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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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भाग:–148


आर्यमणि वही मंत्र लगातार जाप करने लगा। धीरे–धीरे उसका रक्त संचार बढ़ता रहा। पहले अपने अंतर्मन में जोड़ जोड़ से कहने लगा, फिर जैसे आर्यमणि के होंठ खुलने लगे हो.. पहले धीमे बुदबुदाने जैसी आवाज। फिर तेज, और तेज और एक वक्त तो ऐसा आया की "अहम ब्रह्मास्मी" वहां के फिजाओं में चारो ओर गूंजने लगा।

नाक, कान और आंख के नीचे से कई लाख छोटे–छोटे परिजिवी निकल रहे थे। रूही अचेत अवस्था में वहीं रेत में पड़ी तड़प रही थी और इधर जबसे आर्यमणि की आवाज उन फिजाओं में गूंजी, फिर तो विवियन अपने 5 लोगों की टीम के साथ आर्यमणि के पास पहुंच चुका था।

आर्यमणि की आंखें खुल चुकी थी। शरीर अब सुचारू रूप से काम करने लगा था। विवियन बिना कुछ सोचे अपने आंखों से वो लेजर चलाने लगा। उसके साथ उसके साथी भी लगातार लेजर चला रहे थे। आर्यमणि अपने शरीर को पूरा ऊर्जावान बनाते, अपने बदन के पूरे सतह पर टॉक्सिक को रेंगने दिया। रूही को देखकर मन व्याकुल जरूर था, लेकिन दिमाग पूर्ण संतुलित। वायु विघ्न मंत्र का जाप शुरू हो चुका था। शरीर के सतह पर पूरा टॉक्सिक रेंग रहा था और पूरा शरीर ही अब आंख से निकलने वाले लेजर किरणों को सोख सकता था। आर्यमणि बलवानो की पूरी की पूरी टोली से उसका बल छीन चुका था।

विवियन के साथ पहले मात्र 5 एलियन लेजर से प्रहार कर रहे थे। 5 से फिर 25 हुये और 25 से 50। देखते ही देखते मारने का इरादा रखने वाले सभी 100 एलियन झुंड बनाकर एक अकेले आर्यमणि को मारने की कोशिश में जुट गये।

इसके पूर्व... रात में जब अलबेली और इवान अपने कास्टल पहुंचे तब खुशी के मारे उछल पड़े। उत्साह अपने पूरे चरम पर था और दोनो अपने वेडिंग नाइट की तैयारी देखकर काफी उत्साहित हो गये... रात के करीब 12.30 बज रहे होंगे। विवाहित जोड़ा अपने काम क्रीड़ा में लगा हुआ था, तभी उनके काम–लीला के बीच खलल पड़ गया। उसके कमरे का दरवाजा कोई जोड़, जोड़ से पिट रहा था।

अलबेली:– ऑफ ओ इवान, अंदर डालकर ऐसे रुको मत.… मजा किडकिड़ा हो जाता है...

इवान:– कोई दरवाजे पर है।

अलबेली:– मेरे जलते अरमान को आग न लगाओ और तेज–तेज धक्का लगाओ...

इवान कुछ कहता उस से पहले ही दरवाजा खुल गया। दोनो चादर खींचकर खुद को ढके। अलबेली पूरे तैश में आती.… "संन्यासी सर आपको देर रात मस्ती चढ़ी है क्या?"

संन्यासी शिवम्:– सबकी जान खतरे में है। कपड़े पहनो हम अभी निकल रहे हैं।

इवान:– ये क्या बकवास है... आप निकलो अभी इस कमरे से...

अलबेली:– इवान वो सबकी जान के बारे में बात कर रहे है...

इवान:– नही मुझे यकीन नही... ये ओजल का कोई प्रैंक है...

संन्यासी शिवम:– यहां से अभी चलो। एक पल गवाने का मतलब है, किसी अपने के जान का खतरा बढ़ गया...

इवान:– ठीक है पीछे घूम जाइए...

संन्यासी शिवम पीछे घूम गया। दोनो बिना वक्त गवाए सीधा अपने ऊपर कपड़े डाले। तीनो जैसे ही नीचे ग्राउंड फ्लोर पर पहुंचे सारा स्टाफ उन्हे घेरकर प्यार से पूछने लगा की वो कहां जा रहे थे? संन्यासी शिवम् शायद बातचीत में वक्त नहीं गवाना चाहता था। अपने सूट बूट वाले कपड़े के किनारे से वो 5 फिट का एक दंश निकाले। (दंश किसी जादूगर की छड़ी जैसी होती है जो नीचे से पतला और ऊपर से हल्का मोटा होता है)

संन्यासी शिवम् वह दंश निकालकर जैसे ही भूमि पर पटके, ऐसा लगा जैसे तेज विस्फोट हुआ हो और उन्हे घेरे खड़ा हर आदमी बिखर गया। "लगता है वाकई बड़ी मुसीबत आयी है। शिवम् सर पूरे फॉर्म में है।"… अलबेली साथ चलती हुई कहने लगी। तीनो बाहर निकले। बाहर गप अंधेरा। संन्यासी शिवम ने दंश को हिलाया, जिसके ऊपरी सिरे से रौशनी होने लगी।

थोड़ा वक्त लगा लेकिन जैसे ही सही दिशा मिली सभी पोर्ट होकर सीधा शादी वाले रिजॉर्ट पहुंचे। शादी वाले रिजॉर्ट तो पहुंच गये पर रिजॉर्ट में कोई नही था। संन्यासी शिवम् टेलीपैथी के जरिए ओजल और निशांत से संपर्क करने लगे।

संन्यासी शिवम्:– तुम दोनो कहां हो?

