- 14,475
- 19,070
- 214
Likhte raho dost jisee story pasand aayegi wah Aachha bura comment karta hi rahega ..... baki to Aap Apne viw dekh kar samjh hi sakte ho ..... tumhari story kaisi chal rahi hai
Likhte raho dost jisee story pasand aayegi wah Aachha bura comment karta hi rahega ..... baki to Aap Apne viw dekh kar samjh hi sakte ho ..... tumhari story kaisi chal rahi hai
To ravan sudhar rha hai ya koi prapanch rach rha hai...wo to samay batayega , lekin abhi to sukanya ravan ko apne pale me samajh rahi hai...I hope aisa hi ho...Update - 55
दलाल से क्या बाते हुआ था ये जानने की इच्छा विनती पूर्वक जाहिर करने के बाद सुकन्या एक टक नज़र से पति को देख रहीं थीं। आंखो से निवेदन का रस टपक रहा था वहीं लवों पर मंद मंद मुस्कान तैर रहीं थीं। पत्नी के मुस्कुराहट का जवाब रावण भी मुस्कुरा कर दे रहा था। कुछ वक्त तक कमरे में सन्नाटा छाया रहा फ़िर रावण ने बोलना शुरु किया…
रावण... दलाल से मिले हुए दो दिन बीत गया घर में होने वाले पार्टी की दावत देने गया था। तुम तो जानती हों दलाल बैंगलोर दामिनी भाभी से मिलने गया था जहां उसने कुछ ऐसी वैसी हरकतें कर दिया था जिस कारण उसकी हालत फटीचर जैसा हों गया था। जब मैं उसके घर गया तब देखा दलाल के हाथ और पैरों से प्लास्टर हट चुका था। उसे देखकर मैं बोला…
शॉर्ट फ्लैश बैक स्टार्ट
रावण...दामिनी भाभी के दिए बोझ से आखिरकर तुझे छुटकारा मिल ही गया ही ही ही...।
"हां (एक गहरी स्वास लिया फिर कुछ सोचते हुए दलाल आगे बोला) हां बोझ से तो छुटकारा मिल गया मगर इस उम्र में हड्डियां टूटने का दर्द बड़ा गहरा होता हैं। जिसका बोझ अब उम्र बार ढोना पड़ेगा खैर ये छोड़ तू बता आज दिन में कैसे मेरी याद आ गई और उससे बडी बात इतने दिन था कहा एक तू ही तो मेरा दोस्त हैं जो इस विकट परस्थिति में मेरा हाल चाल लेता है मगर आज कल तू भी मुंह मोड़ रहा हैं बडी अच्छी दोस्ती निभा रहा हैं।
रावण…मैं इस वक्त किस परिस्थिति से गुजर रहा हूं उससे तू अनजान नहीं हैं फिर भी ऐसी बाते कर रहा हैं। मेरे दिन में आने का करण हैं घर में होने वाला पार्टी जिसकी सारी जिम्मेदारी मेरे कंधे पर हैं और तू मेरा दोस्त होने के नाते तुझे दावत देने आया हूं।
"तू (हैरानी का भाव जताते हुए दलाल आगे बोला) तू, जिसने शादी तुड़वाने के लिऐ न जानें कितनी षड्यंत्र किया अब वो ख़ुद पुरे शहर को भोज देने की तैयारी कर रहा हैं अरे भोज देने की तैयारी करना छोड़ ओर ये सोच आगे क्या करना हैं वरना हम खाली हाथ रह जायेंगे।"
रावण... दलाल इस वक्त मैं उस विषय पर कुछ सोचने या करने की परिस्थिति में नहीं हूं। तू तो जनता है सुकन्या मुझसे रूठी हुई हैं। जब तक सुकन्या को माना नहीं लेता तब तक मैं चुप रहना ही बेहतर समझ रहा हूं।
दलाल...मेरे दोस्त रूठना माना तो चलता रहेगा मगर सोच जरा एक बार मौका हाथ से निकल गया तो हाथ मलने के अलावा कुछ नहीं बचेगा।
रावण... हाथ तो मुझे वैसे भी मलना पड़ेगा सुकन्या जैसा व्यवहार मेरे साथ कर रहीं हैं ऐसा चलता रहा तो सुकन्या मुझसे दूर, बहुत दूर हों जायेगी। मैं ऐसा हरगिज होने नहीं दे सकता हूं।
दलाल...रावण तू रहेगा नीरा मूर्ख ही इतना भी नहीं समझता जब बेशुमार दौलत पास होगा तब अपने ही नहीं बल्कि जो पराए हैं वो भी तेरे कंधे से कंधा मिलाए तेरे आगे पीछे घूमते रहेंगे इसलिए मेरा कहना मन सुकन्या जैसी हैं उसे वैसे ही रहने दे तू सिर्फ अपने मकसद पर ध्यान दें।
दलाल के इतना बोलते ही वहां सन्नाटा छा गया। दीवार पर टंगी घड़ी के टिक टिक करती सुई के आवाज और सांसों के चलायमान रहने के आवाज के अलावा कुछ हों रहा था तो वहां हैं गहन विचार जो रावण मन ही मन कर रहा था जिसकी लकीरे रावण के चहरे पर अंकित दिख रहा था। गहन विचारों में घिरा रावण को देखकर दलाल के ललाट पर अजीब सा चमक और लवों पर, किसी किले को फतह करने की विजई मुस्कान तैर गया। कुछ वक्त की खामोशी को तोड़ते हुए दलाल बोला...रावण ठीक से विचार कर मेरा कहा हुआ एक एक बात सच हैं। चल माना की तू सुकन्या को लेकर ज्यादा परेशान हैं तो उस पर मैं बस इतना कहूंगा सुकन्या को उसके हाल पर छोड़ दे जिस दिन तू गुप्त संपत्ति हासिल कर लेगा उस दिन सुकन्या खुद वा खुद रास्ते पर आ जायेगी नहीं आया तो कोई बात नहीं, ढूंढ लेना किसी ओर को, सुकन्या जैसी औरत की दुनिया में कमी नहीं हैं।
इतना सुनने के बाद रावण पूरी तरह चौक हों गया उसका एक एक अंग मानों काम से मुंह मोड़ लिया रावण स्तब्ध बैठा रहा और शून्य में तकता रहा जहां उसे सिर्फ़ भवन के छत के अलावा कुछ न दिख रहा था। बरहाल कुछ देर की खामोशी को तोड़ते हुए रावण बोला...सुकन्या जैसी सिर्फ एक ही हैं उसके टक्कर का कोई ओर नहीं, मैं अभी चलता हूं और हा तेरे बातों पर मैं विचार अवश्य करूंगा जो भी निर्णय लूंगा तुझे अगाह कर दूंगा।
इतना बोलकर रावण चल दिया आया तो था परेशानी का हाल ढूंढने मगर उसके हाव भव बता रहा था उसे हल तो मिला नहीं बल्कि उसकी परेशानी और बढ़ गया।
शॉर्ट फ्लैश बैक एंड
पति की एक एक बात ध्यान से सुकन्या सुन रहीं थीं। अंत की बाते सुनने के बाद सुकन्या मन में बोली…कितना कमीना भाई हैं मुझसे ही मेरा घर तुड़वाने की कोशिशें करते रहे जब मैंने मुंह मोड़ लिया तो मुझे ही मेरे पति के जीवन से दूर करने की बात कह रहें हैं मगर अब ऐसा नहीं होगा अब होगा वहीं जो मैं चाहूंगी।
रावण…सुकन्या सभी बाते तुमने सुन लिया यहीं बाते हैं जिस कारण मैं खुद में उलझा हुआ हूं। समझ नहीं आ रहा , अब तुम ही बताओं मैं क्या करूं?
