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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

Prime
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Ammu775

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भाग:–२



एसीपी और डीएम, दोनो ही अधिकारी लगभग 4 साल से यहां कार्यरत थे। इससे पहले दोनो एक साथ सिक्किम के अन्य इलाकों में भी थे। राकेश नाईक तब से केशव कुलकर्णी के पीछे था जब से वो एसपी था। 6 महीने के अंतर में दोनो का तबादला लगभग एक ही जगह पर हो जाता था। हां लेकिन एक बात जो जग जाहिर थी, कुलकर्णी जी की कभी भी नाईक के साथ नहीं बनी, जबकि उन दोनों को छोड़कर पूरे परिवार में बनती थी।


आर्यमणि और निशांत दोनो लगभग एक ही उम्र के थे और बचपन के साथी। ट्रांसफर और सुदूर इलाकों में जाने की वजह से दोनो दोस्तो के पढ़ाई पर थोड़ा असर तो पड़ा था, लेकिन घर के माहौल के कारण दोनो ही लड़के पढ़ाई में अच्छे थे। आर्यमणि जैसे ही साइकिल लगाकर अपने घर में घुसने लगा, उसकी मां जया कुलकर्णी दरवाजे पर ही उसका रास्ता रोके… "फिर आज जंगल के रास्ते वापस आए?"..


आर्यमणि, छोटी सी मुस्कान अपने चेहरे पर लाते… "सही समय पर पहुंच गए इसलिए जान बच गई।"..


जया:- और मेरी जान अटक गई। कितनी बार बोली हूं कि मत ऐसे किया कर। पुलिस है, प्रशाशन है, इतने सारे लोग है, लेकिन तू है कि जबतक अपने पापा की डांट ना सुन ले, तबतक तेरा खाना नहीं पचता। मै तुझसे कुछ कह रही हूं आर्य। हद है जब कुछ कहो तो कमरे में जाकर पैक हो जाता है।


आर्यमणि अपनी मां की बात को सुनते-सुनते अपने कमरे में पहुंच गया था और आराम से दरवाजा लगा लिया। रात के वक़्त वो जैसे ही सबके साथ खाने के लिए बैठा…. "मै कल ही तुम्हे नागपुर भेज रहा हूं।".. केशव पहला निवाला लेते हुए आर्यमणि से कहा…


जया:- अभी तो 11th में गया है। हमने 12th के बाद इंजीनियरिंग के लिए प्लान किया था...


केशव:- नहीं अब वहीं पढ़ेगा। इंजिनियरिंग में एडमिशन हुआ तो ठीक, वरना नागपुर से डिग्री कंप्लीट करके अपनी आगे की जिंदगी देखेगा। और ये फाइनल है। सुना तुमने आर्य।


आर्यमणि:- 12th तक इंतजार कर लीजिए पापा, फिर नागपुर में ही एडमिशन लूंगा।


केशव:- क्यों अभी जाने में क्या हर्ज है?


आर्यमणि:- मै पहले 12th तो कर लूं...


केशव:- हां तो कल से तुम कार से जाओगे और कार से आओगे।


आर्यमणि:- पापा आप ओवर रिएक्ट कर रहे है। इस बारे में हम पहले भी बात कर चुके है।


आर्यमणि अपनी बात कहकर खाने लगा और केशव गुस्से में लगातार बोले जा रहा था। उसे शांत करवाने के चक्कर में बेचारी जया पति और बेटे के बीच में पिसती जा रही थी। आर्यमणि अपनी छोटी सी बात समाप्त कर आराम से खाकर अपने कमरे में चला गया।


रात के तकरीबन 12 बजे आर्यमणि के खिकड़ी पर दस्तक हुआ। आर्यमणि अपना पीछे का दरवाजा खोला और निशांत अंदर…. "यार उस वक़्त तूने सस्पेंस में ही छोड़ दिया। बता ना क्या तूने सच में वहां शूहोत्र को देखा।".. आर्यमणि ने हां में सर हिलाकर उसे जवाब दिया।


निशांत:- सुन, कल सीएम ने एक छोटी सी पार्टी रखी है। लगता है शूहोत्र लोपचे उसी उसी पार्टी के लिए आया हो। कुछ दिन पहले आकर अपना पैतृक घर देखने चला गया हो, जहां कभी उसका बचपन बीता था।


आर्यमणि:- नहीं, उसकी आखें अजीब थी। वहां ताज़ा खुदाई हुई थी। वो 6 साल बाद जर्मनी से यहां क्या करने आया होगा?


निशांत:- मैत्री को फोन क्यों नहीं लगा लेता?


आर्यमणि:- कुछ तो अजीब है निशांत, मैत्री 6 महीने से कोई मेल नहीं की। जबकि आखरी बार जब उससे बात हुई थी तब वो अपने इंडिया आने के बारे में बता रही थी। वो तो नहीं आयी लेकिन शूहोत्र आ गया। कल सब सीएम की पार्टी में जाएंगे ना?


निशांत:- तू कहीं जंगल जाने के बारे में तो नहीं सोच रहा।


आर्यमणि:- हां ..


निशांत:- वो सब तो ठीक है लेकिन मेरी पागल दीदी का क्या करेंगे, वो तो कल घर पर ही रहेगी। मेरा बाप तो आज ही मुझे कालापानी भेजने वाला था, मम्मी और क्लासेज ने बचा लिया। कल कहीं मेरी दीदी को भनक भी लगी और मेरे बाप से जाकर चुगली कर दी, फिर तो अपना यहां से टिकट कट जाएगा।


आर्यमणि:- मैं शाम 7 बजे निकल जाऊंगा। साथ आना हो तो मुझे जंगल के रास्ते पर 7 बजे मिल जाना। चित्रा को वैसे बेहोश भी कर सकते हो।


निशांत:- कल लगता है तूने सुली पर चढाने का इंतजाम कर दिया है। अच्छा सुन उस दिव्या मैडम से मेहनताना नहीं लिया यार। कल दिन मे उसके होटल से भी हो आते है।


आर्यमणि:- हम्मम !


निशांत:- मै जा रहा हूं, सुबह मिलता हूं।


निशांत और चित्रा 2 मिनट के छोटे बड़े, और दोनो ही एक दूसरे से झगड़ते रहते। बस इन दोनों के शांत रहने की कड़ी आर्यमणि था, क्योंकि आर्यमणि दोनो का ही खास दोस्त था। अगली सुबह चित्रा सीधा आर्यमणि से मिलने पहुंची। हॉल में उसे ना देखकर सीधा उसके कमरे में घुस गई। आर्यमणि अपने बिस्तर पर लेटा फिजिक्स की किताब को खोले हुए था। चित्रा गुस्से में तमतमाती... "कल के तुम्हारे कारनामे की वीडियो देखी, तुम्हे जारा भी अक्ल है कि नहीं।"..


आर्यमणि:- सॉरी चित्रा, जरा सी देरी होती तो उस लेडी की जान चली गई होती...


चित्रा:- दोनो क्यों जंगल से आते हो? घर के लोग इतना मना करते हैं फिर भी नहीं सुनते?


आर्यमणि:- तुम कल रात छिपकर हमारी बातें सुन रही थी?


चित्रा:- हां सुनी भी और शख्त हिदायत भी दे रही हूं... आज जंगल मत जाना। देखो आर्य, अगर आज तुमने वहां जाने की सोची भी तो मै तुमसे कभी बात नही करूंगी।


आर्यमणि:- ज्यादा स्ट्रेस ना लो। मैंने मन बना लिया है और मै जाऊंगा ही।


चित्रा:- पागलपन की हद है ये तो, आज पूर्णिमा है और तुम जानते हो आज की रात लोमड़ी कितनी आक्रमक होती है।


आर्यमणि:- हां मै जानता हूं और उसकी पूरी तैयारी मैंने कर रखी है। अब तुम जाओ यहां से और मुझे परेशान नहीं करो।


चित्रा:- ठीक है फिर ऐसी बात है तो मै तुम्हारे आज जंगल जाने की बात सबको बता ही देती हूं।


आर्यमणि:- ठीक है नहीं जाऊंगा। अब जाओ यहां से।


चित्रा:- मुझे भरोसा नहीं, खाओ मेरी कसम।


आर्यमणि:- आज शाम 7 बजे मै तुम्हारे पास रहूंगा। खुश.. अब जाओ यहां से।


चित्रा, बाहर निकलती… "मै इंतजार करूंगी तुम्हारा आर्य।"..


सुबह के लगभग 11 बजे। दिन की हल्की खिली धूप में दोनो दोस्त अपने साइकिल उठाए, शहर के सड़कों से होते हुए होटल पहुंच गए, जहां दिव्या अपने हसबैंड के साथ ट्रिप पर आयी थी। कमरे की बेल बजी और दरवाजा खुलते ही... दिव्या उन दोनों को देखकर पहचान गई… "तुम वही हो ना जिसने कल मेरी जान बचाई थी।"…. दिव्या दोनो को अंदर लेती हुई दरवाजा बंद कि और बैठने के लिए कहने लगी।


निशांत:- आप तो कल काफी सदमे में थी, इसलिए मजबूरी में मुझे आपको बेहोश करना पड़ा। अभी कैसी है आप?


दिव्या:- कैसी लग रही हूं?


निशांत, खुश होते हुए…. "बिल्कुल मस्त लग रही है।"


आर्यमणि:- कल जंगल के उस इलाके में आप क्या करने गई थी? और वहां तक पहुंची कैसे?


