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Romance ajanabi hamasafar -rishton ka gathabandhan

Naik

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Update - 42


घर से कुल देवी मंदिर तक, सफर के दौरान सुकन्या बिना एक शब्द बोले चुप चाप बैठी रहीं। रावण कई बार बात करना चाह पर सुकन्या ने साफ दर्शा दिया रावण उसके लिए एक अनजान शख्स हैं इसलिए उससे बात करने में कोई दिलचस्पी नहीं हैं। पत्नि का पराए जैसा सलूक करना रावण को अंदर ही अन्दर शूल जैसा चुभा सिर्फ इतना ही नहीं उसे लगा सुकन्या उससे धीरे धीरे दूर ओर दूर होता जा रहा हैं।

रावण खुद को माजधार में फसा उस नाविक जैसा समझने लगा जिसे किनारे तक पहुंचना हैं परंतु कैसे पहुंचे कोई साधन नजर नहीं आ रहा था। इसलिए गुमसुम सा कार के दूसरे कोने में बैठा रहा।

दूसरे कारों में सभी बातों में मशगूल होकर कुलदेवी मंदिर पहुंच गए। एक एक करके सभी कारों से उतरे और मंदिर के प्रांगण में पहुंचे। राजेंद्र को सापरिवार आया देखकर पुरोहित जी बोले... राजा जी पूजा के मूहर्त का समय शुरू होने में अभी कुछ क्षण बाकी हैं तब तक आप सभी हाथ मुंह धोकर आए।

पुरोहित के कहते ही सभी एक एक कर मंदिर के बहार बने सरोवर के पास गए। शुद्ध शीतल जल से तारों ताजा होकर वापस मंदिर प्रांगण में आ गए। सभी को देखकर पुरोहित जी बोले…पहले नव दंपति बैठें फिर उनके पीछे बाकी बचे विवाहित जोड़े में बैठ जाए एवम जो अविवाहित हैं वो चाहें तो पूजा में बैठ सकते हैं।

पुरोहित के कहे अनुसार सभी बैठ गए। सुकन्या को पास सटकर बैठता देख रावण में कुछ आस जगा शायद पूजा संपन्न होने के बाद सुकन्या उससे बात कर ले। क्या होगा ये तो प्रभु ही जानें।

सभी के बैठते ही पूजा विधि शुरू हों गया। जिन जिन विधि से कुल देवी की पूजा नव दंपत्ति दुबारा करवाया जाना राज परिवार का रीत था। वो सभी विधि पुरोहित जी ने रघु और कमला से करवाया। लम्बे समय तक पूजा चलता रहा अंत में हवन आदि होने के बाद पूजा संपन्न हुआ फ़िर पुरोहित जी बोले...राजा जी सभी पूजा विधि संपन्न हो गया हैं अब आप सभी मां चंडी से अपने इच्छा अनुसार मनोकामना पूर्ण होने की आशीष मांगे।

पुरोहित जी के कहने पर सभी एक एक कर देवी प्रतिमा के सामने शीश झुकाकर नमन किया फिर अशीष मांगा।

कमला... हे देवी मुझे आर्शीवाद करें मै पत्नी धर्म को निभा पाऊं, एक अच्छा बहु होने का फर्ज निभाकर सभी का मन जय कर पाऊं, मेरे नए बने परिवार में सभी सुखमय से रहे हमेशा सभी तरक्की के रह पर आगे बढ़ते रहें।

रघु...हे देवी मुझे आर्शीवाद दे मैं पति धर्म के मार्ग से कभी न डगमगाऊ। एक अच्छा पति, भाई, बेटा एक अच्छा इंसान बनकर रह सकूं मेरे परिवार में सभी हसीं ख़ुशी और सुखमाय से रहे।

सुरभि... हे देवी मैं आप'से क्या मांगू बिना मांगे ही अपने सब दे दिया एक अच्छा बेटा दिया एक अच्छी सर्व गुण संपन्न बहु दिया बस आप मेरे परिवार पर कृपा दृष्टि बनाए रखना।

राजेंद्र... हे देवी आप'का दिया सब कुछ मेरे पास हैं फ़िर भी एक विनती है मेरे पूर्वजों का दिया कार्य भार वहन कर पाऊं ऐसा सामर्थ मुझे देना और मेरे परिवार में सभी को साकुशल रखना।

सुकन्या...हे देवी आप खुद जानते हैं अपने मेरे भाग्य में क्या लिखा बस इतनी कृपा करना इससे बूरा ओर मेरे साथ न हों मेरे पति ही मेरा सब कुछ हैं। उन्हें सद्बुद्धि देना वो बूरा मार्ग छोड़कर सत मार्ग पर चले मेरा एक मात्र बेटा अपश्यु कभी अपने बाप जैसा न बनें और मेरे परिवार में कभी किसी के साथ अहित न हों पाए। मैं ऐसा आशीर्वाद आप'से मांगती हूं।

रावण...हे देवी मेरे अपनो और सपनों इन दोनों में से मैं किसे चुनूं कोई रह नजर नहीं आ रहा। मुझे कोई रह दिखाओ बस इतना ही आप'से विनती हैं।

अपश्यु... हे देवी मैंने बहुत से पाप कर्म किया हैं जिसकी शायद ही मुझे माफी मिल पाए फ़िर भी आप मुझे माफ कर देना। मैं बूरा मार्ग छोड़कर सत मार्ग पर चलने की शपथ लिया हैं। जानता हूं मेरा चुना सत मार्ग बहुत कठिन हैं। बस इतनी कृपा करना मैं इस मार्ग पर बिना डिगे चल पाऊं। बस मेरी इतनी सी अर्जी मन लेना।

पुष्पा... हे देवी मेरे बुद्धू अशीष ips बन जाए इतनी कृपा उस पर कर देना बाकि मुझे अपने लिए कुछ नहीं चाहिए। मेरा परिवार और होने वाला नया परिवार हमेशा खुश रहें। बस इतनी कृपा मुझ पर कर देना।

सभी के मन ने जो चाहा वैसा ही आर्शीवाद देवी से मांगा फ़िर उठकर पुरोहित को नमन किया। इसके बाद जो छोटे थे वे अपने से बड़ों का पैर छूकर आशीर्वाद लिया फिर मंदिर प्रांगण से बहार आ गए।

मुंशी अपने बीबी और बेटे के साथ पधारे अभी कुछ ही देर हुआ था। वे आकर देखा पूजा लगभग समाप्त होने वाला था। इसलिए अंदर न जाकर बहार ही रूक गए। मुंशी को देर से आया देखकर राजेंद्र थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए बोला... मुंशी तू आया ही क्यों जब पूजा में नहीं बैठ पाया तो तेरे आने का फायदा ही क्या हुआ इससे अच्छा तो तू नहीं आता।

मुंशी राजेंद्र की बात सुनकर थोड़ा सा मुस्कुराया फ़िर राजेंद्र के पास आते हुए बोला…अरे राजा जी आप इतना गुस्सा क्यों हों रहें हों मैंने कहा था आऊंगा तो आ पहुंचा बस देर से पहुंचा इसकी वजह हमारी कार हैं जो बीच रस्ते में खबर हों गया। कार ठीक करवाने में देर हों गया इसलिए देर से पहुंचा इसमें मेरा कोई गलती नहीं हैं जो भी हुआ सारा दोष कार का हैं।

