Update - 13
शाम के समय महेश ऑफिस से घर आता हैं। मनोरमा एक गिलास पानी लाकर देती हैं। महेश पानी पीते हुए पूछता हैं…… कमला कहा हैं दिख नहीं रहा।
मनोरमा…… एक पल कमला को देखे बिना अपको चैन नहीं मिलता फिर पुरा दिन आप ऑफिस में कैसे काट लेते हों।
महेश…. कैसे बताऊं मेरा दिन कैसे कटता हैं ये समझ लो बस घड़ी देखता रहता ही कब छुट्टी का समय हों और घर आकर अपने लाडली से मिलूं।
कमला की विदाई की बात सोचकर ही मनोरमा की आंखे नाम हों गई और उसकी गला भर आई। मनोरमा भर्राई आवाज में बोली…….अभी अपका ये हल हैं जबकि कमला दिन रात हमारे सामने रहती हैं। तब क्या करेंगे जब कमला शादी करके दुसरे के घर चली जाएगी।
कमला की विदाई की बात सुनाकर ही महेश की धडकने बड़ गया और उसके आंखो से दो बूंद नीर के टपक ही गया जिसे चाहकर भी महेश रोक नहीं पाया। महेश आंखो से बहते नीर को पोछकर बोला……कह नहीं सकता मैं क्या करूंगा और कैसे रह पाऊंगा लेकिन चाहकर भी मैं उसे अपने पास नहीं रख सकता। मनोरमा मैं तो जैसे तैसे रह लूंगा लेकिन तुम क्या करोगी कैसे रह पाओगी। उसकी विदाई की बात सोचकर ही तुम्हारा गला भर आया।
मनोरमा महेश की बात सुनाकर ही रो दिया बस आवाज़ नहीं निकल रही थीं लेकिन आंखो से नीर बहे जा रही थीं। मनोरमा महेश से लिपट गई और भरराई आवाज़ में बोली…….. कुछ कह नहीं सकती कैसे रह पाऊंगी उसके जानें से मेरा ये आंगन हमेशा हमेशा के लिए सुना हों जायेगी। कैसे रह पाएंगे उसके अलावा हमारा कोई और हैं भी तो नहीं।
महेश मनोरमा को ऐसे अधीर होते हुए देखकर पहले खुद को संभाला फिर मोनारमा से बोला…… मनोरमा कमला अभी विदा नहीं हुई हैं। वो हमारे पास ही हैं। संभालो खुद को अभी विदाई की बात सोचकर ही ये हल हैं। तब क्या करोगी जब कमला विदा होकर जायेगी।
मनोरमा…….. उस दिन तो मेरा कलेजा ही फट जायेगी। आप नहीं जानते आज का पुरा दिन कैसे कटा जब से कमला की रिश्ते की बात करने वो लोग आए।
कमला की रिश्ते की बात सुनाकर महेश अचंभित हों गईं और मनोरमा को ख़ुद से अलग करते हुए बोला…… कमला की रिश्ते की बात करने कौन आया था? हमने तो इस बारे में किसी से बात भी नहीं किया।
मनोरमा….. राज परिवार से राजा जी और उनकी पत्नी आई थी और बड़े विनम्र भाव से मुझसे कमला का हाथ मांग रहे थे।
महेश…… इतने संपन्न परिवार से होकर भी हमारी बेटी का हाथ मांगने आए ये उनकी विनम्रता ही हैं। तुमने क्या कहा?
