Update - 31
रात आई और चली गई की तर्ज पर बीती रात घाटी घटना को भुला कर सभी फिर से नए जोश और जुनून के साथ रघु के शादी के जश्न मानने की तैयारी में झूट गए। आज महेंदी का रश्म था। दोनों के हाथ आज महेंदी के रंग से रंगा जाना था। ताकि महेंदी का रंग दोनों के दांपत्य जीवन को खुशियों से भर दे।
राजेंद्र के पुश्तैनी घर में सभी अपने अपने तैयारी में लगे हुए थे भगा दौड़ी और लोगों का जमघट लगा हुआ था। पर इन सभी चका चौंध से दूर अपश्यु रूम में अकेला बैठा था। अपश्यु का अपराध बोध उस पर इतना हावी हों चुका था। चाह कर भी अपराध बोध से खुद को मुक्त नहीं करा पा रहा था। सिर्फ अपराध बोध ही नहीं अब तो उसे ये डर भी सता रहा था मां, बडी मां, बहन, भाई, पापा और बड़े पापा का सामना कैसे करेगा, उसके नीच और गिरे हुए कुकर्म की भनक भी उन्हें लग गया तो न जानें वो कैसा व्यवहार अपश्यु के साथ करेगें। अपश्यु का दिमाग और मन उसे विभिन्न दिशाओं में भटका रहा था, अलग अलग तर्क दे रहा था। अपश्यु इन्हीं तर्को में उलझा हुआ था।
अपश्यु दिमाग... अरे हो गया गलती अब छोड़ इन बातों को आगे बढ़ दुनियां में बहुत से लोग हैं जो तूझसे भी गिरा हुआ नीच काम करते हैं। वो तो इतना नहीं सोचते। तू क्यों सोच के अथाह सागर में डूब रहा हैं।
अपश्यु मन…. इससे भी नीच काम ओर क्या हों सकता हैं तूने न जानें कितनो के बहु बेटियो को खिलौना समझ उनके साथ खेला उनके आबरू को तार तार किया तू दुनिया का सबसे नीच इंसान हैं। तू ने दुनिया का सबसे नीच काम किया हैं जारा सोच गहराई से तूने क्या किया हैं।
अपश्यु दिमाग... तूने कोई नीच काम नहीं किया ये तो तेरा स्वभाव हैं। तूने स्वभाव अनुसर ही व्यवहार किया था। इसमें इतना अपराध बोध क्यू करना, तू जैसा हैं बिल्कुल ठीक हैं। तू ऐसे ही रहना। थोड़ा सा भी परिवर्तन खुद में न लाना।
अपश्यु मन... तू अपराधी हैं। तुझे अपराध बोध होना ही चाहिए। तूने देखा न कैसे कालू और बबलू के मां बाप नाक रगड़ रगड़ कर माफ़ी मांग रहे थें तू सोच तेरे मां पर किया बीतेगा जब उन्हें पता चलेगा तूने कितना गिरा हुआ हरकत किया था। सोच जब तेरी बहन ये जन पाएगा उसका भाई दूसरे के बहनों के इज्जत को तार तार करने का घिनौना काम किया हैं तब तू किया करेगा , तेरी बडी मां जो तुझे अपने सगे बेटे की तरह प्यार दिया जब उन्हें पाता चलेगा तूने उनके दमन में न जानें कितने दाग लगाया तब तू किया करेगा? सोच जब तेरा दोस्त जैसा भाई जो तेरे एक बार बोलने से तेरा मन चाह काम करता था तेरा किया सभी दोष अपने सर लेकर डाट सुनता था तब किया करेगा। अभी समय हैं जा उन सभी से माफी मांग ले उन्होंने अगर माफ कर दिया तो समझ लेना ऊपर वाले ने भी तुझे माफ कर दिया।
