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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 18 9.7%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 21 11.4%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 73 39.5%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 42 22.7%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.8%

  • Total voters
    185

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,222
113,744
354
☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 22
----------☆☆☆----------




अब तक,,,,,,

मेरी बात सुन कर वो दोनों मुस्कुराईं और फिर अपना रंग वाला कागज़ उठा कर कमरे से बाहर चली गईं। उनके जाने के बाद मैंने मन ही मन कहा____'कोई बात नहीं वैभव सिंह। इन दोनों की चूत बहुत जल्द तेरे लंड को नसीब होगी।'

मेरे हाथों और चेहरे पर रंग लग गया था इस लिए अब मुझे नहाना ही पड़ता मगर उससे पहले मैंने सोचा क्यों न भाभी से भी मिल लिया जाए। आज रंगो का त्यौहार है इस लिए भाभी को भी होली की मुबारकबाद देना चाहिए मुझे। ये सोच कर मैंने अपनी शर्ट से अपने चेहरे का रंग पोंछा और दूसरी शर्ट पहन कर कमरे से बाहर आ गया। पूरी हवेली में लोग एक दूसरे के साथ रंग गुलाल खेलते हुए आनंद ले रहे थे और एक तरफ हवेली के एक कमरे में मेरी भाभी मुझसे नाराज़ हुई पड़ी थी। मैंने भी आज निर्णय कर लिया कि उनसे हर बात खुल कर और साफ़ शब्दों में कहूंगा। उसके बाद जो होगा देखा जाएगा।


अब आगे,,,,,



मन में कई तरह के विचार लिए मैं दूसरे छोर पर आया। हवेली के झरोखे से मैंने नीचे आँगन में देखा। सारी औरतें अपने में ही लगी हुईं थी। आँगन से नज़र हटा कर मैंने भाभी के कमरे की तरफ देखा और फिर आगे बढ़ कर दरवाज़े पर हाथ से दस्तक दी। मेरे दिल की धड़कनें अनायास ही बढ़ गईं थी। ख़ैर मेरे दस्तक देने पर जब कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो मैंने फिर से दस्तक दी किन्तु इस बार भी अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। कुछ सोच कर मैंने इस बार दस्तक देने के साथ भाभी कह कर उन्हें पुकारा भी। मेरे पुकारने पर इस बार प्रतिक्रिया हुई। कुछ ही पलों में दरवाज़ा खुला और सामने भाभी नज़र आईं। मेरी नज़र जब उन पर पड़ी तो देखा अजीब सी हालत बना रखी थी उन्होंने। जो चेहरा हमेशा ही ताज़े खिले हुए गुलाब की मानिन्द खिला हुआ रहता था वो इस वक़्त ऐसे नज़र आ रहा था जैसे किसी गुलशन में खिज़ा ने अपना क़याम कर लिया हो।

"होली मुबारक हो भाभी।" फिर मैंने खुद को सम्हालते हुए बड़े ही आदर भाव से मुस्कुराते हुए कहा तो उनके चेहरे के भाव बदलते नज़र आए और फिर वो सपाट भाव से बोलीं____"अब क्यों आए हो यहाँ?"

"जी??" मैं एकदम से चकरा गया____"क्या मतलब??"
"तुम्हें तो इस हवेली से और इस हवेली में रहने वालों से कोई मतलब ही नहीं है न।" भाभी ने पूर्व की भाँती सपाट भाव से ही कहा____"तो फिर अब क्यों आए हो यहाँ? उसी दुनिया में वापस लौट जाओ जिस दुनियां में तुम्हें ख़ुशी मिलती है और जिस दुनियां के लोग तुम्हें अच्छे लगते हैं।"

"ठीक है लौट जाऊंगा।" मैंने उनकी आँखों में झांकते हुए कहा____"लेकिन उससे पहले मैं ये जानना चाहता हूं कि आप ख़ुद को किस बात की सज़ा दे रही हैं? आख़िर किस लिए आपने अन्न जल का त्याग कर रखा है और इस तरह ख़ुद को क्यों कमरे में बंद कर रहा है? आप मुझे इन सवालों के जवाब दे दीजिए उसके बाद मैं चला जाऊंगा यहाँ से।"

"तुम्हें इससे क्या फ़र्क पड़ता है भला?" भाभी ने भी मेरी आँखों में अपलक देखते हुए कहा____"मैं अन्न जल का त्याग करके ख़ुद को कमरे में बंद रखूं तो इससे तुम्हें क्या फ़र्क पड़ता है?"

"कोई मेरी वजह से अन्न जल का त्याग कर के ख़ुद को कमरे में बंद रखे तो मुझे फर्क पड़ता है।" मैंने कहा____"ख़ैर छोड़िए इस बात को, कुसुम ने बताया की आप मुझसे नाराज़ हैं??"

"बात वही है।" भाभी ने मेरी तरफ देखते हुए ही कहा____"तुम्हें मेरी नाराज़गी से या किसी और चीज़ से क्या फ़र्क पड़ता है?"
"अगर आपको मेरी हर बात पर ताने ही मारने हैं।" मैंने इस बार थोड़े नाराज़ लहजे में कहा____"तो फिर चला जाता हूं मैं। आप अच्छी तरह जानती हैं कि मैं अपने ऊपर किसी की भी बंदिश पसंद नहीं करता और ना ही ये पसंद करता हूं कि कोई बेमतलब मुझ पर अपना रौब झाड़े।"

"ज़मीन पर लौट आओ ठाकुर वैभव सिंह।" भाभी ने शख़्त भाव से कहा___"वरना बाद में पछताने का भी मौका नहीं मिलेगा तुम्हें। अपने गुस्से और झूठे अहंकार को अंदर से निकाल कर ज़रा उन हालातों की तरफ भी ग़ौर करो जो तुम्हारे चारो तरफ तुम्हें डस लेने के लिए फ़ैलते जा रहे हैं।"

"अच्छा है न।" मैंने फीकी मुस्कान के साथ कहा____"अगर किसी वजह से मुझे कुछ हो जाएगा तो किसी को इससे क्या फ़र्क पड़ जाएगा लेकिन मुझे ये समझ नहीं आ रहा कि आप मेरे लिए इतना क्यों फ़िक्र कर रही हैं?"

"क्योंकि तुम्हें दादा ठाकुर के बाद उनकी जगह लेनी है।" भाभी ने कहा____"और उसके लिए ज़रूरी है कि तुम होश में आओ और सही सलामत रहो। तुम्हें अंदाज़ा भी नहीं है कि तुम्हारे चारो तरफ कितना ख़तरा मौजूद है जो तुम्हें ख़ाक में मिला देने के लिए हर पर तुम्हारी तरफ ही बढ़ता आ रहा है।"

"वैभव सिंह इतना कमज़ोर नहीं है कि कोई ऐरा गैरा उसे ख़ाक में मिला देगा।" मैंने उनके चेहरे के क़रीब अपना चेहरा ले जाते हुए कहा____"इतना तो अपने आप पर यकीन है कि क़यामत को भी अपनी तरफ आने से रोक लूंगा और उसे ग़र्क कर दूंगा।"

"गुरूर और अहंकार तो वही ठाकुरों वाला ही है वैभव।" भाभी ने ताना मारते हुए कहा____"फिर ये क्यों कहते हो कि तुम इस हवेली में रहने वालों से अलग हो? अगर सच में अलग हो तो ये झूठा मान गुमान क्यों दिखाते हो? अगर तुम सच में अपनी जगह सही हो तो अपने सही होने का सबूत भी दो। यूं डींगें मार कर तुम क्या साबित करना चाहते हो?"

"मैं किसी के सामने कुछ भी साबित नहीं करना चाहता भाभी।" मैंने भाभी से नज़र हटा कर कहा____"मुझे बस इस हवेली का कायदा कानून पसंद नहीं है और इसी लिए मैं यहाँ रहना पसंद नहीं करता।"

"तो तुम ख़ुद इस हवेली के लिए नए कायदे कानून बनाओ वैभव।" भाभी ने कहा____"किसी चीज़ से मुँह फेर कर दूर चले जाना कौन सी समझदारी है? जब तक तुम किसी चीज़ का डट कर सामना नहीं करोगे तब तक तुम किसी चीज़ से दूर नहीं जा सकते।"

"क्या आप इन्हीं सब बातों के लिए नाराज़ थीं मुझसे? मैंने बात को बदलते हुए कहा____"मुझे हर बात खुल कर बताइए भाभी। आप जानती हैं कि पहेलियाँ बुझाने वाली बातें ना तो मुझे पसंद हैं और ना ही वो मुझे समझ आती हैं।"

"तुम्हें मैं अपना देवर ही नहीं बल्कि अपना छोटा भाई भी मानती हूं वैभव।" भाभी ने इस बार सहसा मेरे चेहरे को सहलाते हुए बड़े प्रेम भाव से कहा____"और यही चाहती हूं कि तुम एक अच्छे इंसान बनो और इस हवेली की बाग डोर अपने हाथ में सम्हालो। मैं मानती हूं कि तुम्हारे बड़े भैया इस हवेली के उत्तराधिकारी हैं मगर वो इस उत्तराधिकार के क़ाबिल नहीं हैं।"

"आप बड़े भैया के बारे में ऐसा कैसे कह सकती हैं?" मैंने उनकी गहरी आँखों में देखते हुए कहा____"वो आपके पति हैं और दुनियां की कोई भी पत्नी अपने पति के बारे में ऐसा नहीं कह सकती।"
"मैंने तुमसे उस दिन भी कहा था वैभव कि मैं एक पत्नी के साथ साथ इस हवेली की बहू भी हूं।" भाभी ने कहा____"पत्नी के रूप में मैं जानती हूं कि मुझे अपने पति के बारे में ऐसा नहीं कहना चाहिए लेकिन एक बहू के रूप में मुझे और भी बहुत कुछ सोचना पड़ता है। मैं ये कैसे चाह सकती हूं कि दादा ठाकुर के बाद उनकी बाग डोर एक ऐसा इंसान अपने हाथ में ले जो उसके लायक ही नहीं है।"

"सवाल अब भी वही है भाभी।" मैंने कहा____"आख़िर बड़े भैया इस अधिकार के लायक क्यों नहीं हैं? ऐसी क्या कमी है उनमें जिसकी वजह से आप उनके बारे में ऐसा कह रही हैं?"

"क्योंकि उनका जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है वैभव।" भाभी ने एक झटके से कहा और फिर बुरी तरफ फफक कर रोने लगीं। इधर उनकी ये बात सुन कर पहले तो मुझे समझ न आया किन्तु जैसे ही उनकी बात का मतलब समझा तो मेरे पैरों तले से ज़मीन खिसक गई।

"ये..ये..ये आप क्या कह रही हैं भाभी?" मैं हतप्रभ भाव से बोल उठा___"बड़े भैया का जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है....क्या मतलब है इसका?"
"हां वैभव।" भाभी रोते हुए पलट गईं और अंदर कमरे में जाते हुए बोलीं____"यही सच है। तुम्हारे बड़े भैया का जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है। वो बहुत जल्द इस दुनिया से विदा हो जाएंगे।"

"नहीं नहीं।" बौखला कर तथा आवेश में चीखते हुए मैंने अंदर आ कर उनसे कहा____"ये सच नहीं हो सकता। आप झूठ बोल रही हैं। मुझे यकीन नहीं हो रहा कि आप बड़े भैया के बारे में इतना बड़ा झूठ बोल सकती हैं।"

"ये झूठ नहीं बल्कि कड़वा सच है वैभव।" भाभी ने पलट कर दुखी भाव से मुझसे कहा____"इस हवेली में इस बात का पता मेरे अलावा सिर्फ दादा ठाकुर को ही है।"
"लेकिन ये कैसे हो सकता है भाभी?" मेरे चेहरे पर आश्चर्य मानो ताण्डव करने लगा था। मारे अविश्वास के मैंने कहा____"नहीं नहीं, मैं ये बात किसी भी कीमत पर नहीं मान सकता और अगर ये सच है भी तो इस बात का पता हवेली में बाकी लोगों को क्यों नहीं है?"

"क्योंकि दादा ठाकुर ने मुझे किसी और से बताने से मना कर रखा है।" भाभी ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा____"दादा ठाकुर नहीं चाहते कि इस बात का पता माँ जी को या किसी और को चले। माँ जी को यदि इस बात का पता चला तो उन्हें गहरा आघात लग सकता है। दूसरी बात ये भी है कि कुछ समय से हमारे खानदान के खिलाफ़ कुछ अफवाहें सुनने को मिल रही हैं जिसकी वजह से दादा ठाकुर को लगता है कि अगर इस बात का पता किसी और को लगा तो हो सकता है कि ऐसे में लोग इस बात का फ़ायदा उठा लें।"

"पर ये कैसे हो सकता है भाभी?" मैंने पुरजोर भाव से कहा____"आपको और दादा ठाकुर को ये कैसे पता चला कि बड़े भैया का जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है?"
"कुछ महीने पहले दादा ठाकुर अपने साथ मुझे और तुम्हारे बड़े भैया को ले कर कुल गुरु के पास गए थे।" भाभी ने गंभीरता से कहा____"असल में दादा ठाकुर गुरु जी से मिल कर उनसे ये जानना चाहते थे कि उनके बाद उनकी बाग डोर को सम्हालने के लिए उनके बड़े बेटे अब सक्षम हो गए हैं कि नहीं? जब दादा ठाकुर ने गुरु जी से इस बारे में बात की तो गुरु जी आँख बंद कर के ध्यान लगाने लगे। कुछ देर बाद उन्होंने अपनी आँखें खोलीं और फिर दादा ठाकुर से कहा कि वो इस बारे में सिर्फ उन्हीं को बताएंगे। गुरु जी की बात सुन कर दादा ठाकुर ने हम दोनों को उनकी कुटिया से बाहर भेज दिया। कुछ देर बाद जब दादा ठाकुर गुरु जी से मिल कर बाहर आए तो वो एकदम से शांत थे। उस वक़्त तो मैंने उनसे कुछ नहीं पूछा किन्तु तुम्हारे बड़े भैया से न रहा गया तो उन्होंने पूछ ही लिया की गुरु जी ने क्या कहा है। तुम्हारे भैया के पूछने पर दादा ठाकुर ने बस इतना ही कहा कि अभी इसके लिए काफी समय है इस लिए उन्होंने प्रतीक्षा करने को कहा है। उस दिन दादा ठाकुर पूरे रास्ते ख़ामोश ही रहे थे और किसी गहरी सोच में डूबे रहे थे। उन्हें देख कर मैं समझ गई थी कि कुछ तो बात ज़रूर है। मैं उनसे कुछ पूछने की हिम्मत नहीं कर सकती थी इस लिए चुप ही रही। हवेली आने के बाद दादा ठाकुर ने माँ जी से भी यही कहा कि अभी इसके लिए काफी समय है। दो चार दिन ऐसे ही गुज़र गए लेकिन मैं अक्सर उनके चेहरे पर चिंता और परेशानी देखती थी, हलांकि वो बाकी सबके सामने हमेशा की तरह शांत चित्त ही रहते थे। मैं अब तक समझ चुकी थी कि कोई गंभीर बात ज़रूर है इस लिए एक दिन मैं खुद गुरु जी के आश्रम की तरफ चल पड़ी। रास्ता लम्बा था लेकिन मुझे परवाह नहीं थी। मैं हवेली से सबकी नज़र बचा कर निकली थी और शाम होने से पहले ही गुरु जी के आश्रम पहुंच ग‌ई। गुरु जी मुझे देख कर बहुत हैरान हुए थे। ख़ैर मेरे पूछने पर पहले तो उन्होंने मुझे बताने से इंकार किया लेकिन जब मैंने उनसे बहुत ज़्यादा अनुनय विनय की तब उन्होंने मुझे बताया कि असल बात क्या है। गुरु जी से सच जान कर मेरे होश उड़ गए थे और लग रहा था कि मैं हमेशा के लिए अचेत हो जाऊंगी। किसी तरह वहां से वापस हवेली आई और दादा ठाकुर से अकेले में मिली। उनसे जब मैंने ये कहा कि मैं गुरु जी से सच जान कर आ रही हूं तो वो दंग रह गए फिर एकदम से गुस्सा हो कर बोले कि हमारी इजाज़त के बग़ैर वहां जाने की हिम्मत कैसे की तुमने तो मैंने भी कह दिया कि मुझे भी अपने पति के बारे में जानने का पूरा हक़ है और अब जबकि मैं सच जान चुकी हूं तो बताइए कि अब मैं क्या करूं? मेरा तो जीवन ही बर्बाद हो गया। मेरा रोना देख कर दादा ठाकुर शांत हो गए और फिर हाथ जोड़ कर उन्होंने मुझसे कहा कि मैं इस बारे में हवेली के किसी भी सदस्य से ज़िक्र न करूं। दादा ठाकुर की बात सुन कर मुझे रोना तो बहुत आ रहा था लेकिन मेरे रोने से भला क्या हो सकता था?"

भाभी चुप हुईं तो कमरे में शमशान की मानिन्द सन्नाटा छा गया। भाभी का कहा हुआ एक एक शब्द मेरे कानों में अभी भी गूँज रहा था और मैं यकीन कर पाने में जैसे खुद को असमर्थ समझ रहा था। मैं सोच भी नहीं सकता था कि एक सच ऐसा भी हो सकता है। बड़े भैया का चेहरा मेरी आँखों के सामने उभर आया। चार महीने पहले उनका बर्ताव मेरे प्रति आज जैसा नहीं था। वो दादा ठाकुर की तरह शख़्त स्वभाव के नहीं थे और ना ही मेरी तरह गांव की किसी बहू बेटी पर ग़लत निगाह डालते थे। वो शांत स्वभाव के तो थे किन्तु कभी कभी जब वो किसी बात से चिढ़ जाते थे तो उनको भयंकर गुस्सा भी आ जाता था। बड़े भाई होने के नाते अक्सर वो मुझे समझाते थे और डांट भी देते थे किन्तु आज तक उन्होंने मुझ पर हाथ नहीं उठाया था।

अपनी आँखों के सामने बड़े भैया का चेहरा उभरा हुआ देख सहसा मेरी आँखों में आंसू झिलमिला उठे। मेरे अंदर एक हूक सी उठी जिसने मेरी अंतरात्मा तक को कंपकंपा दिया। मैंने भाभी की तरफ देखा तो उन्हें दूसरी तरफ चेहरा किए सिसकते हुए पाया। इस हक़ीक़त ने तो मुझे हिला के ही रख दिया था। एक पल में ही वक़्त और हालात बदल गए थे।

"क्या आपने गुरु जी से ये नहीं पूछा था कि बड़े भैया के साथ ऐसा क्यों होने वाला है?" मैंने आगे बढ़ कर भाभी से कहा____"आख़िर ऐसी क्या वजह है कि वो हमें छोड़ कर इस दुनियां से चले जाएंगे?"