मनोरमा…… मैं क्या कहती मैं अकेले कैसे फैसला ले सकती हूं बिना आपसे पूछे, उनसे कहा मैं अकेले कोई फैसला नहीं ले सकती तब उन्होंने कहा हम कल फिर आयेंगे आप अपने पति को कह कर घर रुकने को कहना।
महेश…… ये तुमने सही किया। उनके बेटे को तुमने देखा कैसा दिखता हैं। क्या कमला और उनके बेटे की जोड़ी जचेगी।
मनोरमा….. जी नहीं वो दोनों ही आए थे और कह रहे थे कल उनके बेटे को भी साथ लेकर आएंगे। हमे लड़का पसंद आया तो बात आगे बढ़ाएंगे।
महेश….. हमारा पसंद न पसंद करना सर्वोपरि नहीं हैं। कमला को लड़का पसंद आया तो ही हम बात आगे बढ़ाएंगे।
मनोरमा….. वो भी यह ही कह रहें थे। दोनों एक दूसरे को पसंद कर ले तो ही बात आगे बढ़ाएंगे।
महेश…. यह तो अच्छी बात हैं इससे पता चलता हैं उनकी सोच कैसी हैं। मोनरोमा मैं तो कहता ही इससे अच्छा रिश्ता हमे कमला के लिए नहीं मिल सकता बस कमला हां कह दे।
मनोरमा….. हां उनकी सोच बहुत अच्छी हैं और स्वभाव भी बहुत मिलनसार हैं। सुबह जब वो आए थे तब मैं उनके लिए चाय बनाने गई तो राजाजी की पत्नी मेरे साथ साथ किचन में चली गई और मना करने के बाद भी चाय बनाने में मेरी मदद करने लगीं।
महेश चकित होकर बोला…… इतने बड़े घर की होकर भी चाय बनाने में तुम्हारी मदद करने गई और तुमने उन्हें करने दिया तुम्हें उन्हें रोकना चाहिएं था।
मनोरमा…… मैं तो मना कर रहीं थी लेकिन उन्होंने सुना ही नहीं तब जाकर मजबूरी में मुझे उनकी बात माननी पड़ी।
महेश…… तुमने कमला से इस बारे में कोई बात किया ।
मनोरमा….. जी नहीं।
महेश….. ठीक हैं तुम जाओ खाने की तैयारी करों मैं कमला से मिलकर आता हूं। खाना खाने के बाद कमला से बात करेंगे।
मनोरमा खाने की तैयारी करने जाती हैं और महेश कमला से मिलने जाता हैं। वहां जाकर महेश कमला से आज दिन में किया किया किया पूछता हैं। कमला बताते हुए राजेंद्र और सुरभि के घर आने के बारे में भी बता देती हैं फिर कमला भी महेश से उसके आज के दिन के बारे में पूछता हैं। महेश भी चाव से दिन का वर्णन सुना देता हैं। कुछ वक्त और बात करने के बाद महेश चला आता हैं और कमला पढ़ाई करने लग जाती हैं। महेश आकर किचन में जाता हैं और मनोरमा को खाना बनाने में मदद करने लगाता हैं। साथ ही मनोरमा को यह वह छूकर छेड़ने लगाता हैं। तब मनोरमा बोलती हैं……. आप भी न बेटी बड़ी हो गईं और आप हो की बांज नहीं आते उसने देख लिया तो क्या ज़बाब दोगे।
महेश मनोरमा के कमर को कसकर भींच देता हैं। कमर भींचे जानें से मनोरमा के मुंह से "अअअहाहाहा ऊंऊंऊंहूंहूंहूं" की आवाज निकलता हैं फिर महेश के हाथ को हटाते हुए मनोरमा कहती हैं…… क्या करते हों कमला घर पर हैं और आप बेशर्मों की तरह हरकते कर रहें हों।
महेश हाथ को दुबारा मनोरमा के कमर पर रख देता हैं और थोडा आगे बड़ाकर मनोरमा के नाभी पर रख देता हैं और नाभी सहित मांस को भींच देता हैं जिसे मनोरमा के मुंह से "अअअहाहाहा ऊंऊंऊंहूंहूंहूं" की आवाज फिर से निकलती हैं और महेश बोलता हैं…… जब बीवी इतनी खुबसूरत हों तो पति को बेशर्म बनना ही पड़ता हैं। हमारी बेटी बहुत समझदार हैं वो जब भी आती हैं तब आवाज देते हुए आती हैं।
मनोरमा महेश के हाथ को हटा कर महेश को धक्का देकर पिछे कर देती हैं और करचली हाथ में लेकर बोलती हैं…. काम में मदद करने के बजाय ओर बिगाड़ रही हों अभी के अभी बहर जाओ नहीं तो इसी कर्चाली से अपका सर फोड़ दूंगी।
