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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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The king

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भाग:–104




आर्यमणि:– हम्मम…. किताब का एलियन तक पहुंचने का ये राज था। एक सवाल अब भी मन में है। आपकी ये छड़ी और वो चेन...


जादूगर:– "छड़ी एक नागमणि की बनी है। मैं इक्छाधारि नाग के समुदाय का काफी करीबी रहा था। उनकी हर समस्या में सबसे आगे रहकर उनकी मदद की थी। उसी से खुश होकर इक्छाधारी नाग के राजा त्रिनेत्रा ने मुझे यह विषेश छड़ी भेंट स्वरूप दिया था। हालांकि मैं भौतिक वस्तु पर ज्यादा यकीन नही करता था लेकिन राजा त्रिनेत्रा की ये छड़ी जैसे कोई एम्प्लीफायर हो। किसी भी मंत्र की शक्ति को चाहूं तो पृथ्वी सा विशाल बना दूं या चींटी के समान छोटी।"

"यह छड़ी पहली ऐसी भौतिक वस्तु थी जिसे मैं प्रयोग में लाता था। इसके अलावा मुझे कई अलौकिक पत्थर मिले लेकिन मैने एक भी अपने पास नही रखा। मुझे मिले ज्यादातर पत्थर मैने नष्ट कर दिये। कुछ पत्थर मैने अपने चेलों में बांट दिया। उसी दौड़ में मैने हिंद महासागर के गर्भ से यह शक्तिशाली चेन निकाला था। यह दूसरी ऐसी भौतिक वस्तु होती जिसका प्रयोग मैं करने वाला था, लेकिन ऐसा हो उस से पहले ही आश्रम वालों चेन के साथ कांड कर दिया।"

"एक बात सबसे आखिर में कहना चाहूंगा। मैं बुरा हूं लेकिन सिद्धातों वाला बुरा इंसान हूं जिसे अमर जीवन नही चाहिए था। जो भौतिक वस्तु पर आश्रित नहीं था और न ही मन में कभी यह ख्याल आया की अपने छड़ी के दम पर पूरे श्रृष्टि को घुटने पर लाया जाये। मैने कभी किसी स्त्री, ब्राह्मण, बच्चे, अथवा दुर्बलों का शिकर नही किया। मैं उन्ही को मरता अथवा कैद करता था जो या तो विकृत हो या लड़ना जिनका धर्म हो।"


आर्यमणि:– चलो कहानी पसंद आयी। ठीक है मुझे २ दिन का वक्त दो, मैं आपके प्रस्ताव पर विचार करके बताता हूं कि क्या करना है? आपके साथ एलियन का शिकर या फिर जो मैने सोच रखा है उसी हिसाब से आगे बढ़ा जाये।


जादूगर:– देखो जरा जल्दी सोचना। इंसानी शरीर के अंदर आत्मा ज्यादा धैर्यवान होती है, लेकिन उसके बाहर बिलकुल भी धैर्य नहीं रहता।


आर्यमणि:– आपने मुझे अयोग्य बताया था, ये बात भूलिए नही। पहले समझ तो लूं कि उन एलियन से लड़ना भी है या नही।


जादूगर:– क्यों एक ही बात को दिल से लगाये बैठे हो। तुम बहुत ज्यादा संतुलित इंसान हो, जिसकी क्षमता वह खुद नही जानता। तुम्हे मुझ जैसे ही एक एम्प्लीफायर की जरूरत है आर्यमणि, जो तुम्हे तुम्हारी सम्पूर्ण शिक्षा से अवगत करवा सके। तुम्हारे जन्म के समय नरसिम्हा योजन किया गया था, तुम पर उसी का पूरा प्रभाव है। ऊपर से विपरीत किंतु अलौकिक नक्षत्र का संपूर्ण प्रभाव। तुम चाहो तो ये समस्त ब्रह्माण्ड, फिर वह मूल दुनिया का ब्रह्मांड हो या विपरीत दुनिया का, ऐसे घूम सकते हो जैसे अपने घर–आंगन में घूम रहे हो।


आर्यमणि:– बातें बड़ी लुभावनी है, लेकिन फिर भी पहले मैं सोचूंगा... अब आप ऐसी जगह जाओ, जहां से हमे सुन न सको। और हां जाने से पहले ये बताते जाओ की मुझे कहा गया था किताब अपने आस–पास किसी विकृत को देखकर इशारे करेगी, लेकिन ये किताब इशारे नही कर रही?


जादूगर:– साथ काम भी नही करना और जानकारी भी पूरी चाहिए। सुनो भेड़िए, यह किताब ऑटोमेटिक और मैनुअल मोड पर चलती है। ऑटोमेटिक मोड पर किताब तुम्हे किसी खतरनाक विकृत के आस पास होने की मौजूदगी का एहसास करवाएगा, क्योंकि संसार में पग–पग पर चोर बईमान और भ्रष्ट लोगों की कमी नही। मैनुअल मोड से तुम्हे किसी का अलर्ट चाहिए तो मैनुअल मोड का मंत्र पढ़ो और जिसका अलर्ट चाहिए उसका स्मरण कर लेना। यदि जिसका स्मरण कर रहे उसे पहले कभी किताब ने मेहसूस किया होगा तब तुम सोच भी नही सकते की यह किताब क्या जानकारियां दे सकती है।


आर्यमणि:– और किताब जिसके संपर्क में नही आयी हो, उसका स्मरण कर रहे हो तब?


जादूगर:– स्मरण करके छोड़ दो। किताब के संपर्क में आते ही किताब तुम्हे उसका अलर्ट भेज देगी और एक बार वह किताब के संपर्क में आ गया, फिर वह कभी भी किताब के नेटवर्क एरिया से बाहर नहीं हो सकता। अब मैं चला, विचार जल्दी करके बताना... और हां.. साथ काम करने पर ही विचार करना...


आर्यमणि:– अरे कहां भागे जा रहे। किसी के अलर्ट का मैनुअल मोड कैसे ऑन होता है, उसका मंत्र दोबारा तो बताते जाओ...


जादूगर मंत्र बताकर उड़ गया और आर्यमणि किताब पर मंत्रों का जाप कर, जादूगर की निगरानी के लिये किताब को पहले प्रयोग में लाया। मंत्र के प्रयोग करते ही जो जानकारी पहले उभर कर सामने आयी उसे देखकर आर्यमणि दंग था। किताब न सिर्फ जादूगर से आर्यमणि की दूरी बता रहा था, बल्कि वह कहां–कहां विस्थापित हो रहा था, यह भी लगातार उस किताब मे अंकित होता। जादूगर, आर्यमणि को देख सकता है अथवा नहीं, या सुन सकता है या नही, यह भी किताब में अंकित था।


आर्यमणि को जैसे–जैसे किताब की विशेषता ज्ञात हो रही थी, उसके आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं था। लगातार २ रात सोच में निकल गयी। इधर तीनो टीन वुल्फ अपने टीम को जीत के रथ पर आगे बढ़ाते खेल का पूरा आनंद ले रहे थे। तीनो अक्सर हो सोचते थे, काश हर किसी को खेल से इतना प्रेम होता तो फिर सारे झगड़े खेल के मैदान पर ही सुलझा लिये जाते। खेल जोश है, जुनून है और इन सबसे से बढ़कर अलग–अलग मकसद से जी रहे लोग, एक लक्ष्य के लिये काम करते है। जीवन का प्यारा अनुभव था जो यह तीनो ले रहे थे।


तीसरे दिन आर्यमणि अकेले ही जादूगर के पास पहुंचा।दोनो जंगल में मिल रहे थे। आर्यमणि जादूगर की योजना पर सहमति जताते एलियन के पास जादूगर को ले जाने के लिये तैयार हो गया। आर्यमणि की केवल एक ही शर्त थी, 2 महीने बाद पलक से होने वाली मुलाकात के बाद जादूगर के शरीर को नष्ट करके, उसके आत्मा को मुक्त कर दिया जायेगा।


पहले तो जादूगर इस शर्त के लिये तैयार नहीं हुआ। उसे तो सबको मरते देखना था, खासकर सुकेश, उज्जवल और तेजस को। लेकिन आर्यमणि जादूगर के प्रस्ताव को ठुकराकर अपनी बात पर अड़ा रहा। जादूगर और आर्यमणि के बीच थोड़ी सी बहस भी हो गयी लेकिन जैसे ही जादूगर को पता चला की पलक से मुलाकात के वक्त वहां नित्या भी होगी, वह झट से मान गया। जादूगर अट्टहास भरी हंसी हंसते हुये इतना ही कहा.….. "चलो सुकेश और उज्जवल न सही, लेकिन जाने से पहले अपने साथ तेजस को साथ लिये जाऊंगा।"…


जादूगर के इस बात पर आर्यमणि मजे लेते कहा भी... "तेजस क्या भारत से टेलीपोर्ट होकर आयेगा?"..


जादूगर:– नित्या जहां होगी, तेजस वहां मिलेगा ही। तुम चिंता न करो। मुझे तुम्हारी शर्त मंजूर है। लेकिन एक बात बताओ एलियन के उच्च–सुरक्षा वाले साइंस लैब से मेरा शरीर निकलोगे कैसे और जलाओगे कैसे?


