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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

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भाग:–109


“द... द... दे... देखो आर्यमणि... नहीईईईईईई…. आआआआआआआआआ... मुझे माफ कर दो... नहीईईईईईई.… आआआआआआआआआ.. छोड़ दो मुझेएएएएएए”…. आखिरी उस चीख के साथ जादूगर की आवाज शांत हो गयी। उसका फरफरता शरीर जमीन पर था और जादूगर का धड़कता हृदय आर्यमणि के हाथ में। जादूगर गिड़गिड़ाता रहा लेकिन आर्यमणि अपने दोनो पंजे के नाखून को, बड़े प्यार से उसके सीने में घुसाकर जादूगर का सीना फाड़ दिया और उसके धड़कते हृदय को मुट्ठी में दबोचकर निकाल लिया।

अल्फा पैक में जैसे जोश आ गया था। आर्यमणि के कारनामे को देख सभी हूटिंग कर रहे थे। वहीं निशांत तुरंत जादूगर को सोफे पर रखा और शिवम् विलय मंत्र अभियोजन को पूर्ण कर दिया। देखते ही देखते जादूगर का पार्थिव शरीर कण में बदलकर हवा में समा गया।

कुछ देर बाद सभी लिविंग रूम में थे। अब भी सबके आंखों के सामने वही दृश्य था, कैसे आर्यमणि ने जादूगर के हृदय को सीने से बाहर निकाल लिया। सभी उसी बात की चर्चा कर रहे थे। रूही सबके लिये खाने का इंतजाम करने के बाद सबके बीच बैठते.… "हां सभी मिलकर आर्य के वीरता के चर्चे करो, लेकिन ये कोई न पूछना की कब आर्य ने जादूगर के शरीर को उन एलियन के साइंस लैब से लाने का फैसला कर लिया? और कब इन्होंने संन्यासी शिवम् और देवर जी से भी संपर्क कर लिया?"

निशांत:– हाय भाभी, क्या प्यार से देवर जी बोली हो। थांकू थांकू...

रूही:– जाइए देवर जी आप बात को घुमाएं नही... अल्फा पैक ये धोका है या नही...

अलबेली:– जादूगर मर गया। अब उसके शरीर का क्या अंतिम संस्कार करोगी। मतलब जो तुम्हारे काम की बात नही हो, वो भी तुमसे पूछकर क्यों नही किया गया? जैसे दादा तुम्हे पूरी योजना बता देते और तुम जादूगर का शरीर लेने उन एलियन के साइंस लैब में पहुंच जाती...

रूही, छोटा सा मुंह बनाती... "पर हम तो पैक है ना... हमारे सामने ही प्लान बना लेते तो क्या चला जाता?”

आर्यमणि, रूही को अपने बाहों में भींचते... “ओ बावड़ी, मैने कोई प्लान नही बनाया। बेकार में अपना मन छोटा कर रही हो। वो तो निशांत और संन्यासी शिवम् ने पूरी योजना बनाई थी।”

रूही:– पर ये लोग तो हमारे सामने ही आये थे। फिर इतना प्लान कब कर लिया और इन्हे साइंस लैब के बारे में कैसे पता।

संन्यासी शिवम्:– तुम्हे हर बात का विवरण लिये बिना चैन नहीं आयेगा। साइंस लैब का पता तो अनंत कीर्ति की पुस्तक से चल गया। एलियन के पास कितने वर्षों से यह किताब थी, ऐसा हो ही नही सकता था कि वो लोग इस पुस्तक को साइंस लैब न ले गये हो। बस एलियन के ठिकाने का नाम बताओ और हम किताब के जरिए पता कर लेंगे।

रूही:– कैसे?

शिवम्:– आर्य ने जादूगर के शरीर का स्मरण कर उसपर अलर्ट मांगा था। किताब ने साइंस लैब का लोकेशन बता दिया। फिर निशांत ने अपनी योजना बताई की विलय मंत्र से कैसे इस जादूगर को कैद करेंगे और नतीजा सामने है। और ये पूरी योजना यहां पहुंचने के बाद अपने आप ही बनती चली गयी। यूं किसी टेबल पर बैठकर कभी कोई चर्चा नहीं हुई।

आर्यमणि:– इसे ही तो टीम वर्क कहते है।

निशांत:– टीम वर्क को मारो गोली और ये बताओ की तुम दोनो शादी कब कर रहे। अरे यार आर्य तू जल्दी शादी कर ले, तभी तो मैं भी भाभी के किसी हॉट बहन पर लाइन मार सकता हूं।

रूही:– उसके लिये शादी की क्या जरूरत...

ओजल:– दीदी खबरदार...

रूही:– चुपकर मेमनी... देवर जी मिल लिये मेरी बहन से... जाओ लपक लो...

निशांत:– क्या बात है.. बहन तो घर में ही है... वो भी बिलकुल मेरे कल्पनाओं वाली लड़की... क्यों ओजल क्या ख्याल है?

ओजल:– देखिए मेरे होने वाले जीजू के चड्डी–बड्डी, मुझसे दूर ही रहिए वरना मैं आपको चूहा बना दूंगी...

निशांत:– मेंमनी का लवर चूहा... अच्छा कॉम्बो है। ठीक है भाभी फिर आज से ओजल हमारे साथ रहने वाली है।

रूही:–मांझे…

ओजल:– अभी तो खुद ही कही न लपक लो... तो निशांत ने मुझे लपक लिया...

रूही:– इतनी जल्दी लपका भी गयी... लेकिन कैसे?

अलबेली, रूही के कान में.… "अंदरूनी जिश्मानी आग"..

रूही, अलबेली को ठोकती... "छी, छी.. क्या बकवास कर रही है। सुनो जी मेरे होने वाले, ये क्या हो रहा है?"

ओजल:– मैं संन्यासी बनने की सोच रही हूं।इसलिए अपनी स्वेक्छा से संन्यासी शिवम् जी के साथ जाना चाहती हूं। हां लेकिन पहले आप सबकी मर्जी होगी तब...

आर्यमणि:– ये कब हो गया? मैं यहां क्या चर्चा करने बैठा था और हो क्या रहा है। तुम कोई संन्यासी नही बनोगी... हमारे साथ ही रहो... तुम्हे क्या सीखना है वो बता दो, मैं यहीं इंतजाम कर दूंगा...

ओजल:– इन्ही संन्यासियों के वजह से हमारा परिवार नागपुर में सुरक्षित है। कोई दूसरा रखवाला आपके घर निःस्वार्थ भावना से काम करे तो अच्छा, लेकिन वही रखवाला आपके घर का कोई सदस्य बनना चाहे तो आपका प्यार रोड़ा बन जाता है। फिर आप संस्यासी न बनने की 100 वजह बताने लगोगे...

आर्यमणि:– लेकिन ओजल संन्यासी बनना वाकई काफी कठिन कार्य है।

संन्यासी शिवम्:– पर कह किसने दिया की ओजल एक सन्यासी बनेगी। ओजल क्या होगी यह उसकी मेहनत और आचार्य जी तय करेंगे। हां ओजल के चुनाव का भी ख्याल रखा जायेगा लेकिन अभी के लिये इतना ही की कंचनजंघा में बसे गांव के लिये कुछ शिष्य चाहिए और ओजल भी उनमें से एक होगी। अब कहिए गुरुदेव..

आर्यमणि:– मैं क्या कहूं, शायद ओजल को दूर जाते नही देख सकता। इस मामले में मैं अकेला कुछ नही कह सकता, यहां परिवार में और भी सदस्य है।

रूही:– हां बिलकुल सही कहा आर्य ने। ओजल कहीं नहीं जाएगी, और इसके अलावा मैं कुछ नही सुनना चाहती।

अलबेली:– ए पगलू… पैक में एक लड़का ले आऊंगी, या तुझे इतना अखड़ता है तो मैं इवान को राखी बांध दूंगी, लेकिन तू कहीं नहीं जायेगी।

ओजल:– इतना कुछ होने के बाद तू राखी कैसे बांध सकती है। मंगलसूत्र बंधेगा वो भी तेरे गले में...

अलबेली:– हां तो बिना तेरे वो कभी नहीं बंधने वाला...

ओजल, इवान से:– तू भी कुछ बोल ले, या बाद में झगड़ा करेगा...

इवान ओजल का हाथ थामते.… "तू कौन सा गायब होने वाली है। शिक्षा लेने जा रही है, छुट्टियों में मिलती रहेगी। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद फिर से हमारे साथ रहेगी और कुछ दिन बाद हम तुम्हारी शादी करवा देंगे। यही तो जिंदगी है।

ओजल अपने भाई के गले लगती... "हां सच कहा तूने सिवाय शादी की बात के। इतनी जल्दी मुझसे पिंड नही छुड़ा सकते।”

रूही:– मतलब मेरे बात का कोई मोल नहीं, यही ना..

आर्यमणि:– तुम कुछ ज्यादा ही भावुक हो रही हो।

अलबेली:– मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा। हमारा पैक ही परिवार है और ओजल अपने परिवार को छोड़कर जा रही।

आर्यमणि:– हम्मम!! ठीक है जब ऐसी बात है तो ओजल कहीं नहीं जायेगी।

ओजल:– पर मैं तो...

आर्यमणि:– मुझे अपनी बात पूरी कर लेने दो। ओजल कहीं नहीं जायेगी बस शर्त ये है कि मेरे एक सवाल का जवाब दे दो... क्या हमारे जो बच्चे होंगे उन्हे पढ़ने के लिये हम बाहर नहीं भेजेंगे? क्या मैं अपने मां–पापा से दूर हूं तो हमारे बीच का प्यार और भरोसा समाप्त हो गया?

रूही:– अब ऐसे सवाल दगोगे तो क्या जवाब दूं। ठीक है ओजल तू चली जा, लेकिन बीच–बीच में बात करती रहना और जब भी छुट्टी मिले घर आ जाना...

अलबेली नम आंखों से गले लगती... "मैं तो इतनी समझदार नही लेकिन तूने जो सोचा होगा वह अच्छा ही होगा। जा छोड़ी जी ले अपनी जिंदगी..."

ओजल:– ओ पागल अभी नही जा रही। ऐसे कैसे एक्शन को छोड़कर चली जाऊंगी। पहले पलक आंटी से मुलाकात तो हो जाये।

निशांत:– उस से मुलाकात करने तो मैं भी आया हूं।

संन्यासी शिवम्:– और अपने एक संन्यासी की जान के बदले उन परग्रही वाशी को सजा देने मैं आया हूं। तो बताए गुरुदेव क्या योजना है?