"ummm (कुछ सोचने का ढोंग करके सुकन्या आगे बोली) इसमें उलझना कैसा साफ साफ दिख रहा हैं दलाल ने जो कहा सही कहा आप ने गुप्त संपत्ति हासिल कर लिया तो आप की गिनती दुनिया में बेशुमार दौलत रखने वालों में होने लगेगा फ़िर मेरे जैसी औरतें आपके आगे पीछे गुमेगी उन्हीं में से किसी को अपने लिऐ चुन लेना क्योंकि बेशुमार दौलत हासिल करने का जो रास्ता अपने चुना हैं उसपे मैं आपके साथ नहीं चलने वाली न ही आपका साथ देने वाली तो जाहिर सी बात हैं हम दोनों का रास्ता अलग अलग हैं इसलिए आपको दलाल की बात मानकर मेरा साथ छोड़ देना चहिए।
इतना बोलकर सुकन्या झट से बिस्तर से उठ गई। बाते कहने के दौरान सुकन्या के आंखे छलक आई थीं उसे पोछते हुए विस्तार से दूर जानें लगीं तो सुकन्या का हाथ थामे रोकते हुए रावण बोला…सुकन्या कहा जा रहीं हों?
सुकन्या...जाना कहा हैं नहीं जानती मगर इतना जानती हूं की जब मैं आपका साथ नहीं दे सकती न आपके साथ बुरे मार्ग पर चल सकती हूं। तो आगे जाकर हमे अलग होना ही हैं इसलिए मैं सोच रहीं हूं जो काम बाद में हो, उसे अभी कर लिया जाएं क्योंकि आप ने अपना रास्ता चुन लिया आपको उसी पर चलना हैं।
इतना बोलकर सुकन्या फफक फफक कर रो दिया। सुकन्या का रोना बनावटी नहीं था उसके आंखो से बहते आंसू का एक एक कतरा उसके दिल का हाल बयां कर रहा था। उसके पास हैं ही क्या, पति इकलौता बेटा और पति का परिवार सिर्फ यहीं कुछ गिने चुने लोग हैं जिसे वो हक से अपना कह सकती है वरना जिनसे उसका खून का रिश्ता है वो तो सुकन्या को कभी अपना माना ही नहीं सिर्फ एक मौहरे की तरह इस्तेमाल किया था। शायद सुकन्या का मानो दशा रावण समझ गया था। तभी तो झट से विस्तर से उठ खड़ा हुआ ओर सुकन्या को बाहों में भर लिया कुछ वक्त तक बाहों में जकड़े रखने के बाद सुकन्या के सिर थामकर चहरे को ऊपर किया फ़िर माथे पर एक चुम्बन अंकित कर बोला... वाहा सुकन्या तुमने कमाल कर दिया मैं अभी तक ये फैसला नहीं कर पाया की मुझे करना क्या चहिए और तुम (कुछ देर रुककर आगे बोला) तुमने पल भर में फैसला ले लिया और मुझे छोड़कर जा रहीं हों। तुम बडी मतलबी हों जन्मों जन्मांतर साथ निभाने का वादा किया और एक जन्म भी पुरा नहीं हों पाया उससे पहले ही साथ छोड़कर जा रहीं हों, जा भी ऐसे वक्त रहीं हो जब मैं दो रहें पर खड़ा हूं।
सुकन्या... अभी फैसला नहीं लिया तो क्या हुआ आगे चलकर आप मुझे छोड़ने का फैसला ले ही लेंगे क्योंकि मैं आपके और आपके सपने की बीच आ रही हूं। जितना मैं आपको जानती हूं आप आपने सपने को पाने के लिऐ कुछ भी कर सकते हों इसलिए आप मुझे छोड़ने में एक पल का समय व्यर्थ नहीं करेंगे।
रावण... सुकन्या मुझे तुम्हारी यहीं बात सबसे बुरा लगता हैं। आगे क्या होगा इसकी गणना तुम चुटकियों में कर लेती हों फ़िर उसी आधार पर फैसला कर लेती हों। बीते दिनों भी तुमने ऐसा ही किया अचानक एक फैसला सुना दिया और जब मैंने नहीं माना तो तुम मेरे साथ अजनबियों जैसा सलूक करने लग गईं। तुम्हें अंदाजा भी नहीं होगा की तुम्हरा मेरे साथ अजनबी जैसा सलूक करना मुझे कितना चोट पहुंचाता था।
बातों के दौरान सुकन्या का जितना ध्यान पति के बातों पर था उतना ही ध्यान से पति की आंखों में देख रहीं थीं और समझने की कोशिश कर रहीं थीं कि रावण के मुंह से निकाला हुआ शब्द आंखो की भाषा से मेल खाता हैं की नहीं, सुकन्या कितनी समझ पाई ये तो सुकन्या ही जानती हैं मगर पति के बाते खत्म होते ही सुकन्या मन ही मन बोलीं... आंखों की भाषा सब कह देती हैं। मुझे अंदाजा था मेरा आपके साथ अजनबी जैसा सलूक करना आपको कितना तकलीफ दे रहा था फिर भी मैं जान बूझकर ऐसा करती रहीं, आखिर करती भी क्यों न मैंने आपको सुधारने का प्राण जो लिया था।
कुछ वक्त का सन्नाटा छाया रहा दोनों सिर्फ और सिर्फ एक दूसरे के आंखो में देख रहें थे इसके अलावा ओर कुछ नहीं हों रहा था। सन्नाटे को भंग करते हुए रावण बोला...सुकन्या कुछ तो बालों चुप क्यों हों।
सुकन्या... क्या बोलूं आप मेरी सुने वाले नहीं सुनना तो आपको दलाल की हैं जो आपका दोस्त और रहनुमा हैं जो आपको सही रास्ता दिखाता हैं। इसलिए मेरे बोलने का कोई फायदा नहीं हैं।
