैक थे। इधर खुन्नस खाये अल्फा टीम के सदस्य बिना वक्त गवाए उन्होंने भी सबके मुंह को चिपका दिया।

आर्यमणि:– अब ये क्या है... इन लोगों को तो पैक न करते। और तुम सब में इतनी तेजी कहां से आ गयी की मुझ तक पहुंचने से पहले सबका मुंह पैक कर दिये।

रूही:– जिसे तुम तेजी कह रहे, उसे खुन्नस कहते हैं।

आर्यमणि:– पर खुन्नस किस बात का...

रूही:– तुम्हारा टांग पर टांग..

आर्यमणि:– बस रे, काम खत्म करने दो पहले। वैसे मैंने एक ऑडियो को हेड फोन लगाकर सुना था, क्या तुम में से कोई उसे सुनना चाहेगा...

अलबेली:– बॉस जितना लहराकर आप अपनी बात खत्म करते हो, उतने देर में 100 कुत्ते पैक होकर डंपिंग ग्राउंड पहुंच चुके होते हैं। जल्दी सुनाओ वरना आगे का काम देखो...

आर्यमणि मुस्कुराकर वह ऑडियो सबके सामने चला दिया, जिसे अब से कुछ देर पहले भारती बड़े शान से कह रही थी। फेहरीन के मृत्यु के विषय की बात... उसे सुनने के बाद फिर कहां अल्फा पैक रुकने वाला था। फेस रिकॉग्नाइजेशन से सिर्फ भारती को खोजा गया और बाकियों को डंपिंग ग्राउंड में फेंका गया।

डायनिंग टेबल की एक कुर्सी पर भारती को बिठाकर, उसके चेहरे के प्लास्टिक को रूही ने अपने पंजे से नोच डाला। भारती कुछ कहने के लिये मुंह खोली ही थी, लेकिन कुछ कह पाती उस से पहले ही रूही ने ऐसा तमाचा जड़ा की उसके दांत बाहर आ गये। हां रूही भी अपने हथेली में टॉक्सिक भरकर भारती को मारी थी, लेकिन भारती के शरीर में अब भी एक्सपेरिमेंट दौड़ रहा था इसलिए उसपर इस थप्पड़ का कोई असर न हुआ।

फिर ओजल और इवान भी पीछे क्यों रहते। वो भी थप्पड़ पर थप्पड़ जड़ रहे थे। कुछ देर तक भारती ने थप्पड़ खाया किंतु वह भी अब बिना किसी बात की प्रवाह किये जवाबी हमला बोल दी। बंदूक के गोली समान उसके आंखों से लेजर निकल रहे थे और घर के जिस हिस्से में लगते वहां बड़ा सा धमाका हो जाता।

भारती:– मेरे आंखों की किरणे तुम में से किसी को लग क्यों नही रही...

अलबेली, इस बार उसे एक थप्पड़ मारती..... “तुझे हम निशांत भैया के भ्रम जाल के बारे में विस्तृत जानकारी तो नही दे सकते, लेकिन दर्द और गुस्से से गुजर रहे मेरे दोस्त तुम्हे दर्द नही दे पा रहे, और तू कई बाप की मिश्रित औलाद जो ये समझ रही की तुझे कुछ नही हो सकता, उसका भ्रम मैं हटा दे रही हूं।”

अलबेली अपनी बात कहकर अपने पूरे पंजे को उसके गाल पर रख दी। अलबेली को ऐसा करते देख, रूही, ओजल और इवान को भी समझ में आया की इस भारती पर तो अब तक कुछ असर ही नही किया होगा। बस फिर क्या था, सबने हाथ लगा दिया और एक्सपेरिमेंट के आखरी बूंद तक को खुद में समा लिये। हालांकि भारती को तो समझ में नहीं आ रहा था कि ये लोग कर क्या रहे है, इसलिए वो अपना काम बदस्तूर जारी रखे हुई थी। आंखों से गोली मारना, जिसका असर वुल्फ पैक पर तो नही हो रहा था, हां लेकिन नए ताजा रेनोवेट हुये वुल्फ हाउस पर जरूर हो रहा था। बूम की आवाज के साथ विस्फोट होता और जहां विस्फोट होता वहां का इलाका काला पर जाता।

बस कुछ देर की बात थी। उसके बाद जब रूही का जन्नतेदार थप्पड़ पड़ा, फिर तो भारती का दिमाग सुन्न पड़ गया और आंखों से लेजर चलाना तो जैसे भूल चुकी थी। फिर थप्पड़ रुके कहां। मार–मार कर गाल सुजा दिये। इतना थप्पड़ पड़े की गाल की चमरी गायब हो चुकी थी और गाल के दोनो ओर का जबड़ा दिखने लगा था। दर्द इतना की वो बेचारी बेहोश हो गयी। उसकी आंख जब खुली तब दर्द गायब थे और गाल की हल्की चमरी बन गई थी.... आर्यमणि सबको रुकने का इशारा करते.... “हां जी, धीरेन स्वामी की पत्नी और विश्वा देसाई की छोटी लड़की भारती, क्या डींगे हांक रही थी”...

भारती:– द द द देखो आर्यमणि...

आर्यमणि:– जुबान लड़खड़ा रहे है बड़बोली... तू जड़ को गला सकती है, फिर ये प्लास्टिक नही गला पा रही? क्या बोली थी, अकेले ही तूने फेरहिन का शिकर किया, उस से अपने पाऊं चटवाए, जिंदगी का भीख मंगवाया। उसके नवजात बच्चे मिल जाते तो तुझे और मजा आता। तो ले मिल ओजल और इवान से। ये वही नवजात है जिसे तू ढूंढ रही थी। और शायद तूने रूही को पहचाना नहीं, ये फेहरीन की बड़ी बेटी...

रूही:– आर्य, ये औरत मुझे चाहिए...

आर्यमणि:– क्या करोगी? इसे जान से मरोगी क्या?

रूही:– नही बस खेलना है... जबतक तुम पलक से बात करोगे, तब तक मैं खेलूंगी और फिर इसका भी अंत सबके जैसा होगा..

आर्यमणि:– बहुत खूब। इसे दिखाओ की मौत कितना सुकून भरा होता है और जिंदगी कितनी मुश्किल... तुम सब जाओ और खेलो। निशांत और संन्यासी शिवम् सर आप दोनो भी डंपिंग ग्राउंड ही जाइए। यहां मैं और अलबेली जबतक पलक से मुलाकात कर ले।

रूही अपने क्ला को सीधा भारती के पीठ पर घुसाई और अपने क्ला में फसाकर ही भारती को उठा ली और उठाकर ले गयी डंपिंग ग्राउंड के पास। भारती जब अपनी खुली आंखों से डंपिंग ग्राउंड का नजारा देखी तो स्तब्ध रह गयी। उसके सभी लोग पैक होकर बड़े से भूभाग में ढेर की तरह लगे थे। ढेर इतना ऊंचा की सर ऊंचा करके देखना पड़े। यह नजारा देखकर ही उसकी आंखें फैल गयी। वह गिड़गिड़ान लगी। ओजल उसे धक्का देकर मुंह के बल जमीन पर गिराने के बाद, अपना पाऊं उसके मुंह के सामने ले जाते... “चाटकर भीख मांग अपनी जिंदगी की... चल चाट”...

ओजल की आवाज बिलकुल आर्यमणि के आवाज़ से मैच कर रही थी, जो भय की परिचायक थी। उसकी आवाज सुनकर ही भारती उसका पाऊं चाटने लगी। सामने से दो और पाऊं पहुंच गये.... भारती उन सबको चाटती रही और कहती रही.... “मुझे माफ कर दो, मुझे जाने दो। मैं पृथ्वी छोड़कर किसी अन्य ग्रह पर चली जाऊंगी।”...
Fehreen ke teeno bache ruhi,ojhal or iwan aaj apni maa ke khoon ka badla lenge.bharti ki mout itni asaan to nahi honi chahiye
ATI uttam update
भाग:–126


सोलस:– आपकी ये बचकानी कमी कब दूर होगी। आंखों के सामने जो दुश्मन इतना गहरा गड्ढा कर सकता है, वह कहीं और से निकलने की योजना बनाने के बाद ही गड्ढा किया होगा। और तो और वो इस गड्ढे को उतनी ही तेजी से भर भी सकता है।

पलक:– माफ करना सोलस... लेकिन हम उसे भागने नही दे सकते...

सोलस:– वुल्फ अपने पैक के बिना जायेगा कहां। ऊपर से 36 घंटे के लिये आपने उसे पैरालाइज किया है, खुद से तो भाग सकता नही। तो जरूर अपने पैक में से किसी को मदद के लिये बुलायेगा। पीछे चलिए, असली खेल वहीं से होगा। हमारे सैकड़ों लोग जिन्हे हम बचा सकते है, बचा भी लेंगे...

एकलाफ:– ये सोलस तो आम सा एक सदस्य है, फिर तुम इसकी क्यों सुन रही?

पलक:– क्योंकि ये मुझे सुनाने के काबिल है और मेरे मुंह पर सुनाने की हिम्मत रखता है, इसलिए सुन रही हुं। सबको धैर्य से सुनती हूं इसलिए बहुत से नतीजों पर पहुंचती हूं। सोलस डायनिंग टेबल पर रखा लैपटॉप उठाओ और इसे खोलकर अंदर की जानकारी लो। आर्य भाग गया है, हमारे हाथ न लगा। पता न कब बाजी पलट दे, कम से कम उसका ट्रैपर हम इस्तमाल कर पाये तो हाथ से निकली बाजी भी वापिस आ जायेगी...

सोलस:– जैसा आप कहें मैम.. अब चलिए वरना हम अपने बहुत से लोगों को खो देंगे...

पलक काफी तेजी में निकल ही रही थी कि तभी महा.... “मैं और मेरी टीम क्या करे पलक?”...

पलक:– तुम तो यहां बात–चित के लिये आये थे, बात हो जाये तो चले जाना। यदि बात न हो पाये तो आर्यमणि को लापता घोषित कर देना। हां लेकिन कुछ भी करना पर पीछे मत आना, वरना तुम अपने और अपने टीम की हानी के लिये स्वयं जिम्मेदार रहोगे...

महा:– जैसा आप कहो मैम....

पलक चल दी डंपिंग ग्राउंड पर जहां भारती के साथ सैकड़ों नयजो कांटों की चिता पर लेटे थे और मौत को भी भयभीत करने वाली खौफनाक आवाज केवल भारती निकाल रही थी, बाकी सबके मुंह बंधे थे। पलक की टीम पहले ही वहां पहुंच चुकी थी और पहुंचकर कांटों में फसे लोगों को निकालने की कोशिश करने में जुटी थी।

तेजस और नित्या की तरह ये लोग भी कैद थे। पलक समझ गयी की जो लोग मृत्यु सैल्य पर लेटे हैं, उनका कुछ नही हो सकता.... “तुम लोग बेकार कोशिश कर रहे हो। इन्हे जो जहर दिया गया है वह 8 घंटे बाद किसी को मौत के घाट उतरेगा और जिस जोड़ों में ये फसे है, वो 7 घंटे बाद खुलेगा। कोई अपना है तो उन्हे आखरी बार देख लो और बाकियों को छुड़ा लो। सोलस इनका वुल्फ पैक कहां है? यहां तो कोई भी नजर नहीं आ रहा?

सोलस:– हां मैं भी वही देख रहा हूं। अभी कुछ देर पहले तो यहां थे, अभी कहां चले गये?

पलक:– लैपटॉप देखो तुम... कही थी ना बाजी पलटने वाली बात... वो बाजी पलटने गये है?

सोलस:– मतलब..

पलक:– आर्यमणि के पैरालिसिस को हटाने का उपाय ढूंढने...

सोलस:– इसकी जानकारी उसे नही मिल सकती...

पलक:– इतना विश्वास सेहत के लिये हानिकारक है। तुम लैपटॉप पर काम करो.. उसका पूरा ट्रैप अपने कब्जे में होना चाहिए...

सोलस:– लैपटॉप तो ऑन ही है और स्क्रीन को देखो तो समझ में आ जायेगा की कैसा ट्रैप है।

पलक:– क्या ये लैपटॉप ही मुख्य सर्वर है या ये मात्र इस लैपटॉप से ऑपरेट करते है।

सोलस:– नही ये ऑपरेटिंग लैपटॉप है। सर्वर कहीं और है...

पालक:– कहां है सर्वर... पता करो और पूरा सॉफ्टवेयर अपने कब्जे में लो.. और कोई मुझे बतायेगा, ले लोग गये कहां...

सोलस:– गये कहीं भी हो, बाजी पलटने के लिये वापस जरूर आयेंगे... जैसा आप चाहती थी,जर्मनी में जहां भी मुलाकात हो वो जगह आपके अनुकूल हो... तो ये जगह आपके अनुकूल बन गयी है।

पलक:– तुम कमाल के हो सोलस। जीत के बाद हम कुछ दिन साथ बिताएंगे... लेकिन उस से पहले इस जगह को पूर्णतः अपने अनुकूल बनाओ और मुझे एक शानदार जीत दो... चलो, चलो सभी काम पर लग जाओ...

इसके पूर्व आर्यमणि और अलबेली जब मीटिंग हॉल में थे, तभी दोनो अपने शरीर के अंदर चल रहे रिएक्शंस को भांप चुके थे। पर अफसोस इतना वक्त नहीं मिला की उसपर कुछ कर सकते। कुछ करने या सोचने से पहले ही दोनो पैरालाइज हो चुके थे। बदन भी अजीब तरह से अकड़ गया था। अलबेली जब गिरी तो किसी लोहे की मूर्ति की तरह गिरी।

अलबेली जिस पल नीचे गिरी, आर्यमणि का दिमाग सी कुछ पल के लिये सुन्न पड़ गया। बिलकुल खाली और ब्लैंक होना जिसे कहते हैं। अलबेली की मृत्यु का सदमा जैसे रोम–रोम में दौड़ गया हो। हां लेकिन अगले ही पल सुकून भी था, क्योंकि एकलाफ, अलबेली को काटने के लिये तलवार निकाल रहा था।

आर्यमणि अपने मन के संवाद में.... “बेटा ठीक है?”

अलबेली:– दादा मैं सुरक्षित हूं, बस शरीर बेजान लग रहा। अपनी उंगली तक हिला नही पा रही।

आर्यमणि:– बाद में बात करते है। अभी सुरक्षा मंत्र का मजबूत घेरा बनाओ और वायु विघ्न मंत्र का जाप करती रहो। इन कमीनो के पास वायु की वह शक्ति है, जो सुरक्षा चक्र को तोड़ देगी।

अलबेली:– दादा ये क्या सीधा मारने की योजन बनाकर आयी थी?

आर्यमणि:– जो जैसे करेंगे, उनको वैसा ही लौटाएंगे... बेटा बातें बाद में तुम मंत्र जपना शुरू करो...

अलबेली अपने मन में मंत्र जाप करने लगी वहीं आर्यमणि रूही से संपर्क करते.... “रूही एक समस्या हो गयी है और विस्तार से बताने का वक्त नहीं। जितना कहूं उतना करो..

रूही:– हां जान, बोलो...

आर्यमणि:– मन के अंदर ध्यान लगाओ और अपने पास की जमीन से जड़ों को कमांड दो कम से कम 200 फिट नीचे जाये। वहां से उन जड़ों को, हॉल में जहां मैं बैठा था, वहां के आसपास 3 मीटर के गोल हिस्से में फैलाकर भेजो। मुझे और अलबेली को खींचकर नीचे के गड्ढे को मत भरना। हम जैसे ही वहां पहुंचे, संन्यासी शिवम सर हम सबको लेकर अंतर्ध्यान होने के लिये तैयार रहे।

रूही:– बस एक ही सवाल है, अंतर्ध्यान होकर किस जगह जायेंगे...

आर्यमणि:– कैलाश मठ, आचार्य जी के पास...

फिर कोई बात नही हुई। गंध से अल्फा पैक को खबर लग चुकी थी कि उनके आस–पास बहुत सारे लोग आ रहे है। रूही ने मामला बताया और ध्यान लगा दी। निशांत सबको शांत रहने का इशारा करते, भ्रम जाल पूरा फैला दिया, जिसमे अल्फा पैक अलग–अलग जगह पर खड़े होकर अपने दुश्मनों को देख रहे, जबकि सब साथ में खड़े थे।

इधर रूही ने आर्यमणि और अलबेली को खींचा और उधर संन्यासी शिवम् सबको टेलीपोर्ट करके कैलाश मठ ले गये। आर्यमणि और अलबेली को ऐसे अकड़े देख सबको आश्चर्य हो रहा था। संन्यासी शिवम और आचार्य जी कुछ परीक्षण करने के बाद....

“कुछ दुर्लभ जड़ी–बूटी को श्वान के माध्यम से शरीर में पहुंचाया गया है, जिस वजह से ये दोनो पैरालाइज हैं।”

आर्यमणि, रूही से कहा और रूही आचार्य जी से पूछने लगी.... “आचार्य जी वहां बहुत सारे लोग थे लेकिन इसका असर केवल आर्य और अलबेली पर ही क्यों हुआ?”

आचार्य जी:– इसका एक ही निष्कर्ष निकलता है। वहां जितने भी लोग होंगे वो लोग इस जड़ी बूटी का तोड़ अपने शरीर में पहले से लेकर पहुंचे होंगे। इसलिए उन पर कोई असर नहीं किया। लेकिन एक बात जो मेरे समझ में नहीं आयी, उन लोगों को गुरुदेव या अलबेली के शरीर की इतनी जानकारी कैसे, जो तेजी से हील करने वाले को इतनी मात्रा दे गयी की वो पैरालाइज कर जाये।

रूही:– मैं समझी नहीं आचार्य जी। क्या हमारा हीलिंग सिस्टम इस जहर को हील करने के लिये सक्षम है।

आचार्य जी:– जिसने भी ये जहर दिया है उसे भी पता था कि तुम सबका शरीर इस जहर की एक निश्चित मात्रा को हिल कर लेगा। यही नहीं वह निश्चित मात्र किसी सामान्य इंसान के मुकाबले 1000 गुणा ज्यादा दिया जाये तभी तुम लोग पैरालाइज होगे। इतनी ज्यादा मात्रा देने के बारे में सोचना तभी संभव है, जबतक उसने पहले कोई परीक्षण किया हो..

रूही:– मतलब कोई एक ग्राम जड़ी बूटी को सूंघे तब वो पैरालाइज होगा। लेकिन यदि हमें पैरालाइज करना हो तो मात्रा 1 किलो देना होगा। इतना तो कोई सपने में भी नही सोच सकता। लेकिन आचार्य जी इतनी मात्रा को हवा में उड़ाने की गंध आर्य और अलबेली को क्यों नही हुई...

आचार्य जी:– क्योंकि तुमने एक ग्राम का उधारहन दिया, जबकि ऐसी चीजें आधे मिलीग्राम या एक चौथाई मिलीग्राम में ही काम कर जाति है या उस से भी कम में। मेरे ख्याल से 0.10 मिलीग्राम में एक सामान्य इंसान पैरालाइज करता होगा। गुरुदेव और अलबेली के लिये वह मात्रा 100 मिलीग्राम से 1000 मिलीग्राम के बीच होगी। यानी की 1 ग्राम का दसवां हिस्सा से लेकर एक ग्राम के बीच। इतनी मात्र तो हवा में बड़ी आसानी से फैला सकते है।

रूही:– लेकिन कैसे... हाथ में पाउडर डालकर उड़ाते तो हम सुरक्षा मंत्र का प्रयोग कर लेते...

आचार्य जी:– भूलो मत की जो समुदाय हवा में पाये जाने वाले कण से तीर और भाला बना ले, वो हवा में 100 मिलीग्राम तो क्या तुम जितनी मात्रा बोली हो ना... उसका भी 100 गुना ज्यादा ले लो। यानी की वो लोग एक क्विंटल हवा में घोल देंगे तब भी पता न चलने देंगे। हां लेकिन ऐसा करेंगे नही... क्योंकि इतनी मात्रा का तोड़ वो लोग पहले से लेकर नही घूम सकते। इसलिए पैरालाइज करने वाला जहर दिये निश्चित मात्र में ही होंगे, ताकि उतना डोज के हिसाब से वो लोग अपने बदन के अंदर उसका तोड़ पहले से ले सके।

ओजल:– बॉस के हालत की जिम्मेदार मैं और इवान हैं। हम दोनो 3 दिन के लिये पलक के पास कैद थे।

रूही:– “बहुत शातिर है। वह तुम दोनो (ओजल और इवान) को इसलिए नहीं पकड़ी थी कि हमारे प्लान की इनफॉर्मेशन निकाल सके। बल्कि पूछ–ताछ के वक्त ही वो लोग दवा की निश्चित मात्रा का पता लगा रहे होंगे। इस हिसाब से उन्होंने केवल एक दावा का परीक्षण किया हो, ऐसा मान नही सकती। उन्होंने पहले दिन ही सारा एक्सपेरिमेंट कर लिया होगा। उसके बाद तो महज औपचारिकता बची होगी, कब आर्य तुम्हे छुड़ाए, या वहीं रहने दे, उनका काम तो हो चुका था। पूरे मामले पर कैसा कवर भी चढ़ाया। तुम दोनो (ओजल और इवान) के बहरूपिए को भेज दी। ताकि हमारी सोच किसी और ही दिशा में रहे... पलक, पलक, पलक... इतनी शातिर... हां”

ओह हां यह महत्वपूर्ण बात तो रह गयी थी। जिस दिन बहरूपिया ओजल और इवान जर्मनी पहुंचे थे, उसी दिन असली ओजल और इवान को छुड़ा लिया गया था। उन्हे छुड़ाना कोई बड़ी बात नही थी। अंतर्ध्यान होकर सीधा अड्डे पर पहुंचे। पहले नकली वाले को अपने साथ गायब करके असली वाले के पास ले आये। फिर वहां नकली वाले को फंसाकर असली वाले को लेकर अंतर्ध्यान हो गये।

इतना करने के पीछे एक ही मकसद था कि पलक खुद को एक कदम आगे की सोचते रहे। उसे शुरू से लगता रहे की नकली ओजल और इवान अल्फा पैक के साथ है, और असली पलक के गुप्त स्थान के तहखाने में। लेकिन अब पूरे अल्फा पैक को समझ में आ रहा था कि पलक को असली और नकली से घंटा फर्क नही पड़ना था। उसे जो करना था वो कर चुकी थी।

आर्यमणि:– अभी इतनी समीक्षा क्यों... आचार्य जी से कहो जल्द से जल्द मुझे ठीक करे।

रूही:– आचार्य जी मेरी जान कह रहे है कि आप आराम से उनका उपचार करे, हम खतरे से बहुत दूर आ चुके है।

आचार्य जी:– मैं टेलीपैथी सुन सकता हूं...