निशांत:– पूरा अंधेरा है। बता नही सकता कहां हूं। चारो ओर से हमले हो रहे है, और कोई भी होश में नही।

संन्यासी शिवम्:– ओजल कहां है?

निशांत:– वही इकलौती होश में है, और मोर्चा संभाले है। मुझे किसी तरह होश में रखी हुई है, वरना मेरा भ्रम जाल भी किसी काम का नही रहता।

संन्यासी शिवम्:– क्या संन्यासियों की टोली भी बेहोश है?

निशांत:– हां... आप जल्दी से आओ वरना मैं ज्यादा देर तक होश में नही रहने वाला। मैं बेहोश तो यहां का भ्रम जाल भी टूट गया समझो।

संन्यासी शिवम्:– सब बेहोश भी हो गये तो भी यहां कोई चिंता नहीं है। जर्मनी के जंगल मे हम इन्हे इतना डरा चुके थे, कि जबतक बड़े गुरुदेव (आर्यमणि) मरते नही, तब तक वो किसी को भी हाथ नही लगायेगा। तुम लोगों को तो केवल चारा बनाया जायेगा, असली निशाना तो गुरुदेव (आर्यमणि) ही होंगे। हौसला रखो हम जल्द ही पहुंच रहे हैं।

संन्यासी शिवम् मन में चले वार्तालाप को अलबेली और इवान से पूरा बताने के बाद..... “तुम दोनो उनकी गंध सूंघो और पता लगाओ कहां है।”...

एलियन थे तो प्रहरी समुदाय का ही हिस्सा। उन्हे गंध मिटाना बखूबी आता था। विवियन के साथ आया हर एलियन प्रथम श्रेणी का नायजो था। यानी की फर्स्ट लाइन सुपीरियर शिकारी से एक पायदान ऊपर। सभी 100 प्रथम श्रेणी के नायजो अपने साथ 5 फर्स्ट लाइन सुपीरियर शिकारी को लेकर चले थे। उन सभी 500 शिकारियों का काम था, आर्यमणि के दोस्त और परिवार को एक खास किस्म के कीड़ों का सेवन करवाकर, उन्हे अगवा कर लेना। ये वही कीड़ा था, जो आर्यमणि के केक में भी मिला था। जिसके शरीर में जाने के कारण आर्यमणि हील भी नही पा रहा था। देखने में वह कीड़ा किसी छोटे से कण जैसे दिखते, पर एक बार जब शरीर के अंदर पहुंच गये, फिर तो सामने वाला उन नायजो के इशारे का गुलाम। और गुलाम पूरे परिवार और दोस्तों को बनाना था ताकि आर्यमणि को घुटनों पर लाया जा सके।

सभी लोगों ने पेट भर–भर कर कीड़ों वाला खाना खाया था, सिवाय ओजल के। वह पिछले 8 दिन से किसी सिद्धि को साध रही थी, इसलिए आचार्य जी द्वारा जो झोले में फल मिला था, उसी पर कुल 10 दिन काटना था। जितना पानी आचार्य जी ने दिया, उतना ही पानी अगले 10 दिन तक पीना था। बस यही वजह थी कि ओजल होश में थी और जब एलियन दोस्त और परिवार के सभी लोगों को ले जाया जा रहा था, तब खुद को अदृश्य रखी हुई थी।

हालांकि संन्यासी शिवम् और निशांत की बात ओजल ने भी सुनी थी। पर थोड़ा भी ध्यान भटकाने का मतलब होता दुश्मन को मौका देना इसलिए वह चुप चाप पूरे माहोल पर ध्यान केंद्रित की हुई थी। वैसे इस रात का एक पक्ष और भी था, अलबेली, इवान और संन्यासी शिवम्। ये तीनों भी रेगिस्तान के किसी कास्टल में पहुंचे थे। वैसे तो तीनो को ही खाने खिलाने की जी तोड़ कोशिश की गयी, किंतु अलबेली और इवान इतने उतावले थे कि दोनो सीधा अपने सुहाग की सेज पर पलंग तोड़ सुगरात मनाने चले गये। फिर एक राउंड में ये कहां थकने वाले थे। संन्यासी शिवम जब दोनो के कमरे में दाखिल हुये, तब तीसरे राउंड के मध्य में थे।

वहीं संन्यासी शिवम देर रात भोजन करने बैठे थे। पहला निवाला मुंह के अंदर जाता उस से पहले ही ओजल, खतरे का गुप्त संदेश भेज चुकी थी। कुल मिलाकर तीनो ने कास्टल का कुछ भी नही खाया था। वहीं कास्टल में रुके नायजो की भिड़ को यह आदेश मिला था कि तीनो (इवान, अलबेली और संन्यासी शिवम) में से कोई भी किसी से संपर्क नही कर पाये।

