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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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भाग:–155


“मुझे कुछ वक्त दो। सोचने दो इसके लिये क्या किया जा सकता है।” अपनी बात कहते आर्यमणि वहीं बैठकर ध्यान लगाने लगा।

आर्यमणि शुरू से पूरे घटनाक्रम पर नजर दिया और आंख खोलते ही.… "तुम सब घास काटने वाली मशीन, वाटर पंप मोटर, और पाइप ले आओ। साथ में पानी गरम करने की व्यवस्था, और आड़ी भी लेकर आना। जबतक मैं इसकी जांच करता हूं... ओह हां साथ में बायोहेजार्ड सूट लाना मत भूलना"..

रूही, इवान और अलबेली समान लाने निकल गये। आर्यमणि आगे से पीछे तक उस विशालकाय जीव के बदन के 2 चक्कर लगाया और पूरी बारीकी से जांच कर लिया। तीसरी बार जांच के लिये आर्यमणि को उस जीव के ऊपर चढ़ना पड़ा। पूरी जांच करने के बाद वो सीधा क्रूज लेने निकला और क्रूज को घुमाकर समुद्र के उस तट तक लेकर आया, जिसके किनारे वह विशालकाय जीव पड़ा था।

जब रूही, इवान और अलबेली वापस लौटे तो वहां आर्यमणि नही था। करीब आधा घंटा इंतजार करने के बाद उन्हें आर्यमणि तो नही लेकिन क्रूज जरूर दिख गया। आर्यमणि नीचे आकर सबको एक वाकी देते... "इवान, अलबेली वो जो घास मुझे खिलाए थे, जितनी हो सके काटकर ले आओ।"..

वो दोनो अपने काम पर लग गये। इधर आर्यमणि, रूही को क्रूज में जाकर क्रेन ऑपरेट करने कहने लगा। रूही भी हामी भरती क्रूज पर गयी और आर्यमणि के इशारे का इंतजार करने लगी। आर्यमणि ने उस जीव के पेट पर करीब 600 मार्क किये थे। वह अपनी आड़ी लेकर उन्ही मार्क्स पर चल दिया।

आर्यमणि मार्क किये जगह पर भले ही 2 फिट लंबा–चौड़ा चीड़ रहा था, लेकिन उस जीव के बदन के हिसाब से मात्र छोटा सा छेद था। आर्यमणि ऐतिहातन वो बायोहजार्ड़ सूट पहने था, ताकि पेट के अंदर का गैस उसे कोई नुकसान न करे। पहला छेद जैसे ही हुआ, चारो ओर धुवां ही धुवां। धुवां छटते ही आर्यमणि पेट के अंदर किसी नुकीली धातु का कोना अपने आंखों से देख रहा था।

वाकी पर उसने रूही को इंस्ट्रक्शन दिया और क्रेन का हुक ठीक उस छेद के पास था। आर्यमणि उस छेद पर चढ़ा। पेट में अटकी उस नुकीली चीज को हुक से फसाया और ऊपर खींचने बोला। हुक के वायर पर जैसे काफी लोड पड़ रहा हो। रूही जब खींचना शुरू की, अंदर से बहुत बड़ा मेटल स्क्रैप निकला। वह इतना बड़ा था की उस छोटे से छेद को बड़ा करते हुये निकल रहा था। वह जीव दर्द से व्याकुल हो गया। दर्द से उसका पूरा बदन कांपने लगा।

वह जीव इतना बड़ा था कि उसके हिलने से क्रूज का क्रेन ही पूरा खींचने लगा। आर्यमणि तुरंत अपना ग्लॉब्स निकालकर उसके बदन पर हाथ लगाया। आर्यमणि अपने अंदर भीषण टॉक्सिक लेने लगा। दर्द से राहत मिलते ही वह जीव शांत हो गया और रूही तुरंत उस मेटल स्क्रैप को बाहर खींचकर निकाल दी। जैसे ही मेटल स्क्रैप उस जीव के पेट से बाहर निकला, आर्यमणि एक हाथ से उस जीव का दर्द खींचते, दूसरे हाथ से पेट के कटे हुये हिस्से को बिना किसी गलती के सिल दिया। तकरीबन 10 मिनट तक टॉक्सिक अंदर लेने के कारण आर्यमणि पूरी तरह से चकरा गया। उसे उल्टियां भी हुई। जहां था वहीं कुछ देर के लिये बैठ गया। एक मार्क का काम लगभग आधे घंटे में खत्म करने के बाद आर्यमणि दूसरे मार्क पर पहुंचा। वहां भी उतना ही मेहनत किया जितना पहले मार्क पर मेहनत लगी थी।

लगातार काम चलता रहा। शिफ्ट बदल–बदल कर काम हो रहा था। चिड़ने और हाथों से हील करने का मजा सबने लिया। हां लेकिन जो टॉक्सिक आर्यमणि अकेले लेता था, वो तीनो (रूही, अलबेली और इवान) मिलकर भी नही ले पा रहे थे। इवान और अलबेली पहले ही घास का बड़ा सा ढेर जमा कर चुके थे जिसे क्रेन के जरिए क्रूज के स्विमिंग पूल तक पहुंचा दिया गया था। स्विमिंग पूल का पूरा पानी लगातार गरम करके, उसमे घास डाल दिया गया था। एक बार जब घास पूरी तरह से उबल गयी, तब पाइप के जरिए उस जीव के शरीर में उबला पानी उतारा जाने लगा। वह जीव लगातार घास का सूप पी रहा था।

एक दिन में तकरीबन 20 से 25 मार्क को साफ किया गया। तकरीबन 3 दिन के बाद वो जीव अपनी अचेत अवस्था से थोड़ा होश में आया। वह अपनी आंखें खोल चुका था। श्वांस लेने में थोड़ी तकलीफ थी, लेकिन खुद में अच्छा महसूस कर रहा था। पहले 3 दिन तक तो काम धीमा चला, पर एक बार जब अनुभव हो गया फिर तो सर्जरी की रफ्तार भी उतनी ही तेजी से बढ़ी।

तकरीबन 14 दिन तक इलाज चलता रहा। पूरा अल्फा पैक ही अब तो उस जीव के टॉक्सिक और दर्द को लगातार झेलने का इम्यून पैदा कर चुके थे। सबसे आखरी मार्क उस जीव के मल–मूत्रसाय मार्ग के ठीक ऊपर था। आर्यमणि क्रेन संभाले था और अलबेली पूल में पड़ी उबली घास को निकालकर, नया ताजा घास डाल रही थी। नया घास डालने के बाद उसे उबालकर उस काल जीव के मुंह तक लाना था, जो पिछले कुछ दिनों से उस जीव का आहार था।

इवान और रूही ने मिलकर आखरी जगह छेद किया और क्रेन के हुक से मेटल स्क्रैप को फसा दीया। वह स्क्रैप जब निकलना शुरू हुआ फिर तो ये लोग भी देखकर हैरान थे। लगभग 2 मीटर ऊंचाई और 60 मीटर लंबा स्क्रैप था। अब तक जितने भी मेटल स्क्रैप निकले थे, उनसे कई गुणा बड़ा था। वह जीव भयंकर पीड़ा में। रूही और इवान ने जैसे ही हाथ लगाया समझ गये की वो लोग इस दर्द को ज्यादा देर तक झेल नही पाएंगे। बड़े से मेटल स्क्रैप निकालने दौरान उस काल जीव के पेट का सुराख फैलकर फटना शुरू ही हुआ था, अभी तो पूरा स्क्रैप निकालना बाकी था। फिर उसे सीलना भी था। वक्त की नजाकत को देखते हुए रूही, आर्यमणि को अपने पास बुला ली और क्रेन अलबेली को बोली संभालने।

आर्यमणि बिना देर किये उसके पास पहुंचा और अपना पंजा डालकर जब उसने दर्द लेना शुरू किया, तब जाकर रूही और इवान को भी राहत मिली। हां लेकिन ये तो अभी इलाज एक हिस्सा था, दूसरा हिस्सा धीरे–धीरे उस विशालकाय जीव के पेट से निकल रहा था। 5 फिट का छोटा छेद कब 2–3 मीटर में फैल गया, पता ही नही चला। तीनो पूरा जान लगाकर उस काल जीव का दर्द ले रहे थे और स्क्रैप के जल्दी से निकलने का इंतजार कर रहे थे। लेकिन जैसे ही वो स्क्रैप निकला, उफ्फ काफी खतरनाक मंजर था।

2 मीटर ऊंचा और 60 मीटर लंबे मेटल स्क्रैप न जाने कितने दिनों से मल–मूत्र का रस्ता रोक रखा था। मेटल स्क्रैप के पीछे जितना भी मल, गंदगी इत्यादि जमा था, बाढ़ की तरह उनके ऊपर गिड़ा। गिड़ा मतलब ऐसा वैसा गिड़ा नही। 5 मीटर ऊंची वो मल और गंदगी की बाढ़ थी, जिसमे 10 मिनट तक तीनो डूबे रह गये। ऊपर अलबेली का हंस–हंस कर बुरा हाल था। बायोहजार्ड सूट के अंदर तो वो सुरक्षित थे। ऑक्सीजन सप्लाई भी पर्याप्त थी पर मल में दबे रहने के कारण तीनो का मन उल्टी जैसा करने लगा, क्योंकि हाथ तो तीनो के खुले हुये थे।

10 मिनट लगा उस कचरे को बहने में। थुल थुले से मल के बीच वो तीनो, उस जीव का दर्द भी भागा रहे थे और पेट ज्यादा देर तक खोले नही रह सकते थे, इसलिए सिल भी रहे थे। इधर अलबेली वाटर पंप को पहाड़ से निकलने वाले झील में डाली और क्रेन की मदद से उस जगह पानी डालकर साफ–सफाई भी कर रही थी। ..

खैर 14–15 दिन की सर्जरी के बाद, अगले 4 दिन तक उस जीव को खाने में उबला घास और पीने के लिए घास का सूप मिलता रहा। सारी ब्लॉक लाइन क्लियर हो गयी थी। वह जीव खुद में असीम सुख की अनुभूति कर रहा था। अगले 4 दिन में अल्फा पैक ने उस जीव को पूरा हील भी कर दिया और उसके टांके भी खोल दिये।

20 दिनों के बाद वो जीव पूरी तरह से स्वास्थ्य था। खुश इतना की नाच–नाच के करतब भी दिखा रहा था। वो अलग बात थी की उसके करतब देखने के लिए पूरा पैक पर्वत की चोटी पर बैठा था। उस जीव के नजरों के सामने चारो बैठे थे। वह जीव अपनी आंखों से जैसे आंसू बहा रहा हो। अपनी आंख वो चारो के करीब लाकर 2 बार अपनी पलके टिमटिमाया ..

उसे ऐसा करते देख चारो खुश हो गये। फिर से उस जीव ने अपना सिर पीछे किया और खुद को जैसे हवा में लहराया हो... हां लेकिन वो लहर आर्यमणि के सर के ऊपर इतनी ऊंची उठी की बस सामने उस जीव का मोटा शरीर ही नजर आया। ऊपर कितना ऊंचा गया, वो नजदीक से देख पाना संभव नही था। वह जीव ठीक इन चारो के सर के ऊपर था और अपनी गर्दन नीचे किये अल्फा पैक को वह देख रहा था। उस जीव के शरीर पर, गर्दन के नीचे से लेकर पूंछ तक, दोनो ओर छोटे छोटे पंख थे। करीब 3 फिट या 4 फिट के पंख रहे होंगे जो दूर से देखने पर उस जीव के शरीर पर रोएं जैसा लगता था।

वह जीव गर्दन नीचे किये अल्फा पैक को देख रहा था और बड़ी सावधानी से अपना एक पंख रूही के पेट के ओर बढ़ा रहा था। रूही यह देखकर खुश हो गयी और पेट के ऊपर से कपड़ा हटाकर पेट को खुला छोड़ दी। वह जीव अपनी गर्दन नीचे करके धीरे–धीरे अपना पंख बढ़ाकर पेट पर प्यार से टीका दिया। आर्यमणि, अलबेली, और इवान को तो ऐसा लग रहा था जैसे कोई पहाड़ उनके सामने से धीरे–धीरे करीब आ रहा हो।

क्या हो जब आप कहीं पार्क में बैठे हो और 100, 150 मंजिली इमारत आपके 10 फिट के फासले से नजदीक आ रही हो। और ये जीव तो उस इमारत से भी कहीं ज्यादा ऊंचा था, जिसे करीब से कभी पूरा नहीं देखा जा सकता। किंतु यहां किसी को भी डर नही लग रहा था उल्टा सब खुश थे। सबसे ज्यादा खुश तो रूही थी, क्योंकि उस जीव का स्पर्श उतना ही अलौकिक था।

उस जीव ने कुछ देर तक अपना पंख रूही के पेट पर टिकाए रखा। फिर तो सबने वो कारनामा देखा। नजरों के सामने उस जीव के शरीर का जितना हिस्सा था, उसमें जैसे वाइब्रेशन हुआ हो और एक पल के लिए उसने पंख को पेट से हटा लिया। वापस से उसने पेट पर स्पर्श किया और फिर से उसका शरीर वाइब्रेट किया।

रूही:– अमेया पेट में हरकत कर रही है। ये जीव उसे महसूस कर सकता है...

लगातार 3–4 बार वाइब्रेट होने और स्पर्श करने की प्रक्रिया के बाद तो वो जीव खुशी से गुलाटी ही लगा दिया। वो अलग बात थी कि गुलाटी लगी नही और अपना भारी शरीर लेकर सीधा जमीन पर गिर गया। सर हिलाते वह जीव उठा और अपना मुंह रूही के पेट के करीब लाकर अपने जीभ के छोटे से प्वाइंट से रूही के पेट को स्पर्श करके वहां से खुशी–खुशी वापस समुद्र में लौट गया। हालांकि मकसद तो पेट को ही स्पर्श करना था, लेकिन अब जीभ ही इतनी बड़ी थी की चारो को गिला करके भाग गया...

इतने बड़े जीव की जान बचाना अपने आप में ही अनोखा अनुभव था। आर्यमणि ने पूरे घटनाक्रम को विस्तार से अनंत कीर्ति की पुस्तक में लिखा। जब वह पूरी घटना लिख रहा था, उसी दौरान आर्यमणि ने सोच लिया की इस किताब को कॉटेज में न रखकर साथ ले जाना ज्यादा बेहतर होगा। अनंत कीर्ति की पुस्तक खुद यहां के पूरे पारिस्थितिक तंत्र को वर्णित कर देगी।

अगली सुबह तो और भी ज्यादा विचित्र परिस्थिति थी। आर्यमणि क्रूज को आइलैंड के दूसरे छोड़ से उसी किनारे पर लगा रहा था जहां क्रूज शुरू से लगी हुई थी। किंतु उस विशालकाय जीव को ठीक करने के बाद से तो जैसे आर्यमणि के पास वाले समुद्री तट पर कई सारे समुद्री जीवों का आना जाना हो गया। सभी समुद्री जीवों के आकार सामान्य ही थे लेकिन देखने में काफी मनमोहक और प्यारे लग रहे थे। सभी पीड़ा लेकर उस तट पर पहुंचे थे और आर्यमणि उन सबको हील कर खुशी–खुशी वापस भेज दिया।

अब तो जैसे रोज ही समुद्र किनारे समुद्री जीवों का भिड़ लगा रहता। उन सबकी संख्या इतनी ज्यादा हुआ करती थी कि अल्फा पैक उन्हे समुद्री रेशों में जकड़ कर एक साथ हील कर दिया करते थे। कभी–कभी तो काफी ज्यादा पीड़ा में होने के कारण कई समुद्री जीव आर्यमणि के फेंस तक पहुंच जाते। चारो मिलकर हर किसी की तकलीफ दूर कर दिया करते थे। और जितना वो लोग इस काम को करते, उतना ही अंदर से आनंदमय महसूस करते।

हां लेकिन उस बड़े से काल जीव को स्वास्थ्य करने वाली घटना के बाद, उन चारो को रात में कॉटेज के आस–पास किसी के होने की गंध जरूर महसूस होती, लेकिन निकलकर देखते तो कोई नही मिलता। उस बड़े से जीव को हील किये महीना बीत चुका था। जिंदगी रोजमर्रा के काम के साथ बड़ी खुशी में कट रही थी। रूही का छटवा महीना चल रहा था। सब लोग अब विचार कर रहे थे कि 4 महीने के लिये न्यूजीलैंड चलना चाहिए। रूही के प्रसव से लेकर बच्चे के महीने दिन का होने तक डॉक्टर के ही देख–रेख़ में रूही को रखना था।

