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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 18 9.8%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 21 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 73 39.9%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 41 22.4%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 30 16.4%

  • Total voters
    183

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
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कहानी में चल रहा रहस्य लगातार गहराता जा रहा है और साथ ही ये भी स्पष्ट होता जा रहा है कि जो कोई भी इस रहस्य/षड्यंत्र का जन्मदाता है वो बेशक बेहद ही कुटिल और बुद्धिमान व्यक्ति है। सर्वप्रथम वो तांत्रिक, जिसने अभिनव पर तंत्र – मंत्र का प्रयोग किया था (शायद वैभव पर भी), उसकी मृत्यु या कहूं कि हत्या हो चुकी है। वैभव, जगताप और अपने आदमियों के साथ उस तांत्रिक के ठिकाने पर गया पर बदकिस्मती से उसके हाथ कुछ न लग पाया। अब समस्या ये भी है कि इस तांत्रिक का ठिकाना जंगल में था, नतीजतन आसार ना के बराबर ही हैं कि किसीने उसकी हत्या होते देखा हो। यानी स्पष्ट है कि अभी के लिए तांत्रिक का किस्सा ठंडे बस्ते में जाता दिखाई पड़ रहा है, हां यदि कोई सुराग कहीं से मिल जाए वैभव को तो बात और है।
Vaibhav abhi daav pench ke is field me kachcha hai lekin aane wale samay me wo bhi ye sab samajh aur seekh jaayega. Haan sahi kaha jungle me huyi taantrik ki hatya se koi suraag milna filhaal asambhav kaarya hi hai :approve:
इस घटना से एक और शंका ने ज़ोर पकड़ लिया है। जगताप... कहीं न कहीं उसपर संदेह बढ़ता जा रहा है। ये तो साफ है कि किसी ना किसी तरीके से उस सफेदपोश और उसके साथियों को ये खबर लग गई थी कि उनका तांत्रिक अब ज़्यादा समय तक बच नहीं पाए, और इसीलिए उसकी हत्या कर दी गई। पर मुझे नही लगता कि दादा ठाकुर ने या वैभव ने ज़्यादा लोगों को इस विषय की जानकारी दी होगी। कुछ चुनिंदा और विश्वसनीय आदमियों को ही इस कार्य में शामिल किया गया होगा। ऐसे में केवल दो ही परिस्थितियां बनती दिख रही हैं, एक, जगताप ही वो विभीषण है और दूसरा, कोई न कोई दादा ठाकुर के विश्वसनीय पात्रों में ऐसा है जो बिक चुका है।
Aisi hi paristhitiyo se insaan sochne majboor hota hai. Vaibhav aur dada thakur ko ab ye baat clear samajh aa gayi hai ki unke beech hi koi aisa hai jo unki khabar leak karta hai. Ab unke liye mukhya kaarya yahi hai ki us bhediye ka pata lagaye. Well dekhte hain is bare me kya karyawahi karte hain ye log :dazed:
खैर, केवल यही एक झटका नही था वैभव के लिए इस अध्याय में। अपितु, एक और कड़ी उसके हाथ से निकल गई है। वो नौकरानी, जिसे शायद दादा ठाकुर के कमरे से कुछ कागजात चुराने का कार्य सौंपा गया था उसने आत्महत्या कर ली है। पिछले अध्याय में हमने देखा था कि उस नौकरानी को कुछ नकाबपोशों द्वारा लताड़ा जा रहा था क्योंकि वो अपना कार्य पूरा कर पाने में कामयाब नही हुई थी। यहां भी दो समीकरण बनते दिख रहे हैं, पहला, यही कि वो नौकरानी अपने कार्य को पूर्ण नही कर पाई और इसीलिए उसे मारकर आत्महत्या का रूप से दिया गया।
Agree :approve:
दूसरा समीकरण काफी रोचक प्रतीत हो रहा है। वो बुज़ुर्ग ग्रामीण, शायद वो उन नकाबपोशों के हत्थे चढ़ गया होगा। नतीजतन, उसने जो भी वैभव को बताया सब कुछ उन लोगों को भी ज्ञात हो गया होगा। यानी तांत्रिक और वो नौकरानी दोनो ही सीधे तौर पर उन नकाबपोशों को अपने लिए खतरा दिखाई पड़े होंगे, जिसके फलस्वरूप उन दोनों को ही अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। परंतु, यदि मान भी लिया जाए कि उस नौकरानी की हत्या हुई है, तो किसने की? यही सवाल सबसे बड़ा है। जगताप का इस मामले में सीधा संबंध दिखाई पड़ रहा है, तो सबसे पहले संदेह विभोर और अजीत पर ही जाता है। पर शायद मेनका भी इस सबमें... :dazed:
Maybe :dazed:
Bahut kuch andhere me hai. Haweli ke andar sirf do hi mohre aise nazar aate hain jo clear roop se vaibhav ke khilaf kuch kar rahe hain...jagtap par shak karna jayaz hai...aur iske kayi reasons bhi ho sakte hain. Well dekhiye kya hota hai :smokin:
गनीमत रही कि वो विभोर – अजीत के साथ जुड़ी नौकरानी अभी जीवित है। मेरे खयाल में उन नकाबपोशों को भनक तक नहीं होगी कि वैभव उन दोनो कुत्तों और उस नौकरानी यानी शीला को रासलीला मनाते देख चुका है। अन्यथा उसकी भी मृत्यु हो गई होती। अब देखना ये है कि इस नौकरानी से वैभव को कुछ पता चलता है या नही। आशा है कि इसी के ज़रिए वैभव कुसुम के दुख का राज़ भी जान लेगा और फिर शुरू होगी विभोर और अजीत की तबाही।
Ab ye to vaibhav ki kismat ki hi baat hogi ki wo uski pakad me aa jaye aur uske dwara use kuch pata chal jaaye :D
Vibhor aur ajeet ka to clear hai ki unki gaand todaayi ek din zarur hogi :lol1:
इधर, इस अध्याय का सबसे खूबसूरत भाग वही रहा जिसमें वैभव और अनुराधा साथ थे। बेशक, अनुराधा अभी तक इस कहानी की सबसे बेहतरीन किरदार के रूप में उभरकर सामने आई है और वैभव के संग उसकी वार्ता सदा ही दिल को छू लेने वाली होती है। खैर, मुझे लगता है कि सरोज भी उन नकाबपोशों के साथ शामिल है, इस षड्यंत्र में जो ठाकुरों के विरुद्ध बुना जा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण वही रूपचंद्र वाली घटना है। कोई भी मां कभी भी अपनी बेटी की अस्मिता को लूटने की अनुमति किसी लड़के को नही दे सकती। बेशक, रूपचंद्र के पास उसका एक राज़ था पर जहां तक मैं समझता हूं, कोई भी मां अपनी जान दे देगी पर अपनी बेटी की अस्मिता पर आंच नही आने देगी। इसके बाद भी जब वैभव अनुराधा के घर गया था, रूपचंद्र वाली घटना के बाद, सरोज का बर्ताव ठंडा ही था। मानो उसे कोई प्रसन्नता ही ना हुई हो कि उसकी बेटी की लाज बच गई।
Agree :approve:
Prem prasang hamesha se hi rochak raha hai fir chahe wo kaisa bhi ho. Dono ke beech jo bhi possibilities aapne bataayi hain wo ekdam sahi hain. Well Anuradha ki maa ka character kaisa hai ye samay aane par hi pata chalega :dost:
बहरहाल, अनुराधा ने अंततः वैभव के कहे अनुसार उसे उसके नाम से पुकार ही लिया। क्या हुआ यदि अकेले में ही वो ये हिम्मत कर पाई?उसकी बात भी सही है कि यदि वो अपनी मां के समक्ष वैभव को उसके नाम से पुकारती तो उसके प्रश्नों का उत्तर देना अनुराधा के लिए सरल नही होता। वैभव ने भी साफ कह दिया कि उसकी जिंदगी और चरित्र यदि किसीने बदला है तो वो अनुराधा ही है। जहां तक मैं समझा हूं, अनुराधा भी वैभव के अंदर पनप रहे भावों से अनजान नही है, और ना ही वो इस बात से अनजान है कि वो भी वैभव के लिए भिन्न विचार अपने मन में रखती है। परंतु, कहीं न कहीं शर्म के कारण, या दोनो के मध्य आर्थिक और सामाजिक खाई के कारण, वो इस से जान बूझकर अनजान बनी हुई है। खैर, अनुराधा ही वैभव के लिए सबसे बेहतर जीवन संगिनी प्रतीत हुई है अभी तक, क्योंकि जो व्यक्ति के चरित्र को बिना कुछ किए बदल दे, उसकी अहमियत क्या होती है ये बताने की आवश्यकता नहीं है।
Agree :approve:
बहुत ही बेहतरीन अध्याय था ये भी शुभम भाई। जैसा की मैने कहा, अनुराधा और वैभव के मध्य की वार्ता मन को मोह लेने वाली थी। बेहतरीन शब्दों का चयन किया आपने इस भाग में। वहीं तांत्रिक और नौकरानी की मृत्यु के रूप में एक और नया मोड़ कहानी में आ गया है। बढ़ते रहिए!