अपश्यु दिमाग…. नहीं तू ऐसा बिल्कुल भी मत करना नहीं तो वो माफ करने के जगह तुझे धूतकर देंगे। उनके नज़र में तू एक अच्छा लडका हैं सच बोलते ही तू उनके नजरों में गिर जायेगा। तू दुनिया के नज़र में चाहें जितना भी गिरा हुआ हों उनके नजरों में तू एक अच्छा लडका हैं। इसलिए तेरा चुप रहना ही बेहतर हैं।
अपश्यु मन…सोच जारा जब तेरे मां, बाप, बडी मां, बड़े पापा, भाई , बहन दूसरे से जान पाएंगे उनका बेटा भाई कितना गिरा हुआ हैं। तब उन्हें कितना कष्ट पहुंचेगा हों सकता है उन्हें तेरे कारण दूसरे के सामने नाक भी रगड़ना पड़े तब तू किया करेगा सह पाएगा उनका अपमान कल ही कि बात सोच जब उन लड़कों ने तेरे बहन को छेड़ा फिर उनके मां बाप को कितना जलील होना पडा, इतना जलील होते हुए तू मां बाप को देख पाएगा। अगर देख सकता हैं तो ठीक हैं तू चल उस रास्ते पर जिस पर चलने का तेरा दिल चाहें। लेकिन एक बात ध्यान रखना आज मौका मिला हैं सुधार जा नहीं तो हों सकता हैं आगे सुधरने का मौका ही न मिले।
अपश्यु के दिमाग और मन के बिच जंग चल रहा था। तर्क वितर्क का एक लंबा दौर चला फिर मन दिमाग पर हावी हों गया। अपश्यु मन की बात सुनकर खुद से बोला... मैं सभी को सच बता दुंगा लेकिन आज नहीं आज अगर मैने उन्हे सच बता दिया ददाभाई के शादी के ख़ुशी का रंग जो चढ़ा हुआ है वो फीका पड़ जायेगा मैं शादी के बाद अपना करतूत उन्हे बता दुंगा और उनसे माफ़ी मांग लूंगा। माफ किया तो ठीक नहीं तो कहीं दूर चला जाऊंगा।
अपश्यु खुद में ही विचाराधीन था और उधर अपश्यु को न देख सभी उसे ढूंढ रहे थें। लेकिन उन्हें अपश्यु कहीं मिल ही नहीं रहा था। रघु अपश्यु को ढूंढते हुए सुरभि के पास पहुंचा और बोला... मां अपने अपश्यु को कही देखा हैं न जाने कहा गया कब से ढूंढ रहा हूं।
सुरभि…. मैं भी उसे नहीं देखा कुछ जरूरी काम था जो उसे ढूंढ रहा हैं।
रघु…मां जरुरी काम तो कुछ नहीं सभी को देख रहा हूं बस अपश्यु सुबह से अभी तक नहीं दिखा इसलिए पुछ रहा था
सुरभि…. ठीक है मैं देखती हूं।
सुरभि पूछताछ करते हुए। सुकन्या के पास पहुंचा सुकन्या उस वक्त कुछ महिलाओं के साथ बैठी बातों में मशगूल थीं।
सुरभि... छोटी अपश्यु कहा है उसका कुछ खबर हैं रघु कब से उसे ढूंढ रहा हैं।
सुकन्या... दीदी अपश्यु अपने रूम में हैं न जानें कितना सोता हैं कितनी बार आवाज दिया कोई जवाब न दे रहा था आप जाकर देखो न हों सकता है अपकी बात मन ले।
सुरभि... ठीक हैं मै देखती हूं।
सुरभि सीधा चल दिया अपश्यु के रुम की ओर जाकर दरवाज़ा पीटा लेकिन दरवाज़ा नहीं खुला फिर दरवाज़ा पीटते हुए बोला…. अपश्यु दरवाज़ा खोल जल्दी खोल बेटा तुझे रघु बुला रहा हैं।
अपश्यु अभी अभी विचारों के जंगल से बाहर निकाला था। बडी मां की आवाज़ सुन आंखे मलते हुए दरवाज़ा खोला दरवाज़ा खुलते ही सुरभि बोली… ये kuyaaa…