दिव्या:- "हमारा पूरा ग्रुप टूर गाइड के साथ कंचनजंगा के ओर जा रहे थे। तभी सड़क पर कई सारे जंगली जानवर आ गए। उन्हें देखकर ड्राइवर ने गाड़ी बंद कर दिया और हम सबको बिल्कुल ख़ामोश रहने के लिए कहा। इतने में ही एक जानवर धराम से कार के बोनट पर कूद गया और मेरी चींख निकल गई।"

"जैसे ही मै चिंखी जानवर हमारी गाड़ी पर हमला कर दिए। मै डर के मारे सड़क पर भागने के बदले उल्टा जंगल के अंदर ही भाग गई। जब मै जंगल में थोड़ी दूर अंदर गई तभी एक लोमड़ी आकर मुझ से टकरा गई, और मै नीचे जमीन में गिर गई।"

"मेरे तो प्राण हलख में आ गए। जब मै हिम्मत करके नजर उठाई तो दूर 2 जानवर लड़ रहे थे। कोहरे के करण साफ तो नहीं दिख रहा था, लेकिन हो ना हो मुझे कौन खाएगा उसकी लड़ाई जारी थी। मेरे पास अच्छा मौका था और मैंने दौर लगा दिया। दौड़ती गई दौड़ती गई, ये भी नहीं पता था कि कहां दौर रही हूं। इतने हरा भरा जंगल था कि मै तो सीधा खाई में ही आगे पाऊं बढ़ा दी। वो तो अच्छा हुए की एक टाहनी में मेरा कॉलर फस गया और मै किसी तरह पेड़ की निचली साखा पर जाकर बैठ गई।"


आर्यमणि:- हम्मम!


निशांत:- तुम्हारे पति और वो टूर गाइड कहां है।


दिव्या:- मेरे हबी का हाथ फ्रैक्चर हो गया और वो अभी हॉस्पिटल में ही है। एक हफ्ते में डिस्चार्ज मिलेगा। घर संदेश भेज दिया है, उनके डिस्चार्ज होते ही हम लौट जाएंगे। तुम दोनो को दिल से आभार। यदि तुम ना होते तो वो अजगर मुझे निगल चुका होता। देखो मै भी ना.. तुम दोनो बैठो मै तुम्हारे लिए कॉफी बुलवाती हूं। और हां प्लीज तुम दोनो मेरे हब्बी से जरूर मिलने चलना, तुम्हे देखकर वो खुश हो जाएंगे।


निशांत:- मैडम, रुकिए मै यहां कॉफी पीने नहीं आया हूं। बल्कि कल की मेहनत का भुगतान लेने आया हूं।


दिव्या:- मतलब मै समझी नहीं। क्या तुम कहना चाह रहे हो, जान बचाने के बदले तुम्हे पैसे चाहिए?...


निशांत:- नहीं पैसे नहीं अपनी मेहनत का भुगतान। देखिए मैडम आप इतना जो धन्यवाद कह रही है उस से अच्छा है मेरे लिए कुछ करके अपने एहसान उतार दीजिए और यहां के वादियों लुफ्त उठाइए।


दिव्या, निशांत को खा जाने वाली नज़रों से घूरती हुई…. "कहना क्या चाहते हो, साफ साफ कहो।"


आर्यमणि:- वो कहना चाहता है, उसने आपकी जान बचाई बदले में आप कपड़े उतारकर उसे मज़े करने दीजिए और एहसान का बदला चुका दीजिए।


आर्यमणि की बात सुनकर दिव्या निशांत को एक थप्पड़ लगाती हुई…. "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऐसा सोचने की। खुद को देखो, शक्ल पर मूंछ तक ठीक से नहीं आयि है और अपनी से बड़ी औरत के साथ ऐसा करने का ख्याल, छी... कौन सी गंदगी मे पले हो। मैं तो तुम्हें अच्छा लड़का समझती थी, लेकिन तुम दोनो तो कमिने निकले।"


आर्यमणि:- दुनिया में कुछ भी अच्छा या बुरा नहीं होता। हम आपके काम आए बदले में आपको हम अपना काम करने कह रहे हैं। आप नहीं कर सकती तो हंसकर माना कर दीजिए, हमे जज मत कीजिए।


दिव्या:- तुम दोनो पागल हो क्या? तुम समझ भी रहे हो तुम लोग क्या कह रहे हो? यदि मेरी जान नहीं बचाई होती तो अब तक धक्के मार कर बाहर निकाल चुकी होती।


आर्यमणि:- रुकिए !!! आराम से 2 मिनट जरा सही—गलत पर बात कर लेते है फिर हम चले जाएंगे। मुझे तुम में कोई इंट्रेस्ट नहीं इसलिए तुम मेरे सवालों का जवाब शांति से देना, तुम्हारी जान बचाने का मेंहतना।


दिव्या:- हम्मम। ठीक है..


आर्यमणि:- तुम्हारे जगह तुम्हारा पति होता और हमारी जगह कोई लड़की। और वो लड़की ये प्रस्ताव रखती तो क्या तुम्हारे पति का भी यही जवाब होता।


दिव्या, चिढ़कर… "पता नहीं।"..


आर्यमणि:- जिस पति के लिए तुम वफादार हो, यदि कल तुम मर जाती तो क्या वो दूसरी शादी नहीं करेगा या किसी दूसरी औरत के पास नहीं जायेगा?


आर्यमणि की बात सुनकर दिव्या कुछ सोच में पड़ गई। तभी उसने आखरी सवाल पूछ लिया… "क्या तुम्हे यकीन है, तुम्हारी गैर हाजरी में यदि तुम्हारे पति को यही ऑफर कोई लड़की देती, तो वो मना कर पाता?"..


आर्यमणि की बात सुनकर दिव्या ने कोई जवाब नहीं दिया। वो केवल अपने सोच में ही डूबी रही, इधर निशांत खड़ा होकर दिव्या को एक थप्पड़ मारते…

"थप्पड़ का बदला थप्पड़। कन्विंस करके हम किसी के साथ कुछ नहीं करते। ये हमारे वसूलों के खिलाफ है। बस तुमने हमे अच्छे और बुरे के तराजू में तौला इसलिए इतना आइना दिखाना पड़ा, वरना हंसकर केवल इतना कह देती सॉरी मुझेस नहीं हो पाएगा, मेरी अंतर आत्मा नहीं मानेगी। अपनी वफादारी खुद के लिए रखो, किसी दूसरे के लिए नहीं। बाय—बाय मैडम।"…


निशांत बाहर निकलते ही… "हमने कुछ ज्यादा तो नहीं सुना दिया आर्य।"..


आर्यमणि:- जाने भी दे शाम पर फोकस करते है।


शाम के लगभग 6 बजे सिविल लाइन से जैसे अधिकारियों का पूरा काफिला ही निकल रहा हो। उन लोगो के जाते ही आर्यमणि और निशांत भी अपनी तैयारियों में लग गए, साथ मे चित्रा पर भी नजर दिए हुए थे। 6.30 बजे के करीब आर्यमणि, चित्रा के कमरे में पहुंचा। चित्रा आराम से बिस्तर पर टेक लगाए अपना मोबाइल देख रही थी।


जैसे ही किसी के आने की आहट हुई, चित्रा मोबाइल के होम स्क्रीन बटन दबाई और हथेली को चेहरे पर फिरा कर अपने भाव छिपाने लगी…. "क्या मिलता है तुम्हे इरॉटिका पढ़कर, कितनी बार मना किया हूं।".. आर्यमणि भी चित्रा के हाव भाव समझते पूछने लगा...


चित्रा:- सॉरी वो घर पर कोई नहीं था तो.. मुझे ध्यान ही नहीं रहा तुम्हारा।


आर्यमणि:- हम्मम ! तुम्हारे चेहरे पर कुछ लगा है।


चित्रा:- कहां..


आर्यमणि:- लेफ्ट में थोड़ा ऊपर..


चित्रा:- कहां .. यहां..


"रुको मै ही साफ कर देता हूं।".. कहते हुए आर्यमणि ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और बड़ी सफाई से क्लोरोफॉर्म सुंघाकर चित्रा को बेहोश कर दिया। उसे बेहोश करने के बाद आर्यमणि, निशांत के साथ निकला। दोनो साइकिल लेकर जंगल वाले रास्ते पर चल दिए।


कुछ दूर आगे चलने के बाद दोनो एक मालवाहक टेंपो के पास रुक गए, जहां उस टेंपो का मालिक पिंटो खड़ा था… "तुम दोनो छोकड़ा लोग आज क्यूं रिस्क ले रहा है मैन। पूर्णिमा की रात जंगल जाना खतरनाक है। हमने तुमको गाड़ी दिया यदि तुम्हारे फादर को खबर लगी तो वो मेरी जान निकाल लेंगे।"


निशांत अपनी साइकिल टेंपो में रखते हुए… "पिंटो रात को यहां से अपनी ट्रक ले जाना, हम वापस लौटने से पहले कॉल कर देंगे।"..