"शिवम् सर आप अकेले मियामी के लिये निकलेंगे। वहां छोटे गुरु (अपस्यु) से मिलकर कुछ लोगों की डिटेल लेंगे। जाहिर सी बात है ये एलियन अपनी पहचान छिपाए होंगे। उन छिपे एलियन को बिल से कैसे बाहर निकालना है वो मैं बाद में बताता हूं। ठीक एक हफ्ते बाद हम सब भी मियामी पहुंचेंगे। जबतक हम पहुंचे तबतक आप उनकी पूरी जानकारी निकाल कर रखेंगे। ओजल, इवान और आपकी (संन्यासी शिवम्) एक टीम होगी। मैं, रूही, अलबेली और निशांत एक टीम में होंगे।"

"तो योजना ये है कि सुकेश के घर से चुराए दुर्लभ पत्थरों में से एक पत्थर को आप (संन्यासी शिवम्) मियामी के काला बाजार में बेचने जायेंगे। पत्थर के ऊपर का मंत्र हटते ही आपको उन एलियन को नही ढूंढना है, बल्कि वो एलियन आपको खुद ढूंढते हुये पहुंचेंगे। आपको बस कुछ दिन तक उन्हे अपने पीछे घुमाना है और पूरी जानकारी जुटानी है। वो परग्रही (एलियन) है और आप पृथ्वी वाशी, इसलिए ये ध्यान रखिएगा की आपके सिद्ध किये मंत्र उनपर काम नही आयेगा।”

"रूही और मैं रणभूमि की योजना बनायेंगे। निशांत और शिवम सर एलियन को पूर्ण रूप से ट्रैप करने की योजना बनायेंगे। और तुम तीनो अति उत्साहित टीनेजर्स, इन एलियन के फोन, लैपटॉप सब हैक करके इनकी पूरे सिस्टम में घूसोगे। इनके सिस्टम में घुसकर हैक करना है और जिस दिन इनके साथ आमने–सामने की द्वंद होगी, उस दिन इन एलियन के कम्युनिकेशन सिस्टम को पूरी तरह से ब्लॉक करोगे। यहां इनके साथ क्या घटना हो गयी इनके पुरखों की आत्मा तक को पता नही चलना चाहिए।"

संन्यासी शिवम्:– हम्मम!!! सुनने में तो काफी कारगर योजना है, मुझे इस से बेहतर योजना नही सूझ रहा। किसी के पास इस से बेहतर योजना।

सबने एक साथ हाथ खड़े कर दिये। हर किसी को आर्यमणि की योजना पूर्ण रूप से कारगर दिखाई दे रही थी। सभी जब आर्यमणि की योजना पर सहमत हो गये फिर आर्यमणि ने आगे बोलना शुरू किया... "एक बार इनके सिस्टम में घुस गये, फिर किसी की भी जानकारी छिपी नही रहेगी। इसलिए तुम तीनो (ओजल, इवान, अलबेली) की भूमिका खास होने वाली है, समझ गये न"

अलबेली:– वो सब तो समझ गये बॉस, लेकिन एक्शन के वक्त लड़ाई के मैदान में मेरी पोजिशन क्या होगी?

आर्यमणि:– ये अभी इतना जरूरी है क्या?

अलबेली:– नही, जरूरी तो नहीं है लेकिन जब हींग से लेकर जीरा तक डिस्कस हो ही गया है तो ये क्यों छूटा रहे...

आर्यमणि:– बकवास बंद और अभी जो काम दिया है उसे तुम तीनो मिलकर कैसे करोगे, उसपर डिस्कशन शुरू कर दो। रणभूमि में भी हम टीम की तरह ही उतरेंगे... एक ताकतवर टीम... और कोई मुझे बतायेगा की हमारी टीम ताकतवर कैसे होगी?

अलबेली:– गुरु, खोजी, संन्यासी और 4 खतरनाक विशेष प्राणी, हो गयी हमारी टीम ताकतवर...

आर्यमणि:– और कोई...

रूही:– हम ताकतवर इसलिए भी होंगे क्योंकि हमें उनके बारे में पता होगा, लेकिन उन्हें हमारे विषय में भनक भी नही होगी...

आर्यमणि:– और कोई कुछ...

सबने लगभग मिलता जुलता ही जवाब दिया। सबसे आखरी में संन्यासी शिवम् बोले.… "दुनिया में सबसे ताकतवर सूचना होती है। यदि किसी के बारे में हर बात पता हो तो आप उसे बड़ी आसानी से फसा सकते है। सूचना के बिना किया गया हर काम तुक्के जैसा होता है। दिन अच्छा हुआ तो आपके अनुकूल परिणाम आयेगा और यदि दिन खराब हुआ तो नतीजा विपक्ष के हक में निकलेगा। इसलिए दुनिया में सबसे ताकतवर सूचना होता है। सूचना एक ऐसा हथियार है जो हर दुनिया, हर प्राणी और हर प्रीस्तिथि में एक समान महत्व रखती है और सूचना ही सबसे महत्वपूर्ण हथियार है।"

आर्यमणि:– आप कहीं दिमाग तो नही पढ़ते। बिलकुल सही कहा शिवम् सर ने। अब तक क्या होते आया था... वो एलियन खुद को पीछे रखकर इंसानों से केवल सूचना निकलवाते थे। एक बार उनको दुश्मन की पूरी जानकारी हो गयी, फिर पूरा खेल रचते थे। आज तक उन्हे कोई पहचान नहीं पाया इसलिए किसी की नजर में नही। एक बार उन्हे ये एहसास करवा दो की... "तुम्हारी पूरी खबर हम रखते है।" फिर देखो कैसे थर–थर कांपते है और बेवकूफी में कितनी गलतियां करते है।

रूही:– हम्मम समझ गयी। लेकिन पूरे योजना में अनंत कीर्ति की पुस्तक कहां है?

आर्यमणि:– अनंत कीर्ति की पुस्तक इस योजना का हिस्सा नही है। जब हमें सामने दुश्मन दिख रहा है, तो किताब पर क्यों आश्रित होना। हम खुद से पता लगाएंगे ताकि किताब भी अपडेट होता रहे। अब कोई सवाल जवाब नही, योजना का अगला भाग बताने दो।

"हम सबसे पहले मियामी के खोजी पर हमला बोलेंगे उसके बाद सीधा पहुंचेंगे अर्जेंटीना। अर्जेंटीना के 5 शहरों में भी अपनी तलाश जारी होगी, वहां के किसी एक शहर में बिलकुल इसी योजना को फॉलो करेंगे।"

रूही:– लेकिन मियामी से अर्जेंटीना क्यों जाना है? यूएसए में पहले से इनकी 4 और टुकड़ी है, उन्हे निशाना क्यों नही बनायेंगे?

आर्यमणि:– वो इसलिए क्योंकि उन्हें ये नही लगना चाहिए की केवल यूएसए आये शिकारी मर रहे है। ऐसे में उन्हें लगेगा की उनका टारगेट यूएसए में कहीं है। एक शहर यूएसए का तो एक शहर अर्जेंटीना।

रूही:– अच्छा और अर्जेंटीना के एक शहर के बाद फिर से एक शहर यूएसए का। ऐसे ही करके हम 2 महीनो तक शिकार करेंगे।

आर्यमणि:– ऐसा करोगी तो उन्हे पता चल जायेगा की उनके पीछे कौन है। उन्हे पैटर्न पता होगा की हर बार कोई पत्थर बेचने आता है। एक बार यूएसए में कहीं दिखता है तो एक बार अर्जेंटीना में। तीसरी बार किसी को ट्रैप करने जाओगे तो खुद ट्रैप हो जाओगे।

रूही:– हॉलीवुड का सिनेमा देखकर दिमाग वाले हो गये हो जानू। तो फिर आगे क्या...

आर्यमणि:– हमे कैसे काम करना है वो सबको पता है। 2 देश के अलग–अलग शहर चुनने के बाद, हम रैंडम प्लान बनायेंगे। बेचने का समान अलग होगा लेकिन पता करने का तरीका वही। उम्मीद है सारी बातें साफ होगी।

सभी ने हां में सर हिला दिया। संन्यासी शिवम्, निशांत के साथ उसी वक्त अंतर्ध्यान (टेलीपोर्ट) हो गये। वो अपने काम में लग चुके थे। तीनो टीन वोल्फ वापस अपने गेम पर फोकस करने लगे और शाम के वक्त ढेर सारे उपकरणों के साथ खेलते। वहीं आर्यमणि और रूहि के जिम्मे रणभूमि थी, जो सभी सूचना मिलने के बाद उसकी नीति तय होती। इसलिए ये दोनो हनीमून पीरियड पर चल रहे थे। सुबह खुशनुमा और रातें रंगीन होती। जज्बात उमड़कर सामने आ रहे थे जिसे दिखाने में दोनो जरा भी कसर नही छोड़ रहे थे।

 

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भाग:–110


आर्यमणि और रूहि के जिम्मे रणभूमि थी, जो सभी सूचना मिलने के बाद उसकी नीति तय होती। इसलिए ये दोनो हनीमून पीरियड पर चल रहे थे। सुबह खुशनुमा और रातें रंगीन होती। जज्बात उमड़कर सामने आ रहे थे जिसे दिखाने में दोनो जरा भी कसर नही छोड़ रहे थे।

दोनो बाहों में बाहें डालकर, हसीन वादियों का लुफ्त उठा रहे थे। दोनो एक विशाल वृक्ष के नीचे चादर बिछा कर बैठ गये। आर्यमणि, रूही के गोद में अपना सर डाले लेटा हुआ था। रूही उसके चेहरे पर प्यार से हाथ फेर रही थी... “आर्य... आर्य”

“हां रूही कहो ना”.....

“आर्य, जिंदगी में इतनी सारी खुशियां देने का शुक्रिया। मैने तो ऐसी जिंदगी की कभी कल्पना भी नहीं की थी।”

“कल्पना तो मैंने भी नही किया था कि कभी मेरा प्यार भी सफल होगा। मेरी जिंदगी में आने का शुक्रिया”

“आर्य... क्या है ये... मेरे न होने से भी तुम्हारी जिंदगी मजे में ही कट रही थी। चित्रा, निशांत, भूमि दीदी और तुम्हारे मम्मी–पापा सब तो थे ही”

“हां पर उन सब में तुम नही थी न। एक लड़की (मैत्री) से लगाव था, वह मेरी वजह से मर गयी। टूटे दिल पर तभी उस ओशुन ने धोखे का जख्म दे डाला। मुझे तो लगने लगा था कि सच्चा प्यार मेरे नसीब में ही नही।”

रूही, अपनी आंखे दिखाती... “जब प्यार नही था तब भी मजे करने में कोई कमी नही छोड़े। रिचा, पलक और मैं.. एक वक्त पर 3 लड़कियों के साथ थे।”

“अच्छे माहोल में कैसे आग लगाना है, वो कोई तुमसे सीखे। इतने ताने क्यों दे रही हो? तुमसे इजहार के बाद किसी के साथ हूं क्या?”

