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Romance ajanabi hamasafar -rishton ka gathabandhan

Destiny

Will Change With Time
Prime
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Update - 60


जब पुष्पा और कमला गई उस वक्त कुछ खास नहीं हुआ। एक घंटा, दो घंटा करके घंटा पर घंटा बीतता गया और दोनों की कोई खबर नहीं, यहीं एक बात सुरभि को विचलित किए जा रहा था। दोपहर के भोजन का समय हों गया मगर पुष्पा और कमला लौट कर नहीं आई। भोजन के दौरान सहसा सुरभि बोल पड़ी... कितना वक्त हों गया दोपहर के भोजन का वक्त भी हों चुका है लेकिन दोनों अभी तक लौट कर नहीं आए।

सुकन्या...दीदी आप न खामखा विचलित हों रहीं हों। बिना बताए दोनों गए नहीं, आपने खुद जाने की आज्ञा दिया हैं फिर भी….।

"हां हां (सुकन्या की बातों को बीच में कटकर सुरभि लगभग झिड़कते हुए बोलीं) जानती हूं मुझसे ही पूछकर गए थे लेकिन उन्हें भी तो ख्याल होना चाहिए कि देर हों रहीं हैं तो किसी के हाथों खबर भिजवा दे।

सुरभि की बाते सुनके सुकन्या खी खी कर हंस दिया। मुंह में निवाला था जो लगभग छिटक ही जाता अगर हाथ से न रोका होता। यह दृष्ट देखकर सुरभि को भी हंसी आ गईं। मुंह में निवाला था और उसकी भी दशा सुकन्या जैसा न हों इसलिए आ रही हंसी को दावा गई फिर डपटते हुए सुरभि बोलीं... छोटी तुझे हंसना ही था तो पहले निवाला, निगल लेती फिर हंस लेती। ऐसे अगर निवाले का कुछ अंश स्वास नली में चढ़ जाता यह फिर पूरा निवाला ही गले में अटक जाता तब किया होता?

"होना किया था मुझे कुछ पल की तकलीफ होता खो खो खांसी आती। मिर्ची की धसके से स्वास नली और नाक में कुछ पल के लिए जलन होता। बस इतना ही होता" सुरभि की बातों को अपने ढंग से आगे बढ़ते हुए सुकन्या बोलीं

सुरभि... कितनी सहजता से कह दिया बस इतना ही लेकिन तुझे ख्याल भी नही आया होगा कि उससे तुझे कितनी पीढ़ा होती उसकी आंच मुझ तक पहुंचकर मुझे भी पीढ़ा से ग्रस्त कर देता।

खुद की पीढ़ा से बहन समान जेठानी के पीड़ित होने की बात सुनकर सुकन्या भावुक हों गईं और आंखों में नमी आ गई। जिसे देखकर सुरभि बोलीं... छोटी एक भी बूंद आंसू का बहा तब तुझे, मेरे आसपास भी नहीं आने दूंगी और न ही तुझसे कभी बात करूंगी, अलग थलग महल के एक कोने में कैद कर दूंगी फिर शिकायत न करना कि मेरी जेठानी मुझ पर जुल्म करते हैं।

"जुल्म (आंखों में आई नमी को पोछकर सुकन्या बोलीं) जुल्म तो आप पर मैंने किया था फिर भी आप मेरी कितनी फिक्र करती हों। ऐसा कैसे कर लेती हों?"

सुरभि... छोटी तू फिर से बीती बातों कि जड़े खोद रहीं हैं। पहले भी तुझे चेताया था आज भी कह रहीं हूं जो बीत गया उन यादों को खंगालने से अच्छा हैं अभी जो मिल रहा है उसे समेट ले और कैसे कर लेती हूं तो सुन में तुझे देवरानी नहीं बल्कि मेरी छोटी बहन मानता हूं। दो बहनों में खीटपीट, नोकझोंक होता ही रहता हैं। अब तू मेरी बाते सुनके फिर से भाभुक हो जायेगी और आंखों से नीर बहाने लग जायेगी अगर तूने ऐसा किया तो कह देती हूं तेरे लिए अच्छा नहीं होगा।

सुरभि की बातों से एक बार फिर से सुकन्या के अंतर मन में भावनाओ का बढ़ आ चुका था। जो अश्रु धारा बनकर बहना चाह रहीं थी लेकिन अंत में चेतावनी स्वरूप कहीं गई बातों के कारण सुकन्या अपनी भावनाओ को नियंत्रण में कर लिया और अनिश्छा से मुस्कुराकर "ठीक है" बस इतना ही बोला

सुरभि...सुन छोटी मुस्कुराना है तो सही से खुलकर मुस्कुरा वरना रहने दे।

कुछ पल की जतन और सुरभि की मन लुभावन बातों से आखिर सुकन्या के लवों पर खिला सा मुस्कान ला ही दिया। इस बीच दोनों भोजन कर लिया था। दोपहर बीता भानु (सूर्य) धीरे धीरे अपने गंतव्य की और अग्रसर था। घंटा दर घंटा बीतता गया और भानु खुद के ऊर्जा जिससे समस्त जग जगमगा रहा था। खुद में समेट कर रात्रि को आने का आहवान देने लग गया मगर पुष्पा और कमला अभी भी प्रवासी पक्षियों की भांति विचरण करने में लगी हुई थी। ऐसा सुरभि का मानना था अपितु सच्चाई कुछ ओर थी जिसका भान महल में मौजूद किसी को नही था। भानु लगभग अस्त हों चुका था उसी वक्त पुष्पा और कमला का आगमन हुआ। दोनों को महल के भीतर प्रवेश करते हुए देखकर "दोनों वहीं रुक जाओ और जहां से आए हों वहीं लौट जाओ" सुरभी बोलीं।

इतना सुनते ही कमला और पुष्पा जहां थी वहीं रुक गई और कमला का मन धुक पुक धुक पुक एक अनजान डर से धड़कने लग गया। चहरे की रंगत बदल गई खिला मुस्कुराता हुआ मुखड़े पे मायूसी छा गईं। जबकि मां कि बातों ने पुष्पा पर कोई असर ही नहीं डाला भाभी का हाथ शक्ति से थामे आगे को बढ़ती चली गई।

कमला का आंतरिक भाव उसके ललाट से झलक रहीं थी। जिसे देख सुकन्या हल्का सा मुस्कुराया फिर सुरभि को भी आगाह कर दिया सुरभि उठकर अंचल को कमर में खोचते हुए आगे को बढ़ चली, चलते हुई बोलीं... सुबह के गए सांझ को लौट रहें हों तुम दोनों को बूढ़ी मां इतना अच्छा लगा तो वहीं रुक जाती। महल वापस क्यों आई?

