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Incest ♡ सफर – ज़िंदगी का ♡

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Ouseph

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पात्र – परिचय
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ये परिवार राजस्थान के शहर उदयपुर से 40 किलोमीटर दूर बसे एक बड़े ही विकसित गांव – यशपुर में रहता है। यशपुर अपने इर्द गिर्द बसे 18 गांवों के मध्य में है और उन सबमें से सबसे अधिक विकसित भी। कारण यही परिवार है जो कई पीढ़ियों से यशपुर में बसा है और इनकी प्रथा रही है के दोनों हाथ खोलकर गांव के भले के लिए खर्च करते हैं।

1.) रामेश्वर चव्हाण : आयु : 70 वर्ष। अपने ज़माने के एक बड़े जमींदार। यशपुर और पास के 18 गावों में सभी इन्हे बड़े आदर से “चव्हाण साहब” कहकर पुकारते हैं। हालांकि इनकी उम्र बढ़ चली है पर अभी भी इनके चेहरे पर वो गंभीरता और आवाज़ में कड़कपन कायम है। अपने परिवार से बहुत प्यार करते हैं खासकर अपने बड़े पोते से।

2.) अनुपमा चव्हाण : आयु : 65 वर्ष। एक कुशल गृहणी। अपने परिवार से बेहद प्यार करती हैं। ज्यादा वक्त पूजा – पाठ में लगाती हैं और अक्सर मंदिरों और पूजन स्थलों की यात्रा भी करती रहती हैं।

रामेश्वर और अनुपमा की तीन संताने हैं जिनमें से दो लड़के और एक लड़की है।

3.) अनिरुद्ध चव्हाण : आयु : 46 वर्ष। राजस्थान के एक जाने – माने बिजनेसमैन। इनका टेक्सटाइल यानी कपड़ों का कारोबार है और राजस्थान में इन्हे “टेक्सटाइल किंग” की उपाधि से भी नवाज़ा जाता है। अक्सर काम के सिलसिले में घर से बाहर रहते हैं।

4.) रागिनी चव्हाण : आयु : 44 वर्ष। ये अनिरुद्ध की धर्मपत्नी और चव्हाण परिवार की बड़ी बहू हैं। एक बहुत ही खूबसूरत महिला। इन्हे देख कर कोई नही कह सकता के ये अपने जीवन के 40 बसंत पर कर चुकी हैं। इनका एक महिलाओं और बच्चों से जुड़ा सामाजिक संस्थान है और कई जरूरतमंदों की मदद ये करती रहती हैं। अपने तीनों बच्चों से बहुत प्यार करती हैं।


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अनिरुद्ध – रागिनी के तीन बच्चे हैं। दो लड़कियां और एक लड़का।

5.) आरुषि चव्हाण : आयु : 24 वर्ष। एक बेहद ही खूबसूरत लड़की। दूध से गोरे रंग पर हल्के गुलाबीपन की चादर ओढ़े एक हुस्न की मल्लिका। ये बहुत ही शांत स्वभाव की है और अपने छोटे भाई – बहन से बहुत प्यार करती है। फिल्हाल यशपुर के करीबी शहर से एम.बी.ए. कर रही है।


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6.) शिवाय चव्हाण : आयु : 21 वर्ष। शिवाय यानी घर का सबसे लाडला सदस्य। परिवार का बड़ा पोता होने के चलते सबका लाडला है। खासकर अपने दादा और बड़ी बहन – आरुषि का। सबसे खास बात ये की ये इकलौता ऐसा शख्स है जिसके संग रामेश्वर जी हंसी मज़ाक तक कर लेते हैं। इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन पूरी कर चुका है और कुछ ही दिनों में आगे की पढ़ाई शुरू होने वाली है। बचपन से गांव की मिट्टी में खेला है तो शरीर एक दम पत्थर बन गया है। रामेश्वर जी ने स्वयं इसे कुश्ती खेलना सिखाया है। चेहरे से बेहद मासूम सा दिखता है पर इसके जीवन में कुछ राज़ भी हैं।

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7.) पाखी चव्हाण : आयु : 19 वर्ष। घर की सबसे चुलबुली और सबसे नटखट सदस्य। ये एक नामी कॉलेज से एम.बी.बी.एस. की पढ़ाई कर रही है। एक कुशल डॉक्टर बनना चाहती है। इसके और शिवाय के बीच अक्सर नोक–झोंक चलती रहती है। पर दोनो में प्यार भी बहुत है। इसके लिए इसकी बड़ी बहन आरुषि ही प्रेरणास्त्रोत है। आखिर आरुषि हर काम में इतनी परफेक्ट जो है।

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8.) रणवीर चव्हाण : आयु : 43 वर्ष। रामेश्वर और अनुपमा के छोटे बेटे। ये पेशे से एक वकील हैं और जयपुर हाई कोर्ट में कार्यरत हैं। ये एक बहुत ही हंसमुख और मिलनसार स्वभाव के मालिक हैं और सदा दूसरों की मदद करने को तत्पर रहते हैं। शिवाय और रणवीर, चाचा – भतीजा कम और दोस्तों की तरह ज्यादा रहते हैं।

9.) अक्षरा चव्हाण : आयु : 40 वर्ष। बेहद ही सुंदर महिला। ये भी एक गृहणी हैं। वैसे तो इन्होंने कानून अर्थात लॉ की पढ़ाई की थी। ये और रणवीर एक ही कॉलेज में पढ़ते थे और वहीं एक दूसरे से प्यार कर बैठे। पर बाद में अपने बच्चों को अधिक समय ना दे पाने के कारण इन्होंने वकालत से मुंह मोड़ लिया। हालांकि परिवार के सभी सदस्यों ने इन्हे मना भी किया लेकिन इनकी ममता के आगे उनका कोई तर्क ना टिक पाया।


