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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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भाग:–96






क्या ही एक्शन मोमेंट था। इवान भी उतने ही पैशनेट होकर अलबेली को चूमा और तीनो (आर्यमणि, रूही और ओजल) के सामने से अलबेली को उठाकर बाहर ले जाते.… "हम जरा अपना झगड़ा शहर के एक चक्कर काटते हुये सुलझाते है, तब तक एक ग्रैंड पार्टी की प्लानिंग कर लो।" ओजल और रूही तो इनके प्यार और पागलपन को देखकर पहले भी हंसी से लोटपोट हो चुकी थी। आज पहली बार आर्यमणि देख रहा था और वह भी खुद को लोटपोट होने से रोक नहीं पाया।


आर्यमणि, रूही और ओजल हंस रही थी। अभी जितनी तेजी से दोनो (अलबेली और इवान) बाहर निकले थे, उतने ही तेजी से वापस आकर सबके बीच बैठते... "हमने सोचा हमारा मसला तो वैसे भी सुलझ गया है, फिर क्यों बाहर जाकर वक्त बर्बाद करे, जब सबके साथ इतना अच्छा वक्त गुजर रहा।"


हंसी की किलकारी फिर से गूंजने लगी। सभी पारिवारिक माहौल का आनंद ले रहे थे। हां लेकिन उस वक्त ओजल ने रूही की उस भावना का जिक्र कर दी, जो शायद रूही कभी आर्यमणि से नहीं कह सकती थी। बीते एक महीने में जब आर्यमणि गहरी नींद में अपने हर कोशिकाओं को हील कर रहा था, तब रूही हर पल खुद को आर्यमणि के लिये समर्पित किये जा रही थी। वह जब भी अकेली होती इस बात का दर्द जरूर छलक जाता की…. "दिल के करीब जो है इस बार उसे दूर मत करो, वरना मेरे लिये भी अब इस संसार में जीवित रहना कठिन हो जायेगा। जानती हूं वह मेरा नही लेकिन मेरे लिये तो वही पूरी दुनिया है।"


जब ये बात ओजल कह गयी, रूही अपना सर नीचे झुका ली। आंसुओं ने एक बार फिर से उसके आंखें भिगो दी थी और सिसकियां लेती अपनी विडंबना वह कह गयी…. "किस मुंह से इजहार कर देती अपनी भावना। कोई एक ऐसी बात तो हो जो मुझमें खास हो। राह चलता हर कोई जिसे नोच लेता था, उसकी हसरतों ने आर्यमणि के सपने देख लिये, वही बहुत बड़ी थी।"


अबकी बार ये रोतलू भावना किसी भी टीन वुल्फ को पसंद ना आयी। आर्यमणि भी अपनी आंख सिकोड़कर बस रूही को ही घुर रहा था, और रूही अपने सर को नीचे झुकाये बस सिसकियां ले रही थी। तभी अलबेली गुस्से में उठी और ग्रेवी से भरी बाउल को रूही के सर पर उड़ेलकर आर्यमणि के पीछे आ गयी।


ओ बेचारी रूही.… जली–कटी भावना मे रो रही थी और अलबेली ने मसालेदार होली खेल ली। हंस–हंस कर सब लोटपोट हुए जा रहे थे। हां रूही ने बदला लेने कि कोशिश जरूर की लेकिन अलबेली उसके हाथ ना आयी। इन लोगों की हंसी ठिठोली चलती रही। इसी बीच ज़िन्दगी में पहली बार आर्यमणि ने भी कॉमेडी ट्राई मारा था। बोले तो ओजल और इवान थे तो उसी मां फेहरीन के बच्चे, जिसकी संतान रूही थी।


आर्यमणि के साथ रूही बैठी थी तभी आर्यमणि कहने लगा... "कैसा बेशर्म है तुम्हारे भाई–बहन। जान बुझ कर तुम्हे वैसी हालत में देखते रहे (बिस्तर पर वाली घटना) और दरवाजे से हट ही ना रहे थे।"….


अब वोल्फ पैक था, ऊपर से आज तक कभी भी इन बातों का ध्यान ना गया होगा की ओजल और इवान भाई–बहन है। हां लेकिन आर्यमणि के इस मजाक पर रूही को आया गुस्सा, पड़ोस मे ही आर्यमणि था बैठा हुआ... फिर तो चल गया रूही का गुस्से से तमतमाया घुसा।


आव्व बेचारा आर्यमणि का जबड़ा…. लेफ्ट साइड से राईट साइड घूम गया। रूही अपनी गुस्से से फुफकारती लाल आंखों से घूरती हुई कहने लगी.… "दोबारा ऐसे बेहूदा मजाक किये ना तो सुली पर टांग दूंगी। ना तो बच्चो के इमोशन दिखी और ना ही उनकी खुशी, बस उतर आये छिछोरेपन पर।"..


बहरहाल, काफी मस्ती मजाक के बीच पूरी इनकी शाम गुजर रही थी। बात शुरू होते ही फिर चर्चा होने लगी उन तस्वीरों और अनंत कीर्ति के उस पुस्तक की जीसे अपस्यु ने खोल दिया था।


आर्यमणि, सबको शांत करते अपस्यु को कॉल लगा दिया.…


अपस्यु:– बड़े भाई को प्रणाम"..


आर्यमणि:–मैं कहां, तू कुछ ज्यादा बड़ा हो गया है। कहां है मियामी या फिर हवाले के पैसे के पीछे?


अपस्यु:– बातों से मेरे लिये शिकायत और आंखों में किसी के लिये प्यार। बड़े कुछ बदले–बदले लग रहे हो।


आर्यमणि:– तू हाथ लग जा फिर कितना बदल गया हूं वो बताता हूं। एक मिनट सर्विलेंस लगाया है क्या यहां, जो मेरे प्यार के विषय में बात कर रहा?


अपस्यु:– नही बड़े, ओजल ने न जाने कबसे वीडियो कांफ्रेंसिंग कर रखा था। अब परिवार में खुशी का माहोल था, तो थोड़ा हम भी खुश हो गये।


आर्यमणि:– ए पागल इतना मायूस क्यों होता है। दिल छोटा न कर। ये बता तू यहां रुका क्यों नही?


अपस्यु:– बड़े मैं रुकता वहां, लेकिन भाभी (रूही) की भावना और आपके पुराने प्यार को देखकर मैं चिढ़ सा गया था। मुझे लगा की कहीं जागने के बाद तुमने अपने पुराने प्यार (ओशुन) को चुन लिया, फिर शायद भाभी के अंदर जो वियोग उठता, मैं उसका सामना नहीं करना चाहता था। और शायद अलबेली, इवान और ओजल भी उस पल का सामना न कर पाते। पर बड़े तुमने तो हम सबको चौंका दिया।


आर्यमणि:– तुम सबकी जिसमे खुशी होगी, वही तो मेरी खुशी है। मेरे शादी की पूरी तैयारी तुझे ही करनी होगी।


अपस्यु:– मैं सात्विक आश्रम के केंद्र गांव जा रहा हूं। पुनर्स्थापित पत्थर को गांव में एक बार स्थापित कर दूं फिर वह गांव पूर्ण हो जायेगा। गुरु ओमकार नारायण की देख–रेख़ में एक बार फिर से वहां गुरकुल की स्थापना की जायेगी। उसके बाद ही आपकी शादी में आ पाऊंगा। यदि मुझे ज्यादा देर हो जाये तो आप लोग शादी कर लेना, मैं पीछे से बधाई देने पहुंचूंगा...


आर्यमणि:– ये तो अच्छी खबर है। ठीक है तू उधर का काम खत्म करले पहले फिर शादी की बात होगी। और ये निशांत किधर है, उसकी 4 महीने की शिक्षा समाप्त न हुई?


अपस्यु:– वह एक कदम आगे निकल गये है। वह पूर्ण तप में लिन है। पहले तो उन्हे संन्यासी बनना था लेकिन ब्रह्मचर्य भंग होने की वजह से ऐसा संभव नहीं था इसलिए अब मात्र ज्ञान ले रहे है। तप से अपनी साधना साध रहे। पता न अपनी साधना से कब वाह उठे कह नही सकता।


आर्यमणि:– हम्म्म… चलो कोई न उसे अपना ज्ञान लेने दो। सबसे मिलने की अब इच्छा सी हो रही। तुम्हे बता नही सकता उन तस्वीरों को आंखों के सामने देखकर मैं कैसा महसूस कर रहा था। खैर यहां क्या सिर्फ मुझसे ही मिलने आये थे, या बात कुछ और थी।


अपस्यु:– बड़े, शंका से क्यों पूछ रहे हो?