सुरभि पूरा बोल ही नहीं पाई अपश्यु की लाल आंखे देख रूक गई फिर अपश्यु बोला…. हा बडी मां बोलों कुछ काम था।
सुरभि... बेटा माना की देर रात तक जागे हों फिर इतने देर तक सोना अच्छा नहीं हैं । घर में शादी हैं आए हुए महमनो का अवभागत करना भी जरुरी हैं।
अपश्यु... बडी मां देर रात तक जगा था तो आंख ही नहीं खुला अब किया करता।
सुरभि…अब जाओ जल्दी से तैयार होकर नीचे आ रघु तुझे ढूंढ रहा था।
अपश्यु…दादा भाई ढूंढ रहे थें चलो फिर पहले उनसे हो मिल लेता हूं।
ये कह अपश्यु बाहर को जानें लगा तब सुरभि रोकते हुए बोली... जा पहले नहा धोकर अच्छा बच्चा बनकर आ भूत लग रहा हैं कहीं किसी मेहमान ने देख लिया तो भूत भूत चिलाते हुए भाग न जाए।
सुरभि की बाते सुन अपश्यु मुस्करा देता है सुरभि अपश्यु के बिखरे बालो पर हाथ फेर बाहर चाली जाती हैं फिर अपश्यु बाथरूम में घुस जाता हैं। कुछ क्षण में बाटरूम से निकल टिप टॉप तैयार होकर नीचे आता हैं। फिर इधर उधर काम करने में मगन हों गया।
ऐसे पल पल गिनते गिनते शाम हों गया। शाम को मेंहदी रस्म की तैयारी चल रहा था। महिलाओं का जमघट लगा हुआ था। मेंहदी रचाने वालों को बुलाया गया था तो वे अपने अपने काम में लग गए। कोई रघु के हाथ में मेहंदी लगा रहें थे तो कोई सुकन्या, सुरभि पुष्पा के हाथों में मेंहदी लगा रहें थें। अपश्यु और रमन दोनों एक साईड में खड़े देख रहे थें। दोनों को देख सुरभि बोली…. अपश्यु रमन तुम दोनों नहीं लगवाओ तुम भी लगवा लो भाई और दोस्त की शादी हैं तुम दोनों को तो खुद से आगे आकर लगवाना चाइए था।
रमन... रानी मां शादी रघु की है हम क्यों लगाए वैसे भी मेंहदी लड़कियों और औरतों के लिए हैं हम लड़कों के लिए नहीं।
अपश्यु…. हां बडी मां मुझे नहीं लगाना मेंहदी ये तो लड़कियों के हाथ में शोभा देती हैं लड़कों के हाथ में नहीं।
सुरभि…मेंहदी सिर्फ श्रृंगार के लिए नहीं लगाया जाता हैं। कहा जाता हैं मेंहदी का रंग जीवन में खुशियों का रंग भर देता हैं। इसलिए शादी जैसे मौका पर सभी मेंहदी लगवा सकता हैं। तुम दोनों भी लगवा लो जिससे जल्दी ही तुम्हारे जीवन में भी रंग भरने वाली कोई आ जाए।
ये कह सुरभि मुस्कुरा देती हैं। और पुष्पा आंखे दिखाते हुए बोली... चलो आप दोनों भी मेंहदी लगवा लो नहीं तो सोच लो मेरा कहना न मानने पर आप दोनों का किया होगा।
दोनों मन ही मन बोले इतनो लोगों के बीच कान पकड़ने से अच्छा मेंहदी लगाना ही ठीक रहेगा। इसलिए दोनों चुप चाप मेंहदी लगने बैठ जाते हैं।
उधर महेश के घर पर भी मेंहदी का रश्म शुरू हों गया था। कमला को बीच में बिठा चारों और से कुछ महिलाएं घेरे हुए नाच गाना कर रहे थे। मेंहदी रचाने वाली लड़कियां कोई कमला के हाथ में मेहंदी लगा रहे थें तो कोई पांव में मेंहदी लगा रहे थें। कमला के साथ उसकी दोनों सहेलियां बैठी थी और बात कर रही थीं।