महेश मुस्कुराकरू बाहर जाते हुए बोलता हैं…. गजब की लड़ाकू बीवी मिली है जब भी प्यार करना चाहो तो कभी कर्चली उठा लेगी तो कभी बेलन उठा लेगी। अब मैं प्यार करने किसे पास जाऊं पडोसान के पास ।
मनोरमा कुछ नहीं कहती बस मुस्कुराते हुए काम करने लगाती हैं। महेश जाकर टीवी चलाकर बैठ जाता हैं। कुछ वक्त में मनोरमा खाना तैयार कर लेती हैं फिर खाना डायनिंग टेबल पर लगा देती हैं और कमला को आवाज देकर बुलाती हैं महेश को भी बोलता हैं। कमला के आने के बाद तीनों खाना खाने लगते। उसके बाद कमला कमरे में जा रही थीं तब महेश कमला को कुछ वक्त और बैठने को बोलता हैं। कमला बैठा जाती हैं। मनोरमा और महेश के खाना खां लेने के बाद मनोरमा झूठे बर्तन उठा कर किचन में ले जाती हैं। कमला उसकी मदद करने जाती तो मनोरमा उसे डांट कर भागा देती हैं। कमला डांट खाकर महेश के पास जाकर बैठ जाती हैं। मनोरमा कुछ वक्त में बर्तन धोकर आती हैं तब कमला बोलती हैं…… मां आप बिल्कुल भी अच्छी नहीं हों मैं जब भी अपकी मदद करने जाती हूं लेकिन आप मुझे हर बार डांट कर भागा देती हों।
मनोरमा कमला के पास बैठ गई और बोली…… तू हमारे घर की राजकुमारी हैं। मैं अपनी राजकुमारी को झूठे बर्तन क्यों उठाने दू।
कमला मुस्कुरा कर शेखी बघेरते हुए बोली….. वो तो मैं हूं।
महेश मुस्कुराते हुए बोला……. राजकुमारी जी आपने कोई राजकुमार ढूंढ रखा हैं या हम ही दूर देश से कोई राजकुमार ढूंढ कर लाए।
महेश की बात सुनाकर कमला मुंह खोले देखती रहीं फिर जब उसे समझ आया तो शरमाते हुए नजरे झुका लिया। कमला को शर्माकर नजरे झुकाते देखकर महेश मुस्कुराते हुऐ बोला….. शर्मा गई मतलब राजकुमारी ने अपने लिए राजकुमार ढूंढ रखी हैं। बता दो कौन हैं? हम भी जाने राजकुमारी का पसंद किया राजकुमार कैसा हैं।
महेश की बात सुनकर कमला झट से बोल पड़ी…… मैंने नहीं ढूंढा हैं वो तो आप दोनों ही ढूंढ कर लाओगे।
कमला बोलने को तो बोल दिया लेकिन जब उसे ख्याल आया। क्या बोल गई तब शर्मा कर मनोरमा से लिपट गई। कमला के लिपटे ही मनोरमा और महेश हंस दिए। इनके हंसने से कमला और कस के लिपट गई तब मनोरमा कमला को छेड़ते हुए बोली……. नहीं ढूंढा हैं तो बता दो राजकुमारी को कैसा राजकुमार चाहिएं हम वैसा ही राजकुमार ढूंढ कर लायेंगे।
कमला नहीं बोलती वो ऐसे ही लिपटी रहती। तब मनोरमा उसे ख़ुद से अलग कर उसके ठोडी को पकड़ चहेरा ऊपर कर उसकी ओर देखते हुए बोली…… कमला आज नहीं तो कल हमे तुम्हारे लिए लड़का ढूढना ही होगा। यहां वक्त सभी लडक़ी के जीवन में एक न एक दिन आती ही हैं। तुम अपनी पसंद बता दोगी तो हम तुम्हारे पसंद के मुताबिक लड़का ढूंढ कर लायेंगे।
कमला नजरे उठा कर मनोरमा की ओर देखी, दो तीन बार पलके झपकाई फिर बोली…… मां मेरे लिए लड़का ढूंढने की कोई जरूरत नहीं हैं। मुझे शादी नहीं करनी हैं और न ही आप दोनों से दुर कहीं जाना हैं।
महेश जो कमला से थोड़ी दूर बैठा था। कमला के पास खिसक कर आया और कमला के सर पर हाथ रख सहलाते हुए बोला……... शादी नहीं करनी वो क्यो भला आज नहीं तो कल तुम्हें शादी करना ही होगा।
कमला महेश की ओर देखते हुए बोली…. मुझे न आज शादी करना हैं न कल करना हैं, न ही मुझे आप से दुर जाना हैं मैं आपसे दूर चाली गई तो आप दोनों का ख्याल कौन रखेगा। मेरे अलावा आप दोनों का है ही कौन?
