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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 18 9.7%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 21 11.4%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 73 39.5%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 42 22.7%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.8%

  • Total voters
    185

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
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Beautiful update

Bhai 1 request hai
Suhagrat k seen sex nhi sirf or sirf pyar hona chahiye
अध्याय - 163
अध्याय - 163

बहुत ही घटिया। शायद किसी और से लिखवाया गया है, जिसने इंग्लिश मे लिखकर हिंदी में ट्रांस्लेट किया है और पढ़्ने की कोशिश भी नहीं कि क्या लिखा गया है।

इस अध्याय की तो कहानी में जरूरत ही नही थी।

बस दोनो भाईयो के आने और चाची कि भावनाओ को दिखाने की जरूरत थी...
Sahi kaha, lagta hai kisi ne apan ki ID hack kar ke wo update chemp diya hai :sigh:
मेरे अनुसार अध्याय 163 - सिर्फ इतना होना चाहिये था...

अगले दिन दोनो विभोर और अजीत हवेली आ गये। पिता जी ने उन्हें शहर से ले आने के लिए शेरा के साथ अमर मामा को बुलाया था। दोनों जब हवेली पहुंचे तो मां और पिता जी ने उन्हें दिल से लगा लिया। क्या सोच कर पिता जी का नाम हो गया। मां की आँखों में आसुओं का समन्दर मानों हिलकोरें ले रहा था। उन्होंने खुद से मां को पकड़ लिया और दोनों ने खुद से चिपका ले लिया। कुसुम, विभोर से उमर में दस महीने छोटी थी जबकि अजित से वो साल भर बड़ी थी। विभोर ने अपने चेहरे को प्यार और स्नेह से सहलाया और अजित ने अपना दोस्त समझ कर मिला। सब उन्हें देख कर बड़ा खुश थे।

विदेश की आबो हवा में रहने से दोनों अलग-अलग ही नजर आ रहे थे। दोनों जब मेरी तरफ आये तो मैंने बीच में ही रोक कर उन्हें अपने सीने से लगा लिया। ये देख के मेनका चाची की आंखों से आंसू छलक रहे थे। मैं साफ देख पा रहा था कि वो अपने अंदर मचल रहे गुबार को बहुत मुश्किल से रोके हुए हैं। मैंने अपने दोनों छोटे डॉक्टरों से खुद को अलग किया और फिर हालचाल पूछ कर आराम करने को कहा।

दोपहर को खाना बनाने के बाद मैं अपने कमरे में लेट गया और फिर मेनका चाय वाले कमरे में चली आयी। मैं उन्हें देख कर बैठ गया।

"चाची क्या बात है?" मैंने पूछा___"मुझसे कोई काम था क्या?"

"नहीं ऐसी बात नहीं है वैभव।" चाची ने कहा__"मैं यहां यह देख रही हूं कि अभी कुछ देर में सरला (हवेली की नौकरानी) यहां आएगी। वो पूरे बदन की मालिश के लिए आप अपनी पोशाकें निकालकर तैयार हो जाएं, मालिश कराने जाएं।"

"पर मालिश करने की क्या जरूरत है चाची?" मैंने पूछा।

"अरे! जरूरत क्यों नहीं है?" चाची ने मेरे पास आ कर कहा__"मेरे सबसे अच्छे बेटे की शादी होने वाली है। उसकी सेहत का हर तरह से ख्याल रखना है। अब तुम ज्यादा कुछ मत सोचो और अपने सारे कपड़े पहनकर तैयार हो जाओ। मैं तो खुद ही देखना चाहती हूं।" मालिश करना चाहती थी लेकिन दीदी ही नहीं मानी।

मैंने कहा__ खैर ये सब छोड़ो और ये बताओ कि विभोर और अजित से उनकी हाल चाल पूछा है? "

"अभी तो वो दोनों सो रहे हैं।" चाची ने अधीरता से कहा__" शायद लंबे सफर के दौरान थके हुए थे। शाम को जब उठेंगे तो सवाल पूछेंगे। वैसे सच कहूं तो उन्हें देख कर मन में सिर्फ एक ही ख्याल आता है कि दोनों से कैसे पूरे मन से बात करेगी? बार बार मन में वही सब उभरता है और दिल दुख से भर जाता है।"

"आपको अपनी भावनाओं पर कंट्रोल रखना होगा चाची।" मैंने कहा__"वैसे आपके चेहरे पर ऐसे भाव न दिखें जिससे उन्हें ये लगे कि आप दुखी हैं। ऐसे में आपको भी बताया गया है कि वो भी दुखी हो जाएं और आपके दुख का कारण आप उनको हर्गिज नहीं बता सकते हैं। ''

"अभी तक उन्हें देखने का बहुत मन किया था वैभव।" चाची ने दुखी हो कर कहा__"लेकिन अब जब भी वो नज़रें सामने आईं तो तुमसे मिलने में डर लगने लगा है। मुझे समझ नहीं आ रहा कि दोनों के सामने खुद को कैसे सामान्य रख पाऊंगी?"

"मैं आपके अंदर का हाल ही मैं जानता हूँ।" मैंने कहा__"लेकिन ये भी सच है कि आपको भी उनकी चाहत है। आख़िरकार वो आपके बेटे हैं। माता-पिता तो हर हाल में अपने बच्चों को खुश ही रखते हैं, तो आपको भी उनकी ख़ुशी की चाहत होगी और आपको उन्हें अपना प्यार और स्नेह देना होगा होगा"

मेरी बात सुन कर चाची ने कुछ देखने वाली ही उस कमरे के बाहर से किसी के आने की पदचाप सुनायी दी।

"लगता है सरला आ गई है।" चाची ने कहा__"तुम अच्छे से मसाज करवाओ। मैं अब जा रही हूं, बाकी चिंता मत करो। मैं खुद को संभाल ही लूंगी।"

इतना कह कर मेनका चाची पलट कर कमरे से निकल गयी।

━━━━✮━━━━━━━✮━━━━

164

तीन दिन मानों पंख लगा कर उड़ गए और विवाह का दिन आ गया। हवेली किसी दुल्हन की तरह सजी हुई थी। पिता जी मानों सब कुछ भूल कर इस पल को जी लेना चाहते थे। तभी तो ठीक उसी तरह हवेली को सजवाया था जैसे बड़े भैया के विवाह के समय सजवाया था। थोड़ा भावुक से नज़र आ रहे थे वो, कदाचित बड़े बेटे का इसी तरह विवाह करना याद आ गया था उन्हें। मां का भी यही हाल था लेकिन वो किसी तरह अपने जज़्बातों को काबू में रखे हुए थीं।.....
.....
:laughing:
Super duper awesome update finally shadi hogai one of the best moments in this story.
Eagerly waiting for your next update brother pls do cont asap take care
Thanks
 
Last edited:

TheBlackBlood

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अध्याय - 165
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कामिनी उसके साथ खुशी खुशी अंदर की तरफ चली दी। विदाई के लिए हर कोई जल्दी जल्दी काम में लग गया था। पांव पूजन में बहुत सारा उपहार मिल गया था जिसे उठा कर बाहर रखा जा रहा था।


अब आगे....


सुबह सभी बारातियों को चाय नाश्ता करवाया गया। इसके साथ ही विदाई की तैयारियां भी शुरू हो गईं। घर से और लोगों द्वारा जो उपहार और सामान मिला था उसको ट्रैक्टर में रखवा दिया गया। बाहर बैंड बाजा वाले गाना बजाना कर रहे थे। हर कोई किसी न किसी काम के लिए दौड़ लगा रहा था।

दूसरी तरफ रागिनी भाभी के पिता वीरभद्र सिंह जी पिता जी के पास बैठे हुए थे और उनसे हाथ जोड़ कर बार बार यही कह रहे थे कि उनके स्वागत में अगर कहीं कोई त्रुटि हुई हो तो वो उन्हें माफ़ करें। पिता जी बार बार उन्हें समझा रहे थे कि उनसे कोई त्रुटि नहीं हुई है और अगर हो भी जाती तो वो बुरा नहीं मानते। उनके लिए सबसे ज़्यादा खुशी इस बात की है कि उनकी बहू ने इस रिश्ते को हां कहा और अब ये विवाह भी हो गया। अपनी जिस बहू को बेटी मान कर वो इतना प्यार और स्नेह देते थे वो उन्हें फिर से उसी रूप में मिल गई जिस रूप में वो उसे देखना चाहते थे। वीरभद्र सिंह जी पिता जी की ये बातें सुन कर उनका आभार मान रहे थे और कह रहे थे कि ये सब उनकी ही वजह से हुआ है। ये उनकी बेटी का सौभाग्य है कि उसे उनके जैसे ससुर पिता के रूप में मिले हैं।

आख़िर विदाई का समय आ ही गया। घर के अंदर से रोने धोने की आवाज़ें आने लगीं। जाने कितनी ही औरतों का करुण क्रंदन वातावरण में गूंजने लगा। मैं कार में बैठा हुआ था। मेरे पीछे कुसुम सुमन और सुषमा बैठी हुईं थी। आते समय अमर मामा भी साथ में थे लेकिन अब क्योंकि भाभी भी मेरे साथ ही कार में जाने वाली थीं तो उनके बैठने के लिए कार में जगह नहीं थी। अमर मामा ने सुमन और सुषमा को कार से उतार कर अपने साथ जीप में चलने को कहा जिससे वो उतर गईं।

थोड़ी ही देर में अंदर से औरतें बाहर आती नज़र आईं। सब की सब रो रहीं थी। उनके बीच रागिनी भाभी सबसे लिपट कर बुरी तरह विलाप कर रहीं थी। उनकी मां, चाची, भाभियां, बहनें, शालिनी और गांव की बहुत सी औरतें सब रो रहीं थी। कुछ ही पलों में वो घर से बाहर आ गई। सहसा भाभी की नज़र अपने पिता वीरभद्र पर पड़ी तो उनके पास जा कर उनसे लिपट गईं और बिलख बिलख कर रोने लगीं। वीरभद्र जी खुद को सम्हाल न सके। अपनी बेटी को हृदय से लगा कर वो खुद भी सिसक उठे। पास में ही उनके छोटे भाई बलभद्र जी खड़े थे। रागिनी भाभी उनसे भी लिपट गईं और चाचा चाचा कहते हुए रोने लगीं। बलभद्र जी भी खुद को सम्हाल न सके। दोनों परिवार में रागिनी ही एक ऐसी लड़की थी जिसमें इतने सारे गुण थे और वो हमेशा से ही सबकी चहेती रही थी।

वीर सिंह, बलवीर सिंह और वीरेंद्र सिंह कुछ ही दूरी पर खड़े आंसू बहाए जा रहे थे। अपनी बहन को यूं रोते देख उनकी आंखें भी बरसने लगीं थी और फिर जब रागिनी उनके पास आ कर उनसे लिपट कर रोने लगी तो उनकी हिचकियां भी निकल गईं। पूरा वातावरण गमगीन सा हो गया। यहां तक कि पिता जी की आंखों में भी आंसू भर आए।

बेटी की विदाई का ये पल घर वालों के लिए बड़ा ही भावुक और संवेदनशील होता है। पत्थर से पत्थर दिल इंसान भी भावनाओं में बह जाता है और मोम की तरह पिघल कर रो पड़ता है। यही हाल था सबका। औरतों का तो पहले से ही रुदन चालू था। भाभी की मां सुलोचना देवी को बार बार चक्कर आ जाता था। यही हाल उनकी देवरानी पुष्पा देवी का भी था। उनकी बहुएं और गांव की औरतें उन्हें सम्हालने लगतीं थी।

रागिनी भाभी की छोटी बहनें, सभी भाभियां और सहेली शालिनी सभी के चेहरे आंसुओं से तर थे। आख़िर भाइयों के बहुत समझाने बुझाने पर रागिनी भाभी उनसे अलग हुईं। शालिनी और कामिनी भाग कर आईं और उन्हें कार की तरफ ले चलीं। उनके पीछे औरतें भी आ गईं। ऐसा लगा जैसे एक बार फिर से भाभी पलट कर सबसे जा लिपटेंगी और रोने लगेंगी किंतु तभी शालिनी और वंदना ने उन्हें सम्हाल लिया और दुखी भाव से समझाते हुए उन्हें कार के अंदर बैठ जाने के लिए ज़ोर देने लगीं। इधर कार के अंदर बैठा मैं अपनी भाभी....नहीं नहीं अपनी पत्नी का रुदन देख खुद भी दुखी हो उठा था। मेरे अंदर एक तूफ़ान सा उठ गया था। उन्हें इस तरह तकलीफ़ से रोते देख मुझसे सहन नहीं हो रहा था लेकिन क्या कर सकता था। ये वक्त ही ऐसा था।

आख़िर किसी तरह वो कार के अंदर आ कर मेरे बगल से बैठ ही गईं लेकिन उनका रोना अब भी कम नहीं हो रहा था। कार की खिड़की से अपने हाथ बार बार बाहर निकाल कर रो ज़ोरों से रोने लगती थीं और बाहर निकलने को उतारू हो जातीं थी। कार के बाहर तरफ शालिनी, कामिनी, वंदना, सुषमा और उनकी मां चाची वगैरह खड़ी सिसक रहीं थी और साथ ही तरह तरह की बातें उन्हें समझाए जा रहीं थी।

कुछ समय बाद सबकी सहमति मिलते ही कार के ड्राइवर ने कार को स्टार्ट कर आगे बढ़ाना शुरू कर दिया लेकिन थोड़ी ही दूर जा कर वो रुक गया। अगले ही पल एक रस्म यहां भी हुई उसके बाद ड्राइवर ने कार को आगे बढ़ा दिया। कार के अंदर भाभी का रोना अभी भी चालू था। वो कभी बाबू जी कह कर रोती तो कभी मां कह कर। कभी भैया कह कर तो कभी भाभी कह कर। मेरे दूसरी तरफ बैठी कुसुम उन्हें इस तरह रोते देख खुद भी आंसू बहाने लगी थी। उससे अपनी भाभी का रोना देखा नहीं जा रहा था। पहले तो वो चुपचाप बस आंसू ही बहाए जा रही थी किंतु जब कार कुछ दूर आ गई तो वो भाभी को न रोने के लिए कहने लगी। आख़िर उसके बहुत कहने पर उनका रोना बंद हुआ लेकिन सिसकियां तब भी बंद न हुईं।

कार के पीछे पीछे अन्य लोग वाहनों में चले आ रहे थे। कच्ची सड़क पर एक लंबा काफ़िला नज़र आ रहा था। बीच में एक बस थी। सबसे पीछे ट्रैक्टर था जिसमें सामान लदा हुआ था।

क़रीब आधा घंटा समय गुज़रा था कि पीछे से एक जीप आई। उसमें अमर मामा बैठे थे। वो बोले कि आगे एक जगह कार रोक देना क्योंकि बहू को पानी पिलाना है जोकि उसका देवर पिलाएगा। ऐसा ही हुआ, कुछ दूर आने के बाद एक अनुकूल जगह पर ड्राइवर ने कार रोक दी।

थोड़ी ही देर में एक जीप हमारे पास आ कर रुकी। उसमें से विभोर और अजीत उतर कर हमारे पास आए। कुछ और लोग भी आ गए। थोड़ी ही दूर एक गांव दिख रहा था। सड़क के किनारे किसी का घर था जहां पर एक कुआं भी था। मामा विभोर को कुएं पर ले गए। विभोर ने कुएं से पानी खींचा और फिर मामा के दिए लोटे में पानी भर कर हमारे पास आया।

अजब और विचित्र संयोग था। एक वक्त था जब मैंने देवर के रूप में रागिनी भाभी को इसी तरह पानी पिलाया था और नेग में उन्होंने मुझे एक सोने की अंगूठी दी थी। आज वही भाभी मेरी पत्नी बन चुकीं थी और उनके देवर के रूप में विभोर उन्हें पानी पिलाने आया था। कितनी कमाल की बात थी कि उनके जीवन में ये रस्म अजीब तरह से दो बार हो रही थी।

बहरहाल, विभोर पानी ले कर आया और बहुत ही खुशी मन से उसने कार का दरवाज़ा खोल कर रागिनी भाभी की तरफ पानी से भरा लोटा बढ़ाया। रागिनी भाभी ने घूंघट के अंदर से एक नज़र विभोर को देखा और अपना हाथ बढ़ा कर उससे लोटा ले लिया। उसके बाद एक हाथ से उन्होंने अपने घूंघट को उठाया और लोटे को अपने मुंह के पास ले जा कर पानी पीने लगीं। मैं और कुसुम उन्हीं को देख रहे थे।

थोड़ी देर बाद रागिनी भाभी ने लोटा वापस विभोर को दे दिया और अपने गले से सोने की चैन उतार कर विभोर को पहना दिया। विभोर बड़ा खुश हुआ और उनके पैर छू कर मुस्कुराते हुए चला गया।

काफ़िला फिर से चल पड़ा। रागिनी भाभी घूंघट किए अब शांति से बैठी हुईं थी। इधर जैसे जैसे रुद्रपुर क़रीब आ रहा था मेरी धड़कनें बढ़ती जा रहीं थी। यूं तो कार में ड्राइवर के अलावा सिर्फ कुसुम ही थी इस लिए मैं उनसे बात कर सकता था लेकिन जाने क्यों उनसे बात करने की हिम्मत नहीं हो रही थी।

"वैसे भैया।" अचानक कुसुम मुस्कुराते हुए बोल पड़ी____"विभोर भैया को तो बड़ा फ़ायदा हुआ। भाभी को उन्होंने बस पानी पिलाया और उन्हें सोने की चैन मिल गई। मुझे और अजीत को तो कुछ दिया ही नहीं भाभी ने। हमारे साथ ये नाइंसाफी क्यों?"

"इस बारे में भला मैं क्या कहूं गुड़िया?" मैंने भाभी पर एक नज़र डालने के बाद उससे कहा____"मैंने तो ऐसा कुछ किया नहीं है। जिन्होंने किया है तुझे उनसे ही पूछना चाहिए।"

"मतलब आप कुछ नहीं कहेंगे?" कुसुम ने हैरानी से मेरी तरफ देखा____"वाह! क्या कहने आपके। भाभी के आते ही आप अपनी लाडली बहन को नज़रअंदाज़ करने लगे। बड़ी मां से शिकायत करूंगी आपकी, हां नहीं तो।"

"अरे! ये क्या कह रही है तू?" मैं उसकी बातों से चौंका____"तू मुझ पर गुस्सा क्यों होती है गुड़िया? मैंने तो कुछ किया ही नहीं है।"

"हां यही तो बात है कि आपने कुछ किया ही नहीं।" कुसुम ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा____"वैसे तो बड़ा कहते हैं कि तू मेरी गुड़िया है, मेरी जान है, मेरा सब कुछ है।"

मुझे समझ ना आया कि अब क्या करूं? भाभी भी कुछ बोल नहीं रहीं थी और गुड़िया थी कि मुझे घूरे ही जा रही थी। मैं सोचने लगा कि अब कैसे अपनी गुड़िया का पक्ष ले कर उसकी नाराज़गी दूर करूं?

