aalu
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Just amazing man, devnagri bhasha mein faujee bhai aur mahi jee ke baad aapki kahani pehli baar padh raha hoon. Aapki bhasha pe pakar kaafi achhi hain, truti rahit.☆ प्यार का सबूत ☆
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अध्याय - 01
फागुन का महीना चल रहा था और मैं अपने गांव की सरहद से दूर अपने झोपड़े के बाहर छाव में बैठा सुस्ता रहा था। अभी कुछ देर पहले ही मैं अपने एक छोटे से खेत में उगी हुई गेहू की फसल को अकेले ही काट कर आया था। हालांकि अभी ज़्यादा गर्मी तो नहीं पड़ रही थी किन्तु कड़ी धूप में खेत पर पकी हुई गेहू की फसल को काटते काटते मुझे बहुत गर्मी लग आई थी इस लिए आधी फसल काटने के बाद मैं हंसिया ले कर अपने झोपड़े में आ गया था।
कहने को तो मेरे पास सब कुछ था और मेरा एक भरा पूरा परिवार भी था मगर पिछले चार महीनों से मैं घर और गांव से दूर यहाँ जंगल के पास एक झोपड़ा बना कर रह रहा था। जंगल के पास ये ज़मीन का छोटा सा टुकड़ा मुझे दिया गया था बाकी सब कुछ मुझसे छीन लिया गया था और पंचायत के फैसले के अनुसार मैं गांव के किसी भी इंसान से ना तो कोई मदद मांग सकता था और ना ही गांव का कोई इंसान मेरी मदद कर सकता था।
आज से चार महीने पहले मेरी ज़िन्दगी बहुत ही अच्छी चल रही थी और मैं एक ऐसा इंसान था जो ज़िन्दगी के हर मज़े लेना पसंद करता था। ज़िन्दगी के हर मज़े के लिए मैं हर वक़्त तत्पर रहता था। मेरे पिता जी गांव के मुखिया थे और गांव में ही नहीं बल्कि आस पास के कई गांव में भी उनका नाम चलता था। किसी चीज़ की कमी नहीं थी। पिता जी का हर हुकुम मानना जैसे हर किसी का धर्म था किन्तु मैं एक ऐसा शख़्स था जो हर बार उनके हुकुम को न मान कर वही करता था जो सिर्फ मुझे अच्छा लगता था और इसके लिए मुझे शख़्त से शख़्त सज़ा भी मिलती थी लेकिन उनकी हर सज़ा के बाद मेरे अंदर जैसे बेशर्मी और ढीढता में इज़ाफ़ा हो जाता था।
ऐसा नहीं था कि मैं पागल था या मुझ में दुनियादारी की समझ नहीं थी बल्कि मैं तो हर चीज़ को बेहतर तरीके से समझता था मगर जैसा कि मैंने बताया कि ज़िन्दगी का हर मज़ा लेना पसंद था मुझे तो बस उसी मज़े के लिए मैं सब कुछ भूल कर फिर उसी रास्ते पर चल पड़ता था जिसके लिए मुझे हर बार पिता जी मना करते थे। मेरी वजह से उनका नाम बदनाम होता था जिसकी मुझे कोई परवाह नहीं थी। घर में पिता जी के अलावा मेरी माँ थी और मेरे भैया भाभी थे। बड़े भाई का स्वभाव भी पिता जी के जैसा ही था किन्तु वो इस सबके बावजूद मुझ पर नरमी बरतते थे। माँ मुझे हर वक़्त समझाती रहती थी मगर मैं एक कान से सुनता और दूसरे कान से उड़ा देता था। भाभी से ज़्यादा मेरी बनती नहीं थी और इसकी वजह ये थी कि मैं उनकी सुंदरता के मोह में फंस कर उनके प्रति अपनी नीयत को ख़राब नहीं करना चाहता था। मुझ में इतनी तो गै़रत बांकी थी कि मुझे रिश्तों का इतना तो ख़याल रहे। इस लिए मैं भाभी से ज़्यादा ना बात करता था और ना ही उनके सामने जाता था। जबकि वो मेरी मनोदशा से बेख़बर अपना फ़र्ज़ निभाती रहतीं थी।