आर्यमणि टेंपो चलाने लगा, और निशांत पीछे जाकर खड़ा हो गया। जंगल के थोड़ा अंदर घुसते ही… "आर्य रोक यहां।"… टेंपो जैसे ही रुकी निशांत ने पेड़ की डाल से ताजा मांस का एक टुकड़ा बांध दिया। ना ज्यादा ऊपर ना ज्यादा नीचे। ऐसे ही करते हुए निशांत ने लगभग 50 टुकड़े जंगल के अलग-अलग इलाकों मे बांधने के बाद सीधा लोपचे के पुराने कॉटेज के पास पहुंचे।


आर्यमणि टार्च लेकर आगे बढ़ा और निशांत उसके पीछे-पीछे। दोनो कॉटेज के पीछे एक जगह पर खड़े हो गए और वहां की मिट्टी को खोदना शुरू किया।…. "हां यार ये तो ताजी खुदाई है।"… दोनो जल्दी-जल्दी खोदने लगे तभी आर्यमणि ने हाथ के इशारे से काम रोकने कहा… काम रोकते ही, वहां का पूरा माहोल शांत और किसी इंसान की बिलकुल धीमी आवाज सुनाई देने लगी। कॉटेज के खंडहर से बहुत ही धीमे किसी के दर्द भरी कर्रहट सुनाई दे रही थी। आवाज सुनकर दोनो एक दूसरे को हैरानी से देख रहे थे।
Lajawab updates bro
 

Ammu775

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एसीपी और डीएम, दोनो ही अधिकारी लगभग 4 साल से यहां कार्यरत थे। इससे पहले दोनो एक साथ सिक्किम के अन्य इलाकों में भी थे। राकेश नाईक तब से केशव कुलकर्णी के पीछे था जब से वो एसपी था। 6 महीने के अंतर में दोनो का तबादला लगभग एक ही जगह पर हो जाता था। हां लेकिन एक बात जो जग जाहिर थी, कुलकर्णी जी की कभी भी नाईक के साथ नहीं बनी, जबकि उन दोनों को छोड़कर पूरे परिवार में बनती थी।


आर्यमणि और निशांत दोनो लगभग एक ही उम्र के थे और बचपन के साथी। ट्रांसफर और सुदूर इलाकों में जाने की वजह से दोनो दोस्तो के पढ़ाई पर थोड़ा असर तो पड़ा था, लेकिन घर के माहौल के कारण दोनो ही लड़के पढ़ाई में अच्छे थे। आर्यमणि जैसे ही साइकिल लगाकर अपने घर में घुसने लगा, उसकी मां जया कुलकर्णी दरवाजे पर ही उसका रास्ता रोके… "फिर आज जंगल के रास्ते वापस आए?"..


आर्यमणि, छोटी सी मुस्कान अपने चेहरे पर लाते… "सही समय पर पहुंच गए इसलिए जान बच गई।"..


जया:- और मेरी जान अटक गई। कितनी बार बोली हूं कि मत ऐसे किया कर। पुलिस है, प्रशाशन है, इतने सारे लोग है, लेकिन तू है कि जबतक अपने पापा की डांट ना सुन ले, तबतक तेरा खाना नहीं पचता। मै तुझसे कुछ कह रही हूं आर्य। हद है जब कुछ कहो तो कमरे में जाकर पैक हो जाता है।


आर्यमणि अपनी मां की बात को सुनते-सुनते अपने कमरे में पहुंच गया था और आराम से दरवाजा लगा लिया। रात के वक़्त वो जैसे ही सबके साथ खाने के लिए बैठा…. "मै कल ही तुम्हे नागपुर भेज रहा हूं।".. केशव पहला निवाला लेते हुए आर्यमणि से कहा…


जया:- अभी तो 11th में गया है। हमने 12th के बाद इंजीनियरिंग के लिए प्लान किया था...


केशव:- नहीं अब वहीं पढ़ेगा। इंजिनियरिंग में एडमिशन हुआ तो ठीक, वरना नागपुर से डिग्री कंप्लीट करके अपनी आगे की जिंदगी देखेगा। और ये फाइनल है। सुना तुमने आर्य।


आर्यमणि:- 12th तक इंतजार कर लीजिए पापा, फिर नागपुर में ही एडमिशन लूंगा।


केशव:- क्यों अभी जाने में क्या हर्ज है?


आर्यमणि:- मै पहले 12th तो कर लूं...


केशव:- हां तो कल से तुम कार से जाओगे और कार से आओगे।


आर्यमणि:- पापा आप ओवर रिएक्ट कर रहे है। इस बारे में हम पहले भी बात कर चुके है।


आर्यमणि अपनी बात कहकर खाने लगा और केशव गुस्से में लगातार बोले जा रहा था। उसे शांत करवाने के चक्कर में बेचारी जया पति और बेटे के बीच में पिसती जा रही थी। आर्यमणि अपनी छोटी सी बात समाप्त कर आराम से खाकर अपने कमरे में चला गया।


रात के तकरीबन 12 बजे आर्यमणि के खिकड़ी पर दस्तक हुआ। आर्यमणि अपना पीछे का दरवाजा खोला और निशांत अंदर…. "यार उस वक़्त तूने सस्पेंस में ही छोड़ दिया। बता ना क्या तूने सच में वहां शूहोत्र को देखा।".. आर्यमणि ने हां में सर हिलाकर उसे जवाब दिया।


निशांत:- सुन, कल सीएम ने एक छोटी सी पार्टी रखी है। लगता है शूहोत्र लोपचे उसी उसी पार्टी के लिए आया हो। कुछ दिन पहले आकर अपना पैतृक घर देखने चला गया हो, जहां कभी उसका बचपन बीता था।


आर्यमणि:- नहीं, उसकी आखें अजीब थी। वहां ताज़ा खुदाई हुई थी। वो 6 साल बाद जर्मनी से यहां क्या करने आया होगा?


निशांत:- मैत्री को फोन क्यों नहीं लगा लेता?


आर्यमणि:- कुछ तो अजीब है निशांत, मैत्री 6 महीने से कोई मेल नहीं की। जबकि आखरी बार जब उससे बात हुई थी तब वो अपने इंडिया आने के बारे में बता रही थी। वो तो नहीं आयी लेकिन शूहोत्र आ गया। कल सब सीएम की पार्टी में जाएंगे ना?


निशांत:- तू कहीं जंगल जाने के बारे में तो नहीं सोच रहा।


आर्यमणि:- हां ..


निशांत:- वो सब तो ठीक है लेकिन मेरी पागल दीदी का क्या करेंगे, वो तो कल घर पर ही रहेगी। मेरा बाप तो आज ही मुझे कालापानी भेजने वाला था, मम्मी और क्लासेज ने बचा लिया। कल कहीं मेरी दीदी को भनक भी लगी और मेरे बाप से जाकर चुगली कर दी, फिर तो अपना यहां से टिकट कट जाएगा।


आर्यमणि:- मैं शाम 7 बजे निकल जाऊंगा। साथ आना हो तो मुझे जंगल के रास्ते पर 7 बजे मिल जाना। चित्रा को वैसे बेहोश भी कर सकते हो।


निशांत:- कल लगता है तूने सुली पर चढाने का इंतजाम कर दिया है। अच्छा सुन उस दिव्या मैडम से मेहनताना नहीं लिया यार। कल दिन मे उसके होटल से भी हो आते है।


आर्यमणि:- हम्मम !


निशांत:- मै जा रहा हूं, सुबह मिलता हूं।


निशांत और चित्रा 2 मिनट के छोटे बड़े, और दोनो ही एक दूसरे से झगड़ते रहते। बस इन दोनों के शांत रहने की कड़ी आर्यमणि था, क्योंकि आर्यमणि दोनो का ही खास दोस्त था। अगली सुबह चित्रा सीधा आर्यमणि से मिलने पहुंची। हॉल में उसे ना देखकर सीधा उसके कमरे में घुस गई। आर्यमणि अपने बिस्तर पर लेटा फिजिक्स की किताब को खोले हुए था। चित्रा गुस्से में तमतमाती... "कल के तुम्हारे कारनामे की वीडियो देखी, तुम्हे जारा भी अक्ल है कि नहीं।"..


आर्यमणि:- सॉरी चित्रा, जरा सी देरी होती तो उस लेडी की जान चली गई होती...


चित्रा:- दोनो क्यों जंगल से आते हो? घर के लोग इतना मना करते हैं फिर भी नहीं सुनते?


आर्यमणि:- तुम कल रात छिपकर हमारी बातें सुन रही थी?


चित्रा:- हां सुनी भी और शख्त हिदायत भी दे रही हूं... आज जंगल मत जाना। देखो आर्य, अगर आज तुमने वहां जाने की सोची भी तो मै तुमसे कभी बात नही करूंगी।


आर्यमणि:- ज्यादा स्ट्रेस ना लो। मैंने मन बना लिया है और मै जाऊंगा ही।


चित्रा:- पागलपन की हद है ये तो, आज पूर्णिमा है और तुम जानते हो आज की रात लोमड़ी कितनी आक्रमक होती है।


आर्यमणि:- हां मै जानता हूं और उसकी पूरी तैयारी मैंने कर रखी है। अब तुम जाओ यहां से और मुझे परेशान नहीं करो।


चित्रा:- ठीक है फिर ऐसी बात है तो मै तुम्हारे आज जंगल जाने की बात सबको बता ही देती हूं।


आर्यमणि:- ठीक है नहीं जाऊंगा। अब जाओ यहां से।


चित्रा:- मुझे भरोसा नहीं, खाओ मेरी कसम।


आर्यमणि:- आज शाम 7 बजे मै तुम्हारे पास रहूंगा। खुश.. अब जाओ यहां से।


चित्रा, बाहर निकलती… "मै इंतजार करूंगी तुम्हारा आर्य।"..


सुबह के लगभग 11 बजे। दिन की हल्की खिली धूप में दोनो दोस्त अपने साइकिल उठाए, शहर के सड़कों से होते हुए होटल पहुंच गए, जहां दिव्या अपने हसबैंड के साथ ट्रिप पर आयी थी। कमरे की बेल बजी और दरवाजा खुलते ही... दिव्या उन दोनों को देखकर पहचान गई… "तुम वही हो ना जिसने कल मेरी जान बचाई थी।"…. दिव्या दोनो को अंदर लेती हुई दरवाजा बंद कि और बैठने के लिए कहने लगी।


निशांत:- आप तो कल काफी सदमे में थी, इसलिए मजबूरी में मुझे आपको बेहोश करना पड़ा। अभी कैसी है आप?


दिव्या:- कैसी लग रही हूं?


निशांत, खुश होते हुए…. "बिल्कुल मस्त लग रही है।"


आर्यमणि:- कल जंगल के उस इलाके में आप क्या करने गई थी? और वहां तक पहुंची कैसे?


