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Update - 26
दलाल के घर से निकलकर रावण कहीं ओर गया। वहा अपने चार पांच आदमी को कुछ काम बताकर घर आ गया। जब तक रावण घर पंहुचा तब तक निमंत्रण पत्र आ गया था। रावण के आते ही रावण और राजेंद्र निमंत्रण पत्र लेकर बांटने चले गये रमन रघु और मुंशी ये तीनों भी निमंत्रण पत्र बांटने में लग गए। पुष्पा रोज की तरह आज भी सभी को लपेटे में ले रखी थीं। आज तो उसने सुरभि और सुकन्या दोनों को एक पल के लिए बैठने नहीं दिया दोनों खुशी खुशी साथ में सभी कम करने में लगीं रहीं। ये देख महल के सारे नौकर भौचक्के रह गए और आपस में बाते करने लगें।
"यार आज ये उलटी गंगा कैसे बहने लग गया। रानी मां और महल की एक मात्र नागिन साथ में सभी काम कर रहे हैं।"
"अरे उलटी गंगा नहीं बह रहा हैं ये अजूबा हों रहा हैं। लगता है आज नागिन ने सच में केचुली बादल लिया हैं पिछले दिनों की तरह अच्छे बनने का ढोंग तो नहीं कर रहीं हैं।"
"ढोंग करे चाहें कुछ भी कुछ दिनों के लिए नागिन की विष भरी बाते सुनने से हमे और रानी मां को छुटकारा मिल जाएगा।"
"हा कह तो सही रहा हैं लेकिन सोचने वाली बात ये हैं नागिन का बदला हुआ रूप कब तक रहेगा।"
"जितने दिन भी रहें कम से कम महल में शांति बना रहेगा"
ये सभी खड़े बातों में लगे हुए थे। इन पर सुकन्या की नज़र पड़ गई। सुकन्या इनके पास आई फ़िर बोली...तुम सभी यहां खड़े खड़े क्या कर रहे हो कोई काम नहीं हैं तो पुष्पा को बुलाऊं।
"नही नहीं छोटी मालकिन उन्हें न बुलाना दो पल बैठने नहीं दे रही हैं काम करवा करवा कर कमर ही तुड़वाने पे तुली हैं।"
सुकन्या नौकरों की बाते सुन मुस्कुरा दिया फिर बोली...अच्छा जाओ थोड़ी देर आराम कर लो तरो ताजा होकर फिर से काम में लग जाना।"
इतना कहकर सुकन्या चली गई। पर यहां खड़े सभी नौकरो को भौचक्का कर गई। उन्हे यकीन ही नहीं हों रहा था सुकन्या उनसे सालीखे से बातकर आराम करने को कहकर गई। खैर जब आराम करने का फरमान मिल चूका हैं। तो सभी नौकर सुकन्या का गुण गान करते हुए चले गए। ऐसे ही दिन बीत गया।
अगला दिन भी निमंत्रण पत्र बांटने और दूसरे कामों में निकल गया। पांचवे दिन सुबह राजेंद्र और सुरभि तैयार होकर आए नाश्ता किया फिर राजेंद्र बोला…रघु मैं और तुम्हारी मां कलकत्ता जा रहे हैं वहा का काम भी देखना जरूरी हैं। तुम रमन और पुष्पा यह रहो तीन चार दिन बाद आ जाना। रावण तू इनके साथ मिलकर देख लेना कौन कौन रहा गए हैं उनको निमंत्रण पत्र भेज देना।
रावण….दादा भाई यहां तो लगभग सभी को निमंत्रण पत्र बांट दिया गया हैं इक्का दुक्क जो रहे गए हैं उन्हे मैं और मुंशी मिलकर पहुंचा देंगे। आप चाहो तो रमन और रघु को ले जा सकते हों। वहा भी आप'को काम में मदद मिल जाएगा अकेले कहा तक भागते रहेगें। फिर रावण मन में बोला ( ले जाओ नहीं तो बाप का अपमान होते हुए कैसे देख पाएगा। बड़ा खुश हो रहा था शादी करेगा जा बेटा कर ले शादी ऐसा इंतेजाम करके आया हूं। कभी शादी करने के बारे में नहीं सोचेगा।
राजेंद्र….तू ठीक कह रहा हैं वहा भी बहुत लोगो को दावत देना हैं दोनों साथ रहेंगे तो बहुत मदद हों जाएगा। जाओ रघु और रमन तैयार होकर आओ और पुष्पा तू क्या करेंगी साथ चलना हैं या यहां रहना हैं।
पुष्पा….मैं किया करूंगी, सोचना पड़ेगा।
इतना कहकर पुष्पा अपने अंदाज में सोचने लग गई। पुष्पा को सोचते देखकर सभी के चेहरे पर खिला सा मुस्कान आ गया और नौकरों की सांसे गले में अटक गया। वो सोचने लगें मेमसाहव हां कर दे तो ही अच्छा हैं यहां रूक गई तो काम करवा करवा के हमारा जीना हराम कर देगी। खैर कुछ क्षण सोचने के बाद पुष्पा ने जानें की इच्छा जता दिया। हां सुनते ही नौकरों की अटकी सास फिर से चल पड़ा। सुकन्या को कुछ कहना था इसलिए बोला…. जेठ जी आप अपश्यु को भी अपने साथ ले जाओ यहां रहकर कुछ काम तो करेगा नहीं दिन भर गायब रहेगा। आप'के साथ जाएगा तो कुछ काम में हाथ बांटा देगा।
अपश्यु...आप को किसने कहा मैंने कुछ काम नही किया इतना काम किया मेरे पाव में छाले पड़ गए हैं। मैं भी चला गया तो यहां पापा अकेले अकेले कितना काम करेगें। फिर मान में बोला (मैं चला गया तो मेरी मौज मस्ती बंद हों जाएगा मैं नहीं जाने वाला वैसे भी कुछ दिनों में गांव से एक लडकी को उठने वाला हूं नई नई आई है बहुत कांटप माल हैं। मै चला गया तो उसका मजा कौन लेगा।)
सुरभि...ठीक हैं तू यह रह जा शादी से एक हफ्ता पहले आ जाना।
अपश्यु सुरभि की बात सुन खुश हों गया और मुस्कुरा दिया। सुकन्या इशारे से सुरभि को कहा अपश्यु को साथ ले जाए लेकिन सुरभि ने मुस्करा कर इशारे से माना कर दिया और रावण मन में बोला ( हमारे आने की नौबत ही नहीं आयेगा उससे पहले ही रघु की शादी टूट जाएगा। जीतना खुश आप हो रही हों जल्दी ही उसपे ग्रहण लगने वाला हैं।)