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रणवीर – अक्षरा के दो बच्चे हैं। एक लड़का और एक लड़की।

10.) तान्या चव्हाण : आयु : 20 वर्ष। तान्या उर्फ तनु। ये पाखी की पार्टनर है, पार्टनर इन क्राइम। दोनो हर शैतानी साथ मिलकर करती हैं। दोनों ही एक दूसरे की पक्की सहेलियां हैं। यहां तक की पाखी और तान्या का कमरा भी एक ही है। फिल्हाल पाखी के साथ ही पढ़ रही है पर उस से एक साल आगे है।


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11.) तुषार चव्हाण : आयु : 18 वर्ष। इस परिवार का सबसे छोटा सदस्य। ये शिवाय का लाडला है। अर्थात वो इसकी हर काम में मदद करता है, चाहे वो पढ़ाई हो या खेल कूद या फिर कभी इसकी लड़ाई या झगड़ा वगेरह हो जाए तब भी। इसी साल कॉलेज जाना आरंभ किया है। पढ़ाई में ठीक ठाक सा ही है, वैसे ये फिल्मी दुनिया में नाम कमाना चाहता है और इसीलिए नृत्य और ड्रामा की क्लासेज भी लेता है।

12.) सौम्या रावत : आयु : 39 वर्ष। रामेश्वर और अनुपमा जी की इकलौती लड़की। ये अपने मां – बाप और दोनों भाइयों की लाडली रही है। ये एक कोचिंग संस्थान चलाती है जो कम शुल्क में बच्चों को अच्छी शिक्षा प्रदान करता है। अपने आप को पूरी तरह फिट रखा है क्योंकि इन्हे कसरत वगेरह का बहुत शौक है।


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13.) विक्रांत रावत : आयु : 41 वर्ष। सौम्या का पति। ये पुलिस फोर्स में डिप्टी कमिश्नर की कुर्सी पर कार्यरत है। बहुत ही ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ इंसान। इसके लिए इसकी ड्यूटी सबसे पहले आती है और बाकी सब बाद में। शिवाय के जितने भी राज़ हैं ये सबके बारे में जानते हैं।

सौम्या और विक्रांत की केवल एक बेटी हैं

14.) श्रुति रावत : आयु : 19 वर्ष। ये अपने पिता की ही तरह एक पुलिस अधिकारी बनना चाहती है तो कॉलेज की पढ़ाई के साथ साथ उसकी भी तैयारी कर रही है। ये काफी शांत स्वभाव की है। स्कूल – कॉलेज में कभी इसकी कोई दोस्त या सहेली नही रही क्योंकि इसे किसी से ज्यादा मिलना – जुलना पसंद नही। इसके ऐसे स्वभाव का भी एक विशेष कारण है।


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15.) धीरेन नायक : आयु : 46 वर्ष। ये चव्हाण परिवार का अंगरक्षक यानी बॉडीगार्ड है। रामेश्वर और अनुपमा जी ने उसे कभी अनिरुद्ध और रणवीर से अलग नहीं माना और ये भी उनकी उतनी ही इज्जत करता है। इस परिवार के लिए अपनी जान भी दे सकता है।

16.) मैथिली नायक : आयु : 42 वर्ष। धीरेन की पत्नी। इसके बारे में कहानी में पता चलेगा।


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17.) काव्या नायक : आयु : 21 वर्ष। धीरेन और मैथिली की बेटी। इसका और शिवाय का जन्म एक दूसरे से कुछ दिनों बाद ही हुआ था। लेकिन इन दोनो में 36 का आंकड़ा है। दोनो की एक दूसरे से बिल्कुल नही बनती और हमेशा आपस में झगड़ते रहते हैं। ये भी इंजीनियरिंग ही कर रही है पर इसने गेजुएशन शिवाय से अलग कॉलेज से किया था।

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{इनका परिवार इतना ही था। हालांकि रागिनी के मायके का परिचय मैने अभी नही दिया है, उनके बारे में आगे चलकर पता चलेगा। और भी कई किरदार कहानी में आयेंगे और उनका परिचय उसी वक्त मिल जाएगा।}
जब आगाज़ ऐसा है, तो अंजाम का अंदाजा लगा सकते हैं। एक अत्यंत धमाकेदार और मसालेदार कहानी के लिए अत्यंत बधाईयां
 
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Ouseph

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भाग – 2
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चव्हाण परिवार में पूरा दिन खुशी का माहौल था, आरुषि के आगमन से सभी बेहद खुश थे। सौम्या और उसका परिवार, भी यहीं आया हुआ था इसीलिए देर रात तक सभी आपस में बातें करते रहे। पर फिर नींद के ऊपर किसका काबू होता है, सभी अपने – अपने कमरों में आराम करने चल दिए। सर्दियों के दिन थे तो आरुषि अपने कमरे में रजाई ओढ़े लेटी हुई थी, तभी उसके कमरे का दरवाज़ा खुला। एक छोटे बल्ब की मध्यम से रोशनी में उसने देख लिया के दरवाज़े पर खड़ा शख्स शिवाय ही था और अपने आप ही आरुषि के चेहरे पर एक मुस्कान आ गई। वो वैसे ही लेटे हुए सोने का नाटक करने लगी।

शिवाय उसके करीब आया और,

शिवाय : आप सो गई हो दी?