दिव्या:- "हमारा पूरा ग्रुप टूर गाइड के साथ कंचनजंगा के ओर जा रहे थे। तभी सड़क पर कई सारे जंगली जानवर आ गए। उन्हें देखकर ड्राइवर ने गाड़ी बंद कर दिया और हम सबको बिल्कुल ख़ामोश रहने के लिए कहा। इतने में ही एक जानवर धराम से कार के बोनट पर कूद गया और मेरी चींख निकल गई।"

"जैसे ही मै चिंखी जानवर हमारी गाड़ी पर हमला कर दिए। मै डर के मारे सड़क पर भागने के बदले उल्टा जंगल के अंदर ही भाग गई। जब मै जंगल में थोड़ी दूर अंदर गई तभी एक लोमड़ी आकर मुझ से टकरा गई, और मै नीचे जमीन में गिर गई।"

"मेरे तो प्राण हलख में आ गए। जब मै हिम्मत करके नजर उठाई तो दूर 2 जानवर लड़ रहे थे। कोहरे के करण साफ तो नहीं दिख रहा था, लेकिन हो ना हो मुझे कौन खाएगा उसकी लड़ाई जारी थी। मेरे पास अच्छा मौका था और मैंने दौर लगा दिया। दौड़ती गई दौड़ती गई, ये भी नहीं पता था कि कहां दौर रही हूं। इतने हरा भरा जंगल था कि मै तो सीधा खाई में ही आगे पाऊं बढ़ा दी। वो तो अच्छा हुए की एक टाहनी में मेरा कॉलर फस गया और मै किसी तरह पेड़ की निचली साखा पर जाकर बैठ गई।"


आर्यमणि:- हम्मम!


निशांत:- तुम्हारे पति और वो टूर गाइड कहां है।


दिव्या:- मेरे हबी का हाथ फ्रैक्चर हो गया और वो अभी हॉस्पिटल में ही है। एक हफ्ते में डिस्चार्ज मिलेगा। घर संदेश भेज दिया है, उनके डिस्चार्ज होते ही हम लौट जाएंगे। तुम दोनो को दिल से आभार। यदि तुम ना होते तो वो अजगर मुझे निगल चुका होता। देखो मै भी ना.. तुम दोनो बैठो मै तुम्हारे लिए कॉफी बुलवाती हूं। और हां प्लीज तुम दोनो मेरे हब्बी से जरूर मिलने चलना, तुम्हे देखकर वो खुश हो जाएंगे।


निशांत:- मैडम, रुकिए मै यहां कॉफी पीने नहीं आया हूं। बल्कि कल की मेहनत का भुगतान लेने आया हूं।


दिव्या:- मतलब मै समझी नहीं। क्या तुम कहना चाह रहे हो, जान बचाने के बदले तुम्हे पैसे चाहिए?...


निशांत:- नहीं पैसे नहीं अपनी मेहनत का भुगतान। देखिए मैडम आप इतना जो धन्यवाद कह रही है उस से अच्छा है मेरे लिए कुछ करके अपने एहसान उतार दीजिए और यहां के वादियों लुफ्त उठाइए।


दिव्या, निशांत को खा जाने वाली नज़रों से घूरती हुई…. "कहना क्या चाहते हो, साफ साफ कहो।"


आर्यमणि:- वो कहना चाहता है, उसने आपकी जान बचाई बदले में आप कपड़े उतारकर उसे मज़े करने दीजिए और एहसान का बदला चुका दीजिए।


आर्यमणि की बात सुनकर दिव्या निशांत को एक थप्पड़ लगाती हुई…. "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऐसा सोचने की। खुद को देखो, शक्ल पर मूंछ तक ठीक से नहीं आयि है और अपनी से बड़ी औरत के साथ ऐसा करने का ख्याल, छी... कौन सी गंदगी मे पले हो। मैं तो तुम्हें अच्छा लड़का समझती थी, लेकिन तुम दोनो तो कमिने निकले।"


आर्यमणि:- दुनिया में कुछ भी अच्छा या बुरा नहीं होता। हम आपके काम आए बदले में आपको हम अपना काम करने कह रहे हैं। आप नहीं कर सकती तो हंसकर माना कर दीजिए, हमे जज मत कीजिए।


दिव्या:- तुम दोनो पागल हो क्या? तुम समझ भी रहे हो तुम लोग क्या कह रहे हो? यदि मेरी जान नहीं बचाई होती तो अब तक धक्के मार कर बाहर निकाल चुकी होती।


आर्यमणि:- रुकिए !!! आराम से 2 मिनट जरा सही—गलत पर बात कर लेते है फिर हम चले जाएंगे। मुझे तुम में कोई इंट्रेस्ट नहीं इसलिए तुम मेरे सवालों का जवाब शांति से देना, तुम्हारी जान बचाने का मेंहतना।


दिव्या:- हम्मम। ठीक है..


आर्यमणि:- तुम्हारे जगह तुम्हारा पति होता और हमारी जगह कोई लड़की। और वो लड़की ये प्रस्ताव रखती तो क्या तुम्हारे पति का भी यही जवाब होता।


दिव्या, चिढ़कर… "पता नहीं।"..


आर्यमणि:- जिस पति के लिए तुम वफादार हो, यदि कल तुम मर जाती तो क्या वो दूसरी शादी नहीं करेगा या किसी दूसरी औरत के पास नहीं जायेगा?


आर्यमणि की बात सुनकर दिव्या कुछ सोच में पड़ गई। तभी उसने आखरी सवाल पूछ लिया… "क्या तुम्हे यकीन है, तुम्हारी गैर हाजरी में यदि तुम्हारे पति को यही ऑफर कोई लड़की देती, तो वो मना कर पाता?"..


आर्यमणि की बात सुनकर दिव्या ने कोई जवाब नहीं दिया। वो केवल अपने सोच में ही डूबी रही, इधर निशांत खड़ा होकर दिव्या को एक थप्पड़ मारते…

"थप्पड़ का बदला थप्पड़। कन्विंस करके हम किसी के साथ कुछ नहीं करते। ये हमारे वसूलों के खिलाफ है। बस तुमने हमे अच्छे और बुरे के तराजू में तौला इसलिए इतना आइना दिखाना पड़ा, वरना हंसकर केवल इतना कह देती सॉरी मुझेस नहीं हो पाएगा, मेरी अंतर आत्मा नहीं मानेगी। अपनी वफादारी खुद के लिए रखो, किसी दूसरे के लिए नहीं। बाय—बाय मैडम।"…


निशांत बाहर निकलते ही… "हमने कुछ ज्यादा तो नहीं सुना दिया आर्य।"..


आर्यमणि:- जाने भी दे शाम पर फोकस करते है।


शाम के लगभग 6 बजे सिविल लाइन से जैसे अधिकारियों का पूरा काफिला ही निकल रहा हो। उन लोगो के जाते ही आर्यमणि और निशांत भी अपनी तैयारियों में लग गए, साथ मे चित्रा पर भी नजर दिए हुए थे। 6.30 बजे के करीब आर्यमणि, चित्रा के कमरे में पहुंचा। चित्रा आराम से बिस्तर पर टेक लगाए अपना मोबाइल देख रही थी।


जैसे ही किसी के आने की आहट हुई, चित्रा मोबाइल के होम स्क्रीन बटन दबाई और हथेली को चेहरे पर फिरा कर अपने भाव छिपाने लगी…. "क्या मिलता है तुम्हे इरॉटिका पढ़कर, कितनी बार मना किया हूं।".. आर्यमणि भी चित्रा के हाव भाव समझते पूछने लगा...


चित्रा:- सॉरी वो घर पर कोई नहीं था तो.. मुझे ध्यान ही नहीं रहा तुम्हारा।


आर्यमणि:- हम्मम ! तुम्हारे चेहरे पर कुछ लगा है।


चित्रा:- कहां..


आर्यमणि:- लेफ्ट में थोड़ा ऊपर..


चित्रा:- कहां .. यहां..


"रुको मै ही साफ कर देता हूं।".. कहते हुए आर्यमणि ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और बड़ी सफाई से क्लोरोफॉर्म सुंघाकर चित्रा को बेहोश कर दिया। उसे बेहोश करने के बाद आर्यमणि, निशांत के साथ निकला। दोनो साइकिल लेकर जंगल वाले रास्ते पर चल दिए।


कुछ दूर आगे चलने के बाद दोनो एक मालवाहक टेंपो के पास रुक गए, जहां उस टेंपो का मालिक पिंटो खड़ा था… "तुम दोनो छोकड़ा लोग आज क्यूं रिस्क ले रहा है मैन। पूर्णिमा की रात जंगल जाना खतरनाक है। हमने तुमको गाड़ी दिया यदि तुम्हारे फादर को खबर लगी तो वो मेरी जान निकाल लेंगे।"


निशांत अपनी साइकिल टेंपो में रखते हुए… "पिंटो रात को यहां से अपनी ट्रक ले जाना, हम वापस लौटने से पहले कॉल कर देंगे।"..