बरहाल फैसला ये लिया गया राजेंद्र, सुरभि, रघु, रमन और पुष्पा कलकत्ता जाएंगे। रावण, सुकन्या, अपश्यु, और मुंशी यहां रहेंगे। शादी से एक हफ्ता पहले कलकत्ता जाएंगे। ये लोग दार्जलिंग से चल पड़े उधर महेश जी सभी काम को अकेले अकेले निपटा रहे थे। उनके आगे पीछे कोई था नहीं जो उनकी मदद कर दे। इसलिए मौहल्ले के कुछ लोग उनका हाथ बांटा रहे थे। साथ ही उनके साथ काम करने वाले लोग जो उनके दोस्त हैं वो भी उनका हाथ बांटा रहें थे।
लडकी के घर का मामला हैं इसलिए सभी चीजों की व्यवस्थ व्यापक और पुख्ता तरीके से किया जा रहा था। महेश ने दहेज के समान का भी ऑर्डर दे दिया था। राजेंद्र ने दहेज में कुछ नहीं मांग था लेकिन समाज में नाक न कटे इसलिए महेश ने सामर्थ अनुसार जो भी दे सकता था उसका ऑर्डर दे दिया। आज शादी तय हुए पचवा दिन था। शाम के समय महेश जी कही से आ रहे थे तभी रास्ते में उन्हें हाथ देकर किसी ने रोका कार रोकते ही बंदे ने उनसे लिफ्ट मांगा महेश ने उन्हे बिठा कर चल दिया। बात करते करते शख्स ने पूछा…महेश जी सुना है आप की बेटी का रिश्ता दार्जलिंग के राज परिवार में तय हों गया हैं।
महेश जी खुश होते हुए बोला... हां जी उसी की तैयारी में लगा हूं।
"आप को देखकर लग रहा हैं आप बहुत खुश हों। खुश तो होना ही चाहिए इतना धन संपन परिवार से रिश्ता जो जुड़ रहा हैं। महेश जी सिर्फ धन सम्पन परिवार होने से कुछ नहीं होता। लड़के के गुण अच्छे होने चाहिएं। आप जिसके साथ अपने बेटी का रिश्ता कर रहे हैं उस लड़के रघु में दुनिया भर का दुर्गुण भरा हुआ है ऐसा कौन सा बुरा काम है जो रघु न करता हों। परस्त्री गमन, नशेबाजी, धंधेबाजी, सारे बुरे काम रघु करता हैं। अब आप ही बताओ ऐसे लड़के के साथ कौन अपने बेटी का रिश्ता करेगा"
इतनी बाते सुनकर महेश जी ने कार रोक दिया। फ़िर शख्स को ताकते हुए समझने की कोशिश करने लगें। अनजान शख्स कहना किया चाहता है। महेश को विचाराधीन देख। शख्स के चेहरे पर कमीनगी मुस्कान आ गया। कुछ क्षण विचार करने के बाद महेश बोला….आप'को शर्म नहीं आता ऐसे भाले मानुष पर लांछन लगाते हुए। आप ने जीतना कहा मैं हूं जो सुन लिया कही राजा जी होते तो आप'का सिर धड़ से अलग कर देते।
"महेश जी गलत को गलत कहने से अगर धड़ से सिर अलग होता है तो हों जाने दो। सच कहने में डर कैसा मैं तो बस आप'को सच्चाई से अवगत करवा रहा था। बाकी आप पर है आप मानो या न मानो।"
इतना कहकर शख्स कार से बहार निकलकर चला जाता हैं महेश बाबू गाली बकते हुए घर को चल दिए। ऐसे ही पल गिनते गिनते आज का दिन बीत गया। अगले दिन राजेंद्र अपने पुश्तैनी घर पहुंच गए।
यहां से जाने से पहले जो जो काम करवाने को कह गए थे वो सारे काम उनके उम्मीद अनुसार हो गया था। आज कलकत्ता शहर के जाने माने लोगों को दावत देने राजेंद्र जी खुद गए हुए थे। रघु और रमन ने दूसरे जरूरी काम निपटाने में लगे हुए थे। आज भी एक शख्स ने महेश जी को भड़काने के लिए रघु की बुरी आदतों के बारे में बताया।
महेश जी ने आज उन्हे मुंह पर ही गाली बक दिया। महेश ने गाली बक तो दिया लेकिन कही न कहीं महेश जी के मन में शंका उत्पन हों गया और उन्हे विचार करने पर मजबूर कर दिया। महेश घर जाकर सामन्य बने रहे लेकिन उनके अंतर मन में द्वंद चल रहा था। मन में चल रही द्वंद से लड़ते हुए आज का रात किसी तरह बीत गया।
अगले दिन सभी अपने अपने कामों में लगे रहे लेकिन महेश भगा दौड़ी में भी उस शख्स की कही बातों को सोचने लगें उन्होंने जो कहा क्या सच हैं नहीं ये सच नहीं हो सकता जरूर कोई मजाक कर रहा होगा या कोई ऐसा होगा जो कमला की शादी इतने बड़े घर में हों रहा है इस बात को जानकर चीड़ गया होगा इसलिए ऐसा कह रहे होंगे।
मुझे उनकी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए मेरा होने वाला दामाद बहुत अच्छा है कमला भी तो पल पल उनका गुण गाती रहती हैं। महेश जी ऐसे ही खुद को समझा रहे थे। उधर महेश के घर पर कमला को उसकी सहेलियां छेड़े जा रहे थे। भातीभाती की बाते बनाकर कमला को चिड़ा रहे थे कमला चिड़ने के जगह बढ़ चढ़कर रघु की तारीफ कर रहीं थीं।
जिसे सुनकर कमला की सहेलियां उसे ओर ज्यादा छेड़ने लग जाती लेकिन कमला भी काम नहीं थी वो भी रघु के तारीफों के पुल बांधने में कोई कोताई नहीं बारत रहीं थीं। उधर रावण पल पल की खबर अपने आदमियों से ले रहा था। जो महेश के पीछे छाए की तरह लगे हुए थे और अपश्यु को इससे कोई मतलब ही नहीं था वो थोडा बहुत काम करता फिर दोस्तों के साथ माटरगास्ती करने निकल जाता तो कभी डिंपल के साथ वक्त बिताने चला जाता। जहां भी जाता विकट अपश्यु का पीछा नहीं छोड़ता। पल पल की खबर रख रहा था और संकट तक पंहुचा रहा थ।
आज भी शाम को महेश बाबू कहीं से घर जा रहे थे। तभी एक शख्स ने उन्हें रोककर रघु की बुराई किया। सुनने के बाद महेश बोले….भाई बात किया हैं पिछले तीन दिनों से कोई न कोई आकर मुझ'से एक ही बात कह रहे है। बात किया है तुम कौन हों और कहा से हों क्यों मेरे बेटी के घर बसने से पहले उजड़ने में लगे हों? मैने या मेरी बेटी ने आप'का क्या बिगड़ा हैं?
