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Romance ajanabi hamasafar -rishton ka gathabandhan

Destiny

Will Change With Time
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Update - 26


दलाल के घर से निकलकर रावण कहीं ओर गया। वहा अपने चार पांच आदमी को कुछ काम बताकर घर आ गया। जब तक रावण घर पंहुचा तब तक निमंत्रण पत्र आ गया था। रावण के आते ही रावण और राजेंद्र निमंत्रण पत्र लेकर बांटने चले गये रमन रघु और मुंशी ये तीनों भी निमंत्रण पत्र बांटने में लग गए। पुष्पा रोज की तरह आज भी सभी को लपेटे में ले रखी थीं। आज तो उसने सुरभि और सुकन्या दोनों को एक पल के लिए बैठने नहीं दिया दोनों खुशी खुशी साथ में सभी कम करने में लगीं रहीं। ये देख महल के सारे नौकर भौचक्के रह गए और आपस में बाते करने लगें।

"यार आज ये उलटी गंगा कैसे बहने लग गया। रानी मां और महल की एक मात्र नागिन साथ में सभी काम कर रहे हैं।"

"अरे उलटी गंगा नहीं बह रहा हैं ये अजूबा हों रहा हैं। लगता है आज नागिन ने सच में केचुली बादल लिया हैं पिछले दिनों की तरह अच्छे बनने का ढोंग तो नहीं कर रहीं हैं।"

"ढोंग करे चाहें कुछ भी कुछ दिनों के लिए नागिन की विष भरी बाते सुनने से हमे और रानी मां को छुटकारा मिल जाएगा।"

"हा कह तो सही रहा हैं लेकिन सोचने वाली बात ये हैं नागिन का बदला हुआ रूप कब तक रहेगा।"

"जितने दिन भी रहें कम से कम महल में शांति बना रहेगा"

ये सभी खड़े बातों में लगे हुए थे। इन पर सुकन्या की नज़र पड़ गई। सुकन्या इनके पास आई फ़िर बोली...तुम सभी यहां खड़े खड़े क्या कर रहे हो कोई काम नहीं हैं तो पुष्पा को बुलाऊं।

"नही नहीं छोटी मालकिन उन्हें न बुलाना दो पल बैठने नहीं दे रही हैं काम करवा करवा कर कमर ही तुड़वाने पे तुली हैं।"

सुकन्या नौकरों की बाते सुन मुस्कुरा दिया फिर बोली...अच्छा जाओ थोड़ी देर आराम कर लो तरो ताजा होकर फिर से काम में लग जाना।"

इतना कहकर सुकन्या चली गई। पर यहां खड़े सभी नौकरो को भौचक्का कर गई। उन्हे यकीन ही नहीं हों रहा था सुकन्या उनसे सालीखे से बातकर आराम करने को कहकर गई। खैर जब आराम करने का फरमान मिल चूका हैं। तो सभी नौकर सुकन्या का गुण गान करते हुए चले गए। ऐसे ही दिन बीत गया।

अगला दिन भी निमंत्रण पत्र बांटने और दूसरे कामों में निकल गया। पांचवे दिन सुबह राजेंद्र और सुरभि तैयार होकर आए नाश्ता किया फिर राजेंद्र बोला…रघु मैं और तुम्हारी मां कलकत्ता जा रहे हैं वहा का काम भी देखना जरूरी हैं। तुम रमन और पुष्पा यह रहो तीन चार दिन बाद आ जाना। रावण तू इनके साथ मिलकर देख लेना कौन कौन रहा गए हैं उनको निमंत्रण पत्र भेज देना।

रावण….दादा भाई यहां तो लगभग सभी को निमंत्रण पत्र बांट दिया गया हैं इक्का दुक्क जो रहे गए हैं उन्हे मैं और मुंशी मिलकर पहुंचा देंगे। आप चाहो तो रमन और रघु को ले जा सकते हों। वहा भी आप'को काम में मदद मिल जाएगा अकेले कहा तक भागते रहेगें। फिर रावण मन में बोला ( ले जाओ नहीं तो बाप का अपमान होते हुए कैसे देख पाएगा। बड़ा खुश हो रहा था शादी करेगा जा बेटा कर ले शादी ऐसा इंतेजाम करके आया हूं। कभी शादी करने के बारे में नहीं सोचेगा।

राजेंद्र….तू ठीक कह रहा हैं वहा भी बहुत लोगो को दावत देना हैं दोनों साथ रहेंगे तो बहुत मदद हों जाएगा। जाओ रघु और रमन तैयार होकर आओ और पुष्पा तू क्या करेंगी साथ चलना हैं या यहां रहना हैं।

पुष्पा….मैं किया करूंगी, सोचना पड़ेगा।

इतना कहकर पुष्पा अपने अंदाज में सोचने लग गई। पुष्पा को सोचते देखकर सभी के चेहरे पर खिला सा मुस्कान आ गया और नौकरों की सांसे गले में अटक गया। वो सोचने लगें मेमसाहव हां कर दे तो ही अच्छा हैं यहां रूक गई तो काम करवा करवा के हमारा जीना हराम कर देगी। खैर कुछ क्षण सोचने के बाद पुष्पा ने जानें की इच्छा जता दिया। हां सुनते ही नौकरों की अटकी सास फिर से चल पड़ा। सुकन्या को कुछ कहना था इसलिए बोला…. जेठ जी आप अपश्यु को भी अपने साथ ले जाओ यहां रहकर कुछ काम तो करेगा नहीं दिन भर गायब रहेगा। आप'के साथ जाएगा तो कुछ काम में हाथ बांटा देगा।

अपश्यु...आप को किसने कहा मैंने कुछ काम नही किया इतना काम किया मेरे पाव में छाले पड़ गए हैं। मैं भी चला गया तो यहां पापा अकेले अकेले कितना काम करेगें। फिर मान में बोला (मैं चला गया तो मेरी मौज मस्ती बंद हों जाएगा मैं नहीं जाने वाला वैसे भी कुछ दिनों में गांव से एक लडकी को उठने वाला हूं नई नई आई है बहुत कांटप माल हैं। मै चला गया तो उसका मजा कौन लेगा।)

सुरभि...ठीक हैं तू यह रह जा शादी से एक हफ्ता पहले आ जाना।

अपश्यु सुरभि की बात सुन खुश हों गया और मुस्कुरा दिया। सुकन्या इशारे से सुरभि को कहा अपश्यु को साथ ले जाए लेकिन सुरभि ने मुस्करा कर इशारे से माना कर दिया और रावण मन में बोला ( हमारे आने की नौबत ही नहीं आयेगा उससे पहले ही रघु की शादी टूट जाएगा। जीतना खुश आप हो रही हों जल्दी ही उसपे ग्रहण लगने वाला हैं।)

बरहाल फैसला ये लिया गया राजेंद्र, सुरभि, रघु, रमन और पुष्पा कलकत्ता जाएंगे। रावण, सुकन्या, अपश्यु, और मुंशी यहां रहेंगे। शादी से एक हफ्ता पहले कलकत्ता जाएंगे। ये लोग दार्जलिंग से चल पड़े उधर महेश जी सभी काम को अकेले अकेले निपटा रहे थे। उनके आगे पीछे कोई था नहीं जो उनकी मदद कर दे। इसलिए मौहल्ले के कुछ लोग उनका हाथ बांटा रहे थे। साथ ही उनके साथ काम करने वाले लोग जो उनके दोस्त हैं वो भी उनका हाथ बांटा रहें थे।

लडकी के घर का मामला हैं इसलिए सभी चीजों की व्यवस्थ व्यापक और पुख्ता तरीके से किया जा रहा था। महेश ने दहेज के समान का भी ऑर्डर दे दिया था। राजेंद्र ने दहेज में कुछ नहीं मांग था लेकिन समाज में नाक न कटे इसलिए महेश ने सामर्थ अनुसार जो भी दे सकता था उसका ऑर्डर दे दिया। आज शादी तय हुए पचवा दिन था। शाम के समय महेश जी कही से आ रहे थे तभी रास्ते में उन्हें हाथ देकर किसी ने रोका कार रोकते ही बंदे ने उनसे लिफ्ट मांगा महेश ने उन्हे बिठा कर चल दिया। बात करते करते शख्स ने पूछा…महेश जी सुना है आप की बेटी का रिश्ता दार्जलिंग के राज परिवार में तय हों गया हैं।

महेश जी खुश होते हुए बोला... हां जी उसी की तैयारी में लगा हूं।

"आप को देखकर लग रहा हैं आप बहुत खुश हों। खुश तो होना ही चाहिए इतना धन संपन परिवार से रिश्ता जो जुड़ रहा हैं। महेश जी सिर्फ धन सम्पन परिवार होने से कुछ नहीं होता। लड़के के गुण अच्छे होने चाहिएं। आप जिसके साथ अपने बेटी का रिश्ता कर रहे हैं उस लड़के रघु में दुनिया भर का दुर्गुण भरा हुआ है ऐसा कौन सा बुरा काम है जो रघु न करता हों। परस्त्री गमन, नशेबाजी, धंधेबाजी, सारे बुरे काम रघु करता हैं। अब आप ही बताओ ऐसे लड़के के साथ कौन अपने बेटी का रिश्ता करेगा"

इतनी बाते सुनकर महेश जी ने कार रोक दिया। फ़िर शख्स को ताकते हुए समझने की कोशिश करने लगें। अनजान शख्स कहना किया चाहता है। महेश को विचाराधीन देख। शख्स के चेहरे पर कमीनगी मुस्कान आ गया। कुछ क्षण विचार करने के बाद महेश बोला….आप'को शर्म नहीं आता ऐसे भाले मानुष पर लांछन लगाते हुए। आप ने जीतना कहा मैं हूं जो सुन लिया कही राजा जी होते तो आप'का सिर धड़ से अलग कर देते।

"महेश जी गलत को गलत कहने से अगर धड़ से सिर अलग होता है तो हों जाने दो। सच कहने में डर कैसा मैं तो बस आप'को सच्चाई से अवगत करवा रहा था। बाकी आप पर है आप मानो या न मानो।"

इतना कहकर शख्स कार से बहार निकलकर चला जाता हैं महेश बाबू गाली बकते हुए घर को चल दिए। ऐसे ही पल गिनते गिनते आज का दिन बीत गया। अगले दिन राजेंद्र अपने पुश्तैनी घर पहुंच गए।

यहां से जाने से पहले जो जो काम करवाने को कह गए थे वो सारे काम उनके उम्मीद अनुसार हो गया था। आज कलकत्ता शहर के जाने माने लोगों को दावत देने राजेंद्र जी खुद गए हुए थे। रघु और रमन ने दूसरे जरूरी काम निपटाने में लगे हुए थे। आज भी एक शख्स ने महेश जी को भड़काने के लिए रघु की बुरी आदतों के बारे में बताया।

महेश जी ने आज उन्हे मुंह पर ही गाली बक दिया। महेश ने गाली बक तो दिया लेकिन कही न कहीं महेश जी के मन में शंका उत्पन हों गया और उन्हे विचार करने पर मजबूर कर दिया। महेश घर जाकर सामन्य बने रहे लेकिन उनके अंतर मन में द्वंद चल रहा था। मन में चल रही द्वंद से लड़ते हुए आज का रात किसी तरह बीत गया।

अगले दिन सभी अपने अपने कामों में लगे रहे लेकिन महेश भगा दौड़ी में भी उस शख्स की कही बातों को सोचने लगें उन्होंने जो कहा क्या सच हैं नहीं ये सच नहीं हो सकता जरूर कोई मजाक कर रहा होगा या कोई ऐसा होगा जो कमला की शादी इतने बड़े घर में हों रहा है इस बात को जानकर चीड़ गया होगा इसलिए ऐसा कह रहे होंगे।

मुझे उनकी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए मेरा होने वाला दामाद बहुत अच्छा है कमला भी तो पल पल उनका गुण गाती रहती हैं। महेश जी ऐसे ही खुद को समझा रहे थे। उधर महेश के घर पर कमला को उसकी सहेलियां छेड़े जा रहे थे। भातीभाती की बाते बनाकर कमला को चिड़ा रहे थे कमला चिड़ने के जगह बढ़ चढ़कर रघु की तारीफ कर रहीं थीं।

जिसे सुनकर कमला की सहेलियां उसे ओर ज्यादा छेड़ने लग जाती लेकिन कमला भी काम नहीं थी वो भी रघु के तारीफों के पुल बांधने में कोई कोताई नहीं बारत रहीं थीं। उधर रावण पल पल की खबर अपने आदमियों से ले रहा था। जो महेश के पीछे छाए की तरह लगे हुए थे और अपश्यु को इससे कोई मतलब ही नहीं था वो थोडा बहुत काम करता फिर दोस्तों के साथ माटरगास्ती करने निकल जाता तो कभी डिंपल के साथ वक्त बिताने चला जाता। जहां भी जाता विकट अपश्यु का पीछा नहीं छोड़ता। पल पल की खबर रख रहा था और संकट तक पंहुचा रहा थ।

आज भी शाम को महेश बाबू कहीं से घर जा रहे थे। तभी एक शख्स ने उन्हें रोककर रघु की बुराई किया। सुनने के बाद महेश बोले….भाई बात किया हैं पिछले तीन दिनों से कोई न कोई आकर मुझ'से एक ही बात कह रहे है। बात किया है तुम कौन हों और कहा से हों क्यों मेरे बेटी के घर बसने से पहले उजड़ने में लगे हों? मैने या मेरी बेटी ने आप'का क्या बिगड़ा हैं?

"महेश जी मुझे आप'से कोई दुश्मनी नहीं हैं न ही आप'के बेटी से कोई दुश्मनी हैं। मैं तो आप'का भला चाहने वालों में से हुं। आप'के बेटी की जिन्दगी उजड़ने से बचना चाहता हूं। इसे पहले आप'को किसने किया कहा मैं नहीं जानता मैं तो आप'से आज ही मिल रहा हूं।

महेश….आप कुछ भी कहो मुझे आप'की बातो पर यकीन नहीं हों रहा हैं। मेरी बेटी की शादी इतने ऊंचे घराने में हों रहा हैं शायद ये बात आप'को पसन्द नहीं आया। इसलिए चिड़कर आप रघु जी के विषय में गलत सालत बोल रहे हों।

"महेश जी मुझे आप'से कोई छिड़ नहीं हैं। मैं तो बस आप'के बेटी का भला चाहता हूं। आप'के बेटी का जीवन बरबाद न हों इसलिए आप'को सच्चाई बता रहा हूं। अच्छा आप एक बात सोचिए क्या दार्जलिंग में कोई अच्छी लडकी नहीं मिला जो इतने दूर कलकत्ता में आप'के घर रिश्ता लेकर आए। उन्होंने दार्जलिंग में रघु के लिए बहुत सी लड़कियां देखा लेकिन जब लडकी वालो को रघु के बुरी आदतों के बारे में पता चला तब उन्होंने ख़ुद ही रिश्ता तोड़ दिया। अब आप ही सोचिए भाले ही उनके पास धन संपत्ति का भंडार हों लेकिन लड़के में बुरी आदत हों तो कौन अपनी लडकी की शादी ऐसे बिगड़ैल लड़के से करवाएगा। आप चाहो तो करवा दीजिए क्योंकि आप'की बेटी एसोआराम की जिन्दगी जीयेगा पति चाहें कितना भी बिगड़ा हों आप की बेटी तो दौलत में खेलेंगी।

इतनी बाते सुनने के बाद महेश जी के दिमाग में शॉर्ट सर्किट हो गया। उनको समझ ही नहीं आ रहा था वो किया करे। किया फैसला ले, महेश को ऐसे विचाराधीन देख शख्स समझ गया चिंगारी लग चुका हैं बस उसे थोडा और हवा देना बाकि हैं। इसलिए बोला...महेश जी अच्छे से सोच समझ कर फैसला लीजिए अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं हैं। आप एक बुद्धि जीवी हों क्या आप अपने बेटी के जीवन को बरबाद होते देख सकते हैं। आप के जगह मै होता तो मेरी बेटी के जीवन बरबाद नहीं होने देता। भाले ही मुझे शादी ही क्यों न थोड़ देना पड़ता।

इतना कहकर शख्स चला गया और महेश विचारधीन खडा रहा। उनके सोचने समझने की क्षमता खत्म हो चुका था। उनके माथे से पसीना टप टप टपकने लगा। महेश समझ नहीं पा रहा था फैसला किया ले उन्हे कोई राह नज़र नहीं आ रहा था। बरहाल ऐसे ही सोचते हुए महेश जी घर को चल दिया। जब महेश जी घर पहुंचे तो उनके चेहरे पर चिंता की लकीर देख मनोरमा करण जानना चाहा लेकिन महेश ने उन्हें कुछ नहीं बताया चुप चप जाकर कमरे में बैठ गए।

महेश बहुत वक्त तक शख्स के कही बातों पर विचार करते रहें। कोई नतीजा नहीं निकल पाया उनका एक मन कह रहा था खुद जाकर राजेंद्र से पूछे सच्चाई किया है। फिर एक मन कहे की वो बाप है अपने बेटे की बुरी आदतों को क्यों बताएंगे वो तो छुपना चाहेंगे। ऐसे ही विभिन्न तरह की बातों पर विचार करते रहें। रात भर ठीक से सो नहीं पाए। सिर्फ और सिर्फ कारवाटे बदलते रहें। किसी तरह रात बीत गया। रावण को जब खबर दिया गया तो रावण खुश हो गया और कहा कल को फिर से एक बार चिंगारी को भड़का देना फिर ये रिश्ता भी टूटने से कोई नही बचा पाएगा। उसके बाद रावण ख़ुशी खुशी सो गया।

ऐसे ही रात बीत गया। अगला दिन एक नया सबेरा लेकर आया। लेकिन आज की सुबह महेश के लिए सामान्य नहीं रहा। रात को ठीक से सो नहीं पाए थे। इसलिए उनके पलके भारी भारी लग रहा था। कई बार मनोरमा उनसे पूछा। लेकिन महेश जी ने थकान को करण बता दिया। मनोरमा भी देख रही थीं महेश अकेले ही सभी भागा दौड़ी कर रहे थे। इसलिए उन्होंने भी महेश की बात मान लिया।