अंधेरा हो चला था। चारो कॉटेज के बाहर आग जला कर बैठे थे। इन्ही सब बातो पर चर्चा चल रही थी। सब न्यूजीलैंड जाने के लिये सहमति जता चुके थे, सिवाय रूही के। उसका कहना था कि आर्यमणि ही ये डिलीवरी करवा देगा। रूही की बात सुनकर तो खुद आर्यमणि का दिमाग ब्लॉक हो गया। यूं तो डॉक्टरों का ज्ञान चुराते वक्त प्रसव करवाने का मूलभूत ज्ञान तो आर्यमणि के पास था, किंतु अनुभव नहीं। और आर्यमणि जनता था डॉक्टरी पेशा ऐसा है जिसमे ज्ञान के साथ–साथ अनुभव भी उतना ही जरूरी होता है। आर्यमणि, रूही से साफ शब्दों में कह दिया... "इस मामले में तुम्हारी राय की जरूरत नही। जो जरूरी होगा हम वही करेंगे।"

आर्यमणि की बात सुनकर रूही भी थोड़ा उखड़ गयी। फिर क्या था दोनो के बीच कड़क लड़ाई शुरू। इन दोनो की लड़ाई मध्य में ही थी जहां आर्यमणि चिल्लाते हुए कह रहा था कि... "तुम्हारी मर्जी हो की नही हो, न्यूजीलैंड जाना होगा"…. वहीं रूही भी कड़क लहजे में सुना रही थी... "जबरदस्ती करके तो देखो, मैं यहां से कहीं नही जाऊंगी"

कोई निष्कर्ष नही निकल रहा था और जिस हिसाब से दोनो अड़े थे, निष्कर्ष निकलना भी नही था। दोनो की बहस बा–दस्तूर जारी थी। तभी वहां का माहोल जैसे कुछ अलग सा हो गया। समुद्र तट से काफी तेज तूफान उठा था। धूल और रेत के कण से आंखें बंद हो गयी। कुछ सेकंड का तूफान जब थमा, आर्यमणि अपने फेंस के आगे केवल लोगों को ही देख रहे थे। कॉटेज से 200 मीटर का इलाका उनका फेंस का इलाका था और उसके बाहर चारो ओर लोग ही लोग थे।

यहां कोई आम लोग आर्यमणि के फेंस को नही घेरे थे। बल्कि वहां समुद्रीय मानव प्रजाति खड़ी थी। एक जलपड़ी और उसके साथ एक समुद्री पुरुष जिसका बदन संगमरमर के पत्थर जैसा और शरीर का हर कट नजर आ रहा था। आर्यमणि सबको अपनी जगह बैठे रहने बोलकर खड़ा हो गया और फेंस की सीमा तक पहुंचा। वह बड़े ध्यान से सामने खरे मानव प्रजाति को देखते... "तुम सबका मुखिया कौन है?"…

आर्यमणि के सवाल पर भिड़ लगाये लोगों ने बीच से रास्ता दिया। सामने से एक बूढ़ा पुरुष और उसके साथ एक जलपड़ी चली आ रही थी। बूढ़ा वो इसलिए था, क्योंकि एक फिट की उसकी सफेद दाढ़ी हवा में लहरा रही थी। वरना उसका कद–काठी वहां मौजूद भीड़ में जितने भी पुरुष थे, उनसे लंबा और उतना ही बलिष्ठ दिख रहा था।

वहीं उसके साथ चली आ रही लड़की आज अपने दोनो पाऊं पर ही आ रही थी, लेकिन जब पहली बार दिखी थी, तब जलपड़ी के वेश में थी। कम वह लड़की भी नही थी। एक ही छोटे से उधारहण से उसका रूप वर्णन किया जा सकता था। स्वर्ग की अप्सराएं भी जिसके सामने बदसूरत सी दिखने लगे वह जलपड़ी मुखिया के साथ चली आ रही थी।

भाग:–156


आर्यमणि के सवाल पर भिड़ लगाये लोगों ने बीच से रास्ता दिया। सामने से एक बूढ़ा पुरुष और उसके साथ एक जलपड़ी चली आ रही थी। बूढ़ा वो इसलिए था, क्योंकि एक फिट की उसकी सफेद दाढ़ी हवा में लहरा रही थी। वरना उसका कद–काठी वहां मौजूद भीड़ में जितने भी पुरुष थे, उनसे लंबा और उतना ही बलिष्ठ दिख रहा था।

वहीं उसके साथ चली आ रही लड़की आज अपने दोनो पाऊं पर ही आ रही थी, लेकिन जब पहली बार दिखी थी, तब जलपड़ी के वेश में थी। कम वह लड़की भी नही थी। एक ही छोटे से उधारहण से उसका रूप वर्णन किया जा सकता था। स्वर्ग की अप्सराएं भी जिसके सामने बदसूरत सी दिखने लगे वह जलपड़ी मुखिया के साथ चली आ रही थी।

वह व्यक्ति जैसे ही फेंस के करीब पहुंचा, अपना परिचय देते हुये कहने लगा.… "मेरा नाम विजयदर्थ है और ये मेरी बेटी महाती। मै गहरे महासागर का महाराज हूं और पूरे जलीय तंत्र की देख–रेख करता हूं।"

"मेरा नाम आर्यमणि है। क्या मैं आपसे इतनी दूर आने का कारण पूछ सकता हूं"..

विजयदर्थ:– मैं, विजयदर्थ, गहरे महासागर का राजा, तुमसे मदद मांगने आया हूं...

आर्यमणि:– कैसी मदद?

विजयदर्थ:– “तुमने जिसे बचाया था वो शोधक प्रजाति की जीव है। जैसे धरती पर कुछ भी जहरीला फेंक दो तो भूमि उसे सोख कर खुद में समा लेती है, और बदले में बिना किसी भेद–भाव के पोषण देती है। ठीक वैसे ही ये शोधक प्रजाति है। महासागर की गहराई के अनंत कचरे को निगलकर उसे साफ रखती है।”

“कुछ वर्षों से उन जीवों के पाचन प्रक्रिया में काफी बदलाव देखने मिला है। पहले जहां ये सोधक प्रजाति हर प्रकार के कचरे को पचा लिया करते थे, वहीं अब इनके पेट में कचरा जमा होकर गांठ बना देता है। सोधक प्रजाति अब पचाने में सक्षम नहीं रहे। पिछले कुछ वर्षों में इनकी आबादी आधी हो गयी है। हम हर प्रयत्न करके देख चुके। हमारे सारे हीलर ने जवाब दे दिया। जैसे तुमने उस बच्ची की सर्जरी की, दूसरे हीलर सर्जरी तो कर लेते थे, लेकिन पेट इतना खुल जाता था कि वो जीव इन्फेक्शन और दर्द से मर जाते।”

“हम बड़ी उम्मीद के साथ आये है। यादि सोधक प्रजाति समाप्त हो गयी तो जलीय पारिस्थितिकी तंत्र (वाटर इकोसिस्टम) खराब हो जायेगी। इसका असर न सिर्फ जलमंडन, बल्कि वायुमंडल और भूमि पर भी पड़ेगा। और ये मैं सिर्फ एक ग्रह पृथ्वी की बात नही कर रहा, बल्कि अनेकों ग्रह पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा।”

"आपकी हम क्यों मदद करे, जबकि आपके लोगों ने मेरे आर्यमणि को लगभग मार डाला था। वो कौन थी जिसने मेरे पति के दिमाग को ही अंदर से गलाने की कोशिश की थी"…. रूही गुस्से में पूछने लगी ..

विजयदर्थ की बेटी, राजकुमारी महाती एक कदम आगे आती…. "उस जानलेवा घटना को मैने अंजाम दिया था। किंतु वो मात्र एक गलती थी। हमारी छिपी हुई दुनिया है, इसे हम उजागर नही कर सकते। जैसे आप लोग पृथ्वी पर इंसानों के बीच छिपकर रहते हो और अपनी असलियत उजागर नही होने देते।"…

आर्यमणि:– हां लेकिन हम जान नही लेते... उनकी यादें मिटा देते हैं...

महाती:– “यहां पहली बार कोई अच्छा पृथ्वी वाशी आया है। वरना पृथ्वी से अब तक यहां जितने भी लोग आये, उनके साथ हमारा बहुत बुरा अनुभव रहा था। ऐसा नहीं था कि पहले हम किसी पृथ्वी वाशी को देखकर उन्हें सीधा मार देते थे। लेकिन जितनी बार उनकी पिछली गलती को माफ करके, आये हुए पृथ्वी वाशी से मेल जोल बढ़ाते बदले में धोका ही मिलाता।”

“आप लोग किसी महान साधक के अनुयाई हो। आपका जहाज मजबूत मंत्र शक्ति से बंधा है। इसलिए हम उसे डूबा नही पाये। वरना पृथ्वी वासियों के लिये इतनी नफरत है कि उन्हे इस क्षेत्र से मिलो दूर डूबा देते है। ये पूरा आइलैंड महासागर के विभिन्न जीवों का प्रजनन स्थल है, जो रहते तो जल में है, किंतु प्रजनन केवल थल पर ही कर सकते है। और यहां किसी की दखलंदाजी उनको बहुत नुकसान पहुंचाती है। अब आप समझ ही गये होगे की क्यों मैंने आपको देखते ही मारने का प्रयास की थी.. लेकिन अपनी सफाई में पेश की हुई बातें अपनी जगह है, इस से ये बात नही बदलेगी की मैने आपकी जान लेने की कोशिश की थी।”

इतना कहकर महाती अपने पिता को देखने लगी। दोनो एक साथ अपने घुटनो पर बैठते…. "लेकिन केवल शब्द ही काफी नहीं अपनी गलती को सही साबित करने के लिये। हम मानते हैं कि जो भी हुआ वह एक गलती थी और उसका पछतावा है। आप अपने विधि अनुसार दोषी को मृत्यु दण्ड तक दे सकते हैं।"…

आर्यमणि:– आपलोग अभी खड़े हो जाइए और बाहर न रहे, अंदर आइए...

विजयदर्थ और महाती दोनो फेंस के अंदर आ गये। दोनो के बैठने के लिये कुर्षियों का इंतजाम किया गया। सभी आराम से बैठ गये। तभी महाती खड़ी होकर... "आप जैसे महान हीलर और दयावान इंसानों के बीच खुद को गौरवान्वित महसूस कर रही हूं। हम तो उस बच्ची (विशाल काल जीव) को दर्द में मरता छोड़ गये। उसके बचने को कोई उम्मीद नहीं थी, फिर भी बिना किसी संसाधन के जिस प्रकार आपने उसे जीवित किया, सर अपने आप ही झुक जाता है। प्रथम साक्षात्कार के उपलक्ष्य में आप सब के लिये एक भेंट मेरी ओर से”.....

कहते हुई महाति एक–एक करके सबके पास पहुंची। सबके दोनो कान के पीछे चीड़ दी। सबसे आखरी में वह रूही के पास पहुंची। उसके कान के पीछे चिड़ने के बाद उसके नाभि के ठीक ऊपर, अपने अंगूठे से अर्ध गोला का निशान बनाकर उसके पेट को प्यार से चूम ली।

जैसे ही महाती ने पेट चूमा, तभी रूही के मुंह से "आव" निकल गया। इधर महाती भी हंसती हुई कहने लगी.. "आव नटखट... तुम्हे जल्दी बाहर आना है".... इतना कहकर फिर एक बार चूमी और इस बार भी पेट के सतह पर हलचल हुई... "बड़ी प्यारी बच्ची है। बाहर आकर हम सबके साथ बैठना चाहती है"…

आर्यमणि:– जी धन्यवाद... वैसे तोहफा देने के बहाने आपने तो खून ही निकाल दिया...

महाती:– इतनी औपचारिकता आप मेरे पिता के साथ कीजिए। मैं आपके सेवा के आगे तो बहुत ही छोटी हूं और आपकी सागिर्द बनना चाहती हूं। इसलिए मुझे अपना शागिर्द समझकर बात कीजिए। और रही बात इस खूनी उपहार की तो आज से आप सब और साथ में आने वाली ये नटखट, हमारे लोग है। आपको गहरे महासागर में कभी कोई परेशानी नहीं होगी...

विजयदर्थ:– महाती अब तुम रोज आकर इनसे बात कर लेना। अभी जिस काम के लिये आये थे वो बात कर ले.. आर्यमणि कृपा कर हमारी मदद करो...

आर्यमणि:– देखिए मैं शोधक प्रजाति के बारे में कुछ नही जानता और न ही मैं कोई डॉक्टर हूं। लेकिन एक डॉक्टर को जनता हूं जो आपकी मदद कर सकता है। जीवों के बारे में जितनी उसकी जानकारी है और किसी की नही...

विजयदर्थ:– आप शायद अपने पुराने साथी बॉब की बात कर रहे है।

आर्यमणि:– आप कैसे जानते है उसे...

विजयदर्थ:– हम कई महीनो से आपके बारे में पता कर रहे थे। हमे तो ये भी पता है कि जिस दुश्मन ने आपकी पत्नी रूही पर हमला किया था, वो दूसरे ग्रह का प्रजाति है। उसकी पूरी जानकारी तो मुझे नही पता, हां लेकिन उसके प्रजाति को नायजो प्रजाति कहते हैं।

आर्यमणि:– आपको तो सब पता है। मै पहले सोचता था पृथ्वी ही इकलौती दुनिया है। हमारा विज्ञान भी यही कहता था, पर कुछ वक्त से पूरे ब्रह्मांड को देखने का नजरिया ही बदल गया।

विजयदर्थ:– आपके सात्विक आश्रम के पुराने सभी आचार्य और गुरु को बहुत से ग्रह के निवासियों के बारे में पता था। उनमें से कई गुरुओं ने तो दूसरे ग्रहों पर जीवन भी बसाया था। पृथ्वी पर एक नही बल्कि कई सारे ग्रह वासियों का वजूद है। चूंकि मैं, पृथ्वी या अन्य ग्रह के सतह के मामले में हस्तछेप नही कर सकता, इसलिए उनकी बहुत ज्यादा जानकारी मेरे पास नहीं है...

आर्यमणि:– आपने मेरे बारे में इतना कुछ पता लगाया है, जान सकता हूं क्यों?

विजयदर्थ:– आपसे मिलना था। गहरे महासागर के कई राज साझा करने थे। इंसानों के बारे में तो महाती बता ही चुकी थी, इसलिए आपसे मदद मांगने से पहले हम आपके बारे में पता कर सुनिश्चित हो रहे थे। यादि आपको बुरा लगा हो तो माफ कर दीजिए...

आर्यमणि:– अच्छा जिस एलियन नायजो का आपने अभी जिक्र किया, जो रूही को घायल करके भागा था, वह अभी कहां है? क्या आप बता सकते है?...

विजयदर्थ:– भारत देश की सीमा में ही अपने प्रजाति के साथ है वो अभी। गोवा के क्षेत्र में...

आर्यमणि:– हम्मम, आपका आभार। अब एक आखरी सवाल। आप मेरे बारे में जानते है तो मेरे दुश्मनों के बारे में भी जानते होंगे। क्या हम यहां सुरक्षित है?

विजयदर्थ:– मैने समुद्री रास्तों के निशान मिटा दिये है। किसी भी रास्ते से, यहां तो क्या इसके 50 किलोमीटर के क्षेत्र में कोई प्रवेश नही कर सकता। यदि कोई किसी विधि इस आइलैंड तक पहुंच भी गया तो फिर यह आखरी जगह होगी जो वो लोग देख रहे होंगे। और हां यदि आपको जरा भी खतरे का आभाष हो तो आप बस महासागर तक आ जाना... उसके बाद कैसी भी ताकत हो... वो दम तोड़ ही देगी।

आर्यमणि:– आपका आभार... बताइए मैं कैसे आपकी मदद कर सकता हूं। इतना तो मुझे पता है कि आप सब सोचकर आये होंगे... बस मेरी हामी की जरूरत है... तो मैं और मेरा पूरा परिवार शोधक प्रजाति की मदद के लिये तैयार है... बस इसमें एक छोटी सी बाधा है... 4 महीने के लिये हम यहां से जायेंगे...

विजयदर्थ:– बुरा न माने तो पूछ सकता हूं क्यों?

रूही:– आपको तो हमारे बारे में सब बात पता है... फिर ये क्यों पता नही?...

विजयदर्थ:– राजा हूं कोई अंतर्यामी नही.... मैने सभी बातों की जानकारी नही ली थी बल्कि आप सबके चरित्र की पूरी जानकारी निकाली थी।

आर्यमणि:– रूही की डिलीवरी करवानी है। और बच्चा जब 1 महीने का होगा तब यहां लौटेंगे... यहां डिलेवरी की कोई सुविधा भी तो नहीं...