अगली कड़ी की प्रतीक्षा में...
Kahani ki jab aisi khubsurat sameeksha hoti hai to padh kar aisa aanand milta hai jaise ki mujhe likhne par bhi nahi milta. Ek writer hi samajh sakta hai ki aisi sameeksha se kisi bhi writer ko kitna kuch haasil ho jata hai. Death Kiñg you are great bhai, SANJU ( V. R. ) Bhaiya bhi aisi sameeksha nahi kar sakte, hats off you bro :bow:
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
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अध्याय - 43
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अब तक....

इसे किस्मत कहिए या इत्तेफ़ाक़ कि मैं अपने आदमी के साथ बिल्कुल सही दिशा में ही आया था क्योंकि वो औरत हल्की चांदनी रात में मुझे कुछ दूरी पर दिख गई थी। वो तेज़ी से बढ़ी चली जा रही थी। मैंने अपने आदमी को इशारा किया कि वो भाग कर जाए और उसे पकड़ ले। मेरा हुकुम मिलते ही शम्भू नाम का मेरा आदमी उस औरत की तरफ भाग चला। अपने क़रीब जैसे ही किसी के दौड़ते हुए आने का आभास हुआ तो उस औरत ने पलट कर देखा और बुरी तरह डर कर उसने भागना ही चाहा था कि लड़खड़ा कर वहीं ज़मीन पर गिर गई। जब तक वो सम्हल कर खड़ी होती तब तक शम्भू किसी जिन्न की तरह उसके सिर पर जा खड़ा हुआ था। उसके बाद शम्भू ने उस औरत की कलाई पकड़ी और ज़बरदस्ती खींचते हुए उसे मेरे पास ले आया। मुझ पर नज़र पड़ते ही मानो उस औरत की नानी मर गई।

अब आगे....

शीला नाम की वो नौकरानी मुझे देख कर बुरी तरह डर गई थी। इससे पहले कि वो शंभू की पकड़ से छूट कर भागने की कोशिश करती मैंने शंभू को उसे बेहोश करने को कहा। हट्टे कट्टे शंभू ने मेरे हुकुम का फौरन ही पालन किया। उसने बिजली की सी तेज़ी दिखाते हुए शीला की कनपटी पर एक कराट मारी। परिणामस्वरूप शीला अगले ही पल उसकी बाहों में झूलती नज़र आई। मैंने शंभू से कहा कि इसे फ़ौरन ही अपने कंधे पर लाद कर हमारे बगीचे वाले मकान में ले चले।

कुछ ही समय में हम अपने बगीचे वाले मकान में थे। मकान के एक कमरे में शंभू ने शीला को एक चारपाई पर लेटा दिया। मैं क्योंकि समझ चुका था कि शीला भी उस नौकरानी की ही तरह हमारे दुश्मन का काम कर रही थी इस लिए मैंने शंभू से कहा कि वो शीला की तलाशी ले। मुझे अंदेशा था कि कहीं इसके पास भी कोई ज़हर वगैरा न हो जिसकी वजह से होश में आते ही वो अपनी जान लेने की कोशिश करे। मेरे कहने पर शंभू ने शीला की तलाशी ली लेकिन उसके पास से कुछ भी नहीं मिला। उसके बाद मैंने शंभू से उसको होश में लाने के लिए कहा तो शंभू तेज़ी से बाहर गया और फौरन ही कुएं से बाल्टी में पानी ले आया और उस पानी को शीला के चेहरे पर छिड़कने लगा। जल्दी ही शीला को होश आ गया। मैंने शंभू से कहा कि अब वो बाहर जाए और बाहर से निगरानी रखे।

"मु...मुझे यहां क्यों लाए हैं छोटे ठाकुर?" होश में आते ही शीला बुरी तरह घबराई हुई आवाज़ में बोल पड़ी थी____"क्..क्या आप मेरे साथ कुछ ऐसा वैसा करने वाले हैं?"