"इ...इन पर क्यों गुस्सा होती हो कुसुम?" सहसा भाभी ने धीरे से कुसुम की तरफ देखते हुए कहा____"मुझे बताओ क्या चाहिए तुम्हें?"

"अरे वाह!" भाभी की बात सुनते ही कुसुम का चेहरा खुशी से खिल उठा। फिर मुझे देखते हुए बोली____"देखा भैया, आपने तो अपनी गुड़िया के लिए कुछ नहीं किया लेकिन मेरी सबसे अच्छी वाली भाभी ने झट से पूछ लिया कि मुझे क्या चाहिए। इसका मतलब आपसे ज़्यादा भाभी मुझे मानती हैं।"

"वाह! क्या बात है।" मैंने उसे घूरा____"कुछ मिलने की बात आई तो बड़ा जल्दी पाला बदल लिया तूने। अभी तक तो मैं ही तेरा सबसे अच्छे वाला भैया था और तुझे अपनी जान मानता था और अब ऐसा बोल रही है तू? चल कोई बात नहीं, अब से मैं भी तुझे नहीं विभोर और अजीत को सबसे ज़्यादा प्यार करूंगा और उन्हें अपनी जान कहूंगा।"

"अरे अरे! ये क्या कह रहे हैं आप?" कुसुम बुरी तरह बौखला गई____"नहीं नहीं ऐसा नहीं करेंगे आप। मुझसे ग़लती हो गई, अपनी गुड़िया को माफ़ कर दीजिए ना। आप तो मेरे सबसे अच्छे वाले भैया हैं ना?"

"अच्छा।" मैं मुस्कुराया____"बड़ा जल्दी समझ आ गया तुझे।"

"क्यों मेरी मासूम सी ननद को सता रहे हैं?" भाभी ने लरजते स्वर में धीरे से कहा____"इसका हम दोनों पर बराबर हक़ है। इसे हमसे जो भी चाहिए वो देना हमारा फर्ज़ है।"

"ये, देखा आपने।" कुसुम खुशी से मानों उछल ही पड़ी____"भाभी को आपसे ज़्यादा पता है। अब बताइए, क्या अब भी कुछ कहेंगे आप मुझे?"

"अरे! मैंने तो पहले भी तुझे कुछ नहीं कहा था पागल।" मैंने उसके चेहरे को प्यार से सहला कर कहा____"ख़ैर चल बता अब, क्या चाहिए तुझे?"

"मुझे।" कुसुम सोचने लगी, फिर जैसे उसे कुछ समझ आया तो बोली____"मुझे ना आप दोनों से सिर्फ एक ही चीज़ चाहिए। मैं आप दोनों से बस यही मांगती हूं कि आप दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करें और जैसे अब तक आप दोनों मुझे इतना ज़्यादा प्यार देते आए हैं वैसे ही हमेशा देते रहें।"

कुसुम की बात सुन कर मैं दंग रह गया। मैंने रागिनी भाभी की तरफ देखा। उन्होंने भी गर्दन घुमा कर मुझे देखा। घूंघट के अंदर उनके चेहरे पर लाज की सुर्खी छा गई नज़र आई और होठों पर शर्म से भरी हल्की मुस्कान।

"क्या हुआ?" हमें कुछ न बोलता देख कुसुम बोल पड़ी____"आप दोनों कुछ बोल क्यों नहीं रहे? क्या आप दोनों मेरी ये मांग पूरी नहीं करेंगे?"

"मुझे तो तेरी ये मांग मंज़ूर है गुड़िया।" मैंने धड़कते दिल से कहा____"बाकी तेरी भाभी का मुझे नहीं पता।"

"म...मुझे भी मंज़ूर है कुसुम।" रागिनी भाभी ने थोड़े झिझक के साथ कहा____"बाकी तुम्हें तो मैं पहले भी बहुत मानती थी और आगे भी मानूंगी। तुम सच में हमारी गुड़िया हो।"

भाभी की बात सुनते ही जहां कुसुम खुशी से झूम उठी वहीं मेरी धड़कनें ये सोच कर तेज़ हो गईं कि क्या सच में रागिनी भाभी वही करेंगी जो अभी उन्होंने कहा है? यानि क्या सच में वो मुझसे प्यार करेंगी? पलक झपकते ही ज़हन में न जाने कैसे कैसे ख़याल उभर आए। मैंने फ़ौरन खुद को सम्हाला। ख़ैर ऐसी ही हंसी खुशी के साथ बाकी का सफ़र गुज़रा और हम रुद्रपुर में दाख़िल हो कर हवेली पहुंच गए।

✮✮✮✮

हवेली में मां और चाची हमारे स्वागत के लिए पहले से ही तैयार थीं। जैसे ही हम सब वहां पहुंचे तो आगे का कार्यक्रम शुरू हो गया।

कार मुख्य द्वार के सामने खड़ी थी। मां बाकी औरतों के साथ हमारा परछन करने के लिए आगे बढ़ीं। सब एक साथ गीत गा रहीं थी। एक तरफ बैंड बाजा वाले लगे पड़े थे। हवेली के बाहर विशाल मैदान में भारी भीड़ इकट्ठा हो गई थी। इधर मां मेरी और अपनी नई नवेली बहू की गाते हुए आरती उतार रहीं थी। कुछ देर परछन की उनकी क्रियाएं चलती रहीं उसके बाद हम दोनों कार से उतरे।

एक बार फिर से वातावरण में बंदूकें गरज उठीं थी। एक बार फिर से नाच गाना शुरू हो गया था। इस बार ऐसा हुआ कि जल्दी थमा ही नहीं। मामा लोग नाचने वालियों पर रुपए उड़ा रहे थे। महेंद्र सिंह, अर्जुन सिंह और संजय सिंह भी पीछे नहीं हटे। वो भी पैसे उड़ाने लगे। बैंड बाजा वाले अपना गाना बजाना भूल कर रुपए पैसे बिनने लगे। गांव के कुछ छोटे बच्चे घुस आए थे वो भी बिनने लगे।

काफी देर तक नाच गाना चलता रहा। इस बीच मैं और रागिनी भाभी वापस कार में बैठ कर नाच गाना देखने लगे थे। जब वो सब बंद हुआ तो मां और मेनका चाची मेरे पास आईं और हम दोनों को अंदर चलने को कहा।

मुख्य द्वार की दहलीज़ पर पहुंचते ही मां ने रुकने का इशारा किया। डेढी के अंदर पीतल का एक लोटा रखा हुआ था जिसमें चावल थे। मां के कहने पर रागिनी भाभी ने अपने एक पांव से उस लोटे को ठेला तो वो आगे की तरफ लुढ़क गया। सभी मुस्कुराते हुए आगे बढ़ीं। कुछ ही क़दम पर एक बड़ी सी थाली रखी हुई थी जिसमें रंग घुला हुआ था। चाची के कहने पर भाभी ने उसमें अपने दोनों पैर रखे और फिर आगे बढ़ चलीं। मैं उनके साथ ही चल रहा था।

कुछ ही समय में हम सब अंदर आ गए। उसके बाद अंदर कुछ परंपरा के अनुसार रस्में और रीतियां होने लगीं, पूजा वगैरह हुई। एक तरफ सबके भोजन की व्यवस्था शुरू हो गई।


आज खिचड़ी भी थी जिसमें बहू के हाथों सबको खिचड़ी परोसी जानी थी। खाने वाले अपनी स्वेच्छा से उपहार अथवा रुपए पैसे बहू को देते थे। कुछ समय बाद ऐसा ही हुआ। सबने अपनी अपनी तरफ से अनेकों उपहार और रुपए पैसे उन्हें दिए जिन्हें कुसुम कजरी सुमन और सुषमा पकड़ती जा रहीं थी।

आख़िर इस सबके संपन्न होने के बाद थोड़ी राहत मिली। पिता जी के मित्रगण अपने अपने घरों को लौट गए। अब हवेली में सिर्फ नात रिश्तेदार ही रह गए थे। मैं गुसलखाने में नहा धो कर मामा के पास आ कर बैठ गया था। रात भर का थका था और अब मुझे बिस्तर ही दिखाई दे रहा था लेकिन कमरे में जाने से झिझक रहा था क्योंकि मेरे कमरे में रागिनी भाभी पहुंच चुकीं थी। हालाकि दुल्हन को देखने वालों का आगमन शुरू हो गया था जोकि गांव की औरतें ही थीं किंतु उन्हें कुछ देर आराम करने के लिए कमरे में पहुंचा दिया गया था।

"क्या हुआ भांजे?" मैं जैसे ही मामा के पास बैठा तो मामा ने कहा____"थक गया होगा ना तू? रात भर बैठे रहना आसान बात नहीं होती। एक काम कर कमरे में जा के आराम कर।"

"थक तो गया हूं मामा।" मैंने कहा____"लेकिन कमरे में कैसे जाऊं? वहां तो....।"

"ओह! समझ गया।" मामा हल्के से मुस्कुराए____"तो किसी दूसरे कमरे में जा कर आराम कर ले। हवेली में कमरों की कमी थोड़ी ना है। या फिर तू अपने कमरे में ही आराम करना चाहता है?"

"नहीं, ऐसी बात नहीं है।" मैं थोड़ा झेंप गया____"ठीक है मैं किसी दूसरे कमरे में आराम करने चला जाता हूं।"

अभी मैं जाने ही लगा था कि तभी रोहिणी मामी आ गईं। शायद उन्होंने हमारी बातें सुन लीं थी। अतः मुस्कुराते हुए बोलीं____"क्या हुआ वैभव? अपने कमरे में आराम करने में क्या समस्या है?"

"क...कोई समस्या नहीं है मामी।" मैं हकलाते हुए बोला____"लेकिन बात ये है कि फिलहाल मैं अकेले स्वतंत्र रूप से कहीं आराम कर लेना चाहता हूं।"

"हां ज़रूरी भी है।" मामी ने गहरी मुस्कान के साथ कहा____"क्या पता बाद में आराम करने का मौका मिले न मिले।"

"अरे अरे! ये कैसी बातें कर रही हो तुम?" मामा एकदम से चौंक कर बोल पड़े____"भांजे से थोड़ा तो लिहाज करो, जाओ यहां से।"

मामी हंसते हुए चली गईं। मामा ने मुझे आराम करने को कहा तो मैं ये सोचते हुए एक कमरे की तरफ बढ़ चला कि मामी भी मौका देख कर व्यंग बाण चला ही देती हैं। ख़ैर मैं नीचे ही एक कमरे में जा कर पलंग पर लेट गया। बड़ा ही सुखद एहसास हुआ। पहली बार एहसास हुआ कि गद्देदार बिस्तर कितना आरामदायक और सुखदाई होता है। कुछ ही देर में मुझे नींद ने अपनी आगोश में ले लिया। बंद पलकों में एकदम से एक हसीन ख़्वाब चलचित्र की तरह दिखने लगा। उसके बाद शाम तक मैं सोता ही रहा।

✮✮✮✮

रूपा खा पी कर अपने कमरे में बिस्तर पर लेटी हुई थी। पिछले कुछ दिनों से उसे अकेले रहने का बहुत ही कम अवसर मिला था। जैसे जैसे विवाह का दिन क़रीब आ रहा था उसकी धड़कनें बढ़ती जा रहीं थी। मन में तो बहुत पहले ही उसने न जाने कैसे कैसे ख़्वाब बुन लिए थे जिनके बारे में सोच कर ही उसके अंदर एक सुखद अनुभूति होने लगती थी लेकिन आज का दिन बाकी दिनों से बहुत अलग महसूस हो रहा था उसे। आज उसका होने वाला पति अपनी पहली पत्नी को ब्याह कर ले आया था। हवेली में बैंड बाजा बजने की गूंज उसके कानों तक भी पहुंची थी। कल उसकी बड़ी मां यानि फूलवती और चाची सुनैना देवी हवेली गई हुईं थी जब वैभव की बारात हवेली से निकलने वाली थी।

बिस्तर पर लेटी रूपा के मन में बहुत सी बातें चल रहीं थी। उन सब बातों को सोचते हुए कभी उसकी धड़कनें तेज़ हो जातीं तो कभी थम सी जातीं। आंखों के सामने कभी वैभव का चेहरा उभर आता तो कभी रागिनी का तो कभी दोनों का एक साथ। वो कल्पना करने लगती कि उसका प्रियतम आज अपनी पहली पत्नी के साथ एक ही कमरे में रहेगा, उसके साथ एक ही बिस्तर पर होगा और....और फिर दोनों एक साथ प्रेम में डूब जाएंगे। इस एहसास के साथ ही रूपा को थोड़ा झटका सा लगता और वो एकदम से वर्तमान में आ जाती। फिर वो खुद को समझाने लगती कि बहुत जल्द वो भी अपने प्रियतम की पत्नी बन कर हवेली में पहुंच जाएगी और रागिनी दीदी की ही तरह वैभव उसे भी प्रेम करेंगे।

"अरे! रूपा सुना तुमने?" सहसा कमरे में उसकी बड़ी भाभी कुमुद दाख़िल हुई और उससे बोली____"तुम्हारे होने वाले पतिदेव अपनी पहली दुल्हन ले आए। हमारे घर के सामने से ही वो सब निकले हैं। अब तक तो परछन भी हो गया होगा।"

"हां बैंड बाजा बजने की आवाज़ें मैंने भी सुनी हैं भाभी।" रूपा बिस्तर से उठ कर बोली____"क्या बड़ी मां नहीं गईं वहां?"

"गईं हैं।" कुमुद ने कहा____"उनके साथ राधा भी गई है।"

"रूप भैया आ गए क्या?" रूपा ने पूछा____"वो भी तो उनकी बारात में गए थे।"

"जब बारात आ गई है तो वो भी आ ही गए होंगे।" कुमुद ने कहा____"फिलहाल घर तो अभी नहीं आए वो। आ जाएंगे थोड़ी देर में। ख़ैर तुम बताओ, अकेले में किसके ख़यालों में गुम थी?"

"किसी के तो नहीं।" रूपा एकदम से शरमाते हुए बोली____"मैं तो बस ऐसे ही लेटी हुई थी।"

"झूठ ऐसा बोलो जिसे सामने वाला यकीन कर ले।" कुमुद ने मुस्कुराते हुए कहा____"मुझे अच्छी तरह पता है कि इस वक्त तुम अपने होने वाले पतिदेव के बारे में ही सोचने में गुम थी। ज़रा बताओ तो कि क्या क्या सोच लिया है तुमने?"

"ऐसा कुछ नहीं है भाभी।" रूपा ने शर्म से मुस्कुराते हुए कहा____"मैं भला क्यों कुछ सोचूंगी?"

"क्या सच में?" कुमुद ने अपनी भौंहें उठा कर उसे देखा____"क्या सच में तुम आज की स्थिति के बारे में नहीं सोच रही थी? मैं मान ही नहीं सकती कि तुम्हारे मन में अपने होने वाले पति और अपनी सौतन के संबंध में कोई ख़याल ही न आया होगा।"

"उन्हें मेरी सौतन मत कहिए भाभी।" रूपा ने सहसा अधीर हो कर कहा____"वो तो मेरी दीदी हैं, सबसे अच्छी वाली बड़ी दीदी। मैं बहुत खुश हूं कि उनका फिर से विवाह हो गया और अब उनका जीवन खुशी के रंगों से भर जाएगा। मैं यही दुआ करती हूं कि आज की रात वो उन्हें खूब प्यार करें और उनके सारे दुख को भुला दें।"

"तुम सच में बहुत अद्भुत हो रूपा।" कुमुद ने पास आ कर रूपा के कंधे को दबाते हुए कहा____"दुनिया की हर औरत अपने पति की दूसरी पत्नी को अपनी सौतन ही मानती है और ये भी सच ही है कि वो कभी उस औरत को पसंद नहीं करती लेकिन तुम इसका अपवाद हो मेरी ननद रानी। तुम अपने पति की उन नव विवाहिता पत्नी को सच्चे दिल से अपनी दीदी कहती हो और उनकी खुशियों की कामना कर रही हो। ऐसा तुम्हारे अलावा शायद ही कोई सोच सकता है।"

"मैं ये सब नहीं जानती भाभी।" रूपा ने कहा____"मैं तो बस इतना चाहती हूं कि उनसे जुड़ा हर व्यक्ति खुश रहे। ईश्वर से यही कामना करती हूं कि मेरे दिल में भी हमेशा उनसे जुड़े हर व्यक्ति के लिए आदर, सम्मान और प्रेम की ही भावना रहे।"

"तुम प्रेम की मूरत हो रूपा।" कुमुद ने कहा____"तुम कभी किसी के बारे में कुछ बुरा सोच ही नहीं सकती हो। काश! दुनिया की हर औरत का हृदय तुम्हारे जैसा हो जाए।"

"मैं सोच रही हूं कि इस वक्त रागिनी दीदी सुहागन के पूरे श्रृंगार में कैसी दिखती होंगी?" रूपा ने कहा____"उनकी सुंदरता के बारे में मैंने पहले भी बहुत सुना था। विधवा के लिबास में उन्हें देखा भी है। वो सादगी और सौम्यता से भरी हुई हैं। उनका हृदय बहुत साफ और निश्छल है। मेरा बहुत मन कर रहा है कि मैं उन्हें दुल्हन के रूप में सजा हुआ देखूं। फिर आपसे आ कर कहूं कि आप भी मुझे उस दिन उनके जैसा ही सजाना।"

"पागल हो तुम।" कुमुद ने प्यार से उसका चेहरा सहलाया____"चिंता मत करो, मैं तुम्हें तुम्हारी रागिनी दीदी से भी ज़्यादा अच्छे तरीके से सजाऊंगी। तुम अपनी दीदी से कम सुंदर नहीं लगोगी देख लेना।"

"नहीं भाभी।" रूपा ने झट से कहा____"मैं उनसे ज़्यादा नहीं सजना चाहती। मैं चाहती हूं कि मेरी दीदी को मुझसे ज़्यादा उनका प्यार मिले। मैं तो बस अपनी दीदी के साथ रह कर उनके जैसा बनने की कोशिश करूंगी। मैं चाहती हूं कि जैसे वो कुसुम को अपनी गुड़िया कहते हैं और उसे जी जान से प्यार करते हैं वैसे ही मेरी दीदी मुझे अपनी छोटी सी गुड़िया मान कर मुझे प्यार करें। जब ऐसा होगा तो कितना अच्छा होगा ना भाभी?"