आर्यमणि:– नही, अनंत कीर्ति की पुस्तक खोलकर गये न इसलिए पूछ रहा हूं?


अपस्यु:– "क्या बड़े तुम भी सबकी बातों में आ गये। मैं शुद्ध रूप से तुमसे ही मिलने आया था। मन में अजीब सा बेचैनी होने लगा था और रह–रह कर तुम्हारा ही ध्यान आ रहा था, इसलिए मिलने चला आया। जब मैं कैलिफोर्निया पहुंचा तब यहां कोई नही था। मन और बेचैन सा होने लगा। एक–एक करके सबको कॉल भी लगाया लेकिन कोई कॉल नही उठा रहा था। लागातार जब मैं कॉल लगाते रह गया तब भाभी (रूही) का फोन किसी ने उठाया और सीधा कह दिया की सभी मर गये।"

"मैं सुनकर अवाक। फिर संन्यासी शिवम से मैने संपर्क किया। जितनी जल्दी हो सकता था उतनी जल्दी मैं पोर्ट होकर मैक्सिको के उस जंगल में पहुंचा। लेकिन जब तुम्हारे पास पहुंचा तब तुम ही केवल लेटे थे बाकी चारो जाग रहे थे। तुमने कौन सा वो जहर खुद में लिया था, तुम्हारे शरीर का एक अंग नही बल्कि तुम्हारे पूरे शरीर की जितने भी अनगिनत कोशिकाएं थी वही मरी जा रही थी। 4 दिन तक मैने सेल रिप्लेसमेंट थेरेपी दिया तब जाकर तुम्हारे शरीर के सभी कोशिकाएं स्टेबल हुई थी और ढंग से तुम्हारी हीलिंग प्रोसेस शुरू हुई।


आर्यमणि:– मतलब तूने मेरी जान बचाई...


अपास्यु:– नही उस से भी ज्यादा किया है। बड़े तुम मर नही रहे थे बल्कि तुम्हारी कोसिकाएं रिकवर हो रही थी। यदि मैंने सपोर्ट न दिया होता तो एक महीने के बदले शायद 5 साल में पूरा रिकवर होते, या 7 साल में या 10 साल में, कौन जाने...


आर्यमणि:– ओह ऐसा है क्या। हां चल ठीक है इसके लिये मैं तुम्हे मिलकर धन्यवाद भी कह देता लेकिन तूने अनंत कीर्ति की पुस्तक खोली क्यों?


अपस्यु:– तुम्हारा पूरा पैक झूठा है। नींद में तुमने ही "विप्रयुज् विद्या" के मंत्र पढ़े थे मैने तो बस मेहसूस किया की किताब खुल चुका है। मुझे तो पता भी नही था की "विप्रयुज् विद्या" के मंत्र से पुस्तक खुलती है।


आर्यमणि:– तू मुझे चूरन दे रहा है ना...


अपस्यु:– तुमने अभी तक दिमाग के अंदर घुसना नही सीखा है, लेकिन मैं यहीं से तुम्हारे दिमाग घुसकर पूरा प्रूफ कर दूंगा। या नहीं तो अपने दिमाग में क्ला डालो और अचेत मन की यादें देख लो।


आर्यमणि:– अच्छा चल ठीक है मान लिया तेरी बात। चल अब ये बता किताब में ऐसा क्या लिखा है, जिसके लिये ये एलियन पागल बने हुये है?


अपस्यु:– बड़े मैं जो जवाब दूंगा उसके बाद शायद मुझे एक घंटे तक समझाना होगा।


आर्यमणि:– पढ़ने से ज्यादा सुनने में मजा आयेगा। तू सुना छोटे, मैं एक घंटे तक सुन लूंगा।


अपस्यु:– बड़े, इसे परेशान करना कहते हैं। किताब पास में ही तो है।


आर्यमणि:– मुझे फिर भी तुझे सुनना है।


अपस्यु:– पहले किताब को तो देख लो की वो है क्या? मेरे बताने के बाद तुम पहली बार किताब देखने का रहस्यमयी मजा खो दोगे।


आर्यमणि:– बकवास बंद और सुनाना शुरू कर।


आर्यमणि:– ठीक है तो सुनो, उस किताब को न तो पढ़ा जा सकता है और न ही उसमे कुछ लिखा जा सकता है। हां लेकिन "विद्या विमुक्त्ये" मंत्र का जाप करोगे तो उसमे जो भी लिखा है, पढ़ सकते हो। बहुत ज्यादा नहीं बस दिमाग चकराने वाले वाक्यों से सजे डेढ़ करोड़ पन्नो को पढ़ने के बाद सही आकलन कर सकते हो की अनंत कीर्ति की पुस्तक के लिये एलियन क्यों पागल है।


आर्यमणि:– छोटे मजाक तो नही कर रहे। डेढ़ करोड़ पन्ने भी है क्या उसमे?


अपस्यु:– इसलिए मैं कह रहा था कि खुद ही देख लो।


आर्यमणि:– ठीक है तू जल्दी से पूरी बात बता। मैं आज की शाम किताब को देखने और अध्यात्म में तो नही गुजार सकता।


अपस्यु:– "ठीक है ध्यान से सुनो। कंचनजंगा का वह गांव शक्ति का एक केंद्र माना जाता था जहां सात्त्विक आश्रम से ज्ञान लेकर कई गुरु, रक्षक, आचार्य, ऋषि, मुनि और महर्षि निकले थे। सात्विक आश्रम का इतिहास प्रहरी इतिहास से कयी हजार वर्ष पूर्व का है। किसी वक्त एक भीषण लड़ाई हुई थी जहां विपरीत दुनिया का एक सुपरनैचुरल (सुर्पमारीच) ने बहुत ज्यादा तबाही मचाई थी। उसे बांधने और उसके जीवन लीला समाप्त करने के बाद उस वक्त के तात्कालिक गुरु वशिष्ठ ने एक संगठन बनाया था। यहीं से शुरवात हुई थी प्रहरी समुदाय की और पहला प्रहरी मुखिया वैधायन थे। अब वह भारद्वाज थे या सिंह ऐसा कोई उल्लेख नहीं है किताब में।"


"प्रहरी पूर्ण रूप से स्वशासी संगठन (autonomus body) थी, जिसका देख–रेख सात्त्विक आश्रम के गुरु करते थे। उन्होंने सभी चुनिंदा रक्षक को प्रशिक्षण दिया और 2 दुनिया के बीच शांति बनाना तथा जो 2 दुनिया के बीच के विकृत मनुष्य या जीव थे, उन्हें अंजाम तक पहुंचाने के लिए नियुक्त किया गया था। उस वक्त उन्हें एक किताब शौंपी गई थी, जिसे आज अनंत कीर्ति कहते है। दरअसल उस समय में ऐसा कोई नाम नहीं दिया गया था। इसे विशेष तथा विकृत जीव या इंसान की जानकारी और उनके विनाश के कहानी की किताब का नाम दे सकते हो।"


"इस किताब का उद्देश्य सिर्फ इतना था कि जब भी प्रहरी को कोई विशेष प्रकार का जीव से मिले या प्रहरी किसी विकृत मनुष्य, जीव या सुपरनेचुरल का विनाश करे तो उसकी पूरी कहानी का वर्णन इस किताब में हो। वर्णन जिसे कोई प्रहरी इस किताब में लिखता नही बल्कि यह किताब स्वयं पूरी व्याख्यान लिखती थी। लिखने के लिये किताब न सिर्फ प्रहरी के दिमाग से डेटा लेती थी बल्कि चारो ओर के वातावरण, विशेष जीव या विकृत जो भी इसके संपर्क में आता था, उसे अनुभव करने के बाद किताब स्वयं पूरी कहानी लिख देती थी।"


कहानी भी स्वयं किताब किस प्रकार से लिखती थी... यदि कोई विशेष जीव मिला तो उस जीव की उत्पत्ति स्थान। उसके समुदाय का विवरण, उनके पास किस प्रकार की शक्तियां है और यदि वह जीव किसी दूसरों के लिये प्राणघाती होता है तब उसे रोकने के उपाय।"


"वहीं विकृत मनुष्य, जीव या सुपरनैचुरल के बारे में लिखना हो तो... उसकी उत्पत्ति स्थान यदि पता कर सके तो। वह विकृत विनाश का खेल शुरू करने से पहले अपने या किसी गैर समुदाय के साथ कैसे पहचान छिपा कर रहता था। किस तरह की ताकते उनके पास थी। उन्हें कैसे मारा गया और जिस स्थान पर वह मारा गया, उसके कुछ सालों का सर्वे, जहां यह सुनिश्चित करना था कि उस विकृत ने जाने से पहले किसी दूसरे को तो अपने जैसा नही बनाकर गया। या जिनके बीच पहचान छिपाकर रहता था उनमें से कोई ऐसा राजदार तो नही जो या तो खुद उस जैसा विकृत बन जाये या मरे हुये विकृत की शक्ति अथवा उसे ही इस संसार में वापस लाने की कोई विधि जनता हो।"