"क्या लगता है तुझे?" मैंने उसकी तरफ देखते हुए सर्द लहजे में कहा____"क्या तू इतनी खूबसूरत है कि तुझे देख कर मेरा ईमान डोल जाएगा? क्या तेरा जिस्म ऐसा है कि विभोर और अजीत की तरह मैं भी तुझे चाटना शुरू कर दूंगा?"

"ये...ये आप क्या कह रहे हैं छोटे ठाकुर?" शीला एकदम से बौखला कर बोली____"देखिए, मैं ऐसी वैसी नहीं हूं। भगवान के लिए मुझे छोड़ दीजिए।"

"तू कैसी है ये मैं अपनी आंखों से देख चुका हूं साली रण्डी।" मैंने ज़ोर से उसके गाल पर थप्पड़ मार कर कहा। थप्पड़ लगते ही वो लड़खड़ा गई थी, और मारे डर के उसके माथे पर पसीना उभर आया था। जबकि मैंने शख़्त लहजे में कहा____"उस रात तू ही थी ना जो सीढ़ियों से नीचे भागते हुए गई थी और जब मैंने तेरा पीछा किया तो तू नीचे कहीं छिप गई थी? उसके बाद दूसरी बार मैंने कुसुम के कमरे से तुम लोगों की सारी बातें सुनी थी जब तू विभोर और अजीत के साथ मज़े कर रही थी।"

"मु...मुझे माफ़ कर दीजिए छोटे ठाकुर।" मेरी बातें सुनते ही शीला जल्दी से मेरे पैरों में गिर कर गिड़गिड़ाते हुए बोल पड़ी____"मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई है, लेकिन इसमें भी मेरा कोई दोष नही है। वो तो आपके उन दोनों भाइयों ने मुझे अपने जाल में फांस लिया था और मैं भी थोड़े धन के लालच में आ गई थी। भगवान के लिए मुझे इस सबके लिए माफ़ कर दीजिए। मैं क़सम खाती हूं कि आज के बाद ऐसा कुछ भी नहीं करूंगी।"

"मुझे इस बात से कोई मतलब नहीं है कि तू विभोर और अजीत दोनों के ही साथ गुलछर्रे उड़ा रही है।" मैंने शख़्त भाव से कहा____"मुझे सिर्फ ये बता कि तू उन दोनों के कहने पर कुसुम को किस बात पर मजबूर कर रही थी? आख़िर ऐसी कौन सी मजबूरी थी जिसके चलते कुसुम चाय में नामर्द बनाने वाली दवा मिला कर हर रोज़ मुझे देने आती है?"

"मु...मुझे कुछ नहीं पता छोटे ठाकुर।" शीला एकदम से हड़बड़ा गई, बोली____"भगवान के लिए मुझ पर यकीन कीजिए।"

"अगर तू सच नहीं बताएगी।" मैंने उसके सिर के बालों को पकड़ कर उठाते हुए कहा जिससे वो दर्द से बिलबिला उठी____"तो तू सोच भी नहीं सकती कि मैं तेरा क्या हाल कर सकता हूं। तुझे शायद पता नहीं है कि कुसुम मेरी बहन ही नहीं बल्कि मेरी जान भी है और कोई उसे किसी तरह से मजबूर कर के दुख दे तो ये मैं किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं कर सकता। मेरी मासूम बहन को दुख देने वाले को मैं एक पल भी ज़िंदा नहीं रहने दूंगा।"

मेरी बात सुन कर शीला का चेहरा डर और दहशत से पीला ज़र्द पड़ गया था। वो थरथर कांप रही थी। नज़र उठा कर मुझे देखने की भी हिम्मत नहीं थी उसमें। जब काफी देर तक भी वो कुछ न बोली तो मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया।

"मैं तुझसे आख़िरी बार पूंछ रहा हूं।" मैंने कठोरता से कहा____"मुझे बता कि मेरी बहन को किस बात पर इतना मजबूर करती है कि वो मुझे चाय में नामर्द बना देने वाली दवा मिला कर पिलाने पर मजबूर हो जाती है? बता वरना तुझे नंगा कर के पूरे गांव में दौड़ाऊंगा और अपनी जिस चूंत पर तू विभोर और अजीत का लंड लेती है न उसमें लोहे का गरमा गरम सरिया डाल दूंगा।"

"अ...अगर मैंने आपको इस बारे में कुछ बताया तो वो लोग मुझे जान से मार देंगे।" शीला ने रोते हुए कहा____"भगवान के लिए मुझ पर दया कीजिए। मैं क़सम खाती हूं कि अब से ऐसा कुछ भी नहीं करूंगी। आप कहेंगे तो मैं ये गांव ही छोड़ कर चली जाऊंगी।"

"तेरे जैसी घटिया औरत को ज़िंदा रहने का कोई हक़ नहीं है।" मैंने गुस्से में दांत पीसते हुए कहा____"अब तक तूने जो पाप किए हैं उसका प्रायश्चित यही है कि तू मुझे सब कुछ सच सच बता दे। अगर नही बताएगी तो यहां से भी तू ज़िंदा नहीं जा पाएगी।"

मेरी बात सुन कर शीला ने बेबसी का घूंट पिया और अपने आंसू पोंछने लगी। उसके चेहरे के बदलते भावों से ऐसा ज़ाहिर हुआ मानों वो कोई फ़ैसला कर रही हो। जितना वो बताने में देरी कर रही थी उतना ही मुझे उस पर गुस्सा आ रहा था जिसे मैं बड़ी मुश्किल से रोके हुए था।

"ठ..ठीक है छोटे ठाकुर।" फिर उसने लरज़ते स्वर में कहा____"मैं आपको सब कुछ बताऊंगी लेकिन क्या फिर आप मुझे यहां से जाने देंगे?"