आर्यमणि टेंपो चलाने लगा, और निशांत पीछे जाकर खड़ा हो गया। जंगल के थोड़ा अंदर घुसते ही… "आर्य रोक यहां।"… टेंपो जैसे ही रुकी निशांत ने पेड़ की डाल से ताजा मांस का एक टुकड़ा बांध दिया। ना ज्यादा ऊपर ना ज्यादा नीचे। ऐसे ही करते हुए निशांत ने लगभग 50 टुकड़े जंगल के अलग-अलग इलाकों मे बांधने के बाद सीधा लोपचे के पुराने कॉटेज के पास पहुंचे।


आर्यमणि टार्च लेकर आगे बढ़ा और निशांत उसके पीछे-पीछे। दोनो कॉटेज के पीछे एक जगह पर खड़े हो गए और वहां की मिट्टी को खोदना शुरू किया।…. "हां यार ये तो ताजी खुदाई है।"… दोनो जल्दी-जल्दी खोदने लगे तभी आर्यमणि ने हाथ के इशारे से काम रोकने कहा… काम रोकते ही, वहां का पूरा माहोल शांत और किसी इंसान की बिलकुल धीमी आवाज सुनाई देने लगी। कॉटेज के खंडहर से बहुत ही धीमे किसी के दर्द भरी कर्रहट सुनाई दे रही थी। आवाज सुनकर दोनो एक दूसरे को हैरानी से देख रहे थे।
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पहले अपडेट से ही कहानी काफी रोमांचित कराने लगा है हमें । दोनों अपडेट्स बहुत ही बेहतरीन थे ।
हमेशा की तरह इस कहानी में भी आप ने किरदारों का नाम विलक्षण रखा । आर्य मणि प्रमुख पात्र है और इस कहानी का शीर्षक भी । काफी खूबसूरत नाम है ।

काफी कम उम्र में ही हैरतअंगेज कारनामे करने लगा है आर्य मणि । दिव्या मैडम को जिस तरह से खाई में गिरने और एनाकोंडा रूपी अजगर से बचाया वो एक करिश्में से कम नहीं था । हाॅलीवुड मूवी की तरह प्रतीत हो रहा था ।
इलेवन क्लास में पढ़ने वाला लड़का अपनी उम्र से कहीं ज्यादा परिपक्व लगा मुझे ।
निशांत जो आर्य मणि का जिगरी यार है , ने भी अच्छा खासा प्रभावित किया हमें ।

सिक्किम का गंगटोक शहर काफी खूबसूरत शहरों में से एक है । अपनी प्राकृतिक छटाएं के लिए प्रसिद्ध है यह शहर ।
लेकिन ऐसा लगता है जैसे कुछ खूंखार जानवरों की नजर लग गई है इस शहर को । जंगली भेड़िया , विशाल जहरीले सांपों ने आशियाना बना रखा है इसके भूभाग पर ।

काफी एडवेंचर्स जर्नी होने वाली है आर्य मणि , निशांत की और हम रीडर्स की भी ।
कुछ कुछ ऐसा भी लगा जैसे इरोटिका भी आगे चलकर पढ़ने को मिलने वाला है । दिव्या मैडम और कन्या कुंवारी चित्रा जी को देखकर ऐसा ही लगा मुझे । मुझे आशा है दिव्या मैडम आगे भी अपनी मौजूदगी दिखाती रहेगी ।

शूहोत्र लोपचे और मैत्री लोपचे मैडम का क्या रोल है यह आगे ही समझ में आयेगा । वैसे मुझे लगता है मैत्री लोपचे मैडम इंडिया पधार चुकी हैं और शायद संकट में भी है ।

दोनों अपडेट्स बेहद ही शानदार थे नैन भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग एंड ब्रिलिएंट ।
 
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भाग:–१





जंगल का इलाका। कोहरा इतना गहरा की दिन को भी सांझ में बदल दे। दिन के वक़्त का माहौल भी इतना शांत की एक छोटी सी आहट भयभीत कर दे। यदि दिल कमजोर हो तो इन जंगली इलाकों से अकेले ना गुजरे।


हिमालय की ऊंचाई पर बसा एक शहर गंगटोक, जहां प्रकृति सौंदर्य के साथ-साथ वहां के विभिन्न इलाकों में भय के ऐसे मंजर भी होते है, जिसके देखने मात्र से प्राण हलख में आ जाए। दूर तक फैले जंगलों में कोहरा घना ऐसे मानो कोई अनहोनी होने का संकेत दे रहा हो।



2 पक्के दोस्त, आर्यमणि और निशांत रोज के तरह जंगल के रास्ते से लौट रहे थे। दोनो साथ-साथ चल रहे थे इसलिए एक दूसरे को देख भी पा रहे थे, अन्यथा कुछ मीटर की दूरी होती तो पहचान पाना भी मुश्किल होता। रोज की तरह बातें करते हुए घने जंगल से गुजर रहे थे।


"कथाएं, लोक कथाएं और परीकथाएं। कितने सच कितने झूट किसे पता। पहले प्रकृति आयी, फिर जीवन का सृजन हुआ। फिर ज्ञान हुआ और अंत में विज्ञान आया। प्रकृति रहस्य है तो विज्ञान उसकी कुंजी, और जिन रहस्यों को विज्ञान सुलझा नहीं पता उसे चमत्कार कहते हैं।"

"ऑक्सीजन और कार्बन डाय ऑक्साइड के खोज से पहले भी ये दोनो गैस यहां के वातावरण में उपलब्ध थे। किसी वैज्ञानिक ने इन रहस्यों को ढूंढा और हम ऑक्सीजन और कार्बन डाय ऑक्साइड के बारे में जानते है। कोई ना भी पता लगता तो भी हम शवांस द्वारा ऑक्सीजन ही लेते और यही कहते भगवान ने ऐसा ही बनाया है। सो जिन चीजों का अस्तित्व विज्ञान में नहीं है, इसका मतलब यह नहीं कि वो चीजें ना हो।"..


"सही है आर्य। जैसे कि नेगेटिव सेक्स अट्रैक्शन। हाय क्लास में आज अंजलि को देखा था। ऐसा लग रहा था साइज 32 हो गए है। साला उसके ऊपर कौन हाथ साफ कर रहा पता नहीं, लेकिन साइज बराबर बढ़ रहे है। और जितनी बढ़ रही है, वो दिन प्रतिदिन उतनी ही सेक्सी हुई जा रही है।"…


दोनो दोस्त बात करते हुए जंगल से गुजर रहे थे, तभी पुलिस रेडियो से आती आवाज ने उन्हे चौकाया…. "ऑल टीम अलर्ट, कंचनजंगा जाने वाले रास्ते से एक सैलानी गायब हो गई है। सभी फोर्स वहां के जंगल में छानबीन करें। रिपीट, एक सैलानी गायब है, तुरंत पूरी फोर्स जंगल में छानबीन करे।"… पुलिस कंट्रोल रूम से एक सूचना जारी किया जा रहा था।


निशांत, गंगटोक अस्सिटेंट कमिश्नर राकेश नाईक का बेटा था। अक्सर वो अपने साथ पुलिस की एक वाकी रखता था। वाकी पर अलर्ट जारी होते ही….


निशांत:— आर्य, हम तो 15 मिनट से इन्हीं रास्तों पर है, तुमने कोई हलचल देखी क्या?"..


आर्यमणि, अपनी साइकिल में ब्रेक लगाते… "हो सकता है पश्चिम में गए हो, लोपचे के इलाके में, और वहीं से गायब हो गए हो।"


निशांत:- हां लेकिन उस ओर जाना तो प्रतिबंधित है, फिर ये सैलानी क्यों गए?


आर्यमणि और निशांत दोनो एक दूसरे का चेहरा देखे, और तेजी से साइकिल को पश्चिम के ओर ले गए। दोनो 2 अलग-अलग रास्ते से उस सैलानी को ढूंढने लगे और 1 किलोमीटर की रेंज वाली वाकी से दोनो एक दूसरे से कनेक्ट थे। दोनो लोपचे के इलाके में प्रवेश करते ही अपने साइकिल किनारे लगाकर पैदल रस्तो की छानबीन करने लगे।


"रूट 3 पर किसी लड़की का स्काफ है आर्य"…. निशांत रास्ते में पड़ी एक स्काफ़ उठाकर देखते हुए आर्य को सूचना दिया और धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा। तभी निशांत को अपने आसपास कुछ आहट सुनाई दी। एक जानी पहचानी आहट और निशांत अपनी जगह खड़ा हो गया। वाकी के दूसरे ओर से आर्यमणि भी वो आहट सुन सकता था। आर्यमणि निशांत को आगाह करते.…. "निशांत, बिल्कुल हिलना मत। मै इन्हे डायवर्ट करता हूं।"…


निशांत बिलकुल शांत खड़ा आहटो के ओर देख रहा था। घने जंगल के इस हिस्से के खतरनाक शिकारी, लोमड़ी, गस्त लगाती निशांत के ओर बढ़ रही थी, शायद उसे भी अपने शिकार की गंध लग गई थी। तभी उन शांत फिजाओं में लोमड़ी कि आवाज़ गूंजने लगी। यह आवाज कहीं दूर से आ रही थी जो आर्यमणि ने निकाली थी। निशांत खुद से 5 फिट आगे लोमड़ियों के झुंड को वापस मुड़ते देख पा रहा था।


जैसे ही आर्यमणि ने लोमड़ी की आवाज निकाली पूरे झुंड के कान उसी दिशा में खड़े हो गए, और देखते ही देखते सभी लोमड़ियां आवाज की दिशा में दौड़ लगा दी।… जैसे ही लोमड़ियां हटी, आर्यमणि वाकी के दूसरे ओर से चिल्लाया.…. "निशांत, तेजी से लोपचे के खंडहर काॅटेज के ओर भागो... अभी।"


निशांत ने आंख मूंदकर दौड़ा। लोपचे के इलाके से होते हुए उसके खंडहर में पहुंचा। वहां पहुंचते ही वो बाहर के दरवाजे पर बैठ गया और वहीं अपनी श्वांस सामान्य करने लगा। तभी पीछे से कंधे पर हाथ परी और निशांत घबराकर पीछे मुड़ा…. "अरे यार मार ही डाला तूने। कितनी बार कहूं, जंगल में ऐसे पीछे से हाथ मत दिया कर।"


आर्यमणि ने उसे शांत रहने का इशारा करके सुनने के लिए कहा। कानो तक बहुत ही धीमी आवाज़ पहुंच रही थी, हवा मात्र चलने की आवाज।… दोनो दोस्तों के कानो तक किसी के मदद की पुकार पहुंच रही थी और इसी के साथ दोनो की फुर्ती भी देखने लायक थी... "रस्सी निकाल आर्य, आज इसकी किस्मत बुलंदियों पर है।"..


