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Romance ajanabi hamasafar -rishton ka gathabandhan

Destiny

Will Change With Time
Prime
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Update - 61


अगले दिन की शुरूवात सामान्य रहा महल में एक ओर दिन के बाद जलसा होना था जिसकी तैयारी हों चुका था। उसी विषय पर नाश्ता के दौरान रावण और राजेन्द्र के बीच में कुछ विशेष चर्चा हों रहा था। किन किन अतिथियों को निमंत्रण देना था उसका भार रावण के कांधे पर था और उसका जायजा लेते हुए राजेन्द्र एक एक विशिष्ट अतिथि का नाम गिना रहा था और पूछ रहा था कि उन्हें निमंत्रण गया की नहीं गया। रावण सिर्फ हां न में जवाब दे रहा था। शायद नाश्ते के दौरान इतनी बाते करना सुरभि को पसंद नहीं आया इसलिए टोकते हुए सुरभि बोलीं…आप दोनों भाइयों को भोजन के दौरान ही बाते करना होता हैं मुझे तो लग रहा हैं जैसे ही निवाला अंदर जाता हैं वैसे ही दबी कुचली बाते उछल कूद करते हुए बाहर आने लग जाती हैं। अभी चुप चाप नाश्ता कीजिए उसके बाद दोनों भाई एक सभा लगा लेना फिर जितनी भी चर्चाएं करनी हो कर लेना कम से कम इसी बहाने भोजन के अलावा भी बैठकर दोनो भाई कुछ बातें कर लेंगे।

रावण…भाभी हम तो बस महल में होने वाले जलसा पर चर्चा कर रहें हैं अन्य कोई बाते तो कर नहीं रहें हैं।

सुरभि…अच्छा? धीरा बेटा इन दोनों भाईयों के सामने से थाली तो ले जा और दोनों को एक रूम में बंद कर दे वहीं पर ही चर्चाएं कर लेंगे। दोनों भाइयों ने डायनिंग मेज को मछली बाजार बना दिया हैं। खां कम रहें है बाते ज्यादा कर रहें हैं।

रावण…भाभी जरा गौर से देखिए जितनी बाते बाहर निकल रहा हैं उतना ही निवाला अंदर जा रहा हैं।

सुरभि…ऐसा हैं तो जरा आपने आस पास नजर दौड़ाकर देखिए सभी का लगभग नाश्ता सप्तम होने पे है और आप दोनों भाई तब से बकर बकर बाके ही जा रहे हों। नाश्ते के नाम पर सिर्फ दो चार निवाला ही अंदर गया हैं।

राजेन्द्र… ये भाई अब चुप चाप नाश्ता कर ले नहीं तो रानी साहिबा जितना निवाला अंदर गया हैं उसी पे फूल स्टॉप लगा देंगी।

सुरभि…अब कहीं हैं बिल्कुल पाते की बात अब बिना एक शब्द बोले नाश्ता कीजिए अगर एक भी शब्द बोल तो मै बिल्कुल वैसा ही करूंगी जैसा आपने कहा है।

दोनों भाई बस एक दूसरे पे निगाह फेरा इशारों में ही जो कहना था कह दिया फ़िर नाश्ता करने लग गए। बगल में बैठे सुरभि सहित बाकी सभी बस मुंह नीचे करके मुस्कुरा रहें थे। खैर कुछ देर में सभी का नाश्ता हों गया। एक एक कर वह से चलते बने और दोनों भाई वहीं पर ही आगे की चर्चा करने लग गए।

बीच वार्ता में विघ्न पड़ जाने से दोनों भाई एक बार फिर शीरे से चर्चा शुरू किया। राजेन्द्र एक एक कर जानें माने हस्ती की नाम लेकर, उन्हें निमंत्रण पहुंचा की नहीं पहुंचा, पूछने पर रावण सिर्फ हां या न में जब दे रहा था। सभी जानें माने हस्ती को निमंत्रण भेजा जा चुका था जिसकी स्वीकृति रावण ने दे दिया। अंत में एक नाम राजेन्द्र ने लिए। जिस पे रावण ने न में जवाब दिया तब राजेन्द्र बोला…रावण इतने जानें माने हस्ती को तू कैसे भुल सकता हैं। आज ही उन तक निमंत्रण पहुंच जाना चाहिए।

रावण…पर दादा भाई…।

"समझ रहा हूं तेरे मन में क्या चल रहा हैं। तू मत जाना मै खुद चला जाऊंगा।" रावण के बातों को कटकर राजेन्द्र अपनी बाते कह दिया।

न जानें वो कौन सी बातें हैं जिस कारण रावण ने एक जानें माने शख्स को निमंत्रण नहीं भेजा लेकिन अभी अभी राजेन्द्र के कहीं बातों ने रावण को लगभग भाव शून्य कर दिया। न वो विचलित था न ही डरा सहमा था, न ही किसी प्रकार का विकृत सोच उसके मन में था। जो भी हों कुछ तो राज था वरना रावण का यूं शून्य विहीन भाव न होता। बरहाल जो भी हों आगे देखा जायेगा।

दोनों भाईयों में चर्चा आगे और आगे बढ़ता जा रहा था। चर्चाओं के दौरान बीच बीच में हंसी ठिठौली भी हों रहा था। किसी किसी बात पर दोनों भाई ठहाके लगकर हंस देते जिसकी गूंज इतना अधिक होता कि महल की चार दिवारी गुंजायमान हों उठता। एक बार फ़िर से दोनों भाइयों के ठहाके गूंजा इस बार की ठहाके ने सुरभि को कमरे से बाहर आने पर मजबूर कर दिया। कुछ देर दोनों भाइयों को बातों में माझे देखता रहा फिर उनके नजदीक जाकर बोला…क्या बात आज दोनों भाई कुछ ज्यादा ही ठहाके लगा रहें हों।

रावण…हां भाभी बातों बातों में हम दोनों भाइयों के साथ में बिताए कुछ ऐसे किस्से याद आ गए जो हमारे लिए बहुत मजेदार था बस उसे याद करते हुए ठहाके लगा रहें थे।

"काका इसके लिए आप को न मां को ittaaaa बड़ा थैंक यू बोलना चाहिए।" इत्ता बड़ा को पुष्पा ने इतना लंबा खींचा की एक बार फ़िर से ठहके गूंज उठा और पुष्पा जाकर रावण के बगल में बैठ गईं। दुलार करते हुए रावण बोला…बिल्कुल सही कह महारानी जी.. बहुत बहुत धन्यवाद भाभी सिर्फ आप ही के कारण आज हम दोनों भाई न जानें कितने दिनों बाद इतने लंबे समय के लिए बात किया और भूली बिसरी यादों को ताज़ा करके हंसे मुस्कुराए और ठहाके भी लगा लिया।