"पहले तू मुझे सब कुछ सच सच बता।" मैंने गुस्से से कहा____"तेरी बातें सुनने के बाद ही मैं सोचूंगा कि मुझे तेरे साथ क्या करना है।"

"ये बात तब की है जब आपको दादा ठाकुर ने गांव और समाज से बहिष्कृत कर के निकाल दिया था।" शीला ने गहरी सांस लेते हुए कहा_____"आपको इस तरह निकाले जाने से हवेली में लगभग सभी दुखी थे, खास कर आपकी लाडली बहन कुसुम। दिन ऐसे ही गुज़र रहे थे और गुज़रते समय के साथ सब कुछ सामान्य होता जा रहा था। आपकी बहन से मिलने उनकी कुछ सहेलियां हवेली आती थीं और वो घंटों कुसुम जी के कमरे में रहती थीं। आपके दोनों चचेरे भाई कुसुम जी की उन सहेलियों को भोगना चाहते थे लेकिन डर की वजह से उनका मंसूबा पूरा नहीं हो पा रहा था। मैं जो कि पहले से ही उनकी दासी बनी हुई थी इस लिए मैं उनके मंसूबों से अंजान नहीं थी। मैंने सोचा कि अगर मैं उन दोनों का काम कर दूं तो शायद वो खुश हो कर मुझे और भी रुपया पैसा देंगे। ये सोच कर मैं कुसुम जी पर नज़र रखने लगी। जब भी उनकी सहेलियां उनसे मिलने आतीं तो मैं चुपके से उनके कमरे के पास पहुंच जाती और ये जानने समझने की कोशिश करती कि अंदर कमरे में वो क्या बातें करती हैं। यूं तो मुझे इस तरह से कोई फ़ायदा नही हो रहा था लेकिन अचानक से एक दिन मुझे कुछ ऐसा पता चला जो मेरे लिए चकित कर देने वाला था।"

"ऐसा क्या पता चला था तुझे?" मैं उससे पूंछे बगैर न रह सका था।
"दिन के समय आपके दोनों चचेरे भाई और आपके बड़े भाई साहब हवेली में नहीं रहते थे।" शीला ने बताना शुरू किया____"शायद यही वजह थी कि उन लोगों को ऐसा कुछ करने की हिम्मत हुई थी। उस दिन जब कुसुम जी की सहेलियां उनसे मिलने आईं तो मैं भी कुछ देर बाद सबकी नज़र बचा कर ऊपर उनके कमरे के पास पहुंच गई और दरवाज़े से कान लगा कर उनकी बातें सुनने की कोशिश करने लगी। असल में उनकी बातें सुनने का मेरा सिर्फ़ यही मतलब था कि मैं जान सकूं कि कुसुम जी की सहेलियां हवेली के सभी लड़कों के बारे में किस तरह की बातें करती हैं? अगर बातें करती हैं तो ये मेरे लिए अच्छी बात होती क्योंकि उस सूरत में में सीधे उनसे बात कर सकती थी या फिर उन्हें आपके दोनों चचेरे भाईयों के लिए तैयार कर सकती थी। ख़ैर, मैं दरवाज़े पर कान लगाए अंदर की बातें सुनने लगी थी। तभी मुझे अंदर से ऐसी आवाज़ें सुनाई दीं जिन्हें सुन कर पहले तो मुझे यकीन न हुआ लेकिन फिर जब आवाज़ें अनवरत आती ही रहीं तो मैं बुरी तरह आश्चर्य चकित रह गई। मैं कुसुम जी को बहुत ही सीधी सादी और शरीफ़ लड़की समझती थी जबकि कमरे के अंदर से जिस तरह की आवाज़ें आ रही थीं उससे मैं हैरान हो गई थी। आवाज़ों से साफ था कि अंदर कमरे में कुसुम जी अपनी दोनों सहेलियों के साथ एक अनोखे सुख का आनंद ले रहीं थी। जिसके चलते उनके मुख से आनन्द भरी आहें और सिसकियां निकल रही थीं। मैं सोचने पर मजबूर हो गई कि कुसुम जैसी शरीफ़ लड़की अपनी सहेलियों के साथ ऐसा करने का सोच भी कैसे सकती है? पर क्योंकि मैं ये समझती थी कि ऐसा इस उमर में होता ही है। मैं ये भी समझ गई थी कि ऐसे आनंद का ज्ञान ज़रूर उनकी सहेलियों ने ही उन्हें दिया होगा। ख़ैर, बाहर खड़े हो कर सुनने से मेरे मन में अब ये देखने की उत्सुकता जाग गई कि कमरे के अंदर वो किस तरह से इस तरह का आनंद ले रही होंगी? उनके कमरे में कोई खिड़की तो थी नहीं जिससे मैं उन्हें देख पाती, लेकिन सहसा मैं उस वक्त चौंकी जब अंजाने में ही मेरा हाथ लग जाने से कमरे का दरवाज़ा थोड़ा सा खुल गया। मैं ये देख कर हैरान हुई कि उन्होंने कमरे का दरवाज़ा तक अंदर से बंद नहीं किया था। शायद उस स्वर्गिक आनंद को पाने की उनमें इतनी जल्दी रही होगी कि वो दरवाज़े को अंदर से बंद करना ही भूल गईं थी। अंजाने में ही मेरा हाथ दरवाज़े पर लग गया था और वो थोड़ा सा खुल गया था। कमरे के अंदर वो सब आनंद में डूबी हुईं थी इस लिए उन्हें दरवाज़ा खुलने का कोई आभास ही नहीं हो पाया था। ख़ैर, मैंने सतर्कता से उस थोड़े से खुले दरवाज़े से अंदर की तरफ देखने की कोशिश की लेकिन ठीक से कुछ दिखा नहीं तो मैंने सावधानी पूर्वक दरवाज़े को थोड़ा और ढकेल कर खोल दिया। दरवाज़ा लगभग आधा खुल चुका था इस लिए मुझे अंदर देखने में कोई परेशानी नहीं हुई। मैंने पूरी सतर्कता से जैसे ही अंदर देखा तो मेरी आंखें फटी की फटी रह गईं। कमरे के अंदर कुसुम जी पलंग पर पूरी तरह नंगी लेटी हुईं थी और उनकी दोनों सहेलियां उनके ऊपर झुकी हुईं थी। दोनों सहेलियों के संगमरमरी जिस्मों पर सिर्फ़ काली और लाल रंग की कच्छियाँ थी। एक सहेली कुसुम जी की छाती पर झुकी हुई थी और दूसरी सहेली उनकी टांगों के बीच में। पलंग पर लेटी कुसुम जी बुरी तरह मचल उठतीं थी और उनके मुख से आनन्द में डूबी सिसकियां निकल पड़ती थीं। कमरे के अंदर पलंग पर जो कुछ हो रहा था उसे देख कर मुझे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था, लेकिन उस सच पर भला मैं कब तक यकीन न करती?"