"प्रहरी को कुछ भी उस किताब के अंदर नही लिखना था बल्कि वह सिर्फ अपने प्रशिक्षण और तय नीति के हिसाब से काम करते वक्त किताब को साथ लिये घूमते थे। अनंत कीर्ति की पुस्तक की जानकारी उस तात्कालिक समय की हुई घटनाओं के आधार पर होती थी। हो सकता था भविष्य में आने वाले उसी प्रजाति के कुछ विकृत, आनुवंशिक गुण मे बदलाव के साथ दोबारा टकरा जाये। इसलिए जो भी जानकारी थी उसे बस एक आधार माना जाता था, बाकी हर बार जब एक ही समुदाय के विकृत आएंगे तो कोई ना कोई बदलाव जरूर देखने मिलेगा।"


कुछ बातें किताब को लेकर काफी प्रचलित हुई थी, जो अनंत कीर्ति की पुस्तक को पाने के लिये किसी भी विकृत का आकर्षण बढ़ा देती थी...

1) प्रहरी किसी छिपे हुये विकृत की पहचान कैसे कर पाते है?

2) विकृत को जाल में कैसे फसाया गया था?

3) उन्हें कैद कैसे किया गया था?

4) उन्हें कैसे मारा गया था?


"यही उस पुस्तक की 4 बातें थी जिसकी जानकारी किसी विकृत के पास पहुंच जाये तो उसे न केवल प्रहरी के काम करने का मूल तरीका मालूम होगा, बल्कि सभी विकृत की पहचान कर उसे अपने साथ काम करने पर मजबूर भी कर सकता था। इसलिए किताब पर मंत्र का प्रयोग किया गया था। इस मंत्र की वजह से वो किताब अपना एक संरक्षक खुद चुन लेती थी। यह किताब नजर और धड़कने पहचानती है। किसी की मनसा साफ ना हो या मन के अंदर उस किताब को लेकर किसी भी प्रकार कि आशाएं हो, फिर वो पुस्तक नहीं खुलेगी।"


"कई तरह के मंत्र से संरक्षित इस किताब को खोलकर कोई पढ़ नही सकता। किसी भी वातावरण मे जाए या कोई ऐसा माहौल हो, जिसकी अच्छी या बुरी घटना को इस किताब ने कभी महसूस किया था, तब ये किताब खुद व खुद इशारा कर देती है और जैसे ही किताब खोलते हैं, सीधा उस घटना का पूरा विवरण पढ़ने मिलेगा।"


"मन में जब कोई दुवधा होगी और किसी प्रकार का बुरे होने की आशंका, तब वो किताब मन के अंदर की उस दुविधा या आशंका को भांपकर उस से मिलते जुलते सारे तथ्य (facts) सामने रख देगी। और सबसे आखिर में जितने भी जीव, विकृत मनुष्य, सुपरनैचुरल या फिर वर्णित जितने भी सजीव इस किताब में लिखे गये है, जब वह आप–पास होंगे तो उनकी पूरी जानकारी किताब खोलने के साथ ही मिलेगी। किताब की जितनी भी जानकारी थी, वो मैंने दे दी। कुछ विशेष तुम्हे पता चले बड़े तब मुझसे साझा करना।"


आर्यमणि और उसका पूरा पैक पूरी बात ध्यान लगाकर सुन रहे थे। पूरी बात सुनने के बाद आर्यमणि.… "छोटे ये बता जब तूने किताब पढ़ने के लिये मंत्र मुक्त किया, तो क्या डेढ़ करोड़ पन्ने में से पहले पन्ने पर ये पूरी डिटेल लिखी हुई थी?"…


अपस्यु:– एक बार मंत्र मुक्त करके खुद भी पढ़ने की कोशिश तो करो। ये किताब हमे भी पागल बना सकती है। पहला पन्ना जब मैने पढ़ना शुरू किया तब तुम विश्वास नहीं करोगे वहां पहला लाइन क्या लिखा था...


आर्यमणि:– तू बता छोटे मैं विश्वास कर लूंगा, क्योंकि किताब मेरे ही पास है...


अपस्यु:– सुनो बड़े पहला लाइन ऐसा लिखा था.… प्रहरी मकड़ी हाथ खुफिया मछली जंगल उड़ते तीर और भाला मारा गया।


आर्यमणि:– ये क्या था उस वक्त के गुरु वशिष्ठ का कोई खुफिया संदेश था?
 
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Tiger 786

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भाग:–96






क्या ही एक्शन मोमेंट था। इवान भी उतने ही पैशनेट होकर अलबेली को चूमा और तीनो (आर्यमणि, रूही और ओजल) के सामने से अलबेली को उठाकर बाहर ले जाते.… "हम जरा अपना झगड़ा शहर के एक चक्कर काटते हुये सुलझाते है, तब तक एक ग्रैंड पार्टी की प्लानिंग कर लो।" ओजल और रूही तो इनके प्यार और पागलपन को देखकर पहले भी हंसी से लोटपोट हो चुकी थी। आज पहली बार आर्यमणि देख रहा था और वह भी खुद को लोटपोट होने से रोक नहीं पाया।


आर्यमणि, रूही और ओजल हंस रही थी। अभी जितनी तेजी से दोनो (अलबेली और इवान) बाहर निकले थे, उतने ही तेजी से वापस आकर सबके बीच बैठते... "हमने सोचा हमारा मसला तो वैसे भी सुलझ गया है, फिर क्यों बाहर जाकर वक्त बर्बाद करे, जब सबके साथ इतना अच्छा वक्त गुजर रहा।"


हंसी की किलकारी फिर से गूंजने लगी। सभी पारिवारिक माहौल का आनंद ले रहे थे। हां लेकिन उस वक्त ओजल ने रूही की उस भावना का जिक्र कर दी, जो शायद रूही कभी आर्यमणि से नहीं कह सकती थी। बीते एक महीने में जब आर्यमणि गहरी नींद में अपने हर कोशिकाओं को हील कर रहा था, तब रूही हर पल खुद को आर्यमणि के लिये समर्पित किये जा रही थी। वह जब भी अकेली होती इस बात का दर्द जरूर छलक जाता की…. "दिल के करीब जो है इस बार उसे दूर मत करो, वरना मेरे लिये भी अब इस संसार में जीवित रहना कठिन हो जायेगा। जानती हूं वह मेरा नही लेकिन मेरे लिये तो वही पूरी दुनिया है।"


जब ये बात ओजल कह गयी, रूही अपना सर नीचे झुका ली। आंसुओं ने एक बार फिर से उसके आंखें भिगो दी थी और सिसकियां लेती अपनी विडंबना वह कह गयी…. "किस मुंह से इजहार कर देती अपनी भावना। कोई एक ऐसी बात तो हो जो मुझमें खास हो। राह चलता हर कोई जिसे नोच लेता था, उसकी हसरतों ने आर्यमणि के सपने देख लिये, वही बहुत बड़ी थी।"


अबकी बार ये रोतलू भावना किसी भी टीन वुल्फ को पसंद ना आयी। आर्यमणि भी अपनी आंख सिकोड़कर बस रूही को ही घुर रहा था, और रूही अपने सर को नीचे झुकाये बस सिसकियां ले रही थी। तभी अलबेली गुस्से में उठी और ग्रेवी से भरी बाउल को रूही के सर पर उड़ेलकर आर्यमणि के पीछे आ गयी।


ओ बेचारी रूही.… जली–कटी भावना मे रो रही थी और अलबेली ने मसालेदार होली खेल ली। हंस–हंस कर सब लोटपोट हुए जा रहे थे। हां रूही ने बदला लेने कि कोशिश जरूर की लेकिन अलबेली उसके हाथ ना आयी। इन लोगों की हंसी ठिठोली चलती रही। इसी बीच ज़िन्दगी में पहली बार आर्यमणि ने भी कॉमेडी ट्राई मारा था। बोले तो ओजल और इवान थे तो उसी मां फेहरीन के बच्चे, जिसकी संतान रूही थी।


आर्यमणि के साथ रूही बैठी थी तभी आर्यमणि कहने लगा... "कैसा बेशर्म है तुम्हारे भाई–बहन। जान बुझ कर तुम्हे वैसी हालत में देखते रहे (बिस्तर पर वाली घटना) और दरवाजे से हट ही ना रहे थे।"….