कमला ने महेश को वास्तविकता से अवगत करा दिया। यह सच हैं कमला के अलावा महेश और मनोरमा के जीवन में कोई ओर हैं ही नहीं, सुनाकर महेश और मनोरमा कुछ वक्त के लिए भावुक हो गए फिर खुद को संभाल कर महेश बोला….. कमला तुम कह तो सही रहीं हों लेकिन मैं तुम्हें उम्र भर अपने पास नहीं रख सकता तुम्हें एक न एक दिन इस घर से विदा होकर जाना ही होगा। यह ही समझ की रीत हैं। सभी मां बाप को इस रीत का पालन करना ही होता हैं।
कमला….. मैं नहीं मानती इस रीत को, मैं क्यो जाऊ उस घर को छोड़कर जहां पैदा हुईं पली बड़ी हुई जिसके आंगन में खेली कूदी, मैं नहीं जानें वाली इस घर को छोड़कर।
कमला की बात सुनाकर मनोरमा महेश की और अचंभित होकर देखी , देखे भी क्यो न कमला कह तो सही रहीं थीं फिर मनोरमा कुछ सोचने लगी फिर बोली…... कमला दुनिया की सभी लड़कियों को अपना घर आंगन छोड़कर जाना ही होता हैं। मैं भी तो अपना घर आंगन छोड़कर आई थीं। जब लडक़ी अपनी जन्म स्थली छोड़कर दूसरे के आंगन में जायेगी तभी तो नया सृजन होगी और जीवन चक्र सुचारू रूप से चल पाएगी क्योंकि नारी को ही परमात्मा का वरदान हैं वो गर्भ धारण कर नए जीवन की उत्पत्ति का माध्यम बनती हैं।
मनोरमा की बात कमला ध्यान से सुन रहीं थी और समझ भी रहीं थीं। साथ ही कहीं हुई बातों पर मन ही मन विचार भी कर रहीं थीं। कमला के विचार में मनोरमा का दिया हुआ तर्क कोई मायने नहीं रख रहीं थीं। कुछ मायने रख रहीं थीं तो वह हैं इसके जाने के बाद उसके मां बाप का अकेला पान कैसे दूर होगा। इसलिए कमला बोली…. मां मैं मानता हूं आप जो कह रहीं हों वह सही हैं लेकिन मेरे ऐसा न करने से जीवन चक्र बाधित नहीं होगी क्योंकि दुनिया में और भी नारी हैं जिनसे जीवन चक्र चलती रहेंगी। इसलिए मैं आप दोनों को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी इस जन्म में तो नहीं और अगले जन्म का कुछ कह नहीं सकती।
कमला की बाते सुनाकर मनोरमा और महेश एक दूसरे को देखने लगे और सोचने लगे अब कमला को कैसे समझाए अगर कोई वाजिब कारण नहीं बताया तो कमला राजी ही नहीं होगी। इसलिए कुछ वक्त विचार करने के बाद महेश बोला…….. कमला तुम जो कह रहीं हों वह सही हैं। लेकिन तुम जरा विचार करो जमाना मुझे और तुम्हारी मां को क्या कहेंगी। वो हमे ताने देंगे हों सकता हैं मुझ पर लांछन भी लगाए । तुम क्या चहती दुनिया मुझ पर लांछन लगाए तो ठीक हैं मैं तुम्हें शादी करने के लिए कभी मजबुर नहीं करूंगा।
कमला…… नहीं पापा न मैंने कभी आप पर लांछन लगे ऐसा कोई काम किया हैं न ही आगे कभी करूंगी। मैं शादी करने को राजी हूं लेकिन मेरी एक शर्त हैं।
कमला के हां कहते ही दोनों ने चैन की सांस ली लेकिन कुछ ही पल के लिए, शर्त की बात कहते ही दोनों फिर से बेचैन हों गए और बेचैनी में ही महेश बोला…… शर्त क्या हैं वो भी बता दो।
कमला….. शर्त यह हैं शादी के बाद आप दोनों भी मेरे साथ चलोगी या फिर लड़का ऐसा ढूंढोगे जो घर जमाई बनने को तैयार हों।
कमला की बात सुनाकर महेश और मनोरमा मुस्करा दिए और मनोरमा बोली…… घर जमाई तो हम रखने से रहे लेकिन हम तुम्हारे साथ दहेज में जरुर जा सकते हैं।
ये कहकर दोनों हंस दिए। कमला उनको हंसते देखकर बोली……. मैं मजाक नहीं कर रहीं हूं।
मनोरमा…… मैं भी मजाक नहीं कर रहीं हम सच में तुम्हारे साथ दहेज में जायेंगे।
कमला…... सच्ची.