आर्यमणि:– अब जब काम ठान लिया है तो रास्ता भी निकल आयेगा, लेकिन सैकड़ों वर्ष पुरानी आत्मा को इस लोक में ज्यादा देर रोकना अच्छी बात नही। क्या समझे जादूगर महान जी।


जादूगर:– कर्म के पक्के और लक्ष्य से ना भटकने वाले। सामने इतने सशक्त दुश्मन (एलियन) होने के बावजूद उन दुश्मनों से टक्कर लेने वाले को पहले विदा कर रहे। कर्म का पहला अध्याय आत्मा की मोक्ष प्रथम प्राथमिकता होनी चाहिए।


आर्यमणि:– आत्मा किसी की भी हो मायालोक में ज्यादा वक्त बिताने के बाद उस से बड़ा विकृत कोई नही।


जादूगर:– ओ भाई मैं मरी हुई लाश की आत्मा नही हूं, इसलिए मेरी विकृति को आत्मा की विकृति न मानो।


आर्यमणि:– क्या करे जादूगर जी। आत्मा तो आत्मा होती है। कर्म ने बुलावा दिया है तो पहले आपकी मुक्ति ही जरूरी है।


जादूगर:– हम्मम!!! तुम्हारे फैसले का स्वागत है। वैसे एक बात खाए जा रही है, मैं तुम्हे दुनिया भर का दुर्लभ ज्ञान देना चाहता हूं और मेरी मदद के बदले केवल तुमने मेरी ही मुक्ति की शर्त रखी?


आर्यमणि:– इसमें ज्यादा क्या दिमाग लगाना जादूगर जी। मैं आपसे कोई उम्मीद लगाये रखूंगा तो आपकी उम्मीद भी बढ़ेगी। फिर आपकी शर्त भी सुननी होगी। हो सकता है मोह वश मैं 500 साल पुराने शरीर में आपकी आत्मा को विस्थापित कर दूं। इसलिए मैं कोई उम्मीद नहीं लगाए बैठा। बिना किसी गलत तरीके के और बिना कोई गलत गुरु दक्षिणा लिये, जितना ज्ञान आप मुझे सिखाना चाहो सीखा दो। मैं और मेरा पैक कुछ नया सीखने के लिये हमेशा तत्पर रहते है।


जादूगर:– पहले ही कहा था, तुम बहुत संतुलित हो। कल सुबह से ही मैं ज्ञान बांटना शुरू करूंगा। किसी भी गलत विधि (गलत विधि अर्थात नर या पशु बलि लेकर सिद्धि प्राप्त करना) का ज्ञान नही होगा और गुरु दक्षिणा में सिर्फ इतना ही.… जिस वक्त किताब में मेरे अंत की जीवनी में मुझे एक शुद्ध आत्मा घोषित कर दे, मैं चाहता हूं तुम मुझे केवल उन्हीं अच्छे कर्मों के लिये याद करो जो मैं कल से तुम्हारे साथ शुरू करने वाला हूं।


आर्यमणि:– क्या आप यह कहना चाह रहे हो की आप सुधर गये?


जादूगर:– जब मुझे खुद यकीन नही की मैं सुधर सकता हूं फिर तुम कैसे सोच लिये की मैं सुधरना चाह रहा। बस शुद्ध रूप से, बिना किसी छल के मैं तुम्हे और तुम्हारे पैक को पूर्ण ज्ञान देना चाहता हूं। मेरे आत्मा की यह भावना किताब जरूर मेहसूस करेगी...


आर्यमणि:– कमाल है। इतनी कृपा बरसाने की वजह..


जादूगर:– "जिस वक्त मैं था, उस वक्त और कोई नही था। सात्विक आश्रम को हम जैसे विकृत लोग बर्बाद कर चुके थे। वैदिक और सनातनी आश्रम का तो उस से भी बुरा हाल था। आश्रम के जितने भी लड़ने वाले मिले, उनमें ऐसा लगा जैसे पूर्ण ज्ञान है ही नही। मैं तो आश्रम में महर्षि गुरु वशिष्ठ जैसे ज्ञानी को ढूंढता था, लेकिन कोई भी उनके बराबर तो क्या एक चौथाई भी नही था।"

"बराबर की टक्कर के दुश्मन से लड़ो तो बल और बुद्धि में वृद्धि होती है। वहीं अपने से दुर्बल से लड़ो तो केवल अहंकार में वृद्धि होती है। वही अहंकार जो एक महाबली और महाज्ञानी के अंदर आ गया और उसका सर्वनाश हो गया। मैं अपने आराध्य महाज्ञानि रावण की बात कर रहा। बस केवल उनकी गलती को अपने अंदर नही आने दिया बाकी अनुसरण मैं उन्ही का करता हूं।"

"अब मैं अपने जीवन के आखरी वक्त में बिना किसी लालच के आश्रम के एक नौसिखिए गुरु को ज्ञान के उस ऊंचाई पर देखना चाहता हूं, जिसे मैं अपने सम्पूर्ण जीवन काल में ढूढता रहा। मेरी मृत्यु यदि गुरु वशिष्ठ जैसे किसी महर्षि के हाथों होती तो ही वह एक सही मृत्यु होती। लेकिन मेरी बदकिश्मति थी जो आश्रम में उन जैसा कोई नहीं था। जाने से पहले अपने पूर्ण जीवन काल के एक अधूरी इच्छा को पूरी करके जाना चाहता हूं। मैं गुरु वशिष्ठ जैसा ज्ञानी तो नही क्योंकि उनकी ज्ञान की परिभाषा तो उनकी रचित यह पुस्तक देती है लेकिन जाने से पहले वह तरीका सीखा कर जाऊंगा जिसके मार्ग पर चकते हुये शायद किसी दिन तुम गुरु महर्षि वशिष्ठ के बराबर या उनसे आगे निकल जाओ"


आर्यमणि:– चलो आपकी इस बात पर यकीन करके देखता हूं। पता तो चल ही जायेगा की आपकी बातों में कितनी सच्चाई है। शाम ढलने वाली है, मेरा पूरा परिवार कॉटेज पहुंच चुका होगा, मैं जा रहा हूं।


जादूगर:– ठीक है फिर जाओ। अब तो बस तुम्हे सिखाते हुये 60 दिन निकालने है। उसके बाद दिल के नासूर जख्म को मलहम लगेगा, जब तेजस से मुलाकात होगी...


आर्यमणि:– अरे जख्मों पर धीरे–धीरे मलहम लगाते हुये हम जर्मनी पहुंचेंगे। यूं ही नही मैने 60 दिन का वक्त लिया है।


जादूगर:– मतलब?


आर्यमणि:– मैं इतना भी मूर्ख नहीं जो यह न समझ सकूं की वह एलियन जितना मेरे लिये पहेली है, उतना ही आपके लिये भी। यह तो आपको पता होगा की मैं सुकेश के संग्रहालय को लूटकर भागा हूं, तभी मेरे पास वह चेन और आपकी दंश है। लेकिन आपको ये पता नही की, उन एलियन को लगता है कि मैं केवल अनंत कीर्ति की किताब लेकर भागा हूं और कोई छिपा हुआ गैंग उनका खजाने में सेंध मार गया। भागते वक्त ऐसा जाल बुना था की वह एलियन अपने कीमती खजाने को जगह–जगह तलाश कर रहे। उनकी एक टुकड़ी मैक्सिको और दूसरी टुकड़ी अर्जेंटीना पहुंच चुकी है। इसके अलावा मुझे इनके 4 और टुकड़ी के बारे में पता है जो अलग–अलग जगहों पर अपने संग्रहालय से चोरी हुई समान की छानबीन करते हुये धीरे–धीरे मेरे ओर बढ़ रहे। 10 दिनो में तीनो टीन वुल्फ का स्कूल गेम समाप्त हो जायेगा उसके बाद हम शिकार पर निकलेंगे। दुश्मन की अलग–अलग टुकड़ी को नापते हुये सबसे आखरी में मैं पलक से मिलने पहुंचूंगा... क्या समझे जादूगर जी... 10 दिन बाद से जो एक्शन शुरू होगा वह सीधा 2 महीने बाद ही समाप्त होगा। उम्मीद है यह खबर सुनकर आप कुछ ज्यादा ही उत्साहित हो चुके होंगे... अब मैं चलता हूं, आप अपना 10 दिन का काउंट डाउन शुरू कर दीजिए.…


जादूगर महान दंश के जरिए अपनी भावना नहीं दिखा सकता था वरना जादूगर अपने दोनो हाथ जोड़कर मुस्कुराते हुये नजर आता। जादूगर समझ चुका था कि कैसे योजनाबद्ध तरीके से आर्यमणि ने उन छिपे एलियन को न सिर्फ उनके छिपे बिल से निकाला, बल्कि एक जुट संगठन को कई टुकड़ी में विभाजित करके अलग–अलग जगहों पर जाने के लिये मजबूर कर दिया। अब होगा शिकार। एक अनजान दुश्मन को पूरी तरह से जानने की प्रक्रिया।
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@09vk

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आर्यमणि:– हम्मम…. किताब का एलियन तक पहुंचने का ये राज था। एक सवाल अब भी मन में है। आपकी ये छड़ी और वो चेन...


