• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Romance ajanabi hamasafar -rishton ka gathabandhan

DARK WOLFKING

Supreme
15,534
31,893
244
majedar update ..ravan ke kiye karaye pe pani phir gaya jab usko pata chala ki raghu ki shadi tooti nahi hai .
gusse me usne apne patni par hi haath utha diya jisse sukanya ruthi rahi .

yaha sab maja masti kar rahe hai shopping ko lekar aur pushpa to raghu ko blackmail kqr rahi hai shopping ke liye kyunki raghu ko baat karni hai kamla se .
 

Destiny

Will Change With Time
Prime
3,965
10,660
144
majedar update ..ravan ke kiye karaye pe pani phir gaya jab usko pata chala ki raghu ki shadi tooti nahi hai .
gusse me usne apne patni par hi haath utha diya jisse sukanya ruthi rahi .

yaha sab maja masti kar rahe hai shopping ko lekar aur pushpa to raghu ko blackmail kqr rahi hai shopping ke liye kyunki raghu ko baat karni hai kamla se .
Thank you 🙏🙏🙏

Pushpa to karegi blackmail ek matr bahan hai aur bhai ki shadi hai. Pushpa ke liye jackpot wala mauka ban gaya jiska fhayda bakhubi le rahi hai.
 

Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
Prime
23,231
49,420
259
Update - 22


पुरोहित की बाते सुन दोनों दहाड़े मार मार कर हसने लगे। हंसते समय राजेंद्र के मन में एक बात कोंधी जो कुछ ज्यादा ही उछल कूद मचा रहा था इसलिए राजेंद्र जी उसे उगलना ही बेहतर समझा…. महेश बाबू एक और अति विशिष्ट अतिथि तो रहा गया जिनके बारे में आपको बताया ही नहीं।


महेश... अपके अति विशिष्ट अतिथियों ने मेरा कमर ही तोड़ दिया अब एक ओर रह गया। बता दीजिए देखते है इस महाशय की नजर मेरे शरीर के किस अंग पर हैं।


राजेंद्र... महेश बाबू रघु और कमला की गठबंधन के सूत्रधार बिगुल रह गया….


राजेंद्र की बात पूरी होती उससे पहले ही महेश भड़क उठे... सुनिए राजा जी आप इस निर्लाज को बिलकुल नहीं बुलाना. जो पुरोहित की धोती लेकर भाग सकता हैं न जाने और क्या क्या लेकर भाग जाएगा।


राजेंद्र…. लेकिन बिगुल के बिना शादी में मजा नहीं आयेगा आखिर इन दोनों को मिलाने में उसकी भूमिका महत्वपूर्ण हैं।


महेश... सुनिए राजा जी अपने अगर इस बिगुल को बुलाया तो इसे अंदर ही नहीं घुसने दूंगा उसका बिगुल बाहर ही बजा दूंगा फ़िर आप ये न कहना अपने मेरे अतिथि का अपमान कर दिया।


दोनों में बिगुल को बुलाने न बुलाने को लेकर बहस छिड़ गया। राजेंद्र जितना उसका पक्ष ले उतना ही महेश भड़कता जाए। अंत में राजेंद्र ने महेश का कहना मान लिया। इनको तू तू मै मै करते देख पुरोहित जी खुश हों रहे थे और मंद मंद मुस्कुरा रहे थे। खैर बहस खत्म होने के बाद पुरोहित ने पंचांग निकाला कुछ वक्त तक पंचांग में खोज बिन किया फ़िर बोला…. जजमान आने वाली कृष्ण पक्ष की दसवी तिथि बहुत शुभ हैं। इसलिए महेश जी अपके सुपुत्री और राजेंद्र जी अपके सुपुत्र दोनों के गठबंधन के लिए इस तिथि को निर्धारित करना ही ठीक होगा आप दोनों किया कहते हों।


दिन गिना गया,शादी में मात्र बीस दिन का समय बचा था। इतने कम दिनों में तैयारी हों पाएगा की नहीं हों पाएगा इन्हीं संभावनाओं पर दोनों विचार करने लगें। जितने गहरे विचार में महेश था उतने ही गहरे विचार में राजेंद्र भी था। बरहाल कुछ क्षण विचार करने के बाद दोनों एक साथ बोले…. पुरोहित जी कोई और तिथि देखिए इतने कम दिन में तैयारी नहीं हों पायेगा।


पुरोहित…. जजमान इस तिथि से अच्छा कोई और तिथि नहीं हैं। फिर भी अगर आप कहते है तो मैं कोई और तिथि निकलता हूं।


पुरोहित फिर से पंचांग खंगालने लगे। उसी वक्त सुरभि भी वहा आकार बैठ गईं। कुछ क्षण तक पंचांग खंगालकर पुरोहित जी बोले…. जजमान एक तिथि और निकला हैं उतना अच्छा नही लेकिन अपको तैयारी करने में पर्याप्त समय मील जाएगा। तिथि आज से छ महीने बाद की हैं।


छ महीने की बात सुन महेश बाबू खुश हों गए लेकिन तिथि की स्तिथि से थोडा न खुश हों गए लेकिन राजेंद्र जी के दिमाग में कुछ और चल रहा था। इससे पहले कई बार रिश्ता जुड़ने से पहले ही टूट गया न जानें कौन दुश्मनी निकाल रहा था। कहीं उसने फिर से कोई खुराफात कर दिया तो ये रिश्ता भी टूट जाएगा। नहीं नहीं ज्यादा दिनों तक प्रतीक्षा करना ठीक नहीं होगा जितनी जल्दी शादी हों जाएं उतना ही अच्छा होगा। इन बातो को सोचकर राजेंद्र बोला…. महेश बाबू इतना लंबा खींचना ठीक नहीं होगा मुझे लगता हैं हमें बीस दिन बाद की तिथि को ही चुनना चहिए।


महेश... राजा जी इतने कम समय में तैयारी नहीं कर पाऊंगा। मुझे तो छा महीने बाद वाला तिथि ही सही लग रहा हैं।


राजेंद्र…महेश बाबू अपने शायद पुरोहित जी की बातो को ध्यान से नहीं सुना छ महीने बाद वाला तिथि उतना ठीक नहीं हैं। तो किया आप चाहते है अपके बेटी के जीवन में कोई अमंगल हों मैं तो नहीं चाहूंगा मेरे बेटे के जीवन में कोई अमंगल हों। इसलिए मेरे ओर से बीस दिन बाद वाले तिथि से सहमति जताता हु। रही दिन कम की तो बीस दिन भी बहुत है तैयारी करने के लिए।


महेश ने कुछ क्षण ओर विचार किया फिर हा कह दिया उनके हा कहते ही राजेंद्र जी को कुछ शांति मिला क्योंकि उन्हें डर सता रहा था कहीं महेश मना न कर दे। उनके हा कहने के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की दसवी तिथि को शादी होना सुनिश्चित कर दिया गया फिर सभी का मुंह मीठा किया गया। उसके बाद पुरोहित जी चले गए। शादी की तिथि कमला को बताने के लिए कमला को बुलाया जाता हैं शादी की तारीक सुनकर कमला खुश हों गई थी लेकिन दर्शा नहीं रही थीं। जब उससे पूछा जाता हैं तो कमला शर्मा कर रूम में भाग जाती हैं। उसके भागने से वहा मौजूद सभी मुस्कुरा देते हैं। कुछ वक्त ओर दोनों समधिओ में चर्चा हुआ कब किया करना हैं। कौन सी रश्म कब करना हैं सभी विषयों पर चर्चा करने के बाद खाना पीना हुआ फिर सुरभि और राजेंद्र घर चले गए।


घर आकर रघु और पुष्पा को भी डेट बता दिया गया। रघु के मान में शादी वाले लड्डू कुछ ज्यादा ही फूटने लगा। रघु का मन बावरा हों गया था और उससे ही बगावत करने लगा। रघु अपने खुशी को छुपाना चाह रहा था लेकिन मन उसे नाच नाच कर खुशी मानने को कहा रहा था। अंदर उमड़ती खुशी के ज्वार भाटा को रघु रोक नहीं पाया इसलिए रूम में चला गया। सुरभि राजेंद्र और पुष्पा को लगा इतनी जल्दी शादी की बात सुनकर शायद रघु खुश नहीं हुआ इसलिए बिना कुछ बोले रूम में चला गया। इसलिए राजेंद्र ने कहा... सुरभि लगता है हमारे बेटे को शादी की डेट पसंद नहीं आया इसलिए बिना कुछ कहें रूम में चला गया। तुम जाकर बात करो और उसके मन में क्या हैं पता करो।


