Naik
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Behtareen zaberdast shaandaar lajawab update bhai☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 12
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अब तक,,,,,
मैं हवेली से बाहर आया और कुछ ही दूरी पर खड़ी जीप की तरफ बढ़ चला। मेरे ज़हन में अभी भी यही सवाल था कि पिता जी मुझे अपने साथ कहां लिए जा रहे हैं? मैंने तो आज के दिन के लिए कुछ और ही सोच रखा था। ख़ैर जीप में चालक की शीट पर बैठ कर मैंने चाभी लगा कर जीप को स्टार्ट किया और उसे आगे बढ़ा कर हवेली के मुख्य द्वार के सामने ले आया। कुछ ही देर में पिता जी आए और जीप में मेरे बगल से बैठते ही बोले चलो तो मैंने बिना कोई सवाल किए जीप को आगे बढ़ा दिया।
अब आगे,,,,,
मैं ख़ामोशी से जीप चलाते हुए गांव से बाहर आ गया था। मेरे कुछ बोलने का तो सवाल ही नहीं था किन्तु पिता जी भी ख़ामोश थे और उनकी इस ख़ामोशी से मेरे अंदर की बेचैनी और भी ज़्यादा बढ़ती जा रही थी। मैं जीप तो ख़ामोशी से ही चला रहा था किन्तु मेरा ज़हन न जाने क्या क्या सोचने में लगा हुआ था।
"हम शहर चल रहे हैं।" गांव के बाहर एक जगह दो तरफ को सड़क लगी हुई थी और जब मैंने दूसरे गांव की तरफ जीप को मोड़ना चाहा तो पिता जी ने सपाट भाव से ये कहा था। इस लिए मैंने जीप को दूसरे वाले रास्ते की तरफ फ़ौरन ही घुमा लिया।
"हम चाहते हैं कि अब तक जो कुछ भी हुआ है।" कुछ देर की ख़ामोशी के बाद पिता जी ने कहा____"उस सब को भुला कर तुम एक नए सिरे से अपना जीवन शुरू करो और कुछ ऐसा करो जिससे हमें तुम पर गर्व हो सके।"
पिता जी ये कहने के बाद ख़ामोश हुए तो मैं कुछ नहीं बोला। असल में मैं कुछ बोलने की हालत में था ही नहीं और अगर होता भी तो कुछ नहीं बोलता। इस वक़्त मैं सिर्फ ये जानना चाहता था कि पिता जी मुझे अपने साथ शहर किस लिए ले जा रहे थे?
"तुम जिस उम्र से गुज़र रहे हो।" मेरे कुछ न बोलने पर पिता जी ने सामने सड़क की तरफ देखते हुए फिर से कहा____"उस उम्र से हम भी गुज़र चुके हैं और यकीन मानो हमने अपनी उस उम्र में ऐसा कोई भी काम नहीं किया था जिससे कि हमारे पिता जी के मान सम्मान पर ज़रा सी भी आंच आए। शोलों की तरह भड़कती हुई ये जवानी हर इंसान को अपने उम्र पर आती है लेकिन इसका मतलब ये हरगिज़ नहीं होना चाहिए कि हम जवानी के उस जोश में अपने होशो हवास ही खो बैठें। किसी चीज़ का बस शौक रखो नाकि किसी चीज़ के आदी बन जाओ। उम्र के हिसाब से हर वो काम करो जो करना चाहिए लेकिन ज़हन में ये ख़याल सबसे पहले रहे कि हमारे उस काम से ना तो हमारे मान सम्मान पर कोई दाग़ लगे और ना ही हमारे खानदान की प्रतिष्ठा पर कोई धब्बा लगे। हम इस गांव के ही नहीं बल्कि आस पास के गांवों के भी राजा हैं और राजा का फर्ज़ होता है अपने आश्रित अपनी प्रजा का भला करना ना कि उनका शोषण करना। अगर हम ही उन पर अत्याचार करेंगे तो प्रजा बेचारी किसको अपना दुखड़ा सुनाएगी? जो ख़ुशी किसी को दुःख पहुंचा कर मिले वो