पुष्पा... ठीक हैं हम बूढ़ी मां के पास वापस जा रहे हैं।

इतना बोलकर पुष्पा पीछे को मूढ़ गई और कमला जहां थी वहीं जम गईं। निगाहें जो पहले से झुकी हुई थी। एक पल लिए उठा फिर से झुक गई।

कमला का हाथ थामे पुष्पा पलटी और एक कदम बढ़ाते ही खिंचाव से कमला का हाथ छूट गया "भाभी क्या हुआ आप जम क्यों गई चलो चलते हैं।" इतना बोलकर पुष्पा फिर से कमला का हाथ थाम लिया और अपने साथ चलने के लिए हाथ खींचने लगी मगर कमला अपने जगह से एक कदम भी नहीं हिली बस एक बार सुरभि की ओर देखा फिर पलट कर पुष्पा की और देखा, जाए कि रूके कुछ समझ नहीं पा रहीं थीं। यह देख सुकन्या और सुरभि की हंसी फूट पड़ी और सुरभि हंसते हुई बोलीं...क्या हुआ बहु ऐसे क्यों जम गई। जाओ जहां पुष्पा ले जा रहीं हैं।

पुष्पा...भाभी चलो मेरे साथ पहले तो नाटक कर रहीं थीं लेकिन अब सच में लेकर चलूंगी सोचकर आई थी कि मां से कहूंगी कि बूढ़ी मां आप की कितनी तारीफ कर रहीं थीं कितने सारे ऐसे किस्से सुनाए जिससे मैं अनजान थीं। लेकिन इन्हें तो मजाक सूज रहा था दांते निपोरकर कितने मजे से कह दिया जाओ बहु पुष्पा जहा ले जा रहीं हैं।

इतना कहकर पुष्पा लगभग खींचते हुई कमला को ले जाने लग गई और कमला "रूको तो ननद रानी" बस इतना हो बोलती रह गईं और पीछे पलट कर बार बार सुरभि को देख रहीं थीं और विनती कर रहीं थी मम्मी जी ननद रानी को रोको न यह देख सुरभि बोलीं…महारानी जी तुम्हें जहां जाना है जाओ लेकिन मेरी बहु रानी को यहीं छोड़ जाओ जरा उससे पुछु तो बूढ़ी मां ने उसकी सास की तारीफ में कौन कौन सी बातें कहीं।

पुष्पा…अरे मैं कैसे भुल गई थीं कि मै इस महल की महारानी हूं। चलो भाभी महारानी के होते हुई आपको डरने की जरूरत नहीं हैं।

इतना बोलकर पुष्पा शान से कमला का हाथ थामे खींचते हुई भीतर की ओर बढ़ने लग गई। पल भर में वातावरण मे हंसी और ठहाके गुजने लग गया। जैसे ही पुष्पा सुरभि के नजदीक पहुंचा कान उमेठते हुई सुरभि बोलीं... बड़ी आई महारानी। ऐसी महारानी किस काम की जिसे याद ही न रहें कि महल मे उसकी पदवी क्या हैं?





पुष्पा…कभी कभी भूल हों जाती हैं अब छोड़ भी दो दुख रहीं हैं। अपश्यु भईया कहा हों देखो मां आपकी प्यारी बहन के कान उमेठ रहीं हैं। जल्दी से आकर बचा लो।

सुरभि...आज तुझे कोई नहीं बचाने वाली और अपश्यू वो तो बिलकुल भी नहीं आने वाली अभी थोड़ी देर पहले वो कहीं गया हैं।

पुष्पा...अब क्या करूं याद आया मां कान छोड़ों नहीं तो ये नहीं बताऊंगा कि मैंने और भाभी ने दुर्घटना मे घायल हुऐ एक इंसान की मदद की हैं। जिसके कारण हमे आने में देर हों गईं।

सुरभि... किसी की मदद की वो तो अच्छी बात हैं लेकिन उसका कोई फायदा नहीं है वह तो तूने बता दिया कुछ ओर हों तो बता शायद कान उमेठना छोड़ दूं।

कमला...मम्मी जी छोड़ दीजिए ना, ननद रानी को लग रहीं हैं।

पुष्पा…मां कम से कम भाभी की बात ही मन लो छोड़ दो न बहुत लग रहीं हैं।

"नौटंकी कहीं की" बस इतना बोलकर सुरभि कान छोड़ दिया और पुष्पा कान मलते हुई आगे को बढ़ गई साथ में सुरभि और कमला भी उसके पीछे पीछे चल दिया फिर पहले पुष्पा बैठी उसके बगल मे सुरभि फिर कमला बैठ गईं। "दोपहर मे खाना नहीं खाया होगा" इतना बोलकर सुरभि ने धीरा को आवाज देखकर कुछ हल्का नाश्ता लाने को कहा तब कमला रोकते हुई बोलीं... मम्मी जी हमने बूढ़ी मां के साथ दोपहर का भोजन कर लिया था।

इसके बाद बातों का एक लंबा शिलशीला शुरू हुआ। कमला और पुष्पा को देर क्यों हुआ दुर्घटना मे घायल किस इंसान की सहायता की और हॉस्पिटल मे क्या क्या हुआ। बातों का आगाज उसी घटना से हुआ। पूरी घटना सुनने के बाद सुरभि दोनों के सिर पर हाथ फिरते हुई बोलीं...जरूरत मंदो की सहयता करना अच्छी बात हैं और दुर्घटना मे गंभीर रूप से घायल हुए लोगों की सहायता करना ओर अच्छी बात हैं ऐसे लोगों की समय से उपचार न मिलने पर प्राण भी जा सकता हैं लेकिन एक बात का ध्यान रखना कुछ षड्यंतकारी लोग इस तरह का भ्रम जाल फैला कर सहायता करने वालो को लूट लेते हैं ऐसी घटनाएं यहां पिछले कुछ दिनों से ज्यादा बड़ गईं हैं इसलिए आगे से ध्यान रखना।


दोनों ने सिर्फ हां में मुंडी हिला दिया फिर बातों का शिलशिला आगे बड़ा और बूढ़ी मां के यहां क्या क्या हुआ किस तरह की बाते हुआ एक एक किस्सा पुष्पा और कमला सुनने लग गई। उन्हीं किस्सों को सुनने के दौरान कमला बोलीं... मम्मी जी बूढ़ी मां कहा रहीं थी जब आप वीहाके महल आई थी तब आप को देखने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था उन्हीं लगो में से एक शख्स टीले पे से गिरके गंभीर रूप से घायल हों गईं थी अपने खुद गाड़ी रुकवा कर उसे उपचार के लिए भेजा फिर जाके महल मे प्रवेश किया था। क्या ऐसा सच में हुआ था?

सुरभि मुस्कुराकर हां में जवाब दिया उसके बाद एक बार फ़िर से पुष्पा और कमला मिलकर बूढ़ी मां से सुनी एक एक किस्सा बारी बारी बताने लग गए। शायद उनके बातों का शिलशिला खत्म न होता अगर रघु लौटकर कर न आया होता। रघु पे थकान हावी था जो उसके चहरे से झलक रह था। सामने मां पत्नी और बहन साथ में बैठे हुए थे तो उनके पास बैठने की जगह नहीं बचा था दूसरी और सुकन्या अकेले बैठी थी रघु उनके पास बैठ गया फिर धीरे से सुकन्या के गोद में ढुलक पड़ा , तुरंत ही सुकन्या का हाथ रघु के सिर पे पहुंच गया और सिर सहलाते हुए सुकन्या बोलीं…लगता हैं मेरा बेटा आज बहुत थक गया हैं।

रघु…हां छोटी मां आज मुंशी काका ने मेरा दम निकल दिया।

आगे कोई कुछ बोलता उसे पहले ही सुकन्या ने मुंह पे उंगली रखकर सभी को चुप रहने का इशारा कर दिया और सुकन्या रघु का सिर सहलाता रहा। कुछ ही वक्त में रघु चुप चाप एक बच्चे की तरह सिकुड़कर सो गया। यहां देख कमला की हसी छूट गई और सुकन्या आंखे बड़ी बड़ी करके डांटा फिर चुप रहने का इशारा कर दिया। एक बार फिर से सन्नाटा छा गया कुछ देर बाद कमला की खुशपुशाहट ने लगभग सन्नाटे को भंग कर दिया