"तो सिर्फ़ इस वजह से तुम कुसुम को मजबूर किए हुए थी?" मैं अपनी बहन के बारे में ये सब सुन कर अंदर ही अंदर बेहद चकित था, मगर क्योंकि वो मेरी लाडली बहन थी इस लिए उसके बारे में ऐसी बातें मैं और ज्यादा सुनना नहीं चाहता था इस लिए बीच में ही बोल पड़ा था____"और क्या तुमने ये सब बातें विभोर और अजीत को भी बताई थी?"

"पहले तो ये सब उनसे बताने की मुझमें हिम्मत ही नहीं हो रही थी क्योंकि मुझे डर था कि अपनी बहन के बारे में ऐसी बातें सुन कर कहीं वो मुझ पर गुस्सा ही न हो जाएं।" शीला ने एक लंबी सांस ले कर कहा_____"लेकिन फिर ये सोच कर बताने का सोचा कि इस तरह में कुसुम जी की दोनों सहेलियों को उन्हें भोगने का बेहतरीन अवसर भी तो मिल जायेगा। ख़ैर उससे पहले ये सुनिए कि उस दिन आगे क्या हुआ। वो तीनों अपनी मस्ती और अपने आनंद में मगन थीं, लेकिन मुझे इस बात का एहसास था कि मैं ज़्यादा देर तक वहां नहीं ठहर सकती थी क्योंकि आपकी भाभी जी कभी भी आ सकतीं थी। मैंने फ़ौरन ही उन तीनों के सिर पर गाज गिराने का सोचते हुए दोनों हाथों से ज़ोर ज़ोर से ताली बजाना शुरू कर दिया। ताली बजने की आवाज़ से उन तीनों पर सच मुच में ही गाज गिर पड़ी थी। तीनों की तीनों ही बुरी तरह उछल पड़ीं थी। पलक झपकते ही उन तीनों की हालत ऐसी हो गई थी मानों उन तीनों के जिस्म में प्राण ही न रह गए हों। चेहरे एकदम सफ़ेद पड़ गए थे। काफी देर तक तो उन्हें अपनी नग्नता का आभास तक न हुआ लेकिन मैंने जैसे ही ये कहा कि ये सब यहां क्या हो रहा है तो उन तीनों में जैसे पलक झपकते ही जान आ गई। उसके बाद वो जल्दी जल्दी अपने अपने कपड़े पहनने लगीं। कुसुम जी तो इतनी घबरा गईं थी कि उन्होंने पलंग पर बिछी चादर को ही अपने ऊपर डाल लिया था। चेहरे पर डर, घबराहट और शर्मिंदगी के भाव गर्दिश करते हुए नज़र आ रहे थे। उनकी दोनों सहेलियां तो फ़ौरन ही अपने अपने कपड़े पहन कर कमरे से निकल कर भाग गईं थी लेकिन कुसुम जी में इतनी हिम्मत ही ना बची थी कि वो अपनी जगह से हिल डुल भी सकें। मुझे उनकी उस हालत पर मन ही मन मज़ा तो बहुत आया लेकिन फिर तरस भी आया। उधर कुसुम जी मुझसे नज़रें नहीं मिला पा रहीं थी। कुछ ही पलों में उनके चेहरे पर ऐसे भाव उभर आए मानों अभी रो देंगी। मेरी आत्मा तो चीख चीख कर कह रही थी कि उस मासूम को उस हालत में छेड़ना ठीक नहीं है लेकिन क्योंकि मुझे धन का लालच था इस लिए मैंने ऐसे मौके को हाथ से गंवाना भी उचित नहीं समझा। मैं जैसे ही उनकी तरफ बढ़ने लगी तो वो और भी ज़्यादा उस चादर में सिमटने लगीं लेकिन मुझे उनकी कोई परवाह नहीं थी। उनके पास पहुंच कर मैंने उनसे सिर्फ इतना ही कहा कि क्या हो अगर आपके इस खूबसूरत खेल के बारे में हवेली में किसी को पता चल जाए, खास कर उनके अपने दोनों भाईयों को? मैं जानती थी कि उनके दोनों भाई अक्सर उनको डांटते रहते थे। ख़ैर मेरी ये बात सुन कर कुसुम जी के चेहरे का रंग ही उड़ गया। बुरी तरह घबरा गईं वो। कुछ कहने के लिए उनके होंठ कांपे तो ज़रूर लेकिन होठों से कोई लफ्ज़ खारिज़ न हो सका। मुझे लगा कि ऐसी हालत में अगर मैंने उनको कुछ और भी कहा तो शायद कोई अनर्थ जैसी बात न हो जाए। इस लिए मैं मुस्कुराते हुए वापस पलटी और दरवाज़े की तरफ बढ़ चली। ये उनके अंदर समाया हुआ डर ही था कि वो हिम्मत जुटा कर जल्दी से ही बोल पड़ीं थी_____'र...रु...रुको।' उनके ऐसा कहने पर मैं अपनी जगह पर रुक गई थी लेकिन उनकी तरफ पलटी नहीं। मैं जानती थी कि अब वो इस सबके बारे में किसी से न कहने के लिए मुझसे मिन्नतें करेंगी और अगले ही पल ऐसा हुआ भी। जब उन्होंने डरे सहमे हुए भाव से इस बारे में किसी से कुछ न बताने के लिए मुझसे कहा तो इस बार मैंने पलट कर उनकी तरफ देखा और फिर मुस्कुराते हुए कहा____'ठीक है, मैं किसी को भी इस बारे में नहीं बताऊंगी लेकिन इसके लिए उनको भी एक कीमत चुकानी पड़ेगी। कीमत की बात सुन कर उनके चेहरे पर जल्दी ही राहत और खुशी के भाव उभर आए, कहा____'तुम्हें अपना मुंह बंद रखने के लिए जितना पैसा लेना हो ले लो लेकिन इस बारे में कभी किसी से कुछ मत कहना।' उनकी भोली और लुभावनी बात पर मैं ये सोच कर मुस्कुराई कि ये भी अपने दोनों भाईयों की तरह हर चीज़ की कीमत धन से ही चुकाने की बात करती हैं जबकि उनको तो ख़्वाब में भी ये उम्मीद नहीं हो सकती कि कीमत के रूप में मैं उनसे क्या मांगने वाली थी?"