अब वोल्फ पैक था, ऊपर से आज तक कभी भी इन बातों का ध्यान ना गया होगा की ओजल और इवान भाई–बहन है। हां लेकिन आर्यमणि के इस मजाक पर रूही को आया गुस्सा, पड़ोस मे ही आर्यमणि था बैठा हुआ... फिर तो चल गया रूही का गुस्से से तमतमाया घुसा।


आव्व बेचारा आर्यमणि का जबड़ा…. लेफ्ट साइड से राईट साइड घूम गया। रूही अपनी गुस्से से फुफकारती लाल आंखों से घूरती हुई कहने लगी.… "दोबारा ऐसे बेहूदा मजाक किये ना तो सुली पर टांग दूंगी। ना तो बच्चो के इमोशन दिखी और ना ही उनकी खुशी, बस उतर आये छिछोरेपन पर।"..


बहरहाल, काफी मस्ती मजाक के बीच पूरी इनकी शाम गुजर रही थी। बात शुरू होते ही फिर चर्चा होने लगी उन तस्वीरों और अनंत कीर्ति के उस पुस्तक की जीसे अपस्यु ने खोल दिया था।


आर्यमणि, सबको शांत करते अपस्यु को कॉल लगा दिया.…


अपस्यु:– बड़े भाई को प्रणाम"..


आर्यमणि:–मैं कहां, तू कुछ ज्यादा बड़ा हो गया है। कहां है मियामी या फिर हवाले के पैसे के पीछे?


अपस्यु:– बातों से मेरे लिये शिकायत और आंखों में किसी के लिये प्यार। बड़े कुछ बदले–बदले लग रहे हो।


आर्यमणि:– तू हाथ लग जा फिर कितना बदल गया हूं वो बताता हूं। एक मिनट सर्विलेंस लगाया है क्या यहां, जो मेरे प्यार के विषय में बात कर रहा?


अपस्यु:– नही बड़े, ओजल ने न जाने कबसे वीडियो कांफ्रेंसिंग कर रखा था। अब परिवार में खुशी का माहोल था, तो थोड़ा हम भी खुश हो गये।


आर्यमणि:– ए पागल इतना मायूस क्यों होता है। दिल छोटा न कर। ये बता तू यहां रुका क्यों नही?


अपस्यु:– बड़े मैं रुकता वहां, लेकिन भाभी (रूही) की भावना और आपके पुराने प्यार को देखकर मैं चिढ़ सा गया था। मुझे लगा की कहीं जागने के बाद तुमने अपने पुराने प्यार (ओशुन) को चुन लिया, फिर शायद भाभी के अंदर जो वियोग उठता, मैं उसका सामना नहीं करना चाहता था। और शायद अलबेली, इवान और ओजल भी उस पल का सामना न कर पाते। पर बड़े तुमने तो हम सबको चौंका दिया।


आर्यमणि:– तुम सबकी जिसमे खुशी होगी, वही तो मेरी खुशी है। मेरे शादी की पूरी तैयारी तुझे ही करनी होगी।


अपस्यु:– मैं सात्विक आश्रम के केंद्र गांव जा रहा हूं। पुनर्स्थापित पत्थर को गांव में एक बार स्थापित कर दूं फिर वह गांव पूर्ण हो जायेगा। गुरु ओमकार नारायण की देख–रेख़ में एक बार फिर से वहां गुरकुल की स्थापना की जायेगी। उसके बाद ही आपकी शादी में आ पाऊंगा। यदि मुझे ज्यादा देर हो जाये तो आप लोग शादी कर लेना, मैं पीछे से बधाई देने पहुंचूंगा...


आर्यमणि:– ये तो अच्छी खबर है। ठीक है तू उधर का काम खत्म करले पहले फिर शादी की बात होगी। और ये निशांत किधर है, उसकी 4 महीने की शिक्षा समाप्त न हुई?


अपस्यु:– वह एक कदम आगे निकल गये है। वह पूर्ण तप में लिन है। पहले तो उन्हे संन्यासी बनना था लेकिन ब्रह्मचर्य भंग होने की वजह से ऐसा संभव नहीं था इसलिए अब मात्र ज्ञान ले रहे है। तप से अपनी साधना साध रहे। पता न अपनी साधना से कब वाह उठे कह नही सकता।


आर्यमणि:– हम्म्म… चलो कोई न उसे अपना ज्ञान लेने दो। सबसे मिलने की अब इच्छा सी हो रही। तुम्हे बता नही सकता उन तस्वीरों को आंखों के सामने देखकर मैं कैसा महसूस कर रहा था। खैर यहां क्या सिर्फ मुझसे ही मिलने आये थे, या बात कुछ और थी।


अपस्यु:– बड़े, शंका से क्यों पूछ रहे हो?


आर्यमणि:– नही, अनंत कीर्ति की पुस्तक खोलकर गये न इसलिए पूछ रहा हूं?


अपस्यु:– "क्या बड़े तुम भी सबकी बातों में आ गये। मैं शुद्ध रूप से तुमसे ही मिलने आया था। मन में अजीब सा बेचैनी होने लगा था और रह–रह कर तुम्हारा ही ध्यान आ रहा था, इसलिए मिलने चला आया। जब मैं कैलिफोर्निया पहुंचा तब यहां कोई नही था। मन और बेचैन सा होने लगा। एक–एक करके सबको कॉल भी लगाया लेकिन कोई कॉल नही उठा रहा था। लागातार जब मैं कॉल लगाते रह गया तब भाभी (रूही) का फोन किसी ने उठाया और सीधा कह दिया की सभी मर गये।"

"मैं सुनकर अवाक। फिर संन्यासी शिवम से मैने संपर्क किया। जितनी जल्दी हो सकता था उतनी जल्दी मैं पोर्ट होकर मैक्सिको के उस जंगल में पहुंचा। लेकिन जब तुम्हारे पास पहुंचा तब तुम ही केवल लेटे थे बाकी चारो जाग रहे थे। तुमने कौन सा वो जहर खुद में लिया था, तुम्हारे शरीर का एक अंग नही बल्कि तुम्हारे पूरे शरीर की जितने भी अनगिनत कोशिकाएं थी वही मरी जा रही थी। 4 दिन तक मैने सेल रिप्लेसमेंट थेरेपी दिया तब जाकर तुम्हारे शरीर के सभी कोशिकाएं स्टेबल हुई थी और ढंग से तुम्हारी हीलिंग प्रोसेस शुरू हुई।


आर्यमणि:– मतलब तूने मेरी जान बचाई...


अपास्यु:– नही उस से भी ज्यादा किया है। बड़े तुम मर नही रहे थे बल्कि तुम्हारी कोसिकाएं रिकवर हो रही थी। यदि मैंने सपोर्ट न दिया होता तो एक महीने के बदले शायद 5 साल में पूरा रिकवर होते, या 7 साल में या 10 साल में, कौन जाने...


आर्यमणि:– ओह ऐसा है क्या। हां चल ठीक है इसके लिये मैं तुम्हे मिलकर धन्यवाद भी कह देता लेकिन तूने अनंत कीर्ति की पुस्तक खोली क्यों?


अपस्यु:– तुम्हारा पूरा पैक झूठा है। नींद में तुमने ही "विप्रयुज् विद्या" के मंत्र पढ़े थे मैने तो बस मेहसूस किया की किताब खुल चुका है। मुझे तो पता भी नही था की "विप्रयुज् विद्या" के मंत्र से पुस्तक खुलती है।


आर्यमणि:– तू मुझे चूरन दे रहा है ना...


अपस्यु:– तुमने अभी तक दिमाग के अंदर घुसना नही सीखा है, लेकिन मैं यहीं से तुम्हारे दिमाग घुसकर पूरा प्रूफ कर दूंगा। या नहीं तो अपने दिमाग में क्ला डालो और अचेत मन की यादें देख लो।


आर्यमणि:– अच्छा चल ठीक है मान लिया तेरी बात। चल अब ये बता किताब में ऐसा क्या लिखा है, जिसके लिये ये एलियन पागल बने हुये है?