राजेंद्र... देर से आया तो ख़ुद के बचाव में कोई न कोई बहाना बनाना ही था। गलती खुद किया ओर दोष कार को दे रहा हैं।

पति का बचाव करते हुए उर्वशी टपक से बीच में बोला पड़ी... राजा जी ये सही कह रहे है हमारी कार सच में खराब हों गईं थी। अब आप ही बताएं बिना कार सही करवाए हम कैसे पहुंच पाते।

उर्वशी को पति का पक्ष लेता देखाकर सुरभि तंज भरे लहजे में बोली... हां हां तू तो बोलेगी ही मुंशी भाई साहब तेरा पति हैं पति के बचाव करना बनता हैं।

उर्वशी... मैं सच बोल रहीं ही आप'को यकीन नहीं हों रहा हैं तो, रमन की तरफ देखते हुए बोली... रमन से पूछ कर देखो रमन तो आप'से झूठ नहीं बोलेगा।

राजेंद्र ... अच्छा अच्छा मानता हूं आप और मंशी सही बोल रहे हों अब चलो चलकर कुछ दान पुण्य का काम कर लिया जाएं।

मुंशी…राजा जी जब आ ही गए है तो पहले देवी के दर्शन कर लूं फिर दान पुण्य भी कर लुंगा।

मुंशी की बात सुनकर सभी मंद मंद मुस्कुरा दिए फिर मुंशी परिवार सहित मंदिर के अंदर गए। देवी के सामने शीश नवाकर नमन किया फिर बहार आ गए। जब तक मुंशी बहार नहीं आया तब तक राजेंद्र परिवार सहित खड़ा रहा मुंशी के आते ही सभी साथ में मंदिर के सामने बनी पंडाल में पहुंचे।

राजेंद्र ने ऐलान करवा दिया था कि मंदिर में सभी जरूरत मंद लोगों की जरूरत पूरा किया जाएगा। ये सूचना सुनकर जरूरत मंद लोगों का जमघट पंडाल में लग गया।


राजेंद्र को सा परिवार पंडाल में पधारते ही पंडाल में मौजूद सभी लोग राजेंद्र की जय जयकर करने लग गए। उन्हीं में से कई लोग जो रावण के जुल्मों का शिकार हुआ था। रावण को राजेंद्र के साथ देकर अपने अंदर जमे घृणा को शब्दों के रूप में बहार निकाला।

"आ गया कमीना दिखावा करने अभी दान करेगा बाद में अपने चमचों को भेजकर हमसे छीन लेगा।"

"पापी तू कितना भी देवी के दरबार में माथा टेक ले तेरा पाप कर्म तेरा पीछा कभी नहीं छोड़ने वाला हमारे मन में जितना सम्मन राजा जी के लिए है उतना ही घृणा तेरे लिए हैं।"

राजेंद्र की जय जयकार करने के बाद भीड़ शांत हुआ तब राजेंद्र बोला… मैं और मेरे परिवार हमेशा आप सभी के भाले के लिए सोचा है। दुःख सुख में आप के साथ खड़े रहें हैं। जितना मन सम्मन मैं आप'को देता हूं उतना ही मन सम्मन से आप सभी ने मुझे नवाजा हैं। बहुत समय बाद हमारे महल में खुशियां आया है। हमारे परिवार में एक सदस्य की बड़ोत्री मेरे पुत्र बधु के रूप में हुआ हैं। मेरे परिवार में आई इस खुशी के पल को आप सभी के साथ बाटने आया हूं। थोड़ी ही देर में मेरा पुत्र और पुत्रबधु आप सभी के जरूरत के मुताबिक आप सभी को कुछ दान देंगे आप सभी से निवेदन है आप सभी उस दान को सहस्र स्वीकार करें।

"जी राजा" "जी राजी" की गूंज पूरे वादी में जोर सोर से गूंज उठा। कमला इन गुजती आवाजों को सुनकर पास खड़ा रघु का हाथ कसकर पकड़ लिया जीवन में पहली बार इतने लोगों को एक साथ किसी की जय जयकर करते हुए सन रहीं थीं। वो तय नहीं कर पा रहीं थीं किस तरह का रिएक्ट करें जब समझ नहीं आया तो रघु का हाथ कसकर पकड़ लिया।

कमला का चेहरा घूंघट से ढका हुआ था इसलिए रघु, कमला का चेहरा न देख पाया रघु को लगा कमला शायद इतने लोगों की आवाज़ एक साथ सुनकर डर गई होगी तो कमला के कंधे पर हाथ रखकर बोला...कमला क्या हुआ? डर लग रहा है जो इतना कसके मेरा हाथ पकड़ लिया।

कमला... जी डर नहीं रहीं हूं पहली बार इतने लोगों की आवाज़ एक साथ सूना तो समझ नहीं पाई कैसा रिएक्ट करू।

रघु...कमला अब आदत डाल लो क्योंकि आगे ओर न जानें कितनी बार तुम्हें ऐसी भीड़ की आवाज़ें सुनने को मिलेगा।

कमला सिर्फ हां में मुंडी हिला दिया। इससे आगे कुछ नहीं कहा। पर रघु का हाथ नहीं छोड़ा तब रघु अपना दूसरा हाथ भी कमला के हाथ पर रख दिया। पति का दूसरे हाथ का स्पर्श पाकर कमला घूंघट के अंदर से सिर ऊपर उठकर रघु को देखा और मंद मंद मुस्कुरा दिया।

राजेंद्र के कहने पर दान लेने आये हुए सभी जनता कतार में खड़े हों गए। एक एक कर आते गए। रघु और कमला के हाथों से दान लेते गए। दुआएं दिया ओर अपने अपने रस्ते चले गए।

भीड़ बहुत ज्यादा था सिर्फ कमला और रघु दान करते रहे तो समय बहुत लग जाता इसलिए राजेंद्र के कहने पर बाकि बचे सभी दोनों का हाथ बटाने लग गए।

इतने लोगों के एक साथ दान करने से भिड़ जल्दी जल्दी काम होने लग गया। उन्हीं भीड़ में एक बुजुर्ग महिला लाठी का सहारा लेकर आगे बढ़ रहीं थीं। बुर्जुग महिला जिस कतार में थीं अपश्यु उसी कतार से आ रहे लोगों को दान की चीजे दे रहा था। आगे आते आते बुजुर्ग महिला अपश्यु को देखकर रूक गई।

शायद बुर्जुग महिला अपश्यु के हाथों दान नहीं लेना चहती थी या फ़िर अपश्यु से डर रहीं थीं जो भी हों बुर्जुग महिला आगे बढ़ने से कतरा रहीं थीं। इसलिए थम सी गई। कतार में जल्दी आगे आने की कोशिश के चलते पीछे धक्का मुक्की हुआ। जिसकी चपेट में बुर्जुग महिला आ गईं। खुद को संभाल न पाने की वजह से बुर्जुग महिला सामने की ओर गिर गई।

बुर्जुग महिला को गिरते देखकर। हाथ में उठाया हुआ सामान अपश्यु नीचे रख दिया और तुरंत बुर्जुग महिला के पास पहुंच गया। सहारा देकर बुजुर्ग महिला को उठना चाहा तो बुर्जुग महिला अपश्यु का हाथ हटाकर करकस स्वर में बोली...मैं इतनी भी बेसहारा नहीं हुई हूं कि तुझ जैसा पापी का सहारा लेना पड़े छोड़ मुझे papiiii।

बुर्जुग महिला की दो टूक बाते सूनकर अपश्यु कुछ क्षण के लिए थम सा गया। उसे समझ नहीं आया की बजुर्ग महिला ने उससे ऐसा कहा तो कहा क्यों? जानने की जिज्ञासा मन में लेकर अपश्यु बोला... बूढ़ी मां मैं जनता हूं मैंने बहुत से पाप कर्म किया हैं। पर आप'के साथ तो ऐसा कुछ भी न किया फिर अपने मुझे ऐसा क्यों कहा?

