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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 18 9.7%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 21 11.4%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 73 39.5%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 42 22.7%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.8%

  • Total voters
    185

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
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अपडेट 14

हम्म... आखिर वही बात आ गयी जिसका डर था... अनुराधा सब कुछ जान चुकी, वैभव और काकी के सम्बन्धों के बारे में... या यूँ कहें उसने वो खेल अपनी आंखों से देखा...!!

इस प्रकार के दृश्य के बाद अपने आप पर काबू पाना बहुत कठिन होता है... और अनुराधा ने कैसे अपने गुस्से को काबू में किया बड़ी बात है... गुस्सा काबू किया ठीक है.. पर फिर काका की मौत के बाद भी सब रहस्य छुपाये रखा... जबकि उसने अपने दिमाग मे सारा खेल बना लिया था किस आधार पर काका की मौत हुई या यूं कहें हत्या की मुरारी काका की वैभव ने...

फाइनली आज उसने सबकुछ जितना कुछ था गुस्सा निकाल ही दिया अकेला होने पर... शायद उसका मन अब हल्का भी महसूस कर रहा हो.. क्योंकि वो बैभव से ऐसी उम्मीद तो बिल्कुल नही कर सकती थी वो एक दरिंदा तो था पर एक हत्यारा नही हो सकता...

खैर यंहा के माहौल के बाद बीच रास्ते पर बड़े भाई और साहूकारों के बीच आपस मे बात चीत...
मुझे तो शक है बड़े भाई साहूकारों से मिलकर हवेली के खिलाफ षड्यंत्र रचा रहे हों.... और हो न हो इसका आभास दादा ठाकुर को भी हो पर अपने पुत्रों से सीधे कुछ कह भी तो नही सकते वो...!!

वेल बढ़िया अपडेट TheBlackBlood जी
Shukriya swati madam is khubsurat pratikriya ke liye,,,,:hug:
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
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मणिशंकर , हरिशंकर , सूर्यभान , चंद्रभान......नाम से तो लगता है कि ये सब भी राजपूत ही है ।
वैभव सिंह एंग्री यंग मैन की भूमिका निभा रहा है । लगता है जैसे उसके दिल में कोई ज्वालामुखी धधक रहा हो । इतना गुस्सा ! कि अपने बाप को भी नहीं छोड़ा ।
पर इतना गुस्सा क्यों ? सिर्फ चार महीने का कष्ट ही तो भोगा था , इस के लिए इतना गुस्सा ! वैसे ठाकुर साहब ने क्या गलत कहा था , यही तो कहा कि तुमने अभी तक ऐसा कौन सा तीर मार लिया जिसके लिए ठाकुरों को तुम पर गर्व हो ।

जहरीली मुस्कान ! जरूर तात श्री की ही होगी ।
लगता है कोई बड़ी ही साजिश रची जा रही है ।

बेहतरीन अपडेट शुभम भाई ।
आउटस्टैंडिंग अपडेट ।
Shukriya bade bhaiya ji is khubsurat pratikriya ke liye,,,,:hug:
Sach to kadwa hota hi hai, Vaibhav jaisa insaan aise kadwe sach ko itni asaani se hajam nahi kar paya, bas kar liya khud ka bantadhaar,,,,:lol:
 

TheBlackBlood

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☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 16
----------☆☆☆---------



अब तक,,,,,

"हाथ में बंदूख ले कर।" मैंने ब्यंग भाव से मुस्कुराते हुए कहा____"और कुत्तों की फ़ौज ले कर मुझे मत डराइए चाचा जी। वैभव सिंह उस ज़लज़ले का नाम है जिसकी दहाड़ से पत्थरों के भी दिल दहल जाते हैं। ख़ैर आप इन लोगों को ले जाइए क्योंकि इन्हें ही न्याय की ज़रूरत है। दादा ठाकुर का जो भी फैसला हो उसका फ़रमान ज़ारी कर दीजिएगा। वैभव सिंह आपसे वादा करता है कि फ़ैसले का फरमान सुन कर सज़ा के लिए हाज़िर हो जाएगा।"

मेरी बात सुन कर जहां दोनों शाहूकार और उनके बेटे आश्चर्य चकित थे वहीं जगताप चाचा दाँत पीस कर रह ग‌ए। इधर मैं इतना कहने के बाद पलटा और चन्द्रभान की तरफ देख कर मुस्कुराते हुए बोला____"तेरे बाप का वीर्य तो गंदे नाली के पानी से भी ज़्यादा गया गुज़रा निकला रे...चल हट सामने से।"

चन्द्रभान मेरी ये बात सुन कर बुरी तरह तिलमिला कर रह गया जबकि मैं अपने कपड़ों की धूल झाड़ता हुआ आगे बढ़ गया मगर मैं ये न देख सका कि मेरे जाते ही वहां पर किसी के होठों पर बहुत ही जानदार और ज़हरीली मुस्कान उभर आई थी।