पिता जी मेरे बुरे आचरण की वजह से इतना परेशान हुए कि उन्होंने माँ के कहने पर मेरी शादी कर देने का फैसला कर लिया। माँ ने उन्हें समझाया था कि बीवी के आ जाने से शायद मैं सुधर जाऊं। ख़ैर एक दिन पिता जी ने मुझे बुला कर कहा कि उन्होंने मेरी शादी एक जगह तय कर दी है। पिता जी की बात सुन कर मैंने साफ़ कह दिया कि मुझे अभी शादी नहीं करना है। मेरी बात सुन कर पिता जी बेहद गुस्सा हुए और हुकुम सुना दिया कि हम वचन दे चुके हैं और अब मुझे ये शादी करनी ही पड़ेगी। पिता जी के इस हुकुम पर मैंने कहा कि वचन देने से पहले आपको मुझसे पूछना चाहिए था कि मैं शादी करुंगा की नहीं।
घर में एक मैं ही ऐसा शख्स था जो पिता जी से जुबान लड़ाने की हिम्मत कर सकता था। मेरी बातों से पिता जी बेहद ख़फा हुए और मुझे धमकिया दे कर चले गए। ऐसा नहीं था कि मैं कभी शादी ही नहीं करना चाहता था बल्कि वो तो एक दिन मुझे करना ही था मगर मैं अभी कुछ समय और स्वतंत्र रूप से रहना चाहता था। पिता जी को लगा था कि आख़िर में मैं उनकी बात मान ही लूंगा इस लिए उन्होंने घर में सबको कह दिया था कि शादी की तैयारी शुरू करें।
घर में शादी की तैयारियां चल रही थी जिनसे मुझे कोई मतलब नहीं था। मेरे ज़हन में तो कुछ और ही चल रहा था। मैंने उस दिन के बाद से घर में किसी से भी नहीं कहा कि वो मेरी शादी की तैयारी ना करें और जब मेरी शादी का दिन आया तो मैं घर से ही क्या पूरे गांव से ही गायब हो गया। मेरे पिता जी मेरे इस कृत्य से बहुत गुस्सा हुए और अपने कुछ आदमियों को मेरी तलाश करने का हुकुम सुना दिया। इधर भैया भी मुझे खोजने में लग गए मगर मैं किसी को भी नहीं मिला। मैं घर तभी लौटा जब मुझे ये पता चल गया कि जिस लड़की से मेरी शादी होनी थी उसकी शादी पिता जी ने किसी और से करवा दी है।
एक हप्ते बाद जब मैं लौट कर घर आया तो पिता जी का गुस्सा मुझ पर फूट पड़ा। वो अब मेरी शक्ल भी नहीं देखना चाहते थे। मेरी वजह से उनकी बदनामी हुई थी और उनका वचन टूट गया था। उन्होंने पंचायत बैठाई और पंचायत में पूरे गांव के सामने उन्होंने फैसला सुनाते कहा कि आज से वैभव सिंह को इस गांव से हुक्का पानी बंद कर के निकाला जाता है। आज से गांव का कोई भी इंसान ना तो इससे कोई बात करेगा और ना ही इसकी कोई मदद करेगा और अगर किसी ने ऐसा किया तो उसका भी हुक्का पानी बंद कर के उसे गांव से निकाल दिया जाएगा। पंचायत में पिता जी का ये हुकुम सुन कर गांव का हर आदमी चकित रह गया था। किसी को भी उनसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। हालांकि इतना तो वो भी समझते थे कि मेरी वजह से उन्हें कितना कुछ झेलना पड़ रहा था।
