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Romance ajanabi hamasafar -rishton ka gathabandhan

Destiny

Will Change With Time
Prime
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Bahut hi behtareen mahoday.

Surabhi aur sukanya ab ekdam devani aur jethani kam, bahan lag rahi hain. Kamla ki pahli rasoi thi to usne bhi poore man se is parampra ko निभा रही है।।

Bahut bahut shukriya 🙏

Suknya ke man me jami maiyal jise shayad kisi ke duvara jamaya gaya tha vo jhad chuka hai to jhethani ke saath bahan jaisa saluk karna lajmi hai.
 
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Destiny

Will Change With Time
Prime
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Update - 36


अपश्यु को पूरा नाश्ता किए बिना जाते देख सुकन्या बोली…अपश्यु रुक जा बेटा कहा जा रहा हैं। अभी तो कह रहा था बाड़ी जोरों की भूख लगा हैं। दो चार निवाले में ही पेट भरा गया।

सुरभि...अपश्यु बेटा ऐसा नहीं करते खाना बीच में छोड़कर नहीं जाते आ जा नाश्ता कर ले।

अपश्यु किसी का नहीं सूना चलाता चला गया। रूम में जाकर ही रुका, अपश्यु के जाते ही कमला का चेहरा उतर गया। उसे लगा शायद अपश्यु को उसका बनाया नाश्ता पसन्द नहीं आया इसलिए नाश्ता किए बिना ही चला गया।

राजेंद्र ने एक दो निवाला ओर खाया फिर सुरभि के कान में कुछ कहा तब सुरभि "मैं अभी आई" कह कर रूम की और चल दिया। कमला को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था ये हों किया रहा हैं। सुरभि के जाते ही सुकन्या भी "मैं अभी आई कहकर" रूम की ओर चली गई। जो भी हों रहा था उसे देख कमला को लगने लगा पक्का नाश्ता बनाने में कोई कमी रह गईं होगी इसलिए एक एक कर सभी उठकर जा रहे हैं। सोचा था पाक कला में निपुर्णता दिखा सभी का मन मोह लूंगा पर हों उल्टा रहा हैं। कमला को ये भी लग रहा था पहली रसोई के परीक्षा में ही फेल हों गया न जानें आगे ओर कितनी बार प्रस्त होना पड़ेगा। पहली सुबह ही सभी के मान मे उसके प्रति गलत धारणा बन गया। अपकी बेटी को खाना अच्छे से बनाना नहीं आता। बेटी को अपने ये सिखाया था। मां के पास शिकायत गया। तो मां खुद को कितना अपमानित महसूस करेंगी ये सोच कभी भी रो दे ऐसा हाल कमला का हों गया।

बाकी बचे लोग जो बड़े चाव से खा रहें थें उन पर कमला ने कोई ध्यान ही नहीं दिया उसका ध्यान सिर्फ उठकर गए तीन ही लोगों पर था। "भाभी थोडी ओर sabjiiii" बोल पुष्पा कमला की ओर देखा कमला का रुवशा चेहरा देख बोली...भाभी क्या हुआ? अपका चेहरा क्यों उतर गया।

कमला चेहरे के भाव को सुधार बनावटी मुस्कान होटों पर सजा बोली...कुछ नहीं तुम बोलो कुछ मांग रहीं थी।

पुष्पा...मैं सब्जी मांग रहीं थीं लाओ थोडी ओर सब्जी दो और बताओ आप'का चेहरा क्यों उतरा हुआ हैं।

कमला सब्जी दे ही रही थीं तभी रघु बोला...बोलों कमला क्या हुआ?

कमला...कुछ नहीं हुआ आप बताइए नाश्ता कैसा बना हैं।

रमन...भाभी इससे क्यों पूछ रहें हों मैं बताता हूं। नाश्ता बहुत लाजवाब बना हैं आप'के हाथों में तो जादू हैं।

पुष्पा...हां भाभी नाश्ता इतना बेहतरीन बना हैं क्या ही कहूं मन कर रहा हैं सिर्फ खाता ही जाऊ खाता ही जाऊ लेकिन खा नहीं सकता क्योंकि पेट छोटा सा हैं।

पुष्पा की बाते सुन कमला के चेहरे पर मुस्कान लौट आया फिर राजेंद्र बोला...हां बेटी बहुत स्वादिष्ट नाश्ता बनाया हैं रमन सही कह रहा था तुम्हारे हाथों में जादू हैं। तुम्हारे हाथ का बना, खाने का तो मैं पहले से ही कायल हूं। रावण बहु ने इतना अच्छा खाना बनाया इस पर तू कुछ नहीं कहेगा।

रावण...दादा भाई मेरे कहने के लिए कुछ बचा ही कहा हैं आप सभी ने तो पहले से ही भर भर के बहु की तारीफ कर दिया। बहु बहुत स्वादिष्ट और लाजवाब नाश्ता बनाया।

कमला...आप सभी मेरी झूठी तारीफे कर रहे हों। नाश्ता अच्छा बना होता तो क्या मम्मी जी, छोटी मां और देवर जी उठकर जाते।

अपश्यु रूम से आ चुका था और कमला की बाते सुन लिया था तो कमला के पास गया फिर बोला... भाभी सच में आपने नाश्ता बहुत स्वादिष्ट और लाजवाब बनाया हैं। मैं आप'को देने के लिए कल एक गिफ्ट लाया था। उसे लेने गया था पक्का मां और बड़ी मां भी आप'को देने के लिए कोई गिफ्ट लेने गए होंगे। मैं अपको कल से गिफ्ट देने का मौका ढूंढ रहा था। इससे अच्छा मौका आप'को गिफ्ट देने का मुझे मिल ही नहीं सकता। लीजिए आपका गिफ्ट।

अपश्यु का दिया गिफ्ट कमला पकड़ लिया फिर बोला...thank you देवर जी।

रमन, रघु और पुष्पा प्लेट को साफा चाट कर चुका था। खली प्लेट देख अपश्यु बोला... दादा भाई आप तीनों थोडी देर मेरे लिए रूक नहीं सकते थे। मेरे बिना ही प्लेट साफ कर दिया। भाभी जल्दी से परोस दीजिए बड़ी जोरों की भूख लगा हैं।

पुष्पा...हमने थोड़े न आप'को बीच नाश्ते से उठकर जानें को कहा था। आप'को गिफ्ट देना ही था तो नाश्ते के बाद दे सकते थे।

अपश्यु…चल थोड़ा परे खिसक मुझे बैठने दे। तुझे तो गिफ्ट देना नहीं है कोई गिफ्ट लाई होगी तभी न भाभी को गिफ्ट देगी।

पुष्पा के जगह देने पर अपश्यु बैठ गया फिर पुष्पा बोली... मैं भला क्यों भाभी को गिफ्ट दूंगी मैं तो उल्टा भाभी से गिफ्ट लूंगी।

सुरभि रूम से आ रही थीं आते हुऐ बोली... पुष्पा तू बहु से गिफ्ट क्यों लेगी आज तो उल्टा तुझे बहु को गिफ्ट देना चाहिए बहु ने इतना स्वादिष्ट नाश्ता जो बनाया।

पुष्पा...मैं नहीं देने वाली कोई गिफ्ट विफ्ट पहले ही कह दे रही हूं।

सुरभि...हां किसी को तू क्यों गिफ्ट देगा। तू तो बस सजा देगा लेकिन मेरी बात कान खोलकर सुन ले मेरी बहु को तूने आगर सजा दिया तो अच्छा नहीं होगा।

पुष्पा…अच्छा ! तो फिर भाभी को कह दो मेरा कहना न टाले और कोई गलती न करें ऐसा हुआ तो मुझे सजा देने से कोई नहीं रोक सकता आप भी नहीं क्योंकि मैं महारानी हूं। महारानी सभी पर राज करती हैं

पुष्पा की बाते सुन सभी हंस दिया। सुरभि तब तक पास आ चुकी थी। साथ में एक बॉक्स लेकर आई थीं बॉक्स कमला को देते हुऐ बोली...बहु ये गिफ्ट मेरे जीवन का सबसे अनमोल गिफ्ट हैं। मेरे पहले रसोई पर मेरे सास ने मुझे दिया था आज मैं तुम्हें दे रहा हूं।

कमला मुस्कुराते हुऐ बॉक्स को ले लिया। तब तक सुकन्या भी आ चुकी थीं उसके हाथ में भी एक बॉक्स था। जिसे कमला को दे दिया। बॉक्स देख सुरभि बोली...छोटी ये toooo

सुकन्या...हां दीदी अपने मुझे मेरे पहले रसोई पर दिया था जबकि मैंने खाना इतना अच्छा नहीं बनाया था तब भी आप मेरी तारीफ किया था और ये गिफ्ट दिया था आज मैं इस गिफ्ट का जो सही हकदार हैं उसे दे रहीं हूं।

पुष्पा…हां तो अब भी कौन सा अच्छा खाना बनाती हों कितना सिखाया सीखती ही नहीं हों आप जैसा नालायक बच्चा मैंने नहीं देखा।

पुष्पा की बात सुन सुरभि ने आंख दिखाया और सुकन्या मुस्कुराते हुऐ अपने जगह जाकर बैठ गई। तब कमला बोली...महारानी जी तुम चिन्ता न करों मैं देखूंगी आप कितनी लायक बच्ची हों किसी दिन मैं आप'से खाना बनबाऊंगी आगर अच्छा नहीं बाना तो फिर देख लेना।

पुष्पा...हां हां देख लेना रोका किसने हैं।

सुकन्या...मेरी बेटी भी किसी से काम नहीं जब मन करे देख लेना बहु तुम'से अच्छा न सही पर तुम'से खराब भी नहीं बनाएगी।

पुष्पा...भाभी सूना अपने छोटी मां ने किया कहा

कमला... हां हां सुना हैं देखा नहीं हैं जिस दिन देख लूंगी उस दिन मन लूंगी।

इतना कहा कमला खिलखिला देती हैं कमला के देखा देखी सभी हंस देते हैं और पुष्पा hunnnn मुंह भितकाते हुए नाश्ता करने लग गईं। ये देख सभी ओर जोर जोर से खिला खिलखिला देते हैं। सभी मस्ती में थे वहीं सभी को गिफ्ट देते देख रावण मन ही मन बोला…सभी ने गिफ्ट दिया मैं कुछ नहीं दिया तो सभी कहेंगे मुझे नाश्ता पसन्द नहीं आया। सभी को छोड़ो सुकन्या तो मेरा जीना ही हराम कर देगी पहले से ही नाराज हैं उसे और नाराज नहीं कर सकतीं हूं यहीं मौक़ा हैं बहु को गिफ्ट दे सुकन्या को माना लेता हूं। वैसे भी बहु गिफ्ट पाने वाला काम ही तो किया इतना स्वादिष्ट खाना तो आज तक नहीं खाया वाह बहु जवाब नहीं हैं तुम्हारा।

ये सोच रावण उठ कमला के पास जा गले में से एक सोने की चेन उतार कमला को दे दिया। नज़र फेर सुकन्या ने देखा फिर हल्का सा मुस्कुरा नज़रे फेर लिया जैसे कुछ देखा ही नहीं सुकन्या की इस हरकत पर रावण का नज़र पड़ गया। सुकन्या को मुस्कुराते देख रावण का दिल बाग बाग हों गया फिर मन ही मन बोला...जो सोचा था हों गया अब सुकन्या को बहला फुसलाकर माना ही लूंगा। सुकन्या बहुत रूठ लिए अब और नहीं ।

गिफ्टों का लेन देन होने के बाद सभी हसीं मजाक करते हुए नाश्ता करने लगें। सुरभि के कहने पर कमला भी नाश्ता करने बैठ गई। बरहाल हसीं खुशी सभी ने नाश्ता कर लिया नाश्ता के बाद राजेंद्र बोला...रावण मेरे साथ ऑफिस चल बहु घर आने की खुशी में सभी कामगारों को कुछ गिफ्ट देकर आते हैं।

रावण...ठीक है दादा भाई

अपश्यु...बड़े पापा आप के साथ मैं भी चलूंगा।

राजेंद्र…ठीक हैं तू भी चल लेना। सुरभि मैं सोच रहा हूं बहु घर आने की खुशी में एक पार्टी रखी जाएं तुम बोलों कब रखा जाएं।

सुरभि...मैं सोच रहीं थीं पहले बहु के साथ कुल देवी के मंदिर हों आए फिर पार्टी रखी जाएं तो कैसा होगा।

राजेंद्र...हां ये भी सही होगा मैं तो ऑफिस जा रहा हूं। तुम पूरोहित जी को आज ही बुलवाकर कोई शुभ मूहर्त निकलवा लो फिर उस हिसाब से आगे की तैयारी करते हैं।

इतना कह रावण, अपश्यु और राजेंद्र ऑफिस के लिए चल दिया। पुष्पा भाभी के साथ गप्पे मरने खुद के रूम में ले गया, रह गया रमन और रघु इन दोनों को सुरभि ने पुरोहित को लिवाने भेज दिया। कुछ क्षण में दोनों पुरोहित जी को लेकर आ गए। पुरोहित जी आते ही बोला...रानी मां नई बहू आने की बहुत बहुत बधाई।

सुरभि...धन्यवाद पुरोहित जी आइए बैठिए और एक अच्छा सा शुभ दिन देखिए। बहु को लेकर कुलदेवी की पूजा करने जाना हैं।

पुरोहित जी बैठे फिर पंचांग निकल खंगालने लग गए कुछ क्षण पंचांग खंगालने के बाद बोले...रानी मां तीन दिन बाद देवी के पूजा का एक बहुत अच्छा शुभ मुहूर्त हैं आप चाहो तो उस दिन कुल देवी की पूजा करने जा सकते हों।

सुरभि... ठीक है पुरोहित जी आप उस दिन समय से पहूंच जायेगा। जो तैयारी आप'के ओर से करना हैं कर लेना हमे किया तैयारी करना हैं बता दीजिए।

पूरोहीत...पूजन में जो भी सामान चाहिएं वो मैं ले आऊंगा बाकी आप अपने ओर से जो करना चाहो उसकी तैयारी कर लेना।

इसके बाद पुरोहित जी अनुमति लेकर चल दिए। रावण को सुकन्या से बात करने का समय ही नहीं मिला उसका पूरा दिन ऑफिस में ही कट गया फिर घर आते आते देर हों गया था। तब तक सुकन्या खाना खाकर सो चुका था। मन तो कर रहा था जगाकर बात करें पर कहीं फिर से नाराज न हों जाएं इसलिए बिना बात किए ही सो गया।

अपश्यु खाना पीना कर रूम में गया फिर फोन उठा एक कॉल किया दूसरे ओर से कॉल रिसीव होते ही अपश्यु बोला... डिंपल मैं अपश्यु

डिंपल...अपश्यु नाम के किसी भी शख्स को नहीं जानती आप ने रोंग नंबर लगा दिया।

अपश्यु...ये क्या बात हुआ मेरा आवाज भी भुल गए।

डिंपल...भुला मैं नहीं तुम भूले हों माना की घर में शादी था पर तुम्हें इतना भी वक्त नहीं मिला की मुझसे बात कर लो। मैं तुमसे बात करने के लिए कितना तड़प रहीं थीं और तुम हों की मेरा कोई खोज खबर ही न लिए।

अपश्यु...सॉरी बाबा अब गुस्सा थूक भी दो हो गई भुल अब माफ कर भी दो।

डिंपल...तुम्हारा सही हैं गलती करों फिर माफ़ी मांग लो कोई माफी नही मिलेगा कल मिलने आयो तो कुछ सोच सकती हूं।

अपश्यु…कल देखता हूं टाइम मिला तो आ जाऊंगा।

डिंपल... देखती हूं कल मैं उसी पार्क में वेट करुंगी तुम टाइम से आ जाना नहीं आए तो सोच लेना। ओके बाय कोई आ रहा हैं मैं अभी रखती हूं।

अपश्यु... डिंपल सुनो तो..

अपश्यु सुनो तो, सुनो तो कहता रहा गया और डिंपल ने फ़ोन कट दिया। अपश्यु रिसीवर रखा फिर बोला…अजीब लडकी है पुरी बात सुने बिना ही कॉल काट दिया। लगता है बहुत गुस्से में हैं कल कुछ भी करके मिलने जाना पड़ेगा नहीं तो ओर नाराज हों जाएगी फिर मनाने में मेरा जेब खाली हों जायेगा। जो भी हों कल देखा जायेगा आज बहुत थक गया सो जाता हूं।

अपश्यु सोते ही नींद की वादी में खो गाय। इधर सुरभि ने पुरोहित जी से जो भी बात चीत हुआ बता दिया जिसे सुन कल सभी से बात करने को बोल सो गया।

अगले दिन सभी समय से नाश्ते के टेबल पर मिले फिर सभी नाश्ता करने लग गए। नाश्ता कर ही रहें थें की तभी "वाह जी बहु के आते ही बहु के हाथ का बना, खाने का मज़ा लिया जा रहा हैं खाओ खाओ पेट भरा के खाओ।"

सभी आवाज की दिशा में देखा उधर से मुंशी के साथ मुंशी की बीबी उर्वशी मुस्कुराते हुए आ रहे थें। दोनों को देख राजेंद्र बोल…आ जा तू भी कर ले तुझे किसने मना किया। भाभी आप कैसे हों।

उर्वशी...राजा जी मैं बिल्कुल ठीक नहीं हूं आप और रानी मां कैसे हों।

सुरभि...उर्वशी तुम्हें किया हुआ।

दोनों पास आए तब रघु ने कमला को साथ लिए दोनों का आशिर्वाद लिया फिर रमन भी आर्शीवाद लिया फिर बोला...मां पापा कैसे हों।

उर्वशी...ओ हो तुम्हें याद है की तुम्हारे मां बाप भी हैं जब से आया है एक बार भी देखने नहीं आया मां पापा कैसे हैं अब पूछ रहा हैं कैसे हों

सुरभि...उर्वशी मेरे बेटे को बिल्कुल नहीं डटना।

उर्वशी...हां हां रमन भी तुम्हारा बेटा रघु भी तुम्हारा बेटा तो मेरा कौन हैं।

पुष्पा...आंटी मैं हूं न आप की बेटी।

उर्वशी... तू भी सिर्फ नाम की बेटी हैं कब की आई हुई हैं एक बार मिलने भी नहीं आई।

पुष्पा...आंटी भईया की शादी में मिला तो था। आप तो जानते ही थे भईया की शादी था घर में सभी अलसी हैं इनसे काम करवाते करवाते मेरा पसीना छूट गई इसलिए मिलने नहीं आ पाई।

उर्वशी..हां हां मैं जानती हूं इस घर में तुम ही एक लायक बच्ची हों बाकी तो सभी निकम्मे हैं।

इतना कह उर्वशी हंस दिया उर्वशी के साथ सभी भी मुस्कुरा दिए। पुष्पा आगे कुछ कहती उससे पहले सुरभि बोली...बाते बहुत हुआ उर्वशी बैठो ओर नाश्ता करो।

मुंशी...रानी मां नाश्ता तो तभी करेगें जब बहु खुद बना कर खिलाएगी।

कमला...आप दोनों बैठे मैं अभी बना कर लाई।

इतना कह कमला उठ गई उर्वशी रोकते हुए बोली...अरे बहु रानी पहले नाश्ता कर लो हम तुम्हारे हाथ का बना खाना फिर कभी खां लेंगे।

कमला बैठा गई फिर मुंशी और उर्वशी भी बैठ गए फिर मुंशी बोला...रमन बेटा तुम हमारे साथ चलो तुम्हारे मामा जी की तबियत खराब हैं। हमें उन्हें देखने जाना हैं।

रघु…काका मामा जी को क्या हुआ? ज्यादा तबियत खराब तो नहीं हैं।

मुंशी…फ़ोन पर ही बात हुआ है जाकर देखेंगे तभी जान पायेंगे तबियत कितना खराब हैं।

राजेंद्र...दो दिन बाद कुलदेवी मंदिर जा रहे हैं तब तक आ जायेगा कि नहीं।

मुंशी...कोशिश करूंगा नहीं आ पाया तो बता दुंगा और अगर आया तो हम सीधा मंदिर ही पहुंच जाएंगे।

राजेंद्र...जो तुझे ठीक लगें करना इस मामले में मैं ज्यादा हस्तक्षेप नहीं करूंगा। तेरे साले साहब की तबियत खराब न होता तो मैं तेरा कहा नहीं सुनता।

इसके बाद सभी ने नाश्ता कर लिया फिर रमन अपना बैग लेने चला गया तब उर्वशी बोला...बहु रानी तुम्हारे हाथ का खाना खाने हम जरूर आयेंगे।

कमला…जल्दी आइएगा और आने से पहले बता दीजियेगा ताकि मैं खाना पहले से ही बना कर रख सकूं।

कमला की बाते सुन सभी मुस्करा दिए। रमन के आते ही तीनों चले गए फिर राजेंद्र बोला...अपश्यु बेटा आज भी तुम मेरे साथ चलना तुम्हें मेरे साथ चलने में कोई दिक्कत तो नहीं हैं।

अपश्यु...नहीं बड़े पापा कोई दिक्कत नहीं हैं।

अपश्यु की बात सुन सभी अबक रहें गए क्योंकि अपश्यु इससे पहले कोई भी काम करने को कहो तो दो टूक जवाब दे माना कर देता था। अपश्यु से हां सुन सुकन्या मन में बोली...अपश्यु में इतना बदलाब कैसे आ गया पहले तो कुछ भी कहो दो टूक जवाब दे माना कर देता था। लगता हैं मेरा बेटा जिम्मेदार होने लग गया। बेटा ऐसे ही बड़ो का कहा मानना हे भगवान मेरा बेटा अपने बाप जैसा न बाने जो अपनो के साथ गद्दारी करने में लगा हुआ हैं।

राजेंद्र…रावण मैं सोचा रहा हूं कुलदेवी मंदिर से आने के एक हफ्ते बाद घर पे एक बड़ी पार्टी रखा जाएं तू किया कहता हैं।

रावण…अपने सही सोचा पार्टी तो होना ही चाहिए दादाभाई पार्टी ग्रांड होना चाहिए सभी को पाता चलना चाहिए राज परिवार में बहु आने की खुशियां मनाया जा रहा हैं।

राजेंद्र... हां हां जैसा तुम चाहो करों पार्टी की जिम्मेदारी तुम्हारे सर हैं जैसा तैयारी करना हैं करों।

सभी राजेंद्र के हां हां मिलता हैं। इसके बाद राजेंद्र अपश्यु को साथ ले चला गया। रावण बीबी को मनाना चाहता था लेकिन ऑफिस से एक जरूरी काम का फोन आया तो वहा चला गया। रघु भी जाना चाहता था पर सुरभि ने माना कर दिया तो रावण अकेले ही ऑफिस चला गया।


आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे यहां तक साथ बाने रहने के लिय बहुत बहुत धन्यवाद।
🙏🙏🙏🙏
 

Lib am

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अपश्यु को पूरा नाश्ता किए बिना जाते देख सुकन्या बोली…अपश्यु रुक जा बेटा कहा जा रहा हैं। अभी तो कह रहा था बाड़ी जोरों की भूख लगा हैं। दो चार निवाले में ही पेट भरा गया।

सुरभि...अपश्यु बेटा ऐसा नहीं करते खाना बीच में छोड़कर नहीं जाते आ जा नाश्ता कर ले।

अपश्यु किसी का नहीं सूना चलाता चला गया। रूम में जाकर ही रुका, अपश्यु के जाते ही कमला का चेहरा उतर गया। उसे लगा शायद अपश्यु को उसका बनाया नाश्ता पसन्द नहीं आया इसलिए नाश्ता किए बिना ही चला गया।

राजेंद्र ने एक दो निवाला ओर खाया फिर सुरभि के कान में कुछ कहा तब सुरभि "मैं अभी आई" कह कर रूम की और चल दिया। कमला को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था ये हों किया रहा हैं। सुरभि के जाते ही सुकन्या भी "मैं अभी आई कहकर" रूम की ओर चली गई। जो भी हों रहा था उसे देख कमला को लगने लगा पक्का नाश्ता बनाने में कोई कमी रह गईं होगी इसलिए एक एक कर सभी उठकर जा रहे हैं। सोचा था पाक कला में निपुर्णता दिखा सभी का मन मोह लूंगा पर हों उल्टा रहा हैं। कमला को ये भी लग रहा था पहली रसोई के परीक्षा में ही फेल हों गया न जानें आगे ओर कितनी बार प्रस्त होना पड़ेगा। पहली सुबह ही सभी के मान मे उसके प्रति गलत धारणा बन गया। अपकी बेटी को खाना अच्छे से बनाना नहीं आता। बेटी को अपने ये सिखाया था। मां के पास शिकायत गया। तो मां खुद को कितना अपमानित महसूस करेंगी ये सोच कभी भी रो दे ऐसा हाल कमला का हों गया।

बाकी बचे लोग जो बड़े चाव से खा रहें थें उन पर कमला ने कोई ध्यान ही नहीं दिया उसका ध्यान सिर्फ उठकर गए तीन ही लोगों पर था। "भाभी थोडी ओर sabjiiii" बोल पुष्पा कमला की ओर देखा कमला का रुवशा चेहरा देख बोली...भाभी क्या हुआ? अपका चेहरा क्यों उतर गया।

कमला चेहरे के भाव को सुधार बनावटी मुस्कान होटों पर सजा बोली...कुछ नहीं तुम बोलो कुछ मांग रहीं थी।

पुष्पा...मैं सब्जी मांग रहीं थीं लाओ थोडी ओर सब्जी दो और बताओ आप'का चेहरा क्यों उतरा हुआ हैं।

कमला सब्जी दे ही रही थीं तभी रघु बोला...बोलों कमला क्या हुआ?