रूही:– मतलब...

आचार्य जी:– मतलब मन के अंदर चल रही बात को सुन सकता हूं। लेकिन मुझे जिनसे पूछना चाहिए उनसे पूछता हूं... निशांत, शिवम् क्या करे?

निशांत:– आचार्य जी, आर्य अभी एक अनजाने खतरे से बचकर आया है। हमे नही पता की पलक क्या योजना बनाकर आयी है, और वो कितनी खतरनाक हो सकती है...

संन्यासी शिवम्:– हां तो आज के बाद फिर कभी पलक को जानने का मौका भी नहीं मिलेगा। और सबसे अहम बात, अचानक निकलने के क्रम में हमने अपनी बहुत सी चीजें और जानकारी वुल्फ हाउस में छोड़ दिया है। वोल्फ हाउस में वो लोग जितनी देर छानबीन करेंगे, हमारे बारे में उतना ज्यादा जानेंगे। हमे बिना देर किये जाना चाहिए। आचार्य जी, आयुर्वेदाचार्य को मैं ले आता हूं,जबतक आप यहां मौजूद सभी संन्यासियों को सूचना दीजिए कि उन्हें तुरंत निकलना होगा।

रूही:– शिवम् सर ज्यादा लोग मतलब ज्यादा खतरा...

संन्यासी शिवम मुस्कुराते हुये.... “फिर तुम्हे यहीं रुकना चाहिए।

रूही:– अरे माफ कीजिए सर...

संन्यासी शिवम्:– मैं जब तक आता हूं, तब तक गुरुदेव और अलबेली के मस्तिष्क को हील कीजिए। ध्यान रहे 2 मिनट हील करना है और 1 मिनट का रेस्ट। निशांत ये ध्यान रखना आपकी जिम्मेदारी है।

संन्यासी शिवम् और्वेदाचार्य को लाने के लिये अंतर्ध्यान हो गये। वहीं रूही, ओजल और इवान आर्यमणि और अलबेली का माथा थामे उसे हील करने लगे। जैसे ही 2 मिनट हुआ, निशांत ने तीनो का हाथ हटाया। जबतक हील कर रहे थे तब तक तो पता नही चला लेकिन हाथ हटाते ही तीनो का सर चक्करघिन्नी की तरह नाचने लगा.... “कमिनी वो पलक हील करने के बारे में भी सोच रही होगी। किसी तरह उनसे छिपकर हम आर्य को हील करे और हम भी आर्य की तरह पड़े रहे।”...

निशांत, आर्यमणि के चेहरे पर हाथ फेरते.... “कोई इतनी होशियार महज एक साल में नही हो सकती। ये लड़की पैदाइशी होशियार और सबसे टेढ़ा काम हाथ में लेने वाली लगती है। और आर्य उसके नाक के नीचे से उसे उल्लू बनाकर निकला था। उसके कलेजे में आग तो लगेगी ही। पर दोस्त तूने भी कभी जिक्र नहीं किया की पलक जो दिख रही वो मात्र कवर है।”

रूही:– देवर जी क्या बड़बड़ा रहे हो...

निशांत:– चूहे बिल्ली के खेल में जज नही कर पा रहा की कौन बेहतर है।

रूही:– हमसे साझा करो, शायद मदद कर सके। नही भी कर पाये तो कम से कम 2 बेहतर खिलाड़ी का तो पता चलेगा...

निशांत:– “खिलाड़ी है पलक और आर्य.... आर्य जनता था कि उसे आखरी समय में कोई सरप्राइज जरूर मिलेगा, इसलिए पूरी टीम को 2 हिस्से में बांट दिया। खुद पलक से मिला जबकि हमे दूर रखा। मेरा दिमाग कहता है कि पलक इस वक्त वुल्फ हाउस में ही होगी। जैसे उसे पहले से पता हो की आर्य उसके चंगुल से भागेगा ही।”

“वो बैठकर वुल्फ हाउस में हमारा इंतजार कर रही है, इस उम्मीद में कि उसने जो जहर आर्य को दिया है, उस से किसी न किसी विधि से आर्य पार पा जायेगा। ना पलक आर्य को अभी मारने का सोच रही, और न ही आर्य पलक को अभी मारने का सोच रहा। दोनो बस हर संभावना को देखते हुये जैसे एक दूसरे को परख रहे हो...

रूही:– परख रहे हो का मतलब...शादी करेगी क्या मेरे पति से। उसकी लाश मैं ही गिराऊंगी...

निशांत:– अभी अपने गुस्से को काबू रखिए। हमने नायजो के बारे में जितनी भी जानकारी जुटाई है, वह अधूरी लग रही है। अभी एक ही विनती है आवेश में नही आइएगा... वरना सबकी जान खतरे में पड़ जायेगी..

रूही:– देवर जी मैं अपने और अपने बच्चों की जिम्मेदारी लेती हूं... किसी को भी आवेश में आने नही दूंगी...

लगभग 1 घंटे लग गये। संन्यासी शिवम किसी को लेकर आ रहे थे। इधर जबतक 2 मिनट का हील और एक मिनट का आराम चल रहा था। आयुर्वेदाचार्य जी आर्यमणि और अलबेली के नब्ज को देखे। फिर कुछ औषधि को दोनो के नाक में पूरा ठूंसकर छोड़ दिये। 10 सेकंड बीते होंगे जब आर्यमणि और अलबेली का चेहरा लाल होने लगा। 10 सेकंड और बीते तब माथे पर सिकन आने लगी। और पूरे 30 सेकंड बाद अलबेली और आर्यमणि खांसते हुये उठकर बैठ गये। दोनो को उठकर बैठे देख रूही, ओजल और इवान ऐसे झपटकर गले लगे की पांचों जमीन पर ही बिछ गये।
Aarya or palak ek dusre ko parakh rahe hai.par palak yaha to bazi Jeet gai
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भाग:–126


सोलस:– आपकी ये बचकानी कमी कब दूर होगी। आंखों के सामने जो दुश्मन इतना गहरा गड्ढा कर सकता है, वह कहीं और से निकलने की योजना बनाने के बाद ही गड्ढा किया होगा। और तो और वो इस गड्ढे को उतनी ही तेजी से भर भी सकता है।

पलक:– माफ करना सोलस... लेकिन हम उसे भागने नही दे सकते...

सोलस:– वुल्फ अपने पैक के बिना जायेगा कहां। ऊपर से 36 घंटे के लिये आपने उसे पैरालाइज किया है, खुद से तो भाग सकता नही। तो जरूर अपने पैक में से किसी को मदद के लिये बुलायेगा। पीछे चलिए, असली खेल वहीं से होगा। हमारे सैकड़ों लोग जिन्हे हम बचा सकते है, बचा भी लेंगे...

एकलाफ:– ये सोलस तो आम सा एक सदस्य है, फिर तुम इसकी क्यों सुन रही?

पलक:– क्योंकि ये मुझे सुनाने के काबिल है और मेरे मुंह पर सुनाने की हिम्मत रखता है, इसलिए सुन रही हुं। सबको धैर्य से सुनती हूं इसलिए बहुत से नतीजों पर पहुंचती हूं। सोलस डायनिंग टेबल पर रखा लैपटॉप उठाओ और इसे खोलकर अंदर की जानकारी लो। आर्य भाग गया है, हमारे हाथ न लगा। पता न कब बाजी पलट दे, कम से कम उसका ट्रैपर हम इस्तमाल कर पाये तो हाथ से निकली बाजी भी वापिस आ जायेगी...

सोलस:– जैसा आप कहें मैम.. अब चलिए वरना हम अपने बहुत से लोगों को खो देंगे...

पलक काफी तेजी में निकल ही रही थी कि तभी महा.... “मैं और मेरी टीम क्या करे पलक?”...

पलक:– तुम तो यहां बात–चित के लिये आये थे, बात हो जाये तो चले जाना। यदि बात न हो पाये तो आर्यमणि को लापता घोषित कर देना। हां लेकिन कुछ भी करना पर पीछे मत आना, वरना तुम अपने और अपने टीम की हानी के लिये स्वयं जिम्मेदार रहोगे...

महा:– जैसा आप कहो मैम....

पलक चल दी डंपिंग ग्राउंड पर जहां भारती के साथ सैकड़ों नयजो कांटों की चिता पर लेटे थे और मौत को भी भयभीत करने वाली खौफनाक आवाज केवल भारती निकाल रही थी, बाकी सबके मुंह बंधे थे। पलक की टीम पहले ही वहां पहुंच चुकी थी और पहुंचकर कांटों में फसे लोगों को निकालने की कोशिश करने में जुटी थी।

तेजस और नित्या की तरह ये लोग भी कैद थे। पलक समझ गयी की जो लोग मृत्यु सैल्य पर लेटे हैं, उनका कुछ नही हो सकता.... “तुम लोग बेकार कोशिश कर रहे हो। इन्हे जो जहर दिया गया है वह 8 घंटे बाद किसी को मौत के घाट उतरेगा और जिस जोड़ों में ये फसे है, वो 7 घंटे बाद खुलेगा। कोई अपना है तो उन्हे आखरी बार देख लो और बाकियों को छुड़ा लो। सोलस इनका वुल्फ पैक कहां है? यहां तो कोई भी नजर नहीं आ रहा?

सोलस:– हां मैं भी वही देख रहा हूं। अभी कुछ देर पहले तो यहां थे, अभी कहां चले गये?

पलक:– लैपटॉप देखो तुम... कही थी ना बाजी पलटने वाली बात... वो बाजी पलटने गये है?

सोलस:– मतलब..

पलक:– आर्यमणि के पैरालिसिस को हटाने का उपाय ढूंढने...

सोलस:– इसकी जानकारी उसे नही मिल सकती...

पलक:– इतना विश्वास सेहत के लिये हानिकारक है। तुम लैपटॉप पर काम करो.. उसका पूरा ट्रैप अपने कब्जे में होना चाहिए...

सोलस:– लैपटॉप तो ऑन ही है और स्क्रीन को देखो तो समझ में आ जायेगा की कैसा ट्रैप है।

पलक:– क्या ये लैपटॉप ही मुख्य सर्वर है या ये मात्र इस लैपटॉप से ऑपरेट करते है।

सोलस:– नही ये ऑपरेटिंग लैपटॉप है। सर्वर कहीं और है...

पालक:– कहां है सर्वर... पता करो और पूरा सॉफ्टवेयर अपने कब्जे में लो.. और कोई मुझे बतायेगा, ले लोग गये कहां...

सोलस:– गये कहीं भी हो, बाजी पलटने के लिये वापस जरूर आयेंगे... जैसा आप चाहती थी,जर्मनी में जहां भी मुलाकात हो वो जगह आपके अनुकूल हो... तो ये जगह आपके अनुकूल बन गयी है।

पलक:– तुम कमाल के हो सोलस। जीत के बाद हम कुछ दिन साथ बिताएंगे... लेकिन उस से पहले इस जगह को पूर्णतः अपने अनुकूल बनाओ और मुझे एक शानदार जीत दो... चलो, चलो सभी काम पर लग जाओ...

इसके पूर्व आर्यमणि और अलबेली जब मीटिंग हॉल में थे, तभी दोनो अपने शरीर के अंदर चल रहे रिएक्शंस को भांप चुके थे। पर अफसोस इतना वक्त नहीं मिला की उसपर कुछ कर सकते। कुछ करने या सोचने से पहले ही दोनो पैरालाइज हो चुके थे। बदन भी अजीब तरह से अकड़ गया था। अलबेली जब गिरी तो किसी लोहे की मूर्ति की तरह गिरी।

अलबेली जिस पल नीचे गिरी, आर्यमणि का दिमाग सी कुछ पल के लिये सुन्न पड़ गया। बिलकुल खाली और ब्लैंक होना जिसे कहते हैं। अलबेली की मृत्यु का सदमा जैसे रोम–रोम में दौड़ गया हो। हां लेकिन अगले ही पल सुकून भी था, क्योंकि एकलाफ, अलबेली को काटने के लिये तलवार निकाल रहा था।

आर्यमणि अपने मन के संवाद में.... “बेटा ठीक है?”

अलबेली:– दादा मैं सुरक्षित हूं, बस शरीर बेजान लग रहा। अपनी उंगली तक हिला नही पा रही।

आर्यमणि:– बाद में बात करते है। अभी सुरक्षा मंत्र का मजबूत घेरा बनाओ और वायु विघ्न मंत्र का जाप करती रहो। इन कमीनो के पास वायु की वह शक्ति है, जो सुरक्षा चक्र को तोड़ देगी।

अलबेली:– दादा ये क्या सीधा मारने की योजन बनाकर आयी थी?

आर्यमणि:– जो जैसे करेंगे, उनको वैसा ही लौटाएंगे... बेटा बातें बाद में तुम मंत्र जपना शुरू करो...

अलबेली अपने मन में मंत्र जाप करने लगी वहीं आर्यमणि रूही से संपर्क करते.... “रूही एक समस्या हो गयी है और विस्तार से बताने का वक्त नहीं। जितना कहूं उतना करो..

रूही:– हां जान, बोलो...

आर्यमणि:– मन के अंदर ध्यान लगाओ और अपने पास की जमीन से जड़ों को कमांड दो कम से कम 200 फिट नीचे जाये। वहां से उन जड़ों को, हॉल में जहां मैं बैठा था, वहां के आसपास 3 मीटर के गोल हिस्से में फैलाकर भेजो। मुझे और अलबेली को खींचकर नीचे के गड्ढे को मत भरना। हम जैसे ही वहां पहुंचे, संन्यासी शिवम सर हम सबको लेकर अंतर्ध्यान होने के लिये तैयार रहे।

रूही:– बस एक ही सवाल है, अंतर्ध्यान होकर किस जगह जायेंगे...

आर्यमणि:– कैलाश मठ, आचार्य जी के पास...

फिर कोई बात नही हुई। गंध से अल्फा पैक को खबर लग चुकी थी कि उनके आस–पास बहुत सारे लोग आ रहे है। रूही ने मामला बताया और ध्यान लगा दी। निशांत सबको शांत रहने का इशारा करते, भ्रम जाल पूरा फैला दिया, जिसमे अल्फा पैक अलग–अलग जगह पर खड़े होकर अपने दुश्मनों को देख रहे, जबकि सब साथ में खड़े थे।

इधर रूही ने आर्यमणि और अलबेली को खींचा और उधर संन्यासी शिवम् सबको टेलीपोर्ट करके कैलाश मठ ले गये। आर्यमणि और अलबेली को ऐसे अकड़े देख सबको आश्चर्य हो रहा था। संन्यासी शिवम और आचार्य जी कुछ परीक्षण करने के बाद....

“कुछ दुर्लभ जड़ी–बूटी को श्वान के माध्यम से शरीर में पहुंचाया गया है, जिस वजह से ये दोनो पैरालाइज हैं।”

आर्यमणि, रूही से कहा और रूही आचार्य जी से पूछने लगी.... “आचार्य जी वहां बहुत सारे लोग थे लेकिन इसका असर केवल आर्य और अलबेली पर ही क्यों हुआ?”

आचार्य जी:– इसका एक ही निष्कर्ष निकलता है। वहां जितने भी लोग होंगे वो लोग इस जड़ी बूटी का तोड़ अपने शरीर में पहले से लेकर पहुंचे होंगे। इसलिए उन पर कोई असर नहीं किया। लेकिन एक बात जो मेरे समझ में नहीं आयी, उन लोगों को गुरुदेव या अलबेली के शरीर की इतनी जानकारी कैसे, जो तेजी से हील करने वाले को इतनी मात्रा दे गयी की वो पैरालाइज कर जाये।

रूही:– मैं समझी नहीं आचार्य जी। क्या हमारा हीलिंग सिस्टम इस जहर को हील करने के लिये सक्षम है।

आचार्य जी:– जिसने भी ये जहर दिया है उसे भी पता था कि तुम सबका शरीर इस जहर की एक निश्चित मात्रा को हिल कर लेगा। यही नहीं वह निश्चित मात्र किसी सामान्य इंसान के मुकाबले 1000 गुणा ज्यादा दिया जाये तभी तुम लोग पैरालाइज होगे। इतनी ज्यादा मात्रा देने के बारे में सोचना तभी संभव है, जबतक उसने पहले कोई परीक्षण किया हो..

रूही:– मतलब कोई एक ग्राम जड़ी बूटी को सूंघे तब वो पैरालाइज होगा। लेकिन यदि हमें पैरालाइज करना हो तो मात्रा 1 किलो देना होगा। इतना तो कोई सपने में भी नही सोच सकता। लेकिन आचार्य जी इतनी मात्रा को हवा में उड़ाने की गंध आर्य और अलबेली को क्यों नही हुई...

आचार्य जी:– क्योंकि तुमने एक ग्राम का उधारहन दिया, जबकि ऐसी चीजें आधे मिलीग्राम या एक चौथाई मिलीग्राम में ही काम कर जाति है या उस से भी कम में। मेरे ख्याल से 0.10 मिलीग्राम में एक सामान्य इंसान पैरालाइज करता होगा। गुरुदेव और अलबेली के लिये वह मात्रा 100 मिलीग्राम से 1000 मिलीग्राम के बीच होगी। यानी की 1 ग्राम का दसवां हिस्सा से लेकर एक ग्राम के बीच। इतनी मात्र तो हवा में बड़ी आसानी से फैला सकते है।

रूही:– लेकिन कैसे... हाथ में पाउडर डालकर उड़ाते तो हम सुरक्षा मंत्र का प्रयोग कर लेते...

आचार्य जी:– भूलो मत की जो समुदाय हवा में पाये जाने वाले कण से तीर और भाला बना ले, वो हवा में 100 मिलीग्राम तो क्या तुम जितनी मात्रा बोली हो ना... उसका भी 100 गुना ज्यादा ले लो। यानी की वो लोग एक क्विंटल हवा में घोल देंगे तब भी पता न चलने देंगे। हां लेकिन ऐसा करेंगे नही... क्योंकि इतनी मात्रा का तोड़ वो लोग पहले से लेकर नही घूम सकते। इसलिए पैरालाइज करने वाला जहर दिये निश्चित मात्र में ही होंगे, ताकि उतना डोज के हिसाब से वो लोग अपने बदन के अंदर उसका तोड़ पहले से ले सके।

ओजल:– बॉस के हालत की जिम्मेदार मैं और इवान हैं। हम दोनो 3 दिन के लिये पलक के पास कैद थे।

रूही:– “बहुत शातिर है। वह तुम दोनो (ओजल और इवान) को इसलिए नहीं पकड़ी थी कि हमारे प्लान की इनफॉर्मेशन निकाल सके। बल्कि पूछ–ताछ के वक्त ही वो लोग दवा की निश्चित मात्रा का पता लगा रहे होंगे। इस हिसाब से उन्होंने केवल एक दावा का परीक्षण किया हो, ऐसा मान नही सकती। उन्होंने पहले दिन ही सारा एक्सपेरिमेंट कर लिया होगा। उसके बाद तो महज औपचारिकता बची होगी, कब आर्य तुम्हे छुड़ाए, या वहीं रहने दे, उनका काम तो हो चुका था। पूरे मामले पर कैसा कवर भी चढ़ाया। तुम दोनो (ओजल और इवान) के बहरूपिए को भेज दी। ताकि हमारी सोच किसी और ही दिशा में रहे... पलक, पलक, पलक... इतनी शातिर... हां”

ओह हां यह महत्वपूर्ण बात तो रह गयी थी। जिस दिन बहरूपिया ओजल और इवान जर्मनी पहुंचे थे, उसी दिन असली ओजल और इवान को छुड़ा लिया गया था। उन्हे छुड़ाना कोई बड़ी बात नही थी। अंतर्ध्यान होकर सीधा अड्डे पर पहुंचे। पहले नकली वाले को अपने साथ गायब करके असली वाले के पास ले आये। फिर वहां नकली वाले को फंसाकर असली वाले को लेकर अंतर्ध्यान हो गये।

इतना करने के पीछे एक ही मकसद था कि पलक खुद को एक कदम आगे की सोचते रहे। उसे शुरू से लगता रहे की नकली ओजल और इवान अल्फा पैक के साथ है, और असली पलक के गुप्त स्थान के तहखाने में। लेकिन अब पूरे अल्फा पैक को समझ में आ रहा था कि पलक को असली और नकली से घंटा फर्क नही पड़ना था। उसे जो करना था वो कर चुकी थी।

आर्यमणि:– अभी इतनी समीक्षा क्यों... आचार्य जी से कहो जल्द से जल्द मुझे ठीक करे।

रूही:– आचार्य जी मेरी जान कह रहे है कि आप आराम से उनका उपचार करे, हम खतरे से बहुत दूर आ चुके है।

आचार्य जी:– मैं टेलीपैथी सुन सकता हूं...

रूही:– मतलब...

आचार्य जी:– मतलब मन के अंदर चल रही बात को सुन सकता हूं। लेकिन मुझे जिनसे पूछना चाहिए उनसे पूछता हूं... निशांत, शिवम् क्या करे?

निशांत:– आचार्य जी, आर्य अभी एक अनजाने खतरे से बचकर आया है। हमे नही पता की पलक क्या योजना बनाकर आयी है, और वो कितनी खतरनाक हो सकती है...

संन्यासी शिवम्:– हां तो आज के बाद फिर कभी पलक को जानने का मौका भी नहीं मिलेगा। और सबसे अहम बात, अचानक निकलने के क्रम में हमने अपनी बहुत सी चीजें और जानकारी वुल्फ हाउस में छोड़ दिया है। वोल्फ हाउस में वो लोग जितनी देर छानबीन करेंगे, हमारे बारे में उतना ज्यादा जानेंगे। हमे बिना देर किये जाना चाहिए। आचार्य जी, आयुर्वेदाचार्य को मैं ले आता हूं,जबतक आप यहां मौजूद सभी संन्यासियों को सूचना दीजिए कि उन्हें तुरंत निकलना होगा।

रूही:– शिवम् सर ज्यादा लोग मतलब ज्यादा खतरा...