इधर रघु रूम में आकर दरवाजा बंद किया। फिर रूम में रखी सोफे नुमा कुर्सी पर बैठ गया और एक एक पल को याद करने लगा। जब कमला को पहली बार देखने उसके घर गया था कैसे वो कमला के सौंदर्य से मोहित होकर दिन दुनियां को भुल गया था। उसके रुप जाल में फांस गया था उसका मन कर रहा था उसे बस देखता ही रहे। उसे देखकर कमला मुस्कुरा रहीं थीं। पहली बार किसी को देखकर उसकी धड़कने कुछ ज्यादा ही तीव्र हों गया था। पुष्पा का उसे टोकना फिर एक दुसरे से बात करने जाना। जहां हंसी मजाक टीका टिप्पड़ी करना। एक एक बात को रघु बैठे बैठे याद कर रहा था और मुस्कुरा रहा था। एक वक्त ऐसा भी आया जब रघु कमला से दुबारा मिलने गया था। कमला को लड़कों को बेरहमी से पीटते हुए देखा था। उन लड़कों को पीटने से कमला को रोका था ये बात याद आते ही रघु का खिला हुआ चहरा बुझ सा गया और गुस्से की आभा प्रकट हो गया। रघु अंदर ही अंदर खौल रहा था। उसी वक्त रूम का दरवाज़ा खटखटाया जाता हैं। आहट पाकर रघु खुद को नियंत्रण में लाता हैं और जाकर दरवाज़ा खोलता हैं। रघु सामान्य दिखने की भरपूर कोशिश कर रहा था। लेकिन उसके गुस्सैल भाव से मुखड़े पर जो लाली आया हुआ था उसे न छुपा पाया। रूम का दरवाज़ा सुरभि ने खटखटाया था। रघु की लाली युक्त आभा वाले मुखड़े को देख सुरभि समझ गई रघु बहुत गुस्से में है। उसे लगा बिना रघु से पूछे इतनी जल्दी शादी की तारीख तय कर दिया शायद इसलिए रघु को गुस्सा आ गया होगा। इसलिए सुरभि बोली…रघु तू खुश नही है शादी की तारीख को लेकर तुझे लगता है हम जल्दी कर रहे है तो बता दे हम दिन आगे बड़ा देंगे।


रघु... नही नही मैं बहुत खुश हु मै खुद चाहता हूं जितनी जल्दी हो सके कमला और मेरा शादी हो जाए।


रघु फ्लो फ्लो में किया बोल गया उसे समझ नही आया जब आया तो शर्मा गया। शर्माते देख सुरभि एक खिली सी मुस्कान दिया फिर बोली…. देखो तो कैसे शर्मा रहा हैं। शादी करने की इतनी जल्दी है तो तेरे मुखड़े पर ये गुस्से की लाली क्यों?


रघु... मां वो बात ये है कि जब मुझे पाता चला शादी की तारीख तय हों गया हैं वो भी इतना जल्दी तो मैं बहुत खुश हुआ मैं आप सभी के सामने अपना खुशी जाहिर नही करना चाहता था इसलिए रूम में आ गया । यह आकर कमला को मिलने से लेकर एक एक घटना को याद कर रहा था। उन्ही घटनाओं में उन लड़कों वाला घटना भी था। इसलिए मै गुस्से में खौल गया और आप भी उसी वक्त आ गए। छुपाना चाहा लेकिन छुपा नहीं पाया। अपने परख लिया और अपको लगा मैं इतनी जल्दी शादी की तारीख निकलने को लेकर गुस्सा हों गया।


सुरभि…अच्छा ठीक है अब चल तेरे पापा बुला रहे है। और कभी कभी अपने खुशी को जाहिर कर दिया कर ऐसे अन्दर ही अन्दर दबा कर न रखा कर।


दोनों नीचे आए सुरभि ने रघु की मन की बात बता दिया। तब राजेंद्र ने बोला... रघु बेटा दिन कम हैं और तैयारी बहुत करना है इसलिए हमें कल ही दार्जलिंग निकलना हैं। वहा सभी को बताकर हमे वापस यहां आना हैं शादी की सभी रस्में इसी घर में होगा।


रघु हा कहकर रूम में चल दिया रूम में आकर रघु का मन कर रहा था किसी से बात कर अपनी खुशी बांटे इसलिए उसने टेलिफोन का रिसीवर उठाया और एक नंबर डायल किया एक दो बार री डायल करने के बाद दुसरी और से कॉल रिसीव किया गया। रघु ने हैलो बोला फिर उधर से कुछ बोला गया उसके जवाब में रघु बोला…. रमन तू कैसा दोस्त है मेरा आवाज भी पहचान नहीं पाया। तू तो कहता था मेरे धड़कनों की धाक धाक सुनकर ही तू बता सकता हैं मेरा दोस्त मेरे आस पास ही हैं तो फिर ये कैसी दोस्ती जो तू आवाज भी न पहचान पाया।


(रमन और रघु दोनों बचपन के दोस्त हैं जो एक साथ ही पड़े लिखे और बड़े हुए। दोनों की हैसियत में जमीन आसमान का अंतर हैं । रमन के पापा जिनका नाम मुंशी हैं। राजेंद्र की कंपनी में काम करने वाला एक मुलाजिम हैं। मुंशी और राजेंद्र दोनों भी दोस्त हैं जैसे राजेंद्र और मुंशी के दोस्ती के बिच कोई ऊंच नीच का भेद भाव नहीं हैं वैसे ही रमन और रघु के दोस्ती में भी कोई ऊंच नीच का भेद भाव नहीं हैं। रमन इस वक्त दिल्ली में रहता हैं। उसकी पढ़ाई पूरा हो चुका हैं। एक पार्ट टाइम जॉब करते हुए मास्टर बनने के सपने को पूरा करने में लगा हुआ हैं।)


रमन…तू ज्यादा नखरे न कर मै काम में व्यस्त था इसलिए उधार ही ध्यान था। मैं आवाज ठीक से सुन नही पाया इसलिए ऐसा बोला अब तू बता रानी मां कैसी है राजाजी कैसे हैं हमारी इकलौती बहना कैसी हैं।


रघु... सब ठीक हैं। देख तू ही नाराज करने वाला काम कर रहा हैं सभी का हलचल ले लिया और दोस्त को भुल गया अपने लंगोटिया यार को भुल गया।


रमन…तेरा हालचाल किया लेना तू टीक है तभी तो काल किया हैं। चल फिर भी पुछ ही लेता ही बता कैसा हैं।


रघु... मै बिल्कुल ठीक हूं और तेरे लिए एक सरप्राइस हैं।



रमन...बता न सरप्राइस किया हैं।


रघु... न न ऐसे नहीं बताऊंगा।


रमन... देख नखरे न कर जल्दी बता दे नहीं तो फोन रख मेरा समय खराब न कर।


रघु…. अरे रूठ क्यों रहा हैं दोस्त से ऐसे नहीं रूठते जो मै बताने वाला ही वो तेरे लिए सरप्राइस है और सरप्राइस ऐसे फोन पर नहीं दिया जाता।


रमन…. तू नखरे कर रहा है मतलब सरप्राइस बहुत बड़ा हैं चल बता किया करने पर मुझे सरप्राइस का पता चलेगा।


रघु….सरप्राइस बड़ा और बहुत खूबसूरत हैं जिसे तू छूं नहीं सकता लेकिन देख सकता हैं और देखने के लिए तुझे यहां आना पड़ेगा।


रमन... अच्छा ऐसा किया तो ठीक है। तू फोन काट मै अभी के अभी निकलता हूं।


रघु... अरे रुक यार कल को आराम से निकलना।


रमन… आराम गया तेल लेने मैं फोन रख रहा हु।


ये कहकर रमन फोन रख देता हैं। रमन के इतने उतावले होने पर रघु मुस्कुरा देता हैं और रिसीवर रख कर बोलता हैं... मुझे पता था तू इतना उतावला हो जाएगा इसलिए तो तुझे मेरे शादी तय होने की बात नहीं बताया चल आ जा फिर बताता हूं सरप्राइस किए हैं।


रमन उसी वक्त अपने बैग पैक करने लगता हैं। इधर राजेंद्र घर की साफ सफाई और अन्य कामों के लिए कुछ लोगों को बुलाता है और उन्हे बता देता है क्या क्या काम करना हैं और कब तक काम को खत्म करना है। अभी के लिए जो जो जरूरी काम था उसे निपटा कर अगले दिन राजेंद्र सभी परिवार वालों के साथ दार्जलिंग के लिए चल देता हैं।



आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। यह तक साथ बने रहने के लिए आप सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद

🙏🙏🙏🙏🙏🙏
बहुत ही बेहतरीन महोदय।
मतलब अब रघु की शादी की तिथि भी निर्धारित हो चुकी है और बहुत जल्द रघु और कमला परिणय सूत्र में बंधने वाले है, लेकिन मुझे लगता नहीं कि ये इतना आसान होने वाला है क्योंकि अभी तक यही होता आया है कि शादी तय होने के बाद टूट जाती है, रावण और दलाल ऐसा नहीं होने देने के लिए अपना पूरा जोर लगा देंगे और शादी तोड़ने की पूरी कोशिश करेंगे।।
 

Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
Prime
23,231
49,420
259
Update - 23


पिछले दो दिन से सुकन्या कुछ ज्यादा ही विचलित रहने लगा था। गुमसुम सी एक कोने में बैठी रहती थी। उसके स्वभाव में इतना परिवर्तन सभी को खटक रहा था। नौकर चाकर सोच रहे थे सुकन्या को हुआ तो हुआ किया, ऐसे तो कभी नहीं करती थीं जो हमेशा सभी को बिना गलती के खरी खोटी सुना देती थी लेकिन पिछले दो दिनों से गलती करने पर भी कुछ नही कह रहे थे। दरसल आज सुबह नाश्ते के वक्त सुकन्या को जूस दिया जा रहा था। गिलास में जूस डालते वक्त जूस गिर गया और बह कर सुकन्या के कपड़ो पर गिर गया था। लेकिन सुकन्या ने कुछ नहीं कहा बस चुप चाप उठकर चली गईं। जिसके हाथ से जूस गिर था वो सोच रहा था आज तो समात आ गया लेकिन वैसा कुछ हुआ ही नहीं इसलिए सब अचंभित रह गए और सोचने लगे ऐसा कैसे हों सकता हैं बिना कुछ कहे सुकन्या कैसे चली गईं और सब आपस में बात चीत करने लगें।

"छोटी मालकिन के स्वभाव में इतना परिवर्तन ये तो चमत्कार हो गया"

"हां यार आज तो ये पीटने से बच गया इसका किस्मत अच्छा था जो छोटी मालकिन का मिजाज़ बदला हुआ था नहीं तो आज इसको बहुत सुना देती साथ ही हम सब को लपेटे में ले लेती"

"हां यार मिजाज़ तो बदला हुआ है पिछले दो दिन से देख रहा हु छोटी मालकिन गुमसुम सी रहने लगीं हैं चुप चाप एक कोने में बैठी रहती हैं।"

"मुझे लगता हैं छोटी मालकिन का छोटे मालिक से कुछ नोक झोंक हुआ होगा"

"शायद ऐसा ही हुआ होगा नही तो जब से मैं महल में काम करने आया हु तब से आज देख रहा हु गलती करने पर भी मालकिन ने कुछ नही कहा।"

"चलो जो भी हुआ वो छोटी मालकिन जाने लेकिन उनकी तीखी बाते सुनने की एक आदत सी हो गया हैं। कुछ अजीब सा लग रहा हैं।"

"तेरी आदत तू अपने पास ही रख मुझे तो बहुत अच्छा लग रहा हैं। विधाता कुछ ऐसा करें छोटी मालकिन हमेशा हमेशा के लिए ऐसा ही रहे।"

सभी नौकर ऐसे ही तरह तरह की बाते कर रहे थे और काम भी कर रहे थे। सुकन्या के जाने के बाद रावण भी उसके पीछे पीछे चला गया था। सुकन्या सोफे नुमा कुर्सी पर बैठी थीं उसे देखकर रावण बोला... सुकन्या आज तुम्हें किया हुआ जो तुमने नौकर को कुछ नहीं कहा। बताओ बात किया हैं।

सुकन्या कुछ नहीं बोली बस चुप रहीं उसका चुप रहना रावण को खटक रहा था तब रावण को लगा जरूर कुछ बात होगा जिससे सुकन्या बहुत परेशान हैं। इसलिए रावण बोला…. सुकन्या चलो तैयार हो जाओ हम कहीं घूम कर आते हैं।

सुकन्या…. मुझे कही नहीं जाना आप जाइए आपको जहां जाना हैं।

रावण... ये किया बात हुआ चलो जाओ जल्दी से तैयार हों जाओ आज तुम्हारा मुड़ सही नहीं लग रहा हैं। कहीं घूमकर आयेंगे तो तुम्हारा मुड़ भी सही हों जाएगा।

सुकन्या... आप मानते क्यों नहीं हमेशा जिद्द करते हों इतना जिद्द करना ठीक नहीं हैं।

रावण... जिद्द तो करुंगा ही आखिर तुम मेरी बीबी हों जब तुम जिद्द करती हो तब मैं तुम्हारा जिद्द पूरा करता हूं तो तुम्हे भी मेरा जिद्द बिना सवाल जवाब के पूरा करना चहिए।

सुकन्या...आप मानेंगे नहीं अपनी बात मनवा कर ही रहेंगे।

रावण... न बिलकुल नहीं चलो जल्दी से तैयार होकर नीचे आ जाओ।

कहकर रावण चला गया था। मन ही मन सुकन्या सोचने लगीं किया करू जाऊ की न जाऊ उसका एक मन कर रहा था न जाऊ एक मन कर रहा था जाऊ बरहाल न न को हा में बदला और तैयार होने जानें लगीं फिर रुक गईं और सोचने लगीं एक बार फोन करके बात कर लेती हूं लेकिन उन्होंने कहा था मैं कभी उन्हें फोन न करूं कहीं नाराज हों गए तो, नहीं कर ही लेती हू जो होगा देखा जाएगा फिर सुकन्या ने एक नंबर डायल किया दुसरी और से receive करने पर सुकन्या ने कुछ कहा फिर कुछ क्षण चुप रहा उधर से कुछ बोला गया तब सुकन्या बोली... मै सुकन्या!

"तुझे कहा था न तू मुझे कभी फोन नहीं करेगी फिर फोन क्यों किया?"

सुकन्या... भईया अपका हालचाल जानने के लिए सुना हैं अपको…..

"जो भी सुना हैं ठीक सुन हैं लेकिन तू मुझे भाई क्यों कह रहीं हैं। तुझे कहा था न जब तक तू मेरा काम नहीं कर देता तब तक तू मुझे भाई नहीं बोलेगा"

सुकन्या...न जानें आपकी किया दुश्मनी हैं जिसका हर्जाना मुझे भरना पड़ रहा हैं। बचपन से सगे मां बाप भाई को जानते हुए भी उनका प्यार न पा सका दुसरे की बेटी बन पाली बडी हुई और उन्होंने ही मेरी शादी रावण से करवाया सगे मां बाप के होते हुए भी मुझे दुसरे की बेटी बन जीना पड़ रहा हैं।

" ये तेरी नियति हैं और तुझे ऐसे ही जीना होगा जब तक मेरा काम पूरा नहीं हों जाता।"

सुकन्या…. सही कहा ये मेरी भाग्य में लिखा हुआ हैं सगे बाप को उसके अंतिम समय देखने नहीं आ पाई बडी बहन समान जेठानी के साथ बुरा बरताव करना पड़ रहा हैं। एक रिश्ते की गांठ बांधने के लिए दुसरे रिश्तों की गांठ खोलती जा रही हूं।

"अब कर ही किया सकते है ये सब तू अपने भाग्य में लिखवा कर लाया हैं तू इसे नहीं बदल सकती।"

सुकन्या... आप ये बिलकुल न सोचे मै अपना भाग्य नहीं बदल सकती,बदल सकती हूं जितना मैं जानती हु सब सुरभि दीदी और जेठ जी को बता दूंगी और उनसे माफ़ी मांग लूंगी।

"तू ऐसा बिल्कुल नहीं करेगी ऐसा किया तो तू पति और बेटे को हमेशा हमेशा के लिए खो देगा।"

सुकन्या... नहीं ऐसा बिल्कुल न करना मैं उन्हें कुछ भी नहीं बताऊंगी।

"ठीक है जब तक तू अपना मुंह बंद रखेगी तब तक तेरा पति और बेटा सलामत रहेगा। चल मै रखता हूं और आगे से भुल कर भी फोन नहीं करना जब तक की मेरा मकसद पूरा नहीं हों जाता।"

सुकन्या फ़ोन रख कर सुबक सुबक कर रोने लगीं और बोली... अच्छा हुआ जो उनके साथ बुरा हुआ। जिनके लिए रिश्ते कोई मायने नहीं रखता। उनके साथ बुरा होना ही चाहिए। अपने फायदे के लिए अपने ही जीजा और भांजे को मरने की धमकी दे। बहन को गलत रास्ते पर चलने को मजबूर करे, गलती तो मेरी ही थी जो उनके झांसे में आ गईं और उनकी बात मानकर दलदल में फसती गई। मुझे माफ करना दीदी मैं मजबूर हु मै अपके साथ गलत व्यवहार नहीं करूंगी तो मैं अपना परिवार खो दूंगी।