महेश ने मनोरमा को तो टाल दिया लेकिन अपने मन को न टाल पाए। उन्होंने रात भर जागकर जो निर्णय लिया उस पर थोडा और विचार कर पुख्ता करना था। रावण के भेजे आदमियों ने जो चिंगारी महेश के मन में लगाया था वो दहक कर अंगार बन चुका था। उसे ज्वाला बनने के लिए बस फुक मरने की देर थीं।

महेश का मन आज किसी काम में नहीं लग रहा था इसलिए कही पर न जाकर घर पर ही रहे। घर रह कर भी दो पल चैन से नहीं रह पाए। बार बार उनके दिमाग में इन तीन दिनों में उन अनजान लोगों ने जो भी बात बताया था। उस पर ही विचार करते रहें। उन्हें लग रहा था। उन लोगों ने जीतना भी रघु के बारे में कहा सब सच हैं। अगर सच न होता तो वो लोग बताने क्यों आते। नहीं नहीं मैं कमला की जिन्दगी बर्बाद होते हुए नहीं देख सकता।

मेरी इकलौती बेटी जीवन भर रोती रहे ऐसा मैं होने नहीं दे सकता। मुझे ये रिश्ता तोड़ देना चाहिए। लेकिन अभी अगर रिश्ता तोड़ दिया तो समाज किया कहेगा उनके सवालों का किया जबाव दूंगा। जवाब किया देना मेरी बेटी की जिन्दगी बर्बाद हो जाएगी तो उन्हें फर्क थोड़ी न पड़ेगा उन्हें तो बस कहने का मौका चाहिएं सही या गलत पर विचार कहा करते हैं। सही और गलत पर विचार तो मुझे करना है उन्हें नहीं, मैं अभी जाता हूं और रिश्ता तोड़ने की बात उन्हे कहकर आता हूं।

महेश चल दिया राजेंद्र के पुश्तैनी घर की ओर राजेंद्र भी आज कही पर नहीं गए। आज का जो भी काम था। वो रघु और रमन करने गए हुए थे। पुष्पा किसी सहेली से मिलने गई हुई थीं अभी महेश जी कुछ ही दूर आए थे तब उन्हें हाथ देकर एक शख्स ने रोका महेश जी कार रोक कर शक्श से रोकने का कारण पूछा तब उस ने कुछ वक्त इधर उधर की बाते किया। बातों बातो में शादी की बात छेड़ा गया। जब शक्श को लडके का पाता चला तब शक्श ने उन्हें वही बात बताया जो पिछले तीन अनजान लोगों ने बताया था।

बस फ़िर किया था। घर से मन बनाकर निकले थे रिश्ता तोड़कर ही आयेंगे। जो अब धीर्ण निश्चय बन चुका था। महेश जी ने आव देखा न ताव कार स्टार्ट किया और चल दिया। उनको इस तरह जाते देख शख्स के चेहरे पर खिली उड़ाने वाली हंसी आ गया। आता भी क्यों न चार दिनों से जिस काम को पूरा करने के लिए जी जान से कोशिश कर रहे थे।

आज पूरा होने वाला था। शख्स तब तक महेश की कार को देखते रहे जब तक महेश का कार आंखो से ओझल न हों गया। आखों से ओझल होते ही शख्स चल दिया और महेश पहुंच गए राजेंद्र के पुश्तैनी घर समधी को आया देखकर राजेंद्र और सुरभि आदर सत्कार से अन्दर ले गए। अन्दर आकर राजेंद्र ने नौकरों को आवाज देकर चाय नाश्ता लाने को कहा। तब महेश बोला…राजा जी मैं यहां चाय नाश्ता करने नहीं आया हूं इसलिए चाय नाश्ता मंगवाने की जरूरत नहीं हैं।

राजेंद्र इतना तो समझ गए कि बेटी के बाप होने के नाते बेटी की सुसराल के अन्न पानी न ग्रहण करने की रिवाज के चलते माना कर रहे हैं। इसलिए राजेंद्र जी बोला...महेश बाबू अभी हमारा घर आधिकारिक तौर पर आप'के बेटी का सुसराल नहीं बना हैं। इसलिए आप हमारे यह का अन्न पानी ग्रहण कर सकते हैं और एक बात आज कल इस रिवाज को बहुत ही काम लोग मानते हैं। इसलिए आप भी चाहो तो इस रिवाज का पालन करने से बच सकते हों।

महेश….राजा जी बेटी के ससुराल में अन्न जल ग्रहण न करने वाले रिवाज का पालन तब होगा जब रिश्ता जुड़ेगा। आज मैं आप'के बेटे और कमला के जुड़े रिश्ते को तोड़ने आया हूं।

इतना सुनते ही राजेंद्र और सुरभि को झटका सा लगा। जैसे उन्हें किसी ने आसमान से जमीन पर लाकर पटक दिया हों। दोनों अचंभित होकर महेश को देखने लग गए। राजेंद्र को कुछ समझ नहीं आ रहा था किया बोले लेकिन करण तो जानना ही था इसलिए सुरभि बोली...भाई साहब आप क्या कह रहे हों? उस पर विचार किया की नहीं शादी के दिन में मात्र दस दिन रह गए और आप रिश्ता तोड़ने की बात कर रहे हों। हमारी नहीं तो कम से कम अपनी मान सम्मान की परवाह कर लेते। आज अपने रिश्ता तोड़ दिया तो आप'के साथ साथ हमारे भी मन सम्मान पर लांछन लग जायेगा।

महेश…मान सम्मान की बात आप न करें तो बेहतर हैं अगर आप'को मान सम्मान इतना प्यारा होता तो आप अपने बेटे की बुरी आदतों को मुझ'से न छुपाते । आप के बेटे की बुरी आदतों ने पहले से ही आप'के मान सम्मान को निगल लिया हैं।

राजेंद्र…महेश बाबू मेरे रघु में कोई बुरी आदत नहीं हैं वो निर्मल जल की तरह स्वच्छ और साफ हैं। मुझे लगता हैं आप'को किसी ने भड़काया हैं इसलिए आप ऐसा कह रहे हैं। आप को सच्चाई पाता नहीं हैं इसलिए आप मेरे रघु पर लांछन लगा रहे हैं।

महेश...राजा जी लांछन तो उस पर लगाया जाता हैं जिस पर कोई दाग न हों। आप'के बेटे पर न जाने कितने लांछन पहले से ही लगा हुआ हैं। तो थोड़ा लांछन मैंने भी लगा दिया। क्या बुरा किया?

सुरभि...भाई साहब आप सोच समझ कर बोलिए आप किस पर लांछन लगा रहे हो मेरे बेटे पर सुरभि के बेटे पर लांछन लगा रहे हो जिसे हमने सभी अच्छे संस्कार दिये है उसमें कोई अवगुण नहीं हैं।

महेश..अपने, अपने बेटे को कैसे संस्कार दिए, मैं जान गया हूं। आप'के बेटे में कोई अच्छे संस्कार नहीं हैं अगर उसमें अच्छे संस्कार होते तो दर्जलिंग में इतने सारे रिश्ते न टूट गए होते।

ये बात सुनते ही राजेंद्र और सुरभि समझ गए उन्हे जिस बात का डर था। वहीं हुआ जैसे पहले के रिश्ते भड़काकर तुड़वा दिया गया। वैसे ही किसी ने महेश को भड़का दिया था इसलिए राजेंद्र निचे बैठ गए और हाथ जोकर बोला…महेश बाबू मैं मानता हूं इससे पहले बहुत से रिश्ते जुड़ने से पहले टूट गया लेकिन वो रिश्ते इसलिए नहीं टूटा की मेरे बेटे में कोई अवगूर्ण है बल्कि इसलिए टूटा क्योंकि किसी ने मेरे बेटे की बुराई करके उनको भड़का दिया था। आप यकीन माने मेरे बेटे में कोई दुर्गुण नहीं हैं।

महेश...आप अपने बेटे की पैरवी न करें तो ही बेहतर हैं। अगर आप'के बेटे में दुर्गुण नही है तो कोई क्यों बताएगा की उनमें दुर्गूर्ण भरे हैं। आप'के बेटे में दुनिया भर का दुर्गूर्ण भारा पड़ा है तभी तो लोग बता रहे है। मैं भी जान गया हूं इसलिए मै अपने बेटी का हाथ आप'के बेटे को नहीं सोफ सकता।

राजेंद्र….महेश बाबू आप ऐसा न करें मै हाथ जोड़ता हूं आप'के पैर पड़ता हूं मेरे बेटे पर आप ऐसे लांछन न लगाए न ही इस रिश्ते को तोड़े।

महेश...राजेंद्र जी अब कुछ नहीं हों सकता मै मन बना चुका हूं ये रिश्ता नहीं जुड़ सकता। उसके लिए आप'को मेरे पैर पड़ने की जरूरत नहीं हैं।

राजेंद्र….महेश बाबू ऐसा न करें आप मेरा कहना मन लीजिए मेरे बेटे में कोई दुर्गुण नहीं हैं। मेरी बात न सही मेरे पग का मान तो राख ही सकते हैं।

इतना कहकर राजेंद्र जी अपने सिर पर बंधे पग को निकलकर महेश के कदमों में रखने गए ये देख महेश पीछे हट गया फिर न नहीं बोलते हुए घर से बहार निकाल गए। उनको जाते देख सुरभि और राजेंद्र उन्हे रोकने के लिए बहार तक आए लेकिन महेश नहीं रुके अपना कार लिया और चले गए उनके जाते ही राजेंद्र धम्म से घूटनो पर बैठ गए फ़िर रोते हुए बोले...सुरभि आज मैं हार गया हूं। मेरे दिए अच्छे संस्कार ही मेरे बेटे का दुश्मन बन गया। अगर मैं रघु को बुरे संस्कार देता तो शायद आज हमें ये दिन न देखना पड़ता ।

सुरभि न कुछ कह पा रही थी न ख़ुद को संभाल पा रही थी उसकी हाल भी राजेंद्र जैसा हों गया। राजेंद्र जी अपने किस्मत को कोंसे जा रहे थे। कुछ क्षण तक ऐसा चलता रहा फ़िर नौकरों के मदद लेकर राजेंद्र को अन्दर ले गए।



आज के लिए बस इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे यह तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।

🙏🙏🙏🙏
 
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Destiny

Will Change With Time
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बहुत ही खूबसूरत अपडेट था चौबीस नम्बर वाला ।

चचेरे भाई बहन के बीच अपनापन और प्रेम , चाची भतीजी के बीच भी भावनात्मक लगाव एवं प्रेम मुझे बहुत ही बढ़िया लगा । इसके अलावा रघू ने कमला की सुंदरता का जो वर्णन किया वह भी आउटस्टैंडिंग था । बहुत खुबसूरत लफ्जों का इस्तेमाल किया है आपने । यही नहीं बल्कि दो दोस्तों की दोस्ती भी शानदार ढंग से प्रस्तुत किया आपने ।

सब कुछ आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग था बिगुल भाई ।
जगमग जगमग अपडेट ।

lovely update ..pushpa ne hansi laayi sukanya ke chehre par .aur apni maa ke saath sukanya ke rishte bhi majbut kar diye 😍.
sukanya bhi ab sahi raah par chalne ki soch chuki hai .
par ravan apne ghatiya irado se baaj nahi aa raha aur dalal ke saath milke kaise shadi tode raghu ki is baat par charcha karne chala gaya .

Nice and beautiful update...

Jabardast Updatee


Chalo yeh achha hua ke Sukanya badal gayi. Ab dekhna yeh hai iska yeh badlav kab tak rehta hai. Kahi phir se yeh galat kaamo mein naa lag jaaye.

Idher yeh Raavan kabhi nhi sudhar saktaa. Saala apne hi bhai ke maut ki dua maangta hai. Aise bhai se toh bina bhai ke hona achha hai.

Ab dekhna yeh hai kyaa Manohar Raavan ke kahi hui baato pe yakeen karegaa yaa nhi.

Superb update

:congrats: For completed 35k views on your story thread.....

ढाई घंटे मे कहानी खतम की थी भाई 😁😁
इसिलिए 😝😝😝😝

Sukanya ka hiridey pariwartan ho gaya kia baat h dekhte h kab tak
Rawan apni chaalne. Se baaz nahi raha
Dekhte shaadi tudwa pata h ya nahi
Badhiya shaandaar update bhai
Next update posted jisme hai raghu ke shaadi tutne ki ek jhalak.
 

Jaguaar

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Update - 26

रावण निकल कर कहीं और जाता हैं। वहा अपने चार पांच आदमी को कुछ काम बताकर घर आ गया था। जब तक रावण घर पंहुचा तब तक निमंत्रण पत्र आ गया था। रावण के आते ही रावण और राजेंद्र निमंत्रण पत्र लेकर बांटने चला गया रमन रघु और मुंशी ये तीनों भी निमंत्रण पत्र बांटने चला गया था। पुष्पा रोज की तरह आज भी सभी को लपेटे में ले रखा था। आज तो उसने सुरभि और सुकन्या दोनों को एक पल के लिए बैठने नहीं दिया दोनों खुशी खुशी साथ में सभी कम कर रहे थे। ये देख महल के सारे नौकर भौचक्के रह गए। और आपस में बोलने लगें….

"यार आज ये उलटी गंगा कैसे बहने लगा। रानी मां और महल की एक मात्र नागिन संग में सभी काम कर रहे हैं।"

"अरे उलटी गंगा नहीं बह रहा हैं ये अजूबा हों रहा हैं। लगता है आज नागिन ने सच में केचुली बादल ली कहीं पिछले दिनों की तरह अच्छे बनने का ढोंग तो नहीं कर रहीं हैं।"

"ढोंग करे चाहें कुछ भी कुछ दिनों के लिए नागिन की विष भरी बाते सुनने से हमे और रानी मां को छुटकारा मिल जाएगा।"

"हा कह तो सही रहा हैं लेकिन सोचने वाली बात ये हैं नागिन का बदला हुआ रूप कब तक रहेगा।"

"जीतने दिन भी रहें कम से कम महल में शांति बना रहेगा"

ये सभी खड़े थे इन पर सुकन्या की नज़र पड़ जाती हैं सुकन्या इनके पास आती हैं और बोलती हैं... तुम सभी यहां खड़े खड़े क्या कर रहे हो कोई काम नहीं हैं तो पुष्पा को बुलाऊं।

"नही नहीं छोटी मालकिन उन्हें न बुलाना दो पल बैठने नहीं दे रहें हैं काम करवा करवा कर कमर ही तुड़वाने पर तुली हैं।"

सुकन्या नौकरों की बाते सुन मुस्कुरा दिया फिर बोला... अच्छा जाओ थोड़ी देर आराम कर लो तरो ताजा होकर फिर से काम में लग जाना।"

ये कह सुकन्या चली गई और यहां खड़े सभी नौकर सुकन्या को ताकते रह गए उन्हे यकीन ही नहीं हों रहा था सुकन्या उन्हे आराम करने को कह रही थीं। साथ ही अच्छे से बात कर रहीं थीं। खैर जब आराम करने को कहा तो सभी नौकर सुकन्या का गुण गान करते हुए चले गए। ऐसे ही दिन बीत गया। अगला दिन भी निमंत्रण पत्र बांटने और दूसरे कामों में निकल गया। पांचवे दिन सुबह राजेंद्र और सुरभि तैयार होकर आया नाश्ता किया फिर बोला… रघु मैं और तुम्हारी मां कलकत्ता जा रहे हैं वहा का काम भी देखना जरूरी हैं। तुम रमन और पुष्पा यह रहो तीन चार दिन बाद आ जाना। रावण तू इनके साथ मिलकर देख लेना कौन कौन रहा गए हैं उनको निमंत्रण पत्र भेज देना।

रावण…. दादा भाई यहां तो लमसम सभी को निमंत्रण पत्र बांट दिया गया हैं इक्का दुक्क जो रहे गए हैं उन्हे मैं और मुंशी मिलकर पहुंचा देंगे। आप चाहो तो रमन और रघु को ले जा सकते हों। वहा भी आपको काम में मदद मिल जाएगा अकेले कहा तक भागते रहोगे। फिर रावण मन में बोला ( ले जाओ नहीं तो बाप का अपमान होते हुए कैसे देख पाएगा। बड़ा खुश हो रहा था शादी करेगा जा बेटा कर ले शादी ऐसा इंतेजाम करके आया हूं। कभी शादी करने के बारे में नहीं सोचेगा।

राजेंद्र…. तू ठीक कह रहा हैं वहा भी बहुत लोगो को दावत देना हैं दोनों रहेगा तो बहुत मदद हों जाएगा। जाओ रघु और रमन तैयार होकर आओ और पुष्पा तू क्या करेगा।

पुष्पा…. मैं किया करूंग तोड़ा सोचना पड़ेगा।

ये कह पुष्पा अपने अंदाज में सोचने लगीं। पुष्पा को सोचते देख सभी के चेहरे पर खिली सी मुस्कान आ गया और नौकरों की सांस गले में अटक गया। वो सोचने लगें मेमसाहव हां कर दे तो ही अच्छा हैं यहां रूक गई तो काम करवा करवा के हमारा जीना हराम कर देगी। खैर कुछ क्षण सोचने के बाद पुष्पा ने जानें की इच्छा जता दिया। हां सुनते ही नौकरों की अटकी सास फिर से चल पड़ा। सुकन्या को कुछ कहना था इसलिए बोला…. भाई साहब आप अपश्यु को भी अपने साथ ले जाओ यहां रहकर कुछ काम तो करेगा नहीं दिन भर गायब रहेगा। अपके साथ जाएगा तो कुछ काम में हाथ बांटा देगा।

अपश्यु... आप को किसने कहा मैंने कुछ काम नही किया इतना काम किया मेरे पाव में छाले पड़ गए हैं। मैं भी चला गया तो यहां पापा अकेले अकेले कितना काम करेगें। फिर मान में बोला (मैं चला गया तो मेरी मौज मस्ती बंद हों जाएगा मैं नहीं जाने वाला वैसे भी कुछ दिनों में गांव से एक लडकी को उठने वाला हु नई नई आई है बहुत कांटप माल हैं। मै चला गया तो उसका मजा कौन लेगा।)

सुरभि... ठीक हैं तू यह रह जा शादी से एक हफ्ता पहले आ जाना।

अपश्यु सुरभि की बात सुन खुश हों गया और मुस्कुरा दिया। सुकन्या इशारे से सुरभि को कहा अपश्यु को साथ ले जाए लेकिन सुरभि ने मुस्करा कर इशारे से माना कर दिया और रावण मन में बोला ( हमारे आने की नौबत ही नहीं आयेगा उससे पहले ही रघु की शादी टूट जाएगा। जीतना खुश आप हो रही हों जल्दी ही उसपे ग्रहण लगने वाला हैं।)