कमला...कुछ नहीं हुआ आप बताइए नाश्ता कैसा बना हैं।

रमन...भाभी इससे क्यों पूछ रहें हों मैं बताता हूं। नाश्ता बहुत लाजवाब बना हैं आप'के हाथों में तो जादू हैं।

पुष्पा...हां भाभी नाश्ता इतना बेहतरीन बना हैं क्या ही कहूं मन कर रहा हैं सिर्फ खाता ही जाऊ खाता ही जाऊ लेकिन खा नहीं सकता क्योंकि पेट छोटा सा हैं।

पुष्पा की बाते सुन कमला के चेहरे पर मुस्कान लौट आया फिर राजेंद्र बोला...हां बेटी बहुत स्वादिष्ट नाश्ता बनाया हैं रमन सही कह रहा था तुम्हारे हाथों में जादू हैं। तुम्हारे हाथ का बना, खाने का तो मैं पहले से ही कायल हूं। रावण बहु ने इतना अच्छा खाना बनाया इस पर तू कुछ नहीं कहेगा।

रावण...दादा भाई मेरे कहने के लिए कुछ बचा ही कहा हैं आप सभी ने तो पहले से ही भर भर के बहु की तारीफ कर दिया। बहु बहुत स्वादिष्ट और लाजवाब नाश्ता बनाया।

कमला...आप सभी मेरी झूठी तारीफे कर रहे हों। नाश्ता अच्छा बना होता तो क्या मम्मी जी, छोटी मां और देवर जी उठकर जाते।

अपश्यु रूम से आ चुका था और कमला की बाते सुन लिया था तो कमला के पास गया फिर बोला... भाभी सच में आपने नाश्ता बहुत स्वादिष्ट और लाजवाब बनाया हैं। मैं आप'को देने के लिए कल एक गिफ्ट लाया था। उसे लेने गया था पक्का मां और बड़ी मां भी आप'को देने के लिए कोई गिफ्ट लेने गए होंगे। मैं अपको कल से गिफ्ट देने का मौका ढूंढ रहा था। इससे अच्छा मौका आप'को गिफ्ट देने का मुझे मिल ही नहीं सकता। लीजिए आपका गिफ्ट।

अपश्यु का दिया गिफ्ट कमला पकड़ लिया फिर बोला...thank you देवर जी।

रमन, रघु और पुष्पा प्लेट को साफा चाट कर चुका था। खली प्लेट देख अपश्यु बोला... दादा भाई आप तीनों थोडी देर मेरे लिए रूक नहीं सकते थे। मेरे बिना ही प्लेट साफ कर दिया। भाभी जल्दी से परोस दीजिए बड़ी जोरों की भूख लगा हैं।

पुष्पा...हमने थोड़े न आप'को बीच नाश्ते से उठकर जानें को कहा था। आप'को गिफ्ट देना ही था तो नाश्ते के बाद दे सकते थे।

अपश्यु…चल थोड़ा परे खिसक मुझे बैठने दे। तुझे तो गिफ्ट देना नहीं है कोई गिफ्ट लाई होगी तभी न भाभी को गिफ्ट देगी।

पुष्पा के जगह देने पर अपश्यु बैठ गया फिर पुष्पा बोली... मैं भला क्यों भाभी को गिफ्ट दूंगी मैं तो उल्टा भाभी से गिफ्ट लूंगी।

सुरभि रूम से आ रही थीं आते हुऐ बोली... पुष्पा तू बहु से गिफ्ट क्यों लेगी आज तो उल्टा तुझे बहु को गिफ्ट देना चाहिए बहु ने इतना स्वादिष्ट नाश्ता जो बनाया।

पुष्पा...मैं नहीं देने वाली कोई गिफ्ट विफ्ट पहले ही कह दे रही हूं।

सुरभि...हां किसी को तू क्यों गिफ्ट देगा। तू तो बस सजा देगा लेकिन मेरी बात कान खोलकर सुन ले मेरी बहु को तूने आगर सजा दिया तो अच्छा नहीं होगा।

पुष्पा…अच्छा ! तो फिर भाभी को कह दो मेरा कहना न टाले और कोई गलती न करें ऐसा हुआ तो मुझे सजा देने से कोई नहीं रोक सकता आप भी नहीं क्योंकि मैं महारानी हूं। महारानी सभी पर राज करती हैं

पुष्पा की बाते सुन सभी हंस दिया। सुरभि तब तक पास आ चुकी थी। साथ में एक बॉक्स लेकर आई थीं बॉक्स कमला को देते हुऐ बोली...बहु ये गिफ्ट मेरे जीवन का सबसे अनमोल गिफ्ट हैं। मेरे पहले रसोई पर मेरे सास ने मुझे दिया था आज मैं तुम्हें दे रहा हूं।

कमला मुस्कुराते हुऐ बॉक्स को ले लिया। तब तक सुकन्या भी आ चुकी थीं उसके हाथ में भी एक बॉक्स था। जिसे कमला को दे दिया। बॉक्स देख सुरभि बोली...छोटी ये toooo

सुकन्या...हां दीदी अपने मुझे मेरे पहले रसोई पर दिया था जबकि मैंने खाना इतना अच्छा नहीं बनाया था तब भी आप मेरी तारीफ किया था और ये गिफ्ट दिया था आज मैं इस गिफ्ट का जो सही हकदार हैं उसे दे रहीं हूं।

पुष्पा…हां तो अब भी कौन सा अच्छा खाना बनाती हों कितना सिखाया सीखती ही नहीं हों आप जैसा नालायक बच्चा मैंने नहीं देखा।

पुष्पा की बात सुन सुरभि ने आंख दिखाया और सुकन्या मुस्कुराते हुऐ अपने जगह जाकर बैठ गई। तब कमला बोली...महारानी जी तुम चिन्ता न करों मैं देखूंगी आप कितनी लायक बच्ची हों किसी दिन मैं आप'से खाना बनबाऊंगी आगर अच्छा नहीं बाना तो फिर देख लेना।

पुष्पा...हां हां देख लेना रोका किसने हैं।

सुकन्या...मेरी बेटी भी किसी से काम नहीं जब मन करे देख लेना बहु तुम'से अच्छा न सही पर तुम'से खराब भी नहीं बनाएगी।

पुष्पा...भाभी सूना अपने छोटी मां ने किया कहा

कमला... हां हां सुना हैं देखा नहीं हैं जिस दिन देख लूंगी उस दिन मन लूंगी।

इतना कहा कमला खिलखिला देती हैं कमला के देखा देखी सभी हंस देते हैं और पुष्पा hunnnn मुंह भितकाते हुए नाश्ता करने लग गईं। ये देख सभी ओर जोर जोर से खिला खिलखिला देते हैं। सभी मस्ती में थे वहीं सभी को गिफ्ट देते देख रावण मन ही मन बोला…सभी ने गिफ्ट दिया मैं कुछ नहीं दिया तो सभी कहेंगे मुझे नाश्ता पसन्द नहीं आया। सभी को छोड़ो सुकन्या तो मेरा जीना ही हराम कर देगी पहले से ही नाराज हैं उसे और नाराज नहीं कर सकतीं हूं यहीं मौक़ा हैं बहु को गिफ्ट दे सुकन्या को माना लेता हूं। वैसे भी बहु गिफ्ट पाने वाला काम ही तो किया इतना स्वादिष्ट खाना तो आज तक नहीं खाया वाह बहु जवाब नहीं हैं तुम्हारा।

ये सोच रावण उठ कमला के पास जा गले में से एक सोने की चेन उतार कमला को दे दिया। नज़र फेर सुकन्या ने देखा फिर हल्का सा मुस्कुरा नज़रे फेर लिया जैसे कुछ देखा ही नहीं सुकन्या की इस हरकत पर रावण का नज़र पड़ गया। सुकन्या को मुस्कुराते देख रावण का दिल बाग बाग हों गया फिर मन ही मन बोला...जो सोचा था हों गया अब सुकन्या को बहला फुसलाकर माना ही लूंगा। सुकन्या बहुत रूठ लिए अब और नहीं ।

गिफ्टों का लेन देन होने के बाद सभी हसीं मजाक करते हुए नाश्ता करने लगें। सुरभि के कहने पर कमला भी नाश्ता करने बैठ गई। बरहाल हसीं खुशी सभी ने नाश्ता कर लिया नाश्ता के बाद राजेंद्र बोला...रावण मेरे साथ ऑफिस चल बहु घर आने की खुशी में सभी कामगारों को कुछ गिफ्ट देकर आते हैं।

रावण...ठीक है दादा भाई

अपश्यु...बड़े पापा आप के साथ मैं भी चलूंगा।

राजेंद्र…ठीक हैं तू भी चल लेना। सुरभि मैं सोच रहा हूं बहु घर आने की खुशी में एक पार्टी रखी जाएं तुम बोलों कब रखा जाएं।

सुरभि...मैं सोच रहीं थीं पहले बहु के साथ कुल देवी के मंदिर हों आए फिर पार्टी रखी जाएं तो कैसा होगा।

राजेंद्र...हां ये भी सही होगा मैं तो ऑफिस जा रहा हूं। तुम पूरोहित जी को आज ही बुलवाकर कोई शुभ मूहर्त निकलवा लो फिर उस हिसाब से आगे की तैयारी करते हैं।

इतना कह रावण, अपश्यु और राजेंद्र ऑफिस के लिए चल दिया। पुष्पा भाभी के साथ गप्पे मरने खुद के रूम में ले गया, रह गया रमन और रघु इन दोनों को सुरभि ने पुरोहित को लिवाने भेज दिया। कुछ क्षण में दोनों पुरोहित जी को लेकर आ गए। पुरोहित जी आते ही बोला...रानी मां नई बहू आने की बहुत बहुत बधाई।

सुरभि...धन्यवाद पुरोहित जी आइए बैठिए और एक अच्छा सा शुभ दिन देखिए। बहु को लेकर कुलदेवी की पूजा करने जाना हैं।

पुरोहित जी बैठे फिर पंचांग निकल खंगालने लग गए कुछ क्षण पंचांग खंगालने के बाद बोले...रानी मां तीन दिन बाद देवी के पूजा का एक बहुत अच्छा शुभ मुहूर्त हैं आप चाहो तो उस दिन कुल देवी की पूजा करने जा सकते हों।

सुरभि... ठीक है पुरोहित जी आप उस दिन समय से पहूंच जायेगा। जो तैयारी आप'के ओर से करना हैं कर लेना हमे किया तैयारी करना हैं बता दीजिए।

पूरोहीत...पूजन में जो भी सामान चाहिएं वो मैं ले आऊंगा बाकी आप अपने ओर से जो करना चाहो उसकी तैयारी कर लेना।

इसके बाद पुरोहित जी अनुमति लेकर चल दिए। रावण को सुकन्या से बात करने का समय ही नहीं मिला उसका पूरा दिन ऑफिस में ही कट गया फिर घर आते आते देर हों गया था। तब तक सुकन्या खाना खाकर सो चुका था। मन तो कर रहा था जगाकर बात करें पर कहीं फिर से नाराज न हों जाएं इसलिए बिना बात किए ही सो गया।

अपश्यु खाना पीना कर रूम में गया फिर फोन उठा एक कॉल किया दूसरे ओर से कॉल रिसीव होते ही अपश्यु बोला... डिंपल मैं अपश्यु

डिंपल...अपश्यु नाम के किसी भी शख्स को नहीं जानती आप ने रोंग नंबर लगा दिया।

अपश्यु...ये क्या बात हुआ मेरा आवाज भी भुल गए।

डिंपल...भुला मैं नहीं तुम भूले हों माना की घर में शादी था पर तुम्हें इतना भी वक्त नहीं मिला की मुझसे बात कर लो। मैं तुमसे बात करने के लिए कितना तड़प रहीं थीं और तुम हों की मेरा कोई खोज खबर ही न लिए।

अपश्यु...सॉरी बाबा अब गुस्सा थूक भी दो हो गई भुल अब माफ कर भी दो।

डिंपल...तुम्हारा सही हैं गलती करों फिर माफ़ी मांग लो कोई माफी नही मिलेगा कल मिलने आयो तो कुछ सोच सकती हूं।

अपश्यु…कल देखता हूं टाइम मिला तो आ जाऊंगा।

डिंपल... देखती हूं कल मैं उसी पार्क में वेट करुंगी तुम टाइम से आ जाना नहीं आए तो सोच लेना। ओके बाय कोई आ रहा हैं मैं अभी रखती हूं।

अपश्यु... डिंपल सुनो तो..

अपश्यु सुनो तो, सुनो तो कहता रहा गया और डिंपल ने फ़ोन कट दिया। अपश्यु रिसीवर रखा फिर बोला…अजीब लडकी है पुरी बात सुने बिना ही कॉल काट दिया। लगता है बहुत गुस्से में हैं कल कुछ भी करके मिलने जाना पड़ेगा नहीं तो ओर नाराज हों जाएगी फिर मनाने में मेरा जेब खाली हों जायेगा। जो भी हों कल देखा जायेगा आज बहुत थक गया सो जाता हूं।

अपश्यु सोते ही नींद की वादी में खो गाय। इधर सुरभि ने पुरोहित जी से जो भी बात चीत हुआ बता दिया जिसे सुन कल सभी से बात करने को बोल सो गया।

अगले दिन सभी समय से नाश्ते के टेबल पर मिले फिर सभी नाश्ता करने लग गए। नाश्ता कर ही रहें थें की तभी "वाह जी बहु के आते ही बहु के हाथ का बना, खाने का मज़ा लिया जा रहा हैं खाओ खाओ पेट भरा के खाओ।"

सभी आवाज की दिशा में देखा उधर से मुंशी के साथ मुंशी की बीबी उर्वशी मुस्कुराते हुए आ रहे थें। दोनों को देख राजेंद्र बोल…आ जा तू भी कर ले तुझे किसने मना किया। भाभी आप कैसे हों।

उर्वशी...राजा जी मैं बिल्कुल ठीक नहीं हूं आप और रानी मां कैसे हों।

सुरभि...उर्वशी तुम्हें किया हुआ।

दोनों पास आए तब रघु ने कमला को साथ लिए दोनों का आशिर्वाद लिया फिर रमन भी आर्शीवाद लिया फिर बोला...मां पापा कैसे हों।

उर्वशी...ओ हो तुम्हें याद है की तुम्हारे मां बाप भी हैं जब से आया है एक बार भी देखने नहीं आया मां पापा कैसे हैं अब पूछ रहा हैं कैसे हों

सुरभि...उर्वशी मेरे बेटे को बिल्कुल नहीं डटना।

उर्वशी...हां हां रमन भी तुम्हारा बेटा रघु भी तुम्हारा बेटा तो मेरा कौन हैं।

पुष्पा...आंटी मैं हूं न आप की बेटी।

उर्वशी... तू भी सिर्फ नाम की बेटी हैं कब की आई हुई हैं एक बार मिलने भी नहीं आई।

पुष्पा...आंटी भईया की शादी में मिला तो था। आप तो जानते ही थे भईया की शादी था घर में सभी अलसी हैं इनसे काम करवाते करवाते मेरा पसीना छूट गई इसलिए मिलने नहीं आ पाई।

उर्वशी..हां हां मैं जानती हूं इस घर में तुम ही एक लायक बच्ची हों बाकी तो सभी निकम्मे हैं।

इतना कह उर्वशी हंस दिया उर्वशी के साथ सभी भी मुस्कुरा दिए। पुष्पा आगे कुछ कहती उससे पहले सुरभि बोली...बाते बहुत हुआ उर्वशी बैठो ओर नाश्ता करो।

मुंशी...रानी मां नाश्ता तो तभी करेगें जब बहु खुद बना कर खिलाएगी।

कमला...आप दोनों बैठे मैं अभी बना कर लाई।

इतना कह कमला उठ गई उर्वशी रोकते हुए बोली...अरे बहु रानी पहले नाश्ता कर लो हम तुम्हारे हाथ का बना खाना फिर कभी खां लेंगे।

कमला बैठा गई फिर मुंशी और उर्वशी भी बैठ गए फिर मुंशी बोला...रमन बेटा तुम हमारे साथ चलो तुम्हारे मामा जी की तबियत खराब हैं। हमें उन्हें देखने जाना हैं।

रघु…काका मामा जी को क्या हुआ? ज्यादा तबियत खराब तो नहीं हैं।

मुंशी…फ़ोन पर ही बात हुआ है जाकर देखेंगे तभी जान पायेंगे तबियत कितना खराब हैं।

राजेंद्र...दो दिन बाद कुलदेवी मंदिर जा रहे हैं तब तक आ जायेगा कि नहीं।

मुंशी...कोशिश करूंगा नहीं आ पाया तो बता दुंगा और अगर आया तो हम सीधा मंदिर ही पहुंच जाएंगे।

राजेंद्र...जो तुझे ठीक लगें करना इस मामले में मैं ज्यादा हस्तक्षेप नहीं करूंगा। तेरे साले साहब की तबियत खराब न होता तो मैं तेरा कहा नहीं सुनता।

इसके बाद सभी ने नाश्ता कर लिया फिर रमन अपना बैग लेने चला गया तब उर्वशी बोला...बहु रानी तुम्हारे हाथ का खाना खाने हम जरूर आयेंगे।

कमला…जल्दी आइएगा और आने से पहले बता दीजियेगा ताकि मैं खाना पहले से ही बना कर रख सकूं।

कमला की बाते सुन सभी मुस्करा दिए। रमन के आते ही तीनों चले गए फिर राजेंद्र बोला...अपश्यु बेटा आज भी तुम मेरे साथ चलना तुम्हें मेरे साथ चलने में कोई दिक्कत तो नहीं हैं।

अपश्यु...नहीं बड़े पापा कोई दिक्कत नहीं हैं।

अपश्यु की बात सुन सभी अबक रहें गए क्योंकि अपश्यु इससे पहले कोई भी काम करने को कहो तो दो टूक जवाब दे माना कर देता था। अपश्यु से हां सुन सुकन्या मन में बोली...अपश्यु में इतना बदलाब कैसे आ गया पहले तो कुछ भी कहो दो टूक जवाब दे माना कर देता था। लगता हैं मेरा बेटा जिम्मेदार होने लग गया। बेटा ऐसे ही बड़ो का कहा मानना हे भगवान मेरा बेटा अपने बाप जैसा न बाने जो अपनो के साथ गद्दारी करने में लगा हुआ हैं।

राजेंद्र…रावण मैं सोचा रहा हूं कुलदेवी मंदिर से आने के एक हफ्ते बाद घर पे एक बड़ी पार्टी रखा जाएं तू किया कहता हैं।

रावण…अपने सही सोचा पार्टी तो होना ही चाहिए दादाभाई पार्टी ग्रांड होना चाहिए सभी को पाता चलना चाहिए राज परिवार में बहु आने की खुशियां मनाया जा रहा हैं।

राजेंद्र... हां हां जैसा तुम चाहो करों पार्टी की जिम्मेदारी तुम्हारे सर हैं जैसा तैयारी करना हैं करों।

सभी राजेंद्र के हां हां मिलता हैं। इसके बाद राजेंद्र अपश्यु को साथ ले चला गया। रावण बीबी को मनाना चाहता था लेकिन ऑफिस से एक जरूरी काम का फोन आया तो वहा चला गया। रघु भी जाना चाहता था पर सुरभि ने माना कर दिया तो रावण अकेले ही ऑफिस चला गया।


आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे यहां तक साथ बाने रहने के लिय बहुत बहुत धन्यवाद।
🙏🙏🙏🙏
अति उत्तम अपडेट। अपश्यू अब सुधार रहा है मगर ये रावण का कुछ नही हो सकता जब तक इसका पिछवाड़ा नहीं टूटेगा। सुकन्या के भाई को भी सबक सीखना पड़ेगा। अगले अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी।
 
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Update - 36


अपश्यु को पूरा नाश्ता किए बिना जाते देख सुकन्या बोली…अपश्यु रुक जा बेटा कहा जा रहा हैं। अभी तो कह रहा था बाड़ी जोरों की भूख लगा हैं। दो चार निवाले में ही पेट भरा गया।

सुरभि...अपश्यु बेटा ऐसा नहीं करते खाना बीच में छोड़कर नहीं जाते आ जा नाश्ता कर ले।

अपश्यु किसी का नहीं सूना चलाता चला गया। रूम में जाकर ही रुका, अपश्यु के जाते ही कमला का चेहरा उतर गया। उसे लगा शायद अपश्यु को उसका बनाया नाश्ता पसन्द नहीं आया इसलिए नाश्ता किए बिना ही चला गया।

राजेंद्र ने एक दो निवाला ओर खाया फिर सुरभि के कान में कुछ कहा तब सुरभि "मैं अभी आई" कह कर रूम की और चल दिया। कमला को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था ये हों किया रहा हैं। सुरभि के जाते ही सुकन्या भी "मैं अभी आई कहकर" रूम की ओर चली गई। जो भी हों रहा था उसे देख कमला को लगने लगा पक्का नाश्ता बनाने में कोई कमी रह गईं होगी इसलिए एक एक कर सभी उठकर जा रहे हैं। सोचा था पाक कला में निपुर्णता दिखा सभी का मन मोह लूंगा पर हों उल्टा रहा हैं। कमला को ये भी लग रहा था पहली रसोई के परीक्षा में ही फेल हों गया न जानें आगे ओर कितनी बार प्रस्त होना पड़ेगा। पहली सुबह ही सभी के मान मे उसके प्रति गलत धारणा बन गया। अपकी बेटी को खाना अच्छे से बनाना नहीं आता। बेटी को अपने ये सिखाया था। मां के पास शिकायत गया। तो मां खुद को कितना अपमानित महसूस करेंगी ये सोच कभी भी रो दे ऐसा हाल कमला का हों गया।

बाकी बचे लोग जो बड़े चाव से खा रहें थें उन पर कमला ने कोई ध्यान ही नहीं दिया उसका ध्यान सिर्फ उठकर गए तीन ही लोगों पर था। "भाभी थोडी ओर sabjiiii" बोल पुष्पा कमला की ओर देखा कमला का रुवशा चेहरा देख बोली...भाभी क्या हुआ? अपका चेहरा क्यों उतर गया।

कमला चेहरे के भाव को सुधार बनावटी मुस्कान होटों पर सजा बोली...कुछ नहीं तुम बोलो कुछ मांग रहीं थी।

पुष्पा...मैं सब्जी मांग रहीं थीं लाओ थोडी ओर सब्जी दो और बताओ आप'का चेहरा क्यों उतरा हुआ हैं।

कमला सब्जी दे ही रही थीं तभी रघु बोला...बोलों कमला क्या हुआ?

कमला...कुछ नहीं हुआ आप बताइए नाश्ता कैसा बना हैं।

रमन...भाभी इससे क्यों पूछ रहें हों मैं बताता हूं। नाश्ता बहुत लाजवाब बना हैं आप'के हाथों में तो जादू हैं।

पुष्पा...हां भाभी नाश्ता इतना बेहतरीन बना हैं क्या ही कहूं मन कर रहा हैं सिर्फ खाता ही जाऊ खाता ही जाऊ लेकिन खा नहीं सकता क्योंकि पेट छोटा सा हैं।

पुष्पा की बाते सुन कमला के चेहरे पर मुस्कान लौट आया फिर राजेंद्र बोला...हां बेटी बहुत स्वादिष्ट नाश्ता बनाया हैं रमन सही कह रहा था तुम्हारे हाथों में जादू हैं। तुम्हारे हाथ का बना, खाने का तो मैं पहले से ही कायल हूं। रावण बहु ने इतना अच्छा खाना बनाया इस पर तू कुछ नहीं कहेगा।

रावण...दादा भाई मेरे कहने के लिए कुछ बचा ही कहा हैं आप सभी ने तो पहले से ही भर भर के बहु की तारीफ कर दिया। बहु बहुत स्वादिष्ट और लाजवाब नाश्ता बनाया।

कमला...आप सभी मेरी झूठी तारीफे कर रहे हों। नाश्ता अच्छा बना होता तो क्या मम्मी जी, छोटी मां और देवर जी उठकर जाते।

अपश्यु रूम से आ चुका था और कमला की बाते सुन लिया था तो कमला के पास गया फिर बोला... भाभी सच में आपने नाश्ता बहुत स्वादिष्ट और लाजवाब बनाया हैं। मैं आप'को देने के लिए कल एक गिफ्ट लाया था। उसे लेने गया था पक्का मां और बड़ी मां भी आप'को देने के लिए कोई गिफ्ट लेने गए होंगे। मैं अपको कल से गिफ्ट देने का मौका ढूंढ रहा था। इससे अच्छा मौका आप'को गिफ्ट देने का मुझे मिल ही नहीं सकता। लीजिए आपका गिफ्ट।

अपश्यु का दिया गिफ्ट कमला पकड़ लिया फिर बोला...thank you देवर जी।

रमन, रघु और पुष्पा प्लेट को साफा चाट कर चुका था। खली प्लेट देख अपश्यु बोला... दादा भाई आप तीनों थोडी देर मेरे लिए रूक नहीं सकते थे। मेरे बिना ही प्लेट साफ कर दिया। भाभी जल्दी से परोस दीजिए बड़ी जोरों की भूख लगा हैं।

पुष्पा...हमने थोड़े न आप'को बीच नाश्ते से उठकर जानें को कहा था। आप'को गिफ्ट देना ही था तो नाश्ते के बाद दे सकते थे।

अपश्यु…चल थोड़ा परे खिसक मुझे बैठने दे। तुझे तो गिफ्ट देना नहीं है कोई गिफ्ट लाई होगी तभी न भाभी को गिफ्ट देगी।

पुष्पा के जगह देने पर अपश्यु बैठ गया फिर पुष्पा बोली... मैं भला क्यों भाभी को गिफ्ट दूंगी मैं तो उल्टा भाभी से गिफ्ट लूंगी।

सुरभि रूम से आ रही थीं आते हुऐ बोली... पुष्पा तू बहु से गिफ्ट क्यों लेगी आज तो उल्टा तुझे बहु को गिफ्ट देना चाहिए बहु ने इतना स्वादिष्ट नाश्ता जो बनाया।

पुष्पा...मैं नहीं देने वाली कोई गिफ्ट विफ्ट पहले ही कह दे रही हूं।

सुरभि...हां किसी को तू क्यों गिफ्ट देगा। तू तो बस सजा देगा लेकिन मेरी बात कान खोलकर सुन ले मेरी बहु को तूने आगर सजा दिया तो अच्छा नहीं होगा।

पुष्पा…अच्छा ! तो फिर भाभी को कह दो मेरा कहना न टाले और कोई गलती न करें ऐसा हुआ तो मुझे सजा देने से कोई नहीं रोक सकता आप भी नहीं क्योंकि मैं महारानी हूं। महारानी सभी पर राज करती हैं

पुष्पा की बाते सुन सभी हंस दिया। सुरभि तब तक पास आ चुकी थी। साथ में एक बॉक्स लेकर आई थीं बॉक्स कमला को देते हुऐ बोली...बहु ये गिफ्ट मेरे जीवन का सबसे अनमोल गिफ्ट हैं। मेरे पहले रसोई पर मेरे सास ने मुझे दिया था आज मैं तुम्हें दे रहा हूं।

कमला मुस्कुराते हुऐ बॉक्स को ले लिया। तब तक सुकन्या भी आ चुकी थीं उसके हाथ में भी एक बॉक्स था। जिसे कमला को दे दिया। बॉक्स देख सुरभि बोली...छोटी ये toooo

सुकन्या...हां दीदी अपने मुझे मेरे पहले रसोई पर दिया था जबकि मैंने खाना इतना अच्छा नहीं बनाया था तब भी आप मेरी तारीफ किया था और ये गिफ्ट दिया था आज मैं इस गिफ्ट का जो सही हकदार हैं उसे दे रहीं हूं।

पुष्पा…हां तो अब भी कौन सा अच्छा खाना बनाती हों कितना सिखाया सीखती ही नहीं हों आप जैसा नालायक बच्चा मैंने नहीं देखा।