बरहाल सुकन्या को बहुत गिलानी हों रहीं थीं लेकिन कर भी क्या सकती थी अब वो फांस चुकी थीं। कुछ क्षण तक रोती रहीं फिर तैयार होकर रावण के साथ घूमने चल दिया। इन दोनों के जाने के लामसम दो घंटे बाद रमन दार्जलिंग पहुंचा गया था। बस से उतरते ही बैग उठाया और चल दिया अपने यार से मिलने, महल पहुंचा वहां रमन को, न रघु मिला न सुरभि न राजेंद्र और न ही पुष्पा दिखी तब बोल.. मुझे बुला लिया और यह कोई है ही नहीं, गए तो गए कहा, रघु ओ रघु कहा हैं तू देख तेरा दोस्त आ गया।

रमन के चीख चीख कर आवाज देने से एक नौकर भागा भागा आया और बोला... मालिक तो कलकत्ता गए हैं।

रमन... खुद कलकत्ता में डेरा जमाए बैठा हैं और मुझे यहां बुला लिया अभी कलकत्ता जाता हूं और उसका खबर लेता हूं।

"आप को कहीं जाने की जरूरत नहीं वो लोग आ रहें हैं कुछ ही देर में पहुंच जाएंगे।"

रमन…आने दो उसे, अच्छे से खबर लूंगा। अच्छा सुन पानी बानी पुछने का कोई रिवाज बिबाज हैं की नहीं चल जा एक गिलास पानी लेकर आ और कुछ खाने को भी लेकर आना बहुत भूख लगा हैं।

नौकर ने पहले एक गिलास पानी लाकर दिया फिर कुछ नाश्ता लाकर दिया। नाश्ता करके रमन काफी देर तक बैठा रहा। लेकिन रघु अभी तक आया नहीं कई बार फोन किया लेकिन उधर से जवाब आया साहब लोग तो सुबह ही निकाल गए पहुंचने वाले होंगे। इंतजार करते करते रमन थक चुका था अब उसे गुस्सा भी आने लगा था। रमन महल से बाहर गया महल के पीछे बहुत सारे पेड़ लगे हुए थे वहा से एक मोटा डंडा तोड़ा और आकार मुख्य दरवाज़े पर बैठ गया फिर बोला... बहुत कर लिया इस ईद के चांद का इंतजार आने दो डंडे से वेलकम करुंगा।

रमन डंडा हाथ में लिए बैठा रहा। कुछ क्षण ही हुए था की एक कार गेट से परवेश किया जिसमे रघु और पुष्पा थे। रमन को देखकर रघु मुस्कुरा दिया और पुष्पा खुश होते हुए बोला भईया कार रोको मुझे उतरना हैं रमन भईया आए हैं।

रघु... रोक रहा हु इतनी जल्दी भी किया हैं। रुक जा कुछ देर फिर मिल लेना।

पुष्पा... नहीं आप अभी के अभी कार रोको मुझे उतरने दो फिर आप कार आगे ले जाना।

रघु ने कार रोका पुष्पा उतार गई और रघु कार लेकर आगे बड़ गया। पुष्पा उतरकर रमन के पास गया और बोला... कैसे हो भईया? कब आए? यह क्यों बैठे हों? आप के हाथ में डंडा क्यों हैं?

रमन खड़ा हुआ पुष्पा से गले मिला फिर बोला…. एक साथ इतने सारे सवाल थोड़ी सांस ले ले नहीं तो सांस अटक जाएंगी।

पुष्पा... अटकती है तो अटक जाने दो पहले आप बताओ आप को मेरी जरा सी भी याद नहीं आती।

रमन... आता है बहुत सारा तभी तो तूझसे मिलने आ गया।

पुष्पा... सच्ची!

रमन... मुच्ची!

रघु कार गैराज में रख कर आ गया था और खड़े होकर दोनों की बाते सुन रहा था। रमन जब पुष्पा को झूठा मस्का लगाते हुए मुच्ची बोला तब रघु बोला... कहे की मुच्ची वे तुझे तो मैंने बुलाया था तब जाकर कही आया, नहीं तो आ कहा रहा था।

रघु ने कुछ बड़ा चढ़ा कर बोला जिससे पुष्पा रूठ गई और रमन से बोला... भईया आप कितने झूठे हों जाओ मैं आपसे बात नही करती।

कहकर पुष्पा मुंह फुलाकर वही सीढ़ी पर बैठ गईं। पुष्पा को रूठते देख रमन आंखे चढ़ाकर रघु की और देखा फिर बोला... बहना अभी न रूठ जितना रूठना हैं, थोड़े देर बद रूठ लेना । अभी मुझे इस चौदमी के चांद का खबर लेना हैं।

पुष्पा... जाओ आप जिसका भी खबर लेना है लो मैं आपसे बात नहीं करती।

रमन डंडा ले फुल गुस्से में रघु की ओर बढ़ा। गुस्सा आए भी कैसे न पुष्पा न रूठे इसलिए झूठ बोला लेकिन रघु ने पोल खोल दिया और पुष्पा रूठ गई। रमन के हाथ में मोटा डंडा देख रघु बोला... यार डंडा फेक दे बहुत मोटा है हड्डी बाड्डी टूट जाएगा।

रमन…टूटे तो टूट जाएं मुझे उससे किया तेरी वजह से मेरी बहन मुझसे रूठ गया।

रमन रघु के पास तक पहुंच गया था। उसी वक्त राजेंद्र की कार वह पहुंचा था। रमन के हाथ में डंडा देख सुरभि मुस्कुराने लगी थीं। राजेंद्र कार रोक बाहर निकल आया। रमन डंडा मरने ही वाला होता तभी राजेंद्र दहाड़ कर बोलता... रमन बेटा किया कर रहे हो रघु को क्यों मार रहे हों।

राजेंद्र की आवाज सुन रमन डंडा छोड़ बिलकुल चुप चाप खडा हो गया था, और नजरे झुका लिया था। ये देख पुष्पा खिलखिला रही थी और सुरभि कार से बाहर निकल आया फिर राजेंद्र से बोली… आप भी न कितना अच्छा सो चल रहा था अपने दहाड़ कर सब बंद करवा दिया। आप को मना किया था लेकिन आप हो की सुनते नहीं। फिर रमन से बोला…तू चालू कर अपना सो रघु के पापा कुछ नहीं कहेंगे।

सो शुरू कहा होता रमन तो झाड़वत खडा था। पुष्पा देख खिलखिलाए जा रही थीं। राजेंद्र वहा से निकलना ही बेहतर समझा इसलिए आगे कुछ बोले बिना अन्दर चला गया। उनके अंदर जाते ही रमन टूट पड़ा रघु को साथ लिए नीचे गिर गया। गिरते ही दोनों एक दूसरे को जकड़कर लोट पोट करने लगें। इनको मल युद्ध करते देख सुरभि और पुष्पा खिलखिला रहे थे। इधर दोनों के लोट पोट और गुथाम गुथी करने से कपड़े खराब होने लगें फर्श की धूल इनके कपड़ो की शोभा बड़ने लगे। जब रघु को छुटकारा पाने का कोई और चारा न सूझा तब रघु बोला... रमन छोड़ दे नहीं तो सरप्राइस किया है नहीं बताऊंगा।

सरप्राइस सुनते ही रमन ने रघु को छोड़ दिया दोनों उठकर खड़े हो गए। एक दुसरे के कपड़े झाड़ा फिर रमन बोला... यार बता न सरप्राइस किया है। देख मैं कितने दूर से आया हूं और कब से बैठा बैठा वेट कर रहा हूं।

रघु...हाथ में डंडा लिए

सुरभि दोनों के पास आया दोनों के कान उमटते हुए बोली...तुम दोनों का बचपना अभी तक गया नहीं देखा तुम दोनों के करतब ने कपड़े गंदा कर दिया।

रघु...ahaaaa मां कान छोड़ों बहुत दर्द हो रहा हैं।

रमन… ahaa रानी मां कान छोड़ों, कान को कुछ हो गया तो अपकी बहु शादी करने को मना कर देगी।

पुष्पा…नहीं मां रमन भईया के कान न छोड़ना ओर ज्यादा उमेठो मुझसे झूठ क्यों बोला।

सुरभि ने दोनों के कान छोड़ा फिर बोली…. चल अब अंदर सारे कपड़े गंदे हों गए पहले जाकर कपड़े बदल फिर बात करेंगे।

सुरभि के पीछे पीछे दोनों मस्करी करते हुए अन्दर की और चल दिया था। सुरभि के अन्दर घुसते ही पुष्पा दोनों हाथ फैलाए दरवाज़े पर खड़ी हों गई उसे देख रघु बोला... तू क्यों द्वारपाल बने खड़ी हो गईं चल हट अन्दर जाने दे।

पुष्पा... आप जाओ अंदर लेकिन रमन भईया नहीं जायेगे उन्होंने मुझसे झूठ क्यों बोला पहले उन्हें सजा मिलेगा। फ़िर रमन भईया को अन्दर जानें दूंगी।