मनोरमा कमला के गाल खींचते हुए बोली….. मुच्ची मेरी राजकुमारी।
राजेंद्र…… कमला कल तुम कॉलेज नहीं जाओगी कल कुछ लोग आ रहे हैं तुम्हें देखने।
कमला….. कल ही इतनी जल्दी आप तो बहुत तेज निकले इतनी जल्दी भी क्या थीं।
मनोरमा….. वो लोग देखने आ रहें हैं शादी करने नहीं और पूछोगी नहीं कौन आ रहे हैं।
कमला…..कौन आ रहे हैं?
मनोरमा…… तुम भी उनसे मिल चुकी हों और सुबह ही तुम उन्हें घर लेकर आई थीं।
कमला ने दिमाग में जोर डाली याद किया फिर बोली….. ओ तो बो लोग हैं आज ही तो आए थे फिर कल क्यो आयेंगे।
मनोरमा…… वो अपनी बात कहने आए थे। कल वो लडके को लेकर आएंगे तुम भी लडके को देख लेना लड़का तुम्हें भी देख लेगा तुम दोनों एक दूसरे को पसंद करोगी तब ही हम बात को आगे बढ़ाएंगे।
कमला…… मेरे पसंद करने की जरूरत ही नहीं हैं आप दोनों मेरे लिए गलत लड़का थोड़ी न चुनोगे इसलिए आप दोनों की पसंद ही मेरी पसंद होगी।
महेश….. पसंद तो तुम्हें ही करना होगा। क्योंकि ज़िंदगी भर साथ तुम्हें ही रहना हैं इसलिए तुम्हें पसंद आना जरूरी हैं न की हमे।
यह सुनाकर कमला कुछ नहीं कहती चुप रहती। कहती भी तो क्या कहती उसके पास कुछ बचा ही नहीं था। महेश उसकी चुप्पी को हा समझकर बोलता हैं।……. कमला तुम कल कॉलेज नहीं जाओगी और अच्छे से तैयार होकर रहोगे। जिससे मेरी बेटी ओर खुबसुरत दिखे और वो लोग तुम्हें देखकर न नहीं कह पाए।
कमला एक बार फिर से शर्मा जाती हैं। फिर उसे कुछ याद आती हैं तब बोलती हैं….. पापा कल मुझे कॉलेज जाना ही होगा बहुत जरूरी हैं।
महेश…… जरूरी हैं या बहने बना रही हों।
कमला…… नहीं पापा मैं बहने नहीं बना रही कल मेरा जाना जरूरी हैं अगले हफ्ते से पेपर हैं और कल प्रवेश पत्र बांटा जाएगा।
महेश…… ठीक हैं चली जाना और लेकर जल्दी आ जाना।
कमला हां में सर हिला देती हैं। इसके बाद तीनों अपने अपनें कमरे में चले जाते हैं। महेश और मनोरमा कमरे में जाकर कपड़े बदलते हैं और कुछ वक्त दोनों बाते करते हैं और फिर अपने रस लीला में मगन हों जाते हैं।
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अगले दिन सुबह नाश्ता करने के बाद कमला कॉलेज जाने लगी थी तब महेश रोककर कहता हैं…… कमला रुको मैं भी तुम्हरे साथ चलता हू।
कमला हां में सर हिला देती और महेश के साथ कॉलेज चल दिया था। दूसरी ओर नाश्ता करने की बाद राजेंद्र सब को जल्दी से तैयार होने को कहता हैं तब रघु पूछता हैं…. पापा हमे जाना कहा है आप कुछ बताते क्यों नहीं।
रघु की बात सुनकर राजेंद्र मुस्कुरा देता हैं साथ ही सुरभि भी मुस्कुरा देती हैं। तब पुष्पा बोलती हैं……. हां पापा बताओ न हम जा कहा रहें हैं।
सुरभि मुस्कुराते हुए बोलती हैं……. बेटी हम तुम्हारे भईया के लिए लडक़ी देखने जा रहे। हैं।
लडक़ी देखने की बात सुनकर रघु बगले झांकने लगाता हैं। उसे देखकर लग रहा था रघु लड़की शब्द सुनाकर असहज महसूस कर रहा था। उसे देखकर सुरभि, राजेंद्र और पुष्पा मुस्करा देते हैं फिर सुरभि बोलती हैं….. तुझे क्या हुआ?