पंचायत में उस दिन पिता जी ने मुझे गांव से निकाला दे दिया था। मेरे जीवन निर्वाह के लिए उन्होंने जंगल के पास अपनी बंज़र पड़ी ज़मीन का एक छोटा सा टुकड़ा दे दिया था। वैसे चकित तो मैं भी रह गया था पिता जी के उस फैसले से और सच कहूं तो उनके इस कठोर फैसले को सुन कर मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन ही गायब हो गई थी मगर मेरे अंदर भी उन्हीं का खून उबाल मार रहा था इस लिए मैंने भी उनके फैसले को स्वीकार कर लिया। हालांकि मेरी जगह अगर कोई दूसरा ब्यक्ति होता तो वो ऐसे फैसले पर उनसे रहम की गुहार लगाने लगता मगर मैंने ऐसा करने का सोचा तक नहीं था बल्कि फैसला सुनाने के बाद जब पिता जी ने मेरी तरफ देखा तो मैं उस वक़्त उन हालात में भी उनकी तरफ देख कर इस तरह मुस्कुराया था जैसे कि उनके इस फैसले पर भी मेरी ही जीत हुई हो। मेरे होठो की उस मुस्कान ने उनके चेहरे को तिलमिलाने पर मजबूर कर दिया था।
अच्छी खासी चल रही ज़िन्दगी को मैंने खुद गर्क़ बना लिया था। पिता जी के उस फैसले से मेरी माँ बहुत दुखी हुई थी किन्तु कोई उनके फैसले पर आवाज़ नहीं उठा सकता था। उस फैसले के बाद मैं घर भी नहीं जा पाया उस दिन बल्कि मेरा जो सामान था उसे एक बैग में भर कर मेरा बड़ा भाई पंचायत वाली जगह पर ही ला कर मेरे सामने डाल दिया था। उस दिन मेरे ज़हन में एक ही ख़याल आया था कि अपने बेटे को सुधारने के लिए क्या उनके लिए ऐसा करना जायज़ था या इसके लिए कोई दूसरा रास्ता भी हो सकता था?
पिता जी के फैसले के बाद मैं अपना बैग ले कर उस जगह आ गया जहां पर मुझे ज़मीन का एक छोटा सा टुकड़ा दिया गया था। एक पल में जैसे सब कुछ बदल गया था। राज कुमारों की तरह रहने वाला लड़का अब दर दर भटकने वाला एक भिखारी सा बन गया था मगर हैरानी की बात थी कि इस सब के बावजूद मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा था। ज़िन्दगी एक जगह ठहर ज़रूर गई थी लेकिन मेरे अंदर अब पहले से ज़्यादा कठोरता आ गई थी। थोड़े बहुत जो जज़्बात बचे थे वो सब जैसे ख़ाक हो चुके थे अब।
जंगल के पास मिले उस ज़मीन के टुकड़े को मैं काफी देर तक देखता रहा था। उस बंज़र ज़मीन के टुकड़े से थोड़ी ही दूरी पर जंगल था। गांव यहाँ से चार किलो मीटर दूर था जो कि घने पेड़ पौधों की वजह से दिखाई नहीं देता था। ख़ैर मैंने देखा कि ज़मीन के उस टुकड़े में बहुत ही ज़्यादा घांस उगी हुई थी। पास में कहीं भी पानी नहीं दिख रहा था। इस तरफ आस पास कोई पेड़ पौधे नहीं लगे थे। हालांकि कुछ दूरी पर जंगल ज़रूर था मगर आज तक मैं उस जंगल के अंदर नहीं गया था।
ज़मीन के उस टुकड़े को कुछ देर देखने के बाद मैं उस जंगल की तरफ चल पड़ा था। जंगल में पानी की तलाश करते हुए मैं इधर उधर भटकने लगा। काफी अंदर आने के बाद मुझे एक तरफ से पानी बहने जैसी आवाज़ सुनाई दी तो मेरे चेहरे पर राहत के भाव उभर आए। उस आवाज़ की दिशा में गया तो देखा एक नदी बह रही थी। बांये तरफ से पानी की एक बड़ी मोटी सी धार ऊपर चट्टानों से नीचे गिर रही थी और वो पानी नीचे पत्थरों से टकराते हुए दाहिनी तरफ बहने लगता था। अपनी आँखों के सामने पानी को इस तरह बहते देख मैंने अपने सूखे होठों पर जुबान फेरी और आगे बढ़ कर मैंने उस ठंडे और शीतल जल से अपनी प्यास बुझाई।