बरहाल फैसला ये लिया गया राजेंद्र, सुरभि, रघु, रमन और पुष्पा कलकत्ता जाएंगे। रावण, सुकन्या, अपश्यु, और मुंशी यहां रहेंगे। शादी से एक हफ्ता पहले कलकत्ता जाएंगे। ये लोग दार्जलिंग से चल पड़े उधर महेश जी सभी काम को अकेले अकेले निपटा रहे थे। उनके आगे पीछे कोई था नहीं जो उनकी मदद कर दे। इसलिए महोले के कुछ लोग उनका हाथ बांटा रहे थे। साथ ही उनके साथ काम करने वाले लोग जो उनके दोस्त हैं वो भी उनका हाथ बांटा रहें थे। लडकी के घर का मामला हैं इसलिए सभी चीजों की व्यवस्थ व्यापक और पुख्ता तरीके से किया जा रहा था। महेश ने दहेज के समान का भी ऑर्डर दे दिया था। राजेंद्र ने दहेज में कुछ नहीं मांग था लेकिन समाज में नाक न कटे इसलिए महेश ने सामर्थ अनुसार जो भी दे सकता था उसका ऑर्डर भी दे दिया था। आज शादी तय हुए पचवा दिन था। आज शाम के समय महेश जी कही से आ रहे थे तभी रास्ते में उन्हें हाथ देकर किसी ने रोका उनके कार रोकते ही बंदे ने उनसे लिफ्ट मांगा महेश ने उन्हे बिठा कर चल दिया। बात करते शख्स ने उनसे पूछा…. महेश जी सुना है आप की बेटी का रिश्ता दार्जलिंग के राज परिवार में तय हों गया हैं।

महेश जी खुश होते हुए बोला... हां जी उसी की तैयारी में लगा हूं।

"आप को देखकर लग रहा हैं आप बहुत खुश हों। खुश तो होना ही चाहिए इतना धन संपन परिवार से रिश्ता जो जुड़ रहा हैं। महेश जी सिर्फ धन सम्पन परिवार होने से कुछ नहीं होता। लड़के के गुण अच्छे होने चाहिएं। आप जिसके साथ अपने बेटी का रिश्ता कर रहे हैं उस लड़के रघु में दुनिया भर का दुर्गुण भरे हुए है ऐसा कौन सा बुरा काम है जो रघु न करता हों। परस्त्री गमन, नशेबाजी, धंधेबाजी, सारे बुरे काम रघु करता हैं। अब आप ही बताओ ऐसे लड़के के साथ कौन अपने बेटी का रिश्ता करेगा"

इतनी बाते सुन महेश जी ने कार रोक दिया। फ़िर शख्स को ताकते हुए समझने की कोशिश कर रहे थे। अनजान शख्स कहना किया चाहता है। महेश को विचाराधीन देख। शख्स के चेहरे पर कमीनगी मुस्कान आ गया। कुछ क्षण विचार करने के बाद महेश बाबू बोले…. अपको शर्म नहीं आता ऐसे भाले मानुष पर लांछन लगाते हुए। आप ने जीतना कहा मैं हूं जो सुन लिया कही राजा जी होते तो अपका सर धड़ से अलग कर देते।

"महेश जी गलत को गलत कहने से अगर धड़ से सर अलग होता है तो हों जाने दो। सच कहने में डर कैसा मैं तो बस आपको सच्चाई से अवगत करवा रहा था। बाकी आप पर है आप मानो या न मानो।"

ये कह शख्स कार से बहार निकल चला जाता हैं महेश बाबू गाली बकते हुए घर को चल देते हैं। ऐसे ही पल गिनते गिनते आज का दिन बीत जाता हैं। अगले दिन राजेंद्र अपने पुश्तैनी घर पहुंच गए थे। यहां से जाने से पहले जो जो काम करवाने को कह गए थे वो सारे काम उनके उम्मीद अनुसार हो गया था। आज कलकत्ता शहर के जाने माने लोगों को दावत देने राजेंद्र जी खुद गए हुए थे। रघु और रमन ने दूसरे जरूरी काम निपटाने में लगे थे। आज भी एक शख्स ने महेश जी को भड़काने के लिए रघु की बुरी आदतों के बारे में बताया। महेश जी ने आज उन्हे मुंह पर ही गाली बक दिया। महेश ने गाली बक तो दिया लेकिन कही न कहीं महेश जी के मान में शंका उत्पन हों गया और उन्हे विचार करने पर भी मजबूर कर दिया। महेश घर जाकर सामन्य बने रहे लेकिन उनके अंतर मन में द्वंद चल रहा था। मन में चल रही द्वंद से लड़ते हुए आज का रात किसी तरह बीत गया।

अगले दिन सभी अपने अपने कामों में लगे रहे लेकिन महेश भगा दौड़ी में भी उस शख्स की कही बातों को सोचने लगें उन्होंने जो कहा क्या सच हैं नहीं ये सच नहीं हो सकता जरूर कोई मजाक कर रहा होगा या कोई ऐसा होगा जो कमला की शादी इतने बड़े घर में हों रहा है इस बात को जानकर चीड़ गया होगा इसलिए ऐसा कह रहे होंगे। मुझे इनकी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए मेरा होने वाला दामाद बहुत अच्छा है कमला भी तो पल पल उनका गुण गाती रहती हैं। महेश जी ऐसे ही खुद को समझा रहे थे। उधर महेश के घर पर कमला को उसकी सहेलियां छेड़े जा रहे थे। भातीभाती की बाते बनाकर कमला को चिड़ा रहे थे कमला चिड़ने के जगह बड़ चडकर रघु की तारीफ कर रहीं थीं। जिसे सुन उसकी सहेलियां उसे और छेड़ने लगती लेकिन कमला भी काम नहीं थी वो भी रघु के तारीफों के पुल बांधने में कोई कोताई नहीं बारत रहीं थीं। उधर रावण पल पल की खबर अपने आदमियों से ले रहा था। जो महेश के पीछे छाए की तरह लगे हुए थे और अपश्यु को इससे कोई मतलब ही नहीं था वो थोडा बहुत काम करता फिर दोस्तों के साथ माटरगास्ती करने निकल जाता तो कभी डिंपल के साथ वक्त बिताने चला जाता। जहां भी जाता विकट अपश्यु का पीछा नहीं छोड़ता। पल पल की खबर रख रहा था और संकट तक पंहुचा रहा थ।

आज भी शाम को महेश बाबू कहीं से घर जा रहे थे। तभी एक शख्स ने उन्हें रोक रघु की बुराई किया। सुनने के बाद महेश बोले…. भाई बात किया हैं पिछले तीन दिनों से कोई न कोई आकर मुझसे एक ही बात कह रहे है। बात किया है तुम कौन हों और कहा से हों क्यों मेरे बेटी के घर बसने से पहले आग लगा रहे हों। मैने या मेरी बेटी ने अपका किया बिगड़ा हैं।

"महेश जी मुझे आपसे कोई दुश्मनी नहीं हैं न ही आपके बेटी से कोई दुश्मनी हैं। मैं तो अपका शुभ चिंतक हुं। अपके बेटी की जिन्दगी उजड़ने से बचना चाहता हूं। इसे पहले अपको किसने किया कहा मैं नहीं जानता मैं तो आपसे आज ही मिला हुं।

महेश…. आप कुछ भी कहो मै अपकी बातो का यकीन नहीं करता। मुझे लगता है आप को पसन्द नहीं आ रहा हैं मेरी बेटी की शादी इतने ऊंचे घराने में हों रहा हैं इसलिए चिड़कर आप रघु जी के विषय में गलत सालत बोल रहे हों।

"महेश जी मुझे आप से कोई छिड़ नहीं हैं। मैं तो बस अपके बेटी का भला चाहता हूं। अपके बेटी का जीवन बरबाद न हों इसलिए आपको सच्चाई बता रहा हूं। अच्छा आप एक बात सोचिए क्या दार्जलिंग में कोई अच्छी लडकी नहीं मिला जो इतना दूर कलकत्ता में आपके घर रिश्ता लेकर आए। उन्होंने दार्जलिंग में रघु के लिए बहुत सी लड़कियां देखा लेकिन जब लडकी वालो को रघु के बुरी आदतों के बारे में पता चला तब उन्होंने ख़ुद ही रिश्ता तोड़ दिया। अब आप ही सोचिए भाले ही उनके पास धन संपत्ति का भंडार हों लेकिन लड़के में बुरी आदत हों तो कौन अपनी लडकी की शादी ऐसे बिगड़ैल लड़के से करवाएगा। आप चाहो तो करवा दीजिए क्योंकि अपकी बेटी एसो आराम की जिन्दगी जीयेगा पति चाहें कितना भी बिगड़ा हों आप की बेटी तो दौलत में खेलेंगी

इतनी बाते सुनने के बाद महेश जी के दिमाग में शॉर्ट सर्किट हो गया। उनको समझ ही नहीं आ रहा था वो किया करे। किया फैसला ले, महेश को ऐसे विचाराधीन देख शख्स समझ गया चिंगारी लग चुका हैं बस उसे थोडा और हवा देना बाकि हैं। इसलिए बोला... महेश जी अच्छे से सोच समझ कर फैसला लीजिए अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं हैं। आप एक बुद्धि जीवी हों क्या आप अपने बेटी के जीवन को बरबाद होते देख सकते हों। आप के जगह मै होता तो मेरी बेटी के जीवन बरबाद नहीं होने देता। भाले ही मुझे शादी ही क्यों न थोड़ देना पड़ता।

ये कह शख्स चला गया और महेश विचारधीन खडा रहा। उनके सोचने समझने की क्षमता खत्म हो चुका था। उनके माथे से पसीना टप टप टपक रहा था। महेश समझ नहीं पा रहा था फैसला किया ले उन्हे कोई राह नज़र नहीं आ रहा था। बरहाल ऐसे ही सोचते हुए महेश जी घर को चल दिया। जब महेश जी घर पहुंचे तो उनके चेहरे पर चिंता की लकीर देख मनोरमा करण जानना चाहा लेकिन महेश ने उन्हें कुछ नहीं बताया चुप चप जाकर कमरे में बैठ गए। महेश बहुत वक्त तक शख्स के कही बातों पर विचार करते रहें लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल पाया उनका एक मन कह रहा था खुद जाकर राजेंद्र से पूछे सच्चाई किया है। फिर एक मन कहे की वो बाप है अपने बेटे की बुरी आदतों को क्यों बताएंगे वो तो छुपना चाहेंगे। ऐसे ही विभिन्न तरह की बातों पर विचार करते रहें और रात भर ठीक से सो नहीं पाए। सिर्फ और सिर्फ कारवाटे बदलते रहें। किसी तरह रात बीत गया। रावण को जब खबर दिया गया तो रावण खुश हो गया और कहा कल को फिर से एक बार चिंगारी को भड़का देना फिर ये रिश्ता भी टूटने से कोई नही बचा पाएगा। उसके बाद रावण ख़ुशी खुशी सो गया।

ऐसे ही रात बीत गया और अगला दिन एक नया सबेरा लेकर आया। लेकिन आज की सुबह महेश के लिए सामान्य नहीं था। रात को ठीक से सो नहीं पाए थे। इसलिए उनके पलके भारी भारी लग रहा था। कई बार मनोरमा उनसे पूछा। लेकिन महेश जी ने थकान को करण बता दिया। मनोरमा भी देख रही थीं महेश अकेले ही सभी भागा दौड़ी कर रहे थे। इसलिए उन्होंने भी महेश की बात को मान लिया था। महेश ने मनोरमा को तो टाल दिया लेकिन अपने मन को न टाल पाए। उन्होंने रात भर जाग कर जो निर्णय लिया उस पर थोडा और विचार कर पुख्ता करना था। रावण के भेजे आदमियों ने जो चिंगारी महेश के मन में लगाया था वो दहक कर अंगार बन चुका था। उसे ज्वाला बनने के लिए बस फुक मरने की देर थीं। महेश का मन आज किसी काम में नहीं लग रहा था इसलिए कही पर भी नहीं गए। घर पर ही रहे। घर रह कर भी दो पल चैन से नहीं रह पाए। बार बार उनके दिमाग में इन तीन दिनों में उन अनजान लोगों ने जो भी बात बताया था। उस पर ही विचार करते रहें। उन्हें लग रहा था। उन लोगों ने जीतना भी रघु के बारे में कहा सब सच हैं। अगर सच न होता तो वो लोग बताने क्यों आते। नहीं नहीं मैं कमला की जिन्दगी बर्बाद होते हुए नहीं देख सकता। मेरी इकलौती बेटी जीवन भर रोती रहे ऐसा मैं होने नहीं दे सकता। मुझे ये रिश्ता तोड़ देना चाहिए। लेकिन अभी अगर रिश्ता तोड़ दिया तो समाज किया कहेगी उनके सवालों का किया जबाव दूंगा। जवाब किया देना मेरी बेटी की जिन्दगी बर्बाद हो जाएगी तो उन्हें फर्क थोड़ी न पड़ेगा उन्हें तो बस कहने का मौका चाहिएं सही या गलत पर विचार कहा करते हैं। सही और गलत पर विचार तो मुझे करना है उन्हें नहीं, मैं अभी जाता हूं और रिश्ता तोड़ने की बात उन्हे कह कर आता हूं।

महेश घर से बाहर निकले और चल दिया राजेंद्र के पुश्तैनी घर की ओर राजेंद्र भी आज कही पर नहीं गए तो। आज का जो भी काम था। वह करने रघु और रमन गए हुए थे। पुष्पा भी अपने किसी सहेली से मिलने गया हुआ था अभी महेश जी कुछ ही दूर गए थे तब उन्हें हाथ देकर एक शख्स ने रोका महेश जी कार रोक कर शक्श से रोकने का कारण पूछा तब उस ने कुछ वक्त इधर उधर की बाते किया। बातों बातो में शादी की बात छेड़ा गया। जब शक्श को लडके का पाता चला तब शक्श ने उन्हें वही बात बताया जो पिछले तीन अनजान लोगों ने बताया था। बस फ़िर किया था। घर से मन बनाकर निकले थे रिश्ता तोड़कर ही आयेंगे। जो अब धीर्ण निश्चय बन चुका था। महेश जी ने आव देखा न ताव कार स्टार्ट किया और चल दिया। उनको इस तरह जाते देख शख्स के चेहरे पर खिली उड़ाने वाली हंसी आ गया। आता भी क्यों न चार दिनों से जिस काम को पूरा करने के लिए जी जान से कोशिश कर रहे थे। आज पूरा होने वाला था। शख्स तब तक महेश की कार को देखते रहे जब तक महेश का कार उनके आंखो से ओझल न हों गया। आखों से ओझल होते ही शख्स चल दिया और महेश पहुंच गए राजेंद्र के पुश्तैनी घर समधी को आया देख राजेंद्र और सुरभि उनको आदर सत्कार से अन्दर ले गए। अन्दर आकर राजेंद्र ने नौकरों को आवाज देकर चाय नाश्ता लाने को कहा। तब महेश बोला…. राजा जी मैं यहां चाय नाश्ता करने नहीं आया हूं इसलिए चाय नाश्ता मंगवाने की जरूरत नहीं हैं।

राजेंद्र को इतनी तो समझ थी कि बेटी के बाप होने के नाते बेटी की सुसराल के अन्न पानी न ग्रहण करने की रिवाज के चलते माना कर रहे थे। इसलिए राजेंद्र जी बोले... महेश बाबू अभी हमारा घर आधिकारिक तौर पर आपके बेटी का सुसराल नहीं बना हैं। इसलिए आप हमारे यह का अन्न पानी ग्रहण कर सकते हैं और एक बात आज कल इस रिवाज को बहुत ही काम लोग मानते हैं। इसलिए आप भी चाहो तो इस रिवाज का पालन करने से बच सकते हों।

महेश…. राजा जी बेटी के ससुराल में अन्न जल ग्रहण न करने वाले रिवाज का पालन तब होगा जब रिश्ता जुड़ेगा। आज मैं अपके बेटे और कमला के जुड़ने वाले रिश्ते को तोड़ने आया हूं।

ये सुनते ही राजेंद्र और सुरभि को झटका सा लगा। जैसे उन्हें किसी ने आसमान से जमीन पर लाकर पटक दिया। दोनों अचंभित होकर महेश को देखने लगे। राजेंद्र को कुछ समझ नहीं आ रहा था किया बोले लेकिन करण तो जानना ही था इसलिए सुरभि बोली... भाई साहब आप किया कह रहे हों। अपने उस पर विचार किया की नहीं शादी के दिन में मात्र दस दिन रह गए और आप रिश्ता तोड़ने की बात कर रहे हों। हमारी नहीं तो कम से कम अपकी मन सम्मान की परवाह कर लेते। आज अपने रिश्ता तोड़ दिया तो आपके साथ साथ हमारे भी मन सम्मान पर लांछन लग जायेगा।

महेश…मन सम्मान की बात आप न करें तो बेहतर हैं अगर अपको मन सम्मान इतना प्यारा होता तो आप अपने बेटे की बुरी आदतों को न छुपाते हमे बता देते। उसके बुरी आदतों ने पहले से ही अपके मन सम्मान को निगल लिया हैं।

राजेंद्र…. महेश बाबू मेरे रघु में कोई बुरी आदत नहीं हैं वो निर्मल जल की तरह स्वच्छ और साफ हैं। मुझे लगता हैं अपको किसी ने भड़काया हैं इसलिए आप ऐसा कह रहे हैं। आप को सच्चाई पाता नहीं हैं इसलिए आप मेरे रघु पर लांछन लगा रहे हों।

महेश... राजा जी लांछन तो उस पर लगाया जाता हैं जिस पर कोई दाग न हों और अपकी बेटे पर न जाने कितना लांछन पहले से ही लगा हैं। तो थोड़ा लांछन मैंने भी लगा दिया तो किया बुरा किया।

सुरभि... भाई साहब आप सोच समझ कर बोलिए आप किस पर लांछन लगा रहे हो मेरे बेटे पर सुरभि के बेटे पर लांछन लगा रहे हो जिसे हमने सभी अच्छे संस्कार दिया है उसके अन्दर कोई अवगुण नहीं हैं।