रघु….. मां मेरा जाना जरूरी हैं आप सब देखकर आओ न।
सुरभि…. हे भगवान कैसा लड़का हैं। रघु लडक़ी शब्द सुनते ही तेरे हाथ पांव क्यों सूज जाता हैं।
रघु….. मां मेरा हाथ पाव नही सूजा हैं। देखो आप मेरा हाथ पांव ठीक हैं। मुझे तो बस……
सुरभि रघु की पूरी बात बिना सुने ही बोल पड़ती हैं…… तुझे डर लगाता हैं। बेटा वो भी इंसान हैं। कोई बहसी जानवर नहीं जो तुझे खां जाएगी।
रघु सुरभि की ओर देखते हुए बोलता हैं…... मां मैं जानता हूं वो बहसी जानवर नहीं हैं। मुझे बस शर्म आता हैं।
सुरभि मुस्कुराते हुऐ बोली……. रघु तू कैसा लड़का हैं तेरे उम्र के लडके भंवरा बनकर लड़कियों के आगे पीछे मंडराते रहते हैं और एक तू हैं लडक़ी शब्द सुनकर ही शर्मा जाता हैं।
सुरभि की बाते सुनकर रघू ऐसा कुछ बोल देता हैं जिसे सुनकर सुरभि और राजेंद्र को गर्व की अनुभूति होता हैं। रघु बोलता हैं……मां मैं ऐसा ही हूं अब मैं क्या करूं। मैं दूसरे लडको की तरह करता तो क्या आप दोनों को अच्छा लगाता। मां मैं ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहता जिससे मेरे मां बाप का सर लोगों के सामने शर्म से झुक जाएं।
रघु की बात सुनकर सुरभि और राजेंद्र एक पल के लिए भावुक हों गए थे। उनका भावुक होना स्भाविक था। रघु ने आज से पहले कभी कुछ ऐसा किया न आगे ऐसा कुछ करना चाहता जिससे उसके मां बाप का सर झुक जाएं। रघु की बात सुनकर राजेंद्र को यकीन हों गया था। वो रघु को जैसा बना चाहता था रघु बिलकुल वैसा ही बना उसके लिए अपने मां बाप का मन सम्मान सर्वोपरि है। तब राजेंद्र जाकर रघु को गले से लगा लेता और पीट थपथपाते हुए बोलता हैं…... रघु बेटा तुम्हारे जैसे पुत्र की कामना सभी मां बाप करते हैं। मैं धन्य हूं जो तुम हमरा बेटा बनकर इस धरा पर आएं। फिर रघु से अलग होकर बोला "बेटा तुम्हारी मां के कहने का मतलब यह नहीं था की तुम दूसरे लडको की तरह लड़कियो के पीछे मंडराते फिरो उसके कहने का मतलब यह था तुम लडक़ी शब्द से इतना शरमाया न करों।
फिर सुरभि बोलती हैं….. रघु मैं और तुम्हारी बहन भी तो लडक़ी हैं। तुम हमसे तो शरमाते नहीं हों फिर क्यों दूसरे लड़कियो का जीकर आते ही शर्मा जाते हों।
इस बात का रघु के पास जवाब ही नहीं था कहता भी तो क्या कहता उसके पास कहने के लिए कुछ बचा ही नहीं था। रघु तैयार होने की बात कहकर चल देता हैं। तब राजेंद्र के कहने पर पुष्पा भी तैयार होने जाती हैं और राजेंद्र और सुरभि भी तैयार होने जाते हैं। कमरे में जाकर सुरभि कहते हैं….. सुरभि रघु ऐसे शर्माता रहेगा तो शादी के बाद इसका क्या होगा।
राजेंद्र…… सुधर जाएगा शादी होने दो फिर बन जाएगा बेशर्म जैसा मैं हूं। कहकर राजेंद्र सुरभि के पास जाकर पीछे से चिपक जाता हैं और सुरभि के कंधे और गर्दन पर चुम्बनो की झड़ी लगा देता हैं। सुरभि राजेंद्र को पीछे धकेल कर बोलती हैं…… आप तो हों ही बेशर्म कहीं भी शुरु हों जाते हों। अब देर नहीं हों रहीं हैं।
राजेंद्र…… देर तो हों रहीं हैं लेकिन खुबसूरत बीवी को देखकर खुद को रोक नहीं पाया। तुम्हें देखता हु तो मेरे तन बदन में आग लग जाता हैं।