दोनो आवाज़ के ओर बढ़ते चले गए, जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे आवाज़ साफ होती जा रही थी।… "आर्य ये तो किसी लड़की की आवाज़ है, लगता है आज रात के मस्ती का इंतजाम हो गया।".. आर्यमणि, निशांत के सर पर एक हाथ मारते तेजी से आगे बढ़ गया। दोनो दोस्त जंगल के पश्चिमी छोड़ पर पहुंच गए थे, जिसके आगे गहरी खाई थी।


ऊंचाई पर बसा ये जंगल के छोड़ था, नीचे कई हजार फीट गहरी खाई बनाता था, और पुरे इलाके में केवल पेड़ ही पेड़। दोनो खाई के नजदीक पहुंचते ही अपना अपना बैग नीचे रखकर उसके अंदर से सामान निकालने लगे। इधर उस लड़की के लगातार चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी….. "सम बॉडी हेल्प, सम बॉडी हेल्प, हेल्प मी प्लीज।"…


निशांत:- आप का नाम क्या है मिस।


लड़की:- मिस नहीं मै मिसेज हूं, दिव्य अग्रवाल, प्लीज मेरी हेल्प करो।


निशांत, आर्यमणि के कान में धीमे से…. "ये तो अनुभवी है रे। मज़ा आएगा।"


आर्यमनी, बिना उसकी बातों पर ध्यान दिए हुए रस्सी के हुक को पेड़ से फसाने लगा। इधर जबतक निशांत ड्रोन कैमरा से दिव्य की वर्तमान परिस्थिति का जायजा लेने लगा। लगभग 12 फिट नीचे वो एक पेड़ की साखा पर बैठी हुई थी। निशांत ने फिर उसके आसपास का जायजा लिया।… "ओ ओ.… जल्दी कर आर्य, एक बड़ा शिकारी मैडम के ओर बढ़ रहा है।"..


आर्यमणि, निशांत की बात सुनकर मॉनिटर स्क्रीन को जैसे ही देखा, एक बड़ा अजगर दिव्या की ओर बढ़ रहा था। आर्यमणि रस्सी का दूसरा सिरा पकड़कर तुरंत ही खाई में उतरने के लिए आगे बढ़ गया। निशांत ड्रोन की सहायता से आर्यमणि को दिशा देते हुए दिव्या तक पहुंचा दिया। दिव्या यूं तो उस डाल पर सुरक्षित थी, लेकिन कितनी देर वहां और जीवित रहती ये तो उसे भी पता नहीं था।


किसी इंसान को अपने आसपास देखकर दिव्या के डर को भी थोड़ी राहत मिली। लेकिन अगले ही पल उसकी श्वांस फुल गई दम घुटने लगा, और मुंह ऐसे खुल गया मानो प्राण मुंह के रास्ते ही निकलने वाले हो। जबतक आर्यमणि दिव्या के पास पहुंचता, अजगर उसकी आखों के सामने ही दिव्या को कुंडली में जकड़ना शुरू कर चुका था। अजगर अपना फन दिव्या के चेहरे के ऊपर ले गया और एक ही बार में इतना बड़ा मुंह खोला, जिसमे दिव्या के सर से लेकर ऊपर का धर तक अजगर के मुंह में समा जाए।


आर्यमणि ने तुरंत उसके मुंह पर करंट गन (स्टन गन) फायर किया। लगभग 1200 वोल्ट का करंट उस अजगर के मुंह में गया और वो उसी क्षण बेहोश होकर दिव्या को अपने साथ लिए खाई में गिरने लगा। अर्यमानी तेजी दिखाते हुए वृक्ष के साख पर अपने पाऊं जमाया और दिव्या के कंधे को मजबूती से पकड़ा।


वाजनी अजगर दिव्या के साथ साथ आर्यमणि को भी नीचे ले जा रहा था। आर्यमणि तेजी के साथ नीचे जा रहा था। निशांत ने जैसे ही यह नजारा देखा ड्रोन को फिक्स किया और रस्सी के हुक को सेट करते हुए…. "आर्य, कुंडली खुलते ही बताना।"


आर्यमणि का कांधा पुरा खींचा जा रहा था, और तभी निशांत के कान में आवाज़ सुनाई दी… "अभी"… जैसे ही निशांत ने आवाज़ सुनी उसने हुक को लॉक किया। अजगर की कुंडली खुलते ही वो अजगर कई हजार फीट नीचे की खाई में था और आर्यमणि दिव्या का कांधा पकड़े झुल रहा था।


निशांत ने हुक को खींचकर दोनो को ऊपर किया। ऊपर आते ही आर्यमणि जमीन पर दोनो हाथ फैलाकर लेट गया और निशांत दिव्या के सीने को पुश करके उसकी धड़कन को सपोर्ट करने लगा।… "आर्य, शॉक के कारण श्वांस नहीं ले पा रही है।"..


आर्यमानी:- मुंह से हवा दो, मै सीने को पुश करता हूं।


निशांत ने मुंह से फूंककर हवा देना शुरू किया और आर्यमणि उसके सीने को पुश करके स्वांस बाहर छोड़ने में मदद करने लगा। चौंककर दिव्या उठकर बैठ गई और हैरानी से चारो ओर देखने लगी। निशांत उसके ओर थरमस बढ़ाते हुए… "ग्लूकोज पी लो एनर्जी मिलेगी।"..


दिव्या अब भी हैरानी से चारो ओर देख रही थी। उसकी धड़कने अब भी बढ़ी हुई थी। उसकी हालत को देखते हुए… "आर्य ये गहरे सदमे में है, इसे मेडिकल सपोर्ट चाहिए वरना कोलेप्स कर जाएगी।"


आर्यमणि:- हम्मम । मै कॉटेज के पास जाकर वायरलेस करता हूं, तुम इसे कुछ पिलाओ और शांत करने की कोशिश करो।


निशांत:- इसे सुला ही देते है आर्य, जितनी देर जागेगी उतना ही इसके लिए रिस्क हैं। सदमे से कहीं ब्रेन हम्मोरेज ना कर जाए।


आर्यमणि:- हम्मम। ठीक है तुम बेहोश करो मै वायरलेस भेजता हूं।


निशांत ने अपने बैग से क्लोरोफॉर्म निकाला और दिव्या के नाक से लगाकर उसे बेहोश कर दिया। कॉटेज के पास पहुंचकर आर्यमणि ने वायरलेस से संदेश भेज दिया, और वापस निशांत के पास आ गया।


निशांत:- आर्य ये मैडम तो बहुत ही सेक्सी है यार।


आर्यमणि:- मैंने शुहोत्र को देखा, लोपचे कॉटेज में। घर के पीछे किसी को दफनाया भी है शायद।


निशांत, चौंकते हुए… "शूहोत्र लोपचे, लेकिन वो यहां क्या कर रहा है। तू कन्फर्म कह रहा है ना, क्योंकि 6 साल से उसका परिवार का कोई भी गंगटोक नहीं आया है। और आते भी तो एम जी मार्केट में होते, यहां क्या लोमड़ी का शिकार करने आया है।"


"तुम दोनो को यहां आते डर नहीं लगता क्या?"… पुलिस के एक अधिकारी ने दोनो का ध्यान अपनी ओर खींचा।


निशांत:- अजगर का निवाला बन गई थी ये मैडम, बचा लिया हमने। आप सब अपना काम कीजिए हम जा रहे है। वैसे भी यहां हमारा 1 घंटा बर्बाद हो गया।


पुलिस की पूरी टीम पहुंचते ही आर्यमणि और निशांत वहां से निकल गए। रास्ते भर निशांत और आर्यमणि, सुहोत्र लोपचे और लोपचे का जला खंडहर के बारे में सोचते हुए ही घर पहुंचा। दिमाग में यही ख्याल चलता रहा की आखिर वहां दफनाया किसे है?


दोनो जबतक घर पहुंचते, दोनो के घर में उनके कारनामे की खबर पहुंच चुकी थी। सिविल लाइन सड़क पर बिल्कुल मध्य में डीएम आवास था जो कि आर्यमणि का घर था और उसके पापा केशव कुलकर्णी गंगटोक के डीएम। उसके ठीक बाजू में गंगटोक एसीपी राकेश नईक का आवास, जो की निशांत का घर था।
भाग:–२



एसीपी और डीएम, दोनो ही अधिकारी लगभग 4 साल से यहां कार्यरत थे। इससे पहले दोनो एक साथ सिक्किम के अन्य इलाकों में भी थे। राकेश नाईक तब से केशव कुलकर्णी के पीछे था जब से वो एसपी था। 6 महीने के अंतर में दोनो का तबादला लगभग एक ही जगह पर हो जाता था। हां लेकिन एक बात जो जग जाहिर थी, कुलकर्णी जी की कभी भी नाईक के साथ नहीं बनी, जबकि उन दोनों को छोड़कर पूरे परिवार में बनती थी।


आर्यमणि और निशांत दोनो लगभग एक ही उम्र के थे और बचपन के साथी। ट्रांसफर और सुदूर इलाकों में जाने की वजह से दोनो दोस्तो के पढ़ाई पर थोड़ा असर तो पड़ा था, लेकिन घर के माहौल के कारण दोनो ही लड़के पढ़ाई में अच्छे थे। आर्यमणि जैसे ही साइकिल लगाकर अपने घर में घुसने लगा, उसकी मां जया कुलकर्णी दरवाजे पर ही उसका रास्ता रोके… "फिर आज जंगल के रास्ते वापस आए?"..