पुष्पा के बोलते ही रमन समझ गया सजा के रुप में उसे करना किया होगा। इसलिए कान पकड़े उठक बैठक करते हुए sorry sorry बोलने लगा। रमन को उठक बैठक करते देख पुष्पा खिलखिला दिया और सामने खड़े होकर जोर जोर से गिनने लगा। पुष्पा के करतब देख रघु पेट पकड़ जोर जोर से हंसने लगा। तब पुष्पा बोली... भईया आप क्यों बत्तीसी फाड़ रहें हो भुल गए गलती करने पर आपको भी ऐसे ही सजा देती थीं। वो तो आज कल आप बच जाते हो मैं जो यह नहीं रहती थी लेकिन अब नहीं बचोगे मैं यह आ गई हूं।

रघु... हां हां मुझे याद है अब तू गिनती कर नहीं तो भुल जाएगी और मेरे दोस्त को डबल सजा भुगतना पड़ेगा।

पुष्पा फिर से गिनती करने लग गया था। रघु अन्दर चला गया था। पुष्पा की गिनती चल रहा था। जब गिनती पचास तक पहुचा। तब रमन रुक गया था। उसके रुकते ही पुष्पा बोली... आप रुक क्यों गए अभी आपको पचास ओर उठक बैठक लगना हैं चलो जल्दी शुरू हों जाओ नहीं तो ओर बड़ जाएगा।

रमन... नहीं अभी शुरू करता हूं।

रमन फ़िर से शुरु हो गया था। और पुष्पा उंगली ऊपर नीचे करते हुए गिनने लगी थीं। उठा बैठक करते हुए रमन के जांघो में दर्द होने लग गया था। इसलिए रमन धीरे धीर उठ रहा था और बैठ रहा था। ये देख पुष्पा रमन को रोक देती हैं और बोलती हैं…. भईया आपको इतनी तकलीफ हों रहा हैं तो आप बोले क्यों नहीं चलो अब बहुत हुआ अन्दर चलते हैं।

रमन और पुष्पा अन्दर चले गए रमन थोडा लगड़ा कर चल रहा था तो उसे देख रघु बोला…. कैसा रहा सरप्राइस मजा आया की नहीं ।

रमन... ये सरप्राइस था ऐसा हो ही नहीं सकता। सरप्राइस कुछ ओर ही हैं। जो तू बता नहीं रहा हैं बता न सरप्राइस क्या हैं।

सुरभि...सरप्राइस जो भी हैं वो बाद में जान लेना पहले जाकर कपड़े बदलकर आओ कितना गन्दा लग रहा हैं।

सुरभि के कहते ही रघु और रमन उठकर चल दिया पुष्पा भी उनके पीछे पीछे जानें लगीं तब सुरभि पुष्पा को रोकते हुए बोली…. तू कहा जा रही हैं तू इधर आ सजा देने की तुझे बहुत शौक हैं।आज तुझे सजा मैं देती हूं।

पुष्पा… देखो मां आप मेरे और मेरे भाइयों के बिच में न आएं तो ही बेहतर होगा मेरे भाई है उनके साथ मैं जो चाहें करुंगी।

सुरभि... अच्छा! वो दोनों तेरे भाई है, तो मेरे बेटे भी तो हैं और तूने मेरे बेटे को सजा दिया हैं। तेरे कारण रमन ठीक से चल भी नहीं पा रहा है। अब तू भी कान पकड़ और तीस बार उठक बैठक लगा।

पुष्पा... मां मेरे साथ अपने बेटी के साथ ऐसा बरताव करोगी।

सुरभि…. चुप चाप अपने काम पर लग जा नहीं तो…

पुष्पा... ठीक हैं करती हु।

पुष्पा कान पकड़ उठक बैठक करने लगती हैं तभी वहा अपश्यु आ जाता हैं पुष्पा को उठक बैठक करते देख रोकते हुए बोला…. पुष्पा तू ये कान पकड़कर उठक बैठक क्यों कर रही हैं ये तेरा काम नहीं हैं।



आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से, यह तक साथ बने रहने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
बहुत ही बेहतरीन।।
यहां पर तो सुकन्या का एक नया रूप बाहर निकलकर आया और ये भी पता चल गया कि वो बुरी औरत नहीं है वो जो कुछ भी कर रही है किसी के दबाव में कर रही है। अपने पति और बेटे को बचाने के लिए कर रही है। कोई है जो रावण और अपसू को जान से मारने की धमकी देकर अपना कोई मकसद पूरा करना चाहता है। सुकन्या उसे भाई कह रही है। उसकी बातों से लग रहा है कि उसे अपने माँ बाप और भाई से वो प्यार नहीं मिला जिसकी वो हकदार थी।

उधर रमन अपने दोस्त के घर पहुंच गया। यहां पर कुछ मेलोडी ड्रामा भी देखने को मिला पुष्पा, रघु और रमन के बीच। बाद में पुष्पा सजा भुगत रही है।
 
  • Like
  • Love
Reactions: Luffy and Destiny

Destiny

Will Change With Time
Prime
3,965
10,660
144
बहुत ही बेहतरीन महोदय।
मतलब अब रघु की शादी की तिथि भी निर्धारित हो चुकी है और बहुत जल्द रघु और कमला परिणय सूत्र में बंधने वाले है, लेकिन मुझे लगता नहीं कि ये इतना आसान होने वाला है क्योंकि अभी तक यही होता आया है कि शादी तय होने के बाद टूट जाती है, रावण और दलाल ऐसा नहीं होने देने के लिए अपना पूरा जोर लगा देंगे और शादी तोड़ने की पूरी कोशिश करेंगे।।
Thank you 🙏 🙏🙏

रघु और कमला के शादी का दिन तय तो हों गया लेकिन तय तारिक तक पहुंचने से पहले ही दलाल और रावण शादी को तुड़वाने के भरपूर प्रयास करेंगे। किया किया करेंगे इसका पाता अपको आगे के अपडेट में चल जायेगा।
 
  • Like
Reactions: parkas

Destiny

Will Change With Time
Prime
3,965
10,660
144
बहुत ही बेहतरीन।।
यहां पर तो सुकन्या का एक नया रूप बाहर निकलकर आया और ये भी पता चल गया कि वो बुरी औरत नहीं है वो जो कुछ भी कर रही है किसी के दबाव में कर रही है। अपने पति और बेटे को बचाने के लिए कर रही है। कोई है जो रावण और अपसू को जान से मारने की धमकी देकर अपना कोई मकसद पूरा करना चाहता है। सुकन्या उसे भाई कह रही है। उसकी बातों से लग रहा है कि उसे अपने माँ बाप और भाई से वो प्यार नहीं मिला जिसकी वो हकदार थी।

उधर रमन अपने दोस्त के घर पहुंच गया। यहां पर कुछ मेलोडी ड्रामा भी देखने को मिला पुष्पा, रघु और रमन के बीच। बाद में पुष्पा सजा भुगत रही है।
Thank you 🙏🙏🙏

सुकन्या क्यों ऐसा कर रही हैं इसके पीछे उसका भाई हैं। लेकिन सुकन्या का भाई कौन है वो क्यों ऐसा कर रहा हैं। इन सभी विषय को जानने के लिए अपको वेट करना होगा।

रमण, रघु और पुष्पा के बीच का ये ड्रामा होना ही था एक तो रघु ने रमण को बुल लिया और खुद कोलक्तता मैं थे और रमण ने पुष्पा से झूठ भी बोला था।
 

Destiny

Will Change With Time
Prime
3,965
10,660
144
Update - 29


शादी में सात दिन बचे थे ऐसे में दोनों ओर से सभी तैयारी को रिचेक किया जा रहा था। किसी भी सामान की कमी तो नहीं रहा गया। कोई ऐसा तो नहीं बचा जिस तक निमंत्रण न पहुंचा हों। महेश दिन भर इसी में ही उलझा हुआ था। शाम के वक्त महेश चाय की चुस्कियां ले रहा था । उसी वक्त घर में रखें टेलिफोन बाबू ने आवाज दिया आकर मुझे चुप कराओ नहीं तो सिर में दर्द कर दुंगा। महेश जी झट पट उठे फिर टेलिफोन के रिसीवर को उठकर टेलीफोन का चीखना चिल्लाना बंद किया। रिसीवर कान से लगाकर बोला…. कौन हों महोदय जो मेरे घर में शान्त बैठे टेलीफोन को खटखटा रहे हो।

"जी आप महेश बाबू बोल रहे हैं"

महेश...जी लोग तो कहते हैं मैं ही महेश बाबू हूं। आप को मुझ'से किया काम था।

"जी काम कुछ खास नहीं सुना था आप अपने लडकी की शादी राजेंद्र प्रताप के लडके के साथ कर रहे हैं। क्या मैं सही सुना था?"