“मुझे क्या पता यहां किस–किस को घुमा रहे?

आर्यमणि, रूही की गोद से उठकर सीधा बैठते.… “तुम कहना क्या चाहती हो?”

“तुम आंखें सिकोड़कर ऐसे गुस्से में क्यों बात करने लगे? मैं तो बस पूछ रही थी... हिहिहिहि..."

रूही आर्यमणि को चिढ़ाकर हंस रही थी और आर्यमणि जला–भुना सा चेहरा बनाया रूही को घूर रहा था। बीतते हर पल के साथ रूही की हंसी और बढ़ रही थी और आर्यमणि... वो तो अंदर से चिढ़कर फुंफकार रहा था। तभी रूही, आर्यमणि के गाल पर अपनी उंगलियां फेरती... "ओ ले ले.. लगता है जानू नाराज हो गये।".. आर्यमणि, रूही की इस हरकत पर केवल "हूह".. की फुफकार निकाला और चेहरा दूसरी ओर घुमा लिया।

रूही को सूझी शरारत और उसने अपने कपड़े को कंधे से नीचे सरकाकर ब्रा खोल ली। आर्यमणि अब भी दूसरे ओर मुंह फेरे था। तभी पैंट के ऊपर से ही रूही ने आर्यमणि के लिंग को स्पर्श करती... "अजी एक झलक इस जवानी को भी देख लीजिए, जो सुखी जा रही।"..

आर्यमणि की आंखों में चमक आ गया। जब वह वापस रूही को देखा फिर तो जैसे भेड़िया भूखा और प्यासा हो गया था। सीधा रूही पर बिलकुल टूट ही पड़ा। रूही भी अपना जोश दिखाती क्ला के एक ही वार से पैंट और अंडरवेयर के चिथरे बनाकर हवा में उड़ा दी। आर्यमणि पागलों की तरह रूही के होंठ को चूमते हुये उसके दोनो सुडोल स्तनों को मिज रहा था। वहीं रूही आर्यमणि को चूमती हुई उसके लिंग को मुट्ठी के दबोचकर उसे बड़े जोश से आगे पीछे हिला रही थी।

कुछ देर के वासना में लिप्त जोशीले चुम्बन के बाद रूही धक्के देकर आर्यमणि को जमीन पर ही लिटा दी। आर्यमणि अपने दोनो बांह फैलाए जमीन पर लेटा था और तभी रूही अपना चेहरा नीचे कर लिंग को मुंह में लेकर चूसने लगी। आर्यमणि का लिंग तो जैसे फूलकर शख्त लोहा बन गया हो। जोश ऐसा की आज कब दोनो ने अपना शेप शिफ्ट किया पता ही नही चला।

रूही लगातार लिंग को चूसती रही और आर्यमणि मजे के सागर में गोते लगाता रहा। कुछ देर में ही आर्यमणि अपने अंदर तूफान सा महसूस करने लगा। मुंह में पड़ा लिंग अब योनि में घुसने को तड़प गया। आर्यमणि झटका से उठा और रूही को भी खड़ा कर दिया। नीचे तो रूही के भी तूफान मचा था। आगे समझाना नही पड़ा की करना क्या है। तुरंत रूही भी पेड़ को पकड़कर अपनी कमर नीचे झुका ली और दोनो टांगों को पूरा फैला दिया।

आर्यमणि भी रूही के पीछे आया और अपने लिंग को उसके योनि पर घुसाते हुए एक ही झटके में पूरा लिंग योनि में उतार दिया... "ईशशशशश्श जान निकाल दी”.. रूही की दर्द में लिप्त मादक आवाज निकल गयी। प्रतिक्रिया में आर्यमणि अपने हाथ आगे बढ़ाकर घोड़ी के लगाम की तरह रूही के दोनो मनमोहक स्तनों को अपने मुट्ठी में दबोचकर तेज–तेज झटके मारने लगा। झटका इतना तेज था की विशाल पेड़ पूरा हील रहा था और आर्यमणि बिना किसी बात की परवाह किये हुचाहुच धक्के मार रहा था।

रूही की मादक सिसकारियां पूरे जंगल में सुनाई दे रही थी। काम–लीला पूरे मगन के साथ अपने चरम पर पहुंचा और दोनो एक साथ चंघारते हुये शांत हो गये। दोनो हांफते हुये कुछ देर तक पेड़ से टीके रहे। कुछ देर बाद रूही आर्यमणि को अपने ऊपर से हटाई और अपने कपड़ों को दुरुस्त करने लगी। आर्यमणि उसे कपड़े पहनते देख... "और मेरे कपड़ों का क्या जो तुमने फाड़ दिये?"

रूही एक नजर आर्यमणि को देखी। सहवास के बाद झूलते लिंग को देखकर वह शर्मा गयी। ताबड़तोड़ दौड़ लगाकर गयी और आर्यमणि के पैंट लेकर आयी। एक बार फिर से नजर आर्यमणि के पाऊं के बीच में गयी और शर्माकर अपनी नजरों को नीचे करती पैंट को आर्यमणि के ओर बढ़ा दी। आर्यमणि रूही के हाथ को पकड़कर खींचते.... “पहले तो मेरे हथियार देखकर कभी नजरे नही फेरी, आज बात क्या है?”

रूही:– बस मुझे शर्म सी आ गयी। वैसे भी आज से पहले कभी भी मैंने उन्हें खुले में ऐसे झूलते नही देखा न। अजीब सा लग रहा है..

आर्यमणि, रूही को अपने बाहों में भींचते... “अच्छा और क्या अजीब है।”

“पूरा संसार ही अब अजीब लग रहा है आर्य। ऐसा लगता है सब मिलकर मुझे छेड़ रहे हैं।”

“और सब मिलकर किस प्रकार से तुम्हे छेड़ रहे?”

“ऑफफ्फ ओ आर्य, आज कल कितने सवाल पूछने लगे हो। चलो भी, मुझे बच्चों के लिये खाना भी बनाना है। सभी स्कूल से पहुंचते ही होंगे”...

आर्यमणि, रूही के होंठ पर प्यारा सा चुम्बन लेते.... “चलो फिर चला जाये।”

दोनो एक दूसरे का हाथ थामे, एक दूसरे के आंखों में झांकते प्यार से मुस्कुराते हुये चले। दोनो घर तो पहुंचे लेकिन शाम की पार्टी का निमंत्रण भी ठीक उसके पीछे पहुंचा। दरअसल आज फाइनल मैच था और होम टीम अर्थात स्कूल की टीम दोनो ही मुकाबले, लड़के तथा लड़कियों के मुकाबले में जीत का परचम लहरा चुकी थी। टीन वुल्फ के पार्टी का दौड़ तो मैच के जीत के साथ ही शुरू हो गया था, आर्यमणि और रूही को शाम की ऑफिशियल पार्टी में शामिल होने का निमंत्रण आया।

स्कूल प्रबंधन खुश। प्रिंसिपल खुश। मैच देखने पहुंचे दर्शक खुश। वहीं कोच और खिलाड़ी... उनकी आंखों से तो आंसू रुक ही नही रहे थे। सभी लोग ओजल, इवान और अलबेली को कंधे पर उठाए हूटिंग कर रहे थे। हूटिंग करते हुये खिलाड़ी जब मैदान से वापस लौट रहे थे तभी सामने बर्कले का स्थानीय वुल्फ लूकस और उसका बड़ा सा गैंग उनके रास्ते में खड़ा। लूकस और उसकी गैंग को देखकर सभी शांत हो गये।

इस से पहले की अलबेली और इवान आगे आकर कुछ कहते ओजल सबसे आगे खड़े होकर सबको हाथ दिखाती.... “क्या लूकस हमारा रास्ता रोक खड़े हो”..

लूकस:– सोचा पहली जीत की बधाई दे दूं।

ओजल:– तुम्हारी बधाई ले ली। अब रास्ता छोड़ोगे या फिर से हमे आपस मे कोई दोस्ताना मैच खेलना होगा।

लूकस:– दोस्ताना मैच तो नही खेलना बस अपने सहपाठियों से रिश्ते सुधारने हैं। क्या हम भी जीत की जश्न में सम्मिलित हो सकते है?

ओजल पीछे मुड़कर पूरे टीम को देखती.... “तो क्या कहती है टीम, इसे एक मौका दे दिया जाए”...

ओजल की बात सुनकर सब सोच में पड़ गये। वहीं इवान, लूकस को घूरते हुये धीमे से कहा... “इसे साथ आने कह रही”

ओजल, इवान का हाथ थामकर उसे शांत रहने का इशारा करती.... “अरे यार इतना भी क्या सोचना, खुशी का माहोल है, इसे भी साथ ले लेते हैं। अब तक हमसे लड़ता आया था आज कोई लफ़ड़ा हुआ तो हमारे लिये लड़ेगा। क्यों लूकस सही कहा न मैने”...

लूकस:– हां बिलकुल.... मेरे रहते हमारे जश्न के माहोल को बिगाड़ने की हिम्मत भला कौन करेगा...

पूरी भिड़ एक साथ.... “तो फिर ठीक है इसे भी साथ ले लो”...