संन्यासी शिवम मुस्कुराते हुये.... “फिर तुम्हे यहीं रुकना चाहिए।

रूही:– अरे माफ कीजिए सर...

संन्यासी शिवम्:– मैं जब तक आता हूं, तब तक गुरुदेव और अलबेली के मस्तिष्क को हील कीजिए। ध्यान रहे 2 मिनट हील करना है और 1 मिनट का रेस्ट। निशांत ये ध्यान रखना आपकी जिम्मेदारी है।

संन्यासी शिवम् और्वेदाचार्य को लाने के लिये अंतर्ध्यान हो गये। वहीं रूही, ओजल और इवान आर्यमणि और अलबेली का माथा थामे उसे हील करने लगे। जैसे ही 2 मिनट हुआ, निशांत ने तीनो का हाथ हटाया। जबतक हील कर रहे थे तब तक तो पता नही चला लेकिन हाथ हटाते ही तीनो का सर चक्करघिन्नी की तरह नाचने लगा.... “कमिनी वो पलक हील करने के बारे में भी सोच रही होगी। किसी तरह उनसे छिपकर हम आर्य को हील करे और हम भी आर्य की तरह पड़े रहे।”...

निशांत, आर्यमणि के चेहरे पर हाथ फेरते.... “कोई इतनी होशियार महज एक साल में नही हो सकती। ये लड़की पैदाइशी होशियार और सबसे टेढ़ा काम हाथ में लेने वाली लगती है। और आर्य उसके नाक के नीचे से उसे उल्लू बनाकर निकला था। उसके कलेजे में आग तो लगेगी ही। पर दोस्त तूने भी कभी जिक्र नहीं किया की पलक जो दिख रही वो मात्र कवर है।”

रूही:– देवर जी क्या बड़बड़ा रहे हो...

निशांत:– चूहे बिल्ली के खेल में जज नही कर पा रहा की कौन बेहतर है।

रूही:– हमसे साझा करो, शायद मदद कर सके। नही भी कर पाये तो कम से कम 2 बेहतर खिलाड़ी का तो पता चलेगा...

निशांत:– “खिलाड़ी है पलक और आर्य.... आर्य जनता था कि उसे आखरी समय में कोई सरप्राइज जरूर मिलेगा, इसलिए पूरी टीम को 2 हिस्से में बांट दिया। खुद पलक से मिला जबकि हमे दूर रखा। मेरा दिमाग कहता है कि पलक इस वक्त वुल्फ हाउस में ही होगी। जैसे उसे पहले से पता हो की आर्य उसके चंगुल से भागेगा ही।”

“वो बैठकर वुल्फ हाउस में हमारा इंतजार कर रही है, इस उम्मीद में कि उसने जो जहर आर्य को दिया है, उस से किसी न किसी विधि से आर्य पार पा जायेगा। ना पलक आर्य को अभी मारने का सोच रही, और न ही आर्य पलक को अभी मारने का सोच रहा। दोनो बस हर संभावना को देखते हुये जैसे एक दूसरे को परख रहे हो...

रूही:– परख रहे हो का मतलब...शादी करेगी क्या मेरे पति से। उसकी लाश मैं ही गिराऊंगी...

निशांत:– अभी अपने गुस्से को काबू रखिए। हमने नायजो के बारे में जितनी भी जानकारी जुटाई है, वह अधूरी लग रही है। अभी एक ही विनती है आवेश में नही आइएगा... वरना सबकी जान खतरे में पड़ जायेगी..

रूही:– देवर जी मैं अपने और अपने बच्चों की जिम्मेदारी लेती हूं... किसी को भी आवेश में आने नही दूंगी...

लगभग 1 घंटे लग गये। संन्यासी शिवम किसी को लेकर आ रहे थे। इधर जबतक 2 मिनट का हील और एक मिनट का आराम चल रहा था। आयुर्वेदाचार्य जी आर्यमणि और अलबेली के नब्ज को देखे। फिर कुछ औषधि को दोनो के नाक में पूरा ठूंसकर छोड़ दिये। 10 सेकंड बीते होंगे जब आर्यमणि और अलबेली का चेहरा लाल होने लगा। 10 सेकंड और बीते तब माथे पर सिकन आने लगी। और पूरे 30 सेकंड बाद अलबेली और आर्यमणि खांसते हुये उठकर बैठ गये। दोनो को उठकर बैठे देख रूही, ओजल और इवान ऐसे झपटकर गले लगे की पांचों जमीन पर ही बिछ गये।
Hero hee lapet Diya chalo acha hee h jyada mitha bhi kadwa hota h .. samne wale bhi to maarne ko h soch palak aur aarya ki same si h but ab writer Saab ki marji h jo palak ko jinda rakhna chahte h 🤣🤣. Dusri bhabhi banane k chakkar me to nhi ho na sir ji vaise roohi ka character uske aage bhut kam h agar taakat k maamle me dekha jaye but very nice bro
 

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I love Fantasy and Sci-fiction story.
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भाग:–124


भारती, फोन लाइन काटती... “भार में गया सुरंग से जाना, अब तो सीधा सामने से घुसेंगे।”

पलक:– ये भूल कर रही हो। वह पहले से तैयारी करके बैठा है। अभी–अभी उसने हमारे 200 शिकारी को गायब कर दिया। हमारा एक भी बग अब तक ये पता नही लगा पाया की आखिर उसने महल में और उसके आस–पास कैसा ट्रैप बिछा रखा है?

भारती:– तुम अब भी नही समझ पायी की कैसा ट्रैप है तो तुम बेवकूफ हो। जो वेयरवोल्फ कमाल के हिलर हो और कभी किसी इंसान को जाने–अनजाने में अपनी बाइट से अपने जैसा वेयरवोल्फ न बनाया हो, वह पेड़–पौधों तक हील कर सकते हैं। इसके बदले उन्हें एक अनोखी शक्ति मिलती है, अपने क्ला से वो कहीं भी जड़ों को निकाल सकते है। लोगों को उन जड़ों में फसा सकते है। और ये आर्यमणि तो खुद को प्योर अल्फा कहता है, इसका मतलब समझती हो?

पलक:– क्या?

भारती:– “इसके काटने या नाखून से छीलने पर भी कोई वेयरवॉल्फ नही बनेगा। इसके पैक के जितने भी लोगों ने ब्लड ओथ लिया होगा, उन सब में ये गुण पाये जायेंगे। लेकिन ये लोग एक बात नही जानते की मैं निजी तौर पर ऐसे ही एक वेयरवोल्फ से निपट चुकी हूं, नाम था अल्फा हीलर फेहरीन।”

“इन्हे क्या पता कैसे मैने अकेले ही फहरीन को धूल चटाकर उसके पैक को खत्म की थी। इन चूतियो को क्या पता की फेहरिन जैसे मेरे पाऊं को चाटकर जिंदा छोड़ने की भीख मांगी थी, और मैने मौत दिया था। बस अफसोस की उसके बच्चे नही मिले, जिसके लिये वो गिड़गिड़ाई थी, वरना उसे तड़पाने में और भी ज्यादा मजा आता। इन चूजों (अल्फा पैक) को अपने नई शक्ति पर कूदने दो। जब मेरे शिकारी उनके जड़ों के तिलिस्म को तोड़ेंगे तब उन्हे पता चलेगा...

पलक अपने मन में सोचती..... “हरामजादी अपनी बहन को तो जड़ों के बीच से निकाल नही पायी, यहां डींगे हांकती है। जा तू फसने, तुझे भी तेरी बहन जैसी मौत मिले”.... “क्या हुआ किस सोच में पड़ गयी।”.... पलक अपने विचार में इस कदर खो गयी की वह भारती की बात पर कुछ बोली ही नही। भारती ने जब उसे टोका तब अपने विचारों के सागर से बाहर आती..... “मैं तो ख्यालों में थी कि कैसे आर्यमणि तुम्हारे सामने गिड़गिड़ा रहा है।”

भारती:– पहले उस कमीने आर्यमणि को धूल चटा दूं, फिर तुम भी उसका गिड़गिड़ाना देख लेना। चलो अब हम चलते हैं।

भारती का एक इशारा हुआ। आधे घंटे में तो जैसे वहां जन सैलाब आ गया था। 400 महा की टीम और 200 नायजो को छोड़कर 800 की टुकड़ी के साथ भारती कूच कर गयी। सभी प्रथम श्रेणी के नायजो भारती के साथ चल रहे थे। भारती हर कदम चलती अपने लोगों में जोश का अंगार भरती उनका हौसला बुलंद कर रही थी।

वहीं अल्फा पैक आराम से अपने डायनिंग टेबल पर अंगूर खाते उन्हे आते हुये देख रहा था।..... “जे मायला... इन्हे सुरंग के अंदर दबाने की योजना अब सपना हो गया।”

आर्यमणि:– अलबेली, खुद पर भरोसा करो और दुश्मन को कभी भी...

अलबेली:– कमजोर नही समझना चाहिए... चलो मेरे होने वाले सैयां (इवान), और मेरी ननद (ओजल) इन्हे पैक किया जाये।

आर्यमणि:– नही, बाहर किसी को पैक मत करना। सब अंदर आते जायेंगे और पैक होते जायेंगे। पैकिंग का काम रूही, संन्यासी शिवम सर और निशांत देखेंगे... तुम तीनो दरवाजे की भिड़ को पीछे ट्रांसफर करोगे..

ओजल, छोटा सा मुंह बनाती.... “जीजाजी नही... कितना हम दौड़ते रहेंगे।”

रूही:– ओ जीजाजी की प्यारी समझदार साली, किसने कहा पैक लोगों को कंधे पर उठाकर दौड़ लगाओ।

अलबेली:– फिर कैसे करेंगे...

रूही:– जड़ों में लपेटो और उन्हे सीधा वुल्फ हाउस के पीछे पटको...

इवान:– नाना.. हम तीनो मिलकर जड़ों का स्कैलेटर बनायेंगे।(वह सीढ़ी जो मशीन के दम पर अपने आप चलती है।) आओ पैक हो और स्केलेटर से ट्रांसफर होते जाओ।

अलबेली:– पर बनायेंगे कैसे... गोल घूमने वाले बॉल–बेयरिंग कहां से लाओगे..

ओजल:– वो भी हम जड़ों का बना लेंगे, सोचो तो क्या नही हो सकता...

अलबेली:– हां तो ठीक है शुरू कर दो...

तीनो ने मिलकर जड़ों को कमांड दिया। दिमाग में चित्रण किया और दिमाग का चित्रण धरातल पर नजर आने लगा। 5 फिट चौड़ा और 600 मीटर लंबा स्कैलेटर तैयार था, जो बड़े से हॉल से होते हुये नीचे के विभिन्न हिस्सों से गुजरते, पीछे जंगल तक जा रहा था। पीछे का हिस्सा, वुल्फ हाउस से तकरीबन 4 किलोमीटर दूरी तक, सब आर्यमणि की निजी संपत्ति थी। हां जंगल विभाग की केवल एक शर्त थी, जंगल का स्वरूप बदले नही।

आर्यमणि ने जंगल का स्वरूप नही बदला। पीछे का पूरा इलाका तो जंगल ही था, लेकिन वुल्फ हाउस की निजी संपत्ति की सीमा पर चारो ओर से 40 फिट की ऊंची–ऊंची झाड़ की दीवार बन गयी थी। एक मात्र आगे का हिस्से से ही वुल्फ हाउस में सीधा प्रवेश कर सकते थे। पिछले हिस्सें को शायद आर्यमणि ने इसलिए भी घेर दिया था ताकि स्थानीय लोग वहां चल रहे गतिविधि को देख ना पाये। खासकर उस जंगल के रेंजर मैक्स और उसकी टीम।

वुल्फ हाउस की दहलीज जहां पर खतरा लिखा था, उस से तकरीबन 400 मीटर अंदर वुल्फ हाउस का प्रांगण शुरू होता था। वोल्फ हाउस किसी महल से कम नही था जो 4000 स्क्वायर मीटर में बना था। जैसे ही वुल्फ हाउस के प्रांगण में घुसे सभी नायजो फैल गये। घर में चारो ओर से घुसने के लिये पूरी भिड़ कई दिशा में बंट गयी। सामने से केवल भारती और उसके 200 प्रथम श्रेणी के गुर्गे प्रवेश करते। प्रवेश द्वार पर खड़ी होकर भारती ने हुंकार भरा... “आगे बढ़ो और सबको तबाह कर डालो, बस मारना मत किसी को।”

भारती की हुंकार और 16 फिट चौड़ा उस मुख्य दरवाजे से सभी नायजो घुसने लगे। भारती जब प्रवेश द्वार पर पहुंची थी, तब आंखों के सामने ही बड़े से हॉल में पूरा अल्फा पैक अंगूर खाते नजर आ रहा था। भारती का इशारा होते ही नायजो चिल्लाते हुये ऐसे भिड़ लगाकर दौड़े की भारती को हॉल के अंदर का दिखना बंद हो गया।

जो नायजो चिल्लाते और चंघारते प्रवेश द्वार के अंदर घुस रहे थे, उनका चिल्लाना पल भर में शांत हो जाता। जिस प्रकार टीवी के एक विज्ञापन में ऑल–आउट नामक प्रोडक्ट को चपाक–चपाक मच्छर पकड़े दिखाते है, ठीक उसी प्रकार नायजो की भी वो प्लास्टिक अपने सिंकांगे में ऐसा सिकोड़ लेती की उनकी हड्डियां तक कड़कड़ाकर सिकोड़ने पर मजबूर हो जाती।

हां वो अलग बात थी कि जो नियम नाक पर लागू होते थे... अर्थात वह प्लास्टिक जब सिकोड़ना शुरू करेगी और नाक पर कोई सतह न होने की वजह से वह प्लास्टिक सिकोडकर नाक के छेद के आकार से टूट जायेगी और उसके बाहरी और भीतरी दीवार से जाकर चिपकेगी। ठीक उसी प्रकार से मुंह पर भी हुआ। नाक से स्वांस लेने के अलावा मुंह से चीख भी निकल रही थी। चीख जो हड्डियां कड़कने, अपने सभी मांशपेशियों को पूरी तरह से सिकुड़ जाने और खुद को कैद में जानकर एक अनजाने भय में निकल रही थी।

हो यह रहा था की एक साथ 10 लोग अंदर घुसते। घुसते वक्त युद्ध की ललकार और गुस्से की चींख होती और घुसते ही चीख दर्द और भय में तब्दील हो जाती। 10 के दर्द से चीखने की संख्या हर पल बढ़ रही थी, क्योंकि एलियन हॉल में लगातार प्रवेश कर रहे थे और प्रवेश करने के साथ ही चिपक रहे थे।

आर्यमणि:– छोटे यह बताना भूल गया की इनका मुंह भी पैक नही होता। अल्फा पैक के सभी वोल्फ, पैक हुये समान का मुंह तुम सब मैनुअल पैक करो। बाकी निशांत और शिवम् सर उन सबको पैक करेंगे...

रूही:– हुंह... और तुम डायनिंग टेबल पर टांग पर टांग चढ़ाकर गपागप अंगूर खाते रहो।

आर्यमणि:– जल्दी जल्दी काम करो... उसके बाद का इनाम सुनकर यदि तुम खुश ना हुई तो फिर कहना...

रूही:– मैं खुश ना हुई न आर्य तो तुम सोच लेना... चलो बच्चों मालिक का हुकुम बजा दे..

अब भीड़ आ रही थी और पैक होकर खामोशी से स्कैलेटर पर लोड होकर पीछे डंपिंग ग्राउंड में फेंका जा रहा था।

घर के दाएं, बाएं और पीछे से जो लोग घुसने की कोशिश कर रहे थे, वो सब एक कमांड में ही पैक होकर जमीन पर गिरे थे।.... “आर्य घर के दाएं, बाएं और पीछे के इलाकों पर पैकेज बिछ गये है। जाओ उन्हे बिनकर (पकड़कर) डंपिंग ग्राउंड में फेंक देना। ओह हां और सबके मुंह भी पैक कर देना। अभी तो भीड़ की ललकार में उस औरत (भारती) को समझ में न आ रहा की दाएं, बाएं और पिछे से उसके लोग चिल्ला रहे। लेकिन कुछ ही देर में सब जान जाएंगे।”

“ऐसे कैसे जान जायेंगे”.... निशांत की बात का जवाब देते आर्यमणि सीधा होकर बैठा और अपने लैपटॉप की स्क्रीन को एक बार देखकर अपनी आंखें मूंद लिया। देखते ही देखते जमीन पर पैक होकर पड़े सभी 600 नायजो का मुंह पैक हो चुका था और अगले 5 सेकंड में सभी नायजो को जड़ों में लपेट कर डंपिंग ग्राउंड पर फेंक दिया गया।

वहां का सीन कुछ ऐसा था.... भारती सामने से 200 लोगों को लेकर वुल्फ हाउस के प्रवेश द्वार पर पहुंची और बाकी के 600 लोग दाएं, बाएं और पिछे से घुसने की कोशिश करने वाले थे। जिस पल भारती प्रवेश द्वार के सामने पहुंची, ठीक उसी पल एक छोटे से कमांड पर घर के चारो ओर फैले नायजो पैक हो चुके थे। प्रवेश द्वार से 200 नायजो चिल्लाते हुऐ अंदर प्रवेश कर रहे थे और पैक होकर सीधा स्कैलेटर पर लोड हो जाते।

मात्र 10 सेकंड का यह पूरा मामला बना, जब आर्यमणि ने बिना वक्त गवाए बाहर की भिड़ को एक साथ डंपिंग ग्राउंड पर फेंक दिया। वहीं घर के अंदर घुस रहे लोग स्कैलेटर पर लोड होकर डंपिंग ग्राउंड तक पहुंच रहे थे। 16 फिट चौड़ा दरवाजे से आखिर 200 लोगों को अंदर घुसने में समय ही कितना लगेगा... एक मिनट, या उस से भी कम।

भीर जब छंटी तब चिल्लाने की आवाज भी घटती चली गयी और बड़े से हॉल में जब भारती ने देखा तब वहां भीर का नामो–निशान तक नही। बस दरवाजे पर मुट्ठी भर लोग होंगे जो एक बार चिल्लाए और अंदर का नजारा देखकर उनकी चीख मूंह में ही रह गयी। परिस्थिति को देखते हुये वो लोग उल्टे पांव दौड़ना शुरू कर दिये। उन भागते लोगों में भारती भी थी। सभी के पाऊं में जड़ फसा। सब के सब मुंह के बल गिरे और अगले ही पल घर के अंदर। जड़ें उन्हे खींचते हुये जैसे ही हॉल के अंदर लेकर आयी, हॉल के प्रवेश द्वार से लेकर आर्यमणि तक पहुंचने के बीच सभी प्लास्टिक में पैक थे। इधर खुन्नस खाये अल्फा टीम के सदस्य बिना वक्त गवाए उन्होंने भी सबके मुंह को चिपका दिया।

आर्यमणि:– अब ये क्या है... इन लोगों को तो पैक न करते। और तुम सब में इतनी तेजी कहां से आ गयी की मुझ तक पहुंचने से पहले सबका मुंह पैक कर दिये।

रूही:– जिसे तुम तेजी कह रहे, उसे खुन्नस कहते हैं।

आर्यमणि:– पर खुन्नस किस बात का...

रूही:– तुम्हारा टांग पर टांग..

आर्यमणि:– बस रे, काम खत्म करने दो पहले। वैसे मैंने एक ऑडियो को हेड फोन लगाकर सुना था, क्या तुम में से कोई उसे सुनना चाहेगा...

अलबेली:– बॉस जितना लहराकर आप अपनी बात खत्म करते हो, उतने देर में 100 कुत्ते पैक होकर डंपिंग ग्राउंड पहुंच चुके होते हैं। जल्दी सुनाओ वरना आगे का काम देखो...

आर्यमणि मुस्कुराकर वह ऑडियो सबके सामने चला दिया, जिसे अब से कुछ देर पहले भारती बड़े शान से कह रही थी। फेहरीन के मृत्यु के विषय की बात... उसे सुनने के बाद फिर कहां अल्फा पैक रुकने वाला था। फेस रिकॉग्नाइजेशन से सिर्फ भारती को खोजा गया और बाकियों को डंपिंग ग्राउंड में फेंका गया।

डायनिंग टेबल की एक कुर्सी पर भारती को बिठाकर, उसके चेहरे के प्लास्टिक को रूही ने अपने पंजे से नोच डाला। भारती कुछ कहने के लिये मुंह खोली ही थी, लेकिन कुछ कह पाती उस से पहले ही रूही ने ऐसा तमाचा जड़ा की उसके दांत बाहर आ गये। हां रूही भी अपने हथेली में टॉक्सिक भरकर भारती को मारी थी, लेकिन भारती के शरीर में अब भी एक्सपेरिमेंट दौड़ रहा था इसलिए उसपर इस थप्पड़ का कोई असर न हुआ।

फिर ओजल और इवान भी पीछे क्यों रहते। वो भी थप्पड़ पर थप्पड़ जड़ रहे थे। कुछ देर तक भारती ने थप्पड़ खाया किंतु वह भी अब बिना किसी बात की प्रवाह किये जवाबी हमला बोल दी। बंदूक के गोली समान उसके आंखों से लेजर निकल रहे थे और घर के जिस हिस्से में लगते वहां बड़ा सा धमाका हो जाता।

भारती:– मेरे आंखों की किरणे तुम में से किसी को लग क्यों नही रही...