दो तीन बार उसने आरुषि के गाल को थपथपाया पर वो वैसे ही सोने का नाटक करते रही। वो निराश सा होकर पलटा और जैसे ही आगे बढ़ने वाला था आरुषि ने उसका हाथ पकड़ लिया।

आरुषि : मुझे पता था मेरे भाई को नींद नही आयेगी, तो मैं कैसे सो जाती?

शिवाय मुस्कुराकर आरुषि के साथ ही लेट गया और आरुषि ने भी उसके सीने पर सर रख लिया।

शिवाय : मुझे आपकी बहुत याद आती थी दी।

आरुषि : मुझे भी छोटू।

शिवाय : आपको पता है मैने आपसे कितनी सारी बातें करनी थी पर आप पहले ही चली गई।

आरुषि : बातें, मतलब?

शिवाय : दी मैं आपको बहुत कुछ बताना चाहता हूं, वो सब जो मैने बाकी सबसे छिपाया है आज तक।

आरुषि : सबसे छिपाया है, फिर मुझे क्यों बताना चाहता है?

शिवाय ने आरुषि के हाथ को कसकर पकड़ लिया और,

शिवाय : क्योंकि आप मेरी सबसे प्यारी, सबसे अच्छी दी हो। मैं आपसे बहुत ज्यादा प्यार करता हूं दी, बहुत ज्यादा।

आरुषि ने उसकी कमीज़ को अपनी मुट्ठी में भींच लिया और कहा,

आरुषि : मैं भी तुझे बहुत प्यार करती हूं शिवु। अब बता क्या बताना चाहता है।

शिवाय : आज नही, कल हम दोनो कहीं घूमने जाएंगे, फिर आपको बताऊंगा।

आरुषि : आज क्यों नही?

शिवाय : क्योंकि आज मुझे सोना है, पूरे 2 साल बाद चैन की नींद आयेगी मुझे।

आरुषि उसकी बात से भाव विभोर सी हो गई और उसे कसकर गले लगा लिया। दोनो ऐसे ही एक दूसरे को जकड़े नींद की वादियों में को गए।

अगली सुबह जब रागिनी जी आरुषि को जगाने आया तो उन्होंने देखा के आरुषि और शिवाय एक दूसरे को गले लगाए सो रहे थे। वो भली भांति जानती थी के दोनो भाई – बहन में शुरू से ही कितना प्यार था और जब आरुषि घर से दूर गई थी उसके बाद से शिवाय कैसे दुखी सा रहने लगा था। उन्हें अपने बच्चों का आपस में प्यार देख कर बहुत खुशी महसूस हुई, उन्होंने दोनो के माथे को एक बार चूमा और फिर उन्हें जगाए बिना ही कमरे से चली गई।

सुबह अपने चेहरे पर पड़ती धूप से शिवाय की आंखें खुली तो उसे अपने ऊपर थोड़ा भार महसूस हुए। उसने गौर किया तो पाया के आरुषि उसके ऊपर लेटी थी। शायद नींद में करवटें बदलते हुए वो उसके ऊपर ही चढ़ गई थी। खिड़की से आती धूप और हल्की सी हवा आ रही थी जोकि सीधे आरुषि के चेहरे पर पड़ रही थी। शिवाय काफी देर तक एक टक उसे देखता रहा और फिर धीमे से उसके गालों को सहलाने लगा। कुछ ही पलों में आरुषि की नींद टूट गई और उसने कसमसाते हुए आंखें खोली। कुछ देर लगी उसे खुद की हालत समझने में और फिर वो धीमे से मुस्कुराने लगी।

आरुषि : तू कब उठा?

शिवाय : बस अभी अभी। आपको नींद तो ठीक आई ना?

आरुषि : बहुत अच्छी, चल अब उठ जा फिर तैयार होकर कहीं घूमने चलेंगे।

शिवाय : हम्म्म.. सिर्फ आप और मैं।

आरुषि ने एक बार हल्के से उसकी नाक को खींचा और फिर अपने कमरे से ही जुड़े हुए बाथरूम में चली गई। शिवाय भी अपने कमरे की तरफ चल दिया।


थोड़ी देर बाद सभी डाइनिंग हॉल में बैठे नाश्ता कर रहे थे। पर अनिरुद्ध यानी शिवाय के पिताजी सुबह – सुबह ही बिज़नेस के सिलसिले में जयपुर निकल गया था।

रामेश्वर जी : बहू अनिरुद्ध कहां है? अब तक आया नही यहां।

रागिनी जी : बाबूजी वो तो सुबह सुबह ही जयपुर निकल गए थे। कोई मीटिंग है उनकी।

रामेश्वर जी : ये अनिरुद्ध पता नही कब सुधरेगा, उसे कोई समझाए के पैसा और कारोबार ही सब कुछ नही होता, परिवार भी कुछ होता है।

तभी शिवाय और आरुषि सीढ़ियों से नीचे उतरे और उन्होंने ये सारी बात सुन ली थी। रागिनी जी का उदास चेहरा देख कर शिवाय ने सीधे जाकर अपनी मां को पीछे से गले लगा लिया और कहा,

शिवाय : अरे मातु श्री निराश क्यों होती हो। अभी आपका पुत्र आपके पास है, कहिए क्या इच्छा है आपकी?