कमला…मम्मी जी कैसे बच्चें की तरह सो रहें हैं।

सुरभि…मां के गोद में सभी ऐसे ही सोते है तुमने अगर गौर नहीं किया तो कभी गौर करके देखना तब तुम जान जाओगी।

एक बार फ़िर से सुकन्या ने सभी को इशारे में डांट दिया और सभी चुप चाप बैठ गए। रघु भोजन के वक्त तक सोता रह जब भोजन लग गए तब सुकन्या ने रघु को जगाया और भोजन करवाने ले गई। भोजन के दौरान ही रघु की उनिंदी भाग गई फिर भोजन से निपटकर कमरे में चला गया।

एक छोटी नींद रघु ले चुका था। जिसका नतीजा रघु को अब नींद नही आ रहा था और कमला को आज दिन का एक एक किस्सा रघु को बताना था। इसलिए बातों का शिलशिला रघु को आज इतनी थकान आने के कारण से हुआ। दिन भर में रघु कहा कहा गया कितनी माथापच्ची की एक एक विवरण सुना डाला जिसे सुनकर कमला बोलीं…पापा जी की जिम्मेदारी आपने अपने कंधे लिया हैं और उन जिम्मेदारियों का वाहन करते हुऐ आज आपको आभास भी हुए होगा कि पापा जी वर्षो से इन्हीं सब कामों को कर रहें थे और उन्हें कितनी थकान होता होगा फिर भी बिना थके लगन से निरंतर काम करते आए हैं।

रघु…सही कह रहीं हो कमला आज मै जान गया हूं पापा कितना परिश्रम करते थे मुझे तो लगता है बहुत पहले ही उनके जिमेदारियो को अपने कांधे लेकर उन्हें विश्राम दे देना चाहिए था।

कमला…आपको क्या लगता है आप के कहने भर से पापा जी आपको अपना काम सौप देते कभी नहीं उन्हें जब लगा कि आप उनकी जिम्मेदारी उठाने लायक बन गए हैं तभी उन्होंने आपको सभी जिम्मेदारी सौंप दिया हैं।

रघु…कह तो तुम ठीक रहीं हों मेरी बाते बहुत हुआ अब तुम बताओ आज दिन भर तुमने क्या क्या किया?

कमला…मेरा आज का लगभग आधा दिन मम्मी जी की किस्से सुनते हुऐ बीता और बाकी बचा समय हॉस्पिटल में बीता।

रघु…हॉस्पिटल गई थी लेकिन क्यों तुम्हे या किसी को कुछ हुआ था तो मुझे सूचना क्यों नहीं भेजा।

कमला…अरे बाबा मुझे कुछ नहीं हुआ था वो तो कल रात मिले संभू हमे रास्ते में मिला जो दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हों गया था उसे ही हॉस्पिटल छोड़ने गईं थीं।

रघु…संभू इसका भी क्या ही कहना कल बचा और आज दुर्घटना का शिकार हों गया। कैसा हाल है उसका चलो उसे देखकर आते हैं।

कमला…. जब मै आई थी तब वैसे ही गंभीर हाल में थीं अभी का कहा नहीं सकती साजन जी वह है वो जब आयेंगे तब पता चल जाएगा।

रघु…कमला तुम्हे बोला न तुम सिर्फ मुझे ही साजन जी बोलोगे मेरे अलावा किसी और को नहीं!

कमला…उनका नाम ही ऐसा है मैं क्या करूं आप ही बता दीजिए उनको किस नाम से बुलाऊं।

रघु…उसका नामकरण कल सुबह करूंगा अभी तुम मुझे उस हॉस्पिटल का नाम बता दो।

कमला से हॉस्पिटल की जानकारी लेकर टेलीफोन डायरेक्टरी से उसी हॉस्पिटल का फोन नंबर ढूंढ निकाला फिर फोन लगाकर संभू का पूरा विवरण ले लिए उसके बाद रघु बोला…संभू इस वक्त ठीक हैं बस होश नही आया हैं।

कमला…चलो अच्छी खबर है अब क्या करना हैं चलना है की सोना हैं।

रात्रि ज्यादा हों गया था इसलिए कल सुबह दफ्तर जाने से पहले संभू को देखने जाने की सहमति बना उसके बाद रघु दिन भर की थकान कमला के साथ जोर आजमाइश करके थोड़ा ओर बढ़ाया फिर एक दूसरे से लिपटे ही निंद्रा की वादियों में खो गया।

आगे जारी रहेगा….
 

Lib am

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जब पुष्पा और कमला गई उस वक्त कुछ खास नहीं हुआ। एक घंटा, दो घंटा करके घंटा पर घंटा बीतता गया और दोनों की कोई खबर नहीं, यहीं एक बात सुरभि को विचलित किए जा रहा था। दोपहर के भोजन का समय हों गया मगर पुष्पा और कमला लौट कर नहीं आई। भोजन के दौरान सहसा सुरभि बोल पड़ी... कितना वक्त हों गया दोपहर के भोजन का वक्त भी हों चुका है लेकिन दोनों अभी तक लौट कर नहीं आए।

सुकन्या...दीदी आप न खामखा विचलित हों रहीं हों। बिना बताए दोनों गए नहीं, आपने खुद जाने की आज्ञा दिया हैं फिर भी….।

"हां हां (सुकन्या की बातों को बीच में कटकर सुरभि लगभग झिड़कते हुए बोलीं) जानती हूं मुझसे ही पूछकर गए थे लेकिन उन्हें भी तो ख्याल होना चाहिए कि देर हों रहीं हैं तो किसी के हाथों खबर भिजवा दे।

सुरभि की बाते सुनके सुकन्या खी खी कर हंस दिया। मुंह में निवाला था जो लगभग छिटक ही जाता अगर हाथ से न रोका होता। यह दृष्ट देखकर सुरभि को भी हंसी आ गईं। मुंह में निवाला था और उसकी भी दशा सुकन्या जैसा न हों इसलिए आ रही हंसी को दावा गई फिर डपटते हुए सुरभि बोलीं... छोटी तुझे हंसना ही था तो पहले निवाला, निगल लेती फिर हंस लेती। ऐसे अगर निवाले का कुछ अंश स्वास नली में चढ़ जाता यह फिर पूरा निवाला ही गले में अटक जाता तब किया होता?

"होना किया था मुझे कुछ पल की तकलीफ होता खो खो खांसी आती। मिर्ची की धसके से स्वास नली और नाक में कुछ पल के लिए जलन होता। बस इतना ही होता" सुरभि की बातों को अपने ढंग से आगे बढ़ते हुए सुकन्या बोलीं

सुरभि... कितनी सहजता से कह दिया बस इतना ही लेकिन तुझे ख्याल भी नही आया होगा कि उससे तुझे कितनी पीढ़ा होती उसकी आंच मुझ तक पहुंचकर मुझे भी पीढ़ा से ग्रस्त कर देता।

खुद की पीढ़ा से बहन समान जेठानी के पीड़ित होने की बात सुनकर सुकन्या भावुक हों गईं और आंखों में नमी आ गई। जिसे देखकर सुरभि बोलीं... छोटी एक भी बूंद आंसू का बहा तब तुझे, मेरे आसपास भी नहीं आने दूंगी और न ही तुझसे कभी बात करूंगी, अलग थलग महल के एक कोने में कैद कर दूंगी फिर शिकायत न करना कि मेरी जेठानी मुझ पर जुल्म करते हैं।

"जुल्म (आंखों में आई नमी को पोछकर सुकन्या बोलीं) जुल्म तो आप पर मैंने किया था फिर भी आप मेरी कितनी फिक्र करती हों। ऐसा कैसे कर लेती हों?"