राजेन्द्र…एक वक्त हुआ करता था जब हम दोनों छोटे बड़े भाईयों की एक जोड़ी हुआ करती थीं। खूब उधम कटते थे रोज महफिल जमाते थे लेकिन वक्त ने ऐसी करवट बदली की हम एक दूसरे के साथ वक्त बिताना भूल ही गए कभी रावण के पास वक्त होता तो कभी मेरे पास नहीं और आज सिर्फ तुम्हारे कारण एक अहम चर्चा करते करते हम दोनों भाई उन यादों को खंगाल बैठे जिसे लगभग भूल ही गए थे। थैंक यू सुरभि

"दादा भाई आप तो कभी कभी वक्त निकालकर मेरे साथ वक्त बिताना चाहते थे लेकिन मैं सिर्फ आपसे बैर रखने के कारण आपसे दूर भागता था।" इतनी बाते मन ही मन रावण ने बोला फिर नजर घुमा कर सुकन्या को ढूंढने लगा जो उससे कुछ ही दूर खड़ी मुस्कुरा रहीं थीं।

रावण का मन कर रहा था कि दोनों हाथ जोड़े सुकन्या को धन्यवाद दे लेकिन ऐसा कर नहीं पाया बस पलकों को झपकाकर आंखों की भाषा में धन्यवाद कह दिया प्रतिउत्तर में सुकन्या ने ऐसा अभिनय किया जैसे कह रहीं हो हटो जी आप बेवजह मुझे धन्यवाद कह रहे हों मैने तो बस मेरा काम किया हैं।

रावण शायद सुकन्या का अभिनय समझ गया था इसलिए इशारों में ही बोल दिया बाद में मिलना अच्छे से धन्यवाद कहूंगा और मुस्कुरा दिया।

"पापा जी अब तो आपके पास वक्त ही वक्त हैं छोटे बड़े की जोड़ी जितना मन करें उतना उधम काट लेना महफिल जमा लेना बस ध्यान रखना दो पैरों पे चलके घर लौटना चार पैरों पे नहीं" इतनी बाते कमला ने बोलीं थीं। जो बन ठान के रघु के साथ वह पहुंची थीं।

राजेन्द्र…छोटे के दो बड़े के दो हों गए न चार पैर दोनों एक दूसरे का सहारा बने महल लौट आयेंगे लेकिन वो जब होगा तब होगा अभी बहू रानी जी इतना बता दीजिए इतना सज सवारके कह चली। कहीं रघु के साथ दफ्तर तो नहीं जा रही हों अगर ऐसा कुछ करने का सोचा है तो त्याग दो क्योंकि अभी मेरा मन तुम्हें दफ्तर भेजने का नहीं हैं जब मेरा मन होगा तभी तुम्हे दफ्तर भेजूंगा।

रघु…नहीं पापा कमला दफ्तर नहीं बल्कि मेरे साथ हॉस्पिटल जा रहीं हैं। कल पुष्पा और कमला ने संभू को हॉस्पिटल में एडमिट करवाया था। उसी को देखने जा रहें हैं।

दोनों भाई को पता नहीं था इसलिए दोनों भाई अलग अलग प्रतिक्रिया दी एक "कौन संभू" तो दूसरा "क्या संभू" बोला। "कौन संभू" पर किसी की कोई खास प्रतिक्रिया नही आया लेकिन "क्या संभू" पर प्रतिक्रिया देते हुए रघु बोला…काका आप भी संभू को जानते हों।






रावण…एक संभू को मैं जानता हूं जो दलाल के यह काम करता हैं। लेकिन मुझे लगता है शायद ये वाला संभू वो वाला संभू न हों बस संभू नाम सुनते ही उसका ख्याल आया और मेरी मुंह से ऐसी प्रतिक्रिया निकला।

रघु…काका आप हमारे साथ चलो आप देखकर ही बता देना कि ये संभू वही है जो दलाल के यहां काम करता हैं तब आप उनके पास संदेशा भिजवा देना।

राजेन्द्र…अरे भाई रावण के "क्या संभू" का जवाब मिल गया लेकिन मेरी "कौन संभू" का जबाव मिलेगा।

रघु ने राजेंद्र के "कौन संभू" का जवाब दे दिया बस परसों रात को जिस ढंग से संभू के साथ भेंट हुआ था उसमें थोड़ी हेर फेर कर दिया। रघु की बातों ने रावण के मन में एक भय का बीज वो दिया और उसे लग रहा था कहीं ये वाला संभू वहीं हुआ जो दलाल के घर में काम करता हैं। जिसे रघु पहले से जानता हैं। अगर ऐसा हुआ तो उसका भेद अभी तक खुल चुका होगा नहीं खुला तो कभी न कभी संभू बता ही देगा पर यह भाव भी कुछ पल का मेहमान था न जानें क्या सोचकर रावण हल्का सा मुस्कुरा दिया और उसकी मन से पल भर में भय दूर हों गया।

रावण दोनों के साथ हॉस्टिपल चल दिया इसके कुछ देर बाद ही राजेंद्र भी कही जानें के लिए निकला जैसे ही राजेंद्र की कार महल के मुख्य द्वार से बाहर निकला एक अनजान शख्स ने कार को रूकवाया कुछ औपचारिक बातों के बाद वह शख्स राजेंद्र को एक पैकेट दिया। जिसे लेते हुए राजेंद्र बोला…भाई इसमें क्या हैं कुछ भरी भरी सा लग रहा हैं।

"राजा जी मुझे नही पाता क्या हैं बस मुझसे कह गया था कि ये आप की अमानत है सिर्फ आप को ही दूं किसी ओर को नहीं!"

"मेरी अमानत (उस पैकेट को उलट पलट कर देखने के बाद राजेंद्र आगे बोला) माना की ये मेरी अमानत है लेकिन इस पे भेजने वाले का नाम नहीं लिखा हैं तुम कुछ जानते हों तो बता दो।"

"क्या नाम हैं मैं नहीं जानता लेकिन भेजने वाली एक वृद्ध महिला हैं वो मेरे पास आई कुछ पैसे देकर बहुत विनती किया और आप का नाम बताया। पूरे पश्चिम बंगाल में ऐसा कौन हैं जो आपको नहीं जानता बस आपसे मिलने की तमन्ना थीं इसलिए आ गया आपसे मिल भी लिए और आप तक आपकी अमानत पहुंचा भी दिया।"

राजेंद्र…उस वृद्ध महिला के बारे में थोड़ी और जानकारी मिल जाता तो अच्छा होता चलो कोई बात नहीं आपने बारे में ही कुछ बता दो क्या नाम हैं कह से आए हों?