उसके बोलने के तरीके को सुनकर सभी मुस्कुराने लगे। इसी लिए वो परिवार में सबका चहेता था क्योंकि पल भर में वो रोते को हंसा दिया करता था।

रागिनी जी ने बस मुस्कुराकर उसके सर पर हाथ फेरा और फिर सभी ने शांति से बस नाश्ता पूरा किया। नाश्ते के बाद शिवाय और आरुषि बाहर जाने लगे तो,

रागिनी जी : तुम दोनो कहीं बाहर जा रहे हो क्या?

आरुषि : जी मां, थोड़ा घूमने।

रागिनी जी : ठीक है, लेकिन जल्दी वापिस आ जाना।

शिवाय : हम्म्म।

दोनो बाहर आ गए और शिवाय जैसे ही गाड़ी बाहर निकालने लगा तो,

आरुषि : तेरी बाइक कहां है?

शिवाय : क्यों दी?

आरुषि : मुझे बाइक पर जाना है।

उसने मुस्कुराकर हां में सर हिलाया, तभी उसे कुछ याद आया,

शिवाय : अच्छा दी आप दो मिनट रुको मैं अभी आता हूं।

वो भागकर अंदर गया और,

शिवाय : चाचू ज़रा सुन ना तो।

रणवीर : हां क्या हुआ शिव?

शिवाय : वो जो मैने काम कहा था वो हो गया क्या?

रणवीर : अरे हां अच्छा याद दिलाया तूने, सॉरी यार थोड़ा काम के चक्कर में भूल गया था। आज पक्का करवा दूंगा।

शिवाय : आज याद से करवा देना हां, और आप जरा बादाम खाया करो याददाश्त कमज़ोर हो गई है आपकी।

इतना कहकर वो बाहर भाग गया और आरुषि के साथ बाइक पर सवार होकर एक तरफ चल दिया।


इधर काव्या अपने कमरे में बैठी थी और उसकी आंखें पूरी तरह लाल थी, मानो वो सारी रात सोई ही ना हो। धीरेन भी उसके पास ही खड़ा था और उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी। काव्या की आंखों से आंसू बदस्तूर बह रहे थे। तभी,

धीरेन : चुप हो जा काव्या रोने से कुछ नही होगा बेटा।

काव्या : पापा मुझे बचा लो, पापा प्लीज़, अगर, अगर वो.. म.. मैं अपनी जान दे दूंगी पापा...

धीरेन : काव्या क्या बोल रही है तू, अभी तेरा बाप ज़िंदा है।

काव्या : पापा आप कुछ करो ना...

धीरेन : सोच रहा हूं मेरी बच्ची, सोच रहा हूं। तेरी कसम छोडूंगा नही उसे जो भी इस सबके पीछे है। पर मुझे एक बात नही समझ आ रही वो हमसे चाहता क्या है?

अभी वो इतना ही बोला था के उसका फोन बजा, नंबर देख कर उसका खून खौल गया। काव्या भी उसके चेहरे को देख कर बात समझ गई और उसे फोन स्पीकर पर करने को कहा,

धीरेन : कौन है तू कमीने, मर्द है तो सामने आकर बात कर ये छुप कर खेल क्यों खेल रहा है।

फोन : आवाज़ नीचे रख के बात कर। भूल मत के मुझे बस एक मिनट लगेगा और...

उसने बात अधूरी ही छोड़ दी पर ये दोनो उसका मतलब समझ गए थे और धीरेन के तेवर भी नर्म पड़ गए।

धीरेन : तुझे पैसे चाहिए ना, बोल कितने चाहिए, मैं अपना सब कुछ तेरे नाम लिखने को तैयार हूं पर मेरी बेटी को इस सबमें मत ला।

फोन : कितना मजा आता है जब तेरे जैसा आदमी भी डरकर बात करता है। तू क्या मुझे पैसे देगा, मुझे पैसे नहीं कुछ और चाहिए।

धीरेन : बोलो क्या चाहिए तुम्हें?

फोन : चव्हाण खानदान के वंश के हर अंश की मौत!!

धीरेन : क.. क्या बोला तुमने!!

फोन : सही सुना तूने अब मेरी बात ध्यान से सुन, कल गांव में हर साल होने वाली पूजा के लिए रामेश्वर चव्हाण का पूरा परिवार आएगा, तुझे कुछ ऐसा करना है के वो शिवाय वहां ना पहुंच पाए और उन सबके साथ जो कुछ भी होगा तू या तेरा कोई भी आदमी बीच में नही आएगा।

धीरेन : मैं ऐसा कुछ नही करने वाला। वो मेरे लिए मेरे भगवान हैं, तू एक बार मेरे सामने आजा फिर...

फोन : शशशश... चुप बिल्कुल चुप, भूल मत मैं क्या कर सकता हूं... अब तुझे चुन ना है धीरेन... तुझे अपना भगवान चाहिए या तेरी बेटी की इज़्ज़त।

और उधर से फोन पटक दिया गया। इधर धीरेन नीचे ज़मीन पर गिर पड़ा। वहीं काव्या भी जड़वत सी खड़ी आंसू बहने लगी। तभी धीरेन ने धीरे से कहा,

धीरेन : मैं तुझे कुछ नहीं होने दूंगा मेरी बच्ची, कुछ नही...

