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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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andyking302

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भाग:–158


कॉटेज के अंदर तो जैसे जश्न का माहोल था। उसी रात शेर माटुका और उसके झुंड को अमेया के जन्म का अनुभव हुआ हो जैसे... शोधक बच्ची, चाहकीली, जिसका इलाज आर्यमणि ने किया, उसको भी एहसास हुआ था... जंगल के और भी जानवर, जिन–जिन ने अमेया को गर्भ में स्पर्श किया था, सब को अमेया के जन्म का अनुभव हुआ था और सब के सब रात में ही अमेया से मिलने पहुंच गये।

बेजुबान जीव अपने आंखों से भावना व्यक्त कर रहे थे। वहीं शोधक बच्ची भी हवा में करतब दिखाते आर्यमणि के कॉटेज को ही पूरा कुंडली मारकर घेर चुकी थी और उसका विशाल सिर कॉटेज के ऊपर था। या यूं भी कह सकते थे की कॉटेज अब गुफा बन गयी थी।

ऊपर शोधक बच्ची का सर तो नजर नहीं आ रहा था लेकिन खिड़की से उसका धर जरूर दिख रहा था। आर्यमणि के बहुत समझाने के बाद शोधक बच्ची चाहकीली और माटुका शेर का झुंड वहां से गया। 7 दिन पूरे हो गये थे और आर्यमणि पूरी विधि से पूजा करने के बाद अमेया के गले में पत्थर जारित छोटा एमुलेट धारण करवा रहा था। काफी अनूठा पल था... आमेया प्यारी सी मुस्कान के साथ पहली बार गले से प्यारा सा आवाज निकाली। जिसे सुनकर सब हंसते हुए उसे गोद में लेकर झूमने लगे...

कुछ दिन पूर्व

किसी सुदूर और वीरान टापू पर कुछ लोगों की मुलाकात हो रही थी। 8–10 लोग उन्हें घेरे खड़े थे और बीच में 5 लोग बैठे थे... मीटिंग निमेषदर्थ ने बुलवाई थी। विवियन एक औपचारिक परिचय देते हुये...

"निमेषदर्थ, ये हमारे समुदाय की सबसे शक्तिशाली स्त्री माया है। काफी दूर दूसरे ग्रह से आयी है। माया ये है राजकुमार निमेषदर्थ और उसकी बहन राजकुमारी हिमा। ये दोनो महासागर के राजा विजयदर्थ के प्रथम पुत्र और पुत्री है।”

“हमारे बीच दूसरी दुनिया की रानी मधुमक्खी रानी चींची बैठी हुई है। पिछले कुछ वक्त से ये भी हमारी तरह आर्यमणि का शिकर करना चाहती थी। उसके पैक को वेमपायर के साथ उलझाने की कोशिश भी की, लेकिन बात नहीं बनी। पृथ्वी पर हम सबकी एक मात्र बाधा आर्यमणि है, जिसके वजह से हम अपना साम्राज्य फैला नही पा रहे।

निमेषदर्थ:– हम्मम... लगता है उस आर्यमणि ने तुम सबको कुछ ज्यादा ही दर्द दिया है। ठीक है मैं तुम्हे आर्यमणि और उसके लोगों को मारने का मौका दूंगा।

रानी मधुमक्खी चिंची..... “उस आर्यमणि ने तुम्हारे साथ क्या किया, जो तुम उसे मारना चाहते हो?”

निमेषदर्थ:– वह मेरे साथ क्या करेगा, कुछ भी नही। मुझे तो बस उसकी शक्तियां चाहिए, जो उसके खून से मुझे मिल जायेगा। चूंकि मेरे पिता का हाथ आर्यमणि के सर पर है, इसलिए मैं या मेरे लोग उसे मार नही सकते, इसलिए तुम लोगों को बुलवाया है।

माया:– बिलकुल सही लोगों से संपर्क किया है। एक बार वो मेरे किरणों के घेरे में फंस गया, फिर मेरे पास वह हथियार भी आ गया है, जिस से आर्यमणि को उसका मंत्र शक्ति भी बचा नही सकती।

निमेषदर्थ, अपनी जगह से खड़ा होकर पूरे जोश के साथ..... “इस बार गलत जगह पर है आर्यमणि। तुम्हे यदि विश्वास है कि तुम्हारे गोल घेरे में फंसकर आर्यमणि निश्चित रूप से मरेगा, तो ऐसा ही होगा। वादा रहा”...

माया, निमेषदर्थ के आकर्षक बदन को घूरती..... “तुम बहुत आकर्षक हो राजकुमार.. साथ काम करने में मजा आयेगा”...

निमेषदर्थ:– तुम भी कमाल की दिखती हो माया। तुम्हारे पास जलपड़ी बनने जितनी सौंदर्य है।

माया:– ऐसी बात है क्या... फिर जब तुम राजा बनना तब मुझे अपनी रानी बनने का प्रस्ताव भेजना... अब जरा काम की बात हो जाये... तुम पूरा जाल बिछाकर आर्यमणि को जहां कहूंगी वहां ले आओगे, आगे का काम मेरा रहा।

निमेषदर्थ:– मैं जाल तो बिछा दूंगा लेकिन आर्यमणि जहां रहता है उस जगह पर मैं नही घुस सकता। उसका पूरा इलाका मंत्रो से बंधा है और बिना उसकी इजाजत मेरे पिताजी भी नही घुस सकते। ऐसे में रानी मधुमक्खी चिंची की जरूरत पड़ेगी। उस पर किसी भी प्रकार का मंत्र काम नही करेगा।

रानी चिंचि:– तुम योजना बनाओ निमेषदर्थ बाकी मैं कहीं भी घुस सकती हूं। ऊपर से अब मैं इस दुनिया के वातावरण के अनुकूल हो गयी हूं, अतः मुझे कहीं जाने के लिये किसी शरीर की भी आवश्यकता नहीं।

माया:– तो तय रहा की तुम दोनो मिलकर आर्यमणि को जाल में फसाओगे और मैं उसके प्राण निकाल लूंगी। लेकिन एक बात ध्यान रहे आर्यमणि मर गया तब वो मेरे किसी काम का नही। मुझे वो अनंत कीर्ति की किताब चाहिए..

निमेषदर्थ:– तुम मुझे आर्यमणि दे दो मैं तुम्हे वो किताब दे दूंगा..

मधुमक्खी रानी चिंची..... “आर्यमणि तो पहले से तुम्हारे इलाके में है। बस उसके प्राण ले लो। इसमें मैं तुम सबकी पूरी मदद करूंगी।

विजयदर्थ की प्रथम पुत्री हिमा..... “इस दूसरे ग्रह वाशी नायजो की दुश्मनी तो समझ में आती है। लेकिन रानी चिंचि आर्यमणि से तुम्हारी क्या दुश्मनी? तुम तो इनसे (नायजो) भी कहीं ज्यादा शक्तिशाली हो, फिर आर्यमणि को अब तक मार क्यों नही पायी?

मधुमक्खी रानी चिंचि:– समस्त ब्रह्माण्ड में इकलौता वो भेड़िया ही है जो मेरे मृत्यु का राज जनता है। उसे पता नही था कि मैं इस दुनिया में आ चुकी हूं। और मैं चाहती भी नही की उसे पता चले। यदि वो मेरे पीछे पड़ गया तो मेरी मौत निश्चित है।

माया:– आह आर्यमणि… ये चीज क्या है... इतना सुना इसके बारे में की मुझे ब्रह्मांड का एक हिस्सा लांघकर पृथ्वी आना पड़ा...

निमेषदर्थ:– ये उतना भी खास नही था, जिसकी वजह से तुम्हे इतनी दूर आना पड़ता... बस हम सबकी मुलाकात नही हुई थी, इसलिए ये अब तक जिंदा बचा है।

माया:– जब वो खास नही फिर तुम्हे हमारी क्या जरूरत.. तुम्हे उस आर्यमणि की क्या जरूरत...

निमेषदर्थ:– उसके ब्लड में कमाल की हीलिंग है। उसके क्ला में कमाल की शक्तियां है। मैं बस एक्सपेरिमेंट करके उसके ब्लड और क्ला को कृत्रिम रूप से बनाने की चाहत रखता हूं...

माया:– खैर, मुझे कोई मतलब नहीं की तुम्हे उस आर्यमणि से क्या चाहिए... मुझे बस एक बात जाननी जरूरी है... पहला वो अनंत कीर्ति की किताब मुझे कैसे मिलेगी... क्योंकि जैसा की हम सबको पता है... तुम्हारे लोग या कोई भी बिना इजाजत के उसके दायरे में नहीं घुस सकता.. और जबसे तुम्हारी सौतेली बहन महाति ने उस पर जानलेवा हमला किया, तबसे तो उसने अपने पूरे पैक को सुरक्षा मंत्र से बांध लिया है...

निमेषदर्थ:– “हर बीमारी का इलाज होता है। जहां के घेरे में हम नही जा सकते वहां रानी चिंचि और बाज जा सकता है। वो बाज उनके नवजात शिशु को उठा सकता है... उसके पीछे आर्यमणि और उसका पैक व्याकुल होकर मंत्र के सुरक्षित घेरे से बाहर आ सकता है।”

“व्याकुल होने की परिस्थिति में वो अपने शरीर का सुरक्षा घेरा बनाना भूल सकता है। यह भी हो सकता है कि जब वो लोग अपने कॉटेज के बाहर हो तो अनंत कीर्ति की किताब कोई बाज अपने पंजे में दबा ले... होने को तो बहुत कुछ हो सकता है।”...

माया:– फिर तुम दोनो (निमेषदर्थ और चिंची) को मेरी क्या जरूरत? निमेषदर्थ तुम्हारे लोग एक बार तो आर्यमणि को लगभग मार ही चुके थे। बस उसके साथियों ने बचा लिया। इस बार सबको समाप्त कर देना।

माया की बात सुनकर रानी मधुमक्खी चिंची हंसने लगी। हंसी तो निमेषदर्थ और उसकी बहन हिमा की भी निकल गयी। निमेषदर्थ अपनी हंसी रोकते.... “अब मैं समझ सकता हूं कि क्यों तुम नायजो इतने शक्तिशाली और सुदृढ़ होते हुये भी वुल्फ के एक पैक को समाप्त नहीं कर पाये। अक्ल की ही कमी है जो तुमलोग अपने दुश्मन को समझ नही सके और तुम्हारे हर हमले के बाद वो आर्यमणि तुम सबको और करीब से जानने लगा।”

“मीटिंग के शुरवात से ही पूरी योजना बता रहा हूं, तब भी अंत में आते–आते वही बेवकूफी वाला सवाल कि तुम्हारी क्या जरूरत है। जबकि 4 बार तो खुद गला फाड़कर बोल चुकी हो कि हम आर्यमणि को तुम्हारे गोल घेरे तक लेकर आये और आगे का काम तुम कर दोगी।”

“रानी चिंचि पहले ही बता चुकी थी कि आर्यमणि को पता नही की वह दूसरी दुनिया से इस दुनिया में आ चुकी है। ऊपर से उसका पैक। सब इतने सुनियोजित ढंग से काम करते है कि इनपर किया गया रैंडम हमला भी हमला करने वालों पर भारी पड़ जाते है। तभी तो रानी चिंचि खुद अकेले आर्यमणि से नही भिड़ सकती थी, इसलिए उसका मामला वेमपायर प्रजाति से फंसा दी।”