"मेरा नाम अमानत खान हैं मैं नादिया जिले के शांतिपुर से आया हूं। बाकी वृद्ध महिला के बारे में बस इतना ही जनता हूं उनके परिवार में एक बेटा वो और एक बहु हैं।"

राजेंद्र को जितना जरूरी लगा एक अनजान शख्स से उतनी जानकारी लिया फ़िर द्वारपाल को बुलाकर आए हुए अनजान शख्स की जलपान और विश्राम की व्यवस्था करने को कहकर चल दिया।

एक अनजान शख्स का दिया एक पैकेट साथ ही ये कह देना जिसकी अमानत है उसी के हाथ में देना इन बातों से राजेंद्र के मन में द्वंद छिड़ गया। द्वंद से पार पाने का एक ही जरिया राजेंद्र को सूजा कि पैकेट खोलकर देखा जाएं।

पैकेट खोला गया जिसमे ढेर सारे ब्लाक एंड वाइट तस्वीरें थीं। पहली तस्वीर में मौजूद शख्स को देखकर राजेंद्र के चहरे का भाव कुछ कुछ बदल गया। जो दर्शा रहा था कि राजेंद्र तस्वीर में मौजूद शख्स को भली भांति जानता हैं। दूसरे तस्वीर में भी वहीं शख्स था और साथ में कुछ और लोग भी थे जो हाथों में बंदूक लिए हुए थे। उसमे से एक शख्स को देखकर राजेंद्र के चहरे का भाव बदल गया और क्रोध की अभाव ने अपना जगह ले लिया। एक और तस्वीर उसमे भी वहीं लगभग दो तीन तस्वीर के बाद एक तस्वीर ऐसा आया जिसे देखते ही राजेंद्र के चहरे का भाव अचंभे में बदल गया क्योंकि उस तस्वीर में वह शख्स तो था ही साथ ही एक और शख्स था जिसका चेहरा ढाका हुआ था। जल्दी जल्दी दूसरी तस्वीर देखा उसमे भी वैसा ही था जो राजेंद्र के अचंभे को और बढ़ा दिया। एक और तस्वीर उसमे में वहीं लेकिन इस तस्वीर के साथ एक चिठ्ठी पिन किया हुआ था।

चिठ्ठी की लिखावट भी राजेंद्र को जाना पहचाना लगा। अति शीघ्र चिठ्ठी को पढ़ना शुरू किया जैसे जैसे आगे पढ़ता जा रहा था। वैसे वैसे राजेंद्र का भाव बदलता जा रहा था। एक पल आगे क्या लिखा हैं जानने की बेचैनी दूसरे ही पल अनियंत्रित क्रोध का भाव और चिठ्ठी के अंत को पढ़ते हुए चहरे का भाव ऐसा जैसे कहना चाह रहा हों "जैसे के साथ तैसा किया गया।"

एक ओर तस्वीर एक नया चेहरा जो जाना पहचाना था। आगे की कुछ तस्वीरों में पहले वाले तस्वीर के जैसा दृश्य और दो जानें पहचाने चहरे के आलावा जितने भी चहरे थे सभी अनजान थे अंत के तस्वीरों में वहीं कवर किया हुआ चहरे वाला शख्स बस तस्वीरें अलग अलग जगह से लिया गया था और अंत में एक चिट्ठी जिसकी लिखावट जानी पहचानी और लगभग वैसा ही कुछ लिखा था जैसा पहले चिट्ठी में लिखा था।

एक एक कर पांच अलग अलग चेहरे वाले तस्वीरें उस पैकेट से निकला सभी में लगभग एक जैसा ही विवरण था बस दो जाना पहचाना चेहरा बाकी सभी अनजान और अंत में कवर किया हुआ चेहरे वाला शख्स बस जगह अलग अलग था और अंत में एक तस्वीर में एक चिट्ठी पिन किया हुआ उसमें भी लगभग एक ही बात लिखा हुआ था। सभी तस्वीरे देखने के बाद अटाहस करते हुए ऐसे हंसा जैसे किसी की खिल्ली उड़ा रहा हों। इस तरह हसने का कारण ड्राइवर जानना चाहा तब राजेंद्र बोला…कुछ विश्वासघातीयो को मिले अंजाम देखकर मेरा मन प्रफुल्लित हों उठा इसी कारण ऐसे हसी निकल आया।

एक और सवाल ड्राइवर द्वारा पूछा गया लेकिन राजेंद्र ने उसका कोई जवाब न देकर पैकेट से निकले दो लिफाफे में से एक लिफाफा खोल लिया। उसमे से निकले चिठ्ठी को पढ़ने जा ही रहा था की ड्राइवर ने घोषणा कर दिया…राजी हम पूछ गए हैं।

घोषणा सुनते ही राजेंद्र ने आस पास का जायज़ा लिया फिर चिठ्ठी को वापिस लिफाफे में डालकर सभी तस्वीरों सहित पैकट में डाला और कार में ही एक सुरक्षित जगह देखकर वहा रख दिया फिर कार से निकलकर चल दिया।

आगे जारी रहेगा….
 
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अगले दिन की शुरूवात सामान्य रहा महल में एक ओर दिन के बाद जलसा होना था जिसकी तैयारी हों चुका था। उसी विषय पर नाश्ता के दौरान रावण और राजेन्द्र के बीच में कुछ विशेष चर्चा हों रहा था। किन किन अतिथियों को निमंत्रण देना था उसका भार रावण के कांधे पर था और उसका जायजा लेते हुए राजेन्द्र एक एक विशिष्ट अतिथि का नाम गिना रहा था और पूछ रहा था कि उन्हें निमंत्रण गया की नहीं गया। रावण सिर्फ हां न में जवाब दे रहा था। शायद नाश्ते के दौरान इतनी बाते करना सुरभि को पसंद नहीं आया इसलिए टोकते हुए सुरभि बोलीं…आप दोनों भाइयों को भोजन के दौरान ही बाते करना होता हैं मुझे तो लग रहा हैं जैसे ही निवाला अंदर जाता हैं वैसे ही दबी कुचली बाते उछल कूद करते हुए बाहर आने लग जाती हैं। अभी चुप चाप नाश्ता कीजिए उसके बाद दोनों भाई एक सभा लगा लेना फिर जितनी भी चर्चाएं करनी हो कर लेना कम से कम इसी बहाने भोजन के अलावा भी बैठकर दोनो भाई कुछ बातें कर लेंगे।

रावण…भाभी हम तो बस महल में होने वाले जलसा पर चर्चा कर रहें हैं अन्य कोई बाते तो कर नहीं रहें हैं।

सुरभि…अच्छा? धीरा बेटा इन दोनों भाईयों के सामने से थाली तो ले जा और दोनों को एक रूम में बंद कर दे वहीं पर ही चर्चाएं कर लेंगे। दोनों भाइयों ने डायनिंग मेज को मछली बाजार बना दिया हैं। खां कम रहें है बाते ज्यादा कर रहें हैं।

रावण…भाभी जरा गौर से देखिए जितनी बाते बाहर निकल रहा हैं उतना ही निवाला अंदर जा रहा हैं।

सुरभि…ऐसा हैं तो जरा आपने आस पास नजर दौड़ाकर देखिए सभी का लगभग नाश्ता सप्तम होने पे है और आप दोनों भाई तब से बकर बकर बाके ही जा रहे हों। नाश्ते के नाम पर सिर्फ दो चार निवाला ही अंदर गया हैं।

राजेन्द्र… ये भाई अब चुप चाप नाश्ता कर ले नहीं तो रानी साहिबा जितना निवाला अंदर गया हैं उसी पे फूल स्टॉप लगा देंगी।