महेश... जी अपने बिलकुल ठीक सुना इससे आप'को कोई आपत्ति हैं।

"जी आपत्ति है तभी तो आप'को फ़ोन किया ।"

आपत्ति की बात सुनकर महेश का माथा ठनका कही फिर से शादी तुड़वाने के लिए फोन तो नहीं किया गया। ये बात दिमाग में आते ही महेश मन ही मन बोला... पहले तो तुम लोग इसलिए कामियाब हों गए थे क्योंकि मुझे सच्चाई पाता नहीं थीं लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा। जारा सुनूं तो ये शुभचिंतक कहना किया चाहते हैं। साला जब से बेटी की शादी तय हुआ हैं। तब से मेरा भला चाहने वाले बढ़ चढ़कर आगे आ रहे हैं। आए हों तो आज प्रसाद भी लेते जाना आखिर भंडारे में आए हो, प्रसाद न मिले ऐसा कभी हुआ हैं।

महेश…महाशय आप'को आपत्ति किस बात की हैं। मेरे बेटी की शादी हों रहा हैं इस बात की आपत्ति हैं या राजा जी के बेटे से हों रहा हैं इस बात की आपत्ति हैं।

"आप की बेटी की शादी हों रहा हैं इससे मुझे कोई आपत्ति नहीं हैं लेकिन जिससे शादी हों रहा हैं जिस वंश में शादी हों रहा हैं उससे मुझेआपत्ति हैं।"

ये बात सुनते ही महेश का पारा चढ़ गया और भड़कते हुए बोला... मेरी बेटी हैं उसकी शादी जिस भी घर में कारवाऊ तू कौन होता है आपत्ति जताते वाला हरमखोरो पहली चल सफल नहीं हुआ तो अब दूसरा पैंतरा अजमाने लगे अभी सामने होता तो तुझे गोली मर देता। ऐसी जगह मरता तू अफसोस करता मै महेश के सामने क्यों आया।

"महेश तेरी हिम्मत कैसे हुआ मुझे हरमखोर बोलने की तू मुझे गोली मरेगा मुझे तू जनता भी है मैं कौन हूं।

महेश…चल बता तू किस गंदी नाली का कीड़ा हैं बता तू कितने बाप की पैदाइश हैं। बता तू कौन से गटर में पला बडा हुआ।

"महेश तू जुबान को लगाम दे नहीं तो अच्छा नहीं होगा।"

महेश...क्यों रे सुलग गया सुलगनी भी चाहिएं सालो तुम लोग दल बनाकर राजेंद्र बाबू के बेटे की शादी तुड़वाने के लिए न जानें कौन कौन से लांछन उस भले मानुष के बेटे पर लगाया। अब तुम पर लांछन लगा तो तुम्हें बुरा लग गया सोचो तुम गंदे नाली के कीड़ों को कीड़ा बोला तो तुम्हें इतना बुरा लगा। उस भले मानुष को कितना बुरा लगा जब तुम लोगों ने उनके बेदाग बेटे पर इतने लांछन लगाया।

"ओ तो तुझे पता चल गया ये तो अच्छी बात हैं अब कान खोल कर सुन ले शादी तुड़वा दे नहीं तो तेरे साथ अच्छा नहीं होगा।"

महेश…शादी तो अब टूटने से रहीं तुझे जो करना हैं कर ले और एक बात सुन तुझे भी स्पेशली दावत देता हूं आकर झूठे बर्तन चाट कर अपना पेट भर लेना।"

"अजीब बेज्जती हैं मै तुझे धमका रहा हूं डरने के जगह तू मुझे दावत दे रहा हैं। तूने मेरी बहुत बेज्जती कर लिया अब कान खोल कर सुन ले रिश्ता तोड़ दे नहीं तो तू अपना और अपने परिवार वालों के जान से हाथ धो बैठेगा।"

महेश…ओ तो ये बात हैं ठीक हैं तुझे जो करना हैं कर लेना मैं भी जमींदार का बेटा हूं देखू तो तू कितना बडा गुंडा हैं। सुन वे शादी तो टूटने से रही तू आ जाना अपने दल बल के साथ मैं महेश तुम सब की पहले अच्छे से खातिर करूंगा फिर बेटी का कन्या दान करूंगा।

सामने वाला सोचा था धमकी देने से महेश डर जायेगा लेकिन महेश डरने के जगह उसे ही धमका रहा था। अंत में खुद को जमींदार का बेटा बोलने से सामने वाला खुद ही डर गया और फोन काट दिया। फोन काटने के बाद महेश बोला…सालो तुम ने सोए हुए जमींदार धर्मपाल के बेटे को फिर से जगा दिया। आना सामने इतना लठ बजूंगा गिनना भुल जाओगे।

(पाठकों यह एक बात जानने का हैं। जैसा की माने परिचय में बताया था महेश के बाप दादा जमींदार थे। उनके जमींदारी विद्रोहियों और अंग्रेजो ने छीन लिया था। बस महेश के पिता का नाम नहीं बताया था। जो यहां बता रहा हूं। ताकि किसी के मन में कोई शंका न रहें।)

महेश बातो के दौरान ज्यादा तेज आवाज में बात कर रहा था। इसलिए घर में काम करने वाले नौकर , कमला और मनोरमा वहा आ गए। फोन रखते ही मनोरमा बोली…आप किसपे इतना भड़क रहे थें।

कमला... हां पापा कौन था?

महेश...कौन होगा उन्हीं के दल से थे जिन्होंने रघु जी के बारे में गलत सलत बोलकर मेरा बुद्धि भ्रष्ट कर दिया था। अब फोन करके धमका रहे थें।

मनोरमा & कमला..kiyaaa धमका रहें थे।

महेश… हां धमका रहें थे सोचा होगा कोई ऐरा गेरा होगा। धमकाऊंगा तो डर कर फिर से शादी तुड़वा देगा। लेकिन ये लोग भुल गए महेश उनका भी बाप हैं। मैं जमींदार धर्मपाल का बेटा हूं जो कुछ दिनों के लिए सो गया था लेकिन अब जाग चुका हैं।

मनोरमा... सुनिए आप ऐसा वैसा कुछ न करना इसी जमीदारी ने हमसे हमारा पूरा परिवार छीन लिया मुझ'से मेरा बेटा छीन लिया दुबारा ऐसा कुछ हुआ तो मैं फिर से एक ओर सदमा बर्दास्त नहीं कर पाऊंगी।

मनोरमा बीती बातों को भूल चुकी थी। एक बार फिर से याद करते हुए अधीर हों गईं। मनोरमा को अधीर होते देख महेश बोला…मनोरमा संभालो खुद को उन बातों को याद करके मुझे भी पीढ़ा होता हैं। उस वक्त मैं पास नहीं था इसलिए उन्होंने छल से मेरे पूरे परिवार का कत्ल कर दिया लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। मैं ऐसा होने नहीं दुंगा।

कमला...पापा किसने किया था हमारे परिवार का कत्ल कौन थे वो लोग।

महेश…. बेटा ये समय सही नहीं हैं उन दुखद पालो को याद करने का अभी खुशी मानने का वक्त हैं तो खुशी मनाते हैं। मनोरमा तुम भी संभालो खुद को ये समय नही है उन पालो को याद करने का, बीती बातों को याद करके रोने से जो बिछड़ गए हैं वो वापस नहीं आ जाएंगे।

मनोरमा…आप का कहना ठीक हैं मै आप'के जैसा मजबूत ह्रदय वाली नहीं हूं। वो पल याद आता है तो मेरा ह्रदय पीड़ा से भरा जाता हैं। मैने एक पल में मां बाप सास ससुर और बेटा सभी को खो दिया। मेरा बसा बसाया संसार पल भार में छिन्न भिन्न हों गया।

ये कहकर मनोरमा सुबक सबका कर रोने लग गई। कमला मां के पास आकार मां को चुप करती हैं। कुछ क्षण सुबकने के बाद मनोरमा चुप हों गई। तब महेश राजेंद्र को फोन कर जल्दी से आने को कहते हैं। फोन करने के कुछ वक्त बाद ही राजेंद्र का कार आकर उनके घर के बहार रुकता हैं। राजेंद्र अंदर आकर बोला….क्या हुआ महेश बाबू अपने मुझे जल्दी जल्दी आने को क्यों कहा।

महेश…आप बैठिए फिर बात करते हैं। कमला बेटा जाओ चाय नाश्ते की व्यवस्था करो।

कमला के साथ साथ मनोरमा भी कीचन की ओर चल दिया फिर महेश फोन पर हुआ किस्सा राजेंद्र को बता देता हैं। सुनकर राजेंद्र बोला…उनकी इतनी मजाल जो फोन पर धमकी दे रहे हैं। अब पानी सिर से ऊपर चला गया उनका कुछ न कुछ बंदोबस्त करना होगा। आप मेरे साथ चलिए थाने में मामला दर्ज करवा कर आते है

महेश...राजा जी थाने जाने की जरूरत नहीं हैं यहां के SSP साहब से मेरा बहुत अच्छा रिश्ता हैं मैं फोन कर उन्हें बुला लेते हूं।