बुजुर्ग महिला एक गहरी सांस लिया फ़िर बोला... पापी तूने पाप कर्म किया वो याद हैं। जिनके साथ किया वो भी शायद याद हैं पर जो तेरे दुष्कर्मों की शिकार बनी उनके परिवार वाले तूझे याद नहीं, तेरे दुष्कर्मों की शिकार बनी एक अबला मेरी एक मात्र सहारा थीं। जिसे तूने मुझसे छीन लिया मुझे बेसहारा कर दिया अब आया हैं दिखावे की सहारा देने छोड़ मुझे तेरे सहारे की जरूरत नहीं हैं।

बुर्जुग महिला के इतना बोलने से अपश्यु बुर्जुग महिला को छोड़कर बेजान मूरत सा बैठ गया। ख़ुद के किए कर्मों को एक बार फ़िर से याद करने लग गया।

कतार में खडा एक बंदा निकलकर आया। बुर्जुग महिला को सहारा देकर उठने में मदद किया। बुर्जुग महिला लाठी का सहारा लेकर धीरे धीर आगे बढ़ गए। अपश्यु बे जान मूरत सा वहीं बैठा रहा।

बुर्जुग महिला धीरे धीरे चलते हुए रघु और कमला के पास पहुंचा। एक वृद्ध महिला को आया देखकर रघु ने पहले उनको दान दिया। दान लेने के बाद बुर्जुग महिला हाथ ऊपर उठाकर आर्शीवाद दिया फिर धीरे धीरे अपने रस्ते चली गईं।

अजीब सा मंजर बन गया जहां एक ही परिवार के दो बेटे के प्रति एक बुर्जुग महिला का मनो भाव अलग अलग हैं। एक के लिए प्यार और आर्शीवाद दूसरे के लिए सिर्फ और सिर्फ घृणा ओर कुछ नहीं!

अपश्यु कुछ वक्त तक मूरत जैसा बैठा रहा फ़िर उठकर वहां से थोड़ा दूर जाकर खडा हों गया। सोचा था दान पुण्य करके पाप का बोझ थोड़ा कम करेगा पर हुआ उल्टा एक बुर्जुग की बातों ने उसे एक बार फ़िर से उसके किए दुष्कर्मों को याद करवा दिया। अपने किए पाप कर्मों का बोझ अपश्यु को इतना भारी लगा की उससे वहा खडा न रहा गया। इसलिए वहा से दूर खडा होकर सिर्फ देखना ही बेहतर समझा।

जब तक लोग आते रहें तब तक सभी दान करते रहें। दान लेकर सभी रघु और कमला को अशीष देकर चले गए। दान पुण्य का समापन होते होते अंधेरा हों गया। सभी थक भी चुके थे इसलिए ओर ज्यादा देर करने से घर वापस लौटना बेहतर समझा। सभी जैसे जैसे आए वैसे ही घर को चल दिया। सभी के चेहरे पर थकान दिख रहा था पर उसमे भी एक सुखद अनुभूति नजर आ रहा था। इन्ही में सिर्फ अपश्यु ही एक ऐसा था जिसके चेहरे पर थकान के साथ साथ दुनिया भार का दर्द और उदासी झलक रहा था।



आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे यहां तक साथ बने रहने के लिय बहुत बहुत शुक्रिया। 🙏🙏🙏🙏
Badhiya shaandaar update bhai
Sabne aapne aapne dil ki baat kahi kul devi ab kis kiski baat poori hoti h
Apasyu jitni baar sochta h uska beeta huwa kal uske saamne na aaye lekin har baar aa hi jata h ab dekhna yeh h ki Apasyu kab tak control ker pata h or ager ker paya tabhi woh sahi rasta chal payaega
Baherhal dekhte h aage kia hota h
 

akashx11

Maximusx11
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Shandaar zabardast updates se bhari huye hai yea kahani aur kahani ki kirdaro ko kafe khubsurati kai saath bayan karte aap bhai :applause::applause::applause:

Amazing writing skill:superb:
 
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बहुत ही बेहतरीन लिख रहे हैं आप बिगूल भाई । साफ सुथरी फेमिली ड्रामा जैसा ।
अपस्यू के लिए दुख होता है पर किया क्या जा सकता है । आप के बुरे कर्म इतनी आसानी से भी आपका साया नहीं छोड़ते । जो कर्म किए हैं उसका प्रायश्चित तो करना ही होगा । और , उसके लिए सबसे बेहतर यही होगा कि उसके चलते जिन जिन लोगों को चोट पहुंची है , उनके जख्मों पर वो मलहम लगाए ।
जब तक उन लोगों का आशीर्वाद नहीं मिलेगा तब तक उसका प्रायश्चित करने का सफर जारी ही रहेगा ।

कुल देवी के मंदिर में सभी ने देवी से मन्नतें मांगी । और यह भी देखा कि प्रत्येक महिलाओं ने अपने लिए नहीं बल्कि अपने प्रियजनों के लिए मन्नतें मांगी थी । यही तो खासियत है हमारी भारतीय महिलाओं में , वो अपने से ज्यादा अपने प्रिय जनों की फ़िक्र करती है और इसी लिए वो पुजनीय है ।

सभी अपडेट्स बहुत बहुत बढ़िया थे ।
आउटस्टैंडिंग एंड जगमग जगमग ।
 

Destiny

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Badhiya shaandaar update bhai
Sabne aapne aapne dil ki baat kahi kul devi ab kis kiski baat poori hoti h
Apasyu jitni baar sochta h uska beeta huwa kal uske saamne na aaye lekin har baar aa hi jata h ab dekhna yeh h ki Apasyu kab tak control ker pata h or ager ker paya tabhi woh sahi rasta chal payaega
Baherhal dekhte h aage kia hota h
Bahut bahut shukriya 🙏

Apashyu ka bita hua kaal andhere me tha ab apashyu andhere se niklkar ujale ki aor ja raha hai. To itni jaldi kaha bite kal ka andhera uska pichha chodega.
 