"महेश जी मुझे आप'से कोई दुश्मनी नहीं हैं न ही आप'के बेटी से कोई दुश्मनी हैं। मैं तो आप'का भला चाहने वालों में से हुं। आप'के बेटी की जिन्दगी उजड़ने से बचना चाहता हूं। इसे पहले आप'को किसने किया कहा मैं नहीं जानता मैं तो आप'से आज ही मिल रहा हूं।
महेश….आप कुछ भी कहो मुझे आप'की बातो पर यकीन नहीं हों रहा हैं। मेरी बेटी की शादी इतने ऊंचे घराने में हों रहा हैं शायद ये बात आप'को पसन्द नहीं आया। इसलिए चिड़कर आप रघु जी के विषय में गलत सालत बोल रहे हों।
"महेश जी मुझे आप'से कोई छिड़ नहीं हैं। मैं तो बस आप'के बेटी का भला चाहता हूं। आप'के बेटी का जीवन बरबाद न हों इसलिए आप'को सच्चाई बता रहा हूं। अच्छा आप एक बात सोचिए क्या दार्जलिंग में कोई अच्छी लडकी नहीं मिला जो इतने दूर कलकत्ता में आप'के घर रिश्ता लेकर आए। उन्होंने दार्जलिंग में रघु के लिए बहुत सी लड़कियां देखा लेकिन जब लडकी वालो को रघु के बुरी आदतों के बारे में पता चला तब उन्होंने ख़ुद ही रिश्ता तोड़ दिया। अब आप ही सोचिए भाले ही उनके पास धन संपत्ति का भंडार हों लेकिन लड़के में बुरी आदत हों तो कौन अपनी लडकी की शादी ऐसे बिगड़ैल लड़के से करवाएगा। आप चाहो तो करवा दीजिए क्योंकि आप'की बेटी एसोआराम की जिन्दगी जीयेगा पति चाहें कितना भी बिगड़ा हों आप की बेटी तो दौलत में खेलेंगी।
इतनी बाते सुनने के बाद महेश जी के दिमाग में शॉर्ट सर्किट हो गया। उनको समझ ही नहीं आ रहा था वो किया करे। किया फैसला ले, महेश को ऐसे विचाराधीन देख शख्स समझ गया चिंगारी लग चुका हैं बस उसे थोडा और हवा देना बाकि हैं। इसलिए बोला...महेश जी अच्छे से सोच समझ कर फैसला लीजिए अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं हैं। आप एक बुद्धि जीवी हों क्या आप अपने बेटी के जीवन को बरबाद होते देख सकते हैं। आप के जगह मै होता तो मेरी बेटी के जीवन बरबाद नहीं होने देता। भाले ही मुझे शादी ही क्यों न थोड़ देना पड़ता।
इतना कहकर शख्स चला गया और महेश विचारधीन खडा रहा। उनके सोचने समझने की क्षमता खत्म हो चुका था। उनके माथे से पसीना टप टप टपकने लगा। महेश समझ नहीं पा रहा था फैसला किया ले उन्हे कोई राह नज़र नहीं आ रहा था। बरहाल ऐसे ही सोचते हुए महेश जी घर को चल दिया। जब महेश जी घर पहुंचे तो उनके चेहरे पर चिंता की लकीर देख मनोरमा करण जानना चाहा लेकिन महेश ने उन्हें कुछ नहीं बताया चुप चप जाकर कमरे में बैठ गए।
महेश बहुत वक्त तक शख्स के कही बातों पर विचार करते रहें। कोई नतीजा नहीं निकल पाया उनका एक मन कह रहा था खुद जाकर राजेंद्र से पूछे सच्चाई किया है। फिर एक मन कहे की वो बाप है अपने बेटे की बुरी आदतों को क्यों बताएंगे वो तो छुपना चाहेंगे। ऐसे ही विभिन्न तरह की बातों पर विचार करते रहें। रात भर ठीक से सो नहीं पाए। सिर्फ और सिर्फ कारवाटे बदलते रहें। किसी तरह रात बीत गया। रावण को जब खबर दिया गया तो रावण खुश हो गया और कहा कल को फिर से एक बार चिंगारी को भड़का देना फिर ये रिश्ता भी टूटने से कोई नही बचा पाएगा। उसके बाद रावण ख़ुशी खुशी सो गया।
ऐसे ही रात बीत गया। अगला दिन एक नया सबेरा लेकर आया। लेकिन आज की सुबह महेश के लिए सामान्य नहीं रहा। रात को ठीक से सो नहीं पाए थे। इसलिए उनके पलके भारी भारी लग रहा था। कई बार मनोरमा उनसे पूछा। लेकिन महेश जी ने थकान को करण बता दिया। मनोरमा भी देख रही थीं महेश अकेले ही सभी भागा दौड़ी कर रहे थे। इसलिए उन्होंने भी महेश की बात मान लिया।
महेश ने मनोरमा को तो टाल दिया लेकिन अपने मन को न टाल पाए। उन्होंने रात भर जागकर जो निर्णय लिया उस पर थोडा और विचार कर पुख्ता करना था। रावण के भेजे आदमियों ने जो चिंगारी महेश के मन में लगाया था वो दहक कर अंगार बन चुका था। उसे ज्वाला बनने के लिए बस फुक मरने की देर थीं।
महेश का मन आज किसी काम में नहीं लग रहा था इसलिए कही पर न जाकर घर पर ही रहे। घर रह कर भी दो पल चैन से नहीं रह पाए। बार बार उनके दिमाग में इन तीन दिनों में उन अनजान लोगों ने जो भी बात बताया था। उस पर ही विचार करते रहें। उन्हें लग रहा था। उन लोगों ने जीतना भी रघु के बारे में कहा सब सच हैं। अगर सच न होता तो वो लोग बताने क्यों आते। नहीं नहीं मैं कमला की जिन्दगी बर्बाद होते हुए नहीं देख सकता।
मेरी इकलौती बेटी जीवन भर रोती रहे ऐसा मैं होने नहीं दे सकता। मुझे ये रिश्ता तोड़ देना चाहिए। लेकिन अभी अगर रिश्ता तोड़ दिया तो समाज किया कहेगा उनके सवालों का किया जबाव दूंगा। जवाब किया देना मेरी बेटी की जिन्दगी बर्बाद हो जाएगी तो उन्हें फर्क थोड़ी न पड़ेगा उन्हें तो बस कहने का मौका चाहिएं सही या गलत पर विचार कहा करते हैं। सही और गलत पर विचार तो मुझे करना है उन्हें नहीं, मैं अभी जाता हूं और रिश्ता तोड़ने की बात उन्हे कहकर आता हूं।