महेश.. अपने, अपने बेटे को कैसे संस्कार दिया है मुझे अवगत हों गया हैं। अपके बेटे में कोई अच्छे संस्कार नहीं हैं अगर उसमें अच्छे संस्कार होते तो दर्जलिंग में इतने सारे रिश्ते न टूट गए होते।

ये बात सुनते ही राजेंद्र और सुरभि समझ गए उन्हे जिस बात का डर था। वहीं हुआ जैसे पहले के रिश्ते में भड़का कर तुड़वा दिया हैं। वैसे ही किसी ने महेश को भड़का दिया था इसलिए राजेंद्र निचे बैठ गए और हाथ जोकर बोला…. महेश बाबू मैं मानता हु कि इससे पहले बहुत से रिश्ते जुड़ने से पहले टूट गए लेकिन वो रिश्ते इसलिए नहीं टूटा की मेरे बेटे में कोई अवगूर्ण है बल्कि इसलिए टूटा क्योंकि किसी ने मेरे बेटे की बुराई करके उनको भड़का दिया था। आप यकीन माने मेरे बेटे में कोई दुर्गुण नहीं हैं।

महेश... आप अपने बेटे की पैरवी न करें तो ही बेहतर हैं। अगर आपके बेटे में दुर्गुण नही है तो कोई क्यों बताएगा की उनमें दुर्गूर्ण भरे हैं। अपके बेटे में दुनिया भर का दुर्गूर्ण भारा पड़ा है तभी तो लोग बता रहे है। मैं भी जान गया हूं इसलिए मै अपने बेटी का हाथ अपके बेटे को नहीं सोफ सकता।

राजेंद्र…. महेश बाबू आप ऐसा न करें मै हाथ जोड़ता हूं आपके पैर पड़ता हूं मेरे बेटे पर आप ऐसे लांछन न लगाए और न ही इस रिश्ते को तोड़े।

महेश... राजेंद्र जी अब कुछ नहीं हों सकता मै मन बना चुका हू ये रिश्ता नहीं जुड़ सकता। उसके लिए आपको मेरे पैर पड़ने की जरूरत नहीं हैं।

राजेंद्र…. महेश बाबू ऐसा न करें आप मेरा बात मन लीजिए मेरे बेटे में कोई दुर्गुण नहीं हैं। मेरा बात न सही मेरी पग का मन तो राख ही सकते हों।

ये कह राजेंद्र जी अपने सर पर बंधे पग को सर से निकल महेश के कदमों में रखने गए ये देख महेश पीछे हट गए और न नहीं बोलते हुए घर से बहार निकाला गए। उनको जाते देख सुरभि और राजेंद्र उन्हे रोकने के लिए बहार तक आए लेकिन महेश नहीं रुके अपना कार लिया और चले गए उनके जाते ही राजेंद्र धाम से गुटनो पर बैठ गए और रोते हुए बोले..। सुरभि आज मैं हार गया हूं। मेरे दिए अच्छे संस्कार ही मेरे बेटे का दुश्मन बन गया। अगर मैं रघु को बुरे संस्कार देता तो शायद आज हमें ये दिन न देखना पड़ता ।

सुरभि न कुछ कह पा रही थी न ख़ुद को संभाल पा रही थी उसकी हाल भी राजेंद्र जैसा ही था। राजेंद्र जी अपने किस्मत को कोंसे जा रहे थे। कुछ क्षण तक ऐसा चलता रहा फ़िर नौकरों के मदद लेकर राजेंद्र को अन्दर ले गए।



आज के लिए बस इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे यह तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Superb Updatee

Toh aakhir kar rishta toot hi gaya. Raavan ne jaisa socha tha waisa ho hi gaya. Woh log jo Mahesh ko bhadkane aaye the woh yeh nhi soch rahe hai ke unke jhoot se kisi ki jaan jaa sakti hai. Woh bas kuch paiso ke liye itna girr gaye. Agar kal ko unke bachho ke baare mein bhi aise hi koi kuch bole toh tab unhe kaisa lagega.

Isiliye kabhi bhi kisi bhi shubhchintak ke baato mein yakeen nhi karna chahiyee. Aur Mahesh jaisa samajdaar insaan aise hi kisi ki bhi baato mein aagaya. Woh apni taraf se koi khojbin nhi karega ke unnlogo ne jo bola kyaa woh sahi hai yaa galat.

Kalko agar 4-5 log aakar baar baar bolenge ke Kamla charitraheen hai toh kyaa woh unnlogo ki baat maanlega.

Kal ko Mahesh ko saari sachhai pata chalegi tab woh kyaa karega. Kaise woh Rajendra aur Surbhi se apni nazre milayega.

Aur jab Raghu ko yeh pata chalega ke Mahesh ne Rajendra ka apmaan karke yeh rishta toda hai toh kyaa Raghu phir se iss rishte ke liye aasani se maanega.
 

parkas

Prime
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Update - 26

रावण निकल कर कहीं और जाता हैं। वहा अपने चार पांच आदमी को कुछ काम बताकर घर आ गया था। जब तक रावण घर पंहुचा तब तक निमंत्रण पत्र आ गया था। रावण के आते ही रावण और राजेंद्र निमंत्रण पत्र लेकर बांटने चला गया रमन रघु और मुंशी ये तीनों भी निमंत्रण पत्र बांटने चला गया था। पुष्पा रोज की तरह आज भी सभी को लपेटे में ले रखा था। आज तो उसने सुरभि और सुकन्या दोनों को एक पल के लिए बैठने नहीं दिया दोनों खुशी खुशी साथ में सभी कम कर रहे थे। ये देख महल के सारे नौकर भौचक्के रह गए। और आपस में बोलने लगें….

"यार आज ये उलटी गंगा कैसे बहने लगा। रानी मां और महल की एक मात्र नागिन संग में सभी काम कर रहे हैं।"

"अरे उलटी गंगा नहीं बह रहा हैं ये अजूबा हों रहा हैं। लगता है आज नागिन ने सच में केचुली बादल ली कहीं पिछले दिनों की तरह अच्छे बनने का ढोंग तो नहीं कर रहीं हैं।"

"ढोंग करे चाहें कुछ भी कुछ दिनों के लिए नागिन की विष भरी बाते सुनने से हमे और रानी मां को छुटकारा मिल जाएगा।"

"हा कह तो सही रहा हैं लेकिन सोचने वाली बात ये हैं नागिन का बदला हुआ रूप कब तक रहेगा।"

"जीतने दिन भी रहें कम से कम महल में शांति बना रहेगा"

ये सभी खड़े थे इन पर सुकन्या की नज़र पड़ जाती हैं सुकन्या इनके पास आती हैं और बोलती हैं... तुम सभी यहां खड़े खड़े क्या कर रहे हो कोई काम नहीं हैं तो पुष्पा को बुलाऊं।

"नही नहीं छोटी मालकिन उन्हें न बुलाना दो पल बैठने नहीं दे रहें हैं काम करवा करवा कर कमर ही तुड़वाने पर तुली हैं।"

सुकन्या नौकरों की बाते सुन मुस्कुरा दिया फिर बोला... अच्छा जाओ थोड़ी देर आराम कर लो तरो ताजा होकर फिर से काम में लग जाना।"

ये कह सुकन्या चली गई और यहां खड़े सभी नौकर सुकन्या को ताकते रह गए उन्हे यकीन ही नहीं हों रहा था सुकन्या उन्हे आराम करने को कह रही थीं। साथ ही अच्छे से बात कर रहीं थीं। खैर जब आराम करने को कहा तो सभी नौकर सुकन्या का गुण गान करते हुए चले गए। ऐसे ही दिन बीत गया। अगला दिन भी निमंत्रण पत्र बांटने और दूसरे कामों में निकल गया। पांचवे दिन सुबह राजेंद्र और सुरभि तैयार होकर आया नाश्ता किया फिर बोला… रघु मैं और तुम्हारी मां कलकत्ता जा रहे हैं वहा का काम भी देखना जरूरी हैं। तुम रमन और पुष्पा यह रहो तीन चार दिन बाद आ जाना। रावण तू इनके साथ मिलकर देख लेना कौन कौन रहा गए हैं उनको निमंत्रण पत्र भेज देना।

रावण…. दादा भाई यहां तो लमसम सभी को निमंत्रण पत्र बांट दिया गया हैं इक्का दुक्क जो रहे गए हैं उन्हे मैं और मुंशी मिलकर पहुंचा देंगे। आप चाहो तो रमन और रघु को ले जा सकते हों। वहा भी आपको काम में मदद मिल जाएगा अकेले कहा तक भागते रहोगे। फिर रावण मन में बोला ( ले जाओ नहीं तो बाप का अपमान होते हुए कैसे देख पाएगा। बड़ा खुश हो रहा था शादी करेगा जा बेटा कर ले शादी ऐसा इंतेजाम करके आया हूं। कभी शादी करने के बारे में नहीं सोचेगा।

राजेंद्र…. तू ठीक कह रहा हैं वहा भी बहुत लोगो को दावत देना हैं दोनों रहेगा तो बहुत मदद हों जाएगा। जाओ रघु और रमन तैयार होकर आओ और पुष्पा तू क्या करेगा।

पुष्पा…. मैं किया करूंग तोड़ा सोचना पड़ेगा।

ये कह पुष्पा अपने अंदाज में सोचने लगीं। पुष्पा को सोचते देख सभी के चेहरे पर खिली सी मुस्कान आ गया और नौकरों की सांस गले में अटक गया। वो सोचने लगें मेमसाहव हां कर दे तो ही अच्छा हैं यहां रूक गई तो काम करवा करवा के हमारा जीना हराम कर देगी। खैर कुछ क्षण सोचने के बाद पुष्पा ने जानें की इच्छा जता दिया। हां सुनते ही नौकरों की अटकी सास फिर से चल पड़ा। सुकन्या को कुछ कहना था इसलिए बोला…. भाई साहब आप अपश्यु को भी अपने साथ ले जाओ यहां रहकर कुछ काम तो करेगा नहीं दिन भर गायब रहेगा। अपके साथ जाएगा तो कुछ काम में हाथ बांटा देगा।

अपश्यु... आप को किसने कहा मैंने कुछ काम नही किया इतना काम किया मेरे पाव में छाले पड़ गए हैं। मैं भी चला गया तो यहां पापा अकेले अकेले कितना काम करेगें। फिर मान में बोला (मैं चला गया तो मेरी मौज मस्ती बंद हों जाएगा मैं नहीं जाने वाला वैसे भी कुछ दिनों में गांव से एक लडकी को उठने वाला हु नई नई आई है बहुत कांटप माल हैं। मै चला गया तो उसका मजा कौन लेगा।)

सुरभि... ठीक हैं तू यह रह जा शादी से एक हफ्ता पहले आ जाना।

अपश्यु सुरभि की बात सुन खुश हों गया और मुस्कुरा दिया। सुकन्या इशारे से सुरभि को कहा अपश्यु को साथ ले जाए लेकिन सुरभि ने मुस्करा कर इशारे से माना कर दिया और रावण मन में बोला ( हमारे आने की नौबत ही नहीं आयेगा उससे पहले ही रघु की शादी टूट जाएगा। जीतना खुश आप हो रही हों जल्दी ही उसपे ग्रहण लगने वाला हैं।)

बरहाल फैसला ये लिया गया राजेंद्र, सुरभि, रघु, रमन और पुष्पा कलकत्ता जाएंगे। रावण, सुकन्या, अपश्यु, और मुंशी यहां रहेंगे। शादी से एक हफ्ता पहले कलकत्ता जाएंगे। ये लोग दार्जलिंग से चल पड़े उधर महेश जी सभी काम को अकेले अकेले निपटा रहे थे। उनके आगे पीछे कोई था नहीं जो उनकी मदद कर दे। इसलिए महोले के कुछ लोग उनका हाथ बांटा रहे थे। साथ ही उनके साथ काम करने वाले लोग जो उनके दोस्त हैं वो भी उनका हाथ बांटा रहें थे। लडकी के घर का मामला हैं इसलिए सभी चीजों की व्यवस्थ व्यापक और पुख्ता तरीके से किया जा रहा था। महेश ने दहेज के समान का भी ऑर्डर दे दिया था। राजेंद्र ने दहेज में कुछ नहीं मांग था लेकिन समाज में नाक न कटे इसलिए महेश ने सामर्थ अनुसार जो भी दे सकता था उसका ऑर्डर भी दे दिया था। आज शादी तय हुए पचवा दिन था। आज शाम के समय महेश जी कही से आ रहे थे तभी रास्ते में उन्हें हाथ देकर किसी ने रोका उनके कार रोकते ही बंदे ने उनसे लिफ्ट मांगा महेश ने उन्हे बिठा कर चल दिया। बात करते शख्स ने उनसे पूछा…. महेश जी सुना है आप की बेटी का रिश्ता दार्जलिंग के राज परिवार में तय हों गया हैं।

महेश जी खुश होते हुए बोला... हां जी उसी की तैयारी में लगा हूं।

"आप को देखकर लग रहा हैं आप बहुत खुश हों। खुश तो होना ही चाहिए इतना धन संपन परिवार से रिश्ता जो जुड़ रहा हैं। महेश जी सिर्फ धन सम्पन परिवार होने से कुछ नहीं होता। लड़के के गुण अच्छे होने चाहिएं। आप जिसके साथ अपने बेटी का रिश्ता कर रहे हैं उस लड़के रघु में दुनिया भर का दुर्गुण भरे हुए है ऐसा कौन सा बुरा काम है जो रघु न करता हों। परस्त्री गमन, नशेबाजी, धंधेबाजी, सारे बुरे काम रघु करता हैं। अब आप ही बताओ ऐसे लड़के के साथ कौन अपने बेटी का रिश्ता करेगा"

इतनी बाते सुन महेश जी ने कार रोक दिया। फ़िर शख्स को ताकते हुए समझने की कोशिश कर रहे थे। अनजान शख्स कहना किया चाहता है। महेश को विचाराधीन देख। शख्स के चेहरे पर कमीनगी मुस्कान आ गया। कुछ क्षण विचार करने के बाद महेश बाबू बोले…. अपको शर्म नहीं आता ऐसे भाले मानुष पर लांछन लगाते हुए। आप ने जीतना कहा मैं हूं जो सुन लिया कही राजा जी होते तो अपका सर धड़ से अलग कर देते।

"महेश जी गलत को गलत कहने से अगर धड़ से सर अलग होता है तो हों जाने दो। सच कहने में डर कैसा मैं तो बस आपको सच्चाई से अवगत करवा रहा था। बाकी आप पर है आप मानो या न मानो।"

ये कह शख्स कार से बहार निकल चला जाता हैं महेश बाबू गाली बकते हुए घर को चल देते हैं। ऐसे ही पल गिनते गिनते आज का दिन बीत जाता हैं। अगले दिन राजेंद्र अपने पुश्तैनी घर पहुंच गए थे। यहां से जाने से पहले जो जो काम करवाने को कह गए थे वो सारे काम उनके उम्मीद अनुसार हो गया था। आज कलकत्ता शहर के जाने माने लोगों को दावत देने राजेंद्र जी खुद गए हुए थे। रघु और रमन ने दूसरे जरूरी काम निपटाने में लगे थे। आज भी एक शख्स ने महेश जी को भड़काने के लिए रघु की बुरी आदतों के बारे में बताया। महेश जी ने आज उन्हे मुंह पर ही गाली बक दिया। महेश ने गाली बक तो दिया लेकिन कही न कहीं महेश जी के मान में शंका उत्पन हों गया और उन्हे विचार करने पर भी मजबूर कर दिया। महेश घर जाकर सामन्य बने रहे लेकिन उनके अंतर मन में द्वंद चल रहा था। मन में चल रही द्वंद से लड़ते हुए आज का रात किसी तरह बीत गया।

अगले दिन सभी अपने अपने कामों में लगे रहे लेकिन महेश भगा दौड़ी में भी उस शख्स की कही बातों को सोचने लगें उन्होंने जो कहा क्या सच हैं नहीं ये सच नहीं हो सकता जरूर कोई मजाक कर रहा होगा या कोई ऐसा होगा जो कमला की शादी इतने बड़े घर में हों रहा है इस बात को जानकर चीड़ गया होगा इसलिए ऐसा कह रहे होंगे। मुझे इनकी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए मेरा होने वाला दामाद बहुत अच्छा है कमला भी तो पल पल उनका गुण गाती रहती हैं। महेश जी ऐसे ही खुद को समझा रहे थे। उधर महेश के घर पर कमला को उसकी सहेलियां छेड़े जा रहे थे। भातीभाती की बाते बनाकर कमला को चिड़ा रहे थे कमला चिड़ने के जगह बड़ चडकर रघु की तारीफ कर रहीं थीं। जिसे सुन उसकी सहेलियां उसे और छेड़ने लगती लेकिन कमला भी काम नहीं थी वो भी रघु के तारीफों के पुल बांधने में कोई कोताई नहीं बारत रहीं थीं। उधर रावण पल पल की खबर अपने आदमियों से ले रहा था। जो महेश के पीछे छाए की तरह लगे हुए थे और अपश्यु को इससे कोई मतलब ही नहीं था वो थोडा बहुत काम करता फिर दोस्तों के साथ माटरगास्ती करने निकल जाता तो कभी डिंपल के साथ वक्त बिताने चला जाता। जहां भी जाता विकट अपश्यु का पीछा नहीं छोड़ता। पल पल की खबर रख रहा था और संकट तक पंहुचा रहा थ।

आज भी शाम को महेश बाबू कहीं से घर जा रहे थे। तभी एक शख्स ने उन्हें रोक रघु की बुराई किया। सुनने के बाद महेश बोले…. भाई बात किया हैं पिछले तीन दिनों से कोई न कोई आकर मुझसे एक ही बात कह रहे है। बात किया है तुम कौन हों और कहा से हों क्यों मेरे बेटी के घर बसने से पहले आग लगा रहे हों। मैने या मेरी बेटी ने अपका किया बिगड़ा हैं।

"महेश जी मुझे आपसे कोई दुश्मनी नहीं हैं न ही आपके बेटी से कोई दुश्मनी हैं। मैं तो अपका शुभ चिंतक हुं। अपके बेटी की जिन्दगी उजड़ने से बचना चाहता हूं। इसे पहले अपको किसने किया कहा मैं नहीं जानता मैं तो आपसे आज ही मिला हुं।