"पूछा था।" भाभी ने गहरी सांस लेते हुए कहा___"जवाब में गुरु जी ने बस यही कहा था कि होनी अटल है, जीवन और मृत्यु ईश्वर के हाथ में है। उनका कहना था कि तुम्हारे बड़े भैया जन्म से ही अल्पायु ले कर आये थे। उन्होंने ये भी बताया कि उनसे मुझे औलाद भी होनी थी किन्तु वो खंडित हो चुकी है।"

"इसका क्या मतलब हुआ?" मैंने हैरानी से कहा____"अगर आपको औलाद होनी थी तो वो खंडित कैसे हो सकती है? क्या आपने पूछा नहीं गुरु जी से?"
"गुरु जी ने कहा कि इंसान के कर्मों द्वारा ही भाग्य बनता और बिगड़ता है।" भाभी ने कहा____"अगर इंसान के कर्म अच्छे हैं तो उसका कर्म फल भी अच्छा ही मिलेंगा। गुरु जी के कहने का मतलब शायद यही था कि तुम्हारे भैया के कर्म शायद अच्छे नहीं थे इस लिए ऐसा हुआ।"

"बड़ी अजीब बात है।" मैंने सोचने वाले भाव से कहा____"पर मैं नहीं मानता इन सब बातों को। ये सब बकवास है और हां आप भी गुरु जी की इन फ़ालतू बातों को मत मानिए। बड़े भैया को कुछ नहीं होगा। कर्म फल का लेखा जोखा अगर यही है तो फिर मेरे कर्म कौन से अच्छे हैं? मैंने तो आज तक सब बुरे ही कर्म किए हैं तो फिर मुझे मृत्यु क्यों नहीं आई और मेरे साथ बुरा क्यों नहीं हुआ? ये सब अंधविश्वास की बातें हैं भाभी। मैं नहीं मानता इन सब बातों को।"

"जीवन और मृत्यु ईश्वर के हाथ में है वैभव।" भाभी ने गंभीरता से कहा____"किन्तु कर्म इंसान के बस में है। तुम जैसा कर्म करोगे तुम्हें वैसा ही फल मिलेगा ये एक सच्चाई है। आज भले ही तुम इस बात को न मानो मगर एक दिन ज़रूर मानोगे।"

"मैं सिर्फ इतना जानता हूं कि बड़े भैया को कुछ नहीं होगा।" मैंने स्पष्ट भाव से कहा____"आपको ये सब बातें मुझे पहले ही बतानी चाहिए थी। मैंने कई बार आपसे साफ़ साफ़ बताने को बोला था लेकिन आपने नहीं बताया। ख़ैर, बात अगर यही थी तो आपने ये क्यों कहा कि बड़े भैया दादा ठाकुर की बाग डोर सम्हालने के लायक नहीं हैं?"

"मैं ये बात तुम्हें बताना नहीं चाहती थी।" भाभी ने कहा____"इसी लिए तुमसे हर बार सिर्फ यही कहा कि वो इस सबके लायक नहीं हैं।"
"आप भी कमाल करती हैं भाभी।" मैंने कहा____"कम से कम मैं आपको सबसे ज़्यादा समझदार समझता था। मुझे तो समझ में नहीं आ रहा कि दादा ठाकुर ने भी आपको ये बात किसी से न बताने को क्यों कहा और खुद भी अब तक इस बात को छुपाए बैठे हैं। चलो मान लिया कि उन्होंने माँ को बताने से मना किया‌ था क्योंकि वो समझते हैं कि इस बात को जान कर माँ को सदमा लग जाएगा किन्तु बाकी लोगों से इस बारे में बताने में क्या समस्या थी?"

"कुछ तो बात होगी ही वैभव।" भाभी ने संजीदा भाव से कहा____"अन्यथा दादा ठाकुर मुझे इस बात को किसी से भी ना बताने को क्यों कहते और अब मैं चाहती हूं कि तुम भी इस बात का ज़िक्र हवेली में किसी से न करना।"
"ठीक है नहीं करुंगा।" मैंने कहा____"लेकिन मैं अब इस बात को ले कर चुप भी नहीं रहूंगा भाभी। अब मैं अपने बड़े भैया का साया बन कर उनके आस पास ही रहूंगा। मैं भी देखता हूं कि वो कौन सा भगवान है जो उन्हें मुझसे छीन कर ले जाता है।"

मेरी बात सुन कर भाभी की आँखों से आंसू छलक पड़े और वो ख़ुशी के मारे मुझसे लिपट ग‌ईं। मैंने भी उन्हें अपने से छुपका लिया। इस वक़्त मेरे ज़हन में उनके प्रति कोई भी बुरा ख़याल नहीं था बल्कि इस वक़्त मैं उनके लिए बहुत ही संजीदा हो गया था। इतनी बड़ी बात थी और मुझे इस बारे में कुछ पता ही नहीं था। सबके सामने हमेशा हंसती मुस्कुराती रहने वाली मेरी भाभी न जाने कब से अपने अंदर ये दुःख दबाए हुए थीं।

"एक बात बताइए भाभी।" कुछ देर बाद मैंने उन्हें खुद से अलग करते हुए कहा____"अगर गुरु जी को इतना पता था कि बड़े भैया का जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है तो फिर उन्हें ये भी तो पता रहा होगा न कि बड़े भैया के साथ ऐसा क्या होगा जिससे कि वो इस दुनियां से चले जाएंगे? क्या आपने गुरु जी से इस बारे में साफ़ साफ़ नहीं पूछा था?"

"पूछा था।" भाभी ने अपने आँसू पोंछते हुए कहा____"पहले वो बता नहीं रहे थे लेकिन जब मैं पूछती ही रही तो वो बोले कि जब तुम्हारे भैया का वैसा समय आएगा तब उनका स्वास्थ्य बिगड़ जाएगा और वो बिस्तर पर ही कुछ दिन पड़े रहेंगे। उसके बाद उनकी आत्मा नियति के लेख के अनुसार ईश्वर के पास चली जाएगी।"

"उस गुरु जी की ऐसी की तैसी।" मैंने शख़्त भाव से कहा____"ऐसा कुछ नहीं होने दूंगा मैं। अब आप इस बात को ले कर बिल्कुल भी चिंता मत कीजिए। मैं दुनियां के हर वैद्य को ला कर इस हवेली में क़ैद कर दूंगा और उन्हें हुकुम दूंगा कि अगर मेरे बड़े भैया की तबियत ज़रा सी भी ख़राब हुई तो मैं उन सबकी खाल में भूसा भर दूंगा।"

"तुम्हारी ये बातें सुनने के लिए काश इस वक़्त तुम्हारे भैया यहाँ होते।" भाभी ने ख़ुशी से डबडबाई आंखों से मुझे देखते हुए कहा____"तो वो भी जान जाते कि जिस भाई को वो बिल्कुल ही नालायक और ग़ैर ज़िम्मेदार समझते हैं उसके अंदर अपने बड़े भाई के लिए कितना प्रेम है। मैं जानती थी वैभव कि तुम ऊपर से ही इतने शख़्त हो और बुरा बने रहते हो लेकिन अंदर से तुम दादा ठाकुर की ही तरह नरम हो और तुम्हारे अंदर एक अच्छा इंसान भी है। मुझे बहुत ख़ुशी हुई तुम्हारा ये रूप देख कर और अब यही चाहती हूं कि तुम ऐसे ही रहो। जब तुम्हारे बड़े भैया अपने लिए तुम्हारा ये प्रेम देखेंगे तो उनके अंदर से भी तुम्हारे प्रति भरा हुआ गुस्सा निकल जाएगा।"

"मुझे पता है कि वो मुझे शुरू से ही बहुत प्यार करते रहे हैं।" मैंने इस बार हल्की मुस्कान के साथ कहा____"वो प्यार ही था भाभी कि उन्होंने कभी भी मुझ पर गुस्से से हाथ नहीं उठाया। ख़ैर, आप बेफिक्र हो जाइए, मैं बड़े भैया को कुछ नहीं होने दूंगा। अब आप जाइए और नहा धो लीजिए। मैं कुसुम को बोल देता हूं कि वो आपके लिए खाना यहीं पर भेजवा दे।"

"कुसुम को क्यों बोलोगे?" भाभी ने मेरी तरफ देखते हुए कहा___"क्या तुम ख़ुद अपनी भाभी के लिए खाना नहीं ला सकते? आख़िर नाराज़ तो मैं तुमसे ही थी।"
"ठीक है भाभी।" मैंने कहा____"मैं ही आपके लिए खाना ले आऊंगा। अब आप जाइए और नहा धो लीजिए।"

"क्या अपनी भाभी के साथ रंग नहीं खेलोगे?" भाभी ने ये कहा तो मैंने चौंक कर उनकी तरफ देखा। जबकि वो इस बार मुस्कुराते हुए बोलीं____"विभोर और अजीत तो मेरे साथ रंग खेलने से डरते हैं इस लिए वो मुझे रंग लगाने नहीं आते। आज जबकि तुम्हारी वजह से मुझे एक ख़ुशी मिली है तो मैं चाहती हूं कि तुम भी इस ख़ुशी में रंगों का ये त्यौहार मनाओ। वैसे तुम्हारे चेहरे पर लगा हुआ ये रंग बता रहा है कि तुम किसी के साथ होली खेल रहे थे।"

"जी वो कुसुम...।" मैंने ये कहा ही था कि भाभी ने हंसते हुए कहा____"तुम कुसुम के साथ होली खेल रहे थे? तुम भी हद करते हो देवर जी। होली में रंग तो भाभी के साथ खेला जाता है।"

भाभी की बात सुन कर मैं चुप हो गया। असल में मुझे ख़याल आ गया कि अच्छा हुआ भाभी ने मेरी बात काट दी थी वरना मैं तो उन्हें ये बता देने वाला था कि मैं कुसुम की सहेलियों के साथ होली खेल रहा था। मेरी ये बात सुन कर भाभी तुरंत ताड़ जाती कि मैं कुसुम की सहेलियों के साथ किस तरह की होली खेल रहा था।

"क्या हुआ?" मुझे चुप देख भाभी ने कहा____"क्या तुम भी विभोर और अजीत की तरह मेरे साथ होली खेलने से डर रहे हो?"
"बात डर की नहीं है भाभी।" मैंने सहसा झिझकते हुए कहा____"बल्कि बात है आपके मान सम्मान और मर्यादा की। मैं आपकी बहुत इज्ज़त करता हूं और मैं हमेशा यही सोचता हूं कि मेरी वजह से आपके मान सम्मान पर कोई आंच न आए।"

"हां मैं जानती हूं वैभव।" भाभी ने कहा____"मैं जानती हूं कि तुम मेरा बहुत सम्मान करते हो लेकिन मैं ये नहीं जानती कि तुम हमेशा मुझसे दूर दूर क्यों रहते हो? मैंने अक्सर ये महसूस किया है कि जब भी मैं तुमसे बात करती हूं तो तुम बहुत जल्दी मुझसे दूर भागने की कोशिश करने लगते हो। आख़िर इसकी क्या वजह है वैभव?"

"सिर्फ इस लिए कि मेरे द्वारा आपका अपमान न हो और आपका मान सम्मान बना रहे।" मैंने भाभी की तरफ देखते हुए कहा____"आप तो जानती ही हैं भाभी कि मेरा चरित्र कैसा है, इस लिए मैं ये किसी भी कीमत पर नहीं चाहता कि मेरे मन में आपके प्रति एक पल के लिए भी बुरे ख़याल आएं। यही वजह है कि मैं हमेशा आपसे दूर दूर ही रहता हूं।"

भाभी से मैंने सच्चाई बता दी थी और अब मेरा दिल ये सोच कर ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा था कि मेरी बात सुन कर भाभी मेरे बारे में क्या सोचेंगी और क्या कहेंगी मुझसे? इस वक़्त मैं अपने बारे में बहुत ही बुरा महसूस करने लगा था। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि इस बार मामला मेरे खानदान की औरत का था और उस औरत का था जो मेरी नज़र में एक देवी थी।

"मन बहुत चंचल होता है वैभव।" कुछ देर मुझे देखते रहने के बाद भाभी ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"और ये भी सच है कि इंसान का अपने उस चंचल मन पर कोई ज़ोर नहीं होता। बड़े बड़े साधू महात्मा भी उस चंचल मन की वजह से अपना तप और अपना ज्ञान खो देते हैं। हम तो मामूली इंसान हैं फिर हम भला कैसे अपने मन को काबू में रख सकते हैं? आज की दुनियां में पापी और गुनहगार वही माना जाता है जिसका बुरा कर्म लोगों की नज़र में आ जाता है और जिनके पाप और गुनाह लोगों की नज़र में नहीं आते वो पाक़ बने रहते हैं। जबकि सच तो ये है कि आज का हर इंसान हर पल पाप और गुनाह करता है। ज़रूरी नहीं कि पापी और गुनहगार उसी को कहा जाए जिसके ग़लत कर्म लोगों की नज़र में आ जाएं बल्कि पापी और गुनहगार तो वो भी कहलाएंगे जो अपने मन के द्वारा किसी के बारे में ग़लत सोच कर पाप और गुनाह करते हैं। तुम्हारा चरित्र और तुम्हारे कर्म लोगों की नज़र में हैं इस लिए तुम लोगों की नज़र में पापी और गुनहगार हो जबकि मुमकिन है कि तुम्हारी तरह ही पापी और गुनहगार मैं भी होऊं।"

"ये आप क्या कह रही हैं भाभी?" मैंने आश्चर्य से उनकी तरफ देखते हुए कहा____"आप तो देवी हैं भाभी। आप भला पापी और गुनहगार कैसे हो सकती हैं?"

"क्यों नहीं हो सकती देवर जी?" भाभी ने उल्टा सवाल करते हुए कहा____"आख़िर वैसा ही एक चंचल मन मेरे अंदर भी तो है और हर किसी की तरह मेरा भी अपने मन पर कोई ज़ोर नहीं है। हो सकता है कि मेरा मन भी किसी न किसी के बारे में ग़लत सोचता हो। ऐसे में तो मैं भी तुम्हारी तरह पापी और गुनहगार ही हो गई न? तुम तो सिर्फ ये जानते हो कि मैंने अभी तक ऐसे कोई ग़लत कर्म नहीं किए हैं जिसके लिए मुझे पापी या गुनहगार कहा जाए लेकिन जैसा कि मैंने अभी कहा कि पापी या गुनहगार सिर्फ वही लोग नहीं होते जिनके ग़लत कर्म लोगों की नज़र में आ जाते हैं, बल्कि पापी तो वो भी होते हैं जो मन से ग़लत कर्म करते हैं। तुम भला ये कैसे जान सकते हो कि मैंने मन से कोई ग़लत कर्म किया है या नहीं? इस वक़्त तुम या मैं भले ही एक दूसरे के बारे में ग़लत सोचें मगर जब तक ग़लत कर्म दिखेगा नहीं तब तक हम दोनों ही पाक़ और अच्छे बने रहेंगे। ख़ैर छोडो ये सब बातें, तो तुम इस वजह से हमेशा मुझसे दूर दूर रहते थे?"

"जी।" मैंने बस इतना ही कहा।
"मन किसी के काबू में नहीं रहता।" भाभी ने शांत भाव से कहा____"लेकिन इंसान को भटकाने वाले इस मन को भी किसी तरह भटकाना पड़ता है। उसे उस जगह पर क़याम करने से रोकना पड़ता है जहां पर उसके क़याम करने से इंसान ग़लत करने पर मजबूर होने लगता है। आज के युग में जिसने अपने मन को ग़लत जगह पर क़याम करने से रोक लिया वही महान है। ख़ैर, मुझे यकीन है कि अब से सब अच्छा ही होगा।"

मैं तो भाभी की बातें साँसें रोक कर सुन रहा था और सच तो ये था कि मैं उनकी बातें सुनने में जैसे मंत्रमुग्ध ही हो गया था। आज पहली बार ऐसा हुआ था कि मैं उनके पास इतनी देर तक रुका था और उनकी बातें सुन रहा था। इससे पहले जहां मैं अक्सर ये सोचता था कि कितना जल्दी उनसे दूर चला जाऊं वहीं अब मैं ये चाह रहा था कि उनके पास ही रहूं। ये वक़्त और हालात भी बड़े अजीब होते हैं, अक्सर इंसान को ऐसी परिस्थिति में ला कर खड़ा कर देते हैं जिसके बारे में इंसान ने सोचा भी नहीं होता।

"तुम यहीं रुको मैं नीचे से रंग ले कर आती हूं।" भाभी ने मेरी तन्द्रा भंग करते हुए कहा____"अभी शाम नहीं हुई है। इतना तो हमारे पास वक़्त है कि हम देवर भाभी एक दूसरे को रंग लगा सकें।"
"पर भाभी।" मैंने असमंजस में ये कहा तो भाभी ने कहा____"आज होली है इस लिए आज के दिन हर ख़ता सब माफ़ है देवर जी।"

"मैं तो ये कह रहा था कि।" मैंने कहा____"अगर बड़े भैया यहाँ आ गए और उन्होंने मुझे आपके साथ रंग खेलते हुए देख लिया तो कहीं वो गुस्सा न हो जाएं।"
"आज वो यहाँ नहीं आएंगे वैभव।" भाभी ने कहा____"आज वो साहूकारों के लड़कों के साथ होली का आनंद ले रहे होंगे। तुम रुको, मैं रंग ले कर बस थोड़ी ही देर में आ जाऊंगी।"

इतना कहने के बाद भाभी मेरी बात सुने बिना ही कमरे से बाहर निकल ग‌ईं। उनके जाने के बाद मैं कमरे में बुत की तरह खड़ा रह गया। आज भाभी के द्वारा मुझे एक ऐसे सच का पता चला था जिसके बारे में मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था। मेरे बड़े भैया के बारे में कुल गुरु ने भविष्यवाणी करते हुए कहा था कि उनका जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये तक़दीर का कैसा खेल था कि वो मेरे भाई को इस तरह दुनियां से उठा लेने वाली थी और एक सुहागन को भरी जवानी में ही विधवा बना देने का इरादा किए बैठी थी मगर मैंने भी सोच लिया था कि मैं ऐसा होने नहीं दूंगा। मैं गुरु जी की इस भविष्यवाणी को ग़लत कर के रहूंगा।

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DARK WOLFKING

Supreme
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romanchak update ..to bhabhi ne aakhir jo sach tha wo bata diya ki kyu bade bhaiya dada thakur ki jagah nahi le sakte ..

guru ji ne kaha ki bhaiya ki aayu kam hai ,,par uska exact reason nahi bataya 🤔,,kya koi unko slow poison type kuch dega jisse wo bistar pakad lenge 🤔..

isliye dada thakur bhi vaibhav ko ghar le aaye apne faisle ko hatakar ,,

par ye ajeet aur vibhor bhi dada thakur ki jagah nahi le sakte aisa kyu 🤔🤔🤔..

jo aadmi vaibhav ki raksha kar raha tha kahi wo bhabhi ke kehne par to nahi kar raha ..

aur ye bhabhi ne jo paapi hone ki baat kahi khudke baare me iska bhi koi reason jarur hoga ..