अब आगे,,,,,



साहूकारों के लड़कों को पेलने का मौका तो बढ़िया मिला था मुझे लेकिन चाचा जी के आ जाने से सारा खेल बिगड़ गया था। ख़ैर शाम होने वाली थी और आज क्योंकि होलिका दहन था इस लिए गांव के सब लोग उस जगह पर जमा हो जाने वाले थे जहां पर होलिका दहन होना था। हालांकि अभी उसमे काफी वक़्त था मगर मैंने मुंशी की बहू को यही सोच कर बगीचे में मिलने के लिए कहा था कि उसका ससुर यानी कि मुंशी और पति रघुवीर घर से जल्दी ही हवेली के लिए निकल जाएंगे। वैसे भी मैंने मुंशी की गांड में डंडा डाल दिया था कि वो परसों मेरे लिए एक छोटे से मकान का निर्माण कार्य शुरू करवाए। हलांकि हवेली में आज जो कुछ भी हुआ था उससे इसकी संभावना कम ही थी लेकिन फिर भी मुझे उम्मीद थी कि मुंशी कुछ भी कर के दादा ठाकुर को इसके लिए राज़ी कर ही लेगा।

मैं हवेली से गुस्से में आ तो गया था मगर अब मुझे अपने लिए कोई ठिकाना भी खोजना था। हवेली में दादा ठाकुर के सामने जाते ही पता नहीं मुझे क्या हो जाता था कि मैं उनसे सीधे मुँह बात ही नहीं करता था और सिर्फ उन्हीं बस से ही नहीं बल्कि कुसुम के अलावा सबसे मेरा ऐसा ही बर्ताव था। मैं समझ नहीं पा रहा था कि आज कल मुझे इतना गुस्सा क्यों आता है और क्यों मैं अपने घर वालों से सीधे मुँह बात नहीं करता? क्या इसकी वजह ये है कि मैंने चार महीने उस बंज़र ज़मीन में रह कर ऐसी सज़ा काटी है जो मुझे नहीं मिलनी चाहिए थी या फिर इसकी वजह कुछ और भी थी? दूसरी कोई वजह क्या थी इसके बारे में फिलहाल मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था।

मुरारी काका की हत्या का मामला अपनी जगह अभी भी मेरे लिए एक रहस्य के रूप में बना हुआ था और मैं उनके इस मामले पर कुछ कर नहीं पा रहा था। असल में कुछ करूं तो तब जब मुझे कुछ समझ आए या मुझे इसके लिए कुछ करने का मौका मिले। आज अनुराधा से मिला तो उसने जो कुछ कहा उससे तो मेरे लौड़े ही लग गए थे और फिर मैं भी भावना में बह कर उससे ये वादा कर के चला आया कि अब मैं उसे तभी अपनी शक्ल दिखाऊंगा जब मैं उसके पिता के हत्यारे का पता लगा लूंगा। मुझे अब समझ आ रहा था कि इस तरह भावना में बह कर मुझे अनुराधा से ऐसा वादा नहीं करना चाहिए था मगर अब भला क्या हो सकता था? मैं अब अपने ही वादे को तोड़ नहीं सकता था।

मुझे याद आया कि पिता जी ने मुरारी की हत्या की जांच के लिए गुप्त रूप से दरोगा को कहा था तो क्या मुझे इस मामले में दरोगा से मिलना चाहिए? क्या दरोगा इस मामले में मेरी कुछ मदद करेगा? मेरा ख़याल था कि वो मेरी मदद नहीं करेगा क्योंकि उसे दादा ठाकुर ने शख़्त हुकुम दिया होगा कि वो इस मामले में उनके अलावा किसी से कोई ज़िक्र न करे। इसका मतलब इस मामले में जो कुछ करना है मुझे ही करना है मगर कैसे? आख़िर मैं कैसे मुरारी काका के हत्यारे का पता लगाऊं? सोचते सोचते मेरा दिमाग़ फटने लगा तो मैंने सिर को झटका और चलते हुए मुंशी के घर के पास आया।

मुंशी के घर के पास आया तो देखा मुंशी और रघुवीर दोनों बाप बेटे अपने घर के बाहर ही खड़े थे। घर के दरवाज़े पर मुंशी की बीवी प्रभा खड़ी थी जिससे मुंशी कुछ कह रहा था। मैंने कुछ सोचते हुए फ़ौरन ही खुद को पीछे किया और बगल से लगे एक आम के पेड़ के पीछे छुपा लिया। मैं नहीं चाहता था कि इस वक़्त मुंशी और उसके बेटे की नज़र मुझ पर पड़े। इधर पेड़ के पीछे छुपा मैं उन दोनों को ही देख रहा था। कुछ देर मुंशी अपनी बीवी से जाने क्या कहता रहा उसके बाद उसने अपने बेटे रघुवीर को चलने का इशारा किया तो वो अपने बाप के साथ चल पड़ा।

मुंशी और रघुवीर जब काफी आगे निकल गए तो मैं पेड़ के पीछे से निकला और सड़क पर आ गया। मैंने देखा मुंशी के घर का दरवाज़ा बंद हो चुका था। खिड़की से दिए के जलने की रौशनी दिख रही थी मुझे। ख़ैर मैं सड़क पर चलते हुए काफी आगे आ गया और फिर सड़क से उतर कर बाएं तरफ खेत की पगडण्डी पकड़ ली। ये पगडण्डी हमारे बगीचे की तरफ जाती थी जो यहाँ से एक किलो मीटर की दूरी पर था।