रावण... दलाल की सुनना होता तो मैं यूं उलझा हुआ नहीं रहता उसी वक्त कोई न कोई फैसला ले लिया होता अब तुम ही मेरी आखरी उम्मीद हों तुम ही कोई रास्ता बताओं जिससे की मैं इन उलझनों से ख़ुद को निकल पाऊं।
सुकन्या... मेरे बताएं रास्ते पर आप चल नहीं पाएंगे क्योंकि बीते दिनों एक रास्ता बताया था जिसका नतीजा आप देख ही चुके हों।
रावण... हां देख चुका हूं मैं दुबारा उस नतीजे को भुगतना नहीं चाहता इसलिए तुम जो रास्ता बताओगी मैं उस पर चलने को तैयार हूं।
सुकन्या...ठीक से सोच लिजिए क्योंकि जो रास्ता मैं आपको बताऊंगी उसपे चलने से हों सकता हैं आपको मुझे या आपके सपने में से किसी एक का चुनाव करना पड़ सकता हैं। मुझे चुना तो मेरे साथ साथ पुरा परिवार रहेगा और सपने को चुना तो हों सकता हैं मुझे और पुरा परिवार ही खो दो।
"एक का चुनाव (रुककर कुछ सोचते हुए रावण आगे बोला) मुझे किसी एक का चुनाव करना पड़ा तो मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हरा चुनाव करूंगा क्योंकि सपने तो बनते और टूटते रहते हैं पर तुम जैसा जीवन साथी नसीब वाले को मिलता हैं।
इतना बोलकर रावण ने एक लंबी गहरी सांस लिया और ऐसे छोड़ा मानों किसी बहुत भारी बोझ से मुक्ति पा लिया हों और सुकन्या मंद मंद मुस्कुराते हुए पति को देखा फिर बोला…आपने मुझे चुना हैं तो आपको मेरे बताएं रास्ते पर चलना होगा क्या आप ऐसा कर पाएंगे?
रावण... बिल्कुल चल पाऊंगा तुम बेझिजक बताओं मैं तुम्हरा हाथ थामे तुम्हारे पीछे पीछे चल पडूंगा।
सुकन्या... ठीक हैं फिर आज और अभी से आपको दलाल से सभी रिश्ते तोड़ना होगा न कभी उससे मिलेंगे न कभी बात करेंगे सिर्फ इतना ही नहीं आप एक हुनरमंद वकील ढूंढेंगे और उसे हमारे पारिवारिक वकील नियुक्त करेंगे।
"क्या (अचंभित होते हुए रावण आगे बोला) सुकन्या तुम क्या कह रहीं हों पागल बगल तो न हों गई दलाल मेरा अच्छा दोस्त हैं जब भी मैं परेशानी में फसता हूं वो ही मुझे बहार निकलता हैं और तुम उससे ही रिश्ता तोड़ने को कह रहें हों।"
सुकन्या... ऐसा हैं तो आप उसकी बातों से इतना उलझ क्यों गए थे। मुझे लगता हैं दलाल आपको कभी सही रास्ता बताया ही नहीं वो सिर्फ़ और सिर्फ़ अपना मतलब आपसे निकलना चाहता है आगर ऐसा नहीं हैं तो जब अपने उसे बताया कि मैं किस करण आपसे रूठा हुआ हूं तब उसे ये कहना चहिए था कि सपना टूटता है तो टूट जाए पर तू सुकन्या का कहना मन ले मगर उसने ये कहा की बीबी तो आती जाती रहेंगी तू बस सपने को पाने पर जोर दे।
इतना सुनते ही रावण सोच में पड गया दलाल से हुई हालही की बातों पर गौर से सोचने लग गया सिर्फ़ हालही की बाते नहीं जब जब दलाल से किसी भी विषय पर चर्चा करने गया था उन सभी बातों को एक एक कर याद करने लग गया। याद करते करतें अचानक रावण के चहरे का भाव बदला और सुकन्या के सिर पर हाथ रखकर बोला... सुकन्या मैं तुम्हारी कसम खाकर कहता हूं दलाल ने आगर मेरे बारे मे कुछ भी गलत सोचा तो जिस दिन मुझे पाता चलेगा वो दिन दलाल के जीवन का आखरी दिन होगा।
इतना सुनते ही सुकन्या अजीब सी मुस्कान से मुस्कुराया और मन में बोला... दलाल तू उल्टी गिनती शुरू कर दे क्योंकि देर सवेर मेरे पति को पाता चल ही जानी हैं कि तेरे मन में क्या हैं जिस दिन पता चला वो दिन सच में तेरे जीवन का आखरी दिन होगा क्योंकि मेरा पति कभी मेरी झूठी कसम नहीं लेते।
फिर रावण से बोला…तो आप मेरा कहना मानने को तैयार हैं।
रावण... हां तैयार हूं इसके अलावा कुछ ओर करना हैं।
सुकन्या... अभी आप इतना ही करे बाकी का समय आने पर बता दूंगी।
रावण... ठीक हैं फिर विस्तार पर चलो और अधूरा काम पुरा करते हैं।
इतना बोलकर रावण मुस्कुरा दिया और सुकन्या को साथ लिऐ विस्तार पर चला गया। विस्तार पर जाते ही रावण सुकन्या पर टूट पड़ा कुछ ही वक्त में कामुक आहे और बेड के चरमराने की आवाज़ से कमरा गूंज उठा कुछ वक्त तक दोनों काम लीला में लिप्त रहें फिर शांत होकर एक दुसरे के बाहों में सो गए।
आगे जारी रहेगा….
To ravan sudhar rha hai ya koi prapanch rach rha hai...wo to samay batayega , lekin abhi to sukanya ravan ko apne pale me samajh rahi hai...I hope aisa hi ho...
Waise nishchal kab dikhai dene Wala hai....