vaibhav ne aaj bata hi diya ki kyu wo bhabhi ke saamne aane se katrata hai ...
 

odin chacha

Banned
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☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 22
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अब तक,,,,,,

मेरी बात सुन कर वो दोनों मुस्कुराईं और फिर अपना रंग वाला कागज़ उठा कर कमरे से बाहर चली गईं। उनके जाने के बाद मैंने मन ही मन कहा____'कोई बात नहीं वैभव सिंह। इन दोनों की चूत बहुत जल्द तेरे लंड को नसीब होगी।'

मेरे हाथों और चेहरे पर रंग लग गया था इस लिए अब मुझे नहाना ही पड़ता मगर उससे पहले मैंने सोचा क्यों न भाभी से भी मिल लिया जाए। आज रंगो का त्यौहार है इस लिए भाभी को भी होली की मुबारकबाद देना चाहिए मुझे। ये सोच कर मैंने अपनी शर्ट से अपने चेहरे का रंग पोंछा और दूसरी शर्ट पहन कर कमरे से बाहर आ गया। पूरी हवेली में लोग एक दूसरे के साथ रंग गुलाल खेलते हुए आनंद ले रहे थे और एक तरफ हवेली के एक कमरे में मेरी भाभी मुझसे नाराज़ हुई पड़ी थी। मैंने भी आज निर्णय कर लिया कि उनसे हर बात खुल कर और साफ़ शब्दों में कहूंगा। उसके बाद जो होगा देखा जाएगा।

अब आगे,,,,,



मन में कई तरह के विचार लिए मैं दूसरे छोर पर आया। हवेली के झरोखे से मैंने नीचे आँगन में देखा। सारी औरतें अपने में ही लगी हुईं थी। आँगन से नज़र हटा कर मैंने भाभी के कमरे की तरफ देखा और फिर आगे बढ़ कर दरवाज़े पर हाथ से दस्तक दी। मेरे दिल की धड़कनें अनायास ही बढ़ गईं थी। ख़ैर मेरे दस्तक देने पर जब कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो मैंने फिर से दस्तक दी किन्तु इस बार भी अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। कुछ सोच कर मैंने इस बार दस्तक देने के साथ भाभी कह कर उन्हें पुकारा भी। मेरे पुकारने पर इस बार प्रतिक्रिया हुई। कुछ ही पलों में दरवाज़ा खुला और सामने भाभी नज़र आईं। मेरी नज़र जब उन पर पड़ी तो देखा अजीब सी हालत बना रखी थी उन्होंने। जो चेहरा हमेशा ही ताज़े खिले हुए गुलाब की मानिन्द खिला हुआ रहता था वो इस वक़्त ऐसे नज़र आ रहा था जैसे किसी गुलशन में खिज़ा ने अपना क़याम कर लिया हो।

"होली मुबारक हो भाभी।" फिर मैंने खुद को सम्हालते हुए बड़े ही आदर भाव से मुस्कुराते हुए कहा तो उनके चेहरे के भाव बदलते नज़र आए और फिर वो सपाट भाव से बोलीं____"अब क्यों आए हो यहाँ?"

"जी??" मैं एकदम से चकरा गया____"क्या मतलब??"
"तुम्हें तो इस हवेली से और इस हवेली में रहने वालों से कोई मतलब ही नहीं है न।" भाभी ने पूर्व की भाँती सपाट भाव से ही कहा____"तो फिर अब क्यों आए हो यहाँ? उसी दुनिया में वापस लौट जाओ जिस दुनियां में तुम्हें ख़ुशी मिलती है और जिस दुनियां के लोग तुम्हें अच्छे लगते हैं।"

"ठीक है लौट जाऊंगा।" मैंने उनकी आँखों में झांकते हुए कहा____"लेकिन उससे पहले मैं ये जानना चाहता हूं कि आप ख़ुद को किस बात की सज़ा दे रही हैं? आख़िर किस लिए आपने अन्न जल का त्याग कर रखा है और इस तरह ख़ुद को क्यों कमरे में बंद कर रहा है? आप मुझे इन सवालों के जवाब दे दीजिए उसके बाद मैं चला जाऊंगा यहाँ से।"

"तुम्हें इससे क्या फ़र्क पड़ता है भला?" भाभी ने भी मेरी आँखों में अपलक देखते हुए कहा____"मैं अन्न जल का त्याग करके ख़ुद को कमरे में बंद रखूं तो इससे तुम्हें क्या फ़र्क पड़ता है?"

"कोई मेरी वजह से अन्न जल का त्याग कर के ख़ुद को कमरे में बंद रखे तो मुझे फर्क पड़ता है।" मैंने कहा____"ख़ैर छोड़िए इस बात को, कुसुम ने बताया की आप मुझसे नाराज़ हैं??"

"बात वही है।" भाभी ने मेरी तरफ देखते हुए ही कहा____"तुम्हें मेरी नाराज़गी से या किसी और चीज़ से क्या फ़र्क पड़ता है?"
"अगर आपको मेरी हर बात पर ताने ही मारने हैं।" मैंने इस बार थोड़े नाराज़ लहजे में कहा____"तो फिर चला जाता हूं मैं। आप अच्छी तरह जानती हैं कि मैं अपने ऊपर किसी की भी बंदिश पसंद नहीं करता और ना ही ये पसंद करता हूं कि कोई बेमतलब मुझ पर अपना रौब झाड़े।"

"ज़मीन पर लौट आओ ठाकुर वैभव सिंह।" भाभी ने शख़्त भाव से कहा___"वरना बाद में पछताने का भी मौका नहीं मिलेगा तुम्हें। अपने गुस्से और झूठे अहंकार को अंदर से निकाल कर ज़रा उन हालातों की तरफ भी ग़ौर करो जो तुम्हारे चारो तरफ तुम्हें डस लेने के लिए फ़ैलते जा रहे हैं।"

"अच्छा है न।" मैंने फीकी मुस्कान के साथ कहा____"अगर किसी वजह से मुझे कुछ हो जाएगा तो किसी को इससे क्या फ़र्क पड़ जाएगा लेकिन मुझे ये समझ नहीं आ रहा कि आप मेरे लिए इतना क्यों फ़िक्र कर रही हैं?"

"क्योंकि तुम्हें दादा ठाकुर के बाद उनकी जगह लेनी है।" भाभी ने कहा____"और उसके लिए ज़रूरी है कि तुम होश में आओ और सही सलामत रहो। तुम्हें अंदाज़ा भी नहीं है कि तुम्हारे चारो तरफ कितना ख़तरा मौजूद है जो तुम्हें ख़ाक में मिला देने के लिए हर पर तुम्हारी तरफ ही बढ़ता आ रहा है।"

"वैभव सिंह इतना कमज़ोर नहीं है कि कोई ऐरा गैरा उसे ख़ाक में मिला देगा।" मैंने उनके चेहरे के क़रीब अपना चेहरा ले जाते हुए कहा____"इतना तो अपने आप पर यकीन है कि क़यामत को भी अपनी तरफ आने से रोक लूंगा और उसे ग़र्क कर दूंगा।"

"गुरूर और अहंकार तो वही ठाकुरों वाला ही है वैभव।" भाभी ने ताना मारते हुए कहा____"फिर ये क्यों कहते हो कि तुम इस हवेली में रहने वालों से अलग हो? अगर सच में अलग हो तो ये झूठा मान गुमान क्यों दिखाते हो? अगर तुम सच में अपनी जगह सही हो तो अपने सही होने का सबूत भी दो। यूं डींगें मार कर तुम क्या साबित करना चाहते हो?"

"मैं किसी के सामने कुछ भी साबित नहीं करना चाहता भाभी।" मैंने भाभी से नज़र हटा कर कहा____"मुझे बस इस हवेली का कायदा कानून पसंद नहीं है और इसी लिए मैं यहाँ रहना पसंद नहीं करता।"

"तो तुम ख़ुद इस हवेली के लिए नए कायदे कानून बनाओ वैभव।" भाभी ने कहा____"किसी चीज़ से मुँह फेर कर दूर चले जाना कौन सी समझदारी है? जब तक तुम किसी चीज़ का डट कर सामना नहीं करोगे तब तक तुम किसी चीज़ से दूर नहीं जा सकते।"

"क्या आप इन्हीं सब बातों के लिए नाराज़ थीं मुझसे? मैंने बात को बदलते हुए कहा____"मुझे हर बात खुल कर बताइए भाभी। आप जानती हैं कि पहेलियाँ बुझाने वाली बातें ना तो मुझे पसंद हैं और ना ही वो मुझे समझ आती हैं।"

"तुम्हें मैं अपना देवर ही नहीं बल्कि अपना छोटा भाई भी मानती हूं वैभव।" भाभी ने इस बार सहसा मेरे चेहरे को सहलाते हुए बड़े प्रेम भाव से कहा____"और यही चाहती हूं कि तुम एक अच्छे इंसान बनो और इस हवेली की बाग डोर अपने हाथ में सम्हालो। मैं मानती हूं कि तुम्हारे बड़े भैया इस हवेली के उत्तराधिकारी हैं मगर वो इस उत्तराधिकार के क़ाबिल नहीं हैं।"

"आप बड़े भैया के बारे में ऐसा कैसे कह सकती हैं?" मैंने उनकी गहरी आँखों में देखते हुए कहा____"वो आपके पति हैं और दुनियां की कोई भी पत्नी अपने पति के बारे में ऐसा नहीं कह सकती।"
"मैंने तुमसे उस दिन भी कहा था वैभव कि मैं एक पत्नी के साथ साथ इस हवेली की बहू भी हूं।" भाभी ने कहा____"पत्नी के रूप में मैं जानती हूं कि मुझे अपने पति के बारे में ऐसा नहीं कहना चाहिए लेकिन एक बहू के रूप में मुझे और भी बहुत कुछ सोचना पड़ता है। मैं ये कैसे चाह सकती हूं कि दादा ठाकुर के बाद उनकी बाग डोर एक ऐसा इंसान अपने हाथ में ले जो उसके लायक ही नहीं है।"

"सवाल अब भी वही है भाभी।" मैंने कहा____"आख़िर बड़े भैया इस अधिकार के लायक क्यों नहीं हैं? ऐसी क्या कमी है उनमें जिसकी वजह से आप उनके बारे में ऐसा कह रही हैं?"

"क्योंकि उनका जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है वैभव।" भाभी ने एक झटके से कहा और फिर बुरी तरफ फफक कर रोने लगीं। इधर उनकी ये बात सुन कर पहले तो मुझे समझ न आया किन्तु जैसे ही उनकी बात का मतलब समझा तो मेरे पैरों तले से ज़मीन खिसक गई।

"ये..ये..ये आप क्या कह रही हैं भाभी?" मैं हतप्रभ भाव से बोल उठा___"बड़े भैया का जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है....क्या मतलब है इसका?"
"हां वैभव।" भाभी रोते हुए पलट गईं और अंदर कमरे में जाते हुए बोलीं____"यही सच है। तुम्हारे बड़े भैया का जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है। वो बहुत जल्द इस दुनिया से विदा हो जाएंगे।"

"नहीं नहीं।" बौखला कर तथा आवेश में चीखते हुए मैंने अंदर आ कर उनसे कहा____"ये सच नहीं हो सकता। आप झूठ बोल रही हैं। मुझे यकीन नहीं हो रहा कि आप बड़े भैया के बारे में इतना बड़ा झूठ बोल सकती हैं।"

"ये झूठ नहीं बल्कि कड़वा सच है वैभव।" भाभी ने पलट कर दुखी भाव से मुझसे कहा____"इस हवेली में इस बात का पता मेरे अलावा सिर्फ दादा ठाकुर को ही है।"
"लेकिन ये कैसे हो सकता है भाभी?" मेरे चेहरे पर आश्चर्य मानो ताण्डव करने लगा था। मारे अविश्वास के मैंने कहा____"नहीं नहीं, मैं ये बात किसी भी कीमत पर नहीं मान सकता और अगर ये सच है भी तो इस बात का पता हवेली में बाकी लोगों को क्यों नहीं है?"

"क्योंकि दादा ठाकुर ने मुझे किसी और से बताने से मना कर रखा है।" भाभी ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा____"दादा ठाकुर नहीं चाहते कि इस बात का पता माँ जी को या किसी और को चले। माँ जी को यदि इस बात का पता चला तो उन्हें गहरा आघात लग सकता है। दूसरी बात ये भी है कि कुछ समय से हमारे खानदान के खिलाफ़ कुछ अफवाहें सुनने को मिल रही हैं जिसकी वजह से दादा ठाकुर को लगता है कि अगर इस बात का पता किसी और को लगा तो हो सकता है कि ऐसे में लोग इस बात का फ़ायदा उठा लें।"

"पर ये कैसे हो सकता है भाभी?" मैंने पुरजोर भाव से कहा____"आपको और दादा ठाकुर को ये कैसे पता चला कि बड़े भैया का जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है?"
"कुछ महीने पहले दादा ठाकुर अपने साथ मुझे और तुम्हारे बड़े भैया को ले कर कुल गुरु के पास गए थे।" भाभी ने गंभीरता से कहा____"असल में दादा ठाकुर गुरु जी से मिल कर उनसे ये जानना चाहते थे कि उनके बाद उनकी बाग डोर को सम्हालने के लिए उनके बड़े बेटे अब सक्षम हो गए हैं कि नहीं? जब दादा ठाकुर ने गुरु जी से इस बारे में बात की तो गुरु जी आँख बंद कर के ध्यान लगाने लगे। कुछ देर बाद उन्होंने अपनी आँखें खोलीं और फिर दादा ठाकुर से कहा कि वो इस बारे में सिर्फ उन्हीं को बताएंगे। गुरु जी की बात सुन कर दादा ठाकुर ने हम दोनों को उनकी कुटिया से बाहर भेज दिया। कुछ देर बाद जब दादा ठाकुर गुरु जी से मिल कर बाहर आए तो वो एकदम से शांत थे। उस वक़्त तो मैंने उनसे कुछ नहीं पूछा किन्तु तुम्हारे बड़े भैया से न रहा गया तो उन्होंने पूछ ही लिया की गुरु जी ने क्या कहा है। तुम्हारे भैया के पूछने पर दादा ठाकुर ने बस इतना ही कहा कि अभी इसके लिए काफी समय है इस लिए उन्होंने प्रतीक्षा करने को कहा है। उस दिन दादा ठाकुर पूरे रास्ते ख़ामोश ही रहे थे और किसी गहरी सोच में डूबे रहे थे। उन्हें देख कर मैं समझ गई थी कि कुछ तो बात ज़रूर है। मैं उनसे कुछ पूछने की हिम्मत नहीं कर सकती थी इस लिए चुप ही रही। हवेली आने के बाद दादा ठाकुर ने माँ जी से भी यही कहा कि अभी इसके लिए काफी समय है। दो चार दिन ऐसे ही गुज़र गए लेकिन मैं अक्सर उनके चेहरे पर चिंता और परेशानी देखती थी, हलांकि वो बाकी सबके सामने हमेशा की तरह शांत चित्त ही रहते थे। मैं अब तक समझ चुकी थी कि कोई गंभीर बात ज़रूर है इस लिए एक दिन मैं खुद गुरु जी के आश्रम की तरफ चल पड़ी। रास्ता लम्बा था लेकिन मुझे परवाह नहीं थी। मैं हवेली से सबकी नज़र बचा कर निकली थी और शाम होने से पहले ही गुरु जी के आश्रम पहुंच ग‌ई। गुरु जी मुझे देख कर बहुत हैरान हुए थे। ख़ैर मेरे पूछने पर पहले तो उन्होंने मुझे बताने से इंकार किया लेकिन जब मैंने उनसे बहुत ज़्यादा अनुनय विनय की तब उन्होंने मुझे बताया कि असल बात क्या है। गुरु जी से सच जान कर मेरे होश उड़ गए थे और लग रहा था कि मैं हमेशा के लिए अचेत हो जाऊंगी। किसी तरह वहां से वापस हवेली आई और दादा ठाकुर से अकेले में मिली। उनसे जब मैंने ये कहा कि मैं गुरु जी से सच जान कर आ रही हूं तो वो दंग रह गए फिर एकदम से गुस्सा हो कर बोले कि हमारी इजाज़त के बग़ैर वहां जाने की हिम्मत कैसे की तुमने तो मैंने भी कह दिया कि मुझे भी अपने पति के बारे में जानने का पूरा हक़ है और अब जबकि मैं सच जान चुकी हूं तो बताइए कि अब मैं क्या करूं? मेरा तो जीवन ही बर्बाद हो गया। मेरा रोना देख कर दादा ठाकुर शांत हो गए और फिर हाथ जोड़ कर उन्होंने मुझसे कहा कि मैं इस बारे में हवेली के किसी भी सदस्य से ज़िक्र न करूं। दादा ठाकुर की बात सुन कर मुझे रोना तो बहुत आ रहा था लेकिन मेरे रोने से भला क्या हो सकता था?"

भाभी चुप हुईं तो कमरे में शमशान की मानिन्द सन्नाटा छा गया। भाभी का कहा हुआ एक एक शब्द मेरे कानों में अभी भी गूँज रहा था और मैं यकीन कर पाने में जैसे खुद को असमर्थ समझ रहा था। मैं सोच भी नहीं सकता था कि एक सच ऐसा भी हो सकता है। बड़े भैया का चेहरा मेरी आँखों के सामने उभर आया। चार महीने पहले उनका बर्ताव मेरे प्रति आज जैसा नहीं था। वो दादा ठाकुर की तरह शख़्त स्वभाव के नहीं थे और ना ही मेरी तरह गांव की किसी बहू बेटी पर ग़लत निगाह डालते थे। वो शांत स्वभाव के तो थे किन्तु कभी कभी जब वो किसी बात से चिढ़ जाते थे तो उनको भयंकर गुस्सा भी आ जाता था। बड़े भाई होने के नाते अक्सर वो मुझे समझाते थे और डांट भी देते थे किन्तु आज तक उन्होंने मुझ पर हाथ नहीं उठाया था।

अपनी आँखों के सामने बड़े भैया का चेहरा उभरा हुआ देख सहसा मेरी आँखों में आंसू झिलमिला उठे। मेरे अंदर एक हूक सी उठी जिसने मेरी अंतरात्मा तक को कंपकंपा दिया। मैंने भाभी की तरफ देखा तो उन्हें दूसरी तरफ चेहरा किए सिसकते हुए पाया। इस हक़ीक़त ने तो मुझे हिला के ही रख दिया था। एक पल में ही वक़्त और हालात बदल गए थे।

"क्या आपने गुरु जी से ये नहीं पूछा था कि बड़े भैया के साथ ऐसा क्यों होने वाला है?" मैंने आगे बढ़ कर भाभी से कहा____"आख़िर ऐसी क्या वजह है कि वो हमें छोड़ कर इस दुनियां से चले जाएंगे?"