“रही बात मेरी, तो काश मैं आर्यमणि को मार सकता। ये बात कुछ देर पहले भी बताया था अब भी बता रहा हूं, आर्यमणि के सर पर मेरे पिता का हाथ है। मैं क्या जलीय कोई जीव तक उसे हाथ नही लगा सकता, सिवाय एक प्रजाति के जिसकी चर्चा नही हो तो ज्यादा बेहतर है। ऊपर से इस अलौकिक भेड़िए की शारीरिक बदलाव।”

“पहली बार जब महाती ने आर्यमणि को घायल किया, उसके बाद तो उसके पूरे पैक ने हमारे हर अंदुरिनी वार का इम्यून विकसित कर लिया। और ये इम्यून केवल एक बड़े से समुद्री जीव के इलाज से उन लोगों ने पा लिया। उसके बाद तो तुम सोच भी नही सकते की उन्होंने कितने प्रकार के समुद्री जीव का इलाज कर दिया। मुझे तो लगता है इन भेड़ियों के पास उस प्रजाति के विष का भी तोड़ होगा जो हमारी दुनिया के मालिक कहलाते है।”

“जैसे तुम नायजो वाले के नजरों वार को देखा और महसूस किया जा सकता है, उसके विपरीत हमारे नजरों के वार को महसूस तक नही कर सकते। मैने अपने सबसे काबिल सिपाहियों के समूह से एक साथ उसके पूरे पैक पर नजरों का हमला करवाया, लेकिन उन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ा। उल्टा उस आर्यमणि को मेरे पिताजी पर शक हो गया”...

माया:– अभी–अभी तो तुमने कहा था तुम्हारे नजरों के वार किसी को पता नही चलता...

निमेषदर्थ:– हां लेकिन भेड़िए का खून बता देता है कि उसके शरीर में टॉक्सिक गया है...

माया:– तो तुम्हे आर्यमणि जिंदा चाहिए या केवल उसका खून...

निमेषदर्थ:– ए पागल, केवल खून लेकर उसे जिंदा छोड़ दिया तो क्या वो हमे जिंदा छोड़ेगा? इस काम को हमे मिलकर अंजाम देना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा की आर्यमणि मारा गया। वरना वो यदि जिंदा बच गया तो अभी सिर्फ अल्फा पैक को हमने देखा है बाद में सात्विक आश्रम के अनुयाई के साथ वो लड़ने आयेगा। और विश्वास मानो आर्यमणि जैसे नायक के साथ जब सात्त्विक आश्रम के 100 अनुयाई भी खड़े हो तो जिसे मारने का सोचकर आये होंगे, उनकी मृत्यु अटल होगी

माया:– अब इतनी भी क्या समीक्षा करना। इस काम को हम तीनो मिलकर अंजाम देंगे और अपने–अपने लक्ष्य में कामयाब रहेंगे।

निमेषदर्थ:– फिर ये एहसान रहेगा तुम दोनो का... उसके खून का लाभ तुम सबको भी मिलेगा...

माया:– ये तो एक और अच्छी बात हो गयी। मैं आर्यमणि को मारने के लिये मैं बेचैन हो रही हूं। कब शुरू करना है..

निमेषदर्थ:– अभी आराम से यहीं रहते है... आइलैंड से सही वक्त की सूचना आ जाने दो... अभी तो आर्यमणि की बेटी के जन्म के कारण पूरा आइलैंड भरा हुआ है.. सबकी मौजूदगी में ये काम करने गये तो मेरे पिताजी से हम सबको भिड़ना पड़ जायेगा। इसलिए जोश को शांत रखो।

ये गिद्ध अपने शिकार पर शिकंजा कसने को तैयार थे, बस सही वक्त का इंतजार कर रहे थे। और इन सब से बेखबर, आर्यमणि और उसका पैक अपनी खुशियों में गुम था। सात दिन बाद अमेया पहली बार उस कॉटेज से बाहर आ रही थी। आर्यमणि अपने गोद में अपनी नन्ही गुड़िया को लिटाए जैसे ही बाहर आया... शेर माटुका और उसका पूरा झुंड दौड़कर घेर लिया…

आर्यमणि नीचे बैठकर अमेया को बीच में रखा। शेर का पूरा झुंड उसे देखकर दहाड़ लगा रहा था। अपने मुंह को अमेया के पास ले जाकर उसे प्यार से स्पर्श कर रहे थे। थोड़ी ही देर बाद विजयदर्थ भी अपने सभी लोगों के साथ पहुंचा... आते ही आमेया को अपनी गोद में उठाकर जैसे ही अपने सीने से लगाया, गहरी श्वास खींचते सुकून भरी स्वांस छोड़ा। आंख मूंदकर कुछ देर तक अपने सीने से लगाने के बाद विजयदर्थ ने गले से एक हार निकालकर अमेया को पहना दिया...

उसकी बेटी महाती आश्चर्य से अपने पिता को देखती... "ये तो दुर्लभ पत्थर वाली हार है न पिताजी... आपने इसे"..

विजयदर्थ, अमेया को महाती के हाथ में देते... "इसे सीने से लगाओ, फिर अपनी बात कहना”... जैसे ही महाती ने उसे सीने से लगाया, उसकी मुस्कान चेहरे पर फैल गयी। अपने पिता की तरह उसने भी अमेया को कुछ देर तक सीने से लगाये रखी। बाद में वह भी अपने गले का एक दुर्लभ हार निकालकर अमेया के गले में डाल दी”...

आर्यमणि:– अरे अमेया इतने सारे हार का क्या करेगी...

विजयदर्थ:– अमेया योग्य है इसलिए इसके गले में है... इसकी धड़कन कमाल की है। मैने कुछ पल में जो खुद में सुकून महसूस किया उसका वर्णन नही कर सकता। ऐसे सुकून पाने के लिये ना जाने हमारे पूर्वज कितने यज्ञ और हवन करवाते थे। मैने खुद कितने यज्ञ करवाए हैं।

अलबेली अजीब सा चेहरा बनाती... "यह कोई इतनी बड़ी वजह तो नही हुई की दुर्लभ पत्थर से लाद दे मेरी बच्ची को”...

महाती:– ये तुम्हारी नही बल्कि हम सबकी बच्ची है और अपने बच्ची को मैं कुछ भी दे सकती हूं। इसके लिये किसी वजह की जरूरत नहीं।

फिर तो जैसे हर जलीय मानव अमेया को गोद में उठाने को बेताब हो गये हो। आर्यमणि और रूही ने भी किसी को निराश नहीं किया। वहीं अलबेली और इवान बड़े–बड़े बॉक्स लाकर रख दिया... हर कोई उसी में अपना भेंट डाल देता...

सुबह से शाम हो गयी लेकिन अब भी बहुत से लोग लाइन लगाए खड़े थे... शाम ढलते ही आर्यमणि सबसे माफी मांगते सबके साथ पर्वत पर चल दिया... वहां सोधक बच्ची चहकीली महासागर के किनारे लेटी थी। मात्र उसका सिर पानी के बाहर था... आर्यमणि और रूही जोड़ से आवाज लगाए.… चाहकिली... चाहकिली…"

वो अपना मुंह दूसरी ओर घुमा ली। फिर माटुक शेर बाहर आया और रूही को धक्के मारने लगा.. रूही, अमेया को दोनो हथेली में थामकर ऊपर आकाश में की और माटुका ने तेज दहाड़ लगाया... माटुका की दहाड़ पर चहकिली अपना सिर वापस घुमाई और जैसे ही उसने अमेया को देखा... बिलकुल लहराती खुद को हवा में ऊपर उछाल ली। एक तो सकड़ों मीटर जितना लंबा शरीर ऊपर से वो हवा में 2–3 किलोमीटर ऊपर तक छलांग लगा दी।

खुशी ऐसी की संभाले नहीं संभल रहा था। चाहकीली उछलती चहकती अपना बड़ा सा सर ठीक अमेया के सामने ले आयी… जैसे कोई इंसान अपने सिर को हिलाकर बच्चे को हंसाने की कोशिश करता है ठीक वैसे ही चहकिली कर रही थी। तभी एक बार फिर अमेया की किलकारी सबने सुनी। चहकीली तो खुशी से एक बार फिर हवा में छलांग लगाकर छप से पानी ने गिड़ी।

चहकीली अपने छोटे 3–4 फिट के पंख को खोलती अपने सिर से इशारा करने लगी। किसी को समझ में नहीं आया। उसने एक बार फिर अपना सिर हिलाकर इशारा किया लेकिन किसी को कुछ समझ में ही नही आया। तब मटुका अपने सिर से चारो को धकेला... "अच्छा चाहकिली हम सबको अपने ऊपर बैठने कह रही है।"…

आर्यमणि, चहकिली की खुशी को देखते सवार हो गया। उसके साथ बाकी सब लोग भी सवार हो गये। जैसे ही वो लोग सवार हुये, चहकिली ने अपने पंख में सबको मानो लॉक कर दिया हो। रूही ने अमेया को चहकिली के ऊपर रख दी। इस वक्त जैसे कोई सांप सीधा रहता है चाहकिली भी ठीक वैसे ही थी। जैसे ही उसने अपने पंख पर अमेया को महसूस की अपना गर्दन मोड़कर पीछे करती बड़े प्यार से देखने लगी और पंख से उसे दुलार करने लगी।

आर्यमणि:– चहकिली अब चहकना मत वरना हमारा कचूमर बन जायेगा...

चहकिली बड़ा सा मुंह खोलकर हंसती हुई महासागर के ओर चल दी। रूही, इवान और अलबेली का तो कलेजा धक–धक करने लगा। आर्यमणि उन्हे हौसला देते बस शांत रहने का इशारा किया और ये गोता खाकर सभी पानी के अंदर... रूही पूरी तरह से परेशान होकर छटपटाने लगी। वह अपनी बच्ची को देखने लगी.… "तुमलोग कितना परेशान हो रहे... मेरी बहना को देखो कैसे हंस रही है।"…

रूही, अलबेली और इवान, यह आवाज सुनकर चौंक गये। उन्हे लग रहा था की उनका दम घुट जायेगा, लेकिन मुंह और नाक से घुसता हुआ पानी कान के पीछे से निकल रहा था और वहीं से श्वांस भी ले रहे थे। तीनो मुंह खोलकर कुछ बोलने की कोशिश कर रहे थे लेकिन किसी की आवाज नही निकल रही थी... "अरे शांत हो जाओ और आर्यमणि चाचू से पूछो कैसे बात करना है।"..
शानदार जबरदस्त लाजवाब update बड़े भाई ❤️❤️😍❤️😘😍😍😍😍😍😘😘😘😘❤️❤️😍😍😍😍😍😍😍😍😍😍❤️❤️😘😘❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️😍😍❤️❤️❤️❤️

Ye bc दोगले बाजी करने वाले harami के पैदायशी हे सब के सब मिल के प्लान बना रहे हे आर्य और उसके पैक को मारने के वास्ते...

और उस नवजात शिशु को भी मरने के bare mey सोच रहे हे...