"ओह! रूपा बस करो।" कुमुद ने भावना में बह कर उसे अपने सीने से लगा लिया। उसकी आंखें भर आईं थी, बोली____"किस मिट्टी की बनी हुई हो तुम? तुम्हारे हृदय में क्यों ऐसी अनोखी भावनाएं जन्म ले लेती हैं? मेरी प्यारी ननद, मेरी प्यारी रूपा। भगवान तुम्हें हमेशा ऐसा ही बनाए रखे। हमेशा तुम्हें खुश रखे। हमेशा तुम्हें तुम्हारे प्रियतम के प्रेम का उपहार दे।"

कुमुद सच में रूपा की बातों से भाव विभोर सी हो गई थी। उसका बस चलता तो वो रूपा को अपने सीने के अंदर समा लेती। उधर रूपा के सुर्ख होठों पर हल्की सी मुस्कान उभर आई और आंख से आंसू का एक कतरा छलक गया।



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दुनिया की कोई पत्नी नही चाहती कि उसके पति का बंटवारा हो । शादी-ब्याह तो दूर की बात है , वो यह भी नही चाहती कि उसके हसबैंड का किसी अन्य औरत के साथ किसी तरह का चक्कर भी हो ।
रूपा इस मामले मे अपवाद है । वो उस राधा की तरह है जो अपना प्रेम दर्शाने के लिए किसी शादी वगैरह का मोहताज नही होती । जिसे सत्यभामा , रुक्मिणी और जामवंती से इर्ष्या या जलन नही होती ।
अपने इस अद्भुत चरित्र के लिए रूपा निस्संदेह सम्मान की हकदार है ।

शादी-ब्याह के लिए हर मजहब की अपनी - अपनी रस्में है । सनातन धर्म के अन्तर्गत भी अनेक प्रकार की रस्में है जो अलग-अलग तरीक़े से मनाई जाती है ।
रागिनी और वैभव के विवाह के दौरान हर्ष फायरिंग शायद अब बीते हुए कालखण्ड की बात हो गई । ऐसा करना अब कानून के नियमों का उल्लंघन करना माना जाता है । सौभाग्य से मेरी शादी मे हर्ष फायरिंग हुई थी लेकिन यह उस वक्त होता है जब वर पक्ष और वधू पक्ष के बीच मिलन समारोह होता है , एक दूसरे के गले मे फूलों की माला पहनाई जाती है । इस दौरान दोनो पक्ष के बीच हाथी , घोड़े वगैरह दौड़ाए जाते है ।

एक और रस्म है जूते चुराने का रस्म । इस रस्म की लोकप्रियता मेरे हिसाब से तब अधिक हो गई जब सूरज चंद बड़जात्या साहब की फिल्म " हम आपके है कौन " आई । यह रस्म शादी-ब्याह का एक बेहतरीन इवेंट बन गया उस फिल्म के रिलीज होने के बाद ।

वैसे मुझे लगता है रागिनी और वैभव की शादी इतने भव्य तरीके से न होकर साधारण तरीके से होती तो कहीं बढ़िया होता ।
रागिनी की बिदाई के वक्त उसके फैमिली का रोना , खुद रागिनी का भी रोना स्वभाविक नही लगता । यह सिर्फ रागिनी के लिए नही वरन पुरे परिवार के लिए बहुत ही खुशी और बड़े ही सौभाग्य की बात थी कि रागिनी की पुनः शादी हुई और पुनः दादा ठाकुर का हवेली ही उसका ससुराल बना ।
ऐसे कितने लोग हैं जिन्हे ऐसा मौका मिलता है ! ऐसे कितनी बिधवा औरते है जिन्हे फिर से सुहागन होने का नसीब प्राप्त होता है !

बहुत ही खूबसूरत अपडेट शुभम भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
 
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Kuldipr99

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अध्याय - 164
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सरला ने लपक कर मेरे लंड को मुंह में भर लिया और मेरा वीर्य पीने लगी। आनंद की चरम सीमा में पहुंचने के बाद मैं एकदम शांत पड़ गया। उधर सरला सारा वीर्य गटकने के बाद अब मेरे लंड को चाट रही थी। बड़ी की कौमुक और चुदक्कड़ औरत थी शायद।


अब आगे....


तीन दिन मानों पंख लगा कर उड़ गए और विवाह का दिन आ गया। हवेली किसी दुल्हन की तरह सजी हुई थी। पिता जी मानों सब कुछ भूल कर इस पल को जी लेना चाहते थे। तभी तो ठीक उसी तरह हवेली को सजवाया था जैसे बड़े भैया के विवाह के समय सजवाया था। थोड़ा भावुक से नज़र आ रहे थे वो, कदाचित बड़े बेटे का इसी तरह विवाह करना याद आ गया था उन्हें। मां का भी यही हाल था लेकिन वो किसी तरह अपने जज़्बातों को काबू में रखे हुए थीं।

एक तरफ मुझे सजाया जा रहा था। अमर मामा मुझे सजता देख बड़ा खुश थे। हर कोई खुश था। मेरी बहनें पहले से ही सज धज कर तैयार थीं और मेरे पास ही बैठी हुईं थी। कुसुम का बस चलता तो वो खुशी के मारे उछलने कूदने लगती लेकिन जाने कैसे खुद को रोक रखा उसने? विभोर और अजीत भी सज धज कर तैयार थे। दोनों के चेहरे खुशी से चमक रहे थे। हवेली के अंदर औरतें गीत गा रहीं थी।

हवेली के बाहर पहले से ही ढोल नगाड़े बज रहे थे। बारात में जाने के लिए काफी लोग जमा हो गए थे। पिता जी को पहले से ही पता था कि लोग ज़्यादा होंगे इस लिए शहर से उन्होंने एक बस गाड़ी बुला लिया था। मेरे लिए यानि दूल्हे के लिए एक चमचमाती एंबेसडर कार आ गई थी। हमारे पास पहले से ही चार जीपें थी। महेंद्र सिंह की दो जीपें थी, अर्जुन भी अपनी दो जीपें ले आए थे। वहीं अवधेश मामा और अमर मामा की जीपें भी थी। हवेली के विशाल मैदान में वाहन ही वाहन दिख रहे थे। पिता जी ने बारात में चलने के लिए रूपचंद्र और गौरी शंकर को भी निमंत्रण दिया था इस लिए वो भी आ गए थे। उनके घर से फूलवती और सुनैना देवी भी इस वक्त हवेली में मौजूद थी और सबके साथ गीत गा रहीं थी।

आख़िर शाम होने से पहले ही मुझे दूल्हा बना कर अंदर से बाहर लाया जाने लगा। औरतें गीत गा रहीं थी और धीरे धीरे मुझे बाहर ला रहीं थी। मैं आज दूल्हा बना हुआ था। मुझे इस तरह सजाया गया था कि जैसे ही मैं बाहर आया सबके सब मुझे ही देखते रह गए। अचानक ही वातावरण बंदूकों के तेज़ धमाकों से गूंजने लगा। सबसे पहले महेंद्र सिंह ने अपनी बंदूक की नाल ऊपर कर के मानों सलामी। उनके बाद ज्ञानेंद्र सिंह, अर्जुन सिंह, संजय सिंह। पिता जी की बंदूक बड़े मामा ले रखे थे इस लिए उन्होंने एक के बाद एक फायर किया। ढोल नगाड़ों का शोर कुछ और ज़्यादा होने लगा। रूपचंद्र मुझे देखते ही मेरे पास भाग कर आया। मुझे देख वो बड़ा खुश हुआ।

अमर मामा ने मुझे कार में बैठाया। मां और मेनका चाची मेरी आरती उतार कर मुझे तिलक करने लगीं। एकाएक फिर से वातावरण में शोर उठा। मैंने देखा कार के सामने अमर मामा नाचने लगे थे। ये देख एक एक कर के बाकी लोग भी नाचने लगे। थोड़ी देर बाद जब वो रुके तो मेरी मामियां नाचने लगीं। कुसुम, सुमन और सुषमा भी नाचने लगीं।

"भाभी श्री बेटे का विवाह होने जा रहा है आज।" सहसा महेंद्र सिंह मां के पास आ कर बोले____"इस शुभ अवसर पर आपको भी खुशी से नाचना चाहिए।"

"हां जी क्यों नहीं।" मां ने मुस्कुराते हुए कहा____"लेकिन आपको भी हमारे साथ नाचना होगा।"

"अरे! ये भी कोई कहने की बात है भला।" महेंद्र सिंह ने हंसते हुए कहा____"हम तो वैसे भी अपने मित्र के साथ नाचने का सोच चुके थे। आपके साथ नाचना तो हमारे लिए बड़े सौभाग्य की बात है।"

"अच्छा जी ऐसा है क्या?" मां मुस्कुराईं___"तो फिर चलिए। हम भी तो देखें कि आप हमारे साथ कितना उछलते हैं।"

सबने मां और महेंद्र सिंह की बातें सुन ली थी। इस लिए सब उन्हें ही देखने लगे थे। अर्जुन सिंह तेज़ी से आए और गाना बजाने वालों को रोक कर अच्छा सा गाना बजाने को कहा। फिर क्या था वो बजाने लगे। इधर जैसे ही गाना बजना शुरू हुआ तो मां आगे बढ़ीं और नाचने लगीं। उन्हें नाचता देख सभी औरतें लड़कियां आंखें फाड़ कर उन्हें देखने लगीं। महेंद्र सिंह मुस्कुराते हुए आगे बढ़े और मां के साथ वो भी नाचने लगे। ये देख अर्जुन सिंह वगैरह सब के सब खुशी से चीखने लगे। ज्ञानेंद्र सिंह आज अपने बड़े भाई साहब को इस तरह नाचते देख पहले तो हैरान हुआ फिर खुशी से तालियां बजाने लगा। पलक झपकते ही सबको पता चल गया कि हवेली की बड़ी ठकुराईन और महेंद्र सिंह नाच रहे हैं। इस लिए सब के सब उस जगह की तरफ भागते हुए आए।

मां और महेंद्र सिंह नाचने में लगे हुए थे। मां का तो ख़ैर समझ में भी आ रहा था लेकिन महेंद्र सिंह ऐसे ही उछल रहे थे। उन्हें ताल अथवा रिदम से कोई मतलब नहीं था। सहसा उनकी नज़र मेनका चाची पर पड़ी तो नाचते हुए एकाएक वो उनकी तरफ बढ़ चले। मेनका चाची ये देख चौंकी।

"मझली ठकुराईन आप इस तरह चुपचाप क्यों खड़ी हैं?" फिर उन्होंने चाची से कहा____"आप तो वैभव की चाची हैं। आपको भी तो इस खुशी के अवसर पर नाचना चाहिए, आइए न।"

मेनका चाची उनकी बात सुन कर घबरा सी गईं। घूंघट किए वो पिता जी की तरफ देखने लगीं। उनके पीछे खड़ी औरतें उन्हें पीछे से धकेलने लगीं और कहने कि आप भी नाचिए मझली ठकुराईन। पिता जी ने शायद इशारा कर दिया था इस लिए चाची ने पलट कर महेंद्र सिंह की तरफ देखा।

"आइए न ठकुराईन।" महेंद्र सिंह ने बड़े प्रेम भाव से कहा____"हमसे अब शर्माने की ज़रूरत नहीं है। हम तो वैसे भी आने वाले समय में एक नए रिश्ते में बंध जाएंगे। क्या आपको अभी भी हमारा प्रस्ताव मंज़ूर नहीं है?"

मेनका चाची बोली तो कुछ न लेकिन आगे ज़रूर बढ़ कर आ गईं। ये देख महेंद्र सिंह खुश हो गए। मां थोड़ी देर के लिए रुक गईं थी। शायद नाचने से उनकी सांसें फूल गईं थी। उधर जैसे ही चाची आगे आईं तो अर्जुन सिंह ने दूसरा गाना बजाने का हुकुम दिया। जैसे ही दूसरा गाना बजा महेंद्र सिंह ने खुद ही नाचना शुरू कर दिया। मैं कार में बैठा ये सब देख रहा था। सबको इस तरह नाचते देख मुझे भी अच्छा लग रहा था।

महेंद्र सिंह को नाचता देख चाची भी नाचने लगीं। ये देख विभोर और अजीत खुशी से झूम उठे। वो दोनों भी अपनी मां के साथ नाचने लगे। मैंने देखा मेनका चाची सच में बहुत अच्छा नाच रहीं थी। महेंद्र सिंह ने फिर से मां को बुला लिया तो मां भी आगे बढ़ कर नाचने लगीं। पिता जी दूर से ये सब देख रहे थे। उनके चेहरे पर भी खुशी के भाव थे। सहसा महेंद्र सिंह पलटे और जा कर पिता जी का हाथ पकड़ लिया।

"ठाकुर साहब।" फिर वो बोले____"आप भी आइए न। इस शुभ अवसर पर आज आपको भी नाचना पड़ेगा। कृपया इंकार मत कीजिएगा।"

पिता जी सच में इंकार नहीं कर सके। उन्होंने मुस्कुराते हुए हां कहा और फिर उन्होंने अर्जुन सिंह और संजय सिंह को भी बुला लिया। वो दोनों भी हंसते हुए आ गए। उसके बाद शुरू हुआ ठुमकना। ये देख हर कोई ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगा। एक बार फिर से वातावरण में बंदूकें गरज उठीं।

जीवन में आज पहली लोग दादा ठाकुर को नाचते हुए देख रहे थे। उनके लिए जैसे ये पल बड़ा ही अद्भुत था। देखते ही देखते मामा लोग और बाकी लोग भी नाच में शामिल हो गए। शेरा, भुवन और रूपचंद्र भी नाचने लगे। सच में अद्भुत नज़ारा दिखने लगा था।

आख़िर कुछ देर बाद सबका नाचना बंद हुआ। पिता जी ने कहा कि अब चलना चाहिए, आगे देवी मां के मंदिर में अभी पूजा भी करनी है। उनके कहने पर सब बाराती लोग वाहनों में बैठने लगे। कुछ ही देर में काफ़िला हाथी दरवाज़े की तरफ बढ़ चला। सभी औरतें भी गीत गाते हुए आने लगीं।

थोड़ी ही देर में हम सब मंदिर पहुंच गए। मामा जी के कहने पर मैं कार से उतरा और जूते उतार कर मंदिर की तरफ बढ़ चला। मंदिर में पूजा की मैंने, नारियल तोड़ा। थोड़ी देर वहां भी नाच गाना हुआ उसके बाद फिर से बारात चल पड़ी। कुसुम के साथ सुमन और सुषमा मेरी कार में मेरे साथ ही बैठ गईं थी। उनके साथ अमर मामा भी थे। सभी औरतें मंदिर से ही वापस हवेली लौट गईं जबकि हम सब चंदनपुर के लिए चल पड़े थे।

✮✮✮✮

चंदनपुर में भी कम रौनक नहीं थी। पूरा घर दुल्हन की तरह सजा हुआ था। घर के बाहर बड़े से मैदान में चारो तरफ चांदनी लगी हुई थी। चाचा ससुर का घर बगल से ही था इस लिए दोनों घरों के बीच जो लकड़ी की बाउंड्री होती थी उसे हटा कर चौगान को एक कर दिया गया था ताकि ना तो इधर से उधर आने जाने में समस्या हो और ना ही बारातियों को बैठने के लिए जगह कम पड़े। हर जगह चांदनी लगी हुई थी। मैदान अच्छे से साफ कर दिया गया था।

वीरेंद्र सिंह, बलवीर सिंह और वीर सिंह तीनों भागे भागे फिर रहे थे। उनकी ससुराल से आए लोग भी कामों में लगे हुए थे। सबको समझा दिया गया था कि बारात के आते ही क्या क्या करना है और कैसे कैसे करना है। सबसे पहले बारातियों का अच्छे से स्वागत करना है। जल पान, नाश्ता वगैरह देना है। ये सारी बातें कल से ही समझाई जा रहीं थी।

घर के अंदर आंगन में मंडप था जहां पर विवाह होना था। ढेर सारी औरतें अलग अलग कामों में लगी हुईं थी। एक तरफ बरातियों के लिए तरह तरह के पकवान बनाए जा रहे थे।

वहीं एक कमरे में रागिनी पलंग पर मेंहदी लगाए बैठी थी। उसके चारो तरफ लड़कियों की भीड़ थी। उन सबकी मुखिया मानों शालिनी थी। गांव की कुछ और लड़कियां आ गईं थी। सब रागिनी को चारो तरफ से घेरे हुए थीं और हंसी ठिठोली कर के रागिनी का बोलना बंद किए हुए थीं।

कामिनी बीच बीच में बाहर से आती और अपनी दीदी पर एक भरपूर नज़र डाल कर चली जाती। अपनी बड़ी बहन के लिए आज वो बहुत खुश थी। हमेशा शांत और गंभीर रहने वाली लड़की इन कुछ महीनों में बहुत बदल गई थी।

ऐसे ही हंसी खुशी वक्त गुज़रता रहा और शाम घिर गई। अंदर बाहर हर जगह बल्ब लगे हुए थे जो शाम होते ही जनरेटर के द्वारा रोशन हो उठे। रंग बिरंगी चांदनी बल्बों के रोशन हो जाने से जगमग जगमग करने लगी।

"क्या सोच रही हो रागिनी?" शालिनी ने पूछा____"देख अब तो बारात के आने समय भी होने लगा है। कुछ ही देर में तेरे दूल्हे राजा आ जाएंगे। आज रात तू उनकी पत्नी बन जाएगी और कल सुबह वो तुझे अपने साथ ले जाएंगे। उसके बाद वहां हवेली के उनके कमरे में तू उनके साथ....।"

"चुप कर बेशर्म।" रागिनी झट से बोल पड़ी____"जब देखो यही चलता रहता है तेरे मन में।"

"चल मान लिया कि मेरे मन में चलता रहता है लेकिन।" शालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"लेकिन अब तो तेरे मन में भी चलने ही लगा होगा। मुझे यकीन है सुहागरात के बारे में सोच सोच कर ही खुशी के लड्डू फूट रहे होंगे तेरे मन में।"

"मुझे अपनी तरह मत समझ तू।" रागिनी पहले तो शरमाई फिर घूरते हुए बोली____"मैं तेरे जैसी नहीं हूं जो हर वक्त एक ही बात सोचती रहूं।"

"अच्छा, ऐसे माहौल में इसके अलावा भी क्या कोई कुछ और सोचता है?" शालिनी ने कहा____"बड़ी आई शरीफ़जादी। सब समझती हूं मैं। तू जितना शरीफ बन रही है ना उतनी है नहीं।"

"तुझे जो समझना है समझ।" रागिनी ने बुरा सा मुंह बनाया____"तुझे समझाना ही बेकार है।"

"अच्छा छोड़ गुस्सा न कर।" शालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"और ये बता कि तूने साफ सफ़ाई तो कर ली है ना?"