जंगल से कुछ लकड़ियां खोज कर मैंने उन्हें लिया और जंगल से बाहर अपने ज़मीन के उस टुकड़े के पास आ गया। अभी तो दिन था इस लिए कोई समस्या नहीं थी मुझे किन्तु शाम को यहाँ रहना मेरे लिए एक बड़ी समस्या हो सकती थी इस लिए अपने रहने के लिए कोई जुगाड़ करना बेहद ज़रूरी था मेरे लिए। मैंने ज़मीन के इस पार की जगह का ठीक से मुआयना किया और जो लकड़ियां मैं ले कर आया था उन्हीं में से एक लकड़ी की सहायता से ज़मीन में गड्ढा खोदना शुरू कर दिया। काफी मेहनत के बाद आख़िर मैंने चार गड्ढे खोद ही लिए और फिर उन चारो गड्ढों में चार मोटी लकड़ियों को डाल दिया। उसके बाद मैं फिर से जंगल में चला गया।
शाम ढलने से पहले ही मैंने ज़मीन के इस पार एक छोटा सा झोपड़ा बना लिया था और उसके ऊपर कुछ सूखी घास डाल कर उसे महुराईन के बउडे़ से कस दिया था। झोपड़े के अंदर की ज़मीन को मैंने अच्छे से साफ़ कर लिया था। मेरे लिए यहाँ पर आज की रात गुज़ारना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं था। हालांकि मैं चाहता तो आज की रात दूसरे गांव में भी कहीं पर गुज़ार सकता था मगर मैं खुद चाहता था कि अब मैं बड़ी से बड़ी समस्या का सामना करूं।
मेरे पास खाने के लिए कुछ नहीं था इस लिए रात हुई तो बिना कुछ खाए ही उस झोपड़े के अंदर कच्ची ज़मीन पर सूखी घास बिछा कर लेट गया। झोपड़े के दरवाज़े पर मैंने चार लकड़ियां लगा कर और उसमे महुराईन का बउड़ा लगा कर अच्छे से कस दिया था ताकि रात में कोई जंगली जानवर झोपड़े के अंदर न आ सके। मेरे लिए अच्छी बात ये थी कि चांदनी रात थी वरना घने अँधेरे में यकीनन मेरी हालत ख़राब हो जाती। ज़िन्दगी में पहली बार मैं ऐसी जगह पर रात गुज़ार रहा था। अंदर से मुझे डर तो लग रहा था लेकिन मैं ये भी जानता था कि अब मुझे अपनी हर रात ऐसे ही गुज़ारनी है और अगर मैं डरूंगा तो कैसे काम चलेगा?
रात भूखे पेट किसी तरह गुज़र ही गई। सुबह हुई और एक नए दिन और एक नई किस्मत का उदय हुआ। जंगल में जा कर मैं नित्य क्रिया से फुर्सत हुआ। पेट में चूहे दौड़ रहे थे और मुझे कमज़ोरी का आभास हो रहा था। कुछ खाने की तलाश में मैं उसी नदी पर आ गया। नदी का पानी शीशे की तरह साफ़ था जिसकी सतह पर पड़े पत्थर साफ़ दिख रहे थे। उस नदी के पानी को देखते हुए मैं नदी के किनारे किनारे आगे बढ़ने लगा। कुछ दूरी पर आ कर मैं रुका। यहाँ पर नदी की चौड़ाई कुछ ज़्यादा थी और पानी भी कुछ ठहरा हुआ दिख रहा था। मैंने ध्यान से देखा तो पानी में मुझे मछलियाँ तैरती हुई दिखीं। मछलियों को देखते ही मेरी भूख और बढ़ गई।
नदी में उतर कर मैंने कई सारी मछलियाँ पकड़ी और अपनी शर्ट में उन्हें ले कर नदी से बाहर आ गया। अपने दोस्तों के साथ मैं पहले भी मछलियाँ पकड़ कर खा चुका था इस लिए इस वक़्त मुझे अपने उन दोस्तों की याद आई तो मैं सोचने लगा कि इतना कुछ होने के बाद उनमे से कोई मेरे पास मेरा हाल जानने नहीं आया था। क्या वो मेरे पिता जी के उस फैसले की वजह से मुझसे मिलने नहीं आये थे?