"पूछा था।" भाभी ने गहरी सांस लेते हुए कहा___"जवाब में गुरु जी ने बस यही कहा था कि होनी अटल है, जीवन और मृत्यु ईश्वर के हाथ में है। उनका कहना था कि तुम्हारे बड़े भैया जन्म से ही अल्पायु ले कर आये थे। उन्होंने ये भी बताया कि उनसे मुझे औलाद भी होनी थी किन्तु वो खंडित हो चुकी है।"

"इसका क्या मतलब हुआ?" मैंने हैरानी से कहा____"अगर आपको औलाद होनी थी तो वो खंडित कैसे हो सकती है? क्या आपने पूछा नहीं गुरु जी से?"
"गुरु जी ने कहा कि इंसान के कर्मों द्वारा ही भाग्य बनता और बिगड़ता है।" भाभी ने कहा____"अगर इंसान के कर्म अच्छे हैं तो उसका कर्म फल भी अच्छा ही मिलेंगा। गुरु जी के कहने का मतलब शायद यही था कि तुम्हारे भैया के कर्म शायद अच्छे नहीं थे इस लिए ऐसा हुआ।"

"बड़ी अजीब बात है।" मैंने सोचने वाले भाव से कहा____"पर मैं नहीं मानता इन सब बातों को। ये सब बकवास है और हां आप भी गुरु जी की इन फ़ालतू बातों को मत मानिए। बड़े भैया को कुछ नहीं होगा। कर्म फल का लेखा जोखा अगर यही है तो फिर मेरे कर्म कौन से अच्छे हैं? मैंने तो आज तक सब बुरे ही कर्म किए हैं तो फिर मुझे मृत्यु क्यों नहीं आई और मेरे साथ बुरा क्यों नहीं हुआ? ये सब अंधविश्वास की बातें हैं भाभी। मैं नहीं मानता इन सब बातों को।"

"जीवन और मृत्यु ईश्वर के हाथ में है वैभव।" भाभी ने गंभीरता से कहा____"किन्तु कर्म इंसान के बस में है। तुम जैसा कर्म करोगे तुम्हें वैसा ही फल मिलेगा ये एक सच्चाई है। आज भले ही तुम इस बात को न मानो मगर एक दिन ज़रूर मानोगे।"

"मैं सिर्फ इतना जानता हूं कि बड़े भैया को कुछ नहीं होगा।" मैंने स्पष्ट भाव से कहा____"आपको ये सब बातें मुझे पहले ही बतानी चाहिए थी। मैंने कई बार आपसे साफ़ साफ़ बताने को बोला था लेकिन आपने नहीं बताया। ख़ैर, बात अगर यही थी तो आपने ये क्यों कहा कि बड़े भैया दादा ठाकुर की बाग डोर सम्हालने के लायक नहीं हैं?"

"मैं ये बात तुम्हें बताना नहीं चाहती थी।" भाभी ने कहा____"इसी लिए तुमसे हर बार सिर्फ यही कहा कि वो इस सबके लायक नहीं हैं।"
"आप भी कमाल करती हैं भाभी।" मैंने कहा____"कम से कम मैं आपको सबसे ज़्यादा समझदार समझता था। मुझे तो समझ में नहीं आ रहा कि दादा ठाकुर ने भी आपको ये बात किसी से न बताने को क्यों कहा और खुद भी अब तक इस बात को छुपाए बैठे हैं। चलो मान लिया कि उन्होंने माँ को बताने से मना किया‌ था क्योंकि वो समझते हैं कि इस बात को जान कर माँ को सदमा लग जाएगा किन्तु बाकी लोगों से इस बारे में बताने में क्या समस्या थी?"

"कुछ तो बात होगी ही वैभव।" भाभी ने संजीदा भाव से कहा____"अन्यथा दादा ठाकुर मुझे इस बात को किसी से भी ना बताने को क्यों कहते और अब मैं चाहती हूं कि तुम भी इस बात का ज़िक्र हवेली में किसी से न करना।"
"ठीक है नहीं करुंगा।" मैंने कहा____"लेकिन मैं अब इस बात को ले कर चुप भी नहीं रहूंगा भाभी। अब मैं अपने बड़े भैया का साया बन कर उनके आस पास ही रहूंगा। मैं भी देखता हूं कि वो कौन सा भगवान है जो उन्हें मुझसे छीन कर ले जाता है।"

मेरी बात सुन कर भाभी की आँखों से आंसू छलक पड़े और वो ख़ुशी के मारे मुझसे लिपट ग‌ईं। मैंने भी उन्हें अपने से छुपका लिया। इस वक़्त मेरे ज़हन में उनके प्रति कोई भी बुरा ख़याल नहीं था बल्कि इस वक़्त मैं उनके लिए बहुत ही संजीदा हो गया था। इतनी बड़ी बात थी और मुझे इस बारे में कुछ पता ही नहीं था। सबके सामने हमेशा हंसती मुस्कुराती रहने वाली मेरी भाभी न जाने कब से अपने अंदर ये दुःख दबाए हुए थीं।

"एक बात बताइए भाभी।" कुछ देर बाद मैंने उन्हें खुद से अलग करते हुए कहा____"अगर गुरु जी को इतना पता था कि बड़े भैया का जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है तो फिर उन्हें ये भी तो पता रहा होगा न कि बड़े भैया के साथ ऐसा क्या होगा जिससे कि वो इस दुनियां से चले जाएंगे? क्या आपने गुरु जी से इस बारे में साफ़ साफ़ नहीं पूछा था?"

"पूछा था।" भाभी ने अपने आँसू पोंछते हुए कहा____"पहले वो बता नहीं रहे थे लेकिन जब मैं पूछती ही रही तो वो बोले कि जब तुम्हारे भैया का वैसा समय आएगा तब उनका स्वास्थ्य बिगड़ जाएगा और वो बिस्तर पर ही कुछ दिन पड़े रहेंगे। उसके बाद उनकी आत्मा नियति के लेख के अनुसार ईश्वर के पास चली जाएगी।"

"उस गुरु जी की ऐसी की तैसी।" मैंने शख़्त भाव से कहा____"ऐसा कुछ नहीं होने दूंगा मैं। अब आप इस बात को ले कर बिल्कुल भी चिंता मत कीजिए। मैं दुनियां के हर वैद्य को ला कर इस हवेली में क़ैद कर दूंगा और उन्हें हुकुम दूंगा कि अगर मेरे बड़े भैया की तबियत ज़रा सी भी ख़राब हुई तो मैं उन सबकी खाल में भूसा भर दूंगा।"

"तुम्हारी ये बातें सुनने के लिए काश इस वक़्त तुम्हारे भैया यहाँ होते।" भाभी ने ख़ुशी से डबडबाई आंखों से मुझे देखते हुए कहा____"तो वो भी जान जाते कि जिस भाई को वो बिल्कुल ही नालायक और ग़ैर ज़िम्मेदार समझते हैं उसके अंदर अपने बड़े भाई के लिए कितना प्रेम है। मैं जानती थी वैभव कि तुम ऊपर से ही इतने शख़्त हो और बुरा बने रहते हो लेकिन अंदर से तुम दादा ठाकुर की ही तरह नरम हो और तुम्हारे अंदर एक अच्छा इंसान भी है। मुझे बहुत ख़ुशी हुई तुम्हारा ये रूप देख कर और अब यही चाहती हूं कि तुम ऐसे ही रहो। जब तुम्हारे बड़े भैया अपने लिए तुम्हारा ये प्रेम देखेंगे तो उनके अंदर से भी तुम्हारे प्रति भरा हुआ गुस्सा निकल जाएगा।"

"मुझे पता है कि वो मुझे शुरू से ही बहुत प्यार करते रहे हैं।" मैंने इस बार हल्की मुस्कान के साथ कहा____"वो प्यार ही था भाभी कि उन्होंने कभी भी मुझ पर गुस्से से हाथ नहीं उठाया। ख़ैर, आप बेफिक्र हो जाइए, मैं बड़े भैया को कुछ नहीं होने दूंगा। अब आप जाइए और नहा धो लीजिए। मैं कुसुम को बोल देता हूं कि वो आपके लिए खाना यहीं पर भेजवा दे।"

"कुसुम को क्यों बोलोगे?" भाभी ने मेरी तरफ देखते हुए कहा___"क्या तुम ख़ुद अपनी भाभी के लिए खाना नहीं ला सकते? आख़िर नाराज़ तो मैं तुमसे ही थी।"
"ठीक है भाभी।" मैंने कहा____"मैं ही आपके लिए खाना ले आऊंगा। अब आप जाइए और नहा धो लीजिए।"

"क्या अपनी भाभी के साथ रंग नहीं खेलोगे?" भाभी ने ये कहा तो मैंने चौंक कर उनकी तरफ देखा। जबकि वो इस बार मुस्कुराते हुए बोलीं____"विभोर और अजीत तो मेरे साथ रंग खेलने से डरते हैं इस लिए वो मुझे रंग लगाने नहीं आते। आज जबकि तुम्हारी वजह से मुझे एक ख़ुशी मिली है तो मैं चाहती हूं कि तुम भी इस ख़ुशी में रंगों का ये त्यौहार मनाओ। वैसे तुम्हारे चेहरे पर लगा हुआ ये रंग बता रहा है कि तुम किसी के साथ होली खेल रहे थे।"

"जी वो कुसुम...।" मैंने ये कहा ही था कि भाभी ने हंसते हुए कहा____"तुम कुसुम के साथ होली खेल रहे थे? तुम भी हद करते हो देवर जी। होली में रंग तो भाभी के साथ खेला जाता है।"

भाभी की बात सुन कर मैं चुप हो गया। असल में मुझे ख़याल आ गया कि अच्छा हुआ भाभी ने मेरी बात काट दी थी वरना मैं तो उन्हें ये बता देने वाला था कि मैं कुसुम की सहेलियों के साथ होली खेल रहा था। मेरी ये बात सुन कर भाभी तुरंत ताड़ जाती कि मैं कुसुम की सहेलियों के साथ किस तरह की होली खेल रहा था।

"क्या हुआ?" मुझे चुप देख भाभी ने कहा____"क्या तुम भी विभोर और अजीत की तरह मेरे साथ होली खेलने से डर रहे हो?"
"बात डर की नहीं है भाभी।" मैंने सहसा झिझकते हुए कहा____"बल्कि बात है आपके मान सम्मान और मर्यादा की। मैं आपकी बहुत इज्ज़त करता हूं और मैं हमेशा यही सोचता हूं कि मेरी वजह से आपके मान सम्मान पर कोई आंच न आए।"

"हां मैं जानती हूं वैभव।" भाभी ने कहा____"मैं जानती हूं कि तुम मेरा बहुत सम्मान करते हो लेकिन मैं ये नहीं जानती कि तुम हमेशा मुझसे दूर दूर क्यों रहते हो? मैंने अक्सर ये महसूस किया है कि जब भी मैं तुमसे बात करती हूं तो तुम बहुत जल्दी मुझसे दूर भागने की कोशिश करने लगते हो। आख़िर इसकी क्या वजह है वैभव?"

"सिर्फ इस लिए कि मेरे द्वारा आपका अपमान न हो और आपका मान सम्मान बना रहे।" मैंने भाभी की तरफ देखते हुए कहा____"आप तो जानती ही हैं भाभी कि मेरा चरित्र कैसा है, इस लिए मैं ये किसी भी कीमत पर नहीं चाहता कि मेरे मन में आपके प्रति एक पल के लिए भी बुरे ख़याल आएं। यही वजह है कि मैं हमेशा आपसे दूर दूर ही रहता हूं।"

भाभी से मैंने सच्चाई बता दी थी और अब मेरा दिल ये सोच कर ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा था कि मेरी बात सुन कर भाभी मेरे बारे में क्या सोचेंगी और क्या कहेंगी मुझसे? इस वक़्त मैं अपने बारे में बहुत ही बुरा महसूस करने लगा था। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि इस बार मामला मेरे खानदान की औरत का था और उस औरत का था जो मेरी नज़र में एक देवी थी।

"मन बहुत चंचल होता है वैभव।" कुछ देर मुझे देखते रहने के बाद भाभी ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"और ये भी सच है कि इंसान का अपने उस चंचल मन पर कोई ज़ोर नहीं होता। बड़े बड़े साधू महात्मा भी उस चंचल मन की वजह से अपना तप और अपना ज्ञान खो देते हैं। हम तो मामूली इंसान हैं फिर हम भला कैसे अपने मन को काबू में रख सकते हैं? आज की दुनियां में पापी और गुनहगार वही माना जाता है जिसका बुरा कर्म लोगों की नज़र में आ जाता है और जिनके पाप और गुनाह लोगों की नज़र में नहीं आते वो पाक़ बने रहते हैं। जबकि सच तो ये है कि आज का हर इंसान हर पल पाप और गुनाह करता है। ज़रूरी नहीं कि पापी और गुनहगार उसी को कहा जाए जिसके ग़लत कर्म लोगों की नज़र में आ जाएं बल्कि पापी और गुनहगार तो वो भी कहलाएंगे जो अपने मन के द्वारा किसी के बारे में ग़लत सोच कर पाप और गुनाह करते हैं। तुम्हारा चरित्र और तुम्हारे कर्म लोगों की नज़र में हैं इस लिए तुम लोगों की नज़र में पापी और गुनहगार हो जबकि मुमकिन है कि तुम्हारी तरह ही पापी और गुनहगार मैं भी होऊं।"

"ये आप क्या कह रही हैं भाभी?" मैंने आश्चर्य से उनकी तरफ देखते हुए कहा____"आप तो देवी हैं भाभी। आप भला पापी और गुनहगार कैसे हो सकती हैं?"

"क्यों नहीं हो सकती देवर जी?" भाभी ने उल्टा सवाल करते हुए कहा____"आख़िर वैसा ही एक चंचल मन मेरे अंदर भी तो है और हर किसी की तरह मेरा भी अपने मन पर कोई ज़ोर नहीं है। हो सकता है कि मेरा मन भी किसी न किसी के बारे में ग़लत सोचता हो। ऐसे में तो मैं भी तुम्हारी तरह पापी और गुनहगार ही हो गई न? तुम तो सिर्फ ये जानते हो कि मैंने अभी तक ऐसे कोई ग़लत कर्म नहीं किए हैं जिसके लिए मुझे पापी या गुनहगार कहा जाए लेकिन जैसा कि मैंने अभी कहा कि पापी या गुनहगार सिर्फ वही लोग नहीं होते जिनके ग़लत कर्म लोगों की नज़र में आ जाते हैं, बल्कि पापी तो वो भी होते हैं जो मन से ग़लत कर्म करते हैं। तुम भला ये कैसे जान सकते हो कि मैंने मन से कोई ग़लत कर्म किया है या नहीं? इस वक़्त तुम या मैं भले ही एक दूसरे के बारे में ग़लत सोचें मगर जब तक ग़लत कर्म दिखेगा नहीं तब तक हम दोनों ही पाक़ और अच्छे बने रहेंगे। ख़ैर छोडो ये सब बातें, तो तुम इस वजह से हमेशा मुझसे दूर दूर रहते थे?"

"जी।" मैंने बस इतना ही कहा।
"मन किसी के काबू में नहीं रहता।" भाभी ने शांत भाव से कहा____"लेकिन इंसान को भटकाने वाले इस मन को भी किसी तरह भटकाना पड़ता है। उसे उस जगह पर क़याम करने से रोकना पड़ता है जहां पर उसके क़याम करने से इंसान ग़लत करने पर मजबूर होने लगता है। आज के युग में जिसने अपने मन को ग़लत जगह पर क़याम करने से रोक लिया वही महान है। ख़ैर, मुझे यकीन है कि अब से सब अच्छा ही होगा।"

मैं तो भाभी की बातें साँसें रोक कर सुन रहा था और सच तो ये था कि मैं उनकी बातें सुनने में जैसे मंत्रमुग्ध ही हो गया था। आज पहली बार ऐसा हुआ था कि मैं उनके पास इतनी देर तक रुका था और उनकी बातें सुन रहा था। इससे पहले जहां मैं अक्सर ये सोचता था कि कितना जल्दी उनसे दूर चला जाऊं वहीं अब मैं ये चाह रहा था कि उनके पास ही रहूं। ये वक़्त और हालात भी बड़े अजीब होते हैं, अक्सर इंसान को ऐसी परिस्थिति में ला कर खड़ा कर देते हैं जिसके बारे में इंसान ने सोचा भी नहीं होता।

"तुम यहीं रुको मैं नीचे से रंग ले कर आती हूं।" भाभी ने मेरी तन्द्रा भंग करते हुए कहा____"अभी शाम नहीं हुई है। इतना तो हमारे पास वक़्त है कि हम देवर भाभी एक दूसरे को रंग लगा सकें।"
"पर भाभी।" मैंने असमंजस में ये कहा तो भाभी ने कहा____"आज होली है इस लिए आज के दिन हर ख़ता सब माफ़ है देवर जी।"

"मैं तो ये कह रहा था कि।" मैंने कहा____"अगर बड़े भैया यहाँ आ गए और उन्होंने मुझे आपके साथ रंग खेलते हुए देख लिया तो कहीं वो गुस्सा न हो जाएं।"
"आज वो यहाँ नहीं आएंगे वैभव।" भाभी ने कहा____"आज वो साहूकारों के लड़कों के साथ होली का आनंद ले रहे होंगे। तुम रुको, मैं रंग ले कर बस थोड़ी ही देर में आ जाऊंगी।"

इतना कहने के बाद भाभी मेरी बात सुने बिना ही कमरे से बाहर निकल ग‌ईं। उनके जाने के बाद मैं कमरे में बुत की तरह खड़ा रह गया। आज भाभी के द्वारा मुझे एक ऐसे सच का पता चला था जिसके बारे में मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था। मेरे बड़े भैया के बारे में कुल गुरु ने भविष्यवाणी करते हुए कहा था कि उनका जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये तक़दीर का कैसा खेल था कि वो मेरे भाई को इस तरह दुनियां से उठा लेने वाली थी और एक सुहागन को भरी जवानी में ही विधवा बना देने का इरादा किए बैठी थी मगर मैंने भी सोच लिया था कि मैं ऐसा होने नहीं दूंगा। मैं गुरु जी की इस भविष्यवाणी को ग़लत कर के रहूंगा।


