भाग:–155
“मुझे कुछ वक्त दो। सोचने दो इसके लिये क्या किया जा सकता है।” अपनी बात कहते आर्यमणि वहीं बैठकर ध्यान लगाने लगा।
आर्यमणि शुरू से पूरे घटनाक्रम पर नजर दिया और आंख खोलते ही.… "तुम सब घास काटने वाली मशीन, वाटर पंप मोटर, और पाइप ले आओ। साथ में पानी गरम करने की व्यवस्था, और आड़ी भी लेकर आना। जबतक मैं इसकी जांच करता हूं... ओह हां साथ में बायोहेजार्ड सूट लाना मत भूलना"..
रूही, इवान और अलबेली समान लाने निकल गये। आर्यमणि आगे से पीछे तक उस विशालकाय जीव के बदन के 2 चक्कर लगाया और पूरी बारीकी से जांच कर लिया। तीसरी बार जांच के लिये आर्यमणि को उस जीव के ऊपर चढ़ना पड़ा। पूरी जांच करने के बाद वो सीधा क्रूज लेने निकला और क्रूज को घुमाकर समुद्र के उस तट तक लेकर आया, जिसके किनारे वह विशालकाय जीव पड़ा था।
जब रूही, इवान और अलबेली वापस लौटे तो वहां आर्यमणि नही था। करीब आधा घंटा इंतजार करने के बाद उन्हें आर्यमणि तो नही लेकिन क्रूज जरूर दिख गया। आर्यमणि नीचे आकर सबको एक वाकी देते... "इवान, अलबेली वो जो घास मुझे खिलाए थे, जितनी हो सके काटकर ले आओ।"..
वो दोनो अपने काम पर लग गये। इधर आर्यमणि, रूही को क्रूज में जाकर क्रेन ऑपरेट करने कहने लगा। रूही भी हामी भरती क्रूज पर गयी और आर्यमणि के इशारे का इंतजार करने लगी। आर्यमणि ने उस जीव के पेट पर करीब 600 मार्क किये थे। वह अपनी आड़ी लेकर उन्ही मार्क्स पर चल दिया।
आर्यमणि मार्क किये जगह पर भले ही 2 फिट लंबा–चौड़ा चीड़ रहा था, लेकिन उस जीव के बदन के हिसाब से मात्र छोटा सा छेद था। आर्यमणि ऐतिहातन वो बायोहजार्ड़ सूट पहने था, ताकि पेट के अंदर का गैस उसे कोई नुकसान न करे। पहला छेद जैसे ही हुआ, चारो ओर धुवां ही धुवां। धुवां छटते ही आर्यमणि पेट के अंदर किसी नुकीली धातु का कोना अपने आंखों से देख रहा था।
वाकी पर उसने रूही को इंस्ट्रक्शन दिया और क्रेन का हुक ठीक उस छेद के पास था। आर्यमणि उस छेद पर चढ़ा। पेट में अटकी उस नुकीली चीज को हुक से फसाया और ऊपर खींचने बोला। हुक के वायर पर जैसे काफी लोड पड़ रहा हो। रूही जब खींचना शुरू की, अंदर से बहुत बड़ा मेटल स्क्रैप निकला। वह इतना बड़ा था की उस छोटे से छेद को बड़ा करते हुये निकल रहा था। वह जीव दर्द से व्याकुल हो गया। दर्द से उसका पूरा बदन कांपने लगा।
वह जीव इतना बड़ा था कि उसके हिलने से क्रूज का क्रेन ही पूरा खींचने लगा। आर्यमणि तुरंत अपना ग्लॉब्स निकालकर उसके बदन पर हाथ लगाया। आर्यमणि अपने अंदर भीषण टॉक्सिक लेने लगा। दर्द से राहत मिलते ही वह जीव शांत हो गया और रूही तुरंत उस मेटल स्क्रैप को बाहर खींचकर निकाल दी। जैसे ही मेटल स्क्रैप उस जीव के पेट से बाहर निकला, आर्यमणि एक हाथ से उस जीव का दर्द खींचते, दूसरे हाथ से पेट के कटे हुये हिस्से को बिना किसी गलती के सिल दिया। तकरीबन 10 मिनट तक टॉक्सिक अंदर लेने के कारण आर्यमणि पूरी तरह से चकरा गया। उसे उल्टियां भी हुई। जहां था वहीं कुछ देर के लिये बैठ गया। एक मार्क का काम लगभग आधे घंटे में खत्म करने के बाद आर्यमणि दूसरे मार्क पर पहुंचा। वहां भी उतना ही मेहनत किया जितना पहले मार्क पर मेहनत लगी थी।
लगातार काम चलता रहा। शिफ्ट बदल–बदल कर काम हो रहा था। चिड़ने और हाथों से हील करने का मजा सबने लिया। हां लेकिन जो टॉक्सिक आर्यमणि अकेले लेता था, वो तीनो (रूही, अलबेली और इवान) मिलकर भी नही ले पा रहे थे। इवान और अलबेली पहले ही घास का बड़ा सा ढेर जमा कर चुके थे जिसे क्रेन के जरिए क्रूज के स्विमिंग पूल तक पहुंचा दिया गया था। स्विमिंग पूल का पूरा पानी लगातार गरम करके, उसमे घास डाल दिया गया था। एक बार जब घास पूरी तरह से उबल गयी, तब पाइप के जरिए उस जीव के शरीर में उबला पानी उतारा जाने लगा। वह जीव लगातार घास का सूप पी रहा था।