Bahut hi badhiya update diya hai Destiny bhai....Update - 56
हवाएं कब किस ओर रूख बदलेगा बतला पाना संभव नहीं हैं। मगर राजेन्द्र की महल में बहने वाली हवाओं ने अपना रूख बदल लिया हैं। हालाकि महल में बहनें वाली हवाओं ने अपना रूख रघु की शादी के महज कुछ दिन पीछे ही बदल लिया था। एक फोन कॉल ने सुकन्या को अहसास करा दिया था कि जिन खोखले रिश्तों को वो जाग जाहिर करने के लिऐ बहन जैसी जेठानी के साथ दुर्व्यवहार करती आई हैं। वो रिश्तेदार कभी उसका था ही नहीं जो उसका अपना था सुकन्या उसी के साथ दुर्व्यवहार कर रहीं थीं।
सुकन्या और सुरभि के बीच रिश्ता सुधरा तो रावण के साथ सुकन्या दुर्व्यवहार करने लग गई हालाकि रावण के साथ दुर्व्यवहार जान बूझकर सुकन्या कर रहीं थीं मगर उसका यहीं दुर्व्यवहार करना रावण को बदलाव के रास्ते की ओर लेकर जा रहा था। आज एक रात में कितना कुछ बदल गया रावण बुरे रास्ते को छोडकर नेक रस्ते पर चलने को राजी हों गया वहीं संभू एक बार फिर रघु को मिला मगर एक अनहोनी होते होते टल गया। इस अनहोनी का टलना कहीं इस बात का संकेत तो नहीं कि आगे इससे भी बड़ा अनहोनी बाहें फैलाए प्रतिक्षा कर रहीं हैं। बरहाल जो भी हो हम आगे बढ़ते हैं और लौट चलते हैं रघु और कमला के रात्रि भोज की सफर, कि ओर जो अभी तक समाप्त नहीं हुआ हैं।
दार्जलिंग की पहाड़ी वादियों में रात्रि के सन्नाटे में रघु कार को सरपट मध्यम रफ़्तार से दौड़ाए जा रहा था। बगल के सीट पर कमला बैठी बैठी कार की खिड़की से सिर बहार निकलकर, शीतल मन्द मन्द चलती पवन के झोंको का आनंद ले रहीं थीं। शीतल पवन कमला के मुखड़े को छूकर गुजरती तब कमला के मुखड़े की आभा ही बदल जाती और शीतल पावन की ठंडक कमला के मुखड़े से होकर जिस्म के कोने कोने तक पहुंच कर शीतला का अनुभव करवा देती। जिसका असर यूं होता कि कमला के जिस्म का रोआ रोआ ठंडक सिहरन से खड़ी हों जाती। जिस्म में ठंड का असर बढ़ते ही कमला मुंडी अन्दर कर लेता कुछ देर रूककर फ़िर से सिर को बहार निकल लेती। बीबी का यूं बरताव करना रघु को मुस्कराने पर मजबूर कर रहा था। रघु का मुस्कान बनावटी नहीं था। अपितु बीबी को खुश देखकर खुले मन से रघु मुस्कुराकर उसकी खुशी में सारिक हों रहा था। कुछ देर तक कमला को उसके मन का करने दिया फिर कमला को रोकते हुए रघु बोला...कमला इन अल्हड़ हवाओं के साथ बहुत मस्ती कर लिया अब अन्दर बैठ जाओ और खिड़की का शीशा चढ़ा दो वरना ज्यादा ठंड लग गईं तो बीमार पड़ जाओगी।
"नहीं (मस्ती भरे भव से मुस्कुराते हुए कमला आगे बोली) बिल्कुल नहीं, इन हवाओं की रवानी, मेरे मन को एक सुहानी अहसास दिला रहीं हैं इसलिए आप मुझे इन अल्हड़ हवाओं के साथ मस्ती करने से न रोकिए।"
"कमला (मंद मंद मुस्कुराते हुए एक नज़र कमला की ओर देखा फ़िर रघु आगे बोला) तुम्हें इन अल्हड़ शरद हवाओं के साथ मस्ती करते हुए देखकर मुझे भी अच्छा लग रहा हैं साथ ही तुम्हारी फिक्र भी हो रहा हैं। तुम अभी इन शरद हवाओ की आदी नहीं हुई हों पहले आदी हो लो फ़िर जितनी चाहें मस्ती कर लेना मैं नहीं रोकूंगा।"
रघु का व्याकुल होना बिल्कुल उचित हैं क्योंकि कमला सर्द पहाड़ी वातावरण में रहने की आदि नहीं हुई थीं। अभी अभी कमला दार्जलिंग की सर्द वादी में आई है और दूसरी बार महल के चार दिवारी से बहार निकली हैं वो भी रात्रि में, रात्रि के वक्त पहाड़ी वादी दिन से ज्यादा सर्द हों जाता हैं। ऐसे में सर्द का गलत प्रभाव पड़ सकता हैं। यूं टोका जाना कमला को शायद अच्छा नहीं लगा इसलिए कमला अनिच्छा से कार की खिड़की बंद करते हुए शिकयत भरे लहजे में बोली...आप न बहुत बुरे हों मुझे घूमने लाना ही था तो दिन में लेकर आते, रात्रि में इस पहाड़ी वादी का मैं क्या लुप्त लूं कुछ दिख तो रहा नहीं सिर्फ काली सिहाई रात्रि और दूर टिमटिमाती रोशनी के अलावा कुछ दिख ही नहीं रहा।
रघु…अभी अभी खुश थी मस्ती कर रहीं थीं। अचानक क्या हों गया जो शिकायत करने लग गईं। कहीं मेरा टोकना तुम्हें बुरा तो नहीं लग गया।
कमला सिर हिलाकर हां बोला तो रघु मुस्कुराते हुए बोला... कमला तुम्हे बुरा लगा है तो मुझे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता मुझे बस तुम्हारी फिक्र हैं मैं नहीं चाहता कि तुम बीमार पड़ जाओ और रहीं बात तुम्हारी इच्छा की तो इस इतवार को तो नहीं ला पाऊंगा मगर उसके बाद वाले इतवार को पक्का तुम्हे दिन में घूमने ले आऊंगा तब जितना मन करे पहाड़ी वादी का लुप्त लेना ठीक हैं न!