Aur ohh harami का जाना राजा का बेटा और उसकी बेटी bc इनको तो क्या ही जेहन हे....

Ab jab arya को पता चलेगा तो क्या होता हे ये देखना padega इनका क्या होता हे...

Aur ye kon ayelyi hey ye माया और किन ओ चीची या bhnchi... इनकी तो ऐसे लेनी चाहिए कि फिर कभी अपने अगले sljanmo भी ना ऐसा करने की सोचे bc....

Aur yaha par to pack to फूल कुश आरहा हे और ये लोग cahelkali की साथ घूमने के वास्ते निकल गए हे...

Ab देखते हे क्या in भोस..... वालो का प्लान सफल होता हे या इनको दर्द नाक मौत मिलती हे....

Aur इनको ऐसी मौत मिलनी चाहिए कि देखने और सुने वालो को सात जनों की रूह तक कप जाने चाहिए....


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Zoro x

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भाग:–157


जैसे ही आर्यमणि ने इजाजत दिया, हजारों की तादात में लोग काम करने लगे। इनकी अपनी ही टेक्नोलॉजी थी और ये लोग काम करने में उतने ही कुशल। महज 4 दिन में पूरी साइंस लैब और 5 हॉस्पिटल की बिल्डिंग खड़ी कर चुके थे। वो लोग तो आर्यमणि के घर को भी पक्का करना चाहते थे, लेकिन अल्फा पैक के सभी सदस्यों ने मना कर दिया। सबने जब घर पक्का करने से मना कर दिया तब कॉटेज को ही उन लोगों ने ऐसा रेनोवेट कर दिया की अल्फा पैक देखते ही रह गये।

पांचवे दिन सारा काम हो जाने के बाद राजकुमार निमेषदर्थ ने इजाजत लीया और वहां से चला गया। उसी शाम विजयदर्थ कुछ लोगों के साथ पहुंचा, जिनमे वो बुजुर्ग स्वामी भी थे। विजयदर्थ, स्वामी और आर्यमणि की औपचारिक मुलाकात करवाने के बाद आर्यमणि को काम शुरू करने का आग्रह किया।

आर्यमणि उस बुजुर्ग को अपने साथ कॉटेज के अंदर ले गया। विजयदर्थ भी साथ आना चाहता था, लेकिन आर्यमणि ने उसे दरवाजे पर ही रोक दिया। बुजुर्ग स्वामी और आर्यमणि के बीच कुछ बातचीत हुई और आर्यमणि बाहर निकलकर राजा विजयदर्थ को सवालिया नजरों से देखते.… "राजा विजयदर्थ ये बुजुर्ग तो मरने वाले हैं।"

विजयदर्थ:– मैने तो पहले ही बताया था। स्वामी जी मृत्यु के कगार पर है।

आर्यमणि:– हां बताया था। लेकिन तब यह नही बताया था कि बिलकुल मृत्यु की दहलीज पर ही है। कहीं वो मेरे क्ला को झेल नही पाये तब"…

विजयदर्थ:– ये बुजुर्ग तो वैसे भी कबसे मरने की राह देख रहे, बस इनके विरासत को कोई संभाल ले। एक सुकून भरी नींद के तलाश में न जाने कबसे है।

आर्यमणि:– हां लेकिन फिर भी जलीय मानव प्रजाति के इतने बड़े धरोहर के मृत्यु का कारण मैं बन जाऊं, मेरा दिल गवारा नहीं करता। फिर आपके लोग क्या सोचेंगे... आप कुछ भी कहे लेकिन वो लोग तो मुझे ही इनके मृत्यु का जिम्मेदार समझेंगे।...

विजयदर्थ:– कोई ऐसा नही समझेगा...

आर्यमणि:– ठीक है फिर आपके लोग ये बात अपने मुंह से कह दे फिर मुझे संतुष्टि होगी...

विजयदर्थ:– मैं अपने लोगो का प्रतिनिधि हूं। मैं कह रहा हूं ना...

आर्यमणि:– फिर आप स्वामी को ले जा सकते है। इस आइलैंड पर मैं जबतक हूं, तबतक अपने हिसाब से घायलों का उपचार करता रहूंगा...

विजयदर्थ:– बहुत हटी हो। ठीक है मैं अपने लोगों को बुलाता हूं।

आर्यमणि:– अपने लोगों को बुलाना क्यों है इतना बड़ा महासागर है। इतनी विकसित टेक्नोलॉजी है, हमे कनेक्ट कर दो...

विजयदर्थ ने तुरंत ही अपनी संचार प्रणाली से सबको कनेक्ट किया। आर्यमणि पूर्ण सुनिश्चित होने के बाद बुजुर्ग स्वामी विश्वेश के पास पहुंचे और अपना क्ला उसकी गर्दन से लगाकर अपनी आंखें मूंद लिया... अनंत गहराइयों के बाद जब आखें खुली, आचार्य जी भी साथ थे...

आचार्य जी:– लगता है अब तक दुविधा गयी नही। जब इतने संकोच हो तो साफ मना कर दो और वो जगह छोड़ दो...

आर्यमणि:– आचार्य जी आपने उस शोधक बच्ची की खुशी देखी होती... वो अदभुत नजारा था। मुझे उनकी तकलीफ दूर करने की इक्छा है... बस मुझे वो राजा ठीक नही लगा... धूर्त दिख रहा है। आप एक बार उसके मस्तिस्क में प्रवेश क्यों नही करते...

आर्यमणि की बात पर आचार्य जी मुस्कुराते.… "अपनी बुद्धि और विवेक का सहारा लो"…

आर्यमणि:– आचार्य जी इसका क्या मतलब है। ये गलत है। बस एक छोटा सा काम कर दो। विजयदर्थ के दिमाग में घुस जाओ...

आचार्य जी:– एक ही बात को 4 बार कहने से जवाब नहीं बदलेगा। यादि तुम ऐसा चाहते हो तो पहले वहां कुछ लोगो को भेजता हूं। तुम अलग दुनिया के लोगों के बीच हो और उसके मस्तिष्क में घुसने पर यदि उन्हे पता चल गया तो तुम सब के लिये खतरा बढ़ जायेगा। उस राजा को जांचते हुए और सावधानी से काम करो। और मैं तो कहता हूं कुछ वक्त ऐसा दिखाते रहो की तुम उनके साथ हो। कुछ शागिर्द को शोधक प्रजाति का इलाज करना सिखा कर लौट आओ, यही बेहतर होगा।…

आर्यमणि:– हां शायद आप सही कह रहे है। ठीक है, आप इस वृद्ध व्यक्ति के ज्ञान वाले सनायु तंतु तक मुझे पहुंचा दीजिए.… मैं सिर्फ इसकी यादों से इसका ज्ञान ही लूंगा।

आचार्य जी:– ठीक है मैं करता हूं, तुम तैयार रहो...

कुछ देर बाद आर्यमणि उस बुजुर्ग का ज्ञान लेकर अपनी आखें खोल दिया। आंख खोलने के साथ ही उसने उस बुजुर्ग की यादें मिटाते... "पता नही अब वो विजयदर्थ तुमसे या मुझसे चाहता क्या है? क्ला से आज तक कोई नही मरा। देखते है तुम्हारा क्या होता है?"

खुद में ही समीक्षा करते आर्यमणि बाहर निकला और अपने दोनो हाथ ऊपर उठा लिया। विजयदर्थ खुश होते आर्यमणि के पास पहुंचा... "अब लगता है उन शोधक प्रजाति का इलाज हो जायेगा"…

आर्यमणि:– हां शायद... मैं कुछ दिनो तक प्रयोगसाला में शोध करूंगा… आपके डॉक्टर आ गये जो रूही का इलाज करने वाले है..

विजयदर्थ ने हां में जवाब दिया। आर्यमणि विजयदर्थ से इजाजत लेकर रूही से मिलने हॉस्पिटल पहुंचा। इवान और अलबेली दोनो ही उसके पास बैठे थे और काफी खुश लग रहे थे। तीनो चहकते हुए कहने लगे, उन्होंने स्क्रीन पर बेबी को देखा... कितनी प्यारी है... कहते हुए उनकी आंखें भी नम हो गयी...

आर्यमणि ने भी देखने की जिद की, लेकिन उसे यह कहकर टाल दिया की गर्भ में पल रहे बच्चों को बार–बार मशीनों और किरणों के संपर्क में नही आना चाहिए। बेचारा आर्यमणि मन मारकर रह गया। थोड़ी देर वक्त बिताने के बाद आर्यमणि वहां से साइंस लैब आ गया। रसायन शास्त्र की विद्या जो कुछ महीने पहले आर्यमणि ने समेटी थी, उसे अपने दिमाग में सुव्यवस्थित करते, आज उपयोग में लाना था।

अपने साथ उसने महासागर के साइंटिस्ट, जीव–जंतु विज्ञान के साइंटिस्ट और मानव विज्ञान के साइंटिस्ट भी थे। जो आर्यमणि के साथ रहकर शोधक प्रजाति पर काम करते। पहला प्रयोग उन घास से ही शुरू हुआ। उसके अंदर कौन से रसायन थे और वो मानव अथवा जानवर शरीर पर क्या असर करता था।

इसके अलावा महासागर के तल में पाया जाने वाला हर्व भी लाया गया। सुबह ध्यान, फिर प्रयोग, फिर परिवार और आइलैंड के जंगल। ये सफर तो काफी दिलचस्प और उतना ही रोमांचक होते जा रहा था। करीब 2 महीने बाद सबने मिलकर कारगर उपचार ढूंढ ही लिया। उपचार ढूंढने के बाद प्रयोग भी शुरू हो गये। सभी प्रयोग में नतीजा पक्ष में ही निकला...

जितना वक्त इन प्रयोग को करने में लगा उतने वक्त में लैब में काम कर रहे सभी शोधकर्ता ने आपस की जानकारी और अनुभवों को भी एक दूसरे से साझा कर लिया। आर्यमणि को हैरानी तब हो गई जब जीव–जंतु विज्ञान के स्टूडेंट्स और साइंटिस्ट से मिला। उनके पढ़ने, सीखने और जीव–जंतु की सेवा भावना अतुलनीय थी। बस सही जानकारी का अभाव था और महासागरीय जीव इतने थे की सबको बारीकी से जानने के लिये वक्त चाहिए था।

जीव–जंतु विज्ञान वालों ने यूं तो कुछ नही बताया की उनके पास समर्थ रहते भी वो इतने पीछे क्यों रह गये। लेकिन आर्यमणि कुछ–कुछ समझ रहा था। उनके समर्थ का केवल इस बात से पता लगाया जा सकता था कि एक विदार्थी शोधक के अंदरूनी संरचना जानने के बाद सीधा उसके पेट में जाकर अंदर की पूरी बारीकी जानकारी निकाल आया।

ऐसा नही था की वो विदर्थी पहले ये काम नहीं कर सकता था। ऐसा नही था कि अंदुरूनी संरचना का उन्हे अंदाजा न हो, लेकिन उनका केवल यह कह देना की उनके पास जानकारी नही थी, इसलिए नही अंदर घुस रहे थे... आर्यमणि के मन में बड़ा सवाल पैदा कर गया। आर्यमणि ने महज अपने क्ला से वही जानकारी साझा किया जो उसने बुजुर्ग के दिमाग से लिया था। आश्चर्य क्यों न हो और मन में सवाल क्यों न जन्म ले। आर्यमणि जबतक जीव–जंतु विज्ञान में अपना एक कदम आगे उठाने की कोशिश करता, वहीं जीव–जंतु विज्ञान के सोधकर्ता 100 कदम आगे खड़े रहते। पूरा इलाज महज 3 महीने में खोज निकाला।..