विजयदार्थ:– सुविधा की चिंता छोड़ दीजिए... पृथ्वी वाशी के भाषा में कहा जाए तो हाईटेक हॉस्पिटल यहां आनेवाला है। हर तरह के स्पेशलिस्ट यहां आने वाले है, और आप उसे छोड़कर कहीं और जा रहे हैं।

आर्यमणि:– मतलब मैं समझा नहीं...

विजयदर्थ:– मतलब हमारे यहां की पूरी मेडिकल फैसिलिटी मैं यहीं टापू पर मुहैया करवा दूंगा। और विश्वास कीजिए हमारे पास दुनिया के बेस्ट गाइनेकोलॉजिस्ट है। यादि फिर भी दिल ना माने तो हम 4 महीने रुक जायेंगे...

आर्यमणि:– मुझे करना क्या होगा?..

विजयदर्थ:– मुझे पता है कि आप किसी की भी मेमोरी अपने अंदर ले सकते है। हमारे एक बुजुर्ग हीलर है... जब तक उनमें क्षमता थी, तब तक हमें किसी परेशानी का सामना नही करना पड़ा। महासागर के मानव प्रजाति और महासागरीय जीव के बारे में उनका ज्ञान अतुलनीय है। उन्हे सबसे पहला सोधकर्ता कहना कोई गलत नही होगा..

अलबेली:– किंग सर जब वो पहले हैं तो इसका मतलब आप लोगों का विज्ञान 2–3 पीढ़ी पहले शुरू हुआ होगा...

विजयदर्थ:– हाहाहाहाहा.… तुम्हे क्या लगता है वो कितने साल के हैं...

अलबेली:– 110 या 120, ज्यादा से ज्यादा 150.....

विजयदर्थ:– नही... यादि हमारे गणना से मानो तो वो 102 चक्र के है। यादि उसे साल में बदल दो तो... 3366 वर्ष के होंगे...

अलबेली:– क्या... कितना..

विजयदर्थ:– हां सही सुना। एक ग्रहों के योग से दूसरे ग्रहों के योग के बीच का समय एक चक्र होता है। तुम्हारे यहां के हिसाब से वो 33 साल होता है। हर 33 साल पर ग्रह आपस में मिलते है।

अलबेली:– क्या बात कर रहे, फिर आपकी आयु कितनी होगी...

विजयदर्थ:– मैं अपने गणना से तीसरे चक्र के शुरवात में हूं... यानी की लगभग 68 साल का। हमारे यहां औसतन आयु 150 से 200 साल की होती है। वो बुजुर्ग आशीर्वाद प्राप्त है इसलिए उनकी इतनी उम्र है...

आर्यमणि:– कितनी बातें करती हो अलबेली... अब तो महाती ने तुम्हे अपना कह दिया है। किसी दिन डूब जाना महासागर में और अपनी जिज्ञासा पूर्ण कर लेना। राजा विजयदर्थ मुझे 2 बातों का जवाब दीजिये..

विजयदर्थ:– पूछिये

आर्यमणि:– जब वो बुजुर्ग इतने ज्ञानी है फिर उनके ज्ञान का लाभ पूरे समाज को क्यों नही मिला?...

विजयदर्थ:– उस बुजुर्ग का नाम स्वामी विश्वेश है। स्वामी विश्वेश और उनके साथियों को आधुनिक विज्ञान का जनक कहा जाता है। इन लोगों ने जब अपने शिष्य तैयार किये तब नए लोगों को विज्ञान के हर क्षेत्र में काफी ज्यादा रुचि थी, सिवाय जीव–जंतु विज्ञान के। सच तो यह है कि स्वामी विश्वेश के ज्ञान का लाभ किसी भी शिष्य ने पूरी रुचि से लिया ही नही।

आर्यमणि:– हम्मम तो ये बात है। मेरा दूसरा और अहम सवाल यह है कि क्या वो मुझे ज्ञान चुराने की इजाजत देंगे?

विजयदर्थ:– उनके प्राण इसलिए नही छूट रहे क्योंकि जीव–जंतु विज्ञान में उनको एक भी काबिल मिला ही नहीं, जो उनके ज्ञान को भले न आगे बढ़ा सके, लेकिन कम से कम उनके बराबर तो ज्ञान रख सके। कुछ दिनों पूर्व जब उन्होंने सोधक प्रजाति के एक बच्ची को पूर्ण रूप से ठीक होकर महासागर में चहकते देखा, तब उनके आंखों में आंसू आ गये। पिछले कई वर्षों से सोधक प्रजाति का कोई भी बच्चा ऐसे नही चहका। पिछले कई वर्षों से सोधक प्रजाति के बच्चे अपने जीवन के शुरवाति काल में ही बीमार पड़ जाते थे। उनका सही इलाज तो स्वामी विश्वेश भी नही कर पाये। और जब सही इलाज के कारण एक सोधक प्रजाति की बच्ची को चहकते देखे फिर तो सबकी इच्छा यही थी कि आपसे बात की जाये।

आर्यमणि:– ठीक है बताइए मुझे क्या करना होगा..

विजयदर्थ:– आपने शुरवाती दिनों में गंगटोक के जंगल में वहां के घायल जानवरों की मदद की वो भी बिना किसी प्रशिक्षण के। उसके बाद आपको इस विषय में एक सिखाने वाला मिला बॉब... उसने जो सिखाया उसे बस आपने आधार मान लिया और अपने बुद्धि के हिसाब से घायल जानवरों की मदद करने लगे। यहां भी जिस शोधक बच्ची को आपने बचाया, उसके उपचार के लिये वही घास इस्तमाल किये जो मटुका ने आपको लाकर दिये थे..

आर्यमणि:– माटुका???

विजयदर्थ:– माटुका उस शेर का नाम है जिसका इलाज आपने किया था। हम सबका यह विचार है कि आप स्वामी का ज्ञान ले। हर जीव की जानकारी आपके पास होगी। उनके 2–3 सागिर्द है, उनका भी ज्ञान ले सकते हैं। और इनका ज्ञान लेने के बाद आप शोधक प्रजाति के पाचन शक्ति का कुछ कीजिए...

आर्यमणि:– हां पर इतना करना ही क्यों है। मैने जिसका इलाज किया है उसे ही देखते रहेंगे... उसकी पाचन प्रक्रिया सुचारू रूप से चलती रही फिर ले जाओ आप भी घास...

विजयदर्थ:– हां लेकिन जब आप नही होंगे और जीवों में कोई अन्य समस्या उत्पन्न हो गयी तो फिर हम क्या करेंगे? इसे छोटा सा स्वार्थ समझिए, आप उनसे ज्ञान लेकर कुछ सागीर्द बना ले, ताकि इस समस्या का पूर्ण समाधान हो जाए। एक सागीर्द तो मेरी बेटी महाती ही है।

आर्यमणि:– काम अच्छा है और आपकी बातों से मैं पूरी तरह से सहमत हूं। ठीक है हम इसे कल से ही शुरू करते हैं।

आर्यमणि के हामी भरते ही राजा विजयदर्थ ने अपने दोनो हाथ उठा दिये, और इसी के साथ खुशी की लहर चारो ओर फैल गयी। देर रात्रि हो गयी थी इसलिए सभी सोने चले गये। सुबह जब ये लोग जागे फिर से आश्चर्य में पड़ गये। फेंस के चारो ओर लोग ही लोग थे।

आर्यमणि:– तुम लोग दिन में भी नजर आते हो...

एक पुरुष:– हां ये अपना क्षेत्र है, हम किसी भी वक्त आ सकते है। मैं हूं राजकुमार निमेषदर्थ... राजा विजयदर्थ का प्रथम पुत्र..

आर्यमणि:– उनके और कितने पुत्र है...

निमेशदर्थ:– 4 रानी से कुल 10 पुत्र और 3 पुत्रियां है। क्या हमें इस क्षेत्र में काम करने की अनुमति है?

आर्यमणि:– हा बिलकुल...

जैसे ही आर्यमणि ने इजाजत दिया, हजारों की तादात में लोग काम करने लगे। इनकी अपनी ही टेक्नोलॉजी थी और ये लोग काम करने में उतने ही कुशल। महज 4 दिन में पूरी साइंस लैब और 5 हॉस्पिटल की बिल्डिंग खड़ी कर चुके थे। वो लोग तो आर्यमणि के घर को भी पक्का करना चाहते थे, लेकिन अल्फा पैक के सभी सदस्यों ने मना कर दिया। सबने जब घर पक्का करने से मना कर दिया तब कॉटेज को ही उन लोगों ने ऐसा रेनोवेट कर दिया की अल्फा पैक देखते ही रह गये।
Vo kaal jeev ek bacchi hai Jise alfa team ne bchaya, or kya vilakshan tarike ka prayog kiya hai, jitna team ne masti ki usse badh kr sanjidgi se use bchane ka kaam kiya, ek kahavat thi parhit saras dharm nhi bhai Jaisa kuchh, parhit se bada koi dharm nhi hota Jise Aam bhasa me log insaniyat kah dete hai...

Arya Jaisa hai Thik Vaise hi usne apne team ko bnaya hai or jivo ki madad karte rahne se use bahut kuchh mila hai sath hi sath aage bhi Bahut kuchh milne vala hai...

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Unke tark sahi hai, ab duniya me aise parhit karne vale jyada bache hi nhi hai or jo udhar pahuchte hai vo lalach me aakr nukshan hi karte hai to unka bhi kathor hona banta hai...

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Arya ke ghar ke pass pura high tech hospital bna diya hai sath hi uski jhopdi ko acche se renovate bhi kr diya hai, Chalo Dekhte hai arya yha kya kya bnata hai hospital me...

Vaise idhar Bob ke bare me bhi baat hui Lekin vo kaha hai Iska koi hint nhi diya pr hamla karne vale ki jagah Goa ke pass btai hai, arya kise bhejega usse nipatne ya baad me khud jayega...

Superb bhai lajvab amazing Jabardast wonderful amazing update :applause: :applause:
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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भाग:–157


जैसे ही आर्यमणि ने इजाजत दिया, हजारों की तादात में लोग काम करने लगे। इनकी अपनी ही टेक्नोलॉजी थी और ये लोग काम करने में उतने ही कुशल। महज 4 दिन में पूरी साइंस लैब और 5 हॉस्पिटल की बिल्डिंग खड़ी कर चुके थे। वो लोग तो आर्यमणि के घर को भी पक्का करना चाहते थे, लेकिन अल्फा पैक के सभी सदस्यों ने मना कर दिया। सबने जब घर पक्का करने से मना कर दिया तब कॉटेज को ही उन लोगों ने ऐसा रेनोवेट कर दिया की अल्फा पैक देखते ही रह गये।

पांचवे दिन सारा काम हो जाने के बाद राजकुमार निमेषदर्थ ने इजाजत लीया और वहां से चला गया। उसी शाम विजयदर्थ कुछ लोगों के साथ पहुंचा, जिनमे वो बुजुर्ग स्वामी भी थे। विजयदर्थ, स्वामी और आर्यमणि की औपचारिक मुलाकात करवाने के बाद आर्यमणि को काम शुरू करने का आग्रह किया।

आर्यमणि उस बुजुर्ग को अपने साथ कॉटेज के अंदर ले गया। विजयदर्थ भी साथ आना चाहता था, लेकिन आर्यमणि ने उसे दरवाजे पर ही रोक दिया। बुजुर्ग स्वामी और आर्यमणि के बीच कुछ बातचीत हुई और आर्यमणि बाहर निकलकर राजा विजयदर्थ को सवालिया नजरों से देखते.… "राजा विजयदर्थ ये बुजुर्ग तो मरने वाले हैं।"

विजयदर्थ:– मैने तो पहले ही बताया था। स्वामी जी मृत्यु के कगार पर है।

आर्यमणि:– हां बताया था। लेकिन तब यह नही बताया था कि बिलकुल मृत्यु की दहलीज पर ही है। कहीं वो मेरे क्ला को झेल नही पाये तब"…

विजयदर्थ:– ये बुजुर्ग तो वैसे भी कबसे मरने की राह देख रहे, बस इनके विरासत को कोई संभाल ले। एक सुकून भरी नींद के तलाश में न जाने कबसे है।

आर्यमणि:– हां लेकिन फिर भी जलीय मानव प्रजाति के इतने बड़े धरोहर के मृत्यु का कारण मैं बन जाऊं, मेरा दिल गवारा नहीं करता। फिर आपके लोग क्या सोचेंगे... आप कुछ भी कहे लेकिन वो लोग तो मुझे ही इनके मृत्यु का जिम्मेदार समझेंगे।...

विजयदर्थ:– कोई ऐसा नही समझेगा...

आर्यमणि:– ठीक है फिर आपके लोग ये बात अपने मुंह से कह दे फिर मुझे संतुष्टि होगी...

विजयदर्थ:– मैं अपने लोगो का प्रतिनिधि हूं। मैं कह रहा हूं ना...

आर्यमणि:– फिर आप स्वामी को ले जा सकते है। इस आइलैंड पर मैं जबतक हूं, तबतक अपने हिसाब से घायलों का उपचार करता रहूंगा...

विजयदर्थ:– बहुत हटी हो। ठीक है मैं अपने लोगों को बुलाता हूं।

आर्यमणि:– अपने लोगों को बुलाना क्यों है इतना बड़ा महासागर है। इतनी विकसित टेक्नोलॉजी है, हमे कनेक्ट कर दो...

विजयदर्थ ने तुरंत ही अपनी संचार प्रणाली से सबको कनेक्ट किया। आर्यमणि पूर्ण सुनिश्चित होने के बाद बुजुर्ग स्वामी विश्वेश के पास पहुंचे और अपना क्ला उसकी गर्दन से लगाकर अपनी आंखें मूंद लिया... अनंत गहराइयों के बाद जब आखें खुली, आचार्य जी भी साथ थे...

आचार्य जी:– लगता है अब तक दुविधा गयी नही। जब इतने संकोच हो तो साफ मना कर दो और वो जगह छोड़ दो...

आर्यमणि:– आचार्य जी आपने उस शोधक बच्ची की खुशी देखी होती... वो अदभुत नजारा था। मुझे उनकी तकलीफ दूर करने की इक्छा है... बस मुझे वो राजा ठीक नही लगा... धूर्त दिख रहा है। आप एक बार उसके मस्तिस्क में प्रवेश क्यों नही करते...

आर्यमणि की बात पर आचार्य जी मुस्कुराते.… "अपनी बुद्धि और विवेक का सहारा लो"…

आर्यमणि:– आचार्य जी इसका क्या मतलब है। ये गलत है। बस एक छोटा सा काम कर दो। विजयदर्थ के दिमाग में घुस जाओ...

आचार्य जी:– एक ही बात को 4 बार कहने से जवाब नहीं बदलेगा। यादि तुम ऐसा चाहते हो तो पहले वहां कुछ लोगो को भेजता हूं। तुम अलग दुनिया के लोगों के बीच हो और उसके मस्तिष्क में घुसने पर यदि उन्हे पता चल गया तो तुम सब के लिये खतरा बढ़ जायेगा। उस राजा को जांचते हुए और सावधानी से काम करो। और मैं तो कहता हूं कुछ वक्त ऐसा दिखाते रहो की तुम उनके साथ हो। कुछ शागिर्द को शोधक प्रजाति का इलाज करना सिखा कर लौट आओ, यही बेहतर होगा।…

आर्यमणि:– हां शायद आप सही कह रहे है। ठीक है, आप इस वृद्ध व्यक्ति के ज्ञान वाले सनायु तंतु तक मुझे पहुंचा दीजिए.… मैं सिर्फ इसकी यादों से इसका ज्ञान ही लूंगा।

आचार्य जी:– ठीक है मैं करता हूं, तुम तैयार रहो...

कुछ देर बाद आर्यमणि उस बुजुर्ग का ज्ञान लेकर अपनी आखें खोल दिया। आंख खोलने के साथ ही उसने उस बुजुर्ग की यादें मिटाते... "पता नही अब वो विजयदर्थ तुमसे या मुझसे चाहता क्या है? क्ला से आज तक कोई नही मरा। देखते है तुम्हारा क्या होता है?"

खुद में ही समीक्षा करते आर्यमणि बाहर निकला और अपने दोनो हाथ ऊपर उठा लिया। विजयदर्थ खुश होते आर्यमणि के पास पहुंचा... "अब लगता है उन शोधक प्रजाति का इलाज हो जायेगा"…

आर्यमणि:– हां शायद... मैं कुछ दिनो तक प्रयोगसाला में शोध करूंगा… आपके डॉक्टर आ गये जो रूही का इलाज करने वाले है..