पगडण्डी के दोनों तरफ खेत थे। खेतों में गेहू की पकी हुई फसल थी जिसमे कटाई चल रही थी। मैं जानता था कि इस पगडण्डी से खेतों में कटाई करने वाले मजदूरों से मेरी मुलाक़ात हो जाएगी इस लिए मैं जल्दी जल्दी चलते हुए उन खेतों को पार कर रहा था जिन खेतों में फसल की कटाई शुरू थी क्योंकि मजदूर इन्हीं खेतों पर मौजूद थे।

अंधेरा होता तो इसका मुझे फायदा होता किन्तु चांदनी रात थी इस लिए वहां मौजूद मजदूर मुझे देख सकते थे। मैं जल्दी ही वो सारे खेत पार कर के आगे निकल गया। वैसे तो बगीचे में जाने के लिए एक दूसरा रास्ता भी था लेकिन वो थोड़ा दूर था इस लिए मैंने पगडण्डी से बगीचे पर जाना ज़्यादा सही समझा था। यहाँ से जाने में वक़्त भी कम लगता था। पगडण्डी पर चलते हुए मैं कुछ देर में बगीचे के पास पहुंच गया। बगीचे में आम के पेड़ लगे हुए थे और ये बगीचा करीब दस एकड़ में फैला हुआ था। इसी बगीचे के दाहिनी तरफ कुछ दूरी पर एक पक्का मकान भी बना हुआ था जिसमे जगताप चाचा अक्सर रुकते थे।

मैं मकान की तरफ न जा कर बगीचे की तरफ बढ़ गया। मुंशी की बहू रजनी को मैंने इसी बगीचे में जाने कितनी ही बार बुला कर चोदा था। बगीचे में अपने अड्डे पर आ कर मैं एक पेड़ के नीचे बैठ गया। शाम के इस वक़्त यहाँ पर कोई भी आने का साहस नहीं करता था किन्तु मेरी बात अलग थी। मैं मस्त मौला इंसान था और किसी बात से डरता नहीं था।

पेड़ के नीचे बैठा मैं उस सबके बारे में सोचता रहा जो कुछ आज हुआ था। पहले साहूकार हरिशंकर के लड़के मानिक का हाथ तोड़ना, फिर हवेली आ कर दादा ठाकुर से बहस करना, उस बहस में जगताप चाचा जी का मुझे थप्पड़ मारना, उसके बाद गुस्से में हवेली से आ कर मणिशंकर के दोनों बेटों से झगड़ा होना। जगताप चाचा जी अगर न आते तो शायद ये मार पीट आगे भी जारी ही रहती और बहुत मुमकिन था कि इस मार पीट में मेरे साथ या मणिशंकर के लड़कों के साथ बहुत बुरा हो जाता।

मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि जब मेरे घर वालों के साथ मेरे अच्छे रिश्ते नहीं हैं तो बाहर के लोगों की तो बात ही अलग है। आख़िर ऐसा क्या है कि मेरे अपनों के साथ मेरे रिश्ते अच्छे नहीं हैं या मेरी उनसे बन नहीं पाती है? चार महीने पहले भी मैं ऐसा ही था लेकिन पहले आज जैसे हालात बिगड़े हुए नहीं थे। पहले भी दादा ठाकुर का बर्ताव ऐसा ही था जैसा कि आज है मगर उनके अलावा बाकी लोगों का बर्ताव पहले जैसा आज नहीं है। जहां तक मेरा सवाल है मैं पहले भी ऐसा ही था और आज भी वैसा ही हूं, फ़र्क सिर्फ इतना है कि जब मुझे गांव से निष्कासित कर दिया गया तो मेरे अंदर अपनों के प्रति गुस्सा और भी ज़्यादा बढ़ गया। मैं पहले भी किसी की नहीं सुनता था और आज भी किसी की नहीं सुनता हूं। मैं तो वैसा ही हूं मगर क्या हवेली के लोग वैसे हैं? मेरे बड़े भैया का बर्ताव बदल गया है और जगताप चाचा जी के दोनों लड़को का भी बर्ताव बदल गया है। सवाल है कि आख़िर क्यों उन तीनों का बर्ताव बदल गया है? उन तीनों को आख़िर मुझसे क्या परेशानी है?

मेरे ज़हन में कुसुम और भाभी की बातें गूँज उठीं। अपने नटखटपन और अपनी चंचलता के लिए मशहूर कुसुम ने उस दिन गंभीर हो कर कुछ ऐसी बातें कही थी जिनमे शायद गहरे राज़ छुपे थे। भाभी ने तो साफ़ शब्दों में मुझसे कहा था कि उनके पति दादा ठाकुर की जगह लेने के लायक नहीं हैं। सवाल है कि आख़िर क्यों एक पत्नी अपने ही पति के बारे में ऐसा कहेगी और मुझे दादा ठाकुर की जगह लेने के लिए ज़ोर देगी?