महेश…. आप कुछ भी कहो मै अपकी बातो का यकीन नहीं करता। मुझे लगता है आप को पसन्द नहीं आ रहा हैं मेरी बेटी की शादी इतने ऊंचे घराने में हों रहा हैं इसलिए चिड़कर आप रघु जी के विषय में गलत सालत बोल रहे हों।

"महेश जी मुझे आप से कोई छिड़ नहीं हैं। मैं तो बस अपके बेटी का भला चाहता हूं। अपके बेटी का जीवन बरबाद न हों इसलिए आपको सच्चाई बता रहा हूं। अच्छा आप एक बात सोचिए क्या दार्जलिंग में कोई अच्छी लडकी नहीं मिला जो इतना दूर कलकत्ता में आपके घर रिश्ता लेकर आए। उन्होंने दार्जलिंग में रघु के लिए बहुत सी लड़कियां देखा लेकिन जब लडकी वालो को रघु के बुरी आदतों के बारे में पता चला तब उन्होंने ख़ुद ही रिश्ता तोड़ दिया। अब आप ही सोचिए भाले ही उनके पास धन संपत्ति का भंडार हों लेकिन लड़के में बुरी आदत हों तो कौन अपनी लडकी की शादी ऐसे बिगड़ैल लड़के से करवाएगा। आप चाहो तो करवा दीजिए क्योंकि अपकी बेटी एसो आराम की जिन्दगी जीयेगा पति चाहें कितना भी बिगड़ा हों आप की बेटी तो दौलत में खेलेंगी

इतनी बाते सुनने के बाद महेश जी के दिमाग में शॉर्ट सर्किट हो गया। उनको समझ ही नहीं आ रहा था वो किया करे। किया फैसला ले, महेश को ऐसे विचाराधीन देख शख्स समझ गया चिंगारी लग चुका हैं बस उसे थोडा और हवा देना बाकि हैं। इसलिए बोला... महेश जी अच्छे से सोच समझ कर फैसला लीजिए अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं हैं। आप एक बुद्धि जीवी हों क्या आप अपने बेटी के जीवन को बरबाद होते देख सकते हों। आप के जगह मै होता तो मेरी बेटी के जीवन बरबाद नहीं होने देता। भाले ही मुझे शादी ही क्यों न थोड़ देना पड़ता।

ये कह शख्स चला गया और महेश विचारधीन खडा रहा। उनके सोचने समझने की क्षमता खत्म हो चुका था। उनके माथे से पसीना टप टप टपक रहा था। महेश समझ नहीं पा रहा था फैसला किया ले उन्हे कोई राह नज़र नहीं आ रहा था। बरहाल ऐसे ही सोचते हुए महेश जी घर को चल दिया। जब महेश जी घर पहुंचे तो उनके चेहरे पर चिंता की लकीर देख मनोरमा करण जानना चाहा लेकिन महेश ने उन्हें कुछ नहीं बताया चुप चप जाकर कमरे में बैठ गए। महेश बहुत वक्त तक शख्स के कही बातों पर विचार करते रहें लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल पाया उनका एक मन कह रहा था खुद जाकर राजेंद्र से पूछे सच्चाई किया है। फिर एक मन कहे की वो बाप है अपने बेटे की बुरी आदतों को क्यों बताएंगे वो तो छुपना चाहेंगे। ऐसे ही विभिन्न तरह की बातों पर विचार करते रहें और रात भर ठीक से सो नहीं पाए। सिर्फ और सिर्फ कारवाटे बदलते रहें। किसी तरह रात बीत गया। रावण को जब खबर दिया गया तो रावण खुश हो गया और कहा कल को फिर से एक बार चिंगारी को भड़का देना फिर ये रिश्ता भी टूटने से कोई नही बचा पाएगा। उसके बाद रावण ख़ुशी खुशी सो गया।

ऐसे ही रात बीत गया और अगला दिन एक नया सबेरा लेकर आया। लेकिन आज की सुबह महेश के लिए सामान्य नहीं था। रात को ठीक से सो नहीं पाए थे। इसलिए उनके पलके भारी भारी लग रहा था। कई बार मनोरमा उनसे पूछा। लेकिन महेश जी ने थकान को करण बता दिया। मनोरमा भी देख रही थीं महेश अकेले ही सभी भागा दौड़ी कर रहे थे। इसलिए उन्होंने भी महेश की बात को मान लिया था। महेश ने मनोरमा को तो टाल दिया लेकिन अपने मन को न टाल पाए। उन्होंने रात भर जाग कर जो निर्णय लिया उस पर थोडा और विचार कर पुख्ता करना था। रावण के भेजे आदमियों ने जो चिंगारी महेश के मन में लगाया था वो दहक कर अंगार बन चुका था। उसे ज्वाला बनने के लिए बस फुक मरने की देर थीं। महेश का मन आज किसी काम में नहीं लग रहा था इसलिए कही पर भी नहीं गए। घर पर ही रहे। घर रह कर भी दो पल चैन से नहीं रह पाए। बार बार उनके दिमाग में इन तीन दिनों में उन अनजान लोगों ने जो भी बात बताया था। उस पर ही विचार करते रहें। उन्हें लग रहा था। उन लोगों ने जीतना भी रघु के बारे में कहा सब सच हैं। अगर सच न होता तो वो लोग बताने क्यों आते। नहीं नहीं मैं कमला की जिन्दगी बर्बाद होते हुए नहीं देख सकता। मेरी इकलौती बेटी जीवन भर रोती रहे ऐसा मैं होने नहीं दे सकता। मुझे ये रिश्ता तोड़ देना चाहिए। लेकिन अभी अगर रिश्ता तोड़ दिया तो समाज किया कहेगी उनके सवालों का किया जबाव दूंगा। जवाब किया देना मेरी बेटी की जिन्दगी बर्बाद हो जाएगी तो उन्हें फर्क थोड़ी न पड़ेगा उन्हें तो बस कहने का मौका चाहिएं सही या गलत पर विचार कहा करते हैं। सही और गलत पर विचार तो मुझे करना है उन्हें नहीं, मैं अभी जाता हूं और रिश्ता तोड़ने की बात उन्हे कह कर आता हूं।

महेश घर से बाहर निकले और चल दिया राजेंद्र के पुश्तैनी घर की ओर राजेंद्र भी आज कही पर नहीं गए तो। आज का जो भी काम था। वह करने रघु और रमन गए हुए थे। पुष्पा भी अपने किसी सहेली से मिलने गया हुआ था अभी महेश जी कुछ ही दूर गए थे तब उन्हें हाथ देकर एक शख्स ने रोका महेश जी कार रोक कर शक्श से रोकने का कारण पूछा तब उस ने कुछ वक्त इधर उधर की बाते किया। बातों बातो में शादी की बात छेड़ा गया। जब शक्श को लडके का पाता चला तब शक्श ने उन्हें वही बात बताया जो पिछले तीन अनजान लोगों ने बताया था। बस फ़िर किया था। घर से मन बनाकर निकले थे रिश्ता तोड़कर ही आयेंगे। जो अब धीर्ण निश्चय बन चुका था। महेश जी ने आव देखा न ताव कार स्टार्ट किया और चल दिया। उनको इस तरह जाते देख शख्स के चेहरे पर खिली उड़ाने वाली हंसी आ गया। आता भी क्यों न चार दिनों से जिस काम को पूरा करने के लिए जी जान से कोशिश कर रहे थे। आज पूरा होने वाला था। शख्स तब तक महेश की कार को देखते रहे जब तक महेश का कार उनके आंखो से ओझल न हों गया। आखों से ओझल होते ही शख्स चल दिया और महेश पहुंच गए राजेंद्र के पुश्तैनी घर समधी को आया देख राजेंद्र और सुरभि उनको आदर सत्कार से अन्दर ले गए। अन्दर आकर राजेंद्र ने नौकरों को आवाज देकर चाय नाश्ता लाने को कहा। तब महेश बोला…. राजा जी मैं यहां चाय नाश्ता करने नहीं आया हूं इसलिए चाय नाश्ता मंगवाने की जरूरत नहीं हैं।

राजेंद्र को इतनी तो समझ थी कि बेटी के बाप होने के नाते बेटी की सुसराल के अन्न पानी न ग्रहण करने की रिवाज के चलते माना कर रहे थे। इसलिए राजेंद्र जी बोले... महेश बाबू अभी हमारा घर आधिकारिक तौर पर आपके बेटी का सुसराल नहीं बना हैं। इसलिए आप हमारे यह का अन्न पानी ग्रहण कर सकते हैं और एक बात आज कल इस रिवाज को बहुत ही काम लोग मानते हैं। इसलिए आप भी चाहो तो इस रिवाज का पालन करने से बच सकते हों।

महेश…. राजा जी बेटी के ससुराल में अन्न जल ग्रहण न करने वाले रिवाज का पालन तब होगा जब रिश्ता जुड़ेगा। आज मैं अपके बेटे और कमला के जुड़ने वाले रिश्ते को तोड़ने आया हूं।

ये सुनते ही राजेंद्र और सुरभि को झटका सा लगा। जैसे उन्हें किसी ने आसमान से जमीन पर लाकर पटक दिया। दोनों अचंभित होकर महेश को देखने लगे। राजेंद्र को कुछ समझ नहीं आ रहा था किया बोले लेकिन करण तो जानना ही था इसलिए सुरभि बोली... भाई साहब आप किया कह रहे हों। अपने उस पर विचार किया की नहीं शादी के दिन में मात्र दस दिन रह गए और आप रिश्ता तोड़ने की बात कर रहे हों। हमारी नहीं तो कम से कम अपकी मन सम्मान की परवाह कर लेते। आज अपने रिश्ता तोड़ दिया तो आपके साथ साथ हमारे भी मन सम्मान पर लांछन लग जायेगा।

महेश…मन सम्मान की बात आप न करें तो बेहतर हैं अगर अपको मन सम्मान इतना प्यारा होता तो आप अपने बेटे की बुरी आदतों को न छुपाते हमे बता देते। उसके बुरी आदतों ने पहले से ही अपके मन सम्मान को निगल लिया हैं।

राजेंद्र…. महेश बाबू मेरे रघु में कोई बुरी आदत नहीं हैं वो निर्मल जल की तरह स्वच्छ और साफ हैं। मुझे लगता हैं अपको किसी ने भड़काया हैं इसलिए आप ऐसा कह रहे हैं। आप को सच्चाई पाता नहीं हैं इसलिए आप मेरे रघु पर लांछन लगा रहे हों।

महेश... राजा जी लांछन तो उस पर लगाया जाता हैं जिस पर कोई दाग न हों और अपकी बेटे पर न जाने कितना लांछन पहले से ही लगा हैं। तो थोड़ा लांछन मैंने भी लगा दिया तो किया बुरा किया।

सुरभि... भाई साहब आप सोच समझ कर बोलिए आप किस पर लांछन लगा रहे हो मेरे बेटे पर सुरभि के बेटे पर लांछन लगा रहे हो जिसे हमने सभी अच्छे संस्कार दिया है उसके अन्दर कोई अवगुण नहीं हैं।

महेश.. अपने, अपने बेटे को कैसे संस्कार दिया है मुझे अवगत हों गया हैं। अपके बेटे में कोई अच्छे संस्कार नहीं हैं अगर उसमें अच्छे संस्कार होते तो दर्जलिंग में इतने सारे रिश्ते न टूट गए होते।

ये बात सुनते ही राजेंद्र और सुरभि समझ गए उन्हे जिस बात का डर था। वहीं हुआ जैसे पहले के रिश्ते में भड़का कर तुड़वा दिया हैं। वैसे ही किसी ने महेश को भड़का दिया था इसलिए राजेंद्र निचे बैठ गए और हाथ जोकर बोला…. महेश बाबू मैं मानता हु कि इससे पहले बहुत से रिश्ते जुड़ने से पहले टूट गए लेकिन वो रिश्ते इसलिए नहीं टूटा की मेरे बेटे में कोई अवगूर्ण है बल्कि इसलिए टूटा क्योंकि किसी ने मेरे बेटे की बुराई करके उनको भड़का दिया था। आप यकीन माने मेरे बेटे में कोई दुर्गुण नहीं हैं।

महेश... आप अपने बेटे की पैरवी न करें तो ही बेहतर हैं। अगर आपके बेटे में दुर्गुण नही है तो कोई क्यों बताएगा की उनमें दुर्गूर्ण भरे हैं। अपके बेटे में दुनिया भर का दुर्गूर्ण भारा पड़ा है तभी तो लोग बता रहे है। मैं भी जान गया हूं इसलिए मै अपने बेटी का हाथ अपके बेटे को नहीं सोफ सकता।

राजेंद्र…. महेश बाबू आप ऐसा न करें मै हाथ जोड़ता हूं आपके पैर पड़ता हूं मेरे बेटे पर आप ऐसे लांछन न लगाए और न ही इस रिश्ते को तोड़े।

महेश... राजेंद्र जी अब कुछ नहीं हों सकता मै मन बना चुका हू ये रिश्ता नहीं जुड़ सकता। उसके लिए आपको मेरे पैर पड़ने की जरूरत नहीं हैं।

राजेंद्र…. महेश बाबू ऐसा न करें आप मेरा बात मन लीजिए मेरे बेटे में कोई दुर्गुण नहीं हैं। मेरा बात न सही मेरी पग का मन तो राख ही सकते हों।

ये कह राजेंद्र जी अपने सर पर बंधे पग को सर से निकल महेश के कदमों में रखने गए ये देख महेश पीछे हट गए और न नहीं बोलते हुए घर से बहार निकाला गए। उनको जाते देख सुरभि और राजेंद्र उन्हे रोकने के लिए बहार तक आए लेकिन महेश नहीं रुके अपना कार लिया और चले गए उनके जाते ही राजेंद्र धाम से गुटनो पर बैठ गए और रोते हुए बोले..। सुरभि आज मैं हार गया हूं। मेरे दिए अच्छे संस्कार ही मेरे बेटे का दुश्मन बन गया। अगर मैं रघु को बुरे संस्कार देता तो शायद आज हमें ये दिन न देखना पड़ता ।

सुरभि न कुछ कह पा रही थी न ख़ुद को संभाल पा रही थी उसकी हाल भी राजेंद्र जैसा ही था। राजेंद्र जी अपने किस्मत को कोंसे जा रहे थे। कुछ क्षण तक ऐसा चलता रहा फ़िर नौकरों के मदद लेकर राजेंद्र को अन्दर ले गए।



आज के लिए बस इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे यह तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Nice and excellent update...
 

Luffy

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Update - 26

रावण निकल कर कहीं और जाता हैं। वहा अपने चार पांच आदमी को कुछ काम बताकर घर आ गया था। जब तक रावण घर पंहुचा तब तक निमंत्रण पत्र आ गया था। रावण के आते ही रावण और राजेंद्र निमंत्रण पत्र लेकर बांटने चला गया रमन रघु और मुंशी ये तीनों भी निमंत्रण पत्र बांटने चला गया था। पुष्पा रोज की तरह आज भी सभी को लपेटे में ले रखा था। आज तो उसने सुरभि और सुकन्या दोनों को एक पल के लिए बैठने नहीं दिया दोनों खुशी खुशी साथ में सभी कम कर रहे थे। ये देख महल के सारे नौकर भौचक्के रह गए। और आपस में बोलने लगें….

"यार आज ये उलटी गंगा कैसे बहने लगा। रानी मां और महल की एक मात्र नागिन संग में सभी काम कर रहे हैं।"

"अरे उलटी गंगा नहीं बह रहा हैं ये अजूबा हों रहा हैं। लगता है आज नागिन ने सच में केचुली बादल ली कहीं पिछले दिनों की तरह अच्छे बनने का ढोंग तो नहीं कर रहीं हैं।"

"ढोंग करे चाहें कुछ भी कुछ दिनों के लिए नागिन की विष भरी बाते सुनने से हमे और रानी मां को छुटकारा मिल जाएगा।"

"हा कह तो सही रहा हैं लेकिन सोचने वाली बात ये हैं नागिन का बदला हुआ रूप कब तक रहेगा।"

"जीतने दिन भी रहें कम से कम महल में शांति बना रहेगा"

ये सभी खड़े थे इन पर सुकन्या की नज़र पड़ जाती हैं सुकन्या इनके पास आती हैं और बोलती हैं... तुम सभी यहां खड़े खड़े क्या कर रहे हो कोई काम नहीं हैं तो पुष्पा को बुलाऊं।

"नही नहीं छोटी मालकिन उन्हें न बुलाना दो पल बैठने नहीं दे रहें हैं काम करवा करवा कर कमर ही तुड़वाने पर तुली हैं।"

सुकन्या नौकरों की बाते सुन मुस्कुरा दिया फिर बोला... अच्छा जाओ थोड़ी देर आराम कर लो तरो ताजा होकर फिर से काम में लग जाना।"

ये कह सुकन्या चली गई और यहां खड़े सभी नौकर सुकन्या को ताकते रह गए उन्हे यकीन ही नहीं हों रहा था सुकन्या उन्हे आराम करने को कह रही थीं। साथ ही अच्छे से बात कर रहीं थीं। खैर जब आराम करने को कहा तो सभी नौकर सुकन्या का गुण गान करते हुए चले गए। ऐसे ही दिन बीत गया। अगला दिन भी निमंत्रण पत्र बांटने और दूसरे कामों में निकल गया। पांचवे दिन सुबह राजेंद्र और सुरभि तैयार होकर आया नाश्ता किया फिर बोला… रघु मैं और तुम्हारी मां कलकत्ता जा रहे हैं वहा का काम भी देखना जरूरी हैं। तुम रमन और पुष्पा यह रहो तीन चार दिन बाद आ जाना। रावण तू इनके साथ मिलकर देख लेना कौन कौन रहा गए हैं उनको निमंत्रण पत्र भेज देना।

रावण…. दादा भाई यहां तो लमसम सभी को निमंत्रण पत्र बांट दिया गया हैं इक्का दुक्क जो रहे गए हैं उन्हे मैं और मुंशी मिलकर पहुंचा देंगे। आप चाहो तो रमन और रघु को ले जा सकते हों। वहा भी आपको काम में मदद मिल जाएगा अकेले कहा तक भागते रहोगे। फिर रावण मन में बोला ( ले जाओ नहीं तो बाप का अपमान होते हुए कैसे देख पाएगा। बड़ा खुश हो रहा था शादी करेगा जा बेटा कर ले शादी ऐसा इंतेजाम करके आया हूं। कभी शादी करने के बारे में नहीं सोचेगा।