अलबेली, इस बार उसे एक थप्पड़ मारती..... “तुझे हम निशांत भैया के भ्रम जाल के बारे में विस्तृत जानकारी तो नही दे सकते, लेकिन दर्द और गुस्से से गुजर रहे मेरे दोस्त तुम्हे दर्द नही दे पा रहे, और तू कई बाप की मिश्रित औलाद जो ये समझ रही की तुझे कुछ नही हो सकता, उसका भ्रम मैं हटा दे रही हूं।”

अलबेली अपनी बात कहकर अपने पूरे पंजे को उसके गाल पर रख दी। अलबेली को ऐसा करते देख, रूही, ओजल और इवान को भी समझ में आया की इस भारती पर तो अब तक कुछ असर ही नही किया होगा। बस फिर क्या था, सबने हाथ लगा दिया और एक्सपेरिमेंट के आखरी बूंद तक को खुद में समा लिये। हालांकि भारती को तो समझ में नहीं आ रहा था कि ये लोग कर क्या रहे है, इसलिए वो अपना काम बदस्तूर जारी रखे हुई थी। आंखों से गोली मारना, जिसका असर वुल्फ पैक पर तो नही हो रहा था, हां लेकिन नए ताजा रेनोवेट हुये वुल्फ हाउस पर जरूर हो रहा था। बूम की आवाज के साथ विस्फोट होता और जहां विस्फोट होता वहां का इलाका काला पर जाता।

बस कुछ देर की बात थी। उसके बाद जब रूही का जन्नतेदार थप्पड़ पड़ा, फिर तो भारती का दिमाग सुन्न पड़ गया और आंखों से लेजर चलाना तो जैसे भूल चुकी थी। फिर थप्पड़ रुके कहां। मार–मार कर गाल सुजा दिये। इतना थप्पड़ पड़े की गाल की चमरी गायब हो चुकी थी और गाल के दोनो ओर का जबड़ा दिखने लगा था। दर्द इतना की वो बेचारी बेहोश हो गयी। उसकी आंख जब खुली तब दर्द गायब थे और गाल की हल्की चमरी बन गई थी.... आर्यमणि सबको रुकने का इशारा करते.... “हां जी, धीरेन स्वामी की पत्नी और विश्वा देसाई की छोटी लड़की भारती, क्या डींगे हांक रही थी”...

भारती:– द द द देखो आर्यमणि...

आर्यमणि:– जुबान लड़खड़ा रहे है बड़बोली... तू जड़ को गला सकती है, फिर ये प्लास्टिक नही गला पा रही? क्या बोली थी, अकेले ही तूने फेरहिन का शिकर किया, उस से अपने पाऊं चटवाए, जिंदगी का भीख मंगवाया। उसके नवजात बच्चे मिल जाते तो तुझे और मजा आता। तो ले मिल ओजल और इवान से। ये वही नवजात है जिसे तू ढूंढ रही थी। और शायद तूने रूही को पहचाना नहीं, ये फेहरीन की बड़ी बेटी...

रूही:– आर्य, ये औरत मुझे चाहिए...

आर्यमणि:– क्या करोगी? इसे जान से मरोगी क्या?

रूही:– नही बस खेलना है... जबतक तुम पलक से बात करोगे, तब तक मैं खेलूंगी और फिर इसका भी अंत सबके जैसा होगा..

आर्यमणि:– बहुत खूब। इसे दिखाओ की मौत कितना सुकून भरा होता है और जिंदगी कितनी मुश्किल... तुम सब जाओ और खेलो। निशांत और संन्यासी शिवम् सर आप दोनो भी डंपिंग ग्राउंड ही जाइए। यहां मैं और अलबेली जबतक पलक से मुलाकात कर ले।

रूही अपने क्ला को सीधा भारती के पीठ पर घुसाई और अपने क्ला में फसाकर ही भारती को उठा ली और उठाकर ले गयी डंपिंग ग्राउंड के पास। भारती जब अपनी खुली आंखों से डंपिंग ग्राउंड का नजारा देखी तो स्तब्ध रह गयी। उसके सभी लोग पैक होकर बड़े से भूभाग में ढेर की तरह लगे थे। ढेर इतना ऊंचा की सर ऊंचा करके देखना पड़े। यह नजारा देखकर ही उसकी आंखें फैल गयी। वह गिड़गिड़ान लगी। ओजल उसे धक्का देकर मुंह के बल जमीन पर गिराने के बाद, अपना पाऊं उसके मुंह के सामने ले जाते... “चाटकर भीख मांग अपनी जिंदगी की... चल चाट”...

ओजल की आवाज बिलकुल आर्यमणि के आवाज़ से मैच कर रही थी, जो भय की परिचायक थी। उसकी आवाज सुनकर ही भारती उसका पाऊं चाटने लगी। सामने से दो और पाऊं पहुंच गये.... भारती उन सबको चाटती रही और कहती रही.... “मुझे माफ कर दो, मुझे जाने दो। मैं पृथ्वी छोड़कर किसी अन्य ग्रह पर चली जाऊंगी।”...
 

Vk248517

I love Fantasy and Sci-fiction story.
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भाग:–126


सोलस:– आपकी ये बचकानी कमी कब दूर होगी। आंखों के सामने जो दुश्मन इतना गहरा गड्ढा कर सकता है, वह कहीं और से निकलने की योजना बनाने के बाद ही गड्ढा किया होगा। और तो और वो इस गड्ढे को उतनी ही तेजी से भर भी सकता है।

पलक:– माफ करना सोलस... लेकिन हम उसे भागने नही दे सकते...

सोलस:– वुल्फ अपने पैक के बिना जायेगा कहां। ऊपर से 36 घंटे के लिये आपने उसे पैरालाइज किया है, खुद से तो भाग सकता नही। तो जरूर अपने पैक में से किसी को मदद के लिये बुलायेगा। पीछे चलिए, असली खेल वहीं से होगा। हमारे सैकड़ों लोग जिन्हे हम बचा सकते है, बचा भी लेंगे...

एकलाफ:– ये सोलस तो आम सा एक सदस्य है, फिर तुम इसकी क्यों सुन रही?

पलक:– क्योंकि ये मुझे सुनाने के काबिल है और मेरे मुंह पर सुनाने की हिम्मत रखता है, इसलिए सुन रही हुं। सबको धैर्य से सुनती हूं इसलिए बहुत से नतीजों पर पहुंचती हूं। सोलस डायनिंग टेबल पर रखा लैपटॉप उठाओ और इसे खोलकर अंदर की जानकारी लो। आर्य भाग गया है, हमारे हाथ न लगा। पता न कब बाजी पलट दे, कम से कम उसका ट्रैपर हम इस्तमाल कर पाये तो हाथ से निकली बाजी भी वापिस आ जायेगी...

सोलस:– जैसा आप कहें मैम.. अब चलिए वरना हम अपने बहुत से लोगों को खो देंगे...

पलक काफी तेजी में निकल ही रही थी कि तभी महा.... “मैं और मेरी टीम क्या करे पलक?”...

पलक:– तुम तो यहां बात–चित के लिये आये थे, बात हो जाये तो चले जाना। यदि बात न हो पाये तो आर्यमणि को लापता घोषित कर देना। हां लेकिन कुछ भी करना पर पीछे मत आना, वरना तुम अपने और अपने टीम की हानी के लिये स्वयं जिम्मेदार रहोगे...

महा:– जैसा आप कहो मैम....

पलक चल दी डंपिंग ग्राउंड पर जहां भारती के साथ सैकड़ों नयजो कांटों की चिता पर लेटे थे और मौत को भी भयभीत करने वाली खौफनाक आवाज केवल भारती निकाल रही थी, बाकी सबके मुंह बंधे थे। पलक की टीम पहले ही वहां पहुंच चुकी थी और पहुंचकर कांटों में फसे लोगों को निकालने की कोशिश करने में जुटी थी।

तेजस और नित्या की तरह ये लोग भी कैद थे। पलक समझ गयी की जो लोग मृत्यु सैल्य पर लेटे हैं, उनका कुछ नही हो सकता.... “तुम लोग बेकार कोशिश कर रहे हो। इन्हे जो जहर दिया गया है वह 8 घंटे बाद किसी को मौत के घाट उतरेगा और जिस जोड़ों में ये फसे है, वो 7 घंटे बाद खुलेगा। कोई अपना है तो उन्हे आखरी बार देख लो और बाकियों को छुड़ा लो। सोलस इनका वुल्फ पैक कहां है? यहां तो कोई भी नजर नहीं आ रहा?

सोलस:– हां मैं भी वही देख रहा हूं। अभी कुछ देर पहले तो यहां थे, अभी कहां चले गये?

पलक:– लैपटॉप देखो तुम... कही थी ना बाजी पलटने वाली बात... वो बाजी पलटने गये है?

सोलस:– मतलब..

पलक:– आर्यमणि के पैरालिसिस को हटाने का उपाय ढूंढने...

सोलस:– इसकी जानकारी उसे नही मिल सकती...

पलक:– इतना विश्वास सेहत के लिये हानिकारक है। तुम लैपटॉप पर काम करो.. उसका पूरा ट्रैप अपने कब्जे में होना चाहिए...

सोलस:– लैपटॉप तो ऑन ही है और स्क्रीन को देखो तो समझ में आ जायेगा की कैसा ट्रैप है।

पलक:– क्या ये लैपटॉप ही मुख्य सर्वर है या ये मात्र इस लैपटॉप से ऑपरेट करते है।

सोलस:– नही ये ऑपरेटिंग लैपटॉप है। सर्वर कहीं और है...

पालक:– कहां है सर्वर... पता करो और पूरा सॉफ्टवेयर अपने कब्जे में लो.. और कोई मुझे बतायेगा, ले लोग गये कहां...

सोलस:– गये कहीं भी हो, बाजी पलटने के लिये वापस जरूर आयेंगे... जैसा आप चाहती थी,जर्मनी में जहां भी मुलाकात हो वो जगह आपके अनुकूल हो... तो ये जगह आपके अनुकूल बन गयी है।

पलक:– तुम कमाल के हो सोलस। जीत के बाद हम कुछ दिन साथ बिताएंगे... लेकिन उस से पहले इस जगह को पूर्णतः अपने अनुकूल बनाओ और मुझे एक शानदार जीत दो... चलो, चलो सभी काम पर लग जाओ...

इसके पूर्व आर्यमणि और अलबेली जब मीटिंग हॉल में थे, तभी दोनो अपने शरीर के अंदर चल रहे रिएक्शंस को भांप चुके थे। पर अफसोस इतना वक्त नहीं मिला की उसपर कुछ कर सकते। कुछ करने या सोचने से पहले ही दोनो पैरालाइज हो चुके थे। बदन भी अजीब तरह से अकड़ गया था। अलबेली जब गिरी तो किसी लोहे की मूर्ति की तरह गिरी।

अलबेली जिस पल नीचे गिरी, आर्यमणि का दिमाग सी कुछ पल के लिये सुन्न पड़ गया। बिलकुल खाली और ब्लैंक होना जिसे कहते हैं। अलबेली की मृत्यु का सदमा जैसे रोम–रोम में दौड़ गया हो। हां लेकिन अगले ही पल सुकून भी था, क्योंकि एकलाफ, अलबेली को काटने के लिये तलवार निकाल रहा था।

आर्यमणि अपने मन के संवाद में.... “बेटा ठीक है?”

अलबेली:– दादा मैं सुरक्षित हूं, बस शरीर बेजान लग रहा। अपनी उंगली तक हिला नही पा रही।

आर्यमणि:– बाद में बात करते है। अभी सुरक्षा मंत्र का मजबूत घेरा बनाओ और वायु विघ्न मंत्र का जाप करती रहो। इन कमीनो के पास वायु की वह शक्ति है, जो सुरक्षा चक्र को तोड़ देगी।

अलबेली:– दादा ये क्या सीधा मारने की योजन बनाकर आयी थी?

आर्यमणि:– जो जैसे करेंगे, उनको वैसा ही लौटाएंगे... बेटा बातें बाद में तुम मंत्र जपना शुरू करो...

अलबेली अपने मन में मंत्र जाप करने लगी वहीं आर्यमणि रूही से संपर्क करते.... “रूही एक समस्या हो गयी है और विस्तार से बताने का वक्त नहीं। जितना कहूं उतना करो..

रूही:– हां जान, बोलो...

आर्यमणि:– मन के अंदर ध्यान लगाओ और अपने पास की जमीन से जड़ों को कमांड दो कम से कम 200 फिट नीचे जाये। वहां से उन जड़ों को, हॉल में जहां मैं बैठा था, वहां के आसपास 3 मीटर के गोल हिस्से में फैलाकर भेजो। मुझे और अलबेली को खींचकर नीचे के गड्ढे को मत भरना। हम जैसे ही वहां पहुंचे, संन्यासी शिवम सर हम सबको लेकर अंतर्ध्यान होने के लिये तैयार रहे।

रूही:– बस एक ही सवाल है, अंतर्ध्यान होकर किस जगह जायेंगे...

आर्यमणि:– कैलाश मठ, आचार्य जी के पास...

फिर कोई बात नही हुई। गंध से अल्फा पैक को खबर लग चुकी थी कि उनके आस–पास बहुत सारे लोग आ रहे है। रूही ने मामला बताया और ध्यान लगा दी। निशांत सबको शांत रहने का इशारा करते, भ्रम जाल पूरा फैला दिया, जिसमे अल्फा पैक अलग–अलग जगह पर खड़े होकर अपने दुश्मनों को देख रहे, जबकि सब साथ में खड़े थे।

इधर रूही ने आर्यमणि और अलबेली को खींचा और उधर संन्यासी शिवम् सबको टेलीपोर्ट करके कैलाश मठ ले गये। आर्यमणि और अलबेली को ऐसे अकड़े देख सबको आश्चर्य हो रहा था। संन्यासी शिवम और आचार्य जी कुछ परीक्षण करने के बाद....

“कुछ दुर्लभ जड़ी–बूटी को श्वान के माध्यम से शरीर में पहुंचाया गया है, जिस वजह से ये दोनो पैरालाइज हैं।”

आर्यमणि, रूही से कहा और रूही आचार्य जी से पूछने लगी.... “आचार्य जी वहां बहुत सारे लोग थे लेकिन इसका असर केवल आर्य और अलबेली पर ही क्यों हुआ?”

आचार्य जी:– इसका एक ही निष्कर्ष निकलता है। वहां जितने भी लोग होंगे वो लोग इस जड़ी बूटी का तोड़ अपने शरीर में पहले से लेकर पहुंचे होंगे। इसलिए उन पर कोई असर नहीं किया। लेकिन एक बात जो मेरे समझ में नहीं आयी, उन लोगों को गुरुदेव या अलबेली के शरीर की इतनी जानकारी कैसे, जो तेजी से हील करने वाले को इतनी मात्रा दे गयी की वो पैरालाइज कर जाये।

रूही:– मैं समझी नहीं आचार्य जी। क्या हमारा हीलिंग सिस्टम इस जहर को हील करने के लिये सक्षम है।

आचार्य जी:– जिसने भी ये जहर दिया है उसे भी पता था कि तुम सबका शरीर इस जहर की एक निश्चित मात्रा को हिल कर लेगा। यही नहीं वह निश्चित मात्र किसी सामान्य इंसान के मुकाबले 1000 गुणा ज्यादा दिया जाये तभी तुम लोग पैरालाइज होगे। इतनी ज्यादा मात्रा देने के बारे में सोचना तभी संभव है, जबतक उसने पहले कोई परीक्षण किया हो..

रूही:– मतलब कोई एक ग्राम जड़ी बूटी को सूंघे तब वो पैरालाइज होगा। लेकिन यदि हमें पैरालाइज करना हो तो मात्रा 1 किलो देना होगा। इतना तो कोई सपने में भी नही सोच सकता। लेकिन आचार्य जी इतनी मात्रा को हवा में उड़ाने की गंध आर्य और अलबेली को क्यों नही हुई...

आचार्य जी:– क्योंकि तुमने एक ग्राम का उधारहन दिया, जबकि ऐसी चीजें आधे मिलीग्राम या एक चौथाई मिलीग्राम में ही काम कर जाति है या उस से भी कम में। मेरे ख्याल से 0.10 मिलीग्राम में एक सामान्य इंसान पैरालाइज करता होगा। गुरुदेव और अलबेली के लिये वह मात्रा 100 मिलीग्राम से 1000 मिलीग्राम के बीच होगी। यानी की 1 ग्राम का दसवां हिस्सा से लेकर एक ग्राम के बीच। इतनी मात्र तो हवा में बड़ी आसानी से फैला सकते है।

रूही:– लेकिन कैसे... हाथ में पाउडर डालकर उड़ाते तो हम सुरक्षा मंत्र का प्रयोग कर लेते...

आचार्य जी:– भूलो मत की जो समुदाय हवा में पाये जाने वाले कण से तीर और भाला बना ले, वो हवा में 100 मिलीग्राम तो क्या तुम जितनी मात्रा बोली हो ना... उसका भी 100 गुना ज्यादा ले लो। यानी की वो लोग एक क्विंटल हवा में घोल देंगे तब भी पता न चलने देंगे। हां लेकिन ऐसा करेंगे नही... क्योंकि इतनी मात्रा का तोड़ वो लोग पहले से लेकर नही घूम सकते। इसलिए पैरालाइज करने वाला जहर दिये निश्चित मात्र में ही होंगे, ताकि उतना डोज के हिसाब से वो लोग अपने बदन के अंदर उसका तोड़ पहले से ले सके।

ओजल:– बॉस के हालत की जिम्मेदार मैं और इवान हैं। हम दोनो 3 दिन के लिये पलक के पास कैद थे।

रूही:– “बहुत शातिर है। वह तुम दोनो (ओजल और इवान) को इसलिए नहीं पकड़ी थी कि हमारे प्लान की इनफॉर्मेशन निकाल सके। बल्कि पूछ–ताछ के वक्त ही वो लोग दवा की निश्चित मात्रा का पता लगा रहे होंगे। इस हिसाब से उन्होंने केवल एक दावा का परीक्षण किया हो, ऐसा मान नही सकती। उन्होंने पहले दिन ही सारा एक्सपेरिमेंट कर लिया होगा। उसके बाद तो महज औपचारिकता बची होगी, कब आर्य तुम्हे छुड़ाए, या वहीं रहने दे, उनका काम तो हो चुका था। पूरे मामले पर कैसा कवर भी चढ़ाया। तुम दोनो (ओजल और इवान) के बहरूपिए को भेज दी। ताकि हमारी सोच किसी और ही दिशा में रहे... पलक, पलक, पलक... इतनी शातिर... हां”

ओह हां यह महत्वपूर्ण बात तो रह गयी थी। जिस दिन बहरूपिया ओजल और इवान जर्मनी पहुंचे थे, उसी दिन असली ओजल और इवान को छुड़ा लिया गया था। उन्हे छुड़ाना कोई बड़ी बात नही थी। अंतर्ध्यान होकर सीधा अड्डे पर पहुंचे। पहले नकली वाले को अपने साथ गायब करके असली वाले के पास ले आये। फिर वहां नकली वाले को फंसाकर असली वाले को लेकर अंतर्ध्यान हो गये।

इतना करने के पीछे एक ही मकसद था कि पलक खुद को एक कदम आगे की सोचते रहे। उसे शुरू से लगता रहे की नकली ओजल और इवान अल्फा पैक के साथ है, और असली पलक के गुप्त स्थान के तहखाने में। लेकिन अब पूरे अल्फा पैक को समझ में आ रहा था कि पलक को असली और नकली से घंटा फर्क नही पड़ना था। उसे जो करना था वो कर चुकी थी।

आर्यमणि:– अभी इतनी समीक्षा क्यों... आचार्य जी से कहो जल्द से जल्द मुझे ठीक करे।

रूही:– आचार्य जी मेरी जान कह रहे है कि आप आराम से उनका उपचार करे, हम खतरे से बहुत दूर आ चुके है।

आचार्य जी:– मैं टेलीपैथी सुन सकता हूं...

रूही:– मतलब...

आचार्य जी:– मतलब मन के अंदर चल रही बात को सुन सकता हूं। लेकिन मुझे जिनसे पूछना चाहिए उनसे पूछता हूं... निशांत, शिवम् क्या करे?

निशांत:– आचार्य जी, आर्य अभी एक अनजाने खतरे से बचकर आया है। हमे नही पता की पलक क्या योजना बनाकर आयी है, और वो कितनी खतरनाक हो सकती है...

संन्यासी शिवम्:– हां तो आज के बाद फिर कभी पलक को जानने का मौका भी नहीं मिलेगा। और सबसे अहम बात, अचानक निकलने के क्रम में हमने अपनी बहुत सी चीजें और जानकारी वुल्फ हाउस में छोड़ दिया है। वोल्फ हाउस में वो लोग जितनी देर छानबीन करेंगे, हमारे बारे में उतना ज्यादा जानेंगे। हमे बिना देर किये जाना चाहिए। आचार्य जी, आयुर्वेदाचार्य को मैं ले आता हूं,जबतक आप यहां मौजूद सभी संन्यासियों को सूचना दीजिए कि उन्हें तुरंत निकलना होगा।

रूही:– शिवम् सर ज्यादा लोग मतलब ज्यादा खतरा...

संन्यासी शिवम मुस्कुराते हुये.... “फिर तुम्हे यहीं रुकना चाहिए।

रूही:– अरे माफ कीजिए सर...

संन्यासी शिवम्:– मैं जब तक आता हूं, तब तक गुरुदेव और अलबेली के मस्तिष्क को हील कीजिए। ध्यान रहे 2 मिनट हील करना है और 1 मिनट का रेस्ट। निशांत ये ध्यान रखना आपकी जिम्मेदारी है।

संन्यासी शिवम् और्वेदाचार्य को लाने के लिये अंतर्ध्यान हो गये। वहीं रूही, ओजल और इवान आर्यमणि और अलबेली का माथा थामे उसे हील करने लगे। जैसे ही 2 मिनट हुआ, निशांत ने तीनो का हाथ हटाया। जबतक हील कर रहे थे तब तक तो पता नही चला लेकिन हाथ हटाते ही तीनो का सर चक्करघिन्नी की तरह नाचने लगा.... “कमिनी वो पलक हील करने के बारे में भी सोच रही होगी। किसी तरह उनसे छिपकर हम आर्य को हील करे और हम भी आर्य की तरह पड़े रहे।”...

निशांत, आर्यमणि के चेहरे पर हाथ फेरते.... “कोई इतनी होशियार महज एक साल में नही हो सकती। ये लड़की पैदाइशी होशियार और सबसे टेढ़ा काम हाथ में लेने वाली लगती है। और आर्य उसके नाक के नीचे से उसे उल्लू बनाकर निकला था। उसके कलेजे में आग तो लगेगी ही। पर दोस्त तूने भी कभी जिक्र नहीं किया की पलक जो दिख रही वो मात्र कवर है।”

रूही:– देवर जी क्या बड़बड़ा रहे हो...