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बहुत ही बेहतरीन लिख रहे हैं आप बिगूल भाई । साफ सुथरी फेमिली ड्रामा जैसा ।
अपस्यू के लिए दुख होता है पर किया क्या जा सकता है । आप के बुरे कर्म इतनी आसानी से भी आपका साया नहीं छोड़ते । जो कर्म किए हैं उसका प्रायश्चित तो करना ही होगा । और , उसके लिए सबसे बेहतर यही होगा कि उसके चलते जिन जिन लोगों को चोट पहुंची है , उनके जख्मों पर वो मलहम लगाए ।
जब तक उन लोगों का आशीर्वाद नहीं मिलेगा तब तक उसका प्रायश्चित करने का सफर जारी ही रहेगा ।

कुल देवी के मंदिर में सभी ने देवी से मन्नतें मांगी । और यह भी देखा कि प्रत्येक महिलाओं ने अपने लिए नहीं बल्कि अपने प्रियजनों के लिए मन्नतें मांगी थी । यही तो खासियत है हमारी भारतीय महिलाओं में , वो अपने से ज्यादा अपने प्रिय जनों की फ़िक्र करती है और इसी लिए वो पुजनीय है ।

सभी अपडेट्स बहुत बहुत बढ़िया थे ।
आउटस्टैंडिंग एंड जगमग जगमग ।

बहुत बहुत शुक्रिया 🙏

बूरा कर्म करना आसान है पर बुरे कर्मों से पीछा छूटा पाना उतना आसान नही होता जितना हम सोचते हैं। अभी अपश्यु ने सिर्फ बुरा कर्म करना छोड़ा हैं। प्रश्चित का कोई मार्ग नहीं चुना अपश्यु कौन सा मार्ग प्रस्चित का चुनता है ये समय आने पार पाता चलेगा।
 
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Update - 43


अलग अलग भाव चेहरे पर लिए सभी घर पहुंच चुके थे। कुछ देर रेस्ट करने के बाद मुंशी जाने की अनुमति मांगा तो राजेंद्र बोला...अभी कहीं जानें की जरूरत नहीं हैं यहीं रूक जा सुबह चला जाना।

मुंशी...राजा जी ज्यादा रात नहीं हुआ हैं आराम से पहूंच जाऊंगा सुबह ऑफिस भी जाना हैं।

राजेंद्र डांटते हुए बोला…तू एक बार में सुनता क्यों नहीं बहुत ढींट हो गया हैं। खाना बन गया है चुप चाप खाना खाकर रात यहीं बीता ले सुबह यहां से ऑफिस चला जाना।

राजेंद्र की बातों का जवाब मुंशी दे पाता उसे पहले पुष्पा टपक से बोल पड़ी...kakuuuu...।

पुष्पा की बातों को बीच में काटकर मुंशी बोला…मैं समझ गया तुम क्या बोलना चाहती हों। बुढ़ापे में मुझे तुम्हारी दी हुई सजा नहीं भुगतना हैं इसलिए तुम्हारा कहना मन कर रात यहीं रूक जाता हूं।

पुष्पा…बिना जिद्द किए आप पापा की बात मान लेते तो मुझे बीच में न बोलना पड़ता। आजकल आप कुछ ज्यादा ही जिद्द करने लग गए हों शायद आप भुल गए हों जिद्द सिर्फ महारानी पुष्पा ही karegiiiii...। करेंगी को थोड़ा लम्बा खींचा फ़िर कुछ सोचकर बोली... नहीं नहीं सिर्फ महारानी पुष्पा नहीं भाभी भी चाहें तो जिद्द कर सकती हैं। फिर कमला की ओर देखकर बोली... भाभी आप चाहो तो जिद्द कर सकती हों पर बाकी घर वालों के सामने। महारानी पुष्पा के सामने आप'की कोई जिद्द नहीं चलेगी समझें bahuraniiiiii...।

पुष्पा की बाते सुनकर सभी खिलखिलाकर हंस दिए। पल भार में सभी का थका हुआ चेहरा खिल उठा।

"Oooo महारानी पुष्पा, बहु की जिद्द सबके सामने चलेगी। तूझे भी बहु की जिद्द मानना पड़ेगा नहीं मानी toooo...।" इतना बोलकर सुरभि अपने जगह से उठकर पुष्पा के पास आने लगी।

मां को आता देख पुष्पा तुरंत अपने जगह से उठकर राजेंद्र के पीछे जाकर खडी हों गई फिर राजेंद्र का सिर जितना खुद की तरफ घुमा सकती थी घुमाकर बोली...पापा आप मां को कुछ कहते क्यों नहीं जब देखो मेरे कान के पीछे पड़ी रहती हैं। मेरी कान खीच खीचकर yeeeee इतना लंबा कर दिया।

एक बार फ़िर सभी खिलखिलाकर हंस दिए। कुछ देर सभी तल से ताल मिलाकर हंसते रहें फिर कमला बोली...ननद रानी तुम्हारे अकेले के जिद्द करने से सभी को दिन में तारे नज़र आ जाते हैं। मैं भी तुम्हारे साथ साथ जिद्द करने लग गई तो सभी का हाल और बूरा हों जायेगा। इसलिए आप अकेले ही जिद्द करों।

पुष्पा मुंह भिचकते हुए बोली...umhuuu भाभी आप मुझे छेड़ रहीं हों महारानी पुष्पा को, भाभी हों इसलिए बच गई नहीं तो अभी के अभी आप'से उठक बैठक करवा देता।

पुष्पा की बाते सुनकर और बोलने की अदा देखकर अपश्यु भी हसने से खुद को रोक नहीं पाया। वो भी सभी के साथ हसने लग गया। कुछ देर हंसने के बाद अपश्यु बोला... ओ महारानी सभी को सजा दो मुझे कोई हर्ज नहीं हैं पर भाभी को सजा देने की सोचना भी मत नहीं तो...।

अपश्यु के बातों को बीच में कटते हुए पुष्पा बोली…लो भाभी आप'की साईड लेने के लिए गूंगा भी बोल पड़ा। वैसे भईया लगता हैं आज आप कुछ ज्यादा ही थक गए हों।

पुष्पा की बातो का जवाब कोई दे पता उससे पहले सभी को रोकते हुए पुष्पा बोली…बस बाते बहुत हों गई। आगे कोई कुछ नहीं बोलेगा महारानी पुष्पा को खाना खाना हैं बहुत जोरो की भूख लगी हैं।

इतना बोलकर पुष्पा कीचन की तरफ देखकर तेज आवाज़ में बोली... रतन दादू खाना लगाओ आप'की महारानी को बहुत जोरो कि भूख लगी हैं। साथ ही बहुत थक गई हूं आज मंदिर में किसी ने काम नहीं किया सभी काम महारानी पुष्पा से करवाया। सब के सब अलसी हैं हाथ पे हाथ धारे बैठे रहें ये नहीं की महारानी की थोड़ी मदद कर दूं।

"महारानी जी अभी खाना लगाता हूं आप हाथ मुंह धोकर आओ।" कीचन से रतन तेज आवाज में बोला।

पुष्पा...जाओ सभी जाकर हाथ मुंह धोकर आओ ज्यादा देर किया तो किसी को खाना नहीं मिलेगा। महारानी पुष्पा भी हाथ मुंह धोकर अभी आया ।