सुरभि... छोटी तू फिर से बीती बातों कि जड़े खोद रहीं हैं। पहले भी तुझे चेताया था आज भी कह रहीं हूं जो बीत गया उन यादों को खंगालने से अच्छा हैं अभी जो मिल रहा है उसे समेट ले और कैसे कर लेती हूं तो सुन में तुझे देवरानी नहीं बल्कि मेरी छोटी बहन मानता हूं। दो बहनों में खीटपीट, नोकझोंक होता ही रहता हैं। अब तू मेरी बाते सुनके फिर से भाभुक हो जायेगी और आंखों से नीर बहाने लग जायेगी अगर तूने ऐसा किया तो कह देती हूं तेरे लिए अच्छा नहीं होगा।

सुरभि की बातों से एक बार फिर से सुकन्या के अंतर मन में भावनाओ का बढ़ आ चुका था। जो अश्रु धारा बनकर बहना चाह रहीं थी लेकिन अंत में चेतावनी स्वरूप कहीं गई बातों के कारण सुकन्या अपनी भावनाओ को नियंत्रण में कर लिया और अनिश्छा से मुस्कुराकर "ठीक है" बस इतना ही बोला

सुरभि...सुन छोटी मुस्कुराना है तो सही से खुलकर मुस्कुरा वरना रहने दे।

कुछ पल की जतन और सुरभि की मन लुभावन बातों से आखिर सुकन्या के लवों पर खिला सा मुस्कान ला ही दिया। इस बीच दोनों भोजन कर लिया था। दोपहर बीता भानु (सूर्य) धीरे धीरे अपने गंतव्य की और अग्रसर था। घंटा दर घंटा बीतता गया और भानु खुद के ऊर्जा जिससे समस्त जग जगमगा रहा था। खुद में समेट कर रात्रि को आने का आहवान देने लग गया मगर पुष्पा और कमला अभी भी प्रवासी पक्षियों की भांति विचरण करने में लगी हुई थी। ऐसा सुरभि का मानना था अपितु सच्चाई कुछ ओर थी जिसका भान महल में मौजूद किसी को नही था। भानु लगभग अस्त हों चुका था उसी वक्त पुष्पा और कमला का आगमन हुआ। दोनों को महल के भीतर प्रवेश करते हुए देखकर "दोनों वहीं रुक जाओ और जहां से आए हों वहीं लौट जाओ" सुरभी बोलीं।

इतना सुनते ही कमला और पुष्पा जहां थी वहीं रुक गई और कमला का मन धुक पुक धुक पुक एक अनजान डर से धड़कने लग गया। चहरे की रंगत बदल गई खिला मुस्कुराता हुआ मुखड़े पे मायूसी छा गईं। जबकि मां कि बातों ने पुष्पा पर कोई असर ही नहीं डाला भाभी का हाथ शक्ति से थामे आगे को बढ़ती चली गई।

कमला का आंतरिक भाव उसके ललाट से झलक रहीं थी। जिसे देख सुकन्या हल्का सा मुस्कुराया फिर सुरभि को भी आगाह कर दिया सुरभि उठकर अंचल को कमर में खोचते हुए आगे को बढ़ चली, चलते हुई बोलीं... सुबह के गए सांझ को लौट रहें हों तुम दोनों को बूढ़ी मां इतना अच्छा लगा तो वहीं रुक जाती। महल वापस क्यों आई?

पुष्पा... ठीक हैं हम बूढ़ी मां के पास वापस जा रहे हैं।

इतना बोलकर पुष्पा पीछे को मूढ़ गई और कमला जहां थी वहीं जम गईं। निगाहें जो पहले से झुकी हुई थी। एक पल लिए उठा फिर से झुक गई।

कमला का हाथ थामे पुष्पा पलटी और एक कदम बढ़ाते ही खिंचाव से कमला का हाथ छूट गया "भाभी क्या हुआ आप जम क्यों गई चलो चलते हैं।" इतना बोलकर पुष्पा फिर से कमला का हाथ थाम लिया और अपने साथ चलने के लिए हाथ खींचने लगी मगर कमला अपने जगह से एक कदम भी नहीं हिली बस एक बार सुरभि की ओर देखा फिर पलट कर पुष्पा की और देखा, जाए कि रूके कुछ समझ नहीं पा रहीं थीं। यह देख सुकन्या और सुरभि की हंसी फूट पड़ी और सुरभि हंसते हुई बोलीं...क्या हुआ बहु ऐसे क्यों जम गई। जाओ जहां पुष्पा ले जा रहीं हैं।

पुष्पा...भाभी चलो मेरे साथ पहले तो नाटक कर रहीं थीं लेकिन अब सच में लेकर चलूंगी सोचकर आई थी कि मां से कहूंगी कि बूढ़ी मां आप की कितनी तारीफ कर रहीं थीं कितने सारे ऐसे किस्से सुनाए जिससे मैं अनजान थीं। लेकिन इन्हें तो मजाक सूज रहा था दांते निपोरकर कितने मजे से कह दिया जाओ बहु पुष्पा जहा ले जा रहीं हैं।

इतना कहकर पुष्पा लगभग खींचते हुई कमला को ले जाने लग गई और कमला "रूको तो ननद रानी" बस इतना हो बोलती रह गईं और पीछे पलट कर बार बार सुरभि को देख रहीं थीं और विनती कर रहीं थी मम्मी जी ननद रानी को रोको न यह देख सुरभि बोलीं…महारानी जी तुम्हें जहां जाना है जाओ लेकिन मेरी बहु रानी को यहीं छोड़ जाओ जरा उससे पुछु तो बूढ़ी मां ने उसकी सास की तारीफ में कौन कौन सी बातें कहीं।

पुष्पा…अरे मैं कैसे भुल गई थीं कि मै इस महल की महारानी हूं। चलो भाभी महारानी के होते हुई आपको डरने की जरूरत नहीं हैं।

इतना बोलकर पुष्पा शान से कमला का हाथ थामे खींचते हुई भीतर की ओर बढ़ने लग गई। पल भर में वातावरण मे हंसी और ठहाके गुजने लग गया। जैसे ही पुष्पा सुरभि के नजदीक पहुंचा कान उमेठते हुई सुरभि बोलीं... बड़ी आई महारानी। ऐसी महारानी किस काम की जिसे याद ही न रहें कि महल मे उसकी पदवी क्या हैं?





