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Romance ajanabi hamasafar -rishton ka gathabandhan

Destiny

Will Change With Time
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Update - 58


सुबह सुबह महल में शुरू हुआ न्याय सभा जिसमें मुनीम जी अपराधी, रघु और कमला न्याय मूर्ति बने तरह तरह के हथकंडे अपना कर मुनीम से सच उगलवाने में लगे हुए थे और बाकि बचे लोग सिर्फ दर्शक बने हुए थे। जब कमला ने बर्फ में दफन और चादर ओढाने में फर्क समझकर मुनीम को गलत सिद्ध किया उस वक्त राजेन्द्र और सुरभि तो प्रभावित हुआ ही था। रावण शायद उनसे ज्यादा प्रभावित हुआ लेकिन बाकी सभी की तरह रावण भी ये सोचने पर मजबूर हों गया कि उनके आंखो के सामने कमला ने मुनीम को धमकी कब दे दिया इस बात का जिक्र करते हुऐ धीरे से सुकन्या को बोला…सुकन्या क्या तुमने देखा या सुना था? बहू ने कब मुनीम जी को बर्फ की चादर ओढ़ने की बात कह दिया।

सुकन्या... सुना तो नहीं मगर मुझे लगता है जब बहू मुनीम जी को कंबल ओढाने गई थी तब कह दिया होगा।

रावण... कमाल है न दाएं हाथ से काम कर दिया और बाएं हाथ को पता भी नहीं चला। हमारी आंखों के सामने मुनीम को धमकी दे दिया और हमे ही पाता नहीं चला।

सुकन्या…बहू के इस कमाल से आपको ज्यादा प्रभावित नहीं होना चहिए क्योंकि बहूं क्या कर सकती हैं। इसकी परख आप पहली रसोई वाले दिन ही कर लिया था। क्यों मैंने सही कहा न।

सुकन्या के इस सावल का रावण कोई जवाब नहीं दे पाया तब सुकन्या पति का हाथ थामे इशारों में बस इतना ही कहा " उन बातों को जानें दो, आगे क्या होता हैं वो देखो"

न्याय सभा आगे बढ़ा और कमला ने जब वंश वृक्ष के लोगों द्वारा अर्जित किए मान और शान में कलंक लगाने वाले कलंक टीका को उखाड़ फेंकने की बात कहीं और जिस तेवर में कहा उसे सुनकर रावण और अपश्यु का ह्रदय भय से डोल उठा ऐसा होना स्वाभाविक था क्योंकि दोनों बाप बेटे अपने परिवार के अर्जित किए हुए मान और शान में लगने वाला सबसे बङा कलंक का टीका था।

जब कमला की आंखों में क्रोध की लाली उतरना शुरू हुआ था। वह दृश्य देखकर दोनों बाप बेटे का रूह भी भय से कांप उठा और रावण मन में बोला...हे प्रभू भाभी कौन सी बला घर ले आई जिस दिन बहू को मेरे घिनौने कुकर्मों का पाता चलेगा तब कौन सा रूप धारण करेंगी।

एक संभावित दृश्य की परिकल्पना करके रावण थार थार कांपने लग गया। जिसका आभास होते ही सुकन्या बोलीं... क्या हुआ आप इतना कांप क्यों रहें हों।

रावण से कोई जवाब न दिया गया। कोई जवाब न पाकर जब सुकन्या पति की और देखा तब उसे पति के चहरे पर सिर्फ और सिर्फ भय दिखा यह देखते ही सुकन्या को अंदाजा हों गया कि उसका पति किस बात से डर रहा हैं। इसलिए पति का हाथ थामे बोलीं... जो कर्म अपने किया उसका फल आज नहीं तो कल मिलना ही हैं फ़िर उसे याद करके डरने से क्या मिलेगा? अपने ह्रदय को मजबूत बनाए रखे और मिलने वाले कर्म फल को सहस्र स्वीकार करें।

कहने को तो सुकन्या ने कह दिया लेकिन उसे भी आभास था कि उसके पति के कुकर्मों का कैसा फल मिल सकता है जिसे स्मरण कर सुकन्या का ह्रदय भी भय से डौल गया लेकिन वह इस भाव को उजागर नहीं कर पाई।

यह रावण के ह्रदय में उपजी भय का संघहरक उसकी पत्नी बनी हुई थी लेकिन अपश्यु के भय को कम करने वाला कोई नहीं था। वो तो भाभी की बाते और लाली उतर रही आंखो को देखकर भय से इतना कांप गया कि उससे खड़ा रहा नहीं जा रहा था फ़िर भी किसी तरह साहस जुटा कर खुद के भय पर थोडा नियन्त्रण पाया फिर ख़ुद से बोला…दादा भाई और भाभी को मिथ्या कहने से भाभी को इतना क्रोध आया। तब क्या होगा? जब उन्हें पाता चलेगा कि इस महल पर लगे कलंक में सबसे बङा कलंक का टीका मैं हूं। शायद भाभी उस पल रणचांडी का रूप धर ले और मेरा शीश धड़ से अलग कर दे।

रणचांडी और खुद का शीश कटा धड़ की परिकल्पना करके अपश्यु का ह्रदय एक बार फिर से दहल उठा सिर्फ ह्रदय ही नहीं उसकी आत्मा भी परिकल्पित भय से दहल उठा। एक मन हुआ वो वहां से चला जाएं लेकिन उसका पैर अपने जगह से हिल ही नहीं रहा था। न जानें किस शक्ति ने उसके कदम को जड़वत कर दिया था जो हिलने ही नहीं दे रहा था शायद उसके भय ने उसके पैर को अपंग कर दिया था। बरहाल करवाई आगे बड़ा और जब मुनीम अपनी गलती स्वीकार करते हुऐ राजेन्द्र के पैरों पर गिरकर माफी मांगने लगा तब राजेन्द्र बोला…मुनीम तुमने हमारे भरोसे की दीवार को ढहा दिया हैं पल पल हमे और निरीह लोगों को छला हैं। जिन लोगों के भरण पोषण का जिम्मा तुम्हें सौंपा गया था तुम उनके ही हिस्से का खा खाकर अपनी चर्बी बड़ा रहें थे। मन तो कर रहा है तुम्हारे इन चर्बी युक्त मांस को चील कौए से नौचवा दूं। लेकिन तुम्हें सजा मैं नहीं बल्कि रघु और बहू देंगे। उन्हीं ने तुम्हारे अपराध को उजागर किया है और तुम ही ने मेरी बहू और बेटे को मिथ्या कहा सभी के सामने उनका अपमान किया ( फ़िर बेटे और बहू की और देखकर राजेन्द्र आगे बोला) रघु, बहु तुम दोनों ही निर्धारित करो इसके अपराध की कौन सी उचित सजा दिया जा सकता हैं और जानकारी निकालो इसके इस अपराध में कौन कौन इसका साथी हैं?

"नहीं पापा इस अपराधी को मैं सजा दूंगी जिसे मैं सभ्य प्राणी समझता था उसी के लिए अपने परिवारजन को असभ्य कहा। मेरी भाभी को अपने शब्दों में दूसरे परिवार का कह ही चुका था" अपने बाते कहते हुए पुष्पा आगे बढ़ गई। तब कमला ननद के पास पहुचकर बोलीं... बिल्कुल ननद रानी तुम ही इस अपराधी को सजा दो तुम महारानी हो। सजा देने का हक सिर्फ महारानी को ही हैं और हमे असभ्य कहने की कोई भी मलाल अपने हृदय में न रखना क्योंकि उस वक्त जो भी तुमने कहा, परिस्थिती के अनुकूल ही कहा था। तुम या किसी ओर को कहा पता था कि ये प्राणी सभ्य नही असभ्य है और निरीह लोगों के हिस्से का खुद ही गबन करके खा रहा हैं।

थैंक यूं भाभी कहके पुष्पा कमला से लिपट गई फ़िर अलग होकर सजा देने की करवाही शुरू किया…मुनीम जी आपका साथ किस किस ने दिया उसका नाम बताइए।

मुनीम…मेरे आलावा मेरा दूसरा कोई साथी नहीं हैं।

पुष्पा…ऐसा हों ही नहीं सकता कि इतने दिनों से आप गबन कर रहें हों ओर किसी की नजरों में न आए हों।

मुनीम…आप सभी के नाक के नीचे से मैं माल समेट रहा था आप लोगों को पाता चला वैसे ही किसी और को पाता नहीं चला बड़े होशियारी से मैं काम को अंजाम देता था।