एक ओर जहां इनका काम समाप्त हो रहा था वहीं दूसरी ओर अल्फा परिवार की जिम्मेदारी बढ़ने वाली थी, क्योंकि किसी भी वक्त रूही की डिलीवरी होने वाली थी। अलबेली डिलीवरी रूम में लगातार रूही के साथ रहती थी। अलबेली, रूही के लेबर पेन को अपने हाथ से खींचना चाहती थी...

रूही, अलबेली के सिर पर एक हाथ मारती... "उतनी बड़ी वो शोधक जीव थी। उसका दर्द मुझसे बर्दास्त हो गया, और मैं अपने बच्चे के आने की खुशी तुझे दे दूं। मुझे लेबर पेन को हील नही करवाना"…

अलबेली:– हां ठीक है समझ गयी, लेकिन इतने डॉक्टर की क्या जरूरत थी? क्या दादा (आर्यमणि) को पता नही की एक वुल्फ के बच्चे कैसे पैदा होते हैं।….

रूही:– मैं शेप शिफ्ट करके अपने बच्ची को जन्म नही दूंगी... और इस बारे में सोचना भी मत...

अलबेली:– लेबर पेन से शेप शिफ्ट हो गया तो...

रूही:– मां हूं ना.. अपने बच्चे के लिए हर दर्द झेल लूंगी... और वैसे भी हील करते समय का जो दर्द होता है, उसके मुकाबले लेबर पेन कुछ भी नहीं...

अलबेली:– हे भगवान... कहीं ऐसा तो नहीं की हमने इतने दर्द लिये है कि तुम्हे लेबर पेन का पता ही न चल रहा हो.. क्योंकि लेबर पेन मतलब एक औरत के लिए 17 हड्डी टूटने जितना दर्द...

रूही:– और हमने तो इतने बड़े जीव का दर्द लिया, जिसका दर्द इंसानी हड्डी टूटने से आकलन करे तो...

अलबेली:– 10 हजार हड्डियां... या उस से ज्यादा भी..

रूही:– नीचे देख सिर बाहर आया क्या...

अलबेली नीचे क्या देखेगी, पहले नजर पेट पर ही गया और हड़बड़ा कर वो कपड़ा उठाकर देखी... अब तक रूही की भी नजर अपने पेट पर चली गई... "झल्ली, अंदर मेरी बच्ची के सामने हंस मत, जाकर डॉक्टर को बुला और किसी को ये बात पता नही चलनी चाहिए"…

अलबेली, अपना मुंह अंदर डाले ही... "इसकी आंखें अभी से अल्फा की है, और चेहरा चमक रहा। मुझ से रहा नही जा रहा, मैं गोद में लेती हूं।"

रूही:– अरे अपने ही घर की बच्ची है जायेगी कहां... लेकिन क्यों डांट खाने का माहैल बना रही। आर्यमणि को पता चला की हम बात में लगे थे और अमेया का जन्म हो गया... फिर सोच ले क्या होगा। मैं फसने लगी तो कह दूंगी, मेरा हाथ थामकर अलबेली मेरा दर्द ले रही थी, मुझे कैसे पता चलता...

अलबेली अपना सिर बाहर निकालकर रूही को टेढ़ी नजरों से घूरती... "ठीक है डॉक्टर को बुलाती हूं। तुम पेट के नीचे तकिया लगाओ और चादर बिछाओ... "

रूही अपना काम करके अलबेली को इशारा की और अलबेली जोड़ से चिंखती.… "डॉक्टर...डॉक्टर"..

जैसा की उम्मीद था, पहले आर्यमणि ही भागता आया। यूं तो आया था परेशान लेकिन अंदर घुसते ही शांत हो गया... अलबेली को लगा गया की आर्यमणि को कुछ मेहसूस हो गया था, कुछ देर वह रुका तो आमेया के जन्म का पता भी चल जायेगा..

अलबेली:– बॉस आप नही डॉक्टर को भेजो..

आर्यमणि:– लेकिन वो..

अलबेली धक्का देते.… "तुम बाहर रहो बॉस, लो डॉक्टर भी आ गयी"…

जितनी बकवास रूही और अलबेली की स्क्रिप्ट थी, उतनी ही बकवास परफॉर्मेंस... डॉक्टर अंदर आते ही... "आराम से तो है रूही .. चिल्ला क्यों रही हो"…

जैसे ही डॉक्टर की बात आर्यमणि ने सुना.. वो रूही के करीब जाने लगा। तभी रूही भी तेज–तेज चीखती... "ओ मां.. आआआआ… मर जाऊंगी... कोई बचा लो.. बचा लो".. आर्यमणि भागकर रूही के पास पहुंचा.. उसका हाथ थामते... "क्या हुआ... रूही... आंखें खोलो.. डॉक्टर.. डॉक्टर"…

डॉक्टर:– उसे कुछ नही हुआ, तुम बाहर जाओ.. डिलीवरी का समय हो गया है.…

जैसे ही आर्यमणि बाहर गया। रूही तुरंत अपने पेट पर से चादर और तकिया हटाई। अलबेली लपक कर तौलिया ली और आगे आराम से उसपर अमेया को लिटाती बाहर निकाली… "ये सब क्या है"… डॉक्टर हैरानी से पूछी...

अलबेली उसके मुंह पर उंगली रखकर... "डिलीवरी हो गयी है। अब तुम आगे का काम देखो".... इतना कहकर अलबेली ने कॉर्ड को काट दिया और बच्ची को दोनो हथेली में उठाकर झूमने लगी। इधर डॉक्टर अपना काम करने लगी और रूही अलबेली की खुशी देखकर हंसने लगी।

अलबेली झूमते हुए अचानक शांत हो गई और रूही के पास आकर बैठ गई... रूही अपने हाथ आगे बढ़ाकर, उसके आंसू पोंछती… "अरे, अमेया की बुआ ऐसे रोएगी तो भतीजी पर क्या असर होगा"…

अलबेली, पूरी तरह से सिसकती... "उस गली में हम क्या थे भाभी, और यहां क्या... मेरा तो जीवन तृप्त हो गया।"..

रूही:– पागल मुझे भी रुला दी न... क्यों बीती बातें याद कर रही...

अलबेली:– भाभी, जो हमे नही मिला वो सब हम अपनी बच्ची को देंगे। इसे वैसे ही बड़ा होते देखेंगे, जैसे कभी अपनी ख्वाइश थी...

रूही:– हां बिलकुल अलबेली... अब तू चुप हो जा..

डॉक्टर:– अरे ये बच्ची रो क्यों नही रही..

अलबेली:– क्योंकि इस बच्ची के किस्मत में कभी रोना नहीं लिखा है डॉक्टर... उसके हिस्से का दुख हम जी चुके हैं। उसके हिस्से का दर्द हम ले लेंगे... हमारी बच्ची कभी नही रोएगी...

अलबेली इतना बोलकर अमेया को फिर से अपने हाथो में लेकर झूमने लगी। रूही और अलबेली के चेहरे से खुशी और आंखों से लगातार आंसू आ रहे थे। इधर आर्यमणि जब बाहर निकला, इवान चिंतित होते... "क्या हुआ जीजू, अलबेली ऐसे चिल्लाई क्यों"…

आर्यमणि:– क्योंकि अमेया आ गयी इवान, अमेया आ गयी...

इवान:– क्या सच में.. मै अंदर जा रहा...

आर्यमणि:– नही अभी नही... अभी आधे घंटे का इनका ड्रामा चलेगा। जबतक मैं ये खुशखबरी अपस्यु और आचार्य जी को बता दूं...

आर्यमणि भागकर अपने कॉटेज में गया और ध्यान लगा लिया.… "बहुत खुश दिख रहे हो गुरुदेव"…

आर्यमणि:– छोटे.. ऐसा गुरुदेव क्यों कह रहे...

अपस्यु:– तुम अब पिता बन गये, कहां मार–धार करोगे। तुम आश्रम के गुरुजी और मैं रक्षक।

आर्यमणि:– न.. मेरी बच्ची आ गयी है और अब मैं गुरुजी की ड्यूटी नही निभा सकता। रक्षक ही ठीक हूं।

आचार्य जी:– तुम दोनो की फिर से बहस होने वाली है क्या...

दोनो एक साथ... बिलकुल नहीं... आज तो अमेया का दिन है...

आचार्य जी:– जिस प्रकार का तेज है... उसका दिन तो अभी शुरू हुआ है, जो निरंतर जारी रहेगा। लेकिन आर्यमणि तुम इस बात पर अब कभी बहस नही करोगे की तुम आश्रम के गुरु नही बनना चाहते। दुनिया का हर पिता काम करके ही घर लौटता है। यह तुम्हारे पिता ने भी किया था और मेरे पिता ने भी... तो क्या वो तुमसे प्यार नहीं करते..

आर्यमणि:– हां समझ गया... गलती हो गयी माफ कर दीजिए...

अपस्यु:– पार्टी लौटने के बाद ले लूंगा.. बाकी 7 दिन के नियम करना होगा...

आचार्य जी:– सातवे दिन, पूरी विधि से वो पत्थर जरित एमुलेट पहनाने के बाद ही अमेया को अपने घर से बाहर निकालना और सबसे पहले पूरा क्षेत्र घुमाकर हर किसी का आशीर्वाद दिलवाना... पिता बनने की बधाई हो..

अपस्यु:– पूरे आश्रम परिवार के ओर से बधाई... अब हम चलते है।

आर्यमणि के चेहरे की खुशी... दौड़ता हुआ वो वापस हॉस्पिटल पहुंचा। सभी रूही को घेरे खड़े थे। आर्यमणि गोद में अमेया को उठाकर नजर भर देखने लगा। जैसे ही अमेया, आर्यमणि के गोद में आयी अपनी आंखें खोलकर आर्यमणि को देखने लगी। आर्यमणि तो जैसे बुत्त बन गया था। चेहरे की खुशी कुछ अलग ही थी। वह प्यार से अपनी बच्ची को देखता रहा। कुछ देर बाद सभी रूही को साथ लेकर कॉटेज चल दिये।

कॉटेज के अंदर तो जैसे जश्न का माहोल था। उसी रात शेर माटुका और उसके झुंड को अमेया के जन्म का अनुभव हुआ हो जैसे... शोधक बच्ची जिसका इलाज आर्यमणि ने किया, उसको भी एहसास हुआ था... जंगल के और भी जानवर, जिन–जिन ने अमेया को गर्भ में स्पर्श किया था, सब को अमेया के जन्म का अनुभव हुआ था और सब के सब रात में ही अमेया से मिलने पहुंच गये।
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
 

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भाग:–158


कॉटेज के अंदर तो जैसे जश्न का माहोल था। उसी रात शेर माटुका और उसके झुंड को अमेया के जन्म का अनुभव हुआ हो जैसे... शोधक बच्ची, चाहकीली, जिसका इलाज आर्यमणि ने किया, उसको भी एहसास हुआ था... जंगल के और भी जानवर, जिन–जिन ने अमेया को गर्भ में स्पर्श किया था, सब को अमेया के जन्म का अनुभव हुआ था और सब के सब रात में ही अमेया से मिलने पहुंच गये।

बेजुबान जीव अपने आंखों से भावना व्यक्त कर रहे थे। वहीं शोधक बच्ची भी हवा में करतब दिखाते आर्यमणि के कॉटेज को ही पूरा कुंडली मारकर घेर चुकी थी और उसका विशाल सिर कॉटेज के ऊपर था। या यूं भी कह सकते थे की कॉटेज अब गुफा बन गयी थी।

ऊपर शोधक बच्ची का सर तो नजर नहीं आ रहा था लेकिन खिड़की से उसका धर जरूर दिख रहा था। आर्यमणि के बहुत समझाने के बाद शोधक बच्ची चाहकीली और माटुका शेर का झुंड वहां से गया। 7 दिन पूरे हो गये थे और आर्यमणि पूरी विधि से पूजा करने के बाद अमेया के गले में पत्थर जारित छोटा एमुलेट धारण करवा रहा था। काफी अनूठा पल था... आमेया प्यारी सी मुस्कान के साथ पहली बार गले से प्यारा सा आवाज निकाली। जिसे सुनकर सब हंसते हुए उसे गोद में लेकर झूमने लगे...

