• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Romance ajanabi hamasafar -rishton ka gathabandhan

Destiny

Will Change With Time
Prime
3,965
10,660
144
Superbbb Introoo

Intro toh jabardast laga padhne mein.
शुक्रिया devil the king जी
अरे devil Ji कहें मस्करी कर रहे हों अपने तो मुझे डरा ही दिया। रावण राजेंद्र उर्फ राना जी का छोटा भाई हैं। इसी नाते राना जी की पत्नी रावण की पत्नी की जेठानी लगी
 
Last edited:

Jaguaar

Prime
17,679
60,240
244
शुक्रिया devil the king जी

अरे devil Ji कहें मस्करी कर रहे हों अपने तो मुझे डरा ही दिया। रावण राजेंद्र उर्फ राना जी का छोटा भाई हैं। इसी नाते राना जी की पत्नी रावण की पत्नी की जेठानी लगी

Areee galti se maine Raavan ko raghuveer ka bhai samjha tha
 

parkas

Prime
22,957
52,796
258
अजनबी हमसफ़र -रिश्तों का गठबंधन

कुछ विशेष बाते और पत्रों का परिचय:-

कहानी के सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक हैं। जिसका किसी भी जीवित या मृत्य व्यक्ति से कोई संबंध नहीं हैं। जगह का नाम वास्तविक हैं लेकिन वह की किसी भीं वास्तविक घटना का कहानी से कोई संबंध नहीं हैं। अगर किसी भी घटना से कोई समनता होता हैं तो यह एक सहयोग होगा।


कहानी की शुरुवात कलकत्ता के एक राज परिवार से होता है। जो बहुत समय पहले दार्जलिंग के हसीन वादियों और शांत वातावरण से मोहित होकर अपना डेरा दार्जलिंग में जमा लिया। जिनका शासन पश्चिम बंगाल एवम उसके आस पास के राज्यों में हुआ करता था। समय के साथ साथ परिवर्तन आया और इनके अधिपत्य राज्यों की सीमाएं छोटी होती गई। इनके राज्यों की सीमाएं तब ओर कम हों गया जब ब्रिटिश साम्राज्य ने अपना पैर पसारना शुरू किया। ब्रिटिश साम्राज्य ने अनैतिक तरीकों से देश के दूसरे राजाओं का जो हल किया वह हल इस राज परिवार का भी हुआ। इनसे इनका सारा राज पाट छीन लिया गया और इन्हें सिर्फ इनके हिस्से की जमीनों का जमींदार बाना दिया गया। धीरे धीरे समय बिता गया और इनसे इनकी जमीनें छीनता गया। अंत में इनके पास कुछ पांच छः सो एकड़ जमीनें बच्ची जो दार्जलिंग और उसके आस पास के शहरों में था। इसलिए पुरा राज परिवार कलकत्ता छोड़कर दार्जलिंग में बस गए। देश आजाद होने के बाद जनता द्वारा चयनित राजनयिक पार्टियां देश पर शासन करने लगे लेकिन दार्जलिंग की जनता अपने समस्याओं को लेकर राज परिवार के पास आने लगे। पीढ़ी दर पीढ़ी राज परिवार जनता की हितैषी रहे। वैसे ही एक पीढ़ी 80 के दसक में दार्जलिंग की जनताओ के सुख दुख का ध्यान रख रहे हैं। लेकिन कहते हैं न अच्छे लोगों के साथ ही ज्यादातर बुरा होता हैं वैसे ही इनके साथ हुआ हैं। आगे की कहानी में विस्तार से जानेंगे अब इस कहानी में आने वाले कुछ मूल पत्रों का परिचय जान लेते हैं।


1 राजेंद्र प्रताप राना:- लोग इन्हें रानाजी या राजा जी के नाम से संबोधित करते हैं। बहुत ही सुलझे हुए और व्यक्तिव के बहुत धनी हैं। हर काम को सुनियोजित और सोच समझकर करते हैं। लेकिन इनकी एक गलती की सजा इनके परिवार पर आफत की बदल लेकर आएगा।


2 सुरभि राना:- ये हैं राजेंद्र जी की धर्मपत्नी या कहूं अर्धांगिनी जैसा इनका नाम वैसा ही इनका गुण घर में इनका ही राज चलता हैं । परिवार के सदस्य हों या घर में काम करने वाले नौकर चाकर सब से प्रेम भाव का व्यव्हार करते हैं।


3 रघु वीर राना:- ये हैं राजेंद्र और सुरभि का एक मात्र चस्मो चिराग इनकी अभी तक शादी नहीं हुआ हैं। इनकी शादी के लिए लड़की की खोज जारी हैं। राजेंद्र जी और सुरभि जी के अच्छे संस्कारों के चलते इनके अदंर कोई दुर्गूर्ण नहीं हैं। अपनी पढ़ाई समाप्त कर चुके हैं और अपने पिता के कामों में हाथ बाटाते हैं साथ ही गरीब और अनाथ बच्चों को पढ़ाते हैं।


4 पुष्पा राना:- ये हैं राजेंद्र और सुरभि जी की एक मात्र सुपुत्री सब की लाडली हैं और स्वभाव से नटखट हैं। ये अपने कॉलेज के अंतिम वर्ष में हैं। जो इस वक्त कलकत्ता में रह कर पढ़ाई कर रहे हैं


5 रावण राना:- ये हैं राजेंद्र उर्फ रनाजी का छोटा भाई जैसा नाम वैसा ही गुण इनके मन में हमेशा छल चातुरी चलता रहता हैं। अपने बड़े भाई से बैर रखता हैं और सारी संपत्ति को अकेले कैसे हड़प ले इसी ताक में लगे रहते हैं।