सुरभि मुस्कुराते हुए बोलती हैं…. तुम्हारे तन बदन में जलती आग के कारण दो बचे पैदा हों गए लेकिन अभी तक आपकी आग बुझी ही नहीं।
राजेंद्र….. जिसके पास आग भड़कने वाली तुम्हारी जैसी घी हों तो आग बुझेगी नहीं। ओर ज्यादा धधक उठेगी।
सुरभि अलमारी से कपड़े निकाल रहीं थी जब राजेंद्र बोल रहा था। कपड़े निकलकर सुरभी बोलती हैं….. संभाल कर रहिएगा कही ऐसा न हो ये घी आग को इतना भड़का दे की आप ही जलकर भस्म हों जाओ।
बोलकर सुरभि बॉथरूम में घूस जाती हैं। राजेंद्र बाथरूम के पास जाकर बोलता हैं……मैं तो चाहता हु तुम आग को इतना भड़काओ कि मैं ख़ुद ही जलकर भस्म हों जाऊ लेकिन तुम हों भड़कती ही नहीं ।
सुरभि कुछ नहीं कहती बस खिलखिला कर हंस देती हैं। राजेंद्र भी आगे कुछ नहीं कहता और अलमारी से कपड़े निकलने लग जाता हैं। सुरभि तैयार होकर निकलती हैं तो राजेंद्र सुरभि को देखकर उसकी तारीफों के पुल बांध देता हैं तब सुरभि राजेंद्र को धकेलकर बाथरूम भेजती हैं। कुछ वक्त में दोनों तैयार होकर बाहर आते हैं जहां रघु अकेले बैठे बैठें बोर हो रहा था। कुछ वक्त में पुष्पा भी आ जाती हैं। जाने वाले चार और ड्राइवर जग्गू को मिलकर पांच तो सुरभि रघु और पुष्पा को एक कार मे जाने को कहते हैं और राजेंद्र ओर सुरभि एक कार में जायेंगे। तब सब अपने अपने कार में बैठकर चल देते हैं।
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महेश कमला के साथ उसका प्रवेश पत्र लेकर घर आ जाते हैं। उनके आते ही मनोरम कमला को अच्छे से तैयार होने को कहता हैं। कमला न नुकार के बाद तैयार होने चल देती हैं कमला तैयार होकर आती हैं। किचन में मां की मदद करने चाल देती हैं। कमला को देखकर मनोरमा डांटती हैं लेकिन कमला मां की डांट की परवाह न करते हुए बोलती हैं……. मां आज आप कितना भी डांट लो मैं अपकी एक भी नहीं सुनने वाली आज तो मैं अपकी मदद तो करूंगा और सब खुद ही बनूंगी।
मनोरमा…. वो क्यो भला।
कमला मुस्कुराते हुए बोली….. वो इसलिए ताकि लडके वाले ये न कहें लडक़ी को खाना बना ही नहीं आता हम यह रिश्ता नहीं करेंगे यह रिश्ता टूट गई तो आप मुझे फिर से किसी ओर के सामने बिठा दोगी।
मनोरमा पहले मुस्कुरा देती हैं फिर भौहें नचाते हुए बोलती हैं…… कमला तू कब से इतनी बेशर्म हों गई हैं और तुझे शादी करने की इतनी जल्दी हैं कि पहली बार में लडके वालो को प्रभावित करना चहती हैं।
कमला मुस्कुराई और मां को चिड़ते हुए बोली……. मां लडके की मां बाप तो पहले से ही प्रभावित हैं मुझे तो बस लडके का मन मोहोना हैं। जिससे वो मुझे नकार न सके और शादी को राजी हों जाए।
मनोरमा आगे कुछ नहीं कहती और चुप चाप कमला जो करती हैं करने देती हैं। कमला को मन लगकर किचन में काम करते हुए देखकर मनोरमा हर्षित हो जाती हैं। ऐसा नहीं की कमला को खाना बनाना नहीं आती थी। कमला को खाना बनाने में बहुत रुचि हैं और कमला छोटी उम्र में ही नाना प्रकार के व्यंजन बनाना सीख गई थी। साथ ही कमला पाक कला की पढ़ाई भी कर रहीं थीं। जिससे उसकी पका कला ओर भी निखर गई थीं। भोजन बनने का काम पुरा होने के बाद कमला कमरे में जाती हैं और एक बार फिर से तैयार होने लगती कमला खुद को सजाने संवारने में कोई कमी नहीं रखती। ऐसा नहीं कि कमला खुबसूरत नहीं थी। कमला के खुबसूरती के चर्चे कॉलेज और आस पास के कई इलाके में थी और कमला आज अपना जीवन साथी चुनना जा रही थीं तो वो कोई कमी नहीं रखना चाहती थी। वैसे तो कमला ज्यादा मेकप नहीं करती लेकिन आज हल्का टच ऑफ करके दमकते चहरे को ओर दमका लेती हैं।