राजेंद्र…. तू ठीक कह रहा हैं वहा भी बहुत लोगो को दावत देना हैं दोनों रहेगा तो बहुत मदद हों जाएगा। जाओ रघु और रमन तैयार होकर आओ और पुष्पा तू क्या करेगा।

पुष्पा…. मैं किया करूंग तोड़ा सोचना पड़ेगा।

ये कह पुष्पा अपने अंदाज में सोचने लगीं। पुष्पा को सोचते देख सभी के चेहरे पर खिली सी मुस्कान आ गया और नौकरों की सांस गले में अटक गया। वो सोचने लगें मेमसाहव हां कर दे तो ही अच्छा हैं यहां रूक गई तो काम करवा करवा के हमारा जीना हराम कर देगी। खैर कुछ क्षण सोचने के बाद पुष्पा ने जानें की इच्छा जता दिया। हां सुनते ही नौकरों की अटकी सास फिर से चल पड़ा। सुकन्या को कुछ कहना था इसलिए बोला…. भाई साहब आप अपश्यु को भी अपने साथ ले जाओ यहां रहकर कुछ काम तो करेगा नहीं दिन भर गायब रहेगा। अपके साथ जाएगा तो कुछ काम में हाथ बांटा देगा।

अपश्यु... आप को किसने कहा मैंने कुछ काम नही किया इतना काम किया मेरे पाव में छाले पड़ गए हैं। मैं भी चला गया तो यहां पापा अकेले अकेले कितना काम करेगें। फिर मान में बोला (मैं चला गया तो मेरी मौज मस्ती बंद हों जाएगा मैं नहीं जाने वाला वैसे भी कुछ दिनों में गांव से एक लडकी को उठने वाला हु नई नई आई है बहुत कांटप माल हैं। मै चला गया तो उसका मजा कौन लेगा।)

सुरभि... ठीक हैं तू यह रह जा शादी से एक हफ्ता पहले आ जाना।

अपश्यु सुरभि की बात सुन खुश हों गया और मुस्कुरा दिया। सुकन्या इशारे से सुरभि को कहा अपश्यु को साथ ले जाए लेकिन सुरभि ने मुस्करा कर इशारे से माना कर दिया और रावण मन में बोला ( हमारे आने की नौबत ही नहीं आयेगा उससे पहले ही रघु की शादी टूट जाएगा। जीतना खुश आप हो रही हों जल्दी ही उसपे ग्रहण लगने वाला हैं।)

बरहाल फैसला ये लिया गया राजेंद्र, सुरभि, रघु, रमन और पुष्पा कलकत्ता जाएंगे। रावण, सुकन्या, अपश्यु, और मुंशी यहां रहेंगे। शादी से एक हफ्ता पहले कलकत्ता जाएंगे। ये लोग दार्जलिंग से चल पड़े उधर महेश जी सभी काम को अकेले अकेले निपटा रहे थे। उनके आगे पीछे कोई था नहीं जो उनकी मदद कर दे। इसलिए महोले के कुछ लोग उनका हाथ बांटा रहे थे। साथ ही उनके साथ काम करने वाले लोग जो उनके दोस्त हैं वो भी उनका हाथ बांटा रहें थे। लडकी के घर का मामला हैं इसलिए सभी चीजों की व्यवस्थ व्यापक और पुख्ता तरीके से किया जा रहा था। महेश ने दहेज के समान का भी ऑर्डर दे दिया था। राजेंद्र ने दहेज में कुछ नहीं मांग था लेकिन समाज में नाक न कटे इसलिए महेश ने सामर्थ अनुसार जो भी दे सकता था उसका ऑर्डर भी दे दिया था। आज शादी तय हुए पचवा दिन था। आज शाम के समय महेश जी कही से आ रहे थे तभी रास्ते में उन्हें हाथ देकर किसी ने रोका उनके कार रोकते ही बंदे ने उनसे लिफ्ट मांगा महेश ने उन्हे बिठा कर चल दिया। बात करते शख्स ने उनसे पूछा…. महेश जी सुना है आप की बेटी का रिश्ता दार्जलिंग के राज परिवार में तय हों गया हैं।

महेश जी खुश होते हुए बोला... हां जी उसी की तैयारी में लगा हूं।

"आप को देखकर लग रहा हैं आप बहुत खुश हों। खुश तो होना ही चाहिए इतना धन संपन परिवार से रिश्ता जो जुड़ रहा हैं। महेश जी सिर्फ धन सम्पन परिवार होने से कुछ नहीं होता। लड़के के गुण अच्छे होने चाहिएं। आप जिसके साथ अपने बेटी का रिश्ता कर रहे हैं उस लड़के रघु में दुनिया भर का दुर्गुण भरे हुए है ऐसा कौन सा बुरा काम है जो रघु न करता हों। परस्त्री गमन, नशेबाजी, धंधेबाजी, सारे बुरे काम रघु करता हैं। अब आप ही बताओ ऐसे लड़के के साथ कौन अपने बेटी का रिश्ता करेगा"

इतनी बाते सुन महेश जी ने कार रोक दिया। फ़िर शख्स को ताकते हुए समझने की कोशिश कर रहे थे। अनजान शख्स कहना किया चाहता है। महेश को विचाराधीन देख। शख्स के चेहरे पर कमीनगी मुस्कान आ गया। कुछ क्षण विचार करने के बाद महेश बाबू बोले…. अपको शर्म नहीं आता ऐसे भाले मानुष पर लांछन लगाते हुए। आप ने जीतना कहा मैं हूं जो सुन लिया कही राजा जी होते तो अपका सर धड़ से अलग कर देते।

"महेश जी गलत को गलत कहने से अगर धड़ से सर अलग होता है तो हों जाने दो। सच कहने में डर कैसा मैं तो बस आपको सच्चाई से अवगत करवा रहा था। बाकी आप पर है आप मानो या न मानो।"

ये कह शख्स कार से बहार निकल चला जाता हैं महेश बाबू गाली बकते हुए घर को चल देते हैं। ऐसे ही पल गिनते गिनते आज का दिन बीत जाता हैं। अगले दिन राजेंद्र अपने पुश्तैनी घर पहुंच गए थे। यहां से जाने से पहले जो जो काम करवाने को कह गए थे वो सारे काम उनके उम्मीद अनुसार हो गया था। आज कलकत्ता शहर के जाने माने लोगों को दावत देने राजेंद्र जी खुद गए हुए थे। रघु और रमन ने दूसरे जरूरी काम निपटाने में लगे थे। आज भी एक शख्स ने महेश जी को भड़काने के लिए रघु की बुरी आदतों के बारे में बताया। महेश जी ने आज उन्हे मुंह पर ही गाली बक दिया। महेश ने गाली बक तो दिया लेकिन कही न कहीं महेश जी के मान में शंका उत्पन हों गया और उन्हे विचार करने पर भी मजबूर कर दिया। महेश घर जाकर सामन्य बने रहे लेकिन उनके अंतर मन में द्वंद चल रहा था। मन में चल रही द्वंद से लड़ते हुए आज का रात किसी तरह बीत गया।

अगले दिन सभी अपने अपने कामों में लगे रहे लेकिन महेश भगा दौड़ी में भी उस शख्स की कही बातों को सोचने लगें उन्होंने जो कहा क्या सच हैं नहीं ये सच नहीं हो सकता जरूर कोई मजाक कर रहा होगा या कोई ऐसा होगा जो कमला की शादी इतने बड़े घर में हों रहा है इस बात को जानकर चीड़ गया होगा इसलिए ऐसा कह रहे होंगे। मुझे इनकी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए मेरा होने वाला दामाद बहुत अच्छा है कमला भी तो पल पल उनका गुण गाती रहती हैं। महेश जी ऐसे ही खुद को समझा रहे थे। उधर महेश के घर पर कमला को उसकी सहेलियां छेड़े जा रहे थे। भातीभाती की बाते बनाकर कमला को चिड़ा रहे थे कमला चिड़ने के जगह बड़ चडकर रघु की तारीफ कर रहीं थीं। जिसे सुन उसकी सहेलियां उसे और छेड़ने लगती लेकिन कमला भी काम नहीं थी वो भी रघु के तारीफों के पुल बांधने में कोई कोताई नहीं बारत रहीं थीं। उधर रावण पल पल की खबर अपने आदमियों से ले रहा था। जो महेश के पीछे छाए की तरह लगे हुए थे और अपश्यु को इससे कोई मतलब ही नहीं था वो थोडा बहुत काम करता फिर दोस्तों के साथ माटरगास्ती करने निकल जाता तो कभी डिंपल के साथ वक्त बिताने चला जाता। जहां भी जाता विकट अपश्यु का पीछा नहीं छोड़ता। पल पल की खबर रख रहा था और संकट तक पंहुचा रहा थ।

आज भी शाम को महेश बाबू कहीं से घर जा रहे थे। तभी एक शख्स ने उन्हें रोक रघु की बुराई किया। सुनने के बाद महेश बोले…. भाई बात किया हैं पिछले तीन दिनों से कोई न कोई आकर मुझसे एक ही बात कह रहे है। बात किया है तुम कौन हों और कहा से हों क्यों मेरे बेटी के घर बसने से पहले आग लगा रहे हों। मैने या मेरी बेटी ने अपका किया बिगड़ा हैं।

"महेश जी मुझे आपसे कोई दुश्मनी नहीं हैं न ही आपके बेटी से कोई दुश्मनी हैं। मैं तो अपका शुभ चिंतक हुं। अपके बेटी की जिन्दगी उजड़ने से बचना चाहता हूं। इसे पहले अपको किसने किया कहा मैं नहीं जानता मैं तो आपसे आज ही मिला हुं।

महेश…. आप कुछ भी कहो मै अपकी बातो का यकीन नहीं करता। मुझे लगता है आप को पसन्द नहीं आ रहा हैं मेरी बेटी की शादी इतने ऊंचे घराने में हों रहा हैं इसलिए चिड़कर आप रघु जी के विषय में गलत सालत बोल रहे हों।

"महेश जी मुझे आप से कोई छिड़ नहीं हैं। मैं तो बस अपके बेटी का भला चाहता हूं। अपके बेटी का जीवन बरबाद न हों इसलिए आपको सच्चाई बता रहा हूं। अच्छा आप एक बात सोचिए क्या दार्जलिंग में कोई अच्छी लडकी नहीं मिला जो इतना दूर कलकत्ता में आपके घर रिश्ता लेकर आए। उन्होंने दार्जलिंग में रघु के लिए बहुत सी लड़कियां देखा लेकिन जब लडकी वालो को रघु के बुरी आदतों के बारे में पता चला तब उन्होंने ख़ुद ही रिश्ता तोड़ दिया। अब आप ही सोचिए भाले ही उनके पास धन संपत्ति का भंडार हों लेकिन लड़के में बुरी आदत हों तो कौन अपनी लडकी की शादी ऐसे बिगड़ैल लड़के से करवाएगा। आप चाहो तो करवा दीजिए क्योंकि अपकी बेटी एसो आराम की जिन्दगी जीयेगा पति चाहें कितना भी बिगड़ा हों आप की बेटी तो दौलत में खेलेंगी

इतनी बाते सुनने के बाद महेश जी के दिमाग में शॉर्ट सर्किट हो गया। उनको समझ ही नहीं आ रहा था वो किया करे। किया फैसला ले, महेश को ऐसे विचाराधीन देख शख्स समझ गया चिंगारी लग चुका हैं बस उसे थोडा और हवा देना बाकि हैं। इसलिए बोला... महेश जी अच्छे से सोच समझ कर फैसला लीजिए अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं हैं। आप एक बुद्धि जीवी हों क्या आप अपने बेटी के जीवन को बरबाद होते देख सकते हों। आप के जगह मै होता तो मेरी बेटी के जीवन बरबाद नहीं होने देता। भाले ही मुझे शादी ही क्यों न थोड़ देना पड़ता।

ये कह शख्स चला गया और महेश विचारधीन खडा रहा। उनके सोचने समझने की क्षमता खत्म हो चुका था। उनके माथे से पसीना टप टप टपक रहा था। महेश समझ नहीं पा रहा था फैसला किया ले उन्हे कोई राह नज़र नहीं आ रहा था। बरहाल ऐसे ही सोचते हुए महेश जी घर को चल दिया। जब महेश जी घर पहुंचे तो उनके चेहरे पर चिंता की लकीर देख मनोरमा करण जानना चाहा लेकिन महेश ने उन्हें कुछ नहीं बताया चुप चप जाकर कमरे में बैठ गए। महेश बहुत वक्त तक शख्स के कही बातों पर विचार करते रहें लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल पाया उनका एक मन कह रहा था खुद जाकर राजेंद्र से पूछे सच्चाई किया है। फिर एक मन कहे की वो बाप है अपने बेटे की बुरी आदतों को क्यों बताएंगे वो तो छुपना चाहेंगे। ऐसे ही विभिन्न तरह की बातों पर विचार करते रहें और रात भर ठीक से सो नहीं पाए। सिर्फ और सिर्फ कारवाटे बदलते रहें। किसी तरह रात बीत गया। रावण को जब खबर दिया गया तो रावण खुश हो गया और कहा कल को फिर से एक बार चिंगारी को भड़का देना फिर ये रिश्ता भी टूटने से कोई नही बचा पाएगा। उसके बाद रावण ख़ुशी खुशी सो गया।

ऐसे ही रात बीत गया और अगला दिन एक नया सबेरा लेकर आया। लेकिन आज की सुबह महेश के लिए सामान्य नहीं था। रात को ठीक से सो नहीं पाए थे। इसलिए उनके पलके भारी भारी लग रहा था। कई बार मनोरमा उनसे पूछा। लेकिन महेश जी ने थकान को करण बता दिया। मनोरमा भी देख रही थीं महेश अकेले ही सभी भागा दौड़ी कर रहे थे। इसलिए उन्होंने भी महेश की बात को मान लिया था। महेश ने मनोरमा को तो टाल दिया लेकिन अपने मन को न टाल पाए। उन्होंने रात भर जाग कर जो निर्णय लिया उस पर थोडा और विचार कर पुख्ता करना था। रावण के भेजे आदमियों ने जो चिंगारी महेश के मन में लगाया था वो दहक कर अंगार बन चुका था। उसे ज्वाला बनने के लिए बस फुक मरने की देर थीं। महेश का मन आज किसी काम में नहीं लग रहा था इसलिए कही पर भी नहीं गए। घर पर ही रहे। घर रह कर भी दो पल चैन से नहीं रह पाए। बार बार उनके दिमाग में इन तीन दिनों में उन अनजान लोगों ने जो भी बात बताया था। उस पर ही विचार करते रहें। उन्हें लग रहा था। उन लोगों ने जीतना भी रघु के बारे में कहा सब सच हैं। अगर सच न होता तो वो लोग बताने क्यों आते। नहीं नहीं मैं कमला की जिन्दगी बर्बाद होते हुए नहीं देख सकता। मेरी इकलौती बेटी जीवन भर रोती रहे ऐसा मैं होने नहीं दे सकता। मुझे ये रिश्ता तोड़ देना चाहिए। लेकिन अभी अगर रिश्ता तोड़ दिया तो समाज किया कहेगी उनके सवालों का किया जबाव दूंगा। जवाब किया देना मेरी बेटी की जिन्दगी बर्बाद हो जाएगी तो उन्हें फर्क थोड़ी न पड़ेगा उन्हें तो बस कहने का मौका चाहिएं सही या गलत पर विचार कहा करते हैं। सही और गलत पर विचार तो मुझे करना है उन्हें नहीं, मैं अभी जाता हूं और रिश्ता तोड़ने की बात उन्हे कह कर आता हूं।

महेश घर से बाहर निकले और चल दिया राजेंद्र के पुश्तैनी घर की ओर राजेंद्र भी आज कही पर नहीं गए तो। आज का जो भी काम था। वह करने रघु और रमन गए हुए थे। पुष्पा भी अपने किसी सहेली से मिलने गया हुआ था अभी महेश जी कुछ ही दूर गए थे तब उन्हें हाथ देकर एक शख्स ने रोका महेश जी कार रोक कर शक्श से रोकने का कारण पूछा तब उस ने कुछ वक्त इधर उधर की बाते किया। बातों बातो में शादी की बात छेड़ा गया। जब शक्श को लडके का पाता चला तब शक्श ने उन्हें वही बात बताया जो पिछले तीन अनजान लोगों ने बताया था। बस फ़िर किया था। घर से मन बनाकर निकले थे रिश्ता तोड़कर ही आयेंगे। जो अब धीर्ण निश्चय बन चुका था। महेश जी ने आव देखा न ताव कार स्टार्ट किया और चल दिया। उनको इस तरह जाते देख शख्स के चेहरे पर खिली उड़ाने वाली हंसी आ गया। आता भी क्यों न चार दिनों से जिस काम को पूरा करने के लिए जी जान से कोशिश कर रहे थे। आज पूरा होने वाला था। शख्स तब तक महेश की कार को देखते रहे जब तक महेश का कार उनके आंखो से ओझल न हों गया। आखों से ओझल होते ही शख्स चल दिया और महेश पहुंच गए राजेंद्र के पुश्तैनी घर समधी को आया देख राजेंद्र और सुरभि उनको आदर सत्कार से अन्दर ले गए। अन्दर आकर राजेंद्र ने नौकरों को आवाज देकर चाय नाश्ता लाने को कहा। तब महेश बोला…. राजा जी मैं यहां चाय नाश्ता करने नहीं आया हूं इसलिए चाय नाश्ता मंगवाने की जरूरत नहीं हैं।

राजेंद्र को इतनी तो समझ थी कि बेटी के बाप होने के नाते बेटी की सुसराल के अन्न पानी न ग्रहण करने की रिवाज के चलते माना कर रहे थे। इसलिए राजेंद्र जी बोले... महेश बाबू अभी हमारा घर आधिकारिक तौर पर आपके बेटी का सुसराल नहीं बना हैं। इसलिए आप हमारे यह का अन्न पानी ग्रहण कर सकते हैं और एक बात आज कल इस रिवाज को बहुत ही काम लोग मानते हैं। इसलिए आप भी चाहो तो इस रिवाज का पालन करने से बच सकते हों।