पुष्पा…कभी कभी भूल हों जाती हैं अब छोड़ भी दो दुख रहीं हैं। अपश्यु भईया कहा हों देखो मां आपकी प्यारी बहन के कान उमेठ रहीं हैं। जल्दी से आकर बचा लो।

सुरभि...आज तुझे कोई नहीं बचाने वाली और अपश्यू वो तो बिलकुल भी नहीं आने वाली अभी थोड़ी देर पहले वो कहीं गया हैं।

पुष्पा...अब क्या करूं याद आया मां कान छोड़ों नहीं तो ये नहीं बताऊंगा कि मैंने और भाभी ने दुर्घटना मे घायल हुऐ एक इंसान की मदद की हैं। जिसके कारण हमे आने में देर हों गईं।

सुरभि... किसी की मदद की वो तो अच्छी बात हैं लेकिन उसका कोई फायदा नहीं है वह तो तूने बता दिया कुछ ओर हों तो बता शायद कान उमेठना छोड़ दूं।

कमला...मम्मी जी छोड़ दीजिए ना, ननद रानी को लग रहीं हैं।

पुष्पा…मां कम से कम भाभी की बात ही मन लो छोड़ दो न बहुत लग रहीं हैं।

"नौटंकी कहीं की" बस इतना बोलकर सुरभि कान छोड़ दिया और पुष्पा कान मलते हुई आगे को बढ़ गई साथ में सुरभि और कमला भी उसके पीछे पीछे चल दिया फिर पहले पुष्पा बैठी उसके बगल मे सुरभि फिर कमला बैठ गईं। "दोपहर मे खाना नहीं खाया होगा" इतना बोलकर सुरभि ने धीरा को आवाज देखकर कुछ हल्का नाश्ता लाने को कहा तब कमला रोकते हुई बोलीं... मम्मी जी हमने बूढ़ी मां के साथ दोपहर का भोजन कर लिया था।

इसके बाद बातों का एक लंबा शिलशीला शुरू हुआ। कमला और पुष्पा को देर क्यों हुआ दुर्घटना मे घायल किस इंसान की सहायता की और हॉस्पिटल मे क्या क्या हुआ। बातों का आगाज उसी घटना से हुआ। पूरी घटना सुनने के बाद सुरभि दोनों के सिर पर हाथ फिरते हुई बोलीं...जरूरत मंदो की सहयता करना अच्छी बात हैं और दुर्घटना मे गंभीर रूप से घायल हुए लोगों की सहायता करना ओर अच्छी बात हैं ऐसे लोगों की समय से उपचार न मिलने पर प्राण भी जा सकता हैं लेकिन एक बात का ध्यान रखना कुछ षड्यंतकारी लोग इस तरह का भ्रम जाल फैला कर सहायता करने वालो को लूट लेते हैं ऐसी घटनाएं यहां पिछले कुछ दिनों से ज्यादा बड़ गईं हैं इसलिए आगे से ध्यान रखना।


दोनों ने सिर्फ हां में मुंडी हिला दिया फिर बातों का शिलशिला आगे बड़ा और बूढ़ी मां के यहां क्या क्या हुआ किस तरह की बाते हुआ एक एक किस्सा पुष्पा और कमला सुनने लग गई। उन्हीं किस्सों को सुनने के दौरान कमला बोलीं... मम्मी जी बूढ़ी मां कहा रहीं थी जब आप वीहाके महल आई थी तब आप को देखने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था उन्हीं लगो में से एक शख्स टीले पे से गिरके गंभीर रूप से घायल हों गईं थी अपने खुद गाड़ी रुकवा कर उसे उपचार के लिए भेजा फिर जाके महल मे प्रवेश किया था। क्या ऐसा सच में हुआ था?

सुरभि मुस्कुराकर हां में जवाब दिया उसके बाद एक बार फ़िर से पुष्पा और कमला मिलकर बूढ़ी मां से सुनी एक एक किस्सा बारी बारी बताने लग गए। शायद उनके बातों का शिलशिला खत्म न होता अगर रघु लौटकर कर न आया होता। रघु पे थकान हावी था जो उसके चहरे से झलक रह था। सामने मां पत्नी और बहन साथ में बैठे हुए थे तो उनके पास बैठने की जगह नहीं बचा था दूसरी और सुकन्या अकेले बैठी थी रघु उनके पास बैठ गया फिर धीरे से सुकन्या के गोद में ढुलक पड़ा , तुरंत ही सुकन्या का हाथ रघु के सिर पे पहुंच गया और सिर सहलाते हुए सुकन्या बोलीं…लगता हैं मेरा बेटा आज बहुत थक गया हैं।

रघु…हां छोटी मां आज मुंशी काका ने मेरा दम निकल दिया।

आगे कोई कुछ बोलता उसे पहले ही सुकन्या ने मुंह पे उंगली रखकर सभी को चुप रहने का इशारा कर दिया और सुकन्या रघु का सिर सहलाता रहा। कुछ ही वक्त में रघु चुप चाप एक बच्चे की तरह सिकुड़कर सो गया। यहां देख कमला की हसी छूट गई और सुकन्या आंखे बड़ी बड़ी करके डांटा फिर चुप रहने का इशारा कर दिया। एक बार फिर से सन्नाटा छा गया कुछ देर बाद कमला की खुशपुशाहट ने लगभग सन्नाटे को भंग कर दिया

कमला…मम्मी जी कैसे बच्चें की तरह सो रहें हैं।

सुरभि…मां के गोद में सभी ऐसे ही सोते है तुमने अगर गौर नहीं किया तो कभी गौर करके देखना तब तुम जान जाओगी।

एक बार फ़िर से सुकन्या ने सभी को इशारे में डांट दिया और सभी चुप चाप बैठ गए। रघु भोजन के वक्त तक सोता रह जब भोजन लग गए तब सुकन्या ने रघु को जगाया और भोजन करवाने ले गई। भोजन के दौरान ही रघु की उनिंदी भाग गई फिर भोजन से निपटकर कमरे में चला गया।

एक छोटी नींद रघु ले चुका था। जिसका नतीजा रघु को अब नींद नही आ रहा था और कमला को आज दिन का एक एक किस्सा रघु को बताना था। इसलिए बातों का शिलशिला रघु को आज इतनी थकान आने के कारण से हुआ। दिन भर में रघु कहा कहा गया कितनी माथापच्ची की एक एक विवरण सुना डाला जिसे सुनकर कमला बोलीं…पापा जी की जिम्मेदारी आपने अपने कंधे लिया हैं और उन जिम्मेदारियों का वाहन करते हुऐ आज आपको आभास भी हुए होगा कि पापा जी वर्षो से इन्हीं सब कामों को कर रहें थे और उन्हें कितनी थकान होता होगा फिर भी बिना थके लगन से निरंतर काम करते आए हैं।

रघु…सही कह रहीं हो कमला आज मै जान गया हूं पापा कितना परिश्रम करते थे मुझे तो लगता है बहुत पहले ही उनके जिमेदारियो को अपने कांधे लेकर उन्हें विश्राम दे देना चाहिए था।

कमला…आपको क्या लगता है आप के कहने भर से पापा जी आपको अपना काम सौप देते कभी नहीं उन्हें जब लगा कि आप उनकी जिम्मेदारी उठाने लायक बन गए हैं तभी उन्होंने आपको सभी जिम्मेदारी सौंप दिया हैं।

रघु…कह तो तुम ठीक रहीं हों मेरी बाते बहुत हुआ अब तुम बताओ आज दिन भर तुमने क्या क्या किया?

कमला…मेरा आज का लगभग आधा दिन मम्मी जी की किस्से सुनते हुऐ बीता और बाकी बचा समय हॉस्पिटल में बीता।

रघु…हॉस्पिटल गई थी लेकिन क्यों तुम्हे या किसी को कुछ हुआ था तो मुझे सूचना क्यों नहीं भेजा।

कमला…अरे बाबा मुझे कुछ नहीं हुआ था वो तो कल रात मिले संभू हमे रास्ते में मिला जो दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हों गया था उसे ही हॉस्पिटल छोड़ने गईं थीं।

रघु…संभू इसका भी क्या ही कहना कल बचा और आज दुर्घटना का शिकार हों गया। कैसा हाल है उसका चलो उसे देखकर आते हैं।

कमला…. जब मै आई थी तब वैसे ही गंभीर हाल में थीं अभी का कहा नहीं सकती साजन जी वह है वो जब आयेंगे तब पता चल जाएगा।

रघु…कमला तुम्हे बोला न तुम सिर्फ मुझे ही साजन जी बोलोगे मेरे अलावा किसी और को नहीं!

