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Vaibhav abhi daav pench ke is field me kachcha hai lekin aane wale samay me wo bhi ye sab samajh aur seekh jaayega. Haan sahi kaha jungle me huyi taantrik ki hatya se koi suraag milna filhaal asambhav kaarya hi haiकहानी में चल रहा रहस्य लगातार गहराता जा रहा है और साथ ही ये भी स्पष्ट होता जा रहा है कि जो कोई भी इस रहस्य/षड्यंत्र का जन्मदाता है वो बेशक बेहद ही कुटिल और बुद्धिमान व्यक्ति है। सर्वप्रथम वो तांत्रिक, जिसने अभिनव पर तंत्र – मंत्र का प्रयोग किया था (शायद वैभव पर भी), उसकी मृत्यु या कहूं कि हत्या हो चुकी है। वैभव, जगताप और अपने आदमियों के साथ उस तांत्रिक के ठिकाने पर गया पर बदकिस्मती से उसके हाथ कुछ न लग पाया। अब समस्या ये भी है कि इस तांत्रिक का ठिकाना जंगल में था, नतीजतन आसार ना के बराबर ही हैं कि किसीने उसकी हत्या होते देखा हो। यानी स्पष्ट है कि अभी के लिए तांत्रिक का किस्सा ठंडे बस्ते में जाता दिखाई पड़ रहा है, हां यदि कोई सुराग कहीं से मिल जाए वैभव को तो बात और है।
Aisi hi paristhitiyo se insaan sochne majboor hota hai. Vaibhav aur dada thakur ko ab ye baat clear samajh aa gayi hai ki unke beech hi koi aisa hai jo unki khabar leak karta hai. Ab unke liye mukhya kaarya yahi hai ki us bhediye ka pata lagaye. Well dekhte hain is bare me kya karyawahi karte hain ye logइस घटना से एक और शंका ने ज़ोर पकड़ लिया है। जगताप... कहीं न कहीं उसपर संदेह बढ़ता जा रहा है। ये तो साफ है कि किसी ना किसी तरीके से उस सफेदपोश और उसके साथियों को ये खबर लग गई थी कि उनका तांत्रिक अब ज़्यादा समय तक बच नहीं पाए, और इसीलिए उसकी हत्या कर दी गई। पर मुझे नही लगता कि दादा ठाकुर ने या वैभव ने ज़्यादा लोगों को इस विषय की जानकारी दी होगी। कुछ चुनिंदा और विश्वसनीय आदमियों को ही इस कार्य में शामिल किया गया होगा। ऐसे में केवल दो ही परिस्थितियां बनती दिख रही हैं, एक, जगताप ही वो विभीषण है और दूसरा, कोई न कोई दादा ठाकुर के विश्वसनीय पात्रों में ऐसा है जो बिक चुका है।
Agreeखैर, केवल यही एक झटका नही था वैभव के लिए इस अध्याय में। अपितु, एक और कड़ी उसके हाथ से निकल गई है। वो नौकरानी, जिसे शायद दादा ठाकुर के कमरे से कुछ कागजात चुराने का कार्य सौंपा गया था उसने आत्महत्या कर ली है। पिछले अध्याय में हमने देखा था कि उस नौकरानी को कुछ नकाबपोशों द्वारा लताड़ा जा रहा था क्योंकि वो अपना कार्य पूरा कर पाने में कामयाब नही हुई थी। यहां भी दो समीकरण बनते दिख रहे हैं, पहला, यही कि वो नौकरानी अपने कार्य को पूर्ण नही कर पाई और इसीलिए उसे मारकर आत्महत्या का रूप से दिया गया।
Maybeदूसरा समीकरण काफी रोचक प्रतीत हो रहा है। वो बुज़ुर्ग ग्रामीण, शायद वो उन नकाबपोशों के हत्थे चढ़ गया होगा। नतीजतन, उसने जो भी वैभव को बताया सब कुछ उन लोगों को भी ज्ञात हो गया होगा। यानी तांत्रिक और वो नौकरानी दोनो ही सीधे तौर पर उन नकाबपोशों को अपने लिए खतरा दिखाई पड़े होंगे, जिसके फलस्वरूप उन दोनों को ही अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। परंतु, यदि मान भी लिया जाए कि उस नौकरानी की हत्या हुई है, तो किसने की? यही सवाल सबसे बड़ा है। जगताप का इस मामले में सीधा संबंध दिखाई पड़ रहा है, तो सबसे पहले संदेह विभोर और अजीत पर ही जाता है। पर शायद मेनका भी इस सबमें...