कमला कुछ भी बोल पाती उससे पहले ही रघु ने कार रोक दिया। कार रोकने का कारण कमला जानना चाहा तो रघु कुछ न बोलकर कमला के साइड रोड पार देखने को कहा।
रघु की कार इस वक्त सब्जी बाजार से होकर गुजर रहा था। रास्ते के किनारे सड़ी हुई सब्जियों का ढेर लगा हुआ था एक बुजुर्ग महिला उन्हीं सड़ी हुई सब्जियों में से बीन बीन कर थोड़ा बहुत खाने लायक सब्जियों को थैली में रख रहीं थीं।
सामने दिख रहा दृश्य जिसे देख निष्ठुर से भी निष्ठुर हृदय वाले इंसान का हृदय एक पल के लिऐ पिघल जायेगा। तो भाला कमला का हृदय कैसे न पिघलता वो तो कोमल हृदय वाली नारी हैं। एक नज़र दयनीय भाव से पति को देखा फ़िर तुरंत कार का दरवाजा खोले बहार निकली और वृद्ध महिला की ओर चल दिया।
दूसरी ओर से रघु भी निकला उसका भी हृदय सामने के दृश्य को देखकर पिघला हुआ था और दयनीय भाव चहरे पर लिऐ कमला के पीछे पीछे चल दिया। कुछ ही कदम की दूरी तय कर दोनों वृद्ध महिला के पास पहुंचे और "बूढ़ी मां बूढ़ी मां" बोलकर कई आवाजे दिया पर शायद वृद्ध महिला का ध्यान अपने काम में होने के कारण सुन नहीं पाई या फ़िर उम्र की पराकष्ठा थीं जिसने कानों के सुनने की क्षमता को कमज़ोर कर दिया। बरहाल जब कोई प्रतिक्रिया वृद्ध महिला की ओर से नहीं मिला तब कमला दो कदम बढ़कर थोड़ा सा झुका और कांधे पर हाथ रखकर कमला बोलीं... बूढ़ी मां इन सड़ी हुई सब्जियों का आप क्या करने वाली हों।
बदन पर किसी का स्पर्श और कानों के पास हुई तेज आवाज़ का कुछ असर हुआ और वृद्ध महिला धीरे धीरे पलट कर देखा मगर बोलीं कुछ नहीं बस हल्का सा मुस्कुरा दिया और रघु वृद्ध महिला की बह थामे उठाते हुए बोला...बूढ़ी मां जहां तक मैं जानता हूं आप जैसे जरूरत मन्दों की जरूरतें पूरी हों पाए इसलिए प्रत्येक माह महल से भरण पोषण की चीज़े भिजवाई जाती हैं फ़िर भी आपको इस उम्र में इतनी रात गए इन सड़ी हुए सब्जियों को बीनना पड़ रहा हैं। ऐसा क्यों? छोड़िए इन्हें।
इधर रघु की कार रूकते ही, साथ आए अंगरक्षकों की गाड़ी जो कुछ पीछे थीं। जल्दी से नज़दीक आए मगर जब तक अंगरक्षक पहुंचे तब तक रघु और कमला कार से निकल कर वृद्ध महिला के पास पहुंच चुके थे। सभी जल्दी से कार को रोककर बहार निकले फ़िर रघु और कमला के नजदीक पहुंच कर खडे हों गए। वृद्ध महिला रघु की बाते सुनकर मुस्कुरा दिया फ़िर उठ खड़ी हुई और कांपती आवाज़ में बोलीं...जिसका कोई नहीं होता अक्सर उसे पुराने समान की तरह कबाड़ में फेक दिया जाता हैं तो भाला मैं कैसे अछूता रह पाता, मेरा भी कोई नहीं हैं एक बेटा और बहु था वो एक हादसे में चल बसी एक हमसफ़र था जिसने जीवन भर साथ चलने का वादा किया था वो भी सफ़र अधूरा छोड़कर चल बसा, जब मेरा ख्याल रखने वाला कोई हैं नहीं तो लोग भी कब तक मेरी मदद करते शायद यहीं करण रहा होगा महल से भेजे जानें वाले मदद कभी मेरे पास पहुंच पाता कभी नहीं!
वृद्ध महिला की दुःख भारी छोटी सी कहानी सुनकर वहां मौजुद सभी की आंखे नम हों गई। आंखो में नमी का आना लाजमी था। पौढ अवस्था उम्र का एक ऐसा पड़ाव हैं जहां देख भाल करने वाला कोई न कोई साथ होना ही चहिए मगर वृद्ध महिला के साथ उसकी देखरेख करने वाला कोई नहीं था। शायद इसे ही किस्मत का खेल निराला कहा जाता हैं। जब सभी की आंखे नम हों गईं तो भाला रघु की आंखे नम हुए बिना कैसे रह सकता था। उसकी भी आंखे नम हो गया। सिर्फ़ आंखो में नमी ही नहीं बल्कि नमी के साथ साथ चहरे पर क्रोध की लाली भी आ गईं। जिसे काबू कर रघु बोला...बूढ़ी मां ऐसा कैसे हों सकता हैं जबकि मुनीम जी को शक्त निर्देश दिया गया था कि एक भी जरूरत मंद छूट ना पाए सभी तक जरूरत की चीज़े पहुचाई जाए फ़िर भी जरूरत की चीज़े आप तक कभी पहुंचता हैं कभी नही ये माजरा क्या हैं?
"माजरा बिल्कुल आईने की तरह साफ है। अगर मेरे पास प्रत्येक माह जरुरत की चीज़े पहुंचता तो क्या मुझे इन सड़ी हुए सब्जियों में से खाने लायक सब्जियां बीनना पड़ता"
इतना सुनते ही रघु का गुस्सा जो कुछ वक्त के लिऐ कम हुआ था वो स्वतः ही आसमान की बुलंदी पर पहुंच गया और गुस्से में गरजते हुए बोला... मुनीम जी (फ़िर रघु से कुछ ही दूर खडे साजन की और पलट कर आगे बोला) साजन कल सुबह तड़के ही मुनीम जी जिस भी हाल में हों उसी हाल में मुझे महल में चहिए।
अचनक रघु की गुस्से में गर्जना युक्त आवाज में बोलने से सुनसान वादी के साथ साथ वहां खडे सभी दहल उठे फ़िर साजन धीमी आवाज़ में बोला...जैसा आपने कहा बिल्कुल वैसा ही होगा।
कमला जो रघु के पास ही खड़ी थी।रघु के दहाड़ते ही कांप गई और भय का भाव चहरे पर लिऐ रघु का हाथ अपने दोनो हाथों से थाम लिया। किसी का स्पर्श महसूस करते ही रघु तुरंत पलटा, बीबी का डरा सहमा हुआ चेहरा देखते ही रघु का गुस्सा एक पल में उड़ान छू हों गया और रघु बजुर्ग महिला की ओर देखकर बोला…बूढ़ी मां अब से आपको कोई भी दिक्कत नहीं होगा। इस बात का मैं विशेष ख्याल रखूंगा अब आप हमारे साथ चलिए आपको आपके घर छोड़कर हम भी घर के लिऐ निकलते हैं।
इतना बोलकर रघु बजुर्ग महिला का हाथ थामे कार की ओर चल दिया। कार के पास पहुंचकर बुजुर्ग महिला थोड़ी आनाकानी करने के बाद कार में बैठ गई फ़िर बुजुर्ग महिला रास्ता बताती गई और रघु उस रस्ते पर कार चलाता गया। करीब करीब दस से पंद्रह मिनट कार चलाने के बाद बुजुर्ग महिला के कहने पर एक टूटी फूटी झोपड़ी के पास रघु ने कार रोका फ़िर भोजन की थैली लेकर बुजुर्ग महिला के साथ झोपड़ी के अंदर चली गईं।
अति निर्धनता की कहानी झोपड़ी खुद में समेटे हुई थी। जिसे देखकर कमला और रघु एक बार फ़िर पिगल गया। भोजन की थैली बुजुर्ग महिला को दिया। कुछ औपचारिक बाते किया फ़िर बुजुर्ग महिला से विदा लेकर घर को चल दिया।
बुजुर्ग महिला की दयनीय अवस्था पर संवेदना जताते हुए तरह तरह की चर्चाएं करते हुए महल पहुंच गए। भीतर जानें से पहले एक बार फ़िर से रघु ने साजन को आगाह कर दिया कि सुबह तड़के मुनीम उसे महल में चहिए फिर दोनों अंदर चले गए।
सुरभि प्रतीक्षा करते करते वहीं सो गईं थीं। आहट पाते ही "कौन हैं,कौन हैं।" कहते हुए जग गईं।
"मां मैं और कमला हूं।" जबाव देखकर रघु और कमला सुरभि के पास पहुंच गए फ़िर कमला बोलीं… मम्मी जी आप अभी तक नहीं सोए।
रघु... मां….