पुष्पा…मुनीम तेरी जुबान कुछ ज्यादा ही चल रहा हैं रूक तू अभी बताती हूं।

इतना बोलकर पुष्पा कुछ कदम पीछे गई। दीवार पे तलवार टांग हुआ था। एक तलवार खींच के निकला और सीधा मुनीम के पास पहुंच कर एक लात मुनीम के छीने में जमा दिया। समस्त ऊर्जा को पैर में एकत्र करके लात मारा गया था जिसका नतीजा ये हुआ कि मुनीम लगभग फुटबॉल की तरह लुढ़काता हुआ कुछ फीट दूर जाकर फैल गया और पुष्पा तुरंत मुनीम के पास पहुंचा फ़िर उसके गर्दन पे तलवार रख कर समस्त ऊर्जा अपने कंठ में समहित कर पूर्ण वेग से बोलीं…मुजरिम हैं तो मुजरिम की तरह बोल न बड़ी होशियारी दिखा रहा था अब दिखा होशियारी और बोल कौन कौन तेरा साथ दे रहा था।

एक ही दिन में महल के सदस्य दो नारी का रौद्र रूप देख रहे थे पहले बहू अब बेटी हालाकि सभी जानते थे पुष्पा नटखट हैं चुलबुली हैं हमेशा हसीं मजाक और मस्ती करती रहतीं हैं। इसी नटखट और चुलबुली स्वभाव के अड़ में एक दहकती अंगार छिपा हुआ हैं। ये कोई नहीं जानता था। जिसका उजागर होते ही लगभग सभी आपस में खुशापुसार करते हुए भिन्न भिन्न तरह की बाते कर रहें थे।

वहीं गर्दन में तलवार की छुवान और पुष्पा का अनदेखा रूप देखकर मुनीम की अस्ति पंजर, रूह सब थार थार कांप उठा पुष्पा के रूप में शाक्षत काल के दर्शन हों गया। भय की ऐसी मार पड़ी कि मुनीम बोलना तो चाहता था लेकिन जुबान साथ नहीं दे रहा था। जब मुनीम नहीं बोला तब पुष्पा एक बार फ़िर शेरनी की तरह दहड़ी…बोला न, मुनीम कुछ तो बोल अभी तक तो तेरी जुबान बहुत चल रहा था। शाक्षत काल के दर्शन होते ही जुबान काम से गया। बोल दे नहीं तो याम के द्वार तक भेजने में वक्त नहीं लगाऊंगी।

सभी मूकदर्शक बने सिर्फ देख रहें थे। पुष्पा को कुछ भी अनर्थ करने से सभी रोकना चाहते थे। लेकिन पहल करने से डर रहें थे बस एक दूसरे का मुंह थक रहें थे और अपने अपने जोड़ीदार को टुस्की मार मारके आगे बढ़कर रोकने को कह रहें थे। लेकिन कोई कुछ कर ही नहीं रहा था और अपश्यु के आस पास कोई था नहीं तो भला वो किसको टुस्की मारके आगे बढ़ने को कहता इसलिए बस अगल बगल तांक झांक कर रहा था। इधर पुष्पा ने एक बार और दोहराया तब डरे सहमे मुनीम बोला…. महारानी जी मैं सच कहा रहा हूं मेरे साथ कोई ओर नहीं था मैं आपने बच्चों की कसम खाने को भी तैयार हूं।

पुष्पा…चल माना कि तेरा साथ किसी ने नहीं दिया लेकिन ऐसा तो नहीं हो सकता कि तू जिनका माल गवान कर गया उनके मन में तेरे प्रति रोष न पैदा हुआ हों और तेरी शिकायत करने की न सोचा हों।

इस बात का मुनीम जवाब नहीं दिया। इसका मतलब ये नहीं की मुनीम जवाब नहीं जानता था। जानता था आखिर अपना कृत छुपाने के लिए कुछ तो किया होगा। बस हाथ जोड़ लिया शायद इसलिए कहीं सच बता दिया तो पुष्पा उसके धड़ से सिर को अलग कर उसे मरणोंशैया पे ना लेटा दे। माहौल को सामान्य होता देख कमला बोलीं…ननद रानी जिस तरह अपने मुनीम को मौत का भय दिखाकर सच उगलवाया वैसे ही मुनीम ने भी मौत का भय दिखाकर अपना कृत छुपाया होगा।

पुष्पा…क्यों रे मुनीम भाभी सही कह रहीं हैं। तूने ऐसा ही किया था।

मुनीम सिर्फ हां में मुंडी हिला दिया। तब पुष्पा "तेरी तो" बोला और एक झटके में तलवार को हवा में ले गईं। यह देखकर एक साथ "नहीं, नहीं" की कई सारे चीखें गूंज उठा और दूसरे झटके में तलवार को मुनीम के गर्दन तक ले जाकर रोक दिया फ़िर बोलीं…मौत का भय वो दावा हैं जो सच उगलवा ही देता हैं तुझे क्या लगा तेरा कत्ल करके मैं कानून के पचड़ों में फसूंगी कभी नहीं (इतना बोलकर पुष्पा पलट गईं और तलवार के धार पर हल्के हाथों से उंगली फिरते हुए बोलीं) उफ्फ बहुत तेज धार हैं। मां इतनी धारदर तलवार दीवारों पे टांगने को किसने कहा था।

पुष्पा की इस बात का किसी ने कोई जवाब नहीं दिया बस एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा दिया और पुष्पा अपने जगह जाकर सजा की करवाही पूरा करते हुए आगे बोलीं….मुनीम जी जितना महल की अपराधी है उतना ही कानून की इसलिए उन्हें कानून को सौंप दिया जाए। कानून उन्हें जो सजा देगी वो तो देगी ही लेकिन उससे पहले महल की ओर से महल की महारानी होने के नाते मैं उन्हें सजा सुनाती हूं कि अब तक गबन करके जितना भी धन अर्जित किया है। सूद समेत इनसे लिया जाए और जिन लोगों से गबन किया गया था उनमें बांट दिया जाएं इस काम का अतिरिक्त भार अपश्यु भईया और साजन को सौंपा जाता हैं और उन्हें चेतावनी दिया जाता है कि उन्होंने मुनीम जी जैसा कुछ किया तो मैं खुद इन दोनों की खाल खीच लूंगी।

बहन की सुनाए फैसला सुनकर अपश्यु खुश हो गया और मन ही मन धन्यवाद देने लगा लेकिन खाल खींचने की बात सुनकर सजन हाथ जोड़कर जमीन पर बैठ गया और उसके बोलने से पहले पुष्पा बोलीं... अरे रूको रे बाबा पहले मैं अपनी बात तो पुरी कर लूं, हां तो सजा सुना चुकी हूं अब बारी आती है उपहार देने की तो जिन्होंने इस अपराध का उजागर किया उन्हें पंद्रह दिन का हनीमून पेकेज दिया जाता है जिसका खर्चा वो खुद उठाएंगे।

कमला... अरे ननद रानी ये कैसा उपहार दे रहीं हों जिसका खर्चा हम खुद ही उठाएंगे।

पुष्पा... ओ कुछ गलत बोल दिया चलो सुधार देती हूं। आप दोनों को एक महीने का हनीमून पेकेज मिलता है जिसमे पंद्रह दिन का खर्चा आप ख़ुद उठाएंगे और पंद्रह दिन का खर्चा मेरे ओर से उपहार (फ़िर सजन की ओर देखकर बोला) आप क्यों घुटनो पर बैठें हों। जब देखो घुटनों पर बैठ जाते हों आपके घुटनों में दर्द नहीं होता।

साजन... होता है महारानी जी बहुत दर्द होता हैं लेकिन आपका अभी अभी जो रूप देखा जिससे हम सभी अनजान थे और आपके खाल खीच लेने की बात से डर गया था इसलिए मजबूरन घुटनों पर बैठना पड़ा।

पुष्पा... हां तो गलती करोगे तो सजा तो मिलेगी ही। चलो अब जाओ इस नामुराद को इसके ठिकाने तक छोड़ आओ और सभा को खत्म करो। सुबह उठते ही सभा में बिठा दिया न पानी पूछा न खाने को दिया घोर अपमान महारानी का घोर अपमान हुआ है। (फ़िर रतन को आवाज देते हुऐ बोलीं) रतन दादू न्याय सभा का समापन हों चूका हैं अब आप भोजन सभा को आरम्भ कीजिए आपकी महारानी भूख से बिलख रहीं हैं।

आदेश मिल चूका था इसलिए आदेश को टालना व्यर्थ था। "चल रे चर्बी युक्त मांस वाला प्राणी तेरी चर्बी उतरने का प्रबन्ध करके आता हूं।" बोलते हुए साजन मुनीम को ले गया और पुष्पा की क्षणिक नटखट अदाओं ने डरे सहमे लगभग सभी के चेहरे पर मुस्कान ला दिया बस रावण और अपश्यु के लवों से मुस्कान गायब था। दोनों बाप बेटे को बस यहीं भय सता रहा था कि उनके कर्मों का उजागर हों गया तब उनका किया हल होगा। खैर उनका जो भी होगा बाद में होगा अभी भूख ने परेशान कर रखा था तो सभी सुबह की नाश्ता करने बैठ गए।