सुरभि…अब कहीं हैं बिल्कुल पाते की बात अब बिना एक शब्द बोले नाश्ता कीजिए अगर एक भी शब्द बोल तो मै बिल्कुल वैसा ही करूंगी जैसा आपने कहा है।

दोनों भाई बस एक दूसरे पे निगाह फेरा इशारों में ही जो कहना था कह दिया फ़िर नाश्ता करने लग गए। बगल में बैठे सुरभि सहित बाकी सभी बस मुंह नीचे करके मुस्कुरा रहें थे। खैर कुछ देर में सभी का नाश्ता हों गया। एक एक कर वह से चलते बने और दोनों भाई वहीं पर ही आगे की चर्चा करने लग गए।

बीच वार्ता में विघ्न पड़ जाने से दोनों भाई एक बार फिर शीरे से चर्चा शुरू किया। राजेन्द्र एक एक कर जानें माने हस्ती की नाम लेकर, उन्हें निमंत्रण पहुंचा की नहीं पहुंचा, पूछने पर रावण सिर्फ हां या न में जब दे रहा था। सभी जानें माने हस्ती को निमंत्रण भेजा जा चुका था जिसकी स्वीकृति रावण ने दे दिया। अंत में एक नाम राजेन्द्र ने लिए। जिस पे रावण ने न में जवाब दिया तब राजेन्द्र बोला…रावण इतने जानें माने हस्ती को तू कैसे भुल सकता हैं। आज ही उन तक निमंत्रण पहुंच जाना चाहिए।

रावण…पर दादा भाई…।

"समझ रहा हूं तेरे मन में क्या चल रहा हैं। तू मत जाना मै खुद चला जाऊंगा।" रावण के बातों को कटकर राजेन्द्र अपनी बाते कह दिया।

न जानें वो कौन सी बातें हैं जिस कारण रावण ने एक जानें माने शख्स को निमंत्रण नहीं भेजा लेकिन अभी अभी राजेन्द्र के कहीं बातों ने रावण को लगभग भाव शून्य कर दिया। न वो विचलित था न ही डरा सहमा था, न ही किसी प्रकार का विकृत सोच उसके मन में था। जो भी हों कुछ तो राज था वरना रावण का यूं शून्य विहीन भाव न होता। बरहाल जो भी हों आगे देखा जायेगा।

दोनों भाईयों में चर्चा आगे और आगे बढ़ता जा रहा था। चर्चाओं के दौरान बीच बीच में हंसी ठिठौली भी हों रहा था। किसी किसी बात पर दोनों भाई ठहाके लगकर हंस देते जिसकी गूंज इतना अधिक होता कि महल की चार दिवारी गुंजायमान हों उठता। एक बार फ़िर से दोनों भाइयों के ठहाके गूंजा इस बार की ठहाके ने सुरभि को कमरे से बाहर आने पर मजबूर कर दिया। कुछ देर दोनों भाइयों को बातों में माझे देखता रहा फिर उनके नजदीक जाकर बोला…क्या बात आज दोनों भाई कुछ ज्यादा ही ठहाके लगा रहें हों।

रावण…हां भाभी बातों बातों में हम दोनों भाइयों के साथ में बिताए कुछ ऐसे किस्से याद आ गए जो हमारे लिए बहुत मजेदार था बस उसे याद करते हुए ठहाके लगा रहें थे।

"काका इसके लिए आप को न मां को ittaaaa बड़ा थैंक यू बोलना चाहिए।" इत्ता बड़ा को पुष्पा ने इतना लंबा खींचा की एक बार फ़िर से ठहके गूंज उठा और पुष्पा जाकर रावण के बगल में बैठ गईं। दुलार करते हुए रावण बोला…बिल्कुल सही कह महारानी जी.. बहुत बहुत धन्यवाद भाभी सिर्फ आप ही के कारण आज हम दोनों भाई न जानें कितने दिनों बाद इतने लंबे समय के लिए बात किया और भूली बिसरी यादों को ताज़ा करके हंसे मुस्कुराए और ठहाके भी लगा लिया।

राजेन्द्र…एक वक्त हुआ करता था जब हम दोनों छोटे बड़े भाईयों की एक जोड़ी हुआ करती थीं। खूब उधम कटते थे रोज महफिल जमाते थे लेकिन वक्त ने ऐसी करवट बदली की हम एक दूसरे के साथ वक्त बिताना भूल ही गए कभी रावण के पास वक्त होता तो कभी मेरे पास नहीं और आज सिर्फ तुम्हारे कारण एक अहम चर्चा करते करते हम दोनों भाई उन यादों को खंगाल बैठे जिसे लगभग भूल ही गए थे। थैंक यू सुरभि

"दादा भाई आप तो कभी कभी वक्त निकालकर मेरे साथ वक्त बिताना चाहते थे लेकिन मैं सिर्फ आपसे बैर रखने के कारण आपसे दूर भागता था।" इतनी बाते मन ही मन रावण ने बोला फिर नजर घुमा कर सुकन्या को ढूंढने लगा जो उससे कुछ ही दूर खड़ी मुस्कुरा रहीं थीं।

रावण का मन कर रहा था कि दोनों हाथ जोड़े सुकन्या को धन्यवाद दे लेकिन ऐसा कर नहीं पाया बस पलकों को झपकाकर आंखों की भाषा में धन्यवाद कह दिया प्रतिउत्तर में सुकन्या ने ऐसा अभिनय किया जैसे कह रहीं हो हटो जी आप बेवजह मुझे धन्यवाद कह रहे हों मैने तो बस मेरा काम किया हैं।

रावण शायद सुकन्या का अभिनय समझ गया था इसलिए इशारों में ही बोल दिया बाद में मिलना अच्छे से धन्यवाद कहूंगा और मुस्कुरा दिया।

"पापा जी अब तो आपके पास वक्त ही वक्त हैं छोटे बड़े की जोड़ी जितना मन करें उतना उधम काट लेना महफिल जमा लेना बस ध्यान रखना दो पैरों पे चलके घर लौटना चार पैरों पे नहीं" इतनी बाते कमला ने बोलीं थीं। जो बन ठान के रघु के साथ वह पहुंची थीं।

राजेन्द्र…छोटे के दो बड़े के दो हों गए न चार पैर दोनों एक दूसरे का सहारा बने महल लौट आयेंगे लेकिन वो जब होगा तब होगा अभी बहू रानी जी इतना बता दीजिए इतना सज सवारके कह चली। कहीं रघु के साथ दफ्तर तो नहीं जा रही हों अगर ऐसा कुछ करने का सोचा है तो त्याग दो क्योंकि अभी मेरा मन तुम्हें दफ्तर भेजने का नहीं हैं जब मेरा मन होगा तभी तुम्हे दफ्तर भेजूंगा।

रघु…नहीं पापा कमला दफ्तर नहीं बल्कि मेरे साथ हॉस्पिटल जा रहीं हैं। कल पुष्पा और कमला ने संभू को हॉस्पिटल में एडमिट करवाया था। उसी को देखने जा रहें हैं।