कमला…उनका नाम ही ऐसा है मैं क्या करूं आप ही बता दीजिए उनको किस नाम से बुलाऊं।

रघु…उसका नामकरण कल सुबह करूंगा अभी तुम मुझे उस हॉस्पिटल का नाम बता दो।

कमला से हॉस्पिटल की जानकारी लेकर टेलीफोन डायरेक्टरी से उसी हॉस्पिटल का फोन नंबर ढूंढ निकाला फिर फोन लगाकर संभू का पूरा विवरण ले लिए उसके बाद रघु बोला…संभू इस वक्त ठीक हैं बस होश नही आया हैं।

कमला…चलो अच्छी खबर है अब क्या करना हैं चलना है की सोना हैं।

रात्रि ज्यादा हों गया था इसलिए कल सुबह दफ्तर जाने से पहले संभू को देखने जाने की सहमति बना उसके बाद रघु दिन भर की थकान कमला के साथ जोर आजमाइश करके थोड़ा ओर बढ़ाया फिर एक दूसरे से लिपटे ही निंद्रा की वादियों में खो गया।


आगे जारी रहेगा….
सुरभि सच में ही बहुत सुलझी हुई है और हर रिश्ते को दिल से समझती और निभाती है तभी तो सुकन्या की इतनी कड़वी बातो के बाद भी उसने सुकन्या को ना कभी बुरा समझा और ना कभी बुरा कहा।

पुष्पा के रहते घर में नौटंकी कभी बंद नहीं हो सकती मगर आज बेचारी कमला दोनो के चक्कर में फंस गई मगर सुरभि ने उसको बचा लिया।

रघु को भी अब आते डाल का भाव पता चल रहा है की कितना काम है और उसके पिता कितना काम करते थे और है। बहुत ही सुंदर अपडेट
 

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जब पुष्पा और कमला गई उस वक्त कुछ खास नहीं हुआ। एक घंटा, दो घंटा करके घंटा पर घंटा बीतता गया और दोनों की कोई खबर नहीं, यहीं एक बात सुरभि को विचलित किए जा रहा था। दोपहर के भोजन का समय हों गया मगर पुष्पा और कमला लौट कर नहीं आई। भोजन के दौरान सहसा सुरभि बोल पड़ी... कितना वक्त हों गया दोपहर के भोजन का वक्त भी हों चुका है लेकिन दोनों अभी तक लौट कर नहीं आए।

सुकन्या...दीदी आप न खामखा विचलित हों रहीं हों। बिना बताए दोनों गए नहीं, आपने खुद जाने की आज्ञा दिया हैं फिर भी….।

"हां हां (सुकन्या की बातों को बीच में कटकर सुरभि लगभग झिड़कते हुए बोलीं) जानती हूं मुझसे ही पूछकर गए थे लेकिन उन्हें भी तो ख्याल होना चाहिए कि देर हों रहीं हैं तो किसी के हाथों खबर भिजवा दे।

सुरभि की बाते सुनके सुकन्या खी खी कर हंस दिया। मुंह में निवाला था जो लगभग छिटक ही जाता अगर हाथ से न रोका होता। यह दृष्ट देखकर सुरभि को भी हंसी आ गईं। मुंह में निवाला था और उसकी भी दशा सुकन्या जैसा न हों इसलिए आ रही हंसी को दावा गई फिर डपटते हुए सुरभि बोलीं... छोटी तुझे हंसना ही था तो पहले निवाला, निगल लेती फिर हंस लेती। ऐसे अगर निवाले का कुछ अंश स्वास नली में चढ़ जाता यह फिर पूरा निवाला ही गले में अटक जाता तब किया होता?

"होना किया था मुझे कुछ पल की तकलीफ होता खो खो खांसी आती। मिर्ची की धसके से स्वास नली और नाक में कुछ पल के लिए जलन होता। बस इतना ही होता" सुरभि की बातों को अपने ढंग से आगे बढ़ते हुए सुकन्या बोलीं

सुरभि... कितनी सहजता से कह दिया बस इतना ही लेकिन तुझे ख्याल भी नही आया होगा कि उससे तुझे कितनी पीढ़ा होती उसकी आंच मुझ तक पहुंचकर मुझे भी पीढ़ा से ग्रस्त कर देता।

खुद की पीढ़ा से बहन समान जेठानी के पीड़ित होने की बात सुनकर सुकन्या भावुक हों गईं और आंखों में नमी आ गई। जिसे देखकर सुरभि बोलीं... छोटी एक भी बूंद आंसू का बहा तब तुझे, मेरे आसपास भी नहीं आने दूंगी और न ही तुझसे कभी बात करूंगी, अलग थलग महल के एक कोने में कैद कर दूंगी फिर शिकायत न करना कि मेरी जेठानी मुझ पर जुल्म करते हैं।

"जुल्म (आंखों में आई नमी को पोछकर सुकन्या बोलीं) जुल्म तो आप पर मैंने किया था फिर भी आप मेरी कितनी फिक्र करती हों। ऐसा कैसे कर लेती हों?"

सुरभि... छोटी तू फिर से बीती बातों कि जड़े खोद रहीं हैं। पहले भी तुझे चेताया था आज भी कह रहीं हूं जो बीत गया उन यादों को खंगालने से अच्छा हैं अभी जो मिल रहा है उसे समेट ले और कैसे कर लेती हूं तो सुन में तुझे देवरानी नहीं बल्कि मेरी छोटी बहन मानता हूं। दो बहनों में खीटपीट, नोकझोंक होता ही रहता हैं। अब तू मेरी बाते सुनके फिर से भाभुक हो जायेगी और आंखों से नीर बहाने लग जायेगी अगर तूने ऐसा किया तो कह देती हूं तेरे लिए अच्छा नहीं होगा।

सुरभि की बातों से एक बार फिर से सुकन्या के अंतर मन में भावनाओ का बढ़ आ चुका था। जो अश्रु धारा बनकर बहना चाह रहीं थी लेकिन अंत में चेतावनी स्वरूप कहीं गई बातों के कारण सुकन्या अपनी भावनाओ को नियंत्रण में कर लिया और अनिश्छा से मुस्कुराकर "ठीक है" बस इतना ही बोला

सुरभि...सुन छोटी मुस्कुराना है तो सही से खुलकर मुस्कुरा वरना रहने दे।

कुछ पल की जतन और सुरभि की मन लुभावन बातों से आखिर सुकन्या के लवों पर खिला सा मुस्कान ला ही दिया। इस बीच दोनों भोजन कर लिया था। दोपहर बीता भानु (सूर्य) धीरे धीरे अपने गंतव्य की और अग्रसर था। घंटा दर घंटा बीतता गया और भानु खुद के ऊर्जा जिससे समस्त जग जगमगा रहा था। खुद में समेट कर रात्रि को आने का आहवान देने लग गया मगर पुष्पा और कमला अभी भी प्रवासी पक्षियों की भांति विचरण करने में लगी हुई थी। ऐसा सुरभि का मानना था अपितु सच्चाई कुछ ओर थी जिसका भान महल में मौजूद किसी को नही था। भानु लगभग अस्त हों चुका था उसी वक्त पुष्पा और कमला का आगमन हुआ। दोनों को महल के भीतर प्रवेश करते हुए देखकर "दोनों वहीं रुक जाओ और जहां से आए हों वहीं लौट जाओ" सुरभी बोलीं।