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Well इस अपडेट में भाभी और देवर के बीच कुछ गंभीर बात चीत हुई शुरुआती समय पर भाभी का गुस्सा ताना के रूप में वैभव के ऊपर फुट पड़ा और उससे उसका बाकी ठाकुरों के जैसे अहंकार और अपने शक्ति गुमान होने का एहसास भावी ने कराया (हालांकि वैभव इसको टाल गया) फिर वैभव को भी उस बात से रूबरू कराया जिसको अभी तक सिर्फ दादा ठाकुर और भावी जी ढो रहे थे,गुरुजी की भविष्य वाणी से लगता है की ठाकुरों के खिलाप चल रही षड्यंत्रों का भेंट शायद बड़े भइया होंगे,और गौर करने वाली बात ये है की गुरुजी ने बताया की भइया जी मौत से पहले कुछ दिन बीमार रहेंगे फिर उनका मृत्यु होगा तो मुझे लगता है कहीं ना कहीं षड्यंत्रों कारी भैया के साथ अपना खेल शुरू कर चुके होंगे और उसी में प्रमुख किरदार शायद साहूकारों के लौंडे और चचेरे भाइयों का हो,क्यूं की बड़े भैया के साथ मेलजोल उनका ही ज्यादा रह रहा है,अब जब वैभव को इस बात का पता चला और उसके आंखों में आंसू और दिल की बैचेनी ये दर्शाता है की वो खुद को जितना शसक्त और कठोर दिखाता है और जो उसका कहना ये है की वो किसका परवाह नहीं करता ये सब झुटला जाते हैं,फिर भावी जी भी आश्वस्त हो जाती हैं वैभव के के जवाबदारी से की भैया का खयाल वो रखेगा,फिर बात बदलने के गरज से भावी जी वैभव को उनसे दूर रहने का कारण भी लगे हात पूछ लेती हैं,और वैभव हमारा सब का अंदाजा गलत साबित करते हुए(surprise MF):wink: असल मुद्दे की बात आज कर ही देता है,मगर जवाब में भावी जी ने जो कहा की जिसका गलत काम सबको दिखता है सिर्फ वो गलत नही होता जो मन में भी गलत भावना लाता है वो भी गलत होता है शायद वो भी हैं तो प्रश्न ये उठ ता है की भावी के मन में किसके लिए गलत विचार आते हैं क्या ये वैभव है,या फिर वैभव के चचेरे भाइयों के लिए,या फिर कोई और है...खैर होली का त्योंहार है और शायद भावी देवर केे होली मनाते हुए देखने को मिले
 

Raj_sharma

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☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 22
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अब तक,,,,,,

मेरी बात सुन कर वो दोनों मुस्कुराईं और फिर अपना रंग वाला कागज़ उठा कर कमरे से बाहर चली गईं। उनके जाने के बाद मैंने मन ही मन कहा____'कोई बात नहीं वैभव सिंह। इन दोनों की चूत बहुत जल्द तेरे लंड को नसीब होगी।'

मेरे हाथों और चेहरे पर रंग लग गया था इस लिए अब मुझे नहाना ही पड़ता मगर उससे पहले मैंने सोचा क्यों न भाभी से भी मिल लिया जाए। आज रंगो का त्यौहार है इस लिए भाभी को भी होली की मुबारकबाद देना चाहिए मुझे। ये सोच कर मैंने अपनी शर्ट से अपने चेहरे का रंग पोंछा और दूसरी शर्ट पहन कर कमरे से बाहर आ गया। पूरी हवेली में लोग एक दूसरे के साथ रंग गुलाल खेलते हुए आनंद ले रहे थे और एक तरफ हवेली के एक कमरे में मेरी भाभी मुझसे नाराज़ हुई पड़ी थी। मैंने भी आज निर्णय कर लिया कि उनसे हर बात खुल कर और साफ़ शब्दों में कहूंगा। उसके बाद जो होगा देखा जाएगा।

अब आगे,,,,,



मन में कई तरह के विचार लिए मैं दूसरे छोर पर आया। हवेली के झरोखे से मैंने नीचे आँगन में देखा। सारी औरतें अपने में ही लगी हुईं थी। आँगन से नज़र हटा कर मैंने भाभी के कमरे की तरफ देखा और फिर आगे बढ़ कर दरवाज़े पर हाथ से दस्तक दी। मेरे दिल की धड़कनें अनायास ही बढ़ गईं थी। ख़ैर मेरे दस्तक देने पर जब कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो मैंने फिर से दस्तक दी किन्तु इस बार भी अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। कुछ सोच कर मैंने इस बार दस्तक देने के साथ भाभी कह कर उन्हें पुकारा भी। मेरे पुकारने पर इस बार प्रतिक्रिया हुई। कुछ ही पलों में दरवाज़ा खुला और सामने भाभी नज़र आईं। मेरी नज़र जब उन पर पड़ी तो देखा अजीब सी हालत बना रखी थी उन्होंने। जो चेहरा हमेशा ही ताज़े खिले हुए गुलाब की मानिन्द खिला हुआ रहता था वो इस वक़्त ऐसे नज़र आ रहा था जैसे किसी गुलशन में खिज़ा ने अपना क़याम कर लिया हो।

"होली मुबारक हो भाभी।" फिर मैंने खुद को सम्हालते हुए बड़े ही आदर भाव से मुस्कुराते हुए कहा तो उनके चेहरे के भाव बदलते नज़र आए और फिर वो सपाट भाव से बोलीं____"अब क्यों आए हो यहाँ?"

"जी??" मैं एकदम से चकरा गया____"क्या मतलब??"
"तुम्हें तो इस हवेली से और इस हवेली में रहने वालों से कोई मतलब ही नहीं है न।" भाभी ने पूर्व की भाँती सपाट भाव से ही कहा____"तो फिर अब क्यों आए हो यहाँ? उसी दुनिया में वापस लौट जाओ जिस दुनियां में तुम्हें ख़ुशी मिलती है और जिस दुनियां के लोग तुम्हें अच्छे लगते हैं।"

"ठीक है लौट जाऊंगा।" मैंने उनकी आँखों में झांकते हुए कहा____"लेकिन उससे पहले मैं ये जानना चाहता हूं कि आप ख़ुद को किस बात की सज़ा दे रही हैं? आख़िर किस लिए आपने अन्न जल का त्याग कर रखा है और इस तरह ख़ुद को क्यों कमरे में बंद कर रहा है? आप मुझे इन सवालों के जवाब दे दीजिए उसके बाद मैं चला जाऊंगा यहाँ से।"

"तुम्हें इससे क्या फ़र्क पड़ता है भला?" भाभी ने भी मेरी आँखों में अपलक देखते हुए कहा____"मैं अन्न जल का त्याग करके ख़ुद को कमरे में बंद रखूं तो इससे तुम्हें क्या फ़र्क पड़ता है?"

"कोई मेरी वजह से अन्न जल का त्याग कर के ख़ुद को कमरे में बंद रखे तो मुझे फर्क पड़ता है।" मैंने कहा____"ख़ैर छोड़िए इस बात को, कुसुम ने बताया की आप मुझसे नाराज़ हैं??"

"बात वही है।" भाभी ने मेरी तरफ देखते हुए ही कहा____"तुम्हें मेरी नाराज़गी से या किसी और चीज़ से क्या फ़र्क पड़ता है?"
"अगर आपको मेरी हर बात पर ताने ही मारने हैं।" मैंने इस बार थोड़े नाराज़ लहजे में कहा____"तो फिर चला जाता हूं मैं। आप अच्छी तरह जानती हैं कि मैं अपने ऊपर किसी की भी बंदिश पसंद नहीं करता और ना ही ये पसंद करता हूं कि कोई बेमतलब मुझ पर अपना रौब झाड़े।"

"ज़मीन पर लौट आओ ठाकुर वैभव सिंह।" भाभी ने शख़्त भाव से कहा___"वरना बाद में पछताने का भी मौका नहीं मिलेगा तुम्हें। अपने गुस्से और झूठे अहंकार को अंदर से निकाल कर ज़रा उन हालातों की तरफ भी ग़ौर करो जो तुम्हारे चारो तरफ तुम्हें डस लेने के लिए फ़ैलते जा रहे हैं।"

"अच्छा है न।" मैंने फीकी मुस्कान के साथ कहा____"अगर किसी वजह से मुझे कुछ हो जाएगा तो किसी को इससे क्या फ़र्क पड़ जाएगा लेकिन मुझे ये समझ नहीं आ रहा कि आप मेरे लिए इतना क्यों फ़िक्र कर रही हैं?"

"क्योंकि तुम्हें दादा ठाकुर के बाद उनकी जगह लेनी है।" भाभी ने कहा____"और उसके लिए ज़रूरी है कि तुम होश में आओ और सही सलामत रहो। तुम्हें अंदाज़ा भी नहीं है कि तुम्हारे चारो तरफ कितना ख़तरा मौजूद है जो तुम्हें ख़ाक में मिला देने के लिए हर पर तुम्हारी तरफ ही बढ़ता आ रहा है।"

"वैभव सिंह इतना कमज़ोर नहीं है कि कोई ऐरा गैरा उसे ख़ाक में मिला देगा।" मैंने उनके चेहरे के क़रीब अपना चेहरा ले जाते हुए कहा____"इतना तो अपने आप पर यकीन है कि क़यामत को भी अपनी तरफ आने से रोक लूंगा और उसे ग़र्क कर दूंगा।"

"गुरूर और अहंकार तो वही ठाकुरों वाला ही है वैभव।" भाभी ने ताना मारते हुए कहा____"फिर ये क्यों कहते हो कि तुम इस हवेली में रहने वालों से अलग हो? अगर सच में अलग हो तो ये झूठा मान गुमान क्यों दिखाते हो? अगर तुम सच में अपनी जगह सही हो तो अपने सही होने का सबूत भी दो। यूं डींगें मार कर तुम क्या साबित करना चाहते हो?"

"मैं किसी के सामने कुछ भी साबित नहीं करना चाहता भाभी।" मैंने भाभी से नज़र हटा कर कहा____"मुझे बस इस हवेली का कायदा कानून पसंद नहीं है और इसी लिए मैं यहाँ रहना पसंद नहीं करता।"

"तो तुम ख़ुद इस हवेली के लिए नए कायदे कानून बनाओ वैभव।" भाभी ने कहा____"किसी चीज़ से मुँह फेर कर दूर चले जाना कौन सी समझदारी है? जब तक तुम किसी चीज़ का डट कर सामना नहीं करोगे तब तक तुम किसी चीज़ से दूर नहीं जा सकते।"

"क्या आप इन्हीं सब बातों के लिए नाराज़ थीं मुझसे? मैंने बात को बदलते हुए कहा____"मुझे हर बात खुल कर बताइए भाभी। आप जानती हैं कि पहेलियाँ बुझाने वाली बातें ना तो मुझे पसंद हैं और ना ही वो मुझे समझ आती हैं।"

"तुम्हें मैं अपना देवर ही नहीं बल्कि अपना छोटा भाई भी मानती हूं वैभव।" भाभी ने इस बार सहसा मेरे चेहरे को सहलाते हुए बड़े प्रेम भाव से कहा____"और यही चाहती हूं कि तुम एक अच्छे इंसान बनो और इस हवेली की बाग डोर अपने हाथ में सम्हालो। मैं मानती हूं कि तुम्हारे बड़े भैया इस हवेली के उत्तराधिकारी हैं मगर वो इस उत्तराधिकार के क़ाबिल नहीं हैं।"

"आप बड़े भैया के बारे में ऐसा कैसे कह सकती हैं?" मैंने उनकी गहरी आँखों में देखते हुए कहा____"वो आपके पति हैं और दुनियां की कोई भी पत्नी अपने पति के बारे में ऐसा नहीं कह सकती।"
"मैंने तुमसे उस दिन भी कहा था वैभव कि मैं एक पत्नी के साथ साथ इस हवेली की बहू भी हूं।" भाभी ने कहा____"पत्नी के रूप में मैं जानती हूं कि मुझे अपने पति के बारे में ऐसा नहीं कहना चाहिए लेकिन एक बहू के रूप में मुझे और भी बहुत कुछ सोचना पड़ता है। मैं ये कैसे चाह सकती हूं कि दादा ठाकुर के बाद उनकी बाग डोर एक ऐसा इंसान अपने हाथ में ले जो उसके लायक ही नहीं है।"

"सवाल अब भी वही है भाभी।" मैंने कहा____"आख़िर बड़े भैया इस अधिकार के लायक क्यों नहीं हैं? ऐसी क्या कमी है उनमें जिसकी वजह से आप उनके बारे में ऐसा कह रही हैं?"

"क्योंकि उनका जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है वैभव।" भाभी ने एक झटके से कहा और फिर बुरी तरफ फफक कर रोने लगीं। इधर उनकी ये बात सुन कर पहले तो मुझे समझ न आया किन्तु जैसे ही उनकी बात का मतलब समझा तो मेरे पैरों तले से ज़मीन खिसक गई।

"ये..ये..ये आप क्या कह रही हैं भाभी?" मैं हतप्रभ भाव से बोल उठा___"बड़े भैया का जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है....क्या मतलब है इसका?"
"हां वैभव।" भाभी रोते हुए पलट गईं और अंदर कमरे में जाते हुए बोलीं____"यही सच है। तुम्हारे बड़े भैया का जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है। वो बहुत जल्द इस दुनिया से विदा हो जाएंगे।"

"नहीं नहीं।" बौखला कर तथा आवेश में चीखते हुए मैंने अंदर आ कर उनसे कहा____"ये सच नहीं हो सकता। आप झूठ बोल रही हैं। मुझे यकीन नहीं हो रहा कि आप बड़े भैया के बारे में इतना बड़ा झूठ बोल सकती हैं।"

"ये झूठ नहीं बल्कि कड़वा सच है वैभव।" भाभी ने पलट कर दुखी भाव से मुझसे कहा____"इस हवेली में इस बात का पता मेरे अलावा सिर्फ दादा ठाकुर को ही है।"
"लेकिन ये कैसे हो सकता है भाभी?" मेरे चेहरे पर आश्चर्य मानो ताण्डव करने लगा था। मारे अविश्वास के मैंने कहा____"नहीं नहीं, मैं ये बात किसी भी कीमत पर नहीं मान सकता और अगर ये सच है भी तो इस बात का पता हवेली में बाकी लोगों को क्यों नहीं है?"

"क्योंकि दादा ठाकुर ने मुझे किसी और से बताने से मना कर रखा है।" भाभी ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा____"दादा ठाकुर नहीं चाहते कि इस बात का पता माँ जी को या किसी और को चले। माँ जी को यदि इस बात का पता चला तो उन्हें गहरा आघात लग सकता है। दूसरी बात ये भी है कि कुछ समय से हमारे खानदान के खिलाफ़ कुछ अफवाहें सुनने को मिल रही हैं जिसकी वजह से दादा ठाकुर को लगता है कि अगर इस बात का पता किसी और को लगा तो हो सकता है कि ऐसे में लोग इस बात का फ़ायदा उठा लें।"

"पर ये कैसे हो सकता है भाभी?" मैंने पुरजोर भाव से कहा____"आपको और दादा ठाकुर को ये कैसे पता चला कि बड़े भैया का जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है?"
"कुछ महीने पहले दादा ठाकुर अपने साथ मुझे और तुम्हारे बड़े भैया को ले कर कुल गुरु के पास गए थे।" भाभी ने गंभीरता से कहा____"असल में दादा ठाकुर गुरु जी से मिल कर उनसे ये जानना चाहते थे कि उनके बाद उनकी बाग डोर को सम्हालने के लिए उनके बड़े बेटे अब सक्षम हो गए हैं कि नहीं? जब दादा ठाकुर ने गुरु जी से इस बारे में बात की तो गुरु जी आँख बंद कर के ध्यान लगाने लगे। कुछ देर बाद उन्होंने अपनी आँखें खोलीं और फिर दादा ठाकुर से कहा कि वो इस बारे में सिर्फ उन्हीं को बताएंगे। गुरु जी की बात सुन कर दादा ठाकुर ने हम दोनों को उनकी कुटिया से बाहर भेज दिया। कुछ देर बाद जब दादा ठाकुर गुरु जी से मिल कर बाहर आए तो वो एकदम से शांत थे। उस वक़्त तो मैंने उनसे कुछ नहीं पूछा किन्तु तुम्हारे बड़े भैया से न रहा गया तो उन्होंने पूछ ही लिया की गुरु जी ने क्या कहा है। तुम्हारे भैया के पूछने पर दादा ठाकुर ने बस इतना ही कहा कि अभी इसके लिए काफी समय है इस लिए उन्होंने प्रतीक्षा करने को कहा है। उस दिन दादा ठाकुर पूरे रास्ते ख़ामोश ही रहे थे और किसी गहरी सोच में डूबे रहे थे। उन्हें देख कर मैं समझ गई थी कि कुछ तो बात ज़रूर है। मैं उनसे कुछ पूछने की हिम्मत नहीं कर सकती थी इस लिए चुप ही रही। हवेली आने के बाद दादा ठाकुर ने माँ जी से भी यही कहा कि अभी इसके लिए काफी समय है। दो चार दिन ऐसे ही गुज़र गए लेकिन मैं अक्सर उनके चेहरे पर चिंता और परेशानी देखती थी, हलांकि वो बाकी सबके सामने हमेशा की तरह शांत चित्त ही रहते थे। मैं अब तक समझ चुकी थी कि कोई गंभीर बात ज़रूर है इस लिए एक दिन मैं खुद गुरु जी के आश्रम की तरफ चल पड़ी। रास्ता लम्बा था लेकिन मुझे परवाह नहीं थी। मैं हवेली से सबकी नज़र बचा कर निकली थी और शाम होने से पहले ही गुरु जी के आश्रम पहुंच ग‌ई। गुरु जी मुझे देख कर बहुत हैरान हुए थे। ख़ैर मेरे पूछने पर पहले तो उन्होंने मुझे बताने से इंकार किया लेकिन जब मैंने उनसे बहुत ज़्यादा अनुनय विनय की तब उन्होंने मुझे बताया कि असल बात क्या है। गुरु जी से सच जान कर मेरे होश उड़ गए थे और लग रहा था कि मैं हमेशा के लिए अचेत हो जाऊंगी। किसी तरह वहां से वापस हवेली आई और दादा ठाकुर से अकेले में मिली। उनसे जब मैंने ये कहा कि मैं गुरु जी से सच जान कर आ रही हूं तो वो दंग रह गए फिर एकदम से गुस्सा हो कर बोले कि हमारी इजाज़त के बग़ैर वहां जाने की हिम्मत कैसे की तुमने तो मैंने भी कह दिया कि मुझे भी अपने पति के बारे में जानने का पूरा हक़ है और अब जबकि मैं सच जान चुकी हूं तो बताइए कि अब मैं क्या करूं? मेरा तो जीवन ही बर्बाद हो गया। मेरा रोना देख कर दादा ठाकुर शांत हो गए और फिर हाथ जोड़ कर उन्होंने मुझसे कहा कि मैं इस बारे में हवेली के किसी भी सदस्य से ज़िक्र न करूं। दादा ठाकुर की बात सुन कर मुझे रोना तो बहुत आ रहा था लेकिन मेरे रोने से भला क्या हो सकता था?"