"स...साफ सफ़ाई?" रागिनी को जैसे समझ ना आया____"कैसी साफ सफ़ाई?"

"अरे! अंदर की साफ सफ़ाई।" शालिनी की मुस्कान गहरी हो गई____"मेरा मतलब है कि अपने जंगल की साफ सफ़ाई कर ली है ना तूने? पता चले जीजा जी जंगल में भटक जाएं और बाहर ही ना निकल पाएं।"

रागिनी को पहले तो समझ ना आया लेकिन फिर एकदम से उसके दिमाग़ की बत्ती जली। उसे बड़ा तेज़ झटका लगा। उसने आश्चर्य से आंखें फाड़ कर शालिनी को देखा।

"कुत्ती कमीनी।" फिर वो थोड़ा गुस्से से बोली____"क्या बकवास कर रही है ये?"

"अरे! ये बकवास नहीं है मेरी लाडो।" शालिनी हंसते हुए बोली____"बल्कि मैं तो तेरी अच्छी सहेली होने के नाते तुझे याद दिला रही हूं कि तूने अपनी सारी तैयारी कर ली है कि नहीं।"

"तू ना सच में बहुत बेशर्म हो गई है।" रागिनी ने उसे घूरते हुए कहा____"अब अपनी बकवास बंद कर और जा अपने घर।"

"अरे! मुझे क्यों भगा रही है?" शालिनी चौंकी____"कहीं अकेले में कुछ करने का तो नहीं सोच लिया है तूने?"

"कुछ भी मत बोल।" रागिनी ने कहा____"मैं अकेले में भला क्या करूंगी? वो तो मैं तुझे जाने को इस लिए कह रही हूं कि घर जा कर तू भी खुद को तैयार कर ले। उसके बाद क्या पता तुझे जाने का मौका मिले या न मिले।"

"तू मेरी चिंता मत कर।" शालिनी ने कहा____"सविता आने वाली है। उसके आते ही चली जाऊंगी।"

✮✮✮✮

उस वक्त शाम के क़रीब साढ़े सात बज रहे थे जब बारात चंदनपुर पहुंची। बारात के रुकने की व्यवस्था घर से कुछ ही दूरी पर कर दी गई थी अतः बारात वहीं पहुंच कर रुकी। वीरेंद्र सिंह और बलवीर सिंह फ़ौरन ही पहुंच गए सबको उचित जगह पर बैठाने के लिए। जनवासे में भी अच्छा खासा इंतज़ाम था।

बलवीर और वीरेंद्र दोनों ही सबको बैठाने के बाद जल पान करवाने लगे। मैं भी एक जगह बैठ गया था। मेरे पास मेरी बहनें थीं, अमर मामा थे, भुवन था और रूपचंद्र भी था। बड़े मामा का लड़का थोड़ी दूरी पर बैठा था। वो उमर में मुझसे काफी बड़ा था इस लिए उससे ज़्यादा मैं घुला मिला नहीं था। हालाकि वो मुझे छोटा भाई मान कर बहुत स्नेह देता था।

ख़ैर कुछ समय रुकने के बाद हम सब वहां से वीरेंद्र सिंह के घर की तरफ चल पड़े। मैं और मेरी बहनें फिर से कार में बैठ गए। कार के आगे बैंड बाजा वाले चलने लगे। मामा का लड़का रूपचंद्र के साथ मिल कर आतिशबाजियां करते हुए आगे आगे चलने लगा। बैंड बाजा वालों के बीच कई लोग नाचने भी लगे थे। इस चक्कर में चलने की रफ़्तार धीमी हो गई।

"वो देखिए भैया।" कार की पिछली सीट में बैठी कुसुम एकदम से बोल पड़ी____"लगता है भाभी का घर वहां पर है। देखिए कितना जगमग जगमग दिख रहा है वहां।"

कुसुम की खुशी और उत्साह में कही गई ये बात सुन कर मैं बरबस ही मुस्कुरा उठा। मेरी निगाह भी उस तरफ चली गई जहां पर कुसुम ने इशारा किया था। सचमुच रागिनी भाभी का घर काफी जगमग कर रहा था। मुझे याद आया कि इसी तरह बड़े भैया के विवाह के समय भी जगमग जगमग हो रहा था।

एकाएक ही भैया का ख़याल आ गया मुझे। आंखों के सामने उनका चेहरा उभर आया। मेरे अंदर अजीब सी अनुभूति हुई। मन में ख़याल उभरा कि ये ऊपर वाले का कैसा विचित्र खेल है कि जो मेरे बड़े भैया की पत्नी थीं आज मैं उन्हें ही अपनी पत्नी बनाने आया हूं। मन थोड़ा सा बोझिल हो गया। मैंने मन ही मन भैया से इसके लिए माफ़ी मांगी।

कुछ ही देर में आख़िर हम सब वीरेंद्र सिंह के घर पहुंच गए। वहां पहले से ही द्वार पर हमारे स्वागत के लिए सब घर वाले खड़े थे। मेरी कार चौगान के बाहर ही फूलों के द्वारा बनाए गए दरवाज़े के पास जा कर रुक गई थी। बाकी बाराती लोग आगे बढ़े। वहां स्वागत में खड़े लोग फूल माला पहना कर सबका स्वागत करने लगे। बलभद्र जी ने सबसे पहले पिता जी के गले में फूल माला डाल कर उनका स्वागत किया और तिलक लगाया। उनके बाद महेंद्र सिंह, मामा लोग आदि का इसी तरह स्वागत हुआ।

कुछ समय बाद भाभी के पिता यानि वीरभद्र सिंह हाथों में आरती की थाली लिए मेरे पास आए। अमर मामा ने कार का दरवाज़ा खोल दिया तो उन्होंने मेरी आरती उतार कर तिलक लगाया। मामा ने मुझे कार से बाहर आने का इशारा किया तो मैं चुपचाप आ गया। मेरे पीछे पीछे मेरी बहनें भी उतर आईं।

जब बड़े भैया का विवाह हुआ था तब इसी तरह वीरभद्र जी उन्हें लेने आए थे और फिर उन्हें अपनी गोद में उठा कर उस जगह तक ले गए थे जहां पर द्वारचार होना था।

"मेरी दिली इच्छा तो यही है महाराज कि आपको अपनी गोद में उठा कर ले चलूं।" फिर उन्होंने मेरी तरफ देखते हुए भारी गले से कहा____"किंतु बात के चलते पांव में ताक़त नहीं है। इस लिए मुझे माफ़ करना महाराज, मैं आपको गोद में उठा कर नहीं ले जा सकूंगा। आपको अपने पैरों पर ही चल कर आना होगा।"

"कोई बात नहीं समधी जी।" अमर मामा प्रेम भाव से बोल पड़े____"कोई ज़रूरी नहीं कि गोद में दामाद को उठा कर ले जाने पर ही आपका प्रेम भाव दिखेगा। वो तो कैसे भी दिख सकता है। आप इस बात के लिए चिंतित न हों, मेरा भांजा अपने पैरों पर चल कर ही जाएगा।"

वीरभद्र जी ने कृतज्ञता से मामा को देखा और फिर हाथ जोड़ कर मुझे चलने को कहा तो मैं चल पड़ा। कुछ ही पलों में मैं उस जगह पर आ गया जहां पर द्वारचार और पूजा होनी थी। ढेर सारी औरतें और लड़कियां सिर पर कलशा लिए गाना गाने लगीं थी।

बहरहाल बड़े ही विधिवत तरीके से द्वारचार हुआ। कलशा ली हुई औरतों और लड़कियों को पिता जी ने उनका नेग दिया। उसके बाद मामा मुझे वापस ले गए। अगली विधि लड़की के चढ़ाव की थी जो घर के अंदर आंगन में मंडप के नीचे होती थी। तब तक यहां बारातियों का खाना पीना होता था। चढ़ाव के बाद दूल्हा अंदर जाता था और विवाह की शुभ लग्न में दुल्हन के साथ पूरे रीति रिवाज से दोनों का विवाह होता था।

बहरहाल द्वारचार के बाद बारातियों का खाना पीना शुरू हो गया था। उधर घर के अंदर मंडप के नीचे रागिनी भाभी का चढ़ाव होने लगा था। पिता जी, मामा लोग और महेंद्र सिंह सब वहीं बैठे थे। सबकी नज़रें भाभी पर टिकीं थी। रागिनी भाभी सिर झुकाए बैठी थीं। पंडित अपने मंत्र पढ़ रहे थे। नाउ और पंडित अलग अलग रीति रिवाज तथा विधि के अनुसार अपना काम कर रहे थे। पिता जी अपनी होने वाली बहू के लिए गहने लाए थे जिन्हें उन्होंने सौंप दिया था। आंगन में भारी मात्रा में बैठी औरतें एक साथ गाना गा रहीं थी।

चढ़ाव संपन्न हुआ तो बधू को उठा कर अंदर ले जाया गया। अब इसके बाद उस समय का इंतज़ार था जब विवाह के प्रारंभ होने का शुभ मुहूर्त आता। तब तक पिता जी और बाकी लोगों ने भी वीरभद्र जी के कहने पर खाना खाया।

विवाह का शुभ मुहूर्त कुछ ही देर में आ गया तो मुझे अंदर मंडप में ले जाया गया। मेरी धड़कनें एकाएक ही बढ़ चलीं थी। मेरे मन में ख़याल उभरा कि अब मैं एक पति के रूप में अपनी भाभी के साथ मंडप में बैठने वाला हूं। इसके बाद से मेरा उनसे पुराना रिश्ता हमेशा हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा। ज़ाहिर है इसके साथ ही उस रिश्ते के सारे एहसास और सारी मर्यादाएं भी समाप्त हो जाएंगी। उन सबकी जगह एक नया रिश्ता बन जाएगा और फिर उस नए रिश्ते के साथ ही नए एहसास और नए विचारों का जन्म हो जाएगा। ये सब सोचते ही मेरे समूचे जिस्म में एक अजीब सी सर्द लहर दौड़ गई। मुझे पता ही न चला कि कब मैं अंदर मंडप में आ गया। चौंका तब जब मामा ने मुझे हौले से पुकार कर बैठने को कहा।

मेरे आते ही आंगन में बैठी औरतों का गीत एक अलग ही तरह से गूंजने लगा। घर के बाहर बैंड बाजा वाले अपना काम किए जा रहे थे और अंदर औरतें मीठे मीठे गीत गाने में मगन थीं।

मेरे आसन पर बैठते ही दोनों तरफ के पंडित जी शुरू हो गए। उनके कहे अनुसार मैं क्रियाएं करने लगा। रागिनी भाभी को अभी बुलाया नहीं गया था। शायद थोड़ी पूजा के बाद ही उनका आगमन होना था। मेरा मन बार बार उनकी तरफ ही चला जाता था और मैं ये सोचने लगता था कि जब वो आएंगी और मेरे बगल से बैठ जाएंगी तब कैसा महसूस होगा मुझे? क्या उनका भी इस समय मेरे जैसा ही हाल होगा?

कुछ समय बाद आख़िर उन्हें भी बुलाया गया। थोड़ी ही देर में वो अंदर से आती दिखीं। ना चाहते हुए भी मेरी गर्दन घूम गई और मेरी नज़रें उन पर जा टिकीं। कई सारी लड़कियों से घिरी वो सोलह श्रृंगार किए धीरे धीरे चली आ रहीं थी। मैं अपलक उस सुंदरता की मूरत को देखता ही रह गया। तभी किसी ने मुझे मानों नींद से जगाया तो मैं एकदम से हड़बड़ा गया। पलट कर देखा तो रूपचंद्र मेरे पास ही बैठा मुस्करा रहा था।

"कम से कम सबके सामने तो दीदी को ऐसे न घूरो।" उसने धीमें से कहा____"वरना लोग सोचेंगे कि दूल्हा तो बड़ा बेशर्म है।"

मैं रूपचंद्र की इस बात से बुरी तरह झेंप गया। मुझे शर्मिंदगी भी महसूस हुई। मन ही मन सोचा कि सच ही तो कह रहा है वो। अगर मैं ऐसे ही अपलक उन्हें घूरता रहूंगा तो सच में लोग मुझे बेशर्म समझ बैठेंगे। वैसे भी ज़्यादातर लोगों को तो पता ही है कि मैं कैसे चरित्र का इंसान रहा हूं। बात अगर किसी और की होती तो शायद इतना कोई न सोचता मगर यहां बात उनकी है जिनसे मेरा देवर भाभी का रिश्ता था।

मेरी धड़कनें उस वक्त थम सी गईं जब उन सारी लड़कियों ने भाभी को ला कर मेरे बगल से बैठा दिया। उफ्फ! कितना अद्भुत एहसास था वो। अगर रूपा एक अद्भुत लड़की है तो इस वक्त रागिनी भाभी भी मेरे लिए अद्भुत ही लगने लगीं थी। मेरे बगल से उनके बैठ जाने से बड़ा अद्भुत एहसास होने लगा था मुझे। मेरा जी चाहा कि अपनी गर्दन को हल्का सा मोड़ कर उन्हें फिर से एक नज़र देख लूं मगर चाह कर भी मैं ऐसा करने की हिम्मत न जुटा सका। धाड़ धाड़ बजती धड़कनों की धमक किसी हथौड़े की तरह कानों में पड़ती सी महसूस हो रहीं थी। मेरे अंदर एक अजीब सी हलचल मच गई थी। मैंने खुद को बड़ी मुश्किल से सम्हाल कर सामान्य होने की कोशिश की।

एक तरफ औरतों के मधुर गीत तो दूसरी तरफ पंडितों के मंत्रोच्चार वातावरण में अलग ही नाद का आभास कराने लगे। बड़े भैया के विवाह के समय मैंने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया था क्योंकि मैं लड़कियां ताड़ने में व्यस्त हो गया था लेकिन आज पता चल रहा था कि विवाह में कितनी सारी विधियां और कितने सारे रीति रिवाज़ होते हैं। रात आधी गुज़र गई थी किंतु विवाह अभी तक संपन्न न हुआ था। जाने कैसी कैसी विधियां और रस्में होती चली जा रहीं थी।

भाभी के पीछे ही उनकी छोटी बहन कामिनी और उनकी सहेली शालिनी बैठी हुई थी। बीच बीच में वो भाभी की चुनरी को ठीक करने लग जाती थीं। उनके पीछे औरतें बनरा बियाह जैसे गीत गाने में मशगूल थीं। उनके गाने ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहे थे। इधर मेरी तरफ थोड़ी पीछे कुसुम, सुमन और सुषमा बैठी सारी क्रियाएं देख रहीं थी। थोड़ी दूरी पर विभोर और अजीत भी बैठे हुए थे। रूपचंद्र उठ कर अमर मामा के पास चला गया था। अमर मामा औरतों के पास ही बैठे हुए थे और उनके गीतों का आनंद ले रहे थे।

रात भर जाने कैसी कैसी विधियां और रस्में हुईं। मैं और भाभी ख़ामोशी से पंडित के निर्देशों पर अपना कार्य एक साथ करते रहे।

उस वक्त सुबह होने लगी थी जब वीरेंद्र लावा परसने की रस्म के लिए आया। उसके हाथ में एक सूपा था और सूपे में कुछ चीज़ें पड़ीं थी। पंडित जी के निर्देशानुसार भाभी मेरे आगे खड़ी हो गईं और मैं उनके पीछे। उनके दोनों हाथ आगे की तरफ अंजुली की शक्ल में जुड़ गए थे। इधर पीछे से मुझे उनके हाथों की अंजुली के नीचे अपने हाथों की अंजुली बना कर रखनी थी। ख़ैर लावा परसना शुरू हुआ। वीरेंद्र सूपे से चीजें उठा कर भाभी की अंजुली में डालता, इधर भाभी पंडित के कहने पर अपनी अंजुली को नीचे की तरफ से खोल कर सारी चीज़ें मेरी अंजुली में गिरा देतीं और फिर मैं नीचे गिरा देता। यही प्रक्रिया काफी देर तक चलती रही। पीछे से मेरा पूरा जिस्म भाभी से सटा हुआ था और इस स्थिति में मुझे बड़ा अजीब भी लग रहा था। ख़ैर क्या कर सकता था, ये विधि अथवा रस्म ही ऐसी थी।

वीरभद्र जी ने कन्यादान वगैरह किया। फेरे हुए, सिंदूर चढ़ाया, मंगलसूत्र पहनाया मैंने। पंडित जी ने पति पत्नी के सात वचन बता कर हमसे क़बूल करवाया। सातों वचन क़बूल करने के बाद भाभी को मेरे बाएं तरफ बैठा दिया गया। यानि अब वो पूर्ण रूप से मेरी पत्नी बन चुकीं थी।

सुबह का उजाला होने लगा था। पांव पूजने की रस्म शुरू हो गई। पीतल की एक बड़ी सी परात में पीला पीला गाढ़ा सा थोड़ा पानी भरा हुआ था। उसके बीच आटे की गोलाकार मोटी सी लोई पड़ी थी, बीच में कुछ था उसके। बहरहाल, एक एक कर के सभी घर वाले हम दोनों का पांव पूजने आने लगे। अपने साथ कोई न कोई वस्तु भेंट अथवा दान करने के लिए भी लाते। तिलक लगाते, पांव पूजते, उपहार देते और फिर प्रणाम करके चले जाते। ऐसे ही सूरज निकलने तक चलता रहा।

विवाह संपन्न हुआ तो रागिनी को अंदर ले जाया गया। अमर मामा जब मुझे ले जाने लगे तो मैने देखा मेरे जूते ग़ायब हैं। विवाह के समय सालियां अपने जीजा के जूते चुराती थीं और वापस तभी करती थीं जब नेग के रूप में उनकी मनचाही मांग पूरी की जाती थी।

मैं समझ चुका था कि मेरे जूते कामिनी ने ही चुराए होंगे और अब वो मेरे जूते तभी लौटाएगी जब मैं उसकी मनचाही मांग पूरी करूंगा। कुसुम को शायद इस रस्म का पता था इस लिए वो अब मुझे देख मुस्कुराने लगी थी।

"भांजे कब तक चुपचाप खड़ा रहेगा?" अमर मामा ने मुझसे कहा____"अपने जूते मांग अपनी साली से।"

"क्या हुआ जीजा जी?" शालिनी भागती हुई आई और मुस्कुराते हुए बोली____"कुछ खो गया है क्या आपका?"