निशांत:– चूहे बिल्ली के खेल में जज नही कर पा रहा की कौन बेहतर है।

रूही:– हमसे साझा करो, शायद मदद कर सके। नही भी कर पाये तो कम से कम 2 बेहतर खिलाड़ी का तो पता चलेगा...

निशांत:– “खिलाड़ी है पलक और आर्य.... आर्य जनता था कि उसे आखरी समय में कोई सरप्राइज जरूर मिलेगा, इसलिए पूरी टीम को 2 हिस्से में बांट दिया। खुद पलक से मिला जबकि हमे दूर रखा। मेरा दिमाग कहता है कि पलक इस वक्त वुल्फ हाउस में ही होगी। जैसे उसे पहले से पता हो की आर्य उसके चंगुल से भागेगा ही।”

“वो बैठकर वुल्फ हाउस में हमारा इंतजार कर रही है, इस उम्मीद में कि उसने जो जहर आर्य को दिया है, उस से किसी न किसी विधि से आर्य पार पा जायेगा। ना पलक आर्य को अभी मारने का सोच रही, और न ही आर्य पलक को अभी मारने का सोच रहा। दोनो बस हर संभावना को देखते हुये जैसे एक दूसरे को परख रहे हो...

रूही:– परख रहे हो का मतलब...शादी करेगी क्या मेरे पति से। उसकी लाश मैं ही गिराऊंगी...

निशांत:– अभी अपने गुस्से को काबू रखिए। हमने नायजो के बारे में जितनी भी जानकारी जुटाई है, वह अधूरी लग रही है। अभी एक ही विनती है आवेश में नही आइएगा... वरना सबकी जान खतरे में पड़ जायेगी..

रूही:– देवर जी मैं अपने और अपने बच्चों की जिम्मेदारी लेती हूं... किसी को भी आवेश में आने नही दूंगी...

लगभग 1 घंटे लग गये। संन्यासी शिवम किसी को लेकर आ रहे थे। इधर जबतक 2 मिनट का हील और एक मिनट का आराम चल रहा था। आयुर्वेदाचार्य जी आर्यमणि और अलबेली के नब्ज को देखे। फिर कुछ औषधि को दोनो के नाक में पूरा ठूंसकर छोड़ दिये। 10 सेकंड बीते होंगे जब आर्यमणि और अलबेली का चेहरा लाल होने लगा। 10 सेकंड और बीते तब माथे पर सिकन आने लगी। और पूरे 30 सेकंड बाद अलबेली और आर्यमणि खांसते हुये उठकर बैठ गये। दोनो को उठकर बैठे देख रूही, ओजल और इवान ऐसे झपटकर गले लगे की पांचों जमीन पर ही बिछ गये।
Nice updates🎉👍
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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भाग:–124


भारती, फोन लाइन काटती... “भार में गया सुरंग से जाना, अब तो सीधा सामने से घुसेंगे।”

पलक:– ये भूल कर रही हो। वह पहले से तैयारी करके बैठा है। अभी–अभी उसने हमारे 200 शिकारी को गायब कर दिया। हमारा एक भी बग अब तक ये पता नही लगा पाया की आखिर उसने महल में और उसके आस–पास कैसा ट्रैप बिछा रखा है?

भारती:– तुम अब भी नही समझ पायी की कैसा ट्रैप है तो तुम बेवकूफ हो। जो वेयरवोल्फ कमाल के हिलर हो और कभी किसी इंसान को जाने–अनजाने में अपनी बाइट से अपने जैसा वेयरवोल्फ न बनाया हो, वह पेड़–पौधों तक हील कर सकते हैं। इसके बदले उन्हें एक अनोखी शक्ति मिलती है, अपने क्ला से वो कहीं भी जड़ों को निकाल सकते है। लोगों को उन जड़ों में फसा सकते है। और ये आर्यमणि तो खुद को प्योर अल्फा कहता है, इसका मतलब समझती हो?

पलक:– क्या?

भारती:– “इसके काटने या नाखून से छीलने पर भी कोई वेयरवॉल्फ नही बनेगा। इसके पैक के जितने भी लोगों ने ब्लड ओथ लिया होगा, उन सब में ये गुण पाये जायेंगे। लेकिन ये लोग एक बात नही जानते की मैं निजी तौर पर ऐसे ही एक वेयरवोल्फ से निपट चुकी हूं, नाम था अल्फा हीलर फेहरीन।”

“इन्हे क्या पता कैसे मैने अकेले ही फहरीन को धूल चटाकर उसके पैक को खत्म की थी। इन चूतियो को क्या पता की फेहरिन जैसे मेरे पाऊं को चाटकर जिंदा छोड़ने की भीख मांगी थी, और मैने मौत दिया था। बस अफसोस की उसके बच्चे नही मिले, जिसके लिये वो गिड़गिड़ाई थी, वरना उसे तड़पाने में और भी ज्यादा मजा आता। इन चूजों (अल्फा पैक) को अपने नई शक्ति पर कूदने दो। जब मेरे शिकारी उनके जड़ों के तिलिस्म को तोड़ेंगे तब उन्हे पता चलेगा...

पलक अपने मन में सोचती..... “हरामजादी अपनी बहन को तो जड़ों के बीच से निकाल नही पायी, यहां डींगे हांकती है। जा तू फसने, तुझे भी तेरी बहन जैसी मौत मिले”.... “क्या हुआ किस सोच में पड़ गयी।”.... पलक अपने विचार में इस कदर खो गयी की वह भारती की बात पर कुछ बोली ही नही। भारती ने जब उसे टोका तब अपने विचारों के सागर से बाहर आती..... “मैं तो ख्यालों में थी कि कैसे आर्यमणि तुम्हारे सामने गिड़गिड़ा रहा है।”

भारती:– पहले उस कमीने आर्यमणि को धूल चटा दूं, फिर तुम भी उसका गिड़गिड़ाना देख लेना। चलो अब हम चलते हैं।

भारती का एक इशारा हुआ। आधे घंटे में तो जैसे वहां जन सैलाब आ गया था। 400 महा की टीम और 200 नायजो को छोड़कर 800 की टुकड़ी के साथ भारती कूच कर गयी। सभी प्रथम श्रेणी के नायजो भारती के साथ चल रहे थे। भारती हर कदम चलती अपने लोगों में जोश का अंगार भरती उनका हौसला बुलंद कर रही थी।

वहीं अल्फा पैक आराम से अपने डायनिंग टेबल पर अंगूर खाते उन्हे आते हुये देख रहा था।..... “जे मायला... इन्हे सुरंग के अंदर दबाने की योजना अब सपना हो गया।”

आर्यमणि:– अलबेली, खुद पर भरोसा करो और दुश्मन को कभी भी...

अलबेली:– कमजोर नही समझना चाहिए... चलो मेरे होने वाले सैयां (इवान), और मेरी ननद (ओजल) इन्हे पैक किया जाये।

आर्यमणि:– नही, बाहर किसी को पैक मत करना। सब अंदर आते जायेंगे और पैक होते जायेंगे। पैकिंग का काम रूही, संन्यासी शिवम सर और निशांत देखेंगे... तुम तीनो दरवाजे की भिड़ को पीछे ट्रांसफर करोगे..

ओजल, छोटा सा मुंह बनाती.... “जीजाजी नही... कितना हम दौड़ते रहेंगे।”

रूही:– ओ जीजाजी की प्यारी समझदार साली, किसने कहा पैक लोगों को कंधे पर उठाकर दौड़ लगाओ।

अलबेली:– फिर कैसे करेंगे...

रूही:– जड़ों में लपेटो और उन्हे सीधा वुल्फ हाउस के पीछे पटको...

इवान:– नाना.. हम तीनो मिलकर जड़ों का स्कैलेटर बनायेंगे।(वह सीढ़ी जो मशीन के दम पर अपने आप चलती है।) आओ पैक हो और स्केलेटर से ट्रांसफर होते जाओ।

अलबेली:– पर बनायेंगे कैसे... गोल घूमने वाले बॉल–बेयरिंग कहां से लाओगे..

ओजल:– वो भी हम जड़ों का बना लेंगे, सोचो तो क्या नही हो सकता...

अलबेली:– हां तो ठीक है शुरू कर दो...

तीनो ने मिलकर जड़ों को कमांड दिया। दिमाग में चित्रण किया और दिमाग का चित्रण धरातल पर नजर आने लगा। 5 फिट चौड़ा और 600 मीटर लंबा स्कैलेटर तैयार था, जो बड़े से हॉल से होते हुये नीचे के विभिन्न हिस्सों से गुजरते, पीछे जंगल तक जा रहा था। पीछे का हिस्सा, वुल्फ हाउस से तकरीबन 4 किलोमीटर दूरी तक, सब आर्यमणि की निजी संपत्ति थी। हां जंगल विभाग की केवल एक शर्त थी, जंगल का स्वरूप बदले नही।

आर्यमणि ने जंगल का स्वरूप नही बदला। पीछे का पूरा इलाका तो जंगल ही था, लेकिन वुल्फ हाउस की निजी संपत्ति की सीमा पर चारो ओर से 40 फिट की ऊंची–ऊंची झाड़ की दीवार बन गयी थी। एक मात्र आगे का हिस्से से ही वुल्फ हाउस में सीधा प्रवेश कर सकते थे। पिछले हिस्सें को शायद आर्यमणि ने इसलिए भी घेर दिया था ताकि स्थानीय लोग वहां चल रहे गतिविधि को देख ना पाये। खासकर उस जंगल के रेंजर मैक्स और उसकी टीम।

वुल्फ हाउस की दहलीज जहां पर खतरा लिखा था, उस से तकरीबन 400 मीटर अंदर वुल्फ हाउस का प्रांगण शुरू होता था। वोल्फ हाउस किसी महल से कम नही था जो 4000 स्क्वायर मीटर में बना था। जैसे ही वुल्फ हाउस के प्रांगण में घुसे सभी नायजो फैल गये। घर में चारो ओर से घुसने के लिये पूरी भिड़ कई दिशा में बंट गयी। सामने से केवल भारती और उसके 200 प्रथम श्रेणी के गुर्गे प्रवेश करते। प्रवेश द्वार पर खड़ी होकर भारती ने हुंकार भरा... “आगे बढ़ो और सबको तबाह कर डालो, बस मारना मत किसी को।”

भारती की हुंकार और 16 फिट चौड़ा उस मुख्य दरवाजे से सभी नायजो घुसने लगे। भारती जब प्रवेश द्वार पर पहुंची थी, तब आंखों के सामने ही बड़े से हॉल में पूरा अल्फा पैक अंगूर खाते नजर आ रहा था। भारती का इशारा होते ही नायजो चिल्लाते हुये ऐसे भिड़ लगाकर दौड़े की भारती को हॉल के अंदर का दिखना बंद हो गया।

जो नायजो चिल्लाते और चंघारते प्रवेश द्वार के अंदर घुस रहे थे, उनका चिल्लाना पल भर में शांत हो जाता। जिस प्रकार टीवी के एक विज्ञापन में ऑल–आउट नामक प्रोडक्ट को चपाक–चपाक मच्छर पकड़े दिखाते है, ठीक उसी प्रकार नायजो की भी वो प्लास्टिक अपने सिंकांगे में ऐसा सिकोड़ लेती की उनकी हड्डियां तक कड़कड़ाकर सिकोड़ने पर मजबूर हो जाती।

हां वो अलग बात थी कि जो नियम नाक पर लागू होते थे... अर्थात वह प्लास्टिक जब सिकोड़ना शुरू करेगी और नाक पर कोई सतह न होने की वजह से वह प्लास्टिक सिकोडकर नाक के छेद के आकार से टूट जायेगी और उसके बाहरी और भीतरी दीवार से जाकर चिपकेगी। ठीक उसी प्रकार से मुंह पर भी हुआ। नाक से स्वांस लेने के अलावा मुंह से चीख भी निकल रही थी। चीख जो हड्डियां कड़कने, अपने सभी मांशपेशियों को पूरी तरह से सिकुड़ जाने और खुद को कैद में जानकर एक अनजाने भय में निकल रही थी।

हो यह रहा था की एक साथ 10 लोग अंदर घुसते। घुसते वक्त युद्ध की ललकार और गुस्से की चींख होती और घुसते ही चीख दर्द और भय में तब्दील हो जाती। 10 के दर्द से चीखने की संख्या हर पल बढ़ रही थी, क्योंकि एलियन हॉल में लगातार प्रवेश कर रहे थे और प्रवेश करने के साथ ही चिपक रहे थे।

आर्यमणि:– छोटे यह बताना भूल गया की इनका मुंह भी पैक नही होता। अल्फा पैक के सभी वोल्फ, पैक हुये समान का मुंह तुम सब मैनुअल पैक करो। बाकी निशांत और शिवम् सर उन सबको पैक करेंगे...

रूही:– हुंह... और तुम डायनिंग टेबल पर टांग पर टांग चढ़ाकर गपागप अंगूर खाते रहो।

आर्यमणि:– जल्दी जल्दी काम करो... उसके बाद का इनाम सुनकर यदि तुम खुश ना हुई तो फिर कहना...

रूही:– मैं खुश ना हुई न आर्य तो तुम सोच लेना... चलो बच्चों मालिक का हुकुम बजा दे..

अब भीड़ आ रही थी और पैक होकर खामोशी से स्कैलेटर पर लोड होकर पीछे डंपिंग ग्राउंड में फेंका जा रहा था।

घर के दाएं, बाएं और पीछे से जो लोग घुसने की कोशिश कर रहे थे, वो सब एक कमांड में ही पैक होकर जमीन पर गिरे थे।.... “आर्य घर के दाएं, बाएं और पीछे के इलाकों पर पैकेज बिछ गये है। जाओ उन्हे बिनकर (पकड़कर) डंपिंग ग्राउंड में फेंक देना। ओह हां और सबके मुंह भी पैक कर देना। अभी तो भीड़ की ललकार में उस औरत (भारती) को समझ में न आ रहा की दाएं, बाएं और पिछे से उसके लोग चिल्ला रहे। लेकिन कुछ ही देर में सब जान जाएंगे।”

“ऐसे कैसे जान जायेंगे”.... निशांत की बात का जवाब देते आर्यमणि सीधा होकर बैठा और अपने लैपटॉप की स्क्रीन को एक बार देखकर अपनी आंखें मूंद लिया। देखते ही देखते जमीन पर पैक होकर पड़े सभी 600 नायजो का मुंह पैक हो चुका था और अगले 5 सेकंड में सभी नायजो को जड़ों में लपेट कर डंपिंग ग्राउंड पर फेंक दिया गया।

वहां का सीन कुछ ऐसा था.... भारती सामने से 200 लोगों को लेकर वुल्फ हाउस के प्रवेश द्वार पर पहुंची और बाकी के 600 लोग दाएं, बाएं और पिछे से घुसने की कोशिश करने वाले थे। जिस पल भारती प्रवेश द्वार के सामने पहुंची, ठीक उसी पल एक छोटे से कमांड पर घर के चारो ओर फैले नायजो पैक हो चुके थे। प्रवेश द्वार से 200 नायजो चिल्लाते हुऐ अंदर प्रवेश कर रहे थे और पैक होकर सीधा स्कैलेटर पर लोड हो जाते।

मात्र 10 सेकंड का यह पूरा मामला बना, जब आर्यमणि ने बिना वक्त गवाए बाहर की भिड़ को एक साथ डंपिंग ग्राउंड पर फेंक दिया। वहीं घर के अंदर घुस रहे लोग स्कैलेटर पर लोड होकर डंपिंग ग्राउंड तक पहुंच रहे थे। 16 फिट चौड़ा दरवाजे से आखिर 200 लोगों को अंदर घुसने में समय ही कितना लगेगा... एक मिनट, या उस से भी कम।

भीर जब छंटी तब चिल्लाने की आवाज भी घटती चली गयी और बड़े से हॉल में जब भारती ने देखा तब वहां भीर का नामो–निशान तक नही। बस दरवाजे पर मुट्ठी भर लोग होंगे जो एक बार चिल्लाए और अंदर का नजारा देखकर उनकी चीख मूंह में ही रह गयी। परिस्थिति को देखते हुये वो लोग उल्टे पांव दौड़ना शुरू कर दिये। उन भागते लोगों में भारती भी थी। सभी के पाऊं में जड़ फसा। सब के सब मुंह के बल गिरे और अगले ही पल घर के अंदर। जड़ें उन्हे खींचते हुये जैसे ही हॉल के अंदर लेकर आयी, हॉल के प्रवेश द्वार से लेकर आर्यमणि तक पहुंचने के बीच सभी प्लास्टिक में पैक थे। इधर खुन्नस खाये अल्फा टीम के सदस्य बिना वक्त गवाए उन्होंने भी सबके मुंह को चिपका दिया।

आर्यमणि:– अब ये क्या है... इन लोगों को तो पैक न करते। और तुम सब में इतनी तेजी कहां से आ गयी की मुझ तक पहुंचने से पहले सबका मुंह पैक कर दिये।

रूही:– जिसे तुम तेजी कह रहे, उसे खुन्नस कहते हैं।

आर्यमणि:– पर खुन्नस किस बात का...

रूही:– तुम्हारा टांग पर टांग..

आर्यमणि:– बस रे, काम खत्म करने दो पहले। वैसे मैंने एक ऑडियो को हेड फोन लगाकर सुना था, क्या तुम में से कोई उसे सुनना चाहेगा...

अलबेली:– बॉस जितना लहराकर आप अपनी बात खत्म करते हो, उतने देर में 100 कुत्ते पैक होकर डंपिंग ग्राउंड पहुंच चुके होते हैं। जल्दी सुनाओ वरना आगे का काम देखो...

आर्यमणि मुस्कुराकर वह ऑडियो सबके सामने चला दिया, जिसे अब से कुछ देर पहले भारती बड़े शान से कह रही थी। फेहरीन के मृत्यु के विषय की बात... उसे सुनने के बाद फिर कहां अल्फा पैक रुकने वाला था। फेस रिकॉग्नाइजेशन से सिर्फ भारती को खोजा गया और बाकियों को डंपिंग ग्राउंड में फेंका गया।

डायनिंग टेबल की एक कुर्सी पर भारती को बिठाकर, उसके चेहरे के प्लास्टिक को रूही ने अपने पंजे से नोच डाला। भारती कुछ कहने के लिये मुंह खोली ही थी, लेकिन कुछ कह पाती उस से पहले ही रूही ने ऐसा तमाचा जड़ा की उसके दांत बाहर आ गये। हां रूही भी अपने हथेली में टॉक्सिक भरकर भारती को मारी थी, लेकिन भारती के शरीर में अब भी एक्सपेरिमेंट दौड़ रहा था इसलिए उसपर इस थप्पड़ का कोई असर न हुआ।

फिर ओजल और इवान भी पीछे क्यों रहते। वो भी थप्पड़ पर थप्पड़ जड़ रहे थे। कुछ देर तक भारती ने थप्पड़ खाया किंतु वह भी अब बिना किसी बात की प्रवाह किये जवाबी हमला बोल दी। बंदूक के गोली समान उसके आंखों से लेजर निकल रहे थे और घर के जिस हिस्से में लगते वहां बड़ा सा धमाका हो जाता।

भारती:– मेरे आंखों की किरणे तुम में से किसी को लग क्यों नही रही...

अलबेली, इस बार उसे एक थप्पड़ मारती..... “तुझे हम निशांत भैया के भ्रम जाल के बारे में विस्तृत जानकारी तो नही दे सकते, लेकिन दर्द और गुस्से से गुजर रहे मेरे दोस्त तुम्हे दर्द नही दे पा रहे, और तू कई बाप की मिश्रित औलाद जो ये समझ रही की तुझे कुछ नही हो सकता, उसका भ्रम मैं हटा दे रही हूं।”

अलबेली अपनी बात कहकर अपने पूरे पंजे को उसके गाल पर रख दी। अलबेली को ऐसा करते देख, रूही, ओजल और इवान को भी समझ में आया की इस भारती पर तो अब तक कुछ असर ही नही किया होगा। बस फिर क्या था, सबने हाथ लगा दिया और एक्सपेरिमेंट के आखरी बूंद तक को खुद में समा लिये। हालांकि भारती को तो समझ में नहीं आ रहा था कि ये लोग कर क्या रहे है, इसलिए वो अपना काम बदस्तूर जारी रखे हुई थी। आंखों से गोली मारना, जिसका असर वुल्फ पैक पर तो नही हो रहा था, हां लेकिन नए ताजा रेनोवेट हुये वुल्फ हाउस पर जरूर हो रहा था। बूम की आवाज के साथ विस्फोट होता और जहां विस्फोट होता वहां का इलाका काला पर जाता।

बस कुछ देर की बात थी। उसके बाद जब रूही का जन्नतेदार थप्पड़ पड़ा, फिर तो भारती का दिमाग सुन्न पड़ गया और आंखों से लेजर चलाना तो जैसे भूल चुकी थी। फिर थप्पड़ रुके कहां। मार–मार कर गाल सुजा दिये। इतना थप्पड़ पड़े की गाल की चमरी गायब हो चुकी थी और गाल के दोनो ओर का जबड़ा दिखने लगा था। दर्द इतना की वो बेचारी बेहोश हो गयी। उसकी आंख जब खुली तब दर्द गायब थे और गाल की हल्की चमरी बन गई थी.... आर्यमणि सबको रुकने का इशारा करते.... “हां जी, धीरेन स्वामी की पत्नी और विश्वा देसाई की छोटी लड़की भारती, क्या डींगे हांक रही थी”...

भारती:– द द द देखो आर्यमणि...

आर्यमणि:– जुबान लड़खड़ा रहे है बड़बोली... तू जड़ को गला सकती है, फिर ये प्लास्टिक नही गला पा रही? क्या बोली थी, अकेले ही तूने फेरहिन का शिकर किया, उस से अपने पाऊं चटवाए, जिंदगी का भीख मंगवाया। उसके नवजात बच्चे मिल जाते तो तुझे और मजा आता। तो ले मिल ओजल और इवान से। ये वही नवजात है जिसे तू ढूंढ रही थी। और शायद तूने रूही को पहचाना नहीं, ये फेहरीन की बड़ी बेटी...