नाश्ता के दौरान भी आपसी चर्चाएं चल रहा था और मुख्य बिंदु कमला और रघु का बीती रात्रि भोज पर बहार जाना ही बना रहा। साथ ही आज सभी ने पुष्पा का छुपा हुआ नया रूप देखा उस पर भी चर्चाएं हों रहीं थीं। चर्चा करते करते पुष्पा बोलीं... मां कल रात्रि भईया ओर भाभी का भोज पर जाना जितना इन दोनों के लिए अच्छा साबित हुआ उतना ही हमारे लिए भी अच्छा हुआ। सोचो जरा कल भईया और भाभी नहीं जाते तब हम जान ही नहीं पाते कि मुनीम जी ईमानदारी का चोला ओढ़े बेईमानी कर रहें थे।

सुरभि... कह तो तू सही रहीं है लेकिन एक सच ये भी है कि कल इन दोनों को भेजने का मेरा बिल्कुल भी मन नहीं कर रहा था। कुछ अनहोनी होने का डर मुझे सता रही थीं फ़िर भी अनिच्छा से दोनों को भेज दिया और देखो प्रभू की इच्छा से कोई अनहोनी तो नहीं हुआ लेकिन मुनीम जी के किए अपराध उजागर हों गया।

रघु... तभी अपने उन चारों को हमारे साथ भेजा था।

सुरभि... हां अच्छा सुन रघु उन बुजुर्ग महिला के बारे में तूने कुछ सोचा है।

रघु... हां सोचा है न उन्हे आश्वासन दे आया हूं उनका ख्याल मैं रखूंगा अभी साजन लौट आएं तो उसके हाथों उनके जरूरत के समान भिजवा दुंगा और उनकी झोपड़ी को रात में जीतना देख पाया उससे लग रहा था खस्ता हाल में है उसकी मरम्मत की भी व्यवस्था कर दुंगा।

कमला... पापा जी मैं क्या सोच रही थी...।

"हां बहू बोलो तुम क्या सोच रहीं थीं" कमला को बीच में रोककर राजेन्द्र बोला

कमला... पापा जी आप मुझे चिड़ा रहें हों।

राजेन्द्र... बिलकुल नहीं आज तुमने और पुष्पा ने जो रणचांडी का रूप दिखाया उसके बाद तो भूले से भी तुम्हें या पुष्पा को चिड़ाने का भूल नहीं कर सकता।

"पापा जी।" इतना बोलकर कमला रूठने का दिखावा करने लग गईं और पुष्पा तो मानों अपनी बढ़ाई सुनकर फूले नहीं समा रहीं थीं। मुंह से बोला कुछ नही लेकिन अभिनय करके जाता दिया कि अब से कोई उसकी बात न टाले वरन सभी एक फिर से अपना रौद्र रूप दिख देगी। अभिनय किया था तो सभी ने उसी तरह अपनी अपनी प्रतिक्रिया दी उसके बाद सुरभि बोलीं... आप भी न, बहू तुम इनकी बातों को तुल न दिया करो ये तो ऐसे ही बोलते रहते हैं। बोलों तुम क्या बोलना चाह रहीं थीं।

राजेन्द्र... हां बहू बोलों तुम क्या कहना चाहती थीं।

कमला... पापा जी उन बूढ़ी मां जैसे ओर भी वायो वृद्ध ऐसे होंगे जिनका कोई नहीं हैं। तो क्यों न हम एक वृद्ध आश्रम बनाए। वृद्ध आश्रम महल के नजदीक बनायेंगे ताकि हम में से कोई समय समय पर जाकर उनकी देख रेख कर सकें।

राजेन्द्र... बिलकुल सही सोचा हैं। पहले महल में होने वाले जलसा से निपट ले फ़िर वृद्ध आश्रम के निर्माण पे ध्यान देंगे।

ऐसे ही चर्चाएं करते हुऐ सभी ने नाश्ता कर लिया फ़िर अपने अपने रूम में चले गए। कुछ देर में साजन लौट आया। उसे जानकारी लिया गया तब साजन बोल…मैंने कोतवाल साहब को महल की और से शक्त चेतावनी दे आया कि मुनीम के साथ कोई रियायत न वर्ती जय और उसके अपराध की उचित सजा दिया जाए साथ ही उसके जितने भी चल अचल संपत्ति है उन सभी की जानकारी और अब तक कितना गबन किया है उसकी जानकारी लेकर महल भेजा जाए।

साजन की इस कदम की लगभग सभी सरहना की उसके बाद दफ्तर के लिए निकलते समय रघु ने साजन को बात दिया उसे क्या क्या करना है फिर दफ्तर चला गया।

साजन बूढ़ी मां के पास ले जाने वाले सभी ज़रूरी सामान एकत्र करने के बाद सुरभि को जाने की बात कहने गया तब कमला बोलीं…मम्मी जी मैं भी साथ जाना चाहती हूं। क्या मैं जाऊ?

सुरभि... ठीक हैं जाओ। साजन….।

"रानी मां समझ गया आप चिंता न करे मेरे होते हुऐ कोई भी मालकिन को छू भी नहीं सकता।" साजन ने सुरभि की बातों को बीच में रोकर बोला

इसके बाद कमला को तैयार होकर आने को कहा कमला के जानें के बाद सुरभि साजन को कुछ बाते हिदायत के साथ कह दिया और कमला खुद तो तैयार होकर आई साथ में पुष्पा को भी लेकर आई फ़िर बूढ़ी मां से मिलने चली गईं।

आगे जारी रहेगा….
 

Destiny

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अपडेट 58 पोस्ट कर दिया है। पाठकों के टिप्पडी की प्रतीक्षा में हूं।

DREAMBOY40 , TharkiPo , Mahi Maurya Jaguaar kamdev99008

कहा हो मित्रो लगता है आप लोगों की स्टोरी रीड नहीं कर रहा हूं उसी का बदला ले रहें हों।
 
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Lib am

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सुबह सुबह महल में शुरू हुआ न्याय सभा जिसमें मुनीम जी अपराधी, रघु और कमला न्याय मूर्ति बने तरह तरह के हथकंडे अपना कर मुनीम से सच उगलवाने में लगे हुए थे और बाकि बचे लोग सिर्फ दर्शक बने हुए थे। जब कमला ने बर्फ में दफन और चादर ओढाने में फर्क समझकर मुनीम को गलत सिद्ध किया उस वक्त राजेन्द्र और सुरभि तो प्रभावित हुआ ही था। रावण शायद उनसे ज्यादा प्रभावित हुआ लेकिन बाकी सभी की तरह रावण भी ये सोचने पर मजबूर हों गया कि उनके आंखो के सामने कमला ने मुनीम को धमकी कब दे दिया इस बात का जिक्र करते हुऐ धीरे से सुकन्या को बोला…सुकन्या क्या तुमने देखा या सुना था? बहू ने कब मुनीम जी को बर्फ की चादर ओढ़ने की बात कह दिया।

सुकन्या... सुना तो नहीं मगर मुझे लगता है जब बहू मुनीम जी को कंबल ओढाने गई थी तब कह दिया होगा।

रावण... कमाल है न दाएं हाथ से काम कर दिया और बाएं हाथ को पता भी नहीं चला। हमारी आंखों के सामने मुनीम को धमकी दे दिया और हमे ही पाता नहीं चला।

सुकन्या…बहू के इस कमाल से आपको ज्यादा प्रभावित नहीं होना चहिए क्योंकि बहूं क्या कर सकती हैं। इसकी परख आप पहली रसोई वाले दिन ही कर लिया था। क्यों मैंने सही कहा न।

सुकन्या के इस सावल का रावण कोई जवाब नहीं दे पाया तब सुकन्या पति का हाथ थामे इशारों में बस इतना ही कहा " उन बातों को जानें दो, आगे क्या होता हैं वो देखो"

न्याय सभा आगे बढ़ा और कमला ने जब वंश वृक्ष के लोगों द्वारा अर्जित किए मान और शान में कलंक लगाने वाले कलंक टीका को उखाड़ फेंकने की बात कहीं और जिस तेवर में कहा उसे सुनकर रावण और अपश्यु का ह्रदय भय से डोल उठा ऐसा होना स्वाभाविक था क्योंकि दोनों बाप बेटे अपने परिवार के अर्जित किए हुए मान और शान में लगने वाला सबसे बङा कलंक का टीका था।

जब कमला की आंखों में क्रोध की लाली उतरना शुरू हुआ था। वह दृश्य देखकर दोनों बाप बेटे का रूह भी भय से कांप उठा और रावण मन में बोला...हे प्रभू भाभी कौन सी बला घर ले आई जिस दिन बहू को मेरे घिनौने कुकर्मों का पाता चलेगा तब कौन सा रूप धारण करेंगी।

एक संभावित दृश्य की परिकल्पना करके रावण थार थार कांपने लग गया। जिसका आभास होते ही सुकन्या बोलीं... क्या हुआ आप इतना कांप क्यों रहें हों।