इतना बोलकर पुष्पा सरपट रूम को भाग गई। पुष्पा को भागते देखकर एक बार फ़िर से सभी हंस दिए फिर एक एक कर अपने अपने रूम में हाथ मुंह धोने चले गए। कुछ ही वक्त में सभी हाथ मुंह धोकर आ गए। हंसी ठिठौली करते हुए सभी ने खाना खा लिया। खाने से निपटकर मुंशी, रमन और उर्वशी गेस्ट रूम में चले गए। बाकी बचे लोग अपने अपने रूम में चले गए।

सभी पर थकान इतना हावी हों चका था की लेटते ही सभी को नींद ने अपने अघोष में ले लिया।

सुबह सभी समय से उठे फिर एक एक करके नाश्ते के टेबल पर मिले नाश्ता किया फिर उठ रहें थें की राजेंद्र बोला...मुंशी अगले हफ्ते इतवार को घर पर एक ग्रैंड पार्टी रखा हैं। तूझे पहले ही कह दे रहा हूं बार बार न कहना पड़े।

दोस्त ने कहा तो उसे टाला भी नहीं जा सकता साथ ही एक राजा की तरह मुंशी, राजेंद्र का सम्मान करता हैं। इसलिए सिर्फ मुस्कुराकर हां में सिर हिला दिया। मुंशी से हां सुनने के बाद राजेंद्र ने रावण से बोला... रावण अबकी बार जो करना हैं तूझे ही करना हैं पार्टी का सारा जिम्मा तू ने अपने कंधे पर लिया हैं। जो करना हैं जैसे करना हैं कर बस इतना ध्यान रखना हमारे पुरखों की बनाई शान में कोई आंच न आए।

रावण...दादाभाई आप निश्चिंत रहें। पार्टी इतना शानदार होगा की सभी दार्जलिंग बसी देखते रह जाएंगे। सिर्फ वाहा वाही के आलावा उनके मुंह से कोई दूसरा लब्ज़ नहीं निकलेगा।

राजेंद्र...वाहा वाही तो लोग करेगें ही पर इस बात का ध्यान रखना जो भी पार्टी में सामिल होने आए चाहें वो नीचे तबके का क्यों ना हों किसी का निरादर नहीं होना चाहिए।

रावण…आप निश्चिंत रहें किसी का निरादर नहीं होगा इसका मैं विशेष ध्यान रखूंगा।

रावण का यूं भाई के हां में हां मिलना सुकन्या को खटका तो मन ही मन बोली... इनके मान में क्या चल रहा हैं? कहीं ये पार्टी के नाम पर कोई साज़िश तो न रचने वाले मुझे इन पर नज़र रखना होगा।

सभी अपने अपने बाते कहने में लगे रहें अंत में मूंशी परिवार सहित चला गया। रावण और रघु भी ऑफिस चले गए। राजेंद्र उठकर रूम में गया तो सुरभि भी पीछे पीछे चल दिया।

इधर कलकत्ता में मनोरमा और महेश नाश्ता कर रहें थें। बेटी को विदा हुए लगभग चार दिन हों गए थे। जब भी दोनों खाने को बैठते उन्हें एक शक्श की कमी खालता मनोरमा बार बार बगल की कुर्सी को देख रहीं थीं। जैसे उसे लग रहा था बगल में उसकी बेटी बैठी हैं। जब उधर को देखती तो वहां कुर्सी खाली दिखता।

मनोरमा को यूं बार बार बगल झांकते देखकर महेश बोला... मनोरमा क्या हुआ यूं ताका झाकी क्यों कर रहीं हों। कुछ चाहिए तो बोलों मैं ला देता हूं।

महेश ने बस इतना ही बोला था की मनोरमा फूट फुट कर रोने लग गईं। महेश को समझते देर नहीं लगा की मनोरमा बगल में किसे ढूंढ रही थीं। महेश उठकर मनोरमा के पास आया और बोला... मनोरमा तुम अपने बगल वाली कुर्सी पर जिसके बैठें होने की उम्मीद कर रहीं हों वो अब अपने घर चली गई हैं….।

महेश पूरा बोल ही नहीं पाया अधूरा बोलकर महेश भी फूट फुटकर रो दिया। मनोरमा रूवासा आवाज़ में बोली... मुझे ये घर कमला के बिना काटने को दौड़ती हैं। वक्त वेवक्त उसकी अटखेलियां करना उसकी शरारते याद आती हैं। क्या हम कमला के साथ जाकर नहीं रह सकतें। वो ही तो हमारा इकलौती सहारा हैं।

महेश का हाल भी दूजा नहीं था। उसे भी बेटी की कमी खल रहा था। जिसे बिना देखे एक पल चैन से नहीं रह पाता था। वो चार दिन से बेटी को बिना देखे सिर्फ उसकी आवाज़ सुनकर मन को सांत्वना दे रहा था।

मनरोमा के कहने से महेश को भी लगा की मनोरमा सही कहा रहीं हैं। उसे अपने बेटी के पास जाकर रहना चाहिए पर समाज के कुछ कायदे कानून हैं। उसका ध्यान आते ही महेश बोला...मनोरमा मैं भी चाहता हूं की हम बेटी के साथ रहें पर समाज हमे इसकी इजाजत नहीं देती। मां बाप के लिए बेटी के घर का अन्ना खाने पर मनाही हैं। तो हम कैसे बेटी के साथ रह सकतें हैं।

मनोरमा…समाज के बनाए ये कायदे कानून आप'को ठीक लगाता हैं। हमने ही बेटी को इस धरती पर लाया लालन पालन करके बड़ा किया। हमारे कन्या दान करने के करण ही वो आज किसी के घर की बहु बनी। हमने इतना कुछ किया फिर भी समाज कहता हैं। हम अपने बेटी के साथ नहीं रह सकतें उसके घर का अन्य नहीं खा सकतें। ऐसा क्यों कहते हैं?

महेश के पास इस सवाल का कोई वाजिब जवाब नहीं था। होता भी कैसे क्योंकि एक बेटी के, मां बाप के सवाल का किसी के पास कोई जब नहीं हैं। ये तो सिर्फ और सिर्फ समाज की बनावटी उसूल हैं। किसी ने कह दिया बस बिना किसी बहस के मानते चले आए। क्यों कहा उसके तह तक पहुंचना किसी ने नहीं चाह।

बरहाल दोनों के पास इस सवाल का कोई ज़बाब नहीं था मनोरमा ने पूछ तो लिया पर वो भी जानती थीं। उसके पूछे गए सवाल का महेश तो किया किसी के पास कोई जवाब नहीं हैं। इसलिए दोनों चुप रहें।

दोनों की चुप्पी और घर में फैली सन्नाटे को दरवाजे की ठाक ठाक ने भंग किया। खुद को संभाला बहते अंशु को पोछा फिर महेश जाकर दरवाजा खोला। आए हुए शक्श को देखकर महेश बोला... अरे शालू बेटी आओ आओ अंदर आओ।