पुष्पा की बात सुन सुरभि ने आंख दिखाया और सुकन्या मुस्कुराते हुऐ अपने जगह जाकर बैठ गई। तब कमला बोली...महारानी जी तुम चिन्ता न करों मैं देखूंगी आप कितनी लायक बच्ची हों किसी दिन मैं आप'से खाना बनबाऊंगी आगर अच्छा नहीं बाना तो फिर देख लेना।

पुष्पा...हां हां देख लेना रोका किसने हैं।

सुकन्या...मेरी बेटी भी किसी से काम नहीं जब मन करे देख लेना बहु तुम'से अच्छा न सही पर तुम'से खराब भी नहीं बनाएगी।

पुष्पा...भाभी सूना अपने छोटी मां ने किया कहा

कमला... हां हां सुना हैं देखा नहीं हैं जिस दिन देख लूंगी उस दिन मन लूंगी।

इतना कहा कमला खिलखिला देती हैं कमला के देखा देखी सभी हंस देते हैं और पुष्पा hunnnn मुंह भितकाते हुए नाश्ता करने लग गईं। ये देख सभी ओर जोर जोर से खिला खिलखिला देते हैं। सभी मस्ती में थे वहीं सभी को गिफ्ट देते देख रावण मन ही मन बोला…सभी ने गिफ्ट दिया मैं कुछ नहीं दिया तो सभी कहेंगे मुझे नाश्ता पसन्द नहीं आया। सभी को छोड़ो सुकन्या तो मेरा जीना ही हराम कर देगी पहले से ही नाराज हैं उसे और नाराज नहीं कर सकतीं हूं यहीं मौक़ा हैं बहु को गिफ्ट दे सुकन्या को माना लेता हूं। वैसे भी बहु गिफ्ट पाने वाला काम ही तो किया इतना स्वादिष्ट खाना तो आज तक नहीं खाया वाह बहु जवाब नहीं हैं तुम्हारा।

ये सोच रावण उठ कमला के पास जा गले में से एक सोने की चेन उतार कमला को दे दिया। नज़र फेर सुकन्या ने देखा फिर हल्का सा मुस्कुरा नज़रे फेर लिया जैसे कुछ देखा ही नहीं सुकन्या की इस हरकत पर रावण का नज़र पड़ गया। सुकन्या को मुस्कुराते देख रावण का दिल बाग बाग हों गया फिर मन ही मन बोला...जो सोचा था हों गया अब सुकन्या को बहला फुसलाकर माना ही लूंगा। सुकन्या बहुत रूठ लिए अब और नहीं ।

गिफ्टों का लेन देन होने के बाद सभी हसीं मजाक करते हुए नाश्ता करने लगें। सुरभि के कहने पर कमला भी नाश्ता करने बैठ गई। बरहाल हसीं खुशी सभी ने नाश्ता कर लिया नाश्ता के बाद राजेंद्र बोला...रावण मेरे साथ ऑफिस चल बहु घर आने की खुशी में सभी कामगारों को कुछ गिफ्ट देकर आते हैं।

रावण...ठीक है दादा भाई

अपश्यु...बड़े पापा आप के साथ मैं भी चलूंगा।

राजेंद्र…ठीक हैं तू भी चल लेना। सुरभि मैं सोच रहा हूं बहु घर आने की खुशी में एक पार्टी रखी जाएं तुम बोलों कब रखा जाएं।

सुरभि...मैं सोच रहीं थीं पहले बहु के साथ कुल देवी के मंदिर हों आए फिर पार्टी रखी जाएं तो कैसा होगा।

राजेंद्र...हां ये भी सही होगा मैं तो ऑफिस जा रहा हूं। तुम पूरोहित जी को आज ही बुलवाकर कोई शुभ मूहर्त निकलवा लो फिर उस हिसाब से आगे की तैयारी करते हैं।

इतना कह रावण, अपश्यु और राजेंद्र ऑफिस के लिए चल दिया। पुष्पा भाभी के साथ गप्पे मरने खुद के रूम में ले गया, रह गया रमन और रघु इन दोनों को सुरभि ने पुरोहित को लिवाने भेज दिया। कुछ क्षण में दोनों पुरोहित जी को लेकर आ गए। पुरोहित जी आते ही बोला...रानी मां नई बहू आने की बहुत बहुत बधाई।

सुरभि...धन्यवाद पुरोहित जी आइए बैठिए और एक अच्छा सा शुभ दिन देखिए। बहु को लेकर कुलदेवी की पूजा करने जाना हैं।

पुरोहित जी बैठे फिर पंचांग निकल खंगालने लग गए कुछ क्षण पंचांग खंगालने के बाद बोले...रानी मां तीन दिन बाद देवी के पूजा का एक बहुत अच्छा शुभ मुहूर्त हैं आप चाहो तो उस दिन कुल देवी की पूजा करने जा सकते हों।

सुरभि... ठीक है पुरोहित जी आप उस दिन समय से पहूंच जायेगा। जो तैयारी आप'के ओर से करना हैं कर लेना हमे किया तैयारी करना हैं बता दीजिए।

पूरोहीत...पूजन में जो भी सामान चाहिएं वो मैं ले आऊंगा बाकी आप अपने ओर से जो करना चाहो उसकी तैयारी कर लेना।

इसके बाद पुरोहित जी अनुमति लेकर चल दिए। रावण को सुकन्या से बात करने का समय ही नहीं मिला उसका पूरा दिन ऑफिस में ही कट गया फिर घर आते आते देर हों गया था। तब तक सुकन्या खाना खाकर सो चुका था। मन तो कर रहा था जगाकर बात करें पर कहीं फिर से नाराज न हों जाएं इसलिए बिना बात किए ही सो गया।

अपश्यु खाना पीना कर रूम में गया फिर फोन उठा एक कॉल किया दूसरे ओर से कॉल रिसीव होते ही अपश्यु बोला... डिंपल मैं अपश्यु

डिंपल...अपश्यु नाम के किसी भी शख्स को नहीं जानती आप ने रोंग नंबर लगा दिया।

अपश्यु...ये क्या बात हुआ मेरा आवाज भी भुल गए।

डिंपल...भुला मैं नहीं तुम भूले हों माना की घर में शादी था पर तुम्हें इतना भी वक्त नहीं मिला की मुझसे बात कर लो। मैं तुमसे बात करने के लिए कितना तड़प रहीं थीं और तुम हों की मेरा कोई खोज खबर ही न लिए।

अपश्यु...सॉरी बाबा अब गुस्सा थूक भी दो हो गई भुल अब माफ कर भी दो।

डिंपल...तुम्हारा सही हैं गलती करों फिर माफ़ी मांग लो कोई माफी नही मिलेगा कल मिलने आयो तो कुछ सोच सकती हूं।

अपश्यु…कल देखता हूं टाइम मिला तो आ जाऊंगा।

डिंपल... देखती हूं कल मैं उसी पार्क में वेट करुंगी तुम टाइम से आ जाना नहीं आए तो सोच लेना। ओके बाय कोई आ रहा हैं मैं अभी रखती हूं।

अपश्यु... डिंपल सुनो तो..

अपश्यु सुनो तो, सुनो तो कहता रहा गया और डिंपल ने फ़ोन कट दिया। अपश्यु रिसीवर रखा फिर बोला…अजीब लडकी है पुरी बात सुने बिना ही कॉल काट दिया। लगता है बहुत गुस्से में हैं कल कुछ भी करके मिलने जाना पड़ेगा नहीं तो ओर नाराज हों जाएगी फिर मनाने में मेरा जेब खाली हों जायेगा। जो भी हों कल देखा जायेगा आज बहुत थक गया सो जाता हूं।

अपश्यु सोते ही नींद की वादी में खो गाय। इधर सुरभि ने पुरोहित जी से जो भी बात चीत हुआ बता दिया जिसे सुन कल सभी से बात करने को बोल सो गया।

अगले दिन सभी समय से नाश्ते के टेबल पर मिले फिर सभी नाश्ता करने लग गए। नाश्ता कर ही रहें थें की तभी "वाह जी बहु के आते ही बहु के हाथ का बना, खाने का मज़ा लिया जा रहा हैं खाओ खाओ पेट भरा के खाओ।"

सभी आवाज की दिशा में देखा उधर से मुंशी के साथ मुंशी की बीबी उर्वशी मुस्कुराते हुए आ रहे थें। दोनों को देख राजेंद्र बोल…आ जा तू भी कर ले तुझे किसने मना किया। भाभी आप कैसे हों।

उर्वशी...राजा जी मैं बिल्कुल ठीक नहीं हूं आप और रानी मां कैसे हों।

सुरभि...उर्वशी तुम्हें किया हुआ।

दोनों पास आए तब रघु ने कमला को साथ लिए दोनों का आशिर्वाद लिया फिर रमन भी आर्शीवाद लिया फिर बोला...मां पापा कैसे हों।

उर्वशी...ओ हो तुम्हें याद है की तुम्हारे मां बाप भी हैं जब से आया है एक बार भी देखने नहीं आया मां पापा कैसे हैं अब पूछ रहा हैं कैसे हों

सुरभि...उर्वशी मेरे बेटे को बिल्कुल नहीं डटना।

उर्वशी...हां हां रमन भी तुम्हारा बेटा रघु भी तुम्हारा बेटा तो मेरा कौन हैं।

पुष्पा...आंटी मैं हूं न आप की बेटी।

उर्वशी... तू भी सिर्फ नाम की बेटी हैं कब की आई हुई हैं एक बार मिलने भी नहीं आई।

पुष्पा...आंटी भईया की शादी में मिला तो था। आप तो जानते ही थे भईया की शादी था घर में सभी अलसी हैं इनसे काम करवाते करवाते मेरा पसीना छूट गई इसलिए मिलने नहीं आ पाई।

उर्वशी..हां हां मैं जानती हूं इस घर में तुम ही एक लायक बच्ची हों बाकी तो सभी निकम्मे हैं।

इतना कह उर्वशी हंस दिया उर्वशी के साथ सभी भी मुस्कुरा दिए। पुष्पा आगे कुछ कहती उससे पहले सुरभि बोली...बाते बहुत हुआ उर्वशी बैठो ओर नाश्ता करो।

मुंशी...रानी मां नाश्ता तो तभी करेगें जब बहु खुद बना कर खिलाएगी।

कमला...आप दोनों बैठे मैं अभी बना कर लाई।

इतना कह कमला उठ गई उर्वशी रोकते हुए बोली...अरे बहु रानी पहले नाश्ता कर लो हम तुम्हारे हाथ का बना खाना फिर कभी खां लेंगे।

कमला बैठा गई फिर मुंशी और उर्वशी भी बैठ गए फिर मुंशी बोला...रमन बेटा तुम हमारे साथ चलो तुम्हारे मामा जी की तबियत खराब हैं। हमें उन्हें देखने जाना हैं।

रघु…काका मामा जी को क्या हुआ? ज्यादा तबियत खराब तो नहीं हैं।

मुंशी…फ़ोन पर ही बात हुआ है जाकर देखेंगे तभी जान पायेंगे तबियत कितना खराब हैं।

राजेंद्र...दो दिन बाद कुलदेवी मंदिर जा रहे हैं तब तक आ जायेगा कि नहीं।

मुंशी...कोशिश करूंगा नहीं आ पाया तो बता दुंगा और अगर आया तो हम सीधा मंदिर ही पहुंच जाएंगे।

राजेंद्र...जो तुझे ठीक लगें करना इस मामले में मैं ज्यादा हस्तक्षेप नहीं करूंगा। तेरे साले साहब की तबियत खराब न होता तो मैं तेरा कहा नहीं सुनता।

इसके बाद सभी ने नाश्ता कर लिया फिर रमन अपना बैग लेने चला गया तब उर्वशी बोला...बहु रानी तुम्हारे हाथ का खाना खाने हम जरूर आयेंगे।

कमला…जल्दी आइएगा और आने से पहले बता दीजियेगा ताकि मैं खाना पहले से ही बना कर रख सकूं।

कमला की बाते सुन सभी मुस्करा दिए। रमन के आते ही तीनों चले गए फिर राजेंद्र बोला...अपश्यु बेटा आज भी तुम मेरे साथ चलना तुम्हें मेरे साथ चलने में कोई दिक्कत तो नहीं हैं।

अपश्यु...नहीं बड़े पापा कोई दिक्कत नहीं हैं।

अपश्यु की बात सुन सभी अबक रहें गए क्योंकि अपश्यु इससे पहले कोई भी काम करने को कहो तो दो टूक जवाब दे माना कर देता था। अपश्यु से हां सुन सुकन्या मन में बोली...अपश्यु में इतना बदलाब कैसे आ गया पहले तो कुछ भी कहो दो टूक जवाब दे माना कर देता था। लगता हैं मेरा बेटा जिम्मेदार होने लग गया। बेटा ऐसे ही बड़ो का कहा मानना हे भगवान मेरा बेटा अपने बाप जैसा न बाने जो अपनो के साथ गद्दारी करने में लगा हुआ हैं।

राजेंद्र…रावण मैं सोचा रहा हूं कुलदेवी मंदिर से आने के एक हफ्ते बाद घर पे एक बड़ी पार्टी रखा जाएं तू किया कहता हैं।

रावण…अपने सही सोचा पार्टी तो होना ही चाहिए दादाभाई पार्टी ग्रांड होना चाहिए सभी को पाता चलना चाहिए राज परिवार में बहु आने की खुशियां मनाया जा रहा हैं।

राजेंद्र... हां हां जैसा तुम चाहो करों पार्टी की जिम्मेदारी तुम्हारे सर हैं जैसा तैयारी करना हैं करों।

सभी राजेंद्र के हां हां मिलता हैं। इसके बाद राजेंद्र अपश्यु को साथ ले चला गया। रावण बीबी को मनाना चाहता था लेकिन ऑफिस से एक जरूरी काम का फोन आया तो वहा चला गया। रघु भी जाना चाहता था पर सुरभि ने माना कर दिया तो रावण अकेले ही ऑफिस चला गया।


आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे यहां तक साथ बाने रहने के लिय बहुत बहुत धन्यवाद।
🙏🙏🙏🙏
Nice and lovely update....
 

Luffy

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Superb update
Update - 36


अपश्यु को पूरा नाश्ता किए बिना जाते देख सुकन्या बोली…अपश्यु रुक जा बेटा कहा जा रहा हैं। अभी तो कह रहा था बाड़ी जोरों की भूख लगा हैं। दो चार निवाले में ही पेट भरा गया।

सुरभि...अपश्यु बेटा ऐसा नहीं करते खाना बीच में छोड़कर नहीं जाते आ जा नाश्ता कर ले।

अपश्यु किसी का नहीं सूना चलाता चला गया। रूम में जाकर ही रुका, अपश्यु के जाते ही कमला का चेहरा उतर गया। उसे लगा शायद अपश्यु को उसका बनाया नाश्ता पसन्द नहीं आया इसलिए नाश्ता किए बिना ही चला गया।

राजेंद्र ने एक दो निवाला ओर खाया फिर सुरभि के कान में कुछ कहा तब सुरभि "मैं अभी आई" कह कर रूम की और चल दिया। कमला को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था ये हों किया रहा हैं। सुरभि के जाते ही सुकन्या भी "मैं अभी आई कहकर" रूम की ओर चली गई। जो भी हों रहा था उसे देख कमला को लगने लगा पक्का नाश्ता बनाने में कोई कमी रह गईं होगी इसलिए एक एक कर सभी उठकर जा रहे हैं। सोचा था पाक कला में निपुर्णता दिखा सभी का मन मोह लूंगा पर हों उल्टा रहा हैं। कमला को ये भी लग रहा था पहली रसोई के परीक्षा में ही फेल हों गया न जानें आगे ओर कितनी बार प्रस्त होना पड़ेगा। पहली सुबह ही सभी के मान मे उसके प्रति गलत धारणा बन गया। अपकी बेटी को खाना अच्छे से बनाना नहीं आता। बेटी को अपने ये सिखाया था। मां के पास शिकायत गया। तो मां खुद को कितना अपमानित महसूस करेंगी ये सोच कभी भी रो दे ऐसा हाल कमला का हों गया।

बाकी बचे लोग जो बड़े चाव से खा रहें थें उन पर कमला ने कोई ध्यान ही नहीं दिया उसका ध्यान सिर्फ उठकर गए तीन ही लोगों पर था। "भाभी थोडी ओर sabjiiii" बोल पुष्पा कमला की ओर देखा कमला का रुवशा चेहरा देख बोली...भाभी क्या हुआ? अपका चेहरा क्यों उतर गया।

कमला चेहरे के भाव को सुधार बनावटी मुस्कान होटों पर सजा बोली...कुछ नहीं तुम बोलो कुछ मांग रहीं थी।

पुष्पा...मैं सब्जी मांग रहीं थीं लाओ थोडी ओर सब्जी दो और बताओ आप'का चेहरा क्यों उतरा हुआ हैं।

कमला सब्जी दे ही रही थीं तभी रघु बोला...बोलों कमला क्या हुआ?

कमला...कुछ नहीं हुआ आप बताइए नाश्ता कैसा बना हैं।

रमन...भाभी इससे क्यों पूछ रहें हों मैं बताता हूं। नाश्ता बहुत लाजवाब बना हैं आप'के हाथों में तो जादू हैं।

पुष्पा...हां भाभी नाश्ता इतना बेहतरीन बना हैं क्या ही कहूं मन कर रहा हैं सिर्फ खाता ही जाऊ खाता ही जाऊ लेकिन खा नहीं सकता क्योंकि पेट छोटा सा हैं।

पुष्पा की बाते सुन कमला के चेहरे पर मुस्कान लौट आया फिर राजेंद्र बोला...हां बेटी बहुत स्वादिष्ट नाश्ता बनाया हैं रमन सही कह रहा था तुम्हारे हाथों में जादू हैं। तुम्हारे हाथ का बना, खाने का तो मैं पहले से ही कायल हूं। रावण बहु ने इतना अच्छा खाना बनाया इस पर तू कुछ नहीं कहेगा।

रावण...दादा भाई मेरे कहने के लिए कुछ बचा ही कहा हैं आप सभी ने तो पहले से ही भर भर के बहु की तारीफ कर दिया। बहु बहुत स्वादिष्ट और लाजवाब नाश्ता बनाया।

कमला...आप सभी मेरी झूठी तारीफे कर रहे हों। नाश्ता अच्छा बना होता तो क्या मम्मी जी, छोटी मां और देवर जी उठकर जाते।

अपश्यु रूम से आ चुका था और कमला की बाते सुन लिया था तो कमला के पास गया फिर बोला... भाभी सच में आपने नाश्ता बहुत स्वादिष्ट और लाजवाब बनाया हैं। मैं आप'को देने के लिए कल एक गिफ्ट लाया था। उसे लेने गया था पक्का मां और बड़ी मां भी आप'को देने के लिए कोई गिफ्ट लेने गए होंगे। मैं अपको कल से गिफ्ट देने का मौका ढूंढ रहा था। इससे अच्छा मौका आप'को गिफ्ट देने का मुझे मिल ही नहीं सकता। लीजिए आपका गिफ्ट।

अपश्यु का दिया गिफ्ट कमला पकड़ लिया फिर बोला...thank you देवर जी।

रमन, रघु और पुष्पा प्लेट को साफा चाट कर चुका था। खली प्लेट देख अपश्यु बोला... दादा भाई आप तीनों थोडी देर मेरे लिए रूक नहीं सकते थे। मेरे बिना ही प्लेट साफ कर दिया। भाभी जल्दी से परोस दीजिए बड़ी जोरों की भूख लगा हैं।

पुष्पा...हमने थोड़े न आप'को बीच नाश्ते से उठकर जानें को कहा था। आप'को गिफ्ट देना ही था तो नाश्ते के बाद दे सकते थे।

अपश्यु…चल थोड़ा परे खिसक मुझे बैठने दे। तुझे तो गिफ्ट देना नहीं है कोई गिफ्ट लाई होगी तभी न भाभी को गिफ्ट देगी।

पुष्पा के जगह देने पर अपश्यु बैठ गया फिर पुष्पा बोली... मैं भला क्यों भाभी को गिफ्ट दूंगी मैं तो उल्टा भाभी से गिफ्ट लूंगी।

सुरभि रूम से आ रही थीं आते हुऐ बोली... पुष्पा तू बहु से गिफ्ट क्यों लेगी आज तो उल्टा तुझे बहु को गिफ्ट देना चाहिए बहु ने इतना स्वादिष्ट नाश्ता जो बनाया।

पुष्पा...मैं नहीं देने वाली कोई गिफ्ट विफ्ट पहले ही कह दे रही हूं।

सुरभि...हां किसी को तू क्यों गिफ्ट देगा। तू तो बस सजा देगा लेकिन मेरी बात कान खोलकर सुन ले मेरी बहु को तूने आगर सजा दिया तो अच्छा नहीं होगा।

पुष्पा…अच्छा ! तो फिर भाभी को कह दो मेरा कहना न टाले और कोई गलती न करें ऐसा हुआ तो मुझे सजा देने से कोई नहीं रोक सकता आप भी नहीं क्योंकि मैं महारानी हूं। महारानी सभी पर राज करती हैं

पुष्पा की बाते सुन सभी हंस दिया। सुरभि तब तक पास आ चुकी थी। साथ में एक बॉक्स लेकर आई थीं बॉक्स कमला को देते हुऐ बोली...बहु ये गिफ्ट मेरे जीवन का सबसे अनमोल गिफ्ट हैं। मेरे पहले रसोई पर मेरे सास ने मुझे दिया था आज मैं तुम्हें दे रहा हूं।

कमला मुस्कुराते हुऐ बॉक्स को ले लिया। तब तक सुकन्या भी आ चुकी थीं उसके हाथ में भी एक बॉक्स था। जिसे कमला को दे दिया। बॉक्स देख सुरभि बोली...छोटी ये toooo

सुकन्या...हां दीदी अपने मुझे मेरे पहले रसोई पर दिया था जबकि मैंने खाना इतना अच्छा नहीं बनाया था तब भी आप मेरी तारीफ किया था और ये गिफ्ट दिया था आज मैं इस गिफ्ट का जो सही हकदार हैं उसे दे रहीं हूं।

पुष्पा…हां तो अब भी कौन सा अच्छा खाना बनाती हों कितना सिखाया सीखती ही नहीं हों आप जैसा नालायक बच्चा मैंने नहीं देखा।

पुष्पा की बात सुन सुरभि ने आंख दिखाया और सुकन्या मुस्कुराते हुऐ अपने जगह जाकर बैठ गई। तब कमला बोली...महारानी जी तुम चिन्ता न करों मैं देखूंगी आप कितनी लायक बच्ची हों किसी दिन मैं आप'से खाना बनबाऊंगी आगर अच्छा नहीं बाना तो फिर देख लेना।

पुष्पा...हां हां देख लेना रोका किसने हैं।

सुकन्या...मेरी बेटी भी किसी से काम नहीं जब मन करे देख लेना बहु तुम'से अच्छा न सही पर तुम'से खराब भी नहीं बनाएगी।

पुष्पा...भाभी सूना अपने छोटी मां ने किया कहा

कमला... हां हां सुना हैं देखा नहीं हैं जिस दिन देख लूंगी उस दिन मन लूंगी।

इतना कहा कमला खिलखिला देती हैं कमला के देखा देखी सभी हंस देते हैं और पुष्पा hunnnn मुंह भितकाते हुए नाश्ता करने लग गईं। ये देख सभी ओर जोर जोर से खिला खिलखिला देते हैं। सभी मस्ती में थे वहीं सभी को गिफ्ट देते देख रावण मन ही मन बोला…सभी ने गिफ्ट दिया मैं कुछ नहीं दिया तो सभी कहेंगे मुझे नाश्ता पसन्द नहीं आया। सभी को छोड़ो सुकन्या तो मेरा जीना ही हराम कर देगी पहले से ही नाराज हैं उसे और नाराज नहीं कर सकतीं हूं यहीं मौक़ा हैं बहु को गिफ्ट दे सुकन्या को माना लेता हूं। वैसे भी बहु गिफ्ट पाने वाला काम ही तो किया इतना स्वादिष्ट खाना तो आज तक नहीं खाया वाह बहु जवाब नहीं हैं तुम्हारा।

ये सोच रावण उठ कमला के पास जा गले में से एक सोने की चेन उतार कमला को दे दिया। नज़र फेर सुकन्या ने देखा फिर हल्का सा मुस्कुरा नज़रे फेर लिया जैसे कुछ देखा ही नहीं सुकन्या की इस हरकत पर रावण का नज़र पड़ गया। सुकन्या को मुस्कुराते देख रावण का दिल बाग बाग हों गया फिर मन ही मन बोला...जो सोचा था हों गया अब सुकन्या को बहला फुसलाकर माना ही लूंगा। सुकन्या बहुत रूठ लिए अब और नहीं ।

गिफ्टों का लेन देन होने के बाद सभी हसीं मजाक करते हुए नाश्ता करने लगें। सुरभि के कहने पर कमला भी नाश्ता करने बैठ गई। बरहाल हसीं खुशी सभी ने नाश्ता कर लिया नाश्ता के बाद राजेंद्र बोला...रावण मेरे साथ ऑफिस चल बहु घर आने की खुशी में सभी कामगारों को कुछ गिफ्ट देकर आते हैं।

रावण...ठीक है दादा भाई

अपश्यु...बड़े पापा आप के साथ मैं भी चलूंगा।

राजेंद्र…ठीक हैं तू भी चल लेना। सुरभि मैं सोच रहा हूं बहु घर आने की खुशी में एक पार्टी रखी जाएं तुम बोलों कब रखा जाएं।

सुरभि...मैं सोच रहीं थीं पहले बहु के साथ कुल देवी के मंदिर हों आए फिर पार्टी रखी जाएं तो कैसा होगा।

राजेंद्र...हां ये भी सही होगा मैं तो ऑफिस जा रहा हूं। तुम पूरोहित जी को आज ही बुलवाकर कोई शुभ मूहर्त निकलवा लो फिर उस हिसाब से आगे की तैयारी करते हैं।

इतना कह रावण, अपश्यु और राजेंद्र ऑफिस के लिए चल दिया। पुष्पा भाभी के साथ गप्पे मरने खुद के रूम में ले गया, रह गया रमन और रघु इन दोनों को सुरभि ने पुरोहित को लिवाने भेज दिया। कुछ क्षण में दोनों पुरोहित जी को लेकर आ गए। पुरोहित जी आते ही बोला...रानी मां नई बहू आने की बहुत बहुत बधाई।

सुरभि...धन्यवाद पुरोहित जी आइए बैठिए और एक अच्छा सा शुभ दिन देखिए। बहु को लेकर कुलदेवी की पूजा करने जाना हैं।

पुरोहित जी बैठे फिर पंचांग निकल खंगालने लग गए कुछ क्षण पंचांग खंगालने के बाद बोले...रानी मां तीन दिन बाद देवी के पूजा का एक बहुत अच्छा शुभ मुहूर्त हैं आप चाहो तो उस दिन कुल देवी की पूजा करने जा सकते हों।

सुरभि... ठीक है पुरोहित जी आप उस दिन समय से पहूंच जायेगा। जो तैयारी आप'के ओर से करना हैं कर लेना हमे किया तैयारी करना हैं बता दीजिए।

पूरोहीत...पूजन में जो भी सामान चाहिएं वो मैं ले आऊंगा बाकी आप अपने ओर से जो करना चाहो उसकी तैयारी कर लेना।

इसके बाद पुरोहित जी अनुमति लेकर चल दिए। रावण को सुकन्या से बात करने का समय ही नहीं मिला उसका पूरा दिन ऑफिस में ही कट गया फिर घर आते आते देर हों गया था। तब तक सुकन्या खाना खाकर सो चुका था। मन तो कर रहा था जगाकर बात करें पर कहीं फिर से नाराज न हों जाएं इसलिए बिना बात किए ही सो गया।

अपश्यु खाना पीना कर रूम में गया फिर फोन उठा एक कॉल किया दूसरे ओर से कॉल रिसीव होते ही अपश्यु बोला... डिंपल मैं अपश्यु

डिंपल...अपश्यु नाम के किसी भी शख्स को नहीं जानती आप ने रोंग नंबर लगा दिया।

अपश्यु...ये क्या बात हुआ मेरा आवाज भी भुल गए।

डिंपल...भुला मैं नहीं तुम भूले हों माना की घर में शादी था पर तुम्हें इतना भी वक्त नहीं मिला की मुझसे बात कर लो। मैं तुमसे बात करने के लिए कितना तड़प रहीं थीं और तुम हों की मेरा कोई खोज खबर ही न लिए।

अपश्यु...सॉरी बाबा अब गुस्सा थूक भी दो हो गई भुल अब माफ कर भी दो।

डिंपल...तुम्हारा सही हैं गलती करों फिर माफ़ी मांग लो कोई माफी नही मिलेगा कल मिलने आयो तो कुछ सोच सकती हूं।

अपश्यु…कल देखता हूं टाइम मिला तो आ जाऊंगा।

डिंपल... देखती हूं कल मैं उसी पार्क में वेट करुंगी तुम टाइम से आ जाना नहीं आए तो सोच लेना। ओके बाय कोई आ रहा हैं मैं अभी रखती हूं।

अपश्यु... डिंपल सुनो तो..