अपने पैंट की जेब से मैंने माचिस निकाली और जंगल में ज़मीन पर पड़े सूखे पत्तों को समेट कर आग जलाई। आग जली तो मैंने उसमे कुछ सूखी लकड़ियों रख दिया। जब आग अच्छी तरह से लकड़ियों पर लग गई तो मैंने उस आग में एक एक मछली को भूनना शुरू कर दिया। एक घंटे बाद मैं मछलियों से अपना पेट भर कर जंगल से बाहर आ गया। गांव तो मैं जा नहीं सकता था और ना ही गांव का कोई इंसान मेरी मदद कर सकता था इस लिए अब मुझे खुद ही सारे काम करने थे। कुछ चीज़ें मेरे लिए बेहद ज़रूरी थीं इस लिए मैं अपना बैग ले कर पैदल ही दूसरे गांव की तरफ बढ़ चला।
"वैभव।" अभी मैं अपने अतीत में खोया ही था कि तभी एक औरत की मीठी आवाज़ को सुन कर चौंक पड़ा। मैंने आवाज़ की दिशा में पलट कर देखा तो मेरी नज़र भाभी पर पड़ी।
चार महीने बाद अपने घर के किसी सदस्य को अपनी आँखों से देख रहा था मैं। संतरे रंग की साड़ी में वो बहुत ही खूबसूरत दिख रहीं थी। मेरी नज़र उनके सुन्दर चेहरे से पर जैसे जम सी गई थी। अचानक ही मुझे अहसास हुआ कि मैं उनके रूप सौंदर्य में डूबा जा रहा हूं तो मैंने झटके से अपनी नज़रें उनके चेहरे से हटा ली और सामने की तरफ देखते हुए बोला____"आप यहाँ क्यों आई हैं? क्या आपको पता नहीं है कि मुझसे मिलने वाले आदमी को भी मेरी तरह गांव से निकला जा सकता है?"
"अच्छी तरह पता है।" भाभी ने कहा_____"और इस लिए मैं हर किसी की नज़र बचा कर ही यहाँ आई हूं।"
"अच्छा।" मैंने मज़ाक उड़ाने वाले अंदाज़ से कहा____"पर भला क्यों? मेरे पास आने की आपको क्या ज़रूरत आन पड़ी? चार महीने हो गए और इन चार महीनों में कोई भी आज तक मुझसे मिलने या मेरा हाल देखने यहाँ नहीं आया फिर आप क्यों आई हैं आज?"