"अंकल आज फ़िर आप कमला को याद करके रो रहे थें।" इतना बोलकर शालू अंदर आई फिर मनोरमा के पास जाकर बोली... आंटी माना की मैं आप'की सगी बेटी नहीं हूं पर कमला की सहेली होने के नाते आप'की बेटी जैसी हूं। आप'को कहा था जब भी कमला की याद आए मुझे या चंचल को बुला लिया करों पर आप हों की सुनती नहीं।

मनोरमा... किसने कहा तुम मेरी बेटी नही हों बेटी ही हों बस तुम्हारा बाप कुछ न कहें इसलिए नहीं बुलाती हूं। तुम तो जानती हों जब कमला थीं तब भी तुम्हें तुम्हारा बाप आने नहीं देती थीं। अब तो कमला की शादी हों गईं हैं। अब न जानें तुम्हें कितनी बाते सुनने को मिलती होगी।

शालु...आंटी पापा तो कहते ही रहते हैं मुझे आदत पड़ गई हैं। अच्छा ये बताओं नाश्ते में किया बनाया बहुत जोरों की भूख लगा हैं।

"तुम बैठो मैं तुम्हारे लिए नाश्ता लेकर आती हूं" इतना कहाकर मनोरमा कीचन से नाश्ता लाकर दिया। शालु घर से नाश्ता करके आई थीं। सिर्फ और सिर्फ मनोरमा का मन बहलाने के लिए कहा था। तो मनोरमा के नाश्ता लाते हो शालू नाश्ता करने लग गई।

अभी अभी मनोरमा और महेश को बेटी की कमी खल रही थीं। दोनों बेटी को याद करके रो रहें थें। शालु के आते ही पल भार में माहौल बादल गया। दोनों की उदासी उड़ान छूं हों गया। शालु नाश्ता करते हुए तरह तरह की बाते करके दोनों का मन बहला रही थीं।

तीनों बाते करने में लगे रहें। टेलीफोन ने बजकर उनके बातों में खलल डाल दिया। महेश जाकर फोन को रिसीव किया। दूसरे ओर से कुछ बोला गया ज़बाब में महेश बोला…राजेंद्र बाबू हम कुशल मंगल हैं। आप और आपका परिवार कैसे हैं?

राजेंद्र... प्रभु की कृपा से हम सभी खुशहाल हैं। अगले हफ़्ते इतवार को हमने एक पार्टी रखीं हैं। आप और समधन जी सादर आमंत्रित हैं। आप आयेंगे तो मैं और मेरे परिवार की खुशी ओर बढ़ जाएंगी।

महेश...अपने मुझे आमंत्रित किया इसके लिए आप'को बहुत बहुत शुक्रिया। किन्तु आप ये भली भांति जानते है शादी के बाद मां बाप का,बेटी के घर का अन्य जल न गृहण करने का रिवाज हैं। तो अब आप ही बताइए मैं क्या करूं।

राजेंद्र...महेश बाबू मैं भी एक बेटी का बाप हूं। मेरे लिए भी ये रिवाज़ हैं। परंतु मेरे लिए मेरी बेटी की ख़ुशी सबसे ज्यादा मायने रखता है। जहां तक मैं जानता हूं आप'के लिए भी आप'की बेटी की ख़ुशी सर्वपरी हैं। अब आप खुद ही सोचकर फैसला लीजिए की आप'के लिए बेटी की खुशी प्यारी हैं या फ़िर समाज के बनाए ये रिवाज़ जो निराधार हैं।

महेश...राजेंद्र बाबू बेटी के घर अन्न जल ना खाने का रिवाज़ आगर बनाया हैं तो कुछ सोच समझकर ही बनाया होगा। ये निराधार तो नहीं हों सकता। इसलिए….।

महेश के बातों को बीच में काटकर राजेंद्र बोला... महेश बाबू मेरे लिए बेटी के घर अन्न जल न खाने वाला रिवाज हमेशा निराधार रहेगा। मैं चाहूंगा आप भी इस रिवाज़ को ज्यादा तवज्जों न दे। आप खुद ही सोचिए आप के आने से बहु को कितनी खुशी होगी। मैं सिर्फ बहु को खुश देखना चाहता हूं। इसलिए आप दोनों को आना ही होगा।

आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।

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Lib am

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अलग अलग भाव चेहरे पर लिए सभी घर पहुंच चुके थे। कुछ देर रेस्ट करने के बाद मुंशी जाने की अनुमति मांगा तो राजेंद्र बोला...अभी कहीं जानें की जरूरत नहीं हैं यहीं रूक जा सुबह चला जाना।

मुंशी...राजा जी ज्यादा रात नहीं हुआ हैं आराम से पहूंच जाऊंगा सुबह ऑफिस भी जाना हैं।

राजेंद्र डांटते हुए बोला…तू एक बार में सुनता क्यों नहीं बहुत ढींट हो गया हैं। खाना बन गया है चुप चाप खाना खाकर रात यहीं बीता ले सुबह यहां से ऑफिस चला जाना।

राजेंद्र की बातों का जवाब मुंशी दे पाता उसे पहले पुष्पा टपक से बोल पड़ी...kakuuuu...।

पुष्पा की बातों को बीच में काटकर मुंशी बोला…मैं समझ गया तुम क्या बोलना चाहती हों। बुढ़ापे में मुझे तुम्हारी दी हुई सजा नहीं भुगतना हैं इसलिए तुम्हारा कहना मन कर रात यहीं रूक जाता हूं।

पुष्पा…बिना जिद्द किए आप पापा की बात मान लेते तो मुझे बीच में न बोलना पड़ता। आजकल आप कुछ ज्यादा ही जिद्द करने लग गए हों शायद आप भुल गए हों जिद्द सिर्फ महारानी पुष्पा ही karegiiiii...। करेंगी को थोड़ा लम्बा खींचा फ़िर कुछ सोचकर बोली... नहीं नहीं सिर्फ महारानी पुष्पा नहीं भाभी भी चाहें तो जिद्द कर सकती हैं। फिर कमला की ओर देखकर बोली... भाभी आप चाहो तो जिद्द कर सकती हों पर बाकी घर वालों के सामने। महारानी पुष्पा के सामने आप'की कोई जिद्द नहीं चलेगी समझें bahuraniiiiii...।

पुष्पा की बाते सुनकर सभी खिलखिलाकर हंस दिए। पल भार में सभी का थका हुआ चेहरा खिल उठा।

"Oooo महारानी पुष्पा, बहु की जिद्द सबके सामने चलेगी। तूझे भी बहु की जिद्द मानना पड़ेगा नहीं मानी toooo...।" इतना बोलकर सुरभि अपने जगह से उठकर पुष्पा के पास आने लगी।

मां को आता देख पुष्पा तुरंत अपने जगह से उठकर राजेंद्र के पीछे जाकर खडी हों गई फिर राजेंद्र का सिर जितना खुद की तरफ घुमा सकती थी घुमाकर बोली...पापा आप मां को कुछ कहते क्यों नहीं जब देखो मेरे कान के पीछे पड़ी रहती हैं। मेरी कान खीच खीचकर yeeeee इतना लंबा कर दिया।