अपश्यु सुनो तो, सुनो तो कहता रहा गया और डिंपल ने फ़ोन कट दिया। अपश्यु रिसीवर रखा फिर बोला…अजीब लडकी है पुरी बात सुने बिना ही कॉल काट दिया। लगता है बहुत गुस्से में हैं कल कुछ भी करके मिलने जाना पड़ेगा नहीं तो ओर नाराज हों जाएगी फिर मनाने में मेरा जेब खाली हों जायेगा। जो भी हों कल देखा जायेगा आज बहुत थक गया सो जाता हूं।

अपश्यु सोते ही नींद की वादी में खो गाय। इधर सुरभि ने पुरोहित जी से जो भी बात चीत हुआ बता दिया जिसे सुन कल सभी से बात करने को बोल सो गया।

अगले दिन सभी समय से नाश्ते के टेबल पर मिले फिर सभी नाश्ता करने लग गए। नाश्ता कर ही रहें थें की तभी "वाह जी बहु के आते ही बहु के हाथ का बना, खाने का मज़ा लिया जा रहा हैं खाओ खाओ पेट भरा के खाओ।"

सभी आवाज की दिशा में देखा उधर से मुंशी के साथ मुंशी की बीबी उर्वशी मुस्कुराते हुए आ रहे थें। दोनों को देख राजेंद्र बोल…आ जा तू भी कर ले तुझे किसने मना किया। भाभी आप कैसे हों।

उर्वशी...राजा जी मैं बिल्कुल ठीक नहीं हूं आप और रानी मां कैसे हों।

सुरभि...उर्वशी तुम्हें किया हुआ।

दोनों पास आए तब रघु ने कमला को साथ लिए दोनों का आशिर्वाद लिया फिर रमन भी आर्शीवाद लिया फिर बोला...मां पापा कैसे हों।

उर्वशी...ओ हो तुम्हें याद है की तुम्हारे मां बाप भी हैं जब से आया है एक बार भी देखने नहीं आया मां पापा कैसे हैं अब पूछ रहा हैं कैसे हों

सुरभि...उर्वशी मेरे बेटे को बिल्कुल नहीं डटना।

उर्वशी...हां हां रमन भी तुम्हारा बेटा रघु भी तुम्हारा बेटा तो मेरा कौन हैं।

पुष्पा...आंटी मैं हूं न आप की बेटी।

उर्वशी... तू भी सिर्फ नाम की बेटी हैं कब की आई हुई हैं एक बार मिलने भी नहीं आई।

पुष्पा...आंटी भईया की शादी में मिला तो था। आप तो जानते ही थे भईया की शादी था घर में सभी अलसी हैं इनसे काम करवाते करवाते मेरा पसीना छूट गई इसलिए मिलने नहीं आ पाई।

उर्वशी..हां हां मैं जानती हूं इस घर में तुम ही एक लायक बच्ची हों बाकी तो सभी निकम्मे हैं।

इतना कह उर्वशी हंस दिया उर्वशी के साथ सभी भी मुस्कुरा दिए। पुष्पा आगे कुछ कहती उससे पहले सुरभि बोली...बाते बहुत हुआ उर्वशी बैठो ओर नाश्ता करो।

मुंशी...रानी मां नाश्ता तो तभी करेगें जब बहु खुद बना कर खिलाएगी।

कमला...आप दोनों बैठे मैं अभी बना कर लाई।

इतना कह कमला उठ गई उर्वशी रोकते हुए बोली...अरे बहु रानी पहले नाश्ता कर लो हम तुम्हारे हाथ का बना खाना फिर कभी खां लेंगे।

कमला बैठा गई फिर मुंशी और उर्वशी भी बैठ गए फिर मुंशी बोला...रमन बेटा तुम हमारे साथ चलो तुम्हारे मामा जी की तबियत खराब हैं। हमें उन्हें देखने जाना हैं।

रघु…काका मामा जी को क्या हुआ? ज्यादा तबियत खराब तो नहीं हैं।

मुंशी…फ़ोन पर ही बात हुआ है जाकर देखेंगे तभी जान पायेंगे तबियत कितना खराब हैं।

राजेंद्र...दो दिन बाद कुलदेवी मंदिर जा रहे हैं तब तक आ जायेगा कि नहीं।

मुंशी...कोशिश करूंगा नहीं आ पाया तो बता दुंगा और अगर आया तो हम सीधा मंदिर ही पहुंच जाएंगे।

राजेंद्र...जो तुझे ठीक लगें करना इस मामले में मैं ज्यादा हस्तक्षेप नहीं करूंगा। तेरे साले साहब की तबियत खराब न होता तो मैं तेरा कहा नहीं सुनता।

इसके बाद सभी ने नाश्ता कर लिया फिर रमन अपना बैग लेने चला गया तब उर्वशी बोला...बहु रानी तुम्हारे हाथ का खाना खाने हम जरूर आयेंगे।

कमला…जल्दी आइएगा और आने से पहले बता दीजियेगा ताकि मैं खाना पहले से ही बना कर रख सकूं।

कमला की बाते सुन सभी मुस्करा दिए। रमन के आते ही तीनों चले गए फिर राजेंद्र बोला...अपश्यु बेटा आज भी तुम मेरे साथ चलना तुम्हें मेरे साथ चलने में कोई दिक्कत तो नहीं हैं।

अपश्यु...नहीं बड़े पापा कोई दिक्कत नहीं हैं।

अपश्यु की बात सुन सभी अबक रहें गए क्योंकि अपश्यु इससे पहले कोई भी काम करने को कहो तो दो टूक जवाब दे माना कर देता था। अपश्यु से हां सुन सुकन्या मन में बोली...अपश्यु में इतना बदलाब कैसे आ गया पहले तो कुछ भी कहो दो टूक जवाब दे माना कर देता था। लगता हैं मेरा बेटा जिम्मेदार होने लग गया। बेटा ऐसे ही बड़ो का कहा मानना हे भगवान मेरा बेटा अपने बाप जैसा न बाने जो अपनो के साथ गद्दारी करने में लगा हुआ हैं।

राजेंद्र…रावण मैं सोचा रहा हूं कुलदेवी मंदिर से आने के एक हफ्ते बाद घर पे एक बड़ी पार्टी रखा जाएं तू किया कहता हैं।

रावण…अपने सही सोचा पार्टी तो होना ही चाहिए दादाभाई पार्टी ग्रांड होना चाहिए सभी को पाता चलना चाहिए राज परिवार में बहु आने की खुशियां मनाया जा रहा हैं।

राजेंद्र... हां हां जैसा तुम चाहो करों पार्टी की जिम्मेदारी तुम्हारे सर हैं जैसा तैयारी करना हैं करों।

सभी राजेंद्र के हां हां मिलता हैं। इसके बाद राजेंद्र अपश्यु को साथ ले चला गया। रावण बीबी को मनाना चाहता था लेकिन ऑफिस से एक जरूरी काम का फोन आया तो वहा चला गया। रघु भी जाना चाहता था पर सुरभि ने माना कर दिया तो रावण अकेले ही ऑफिस चला गया।


आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे यहां तक साथ बाने रहने के लिय बहुत बहुत धन्यवाद।
🙏🙏🙏🙏
 

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अपश्यु को पूरा नाश्ता किए बिना जाते देख सुकन्या बोली…अपश्यु रुक जा बेटा कहा जा रहा हैं। अभी तो कह रहा था बाड़ी जोरों की भूख लगा हैं। दो चार निवाले में ही पेट भरा गया।

सुरभि...अपश्यु बेटा ऐसा नहीं करते खाना बीच में छोड़कर नहीं जाते आ जा नाश्ता कर ले।

अपश्यु किसी का नहीं सूना चलाता चला गया। रूम में जाकर ही रुका, अपश्यु के जाते ही कमला का चेहरा उतर गया। उसे लगा शायद अपश्यु को उसका बनाया नाश्ता पसन्द नहीं आया इसलिए नाश्ता किए बिना ही चला गया।

राजेंद्र ने एक दो निवाला ओर खाया फिर सुरभि के कान में कुछ कहा तब सुरभि "मैं अभी आई" कह कर रूम की और चल दिया। कमला को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था ये हों किया रहा हैं। सुरभि के जाते ही सुकन्या भी "मैं अभी आई कहकर" रूम की ओर चली गई। जो भी हों रहा था उसे देख कमला को लगने लगा पक्का नाश्ता बनाने में कोई कमी रह गईं होगी इसलिए एक एक कर सभी उठकर जा रहे हैं। सोचा था पाक कला में निपुर्णता दिखा सभी का मन मोह लूंगा पर हों उल्टा रहा हैं। कमला को ये भी लग रहा था पहली रसोई के परीक्षा में ही फेल हों गया न जानें आगे ओर कितनी बार प्रस्त होना पड़ेगा। पहली सुबह ही सभी के मान मे उसके प्रति गलत धारणा बन गया। अपकी बेटी को खाना अच्छे से बनाना नहीं आता। बेटी को अपने ये सिखाया था। मां के पास शिकायत गया। तो मां खुद को कितना अपमानित महसूस करेंगी ये सोच कभी भी रो दे ऐसा हाल कमला का हों गया।

बाकी बचे लोग जो बड़े चाव से खा रहें थें उन पर कमला ने कोई ध्यान ही नहीं दिया उसका ध्यान सिर्फ उठकर गए तीन ही लोगों पर था। "भाभी थोडी ओर sabjiiii" बोल पुष्पा कमला की ओर देखा कमला का रुवशा चेहरा देख बोली...भाभी क्या हुआ? अपका चेहरा क्यों उतर गया।

कमला चेहरे के भाव को सुधार बनावटी मुस्कान होटों पर सजा बोली...कुछ नहीं तुम बोलो कुछ मांग रहीं थी।

पुष्पा...मैं सब्जी मांग रहीं थीं लाओ थोडी ओर सब्जी दो और बताओ आप'का चेहरा क्यों उतरा हुआ हैं।

कमला सब्जी दे ही रही थीं तभी रघु बोला...बोलों कमला क्या हुआ?

कमला...कुछ नहीं हुआ आप बताइए नाश्ता कैसा बना हैं।

रमन...भाभी इससे क्यों पूछ रहें हों मैं बताता हूं। नाश्ता बहुत लाजवाब बना हैं आप'के हाथों में तो जादू हैं।

पुष्पा...हां भाभी नाश्ता इतना बेहतरीन बना हैं क्या ही कहूं मन कर रहा हैं सिर्फ खाता ही जाऊ खाता ही जाऊ लेकिन खा नहीं सकता क्योंकि पेट छोटा सा हैं।

पुष्पा की बाते सुन कमला के चेहरे पर मुस्कान लौट आया फिर राजेंद्र बोला...हां बेटी बहुत स्वादिष्ट नाश्ता बनाया हैं रमन सही कह रहा था तुम्हारे हाथों में जादू हैं। तुम्हारे हाथ का बना, खाने का तो मैं पहले से ही कायल हूं। रावण बहु ने इतना अच्छा खाना बनाया इस पर तू कुछ नहीं कहेगा।

रावण...दादा भाई मेरे कहने के लिए कुछ बचा ही कहा हैं आप सभी ने तो पहले से ही भर भर के बहु की तारीफ कर दिया। बहु बहुत स्वादिष्ट और लाजवाब नाश्ता बनाया।

कमला...आप सभी मेरी झूठी तारीफे कर रहे हों। नाश्ता अच्छा बना होता तो क्या मम्मी जी, छोटी मां और देवर जी उठकर जाते।

अपश्यु रूम से आ चुका था और कमला की बाते सुन लिया था तो कमला के पास गया फिर बोला... भाभी सच में आपने नाश्ता बहुत स्वादिष्ट और लाजवाब बनाया हैं। मैं आप'को देने के लिए कल एक गिफ्ट लाया था। उसे लेने गया था पक्का मां और बड़ी मां भी आप'को देने के लिए कोई गिफ्ट लेने गए होंगे। मैं अपको कल से गिफ्ट देने का मौका ढूंढ रहा था। इससे अच्छा मौका आप'को गिफ्ट देने का मुझे मिल ही नहीं सकता। लीजिए आपका गिफ्ट।

अपश्यु का दिया गिफ्ट कमला पकड़ लिया फिर बोला...thank you देवर जी।

रमन, रघु और पुष्पा प्लेट को साफा चाट कर चुका था। खली प्लेट देख अपश्यु बोला... दादा भाई आप तीनों थोडी देर मेरे लिए रूक नहीं सकते थे। मेरे बिना ही प्लेट साफ कर दिया। भाभी जल्दी से परोस दीजिए बड़ी जोरों की भूख लगा हैं।

पुष्पा...हमने थोड़े न आप'को बीच नाश्ते से उठकर जानें को कहा था। आप'को गिफ्ट देना ही था तो नाश्ते के बाद दे सकते थे।

अपश्यु…चल थोड़ा परे खिसक मुझे बैठने दे। तुझे तो गिफ्ट देना नहीं है कोई गिफ्ट लाई होगी तभी न भाभी को गिफ्ट देगी।

पुष्पा के जगह देने पर अपश्यु बैठ गया फिर पुष्पा बोली... मैं भला क्यों भाभी को गिफ्ट दूंगी मैं तो उल्टा भाभी से गिफ्ट लूंगी।

सुरभि रूम से आ रही थीं आते हुऐ बोली... पुष्पा तू बहु से गिफ्ट क्यों लेगी आज तो उल्टा तुझे बहु को गिफ्ट देना चाहिए बहु ने इतना स्वादिष्ट नाश्ता जो बनाया।

पुष्पा...मैं नहीं देने वाली कोई गिफ्ट विफ्ट पहले ही कह दे रही हूं।

सुरभि...हां किसी को तू क्यों गिफ्ट देगा। तू तो बस सजा देगा लेकिन मेरी बात कान खोलकर सुन ले मेरी बहु को तूने आगर सजा दिया तो अच्छा नहीं होगा।

पुष्पा…अच्छा ! तो फिर भाभी को कह दो मेरा कहना न टाले और कोई गलती न करें ऐसा हुआ तो मुझे सजा देने से कोई नहीं रोक सकता आप भी नहीं क्योंकि मैं महारानी हूं। महारानी सभी पर राज करती हैं

पुष्पा की बाते सुन सभी हंस दिया। सुरभि तब तक पास आ चुकी थी। साथ में एक बॉक्स लेकर आई थीं बॉक्स कमला को देते हुऐ बोली...बहु ये गिफ्ट मेरे जीवन का सबसे अनमोल गिफ्ट हैं। मेरे पहले रसोई पर मेरे सास ने मुझे दिया था आज मैं तुम्हें दे रहा हूं।

कमला मुस्कुराते हुऐ बॉक्स को ले लिया। तब तक सुकन्या भी आ चुकी थीं उसके हाथ में भी एक बॉक्स था। जिसे कमला को दे दिया। बॉक्स देख सुरभि बोली...छोटी ये toooo

सुकन्या...हां दीदी अपने मुझे मेरे पहले रसोई पर दिया था जबकि मैंने खाना इतना अच्छा नहीं बनाया था तब भी आप मेरी तारीफ किया था और ये गिफ्ट दिया था आज मैं इस गिफ्ट का जो सही हकदार हैं उसे दे रहीं हूं।

पुष्पा…हां तो अब भी कौन सा अच्छा खाना बनाती हों कितना सिखाया सीखती ही नहीं हों आप जैसा नालायक बच्चा मैंने नहीं देखा।

पुष्पा की बात सुन सुरभि ने आंख दिखाया और सुकन्या मुस्कुराते हुऐ अपने जगह जाकर बैठ गई। तब कमला बोली...महारानी जी तुम चिन्ता न करों मैं देखूंगी आप कितनी लायक बच्ची हों किसी दिन मैं आप'से खाना बनबाऊंगी आगर अच्छा नहीं बाना तो फिर देख लेना।

पुष्पा...हां हां देख लेना रोका किसने हैं।

सुकन्या...मेरी बेटी भी किसी से काम नहीं जब मन करे देख लेना बहु तुम'से अच्छा न सही पर तुम'से खराब भी नहीं बनाएगी।

पुष्पा...भाभी सूना अपने छोटी मां ने किया कहा

कमला... हां हां सुना हैं देखा नहीं हैं जिस दिन देख लूंगी उस दिन मन लूंगी।

इतना कहा कमला खिलखिला देती हैं कमला के देखा देखी सभी हंस देते हैं और पुष्पा hunnnn मुंह भितकाते हुए नाश्ता करने लग गईं। ये देख सभी ओर जोर जोर से खिला खिलखिला देते हैं। सभी मस्ती में थे वहीं सभी को गिफ्ट देते देख रावण मन ही मन बोला…सभी ने गिफ्ट दिया मैं कुछ नहीं दिया तो सभी कहेंगे मुझे नाश्ता पसन्द नहीं आया। सभी को छोड़ो सुकन्या तो मेरा जीना ही हराम कर देगी पहले से ही नाराज हैं उसे और नाराज नहीं कर सकतीं हूं यहीं मौक़ा हैं बहु को गिफ्ट दे सुकन्या को माना लेता हूं। वैसे भी बहु गिफ्ट पाने वाला काम ही तो किया इतना स्वादिष्ट खाना तो आज तक नहीं खाया वाह बहु जवाब नहीं हैं तुम्हारा।

ये सोच रावण उठ कमला के पास जा गले में से एक सोने की चेन उतार कमला को दे दिया। नज़र फेर सुकन्या ने देखा फिर हल्का सा मुस्कुरा नज़रे फेर लिया जैसे कुछ देखा ही नहीं सुकन्या की इस हरकत पर रावण का नज़र पड़ गया। सुकन्या को मुस्कुराते देख रावण का दिल बाग बाग हों गया फिर मन ही मन बोला...जो सोचा था हों गया अब सुकन्या को बहला फुसलाकर माना ही लूंगा। सुकन्या बहुत रूठ लिए अब और नहीं ।

गिफ्टों का लेन देन होने के बाद सभी हसीं मजाक करते हुए नाश्ता करने लगें। सुरभि के कहने पर कमला भी नाश्ता करने बैठ गई। बरहाल हसीं खुशी सभी ने नाश्ता कर लिया नाश्ता के बाद राजेंद्र बोला...रावण मेरे साथ ऑफिस चल बहु घर आने की खुशी में सभी कामगारों को कुछ गिफ्ट देकर आते हैं।

रावण...ठीक है दादा भाई

अपश्यु...बड़े पापा आप के साथ मैं भी चलूंगा।

राजेंद्र…ठीक हैं तू भी चल लेना। सुरभि मैं सोच रहा हूं बहु घर आने की खुशी में एक पार्टी रखी जाएं तुम बोलों कब रखा जाएं।

सुरभि...मैं सोच रहीं थीं पहले बहु के साथ कुल देवी के मंदिर हों आए फिर पार्टी रखी जाएं तो कैसा होगा।

राजेंद्र...हां ये भी सही होगा मैं तो ऑफिस जा रहा हूं। तुम पूरोहित जी को आज ही बुलवाकर कोई शुभ मूहर्त निकलवा लो फिर उस हिसाब से आगे की तैयारी करते हैं।

इतना कह रावण, अपश्यु और राजेंद्र ऑफिस के लिए चल दिया। पुष्पा भाभी के साथ गप्पे मरने खुद के रूम में ले गया, रह गया रमन और रघु इन दोनों को सुरभि ने पुरोहित को लिवाने भेज दिया। कुछ क्षण में दोनों पुरोहित जी को लेकर आ गए। पुरोहित जी आते ही बोला...रानी मां नई बहू आने की बहुत बहुत बधाई।

सुरभि...धन्यवाद पुरोहित जी आइए बैठिए और एक अच्छा सा शुभ दिन देखिए। बहु को लेकर कुलदेवी की पूजा करने जाना हैं।

पुरोहित जी बैठे फिर पंचांग निकल खंगालने लग गए कुछ क्षण पंचांग खंगालने के बाद बोले...रानी मां तीन दिन बाद देवी के पूजा का एक बहुत अच्छा शुभ मुहूर्त हैं आप चाहो तो उस दिन कुल देवी की पूजा करने जा सकते हों।

सुरभि... ठीक है पुरोहित जी आप उस दिन समय से पहूंच जायेगा। जो तैयारी आप'के ओर से करना हैं कर लेना हमे किया तैयारी करना हैं बता दीजिए।

पूरोहीत...पूजन में जो भी सामान चाहिएं वो मैं ले आऊंगा बाकी आप अपने ओर से जो करना चाहो उसकी तैयारी कर लेना।

इसके बाद पुरोहित जी अनुमति लेकर चल दिए। रावण को सुकन्या से बात करने का समय ही नहीं मिला उसका पूरा दिन ऑफिस में ही कट गया फिर घर आते आते देर हों गया था। तब तक सुकन्या खाना खाकर सो चुका था। मन तो कर रहा था जगाकर बात करें पर कहीं फिर से नाराज न हों जाएं इसलिए बिना बात किए ही सो गया।

अपश्यु खाना पीना कर रूम में गया फिर फोन उठा एक कॉल किया दूसरे ओर से कॉल रिसीव होते ही अपश्यु बोला... डिंपल मैं अपश्यु

डिंपल...अपश्यु नाम के किसी भी शख्स को नहीं जानती आप ने रोंग नंबर लगा दिया।

अपश्यु...ये क्या बात हुआ मेरा आवाज भी भुल गए।

डिंपल...भुला मैं नहीं तुम भूले हों माना की घर में शादी था पर तुम्हें इतना भी वक्त नहीं मिला की मुझसे बात कर लो। मैं तुमसे बात करने के लिए कितना तड़प रहीं थीं और तुम हों की मेरा कोई खोज खबर ही न लिए।

अपश्यु...सॉरी बाबा अब गुस्सा थूक भी दो हो गई भुल अब माफ कर भी दो।

डिंपल...तुम्हारा सही हैं गलती करों फिर माफ़ी मांग लो कोई माफी नही मिलेगा कल मिलने आयो तो कुछ सोच सकती हूं।

अपश्यु…कल देखता हूं टाइम मिला तो आ जाऊंगा।

डिंपल... देखती हूं कल मैं उसी पार्क में वेट करुंगी तुम टाइम से आ जाना नहीं आए तो सोच लेना। ओके बाय कोई आ रहा हैं मैं अभी रखती हूं।

अपश्यु... डिंपल सुनो तो..