अपस्यु:– बड़े मैं जो जवाब दूंगा उसके बाद शायद मुझे एक घंटे तक समझाना होगा।


आर्यमणि:– पढ़ने से ज्यादा सुनने में मजा आयेगा। तू सुना छोटे, मैं एक घंटे तक सुन लूंगा।


अपस्यु:– बड़े, इसे परेशान करना कहते हैं। किताब पास में ही तो है।


आर्यमणि:– मुझे फिर भी तुझे सुनना है।


अपस्यु:– पहले किताब को तो देख लो की वो है क्या? मेरे बताने के बाद तुम पहली बार किताब देखने का रहस्यमयी मजा खो दोगे।


आर्यमणि:– बकवास बंद और सुनाना शुरू कर।


आर्यमणि:– ठीक है तो सुनो, उस किताब को न तो पढ़ा जा सकता है और न ही उसमे कुछ लिखा जा सकता है। हां लेकिन "विद्या विमुक्त्ये" मंत्र का जाप करोगे तो उसमे जो भी लिखा है, पढ़ सकते हो। बहुत ज्यादा नहीं बस दिमाग चकराने वाले वाक्यों से सजे डेढ़ करोड़ पन्नो को पढ़ने के बाद सही आकलन कर सकते हो की अनंत कीर्ति की पुस्तक के लिये एलियन क्यों पागल है।


आर्यमणि:– छोटे मजाक तो नही कर रहे। डेढ़ करोड़ पन्ने भी है क्या उसमे?


अपस्यु:– इसलिए मैं कह रहा था कि खुद ही देख लो।


आर्यमणि:– ठीक है तू जल्दी से पूरी बात बता। मैं आज की शाम किताब को देखने और अध्यात्म में तो नही गुजार सकता।


अपस्यु:– "ठीक है ध्यान से सुनो। कंचनजंगा का वह गांव शक्ति का एक केंद्र माना जाता था जहां सात्त्विक आश्रम से ज्ञान लेकर कई गुरु, रक्षक, आचार्य, ऋषि, मुनि और महर्षि निकले थे। सात्विक आश्रम का इतिहास प्रहरी इतिहास से कयी हजार वर्ष पूर्व का है। किसी वक्त एक भीषण लड़ाई हुई थी जहां विपरीत दुनिया का एक सुपरनैचुरल (सुर्पमारीच) ने बहुत ज्यादा तबाही मचाई थी। उसे बांधने और उसके जीवन लीला समाप्त करने के बाद उस वक्त के तात्कालिक गुरु वशिष्ठ ने एक संगठन बनाया था। यहीं से शुरवात हुई थी प्रहरी समुदाय की और पहला प्रहरी मुखिया वैधायन थे। अब वह भारद्वाज थे या सिंह ऐसा कोई उल्लेख नहीं है किताब में।"


"प्रहरी पूर्ण रूप से स्वशासी संगठन (autonomus body) थी, जिसका देख–रेख सात्त्विक आश्रम के गुरु करते थे। उन्होंने सभी चुनिंदा रक्षक को प्रशिक्षण दिया और 2 दुनिया के बीच शांति बनाना तथा जो 2 दुनिया के बीच के विकृत मनुष्य या जीव थे, उन्हें अंजाम तक पहुंचाने के लिए नियुक्त किया गया था। उस वक्त उन्हें एक किताब शौंपी गई थी, जिसे आज अनंत कीर्ति कहते है। दरअसल उस समय में ऐसा कोई नाम नहीं दिया गया था। इसे विशेष तथा विकृत जीव या इंसान की जानकारी और उनके विनाश के कहानी की किताब का नाम दे सकते हो।"


"इस किताब का उद्देश्य सिर्फ इतना था कि जब भी प्रहरी को कोई विशेष प्रकार का जीव से मिले या प्रहरी किसी विकृत मनुष्य, जीव या सुपरनेचुरल का विनाश करे तो उसकी पूरी कहानी का वर्णन इस किताब में हो। वर्णन जिसे कोई प्रहरी इस किताब में लिखता नही बल्कि यह किताब स्वयं पूरी व्याख्यान लिखती थी। लिखने के लिये किताब न सिर्फ प्रहरी के दिमाग से डेटा लेती थी बल्कि चारो ओर के वातावरण, विशेष जीव या विकृत जो भी इसके संपर्क में आता था, उसे अनुभव करने के बाद किताब स्वयं पूरी कहानी लिख देती थी।"


कहानी भी स्वयं किताब किस प्रकार से लिखती थी... यदि कोई विशेष जीव मिला तो उस जीव की उत्पत्ति स्थान। उसके समुदाय का विवरण, उनके पास किस प्रकार की शक्तियां है और यदि वह जीव किसी दूसरों के लिये प्राणघाती होता है तब उसे रोकने के उपाय।"


"वहीं विकृत मनुष्य, जीव या सुपरनैचुरल के बारे में लिखना हो तो... उसकी उत्पत्ति स्थान यदि पता कर सके तो। वह विकृत विनाश का खेल शुरू करने से पहले अपने या किसी गैर समुदाय के साथ कैसे पहचान छिपा कर रहता था। किस तरह की ताकते उनके पास थी। उन्हें कैसे मारा गया और जिस स्थान पर वह मारा गया, उसके कुछ सालों का सर्वे, जहां यह सुनिश्चित करना था कि उस विकृत ने जाने से पहले किसी दूसरे को तो अपने जैसा नही बनाकर गया। या जिनके बीच पहचान छिपाकर रहता था उनमें से कोई ऐसा राजदार तो नही जो या तो खुद उस जैसा विकृत बन जाये या मरे हुये विकृत की शक्ति अथवा उसे ही इस संसार में वापस लाने की कोई विधि जनता हो।"


"प्रहरी को कुछ भी उस किताब के अंदर नही लिखना था बल्कि वह सिर्फ अपने प्रशिक्षण और तय नीति के हिसाब से काम करते वक्त किताब को साथ लिये घूमते थे। अनंत कीर्ति की पुस्तक की जानकारी उस तात्कालिक समय की हुई घटनाओं के आधार पर होती थी। हो सकता था भविष्य में आने वाले उसी प्रजाति के कुछ विकृत, आनुवंशिक गुण मे बदलाव के साथ दोबारा टकरा जाये। इसलिए जो भी जानकारी थी उसे बस एक आधार माना जाता था, बाकी हर बार जब एक ही समुदाय के विकृत आएंगे तो कोई ना कोई बदलाव जरूर देखने मिलेगा।"


कुछ बातें किताब को लेकर काफी प्रचलित हुई थी, जो अनंत कीर्ति की पुस्तक को पाने के लिये किसी भी विकृत का आकर्षण बढ़ा देती थी...

1) प्रहरी किसी छिपे हुये विकृत की पहचान कैसे कर पाते है?

2) विकृत को जाल में कैसे फसाया गया था?

3) उन्हें कैद कैसे किया गया था?

4) उन्हें कैसे मारा गया था?


"यही उस पुस्तक की 4 बातें थी जिसकी जानकारी किसी विकृत के पास पहुंच जाये तो उसे न केवल प्रहरी के काम करने का मूल तरीका मालूम होगा, बल्कि सभी विकृत की पहचान कर उसे अपने साथ काम करने पर मजबूर भी कर सकता था। इसलिए किताब पर मंत्र का प्रयोग किया गया था। इस मंत्र की वजह से वो किताब अपना एक संरक्षक खुद चुन लेती थी। यह किताब नजर और धड़कने पहचानती है। किसी की मनसा साफ ना हो या मन के अंदर उस किताब को लेकर किसी भी प्रकार कि आशाएं हो, फिर वो पुस्तक नहीं खुलेगी।"


"कई तरह के मंत्र से संरक्षित इस किताब को खोलकर कोई पढ़ नही सकता। किसी भी वातावरण मे जाए या कोई ऐसा माहौल हो, जिसकी अच्छी या बुरी घटना को इस किताब ने कभी महसूस किया था, तब ये किताब खुद व खुद इशारा कर देती है और जैसे ही किताब खोलते हैं, सीधा उस घटना का पूरा विवरण पढ़ने मिलेगा।"


"मन में जब कोई दुवधा होगी और किसी प्रकार का बुरे होने की आशंका, तब वो किताब मन के अंदर की उस दुविधा या आशंका को भांपकर उस से मिलते जुलते सारे तथ्य (facts) सामने रख देगी। और सबसे आखिर में जितने भी जीव, विकृत मनुष्य, सुपरनैचुरल या फिर वर्णित जितने भी सजीव इस किताब में लिखे गये है, जब वह आप–पास होंगे तो उनकी पूरी जानकारी किताब खोलने के साथ ही मिलेगी। किताब की जितनी भी जानकारी थी, वो मैंने दे दी। कुछ विशेष तुम्हे पता चले बड़े तब मुझसे साझा करना।"


आर्यमणि और उसका पूरा पैक पूरी बात ध्यान लगाकर सुन रहे थे। पूरी बात सुनने के बाद आर्यमणि.… "छोटे ये बता जब तूने किताब पढ़ने के लिये मंत्र मुक्त किया, तो क्या डेढ़ करोड़ पन्ने में से पहले पन्ने पर ये पूरी डिटेल लिखी हुई थी?"…


अपस्यु:– एक बार मंत्र मुक्त करके खुद भी पढ़ने की कोशिश तो करो। ये किताब हमे भी पागल बना सकती है। पहला पन्ना जब मैने पढ़ना शुरू किया तब तुम विश्वास नहीं करोगे वहां पहला लाइन क्या लिखा था...