"पूछने के लिए सवाल मेरे पास भी बहुत से हैं। (जम्हाई लेते हुए सुरभि आगे बोलीं) रात बहुत हो गई हैं इसलिए अभी जाकर सो जाओ।"
सुरभि ने टोक दिया अब कोई भी सावल पूछना व्यर्थ है। इसलिए दोनों चुप चाप खिसक लिया और सुरभि मंद मंद मुस्कुराते हुए अपने कमरे में चली गई।
"लौट आएं दोनों" कमरे में प्रवेश करते ही सुरभि को इन शब्दों का सामना करना पड़ा।
सुरभि... हां आ गए। आप सोए नहीं अभी तक।
राजेन्द्र... क्यों बेटे और बहू से सिर्फ तुम्हें स्नेह हैं? अच्छा छोड़ो! एक दूसरे से सवाल जबाव फ़िर कभी कर लेंगे अभी सो लिया जाए। मुझे बहुत नींद आ रहीं हैं।
किसको किससे कितना स्नेह हैं? एक छोटा सा सावल पूछने पर सुरभि एक मीठी वाद विवाद करने का मनसा बना चुकी थीं मगर राजेन्द्र की सो जानें की बात कहते ही वाद विवाद की मनसा छोड़कर खुद भी सोने की तैयारी करने लग गईं।
आगे जारी रहेगा...
रघुंका कमला के प्रति अटूट प्रेम और कमला की अल्हड़ता दोनो ही लाजवाब है। उस वृद्ध स्त्री की कहानी ने जहां सबको विचलित कर दिया वही महल की सहायता उस महिला तक ना पहुंचने की बात ने रघु को क्रोधित कर दिया और अब मुनीम की खैर नहीं। एक ही शाम में कमला ने रघु को दो बार क्रोधित होते देखा भी और अपने स्पर्श से संभाला भी। बहुत ही सुंदर अपडेटUpdate - 56
हवाएं कब किस ओर रूख बदलेगा बतला पाना संभव नहीं हैं। मगर राजेन्द्र की महल में बहने वाली हवाओं ने अपना रूख बदल लिया हैं। हालाकि महल में बहनें वाली हवाओं ने अपना रूख रघु की शादी के महज कुछ दिन पीछे ही बदल लिया था। एक फोन कॉल ने सुकन्या को अहसास करा दिया था कि जिन खोखले रिश्तों को वो जाग जाहिर करने के लिऐ बहन जैसी जेठानी के साथ दुर्व्यवहार करती आई हैं। वो रिश्तेदार कभी उसका था ही नहीं जो उसका अपना था सुकन्या उसी के साथ दुर्व्यवहार कर रहीं थीं।
सुकन्या और सुरभि के बीच रिश्ता सुधरा तो रावण के साथ सुकन्या दुर्व्यवहार करने लग गई हालाकि रावण के साथ दुर्व्यवहार जान बूझकर सुकन्या कर रहीं थीं मगर उसका यहीं दुर्व्यवहार करना रावण को बदलाव के रास्ते की ओर लेकर जा रहा था। आज एक रात में कितना कुछ बदल गया रावण बुरे रास्ते को छोडकर नेक रस्ते पर चलने को राजी हों गया वहीं संभू एक बार फिर रघु को मिला मगर एक अनहोनी होते होते टल गया। इस अनहोनी का टलना कहीं इस बात का संकेत तो नहीं कि आगे इससे भी बड़ा अनहोनी बाहें फैलाए प्रतिक्षा कर रहीं हैं। बरहाल जो भी हो हम आगे बढ़ते हैं और लौट चलते हैं रघु और कमला के रात्रि भोज की सफर, कि ओर जो अभी तक समाप्त नहीं हुआ हैं।
दार्जलिंग की पहाड़ी वादियों में रात्रि के सन्नाटे में रघु कार को सरपट मध्यम रफ़्तार से दौड़ाए जा रहा था। बगल के सीट पर कमला बैठी बैठी कार की खिड़की से सिर बहार निकलकर, शीतल मन्द मन्द चलती पवन के झोंको का आनंद ले रहीं थीं। शीतल पवन कमला के मुखड़े को छूकर गुजरती तब कमला के मुखड़े की आभा ही बदल जाती और शीतल पावन की ठंडक कमला के मुखड़े से होकर जिस्म के कोने कोने तक पहुंच कर शीतला का अनुभव करवा देती। जिसका असर यूं होता कि कमला के जिस्म का रोआ रोआ ठंडक सिहरन से खड़ी हों जाती। जिस्म में ठंड का असर बढ़ते ही कमला मुंडी अन्दर कर लेता कुछ देर रूककर फ़िर से सिर को बहार निकल लेती। बीबी का यूं बरताव करना रघु को मुस्कराने पर मजबूर कर रहा था। रघु का मुस्कान बनावटी नहीं था। अपितु बीबी को खुश देखकर खुले मन से रघु मुस्कुराकर उसकी खुशी में सारिक हों रहा था। कुछ देर तक कमला को उसके मन का करने दिया फिर कमला को रोकते हुए रघु बोला...कमला इन अल्हड़ हवाओं के साथ बहुत मस्ती कर लिया अब अन्दर बैठ जाओ और खिड़की का शीशा चढ़ा दो वरना ज्यादा ठंड लग गईं तो बीमार पड़ जाओगी।
"नहीं (मस्ती भरे भव से मुस्कुराते हुए कमला आगे बोली) बिल्कुल नहीं, इन हवाओं की रवानी, मेरे मन को एक सुहानी अहसास दिला रहीं हैं इसलिए आप मुझे इन अल्हड़ हवाओं के साथ मस्ती करने से न रोकिए।"
"कमला (मंद मंद मुस्कुराते हुए एक नज़र कमला की ओर देखा फ़िर रघु आगे बोला) तुम्हें इन अल्हड़ शरद हवाओं के साथ मस्ती करते हुए देखकर मुझे भी अच्छा लग रहा हैं साथ ही तुम्हारी फिक्र भी हो रहा हैं। तुम अभी इन शरद हवाओ की आदी नहीं हुई हों पहले आदी हो लो फ़िर जितनी चाहें मस्ती कर लेना मैं नहीं रोकूंगा।"