ख़ुशी किस काम की? कभी सोचा है कि दो पल की ख़ुशी के लिए तुमने कितनों का दिल दुखाया है और कितनों की बद्दुआ ली है? मज़ा किसी चीज़ को हासिल करने में नहीं बल्कि किसी चीज़ का त्याग और बलिदान करने में है। असली आनंद उस चीज़ में है जिसमे हम किसी के दुःख को दूर कर के उसे दो पल के लिए भी खुश कर दें। जब हम किसी के लिए अच्छा करते हैं या अच्छा सोचते हैं तब हमारे साथ भी अच्छा ही होता है। अपनी प्रजा को अगर थोड़ा सा भी प्यार दोगे तो वो तुम्हारे लिए अपनी जान तक न्योछावर कर देंगे।"
पिता जी ने लम्बा चौड़ा भाषण दे दिया था और मैं ये सोचने लगा था कि क्या यही सब सुनाने के लिए वो मुझे अपने साथ ले कर आए हैं? हलांकि उनकी बातों में दम तो था और यकीनन वो सब बातें अपनी जगह बिलकुल ठीक थीं किन्तु वो सब बातें मेरे जैसे इंसान के पल्ले इतना जल्दी भला कहां पड़ने वाली थी? ख़ैर अब जो कुछ भी था सुनना तो था ही क्योंकि अपने पास दूसरा कोई विकल्प ही नहीं था।
"ख़ैर छोडो इन सब बातों को।" पिता जी ने मेरी तरफ एक नज़र डालते हुए कहा____"तुम अब बच्चे नहीं रहे जिसे समझाने की ज़रूरत है। वैसे भी हमने तो अब ये उम्मीद ही छोड़ दी है कि हमारी अपनी औलाद कभी हमारी बात समझेगी। एक पिता जब अपनी औलाद को सज़ा देता है तो असल में वो खुद को ही सज़ा देता है क्योंकि सज़ा देने के बाद जितनी पीड़ा उसकी औलाद को होती है उससे कहीं ज़्यादा पीड़ा खुद पिता को भी होती है। तुम ये बात अभी नहीं समझोगे, बल्कि तब समझोगे जब तुम खुद एक बाप बनोगे।"
पिता जी की बातें कानों के द्वारा दिलो दिमाग़ में भी उतरने लगीं थी और मेरे न चाहते हुए भी वो बातें मुझ पर असर करने लगीं थी। ये समय का खेल था या प्रारब्ध का कोई पन्ना खुल रहा था?
"हम तुम्हें ये समझाना चाहते हैं कि आज कल समय बहुत ख़राब चल रहा है।" थोड़ी देर की चुप्पी के बाद पिता जी ने फिर कहा____"इस लिए सम्हल कर रहना और सावधान भी रहना। गांव के साहूकारों की नई पौध थोड़ी अलग मिजाज़ की है। हमें अंदेशा है कि वो हमारे ख़िलाफ़ कोई जाल बुन रहे हैं और निश्चय ही उस जाल का पहला मोहरा तुम हो।"
पिता जी की ये बात सुन कर मैं मन ही मन बेहद हैरान हुआ। मन में सवाल उभरा कि ये क्या कह रहे हैं पिता जी? मेरे ज़हन में तो साहूकारों का ख़याल दूर दूर तक नहीं था और ना ही मैं ये सोच सकता था कि वो लोग हमारे ख़िलाफ़ कुछ सोच सकते हैं।
"हम जानते हैं कि तुम हमारी इन बातों से बेहद हैरान हुए हो।" पिता जी ने कहा____"लेकिन ये एक कड़वा सच हो सकता है। ऐसा इस लिए क्योंकि अभी हमें इस बात का सिर्फ अंदेशा है, कोई ठोस प्रमाण नहीं है हमारे पास। हलांकि सुनने में कुछ अफवाहें आई हैं और उसी आधार पर हम ये कह रहे हैं कि तुम उनके जाल का पहला मोहरा हो सकते हो। हमें लगता है कि मुरारी की हत्या किसी बहुत ही सोची समझी साज़िश का नतीजा है। मुरारी की हत्या में तुम्हें फसाना भी उनकी साज़िश का एक हिस्सा है। हमें हमारे आदमियों ने सब कुछ बताया था इस लिए हम दरोगा से मिले और उससे