अब तो स्कूल की भीड़ और भी बड़ी हो गई। सभी हूटिंग करते सबसे पहले स्कूल की कैंटीन ही पहुंचे, जहां खिलाड़ियों के लिये तरह–तरह के पकवान बनाए गये थे। वहां से सब खा–पीकर सीधा एक खिलाड़ी के घर पहुंचे और हाई–स्कूल पार्टी का लुफ्त उठाने लगे।

नशे का सारा साजो सामान उपलब्ध था। थोड़ी बहुत छींटाकसी और ढेर सारा मनोरंजन। इसी मनोरंजन के बीच दो नादान परिंदे अपनी नैनो का नशा एक दूसरे में डाल रहे थे। अलबेली और इवान दोनो एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा रहे थे। धीरे–धीरे नजरें जैसे इशारा कर रही हो फिर तो पूरी भिड़ में जैसे यही दोनो अकेले हो। होंठ कब होंठ से जुड़ गये पता ही नही चला।

होंठ से होंठ ऐसे जुड़े थे कि दोनो के रोम–रोम में मस्ती का प्रसार हो गया। उत्तेजना पाऊं के अंगूठे से लेकर सर तक फैल चुकी थी और तन बदन से चिंगारियां उठने लगी थी। अलबेली अपना चेहरा पीछे करती.... “इवान यहां कुछ ज्यादा ही भिड़ है।”

इवान, अलबेली का हाथ थामते.... “चलते है फिर कहीं पूर्ण शांत इलाके में जहां सिर्फ तुम्हारी मादक आवाज की गूंज हो।”

अलबेली आंख मारती..... “हां ऐसे ही मिलन की प्यास है इवान... आज कोई रहम मत करना।”

दोनो हाथ में हाथ डाले दौड़ लगा चुके थे। जंगल के जिस हिस्से में रुकने का सोच रहे थे वहां आस–पास कोई न कोई मिल ही रहा था।... “बेंचों आज सभी जंगल में ही मंगल करने निकले है।”

“हिहिहिहिही... झुंझलाते हुये कितने प्यारे लगते हो। सब्र करो मुन्ना... तुम्हारे मुन्ने द्वारा मेरी मुन्नी को रोंदने के लिये पूरी रात पड़ी है। इतना चिढ़ो मत।”

“हां सही कह रही हो। जंगल के और अंदर चलते है।”...

अलबेली और इवान दोनो तेज दौड़ लगाते जंगल के दक्षिणी इलाके में अंदर घुस रहे थे। पीछे उत्तर–पूर्व का इलाका तो लूकस के पैक था इसलिए ये लोग उस ओर जा नही रहे थे और पश्चिम दिशा से तो चले ही थे, जहां विभिन्न हिस्सों में पहले से लड़के–लड़की की मौजूदगी थी।

दोनो दक्षिणी दिशा चलते हुये काफी अंदर घुस आये। कानो में पानी के गिरने की आवाज आ रही थी। घने जंगल के बीच झरने की आवाज सुनकर दोनो ही आकर्षित हो गये। अलबेली, इवान का हाथ छुड़ाकर तेजी से आगे भागी। भागते हुये ही उसने अपने कंधे से अपने कपड़े को सरकाया और नीचे जमीन पर उन्हे पीछे छोड़ती आगे बढ़ गयी। दौड़ते हुये ही ब्रा भी खुल चुकी थी और किनारे पर पहुंचने के साथ ही एक छोटे से विराम में उसकी पैंटी नीचे की धूल चाट रही थी और अलबेली छपाक से पानी में।

इवान भी ठीक पीछे ही था। आंखों के सामने चल रहे इतने कामुक नजारे को देखकर भला वो क्यों पीछे रहता। लेकिन जो देखने का सुख अलबेली ने इवान को दिया था, वही वो अलबेली को देना चाह रहा था। इवान अपनी जगह पर खड़ा हो गया। अलबेली पानी में छलांग लगाने के साथ ही पीछे मुड़ गयी। पानी में भींगा बदन क्या कामुक लग रहा था। इवान तो जैसे मदहोश ही हो गया।

फिर तो उस से भी रुका न गया। वह भी अलबेली की तरह ही कपड़े निकलते हुये दौड़ा। इवान की इस दिलकश अदा पर अलबेली हूटिंग करती हुई सीटियां बजाने लगी। और इवान भी लंबी छलांग लगाते सीधा पानी में। फिर तो दोनो से बर्दास्त होना मुश्किल। एक दूसरे को आलिंगन में भरकर बेहतशा चूमने लगे। मुंह पूरा खोलकर एक दूसरे की जीभ को चूसते हुये कामुक चुम्बन का मजा ले रहे थे। अलबेली सीधा लिंग को मुट्ठी में दबोचकर इवान को चूमे जा रही थी वहीं इवान अपनी उंगलियों को अलबेली के योनि पर बड़ी तेजी से फिरा रहा था। अलबेली इतनी कामुक हो चली थी की उसकी योनि लगातार मिलन के प्यास में जैसे आंसू बहा रही हो।

अलबेली, इवान को धक्का देकर पीछे की और किनारे आकर घास पर पाऊं फैलाकर लेट गयी। लेटने के साथ ही अपने होंठ को दातों तले दबाते इवान को बुलाने लगी। खुला निमंत्रण और पूर्ण जोश। इवान भी पूरी जोश के साथ पहुंचा। अलबेली के दोनो पाऊं के बीच आकर इवान ने खुद को पोजिशन किया और अलबेली की योनि पर लिंग को घिसने लगा।

अलबेली इतनी उत्तेजित थी कि गरम लिंग के योनि पर स्पर्श मात्र से वह बौखला गयी। लिंग अंदर क्यों नही घुसा इस बेकरारी ने ऐसा मजबूर किया की अलबेली अपने हाथ से लिंग को पकड़ी और कमर का तेज झटका देकर पूरी लिंग को अंदर समा ली। खुद ही कमर की तेज–तेज झटकती..... “आह्ह्ह... इवान... पूरे जोश से झटके मारो... उफ्फ ये उत्तेजना कहीं मेरी जान न ले ले।"...

केवल अलबेली के दिमाग में हवस नही चढ़ी थी बल्कि इवान भी उतने ही जोश में था। इवान ने अपने होंठ अलबेली के होंठ से लगाया। पूरे जोश भरा चुम्बन लेते अपने दोनो हाथ से अलबेली के दोनो कराड़े और विकसित हो रहे स्तन को दबोचते हुये, तूफानी झटके मारने लगा। दोनो ही पूरे जोश से एक दूसरे के साथ सहवास कर रहे थे। झटका मारते–मारते अचानक ही इवान अलबेली के ऊपर से हट गया। अलबेली हांफती हुई इवान को घूरने लगी.... “ऐसे अचानक उठ क्यों गये”..

“पोजिशन बदलने का मेरा मन हो गया”...

“कौन सी पोजिशन में मेरी मारोगे जल्दी बताओ, पर दूर न रहो”...

“एनिमल स्टाइल... दूसरे शब्दों में कहें तो डॉगी स्टाइल”...

अलबेली अपने घुटनों के बल होकर अपने पाऊं को थोड़ा खोलती.... “मुझे मतलब पता है, बस तुम कुत्ते की तरह नही भेड़िए की तरह सेक्स करना। अब आओ भी... जल्दी से मेरी आग को शांत करो”.....

इवान लपक कर आया और एक पूरे पंजे से इतनी जोर चूतड पर थाप मारा की आवाज चारो ओर गूंज गयी.... "आउच, जंगली... अब इतने ही जोड़ से अपना हथियार भी डाल दो”.... “हां, हां, क्यों नही मेरी चुलबुली... ये लो”..

“नही, अरे, वहां नही... ओ माआआआ, बेंचों, बेरहम... गलत छेद में अपना लन्ड डाल दिया रे... आआआआआ, इवान बहुत तेज दर्द हो रहा.... निकाल वहां से”....

“तुमने ही तो कहा था आज रहम मत करना... तो ये लो”.... अपनी बात कहकर इवान लंबे–लंबे धक्के मारने लगा। कमसिन सी लड़की जो कुछ दिन पहले ही खुली थी, इवान ने जोश–जोश में अपना लिंग उसके गुदा मार्ग में घुसा चुका था। शुरवाती धक्के इतने दर्द भरे थे कि पहले चिल्लाना मुंह से निकला और उसके बाद में “वूऊऊऊऊऊऊऊ” का तेज वुल्फ साउंड।

अलबेली जितना तेज चिल्ला रही थी इवान जोश में उतना ही तेज धक्के मार रहा था। बेरहम इतना की अलबेली रोती रही पर उसे कोई फर्क नहीं पड़ा। कुछ देर के सहवास के बाद फिर अलबेली भी सामान्य होने लगी। अब पीछे से चल रहे ताबड़तोड़ संभोग का वो भी आनंद ले रही थी। मादक सिसकारी चारो ओर गूंज रही थी।

“आआह्ह्ह, मजा आ गया लेकिन मेरी जान मेरे घुटने छिल जायेंगे, अब तो लिटा दो”...

इवान भी इस पोजीशन में शायद थक चुका था और अलबेली के कमसिन बदन को अपने नीचे लिटाकर रौंदने का मन कर रहा हो। बिना वक्त गवाए इवान ने उसे पलटा और दोनो टांग फैलाकर अपने लिंग को सरसराते हुये पूरा अंदर घुसेड़ दिया। अलबेली भी “आआह्हह” की मादक सिसकारी लेते अपने पीठ को थोड़ा ऊपर की और इवान के गर्दन में अपने बांह डालकर, उसे अपने ऊपर लिटाती उसके होंठ चूमने लगी। होंटों के रसपान मधुर थे और नीचे धक्कों की रफत्तार अनियंत्रित। इतने जोरदार धक्कों से दोनो का रोम–रोम गनगना गया। फिर वो अंतिम पड़ाव भी आया जब पहले अलबेली अपने स्खलन पर इतना तेज चिल्लाई की पूरा माहोल उसके मादक चरम सुख का गवाह बन गया। उसके ठीक अगले पल इवान का भी वही हाल था।

वह जितनी संजीदा थी, उतनी ही जिंदादिल। जितनी शांत थी, उतनी ही उद्दंड। वह जितनी समझदार थी उतनी ही भावुक। वह अजब थी, वह गजब थी। अल्फा पैक की ओजल शायद अपने आप में सम्पूर्ण थी। आज मध्य रात्रि की बेला वह लेटी थी। काम उत्तेजना में लिप्त सारे वस्त्रों को त्याग कर बस लंबी–लंबी सिसकारियां ले रही थी। निर्वस्त्र हुये कई लड़के सांप की भांति ओजल से लिपटे थे। जीवन के पहला संभोग का अनुभव इतना रोमांचक था की वह बस सिसकारियां लेती खुद को निढल छोड़ चुकी थी। उसके गुप्तांगों और बदन पर रेंग रहे हाथ, लिंग इत्यादि–इत्यादि उसे अत्यधिक मजा दे रहे थे।

 

CFL7897

Be lazy
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Wahh bhai aarya ki ranniti tayar hai...
Aisa kyu lag raha hai aarya ki dimag me kuch aur bhi idea chal raha hai..kyu ki jadugar ki dimag ko read karne k bad alfa pack ki taraf se koi reaction nahi aya ya may be baad me aayega..
Aarya ka sikar karne top ke fighter bhaje hai aliens ne..to aarya ki bhi kuch na kuch alag se tayari hogi ....dekhate hai
Baki yudh me jane se pahale thoda se relax hona bhi jaruri hai..🤗🤗🤗
Sandar update...
 