आर्यमणि:– तू बता छोटे मैं विश्वास कर लूंगा, क्योंकि किताब मेरे ही पास है...


अपस्यु:– सुनो बड़े पहला लाइन ऐसा लिखा था.… प्रहरी मकड़ी हाथ खुफिया मछली जंगल उड़ते तीर और भाला मारा गया।


आर्यमणि:– ये क्या था उस वक्त के गुरु वशिष्ठ का कोई खुफिया संदेश था?
Bohot hi umdha update nainu bhai
 

@09vk

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भाग:–96






क्या ही एक्शन मोमेंट था। इवान भी उतने ही पैशनेट होकर अलबेली को चूमा और तीनो (आर्यमणि, रूही और ओजल) के सामने से अलबेली को उठाकर बाहर ले जाते.… "हम जरा अपना झगड़ा शहर के एक चक्कर काटते हुये सुलझाते है, तब तक एक ग्रैंड पार्टी की प्लानिंग कर लो।" ओजल और रूही तो इनके प्यार और पागलपन को देखकर पहले भी हंसी से लोटपोट हो चुकी थी। आज पहली बार आर्यमणि देख रहा था और वह भी खुद को लोटपोट होने से रोक नहीं पाया।


आर्यमणि, रूही और ओजल हंस रही थी। अभी जितनी तेजी से दोनो (अलबेली और इवान) बाहर निकले थे, उतने ही तेजी से वापस आकर सबके बीच बैठते... "हमने सोचा हमारा मसला तो वैसे भी सुलझ गया है, फिर क्यों बाहर जाकर वक्त बर्बाद करे, जब सबके साथ इतना अच्छा वक्त गुजर रहा।"


हंसी की किलकारी फिर से गूंजने लगी। सभी पारिवारिक माहौल का आनंद ले रहे थे। हां लेकिन उस वक्त ओजल ने रूही की उस भावना का जिक्र कर दी, जो शायद रूही कभी आर्यमणि से नहीं कह सकती थी। बीते एक महीने में जब आर्यमणि गहरी नींद में अपने हर कोशिकाओं को हील कर रहा था, तब रूही हर पल खुद को आर्यमणि के लिये समर्पित किये जा रही थी। वह जब भी अकेली होती इस बात का दर्द जरूर छलक जाता की…. "दिल के करीब जो है इस बार उसे दूर मत करो, वरना मेरे लिये भी अब इस संसार में जीवित रहना कठिन हो जायेगा। जानती हूं वह मेरा नही लेकिन मेरे लिये तो वही पूरी दुनिया है।"


जब ये बात ओजल कह गयी, रूही अपना सर नीचे झुका ली। आंसुओं ने एक बार फिर से उसके आंखें भिगो दी थी और सिसकियां लेती अपनी विडंबना वह कह गयी…. "किस मुंह से इजहार कर देती अपनी भावना। कोई एक ऐसी बात तो हो जो मुझमें खास हो। राह चलता हर कोई जिसे नोच लेता था, उसकी हसरतों ने आर्यमणि के सपने देख लिये, वही बहुत बड़ी थी।"


अबकी बार ये रोतलू भावना किसी भी टीन वुल्फ को पसंद ना आयी। आर्यमणि भी अपनी आंख सिकोड़कर बस रूही को ही घुर रहा था, और रूही अपने सर को नीचे झुकाये बस सिसकियां ले रही थी। तभी अलबेली गुस्से में उठी और ग्रेवी से भरी बाउल को रूही के सर पर उड़ेलकर आर्यमणि के पीछे आ गयी।


ओ बेचारी रूही.… जली–कटी भावना मे रो रही थी और अलबेली ने मसालेदार होली खेल ली। हंस–हंस कर सब लोटपोट हुए जा रहे थे। हां रूही ने बदला लेने कि कोशिश जरूर की लेकिन अलबेली उसके हाथ ना आयी। इन लोगों की हंसी ठिठोली चलती रही। इसी बीच ज़िन्दगी में पहली बार आर्यमणि ने भी कॉमेडी ट्राई मारा था। बोले तो ओजल और इवान थे तो उसी मां फेहरीन के बच्चे, जिसकी संतान रूही थी।


आर्यमणि के साथ रूही बैठी थी तभी आर्यमणि कहने लगा... "कैसा बेशर्म है तुम्हारे भाई–बहन। जान बुझ कर तुम्हे वैसी हालत में देखते रहे (बिस्तर पर वाली घटना) और दरवाजे से हट ही ना रहे थे।"….


अब वोल्फ पैक था, ऊपर से आज तक कभी भी इन बातों का ध्यान ना गया होगा की ओजल और इवान भाई–बहन है। हां लेकिन आर्यमणि के इस मजाक पर रूही को आया गुस्सा, पड़ोस मे ही आर्यमणि था बैठा हुआ... फिर तो चल गया रूही का गुस्से से तमतमाया घुसा।


आव्व बेचारा आर्यमणि का जबड़ा…. लेफ्ट साइड से राईट साइड घूम गया। रूही अपनी गुस्से से फुफकारती लाल आंखों से घूरती हुई कहने लगी.… "दोबारा ऐसे बेहूदा मजाक किये ना तो सुली पर टांग दूंगी। ना तो बच्चो के इमोशन दिखी और ना ही उनकी खुशी, बस उतर आये छिछोरेपन पर।"..


बहरहाल, काफी मस्ती मजाक के बीच पूरी इनकी शाम गुजर रही थी। बात शुरू होते ही फिर चर्चा होने लगी उन तस्वीरों और अनंत कीर्ति के उस पुस्तक की जीसे अपस्यु ने खोल दिया था।


आर्यमणि, सबको शांत करते अपस्यु को कॉल लगा दिया.…


अपस्यु:– बड़े भाई को प्रणाम"..


आर्यमणि:–मैं कहां, तू कुछ ज्यादा बड़ा हो गया है। कहां है मियामी या फिर हवाले के पैसे के पीछे?


अपस्यु:– बातों से मेरे लिये शिकायत और आंखों में किसी के लिये प्यार। बड़े कुछ बदले–बदले लग रहे हो।


आर्यमणि:– तू हाथ लग जा फिर कितना बदल गया हूं वो बताता हूं। एक मिनट सर्विलेंस लगाया है क्या यहां, जो मेरे प्यार के विषय में बात कर रहा?


अपस्यु:– नही बड़े, ओजल ने न जाने कबसे वीडियो कांफ्रेंसिंग कर रखा था। अब परिवार में खुशी का माहोल था, तो थोड़ा हम भी खुश हो गये।


आर्यमणि:– ए पागल इतना मायूस क्यों होता है। दिल छोटा न कर। ये बता तू यहां रुका क्यों नही?


अपस्यु:– बड़े मैं रुकता वहां, लेकिन भाभी (रूही) की भावना और आपके पुराने प्यार को देखकर मैं चिढ़ सा गया था। मुझे लगा की कहीं जागने के बाद तुमने अपने पुराने प्यार (ओशुन) को चुन लिया, फिर शायद भाभी के अंदर जो वियोग उठता, मैं उसका सामना नहीं करना चाहता था। और शायद अलबेली, इवान और ओजल भी उस पल का सामना न कर पाते। पर बड़े तुमने तो हम सबको चौंका दिया।


आर्यमणि:– तुम सबकी जिसमे खुशी होगी, वही तो मेरी खुशी है। मेरे शादी की पूरी तैयारी तुझे ही करनी होगी।


अपस्यु:– मैं सात्विक आश्रम के केंद्र गांव जा रहा हूं। पुनर्स्थापित पत्थर को गांव में एक बार स्थापित कर दूं फिर वह गांव पूर्ण हो जायेगा। गुरु ओमकार नारायण की देख–रेख़ में एक बार फिर से वहां गुरकुल की स्थापना की जायेगी। उसके बाद ही आपकी शादी में आ पाऊंगा। यदि मुझे ज्यादा देर हो जाये तो आप लोग शादी कर लेना, मैं पीछे से बधाई देने पहुंचूंगा...


आर्यमणि:– ये तो अच्छी खबर है। ठीक है तू उधर का काम खत्म करले पहले फिर शादी की बात होगी। और ये निशांत किधर है, उसकी 4 महीने की शिक्षा समाप्त न हुई?