रूही:– आर्य, ये औरत मुझे चाहिए...

आर्यमणि:– क्या करोगी? इसे जान से मरोगी क्या?

रूही:– नही बस खेलना है... जबतक तुम पलक से बात करोगे, तब तक मैं खेलूंगी और फिर इसका भी अंत सबके जैसा होगा..

आर्यमणि:– बहुत खूब। इसे दिखाओ की मौत कितना सुकून भरा होता है और जिंदगी कितनी मुश्किल... तुम सब जाओ और खेलो। निशांत और संन्यासी शिवम् सर आप दोनो भी डंपिंग ग्राउंड ही जाइए। यहां मैं और अलबेली जबतक पलक से मुलाकात कर ले।

रूही अपने क्ला को सीधा भारती के पीठ पर घुसाई और अपने क्ला में फसाकर ही भारती को उठा ली और उठाकर ले गयी डंपिंग ग्राउंड के पास। भारती जब अपनी खुली आंखों से डंपिंग ग्राउंड का नजारा देखी तो स्तब्ध रह गयी। उसके सभी लोग पैक होकर बड़े से भूभाग में ढेर की तरह लगे थे। ढेर इतना ऊंचा की सर ऊंचा करके देखना पड़े। यह नजारा देखकर ही उसकी आंखें फैल गयी। वह गिड़गिड़ान लगी। ओजल उसे धक्का देकर मुंह के बल जमीन पर गिराने के बाद, अपना पाऊं उसके मुंह के सामने ले जाते... “चाटकर भीख मांग अपनी जिंदगी की... चल चाट”...

ओजल की आवाज बिलकुल आर्यमणि के आवाज़ से मैच कर रही थी, जो भय की परिचायक थी। उसकी आवाज सुनकर ही भारती उसका पाऊं चाटने लगी। सामने से दो और पाऊं पहुंच गये.... भारती उन सबको चाटती रही और कहती रही.... “मुझे माफ कर दो, मुझे जाने दो। मैं पृथ्वी छोड़कर किसी अन्य ग्रह पर चली जाऊंगी।”...
Kya mind blowing action dikhaya hai aapne Alfa team ka, 800 logo ko dump karke pura pahad bna dala, bharti ke sath jo aaye the vo to bahar ko daudne lge the dar ke chalte pr arya ne unhe bhagne na diya or sabka muh band krke dump karva diya...

Yha pr sochne vali baat hai, Evan or Ojal yadi palak ke pass hai to ye jade nikal kr roler coster Kaise bane jado ke resho se, or Yadi Ye dono arya ke sath hai to kab se... Or Vo dono bahrupiya kaha hai...

Idhar fehreen ke baccho ko apni MA ka Katil mil gya hai or usse Apna hisab chukta karne ka time bhi aa gya hai, ruhi le gyi hai, Dekhte hai kya kya karvati hai us bharti se...

Superb update bhai sandar jabarjast lajvab amazing
 

arish8299

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भाग:–124


भारती, फोन लाइन काटती... “भार में गया सुरंग से जाना, अब तो सीधा सामने से घुसेंगे।”

पलक:– ये भूल कर रही हो। वह पहले से तैयारी करके बैठा है। अभी–अभी उसने हमारे 200 शिकारी को गायब कर दिया। हमारा एक भी बग अब तक ये पता नही लगा पाया की आखिर उसने महल में और उसके आस–पास कैसा ट्रैप बिछा रखा है?

भारती:– तुम अब भी नही समझ पायी की कैसा ट्रैप है तो तुम बेवकूफ हो। जो वेयरवोल्फ कमाल के हिलर हो और कभी किसी इंसान को जाने–अनजाने में अपनी बाइट से अपने जैसा वेयरवोल्फ न बनाया हो, वह पेड़–पौधों तक हील कर सकते हैं। इसके बदले उन्हें एक अनोखी शक्ति मिलती है, अपने क्ला से वो कहीं भी जड़ों को निकाल सकते है। लोगों को उन जड़ों में फसा सकते है। और ये आर्यमणि तो खुद को प्योर अल्फा कहता है, इसका मतलब समझती हो?

पलक:– क्या?

भारती:– “इसके काटने या नाखून से छीलने पर भी कोई वेयरवॉल्फ नही बनेगा। इसके पैक के जितने भी लोगों ने ब्लड ओथ लिया होगा, उन सब में ये गुण पाये जायेंगे। लेकिन ये लोग एक बात नही जानते की मैं निजी तौर पर ऐसे ही एक वेयरवोल्फ से निपट चुकी हूं, नाम था अल्फा हीलर फेहरीन।”

“इन्हे क्या पता कैसे मैने अकेले ही फहरीन को धूल चटाकर उसके पैक को खत्म की थी। इन चूतियो को क्या पता की फेहरिन जैसे मेरे पाऊं को चाटकर जिंदा छोड़ने की भीख मांगी थी, और मैने मौत दिया था। बस अफसोस की उसके बच्चे नही मिले, जिसके लिये वो गिड़गिड़ाई थी, वरना उसे तड़पाने में और भी ज्यादा मजा आता। इन चूजों (अल्फा पैक) को अपने नई शक्ति पर कूदने दो। जब मेरे शिकारी उनके जड़ों के तिलिस्म को तोड़ेंगे तब उन्हे पता चलेगा...

पलक अपने मन में सोचती..... “हरामजादी अपनी बहन को तो जड़ों के बीच से निकाल नही पायी, यहां डींगे हांकती है। जा तू फसने, तुझे भी तेरी बहन जैसी मौत मिले”.... “क्या हुआ किस सोच में पड़ गयी।”.... पलक अपने विचार में इस कदर खो गयी की वह भारती की बात पर कुछ बोली ही नही। भारती ने जब उसे टोका तब अपने विचारों के सागर से बाहर आती..... “मैं तो ख्यालों में थी कि कैसे आर्यमणि तुम्हारे सामने गिड़गिड़ा रहा है।”

भारती:– पहले उस कमीने आर्यमणि को धूल चटा दूं, फिर तुम भी उसका गिड़गिड़ाना देख लेना। चलो अब हम चलते हैं।

भारती का एक इशारा हुआ। आधे घंटे में तो जैसे वहां जन सैलाब आ गया था। 400 महा की टीम और 200 नायजो को छोड़कर 800 की टुकड़ी के साथ भारती कूच कर गयी। सभी प्रथम श्रेणी के नायजो भारती के साथ चल रहे थे। भारती हर कदम चलती अपने लोगों में जोश का अंगार भरती उनका हौसला बुलंद कर रही थी।

वहीं अल्फा पैक आराम से अपने डायनिंग टेबल पर अंगूर खाते उन्हे आते हुये देख रहा था।..... “जे मायला... इन्हे सुरंग के अंदर दबाने की योजना अब सपना हो गया।”

आर्यमणि:– अलबेली, खुद पर भरोसा करो और दुश्मन को कभी भी...

अलबेली:– कमजोर नही समझना चाहिए... चलो मेरे होने वाले सैयां (इवान), और मेरी ननद (ओजल) इन्हे पैक किया जाये।

आर्यमणि:– नही, बाहर किसी को पैक मत करना। सब अंदर आते जायेंगे और पैक होते जायेंगे। पैकिंग का काम रूही, संन्यासी शिवम सर और निशांत देखेंगे... तुम तीनो दरवाजे की भिड़ को पीछे ट्रांसफर करोगे..

ओजल, छोटा सा मुंह बनाती.... “जीजाजी नही... कितना हम दौड़ते रहेंगे।”

रूही:– ओ जीजाजी की प्यारी समझदार साली, किसने कहा पैक लोगों को कंधे पर उठाकर दौड़ लगाओ।

अलबेली:– फिर कैसे करेंगे...

रूही:– जड़ों में लपेटो और उन्हे सीधा वुल्फ हाउस के पीछे पटको...

इवान:– नाना.. हम तीनो मिलकर जड़ों का स्कैलेटर बनायेंगे।(वह सीढ़ी जो मशीन के दम पर अपने आप चलती है।) आओ पैक हो और स्केलेटर से ट्रांसफर होते जाओ।

अलबेली:– पर बनायेंगे कैसे... गोल घूमने वाले बॉल–बेयरिंग कहां से लाओगे..

ओजल:– वो भी हम जड़ों का बना लेंगे, सोचो तो क्या नही हो सकता...

अलबेली:– हां तो ठीक है शुरू कर दो...

तीनो ने मिलकर जड़ों को कमांड दिया। दिमाग में चित्रण किया और दिमाग का चित्रण धरातल पर नजर आने लगा। 5 फिट चौड़ा और 600 मीटर लंबा स्कैलेटर तैयार था, जो बड़े से हॉल से होते हुये नीचे के विभिन्न हिस्सों से गुजरते, पीछे जंगल तक जा रहा था। पीछे का हिस्सा, वुल्फ हाउस से तकरीबन 4 किलोमीटर दूरी तक, सब आर्यमणि की निजी संपत्ति थी। हां जंगल विभाग की केवल एक शर्त थी, जंगल का स्वरूप बदले नही।

आर्यमणि ने जंगल का स्वरूप नही बदला। पीछे का पूरा इलाका तो जंगल ही था, लेकिन वुल्फ हाउस की निजी संपत्ति की सीमा पर चारो ओर से 40 फिट की ऊंची–ऊंची झाड़ की दीवार बन गयी थी। एक मात्र आगे का हिस्से से ही वुल्फ हाउस में सीधा प्रवेश कर सकते थे। पिछले हिस्सें को शायद आर्यमणि ने इसलिए भी घेर दिया था ताकि स्थानीय लोग वहां चल रहे गतिविधि को देख ना पाये। खासकर उस जंगल के रेंजर मैक्स और उसकी टीम।

वुल्फ हाउस की दहलीज जहां पर खतरा लिखा था, उस से तकरीबन 400 मीटर अंदर वुल्फ हाउस का प्रांगण शुरू होता था। वोल्फ हाउस किसी महल से कम नही था जो 4000 स्क्वायर मीटर में बना था। जैसे ही वुल्फ हाउस के प्रांगण में घुसे सभी नायजो फैल गये। घर में चारो ओर से घुसने के लिये पूरी भिड़ कई दिशा में बंट गयी। सामने से केवल भारती और उसके 200 प्रथम श्रेणी के गुर्गे प्रवेश करते। प्रवेश द्वार पर खड़ी होकर भारती ने हुंकार भरा... “आगे बढ़ो और सबको तबाह कर डालो, बस मारना मत किसी को।”

भारती की हुंकार और 16 फिट चौड़ा उस मुख्य दरवाजे से सभी नायजो घुसने लगे। भारती जब प्रवेश द्वार पर पहुंची थी, तब आंखों के सामने ही बड़े से हॉल में पूरा अल्फा पैक अंगूर खाते नजर आ रहा था। भारती का इशारा होते ही नायजो चिल्लाते हुये ऐसे भिड़ लगाकर दौड़े की भारती को हॉल के अंदर का दिखना बंद हो गया।

जो नायजो चिल्लाते और चंघारते प्रवेश द्वार के अंदर घुस रहे थे, उनका चिल्लाना पल भर में शांत हो जाता। जिस प्रकार टीवी के एक विज्ञापन में ऑल–आउट नामक प्रोडक्ट को चपाक–चपाक मच्छर पकड़े दिखाते है, ठीक उसी प्रकार नायजो की भी वो प्लास्टिक अपने सिंकांगे में ऐसा सिकोड़ लेती की उनकी हड्डियां तक कड़कड़ाकर सिकोड़ने पर मजबूर हो जाती।

हां वो अलग बात थी कि जो नियम नाक पर लागू होते थे... अर्थात वह प्लास्टिक जब सिकोड़ना शुरू करेगी और नाक पर कोई सतह न होने की वजह से वह प्लास्टिक सिकोडकर नाक के छेद के आकार से टूट जायेगी और उसके बाहरी और भीतरी दीवार से जाकर चिपकेगी। ठीक उसी प्रकार से मुंह पर भी हुआ। नाक से स्वांस लेने के अलावा मुंह से चीख भी निकल रही थी। चीख जो हड्डियां कड़कने, अपने सभी मांशपेशियों को पूरी तरह से सिकुड़ जाने और खुद को कैद में जानकर एक अनजाने भय में निकल रही थी।

हो यह रहा था की एक साथ 10 लोग अंदर घुसते। घुसते वक्त युद्ध की ललकार और गुस्से की चींख होती और घुसते ही चीख दर्द और भय में तब्दील हो जाती। 10 के दर्द से चीखने की संख्या हर पल बढ़ रही थी, क्योंकि एलियन हॉल में लगातार प्रवेश कर रहे थे और प्रवेश करने के साथ ही चिपक रहे थे।

आर्यमणि:– छोटे यह बताना भूल गया की इनका मुंह भी पैक नही होता। अल्फा पैक के सभी वोल्फ, पैक हुये समान का मुंह तुम सब मैनुअल पैक करो। बाकी निशांत और शिवम् सर उन सबको पैक करेंगे...

रूही:– हुंह... और तुम डायनिंग टेबल पर टांग पर टांग चढ़ाकर गपागप अंगूर खाते रहो।

आर्यमणि:– जल्दी जल्दी काम करो... उसके बाद का इनाम सुनकर यदि तुम खुश ना हुई तो फिर कहना...

रूही:– मैं खुश ना हुई न आर्य तो तुम सोच लेना... चलो बच्चों मालिक का हुकुम बजा दे..

अब भीड़ आ रही थी और पैक होकर खामोशी से स्कैलेटर पर लोड होकर पीछे डंपिंग ग्राउंड में फेंका जा रहा था।

घर के दाएं, बाएं और पीछे से जो लोग घुसने की कोशिश कर रहे थे, वो सब एक कमांड में ही पैक होकर जमीन पर गिरे थे।.... “आर्य घर के दाएं, बाएं और पीछे के इलाकों पर पैकेज बिछ गये है। जाओ उन्हे बिनकर (पकड़कर) डंपिंग ग्राउंड में फेंक देना। ओह हां और सबके मुंह भी पैक कर देना। अभी तो भीड़ की ललकार में उस औरत (भारती) को समझ में न आ रहा की दाएं, बाएं और पिछे से उसके लोग चिल्ला रहे। लेकिन कुछ ही देर में सब जान जाएंगे।”

“ऐसे कैसे जान जायेंगे”.... निशांत की बात का जवाब देते आर्यमणि सीधा होकर बैठा और अपने लैपटॉप की स्क्रीन को एक बार देखकर अपनी आंखें मूंद लिया। देखते ही देखते जमीन पर पैक होकर पड़े सभी 600 नायजो का मुंह पैक हो चुका था और अगले 5 सेकंड में सभी नायजो को जड़ों में लपेट कर डंपिंग ग्राउंड पर फेंक दिया गया।

वहां का सीन कुछ ऐसा था.... भारती सामने से 200 लोगों को लेकर वुल्फ हाउस के प्रवेश द्वार पर पहुंची और बाकी के 600 लोग दाएं, बाएं और पिछे से घुसने की कोशिश करने वाले थे। जिस पल भारती प्रवेश द्वार के सामने पहुंची, ठीक उसी पल एक छोटे से कमांड पर घर के चारो ओर फैले नायजो पैक हो चुके थे। प्रवेश द्वार से 200 नायजो चिल्लाते हुऐ अंदर प्रवेश कर रहे थे और पैक होकर सीधा स्कैलेटर पर लोड हो जाते।

मात्र 10 सेकंड का यह पूरा मामला बना, जब आर्यमणि ने बिना वक्त गवाए बाहर की भिड़ को एक साथ डंपिंग ग्राउंड पर फेंक दिया। वहीं घर के अंदर घुस रहे लोग स्कैलेटर पर लोड होकर डंपिंग ग्राउंड तक पहुंच रहे थे। 16 फिट चौड़ा दरवाजे से आखिर 200 लोगों को अंदर घुसने में समय ही कितना लगेगा... एक मिनट, या उस से भी कम।

भीर जब छंटी तब चिल्लाने की आवाज भी घटती चली गयी और बड़े से हॉल में जब भारती ने देखा तब वहां भीर का नामो–निशान तक नही। बस दरवाजे पर मुट्ठी भर लोग होंगे जो एक बार चिल्लाए और अंदर का नजारा देखकर उनकी चीख मूंह में ही रह गयी। परिस्थिति को देखते हुये वो लोग उल्टे पांव दौड़ना शुरू कर दिये। उन भागते लोगों में भारती भी थी। सभी के पाऊं में जड़ फसा। सब के सब मुंह के बल गिरे और अगले ही पल घर के अंदर। जड़ें उन्हे खींचते हुये जैसे ही हॉल के अंदर लेकर आयी, हॉल के प्रवेश द्वार से लेकर आर्यमणि तक पहुंचने के बीच सभी प्लास्टिक में पैक थे। इधर खुन्नस खाये अल्फा टीम के सदस्य बिना वक्त गवाए उन्होंने भी सबके मुंह को चिपका दिया।

आर्यमणि:– अब ये क्या है... इन लोगों को तो पैक न करते। और तुम सब में इतनी तेजी कहां से आ गयी की मुझ तक पहुंचने से पहले सबका मुंह पैक कर दिये।

रूही:– जिसे तुम तेजी कह रहे, उसे खुन्नस कहते हैं।

आर्यमणि:– पर खुन्नस किस बात का...

रूही:– तुम्हारा टांग पर टांग..

आर्यमणि:– बस रे, काम खत्म करने दो पहले। वैसे मैंने एक ऑडियो को हेड फोन लगाकर सुना था, क्या तुम में से कोई उसे सुनना चाहेगा...

अलबेली:– बॉस जितना लहराकर आप अपनी बात खत्म करते हो, उतने देर में 100 कुत्ते पैक होकर डंपिंग ग्राउंड पहुंच चुके होते हैं। जल्दी सुनाओ वरना आगे का काम देखो...

आर्यमणि मुस्कुराकर वह ऑडियो सबके सामने चला दिया, जिसे अब से कुछ देर पहले भारती बड़े शान से कह रही थी। फेहरीन के मृत्यु के विषय की बात... उसे सुनने के बाद फिर कहां अल्फा पैक रुकने वाला था। फेस रिकॉग्नाइजेशन से सिर्फ भारती को खोजा गया और बाकियों को डंपिंग ग्राउंड में फेंका गया।

डायनिंग टेबल की एक कुर्सी पर भारती को बिठाकर, उसके चेहरे के प्लास्टिक को रूही ने अपने पंजे से नोच डाला। भारती कुछ कहने के लिये मुंह खोली ही थी, लेकिन कुछ कह पाती उस से पहले ही रूही ने ऐसा तमाचा जड़ा की उसके दांत बाहर आ गये। हां रूही भी अपने हथेली में टॉक्सिक भरकर भारती को मारी थी, लेकिन भारती के शरीर में अब भी एक्सपेरिमेंट दौड़ रहा था इसलिए उसपर इस थप्पड़ का कोई असर न हुआ।

फिर ओजल और इवान भी पीछे क्यों रहते। वो भी थप्पड़ पर थप्पड़ जड़ रहे थे। कुछ देर तक भारती ने थप्पड़ खाया किंतु वह भी अब बिना किसी बात की प्रवाह किये जवाबी हमला बोल दी। बंदूक के गोली समान उसके आंखों से लेजर निकल रहे थे और घर के जिस हिस्से में लगते वहां बड़ा सा धमाका हो जाता।

भारती:– मेरे आंखों की किरणे तुम में से किसी को लग क्यों नही रही...

अलबेली, इस बार उसे एक थप्पड़ मारती..... “तुझे हम निशांत भैया के भ्रम जाल के बारे में विस्तृत जानकारी तो नही दे सकते, लेकिन दर्द और गुस्से से गुजर रहे मेरे दोस्त तुम्हे दर्द नही दे पा रहे, और तू कई बाप की मिश्रित औलाद जो ये समझ रही की तुझे कुछ नही हो सकता, उसका भ्रम मैं हटा दे रही हूं।”

अलबेली अपनी बात कहकर अपने पूरे पंजे को उसके गाल पर रख दी। अलबेली को ऐसा करते देख, रूही, ओजल और इवान को भी समझ में आया की इस भारती पर तो अब तक कुछ असर ही नही किया होगा। बस फिर क्या था, सबने हाथ लगा दिया और एक्सपेरिमेंट के आखरी बूंद तक को खुद में समा लिये। हालांकि भारती को तो समझ में नहीं आ रहा था कि ये लोग कर क्या रहे है, इसलिए वो अपना काम बदस्तूर जारी रखे हुई थी। आंखों से गोली मारना, जिसका असर वुल्फ पैक पर तो नही हो रहा था, हां लेकिन नए ताजा रेनोवेट हुये वुल्फ हाउस पर जरूर हो रहा था। बूम की आवाज के साथ विस्फोट होता और जहां विस्फोट होता वहां का इलाका काला पर जाता।

बस कुछ देर की बात थी। उसके बाद जब रूही का जन्नतेदार थप्पड़ पड़ा, फिर तो भारती का दिमाग सुन्न पड़ गया और आंखों से लेजर चलाना तो जैसे भूल चुकी थी। फिर थप्पड़ रुके कहां। मार–मार कर गाल सुजा दिये। इतना थप्पड़ पड़े की गाल की चमरी गायब हो चुकी थी और गाल के दोनो ओर का जबड़ा दिखने लगा था। दर्द इतना की वो बेचारी बेहोश हो गयी। उसकी आंख जब खुली तब दर्द गायब थे और गाल की हल्की चमरी बन गई थी.... आर्यमणि सबको रुकने का इशारा करते.... “हां जी, धीरेन स्वामी की पत्नी और विश्वा देसाई की छोटी लड़की भारती, क्या डींगे हांक रही थी”...

भारती:– द द द देखो आर्यमणि...

आर्यमणि:– जुबान लड़खड़ा रहे है बड़बोली... तू जड़ को गला सकती है, फिर ये प्लास्टिक नही गला पा रही? क्या बोली थी, अकेले ही तूने फेरहिन का शिकर किया, उस से अपने पाऊं चटवाए, जिंदगी का भीख मंगवाया। उसके नवजात बच्चे मिल जाते तो तुझे और मजा आता। तो ले मिल ओजल और इवान से। ये वही नवजात है जिसे तू ढूंढ रही थी। और शायद तूने रूही को पहचाना नहीं, ये फेहरीन की बड़ी बेटी...