एक दिन में तकरीबन 20 से 25 मार्क को साफ किया गया। तकरीबन 3 दिन के बाद वो जीव अपनी अचेत अवस्था से थोड़ा होश में आया। वह अपनी आंखें खोल चुका था। श्वांस लेने में थोड़ी तकलीफ थी, लेकिन खुद में अच्छा महसूस कर रहा था। पहले 3 दिन तक तो काम धीमा चला, पर एक बार जब अनुभव हो गया फिर तो सर्जरी की रफ्तार भी उतनी ही तेजी से बढ़ी।
तकरीबन 14 दिन तक इलाज चलता रहा। पूरा अल्फा पैक ही अब तो उस जीव के टॉक्सिक और दर्द को लगातार झेलने का इम्यून पैदा कर चुके थे। सबसे आखरी मार्क उस जीव के मल–मूत्रसाय मार्ग के ठीक ऊपर था। आर्यमणि क्रेन संभाले था और अलबेली पूल में पड़ी उबली घास को निकालकर, नया ताजा घास डाल रही थी। नया घास डालने के बाद उसे उबालकर उस काल जीव के मुंह तक लाना था, जो पिछले कुछ दिनों से उस जीव का आहार था।
इवान और रूही ने मिलकर आखरी जगह छेद किया और क्रेन के हुक से मेटल स्क्रैप को फसा दीया। वह स्क्रैप जब निकलना शुरू हुआ फिर तो ये लोग भी देखकर हैरान थे। लगभग 2 मीटर ऊंचाई और 60 मीटर लंबा स्क्रैप था। अब तक जितने भी मेटल स्क्रैप निकले थे, उनसे कई गुणा बड़ा था। वह जीव भयंकर पीड़ा में। रूही और इवान ने जैसे ही हाथ लगाया समझ गये की वो लोग इस दर्द को ज्यादा देर तक झेल नही पाएंगे। बड़े से मेटल स्क्रैप निकालने दौरान उस काल जीव के पेट का सुराख फैलकर फटना शुरू ही हुआ था, अभी तो पूरा स्क्रैप निकालना बाकी था। फिर उसे सीलना भी था। वक्त की नजाकत को देखते हुए रूही, आर्यमणि को अपने पास बुला ली और क्रेन अलबेली को बोली संभालने।
आर्यमणि बिना देर किये उसके पास पहुंचा और अपना पंजा डालकर जब उसने दर्द लेना शुरू किया, तब जाकर रूही और इवान को भी राहत मिली। हां लेकिन ये तो अभी इलाज एक हिस्सा था, दूसरा हिस्सा धीरे–धीरे उस विशालकाय जीव के पेट से निकल रहा था। 5 फिट का छोटा छेद कब 2–3 मीटर में फैल गया, पता ही नही चला। तीनो पूरा जान लगाकर उस काल जीव का दर्द ले रहे थे और स्क्रैप के जल्दी से निकलने का इंतजार कर रहे थे। लेकिन जैसे ही वो स्क्रैप निकला, उफ्फ काफी खतरनाक मंजर था।
2 मीटर ऊंचा और 60 मीटर लंबे मेटल स्क्रैप न जाने कितने दिनों से मल–मूत्र का रस्ता रोक रखा था। मेटल स्क्रैप के पीछे जितना भी मल, गंदगी इत्यादि जमा था, बाढ़ की तरह उनके ऊपर गिड़ा। गिड़ा मतलब ऐसा वैसा गिड़ा नही। 5 मीटर ऊंची वो मल और गंदगी की बाढ़ थी, जिसमे 10 मिनट तक तीनो डूबे रह गये। ऊपर अलबेली का हंस–हंस कर बुरा हाल था। बायोहजार्ड सूट के अंदर तो वो सुरक्षित थे। ऑक्सीजन सप्लाई भी पर्याप्त थी पर मल में दबे रहने के कारण तीनो का मन उल्टी जैसा करने लगा, क्योंकि हाथ तो तीनो के खुले हुये थे।
10 मिनट लगा उस कचरे को बहने में। थुल थुले से मल के बीच वो तीनो, उस जीव का दर्द भी भागा रहे थे और पेट ज्यादा देर तक खोले नही रह सकते थे, इसलिए सिल भी रहे थे। इधर अलबेली वाटर पंप को पहाड़ से निकलने वाले झील में डाली और क्रेन की मदद से उस जगह पानी डालकर साफ–सफाई भी कर रही थी। ..
खैर 14–15 दिन की सर्जरी के बाद, अगले 4 दिन तक उस जीव को खाने में उबला घास और पीने के लिए घास का सूप मिलता रहा। सारी ब्लॉक लाइन क्लियर हो गयी थी। वह जीव खुद में असीम सुख की अनुभूति कर रहा था। अगले 4 दिन में अल्फा पैक ने उस जीव को पूरा हील भी कर दिया और उसके टांके भी खोल दिये।
20 दिनों के बाद वो जीव पूरी तरह से स्वास्थ्य था। खुश इतना की नाच–नाच के करतब भी दिखा रहा था। वो अलग बात थी की उसके करतब देखने के लिए पूरा पैक पर्वत की चोटी पर बैठा था। उस जीव के नजरों के सामने चारो बैठे थे। वह जीव अपनी आंखों से जैसे आंसू बहा रहा हो। अपनी आंख वो चारो के करीब लाकर 2 बार अपनी पलके टिमटिमाया ..