महेश चल दिया राजेंद्र के पुश्तैनी घर की ओर राजेंद्र भी आज कही पर नहीं गए। आज का जो भी काम था। वो रघु और रमन करने गए हुए थे। पुष्पा किसी सहेली से मिलने गई हुई थीं अभी महेश जी कुछ ही दूर आए थे तब उन्हें हाथ देकर एक शख्स ने रोका महेश जी कार रोक कर शक्श से रोकने का कारण पूछा तब उस ने कुछ वक्त इधर उधर की बाते किया। बातों बातो में शादी की बात छेड़ा गया। जब शक्श को लडके का पाता चला तब शक्श ने उन्हें वही बात बताया जो पिछले तीन अनजान लोगों ने बताया था।
बस फ़िर किया था। घर से मन बनाकर निकले थे रिश्ता तोड़कर ही आयेंगे। जो अब धीर्ण निश्चय बन चुका था। महेश जी ने आव देखा न ताव कार स्टार्ट किया और चल दिया। उनको इस तरह जाते देख शख्स के चेहरे पर खिली उड़ाने वाली हंसी आ गया। आता भी क्यों न चार दिनों से जिस काम को पूरा करने के लिए जी जान से कोशिश कर रहे थे।
आज पूरा होने वाला था। शख्स तब तक महेश की कार को देखते रहे जब तक महेश का कार आंखो से ओझल न हों गया। आखों से ओझल होते ही शख्स चल दिया और महेश पहुंच गए राजेंद्र के पुश्तैनी घर समधी को आया देखकर राजेंद्र और सुरभि आदर सत्कार से अन्दर ले गए। अन्दर आकर राजेंद्र ने नौकरों को आवाज देकर चाय नाश्ता लाने को कहा। तब महेश बोला…राजा जी मैं यहां चाय नाश्ता करने नहीं आया हूं इसलिए चाय नाश्ता मंगवाने की जरूरत नहीं हैं।
राजेंद्र इतना तो समझ गए कि बेटी के बाप होने के नाते बेटी की सुसराल के अन्न पानी न ग्रहण करने की रिवाज के चलते माना कर रहे हैं। इसलिए राजेंद्र जी बोला...महेश बाबू अभी हमारा घर आधिकारिक तौर पर आप'के बेटी का सुसराल नहीं बना हैं। इसलिए आप हमारे यह का अन्न पानी ग्रहण कर सकते हैं और एक बात आज कल इस रिवाज को बहुत ही काम लोग मानते हैं। इसलिए आप भी चाहो तो इस रिवाज का पालन करने से बच सकते हों।
महेश….राजा जी बेटी के ससुराल में अन्न जल ग्रहण न करने वाले रिवाज का पालन तब होगा जब रिश्ता जुड़ेगा। आज मैं आप'के बेटे और कमला के जुड़े रिश्ते को तोड़ने आया हूं।
इतना सुनते ही राजेंद्र और सुरभि को झटका सा लगा। जैसे उन्हें किसी ने आसमान से जमीन पर लाकर पटक दिया हों। दोनों अचंभित होकर महेश को देखने लग गए। राजेंद्र को कुछ समझ नहीं आ रहा था किया बोले लेकिन करण तो जानना ही था इसलिए सुरभि बोली...भाई साहब आप क्या कह रहे हों? उस पर विचार किया की नहीं शादी के दिन में मात्र दस दिन रह गए और आप रिश्ता तोड़ने की बात कर रहे हों। हमारी नहीं तो कम से कम अपनी मान सम्मान की परवाह कर लेते। आज अपने रिश्ता तोड़ दिया तो आप'के साथ साथ हमारे भी मन सम्मान पर लांछन लग जायेगा।
महेश…मान सम्मान की बात आप न करें तो बेहतर हैं अगर आप'को मान सम्मान इतना प्यारा होता तो आप अपने बेटे की बुरी आदतों को मुझ'से न छुपाते । आप के बेटे की बुरी आदतों ने पहले से ही आप'के मान सम्मान को निगल लिया हैं।
राजेंद्र…महेश बाबू मेरे रघु में कोई बुरी आदत नहीं हैं वो निर्मल जल की तरह स्वच्छ और साफ हैं। मुझे लगता हैं आप'को किसी ने भड़काया हैं इसलिए आप ऐसा कह रहे हैं। आप को सच्चाई पाता नहीं हैं इसलिए आप मेरे रघु पर लांछन लगा रहे हैं।
महेश...राजा जी लांछन तो उस पर लगाया जाता हैं जिस पर कोई दाग न हों। आप'के बेटे पर न जाने कितने लांछन पहले से ही लगा हुआ हैं। तो थोड़ा लांछन मैंने भी लगा दिया। क्या बुरा किया?
सुरभि...भाई साहब आप सोच समझ कर बोलिए आप किस पर लांछन लगा रहे हो मेरे बेटे पर सुरभि के बेटे पर लांछन लगा रहे हो जिसे हमने सभी अच्छे संस्कार दिये है उसमें कोई अवगुण नहीं हैं।
महेश..अपने, अपने बेटे को कैसे संस्कार दिए, मैं जान गया हूं। आप'के बेटे में कोई अच्छे संस्कार नहीं हैं अगर उसमें अच्छे संस्कार होते तो दर्जलिंग में इतने सारे रिश्ते न टूट गए होते।
ये बात सुनते ही राजेंद्र और सुरभि समझ गए उन्हे जिस बात का डर था। वहीं हुआ जैसे पहले के रिश्ते भड़काकर तुड़वा दिया गया। वैसे ही किसी ने महेश को भड़का दिया था इसलिए राजेंद्र निचे बैठ गए और हाथ जोकर बोला…महेश बाबू मैं मानता हूं इससे पहले बहुत से रिश्ते जुड़ने से पहले टूट गया लेकिन वो रिश्ते इसलिए नहीं टूटा की मेरे बेटे में कोई अवगूर्ण है बल्कि इसलिए टूटा क्योंकि किसी ने मेरे बेटे की बुराई करके उनको भड़का दिया था। आप यकीन माने मेरे बेटे में कोई दुर्गुण नहीं हैं।
महेश...आप अपने बेटे की पैरवी न करें तो ही बेहतर हैं। अगर आप'के बेटे में दुर्गुण नही है तो कोई क्यों बताएगा की उनमें दुर्गूर्ण भरे हैं। आप'के बेटे में दुनिया भर का दुर्गूर्ण भारा पड़ा है तभी तो लोग बता रहे है। मैं भी जान गया हूं इसलिए मै अपने बेटी का हाथ आप'के बेटे को नहीं सोफ सकता।
राजेंद्र….महेश बाबू आप ऐसा न करें मै हाथ जोड़ता हूं आप'के पैर पड़ता हूं मेरे बेटे पर आप ऐसे लांछन न लगाए न ही इस रिश्ते को तोड़े।
महेश...राजेंद्र जी अब कुछ नहीं हों सकता मै मन बना चुका हूं ये रिश्ता नहीं जुड़ सकता। उसके लिए आप'को मेरे पैर पड़ने की जरूरत नहीं हैं।
राजेंद्र….महेश बाबू ऐसा न करें आप मेरा कहना मन लीजिए मेरे बेटे में कोई दुर्गुण नहीं हैं। मेरी बात न सही मेरे पग का मान तो राख ही सकते हैं।