रघु का व्याकुल होना बिल्कुल उचित हैं क्योंकि कमला सर्द पहाड़ी वातावरण में रहने की आदि नहीं हुई थीं। अभी अभी कमला दार्जलिंग की सर्द वादी में आई है और दूसरी बार महल के चार दिवारी से बहार निकली हैं वो भी रात्रि में, रात्रि के वक्त पहाड़ी वादी दिन से ज्यादा सर्द हों जाता हैं। ऐसे में सर्द का गलत प्रभाव पड़ सकता हैं। यूं टोका जाना कमला को शायद अच्छा नहीं लगा इसलिए कमला अनिच्छा से कार की खिड़की बंद करते हुए शिकयत भरे लहजे में बोली...आप न बहुत बुरे हों मुझे घूमने लाना ही था तो दिन में लेकर आते, रात्रि में इस पहाड़ी वादी का मैं क्या लुप्त लूं कुछ दिख तो रहा नहीं सिर्फ काली सिहाई रात्रि और दूर टिमटिमाती रोशनी के अलावा कुछ दिख ही नहीं रहा।
रघु…अभी अभी खुश थी मस्ती कर रहीं थीं। अचानक क्या हों गया जो शिकायत करने लग गईं। कहीं मेरा टोकना तुम्हें बुरा तो नहीं लग गया।
कमला सिर हिलाकर हां बोला तो रघु मुस्कुराते हुए बोला... कमला तुम्हे बुरा लगा है तो मुझे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता मुझे बस तुम्हारी फिक्र हैं मैं नहीं चाहता कि तुम बीमार पड़ जाओ और रहीं बात तुम्हारी इच्छा की तो इस इतवार को तो नहीं ला पाऊंगा मगर उसके बाद वाले इतवार को पक्का तुम्हे दिन में घूमने ले आऊंगा तब जितना मन करे पहाड़ी वादी का लुप्त लेना ठीक हैं न!
कमला कुछ भी बोल पाती उससे पहले ही रघु ने कार रोक दिया। कार रोकने का कारण कमला जानना चाहा तो रघु कुछ न बोलकर कमला के साइड रोड पार देखने को कहा।
रघु की कार इस वक्त सब्जी बाजार से होकर गुजर रहा था। रास्ते के किनारे सड़ी हुई सब्जियों का ढेर लगा हुआ था एक बुजुर्ग महिला उन्हीं सड़ी हुई सब्जियों में से बीन बीन कर थोड़ा बहुत खाने लायक सब्जियों को थैली में रख रहीं थीं।
सामने दिख रहा दृश्य जिसे देख निष्ठुर से भी निष्ठुर हृदय वाले इंसान का हृदय एक पल के लिऐ पिघल जायेगा। तो भाला कमला का हृदय कैसे न पिघलता वो तो कोमल हृदय वाली नारी हैं। एक नज़र दयनीय भाव से पति को देखा फ़िर तुरंत कार का दरवाजा खोले बहार निकली और वृद्ध महिला की ओर चल दिया।
दूसरी ओर से रघु भी निकला उसका भी हृदय सामने के दृश्य को देखकर पिघला हुआ था और दयनीय भाव चहरे पर लिऐ कमला के पीछे पीछे चल दिया। कुछ ही कदम की दूरी तय कर दोनों वृद्ध महिला के पास पहुंचे और "बूढ़ी मां बूढ़ी मां" बोलकर कई आवाजे दिया पर शायद वृद्ध महिला का ध्यान अपने काम में होने के कारण सुन नहीं पाई या फ़िर उम्र की पराकष्ठा थीं जिसने कानों के सुनने की क्षमता को कमज़ोर कर दिया। बरहाल जब कोई प्रतिक्रिया वृद्ध महिला की ओर से नहीं मिला तब कमला दो कदम बढ़कर थोड़ा सा झुका और कांधे पर हाथ रखकर कमला बोलीं... बूढ़ी मां इन सड़ी हुई सब्जियों का आप क्या करने वाली हों।
बदन पर किसी का स्पर्श और कानों के पास हुई तेज आवाज़ का कुछ असर हुआ और वृद्ध महिला धीरे धीरे पलट कर देखा मगर बोलीं कुछ नहीं बस हल्का सा मुस्कुरा दिया और रघु वृद्ध महिला की बह थामे उठाते हुए बोला...बूढ़ी मां जहां तक मैं जानता हूं आप जैसे जरूरत मन्दों की जरूरतें पूरी हों पाए इसलिए प्रत्येक माह महल से भरण पोषण की चीज़े भिजवाई जाती हैं फ़िर भी आपको इस उम्र में इतनी रात गए इन सड़ी हुए सब्जियों को बीनना पड़ रहा हैं। ऐसा क्यों? छोड़िए इन्हें।
इधर रघु की कार रूकते ही, साथ आए अंगरक्षकों की गाड़ी जो कुछ पीछे थीं। जल्दी से नज़दीक आए मगर जब तक अंगरक्षक पहुंचे तब तक रघु और कमला कार से निकल कर वृद्ध महिला के पास पहुंच चुके थे। सभी जल्दी से कार को रोककर बहार निकले फ़िर रघु और कमला के नजदीक पहुंच कर खडे हों गए। वृद्ध महिला रघु की बाते सुनकर मुस्कुरा दिया फ़िर उठ खड़ी हुई और कांपती आवाज़ में बोलीं...जिसका कोई नहीं होता अक्सर उसे पुराने समान की तरह कबाड़ में फेक दिया जाता हैं तो भाला मैं कैसे अछूता रह पाता, मेरा भी कोई नहीं हैं एक बेटा और बहु था वो एक हादसे में चल बसी एक हमसफ़र था जिसने जीवन भर साथ चलने का वादा किया था वो भी सफ़र अधूरा छोड़कर चल बसा, जब मेरा ख्याल रखने वाला कोई हैं नहीं तो लोग भी कब तक मेरी मदद करते शायद यहीं करण रहा होगा महल से भेजे जानें वाले मदद कभी मेरे पास पहुंच पाता कभी नहीं!