कुछ दिन पूर्व

किसी सुदूर और वीरान टापू पर कुछ लोगों की मुलाकात हो रही थी। 8–10 लोग उन्हें घेरे खड़े थे और बीच में 5 लोग बैठे थे... मीटिंग निमेषदर्थ ने बुलवाई थी। विवियन एक औपचारिक परिचय देते हुये...

"निमेषदर्थ, ये हमारे समुदाय की सबसे शक्तिशाली स्त्री माया है। काफी दूर दूसरे ग्रह से आयी है। माया ये है राजकुमार निमेषदर्थ और उसकी बहन राजकुमारी हिमा। ये दोनो महासागर के राजा विजयदर्थ के प्रथम पुत्र और पुत्री है।”

“हमारे बीच दूसरी दुनिया की रानी मधुमक्खी रानी चींची बैठी हुई है। पिछले कुछ वक्त से ये भी हमारी तरह आर्यमणि का शिकर करना चाहती थी। उसके पैक को वेमपायर के साथ उलझाने की कोशिश भी की, लेकिन बात नहीं बनी। पृथ्वी पर हम सबकी एक मात्र बाधा आर्यमणि है, जिसके वजह से हम अपना साम्राज्य फैला नही पा रहे।

निमेषदर्थ:– हम्मम... लगता है उस आर्यमणि ने तुम सबको कुछ ज्यादा ही दर्द दिया है। ठीक है मैं तुम्हे आर्यमणि और उसके लोगों को मारने का मौका दूंगा।

रानी मधुमक्खी चिंची..... “उस आर्यमणि ने तुम्हारे साथ क्या किया, जो तुम उसे मारना चाहते हो?”

निमेषदर्थ:– वह मेरे साथ क्या करेगा, कुछ भी नही। मुझे तो बस उसकी शक्तियां चाहिए, जो उसके खून से मुझे मिल जायेगा। चूंकि मेरे पिता का हाथ आर्यमणि के सर पर है, इसलिए मैं या मेरे लोग उसे मार नही सकते, इसलिए तुम लोगों को बुलवाया है।

माया:– बिलकुल सही लोगों से संपर्क किया है। एक बार वो मेरे किरणों के घेरे में फंस गया, फिर मेरे पास वह हथियार भी आ गया है, जिस से आर्यमणि को उसका मंत्र शक्ति भी बचा नही सकती।

निमेषदर्थ, अपनी जगह से खड़ा होकर पूरे जोश के साथ..... “इस बार गलत जगह पर है आर्यमणि। तुम्हे यदि विश्वास है कि तुम्हारे गोल घेरे में फंसकर आर्यमणि निश्चित रूप से मरेगा, तो ऐसा ही होगा। वादा रहा”...

माया, निमेषदर्थ के आकर्षक बदन को घूरती..... “तुम बहुत आकर्षक हो राजकुमार.. साथ काम करने में मजा आयेगा”...

निमेषदर्थ:– तुम भी कमाल की दिखती हो माया। तुम्हारे पास जलपड़ी बनने जितनी सौंदर्य है।

माया:– ऐसी बात है क्या... फिर जब तुम राजा बनना तब मुझे अपनी रानी बनने का प्रस्ताव भेजना... अब जरा काम की बात हो जाये... तुम पूरा जाल बिछाकर आर्यमणि को जहां कहूंगी वहां ले आओगे, आगे का काम मेरा रहा।

निमेषदर्थ:– मैं जाल तो बिछा दूंगा लेकिन आर्यमणि जहां रहता है उस जगह पर मैं नही घुस सकता। उसका पूरा इलाका मंत्रो से बंधा है और बिना उसकी इजाजत मेरे पिताजी भी नही घुस सकते। ऐसे में रानी मधुमक्खी चिंची की जरूरत पड़ेगी। उस पर किसी भी प्रकार का मंत्र काम नही करेगा।

रानी चिंचि:– तुम योजना बनाओ निमेषदर्थ बाकी मैं कहीं भी घुस सकती हूं। ऊपर से अब मैं इस दुनिया के वातावरण के अनुकूल हो गयी हूं, अतः मुझे कहीं जाने के लिये किसी शरीर की भी आवश्यकता नहीं।

माया:– तो तय रहा की तुम दोनो मिलकर आर्यमणि को जाल में फसाओगे और मैं उसके प्राण निकाल लूंगी। लेकिन एक बात ध्यान रहे आर्यमणि मर गया तब वो मेरे किसी काम का नही। मुझे वो अनंत कीर्ति की किताब चाहिए..

निमेषदर्थ:– तुम मुझे आर्यमणि दे दो मैं तुम्हे वो किताब दे दूंगा..

मधुमक्खी रानी चिंची..... “आर्यमणि तो पहले से तुम्हारे इलाके में है। बस उसके प्राण ले लो। इसमें मैं तुम सबकी पूरी मदद करूंगी।

विजयदर्थ की प्रथम पुत्री हिमा..... “इस दूसरे ग्रह वाशी नायजो की दुश्मनी तो समझ में आती है। लेकिन रानी चिंचि आर्यमणि से तुम्हारी क्या दुश्मनी? तुम तो इनसे (नायजो) भी कहीं ज्यादा शक्तिशाली हो, फिर आर्यमणि को अब तक मार क्यों नही पायी?

मधुमक्खी रानी चिंचि:– समस्त ब्रह्माण्ड में इकलौता वो भेड़िया ही है जो मेरे मृत्यु का राज जनता है। उसे पता नही था कि मैं इस दुनिया में आ चुकी हूं। और मैं चाहती भी नही की उसे पता चले। यदि वो मेरे पीछे पड़ गया तो मेरी मौत निश्चित है।

माया:– आह आर्यमणि… ये चीज क्या है... इतना सुना इसके बारे में की मुझे ब्रह्मांड का एक हिस्सा लांघकर पृथ्वी आना पड़ा...

निमेषदर्थ:– ये उतना भी खास नही था, जिसकी वजह से तुम्हे इतनी दूर आना पड़ता... बस हम सबकी मुलाकात नही हुई थी, इसलिए ये अब तक जिंदा बचा है।

माया:– जब वो खास नही फिर तुम्हे हमारी क्या जरूरत.. तुम्हे उस आर्यमणि की क्या जरूरत...

निमेषदर्थ:– उसके ब्लड में कमाल की हीलिंग है। उसके क्ला में कमाल की शक्तियां है। मैं बस एक्सपेरिमेंट करके उसके ब्लड और क्ला को कृत्रिम रूप से बनाने की चाहत रखता हूं...

माया:– खैर, मुझे कोई मतलब नहीं की तुम्हे उस आर्यमणि से क्या चाहिए... मुझे बस एक बात जाननी जरूरी है... पहला वो अनंत कीर्ति की किताब मुझे कैसे मिलेगी... क्योंकि जैसा की हम सबको पता है... तुम्हारे लोग या कोई भी बिना इजाजत के उसके दायरे में नहीं घुस सकता.. और जबसे तुम्हारी सौतेली बहन महाति ने उस पर जानलेवा हमला किया, तबसे तो उसने अपने पूरे पैक को सुरक्षा मंत्र से बांध लिया है...

निमेषदर्थ:– “हर बीमारी का इलाज होता है। जहां के घेरे में हम नही जा सकते वहां रानी चिंचि और बाज जा सकता है। वो बाज उनके नवजात शिशु को उठा सकता है... उसके पीछे आर्यमणि और उसका पैक व्याकुल होकर मंत्र के सुरक्षित घेरे से बाहर आ सकता है।”

“व्याकुल होने की परिस्थिति में वो अपने शरीर का सुरक्षा घेरा बनाना भूल सकता है। यह भी हो सकता है कि जब वो लोग अपने कॉटेज के बाहर हो तो अनंत कीर्ति की किताब कोई बाज अपने पंजे में दबा ले... होने को तो बहुत कुछ हो सकता है।”...

माया:– फिर तुम दोनो (निमेषदर्थ और चिंची) को मेरी क्या जरूरत? निमेषदर्थ तुम्हारे लोग एक बार तो आर्यमणि को लगभग मार ही चुके थे। बस उसके साथियों ने बचा लिया। इस बार सबको समाप्त कर देना।

माया की बात सुनकर रानी मधुमक्खी चिंची हंसने लगी। हंसी तो निमेषदर्थ और उसकी बहन हिमा की भी निकल गयी। निमेषदर्थ अपनी हंसी रोकते.... “अब मैं समझ सकता हूं कि क्यों तुम नायजो इतने शक्तिशाली और सुदृढ़ होते हुये भी वुल्फ के एक पैक को समाप्त नहीं कर पाये। अक्ल की ही कमी है जो तुमलोग अपने दुश्मन को समझ नही सके और तुम्हारे हर हमले के बाद वो आर्यमणि तुम सबको और करीब से जानने लगा।”

“मीटिंग के शुरवात से ही पूरी योजना बता रहा हूं, तब भी अंत में आते–आते वही बेवकूफी वाला सवाल कि तुम्हारी क्या जरूरत है। जबकि 4 बार तो खुद गला फाड़कर बोल चुकी हो कि हम आर्यमणि को तुम्हारे गोल घेरे तक लेकर आये और आगे का काम तुम कर दोगी।”

“रानी चिंचि पहले ही बता चुकी थी कि आर्यमणि को पता नही की वह दूसरी दुनिया से इस दुनिया में आ चुकी है। ऊपर से उसका पैक। सब इतने सुनियोजित ढंग से काम करते है कि इनपर किया गया रैंडम हमला भी हमला करने वालों पर भारी पड़ जाते है। तभी तो रानी चिंचि खुद अकेले आर्यमणि से नही भिड़ सकती थी, इसलिए उसका मामला वेमपायर प्रजाति से फंसा दी।”

“रही बात मेरी, तो काश मैं आर्यमणि को मार सकता। ये बात कुछ देर पहले भी बताया था अब भी बता रहा हूं, आर्यमणि के सर पर मेरे पिता का हाथ है। मैं क्या जलीय कोई जीव तक उसे हाथ नही लगा सकता, सिवाय एक प्रजाति के जिसकी चर्चा नही हो तो ज्यादा बेहतर है। ऊपर से इस अलौकिक भेड़िए की शारीरिक बदलाव।”

“पहली बार जब महाती ने आर्यमणि को घायल किया, उसके बाद तो उसके पूरे पैक ने हमारे हर अंदुरिनी वार का इम्यून विकसित कर लिया। और ये इम्यून केवल एक बड़े से समुद्री जीव के इलाज से उन लोगों ने पा लिया। उसके बाद तो तुम सोच भी नही सकते की उन्होंने कितने प्रकार के समुद्री जीव का इलाज कर दिया। मुझे तो लगता है इन भेड़ियों के पास उस प्रजाति के विष का भी तोड़ होगा जो हमारी दुनिया के मालिक कहलाते है।”

“जैसे तुम नायजो वाले के नजरों वार को देखा और महसूस किया जा सकता है, उसके विपरीत हमारे नजरों के वार को महसूस तक नही कर सकते। मैने अपने सबसे काबिल सिपाहियों के समूह से एक साथ उसके पूरे पैक पर नजरों का हमला करवाया, लेकिन उन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ा। उल्टा उस आर्यमणि को मेरे पिताजी पर शक हो गया”...