"अरे! आप भी यहीं हैं?" मैं शालिनी को देख चौंक सा गया था____"सारी रात कहां ग़ायब थीं आप?"

"मैं तो आपके बिल्कुल पास ही बैठी थी?" उसने मुस्कुराते हुए कहा____"अपनी सहेली रागिनी के ठीक पीछे। शायद आपने देखा ही नहीं।"

"हां शायद।" मैं हल्के से मुस्कुराया।

"देखते भी कैसे जनाब।" शालिनी ने मानों मुझे छेड़ा____"आप तो बस अपनी दुल्हन को ही देखने में व्यस्त थे। किसी और को तो तब देखते जब उसके जैसा कोई होता आस पास।"

"ऐसा कुछ नहीं है।" मैं थोड़ा झेंप गया____"ख़ैर ये तो बताइए कि मेरे जूते कौन ले गया है? मुझे जाना है यहां से। रात भर बैठा रहा हूं, सुबह की क्रिया के लिए जाना है अब।"

"अच्छा जी, ज़्यादा परेशानी वाली बात तो नहीं है ना?" शालिनी मुस्कुराई____"रही बात जूतों की तो वो कामिनी चुरा के ले गई है।"

"उनको बुलाइए।" मैंने कहा____"और कहिए कि मेरे जूते दे दें। चोरी करना अच्छी बात नहीं होती है।"

"दुनिया में यही एक रस्म है जीजा जी।" शालिनी ने कहा____"जिसमें चोरी करना बहुत अच्छा माना जाता है। ख़ैर अगर आपको अपने जूते वापस चाहिए तो मनचाहा नेग देना पड़ेगा आपको।"

"ठीक है।" मैंने कहा____"कामिनी को बुलाइए, उन्हें नेग दिया जाएगा।"

शालिनी ने खड़े खड़े ही कामिनी को आवाज़ दे कर बुला लिया। वो भागते हुए आई और मुझे मुस्कुराते हुए देखने लगी।

"क्या हुआ दीदी?" फिर उसने शालिनी से कहा____"किस लिए बुलाया है आपने मुझे?"

"जीजा जी अपने जूते मांग रहे हैं।" शालिनी ने उसे बताया____"और बदले में तुझे तेरा नेग भी देने को कह रहे हैं। अब तू बेझिझक हो के मांग ले इनसे जो तुझे चाहिए।"

"हां मांग लीजिए सरकार।" मैं मुस्कुराया____"आप तो वैसे भी मेरी पहली मोहब्बत हैं। आपके लिए तो जां हाज़िर है।"

"ज़्यादा फ़िज़ूल की बातें मत कीजिए।" कामिनी ने झूठी नाराज़गी दिखाई____"मुझे नेग के रूप में आपसे और तो कुछ नहीं चाहिए लेकिन हां एक वचन ज़रूर चाहिए। क्या आप दे सकते हैं?"

"बिल्कुल दे सकता हूं।" मैंने दृढ़ता से कहा____"आपने पहली बार मुझसे कुछ मांगा है तो यकीन मानिए मैं आपकी मांग ज़रूर पूरी करूंगा। कहिए कैसा वचन चाहिए आपको?"

"यही कि आप मेरी दीदी को हमेशा खुश रखेंगे।" कामिनी ने सहसा गंभीर हो कर कहा____"उन्हें कभी दुखी नहीं होने देंगे और बहुत सारा प्यार देंगे उनको। मुझे अपने नेग के रूप में आपसे इन्हीं बातों का वचन चाहिए।"

मैं देखता रह गया कामिनी को और मैं ही क्या बल्कि अमर मामा, कुसुम, सुमन, सुषमा, रूपचंद्र और यहां तक कि खुद शालिनी भी। मुझे कामिनी से ऐसी उम्मीद हर्गिज़ नहीं थी। अवाक् सा देखता रह गया था मैं।

"क्या हुआ जीजा जी?" जब मैं उसे देखता ही रहा तो वो जैसे मुझे होश में लाई____"क्या आप मुझे मेरा ऐसा नेग नहीं देंगे?"

"आपको मुझसे इस तरह का नेग मांगने की ज़रूरत नहीं थी कामिनी।" मैंने कहा____"क्योंकि मैं तो वैसे भी अपनी तरफ से यही करने वाला था लेकिन फिर भी अगर आप इन बातों का मुझसे वचन ही चाहती हैं तो ठीक है। मैं आपको वचन देता हूं कि मैं हमेशा आपकी दीदी को खुश रखूंगा। उन्हें कभी दुखी नहीं करूंगा और सच्चे दिल से उनसे प्रेम करूंगा।"

मेरा इतना कहना था कि कामिनी का चेहरा खुशी से चमक उठा लेकिन आंखें नम हो गईं उसकी। वो फ़ौरन ही पलटी और भागती हुई अंदर की तरफ चली गई। कुछ ही पलों में जब वो आई तो उसके हाथ में मेरे जूते थे। उसने जूतों को मेरे पैरों के पास रख दिया।

"ये रहे आपके जूते।" फिर उसने मुस्कुराते हुए कहा____"पहन लीजिए और ख़ुशी से जाइए।"

"आप बहुत अच्छी लड़की हैं कामिनी।" मैंने उससे कहा____"मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि वो आपको हमेशा खुश रखे और आपको पति के रूप में एक ऐसा व्यक्ति मिले जो आपको अथाह प्रेम करे।"

"तुमने भले ही अपने जीजा से नेग के रूप में ये वचन लिया है बेटी।" अमर मामा ने अधीरता से कहा____"लेकिन तुम्हारी बातें हृदय को छू गई हैं। ऐसे शुभ अवसर पर हर रस्म और हर नेग का अपना महत्व होता है। अतः अपने भांजे की तरफ से मैं अपनी खुशी से तुम्हें ये कुछ रुपए देना चाहता हूं। इसे अन्यथा मत लेना बेटी, ये बस एक अच्छी लड़की के प्रति सच्ची भावना को ब्यक्त करने जैसा है।"

कहने के साथ ही मामा ने अपने पैंट की जेब से पचास के नोटों की एक गड्डी निकाल कर कामिनी की तरफ बढ़ा दिया। कामिनी थोड़ा झिझकी लेकिन फिर उसने हाथ बढ़ा कर वो गड्डी ले ली।

"आपने मुझे बेटी कहा और सच्ची भावना से दिया है।" फिर उसने कहा____"इस लिए मैं इन्हें आपसे न ले कर आपकी भावनाओं को आहत नहीं करूंगी।"

उसके बाद मैंने अपने जूते पहने और सबके साथ बाहर की तरफ चल पड़ा। कुछ ही समय में विदाई का कार्यक्रम शुरू हो जाने वाला था।

"मुझे तो लगा था कि तू अपने जीजा जी से बहुत कुछ मांगेगी।" शालिनी ने कामिनी से कहा____"लेकिन तूने तो ऐसी चीज़ मांग ली जिसके बारे में शायद ही किसी ने कल्पना की होगी। वैसे सच कहती हूं तूने जीजा जी से नेग में इस तरह का वचन मांग कर बहुत ही अद्भुत कार्य किया है। इससे ये भी पता चलता है कि तू अपनी दीदी को कितना चाहती है और उसकी कितनी फ़िक्र करती है। मुझे तुझ पर नाज़ है छोटी। ख़ैर चल आ जा, रागिनी को विदाई के लिए तैयार भी करना है।"

कामिनी उसके साथ खुशी खुशी अंदर की तरफ चली दी। विदाई के लिए हर कोई जल्दी जल्दी काम में लग गया था। पांव पूजन में बहुत सारा उपहार मिल गया था जिसे उठा कर बाहर रखा जा रहा था।



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Bahot hi sundar update 👍
Vivah ho hi gaya vaibhav aur Ragini ka
Kaamini jo ichaa neg k roop jatayi kabile tareef hai isse pata chalta hai Ragini ke prati uska Prem kitna hai
Keep writing 👍
 

Kuldipr99

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कामिनी उसके साथ खुशी खुशी अंदर की तरफ चली दी। विदाई के लिए हर कोई जल्दी जल्दी काम में लग गया था। पांव पूजन में बहुत सारा उपहार मिल गया था जिसे उठा कर बाहर रखा जा रहा था।


अब आगे....


सुबह सभी बारातियों को चाय नाश्ता करवाया गया। इसके साथ ही विदाई की तैयारियां भी शुरू हो गईं। घर से और लोगों द्वारा जो उपहार और सामान मिला था उसको ट्रैक्टर में रखवा दिया गया। बाहर बैंड बाजा वाले गाना बजाना कर रहे थे। हर कोई किसी न किसी काम के लिए दौड़ लगा रहा था।

दूसरी तरफ रागिनी भाभी के पिता वीरभद्र सिंह जी पिता जी के पास बैठे हुए थे और उनसे हाथ जोड़ कर बार बार यही कह रहे थे कि उनके स्वागत में अगर कहीं कोई त्रुटि हुई हो तो वो उन्हें माफ़ करें। पिता जी बार बार उन्हें समझा रहे थे कि उनसे कोई त्रुटि नहीं हुई है और अगर हो भी जाती तो वो बुरा नहीं मानते। उनके लिए सबसे ज़्यादा खुशी इस बात की है कि उनकी बहू ने इस रिश्ते को हां कहा और अब ये विवाह भी हो गया। अपनी जिस बहू को बेटी मान कर वो इतना प्यार और स्नेह देते थे वो उन्हें फिर से उसी रूप में मिल गई जिस रूप में वो उसे देखना चाहते थे। वीरभद्र सिंह जी पिता जी की ये बातें सुन कर उनका आभार मान रहे थे और कह रहे थे कि ये सब उनकी ही वजह से हुआ है। ये उनकी बेटी का सौभाग्य है कि उसे उनके जैसे ससुर पिता के रूप में मिले हैं।

आख़िर विदाई का समय आ ही गया। घर के अंदर से रोने धोने की आवाज़ें आने लगीं। जाने कितनी ही औरतों का करुण क्रंदन वातावरण में गूंजने लगा। मैं कार में बैठा हुआ था। मेरे पीछे कुसुम सुमन और सुषमा बैठी हुईं थी। आते समय अमर मामा भी साथ में थे लेकिन अब क्योंकि भाभी भी मेरे साथ ही कार में जाने वाली थीं तो उनके बैठने के लिए कार में जगह नहीं थी। अमर मामा ने सुमन और सुषमा को कार से उतार कर अपने साथ जीप में चलने को कहा जिससे वो उतर गईं।

थोड़ी ही देर में अंदर से औरतें बाहर आती नज़र आईं। सब की सब रो रहीं थी। उनके बीच रागिनी भाभी सबसे लिपट कर बुरी तरह विलाप कर रहीं थी। उनकी मां, चाची, भाभियां, बहनें, शालिनी और गांव की बहुत सी औरतें सब रो रहीं थी। कुछ ही पलों में वो घर से बाहर आ गई। सहसा भाभी की नज़र अपने पिता वीरभद्र पर पड़ी तो उनके पास जा कर उनसे लिपट गईं और बिलख बिलख कर रोने लगीं। वीरभद्र जी खुद को सम्हाल न सके। अपनी बेटी को हृदय से लगा कर वो खुद भी सिसक उठे। पास में ही उनके छोटे भाई बलभद्र जी खड़े थे। रागिनी भाभी उनसे भी लिपट गईं और चाचा चाचा कहते हुए रोने लगीं। बलभद्र जी भी खुद को सम्हाल न सके। दोनों परिवार में रागिनी ही एक ऐसी लड़की थी जिसमें इतने सारे गुण थे और वो हमेशा से ही सबकी चहेती रही थी।

वीर सिंह, बलवीर सिंह और वीरेंद्र सिंह कुछ ही दूरी पर खड़े आंसू बहाए जा रहे थे। अपनी बहन को यूं रोते देख उनकी आंखें भी बरसने लगीं थी और फिर जब रागिनी उनके पास आ कर उनसे लिपट कर रोने लगी तो उनकी हिचकियां भी निकल गईं। पूरा वातावरण गमगीन सा हो गया। यहां तक कि पिता जी की आंखों में भी आंसू भर आए।

बेटी की विदाई का ये पल घर वालों के लिए बड़ा ही भावुक और संवेदनशील होता है। पत्थर से पत्थर दिल इंसान भी भावनाओं में बह जाता है और मोम की तरह पिघल कर रो पड़ता है। यही हाल था सबका। औरतों का तो पहले से ही रुदन चालू था। भाभी की मां सुलोचना देवी को बार बार चक्कर आ जाता था। यही हाल उनकी देवरानी पुष्पा देवी का भी था। उनकी बहुएं और गांव की औरतें उन्हें सम्हालने लगतीं थी।

रागिनी भाभी की छोटी बहनें, सभी भाभियां और सहेली शालिनी सभी के चेहरे आंसुओं से तर थे। आख़िर भाइयों के बहुत समझाने बुझाने पर रागिनी भाभी उनसे अलग हुईं। शालिनी और कामिनी भाग कर आईं और उन्हें कार की तरफ ले चलीं। उनके पीछे औरतें भी आ गईं। ऐसा लगा जैसे एक बार फिर से भाभी पलट कर सबसे जा लिपटेंगी और रोने लगेंगी किंतु तभी शालिनी और वंदना ने उन्हें सम्हाल लिया और दुखी भाव से समझाते हुए उन्हें कार के अंदर बैठ जाने के लिए ज़ोर देने लगीं। इधर कार के अंदर बैठा मैं अपनी भाभी....नहीं नहीं अपनी पत्नी का रुदन देख खुद भी दुखी हो उठा था। मेरे अंदर एक तूफ़ान सा उठ गया था। उन्हें इस तरह तकलीफ़ से रोते देख मुझसे सहन नहीं हो रहा था लेकिन क्या कर सकता था। ये वक्त ही ऐसा था।

आख़िर किसी तरह वो कार के अंदर आ कर मेरे बगल से बैठ ही गईं लेकिन उनका रोना अब भी कम नहीं हो रहा था। कार की खिड़की से अपने हाथ बार बार बाहर निकाल कर रो ज़ोरों से रोने लगती थीं और बाहर निकलने को उतारू हो जातीं थी। कार के बाहर तरफ शालिनी, कामिनी, वंदना, सुषमा और उनकी मां चाची वगैरह खड़ी सिसक रहीं थी और साथ ही तरह तरह की बातें उन्हें समझाए जा रहीं थी।

कुछ समय बाद सबकी सहमति मिलते ही कार के ड्राइवर ने कार को स्टार्ट कर आगे बढ़ाना शुरू कर दिया लेकिन थोड़ी ही दूर जा कर वो रुक गया। अगले ही पल एक रस्म यहां भी हुई उसके बाद ड्राइवर ने कार को आगे बढ़ा दिया। कार के अंदर भाभी का रोना अभी भी चालू था। वो कभी बाबू जी कह कर रोती तो कभी मां कह कर। कभी भैया कह कर तो कभी भाभी कह कर। मेरे दूसरी तरफ बैठी कुसुम उन्हें इस तरह रोते देख खुद भी आंसू बहाने लगी थी। उससे अपनी भाभी का रोना देखा नहीं जा रहा था। पहले तो वो चुपचाप बस आंसू ही बहाए जा रही थी किंतु जब कार कुछ दूर आ गई तो वो भाभी को न रोने के लिए कहने लगी। आख़िर उसके बहुत कहने पर उनका रोना बंद हुआ लेकिन सिसकियां तब भी बंद न हुईं।

कार के पीछे पीछे अन्य लोग वाहनों में चले आ रहे थे। कच्ची सड़क पर एक लंबा काफ़िला नज़र आ रहा था। बीच में एक बस थी। सबसे पीछे ट्रैक्टर था जिसमें सामान लदा हुआ था।

क़रीब आधा घंटा समय गुज़रा था कि पीछे से एक जीप आई। उसमें अमर मामा बैठे थे। वो बोले कि आगे एक जगह कार रोक देना क्योंकि बहू को पानी पिलाना है जोकि उसका देवर पिलाएगा। ऐसा ही हुआ, कुछ दूर आने के बाद एक अनुकूल जगह पर ड्राइवर ने कार रोक दी।

थोड़ी ही देर में एक जीप हमारे पास आ कर रुकी। उसमें से विभोर और अजीत उतर कर हमारे पास आए। कुछ और लोग भी आ गए। थोड़ी ही दूर एक गांव दिख रहा था। सड़क के किनारे किसी का घर था जहां पर एक कुआं भी था। मामा विभोर को कुएं पर ले गए। विभोर ने कुएं से पानी खींचा और फिर मामा के दिए लोटे में पानी भर कर हमारे पास आया।

अजब और विचित्र संयोग था। एक वक्त था जब मैंने देवर के रूप में रागिनी भाभी को इसी तरह पानी पिलाया था और नेग में उन्होंने मुझे एक सोने की अंगूठी दी थी। आज वही भाभी मेरी पत्नी बन चुकीं थी और उनके देवर के रूप में विभोर उन्हें पानी पिलाने आया था। कितनी कमाल की बात थी कि उनके जीवन में ये रस्म अजीब तरह से दो बार हो रही थी।

बहरहाल, विभोर पानी ले कर आया और बहुत ही खुशी मन से उसने कार का दरवाज़ा खोल कर रागिनी भाभी की तरफ पानी से भरा लोटा बढ़ाया। रागिनी भाभी ने घूंघट के अंदर से एक नज़र विभोर को देखा और अपना हाथ बढ़ा कर उससे लोटा ले लिया। उसके बाद एक हाथ से उन्होंने अपने घूंघट को उठाया और लोटे को अपने मुंह के पास ले जा कर पानी पीने लगीं। मैं और कुसुम उन्हीं को देख रहे थे।

थोड़ी देर बाद रागिनी भाभी ने लोटा वापस विभोर को दे दिया और अपने गले से सोने की चैन उतार कर विभोर को पहना दिया। विभोर बड़ा खुश हुआ और उनके पैर छू कर मुस्कुराते हुए चला गया।

काफ़िला फिर से चल पड़ा। रागिनी भाभी घूंघट किए अब शांति से बैठी हुईं थी। इधर जैसे जैसे रुद्रपुर क़रीब आ रहा था मेरी धड़कनें बढ़ती जा रहीं थी। यूं तो कार में ड्राइवर के अलावा सिर्फ कुसुम ही थी इस लिए मैं उनसे बात कर सकता था लेकिन जाने क्यों उनसे बात करने की हिम्मत नहीं हो रही थी।

"वैसे भैया।" अचानक कुसुम मुस्कुराते हुए बोल पड़ी____"विभोर भैया को तो बड़ा फ़ायदा हुआ। भाभी को उन्होंने बस पानी पिलाया और उन्हें सोने की चैन मिल गई। मुझे और अजीत को तो कुछ दिया ही नहीं भाभी ने। हमारे साथ ये नाइंसाफी क्यों?"