6 सुकन्या राना:- ये हैं रावण की बीवी अत्यधिक सुंदर हैं जिस करण घमंड कूट कूट कर भरी हुई हैं इनकी अपने जेठानी से बिल्कुल नहीं बनती हैं। घर की पूरी भाग दौड़ जो सुरभि के हाथ में हैं इसे छिनने के ताक में लगे रहते हैं।


7 राम स्वरूप राना:- ये हैं रावण और सुकन्या जी का एक मात्र जलता हुआ चिराग। इनके नाम का इनके गुणों से दुर दुर तक कोई सरोकार नहीं हैं। कहते हैं मां बाप का गुण इनके बच्चों को उपहार में मिलता हैं। वैसे ही इनके अदंर अपने मां बाप के सारे दुर्गुणों का भंडार पर्याप्त मात्रा में हैं। बस इनके अदंर एक सदगूर्ण यह हैं ये अपने चचेरी बहन पुष्पा से बहुत अधिक स्नेह करते हैं।


8 महेश बनर्जी:- ये एक कम्पनी में ऊंचे पद पर काम करते हैं। स्वभाव से बहुत परोपकारी हैं। कभी कभी इनका यह गूण इन्हे ही परेशानी में ढाल देते हैं। इनके पूर्वज भी जमींदार हुआ करते थे लेकिन अंग्रेजी और विद्रोहीओ ने इनकी सारी जमींदारी छीन लिया हैं। इनकी किस्मत अच्छी थी जो ये जिंदा बच गए हैं।


9 मनोरमा बनर्जी:- इनका स्वभाव बहुत गुस्सैल हैं और इनका स्वभाव थोडा चिड़चिड़ा हों गया हैं जब से इनके बेटे पांच साल के उम्र में किसी बीमारी के चलते मारे गए हैं।


10 कमला बनर्जी:- ये भी अपने मां की तरह गुस्सैल हैं और गुस्सा आने पर घर का सारा सामना तोड़ देते हैं। जिसका हर्जाना महेश बनर्जी जी को भरना पड़ता हैं। बाकी इनकी खूबसूरती बे मिसाल हैं और बुद्धि और समझदारी भरपूर मात्रा में हैं। इस वक्त अपने कॉलेज की पढ़ाई में व्यस्त हैं। ये लडको को कूटने के मामले में बिल्कुल भी परहेज नहीं करते किसी लड़के ने इनके साथ बदसलूकी किया तो उसे अपने चप्पल से मर मर के अपनी चप्पल तो थोड़ ही लेते है साथ ही लड़के की तोबड़े का नक्शा ही बिगड़ देते हैं।


ये तो हैं कुछ मूल किरदारों का परिचय बाकी जैसे जैसे कहानी आगे बड़ता जाएगा वैसे वैसे ओर भी किरदार जुड़ते जायेंगे। अब कुछ पाठक पूछेंगे इसमें तो हीरो का कोई परिचय ही नहीं हैं तो महाशय अभी हीरो के मां बाप एक नहीं हुऐ हैं मतलब अभी हीरो के मां बाप कुवारे हैं तो हीरो का परिचय कैसे दे दू। आज के लिए बस इतना ही जल्दी ही पहला अपडेट पेश करूंगा।
Nice and beautiful introduction...
 

Destiny

Will Change With Time
Prime
3,965
10,660
144

mashish

BHARAT
8,032
25,905
203
अजनबी हमसफ़र -रिश्तों का गठबंधन

कुछ विशेष बाते और पत्रों का परिचय:-

कहानी के सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक हैं। जिसका किसी भी जीवित या मृत्य व्यक्ति से कोई संबंध नहीं हैं। जगह का नाम वास्तविक हैं लेकिन वह की किसी भीं वास्तविक घटना का कहानी से कोई संबंध नहीं हैं। अगर किसी भी घटना से कोई समनता होता हैं तो यह एक सहयोग होगा।


कहानी की शुरुवात कलकत्ता के एक राज परिवार से होता है। जो बहुत समय पहले दार्जलिंग के हसीन वादियों और शांत वातावरण से मोहित होकर अपना डेरा दार्जलिंग में जमा लिया। जिनका शासन पश्चिम बंगाल एवम उसके आस पास के राज्यों में हुआ करता था। समय के साथ साथ परिवर्तन आया और इनके अधिपत्य राज्यों की सीमाएं छोटी होती गई। इनके राज्यों की सीमाएं तब ओर कम हों गया जब ब्रिटिश साम्राज्य ने अपना पैर पसारना शुरू किया। ब्रिटिश साम्राज्य ने अनैतिक तरीकों से देश के दूसरे राजाओं का जो हल किया वह हल इस राज परिवार का भी हुआ। इनसे इनका सारा राज पाट छीन लिया गया और इन्हें सिर्फ इनके हिस्से की जमीनों का जमींदार बाना दिया गया। धीरे धीरे समय बिता गया और इनसे इनकी जमीनें छीनता गया। अंत में इनके पास कुछ पांच छः सो एकड़ जमीनें बच्ची जो दार्जलिंग और उसके आस पास के शहरों में था। इसलिए पुरा राज परिवार कलकत्ता छोड़कर दार्जलिंग में बस गए। देश आजाद होने के बाद जनता द्वारा चयनित राजनयिक पार्टियां देश पर शासन करने लगे लेकिन दार्जलिंग की जनता अपने समस्याओं को लेकर राज परिवार के पास आने लगे। पीढ़ी दर पीढ़ी राज परिवार जनता की हितैषी रहे। वैसे ही एक पीढ़ी 80 के दसक में दार्जलिंग की जनताओ के सुख दुख का ध्यान रख रहे हैं। लेकिन कहते हैं न अच्छे लोगों के साथ ही ज्यादातर बुरा होता हैं वैसे ही इनके साथ हुआ हैं। आगे की कहानी में विस्तार से जानेंगे अब इस कहानी में आने वाले कुछ मूल पत्रों का परिचय जान लेते हैं।