चंचल... कमला मेहंदी तो तूने पहले भी कई बार रचाया हैं आज कैसा लग रहा हैं सैयां के नाम की मेहंदी रचते हुए ।
शालू…मन में लड्डू फुट रहा होगा। बता न कमला किसी के नाम की मेहंदी जब हाथ में रचती हैं तब कैसा लगता हैं।
कमला... मैं क्यों बताऊं जब तुम दोनों के हाथ में किसी के नाम की मेहंदी रची जाएगी तब खुद ही जान जाओगे अब तुम दोनों चुप चाप मेहंदी लगाने दो।
चंचल…. मेहंदी कौन सा तेरे मुंह पर लग रही हैं जो तू हमसे बात नहीं कर सकती।
शालू... अरे शालू तू नहीं समझ रहीं हैं हमारी सखी अब सजन की हों चुका भला बो हमसे बात क्यों करेंगी।
कमला…. तुम दोनों को चुप करना हैं कि नहीं या पीट कर ही मानोगे।
चंचल... कमला तू बहुत याद आयेगी रे शादी के बाद तू हमें भुल तो नहीं जाएगी बोल न।
कमला…नही रे मैं तुम दोनों को कैसे भुल सकती हूं तुम दोनों तो मेरे सबसे प्यारी सखी हों….
कमला अधूरा बोला आंखो से नीर बहा देती हैं। आंखे नम शालू और चंचल की भी हों गईं। आखिर इतनों वर्षो का साथ जो छुटने वाला था। दोनों ने बहते आंसू को पोंछा फिर कमला के आंसू भी पोछा फिर चंचल बोली... तू भूलना भी चाहेगी तो हम तुझे बोलने नहीं देंगे।
शालू... और नहीं तो क्या हम तुझे पल पल याद दिलाते रहेंगे।
इन तीनों की हसी ठिठौली फिर शुरू हों गया । लेकिन मनोरमा बेटी को मेहंदी लगते देख खुद को ओर न रोक पाई इसलिए एक कोने में जाकर अंचल में मुंह छुपाए रो रहीं थीं। महेश के नजरों से मनोरमा न छुप पाया। मनोरमा को कोने में मुंह छुपाए रोते देख महेश पास गया फिर बोला…. मनोरमा इस ख़ुशी के मौके पर यू आंसू बहा कर गम में न बदलो देखो हमारी बेटी कितनी खुश दिख रही हैं।
मनोरमा... कैसे न रोऊं जिन हाथों से लालन पालन कर बेटी को बडा किया एक दिन बाद उसी हाथ से बेटी को विदा करना हैं। ये सोच किस मां के आंख न छलके आप बताओं।
मनोरमा की बात सुन महेश के भी आंखे नम हों गया। दोनों एक दुसरे को समझने में लगे हुए थे। पर कमला की नज़रे मां बाप को ढूंढ रहा था। कमला के हाथ और पैरों में मेहंदी रचा जा चुका था। मां को दिखा कर पूछना चाहती थी मेहंदी कैसी रची हैं। ढूंढते हुए उसे मां बाप एक कोने में खड़े दिखा। कमला उठकर उनके पास गई। फिर बोली... मां देखो तो मेरे हाथ में रची मेहंदी कैसी दिख रही हैं।
मनोरमा एक नज़र कमला के हाथ को देखा फिर कमला से लिपट रोने लगा। कमला भी खुद को ओर न रोक पाई, फुट फुट कर रो दिया। दोनों कुछ क्षण तक रोते रहे फिर महेश के कहने पर दोनों अलग हुए। कमला मां को साथ लेकर गई फिर खुद पसंद करके मां के हाथ में मेहंदी रचवाया।
कुछ देर तक और मेहंदी रचने का काम चलता रहा और महिलाओं का नाच गाना चलता रहा। नाच गा कर जब सभी थक गए तब मेहंदी रस्म को विराम दे दिया गया।