इस बारे में पूछतांछ की मगर उसने भी फिलहाल अनभिज्ञता ही ज़ाहिर की। हलांकि उसने हमें बताया था कि मुरारी का भाई जगन उसके पास रपट लिखवाने आया था। जगन के रपट लिखवाने पर दरोगा मुरारी की हत्या के मामले की जांच भी करने जाने वाला था मगर हमने उसे जाने से रोक दिया। हम समझ गए थे कि मुरारी की हत्या का आरोप तुम पर लगाया जायेगा इसी लिए हमने दरोगा को इस मामले को हाथ में लेने से रोक दिया था। हम ये तो जानते थे कि तुमने कुछ नहीं किया है मगर शक की बिना पर दरोगा तुम्हें पकड़ ही लेता और हम ये कैसे चाह सकते थे कि ठाकुर खानदान का कोई सदस्य पुलिस थाने की दहलीज़ पर कदम भी रखे।"
"तो आपके कहने पर दरोगा जगन काका के रपट लिखवाने पर भी नहीं आया था?" मैंने पहली बार उनकी तरफ देखते हुए कहा____"आपको नहीं लगता कि ऐसा कर के आपने ठीक नहीं किया है? अगर मुरारी काका की हत्या का आरोप मुझ लगता तो लगने देते आप। दरोगा तो वैसे भी हत्या के मामले की जांच करता और देर सवेर उसे पता चल ही जाता कि हत्या मैंने नहीं बल्कि किसी और ने की है।"
"तुम क्या समझते हो कि हमने दरोगा को मुरारी की हत्या की जांच करने से ही मना कर दिया था?" पिता जी ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"हमने तो उसे सिर्फ मुरारी के घर न जाने के लिए कहा था। बाकी मुरारी की हत्या किसने की है इसका पता लगाने के हमने खुद उसे कहा था और वो अपने तरीके से हत्या की जांच भी कर रहा है।"
"फिर भी आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था।" मैंने सामने सड़क की तरफ देखते हुए कहा____"और दरोगा को मुरारी काका के घर आने के लिए क्यों मना किया आपने? जबकि आपके ऐसा करने से जगन काका मेरे मुँह में ही बोल रहे थे कि मैंने ही दरोगा को उनके भाई की हत्या की जांच न करने के लिए पैसे दिए होंगे।
"जैसा हम तुमसे पहले ही कह चुके हैं कि आज कल हालात ठीक नहीं हैं और तुम्हें खुद बहुत सम्हल कर और सावधानी से रहना होगा।" पिता जी ने गंभीरता से कहा____"हम ये जानते हैं कि तुमने मुरारी की हत्या नहीं की है और हम ये भी जानते हैं कि मुरारी की किसी से ऐसी दुश्मनी नहीं हो सकती जिसके लिए कोई उसकी हत्या ही कर दे किन्तु इसके बावजूद उसकी हत्या हुई। कोई ज़रूरी नहीं कि उसकी हत्या करने के पीछे उससे किसी की कोई दुश्मनी ही हो बल्कि उसकी हत्या करने की वजह ये भी हो सकती है कि हमारा कोई दुश्मन तुम्हें उसकी हत्या के जुर्म में फंसा कर जेल भेज देना चाहता है। यही सब सोच कर हमने दरोगा को सामने आने के लिए नहीं कहा बल्कि गुप्त रूप से इस मामले की जांच करने को कहा था।"
"अगर ऐसी ही बात थी तो आपको दरोगा के द्वारा मुझे जेल ले जाने देना था।" मैंने कहा____"अगर कोई हमारा दुश्मन है तो इससे वो यही समझता कि वो अपने मकसद में कामयाब हो गया है और फिर हो सकता था कि वो मेरे जेल जाने के बाद खुल कर सामने ही आ जाता और तब हमें भी पता चल जाता कि हमारा ऐसा वो कौन दुश्मन था जो हमसे इस तरह से अपनी दुश्मनी निकालना चाहता था?"
