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Update - 55
दलाल से क्या बाते हुआ था ये जानने की इच्छा विनती पूर्वक जाहिर करने के बाद सुकन्या एक टक नज़र से पति को देख रहीं थीं। आंखो से निवेदन का रस टपक रहा था वहीं लवों पर मंद मंद मुस्कान तैर रहीं थीं। पत्नी के मुस्कुराहट का जवाब रावण भी मुस्कुरा कर दे रहा था। कुछ वक्त तक कमरे में सन्नाटा छाया रहा फ़िर रावण ने बोलना शुरु किया…
रावण... दलाल से मिले हुए दो दिन बीत गया घर में होने वाले पार्टी की दावत देने गया था। तुम तो जानती हों दलाल बैंगलोर दामिनी भाभी से मिलने गया था जहां उसने कुछ ऐसी वैसी हरकतें कर दिया था जिस कारण उसकी हालत फटीचर जैसा हों गया था। जब मैं उसके घर गया तब देखा दलाल के हाथ और पैरों से प्लास्टर हट चुका था। उसे देखकर मैं बोला…
शॉर्ट फ्लैश बैक स्टार्ट
रावण...दामिनी भाभी के दिए बोझ से आखिरकर तुझे छुटकारा मिल ही गया ही ही ही...।
"हां (एक गहरी स्वास लिया फिर कुछ सोचते हुए दलाल आगे बोला) हां बोझ से तो छुटकारा मिल गया मगर इस उम्र में हड्डियां टूटने का दर्द बड़ा गहरा होता हैं। जिसका बोझ अब उम्र बार ढोना पड़ेगा खैर ये छोड़ तू बता आज दिन में कैसे मेरी याद आ गई और उससे बडी बात इतने दिन था कहा एक तू ही तो मेरा दोस्त हैं जो इस विकट परस्थिति में मेरा हाल चाल लेता है मगर आज कल तू भी मुंह मोड़ रहा हैं बडी अच्छी दोस्ती निभा रहा हैं।
रावण…मैं इस वक्त किस परिस्थिति से गुजर रहा हूं उससे तू अनजान नहीं हैं फिर भी ऐसी बाते कर रहा हैं। मेरे दिन में आने का करण हैं घर में होने वाला पार्टी जिसकी सारी जिम्मेदारी मेरे कंधे पर हैं और तू मेरा दोस्त होने के नाते तुझे दावत देने आया हूं।
"तू (हैरानी का भाव जताते हुए दलाल आगे बोला) तू, जिसने शादी तुड़वाने के लिऐ न जानें कितनी षड्यंत्र किया अब वो ख़ुद पुरे शहर को भोज देने की तैयारी कर रहा हैं अरे भोज देने की तैयारी करना छोड़ ओर ये सोच आगे क्या करना हैं वरना हम खाली हाथ रह जायेंगे।"
रावण... दलाल इस वक्त मैं उस विषय पर कुछ सोचने या करने की परिस्थिति में नहीं हूं। तू तो जनता है सुकन्या मुझसे रूठी हुई हैं। जब तक सुकन्या को माना नहीं लेता तब तक मैं चुप रहना ही बेहतर समझ रहा हूं।
दलाल...मेरे दोस्त रूठना माना तो चलता रहेगा मगर सोच जरा एक बार मौका हाथ से निकल गया तो हाथ मलने के अलावा कुछ नहीं बचेगा।
रावण... हाथ तो मुझे वैसे भी मलना पड़ेगा सुकन्या जैसा व्यवहार मेरे साथ कर रहीं हैं ऐसा चलता रहा तो सुकन्या मुझसे दूर, बहुत दूर हों जायेगी। मैं ऐसा हरगिज होने नहीं दे सकता हूं।
दलाल...रावण तू रहेगा नीरा मूर्ख ही इतना भी नहीं समझता जब बेशुमार दौलत पास होगा तब अपने ही नहीं बल्कि जो पराए हैं वो भी तेरे कंधे से कंधा मिलाए तेरे आगे पीछे घूमते रहेंगे इसलिए मेरा कहना मन सुकन्या जैसी हैं उसे वैसे ही रहने दे तू सिर्फ अपने मकसद पर ध्यान दें।