इतना कहकर राजेंद्र जी अपने सिर पर बंधे पग को निकलकर महेश के कदमों में रखने गए ये देख महेश पीछे हट गया फिर न नहीं बोलते हुए घर से बहार निकाल गए। उनको जाते देख सुरभि और राजेंद्र उन्हे रोकने के लिए बहार तक आए लेकिन महेश नहीं रुके अपना कार लिया और चले गए उनके जाते ही राजेंद्र धम्म से घूटनो पर बैठ गए फ़िर रोते हुए बोले...सुरभि आज मैं हार गया हूं। मेरे दिए अच्छे संस्कार ही मेरे बेटे का दुश्मन बन गया। अगर मैं रघु को बुरे संस्कार देता तो शायद आज हमें ये दिन न देखना पड़ता ।
सुरभि न कुछ कह पा रही थी न ख़ुद को संभाल पा रही थी उसकी हाल भी राजेंद्र जैसा हों गया। राजेंद्र जी अपने किस्मत को कोंसे जा रहे थे। कुछ क्षण तक ऐसा चलता रहा फ़िर नौकरों के मदद लेकर राजेंद्र को अन्दर ले गए।
आज के लिए बस इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे यह तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।
"यार आज ये उलटी गंगा कैसे बहने लग गया। रानी मां और महल की एक मात्र नागिन साथ में सभी काम कर रहे हैं।"
"अरे उलटी गंगा नहीं बह रहा हैं ये अजूबा हों रहा हैं। लगता है आज नागिन ने सच में केचुली बादल लिया हैं पिछले दिनों की तरह अच्छे बनने का ढोंग तो नहीं कर रहीं हैं।"
"ढोंग करे चाहें कुछ भी कुछ दिनों के लिए नागिन की विष भरी बाते सुनने से हमे और रानी मां को छुटकारा मिल जाएगा।"
"हा कह तो सही रहा हैं लेकिन सोचने वाली बात ये हैं नागिन का बदला हुआ रूप कब तक रहेगा।"
"जितने दिन भी रहें कम से कम महल में शांति बना रहेगा"
ये सभी खड़े बातों में लगे हुए थे। इन पर सुकन्या की नज़र पड़ गई। सुकन्या इनके पास आई फ़िर बोली...तुम सभी यहां खड़े खड़े क्या कर रहे हो कोई काम नहीं हैं तो पुष्पा को बुलाऊं।
"नही नहीं छोटी मालकिन उन्हें न बुलाना दो पल बैठने नहीं दे रही हैं काम करवा करवा कर कमर ही तुड़वाने पे तुली हैं।"
सुकन्या नौकरों की बाते सुन मुस्कुरा दिया फिर बोली...अच्छा जाओ थोड़ी देर आराम कर लो तरो ताजा होकर फिर से काम में लग जाना।"
इतना कहकर सुकन्या चली गई। पर यहां खड़े सभी नौकरो को भौचक्का कर गई। उन्हे यकीन ही नहीं हों रहा था सुकन्या उनसे सालीखे से बातकर आराम करने को कहकर गई। खैर जब आराम करने का फरमान मिल चूका हैं। तो सभी नौकर सुकन्या का गुण गान करते हुए चले गए। ऐसे ही दिन बीत गया।
अगला दिन भी निमंत्रण पत्र बांटने और दूसरे कामों में निकल गया। पांचवे दिन सुबह राजेंद्र और सुरभि तैयार होकर आए नाश्ता किया फिर राजेंद्र बोला…रघु मैं और तुम्हारी मां कलकत्ता जा रहे हैं वहा का काम भी देखना जरूरी हैं। तुम रमन और पुष्पा यह रहो तीन चार दिन बाद आ जाना। रावण तू इनके साथ मिलकर देख लेना कौन कौन रहा गए हैं उनको निमंत्रण पत्र भेज देना।
रावण….दादा भाई यहां तो लगभग सभी को निमंत्रण पत्र बांट दिया गया हैं इक्का दुक्क जो रहे गए हैं उन्हे मैं और मुंशी मिलकर पहुंचा देंगे। आप चाहो तो रमन और रघु को ले जा सकते हों। वहा भी आप'को काम में मदद मिल जाएगा अकेले कहा तक भागते रहेगें। फिर रावण मन में बोला ( ले जाओ नहीं तो बाप का अपमान होते हुए कैसे देख पाएगा। बड़ा खुश हो रहा था शादी करेगा जा बेटा कर ले शादी ऐसा इंतेजाम करके आया हूं। कभी शादी करने के बारे में नहीं सोचेगा।
राजेंद्र….तू ठीक कह रहा हैं वहा भी बहुत लोगो को दावत देना हैं दोनों साथ रहेंगे तो बहुत मदद हों जाएगा। जाओ रघु और रमन तैयार होकर आओ और पुष्पा तू क्या करेंगी साथ चलना हैं या यहां रहना हैं।
पुष्पा….मैं किया करूंगी, सोचना पड़ेगा।
इतना कहकर पुष्पा अपने अंदाज में सोचने लग गई। पुष्पा को सोचते देखकर सभी के चेहरे पर खिला सा मुस्कान आ गया और नौकरों की सांसे गले में अटक गया। वो सोचने लगें मेमसाहव हां कर दे तो ही अच्छा हैं यहां रूक गई तो काम करवा करवा के हमारा जीना हराम कर देगी। खैर कुछ क्षण सोचने के बाद पुष्पा ने जानें की इच्छा जता दिया। हां सुनते ही नौकरों की अटकी सास फिर से चल पड़ा। सुकन्या को कुछ कहना था इसलिए बोला…. जेठ जी आप अपश्यु को भी अपने साथ ले जाओ यहां रहकर कुछ काम तो करेगा नहीं दिन भर गायब रहेगा। आप'के साथ जाएगा तो कुछ काम में हाथ बांटा देगा।
अपश्यु...आप को किसने कहा मैंने कुछ काम नही किया इतना काम किया मेरे पाव में छाले पड़ गए हैं। मैं भी चला गया तो यहां पापा अकेले अकेले कितना काम करेगें। फिर मान में बोला (मैं चला गया तो मेरी मौज मस्ती बंद हों जाएगा मैं नहीं जाने वाला वैसे भी कुछ दिनों में गांव से एक लडकी को उठने वाला हूं नई नई आई है बहुत कांटप माल हैं। मै चला गया तो उसका मजा कौन लेगा।)
सुरभि...ठीक हैं तू यह रह जा शादी से एक हफ्ता पहले आ जाना।
अपश्यु सुरभि की बात सुन खुश हों गया और मुस्कुरा दिया। सुकन्या इशारे से सुरभि को कहा अपश्यु को साथ ले जाए लेकिन सुरभि ने मुस्करा कर इशारे से माना कर दिया और रावण मन में बोला ( हमारे आने की नौबत ही नहीं आयेगा उससे पहले ही रघु की शादी टूट जाएगा। जीतना खुश आप हो रही हों जल्दी ही उसपे ग्रहण लगने वाला हैं।)