दोनों भाई को पता नहीं था इसलिए दोनों भाई अलग अलग प्रतिक्रिया दी एक "कौन संभू" तो दूसरा "क्या संभू" बोला। "कौन संभू" पर किसी की कोई खास प्रतिक्रिया नही आया लेकिन "क्या संभू" पर प्रतिक्रिया देते हुए रघु बोला…काका आप भी संभू को जानते हों।






रावण…एक संभू को मैं जानता हूं जो दलाल के यह काम करता हैं। लेकिन मुझे लगता है शायद ये वाला संभू वो वाला संभू न हों बस संभू नाम सुनते ही उसका ख्याल आया और मेरी मुंह से ऐसी प्रतिक्रिया निकला।

रघु…काका आप हमारे साथ चलो आप देखकर ही बता देना कि ये संभू वही है जो दलाल के यहां काम करता हैं तब आप उनके पास संदेशा भिजवा देना।

राजेन्द्र…अरे भाई रावण के "क्या संभू" का जवाब मिल गया लेकिन मेरी "कौन संभू" का जबाव मिलेगा।

रघु ने राजेंद्र के "कौन संभू" का जवाब दे दिया बस परसों रात को जिस ढंग से संभू के साथ भेंट हुआ था उसमें थोड़ी हेर फेर कर दिया। रघु की बातों ने रावण के मन में एक भय का बीज वो दिया और उसे लग रहा था कहीं ये वाला संभू वहीं हुआ जो दलाल के घर में काम करता हैं। जिसे रघु पहले से जानता हैं। अगर ऐसा हुआ तो उसका भेद अभी तक खुल चुका होगा नहीं खुला तो कभी न कभी संभू बता ही देगा पर यह भाव भी कुछ पल का मेहमान था न जानें क्या सोचकर रावण हल्का सा मुस्कुरा दिया और उसकी मन से पल भर में भय दूर हों गया।

रावण दोनों के साथ हॉस्टिपल चल दिया इसके कुछ देर बाद ही राजेंद्र भी कही जानें के लिए निकला जैसे ही राजेंद्र की कार महल के मुख्य द्वार से बाहर निकला एक अनजान शख्स ने कार को रूकवाया कुछ औपचारिक बातों के बाद वह शख्स राजेंद्र को एक पैकेट दिया। जिसे लेते हुए राजेंद्र बोला…भाई इसमें क्या हैं कुछ भरी भरी सा लग रहा हैं।

"राजा जी मुझे नही पाता क्या हैं बस मुझसे कह गया था कि ये आप की अमानत है सिर्फ आप को ही दूं किसी ओर को नहीं!"

"मेरी अमानत (उस पैकेट को उलट पलट कर देखने के बाद राजेंद्र आगे बोला) माना की ये मेरी अमानत है लेकिन इस पे भेजने वाले का नाम नहीं लिखा हैं तुम कुछ जानते हों तो बता दो।"

"क्या नाम हैं मैं नहीं जानता लेकिन भेजने वाली एक वृद्ध महिला हैं वो मेरे पास आई कुछ पैसे देकर बहुत विनती किया और आप का नाम बताया। पूरे पश्चिम बंगाल में ऐसा कौन हैं जो आपको नहीं जानता बस आपसे मिलने की तमन्ना थीं इसलिए आ गया आपसे मिल भी लिए और आप तक आपकी अमानत पहुंचा भी दिया।"

राजेंद्र…उस वृद्ध महिला के बारे में थोड़ी और जानकारी मिल जाता तो अच्छा होता चलो कोई बात नहीं आपने बारे में ही कुछ बता दो क्या नाम हैं कह से आए हों?

"मेरा नाम अमानत खान हैं मैं नादिया जिले के शांतिपुर से आया हूं। बाकी वृद्ध महिला के बारे में बस इतना ही जनता हूं उनके परिवार में एक बेटा वो और एक बहु हैं।"

राजेंद्र को जितना जरूरी लगा एक अनजान शख्स से उतनी जानकारी लिया फ़िर द्वारपाल को बुलाकर आए हुए अनजान शख्स की जलपान और विश्राम की व्यवस्था करने को कहकर चल दिया।

एक अनजान शख्स का दिया एक पैकेट साथ ही ये कह देना जिसकी अमानत है उसी के हाथ में देना इन बातों से राजेंद्र के मन में द्वंद छिड़ गया। द्वंद से पार पाने का एक ही जरिया राजेंद्र को सूजा कि पैकेट खोलकर देखा जाएं।

पैकेट खोला गया जिसमे ढेर सारे ब्लाक एंड वाइट तस्वीरें थीं। पहली तस्वीर में मौजूद शख्स को देखकर राजेंद्र के चहरे का भाव कुछ कुछ बदल गया। जो दर्शा रहा था कि राजेंद्र तस्वीर में मौजूद शख्स को भली भांति जानता हैं। दूसरे तस्वीर में भी वहीं शख्स था और साथ में कुछ और लोग भी थे जो हाथों में बंदूक लिए हुए थे। उसमे से एक शख्स को देखकर राजेंद्र के चहरे का भाव बदल गया और क्रोध की अभाव ने अपना जगह ले लिया। एक और तस्वीर उसमे भी वहीं लगभग दो तीन तस्वीर के बाद एक तस्वीर ऐसा आया जिसे देखते ही राजेंद्र के चहरे का भाव अचंभे में बदल गया क्योंकि उस तस्वीर में वह शख्स तो था ही साथ ही एक और शख्स था जिसका चेहरा ढाका हुआ था। जल्दी जल्दी दूसरी तस्वीर देखा उसमे भी वैसा ही था जो राजेंद्र के अचंभे को और बढ़ा दिया। एक और तस्वीर उसमे में वहीं लेकिन इस तस्वीर के साथ एक चिठ्ठी पिन किया हुआ था।

चिठ्ठी की लिखावट भी राजेंद्र को जाना पहचाना लगा। अति शीघ्र चिठ्ठी को पढ़ना शुरू किया जैसे जैसे आगे पढ़ता जा रहा था। वैसे वैसे राजेंद्र का भाव बदलता जा रहा था। एक पल आगे क्या लिखा हैं जानने की बेचैनी दूसरे ही पल अनियंत्रित क्रोध का भाव और चिठ्ठी के अंत को पढ़ते हुए चहरे का भाव ऐसा जैसे कहना चाह रहा हों "जैसे के साथ तैसा किया गया।"

एक ओर तस्वीर एक नया चेहरा जो जाना पहचाना था। आगे की कुछ तस्वीरों में पहले वाले तस्वीर के जैसा दृश्य और दो जानें पहचाने चहरे के आलावा जितने भी चहरे थे सभी अनजान थे अंत के तस्वीरों में वहीं कवर किया हुआ चहरे वाला शख्स बस तस्वीरें अलग अलग जगह से लिया गया था और अंत में एक चिट्ठी जिसकी लिखावट जानी पहचानी और लगभग वैसा ही कुछ लिखा था जैसा पहले चिट्ठी में लिखा था।