"हमारे ज़हन में भी ये ख़याल आया था।" पिता जी ने कहा____"किन्तु हम बता ही चुके हैं कि हम ये हरगिज़ नहीं चाह सकते थे कि ठाकुर खानदान का कोई भी सदस्य पुलिस थाने की दहलीज़ पर कदम रखे। रही बात उस हत्यारे की तो उसका पता हम लगा ही लेंगे। तुम्हें इसके लिए परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है। हम सिर्फ ये चाहते हैं कि तुम पिछला सब कुछ भुला कर एक नए सिरे अपना जीवन शुरू करो। हर चीज़ की एक सीमा होती है बेटा। इस जीवन में इसके अलावा भी बहुत कुछ ऐसा है जिसे करना और निभाना हमारा फ़र्ज़ होता है।"
"क्या आप बताएंगे कि मुझे आपने घर गांव से क्यों निष्कासित किया था?" मैंने हिम्मत कर के उनसे वो सवाल पूछ ही लिया जो हमेशा से मेरे ज़हन में उछल कूद कर रहा था।
"कभी कभी इंसान को ऐसे काम भी करने पड़ जाते हैं जो निहायत ही ग़लत होते हैं।" पिता जी ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"हमने भी ऐसा कुछ सोच कर ही किया था। हम खुद जानते थे कि हमारा ये फैसला ग़लत है किन्तु कुछ बातें थी ऐसी जिनकी वजह से हमें ऐसा फैसला करना पड़ा था।"
"क्या मैं ऐसी वो बातें जान सकता हूं?" मैंने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"जिनकी वजह से आपने मुझे गांव से निष्कासित कर के चार महीनों तक भारी कष्ट सहने पर मजबूर कर दिया था।"
"तुम्हें इतने कष्ट में डाल कर हम खुद भी भारी कष्ट में थे बेटा।" पिता जी ने गंभीरता से कहा____"लेकिन ऐसा हमने दिल पर पत्थर रख कर ही किया था। हमें हमारे आदमियों के द्वारा पता चला था कि कुछ अंजान लोग हमारे ख़िलाफ़ हैं और वो कुछ ऐसा करना चाहते हैं जिससे कि हमारा समूचा वर्चस्व ही ख़त्म हो जाए। इसके लिए वो लोग अपने जाल में तुम्हें फ़साने वाले हैं। ये सब बातें सुन कर हम तुम्हारे लिए चिंतित हो उठे थे किन्तु कुछ कर सकने की हालत में नहीं थे हम क्योंकि हमारे आदमियों को भी नहीं पता था कि ऐसे वो कौन लोग थे। उन्होंने तो बस ऐसी बातें आस पास से ही सुनी थीं। हमें यकीन तो नहीं हुआ था किन्तु कुछ समय से जैसे हालात हमें समझ आ रहे थे उससे हम ऐसी बातों को नकार भी नहीं सकते थे इस लिए हमने सोचा कि अगर ऐसी बात है तो हम भी उनके मन का ही कर देते हैं। इसके लिए हमने तुम्हारी शादी का मामला शुरू किया। हमें पता था कि तुम अपनी आदत के अनुसार हमारा कहा नहीं मानोगे और कुछ ऐसा करोगे जिससे कि एक बार फिर से गांव समाज में हमारी इज्ज़त धूल में मिल जाए। ख़ैर शादी की तैयारियां शुरू हुईं और इसके साथ ही हमने एक लड़का और देख लिया ताकि जब तुम अपनी आदत के अनुसार कुछ उल्टा सीधा कर बैठो तो हम किसी तरह अपनी इज्ज़त को मिट्टी में मिलने से बचा सकें। शादी वाले दिन वही हुआ जिसका हमें पहले से ही अंदेशा था। यानी तुम एक बार फिर से हमारे हुकुम को ठोकर मार कर निकल गए। ख़ैर उसके बाद हमने उस लड़की की शादी दूसरे लड़के से करवा दी और इधर तुम पर बेहद गुस्सा होने का नाटक किया। दूसरे दिन गांव में पंचायत बैठाई और तुम्हें गांव से निष्कासित कर देने वाला फैसला सुना दिया। ऐसा करने के पीछे यही वजह थी कि हम तुम्हें अपने से दूर कर दें ताकि जो लोग तुम्हें अपने जाल में फांसना चाहते थे वो तुम्हें अकेला और बेसहारा देख कर बड़ी आसानी से अपने जाल में फांस सकें। इधर ऐसा करने के बाद हमने अपने आदमियों को भी हुकुम दे दिया था कि वो लोग गुप्त रूप से तुम पर भी और तुम्हारे आस पास की भी नज़र रखें। पिछले चार महीने से हमारे आदमी अपने इस काम में लगे हुए थे किन्तु जैसा हमने सोचा था वैसा कुछ भी नहीं हुआ।"
"क्या मतलब?" मैंने चौंक कर उनकी तरफ देखा।
"मतलब ये कि जो कुछ सोच कर हमने ये सब किया था।" पिता जी ने कहा____"वैसा कुछ हुआ ही नहीं। हमें लगता है कि उन लोगों को इस बात का अंदेशा हो गया था कि हमने ऐसा कर के उनके लिए एक जाल बिछाया है। इस लिए वो लोग तुम्हारे पास गए ही नहीं बल्कि कुछ ऐसा किया जिससे हम खुद ही उलझ कर रह गए।"
"कहीं आपके कहने का मतलब ये तो नहीं कि उन्होंने मुरारी की हत्या कर के उस हत्या में मुझे फंसाया?" मैंने कहा____"और दूसरे गांव के लोगों के बीच मेरे और आपके ख़िलाफ़ बैर भाव पैदा करवा दिया?"