मैं ये सब सोचते हुए एक अजीब से द्वन्द में फंस गया था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं आख़िर करूं तो करूं क्या? एक तरफ तो मैं इस सबसे कोई मतलब ही नहीं रखना चाहता था और दूसरी तरफ ये सारे सवाल मुझे गहरे ख़यालों में डूबा रहे थे। एक तरफ मुरारी काका की हत्या का मामला तो दूसरी तरफ हवेली में मेरे अपनों की समस्या और तीसरी तरफ इन साहूकारों का मामला। अगर मानिकचंद्र की बात सच है तो ये भी एक सोचने वाली बात ही होगी कि अचानक ही साहूकारों के मन में ठाकुरों से अपने रिश्ते सुधार लेने का विचार क्यों आया? कहीं सच में ये कोई गहरी साज़िश तो नहीं चल रही ठाकुरों के खिलाफ़? अचानक ही मेरे ज़हन में पिता जी के द्वारा कही गई उस दिन की बात गूँज उठी। अगर उन्हें लगता है कि ऐसा कुछ सच में हो रहा है तो ज़ाहिर है कि यकीनन ऐसा ही होगा।

अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कि तभी एक आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। बगीचे की ज़मीन पर पड़े सूखे पत्ते किसी के चलने से आवाज़ करते सुनाई देने लगे थे। मैं एकदम से सतर्क हो गया। सतर्क हो जाने का कारण भी था क्योंकि आज कल सच में मेरा वक़्त ख़राब चल रहा था।

"छोटे ठाकुर।" तभी मेरे कानों में धीमी मगर मीठी सी आवाज़ पड़ी। उस आवाज़ को मैं फ़ौरन ही पहचान गया। ये आवाज़ मुंशी की बहू रजनी की थी। जो अँधेरे में मुझे धीमी आवाज़ में छोटे ठाकुर कह कर पुकार रही थी।

रजनी की आवाज़ पहचानते ही मैं तो खुश हुआ ही किन्तु मेरा लौड़ा भी खुश हो गया। कमीना पैंट के अंदर ही कुनमुना उठा था, जैसे उसने भी अपनी रानी को सूंघ लिया हो।

"बड़ी देर लगा दी आने में।" मैंने उठ कर उसके क़रीब जाते हुए कहा____"मैं कब से तेरे आने की राह ताक रहा था।"
"क्या करूं छोटे ठाकुर।?" रजनी मेरी आवाज़ सुन कर मेरी तरफ बढ़ते हुए बोली____"मां जी की वजह से आने में देरी हो गई।"

"ऐसा क्यों?" मैंने उसके पास पहुंचते ही बोला____"क्या तेरी सास ने तुझे खूंटे से बांध दिया था?"
"नहीं ऐसी बात तो नहीं है।" रजनी ने अपने हाथ में लिए पानी से भरे डोलचे को ज़मीन पर रखते हुए कहा____"वो दिशा मैदान के लिए मुझे अपने साथ ले जाना चाहतीं थी।"

"अच्छा फिर?" मैंने उसके चेहरे को अपनी हथेलियों में लेते हुए कहा____"फिर कैसे मना किया उसे?"
"मैंने उनसे कहा कि मुझे अभी हगास नहीं लगी है।" रजनी ने हंसते हुए कहा_____"इस लिए आप जाओ और जब मुझे हगास लगेगी तो मैं खुद ही चली जाऊंगी।"

"अच्छा फिर क्या कहा तेरी सास ने?" मैंने रजनी की एक चूची को उसके ब्लॉउज के ऊपर से ही मसलते हुए कहा तो रजनी सिसकी लेते हुए बोली____"क्या कहेंगी? गाली दे कर हगने चली गईं और फिर जब वो वापस आईं तो मैंने कहा कि माँ जी मुझे भी हगास लग आई है। मेरी बात सुन कर माँ जी ने मुझे गरियाते हुए कहा भोसड़ी चोदी जब पहले चलने को कह रही थी तब तो बोल रही थी कि हगास ही नहीं लगी है। अब अकेले ही जा और हग के आ।"

मैं रजनी की बातें सुन कर हंसते हुए बोला____"अच्छा तो इस लिए आने में देर हो गई तुझे?"
"और नहीं तो क्या?" रजनी ने मेरे सीने में हाथ फेरते हुए कहा____"वरना मैं तो यही चाहती थी कि उड़ के जल्दी से आपके पास पहुंच जाऊं और फिर आपका...!"

"आपका क्या??" मैंने उसके चेहरे को अपने चेहरे की तरफ उठा कर कहा____"खुल कर बोल न?"
"और फिर आपका ये मोटा तगड़ा लंड।" रजनी ने मेरे पैंट के ऊपर से मेरे लंड को सहलाते हुए कहा____"अपनी प्यासी चूत में डलवा कर आपसे चुदाई करवाऊं। शशशश छोटे ठाकुर आज ऐसे चोदिए मुझे कि चार महीने की प्यास आज ही बुझ जाए और मेरी तड़प भी मिट जाए।"

रजनी बाइस साल की कड़क माल थी। साल भर पहले उसकी शादी रघुवीर से हुई थी। पहले तो मेरी नज़र उस पर नहीं पड़ी थी लेकिन जब पड़ी तो मैंने उसे अपने नीचे लेटाने में देर नहीं लगाई। मुँह दिखाई में चांदी की एक अंगूठी उसे दी तो वो लट्टू हो गई थी मुझ पर। रही सही कसर अंजाने में मुंशी की बीवी ने मेरी तारीफें कर के पूरी कर दी थी।