जादूगर:– "छड़ी एक नागमणि की बनी है। मैं इक्छाधारि नाग के समुदाय का काफी करीबी रहा था। उनकी हर समस्या में सबसे आगे रहकर उनकी मदद की थी। उसी से खुश होकर इक्छाधारी नाग के राजा त्रिनेत्रा ने मुझे यह विषेश छड़ी भेंट स्वरूप दिया था। हालांकि मैं भौतिक वस्तु पर ज्यादा यकीन नही करता था लेकिन राजा त्रिनेत्रा की ये छड़ी जैसे कोई एम्प्लीफायर हो। किसी भी मंत्र की शक्ति को चाहूं तो पृथ्वी सा विशाल बना दूं या चींटी के समान छोटी।"

"यह छड़ी पहली ऐसी भौतिक वस्तु थी जिसे मैं प्रयोग में लाता था। इसके अलावा मुझे कई अलौकिक पत्थर मिले लेकिन मैने एक भी अपने पास नही रखा। मुझे मिले ज्यादातर पत्थर मैने नष्ट कर दिये। कुछ पत्थर मैने अपने चेलों में बांट दिया। उसी दौड़ में मैने हिंद महासागर के गर्भ से यह शक्तिशाली चेन निकाला था। यह दूसरी ऐसी भौतिक वस्तु होती जिसका प्रयोग मैं करने वाला था, लेकिन ऐसा हो उस से पहले ही आश्रम वालों चेन के साथ कांड कर दिया।"

"एक बात सबसे आखिर में कहना चाहूंगा। मैं बुरा हूं लेकिन सिद्धातों वाला बुरा इंसान हूं जिसे अमर जीवन नही चाहिए था। जो भौतिक वस्तु पर आश्रित नहीं था और न ही मन में कभी यह ख्याल आया की अपने छड़ी के दम पर पूरे श्रृष्टि को घुटने पर लाया जाये। मैने कभी किसी स्त्री, ब्राह्मण, बच्चे, अथवा दुर्बलों का शिकर नही किया। मैं उन्ही को मरता अथवा कैद करता था जो या तो विकृत हो या लड़ना जिनका धर्म हो।"


आर्यमणि:– चलो कहानी पसंद आयी। ठीक है मुझे २ दिन का वक्त दो, मैं आपके प्रस्ताव पर विचार करके बताता हूं कि क्या करना है? आपके साथ एलियन का शिकर या फिर जो मैने सोच रखा है उसी हिसाब से आगे बढ़ा जाये।


जादूगर:– देखो जरा जल्दी सोचना। इंसानी शरीर के अंदर आत्मा ज्यादा धैर्यवान होती है, लेकिन उसके बाहर बिलकुल भी धैर्य नहीं रहता।


आर्यमणि:– आपने मुझे अयोग्य बताया था, ये बात भूलिए नही। पहले समझ तो लूं कि उन एलियन से लड़ना भी है या नही।


जादूगर:– क्यों एक ही बात को दिल से लगाये बैठे हो। तुम बहुत ज्यादा संतुलित इंसान हो, जिसकी क्षमता वह खुद नही जानता। तुम्हे मुझ जैसे ही एक एम्प्लीफायर की जरूरत है आर्यमणि, जो तुम्हे तुम्हारी सम्पूर्ण शिक्षा से अवगत करवा सके। तुम्हारे जन्म के समय नरसिम्हा योजन किया गया था, तुम पर उसी का पूरा प्रभाव है। ऊपर से विपरीत किंतु अलौकिक नक्षत्र का संपूर्ण प्रभाव। तुम चाहो तो ये समस्त ब्रह्माण्ड, फिर वह मूल दुनिया का ब्रह्मांड हो या विपरीत दुनिया का, ऐसे घूम सकते हो जैसे अपने घर–आंगन में घूम रहे हो।


आर्यमणि:– बातें बड़ी लुभावनी है, लेकिन फिर भी पहले मैं सोचूंगा... अब आप ऐसी जगह जाओ, जहां से हमे सुन न सको। और हां जाने से पहले ये बताते जाओ की मुझे कहा गया था किताब अपने आस–पास किसी विकृत को देखकर इशारे करेगी, लेकिन ये किताब इशारे नही कर रही?


जादूगर:– साथ काम भी नही करना और जानकारी भी पूरी चाहिए। सुनो भेड़िए, यह किताब ऑटोमेटिक और मैनुअल मोड पर चलती है। ऑटोमेटिक मोड पर किताब तुम्हे किसी खतरनाक विकृत के आस पास होने की मौजूदगी का एहसास करवाएगा, क्योंकि संसार में पग–पग पर चोर बईमान और भ्रष्ट लोगों की कमी नही। मैनुअल मोड से तुम्हे किसी का अलर्ट चाहिए तो मैनुअल मोड का मंत्र पढ़ो और जिसका अलर्ट चाहिए उसका स्मरण कर लेना। यदि जिसका स्मरण कर रहे उसे पहले कभी किताब ने मेहसूस किया होगा तब तुम सोच भी नही सकते की यह किताब क्या जानकारियां दे सकती है।


आर्यमणि:– और किताब जिसके संपर्क में नही आयी हो, उसका स्मरण कर रहे हो तब?


जादूगर:– स्मरण करके छोड़ दो। किताब के संपर्क में आते ही किताब तुम्हे उसका अलर्ट भेज देगी और एक बार वह किताब के संपर्क में आ गया, फिर वह कभी भी किताब के नेटवर्क एरिया से बाहर नहीं हो सकता। अब मैं चला, विचार जल्दी करके बताना... और हां.. साथ काम करने पर ही विचार करना...


आर्यमणि:– अरे कहां भागे जा रहे। किसी के अलर्ट का मैनुअल मोड कैसे ऑन होता है, उसका मंत्र दोबारा तो बताते जाओ...


जादूगर मंत्र बताकर उड़ गया और आर्यमणि किताब पर मंत्रों का जाप कर, जादूगर की निगरानी के लिये किताब को पहले प्रयोग में लाया। मंत्र के प्रयोग करते ही जो जानकारी पहले उभर कर सामने आयी उसे देखकर आर्यमणि दंग था। किताब न सिर्फ जादूगर से आर्यमणि की दूरी बता रहा था, बल्कि वह कहां–कहां विस्थापित हो रहा था, यह भी लगातार उस किताब मे अंकित होता। जादूगर, आर्यमणि को देख सकता है अथवा नहीं, या सुन सकता है या नही, यह भी किताब में अंकित था।


आर्यमणि को जैसे–जैसे किताब की विशेषता ज्ञात हो रही थी, उसके आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं था। लगातार २ रात सोच में निकल गयी। इधर तीनो टीन वुल्फ अपने टीम को जीत के रथ पर आगे बढ़ाते खेल का पूरा आनंद ले रहे थे। तीनो अक्सर हो सोचते थे, काश हर किसी को खेल से इतना प्रेम होता तो फिर सारे झगड़े खेल के मैदान पर ही सुलझा लिये जाते। खेल जोश है, जुनून है और इन सबसे से बढ़कर अलग–अलग मकसद से जी रहे लोग, एक लक्ष्य के लिये काम करते है। जीवन का प्यारा अनुभव था जो यह तीनो ले रहे थे।


तीसरे दिन आर्यमणि अकेले ही जादूगर के पास पहुंचा।दोनो जंगल में मिल रहे थे। आर्यमणि जादूगर की योजना पर सहमति जताते एलियन के पास जादूगर को ले जाने के लिये तैयार हो गया। आर्यमणि की केवल एक ही शर्त थी, 2 महीने बाद पलक से होने वाली मुलाकात के बाद जादूगर के शरीर को नष्ट करके, उसके आत्मा को मुक्त कर दिया जायेगा।


पहले तो जादूगर इस शर्त के लिये तैयार नहीं हुआ। उसे तो सबको मरते देखना था, खासकर सुकेश, उज्जवल और तेजस को। लेकिन आर्यमणि जादूगर के प्रस्ताव को ठुकराकर अपनी बात पर अड़ा रहा। जादूगर और आर्यमणि के बीच थोड़ी सी बहस भी हो गयी लेकिन जैसे ही जादूगर को पता चला की पलक से मुलाकात के वक्त वहां नित्या भी होगी, वह झट से मान गया। जादूगर अट्टहास भरी हंसी हंसते हुये इतना ही कहा.….. "चलो सुकेश और उज्जवल न सही, लेकिन जाने से पहले अपने साथ तेजस को साथ लिये जाऊंगा।"…


जादूगर के इस बात पर आर्यमणि मजे लेते कहा भी... "तेजस क्या भारत से टेलीपोर्ट होकर आयेगा?"..


जादूगर:– नित्या जहां होगी, तेजस वहां मिलेगा ही। तुम चिंता न करो। मुझे तुम्हारी शर्त मंजूर है। लेकिन एक बात बताओ एलियन के उच्च–सुरक्षा वाले साइंस लैब से मेरा शरीर निकलोगे कैसे और जलाओगे कैसे?