अपश्यु सुनो तो, सुनो तो कहता रहा गया और डिंपल ने फ़ोन कट दिया। अपश्यु रिसीवर रखा फिर बोला…अजीब लडकी है पुरी बात सुने बिना ही कॉल काट दिया। लगता है बहुत गुस्से में हैं कल कुछ भी करके मिलने जाना पड़ेगा नहीं तो ओर नाराज हों जाएगी फिर मनाने में मेरा जेब खाली हों जायेगा। जो भी हों कल देखा जायेगा आज बहुत थक गया सो जाता हूं।

अपश्यु सोते ही नींद की वादी में खो गाय। इधर सुरभि ने पुरोहित जी से जो भी बात चीत हुआ बता दिया जिसे सुन कल सभी से बात करने को बोल सो गया।

अगले दिन सभी समय से नाश्ते के टेबल पर मिले फिर सभी नाश्ता करने लग गए। नाश्ता कर ही रहें थें की तभी "वाह जी बहु के आते ही बहु के हाथ का बना, खाने का मज़ा लिया जा रहा हैं खाओ खाओ पेट भरा के खाओ।"

सभी आवाज की दिशा में देखा उधर से मुंशी के साथ मुंशी की बीबी उर्वशी मुस्कुराते हुए आ रहे थें। दोनों को देख राजेंद्र बोल…आ जा तू भी कर ले तुझे किसने मना किया। भाभी आप कैसे हों।

उर्वशी...राजा जी मैं बिल्कुल ठीक नहीं हूं आप और रानी मां कैसे हों।

सुरभि...उर्वशी तुम्हें किया हुआ।

दोनों पास आए तब रघु ने कमला को साथ लिए दोनों का आशिर्वाद लिया फिर रमन भी आर्शीवाद लिया फिर बोला...मां पापा कैसे हों।

उर्वशी...ओ हो तुम्हें याद है की तुम्हारे मां बाप भी हैं जब से आया है एक बार भी देखने नहीं आया मां पापा कैसे हैं अब पूछ रहा हैं कैसे हों

सुरभि...उर्वशी मेरे बेटे को बिल्कुल नहीं डटना।

उर्वशी...हां हां रमन भी तुम्हारा बेटा रघु भी तुम्हारा बेटा तो मेरा कौन हैं।

पुष्पा...आंटी मैं हूं न आप की बेटी।

उर्वशी... तू भी सिर्फ नाम की बेटी हैं कब की आई हुई हैं एक बार मिलने भी नहीं आई।

पुष्पा...आंटी भईया की शादी में मिला तो था। आप तो जानते ही थे भईया की शादी था घर में सभी अलसी हैं इनसे काम करवाते करवाते मेरा पसीना छूट गई इसलिए मिलने नहीं आ पाई।

उर्वशी..हां हां मैं जानती हूं इस घर में तुम ही एक लायक बच्ची हों बाकी तो सभी निकम्मे हैं।

इतना कह उर्वशी हंस दिया उर्वशी के साथ सभी भी मुस्कुरा दिए। पुष्पा आगे कुछ कहती उससे पहले सुरभि बोली...बाते बहुत हुआ उर्वशी बैठो ओर नाश्ता करो।

मुंशी...रानी मां नाश्ता तो तभी करेगें जब बहु खुद बना कर खिलाएगी।

कमला...आप दोनों बैठे मैं अभी बना कर लाई।

इतना कह कमला उठ गई उर्वशी रोकते हुए बोली...अरे बहु रानी पहले नाश्ता कर लो हम तुम्हारे हाथ का बना खाना फिर कभी खां लेंगे।

कमला बैठा गई फिर मुंशी और उर्वशी भी बैठ गए फिर मुंशी बोला...रमन बेटा तुम हमारे साथ चलो तुम्हारे मामा जी की तबियत खराब हैं। हमें उन्हें देखने जाना हैं।

रघु…काका मामा जी को क्या हुआ? ज्यादा तबियत खराब तो नहीं हैं।

मुंशी…फ़ोन पर ही बात हुआ है जाकर देखेंगे तभी जान पायेंगे तबियत कितना खराब हैं।

राजेंद्र...दो दिन बाद कुलदेवी मंदिर जा रहे हैं तब तक आ जायेगा कि नहीं।

मुंशी...कोशिश करूंगा नहीं आ पाया तो बता दुंगा और अगर आया तो हम सीधा मंदिर ही पहुंच जाएंगे।

राजेंद्र...जो तुझे ठीक लगें करना इस मामले में मैं ज्यादा हस्तक्षेप नहीं करूंगा। तेरे साले साहब की तबियत खराब न होता तो मैं तेरा कहा नहीं सुनता।

इसके बाद सभी ने नाश्ता कर लिया फिर रमन अपना बैग लेने चला गया तब उर्वशी बोला...बहु रानी तुम्हारे हाथ का खाना खाने हम जरूर आयेंगे।

कमला…जल्दी आइएगा और आने से पहले बता दीजियेगा ताकि मैं खाना पहले से ही बना कर रख सकूं।

कमला की बाते सुन सभी मुस्करा दिए। रमन के आते ही तीनों चले गए फिर राजेंद्र बोला...अपश्यु बेटा आज भी तुम मेरे साथ चलना तुम्हें मेरे साथ चलने में कोई दिक्कत तो नहीं हैं।

अपश्यु...नहीं बड़े पापा कोई दिक्कत नहीं हैं।

अपश्यु की बात सुन सभी अबक रहें गए क्योंकि अपश्यु इससे पहले कोई भी काम करने को कहो तो दो टूक जवाब दे माना कर देता था। अपश्यु से हां सुन सुकन्या मन में बोली...अपश्यु में इतना बदलाब कैसे आ गया पहले तो कुछ भी कहो दो टूक जवाब दे माना कर देता था। लगता हैं मेरा बेटा जिम्मेदार होने लग गया। बेटा ऐसे ही बड़ो का कहा मानना हे भगवान मेरा बेटा अपने बाप जैसा न बाने जो अपनो के साथ गद्दारी करने में लगा हुआ हैं।

राजेंद्र…रावण मैं सोचा रहा हूं कुलदेवी मंदिर से आने के एक हफ्ते बाद घर पे एक बड़ी पार्टी रखा जाएं तू किया कहता हैं।

रावण…अपने सही सोचा पार्टी तो होना ही चाहिए दादाभाई पार्टी ग्रांड होना चाहिए सभी को पाता चलना चाहिए राज परिवार में बहु आने की खुशियां मनाया जा रहा हैं।

राजेंद्र... हां हां जैसा तुम चाहो करों पार्टी की जिम्मेदारी तुम्हारे सर हैं जैसा तैयारी करना हैं करों।

सभी राजेंद्र के हां हां मिलता हैं। इसके बाद राजेंद्र अपश्यु को साथ ले चला गया। रावण बीबी को मनाना चाहता था लेकिन ऑफिस से एक जरूरी काम का फोन आया तो वहा चला गया। रघु भी जाना चाहता था पर सुरभि ने माना कर दिया तो रावण अकेले ही ऑफिस चला गया।


आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे यहां तक साथ बाने रहने के लिय बहुत बहुत धन्यवाद।
🙏🙏🙏🙏
Superbb Updatee
 

Lucky..

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Update - 7


सुरभि….. मेरी शक की सुई घूम फिर कर इन दोनों पर आकर रूक रहीं हैं। मुझे लग रहीं हैं अब तक जो कुछ भी हुआ हैं इसमें कहीं न कहीं रावण और दलाल में से किसी का हाथ हैं या फिर दोनों भी हों सकते हैं।


राजेंद्र….. सुरभि तुम बबली हों गई हों तुम रावण पर शक कर रहीं हों , रावण मेरा सगा भाई हैं वो ऐसा कुछ नहीं करेगा, कुछ करना भी चाहेगा तो भी नहीं कर पायेगा क्योंकि उसे वसीयत के बारे में कुछ पाता नहीं हैं और दलाल वो हमारे परिवार का विश्वास पात्र बांदा हैं । उसके पूर्वज भी हमारे परिवार के लिए काम करता रहा हैं।


सुरभि….. आप भी न आंख होते हुऐ भी अंधा बन रहे हों……..


राजेंद्र….. तुम कहना किया चाहती हों ।


सुरभि….. आप जो आंख मूंद कर सब पर भरोसा करते हों, आपके इसी आदत के कारण आज ये मुसीबत आन पड़ी है।


राजेंद्र…. तो क्या अब मैं किसी पर भरोसा भी न करूं।


सुरभि….. भरोसा करों लेकिन आंख मूंद कर नहीं और इस वक्त तो बिलकुल नहीं इस वक्त आप सब को शक की दृष्टि से देखो नहीं तो बहुत बड़ा अनर्थ हों जाएगा।


राजेंद्र…. तो क्या मैं अपने परिवार पर ही शक करूं। ये मैं नहीं कर सकता।


सुरभि…… आप समझ नहीं रहें हों इस वक्त जो परिस्थिती बना हुआ हैं यह बहुत विकट परिस्थिती हैं। इस वक्त हम नहीं समले तो बाद में हमे सम्हालने का मौका नहीं मिलेगी।


राजेंद्र……. तो किया मैं अब घर परिवार के लोगों पर ही शक करूं।


सुरभि……. आप हमेशा से ही ऐसा करते आ रहे हों। आप को कितनी बार कहा हैं आप ऐसे किसी पर अंधा विश्वास न करें लेकिन आप सुनते ही नहीं हों। अपके यह अंधा विश्वास करना ही अपके सामने विकट परिस्थिती उत्पन्न कर देता हैं।


राजेंद्र…… सुरभि कहना आसान लेकिन करना बहुत मुस्किल किसी पर उंगली उठाने से पहले उसके खिलाफ पुख्ता प्रमाण होना चाहिए। बिना प्रमाण के किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।


सुरभि…… मैं कौन सा आपसे कह रहा हूं आप जाकर उनकी गिरेबान पकड़े और कहे तुमने हमारे खिलाफ साजिश क्यों किया। मैं बस इतना का रहा हूं आप उन्हे शक के केंद्र में लेकर अपने काम को आगे बढ़ाए।


राजेंद्र….. ठीक हैं! तुम जैसा कह रही हों मैं वैसा ही करुंगा अब खुश ।


सुरभि……. हां मैं खुश हूं और कुछ रह गया हों तो बोलों वह भी पूरा कर देती हूं।


राजेंद्र……. अभी प्यार का खेल खेलना बाकी रह गया हैं उसको शुरू करे।


सुरभि…… मुझे नहीं पता आप कौन से प्यार की खेल की बात कर रहें हों और न ही मुझे कोई प्यार का खेल आप के साथ खेलना हैं।


राजेंद्र….. सुरभि तुम तो बड़ा जालिम हों ख़ुद मेनका बनकर मुझे रिझाती हों और जब मैं रीझ गया तो साफ साफ मुकर रहीं हों। इतना जुल्म न करों मुझ पर मैं सह नहीं पाऊंगा।


सुरभि उठकर राजेंद्र से दूर जाते हुए पल्लू को सही करते हुए बोली…….


सुरभि….. आपको जिस काम के लिए रिझाया था वह तो हों गया। अभी हम दोनों के खेल खेलने का सही वक्त नहीं है। यह खेल रात में खेलना सही रहता हैं इसलिए आप रात्रि तक का प्रतिक्षा कर लिजिए।


राजेंद्र उठ कर सुरभि के पास जानें लगा सुरभि राजेंद्र को पास आते देखकर ठेंगा दिखाते हुए पीछे को हटने लगी। सुरभि को पीछे जाते हुए देख कर राजेंद्र सुरभि के पास जल्दी पहुंचने के लिए लंबे लंबे डग भरने लगे। राजेंद्र को लंबा डग भरते हुए देखकर सुरभि मुस्कुराते हुए पीछे होने लगी। सुरभि पीछे होते होते जाकर दीवाल से चिपक गईं। राजेंद्र सुरभि को दीवाल से चिपकते देखकर मुस्कुराते हुए सुरभि के पास पहुंचा और सुरभि को कमर से पकड़ कर खुद से चिपकते हुए बोला…..


राजेंद्र….. सुरभि अब कहा भागोगी अब तो तुम्हारा चिर हरण होकर रहेगा। रोक सको तो रोक लो।


सुरभि राजेंद्र के पकड़ से छुटने की प्रयत्न करते हुए बोली…..


सुरभि….. बड़े आए मेरा चिर हरण करने वाले छोड़ो मुझे अपको इसके अलावा ओर कुछ नहीं सूझता।


राजेंद्र…… गजब करती हों मैं क्यों छोडूं तुम्हें मैं नहीं छोड़ने वाला मैं तो अपने पत्नी को ढेर सारा प्यार करुंगा।


राजेंद्र सुरभि को चूमने के लिए मुंह आगे बड़ा रहा था सुरभि राजेंद्र को रोकते हुए बोली……


सुरभि…... हटो जी अपका ये ढेर सारा प्यार मुझ पर बहुत भारी पड़ता हैं। मुझे नहीं चाहिएं अपका ढेर सारा प्यार।


राजेंद्र…. अच्छा जी तुम्हें ढेर सारा प्यार न करू तो और किसे करू राजा महाराजा के खानदान से हूं। पिछले राजा महाराजा कईं सारे रानियां रखते थे। तुम मेरी एकलौती रानी हों तो तुम्हें ही तो ढेर सारा प्यार करुंगा।


सुरभि…… ओ तो अब अंपका मन मुझसे भरने लगा हैं अपको ओर पत्नियां चाहिएं हटो जी मुझे आपसे कोई बात नहीं करना हैं।


राजेंद्र कुछ बोलता तभी कोई राजा जी, राजा जी करके आवाज देते हुए कमरे के बाहर खडा हों गया और फिर से आवाज देने लगा। राजेंद्र सुरभि को खुद से चिपकाए रखा और बोला……


राजेंद्र…..कौन हों बाहर मैं अभी विशेष काम करने में व्यस्त हूं।


शक्श….. राजा जी माफ करना मैं धीरा हूं। मुंशी जी आए हैं कह रहें हैं अपको उनके साथ कहीं जाना हैं।


धीरा के कहते ही राजेंद्र को याद आया। उसने मुंशी जी को किस काम के लिए बुलाया था और उनके साथ कहा जाना था। इसलिए सुरभि को छोड़ते हुए बोला….


राजेंद्र……. धीरा तुम जाओ और मुंशी जी की जलपान की व्यवस्था करों मैं अभी आता हूं।


धीरा…... जी राजा जी।


धीरा कह कर चला गया और राजेंद्र कपडे बदलने जानें लगा। राजेंद्र को जाते हुए देखकर सुरभि मुस्कुराते हुए बोली…..


सुरभि….. क्या हुआ आप ने मुझे छोड़ क्यों दिया। अपको तो ढेर सारा प्यार करना था। करिए न ढेर सारा प्यार देखिए मैं तैयार हूं।


राजेंद्र…… जख्मों पर नमक छिड़काना तुम से बेहतर कोई नहीं जानता छिड़क लो जितना नमक छिड़कना हैं। अभी तो मैं जा रहा हूं लेकिन रात को तुम्हें बताउंगा।


सुरभि राजेंद्र को ठेंगा दिखाते हुए कमरे से बाहर चाली जाती हैं। कुछ वक्त बाद राजेंद्र तैयार हों कर नीचे जाता हैं जहां मुंशी जी बैठे थे। मुंशी जी राजेंद्र को देखकर खडा हों जाते हैं और नमस्कार करते हैं। राजेंद्र मुंशी जी की और देखकर मुस्करा देते हैं और बोलते हैं…….


राजेंद्र…. मुंशी तुझे कितनी बार कहा हैं तू मेरे लिए खड़ा न होया कर न ही मुझे नमस्कार किया कर तू आकर सीधे मुझसे गले मिला कर लेकिन तेरे कान में जूंह नहीं रेगता हैं।


राजेंद्र जाकर मुंशी के गाले मिलता हैं फिर अलग होकर मुंशी बोलता हैं।


मुंशी…… राना जी यह तो अपका बड़प्पन हैं। मैं इस महल का एक नौकार हूं और आप मालिक और अपका सम्मान करना मेरा धर्म हैं। मैं तो अपना धर्म निभा रहा हूं।


राजेंद्र……. मुंशी तू अपना धर्म ग्रन्थ अपने पास रख। तूने दुबारा नौकर और मालिक शब्द अपने मुंह से बोला तो तुझे तेरे पद से हमेशा हमेशा के लिए मुक्त कर दुंगा।


मुंशी…… राना जी आप ऐसा बिल्कुल न करना नहीं तो मेरे बीबी बच्चे भूख से बिलख बिलख कर मर जायेंगे।


राजेंद्र…. भाभी और रमन को भूखा नहीं मरने दूंगा लेकिन तुझे भूखा मर दुंगा अगर तूने दुबारा मेरे कहें बातो का उलघन किया। अब चल बहुत देर हों गया हैं। तू भी एक नंबर का अलसी हैं अपना काम ढंग से नहीं कर रहा हैं।


दोनों हंसते मुस्कुराते हुए घर से निकल जाते हैं। लेकिन कोई हैं जिसको इनका याराना पसंद नहीं आया और वह हैं सुकन्या जो धीरा के राजेंद्र को बुलाते सुनाकर खुद भी कमरे से बाहर आ गई और राजेंद्र और मुंशी जी के दोस्ताने व्यवहार को देखकर तिलमिलाते हुए खुद से बोली…….


सुकन्या…….. इन दोनों ने महल को गरीब खान बना रखा हैं एक नौकर से दोस्ती रखता हैं तो दूसरा महल के नौकरों को सर चढ़ा रखा हैं। एक बार महल का कब्जा मेरे हाथ आने दो सब को उनकी औकाद अच्छे से याद करवा दूंगी।


सुकन्या को अकेले में बदबड़ते हुए सुरभि देख लेती और पूछती……


सुरभी….. छोटी क्या हों गया अकेले में क्यों बडबडा रहीं।


सुकन्या…….. कुछ नहीं दीदी बस ऐसे ही।


सुरभि….. तो क्या भूत से बाते कर रहीं हैं।


सुकन्या आकर सुरभि को सोफे पर बिठा दिया और खुद भी बैठ गईं। सुकन्या के इस व्यवहार से सुरभि सुकन्या को एक टक देखने लगीं सुरभि ही नहीं रतन और धीरा भी ऐसे देख रहे थे जैसे आज कोई अजूबा हों गया हों। हालाकि यह अजूबा इससे पहले सुकन्या कर चुका था और सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया था। सुकन्या जैसी नागिन जिसके मुंह में ज़हर की पोटली हमेशा खुला हुआ रहती हो और अपना ज़हर उगलने को तैयार रहती हो। ऐसे में आदर्श व्यवहार करने पर सब का अचंभित होकर देखना लाज़मी था। सुकन्या रतन और धीरा को अपनी और एक टक देखते हुए देखकर बोली…….


सुकन्या…... क्या देख रहें हों तुम्हें कोई काम नहीं हैं जब देखो काम चोरी करते रहते हों जाओ अपना कम करों।


सुकन्या कहकर मुस्कुरा देती हैं। रतन और धीरा सुकन्या के कहने पर अपने काम करने चल देता हैं और सुरभि सुकन्या से बोलती हैं……


सुरभि….. छोटी तेरा न कुछ पाता ही नहीं चलती तू कभी किसी रूप में होती तो कभी किसी ओर रूप में समझ नहीं आती तेरे मन में किया चल रही हैं।


सुकन्या….. दीदी आप सीधा सीधा बोलिए न मैं गिरगिट हूं और गिरगिट की तरह पल पल रंग बदलती हूं।


सुरभि…… मैं भला तुझे गिरगिट क्यों कहूंगी तू तो एक खुबसूरत इंसान हैं जो अपनी व्यवहार से सब को सोचने पर मजबूर कर देती हैं।


सुकन्या…. दीदी आप मुझे ताने मार रहीं हों मार लो ताने मैं काम ही ऐसा करती हूं।


सुरभि … मैं तूझे क्यो तने मारूंगी तू छोड़ इन बातों को यह बता तू आज मेरे कमरे मे कैसे आ गई इससे पहले तो कभी नहीं आई।


सुकन्या….. अब ताक नहीं आई यह मेरी भूल थीं अब तो मैं अपके कमरे में आकर आपसे ढेर सारी बातें करूंगी।


सुरभि…. तुझे रोका किसने हैं तू तो कभी भी मेरे कमरे में आ सकती हैं और जितनी बाते करनी हैं कर सकती हैं।


ऐसे ही दोनों बाते करते रहते हैं। जब दो महिलाएं एक जगा बैठी हों तो उनकी बातों का सिलसिला कभी खत्म ही नहीं होता। इनको बाते करते हुए देखकर रसोई घर में धीरा बोलता हैं…..


धीरा….. काका आज इस नागिन को किया हों गया जो रानी मां के साथ अच्छा व्यवहार कर रहीं हैं।


रतन…... धीरे बोल नागिन ने सुन लिया तो अपना सारार ज़हर हम पर ही उगल देगी और उसके ज़हर का कोई काट नहीं हैं।


धीरा……. सही कहा काका पता नही कब महल में एक ऐसी ओझा ( सपेरा) आयेगा जो इस नागिन के फन को कुचलकर इसके ज़हर वाली दांत को तोड़ देगा।


दोनों बाते करने मैं इतने मगन थे की इन्हें पाता ही नहीं चला कोई इन्हें आवाज दे रहा था जब इनका ध्यान गया तो उसे देखकर दोनों सकपका गाए और डारने भी लगें रतन अपने डर को काबू करते हुए बोला……


रतन…... छोटी मालकिन आप कुछ चाहिए था तो आवाज दे देती यह आने की जरूरत ही क्या थीं?


सुकन्या……. आवाज दे तो रहीं थीं लेकीन तुम्हें सुनाई दे तब न इस धीरा को कितनी आवाज दिया धीरा एक गिलास पानी लेकर आ लेकीन इसको तो कोई सुद ही नहीं था रहता भी तो कैसे दोनों कामचोर बातों में जो मज़े हुए थे और ये किस नागिन की फन कुचलने की बात कर रहे थे कौन ओझा किस नागिन की ज़हर के दांत तोड़ने वाली हैं।


सुकन्या के बोलते ही दोनों एक दूसरे के मुंह देखने लगे और सोचने लगे की अब किया जवाब दे एक दूसरे को ताकते हुए देखकर सुकन्या बोली…..


सुकन्या…… तुम दोनों क्या एक दूसरे को ऐसे ही ताकते रोहोगे कुछ बोलते क्यों नहीं मुंह में जुबान नहीं हैं। (सुरभि की और देखकर) दीदी ने तुम सब को सर चढ़ा रखा हैं काम के न काज के दुश्मन अनाज के अब जल्दी बोलों किस बारे में बात कर रहें थे।


रतन समझ जाता हैं सुकन्या पूरी बात नहीं सुन पाया इसलिए जानना चाहती हैं। रतन एक मन घड़ंत कहानी बना कर सुनने लगाता हैं…..


रतन….. वो छोटी मालकिन धीरा बता रहा था उसने किसी से सुना हैं यह से दुर किसी के घर में एक नागिन निकला हैं जिसकी जहर वाली दांत निकलने के लिए कोई ओझा पकड़ कर ले गया तो हम उस नागिन की बात कर रहें थे की पाता नहीं अब कैसे ओझा उस नागिन की ज़हर वाली दांत निकलेगा।


रतन कि बात सुनाकर धीरा समझ जाता हैं रतन सुकन्या को झूठी कहानी सुनाकर झांसा दे रहा हैं। इसलिए धीरा भी रतन के हां में हां मिलाते हुए बोला…..


धीरा…... हां हां छोटी मालकिन मैं काका को उस नागिन और उसकी ज़हर की बात बता रहा था। आप को किया लगाता हैं हम महल की बात कार रहे थे । जब महल में कोई नागिन निकली ही नहीं तो हम महल में मौजुद नागिन की ज़हर निकलने की बात क्यो करेंगे।


सुकन्या…... अच्छा अच्छा ठिक हैं अब ज्यादा बाते न बनाओ और जल्दी से दो गिलास पानी लेकर आओ काम चोर कहीं के।


सुकन्या कहकर चाली जाती हैं। धीरा और रतन छीने पर हाथ रखा धकधक हों रहीं धड़कन को काबू करने की कोषिश करता हैं फिर रतन धीरा से बोलता हैं……


रतन….. धीरा जल्दी जा इस नागिन को पानी पिला कर आ नहीं तो नागिन फिर से ज़हर उगले आ जायेगी।


धीरा दो गिलास लेकर एक प्लेट पर रखा और पानी भरते हुए बोला……


धीरा…... काका आज बाल बाल बच गए। छोटी मालकिन हमारी पूरी बाते सुन लेती तो अपने जहर वाली दांत हमे चुबो चूबो कर तड़पा तड़पा कर मार डालती।


रतन……. बच तो गए हैं लेकीन आगे हमे ध्यान रखना हैं तू जल्दी जा और पानी पिलाकर आ लगाता हैं छोटी मालकिन बहुत प्यासा हैं।


धीरा जाकर दोनों को पानी देता हैं और आकर अपने काम में लग जाता हैं। ऐसे ही दिन बीत जाता हैं। रात का खाना सुरभि, सुकन्या रघु और अपस्यु साथ में ही खाते हैं। राजेन्द्र और रावण दोनों भाई अभी तक घर नहीं लौटे थे। सब खाना खाकर अपने अपने कमरे में चले जाते गए थे। लेकीन सुकन्या कमरे में दो पल स्थिर से नहीं रूक रहीं थी उसके मन में हाल चल मची हुए थी और इस हल चल का करण दिन में सुनी सुरभि और राजेन्द्र की बाते थी। कहते है स्त्री के पेट में कोई बात नहीं पचती जब तक वो बातो को उगल न दे तब तक उनका खाया खान भी नहीं पचता और सुकन्या ने तो दो वक्त का खाना बड़े चाव से खाया था। जिसे पचाने के लिए दिन में सुनी बातों को उगलना जरूरी हो गया था। सुकन्या रावण के लेट आने के करण गुस्से में बडबडाए जा रहीं थी…..


सुकन्या….. जिस दिन इनसे जरूरी बात करनी होती हैं उस दिन ही ये लेट आते हैं। पाता नहीं कब आयेंगे। ये बाते और कितनी देर ताक मेरे पेट में हल चल मचाती रहेंगी कब तक इन बातों के बोझ को मैं ढोती रहूंगी।


सुकन्या ऐसे ही टहलते रहते खाने और बातो को पचने की कोशिश करते रहते। रावण और राजेंद्र दोनों एक के बाद एक महल लौटते और अपने अपने कमरे में चले जाते रावण को देखकर सुकन्या बोलती हैं…..


सुकन्या….. आप आज इतने लेट क्यों आए आप से कितनी जरूरी बात करनी थी कब से ये बाते मेरी पेट में हलचल मचाई हुई हैं।


रावण….. अजीव बीबी हो पति से खाने को पुछा नहीं और बाते बताने को उतावली होई जा रही हों। अच्छा चलो खान बाना बाद में पहले तुम अपनी दुखड़ा ही सुना दो।


सुकन्या….. आप जाइए पहले खान खाकर आइए फिर बात करते हैं।


रावण हाथ मुंह धोने गुसलखाने जाता हैं । ईधर राजेंद्र कमरे में पहुंचता हैं। सुरभि बेड पर पिट टिकाए एक किताब पढ़ रहीं थीं। राजेन्द्र को देखकर किताब बंद कर राजेन्द्र से कहती हैं……


सुरभि….. आप आ गए इतनी देर कैसे हो गईं।


राजेन्द्र….. कुछ जरूरी काम था इसलिए देर हो गया। तुम ये कौन सी किताब पढ़ रहीं थीं।


सुरभि राजेंद्र की और देखकर कुछ सोचकर मुस्कुराते हुए बोली…..


सुरभि…. कामशास्त्र पढ़ रहीं थीं।


राजेन्द्र …. ओ ये बात हैं तो चलो फिर पहले अधूरा छोड़ा कम पूरा कर लेता हूं फिर खान पीना कर लूंगा।


सुरभि….. अधूरा कम बाद में पूरा कर लेना अभी आप जाकर अपना ताकत बड़ा कर आइए आज अपको बहुत ताकत की जरूरत पड़ने वाली हैं।


राजेन्द्र….. लगाता हैं आज रानी साहिबा मूढ़ में हैं।


सुरभि…. अपकी रानी साहिबा तो सुबह से ही मुड़ में हैं और आप का तो कोई खोज खबर ही नहीं हैं।


राजेंद्र…. अब आ गया हू अच्छे से खोज खबर लूंगा लेकिन पहले भोजन करके ताकत बड़ा लू।


राजेन्द्र हाथ मुंह धोकर कपडे बदलकर निचे जाता हैं जहां रावण पहले से ही मौजूद था दोनों भाई दिन भर की कामों के बारे में बात करते हुए भोजन करने लगते हैं। भोजन करने के बाद दोनों भाई अपने अपने कमरे में जाते। सुकन्या रावण की प्रतिक्षा में सुख रही थी। रावण के आते ही शुरू हों जाती हैं……


सुकन्या….. भौजन करने में इतना समय लगाता हैं।


राजेन्द्र…. दादाभाई के साथ दिन भर के कामों के बारे में बात करते हुए भोजन करने में थोडा अधिक समय लग गया। अब तुम बाताओ कौन सी बातों ने तुम्हारे पेट में हलचल मचा रखी हैं।


सुकन्या…… मुझे लगाता हैं सुरभि और भाई साहाब को हमारे साजिश के बारे में पता चाल गया हैं।


ये सुनकर रावण के पैरों तले जमीन खिसक गईं। उसे अपनी साजिश का पर्दा फाश होने का डर सताने लगा जिसे छुपाने के लिए रावण ने पाता नहीं कितने कांड किए फिर भी वह ही हूआ जिसका उसे डर था लेकीन इतनी जल्दी होगा उसे भी समझा नहीं आ रहा था। रावण का मन कर रहा था अभी जाकर अपने भाई भाभी और रघु को मौत के घाट उतर दे लेकिन फिर खुद को नियंत्रण कर बोला…….