रावण से कोई जवाब न दिया गया। कोई जवाब न पाकर जब सुकन्या पति की और देखा तब उसे पति के चहरे पर सिर्फ और सिर्फ भय दिखा यह देखते ही सुकन्या को अंदाजा हों गया कि उसका पति किस बात से डर रहा हैं। इसलिए पति का हाथ थामे बोलीं... जो कर्म अपने किया उसका फल आज नहीं तो कल मिलना ही हैं फ़िर उसे याद करके डरने से क्या मिलेगा? अपने ह्रदय को मजबूत बनाए रखे और मिलने वाले कर्म फल को सहस्र स्वीकार करें।

कहने को तो सुकन्या ने कह दिया लेकिन उसे भी आभास था कि उसके पति के कुकर्मों का कैसा फल मिल सकता है जिसे स्मरण कर सुकन्या का ह्रदय भी भय से डौल गया लेकिन वह इस भाव को उजागर नहीं कर पाई।

यह रावण के ह्रदय में उपजी भय का संघहरक उसकी पत्नी बनी हुई थी लेकिन अपश्यु के भय को कम करने वाला कोई नहीं था। वो तो भाभी की बाते और लाली उतर रही आंखो को देखकर भय से इतना कांप गया कि उससे खड़ा रहा नहीं जा रहा था फ़िर भी किसी तरह साहस जुटा कर खुद के भय पर थोडा नियन्त्रण पाया फिर ख़ुद से बोला…दादा भाई और भाभी को मिथ्या कहने से भाभी को इतना क्रोध आया। तब क्या होगा? जब उन्हें पाता चलेगा कि इस महल पर लगे कलंक में सबसे बङा कलंक का टीका मैं हूं। शायद भाभी उस पल रणचांडी का रूप धर ले और मेरा शीश धड़ से अलग कर दे।

रणचांडी और खुद का शीश कटा धड़ की परिकल्पना करके अपश्यु का ह्रदय एक बार फिर से दहल उठा सिर्फ ह्रदय ही नहीं उसकी आत्मा भी परिकल्पित भय से दहल उठा। एक मन हुआ वो वहां से चला जाएं लेकिन उसका पैर अपने जगह से हिल ही नहीं रहा था। न जानें किस शक्ति ने उसके कदम को जड़वत कर दिया था जो हिलने ही नहीं दे रहा था शायद उसके भय ने उसके पैर को अपंग कर दिया था। बरहाल करवाई आगे बड़ा और जब मुनीम अपनी गलती स्वीकार करते हुऐ राजेन्द्र के पैरों पर गिरकर माफी मांगने लगा तब राजेन्द्र बोला…मुनीम तुमने हमारे भरोसे की दीवार को ढहा दिया हैं पल पल हमे और निरीह लोगों को छला हैं। जिन लोगों के भरण पोषण का जिम्मा तुम्हें सौंपा गया था तुम उनके ही हिस्से का खा खाकर अपनी चर्बी बड़ा रहें थे। मन तो कर रहा है तुम्हारे इन चर्बी युक्त मांस को चील कौए से नौचवा दूं। लेकिन तुम्हें सजा मैं नहीं बल्कि रघु और बहू देंगे। उन्हीं ने तुम्हारे अपराध को उजागर किया है और तुम ही ने मेरी बहू और बेटे को मिथ्या कहा सभी के सामने उनका अपमान किया ( फ़िर बेटे और बहू की और देखकर राजेन्द्र आगे बोला) रघु, बहु तुम दोनों ही निर्धारित करो इसके अपराध की कौन सी उचित सजा दिया जा सकता हैं और जानकारी निकालो इसके इस अपराध में कौन कौन इसका साथी हैं?

"नहीं पापा इस अपराधी को मैं सजा दूंगी जिसे मैं सभ्य प्राणी समझता था उसी के लिए अपने परिवारजन को असभ्य कहा। मेरी भाभी को अपने शब्दों में दूसरे परिवार का कह ही चुका था" अपने बाते कहते हुए पुष्पा आगे बढ़ गई। तब कमला ननद के पास पहुचकर बोलीं... बिल्कुल ननद रानी तुम ही इस अपराधी को सजा दो तुम महारानी हो। सजा देने का हक सिर्फ महारानी को ही हैं और हमे असभ्य कहने की कोई भी मलाल अपने हृदय में न रखना क्योंकि उस वक्त जो भी तुमने कहा, परिस्थिती के अनुकूल ही कहा था। तुम या किसी ओर को कहा पता था कि ये प्राणी सभ्य नही असभ्य है और निरीह लोगों के हिस्से का खुद ही गबन करके खा रहा हैं।

थैंक यूं भाभी कहके पुष्पा कमला से लिपट गई फ़िर अलग होकर सजा देने की करवाही शुरू किया…मुनीम जी आपका साथ किस किस ने दिया उसका नाम बताइए।

मुनीम…मेरे आलावा मेरा दूसरा कोई साथी नहीं हैं।

पुष्पा…ऐसा हों ही नहीं सकता कि इतने दिनों से आप गबन कर रहें हों ओर किसी की नजरों में न आए हों।

मुनीम…आप सभी के नाक के नीचे से मैं माल समेट रहा था आप लोगों को पाता चला वैसे ही किसी और को पाता नहीं चला बड़े होशियारी से मैं काम को अंजाम देता था।

पुष्पा…मुनीम तेरी जुबान कुछ ज्यादा ही चल रहा हैं रूक तू अभी बताती हूं।

इतना बोलकर पुष्पा कुछ कदम पीछे गई। दीवार पे तलवार टांग हुआ था। एक तलवार खींच के निकला और सीधा मुनीम के पास पहुंच कर एक लात मुनीम के छीने में जमा दिया। समस्त ऊर्जा को पैर में एकत्र करके लात मारा गया था जिसका नतीजा ये हुआ कि मुनीम लगभग फुटबॉल की तरह लुढ़काता हुआ कुछ फीट दूर जाकर फैल गया और पुष्पा तुरंत मुनीम के पास पहुंचा फ़िर उसके गर्दन पे तलवार रख कर समस्त ऊर्जा अपने कंठ में समहित कर पूर्ण वेग से बोलीं…मुजरिम हैं तो मुजरिम की तरह बोल न बड़ी होशियारी दिखा रहा था अब दिखा होशियारी और बोल कौन कौन तेरा साथ दे रहा था।

एक ही दिन में महल के सदस्य दो नारी का रौद्र रूप देख रहे थे पहले बहू अब बेटी हालाकि सभी जानते थे पुष्पा नटखट हैं चुलबुली हैं हमेशा हसीं मजाक और मस्ती करती रहतीं हैं। इसी नटखट और चुलबुली स्वभाव के अड़ में एक दहकती अंगार छिपा हुआ हैं। ये कोई नहीं जानता था। जिसका उजागर होते ही लगभग सभी आपस में खुशापुसार करते हुए भिन्न भिन्न तरह की बाते कर रहें थे।

वहीं गर्दन में तलवार की छुवान और पुष्पा का अनदेखा रूप देखकर मुनीम की अस्ति पंजर, रूह सब थार थार कांप उठा पुष्पा के रूप में शाक्षत काल के दर्शन हों गया। भय की ऐसी मार पड़ी कि मुनीम बोलना तो चाहता था लेकिन जुबान साथ नहीं दे रहा था। जब मुनीम नहीं बोला तब पुष्पा एक बार फ़िर शेरनी की तरह दहड़ी…बोला न, मुनीम कुछ तो बोल अभी तक तो तेरी जुबान बहुत चल रहा था। शाक्षत काल के दर्शन होते ही जुबान काम से गया। बोल दे नहीं तो याम के द्वार तक भेजने में वक्त नहीं लगाऊंगी।

सभी मूकदर्शक बने सिर्फ देख रहें थे। पुष्पा को कुछ भी अनर्थ करने से सभी रोकना चाहते थे। लेकिन पहल करने से डर रहें थे बस एक दूसरे का मुंह थक रहें थे और अपने अपने जोड़ीदार को टुस्की मार मारके आगे बढ़कर रोकने को कह रहें थे। लेकिन कोई कुछ कर ही नहीं रहा था और अपश्यु के आस पास कोई था नहीं तो भला वो किसको टुस्की मारके आगे बढ़ने को कहता इसलिए बस अगल बगल तांक झांक कर रहा था। इधर पुष्पा ने एक बार और दोहराया तब डरे सहमे मुनीम बोला…. महारानी जी मैं सच कहा रहा हूं मेरे साथ कोई ओर नहीं था मैं आपने बच्चों की कसम खाने को भी तैयार हूं।

पुष्पा…चल माना कि तेरा साथ किसी ने नहीं दिया लेकिन ऐसा तो नहीं हो सकता कि तू जिनका माल गवान कर गया उनके मन में तेरे प्रति रोष न पैदा हुआ हों और तेरी शिकायत करने की न सोचा हों।