आर्यमणि:– अब जब काम ठान लिया है तो रास्ता भी निकल आयेगा, लेकिन सैकड़ों वर्ष पुरानी आत्मा को इस लोक में ज्यादा देर रोकना अच्छी बात नही। क्या समझे जादूगर महान जी।


जादूगर:– कर्म के पक्के और लक्ष्य से ना भटकने वाले। सामने इतने सशक्त दुश्मन (एलियन) होने के बावजूद उन दुश्मनों से टक्कर लेने वाले को पहले विदा कर रहे। कर्म का पहला अध्याय आत्मा की मोक्ष प्रथम प्राथमिकता होनी चाहिए।


आर्यमणि:– आत्मा किसी की भी हो मायालोक में ज्यादा वक्त बिताने के बाद उस से बड़ा विकृत कोई नही।


जादूगर:– ओ भाई मैं मरी हुई लाश की आत्मा नही हूं, इसलिए मेरी विकृति को आत्मा की विकृति न मानो।


आर्यमणि:– क्या करे जादूगर जी। आत्मा तो आत्मा होती है। कर्म ने बुलावा दिया है तो पहले आपकी मुक्ति ही जरूरी है।


जादूगर:– हम्मम!!! तुम्हारे फैसले का स्वागत है। वैसे एक बात खाए जा रही है, मैं तुम्हे दुनिया भर का दुर्लभ ज्ञान देना चाहता हूं और मेरी मदद के बदले केवल तुमने मेरी ही मुक्ति की शर्त रखी?


आर्यमणि:– इसमें ज्यादा क्या दिमाग लगाना जादूगर जी। मैं आपसे कोई उम्मीद लगाये रखूंगा तो आपकी उम्मीद भी बढ़ेगी। फिर आपकी शर्त भी सुननी होगी। हो सकता है मोह वश मैं 500 साल पुराने शरीर में आपकी आत्मा को विस्थापित कर दूं। इसलिए मैं कोई उम्मीद नहीं लगाए बैठा। बिना किसी गलत तरीके के और बिना कोई गलत गुरु दक्षिणा लिये, जितना ज्ञान आप मुझे सिखाना चाहो सीखा दो। मैं और मेरा पैक कुछ नया सीखने के लिये हमेशा तत्पर रहते है।


जादूगर:– पहले ही कहा था, तुम बहुत संतुलित हो। कल सुबह से ही मैं ज्ञान बांटना शुरू करूंगा। किसी भी गलत विधि (गलत विधि अर्थात नर या पशु बलि लेकर सिद्धि प्राप्त करना) का ज्ञान नही होगा और गुरु दक्षिणा में सिर्फ इतना ही.… जिस वक्त किताब में मेरे अंत की जीवनी में मुझे एक शुद्ध आत्मा घोषित कर दे, मैं चाहता हूं तुम मुझे केवल उन्हीं अच्छे कर्मों के लिये याद करो जो मैं कल से तुम्हारे साथ शुरू करने वाला हूं।


आर्यमणि:– क्या आप यह कहना चाह रहे हो की आप सुधर गये?


जादूगर:– जब मुझे खुद यकीन नही की मैं सुधर सकता हूं फिर तुम कैसे सोच लिये की मैं सुधरना चाह रहा। बस शुद्ध रूप से, बिना किसी छल के मैं तुम्हे और तुम्हारे पैक को पूर्ण ज्ञान देना चाहता हूं। मेरे आत्मा की यह भावना किताब जरूर मेहसूस करेगी...


आर्यमणि:– कमाल है। इतनी कृपा बरसाने की वजह..


जादूगर:– "जिस वक्त मैं था, उस वक्त और कोई नही था। सात्विक आश्रम को हम जैसे विकृत लोग बर्बाद कर चुके थे। वैदिक और सनातनी आश्रम का तो उस से भी बुरा हाल था। आश्रम के जितने भी लड़ने वाले मिले, उनमें ऐसा लगा जैसे पूर्ण ज्ञान है ही नही। मैं तो आश्रम में महर्षि गुरु वशिष्ठ जैसे ज्ञानी को ढूंढता था, लेकिन कोई भी उनके बराबर तो क्या एक चौथाई भी नही था।"

"बराबर की टक्कर के दुश्मन से लड़ो तो बल और बुद्धि में वृद्धि होती है। वहीं अपने से दुर्बल से लड़ो तो केवल अहंकार में वृद्धि होती है। वही अहंकार जो एक महाबली और महाज्ञानी के अंदर आ गया और उसका सर्वनाश हो गया। मैं अपने आराध्य महाज्ञानि रावण की बात कर रहा। बस केवल उनकी गलती को अपने अंदर नही आने दिया बाकी अनुसरण मैं उन्ही का करता हूं।"

"अब मैं अपने जीवन के आखरी वक्त में बिना किसी लालच के आश्रम के एक नौसिखिए गुरु को ज्ञान के उस ऊंचाई पर देखना चाहता हूं, जिसे मैं अपने सम्पूर्ण जीवन काल में ढूढता रहा। मेरी मृत्यु यदि गुरु वशिष्ठ जैसे किसी महर्षि के हाथों होती तो ही वह एक सही मृत्यु होती। लेकिन मेरी बदकिश्मति थी जो आश्रम में उन जैसा कोई नहीं था। जाने से पहले अपने पूर्ण जीवन काल के एक अधूरी इच्छा को पूरी करके जाना चाहता हूं। मैं गुरु वशिष्ठ जैसा ज्ञानी तो नही क्योंकि उनकी ज्ञान की परिभाषा तो उनकी रचित यह पुस्तक देती है लेकिन जाने से पहले वह तरीका सीखा कर जाऊंगा जिसके मार्ग पर चकते हुये शायद किसी दिन तुम गुरु महर्षि वशिष्ठ के बराबर या उनसे आगे निकल जाओ"


आर्यमणि:– चलो आपकी इस बात पर यकीन करके देखता हूं। पता तो चल ही जायेगा की आपकी बातों में कितनी सच्चाई है। शाम ढलने वाली है, मेरा पूरा परिवार कॉटेज पहुंच चुका होगा, मैं जा रहा हूं।


जादूगर:– ठीक है फिर जाओ। अब तो बस तुम्हे सिखाते हुये 60 दिन निकालने है। उसके बाद दिल के नासूर जख्म को मलहम लगेगा, जब तेजस से मुलाकात होगी...


आर्यमणि:– अरे जख्मों पर धीरे–धीरे मलहम लगाते हुये हम जर्मनी पहुंचेंगे। यूं ही नही मैने 60 दिन का वक्त लिया है।


जादूगर:– मतलब?


आर्यमणि:– मैं इतना भी मूर्ख नहीं जो यह न समझ सकूं की वह एलियन जितना मेरे लिये पहेली है, उतना ही आपके लिये भी। यह तो आपको पता होगा की मैं सुकेश के संग्रहालय को लूटकर भागा हूं, तभी मेरे पास वह चेन और आपकी दंश है। लेकिन आपको ये पता नही की, उन एलियन को लगता है कि मैं केवल अनंत कीर्ति की किताब लेकर भागा हूं और कोई छिपा हुआ गैंग उनका खजाने में सेंध मार गया। भागते वक्त ऐसा जाल बुना था की वह एलियन अपने कीमती खजाने को जगह–जगह तलाश कर रहे। उनकी एक टुकड़ी मैक्सिको और दूसरी टुकड़ी अर्जेंटीना पहुंच चुकी है। इसके अलावा मुझे इनके 4 और टुकड़ी के बारे में पता है जो अलग–अलग जगहों पर अपने संग्रहालय से चोरी हुई समान की छानबीन करते हुये धीरे–धीरे मेरे ओर बढ़ रहे। 10 दिनो में तीनो टीन वुल्फ का स्कूल गेम समाप्त हो जायेगा उसके बाद हम शिकार पर निकलेंगे। दुश्मन की अलग–अलग टुकड़ी को नापते हुये सबसे आखरी में मैं पलक से मिलने पहुंचूंगा... क्या समझे जादूगर जी... 10 दिन बाद से जो एक्शन शुरू होगा वह सीधा 2 महीने बाद ही समाप्त होगा। उम्मीद है यह खबर सुनकर आप कुछ ज्यादा ही उत्साहित हो चुके होंगे... अब मैं चलता हूं, आप अपना 10 दिन का काउंट डाउन शुरू कर दीजिए.…


जादूगर महान दंश के जरिए अपनी भावना नहीं दिखा सकता था वरना जादूगर अपने दोनो हाथ जोड़कर मुस्कुराते हुये नजर आता। जादूगर समझ चुका था कि कैसे योजनाबद्ध तरीके से आर्यमणि ने उन छिपे एलियन को न सिर्फ उनके छिपे बिल से निकाला, बल्कि एक जुट संगठन को कई टुकड़ी में विभाजित करके अलग–अलग जगहों पर जाने के लिये मजबूर कर दिया। अब होगा शिकार। एक अनजान दुश्मन को पूरी तरह से जानने की प्रक्रिया।
Nice update 👍
 

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Kya hi kah dun main kaam ko... Unhe samapt karte karte der raat ho chali... Waqt itna nahi tha ki kisi ka bhi reply kar sakun isliye aaram se update padhiye... 1, 2 din me poora free samay milega tab mai sabko itminan se comment ka reply dunga.... Baki koshis rahegi ki koi bhi gape na ho....

Sorry for delay.... Hope u enjoy the updates.... Padhne ke baad apne feedback jaroor dete Jaeyega
Nice updates🎉👍
 

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भाग:–103




जादूगर:– उन एलियन का क्या करोगे, जिसकी शक्ति तुम्हे हर बार चौका देगी? तांत्रिक सभा के तांत्रिक अध्यात का क्या करोगे, जिसका ज्ञान तो तुम जैसे से कहीं आगे है और तांत्रिक की पूरी सभा उन एलियन के साथ गठजोड़ किये है? और क्या करोगे तब, जब उनकी आराध्या महाजनीका दूसरी दुनिया से वापस लौटेगी?