1 राजेंद्र प्रताप राना:- लोग इन्हें रानाजी या राजा जी के नाम से संबोधित करते हैं। बहुत ही सुलझे हुए और व्यक्तिव के बहुत धनी हैं। हर काम को सुनियोजित और सोच समझकर करते हैं। लेकिन इनकी एक गलती की सजा इनके परिवार पर आफत की बदल लेकर आएगा।


2 सुरभि राना:- ये हैं राजेंद्र जी की धर्मपत्नी या कहूं अर्धांगिनी जैसा इनका नाम वैसा ही इनका गुण घर में इनका ही राज चलता हैं । परिवार के सदस्य हों या घर में काम करने वाले नौकर चाकर सब से प्रेम भाव का व्यव्हार करते हैं।


3 रघु वीर राना:- ये हैं राजेंद्र और सुरभि का एक मात्र चस्मो चिराग इनकी अभी तक शादी नहीं हुआ हैं। इनकी शादी के लिए लड़की की खोज जारी हैं। राजेंद्र जी और सुरभि जी के अच्छे संस्कारों के चलते इनके अदंर कोई दुर्गूर्ण नहीं हैं। अपनी पढ़ाई समाप्त कर चुके हैं और अपने पिता के कामों में हाथ बाटाते हैं साथ ही गरीब और अनाथ बच्चों को पढ़ाते हैं।


4 पुष्पा राना:- ये हैं राजेंद्र और सुरभि जी की एक मात्र सुपुत्री सब की लाडली हैं और स्वभाव से नटखट हैं। ये अपने कॉलेज के अंतिम वर्ष में हैं। जो इस वक्त कलकत्ता में रह कर पढ़ाई कर रहे हैं


5 रावण राना:- ये हैं राजेंद्र उर्फ रनाजी का छोटा भाई जैसा नाम वैसा ही गुण इनके मन में हमेशा छल चातुरी चलता रहता हैं। अपने बड़े भाई से बैर रखता हैं और सारी संपत्ति को अकेले कैसे हड़प ले इसी ताक में लगे रहते हैं।


6 सुकन्या राना:- ये हैं रावण की बीवी अत्यधिक सुंदर हैं जिस करण घमंड कूट कूट कर भरी हुई हैं इनकी अपने जेठानी से बिल्कुल नहीं बनती हैं। घर की पूरी भाग दौड़ जो सुरभि के हाथ में हैं इसे छिनने के ताक में लगे रहते हैं।


7 राम स्वरूप राना:- ये हैं रावण और सुकन्या जी का एक मात्र जलता हुआ चिराग। इनके नाम का इनके गुणों से दुर दुर तक कोई सरोकार नहीं हैं। कहते हैं मां बाप का गुण इनके बच्चों को उपहार में मिलता हैं। वैसे ही इनके अदंर अपने मां बाप के सारे दुर्गुणों का भंडार पर्याप्त मात्रा में हैं। बस इनके अदंर एक सदगूर्ण यह हैं ये अपने चचेरी बहन पुष्पा से बहुत अधिक स्नेह करते हैं।


8 महेश बनर्जी:- ये एक कम्पनी में ऊंचे पद पर काम करते हैं। स्वभाव से बहुत परोपकारी हैं। कभी कभी इनका यह गूण इन्हे ही परेशानी में ढाल देते हैं। इनके पूर्वज भी जमींदार हुआ करते थे लेकिन अंग्रेजी और विद्रोहीओ ने इनकी सारी जमींदारी छीन लिया हैं। इनकी किस्मत अच्छी थी जो ये जिंदा बच गए हैं।


9 मनोरमा बनर्जी:- इनका स्वभाव बहुत गुस्सैल हैं और इनका स्वभाव थोडा चिड़चिड़ा हों गया हैं जब से इनके बेटे पांच साल के उम्र में किसी बीमारी के चलते मारे गए हैं।


10 कमला बनर्जी:- ये भी अपने मां की तरह गुस्सैल हैं और गुस्सा आने पर घर का सारा सामना तोड़ देते हैं। जिसका हर्जाना महेश बनर्जी जी को भरना पड़ता हैं। बाकी इनकी खूबसूरती बे मिसाल हैं और बुद्धि और समझदारी भरपूर मात्रा में हैं। इस वक्त अपने कॉलेज की पढ़ाई में व्यस्त हैं। ये लडको को कूटने के मामले में बिल्कुल भी परहेज नहीं करते किसी लड़के ने इनके साथ बदसलूकी किया तो उसे अपने चप्पल से मर मर के अपनी चप्पल तो थोड़ ही लेते है साथ ही लड़के की तोबड़े का नक्शा ही बिगड़ देते हैं।


ये तो हैं कुछ मूल किरदारों का परिचय बाकी जैसे जैसे कहानी आगे बड़ता जाएगा वैसे वैसे ओर भी किरदार जुड़ते जायेंगे। अब कुछ पाठक पूछेंगे इसमें तो हीरो का कोई परिचय ही नहीं हैं तो महाशय अभी हीरो के मां बाप एक नहीं हुऐ हैं मतलब अभी हीरो के मां बाप कुवारे हैं तो हीरो का परिचय कैसे दे दू। आज के लिए बस इतना ही जल्दी ही पहला अपडेट पेश करूंगा।