"क्या सोचने लगे छोटे ठाकुर?" रजनी की इस आवाज़ से मैं ख्यालों से बाहर आया और उसकी तरफ देखा तो उसने कहा____"मुझे यहाँ से जल्दी जाना भी होगा इस लिए जो करना है जल्दी से कर लीजिए।"

रजनी की बात सुन कर मैंने उसके चेहरे को ऊपर किया और अपने होठ उसके दहकते होठों में रख दिए। रजनी मुझसे जोंक की तरह लिपट गई और खुद भी मेरे होंठों को चूमने चूसने लगी। मैंने अपना एक हाथ बढ़ा कर उसकी एक चूची को पकड़ लिया और मसलने लगा जिससे उसकी सिसकियां मेरे मुँह में ही दब कर रह ग‌ईं।

कुछ देर हम दोनों एक दूसरे के होठों को चूमते रहे उसके बाद रजनी झट से नीचे बैठ गई और मेरे पैंट को खोलने लगी। कुछ ही पलों में उसने मेरे पैंट को खोल कर और मेरे कच्छे को नीचे कर के मेरे नाग की तरह फुँकारते हुए लंड को पकड़ लिया।

"आह्ह छोटे ठाकुर।" मेरे लंड को सहलाते हुए उसने सिसकी लेते हुए कहा____"आपके इसी लंड के लिए तो चार महीने से तड़प रही थी मैं। आज इसे जी भर के प्यार करुँगी और इसे अपनी चूत में डलवा कर इसकी सवारी करुंगी।"

कहने के साथ ही रजनी ने अपना चेहरा आगे कर के मेरे लंड को अपने मुँह में लपक लिया। उसके कोमल और गरम मुँह में जैसे ही मेरा लंड गया तो मेरे जिस्म में मज़े की लहर दौड़ ग‌ई। मेरा लंड इस वक़्त अपने पूरे शबाब पर था और उसकी मुट्ठी में समां नहीं रहा था। लंड का टोपा उसके मुख में था जिसे वो जल्दी जल्दी अपने सिर को आगे पीछे कर के चूसे जा रही थी। मैंने मज़े के तरंग में अपने हाथों से उसके सिर को पकड़ा और अपने लंड की तरफ खींचा जिससे मेरा लंड उसके मुख में और भी अंदर घुस गया। मोटा लंड रजनी के मुख में गया तो वो गूं गूं की आवाज़ें निकालने लगी।

मुझे इतना मज़ा आ रहा था कि मैं रजनी का सिर पकड़ कर उसके मुख में अपने लैंड को और भी अंदर तक घुसेड़ता ही जा रहा था। मुझे इस बात का अब होश ही नहीं रह गया था कि मेरे द्वारा ऐसा करने से रजनी की हालत कितनी ख़राब हो गई होगी। मैं तो रजनी के मुख को उसकी चूत समझ कर ही अपने लंड को और भी अंदर तक पेलता जा रहा था। इधर रजनी बुरी तरह छटपटाने लगी थी और अपने सिर को पीछे की तरफ खींच लेने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रही थी जबकि मैं चेहरा ऊपर किए और अपनी आँखे मूंदे पूरे ज़ोर से उसका सिर पकड़े अपनी कमर हिलाए जा रहा था।

रजनी की हालत बेहद नाज़ुक हो चली थी। जब उसने ये जान लिया कि अब वो मेरी पकड़ से अपना सिर पीछे नहीं खींच सकती तो उसने मेरी जांघ पर ज़ोर से च्युंटी काटी जिससे मैं एकदम से चीख पड़ा और झट से अपना लंड उसके मुख से निकाल कर पीछे हट गया।

"मादरचोद साली रंडी।" फिर मैंने उसे गाली देते हुए कहा____"च्युंटी क्यों काटी मुझे?"
"म..मैं..मैं क्या करती छोटे ठाकुर?" रजनी ने बुरी तरह हांफते हुए और खांसते हुए कहा____"अगर मैं ऐसा न करती तो आप मेरी जान ही ले लेते।"

"ये क्या बकवास कर रही है तू?" मैं एकदम से चौंकते हुए बोला____"मैं भला तेरी जान क्यों लूँगा?"
"आपको तो अपना लंड मेरे मुँह में डाल कर मेरा मुंह चोदने में मज़ा आ रहा था।" रजनी ने अपनी उखड़ी साँसों को सम्हालते हुए कहा____"मगर आप अपने मज़े में ये भूल गए थे कि आप अपने इस मोटे लंड को मेरे मुँह में गले तक उतार चुके थे जिससे मैं सांस भी नहीं ले पा रही थी। थोड़ी देर और हो जाती तो मैं तो मर ही जाती। आप बहुत ज़ालिम हैं छोटे ठाकुर। आपको अपने मज़े के आगे दूसरे की कोई फ़िक्र ही नहीं होती।"

रजनी की बातें सुन कर जैसे अब मुझे बोध हुआ था कि मज़े के चक्कर में मुझसे ये क्या हो गया था। मुझे अपनी ग़लती का एहसास हुआ और मैंने रजनी को उसके दोनों कन्धों से पकड़ कर ऊपर उठाया और फिर उसके चेहरे को अपनी दोनों हथेलियों में ले कर कहा____"मुझे माफ़ कर दे रजनी। मैं सच में ये भूल ही गया था कि मैं मज़े में क्या कर रहा था।"