"बिल्कुल।" पिता जी ने मेरी तरफ प्रशंशा की दृष्टि से देखते हुए कहा____"हमे बिलकुल यही लगता है और यही वजह थी कि हमने दरोगा को मुरारी की हत्या के मामले की जांच गुप्त रूप से करने को कहा। हलांकि जैसा तुमने इस बारे में उस वक़्त कहा था वैसा ख़याल हमारे ज़हन में भी आया था किन्तु हम दुबारा फिर से तुम्हें चारा बना कर उनके सामने नहीं डालना चाहते थे। क्योंकि ज़रूरी नहीं कि हर बार वैसा ही हो जैसा हम चाहते हैं। ऐसा करने से इस बार तुम्हारे लिए सच में कोई गंभीर ख़तरा पैदा हो सकता था।"
पिता जी के ऐसा कहने के बाद इस बार मैं कुछ न बोल सका। असल में मैं उनकी बातें सुन कर गहरे विचारों में पड़ गया था। पिता जी की बातों ने एकदम से मेरा भेजा ही घुमा दिया था। मैं तो बेवजह ही अब तक इस बारे में इतना कुछ सोच सोच कर कुढ़ रहा था और अपने माता पिता के लिए अपने अंदर गुस्सा और नफ़रत पाले बैठा हुआ था जबकि जो कुछ मेरे साथ हुआ था उसके पीछे पिता जी का एक ख़ास मकसद छुपा हुआ था। भले ही वो अपने मकसद में कामयाब नहीं हुए थे किन्तु ऐसा कर के उन्होंने इस बात का सबूत तो दे ही दिया था कि उन्होंने मुझे मेरी ग़लतियों की वजह से निष्कासित नहीं किया था बल्कि ऐसा करने के लिए वो एक तरह से बेबस थे और ऐसा करके वो खुद भी मेरे लिए अंदर से दुखी थे। मुझे समझ नहीं आया कि अब मैं अपनी उन बातों के लिए पिता जी से कैसे माफ़ी मांगू, जो बातें मैंने उनसे उस दिन खेत में कही थीं।
मेरे ज़हन में उस दिन की माँ की कही हुई वो बातें उभर कर गूँज उठी जब उन्होंने मुझसे कहा था कि इंसान को बिना सोचे समझे और बिना सच को जाने कभी ऐसी बातें नहीं कहनी चाहिए जिससे कि बाद में अपनी उन बातों के लिए इंसान को पछतावा होने लगे। तो क्या इसका मतलब ये हुआ कि माँ को पहले से ही इस सबके बारे में पता था? उनकी बातों से तो अब यही ज़ाहिर होता है लेकिन उन्होंने मुझसे इस बारे में उसी दिन साफ़ साफ़ क्यों नहीं बता दिया था? मैंने महसूस किया कि मैं ये सब सोचते हुए गहरे ख़यालों में खो गया हूं।
"क्या अब हम तुमसे ये उम्मीद करें कि तुम एक नए सिरे से अपना जीवन शुरू करोगे?" पिता जी की आवाज़ से मेरा ध्यान टूटा____"और हां अगर अब भी तुम्हें लगता है कि हमने तुम्हारे साथ कुछ ग़लत किया है तो तुम अब भी हमारे प्रति अपने अंदर नफ़रत को पाले रह सकते हो।"
"मैं सोच रहा हूं कि क्या ज़रूरत है नए सिरे से जीवन को शुरू करने की?" मैंने सपाट भाव से कहा____"मैं समझता हूं कि मेरे भाग्य में यही लिखा है कि मैं पहले की तरह अब भी आवारा ही रहूं और अपनी जिम्मेदारियों से मुँह मोड़े रखूं।"
"आख़िर किस मिट्टी के बने हुए हो तुम?" पिता जी ने इस बार शख़्त भाव से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"तुम समझते क्यों नहीं हो कि तुम कितनी बड़ी मुसीबत में पड़ सकते हो? आख़िर कैसे समझाएं हम तुम्हें?"