शीला बोलते हुए एकदम से चुप हो गई और गहरी गहरी सांसें लेने लगी। मुझे उसकी बातें सुन कर उस पर ये सोच कर गुस्सा आ रहा था कि वो मेरी बहन के साथ कैसा गंदा खेल खेल रही थी। ख़ैर, मैंने अपने गुस्से को किसी तरह सम्हाला और उसके आगे बोलने का इंतज़ार करने लगा।

"मैंने कुसुम जी से कहा कि मुझे उनसे ना तो धन चाहिए और ना ही कोई रुपया पैसा।" शीला ने एक बार फिर से बताना शुरू किया____"अगर वो चाहती हैं कि मैं उनके ऐसे कृत्य के बारे में किसी को कुछ भी न बताऊं तो उन्हें इसके लिए अपनी उन दोनों सहेलियों से ये कहना होगा कि वो दोनों उनके दोनों भाईयों को संभोग का सुख दें। मेरी ये बात सुन कर कुसुम जी के चेहरे का रंग एक बार फिर से उड़ गया। काफी देर तक उनके मुख से कोई अल्फाज़ न निकला। इधर मैंने एक बार फिर से अपनी बात दोहरा दी, वो भी कुछ इस अंदाज़ और लहजे में कि कुसुम जी के पास अब मेरी बात को मान लेने के सिवा कोई चारा ही ना रह जाए। कुसुम जी बुरी तरह फंस चुकीं थी। उनके जैसी लड़की अपनी इज्ज़त को बचाने की ख़ातिर अब शायद कुछ भी कर सकती थी। मैंने भी उन्हें समझाया कि इसके लिए उन्हें कोई समस्या नहीं होगी क्योंकि वो अपनी सहेलियों से कह सकती हैं कि अगर वो ऐसा नहीं करेंगी तो ये उनके लिए भी अच्छा नहीं होगा। उस दिन मैं बेहद खुश थी कि चलो आपके दोनों चचेरे भाईयों के लिए दो कोरी लड़कियों का जुगाड़ कर दिया मैंने जिसके लिए यकीनन वो दोनों मुझे अच्छी खासी कीमत भी देंगे। मैंने कुसुम जी को समझा दिया था कि इसमें उनका कहीं नाम नहीं आएगा और ना ही उनके दोनों भाईयों को उनके ऐसे कृत्य का पता चलेगा। ख़ैर शाम को जब आपके दोनों चचेरे भाई आए तो मैं खुशी खुशी उनके कमरे में पहुंच गई और उनसे कहा कि मैंने आज उनके लिए दो कोरी लड़कियों का मस्त इंतजाम कर दिया है। औरत के जिस्म के भूखे आपके दोनों चचेरे भाई मेरी ये बात सुन कर बेहद खुश हुए और पूछने लगे कि ऐसी कोरी लड़कियां कब ला रही हूं मैं उनके हरम में? मैंने उनसे झूठ मूठ का कहा कि इसके लिए उन्हें थोड़ा धन ज़्यादा देना पड़ेगा क्योंकि वो दोनों लड़कियां धन के लालच में ही उनके नीचे लेटने के लिए और उनको खुश करने के लिए तैयार हुई हैं। उन्हें भला इससे क्या आपत्ति होनी थी इस लिए फ़ौरन ही रुपया पैसा देने को तैयार हो गए। मैं इस सबसे इतना खुश थी कि मैंने उन्हें बिना रुके सारी कहानी ही बता दी। होश तो मुझे तब आया जब एकदम से वो दोनों मुझ पर गुस्से से चिल्ला पड़े। मैं एकदम से सहम गई, और मुझे अपनी भारी ग़लती का एहसास हुआ। ऐसा लगा जैसे सपने में देखा गया ढेर सारा रुपया पैसा आंख खुलते ही पल भर में गायब हो गया हो। मैं सिर झुकाए खड़ी ही थी कि सहसा अगले ही पल चमत्कार हो गया। उन दोनों के द्वारा खी खी कर हंसने की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी थी। मैं मूर्खों की तरह उन्हें देखने लगी थी, जबकि उन्होंने कहा कि पहली बार तुमने कोई अच्छा काम किया है। उसके बाद इसी खुशी में दोनों ने मेरे साथ जी भर के संभोग किया और फिर मुझे जाने को कह दिया। दो चार दिन वो दोनों जाने कहां व्यस्त रहे। एक दिन उन्होंने मुझे इशारे से बुलाया और कहा कि मैंने उस दिन जिन दो कोरी लड़कियों के इंतजाम की बात कही थी उन्हें बगीचे वाले मकान में बुलाओ। उनकी ये बात सुन कर मैंने हां में सिर हिलाया और फिर कुसुम जी के पास पहुंच गई। कुसुम जी मुझे देखते ही घबरा गईं। मैंने उनसे कहा कि वो अपनी उन दोनों सहेलियों से कहें कि आज उन्हें बगीचे वाले मकान में जा कर उनके दोनों भाईयों को खुश करना है। कुसुम जी इस बात से भारी कसमकस में पड़ गईं लेकिन उनके पास ऐसा करने के सिवा कोई चारा नहीं था इस लिए उन्होंने बेबस भाव से हां में सिर हिलाया और अपनी सहेलियों के घर चली गईं। उसके बाद वही हुआ जैसा होना तय हो गया था। आपके दोनों चचेरे भाईयों ने कुसुम जी की दोनों सहेलियों के साथ बगीचे वाले मकान में संभोग का खूब आनंद लिया। उसके बाद तो ये क्रम ऐसा चला कि फिर रुका ही नहीं। जब भी उनका मन होता तब वो मुझसे कहते और मैं जा कर कुसुम जी से कहती। कुसुम जी अपनी इज्ज़त और मर्यादा को बचाए रखने के ख़ातिर वो सब करने को मजबूर थीं। मुझे क्योंकि इसके लिए खूब रुपए पैसे मिल रहे थे इस लिए मैंने भी कभी ये सोचने की कोशिश नहीं की थी कि इस सबसे कुसुम जी के दिलो दिमाग़ पर क्या असर पड़ रहा होगा। आपके दोनों चचेरे भाइयों ने भी इस बारे में कभी कुछ सोचना ज़रूरी नहीं समझा। वो ये जानते थे कि एक तरह से उनके लिए उन लड़कियों का इंतजाम उनकी अपनी ही बहन कर रही है लेकिन उन्हें जैसे इससे कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता था। समय ऐसे ही गुज़रता रहा और फिर एक दिन आप भी वापस हवेली आ गए। आपके आ जाने से आपके वो दोनों भाई काफी ज़्यादा असहज हो गए और उनका ये पसंदीदा खेल मजबूरीवश रुक गया। सबकी तरह मैं भी जानती थी कि वो दोनों आपसे बहुत डरते हैं और आपको ज़रा भी पसंद नहीं करते हैं। आपको वापस हवेली आए एक हफ्ता भी न हुआ था कि एक दिन आपके उन दोनों भाईयों ने मुझे फिर बुलाया और कहा कि इस बार मैं कुसुम को एक खास काम के लिए मजबूर करूं। उनकी ये बात मुझे बिलकुल भी समझ नहीं आई थी। मेरे पूछने पर उन्होंने विस्तार से बताया कि मैं उनकी बहन कुसुम जी से ये कहूं कि जब वो आपके लिए चाय ले कर जाएं तो वो पहले उस चाय में एक दवा मिला लिया करें। जब मैंने कुसुम जी से इस बारे में बात की तो उन्होंने ऐसा करने से साफ़ इंकार कर दिया। मैंने उन्हें कठोरता से समझाया कि अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया तो मैं उनकी करतूत के बारे में उनके उसी भाई को जा कर बता दूंगी जो भाई उन्हें अपनी जान से भी ज़्यादा प्यार करता है। मैंने उन्हें समझाया कि सोचो उस सूरत में क्या होगा? अपनी जिस बहन को वो दुनिया की सबसे अच्छी लड़की समझते हैं उसके बारे में ये सब जान कर उन्हें कैसा लगेगा और क्या खुद वो इस सबके बाद अपने उन भाई से नज़र मिला पाएंगी? मेरी बातों ने कुसुम जी के मानों प्राणों का हरण कर लिया था। अचानक ही उनकी आंखों से आंसुओं की धारा बह चली। रोते हुए बोली कि आख़िर मेरे उस कृत्य के लिए मुझे और कितना जलील होना पड़ेगा और किस हद तक ऐसे गिरे हुए काम करने पड़ेंगे जिसकी वजह से उसकी आत्मा तक ज़ख्मी हो जाए? देर से ही सही लेकिन कुसुम जी एक बार फिर से वो सब करने के लिए मजबूर हो गईं। जब उन्हें पता चला कि चाय में मिलाने वाली दवा असल में उनके सबसे अच्छे वाले भाई को नामर्द बना देने वाली है तो वो मेरे पैरों में गिर पड़ीं और रोते हुए बोलीं कि ऐसा भयंकर पाप वो हर्गिज़ नहीं करेंगी, भले ही इसके बदले उन्हें अपनी इज्ज़त के हज़ारों टुकड़े कर के पूरे गांव में फेंक देने पड़ें। उनकी ये बातें सुन कर मुझे लगा कि अगर ऐसा हुआ तो सबसे ज़्यादा नुकसान मेरा ही हो जाएगा क्योंकि भारी रकम के रूप में मिलने वाला रुपया पैसा मुझे एकदम से मिलना बंद हो जाएगा। ये सब सोच कर मैंने उन्हें समझाया कि भावनाओं में बह कर ऐसी बातें कहने का कोई फ़ायदा नहीं है बल्कि ठंडे दिमाग़ से सोचने वाली बात है। उन्हें सोचना चाहिए कि जिनकी नज़र में वो पाक साफ़ हैं और जो उन्हें अपनी पलकों पर बिठा के रखते हैं वो उनकी ऐसी करतूत के बारे में जान कर क्या क्या सोचने लगेंगे। उस दिन कुसुम जी को इस बात के लिए राज़ी करना मेरे लिए काफी मुश्किल काम रहा लेकिन आख़िर वो ऐसा काम करने को राज़ी हो ही गईं जिस काम के करने से यकीनन उनकी आत्मा तक ज़ख्मी हो जाने वाली थी। बस, उसके बाद ऐसा ही होने लगा। उन्हें स्पष्ट रूप से हिदायत दी गई थी कि वो आपको इस बारे में कुछ न बताएं कि जो चाय आप पीते हैं उसमें नामर्द बनाने वाली दवा मिली हुई होती है। उन्हें ये भी समझा दिया गया था कि उन पर हर पल नज़र रखी जाएगी।"