विजयदर्थ ने हां में जवाब दिया। आर्यमणि विजयदर्थ से इजाजत लेकर रूही से मिलने हॉस्पिटल पहुंचा। इवान और अलबेली दोनो ही उसके पास बैठे थे और काफी खुश लग रहे थे। तीनो चहकते हुए कहने लगे, उन्होंने स्क्रीन पर बेबी को देखा... कितनी प्यारी है... कहते हुए उनकी आंखें भी नम हो गयी...

आर्यमणि ने भी देखने की जिद की, लेकिन उसे यह कहकर टाल दिया की गर्भ में पल रहे बच्चों को बार–बार मशीनों और किरणों के संपर्क में नही आना चाहिए। बेचारा आर्यमणि मन मारकर रह गया। थोड़ी देर वक्त बिताने के बाद आर्यमणि वहां से साइंस लैब आ गया। रसायन शास्त्र की विद्या जो कुछ महीने पहले आर्यमणि ने समेटी थी, उसे अपने दिमाग में सुव्यवस्थित करते, आज उपयोग में लाना था।

अपने साथ उसने महासागर के साइंटिस्ट, जीव–जंतु विज्ञान के साइंटिस्ट और मानव विज्ञान के साइंटिस्ट भी थे। जो आर्यमणि के साथ रहकर शोधक प्रजाति पर काम करते। पहला प्रयोग उन घास से ही शुरू हुआ। उसके अंदर कौन से रसायन थे और वो मानव अथवा जानवर शरीर पर क्या असर करता था।

इसके अलावा महासागर के तल में पाया जाने वाला हर्व भी लाया गया। सुबह ध्यान, फिर प्रयोग, फिर परिवार और आइलैंड के जंगल। ये सफर तो काफी दिलचस्प और उतना ही रोमांचक होते जा रहा था। करीब 2 महीने बाद सबने मिलकर कारगर उपचार ढूंढ ही लिया। उपचार ढूंढने के बाद प्रयोग भी शुरू हो गये। सभी प्रयोग में नतीजा पक्ष में ही निकला...

जितना वक्त इन प्रयोग को करने में लगा उतने वक्त में लैब में काम कर रहे सभी शोधकर्ता ने आपस की जानकारी और अनुभवों को भी एक दूसरे से साझा कर लिया। आर्यमणि को हैरानी तब हो गई जब जीव–जंतु विज्ञान के स्टूडेंट्स और साइंटिस्ट से मिला। उनके पढ़ने, सीखने और जीव–जंतु की सेवा भावना अतुलनीय थी। बस सही जानकारी का अभाव था और महासागरीय जीव इतने थे की सबको बारीकी से जानने के लिये वक्त चाहिए था।

जीव–जंतु विज्ञान वालों ने यूं तो कुछ नही बताया की उनके पास समर्थ रहते भी वो इतने पीछे क्यों रह गये। लेकिन आर्यमणि कुछ–कुछ समझ रहा था। उनके समर्थ का केवल इस बात से पता लगाया जा सकता था कि एक विदार्थी शोधक के अंदरूनी संरचना जानने के बाद सीधा उसके पेट में जाकर अंदर की पूरी बारीकी जानकारी निकाल आया।

ऐसा नही था की वो विदर्थी पहले ये काम नहीं कर सकता था। ऐसा नही था कि अंदुरूनी संरचना का उन्हे अंदाजा न हो, लेकिन उनका केवल यह कह देना की उनके पास जानकारी नही थी, इसलिए नही अंदर घुस रहे थे... आर्यमणि के मन में बड़ा सवाल पैदा कर गया। आर्यमणि ने महज अपने क्ला से वही जानकारी साझा किया जो उसने बुजुर्ग के दिमाग से लिया था। आश्चर्य क्यों न हो और मन में सवाल क्यों न जन्म ले। आर्यमणि जबतक जीव–जंतु विज्ञान में अपना एक कदम आगे उठाने की कोशिश करता, वहीं जीव–जंतु विज्ञान के सोधकर्ता 100 कदम आगे खड़े रहते। पूरा इलाज महज 3 महीने में खोज निकाला।..

एक ओर जहां इनका काम समाप्त हो रहा था वहीं दूसरी ओर अल्फा परिवार की जिम्मेदारी बढ़ने वाली थी, क्योंकि किसी भी वक्त रूही की डिलीवरी होने वाली थी। अलबेली डिलीवरी रूम में लगातार रूही के साथ रहती थी। अलबेली, रूही के लेबर पेन को अपने हाथ से खींचना चाहती थी...

रूही, अलबेली के सिर पर एक हाथ मारती... "उतनी बड़ी वो शोधक जीव थी। उसका दर्द मुझसे बर्दास्त हो गया, और मैं अपने बच्चे के आने की खुशी तुझे दे दूं। मुझे लेबर पेन को हील नही करवाना"…

अलबेली:– हां ठीक है समझ गयी, लेकिन इतने डॉक्टर की क्या जरूरत थी? क्या दादा (आर्यमणि) को पता नही की एक वुल्फ के बच्चे कैसे पैदा होते हैं।….

रूही:– मैं शेप शिफ्ट करके अपने बच्ची को जन्म नही दूंगी... और इस बारे में सोचना भी मत...

अलबेली:– लेबर पेन से शेप शिफ्ट हो गया तो...

रूही:– मां हूं ना.. अपने बच्चे के लिए हर दर्द झेल लूंगी... और वैसे भी हील करते समय का जो दर्द होता है, उसके मुकाबले लेबर पेन कुछ भी नहीं...

अलबेली:– हे भगवान... कहीं ऐसा तो नहीं की हमने इतने दर्द लिये है कि तुम्हे लेबर पेन का पता ही न चल रहा हो.. क्योंकि लेबर पेन मतलब एक औरत के लिए 17 हड्डी टूटने जितना दर्द...

रूही:– और हमने तो इतने बड़े जीव का दर्द लिया, जिसका दर्द इंसानी हड्डी टूटने से आकलन करे तो...

अलबेली:– 10 हजार हड्डियां... या उस से ज्यादा भी..

रूही:– नीचे देख सिर बाहर आया क्या...

अलबेली नीचे क्या देखेगी, पहले नजर पेट पर ही गया और हड़बड़ा कर वो कपड़ा उठाकर देखी... अब तक रूही की भी नजर अपने पेट पर चली गई... "झल्ली, अंदर मेरी बच्ची के सामने हंस मत, जाकर डॉक्टर को बुला और किसी को ये बात पता नही चलनी चाहिए"…

अलबेली, अपना मुंह अंदर डाले ही... "इसकी आंखें अभी से अल्फा की है, और चेहरा चमक रहा। मुझ से रहा नही जा रहा, मैं गोद में लेती हूं।"

रूही:– अरे अपने ही घर की बच्ची है जायेगी कहां... लेकिन क्यों डांट खाने का माहैल बना रही। आर्यमणि को पता चला की हम बात में लगे थे और अमेया का जन्म हो गया... फिर सोच ले क्या होगा। मैं फसने लगी तो कह दूंगी, मेरा हाथ थामकर अलबेली मेरा दर्द ले रही थी, मुझे कैसे पता चलता...

अलबेली अपना सिर बाहर निकालकर रूही को टेढ़ी नजरों से घूरती... "ठीक है डॉक्टर को बुलाती हूं। तुम पेट के नीचे तकिया लगाओ और चादर बिछाओ... "

रूही अपना काम करके अलबेली को इशारा की और अलबेली जोड़ से चिंखती.… "डॉक्टर...डॉक्टर"..

जैसा की उम्मीद था, पहले आर्यमणि ही भागता आया। यूं तो आया था परेशान लेकिन अंदर घुसते ही शांत हो गया... अलबेली को लगा गया की आर्यमणि को कुछ मेहसूस हो गया था, कुछ देर वह रुका तो आमेया के जन्म का पता भी चल जायेगा..

अलबेली:– बॉस आप नही डॉक्टर को भेजो..

आर्यमणि:– लेकिन वो..

अलबेली धक्का देते.… "तुम बाहर रहो बॉस, लो डॉक्टर भी आ गयी"…

जितनी बकवास रूही और अलबेली की स्क्रिप्ट थी, उतनी ही बकवास परफॉर्मेंस... डॉक्टर अंदर आते ही... "आराम से तो है रूही .. चिल्ला क्यों रही हो"…

जैसे ही डॉक्टर की बात आर्यमणि ने सुना.. वो रूही के करीब जाने लगा। तभी रूही भी तेज–तेज चीखती... "ओ मां.. आआआआ… मर जाऊंगी... कोई बचा लो.. बचा लो".. आर्यमणि भागकर रूही के पास पहुंचा.. उसका हाथ थामते... "क्या हुआ... रूही... आंखें खोलो.. डॉक्टर.. डॉक्टर"…

डॉक्टर:– उसे कुछ नही हुआ, तुम बाहर जाओ.. डिलीवरी का समय हो गया है.…

जैसे ही आर्यमणि बाहर गया। रूही तुरंत अपने पेट पर से चादर और तकिया हटाई। अलबेली लपक कर तौलिया ली और आगे आराम से उसपर अमेया को लिटाती बाहर निकाली… "ये सब क्या है"… डॉक्टर हैरानी से पूछी...

अलबेली उसके मुंह पर उंगली रखकर... "डिलीवरी हो गयी है। अब तुम आगे का काम देखो".... इतना कहकर अलबेली ने कॉर्ड को काट दिया और बच्ची को दोनो हथेली में उठाकर झूमने लगी। इधर डॉक्टर अपना काम करने लगी और रूही अलबेली की खुशी देखकर हंसने लगी।

अलबेली झूमते हुए अचानक शांत हो गई और रूही के पास आकर बैठ गई... रूही अपने हाथ आगे बढ़ाकर, उसके आंसू पोंछती… "अरे, अमेया की बुआ ऐसे रोएगी तो भतीजी पर क्या असर होगा"…

अलबेली, पूरी तरह से सिसकती... "उस गली में हम क्या थे भाभी, और यहां क्या... मेरा तो जीवन तृप्त हो गया।"..

रूही:– पागल मुझे भी रुला दी न... क्यों बीती बातें याद कर रही...

अलबेली:– भाभी, जो हमे नही मिला वो सब हम अपनी बच्ची को देंगे। इसे वैसे ही बड़ा होते देखेंगे, जैसे कभी अपनी ख्वाइश थी...

रूही:– हां बिलकुल अलबेली... अब तू चुप हो जा..

डॉक्टर:– अरे ये बच्ची रो क्यों नही रही..

अलबेली:– क्योंकि इस बच्ची के किस्मत में कभी रोना नहीं लिखा है डॉक्टर... उसके हिस्से का दुख हम जी चुके हैं। उसके हिस्से का दर्द हम ले लेंगे... हमारी बच्ची कभी नही रोएगी...

अलबेली इतना बोलकर अमेया को फिर से अपने हाथो में लेकर झूमने लगी। रूही और अलबेली के चेहरे से खुशी और आंखों से लगातार आंसू आ रहे थे। इधर आर्यमणि जब बाहर निकला, इवान चिंतित होते... "क्या हुआ जीजू, अलबेली ऐसे चिल्लाई क्यों"…

आर्यमणि:– क्योंकि अमेया आ गयी इवान, अमेया आ गयी...

इवान:– क्या सच में.. मै अंदर जा रहा...

आर्यमणि:– नही अभी नही... अभी आधे घंटे का इनका ड्रामा चलेगा। जबतक मैं ये खुशखबरी अपस्यु और आचार्य जी को बता दूं...

आर्यमणि भागकर अपने कॉटेज में गया और ध्यान लगा लिया.… "बहुत खुश दिख रहे हो गुरुदेव"…

आर्यमणि:– छोटे.. ऐसा गुरुदेव क्यों कह रहे...

अपस्यु:– तुम अब पिता बन गये, कहां मार–धार करोगे। तुम आश्रम के गुरुजी और मैं रक्षक।

आर्यमणि:– न.. मेरी बच्ची आ गयी है और अब मैं गुरुजी की ड्यूटी नही निभा सकता। रक्षक ही ठीक हूं।

आचार्य जी:– तुम दोनो की फिर से बहस होने वाली है क्या...

दोनो एक साथ... बिलकुल नहीं... आज तो अमेया का दिन है...

आचार्य जी:– जिस प्रकार का तेज है... उसका दिन तो अभी शुरू हुआ है, जो निरंतर जारी रहेगा। लेकिन आर्यमणि तुम इस बात पर अब कभी बहस नही करोगे की तुम आश्रम के गुरु नही बनना चाहते। दुनिया का हर पिता काम करके ही घर लौटता है। यह तुम्हारे पिता ने भी किया था और मेरे पिता ने भी... तो क्या वो तुमसे प्यार नहीं करते..

आर्यमणि:– हां समझ गया... गलती हो गयी माफ कर दीजिए...

अपस्यु:– पार्टी लौटने के बाद ले लूंगा.. बाकी 7 दिन के नियम करना होगा...

आचार्य जी:– सातवे दिन, पूरी विधि से वो पत्थर जरित एमुलेट पहनाने के बाद ही अमेया को अपने घर से बाहर निकालना और सबसे पहले पूरा क्षेत्र घुमाकर हर किसी का आशीर्वाद दिलवाना... पिता बनने की बधाई हो..

अपस्यु:– पूरे आश्रम परिवार के ओर से बधाई... अब हम चलते है।

आर्यमणि के चेहरे की खुशी... दौड़ता हुआ वो वापस हॉस्पिटल पहुंचा। सभी रूही को घेरे खड़े थे। आर्यमणि गोद में अमेया को उठाकर नजर भर देखने लगा। जैसे ही अमेया, आर्यमणि के गोद में आयी अपनी आंखें खोलकर आर्यमणि को देखने लगी। आर्यमणि तो जैसे बुत्त बन गया था। चेहरे की खुशी कुछ अलग ही थी। वह प्यार से अपनी बच्ची को देखता रहा। कुछ देर बाद सभी रूही को साथ लेकर कॉटेज चल दिये।

कॉटेज के अंदर तो जैसे जश्न का माहोल था। उसी रात शेर माटुका और उसके झुंड को अमेया के जन्म का अनुभव हुआ हो जैसे... शोधक बच्ची जिसका इलाज आर्यमणि ने किया, उसको भी एहसास हुआ था... जंगल के और भी जानवर, जिन–जिन ने अमेया को गर्भ में स्पर्श किया था, सब को अमेया के जन्म का अनुभव हुआ था और सब के सब रात में ही अमेया से मिलने पहुंच गये।
Yah sach hai ki abhi tk Maine vo khushi mahsus nhi ki pr anuman lgane ki Kosis kr sakta hu ki Vo sabse jyada sukun dene vali khushi hogi jivan ki jb Apne navjat bacche ko apni godi me lunga. Aap Nainu bhaya us khushi ko mahsus kr chuke ho to aapne use hi karib karib Vaise hi likhne ka prayash kiya hai pr sath hi Mai sure hu ki aapne bhi ise purn rup se Vaise hi nhi likh paye honge...

Fir bhi jitna likha hai Vo padh kr anand aa gya bhai Lajvab kr dene vala update bhai jabarjast superb amazing :ecs: ameya ka janm ho gya or 7 dino ke liye apasyu ne cottege me hi rakh kr vidhi karne ko kaha hai or baad me amulate pahnakr bahar nikalne bola hai pr Vo sabhi log jinhone ruhi ke pet me hath rakh kar mahsus kiya tha vo sabhi arya ke ghar raat me hi milne chale aaye hain, Dekhte hai kya hota hai aage...

Arya ko sak ho gya hai Pahle se hi or usne guru ji se baat bhi kr li hai unhone madad karke jaldi se vha se bahar nikalne ka kaha hai, ye raja dhurt hai or Bahut kuchh chhupa rha hai Iska pta arya lga chuka hai sath hi arya ne lab me rahkr un scientist ko bhi parakh liya hai dekhte hai arya kiska kiska mind read karke kya kya pta lgata hai or fir kya karta hai...

Vo bujurg se gyan to arya ne nikal liya pr uski vo yaad mita di ki usne gyan liya bhi hai, pta nhi kya khichdi pak rhi hai us RAJA ke man me or kya uska ladka or ladki bhi uske plan me samil hai Ya unhe kuchh pta hi nhi hai...

Superb bhai...
 