और इतना कहकर वो कमरे से बाहर निकल गया और किसीको फोन मिलाने लगा।


शाम का वक्त था, आरुषि और शिवाय यशपुर से बाहर की तरफ मौजूद एक छोटी सी पहाड़ी पर बैठे थे। शिवाय सर झुकाकर बैठा था तभी आरुषि ने खींचकर एक थप्पड़ उसके गाल पर रसीद कर दिया। शिवाय हक्का बक्का सा होकर उसे देखने लगा, वहीं आरुषि की भीगी आंखों में दुख और गुस्सा दोनों ही झलक रहे थे।

शिवाय : द.. दी..

आरुषि : चुप, मत बुला मुझे दी। तूने तो मुझे पराया कर दिया शिवाय, मैं तुझे... हुह्ह्ह...

आज पहली दफा आरुषि ने उसे शिवाय बुलाया था वरना हमेशा छोटू या फिर शिवु कहकर ही पुकारा करती थी। वो भी समझ गया के आरुषि कुछ ज्यादा ही नाराज़ हो गई है।

शिवाय : दी प्लीज़ एक बार...

और तभी एक और थप्पड़ पड़ा उसके गाल पर, वो जानता था के उसे थप्पड़ मारने में उस से ज्यादा दर्द खुद आरुषि को ही हो रहा होगा।

आरुषि : क्यों किया तूने ये सब, अगर, अगर तुझे कुछ हो जाता तो मैं जीते जी मर जाती शिवाय... तुझे मेरी बिल्कुल भी चिंता नहीं है ना।

एक दम से शिवाय ने उसे अपनी बाहों के घेरे में कैद कर लिया, वो पूरी कोशिश कर रही थी वहां से निकलने की पर शिवाय की पकड़ बेहद मज़बूत थी।

शिवाय : आपको पता है ना आप मेरे लिए क्या मायने रखती हो। ना मां को ना ही डैड को, मैने ये सब सिर्फ और सिर्फ आपको बताया, क्यों... बोलो क्यों बताया आपको?

एक दम से आरुषि शांत सी हो गई, शिवाय ने अपनी बात आगे बढ़ाई,

शिवाय : क्योंकि आपकी अहमियत मेरी ज़िंदगी में क्या है में चाहकर भी आपको नही बता सकता। आप मेरे लिए बहुत खास हो दी।

दोनो के मध्य एक खामोशी सी पनप गई, काफी देर तक आरुषि शिवाय के सीने से लगी धीरे धीरे सुबकती रही और फिर,

आरुषि : तू ये सब बंद कर दे प्लीज़, अगर तुझे कुछ हो गया शिवु तो मैं.. मैं..

शिवाय : शशशश.. दी कुछ नहीं होगा मुझे और ना मैं आपको कुछ होने दूंगा। अब प्लीज़ माफ करदो ना अपने छोटे से भाई को।

आरुषि : तू अब मेरा वो छोटू नही रहा रे, तू तो अब बड़ा हो गया है और ज़िम्मेदार भी। सॉरी, मैने तुझपर हाथ उठाया।

शिवाय : वैसे आपके हाथ बहुत मोटे हो गए हैं दी, खाना काम खाया करो...

और वो उठकर वहां से भाग गया। आरुषि भी उसके पीछे भागने लगी और इसी तरह दोनो हंसते मुस्कुराते घर लौट आए पर कोई था जो इनसे जुदा घर छोड़ने की तैयारी में था।


अजमेर के सोनपुर गांव में रात के अंधेरे में एक कच्चे मकान का दरवाजा खुला, एक लड़की जो कोई और नहीं बल्कि वही काली मां के मंदिर वाली थी, वो एक बैग के साथ बाहर निकली। उसके हाथों में उस बैग के सिवा सिर्फ एक तस्वीर थी। उसने एक बार पलटकर घर के अंदर देखा तो वहां केवल उसका बूढ़ा या कहूं के ज़ालिम बाप शराब के नशे में धुत पड़ा था।

उस लड़की की आंखों में आसूं थे, उसने अपनी आंखों को पोंछा और एक बार अपने हाथ में ली उस तस्वीर को देख कर तेज़ कदमों से आगे की तरफ चल दी। रात के अंधेरे में ना जाने वो कब तक चलती ही रही और आखिर में वो उसी मंदिर में पहुंच गई। हालांकि उस मंदिर के कपाट बंद थे पर उसने बाहर से ही मां काली का ध्यान किया और अपनी नई मंजिल की तरफ निकल गई, वो मंजिल जो उसकी जिंदगी को पूरी तरह बदल देने वाली थी। वो मंजिल जो उसे एक नया जीवन देने वाली थी, वो निकल चुकी थी अपनी ज़िंदगी के एक नए “सफर” पर!!
जबरदस्त प्लॉट तैयार किया गया है कहानी को धमाकेदार बनाने के लिए। शुभकामनाएं कि कहानी नियमित रूप से आगे बढ़े और पूर्णता को प्राप्त हो।

यह भी देखना है कि मंदिर वाली लड़की का शिवाय की जिंदगी में क्या रोल है और शिवाय का राज क्या है जो उसने आरुषि को बताया??

ऐसे ही अनेक उत्सुक प्रश्न आपने पैदा कर दिए है, जिससे कहानी का रोमांच बन रहेगा। धन्यवाद
 
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भाग – 2
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चव्हाण परिवार में पूरा दिन खुशी का माहौल था, आरुषि के आगमन से सभी बेहद खुश थे। सौम्या और उसका परिवार, भी यहीं आया हुआ था इसीलिए देर रात तक सभी आपस में बातें करते रहे। पर फिर नींद के ऊपर किसका काबू होता है, सभी अपने – अपने कमरों में आराम करने चल दिए। सर्दियों के दिन थे तो आरुषि अपने कमरे में रजाई ओढ़े लेटी हुई थी, तभी उसके कमरे का दरवाज़ा खुला। एक छोटे बल्ब की मध्यम से रोशनी में उसने देख लिया के दरवाज़े पर खड़ा शख्स शिवाय ही था और अपने आप ही आरुषि के चेहरे पर एक मुस्कान आ गई। वो वैसे ही लेटे हुए सोने का नाटक करने लगी।

शिवाय उसके करीब आया और,

शिवाय : आप सो गई हो दी?