रावण…... तुम्हें कैसे पता चला हमारे बनाए साजिश का पर्दा फाश हों चुका हैं। ऐसा हुए होता तो दादा भाई अब तक मुझे मार देते या फ़िर जेल में डाल देते।


सुकन्या…. इतनी सी बात के लिए वो तुम्हें क्यो मार देंगे।


रावण….. इतनी सी बात नहीं बहुत बडी बात हैं अब तुम ये बताओ तुम्हें कैसे पाता चल।


सुकन्या …. आप के जानें के बाद मैं निचे गई कुछ काम से जब ऊपर आ रही थीं तभी मुझे सुरभि के कमरे से उसके तेज तेज बोलने की आवाज़ सुनाई दिया तब मैं उनके कमरे के पास गई तो मुझे दरवजा बंद दिखा तो मैं वापस मुड़ ही रहीं थीं की मुझे उनकी बाते फिर सुनाई दिया जिसे सुनकर मेरे कदम रुख गए और मैं उनकी बाते सुने लगा … सुरभि कह रही थीं आप उनके बातों पर ध्यान मत देना मुझे लगाता हैं कोइ मेरे बेटे के खिलाफ साजिश कर रहा हैं। फिर भाई साहब ने जो बोला उसे सुनकर मेरे कान खडे हों गए फिर सारी बातें सुकन्या ने बता दिया जो उसने सुना था जिसे सुनकर रावण ने कहा……..


रावण….. यह तो बहुत ही विकट परिस्थिति बन गया हैं और मुझे लगाता हैं दादा भाई को पूरी बाते पता नहीं चला हैं नहीं तो मैं आज महल में नहीं जल में बंद होता या फिर दाद भाई मेरा खून कर देते।


सुकन्या…….. आप क्या कह रहे हो? वो अपका खून क्यों करते? हम दोनों तो सिर्फ़ महल और सारी संपत्ति अपने नाम करवाना चाहते हैं। इसमें खून करने की बात कहा से आ गई वो अपको जेल भी तो भिजवा सकते हैं।


रावण…... सुकन्या तुम नहीं जानती मैंने जो भी कर्म कांड किया हैं उसे जानने के बाद दादा भाई मुझे जेल में नही डालते बल्कि मेरा कत्ल कर देते।


सुकन्या…... मुझ कुछ समझ नहीं आ रहा है आप कहना किया चाहतें हो लेकिन मैं इतना तो समझ गया हूं आपने मुझसे बहुत कुछ छुपा रखा हैं।


रावण……. हां बहुत कुछ हैं जो मैंने तुम्हे नहीं बताए लेकिन आज बताता हूं। तुम्हें किया लगता हैं आधी सम्पत्ति पाने के लिए दादाभाई के साथ विश्वास घात करूंगा, नहीं सुकन्या मैं कुछ और पाने के लिए दादा भाई के साथ विश्वास घात कर रहा हूं…….


सुकन्या….. मुझे जहां तक पाता हैं हमारे पास इस संपत्ति के अलावा ओर कुछ नहीं हैं जो आधा आधा आप दोनों भाइयों में बांटा हुआ हैं तो फ़िर और किया हैं जिसे आप पाना चाहते हों।


रावण…... सुकन्या हमारे पास गुप्त संपत्ति हैं जिसे मैं अपने नाम कर लिया तो मैं बैठे बैठे ही दुनियां का सबसे अमीर आदमी बन जाऊंगा।


गुप्त संपत्ति और दुनियां की सबसे अमीर होने की बात सुनकर सुकन्या जैसी लालची औरत के लालच की सीमाएं टूट चुका था। सुकन्या के हावभाव बदलने लगा था। सुकन्या के बदलते हावभाव को देखकर रावण बोला……..


रावण…… सुकन्या खुद पर काबू रखो तुम जानकार अनियंत्रित हों जाओगी इसलिए मैं तुम्हें नहीं बता रहा था।


सुकन्या…. कैसे खुद पर नियंत्रण रखूं पाता नहीं कैसे आप खुद पर नियंत्रण रखें हुए हैं। मैं कहती हूं क्यो न अभी जाकर सुरभि, राजेंद्र और रघु को मारकर गुप्त संपत्ति आपने नाम करवा लेते हैं।


राजेंद्र…… हमने ऐसा किया तो गुप्त संपत्ति हमेशा हमेशा के लिए हमारे पहुंच से बहार हों जाएंगा। जिसको पाने के लिए न जानें मैंने क्या क्या किया हैं?


सुकन्या……. कैसे गुप्त संपत्ति हमारे हाथ से निकाल जायेगी ।


रावण…… गुप्त संपत्ति का पता दादा भाई के अलावा कोई नहीं जानता। मैंने उन्हें मार दिया तो यह राज उनके साथ ही दफन हों जाएगा।


सुकन्या……. गुप्त संपत्ति का राज सिर्फ आपके दादाभाई जानते हैं तो फिर आप को कैसे पता चला।


राजेंद्र……. गुप्त संपत्ति का राज दादाभाई ही जानते हैं लेकिन उस संपत्ति का एक वसियत बनाया गया था जिसके बारे में दादा भाई और हमारा वकील दलाल जानता हैं। जो मेरा बहुत अच्छा दोस्त हैं। एक दिन बातों बातों में दलाल ने मुझे गुप्त संपत्ति के वसियत के बारे में बता दिया। उसे गुप्त संपत्ति कहा रखा हैं बताने को कहा तो उसने मना कर दिया की उसे सिर्फ वसियत के बारे में पता हैं संपत्ति कहा रखा हैं वो नहीं जानता फिर हम दोनों ने मिलकर गुप्त संपत्ति का पता ठिकाना जाने के लिए साजिश रचना शुरू किया।


रावण….. हमारे साजिश का पहला निशाना बना रघु , वसियत के अनुसार रघु की पहली संतान गुप्त संपत्ति का मूल उत्तराधिकारी हैं। इसलिए मैं रघु की शादी रोकने के लिए जहां भी दादाभाई लड़की देखते उनको अपने आदमियों को भेज कर डरा धमका कर शादी के लिए माना करवा देता जो नहीं मानते उनको झूठी खबर देता की रघु में बहुत सारे बुरी आदतें हैं। यह जानकार लड़की वाले खुद ही रिश्ता करने के लिए मना कर देते।


रावण……. इसलिए मैं दादाभाई पर नज़र रखवाया। जिससे मुझे पाता चलता की दादाभाई कब किस लड़की वालों से मिलने गया। ऐसे ही नज़र रखवाते रखवाते मुझे दादाभाई के रखे गुप्तचर के बरे में पाता चला फिर मैं दादाभाई के गुप्त चर को ढूंढूं ढूंढूं कर सब को मार दिया। उन्हीं गुप्त चारों में से किसी ने दादाभाई को साजिश के बारे में बताएं होगा और सबूत भी देने की बात कहीं हाेगी।


रावण की बाते सुनकर सुकन्या अचंभित रह गया उसे समझ ही नही आ रहा था क्या बोले सुकन्या सिर्फ रावण का मुंह ताक रहा था। रावण सुकन्या को तकते हुए देखकर बोला…..


रावण…… सुकन्या क्या हुआ सदमे में चल बसी हों या जिंदा हों।


सुकन्या…… जिन्दा हूॅं लेकिन आपसे नाराज़ हूं आपने इतना बड़ा राज मुझसे छुपाया और उतना कुछ अकेले अकेले किया मुझे बताया भी नहीं।


रावण… गुप्त संपत्ति प्राप्त कर मैं तुम्हें उपहार में देना चाहता था लेकिन समय का चल ऐसा चला की गुप्त संपत्ति प्राप्त करने से पहले ही तुम्हें राज बताना पड़ गया मैं अकेला नहीं हूं मेरे साथ मेरा दोस्त और वकील दलाल भी सहयोग कर रहा हैं।


सुकन्या…… अब मैं आपके साथ हूं आप जैसा कहेंगे मैं करूंगी लेकिन अब हमे आगे किया करना हैं जब साजिश की बात खुल गई हैं तो देर सवेर आपके भाई को पता चल ही जाएगा।


रावण……. दादाभाई को साजिश का भनक लग गया हैं तो दादाभाई चुप नहीं बैठने वाले इसलिए हमें अपने साजिश यह पर ही रोकना होगा और आगे चलकर नए सिरे से शुरू करना होगा।


सुकन्या…… ऐसे तो रघु की शादी हों जायेगी फिर गुप्त संपत्ति का मूल उत्तर अधिकारी भी आ जाएगा फिर तो सब हमारे हाथ से निकल जायेगी।


रावण….. अभी तो यह ही करना होगा नहीं तो हमारा भांडा जल्दी ही फुट जायेगा लेकिन मैं गुप्त संपत्ति को इतनी जल्दी अपने हाथ से जाने नहीं दुंगा।


सुकन्या……. मुझे तो साफ साफ दिख रहा हैं गुप्त सम्पत्ति पाने के सारे रास्ते बंद हों गए हैं।


रावण….. अभी कोई भी रास्ता नहीं दिख रहा हैं लेकिन कोई न कोई रास्ता जरूर होगा जिसे मैं ढूंढ़ लूंगा।


सुकन्या…... ठीक हैं। बहुत रात हों गया हैं अब चलकर सोते हैं।



दोनों सो जाते हैं। महल में इस वक्त सब सो रहें थे लेकिन सुरभि और राजेंद्र काम शास्त्र की कलाओं को साधने में लागे हुए थे। दोनों काम कलां में मगन थे और महल के दूसरे कमरे में बहुत से राज उजागर हुआ और दफन भी हों गया। जिसकी भानक भी किसी को नहीं हुआ। आगे क्या क्या होने वाला हैं इसके बरे में आगे आने वाले अपडेट में जानेंगे आज के लिए इतना ही।
Awesome update bhai
 

Lucky..

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Update - 8


रावण सुकन्या के कहने पर सो जाता हैं लेकिन रावण को नींद नही आ रहा था। रावण कभी इस करवट तो कभी उस करवट बदलता रहता। उसका मन विभिन्न संभावनाओं पर विचार कर रहा था। उसे आगे किया करना चाहिए। जिससे उसके रचे साजिश का पर्दा फाश होने से बचा रह सके। रावण यह भी सोच रहा था। उससे कहा चूक हों गया। जब उसे कोई रस्ता नज़र नहीं आता तो वकील दलाल को इस विषय में बताना सही समझा। इसी सोचा विचारी में रात्रि के अंतिम पहर तक जगा रहता फ़िर सो जाता। सुबह सुकन्या उठ कर बैठें बैठे अंगड़ाई लेती तभी उसकी नज़र घड़ी पर जाती, समय देखकर सुकन्या अंगड़ाई लेना भूल जाती हैं और बोलती हैं…..


सुकन्या...आज फिर लेट हों गयी पाता नहीं कब ये जल्दी उठने के नियम में बदलाव होगी।


सुकन्या रावण को जगाने के लिऐ हिलती हैं और बोलती…….


सुकन्या…… ए जी जल्दी उठो कब तक सोओगे।


रावण…... कुनमुनाते हुए अरे क्या हुआ सोने दो न बहुत नींद आ रही हैं।


सुकन्या…. ओर कितना सोओगे सुबह हों गई हैं जल्दी उठो नहीं तो दोपहर तक भूखा रहना पड़ेगा।


रावण…... उठकर बैठते हुए इतना जल्दी सुबह हों गया अभी तो सोया था।


सुकन्या….. नींद में ही भांग पी लिया या रात का नशा अभी तक उतरा नहीं जल्दी उठो हम लेट हों गए हैं।


सुकन्या कपड़े लेकर बाथरूम में जाती है। रावण आंख मलते हुए उठकर बैठ जाता हैं। सुकन्या के बाथरूम से निकलते ही रावण बाथरूम में जाता हैं। फ्रैश होकर आता हैं और दोनों नाश्ता करने चल देता हैं। रावण नीचे जाते हुए ऐसे चल रहा था जैसे किसी ने उस पर बहुत बड़ा बोझ रख दिया हों। रावण जाकर डायनिंग टेबल पर बैठ जाता हैं। जहां पहले से सब बैठे हुए थे। रावण को देखकर राजेंद्र पूछता हैं…...


राजेन्द्र……. रावण तू कुछ चिंतित प्रतीत हों रहा हैं। कोई विशेष बात हैं जो तुझे परेशान कर रहा हैं।


रावण की नींद पुरा नहीं हुआ था जिससे उसे अपने ऊपर एक बोझ सा लग रहा था और राजेंद्र के सवाल ने उसके चहरे के रंग उड़ा दिया था। रावण रंग उड़े चहर को देखकर सुरभि मुस्कुराते हुए बोली………


सुरभि…... देवर जी आप दोनों भाइयों ने पाला बदल बदल कर चिंतित होने का ठेका ले रखा हैं जो एक चिंता मुक्त होता हैं तो दूसरा चिंता ग्रस्त हों जाता हैं।


राजेंद्र सुरभि की ओर देखकर मुस्करा देता हैं। रावण दोनों को एक टक देखता रहता। रावण समझ नहीं पा रहा था की सुरभि कहना क्या चहती थी। लेकिन रावण इतना तो समझ गया था। उसके अंतरमन में चल रहा द्वंद उसके भाई और भाभी ने परख लिया था। इसलिए रावण हल्का हल्का मुस्कुराते हुए बोला…..


रावण….. दादाभाई ऐसी कोई विशेष बात नहीं हैं कल रात लेट सोया था। नींद पूरा नहीं होने के करण थोड़ थका थका लग रहा हूं। इसलिए आपको चिंतित दिख रहा हूं।


सुरभि और राजेंद्र मुस्करा देते और नाश्ता करने लगते हैं। रावण भी नाश्ता करने में मगन हों गया। नाश्ता करते हुए राजेंद्र बोलता हैं…..


राजेंद्र……. अपस्यू बेटा इस सत्र में पास हों जाओगे या इसी कॉलेज में ढेरा जमाए बैठे रहना हैं।


अपस्यू….. बड़े पापा पूरी कोशिश कर रहा हूं इस बार पास हों जाऊंगा।


राजेंद्र…. कोशिश कहां कर रहें हों कॉलेज के अदंर या बहार। तुम कॉलेज के अदंर तो कदम रखते नहीं दिन भर आवारा दोस्तों के साथ मटरगास्ती करते फिरते हों, तो पास किया ख़ाक हों पाओगे।


अपश्यु….. बड़े पापा मैं रोज कॉलेज जाता हूं। कॉलेज के बाद ही दोस्तों के साथ घूमने जाता हूं।


राजेंद्र…… सफेद झूठ तुम घर से कॉलेज के लिए जाते हों। तुम्हारा कॉलेज घर से इतना दूर हैं कि तुम दिन भर में कॉलेज पहुंच ही नहीं पाते।


रावण……. अपश्यु ये क्या सुन रहा हूं। तुम कॉलेज न जाकर कहा जाते हों। ऐसे पढ़ाई करोगे तो आगे जाकर हमारे व्यापार को कैसे सम्हालोगे।


अपश्यु….. पापा मैं पढ़ाई सही से कर रहा हूं और रोज ही कॉलेज जाता हूं लेकिन कभी कभी बंक करके दोस्तों के साथ घूमने जाता हूं।


राजेन्द्र….. प्रधानाध्यपक जी कह रहे थे तुम बहुत कम ही कॉलेज जाते हों। बेटा ऐसे पढ़ाई करने से काम नहीं चलेगा।


इन सब की बाते सुनकर सुकन्या का बहुत कुछ कहने का मान कर रहा था। सुकन्या की जीभ लाप लापाकर शब्द जहर उगलना चाहती थी। इसलिए सुकन्या किसी तरह अपनी जिह्वा को दांतो तले दबाए बैठी रहीं। अपश्यु सर निचे किए बैठा था और प्रधानाध्यपक को मन ही मन गाली दे रहा था। अपश्यु को चुप चाप बैठा देखकर रावण बोलता हैं……


रावण…… तुम्हारे चुप रहने से यह तो सिद्ध हों गया। जो दादाभाई कह रहें हैं सच कह रहें। अपश्यु कान खोल कर सुन लो आज के बाद एक भी दिन कॉलेज बंक किया तो। तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।


अपश्यु….. जी पापा।


राजेन्द्र…… आज के लिए इतना खुरख काफी हैं। अब जल्दी से नाश्ता करके कॉलेज जाओ। रघु आज तुम मेरे साथ ऑफिस चलोगे।


रघु….. जी पापा।


नाश्ता करने के बाद अपश्यु कॉलेज के लिए निकाल जाता। सुकन्या भुन्न्या हुआ कमरे में जाता हैं और रावण बोलता हैं….


रावण…... दादाभाई आप रघु को अपने साथ ले जाइए मुझे जानें में थोडा लेट होगा।


राजेंद्र…… ठीक हैं।


रावण कमरे में चला जाता हैं। सुकन्या रावण को देखकर बोलता हैं…..


सुकन्या….. क्या हुआ आज ऑफिस नहीं जाना।


रावण…… जाऊंगा थोड़ी देर बाद ।


रावण फिर से सोने की तैयारी करने लगता हैं। राजेंद्र को दुबारा सोता देखकर सुकन्या कहता हैं…….


सुकन्या……. मैं भी आ रहीं हूं मुझे भी सोना हैं।


रावण…… नहीं तम मत आना नहीं तो मैं सोना भूलकर कुछ ओर ही शुरू कर दुंगा।


सुकन्या ……. मैं नहीं आ रहीं हूं आप सो लिजिए।


राजेंद्र ऑफिस जाते हुए सुरभि से बोलता हैं।


राजेंद्र …… सुरभि मैं एक घंटे में ऑफिस से लौट आऊंगा तुम तैयार रहना हम कलकत्ता चल रहे हैं।


सुरभि….. कलकत्ता पुष्पा से मिलने।


राजेंद्र….. पुष्पा से भी मिलेंगे लेकिन उसे पहले हम एक कॉलेज के वार्षिक उत्सव में जायेंगे जहां मुझे मुख्य अथिति के रूप में बुलाया गया हैं।


सुरभि…… ठीक हैं मैं अभी से तैयार होने लगती हु जब तक आप आओगे तब तक मैं तैयार हों जाऊंगी।


राजेंद्र कुछ नहीं कहता सिर्फ़ मुस्कुराकर सुरभि की ओर देखता हैं फिर बहार आकर रघु के साथ ऑफिस चल देता हैं। रास्ते में चलते हुए राजेंद्र कहता हैं……


राजेंद्र…… रघु बेटा अब से तुम बच्चो को पढ़ना बंद कर ऑफिस का कार्य भार सम्हालो।


रघु….. जैसा आप कहो।


राजेंद्र…… रघु कोई सवाल नहीं सीधा हां कर दिया।


रघु…... इसमें सवाल जवाब कैसा अपने कहा था बच्चों को पढ़ाने के लिए तो मैं बच्चों को पढ़ा रहा था। अब आप ऑफिस का कार्य भार समालने को कह रहे हैं तो मैं ऑफिस जाना शुरू कर दुंगा।


राजेंद्र…… तुम्हें बच्चों को पढ़ाने इसलिए कहा क्योंकि एक ही सवाल बार बार पूछने पर तुम अपना आपा खो देते थे और तुम्हें गुस्सा आने लगता था। बच्चो को पढ़ाने से तुम अपने गुस्से पर काबू रखना सीख गए और एक सवाल का कई तरीके से ज़बाब देना भी सीख गए। जो आगे चलकर तुम्हारे लिए बहुत फायदेमंद होगा।


ऐसे ही बाते करते हुए दोनों ऑफिस पहुंच गए। राजेंद्र ने रघु के लिए अलग से एक ऑफिस रूम तैयार करवाया था। राजेंद्र रघु को लेकर उस रूम में गए और बोला…….


राजेंद्र…… रघु इसी रूम में बैठकर तुम काम करोगे। जाओ जाकर बैठो मैं भी तो देखू मेरा बेटा इस कुर्सी पर बैठकर कैसा दिखता हैं।


रघु कुर्सी पर बैठने से पहले राजेंद्र का पैर छूता हैं फिर कुर्सी की पास जाता हैं और कुर्सी पर बैठ जाता हैं। रघु के कुर्सी पर बैठते ही कुछ लोग ऑफिस रूम आते हैं। उन लोगों को देखकर रघु उठकर खड़ा होता हैं और जाकर राजेंद्र के उम्र के एक शक्श का पैर छूता हैं और बोलता हैं…….


रघु…… मुंशी काका आप कैसे हैं।


मुंशी रघु के हाथ में एक गुलदस्ता देता हैं और बधाई देता हैं। मुंशी के साथ आए ओर लोग भी रघु को बधाई देता हैं। फिर मुंशी को छोड़कर उसके साथ आए लोग चले जाते हैं तब मुंशी बोलता हैं……


मुंशी……. मालिक मैं यह कम करने वाला एक नौकर हूं इसलिए मेरा पैर छुना अपको शोभा नहीं देता।


रघु…… भले ही आप यह कम करते हों। लेकिन आप मेरे दोस्त के पिता हैं तो आप मेरे भी पिता हुए। तो फिर मैं आज के दिन अपका आशीर्वाद लेना कैसे भूल सकता हूं।


राजेंद्र….. बिलकुल सही कहा रघु। अब बता मेरे यार रघु के इस सवाल का क्या जवाब देगा।


मुंशी…… राना जी मेरे पास रघु बेटे के सवाल का कोई जबाब नहीं हैं। रघु बेटे ने मुझे निशब्द कर दिया हैं।


रघु मुस्कुराता हुआ जाकर कुर्सी पर बैठ जाता हैं और बोलता हैं…..


रघु….. मुंशी काका देखिए तो जरा मैं इस कुर्सी पर बैठा कैसा लग रहा हूं।


मुंशी... आप इस कुर्सी पर जच रहे हों। अपको इस कुर्सी पर बैठा देखकर ऐसा लग रहा हैं जैसे राजा राजशिंघासन पर बैठा हैं। बस एक रानी की कमी हैं।


रघु…… मुस्कुराते हुए मुंशी काका रानी की कमी लग रहा हैं तो आप मेरे लायक कोई लड़की ढूंढ़ लिजिए और मेरी रानी बाना दीजिए।


रघु की बाते सुनकर राजेंद्र और मुंशी मुस्करा देते हैं और राजेंद्र बोलता हैं……


राजेंद्र…... रघु बेटा कुछ दिन और प्रतीक्षा कर लो फिर तुम्हारे लायक लड़की ढूंढ़ कर तुम्हारा रानी बाना देंगे।


मुंशी….. हां रघु बेटा राना जी बिल्कुल सही कह रहे हैं।


राजेंद्र….. रघु मेरे साथ चलो तुम्हें कुछ लोगों से मिलवाता हूं।


रघु को लेकर राजेंद्र ऑफिस में काम करने वाले लोगों से मिलवाता हैं और उनका परिचय देता हैं। यह मेल मिलाप कुछ वक्त तक चलता रहता फिर राजेंद्र रघु को उसके ऑफिस रूम ले जाता हैं और बोलता हैं…..


राजेंद्र…. रघु तुम कम करों कहीं सहयोग की जरूरत हों तो मुंशी से पुछ लेना।


रघु….. जी पापा।


राजेंद्र…… रघु मैं तुम्हारे मां के साथ कलकत्ता जा रहा हूं कल तक लौट आऊंगा।


रघु….. आप कलकत्ता जा रहे हैं कुछ विशेष काम था।


राजेन्द्र…. हां रघु मुझे एक कॉलेज के वार्षिक उत्सव में मुख्य अथिति के रूप में बुलाया गया हैं।


रघु….. ठीक हैं पापा आप आते समय पुष्पा को भी साथ लेकर आना बहुत दिन हों गए उसे मिले हुए।


राजेंद्र…. ठीक हैं अब मैं चलता हूं।


राजेंद्र वह से निकल कर मुंशी के पास जाता हैं। मुंशी राजेंद्र को देखकर खडा हों जाता जिससे राजेंद्र उसे फिर से डांटता डटने के बाद बोलता……


राजेन्द्र…… मुंशी जैसे तू मेरा सहयोग करता आया हैं वैसे ही अब से रघु का सहयोग करना।


मुंशी…… वो तो मैं करूंगा ही लेकिन एक बात समाझ नहीं आया अचानक रघु बेटे के हाथ में ऑफिस का कार्यभार सोफ दिया।


राजेंद्र…. यह दुनियां हमारे सोच के अनुरूप नहीं चलता मैं भी एक शुभ मूहर्त पर रघु बेटे के हाथ में सारा कार्य भार सोफना चाहता था लेकिन कुछ ऐसी बातें पता चला हैं जिसके चलते मुझे यह फैसला अचानक ही लेना पडा।


मुंशी…… बात क्या हैं जो अचानक ऐसा करना पडा।


राजेंद्र… अभी बताने का समय नहीं हैं मैं कलकत्ता जा रहा हूं वह से आने के बाद बता दुंगा।


मुंशी….. ठीक हैं।


राजेंद्र ऑफिस से घर को चल देत हैं। ऊधर अपश्यू कॉलेज पहुंच गया। कॉलेज में एंट्री करते ही गेट पर उसके चार लफंगे दोस्त विभान, संजय, मनीष और अनुराग खडे थे। अपश्यु के चारों दोस्त ऊंचे घराने के थे। सारे के सारे अमीर होने नाते कुछ बिगड़े हुए थे और अपश्यु के साथ रहकर और ज्यादा बिगड़ गए था। उन्हें देखकर अपश्यु बोलता हैं…..