महेश और मनोरमा ने उनके स्वगत में सारी तैयारी कर लिया था। वो भी उनके स्वागत में कोई कमी नहीं रखना चाहते थे और पलके बिछाए उनकी प्रतीक्षा कर रहें थे। इनके प्रतिक्षा की घड़ी समाप्त हुआ और राजेंद्र की कार इनके घर के बाहर आ कर रुका, कार की आवाज़ सुनकर दोनों बाहर गए। उन्हें सम्मान सहित अंदर लेकर आए और उन्हें बैठने को कहा एक सोफे पर राजेंद्र और सुरभि बैठे गए एक पर पुष्पा और रघु बैठ गए। रघु को देखकर मनोरमा और महेश को पहली नजर में पसंद आ गया और मन ही मन विनती करने लगे की कमला भी रघु को देखकर पसंद कर ले और हां का दे। बातो के दौरान रघु के सभ्य और शालीन व्यवहार ने महेश और मनोरमा को ओर ज्यादा मोहित कर लिया। चाय नाश्ते के बाद महेश के कहने पर मनोरमा कमला को लेने गई। कमला लाइट पर्पल रंग की सलवार सूट और पिंक रंग की दुप्पटा सर में रखकर मां के साथ धीरे धीरे चलकर आती हैं। सुरभि राजेंद्र और पुष्पा कमला की खूबसूरती को देखकर मंत्रमुग्ध हों जाते हैं। तभी पुष्पा रघु को कोहनी मरकर कमला की और दिखता हैं रघु कमला के खुबसूरत और दमकते चहरे को देखकर चकोर पक्षी जैसे चांदी रात में चांद की खूबसूरती को ताकता हैं। वैसे ही रघु मोहित होकर कमला को देखता हैं। कमला भी तिरछी निगाहों से रघु की ओर देखती हैं। रघु को टकटकी लगाए देखते देखकर कमला के लवों पर मंद मंद मुस्कान आ जाती हैं। कमला के मुस्कुराते लव जिसमें हल्की पिंक रंग की लिपस्टिक पुता हुआ था। जिसे देखकर रघु पुरा झनझना जाता हैं। रघु को ऐसे देखते देखकर सुरभि और राजेंद्र मुस्कुरा देते हैं। वैसा ही हल महेश और मनोरमा का था कमला तो पहले से मुस्कुरा रहीं थीं। कमला को लाकर मनोरमा रघु के सामने बैठा दिया और रघु अब भी अपलक कमला को देखें जा रहा था। तब पुष्पा रघु के कान में बोलती हैं……. बहुत देख लिए अब तो देखना बंद करों सब देखकर हंस रहे हैं।
रघु होश में आकर इधर उधार देखता हैं फिर सर झुकाकर बैठ जाता हैं जिसे देखकर कमला की मुस्कान न चाहते हुए ओर भी और गहरी हों जाती हैं और पुष्पा फिर से रघु के कान में कहती हैं….. क्या भईया झल्ले जैसा क्यों कर रही हों अपना सर उठाकर बैठो ऐसे शरमाओगे तो लडक़ी और लडक़ी वालो पर गलत इंप्रेशन पड़ेगा।
आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से, साथ बाने रहने के लिए आप सब पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।
आगे ओर किया किया होता हैं ये जानेंगे अगले अपडेट से, प्रिय पाठकों पिछले कुछ दिनों से समय की कमी के चलते आप सब से मुखातिब नहीं हों पाया। क्या करे ज़िंदगी में बहुत से जरूरी कम होते हैं जिसे करना भी जरूरी होता। इसलिए जब जब समय मिलेगा कहानी के आगे के अपडेट को पेश करता रहूंगा। बस इतना कहूंगा देर भले हि हों यह कहानी पूरा होकर रहेगा । शुक्रिया