बरहाल फैसला ये लिया गया राजेंद्र, सुरभि, रघु, रमन और पुष्पा कलकत्ता जाएंगे। रावण, सुकन्या, अपश्यु, और मुंशी यहां रहेंगे। शादी से एक हफ्ता पहले कलकत्ता जाएंगे। ये लोग दार्जलिंग से चल पड़े उधर महेश जी सभी काम को अकेले अकेले निपटा रहे थे। उनके आगे पीछे कोई था नहीं जो उनकी मदद कर दे। इसलिए मौहल्ले के कुछ लोग उनका हाथ बांटा रहे थे। साथ ही उनके साथ काम करने वाले लोग जो उनके दोस्त हैं वो भी उनका हाथ बांटा रहें थे।
लडकी के घर का मामला हैं इसलिए सभी चीजों की व्यवस्थ व्यापक और पुख्ता तरीके से किया जा रहा था। महेश ने दहेज के समान का भी ऑर्डर दे दिया था। राजेंद्र ने दहेज में कुछ नहीं मांग था लेकिन समाज में नाक न कटे इसलिए महेश ने सामर्थ अनुसार जो भी दे सकता था उसका ऑर्डर दे दिया। आज शादी तय हुए पचवा दिन था। शाम के समय महेश जी कही से आ रहे थे तभी रास्ते में उन्हें हाथ देकर किसी ने रोका कार रोकते ही बंदे ने उनसे लिफ्ट मांगा महेश ने उन्हे बिठा कर चल दिया। बात करते करते शख्स ने पूछा…महेश जी सुना है आप की बेटी का रिश्ता दार्जलिंग के राज परिवार में तय हों गया हैं।
महेश जी खुश होते हुए बोला... हां जी उसी की तैयारी में लगा हूं।
"आप को देखकर लग रहा हैं आप बहुत खुश हों। खुश तो होना ही चाहिए इतना धन संपन परिवार से रिश्ता जो जुड़ रहा हैं। महेश जी सिर्फ धन सम्पन परिवार होने से कुछ नहीं होता। लड़के के गुण अच्छे होने चाहिएं। आप जिसके साथ अपने बेटी का रिश्ता कर रहे हैं उस लड़के रघु में दुनिया भर का दुर्गुण भरा हुआ है ऐसा कौन सा बुरा काम है जो रघु न करता हों। परस्त्री गमन, नशेबाजी, धंधेबाजी, सारे बुरे काम रघु करता हैं। अब आप ही बताओ ऐसे लड़के के साथ कौन अपने बेटी का रिश्ता करेगा"
इतनी बाते सुनकर महेश जी ने कार रोक दिया। फ़िर शख्स को ताकते हुए समझने की कोशिश करने लगें। अनजान शख्स कहना किया चाहता है। महेश को विचाराधीन देख। शख्स के चेहरे पर कमीनगी मुस्कान आ गया। कुछ क्षण विचार करने के बाद महेश बोला….आप'को शर्म नहीं आता ऐसे भाले मानुष पर लांछन लगाते हुए। आप ने जीतना कहा मैं हूं जो सुन लिया कही राजा जी होते तो आप'का सिर धड़ से अलग कर देते।
"महेश जी गलत को गलत कहने से अगर धड़ से सिर अलग होता है तो हों जाने दो। सच कहने में डर कैसा मैं तो बस आप'को सच्चाई से अवगत करवा रहा था। बाकी आप पर है आप मानो या न मानो।"
इतना कहकर शख्स कार से बहार निकलकर चला जाता हैं महेश बाबू गाली बकते हुए घर को चल दिए। ऐसे ही पल गिनते गिनते आज का दिन बीत गया। अगले दिन राजेंद्र अपने पुश्तैनी घर पहुंच गए।
यहां से जाने से पहले जो जो काम करवाने को कह गए थे वो सारे काम उनके उम्मीद अनुसार हो गया था। आज कलकत्ता शहर के जाने माने लोगों को दावत देने राजेंद्र जी खुद गए हुए थे। रघु और रमन ने दूसरे जरूरी काम निपटाने में लगे हुए थे। आज भी एक शख्स ने महेश जी को भड़काने के लिए रघु की बुरी आदतों के बारे में बताया।
महेश जी ने आज उन्हे मुंह पर ही गाली बक दिया। महेश ने गाली बक तो दिया लेकिन कही न कहीं महेश जी के मन में शंका उत्पन हों गया और उन्हे विचार करने पर मजबूर कर दिया। महेश घर जाकर सामन्य बने रहे लेकिन उनके अंतर मन में द्वंद चल रहा था। मन में चल रही द्वंद से लड़ते हुए आज का रात किसी तरह बीत गया।
अगले दिन सभी अपने अपने कामों में लगे रहे लेकिन महेश भगा दौड़ी में भी उस शख्स की कही बातों को सोचने लगें उन्होंने जो कहा क्या सच हैं नहीं ये सच नहीं हो सकता जरूर कोई मजाक कर रहा होगा या कोई ऐसा होगा जो कमला की शादी इतने बड़े घर में हों रहा है इस बात को जानकर चीड़ गया होगा इसलिए ऐसा कह रहे होंगे।
मुझे उनकी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए मेरा होने वाला दामाद बहुत अच्छा है कमला भी तो पल पल उनका गुण गाती रहती हैं। महेश जी ऐसे ही खुद को समझा रहे थे। उधर महेश के घर पर कमला को उसकी सहेलियां छेड़े जा रहे थे। भातीभाती की बाते बनाकर कमला को चिड़ा रहे थे कमला चिड़ने के जगह बढ़ चढ़कर रघु की तारीफ कर रहीं थीं।
जिसे सुनकर कमला की सहेलियां उसे ओर ज्यादा छेड़ने लग जाती लेकिन कमला भी काम नहीं थी वो भी रघु के तारीफों के पुल बांधने में कोई कोताई नहीं बारत रहीं थीं। उधर रावण पल पल की खबर अपने आदमियों से ले रहा था। जो महेश के पीछे छाए की तरह लगे हुए थे और अपश्यु को इससे कोई मतलब ही नहीं था वो थोडा बहुत काम करता फिर दोस्तों के साथ माटरगास्ती करने निकल जाता तो कभी डिंपल के साथ वक्त बिताने चला जाता। जहां भी जाता विकट अपश्यु का पीछा नहीं छोड़ता। पल पल की खबर रख रहा था और संकट तक पंहुचा रहा थ।
आज भी शाम को महेश बाबू कहीं से घर जा रहे थे। तभी एक शख्स ने उन्हें रोककर रघु की बुराई किया। सुनने के बाद महेश बोले….भाई बात किया हैं पिछले तीन दिनों से कोई न कोई आकर मुझ'से एक ही बात कह रहे है। बात किया है तुम कौन हों और कहा से हों क्यों मेरे बेटी के घर बसने से पहले उजड़ने में लगे हों? मैने या मेरी बेटी ने आप'का क्या बिगड़ा हैं?