Nice intro
 

Destiny

Will Change With Time
Prime
3,965
10,660
144
Update - 1


पहाड़ी घटी में बसा एक गांव जो चारों ओर खुबसुरत पहाड़ियों से घिरा हुआ हैं। गांव के चौपाल पर एक जवान लड़का पुलिसिया जीप के बोनट पर बैठा था। लड़के के पीछे दो मुस्टंडे, हाथ में दो नाली बंदूक लिए मुस्तैदी से खड़े थे। दोनों इतने मुस्तैदी से खड़े थे कि थोडा सा भी हिल डोल होते ही तुरंत एक्शन में आ'कर सामने वाले को ढेर कर दे। उनके सामने एक बुजुर्ग शख्स हाथ जोड़े खड़ा हैं। शख्स के पीछे कईं ओर लोग हाथ जोड़े घुटनों पर बैठ हैं। सभी डर से थर थर कांप रहे हैं। सबको कांपते हुए देखकर लड़का अटाहास करते हुए बोला…क्यों रे मुखिया सुना है तू कर भरने से मना कर रहा था।

मुखिया जो पहले से ही डर से कांप रहे थे। अब तो उससे बोला भी नहीं जा रहा था। परिस्थिती को भाप कर मुखिया समझ गया कुछ नहीं बोला तो सामने खडे मुस्टंडे पल भर में उसके धड़ से प्राण पखेरू को आजाद करे देंगे और कुछ गलत बोला तो भी पल भार में उसके शरीर को जीवन विहीन कर देंगे। इसलिए मुखिया वाणी में शालीनता का समावेश करते हुए बोला….माई बाप हम'ने अपना सभी कर भर दिया हैं। आप ओर कर मांगेंगे तो हम बाल बच्चों को क्या खिलाएंगे उन्हें तो भूखा रखा भूखा पड़ेगा। कुछ रहम करे माई बाप हममें ओर कर भरने की समर्थ नहीं हैं।

मुखिया की बातों को सुनकर लड़का रूखे तेवर से बोला….जो कर तुम लोगों ने भरा वह तो सरकारी कर था। मेरा कर कौन भरेगा? तुम्हारे बाल बच्चे मरे या जिए मुझे कोई लेना देना नहीं, तुम्हें कर भरना ही होगा कर नहीं भरा तो मुझसे रहम की उम्मीद न रखना।

लड़के की बातों को सुनकर मुखिया सोच में पड गया अब बोले तो क्या बोले फिर भी उसे बोलना ही था नहीं बोला तो उसके साथ कुछ भी हों सकता था। इसलिए मुखिया डरते डरते बोला….माई बाप इस बार बागानों से उत्पादन कम हुआ हैं। सरकारी कर भरने के बाद जो कुछ भी हमारे पास बचा हैं उससे हमारे घर का खर्चा चला पाना भी सम्भव नहीं हैं ऐसे में आप ओर कर भरने को कहेंगे तो हमारे घरों में रोटी के लाले पड़ जायेंगे।

मुखिया की बातों को सुनकर लड़का गुस्से से गरजते हुए बोला…सुन वे जमीन पे रेगने वाले कीड़े मेरा नाम अपस्यू राना है। मैं कोई तपस्वी नहीं जो मुझ'में अच्छे गुणों का भंडार होगा या मैं अच्छा कर्म करुंगा इसलिए मैं तुम सभी को कल तक का समय देता हूं। इस समय के अदंर मेरा कर मुझ तक नहीं पहुंचा तो तुम्हारे घर की बहू बेटियो के आबरू को नीलाम होने से नहीं बचा पाओगे।

बहु बेटियो के आबरू नीलाम होने की बात सुन मुखिया असहाय महसूस कर रहा था। घर की मान सम्मान बचाने का एक ही रास्ता दिखा, वह हैं अपस्यू की बातों को मान लेना। इसलिए मुखिया दीन हीन भाव से बोला…माई बाप हमे कुछ दिन का मौहलत दे दीजिए हम कर भर देंगे।

मुखिया की बाते सुनकर अपस्यू हटाहास करते हुए बोला….तुम्हें मौहलात चाहिए दिया जितनी मौहलत चाहिए ले लो लेकिन जब तक तुम कर नहीं भर देते तब तक अपने घरों से रोज एक लड़की एक रात की दुल्हन बनाकर मेरे डाक बंगले भेजते रहना। फ़िर साथ आए साथियों से बोला…चलो रे सभी गाड़ी में बैठो नहीं तो ये कीड़े मकोड़े मेरे दिमाग़ का गोबर बाना अपने आंगन को लीप देंगे। सुन वे मुखिया कल तक कर पहुंच जाना चाहिए नहीं तो जितना देर करेगा उतना ही अपने बहु बेटियो की आबरू लुटवाता रहेगा और एक बात कान खोल कर सुन ले यह की बाते राना जी के कान तक नहीं पहुंचना चाहिए नहीं तो तुम सभी जान से जाओगे और तुम्हारे बहु बेटियां अपनी आबरू मेरे मुस्टांडो से नुचबाते नुचबाते मर जाएंगे।

अपस्यू साथ आए मुस्टांडो को ले'कर चला गया। उसके जाते ही बैठें हुए भीड़ में से एक बोला….मुखिया जी ऐसा कब तक चलेगा। हमे कब तक एक ही कर को दो बार भरना पड़ेगा। ऐसा चलाता रहा तो एक दिन हमे जमीन जायदाद बेचना पड़ जायेगा।