महेश…. राजा जी बेटी के ससुराल में अन्न जल ग्रहण न करने वाले रिवाज का पालन तब होगा जब रिश्ता जुड़ेगा। आज मैं अपके बेटे और कमला के जुड़ने वाले रिश्ते को तोड़ने आया हूं।

ये सुनते ही राजेंद्र और सुरभि को झटका सा लगा। जैसे उन्हें किसी ने आसमान से जमीन पर लाकर पटक दिया। दोनों अचंभित होकर महेश को देखने लगे। राजेंद्र को कुछ समझ नहीं आ रहा था किया बोले लेकिन करण तो जानना ही था इसलिए सुरभि बोली... भाई साहब आप किया कह रहे हों। अपने उस पर विचार किया की नहीं शादी के दिन में मात्र दस दिन रह गए और आप रिश्ता तोड़ने की बात कर रहे हों। हमारी नहीं तो कम से कम अपकी मन सम्मान की परवाह कर लेते। आज अपने रिश्ता तोड़ दिया तो आपके साथ साथ हमारे भी मन सम्मान पर लांछन लग जायेगा।

महेश…मन सम्मान की बात आप न करें तो बेहतर हैं अगर अपको मन सम्मान इतना प्यारा होता तो आप अपने बेटे की बुरी आदतों को न छुपाते हमे बता देते। उसके बुरी आदतों ने पहले से ही अपके मन सम्मान को निगल लिया हैं।

राजेंद्र…. महेश बाबू मेरे रघु में कोई बुरी आदत नहीं हैं वो निर्मल जल की तरह स्वच्छ और साफ हैं। मुझे लगता हैं अपको किसी ने भड़काया हैं इसलिए आप ऐसा कह रहे हैं। आप को सच्चाई पाता नहीं हैं इसलिए आप मेरे रघु पर लांछन लगा रहे हों।

महेश... राजा जी लांछन तो उस पर लगाया जाता हैं जिस पर कोई दाग न हों और अपकी बेटे पर न जाने कितना लांछन पहले से ही लगा हैं। तो थोड़ा लांछन मैंने भी लगा दिया तो किया बुरा किया।

सुरभि... भाई साहब आप सोच समझ कर बोलिए आप किस पर लांछन लगा रहे हो मेरे बेटे पर सुरभि के बेटे पर लांछन लगा रहे हो जिसे हमने सभी अच्छे संस्कार दिया है उसके अन्दर कोई अवगुण नहीं हैं।

महेश.. अपने, अपने बेटे को कैसे संस्कार दिया है मुझे अवगत हों गया हैं। अपके बेटे में कोई अच्छे संस्कार नहीं हैं अगर उसमें अच्छे संस्कार होते तो दर्जलिंग में इतने सारे रिश्ते न टूट गए होते।

ये बात सुनते ही राजेंद्र और सुरभि समझ गए उन्हे जिस बात का डर था। वहीं हुआ जैसे पहले के रिश्ते में भड़का कर तुड़वा दिया हैं। वैसे ही किसी ने महेश को भड़का दिया था इसलिए राजेंद्र निचे बैठ गए और हाथ जोकर बोला…. महेश बाबू मैं मानता हु कि इससे पहले बहुत से रिश्ते जुड़ने से पहले टूट गए लेकिन वो रिश्ते इसलिए नहीं टूटा की मेरे बेटे में कोई अवगूर्ण है बल्कि इसलिए टूटा क्योंकि किसी ने मेरे बेटे की बुराई करके उनको भड़का दिया था। आप यकीन माने मेरे बेटे में कोई दुर्गुण नहीं हैं।

महेश... आप अपने बेटे की पैरवी न करें तो ही बेहतर हैं। अगर आपके बेटे में दुर्गुण नही है तो कोई क्यों बताएगा की उनमें दुर्गूर्ण भरे हैं। अपके बेटे में दुनिया भर का दुर्गूर्ण भारा पड़ा है तभी तो लोग बता रहे है। मैं भी जान गया हूं इसलिए मै अपने बेटी का हाथ अपके बेटे को नहीं सोफ सकता।

राजेंद्र…. महेश बाबू आप ऐसा न करें मै हाथ जोड़ता हूं आपके पैर पड़ता हूं मेरे बेटे पर आप ऐसे लांछन न लगाए और न ही इस रिश्ते को तोड़े।

महेश... राजेंद्र जी अब कुछ नहीं हों सकता मै मन बना चुका हू ये रिश्ता नहीं जुड़ सकता। उसके लिए आपको मेरे पैर पड़ने की जरूरत नहीं हैं।

राजेंद्र…. महेश बाबू ऐसा न करें आप मेरा बात मन लीजिए मेरे बेटे में कोई दुर्गुण नहीं हैं। मेरा बात न सही मेरी पग का मन तो राख ही सकते हों।

ये कह राजेंद्र जी अपने सर पर बंधे पग को सर से निकल महेश के कदमों में रखने गए ये देख महेश पीछे हट गए और न नहीं बोलते हुए घर से बहार निकाला गए। उनको जाते देख सुरभि और राजेंद्र उन्हे रोकने के लिए बहार तक आए लेकिन महेश नहीं रुके अपना कार लिया और चले गए उनके जाते ही राजेंद्र धाम से गुटनो पर बैठ गए और रोते हुए बोले..। सुरभि आज मैं हार गया हूं। मेरे दिए अच्छे संस्कार ही मेरे बेटे का दुश्मन बन गया। अगर मैं रघु को बुरे संस्कार देता तो शायद आज हमें ये दिन न देखना पड़ता ।

सुरभि न कुछ कह पा रही थी न ख़ुद को संभाल पा रही थी उसकी हाल भी राजेंद्र जैसा ही था। राजेंद्र जी अपने किस्मत को कोंसे जा रहे थे। कुछ क्षण तक ऐसा चलता रहा फ़िर नौकरों के मदद लेकर राजेंद्र को अन्दर ले गए।


आज के लिए बस इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे यह तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Fantastic update
 

Destiny

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Superb Updatee

Toh aakhir kar rishta toot hi gaya. Raavan ne jaisa socha tha waisa ho hi gaya. Woh log jo Mahesh ko bhadkane aaye the woh yeh nhi soch rahe hai ke unke jhoot se kisi ki jaan jaa sakti hai. Woh bas kuch paiso ke liye itna girr gaye. Agar kal ko unke bachho ke baare mein bhi aise hi koi kuch bole toh tab unhe kaisa lagega.

Isiliye kabhi bhi kisi bhi shubhchintak ke baato mein yakeen nhi karna chahiyee. Aur Mahesh jaisa samajdaar insaan aise hi kisi ki bhi baato mein aagaya. Woh apni taraf se koi khojbin nhi karega ke unnlogo ne jo bola kyaa woh sahi hai yaa galat.

Kalko agar 4-5 log aakar baar baar bolenge ke Kamla charitraheen hai toh kyaa woh unnlogo ki baat maanlega.

Kal ko Mahesh ko saari sachhai pata chalegi tab woh kyaa karega. Kaise woh Rajendra aur Surbhi se apni nazre milayega.

Aur jab Raghu ko yeh pata chalega ke Mahesh ne Rajendra ka apmaan karke yeh rishta toda hai toh kyaa Raghu phir se iss rishte ke liye aasani se maanega.
Thank you 🙏🙏🙏🙏

Ravan ne ek chal chala tha aur mahesh ke aage pichhe ek bharm jal taiyar kiya tha jisme mahesh fash gaya aur bina fukhta parmarn ke rishta thod aaya.

Raghu ko iss waqt kuch pata nehi hai aur jab pata chalega tab kiya reaction hoga ye to aage ke update me pata chalega.
 

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Update - 27


अंदर आकर सुरभि राजेंद्र को संभालने में लग गई। लेकिन राजेंद्र अधीर हुए जा रहे थे। उनके आंखो से अविरल अश्रु धारा बहे जा रहा था। आंसु तो सुरभि भी बहा रही थीं। आंसु बहाते हुए सुरभि बोली…ख़ुद को संभालिए आप ही ऐसा करेगें तो रघु को कैसे संभालेंगे।

राजेंद्र...खुद को कैसे संभालू कितने अरमानों से बेटे की शादी की तैयारी कर रहा था एक पल में सब चकना चूर हों गया। समाज में मेरी क्या इज्जत रह जायेगा। जब उन्हें पाता चलेगा लडकी वालो ने शादी से सिर्फ दस दिन पहले रिश्ता तोड़ दिया हैं।

सुरभि...अभी दिन हाथ में हैं। किसी को पाता नहीं की ऐसा कुछ हुआ हैं। इसलिए हमें उनसे एक बार ओर बात करना चाहिए।

राजेंद्र…मेरे इतना कहने पर भी जब उन्होंने नहीं सुना मेरे पग का भी मान नही रखा तो आगे भी कुछ नहीं सुनेंगे।

सुरभि...आप पहले ख़ुद को संभालिए आप ऐसा करेगें तो रघु को भी पाता चल जायेगा। अच्छा हुआ जो रघु यहां नहीं हैं नहीं तो रघु को क्या जवाब देते?

सुरभि के बातों का असर राजेंद्र पर होने लगा। धीरे धीरे ख़ुद को संभालने में लग गए। कुछ हद तक राजेंद्र ने खुद को संभाल लिया फिर बोले...सुरभि चलो हमे ज्यादा देर नहीं करना चाहिए। हमे एक बार ओर महेश बाबू से बात करना चाहिए। वो नहीं माने तो हमें जल्दी ही कोई ओर लड़की ढूंढकर उसी तारिक में रघु की शादी करना होगा नहीं तो मेरी बनी बनाई इज़्जत नीलम हों जाएगा।

सुरभि...न जानें किस मनहूस का छाया हमारे परिवार पर पडा हैं। हमने तो कभी किसी का कुछ नहीं बिगड़ा फिर कौन हमारे साथ ऐसा कर रहा हैं।

राजेंद्र...सुरभि उसे तो मैं ढूंढकर रहूंगा जिस दिन मेरे हाथ लगा उसका सिर कलम कर दुंगा। चलो अब हमें ज्यादा देर नहीं करना चाहिए।

सुरभि... हा चलो।

दोनों जैसे थे जिस हाल में थे उसी हाल में महेश के घर चल दिए। उधर महेश जब घर पहुंचा तब मनोरमा देखकर पुछा...अचानक आप कहा चले गए थे। आप जानते है न आज कमला की शादी का जोड़ा लेने जाना हैं।

महेश…मनोरमा शादी का जोड़ा लेकर क्या करना है? जब शादी ही टूट गया।

शादी टूटने की बात सुनकर मनोरमा भौचक्की रह गई। उसे लगा जैसे उनके पैरों तले की जमीन ही खिसक गई हों। कमला उसी वक्त कुछ काम से रुम से बहार आ रही थीं। शादी टूटने की बात सुनकर वो भी अचंभित रह गईं। अब तक उसने रघु के साथ घर बसाने की जो सपना देखा था। वह चकना चूर होता हुआ दिख रहा था। कमला ने न जाने कौन कौन से अरमान सजा रखे थे? सब बिखरता हुआ दिख रहा था। कमला को लग रहा था। पहली बार किसी लडके ने उसके दिल में घर बनाया था। वह घर उसे ढहता हुआ दिख रहा था। रघु के प्रति जो प्रेम दीया उसके मन मंदिर में जल रहा था वह बुझता हुआ दिख रहा था। क्षण मात्र में ही कमला ने इन्ही सब बातों पर विचार कर लिया। विचार करते हुए उसके आंखे नम हों गई, नम आंखों से महेश के पास आई फिर बोली…पापा आप कहो न आप जो कह रहे हों वो झूठ हैं। कहो न पापा।

महेश...नहीं मेरी बच्ची मैं झूठ नहीं कह रहा हूं। मैं खुद जाकर रिश्ता तोड़ आया हूं।

ये सुनते ही कमला और मनोरमा को एक और झटका लगा। कमला ये सोचने लग गई। उसके ही बाप ने उसके खुशियों को ग्रहण लगा दिया और मनरोमा सोच रहीं थीं। बाप ने ही बेटी के घर बसाने की तैयारी करते करते घर बसने से पहले ही उजड़ दिया। ये सोच मनोरमा बोली...ये आप ने क्या किया? बाप होकर अपने ही बेटी का घर उजड़ आए। अपने ऐसा क्यों किया?

कमला...आप को मेरी खुशी का जरा सा भी ध्यान नहीं रहा। ऐसा करने से पहले एक बार तो मेरे बारे में सोच लिया होता। आप ने पल भर में मेरे सजाए सपनों को चकना चूर कर दिया।

महेश…कमला तेरे बारे में सोचकर ही शादी तोड़ कर आया हूं। मैं नहीं चाहता मेरी बेटी जिन्दगी भर दुःख में गुजारे। तिल तिल जलती रहे और बाप को कोसती रहे।

कमला...मैं भला आप'को क्यों कोसती अपने मेरे लिए एक अच्छा लडका ढूंढा, उनमें वो सभी गुण मौजूद हैं जो एक संस्कारी लडके में होना चाहिए। रघु जैसा लडका विरलय ही मिलता हैं और अपने क्या किया? रिश्ता तोड़ आए। बोलो न पापा आप ने ऐसा क्यों किया?

मनोरमा...अपने कभी देखा या सुना हैं कमला को किसी लडके का गुण गाते हुए। लेकिन जब से रघु के साथ कमला का रिश्ता तय हुआ हैं। तब से कमला रघु का गुण प्रत्येक क्षण गाती रहती हैं। हमारी बेटी ने कुछ तो देखा होगा तभी तो वक्त बेवक्त रघु का राग अलप्ति रहती हैं और अपने क्या किया रिश्ता तोड़कर आ गए। अपने सोचने की जहमत भी नहीं उठाया रिश्ता टूटने के बाद लोग किया कहेंगे। कितना लांछन हमारे बेटी पर लगाएगा। तब आप किया करेंगे सुन पाएंगे जमाने की लांछन भरी बातें।

कमला...पापा बताओ न अपने ऐसा क्यों किया क्यों मेरा घर बसने से पहले उजाड़ आए।

महेश…कमला नकाब में छुपा चेहरा तभी दिखता है जब नकाब हट जाता हैं। तुम जिस रघु की इतनी तारीफ करते थे। उसका गुण गाते नहीं थकती थीं। उसने अपना असली चेहरा नकाब से ढक रखा था। लेकिन सही समय पर उसके चेहरे से नकाब उतर गया। उसका असली चेहरा मेरे सामने आ गया। इसलिए मै रिश्ता तोड़ आया।

महेश की बाते सुन कमला बाप की और चातक की तरह देखने लग गईं। जैसे उम्मीद कर रहीं हों बाप ने जो कहा सरासर झूठ हैं। जब बाप ने कुछ ओर न कहा तब कमला मन ही मन निर्णय करने लग गई। लेकिन कमला किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पा रही थीं। मनोरमा भी महेश के कहने का अर्थ नहीं समझ पाई इसलिए जिज्ञासू भाव से पुछा...आप क्या नकाब चेहरा लगा रखा हैं। सीधे सीधे और साफ साफ लावजो में बोलो आप कहना किया चाहते हों।

महेश...मनोरमा कमला के लिए रघु सही लडका नहीं हैं उसमें न जाने कौन कौन से दुर्गुण भरे पड़े हैं। मैं नहीं चाहता ऐसे लडके से शादी कर कमला पूरा जीवन दुखों में गुजारे इसलिए मै रिश्ता तोड़ आया।

महेश की कही हुई बातों पर न मनोरमा को यकीन हो रहा था न ही कमला को यकीन हों रहा था। दोनों सिर्फ महेश का मुंह तक रहे थे। दोनों को ऐसे ताकते देख महेश बोला...जैसे तुम दोनों को मेरी बातो पर भरोसा नहीं हो रहा हैं वैसे ही मुझे हों रहा था लेकिन अंतः मुझे भरोसा हों ही गया। कैसे हुआ तो सुनो….

महेश ने अनजान शख्सों से जितना सुना था एक एक बात विस्तार से बता दिया। महेश की बाते सुन कमला और मनोरमा अचंभित रह गई। दोनों को बिल्कुल भी भरोसा नहीं हो रहा था। कोई ऐसा भी कर सकता हैं। दोनों खुद ही वकील और मुजरिम बन मन ही मन जिरहा करने लग गए। कहा तो कहा क्यों इसके पीछे करण किया हों सकता हैं। लेकिन कमला कुछ अलग ही सोच रहा था। नहीं रघु ऐसा नहीं हैं जरुर किसी ने झूठ कहा होगा। मैं मान ही नहीं सकती फिर भी किसी ने उन पर लांछन क्यों लगाया?

दोनों को विचारधिन देख महेश बोला…इतना सोच विचार करने की जरूरत नहीं हैं मैने जो भी फैसला लिया सोच समझ कर लिया।

मनोरमा...जरा मुझे भी तो समझाइए अपने कितना सोचा क्या विचार किया? किसी ने कह दिया और अपने मान लिया ख़ुद से खोज ख़बर लेने की कोशिश तो करते।

महेश…खोज ख़बर लेने की बात कहा से बीच में आ गया। एक आध लोग बताते तो एक बार को मैं नहीं मानता लेकिन चार चार लोगों ने बताया। वो क्या झूठ बोल रहे थे कुछ तो जानते होंगे तभी न बताया।

कमला जो अब तक इनकी बाते सुन रहा था और खुद में विचार कर रहे थे। इसलिए बाप की बातों पर असहमति जताते हुए बोली…कोई कुछ भी कहें मैं नहीं मानती मेरा रघु ऐसा नहीं हैं। आप एक बात बताइए जब आप शादी तोड़ने की बात करने गए थे। तब उन्होंने क्या कहा?