उसे ऐसा करते देख चारो खुश हो गये। फिर से उस जीव ने अपना सिर पीछे किया और खुद को जैसे हवा में लहराया हो... हां लेकिन वो लहर आर्यमणि के सर के ऊपर इतनी ऊंची उठी की बस सामने उस जीव का मोटा शरीर ही नजर आया। ऊपर कितना ऊंचा गया, वो नजदीक से देख पाना संभव नही था। वह जीव ठीक इन चारो के सर के ऊपर था और अपनी गर्दन नीचे किये अल्फा पैक को वह देख रहा था। उस जीव के शरीर पर, गर्दन के नीचे से लेकर पूंछ तक, दोनो ओर छोटे छोटे पंख थे। करीब 3 फिट या 4 फिट के पंख रहे होंगे जो दूर से देखने पर उस जीव के शरीर पर रोएं जैसा लगता था।
वह जीव गर्दन नीचे किये अल्फा पैक को देख रहा था और बड़ी सावधानी से अपना एक पंख रूही के पेट के ओर बढ़ा रहा था। रूही यह देखकर खुश हो गयी और पेट के ऊपर से कपड़ा हटाकर पेट को खुला छोड़ दी। वह जीव अपनी गर्दन नीचे करके धीरे–धीरे अपना पंख बढ़ाकर पेट पर प्यार से टीका दिया। आर्यमणि, अलबेली, और इवान को तो ऐसा लग रहा था जैसे कोई पहाड़ उनके सामने से धीरे–धीरे करीब आ रहा हो।
क्या हो जब आप कहीं पार्क में बैठे हो और 100, 150 मंजिली इमारत आपके 10 फिट के फासले से नजदीक आ रही हो। और ये जीव तो उस इमारत से भी कहीं ज्यादा ऊंचा था, जिसे करीब से कभी पूरा नहीं देखा जा सकता। किंतु यहां किसी को भी डर नही लग रहा था उल्टा सब खुश थे। सबसे ज्यादा खुश तो रूही थी, क्योंकि उस जीव का स्पर्श उतना ही अलौकिक था।
उस जीव ने कुछ देर तक अपना पंख रूही के पेट पर टिकाए रखा। फिर तो सबने वो कारनामा देखा। नजरों के सामने उस जीव के शरीर का जितना हिस्सा था, उसमें जैसे वाइब्रेशन हुआ हो और एक पल के लिए उसने पंख को पेट से हटा लिया। वापस से उसने पेट पर स्पर्श किया और फिर से उसका शरीर वाइब्रेट किया।
रूही:– अमेया पेट में हरकत कर रही है। ये जीव उसे महसूस कर सकता है...
लगातार 3–4 बार वाइब्रेट होने और स्पर्श करने की प्रक्रिया के बाद तो वो जीव खुशी से गुलाटी ही लगा दिया। वो अलग बात थी कि गुलाटी लगी नही और अपना भारी शरीर लेकर सीधा जमीन पर गिर गया। सर हिलाते वह जीव उठा और अपना मुंह रूही के पेट के करीब लाकर अपने जीभ के छोटे से प्वाइंट से रूही के पेट को स्पर्श करके वहां से खुशी–खुशी वापस समुद्र में लौट गया। हालांकि मकसद तो पेट को ही स्पर्श करना था, लेकिन अब जीभ ही इतनी बड़ी थी की चारो को गिला करके भाग गया...
इतने बड़े जीव की जान बचाना अपने आप में ही अनोखा अनुभव था। आर्यमणि ने पूरे घटनाक्रम को विस्तार से अनंत कीर्ति की पुस्तक में लिखा। जब वह पूरी घटना लिख रहा था, उसी दौरान आर्यमणि ने सोच लिया की इस किताब को कॉटेज में न रखकर साथ ले जाना ज्यादा बेहतर होगा। अनंत कीर्ति की पुस्तक खुद यहां के पूरे पारिस्थितिक तंत्र को वर्णित कर देगी।
अगली सुबह तो और भी ज्यादा विचित्र परिस्थिति थी। आर्यमणि क्रूज को आइलैंड के दूसरे छोड़ से उसी किनारे पर लगा रहा था जहां क्रूज शुरू से लगी हुई थी। किंतु उस विशालकाय जीव को ठीक करने के बाद से तो जैसे आर्यमणि के पास वाले समुद्री तट पर कई सारे समुद्री जीवों का आना जाना हो गया। सभी समुद्री जीवों के आकार सामान्य ही थे लेकिन देखने में काफी मनमोहक और प्यारे लग रहे थे। सभी पीड़ा लेकर उस तट पर पहुंचे थे और आर्यमणि उन सबको हील कर खुशी–खुशी वापस भेज दिया।
अब तो जैसे रोज ही समुद्र किनारे समुद्री जीवों का भिड़ लगा रहता। उन सबकी संख्या इतनी ज्यादा हुआ करती थी कि अल्फा पैक उन्हे समुद्री रेशों में जकड़ कर एक साथ हील कर दिया करते थे। कभी–कभी तो काफी ज्यादा पीड़ा में होने के कारण कई समुद्री जीव आर्यमणि के फेंस तक पहुंच जाते। चारो मिलकर हर किसी की तकलीफ दूर कर दिया करते थे। और जितना वो लोग इस काम को करते, उतना ही अंदर से आनंदमय महसूस करते।