रूही:– आर्य, ये औरत मुझे चाहिए...

आर्यमणि:– क्या करोगी? इसे जान से मरोगी क्या?

रूही:– नही बस खेलना है... जबतक तुम पलक से बात करोगे, तब तक मैं खेलूंगी और फिर इसका भी अंत सबके जैसा होगा..

आर्यमणि:– बहुत खूब। इसे दिखाओ की मौत कितना सुकून भरा होता है और जिंदगी कितनी मुश्किल... तुम सब जाओ और खेलो। निशांत और संन्यासी शिवम् सर आप दोनो भी डंपिंग ग्राउंड ही जाइए। यहां मैं और अलबेली जबतक पलक से मुलाकात कर ले।

रूही अपने क्ला को सीधा भारती के पीठ पर घुसाई और अपने क्ला में फसाकर ही भारती को उठा ली और उठाकर ले गयी डंपिंग ग्राउंड के पास। भारती जब अपनी खुली आंखों से डंपिंग ग्राउंड का नजारा देखी तो स्तब्ध रह गयी। उसके सभी लोग पैक होकर बड़े से भूभाग में ढेर की तरह लगे थे। ढेर इतना ऊंचा की सर ऊंचा करके देखना पड़े। यह नजारा देखकर ही उसकी आंखें फैल गयी। वह गिड़गिड़ान लगी। ओजल उसे धक्का देकर मुंह के बल जमीन पर गिराने के बाद, अपना पाऊं उसके मुंह के सामने ले जाते... “चाटकर भीख मांग अपनी जिंदगी की... चल चाट”...

ओजल की आवाज बिलकुल आर्यमणि के आवाज़ से मैच कर रही थी, जो भय की परिचायक थी। उसकी आवाज सुनकर ही भारती उसका पाऊं चाटने लगी। सामने से दो और पाऊं पहुंच गये.... भारती उन सबको चाटती रही और कहती रही.... “मुझे माफ कर दो, मुझे जाने दो। मैं पृथ्वी छोड़कर किसी अन्य ग्रह पर चली जाऊंगी।”...
Jo kuya wahi wapas mil raha bharti ko wah sandaar update
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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भाग:–125


ओजल की आवाज बिलकुल आर्यमणि के आवाज़ से मैच कर रही थी, जो भय की परिचायक थी। उसकी आवाज सुनकर ही भारती उसका पाऊं चाटने लगी। सामने से दो और पाऊं पहुंच गये.... भारती उन सबको चाटती रही और कहती रही.... “मुझे माफ कर दो, मुझे जाने दो। मैं पृथ्वी छोड़कर किसी अन्य ग्रह पर चली जाऊंगी

एक बार गिड़गिड़ाती और लात खाकर उसका चेहरा दूसरे पाऊं तक पहुंचता। दूसरे से लात खाकर तीसरे और तीसरे से लात खाकर पहले के पास। लात खाती रही और गिड़गिड़ाती रही। फिर अचानक ही जैसे भारती को कुछ याद आया हो और उसने फिर से अपने आंखों से लेजर चला दिया। लेजर किसी के पाऊं में तो नही लगा, लेकिन इसके विस्फोट से सभी उड़ गये। रूही, ओजल और इवान के साथ खुद भारती भी उस धमाके से उड़ी और कहीं दूर जाकर गिरी।

धमाके के कारण उसका प्लास्टिक भी फट गया जिसमे से भारती बड़ी आसानी से निकल गयी। निशांत और संन्यासी शिवम भी उसी जगह मौजूद थे जिसे आर्यमणि ने खुद भेजा था। भारती समझ चुकी थी कि किसी भ्रम जाल के कारण उसका लेजर इन सबको नही लग रहा, लेकिन ये लोग निशाने के आसपास ही रहते है इसलिए धमाके में उड़े। फिर तो भारती की तेज नजर और अल्फा पैक का पाऊं था। किरणे जमीन पर गिरती और धमाके के कारण वुल्फ पैक 10 फिट हवा में।

धमाका चुकी बड़े से इलाके को कवर कर रहा था, इसलिए भ्रम जाल उन्हे धमाके की चपेट से नही बचा पा रहा था। फिर उन सब ने सुरक्षा मंत्र का प्रयोग किया। सुरक्षा मंत्र के प्रयोग से खुद को घायल होने से तो बचा रहे थे, किंतु हवा में उछलकर गिरने से सबकी हड्डियां चटक रही थी।

भारती फिर रुकी ही नही। वह लगातार हमले करती रही और बीच–बीच में शिकारियों के ढेर पर भी विस्फोट कर देती। कुछ प्रलोक सिधार जाते तो कुछ लोग अपना प्लास्टिक निकलने ने कामयाब हो रहे थे। देखते ही देखते वोल्फ पैक घिरने लगा था। तरह–तरह के हमले उनके पाऊं पर चारो ओर से होने लगे थे।

कुछ नायजो केवल अपने साथी को ही छुड़ाने लगे हुये थे। भारती की अट्टहास भरी हंसी चारो ओर गूंजने लगी... “तू बदजात कीड़े, इतनी हिम्मत की मुझसे उलझो। आज इसी जगह पर तुम सबकी लाश गिरेगी”...

रूही जो पिछले 10 मिनट से हो रहे हमले और अपनी मां के कातिल को खुला देख रही थी, वह अंदर ही अंदर बिलबिला रही थी। फिर गूंजी एक दहाड़... शायद यह किसी फर्स्ट अल्फा की दहाड़ से कम नही थी.... “अल्फा पैक... आज इनके रूहों को भी चलो दिखा दे कि जिंदगी कितना दर्द देती है। सभी को एक साथ कांटों की सेज पर सुलाओ।”.... रूही भी चिल्लाती हुई कह गई क्या करना है। ओजल, संन्यासी शिवम के ओर देखते.... “संत जी हम बड़े से सुरक्षा घेरे में लो”...

हवा का रुख एक बार फिर पलट गया। हवा की बड़ी सी दीवार बनी, जिसके ऊपर एक साथ बहुत सारे विस्फोट हो गये। भारती हवा के इस सुरक्षा घेरे को देखकर हंसती हुई.... “जब हम आंखों से लेजर चला रहे थे, तब हमारे सुपीरियर शिकारी स्टैंड बाय में थे। शायद पहली बार अपने रॉयल ब्लड की शक्ति देख रहे हो। तुझे क्या लगता है हवा को जैसा हमने नियंत्रण करना सीखा है, उसके आग तेरा ये जाल काम करेगा। बेवकूफ भेड़िए, देख कैसे टूटता है ये तेरा सुरक्षा घेरा... सभी एक साथ हवा का हमला करेंगे।”...

इधर भारती ने हुकुम दिया उधर पूरा डंप ग्राउंड दर्द की चीख पुकार में डूब गया। बड़बोलेपन की आदत ने आज भारती को डूबा दिया। हवा के बड़े सुरक्षा घेरे के अंदर पहुंचते ही, सभी वुल्फ ने अपनी आंखें मूंद ली। वही ओजल अपना दंश निकालकर सामने के ओर की, जिसे सबने पकड़ रखा था। दंश जैसे कोई एम्प्लीफायर हो। जैसे ही पूरे वुल्फ पैक ने कमांड दिया, जड़ों के रेशे मोटे नुकीले कांटेदार बन गये और सभी खड़े नायजो के शरीर में ऐसे घुसे की वो लोग कांटों की चिता पर लेटे थे और उनके मुख से दर्द की चीख और पुकार निकल रही थी।

ये सारा काम उतने ही वक्त में हुआ जितने वक्त में भारती ने अपना डायलॉग मारा। इधर भारती ने हमला करने का ऑर्डर दिया, उधर उसके मुंह से ही मौत ही चीख निकल गयी। रूही, ओजल और इवान यहां पर भी नही रुके। वो तीनो जानते थे की लकड़ी घुसे होने के कारण उनका बदन उस जगह को कभी हील न कर पायेगा। दर्द के ऊपर महा दर्द देते तीनो ने ही अपने हाथ को जड़ों के ऊपर रख दिये और उन जड़ों से कैस्टर ऑयल के फूल का जहर हर किसी के बदन में उतार दिया।

वहां के दर्द, चीख और गिड़गिगाना सुनकर तो जंगल के जानवर तक भयभीत हो होकर आस–पास के जगह को छोड़ दिया। ओजल और इवान ने मिलकर लगभग 200 नायजो के मुंह को बंद करके उन्हे पूरा जड़ों ने लेपेटकर वापस डंपिंग ग्राउंड में छोड़ दिया, जबकि अकेली भारती को सीधा किसी पुतले की तरह खड़ा कर दिये। भारती हालांकि खुद को जड़ों से छुड़ा तो सकती थी, लेकिन ये मामूली जड़े नही थी। ये कांटो की लपेट थी जो बदन में घुसने के साथ ही प्राण को हलख तक खींच लाये थे और अगले 2 मिनट में वह मौत के सबसे खरनाक दर्द को मेहसूस करने लगी थी। भारती के दर्द और गिड़गिड़ाने की आवाज चारो ओर गूंज रही थी और अल्फा पैक वहीं डंपिंग ग्राउंड में कुर्सी लगाकर भारती के दर्द भरे आवाज को सुनकर सुकून महसूस कर रहा था।

वोल्फ हाउस के अंदर केवल अलबेली और आर्यमणि थे। बाकी सभी डंपिंग ग्राउंड में थे... “दादा जबतक वो लोग खेलने गये है, पलक को बुलाकर बात–चित वाला काम खत्म कर लो”..

आर्यमणि:– नेकी और पूछ–पूछ.. चलो बुला लेते है।

पलक को कॉल किया गया। पलक अपने चार चमचे के अलावा महा को भी साथ ली और 5 मिनट में सभी वुल्फ हाउस में थे। वोल्फ हाउस के अंदर सभी अपना स्थान ग्रहण किये।

आर्यमणि:– ये एकलाफ कौन है जो मुझे बिना जाने गंदी और भद्दी गालियां दे रहा था।

एकलाफ:– अपनी जगह बुलाकर ज्यादा होशियार बन रहा है। दम है तो हमारी जगह आकर ऐसे अकड़कर बात कर...

आर्यमणि:– अच्छा तो वो तू है... अलबेली तुम्हारा एक्सपर्ट कॉमेंट...

अलबेली:– ये चमन चिंदी... घूर–घूर–चिस्तिका के लू–चिस्तीका की नूडल जैसी देन... ये इतना अकड़ रहा था कि आपको गाली दे, तू इधर आ बे...

पलक, गुस्से से अपनी लाल आंखें दिखाती... “तुम बात करने यहां बुलाए हो या उकसाने”...

आर्यमणि:– इतना कमजोर दिमाग कब से हो गया। तुम ही कही थी ना ये सबके सामने गाली देगा... क्या हुआ इसके औकाद की, हमारा जलवा देखकर घट गया क्या?

एकलाफ:– एक बाप की औलाद है तो फेयर फाइट करके दिखा...

अलबेली:– पृथ्वी क्या पूरे ब्रह्मांड में सभी एक बाप की ही औलाद होते है। उसमे भी भारत में लगभग सभी को अपने बाप का नाम पता होता है। और जिन्हे नहीं पता होता है उसमे से एक नाम है एकलाफ। किसका बीज है उसके बारे में उसकी मां तक कन्फर्म नही कर सकती, क्योंकि उस बेचारी को तो पता ही नही होता की उसके पति के वेश में कौन बहरूपिया बीज डालकर चला गया। तभी तो तू घूर–घूर–चिस्तिका के लू–चिस्तीका की नूडल जैसी पैदाइश निकला है।

एकलाफ, गुस्से में कुर्सी के दोनो हैंडरेस्ट उखाड़ कर तेज चिल्लाती... “दो कौड़ी की जानवर”... गुस्से में चिल्लाकर अभी एकलाफ ने मुंह से पूरी बात निकाली भी नही थी कि अलबेली काफी तेज मूव करती उसके पास पहुंची और एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गाल पर लगाकर वापस आर्यमणि के पास। एकलाफ की आवाज मुंह में ही घुस गयी। प्रतिक्रिया में पलक के साथ–साथ उसके तीन और चमचे, सुरैया, ट्रिस्कस और पारस भी गुस्से में खड़े थे।

महा:– सगळेच वेडे झाले आहेत (सब पागल हो गये है।)। यहां क्या ऐसे ही चुतियापा करना है?

आर्यमणि:– झूठे प्रहरियों को उनकी ओकाद दिखा रहे।

महा:– मांझे..

अलबेली:– मतलब प्रहरी संस्था सात्विक आश्रम का अभिन्न अंग है जिसकी देख रख सात्विक आश्रम के गुरु करते थे। इसलिए अब सात्विक आश्रम के गुरु चाहते है कि प्रहरी संस्था के तात्कालिक सदस्यों को निकालकर, नए रूप से सदस्यों को भर्ती करेंगे जो सात्त्विक आश्रम के प्रारूप के अनुसार होगा।

महा:– अब ये सात्विक आश्रम कहां है।

अलबेली:– इस चुतिये को तो अपने धरोहर का नाम नहीं पता, इतिहास घंटा जानेगा।

महा:– तुम एक वेयरवोल्फ होकर...

आर्यमणि:– महा आगे कुछ बोलने से पहले जुबान संभालकर.....

महा:– तो पहले अपने पैक को शांत करवाओ... कुछ भी बकवास करते है। यहां क्यों बुलाए हो उसपर सीधा–सीधा बात करते है...

सबके बीच इतनी ही बातें हुई थी की हॉल में भयानक चिल्ल्हाट ही आवाज गूंजने लगी। सबके कान खड़े और हृदय में कम्पन हो गया हो जैसे।....... “हमारे साथ आये लोगों के साथ तुम क्या कर रहे हो आर्य”... महा उस जगह के चारो ओर देखते हुये कहने लगा...

आर्यमणि:– जो लोग लड़ने आये थे वो यदि हमारी चीख निकाल रहे होते तो क्या तुम ऐसे ही पूछते...

महा:– पुलिस किसी क्रिमिनल को पीटकर उसकी चीख निकलवाए उसे जायज कहते है। वहीं क्रिमिनल यदि पुलिसवालों की चीख निकलवाए तो उसे गुंडागर्दी और नाजायज कहते हैं।

आर्यमणि:– बात तो तुम्हारी सही है महा लेकिन यहां थोड़ा सा अंतर है। अंतर ये है की जिसे तुम पुलिस समझ रहे वो बहरूपिया पुलिस है। और जो उन्हें पीट रहे है, वो एक सच्चा सोल्जर है। खैर अब तो तुम महफिल में बैठ ही गये तो सब जानकर ही उठोगे...

पलक अपनी जगह से खड़ी होती..... “यहां बहरूपिया कौन है और कौन असली सोल्जर ये कुछ ही क्षण में पता चल जायेगा। तुम्हे लगता है उन धैर्य खोये हुये भिड़ को मारकर अथवा यहां जाल बिछाकर खुद को सुरक्षित समझते हो। तुम्हे क्या लगता है, मुझे ये पता नही की तुम्हारे लोग उसी रात असली ओजल और इवान को मेरे कैद से निकाल कर ले गये, जिस दिन बहरूपिए मेरे पास पहुंचे थे। तुम्हे क्या लगता है, मैं जो तुमसे कही थी कि जिस दिन मिलूंगी तुम्हारे सीने से दिल चीरकर निकाल लूंगी, क्या मैं भूल गयी। क्या तुम्हे वाकई लगता है कि तुम यहां जीत गये। तो फिर चलो शुरू करते है।”

आर्यमणि और अलबेली दोनो एक दूसरे की सूरत देखने लगे। मानो आपस में ही कह रहे हो.... “लगता है चूक हो गयी।”.... और वाकई चूक हो चुकी थी। श्वान्स के द्वार कुछ तो शरीर के अंदर गया था जो हाथ तक हिलाने नही दे रहा था। हवा में ऐसा क्या छोड़ा गया जो बाकियों पर असर नही हुआ लेकिन आर्यमणि और अलबेली दोनो स्थूल से पड़ गये थे।

बस 2 सेकंड और बीता, उसके बाद तो आर्यमणि के पास खड़ी अलबली धराम से जमीन पर गिर गयी। शरीर इतना अकड़ा हुआ था कि अलबेली जब गिरी तो उसकी एक हड्डी तक नही मुड़ी।

पलक:– एकलाफ अपने थप्पड़ का बदला इस लड़की के जान बाहर निकालकर लो।

आर्यमणि की आंखें फैल गयी, जैसे वो अलबेली के लिये रहम की भीख मांग रहा था। पलक कुटिल मुस्कान अपने चेहरे पर लाती, अपनी ललाट उठाकर.... “क्यों निकल गयी हेंकड़ी। एकलाफ खड़े क्यों हो, कमर पर ऐसा तलवार चलाओ की ये लड़की 2 हिस्सों में बंट जाये।

एकलाफ अपने कमर का बेल्ट निकाला। बेल्ट न कहकर तलवार कहना गलत नही होगा। उसकी बनावट ही कुछ ऐसी थी कि सीधा करके उसके 2 जोड़ के बीच जैसे ही हुक फसाया गया, स्टील के चौड़े, चौड़े हिस्से एक साथ मिलकर तलवार का निर्माण कर गये। एकलाफ तलवार लेकर आगे बढ़ा ही था कि बीच में महा आते.... “देखो ये तुमलोग गलत कर रहे हो। हमे यहां बातचीत के लिये बुलाया गया था।”

पलक:– हां तो आर्यमणि से बात चीत हो जायेगी। बाकी के लोग उतने जरूरी नही। महा रास्ते से हट जाओ अन्यथा हम तुम्हे मारकर भी अपना काम कर सकते हैं।

महा:– ये तुम गलत कर रही हो... अभी बहुत सी नई बातें सामने आयी थी, और तुम बात–चित का जरिया बंद कर रही हो।

एकलाफ:– कोई इस चुतिये को हटाएगा, ताकि मैं इस बड़बोले जानवर को काट सकूं...

महा, चिढ़कर वहां से हटा। महा के हटते ही एकलाफ ने तलवार चलाया। तलवार चलाया लेकिन तलवार सुरक्षा मंत्र के ऊपर लगा। ऐसा लगा जैसे तलवार हवा से टकराई हो। “हवा से खुद की सुरक्षा कर रही हो। तुम्हे पता नही क्या ये हवा हमारी गुलाम है।”... एकलाफ चिल्लाते हुये कहने लगा...

पलक:– रुको जरा, ये कहां जायेंगे। पहले उन लोगों का भी इलाज कर दे जो बाहर हमारे 1000 लोगों को या तो मार चुके या मार डालेंगे। स्टैंड बाय टीम वुल्फ हाउस के पीछे जाओ और सबको काट कर अपने जितने लोग बच सकते है बचा लो।

एकलाफ:– मैं रुकूं या फिर इस बदजात हरामजादी को मार डालूं,जिसने मुझे क्या कुछ नही सुनाया?

पलक:– हां उसे मार देना लेकिन उस से पहले इस कमीने आर्यमणि के मुंह पर गाली दो। बहुत घमंड है ना इसे अपनी प्लानिंग पर... दिखाओ की हमारी औकाद क्या है।

एकलाफ:– बड़े शौक से तुम लोग जरा अपना कान बंद कर लो।

सबने अपने कान बंद किये। एकलाफ पहले तो जमीन पर थूका, उसके बाद जैसे ही मुंह खोला, बड़ा सा विस्फोट छोटे से दायरे में हुआ और, आर्यमणि और अलबेली दोनो कितने नीचे गड्ढे में गये वो ऊपर से बता पाना मुश्किल था, क्योंकि गड्ढा इतना नीचे था कि ऊपर से केवल अंधेरा ही नजर आ रहा था।

पलक के सारे चमचे जो फर्स्ट लाइन सुपीरियर शिकारी थे, वो सभी गड्ढे के पास पहुंचकर अपने हाथों से हवा का बवंडर उठाते, उनमें से तीर, भला, बिजली और आग को पूरा उस गड्ढे में झोंक दिया। ऐसा लगा जैसे आग का तूफान ही बड़ी तेजी से नीचे कई 100 फिट गड्ढे में गया और धधकता वो बवंडर लगातार जलता ही रहा।

पलक:– अरे नही.... हटो, हटो सब वहां से... आर्य को नही मारना था।

एकलाफ:– सॉरी पलक, लेकिन अब तो उसका तंदूर बन गया होगा।

पलक, पूरे गुस्से में.... “तुम चारो को मैं बाद में देखती हूं। घर के पीछे निकली टीम में से कुछ लोग हॉल में जल्दी आओ, और रस्सियां भीं लेकर आना... जल्दी करो।”

सुरैया (नाशिक में मिले चार चमचों में से एक चमची).... “पलक क्या तुम नीचे जाने वाली हो?”...

पलक:– हां बेवकूफों... तुम चारो ने सब गड़बड़ कर दिया। देखना होगा ये प्योर अल्फा इतना तापमान झेल पाया या नही। काश उसमे थोड़ी भी जान बाकी हो...

जबतक पलक के सामने उसके 6 विश्वशनीय लोग आकार खड़े हो गये.... “यहां के लिये क्या ऑर्डर है।”

पलक:– 2 आदमी पानी के सप्लाई लाइन को उस गड्ढे में डालो। और 2 आदमी रस्सी को हुक में डालकर फसाओ, मुझे उस गड्ढे के तल तक उतरना है।

पलक की टीम का हेड सोलस:– मैम आप यहीं रहिए, मैं नीचे जाता हूं..

पलक:– नही मुझे जाना है। जितना कही उतना करो....

सोलस:– आपकी ये बचकानी कमी कब दूर होगी। आंखों के सामने जो दुश्मन इतना गहरा गड्ढा कर सकता है, वह कहीं और से निकलने की योजना बनाने के बाद ही गड्ढा किया होगा। और तो और वो इस गड्ढे को उतनी ही तेजी से भर भी सकता है।

भाग:–126


सोलस:– आपकी ये बचकानी कमी कब दूर होगी। आंखों के सामने जो दुश्मन इतना गहरा गड्ढा कर सकता है, वह कहीं और से निकलने की योजना बनाने के बाद ही गड्ढा किया होगा। और तो और वो इस गड्ढे को उतनी ही तेजी से भर भी सकता है।

पलक:– माफ करना सोलस... लेकिन हम उसे भागने नही दे सकते...