Xabhi

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भाग:–158


कॉटेज के अंदर तो जैसे जश्न का माहोल था। उसी रात शेर माटुका और उसके झुंड को अमेया के जन्म का अनुभव हुआ हो जैसे... शोधक बच्ची, चाहकीली, जिसका इलाज आर्यमणि ने किया, उसको भी एहसास हुआ था... जंगल के और भी जानवर, जिन–जिन ने अमेया को गर्भ में स्पर्श किया था, सब को अमेया के जन्म का अनुभव हुआ था और सब के सब रात में ही अमेया से मिलने पहुंच गये।

बेजुबान जीव अपने आंखों से भावना व्यक्त कर रहे थे। वहीं शोधक बच्ची भी हवा में करतब दिखाते आर्यमणि के कॉटेज को ही पूरा कुंडली मारकर घेर चुकी थी और उसका विशाल सिर कॉटेज के ऊपर था। या यूं भी कह सकते थे की कॉटेज अब गुफा बन गयी थी।

ऊपर शोधक बच्ची का सर तो नजर नहीं आ रहा था लेकिन खिड़की से उसका धर जरूर दिख रहा था। आर्यमणि के बहुत समझाने के बाद शोधक बच्ची चाहकीली और माटुका शेर का झुंड वहां से गया। 7 दिन पूरे हो गये थे और आर्यमणि पूरी विधि से पूजा करने के बाद अमेया के गले में पत्थर जारित छोटा एमुलेट धारण करवा रहा था। काफी अनूठा पल था... आमेया प्यारी सी मुस्कान के साथ पहली बार गले से प्यारा सा आवाज निकाली। जिसे सुनकर सब हंसते हुए उसे गोद में लेकर झूमने लगे...

कुछ दिन पूर्व

किसी सुदूर और वीरान टापू पर कुछ लोगों की मुलाकात हो रही थी। 8–10 लोग उन्हें घेरे खड़े थे और बीच में 5 लोग बैठे थे... मीटिंग निमेषदर्थ ने बुलवाई थी। विवियन एक औपचारिक परिचय देते हुये...

"निमेषदर्थ, ये हमारे समुदाय की सबसे शक्तिशाली स्त्री माया है। काफी दूर दूसरे ग्रह से आयी है। माया ये है राजकुमार निमेषदर्थ और उसकी बहन राजकुमारी हिमा। ये दोनो महासागर के राजा विजयदर्थ के प्रथम पुत्र और पुत्री है।”

“हमारे बीच दूसरी दुनिया की रानी मधुमक्खी रानी चींची बैठी हुई है। पिछले कुछ वक्त से ये भी हमारी तरह आर्यमणि का शिकर करना चाहती थी। उसके पैक को वेमपायर के साथ उलझाने की कोशिश भी की, लेकिन बात नहीं बनी। पृथ्वी पर हम सबकी एक मात्र बाधा आर्यमणि है, जिसके वजह से हम अपना साम्राज्य फैला नही पा रहे।

निमेषदर्थ:– हम्मम... लगता है उस आर्यमणि ने तुम सबको कुछ ज्यादा ही दर्द दिया है। ठीक है मैं तुम्हे आर्यमणि और उसके लोगों को मारने का मौका दूंगा।

रानी मधुमक्खी चिंची..... “उस आर्यमणि ने तुम्हारे साथ क्या किया, जो तुम उसे मारना चाहते हो?”

निमेषदर्थ:– वह मेरे साथ क्या करेगा, कुछ भी नही। मुझे तो बस उसकी शक्तियां चाहिए, जो उसके खून से मुझे मिल जायेगा। चूंकि मेरे पिता का हाथ आर्यमणि के सर पर है, इसलिए मैं या मेरे लोग उसे मार नही सकते, इसलिए तुम लोगों को बुलवाया है।

माया:– बिलकुल सही लोगों से संपर्क किया है। एक बार वो मेरे किरणों के घेरे में फंस गया, फिर मेरे पास वह हथियार भी आ गया है, जिस से आर्यमणि को उसका मंत्र शक्ति भी बचा नही सकती।

निमेषदर्थ, अपनी जगह से खड़ा होकर पूरे जोश के साथ..... “इस बार गलत जगह पर है आर्यमणि। तुम्हे यदि विश्वास है कि तुम्हारे गोल घेरे में फंसकर आर्यमणि निश्चित रूप से मरेगा, तो ऐसा ही होगा। वादा रहा”...

माया, निमेषदर्थ के आकर्षक बदन को घूरती..... “तुम बहुत आकर्षक हो राजकुमार.. साथ काम करने में मजा आयेगा”...

निमेषदर्थ:– तुम भी कमाल की दिखती हो माया। तुम्हारे पास जलपड़ी बनने जितनी सौंदर्य है।

माया:– ऐसी बात है क्या... फिर जब तुम राजा बनना तब मुझे अपनी रानी बनने का प्रस्ताव भेजना... अब जरा काम की बात हो जाये... तुम पूरा जाल बिछाकर आर्यमणि को जहां कहूंगी वहां ले आओगे, आगे का काम मेरा रहा।

निमेषदर्थ:– मैं जाल तो बिछा दूंगा लेकिन आर्यमणि जहां रहता है उस जगह पर मैं नही घुस सकता। उसका पूरा इलाका मंत्रो से बंधा है और बिना उसकी इजाजत मेरे पिताजी भी नही घुस सकते। ऐसे में रानी मधुमक्खी चिंची की जरूरत पड़ेगी। उस पर किसी भी प्रकार का मंत्र काम नही करेगा।

रानी चिंचि:– तुम योजना बनाओ निमेषदर्थ बाकी मैं कहीं भी घुस सकती हूं। ऊपर से अब मैं इस दुनिया के वातावरण के अनुकूल हो गयी हूं, अतः मुझे कहीं जाने के लिये किसी शरीर की भी आवश्यकता नहीं।

माया:– तो तय रहा की तुम दोनो मिलकर आर्यमणि को जाल में फसाओगे और मैं उसके प्राण निकाल लूंगी। लेकिन एक बात ध्यान रहे आर्यमणि मर गया तब वो मेरे किसी काम का नही। मुझे वो अनंत कीर्ति की किताब चाहिए..

निमेषदर्थ:– तुम मुझे आर्यमणि दे दो मैं तुम्हे वो किताब दे दूंगा..

मधुमक्खी रानी चिंची..... “आर्यमणि तो पहले से तुम्हारे इलाके में है। बस उसके प्राण ले लो। इसमें मैं तुम सबकी पूरी मदद करूंगी।

विजयदर्थ की प्रथम पुत्री हिमा..... “इस दूसरे ग्रह वाशी नायजो की दुश्मनी तो समझ में आती है। लेकिन रानी चिंचि आर्यमणि से तुम्हारी क्या दुश्मनी? तुम तो इनसे (नायजो) भी कहीं ज्यादा शक्तिशाली हो, फिर आर्यमणि को अब तक मार क्यों नही पायी?

मधुमक्खी रानी चिंचि:– समस्त ब्रह्माण्ड में इकलौता वो भेड़िया ही है जो मेरे मृत्यु का राज जनता है। उसे पता नही था कि मैं इस दुनिया में आ चुकी हूं। और मैं चाहती भी नही की उसे पता चले। यदि वो मेरे पीछे पड़ गया तो मेरी मौत निश्चित है।

माया:– आह आर्यमणि… ये चीज क्या है... इतना सुना इसके बारे में की मुझे ब्रह्मांड का एक हिस्सा लांघकर पृथ्वी आना पड़ा...

निमेषदर्थ:– ये उतना भी खास नही था, जिसकी वजह से तुम्हे इतनी दूर आना पड़ता... बस हम सबकी मुलाकात नही हुई थी, इसलिए ये अब तक जिंदा बचा है।

माया:– जब वो खास नही फिर तुम्हे हमारी क्या जरूरत.. तुम्हे उस आर्यमणि की क्या जरूरत...

निमेषदर्थ:– उसके ब्लड में कमाल की हीलिंग है। उसके क्ला में कमाल की शक्तियां है। मैं बस एक्सपेरिमेंट करके उसके ब्लड और क्ला को कृत्रिम रूप से बनाने की चाहत रखता हूं...

माया:– खैर, मुझे कोई मतलब नहीं की तुम्हे उस आर्यमणि से क्या चाहिए... मुझे बस एक बात जाननी जरूरी है... पहला वो अनंत कीर्ति की किताब मुझे कैसे मिलेगी... क्योंकि जैसा की हम सबको पता है... तुम्हारे लोग या कोई भी बिना इजाजत के उसके दायरे में नहीं घुस सकता.. और जबसे तुम्हारी सौतेली बहन महाति ने उस पर जानलेवा हमला किया, तबसे तो उसने अपने पूरे पैक को सुरक्षा मंत्र से बांध लिया है...

निमेषदर्थ:– “हर बीमारी का इलाज होता है। जहां के घेरे में हम नही जा सकते वहां रानी चिंचि और बाज जा सकता है। वो बाज उनके नवजात शिशु को उठा सकता है... उसके पीछे आर्यमणि और उसका पैक व्याकुल होकर मंत्र के सुरक्षित घेरे से बाहर आ सकता है।”

“व्याकुल होने की परिस्थिति में वो अपने शरीर का सुरक्षा घेरा बनाना भूल सकता है। यह भी हो सकता है कि जब वो लोग अपने कॉटेज के बाहर हो तो अनंत कीर्ति की किताब कोई बाज अपने पंजे में दबा ले... होने को तो बहुत कुछ हो सकता है।”...

माया:– फिर तुम दोनो (निमेषदर्थ और चिंची) को मेरी क्या जरूरत? निमेषदर्थ तुम्हारे लोग एक बार तो आर्यमणि को लगभग मार ही चुके थे। बस उसके साथियों ने बचा लिया। इस बार सबको समाप्त कर देना।

माया की बात सुनकर रानी मधुमक्खी चिंची हंसने लगी। हंसी तो निमेषदर्थ और उसकी बहन हिमा की भी निकल गयी। निमेषदर्थ अपनी हंसी रोकते.... “अब मैं समझ सकता हूं कि क्यों तुम नायजो इतने शक्तिशाली और सुदृढ़ होते हुये भी वुल्फ के एक पैक को समाप्त नहीं कर पाये। अक्ल की ही कमी है जो तुमलोग अपने दुश्मन को समझ नही सके और तुम्हारे हर हमले के बाद वो आर्यमणि तुम सबको और करीब से जानने लगा।”

“मीटिंग के शुरवात से ही पूरी योजना बता रहा हूं, तब भी अंत में आते–आते वही बेवकूफी वाला सवाल कि तुम्हारी क्या जरूरत है। जबकि 4 बार तो खुद गला फाड़कर बोल चुकी हो कि हम आर्यमणि को तुम्हारे गोल घेरे तक लेकर आये और आगे का काम तुम कर दोगी।”

“रानी चिंचि पहले ही बता चुकी थी कि आर्यमणि को पता नही की वह दूसरी दुनिया से इस दुनिया में आ चुकी है। ऊपर से उसका पैक। सब इतने सुनियोजित ढंग से काम करते है कि इनपर किया गया रैंडम हमला भी हमला करने वालों पर भारी पड़ जाते है। तभी तो रानी चिंचि खुद अकेले आर्यमणि से नही भिड़ सकती थी, इसलिए उसका मामला वेमपायर प्रजाति से फंसा दी।”

“रही बात मेरी, तो काश मैं आर्यमणि को मार सकता। ये बात कुछ देर पहले भी बताया था अब भी बता रहा हूं, आर्यमणि के सर पर मेरे पिता का हाथ है। मैं क्या जलीय कोई जीव तक उसे हाथ नही लगा सकता, सिवाय एक प्रजाति के जिसकी चर्चा नही हो तो ज्यादा बेहतर है। ऊपर से इस अलौकिक भेड़िए की शारीरिक बदलाव।”

“पहली बार जब महाती ने आर्यमणि को घायल किया, उसके बाद तो उसके पूरे पैक ने हमारे हर अंदुरिनी वार का इम्यून विकसित कर लिया। और ये इम्यून केवल एक बड़े से समुद्री जीव के इलाज से उन लोगों ने पा लिया। उसके बाद तो तुम सोच भी नही सकते की उन्होंने कितने प्रकार के समुद्री जीव का इलाज कर दिया। मुझे तो लगता है इन भेड़ियों के पास उस प्रजाति के विष का भी तोड़ होगा जो हमारी दुनिया के मालिक कहलाते है।”

“जैसे तुम नायजो वाले के नजरों वार को देखा और महसूस किया जा सकता है, उसके विपरीत हमारे नजरों के वार को महसूस तक नही कर सकते। मैने अपने सबसे काबिल सिपाहियों के समूह से एक साथ उसके पूरे पैक पर नजरों का हमला करवाया, लेकिन उन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ा। उल्टा उस आर्यमणि को मेरे पिताजी पर शक हो गया”...

माया:– अभी–अभी तो तुमने कहा था तुम्हारे नजरों के वार किसी को पता नही चलता...

निमेषदर्थ:– हां लेकिन भेड़िए का खून बता देता है कि उसके शरीर में टॉक्सिक गया है...

माया:– तो तुम्हे आर्यमणि जिंदा चाहिए या केवल उसका खून...

निमेषदर्थ:– ए पागल, केवल खून लेकर उसे जिंदा छोड़ दिया तो क्या वो हमे जिंदा छोड़ेगा? इस काम को हमे मिलकर अंजाम देना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा की आर्यमणि मारा गया। वरना वो यदि जिंदा बच गया तो अभी सिर्फ अल्फा पैक को हमने देखा है बाद में सात्विक आश्रम के अनुयाई के साथ वो लड़ने आयेगा। और विश्वास मानो आर्यमणि जैसे नायक के साथ जब सात्त्विक आश्रम के 100 अनुयाई भी खड़े हो तो जिसे मारने का सोचकर आये होंगे, उनकी मृत्यु अटल होगी

माया:– अब इतनी भी क्या समीक्षा करना। इस काम को हम तीनो मिलकर अंजाम देंगे और अपने–अपने लक्ष्य में कामयाब रहेंगे।

निमेषदर्थ:– फिर ये एहसान रहेगा तुम दोनो का... उसके खून का लाभ तुम सबको भी मिलेगा...

माया:– ये तो एक और अच्छी बात हो गयी। मैं आर्यमणि को मारने के लिये मैं बेचैन हो रही हूं। कब शुरू करना है..

निमेषदर्थ:– अभी आराम से यहीं रहते है... आइलैंड से सही वक्त की सूचना आ जाने दो... अभी तो आर्यमणि की बेटी के जन्म के कारण पूरा आइलैंड भरा हुआ है.. सबकी मौजूदगी में ये काम करने गये तो मेरे पिताजी से हम सबको भिड़ना पड़ जायेगा। इसलिए जोश को शांत रखो।

ये गिद्ध अपने शिकार पर शिकंजा कसने को तैयार थे, बस सही वक्त का इंतजार कर रहे थे। और इन सब से बेखबर, आर्यमणि और उसका पैक अपनी खुशियों में गुम था। सात दिन बाद अमेया पहली बार उस कॉटेज से बाहर आ रही थी। आर्यमणि अपने गोद में अपनी नन्ही गुड़िया को लिटाए जैसे ही बाहर आया... शेर माटुका और उसका पूरा झुंड दौड़कर घेर लिया…

आर्यमणि नीचे बैठकर अमेया को बीच में रखा। शेर का पूरा झुंड उसे देखकर दहाड़ लगा रहा था। अपने मुंह को अमेया के पास ले जाकर उसे प्यार से स्पर्श कर रहे थे। थोड़ी ही देर बाद विजयदर्थ भी अपने सभी लोगों के साथ पहुंचा... आते ही आमेया को अपनी गोद में उठाकर जैसे ही अपने सीने से लगाया, गहरी श्वास खींचते सुकून भरी स्वांस छोड़ा। आंख मूंदकर कुछ देर तक अपने सीने से लगाने के बाद विजयदर्थ ने गले से एक हार निकालकर अमेया को पहना दिया...

उसकी बेटी महाती आश्चर्य से अपने पिता को देखती... "ये तो दुर्लभ पत्थर वाली हार है न पिताजी... आपने इसे"..

विजयदर्थ, अमेया को महाती के हाथ में देते... "इसे सीने से लगाओ, फिर अपनी बात कहना”... जैसे ही महाती ने उसे सीने से लगाया, उसकी मुस्कान चेहरे पर फैल गयी। अपने पिता की तरह उसने भी अमेया को कुछ देर तक सीने से लगाये रखी। बाद में वह भी अपने गले का एक दुर्लभ हार निकालकर अमेया के गले में डाल दी”...

आर्यमणि:– अरे अमेया इतने सारे हार का क्या करेगी...