इस बात का मुनीम जवाब नहीं दिया। इसका मतलब ये नहीं की मुनीम जवाब नहीं जानता था। जानता था आखिर अपना कृत छुपाने के लिए कुछ तो किया होगा। बस हाथ जोड़ लिया शायद इसलिए कहीं सच बता दिया तो पुष्पा उसके धड़ से सिर को अलग कर उसे मरणोंशैया पे ना लेटा दे। माहौल को सामान्य होता देख कमला बोलीं…ननद रानी जिस तरह अपने मुनीम को मौत का भय दिखाकर सच उगलवाया वैसे ही मुनीम ने भी मौत का भय दिखाकर अपना कृत छुपाया होगा।

पुष्पा…क्यों रे मुनीम भाभी सही कह रहीं हैं। तूने ऐसा ही किया था।

मुनीम सिर्फ हां में मुंडी हिला दिया। तब पुष्पा "तेरी तो" बोला और एक झटके में तलवार को हवा में ले गईं। यह देखकर एक साथ "नहीं, नहीं" की कई सारे चीखें गूंज उठा और दूसरे झटके में तलवार को मुनीम के गर्दन तक ले जाकर रोक दिया फ़िर बोलीं…मौत का भय वो दावा हैं जो सच उगलवा ही देता हैं तुझे क्या लगा तेरा कत्ल करके मैं कानून के पचड़ों में फसूंगी कभी नहीं (इतना बोलकर पुष्पा पलट गईं और तलवार के धार पर हल्के हाथों से उंगली फिरते हुए बोलीं) उफ्फ बहुत तेज धार हैं। मां इतनी धारदर तलवार दीवारों पे टांगने को किसने कहा था।

पुष्पा की इस बात का किसी ने कोई जवाब नहीं दिया बस एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा दिया और पुष्पा अपने जगह जाकर सजा की करवाही पूरा करते हुए आगे बोलीं….मुनीम जी जितना महल की अपराधी है उतना ही कानून की इसलिए उन्हें कानून को सौंप दिया जाए। कानून उन्हें जो सजा देगी वो तो देगी ही लेकिन उससे पहले महल की ओर से महल की महारानी होने के नाते मैं उन्हें सजा सुनाती हूं कि अब तक गबन करके जितना भी धन अर्जित किया है। सूद समेत इनसे लिया जाए और जिन लोगों से गबन किया गया था उनमें बांट दिया जाएं इस काम का अतिरिक्त भार अपश्यु भईया और साजन को सौंपा जाता हैं और उन्हें चेतावनी दिया जाता है कि उन्होंने मुनीम जी जैसा कुछ किया तो मैं खुद इन दोनों की खाल खीच लूंगी।

बहन की सुनाए फैसला सुनकर अपश्यु खुश हो गया और मन ही मन धन्यवाद देने लगा लेकिन खाल खींचने की बात सुनकर सजन हाथ जोड़कर जमीन पर बैठ गया और उसके बोलने से पहले पुष्पा बोलीं... अरे रूको रे बाबा पहले मैं अपनी बात तो पुरी कर लूं, हां तो सजा सुना चुकी हूं अब बारी आती है उपहार देने की तो जिन्होंने इस अपराध का उजागर किया उन्हें पंद्रह दिन का हनीमून पेकेज दिया जाता है जिसका खर्चा वो खुद उठाएंगे।

कमला... अरे ननद रानी ये कैसा उपहार दे रहीं हों जिसका खर्चा हम खुद ही उठाएंगे।

पुष्पा... ओ कुछ गलत बोल दिया चलो सुधार देती हूं। आप दोनों को एक महीने का हनीमून पेकेज मिलता है जिसमे पंद्रह दिन का खर्चा आप ख़ुद उठाएंगे और पंद्रह दिन का खर्चा मेरे ओर से उपहार (फ़िर सजन की ओर देखकर बोला) आप क्यों घुटनो पर बैठें हों। जब देखो घुटनों पर बैठ जाते हों आपके घुटनों में दर्द नहीं होता।

साजन... होता है महारानी जी बहुत दर्द होता हैं लेकिन आपका अभी अभी जो रूप देखा जिससे हम सभी अनजान थे और आपके खाल खीच लेने की बात से डर गया था इसलिए मजबूरन घुटनों पर बैठना पड़ा।

पुष्पा... हां तो गलती करोगे तो सजा तो मिलेगी ही। चलो अब जाओ इस नामुराद को इसके ठिकाने तक छोड़ आओ और सभा को खत्म करो। सुबह उठते ही सभा में बिठा दिया न पानी पूछा न खाने को दिया घोर अपमान महारानी का घोर अपमान हुआ है। (फ़िर रतन को आवाज देते हुऐ बोलीं) रतन दादू न्याय सभा का समापन हों चूका हैं अब आप भोजन सभा को आरम्भ कीजिए आपकी महारानी भूख से बिलख रहीं हैं।

आदेश मिल चूका था इसलिए आदेश को टालना व्यर्थ था। "चल रे चर्बी युक्त मांस वाला प्राणी तेरी चर्बी उतरने का प्रबन्ध करके आता हूं।" बोलते हुए साजन मुनीम को ले गया और पुष्पा की क्षणिक नटखट अदाओं ने डरे सहमे लगभग सभी के चेहरे पर मुस्कान ला दिया बस रावण और अपश्यु के लवों से मुस्कान गायब था। दोनों बाप बेटे को बस यहीं भय सता रहा था कि उनके कर्मों का उजागर हों गया तब उनका किया हल होगा। खैर उनका जो भी होगा बाद में होगा अभी भूख ने परेशान कर रखा था तो सभी सुबह की नाश्ता करने बैठ गए।

नाश्ता के दौरान भी आपसी चर्चाएं चल रहा था और मुख्य बिंदु कमला और रघु का बीती रात्रि भोज पर बहार जाना ही बना रहा। साथ ही आज सभी ने पुष्पा का छुपा हुआ नया रूप देखा उस पर भी चर्चाएं हों रहीं थीं। चर्चा करते करते पुष्पा बोलीं... मां कल रात्रि भईया ओर भाभी का भोज पर जाना जितना इन दोनों के लिए अच्छा साबित हुआ उतना ही हमारे लिए भी अच्छा हुआ। सोचो जरा कल भईया और भाभी नहीं जाते तब हम जान ही नहीं पाते कि मुनीम जी ईमानदारी का चोला ओढ़े बेईमानी कर रहें थे।

सुरभि... कह तो तू सही रहीं है लेकिन एक सच ये भी है कि कल इन दोनों को भेजने का मेरा बिल्कुल भी मन नहीं कर रहा था। कुछ अनहोनी होने का डर मुझे सता रही थीं फ़िर भी अनिच्छा से दोनों को भेज दिया और देखो प्रभू की इच्छा से कोई अनहोनी तो नहीं हुआ लेकिन मुनीम जी के किए अपराध उजागर हों गया।

रघु... तभी अपने उन चारों को हमारे साथ भेजा था।

सुरभि... हां अच्छा सुन रघु उन बुजुर्ग महिला के बारे में तूने कुछ सोचा है।

रघु... हां सोचा है न उन्हे आश्वासन दे आया हूं उनका ख्याल मैं रखूंगा अभी साजन लौट आएं तो उसके हाथों उनके जरूरत के समान भिजवा दुंगा और उनकी झोपड़ी को रात में जीतना देख पाया उससे लग रहा था खस्ता हाल में है उसकी मरम्मत की भी व्यवस्था कर दुंगा।

कमला... पापा जी मैं क्या सोच रही थी...।

"हां बहू बोलो तुम क्या सोच रहीं थीं" कमला को बीच में रोककर राजेन्द्र बोला

कमला... पापा जी आप मुझे चिड़ा रहें हों।

राजेन्द्र... बिलकुल नहीं आज तुमने और पुष्पा ने जो रणचांडी का रूप दिखाया उसके बाद तो भूले से भी तुम्हें या पुष्पा को चिड़ाने का भूल नहीं कर सकता।

"पापा जी।" इतना बोलकर कमला रूठने का दिखावा करने लग गईं और पुष्पा तो मानों अपनी बढ़ाई सुनकर फूले नहीं समा रहीं थीं। मुंह से बोला कुछ नही लेकिन अभिनय करके जाता दिया कि अब से कोई उसकी बात न टाले वरन सभी एक फिर से अपना रौद्र रूप दिख देगी। अभिनय किया था तो सभी ने उसी तरह अपनी अपनी प्रतिक्रिया दी उसके बाद सुरभि बोलीं... आप भी न, बहू तुम इनकी बातों को तुल न दिया करो ये तो ऐसे ही बोलते रहते हैं। बोलों तुम क्या बोलना चाह रहीं थीं।

राजेन्द्र... हां बहू बोलों तुम क्या कहना चाहती थीं।

कमला... पापा जी उन बूढ़ी मां जैसे ओर भी वायो वृद्ध ऐसे होंगे जिनका कोई नहीं हैं। तो क्यों न हम एक वृद्ध आश्रम बनाए। वृद्ध आश्रम महल के नजदीक बनायेंगे ताकि हम में से कोई समय समय पर जाकर उनकी देख रेख कर सकें।

राजेन्द्र... बिलकुल सही सोचा हैं। पहले महल में होने वाले जलसा से निपट ले फ़िर वृद्ध आश्रम के निर्माण पे ध्यान देंगे।

ऐसे ही चर्चाएं करते हुऐ सभी ने नाश्ता कर लिया फ़िर अपने अपने रूम में चले गए। कुछ देर में साजन लौट आया। उसे जानकारी लिया गया तब साजन बोल…मैंने कोतवाल साहब को महल की और से शक्त चेतावनी दे आया कि मुनीम के साथ कोई रियायत न वर्ती जय और उसके अपराध की उचित सजा दिया जाए साथ ही उसके जितने भी चल अचल संपत्ति है उन सभी की जानकारी और अब तक कितना गबन किया है उसकी जानकारी लेकर महल भेजा जाए।

साजन की इस कदम की लगभग सभी सरहना की उसके बाद दफ्तर के लिए निकलते समय रघु ने साजन को बात दिया उसे क्या क्या करना है फिर दफ्तर चला गया।

साजन बूढ़ी मां के पास ले जाने वाले सभी ज़रूरी सामान एकत्र करने के बाद सुरभि को जाने की बात कहने गया तब कमला बोलीं…मम्मी जी मैं भी साथ जाना चाहती हूं। क्या मैं जाऊ?