कुल मिलाकर बात इतनी थी कि रात के 2 बजे तक 4 लोग होश में थे। ओजल जो की पूरे परिवार को सुरक्षित की हुई थी। अलबेली, इवान और संन्यासी शिवम उसके मदद के लिये पहुंच रहे थे। इवान और अलबेली ने महज 2 मिनट में पकड़ लिया की गंध को मिटा दिया गया है। संन्यासी शिवम थोड़े चिंतित हुये किंतु अलबेली और इवान उनकी चिंता मिटते हुये वह निशान ढूंढ निकाले जो ओजल पीछे छोड़ गयी थी।

ओजल निशान बनाती हुई सबका पीछा कर रही थी और उन्ही निशान के पीछे ये तीनों भी पहुंच गये। ये तीनों जैसे ही उस जगह पहुंचे, आग की ऊंची लपटें जल रही थी और 3 लोगों के चीखने की आवाज आ रही थी। उन्ही चीख के बीच ओजल भी दहाड़ी.... “क्यों बे चूहों किस बिल में छिप गये। कहां गयी तुम्हारी बादल, बिजली और आग की करामात। चलो अब बाहर आ भी जाओ। देखो तुम्हारे साथी कैसे तड़प रहे है।”...

इतने में ही ठीक अलबेली और इवान के 2 कदम आगे रेत में छिपा नायजो रेत से निकलकर हमला किया और फिर वापस रेत में। अलबेली और इवान के बीच आंखो के इशारे हुये और दोनो ने एक साथ रेत में अपना पंजा घुसाकर चिल्लाए..... “क्यों री झल्ली रेत में हाथ डालकर 10 किलोमीटर की जगह को ही जड़ों में क्यों न ढक दी।”

ओजल यूं तो जड़ों को फैलाना भूल गयी थी। फिर भी खुद को बचाती.... “चुप कर अलबेली। मैं कुछ नही भूली थी, बल्कि रेगिस्तान में उगने वाले पौधों की जड़ें मजबूत ही न थी।”...

अलबेली:– बहानेबाज कहीं की। खजूर की जड़ें मजबूत ना होती हैं? नागफणी की जड़ें मजबूत ना होती हैं। फिर मेरी जड़ों में ये 350 एलियन कैसे फंस गये?

इवान:– तुम दोनो बस भी करो। ना वक्त देखती ही न माहोल, केवल एक दूसरे से लड़ना है।

इवान की डांट खाकर दोनो शांत हुये जबकि झगड़े के दौरान ही सभी थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी को ये लोग पकड़ चुके थे। फिर तो इन सबको तबियत से ट्रीटमेंट दिया गया। पहले शरीर के हर हिस्से में मोटे कांटों का मजा लिये, उसके बाद जिस अग्नि को अपने हाथों से नियंत्रित करते थे, उसी में जलकर स्वाहा हो गये।

सुबह के लगभग 5 बज चुके थे। परिवार के जितने सदस्य और मित्र थे, सब के सब बेहोश पड़े थे। संन्यासी शिवम् उनकी हालत का जायजा ले रहे थे। इतने में ओजल, अलबेली और इवान तीनो ही सबको हील करने जा रहे थे।

संन्यासी शिवम्:– नही, कोई भी अपने खून में उस चीज का जहर मत उतारो जो इन सबके शरीर में है।

ओजल:– शिवम सर लेकिन हील नही करेंगे तो सब बेहोश पड़े रहेंगे। जहर का असर फैलता

संन्यासी शिवम्:– आचार्य जी से मेरी बात हो गयी है। जो इनके शरीर में डाला गया है, वो कोई जहर नही बल्कि एक विशेस प्रकार का जीव है। दिखने में ये किसी बालू के कण जितने छोटे होते है, लेकिन किसी सजीव शरीर में जाकर सक्रिय हो जाते है। एक बार यह सक्रिय हो गये फिर ये जब शरीर से बाहर निकलेंगे तभी मरेंगे, वरना किसी भी विधि से इस कीड़े के मूल स्वरूप को बदल नही सकते।

इवान:– फिर हम क्या करे?

संन्यासी शिवम्:– पूरे परिवार को इस्तांबुल एयरपोर्ट लेकर चलो। सबके टिकट बने हुये है। इस्तांबुल से सभी लॉस एंजिल्स जायेंगे। रास्ते में इनके अंदर के जीवों का भी इलाज हो जायेगा।

कुछ ही देर में सब गाड़ी पर सवार थे। संन्यासी शिवम टेलीपैथी के जरिए एक–एक करके सबके दिमाग में घुसे और “अहम ब्रह्मास्मी” का जाप करने लगे। सबने देखा कैसे एक–एक करके हर किसी के शरीर से करोड़ों की संख्या में कीड़े निकल रहे थे और बाहर निकलने के साथ ही कुछ देर रेंगकर मर जाते।

सुबह के लगभग 11 बजे तक सबको लेकर ये लोग सीधा इस्तांबुल के एयरपोर्ट पर पहुंचे, जहां लॉस एंजिल्स जाने वाली प्लेन पहले से रनवे पर खड़ी थी। पूरे परिवार के लोग जब पूर्णतः होश में आये तब खुद को एयरपोर्ट के पास देखकर चौंक गये। हर किसी को रात का खाना खाने के बाद सोना तो याद था पर एयरपोर्ट कैसे पहुंचे वह पूरी याद ही गायब। वैन में ही पूरा कौतूहल भरा माहोल हो गया।