हां लेकिन उस बड़े से काल जीव को स्वास्थ्य करने वाली घटना के बाद, उन चारो को रात में कॉटेज के आस–पास किसी के होने की गंध जरूर महसूस होती, लेकिन निकलकर देखते तो कोई नही मिलता। उस बड़े से जीव को हील किये महीना बीत चुका था। जिंदगी रोजमर्रा के काम के साथ बड़ी खुशी में कट रही थी। रूही का छटवा महीना चल रहा था। सब लोग अब विचार कर रहे थे कि 4 महीने के लिये न्यूजीलैंड चलना चाहिए। रूही के प्रसव से लेकर बच्चे के महीने दिन का होने तक डॉक्टर के ही देख–रेख़ में रूही को रखना था।
अंधेरा हो चला था। चारो कॉटेज के बाहर आग जला कर बैठे थे। इन्ही सब बातो पर चर्चा चल रही थी। सब न्यूजीलैंड जाने के लिये सहमति जता चुके थे, सिवाय रूही के। उसका कहना था कि आर्यमणि ही ये डिलीवरी करवा देगा। रूही की बात सुनकर तो खुद आर्यमणि का दिमाग ब्लॉक हो गया। यूं तो डॉक्टरों का ज्ञान चुराते वक्त प्रसव करवाने का मूलभूत ज्ञान तो आर्यमणि के पास था, किंतु अनुभव नहीं। और आर्यमणि जनता था डॉक्टरी पेशा ऐसा है जिसमे ज्ञान के साथ–साथ अनुभव भी उतना ही जरूरी होता है। आर्यमणि, रूही से साफ शब्दों में कह दिया... "इस मामले में तुम्हारी राय की जरूरत नही। जो जरूरी होगा हम वही करेंगे।"
आर्यमणि की बात सुनकर रूही भी थोड़ा उखड़ गयी। फिर क्या था दोनो के बीच कड़क लड़ाई शुरू। इन दोनो की लड़ाई मध्य में ही थी जहां आर्यमणि चिल्लाते हुए कह रहा था कि... "तुम्हारी मर्जी हो की नही हो, न्यूजीलैंड जाना होगा"…. वहीं रूही भी कड़क लहजे में सुना रही थी... "जबरदस्ती करके तो देखो, मैं यहां से कहीं नही जाऊंगी"
कोई निष्कर्ष नही निकल रहा था और जिस हिसाब से दोनो अड़े थे, निष्कर्ष निकलना भी नही था। दोनो की बहस बा–दस्तूर जारी थी। तभी वहां का माहोल जैसे कुछ अलग सा हो गया। समुद्र तट से काफी तेज तूफान उठा था। धूल और रेत के कण से आंखें बंद हो गयी। कुछ सेकंड का तूफान जब थमा, आर्यमणि अपने फेंस के आगे केवल लोगों को ही देख रहे थे। कॉटेज से 200 मीटर का इलाका उनका फेंस का इलाका था और उसके बाहर चारो ओर लोग ही लोग थे।
यहां कोई आम लोग आर्यमणि के फेंस को नही घेरे थे। बल्कि वहां समुद्रीय मानव प्रजाति खड़ी थी। एक जलपड़ी और उसके साथ एक समुद्री पुरुष जिसका बदन संगमरमर के पत्थर जैसा और शरीर का हर कट नजर आ रहा था। आर्यमणि सबको अपनी जगह बैठे रहने बोलकर खड़ा हो गया और फेंस की सीमा तक पहुंचा। वह बड़े ध्यान से सामने खरे मानव प्रजाति को देखते... "तुम सबका मुखिया कौन है?"…
आर्यमणि के सवाल पर भिड़ लगाये लोगों ने बीच से रास्ता दिया। सामने से एक बूढ़ा पुरुष और उसके साथ एक जलपड़ी चली आ रही थी। बूढ़ा वो इसलिए था, क्योंकि एक फिट की उसकी सफेद दाढ़ी हवा में लहरा रही थी। वरना उसका कद–काठी वहां मौजूद भीड़ में जितने भी पुरुष थे, उनसे लंबा और उतना ही बलिष्ठ दिख रहा था।
वहीं उसके साथ चली आ रही लड़की आज अपने दोनो पाऊं पर ही आ रही थी, लेकिन जब पहली बार दिखी थी, तब जलपड़ी के वेश में थी। कम वह लड़की भी नही थी। एक ही छोटे से उधारहण से उसका रूप वर्णन किया जा सकता था। स्वर्ग की अप्सराएं भी जिसके सामने बदसूरत सी दिखने लगे वह जलपड़ी मुखिया के साथ चली आ रही थी।
भाग:–156
आर्यमणि के सवाल पर भिड़ लगाये लोगों ने बीच से रास्ता दिया। सामने से एक बूढ़ा पुरुष और उसके साथ एक जलपड़ी चली आ रही थी। बूढ़ा वो इसलिए था, क्योंकि एक फिट की उसकी सफेद दाढ़ी हवा में लहरा रही थी। वरना उसका कद–काठी वहां मौजूद भीड़ में जितने भी पुरुष थे, उनसे लंबा और उतना ही बलिष्ठ दिख रहा था।
वहीं उसके साथ चली आ रही लड़की आज अपने दोनो पाऊं पर ही आ रही थी, लेकिन जब पहली बार दिखी थी, तब जलपड़ी के वेश में थी। कम वह लड़की भी नही थी। एक ही छोटे से उधारहण से उसका रूप वर्णन किया जा सकता था। स्वर्ग की अप्सराएं भी जिसके सामने बदसूरत सी दिखने लगे वह जलपड़ी मुखिया के साथ चली आ रही थी।
वह व्यक्ति जैसे ही फेंस के करीब पहुंचा, अपना परिचय देते हुये कहने लगा.… "मेरा नाम विजयदर्थ है और ये मेरी बेटी महाती। मै गहरे महासागर का महाराज हूं और पूरे जलीय तंत्र की देख–रेख करता हूं।"
"मेरा नाम आर्यमणि है। क्या मैं आपसे इतनी दूर आने का कारण पूछ सकता हूं"..