सोलस:– वुल्फ अपने पैक के बिना जायेगा कहां। ऊपर से 36 घंटे के लिये आपने उसे पैरालाइज किया है, खुद से तो भाग सकता नही। तो जरूर अपने पैक में से किसी को मदद के लिये बुलायेगा। पीछे चलिए, असली खेल वहीं से होगा। हमारे सैकड़ों लोग जिन्हे हम बचा सकते है, बचा भी लेंगे...

एकलाफ:– ये सोलस तो आम सा एक सदस्य है, फिर तुम इसकी क्यों सुन रही?

पलक:– क्योंकि ये मुझे सुनाने के काबिल है और मेरे मुंह पर सुनाने की हिम्मत रखता है, इसलिए सुन रही हुं। सबको धैर्य से सुनती हूं इसलिए बहुत से नतीजों पर पहुंचती हूं। सोलस डायनिंग टेबल पर रखा लैपटॉप उठाओ और इसे खोलकर अंदर की जानकारी लो। आर्य भाग गया है, हमारे हाथ न लगा। पता न कब बाजी पलट दे, कम से कम उसका ट्रैपर हम इस्तमाल कर पाये तो हाथ से निकली बाजी भी वापिस आ जायेगी...

सोलस:– जैसा आप कहें मैम.. अब चलिए वरना हम अपने बहुत से लोगों को खो देंगे...

पलक काफी तेजी में निकल ही रही थी कि तभी महा.... “मैं और मेरी टीम क्या करे पलक?”...

पलक:– तुम तो यहां बात–चित के लिये आये थे, बात हो जाये तो चले जाना। यदि बात न हो पाये तो आर्यमणि को लापता घोषित कर देना। हां लेकिन कुछ भी करना पर पीछे मत आना, वरना तुम अपने और अपने टीम की हानी के लिये स्वयं जिम्मेदार रहोगे...

महा:– जैसा आप कहो मैम....

पलक चल दी डंपिंग ग्राउंड पर जहां भारती के साथ सैकड़ों नयजो कांटों की चिता पर लेटे थे और मौत को भी भयभीत करने वाली खौफनाक आवाज केवल भारती निकाल रही थी, बाकी सबके मुंह बंधे थे। पलक की टीम पहले ही वहां पहुंच चुकी थी और पहुंचकर कांटों में फसे लोगों को निकालने की कोशिश करने में जुटी थी।

तेजस और नित्या की तरह ये लोग भी कैद थे। पलक समझ गयी की जो लोग मृत्यु सैल्य पर लेटे हैं, उनका कुछ नही हो सकता.... “तुम लोग बेकार कोशिश कर रहे हो। इन्हे जो जहर दिया गया है वह 8 घंटे बाद किसी को मौत के घाट उतरेगा और जिस जोड़ों में ये फसे है, वो 7 घंटे बाद खुलेगा। कोई अपना है तो उन्हे आखरी बार देख लो और बाकियों को छुड़ा लो। सोलस इनका वुल्फ पैक कहां है? यहां तो कोई भी नजर नहीं आ रहा?

सोलस:– हां मैं भी वही देख रहा हूं। अभी कुछ देर पहले तो यहां थे, अभी कहां चले गये?

पलक:– लैपटॉप देखो तुम... कही थी ना बाजी पलटने वाली बात... वो बाजी पलटने गये है?

सोलस:– मतलब..

पलक:– आर्यमणि के पैरालिसिस को हटाने का उपाय ढूंढने...

सोलस:– इसकी जानकारी उसे नही मिल सकती...

पलक:– इतना विश्वास सेहत के लिये हानिकारक है। तुम लैपटॉप पर काम करो.. उसका पूरा ट्रैप अपने कब्जे में होना चाहिए...

सोलस:– लैपटॉप तो ऑन ही है और स्क्रीन को देखो तो समझ में आ जायेगा की कैसा ट्रैप है।

पलक:– क्या ये लैपटॉप ही मुख्य सर्वर है या ये मात्र इस लैपटॉप से ऑपरेट करते है।

सोलस:– नही ये ऑपरेटिंग लैपटॉप है। सर्वर कहीं और है...

पालक:– कहां है सर्वर... पता करो और पूरा सॉफ्टवेयर अपने कब्जे में लो.. और कोई मुझे बतायेगा, ले लोग गये कहां...

सोलस:– गये कहीं भी हो, बाजी पलटने के लिये वापस जरूर आयेंगे... जैसा आप चाहती थी,जर्मनी में जहां भी मुलाकात हो वो जगह आपके अनुकूल हो... तो ये जगह आपके अनुकूल बन गयी है।

पलक:– तुम कमाल के हो सोलस। जीत के बाद हम कुछ दिन साथ बिताएंगे... लेकिन उस से पहले इस जगह को पूर्णतः अपने अनुकूल बनाओ और मुझे एक शानदार जीत दो... चलो, चलो सभी काम पर लग जाओ...

इसके पूर्व आर्यमणि और अलबेली जब मीटिंग हॉल में थे, तभी दोनो अपने शरीर के अंदर चल रहे रिएक्शंस को भांप चुके थे। पर अफसोस इतना वक्त नहीं मिला की उसपर कुछ कर सकते। कुछ करने या सोचने से पहले ही दोनो पैरालाइज हो चुके थे। बदन भी अजीब तरह से अकड़ गया था। अलबेली जब गिरी तो किसी लोहे की मूर्ति की तरह गिरी।

अलबेली जिस पल नीचे गिरी, आर्यमणि का दिमाग सी कुछ पल के लिये सुन्न पड़ गया। बिलकुल खाली और ब्लैंक होना जिसे कहते हैं। अलबेली की मृत्यु का सदमा जैसे रोम–रोम में दौड़ गया हो। हां लेकिन अगले ही पल सुकून भी था, क्योंकि एकलाफ, अलबेली को काटने के लिये तलवार निकाल रहा था।

आर्यमणि अपने मन के संवाद में.... “बेटा ठीक है?”

अलबेली:– दादा मैं सुरक्षित हूं, बस शरीर बेजान लग रहा। अपनी उंगली तक हिला नही पा रही।

आर्यमणि:– बाद में बात करते है। अभी सुरक्षा मंत्र का मजबूत घेरा बनाओ और वायु विघ्न मंत्र का जाप करती रहो। इन कमीनो के पास वायु की वह शक्ति है, जो सुरक्षा चक्र को तोड़ देगी।

अलबेली:– दादा ये क्या सीधा मारने की योजन बनाकर आयी थी?

आर्यमणि:– जो जैसे करेंगे, उनको वैसा ही लौटाएंगे... बेटा बातें बाद में तुम मंत्र जपना शुरू करो...

अलबेली अपने मन में मंत्र जाप करने लगी वहीं आर्यमणि रूही से संपर्क करते.... “रूही एक समस्या हो गयी है और विस्तार से बताने का वक्त नहीं। जितना कहूं उतना करो..

रूही:– हां जान, बोलो...

आर्यमणि:– मन के अंदर ध्यान लगाओ और अपने पास की जमीन से जड़ों को कमांड दो कम से कम 200 फिट नीचे जाये। वहां से उन जड़ों को, हॉल में जहां मैं बैठा था, वहां के आसपास 3 मीटर के गोल हिस्से में फैलाकर भेजो। मुझे और अलबेली को खींचकर नीचे के गड्ढे को मत भरना। हम जैसे ही वहां पहुंचे, संन्यासी शिवम सर हम सबको लेकर अंतर्ध्यान होने के लिये तैयार रहे।

रूही:– बस एक ही सवाल है, अंतर्ध्यान होकर किस जगह जायेंगे...

आर्यमणि:– कैलाश मठ, आचार्य जी के पास...

फिर कोई बात नही हुई। गंध से अल्फा पैक को खबर लग चुकी थी कि उनके आस–पास बहुत सारे लोग आ रहे है। रूही ने मामला बताया और ध्यान लगा दी। निशांत सबको शांत रहने का इशारा करते, भ्रम जाल पूरा फैला दिया, जिसमे अल्फा पैक अलग–अलग जगह पर खड़े होकर अपने दुश्मनों को देख रहे, जबकि सब साथ में खड़े थे।

इधर रूही ने आर्यमणि और अलबेली को खींचा और उधर संन्यासी शिवम् सबको टेलीपोर्ट करके कैलाश मठ ले गये। आर्यमणि और अलबेली को ऐसे अकड़े देख सबको आश्चर्य हो रहा था। संन्यासी शिवम और आचार्य जी कुछ परीक्षण करने के बाद....

“कुछ दुर्लभ जड़ी–बूटी को श्वान के माध्यम से शरीर में पहुंचाया गया है, जिस वजह से ये दोनो पैरालाइज हैं।”

आर्यमणि, रूही से कहा और रूही आचार्य जी से पूछने लगी.... “आचार्य जी वहां बहुत सारे लोग थे लेकिन इसका असर केवल आर्य और अलबेली पर ही क्यों हुआ?”

आचार्य जी:– इसका एक ही निष्कर्ष निकलता है। वहां जितने भी लोग होंगे वो लोग इस जड़ी बूटी का तोड़ अपने शरीर में पहले से लेकर पहुंचे होंगे। इसलिए उन पर कोई असर नहीं किया। लेकिन एक बात जो मेरे समझ में नहीं आयी, उन लोगों को गुरुदेव या अलबेली के शरीर की इतनी जानकारी कैसे, जो तेजी से हील करने वाले को इतनी मात्रा दे गयी की वो पैरालाइज कर जाये।

रूही:– मैं समझी नहीं आचार्य जी। क्या हमारा हीलिंग सिस्टम इस जहर को हील करने के लिये सक्षम है।

आचार्य जी:– जिसने भी ये जहर दिया है उसे भी पता था कि तुम सबका शरीर इस जहर की एक निश्चित मात्रा को हिल कर लेगा। यही नहीं वह निश्चित मात्र किसी सामान्य इंसान के मुकाबले 1000 गुणा ज्यादा दिया जाये तभी तुम लोग पैरालाइज होगे। इतनी ज्यादा मात्रा देने के बारे में सोचना तभी संभव है, जबतक उसने पहले कोई परीक्षण किया हो..

रूही:– मतलब कोई एक ग्राम जड़ी बूटी को सूंघे तब वो पैरालाइज होगा। लेकिन यदि हमें पैरालाइज करना हो तो मात्रा 1 किलो देना होगा। इतना तो कोई सपने में भी नही सोच सकता। लेकिन आचार्य जी इतनी मात्रा को हवा में उड़ाने की गंध आर्य और अलबेली को क्यों नही हुई...

आचार्य जी:– क्योंकि तुमने एक ग्राम का उधारहन दिया, जबकि ऐसी चीजें आधे मिलीग्राम या एक चौथाई मिलीग्राम में ही काम कर जाति है या उस से भी कम में। मेरे ख्याल से 0.10 मिलीग्राम में एक सामान्य इंसान पैरालाइज करता होगा। गुरुदेव और अलबेली के लिये वह मात्रा 100 मिलीग्राम से 1000 मिलीग्राम के बीच होगी। यानी की 1 ग्राम का दसवां हिस्सा से लेकर एक ग्राम के बीच। इतनी मात्र तो हवा में बड़ी आसानी से फैला सकते है।

रूही:– लेकिन कैसे... हाथ में पाउडर डालकर उड़ाते तो हम सुरक्षा मंत्र का प्रयोग कर लेते...

आचार्य जी:– भूलो मत की जो समुदाय हवा में पाये जाने वाले कण से तीर और भाला बना ले, वो हवा में 100 मिलीग्राम तो क्या तुम जितनी मात्रा बोली हो ना... उसका भी 100 गुना ज्यादा ले लो। यानी की वो लोग एक क्विंटल हवा में घोल देंगे तब भी पता न चलने देंगे। हां लेकिन ऐसा करेंगे नही... क्योंकि इतनी मात्रा का तोड़ वो लोग पहले से लेकर नही घूम सकते। इसलिए पैरालाइज करने वाला जहर दिये निश्चित मात्र में ही होंगे, ताकि उतना डोज के हिसाब से वो लोग अपने बदन के अंदर उसका तोड़ पहले से ले सके।

ओजल:– बॉस के हालत की जिम्मेदार मैं और इवान हैं। हम दोनो 3 दिन के लिये पलक के पास कैद थे।

रूही:– “बहुत शातिर है। वह तुम दोनो (ओजल और इवान) को इसलिए नहीं पकड़ी थी कि हमारे प्लान की इनफॉर्मेशन निकाल सके। बल्कि पूछ–ताछ के वक्त ही वो लोग दवा की निश्चित मात्रा का पता लगा रहे होंगे। इस हिसाब से उन्होंने केवल एक दावा का परीक्षण किया हो, ऐसा मान नही सकती। उन्होंने पहले दिन ही सारा एक्सपेरिमेंट कर लिया होगा। उसके बाद तो महज औपचारिकता बची होगी, कब आर्य तुम्हे छुड़ाए, या वहीं रहने दे, उनका काम तो हो चुका था। पूरे मामले पर कैसा कवर भी चढ़ाया। तुम दोनो (ओजल और इवान) के बहरूपिए को भेज दी। ताकि हमारी सोच किसी और ही दिशा में रहे... पलक, पलक, पलक... इतनी शातिर... हां”

ओह हां यह महत्वपूर्ण बात तो रह गयी थी। जिस दिन बहरूपिया ओजल और इवान जर्मनी पहुंचे थे, उसी दिन असली ओजल और इवान को छुड़ा लिया गया था। उन्हे छुड़ाना कोई बड़ी बात नही थी। अंतर्ध्यान होकर सीधा अड्डे पर पहुंचे। पहले नकली वाले को अपने साथ गायब करके असली वाले के पास ले आये। फिर वहां नकली वाले को फंसाकर असली वाले को लेकर अंतर्ध्यान हो गये।

इतना करने के पीछे एक ही मकसद था कि पलक खुद को एक कदम आगे की सोचते रहे। उसे शुरू से लगता रहे की नकली ओजल और इवान अल्फा पैक के साथ है, और असली पलक के गुप्त स्थान के तहखाने में। लेकिन अब पूरे अल्फा पैक को समझ में आ रहा था कि पलक को असली और नकली से घंटा फर्क नही पड़ना था। उसे जो करना था वो कर चुकी थी।

आर्यमणि:– अभी इतनी समीक्षा क्यों... आचार्य जी से कहो जल्द से जल्द मुझे ठीक करे।

रूही:– आचार्य जी मेरी जान कह रहे है कि आप आराम से उनका उपचार करे, हम खतरे से बहुत दूर आ चुके है।

आचार्य जी:– मैं टेलीपैथी सुन सकता हूं...

रूही:– मतलब...

आचार्य जी:– मतलब मन के अंदर चल रही बात को सुन सकता हूं। लेकिन मुझे जिनसे पूछना चाहिए उनसे पूछता हूं... निशांत, शिवम् क्या करे?

निशांत:– आचार्य जी, आर्य अभी एक अनजाने खतरे से बचकर आया है। हमे नही पता की पलक क्या योजना बनाकर आयी है, और वो कितनी खतरनाक हो सकती है...

संन्यासी शिवम्:– हां तो आज के बाद फिर कभी पलक को जानने का मौका भी नहीं मिलेगा। और सबसे अहम बात, अचानक निकलने के क्रम में हमने अपनी बहुत सी चीजें और जानकारी वुल्फ हाउस में छोड़ दिया है। वोल्फ हाउस में वो लोग जितनी देर छानबीन करेंगे, हमारे बारे में उतना ज्यादा जानेंगे। हमे बिना देर किये जाना चाहिए। आचार्य जी, आयुर्वेदाचार्य को मैं ले आता हूं,जबतक आप यहां मौजूद सभी संन्यासियों को सूचना दीजिए कि उन्हें तुरंत निकलना होगा।

रूही:– शिवम् सर ज्यादा लोग मतलब ज्यादा खतरा...

संन्यासी शिवम मुस्कुराते हुये.... “फिर तुम्हे यहीं रुकना चाहिए।

रूही:– अरे माफ कीजिए सर...

संन्यासी शिवम्:– मैं जब तक आता हूं, तब तक गुरुदेव और अलबेली के मस्तिष्क को हील कीजिए। ध्यान रहे 2 मिनट हील करना है और 1 मिनट का रेस्ट। निशांत ये ध्यान रखना आपकी जिम्मेदारी है।

संन्यासी शिवम् और्वेदाचार्य को लाने के लिये अंतर्ध्यान हो गये। वहीं रूही, ओजल और इवान आर्यमणि और अलबेली का माथा थामे उसे हील करने लगे। जैसे ही 2 मिनट हुआ, निशांत ने तीनो का हाथ हटाया। जबतक हील कर रहे थे तब तक तो पता नही चला लेकिन हाथ हटाते ही तीनो का सर चक्करघिन्नी की तरह नाचने लगा.... “कमिनी वो पलक हील करने के बारे में भी सोच रही होगी। किसी तरह उनसे छिपकर हम आर्य को हील करे और हम भी आर्य की तरह पड़े रहे।”...

निशांत, आर्यमणि के चेहरे पर हाथ फेरते.... “कोई इतनी होशियार महज एक साल में नही हो सकती। ये लड़की पैदाइशी होशियार और सबसे टेढ़ा काम हाथ में लेने वाली लगती है। और आर्य उसके नाक के नीचे से उसे उल्लू बनाकर निकला था। उसके कलेजे में आग तो लगेगी ही। पर दोस्त तूने भी कभी जिक्र नहीं किया की पलक जो दिख रही वो मात्र कवर है।”

रूही:– देवर जी क्या बड़बड़ा रहे हो...

निशांत:– चूहे बिल्ली के खेल में जज नही कर पा रहा की कौन बेहतर है।

रूही:– हमसे साझा करो, शायद मदद कर सके। नही भी कर पाये तो कम से कम 2 बेहतर खिलाड़ी का तो पता चलेगा...

निशांत:– “खिलाड़ी है पलक और आर्य.... आर्य जनता था कि उसे आखरी समय में कोई सरप्राइज जरूर मिलेगा, इसलिए पूरी टीम को 2 हिस्से में बांट दिया। खुद पलक से मिला जबकि हमे दूर रखा। मेरा दिमाग कहता है कि पलक इस वक्त वुल्फ हाउस में ही होगी। जैसे उसे पहले से पता हो की आर्य उसके चंगुल से भागेगा ही।”

“वो बैठकर वुल्फ हाउस में हमारा इंतजार कर रही है, इस उम्मीद में कि उसने जो जहर आर्य को दिया है, उस से किसी न किसी विधि से आर्य पार पा जायेगा। ना पलक आर्य को अभी मारने का सोच रही, और न ही आर्य पलक को अभी मारने का सोच रहा। दोनो बस हर संभावना को देखते हुये जैसे एक दूसरे को परख रहे हो...

रूही:– परख रहे हो का मतलब...शादी करेगी क्या मेरे पति से। उसकी लाश मैं ही गिराऊंगी...

निशांत:– अभी अपने गुस्से को काबू रखिए। हमने नायजो के बारे में जितनी भी जानकारी जुटाई है, वह अधूरी लग रही है। अभी एक ही विनती है आवेश में नही आइएगा... वरना सबकी जान खतरे में पड़ जायेगी..

रूही:– देवर जी मैं अपने और अपने बच्चों की जिम्मेदारी लेती हूं... किसी को भी आवेश में आने नही दूंगी...

लगभग 1 घंटे लग गये। संन्यासी शिवम किसी को लेकर आ रहे थे। इधर जबतक 2 मिनट का हील और एक मिनट का आराम चल रहा था। आयुर्वेदाचार्य जी आर्यमणि और अलबेली के नब्ज को देखे। फिर कुछ औषधि को दोनो के नाक में पूरा ठूंसकर छोड़ दिये। 10 सेकंड बीते होंगे जब आर्यमणि और अलबेली का चेहरा लाल होने लगा। 10 सेकंड और बीते तब माथे पर सिकन आने लगी। और पूरे 30 सेकंड बाद अलबेली और आर्यमणि खांसते हुये उठकर बैठ गये। दोनो को उठकर बैठे देख रूही, ओजल और इवान ऐसे झपटकर गले लगे की पांचों जमीन पर ही बिछ गये।
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Kadak update the dono bhai, kya cover fade ho, Nishant ne akhir Khulasha kr hi diya, ki yha arya or palak ke Bich Mai balwan Mai balwan Chal rha tha or sayad aage bhi chalta rahega...

Vaidhyaraj ne kuchh hi kshan me Thik kr diya pr ruhi Ojal Evan ne bhi 2-2 minute tk jahar sokhne ka kaam kiya...

Kya ab arya log us dva ka antidote Pahle se lekr jayenge...

Palak ne Ojal or Evan pr kon kon se experiment kiye the, kya unka vivran bhi aayega, Vaise arya ne Sayad nitya logo ki baat sun kar Pahle se hi kuchh socha hua hai, udhar kaha gya tha ki surpmarich ko durlabh jadibutiyo ka gyan nayjo ne hi diya tha to jahir hai unhone khud ke liye bhi jadibutiyo ka gyan viksit kiya hoga or to or yha palak ne werewolf blood va Anya experiment Apne sarir me nhi karvaye hai to gyan liya hoga uniqe jadibutiyo vala...

Palak ne arya ka laptop Apne kabje me kr liya hai or wolf house ko apne anukul banvane me lagi hui hai, Dekhte hai kya kya badalva paati hai...

Sanyashi shivam ji ne kaha ki vaha pr aisa Bahut kuchh hai jo unke hath lag jaye to khatra badh sakta hai to kya koi kill switch nhi socha in logo ne, ki koi sabut hi na mile asram ki tecnology ka...

Eklaf ne yha Albeli ko marne ki Kosis ki pr arya ke chalte vo nakamyab rha, Lekin aaj palak NE Jo order diya tha ki maar do un sabhi ko jo arya ke sath hai, sach me dil tod diya Usne aisa kahkr, mujhe lagta hai Apne sanju bhaya ko hmesha ek kathputli lagne vali palak isbar kathputli nhi lagegi...

Maha ko to kuchh bolne hi nhi diya or vo ab palak ke instructions ka intjar kr rha hai alag rahkr...

Superb bhai
 
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