बेचारा निशांत हर कोई उसी के कपड़े फाड़ रहा था जबकि वह भी उसी कीड़े का शिकर हुआ था, जिस कीड़े ने सबको अपने वश में कर रखा था। लागातार बढ़ते विवाद और समय की तंगी को देखते हुये संन्यासी शिवम् सबको म्यूट मोड पर डालते...... "ये सब आर्यमणि का सरप्राइज़ है। आप सब लॉस एंजिल्स पहुंचिए, आगे की बात आपको आर्यमणि ही बता देगा।"…

संन्यासी शिवम के कहने पर वो लोग शांत हुये। सभी लगभग सुबह के 11 बजे तक उड़ान भर चुके थे, सिवाय निशांत, ओजल, इवान और अलबेली के। जैसे ही सब वहां से चले गए.… "शिवम सर, जीजू और दीदी पर भी हमला हुआ होगा क्या?"… ओजल चिंता जताती हुई पूछी।

संन्यासी:– आर्यमणि आश्रम के गुरुदेव है। सामने खड़े होकर उनकी जान निकालना इतना आसान नहीं होगा। सबलोग वहां चलो जहां हमे कोई न देख सके।

साबलोग अगले 5 मिनट में आर्यमणि वाले कास्टल पहुंच गये। अगले 10 मिनट में ओजल, इवान और अलबेली ने पूरे कास्टल को छान मारे लेकिन वहां कोई नही था। इवान, संन्यासी का कॉलर पकड़ते... "कहां गए मेरे बॉस और दीदी... आपने तो कहा था कि बॉस आश्रम के गुरुदेव है। सामने से उन्हे हराना संभव नही...

ओजल:– हम यहां नही रुक सकते। हवाई गंध को महसूस करते उन तक जल्दी पहुंचते है...

संन्यासी शिवम्:– वहां पहुंचकर भी कोई फायदा नही होगा... हम रेगिस्तान के इतने बड़े खुले क्षेत्र को नहीं बांध सकते। तुम लोग कुछ वक्त दो...

इतना कहकर संन्यासी शिवम् वहीं नीचे बैठकर ध्यान लगाने लगे। वो जैसे ही ध्यान में गये, इवान और अलबेली उस जगह से निकलने की कोशिश करने लगे। लेकिन खुले दरवाजे के बीच जैसे कोई पारदर्शी दीवार लगी हो... "ये कौन सा जादू तुम लोगों ने किया है। यहां का रास्ता खोलो हमे रूही और दादा (आर्यमणि) को ढूंढने बाहर जाना है।"

निशांत:– यहां से कोई बाहर नही जायेगा। सुना नही संन्यासी शिवम् ने क्या कहा?

ओजल:– तुम दोनो खुद पर काबू रखो…

अलबेली:– काबू की मां की चू… दरवाजा खोलो या फिर मैं इस संन्यासी का सर खोल देती हूं।

सबके बीच गहमा गहमी वाला माहोल शुरू हो चुका था। इसी बीच संन्यासी शिवम का ध्यान टूटा... "ओजल, निशांत तुम दोनो से इतना हल्ला गुल्ला की उम्मीद नही थी। इवान और अलबेली को शांत करने के बदले लड़ रहे थे। तुम दोनो भी शांत हो जाओ। गुरुदेव (आर्यमणि) और रूही, दोनो यहीं आ रहे है। तुम लोग जल्दी से जाओ एक खाली बेड, चादर, गरम पानी, और वहीं किचन में नशे में इस्तमाल होने वाली कुछ सुखी पत्तियां होंगी उन्हें ले आओ। तुम दोनो (ओजल और निशांत) अपना झोला लेकर आये हो?

ओजल, और निशांत दोनो एक साथ... “हां शिवम सर”...

संन्यासी शिवम्:– ठीक है यहां छोड़कर जाओ...

चारो ही भाग–भाग कर सारा सामान वहीं नीचे ग्राउंड फ्लोर पर सजा चुके थे। जैसे ही उनका काम खत्म हुआ, सबकी नजर दरवाजे पर थी। बस चंद पल हुये होंगे, सबको आर्यमणि दूर से आते दिख गया। जैसे ही आर्यमणि दरवाजे तक आया, संन्यासी शिवम् ने अपना जाल खोल दिया। आर्यमणि अंदर और फिर से दरवाजा को बांध दिया।
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
 
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Main Ek anuman Laga sakta hun ki orja aur Nishchal Jis black hole Mein Kho Gaye the aur Samundra Mein Kisi prajati ke dwara Bandi banae gaye the Jahan per unhen aryamani mila tha Jisne Inki madad ki thi vahan Se Bachkar nikalne mein...

Vijaydarth Mujhe Vahi Banda lagta hai Jisne aryamani Nishchal aur orja ko Bandi Banaya hua tha Aryaman ko Bandi Banakar vah Apne logon ka ilaaj karvata tha...

Ye bus mera ek anuman hai.

Baki AMAYA k aane ki khusi sabhi logo ki thi.....par jo bhavnaye AARYA aue RUHI Ki thi wo shabado me bayan nahi kiya ja sakata...