दलाल के इतना बोलते ही वहां सन्नाटा छा गया। दीवार पर टंगी घड़ी के टिक टिक करती सुई के आवाज और सांसों के चलायमान रहने के आवाज के अलावा कुछ हों रहा था तो वहां हैं गहन विचार जो रावण मन ही मन कर रहा था जिसकी लकीरे रावण के चहरे पर अंकित दिख रहा था। गहन विचारों में घिरा रावण को देखकर दलाल के ललाट पर अजीब सा चमक और लवों पर, किसी किले को फतह करने की विजई मुस्कान तैर गया। कुछ वक्त की खामोशी को तोड़ते हुए दलाल बोला...रावण ठीक से विचार कर मेरा कहा हुआ एक एक बात सच हैं। चल माना की तू सुकन्या को लेकर ज्यादा परेशान हैं तो उस पर मैं बस इतना कहूंगा सुकन्या को उसके हाल पर छोड़ दे जिस दिन तू गुप्त संपत्ति हासिल कर लेगा उस दिन सुकन्या खुद वा खुद रास्ते पर आ जायेगी नहीं आया तो कोई बात नहीं, ढूंढ लेना किसी ओर को, सुकन्या जैसी औरत की दुनिया में कमी नहीं हैं।
इतना सुनने के बाद रावण पूरी तरह चौक हों गया उसका एक एक अंग मानों काम से मुंह मोड़ लिया रावण स्तब्ध बैठा रहा और शून्य में तकता रहा जहां उसे सिर्फ़ भवन के छत के अलावा कुछ न दिख रहा था। बरहाल कुछ देर की खामोशी को तोड़ते हुए रावण बोला...सुकन्या जैसी सिर्फ एक ही हैं उसके टक्कर का कोई ओर नहीं, मैं अभी चलता हूं और हा तेरे बातों पर मैं विचार अवश्य करूंगा जो भी निर्णय लूंगा तुझे अगाह कर दूंगा।
इतना बोलकर रावण चल दिया आया तो था परेशानी का हाल ढूंढने मगर उसके हाव भव बता रहा था उसे हल तो मिला नहीं बल्कि उसकी परेशानी और बढ़ गया।
शॉर्ट फ्लैश बैक एंड
पति की एक एक बात ध्यान से सुकन्या सुन रहीं थीं। अंत की बाते सुनने के बाद सुकन्या मन में बोली…कितना कमीना भाई हैं मुझसे ही मेरा घर तुड़वाने की कोशिशें करते रहे जब मैंने मुंह मोड़ लिया तो मुझे ही मेरे पति के जीवन से दूर करने की बात कह रहें हैं मगर अब ऐसा नहीं होगा अब होगा वहीं जो मैं चाहूंगी।
रावण…सुकन्या सभी बाते तुमने सुन लिया यहीं बाते हैं जिस कारण मैं खुद में उलझा हुआ हूं। समझ नहीं आ रहा , अब तुम ही बताओं मैं क्या करूं?
"ummm (कुछ सोचने का ढोंग करके सुकन्या आगे बोली) इसमें उलझना कैसा साफ साफ दिख रहा हैं दलाल ने जो कहा सही कहा आप ने गुप्त संपत्ति हासिल कर लिया तो आप की गिनती दुनिया में बेशुमार दौलत रखने वालों में होने लगेगा फ़िर मेरे जैसी औरतें आपके आगे पीछे गुमेगी उन्हीं में से किसी को अपने लिऐ चुन लेना क्योंकि बेशुमार दौलत हासिल करने का जो रास्ता अपने चुना हैं उसपे मैं आपके साथ नहीं चलने वाली न ही आपका साथ देने वाली तो जाहिर सी बात हैं हम दोनों का रास्ता अलग अलग हैं इसलिए आपको दलाल की बात मानकर मेरा साथ छोड़ देना चहिए।
इतना बोलकर सुकन्या झट से बिस्तर से उठ गई। बाते कहने के दौरान सुकन्या के आंखे छलक आई थीं उसे पोछते हुए विस्तार से दूर जानें लगीं तो सुकन्या का हाथ थामे रोकते हुए रावण बोला…सुकन्या कहा जा रहीं हों?