मेरी उम्मीद से कहीं ज़्यादा शीला नाम की ये नौकरानी हरामन निकली थी। सारा किस्सा बताने के बाद वो सिर झुका कर चुप हो गई थी। मेरा मन कर रहा था कि उसे इस सबके लिए ऐसी भयानक सज़ा दूं कि वो ऐसा करने के बारे में अगले कई जन्मों तक न सोच सके। वो मेरी मासूम बहन को इतने समय से मजबूर किए हुए थी और मेरी बहन मुझे नामर्द बना देने वाली दवा चाय में मिला कर पिलाने पर मजबूर थी। मैं अच्छी तरह महसूस कर सकता था कि इसके लिए उस पगली ने अपने दिल को कितनी मुश्किल से पत्थर का बनाया रहा होगा। मैं ये भी महसूस कर सकता था कि इसके लिए वो अकेले में कितना रोती रही होगी। उसके अपने भाइयों ने उससे क्या क्या करवा लिया था। अपनी सहेलियों के साथ इस तरह का कृत्य करना कोई गुनाह नहीं था, कोई पाप नही था। दुनिया का हर व्यक्ति इस उमर में ऐसा काम करता है, उसने अगर किया तो कौन सा ग़लत किया था? अब मुझे समझ आया कि क्यों वो मुझे इस सबके बारे में बता नहीं रही थी। वो किसी भी कीमत पर ये नहीं चाहती थी कि उसकी ऐसी करतूत जान कर मैं उसके बारे में ग़लत सोचने लगूं। वो मेरी भोली भाली और मासूम बहन थी और मेरी नज़रों में वो वैसी ही बनी रहना चाहती थी।

अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कि सहसा बाहर कुछ आवाज़ों को सुन कर मैं चौंका। ऐसा लगा जैसे कुछ बज रहा हो और साथ ही कुछ अजीब सी आवाज़ें भी थीं। मैं फ़ौरन ही दरवाज़ा खोल कर बाहर आया। हल्की चांदनी रात में बाहर मुझे जो कुछ दिखा उसे देख कर मैं बुरी तरह चौंका। बाहर दो काले नकाबपोश आपस में भिड़े हुए थे और उनके साथ भिड़ा हुआ था शंभू। यूं तो शंभू खुद भी हट्टा कट्टा आदमी था किंतु उन दो नकाबपोशों के मुकाबले वो कमज़ोर सा ही नज़र आया। मैंने महसूस किया कि जैसे ही शंभू उन दोनों के बीच हमले में कूदता था वैसे ही उन दो नकाबपोशों में से कोई न कोई उसको बड़ी दक्षता से किसी न किसी दांव के द्वारा दूर गिरा देता था। मैं समझ गया कि उन दो में से एक नकाबपोश मेरी सुरक्षा करने वाला पिता जी का कोई रहस्यमई आदमी था जबकि दूसरा नकाबपोश वही था जिसकी हमें तलाश थी। दोनों में से कोई भी कमज़ोर होता नहीं दिख रहा था। मेरे पास पिता जी का दिया हुआ रिवॉल्वर था लेकिन समस्या ये थी कि मैं उसका उपयोग नहीं कर सकता था। ऐसा इस लिए क्योंकि उनमें से मेरी सुरक्षा करने वाला नक़ाबपोश कौन था ये मुझे खुद नहीं पता था। दोनों के ही जिस्मों पर एक जैसा ही काला कपड़ा और नक़ाब था।