भाभी चुप हुईं तो कमरे में शमशान की मानिन्द सन्नाटा छा गया। भाभी का कहा हुआ एक एक शब्द मेरे कानों में अभी भी गूँज रहा था और मैं यकीन कर पाने में जैसे खुद को असमर्थ समझ रहा था। मैं सोच भी नहीं सकता था कि एक सच ऐसा भी हो सकता है। बड़े भैया का चेहरा मेरी आँखों के सामने उभर आया। चार महीने पहले उनका बर्ताव मेरे प्रति आज जैसा नहीं था। वो दादा ठाकुर की तरह शख़्त स्वभाव के नहीं थे और ना ही मेरी तरह गांव की किसी बहू बेटी पर ग़लत निगाह डालते थे। वो शांत स्वभाव के तो थे किन्तु कभी कभी जब वो किसी बात से चिढ़ जाते थे तो उनको भयंकर गुस्सा भी आ जाता था। बड़े भाई होने के नाते अक्सर वो मुझे समझाते थे और डांट भी देते थे किन्तु आज तक उन्होंने मुझ पर हाथ नहीं उठाया था।

अपनी आँखों के सामने बड़े भैया का चेहरा उभरा हुआ देख सहसा मेरी आँखों में आंसू झिलमिला उठे। मेरे अंदर एक हूक सी उठी जिसने मेरी अंतरात्मा तक को कंपकंपा दिया। मैंने भाभी की तरफ देखा तो उन्हें दूसरी तरफ चेहरा किए सिसकते हुए पाया। इस हक़ीक़त ने तो मुझे हिला के ही रख दिया था। एक पल में ही वक़्त और हालात बदल गए थे।

"क्या आपने गुरु जी से ये नहीं पूछा था कि बड़े भैया के साथ ऐसा क्यों होने वाला है?" मैंने आगे बढ़ कर भाभी से कहा____"आख़िर ऐसी क्या वजह है कि वो हमें छोड़ कर इस दुनियां से चले जाएंगे?"

"पूछा था।" भाभी ने गहरी सांस लेते हुए कहा___"जवाब में गुरु जी ने बस यही कहा था कि होनी अटल है, जीवन और मृत्यु ईश्वर के हाथ में है। उनका कहना था कि तुम्हारे बड़े भैया जन्म से ही अल्पायु ले कर आये थे। उन्होंने ये भी बताया कि उनसे मुझे औलाद भी होनी थी किन्तु वो खंडित हो चुकी है।"

"इसका क्या मतलब हुआ?" मैंने हैरानी से कहा____"अगर आपको औलाद होनी थी तो वो खंडित कैसे हो सकती है? क्या आपने पूछा नहीं गुरु जी से?"
"गुरु जी ने कहा कि इंसान के कर्मों द्वारा ही भाग्य बनता और बिगड़ता है।" भाभी ने कहा____"अगर इंसान के कर्म अच्छे हैं तो उसका कर्म फल भी अच्छा ही मिलेंगा। गुरु जी के कहने का मतलब शायद यही था कि तुम्हारे भैया के कर्म शायद अच्छे नहीं थे इस लिए ऐसा हुआ।"

"बड़ी अजीब बात है।" मैंने सोचने वाले भाव से कहा____"पर मैं नहीं मानता इन सब बातों को। ये सब बकवास है और हां आप भी गुरु जी की इन फ़ालतू बातों को मत मानिए। बड़े भैया को कुछ नहीं होगा। कर्म फल का लेखा जोखा अगर यही है तो फिर मेरे कर्म कौन से अच्छे हैं? मैंने तो आज तक सब बुरे ही कर्म किए हैं तो फिर मुझे मृत्यु क्यों नहीं आई और मेरे साथ बुरा क्यों नहीं हुआ? ये सब अंधविश्वास की बातें हैं भाभी। मैं नहीं मानता इन सब बातों को।"

"जीवन और मृत्यु ईश्वर के हाथ में है वैभव।" भाभी ने गंभीरता से कहा____"किन्तु कर्म इंसान के बस में है। तुम जैसा कर्म करोगे तुम्हें वैसा ही फल मिलेगा ये एक सच्चाई है। आज भले ही तुम इस बात को न मानो मगर एक दिन ज़रूर मानोगे।"

"मैं सिर्फ इतना जानता हूं कि बड़े भैया को कुछ नहीं होगा।" मैंने स्पष्ट भाव से कहा____"आपको ये सब बातें मुझे पहले ही बतानी चाहिए थी। मैंने कई बार आपसे साफ़ साफ़ बताने को बोला था लेकिन आपने नहीं बताया। ख़ैर, बात अगर यही थी तो आपने ये क्यों कहा कि बड़े भैया दादा ठाकुर की बाग डोर सम्हालने के लायक नहीं हैं?"

"मैं ये बात तुम्हें बताना नहीं चाहती थी।" भाभी ने कहा____"इसी लिए तुमसे हर बार सिर्फ यही कहा कि वो इस सबके लायक नहीं हैं।"
"आप भी कमाल करती हैं भाभी।" मैंने कहा____"कम से कम मैं आपको सबसे ज़्यादा समझदार समझता था। मुझे तो समझ में नहीं आ रहा कि दादा ठाकुर ने भी आपको ये बात किसी से न बताने को क्यों कहा और खुद भी अब तक इस बात को छुपाए बैठे हैं। चलो मान लिया कि उन्होंने माँ को बताने से मना किया‌ था क्योंकि वो समझते हैं कि इस बात को जान कर माँ को सदमा लग जाएगा किन्तु बाकी लोगों से इस बारे में बताने में क्या समस्या थी?"

"कुछ तो बात होगी ही वैभव।" भाभी ने संजीदा भाव से कहा____"अन्यथा दादा ठाकुर मुझे इस बात को किसी से भी ना बताने को क्यों कहते और अब मैं चाहती हूं कि तुम भी इस बात का ज़िक्र हवेली में किसी से न करना।"
"ठीक है नहीं करुंगा।" मैंने कहा____"लेकिन मैं अब इस बात को ले कर चुप भी नहीं रहूंगा भाभी। अब मैं अपने बड़े भैया का साया बन कर उनके आस पास ही रहूंगा। मैं भी देखता हूं कि वो कौन सा भगवान है जो उन्हें मुझसे छीन कर ले जाता है।"

मेरी बात सुन कर भाभी की आँखों से आंसू छलक पड़े और वो ख़ुशी के मारे मुझसे लिपट ग‌ईं। मैंने भी उन्हें अपने से छुपका लिया। इस वक़्त मेरे ज़हन में उनके प्रति कोई भी बुरा ख़याल नहीं था बल्कि इस वक़्त मैं उनके लिए बहुत ही संजीदा हो गया था। इतनी बड़ी बात थी और मुझे इस बारे में कुछ पता ही नहीं था। सबके सामने हमेशा हंसती मुस्कुराती रहने वाली मेरी भाभी न जाने कब से अपने अंदर ये दुःख दबाए हुए थीं।

"एक बात बताइए भाभी।" कुछ देर बाद मैंने उन्हें खुद से अलग करते हुए कहा____"अगर गुरु जी को इतना पता था कि बड़े भैया का जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है तो फिर उन्हें ये भी तो पता रहा होगा न कि बड़े भैया के साथ ऐसा क्या होगा जिससे कि वो इस दुनियां से चले जाएंगे? क्या आपने गुरु जी से इस बारे में साफ़ साफ़ नहीं पूछा था?"

"पूछा था।" भाभी ने अपने आँसू पोंछते हुए कहा____"पहले वो बता नहीं रहे थे लेकिन जब मैं पूछती ही रही तो वो बोले कि जब तुम्हारे भैया का वैसा समय आएगा तब उनका स्वास्थ्य बिगड़ जाएगा और वो बिस्तर पर ही कुछ दिन पड़े रहेंगे। उसके बाद उनकी आत्मा नियति के लेख के अनुसार ईश्वर के पास चली जाएगी।"

"उस गुरु जी की ऐसी की तैसी।" मैंने शख़्त भाव से कहा____"ऐसा कुछ नहीं होने दूंगा मैं। अब आप इस बात को ले कर बिल्कुल भी चिंता मत कीजिए। मैं दुनियां के हर वैद्य को ला कर इस हवेली में क़ैद कर दूंगा और उन्हें हुकुम दूंगा कि अगर मेरे बड़े भैया की तबियत ज़रा सी भी ख़राब हुई तो मैं उन सबकी खाल में भूसा भर दूंगा।"

"तुम्हारी ये बातें सुनने के लिए काश इस वक़्त तुम्हारे भैया यहाँ होते।" भाभी ने ख़ुशी से डबडबाई आंखों से मुझे देखते हुए कहा____"तो वो भी जान जाते कि जिस भाई को वो बिल्कुल ही नालायक और ग़ैर ज़िम्मेदार समझते हैं उसके अंदर अपने बड़े भाई के लिए कितना प्रेम है। मैं जानती थी वैभव कि तुम ऊपर से ही इतने शख़्त हो और बुरा बने रहते हो लेकिन अंदर से तुम दादा ठाकुर की ही तरह नरम हो और तुम्हारे अंदर एक अच्छा इंसान भी है। मुझे बहुत ख़ुशी हुई तुम्हारा ये रूप देख कर और अब यही चाहती हूं कि तुम ऐसे ही रहो। जब तुम्हारे बड़े भैया अपने लिए तुम्हारा ये प्रेम देखेंगे तो उनके अंदर से भी तुम्हारे प्रति भरा हुआ गुस्सा निकल जाएगा।"

"मुझे पता है कि वो मुझे शुरू से ही बहुत प्यार करते रहे हैं।" मैंने इस बार हल्की मुस्कान के साथ कहा____"वो प्यार ही था भाभी कि उन्होंने कभी भी मुझ पर गुस्से से हाथ नहीं उठाया। ख़ैर, आप बेफिक्र हो जाइए, मैं बड़े भैया को कुछ नहीं होने दूंगा। अब आप जाइए और नहा धो लीजिए। मैं कुसुम को बोल देता हूं कि वो आपके लिए खाना यहीं पर भेजवा दे।"

"कुसुम को क्यों बोलोगे?" भाभी ने मेरी तरफ देखते हुए कहा___"क्या तुम ख़ुद अपनी भाभी के लिए खाना नहीं ला सकते? आख़िर नाराज़ तो मैं तुमसे ही थी।"
"ठीक है भाभी।" मैंने कहा____"मैं ही आपके लिए खाना ले आऊंगा। अब आप जाइए और नहा धो लीजिए।"

"क्या अपनी भाभी के साथ रंग नहीं खेलोगे?" भाभी ने ये कहा तो मैंने चौंक कर उनकी तरफ देखा। जबकि वो इस बार मुस्कुराते हुए बोलीं____"विभोर और अजीत तो मेरे साथ रंग खेलने से डरते हैं इस लिए वो मुझे रंग लगाने नहीं आते। आज जबकि तुम्हारी वजह से मुझे एक ख़ुशी मिली है तो मैं चाहती हूं कि तुम भी इस ख़ुशी में रंगों का ये त्यौहार मनाओ। वैसे तुम्हारे चेहरे पर लगा हुआ ये रंग बता रहा है कि तुम किसी के साथ होली खेल रहे थे।"

"जी वो कुसुम...।" मैंने ये कहा ही था कि भाभी ने हंसते हुए कहा____"तुम कुसुम के साथ होली खेल रहे थे? तुम भी हद करते हो देवर जी। होली में रंग तो भाभी के साथ खेला जाता है।"

भाभी की बात सुन कर मैं चुप हो गया। असल में मुझे ख़याल आ गया कि अच्छा हुआ भाभी ने मेरी बात काट दी थी वरना मैं तो उन्हें ये बता देने वाला था कि मैं कुसुम की सहेलियों के साथ होली खेल रहा था। मेरी ये बात सुन कर भाभी तुरंत ताड़ जाती कि मैं कुसुम की सहेलियों के साथ किस तरह की होली खेल रहा था।

"क्या हुआ?" मुझे चुप देख भाभी ने कहा____"क्या तुम भी विभोर और अजीत की तरह मेरे साथ होली खेलने से डर रहे हो?"
"बात डर की नहीं है भाभी।" मैंने सहसा झिझकते हुए कहा____"बल्कि बात है आपके मान सम्मान और मर्यादा की। मैं आपकी बहुत इज्ज़त करता हूं और मैं हमेशा यही सोचता हूं कि मेरी वजह से आपके मान सम्मान पर कोई आंच न आए।"

"हां मैं जानती हूं वैभव।" भाभी ने कहा____"मैं जानती हूं कि तुम मेरा बहुत सम्मान करते हो लेकिन मैं ये नहीं जानती कि तुम हमेशा मुझसे दूर दूर क्यों रहते हो? मैंने अक्सर ये महसूस किया है कि जब भी मैं तुमसे बात करती हूं तो तुम बहुत जल्दी मुझसे दूर भागने की कोशिश करने लगते हो। आख़िर इसकी क्या वजह है वैभव?"

"सिर्फ इस लिए कि मेरे द्वारा आपका अपमान न हो और आपका मान सम्मान बना रहे।" मैंने भाभी की तरफ देखते हुए कहा____"आप तो जानती ही हैं भाभी कि मेरा चरित्र कैसा है, इस लिए मैं ये किसी भी कीमत पर नहीं चाहता कि मेरे मन में आपके प्रति एक पल के लिए भी बुरे ख़याल आएं। यही वजह है कि मैं हमेशा आपसे दूर दूर ही रहता हूं।"

भाभी से मैंने सच्चाई बता दी थी और अब मेरा दिल ये सोच कर ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा था कि मेरी बात सुन कर भाभी मेरे बारे में क्या सोचेंगी और क्या कहेंगी मुझसे? इस वक़्त मैं अपने बारे में बहुत ही बुरा महसूस करने लगा था। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि इस बार मामला मेरे खानदान की औरत का था और उस औरत का था जो मेरी नज़र में एक देवी थी।

"मन बहुत चंचल होता है वैभव।" कुछ देर मुझे देखते रहने के बाद भाभी ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"और ये भी सच है कि इंसान का अपने उस चंचल मन पर कोई ज़ोर नहीं होता। बड़े बड़े साधू महात्मा भी उस चंचल मन की वजह से अपना तप और अपना ज्ञान खो देते हैं। हम तो मामूली इंसान हैं फिर हम भला कैसे अपने मन को काबू में रख सकते हैं? आज की दुनियां में पापी और गुनहगार वही माना जाता है जिसका बुरा कर्म लोगों की नज़र में आ जाता है और जिनके पाप और गुनाह लोगों की नज़र में नहीं आते वो पाक़ बने रहते हैं। जबकि सच तो ये है कि आज का हर इंसान हर पल पाप और गुनाह करता है। ज़रूरी नहीं कि पापी और गुनहगार उसी को कहा जाए जिसके ग़लत कर्म लोगों की नज़र में आ जाएं बल्कि पापी और गुनहगार तो वो भी कहलाएंगे जो अपने मन के द्वारा किसी के बारे में ग़लत सोच कर पाप और गुनाह करते हैं। तुम्हारा चरित्र और तुम्हारे कर्म लोगों की नज़र में हैं इस लिए तुम लोगों की नज़र में पापी और गुनहगार हो जबकि मुमकिन है कि तुम्हारी तरह ही पापी और गुनहगार मैं भी होऊं।"

"ये आप क्या कह रही हैं भाभी?" मैंने आश्चर्य से उनकी तरफ देखते हुए कहा____"आप तो देवी हैं भाभी। आप भला पापी और गुनहगार कैसे हो सकती हैं?"

"क्यों नहीं हो सकती देवर जी?" भाभी ने उल्टा सवाल करते हुए कहा____"आख़िर वैसा ही एक चंचल मन मेरे अंदर भी तो है और हर किसी की तरह मेरा भी अपने मन पर कोई ज़ोर नहीं है। हो सकता है कि मेरा मन भी किसी न किसी के बारे में ग़लत सोचता हो। ऐसे में तो मैं भी तुम्हारी तरह पापी और गुनहगार ही हो गई न? तुम तो सिर्फ ये जानते हो कि मैंने अभी तक ऐसे कोई ग़लत कर्म नहीं किए हैं जिसके लिए मुझे पापी या गुनहगार कहा जाए लेकिन जैसा कि मैंने अभी कहा कि पापी या गुनहगार सिर्फ वही लोग नहीं होते जिनके ग़लत कर्म लोगों की नज़र में आ जाते हैं, बल्कि पापी तो वो भी होते हैं जो मन से ग़लत कर्म करते हैं। तुम भला ये कैसे जान सकते हो कि मैंने मन से कोई ग़लत कर्म किया है या नहीं? इस वक़्त तुम या मैं भले ही एक दूसरे के बारे में ग़लत सोचें मगर जब तक ग़लत कर्म दिखेगा नहीं तब तक हम दोनों ही पाक़ और अच्छे बने रहेंगे। ख़ैर छोडो ये सब बातें, तो तुम इस वजह से हमेशा मुझसे दूर दूर रहते थे?"