दो तीन बार उसने आरुषि के गाल को थपथपाया पर वो वैसे ही सोने का नाटक करते रही। वो निराश सा होकर पलटा और जैसे ही आगे बढ़ने वाला था आरुषि ने उसका हाथ पकड़ लिया।

आरुषि : मुझे पता था मेरे भाई को नींद नही आयेगी, तो मैं कैसे सो जाती?

शिवाय मुस्कुराकर आरुषि के साथ ही लेट गया और आरुषि ने भी उसके सीने पर सर रख लिया।

शिवाय : मुझे आपकी बहुत याद आती थी दी।

आरुषि : मुझे भी छोटू।

शिवाय : आपको पता है मैने आपसे कितनी सारी बातें करनी थी पर आप पहले ही चली गई।

आरुषि : बातें, मतलब?

शिवाय : दी मैं आपको बहुत कुछ बताना चाहता हूं, वो सब जो मैने बाकी सबसे छिपाया है आज तक।

आरुषि : सबसे छिपाया है, फिर मुझे क्यों बताना चाहता है?

शिवाय ने आरुषि के हाथ को कसकर पकड़ लिया और,

शिवाय : क्योंकि आप मेरी सबसे प्यारी, सबसे अच्छी दी हो। मैं आपसे बहुत ज्यादा प्यार करता हूं दी, बहुत ज्यादा।

आरुषि ने उसकी कमीज़ को अपनी मुट्ठी में भींच लिया और कहा,

आरुषि : मैं भी तुझे बहुत प्यार करती हूं शिवु। अब बता क्या बताना चाहता है।

शिवाय : आज नही, कल हम दोनो कहीं घूमने जाएंगे, फिर आपको बताऊंगा।

आरुषि : आज क्यों नही?

शिवाय : क्योंकि आज मुझे सोना है, पूरे 2 साल बाद चैन की नींद आयेगी मुझे।

आरुषि उसकी बात से भाव विभोर सी हो गई और उसे कसकर गले लगा लिया। दोनो ऐसे ही एक दूसरे को जकड़े नींद की वादियों में को गए।

अगली सुबह जब रागिनी जी आरुषि को जगाने आया तो उन्होंने देखा के आरुषि और शिवाय एक दूसरे को गले लगाए सो रहे थे। वो भली भांति जानती थी के दोनो भाई – बहन में शुरू से ही कितना प्यार था और जब आरुषि घर से दूर गई थी उसके बाद से शिवाय कैसे दुखी सा रहने लगा था। उन्हें अपने बच्चों का आपस में प्यार देख कर बहुत खुशी महसूस हुई, उन्होंने दोनो के माथे को एक बार चूमा और फिर उन्हें जगाए बिना ही कमरे से चली गई।

सुबह अपने चेहरे पर पड़ती धूप से शिवाय की आंखें खुली तो उसे अपने ऊपर थोड़ा भार महसूस हुए। उसने गौर किया तो पाया के आरुषि उसके ऊपर लेटी थी। शायद नींद में करवटें बदलते हुए वो उसके ऊपर ही चढ़ गई थी। खिड़की से आती धूप और हल्की सी हवा आ रही थी जोकि सीधे आरुषि के चेहरे पर पड़ रही थी। शिवाय काफी देर तक एक टक उसे देखता रहा और फिर धीमे से उसके गालों को सहलाने लगा। कुछ ही पलों में आरुषि की नींद टूट गई और उसने कसमसाते हुए आंखें खोली। कुछ देर लगी उसे खुद की हालत समझने में और फिर वो धीमे से मुस्कुराने लगी।

आरुषि : तू कब उठा?

शिवाय : बस अभी अभी। आपको नींद तो ठीक आई ना?

आरुषि : बहुत अच्छी, चल अब उठ जा फिर तैयार होकर कहीं घूमने चलेंगे।

शिवाय : हम्म्म.. सिर्फ आप और मैं।

आरुषि ने एक बार हल्के से उसकी नाक को खींचा और फिर अपने कमरे से ही जुड़े हुए बाथरूम में चली गई। शिवाय भी अपने कमरे की तरफ चल दिया।


थोड़ी देर बाद सभी डाइनिंग हॉल में बैठे नाश्ता कर रहे थे। पर अनिरुद्ध यानी शिवाय के पिताजी सुबह – सुबह ही बिज़नेस के सिलसिले में जयपुर निकल गया था।

रामेश्वर जी : बहू अनिरुद्ध कहां है? अब तक आया नही यहां।

रागिनी जी : बाबूजी वो तो सुबह सुबह ही जयपुर निकल गए थे। कोई मीटिंग है उनकी।

रामेश्वर जी : ये अनिरुद्ध पता नही कब सुधरेगा, उसे कोई समझाए के पैसा और कारोबार ही सब कुछ नही होता, परिवार भी कुछ होता है।

तभी शिवाय और आरुषि सीढ़ियों से नीचे उतरे और उन्होंने ये सारी बात सुन ली थी। रागिनी जी का उदास चेहरा देख कर शिवाय ने सीधे जाकर अपनी मां को पीछे से गले लगा लिया और कहा,

शिवाय : अरे मातु श्री निराश क्यों होती हो। अभी आपका पुत्र आपके पास है, कहिए क्या इच्छा है आपकी?