विजयदर्थ:– अमेया योग्य है इसलिए इसके गले में है... इसकी धड़कन कमाल की है। मैने कुछ पल में जो खुद में सुकून महसूस किया उसका वर्णन नही कर सकता। ऐसे सुकून पाने के लिये ना जाने हमारे पूर्वज कितने यज्ञ और हवन करवाते थे। मैने खुद कितने यज्ञ करवाए हैं।

अलबेली अजीब सा चेहरा बनाती... "यह कोई इतनी बड़ी वजह तो नही हुई की दुर्लभ पत्थर से लाद दे मेरी बच्ची को”...

महाती:– ये तुम्हारी नही बल्कि हम सबकी बच्ची है और अपने बच्ची को मैं कुछ भी दे सकती हूं। इसके लिये किसी वजह की जरूरत नहीं।

फिर तो जैसे हर जलीय मानव अमेया को गोद में उठाने को बेताब हो गये हो। आर्यमणि और रूही ने भी किसी को निराश नहीं किया। वहीं अलबेली और इवान बड़े–बड़े बॉक्स लाकर रख दिया... हर कोई उसी में अपना भेंट डाल देता...

सुबह से शाम हो गयी लेकिन अब भी बहुत से लोग लाइन लगाए खड़े थे... शाम ढलते ही आर्यमणि सबसे माफी मांगते सबके साथ पर्वत पर चल दिया... वहां सोधक बच्ची चहकीली महासागर के किनारे लेटी थी। मात्र उसका सिर पानी के बाहर था... आर्यमणि और रूही जोड़ से आवाज लगाए.… चाहकिली... चाहकिली…"

वो अपना मुंह दूसरी ओर घुमा ली। फिर माटुक शेर बाहर आया और रूही को धक्के मारने लगा.. रूही, अमेया को दोनो हथेली में थामकर ऊपर आकाश में की और माटुका ने तेज दहाड़ लगाया... माटुका की दहाड़ पर चहकिली अपना सिर वापस घुमाई और जैसे ही उसने अमेया को देखा... बिलकुल लहराती खुद को हवा में ऊपर उछाल ली। एक तो सकड़ों मीटर जितना लंबा शरीर ऊपर से वो हवा में 2–3 किलोमीटर ऊपर तक छलांग लगा दी।

खुशी ऐसी की संभाले नहीं संभल रहा था। चाहकीली उछलती चहकती अपना बड़ा सा सर ठीक अमेया के सामने ले आयी… जैसे कोई इंसान अपने सिर को हिलाकर बच्चे को हंसाने की कोशिश करता है ठीक वैसे ही चहकिली कर रही थी। तभी एक बार फिर अमेया की किलकारी सबने सुनी। चहकीली तो खुशी से एक बार फिर हवा में छलांग लगाकर छप से पानी ने गिड़ी।

चहकीली अपने छोटे 3–4 फिट के पंख को खोलती अपने सिर से इशारा करने लगी। किसी को समझ में नहीं आया। उसने एक बार फिर अपना सिर हिलाकर इशारा किया लेकिन किसी को कुछ समझ में ही नही आया। तब मटुका अपने सिर से चारो को धकेला... "अच्छा चाहकिली हम सबको अपने ऊपर बैठने कह रही है।"…

आर्यमणि, चहकिली की खुशी को देखते सवार हो गया। उसके साथ बाकी सब लोग भी सवार हो गये। जैसे ही वो लोग सवार हुये, चहकिली ने अपने पंख में सबको मानो लॉक कर दिया हो। रूही ने अमेया को चहकिली के ऊपर रख दी। इस वक्त जैसे कोई सांप सीधा रहता है चाहकिली भी ठीक वैसे ही थी। जैसे ही उसने अपने पंख पर अमेया को महसूस की अपना गर्दन मोड़कर पीछे करती बड़े प्यार से देखने लगी और पंख से उसे दुलार करने लगी।

आर्यमणि:– चहकिली अब चहकना मत वरना हमारा कचूमर बन जायेगा...

चहकिली बड़ा सा मुंह खोलकर हंसती हुई महासागर के ओर चल दी। रूही, इवान और अलबेली का तो कलेजा धक–धक करने लगा। आर्यमणि उन्हे हौसला देते बस शांत रहने का इशारा किया और ये गोता खाकर सभी पानी के अंदर... रूही पूरी तरह से परेशान होकर छटपटाने लगी। वह अपनी बच्ची को देखने लगी.… "तुमलोग कितना परेशान हो रहे... मेरी बहना को देखो कैसे हंस रही है।"…

रूही, अलबेली और इवान, यह आवाज सुनकर चौंक गये। उन्हे लग रहा था की उनका दम घुट जायेगा, लेकिन मुंह और नाक से घुसता हुआ पानी कान के पीछे से निकल रहा था और वहीं से श्वांस भी ले रहे थे। तीनो मुंह खोलकर कुछ बोलने की कोशिश कर रहे थे लेकिन किसी की आवाज नही निकल रही थी... "अरे शांत हो जाओ और आर्यमणि चाचू से पूछो कैसे बात करना है।"..
Aryamani Chachu kab bna or kiska Chachu bna, kya arya hi Chachu hai ya koi or kisi or ko Chachu Bol rha tha...

Vaise mujhe lagta hai pahli avaj to chahkili ki hi thi or dusri Sayad Sher ke kisi pariwar ki...

Ab samajh me aaya ki mhati ne kaan ke pichhe kya kiya tha, usne sabke galfade bna diye the jo pani me sans lene ke liye hai or bhi Sayad unka koi uddeshya ho...

Viviyan Maya ko apne sath laya hai or unke sath hi chinchi hai Yani Rani madhumakkhi or to or mhati ki badi bahan or bhai bhi unke sath mile huye hai, bhai ko arya ka khoon chahiye Taki vo uspr experiment karke apne liye hathiyar bna sake Vahi chinchi apna raaj chhupane ke liye arya ko marna chahti hai...

Unhone baaj or chinchi ko Pahle hamla karne ka plan bnaya hai dekhte hai kya hota hai aage...

Idhar mhati or Raja ne apne kimti haar ameya ko pahna diye use apne sine se laga kr Jo swargik anand mila hai uske liye, Dekhte hai ye haar pahan'ne ke baad Uspr kiye gye Hamlo ka kya prabhav hota hai...

Idhar chahkili apni pith pe sabko baitha kr samudra me gota lga chuki hai or ab dekhte hai Vo kaha le ja rhi hai unhe, kahi apni territory to nhi le ja rhi ghumane...

Arya Viviyan ke sadyantra se anbhigya hai pr kab tk ye dekhna hai...

Mind blowing superb update bhai amazing fantastic Lajvab Jabardast :applause: :applause:
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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Kahi is naag Raj ne koi sadyantra to nhi rach diya arya ke liye, Uski vijay mushkan kahi koi fareb to nhi, akhir vasist rishi ki madi ye lekr aaya tha or uski sahi jagah pahuchane ka bola tha to fir ye sanpo ne fan kyo faila diye arya team ke upar...

Chahkili ko raja ek MA ka darja de rha hai or chahkili ne arya ko idhar isliye bheja hai Taki vo Raja ka dard dur kr sake, Dekhte hai kaise Dark ko dur karta hai arya...

Ameya to mettle tuth ke sath kilkariya markr khel rhi thi or arya unke sath baat chit karke unka dard mita diya, hame idhar yah bhi pta chla ki arya team ne chahkili ke dimag se idhar ki bhasa bhi le li thi Jisse yha ki sabhi bhasaye Sayad samajhne lage hai Alfa team, bas is Sher ki bhasa bhi le leta to unki bhasa bhi samajhne lagta...

Dekhte hai or Kon kon si prajatiyo se mulakat karta hai ye Alfa team...

Superb jabarjast amazing lajavab update bhai jhakkash :applause: :applause:

भाग:–159


रूही, अलबेली और इवान, यह आवाज सुनकर चौंक गये। उन्हे लग रहा था की उनका दम घुट जायेगा, लेकिन मुंह और नाक से घुसता हुआ पानी कान के पीछे से निकल रहा था और वहीं से श्वांस भी ले रहे थे। तीनो मुंह खोलकर कुछ बोलने की कोशिश कर रहे थे लेकिन किसी की आवाज नही निकल रही थी... "अरे शांत हो जाओ और आर्यमणि चाचू से पूछो कैसे बात करना है।"..

तीनो ही आर्यमणि के ओर देखकर फिर से मुंह खोले और हाथ से सवालिया इशारा करने लगे... "अरे जो भी कहना है अपने मन में कहो... पानी में ऐसे ही बात होगी। और ये आवाज चहकिली की है। इसके दर्द के साथ हमने इसकी भाषा को भी अपने अंदर समा लिया था।"

रूही:– चहकिली पानी में मेरी बच्ची को मत रखो। अभी वो मात्र 7 दिन की ही तो है...

चहकिली:– अरे वो बड़बोली महाती ने आप सबको अब ठीक वैसा प्राणी बना दिया जैसा हम सब है। समझिए अब आप सब भी पानी के इंसान हुये। अब भला मछली के बच्चे को पानी से कैसा खतरा होगा...

रूही:– लेकिन मेरी अमेया..

चहकिली:– मतलब मैं अपनी प्यारी बहन को तकलीफ पहुंचाऊंगी... ये तो मेरी प्यारी है... आप देखो तो कितनी खुश है वो... उसकी चहकती किलकारी मेरे कानो में आ रही है... आप सब भी शांत रहो तो सुन सकते है..

सभी शांत हो गये। और जब शांत हुए तब वो सब भी अमेया की आवाज सुन सकते थे। सबके चेहरे पर मुस्कान फैल गई। सभी अमेया को ही देख रहे थे।

आर्यमणि:– चहकिली हम जा कहां रहे हैं?

चहकिली:– बहुत लंबा सफर होने वाला है इसलिए बस अपने आस पास के मनमोहक नजरों का मजा लीजिए और ये हम आ गये है शार्क की बस्ती में...

"शार्क"… ”शार्क”… ”शार्क”… रूही, अलबेली, इवान तीनो एक साथ चौंकते हुए कहने लगे...

आर्यमणि:– इनसे हमें कोई खतरा अलबेली...

चहकिली:– आप भूल रहे है कि आप लोग एक सोधक के साथ है। आपको विजयदर्थ और उसकी सेना से खतरा नही, फिर तो उनके सामने इनका कोई वजूद ही नही। आप खुदको पानी का इंसान मानिए.. जो आप वहां ऊपर कर सकते है वही यहां भी... इसलिए चिंता को मरिए गोली...

अलबेली:– चहकिली, विजयदर्थ भी जब तुम्हारा कुछ नही बिगाड सकता फिर तुम्हारी प्रजाति आज खतरे में क्यों है...

चहकिली:– मैं तो बच्ची हूं.. अभी तो मेरा पहला चक्र का शुरवात ही हुआ है, इसलिए इस विषय पर कुछ कह नही सकते। वैसे भी मैं सिर्फ आप लोगों से ही बात कर पा रही हूं, यहां के मानव से तो बात भी नहीं होता। अभी यहां रुक कर शार्क को देखना है क्या?

अलबेली:– देख ही रही हूं... और देख कर फट भी रही है...

चहकिली:– रुको मैं इनकी फाड़ती हूं...

अपनी बात कहती चाहकील ने एक तेज आवाज लगाई... इस बार वाकई चहकिली ने अपना मुंह खोला था। आवाज तो कुछ नही आयी, लेकिन पानी में ऐसा तरंग उत्पन्न हुआ कि सभी शार्क दुबक गई। चहकिली इधर लहराती, उधर बलखाती पानी के अंदर काफी तेजी से चल रही थी।

चहकिली:– आप सब अब घुसने जा रहे हैं बच्चों के शहर..

"बच्चों के शहर"… सबने लगभग एक साथ कहा..

चहकिली:– जी हां सही सुना, बच्चों के शहर... यहां के जीव इतने छोटे ऊपर से इतने पारदर्शी होते है कि दिखे ही न। एक क्या जब ये 100 की झुंड में रहते हैं तो भी नही दिखते। केवल जब ये लोग अपना मुंह खोलते हैं, तभी दिखते है।

आर्यमणि:– मुंह खोलने से दिख जाते है।

चहकिली:– अरे इतने सवाल क्यों पूछ रहे, पहुंच तो गये उनके शहर। खुद ही देख लो.…

अलबेली:– हां लेकिन यहां क्या देखना है??? कुछ दिख रहा है... क्यायायायायाया..

"अमेयायायायायाया…."… रूही की जोरदार चींख , जो मुंह से आवाज बनकर तो नही निकला, लेकिन उसकी प्रतिक्रिया ही कुछ ऐसी थी.…

आर्यमणि तो रूही से भी ज्यादा व्याकुल... उसने अपना पंजा ठीक वैसा ही रखा, जैसा भूमि के अंदर घुसकर भूमि से जड़ों के रेशों को निकालने के लिये करता था... हुआ ये कि जैसे ही ये लोग बच्चों के शहर पहुंचे, ठीक उसी वक्त अमेया, चहकिली के पंख से छूट गई और बड़ी तेजी से वो तैरती हुई कहीं गायब हो गयी.…

सबकी चींख एक साथ निकल गयी। और इधर आर्यमणि तो बौखलाकर जैसे पानी को कमांड देने की कोशिश कर रहा हो। हालांकि आर्यमणि के ऐसा करने से कुछ हुआ तो नही सिवाय पानी में कुछ क्रिस्टल जैसा पैदा होने के, लेकिन फिर भी आर्यमणि कोशिश कर रहा था। अभी सदमे से उबर नहीं पाए थे, अब सब के सब हैरानी से आश्चर्य में पड़े हुए थे...

अमेया, एक पल बाएं तो अगले पल पल गायब। नजर घुमाकर देखे तो कब वो बाएं से दाएं पहुंची, कोई इल्म नहीं। हां लेकिन सब इसलिए शांत थे, क्योंकि अमेया की किलकारी उन सबके मस्तिष्क में गूंज रही थी। ऐसी प्यारी हंसी की सबका मन मोह रही थी।

रूही:– चहकिली जान निकाल दिया तुमने। ऐसा कोई करता है क्या?

चहकिली:– माफ कर दो मुझे। ये नन्हे जीव बड़े शरारती हैं। इनपर किसी का जोड़ नही चलता। मेरे पंख खोलकर अमेया को ले गये। वैसे चिंता जैसी बात होती तो क्या मैं इस ओर अमेया को लेकर आती?

आर्यमणि:– अब बहुत हुआ चहकिली, उन्हे कहो अभी मेरी बच्ची को यहां लेकर आये...

चहकिली:– वो आपको सुन सकते है।

आर्यमणि:– कौन?

तभी सामने सिल्वर रंग के करोड़ों दांत चमकने लगे। सबने जब गौर से देखा तब पाया की धुएं के रंग के कोई बहुत ही छोटा जीव है, जो दिखने में हु–बहु उजले रंग का घोस्ट इमोजी की तरह दिख रहा था। एक इंच का पूरा आकार। नीचे छोटा सा पूंछ और ऊपर का बदन गोल आकार का। और एक इंच के आकार वाले छोटे से जीव के मुंह में ऊपर और नीचे आधे इंच के दांत रहे होंगे। दिखने में बिलकुल चांदी के रंग का और चमकता हुआ। मुंह में करीब 30 दांत होंगे जो बिलकुल नुकीले और धारदार थे। दांत इतने नुकीले और धारदार थे की मोटे से मोटे मेटल के परत को फाड़ कर रख दे।

हवा में करोड़ों ऐसे दांत एक साथ ऊपर से लेकर नीचे तक चमक रहे थे। उन चमकते दांत के ठीक मध्य से उन जीवों का 1000 का झुंड अमेया को उन तक पहुंचा रहा था। सभी कोई जितने हैरान उतने ही ज्यादा प्रसन्न भी थे। अमेया के प्रति इन छोटे जीव का प्रेम देखकर सभी खुश हो गये। उस माहोल में इकलौता आर्यमणि ही था जिनसे ये छोटे पिद्दी जैसे जीव बात कर रहे थे। आर्यमणि उनकी बात समझ भी रहा था और सबको समझा भी रहा था।

चलने से पहले आर्यमणि और उसके पैक ने उन सब जीवों को एक साथ हील किया। मेटल टूट के शारीरिक जितने भी दर्द थे उन्हें महसूस किया। और जब वहां से इनका कारवां आगे बढ़ने लगा तब आर्यमणि इन्हे "मेटल टूथ" नाम देता चला।

महासागर के अंदर एक अलग ही दुनिया बसती थी। यहां रंग बिरंगे मछलियों और अन्य जलीय जीव जिनके बारे में पढ़ते हैं, उनके अलावा भी कई सारी दुर्लभ प्रजातियां थी, जिनका इल्म पृथ्वी पर रहने वाले किसी भी प्रकार के शोधकर्ता के पास नही था। चहकिली कई प्रकार के जीवों के बस्ती से गुजरी।… फिर वो 6 पाऊं वाले स्तनपाई जीव हो जो दिखने में चींटी की तरह थे, लेकिन उनका आकार हाथी जितना बड़ा था। या फिर तल के नीचे घोंसला बनाकर रहने वाले सूंढ वाले जीव हो, जिनका शरीर तो नही दिखता लेकिन तल के नीचे से गोल गड्ढा बनाकर अपने सूंढ जरूर बाहर निकले रहते थे।

भ्रमण करते हुये ये लोग पहुंच चुके थे, पाताल लोक के दरवाजे पर। 5 फन वाला सांप का का विशाल देश, जो महासागर के अपने हिस्से से कहीं जाते ही नही थे और कोई इनके क्षेत्र में घुस जाए ऐसा संभव नही था। जैसा की चहकिली ने यात्रा के दौरान वर्णन किया। ऐसे अलौकिक शेषनागों के दरवाजे तक आकर भला उन्हे देखे बिना कैसे जा सकते थे।

शेषनाग की सीमा के अंदर तो नही जा सकते थे इसलिए सीमा पर ही खड़े होकर उन्हें देखने लगे। काफी रंग बिरंगे और मनमोहक जीव थे। आर्यमणि को उन्हे करीब से जानने की जिज्ञासा हुई। अनायास ही उसके कदम आगे बढ़ गये किंतु वह सीमा के अंदर प्रवेश करता, उस से पहले ही कई सारे 5 फन वाले नाग कतार लगाकर अपना फन फैला लिया। सभी एक कतार में अपने फन से ना का इशारा करते हुये आर्यमणि को अंदर आने से रोकने लगे...