सुरभि... ठीक हैं जाओ। साजन….।

"रानी मां समझ गया आप चिंता न करे मेरे होते हुऐ कोई भी मालकिन को छू भी नहीं सकता।" साजन ने सुरभि की बातों को बीच में रोकर बोला

इसके बाद कमला को तैयार होकर आने को कहा कमला के जानें के बाद सुरभि साजन को कुछ बाते हिदायत के साथ कह दिया और कमला खुद तो तैयार होकर आई साथ में पुष्पा को भी लेकर आई फ़िर बूढ़ी मां से मिलने चली गईं।


आगे जारी रहेगा….
वाह घर की लक्ष्मियों ने क्या जबरदस्त रणचंडी का रूप दिखाया है। अभी तक सब कमला से डर रहे थे मगर पुष्प तो उससे भी दो कदम आगे निकली कि सबकी घिग्घी बंध गई।

मुनीम को सजा और उसके सताए हुओं के लिए इंसाफ भी कर दिया साथ अपने नटखट अंदाज में सबको वापस पहले जैसा कर दिया। साथ ही रघु और कमला को पुरुस्कार भी दे दिया। आज इन दोनो का रूप देख कर दो लोगो को अपना भविष्य खतरे में नजर आ गया, मगर जैसी करनी वैसी भरनी। बहुत ही शानदार अपडेट
 

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Update - 58


सुबह सुबह महल में शुरू हुआ न्याय सभा जिसमें मुनीम जी अपराधी, रघु और कमला न्याय मूर्ति बने तरह तरह के हथकंडे अपना कर मुनीम से सच उगलवाने में लगे हुए थे और बाकि बचे लोग सिर्फ दर्शक बने हुए थे। जब कमला ने बर्फ में दफन और चादर ओढाने में फर्क समझकर मुनीम को गलत सिद्ध किया उस वक्त राजेन्द्र और सुरभि तो प्रभावित हुआ ही था। रावण शायद उनसे ज्यादा प्रभावित हुआ लेकिन बाकी सभी की तरह रावण भी ये सोचने पर मजबूर हों गया कि उनके आंखो के सामने कमला ने मुनीम को धमकी कब दे दिया इस बात का जिक्र करते हुऐ धीरे से सुकन्या को बोला…सुकन्या क्या तुमने देखा या सुना था? बहू ने कब मुनीम जी को बर्फ की चादर ओढ़ने की बात कह दिया।

सुकन्या... सुना तो नहीं मगर मुझे लगता है जब बहू मुनीम जी को कंबल ओढाने गई थी तब कह दिया होगा।

रावण... कमाल है न दाएं हाथ से काम कर दिया और बाएं हाथ को पता भी नहीं चला। हमारी आंखों के सामने मुनीम को धमकी दे दिया और हमे ही पाता नहीं चला।

सुकन्या…बहू के इस कमाल से आपको ज्यादा प्रभावित नहीं होना चहिए क्योंकि बहूं क्या कर सकती हैं। इसकी परख आप पहली रसोई वाले दिन ही कर लिया था। क्यों मैंने सही कहा न।

सुकन्या के इस सावल का रावण कोई जवाब नहीं दे पाया तब सुकन्या पति का हाथ थामे इशारों में बस इतना ही कहा " उन बातों को जानें दो, आगे क्या होता हैं वो देखो"

न्याय सभा आगे बढ़ा और कमला ने जब वंश वृक्ष के लोगों द्वारा अर्जित किए मान और शान में कलंक लगाने वाले कलंक टीका को उखाड़ फेंकने की बात कहीं और जिस तेवर में कहा उसे सुनकर रावण और अपश्यु का ह्रदय भय से डोल उठा ऐसा होना स्वाभाविक था क्योंकि दोनों बाप बेटे अपने परिवार के अर्जित किए हुए मान और शान में लगने वाला सबसे बङा कलंक का टीका था।

जब कमला की आंखों में क्रोध की लाली उतरना शुरू हुआ था। वह दृश्य देखकर दोनों बाप बेटे का रूह भी भय से कांप उठा और रावण मन में बोला...हे प्रभू भाभी कौन सी बला घर ले आई जिस दिन बहू को मेरे घिनौने कुकर्मों का पाता चलेगा तब कौन सा रूप धारण करेंगी।

एक संभावित दृश्य की परिकल्पना करके रावण थार थार कांपने लग गया। जिसका आभास होते ही सुकन्या बोलीं... क्या हुआ आप इतना कांप क्यों रहें हों।

रावण से कोई जवाब न दिया गया। कोई जवाब न पाकर जब सुकन्या पति की और देखा तब उसे पति के चहरे पर सिर्फ और सिर्फ भय दिखा यह देखते ही सुकन्या को अंदाजा हों गया कि उसका पति किस बात से डर रहा हैं। इसलिए पति का हाथ थामे बोलीं... जो कर्म अपने किया उसका फल आज नहीं तो कल मिलना ही हैं फ़िर उसे याद करके डरने से क्या मिलेगा? अपने ह्रदय को मजबूत बनाए रखे और मिलने वाले कर्म फल को सहस्र स्वीकार करें।

कहने को तो सुकन्या ने कह दिया लेकिन उसे भी आभास था कि उसके पति के कुकर्मों का कैसा फल मिल सकता है जिसे स्मरण कर सुकन्या का ह्रदय भी भय से डौल गया लेकिन वह इस भाव को उजागर नहीं कर पाई।

यह रावण के ह्रदय में उपजी भय का संघहरक उसकी पत्नी बनी हुई थी लेकिन अपश्यु के भय को कम करने वाला कोई नहीं था। वो तो भाभी की बाते और लाली उतर रही आंखो को देखकर भय से इतना कांप गया कि उससे खड़ा रहा नहीं जा रहा था फ़िर भी किसी तरह साहस जुटा कर खुद के भय पर थोडा नियन्त्रण पाया फिर ख़ुद से बोला…दादा भाई और भाभी को मिथ्या कहने से भाभी को इतना क्रोध आया। तब क्या होगा? जब उन्हें पाता चलेगा कि इस महल पर लगे कलंक में सबसे बङा कलंक का टीका मैं हूं। शायद भाभी उस पल रणचांडी का रूप धर ले और मेरा शीश धड़ से अलग कर दे।

रणचांडी और खुद का शीश कटा धड़ की परिकल्पना करके अपश्यु का ह्रदय एक बार फिर से दहल उठा सिर्फ ह्रदय ही नहीं उसकी आत्मा भी परिकल्पित भय से दहल उठा। एक मन हुआ वो वहां से चला जाएं लेकिन उसका पैर अपने जगह से हिल ही नहीं रहा था। न जानें किस शक्ति ने उसके कदम को जड़वत कर दिया था जो हिलने ही नहीं दे रहा था शायद उसके भय ने उसके पैर को अपंग कर दिया था। बरहाल करवाई आगे बड़ा और जब मुनीम अपनी गलती स्वीकार करते हुऐ राजेन्द्र के पैरों पर गिरकर माफी मांगने लगा तब राजेन्द्र बोला…मुनीम तुमने हमारे भरोसे की दीवार को ढहा दिया हैं पल पल हमे और निरीह लोगों को छला हैं। जिन लोगों के भरण पोषण का जिम्मा तुम्हें सौंपा गया था तुम उनके ही हिस्से का खा खाकर अपनी चर्बी बड़ा रहें थे। मन तो कर रहा है तुम्हारे इन चर्बी युक्त मांस को चील कौए से नौचवा दूं। लेकिन तुम्हें सजा मैं नहीं बल्कि रघु और बहू देंगे। उन्हीं ने तुम्हारे अपराध को उजागर किया है और तुम ही ने मेरी बहू और बेटे को मिथ्या कहा सभी के सामने उनका अपमान किया ( फ़िर बेटे और बहू की और देखकर राजेन्द्र आगे बोला) रघु, बहु तुम दोनों ही निर्धारित करो इसके अपराध की कौन सी उचित सजा दिया जा सकता हैं और जानकारी निकालो इसके इस अपराध में कौन कौन इसका साथी हैं?