उसके बोलने के तरीके को सुनकर सभी मुस्कुराने लगे। इसी लिए वो परिवार में सबका चहेता था क्योंकि पल भर में वो रोते को हंसा दिया करता था।

रागिनी जी ने बस मुस्कुराकर उसके सर पर हाथ फेरा और फिर सभी ने शांति से बस नाश्ता पूरा किया। नाश्ते के बाद शिवाय और आरुषि बाहर जाने लगे तो,

रागिनी जी : तुम दोनो कहीं बाहर जा रहे हो क्या?

आरुषि : जी मां, थोड़ा घूमने।

रागिनी जी : ठीक है, लेकिन जल्दी वापिस आ जाना।

शिवाय : हम्म्म।

दोनो बाहर आ गए और शिवाय जैसे ही गाड़ी बाहर निकालने लगा तो,

आरुषि : तेरी बाइक कहां है?

शिवाय : क्यों दी?

आरुषि : मुझे बाइक पर जाना है।

उसने मुस्कुराकर हां में सर हिलाया, तभी उसे कुछ याद आया,

शिवाय : अच्छा दी आप दो मिनट रुको मैं अभी आता हूं।

वो भागकर अंदर गया और,

शिवाय : चाचू ज़रा सुन ना तो।

रणवीर : हां क्या हुआ शिव?

शिवाय : वो जो मैने काम कहा था वो हो गया क्या?

रणवीर : अरे हां अच्छा याद दिलाया तूने, सॉरी यार थोड़ा काम के चक्कर में भूल गया था। आज पक्का करवा दूंगा।

शिवाय : आज याद से करवा देना हां, और आप जरा बादाम खाया करो याददाश्त कमज़ोर हो गई है आपकी।

इतना कहकर वो बाहर भाग गया और आरुषि के साथ बाइक पर सवार होकर एक तरफ चल दिया।


इधर काव्या अपने कमरे में बैठी थी और उसकी आंखें पूरी तरह लाल थी, मानो वो सारी रात सोई ही ना हो। धीरेन भी उसके पास ही खड़ा था और उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी। काव्या की आंखों से आंसू बदस्तूर बह रहे थे। तभी,

धीरेन : चुप हो जा काव्या रोने से कुछ नही होगा बेटा।

काव्या : पापा मुझे बचा लो, पापा प्लीज़, अगर, अगर वो.. म.. मैं अपनी जान दे दूंगी पापा...

धीरेन : काव्या क्या बोल रही है तू, अभी तेरा बाप ज़िंदा है।

काव्या : पापा आप कुछ करो ना...

धीरेन : सोच रहा हूं मेरी बच्ची, सोच रहा हूं। तेरी कसम छोडूंगा नही उसे जो भी इस सबके पीछे है। पर मुझे एक बात नही समझ आ रही वो हमसे चाहता क्या है?

अभी वो इतना ही बोला था के उसका फोन बजा, नंबर देख कर उसका खून खौल गया। काव्या भी उसके चेहरे को देख कर बात समझ गई और उसे फोन स्पीकर पर करने को कहा,

धीरेन : कौन है तू कमीने, मर्द है तो सामने आकर बात कर ये छुप कर खेल क्यों खेल रहा है।

फोन : आवाज़ नीचे रख के बात कर। भूल मत के मुझे बस एक मिनट लगेगा और...

उसने बात अधूरी ही छोड़ दी पर ये दोनो उसका मतलब समझ गए थे और धीरेन के तेवर भी नर्म पड़ गए।

धीरेन : तुझे पैसे चाहिए ना, बोल कितने चाहिए, मैं अपना सब कुछ तेरे नाम लिखने को तैयार हूं पर मेरी बेटी को इस सबमें मत ला।

फोन : कितना मजा आता है जब तेरे जैसा आदमी भी डरकर बात करता है। तू क्या मुझे पैसे देगा, मुझे पैसे नहीं कुछ और चाहिए।

धीरेन : बोलो क्या चाहिए तुम्हें?

फोन : चव्हाण खानदान के वंश के हर अंश की मौत!!

धीरेन : क.. क्या बोला तुमने!!

फोन : सही सुना तूने अब मेरी बात ध्यान से सुन, कल गांव में हर साल होने वाली पूजा के लिए रामेश्वर चव्हाण का पूरा परिवार आएगा, तुझे कुछ ऐसा करना है के वो शिवाय वहां ना पहुंच पाए और उन सबके साथ जो कुछ भी होगा तू या तेरा कोई भी आदमी बीच में नही आएगा।

धीरेन : मैं ऐसा कुछ नही करने वाला। वो मेरे लिए मेरे भगवान हैं, तू एक बार मेरे सामने आजा फिर...

फोन : शशशश... चुप बिल्कुल चुप, भूल मत मैं क्या कर सकता हूं... अब तुझे चुन ना है धीरेन... तुझे अपना भगवान चाहिए या तेरी बेटी की इज़्ज़त।

और उधर से फोन पटक दिया गया। इधर धीरेन नीचे ज़मीन पर गिर पड़ा। वहीं काव्या भी जड़वत सी खड़ी आंसू बहने लगी। तभी धीरेन ने धीरे से कहा,

धीरेन : मैं तुझे कुछ नहीं होने दूंगा मेरी बच्ची, कुछ नही...