रूही, आर्यमणि को खींचती हुई उसे पीछे हटने कही। वहीं अपनी दूसरी हथेली से सांप के ओर इशारा करती... "हम बस आपको देख रहे थे। आपके क्षेत्र में दखल अंदाजी करने का जरा भी इरादा नहीं था"…

इधर रूही जैसे ही अपना पंजा दिखाकर बात करने लगी, सांप अपने फन घुमाकर जैसे एक दूसरे को घूर रहे थे। अचानक ही उस माहोल में सांपों की अजीब सी फुंफकार गूंजने लगी। अलबेली और इवान, आर्यमणि और रूही को पीछे खिंचते... "चलो यहां से, ये जगह काफी खतरनाक लग रही"…

इवान अपनी बात समाप्त भी नही किया था इतने में ही दरवाजा घेरे सांपों ने बीच से ऐसे रास्ता खोला जैसे सबको अंदर बुला रहे हो। उफ्फ आंखों के आगे क्या हैरतंगेज नजारा था..... ऐसा लग रहा था जैसे कई किलोमीटर भूमि पर किसी ने खेती किया है। चारो ओर फसल लहलहा रही थी और ठीक मध्य से फसलों को काटकर एक छोटा सा रास्ता बना दिया गया था। यहां का नजारा भी ठीक ऐसा ही था। बस फसल की जगह सांप के फन लहरा रहे थे, जिनकी बिंदी जैसी नीली आंखें चमक रही थी...

रूही, इवान और अलबेली, तीनो ही आर्यमणि को देखने लगे। आर्यमणि मुस्कुराते हुए अपना पहला कदम आगे बढ़ाया। इस बार कोई रास्ता नही रोक रहा था। आर्यमणि अपने दाएं–बाएं फन फैलाए शेषनाग को देखते बढ़ रहा था और पीछे–पीछे उसका पूरा पैक... रास्ते के सबसे आखरी में काली वीराना खाली मैदान था, जिसके ठीक मध्य में कुछ चमक रहा था, पर उसे भेड़िए की नजर से भी देख पाना सम्भव नही था।

उस काले वीराने रण में ले जाने के लिये 7 फन वाला सांप आगे आया। ये बाकी 5 फन वाले सांपो से अलग था। सुनहरा रंग और उसका बदन इतना चमक रहा था कि आस–पास के तल को देखा जा सकता था। वह सांप आगे–आगे चला और उसके पीछे आर्यमणि और उसका पूरा पैक।

ठीक मध्य में जब वो पहुंचे, उन्हे एक मानव दिखा। उस मानव के नीचे का हिस्सा सांप के पूंछ जैसा था और कमर के ऊपर पेट से लेकर सिर तक, इंसानी रूप। अर्ध–शर्प अर्ध–इंसान दिखने वाला वो आदमी एक आसान पर विराजमान था। चेहरा पर तेज और होटों पर मुस्कान थी। वहीं उसके नाग वाला हिस्सा बिलकुल काले ग्रेनाइट पत्थर जैसा दिख रहा था, बिलकुल चमकता और शख्त… उनके आस पास, उन्ही की तरह अर्ध–शर्प अर्ध–इंसान दिखने वाली अप्सराएं थी।

वह आदमी अपना परिचय देते... "मेरा नाम नभीमन है। मै शेषनाग का वंशज हूं और सम्पूर्ण पाताल लोक का शासक, अपने राज्य में तुम्हारा स्वागत करता हूं।"…

आर्यमणि:– आप पाताल लोक के शासक है, फिर वो विजयदर्थ...

नभीमन:– विजय पूरे महासागर को देखता है और मैं पूरे पाताल लोक को...

अलबेली:– दोनो में अंतर क्या है महाराज?

नभीमन:– यहां रहकर खुद जान लो। मैं तुम सबको पाताल लोक में रहने का आमंत्रण देता हूं।

आर्यमणि:– देखिए नभीमन जी हम पृथ्वी पर ही अच्छे हैं।

नभीमन के पास खड़ी अप्सराएं फुफकार मारती, अपना आधा धर लहराकर अल्फा पैक के ठीक सामने। सभी का गुस्से से लाल चेहरा अल्फा पैक देख सकते थे.… "इन्हे नाम से पुकाड़ने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?"

नभीमन:– सेविकाओं पीछे आओ… न तो मैं इनका राजा हूं और न ही ये मेरे अधीन है। माफ करना तुमलोग.. आम तौर पर ये सभी सुंदरियां शांत रहती है। खैर वो सब जाने दो और मुझे ये बताओ, तुम सब अपने जमीन से इतने नीचे कैसे आ गये...

रूही:– शोधक प्रजाति की एक बच्ची है, चहकिली... वही हमे घूमाने ले आयी…

नभीमन, अपने दोनो हाथ से नमन करते... "वो गहरे महासागर के जीव नही बल्कि ये लोग तो मां समान है। सम्पूर्ण जलीय जीव के पोषणकर्ता... गहरे तल के कचरे को अपने अंदर समाकर, पोषक तत्व बदले में देने वाली.. कोई संशय नहीं की वो तुम्हे यहां क्यों लेकर आयी…

आर्यमणि:– क्यों लेकर आयी…

तभी कहीं बहुत दूर से चहकिली की आवाज आयी… "आप हमारे महाराज का थोड़ा दर्द ले लीजिए... वह बहुत पीड़ा में है।"…

रूही:– मुझे लगा की आपने अपने दिव्य दृष्टि से मुझमें कुछ खास देखा होगा, लेकिन यहां तो चहकिली ने चुगली कर दी थी। वैसे क्या आपके पास कोई ऐसी अलौकिक शक्ति नही जिस से आप स्वयं को ठीक कर सके?

इवान:– हां आपके पास तो बहुत सी दिव्य शक्तियां होनी चाहिए...

नभीमन:– दिव्य शक्ति !!!! हाहाहाहाहा… न जाने कितने ही इंसानों ने ऐसी शक्तियों के तलाश में कितनी जिंदगियां तबाह कर डाली। पाताल के गर्भ की कई शक्तियों को तो तपस्वी मनुष्य अपने साथ ले गये। और अंत में क्या हुआ... स्वयं ईश्वर को अवतार लेकर उन शक्तियों को नष्ट करना पड़ा... हम तो अकींचन साधु है, जिसके पास अब कुछ नही बचा। हां थोड़ी बहुत मणि की शक्ति है, लेकिन अब वो भी धूमिल होती जा रही है। मणि अब इतना कमजोर हो गया है कि मैं अब हमेशा पीड़ा में ही रहता हूं...

आर्यमणि:– चहकिली मुझे यहां तक लेकर आयी है, इसकी जरूर कोई वजह रही होगी। मैं आपकी कैसे मदद कर सकता हूं?

नभीमन:– कई हजार वर्ष पूर्व मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गयी थी। मैं ताकत की चाहत में भटक गया था और गुरु वशिष्ठ के रक्षक मणि को उनके गांव के गर्भ गृह से चुरा लाया। रक्षक मणि ने मुझे अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में मदद तो की, लेकिन मैं कभी चैन से जी नही पाया। मैं चाहता हूं वो मणि तुम उसके सही जगह तक पहुंचा दो...

आर्यमणि:– और वो सही जगह कहां है?..

नभीमन:– चहकिली को पता है...

आर्यमणि:– हम्मम... ठीक है। यादि आपकी पीड़ा इस से दूर होती है तो मैं तैयार हूं...

आर्यमणि की बात सुनकर नभीमन का चेहरे पर मुस्कान फैल गई। एक विजयि कुटिल मुस्कान जो नभीमन के चेहरे पर साफ झलक रही थी। नभीमन की हंसी तब तक बनी रही जबतक एक छोटी सी पोटली लिये, उसकी एक दासी आर्यमणि के पास नही पहुंच गयी।

वह दासी आर्यमणि के ओर पोटली बढ़ा दी और नभीमन किसी प्राचीन भाषा में एक मंत्र बोलकर, आर्यमणि को 5 बार उस मंत्र को पहले दोहराने कहा और बाद में वो पोटली लेने.… आर्यमणि भी 5 बार उस मंत्र को दोहराकर पोटली जैसे ही अपने हाथ में लिया, चारो ओर से उसे फन फैलाए सापों ने घेर लिया।
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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Kya hi adbhut lekhan shaili ka pradashan kiya hai aapne bhai pure samay me ek ek sabd kahani se aise bandhe hue rhe ki bhul hi gye ham ye kahani hai na ki swanubhav parivesh...

Guru vasist NE idhar aakr sharp diya or chale gye, idhar ye nagraj arya ko hi lapetne me lga tha pr arya vashist ji ka anuyayi nikla jiske chalte vo bach gya or apne pack ke sath milkr pure naag pariwar ko Accha sabak sikhaya, ab vo Raja banne ki prakriya me badlav karva chuke hai arya se...

Hame yah bhi pta chla ki patal lok ke darvaje kitne hai or ham ye Pahle se jante hai ki vo 3 dansh me se ek nishchal ke pass hai ek jivisha ke pass or ek senapati ke rup me purani Rani ke pass, Yadi Ye Raja idhar se udhar jata to ladai Hi honi thi insabke bich, hame yah bhi pta chla ki udhar basti bsane me kiska hath tha...

Maza aaya padh kr Nainu bhaya mind blowing superb lajvab amazing update bhai wonderful :applause: :applause: awesome writing skills

भाग:–160


वह दासी आर्यमणि के ओर पोटली बढ़ा दी और नभीमन किसी प्राचीन भाषा में एक मंत्र बोलकर, आर्यमणि को 5 बार उस मंत्र को पहले दोहराने कहा और बाद में वो पोटली लेने.… आर्यमणि भी 5 बार उस मंत्र को दोहराकर पोटली जैसे ही अपने हाथ में लिया, चारो ओर से उसे फन फैलाए सापों ने घेर लिया।

आर्यमणि:– हे शेषनाग वंशज नभीमन, हमे इस तरह से घेरने का मतलब।

नभीमन:– क्षमा करना, मैं एक और छल तो नही करना चाहता था, किंतु मैं विवश हूं। पाताल लोक की अनंत जिंदगी का तुम सब आनंद लो। मै न जाने कितने वर्षों से यहां के बाहर झांका तक नही परंतु श्राप का तुम्हारे ऊपर स्थानांतरण से अब मैं यहां की कैद से मुक्त हूं।

आर्यमणि:– तो क्या आप अपनी मुक्ति के लिये हम चारो के साथ अन्याय कर देंगे?

नभीमन:– एक बार मुझे ब्रह्मांड घूमकर वापस आने दो फिर मैं तुम्हे श्राप मुक्त कर दूंगा। मै वचन देता हूं।

आर्यमणि:– तुम्हारे भूत काल से लेकर वर्तमान तक, इन सब की जम्मेदारी मैं उठता हूं, यही अर्थ था ना उस 5 बार बोले मंत्र का...

रक्षक पत्थर लेने से पहले जो मंत्र आर्यमणि ने कहा था, उसी को रूपांतरित करके सुना दिया। जैसे ही आर्यमणि ने अपने शब्द कहे, नभीमन की आंखें फैल गई। वह मूर्छित होकर गिड़ गया। जैसे ही नभीमन मूर्छित होकर गिड़ा, अल्फा पैक के ऊपर चारो ओर से तरह–तरह के वार शुरू हो गये। कोई शर्प अग्नि छोड़ रहा था तो कोई विषैला जहर। हमला करने के अनगिनत तरीके वो शार्प जीव दिखा रहे थे, लेकिन कोई भी वार अल्फा पैक को छू नही पा रही थी।

सभी शर्प जीव आश्चर्य में थे। इतने भीषण हमले से तो एक पूरी क्षेत्र की आबादी ऐसे गायब होती जैसे पहले कभी अस्तित्व ही नही था, लेकिन ये चारो अपनी जगह खड़े थे। ये कमाल आर्यमणि का नही बल्कि नाभिमन का था। उसने अपनी जिम्मेदारी और साथ में रक्षक पत्थर दोनो आर्यमणि को सौंप चुका था। अब न तो नाभिमन पाताल लोक का राजा रह गया था और न ही उसका चोरी वाला रक्षक पत्थर उसके पास रहा। खुद की झोली खाली करके नाभिमन ने आर्यमणि को वह शक्तियां दे चुका था जिस वजह से पाताल लोक के हमले उसपर बेअसर था।

आर्यमणि अट्टहास से परिपूर्ण हंसी हंसते.… “तुम सब मूर्ख हो क्या? अब से मैं तुम्हारा राजा हूं। अभी–अभी तो नभीमन अपनी सारी जिम्मेदारी मुझ पर सौंप कर पता न बेहोश हुआ या मर गया।

नभीमन का भाई और पाताल लोक का सेनापति अभिमन.... “तू छलिया साधक हमारा राजा कभी नहीं बन सकता। तुझे हम अपनी सिद्धियों की शक्तियों से नही हरा सकते तो क्या, लेकिन भूल मत तू हमारे क्षेत्र में है और हम तुझे बाहुबल से परास्त कर देंगे।”

अभीमन अपनी बात कहकर जैसे ही हुंकार भरा, चारो सांपों के नीचे ढक गये। तभी उस माहोल में तेज गरज होने लगी। यह गरज इतनी ऊंची थी कि पूरा पाताल लोक दहल गया। और जब प्योर अल्फा के पैक ने टॉक्सिक रेंगते पंजों से हमला शुरू किया, तब उन जहरीले सपों को भी जहर दे रहे थे। वुल्फ पैक के पंजे, 5 फन वाले नाग के शरीर पर जहां भी लगता उस जगह पर पंजों के निशान छप जाते और वह सांप बेहोश होकर नीचे।

हर गुजरते पल के साथ अभीमन को अपने बाहुबल प्रयोग करने का अफसोस सा होने लगा। हजारों की झुंड में सांप कूदकर आते और उतनी ही तेजी के साथ पंजों का शिकार हो जाते। तभी पाताल लोक की भूमि पर रूही ने अपना पूरा पंजा ही थप से मार दिया। अनंत जड़ों के रेशे एक साथ निकले जो सांपों को इस कदर जकड़े की उनके प्राण हलख से बाहर आने को बेताब हो गये.…

नभीमन वहां किसी तरस उठ खड़ा हुआ और आर्यमणि के सामने हाथ जोड़ते... "सब रोक दीजिए। ये लोग बस अपने राजा को मूर्छित देख आवेश में आ गये थे।”

माहोल बिलकुल शांत हो गया था। जो शांप जहां थे, अपनी जगह पर रेशे में लिपटे थे। आर्यमणि, नभीमन के लिये जड़ों का आसन बनाया और दोनो सामने बैठ गये।.... “हे साधक आपको मेरे विषय में सब पहले से ज्ञात था।”...