इतना सुनते ही कमला और पुष्पा जहां थी वहीं रुक गई और कमला का मन धुक पुक धुक पुक एक अनजान डर से धड़कने लग गया। चहरे की रंगत बदल गई खिला मुस्कुराता हुआ मुखड़े पे मायूसी छा गईं। जबकि मां कि बातों ने पुष्पा पर कोई असर ही नहीं डाला भाभी का हाथ शक्ति से थामे आगे को बढ़ती चली गई।

कमला का आंतरिक भाव उसके ललाट से झलक रहीं थी। जिसे देख सुकन्या हल्का सा मुस्कुराया फिर सुरभि को भी आगाह कर दिया सुरभि उठकर अंचल को कमर में खोचते हुए आगे को बढ़ चली, चलते हुई बोलीं... सुबह के गए सांझ को लौट रहें हों तुम दोनों को बूढ़ी मां इतना अच्छा लगा तो वहीं रुक जाती। महल वापस क्यों आई?

पुष्पा... ठीक हैं हम बूढ़ी मां के पास वापस जा रहे हैं।

इतना बोलकर पुष्पा पीछे को मूढ़ गई और कमला जहां थी वहीं जम गईं। निगाहें जो पहले से झुकी हुई थी। एक पल लिए उठा फिर से झुक गई।

कमला का हाथ थामे पुष्पा पलटी और एक कदम बढ़ाते ही खिंचाव से कमला का हाथ छूट गया "भाभी क्या हुआ आप जम क्यों गई चलो चलते हैं।" इतना बोलकर पुष्पा फिर से कमला का हाथ थाम लिया और अपने साथ चलने के लिए हाथ खींचने लगी मगर कमला अपने जगह से एक कदम भी नहीं हिली बस एक बार सुरभि की ओर देखा फिर पलट कर पुष्पा की और देखा, जाए कि रूके कुछ समझ नहीं पा रहीं थीं। यह देख सुकन्या और सुरभि की हंसी फूट पड़ी और सुरभि हंसते हुई बोलीं...क्या हुआ बहु ऐसे क्यों जम गई। जाओ जहां पुष्पा ले जा रहीं हैं।

पुष्पा...भाभी चलो मेरे साथ पहले तो नाटक कर रहीं थीं लेकिन अब सच में लेकर चलूंगी सोचकर आई थी कि मां से कहूंगी कि बूढ़ी मां आप की कितनी तारीफ कर रहीं थीं कितने सारे ऐसे किस्से सुनाए जिससे मैं अनजान थीं। लेकिन इन्हें तो मजाक सूज रहा था दांते निपोरकर कितने मजे से कह दिया जाओ बहु पुष्पा जहा ले जा रहीं हैं।

इतना कहकर पुष्पा लगभग खींचते हुई कमला को ले जाने लग गई और कमला "रूको तो ननद रानी" बस इतना हो बोलती रह गईं और पीछे पलट कर बार बार सुरभि को देख रहीं थीं और विनती कर रहीं थी मम्मी जी ननद रानी को रोको न यह देख सुरभि बोलीं…महारानी जी तुम्हें जहां जाना है जाओ लेकिन मेरी बहु रानी को यहीं छोड़ जाओ जरा उससे पुछु तो बूढ़ी मां ने उसकी सास की तारीफ में कौन कौन सी बातें कहीं।

पुष्पा…अरे मैं कैसे भुल गई थीं कि मै इस महल की महारानी हूं। चलो भाभी महारानी के होते हुई आपको डरने की जरूरत नहीं हैं।

इतना बोलकर पुष्पा शान से कमला का हाथ थामे खींचते हुई भीतर की ओर बढ़ने लग गई। पल भर में वातावरण मे हंसी और ठहाके गुजने लग गया। जैसे ही पुष्पा सुरभि के नजदीक पहुंचा कान उमेठते हुई सुरभि बोलीं... बड़ी आई महारानी। ऐसी महारानी किस काम की जिसे याद ही न रहें कि महल मे उसकी पदवी क्या हैं?





पुष्पा…कभी कभी भूल हों जाती हैं अब छोड़ भी दो दुख रहीं हैं। अपश्यु भईया कहा हों देखो मां आपकी प्यारी बहन के कान उमेठ रहीं हैं। जल्दी से आकर बचा लो।

सुरभि...आज तुझे कोई नहीं बचाने वाली और अपश्यू वो तो बिलकुल भी नहीं आने वाली अभी थोड़ी देर पहले वो कहीं गया हैं।

पुष्पा...अब क्या करूं याद आया मां कान छोड़ों नहीं तो ये नहीं बताऊंगा कि मैंने और भाभी ने दुर्घटना मे घायल हुऐ एक इंसान की मदद की हैं। जिसके कारण हमे आने में देर हों गईं।

सुरभि... किसी की मदद की वो तो अच्छी बात हैं लेकिन उसका कोई फायदा नहीं है वह तो तूने बता दिया कुछ ओर हों तो बता शायद कान उमेठना छोड़ दूं।

कमला...मम्मी जी छोड़ दीजिए ना, ननद रानी को लग रहीं हैं।

पुष्पा…मां कम से कम भाभी की बात ही मन लो छोड़ दो न बहुत लग रहीं हैं।

"नौटंकी कहीं की" बस इतना बोलकर सुरभि कान छोड़ दिया और पुष्पा कान मलते हुई आगे को बढ़ गई साथ में सुरभि और कमला भी उसके पीछे पीछे चल दिया फिर पहले पुष्पा बैठी उसके बगल मे सुरभि फिर कमला बैठ गईं। "दोपहर मे खाना नहीं खाया होगा" इतना बोलकर सुरभि ने धीरा को आवाज देखकर कुछ हल्का नाश्ता लाने को कहा तब कमला रोकते हुई बोलीं... मम्मी जी हमने बूढ़ी मां के साथ दोपहर का भोजन कर लिया था।

इसके बाद बातों का एक लंबा शिलशीला शुरू हुआ। कमला और पुष्पा को देर क्यों हुआ दुर्घटना मे घायल किस इंसान की सहायता की और हॉस्पिटल मे क्या क्या हुआ। बातों का आगाज उसी घटना से हुआ। पूरी घटना सुनने के बाद सुरभि दोनों के सिर पर हाथ फिरते हुई बोलीं...जरूरत मंदो की सहयता करना अच्छी बात हैं और दुर्घटना मे गंभीर रूप से घायल हुए लोगों की सहायता करना ओर अच्छी बात हैं ऐसे लोगों की समय से उपचार न मिलने पर प्राण भी जा सकता हैं लेकिन एक बात का ध्यान रखना कुछ षड्यंतकारी लोग इस तरह का भ्रम जाल फैला कर सहायता करने वालो को लूट लेते हैं ऐसी घटनाएं यहां पिछले कुछ दिनों से ज्यादा बड़ गईं हैं इसलिए आगे से ध्यान रखना।


दोनों ने सिर्फ हां में मुंडी हिला दिया फिर बातों का शिलशिला आगे बड़ा और बूढ़ी मां के यहां क्या क्या हुआ किस तरह की बाते हुआ एक एक किस्सा पुष्पा और कमला सुनने लग गई। उन्हीं किस्सों को सुनने के दौरान कमला बोलीं... मम्मी जी बूढ़ी मां कहा रहीं थी जब आप वीहाके महल आई थी तब आप को देखने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था उन्हीं लगो में से एक शख्स टीले पे से गिरके गंभीर रूप से घायल हों गईं थी अपने खुद गाड़ी रुकवा कर उसे उपचार के लिए भेजा फिर जाके महल मे प्रवेश किया था। क्या ऐसा सच में हुआ था?