Bahut kuch andhere me hai. Haweli ke andar sirf do hi mohre aise nazar aate hain jo clear roop se vaibhav ke khilaf kuch kar rahe hain...jagtap par shak karna jayaz hai...aur iske kayi reasons bhi ho sakte hain. Well dekhiye kya hota hai
Ab ye to vaibhav ki kismat ki hi baat hogi ki wo uski pakad me aa jaye aur uske dwara use kuch pata chal jaayeगनीमत रही कि वो विभोर – अजीत के साथ जुड़ी नौकरानी अभी जीवित है। मेरे खयाल में उन नकाबपोशों को भनक तक नहीं होगी कि वैभव उन दोनो कुत्तों और उस नौकरानी यानी शीला को रासलीला मनाते देख चुका है। अन्यथा उसकी भी मृत्यु हो गई होती। अब देखना ये है कि इस नौकरानी से वैभव को कुछ पता चलता है या नही। आशा है कि इसी के ज़रिए वैभव कुसुम के दुख का राज़ भी जान लेगा और फिर शुरू होगी विभोर और अजीत की तबाही।
Vibhor aur ajeet ka to clear hai ki unki gaand todaayi ek din zarur hogi
Agreeइधर, इस अध्याय का सबसे खूबसूरत भाग वही रहा जिसमें वैभव और अनुराधा साथ थे। बेशक, अनुराधा अभी तक इस कहानी की सबसे बेहतरीन किरदार के रूप में उभरकर सामने आई है और वैभव के संग उसकी वार्ता सदा ही दिल को छू लेने वाली होती है। खैर, मुझे लगता है कि सरोज भी उन नकाबपोशों के साथ शामिल है, इस षड्यंत्र में जो ठाकुरों के विरुद्ध बुना जा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण वही रूपचंद्र वाली घटना है। कोई भी मां कभी भी अपनी बेटी की अस्मिता को लूटने की अनुमति किसी लड़के को नही दे सकती। बेशक, रूपचंद्र के पास उसका एक राज़ था पर जहां तक मैं समझता हूं, कोई भी मां अपनी जान दे देगी पर अपनी बेटी की अस्मिता पर आंच नही आने देगी। इसके बाद भी जब वैभव अनुराधा के घर गया था, रूपचंद्र वाली घटना के बाद, सरोज का बर्ताव ठंडा ही था। मानो उसे कोई प्रसन्नता ही ना हुई हो कि उसकी बेटी की लाज बच गई।
Prem prasang hamesha se hi rochak raha hai fir chahe wo kaisa bhi ho. Dono ke beech jo bhi possibilities aapne bataayi hain wo ekdam sahi hain. Well Anuradha ki maa ka character kaisa hai ye samay aane par hi pata chalega
Agreeबहरहाल, अनुराधा ने अंततः वैभव के कहे अनुसार उसे उसके नाम से पुकार ही लिया। क्या हुआ यदि अकेले में ही वो ये हिम्मत कर पाई?उसकी बात भी सही है कि यदि वो अपनी मां के समक्ष वैभव को उसके नाम से पुकारती तो उसके प्रश्नों का उत्तर देना अनुराधा के लिए सरल नही होता। वैभव ने भी साफ कह दिया कि उसकी जिंदगी और चरित्र यदि किसीने बदला है तो वो अनुराधा ही है। जहां तक मैं समझा हूं, अनुराधा भी वैभव के अंदर पनप रहे भावों से अनजान नही है, और ना ही वो इस बात से अनजान है कि वो भी वैभव के लिए भिन्न विचार अपने मन में रखती है। परंतु, कहीं न कहीं शर्म के कारण, या दोनो के मध्य आर्थिक और सामाजिक खाई के कारण, वो इस से जान बूझकर अनजान बनी हुई है। खैर, अनुराधा ही वैभव के लिए सबसे बेहतर जीवन संगिनी प्रतीत हुई है अभी तक, क्योंकि जो व्यक्ति के चरित्र को बिना कुछ किए बदल दे, उसकी अहमियत क्या होती है ये बताने की आवश्यकता नहीं है।
Kahani ki jab aisi khubsurat sameeksha hoti hai to padh kar aisa aanand milta hai jaise ki mujhe likhne par bhi nahi milta. Ek writer hi samajh sakta hai ki aisi sameeksha se kisi bhi writer ko kitna kuch haasil ho jata hai. Death Kiñg you are great bhai, SANJU ( V. R. ) Bhaiya bhi aisi sameeksha nahi kar sakte, hats off you broबहुत ही बेहतरीन अध्याय था ये भी शुभम भाई। जैसा की मैने कहा, अनुराधा और वैभव के मध्य की वार्ता मन को मोह लेने वाली थी। बेहतरीन शब्दों का चयन किया आपने इस भाग में। वहीं तांत्रिक और नौकरानी की मृत्यु के रूप में एक और नया मोड़ कहानी में आ गया है। बढ़ते रहिए!
अगली कड़ी की प्रतीक्षा में...