विजयदर्थ:– मैं, विजयदर्थ, गहरे महासागर का राजा, तुमसे मदद मांगने आया हूं...
आर्यमणि:– कैसी मदद?
विजयदर्थ:– “तुमने जिसे बचाया था वो शोधक प्रजाति की जीव है। जैसे धरती पर कुछ भी जहरीला फेंक दो तो भूमि उसे सोख कर खुद में समा लेती है, और बदले में बिना किसी भेद–भाव के पोषण देती है। ठीक वैसे ही ये शोधक प्रजाति है। महासागर की गहराई के अनंत कचरे को निगलकर उसे साफ रखती है।”
“कुछ वर्षों से उन जीवों के पाचन प्रक्रिया में काफी बदलाव देखने मिला है। पहले जहां ये सोधक प्रजाति हर प्रकार के कचरे को पचा लिया करते थे, वहीं अब इनके पेट में कचरा जमा होकर गांठ बना देता है। सोधक प्रजाति अब पचाने में सक्षम नहीं रहे। पिछले कुछ वर्षों में इनकी आबादी आधी हो गयी है। हम हर प्रयत्न करके देख चुके। हमारे सारे हीलर ने जवाब दे दिया। जैसे तुमने उस बच्ची की सर्जरी की, दूसरे हीलर सर्जरी तो कर लेते थे, लेकिन पेट इतना खुल जाता था कि वो जीव इन्फेक्शन और दर्द से मर जाते।”
“हम बड़ी उम्मीद के साथ आये है। यादि सोधक प्रजाति समाप्त हो गयी तो जलीय पारिस्थितिकी तंत्र (वाटर इकोसिस्टम) खराब हो जायेगी। इसका असर न सिर्फ जलमंडन, बल्कि वायुमंडल और भूमि पर भी पड़ेगा। और ये मैं सिर्फ एक ग्रह पृथ्वी की बात नही कर रहा, बल्कि अनेकों ग्रह पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा।”
"आपकी हम क्यों मदद करे, जबकि आपके लोगों ने मेरे आर्यमणि को लगभग मार डाला था। वो कौन थी जिसने मेरे पति के दिमाग को ही अंदर से गलाने की कोशिश की थी"…. रूही गुस्से में पूछने लगी ..
विजयदर्थ की बेटी, राजकुमारी महाती एक कदम आगे आती…. "उस जानलेवा घटना को मैने अंजाम दिया था। किंतु वो मात्र एक गलती थी। हमारी छिपी हुई दुनिया है, इसे हम उजागर नही कर सकते। जैसे आप लोग पृथ्वी पर इंसानों के बीच छिपकर रहते हो और अपनी असलियत उजागर नही होने देते।"…
आर्यमणि:– हां लेकिन हम जान नही लेते... उनकी यादें मिटा देते हैं...
महाती:– “यहां पहली बार कोई अच्छा पृथ्वी वाशी आया है। वरना पृथ्वी से अब तक यहां जितने भी लोग आये, उनके साथ हमारा बहुत बुरा अनुभव रहा था। ऐसा नहीं था कि पहले हम किसी पृथ्वी वाशी को देखकर उन्हें सीधा मार देते थे। लेकिन जितनी बार उनकी पिछली गलती को माफ करके, आये हुए पृथ्वी वाशी से मेल जोल बढ़ाते बदले में धोका ही मिलाता।”
“आप लोग किसी महान साधक के अनुयाई हो। आपका जहाज मजबूत मंत्र शक्ति से बंधा है। इसलिए हम उसे डूबा नही पाये। वरना पृथ्वी वासियों के लिये इतनी नफरत है कि उन्हे इस क्षेत्र से मिलो दूर डूबा देते है। ये पूरा आइलैंड महासागर के विभिन्न जीवों का प्रजनन स्थल है, जो रहते तो जल में है, किंतु प्रजनन केवल थल पर ही कर सकते है। और यहां किसी की दखलंदाजी उनको बहुत नुकसान पहुंचाती है। अब आप समझ ही गये होगे की क्यों मैंने आपको देखते ही मारने का प्रयास की थी.. लेकिन अपनी सफाई में पेश की हुई बातें अपनी जगह है, इस से ये बात नही बदलेगी की मैने आपकी जान लेने की कोशिश की थी।”
इतना कहकर महाती अपने पिता को देखने लगी। दोनो एक साथ अपने घुटनो पर बैठते…. "लेकिन केवल शब्द ही काफी नहीं अपनी गलती को सही साबित करने के लिये। हम मानते हैं कि जो भी हुआ वह एक गलती थी और उसका पछतावा है। आप अपने विधि अनुसार दोषी को मृत्यु दण्ड तक दे सकते हैं।"…
आर्यमणि:– आपलोग अभी खड़े हो जाइए और बाहर न रहे, अंदर आइए...
विजयदर्थ और महाती दोनो फेंस के अंदर आ गये। दोनो के बैठने के लिये कुर्षियों का इंतजाम किया गया। सभी आराम से बैठ गये। तभी महाती खड़ी होकर... "आप जैसे महान हीलर और दयावान इंसानों के बीच खुद को गौरवान्वित महसूस कर रही हूं। हम तो उस बच्ची (विशाल काल जीव) को दर्द में मरता छोड़ गये। उसके बचने को कोई उम्मीद नहीं थी, फिर भी बिना किसी संसाधन के जिस प्रकार आपने उसे जीवित किया, सर अपने आप ही झुक जाता है। प्रथम साक्षात्कार के उपलक्ष्य में आप सब के लिये एक भेंट मेरी ओर से”.....