माया:– अभी–अभी तो तुमने कहा था तुम्हारे नजरों के वार किसी को पता नही चलता...

निमेषदर्थ:– हां लेकिन भेड़िए का खून बता देता है कि उसके शरीर में टॉक्सिक गया है...

माया:– तो तुम्हे आर्यमणि जिंदा चाहिए या केवल उसका खून...

निमेषदर्थ:– ए पागल, केवल खून लेकर उसे जिंदा छोड़ दिया तो क्या वो हमे जिंदा छोड़ेगा? इस काम को हमे मिलकर अंजाम देना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा की आर्यमणि मारा गया। वरना वो यदि जिंदा बच गया तो अभी सिर्फ अल्फा पैक को हमने देखा है बाद में सात्विक आश्रम के अनुयाई के साथ वो लड़ने आयेगा। और विश्वास मानो आर्यमणि जैसे नायक के साथ जब सात्त्विक आश्रम के 100 अनुयाई भी खड़े हो तो जिसे मारने का सोचकर आये होंगे, उनकी मृत्यु अटल होगी

माया:– अब इतनी भी क्या समीक्षा करना। इस काम को हम तीनो मिलकर अंजाम देंगे और अपने–अपने लक्ष्य में कामयाब रहेंगे।

निमेषदर्थ:– फिर ये एहसान रहेगा तुम दोनो का... उसके खून का लाभ तुम सबको भी मिलेगा...

माया:– ये तो एक और अच्छी बात हो गयी। मैं आर्यमणि को मारने के लिये मैं बेचैन हो रही हूं। कब शुरू करना है..

निमेषदर्थ:– अभी आराम से यहीं रहते है... आइलैंड से सही वक्त की सूचना आ जाने दो... अभी तो आर्यमणि की बेटी के जन्म के कारण पूरा आइलैंड भरा हुआ है.. सबकी मौजूदगी में ये काम करने गये तो मेरे पिताजी से हम सबको भिड़ना पड़ जायेगा। इसलिए जोश को शांत रखो।

ये गिद्ध अपने शिकार पर शिकंजा कसने को तैयार थे, बस सही वक्त का इंतजार कर रहे थे। और इन सब से बेखबर, आर्यमणि और उसका पैक अपनी खुशियों में गुम था। सात दिन बाद अमेया पहली बार उस कॉटेज से बाहर आ रही थी। आर्यमणि अपने गोद में अपनी नन्ही गुड़िया को लिटाए जैसे ही बाहर आया... शेर माटुका और उसका पूरा झुंड दौड़कर घेर लिया…

आर्यमणि नीचे बैठकर अमेया को बीच में रखा। शेर का पूरा झुंड उसे देखकर दहाड़ लगा रहा था। अपने मुंह को अमेया के पास ले जाकर उसे प्यार से स्पर्श कर रहे थे। थोड़ी ही देर बाद विजयदर्थ भी अपने सभी लोगों के साथ पहुंचा... आते ही आमेया को अपनी गोद में उठाकर जैसे ही अपने सीने से लगाया, गहरी श्वास खींचते सुकून भरी स्वांस छोड़ा। आंख मूंदकर कुछ देर तक अपने सीने से लगाने के बाद विजयदर्थ ने गले से एक हार निकालकर अमेया को पहना दिया...

उसकी बेटी महाती आश्चर्य से अपने पिता को देखती... "ये तो दुर्लभ पत्थर वाली हार है न पिताजी... आपने इसे"..

विजयदर्थ, अमेया को महाती के हाथ में देते... "इसे सीने से लगाओ, फिर अपनी बात कहना”... जैसे ही महाती ने उसे सीने से लगाया, उसकी मुस्कान चेहरे पर फैल गयी। अपने पिता की तरह उसने भी अमेया को कुछ देर तक सीने से लगाये रखी। बाद में वह भी अपने गले का एक दुर्लभ हार निकालकर अमेया के गले में डाल दी”...

आर्यमणि:– अरे अमेया इतने सारे हार का क्या करेगी...

विजयदर्थ:– अमेया योग्य है इसलिए इसके गले में है... इसकी धड़कन कमाल की है। मैने कुछ पल में जो खुद में सुकून महसूस किया उसका वर्णन नही कर सकता। ऐसे सुकून पाने के लिये ना जाने हमारे पूर्वज कितने यज्ञ और हवन करवाते थे। मैने खुद कितने यज्ञ करवाए हैं।

अलबेली अजीब सा चेहरा बनाती... "यह कोई इतनी बड़ी वजह तो नही हुई की दुर्लभ पत्थर से लाद दे मेरी बच्ची को”...

महाती:– ये तुम्हारी नही बल्कि हम सबकी बच्ची है और अपने बच्ची को मैं कुछ भी दे सकती हूं। इसके लिये किसी वजह की जरूरत नहीं।

फिर तो जैसे हर जलीय मानव अमेया को गोद में उठाने को बेताब हो गये हो। आर्यमणि और रूही ने भी किसी को निराश नहीं किया। वहीं अलबेली और इवान बड़े–बड़े बॉक्स लाकर रख दिया... हर कोई उसी में अपना भेंट डाल देता...

सुबह से शाम हो गयी लेकिन अब भी बहुत से लोग लाइन लगाए खड़े थे... शाम ढलते ही आर्यमणि सबसे माफी मांगते सबके साथ पर्वत पर चल दिया... वहां सोधक बच्ची चहकीली महासागर के किनारे लेटी थी। मात्र उसका सिर पानी के बाहर था... आर्यमणि और रूही जोड़ से आवाज लगाए.… चाहकिली... चाहकिली…"

वो अपना मुंह दूसरी ओर घुमा ली। फिर माटुक शेर बाहर आया और रूही को धक्के मारने लगा.. रूही, अमेया को दोनो हथेली में थामकर ऊपर आकाश में की और माटुका ने तेज दहाड़ लगाया... माटुका की दहाड़ पर चहकिली अपना सिर वापस घुमाई और जैसे ही उसने अमेया को देखा... बिलकुल लहराती खुद को हवा में ऊपर उछाल ली। एक तो सकड़ों मीटर जितना लंबा शरीर ऊपर से वो हवा में 2–3 किलोमीटर ऊपर तक छलांग लगा दी।

खुशी ऐसी की संभाले नहीं संभल रहा था। चाहकीली उछलती चहकती अपना बड़ा सा सर ठीक अमेया के सामने ले आयी… जैसे कोई इंसान अपने सिर को हिलाकर बच्चे को हंसाने की कोशिश करता है ठीक वैसे ही चहकिली कर रही थी। तभी एक बार फिर अमेया की किलकारी सबने सुनी। चहकीली तो खुशी से एक बार फिर हवा में छलांग लगाकर छप से पानी ने गिड़ी।

चहकीली अपने छोटे 3–4 फिट के पंख को खोलती अपने सिर से इशारा करने लगी। किसी को समझ में नहीं आया। उसने एक बार फिर अपना सिर हिलाकर इशारा किया लेकिन किसी को कुछ समझ में ही नही आया। तब मटुका अपने सिर से चारो को धकेला... "अच्छा चाहकिली हम सबको अपने ऊपर बैठने कह रही है।"…

आर्यमणि, चहकिली की खुशी को देखते सवार हो गया। उसके साथ बाकी सब लोग भी सवार हो गये। जैसे ही वो लोग सवार हुये, चहकिली ने अपने पंख में सबको मानो लॉक कर दिया हो। रूही ने अमेया को चहकिली के ऊपर रख दी। इस वक्त जैसे कोई सांप सीधा रहता है चाहकिली भी ठीक वैसे ही थी। जैसे ही उसने अपने पंख पर अमेया को महसूस की अपना गर्दन मोड़कर पीछे करती बड़े प्यार से देखने लगी और पंख से उसे दुलार करने लगी।

आर्यमणि:– चहकिली अब चहकना मत वरना हमारा कचूमर बन जायेगा...

चहकिली बड़ा सा मुंह खोलकर हंसती हुई महासागर के ओर चल दी। रूही, इवान और अलबेली का तो कलेजा धक–धक करने लगा। आर्यमणि उन्हे हौसला देते बस शांत रहने का इशारा किया और ये गोता खाकर सभी पानी के अंदर... रूही पूरी तरह से परेशान होकर छटपटाने लगी। वह अपनी बच्ची को देखने लगी.… "तुमलोग कितना परेशान हो रहे... मेरी बहना को देखो कैसे हंस रही है।"…

रूही, अलबेली और इवान, यह आवाज सुनकर चौंक गये। उन्हे लग रहा था की उनका दम घुट जायेगा, लेकिन मुंह और नाक से घुसता हुआ पानी कान के पीछे से निकल रहा था और वहीं से श्वांस भी ले रहे थे। तीनो मुंह खोलकर कुछ बोलने की कोशिश कर रहे थे लेकिन किसी की आवाज नही निकल रही थी... "अरे शांत हो जाओ और आर्यमणि चाचू से पूछो कैसे बात करना है।"..
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
महासागर का पहला राजकुमार और राजकुमारी ने जाल बिछाना शुरू कर दिया है आर्य को मारने के लिए

कहावत हैं जब गीदड़ की मौत आती हैं तो शेर तरफ भागता है
यह मधुमक्खी रानी जब एक बार बचकर निकल गई आर्य के हाथ से तों फिर से मरने क्यूं आई
 

Sk.