एक बार फ़िर सभी खिलखिलाकर हंस दिए। कुछ देर सभी तल से ताल मिलाकर हंसते रहें फिर कमला बोली...ननद रानी तुम्हारे अकेले के जिद्द करने से सभी को दिन में तारे नज़र आ जाते हैं। मैं भी तुम्हारे साथ साथ जिद्द करने लग गई तो सभी का हाल और बूरा हों जायेगा। इसलिए आप अकेले ही जिद्द करों।

पुष्पा मुंह भिचकते हुए बोली...umhuuu भाभी आप मुझे छेड़ रहीं हों महारानी पुष्पा को, भाभी हों इसलिए बच गई नहीं तो अभी के अभी आप'से उठक बैठक करवा देता।

पुष्पा की बाते सुनकर और बोलने की अदा देखकर अपश्यु भी हसने से खुद को रोक नहीं पाया। वो भी सभी के साथ हसने लग गया। कुछ देर हंसने के बाद अपश्यु बोला... ओ महारानी सभी को सजा दो मुझे कोई हर्ज नहीं हैं पर भाभी को सजा देने की सोचना भी मत नहीं तो...।

अपश्यु के बातों को बीच में कटते हुए पुष्पा बोली…लो भाभी आप'की साईड लेने के लिए गूंगा भी बोल पड़ा। वैसे भईया लगता हैं आज आप कुछ ज्यादा ही थक गए हों।

पुष्पा की बातो का जवाब कोई दे पता उससे पहले सभी को रोकते हुए पुष्पा बोली…बस बाते बहुत हों गई। आगे कोई कुछ नहीं बोलेगा महारानी पुष्पा को खाना खाना हैं बहुत जोरो की भूख लगी हैं।

इतना बोलकर पुष्पा कीचन की तरफ देखकर तेज आवाज़ में बोली... रतन दादू खाना लगाओ आप'की महारानी को बहुत जोरो कि भूख लगी हैं। साथ ही बहुत थक गई हूं आज मंदिर में किसी ने काम नहीं किया सभी काम महारानी पुष्पा से करवाया। सब के सब अलसी हैं हाथ पे हाथ धारे बैठे रहें ये नहीं की महारानी की थोड़ी मदद कर दूं।

"महारानी जी अभी खाना लगाता हूं आप हाथ मुंह धोकर आओ।" कीचन से रतन तेज आवाज में बोला।

पुष्पा...जाओ सभी जाकर हाथ मुंह धोकर आओ ज्यादा देर किया तो किसी को खाना नहीं मिलेगा। महारानी पुष्पा भी हाथ मुंह धोकर अभी आया ।

इतना बोलकर पुष्पा सरपट रूम को भाग गई। पुष्पा को भागते देखकर एक बार फ़िर से सभी हंस दिए फिर एक एक कर अपने अपने रूम में हाथ मुंह धोने चले गए। कुछ ही वक्त में सभी हाथ मुंह धोकर आ गए। हंसी ठिठौली करते हुए सभी ने खाना खा लिया। खाने से निपटकर मुंशी, रमन और उर्वशी गेस्ट रूम में चले गए। बाकी बचे लोग अपने अपने रूम में चले गए।

सभी पर थकान इतना हावी हों चका था की लेटते ही सभी को नींद ने अपने अघोष में ले लिया।

सुबह सभी समय से उठे फिर एक एक करके नाश्ते के टेबल पर मिले नाश्ता किया फिर उठ रहें थें की राजेंद्र बोला...मुंशी अगले हफ्ते इतवार को घर पर एक ग्रैंड पार्टी रखा हैं। तूझे पहले ही कह दे रहा हूं बार बार न कहना पड़े।

दोस्त ने कहा तो उसे टाला भी नहीं जा सकता साथ ही एक राजा की तरह मुंशी, राजेंद्र का सम्मान करता हैं। इसलिए सिर्फ मुस्कुराकर हां में सिर हिला दिया। मुंशी से हां सुनने के बाद राजेंद्र ने रावण से बोला... रावण अबकी बार जो करना हैं तूझे ही करना हैं पार्टी का सारा जिम्मा तू ने अपने कंधे पर लिया हैं। जो करना हैं जैसे करना हैं कर बस इतना ध्यान रखना हमारे पुरखों की बनाई शान में कोई आंच न आए।

रावण...दादाभाई आप निश्चिंत रहें। पार्टी इतना शानदार होगा की सभी दार्जलिंग बसी देखते रह जाएंगे। सिर्फ वाहा वाही के आलावा उनके मुंह से कोई दूसरा लब्ज़ नहीं निकलेगा।

राजेंद्र...वाहा वाही तो लोग करेगें ही पर इस बात का ध्यान रखना जो भी पार्टी में सामिल होने आए चाहें वो नीचे तबके का क्यों ना हों किसी का निरादर नहीं होना चाहिए।

रावण…आप निश्चिंत रहें किसी का निरादर नहीं होगा इसका मैं विशेष ध्यान रखूंगा।

रावण का यूं भाई के हां में हां मिलना सुकन्या को खटका तो मन ही मन बोली... इनके मान में क्या चल रहा हैं? कहीं ये पार्टी के नाम पर कोई साज़िश तो न रचने वाले मुझे इन पर नज़र रखना होगा।

सभी अपने अपने बाते कहने में लगे रहें अंत में मूंशी परिवार सहित चला गया। रावण और रघु भी ऑफिस चले गए। राजेंद्र उठकर रूम में गया तो सुरभि भी पीछे पीछे चल दिया।

इधर कलकत्ता में मनोरमा और महेश नाश्ता कर रहें थें। बेटी को विदा हुए लगभग चार दिन हों गए थे। जब भी दोनों खाने को बैठते उन्हें एक शक्श की कमी खालता मनोरमा बार बार बगल की कुर्सी को देख रहीं थीं। जैसे उसे लग रहा था बगल में उसकी बेटी बैठी हैं। जब उधर को देखती तो वहां कुर्सी खाली दिखता।

मनोरमा को यूं बार बार बगल झांकते देखकर महेश बोला... मनोरमा क्या हुआ यूं ताका झाकी क्यों कर रहीं हों। कुछ चाहिए तो बोलों मैं ला देता हूं।

महेश ने बस इतना ही बोला था की मनोरमा फूट फुट कर रोने लग गईं। महेश को समझते देर नहीं लगा की मनोरमा बगल में किसे ढूंढ रही थीं। महेश उठकर मनोरमा के पास आया और बोला... मनोरमा तुम अपने बगल वाली कुर्सी पर जिसके बैठें होने की उम्मीद कर रहीं हों वो अब अपने घर चली गई हैं….।

महेश पूरा बोल ही नहीं पाया अधूरा बोलकर महेश भी फूट फुटकर रो दिया। मनोरमा रूवासा आवाज़ में बोली... मुझे ये घर कमला के बिना काटने को दौड़ती हैं। वक्त वेवक्त उसकी अटखेलियां करना उसकी शरारते याद आती हैं। क्या हम कमला के साथ जाकर नहीं रह सकतें। वो ही तो हमारा इकलौती सहारा हैं।