Devilrudra

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भाग:–109


“द... द... दे... देखो आर्यमणि... नहीईईईईईई…. आआआआआआआआआ... मुझे माफ कर दो... नहीईईईईईई.… आआआआआआआआआ.. छोड़ दो मुझेएएएएएए”…. आखिरी उस चीख के साथ जादूगर की आवाज शांत हो गयी। उसका फरफरता शरीर जमीन पर था और जादूगर का धड़कता हृदय आर्यमणि के हाथ में। जादूगर गिड़गिड़ाता रहा लेकिन आर्यमणि अपने दोनो पंजे के नाखून को, बड़े प्यार से उसके सीने में घुसाकर जादूगर का सीना फाड़ दिया और उसके धड़कते हृदय को मुट्ठी में दबोचकर निकाल लिया।

अल्फा पैक में जैसे जोश आ गया था। आर्यमणि के कारनामे को देख सभी हूटिंग कर रहे थे। वहीं निशांत तुरंत जादूगर को सोफे पर रखा और शिवम् विलय मंत्र अभियोजन को पूर्ण कर दिया। देखते ही देखते जादूगर का पार्थिव शरीर कण में बदलकर हवा में समा गया।

कुछ देर बाद सभी लिविंग रूम में थे। अब भी सबके आंखों के सामने वही दृश्य था, कैसे आर्यमणि ने जादूगर के हृदय को सीने से बाहर निकाल लिया। सभी उसी बात की चर्चा कर रहे थे। रूही सबके लिये खाने का इंतजाम करने के बाद सबके बीच बैठते.… "हां सभी मिलकर आर्य के वीरता के चर्चे करो, लेकिन ये कोई न पूछना की कब आर्य ने जादूगर के शरीर को उन एलियन के साइंस लैब से लाने का फैसला कर लिया? और कब इन्होंने संन्यासी शिवम् और देवर जी से भी संपर्क कर लिया?"

निशांत:– हाय भाभी, क्या प्यार से देवर जी बोली हो। थांकू थांकू...

रूही:– जाइए देवर जी आप बात को घुमाएं नही... अल्फा पैक ये धोका है या नही...

अलबेली:– जादूगर मर गया। अब उसके शरीर का क्या अंतिम संस्कार करोगी। मतलब जो तुम्हारे काम की बात नही हो, वो भी तुमसे पूछकर क्यों नही किया गया? जैसे दादा तुम्हे पूरी योजना बता देते और तुम जादूगर का शरीर लेने उन एलियन के साइंस लैब में पहुंच जाती...

रूही, छोटा सा मुंह बनाती... "पर हम तो पैक है ना... हमारे सामने ही प्लान बना लेते तो क्या चला जाता?”

आर्यमणि, रूही को अपने बाहों में भींचते... “ओ बावड़ी, मैने कोई प्लान नही बनाया। बेकार में अपना मन छोटा कर रही हो। वो तो निशांत और संन्यासी शिवम् ने पूरी योजना बनाई थी।”

रूही:– पर ये लोग तो हमारे सामने ही आये थे। फिर इतना प्लान कब कर लिया और इन्हे साइंस लैब के बारे में कैसे पता।

संन्यासी शिवम्:– तुम्हे हर बात का विवरण लिये बिना चैन नहीं आयेगा। साइंस लैब का पता तो अनंत कीर्ति की पुस्तक से चल गया। एलियन के पास कितने वर्षों से यह किताब थी, ऐसा हो ही नही सकता था कि वो लोग इस पुस्तक को साइंस लैब न ले गये हो। बस एलियन के ठिकाने का नाम बताओ और हम किताब के जरिए पता कर लेंगे।

रूही:– कैसे?

शिवम्:– आर्य ने जादूगर के शरीर का स्मरण कर उसपर अलर्ट मांगा था। किताब ने साइंस लैब का लोकेशन बता दिया। फिर निशांत ने अपनी योजना बताई की विलय मंत्र से कैसे इस जादूगर को कैद करेंगे और नतीजा सामने है। और ये पूरी योजना यहां पहुंचने के बाद अपने आप ही बनती चली गयी। यूं किसी टेबल पर बैठकर कभी कोई चर्चा नहीं हुई।

आर्यमणि:– इसे ही तो टीम वर्क कहते है।

निशांत:– टीम वर्क को मारो गोली और ये बताओ की तुम दोनो शादी कब कर रहे। अरे यार आर्य तू जल्दी शादी कर ले, तभी तो मैं भी भाभी के किसी हॉट बहन पर लाइन मार सकता हूं।

रूही:– उसके लिये शादी की क्या जरूरत...

ओजल:– दीदी खबरदार...

रूही:– चुपकर मेमनी... देवर जी मिल लिये मेरी बहन से... जाओ लपक लो...

निशांत:– क्या बात है.. बहन तो घर में ही है... वो भी बिलकुल मेरे कल्पनाओं वाली लड़की... क्यों ओजल क्या ख्याल है?

ओजल:– देखिए मेरे होने वाले जीजू के चड्डी–बड्डी, मुझसे दूर ही रहिए वरना मैं आपको चूहा बना दूंगी...

निशांत:– मेंमनी का लवर चूहा... अच्छा कॉम्बो है। ठीक है भाभी फिर आज से ओजल हमारे साथ रहने वाली है।

रूही:–मांझे…

ओजल:– अभी तो खुद ही कही न लपक लो... तो निशांत ने मुझे लपक लिया...

रूही:– इतनी जल्दी लपका भी गयी... लेकिन कैसे?

अलबेली, रूही के कान में.… "अंदरूनी जिश्मानी आग"..

रूही, अलबेली को ठोकती... "छी, छी.. क्या बकवास कर रही है। सुनो जी मेरे होने वाले, ये क्या हो रहा है?"

ओजल:– मैं संन्यासी बनने की सोच रही हूं।इसलिए अपनी स्वेक्छा से संन्यासी शिवम् जी के साथ जाना चाहती हूं। हां लेकिन पहले आप सबकी मर्जी होगी तब...

आर्यमणि:– ये कब हो गया? मैं यहां क्या चर्चा करने बैठा था और हो क्या रहा है। तुम कोई संन्यासी नही बनोगी... हमारे साथ ही रहो... तुम्हे क्या सीखना है वो बता दो, मैं यहीं इंतजाम कर दूंगा...

ओजल:– इन्ही संन्यासियों के वजह से हमारा परिवार नागपुर में सुरक्षित है। कोई दूसरा रखवाला आपके घर निःस्वार्थ भावना से काम करे तो अच्छा, लेकिन वही रखवाला आपके घर का कोई सदस्य बनना चाहे तो आपका प्यार रोड़ा बन जाता है। फिर आप संस्यासी न बनने की 100 वजह बताने लगोगे...

आर्यमणि:– लेकिन ओजल संन्यासी बनना वाकई काफी कठिन कार्य है।

संन्यासी शिवम्:– पर कह किसने दिया की ओजल एक सन्यासी बनेगी। ओजल क्या होगी यह उसकी मेहनत और आचार्य जी तय करेंगे। हां ओजल के चुनाव का भी ख्याल रखा जायेगा लेकिन अभी के लिये इतना ही की कंचनजंघा में बसे गांव के लिये कुछ शिष्य चाहिए और ओजल भी उनमें से एक होगी। अब कहिए गुरुदेव..

आर्यमणि:– मैं क्या कहूं, शायद ओजल को दूर जाते नही देख सकता। इस मामले में मैं अकेला कुछ नही कह सकता, यहां परिवार में और भी सदस्य है।

रूही:– हां बिलकुल सही कहा आर्य ने। ओजल कहीं नहीं जाएगी, और इसके अलावा मैं कुछ नही सुनना चाहती।

अलबेली:– ए पगलू… पैक में एक लड़का ले आऊंगी, या तुझे इतना अखड़ता है तो मैं इवान को राखी बांध दूंगी, लेकिन तू कहीं नहीं जायेगी।

ओजल:– इतना कुछ होने के बाद तू राखी कैसे बांध सकती है। मंगलसूत्र बंधेगा वो भी तेरे गले में...

अलबेली:– हां तो बिना तेरे वो कभी नहीं बंधने वाला...

ओजल, इवान से:– तू भी कुछ बोल ले, या बाद में झगड़ा करेगा...

इवान ओजल का हाथ थामते.… "तू कौन सा गायब होने वाली है। शिक्षा लेने जा रही है, छुट्टियों में मिलती रहेगी। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद फिर से हमारे साथ रहेगी और कुछ दिन बाद हम तुम्हारी शादी करवा देंगे। यही तो जिंदगी है।

ओजल अपने भाई के गले लगती... "हां सच कहा तूने सिवाय शादी की बात के। इतनी जल्दी मुझसे पिंड नही छुड़ा सकते।”

रूही:– मतलब मेरे बात का कोई मोल नहीं, यही ना..

आर्यमणि:– तुम कुछ ज्यादा ही भावुक हो रही हो।

अलबेली:– मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा। हमारा पैक ही परिवार है और ओजल अपने परिवार को छोड़कर जा रही।

आर्यमणि:– हम्मम!! ठीक है जब ऐसी बात है तो ओजल कहीं नहीं जायेगी।

ओजल:– पर मैं तो...

आर्यमणि:– मुझे अपनी बात पूरी कर लेने दो। ओजल कहीं नहीं जायेगी बस शर्त ये है कि मेरे एक सवाल का जवाब दे दो... क्या हमारे जो बच्चे होंगे उन्हे पढ़ने के लिये हम बाहर नहीं भेजेंगे? क्या मैं अपने मां–पापा से दूर हूं तो हमारे बीच का प्यार और भरोसा समाप्त हो गया?

रूही:– अब ऐसे सवाल दगोगे तो क्या जवाब दूं। ठीक है ओजल तू चली जा, लेकिन बीच–बीच में बात करती रहना और जब भी छुट्टी मिले घर आ जाना...

अलबेली नम आंखों से गले लगती... "मैं तो इतनी समझदार नही लेकिन तूने जो सोचा होगा वह अच्छा ही होगा। जा छोड़ी जी ले अपनी जिंदगी..."