"जी।" मैंने बस इतना ही कहा।
"मन किसी के काबू में नहीं रहता।" भाभी ने शांत भाव से कहा____"लेकिन इंसान को भटकाने वाले इस मन को भी किसी तरह भटकाना पड़ता है। उसे उस जगह पर क़याम करने से रोकना पड़ता है जहां पर उसके क़याम करने से इंसान ग़लत करने पर मजबूर होने लगता है। आज के युग में जिसने अपने मन को ग़लत जगह पर क़याम करने से रोक लिया वही महान है। ख़ैर, मुझे यकीन है कि अब से सब अच्छा ही होगा।"

मैं तो भाभी की बातें साँसें रोक कर सुन रहा था और सच तो ये था कि मैं उनकी बातें सुनने में जैसे मंत्रमुग्ध ही हो गया था। आज पहली बार ऐसा हुआ था कि मैं उनके पास इतनी देर तक रुका था और उनकी बातें सुन रहा था। इससे पहले जहां मैं अक्सर ये सोचता था कि कितना जल्दी उनसे दूर चला जाऊं वहीं अब मैं ये चाह रहा था कि उनके पास ही रहूं। ये वक़्त और हालात भी बड़े अजीब होते हैं, अक्सर इंसान को ऐसी परिस्थिति में ला कर खड़ा कर देते हैं जिसके बारे में इंसान ने सोचा भी नहीं होता।

"तुम यहीं रुको मैं नीचे से रंग ले कर आती हूं।" भाभी ने मेरी तन्द्रा भंग करते हुए कहा____"अभी शाम नहीं हुई है। इतना तो हमारे पास वक़्त है कि हम देवर भाभी एक दूसरे को रंग लगा सकें।"
"पर भाभी।" मैंने असमंजस में ये कहा तो भाभी ने कहा____"आज होली है इस लिए आज के दिन हर ख़ता सब माफ़ है देवर जी।"

"मैं तो ये कह रहा था कि।" मैंने कहा____"अगर बड़े भैया यहाँ आ गए और उन्होंने मुझे आपके साथ रंग खेलते हुए देख लिया तो कहीं वो गुस्सा न हो जाएं।"
"आज वो यहाँ नहीं आएंगे वैभव।" भाभी ने कहा____"आज वो साहूकारों के लड़कों के साथ होली का आनंद ले रहे होंगे। तुम रुको, मैं रंग ले कर बस थोड़ी ही देर में आ जाऊंगी।"

इतना कहने के बाद भाभी मेरी बात सुने बिना ही कमरे से बाहर निकल ग‌ईं। उनके जाने के बाद मैं कमरे में बुत की तरह खड़ा रह गया। आज भाभी के द्वारा मुझे एक ऐसे सच का पता चला था जिसके बारे में मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था। मेरे बड़े भैया के बारे में कुल गुरु ने भविष्यवाणी करते हुए कहा था कि उनका जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये तक़दीर का कैसा खेल था कि वो मेरे भाई को इस तरह दुनियां से उठा लेने वाली थी और एक सुहागन को भरी जवानी में ही विधवा बना देने का इरादा किए बैठी थी मगर मैंने भी सोच लिया था कि मैं ऐसा होने नहीं दूंगा। मैं गुरु जी की इस भविष्यवाणी को ग़लत कर के रहूंगा।


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वाह वाह कया बात है भाई कमाल का अपडेट किया है आपने भाई साहब
 

Chutiyadr

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☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 22
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अब तक,,,,,,

मेरी बात सुन कर वो दोनों मुस्कुराईं और फिर अपना रंग वाला कागज़ उठा कर कमरे से बाहर चली गईं। उनके जाने के बाद मैंने मन ही मन कहा____'कोई बात नहीं वैभव सिंह। इन दोनों की चूत बहुत जल्द तेरे लंड को नसीब होगी।'

मेरे हाथों और चेहरे पर रंग लग गया था इस लिए अब मुझे नहाना ही पड़ता मगर उससे पहले मैंने सोचा क्यों न भाभी से भी मिल लिया जाए। आज रंगो का त्यौहार है इस लिए भाभी को भी होली की मुबारकबाद देना चाहिए मुझे। ये सोच कर मैंने अपनी शर्ट से अपने चेहरे का रंग पोंछा और दूसरी शर्ट पहन कर कमरे से बाहर आ गया। पूरी हवेली में लोग एक दूसरे के साथ रंग गुलाल खेलते हुए आनंद ले रहे थे और एक तरफ हवेली के एक कमरे में मेरी भाभी मुझसे नाराज़ हुई पड़ी थी। मैंने भी आज निर्णय कर लिया कि उनसे हर बात खुल कर और साफ़ शब्दों में कहूंगा। उसके बाद जो होगा देखा जाएगा।

अब आगे,,,,,



मन में कई तरह के विचार लिए मैं दूसरे छोर पर आया। हवेली के झरोखे से मैंने नीचे आँगन में देखा। सारी औरतें अपने में ही लगी हुईं थी। आँगन से नज़र हटा कर मैंने भाभी के कमरे की तरफ देखा और फिर आगे बढ़ कर दरवाज़े पर हाथ से दस्तक दी। मेरे दिल की धड़कनें अनायास ही बढ़ गईं थी। ख़ैर मेरे दस्तक देने पर जब कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो मैंने फिर से दस्तक दी किन्तु इस बार भी अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। कुछ सोच कर मैंने इस बार दस्तक देने के साथ भाभी कह कर उन्हें पुकारा भी। मेरे पुकारने पर इस बार प्रतिक्रिया हुई। कुछ ही पलों में दरवाज़ा खुला और सामने भाभी नज़र आईं। मेरी नज़र जब उन पर पड़ी तो देखा अजीब सी हालत बना रखी थी उन्होंने। जो चेहरा हमेशा ही ताज़े खिले हुए गुलाब की मानिन्द खिला हुआ रहता था वो इस वक़्त ऐसे नज़र आ रहा था जैसे किसी गुलशन में खिज़ा ने अपना क़याम कर लिया हो।

"होली मुबारक हो भाभी।" फिर मैंने खुद को सम्हालते हुए बड़े ही आदर भाव से मुस्कुराते हुए कहा तो उनके चेहरे के भाव बदलते नज़र आए और फिर वो सपाट भाव से बोलीं____"अब क्यों आए हो यहाँ?"

"जी??" मैं एकदम से चकरा गया____"क्या मतलब??"
"तुम्हें तो इस हवेली से और इस हवेली में रहने वालों से कोई मतलब ही नहीं है न।" भाभी ने पूर्व की भाँती सपाट भाव से ही कहा____"तो फिर अब क्यों आए हो यहाँ? उसी दुनिया में वापस लौट जाओ जिस दुनियां में तुम्हें ख़ुशी मिलती है और जिस दुनियां के लोग तुम्हें अच्छे लगते हैं।"

"ठीक है लौट जाऊंगा।" मैंने उनकी आँखों में झांकते हुए कहा____"लेकिन उससे पहले मैं ये जानना चाहता हूं कि आप ख़ुद को किस बात की सज़ा दे रही हैं? आख़िर किस लिए आपने अन्न जल का त्याग कर रखा है और इस तरह ख़ुद को क्यों कमरे में बंद कर रहा है? आप मुझे इन सवालों के जवाब दे दीजिए उसके बाद मैं चला जाऊंगा यहाँ से।"

"तुम्हें इससे क्या फ़र्क पड़ता है भला?" भाभी ने भी मेरी आँखों में अपलक देखते हुए कहा____"मैं अन्न जल का त्याग करके ख़ुद को कमरे में बंद रखूं तो इससे तुम्हें क्या फ़र्क पड़ता है?"

"कोई मेरी वजह से अन्न जल का त्याग कर के ख़ुद को कमरे में बंद रखे तो मुझे फर्क पड़ता है।" मैंने कहा____"ख़ैर छोड़िए इस बात को, कुसुम ने बताया की आप मुझसे नाराज़ हैं??"

"बात वही है।" भाभी ने मेरी तरफ देखते हुए ही कहा____"तुम्हें मेरी नाराज़गी से या किसी और चीज़ से क्या फ़र्क पड़ता है?"
"अगर आपको मेरी हर बात पर ताने ही मारने हैं।" मैंने इस बार थोड़े नाराज़ लहजे में कहा____"तो फिर चला जाता हूं मैं। आप अच्छी तरह जानती हैं कि मैं अपने ऊपर किसी की भी बंदिश पसंद नहीं करता और ना ही ये पसंद करता हूं कि कोई बेमतलब मुझ पर अपना रौब झाड़े।"

"ज़मीन पर लौट आओ ठाकुर वैभव सिंह।" भाभी ने शख़्त भाव से कहा___"वरना बाद में पछताने का भी मौका नहीं मिलेगा तुम्हें। अपने गुस्से और झूठे अहंकार को अंदर से निकाल कर ज़रा उन हालातों की तरफ भी ग़ौर करो जो तुम्हारे चारो तरफ तुम्हें डस लेने के लिए फ़ैलते जा रहे हैं।"

"अच्छा है न।" मैंने फीकी मुस्कान के साथ कहा____"अगर किसी वजह से मुझे कुछ हो जाएगा तो किसी को इससे क्या फ़र्क पड़ जाएगा लेकिन मुझे ये समझ नहीं आ रहा कि आप मेरे लिए इतना क्यों फ़िक्र कर रही हैं?"

"क्योंकि तुम्हें दादा ठाकुर के बाद उनकी जगह लेनी है।" भाभी ने कहा____"और उसके लिए ज़रूरी है कि तुम होश में आओ और सही सलामत रहो। तुम्हें अंदाज़ा भी नहीं है कि तुम्हारे चारो तरफ कितना ख़तरा मौजूद है जो तुम्हें ख़ाक में मिला देने के लिए हर पर तुम्हारी तरफ ही बढ़ता आ रहा है।"

"वैभव सिंह इतना कमज़ोर नहीं है कि कोई ऐरा गैरा उसे ख़ाक में मिला देगा।" मैंने उनके चेहरे के क़रीब अपना चेहरा ले जाते हुए कहा____"इतना तो अपने आप पर यकीन है कि क़यामत को भी अपनी तरफ आने से रोक लूंगा और उसे ग़र्क कर दूंगा।"

"गुरूर और अहंकार तो वही ठाकुरों वाला ही है वैभव।" भाभी ने ताना मारते हुए कहा____"फिर ये क्यों कहते हो कि तुम इस हवेली में रहने वालों से अलग हो? अगर सच में अलग हो तो ये झूठा मान गुमान क्यों दिखाते हो? अगर तुम सच में अपनी जगह सही हो तो अपने सही होने का सबूत भी दो। यूं डींगें मार कर तुम क्या साबित करना चाहते हो?"

"मैं किसी के सामने कुछ भी साबित नहीं करना चाहता भाभी।" मैंने भाभी से नज़र हटा कर कहा____"मुझे बस इस हवेली का कायदा कानून पसंद नहीं है और इसी लिए मैं यहाँ रहना पसंद नहीं करता।"

"तो तुम ख़ुद इस हवेली के लिए नए कायदे कानून बनाओ वैभव।" भाभी ने कहा____"किसी चीज़ से मुँह फेर कर दूर चले जाना कौन सी समझदारी है? जब तक तुम किसी चीज़ का डट कर सामना नहीं करोगे तब तक तुम किसी चीज़ से दूर नहीं जा सकते।"

"क्या आप इन्हीं सब बातों के लिए नाराज़ थीं मुझसे? मैंने बात को बदलते हुए कहा____"मुझे हर बात खुल कर बताइए भाभी। आप जानती हैं कि पहेलियाँ बुझाने वाली बातें ना तो मुझे पसंद हैं और ना ही वो मुझे समझ आती हैं।"

"तुम्हें मैं अपना देवर ही नहीं बल्कि अपना छोटा भाई भी मानती हूं वैभव।" भाभी ने इस बार सहसा मेरे चेहरे को सहलाते हुए बड़े प्रेम भाव से कहा____"और यही चाहती हूं कि तुम एक अच्छे इंसान बनो और इस हवेली की बाग डोर अपने हाथ में सम्हालो। मैं मानती हूं कि तुम्हारे बड़े भैया इस हवेली के उत्तराधिकारी हैं मगर वो इस उत्तराधिकार के क़ाबिल नहीं हैं।"

"आप बड़े भैया के बारे में ऐसा कैसे कह सकती हैं?" मैंने उनकी गहरी आँखों में देखते हुए कहा____"वो आपके पति हैं और दुनियां की कोई भी पत्नी अपने पति के बारे में ऐसा नहीं कह सकती।"
"मैंने तुमसे उस दिन भी कहा था वैभव कि मैं एक पत्नी के साथ साथ इस हवेली की बहू भी हूं।" भाभी ने कहा____"पत्नी के रूप में मैं जानती हूं कि मुझे अपने पति के बारे में ऐसा नहीं कहना चाहिए लेकिन एक बहू के रूप में मुझे और भी बहुत कुछ सोचना पड़ता है। मैं ये कैसे चाह सकती हूं कि दादा ठाकुर के बाद उनकी बाग डोर एक ऐसा इंसान अपने हाथ में ले जो उसके लायक ही नहीं है।"

"सवाल अब भी वही है भाभी।" मैंने कहा____"आख़िर बड़े भैया इस अधिकार के लायक क्यों नहीं हैं? ऐसी क्या कमी है उनमें जिसकी वजह से आप उनके बारे में ऐसा कह रही हैं?"

"क्योंकि उनका जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है वैभव।" भाभी ने एक झटके से कहा और फिर बुरी तरफ फफक कर रोने लगीं। इधर उनकी ये बात सुन कर पहले तो मुझे समझ न आया किन्तु जैसे ही उनकी बात का मतलब समझा तो मेरे पैरों तले से ज़मीन खिसक गई।

"ये..ये..ये आप क्या कह रही हैं भाभी?" मैं हतप्रभ भाव से बोल उठा___"बड़े भैया का जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है....क्या मतलब है इसका?"
"हां वैभव।" भाभी रोते हुए पलट गईं और अंदर कमरे में जाते हुए बोलीं____"यही सच है। तुम्हारे बड़े भैया का जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है। वो बहुत जल्द इस दुनिया से विदा हो जाएंगे।"

"नहीं नहीं।" बौखला कर तथा आवेश में चीखते हुए मैंने अंदर आ कर उनसे कहा____"ये सच नहीं हो सकता। आप झूठ बोल रही हैं। मुझे यकीन नहीं हो रहा कि आप बड़े भैया के बारे में इतना बड़ा झूठ बोल सकती हैं।"

"ये झूठ नहीं बल्कि कड़वा सच है वैभव।" भाभी ने पलट कर दुखी भाव से मुझसे कहा____"इस हवेली में इस बात का पता मेरे अलावा सिर्फ दादा ठाकुर को ही है।"
"लेकिन ये कैसे हो सकता है भाभी?" मेरे चेहरे पर आश्चर्य मानो ताण्डव करने लगा था। मारे अविश्वास के मैंने कहा____"नहीं नहीं, मैं ये बात किसी भी कीमत पर नहीं मान सकता और अगर ये सच है भी तो इस बात का पता हवेली में बाकी लोगों को क्यों नहीं है?"

"क्योंकि दादा ठाकुर ने मुझे किसी और से बताने से मना कर रखा है।" भाभी ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा____"दादा ठाकुर नहीं चाहते कि इस बात का पता माँ जी को या किसी और को चले। माँ जी को यदि इस बात का पता चला तो उन्हें गहरा आघात लग सकता है। दूसरी बात ये भी है कि कुछ समय से हमारे खानदान के खिलाफ़ कुछ अफवाहें सुनने को मिल रही हैं जिसकी वजह से दादा ठाकुर को लगता है कि अगर इस बात का पता किसी और को लगा तो हो सकता है कि ऐसे में लोग इस बात का फ़ायदा उठा लें।"

"पर ये कैसे हो सकता है भाभी?" मैंने पुरजोर भाव से कहा____"आपको और दादा ठाकुर को ये कैसे पता चला कि बड़े भैया का जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है?"
"कुछ महीने पहले दादा ठाकुर अपने साथ मुझे और तुम्हारे बड़े भैया को ले कर कुल गुरु के पास गए थे।" भाभी ने गंभीरता से कहा____"असल में दादा ठाकुर गुरु जी से मिल कर उनसे ये जानना चाहते थे कि उनके बाद उनकी बाग डोर को सम्हालने के लिए उनके बड़े बेटे अब सक्षम हो गए हैं कि नहीं? जब दादा ठाकुर ने गुरु जी से इस बारे में बात की तो गुरु जी आँख बंद कर के ध्यान लगाने लगे। कुछ देर बाद उन्होंने अपनी आँखें खोलीं और फिर दादा ठाकुर से कहा कि वो इस बारे में सिर्फ उन्हीं को बताएंगे। गुरु जी की बात सुन कर दादा ठाकुर ने हम दोनों को उनकी कुटिया से बाहर भेज दिया। कुछ देर बाद जब दादा ठाकुर गुरु जी से मिल कर बाहर आए तो वो एकदम से शांत थे। उस वक़्त तो मैंने उनसे कुछ नहीं पूछा किन्तु तुम्हारे बड़े भैया से न रहा गया तो उन्होंने पूछ ही लिया की गुरु जी ने क्या कहा है। तुम्हारे भैया के पूछने पर दादा ठाकुर ने बस इतना ही कहा कि अभी इसके लिए काफी समय है इस लिए उन्होंने प्रतीक्षा करने को कहा है। उस दिन दादा ठाकुर पूरे रास्ते ख़ामोश ही रहे थे और किसी गहरी सोच में डूबे रहे थे। उन्हें देख कर मैं समझ गई थी कि कुछ तो बात ज़रूर है। मैं उनसे कुछ पूछने की हिम्मत नहीं कर सकती थी इस लिए चुप ही रही। हवेली आने के बाद दादा ठाकुर ने माँ जी से भी यही कहा कि अभी इसके लिए काफी समय है। दो चार दिन ऐसे ही गुज़र गए लेकिन मैं अक्सर उनके चेहरे पर चिंता और परेशानी देखती थी, हलांकि वो बाकी सबके सामने हमेशा की तरह शांत चित्त ही रहते थे। मैं अब तक समझ चुकी थी कि कोई गंभीर बात ज़रूर है इस लिए एक दिन मैं खुद गुरु जी के आश्रम की तरफ चल पड़ी। रास्ता लम्बा था लेकिन मुझे परवाह नहीं थी। मैं हवेली से सबकी नज़र बचा कर निकली थी और शाम होने से पहले ही गुरु जी के आश्रम पहुंच ग‌ई। गुरु जी मुझे देख कर बहुत हैरान हुए थे। ख़ैर मेरे पूछने पर पहले तो उन्होंने मुझे बताने से इंकार किया लेकिन जब मैंने उनसे बहुत ज़्यादा अनुनय विनय की तब उन्होंने मुझे बताया कि असल बात क्या है। गुरु जी से सच जान कर मेरे होश उड़ गए थे और लग रहा था कि मैं हमेशा के लिए अचेत हो जाऊंगी। किसी तरह वहां से वापस हवेली आई और दादा ठाकुर से अकेले में मिली। उनसे जब मैंने ये कहा कि मैं गुरु जी से सच जान कर आ रही हूं तो वो दंग रह गए फिर एकदम से गुस्सा हो कर बोले कि हमारी इजाज़त के बग़ैर वहां जाने की हिम्मत कैसे की तुमने तो मैंने भी कह दिया कि मुझे भी अपने पति के बारे में जानने का पूरा हक़ है और अब जबकि मैं सच जान चुकी हूं तो बताइए कि अब मैं क्या करूं? मेरा तो जीवन ही बर्बाद हो गया। मेरा रोना देख कर दादा ठाकुर शांत हो गए और फिर हाथ जोड़ कर उन्होंने मुझसे कहा कि मैं इस बारे में हवेली के किसी भी सदस्य से ज़िक्र न करूं। दादा ठाकुर की बात सुन कर मुझे रोना तो बहुत आ रहा था लेकिन मेरे रोने से भला क्या हो सकता था?"

भाभी चुप हुईं तो कमरे में शमशान की मानिन्द सन्नाटा छा गया। भाभी का कहा हुआ एक एक शब्द मेरे कानों में अभी भी गूँज रहा था और मैं यकीन कर पाने में जैसे खुद को असमर्थ समझ रहा था। मैं सोच भी नहीं सकता था कि एक सच ऐसा भी हो सकता है। बड़े भैया का चेहरा मेरी आँखों के सामने उभर आया। चार महीने पहले उनका बर्ताव मेरे प्रति आज जैसा नहीं था। वो दादा ठाकुर की तरह शख़्त स्वभाव के नहीं थे और ना ही मेरी तरह गांव की किसी बहू बेटी पर ग़लत निगाह डालते थे। वो शांत स्वभाव के तो थे किन्तु कभी कभी जब वो किसी बात से चिढ़ जाते थे तो उनको भयंकर गुस्सा भी आ जाता था। बड़े भाई होने के नाते अक्सर वो मुझे समझाते थे और डांट भी देते थे किन्तु आज तक उन्होंने मुझ पर हाथ नहीं उठाया था।

अपनी आँखों के सामने बड़े भैया का चेहरा उभरा हुआ देख सहसा मेरी आँखों में आंसू झिलमिला उठे। मेरे अंदर एक हूक सी उठी जिसने मेरी अंतरात्मा तक को कंपकंपा दिया। मैंने भाभी की तरफ देखा तो उन्हें दूसरी तरफ चेहरा किए सिसकते हुए पाया। इस हक़ीक़त ने तो मुझे हिला के ही रख दिया था। एक पल में ही वक़्त और हालात बदल गए थे।

"क्या आपने गुरु जी से ये नहीं पूछा था कि बड़े भैया के साथ ऐसा क्यों होने वाला है?" मैंने आगे बढ़ कर भाभी से कहा____"आख़िर ऐसी क्या वजह है कि वो हमें छोड़ कर इस दुनियां से चले जाएंगे?"