महेश फिर से एक फोन SSP साहब को कर दिया । कुछ वक्त में एक पुलिस की गाड़ी आकार रूका। SSP साहब अपने साथ आए कुछ पुलिस वालो के साथ अंदर आए। राजेंद्र को देखकर नमस्कार किया फिर बैठकर बोला…कहिए महेश बाबू अपने मुझे कैसे याद किया बिटिया की शादी को अभी एक सप्ताह हैं अपने इतनी जल्दी मुझे मेहमान दारी में बुला लिया।

महेश...SSP साहब मेहमन दरी में आप'को बुलाने की आवश्कता कब से पड़ गया हैं। आप तो मेरे अपने है। जब चाहो तब आ जाओ आप'को रोका किसने हैं। आज तो कुछ विशेष काम से आप'को याद किया गया।

SSP…ऐसा कौन सा विशेष काम आ गया जो आप मुझे शीघ्रता से आने को कहा कोई जटिल मसला जान पड़ता हैं नहीं तो आप मुझे इतनी जल्दी नहीं बुलाते।

महेश…SSP साहब आप तो जानते ही हैं कमला की शादी राजा जी के बेटे के साथ तय हुआ हैं। अभी कुछ दिनों पीछे कुछ लोगों ने साजिश के तहत राजी जी के बेटे के खिलाफ अनाप शनाप बोल कर मेरा दिमाग भ्रष्ट कर दिया था। मैं उनके बिछाए जाल में फांस भी गया था फिर रिश्ता थोड़ कर आ गया था। जब घर आया तब कमला और मनोरमा न मुझे समझाया तब जाकर मुझे समझ आया ये किसी की चाल हैं। जैसे तैसे मान मुटाव दूर कर हम फिर से शादी की तैयारी करने लगें थे की आज किसी ने फ़ोन पर मुझे शादी तोडने को कह रहे थे। शादी नहीं टूटा तो वो मेरे परिवार को जान से मर देंगे ऐसा धमकी दे रहें थे।

SSP...जहां तक मैं समझ पा रहा हूं ये कोई साधारण मसला नहीं हैं। साधारण मसला होता तो कोई बार बार शादी तुड़वाने का प्रयास क्यों करता। हों सकता हैं महेश जी आप'का कोई दुश्मन हों या कोई ऐसा जो चाहता हों कमला बिटिया की शादी रघु जी से न हों।

महेश...SSP साहब मेरा किसी के साथ कोई दुश्मनी नहीं हैं जो शादी तुड़वाना चाहते हैं उन्हें कमला की शादी होने से कोई दिक्कत नहीं हैं उन्हें दिक्कत हैं रघु जी की शादी से, राजा जी अब आगे का किस्सा आप बताए तो बेहतर होगा।

SSP...राजा जी जो भी हैं आप खुल कर बताओ तभी मैं इस मसले के तह तक पहुंच सकता हूं। जैसा महेश जी कह रहे हैं इससे तो लगता है जो भी हों रहा सब आप'के बेटे से जुड़ा हैं।

राजेंद्र….SSP साहब आप'का कहना सही हैं जो भी हों रहा है वो रघु से ही जुड़ा हुआ हैं। ये सब तभी से शुरू हुआ है जब से हम रघु के लिए रिश्ता ढूंढना शुरू किया था। हम जो भी लड़की देखते, न जाने कौन लड़की वालो को रघु के बारे में गलत सालात बोलते फिर वे उनका कहना मानकर रिश्ता करने से मना कर देते इस बार भी वैसा ही हुआ मै समझ नहीं पा रहा हूं कौन है जो ऐसा कर रहा हैं।

SSP... राजा जी आप मेरे बातों को गलत न लेना ऐसा भी तो हों सकता हैं रघु जी का किसी लड़की के साथ कोई संबंध हों इसलिए ऐसा किया जा रहा हों। या फिर ऐसा भी कोई हों सकता हैं किसी को आप'के अपर संपति पाने का लालच हों और वो अपने बेटी की शादी आप'के बेटे से कराकर सभी संपत्ति को हड़पना चाहते हों।

राजेंद्र…SSP साहब मेरे बेटे का अन्य किसी लडकी के साथ कोई संबंध नहीं हैं। शायद जो कुछ भी हों रहा हैं सब हमारे संपति को लेकर हों रहा होगा।

SSP…ऐसा कोई हैं जिस पर आप'को शक हों। ऐसा कुछ अगर है तो आप मुझे खुल कर बता सकते हैं।

राजेंद्र…ऐसा तो कोई हैं नहीं लेकिन पिछले कुछ दिनों से मेरे खास खास लोग गायब होते जा रहे हैं। आप तो अच्छे से जानते है राज परिवार से हैं और अपर संपति हैं ऐसे में कोई भी मेरे खिलाफ षडियंत्र कर सकते हैं इसलिए मैंने कुछ गुप्तचर रख रखे थे लेकिन एक एक करके सभी गायब हों गए है मैंने अपनी ओर से बहुत खोज बिन किया लेकिन कोई पता नहीं लगा पाया।

SSP... ये तो बहुत गंभीर मसला हैं ऐसा हों रहा था तो आप'को बहुत पहले शिकायत दर्ज करवाना चाहिएं था। लेकिन अपने छुपाया इसका मतलब ऐसा कुछ हैं जो आप छुपना चाहते हों, अगर ऐसा कुछ हैं तो आप मुझे बता सकते हैं। मैं अपने तक ही रखूंगा।

राजेंद्र... जो हैं मैंने आप'को सभी कुछ बता दिया कुछ नहीं छुपाया अब आप ही देखो आप किया कर सकते हों।

SSP... मैं ज्यादा जोर नहीं डालूंगा क्योंकि मैं जनता हूं राज परिवार के बहुत से मसलो को गुप्त रखा जाता हैं फिर भी अपने जितना बताया हैं मै उसी आधार पर छान बीन शुरू करता हैं। महेश जी फिर से दुबारा अगर फ़ोन आता हैं तो आप तुरंत ही मुझसे संपर्क करना और हां कमला बेटी को अकेले कहीं भी जानें मत देना और आप राजा जी रघु जी को भी अकेले जानें मत देना जहां तक मुझे लगता हैं ये लोग बौखला गए हैं। आगे कुछ भी कर सकते हैं।

दोनों ने SSP साहब की बातों पर सहमति जाता दिया फिर SSP साहब के साथ आए हुए पुलिस वालो ने चार्ज शीट दर्ज किया। चार्ज शीट दर्ज करने के बाद मामले के तह तक जल्दी से पहुंचने का आश्वासन देकर SSP साहब चलते बने। SSP साहब के जाने के बाद राजेंद्र और महेश में कुछ क्षण तक ओर बात चीत हुआ। जब राजेंद्र ने जाने की आज्ञा मांग तब महेश जी उन्हें खाना खाकर ही जानें को कहा। क्योंकि वक्त रात के खाने का हों गया था। राजेंद्र माना करने लगें लेकिन महेश के बार बार कहने पर राजेंद्र मान गए। खाना पीना करने के बाद राजेंद्र घर को चल दिया।

इधर सुरभि राजेंद्र के लेट होने के करण चिंतित थीं क्योंकि राजेंद्र जाते वक्त बता कर नहीं गया था जा कहा रहा हैं। सुरभि को चिन्तित देख रघु बोला... मां कुछ चिन्तित दिखाई दे रहे हों बात किया हैं।

पुष्पा... मां बताओ न बात किया हैं।

रमन... रानी मां आप किस बात को लेकर इतने चिंता में हों।

सुरभि...ये बिना बताए कही गए हैं। उनके गए हुए बहुत देर हों गया हैं। इसलिए मै चिन्तित हूं। न जाने कहा रहा गए अभी तक आए नहीं।

सुरभि की बाते सुन पुष्पा को खुराफात सूजा इसलिए बोली... अरे मां कब तक पापा को अपने पल्लू से बन्द कर रखना चाहती हों। उन्हे भी थोडी आजादी दो गए होंगे कहीं आ जाएंगे।

पुष्पा कहकर मुस्कुरा दिया। पुष्पा को मुस्कुराते देख सुरभि भी मुस्कुरा दिया मां को मुस्कुराते देख पुष्पा बोली...अब लग रही हो आप पुष्पा की मां, आप'के खिले चेहरे पर टेंशन अच्छा नहीं लगता ऐसे ही मुस्कुराती रहा करो।

सुरभि उठकर पुष्पा के पास गई पुष्पा का सिर सहलाते हुए बोली... मेरी बेटी कहती है तो मैं ऐसे ही खिलखिलाती रहूंगी। तू भी अपने ये नटखट पान हमेशा बरकरार रखना।