Sandar bhai..
Aapke anuman bilkul sahi hai... Bus thoda sa badlav milega.... Baki dekhiye kahani to prastut ho hi rahi hai... Thanks CFL bro
 

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भाग:–149


इसके पूर्व आर्यमणि जैसे ही उन कीड़ों की कैद से आजाद हुआ सबसे पहला ख्याल रूही पर ही गया। अचेत अवस्था में वो बुरी तरह से कर्राह रही थी। विवियन और बाकी एलियन को तो यकीन तक नही हुआ की आर्यमणि के शरीर से कीड़े निकल चुके है। वो लोग झुंड बनाकर आर्यमणि पर हमला करने लगे, किंतु आर्यमणि के शरीर की हर कोशिका सक्रिय थी और किसी भी प्रकार के टॉक्सिक को खुद में समाने के लिये उतने ही सक्षम। बदन के जिस हिस्से पर लेजर की किरण और उन किरणों के साथ कितने भी भीषण प्रकोप क्यों नही बरसते, सब आर्यमणि के शरीर में गायब हो जाते।

विवियन और उसके सकड़ो साथी परेशान से हो गये। वहीं आर्यमणि रूही की हालत देखकर अंदर से रो रहा था। किसी तरह खुद पर काबू रखकर आर्यमणि ने आस–पास के माहोल को भांपा। उसपर लगातार एलियन के हमले हो रहे थे। सादिक यालविक और उसका बड़ा सा पैक आराम से वहीं बैठकर तमाशा देख रहा था। आर्यमणि पूरी समीक्षा करने के बाद तेज दौड़ने के लिये पोजिशन किया। किंतु जैसे ही 2 कदम आगे बढ़ाया वह तेज टकराकर नीचे रेत पर बिछ गया।

आर्यमणि को ध्यान न रहा की वह किरणों के एक घेरे में कैद था। किरणों का एक विचित्र गोल घेरा जिसे आर्यमणि पार ना कर सका। आर्यमणि हर संभव कोशिश कर लिया किंतु किरणों के उस गोल घेरे से बाहर नही निकल सका। विवियन और उसकी टीम भी जब लेजर की किरणों से आर्यमणि को मार न पाये, तब उन लोगों ने भी विश्राम लिया। वो सब भी आर्यमणि की नाकाम कोशिश देख रहे थे और हंस रहे थे।

विवियन:– क्या हुआ प्योर अल्फा, किरणों की जाल से निकल नही पा रहे?

आर्यमणि:– यदि निकल गया होता तो क्या तू मुझसे ऐसे बात कर रहा होता।

विवियन:– अकड़ नही गयी हां। आर्यमणि सर तो बड़े टसन वाले वेयरवोल्फ निकले भाई। सुनिए आर्यमणि सर यहां हमे कोई मारकर भी चला जाये, तो भी तुम उस घेरे को पार ना कर पाओगे। चलो अब तुम्हे मै एक और कमाल दिखाता हूं। दिखाता हूं कि कैसे हम घेरे में फसाकर अपने किसी भी शक्तिशाली दुश्मन को पहले निर्बल करते है, उसके बाद उसके प्राण निकालते हैं।

आर्यमणि:– फिर रुके क्यों हो? तुम अपना काम करो और मैं अपना...

आर्यमणि अपनी बात कहकर आसान लगाकर बैठ गया। वहीं विवियन ने गोल घेरे के चारो ओर छोटे–छोटे रॉड को गाड़ दिया, जिसके सर पर अलग–अलग तरह के पत्थर लगे हुये थे। गोल घेरे के चारो ओर रॉड लगाने के बाद विवियन पीछे हटा। देखते ही देखते रॉड पर लगे उन पत्थरों से रौशनी निकलने लगी जो आर्यमणि के सर से जाकर कनेक्ट हो गयी।

आर्यमणि ने वायु विघ्न मंत्र का जाप तो किया पर उन किरणों पर कुछ भी असर न हुआ। फिर आर्यमणि ने उन किरणों को किसी टॉक्सिक की तरह समझकर खुद में समाने लगा। जितनी तेजी से वह किरण आर्यमणि के शरीर में समाती, उतनी ही तेजी से उसके शरीर से काला धुवां निकल रहा था। यह काला धुवां कुछ और नहीं बल्कि आर्यमणि के शरीर में जमा टॉक्सिक था, जो बाहर निकल रहा था।

पहले काला धुवां बाहर निकला उसके बाद उजला धुवां। उजला धुवां आर्यमणि के शरीर का शुद्ध ऊर्जा था, जो शरीर से निकलकर हवा में विलीन हो रहा था। धीरे–धीरे उसकी शक्तियां हवा में विलीन होने लगी। आर्यमणि खुद में कमजोर, काफी कमजोर महसूस करने लगा। आसान लगाकर बैठा आर्यमणि कब रेत पर लुढ़का उसे खुद पता नही चला।

आर्यमणि के शरीर की ऊर्जा, उजली रौशनी बनकर लगातार निकल रही थी। वह पूर्ण रूपेण कमजोर पड़ चुका था। आंखें खुली थी और होश में था, इस से ज्यादा आर्यमणि के पास कुछ न बचा था। तभी वहां आर्यमणि के जोर–जोर से हंसने की आवाज गूंजने लगी। किसी तरह वह खुद में हिम्मत करके अट्टहास से परिपूर्ण हंसी हंस रहा था।

विवियन:– लगता है मृत्यु को करीब देख इसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया है।

आर्यमणि बिना कोई जवाब दिये हंसता ही रहा काफी देर तक सबने उसकी हंसी सुनी। जब बर्दास्त नही हुआ तब यालविक पैक का मुखिया सादिक यालविक चिल्लाते हुये पूछने लगा..... “क्यों बे ऐसे पागल की तरह क्यों हंस रहा है?”...