ओजल:– ओ पागल अभी नही जा रही। ऐसे कैसे एक्शन को छोड़कर चली जाऊंगी। पहले पलक आंटी से मुलाकात तो हो जाये।

निशांत:– उस से मुलाकात करने तो मैं भी आया हूं।

संन्यासी शिवम्:– और अपने एक संन्यासी की जान के बदले उन परग्रही वाशी को सजा देने मैं आया हूं। तो बताए गुरुदेव क्या योजना है?

"शिवम् सर आप अकेले मियामी के लिये निकलेंगे। वहां छोटे गुरु (अपस्यु) से मिलकर कुछ लोगों की डिटेल लेंगे। जाहिर सी बात है ये एलियन अपनी पहचान छिपाए होंगे। उन छिपे एलियन को बिल से कैसे बाहर निकालना है वो मैं बाद में बताता हूं। ठीक एक हफ्ते बाद हम सब भी मियामी पहुंचेंगे। जबतक हम पहुंचे तबतक आप उनकी पूरी जानकारी निकाल कर रखेंगे। ओजल, इवान और आपकी (संन्यासी शिवम्) एक टीम होगी। मैं, रूही, अलबेली और निशांत एक टीम में होंगे।"

"तो योजना ये है कि सुकेश के घर से चुराए दुर्लभ पत्थरों में से एक पत्थर को आप (संन्यासी शिवम्) मियामी के काला बाजार में बेचने जायेंगे। पत्थर के ऊपर का मंत्र हटते ही आपको उन एलियन को नही ढूंढना है, बल्कि वो एलियन आपको खुद ढूंढते हुये पहुंचेंगे। आपको बस कुछ दिन तक उन्हे अपने पीछे घुमाना है और पूरी जानकारी जुटानी है। वो परग्रही (एलियन) है और आप पृथ्वी वाशी, इसलिए ये ध्यान रखिएगा की आपके सिद्ध किये मंत्र उनपर काम नही आयेगा।”

"रूही और मैं रणभूमि की योजना बनायेंगे। निशांत और शिवम सर एलियन को पूर्ण रूप से ट्रैप करने की योजना बनायेंगे। और तुम तीनो अति उत्साहित टीनेजर्स, इन एलियन के फोन, लैपटॉप सब हैक करके इनकी पूरे सिस्टम में घूसोगे। इनके सिस्टम में घुसकर हैक करना है और जिस दिन इनके साथ आमने–सामने की द्वंद होगी, उस दिन इन एलियन के कम्युनिकेशन सिस्टम को पूरी तरह से ब्लॉक करोगे। यहां इनके साथ क्या घटना हो गयी इनके पुरखों की आत्मा तक को पता नही चलना चाहिए।"

संन्यासी शिवम्:– हम्मम!!! सुनने में तो काफी कारगर योजना है, मुझे इस से बेहतर योजना नही सूझ रहा। किसी के पास इस से बेहतर योजना।

सबने एक साथ हाथ खड़े कर दिये। हर किसी को आर्यमणि की योजना पूर्ण रूप से कारगर दिखाई दे रही थी। सभी जब आर्यमणि की योजना पर सहमत हो गये फिर आर्यमणि ने आगे बोलना शुरू किया... "एक बार इनके सिस्टम में घुस गये, फिर किसी की भी जानकारी छिपी नही रहेगी। इसलिए तुम तीनो (ओजल, इवान, अलबेली) की भूमिका खास होने वाली है, समझ गये न"

अलबेली:– वो सब तो समझ गये बॉस, लेकिन एक्शन के वक्त लड़ाई के मैदान में मेरी पोजिशन क्या होगी?

आर्यमणि:– ये अभी इतना जरूरी है क्या?

अलबेली:– नही, जरूरी तो नहीं है लेकिन जब हींग से लेकर जीरा तक डिस्कस हो ही गया है तो ये क्यों छूटा रहे...

आर्यमणि:– बकवास बंद और अभी जो काम दिया है उसे तुम तीनो मिलकर कैसे करोगे, उसपर डिस्कशन शुरू कर दो। रणभूमि में भी हम टीम की तरह ही उतरेंगे... एक ताकतवर टीम... और कोई मुझे बतायेगा की हमारी टीम ताकतवर कैसे होगी?

अलबेली:– गुरु, खोजी, संन्यासी और 4 खतरनाक विशेष प्राणी, हो गयी हमारी टीम ताकतवर...

आर्यमणि:– और कोई...

रूही:– हम ताकतवर इसलिए भी होंगे क्योंकि हमें उनके बारे में पता होगा, लेकिन उन्हें हमारे विषय में भनक भी नही होगी...

आर्यमणि:– और कोई कुछ...

सबने लगभग मिलता जुलता ही जवाब दिया। सबसे आखरी में संन्यासी शिवम् बोले.… "दुनिया में सबसे ताकतवर सूचना होती है। यदि किसी के बारे में हर बात पता हो तो आप उसे बड़ी आसानी से फसा सकते है। सूचना के बिना किया गया हर काम तुक्के जैसा होता है। दिन अच्छा हुआ तो आपके अनुकूल परिणाम आयेगा और यदि दिन खराब हुआ तो नतीजा विपक्ष के हक में निकलेगा। इसलिए दुनिया में सबसे ताकतवर सूचना होता है। सूचना एक ऐसा हथियार है जो हर दुनिया, हर प्राणी और हर प्रीस्तिथि में एक समान महत्व रखती है और सूचना ही सबसे महत्वपूर्ण हथियार है।"

आर्यमणि:– आप कहीं दिमाग तो नही पढ़ते। बिलकुल सही कहा शिवम् सर ने। अब तक क्या होते आया था... वो एलियन खुद को पीछे रखकर इंसानों से केवल सूचना निकलवाते थे। एक बार उनको दुश्मन की पूरी जानकारी हो गयी, फिर पूरा खेल रचते थे। आज तक उन्हे कोई पहचान नहीं पाया इसलिए किसी की नजर में नही। एक बार उन्हे ये एहसास करवा दो की... "तुम्हारी पूरी खबर हम रखते है।" फिर देखो कैसे थर–थर कांपते है और बेवकूफी में कितनी गलतियां करते है।

रूही:– हम्मम समझ गयी। लेकिन पूरे योजना में अनंत कीर्ति की पुस्तक कहां है?

आर्यमणि:– अनंत कीर्ति की पुस्तक इस योजना का हिस्सा नही है। जब हमें सामने दुश्मन दिख रहा है, तो किताब पर क्यों आश्रित होना। हम खुद से पता लगाएंगे ताकि किताब भी अपडेट होता रहे। अब कोई सवाल जवाब नही, योजना का अगला भाग बताने दो।

"हम सबसे पहले मियामी के खोजी पर हमला बोलेंगे उसके बाद सीधा पहुंचेंगे अर्जेंटीना। अर्जेंटीना के 5 शहरों में भी अपनी तलाश जारी होगी, वहां के किसी एक शहर में बिलकुल इसी योजना को फॉलो करेंगे।"

रूही:– लेकिन मियामी से अर्जेंटीना क्यों जाना है? यूएसए में पहले से इनकी 4 और टुकड़ी है, उन्हे निशाना क्यों नही बनायेंगे?

आर्यमणि:– वो इसलिए क्योंकि उन्हें ये नही लगना चाहिए की केवल यूएसए आये शिकारी मर रहे है। ऐसे में उन्हें लगेगा की उनका टारगेट यूएसए में कहीं है। एक शहर यूएसए का तो एक शहर अर्जेंटीना।

रूही:– अच्छा और अर्जेंटीना के एक शहर के बाद फिर से एक शहर यूएसए का। ऐसे ही करके हम 2 महीनो तक शिकार करेंगे।

आर्यमणि:– ऐसा करोगी तो उन्हे पता चल जायेगा की उनके पीछे कौन है। उन्हे पैटर्न पता होगा की हर बार कोई पत्थर बेचने आता है। एक बार यूएसए में कहीं दिखता है तो एक बार अर्जेंटीना में। तीसरी बार किसी को ट्रैप करने जाओगे तो खुद ट्रैप हो जाओगे।

रूही:– हॉलीवुड का सिनेमा देखकर दिमाग वाले हो गये हो जानू। तो फिर आगे क्या...

आर्यमणि:– हमे कैसे काम करना है वो सबको पता है। 2 देश के अलग–अलग शहर चुनने के बाद, हम रैंडम प्लान बनायेंगे। बेचने का समान अलग होगा लेकिन पता करने का तरीका वही। उम्मीद है सारी बातें साफ होगी।

सभी ने हां में सर हिला दिया। संन्यासी शिवम्, निशांत के साथ उसी वक्त अंतर्ध्यान (टेलीपोर्ट) हो गये। वो अपने काम में लग चुके थे। तीनो टीन वोल्फ वापस अपने गेम पर फोकस करने लगे और शाम के वक्त ढेर सारे उपकरणों के साथ खेलते। वहीं आर्यमणि और रूहि के जिम्मे रणभूमि थी, जो सभी सूचना मिलने के बाद उसकी नीति तय होती। इसलिए ये दोनो हनीमून पीरियड पर चल रहे थे। सुबह खुशनुमा और रातें रंगीन होती। जज्बात उमड़कर सामने आ रहे थे जिसे दिखाने में दोनो जरा भी कसर नही छोड़ रहे थे।
Jabardast👍👍👍
 

Devilrudra

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भाग:–110


आर्यमणि और रूहि के जिम्मे रणभूमि थी, जो सभी सूचना मिलने के बाद उसकी नीति तय होती। इसलिए ये दोनो हनीमून पीरियड पर चल रहे थे। सुबह खुशनुमा और रातें रंगीन होती। जज्बात उमड़कर सामने आ रहे थे जिसे दिखाने में दोनो जरा भी कसर नही छोड़ रहे थे।

दोनो बाहों में बाहें डालकर, हसीन वादियों का लुफ्त उठा रहे थे। दोनो एक विशाल वृक्ष के नीचे चादर बिछा कर बैठ गये। आर्यमणि, रूही के गोद में अपना सर डाले लेटा हुआ था। रूही उसके चेहरे पर प्यार से हाथ फेर रही थी... “आर्य... आर्य”

“हां रूही कहो ना”.....