अपश्यु….. अरे ओ लफंगों यह खडे खडे किसको तड़ रहे हों।


विभान….. ओ हों सरदार आज आप किस खुशी में यह पधारे हों।


संजय…… सरदार आज क्यों आ गए सीधा पेपर के बाद रिजल्ट लेने आते


अपश्यु… चुप कर एक तो बड़े पापा ने सुबह सुबह बोल बच्चन सुना दिया अब तुम लोग भी शुरू हों गए।


मनीष….. ओ हों तो राजा जी ने डंडा करके सरदार को कॉलेज भेजा। राजाजी ने अच्छा किया नहीं तो बिना सरदार के गैंग दिशा विहीन होकर किसी ओर दिशा में चल देता।


अपश्यु…….सरदार आ गया हैं अब सरदार का गैंग दिशा से नहीं भटकेगा। चलो पहले प्रिंसिपल से मुक्का लात किया जाएं।


विभान…… आब्बे मुक्का लात नहीं मुलाकात कहते हैं। कम से कम शब्द तो सही बोल लिया कर।


अपश्यु… अरे हों साहित्य के पुजारी मैंने शब्द सही बोला हैं मुझे प्रिंसिपल के साथ मुक्का लात ही करना हैं।


अनुराग….. ओ तो आज फिर से प्रिंसिपल महोदय जी की बिना साबुन पानी के धुलाई होने वाला हैं। निरमा डिटर्जेंट पाउडर कपडे धुले ऐसे जैसे दाग कभी था ही नहीं।


विभान….. अरे हों विभीध भारती के सीधा प्रसारण कपडे नहीं धोने हैं प्रिंसिपल जी को धोना हैं। आज की धुलाई के बाद उनकी बॉडी में दाग ही दाग होंगे।


अपश्यु…अरे हों कॉमेडी रंग मंच के भूतिया विलन चल रहे हों या तुम सब की बिना साबुन पानी के झाग निकाल दू।


अपश्यु अपने दोस्तों के साथ चल देता। प्रिंसिपल के ऑफिस तक जाते हुए रस्ते में जितने भी लड़के लड़कियां मिलता था सब को परेशान करते हुए जा रहे थे। लड़के और लड़कियां कुछ कह नहीं पा रहे थे। सिर्फ दांत पीसते रह जाते थे। कुछ वक्त में अपश्यु प्रिंसिपल जी के ऑफिस के सामने पहुंच जाते। ऑफिस के बहार खड़ा चपरासी उन्हे रोकता लेकिन अपश्यु उन्हे धक्का देकर ऑफिस मे घूस जाता हैं। प्रिंसिपल उन्हें देखकर बोलता हैं……


प्रिंसिपल…… आ गए अपना तासरीफ लेकर लेकिन तुम्हें पाता नहीं प्रिंसिपल के ऑफिस के अदंर आने से पहले अनुमति मांग जाता हैं।


अपश्यु……. तासरीफ इसलिए लेकर आया क्योंकि तेरी तासरीफ की हुलिया बिगड़ने वाला हैं और रहीं बात अनुमति कि तो मुझे कहीं भी आने जाने के लिए किसी की अनुमति लेने की जरूरत नहीं पड़ता।


प्रिंसिपल…….. लगाता हैं फिर से राजा जी से तुम्हारी शिकायत करना पड़ेगा।


अपश्यु जाकर प्रिंसिपल को एक थप्पड़ मरता हैं। थप्पड़ इतना जोरदार था कि प्रिंसिपल अपनी जगह से हिल जाता हैं। प्रिंसिपल को एक के बाद एक कई थप्पड़ पड़ता थप्पड़ ही नहीं लात घुसे मुक्के सब मारे जाते हैं। कुछ ही वक्त में प्रिंसिपल को मार मार कर हुलिया बिगड़ दिया जाता फिर अपश्यु प्रिंसिपल को चेतावनी देता…..


अपश्यु… अब की तूने बड़े पापा से कुछ कहा तो हम भी रहेगें, यह कॉलेज भी रहेगा लेकिन तू नहीं रहेगा। तू इस दुनियां में रहना चाहता हैं तो मेरी बातों को घोल कर पी जा और अपने खून में मिला ले जिससे तुझे हमेशा हमेशा के लिए मेरी बाते याद रह जाएं।



प्रिंसिपल को जमकर धोने के बाद अपश्यु चला जाता हैं। अपश्यु के जानें के बाद प्रिंसिपल चपरासी को बुलाता हैं और उसके साथ अपना इलाज कराने डॉक्टर के पास चल देता हैं। आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे।
Nice update Bhai..

Hero ki family kuch jyada hi bholi hai.
 

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Update - 9


अपश्यु प्रिंसिपल को जमकर धोने के बादलफानडर दोस्तों के साथ ग्राउंड में जाकर बैठ जाता और ईधार ऊधर की बाते करने लगता तभी एक लड़की फैशनेबल कपड़ो में कॉलेज गेट से एंट्री करती हैं। अपश्यु की नज़र अनजाने में उस पर पड़ जाता फिर क्या अपश्यु उसको देखने में खो जाता। कुछ वक्त देखने के बाद अपश्यु बोलता ….


अपश्यु…….. अरे ये खुबसूरत बला कौन हैं। जिसने अपश्यु के दिल दिमाग में हल चल मचा दिया। जिसकी सुंदरता की मैं दीवाना हों गया।


अनुराग……. ये वो बला हैं जिसके करण कईं मजनू बने कइयों के सर फूटे कइयों के टांग टूटे अब तू बता तू सर फुटवाएगा, टांग तुड़वाएगा या मजनू बनेगा।


अपश्यु……. तोड़ने फोड़ने में मैं माहिर हूं अब सोच रहा हूं मजनू बनने का मजा लिया जाएं।


विभान…… अरे ओ मजनू तेरे लिए मजनू गिरी नहीं हैं तू तो दादागिरी कर, मौज मस्ती कर और हमे भी करवा।


अपश्यु….. आज से दादागिरी बंद मौज मस्ती बंद और मजनू गिरी शुरू। चलो सब मेरे पिछे पिछे आओ।


अपश्यु उठकर चल देता। उसके दोस्त भी उसके पिछे पिछे चल देता। अपश्यु एक एक क्लॉस रूम में जाकर लड़की को ढूंढता हैं। लेकिन लड़की उसे कहीं पर नहीं मिलता। थक हर कर अपश्यु अपने क्लास में जाता, दरवाजे से एंट्री करते ही अपश्यु रूक जाता। सामने वह लडकी खड़ी थीं। अपश्यु लडकी को देखकर दरवाजे से टेक लगकर खड़ा हों जाता और लडक़ी को देखता रहता। अपश्यु के दोस्त बातों में मगन होकर एक के पीछे एक चलते हुए आ रहे थे। उनका ध्यान अपश्यु पर न होने के वजह से एक के बाद एक अपश्यु से टकरा जाते। अपश्यु पर इस टकराव का कोई असर नहीं पड़ता तब अपश्यु का दोस्त अनुराग बोलता…...


अनुराग…… अरे ये दरवाजे पर खंबा किसने गाड़ दिया। उसको पकड़ो और खंबा उखड़वा कर कही ओर गड़वाओ।


विभान….. अरे ये खंबा नहीं मजनू खड़ा हैं और अपनी लैला को देखने में खोया हुआ हैं। ये मजनू लैला को देखने में खोया हैं और हमारा सर फूटते फूटते बचा हैं। कोई इस मजनू को होश में लाओ।


संजय आज आकर अपश्यु के सामने खड़ा हों जाता। अपश्यु को सामने का नज़ारा दिखना बंद हों जाता। तब अपश्यु का ध्यान भंग होता। संजय को सामने खड़ा देख बोलता…….


अपश्यु…. हट न यार सामने से क्यों तड़ का पेड़ बाने खड़ा हैं। तुझे दिख नहीं रहा मजनू लैला से नैन मटका कर रहा हैं।


संजय….. अरे ओ दो टेक के मजनू तेरा दल वह नहीं गलने वाला उसके पीछे पहले से ही, कई मजनू बने फिर रहे हैं।


अपश्यु….. दल भी गलेगी और चोंच भी लडाऊंगा। साले कैसे दोस्त हों मैं घर बसाना चाहता हूं और तुम लोग उजड़ने कि बात कर रहें हों।


विभान….. साले तू कह घर बसाएगा तू तो गुल्ली डंडा खेलने के चक्कर में हैं फिर उसे भी और लड़कियों की तरह छोड़ देगा।


अपश्यु….. गुल्ली डंडा तो खेलूंगा ही और घर भी बसाऊंगा देख लेना तुम लोग।


अनुराग…. चल देख लेंगे तू कौन सा घर बसता हैं अब चल कर बैठा जाए खड़े खड़े मेरा टांग दुख रहा हैं।


सारे दोस्त एक के पिछे एक आगे बड़ जाते। लडक़ी भी बैठने के लिए सीट के पास जाकर खड़ी हों जाती। तब तक अपश्यु लडक़ी के पास पहुंच जाता। अपश्यु लडक़ी से किनारे होकर निकल रहा था कि उसका पैर अड़ जाता जिससे खुद को संभाल नहीं पता और लडक़ी पर गिर जाता। अपश्यु को गिरता देखकर सारा क्लॉस हंस देता ।अपश्यु उठाकर खड़ा होता और लडकी को ताकता रहता लड़की उठकर खड़ी होती और हाथ सामने लाकर फुक मरती फिर पुरा क्लॉस चाचाचाटाटाटाककक, चाचाचाटाटाटाककक की आवाज से गूंज उठता पुरा क्लॉस अपश्यु और लडकी को अचंभित होकर देखता रहता लेकिन अपश्यु पर कोई असर ही नहीं पड़ता। लडकी खीसिया कर दो चाटा ओर मरती हैं। लड़की जिसकी नाम डिंपल हैं वो बोलती हैं…..


डिंपल…… अरे ओ रतौंधी के मरीज दिन में भी दिखना बंद हों गया। जो मुझ पर आकर गिरा। तुम जैसे लड़कों को मैं अच्छे से जानती हूं खुबसूरत लडकी देखते हों लार टपकाते हुए आ जाते हों। मजनू कहीं के।


अपश्यु पर फिर भी कोई असर नहीं पड़ता। अपने गालों पर हाथ रखकर मुस्कुराते हुए लडकी को देखता रहता ।लडकी पहले से ही गुस्साया हुआ था अब इसे ओर अधिक गुस्सा आ जाती। अपश्यु को मरने के लिए हाथ उठती तब तक अपश्यु के दोस्त अपश्यु को पकड़कर पिछे ले जाता हैं और बोलता हैं……


विभान….. अरे ओ मजनू होश में आ पूरे क्लॉस के सामने नाक कटवा दिया। जा जाकर बता दे तू कौन हैं।


अपश्यु….. कितने कोमल कोमल हाथ हैं कितना मीठा बोलती हैं। मैं तो गया कम से कोई मुझे डॉक्टर के पास ले चलो और प्रेम रोग का इलाज करवाओ।


मनीष….. लगाता हैं थप्पड़ों ने तेरे दिमाग के तार हिला दिया, तू बावला हों गया हैं। वो लडकी कोई मीठा बिठा नहीं बोलती तीखी मिर्ची खाकर तीखा तीखा बोलती हैं। उसके हाथ कोमल हैं तो हार्ड किसे कहेगा देख अपने गालों को पांचों उंगलियां छप गया हैं और बंदर की भेल की तरह लाल हों गया हैं।


अपश्यु…. सालो तुम सब ने एक बात गौर नहीं किया आज तक किसी ने भरे क्लॉस में मुझ पर हाथ नहीं उठाया इस लङकी में कुछ तो बात हैं ये लडक़ी मेरे टक्कर की हैं अब ये तुम सब की भाभी बनेगी।


अनुराग….. जब तूने तय कर लिया तुझे आगे भी इस लङकी से पीटना हैं तो हम कर भी क्या सकते बोलना पड़ेगा भाभी।


अपश्यु और उसके दोस्त लडकी को कैसे पटना हैं। इस विषय पर बात करते एक दोस्त उसे रोज कॉलेज आने को कहता और लडक़ी के आस पास रहने के बोलता अपस्यू दोस्तों की बातों को मान लेता फिर अपश्यु बैठें बैठे लङकी के ताड़ता रहता। उसके सामने बैठा लड़का उसे डिस्टर्ब कर रहा था तो अपस्यू उसे धकेल कर निचे फेक देता विचरा अपस्यू को कुछ कह भी नहीं सकता उठाकर दूसरी जगह बैठ जाता।


लडक़ी थाप्पड़ मरने के बाद सीट पर बैठ जाती और बार बार अपस्यू की और घूमकर देखती। अपश्यु को देखता पाकर मुस्कुरा देती और आंख मार देती फिर बगल मे बैठी लड़की जो उसकी सहेली हैं। जिसका नाम चंचल हैं से बोलती…..


लडक़ी…... चंचल देख कैसे घूर रहा हैं मन कर रहा जाकर एक किस कर दू।


चंचल…... वो तो घुरेगा ही तुझ पर फिदा जो हों गया। जा कर ले किस तू तो हैं ही बेशर्म कहीं भी शुरु हों जाती हैं। डिंपल तुझे पाता हैं तूने किसको थप्पड़ मारा हैं।


डिंपल….. कौन हैं ? बहुत बड़ा तोप हैं जो मैं उसे थप्पड़ नहीं मार सकती। मैं तो किसी को भी थप्पड मार दू और जिसे मन करे उसे किस भी कर दू।


चंचल….. हमारे कॉलेज के कमीनों का सरदार महाकमीन अपश्यु हैं जिससे कॉलेज के स्टूडेंट के साथ साथ टीचर और प्रिंसिपल बहुत डरते हैं और तूने उसके ही गाल लाल कर दिया जिसने भी इस पर हाथ उठाया वो सही सलामत घर नहीं पहुंचा। अब तेरा क्या होगा?


डिंपल….. मुझे कुछ भी नहीं होगा देखा न तूने कैसे देख रहा था जैसे पहली बार लडकी देख रहा हों। ये महाकमिना हैं तो मैं भी महाकमिनी हूं।


चंचल…... वो तो तू हैं ही लेकिन देर सवेर ये महाकमिना इस महाकमिनी से अपने हुए अपमान का बदला जरूर लेगा तब किया करेगी।


डिंपल….. करना कुछ नहीं हैं ये तो मुझ पर लट्टू हों ही गया अब सोच रहीं हूं इसे भी मजनू बाना ही लेती हूं।


चंचल….. तेरा दिमाग तो ठीक हैं पहले से ही इतने सारे मजनू पाल रखी हैं अब एक और कहा जाकर रुकेगी।


डिंपल….. सारे मजनू को रिटायरमेंट देकर इस अपश्यु पर टिक जाती हूं और परमानेंट मजनू बना लेती हूं।


चंचल….. हां हां बाना ले और मजे कर तुझे तो बस मौज मस्ती करने से मतलब हैं।


डिंपल….. यार इस अपश्यु नाम के मजनू को आज पहली बार देख रहीं हूं न्यू एडमिशन हैं।


चंचल…... कोई न्यू एडमिशन नहीं हैं ये तो पुरानी दल हैं जो आज ही कॉलेज आय हैं। कॉलेज आते ही तूने उसके गाल सेंक दिया।


दोनों बात करते करते चुप हों जाते क्योंकि क्लॉस में टीचर आ जाता। टीचर क्लॉस का एटेंडेंस लेता हैं। जब अपश्यु का नाम आता हैं और कोई ज़बाब नहीं मिलता तब टीचर बोलता हैं "आज भी नहीं आया लगाता हैं फिर से प्रिंसिपल से शिकायत करना पड़ेगा" टीचर कि बात सुनकर अपश्यु का दोस्त बोलता हैं……


विभान…… सर अपश्यु आज कॉलेज आया हैं। फ़िर अपश्यु से बोलता हैं अरे लङकी तकना छोड़ और मुंह खोल नहीं तो फ़िर से शिकायत कर देगा


अपश्यु….. पार्जेंट सर।


टीचर……ओ तो आप आ गए आज क्यों आए हों सीधा रिजल्ट लेने आ जाते।


अपश्यु….. आ गया हू अब से रोज कॉलेज आऊंगा एक भी दिन बंक नहीं करूंगा।


टीचर….. कुछ फायदा नहीं होने वाला अगले हफ्ते से एग्जाम सुरू होने वाला हैं। पढ़ाई तो कुछ किया नहीं तो लिखोगे क्या? जब लिखोगे कुछ नहीं तो नंबर न मिलकर मिलेगा बड़ा बड़ा अंडा उन अंडो का आमलेट बनाकर खा लेना।


टीचर कि बात सुनकर क्लॉस में मौजूद सभी लडके ओर लङकी ठाहाके मारने लगाता। उन सब को डांटते हुए टीचर बोलता हैं…..


टीचर….. मैंने कोई जॉक नहीं सुनाया जो सब ठाहाके मार रहें हों। पड़ने पर ध्यान दो नहीं तो अपश्यू की तरह आधार में लटक जाओगे।


टीचर कि बाते सुनकर अपश्यु मन में बोलता "ये तो सरासर बेइज्जती हैं लेकिन तुझे तो बाद में बताऊंगी एक ही दिन में सब को धो दिया तो पढ़ाने के लिए कोई नहीं बचेगा" टीचर पढ़ना शुरू कर देता हैं। ऐसे ही रेसेस टाईम तक पढ़ाई चलता हैं फिर सब कैंटीन में चले जाते। अपश्यु भी दोस्तों के साथ कैंटीन में जाकर बैठ जाता और चाय कॉफी पीने लगाता। तभी डिंपल और चंचल कैंटीन में आती डिंपल अपश्यु के पास जाकर……


डिंपल….. सॉरी मैंने अपको पूरे क्लॉस के सामने थाप्पड मारा


अपश्यु एक खाली कुर्सी कि और इशारा करता और डिंपल बैठ जाती फिर अपश्यु बोलता……


अपश्यु…… अपके लिए इतना बेइज्जती तो शाह ही सकता हूं।


डिंपल…… मुस्कुराकर देखता है और बोलता हैं क्या हम दोस्त बन सकते हैं।


अपश्य…… आपसे दोस्ती नहीं करनी है अपको गर्लफ्रेंड बनना हैं बननी हैं तो बोलो।


डिंपल मुस्कुराकर देखता हैं और मन में बोलती"ये तो सीधा सीधा ऑफर दे रहा हैं मैं तो ख़ुद ही इसे बॉयफ्रेंड बाना चाहता हूं चलो अच्छी बात हैं बकरा खुद हलाल होना चाहता हैं तो मैं किया कर सकती हूं लेकिन अभी हां कहूंगी तो कहीं ये मुझे गलत न सोचा ले" फिर डिंपल बोलती हैं…..


डिंपल……. हम आज ही मिले हैं और गर्लफ्रेंड बाने का ऑफर, ऑफर तो अच्छा हैं लेकिन मुझे सोचने के लिए कुछ टाइम चाहिए।


अपश्यु….. दिया टाइम लेकिन ज्यादा नहीं तीन दिन का इतना काफी हैं सोचने के लिए।


डिंपल….. हां इतना काफी हैं।


ऐसे ही सब बाते करने लगते रेसेस खत्म होने के बाद सब फिर से अपने अपने क्लॉस में जाते लेकिन इस बार अपश्यु जाकर डिंपल के बगल में बैठ जाता और डिंपल के साथ बातो में मगन हों जाता।


राजेंद्र ऑफिस से घर आता जहां सुरभि तैयार बैठी थी। सुरभि के साथ सुकन्या भी बैठी थीं। सुरभि सुकन्या के बोलकर कलकत्ता के लिए चल देता चलते हुए राजेंद्र बोलता हैं…….


राजेंद्र…. सुरभि आज रघु को ऑफिस का सारा कार्य भर सोफ दिया हैं।


सुरभि…… रघु को एक न एक दिन सब जिम्मेदारी अपने कंधो पर लेना ही था अपने सही किया लेकिन एक शुभ मूहर्त पर करते तो अच्छा होते।


राजेन्द्र…… अभी सिर्फ कार्य भर सोफ हैं उसके नाम नहीं किया हैं। रघु के शादी के बाद एक शुभ मूहर्त देखकर बहू और रघु के नाम सब कुछ कर दुंगा।


सुरभि…… पता नहीं कब बहु के शुभ कदम हमारे घर पड़ेगी। कब मुझे बहु के गृह प्रवेश करवाने का मौका मिलेगा।


राजेन्द्र…… वो शुभ घडी भी आयेगा। मैंने फैसला किए हैं अब जो भी लङकी देखने जाउंगा उसके बारे में किसी को नहीं बताऊंगा।


सुरभि…... ये आपने साही सोचा।


दोनों ऐसे ही बाते करते हुए सफर के मंजिल तक पहुंचने की प्रतिक्षा करते। इधर कलकत्ता में कमला के घर पर सब नाश्ता करते हैं फिर नाश्ता करने के बाद कमला बोलती……..


कमला….. पापा आज आप और मां टाइम से कॉलेज आ जाना नहीं आए तो फिर सोच लेना।


महेश….. ऐसा कभी हुए हैं हमारे लाडली ने किसी प्रतियोगिता मे भाग लिया हों और हम उसे प्रोत्शाहीत करने न पहुंचे हों।


मनोरमा…. हम जरूर आयेंगे लेकिन तुमने हमे बताया नहीं तू भाग किस प्रतियोगिता में ले रहीं हों कहीं इस बार भी हर बार की तरह चित्रकलां प्रतियोगिता में भाग लिया।


कमला…… हां मां इस बार भी चित्रकलां प्रतियोगिता में भाग लिया और एक अच्छा सा चित्र बनायी हैं।


महेश….. तो फिर हमे भी दिखा दो, हम भी तो देखे हमारी पेंटर बेटी ने कौन सा चित्र बनाया हैं।


कमला… वो तो आप को वार्षिक उत्सव में आने के बाद ही देखने को मिलेगा अब मैं चलती हूं आप समय से आ जाना।


कमला रूम में जाती एक फोल्ड किया हुए पेपर बंडल उठाकर निचे आती नीचे उसकी सहेली सुगंधा और शालु बैठी हुई थीं। उसको देखकर कमला बोलती….


कमला…… तम दोनों कब आए।


शालु…. हम अभी अभी आए हैं चाल अब जल्दी हमे देर हों रहीं हैं।


मनोरमा….. अरे रूको चाय बन गई हैं। तुम दोनों चाय तो पीती जाओ।


सुगंधा…… आंटी हम चाय बाद में पी लेंगे हमे देर हों जायेगी।


कहकर तीनों चल देते जाते हुए तीनों एक दूसरे से मजाक कर रहे थे। मजाक मजाक में सुगंधा बोलती हैं……


सुगंधा ….. कमला अगले हफ्ते से पेपर हैं फिर कॉलेज खत्म हों जायेगी उसके बाद का कुछ सोचा हैं क्या करेंगी।


शालु…. मुझे पाता हैं कमला किया करेंगी। कॉलेज खत्म होने के बाद कमला शादी करेंगी और पति के साथ दिन रात मेहनत करके ढेरों बच्चे पैदा करेंगी।


ये कहकर शालू दौड़ पड़ती है। कमला भी उसके पीछे पीछे दौड़ती हैं। कुछ दूर दौड़ने के बाद कमला उसे पकड़ती और दे तीन थप्पड मरती फिर बोलती……


कमला…… शालु बेशर्म कहीं कि


शालु…… मैं बेशर्म कैसे हुआ शादी के बाद पति के साथ मेहनत करके ही तो बच्चे पैदा होंगे तुझे कोई और तरीका पता हों तो बता।


कमला….. तुझे बड़ी जल्दी पड़ी हैं बच्चे पैदा करने की तो तू ही कर ले मुझे अभी न शादी करनी हैं न ही अभी बच्चे पैदा करने हैं।


तब तक सुगंधा भी इनके पास पहुंच जाती हैं और कमला की बाते सुनकर बोलती हैं…..


सुगंधा….. अभी तो न न कर रहीं हैं जब कोई हैंडसम लड़का शादी की प्रस्ताव लेकर आएगा तब तेरे मुंह से न नहीं निकलेगा।


कमला…... जब ऐसा होगा तब की तब देखेंगे अभी अपना मुंह बंद कर और चुप चाप कॉलेज चल।


शालु….. ओ हो शादी के लड्डू अभी से फूट रहीं हैं लगता हैं अंकल आंटी को बताना पड़ेगा अपकी बेटी से उसकी जवानी का बोझ और नहीं धोया जाता जल्दी से उसके हाथ पीले कर दो।


शालु कहकर भाग जाती और कमला उसके पीछे भागते हुए बोलती…..


कमला….. रूक शालू की बच्ची तुझे अभी बताती हूं किसे उसकी जवानी बोझ लग रहीं हैं।


ऐसे ही तीनों चुहल करते हुए कॉलेज पहुंच जाते कॉलेज को बहुत अच्छे से सजाया गया था। कॉलेज के मैदान में टेंट लगाया गया था। जहां एक मंच बनया गया था। मंच के सामने पहली कतार में विशिष्ट अतिथिओ के बैठने के लिए जगह बनया गया था और पीछे की कतार में स्टूडेंट और उनके पेरेंट्स के बैठने के लिए कुर्सीयां लगाई गई थीं। टेंट के एक ओर एक गैलरी बनाया गया था। कमला उस गैलरी में चली गई वह जाकर कमला एक टीचर से मिली टीचर कमला को लेकर वह से बहार की तरफ आई और एक रूम में लेकर गई कुछ वक्त बाद कमला हाथ में एक स्टेंड और एक चकोर गत्ते का बोर्ड जो कवर से ढका हुआ था। लेकर टीचर के साथ बहार आई और गैलरी में जाकर स्टेंड को खड़ा किया। गत्ते के बोर्ड को स्टेंड पर रखा दिया और पास में ही खड़ी हों गई ओर भी स्टुडेंट आते गए अपने साथ लाए स्टेंड पर गत्ते का बोर्ड रखकर खड़े हों गए। ऐसे ही वक्त निकलता गया फिर सारे बोर्ड के ऊपर से कवर हटा दिया गया कवर हटते ही पूरा गैलरी आर्ट गैलेरी में परिवर्तित हों गया जहां विभिन्न पाकर की चित्रों का मेला लगा हुआ था और निरीक्षण करने वाले कुछ लोग जिनके हाथ में पेन और नोट बुक था एक एक स्टैंड के पास जाते और बारीकी से परीक्षण करते फिर बगल में खड़े स्टुडेंट से कुछ पूछते फिर नोट बुक में नोट करते और अगले वाले के पास चले जाते। कुछ ही वक्त में सभी चित्रों का परीक्षण करने के बाद चले गए।


कुछ समय बाद स्टुडेंट के पेरेंट्स आने लगते और आर्ट गैलरी में जाकर आर्ट गैलरी में लागे चित्र का लुप्त लेते इन्हीं में कमला के मां बाप भी थे जो एक एक करके सभी चित्रों को देखते और चित्र बनाने वाले स्टूडेंट को प्रोत्शाहित करते फिर कमला के पास जाकर कमला के बनाए चित्र को देखकर मनोरमा कमला को गाले लगकर बोलती हैं……..


मनोरमा…… कमला तूने तो बहुत अच्छा चित्र बनाया हैं तेरे चित्र ने मेरे अंदर के ममता को छलका दिया हैं।


कहने के साथ ही मनोरमा की आंखे छलक जाती कुछ वक्त बाद दोनों अलग होते कमला मां के आंखो से बहते अंशुओ को पोछकार बोलती हैं…….


कमला…… मां आप रो क्यों रहीं हों मैंने कुछ गलत बना दिया जिसे अपका दिल दुखा हों अगर ऐसा हैं तो मुझे माफ कर देना।


मनोरमा कमला की बात सुनकर हल्का हल्का मुस्कुराते हुए उसे फिर से गाले लगा लेती और बोलती हैं…….