एक एक कर पांच अलग अलग चेहरे वाले तस्वीरें उस पैकेट से निकला सभी में लगभग एक जैसा ही विवरण था बस दो जाना पहचाना चेहरा बाकी सभी अनजान और अंत में कवर किया हुआ चेहरे वाला शख्स बस जगह अलग अलग था और अंत में एक तस्वीर में एक चिट्ठी पिन किया हुआ उसमें भी लगभग एक ही बात लिखा हुआ था। सभी तस्वीरे देखने के बाद अटाहस करते हुए ऐसे हंसा जैसे किसी की खिल्ली उड़ा रहा हों। इस तरह हसने का कारण ड्राइवर जानना चाहा तब राजेंद्र बोला…कुछ विश्वासघातीयो को मिले अंजाम देखकर मेरा मन प्रफुल्लित हों उठा इसी कारण ऐसे हसी निकल आया।

एक और सवाल ड्राइवर द्वारा पूछा गया लेकिन राजेंद्र ने उसका कोई जवाब न देकर पैकेट से निकले दो लिफाफे में से एक लिफाफा खोल लिया। उसमे से निकले चिठ्ठी को पढ़ने जा ही रहा था की ड्राइवर ने घोषणा कर दिया…राजी हम पूछ गए हैं।

घोषणा सुनते ही राजेंद्र ने आस पास का जायज़ा लिया फिर चिठ्ठी को वापिस लिफाफे में डालकर सभी तस्वीरों सहित पैकट में डाला और कार में ही एक सुरक्षित जगह देखकर वहा रख दिया फिर कार से निकलकर चल दिया।

आगे जारी रहेगा….
घर का माहौल अब अच्छा होता जा रहा है क्योंकी रावण और अपश्यु दोनो ही अब सही मार्ग पर चलने का अनुसरण कर रहे है। काफी दिनों बाद दोनो भाई साथ बैठे और खुल कर हंसे भी। मगर संभू का नाम आते ही रावण पहले डरा फिर शांत हो गया पता नही क्या चल रहा है इसके दिमाग में।

अब ये पार्सल किसने भेजा और उन फोटो में वो जान पहचान वाले कौन थे और उन चिट्ठियों में क्या लिखा था? सुंदर अपडेट
 

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Update - 61


अगले दिन की शुरूवात सामान्य रहा महल में एक ओर दिन के बाद जलसा होना था जिसकी तैयारी हों चुका था। उसी विषय पर नाश्ता के दौरान रावण और राजेन्द्र के बीच में कुछ विशेष चर्चा हों रहा था। किन किन अतिथियों को निमंत्रण देना था उसका भार रावण के कांधे पर था और उसका जायजा लेते हुए राजेन्द्र एक एक विशिष्ट अतिथि का नाम गिना रहा था और पूछ रहा था कि उन्हें निमंत्रण गया की नहीं गया। रावण सिर्फ हां न में जवाब दे रहा था। शायद नाश्ते के दौरान इतनी बाते करना सुरभि को पसंद नहीं आया इसलिए टोकते हुए सुरभि बोलीं…आप दोनों भाइयों को भोजन के दौरान ही बाते करना होता हैं मुझे तो लग रहा हैं जैसे ही निवाला अंदर जाता हैं वैसे ही दबी कुचली बाते उछल कूद करते हुए बाहर आने लग जाती हैं। अभी चुप चाप नाश्ता कीजिए उसके बाद दोनों भाई एक सभा लगा लेना फिर जितनी भी चर्चाएं करनी हो कर लेना कम से कम इसी बहाने भोजन के अलावा भी बैठकर दोनो भाई कुछ बातें कर लेंगे।

रावण…भाभी हम तो बस महल में होने वाले जलसा पर चर्चा कर रहें हैं अन्य कोई बाते तो कर नहीं रहें हैं।

सुरभि…अच्छा? धीरा बेटा इन दोनों भाईयों के सामने से थाली तो ले जा और दोनों को एक रूम में बंद कर दे वहीं पर ही चर्चाएं कर लेंगे। दोनों भाइयों ने डायनिंग मेज को मछली बाजार बना दिया हैं। खां कम रहें है बाते ज्यादा कर रहें हैं।

रावण…भाभी जरा गौर से देखिए जितनी बाते बाहर निकल रहा हैं उतना ही निवाला अंदर जा रहा हैं।

सुरभि…ऐसा हैं तो जरा आपने आस पास नजर दौड़ाकर देखिए सभी का लगभग नाश्ता सप्तम होने पे है और आप दोनों भाई तब से बकर बकर बाके ही जा रहे हों। नाश्ते के नाम पर सिर्फ दो चार निवाला ही अंदर गया हैं।

राजेन्द्र… ये भाई अब चुप चाप नाश्ता कर ले नहीं तो रानी साहिबा जितना निवाला अंदर गया हैं उसी पे फूल स्टॉप लगा देंगी।

सुरभि…अब कहीं हैं बिल्कुल पाते की बात अब बिना एक शब्द बोले नाश्ता कीजिए अगर एक भी शब्द बोल तो मै बिल्कुल वैसा ही करूंगी जैसा आपने कहा है।

दोनों भाई बस एक दूसरे पे निगाह फेरा इशारों में ही जो कहना था कह दिया फ़िर नाश्ता करने लग गए। बगल में बैठे सुरभि सहित बाकी सभी बस मुंह नीचे करके मुस्कुरा रहें थे। खैर कुछ देर में सभी का नाश्ता हों गया। एक एक कर वह से चलते बने और दोनों भाई वहीं पर ही आगे की चर्चा करने लग गए।

बीच वार्ता में विघ्न पड़ जाने से दोनों भाई एक बार फिर शीरे से चर्चा शुरू किया। राजेन्द्र एक एक कर जानें माने हस्ती की नाम लेकर, उन्हें निमंत्रण पहुंचा की नहीं पहुंचा, पूछने पर रावण सिर्फ हां या न में जब दे रहा था। सभी जानें माने हस्ती को निमंत्रण भेजा जा चुका था जिसकी स्वीकृति रावण ने दे दिया। अंत में एक नाम राजेन्द्र ने लिए। जिस पे रावण ने न में जवाब दिया तब राजेन्द्र बोला…रावण इतने जानें माने हस्ती को तू कैसे भुल सकता हैं। आज ही उन तक निमंत्रण पहुंच जाना चाहिए।

रावण…पर दादा भाई…।

"समझ रहा हूं तेरे मन में क्या चल रहा हैं। तू मत जाना मै खुद चला जाऊंगा।" रावण के बातों को कटकर राजेन्द्र अपनी बाते कह दिया।

न जानें वो कौन सी बातें हैं जिस कारण रावण ने एक जानें माने शख्स को निमंत्रण नहीं भेजा लेकिन अभी अभी राजेन्द्र के कहीं बातों ने रावण को लगभग भाव शून्य कर दिया। न वो विचलित था न ही डरा सहमा था, न ही किसी प्रकार का विकृत सोच उसके मन में था। जो भी हों कुछ तो राज था वरना रावण का यूं शून्य विहीन भाव न होता। बरहाल जो भी हों आगे देखा जायेगा।