कहते हुई महाति एक–एक करके सबके पास पहुंची। सबके दोनो कान के पीछे चीड़ दी। सबसे आखरी में वह रूही के पास पहुंची। उसके कान के पीछे चिड़ने के बाद उसके नाभि के ठीक ऊपर, अपने अंगूठे से अर्ध गोला का निशान बनाकर उसके पेट को प्यार से चूम ली।
जैसे ही महाती ने पेट चूमा, तभी रूही के मुंह से "आव" निकल गया। इधर महाती भी हंसती हुई कहने लगी.. "आव नटखट... तुम्हे जल्दी बाहर आना है".... इतना कहकर फिर एक बार चूमी और इस बार भी पेट के सतह पर हलचल हुई... "बड़ी प्यारी बच्ची है। बाहर आकर हम सबके साथ बैठना चाहती है"…
आर्यमणि:– जी धन्यवाद... वैसे तोहफा देने के बहाने आपने तो खून ही निकाल दिया...
महाती:– इतनी औपचारिकता आप मेरे पिता के साथ कीजिए। मैं आपके सेवा के आगे तो बहुत ही छोटी हूं और आपकी सागिर्द बनना चाहती हूं। इसलिए मुझे अपना शागिर्द समझकर बात कीजिए। और रही बात इस खूनी उपहार की तो आज से आप सब और साथ में आने वाली ये नटखट, हमारे लोग है। आपको गहरे महासागर में कभी कोई परेशानी नहीं होगी...
विजयदर्थ:– महाती अब तुम रोज आकर इनसे बात कर लेना। अभी जिस काम के लिये आये थे वो बात कर ले.. आर्यमणि कृपा कर हमारी मदद करो...
आर्यमणि:– देखिए मैं शोधक प्रजाति के बारे में कुछ नही जानता और न ही मैं कोई डॉक्टर हूं। लेकिन एक डॉक्टर को जनता हूं जो आपकी मदद कर सकता है। जीवों के बारे में जितनी उसकी जानकारी है और किसी की नही...
विजयदर्थ:– आप शायद अपने पुराने साथी बॉब की बात कर रहे है।
आर्यमणि:– आप कैसे जानते है उसे...
विजयदर्थ:– हम कई महीनो से आपके बारे में पता कर रहे थे। हमे तो ये भी पता है कि जिस दुश्मन ने आपकी पत्नी रूही पर हमला किया था, वो दूसरे ग्रह का प्रजाति है। उसकी पूरी जानकारी तो मुझे नही पता, हां लेकिन उसके प्रजाति को नायजो प्रजाति कहते हैं।
आर्यमणि:– आपको तो सब पता है। मै पहले सोचता था पृथ्वी ही इकलौती दुनिया है। हमारा विज्ञान भी यही कहता था, पर कुछ वक्त से पूरे ब्रह्मांड को देखने का नजरिया ही बदल गया।
विजयदर्थ:– आपके सात्विक आश्रम के पुराने सभी आचार्य और गुरु को बहुत से ग्रह के निवासियों के बारे में पता था। उनमें से कई गुरुओं ने तो दूसरे ग्रहों पर जीवन भी बसाया था। पृथ्वी पर एक नही बल्कि कई सारे ग्रह वासियों का वजूद है। चूंकि मैं, पृथ्वी या अन्य ग्रह के सतह के मामले में हस्तछेप नही कर सकता, इसलिए उनकी बहुत ज्यादा जानकारी मेरे पास नहीं है...
आर्यमणि:– आपने मेरे बारे में इतना कुछ पता लगाया है, जान सकता हूं क्यों?
विजयदर्थ:– आपसे मिलना था। गहरे महासागर के कई राज साझा करने थे। इंसानों के बारे में तो महाती बता ही चुकी थी, इसलिए आपसे मदद मांगने से पहले हम आपके बारे में पता कर सुनिश्चित हो रहे थे। यादि आपको बुरा लगा हो तो माफ कर दीजिए...
आर्यमणि:– अच्छा जिस एलियन नायजो का आपने अभी जिक्र किया, जो रूही को घायल करके भागा था, वह अभी कहां है? क्या आप बता सकते है?...
विजयदर्थ:– भारत देश की सीमा में ही अपने प्रजाति के साथ है वो अभी। गोवा के क्षेत्र में...
आर्यमणि:– हम्मम, आपका आभार। अब एक आखरी सवाल। आप मेरे बारे में जानते है तो मेरे दुश्मनों के बारे में भी जानते होंगे। क्या हम यहां सुरक्षित है?
विजयदर्थ:– मैने समुद्री रास्तों के निशान मिटा दिये है। किसी भी रास्ते से, यहां तो क्या इसके 50 किलोमीटर के क्षेत्र में कोई प्रवेश नही कर सकता। यदि कोई किसी विधि इस आइलैंड तक पहुंच भी गया तो फिर यह आखरी जगह होगी जो वो लोग देख रहे होंगे। और हां यदि आपको जरा भी खतरे का आभाष हो तो आप बस महासागर तक आ जाना... उसके बाद कैसी भी ताकत हो... वो दम तोड़ ही देगी।
आर्यमणि:– आपका आभार... बताइए मैं कैसे आपकी मदद कर सकता हूं। इतना तो मुझे पता है कि आप सब सोचकर आये होंगे... बस मेरी हामी की जरूरत है... तो मैं और मेरा पूरा परिवार शोधक प्रजाति की मदद के लिये तैयार है... बस इसमें एक छोटी सी बाधा है... 4 महीने के लिये हम यहां से जायेंगे...