आर्यमणि:– तुम्हारे पास इतनी जानकारी कैसे?


जादूगर:– कहीं तुमने मुझे आज कल के जादूगर की तरह तो नही समझ लिया न। तमाशा दिखाने वाले नल्ले... २२ साल की उम्र तक अघोड़ियों की छाया में पला हूं। उनसे शिक्षा लेने के बाद १० साल तक सभी ग्रंथों के मंत्र को सिद्ध करता रहा। उसके बाद 8 साल तप करके मैंने मोक्ष को साधा था। और आखरी में मैने 5 साल तक अपने गुरु जादूगर वियोरे मलते se शिक्षा प्राप्त किया। जैसे यह अलौकिक पुस्तक है मैं भी ठीक वैसा ही हूं। हम दोनो में कोई अंतर नही। बस फर्क सिर्फ इतना था कि यह पुस्तक एक वक्त में अपने आसपास के सभी चीजों को मेहसूस कर सकती थी। यह वातावरण में हुये छोटे से बदलाव को भी दर्ज करती है। इसका मतलब तुम समझते हो। किसी के होने की मौजूदगी, यह किताब केवल वातारण को मेहसूस करके पता लगा सकती है, भले ही कोई खुद को कितना भी छिपाने में महारत क्यों न हासिल कर चुका हो। फिर चाहे वो कोई आत्मा की पहचान हो या फिर किसी तिलिस्मी वस्तु की पहचान हो। संसार में जितनी भी सजीव अथवा निर्जीव को इस किताब ने मेहसूस किया है, सबका वर्णन मिल जायेगा।


आर्यमणि:– जानकारी के तो भंडार हो आप। लेकिन 45 साल केवल शिक्षा लेने वाला इंसान केवल अपने कुख्यती के लिये शिक्षा ले रहा था?


जादूगर:– जो तुम्हे कुख्यात लग रहा है वह मेरे हिसाब से मजेदार काम था। मैने पहल नहीं किया था। मैने कुछ ऐसा गलत नही किया था, सिवाय मेरे गुरु जादूगर वियोरे मलते को मारने आये २००० सैनिकों को हमने गहरी नींद सुला दी थी। अघोरियो के साथ रहा था फिर भी मैं किसी को मारना नही चाहता था और न ही मेरे गुरु वियोरे मलते ने किसी को परेशान किया था। हम तो जादू सीखते थे और इलाज के लिये पहुंचे लोगों का इलाज करते थे। पर हमारा जादू करना वहां के शासन–प्रशासन को पसंद नही आया। मेरे गुरु ने जगह छोड़ने से इंकार किया तो उसे सीधा जान से मारने पहुंच गये।


आर्यमणि:– तुम्हे ऐसा क्यों लगता है कि मैने यदि तुम्हारे कहे पर विद्या विमुक्तये और ज्ञान विमुक्तये मंत्र का प्रयोग किया है, तो उसके बाद मै सम्पूर्ण भ्रम समाप्ति मंत्र नही प्रयोग करूंगा। तुम जैसे लोग से बार बार उल्लू बन जाऊं, इतना भी कच्चा नही। जो व्यक्ति किताब के बारे में इतना जानता हो उसके लिये किताब के अंदर के शब्दों से छेड़–छाड़ करना कोई बड़ी बात नही होगी। पहले बिना भ्रम समाप्ति के पढ़ा। कुछ पन्ने पढ़ने के बाद मैने फिर भ्रम समाप्ति मंत्र का प्रयोग किया और दोबारा पढ़ना शुरू किया। भगवान, आप कितने पहुंचे जादूगर जो उस पुस्तक के शब्दों से छेड़–छाड़ कर गये। अब जादूगर जी अपनी चिकनी चुपड़ी बातें रहने ही दो। आप सम्पूर्ण विकृत इंसान थे और मैं समझ गया हूं कि किताब आपको क्यों नही ढूंढ पायी।


रूही:– क्यों नहीं ढूंढ पायी?


आर्यमणि:– क्योंकि इसकी आत्म एक ऐसे चेन में घुसा दिया गया था, जो पहले से सम्पूर्ण सुरक्षा मंत्र से बंधी थी। जिसके अंदर के किसी भी प्रकार की शक्ति को कोई इस्तमाल नही कर सकता था। बेचारा जादूगर एक नॉन–ट्रेसबल चेन में कैद हुआ था। जिस वजह से इसके चेले भी इसे ढूंढ नही पाये और न ही किताब ने चेन के अंदर क्या है उसे बताया।


रूही:– हां लेकिन आर्य किताब को तो बताना चाहिए था न...


जादूगर:– कच्ची खिलाड़ी.… सम्पूर्ण सुरक्षा मंत्र के अंदर क्या है, यदि ये बात इतनी आसानी से पता चल जाये तो फिर इस मंत्र का फायदा क्या हुआ। तुमने वाकई मुझे चौंका दिया गुरु भेड़िए।


रूही:– हम मात्र भेड़िए होते तो क्या तुम हमसे बात कर रहे होते। जादूगर अपनी जुबान संभाल कर...


जादूगर:– तुम्हारा मुखिया मुझे आप कहता है और तुम मुझे बेइज्जत कर रही। खैर जब तुम्हे सब पता ही है गुरु भेड़िए तो टाइम पास करने से क्या फायदा है...


रूही:– मुझे सभी बातें पता न है... पहले उसपर बात होगी आर्य... जादूगर की बात सुनकर पजल मीटिंग मत करो।


ओजल:– आप लोग अपना सेशन जारी रखो, हम चलें।हमारे मैच का समय हो रहा है।


कुछ देर बाद गर्ल टीम का मैच शुरू होने वाला था इसलिए तीनो निकल गये। वहीं रूही अपनी शंका रखती... "मुझे सारी बातें पता नही है। इस जादूगर पर मोक्ष मंत्र का असर क्यों नही हुआ?


आर्यमणि:– क्योंकि ये मरा नही है। इसकी आत्म चेन में कैद है और शरीर को अब तक जिंदा रखा गया है।


जादूगर:– तुम कमाल का परिचय दे रहे आर्यमणि। ठीक है मैं सीधा मुद्दे पर आता हूं। मुझे अनंत वर्षों तक किसी घिनौने रूप में जिंदा रहने का कोई शौक नहीं। बेशक तुम मेरे शरीर को जलाकर मोक्ष मंत्र पढ़ देना लेकिन उस से पहले मैं अपने दुश्मन को मरता देखना चाहता हूं।


आर्यमणि:– वो तो अब तुम खुद भी कर सकते हो। दंश तुम्हारे पास है।


जादूगर:– कमाल है ज्ञानी भेड़िया। तुम्हे भीं पता है कि यह चेन किताब के सुरक्षा मंत्र से घिरा है। मैं किताब से ज्यादा दूर नहीं जा सकता। या तो तुम सम्पूर्ण सुरक्षा मंत्र हटा दो, फिर तो इस चेन के जरिए मैं चुटकी बजाकर बदला ले लूंगा। लेकिन मैं जानता हूं कि सम्पूर्ण सुरक्षा मंत्र तुम हटाओगे नही, इसलिए तुम मुझे उन एलियन के पास ले चलो। हम दोनो मिलकर उन्हें जमीन के नीचे गाड़ देंगे।


आर्यमणि:– जादूगर तुम कुछ ज्यादा ही उम्मीद न लगा लिये। तुमने ही तो उन एलियन की शक्ति से मुझे अवगत करवाया है। तुम क्या चाहते हो तुम जैसे भूत के कहने पर उनसे सामने की लड़ाई करूं और मारा जाऊं।


जादूगर:– मैं तुम्हे जादूगरी की हर वो चीज सीखा सकता हूं। यहां तक की टेलीपोर्ट होना भी।


आर्यमणि:– कैसे??? नर बलि या पशु बलि लेकर मुझे विद्या सिखाओगे?


जादूगर:– तुम चाहते क्या हो भेड़िया वही बता दो?


आर्यमणि:– तुम अपने बारे में बखान गा चुके। तुमने एलियन का भी गुणगान कर लिया। और सबसे कमाल की बात यह रही की तुम दोनो के शक्तियों के आगे मैं धूल के बराबर भी नहीं। तो महान जादूगर अपनी कहानी ही बता दो की तुम इस तिलिस्म में फसे कैसे?