महेश का हाल भी दूजा नहीं था। उसे भी बेटी की कमी खल रहा था। जिसे बिना देखे एक पल चैन से नहीं रह पाता था। वो चार दिन से बेटी को बिना देखे सिर्फ उसकी आवाज़ सुनकर मन को सांत्वना दे रहा था।

मनरोमा के कहने से महेश को भी लगा की मनोरमा सही कहा रहीं हैं। उसे अपने बेटी के पास जाकर रहना चाहिए पर समाज के कुछ कायदे कानून हैं। उसका ध्यान आते ही महेश बोला...मनोरमा मैं भी चाहता हूं की हम बेटी के साथ रहें पर समाज हमे इसकी इजाजत नहीं देती। मां बाप के लिए बेटी के घर का अन्ना खाने पर मनाही हैं। तो हम कैसे बेटी के साथ रह सकतें हैं।

मनोरमा…समाज के बनाए ये कायदे कानून आप'को ठीक लगाता हैं। हमने ही बेटी को इस धरती पर लाया लालन पालन करके बड़ा किया। हमारे कन्या दान करने के करण ही वो आज किसी के घर की बहु बनी। हमने इतना कुछ किया फिर भी समाज कहता हैं। हम अपने बेटी के साथ नहीं रह सकतें उसके घर का अन्य नहीं खा सकतें। ऐसा क्यों कहते हैं?

महेश के पास इस सवाल का कोई वाजिब जवाब नहीं था। होता भी कैसे क्योंकि एक बेटी के, मां बाप के सवाल का किसी के पास कोई जब नहीं हैं। ये तो सिर्फ और सिर्फ समाज की बनावटी उसूल हैं। किसी ने कह दिया बस बिना किसी बहस के मानते चले आए। क्यों कहा उसके तह तक पहुंचना किसी ने नहीं चाह।

बरहाल दोनों के पास इस सवाल का कोई ज़बाब नहीं था मनोरमा ने पूछ तो लिया पर वो भी जानती थीं। उसके पूछे गए सवाल का महेश तो किया किसी के पास कोई जवाब नहीं हैं। इसलिए दोनों चुप रहें।

दोनों की चुप्पी और घर में फैली सन्नाटे को दरवाजे की ठाक ठाक ने भंग किया। खुद को संभाला बहते अंशु को पोछा फिर महेश जाकर दरवाजा खोला। आए हुए शक्श को देखकर महेश बोला... अरे शालू बेटी आओ आओ अंदर आओ।

"अंकल आज फ़िर आप कमला को याद करके रो रहे थें।" इतना बोलकर शालू अंदर आई फिर मनोरमा के पास जाकर बोली... आंटी माना की मैं आप'की सगी बेटी नहीं हूं पर कमला की सहेली होने के नाते आप'की बेटी जैसी हूं। आप'को कहा था जब भी कमला की याद आए मुझे या चंचल को बुला लिया करों पर आप हों की सुनती नहीं।

मनोरमा... किसने कहा तुम मेरी बेटी नही हों बेटी ही हों बस तुम्हारा बाप कुछ न कहें इसलिए नहीं बुलाती हूं। तुम तो जानती हों जब कमला थीं तब भी तुम्हें तुम्हारा बाप आने नहीं देती थीं। अब तो कमला की शादी हों गईं हैं। अब न जानें तुम्हें कितनी बाते सुनने को मिलती होगी।

शालु...आंटी पापा तो कहते ही रहते हैं मुझे आदत पड़ गई हैं। अच्छा ये बताओं नाश्ते में किया बनाया बहुत जोरों की भूख लगा हैं।

"तुम बैठो मैं तुम्हारे लिए नाश्ता लेकर आती हूं" इतना कहाकर मनोरमा कीचन से नाश्ता लाकर दिया। शालु घर से नाश्ता करके आई थीं। सिर्फ और सिर्फ मनोरमा का मन बहलाने के लिए कहा था। तो मनोरमा के नाश्ता लाते हो शालू नाश्ता करने लग गई।

अभी अभी मनोरमा और महेश को बेटी की कमी खल रही थीं। दोनों बेटी को याद करके रो रहें थें। शालु के आते ही पल भार में माहौल बादल गया। दोनों की उदासी उड़ान छूं हों गया। शालु नाश्ता करते हुए तरह तरह की बाते करके दोनों का मन बहला रही थीं।

तीनों बाते करने में लगे रहें। टेलीफोन ने बजकर उनके बातों में खलल डाल दिया। महेश जाकर फोन को रिसीव किया। दूसरे ओर से कुछ बोला गया ज़बाब में महेश बोला…राजेंद्र बाबू हम कुशल मंगल हैं। आप और आपका परिवार कैसे हैं?

राजेंद्र... प्रभु की कृपा से हम सभी खुशहाल हैं। अगले हफ़्ते इतवार को हमने एक पार्टी रखीं हैं। आप और समधन जी सादर आमंत्रित हैं। आप आयेंगे तो मैं और मेरे परिवार की खुशी ओर बढ़ जाएंगी।

महेश...अपने मुझे आमंत्रित किया इसके लिए आप'को बहुत बहुत शुक्रिया। किन्तु आप ये भली भांति जानते है शादी के बाद मां बाप का,बेटी के घर का अन्य जल न गृहण करने का रिवाज हैं। तो अब आप ही बताइए मैं क्या करूं।

राजेंद्र...महेश बाबू मैं भी एक बेटी का बाप हूं। मेरे लिए भी ये रिवाज़ हैं। परंतु मेरे लिए मेरी बेटी की ख़ुशी सबसे ज्यादा मायने रखता है। जहां तक मैं जानता हूं आप'के लिए भी आप'की बेटी की ख़ुशी सर्वपरी हैं। अब आप खुद ही सोचकर फैसला लीजिए की आप'के लिए बेटी की खुशी प्यारी हैं या फ़िर समाज के बनाए ये रिवाज़ जो निराधार हैं।

महेश...राजेंद्र बाबू बेटी के घर अन्न जल ना खाने का रिवाज़ आगर बनाया हैं तो कुछ सोच समझकर ही बनाया होगा। ये निराधार तो नहीं हों सकता। इसलिए….।

महेश के बातों को बीच में काटकर राजेंद्र बोला... महेश बाबू मेरे लिए बेटी के घर अन्न जल न खाने वाला रिवाज हमेशा निराधार रहेगा। मैं चाहूंगा आप भी इस रिवाज़ को ज्यादा तवज्जों न दे। आप खुद ही सोचिए आप के आने से बहु को कितनी खुशी होगी। मैं सिर्फ बहु को खुश देखना चाहता हूं। इसलिए आप दोनों को आना ही होगा।

आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।

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देर आए दुरुस्त आए, मगर आगे से देर से मत आना क्योंकि कहानी की कंटीन्यूटी और इंट्रेस्ट दोनो खतम हो जाते है। कुल मिल कर एक हंसता खेलता भावुक अपडेट जहां पुष्पा ने सबको अपने अंदाज से खुश रखा वही कमला के माता पिता ने भावुक कर दिया। रावण का कुछ समझ नहीं आ रहा है की वो सुधार रहा है या अभी भी रावण ही है। अति सुंदर अपडेट।
 
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