विजयदर्थ:– बुरा न माने तो पूछ सकता हूं क्यों?
रूही:– आपको तो हमारे बारे में सब बात पता है... फिर ये क्यों पता नही?...
विजयदर्थ:– राजा हूं कोई अंतर्यामी नही.... मैने सभी बातों की जानकारी नही ली थी बल्कि आप सबके चरित्र की पूरी जानकारी निकाली थी।
आर्यमणि:– रूही की डिलीवरी करवानी है। और बच्चा जब 1 महीने का होगा तब यहां लौटेंगे... यहां डिलेवरी की कोई सुविधा भी तो नहीं...
विजयदार्थ:– सुविधा की चिंता छोड़ दीजिए... पृथ्वी वाशी के भाषा में कहा जाए तो हाईटेक हॉस्पिटल यहां आनेवाला है। हर तरह के स्पेशलिस्ट यहां आने वाले है, और आप उसे छोड़कर कहीं और जा रहे हैं।
आर्यमणि:– मतलब मैं समझा नहीं...
विजयदर्थ:– मतलब हमारे यहां की पूरी मेडिकल फैसिलिटी मैं यहीं टापू पर मुहैया करवा दूंगा। और विश्वास कीजिए हमारे पास दुनिया के बेस्ट गाइनेकोलॉजिस्ट है। यादि फिर भी दिल ना माने तो हम 4 महीने रुक जायेंगे...
आर्यमणि:– मुझे करना क्या होगा?..
विजयदर्थ:– मुझे पता है कि आप किसी की भी मेमोरी अपने अंदर ले सकते है। हमारे एक बुजुर्ग हीलर है... जब तक उनमें क्षमता थी, तब तक हमें किसी परेशानी का सामना नही करना पड़ा। महासागर के मानव प्रजाति और महासागरीय जीव के बारे में उनका ज्ञान अतुलनीय है। उन्हे सबसे पहला सोधकर्ता कहना कोई गलत नही होगा..
अलबेली:– किंग सर जब वो पहले हैं तो इसका मतलब आप लोगों का विज्ञान 2–3 पीढ़ी पहले शुरू हुआ होगा...
विजयदर्थ:– हाहाहाहाहा.… तुम्हे क्या लगता है वो कितने साल के हैं...
अलबेली:– 110 या 120, ज्यादा से ज्यादा 150.....
विजयदर्थ:– नही... यादि हमारे गणना से मानो तो वो 102 चक्र के है। यादि उसे साल में बदल दो तो... 3366 वर्ष के होंगे...
अलबेली:– क्या... कितना..
विजयदर्थ:– हां सही सुना। एक ग्रहों के योग से दूसरे ग्रहों के योग के बीच का समय एक चक्र होता है। तुम्हारे यहां के हिसाब से वो 33 साल होता है। हर 33 साल पर ग्रह आपस में मिलते है।
अलबेली:– क्या बात कर रहे, फिर आपकी आयु कितनी होगी...
विजयदर्थ:– मैं अपने गणना से तीसरे चक्र के शुरवात में हूं... यानी की लगभग 68 साल का। हमारे यहां औसतन आयु 150 से 200 साल की होती है। वो बुजुर्ग आशीर्वाद प्राप्त है इसलिए उनकी इतनी उम्र है...
आर्यमणि:– कितनी बातें करती हो अलबेली... अब तो महाती ने तुम्हे अपना कह दिया है। किसी दिन डूब जाना महासागर में और अपनी जिज्ञासा पूर्ण कर लेना। राजा विजयदर्थ मुझे 2 बातों का जवाब दीजिये..
विजयदर्थ:– पूछिये
आर्यमणि:– जब वो बुजुर्ग इतने ज्ञानी है फिर उनके ज्ञान का लाभ पूरे समाज को क्यों नही मिला?...
विजयदर्थ:– उस बुजुर्ग का नाम स्वामी विश्वेश है। स्वामी विश्वेश और उनके साथियों को आधुनिक विज्ञान का जनक कहा जाता है। इन लोगों ने जब अपने शिष्य तैयार किये तब नए लोगों को विज्ञान के हर क्षेत्र में काफी ज्यादा रुचि थी, सिवाय जीव–जंतु विज्ञान के। सच तो यह है कि स्वामी विश्वेश के ज्ञान का लाभ किसी भी शिष्य ने पूरी रुचि से लिया ही नही।
आर्यमणि:– हम्मम तो ये बात है। मेरा दूसरा और अहम सवाल यह है कि क्या वो मुझे ज्ञान चुराने की इजाजत देंगे?
विजयदर्थ:– उनके प्राण इसलिए नही छूट रहे क्योंकि जीव–जंतु विज्ञान में उनको एक भी काबिल मिला ही नहीं, जो उनके ज्ञान को भले न आगे बढ़ा सके, लेकिन कम से कम उनके बराबर तो ज्ञान रख सके। कुछ दिनों पूर्व जब उन्होंने सोधक प्रजाति के एक बच्ची को पूर्ण रूप से ठीक होकर महासागर में चहकते देखा, तब उनके आंखों में आंसू आ गये। पिछले कई वर्षों से सोधक प्रजाति का कोई भी बच्चा ऐसे नही चहका। पिछले कई वर्षों से सोधक प्रजाति के बच्चे अपने जीवन के शुरवाति काल में ही बीमार पड़ जाते थे। उनका सही इलाज तो स्वामी विश्वेश भी नही कर पाये। और जब सही इलाज के कारण एक सोधक प्रजाति की बच्ची को चहकते देखे फिर तो सबकी इच्छा यही थी कि आपसे बात की जाये।
आर्यमणि:– ठीक है बताइए मुझे क्या करना होगा..