"नहीं पापा इस अपराधी को मैं सजा दूंगी जिसे मैं सभ्य प्राणी समझता था उसी के लिए अपने परिवारजन को असभ्य कहा। मेरी भाभी को अपने शब्दों में दूसरे परिवार का कह ही चुका था" अपने बाते कहते हुए पुष्पा आगे बढ़ गई। तब कमला ननद के पास पहुचकर बोलीं... बिल्कुल ननद रानी तुम ही इस अपराधी को सजा दो तुम महारानी हो। सजा देने का हक सिर्फ महारानी को ही हैं और हमे असभ्य कहने की कोई भी मलाल अपने हृदय में न रखना क्योंकि उस वक्त जो भी तुमने कहा, परिस्थिती के अनुकूल ही कहा था। तुम या किसी ओर को कहा पता था कि ये प्राणी सभ्य नही असभ्य है और निरीह लोगों के हिस्से का खुद ही गबन करके खा रहा हैं।

थैंक यूं भाभी कहके पुष्पा कमला से लिपट गई फ़िर अलग होकर सजा देने की करवाही शुरू किया…मुनीम जी आपका साथ किस किस ने दिया उसका नाम बताइए।

मुनीम…मेरे आलावा मेरा दूसरा कोई साथी नहीं हैं।

पुष्पा…ऐसा हों ही नहीं सकता कि इतने दिनों से आप गबन कर रहें हों ओर किसी की नजरों में न आए हों।

मुनीम…आप सभी के नाक के नीचे से मैं माल समेट रहा था आप लोगों को पाता चला वैसे ही किसी और को पाता नहीं चला बड़े होशियारी से मैं काम को अंजाम देता था।

पुष्पा…मुनीम तेरी जुबान कुछ ज्यादा ही चल रहा हैं रूक तू अभी बताती हूं।

इतना बोलकर पुष्पा कुछ कदम पीछे गई। दीवार पे तलवार टांग हुआ था। एक तलवार खींच के निकला और सीधा मुनीम के पास पहुंच कर एक लात मुनीम के छीने में जमा दिया। समस्त ऊर्जा को पैर में एकत्र करके लात मारा गया था जिसका नतीजा ये हुआ कि मुनीम लगभग फुटबॉल की तरह लुढ़काता हुआ कुछ फीट दूर जाकर फैल गया और पुष्पा तुरंत मुनीम के पास पहुंचा फ़िर उसके गर्दन पे तलवार रख कर समस्त ऊर्जा अपने कंठ में समहित कर पूर्ण वेग से बोलीं…मुजरिम हैं तो मुजरिम की तरह बोल न बड़ी होशियारी दिखा रहा था अब दिखा होशियारी और बोल कौन कौन तेरा साथ दे रहा था।

एक ही दिन में महल के सदस्य दो नारी का रौद्र रूप देख रहे थे पहले बहू अब बेटी हालाकि सभी जानते थे पुष्पा नटखट हैं चुलबुली हैं हमेशा हसीं मजाक और मस्ती करती रहतीं हैं। इसी नटखट और चुलबुली स्वभाव के अड़ में एक दहकती अंगार छिपा हुआ हैं। ये कोई नहीं जानता था। जिसका उजागर होते ही लगभग सभी आपस में खुशापुसार करते हुए भिन्न भिन्न तरह की बाते कर रहें थे।

वहीं गर्दन में तलवार की छुवान और पुष्पा का अनदेखा रूप देखकर मुनीम की अस्ति पंजर, रूह सब थार थार कांप उठा पुष्पा के रूप में शाक्षत काल के दर्शन हों गया। भय की ऐसी मार पड़ी कि मुनीम बोलना तो चाहता था लेकिन जुबान साथ नहीं दे रहा था। जब मुनीम नहीं बोला तब पुष्पा एक बार फ़िर शेरनी की तरह दहड़ी…बोला न, मुनीम कुछ तो बोल अभी तक तो तेरी जुबान बहुत चल रहा था। शाक्षत काल के दर्शन होते ही जुबान काम से गया। बोल दे नहीं तो याम के द्वार तक भेजने में वक्त नहीं लगाऊंगी।

सभी मूकदर्शक बने सिर्फ देख रहें थे। पुष्पा को कुछ भी अनर्थ करने से सभी रोकना चाहते थे। लेकिन पहल करने से डर रहें थे बस एक दूसरे का मुंह थक रहें थे और अपने अपने जोड़ीदार को टुस्की मार मारके आगे बढ़कर रोकने को कह रहें थे। लेकिन कोई कुछ कर ही नहीं रहा था और अपश्यु के आस पास कोई था नहीं तो भला वो किसको टुस्की मारके आगे बढ़ने को कहता इसलिए बस अगल बगल तांक झांक कर रहा था। इधर पुष्पा ने एक बार और दोहराया तब डरे सहमे मुनीम बोला…. महारानी जी मैं सच कहा रहा हूं मेरे साथ कोई ओर नहीं था मैं आपने बच्चों की कसम खाने को भी तैयार हूं।

पुष्पा…चल माना कि तेरा साथ किसी ने नहीं दिया लेकिन ऐसा तो नहीं हो सकता कि तू जिनका माल गवान कर गया उनके मन में तेरे प्रति रोष न पैदा हुआ हों और तेरी शिकायत करने की न सोचा हों।

इस बात का मुनीम जवाब नहीं दिया। इसका मतलब ये नहीं की मुनीम जवाब नहीं जानता था। जानता था आखिर अपना कृत छुपाने के लिए कुछ तो किया होगा। बस हाथ जोड़ लिया शायद इसलिए कहीं सच बता दिया तो पुष्पा उसके धड़ से सिर को अलग कर उसे मरणोंशैया पे ना लेटा दे। माहौल को सामान्य होता देख कमला बोलीं…ननद रानी जिस तरह अपने मुनीम को मौत का भय दिखाकर सच उगलवाया वैसे ही मुनीम ने भी मौत का भय दिखाकर अपना कृत छुपाया होगा।

पुष्पा…क्यों रे मुनीम भाभी सही कह रहीं हैं। तूने ऐसा ही किया था।

मुनीम सिर्फ हां में मुंडी हिला दिया। तब पुष्पा "तेरी तो" बोला और एक झटके में तलवार को हवा में ले गईं। यह देखकर एक साथ "नहीं, नहीं" की कई सारे चीखें गूंज उठा और दूसरे झटके में तलवार को मुनीम के गर्दन तक ले जाकर रोक दिया फ़िर बोलीं…मौत का भय वो दावा हैं जो सच उगलवा ही देता हैं तुझे क्या लगा तेरा कत्ल करके मैं कानून के पचड़ों में फसूंगी कभी नहीं (इतना बोलकर पुष्पा पलट गईं और तलवार के धार पर हल्के हाथों से उंगली फिरते हुए बोलीं) उफ्फ बहुत तेज धार हैं। मां इतनी धारदर तलवार दीवारों पे टांगने को किसने कहा था।

पुष्पा की इस बात का किसी ने कोई जवाब नहीं दिया बस एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा दिया और पुष्पा अपने जगह जाकर सजा की करवाही पूरा करते हुए आगे बोलीं….मुनीम जी जितना महल की अपराधी है उतना ही कानून की इसलिए उन्हें कानून को सौंप दिया जाए। कानून उन्हें जो सजा देगी वो तो देगी ही लेकिन उससे पहले महल की ओर से महल की महारानी होने के नाते मैं उन्हें सजा सुनाती हूं कि अब तक गबन करके जितना भी धन अर्जित किया है। सूद समेत इनसे लिया जाए और जिन लोगों से गबन किया गया था उनमें बांट दिया जाएं इस काम का अतिरिक्त भार अपश्यु भईया और साजन को सौंपा जाता हैं और उन्हें चेतावनी दिया जाता है कि उन्होंने मुनीम जी जैसा कुछ किया तो मैं खुद इन दोनों की खाल खीच लूंगी।

बहन की सुनाए फैसला सुनकर अपश्यु खुश हो गया और मन ही मन धन्यवाद देने लगा लेकिन खाल खींचने की बात सुनकर सजन हाथ जोड़कर जमीन पर बैठ गया और उसके बोलने से पहले पुष्पा बोलीं... अरे रूको रे बाबा पहले मैं अपनी बात तो पुरी कर लूं, हां तो सजा सुना चुकी हूं अब बारी आती है उपहार देने की तो जिन्होंने इस अपराध का उजागर किया उन्हें पंद्रह दिन का हनीमून पेकेज दिया जाता है जिसका खर्चा वो खुद उठाएंगे।