दोनों भाईयों में चर्चा आगे और आगे बढ़ता जा रहा था। चर्चाओं के दौरान बीच बीच में हंसी ठिठौली भी हों रहा था। किसी किसी बात पर दोनों भाई ठहाके लगकर हंस देते जिसकी गूंज इतना अधिक होता कि महल की चार दिवारी गुंजायमान हों उठता। एक बार फ़िर से दोनों भाइयों के ठहाके गूंजा इस बार की ठहाके ने सुरभि को कमरे से बाहर आने पर मजबूर कर दिया। कुछ देर दोनों भाइयों को बातों में माझे देखता रहा फिर उनके नजदीक जाकर बोला…क्या बात आज दोनों भाई कुछ ज्यादा ही ठहाके लगा रहें हों।

रावण…हां भाभी बातों बातों में हम दोनों भाइयों के साथ में बिताए कुछ ऐसे किस्से याद आ गए जो हमारे लिए बहुत मजेदार था बस उसे याद करते हुए ठहाके लगा रहें थे।

"काका इसके लिए आप को न मां को ittaaaa बड़ा थैंक यू बोलना चाहिए।" इत्ता बड़ा को पुष्पा ने इतना लंबा खींचा की एक बार फ़िर से ठहके गूंज उठा और पुष्पा जाकर रावण के बगल में बैठ गईं। दुलार करते हुए रावण बोला…बिल्कुल सही कह महारानी जी.. बहुत बहुत धन्यवाद भाभी सिर्फ आप ही के कारण आज हम दोनों भाई न जानें कितने दिनों बाद इतने लंबे समय के लिए बात किया और भूली बिसरी यादों को ताज़ा करके हंसे मुस्कुराए और ठहाके भी लगा लिया।

राजेन्द्र…एक वक्त हुआ करता था जब हम दोनों छोटे बड़े भाईयों की एक जोड़ी हुआ करती थीं। खूब उधम कटते थे रोज महफिल जमाते थे लेकिन वक्त ने ऐसी करवट बदली की हम एक दूसरे के साथ वक्त बिताना भूल ही गए कभी रावण के पास वक्त होता तो कभी मेरे पास नहीं और आज सिर्फ तुम्हारे कारण एक अहम चर्चा करते करते हम दोनों भाई उन यादों को खंगाल बैठे जिसे लगभग भूल ही गए थे। थैंक यू सुरभि

"दादा भाई आप तो कभी कभी वक्त निकालकर मेरे साथ वक्त बिताना चाहते थे लेकिन मैं सिर्फ आपसे बैर रखने के कारण आपसे दूर भागता था।" इतनी बाते मन ही मन रावण ने बोला फिर नजर घुमा कर सुकन्या को ढूंढने लगा जो उससे कुछ ही दूर खड़ी मुस्कुरा रहीं थीं।

रावण का मन कर रहा था कि दोनों हाथ जोड़े सुकन्या को धन्यवाद दे लेकिन ऐसा कर नहीं पाया बस पलकों को झपकाकर आंखों की भाषा में धन्यवाद कह दिया प्रतिउत्तर में सुकन्या ने ऐसा अभिनय किया जैसे कह रहीं हो हटो जी आप बेवजह मुझे धन्यवाद कह रहे हों मैने तो बस मेरा काम किया हैं।

रावण शायद सुकन्या का अभिनय समझ गया था इसलिए इशारों में ही बोल दिया बाद में मिलना अच्छे से धन्यवाद कहूंगा और मुस्कुरा दिया।

"पापा जी अब तो आपके पास वक्त ही वक्त हैं छोटे बड़े की जोड़ी जितना मन करें उतना उधम काट लेना महफिल जमा लेना बस ध्यान रखना दो पैरों पे चलके घर लौटना चार पैरों पे नहीं" इतनी बाते कमला ने बोलीं थीं। जो बन ठान के रघु के साथ वह पहुंची थीं।

राजेन्द्र…छोटे के दो बड़े के दो हों गए न चार पैर दोनों एक दूसरे का सहारा बने महल लौट आयेंगे लेकिन वो जब होगा तब होगा अभी बहू रानी जी इतना बता दीजिए इतना सज सवारके कह चली। कहीं रघु के साथ दफ्तर तो नहीं जा रही हों अगर ऐसा कुछ करने का सोचा है तो त्याग दो क्योंकि अभी मेरा मन तुम्हें दफ्तर भेजने का नहीं हैं जब मेरा मन होगा तभी तुम्हे दफ्तर भेजूंगा।

रघु…नहीं पापा कमला दफ्तर नहीं बल्कि मेरे साथ हॉस्पिटल जा रहीं हैं। कल पुष्पा और कमला ने संभू को हॉस्पिटल में एडमिट करवाया था। उसी को देखने जा रहें हैं।

दोनों भाई को पता नहीं था इसलिए दोनों भाई अलग अलग प्रतिक्रिया दी एक "कौन संभू" तो दूसरा "क्या संभू" बोला। "कौन संभू" पर किसी की कोई खास प्रतिक्रिया नही आया लेकिन "क्या संभू" पर प्रतिक्रिया देते हुए रघु बोला…काका आप भी संभू को जानते हों।






रावण…एक संभू को मैं जानता हूं जो दलाल के यह काम करता हैं। लेकिन मुझे लगता है शायद ये वाला संभू वो वाला संभू न हों बस संभू नाम सुनते ही उसका ख्याल आया और मेरी मुंह से ऐसी प्रतिक्रिया निकला।

रघु…काका आप हमारे साथ चलो आप देखकर ही बता देना कि ये संभू वही है जो दलाल के यहां काम करता हैं तब आप उनके पास संदेशा भिजवा देना।

राजेन्द्र…अरे भाई रावण के "क्या संभू" का जवाब मिल गया लेकिन मेरी "कौन संभू" का जबाव मिलेगा।

रघु ने राजेंद्र के "कौन संभू" का जवाब दे दिया बस परसों रात को जिस ढंग से संभू के साथ भेंट हुआ था उसमें थोड़ी हेर फेर कर दिया। रघु की बातों ने रावण के मन में एक भय का बीज वो दिया और उसे लग रहा था कहीं ये वाला संभू वहीं हुआ जो दलाल के घर में काम करता हैं। जिसे रघु पहले से जानता हैं। अगर ऐसा हुआ तो उसका भेद अभी तक खुल चुका होगा नहीं खुला तो कभी न कभी संभू बता ही देगा पर यह भाव भी कुछ पल का मेहमान था न जानें क्या सोचकर रावण हल्का सा मुस्कुरा दिया और उसकी मन से पल भर में भय दूर हों गया।

रावण दोनों के साथ हॉस्टिपल चल दिया इसके कुछ देर बाद ही राजेंद्र भी कही जानें के लिए निकला जैसे ही राजेंद्र की कार महल के मुख्य द्वार से बाहर निकला एक अनजान शख्स ने कार को रूकवाया कुछ औपचारिक बातों के बाद वह शख्स राजेंद्र को एक पैकेट दिया। जिसे लेते हुए राजेंद्र बोला…भाई इसमें क्या हैं कुछ भरी भरी सा लग रहा हैं।

"राजा जी मुझे नही पाता क्या हैं बस मुझसे कह गया था कि ये आप की अमानत है सिर्फ आप को ही दूं किसी ओर को नहीं!"