जादूगर:– "जो बोया था वही पाया। जिस वक्त मैं था उस दौड़ में केवल मैं ही था और मेरे विपक्ष में सभी शक्तिशाली समुदाय। फिर चाहे वो अच्छे लोगों के समुदाय हो या बुरे। सभी शक्तिशाली आश्रम, तांत्रिक महासभा, एलियन समुदाय, किरकिनी समुदाय या फिर कोई अन्य समुदाय हो। हां शुरवात में मैं कुछ ज्यादा ही पागल था। जिस किसी से लड़ता केवल मारने के लिये ही लड़ता। इसी वजह से जितने भी विकृत समुदाय थे जैसे तांत्रिक महासभा, एलियन समुदाय या जादूगरों की किरकीन समुदाय, उन सबके बीच मैं तुरंत ही लोकप्रिय हो गया।"

"बाद में ख्याल आया की ये जितने भी बुरे समुदाय थे, साले मुझे चने के झाड़ पर चढ़ाकर मात्र एक हथियार की तरह उपयोग में ला रहे है। जिस दिन मेरे भेजे की बत्ती खुली थी, उसी दिन मैं जादूगरों की महासभा किरकीनी के सभी अनुयाई को मौत की नींद सुला दिया था। तांत्रिक महासभा को लगभग समाप्त कर दिया था और एलियन समुदाय में मैं जितने को जनता था, सबको साफ कर दिया। हालांकि कुछ दिन पहले तक मुझे यह पता नही था की एलियन का वह समुदाय था। 5 दिन के अंदर अलग–अलग समुदाय के लगभग 800 विकृत को मैं मार चुका था। किंतु दुश्मन तो आश्रम वालों को कहते है। एक भी आश्रम वाला मेरे इस कार्य की सराहना करने नही आया। मैं उनकी नजर में पहले जैसा ही विकृत था।"

"एक साथ सभी समुदाय मेरे जान के दुश्मन बने हुये थे। जिंदगी ने जैसे मेरे मजे के रास्ते खोल दिये हो। रोज किसी न किसी को धूल चटाने में बड़ा मजा आता था। हां लेकिन मैं पहले जैसा नही रह गया था। जो मुझे मारने आते उन्हे मैं मारता और जो मुझे कैद करने आते मैं उन्हे कैद कर लेता। वो अलग बात थी कि मेरी कैद मौत से भी ज्यादा खौफनाक होती। लौटकर जब मैं किसी कैदी से मिलता, तब उसका गिड़गिड़ाना देखकर कलेजे को जो सुकून मिलता था, उसकी कोई सीमा नहीं थी। और यही वजह थी कि बाद में मैने सबको मारना छोड़कर केवल कैद करता था।"

"उन्ही कैदियों में से किसी कैदी की हाय लगी होगी। सबकुछ अचानक से हो गया। तांत्रिक महासभा का महागुरु तांत्रिक मिंडरीक्ष और मेरी दुश्मनी अपने चरम पर थी। हालांकि तांत्रिक महासभा को मैने ऐसा डशा था कि मिंडरीक्ष मुझे मारने के लिये बौखलाया हुआ था। छिपकर उसने मुझे कई बार चोट भी दिये, लेकिन कभी मार नही पाया और न ही कभी सामने से लड़ने आया था।"

"तांत्रिक मिंडरीक्ष के दिये घाव इतने नशूर थे कि मैं उसे मौत से बदतर सजा देने के लिये तड़प रहा था। उन्ही दिनों मुझे तांत्रिक मिंडरीक्ष के छिपे ठिकाने का पता चला। उसके छिपे ठिकाने की खबर मिलते ही मैं बिना वक्त गवाए उसके ठिकाने पर पहुंचा। हम दोनो आमने सामने थे और मैने बिना कोई वक्त गवाए मिंडरीक्ष पर हमला बोल दिया। मैने अमोघ अस्त्र चलाया। मिंडरीक्ष के बचने की कोई उम्मीद नहीं थी, लेकिन मेरा अस्त्र वो एलियन नागासुर ने अपने ऊपर ले लिया। मेरे लिये यह चौकाने वाला क्षण था। मेरी आंखें बड़ी हो गयी। मेरे अस्त्र और मिंडरीक्ष के बीच में आने वाले व्यक्ति पर मेरे अस्त्र का कोई असर नहीं हुआ।"

"तब मुझे लगा था कि वह कोई इच्छाधारी जानवर है। तुम्हे तो पता ही होगा आर्यमणि, मंत्र की सिद्धि जानवरों पर काम नही आती। मुझे लगा ये कोई इक्छाधारी जानवर ही है। एक मौका चुका तो क्या हुआ, फिर मैंने बाहर की वस्तुओं से आक्रमण किया। एक असरदार उपाय। जब आपके सिद्ध मंत्र किसी इक्छाधारी जानवर के लिये काम न आये तो उसपर बाहर के वस्तुओं से हमला करना चाहिए, और मैंने भी वही किया। बादल, बिजली इन सब से हमला शुरु कर दिया। मेरे लिये नागासुर कोई नया नाम या चेहरा नहीं था। मैने उसके समुदाय के लोगों को पहले भी मारा था, लेकिन ये कुछ नया था।"

"मुझे समझ में आ चुका था कि नागासुर और उसके जैसे लोग खुद को छिपाकर, अपने समुदाय के नाम पर इंसानों को ही आगे रखते है, ताकि इनकी सही पहचान छिपी रह सके। विश्वास मानो आर्यमणि, मुझे तनिक भी भनक होती की वो नागासुर किसी अन्य ग्रह का प्राणी है जो बिजली के हमले को अपने अंदर समाकर अट्टहास भरी हंसी से सामने वाले का उपहास करता है, तब मैं शायद किसी अलग रणनीति से जाता। खैर चूक तो हो चुकी थी और सजा भी मिली। तकरीबन 500 साल के कैद की सजा। उस एलियन ने कौन सा मंत्र पढ़ा अथवा कौन सी वस्तु का प्रयोग किया मुझे नही पता, लेकिन पलक झपकते ही मेरी आत्मा मेरा शरीर छोड़ने को तैयार हो गयी।"

"वो लोग जीत चुके थे लेकिन एक भूल उनसे भी हो गयी। वह भूल चुके थे कि मैं जादूगर महान हूं। वह भूल चुके थे कि मैने मोक्ष पर सिद्धि प्राप्त किया था। मैने आत्मा विस्थापित मंत्र का जाप किया और खुद को उस चेन में समा लिया। वरना पता न वो मेरे आत्मा को किस चीज में कैद करते और लगातार प्रताड़ना के बाद शायद मैं उनकी गुलामी स्वीकार कर लेता। पर उनके मंसूबों पर भी तब पानी फिर गया जब उनकी मनचाही कैद के बदले मैं सीधा चेन में कैद हो गया। वह चेन जो पहले से उस अलौकिक ग्रंथ से बंधी थी और उस अलौकिक ग्रंथ को जब मुझ जैसा सिद्धि प्राप्त खोल नही पाया, फिर उन एलियन या फिर तांत्रिक महासभा के तांत्रिकों की क्या औकाद थी।"

"मुझसे बात कर पाना तभी संभव था जब वह किताब खुलती। और मुझे पता था जब कभी यह किताब खुलेगी तो उसे सात्विक आश्रम का कोई गुरु ही खोल सकता है। मेरे शरीर को आज भी वो एलियन सुरक्षित रखे है, ताकि मेरी आत्मा कभी मुक्त न हो। उन लोगों ने किताब खोलने की बहुत कोशिश की, लेकिन उनकी सभी कोशिश नाकाम रही। सात्विक आश्रम से मदद ले नही सकते थे वरना वह किताब उन एलियन की पोल खोल देती। साथ ही साथ उस किताब को वो एलियन न जाने कितने वर्षों से अपने साथ रखे है, महाग्रंथ में अब तक तो उन एलियन की पूरी जीवनी छप चुकी होगी।


आर्यमणि:– नही ऐसा नहीं हुआ होगा, क्योंकि उन एलियन के कोई इमोशन ही नहीं जिसे, किताब मेहसूस कर सके। खैर वो तो जब एलियन के संपर्क में यह किताब आयेगी तब पता चल ही जायेगा। लेकिन इस वक्त का बड़ा सवाल यह है कि क्या अनंत कीर्ति की पुस्तक तुम्हारे जरिए उनको मिली?


जादूगर:– "हां बिलकुल... हिंद महासागर की गहराई से जब मैं चेन लेकर लौट रहा था तभी मेरा सामना प्रहरी के मुखिया हिंदलाल से हो गया। समुद्र तट पर ही वह मेरा इंतजार कर रहा था। हिंदलाल के साथ वैदिक आश्रम के तत्काल गुरु रामनरेश भी थे। जब मैं चेन का प्रयोग करना चाहा तभी गुरु रामनरेश ने उस चेन को सम्पूर्ण सुरक्षा चक्र में बांध दिया ताकि मैं उस चेन का इस्तमाल न कर सकूं। गुस्से में मैने वहां मौजूद सभी को हिंद महासागर एक वीरान टापू पर टेलीपोर्ट करके उस पूरे टापू को ही बांध दिया। निर्जन भटकते जीवन के लिये उन्हे वहां पर छोड़कर मैं वह अलौकिक किताब लेकर भाग गया।"

"जब किताब मेरे हाथ लगी उसके 6 महीने तक मैं कहीं गया ही नहीं। यूं तो सुरक्षा मंत्र चक्र को हटाना मेरे लिये कोई मुश्किल कार्य नही था किंतु किताब खोले बिना मंत्र को निष्क्रिय नही किया जा सकता था। महर्षि गुरु वशिष्ठ को उन 6 महीनो तक नमन करता रहा। किताब की सारी बातें जान गया लेकिन विद्या विमुक्तये का कितना भी प्रयोग किया वह किताब खुली नही। मेरे लिये यह किताब किसी चुनौती से कम नही थी। हर वक्त उसे अपने साथ लिये घूमता और किताब कैसे खोला जाये उसी पर विचार करता।"