वृद्ध महिला की दुःख भारी छोटी सी कहानी सुनकर वहां मौजुद सभी की आंखे नम हों गई। आंखो में नमी का आना लाजमी था। पौढ अवस्था उम्र का एक ऐसा पड़ाव हैं जहां देख भाल करने वाला कोई न कोई साथ होना ही चहिए मगर वृद्ध महिला के साथ उसकी देखरेख करने वाला कोई नहीं था। शायद इसे ही किस्मत का खेल निराला कहा जाता हैं। जब सभी की आंखे नम हों गईं तो भाला रघु की आंखे नम हुए बिना कैसे रह सकता था। उसकी भी आंखे नम हो गया। सिर्फ़ आंखो में नमी ही नहीं बल्कि नमी के साथ साथ चहरे पर क्रोध की लाली भी आ गईं। जिसे काबू कर रघु बोला...बूढ़ी मां ऐसा कैसे हों सकता हैं जबकि मुनीम जी को शक्त निर्देश दिया गया था कि एक भी जरूरत मंद छूट ना पाए सभी तक जरूरत की चीज़े पहुचाई जाए फ़िर भी जरूरत की चीज़े आप तक कभी पहुंचता हैं कभी नही ये माजरा क्या हैं?
"माजरा बिल्कुल आईने की तरह साफ है। अगर मेरे पास प्रत्येक माह जरुरत की चीज़े पहुंचता तो क्या मुझे इन सड़ी हुए सब्जियों में से खाने लायक सब्जियां बीनना पड़ता"
इतना सुनते ही रघु का गुस्सा जो कुछ वक्त के लिऐ कम हुआ था वो स्वतः ही आसमान की बुलंदी पर पहुंच गया और गुस्से में गरजते हुए बोला... मुनीम जी (फ़िर रघु से कुछ ही दूर खडे साजन की और पलट कर आगे बोला) साजन कल सुबह तड़के ही मुनीम जी जिस भी हाल में हों उसी हाल में मुझे महल में चहिए।
अचनक रघु की गुस्से में गर्जना युक्त आवाज में बोलने से सुनसान वादी के साथ साथ वहां खडे सभी दहल उठे फ़िर साजन धीमी आवाज़ में बोला...जैसा आपने कहा बिल्कुल वैसा ही होगा।
कमला जो रघु के पास ही खड़ी थी।रघु के दहाड़ते ही कांप गई और भय का भाव चहरे पर लिऐ रघु का हाथ अपने दोनो हाथों से थाम लिया। किसी का स्पर्श महसूस करते ही रघु तुरंत पलटा, बीबी का डरा सहमा हुआ चेहरा देखते ही रघु का गुस्सा एक पल में उड़ान छू हों गया और रघु बजुर्ग महिला की ओर देखकर बोला…बूढ़ी मां अब से आपको कोई भी दिक्कत नहीं होगा। इस बात का मैं विशेष ख्याल रखूंगा अब आप हमारे साथ चलिए आपको आपके घर छोड़कर हम भी घर के लिऐ निकलते हैं।
इतना बोलकर रघु बजुर्ग महिला का हाथ थामे कार की ओर चल दिया। कार के पास पहुंचकर बुजुर्ग महिला थोड़ी आनाकानी करने के बाद कार में बैठ गई फ़िर बुजुर्ग महिला रास्ता बताती गई और रघु उस रस्ते पर कार चलाता गया। करीब करीब दस से पंद्रह मिनट कार चलाने के बाद बुजुर्ग महिला के कहने पर एक टूटी फूटी झोपड़ी के पास रघु ने कार रोका फ़िर भोजन की थैली लेकर बुजुर्ग महिला के साथ झोपड़ी के अंदर चली गईं।
अति निर्धनता की कहानी झोपड़ी खुद में समेटे हुई थी। जिसे देखकर कमला और रघु एक बार फ़िर पिगल गया। भोजन की थैली बुजुर्ग महिला को दिया। कुछ औपचारिक बाते किया फ़िर बुजुर्ग महिला से विदा लेकर घर को चल दिया।
बुजुर्ग महिला की दयनीय अवस्था पर संवेदना जताते हुए तरह तरह की चर्चाएं करते हुए महल पहुंच गए। भीतर जानें से पहले एक बार फ़िर से रघु ने साजन को आगाह कर दिया कि सुबह तड़के मुनीम उसे महल में चहिए फिर दोनों अंदर चले गए।
सुरभि प्रतीक्षा करते करते वहीं सो गईं थीं। आहट पाते ही "कौन हैं,कौन हैं।" कहते हुए जग गईं।
"मां मैं और कमला हूं।" जबाव देखकर रघु और कमला सुरभि के पास पहुंच गए फ़िर कमला बोलीं… मम्मी जी आप अभी तक नहीं सोए।
रघु... मां….
"पूछने के लिए सवाल मेरे पास भी बहुत से हैं। (जम्हाई लेते हुए सुरभि आगे बोलीं) रात बहुत हो गई हैं इसलिए अभी जाकर सो जाओ।"
सुरभि ने टोक दिया अब कोई भी सावल पूछना व्यर्थ है। इसलिए दोनों चुप चाप खिसक लिया और सुरभि मंद मंद मुस्कुराते हुए अपने कमरे में चली गई।
"लौट आएं दोनों" कमरे में प्रवेश करते ही सुरभि को इन शब्दों का सामना करना पड़ा।
सुरभि... हां आ गए। आप सोए नहीं अभी तक।
राजेन्द्र... क्यों बेटे और बहू से सिर्फ तुम्हें स्नेह हैं? अच्छा छोड़ो! एक दूसरे से सवाल जबाव फ़िर कभी कर लेंगे अभी सो लिया जाए। मुझे बहुत नींद आ रहीं हैं।
किसको किससे कितना स्नेह हैं? एक छोटा सा सावल पूछने पर सुरभि एक मीठी वाद विवाद करने का मनसा बना चुकी थीं मगर राजेन्द्र की सो जानें की बात कहते ही वाद विवाद की मनसा छोड़कर खुद भी सोने की तैयारी करने लग गईं।
आगे जारी रहेगा...
Thank you jiBahut hi badhiya update diya hai Destiny bhai....
Nice and beautiful update....
रघुंका कमला के प्रति अटूट प्रेम और कमला की अल्हड़ता दोनो ही लाजवाब है। उस वृद्ध स्त्री की कहानी ने जहां सबको विचलित कर दिया वही महल की सहायता उस महिला तक ना पहुंचने की बात ने रघु को क्रोधित कर दिया और अब मुनीम की खैर नहीं। एक ही शाम में कमला ने रघु को दो बार क्रोधित होते देखा भी और अपने स्पर्श से संभाला भी। बहुत ही सुंदर अपडेट