कमला के पुछने पर राजेंद्र के घर पर जो जो हुआ सब बता दिया। सुनते ही कमला बोली...पापा अपने क्या किया? उन्होंने हाथ जोड़कर विनती किया यह तक की उन्होंने पग उतरने की बात कह दिया फिर भी आप रिश्ता तोड़कर आ गए। अपने ये सही नहीं किया।

मनोरमा...छी अपने ये क्या किया? एक भाले व्यक्तित्व वाले इंसान के पग का भी मान नहीं रखा। वो भाले लोग नहीं होते या उनके बेटे में कोई दुर्गुण होता तो वो कभी ऐसा नहीं करते अपने बहुत गलत किया हैं।

कमला...हां पापा अपने बहुत गलत किया अच्छा आप मुझे एक बात बताइए उनके जगह आप होते और कोई मेरे ऊपर लांछन लगाता। मेरे बारे में कोई झूठी बातें बताता तब आप किया करते।

महेश…मै जानता हूं मेरी बेटी ऐसा कुछ भी नहीं करेंगी जिससे मेरा सिर शर्म से झुक जाएं। कोई कितना भी कहें मैं उनकी बातों को कभी नहीं मानता।

कमला...जब आप नहीं मन सकते तो वो कैसे मानते की उनके बेटे में कोई दुर्गुण हैं।

मनोरमा... हां आप'को समझना चाहिए था। उनके बेटे में कोई दुर्गुण नहीं हैं तभी तो इतना विनती कर रहे थे। आप इतने समझदार और सुलझे हुए इंसान होकर आप समझने में भुल कैसे कर सकते हैं।

इतना कुछ सुनने के बाद महेश एक एक बात को पुनः सोचने लग गए। सोचते हुए उन्हें अपना ही गलती नज़र आने लग गया। जब उन्हें लगा उनसे बहुत बडा भुल हों गया। तब महेश घुटनों पर बैठ गए फिर बोले….ये मैंने किया कर दिया अपने ही हाथों से बेटी का जीवन बरबाद कर आया। मैंने ऐसा क्यों किया? क्यों मैं उन कमीनों की बातों पर ऐतबार किया? क्यों मैंने किसी से नहीं पुछा? क्यों मैंने तुम दोनों से बात नहीं किया? बात कर लेता तो शायद मुझ'से इतना बडा भुल न होता। अब मैं किया करू?

मनोरमा...जो होनी था वो हो चुका हैं। आप को भुल सुधरना हैं तो अभी चलो उनसे माफ़ी मांग कर टूटे रिश्ते को जोड़कर आते हैं।

कमला...हां पापा अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा हैं चलो जल्दी नहीं तो बहुत देर हों जाएगी।

महेश...इतना कुछ होने के बाद क्या वो मानेंगे? मैंने उनका इतना अपमान किया अब तो वो ख़ुद ही रिश्ता तोड़ देंगे।

कमला...जो भी हो आप को उनसे माफ़ी मांगना होगा नहीं माने तो मैं ख़ुद उन्हें मनाऊंगी।

मनोरमा...हां मैं भी उनसे विनती करूंगा। जल्दी चलो जितना देर करेंगे उतना ही बात बिगड़ जाएगा।

तीनों घर से निकलने ही वाले थे । तभी उनके घर के बहार एक कार आकर रुका कार से राजेंद्र और सुरभि बहार निकले फिर घर के अन्दर चल दिए। दोनों को देख महेश उनके पास गए। घुटनों पर बैठें फिर हाथ जोड़कर बोले….राजा जी मुझसे बहुत बडा भुल हों गया। मुझे माफ़ कर देना मैं लोगों की बातों में आकर बहक गया था और न जानें आप'के बेटे को क्या क्या कह आया।

महेश की बाते सुन सुरभि और राजेंद्र अचंभित हों गए। दोनों आए थे महेश को मानने लेकिन यहां तो नजारे ही बादल गया दोनों सोच कर आए थे कितना भी हाथ जोड़ना पड़े कितना भी पाव पड़ना पड़े पड लेंगे लेकिन टूटे रिश्तों को जोड़कर ही आयेंगे। महेश के देखा देखी मनोरमा भी घुटनों पर बैठ गई फिर बोली….इनके किए पर हमे शर्मिंदगी महसूस हों रही हैं। इन्होंने जो अपमान आप दोनों का किया उसे तो बदल नहीं सकते फिर भी आप'से विनती हैं आप हमें माफ़ कर दे।

महेश और मनोरमा को घुटनों पर बैठे माफ़ी मांगते देख सुरभि और राजेंद्र कुछ कुछ समझ गए यह हुआ किया था। दोनों कुछ बोलते उससे पहले कमला दोनों के पास गई। सुरभि और राजेंद्र के करीब घुटनों पर बैठ गई फिर बोली…मुझे आप'के बेटे पर पूरा विश्वास हैं वो गलत नहीं हों सकते पापा ने जो किया उसकी भरपाई तो नहीं हों सकती फिर भी मैं आप'से माफ़ी मांगता हूं आप मुझे अपने घर की बहु स्वीकार कर लें।

कमला की बाते सून सुरभि का मन गदगद हों गया एक लड़की जो बस कुछ ही दिन हुए उसके बेटे से मिला और इतना भरोसा हों गया की उसे किसी की बात सुनकर विश्वास नहीं हों रहा हैं जो रघु के बरे मे कहा गया वो सच हैं। इतनी जल्दी रघु पर इतना भरोसा करने वाली लड़की कोई ओर मिल ही नहीं सकती इसलिए सुरभि ने कमला को उठाया और गले से लगा लिया फिर बोली...मैंने तो तुम्हें कब का मेरे घर की बहु मान लिया था। सुरभि की बहु घुटनो पर बैठकर माफ़ी मांगे ये सुरभि को गवारा नहीं। इसलिए तुम माफ़ी न मांगो।

राजेंद्र ने जाकर महेश को उठाया और मनोरमा को भी उठने को कहा फिर बोला…महेश बाबू माफ़ी मांगकर आप मुझे शर्मिंदा न करें। आप ने तो वोही किया जो एक बेटी के बाप को करना चाहिए। कोई भी बाप नहीं चाहेगा। उस'की बेटी एक ऐसे लडके के साथ जीवन बिताए जिसमें दुर्गुण भरे हों। लेकिन मेरा बेटा बेदाग हैं इस बात का आप'को यकीन हों गया इससे बढकर मुझे ओर कुछ नहीं चाहिएं।

महेश…राजा जी आप सही कह रहे थे आप के बेटे में कोई दुर्गुण नहीं हैं लेकिन मैं आप'का कहना नहीं माना लोगों की बातों में आकर इतना भी नहीं सोचा की आप'के जगह मैं होता और मेरी जगह आप होते तो क्या होता। मुझे माफ करना मैंने आप'के पग का भी मान नहीं रखा।

राजेंद्र...महेश बाबू जो हों गया बीती बात समझकर भुल जाओ नहीं तो ये बातें हमारे जीवन के खुशियों को निगल जायेगा।

मनोरमा...राजा जी आप भले मानुष हों इसलिए इतना कुछ होने के बाद भी भुल जानें को कह रहे हों नहीं तो कोई और होता तो टूटे रिश्तों को जोड़ने नहीं आते बल्कि कोई और लडकी ढूंढकर तय तारिक में ही अपने बेटे की शादी करवा देते।

राजेंद्र...समधन जी मैं घर से मन बनाकर आया था की यहां आकार महेश बाबू को कुछ भी करके मनाऊंगा आगर नहीं माने तो कोई ओर लड़की देखकर तय तारिक पर ही रघु की शादी करवा दुंगा। पर यह आकार जो देखा उसके बाद मुझे अपना विचार बदलना पड़ा।

महेश…राजा जी सिर्फ मेरी एक भुल की वजह से आज मेरी बेटी के खुशियों को ग्रहण लग जाता। मैं बिना जांच पड़ताल के सिर्फ कुछ चुनिंदा लोगों की बातों में आकार रिश्ता थोड़ आया। ये अपराध बोध मुझे हमेशा कचोटता रहेगा।

राजेंद्र...महेश बाबू आप खुद को अपराधी मन कर खुद को ही सजा दे रहें हैं। जबकि मैं इस घटना को दूसरे नजरिए से देख रहा हू। आज की ये घटना न होता तो मुझे पाता ही नहीं चलता जिसे मैंने रघु की जीवान संगिनी के रूप में चुना हैं। उसे रघु पर इतना विश्वास हैं की कोई कितना भी रघु पर लांछन लगाए पर उसे विश्वास है कि रघु वैसा नहीं हैं।

राजेंद्र की इतनी बाते सून कमला मंद मंद मुस्कुरा दिया। कमला को मुसकुराते देख सभी के चेहरे पर खिला सा मुस्कान आ गया। फिर सभी कमला की तारीफे करने लग गई। महेश ऊपरी मन से सामान्य दिखा रहा था पर मन ही मन अभी भी अपराध से गिरा हुआ था। शायद महेश का यहां अपराध बोध जीवन भार रहने वाला था।

इधर सुरभि और राजेंद्र के निकलने के कुछ देर बद रघु घर आया। मां बाप को न देखकर रघु ने नौकरों से पुछा तब नौकरों ने वहा घाटी घटना को बता दिया। सुनते ही एक पल को रघु ठिठक गया। उसे यकीन नहीं हों रहा था किसी के कहने पर महेश रिश्ता तोड़ने आ गया और उसके बाप को उस पर इतना भरोसा हैं कि बेटे पर लांछन लगते देख बाप ने किसी के सामने अपना पगड़ी उतर दिया। सुनने के बाद रघु को महेश पर गुस्सा आने लग गया। गुस्से में रघु बोला…रमन चल मेरे साथ

रमन…कहा जायेगा

रघु...कमला के घर जाना हैं।

ये कहकर रघु रमन को खींचते हुए बहार लेकर गया कार लेकर चल दिया। रघु को गुस्से में देख रमन बोला...यार वहा जाकर कुछ भी बखेड़ा न करना राजा जी और रानी मां बात करने गए हैं उनको ही करने देना।

रघु…मैं कतई बर्दास्त नहीं कर सकता पापा किसी के सामने गिड़गिड़ाए उनका भी कुछ मान सम्मान हैं मै उनके मान सम्मान को ऐसे धूमिल नहीं होने दे सकता। उन्होंने मुझपर लानछन लगाया वो मैं सहन कर लेता लेकिन उनके करण पापा कितने आहत हुए ये मैं सहन नहीं कर पाऊंगा।

रमन...रघु किसी बात का फ़ैसला जल्दबाजी में करना ठीक नहीं हैं। पहले जानना होगा ऐसा किया हुआ जिस करण उन्हें रिश्ता तोड़ना पड़ा।

रघु...रिश्ता जोड़ना जीतना कठिन हैं उतना ही आसान हैं तोड़ना मैं तो ये समझ नहीं पा रहा हूं कि कमला के पापा इतना समझदार होने के बाद ऐसा कदम कैसे उठा सकते हैं।

रमन...कमला के पापा! ससुरजी बोलने में शर्म आ रहा हैं।

रघु...ससुरजी तो तब बनेंगे जब कमला से मेरा शादी होगा शादी तो टूट गया तो कहे की ससुर।

रमन...तुझे बडा पता हैं। पहले जान तो ले हुआ किया हैं। बिना जानकारी के तू किसी मुकाम पर कैसे पहुंच सकता हैं।

रघु आगे कुछ नहीं कहा बस नज़र सामने ओर कर कार चलाने लग गया। कुछ ही क्षण में दोनों कमला के घर पहुंच गए। अन्दर जाते हुए रमन बोला...यार तू बिलकुल शान्त रहना कुछ भी बोलने से पहले उनकी बाते सुन लेना।

रघु हां में सिर हिला दिया फिर दोनों अन्दर पहुंच गए। अन्दर का नज़ारा बदल चुका था। राजेंद्र और महेश हंसी ठिठौली कर रहें थे। सुरभि और कमला एक जगह बैठे बाते कर रहें थे। रघु की नज़र कमला पर पहले पडा कमला सुरभि के कहे किसी बात पर मुस्करा रहीं थीं। ये देख रघु भी मुस्कुरा दिया। रमन कमला को पहली बार देख रहा था इसलिए रघु को कोहनी मरकर धीरे से बोला…यार तूने जितना तारीफ किया था भाभी तो उसे भी ज्यादा खूबसूरत और हॉट है तू तो बडा किस्मत वाला निकला तेरे तो बारे नियारे हों गया।

रमन के बोलते ही रघु ने भी एक कोहनी मारा रघु की कोहनी थोड़ा तेज रमन को लगा। रमन ahaaa कितना तेज मरा इतना बोल पेट पकड़ कर झुक गया। रमन के बोलते ही सभी की नजर इन दोनों कि ओर गए। दोनों को दरवाज़े पर खडा देख सुरभि बोली...रघु तू कब आया और रमन तुझे किया हुआ। ऐसे पेट पकड़कर क्यों झुका हुआ हैं।

रमन सुरभि के पास गया फिर बोला...रानी मां आप'के सुपुत्र को मेरा भाभी का तारीफ करना अच्छा नहीं लगा इसलिए मुझे कोहनी मर दिया।

ये सुन सुरभि मुस्कुरा दिया और कमला के चेहरे पर भी खिली सी मुस्कान आ गई। कमला टूकर टूकर रघु को देखे जा रही थी और मुस्कुरा रही थीं। रघु और रमन को यह देख राजेंद्र बोला...तुम दोनों कब और किस काम से आए हों?

रघु…पापा मुझे पाता चला मेरा और कमला का रिश्ता टूट गया है। किसलिए टूटा ये जाने आया था। लेकिन यह आकर तो कुछ ओर ही देख रहा हूं।

राजेंद्र...वो एक गलतफैमी के करण हुआ था लेकिन अब सब ठीक हों गया हैं।

रघु…पापा मैं जन सकता हूं गलत फैमी क्या हैं?

राजेंद्र…तू जानकर किया करेगा तेरा जानना जरूरी नहीं हैं। जो हो गया सो हों गया अब गड़े मुर्दे उखड़कर कोई फायदा नहीं।

रघु... पापा आप कह रहे हों तो मैं कुछ नहीं पूछता लेकिन आज किसी की बात सुनकर रिश्ता तोड़ने की नौबत आ गई कल को कोई और कुछ बोलेगा तब क्या होगा?

महेश…रघु जी आप का कहना सही हैं आगे भी तो कोई ऐसा कर सकता हैं। मैं बताता हूं। क्यों मुझे रिश्ता तोड़ने की बात कहना पड़ा?

महेश सभी बाते बता दिया जिसे सुनकर रघु को फिर एक बार गुस्सा आ गया और भड़कते हुए बोला…किसकी इतनी मजाल जो मुझ पर लंछन लगाया। मैं उसे छोडूंगा नहीं मैं उसे ढूंढ कर जान से मार दुंगा।

रघु की बात सुनकर कर सुरभि रघु के पास आई फिर बोली...रघु बेटा शान्त हों जा ये बात आज से नही बहुत पहले से हो रहा हैं हम भी उसे ढूंढ रहे है जो ऐसे बहियाद हरकते कर रहा हैं।

रघु...कब से चल रहा हैं और कौन कर रहा हैं? मुझे अभी के अभी जानना हैं।

राजेंद्र...रघु चुप हों जा मैं उसे ढूंढ लूंगा एक बार तेरी शादी हों जाएं फिर उस सपोले को ढूंढ निकलूंगा।

रमन...किया हुआ और क्यों हुआ मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं। जरा मुझे एक एक बात खुल कर बताएंगे।

सुरभि...ये समय उन बातों को जानने का नहीं हैं। पहले रघु की शादी निपट जाए फिर तुझे जो जानना है जान लेना।

रमन...मुझे अभी के अभी जाना है। किसी ने मेरे यार पर कीचड़ उछाला और आप कह रहे हों मैं न जानू रानी मां आप को मेरी कसम आप मुझे बेटा मानती हों तो एक एक बात मुझे बताएंगे।

रमन की कसम देने पर सुरभि सभी बाते बता देती हैं। जिसे सुनकर रमन गुस्से में आग बबूला हों जाता हैं। गुस्सा तो रघु को भी आ रहा था। दोनों को गुस्से में देख सुरभि बोली...रमन रघु अपने गुस्से को शान्त करो और रमन एक बात कान खोल कर सुन ले आज तूने जो कहा आगे कभी भुलकर भी न कहना।

रमन...sorry रानी मां लेकिन मैं किया करू इतना कुछ हों रहा था और आप मुझे कुछ भी नहीं बताया। एक बार मुझे तो बता देते।

सुरभि दोनों को शान्त करते हैं। मनोरमा और महेश रघु और रमन की दोस्ती देख मन ही मन कहता है क्या दोस्ती हैं दोनों के बीच एक पर लांछन लगा तो दूसरा तिलमिला उठा और ऐसे लडके के बारे में लोग गलत सलात बोल रहे थे। उनके बातों में आकर मैं अनर्थ करने चला था।

रघु रमन को शान्त करने के बाद कुछ क्षण और बात करते हैं। मौका देख रघु कमला को इशारे से बात करने को बुलाता हैं। तो कमला पहले तो मना कर देती हैं लेकिन बार बार इशारे करने पर मान जाती हैं। तब दोनों बात करने छत पर चलें गए। दोनों के साथ साथ रमन भी चल दिया। छत पर तीनों कुछ क्षण तक हसी ठिठौली करते हैं। फिर निचे आकर सभी के साथ घर को चल देते है। एक बार फिर महेश बेटी की शादी की तैयारी करने में लग गए। ऐसे ही पल गिनते गिनते आज का दिन बीत गया।


आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे यह तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद ।

🙏🙏🙏🙏
 
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Destiny

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Superb Updatee

Toh aakhir kar rishta toot hi gaya. Raavan ne jaisa socha tha waisa ho hi gaya. Woh log jo Mahesh ko bhadkane aaye the woh yeh nhi soch rahe hai ke unke jhoot se kisi ki jaan jaa sakti hai. Woh bas kuch paiso ke liye itna girr gaye. Agar kal ko unke bachho ke baare mein bhi aise hi koi kuch bole toh tab unhe kaisa lagega.

Isiliye kabhi bhi kisi bhi shubhchintak ke baato mein yakeen nhi karna chahiyee. Aur Mahesh jaisa samajdaar insaan aise hi kisi ki bhi baato mein aagaya. Woh apni taraf se koi khojbin nhi karega ke unnlogo ne jo bola kyaa woh sahi hai yaa galat.

Kalko agar 4-5 log aakar baar baar bolenge ke Kamla charitraheen hai toh kyaa woh unnlogo ki baat maanlega.

Kal ko Mahesh ko saari sachhai pata chalegi tab woh kyaa karega. Kaise woh Rajendra aur Surbhi se apni nazre milayega.

Aur jab Raghu ko yeh pata chalega ke Mahesh ne Rajendra ka apmaan karke yeh rishta toda hai toh kyaa Raghu phir se iss rishte ke liye aasani se maanega.​

Nice and excellent update...

Fantastic update
Next update post kar diya hai
 
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