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भाग:–158


कॉटेज के अंदर तो जैसे जश्न का माहोल था। उसी रात शेर माटुका और उसके झुंड को अमेया के जन्म का अनुभव हुआ हो जैसे... शोधक बच्ची, चाहकीली, जिसका इलाज आर्यमणि ने किया, उसको भी एहसास हुआ था... जंगल के और भी जानवर, जिन–जिन ने अमेया को गर्भ में स्पर्श किया था, सब को अमेया के जन्म का अनुभव हुआ था और सब के सब रात में ही अमेया से मिलने पहुंच गये।

बेजुबान जीव अपने आंखों से भावना व्यक्त कर रहे थे। वहीं शोधक बच्ची भी हवा में करतब दिखाते आर्यमणि के कॉटेज को ही पूरा कुंडली मारकर घेर चुकी थी और उसका विशाल सिर कॉटेज के ऊपर था। या यूं भी कह सकते थे की कॉटेज अब गुफा बन गयी थी।

ऊपर शोधक बच्ची का सर तो नजर नहीं आ रहा था लेकिन खिड़की से उसका धर जरूर दिख रहा था। आर्यमणि के बहुत समझाने के बाद शोधक बच्ची चाहकीली और माटुका शेर का झुंड वहां से गया। 7 दिन पूरे हो गये थे और आर्यमणि पूरी विधि से पूजा करने के बाद अमेया के गले में पत्थर जारित छोटा एमुलेट धारण करवा रहा था। काफी अनूठा पल था... आमेया प्यारी सी मुस्कान के साथ पहली बार गले से प्यारा सा आवाज निकाली। जिसे सुनकर सब हंसते हुए उसे गोद में लेकर झूमने लगे...

कुछ दिन पूर्व

किसी सुदूर और वीरान टापू पर कुछ लोगों की मुलाकात हो रही थी। 8–10 लोग उन्हें घेरे खड़े थे और बीच में 5 लोग बैठे थे... मीटिंग निमेषदर्थ ने बुलवाई थी। विवियन एक औपचारिक परिचय देते हुये...

"निमेषदर्थ, ये हमारे समुदाय की सबसे शक्तिशाली स्त्री माया है। काफी दूर दूसरे ग्रह से आयी है। माया ये है राजकुमार निमेषदर्थ और उसकी बहन राजकुमारी हिमा। ये दोनो महासागर के राजा विजयदर्थ के प्रथम पुत्र और पुत्री है।”

“हमारे बीच दूसरी दुनिया की रानी मधुमक्खी रानी चींची बैठी हुई है। पिछले कुछ वक्त से ये भी हमारी तरह आर्यमणि का शिकर करना चाहती थी। उसके पैक को वेमपायर के साथ उलझाने की कोशिश भी की, लेकिन बात नहीं बनी। पृथ्वी पर हम सबकी एक मात्र बाधा आर्यमणि है, जिसके वजह से हम अपना साम्राज्य फैला नही पा रहे।

निमेषदर्थ:– हम्मम... लगता है उस आर्यमणि ने तुम सबको कुछ ज्यादा ही दर्द दिया है। ठीक है मैं तुम्हे आर्यमणि और उसके लोगों को मारने का मौका दूंगा।

रानी मधुमक्खी चिंची..... “उस आर्यमणि ने तुम्हारे साथ क्या किया, जो तुम उसे मारना चाहते हो?”

निमेषदर्थ:– वह मेरे साथ क्या करेगा, कुछ भी नही। मुझे तो बस उसकी शक्तियां चाहिए, जो उसके खून से मुझे मिल जायेगा। चूंकि मेरे पिता का हाथ आर्यमणि के सर पर है, इसलिए मैं या मेरे लोग उसे मार नही सकते, इसलिए तुम लोगों को बुलवाया है।

माया:– बिलकुल सही लोगों से संपर्क किया है। एक बार वो मेरे किरणों के घेरे में फंस गया, फिर मेरे पास वह हथियार भी आ गया है, जिस से आर्यमणि को उसका मंत्र शक्ति भी बचा नही सकती।

निमेषदर्थ, अपनी जगह से खड़ा होकर पूरे जोश के साथ..... “इस बार गलत जगह पर है आर्यमणि। तुम्हे यदि विश्वास है कि तुम्हारे गोल घेरे में फंसकर आर्यमणि निश्चित रूप से मरेगा, तो ऐसा ही होगा। वादा रहा”...

माया, निमेषदर्थ के आकर्षक बदन को घूरती..... “तुम बहुत आकर्षक हो राजकुमार.. साथ काम करने में मजा आयेगा”...

निमेषदर्थ:– तुम भी कमाल की दिखती हो माया। तुम्हारे पास जलपड़ी बनने जितनी सौंदर्य है।

माया:– ऐसी बात है क्या... फिर जब तुम राजा बनना तब मुझे अपनी रानी बनने का प्रस्ताव भेजना... अब जरा काम की बात हो जाये... तुम पूरा जाल बिछाकर आर्यमणि को जहां कहूंगी वहां ले आओगे, आगे का काम मेरा रहा।

निमेषदर्थ:– मैं जाल तो बिछा दूंगा लेकिन आर्यमणि जहां रहता है उस जगह पर मैं नही घुस सकता। उसका पूरा इलाका मंत्रो से बंधा है और बिना उसकी इजाजत मेरे पिताजी भी नही घुस सकते। ऐसे में रानी मधुमक्खी चिंची की जरूरत पड़ेगी। उस पर किसी भी प्रकार का मंत्र काम नही करेगा।

रानी चिंचि:– तुम योजना बनाओ निमेषदर्थ बाकी मैं कहीं भी घुस सकती हूं। ऊपर से अब मैं इस दुनिया के वातावरण के अनुकूल हो गयी हूं, अतः मुझे कहीं जाने के लिये किसी शरीर की भी आवश्यकता नहीं।

माया:– तो तय रहा की तुम दोनो मिलकर आर्यमणि को जाल में फसाओगे और मैं उसके प्राण निकाल लूंगी। लेकिन एक बात ध्यान रहे आर्यमणि मर गया तब वो मेरे किसी काम का नही। मुझे वो अनंत कीर्ति की किताब चाहिए..

निमेषदर्थ:– तुम मुझे आर्यमणि दे दो मैं तुम्हे वो किताब दे दूंगा..

मधुमक्खी रानी चिंची..... “आर्यमणि तो पहले से तुम्हारे इलाके में है। बस उसके प्राण ले लो। इसमें मैं तुम सबकी पूरी मदद करूंगी।

विजयदर्थ की प्रथम पुत्री हिमा..... “इस दूसरे ग्रह वाशी नायजो की दुश्मनी तो समझ में आती है। लेकिन रानी चिंचि आर्यमणि से तुम्हारी क्या दुश्मनी? तुम तो इनसे (नायजो) भी कहीं ज्यादा शक्तिशाली हो, फिर आर्यमणि को अब तक मार क्यों नही पायी?

मधुमक्खी रानी चिंचि:– समस्त ब्रह्माण्ड में इकलौता वो भेड़िया ही है जो मेरे मृत्यु का राज जनता है। उसे पता नही था कि मैं इस दुनिया में आ चुकी हूं। और मैं चाहती भी नही की उसे पता चले। यदि वो मेरे पीछे पड़ गया तो मेरी मौत निश्चित है।

माया:– आह आर्यमणि… ये चीज क्या है... इतना सुना इसके बारे में की मुझे ब्रह्मांड का एक हिस्सा लांघकर पृथ्वी आना पड़ा...

निमेषदर्थ:– ये उतना भी खास नही था, जिसकी वजह से तुम्हे इतनी दूर आना पड़ता... बस हम सबकी मुलाकात नही हुई थी, इसलिए ये अब तक जिंदा बचा है।

माया:– जब वो खास नही फिर तुम्हे हमारी क्या जरूरत.. तुम्हे उस आर्यमणि की क्या जरूरत...

निमेषदर्थ:– उसके ब्लड में कमाल की हीलिंग है। उसके क्ला में कमाल की शक्तियां है। मैं बस एक्सपेरिमेंट करके उसके ब्लड और क्ला को कृत्रिम रूप से बनाने की चाहत रखता हूं...

माया:– खैर, मुझे कोई मतलब नहीं की तुम्हे उस आर्यमणि से क्या चाहिए... मुझे बस एक बात जाननी जरूरी है... पहला वो अनंत कीर्ति की किताब मुझे कैसे मिलेगी... क्योंकि जैसा की हम सबको पता है... तुम्हारे लोग या कोई भी बिना इजाजत के उसके दायरे में नहीं घुस सकता.. और जबसे तुम्हारी सौतेली बहन महाति ने उस पर जानलेवा हमला किया, तबसे तो उसने अपने पूरे पैक को सुरक्षा मंत्र से बांध लिया है...

निमेषदर्थ:– “हर बीमारी का इलाज होता है। जहां के घेरे में हम नही जा सकते वहां रानी चिंचि और बाज जा सकता है। वो बाज उनके नवजात शिशु को उठा सकता है... उसके पीछे आर्यमणि और उसका पैक व्याकुल होकर मंत्र के सुरक्षित घेरे से बाहर आ सकता है।”

“व्याकुल होने की परिस्थिति में वो अपने शरीर का सुरक्षा घेरा बनाना भूल सकता है। यह भी हो सकता है कि जब वो लोग अपने कॉटेज के बाहर हो तो अनंत कीर्ति की किताब कोई बाज अपने पंजे में दबा ले... होने को तो बहुत कुछ हो सकता है।”...

माया:– फिर तुम दोनो (निमेषदर्थ और चिंची) को मेरी क्या जरूरत? निमेषदर्थ तुम्हारे लोग एक बार तो आर्यमणि को लगभग मार ही चुके थे। बस उसके साथियों ने बचा लिया। इस बार सबको समाप्त कर देना।

माया की बात सुनकर रानी मधुमक्खी चिंची हंसने लगी। हंसी तो निमेषदर्थ और उसकी बहन हिमा की भी निकल गयी। निमेषदर्थ अपनी हंसी रोकते.... “अब मैं समझ सकता हूं कि क्यों तुम नायजो इतने शक्तिशाली और सुदृढ़ होते हुये भी वुल्फ के एक पैक को समाप्त नहीं कर पाये। अक्ल की ही कमी है जो तुमलोग अपने दुश्मन को समझ नही सके और तुम्हारे हर हमले के बाद वो आर्यमणि तुम सबको और करीब से जानने लगा।”

“मीटिंग के शुरवात से ही पूरी योजना बता रहा हूं, तब भी अंत में आते–आते वही बेवकूफी वाला सवाल कि तुम्हारी क्या जरूरत है। जबकि 4 बार तो खुद गला फाड़कर बोल चुकी हो कि हम आर्यमणि को तुम्हारे गोल घेरे तक लेकर आये और आगे का काम तुम कर दोगी।”

“रानी चिंचि पहले ही बता चुकी थी कि आर्यमणि को पता नही की वह दूसरी दुनिया से इस दुनिया में आ चुकी है। ऊपर से उसका पैक। सब इतने सुनियोजित ढंग से काम करते है कि इनपर किया गया रैंडम हमला भी हमला करने वालों पर भारी पड़ जाते है। तभी तो रानी चिंचि खुद अकेले आर्यमणि से नही भिड़ सकती थी, इसलिए उसका मामला वेमपायर प्रजाति से फंसा दी।”

“रही बात मेरी, तो काश मैं आर्यमणि को मार सकता। ये बात कुछ देर पहले भी बताया था अब भी बता रहा हूं, आर्यमणि के सर पर मेरे पिता का हाथ है। मैं क्या जलीय कोई जीव तक उसे हाथ नही लगा सकता, सिवाय एक प्रजाति के जिसकी चर्चा नही हो तो ज्यादा बेहतर है। ऊपर से इस अलौकिक भेड़िए की शारीरिक बदलाव।”

“पहली बार जब महाती ने आर्यमणि को घायल किया, उसके बाद तो उसके पूरे पैक ने हमारे हर अंदुरिनी वार का इम्यून विकसित कर लिया। और ये इम्यून केवल एक बड़े से समुद्री जीव के इलाज से उन लोगों ने पा लिया। उसके बाद तो तुम सोच भी नही सकते की उन्होंने कितने प्रकार के समुद्री जीव का इलाज कर दिया। मुझे तो लगता है इन भेड़ियों के पास उस प्रजाति के विष का भी तोड़ होगा जो हमारी दुनिया के मालिक कहलाते है।”

“जैसे तुम नायजो वाले के नजरों वार को देखा और महसूस किया जा सकता है, उसके विपरीत हमारे नजरों के वार को महसूस तक नही कर सकते। मैने अपने सबसे काबिल सिपाहियों के समूह से एक साथ उसके पूरे पैक पर नजरों का हमला करवाया, लेकिन उन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ा। उल्टा उस आर्यमणि को मेरे पिताजी पर शक हो गया”...