"आप नहीं जानते कि उस वक़्त मेरी हालत कितनी ख़राब हो गई थी।" रजनी ने बड़ी मासूमियत से कहा____"मैं ये सोच कर बुरी तरह घबरा भी गई थी कि कहीं मैं सच में न मर जाऊं।"
"मैंने कहा न कि मुझसे भूल हो गई मेरी जान।" मैंने रजनी के दाएं गाल को प्यार से चूमते हुए कहा____"अब दुबारा ऐसा नहीं होगा।"

रजनी मेरी बात सुन कर मुस्कुराई और फिर मेरे सीने से छुपक ग‌ई। कुछ पलों तक वो मुझसे ऐसे ही छुपकी रही फिर मैंने उसे खुद से अलग किया और उसके चेहरे को पकड़ कर उसके होठों पर अपने होंठ रख दिए। अब मैं अपना होश नहीं खोना चाहता था। इस लिए बड़े प्यार से रजनी के होठों को चूमने लगा। रजनी खुद भी मेरा साथ देने लगी थी। मैंने अपना एक हाथ बढ़ा कर रजनी के ब्लॉउज के बटन खोले और उसकी दोनों मुलायम चूचियों को बाहर निकाल कर एक चूंची को मसलते हुए दूसरी चूंची को अपने मुँह में भर लिया।

रजनी के सीने के उभार मेरे हाथ में पूरी तरह समां रहे थे और मैं उन्हें सहलाते हुए मुँह में भर कर चूमता भी जा रहा था। रजनी मज़े में सिसकारियां भरने लगी थी और अपने एक हाथ से मेरे सिर को अपनी चूंची पर दबाती भी जा रही थी। मैंने काफी देर तक रजनी की चूचियों को मसला और उसके निप्पल को मुँह में भर कर चूसा। उसके बाद मैंने रजनी को अपनी साड़ी उठाने को कहा तो उसने दोनों हाथों से अपनी साड़ी उठा कर पलट गई।

पेड़ पर अपने दोनों हाथ जमा कर रजनी झुक गई थी। उसकी साड़ी और पेटीकोट उसकी कमर तक उठा हुआ था। मैंने आगे बढ़ कर अँधेरे में ही रजनी की चूत पर अपने लंड को टिकाया और फिर उसकी कमर पकड़ कर अपनी कमर को आगे की तरफ ठेल दिया जिससे मेरा मोटा लंड रजनी की चूत में समाता चला गया। लंड अंदर गया तो रजनी के मुख से आह निकल गई। मुझे रजनी की चूत इस बार थोड़ी कसी हुई महसूस हुई थी। शायद चार महीने मेरे लंड को न लेने का असर था। ख़ैर लंड को उसकी चूत के अंदर डालने के बाद रजनी की कमर को पकड़े मैंने धक्के लगाने शुरू कर दिए।

बगीचे के शांत वातावरण में जहां एक तरफ मेरे द्वारा लगाए जा रहे धक्कों की थाप थाप करती आवाज़ गूँज रही थी वहीं हर धक्के पर रजनी की आहें और सिसकारियां गूँज रही थीं। रजनी मज़े में आहें भरते हुए मुझसे जाने क्या क्या कहती जा रही थी। इधर मैं उसकी बातें सुन कर दोगुने जोश में धक्के लगाये जा रहा था। काफी दिनों बाद आज चूत मिली थी मुझे।

"आह्ह छोटे ठाकुर इसी के लिए तो तड़प रही थी इतने महीनों से।" रजनी अपनी उखड़ी हुई साँसों को सम्हालते हुए और सिसकियां लेते हुए बोली____"आह्ह आज मेरे चूत की प्यास बुझा दीजिए अपने इस हलब्बी लंड से। आह्ह्ह और ज़ोर से छोटे ठाकुर आह्ह्ह बहुत मज़ा आ रहा है। काश! आपके जैसा लंड मेरे पति का भी होता।"

"साली रांड ले और ले मेरा लंड अपनी बुर में।" मैंने हचक हचक के उसकी चूत में अपना लंड पेलते हुए कहा____"तेरे पति का अगर मेरे जैसा लंड होता तो क्या तू मुझसे चुदवाती साली?"
"हां छोटे ठाकुर।" रजनी ने ज़ोर ज़ोर से आहें भरते हुए कहा____"मैं तब भी आपसे चुदवाती। भला आपके जैसा कोई चोद सकता है क्या? आप तो असली वाले मरद हैं छोटे ठाकुर। मेरा मन करता है कि आह्ह्ह शशशश दिन रात आपके इस मोटे लंड को अपनी बुर में डाले रहूं।"

रजनी की बातें सुन कर मैं और भी जोश में उसकी बुर में अपना लंड डाले उसे चोदने लगा। मेरे धक्के इतने तेज़ थे कि रजनी ज़्यादा देर तक पेड़ का सहारा लिए झुकी न रह सकी। कुछ ही देर में उसकी टाँगे कांपने लगीं और एकदम से उसका जिस्म अकड़ गया। झटके खाते हुए रजनी बड़ी तेज़ी से झड़ रही थी जिससे उसकी बुर के अंदर समाया हुआ मेरा लंड उसके चूत के पानी से नहा गया और बुर में बड़ी आसानी से फच्च फच्च की आवाज़ करते हुए अंदर बाहर होने लगा।