"इस बारे में भला मैं क्या कहूं गुड़िया?" मैंने भाभी पर एक नज़र डालने के बाद उससे कहा____"मैंने तो ऐसा कुछ किया नहीं है। जिन्होंने किया है तुझे उनसे ही पूछना चाहिए।"

"मतलब आप कुछ नहीं कहेंगे?" कुसुम ने हैरानी से मेरी तरफ देखा____"वाह! क्या कहने आपके। भाभी के आते ही आप अपनी लाडली बहन को नज़रअंदाज़ करने लगे। बड़ी मां से शिकायत करूंगी आपकी, हां नहीं तो।"

"अरे! ये क्या कह रही है तू?" मैं उसकी बातों से चौंका____"तू मुझ पर गुस्सा क्यों होती है गुड़िया? मैंने तो कुछ किया ही नहीं है।"

"हां यही तो बात है कि आपने कुछ किया ही नहीं।" कुसुम ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा____"वैसे तो बड़ा कहते हैं कि तू मेरी गुड़िया है, मेरी जान है, मेरा सब कुछ है।"

मुझे समझ ना आया कि अब क्या करूं? भाभी भी कुछ बोल नहीं रहीं थी और गुड़िया थी कि मुझे घूरे ही जा रही थी। मैं सोचने लगा कि अब कैसे अपनी गुड़िया का पक्ष ले कर उसकी नाराज़गी दूर करूं?

"इ...इन पर क्यों गुस्सा होती हो कुसुम?" सहसा भाभी ने धीरे से कुसुम की तरफ देखते हुए कहा____"मुझे बताओ क्या चाहिए तुम्हें?"

"अरे वाह!" भाभी की बात सुनते ही कुसुम का चेहरा खुशी से खिल उठा। फिर मुझे देखते हुए बोली____"देखा भैया, आपने तो अपनी गुड़िया के लिए कुछ नहीं किया लेकिन मेरी सबसे अच्छी वाली भाभी ने झट से पूछ लिया कि मुझे क्या चाहिए। इसका मतलब आपसे ज़्यादा भाभी मुझे मानती हैं।"

"वाह! क्या बात है।" मैंने उसे घूरा____"कुछ मिलने की बात आई तो बड़ा जल्दी पाला बदल लिया तूने। अभी तक तो मैं ही तेरा सबसे अच्छे वाला भैया था और तुझे अपनी जान मानता था और अब ऐसा बोल रही है तू? चल कोई बात नहीं, अब से मैं भी तुझे नहीं विभोर और अजीत को सबसे ज़्यादा प्यार करूंगा और उन्हें अपनी जान कहूंगा।"

"अरे अरे! ये क्या कह रहे हैं आप?" कुसुम बुरी तरह बौखला गई____"नहीं नहीं ऐसा नहीं करेंगे आप। मुझसे ग़लती हो गई, अपनी गुड़िया को माफ़ कर दीजिए ना। आप तो मेरे सबसे अच्छे वाले भैया हैं ना?"

"अच्छा।" मैं मुस्कुराया____"बड़ा जल्दी समझ आ गया तुझे।"

"क्यों मेरी मासूम सी ननद को सता रहे हैं?" भाभी ने लरजते स्वर में धीरे से कहा____"इसका हम दोनों पर बराबर हक़ है। इसे हमसे जो भी चाहिए वो देना हमारा फर्ज़ है।"

"ये, देखा आपने।" कुसुम खुशी से मानों उछल ही पड़ी____"भाभी को आपसे ज़्यादा पता है। अब बताइए, क्या अब भी कुछ कहेंगे आप मुझे?"

"अरे! मैंने तो पहले भी तुझे कुछ नहीं कहा था पागल।" मैंने उसके चेहरे को प्यार से सहला कर कहा____"ख़ैर चल बता अब, क्या चाहिए तुझे?"

"मुझे।" कुसुम सोचने लगी, फिर जैसे उसे कुछ समझ आया तो बोली____"मुझे ना आप दोनों से सिर्फ एक ही चीज़ चाहिए। मैं आप दोनों से बस यही मांगती हूं कि आप दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करें और जैसे अब तक आप दोनों मुझे इतना ज़्यादा प्यार देते आए हैं वैसे ही हमेशा देते रहें।"

कुसुम की बात सुन कर मैं दंग रह गया। मैंने रागिनी भाभी की तरफ देखा। उन्होंने भी गर्दन घुमा कर मुझे देखा। घूंघट के अंदर उनके चेहरे पर लाज की सुर्खी छा गई नज़र आई और होठों पर शर्म से भरी हल्की मुस्कान।

"क्या हुआ?" हमें कुछ न बोलता देख कुसुम बोल पड़ी____"आप दोनों कुछ बोल क्यों नहीं रहे? क्या आप दोनों मेरी ये मांग पूरी नहीं करेंगे?"

"मुझे तो तेरी ये मांग मंज़ूर है गुड़िया।" मैंने धड़कते दिल से कहा____"बाकी तेरी भाभी का मुझे नहीं पता।"

"म...मुझे भी मंज़ूर है कुसुम।" रागिनी भाभी ने थोड़े झिझक के साथ कहा____"बाकी तुम्हें तो मैं पहले भी बहुत मानती थी और आगे भी मानूंगी। तुम सच में हमारी गुड़िया हो।"

भाभी की बात सुनते ही जहां कुसुम खुशी से झूम उठी वहीं मेरी धड़कनें ये सोच कर तेज़ हो गईं कि क्या सच में रागिनी भाभी वही करेंगी जो अभी उन्होंने कहा है? यानि क्या सच में वो मुझसे प्यार करेंगी? पलक झपकते ही ज़हन में न जाने कैसे कैसे ख़याल उभर आए। मैंने फ़ौरन खुद को सम्हाला। ख़ैर ऐसी ही हंसी खुशी के साथ बाकी का सफ़र गुज़रा और हम रुद्रपुर में दाख़िल हो कर हवेली पहुंच गए।

✮✮✮✮

हवेली में मां और चाची हमारे स्वागत के लिए पहले से ही तैयार थीं। जैसे ही हम सब वहां पहुंचे तो आगे का कार्यक्रम शुरू हो गया।

कार मुख्य द्वार के सामने खड़ी थी। मां बाकी औरतों के साथ हमारा परछन करने के लिए आगे बढ़ीं। सब एक साथ गीत गा रहीं थी। एक तरफ बैंड बाजा वाले लगे पड़े थे। हवेली के बाहर विशाल मैदान में भारी भीड़ इकट्ठा हो गई थी। इधर मां मेरी और अपनी नई नवेली बहू की गाते हुए आरती उतार रहीं थी। कुछ देर परछन की उनकी क्रियाएं चलती रहीं उसके बाद हम दोनों कार से उतरे।

एक बार फिर से वातावरण में बंदूकें गरज उठीं थी। एक बार फिर से नाच गाना शुरू हो गया था। इस बार ऐसा हुआ कि जल्दी थमा ही नहीं। मामा लोग नाचने वालियों पर रुपए उड़ा रहे थे। महेंद्र सिंह, अर्जुन सिंह और संजय सिंह भी पीछे नहीं हटे। वो भी पैसे उड़ाने लगे। बैंड बाजा वाले अपना गाना बजाना भूल कर रुपए पैसे बिनने लगे। गांव के कुछ छोटे बच्चे घुस आए थे वो भी बिनने लगे।

काफी देर तक नाच गाना चलता रहा। इस बीच मैं और रागिनी भाभी वापस कार में बैठ कर नाच गाना देखने लगे थे। जब वो सब बंद हुआ तो मां और मेनका चाची मेरे पास आईं और हम दोनों को अंदर चलने को कहा।

मुख्य द्वार की दहलीज़ पर पहुंचते ही मां ने रुकने का इशारा किया। डेढी के अंदर पीतल का एक लोटा रखा हुआ था जिसमें चावल थे। मां के कहने पर रागिनी भाभी ने अपने एक पांव से उस लोटे को ठेला तो वो आगे की तरफ लुढ़क गया। सभी मुस्कुराते हुए आगे बढ़ीं। कुछ ही क़दम पर एक बड़ी सी थाली रखी हुई थी जिसमें रंग घुला हुआ था। चाची के कहने पर भाभी ने उसमें अपने दोनों पैर रखे और फिर आगे बढ़ चलीं। मैं उनके साथ ही चल रहा था।

कुछ ही समय में हम सब अंदर आ गए। उसके बाद अंदर कुछ परंपरा के अनुसार रस्में और रीतियां होने लगीं, पूजा वगैरह हुई। एक तरफ सबके भोजन की व्यवस्था शुरू हो गई।


आज खिचड़ी भी थी जिसमें बहू के हाथों सबको खिचड़ी परोसी जानी थी। खाने वाले अपनी स्वेच्छा से उपहार अथवा रुपए पैसे बहू को देते थे। कुछ समय बाद ऐसा ही हुआ। सबने अपनी अपनी तरफ से अनेकों उपहार और रुपए पैसे उन्हें दिए जिन्हें कुसुम कजरी सुमन और सुषमा पकड़ती जा रहीं थी।

आख़िर इस सबके संपन्न होने के बाद थोड़ी राहत मिली। पिता जी के मित्रगण अपने अपने घरों को लौट गए। अब हवेली में सिर्फ नात रिश्तेदार ही रह गए थे। मैं गुसलखाने में नहा धो कर मामा के पास आ कर बैठ गया था। रात भर का थका था और अब मुझे बिस्तर ही दिखाई दे रहा था लेकिन कमरे में जाने से झिझक रहा था क्योंकि मेरे कमरे में रागिनी भाभी पहुंच चुकीं थी। हालाकि दुल्हन को देखने वालों का आगमन शुरू हो गया था जोकि गांव की औरतें ही थीं किंतु उन्हें कुछ देर आराम करने के लिए कमरे में पहुंचा दिया गया था।

"क्या हुआ भांजे?" मैं जैसे ही मामा के पास बैठा तो मामा ने कहा____"थक गया होगा ना तू? रात भर बैठे रहना आसान बात नहीं होती। एक काम कर कमरे में जा के आराम कर।"

"थक तो गया हूं मामा।" मैंने कहा____"लेकिन कमरे में कैसे जाऊं? वहां तो....।"

"ओह! समझ गया।" मामा हल्के से मुस्कुराए____"तो किसी दूसरे कमरे में जा कर आराम कर ले। हवेली में कमरों की कमी थोड़ी ना है। या फिर तू अपने कमरे में ही आराम करना चाहता है?"

"नहीं, ऐसी बात नहीं है।" मैं थोड़ा झेंप गया____"ठीक है मैं किसी दूसरे कमरे में आराम करने चला जाता हूं।"

अभी मैं जाने ही लगा था कि तभी रोहिणी मामी आ गईं। शायद उन्होंने हमारी बातें सुन लीं थी। अतः मुस्कुराते हुए बोलीं____"क्या हुआ वैभव? अपने कमरे में आराम करने में क्या समस्या है?"

"क...कोई समस्या नहीं है मामी।" मैं हकलाते हुए बोला____"लेकिन बात ये है कि फिलहाल मैं अकेले स्वतंत्र रूप से कहीं आराम कर लेना चाहता हूं।"

"हां ज़रूरी भी है।" मामी ने गहरी मुस्कान के साथ कहा____"क्या पता बाद में आराम करने का मौका मिले न मिले।"

"अरे अरे! ये कैसी बातें कर रही हो तुम?" मामा एकदम से चौंक कर बोल पड़े____"भांजे से थोड़ा तो लिहाज करो, जाओ यहां से।"

मामी हंसते हुए चली गईं। मामा ने मुझे आराम करने को कहा तो मैं ये सोचते हुए एक कमरे की तरफ बढ़ चला कि मामी भी मौका देख कर व्यंग बाण चला ही देती हैं। ख़ैर मैं नीचे ही एक कमरे में जा कर पलंग पर लेट गया। बड़ा ही सुखद एहसास हुआ। पहली बार एहसास हुआ कि गद्देदार बिस्तर कितना आरामदायक और सुखदाई होता है। कुछ ही देर में मुझे नींद ने अपनी आगोश में ले लिया। बंद पलकों में एकदम से एक हसीन ख़्वाब चलचित्र की तरह दिखने लगा। उसके बाद शाम तक मैं सोता ही रहा।

✮✮✮✮

रूपा खा पी कर अपने कमरे में बिस्तर पर लेटी हुई थी। पिछले कुछ दिनों से उसे अकेले रहने का बहुत ही कम अवसर मिला था। जैसे जैसे विवाह का दिन क़रीब आ रहा था उसकी धड़कनें बढ़ती जा रहीं थी। मन में तो बहुत पहले ही उसने न जाने कैसे कैसे ख़्वाब बुन लिए थे जिनके बारे में सोच कर ही उसके अंदर एक सुखद अनुभूति होने लगती थी लेकिन आज का दिन बाकी दिनों से बहुत अलग महसूस हो रहा था उसे। आज उसका होने वाला पति अपनी पहली पत्नी को ब्याह कर ले आया था। हवेली में बैंड बाजा बजने की गूंज उसके कानों तक भी पहुंची थी। कल उसकी बड़ी मां यानि फूलवती और चाची सुनैना देवी हवेली गई हुईं थी जब वैभव की बारात हवेली से निकलने वाली थी।

बिस्तर पर लेटी रूपा के मन में बहुत सी बातें चल रहीं थी। उन सब बातों को सोचते हुए कभी उसकी धड़कनें तेज़ हो जातीं तो कभी थम सी जातीं। आंखों के सामने कभी वैभव का चेहरा उभर आता तो कभी रागिनी का तो कभी दोनों का एक साथ। वो कल्पना करने लगती कि उसका प्रियतम आज अपनी पहली पत्नी के साथ एक ही कमरे में रहेगा, उसके साथ एक ही बिस्तर पर होगा और....और फिर दोनों एक साथ प्रेम में डूब जाएंगे। इस एहसास के साथ ही रूपा को थोड़ा झटका सा लगता और वो एकदम से वर्तमान में आ जाती। फिर वो खुद को समझाने लगती कि बहुत जल्द वो भी अपने प्रियतम की पत्नी बन कर हवेली में पहुंच जाएगी और रागिनी दीदी की ही तरह वैभव उसे भी प्रेम करेंगे।

"अरे! रूपा सुना तुमने?" सहसा कमरे में उसकी बड़ी भाभी कुमुद दाख़िल हुई और उससे बोली____"तुम्हारे होने वाले पतिदेव अपनी पहली दुल्हन ले आए। हमारे घर के सामने से ही वो सब निकले हैं। अब तक तो परछन भी हो गया होगा।"

"हां बैंड बाजा बजने की आवाज़ें मैंने भी सुनी हैं भाभी।" रूपा बिस्तर से उठ कर बोली____"क्या बड़ी मां नहीं गईं वहां?"

"गईं हैं।" कुमुद ने कहा____"उनके साथ राधा भी गई है।"

"रूप भैया आ गए क्या?" रूपा ने पूछा____"वो भी तो उनकी बारात में गए थे।"

"जब बारात आ गई है तो वो भी आ ही गए होंगे।" कुमुद ने कहा____"फिलहाल घर तो अभी नहीं आए वो। आ जाएंगे थोड़ी देर में। ख़ैर तुम बताओ, अकेले में किसके ख़यालों में गुम थी?"

"किसी के तो नहीं।" रूपा एकदम से शरमाते हुए बोली____"मैं तो बस ऐसे ही लेटी हुई थी।"

"झूठ ऐसा बोलो जिसे सामने वाला यकीन कर ले।" कुमुद ने मुस्कुराते हुए कहा____"मुझे अच्छी तरह पता है कि इस वक्त तुम अपने होने वाले पतिदेव के बारे में ही सोचने में गुम थी। ज़रा बताओ तो कि क्या क्या सोच लिया है तुमने?"

"ऐसा कुछ नहीं है भाभी।" रूपा ने शर्म से मुस्कुराते हुए कहा____"मैं भला क्यों कुछ सोचूंगी?"

"क्या सच में?" कुमुद ने अपनी भौंहें उठा कर उसे देखा____"क्या सच में तुम आज की स्थिति के बारे में नहीं सोच रही थी? मैं मान ही नहीं सकती कि तुम्हारे मन में अपने होने वाले पति और अपनी सौतन के संबंध में कोई ख़याल ही न आया होगा।"

"उन्हें मेरी सौतन मत कहिए भाभी।" रूपा ने सहसा अधीर हो कर कहा____"वो तो मेरी दीदी हैं, सबसे अच्छी वाली बड़ी दीदी। मैं बहुत खुश हूं कि उनका फिर से विवाह हो गया और अब उनका जीवन खुशी के रंगों से भर जाएगा। मैं यही दुआ करती हूं कि आज की रात वो उन्हें खूब प्यार करें और उनके सारे दुख को भुला दें।"

"तुम सच में बहुत अद्भुत हो रूपा।" कुमुद ने पास आ कर रूपा के कंधे को दबाते हुए कहा____"दुनिया की हर औरत अपने पति की दूसरी पत्नी को अपनी सौतन ही मानती है और ये भी सच ही है कि वो कभी उस औरत को पसंद नहीं करती लेकिन तुम इसका अपवाद हो मेरी ननद रानी। तुम अपने पति की उन नव विवाहिता पत्नी को सच्चे दिल से अपनी दीदी कहती हो और उनकी खुशियों की कामना कर रही हो। ऐसा तुम्हारे अलावा शायद ही कोई सोच सकता है।"

"मैं ये सब नहीं जानती भाभी।" रूपा ने कहा____"मैं तो बस इतना चाहती हूं कि उनसे जुड़ा हर व्यक्ति खुश रहे। ईश्वर से यही कामना करती हूं कि मेरे दिल में भी हमेशा उनसे जुड़े हर व्यक्ति के लिए आदर, सम्मान और प्रेम की ही भावना रहे।"

"तुम प्रेम की मूरत हो रूपा।" कुमुद ने कहा____"तुम कभी किसी के बारे में कुछ बुरा सोच ही नहीं सकती हो। काश! दुनिया की हर औरत का हृदय तुम्हारे जैसा हो जाए।"

"मैं सोच रही हूं कि इस वक्त रागिनी दीदी सुहागन के पूरे श्रृंगार में कैसी दिखती होंगी?" रूपा ने कहा____"उनकी सुंदरता के बारे में मैंने पहले भी बहुत सुना था। विधवा के लिबास में उन्हें देखा भी है। वो सादगी और सौम्यता से भरी हुई हैं। उनका हृदय बहुत साफ और निश्छल है। मेरा बहुत मन कर रहा है कि मैं उन्हें दुल्हन के रूप में सजा हुआ देखूं। फिर आपसे आ कर कहूं कि आप भी मुझे उस दिन उनके जैसा ही सजाना।"

"पागल हो तुम।" कुमुद ने प्यार से उसका चेहरा सहलाया____"चिंता मत करो, मैं तुम्हें तुम्हारी रागिनी दीदी से भी ज़्यादा अच्छे तरीके से सजाऊंगी। तुम अपनी दीदी से कम सुंदर नहीं लगोगी देख लेना।"

"नहीं भाभी।" रूपा ने झट से कहा____"मैं उनसे ज़्यादा नहीं सजना चाहती। मैं चाहती हूं कि मेरी दीदी को मुझसे ज़्यादा उनका प्यार मिले। मैं तो बस अपनी दीदी के साथ रह कर उनके जैसा बनने की कोशिश करूंगी। मैं चाहती हूं कि जैसे वो कुसुम को अपनी गुड़िया कहते हैं और उसे जी जान से प्यार करते हैं वैसे ही मेरी दीदी मुझे अपनी छोटी सी गुड़िया मान कर मुझे प्यार करें। जब ऐसा होगा तो कितना अच्छा होगा ना भाभी?"