माया:– अभी–अभी तो तुमने कहा था तुम्हारे नजरों के वार किसी को पता नही चलता...

निमेषदर्थ:– हां लेकिन भेड़िए का खून बता देता है कि उसके शरीर में टॉक्सिक गया है...

माया:– तो तुम्हे आर्यमणि जिंदा चाहिए या केवल उसका खून...

निमेषदर्थ:– ए पागल, केवल खून लेकर उसे जिंदा छोड़ दिया तो क्या वो हमे जिंदा छोड़ेगा? इस काम को हमे मिलकर अंजाम देना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा की आर्यमणि मारा गया। वरना वो यदि जिंदा बच गया तो अभी सिर्फ अल्फा पैक को हमने देखा है बाद में सात्विक आश्रम के अनुयाई के साथ वो लड़ने आयेगा। और विश्वास मानो आर्यमणि जैसे नायक के साथ जब सात्त्विक आश्रम के 100 अनुयाई भी खड़े हो तो जिसे मारने का सोचकर आये होंगे, उनकी मृत्यु अटल होगी

माया:– अब इतनी भी क्या समीक्षा करना। इस काम को हम तीनो मिलकर अंजाम देंगे और अपने–अपने लक्ष्य में कामयाब रहेंगे।

निमेषदर्थ:– फिर ये एहसान रहेगा तुम दोनो का... उसके खून का लाभ तुम सबको भी मिलेगा...

माया:– ये तो एक और अच्छी बात हो गयी। मैं आर्यमणि को मारने के लिये मैं बेचैन हो रही हूं। कब शुरू करना है..

निमेषदर्थ:– अभी आराम से यहीं रहते है... आइलैंड से सही वक्त की सूचना आ जाने दो... अभी तो आर्यमणि की बेटी के जन्म के कारण पूरा आइलैंड भरा हुआ है.. सबकी मौजूदगी में ये काम करने गये तो मेरे पिताजी से हम सबको भिड़ना पड़ जायेगा। इसलिए जोश को शांत रखो।

ये गिद्ध अपने शिकार पर शिकंजा कसने को तैयार थे, बस सही वक्त का इंतजार कर रहे थे। और इन सब से बेखबर, आर्यमणि और उसका पैक अपनी खुशियों में गुम था। सात दिन बाद अमेया पहली बार उस कॉटेज से बाहर आ रही थी। आर्यमणि अपने गोद में अपनी नन्ही गुड़िया को लिटाए जैसे ही बाहर आया... शेर माटुका और उसका पूरा झुंड दौड़कर घेर लिया…

आर्यमणि नीचे बैठकर अमेया को बीच में रखा। शेर का पूरा झुंड उसे देखकर दहाड़ लगा रहा था। अपने मुंह को अमेया के पास ले जाकर उसे प्यार से स्पर्श कर रहे थे। थोड़ी ही देर बाद विजयदर्थ भी अपने सभी लोगों के साथ पहुंचा... आते ही आमेया को अपनी गोद में उठाकर जैसे ही अपने सीने से लगाया, गहरी श्वास खींचते सुकून भरी स्वांस छोड़ा। आंख मूंदकर कुछ देर तक अपने सीने से लगाने के बाद विजयदर्थ ने गले से एक हार निकालकर अमेया को पहना दिया...

उसकी बेटी महाती आश्चर्य से अपने पिता को देखती... "ये तो दुर्लभ पत्थर वाली हार है न पिताजी... आपने इसे"..

विजयदर्थ, अमेया को महाती के हाथ में देते... "इसे सीने से लगाओ, फिर अपनी बात कहना”... जैसे ही महाती ने उसे सीने से लगाया, उसकी मुस्कान चेहरे पर फैल गयी। अपने पिता की तरह उसने भी अमेया को कुछ देर तक सीने से लगाये रखी। बाद में वह भी अपने गले का एक दुर्लभ हार निकालकर अमेया के गले में डाल दी”...

आर्यमणि:– अरे अमेया इतने सारे हार का क्या करेगी...

विजयदर्थ:– अमेया योग्य है इसलिए इसके गले में है... इसकी धड़कन कमाल की है। मैने कुछ पल में जो खुद में सुकून महसूस किया उसका वर्णन नही कर सकता। ऐसे सुकून पाने के लिये ना जाने हमारे पूर्वज कितने यज्ञ और हवन करवाते थे। मैने खुद कितने यज्ञ करवाए हैं।

अलबेली अजीब सा चेहरा बनाती... "यह कोई इतनी बड़ी वजह तो नही हुई की दुर्लभ पत्थर से लाद दे मेरी बच्ची को”...

महाती:– ये तुम्हारी नही बल्कि हम सबकी बच्ची है और अपने बच्ची को मैं कुछ भी दे सकती हूं। इसके लिये किसी वजह की जरूरत नहीं।

फिर तो जैसे हर जलीय मानव अमेया को गोद में उठाने को बेताब हो गये हो। आर्यमणि और रूही ने भी किसी को निराश नहीं किया। वहीं अलबेली और इवान बड़े–बड़े बॉक्स लाकर रख दिया... हर कोई उसी में अपना भेंट डाल देता...

सुबह से शाम हो गयी लेकिन अब भी बहुत से लोग लाइन लगाए खड़े थे... शाम ढलते ही आर्यमणि सबसे माफी मांगते सबके साथ पर्वत पर चल दिया... वहां सोधक बच्ची चहकीली महासागर के किनारे लेटी थी। मात्र उसका सिर पानी के बाहर था... आर्यमणि और रूही जोड़ से आवाज लगाए.… चाहकिली... चाहकिली…"

वो अपना मुंह दूसरी ओर घुमा ली। फिर माटुक शेर बाहर आया और रूही को धक्के मारने लगा.. रूही, अमेया को दोनो हथेली में थामकर ऊपर आकाश में की और माटुका ने तेज दहाड़ लगाया... माटुका की दहाड़ पर चहकिली अपना सिर वापस घुमाई और जैसे ही उसने अमेया को देखा... बिलकुल लहराती खुद को हवा में ऊपर उछाल ली। एक तो सकड़ों मीटर जितना लंबा शरीर ऊपर से वो हवा में 2–3 किलोमीटर ऊपर तक छलांग लगा दी।

खुशी ऐसी की संभाले नहीं संभल रहा था। चाहकीली उछलती चहकती अपना बड़ा सा सर ठीक अमेया के सामने ले आयी… जैसे कोई इंसान अपने सिर को हिलाकर बच्चे को हंसाने की कोशिश करता है ठीक वैसे ही चहकिली कर रही थी। तभी एक बार फिर अमेया की किलकारी सबने सुनी। चहकीली तो खुशी से एक बार फिर हवा में छलांग लगाकर छप से पानी ने गिड़ी।

चहकीली अपने छोटे 3–4 फिट के पंख को खोलती अपने सिर से इशारा करने लगी। किसी को समझ में नहीं आया। उसने एक बार फिर अपना सिर हिलाकर इशारा किया लेकिन किसी को कुछ समझ में ही नही आया। तब मटुका अपने सिर से चारो को धकेला... "अच्छा चाहकिली हम सबको अपने ऊपर बैठने कह रही है।"…

आर्यमणि, चहकिली की खुशी को देखते सवार हो गया। उसके साथ बाकी सब लोग भी सवार हो गये। जैसे ही वो लोग सवार हुये, चहकिली ने अपने पंख में सबको मानो लॉक कर दिया हो। रूही ने अमेया को चहकिली के ऊपर रख दी। इस वक्त जैसे कोई सांप सीधा रहता है चाहकिली भी ठीक वैसे ही थी। जैसे ही उसने अपने पंख पर अमेया को महसूस की अपना गर्दन मोड़कर पीछे करती बड़े प्यार से देखने लगी और पंख से उसे दुलार करने लगी।

आर्यमणि:– चहकिली अब चहकना मत वरना हमारा कचूमर बन जायेगा...

चहकिली बड़ा सा मुंह खोलकर हंसती हुई महासागर के ओर चल दी। रूही, इवान और अलबेली का तो कलेजा धक–धक करने लगा। आर्यमणि उन्हे हौसला देते बस शांत रहने का इशारा किया और ये गोता खाकर सभी पानी के अंदर... रूही पूरी तरह से परेशान होकर छटपटाने लगी। वह अपनी बच्ची को देखने लगी.… "तुमलोग कितना परेशान हो रहे... मेरी बहना को देखो कैसे हंस रही है।"…

रूही, अलबेली और इवान, यह आवाज सुनकर चौंक गये। उन्हे लग रहा था की उनका दम घुट जायेगा, लेकिन मुंह और नाक से घुसता हुआ पानी कान के पीछे से निकल रहा था और वहीं से श्वांस भी ले रहे थे। तीनो मुंह खोलकर कुछ बोलने की कोशिश कर रहे थे लेकिन किसी की आवाज नही निकल रही थी... "अरे शांत हो जाओ और आर्यमणि चाचू से पूछो कैसे बात करना है।"..
प्रणाम भाऊ

मैं काफी दिनों से आप से यह सवाल करने वाला था कि
रानी मधुमक्खी चिंची ने किस के शरीर को अपना घर बनाया था
जब आर्यमणि और पैक, बॉब के साथ ओशुन को दो दुनिया के बीच से बचा रहे थे
तब मुझे लगा था कि वो रूही के शरीर को कब्ज़े मे ली होगी पर इस अनुच्छेद को पढ़ कर मेरी जिज्ञासा शांत हुई कि रानी मधुमक्खी ने अपना शिकार हमारे बॉब द बिल्डर को बनाया था 😂
उन्हीं के ज्ञान का उपयोग कर के रानी चिंची ने वेम्पायरो को आर्यमणि का दुश्मन बनाया

बाकी अमेया का आगमन बड़ा ही प्यारा और अलौकिक हैं

देखते ये चांडाल चौकड़ी क्या उखाड़ते हैं आर्यमणि और उसके परिवार का 😁
 
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