"महेश जी मुझे आप'से कोई दुश्मनी नहीं हैं न ही आप'के बेटी से कोई दुश्मनी हैं। मैं तो आप'का भला चाहने वालों में से हुं। आप'के बेटी की जिन्दगी उजड़ने से बचना चाहता हूं। इसे पहले आप'को किसने किया कहा मैं नहीं जानता मैं तो आप'से आज ही मिल रहा हूं।
महेश….आप कुछ भी कहो मुझे आप'की बातो पर यकीन नहीं हों रहा हैं। मेरी बेटी की शादी इतने ऊंचे घराने में हों रहा हैं शायद ये बात आप'को पसन्द नहीं आया। इसलिए चिड़कर आप रघु जी के विषय में गलत सालत बोल रहे हों।
"महेश जी मुझे आप'से कोई छिड़ नहीं हैं। मैं तो बस आप'के बेटी का भला चाहता हूं। आप'के बेटी का जीवन बरबाद न हों इसलिए आप'को सच्चाई बता रहा हूं। अच्छा आप एक बात सोचिए क्या दार्जलिंग में कोई अच्छी लडकी नहीं मिला जो इतने दूर कलकत्ता में आप'के घर रिश्ता लेकर आए। उन्होंने दार्जलिंग में रघु के लिए बहुत सी लड़कियां देखा लेकिन जब लडकी वालो को रघु के बुरी आदतों के बारे में पता चला तब उन्होंने ख़ुद ही रिश्ता तोड़ दिया। अब आप ही सोचिए भाले ही उनके पास धन संपत्ति का भंडार हों लेकिन लड़के में बुरी आदत हों तो कौन अपनी लडकी की शादी ऐसे बिगड़ैल लड़के से करवाएगा। आप चाहो तो करवा दीजिए क्योंकि आप'की बेटी एसोआराम की जिन्दगी जीयेगा पति चाहें कितना भी बिगड़ा हों आप की बेटी तो दौलत में खेलेंगी।
इतनी बाते सुनने के बाद महेश जी के दिमाग में शॉर्ट सर्किट हो गया। उनको समझ ही नहीं आ रहा था वो किया करे। किया फैसला ले, महेश को ऐसे विचाराधीन देख शख्स समझ गया चिंगारी लग चुका हैं बस उसे थोडा और हवा देना बाकि हैं। इसलिए बोला...महेश जी अच्छे से सोच समझ कर फैसला लीजिए अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं हैं। आप एक बुद्धि जीवी हों क्या आप अपने बेटी के जीवन को बरबाद होते देख सकते हैं। आप के जगह मै होता तो मेरी बेटी के जीवन बरबाद नहीं होने देता। भाले ही मुझे शादी ही क्यों न थोड़ देना पड़ता।
इतना कहकर शख्स चला गया और महेश विचारधीन खडा रहा। उनके सोचने समझने की क्षमता खत्म हो चुका था। उनके माथे से पसीना टप टप टपकने लगा। महेश समझ नहीं पा रहा था फैसला किया ले उन्हे कोई राह नज़र नहीं आ रहा था। बरहाल ऐसे ही सोचते हुए महेश जी घर को चल दिया। जब महेश जी घर पहुंचे तो उनके चेहरे पर चिंता की लकीर देख मनोरमा करण जानना चाहा लेकिन महेश ने उन्हें कुछ नहीं बताया चुप चप जाकर कमरे में बैठ गए।
महेश बहुत वक्त तक शख्स के कही बातों पर विचार करते रहें। कोई नतीजा नहीं निकल पाया उनका एक मन कह रहा था खुद जाकर राजेंद्र से पूछे सच्चाई किया है। फिर एक मन कहे की वो बाप है अपने बेटे की बुरी आदतों को क्यों बताएंगे वो तो छुपना चाहेंगे। ऐसे ही विभिन्न तरह की बातों पर विचार करते रहें। रात भर ठीक से सो नहीं पाए। सिर्फ और सिर्फ कारवाटे बदलते रहें। किसी तरह रात बीत गया। रावण को जब खबर दिया गया तो रावण खुश हो गया और कहा कल को फिर से एक बार चिंगारी को भड़का देना फिर ये रिश्ता भी टूटने से कोई नही बचा पाएगा। उसके बाद रावण ख़ुशी खुशी सो गया।
ऐसे ही रात बीत गया। अगला दिन एक नया सबेरा लेकर आया। लेकिन आज की सुबह महेश के लिए सामान्य नहीं रहा। रात को ठीक से सो नहीं पाए थे। इसलिए उनके पलके भारी भारी लग रहा था। कई बार मनोरमा उनसे पूछा। लेकिन महेश जी ने थकान को करण बता दिया। मनोरमा भी देख रही थीं महेश अकेले ही सभी भागा दौड़ी कर रहे थे। इसलिए उन्होंने भी महेश की बात मान लिया।
महेश ने मनोरमा को तो टाल दिया लेकिन अपने मन को न टाल पाए। उन्होंने रात भर जागकर जो निर्णय लिया उस पर थोडा और विचार कर पुख्ता करना था। रावण के भेजे आदमियों ने जो चिंगारी महेश के मन में लगाया था वो दहक कर अंगार बन चुका था। उसे ज्वाला बनने के लिए बस फुक मरने की देर थीं।
महेश का मन आज किसी काम में नहीं लग रहा था इसलिए कही पर न जाकर घर पर ही रहे। घर रह कर भी दो पल चैन से नहीं रह पाए। बार बार उनके दिमाग में इन तीन दिनों में उन अनजान लोगों ने जो भी बात बताया था। उस पर ही विचार करते रहें। उन्हें लग रहा था। उन लोगों ने जीतना भी रघु के बारे में कहा सब सच हैं। अगर सच न होता तो वो लोग बताने क्यों आते। नहीं नहीं मैं कमला की जिन्दगी बर्बाद होते हुए नहीं देख सकता।
मेरी इकलौती बेटी जीवन भर रोती रहे ऐसा मैं होने नहीं दे सकता। मुझे ये रिश्ता तोड़ देना चाहिए। लेकिन अभी अगर रिश्ता तोड़ दिया तो समाज किया कहेगा उनके सवालों का किया जबाव दूंगा। जवाब किया देना मेरी बेटी की जिन्दगी बर्बाद हो जाएगी तो उन्हें फर्क थोड़ी न पड़ेगा उन्हें तो बस कहने का मौका चाहिएं सही या गलत पर विचार कहा करते हैं। सही और गलत पर विचार तो मुझे करना है उन्हें नहीं, मैं अभी जाता हूं और रिश्ता तोड़ने की बात उन्हे कहकर आता हूं।
महेश चल दिया राजेंद्र के पुश्तैनी घर की ओर राजेंद्र भी आज कही पर नहीं गए। आज का जो भी काम था। वो रघु और रमन करने गए हुए थे। पुष्पा किसी सहेली से मिलने गई हुई थीं अभी महेश जी कुछ ही दूर आए थे तब उन्हें हाथ देकर एक शख्स ने रोका महेश जी कार रोक कर शक्श से रोकने का कारण पूछा तब उस ने कुछ वक्त इधर उधर की बाते किया। बातों बातो में शादी की बात छेड़ा गया। जब शक्श को लडके का पाता चला तब शक्श ने उन्हें वही बात बताया जो पिछले तीन अनजान लोगों ने बताया था।