"मैं किसी भी तरह के बंधन में रहना पसंद नहीं करता पिता जी।" मैंने उस शख़्स से दो टूक भाव से कहा जिस शख़्स से ऐसी बातें करने की कोई हिम्मत ही नहीं जुटा सकता था____"आपको मेरी फ़िक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं है। ये तो आप भी जानते हैं ना कि इस संसार में जिसके साथ जो होना लिखा होता है वो हो कर ही रहता है। विधाता के लिखे को कोई नहीं मिटा सकता। अगर आज और इसी वक़्त मेरी मौत लिखी है तो वो हो कर ही रहेगी, फिर भला बेवजह मौत से भागने की मूर्खता क्यों करना?"
"आख़िर क्या चल रहा है तुम्हारे दिमाग़ में?" पिता जी ने अचानक ही अपनी आँखें सिकोड़ते हुए कहा____"कहीं तुम...?"
"माफ़ कीजिए पिता जी।" मैंने उनकी बात को बीच में ही काटते हुए कहा____"वैसा कभी नहीं हो सकता जैसा आप चाहते हैं। वैसे हम शहर किस लिए जा रहे हैं?"
मेरी बातें सुन कर पिता जी हैरत से मेरी तरफ वैसे ही देखने लगे थे जैसे इसके पहले वो मेरी बातों पर हैरत से देखने लगते थे। यही तो खूबी थी ठाकुर वैभव सिंह में। मैं कभी वो करता ही नहीं था जो दूसरा कोई चाहता था बल्कि मैं तो हमेशा वही करता था जो सिर्फ और सिर्फ मैं चाहता था। मेरी बातों से किसी का कितना दिल दुःख जाता था इससे मुझे कोई मतलब नहीं होता था मगर क्या सच में ऐसा ही था???
"मैं हवेली में नहीं रहना चाहता पिता जी।" दादा ठाकुर को ख़ामोश देख मैंने धीरे से कहा____"बल्कि मैं उसी जगह पर रहना चाहता हूं जहां पर मैंने चार महीने भारी कष्ट सह के गुज़ारे हैं।"
"तुम्हें जहां रहना हो वहां रहो।" पिता जी ने गुस्से में कहा____"हमे तो आज तक ये समझ में नहीं आया कि तुम जैसी बेगै़रत औलाद दे कर भगवान ने हमारे ऊपर कौन सा उपकार किया है?"
"भगवान को क्यों कोसते हैं पिता जी?" मैंने मन ही मन हंसते हुए पिता जी से कहा____"भगवान के बारे में तो सबका यही ख़याल है कि वो जो भी देता है या जो कुछ भी करता है सब अच्छा ही करता है। फिर आप ऐसा क्यों कहते हैं?"