"मां जी के कहने पर आई हूं।" भाभी ने कहा___"तुम नहीं जानते कि जब से ये सब हुआ है तब से माँ जी तुम्हारे लिए कितना दुखी हैं। हम सब बहुत दुखी हैं वैभव मगर पिता जी के डर से हम सब चुप हैं।"
"आप यहाँ से जाओ।" मैंने एक झटके में खड़े होते हुए कहा____"मेरा किसी से कोई रिश्ता नहीं है। मैं सबके लिए मर गया हूं।"
"ऐसा क्यों कहते हो वैभव?" भाभी ने आहत भाव से मेरी तरफ देखा____"मैं मानती हूं कि जो कुछ तुम्हारे साथ हुआ है वो ठीक नहीं हुआ है लेकिन कहीं न कहीं तुम खुद इसके लिए जिम्मेदार हो।"
"क्या यही अहसास कराने आई हैं आप?" मैंने कठोर भाव से कहा____"अब इससे पहले कि मेरे गुस्से का ज्वालामुखी भड़क उठे चली जाओ आप यहाँ से वरना मैं भूल जाऊंगा कि मेरा किसी से कोई रिश्ता भी है।"
"मां ने तुम्हारे लिए कुछ भेजवाया है।" भाभी ने अपने हाथ में ली हुई कपड़े की एक छोटी सी पोटली को मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा____"इसे ले लो उसके बाद मैं चली जाऊंगी।"
"मुझे किसी से कुछ नहीं चाहिए।" मैंने शख्त भाव से कहा___"और हां तुम सब भी मुझसे किसी चीज़ की उम्मीद मत करना। मैं मरता मर जाउंगा मगर तुम में से किसी की शकल भी देखना पसंद नहीं करुंगा। ख़ास कर उनकी जिन्हें लोग माता पिता कहते हैं। अब दफा हो जाओ यहाँ से।"
मैने गुस्से में कहा और हंसिया ले कर तथा पैर पटकते हुए खेत की तरफ बढ़ गया। मैंने ये देखने की कोशिश भी नहीं की कि मेरी इन बातों से भाभी पर क्या असर हुआ होगा। इस वक़्त मेरे अंदर गुस्से का दावानल धधक उठा था और मेरा दिल कर रहा था कि सारी दुनिया को आग लगा दूं। माना कि मैंने बहुत ग़लत कर्म किए थे मगर मुझे सुधारने के लिए मेरे बाप ने जो क़दम उठाया था उसके लिए मैं अपने उस बाप को कभी माफ़ नहीं कर सकता था और ना ही वो मेरी नज़र में इज्ज़त का पात्र बन सकता था।
गुस्से में जलते हुए मैं गेहू काटता जा रहा था और रुका भी तब जब सारा गेहू काट डाला मैंने। ये चार महीने मैंने कैसे कैसे कष्ट सहे थे ये सिर्फ मैं और ऊपर बैठा भगवान ही जनता था। ख़ैर गेहू जब कट गया तो मैं उसकी पुल्लियां बना बना कर एक जगह रखने लगा। ये मेरी कठोर मेहनत का नतीजा था कि बंज़र ज़मीन पर मैंने गेहू उगाया था। आज के वक़्त में मेरे पास फूटी कौड़ी नहीं थी। चार महीने पहले जो कुछ था भी तो उससे ज़रूरी चीज़ें ख़रीद लिया था मैंने और ये एक तरह से अच्छा ही किया था मैंने वरना इस ज़मीन पर ये फसल मैं तो क्या मेरे फ़रिश्ते भी नहीं उगा सकते थे।
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Kehte hain apni bhasa mein feel hain, hamesha hi devnagri mein likhi hui kahani kuchh jyada hi dil ko chhuti hain, aur gaon ke pariwesh waali kahaniya bhi, wo gaon se hone ke karan jagaho ko kalpana karne mein aasani hoti hain.
Vaibhaw ek manmaujee, zindagi mein sirf maje, masti ke liye jiya, baagi umar, aksar dawab dene pe ubalne ko hota hain, wo hum waali aham aa jaati hain.
Baapu jee ka tarika bhi galat tha, sahi raste pe lana chahte the, lekin kabhi bhi jor jabardasti se chhote bachhe ko sahi kiya jaa shakta hain, paaki mitti ko nahin, ap toh jo rang chadhna tha wo chadh gaya, maa bhi bebas kya bole, jab baapu ke aage kisi kee na chalti hai.
Sidha desh nikala de diya, jaise rajao ke daur mein jee rahe ho, ab yeh bhi thehre apne aaham mein mast, maafi mangna toh jaise nagwar hi guzre, akhir ab baat pure gaon ke samne aa hi gayee thee, peeche hatna bhi muskil tha.
Kheti kar ke reh raha hain, aaj gehum bhi uga liya, achanka se itne dino ke baad maa ko khayal aaya, 4 mahine kaafi lamba samay hota hain, aur bhabhi ko itni door akele kaise bhej diya, khud na aa shakti thee, gaon mein bahu betio ko toh bhar aise akele jane kee bhi izzajat na hoti hain.
Up toh the point I loved your writing, update ke size bhi kaafi bare the. ....