बस फ़िर किया था। घर से मन बनाकर निकले थे रिश्ता तोड़कर ही आयेंगे। जो अब धीर्ण निश्चय बन चुका था। महेश जी ने आव देखा न ताव कार स्टार्ट किया और चल दिया। उनको इस तरह जाते देख शख्स के चेहरे पर खिली उड़ाने वाली हंसी आ गया। आता भी क्यों न चार दिनों से जिस काम को पूरा करने के लिए जी जान से कोशिश कर रहे थे।
आज पूरा होने वाला था। शख्स तब तक महेश की कार को देखते रहे जब तक महेश का कार आंखो से ओझल न हों गया। आखों से ओझल होते ही शख्स चल दिया और महेश पहुंच गए राजेंद्र के पुश्तैनी घर समधी को आया देखकर राजेंद्र और सुरभि आदर सत्कार से अन्दर ले गए। अन्दर आकर राजेंद्र ने नौकरों को आवाज देकर चाय नाश्ता लाने को कहा। तब महेश बोला…राजा जी मैं यहां चाय नाश्ता करने नहीं आया हूं इसलिए चाय नाश्ता मंगवाने की जरूरत नहीं हैं।
राजेंद्र इतना तो समझ गए कि बेटी के बाप होने के नाते बेटी की सुसराल के अन्न पानी न ग्रहण करने की रिवाज के चलते माना कर रहे हैं। इसलिए राजेंद्र जी बोला...महेश बाबू अभी हमारा घर आधिकारिक तौर पर आप'के बेटी का सुसराल नहीं बना हैं। इसलिए आप हमारे यह का अन्न पानी ग्रहण कर सकते हैं और एक बात आज कल इस रिवाज को बहुत ही काम लोग मानते हैं। इसलिए आप भी चाहो तो इस रिवाज का पालन करने से बच सकते हों।
महेश….राजा जी बेटी के ससुराल में अन्न जल ग्रहण न करने वाले रिवाज का पालन तब होगा जब रिश्ता जुड़ेगा। आज मैं आप'के बेटे और कमला के जुड़े रिश्ते को तोड़ने आया हूं।
इतना सुनते ही राजेंद्र और सुरभि को झटका सा लगा। जैसे उन्हें किसी ने आसमान से जमीन पर लाकर पटक दिया हों। दोनों अचंभित होकर महेश को देखने लग गए। राजेंद्र को कुछ समझ नहीं आ रहा था किया बोले लेकिन करण तो जानना ही था इसलिए सुरभि बोली...भाई साहब आप क्या कह रहे हों? उस पर विचार किया की नहीं शादी के दिन में मात्र दस दिन रह गए और आप रिश्ता तोड़ने की बात कर रहे हों। हमारी नहीं तो कम से कम अपनी मान सम्मान की परवाह कर लेते। आज अपने रिश्ता तोड़ दिया तो आप'के साथ साथ हमारे भी मन सम्मान पर लांछन लग जायेगा।
महेश…मान सम्मान की बात आप न करें तो बेहतर हैं अगर आप'को मान सम्मान इतना प्यारा होता तो आप अपने बेटे की बुरी आदतों को मुझ'से न छुपाते । आप के बेटे की बुरी आदतों ने पहले से ही आप'के मान सम्मान को निगल लिया हैं।
राजेंद्र…महेश बाबू मेरे रघु में कोई बुरी आदत नहीं हैं वो निर्मल जल की तरह स्वच्छ और साफ हैं। मुझे लगता हैं आप'को किसी ने भड़काया हैं इसलिए आप ऐसा कह रहे हैं। आप को सच्चाई पाता नहीं हैं इसलिए आप मेरे रघु पर लांछन लगा रहे हैं।
महेश...राजा जी लांछन तो उस पर लगाया जाता हैं जिस पर कोई दाग न हों। आप'के बेटे पर न जाने कितने लांछन पहले से ही लगा हुआ हैं। तो थोड़ा लांछन मैंने भी लगा दिया। क्या बुरा किया?
सुरभि...भाई साहब आप सोच समझ कर बोलिए आप किस पर लांछन लगा रहे हो मेरे बेटे पर सुरभि के बेटे पर लांछन लगा रहे हो जिसे हमने सभी अच्छे संस्कार दिये है उसमें कोई अवगुण नहीं हैं।
महेश..अपने, अपने बेटे को कैसे संस्कार दिए, मैं जान गया हूं। आप'के बेटे में कोई अच्छे संस्कार नहीं हैं अगर उसमें अच्छे संस्कार होते तो दर्जलिंग में इतने सारे रिश्ते न टूट गए होते।
ये बात सुनते ही राजेंद्र और सुरभि समझ गए उन्हे जिस बात का डर था। वहीं हुआ जैसे पहले के रिश्ते भड़काकर तुड़वा दिया गया। वैसे ही किसी ने महेश को भड़का दिया था इसलिए राजेंद्र निचे बैठ गए और हाथ जोकर बोला…महेश बाबू मैं मानता हूं इससे पहले बहुत से रिश्ते जुड़ने से पहले टूट गया लेकिन वो रिश्ते इसलिए नहीं टूटा की मेरे बेटे में कोई अवगूर्ण है बल्कि इसलिए टूटा क्योंकि किसी ने मेरे बेटे की बुराई करके उनको भड़का दिया था। आप यकीन माने मेरे बेटे में कोई दुर्गुण नहीं हैं।
महेश...आप अपने बेटे की पैरवी न करें तो ही बेहतर हैं। अगर आप'के बेटे में दुर्गुण नही है तो कोई क्यों बताएगा की उनमें दुर्गूर्ण भरे हैं। आप'के बेटे में दुनिया भर का दुर्गूर्ण भारा पड़ा है तभी तो लोग बता रहे है। मैं भी जान गया हूं इसलिए मै अपने बेटी का हाथ आप'के बेटे को नहीं सोफ सकता।
राजेंद्र….महेश बाबू आप ऐसा न करें मै हाथ जोड़ता हूं आप'के पैर पड़ता हूं मेरे बेटे पर आप ऐसे लांछन न लगाए न ही इस रिश्ते को तोड़े।
महेश...राजेंद्र जी अब कुछ नहीं हों सकता मै मन बना चुका हूं ये रिश्ता नहीं जुड़ सकता। उसके लिए आप'को मेरे पैर पड़ने की जरूरत नहीं हैं।
राजेंद्र….महेश बाबू ऐसा न करें आप मेरा कहना मन लीजिए मेरे बेटे में कोई दुर्गुण नहीं हैं। मेरी बात न सही मेरे पग का मान तो राख ही सकते हैं।
इतना कहकर राजेंद्र जी अपने सिर पर बंधे पग को निकलकर महेश के कदमों में रखने गए ये देख महेश पीछे हट गया फिर न नहीं बोलते हुए घर से बहार निकाल गए। उनको जाते देख सुरभि और राजेंद्र उन्हे रोकने के लिए बहार तक आए लेकिन महेश नहीं रुके अपना कार लिया और चले गए उनके जाते ही राजेंद्र धम्म से घूटनो पर बैठ गए फ़िर रोते हुए बोले...सुरभि आज मैं हार गया हूं। मेरे दिए अच्छे संस्कार ही मेरे बेटे का दुश्मन बन गया। अगर मैं रघु को बुरे संस्कार देता तो शायद आज हमें ये दिन न देखना पड़ता ।
सुरभि न कुछ कह पा रही थी न ख़ुद को संभाल पा रही थी उसकी हाल भी राजेंद्र जैसा हों गया। राजेंद्र जी अपने किस्मत को कोंसे जा रहे थे। कुछ क्षण तक ऐसा चलता रहा फ़िर नौकरों के मदद लेकर राजेंद्र को अन्दर ले गए।
आज के लिए बस इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे यह तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।
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