मुखिया…शायद जीवन भर इस पापी से अपने घरों की मन सम्मान बचाने के लिए एक कर को दो बार भरना पड़ेगा।

"हम कब तक अपश्यु और उसके बाप का जुल्म सहते रहेंगे। हम राजा जी को बोल क्यों नहीं देते।"

मुखिया….अरे ओ भैरवा तू बावला हों गया हैं सुना नहीं ये पापी क्या कह गया। यहां की भनक राजाजी की कानों तक पहुंचा तो दोनों बाप बेटे हमें मारकर हमारे बहु बेटियों के आबरू से तब तक खेलते रहेंगे जब तक हमारी बहु बेटियां जीवित रहेंगी।

भैरवा…मुखिया जी हमने अगर इस पापी की मांग पुरा किया तो हम भूखे ही मर जायेंगे।

मुखिया….ऐसा कुछ भी नहीं होगा। हर महीने महल से राजाजी हमारे भरण पोषण के लिए जो अनाज, कपडे और बाकी जरूरी सामान भिजवाते हैं। उससे हमारा गुजर बसर चल जाएगा। अब तुम सब जाओ और कल इस पापी तक उसका कर पहूचाने की तैयारी करों।

सभी दुखी मन से अपने अपने घरों को चल देते हैं। मुखिया भी उनके पीछे पीछे चल देते हैं। दूसरी ओर पहाड़ की चोटी पर बाना आलीशान महल जिसकी भव्यता को देखकर ही अंदाजा लग जाता हैं। यह रहने वाले लोगों का जीवन तमाम सुख सुविधाओं से परिपूर्ण हैं। महल के अदंर राजेंद्र प्रताप राना बेटे को बुला रहें थें। आवाज में इतनी गरजना थीं मानो कोई बब्बर शेर वादी को दहाड़ कर बता रहे हों। मैं यह का राजा हूं। बाप की गर्जना भारी आवाज सुन रघु थार थार कांपने लगा था। मन में सोचा जाए की न जाएं, नहीं गए तो पापा कहीं नाराज न हों जाएं इसलिए कुछ साहस जुटा रूम से बाहर आया। फिर पापा के सामने जा खडा हों गया। उससे खडा भी नहीं होया जा रहा था हाथ पैर थार थार कांप रहे थे। रघु से बोला भी नहीं जा रहा था फ़िर भी लड़खड़ाते जुबान से बोला….अपने बुलाया पापाजी।

बेटे को कांपते देख और लड़खड़ाती बोली सुन राजेंद्र बोला….हां मैंने बुलाया लेकिन तुम ऐसे कांप क्यों रहे हों। जरूर तुम'ने कुछ गलत किया होगा। बोलों तुमने ऐसा किया किया जो तुम्हें मेरे सामने आने में इतना डर लग रहा हैं।

रघु कुछ नहीं बोलता चुपचाप खड़ा रहता हैं। रघु को बोलता न देखकर वहां बैठे रघु की मां सुरभि बोली….रघु बेटा तू मेरे पास आ, आप भी न मेरे बेटे को हर बार डरा देते हों। राज पाट चाली गईं लेकिन राजशाही अकड़ अभी तक नहीं गई।

रघु चुपचाप अपने मां के पास जा'कर बैठ जाता हैं। राजेंद्र पत्नी की बात सुन मुस्कुराते हुए बोला…अरे सुरभि राज पाट भले ही चाली गई हों लेकिन राजशाही हमारे खून में हैं। खून को कैसे बदले वो तो अपना रंग दिखायेगा ही।

सुरभि बेटे का सिर सहलाते हुए बोली..अपको अपने खून का जो भी रंग दिखाना हैं घर से बाहर दिखाओ। आप के करण मेरा लाडला बिना कोई गलती किए ऐसे डर गया जैसे दुनियां भर का सभी गलत काम इसने किया हों। आप खुद ही देखो कैसे कांप रहा हैं इससे तो बोला भी नहीं जा रहा था।

सुरभि की बाते सुनकर राजेंद्र के चहरे पर आया हुआ मुस्कान ओर गहरा हों गया फिर राजेंद्र अपने जगह से उठा बेटे के पास जाकर बैठते हुए बोला…रघु मैं तेरा दुश्मन नहीं हूं मैं ऐसा इसलिए करता हूं ताकि तू रह भटक कर गलत रस्ते पर न चल पड़े। तुझे ही तो आगे चलकर यह की जनताओं का सुख दुःख का ख्याल रखना हैं। जब तू कुछ गलत करता ही नहीं हैं तो फिर डरता क्यों हैं। मैं बाप हूं मैं तो अपना फर्ज निभाऊंगा ही। हमेशा एक बात का ख्याल रखना अगर तूने कुछ गलत नहीं किया तो बिना डरे बिना झिजके साफ साफ लावजो में बात करा कर। तेरा डरना ही मेरे मन में शक पैदा करता हैं तूने कुछ तो गलत किया होगा।

रघु कुछ नहीं कहता सिर्फ हां में सिर हिला देता हैं। तब राजेंद्र रघु के सिर पर हाथ फिरा देता हैं तब रघु मुस्कुरा देता हैं फ़िर खुद को सहज कर लेता हैं। रघु को मुसकुराते देख सुरभि बोली….सुनिए जी आप अभी से मेरे बेटे पर अपने काम का बोझ न डाले अपको कितनी बार कहा हैं आप मेरे लाडले को दहाड़ कर न बुलाया करे। अगली बार अपने मेरे लाडले को दहाड़ कर बुलाया तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।