अपस्यु:– वह एक कदम आगे निकल गये है। वह पूर्ण तप में लिन है। पहले तो उन्हे संन्यासी बनना था लेकिन ब्रह्मचर्य भंग होने की वजह से ऐसा संभव नहीं था इसलिए अब मात्र ज्ञान ले रहे है। तप से अपनी साधना साध रहे। पता न अपनी साधना से कब वाह उठे कह नही सकता।


आर्यमणि:– हम्म्म… चलो कोई न उसे अपना ज्ञान लेने दो। सबसे मिलने की अब इच्छा सी हो रही। तुम्हे बता नही सकता उन तस्वीरों को आंखों के सामने देखकर मैं कैसा महसूस कर रहा था। खैर यहां क्या सिर्फ मुझसे ही मिलने आये थे, या बात कुछ और थी।


अपस्यु:– बड़े, शंका से क्यों पूछ रहे हो?


आर्यमणि:– नही, अनंत कीर्ति की पुस्तक खोलकर गये न इसलिए पूछ रहा हूं?


अपस्यु:– "क्या बड़े तुम भी सबकी बातों में आ गये। मैं शुद्ध रूप से तुमसे ही मिलने आया था। मन में अजीब सा बेचैनी होने लगा था और रह–रह कर तुम्हारा ही ध्यान आ रहा था, इसलिए मिलने चला आया। जब मैं कैलिफोर्निया पहुंचा तब यहां कोई नही था। मन और बेचैन सा होने लगा। एक–एक करके सबको कॉल भी लगाया लेकिन कोई कॉल नही उठा रहा था। लागातार जब मैं कॉल लगाते रह गया तब भाभी (रूही) का फोन किसी ने उठाया और सीधा कह दिया की सभी मर गये।"

"मैं सुनकर अवाक। फिर संन्यासी शिवम से मैने संपर्क किया। जितनी जल्दी हो सकता था उतनी जल्दी मैं पोर्ट होकर मैक्सिको के उस जंगल में पहुंचा। लेकिन जब तुम्हारे पास पहुंचा तब तुम ही केवल लेटे थे बाकी चारो जाग रहे थे। तुमने कौन सा वो जहर खुद में लिया था, तुम्हारे शरीर का एक अंग नही बल्कि तुम्हारे पूरे शरीर की जितने भी अनगिनत कोशिकाएं थी वही मरी जा रही थी। 4 दिन तक मैने सेल रिप्लेसमेंट थेरेपी दिया तब जाकर तुम्हारे शरीर के सभी कोशिकाएं स्टेबल हुई थी और ढंग से तुम्हारी हीलिंग प्रोसेस शुरू हुई।


आर्यमणि:– मतलब तूने मेरी जान बचाई...


अपास्यु:– नही उस से भी ज्यादा किया है। बड़े तुम मर नही रहे थे बल्कि तुम्हारी कोसिकाएं रिकवर हो रही थी। यदि मैंने सपोर्ट न दिया होता तो एक महीने के बदले शायद 5 साल में पूरा रिकवर होते, या 7 साल में या 10 साल में, कौन जाने...


आर्यमणि:– ओह ऐसा है क्या। हां चल ठीक है इसके लिये मैं तुम्हे मिलकर धन्यवाद भी कह देता लेकिन तूने अनंत कीर्ति की पुस्तक खोली क्यों?


अपस्यु:– तुम्हारा पूरा पैक झूठा है। नींद में तुमने ही "विप्रयुज् विद्या" के मंत्र पढ़े थे मैने तो बस मेहसूस किया की किताब खुल चुका है। मुझे तो पता भी नही था की "विप्रयुज् विद्या" के मंत्र से पुस्तक खुलती है।


आर्यमणि:– तू मुझे चूरन दे रहा है ना...


अपस्यु:– तुमने अभी तक दिमाग के अंदर घुसना नही सीखा है, लेकिन मैं यहीं से तुम्हारे दिमाग घुसकर पूरा प्रूफ कर दूंगा। या नहीं तो अपने दिमाग में क्ला डालो और अचेत मन की यादें देख लो।


आर्यमणि:– अच्छा चल ठीक है मान लिया तेरी बात। चल अब ये बता किताब में ऐसा क्या लिखा है, जिसके लिये ये एलियन पागल बने हुये है?


अपस्यु:– बड़े मैं जो जवाब दूंगा उसके बाद शायद मुझे एक घंटे तक समझाना होगा।


आर्यमणि:– पढ़ने से ज्यादा सुनने में मजा आयेगा। तू सुना छोटे, मैं एक घंटे तक सुन लूंगा।


अपस्यु:– बड़े, इसे परेशान करना कहते हैं। किताब पास में ही तो है।


आर्यमणि:– मुझे फिर भी तुझे सुनना है।


अपस्यु:– पहले किताब को तो देख लो की वो है क्या? मेरे बताने के बाद तुम पहली बार किताब देखने का रहस्यमयी मजा खो दोगे।


आर्यमणि:– बकवास बंद और सुनाना शुरू कर।


आर्यमणि:– ठीक है तो सुनो, उस किताब को न तो पढ़ा जा सकता है और न ही उसमे कुछ लिखा जा सकता है। हां लेकिन "विद्या विमुक्त्ये" मंत्र का जाप करोगे तो उसमे जो भी लिखा है, पढ़ सकते हो। बहुत ज्यादा नहीं बस दिमाग चकराने वाले वाक्यों से सजे डेढ़ करोड़ पन्नो को पढ़ने के बाद सही आकलन कर सकते हो की अनंत कीर्ति की पुस्तक के लिये एलियन क्यों पागल है।


आर्यमणि:– छोटे मजाक तो नही कर रहे। डेढ़ करोड़ पन्ने भी है क्या उसमे?


अपस्यु:– इसलिए मैं कह रहा था कि खुद ही देख लो।


आर्यमणि:– ठीक है तू जल्दी से पूरी बात बता। मैं आज की शाम किताब को देखने और अध्यात्म में तो नही गुजार सकता।


अपस्यु:– "ठीक है ध्यान से सुनो। कंचनजंगा का वह गांव शक्ति का एक केंद्र माना जाता था जहां सात्त्विक आश्रम से ज्ञान लेकर कई गुरु, रक्षक, आचार्य, ऋषि, मुनि और महर्षि निकले थे। सात्विक आश्रम का इतिहास प्रहरी इतिहास से कयी हजार वर्ष पूर्व का है। किसी वक्त एक भीषण लड़ाई हुई थी जहां विपरीत दुनिया का एक सुपरनैचुरल (सुर्पमारीच) ने बहुत ज्यादा तबाही मचाई थी। उसे बांधने और उसके जीवन लीला समाप्त करने के बाद उस वक्त के तात्कालिक गुरु वशिष्ठ ने एक संगठन बनाया था। यहीं से शुरवात हुई थी प्रहरी समुदाय की और पहला प्रहरी मुखिया वैधायन थे। अब वह भारद्वाज थे या सिंह ऐसा कोई उल्लेख नहीं है किताब में।"


"प्रहरी पूर्ण रूप से स्वशासी संगठन (autonomus body) थी, जिसका देख–रेख सात्त्विक आश्रम के गुरु करते थे। उन्होंने सभी चुनिंदा रक्षक को प्रशिक्षण दिया और 2 दुनिया के बीच शांति बनाना तथा जो 2 दुनिया के बीच के विकृत मनुष्य या जीव थे, उन्हें अंजाम तक पहुंचाने के लिए नियुक्त किया गया था। उस वक्त उन्हें एक किताब शौंपी गई थी, जिसे आज अनंत कीर्ति कहते है। दरअसल उस समय में ऐसा कोई नाम नहीं दिया गया था। इसे विशेष तथा विकृत जीव या इंसान की जानकारी और उनके विनाश के कहानी की किताब का नाम दे सकते हो।"


"इस किताब का उद्देश्य सिर्फ इतना था कि जब भी प्रहरी को कोई विशेष प्रकार का जीव से मिले या प्रहरी किसी विकृत मनुष्य, जीव या सुपरनेचुरल का विनाश करे तो उसकी पूरी कहानी का वर्णन इस किताब में हो। वर्णन जिसे कोई प्रहरी इस किताब में लिखता नही बल्कि यह किताब स्वयं पूरी व्याख्यान लिखती थी। लिखने के लिये किताब न सिर्फ प्रहरी के दिमाग से डेटा लेती थी बल्कि चारो ओर के वातावरण, विशेष जीव या विकृत जो भी इसके संपर्क में आता था, उसे अनुभव करने के बाद किताब स्वयं पूरी कहानी लिख देती थी।"