रमन… कर दिया न अपने बेड़ा गर्ग रानी मां इस नटखट ने अपना नटखट पान बरकरार रखा तो इसके नटखट पान का शिखर कोई बने न बने मैं जरूर बनूंगा और सजा भुगतते भुगतते मेरा चाल चलन हमेशा के लिए टेडा हों जाएगा।

रमन के बातों से सभी हंस दिए। कुछ वक्त तक ओर तीनों बातों में मगन रहे फिर डिनर का वक्त हों गया। तो सभी खाना खाकर अपने अपने रूम में चले गए। सुरभि बैठक में राजेंद्र के इंतेजार में बैठी रहती हैं। कुछ क्षण प्रतीक्षा करने के बाद राजेंद्र घर पहुंचता हैं। पहुंचते ही सुरभि का सवाल जवाब शुरू हों गया।

सुरभि...आप बिना बताए कहा चले गए थे। गए तो गए पर इतना देर क्यों लगा दिया? मुझे कितनी चिंता हों रही थीं।

राजेंद्र... माफ करना सुरभि बिना कुछ बताए ही चला गया बात ही कुछ ऐसी थी। महेश बाबू ने बुलाया था।

सुरभि...Oooo आप'को बताकर जाना चाहिए था। जान सकता हूं महेश बाबू ने क्यों बुलाया था।

महेश ने क्यों बुलाया था वहा क्या क्या बाते हुआ। राजेंद्र ने सभी बाते सुरभि को बता दिया। सभी बाते सुनकर सुरभि बोली...आज अपने सही किया जो SSP साहब को बता दिया लेकिन अपने अधूरा क्यों बताया सभी कुछ बता देते किस कारण इतना कुछ हो रहा हैं।

राजेंद्र…कैसी बाते करते हों गुप्त संपति की बाते मैं उन्हें कैसे बताता जिस पर सिर्फ जनता का अधिकार हैं। उन्हे बता देता तो हो सकता हैं यह बात वो अपने आला अधिकारियों को बता देते। उनसे सरकार तक पहुंच जाता फिर सरकार हम पर ही कानूनी कारवाई करते और संपति को जप्त कर लेते फिर होता ये की सभी संपति जिस पर जनता का अधिकार हैं वो जनता तक न पहुंचकर भ्रष्ट अधिकारियों और नेताओं के पास पहुंच जाता। इसलिए मै गुप्त संपति की बात छुपा कर रखा।

सुरभि... मैं समझ रहा हूं लेकिन इस संपति के लिए हमें कितना कुछ झेलना पड़ रहा हैं आप खुद ही सोचो ओर न जाने कौन कौन से दुश्मन पैदा हों गए हैं। मैं तो कहता हूं आप इस गुप्त संपति का राज सरकार को बता दो नहीं तो एक दिन ये गुप्त संपति हमारे परिवार को छिन्न बिन्न कर देगा।

राजेंद्र…मैं चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकता मेरे पूर्वज ने हमेशा आम जनता के बारे में सोचा हैं उनके बेहतर भविष्य की कामना किया हैं। उन्होंने यह जिम्मेदारी मुझे दिया हैं। जब तक सभी गुप्त संपत्ति जनता पर खर्च नहीं हों जाता तब तक मुझे संपति की रक्षा करना होगा और जनता की भलाई करने में खर्च करते रहना होगा।

सुरभि... जैसा आप ठीक समझे। आप हाथ मुंह धोकर आइए मैं खाना लगवाती हूं।

राजेंद्र…सुरभि मैं महेश बाबू के घर से खाकर आया हूं। तुम खा लो।

सुरभि के खाना खाने के बाद दोनों अपने अपने कमरे में चले जाते हैं।

इधर दर्जलिंग में सुकन्या और रावण के के बीच मन मुटाव जारी था। रावण ने सुकन्या को मनाने की जी तोड़ प्रयत्न किया लेकिन सुकन्या मानने को तैयार ही न हों रहीं थीं। अगले दिन सुबह रावण सुकन्या और अपश्यु साथ में नाश्ता कर रहे थे। नाश्ता करने के बाद अपश्यु जाने लगा तब सुकन्या रोकते हुए बोली... अपश्यु कहा जा रहे हों जाओ जाकर तैयार होकर आओ हम कलकत्ता जाएंगे।

अपश्यु…मां आज ही क्यों एक दो दिन बाद चलते हैं शादी में तो अभी कई दिन बचे है।

रावण...हां सुकन्या इतनी जल्दी भी किया है दो तीन दिन ओर रुख जाओ तब चलते है। फिर मान में अभी गया तो मैं अपना काम कैसे अंजाम दे पाऊंगा उन लोगो ने फ़ोन भी तो नहीं किया न जाने किया हुआ वो अपना काम कर पाए या नहीं।

सुकन्या... आप को जाने के लिए कौन कह रहा है मैं तो आप'से कुछ पुछा भी नहीं आप'को जब मान करे तब जाना। फिर अपश्यु से तूझे एक बार में समझ नहीं आता बड़े भाई की शादी हैं मदद करने के जगह दिन भर घूमता रहेगा। तू आज ही मेरे साथ चलेगा मतलब चलेगा।

अपश्यु मन में...मां को कुछ भी करके आज का दिन रोकना पड़ेगा आज ही तो गांव से उस लङकी को उठाना हैं मै चला गया तो फिर ही शायद मौका मिले नहीं नहीं मैं ऐसा होने नहीं दे सकता मुझे कुछ भी करके मां को रोकना ही होगा।

अपश्यु न हिला न डुला वो तो मन में ही बात करने में मस्त था। अपश्यु को सोच में गुम देख सुकन्या बोली... किस सोचे में घूम हैं जा जाकर तैयार होकर आ ।

अपश्यु... मां हम कल चले चलेंगे आज मुझे बहुत जरूरी काम है कल पक्का चलूंगा।

सुकन्या... कौन सा तू अपने बाप का बिजनस देख रहा है जो तूझे जरूरी काम करना हैं जा जाकर तैयार होकर आ।

अपश्यु... मां सुनो तो….

सुकन्या बिना बात पूरी सुने गुस्से में बोली... तू एक बार कहने से सुनता क्यों नहीं जब देखो टाला मटोली करता रहेगा तुझसे अच्छा तो रघु हैं उसे एक बार कहते ही बिना न नुकर के मान लेता हैं जा जाकर तैयार हों जा नहीं तो ऐसे ही चल तैयार होने की जरूरत नहीं हैं।

इतना कहकर सुकन्या रूम को चल दिया रावण भी उसके पीछे पीछे चल दिया। रघु की तारीफ मां के मुंह से सुन अपश्यु बोला...इस श्रवण कुमार के बच्चे ने आज मरवा दिया अच्छा खासा आज एक मस्त फूल को मसलने का प्लान बनया था इस श्रवण कुमार ने मेरे सारे किए कराए पर पानी फेर दिया। चल बेटा अपश्यु मां की बात मान ले नहीं तो मां पापा की तरह मुझसे भी नाराज हों जाएंगे मां मुझसे नाराज़ हों गया तो मैं उनकी बे रूखी बर्दास्त नहीं कर पाऊंगा। एक लङकी के लिए मां को नाराज करना सही नहीं होगा ऐसी 100 लड़की मां पर कुर्बान हैं।

कुछ वक्त में सुकन्या तैयार होकर आ गई। सुकन्या के साथ साथ रावण भी तैयार होकर आ गया। अपश्यु के आते ही तीनों बहार को चल दिये। ड्राइवर जिसे पहले ही सुकन्या ने कार निकलने को कह दिया था। वो कार में बैठे इनका wait कर रहे थे। रावण आगे जाकर कार में बैठने लगा। रावण को बैठते देख सुकन्या बोली…आप क्यों बैठ रहे हो आप तो दो तीन दिन बाद जाने वाले थे।

रावण... तुम जा रहीं हों तो मैं यह अकेले क्या करूंगा मेरा तुम्हारे बिना मन नहीं लगेगा।

इसके आगे सुकन्या कुछ नही बोली रावण पीछे बैठ रहा था तो सुकन्या ने रावण को आगे की सीट पर बैठने को कहा। बिना न नुकार के रावण आगे बैठ गया। सुकन्या और अपश्यु के बैठते ही ड्राइवर कार को आगे बडा दिया। विंकट जो पल पल अपश्यु के पीछे छाए की तरह लगा रहता था अपश्यु को मां बाप के साथ जाते हुए देख लिया। अपश्यु जा कहा रहा है ये जानें के लिए गेट में खड़े दरबान से पुछ तो दरबान ने बता दिया। सुनते ही विकट चल दिया और जाते हुए बोला...जल्दी से उस्ताद को खबर करना होगा। अपश्यु कलकत्ता गया हैं कुछ दिन बाद वापस आएगा।


आज के लिए इतना ही आगे की कहनी अगले अपडेट से जानेंगे यह तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।

🙏🙏🙏🙏🙏
 
Last edited:
Top