आर्यमणि:– अपने परिवार को धोखा दिया। नेरमिन से दुश्मनी भी हो ही जाना है, लेकिन जिस शक्ति के लिये तूने शिकारियों का साथ दिया, वो तुझे नही मिलेगी।

आर्यमणि इतना धीमे बोला की सबको कान लगाकर सुनना पड़ा। 3 बार में सबको उसकी बात समझ में आयी। आर्यमणि की बात पर विवियन ठहाके मारकर हंसते हुये..... “तुझे क्या लगता है हम अपनी बात पर कायम न रहेंगे। सादिक न सिर्फ तेरी शक्तियां लेगा बल्कि सरदार खान की तरह ही वह भी एक बीस्ट अल्फा बनेगा। बस थोड़ा वक्त और दे। अभी तेरी थोड़ी और अकड़ हवा होगी, फिर तू खुद भी देख लेगा, कैसे तेरी शक्तियां सादिक की होती है।”

आर्यमणि समझ चुका था कि विवियन खुद ये घेरा खोलने वाला है। पूरे मामले में सबसे अच्छी ये बात रही की किसी का भी ध्यान रूही पर नही गया। आर्यमणि ने सबका ध्यान अपनी ओर ही बनवाए रखा। वह कमजोर तो पड़ ही चुका था बस दिमाग को संतुलित रखे हुये था। आर्यमणि सोच चुका था कि घेरा खुलते ही उसे क्या करना है।

10 मिनट का और इंतजार करना पड़ा। आर्यमणि की जब आंखे बंद हो रही थी, ठीक उसी वक्त किरणों का वह घेरा खुला। किरणों का घेरा जैसे ही खुला, पंजे के एक इशारे मात्र से ही आर्यमणि ने सबको जड़ों में ढक दिया। आर्यमणि के अंदर इतनी जान नही बाकी थी कि वह खड़ा भी हो सके। यह बात आर्यमणि खुद भी समझता था, इसलिए सबकुछ जैसे पहले से ही सोच रखा हो।

सबको जड़ों में ढकने के बाद खुद को और रूही को भी जड़ों में ढका। कास्टल के रास्ते पर जड़ों की लंबी पटरी ही जैसे आर्यमणि ने बिछा रखी थी। जड़ें दोनो को आगे भी धकेल रही थी और उन्हे जरूरी पोषण भी दे रही थी। लगभग 3 किलोमीटर तक जड़ों पर खिसकने के बाद आर्यमणि के अंदर कुछ जान वापस आयी और वह रूही को उठाकर कैस्टल के ओर दौड़ लगा दिया।

आर्यमणि जैसे ही कास्टल के अंदर पहुंचा, इवान उसकी गोद से रूही को उठाकर सीधा बेड पर रखा। संन्यासी शिवम् भी उतनी ही तेजी से अपना काम करने लगे। और इधर आर्यमणि, जैसे ही उसकी नजर अपने लोगों पर पड़ी... वो घुटनो पर आ गया और फूट–फूट कर रोने लगा। ओजल नीचे बैठकर, अपने दोनो हाथ से आर्यमणि के आंसू पूछती... "बॉस, दीदी को कुछ नही हुआ है... उसका इलाज चल रहा है।"…

"सब मेरी गलती है... सब मेरी गलती है... मुझे इतने लोगों से दुश्मनी करनी ही नही चाहिए थी"… आर्यमणि विलाप करते हुये बड़बड़ाने लगा।

ओजल:– संभालो बॉस, खुद को संभालो...

आर्यमणि:– रूही.. कहां है... कहां है रूही"…

ओजल:– यहीं पास में है।

आर्यमणि:– हटो मुझे उसे हील करना है... सब पीछे हटो..

तभी संन्यासी शिवम पीछे मुड़े और दंश को भूमि पर पटकते... "अशांत मन केवल तबाही लाता है। अभी रूही का जिस्म हील करेंगे तो हमेशा के लिये 10 छेद उसके बदन में रह जाएंगे। खुद को शांत करो"…

संन्यासी शिवम की बात सुनने के बाद आर्यमणि पूरा हताश हो गया। वहीं जमीन पर बैठकर रूही, रूही बड़बड़ाने लगा। दूसरी ओर जड़ों में फसे एलियन ने पहले खुद को जड़ों से आजाद किया, बाद में सादिक यालक और उसके पूरे पैक को। कुछ ही देर में कास्टल के दरवाजे पर पूरी फौज खड़ी थी। फौज लगातार अंदर घुसने का प्रयास कर रही थी, लेकिन दरवाजे के 10 कदम आगे ही हवा में जैसे किसी ने दीवार बना दिया हो। सभी दरवाजे से 10 कदम की दूरी पर खड़े थे।

संन्यासी शिवम्:– गुरुदेव दुश्मन द्वार खड़े है। मैं रूही को देखता हूं, आपलोग उन बाहर वाले दुश्मनों को देखिए।