कहानी भी स्वयं किताब किस प्रकार से लिखती थी... यदि कोई विशेष जीव मिला तो उस जीव की उत्पत्ति स्थान। उसके समुदाय का विवरण, उनके पास किस प्रकार की शक्तियां है और यदि वह जीव किसी दूसरों के लिये प्राणघाती होता है तब उसे रोकने के उपाय।"


"वहीं विकृत मनुष्य, जीव या सुपरनैचुरल के बारे में लिखना हो तो... उसकी उत्पत्ति स्थान यदि पता कर सके तो। वह विकृत विनाश का खेल शुरू करने से पहले अपने या किसी गैर समुदाय के साथ कैसे पहचान छिपा कर रहता था। किस तरह की ताकते उनके पास थी। उन्हें कैसे मारा गया और जिस स्थान पर वह मारा गया, उसके कुछ सालों का सर्वे, जहां यह सुनिश्चित करना था कि उस विकृत ने जाने से पहले किसी दूसरे को तो अपने जैसा नही बनाकर गया। या जिनके बीच पहचान छिपाकर रहता था उनमें से कोई ऐसा राजदार तो नही जो या तो खुद उस जैसा विकृत बन जाये या मरे हुये विकृत की शक्ति अथवा उसे ही इस संसार में वापस लाने की कोई विधि जनता हो।"


"प्रहरी को कुछ भी उस किताब के अंदर नही लिखना था बल्कि वह सिर्फ अपने प्रशिक्षण और तय नीति के हिसाब से काम करते वक्त किताब को साथ लिये घूमते थे। अनंत कीर्ति की पुस्तक की जानकारी उस तात्कालिक समय की हुई घटनाओं के आधार पर होती थी। हो सकता था भविष्य में आने वाले उसी प्रजाति के कुछ विकृत, आनुवंशिक गुण मे बदलाव के साथ दोबारा टकरा जाये। इसलिए जो भी जानकारी थी उसे बस एक आधार माना जाता था, बाकी हर बार जब एक ही समुदाय के विकृत आएंगे तो कोई ना कोई बदलाव जरूर देखने मिलेगा।"


कुछ बातें किताब को लेकर काफी प्रचलित हुई थी, जो अनंत कीर्ति की पुस्तक को पाने के लिये किसी भी विकृत का आकर्षण बढ़ा देती थी...

1) प्रहरी किसी छिपे हुये विकृत की पहचान कैसे कर पाते है?

2) विकृत को जाल में कैसे फसाया गया था?

3) उन्हें कैद कैसे किया गया था?

4) उन्हें कैसे मारा गया था?


"यही उस पुस्तक की 4 बातें थी जिसकी जानकारी किसी विकृत के पास पहुंच जाये तो उसे न केवल प्रहरी के काम करने का मूल तरीका मालूम होगा, बल्कि सभी विकृत की पहचान कर उसे अपने साथ काम करने पर मजबूर भी कर सकता था। इसलिए किताब पर मंत्र का प्रयोग किया गया था। इस मंत्र की वजह से वो किताब अपना एक संरक्षक खुद चुन लेती थी। यह किताब नजर और धड़कने पहचानती है। किसी की मनसा साफ ना हो या मन के अंदर उस किताब को लेकर किसी भी प्रकार कि आशाएं हो, फिर वो पुस्तक नहीं खुलेगी।"


"कई तरह के मंत्र से संरक्षित इस किताब को खोलकर कोई पढ़ नही सकता। किसी भी वातावरण मे जाए या कोई ऐसा माहौल हो, जिसकी अच्छी या बुरी घटना को इस किताब ने कभी महसूस किया था, तब ये किताब खुद व खुद इशारा कर देती है और जैसे ही किताब खोलते हैं, सीधा उस घटना का पूरा विवरण पढ़ने मिलेगा।"


"मन में जब कोई दुवधा होगी और किसी प्रकार का बुरे होने की आशंका, तब वो किताब मन के अंदर की उस दुविधा या आशंका को भांपकर उस से मिलते जुलते सारे तथ्य (facts) सामने रख देगी। और सबसे आखिर में जितने भी जीव, विकृत मनुष्य, सुपरनैचुरल या फिर वर्णित जितने भी सजीव इस किताब में लिखे गये है, जब वह आप–पास होंगे तो उनकी पूरी जानकारी किताब खोलने के साथ ही मिलेगी। किताब की जितनी भी जानकारी थी, वो मैंने दे दी। कुछ विशेष तुम्हे पता चले बड़े तब मुझसे साझा करना।"


आर्यमणि और उसका पूरा पैक पूरी बात ध्यान लगाकर सुन रहे थे। पूरी बात सुनने के बाद आर्यमणि.… "छोटे ये बता जब तूने किताब पढ़ने के लिये मंत्र मुक्त किया, तो क्या डेढ़ करोड़ पन्ने में से पहले पन्ने पर ये पूरी डिटेल लिखी हुई थी?"…


अपस्यु:– एक बार मंत्र मुक्त करके खुद भी पढ़ने की कोशिश तो करो। ये किताब हमे भी पागल बना सकती है। पहला पन्ना जब मैने पढ़ना शुरू किया तब तुम विश्वास नहीं करोगे वहां पहला लाइन क्या लिखा था...


आर्यमणि:– तू बता छोटे मैं विश्वास कर लूंगा, क्योंकि किताब मेरे ही पास है...


अपस्यु:– सुनो बड़े पहला लाइन ऐसा लिखा था.… प्रहरी मकड़ी हाथ खुफिया मछली जंगल उड़ते तीर और भाला मारा गया।


आर्यमणि:– ये क्या था उस वक्त के गुरु वशिष्ठ का कोई खुफिया संदेश था?
Nice one
 

nain11ster

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Kya rapchik Dhamal machaya hai re baba pura mumbaia style me, un 4 beast Alfa ko maarne ke liye arya ne apne dimag ka istemal kiya or unhe apne Behad Khatarnak acid se apne panjo me lakr 4ro ki band bja barat nikal di... Superb bhai

Osun jb dikhai di to vo khud ko bhul gyi thi sath hi arya ko bhi bhul gyi thi, vo khud ko vha arya dwara bandi banae hone ka kah rhi thi, pta nhi usko us duniya ka kitna kuchh pta tha or hai ye to aage hi sunne milega pr arya ne use rota sisakte dekh bina jyada dimag lgaye apna hath gaddhe me daal diya or uska anjam ek Bijli ka tej jhatka or be-woman ka hamla...

Vaise aapne jis andaj me uska varnan kiya hai mujhe lagta hai ki uska bhi aage jikar hoga, Bob ne yha kafi fast nirnay liya arya ki halat ko jankr, pr mujhe yah btao in supernaturals me blood group ko leke koi rule apply nhi hota kya, sala kisi ka bhi kisi pr bhi chdha dete hai, ham human positive negative me hi fase rah jate hai (AB+ AB- A+ A- B+ B- O+ O- Rh+ Rh-) inka sahi hai Jiska pao uska bharo...

Osun ko bahar nikalne me arya ko lgatar Bijli ke jhatke khane pade, pr akhir me bahar nikal kar hi mana, arya kamjor ho gya hai pr Dekhte hai ki Vo kitni jaldi hosh me aata hai or apne pack ke dard ko apne andar khichta hai, Vaise arya ke andar jitna jahar tha vo to arya dusri duniya me chhod aaya ab use bhi nye jahar ki jarurat hogi to vo apni team ke sarir se hi nikalega...

Mind blowing jabarjast superb update bhai sandar amazing

Thankooo sooo much Xabhi bhai.... Pahle to main blood wali baat se shuru karunga.... Yahan blood transfusion ki theory nahi lagaeye.... Balki yahan current lagne ke applied science ko algaya jayega.... Apne Aryamani ke pass hatheli tham lo aur toxic khinch lo wale gun hai... Bus yahan bhi wahi go raha tha... Wolf aaye hath thame 2 minute me Aryamani ki hatheli me uske sharir ka aadha khun aur hafte huye wah alag hua aur dusra wolf aaya.... Jab transfusion ka hi soch liye to pahla sawal yahi pooch lete... Aisi kaun si technology thi jiske wajah se 2 minute me sharir ka aadha khun yani lagbhag 3 liter khun chadha diya :D...

Khair fight mast thi... Mujhe bhi padhne ke baad aisa feel hua :D... Par oshun kyon kisi duniya ke bare me janegi... Use tantr se kaid kiya gaya tha... Aur wahan sirf use andhera hi dikh raha tha... Andhere ke siwa kuch bhi nahi...

Baki dekhiye Arya kitna aur kaise toxic leta hai...
 
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