“आर्य, जिंदगी में इतनी सारी खुशियां देने का शुक्रिया। मैने तो ऐसी जिंदगी की कभी कल्पना भी नहीं की थी।”

“कल्पना तो मैंने भी नही किया था कि कभी मेरा प्यार भी सफल होगा। मेरी जिंदगी में आने का शुक्रिया”

“आर्य... क्या है ये... मेरे न होने से भी तुम्हारी जिंदगी मजे में ही कट रही थी। चित्रा, निशांत, भूमि दीदी और तुम्हारे मम्मी–पापा सब तो थे ही”

“हां पर उन सब में तुम नही थी न। एक लड़की (मैत्री) से लगाव था, वह मेरी वजह से मर गयी। टूटे दिल पर तभी उस ओशुन ने धोखे का जख्म दे डाला। मुझे तो लगने लगा था कि सच्चा प्यार मेरे नसीब में ही नही।”

रूही, अपनी आंखे दिखाती... “जब प्यार नही था तब भी मजे करने में कोई कमी नही छोड़े। रिचा, पलक और मैं.. एक वक्त पर 3 लड़कियों के साथ थे।”

“अच्छे माहोल में कैसे आग लगाना है, वो कोई तुमसे सीखे। इतने ताने क्यों दे रही हो? तुमसे इजहार के बाद किसी के साथ हूं क्या?”

“मुझे क्या पता यहां किस–किस को घुमा रहे?

आर्यमणि, रूही की गोद से उठकर सीधा बैठते.… “तुम कहना क्या चाहती हो?”

“तुम आंखें सिकोड़कर ऐसे गुस्से में क्यों बात करने लगे? मैं तो बस पूछ रही थी... हिहिहिहि..."

रूही आर्यमणि को चिढ़ाकर हंस रही थी और आर्यमणि जला–भुना सा चेहरा बनाया रूही को घूर रहा था। बीतते हर पल के साथ रूही की हंसी और बढ़ रही थी और आर्यमणि... वो तो अंदर से चिढ़कर फुंफकार रहा था। तभी रूही, आर्यमणि के गाल पर अपनी उंगलियां फेरती... "ओ ले ले.. लगता है जानू नाराज हो गये।".. आर्यमणि, रूही की इस हरकत पर केवल "हूह".. की फुफकार निकाला और चेहरा दूसरी ओर घुमा लिया।

रूही को सूझी शरारत और उसने अपने कपड़े को कंधे से नीचे सरकाकर ब्रा खोल ली। आर्यमणि अब भी दूसरे ओर मुंह फेरे था। तभी पैंट के ऊपर से ही रूही ने आर्यमणि के लिंग को स्पर्श करती... "अजी एक झलक इस जवानी को भी देख लीजिए, जो सुखी जा रही।"..

आर्यमणि की आंखों में चमक आ गया। जब वह वापस रूही को देखा फिर तो जैसे भेड़िया भूखा और प्यासा हो गया था। सीधा रूही पर बिलकुल टूट ही पड़ा। रूही भी अपना जोश दिखाती क्ला के एक ही वार से पैंट और अंडरवेयर के चिथरे बनाकर हवा में उड़ा दी। आर्यमणि पागलों की तरह रूही के होंठ को चूमते हुये उसके दोनो सुडोल स्तनों को मिज रहा था। वहीं रूही आर्यमणि को चूमती हुई उसके लिंग को मुट्ठी के दबोचकर उसे बड़े जोश से आगे पीछे हिला रही थी।

कुछ देर के वासना में लिप्त जोशीले चुम्बन के बाद रूही धक्के देकर आर्यमणि को जमीन पर ही लिटा दी। आर्यमणि अपने दोनो बांह फैलाए जमीन पर लेटा था और तभी रूही अपना चेहरा नीचे कर लिंग को मुंह में लेकर चूसने लगी। आर्यमणि का लिंग तो जैसे फूलकर शख्त लोहा बन गया हो। जोश ऐसा की आज कब दोनो ने अपना शेप शिफ्ट किया पता ही नही चला।

रूही लगातार लिंग को चूसती रही और आर्यमणि मजे के सागर में गोते लगाता रहा। कुछ देर में ही आर्यमणि अपने अंदर तूफान सा महसूस करने लगा। मुंह में पड़ा लिंग अब योनि में घुसने को तड़प गया। आर्यमणि झटका से उठा और रूही को भी खड़ा कर दिया। नीचे तो रूही के भी तूफान मचा था। आगे समझाना नही पड़ा की करना क्या है। तुरंत रूही भी पेड़ को पकड़कर अपनी कमर नीचे झुका ली और दोनो टांगों को पूरा फैला दिया।

आर्यमणि भी रूही के पीछे आया और अपने लिंग को उसके योनि पर घुसाते हुए एक ही झटके में पूरा लिंग योनि में उतार दिया... "ईशशशशश्श जान निकाल दी”.. रूही की दर्द में लिप्त मादक आवाज निकल गयी। प्रतिक्रिया में आर्यमणि अपने हाथ आगे बढ़ाकर घोड़ी के लगाम की तरह रूही के दोनो मनमोहक स्तनों को अपने मुट्ठी में दबोचकर तेज–तेज झटके मारने लगा। झटका इतना तेज था की विशाल पेड़ पूरा हील रहा था और आर्यमणि बिना किसी बात की परवाह किये हुचाहुच धक्के मार रहा था।

रूही की मादक सिसकारियां पूरे जंगल में सुनाई दे रही थी। काम–लीला पूरे मगन के साथ अपने चरम पर पहुंचा और दोनो एक साथ चंघारते हुये शांत हो गये। दोनो हांफते हुये कुछ देर तक पेड़ से टीके रहे। कुछ देर बाद रूही आर्यमणि को अपने ऊपर से हटाई और अपने कपड़ों को दुरुस्त करने लगी। आर्यमणि उसे कपड़े पहनते देख... "और मेरे कपड़ों का क्या जो तुमने फाड़ दिये?"

रूही एक नजर आर्यमणि को देखी। सहवास के बाद झूलते लिंग को देखकर वह शर्मा गयी। ताबड़तोड़ दौड़ लगाकर गयी और आर्यमणि के पैंट लेकर आयी। एक बार फिर से नजर आर्यमणि के पाऊं के बीच में गयी और शर्माकर अपनी नजरों को नीचे करती पैंट को आर्यमणि के ओर बढ़ा दी। आर्यमणि रूही के हाथ को पकड़कर खींचते.... “पहले तो मेरे हथियार देखकर कभी नजरे नही फेरी, आज बात क्या है?”

रूही:– बस मुझे शर्म सी आ गयी। वैसे भी आज से पहले कभी भी मैंने उन्हें खुले में ऐसे झूलते नही देखा न। अजीब सा लग रहा है..

आर्यमणि, रूही को अपने बाहों में भींचते... “अच्छा और क्या अजीब है।”

“पूरा संसार ही अब अजीब लग रहा है आर्य। ऐसा लगता है सब मिलकर मुझे छेड़ रहे हैं।”

“और सब मिलकर किस प्रकार से तुम्हे छेड़ रहे?”

“ऑफफ्फ ओ आर्य, आज कल कितने सवाल पूछने लगे हो। चलो भी, मुझे बच्चों के लिये खाना भी बनाना है। सभी स्कूल से पहुंचते ही होंगे”...

आर्यमणि, रूही के होंठ पर प्यारा सा चुम्बन लेते.... “चलो फिर चला जाये।”

दोनो एक दूसरे का हाथ थामे, एक दूसरे के आंखों में झांकते प्यार से मुस्कुराते हुये चले। दोनो घर तो पहुंचे लेकिन शाम की पार्टी का निमंत्रण भी ठीक उसके पीछे पहुंचा। दरअसल आज फाइनल मैच था और होम टीम अर्थात स्कूल की टीम दोनो ही मुकाबले, लड़के तथा लड़कियों के मुकाबले में जीत का परचम लहरा चुकी थी। टीन वुल्फ के पार्टी का दौड़ तो मैच के जीत के साथ ही शुरू हो गया था, आर्यमणि और रूही को शाम की ऑफिशियल पार्टी में शामिल होने का निमंत्रण आया।

स्कूल प्रबंधन खुश। प्रिंसिपल खुश। मैच देखने पहुंचे दर्शक खुश। वहीं कोच और खिलाड़ी... उनकी आंखों से तो आंसू रुक ही नही रहे थे। सभी लोग ओजल, इवान और अलबेली को कंधे पर उठाए हूटिंग कर रहे थे। हूटिंग करते हुये खिलाड़ी जब मैदान से वापस लौट रहे थे तभी सामने बर्कले का स्थानीय वुल्फ लूकस और उसका बड़ा सा गैंग उनके रास्ते में खड़ा। लूकस और उसकी गैंग को देखकर सभी शांत हो गये।

इस से पहले की अलबेली और इवान आगे आकर कुछ कहते ओजल सबसे आगे खड़े होकर सबको हाथ दिखाती.... “क्या लूकस हमारा रास्ता रोक खड़े हो”..

लूकस:– सोचा पहली जीत की बधाई दे दूं।

ओजल:– तुम्हारी बधाई ले ली। अब रास्ता छोड़ोगे या फिर से हमे आपस मे कोई दोस्ताना मैच खेलना होगा।

लूकस:– दोस्ताना मैच तो नही खेलना बस अपने सहपाठियों से रिश्ते सुधारने हैं। क्या हम भी जीत की जश्न में सम्मिलित हो सकते है?

ओजल पीछे मुड़कर पूरे टीम को देखती.... “तो क्या कहती है टीम, इसे एक मौका दे दिया जाए”...

ओजल की बात सुनकर सब सोच में पड़ गये। वहीं इवान, लूकस को घूरते हुये धीमे से कहा... “इसे साथ आने कह रही”

ओजल, इवान का हाथ थामकर उसे शांत रहने का इशारा करती.... “अरे यार इतना भी क्या सोचना, खुशी का माहोल है, इसे भी साथ ले लेते हैं। अब तक हमसे लड़ता आया था आज कोई लफ़ड़ा हुआ तो हमारे लिये लड़ेगा। क्यों लूकस सही कहा न मैने”...

लूकस:– हां बिलकुल.... मेरे रहते हमारे जश्न के माहोल को बिगाड़ने की हिम्मत भला कौन करेगा...

पूरी भिड़ एक साथ.... “तो फिर ठीक है इसे भी साथ ले लो”...