सुकन्या...जाना कहा हैं नहीं जानती मगर इतना जानती हूं की जब मैं आपका साथ नहीं दे सकती न आपके साथ बुरे मार्ग पर चल सकती हूं। तो आगे जाकर हमे अलग होना ही हैं इसलिए मैं सोच रहीं हूं जो काम बाद में हो, उसे अभी कर लिया जाएं क्योंकि आप ने अपना रास्ता चुन लिया आपको उसी पर चलना हैं।
इतना बोलकर सुकन्या फफक फफक कर रो दिया। सुकन्या का रोना बनावटी नहीं था उसके आंखो से बहते आंसू का एक एक कतरा उसके दिल का हाल बयां कर रहा था। उसके पास हैं ही क्या, पति इकलौता बेटा और पति का परिवार सिर्फ यहीं कुछ गिने चुने लोग हैं जिसे वो हक से अपना कह सकती है वरना जिनसे उसका खून का रिश्ता है वो तो सुकन्या को कभी अपना माना ही नहीं सिर्फ एक मौहरे की तरह इस्तेमाल किया था। शायद सुकन्या का मानो दशा रावण समझ गया था। तभी तो झट से विस्तर से उठ खड़ा हुआ ओर सुकन्या को बाहों में भर लिया कुछ वक्त तक बाहों में जकड़े रखने के बाद सुकन्या के सिर थामकर चहरे को ऊपर किया फ़िर माथे पर एक चुम्बन अंकित कर बोला... वाहा सुकन्या तुमने कमाल कर दिया मैं अभी तक ये फैसला नहीं कर पाया की मुझे करना क्या चहिए और तुम (कुछ देर रुककर आगे बोला) तुमने पल भर में फैसला ले लिया और मुझे छोड़कर जा रहीं हों। तुम बडी मतलबी हों जन्मों जन्मांतर साथ निभाने का वादा किया और एक जन्म भी पुरा नहीं हों पाया उससे पहले ही साथ छोड़कर जा रहीं हों, जा भी ऐसे वक्त रहीं हो जब मैं दो रहें पर खड़ा हूं।
सुकन्या... अभी फैसला नहीं लिया तो क्या हुआ आगे चलकर आप मुझे छोड़ने का फैसला ले ही लेंगे क्योंकि मैं आपके और आपके सपने की बीच आ रही हूं। जितना मैं आपको जानती हूं आप आपने सपने को पाने के लिऐ कुछ भी कर सकते हों इसलिए आप मुझे छोड़ने में एक पल का समय व्यर्थ नहीं करेंगे।
रावण... सुकन्या मुझे तुम्हारी यहीं बात सबसे बुरा लगता हैं। आगे क्या होगा इसकी गणना तुम चुटकियों में कर लेती हों फ़िर उसी आधार पर फैसला कर लेती हों। बीते दिनों भी तुमने ऐसा ही किया अचानक एक फैसला सुना दिया और जब मैंने नहीं माना तो तुम मेरे साथ अजनबियों जैसा सलूक करने लग गईं। तुम्हें अंदाजा भी नहीं होगा की तुम्हरा मेरे साथ अजनबी जैसा सलूक करना मुझे कितना चोट पहुंचाता था।
बातों के दौरान सुकन्या का जितना ध्यान पति के बातों पर था उतना ही ध्यान से पति की आंखों में देख रहीं थीं और समझने की कोशिश कर रहीं थीं कि रावण के मुंह से निकाला हुआ शब्द आंखो की भाषा से मेल खाता हैं की नहीं, सुकन्या कितनी समझ पाई ये तो सुकन्या ही जानती हैं मगर पति के बाते खत्म होते ही सुकन्या मन ही मन बोलीं... आंखों की भाषा सब कह देती हैं। मुझे अंदाजा था मेरा आपके साथ अजनबी जैसा सलूक करना आपको कितना तकलीफ दे रहा था फिर भी मैं जान बूझकर ऐसा करती रहीं, आखिर करती भी क्यों न मैंने आपको सुधारने का प्राण जो लिया था।
कुछ वक्त का सन्नाटा छाया रहा दोनों सिर्फ और सिर्फ एक दूसरे के आंखो में देख रहें थे इसके अलावा ओर कुछ नहीं हों रहा था। सन्नाटे को भंग करते हुए रावण बोला...सुकन्या कुछ तो बालों चुप क्यों हों।
सुकन्या... क्या बोलूं आप मेरी सुने वाले नहीं सुनना तो आपको दलाल की हैं जो आपका दोस्त और रहनुमा हैं जो आपको सही रास्ता दिखाता हैं। इसलिए मेरे बोलने का कोई फायदा नहीं हैं।
रावण... दलाल की सुनना होता तो मैं यूं उलझा हुआ नहीं रहता उसी वक्त कोई न कोई फैसला ले लिया होता अब तुम ही मेरी आखरी उम्मीद हों तुम ही कोई रास्ता बताओं जिससे की मैं इन उलझनों से ख़ुद को निकल पाऊं।
सुकन्या... मेरे बताएं रास्ते पर आप चल नहीं पाएंगे क्योंकि बीते दिनों एक रास्ता बताया था जिसका नतीजा आप देख ही चुके हों।
रावण... हां देख चुका हूं मैं दुबारा उस नतीजे को भुगतना नहीं चाहता इसलिए तुम जो रास्ता बताओगी मैं उस पर चलने को तैयार हूं।
सुकन्या...ठीक से सोच लिजिए क्योंकि जो रास्ता मैं आपको बताऊंगी उसपे चलने से हों सकता हैं आपको मुझे या आपके सपने में से किसी एक का चुनाव करना पड़ सकता हैं। मुझे चुना तो मेरे साथ साथ पुरा परिवार रहेगा और सपने को चुना तो हों सकता हैं मुझे और पुरा परिवार ही खो दो।
"एक का चुनाव (रुककर कुछ सोचते हुए रावण आगे बोला) मुझे किसी एक का चुनाव करना पड़ा तो मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हरा चुनाव करूंगा क्योंकि सपने तो बनते और टूटते रहते हैं पर तुम जैसा जीवन साथी नसीब वाले को मिलता हैं।
इतना बोलकर रावण ने एक लंबी गहरी सांस लिया और ऐसे छोड़ा मानों किसी बहुत भारी बोझ से मुक्ति पा लिया हों और सुकन्या मंद मंद मुस्कुराते हुए पति को देखा फिर बोला…आपने मुझे चुना हैं तो आपको मेरे बताएं रास्ते पर चलना होगा क्या आप ऐसा कर पाएंगे?