दुलार और बचाव के पक्ष में बोलते देख रघु पूर्ण सहज होकर मुस्करा देता हैं बेटे को मुसकुराते देख राजेंद्र बोला….मुझे दाना पानी बंद नहीं करवाना हैं। इसलिए रानी साहिबा जी अपकी बातों का ध्यान रखूंगा।

राजेंद्र जी की बाते सुनकर सुरभि बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोली….अच्छा तो मैं अपका दाना पानी बंद कर देती हूं। अब आना दाना चुगने दाने के जगह कंकड़ परोस दूंगी।

राजेंद्र ….जो भी परोसोगी मैं उससे ही अपना पेट भरा लूंगा, पेट भरने से मतलब हैं। क्या परोसा जा रहा हैं क्या नहीं इसकी छान बीन थोडी न करना हैं।

दोनों में प्यार भारी नोक झोंक चलता रहता हैं। मां बाप के झूठी तकरार को देख रघु बोला….मां पापा मैं जान गया हूं यह सब आप मेरे लिए ही कर रहे हैं। अब आप दोनों अपनी झूठी तकरार बंद कीजिए और मुझे बताइए अपने क्यों बुलाया कुछ विशेष काम था?

राजेंद्र….कुछ विशेष काम नहीं था मैं तो तुम्हारे साथ मसकारी करना चाहता था इसलिए बुलाया था।

सुरभि…अपका मसखरी करना मेरे बेटे पर कितना भारी पड़ता हैं अपने ने देखा न मेरा लाडला कितना सहम गया था। आप को कितना कहा लेकिन आप हों की सुनते नहीं बे वजह मेरे बेटे को डरते रहते हों।

रघु बोला…मां आप फिर से शुरू मत हों जाना मैं बच्चों को पढ़ाने जा रहा हूं। मेरे जानें के बाद अपको पापा से जितना लड़ना हैं लड़ लेना।

ये कह रघु उठकर भाग जाता हैं। सुरभि बेटे को आवाज देती रह जाती, रघु बिना कोई जवाब दिए चला जाता हैं। रघु के जाते ही राजेन्द्र बोला….सुरभि रघु को जानें दो हम अपने नोक झोंक को आगे बढ़ाए बेटा भी तो यही कह गया हैं।

सुरभि उठकर जाते हुए बोली… अभी मैं दोपहर की खाने की तैयारी करवाने जा रहीं हूं आपसे बाद में निपटूंगी।

सुरभि उठकर कीचन की और चल देती हैं। राजेंद्र आवाज देता हैं तब सुरभि मुड़कर राजेंद्र को बोली... अभी मेरा मूड नहीं हैं नोकझोक करने का जब मुड़ होगा बहुत सारा नोक झोंक करूंगा।

राजेंद्र... जब तुम्हारा मुड़ नहीं हैं तो मैं यहां क्या करूंगा मैं भी कुछ काम निपटा कर आता हुं।

सुरभि मुस्कुराते हुई कीचन की और चल देती हैं। फिर राजेंद्र रूम से कुछ फाइल्स लेकर चला जाता हैं।


आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। पहला अपडेट कैसा लगा बताना न भूलिएगा।

thank you🙏🙏🙏
 
Last edited:

Destiny

Will Change With Time
Prime
3,965
10,660
144
Congratulations brother for new story. Aapki last story padhi thi maine par tab account nahi tha so comment nahi kar paya. Par definitely bahut hi umda likhte hain aap. Asha hai ki yeh kahani bhi behatreen hogi.

Waiting for Update...
nice intro ...
ranaji ka bhai ravan aur uski biwi sukanya bahut ghatiya kism ke log hai aur unka beta bhi waisa hi hai ..
aur wahi ranaji ,uski patni aur beta raghuveer achche sanskaro se bhare hai 😍..

dekhte hai aisi kya galti ki ranaji ne jiske chalte pariwar ko musibat ka saamna karna pada .
Areee galti se maine Raavan ko raghuveer ka bhai samjha tha
Nice and beautiful introduction...
Nice intro

पहला अपडेट पोस्ट कर दिया हैं। पढ़िए और बताएं कैसा हैं। अपना कीमती रेवो देना न भूलना।
 