कमला... अरे ननद रानी ये कैसा उपहार दे रहीं हों जिसका खर्चा हम खुद ही उठाएंगे।

पुष्पा... ओ कुछ गलत बोल दिया चलो सुधार देती हूं। आप दोनों को एक महीने का हनीमून पेकेज मिलता है जिसमे पंद्रह दिन का खर्चा आप ख़ुद उठाएंगे और पंद्रह दिन का खर्चा मेरे ओर से उपहार (फ़िर सजन की ओर देखकर बोला) आप क्यों घुटनो पर बैठें हों। जब देखो घुटनों पर बैठ जाते हों आपके घुटनों में दर्द नहीं होता।

साजन... होता है महारानी जी बहुत दर्द होता हैं लेकिन आपका अभी अभी जो रूप देखा जिससे हम सभी अनजान थे और आपके खाल खीच लेने की बात से डर गया था इसलिए मजबूरन घुटनों पर बैठना पड़ा।

पुष्पा... हां तो गलती करोगे तो सजा तो मिलेगी ही। चलो अब जाओ इस नामुराद को इसके ठिकाने तक छोड़ आओ और सभा को खत्म करो। सुबह उठते ही सभा में बिठा दिया न पानी पूछा न खाने को दिया घोर अपमान महारानी का घोर अपमान हुआ है। (फ़िर रतन को आवाज देते हुऐ बोलीं) रतन दादू न्याय सभा का समापन हों चूका हैं अब आप भोजन सभा को आरम्भ कीजिए आपकी महारानी भूख से बिलख रहीं हैं।

आदेश मिल चूका था इसलिए आदेश को टालना व्यर्थ था। "चल रे चर्बी युक्त मांस वाला प्राणी तेरी चर्बी उतरने का प्रबन्ध करके आता हूं।" बोलते हुए साजन मुनीम को ले गया और पुष्पा की क्षणिक नटखट अदाओं ने डरे सहमे लगभग सभी के चेहरे पर मुस्कान ला दिया बस रावण और अपश्यु के लवों से मुस्कान गायब था। दोनों बाप बेटे को बस यहीं भय सता रहा था कि उनके कर्मों का उजागर हों गया तब उनका किया हल होगा। खैर उनका जो भी होगा बाद में होगा अभी भूख ने परेशान कर रखा था तो सभी सुबह की नाश्ता करने बैठ गए।

नाश्ता के दौरान भी आपसी चर्चाएं चल रहा था और मुख्य बिंदु कमला और रघु का बीती रात्रि भोज पर बहार जाना ही बना रहा। साथ ही आज सभी ने पुष्पा का छुपा हुआ नया रूप देखा उस पर भी चर्चाएं हों रहीं थीं। चर्चा करते करते पुष्पा बोलीं... मां कल रात्रि भईया ओर भाभी का भोज पर जाना जितना इन दोनों के लिए अच्छा साबित हुआ उतना ही हमारे लिए भी अच्छा हुआ। सोचो जरा कल भईया और भाभी नहीं जाते तब हम जान ही नहीं पाते कि मुनीम जी ईमानदारी का चोला ओढ़े बेईमानी कर रहें थे।

सुरभि... कह तो तू सही रहीं है लेकिन एक सच ये भी है कि कल इन दोनों को भेजने का मेरा बिल्कुल भी मन नहीं कर रहा था। कुछ अनहोनी होने का डर मुझे सता रही थीं फ़िर भी अनिच्छा से दोनों को भेज दिया और देखो प्रभू की इच्छा से कोई अनहोनी तो नहीं हुआ लेकिन मुनीम जी के किए अपराध उजागर हों गया।

रघु... तभी अपने उन चारों को हमारे साथ भेजा था।

सुरभि... हां अच्छा सुन रघु उन बुजुर्ग महिला के बारे में तूने कुछ सोचा है।

रघु... हां सोचा है न उन्हे आश्वासन दे आया हूं उनका ख्याल मैं रखूंगा अभी साजन लौट आएं तो उसके हाथों उनके जरूरत के समान भिजवा दुंगा और उनकी झोपड़ी को रात में जीतना देख पाया उससे लग रहा था खस्ता हाल में है उसकी मरम्मत की भी व्यवस्था कर दुंगा।

कमला... पापा जी मैं क्या सोच रही थी...।

"हां बहू बोलो तुम क्या सोच रहीं थीं" कमला को बीच में रोककर राजेन्द्र बोला

कमला... पापा जी आप मुझे चिड़ा रहें हों।

राजेन्द्र... बिलकुल नहीं आज तुमने और पुष्पा ने जो रणचांडी का रूप दिखाया उसके बाद तो भूले से भी तुम्हें या पुष्पा को चिड़ाने का भूल नहीं कर सकता।

"पापा जी।" इतना बोलकर कमला रूठने का दिखावा करने लग गईं और पुष्पा तो मानों अपनी बढ़ाई सुनकर फूले नहीं समा रहीं थीं। मुंह से बोला कुछ नही लेकिन अभिनय करके जाता दिया कि अब से कोई उसकी बात न टाले वरन सभी एक फिर से अपना रौद्र रूप दिख देगी। अभिनय किया था तो सभी ने उसी तरह अपनी अपनी प्रतिक्रिया दी उसके बाद सुरभि बोलीं... आप भी न, बहू तुम इनकी बातों को तुल न दिया करो ये तो ऐसे ही बोलते रहते हैं। बोलों तुम क्या बोलना चाह रहीं थीं।

राजेन्द्र... हां बहू बोलों तुम क्या कहना चाहती थीं।

कमला... पापा जी उन बूढ़ी मां जैसे ओर भी वायो वृद्ध ऐसे होंगे जिनका कोई नहीं हैं। तो क्यों न हम एक वृद्ध आश्रम बनाए। वृद्ध आश्रम महल के नजदीक बनायेंगे ताकि हम में से कोई समय समय पर जाकर उनकी देख रेख कर सकें।

राजेन्द्र... बिलकुल सही सोचा हैं। पहले महल में होने वाले जलसा से निपट ले फ़िर वृद्ध आश्रम के निर्माण पे ध्यान देंगे।

ऐसे ही चर्चाएं करते हुऐ सभी ने नाश्ता कर लिया फ़िर अपने अपने रूम में चले गए। कुछ देर में साजन लौट आया। उसे जानकारी लिया गया तब साजन बोल…मैंने कोतवाल साहब को महल की और से शक्त चेतावनी दे आया कि मुनीम के साथ कोई रियायत न वर्ती जय और उसके अपराध की उचित सजा दिया जाए साथ ही उसके जितने भी चल अचल संपत्ति है उन सभी की जानकारी और अब तक कितना गबन किया है उसकी जानकारी लेकर महल भेजा जाए।

साजन की इस कदम की लगभग सभी सरहना की उसके बाद दफ्तर के लिए निकलते समय रघु ने साजन को बात दिया उसे क्या क्या करना है फिर दफ्तर चला गया।

साजन बूढ़ी मां के पास ले जाने वाले सभी ज़रूरी सामान एकत्र करने के बाद सुरभि को जाने की बात कहने गया तब कमला बोलीं…मम्मी जी मैं भी साथ जाना चाहती हूं। क्या मैं जाऊ?

सुरभि... ठीक हैं जाओ। साजन….।

"रानी मां समझ गया आप चिंता न करे मेरे होते हुऐ कोई भी मालकिन को छू भी नहीं सकता।" साजन ने सुरभि की बातों को बीच में रोकर बोला

इसके बाद कमला को तैयार होकर आने को कहा कमला के जानें के बाद सुरभि साजन को कुछ बाते हिदायत के साथ कह दिया और कमला खुद तो तैयार होकर आई साथ में पुष्पा को भी लेकर आई फ़िर बूढ़ी मां से मिलने चली गईं।


आगे जारी रहेगा….
Bahut hi badhiya update diya hai Destiny bhai....
Nice and lovely update....
 

Destiny

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वाह घर की लक्ष्मियों ने क्या जबरदस्त रणचंडी का रूप दिखाया है। अभी तक सब कमला से डर रहे थे मगर पुष्प तो उससे भी दो कदम आगे निकली कि सबकी घिग्घी बंध गई।

मुनीम को सजा और उसके सताए हुओं के लिए इंसाफ भी कर दिया साथ अपने नटखट अंदाज में सबको वापस पहले जैसा कर दिया। साथ ही रघु और कमला को पुरुस्कार भी दे दिया। आज इन दोनो का रूप देख कर दो लोगो को अपना भविष्य खतरे में नजर आ गया, मगर जैसी करनी वैसी भरनी। बहुत ही शानदार अपडेट

बहुत बहुत धन्यवाद

पुष्पा के अचानक लिए हाहाकारी रूप ने सभी को दहला दिया था अब उनका मन भी बहलाना था नहीं तो पता चला कोई सदमे में निकल लिए तो बाद में परिवार वाले पुष्पा को सिर पे भाड़ फोड़ देंगे।
 
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