और इतना कहकर वो कमरे से बाहर निकल गया और किसीको फोन मिलाने लगा।


शाम का वक्त था, आरुषि और शिवाय यशपुर से बाहर की तरफ मौजूद एक छोटी सी पहाड़ी पर बैठे थे। शिवाय सर झुकाकर बैठा था तभी आरुषि ने खींचकर एक थप्पड़ उसके गाल पर रसीद कर दिया। शिवाय हक्का बक्का सा होकर उसे देखने लगा, वहीं आरुषि की भीगी आंखों में दुख और गुस्सा दोनों ही झलक रहे थे।

शिवाय : द.. दी..

आरुषि : चुप, मत बुला मुझे दी। तूने तो मुझे पराया कर दिया शिवाय, मैं तुझे... हुह्ह्ह...

आज पहली दफा आरुषि ने उसे शिवाय बुलाया था वरना हमेशा छोटू या फिर शिवु कहकर ही पुकारा करती थी। वो भी समझ गया के आरुषि कुछ ज्यादा ही नाराज़ हो गई है।

शिवाय : दी प्लीज़ एक बार...

और तभी एक और थप्पड़ पड़ा उसके गाल पर, वो जानता था के उसे थप्पड़ मारने में उस से ज्यादा दर्द खुद आरुषि को ही हो रहा होगा।

आरुषि : क्यों किया तूने ये सब, अगर, अगर तुझे कुछ हो जाता तो मैं जीते जी मर जाती शिवाय... तुझे मेरी बिल्कुल भी चिंता नहीं है ना।

एक दम से शिवाय ने उसे अपनी बाहों के घेरे में कैद कर लिया, वो पूरी कोशिश कर रही थी वहां से निकलने की पर शिवाय की पकड़ बेहद मज़बूत थी।

शिवाय : आपको पता है ना आप मेरे लिए क्या मायने रखती हो। ना मां को ना ही डैड को, मैने ये सब सिर्फ और सिर्फ आपको बताया, क्यों... बोलो क्यों बताया आपको?

एक दम से आरुषि शांत सी हो गई, शिवाय ने अपनी बात आगे बढ़ाई,

शिवाय : क्योंकि आपकी अहमियत मेरी ज़िंदगी में क्या है में चाहकर भी आपको नही बता सकता। आप मेरे लिए बहुत खास हो दी।

दोनो के मध्य एक खामोशी सी पनप गई, काफी देर तक आरुषि शिवाय के सीने से लगी धीरे धीरे सुबकती रही और फिर,

आरुषि : तू ये सब बंद कर दे प्लीज़, अगर तुझे कुछ हो गया शिवु तो मैं.. मैं..

शिवाय : शशशश.. दी कुछ नहीं होगा मुझे और ना मैं आपको कुछ होने दूंगा। अब प्लीज़ माफ करदो ना अपने छोटे से भाई को।

आरुषि : तू अब मेरा वो छोटू नही रहा रे, तू तो अब बड़ा हो गया है और ज़िम्मेदार भी। सॉरी, मैने तुझपर हाथ उठाया।

शिवाय : वैसे आपके हाथ बहुत मोटे हो गए हैं दी, खाना काम खाया करो...

और वो उठकर वहां से भाग गया। आरुषि भी उसके पीछे भागने लगी और इसी तरह दोनो हंसते मुस्कुराते घर लौट आए पर कोई था जो इनसे जुदा घर छोड़ने की तैयारी में था।


अजमेर के सोनपुर गांव में रात के अंधेरे में एक कच्चे मकान का दरवाजा खुला, एक लड़की जो कोई और नहीं बल्कि वही काली मां के मंदिर वाली थी, वो एक बैग के साथ बाहर निकली। उसके हाथों में उस बैग के सिवा सिर्फ एक तस्वीर थी। उसने एक बार पलटकर घर के अंदर देखा तो वहां केवल उसका बूढ़ा या कहूं के ज़ालिम बाप शराब के नशे में धुत पड़ा था।

उस लड़की की आंखों में आसूं थे, उसने अपनी आंखों को पोंछा और एक बार अपने हाथ में ली उस तस्वीर को देख कर तेज़ कदमों से आगे की तरफ चल दी। रात के अंधेरे में ना जाने वो कब तक चलती ही रही और आखिर में वो उसी मंदिर में पहुंच गई। हालांकि उस मंदिर के कपाट बंद थे पर उसने बाहर से ही मां काली का ध्यान किया और अपनी नई मंजिल की तरफ निकल गई, वो मंजिल जो उसकी जिंदगी को पूरी तरह बदल देने वाली थी। वो मंजिल जो उसे एक नया जीवन देने वाली थी, वो निकल चुकी थी अपनी ज़िंदगी के एक नए “सफर” पर!!
जबरदस्त प्लॉट तैयार किया गया है कहानी को धमाकेदार बनाने के लिए। शुभकामनाएं कि कहानी नियमित रूप से आगे बढ़े और पूर्णता को प्राप्त हो।

यह भी देखना है कि मंदिर वाली लड़की का शिवाय की जिंदगी में क्या रोल है और शिवाय का राज क्या है जो उसने आरुषि को बताया??

ऐसे ही अनेक उत्सुक प्रश्न आपने पैदा कर दिए है, जिससे कहानी का रोमांच बन रहेगा। धन्यवाद
 
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ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
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