वो दोनों एक दूसरे पर लट्ठ का प्रहार कर रहे थे लेकिन लट्ठ किसी के जिस्म पर नहीं लग रहा था। दोनों किसी न किसी तरह एक दूसरे के प्रहार को अपने लट्ठ से रोक ही लेते थे। ये सब देख कर मैं असमंजस में पड़ गया था और सोचने लगा था कि मुझे इस हालत में क्या करना चाहिए? वैसे सवाल तो ये भी था कि दूसरा नकाबपोश यहाँ किस लिए आया था? क्या मुझे मारने के लिए या फिर शीला को.....। ओ तेरी, शीला का नाम ज़हन पर आते ही मेरे मस्तिष्क में बिजली सी कौंधी। मुझे याद आया कि वो भी तो षड्यंत्रकारियों के हाथ की कठपुतली थी। मैं तेज़ी से पलटा और कमरे के खुले हुए दरवाज़े के अंदर की तरफ देखा मगर मैं ये देख कर बुरी तरह चौंका कि अंदर शीला नहीं थी। ज़हन में सवाल कौंधा कि ये अचानक से कहां गायब हो गई? मैंने शंभू को आवाज़ दी और शीला के भाग जाने की बात उसको बताई। शंभू जल्दी ही मेरे पास आया। मैंने देखा उसके माथे से खून बह रहा था। ज़ाहिर है उन दो नकाबपोशों में से किसी ने उसको चोट पहुंचाई थी। मैंने शंभू को हुकुम दिया कि वो शीला को खोजे। मेरा हुकुम मिलते ही शंभू तेज़ी से एक तरफ दौड़ गया। उसके जाते ही मैं भी दूसरी तरफ तेज़ी से भागा।

शीला से मुझे इस तरह भाग निकलने की ज़रा भी उम्मीद नहीं थी। मैं हैरान था कि वो कितनी होशियारी से भाग निकली थी। चारो तरफ बगीचे के पेड़ पौधे थे जिसके चलते चांद की रोशनी कम थी। अंधेरे का फ़ायदा उठा कर शीला जाने किस तरफ निकल गई थी? मैं पागलों की तरह उसको इधर उधर खोज रहा था लेकिन वो कहीं नज़र ही नहीं आ रही थी। नज़र आती भी कैसे, उसे तो मुझसे छिप कर ही भागना था। अभी मैं ये सोच ही रहा था कि तभी वातावरण में एक हृदयविदारक चीख गूंजी। ऐसा लगा जैसे किसी का गला चीर दिया गया हो। मैं जिस तरफ था उसके बाएं तरफ से चीख की ये आवाज़ आई थी। मैं तेज़ी से उस तरफ भागा। ज़मीन पर पड़े सूखे पत्तों पर भागने से आवाज़ हो रही थी। जल्दी ही मैं उस तरफ पहुंचा जहां से चीखने की आवाज़ आई थी। हल्के अंधेरे में ऐसा लगा जैसे किसी ने किसी को धक्का दिया हो जिससे कोई इंसानी आकृति लहरा कर कच्ची ज़मीन पर भरभरा कर जा गिरी थी। धक्का देने वाला फ़ौरन ही भागा, क्योंकि उसके भागने की आवाज ज़मीन पर पड़े सूखे पत्तों से स्पष्ट आई थी। मैंने जोर से शंभू को पुकारा और तेज़ी से उस तरफ भागा।

क़रीब पहुंचा तो देखा शीला ज़मीन पर लुढ़की पड़ी थी। मैंने झुक कर देखा, उसके गले से भल्ल भल्ल कर के खून बहता हुआ वहीं ज़मीन पर फैलता जा रहा था। शीला के जिस्म में कोई हलचल नहीं हो रही थी। मैंने ये सोच कर ज़मीन पर गुस्से में आ कर ज़ोर से अपना हाथ पटका कि दुश्मन ने कितनी आसानी से मेरे हाथ से अपना शिकार छीन कर उसका शिकार कर लिया था और मैं कुछ न कर सका था। अभी तो मुझे शीला से और भी बहुत कुछ जानना था। कुछ ही पलों में शंभू और मेरी रक्षा करने वाला नकाबपोश आ गए। मैंने दोनों को गुस्से में ही हुकुम सुनाया कि इस औरत का हत्यारा उस तरफ को भागा है इस लिए उसे खोजो। हुकुम मिलते ही शंभू तो उस तरफ को तेज़ी से दौड़ गया मगर नकाबपोश अपनी जगह से हिला तक नहीं। मैंने गुस्से से उसकी तरफ देखा और कहा____"तुमने सुना नहीं मैंने क्या कहा है?"

"मैंने अच्छी तरह सुना है छोटे ठाकुर।" उसने अजीब सी आवाज़ में कहा____"लेकिन मेरा काम उसके पीछे जा कर उसको खोजना नहीं है बल्कि तुम्हारी सुरक्षा करना है। मैं तुम्हें यहां पर अकेला छोड़ कर कहीं नहीं जाने वाला।"

मैं जानता था कि उसे मेरे पिता जी से ऐसा ही करने का हुकुम मिला था इस लिए गुस्से का घूंट पी कर रह गया। क़रीब दस मिनट बाद शंभू आया। वो बुरी तरह हांफ रहा था। आते ही उसने मुझसे कहा कि पता नहीं वो नकाबपोश कहां गायब हो गया। मुझसे कुछ दूरी पर खड़े जब एक दूसरे नकाबपोश पर उसकी नज़र पड़ी तो वो चौंका। मैंने शंभू को शांत रहने को कहा और ये भी कि वो शीला के घर में जा कर उसके पति को बता दे कि उसकी बीवी का किसी ने क़त्ल कर दिया है।


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Iron Man

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