जब मैं खुद को चेन के अंदर बांध लिया तब भी किताब मेरे ही पास थी। मेरी आत्मा चेन में बंधी थी और मेरे आंखों के सामने तांत्रिक महासभा के बचे तांत्रिक और उनका गुरु मिंडरीक्ष किताब को पाने के लिये उन एलियन से जंग छेड़ चुका था। पर तांत्रिक महासभा को क्या पता कि जो हथियार वो लोग मेरी आत्मा को कैद करने लाये थे, उसी हथियार से एलियन ने पूरे तांत्रिक महासभा को नाप दिया। वो तो मिंडरीक्ष टेलीपोर्ट कर गया, वरना वो भी चला जाता।
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भाग:–102





तेज रौशनी के साथ इस कमरे में जादूगर महान की आवाज गूंजी और चेन लिपटा वह दंश बिजली की तेजी से ऊपर हवा में गया। जादूगर कोट्टेज के छत को फाड़कर निकल गया। आर्यमणि गर्दन ऊंचा करके एक बार छत के उस छेद के देखा उसके बाद पूरे अल्फा पैक को घूरने लगा। और इधर चारो अपने मुंह पर हाथ रखे, छत पर हुये छेद को देखते.… "बीसी (BC) झूठ बोलने वाला भूत, हमारी काट लिया।"


सभी छत को घूर रहे थे और आर्यमानी गुस्से से फुफकारते.… "जबतक उस जादूगर को पकड़ न लेते, तबतक चारो बाहर ही रहोगे।"


रूही:– और तुम क्या घर पर बैठकर रोटियां बनाओगे। बाहर जाकर तुम जादूगर को पकड़ो आर्य। ये तुम्हारा काम है।


आर्यमणि:– अच्छा ये मेरा काम है। जब मैं कह रहा था कि किताब के हिसाब से.…


रूही, आर्य के बात को बीच से काटती.… "किताब का हिसाब किताब तुम देखो। ये फालतू की तिलिस्मी चीजें तुम लेकर आये थे।"


आर्यमणि:– हां तो जब मना कर रहा था तब माने क्यों नही। कह तो रहा था न, चेन में जादूगर की आत्मा है।


रूही:– उस मक्कार भोस्डीवाले जादूगर का नाम मत लो। झूठा साला.. दिखा तो ऐसे रहा था जैसे वह एनर्जी पावर हाउस वाले उस चेन में बसने वाला आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हो, लेकिन मदरचोद निकला जादूगर का भूत, उसकी मां की चू...


आर्यमणि:– बच्चों के सामने ये कैसी भाषा का प्रयोग कर रही हो।


रूही:– शुद्ध देशी भाषा का प्रयोग कर रही हूं और जो मदरचोद मरने के के बाद भी झूठ बोले, उसकी मां का भोसड़ा, बेंचोद दो कौड़ी का घटिया...


आर्यमणि:– रूही बहुत हुआ..


रूही:– कम ही कह रही हूं। अमेरिका आ गयी इसका मतलब ये नही की सरदार खान के बस्ती की अच्छी बातों को भूल जाऊं। तू कुछ बोल क्यों नही रही अलबेली... अलबेली.… ओ तेरी जादूगर... अ, अ, आप कब आये जादूगर और इन्हे बांध क्यों रखा है?


हुआ यूं की आर्यमणि और रूही अपनी तीखी बहस में व्यस्त थे। उधर जिस तेजी से जादूगर महान बाहर भागा था, उसी रफ्तार से वापस भी आ गया। अब ये दोनो तो व्यस्त थे और जब तीनो टीन वुल्फ ने रूही को रोकना चाहा तब जादूगर महान तीनो को जादू से बांध चुका था। तीनो टीन वोल्फ ना तो हिल सकते थे और न ही कुछ बोल सकते थे।


जादूगर, रूही की बातों पर तंज कसते.… "जब तुम मुझे आशीर्वाद देना शुरू की थी तभी आया। ये तीनों तुम्हे बीच में ही रोकने वाले थे, इसलिए बांध दिया।


रूही:– ओह तो सब सुन लिया। फिर क्यों मैं इतनी घबरा रही की कहीं कुछ सुन तो न लिया। वैसे बुरा मत मानना, पीठ पीछे दी हुई गाली लगती नही।


जादूगर:– हां लेकिन अभी–अभी गये मेहमान के जाने के ठीक बाद कभी गाली नहीं देते। हो सकता है किसी कारणवश वह लौट आये।


आर्यमणि:– जादूगर इतनी गलियां खाने के बाद भी इतने संयम में हो और दिल की भड़ास भी बड़े प्यार से निकाल रहे। अब बात क्या है वो सीधा बताओ, वरना मैं मोक्ष मंत्र पढ़ना शुरू करूं।


जादूगर:– मैं तो चला रे बाबा। ये तो मुझे जान से मारने की धमकी दे रहा। मुझे जो भी कहना होगा तुम्हे छोड़कर बाकी सबको कह दूंगा।


जादूगर आया... सबकी बातें सुनी और जैसे ही आर्यमणि ने मोक्ष मंत्र का केवल चर्चा किया, जादूगर वैसे ही भाग गया। उसके आने और जाने के बीच एक ही अच्छी बात हुई, आर्यमणि और रूही के बीच की बहस रुक गयी। एक बार फिर पांचों ऊपर की ओर देख रहे थे जहां से वह जादूगर भागा था।


आर्यमणि:– ये सर दर्द देने वाला है। मैं तुम लोगों की बातों में क्यों आ गया।


रूही कुछ जवाब देती उस से पहले ही ओजल कहने लगी.… "तैयार आप भी थे बॉस। इच्छा आपकी भी थी, तभी ऐसा संभव हुआ। दोष हम सब का है। हम सब उस जादूगर की बात में फसे। जादूगर की आत्मा अपने दंश से किसके वजह से जुड़ी, इसपर चर्चा करने से केवल एक दूसरे पर आरोप ही लगना है। ये सोचिए की उसे रोका कैसे जाये। भूलिए मत वह चेन खुद एक विध्वंशक हथियार है उसके ऊपर शक्तिशाली दंश। और एक ऐसा दुश्मन ने दस्तक दिया है जिसे हम मार भी नही सकते।


आर्यमणि:– हम्मम!!! ठीक है मैं आश्रम के लोगों से संपर्क करता हूं, तब तक तुम सब भी कुछ सोचो।


अलबेली:– सॉरी बॉस... कल से इंटर स्कूल फुटबॉल टूर्नामेंट शुरू हो रहा है और हमें अपने टीम के बारे में सोचना है।


अलबेली अपनी बात कह कर वहां से निकल गयी। ओजल और इवान भी उसके पीछे गये। इधर आर्यमणि भी आश्रम के लोगों से संपर्क करने लगा। अगली सुबह तीनो टीन वोल्फ सीधा स्कूल निकल गये। स्कूल जाते समय तीनो ने आर्यमणि और रूही को लिविंग रूम में गुमसुम पाया, इसलिए हिचक से कह भी नही सके की आज हमारे पहले गेम में आना।


चुकी इनका हाईस्कूल होम टीम थी, इसलिए तैयारी की जिम्मेदारी स्कूल प्रबंधन की ही थी। सुबह के 11 बजे पहला मैच होम टीम बर्कले हाई स्कूल और सन डायगोस हाई स्कूल के बीच खेला जाना था। दोनो ही टीम का जोश अपने उफान पर था। खिलाड़ियों के बीच एक दूसरे पर छींटाकशी बदस्तूर जारी था। सन डिएगो स्कूल पिछले वर्ष की रनर अप टीम में से थी और बर्कले हाई स्कूल अंतिम 8 में भी दूर–दूर तक नही।


और सब वर्ष की बात और थी। जबसे टीम में ओजल, इवान और अलबेली ने दस्तक दिया था, तबसे इस टीम का मनोबल भी पूरा ऊंचा था, और इस वर्ष यह टीम मात्र सुनकर चुप नही रहने वाली थी। लड़कों का मैच था और कोच के साथ इवान अपनी टीम की रणनीति बनाने में लगा हुआ था। दर्शक के रॉ में ओजल और पूरी गर्ल टीम बैठी हुई थी। मैच शुरू होने में कुछ देर थे तभी स्टैंड में तीनो टीन वुल्फ के मेंटर आर्यमणि और रूही भी पहुंच चुके थे। उनको दर्शकों के बीच देखकर तीनो टीन वुल्फ का उत्साह और भी ज्यादा बढ़ गया।


सभी खिलाड़ी और रेफरी मैदान पर। दोनो टीम के अतरिक्त खिलाड़ी अपने–अपने बेंच पर। उनमें से एक इवान भी था जो अतरिक्त खिलाड़ी के रूप में मैदान पर था और कोच के साथ ही खड़ा था। मैदान के केंद्र में दोनो टीम के 11 खिलाड़ी अपने–अपने पाले में। अब क्रिकेट होता या फिर हॉकी या फुटबॉल तब तो मैच का पूरा हाइलाइट बताना उचित होता, लोग चटकारा लगाकर इनकी लिखी कमेंट्री भी पढ़ सकते थे। किंतु अमेरिकन फुटबॉल, इसकी कमेंट्री लिखना तो दूर की बात है, टेक्निकल बातें भी लिख दिया जाये तो लोग थू–थू करते हुये लिख दे, "ये क्या बकवास लिखा है।" ज्यादातर लोग तो इसे रग्बी भी समझते है, किंतु दोनो अलग खेल है।