"ओह! रूपा बस करो।" कुमुद ने भावना में बह कर उसे अपने सीने से लगा लिया। उसकी आंखें भर आईं थी, बोली____"किस मिट्टी की बनी हुई हो तुम? तुम्हारे हृदय में क्यों ऐसी अनोखी भावनाएं जन्म ले लेती हैं? मेरी प्यारी ननद, मेरी प्यारी रूपा। भगवान तुम्हें हमेशा ऐसा ही बनाए रखे। हमेशा तुम्हें खुश रखे। हमेशा तुम्हें तुम्हारे प्रियतम के प्रेम का उपहार दे।"

कुमुद सच में रूपा की बातों से भाव विभोर सी हो गई थी। उसका बस चलता तो वो रूपा को अपने सीने के अंदर समा लेती। उधर रूपा के सुर्ख होठों पर हल्की सी मुस्कान उभर आई और आंख से आंसू का एक कतरा छलक गया।




━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━
Very beautiful update 👍
Vaibhav aur Ragini Ghar aagaye
Roopa ki soch se main bhi bahot prabhavit hua hun
Aisa soch agar har naari me aa Jaye to rishot me ek alag hi matas aa jayegi har Ghar me
Keep writing 👍
 

eternity

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कामिनी उसके साथ खुशी खुशी अंदर की तरफ चली दी। विदाई के लिए हर कोई जल्दी जल्दी काम में लग गया था। पांव पूजन में बहुत सारा उपहार मिल गया था जिसे उठा कर बाहर रखा जा रहा था।


अब आगे....


सुबह सभी बारातियों को चाय नाश्ता करवाया गया। इसके साथ ही विदाई की तैयारियां भी शुरू हो गईं। घर से और लोगों द्वारा जो उपहार और सामान मिला था उसको ट्रैक्टर में रखवा दिया गया। बाहर बैंड बाजा वाले गाना बजाना कर रहे थे। हर कोई किसी न किसी काम के लिए दौड़ लगा रहा था।

दूसरी तरफ रागिनी भाभी के पिता वीरभद्र सिंह जी पिता जी के पास बैठे हुए थे और उनसे हाथ जोड़ कर बार बार यही कह रहे थे कि उनके स्वागत में अगर कहीं कोई त्रुटि हुई हो तो वो उन्हें माफ़ करें। पिता जी बार बार उन्हें समझा रहे थे कि उनसे कोई त्रुटि नहीं हुई है और अगर हो भी जाती तो वो बुरा नहीं मानते। उनके लिए सबसे ज़्यादा खुशी इस बात की है कि उनकी बहू ने इस रिश्ते को हां कहा और अब ये विवाह भी हो गया। अपनी जिस बहू को बेटी मान कर वो इतना प्यार और स्नेह देते थे वो उन्हें फिर से उसी रूप में मिल गई जिस रूप में वो उसे देखना चाहते थे। वीरभद्र सिंह जी पिता जी की ये बातें सुन कर उनका आभार मान रहे थे और कह रहे थे कि ये सब उनकी ही वजह से हुआ है। ये उनकी बेटी का सौभाग्य है कि उसे उनके जैसे ससुर पिता के रूप में मिले हैं।

आख़िर विदाई का समय आ ही गया। घर के अंदर से रोने धोने की आवाज़ें आने लगीं। जाने कितनी ही औरतों का करुण क्रंदन वातावरण में गूंजने लगा। मैं कार में बैठा हुआ था। मेरे पीछे कुसुम सुमन और सुषमा बैठी हुईं थी। आते समय अमर मामा भी साथ में थे लेकिन अब क्योंकि भाभी भी मेरे साथ ही कार में जाने वाली थीं तो उनके बैठने के लिए कार में जगह नहीं थी। अमर मामा ने सुमन और सुषमा को कार से उतार कर अपने साथ जीप में चलने को कहा जिससे वो उतर गईं।

थोड़ी ही देर में अंदर से औरतें बाहर आती नज़र आईं। सब की सब रो रहीं थी। उनके बीच रागिनी भाभी सबसे लिपट कर बुरी तरह विलाप कर रहीं थी। उनकी मां, चाची, भाभियां, बहनें, शालिनी और गांव की बहुत सी औरतें सब रो रहीं थी। कुछ ही पलों में वो घर से बाहर आ गई। सहसा भाभी की नज़र अपने पिता वीरभद्र पर पड़ी तो उनके पास जा कर उनसे लिपट गईं और बिलख बिलख कर रोने लगीं। वीरभद्र जी खुद को सम्हाल न सके। अपनी बेटी को हृदय से लगा कर वो खुद भी सिसक उठे। पास में ही उनके छोटे भाई बलभद्र जी खड़े थे। रागिनी भाभी उनसे भी लिपट गईं और चाचा चाचा कहते हुए रोने लगीं। बलभद्र जी भी खुद को सम्हाल न सके। दोनों परिवार में रागिनी ही एक ऐसी लड़की थी जिसमें इतने सारे गुण थे और वो हमेशा से ही सबकी चहेती रही थी।

वीर सिंह, बलवीर सिंह और वीरेंद्र सिंह कुछ ही दूरी पर खड़े आंसू बहाए जा रहे थे। अपनी बहन को यूं रोते देख उनकी आंखें भी बरसने लगीं थी और फिर जब रागिनी उनके पास आ कर उनसे लिपट कर रोने लगी तो उनकी हिचकियां भी निकल गईं। पूरा वातावरण गमगीन सा हो गया। यहां तक कि पिता जी की आंखों में भी आंसू भर आए।

बेटी की विदाई का ये पल घर वालों के लिए बड़ा ही भावुक और संवेदनशील होता है। पत्थर से पत्थर दिल इंसान भी भावनाओं में बह जाता है और मोम की तरह पिघल कर रो पड़ता है। यही हाल था सबका। औरतों का तो पहले से ही रुदन चालू था। भाभी की मां सुलोचना देवी को बार बार चक्कर आ जाता था। यही हाल उनकी देवरानी पुष्पा देवी का भी था। उनकी बहुएं और गांव की औरतें उन्हें सम्हालने लगतीं थी।

रागिनी भाभी की छोटी बहनें, सभी भाभियां और सहेली शालिनी सभी के चेहरे आंसुओं से तर थे। आख़िर भाइयों के बहुत समझाने बुझाने पर रागिनी भाभी उनसे अलग हुईं। शालिनी और कामिनी भाग कर आईं और उन्हें कार की तरफ ले चलीं। उनके पीछे औरतें भी आ गईं। ऐसा लगा जैसे एक बार फिर से भाभी पलट कर सबसे जा लिपटेंगी और रोने लगेंगी किंतु तभी शालिनी और वंदना ने उन्हें सम्हाल लिया और दुखी भाव से समझाते हुए उन्हें कार के अंदर बैठ जाने के लिए ज़ोर देने लगीं। इधर कार के अंदर बैठा मैं अपनी भाभी....नहीं नहीं अपनी पत्नी का रुदन देख खुद भी दुखी हो उठा था। मेरे अंदर एक तूफ़ान सा उठ गया था। उन्हें इस तरह तकलीफ़ से रोते देख मुझसे सहन नहीं हो रहा था लेकिन क्या कर सकता था। ये वक्त ही ऐसा था।

आख़िर किसी तरह वो कार के अंदर आ कर मेरे बगल से बैठ ही गईं लेकिन उनका रोना अब भी कम नहीं हो रहा था। कार की खिड़की से अपने हाथ बार बार बाहर निकाल कर रो ज़ोरों से रोने लगती थीं और बाहर निकलने को उतारू हो जातीं थी। कार के बाहर तरफ शालिनी, कामिनी, वंदना, सुषमा और उनकी मां चाची वगैरह खड़ी सिसक रहीं थी और साथ ही तरह तरह की बातें उन्हें समझाए जा रहीं थी।

कुछ समय बाद सबकी सहमति मिलते ही कार के ड्राइवर ने कार को स्टार्ट कर आगे बढ़ाना शुरू कर दिया लेकिन थोड़ी ही दूर जा कर वो रुक गया। अगले ही पल एक रस्म यहां भी हुई उसके बाद ड्राइवर ने कार को आगे बढ़ा दिया। कार के अंदर भाभी का रोना अभी भी चालू था। वो कभी बाबू जी कह कर रोती तो कभी मां कह कर। कभी भैया कह कर तो कभी भाभी कह कर। मेरे दूसरी तरफ बैठी कुसुम उन्हें इस तरह रोते देख खुद भी आंसू बहाने लगी थी। उससे अपनी भाभी का रोना देखा नहीं जा रहा था। पहले तो वो चुपचाप बस आंसू ही बहाए जा रही थी किंतु जब कार कुछ दूर आ गई तो वो भाभी को न रोने के लिए कहने लगी। आख़िर उसके बहुत कहने पर उनका रोना बंद हुआ लेकिन सिसकियां तब भी बंद न हुईं।

कार के पीछे पीछे अन्य लोग वाहनों में चले आ रहे थे। कच्ची सड़क पर एक लंबा काफ़िला नज़र आ रहा था। बीच में एक बस थी। सबसे पीछे ट्रैक्टर था जिसमें सामान लदा हुआ था।

क़रीब आधा घंटा समय गुज़रा था कि पीछे से एक जीप आई। उसमें अमर मामा बैठे थे। वो बोले कि आगे एक जगह कार रोक देना क्योंकि बहू को पानी पिलाना है जोकि उसका देवर पिलाएगा। ऐसा ही हुआ, कुछ दूर आने के बाद एक अनुकूल जगह पर ड्राइवर ने कार रोक दी।

थोड़ी ही देर में एक जीप हमारे पास आ कर रुकी। उसमें से विभोर और अजीत उतर कर हमारे पास आए। कुछ और लोग भी आ गए। थोड़ी ही दूर एक गांव दिख रहा था। सड़क के किनारे किसी का घर था जहां पर एक कुआं भी था। मामा विभोर को कुएं पर ले गए। विभोर ने कुएं से पानी खींचा और फिर मामा के दिए लोटे में पानी भर कर हमारे पास आया।

अजब और विचित्र संयोग था। एक वक्त था जब मैंने देवर के रूप में रागिनी भाभी को इसी तरह पानी पिलाया था और नेग में उन्होंने मुझे एक सोने की अंगूठी दी थी। आज वही भाभी मेरी पत्नी बन चुकीं थी और उनके देवर के रूप में विभोर उन्हें पानी पिलाने आया था। कितनी कमाल की बात थी कि उनके जीवन में ये रस्म अजीब तरह से दो बार हो रही थी।

बहरहाल, विभोर पानी ले कर आया और बहुत ही खुशी मन से उसने कार का दरवाज़ा खोल कर रागिनी भाभी की तरफ पानी से भरा लोटा बढ़ाया। रागिनी भाभी ने घूंघट के अंदर से एक नज़र विभोर को देखा और अपना हाथ बढ़ा कर उससे लोटा ले लिया। उसके बाद एक हाथ से उन्होंने अपने घूंघट को उठाया और लोटे को अपने मुंह के पास ले जा कर पानी पीने लगीं। मैं और कुसुम उन्हीं को देख रहे थे।

थोड़ी देर बाद रागिनी भाभी ने लोटा वापस विभोर को दे दिया और अपने गले से सोने की चैन उतार कर विभोर को पहना दिया। विभोर बड़ा खुश हुआ और उनके पैर छू कर मुस्कुराते हुए चला गया।

काफ़िला फिर से चल पड़ा। रागिनी भाभी घूंघट किए अब शांति से बैठी हुईं थी। इधर जैसे जैसे रुद्रपुर क़रीब आ रहा था मेरी धड़कनें बढ़ती जा रहीं थी। यूं तो कार में ड्राइवर के अलावा सिर्फ कुसुम ही थी इस लिए मैं उनसे बात कर सकता था लेकिन जाने क्यों उनसे बात करने की हिम्मत नहीं हो रही थी।

"वैसे भैया।" अचानक कुसुम मुस्कुराते हुए बोल पड़ी____"विभोर भैया को तो बड़ा फ़ायदा हुआ। भाभी को उन्होंने बस पानी पिलाया और उन्हें सोने की चैन मिल गई। मुझे और अजीत को तो कुछ दिया ही नहीं भाभी ने। हमारे साथ ये नाइंसाफी क्यों?"

"इस बारे में भला मैं क्या कहूं गुड़िया?" मैंने भाभी पर एक नज़र डालने के बाद उससे कहा____"मैंने तो ऐसा कुछ किया नहीं है। जिन्होंने किया है तुझे उनसे ही पूछना चाहिए।"

"मतलब आप कुछ नहीं कहेंगे?" कुसुम ने हैरानी से मेरी तरफ देखा____"वाह! क्या कहने आपके। भाभी के आते ही आप अपनी लाडली बहन को नज़रअंदाज़ करने लगे। बड़ी मां से शिकायत करूंगी आपकी, हां नहीं तो।"

"अरे! ये क्या कह रही है तू?" मैं उसकी बातों से चौंका____"तू मुझ पर गुस्सा क्यों होती है गुड़िया? मैंने तो कुछ किया ही नहीं है।"

"हां यही तो बात है कि आपने कुछ किया ही नहीं।" कुसुम ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा____"वैसे तो बड़ा कहते हैं कि तू मेरी गुड़िया है, मेरी जान है, मेरा सब कुछ है।"

मुझे समझ ना आया कि अब क्या करूं? भाभी भी कुछ बोल नहीं रहीं थी और गुड़िया थी कि मुझे घूरे ही जा रही थी। मैं सोचने लगा कि अब कैसे अपनी गुड़िया का पक्ष ले कर उसकी नाराज़गी दूर करूं?

"इ...इन पर क्यों गुस्सा होती हो कुसुम?" सहसा भाभी ने धीरे से कुसुम की तरफ देखते हुए कहा____"मुझे बताओ क्या चाहिए तुम्हें?"

"अरे वाह!" भाभी की बात सुनते ही कुसुम का चेहरा खुशी से खिल उठा। फिर मुझे देखते हुए बोली____"देखा भैया, आपने तो अपनी गुड़िया के लिए कुछ नहीं किया लेकिन मेरी सबसे अच्छी वाली भाभी ने झट से पूछ लिया कि मुझे क्या चाहिए। इसका मतलब आपसे ज़्यादा भाभी मुझे मानती हैं।"

"वाह! क्या बात है।" मैंने उसे घूरा____"कुछ मिलने की बात आई तो बड़ा जल्दी पाला बदल लिया तूने। अभी तक तो मैं ही तेरा सबसे अच्छे वाला भैया था और तुझे अपनी जान मानता था और अब ऐसा बोल रही है तू? चल कोई बात नहीं, अब से मैं भी तुझे नहीं विभोर और अजीत को सबसे ज़्यादा प्यार करूंगा और उन्हें अपनी जान कहूंगा।"

"अरे अरे! ये क्या कह रहे हैं आप?" कुसुम बुरी तरह बौखला गई____"नहीं नहीं ऐसा नहीं करेंगे आप। मुझसे ग़लती हो गई, अपनी गुड़िया को माफ़ कर दीजिए ना। आप तो मेरे सबसे अच्छे वाले भैया हैं ना?"

"अच्छा।" मैं मुस्कुराया____"बड़ा जल्दी समझ आ गया तुझे।"

"क्यों मेरी मासूम सी ननद को सता रहे हैं?" भाभी ने लरजते स्वर में धीरे से कहा____"इसका हम दोनों पर बराबर हक़ है। इसे हमसे जो भी चाहिए वो देना हमारा फर्ज़ है।"

"ये, देखा आपने।" कुसुम खुशी से मानों उछल ही पड़ी____"भाभी को आपसे ज़्यादा पता है। अब बताइए, क्या अब भी कुछ कहेंगे आप मुझे?"

"अरे! मैंने तो पहले भी तुझे कुछ नहीं कहा था पागल।" मैंने उसके चेहरे को प्यार से सहला कर कहा____"ख़ैर चल बता अब, क्या चाहिए तुझे?"

"मुझे।" कुसुम सोचने लगी, फिर जैसे उसे कुछ समझ आया तो बोली____"मुझे ना आप दोनों से सिर्फ एक ही चीज़ चाहिए। मैं आप दोनों से बस यही मांगती हूं कि आप दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करें और जैसे अब तक आप दोनों मुझे इतना ज़्यादा प्यार देते आए हैं वैसे ही हमेशा देते रहें।"

कुसुम की बात सुन कर मैं दंग रह गया। मैंने रागिनी भाभी की तरफ देखा। उन्होंने भी गर्दन घुमा कर मुझे देखा। घूंघट के अंदर उनके चेहरे पर लाज की सुर्खी छा गई नज़र आई और होठों पर शर्म से भरी हल्की मुस्कान।

"क्या हुआ?" हमें कुछ न बोलता देख कुसुम बोल पड़ी____"आप दोनों कुछ बोल क्यों नहीं रहे? क्या आप दोनों मेरी ये मांग पूरी नहीं करेंगे?"