Jaguaar

Prime
17,679
60,240
244
अजनबी हमसफ़र- रिश्तों का गठबंधन


Update - 1



पहाड़ी घटी में बसा एक गांव जो चारों ओर खुबसुरत पहाड़ियों से घिरा हुआ हैं। गांव के चौपाल पर एक जवान लड़का पुलिसिया जीप के बोनट पर बैठा हैं। लड़के के पीछे दो मुस्टंडे, हाथ में दो नाली बंदूक लिए खड़ा हैं। दोनों इतने मुस्तैदी से खड़े हैं कि थोडा सा भी हिल डोल होते ही तुरंत एक्शन में आ कर सामने वाले को ढेर कर दे। उनके सामने एक बुजुर्ग शख्स हाथ जोड़े खड़ा हैं। शख्स के पीछे कईं लोग हाथ जोड़े अपने घुटनों पर बैठ हैं। सब डर से थर थर कांप रहे हैं। सबको कांपते हुए देखकर लड़का अटाहास करते हुए बोला… "क्यों रे मुखिया सुना है तू कर भरने से मना कर रहा हैं।" मुखिया जो पहले से ही डर से कंपकंपा रहे हैं। अब तो उससे बोला भी नहीं जा रहा हैं। मुखिया परिस्थिती को भाप कर समझ गया कुछ नहीं बोला तो सामने खडे मुस्टंडे पल भर में उसके धड़ से प्राण पखेरू को आजाद करे देंगे और कुछ गलत बोला तो भी पल भार में उसके शरीर को जीवन विहीन कर देंगे। इसलिए मुखिया अपने वाणी में शालीनता का समावेश करते हुए बोला…." माई बाप हम ने अपना सारा कर भर दिया हैं। आप ओर कर मांगेंगे तो हमे अपने बाल बच्चों को भूखा रखना पड़ेगा। हममें ओर कर भरने की समर्थ नहीं हैं।" मुखिया की बातों को सुनाकर लड़का रूखे तेवर से बोला…."जो कर तुम लोगों ने भरा वह तो सरकारी कर था। मेरा कर कौन भरेगा? लड़के की बातों को सुनाकर मुखिया सोच में पड गया अब बोले तो क्या बोले फिर भी उसे बोलना ही था नहीं बोला तो उसके साथ कुछ भी हों सकता हैं। इसलिए मुखिया डरते डरते बोला…." माई बाप इस बार बागानों से उत्पादन कम हुआ हैं। सरकारी कर भरने के बाद जो कुछ भी हमारे पास बचा हैं उससे हमारे घर का खर्चा चला पाना भी सम्भव नहीं हैं ऐसे में आप ओर कर भरने को कहेंगे तो हमारे घरों में रोटी के लाले पड़ जायेंगे।" मुखिया की बातों को सुनाकर लड़का गुस्से से गरजते हुए बोला…"सुन वे जमीन पर रेगने वाले कीड़े मेरा नाम राम स्वरूप है। मेरा नाम ही सिर्फ राम हैं, राम का कोई गुण मुझमें मौजुद नहीं हैं। इसलिए मैं तुम सब को कल तक का समय देता हूं। इस समय के अदंर मेरा कर मुझ तक नहीं पहुंचा तो तुम्हारे घर की बहू बेटियो के इज्जत को नीलाम होने से नहीं बचा पाओगे।" अपने बहु बेटियो के इज्जत नीलाम होने की बात सुनाकर मुखिया असहाय महसूस कर रहा हैं। उसे अपने घर की इज्जत बचाने का एक ही रास्ता दिखता हैं और वह हैं रामस्वरूप की बातों को मान लेना। इसलिए मुखिया दीन हीन भाव से बोलता हैं…" माई बाप हमे कुछ दिन का महोलत दीजिए हम कर भर देंगे।"


मुखिया की बाते सुनाकर राम स्वरूप हटाहास करते हुए बोला…." तुम्हें मोहलत चाहिए दिया जितनी मोहलत चाहिए ले लो लेकिन जब तक तुम कर नहीं भर देते तब तक अपने घरों से रोज एक लड़की मेरे डाक बंगले में भेजते रहना एक रात की दुल्हन बनकर।"और अपने साथियों से बोला…" चलो रे सब घड़ी में बैठो नहीं तो ये कीड़े मकोड़े मेरे दिमाग़ का गोबर बाना कर अपने आंगन को लीप देंगे। सुन वे मुखिया कल तक कर पहुंच जाना चाहिए नहीं तो जितना लेट करेगा उतना ही अपने बहु बेटियो की इज्जत लुटवाता रहेगा और यह की बाते राना जी के कान तक नहीं पहुंचना चाहिए नहीं तो तुम सब अपने जान से जाओगे और तुम्हारे बहु बेटियां अपनी अवरू मेरे मुस्टांडो से नुचबाते नुचबाते मर जाएगी।" राम स्वरूप अपने मुस्टांडो के साथ चला गया। उसके जाते ही बैठें हुए भीड़ में से एक बोला…." मुखिया जी ऐसा कब तक चलेगा। हमे कब तक एक ही कर दो बार भरना पड़ेगा।" मुखिया बोलता हैं…" शायद जीवन भर इस पापी से अपने घरों की मन सम्मान बचाने के लिए एक कर दो बार भरना पड़ेगा।" तभी भीड़ में से एक ओर व्यक्ति बोला…" हम कब तक इसका ओर इसके बाप का जुल्म सहते रहेंगे। हम राजा जी को बोल क्यों नहीं देते।"


मुखिया बोला…."अरे ओ भैरवा तू बावला हों गया हैं सुना नहीं ये पापी क्या कह कर गया हैं। यहां की भनक राजाजी की कानों तक पहुंचा तो दोनों बाप बेटे हमें मारकर हमारे बहु बेटियों के आबरू से तब तक खेलते रहेंगे जब तक हमारी बहु बेटियां जीवित रहेंगी।" मुखिया की बातों को सुनाकर भैरवा बोला…" मुखिया जी हमने अगर इस पापी की मांग को पुरा किया तो हम तो भूखे पेट ही मर जायेंगे।" मुखिया भैरवा ओर बाकी सब को समझते हुए बोला…."ऐसा कुछ भी नहीं होगा। हर महीने महल से राजाजी हमारे भरण पोषण के लिए अनाज, कपडे और बाकी जरूरी सामान भिजवाते हैं। उससे हमारा गुजर बसर चल जाएगा। अब तुम सब जाओ और कल इस पापी तक उसका कर पहूचाने की तैयारी करों।"