"ख़ामोशशश।" पिता जी इतनी ज़ोर से दहाड़े कि डर के मारे मेरे हाथों से जीप की स्टेरिंग ही छूट गई थी। मैं समझ गया कि अब पिता जी से कुछ बोलना बेकार है वरना वो अभी जीप रुकवाएंगे और जीप की पिछली शीट पर पड़ा हुआ कोड़ा उठा कर मुझे पेलना शुरू कर देंगे।
उसके बाद सारे रास्ते हम में से किसी ने कोई बात नहीं की। सारा रास्ता ख़ामोशी में ही गुज़रा और हम शहर पहुंच गए। शहर में पिता जी को तहसीली में कोई काम था इस लिए वो चले गए जबकि मैं जीप में ही बेपरवाह सा बैठा रहा। क़रीब एक घंटे में पिता जी वापस आए तो मैंने जीप स्टार्ट की और उनके कहने पर वापस गांव के लिए चल पड़ा।
आज होलिका दहन का पर्व था और हमारे गांव में होली का त्यौहार बड़े धूम धाम से मनाया जाता है। ख़ैर वापसी में भी हमारे बीच ख़ामोशी ही रही। आख़िर एक घंटे में हम हवेली पहुंच गए।
पिता जी जीप से उतर कर हवेली के अंदर चले गए और मैं ऊपर अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। कुसुम नज़र आई तो मैंने उसे एक गिलास पानी लाने को कहा तो वो जी भैया कह कर पानी लेने चली गई। अपने कमरे में आ कर मैं अपने कपड़े उतारने लगा। धूप तेज़ थी और मुझे गर्मी लगी हुई थी। मैंने शर्ट और बनियान उतार दिया और कमरे की खिड़की खोल कर बिस्तर पर लेट गया।
आज कल गांव में बिजली का एक लफड़ा था। बिजली विभाग वाले बिजली तो दे रहे थे लेकिन बिजली धीमी रहती थी जिससे पंखा धीमी गति से चलता था। ख़ैर मैं आँखें बंद किए लेटा हुआ था और ऊपर पंखा अपनी धीमी रफ़्तार से मुझे हवा देने का अपना फ़र्ज़ निभा रहा था। आँखे बंद किए मैं सोच रहा था कि आज पिता जी से मैंने जो कुछ भी कहा था वो ठीक था या नहीं? अब जब कि मैं जान चुका था कि मुझे गांव से निष्कासित करने का उनका फ़ैसला उनके एक ख़ास मकसद का हिस्सा था इस लिए एक अच्छे बेटे के रूप में मेरा उन पर गुस्सा करना या उन पर नाराज़ रहना सरासर ग़लत ही था किन्तु ये भी सच था कि मैं इस सबके लिए हवेली में क़ैद हो कर नहीं रह सकता था। माना कि पिता जी ने दरोगा को गुप्त रूप से मुरारी काका की हत्या की जांच करने को कह दिया था लेकिन मुझे इससे संतुष्टि नहीं हो रही थी। मैं अपनी तरफ से खुद कुछ करना चाहता था जो कि हवेली में रह कर मैं नहीं कर सकता था। मैं एक आज़ाद पंछी की तरह था जो सिर्फ अपनी मर्ज़ी से हर काम करना पसंद करता था।
"लगता है आपको नींद आ रही है भइया।" कुसुम की आवाज़ से मेरा ध्यान टूटा तो मैंने आँखें खोल कर उसकी तरफ देखा, जबकि उसने आगे कहा____"या फिर अपनी आँखें बंद कर के किसी सोच में डूबे हुए थे।"
"क्या तूने कोई तंत्र विद्या सीख ली है?" मैंने उठते हुए उससे कहा____"जो मेरे मन की बात जान लेती है?"
"इतनी सी बात के लिए तंत्र विद्या सीखने की क्या ज़रूरत है भला?" कुसुम ने पानी का गिलास मुझे पकड़ाते हुए कहा____"जिस तरह के हालात में आप हैं उससे तो कोई भी ये अंदाज़ा लगा के कह सकता है कि आप किसी सोच में ही डूबे हुए थे। दूसरी बात ये भी है कि आप दादा ठाकुर के साथ शहर गए थे तो ज़ाहिर है कि रास्ते में उन्होंने आपसे कुछ न कुछ तो कहा ही होगा जिसके बारे में आप अब भी सोच रहे थे।"
"वाह! तूने तो कमाल कर दिया बहना।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"क्या दिमाग़ लगाया है तूने। ख़ैर ये सब छोड़ और ये बता कि जो काम मैंने तुझे दिया था वो काम तूने शुरू किया कि नहीं या फिर एक काम से सुन कर दूसरे कान से उड़ा दिया है?"
हलांकि पिता जी की बातों से अब मैं सब कुछ जान चुका था इस लिए कुसुम को अपने भाई या अपने पिता जी की जासूसी करने के काम पर लगाना फ़िज़ूल ही था किन्तु पिछली रात मैंने बड़े भैया को विभोर के कमरे से निकलते देखा था इस लिए अब मैं ये जानना चाहता था कि आख़िर तीनों भाइयों के बीच ऐसा क्या चल रहा था उतनी रात को?
"आप तो जानते हैं भैया कि ये काम इतना आसान नहीं है।" कुसुम ने मासूम सी शक्ल बनाते हुए कहा____"मुझे पूरी सावधानी के साथ ये काम करना होगा इस लिए मुझे इसके लिए ख़ास मौके का इंतज़ार करना होगा ना?"