रावण... बिल्कुल चल पाऊंगा तुम बेझिजक बताओं मैं तुम्हरा हाथ थामे तुम्हारे पीछे पीछे चल पडूंगा।
सुकन्या... ठीक हैं फिर आज और अभी से आपको दलाल से सभी रिश्ते तोड़ना होगा न कभी उससे मिलेंगे न कभी बात करेंगे सिर्फ इतना ही नहीं आप एक हुनरमंद वकील ढूंढेंगे और उसे हमारे पारिवारिक वकील नियुक्त करेंगे।
"क्या (अचंभित होते हुए रावण आगे बोला) सुकन्या तुम क्या कह रहीं हों पागल बगल तो न हों गई दलाल मेरा अच्छा दोस्त हैं जब भी मैं परेशानी में फसता हूं वो ही मुझे बहार निकलता हैं और तुम उससे ही रिश्ता तोड़ने को कह रहें हों।"
सुकन्या... ऐसा हैं तो आप उसकी बातों से इतना उलझ क्यों गए थे। मुझे लगता हैं दलाल आपको कभी सही रास्ता बताया ही नहीं वो सिर्फ़ और सिर्फ़ अपना मतलब आपसे निकलना चाहता है आगर ऐसा नहीं हैं तो जब अपने उसे बताया कि मैं किस करण आपसे रूठा हुआ हूं तब उसे ये कहना चहिए था कि सपना टूटता है तो टूट जाए पर तू सुकन्या का कहना मन ले मगर उसने ये कहा की बीबी तो आती जाती रहेंगी तू बस सपने को पाने पर जोर दे।
इतना सुनते ही रावण सोच में पड गया दलाल से हुई हालही की बातों पर गौर से सोचने लग गया सिर्फ़ हालही की बाते नहीं जब जब दलाल से किसी भी विषय पर चर्चा करने गया था उन सभी बातों को एक एक कर याद करने लग गया। याद करते करतें अचानक रावण के चहरे का भाव बदला और सुकन्या के सिर पर हाथ रखकर बोला... सुकन्या मैं तुम्हारी कसम खाकर कहता हूं दलाल ने आगर मेरे बारे मे कुछ भी गलत सोचा तो जिस दिन मुझे पाता चलेगा वो दिन दलाल के जीवन का आखरी दिन होगा।
इतना सुनते ही सुकन्या अजीब सी मुस्कान से मुस्कुराया और मन में बोला... दलाल तू उल्टी गिनती शुरू कर दे क्योंकि देर सवेर मेरे पति को पाता चल ही जानी हैं कि तेरे मन में क्या हैं जिस दिन पता चला वो दिन सच में तेरे जीवन का आखरी दिन होगा क्योंकि मेरा पति कभी मेरी झूठी कसम नहीं लेते।
फिर रावण से बोला…तो आप मेरा कहना मानने को तैयार हैं।
रावण... हां तैयार हूं इसके अलावा कुछ ओर करना हैं।
सुकन्या... अभी आप इतना ही करे बाकी का समय आने पर बता दूंगी।
रावण... ठीक हैं फिर विस्तार पर चलो और अधूरा काम पुरा करते हैं।
इतना बोलकर रावण मुस्कुरा दिया और सुकन्या को साथ लिऐ विस्तार पर चला गया। विस्तार पर जाते ही रावण सुकन्या पर टूट पड़ा कुछ ही वक्त में कामुक आहे और बेड के चरमराने की आवाज़ से कमरा गूंज उठा कुछ वक्त तक दोनों काम लीला में लिप्त रहें फिर शांत होकर एक दुसरे के बाहों में सो गए।
आगे जारी रहेगा….
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