"पूछा था।" भाभी ने गहरी सांस लेते हुए कहा___"जवाब में गुरु जी ने बस यही कहा था कि होनी अटल है, जीवन और मृत्यु ईश्वर के हाथ में है। उनका कहना था कि तुम्हारे बड़े भैया जन्म से ही अल्पायु ले कर आये थे। उन्होंने ये भी बताया कि उनसे मुझे औलाद भी होनी थी किन्तु वो खंडित हो चुकी है।"

"इसका क्या मतलब हुआ?" मैंने हैरानी से कहा____"अगर आपको औलाद होनी थी तो वो खंडित कैसे हो सकती है? क्या आपने पूछा नहीं गुरु जी से?"
"गुरु जी ने कहा कि इंसान के कर्मों द्वारा ही भाग्य बनता और बिगड़ता है।" भाभी ने कहा____"अगर इंसान के कर्म अच्छे हैं तो उसका कर्म फल भी अच्छा ही मिलेंगा। गुरु जी के कहने का मतलब शायद यही था कि तुम्हारे भैया के कर्म शायद अच्छे नहीं थे इस लिए ऐसा हुआ।"

"बड़ी अजीब बात है।" मैंने सोचने वाले भाव से कहा____"पर मैं नहीं मानता इन सब बातों को। ये सब बकवास है और हां आप भी गुरु जी की इन फ़ालतू बातों को मत मानिए। बड़े भैया को कुछ नहीं होगा। कर्म फल का लेखा जोखा अगर यही है तो फिर मेरे कर्म कौन से अच्छे हैं? मैंने तो आज तक सब बुरे ही कर्म किए हैं तो फिर मुझे मृत्यु क्यों नहीं आई और मेरे साथ बुरा क्यों नहीं हुआ? ये सब अंधविश्वास की बातें हैं भाभी। मैं नहीं मानता इन सब बातों को।"

"जीवन और मृत्यु ईश्वर के हाथ में है वैभव।" भाभी ने गंभीरता से कहा____"किन्तु कर्म इंसान के बस में है। तुम जैसा कर्म करोगे तुम्हें वैसा ही फल मिलेगा ये एक सच्चाई है। आज भले ही तुम इस बात को न मानो मगर एक दिन ज़रूर मानोगे।"

"मैं सिर्फ इतना जानता हूं कि बड़े भैया को कुछ नहीं होगा।" मैंने स्पष्ट भाव से कहा____"आपको ये सब बातें मुझे पहले ही बतानी चाहिए थी। मैंने कई बार आपसे साफ़ साफ़ बताने को बोला था लेकिन आपने नहीं बताया। ख़ैर, बात अगर यही थी तो आपने ये क्यों कहा कि बड़े भैया दादा ठाकुर की बाग डोर सम्हालने के लायक नहीं हैं?"

"मैं ये बात तुम्हें बताना नहीं चाहती थी।" भाभी ने कहा____"इसी लिए तुमसे हर बार सिर्फ यही कहा कि वो इस सबके लायक नहीं हैं।"
"आप भी कमाल करती हैं भाभी।" मैंने कहा____"कम से कम मैं आपको सबसे ज़्यादा समझदार समझता था। मुझे तो समझ में नहीं आ रहा कि दादा ठाकुर ने भी आपको ये बात किसी से न बताने को क्यों कहा और खुद भी अब तक इस बात को छुपाए बैठे हैं। चलो मान लिया कि उन्होंने माँ को बताने से मना किया‌ था क्योंकि वो समझते हैं कि इस बात को जान कर माँ को सदमा लग जाएगा किन्तु बाकी लोगों से इस बारे में बताने में क्या समस्या थी?"

"कुछ तो बात होगी ही वैभव।" भाभी ने संजीदा भाव से कहा____"अन्यथा दादा ठाकुर मुझे इस बात को किसी से भी ना बताने को क्यों कहते और अब मैं चाहती हूं कि तुम भी इस बात का ज़िक्र हवेली में किसी से न करना।"
"ठीक है नहीं करुंगा।" मैंने कहा____"लेकिन मैं अब इस बात को ले कर चुप भी नहीं रहूंगा भाभी। अब मैं अपने बड़े भैया का साया बन कर उनके आस पास ही रहूंगा। मैं भी देखता हूं कि वो कौन सा भगवान है जो उन्हें मुझसे छीन कर ले जाता है।"

मेरी बात सुन कर भाभी की आँखों से आंसू छलक पड़े और वो ख़ुशी के मारे मुझसे लिपट ग‌ईं। मैंने भी उन्हें अपने से छुपका लिया। इस वक़्त मेरे ज़हन में उनके प्रति कोई भी बुरा ख़याल नहीं था बल्कि इस वक़्त मैं उनके लिए बहुत ही संजीदा हो गया था। इतनी बड़ी बात थी और मुझे इस बारे में कुछ पता ही नहीं था। सबके सामने हमेशा हंसती मुस्कुराती रहने वाली मेरी भाभी न जाने कब से अपने अंदर ये दुःख दबाए हुए थीं।

"एक बात बताइए भाभी।" कुछ देर बाद मैंने उन्हें खुद से अलग करते हुए कहा____"अगर गुरु जी को इतना पता था कि बड़े भैया का जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है तो फिर उन्हें ये भी तो पता रहा होगा न कि बड़े भैया के साथ ऐसा क्या होगा जिससे कि वो इस दुनियां से चले जाएंगे? क्या आपने गुरु जी से इस बारे में साफ़ साफ़ नहीं पूछा था?"

"पूछा था।" भाभी ने अपने आँसू पोंछते हुए कहा____"पहले वो बता नहीं रहे थे लेकिन जब मैं पूछती ही रही तो वो बोले कि जब तुम्हारे भैया का वैसा समय आएगा तब उनका स्वास्थ्य बिगड़ जाएगा और वो बिस्तर पर ही कुछ दिन पड़े रहेंगे। उसके बाद उनकी आत्मा नियति के लेख के अनुसार ईश्वर के पास चली जाएगी।"

"उस गुरु जी की ऐसी की तैसी।" मैंने शख़्त भाव से कहा____"ऐसा कुछ नहीं होने दूंगा मैं। अब आप इस बात को ले कर बिल्कुल भी चिंता मत कीजिए। मैं दुनियां के हर वैद्य को ला कर इस हवेली में क़ैद कर दूंगा और उन्हें हुकुम दूंगा कि अगर मेरे बड़े भैया की तबियत ज़रा सी भी ख़राब हुई तो मैं उन सबकी खाल में भूसा भर दूंगा।"

"तुम्हारी ये बातें सुनने के लिए काश इस वक़्त तुम्हारे भैया यहाँ होते।" भाभी ने ख़ुशी से डबडबाई आंखों से मुझे देखते हुए कहा____"तो वो भी जान जाते कि जिस भाई को वो बिल्कुल ही नालायक और ग़ैर ज़िम्मेदार समझते हैं उसके अंदर अपने बड़े भाई के लिए कितना प्रेम है। मैं जानती थी वैभव कि तुम ऊपर से ही इतने शख़्त हो और बुरा बने रहते हो लेकिन अंदर से तुम दादा ठाकुर की ही तरह नरम हो और तुम्हारे अंदर एक अच्छा इंसान भी है। मुझे बहुत ख़ुशी हुई तुम्हारा ये रूप देख कर और अब यही चाहती हूं कि तुम ऐसे ही रहो। जब तुम्हारे बड़े भैया अपने लिए तुम्हारा ये प्रेम देखेंगे तो उनके अंदर से भी तुम्हारे प्रति भरा हुआ गुस्सा निकल जाएगा।"

"मुझे पता है कि वो मुझे शुरू से ही बहुत प्यार करते रहे हैं।" मैंने इस बार हल्की मुस्कान के साथ कहा____"वो प्यार ही था भाभी कि उन्होंने कभी भी मुझ पर गुस्से से हाथ नहीं उठाया। ख़ैर, आप बेफिक्र हो जाइए, मैं बड़े भैया को कुछ नहीं होने दूंगा। अब आप जाइए और नहा धो लीजिए। मैं कुसुम को बोल देता हूं कि वो आपके लिए खाना यहीं पर भेजवा दे।"

"कुसुम को क्यों बोलोगे?" भाभी ने मेरी तरफ देखते हुए कहा___"क्या तुम ख़ुद अपनी भाभी के लिए खाना नहीं ला सकते? आख़िर नाराज़ तो मैं तुमसे ही थी।"
"ठीक है भाभी।" मैंने कहा____"मैं ही आपके लिए खाना ले आऊंगा। अब आप जाइए और नहा धो लीजिए।"

"क्या अपनी भाभी के साथ रंग नहीं खेलोगे?" भाभी ने ये कहा तो मैंने चौंक कर उनकी तरफ देखा। जबकि वो इस बार मुस्कुराते हुए बोलीं____"विभोर और अजीत तो मेरे साथ रंग खेलने से डरते हैं इस लिए वो मुझे रंग लगाने नहीं आते। आज जबकि तुम्हारी वजह से मुझे एक ख़ुशी मिली है तो मैं चाहती हूं कि तुम भी इस ख़ुशी में रंगों का ये त्यौहार मनाओ। वैसे तुम्हारे चेहरे पर लगा हुआ ये रंग बता रहा है कि तुम किसी के साथ होली खेल रहे थे।"

"जी वो कुसुम...।" मैंने ये कहा ही था कि भाभी ने हंसते हुए कहा____"तुम कुसुम के साथ होली खेल रहे थे? तुम भी हद करते हो देवर जी। होली में रंग तो भाभी के साथ खेला जाता है।"

भाभी की बात सुन कर मैं चुप हो गया। असल में मुझे ख़याल आ गया कि अच्छा हुआ भाभी ने मेरी बात काट दी थी वरना मैं तो उन्हें ये बता देने वाला था कि मैं कुसुम की सहेलियों के साथ होली खेल रहा था। मेरी ये बात सुन कर भाभी तुरंत ताड़ जाती कि मैं कुसुम की सहेलियों के साथ किस तरह की होली खेल रहा था।

"क्या हुआ?" मुझे चुप देख भाभी ने कहा____"क्या तुम भी विभोर और अजीत की तरह मेरे साथ होली खेलने से डर रहे हो?"
"बात डर की नहीं है भाभी।" मैंने सहसा झिझकते हुए कहा____"बल्कि बात है आपके मान सम्मान और मर्यादा की। मैं आपकी बहुत इज्ज़त करता हूं और मैं हमेशा यही सोचता हूं कि मेरी वजह से आपके मान सम्मान पर कोई आंच न आए।"

"हां मैं जानती हूं वैभव।" भाभी ने कहा____"मैं जानती हूं कि तुम मेरा बहुत सम्मान करते हो लेकिन मैं ये नहीं जानती कि तुम हमेशा मुझसे दूर दूर क्यों रहते हो? मैंने अक्सर ये महसूस किया है कि जब भी मैं तुमसे बात करती हूं तो तुम बहुत जल्दी मुझसे दूर भागने की कोशिश करने लगते हो। आख़िर इसकी क्या वजह है वैभव?"

"सिर्फ इस लिए कि मेरे द्वारा आपका अपमान न हो और आपका मान सम्मान बना रहे।" मैंने भाभी की तरफ देखते हुए कहा____"आप तो जानती ही हैं भाभी कि मेरा चरित्र कैसा है, इस लिए मैं ये किसी भी कीमत पर नहीं चाहता कि मेरे मन में आपके प्रति एक पल के लिए भी बुरे ख़याल आएं। यही वजह है कि मैं हमेशा आपसे दूर दूर ही रहता हूं।"

भाभी से मैंने सच्चाई बता दी थी और अब मेरा दिल ये सोच कर ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा था कि मेरी बात सुन कर भाभी मेरे बारे में क्या सोचेंगी और क्या कहेंगी मुझसे? इस वक़्त मैं अपने बारे में बहुत ही बुरा महसूस करने लगा था। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि इस बार मामला मेरे खानदान की औरत का था और उस औरत का था जो मेरी नज़र में एक देवी थी।

"मन बहुत चंचल होता है वैभव।" कुछ देर मुझे देखते रहने के बाद भाभी ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"और ये भी सच है कि इंसान का अपने उस चंचल मन पर कोई ज़ोर नहीं होता। बड़े बड़े साधू महात्मा भी उस चंचल मन की वजह से अपना तप और अपना ज्ञान खो देते हैं। हम तो मामूली इंसान हैं फिर हम भला कैसे अपने मन को काबू में रख सकते हैं? आज की दुनियां में पापी और गुनहगार वही माना जाता है जिसका बुरा कर्म लोगों की नज़र में आ जाता है और जिनके पाप और गुनाह लोगों की नज़र में नहीं आते वो पाक़ बने रहते हैं। जबकि सच तो ये है कि आज का हर इंसान हर पल पाप और गुनाह करता है। ज़रूरी नहीं कि पापी और गुनहगार उसी को कहा जाए जिसके ग़लत कर्म लोगों की नज़र में आ जाएं बल्कि पापी और गुनहगार तो वो भी कहलाएंगे जो अपने मन के द्वारा किसी के बारे में ग़लत सोच कर पाप और गुनाह करते हैं। तुम्हारा चरित्र और तुम्हारे कर्म लोगों की नज़र में हैं इस लिए तुम लोगों की नज़र में पापी और गुनहगार हो जबकि मुमकिन है कि तुम्हारी तरह ही पापी और गुनहगार मैं भी होऊं।"

"ये आप क्या कह रही हैं भाभी?" मैंने आश्चर्य से उनकी तरफ देखते हुए कहा____"आप तो देवी हैं भाभी। आप भला पापी और गुनहगार कैसे हो सकती हैं?"

"क्यों नहीं हो सकती देवर जी?" भाभी ने उल्टा सवाल करते हुए कहा____"आख़िर वैसा ही एक चंचल मन मेरे अंदर भी तो है और हर किसी की तरह मेरा भी अपने मन पर कोई ज़ोर नहीं है। हो सकता है कि मेरा मन भी किसी न किसी के बारे में ग़लत सोचता हो। ऐसे में तो मैं भी तुम्हारी तरह पापी और गुनहगार ही हो गई न? तुम तो सिर्फ ये जानते हो कि मैंने अभी तक ऐसे कोई ग़लत कर्म नहीं किए हैं जिसके लिए मुझे पापी या गुनहगार कहा जाए लेकिन जैसा कि मैंने अभी कहा कि पापी या गुनहगार सिर्फ वही लोग नहीं होते जिनके ग़लत कर्म लोगों की नज़र में आ जाते हैं, बल्कि पापी तो वो भी होते हैं जो मन से ग़लत कर्म करते हैं। तुम भला ये कैसे जान सकते हो कि मैंने मन से कोई ग़लत कर्म किया है या नहीं? इस वक़्त तुम या मैं भले ही एक दूसरे के बारे में ग़लत सोचें मगर जब तक ग़लत कर्म दिखेगा नहीं तब तक हम दोनों ही पाक़ और अच्छे बने रहेंगे। ख़ैर छोडो ये सब बातें, तो तुम इस वजह से हमेशा मुझसे दूर दूर रहते थे?"

"जी।" मैंने बस इतना ही कहा।
"मन किसी के काबू में नहीं रहता।" भाभी ने शांत भाव से कहा____"लेकिन इंसान को भटकाने वाले इस मन को भी किसी तरह भटकाना पड़ता है। उसे उस जगह पर क़याम करने से रोकना पड़ता है जहां पर उसके क़याम करने से इंसान ग़लत करने पर मजबूर होने लगता है। आज के युग में जिसने अपने मन को ग़लत जगह पर क़याम करने से रोक लिया वही महान है। ख़ैर, मुझे यकीन है कि अब से सब अच्छा ही होगा।"

मैं तो भाभी की बातें साँसें रोक कर सुन रहा था और सच तो ये था कि मैं उनकी बातें सुनने में जैसे मंत्रमुग्ध ही हो गया था। आज पहली बार ऐसा हुआ था कि मैं उनके पास इतनी देर तक रुका था और उनकी बातें सुन रहा था। इससे पहले जहां मैं अक्सर ये सोचता था कि कितना जल्दी उनसे दूर चला जाऊं वहीं अब मैं ये चाह रहा था कि उनके पास ही रहूं। ये वक़्त और हालात भी बड़े अजीब होते हैं, अक्सर इंसान को ऐसी परिस्थिति में ला कर खड़ा कर देते हैं जिसके बारे में इंसान ने सोचा भी नहीं होता।

"तुम यहीं रुको मैं नीचे से रंग ले कर आती हूं।" भाभी ने मेरी तन्द्रा भंग करते हुए कहा____"अभी शाम नहीं हुई है। इतना तो हमारे पास वक़्त है कि हम देवर भाभी एक दूसरे को रंग लगा सकें।"
"पर भाभी।" मैंने असमंजस में ये कहा तो भाभी ने कहा____"आज होली है इस लिए आज के दिन हर ख़ता सब माफ़ है देवर जी।"

"मैं तो ये कह रहा था कि।" मैंने कहा____"अगर बड़े भैया यहाँ आ गए और उन्होंने मुझे आपके साथ रंग खेलते हुए देख लिया तो कहीं वो गुस्सा न हो जाएं।"
"आज वो यहाँ नहीं आएंगे वैभव।" भाभी ने कहा____"आज वो साहूकारों के लड़कों के साथ होली का आनंद ले रहे होंगे। तुम रुको, मैं रंग ले कर बस थोड़ी ही देर में आ जाऊंगी।"

इतना कहने के बाद भाभी मेरी बात सुने बिना ही कमरे से बाहर निकल ग‌ईं। उनके जाने के बाद मैं कमरे में बुत की तरह खड़ा रह गया। आज भाभी के द्वारा मुझे एक ऐसे सच का पता चला था जिसके बारे में मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था। मेरे बड़े भैया के बारे में कुल गुरु ने भविष्यवाणी करते हुए कहा था कि उनका जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये तक़दीर का कैसा खेल था कि वो मेरे भाई को इस तरह दुनियां से उठा लेने वाली थी और एक सुहागन को भरी जवानी में ही विधवा बना देने का इरादा किए बैठी थी मगर मैंने भी सोच लिया था कि मैं ऐसा होने नहीं दूंगा। मैं गुरु जी की इस भविष्यवाणी को ग़लत कर के रहूंगा।


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Badiya ...
Bhawishya wani bimari se marne ki hai.. matlab koi marega nahi..
 
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