रजनी झड़ने के बाद एकदम से शांत पड़ गई थी और जब उससे झुके न रहा गया तो मैंने उसकी चूत से लंड निकाल कर उसे वहीं पर नीचे सीधा लिटा दिया। रजनी को सीधा लेटाने के बाद मैंने उसकी दोनों टाँगें फैलाई और टांगों के बीच में आते हुए उसकी चूत में लंड पेल दिया रजनी ने ज़ोर की सिसकी ली और इधर मैं उसकी दोनों टांगों को अपने कन्धों पर टिका कर ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाने लगा। बगीचे में पेड़ों की वजह से अँधेरा था इस लिए मुझे उसका चेहरा ठीक से दिख तो नहीं रहा था मगर मैं अंदाज़ा लगा सकता था कि रजनी अपनी चुदाई का भरपूर मज़ा ले रही थी। कुछ ही देर में रजनी के शिथिल पड़े जिस्म पर फिर से जान आ गई और वो मुख से आहें भरते हुए फिर से बड़बड़ाने लगी।

मैं कुछ पल के लिए रुका और झुक कर रजनी की एक चूंची के निप्पल को मुँह में भर लिया जबकि दूसरी चूंची को एक हाथ से मसलने लगा। मेरे ऐसा करने पर रजनी मेरे सिर को पकड़ कर अपनी चूंची पर दबाने लगी। वो फिर से गरम हो गई थी। कुछ देर मैंने बारी बारी से उसकी दोनों चूचियों के निप्पल को चूसा और मसला उसके बाद चेहरा उठा कर फिर से धक्के लगाने लगा।

रजनी की चूंत में मेरा लंड सटासट अंदर बाहर हो रहा था और रजनी मज़े में आहें भर रही थी। मुझे महसूस हुआ कि मेरे जिस्म में दौड़ते हुए खून में उबाल आने लगा है और अद्भुत मज़े की तरंगे मेरे जिस्म में दौड़ते हुए मेरे लंड की तरफ बढ़ती जा रही हैं। मैं और तेज़ी से धक्के लगाने लगा। रजनी बुरी तरह सिसकारियां भरने लगी और तभी फिर एकदम से उसका जिस्म अकड़ने लगा और वो झटके खाते हुए फिर से झड़ने लगी। इधर मैं भी अपने चरम पर था। इस लिए पूरी ताकत से धक्के लगाते हुए आख़िर मैं भी मज़े के आसमान में उड़ने लगा और मेरे लंड से मेरा गरम गरम वीर्य रजनी की चूंत की गहराइयों में उतरता चला गया। झड़ने के बाद मैं बुरी तरह हांफते हुए रजनी के ऊपर ही ढेर हो गया। चुदाई का तूफ़ान थम गया था। कुछ देर मैं यूं ही रजनी के ऊपर ढेर हुआ अपनी उखड़ी हुई साँसों को शांत करता रहा उसके बाद मैं उठा और रजनी की चूंत से अपना लंड बाहर निकाल लिया। रजनी अभी भी वैसे ही शांत पड़ी हुई थी।

"अब ज़िंदा लाश की तरह ही पड़ी रहेगी या उठेगी भी?" मैंने अपने पैंट को ठीक से पहनते हुए रजनी से कहा तो उसने थकी सी आवाज़ में कहा____"आपने तो मुझे मस्त कर दिया छोटे ठाकुर। मज़ा तो बहुत आया लेकिन अब उठने की हिम्मत ही नहीं है मुझ में।"

"ठीक है तो यहीं पड़ी रह।" मैंने कहा____"मैं तो जा रहा हूं अब।"
"मुझे ऐसे छोड़ के कैसे चले जाएंगे आप?" रजनी ने कराहते हुए कहा, शायद वो उठ रही थी जिससे उसकी कराह निकल गयी थी, बोली____"बड़े स्वार्थी हैं आप। अपना मतलब निकल गया तो अब मुझे छोड़ कर ही चले जाएंगे?"

"मतलब सिर्फ मेरा ही बस तो नहीं निकला।" मैंने उसका हाथ पकड़ कर उसे उठाते हुए कहा____"तेरा भी तो निकला ना? तूने भी तो मज़े लिए हैं।"
"वैसे आज आपको हो क्या गया था?" खड़े होने के बाद रजनी ने अपनी साड़ी को ठीक करते हुए कहा____"इतनी ज़ोर ज़ोर से मेरी बुर चोद रहे थे कि मेरी हालत ही ख़राब हो गई।"

"तूने ही तो कहा था कि चार महीने की प्यास आज ही बुझा दूं।" मैंने उसे खींच कर अपने से छुपकाते हुए कहा____"इस लिए वही तो कर रहा था। वैसे अगर तेरी प्यास न बुझी हो तो बता दे अभी। मैं एक बार फिर से तेरी बुर में अपना लंड डाल कर तेरी ताबड़तोड़ चुदाई कर दूंगा।"