आर्यमणि:– मैं सात्विक आश्रम के दोषियों के बारे में पढ़ रहा था और वहां सबसे पहला नाम तुम्हारा ही था।

नभीमन:– “हां, तुमने सही पढ़ा था। हजारों वर्ष पूर्व की ये कहानी है। मै अपने जवानी के दिनो मे था और नई–नई ताजपोशी हुई थी। पूरे ब्रह्मांड पर विजय पाने की इच्छा से निकला था। मुझे शक्ति का केंद्र स्थापित करना था। इसलिए हमने सबसे पहले उस ग्रह पर अपना साम्राज्य फैलाना ज्यादा उत्तम समझा जहां से हम अपनी शक्ति, तादात और नई सिद्धियों को बढ़ा सकते थे।”

“शक्ति स्वरूप एक ग्रह मिला नाम था जोरेन। ज़ोरेन ग्रह पर सभी ग्रहों के मिलन का प्रभाव सबसे अत्यधिक था। उस ग्रह पर ग्रहों के मिलन का प्रभाव इतना ज्यादा था कि वहां पैदा लेने वाला हर जीव अपनी इच्छा अनुसार अपने कोशिकाओं को पुनर्वयवस्थित कर किसी का भी आकार ले सकते थे। मेरा ये अर्ध–शर्प, अर्ध–इंसानी रूप वहीं की देन थी। ज़ोरेन ग्रह, पर जब हम पहुंचे तब वहां कोई सभ्यता ही नही थी। कुछ भटकते जीव थे जो किसी भी आकार के बन जाते थे।”

“वहां मुझे कोई युद्ध ही नही करना पड़ा। आराम से मैने वहां अपना समुदाय बसाया, नाम था निलभूत। बड़ा से क्षेत्र में भूमिगत शहर बसाया और शासन को चलाने के लिये एक महल। आखरी जहर, को वहां के गर्भ गृह में पहुंचाया, ताकि वह सबसे मजबूत शक्ति खंड हो, और वहीं से मैं पूरी शासन व्यवस्था देख सकूं। आखरी जहर के बारे में शायद तुम पहली बार सुन रहे होगे क्योंकि ये इतनी गोपनीय थी कि आज तक किसी महान महर्षि तक को इसका ज्ञान न हुआ। आखरी जहर का एक कतरा काफी है, मिलों फैले 10 लाख लोगों को मारने के लिये।”

“महल में शक्ति खंड का निर्माण के साथ ही मैंने अपने तीनो नागदंश को भी स्थापित किया। हमारे यहां जब राजा की ताजपोशी होते है तब उसे कुल 4 नागदंश मिलते है। बिना 4 नागदंश के कोई राजा नही बन सकता, यही नियम है। प्रत्येक नागदंश में बराबर शक्तियां होती है। एक नागदश राजा का, दूसरा नागदंश राजा के मुख्य सलाहकार का। एक नगदंश सेनापति का और एक नगदंश रानी का। चूंकि उस वक्त मेरी कोई रानी नहीं थी। न ही किसी को मैने मुख्य सलाहकार और सेनापति नियुक्त किया था। इसलिए तीनो नागदंश वहां स्थापित करने के बाद गर्भ गृह के ऊपर देवी का मंदिर और अंधेरा कमरा बनवाया ताकि मै पूरा केंद्र स्थापित कर सकूं। मै पूर्ण केंद्र की स्थापना कर चुका था और यहां से मुझे अपनी विजयी यात्रा की शुरवात करनी थी।”

“चूंकि मै पाताल लोक से काफी दूर निकल आया था और मणि की शक्ति कमजोर पड़ने के कारण युद्ध के लिये नही जा सकता था, इसलिए वापस पाताल लोक आना पड़ा। पाताल लोक की मणि ही इकलौती ऐसी चीज थी जिसे विस्थापित नही किया जा सकता था। किंतु हमारे खोजियों ने इसका भी कारगर उपाय ढूंढ निकाला था, रक्षक पत्थर। लाल रंग का यह रक्षक पत्थर अनोखा था। इस रक्षक पत्थर में मणि की शक्ति को कैद करके ब्रह्मांड के किसी भी कोने में ले जाया जा सकता था।”

“फिर क्या था, बल और अलौकिक सिद्धियों के दम पर मैने सात्त्विक गांव के गर्भ गृह से, रक्षक पत्थर को निकाल लाया। मुझे नही पता था कि वहां रक्षक पत्थर में जीवन के अनुकूल जीने योग्य जलवायु को संरक्षित करके रखा गया था, जो उस गांव में जीने का अनुकूल माहौल देता था। मै महर्षि गुरु वशिष्ठ के नाक के नीचे से पत्थर उठा तो लाया, किंतु पीछे ये देखना भूल गया की एक ही पल में उस गांव का वातावरण असीम ठंड वाला हो चुका था।”

“जबतक कुछ किया जाता वहां ठंड से 30 बच्चों की मृत्यु हो चुकी थी। महर्षि वशिष्ठ अत्यंत क्रोधित थे। वह पाताल लोक तक आये। न तो मुझे कुछ कहे न ही मृत्यु दण्ड दिया। बस पूरे नाग लोग को “कर्तव्य निर्वहन क्षेत्र विशेष” श्राप देकर चले गये। न तो वापस लौटे न ही किसी प्रकार का कोई समय अवधि दिया। बस तब से हम सब पाताल लोक में कैद होकर रह गये।”

“पाताल लोक के बड़े से भू–भाग पर अनंत अलौकिक जीव बसते थे। वह अलौकिक जीव को पालने हेतु बहुत से ऋषि अपने अनुयायियों को वहां भेजा करते थे। मैने पूरा भू–भाग पाताल लोक में विलीन करके केवल उतना ही क्षेत्र ऊपर रहने दिया जिसमे जलीय जीव प्रजनन कर सके, लेकिन फिर भी कोई ऋषि पाताल लोक के दरवाजे पर नही पहुंचा।”

“मेरी विडंबना तो देखो। 4 दंश जब तक मैं अपने उत्तराधिकारी को न दे दूं, तब तक कोई दूसरा राजा नही बन सकता। और मैं तो 3 दंश दूर ग्रह पर छोड़ आया जहां से मैं क्या कोई भी नाग वापस नहीं ला सकता। मैने गलती की और मेरी गलती की सजा पूरा नाग लोक उठा रहा है। मुझ जैसे पापी राजा से इनको छुटकारा नही मिल रहा।”

“मैने वैसे छल से तुम्हे फसाया जरूर था पर मैं यहां से सीधा ज़ोरेन की सीमा में जाता और अपना नाग दंश वापस लेकर चला आता। फिर मैं नए उत्तराधिकारी के हाथ ने ये पूरा पाताल लोक सौंपकर कुछ वर्ष तक अलौकिक जीव की सेवा करने के उपरांत इच्छा मृत्यु ले लेता।

आर्यमणि:– मैं तुम्हारा श्राप तो मिटा नहीं सकता, क्योंकि महर्षि वशिष्ठ ने 8 जिंदगी को साक्षी रखकर वह श्राप दिया था, जिनमे से अब एक भी जीवित नहीं है। इसलिए कोई भी नाग अब नाग लोक नही छोड़ सकता। लेकिन हां 3 दिन के सिद्धि योजन से मैं उस नियम में फेर बदल जरूर कर सकता हूं जो अगले राजा बनने में बाधक है।

नभीमन:– क्या ऐसा कोई उपाय है?

आर्यमणि:– हां ऐसा एक उपाय है भी और जो सबसे जरूर चीज चाहिए होती है नाग मणि, वह भी हमारे पास है।

नभीमन:– तो क्या कृपाण की नागमणि सात्त्विक आश्रम के पास है?

आर्यमणि:– ये कृपाण कौन है...

नाभिम:– इक्छाधारी नाग का प्रथम साधक। वह इंसान जिसने साधना से ईश्वर को प्रसन्न किया और बदले में उसे इच्छाधारी नाग का वर मिला था। वैसे तो हर इच्छाधारी नाग के पास अपना मणि होती है, किंतु वह काल्पनिक मणि होता है जो इक्छाधारी नाग के विघटन के साथ ही समाप्त हो जाता है। यदि सात्त्विक आश्रम के पास मणि है तो वह कृपाण की ही मणि होगी।

आर्यमणि:– ऐसा क्यों? किसी दूसरे इक्छाधारी नाग की मणि क्यों नही हो सकती?

नाभिमन का भाई अभिमन.... “भैया इसे कुछ मत बताना, जब तक की ये हमे न बता दे की आपका श्राप इसपर स्थानांतरित क्यों नही हुआ?

आर्यमणि:– क्यों वो श्राप मुझ पर स्थानांतरित करने पर लगे हो। तुम में से कोई भी ये श्राप लेलो....

नाभीमन:– पूरा नाग लोक की प्रजाति ही शापित है, तो किसका श्राप किस पर स्थानांतरित कर दूं। और अभिमन तुम अब भी नही समझे। ये सात्विक आश्रम के गुरु है। सात्विक आश्रम की कोई संपत्ति जब वापस से उनके गुरु के हाथ में गयी, तो वो चोरी कैसे हुई। इसलिए श्राप इन पर स्थानांतरित नही हुआ।

अभिमन:– माफ करना गुरुदेव। हम सब अपनी व्यथा में एक बार फिर भूल कर गये। हमे समझना चाहिए था इस दरवाजे तक कोई मामूली इंसान थोड़े ना आ सकता है। बस नर–भेड़िया ने हमे दुविधा में डाल दिया था। हमे लगा एक भेड़िया कहां से सिद्ध प्राप्त करेगा। और यदि सिद्ध प्राप्त भी हो तो कहां सात्विक आश्रम से जुड़ा होगा।

आर्यमणि:– अब मेरे भी सवाल का जवाब दे दो। किसी दूसरे इक्छाधारी नाग की मणि क्यों नही हो सकती...

नभीमन:– क्योंकि मणि के बिना इक्छाधारी नाग इक्छाधरी नही रह जायेगा। 2 दिन उन्हे नागमणि नही मिला, तब वो या तो नाग बन जाते हैं या इंसान। दोनो ही सूरत में वो इक्छाधारी नही रहते और मणि विलुप्त।

आर्यमणि:– और वो कृपाण की मणि।

नभीमन:– वह मणि पाताल लोक के मणि जैसा ही है। बस वह बहुत छोटे प्रारूप में है और यहां उस मणि का पूर्ण विकसित रूप है। गुरुदेव उस मणि का राज न खुलने पाए वरना पृथ्वी पर कई मुर्दे उस मणि को लेने के लिये जमीन से बाहर आ जायेंगे। और वह मणि ऐसा है की मुर्दों को भी मौत दे दे।

आर्यमणि:– ये बात मैं ध्यान रखूंगा। वैसे हमने बहुत सी जानकारी साझा कर ली। अब उस काम को भी कर ले, जिस से पाताल लोक अपना नया राजा देखेगा।

नभीमन:– हां वो काम आप कीजिए जबतक एक जिज्ञासा जो मेरे दरवाजे पर खड़ी है, क्या मैं आपके साथियों के साथ उसे भी पाताल लोक की सैर करवा दूं।

आर्यमणि, दूर नजर दिया। पता चला पाताल लोक का दरवाजा हर जगह से दिखता है। आर्यमणि इसके जवाब में रूही के ओर देखा। रूही मुस्कुराकर हां में जवाब दी और चाहकीली को अंदर बुलाया गया। राजा नाभिमन ने भी जब पहली बार अमेया को गोद में लिया, उन्होंने लगभग एक घंटे तक अपनी आंखें ही नही खोली, और जब आंखें खोली तब चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान थी।

नभीमन:– इस शांति वाहक देवीतुल्य का नाम क्या है।

रूही:– अमेया...

नभिमन:– मेरे हजारों वर्षों की अशांति को इसने थोड़े से समय में ही दूर कर दिया। मृत्यु के उपरांत जो सुकून प्राप्त होती है, ठीक वैसा ही सुकून था। अभिमन एक बार तुम भी देवीतुल्य अमेय को हृदय से लगाकर देखो...

अपने भाई के कहने पर अभिमन ने भी अमेया को सीने से लगाया। वह भी आश्चर्य में था। उसने वो सुकून को पाया जो उसे जीवन में पहले कभी नहीं मिली थी और न ही कभी ऐसे सुकून की कल्पना उसने किया था। फिर तो सभी शेषनाग एक श्रेणी में बंध गये और जैसे ही नभीमन ने अपनी प्रजा में एक साथ सकून को बांटा, पूरी प्रजा ही गदगद हो चुकी थी।

बड़े धूम से और बड़ा सा काफिला अल्फा पैक को पाताल लोक घूमाने निकला। पौराणिक अलौकिक जीव जैसे बारासिंघा, गरुड़, नील गाय, एकश्रिंगी श्वेत अश्व, कामधेनु गाय, ऐरावत हाथी, अनोखे पंछियों को देखने का मिला। वहीं पाताल लोक के एक हिस्से से गुजरते हुये सबको भयानक काल जीव भी दिख रहे थे। सोच से परे उनका आकार और देखने में उतने ही डरावने। लगभग 40 ऐसी भीषणकारी प्रजाति पाताल लोक में निवास करती थी, जिसे उग्र देख प्राण वैसे ही छूट जाये।

3 दिनो तक आर्यमणि अपने योजन में लगा रहा और इन 3 दिनो में अल्फा पैक ने पाताल लोक का पूरा लुफ्त उठाया। लौटते वक्त तो अलबेली ने पूछ भी लिया की क्या हमने पाताल लोक पूरा घूम लिया? इसपर नभीमन ने हंसते हुये बताया... “पाताल लोक अनंत है, इसकी कोई सीमा नहीं। यह अलौकिक रूप से ब्रह्मांड के कई हिस्सों से जुड़ा है, लेकिन यह पूरा भू–भाग सदैव धरातल के नीचे होता है और इसके कुल 6 दरवाजे है, जो 6 अलग–अलग हिस्सों में है। हर 6 दरवाजे पर हजारों किलोमीटर का ऊपरी भू–भाग होता है, जहां पाताल लोक के जीव अक्सर विचरते है। यहां आम या खास किसी के भी आने की अनुमति नही, केवल सिद्ध प्राप्त ही इन क्षेत्रों में आ सकते है।”

जानकारी पाकर अलबेली के साथ–साथ पूरा अल्फा पैक चकित हो गया। खैर 3 दिन बाद आर्यमणि पूर्ण योजन कर चुका था और बाकी सब भी लौट आये। जाने से पहले अभिमन ने अमेया को गुप्त वर दिया और कहने लगे... “अमेया मेरी स्वघोषित पुत्री है, जिसे जल और पाताल लोक में कोई छू नही सकता।”... इसी घोषणा के साथ अल्फा पैक के सभी सदस्यों को नाभीमन और उसकी असंख्य नाग ने अपनी स्वेक्षा अपना लोग माना, और भेंट स्वरूप अपनी छवि सबने साझा किया। छोटी से भेंट थी जिसके चलते अब अल्फा पैक पाताल लोक कभी भी आ सकते थे। इस भेंट को स्वीकार कर अल्फा पैक आगे बढ़ा।

आर्यमणि के पाताल लोक छोड़ने से पहले नभिमन ने वादा किया की वह अपने पूरे समुदाय के साथ योजन पर बैठेगा, और चाहे जितने दिन लग जाये, टापू का पूरा भू भाग ऊपर कर देगा। वहां बसने वाले जीव फिर से अपनी जमीन पर होंगे न की पाताल में।

आर्यमणि धन्यवाद कहते हुये निकला। सभी ज्यों ही पाताल लोक के दरवाजे के बाहर आये, चहकिली शर्मिंदगी से अपना सर नीचे झुकाती... "मुझे सच में नही पता था कि महाराज आप लोगों को फसाने के लिये बुला रहे थे।"

रूही प्यार से चहकिली के बदन पर स्पर्श करती... "तुम क्यों उदास हुई, देखो अमेया भी बिलकुल शांत हो गयी"..

अलबेली:– तुम बहुत अच्छी हो चहकिली और अच्छे लोगो का फायदा अक्सर धूर्त लोग उठा लेते है। तुम अफसोस करना छोड़ दो...

थोड़ी बहुत बात चीत और ढेर सारा दिलासा देने के बाद, तब कही जाकर चहकिली चहकना शुरू की। महासागर की अनंत गहराई का सफर जारी रखते, ये लोग विजयदर्थ की राज्य सीमा में पहुंच गये। वुल्फ पैक प्रवेश द्वार पर खड़ा था और सामने का नजारा देख उनका मुंह खुला रह गया। दिमाग में एक ही बात आ रही थी, "क्या कोई विकसित देश यहां के 10% जितना भी विकसित है...
 
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