सुरभि मुस्कुराकर हां में जवाब दिया उसके बाद एक बार फ़िर से पुष्पा और कमला मिलकर बूढ़ी मां से सुनी एक एक किस्सा बारी बारी बताने लग गए। शायद उनके बातों का शिलशिला खत्म न होता अगर रघु लौटकर कर न आया होता। रघु पे थकान हावी था जो उसके चहरे से झलक रह था। सामने मां पत्नी और बहन साथ में बैठे हुए थे तो उनके पास बैठने की जगह नहीं बचा था दूसरी और सुकन्या अकेले बैठी थी रघु उनके पास बैठ गया फिर धीरे से सुकन्या के गोद में ढुलक पड़ा , तुरंत ही सुकन्या का हाथ रघु के सिर पे पहुंच गया और सिर सहलाते हुए सुकन्या बोलीं…लगता हैं मेरा बेटा आज बहुत थक गया हैं।

रघु…हां छोटी मां आज मुंशी काका ने मेरा दम निकल दिया।

आगे कोई कुछ बोलता उसे पहले ही सुकन्या ने मुंह पे उंगली रखकर सभी को चुप रहने का इशारा कर दिया और सुकन्या रघु का सिर सहलाता रहा। कुछ ही वक्त में रघु चुप चाप एक बच्चे की तरह सिकुड़कर सो गया। यहां देख कमला की हसी छूट गई और सुकन्या आंखे बड़ी बड़ी करके डांटा फिर चुप रहने का इशारा कर दिया। एक बार फिर से सन्नाटा छा गया कुछ देर बाद कमला की खुशपुशाहट ने लगभग सन्नाटे को भंग कर दिया

कमला…मम्मी जी कैसे बच्चें की तरह सो रहें हैं।

सुरभि…मां के गोद में सभी ऐसे ही सोते है तुमने अगर गौर नहीं किया तो कभी गौर करके देखना तब तुम जान जाओगी।

एक बार फ़िर से सुकन्या ने सभी को इशारे में डांट दिया और सभी चुप चाप बैठ गए। रघु भोजन के वक्त तक सोता रह जब भोजन लग गए तब सुकन्या ने रघु को जगाया और भोजन करवाने ले गई। भोजन के दौरान ही रघु की उनिंदी भाग गई फिर भोजन से निपटकर कमरे में चला गया।

एक छोटी नींद रघु ले चुका था। जिसका नतीजा रघु को अब नींद नही आ रहा था और कमला को आज दिन का एक एक किस्सा रघु को बताना था। इसलिए बातों का शिलशिला रघु को आज इतनी थकान आने के कारण से हुआ। दिन भर में रघु कहा कहा गया कितनी माथापच्ची की एक एक विवरण सुना डाला जिसे सुनकर कमला बोलीं…पापा जी की जिम्मेदारी आपने अपने कंधे लिया हैं और उन जिम्मेदारियों का वाहन करते हुऐ आज आपको आभास भी हुए होगा कि पापा जी वर्षो से इन्हीं सब कामों को कर रहें थे और उन्हें कितनी थकान होता होगा फिर भी बिना थके लगन से निरंतर काम करते आए हैं।

रघु…सही कह रहीं हो कमला आज मै जान गया हूं पापा कितना परिश्रम करते थे मुझे तो लगता है बहुत पहले ही उनके जिमेदारियो को अपने कांधे लेकर उन्हें विश्राम दे देना चाहिए था।

कमला…आपको क्या लगता है आप के कहने भर से पापा जी आपको अपना काम सौप देते कभी नहीं उन्हें जब लगा कि आप उनकी जिम्मेदारी उठाने लायक बन गए हैं तभी उन्होंने आपको सभी जिम्मेदारी सौंप दिया हैं।

रघु…कह तो तुम ठीक रहीं हों मेरी बाते बहुत हुआ अब तुम बताओ आज दिन भर तुमने क्या क्या किया?

कमला…मेरा आज का लगभग आधा दिन मम्मी जी की किस्से सुनते हुऐ बीता और बाकी बचा समय हॉस्पिटल में बीता।

रघु…हॉस्पिटल गई थी लेकिन क्यों तुम्हे या किसी को कुछ हुआ था तो मुझे सूचना क्यों नहीं भेजा।

कमला…अरे बाबा मुझे कुछ नहीं हुआ था वो तो कल रात मिले संभू हमे रास्ते में मिला जो दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हों गया था उसे ही हॉस्पिटल छोड़ने गईं थीं।

रघु…संभू इसका भी क्या ही कहना कल बचा और आज दुर्घटना का शिकार हों गया। कैसा हाल है उसका चलो उसे देखकर आते हैं।

कमला…. जब मै आई थी तब वैसे ही गंभीर हाल में थीं अभी का कहा नहीं सकती साजन जी वह है वो जब आयेंगे तब पता चल जाएगा।

रघु…कमला तुम्हे बोला न तुम सिर्फ मुझे ही साजन जी बोलोगे मेरे अलावा किसी और को नहीं!

कमला…उनका नाम ही ऐसा है मैं क्या करूं आप ही बता दीजिए उनको किस नाम से बुलाऊं।

रघु…उसका नामकरण कल सुबह करूंगा अभी तुम मुझे उस हॉस्पिटल का नाम बता दो।

कमला से हॉस्पिटल की जानकारी लेकर टेलीफोन डायरेक्टरी से उसी हॉस्पिटल का फोन नंबर ढूंढ निकाला फिर फोन लगाकर संभू का पूरा विवरण ले लिए उसके बाद रघु बोला…संभू इस वक्त ठीक हैं बस होश नही आया हैं।

कमला…चलो अच्छी खबर है अब क्या करना हैं चलना है की सोना हैं।

रात्रि ज्यादा हों गया था इसलिए कल सुबह दफ्तर जाने से पहले संभू को देखने जाने की सहमति बना उसके बाद रघु दिन भर की थकान कमला के साथ जोर आजमाइश करके थोड़ा ओर बढ़ाया फिर एक दूसरे से लिपटे ही निंद्रा की वादियों में खो गया।


आगे जारी रहेगा….
Bahut hi badhiya update diya hai Destiny bhai...
Nice and awesome update....
 

Destiny

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सुरभि सच में ही बहुत सुलझी हुई है और हर रिश्ते को दिल से समझती और निभाती है तभी तो सुकन्या की इतनी कड़वी बातो के बाद भी उसने सुकन्या को ना कभी बुरा समझा और ना कभी बुरा कहा।

पुष्पा के रहते घर में नौटंकी कभी बंद नहीं हो सकती मगर आज बेचारी कमला दोनो के चक्कर में फंस गई मगर सुरभि ने उसको बचा लिया।

रघु को भी अब आते डाल का भाव पता चल रहा है की कितना काम है और उसके पिता कितना काम करते थे और है। बहुत ही सुंदर अपडेट

Thank you so much

Yehi ek baat surbhi ko parivar ke sabhi members se alag karti hai.
 
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