सब दुखी मन से अपने अपने घरों को चल देत हैं। मुखिया भी उनके पीछे पीछे चला जाता हैं। दूसरी ओर पहाड़ की चोटी पर बाना आलीशान महल जिसकी भव्यता को देखकर ही अंदाजा लग जाता हैं। यह रहने वाले लोगों का जीवन तमाम सुख सुविधाओं से परिपूर्ण हैं। महल के अदंर राजेंद्र प्रताप राना अपने बेटे रघु को बुला रहें हैं। उनकी आवाज में इतनी गरजना हैं मानो कोई बब्बर शेर वादी को दहाड़ कर बता रहे हों । मैं यह का राजा हूं। राजेंद्र जी के बुलाने से रघु अपने रूम से दौड़ कर आते हैं और राजेंद्र के सामने सर झुकाए खड़ा होंकर बोलता है…." अपने बुलाया पापाजी" राजेंद्र जी अपने बेटे को कांपते हुए देखकर बोलते हैं…." हां मैंने बुलाया लेकिन तुम ऐसे कांप क्यों रहे हों।" रघु कुछ नहीं बोलता चुपचाप खड़ा रहता हैं। रघु को बोलता न देखकर वहां बैठे रघु की मां सुरभि बोलती हैं…." रघु बेटा तू मेरे पास आ, आप भी न मेरे बेटे को हर बार डरा देते हों। राज पाट चाली गईं लेकिन राजशाही अकड़ अब तक नहीं गई।" रघु चुपचाप अपने मां के पास जाकर बैठ जाता हैं। राजेंद्र जी अपने पत्नी की बात सुनाकर मुस्कुराते हुए बोलते हैं…" अरे सुरू (सुरभि) राज पाट भले ही चाली गई हों लेकिन राजशाही हमारे खून में हैं। खून को कैसे बदले वो तो अपना रंग दिखायेगा ही।" सुरभि अपने बेटे का सार सहलाते हुए बोले.." अपको अपने खून का जो भी रंग दिखाना हैं घर से बाहर दिखाओ। आप के करण मेरा लाडला बिना कोई गलती किए ऐसे डर गया हैं जैसे दुनियां भर का सारा गलत काम इसने किया हैं।"


सुरभि की बाते सुनाकर राजेंद्र की चहरे पर आया हुआ मुस्कान ओर गहरा हों गया हैं। राजेंद्र जी अपने जगह से उठकर अपने बेटे के पास जाकर बैठते हुए बोला…" रघु मैं तेरा दुश्मन नहीं हूं मैं ऐसा इसलिए करता हूं ताकि तू रह भटक कर गलत रस्ते पर न चल पड़े। तुझे ही तो आगे चलकर यह की जनताओं का सुख दुःख का ख्याल रखना हैं।" राजेंद्र जी की बाते सुनाकर सुरभि बोलते हैं…." सुनिए जी आप अभी से मेरे बेटे पर अपने काम का बोझ न डाले और अपको कितनी बार कहा हैं आप मेरे लाडले को दहाड़ कर न बुलाया करे। अगली बार अपने मेरे लाडले को दहाड़ कर बुलाया तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।" सुरभि की बाते सुनाकर राजेंद्र बोले…."ध्यान रखूंगा सुरु जी ! मुझे अपना दाना पानी बंद नहीं करवाना हैं।" राजेंद्र जी की बाते सुनाकर सुरभि बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोली…."अच्छा तो मैं अपका दाना पानी बंद कर देती हूं। अब आना दाना चुगने दाने के जगह कंकड़ परोस दूंगी।" राजेंद्र सुरभि से चुहल करते हुए बोले…." जो भी परोसोगी मैं उससे ही अपना पेट भरा लूंगा मुझे अपना पेट भरने से मतलब हैं।"दोनों की चुहलवाजी चलता रहता हैं। अपने मां बाप के झूठी तकरार को देखकर रघु अपने डर से मुक्त हों जाता हैं। फिर रघु बोलता हैं…." मां पापा मैं जान गया हूं यह सब आप मेरे लिए ही कर रहे हैं। अब आप दोनों अपनी झूठी तकरार बंद कीजिए और मुझे बताइए अपने मुझे क्यों बुलाया कुछ विशेष काम था?" राजेंद्र बोलता हैं.." कुछ विशेष काम नहीं था मैं तो अपने बेटे से मस्करी करने के लिए बुलाया था।" सुरभि बोलती हैं…" अपका मसखरी करने से मेरा लाडला कितना सहम जाता हैं। अपको कुछ पाता भी हैं।" तभी रघु बोलता हैं… " मां आप फिर से शुरू मत हों जाना मैं बच्चों को पढ़ाने जा रहा हूं। मेरे जानें के बाद अपको पापा से जितना लड़ना हैं लड़ लेना।" ये कह कर रघु उठकर भाग जाता हैं। सुरभि अपने बेटे को आवाज देती रह जाती हैं। फिर राजेन्द्र बोलते हैं…."सुरु रघु को जानें दो और रघु हमे जो करने को कह गया हैं वो शुरू करें।" सुरभि उठकर जाते हुए बोली…" अभी मैं दोपहर की खाने की तैयारी करवाने जा रहीं हूं आपसे बाद में निपटूंगी।" सुरभि के किचन में जाते ही। राजेन्द्र भी अपने कुछ काम निपटाने चले जाते हैं।


आज के लिए बस इतना ही। तबियत खराब होने की वजह से ज्यादा बड़ा अपडेट नहीं लिख पाया। अभी तो आप सब इतने से ही काम चलाए।

Superb Updateee

Gaon waale chup rehte hai isiliye unn baap beto ki himmat itni badh gayi hai. Agar woh jaake ekbaar bolde toh unn baap beto ko unke kiye ki saza mil jaayegi. Par yeh darr insaan ko naa jeene deta hai aur naa marne. Aur issi darr ka fayda yeh baap bete uthaa rahe hai.

Dekhte hai inn baap beto ka asli roop kab Rajendra aur Raghu ke saamne aata hai.
 
Top