विजयदर्थ:– आपने शुरवाती दिनों में गंगटोक के जंगल में वहां के घायल जानवरों की मदद की वो भी बिना किसी प्रशिक्षण के। उसके बाद आपको इस विषय में एक सिखाने वाला मिला बॉब... उसने जो सिखाया उसे बस आपने आधार मान लिया और अपने बुद्धि के हिसाब से घायल जानवरों की मदद करने लगे। यहां भी जिस शोधक बच्ची को आपने बचाया, उसके उपचार के लिये वही घास इस्तमाल किये जो मटुका ने आपको लाकर दिये थे..
आर्यमणि:– माटुका???
विजयदर्थ:– माटुका उस शेर का नाम है जिसका इलाज आपने किया था। हम सबका यह विचार है कि आप स्वामी का ज्ञान ले। हर जीव की जानकारी आपके पास होगी। उनके 2–3 सागिर्द है, उनका भी ज्ञान ले सकते हैं। और इनका ज्ञान लेने के बाद आप शोधक प्रजाति के पाचन शक्ति का कुछ कीजिए...
आर्यमणि:– हां पर इतना करना ही क्यों है। मैने जिसका इलाज किया है उसे ही देखते रहेंगे... उसकी पाचन प्रक्रिया सुचारू रूप से चलती रही फिर ले जाओ आप भी घास...
विजयदर्थ:– हां लेकिन जब आप नही होंगे और जीवों में कोई अन्य समस्या उत्पन्न हो गयी तो फिर हम क्या करेंगे? इसे छोटा सा स्वार्थ समझिए, आप उनसे ज्ञान लेकर कुछ सागीर्द बना ले, ताकि इस समस्या का पूर्ण समाधान हो जाए। एक सागीर्द तो मेरी बेटी महाती ही है।
आर्यमणि:– काम अच्छा है और आपकी बातों से मैं पूरी तरह से सहमत हूं। ठीक है हम इसे कल से ही शुरू करते हैं।
आर्यमणि के हामी भरते ही राजा विजयदर्थ ने अपने दोनो हाथ उठा दिये, और इसी के साथ खुशी की लहर चारो ओर फैल गयी। देर रात्रि हो गयी थी इसलिए सभी सोने चले गये। सुबह जब ये लोग जागे फिर से आश्चर्य में पड़ गये। फेंस के चारो ओर लोग ही लोग थे।
आर्यमणि:– तुम लोग दिन में भी नजर आते हो...
एक पुरुष:– हां ये अपना क्षेत्र है, हम किसी भी वक्त आ सकते है। मैं हूं राजकुमार निमेषदर्थ... राजा विजयदर्थ का प्रथम पुत्र..
आर्यमणि:– उनके और कितने पुत्र है...
निमेशदर्थ:– 4 रानी से कुल 10 पुत्र और 3 पुत्रियां है। क्या हमें इस क्षेत्र में काम करने की अनुमति है?
आर्यमणि:– हा बिलकुल...
जैसे ही आर्यमणि ने इजाजत दिया, हजारों की तादात में लोग काम करने लगे। इनकी अपनी ही टेक्नोलॉजी थी और ये लोग काम करने में उतने ही कुशल। महज 4 दिन में पूरी साइंस लैब और 5 हॉस्पिटल की बिल्डिंग खड़ी कर चुके थे। वो लोग तो आर्यमणि के घर को भी पक्का करना चाहते थे, लेकिन अल्फा पैक के सभी सदस्यों ने मना कर दिया। सबने जब घर पक्का करने से मना कर दिया तब कॉटेज को ही उन लोगों ने ऐसा रेनोवेट कर दिया की अल्फा पैक देखते ही रह गये।
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Jalpariyo ke RAJA ne Alfa team ke sath sath uske dushmano ke bare me sari jankari nikali hai Sayad arya ke vyaktitva ko janne ke liye or Vo ab Alfa team se Milne aaye hai...
Unke tark sahi hai, ab duniya me aise parhit karne vale jyada bache hi nhi hai or jo udhar pahuchte hai vo lalach me aakr nukshan hi karte hai to unka bhi kathor hona banta hai...
Arya ko ek bujurg shodhkarta se gyan lekr kuchh logo ko sikhana hai or iske liye rajkumari Pahle aage aayi hai sath hi pachan tantra ko sudharne ke liye bhi kuchh upchar karne ka plan bnaya hai dekhte hai arya ko isme kin mushkilo ka samna karna padta hai or kya kya gya milta hai...
Vaise to anant Kirti ki book usi Ghar me hai to usne in sabhi ke bare me mahsus karke sab likh hi liya hoga, baki jo rah gya hai Vo aage likh legi...
Arya ke ghar ke pass pura high tech hospital bna diya hai sath hi uski jhopdi ko acche se renovate bhi kr diya hai, Chalo Dekhte hai arya yha kya kya bnata hai hospital me...
Vaise idhar Bob ke bare me bhi baat hui Lekin vo kaha hai Iska koi hint nhi diya pr hamla karne vale ki jagah Goa ke pass btai hai, arya kise bhejega usse nipatne ya baad me khud jayega...
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