सीधी भाषा में लिखा जाये तो 1 घंटे में 4 क्वार्टर का खेल होता है। दोनो टीम को बराबर अटैक और डिफेंस करने का मौका मिलता है। बर्कले की टीम ने पहले डिफेंस चुना और सबके उम्मीद को पस्त करते हुये उन्होंने ऐसा डिफेंस का नजारा पेश किया की विपक्षी टीम नाकों तले चने चबाने पर मजबूर थी। वहीं जब बर्कले हाई स्कूल का अटैक शुरू हुआ तब तो विपक्षी को आंखे फटी की फटी रह गयी। पहले हाफ पूरा होने पर स्कोर कुछ इस प्रकार था... बर्कले 22 पॉइंट पर और सन डिएगो स्कूल मात्र ३ अंक पर थी।


फिर शुरू हुआ खेल अगले हाफ का। पहले हाफ में मैदान पर अनहोनी होते सबने देखा था। बर्कले हाई स्कूल वह टीम थी, जिसके लिये अंतिम 4 में जगह बनाना मुश्किल था। लेकिन बर्कले हाई स्कूल का खेल देखकर सभी हैरान थे। हां वो अलग बात थी की दूसरा हाफ और भी ज्यादा हैरान करने वाला था। बर्कले की टीम डिफेंस पर थी और जैसे ही बॉल विपक्ष के क्वार्टर बैक खिलाड़ी के हाथ में पहुंचा, बर्कले की पूरी टीम विपक्षी को रोकेगी क्या, वह तो जमीन पर ऐसे गिर रहे थे जैसे पेड़ से सूखे पत्ते।


पहले हाफ में जहां होम टीम ने अपने खेल में सबको हैरान कर दिया था। वहीं दूसरे हाफ में बर्कले की टीम हंसी की पात्र बनी हुई थी। इवान को समझ में आ चुका था कि यहां क्या हो रहा है। अपनी रोनी सी सूरत बनाकर वह आर्यमणि के ओर देखने लगा। आर्यमणि अपने हाथों के इशारे उसे धीरज रखने कहकर.… "रूही ये जादूगर तो सर दर्द हो गया है।"


रूही:– उस से भी कहीं ज्यादा सरदर्द ये मैच दे रहा। ऐसे लड़–भिड़ रहे हैं, जैसे शांढ की लड़ाई चल रही हो।


आर्यमणि:– हम्म, चलो चलते है। पता तो चले की यह जादूगर चाहता क्या है?


रूही:– हां लेकिन तब तक तो वो जादूगर पूरा मैच बिगाड़ देगा।


आर्यमणि:– इसलिए तो जादूगर को साथ लिये चलेंगे। ताकि वो मैच न बिगाड़े।


आर्यमणि ने धीमा अपना संदेश दिया। यह संदेश तीनो टीन वुल्फ तक पहुंचा और तीनो ही सबसे नजरें बचाकर अपने घर को निकले। एक–एक करके सभी घर में इकट्ठा हो गये। आर्यमणि लिविंग हॉल से चिल्लाते... "जादूगर महान कहां हो तुम। आ जाओ हम तुम्हे सुनेगे।"


आर्यमणि तेज चिल्लाया और ऊपर छत को देखने लगा। बाकी के चारो भी छत को घूरने लगे। ज्यादा इंतजार न करवाते हुये जादूगर उसी रास्ते से आया जिस रस्ते से गया था। जादूगर आते ही.… "मुझे समय देने के लिये तुम्हारा धन्यवाद"…


आर्यमणि चिढ़ते हुये.… "बात करने के लिये इन बच्चों के गेम क्यों खराब कर दिये? जी तो करता है अभी मोक्ष मंत्र पढ़ दूं। लेकिन फायदा क्या, फिर तुम भाग जाओगे और पता न उसके बाद क्या गुल खिलाओगे.…


जादूगर:– मोक्ष मंत्र, हाहाहा… मैं नही भागूंगा। चलो पहले तुम अपने मंत्र ही आजमा लो। वैसे इस पृथ्वी पर वह ऋषि या महर्षि बचे नही जिन्हे मोक्ष के 22 मंत्रो का ज्ञान हो। दिमाग तेज हो तो सीधा सुनो या फिर तुम महर्षि गुरु वशिष्ठ की वह किताब ले आओ और उसके सामने मैं सारे मंत्र बोलता हूं। पहले मेरी आत्मा को इस संसार से मुक्त करके दिखाओ।


आर्यमणि:– मोक्ष के २२ मंत्र आप मुझे सिखाएंगे?


जादूगर:– क्यों मुझसे सीखने से छोटे हो जाओगे...


आर्यमणि:– नही मुझे खुशी होगी। आप मंत्र बोलना शुरू करो, किताब तो यहीं है। मंत्र बोलने के बाद मुझे समझाना की आप अनंत कीर्ति की पुस्तक को कैसे जानते हो?


जादूगर:– अनंत कीर्ति... अनंत कीर्ति.. क्या बकवास नाम दिया है उन बदजातो ने। बच्चे यह एक अलौकिक ग्रंथ है। कोई पुरस्कार अथवा वाह–वाही का जरिया नहीं जिसे पाकर तुम कह सको की मैने अनंत कीर्ति की पुस्तक पायी। खैर मंत्र सुनो...


जादूगर ने मोक्ष के २२ मंत्र बता दिये। आर्यमणि सभी मंत्रो को बड़े ध्यान से सुन रहा था। मंत्र जब समाप्त हुये तब आर्यमणि ने किताब खोला। किंतु किताब में एक भी मोक्ष के मंत्र नही लिखे मिले। आर्यमणि हैरानी से कभी किताब को तो कभी दंश को देख रहा था।


जादूगर:– क्या हुआ किताब का ऑटोमेटिक मोड काम नही कर रहा क्या?


आर्यमणि:– जैसा इस किताब के बारे में कहा गया था, आस–पास के माहोल को मेहसूस कर यह किताब श्वतः ही सारी जानकारी दे देगी, लेकिन ऐसा नहीं है। किताब खोलो तो केवल दंश और चेन के बारे में लिखा है।


जादूगर:– कहा था न अलौकिक ग्रंथ है। चलो एक काम और कर देता हूं। तुम्हे मै ये सीखता हूं कि कैसे किताब को ऑटोमेटिक मोड से मैनुअल मोड पर पढ़ सकते हैं। विधा विमुक्तये से किताब के पन्नो को मंत्रो की कैद मुक्त करने के बाद, बड़े ही ध्यान और एकाग्रता के साथ अपनी इच्छा रखो और ज्ञान विमुक्त्य का मंत्र ३ बार पढ़ना...


जैसा जादूगर ने बताया आर्यमणि ने ठीक वैसा ही किया। किताब से जो जानकारी चाहिए थी, वह आंखों के सामने थी। आर्यमणि समझ चुका था कि जादूगर पर मोक्ष मंत्र काम न करेगा, इसलिए उसने जादूगर महान को ही किताब में ढूंढने की कोशिश किया और पहचान के लिये उसके दंश का स्मरण करने लगा। जादूगर महान के बारे में १०० पन्ने लिखे गये थे। उसके कुकर्मों की गिनती का कोई अंत नहीं था। प्रहरी और तीन आश्रम, सात्त्विक, वैदिक और सनातनी आश्रम का एक भगोड़ा जिसे किताब लापता बता रही थी।


लगभग ३ घंटे तक आर्यमणि एक–एक घटना को पढ़ता रहा। इस बीच वुल्फ पैक के साथ वह जादूगर घुल–मिल रहा था। आर्यमणि जब उसकी जीवनी पढ़कर सामने आया, जादूगर जोड़–जोड़ से हंसते हुये.… "क्या हुआ ३ आश्रम मिलकर भी मुझे रोक न सके, चेहरे पर उसी की हैरानी है क्या?"


आर्यमणि:– मुझमें इतनी शक्ति तो है कि तुम्हे दंश से अलग कर दूं और फिर बाद में सोचूं की इस चेन का करना क्या है? या फिर मैं तुम्हे दंश से अलग करने के बाद, इस दंश को ही नष्ट कर दूं?


जादूगर:– ख्याल बुरा नही है। लेकिन एक कमीने को दूसरा कमीना ही मार सकता है। मुझे तुम्हारे हर दुश्मन के बारे में पता है। जिस जादूगर को 3 आश्रम के योगी, गुरु, ऋषि, महर्षि आदि अपने दिव्य दृष्टि से देख नही पाये। प्रहरी के सभी प्रशिक्षित को केवल इतना आदेश था कि मेरा पता लगाये, लेकिन कोई मुझसे उलझे न। मैने तुम्हारे दुश्मन उन एलियन समुदाय के लोगों को हराया था। काश ये बात तब पता होती की वो साले एलियन थे। उन एलियन का क्या करोगे, जिसकी शक्ति तुम्हे हर बार चौका देगी? तांत्रिक सभा के तांत्रिक अध्यात का क्या करोगे, जिसका ज्ञान तो तुम जैसे से कहीं आगे है और तांत्रिक की पूरी सभा उन एलियन के साथ गठजोड़ किये है? और क्या करोगे तब, जब उनकी आराध्या महाजनीका दूसरी दुनिया से वापस लौटेगी?
Super updates🎉👍
 
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