"मेरी अमानत (उस पैकेट को उलट पलट कर देखने के बाद राजेंद्र आगे बोला) माना की ये मेरी अमानत है लेकिन इस पे भेजने वाले का नाम नहीं लिखा हैं तुम कुछ जानते हों तो बता दो।"

"क्या नाम हैं मैं नहीं जानता लेकिन भेजने वाली एक वृद्ध महिला हैं वो मेरे पास आई कुछ पैसे देकर बहुत विनती किया और आप का नाम बताया। पूरे पश्चिम बंगाल में ऐसा कौन हैं जो आपको नहीं जानता बस आपसे मिलने की तमन्ना थीं इसलिए आ गया आपसे मिल भी लिए और आप तक आपकी अमानत पहुंचा भी दिया।"

राजेंद्र…उस वृद्ध महिला के बारे में थोड़ी और जानकारी मिल जाता तो अच्छा होता चलो कोई बात नहीं आपने बारे में ही कुछ बता दो क्या नाम हैं कह से आए हों?

"मेरा नाम अमानत खान हैं मैं नादिया जिले के शांतिपुर से आया हूं। बाकी वृद्ध महिला के बारे में बस इतना ही जनता हूं उनके परिवार में एक बेटा वो और एक बहु हैं।"

राजेंद्र को जितना जरूरी लगा एक अनजान शख्स से उतनी जानकारी लिया फ़िर द्वारपाल को बुलाकर आए हुए अनजान शख्स की जलपान और विश्राम की व्यवस्था करने को कहकर चल दिया।

एक अनजान शख्स का दिया एक पैकेट साथ ही ये कह देना जिसकी अमानत है उसी के हाथ में देना इन बातों से राजेंद्र के मन में द्वंद छिड़ गया। द्वंद से पार पाने का एक ही जरिया राजेंद्र को सूजा कि पैकेट खोलकर देखा जाएं।

पैकेट खोला गया जिसमे ढेर सारे ब्लाक एंड वाइट तस्वीरें थीं। पहली तस्वीर में मौजूद शख्स को देखकर राजेंद्र के चहरे का भाव कुछ कुछ बदल गया। जो दर्शा रहा था कि राजेंद्र तस्वीर में मौजूद शख्स को भली भांति जानता हैं। दूसरे तस्वीर में भी वहीं शख्स था और साथ में कुछ और लोग भी थे जो हाथों में बंदूक लिए हुए थे। उसमे से एक शख्स को देखकर राजेंद्र के चहरे का भाव बदल गया और क्रोध की अभाव ने अपना जगह ले लिया। एक और तस्वीर उसमे भी वहीं लगभग दो तीन तस्वीर के बाद एक तस्वीर ऐसा आया जिसे देखते ही राजेंद्र के चहरे का भाव अचंभे में बदल गया क्योंकि उस तस्वीर में वह शख्स तो था ही साथ ही एक और शख्स था जिसका चेहरा ढाका हुआ था। जल्दी जल्दी दूसरी तस्वीर देखा उसमे भी वैसा ही था जो राजेंद्र के अचंभे को और बढ़ा दिया। एक और तस्वीर उसमे में वहीं लेकिन इस तस्वीर के साथ एक चिठ्ठी पिन किया हुआ था।

चिठ्ठी की लिखावट भी राजेंद्र को जाना पहचाना लगा। अति शीघ्र चिठ्ठी को पढ़ना शुरू किया जैसे जैसे आगे पढ़ता जा रहा था। वैसे वैसे राजेंद्र का भाव बदलता जा रहा था। एक पल आगे क्या लिखा हैं जानने की बेचैनी दूसरे ही पल अनियंत्रित क्रोध का भाव और चिठ्ठी के अंत को पढ़ते हुए चहरे का भाव ऐसा जैसे कहना चाह रहा हों "जैसे के साथ तैसा किया गया।"

एक ओर तस्वीर एक नया चेहरा जो जाना पहचाना था। आगे की कुछ तस्वीरों में पहले वाले तस्वीर के जैसा दृश्य और दो जानें पहचाने चहरे के आलावा जितने भी चहरे थे सभी अनजान थे अंत के तस्वीरों में वहीं कवर किया हुआ चहरे वाला शख्स बस तस्वीरें अलग अलग जगह से लिया गया था और अंत में एक चिट्ठी जिसकी लिखावट जानी पहचानी और लगभग वैसा ही कुछ लिखा था जैसा पहले चिट्ठी में लिखा था।

एक एक कर पांच अलग अलग चेहरे वाले तस्वीरें उस पैकेट से निकला सभी में लगभग एक जैसा ही विवरण था बस दो जाना पहचाना चेहरा बाकी सभी अनजान और अंत में कवर किया हुआ चेहरे वाला शख्स बस जगह अलग अलग था और अंत में एक तस्वीर में एक चिट्ठी पिन किया हुआ उसमें भी लगभग एक ही बात लिखा हुआ था। सभी तस्वीरे देखने के बाद अटाहस करते हुए ऐसे हंसा जैसे किसी की खिल्ली उड़ा रहा हों। इस तरह हसने का कारण ड्राइवर जानना चाहा तब राजेंद्र बोला…कुछ विश्वासघातीयो को मिले अंजाम देखकर मेरा मन प्रफुल्लित हों उठा इसी कारण ऐसे हसी निकल आया।

एक और सवाल ड्राइवर द्वारा पूछा गया लेकिन राजेंद्र ने उसका कोई जवाब न देकर पैकेट से निकले दो लिफाफे में से एक लिफाफा खोल लिया। उसमे से निकले चिठ्ठी को पढ़ने जा ही रहा था की ड्राइवर ने घोषणा कर दिया…राजी हम पूछ गए हैं।

घोषणा सुनते ही राजेंद्र ने आस पास का जायज़ा लिया फिर चिठ्ठी को वापिस लिफाफे में डालकर सभी तस्वीरों सहित पैकट में डाला और कार में ही एक सुरक्षित जगह देखकर वहा रख दिया फिर कार से निकलकर चल दिया।

आगे जारी रहेगा….
Bahut hi badhiya update diya hai Destiny bhai....
Nice and beautiful update....
 

Destiny

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घर का माहौल अब अच्छा होता जा रहा है क्योंकी रावण और अपश्यु दोनो ही अब सही मार्ग पर चलने का अनुसरण कर रहे है। काफी दिनों बाद दोनो भाई साथ बैठे और खुल कर हंसे भी। मगर संभू का नाम आते ही रावण पहले डरा फिर शांत हो गया पता नही क्या चल रहा है इसके दिमाग में।

अब ये पार्सल किसने भेजा और उन फोटो में वो जान पहचान वाले कौन थे और उन चिट्ठियों में क्या लिखा था? सुंदर अपडेट
Thank you soo much

Vo parshal ek aham surag hai. Jiska bhed bhi aane wale update me khul jayega.
 
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