"ना बाबा ना।" रजनी ने झट से कहा____"अब तो मुझ में दुबारा करने की हिम्मत ही नहीं है। आपके मोटे लंड ने तो एक ही बार में मेरी हालत ख़राब कर दी है। अब अगर फिर से किया तो मैं घर भी नहीं जा पाऊंगी।"

रजनी की बात सुन कर मैंने उसके चेहरे को अपने हाथों में लिया और उसके होठों को चूमने लगा। उसके शहद जैसे मीठे होठों को मैंने कुछ देर चूमा चूसा और फिर उसकी चूचियों को मसलते हुए उसे छोड़ दिया।

"लगता है आपका अभी मन नहीं भरा है।" रजनी ने अपने ब्लॉउज के बटन लगाते हुए कहा____"लेकिन मैं बता ही चुकी हूं कि अब दुबारा करने की मुझ में हिम्मत नहीं है। अभी भी ऐसा महसूस हो रहा है जैसे आपका मोटा लंड मेरी बुर में अंदर तक घुसा हुआ है।"

"तुझे चोदने से मेरा मन कभी नहीं भरेगा मेरी जान।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"तू कह रही है कि अब तुझमे हिम्मत ही नहीं है चुदवाने की वरना मैं तो एक बार और तुझे जी भर के चोदना चाहता था।"

"रहम कीजिए छोटे ठाकुर।" रजनी दो क़दम पीछे हटते हुए बोली____"फिर किसी दिन मुझे चोद लीजिएगा लेकिन आज नहीं। वैसे भी बहुत देर हो गई है। माँ जी मुझ पर गुस्सा भी करेंगी।"

"चल ठीक है जा तुझे बक्श दिया।" मैंने कहा____"वैसे आज मैं तेरे ही घर में रुकने वाला हूं।"
"क्या???" रजनी चौंकते हुए बोली____"मेरा मतलब है कि क्या सच में?"

"हां मेरी जान।" मैंने कहा____"अब मैं हवेली नहीं जाऊंगा। आज की रात तेरे ही घर में गुज़ारुंगा। कल कोई दूसरा ठिकाना देखूंगा।"
"ऐसा क्यों कह रहे हैं आप?" रजनी ने हैरानी से पूछा____"और हवेली क्यों नहीं जाएंगे आप?"

"बस मन भर गया है हवेली से।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा____"असल में हवेली मेरे जैसे इंसान के लिए है ही नहीं। ख़ैर छोड़ ये बात और निकल यहाँ से। तेरे घर पहुंचने के बाद मैं भी कुछ देर में आ जाऊंगा।"

मैंने रजनी को घर भेज दिया और खुद बगीचे से निकल कर उस तरफ चल दिया जहां पर मकान बना हुआ था। मकान के पास आ कर मैं चबूतरे पर बैठ गया। रजनी को छोड़ने के बाद मेरे अंदर की कुछ गर्मी निकल गई थी और अब ज़हन कुछ शांत सा लग रहा था। अभी मैं रजनी के बारे में सोच ही रहा था कि तभी किसी चीज़ की आहट को सुन कर मैं चौंक पड़ा।

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DARK WOLFKING

Supreme
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waise ek baat achchi lagi ki writer ne sex scene ko thoda bahut reality me dikhaya ..

warna bagiche me sex ,rajni ko ghar jaane ki jaldi ...

aur aise me agar ye dikhaya hota ki rajni ko pura nanga karke choda 🤣🤣.... to usme koi maja nahi aata ..
 

Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
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सातवाँ भाग
मुरारी की हत्या ने वैभव को एकदम उलझाकर रख दिया है। मुरारी की हत्या होना और उसी रात को उसको किसी व्यक्ति का ठोकर मारना इस हत्या की गुत्थी को उलझ रहा था ऊपर से दरोगा का रिपोर्ट लिखवाने के बावजूद मौकाए वारदात पर न आना इस हत्या में किसी बड़े व्यक्ति के शामिल होने की ओर इशारा कर रहा था🤔🤔🤔
इस गांव में एक ही व्यक्ति थे जिनकी पहुँच दरोगा तक थी वो थे ठाकुर प्रताप सिंह। फिर चार महीने बाद मम्मी पापा भाई सभी के आने से वैभव को ये हत्या इत्तेफाक नहीं लग रही थी।
वैभव के दोस्त उससे मिलने आए लेकिन वैभव उन्हें देखकर भड़क गया और उन्हें मारने लगा। वैसे दोस्त वही है जो कठिन परिस्थितियों में भी साथ डटा रहे न कि साथ छोड़ दे।😗😗😗
आलू और भांटा का भरता, सुनकर मुंह में पानी आ गया। गांव की याद आ गई। ये सब गांव में ही खाने को मिलता है। उपली में भूँजा हुआ आलू और भाँटा। आहहह। मज़ा आ जाता है।😂😂😂🤣
वैभव अपने दिमाग के घोड़े दौड़ा रहा है। कभी वो अपने बाप को शक की नज़र से देखता है मुरारी की हत्या के लिए तो कभी मुरारी के भाई जगन को,लेकिन किसी निर्णय पर नहीं पहुँच पा रहा है।🤔🤔🤔
मुरारी की हत्या एक रहस्य बनकर रह गई है और इस रहस्य में उलझ गया है वैभव। देखते हैं अब वैभव क्या करता है।
मस्त कहानी है।
 
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