"ठीक है।" मैंने पानी पीने के बाद उसे खाली गिलास पकड़ाते हुए कहा____"तू मौका देख कर अपना काम कर। वैसे आज होलिका दहन है ना तो यहाँ कोई तैयारी वग़ैरा हुई कि नहीं?"
"पिता जी सारी तैयारियां कर चुके हैं?" कुसुम ने कहा____"आज रात को वैसे ही होली जलेगी जैसे हर साल जलती आई है लेकिन आप इसके बारे में क्यों पूछ रहे हैं? आपको तो इन त्योहारों में कोई दिलचस्पी नहीं रहती ना?"
"हां वो तो अब भी नहीं है।" मैंने बिस्तर से उतर कर दीवार पर टंगी अपनी शर्ट को निकालते हुए कहा____"मैं तो ऐसे ही पूछ रहा था तुझसे। ख़ैर अब तू जा। मुझे भी एक ज़रूरी काम से बाहर जाना है।"
"भाभी आपके बारे में पूछ रहीं थी?" कुसुम ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"शायद उन्हें कोई काम है आपसे। इस लिए आप उनसे मिल लीजिएगा।"
"उन्हें मुझसे क्या काम हो सकता है?" मैंने चौंक कर कुसुम की तरफ देखते हुए कहा____"अपने किसी काम के लिए उन्हें बड़े भैया से बात करनी चाहिए।"
"अब भला ये क्या बात हुई भैया?" कुसुम ने अपने दोनों हाथों को अपनी कमर पर रखते हुए कहा___"हर काम बड़े भैया से हो ये ज़रूरी थोड़ी ना है। हो सकता है कि कोई ऐसा काम हो उन्हें जिसे सिर्फ आप ही कर सकते हों। वैसे वो तीनो इस वक़्त हवेली में नहीं हैं इस लिए आप बेफ़िक्र हो कर भाभी से मिल सकते हैं।"
"तू क्या समझती है मैं उन तीनों से डरता हूं?" मैंने शर्ट के बटन लगाते हुए कहा____"मुझे अगर किसी से मिलना भी होगा ना तो मैं किसी के होने की परवाह नहीं करुंगा और ये बात तू अच्छी तरह जानती है।"
"हां जानती हूं।" कुसुम ने मुस्कुराते हुए कहा____"इस हवेली में दादा ठाकुर के बाद एक आप ही तो ऐसे हैं जो सच मुच के ठाकुर साहब हैं।"
"अब तू मुझे चने के झाड़ पर न चढ़ा समझी।" मैंने कुसुम के सिर पर एक चपत लगाते हुए कहा____"अब जा तू और जा कर भाभी से कह कि मैं उनसे मिलने आ रहा हूं।"
"आपने तो मुझे एकदम से डाकिया ही बना लिया है।" कुसुम ने फिर से बुरा सा मुँह बना कर कहा____"कभी इधर संदेशा देने जाऊं तो कभी उधर। बड़े भाई होने का अच्छा फायदा उठाते हैं आप। आपको ज़रा भी मुझ मासूम पर तरस नहीं आता।"
"इस हवेली में एक तू ही है जिस पर तरस ही नहीं बल्कि प्यार भी आता है मुझे।" मैंने कुसुम के चेहरे को सहलाते हुए कहा____"बाकियों की तरफ तो मैं देखना भी नहीं चाहता।"
"हां अब ये ठीक है।" कुसुम ने मुस्कुराते हुए कहा___"अब जा रही हूं भाभी को बताने कि आप आ रहे हैं उनसे मिलने, इस लिए वो जल्दी से आपके लिए आरती की थाली सजा के रख लें...हीहीहीही।"
"तू अब पिटेगी मुझसे।" मैंने उसे आँखें दिखाते हुए कहा____"बहुत बोलने लगी है तू।"
मेरे ऐसा बोलने पर कुसुम शरारत से मुझे अपनी जीभ दिखाते हुए कमरे से बाहर चली गई। उसकी इस शरारत पर मैं बस हल्के से मुस्कुराया और फिर ये सोचने लगा कि अब भाभी को भला मुझसे क्या काम होगा जिसके लिए वो मुझसे मिलना चाहती हैं?
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