अब तो स्कूल की भीड़ और भी बड़ी हो गई। सभी हूटिंग करते सबसे पहले स्कूल की कैंटीन ही पहुंचे, जहां खिलाड़ियों के लिये तरह–तरह के पकवान बनाए गये थे। वहां से सब खा–पीकर सीधा एक खिलाड़ी के घर पहुंचे और हाई–स्कूल पार्टी का लुफ्त उठाने लगे।

नशे का सारा साजो सामान उपलब्ध था। थोड़ी बहुत छींटाकसी और ढेर सारा मनोरंजन। इसी मनोरंजन के बीच दो नादान परिंदे अपनी नैनो का नशा एक दूसरे में डाल रहे थे। अलबेली और इवान दोनो एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा रहे थे। धीरे–धीरे नजरें जैसे इशारा कर रही हो फिर तो पूरी भिड़ में जैसे यही दोनो अकेले हो। होंठ कब होंठ से जुड़ गये पता ही नही चला।

होंठ से होंठ ऐसे जुड़े थे कि दोनो के रोम–रोम में मस्ती का प्रसार हो गया। उत्तेजना पाऊं के अंगूठे से लेकर सर तक फैल चुकी थी और तन बदन से चिंगारियां उठने लगी थी। अलबेली अपना चेहरा पीछे करती.... “इवान यहां कुछ ज्यादा ही भिड़ है।”

इवान, अलबेली का हाथ थामते.... “चलते है फिर कहीं पूर्ण शांत इलाके में जहां सिर्फ तुम्हारी मादक आवाज की गूंज हो।”

अलबेली आंख मारती..... “हां ऐसे ही मिलन की प्यास है इवान... आज कोई रहम मत करना।”

दोनो हाथ में हाथ डाले दौड़ लगा चुके थे। जंगल के जिस हिस्से में रुकने का सोच रहे थे वहां आस–पास कोई न कोई मिल ही रहा था।... “बेंचों आज सभी जंगल में ही मंगल करने निकले है।”

“हिहिहिहिही... झुंझलाते हुये कितने प्यारे लगते हो। सब्र करो मुन्ना... तुम्हारे मुन्ने द्वारा मेरी मुन्नी को रोंदने के लिये पूरी रात पड़ी है। इतना चिढ़ो मत।”

“हां सही कह रही हो। जंगल के और अंदर चलते है।”...

अलबेली और इवान दोनो तेज दौड़ लगाते जंगल के दक्षिणी इलाके में अंदर घुस रहे थे। पीछे उत्तर–पूर्व का इलाका तो लूकस के पैक था इसलिए ये लोग उस ओर जा नही रहे थे और पश्चिम दिशा से तो चले ही थे, जहां विभिन्न हिस्सों में पहले से लड़के–लड़की की मौजूदगी थी।

दोनो दक्षिणी दिशा चलते हुये काफी अंदर घुस आये। कानो में पानी के गिरने की आवाज आ रही थी। घने जंगल के बीच झरने की आवाज सुनकर दोनो ही आकर्षित हो गये। अलबेली, इवान का हाथ छुड़ाकर तेजी से आगे भागी। भागते हुये ही उसने अपने कंधे से अपने कपड़े को सरकाया और नीचे जमीन पर उन्हे पीछे छोड़ती आगे बढ़ गयी। दौड़ते हुये ही ब्रा भी खुल चुकी थी और किनारे पर पहुंचने के साथ ही एक छोटे से विराम में उसकी पैंटी नीचे की धूल चाट रही थी और अलबेली छपाक से पानी में।

इवान भी ठीक पीछे ही था। आंखों के सामने चल रहे इतने कामुक नजारे को देखकर भला वो क्यों पीछे रहता। लेकिन जो देखने का सुख अलबेली ने इवान को दिया था, वही वो अलबेली को देना चाह रहा था। इवान अपनी जगह पर खड़ा हो गया। अलबेली पानी में छलांग लगाने के साथ ही पीछे मुड़ गयी। पानी में भींगा बदन क्या कामुक लग रहा था। इवान तो जैसे मदहोश ही हो गया।

फिर तो उस से भी रुका न गया। वह भी अलबेली की तरह ही कपड़े निकलते हुये दौड़ा। इवान की इस दिलकश अदा पर अलबेली हूटिंग करती हुई सीटियां बजाने लगी। और इवान भी लंबी छलांग लगाते सीधा पानी में। फिर तो दोनो से बर्दास्त होना मुश्किल। एक दूसरे को आलिंगन में भरकर बेहतशा चूमने लगे। मुंह पूरा खोलकर एक दूसरे की जीभ को चूसते हुये कामुक चुम्बन का मजा ले रहे थे। अलबेली सीधा लिंग को मुट्ठी में दबोचकर इवान को चूमे जा रही थी वहीं इवान अपनी उंगलियों को अलबेली के योनि पर बड़ी तेजी से फिरा रहा था। अलबेली इतनी कामुक हो चली थी की उसकी योनि लगातार मिलन के प्यास में जैसे आंसू बहा रही हो।

अलबेली, इवान को धक्का देकर पीछे की और किनारे आकर घास पर पाऊं फैलाकर लेट गयी। लेटने के साथ ही अपने होंठ को दातों तले दबाते इवान को बुलाने लगी। खुला निमंत्रण और पूर्ण जोश। इवान भी पूरी जोश के साथ पहुंचा। अलबेली के दोनो पाऊं के बीच आकर इवान ने खुद को पोजिशन किया और अलबेली की योनि पर लिंग को घिसने लगा।

अलबेली इतनी उत्तेजित थी कि गरम लिंग के योनि पर स्पर्श मात्र से वह बौखला गयी। लिंग अंदर क्यों नही घुसा इस बेकरारी ने ऐसा मजबूर किया की अलबेली अपने हाथ से लिंग को पकड़ी और कमर का तेज झटका देकर पूरी लिंग को अंदर समा ली। खुद ही कमर की तेज–तेज झटकती..... “आह्ह्ह... इवान... पूरे जोश से झटके मारो... उफ्फ ये उत्तेजना कहीं मेरी जान न ले ले।"...

केवल अलबेली के दिमाग में हवस नही चढ़ी थी बल्कि इवान भी उतने ही जोश में था। इवान ने अपने होंठ अलबेली के होंठ से लगाया। पूरे जोश भरा चुम्बन लेते अपने दोनो हाथ से अलबेली के दोनो कराड़े और विकसित हो रहे स्तन को दबोचते हुये, तूफानी झटके मारने लगा। दोनो ही पूरे जोश से एक दूसरे के साथ सहवास कर रहे थे। झटका मारते–मारते अचानक ही इवान अलबेली के ऊपर से हट गया। अलबेली हांफती हुई इवान को घूरने लगी.... “ऐसे अचानक उठ क्यों गये”..

“पोजिशन बदलने का मेरा मन हो गया”...

“कौन सी पोजिशन में मेरी मारोगे जल्दी बताओ, पर दूर न रहो”...

“एनिमल स्टाइल... दूसरे शब्दों में कहें तो डॉगी स्टाइल”...

अलबेली अपने घुटनों के बल होकर अपने पाऊं को थोड़ा खोलती.... “मुझे मतलब पता है, बस तुम कुत्ते की तरह नही भेड़िए की तरह सेक्स करना। अब आओ भी... जल्दी से मेरी आग को शांत करो”.....

इवान लपक कर आया और एक पूरे पंजे से इतनी जोर चूतड पर थाप मारा की आवाज चारो ओर गूंज गयी.... "आउच, जंगली... अब इतने ही जोड़ से अपना हथियार भी डाल दो”.... “हां, हां, क्यों नही मेरी चुलबुली... ये लो”..

“नही, अरे, वहां नही... ओ माआआआ, बेंचों, बेरहम... गलत छेद में अपना लन्ड डाल दिया रे... आआआआआ, इवान बहुत तेज दर्द हो रहा.... निकाल वहां से”....

“तुमने ही तो कहा था आज रहम मत करना... तो ये लो”.... अपनी बात कहकर इवान लंबे–लंबे धक्के मारने लगा। कमसिन सी लड़की जो कुछ दिन पहले ही खुली थी, इवान ने जोश–जोश में अपना लिंग उसके गुदा मार्ग में घुसा चुका था। शुरवाती धक्के इतने दर्द भरे थे कि पहले चिल्लाना मुंह से निकला और उसके बाद में “वूऊऊऊऊऊऊऊ” का तेज वुल्फ साउंड।

अलबेली जितना तेज चिल्ला रही थी इवान जोश में उतना ही तेज धक्के मार रहा था। बेरहम इतना की अलबेली रोती रही पर उसे कोई फर्क नहीं पड़ा। कुछ देर के सहवास के बाद फिर अलबेली भी सामान्य होने लगी। अब पीछे से चल रहे ताबड़तोड़ संभोग का वो भी आनंद ले रही थी। मादक सिसकारी चारो ओर गूंज रही थी।

“आआह्ह्ह, मजा आ गया लेकिन मेरी जान मेरे घुटने छिल जायेंगे, अब तो लिटा दो”...

इवान भी इस पोजीशन में शायद थक चुका था और अलबेली के कमसिन बदन को अपने नीचे लिटाकर रौंदने का मन कर रहा हो। बिना वक्त गवाए इवान ने उसे पलटा और दोनो टांग फैलाकर अपने लिंग को सरसराते हुये पूरा अंदर घुसेड़ दिया। अलबेली भी “आआह्हह” की मादक सिसकारी लेते अपने पीठ को थोड़ा ऊपर की और इवान के गर्दन में अपने बांह डालकर, उसे अपने ऊपर लिटाती उसके होंठ चूमने लगी। होंटों के रसपान मधुर थे और नीचे धक्कों की रफत्तार अनियंत्रित। इतने जोरदार धक्कों से दोनो का रोम–रोम गनगना गया। फिर वो अंतिम पड़ाव भी आया जब पहले अलबेली अपने स्खलन पर इतना तेज चिल्लाई की पूरा माहोल उसके मादक चरम सुख का गवाह बन गया। उसके ठीक अगले पल इवान का भी वही हाल था।

वह जितनी संजीदा थी, उतनी ही जिंदादिल। जितनी शांत थी, उतनी ही उद्दंड। वह जितनी समझदार थी उतनी ही भावुक। वह अजब थी, वह गजब थी। अल्फा पैक की ओजल शायद अपने आप में सम्पूर्ण थी। आज मध्य रात्रि की बेला वह लेटी थी। काम उत्तेजना में लिप्त सारे वस्त्रों को त्याग कर बस लंबी–लंबी सिसकारियां ले रही थी। निर्वस्त्र हुये कई लड़के सांप की भांति ओजल से लिपटे थे। जीवन के पहला संभोग का अनुभव इतना रोमांचक था की वह बस सिसकारियां लेती खुद को निढल छोड़ चुकी थी। उसके गुप्तांगों और बदन पर रेंग रहे हाथ, लिंग इत्यादि–इत्यादि उसे अत्यधिक मजा दे रहे थे।
Wow very hot par ye ojhal ka gang bang kab hua???
 
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