मनोरमा…… कमला तूने कुछ भी गलत नहीं बनाया हैं तूने तो मां की ममता, वात्सल्य और स्नेह को इतनी सुंदरता से वर्णित किया हैं जिसे देखकर सभी मां जिसके मन में अपर ममता, वात्सल्य और स्नेह होगी इस चित्र देखने के बाद प्रत्येक मां रो देगी। मैं भी एक मां हूं तो मैं ख़ुद को रोने से कैसे रोक सकती हूं।


कमला खुश होते हुए बोलती हैं……. सच मां अपको मेरी बनाई चित्र इतनी पसंद आई


मनोरमा…… हां मेरी लाडली


कमला…… मां अपको खुशी मिली इससे बडकर मुझे ओर कुछ नहीं चाहिएं मेरा इस प्रतियोगिता में भाग लेने का फल मिल चुका हैं अब मुझे और कुछ नहीं चाहिएं।


महेश…….. तुम्हें पुरुस्कार नहीं चाहिएं जिसके लिए तूमने इतनी मेहनत किया।


कमला….. आप लोगों की खुशी से बडकर मेरे लिए और किया पुरुस्कार हों सकती हैं मुझे मेरी पुरुस्कार मिल गईं अब मुझे ये दिखबे का पुरस्कार नहीं चाहिएं।


महेश….. ठीक हैं जैसा तुम कहो हम टेंट में बैठने जा रहे हैं तुम चल रहीं हों।


कमला….. नहीं पापा अभी मुख्य अथिति आने वाले हैं उनके देखने के बाद ही मैं आ पाऊंगी।


ये लोग चाले जाते इसके बाद और भी बहुत लोग आते और कमला के चित्र को देखने वाले अधिकतर महिला जो चित्र के आशय को समझ पाते उनकी आंखे छलक जाती। कुछ वक्त बाद मंच से मुख्य अतिथि के पधारने की घोषणा होता हैं और एक एक कर कई घड़ियां कॉलेज प्रांगण में आकर रूखते। जिससे बहुत से जानें माने लोग उतरते उनमें से राजेंद्र और सुरभि भी उतरते और टेंट के अंदर जाकर अपनें निर्धारित जगह पर जाकर बैठ जाते। कुछ वक्त बैठने के बाद सब एक एक करके उठते और आर्ट गैलरी की ओर चल देते। उनके साथ कॉलेज के प्रिंसिपल और कुछ टीचर होते जो उन्हें एक एक चित्र के पास जाकर चित्र दिखते और उनके बारे में बाते। ऐसे ही जब राजेंद्र और सुरभि कमला के बनाए चित्र के पास पहुंचती हैं तो सुरभि की नजर सब से पहले कमला पर पड़ती हैं। सुरभि कमला को देखकर मन में सोचती हैं " कितनी खुबसूरत लङकी हैं ये लडक़ी अगर मेरे घर में बहु बनकर आई तो मेरे घर को स्वर्ग बना देगी" सुरभि तो मन में सोच रहीं थी लेकिन कमला की धडकने बडी हुई थीं। राजेंद्र भी कमला को देखकर मन में सोचता हैं " अरे ये लडक़ी तो मेरे देखे सभी लङकी से खुबसूरत हैं इसके घर वाले राजी हों गए तो मुझे रघु के लिए ओर लडक़ी देखना नहीं पड़ेगा " फिर राजेंद्र और सुरभि कमला के बनाए चित्र को देखते हैं चित्र को देखकर सुरभि कभी राजेंद्र को देखती कभी कमला को देखती। राजेंद्र भी कभी कमला को देखता तो कभी सुरभि को देखता। चित्र को देखते देखते सुरभि की आंखे छलक आयी। कमला भी इन दोनों को देखकर मंद मंद मुस्करा देती। सुरभि चित्र को बहुत गौर से देखती। सुरभि जीतना गौर से चित्र को देखती उतना ही उसके आंखों से अंशु छलकती जाती।


कमला के चित्र में ऐसा किया हैं जो एक मां के आंखो को छलकने पर मजबूर कर देती हैं जानेंगे अगले अपडेट में यह तक साथ बाने रहने के लिए आप सब रिडर्स को बहुत बहुत धन्यवाद।

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Awesome update
 
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Reactions: Destiny and Luffy

Lucky..

“ɪ ᴋɴᴏᴡ ᴡʜᴏ ɪ ᴀᴍ, ᴀɴᴅ ɪ ᴀᴍ ᴅᴀᴍɴ ᴘʀᴏᴜᴅ ᴏꜰ ɪᴛ.”
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Update - 10


एक खेत जिसमे फसलों के बुवाई का काम चल रहा था। कईं मजदूर कम कर रहें थे। चिल चिलाती धूप की असहनीय तपिश जो देह को झुलसा देने की क्षमता रखती थी। धूप की तपीश इतनी ज्यादा थी कि भूमि में मौजूद पानी ऊष्मा में परिवर्तीत होकर हल्की हल्की धुंए का अक्स दिखा रही थी। इतनी चिलचिलाती धूप में खेत के मेढ़ पर लगी एक पेड़ जिसकी टहनियों में नाम के पत्ते लागे थे। जो धूप को रोकने में आशमर्थ थे। उसके नीचे एक महिला जिसकी तन पे लिपटी साड़ी काई जगह से फटी हुईं थीं। गोद में एक शिशु को लिऐ बैठी हुईं थीं। महिला शिशु को स्तन पान करा कर शिशु की भूख को शांत कर रहीं थीं। महिला अपनें फटे हुए अचल से शिशु को ढक रखा था और नजरे ऊपर की ओर कर रखा था। जैसे सूर्य देवता को आंख दिखाकर कह रहीं थीं "अपनी तपिश को कुछ वक्त के लिए काम कर ले मैं अपने शिशु को दूध पिला रहीं हूं और तेरी तपिश मेरे अबोध शिशु को विरक्त कर रहीं हैं। मेरी फटी अंचल तेरी तपिश को रोक पाने में असमर्थ हैं।"

कमला का बनया यह चित्र जो एक मां को अपनें शिशु के भूख को मिटाने की प्राथमिकता को दर्शा रही थीं। कैसे एक मां धूप की तपिश को भी सहते हुए अपनी अबोध शिशु के भूख को शांत करने के लिए काम छोड़कर शिशु को स्तन पान करा रहीं थीं। इस चित्र को देखकर समझकर सुरभि ख़ुद के अंदर की मातृत्व को रोक नहीं पाई जो उसके आंखो से नीर बनकर बाह निकली। सुरभि अंचल से बहते नीर को पोंछकर कमला के पास गई और उसके सर पर हाथ फिराते हुईं बोली…बहुत ही खुबसूरत और मां के ममता स्नेह को अपने इस चित्र मैं अच्छे से दृश्या हैं। इससे पता चलता हैं आप एक मां की मामता और स्नेह को कितने अच्छे से समझती हों।

कमला……. धन्यवाद मेम मैंने तो सिर्फ़ मेरी कल्पना को आकृति का रूप दिया हैं जो देखने वालो के हृदय को छू गई हैं।

राजेंद्र……. अपकी कल्पना शक्ति लाजवाब हैं। और अपकी बनाई चित्र अतुलनीय हैं। मैं अपका नाम जान सकता हूं।

कमला…… जी मेरा नाम कमला बनर्जी हैं।

राजेंद्र….. अपके जन्म दात्री माता पिता बहुत धन्य हैं। क्या मैं उनका नाम जान सकता हूं।

कमला…... जी मां श्रीमती मनोरमा बनर्जी और पापा श्री महेश बनर्जी, मां गृहणी हैं और पापा एक कंपनी में उच्च पद पर कार्यरत हैं।

सुरभि….. आप से मिलकर और बात करके बहुत अच्छी लागी अब हम चलते हैं बाद में फिर आपसे मुलाकात होंगी।

सुरभि और राजेंद्र ओर भी चित्र को देखते और आपस में बातें करते जब सारे चित्र को देख लिया फिर जाकर अपने जगह बैठ गए । गैलरी से मुख्य अतिथियों के जानें के बाद सभी स्टुडेंट अपने अपने पैरेंट्स के पास जाकर बैठ गए। मंच में रंगारंग कार्यक्रम शुरू हों गया था। जिसमे भाग लेने वाले स्टुडेंट अपने अपने प्रस्तुति से देखने वालों का मन मोह लिया। रंगा रंग कार्यक्रम कुछ वक्त तक चला। जैसे सभी शुरुवात का अंत होता हैं वैसे ही रंगा रंग कार्यक्रम का अंत हुआ और पुरुस्कार वितरण आरंभ हुआ। मुख्य अतिथियों के हाथों सभी स्टुडेंट को उनके प्रस्तुति अनुसार पुरुस्कृत किया गया। अंत में आर्ट प्रतियोगित में भाग लेने वाले सभी स्टुडेंट में से विजेताओं को पुरुस्कृत किया गया। पहले तृतीय स्थान पाने वाले प्रतिभागी को पुरस्कार दिया गया फिर द्वितीय स्थान को और अंत में प्रथम स्थान वाले को पुरुस्कृत करने के लिए राजेंद्र और सुरभि को मंच पर बुलाया गया। राजेंद्र सुरभि के साथ मंच पर गए जहां उनका परिचय मंच संचालक देता हैं और बोलता हैं" प्रथम स्थान पाने वाले प्रतिभागी को चुनना निरीक्षण कर्ताओ के लिए संभव नहीं था फिर भी उन्होंने एक नाम को चुना हैं। जो मात्र 0.50 अंक के अंतर से प्रथम स्थान को प्राप्त किया हैं और उस प्रतिभागी का नाम कमला बनर्जी हैं कमला मंच पर आए और हमारे मुख्य अथिति राजेंद्र प्रताप राना जी के हाथों पुरस्कार प्राप्त करें।"

प्रथम पुरस्कार पाने वालो में खुद का नाम सुनकर कमला खुशी से उछल पड़ती हैं। खुशी कमला के आंखो से छलक रही थी। महेश और मनोरमा का आशीर्वाद लेकर कमला मंच की और बड़ जाती हैं। मंच पर पहुंचकर राजेंद्र और सुरभि के हाथों पुरस्कार लेकर कमला उनका आशीर्वाद लेती फिर अपनी जगह पर लौट आती। कुछ वक्त बाद वार्षिक उत्सव को खत्म करने का ऐलान किया जाता। पहले मुख्य अथिति एक एक कर गए। उनको छोड़ने प्रिंसिपल उनके गाड़ी तक गए। राजेंद्र प्रिंसिपल से कमला के बारे में कुछ जानकारी लेता है फिर चल देता।

कमला भी अपने मां बाप के साथ चल देती जाते हुए महेश पूछता…..

महेश…….. प्रथम पुरस्कार पाकर कैसा लग रहा हैं।

कमला…… पापा मैं बता नहीं सकती आज मैं कितनी खुश हूं जीवन में पहली बार मुझे पुरस्कार मिला हैं। पापा आप खुश हों न।

महेश….. आज मैं बहुत खुश हूं मेरी तोड़ू फोड़ू बेटी आज वो कर दिखाया जिसकी उम्मीद सभी मां बाप करते हैं लेकिन नसीब किसी किसी को होता हैं। उन नसीब वालो में आज मैं भी बन गया हूं।

मनोरमा…… हां कमला आज तो हमारी खुशी की कोई सीमा नहीं हैं। हमारी खुशियों ने सारी सीमाएं तोड़ दिया हैं।

ऐसे ही बाते करते हुए कमला मां बाप के साथ घर पहुंच जाते हैं। उधार राजेंद्र और सुरभि की गाडी एक आलीशान बंगलों के सामने रुकता हैं। दरवान उनको देखकर सलाम करता हैं और गेट खोल देता हैं। अदंर जाकर गाड़ी रुकता हैं। राजेंद्र और सुरभि गाड़ी से उतरकर दरवाज़े तक जाते दरवाज़े पर लागे एक धागे को खींचता दो तीन बार खींचने के बाद दरवजा खुलता है। अंदर जाकर राजेंद्र कहता…..

राजेंद्र…. पुष्पा कहा हैं दिख नहीं रहीं

नौकरानी…… मालिक छोटी मालकिन अपने कमरे में हैं आप लोग बैठिए मैं मालकिन को बुलाकर लाती हूं।

सुरभि….. रहने दो चंपा हम खुद जाकर अपनी लाडली से मिल लेते हैं।

दोनों पुष्पा के कामरे के पास जाकर दरवाज़ा पिटती हैं। तो अदंर से आवाज आती हैं " चंपा मुझे परेशान न करों मैं अभी पढ़ रहीं हूं" दोनों सुनाकर मुस्कुरा देते हैं और फिर से दरवजा पीटते हैं। अदंर से फिर से वही आवाज आती हैं। ऐसे ही दो तीन बार और दरवजा पीटने के बाद पुष्पा दरवाजा खोलती हैं " क्या हुआ कितनी…." बोलते बोलते रूक जाती हैं और सुरभि से लिपटकर बोलती हैं…..मां आप कैसे हैं और कब आएं।

सुरभि…… मैं ठीक हू मेरी बच्ची कैसी हैं कितनी दुबली हों गई हैं कुछ खाती पीती नहीं हों।

पुष्पा…….. कहा दुबली हों गई हूं मैं पहले से ओर मोटी हों गई हूं।

पुष्पा राजेंद्र के पास जाकर उनके पाओ छूकर बोलती हैं…... पापा आप कैसे हों ।

राजेंद्र ……. मैं जैसी भी ही तुम्हारे सामने हूं देख लो

कहकर राजेंद्र कमर पर हाथ रखकर खड़ा हों जाता हैं सुरभि और पुष्प देखकर मुस्करा देते हैं। पुष्पा दोनों का हाथ पकड़ कर कमरे में लेकर जाती हैं। कमरे में जहां तहां किताबे बिखरे पड़े थे। पुष्पा किताबो को समेट कर रखती सुरभि भी उसकी मदद करती और बोलती…..

सुरभि…. तूने तो कमरे को पुस्तकालय (लाइब्रेरी ) बना रखी हैं। साफ नहीं करती जहां तह किताबे बिखेर रखी हैं।

पुष्पा…… मां आप छोड़ो न मैं अभी रख देती हूं आप बैठो।

दोनों बैठ जाते हैं पुष्पा दोनों के बिच में बैठकर उनसे बाते करते घर के बाकी सदस्य का हल चल पूछती ऐसे ही कुछ वक्त बाते करने के बाद सुरभि और राजेंद्र दूसरे कमरे में जाते हाथ मुंह धोकर बैठ जाते और दोनों बात करने लगाते……

सुरभि….. बच्चो ने कितना अच्छा प्रोग्राम किया मुझे तो बहुत अच्छा लगा अपको कैसा लगा।

राजेंद्र…. मुझे भी बहुत अच्छा लगा और सबसे अच्छा आर्ट गैलरी में लागे चित्र लगा। जिसे बच्चों ने कितनी परिश्रम से बनाया।
सुरभि….. मुझे भी बहुत अच्छा लगा। मुझे उन चित्रों में सबसे अच्छी वो चित्र लगी जिसे प्रथम पुरस्कार विजेता लडक़ी क्या नाम है हां याद आई कमला ने बनाई थीं।

राजेन्द्र…. मुझे भी वह चित्र बहुत अच्छा लगा। जितनी खुबसूरत लडक़ी हैं उतनी ही खुबसूरत और मन मोह लेने वाली उसकी कल्पना हैं।

सुरभि…. मुझे भी उस लडक़ी की सोच बहुत अच्छी लगी और बात चीत करने का तरीका भी बहुत सभ्य हैं। क्यों न हम उसके मां बाप से रिश्ते की बात करें।

राजेंद्र…. मैं भी यही सोच रहा हूं कल सुबह चलते हैं कॉलेज से उसके घर का एड्रेस लेकर उसके मां बाप से मिलकर बात करते हैं।

सुरभि…… ठीक हैं अब चलो खाना खाकर पुष्पा से भी कुछ वक्त बात करते हैं।

दोनों पुष्पा के कमरे में गये उसे साथ लेकर खाना खाने गए जहां नौकरानी ने विभिन्न प्रकार के व्यंजन मेज पर लगा रखी थीं। खाना खाते हुऐ तीनों बाते करते रहे। पुष्पा उनकी अचानक बिना खबर किए आने का कारण पूछता। राजेंद्र आने का करण बता दिया और जब कल वापस जाने को बोलता तो पुष्पा नज़र होकर बोलती….

पुष्पा….. आप दोनों को मेरी बिलकुल भी परवाह नहीं हैं मैं यह अकेले रहकर पढ़ाई करती हूं। मुझे आप सब की कितनी याद आती हैं और आप सब आते नहीं हों जब आते हो तो एक दिन से ज्यादा नहीं रुकते लेकीन इस बार ऐसा नहीं होना चाहीए आप दोनों दो तीन दिन रुककर ही जायेंगे।

सुरभि……. अरे नाराज क्यों होती हों हमे भी अच्छा नहीं लगता हम भी चाहते हैं हमारी बेटी के साथ रहे लेकिन वहां भी तो देखना होता हैं। कुछ दिनों बाद तेरी परीक्षा समाप्त हों जायेगी तब तू हमारे साथ ही रहेंगी।

पुष्पा…... तब की तब देखेंगे लेकीन आप दोनों दो तीन दिन नहीं रुके तो मैं घर वापस नहीं जाऊंगी यहीं रह जाऊंगी अकेले।

राजेंद्र…… अच्छा अच्छा हम रह लेंगे दो तीन दिन अपने लाडली के पास अब खुश न।

पुष्पा…… पुरा खुश मुझे आप दोनों से बहुत सारी बातें करनी हैं।

सुरभि…… हमे भी तो अपनी लाडली से बहुत सारी बातें करनी हैं अब जल्दी से खाना खाओ फिर बाते करेंगे।



रावण देर से ऑफिस गया था इसलिए देर तक काम किया फिर चल दिया। रावण एक आलिशान घर के सामने कार रोका घर को बाहर से देखने पर ही पाता चल रहा था यहां रहने वाले रसूकदार और शानो शौकत से लवरेज हैं। दरवान के गेट खोलने पर रावण अदंर गया कार को रोका और दरवाज़े के सामने लटकी घंटी को बजाया थोड़ी देर में दरवाजा खुला रावण को देखकर बोला "मालिक अपके दोस्त रावण जी आए हैं" फिर रावण से बोला "अंदर आइए मालिक" बोलकर दरवाज़े से किनारे हट गया रावण अदंर गया अदंर का माहौल देकर रावण बोल….

रावण…… दलाल कैसा हैं मेरे दोस्त। आज बडी जल्दी शुरू कर दिया क्या बात ?

दलाल….. मैं ठीक हूं मेरे दोस्त बैठ

रावण बैठ गया फिर दलाल एक ओर गिलास में विसकी डाला ओर रावण को देते हुए बोला…..

दलाल……… तुझे देखकर लग रहा हैं तू बहुत प्यासा हैं ले इसे पीकर प्यास मिटा ले।

रावण मुस्कुराते हुए बोला…… साले घर आए मेहमान की प्यास पानी से मिटाया जाता हैं न की शराब और कबाब से ।

दलाल पहले मुस्कुराया फिर आवाज देते हुए बोला….. सम्भू एक गिलास पानी लाना लगाता हैं आज मेरा दोस्त मेहमान बनकर आया हैं दोस्त नहीं।

रावण मुस्कुराया और गिलास उठाकर एक घुट में पी गया फिर चखना खाते हुए बोला……. अरे तू मेरा जिगरी यार हैं तेरे साथ मजाक भी नहीं कर सकता। यार भाभी जी नहीं दिख रही हैं कहीं गईं हैं और बिटिया रानी कहा हैं वो भी नहीं दिख रहीं हैं।

दलाल गिलास हाथ में लेकर एक घुट पिया फिर बोला…… यार तू इतना प्यासा हैं जो एक ही घुट में पी गया। अपनी वाले से मन भर गया जो मेरी वाली के बारे में पुछ रहा हैं कामिना मेरी वाली तो छोड़ दे।

रावण आपने गिलास में शराब लोटते हुए बोला…… रोज तो घर की दल चावल खाता हूं आज सोचा बहार के चिकन कबाब का मज़ा लिए जाए

दोनों ने अपने अपने गिलास आपस में टकराया और ठहाके लगकर हॅंसने लगा कुछ वक्त हॅंसने के बाद रावण बोला…… यार कुछ जरूरी बात करनी हैं तू सांभू को बाहर भेज दे।

दलाल….. अरे यार संभू से किया डरना संभू मेरा विश्वास पात्र बांदा हैं। इसके मुंह का ताला इतना मजबूत है कि एक बार लग जाएं तो दुनिया में ऐसी चाबी ही नहीं बनी जो उसके मूंह के ताले को खोल दे।

रावण…… मैं जानता हूं संभू किसी को नहीं बताएगा फिर भी तू उसे बहार भेज दे मैं नहीं चाहता की इस बारे में किसी को भी पाता चले।

रावण संभू को आवाज लगाता हैं और बोलता हैं…… संभू अभी तू जा मुझे कुछ चाहिएं होगा तो मैं ख़ुद ही ले लूंगा।

संभू जी मालिक कहकर चला गया फिर रावण ने बोलना शुरु किया…… कल सुकन्या ने दादाभाई और भाभी को बात करते हुए सुन लिया जो बाद में मुझे बता दिया।

दलाल…… क्या सुना और क्या बाते कर रहें थे।
रावण ने फिर वह सब बता दिया जो सुकन्या ने उसे बताया था सुनने के बाद दलाल बोला…. तू ने तो उस गुप्तचर बृजेश को और उसके परिवार को मार दिया तो अब न साबुत मिलेगा न ही हमारा राज तेरा दादाभाई जान पाएगा इसलिए डरने की जरूरत नहीं है और रहीं बात रघु की शादी की तो उसके बारे में मैं पहले से ही सोच रखा था। कभी ऐसा हुआ तो हमें करना किया चाहिए।

रावण……. बृजेश को मार दिया लेकिन बड़ी मुस्कील से उस दिन मैं थोडा सा भी लेट पहुंचता तो वो सारा राज रघु को बता देता लेकिन मैंने बृजेश के परिवार को नहीं मारा उनको डरा धमका कर यहां से भागा दिया।
दलाल…… कर दिया न मूर्खो वाला काम तुझे उसके परिवार के भी मार देना चाहिए था लेकिन अब जो हों गया सो हों गया अब मुझे मेरी बनाई हुई दूसरी योजना शक्रिय करना होगा।

रावण दोनों के गिलास में शराब लोटते हुऐ बोला……. दूसरी कौन ‌सी योजना बना राखी थीं जो तूने मुझे नहीं बताया।

दलाल…... क्यों न रघु की शादी मेरी बेटी से करवा दे इससे हमारा ही फायदा होगा। हमारा राज राज ही रहेगा और वसियत के मुताबिक इन दोनों के पहली संतान जब बालिग होगा तब मेरी बेटी उस वसियत को अपने नाम कर लेगी फिर हम आपस में बांट कर और अमीर बन जायेंगे।

रावण……. देख तू मेरे साथ कोई भी चल बाजी करने की सोचना भी मत नहीं तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।

दलाल मुस्कुराकर बोला….. मैं तेरे साथ छल क्यों करूंगा तेरे साथ छल करना होता तो मैं तुझे क्यों बताता।

रावण…. मुझे तो यही लग रहा हैं तू मेरे साथ छल करने की सोच रहा हैं क्योंकि तेरी बनाई योजना से सब तेरे और तेरी बेटी के हाथ में आ जाएगा। मुझे क्या मिलेगा घंटा।

दलाल……. घंटा नहीं माल मिलेगा माल और इतना मिलेगा की तू गिनते गिनते थक जाएगा और एक बात कान खोल कर सुन ले तू मेरा लंगोटिया यार हैं मैं तेरे साथ धोखे बाजी क्यो करूंगा तू यह बात अपने दिमाग से निकाल दे।

रावण….. कुछ कहा नहीं जा सकता जब मैं भाई होकर भाई से दागा कर सकता हूं। तू तो मेरा दोस्त हैं तू क्यों नहीं कर सकता और मैं तेरा लंगोटिया यार कैसे हुआ बचपन में तेरा मेरा बनता ही कहा था हम तो जवानी में आकर दोस्त बने।

दलाल मुस्कुराते हुऐ बोला….. तुझे लगाता हैं मैं तेरे साथ दगा करूंगा तो तू ही कोई रास्ता बता दे जिससे हमारा भेद भी न खुले और हमारा काम भी बन जाएं।

रावण…….. अभी तो मुझे न कुछ सूझ रहा हैं न कोई रास्ता नजर आ रहा हैं ।

दलाल ……. होगा तभी न नज़र आएगा अभी तो यहीं एक रास्ता हैं। मेरी बेटी की शादी रघु से करवा दू जिससे हमारा भेद छुपा रहें ।

रावण….. मन लिया तेरी बेटी की शादी रघु से करवा दिया लेकिन फिर भी एक न एक दिन हमारा भेद खुल ही जाएगा क्योंकि तू दादाभाई को जानता हैं वो जीतना शांत दिखते हैं उससे कही ज्यादा चतुर हैं दादाभाई आज नहीं तो कल कुछ भी करके हम तक पहुंच जायेंगे फिर हमारे धड़ से सर को अलग कर देंगे।

दलाल…… तू सिर्फ नाम का रावण हैं दिमाग तो तुझमें दो कोड़ी की भी नहीं हैं। मेरी बेटी की शादी इसलिए ही करवाना चाहता हु कभी अगर हमारा भेद खुल भी जाए तो मैं मेरी बेटी के जरिए उन पर दवाब बनाकर खुद को और तुझे बचा सकू।

रावण….. ओ तो ये बात हैं तेरा भी जवाब नहीं हैं कल किया होगा उसके बारे में आज ही सोच कर योजना बना लिया मस्त हैं यार।

दलाल…… मस्त कैसे हैं तुझे तो लगता हैं मैं तेरे साथ धोका करके सब अकेले ही हजम कर जाऊंगा और डकार भी नहीं लूंगा।

रावण…... हजम तो कर गया बैठे बैठें सारा चकना चाव गया। अब छोड़ उन बातों को एक दो पैग ओर पिला फिर घर भी जाना हैं।

दोनों एक दो पैग और लगाते हैं फिर रावण घर को चाल जाता हैं। रावण के जानें के वाद दलाल एक दो पैग ओर गले से निचे उतरकर लड़खड़ाते हुए जाकर सो जाता हैं। रावण घर पहुंचकर सीधा कमरे में जाता हैं और टांगे फैला कर सो जाता।


आज के लिए इतना ही आगे की कहानी जानेंगे अगले अपडेट से साथ बाने रहने के लिए आप सब रेडर्स को बहुत बहुत धन्यवाद।
Superb Update
 
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