आर्यमणि:– हां सही कह रहे आप।

संन्यासी शिवम्:– ओजल अपने दंश से सामने की सुरक्षा दीवार गिरा दो।

कास्टल के ग्राउंड फ्लोर पर संन्यासी शिवम, रूही का इलाज शुरू कर चुके थे। पूरी अल्फा पैक कास्टल के दरवाजे से बाहर कतार लगाये खड़ी थी। उधर से विवियन चिल्लाया.... “तुम लोग बहुत टेढ़ी जान हो... तुम्हारी दुर्दशा हो गयी फिर भी बच गये। तुम्हारी बाजारू पत्नी के शरीर में इतने छेद हुये, लेकिन लेजर के साथ–साथ उसके भीषण जहर से भी बच गयी। कमाल ही कर दिया। अच्छा हुआ जो तुम और तुम्हारे लोग कतार लगाकर अपनी मौत के लिये पहले ही सामने आ गये।”

इवान कुछ तो कहना चाह रहा था किंतु आर्यमणि ने इशारे में बस चुप रहने के लिये कहा। उधर निशांत इशारे में सबको समझा चुका था कि आस पास का दायरा पूरे भ्रम जाल में घिरा हुआ है। तभी एक बड़े विस्फोट के साथ बाहर की अदृश्य दीवार टूट गयी। जब रेत और धूल छंटा तब वहां इकलौत आर्यमणि अपना पाऊं जमाए खड़ा था। बाकी अल्फा पैक सदस्य पर विस्फोट का ऐसा असर हुआ की वो लोग कई फिट पीछे जाकर कास्टल की दीवार से टकराये। दरअसल मंत्र उच्चारण के बाद ओजल द्वारा कल्पवृक्ष दंश को संतुलित रूप से भूमि पर पटकना था, किंतु ओजल से थोड़ी सी चूक हो गयी और दीवार गिराने वाले विस्फोट का असर न सिर्फ विपक्षी को हुआ बल्कि आंशिक रूप से अल्फा पैक पर भी पड़ा।

असर तो आर्यमणि पर भी होता लेकिन विस्फोट के ठीक पहले आर्यमणि के हाथ में उसका एम्यूलेट पहुंच चुका था। बाकी के अल्फा पैक अपना धूल झाड़ते खड़े हुये। सबसे ज्यादा गुस्सा निशांत को ही आया। गुस्से में झुंझलाते हुये..... “तुम (ओजल) कभी भी नही सिख सकती क्या? विस्फोट का असर खुद के खेमे पर भी कर दी।”..

ओजल:– निशांत सर अभी सिख ही रही हूं। किसी वक्त आप भी कच्चे होंगे...

निशांत:– कच्चा था लेकिन अपनी बेवकूफी से अपने लोगों के परखच्चे नही उड़ाता था। पागल कहीं की...

इवान:– अरे वाह एमुलेट वापस आ गया।

दरअसल एक–एक करके सबके एमुलेट लौट आये थे। हवा में बिखरे रेत जब आंखों के आगे से हटा, दृष्टि पूरी साफ हो चुकी थी। विपक्ष दुश्मनों के आगे की कतार तो जैसे गायब हो चुकी थी, लेकिन बाकी बचे लोग हमला बोल चुके थे। बेचारे एलियन और यालवीक की सेना अपनी मौत को मारने की कोशिश में जुटे थे।

इनकी कोशिश तो एक कदम आगे की थी। जिस जगह अल्फा पैक खड़ी थी उसके आस पास की जगह पर गोल–गोल घेरे बन रहे थे। गोला इतना बड़ा था कि उसमे आराम से 4–5 लोग घिर जाये। हर कोई जमीन पर किरणों के बने गोल घेरे साफ देख सकते थे। एक प्रकार का एलियन महा जाल था, जिसमे अल्फा पैक को फसाकर मारने की कोशिश की जा रही थी।

किंतु निशांत के भ्रम जाल में पूरे एलियन उलझ कर रह गये। विवियन को भी समझ में आ गया की उनका पाला किस से पड़ा है। किरणों के गोल जाल में जब अल्फा पैक नही फंसा तब विवियन ने टर्की के स्थानीय वेयरवोल्फ को इशारा किया। वुल्फ पैक का मुखिया सादिक यालविक, इशारा मिलते ही आर्यमणि पर हमला करने के लिये कूद गया।

सादिक याल्विक लंबी दहाड़ लगाकर सीधा आर्यमणि के ऊपर छलांग लगा चुका था। किंतु भ्रम जाल के कारण सादिक यालविक को लग रहा था कि वह आर्यमणि के ऊपर कूद रहा है और आर्यमणि साफ देख सकता था कि सादिक ने एक हाथ बाएं छलांग लगाया था। आर्यमणि ने पंजा झटक कर अपने क्ला को बाहर निकाला और जैसे ही सादिक याल्विक उसके हाथ के रेंज में आया फिर तो आर्यमणि ने अपना पंजा सीधा सादिक यालविक के सीने में घुसेड़ कर उसे हवा में ही टांग दिया। पूरा यालविक पैक ही दर्द भरी दहाड़ लगाते आर्यमणि के ऊपर हमला कर चुका था।

अल्फा पैक जो पीछे खड़ी थी, वह बिना वक्त गवाए तेज दौड़ लगा चुके थे। एमुलेट के पावर स्टोन ने फिर तो सबको ऐसा गतिमान किया की सभी कुछ दूर के दौड़ने के बाद जब छलांग लगाये, फिर तो हवा में कई फिट ऊंचा उठे और सीधा जाकर वुल्फ के भिड़ में गिरे। ओजल अपना कल्पवृक्ष दंश जब चलाना शुरू की फिर तो सभी वुल्फ ऐसे कट रहे थे, मानो गाजर मूली कटना शुरू हो चुके हो।

अलबेली और इवान तो पंजों से सबको ऐसे फाड़ रहे थे कि उसे देखकर यालविक पैक के दूसरे वुल्फ स्थूल पड़ जाते। भय से हृदय में ऐसा कंपन पैदा होता की डर से अपना मल–मूत्र त्याग कर देते। महज 5 मिनट में ही यालविक पैक को चिड़ने के बाद सभी एक साथ गरजते..... “बॉस यालविक पैक साफ हो गया। बेचारा सादिक आपके पंजों पर टंगा अकेला जिंदा रह बचा है।”...