आर्यमणि, छोटी सी मुस्कान अपने चेहरे पर लाते… "सही समय पर पहुंच गए इसलिए जान बच गई।"..


जया:- और मेरी जान अटक गई। कितनी बार बोली हूं कि मत ऐसे किया कर। पुलिस है, प्रशाशन है, इतने सारे लोग है, लेकिन तू है कि जबतक अपने पापा की डांट ना सुन ले, तबतक तेरा खाना नहीं पचता। मै तुझसे कुछ कह रही हूं आर्य। हद है जब कुछ कहो तो कमरे में जाकर पैक हो जाता है।


आर्यमणि अपनी मां की बात को सुनते-सुनते अपने कमरे में पहुंच गया था और आराम से दरवाजा लगा लिया। रात के वक़्त वो जैसे ही सबके साथ खाने के लिए बैठा…. "मै कल ही तुम्हे नागपुर भेज रहा हूं।".. केशव पहला निवाला लेते हुए आर्यमणि से कहा…


जया:- अभी तो 11th में गया है। हमने 12th के बाद इंजीनियरिंग के लिए प्लान किया था...


केशव:- नहीं अब वहीं पढ़ेगा। इंजिनियरिंग में एडमिशन हुआ तो ठीक, वरना नागपुर से डिग्री कंप्लीट करके अपनी आगे की जिंदगी देखेगा। और ये फाइनल है। सुना तुमने आर्य।


आर्यमणि:- 12th तक इंतजार कर लीजिए पापा, फिर नागपुर में ही एडमिशन लूंगा।


केशव:- क्यों अभी जाने में क्या हर्ज है?


आर्यमणि:- मै पहले 12th तो कर लूं...


केशव:- हां तो कल से तुम कार से जाओगे और कार से आओगे।


आर्यमणि:- पापा आप ओवर रिएक्ट कर रहे है। इस बारे में हम पहले भी बात कर चुके है।


आर्यमणि अपनी बात कहकर खाने लगा और केशव गुस्से में लगातार बोले जा रहा था। उसे शांत करवाने के चक्कर में बेचारी जया पति और बेटे के बीच में पिसती जा रही थी। आर्यमणि अपनी छोटी सी बात समाप्त कर आराम से खाकर अपने कमरे में चला गया।


रात के तकरीबन 12 बजे आर्यमणि के खिकड़ी पर दस्तक हुआ। आर्यमणि अपना पीछे का दरवाजा खोला और निशांत अंदर…. "यार उस वक़्त तूने सस्पेंस में ही छोड़ दिया। बता ना क्या तूने सच में वहां शूहोत्र को देखा।".. आर्यमणि ने हां में सर हिलाकर उसे जवाब दिया।


निशांत:- सुन, कल सीएम ने एक छोटी सी पार्टी रखी है। लगता है शूहोत्र लोपचे उसी उसी पार्टी के लिए आया हो। कुछ दिन पहले आकर अपना पैतृक घर देखने चला गया हो, जहां कभी उसका बचपन बीता था।


आर्यमणि:- नहीं, उसकी आखें अजीब थी। वहां ताज़ा खुदाई हुई थी। वो 6 साल बाद जर्मनी से यहां क्या करने आया होगा?


निशांत:- मैत्री को फोन क्यों नहीं लगा लेता?


आर्यमणि:- कुछ तो अजीब है निशांत, मैत्री 6 महीने से कोई मेल नहीं की। जबकि आखरी बार जब उससे बात हुई थी तब वो अपने इंडिया आने के बारे में बता रही थी। वो तो नहीं आयी लेकिन शूहोत्र आ गया। कल सब सीएम की पार्टी में जाएंगे ना?


निशांत:- तू कहीं जंगल जाने के बारे में तो नहीं सोच रहा।


आर्यमणि:- हां ..


निशांत:- वो सब तो ठीक है लेकिन मेरी पागल दीदी का क्या करेंगे, वो तो कल घर पर ही रहेगी। मेरा बाप तो आज ही मुझे कालापानी भेजने वाला था, मम्मी और क्लासेज ने बचा लिया। कल कहीं मेरी दीदी को भनक भी लगी और मेरे बाप से जाकर चुगली कर दी, फिर तो अपना यहां से टिकट कट जाएगा।


आर्यमणि:- मैं शाम 7 बजे निकल जाऊंगा। साथ आना हो तो मुझे जंगल के रास्ते पर 7 बजे मिल जाना। चित्रा को वैसे बेहोश भी कर सकते हो।


निशांत:- कल लगता है तूने सुली पर चढाने का इंतजाम कर दिया है। अच्छा सुन उस दिव्या मैडम से मेहनताना नहीं लिया यार। कल दिन मे उसके होटल से भी हो आते है।


आर्यमणि:- हम्मम !


निशांत:- मै जा रहा हूं, सुबह मिलता हूं।


निशांत और चित्रा 2 मिनट के छोटे बड़े, और दोनो ही एक दूसरे से झगड़ते रहते। बस इन दोनों के शांत रहने की कड़ी आर्यमणि था, क्योंकि आर्यमणि दोनो का ही खास दोस्त था। अगली सुबह चित्रा सीधा आर्यमणि से मिलने पहुंची। हॉल में उसे ना देखकर सीधा उसके कमरे में घुस गई। आर्यमणि अपने बिस्तर पर लेटा फिजिक्स की किताब को खोले हुए था। चित्रा गुस्से में तमतमाती... "कल के तुम्हारे कारनामे की वीडियो देखी, तुम्हे जारा भी अक्ल है कि नहीं।"..


आर्यमणि:- सॉरी चित्रा, जरा सी देरी होती तो उस लेडी की जान चली गई होती...


चित्रा:- दोनो क्यों जंगल से आते हो? घर के लोग इतना मना करते हैं फिर भी नहीं सुनते?


आर्यमणि:- तुम कल रात छिपकर हमारी बातें सुन रही थी?


चित्रा:- हां सुनी भी और शख्त हिदायत भी दे रही हूं... आज जंगल मत जाना। देखो आर्य, अगर आज तुमने वहां जाने की सोची भी तो मै तुमसे कभी बात नही करूंगी।


आर्यमणि:- ज्यादा स्ट्रेस ना लो। मैंने मन बना लिया है और मै जाऊंगा ही।


चित्रा:- पागलपन की हद है ये तो, आज पूर्णिमा है और तुम जानते हो आज की रात लोमड़ी कितनी आक्रमक होती है।


आर्यमणि:- हां मै जानता हूं और उसकी पूरी तैयारी मैंने कर रखी है। अब तुम जाओ यहां से और मुझे परेशान नहीं करो।


चित्रा:- ठीक है फिर ऐसी बात है तो मै तुम्हारे आज जंगल जाने की बात सबको बता ही देती हूं।


आर्यमणि:- ठीक है नहीं जाऊंगा। अब जाओ यहां से।


चित्रा:- मुझे भरोसा नहीं, खाओ मेरी कसम।


आर्यमणि:- आज शाम 7 बजे मै तुम्हारे पास रहूंगा। खुश.. अब जाओ यहां से।


चित्रा, बाहर निकलती… "मै इंतजार करूंगी तुम्हारा आर्य।"..


सुबह के लगभग 11 बजे। दिन की हल्की खिली धूप में दोनो दोस्त अपने साइकिल उठाए, शहर के सड़कों से होते हुए होटल पहुंच गए, जहां दिव्या अपने हसबैंड के साथ ट्रिप पर आयी थी। कमरे की बेल बजी और दरवाजा खुलते ही... दिव्या उन दोनों को देखकर पहचान गई… "तुम वही हो ना जिसने कल मेरी जान बचाई थी।"…. दिव्या दोनो को अंदर लेती हुई दरवाजा बंद कि और बैठने के लिए कहने लगी।


निशांत:- आप तो कल काफी सदमे में थी, इसलिए मजबूरी में मुझे आपको बेहोश करना पड़ा। अभी कैसी है आप?


दिव्या:- कैसी लग रही हूं?


निशांत, खुश होते हुए…. "बिल्कुल मस्त लग रही है।"


आर्यमणि:- कल जंगल के उस इलाके में आप क्या करने गई थी? और वहां तक पहुंची कैसे?


दिव्या:- "हमारा पूरा ग्रुप टूर गाइड के साथ कंचनजंगा के ओर जा रहे थे। तभी सड़क पर कई सारे जंगली जानवर आ गए। उन्हें देखकर ड्राइवर ने गाड़ी बंद कर दिया और हम सबको बिल्कुल ख़ामोश रहने के लिए कहा। इतने में ही एक जानवर धराम से कार के बोनट पर कूद गया और मेरी चींख निकल गई।"

"जैसे ही मै चिंखी जानवर हमारी गाड़ी पर हमला कर दिए। मै डर के मारे सड़क पर भागने के बदले उल्टा जंगल के अंदर ही भाग गई। जब मै जंगल में थोड़ी दूर अंदर गई तभी एक लोमड़ी आकर मुझ से टकरा गई, और मै नीचे जमीन में गिर गई।"

"मेरे तो प्राण हलख में आ गए। जब मै हिम्मत करके नजर उठाई तो दूर 2 जानवर लड़ रहे थे। कोहरे के करण साफ तो नहीं दिख रहा था, लेकिन हो ना हो मुझे कौन खाएगा उसकी लड़ाई जारी थी। मेरे पास अच्छा मौका था और मैंने दौर लगा दिया। दौड़ती गई दौड़ती गई, ये भी नहीं पता था कि कहां दौर रही हूं। इतने हरा भरा जंगल था कि मै तो सीधा खाई में ही आगे पाऊं बढ़ा दी। वो तो अच्छा हुए की एक टाहनी में मेरा कॉलर फस गया और मै किसी तरह पेड़ की निचली साखा पर जाकर बैठ गई।"


आर्यमणि:- हम्मम!