“फिर ये अकेला वुल्फ बिना अपने पैक के करेगा क्या?”.... कहते हुये आर्यमणि ने अपना दूसरा पंजा सीधा उसके गर्दन में घुसाया और ऊपर के ओर खींचकर ऐसे फाड़ा जैसे किसी कपड़े में पंजे फंसाकर फाड़ते हो। पूरा चेहरा आड़ा तिरछा होते हुये फटा। सादिक यालविक का पार्थिव शरीर वहीं रेत पर फेंककर आर्यमणि चिल्लाया..... “ये हरमजादे एलियन अब तब अपने पाऊं पर क्यों है? वायु विघ्न मंत्र के साथ आगे बढ़ो और अपने क्ला से सबके बदन को चीड़ फाड़ दो। जलने का सुख तो बहुत से एलियन ने प्राप्त किया है, आज इन्हे दिखा दो की हम फाड़ते कैसे है। याद रहे इनके शरीर में एसिड दौड़ता है, इसलिए जब तुम इन्हें फाड़ो तो तुम्हारे पंजों में एसिड को भी जो गला दे, ऐसा टॉक्सिक दौड़ना चाहिए। चलो–चलो जल्दी करो, मेरे कानो में चीख की आवाज नही आ रही।”....

इवान अपनी तेज दहाड़ के साथ एलियन के ओर दौड़ते..... “बॉस बस एक मिनट में यहां का माहौल चींख और पुकार वाली होगी। और उसके अगले 5 मिनट में पूरा माहौल शांत।”...

अलबेली भी इवान के साथ दौड़ती..... “क्या बात है मेरे पतिदेव। आई लव यू”...

इवान एक पल रुककर अलबेली को झपट्टा मारकर चूमा और उसके अगले ही पल लंबी छलांग लगाकर धम्म से सीधा एलियन के बीच कूदा। इवान के पीछे अलबेली भी कुद चुकी थी। और उन दोनो के पीछे ओजल। इवान और अलबेली जबतक एक को चीड़–फाड़ रहे थे, तब तक ओजल अपने दंश को लहराकर जब शांत हुई चारो ओर कटे सर हवा में थे।

ओजल एक भीड़ को शांत कर दूसरे भिड़ को काटने निकल गयी। न तो क्ला निकला न ही फेंग। न ही एलियन के लेजर असर किये ना ही फसाने वाले गोल किरणे। बस ओजल का कल्पवृक्ष दंश था और चींख के साथ हवा में उड़ते धर से अलग सर। जबतक इवान और अलबेली दूसरी भिड़ तक पहुंचते तब तक ओजल दूसरी भिड़ काटकर तीसरी भिड़ के ओर प्रस्थान कर चुकी थी। पूर्ण रौद्र रूप में ओजल जैसे भद्र काली का रूप ले चुकी थी।

तीसरे भिड़ की ओर आगे बढ़ने के बजाय इवान और अलबेली वापस आकर निशांत के पास खड़े हो गये और चिल्लाते हुये बस ओजल को प्रोत्साहन दे रहे थे। एक बार जब ओजल शुरू हुई फिर तो महज 5 मिनट में एलियन को तादाद मात्र 1 बची थी। वो भी विवियन जीवित इसलिए बचा क्योंकि बदले मौहौल को देखकर वह सब छोड़ कर भाग रहा था।

ओजल भी उसे मारने के लिये दौड़ी ही थी कि इतने में पुलिस सायरन सुनकर वह रुक गयी। टर्की की स्थानीय पुलिस पहुंच चुकी थी। पुलिस को बुलाने में भी विवियन का ही हाथ था। आर्यमणि ने महज इशारे किये और पल भर में ही निशांत समझ चुका था कि क्या करना है। पुलिस आयी और गयी इस बीच में निशांत ने उसे वही दिखाया जिस से पुलिस जल्दी चली जाये। मौहौल जब शांत हुआ तब हर किसी में एक ही रोष था, विवियन जिंदा भाग गया।
बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
 
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nain11ster

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बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई

बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई
ओजल इवान पलक महारानी की कैद में हैं

आर्य को लगता हैं शक हो गया ओजल इवान पर
इसलिए गोलमाल कर दिया
सीधा डेमो की बात की हैं

बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई

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बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई

बहुत ही शानदार लाजवाब अपडेट भाई

Thanks a lot Zoro bhai
 
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nain11ster

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दिखे नहीं लिखे हम तो प्रतिदिन ही अपडेट के इंतजार में रहते हैं , इसलिए कहीं जा ही नहीं सकते
156-157 बहुत ही शानदार
कल गोली मत मार जाना
Mai goli nahi Marta tab Tak jabtak ki jaroori kaam na ho Froog bhai... Jindgi bhi to hai ...

Ab bhi bahar hi hun
 
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