निशांत:- तुम्हारे पति और वो टूर गाइड कहां है।


दिव्या:- मेरे हबी का हाथ फ्रैक्चर हो गया और वो अभी हॉस्पिटल में ही है। एक हफ्ते में डिस्चार्ज मिलेगा। घर संदेश भेज दिया है, उनके डिस्चार्ज होते ही हम लौट जाएंगे। तुम दोनो को दिल से आभार। यदि तुम ना होते तो वो अजगर मुझे निगल चुका होता। देखो मै भी ना.. तुम दोनो बैठो मै तुम्हारे लिए कॉफी बुलवाती हूं। और हां प्लीज तुम दोनो मेरे हब्बी से जरूर मिलने चलना, तुम्हे देखकर वो खुश हो जाएंगे।


निशांत:- मैडम, रुकिए मै यहां कॉफी पीने नहीं आया हूं। बल्कि कल की मेहनत का भुगतान लेने आया हूं।


दिव्या:- मतलब मै समझी नहीं। क्या तुम कहना चाह रहे हो, जान बचाने के बदले तुम्हे पैसे चाहिए?...


निशांत:- नहीं पैसे नहीं अपनी मेहनत का भुगतान। देखिए मैडम आप इतना जो धन्यवाद कह रही है उस से अच्छा है मेरे लिए कुछ करके अपने एहसान उतार दीजिए और यहां के वादियों लुफ्त उठाइए।


दिव्या, निशांत को खा जाने वाली नज़रों से घूरती हुई…. "कहना क्या चाहते हो, साफ साफ कहो।"


आर्यमणि:- वो कहना चाहता है, उसने आपकी जान बचाई बदले में आप कपड़े उतारकर उसे मज़े करने दीजिए और एहसान का बदला चुका दीजिए।


आर्यमणि की बात सुनकर दिव्या निशांत को एक थप्पड़ लगाती हुई…. "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऐसा सोचने की। खुद को देखो, शक्ल पर मूंछ तक ठीक से नहीं आयि है और अपनी से बड़ी औरत के साथ ऐसा करने का ख्याल, छी... कौन सी गंदगी मे पले हो। मैं तो तुम्हें अच्छा लड़का समझती थी, लेकिन तुम दोनो तो कमिने निकले।"


आर्यमणि:- दुनिया में कुछ भी अच्छा या बुरा नहीं होता। हम आपके काम आए बदले में आपको हम अपना काम करने कह रहे हैं। आप नहीं कर सकती तो हंसकर माना कर दीजिए, हमे जज मत कीजिए।


दिव्या:- तुम दोनो पागल हो क्या? तुम समझ भी रहे हो तुम लोग क्या कह रहे हो? यदि मेरी जान नहीं बचाई होती तो अब तक धक्के मार कर बाहर निकाल चुकी होती।


आर्यमणि:- रुकिए !!! आराम से 2 मिनट जरा सही—गलत पर बात कर लेते है फिर हम चले जाएंगे। मुझे तुम में कोई इंट्रेस्ट नहीं इसलिए तुम मेरे सवालों का जवाब शांति से देना, तुम्हारी जान बचाने का मेंहतना।


दिव्या:- हम्मम। ठीक है..


आर्यमणि:- तुम्हारे जगह तुम्हारा पति होता और हमारी जगह कोई लड़की। और वो लड़की ये प्रस्ताव रखती तो क्या तुम्हारे पति का भी यही जवाब होता।


दिव्या, चिढ़कर… "पता नहीं।"..


आर्यमणि:- जिस पति के लिए तुम वफादार हो, यदि कल तुम मर जाती तो क्या वो दूसरी शादी नहीं करेगा या किसी दूसरी औरत के पास नहीं जायेगा?


आर्यमणि की बात सुनकर दिव्या कुछ सोच में पड़ गई। तभी उसने आखरी सवाल पूछ लिया… "क्या तुम्हे यकीन है, तुम्हारी गैर हाजरी में यदि तुम्हारे पति को यही ऑफर कोई लड़की देती, तो वो मना कर पाता?"..


आर्यमणि की बात सुनकर दिव्या ने कोई जवाब नहीं दिया। वो केवल अपने सोच में ही डूबी रही, इधर निशांत खड़ा होकर दिव्या को एक थप्पड़ मारते…

"थप्पड़ का बदला थप्पड़। कन्विंस करके हम किसी के साथ कुछ नहीं करते। ये हमारे वसूलों के खिलाफ है। बस तुमने हमे अच्छे और बुरे के तराजू में तौला इसलिए इतना आइना दिखाना पड़ा, वरना हंसकर केवल इतना कह देती सॉरी मुझेस नहीं हो पाएगा, मेरी अंतर आत्मा नहीं मानेगी। अपनी वफादारी खुद के लिए रखो, किसी दूसरे के लिए नहीं। बाय—बाय मैडम।"…


निशांत बाहर निकलते ही… "हमने कुछ ज्यादा तो नहीं सुना दिया आर्य।"..


आर्यमणि:- जाने भी दे शाम पर फोकस करते है।


शाम के लगभग 6 बजे सिविल लाइन से जैसे अधिकारियों का पूरा काफिला ही निकल रहा हो। उन लोगो के जाते ही आर्यमणि और निशांत भी अपनी तैयारियों में लग गए, साथ मे चित्रा पर भी नजर दिए हुए थे। 6.30 बजे के करीब आर्यमणि, चित्रा के कमरे में पहुंचा। चित्रा आराम से बिस्तर पर टेक लगाए अपना मोबाइल देख रही थी।


जैसे ही किसी के आने की आहट हुई, चित्रा मोबाइल के होम स्क्रीन बटन दबाई और हथेली को चेहरे पर फिरा कर अपने भाव छिपाने लगी…. "क्या मिलता है तुम्हे इरॉटिका पढ़कर, कितनी बार मना किया हूं।".. आर्यमणि भी चित्रा के हाव भाव समझते पूछने लगा...


चित्रा:- सॉरी वो घर पर कोई नहीं था तो.. मुझे ध्यान ही नहीं रहा तुम्हारा।


आर्यमणि:- हम्मम ! तुम्हारे चेहरे पर कुछ लगा है।


चित्रा:- कहां..


आर्यमणि:- लेफ्ट में थोड़ा ऊपर..


चित्रा:- कहां .. यहां..


"रुको मै ही साफ कर देता हूं।".. कहते हुए आर्यमणि ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और बड़ी सफाई से क्लोरोफॉर्म सुंघाकर चित्रा को बेहोश कर दिया। उसे बेहोश करने के बाद आर्यमणि, निशांत के साथ निकला। दोनो साइकिल लेकर जंगल वाले रास्ते पर चल दिए।


कुछ दूर आगे चलने के बाद दोनो एक मालवाहक टेंपो के पास रुक गए, जहां उस टेंपो का मालिक पिंटो खड़ा था… "तुम दोनो छोकड़ा लोग आज क्यूं रिस्क ले रहा है मैन। पूर्णिमा की रात जंगल जाना खतरनाक है। हमने तुमको गाड़ी दिया यदि तुम्हारे फादर को खबर लगी तो वो मेरी जान निकाल लेंगे।"


निशांत अपनी साइकिल टेंपो में रखते हुए… "पिंटो रात को यहां से अपनी ट्रक ले जाना, हम वापस लौटने से पहले कॉल कर देंगे।"..


आर्यमणि टेंपो चलाने लगा, और निशांत पीछे जाकर खड़ा हो गया। जंगल के थोड़ा अंदर घुसते ही… "आर्य रोक यहां।"… टेंपो जैसे ही रुकी निशांत ने पेड़ की डाल से ताजा मांस का एक टुकड़ा बांध दिया। ना ज्यादा ऊपर ना ज्यादा नीचे। ऐसे ही करते हुए निशांत ने लगभग 50 टुकड़े जंगल के अलग-अलग इलाकों मे बांधने के बाद सीधा लोपचे के पुराने कॉटेज के पास पहुंचे।


आर्यमणि टार्च लेकर आगे बढ़ा और निशांत उसके पीछे-पीछे। दोनो कॉटेज के पीछे एक जगह पर खड़े हो गए और वहां की मिट्टी को खोदना शुरू किया।…. "हां यार ये तो ताजी खुदाई है।"… दोनो जल्दी-जल्दी खोदने लगे तभी आर्यमणि ने हाथ के इशारे से काम रोकने कहा… काम रोकते ही, वहां का पूरा माहोल शांत और किसी इंसान की बिलकुल धीमी आवाज सुनाई देने लगी। कॉटेज के खंडहर से बहुत ही धीमे किसी के दर्द भरी कर्रहट सुनाई दे रही थी। आवाज सुनकर दोनो एक दूसरे को हैरानी से देख रहे थे।
ह्म्म्म्म तो कहानी आरंभ हो चुका है आर्यमणि और निशांत के कारनामें शुरू हो गए हैं l
इतना कहूँगा nain11ster भाई
आरंभ है प्रचंड
साधुवाद नई अद्भुत रोमांचक कहानी के लिए
 

nain11ster

Prime
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Kaafi time baad aaya hu abhi aaj hi saare update padhkar khatam kiye h

Supp... Ab jab khatm kar liye to us par likh bhi dena mitr .. aur yahan ka bhi mat bhulna...
Pata nahi bhai bas Xabhi bhai regular dikhte he baki logo pata nahi he 11 ster fan kabhi kabhi dikh jate kahi pe or naina ji to gayab hi ho gai he

Xabhi aur Fan bhi jald lautenge... Baki aapka sath to hai hi... :hug:
 
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