"मुझे तो तेरी ये मांग मंज़ूर है गुड़िया।" मैंने धड़कते दिल से कहा____"बाकी तेरी भाभी का मुझे नहीं पता।"

"म...मुझे भी मंज़ूर है कुसुम।" रागिनी भाभी ने थोड़े झिझक के साथ कहा____"बाकी तुम्हें तो मैं पहले भी बहुत मानती थी और आगे भी मानूंगी। तुम सच में हमारी गुड़िया हो।"

भाभी की बात सुनते ही जहां कुसुम खुशी से झूम उठी वहीं मेरी धड़कनें ये सोच कर तेज़ हो गईं कि क्या सच में रागिनी भाभी वही करेंगी जो अभी उन्होंने कहा है? यानि क्या सच में वो मुझसे प्यार करेंगी? पलक झपकते ही ज़हन में न जाने कैसे कैसे ख़याल उभर आए। मैंने फ़ौरन खुद को सम्हाला। ख़ैर ऐसी ही हंसी खुशी के साथ बाकी का सफ़र गुज़रा और हम रुद्रपुर में दाख़िल हो कर हवेली पहुंच गए।

✮✮✮✮

हवेली में मां और चाची हमारे स्वागत के लिए पहले से ही तैयार थीं। जैसे ही हम सब वहां पहुंचे तो आगे का कार्यक्रम शुरू हो गया।

कार मुख्य द्वार के सामने खड़ी थी। मां बाकी औरतों के साथ हमारा परछन करने के लिए आगे बढ़ीं। सब एक साथ गीत गा रहीं थी। एक तरफ बैंड बाजा वाले लगे पड़े थे। हवेली के बाहर विशाल मैदान में भारी भीड़ इकट्ठा हो गई थी। इधर मां मेरी और अपनी नई नवेली बहू की गाते हुए आरती उतार रहीं थी। कुछ देर परछन की उनकी क्रियाएं चलती रहीं उसके बाद हम दोनों कार से उतरे।

एक बार फिर से वातावरण में बंदूकें गरज उठीं थी। एक बार फिर से नाच गाना शुरू हो गया था। इस बार ऐसा हुआ कि जल्दी थमा ही नहीं। मामा लोग नाचने वालियों पर रुपए उड़ा रहे थे। महेंद्र सिंह, अर्जुन सिंह और संजय सिंह भी पीछे नहीं हटे। वो भी पैसे उड़ाने लगे। बैंड बाजा वाले अपना गाना बजाना भूल कर रुपए पैसे बिनने लगे। गांव के कुछ छोटे बच्चे घुस आए थे वो भी बिनने लगे।

काफी देर तक नाच गाना चलता रहा। इस बीच मैं और रागिनी भाभी वापस कार में बैठ कर नाच गाना देखने लगे थे। जब वो सब बंद हुआ तो मां और मेनका चाची मेरे पास आईं और हम दोनों को अंदर चलने को कहा।

मुख्य द्वार की दहलीज़ पर पहुंचते ही मां ने रुकने का इशारा किया। डेढी के अंदर पीतल का एक लोटा रखा हुआ था जिसमें चावल थे। मां के कहने पर रागिनी भाभी ने अपने एक पांव से उस लोटे को ठेला तो वो आगे की तरफ लुढ़क गया। सभी मुस्कुराते हुए आगे बढ़ीं। कुछ ही क़दम पर एक बड़ी सी थाली रखी हुई थी जिसमें रंग घुला हुआ था। चाची के कहने पर भाभी ने उसमें अपने दोनों पैर रखे और फिर आगे बढ़ चलीं। मैं उनके साथ ही चल रहा था।

कुछ ही समय में हम सब अंदर आ गए। उसके बाद अंदर कुछ परंपरा के अनुसार रस्में और रीतियां होने लगीं, पूजा वगैरह हुई। एक तरफ सबके भोजन की व्यवस्था शुरू हो गई।


आज खिचड़ी भी थी जिसमें बहू के हाथों सबको खिचड़ी परोसी जानी थी। खाने वाले अपनी स्वेच्छा से उपहार अथवा रुपए पैसे बहू को देते थे। कुछ समय बाद ऐसा ही हुआ। सबने अपनी अपनी तरफ से अनेकों उपहार और रुपए पैसे उन्हें दिए जिन्हें कुसुम कजरी सुमन और सुषमा पकड़ती जा रहीं थी।

आख़िर इस सबके संपन्न होने के बाद थोड़ी राहत मिली। पिता जी के मित्रगण अपने अपने घरों को लौट गए। अब हवेली में सिर्फ नात रिश्तेदार ही रह गए थे। मैं गुसलखाने में नहा धो कर मामा के पास आ कर बैठ गया था। रात भर का थका था और अब मुझे बिस्तर ही दिखाई दे रहा था लेकिन कमरे में जाने से झिझक रहा था क्योंकि मेरे कमरे में रागिनी भाभी पहुंच चुकीं थी। हालाकि दुल्हन को देखने वालों का आगमन शुरू हो गया था जोकि गांव की औरतें ही थीं किंतु उन्हें कुछ देर आराम करने के लिए कमरे में पहुंचा दिया गया था।

"क्या हुआ भांजे?" मैं जैसे ही मामा के पास बैठा तो मामा ने कहा____"थक गया होगा ना तू? रात भर बैठे रहना आसान बात नहीं होती। एक काम कर कमरे में जा के आराम कर।"

"थक तो गया हूं मामा।" मैंने कहा____"लेकिन कमरे में कैसे जाऊं? वहां तो....।"

"ओह! समझ गया।" मामा हल्के से मुस्कुराए____"तो किसी दूसरे कमरे में जा कर आराम कर ले। हवेली में कमरों की कमी थोड़ी ना है। या फिर तू अपने कमरे में ही आराम करना चाहता है?"

"नहीं, ऐसी बात नहीं है।" मैं थोड़ा झेंप गया____"ठीक है मैं किसी दूसरे कमरे में आराम करने चला जाता हूं।"

अभी मैं जाने ही लगा था कि तभी रोहिणी मामी आ गईं। शायद उन्होंने हमारी बातें सुन लीं थी। अतः मुस्कुराते हुए बोलीं____"क्या हुआ वैभव? अपने कमरे में आराम करने में क्या समस्या है?"

"क...कोई समस्या नहीं है मामी।" मैं हकलाते हुए बोला____"लेकिन बात ये है कि फिलहाल मैं अकेले स्वतंत्र रूप से कहीं आराम कर लेना चाहता हूं।"

"हां ज़रूरी भी है।" मामी ने गहरी मुस्कान के साथ कहा____"क्या पता बाद में आराम करने का मौका मिले न मिले।"

"अरे अरे! ये कैसी बातें कर रही हो तुम?" मामा एकदम से चौंक कर बोल पड़े____"भांजे से थोड़ा तो लिहाज करो, जाओ यहां से।"

मामी हंसते हुए चली गईं। मामा ने मुझे आराम करने को कहा तो मैं ये सोचते हुए एक कमरे की तरफ बढ़ चला कि मामी भी मौका देख कर व्यंग बाण चला ही देती हैं। ख़ैर मैं नीचे ही एक कमरे में जा कर पलंग पर लेट गया। बड़ा ही सुखद एहसास हुआ। पहली बार एहसास हुआ कि गद्देदार बिस्तर कितना आरामदायक और सुखदाई होता है। कुछ ही देर में मुझे नींद ने अपनी आगोश में ले लिया। बंद पलकों में एकदम से एक हसीन ख़्वाब चलचित्र की तरह दिखने लगा। उसके बाद शाम तक मैं सोता ही रहा।

✮✮✮✮

रूपा खा पी कर अपने कमरे में बिस्तर पर लेटी हुई थी। पिछले कुछ दिनों से उसे अकेले रहने का बहुत ही कम अवसर मिला था। जैसे जैसे विवाह का दिन क़रीब आ रहा था उसकी धड़कनें बढ़ती जा रहीं थी। मन में तो बहुत पहले ही उसने न जाने कैसे कैसे ख़्वाब बुन लिए थे जिनके बारे में सोच कर ही उसके अंदर एक सुखद अनुभूति होने लगती थी लेकिन आज का दिन बाकी दिनों से बहुत अलग महसूस हो रहा था उसे। आज उसका होने वाला पति अपनी पहली पत्नी को ब्याह कर ले आया था। हवेली में बैंड बाजा बजने की गूंज उसके कानों तक भी पहुंची थी। कल उसकी बड़ी मां यानि फूलवती और चाची सुनैना देवी हवेली गई हुईं थी जब वैभव की बारात हवेली से निकलने वाली थी।

बिस्तर पर लेटी रूपा के मन में बहुत सी बातें चल रहीं थी। उन सब बातों को सोचते हुए कभी उसकी धड़कनें तेज़ हो जातीं तो कभी थम सी जातीं। आंखों के सामने कभी वैभव का चेहरा उभर आता तो कभी रागिनी का तो कभी दोनों का एक साथ। वो कल्पना करने लगती कि उसका प्रियतम आज अपनी पहली पत्नी के साथ एक ही कमरे में रहेगा, उसके साथ एक ही बिस्तर पर होगा और....और फिर दोनों एक साथ प्रेम में डूब जाएंगे। इस एहसास के साथ ही रूपा को थोड़ा झटका सा लगता और वो एकदम से वर्तमान में आ जाती। फिर वो खुद को समझाने लगती कि बहुत जल्द वो भी अपने प्रियतम की पत्नी बन कर हवेली में पहुंच जाएगी और रागिनी दीदी की ही तरह वैभव उसे भी प्रेम करेंगे।

"अरे! रूपा सुना तुमने?" सहसा कमरे में उसकी बड़ी भाभी कुमुद दाख़िल हुई और उससे बोली____"तुम्हारे होने वाले पतिदेव अपनी पहली दुल्हन ले आए। हमारे घर के सामने से ही वो सब निकले हैं। अब तक तो परछन भी हो गया होगा।"

"हां बैंड बाजा बजने की आवाज़ें मैंने भी सुनी हैं भाभी।" रूपा बिस्तर से उठ कर बोली____"क्या बड़ी मां नहीं गईं वहां?"

"गईं हैं।" कुमुद ने कहा____"उनके साथ राधा भी गई है।"

"रूप भैया आ गए क्या?" रूपा ने पूछा____"वो भी तो उनकी बारात में गए थे।"

"जब बारात आ गई है तो वो भी आ ही गए होंगे।" कुमुद ने कहा____"फिलहाल घर तो अभी नहीं आए वो। आ जाएंगे थोड़ी देर में। ख़ैर तुम बताओ, अकेले में किसके ख़यालों में गुम थी?"

"किसी के तो नहीं।" रूपा एकदम से शरमाते हुए बोली____"मैं तो बस ऐसे ही लेटी हुई थी।"

"झूठ ऐसा बोलो जिसे सामने वाला यकीन कर ले।" कुमुद ने मुस्कुराते हुए कहा____"मुझे अच्छी तरह पता है कि इस वक्त तुम अपने होने वाले पतिदेव के बारे में ही सोचने में गुम थी। ज़रा बताओ तो कि क्या क्या सोच लिया है तुमने?"

"ऐसा कुछ नहीं है भाभी।" रूपा ने शर्म से मुस्कुराते हुए कहा____"मैं भला क्यों कुछ सोचूंगी?"

"क्या सच में?" कुमुद ने अपनी भौंहें उठा कर उसे देखा____"क्या सच में तुम आज की स्थिति के बारे में नहीं सोच रही थी? मैं मान ही नहीं सकती कि तुम्हारे मन में अपने होने वाले पति और अपनी सौतन के संबंध में कोई ख़याल ही न आया होगा।"

"उन्हें मेरी सौतन मत कहिए भाभी।" रूपा ने सहसा अधीर हो कर कहा____"वो तो मेरी दीदी हैं, सबसे अच्छी वाली बड़ी दीदी। मैं बहुत खुश हूं कि उनका फिर से विवाह हो गया और अब उनका जीवन खुशी के रंगों से भर जाएगा। मैं यही दुआ करती हूं कि आज की रात वो उन्हें खूब प्यार करें और उनके सारे दुख को भुला दें।"

"तुम सच में बहुत अद्भुत हो रूपा।" कुमुद ने पास आ कर रूपा के कंधे को दबाते हुए कहा____"दुनिया की हर औरत अपने पति की दूसरी पत्नी को अपनी सौतन ही मानती है और ये भी सच ही है कि वो कभी उस औरत को पसंद नहीं करती लेकिन तुम इसका अपवाद हो मेरी ननद रानी। तुम अपने पति की उन नव विवाहिता पत्नी को सच्चे दिल से अपनी दीदी कहती हो और उनकी खुशियों की कामना कर रही हो। ऐसा तुम्हारे अलावा शायद ही कोई सोच सकता है।"

"मैं ये सब नहीं जानती भाभी।" रूपा ने कहा____"मैं तो बस इतना चाहती हूं कि उनसे जुड़ा हर व्यक्ति खुश रहे। ईश्वर से यही कामना करती हूं कि मेरे दिल में भी हमेशा उनसे जुड़े हर व्यक्ति के लिए आदर, सम्मान और प्रेम की ही भावना रहे।"

"तुम प्रेम की मूरत हो रूपा।" कुमुद ने कहा____"तुम कभी किसी के बारे में कुछ बुरा सोच ही नहीं सकती हो। काश! दुनिया की हर औरत का हृदय तुम्हारे जैसा हो जाए।"

"मैं सोच रही हूं कि इस वक्त रागिनी दीदी सुहागन के पूरे श्रृंगार में कैसी दिखती होंगी?" रूपा ने कहा____"उनकी सुंदरता के बारे में मैंने पहले भी बहुत सुना था। विधवा के लिबास में उन्हें देखा भी है। वो सादगी और सौम्यता से भरी हुई हैं। उनका हृदय बहुत साफ और निश्छल है। मेरा बहुत मन कर रहा है कि मैं उन्हें दुल्हन के रूप में सजा हुआ देखूं। फिर आपसे आ कर कहूं कि आप भी मुझे उस दिन उनके जैसा ही सजाना।"

"पागल हो तुम।" कुमुद ने प्यार से उसका चेहरा सहलाया____"चिंता मत करो, मैं तुम्हें तुम्हारी रागिनी दीदी से भी ज़्यादा अच्छे तरीके से सजाऊंगी। तुम अपनी दीदी से कम सुंदर नहीं लगोगी देख लेना।"

"नहीं भाभी।" रूपा ने झट से कहा____"मैं उनसे ज़्यादा नहीं सजना चाहती। मैं चाहती हूं कि मेरी दीदी को मुझसे ज़्यादा उनका प्यार मिले। मैं तो बस अपनी दीदी के साथ रह कर उनके जैसा बनने की कोशिश करूंगी। मैं चाहती हूं कि जैसे वो कुसुम को अपनी गुड़िया कहते हैं और उसे जी जान से प्यार करते हैं वैसे ही मेरी दीदी मुझे अपनी छोटी सी गुड़िया मान कर मुझे प्यार करें। जब ऐसा होगा तो कितना अच्छा होगा ना भाभी?"

"ओह! रूपा बस करो।" कुमुद ने भावना में बह कर उसे अपने सीने से लगा लिया। उसकी आंखें भर आईं थी, बोली____"किस मिट्टी की बनी हुई हो तुम? तुम्हारे हृदय में क्यों ऐसी अनोखी भावनाएं जन्म ले लेती हैं? मेरी प्यारी ननद, मेरी प्यारी रूपा। भगवान तुम्हें हमेशा ऐसा ही बनाए रखे। हमेशा तुम्हें खुश रखे। हमेशा तुम्हें तुम्हारे प्रियतम के प्रेम का उपहार दे।"

कुमुद सच में रूपा की बातों से भाव विभोर सी हो गई थी। उसका बस चलता तो वो रूपा को अपने सीने के अंदर समा लेती। उधर रूपा के सुर्ख होठों पर हल्की सी मुस्कान उभर आई और आंख से आंसू का एक कतरा छलक गया।




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Bahut khub............................
 
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कामिनी उसके साथ खुशी खुशी अंदर की तरफ चली दी। विदाई के लिए हर कोई जल्दी जल्दी काम में लग गया था। पांव पूजन में बहुत सारा उपहार मिल गया था जिसे उठा कर बाहर रखा जा रहा था।


अब आगे....


सुबह सभी बारातियों को चाय नाश्ता करवाया गया। इसके साथ ही विदाई की तैयारियां भी शुरू हो गईं। घर से और लोगों द्वारा जो उपहार और सामान मिला था उसको ट्रैक्टर में रखवा दिया गया। बाहर बैंड बाजा वाले गाना बजाना कर रहे थे। हर कोई किसी न किसी काम के लिए दौड़ लगा रहा था।

दूसरी तरफ रागिनी भाभी के पिता वीरभद्र सिंह जी पिता जी के पास बैठे हुए थे और उनसे हाथ जोड़ कर बार बार यही कह रहे थे कि उनके स्वागत में अगर कहीं कोई त्रुटि हुई हो तो वो उन्हें माफ़ करें। पिता जी बार बार उन्हें समझा रहे थे कि उनसे कोई त्रुटि नहीं हुई है और अगर हो भी जाती तो वो बुरा नहीं मानते। उनके लिए सबसे ज़्यादा खुशी इस बात की है कि उनकी बहू ने इस रिश्ते को हां कहा और अब ये विवाह भी हो गया। अपनी जिस बहू को बेटी मान कर वो इतना प्यार और स्नेह देते थे वो उन्हें फिर से उसी रूप में मिल गई जिस रूप में वो उसे देखना चाहते थे। वीरभद्र सिंह जी पिता जी की ये बातें सुन कर उनका आभार मान रहे थे और कह रहे थे कि ये सब उनकी ही वजह से हुआ है। ये उनकी बेटी का सौभाग्य है कि उसे उनके जैसे ससुर पिता के रूप में मिले हैं।

आख़िर विदाई का समय आ ही गया। घर के अंदर से रोने धोने की आवाज़ें आने लगीं। जाने कितनी ही औरतों का करुण क्रंदन वातावरण में गूंजने लगा। मैं कार में बैठा हुआ था। मेरे पीछे कुसुम सुमन और सुषमा बैठी हुईं थी। आते समय अमर मामा भी साथ में थे लेकिन अब क्योंकि भाभी भी मेरे साथ ही कार में जाने वाली थीं तो उनके बैठने के लिए कार में जगह नहीं थी। अमर मामा ने सुमन और सुषमा को कार से उतार कर अपने साथ जीप में चलने को कहा जिससे वो उतर गईं।

थोड़ी ही देर में अंदर से औरतें बाहर आती नज़र आईं। सब की सब रो रहीं थी। उनके बीच रागिनी भाभी सबसे लिपट कर बुरी तरह विलाप कर रहीं थी। उनकी मां, चाची, भाभियां, बहनें, शालिनी और गांव की बहुत सी औरतें सब रो रहीं थी। कुछ ही पलों में वो घर से बाहर आ गई। सहसा भाभी की नज़र अपने पिता वीरभद्र पर पड़ी तो उनके पास जा कर उनसे लिपट गईं और बिलख बिलख कर रोने लगीं। वीरभद्र जी खुद को सम्हाल न सके। अपनी बेटी को हृदय से लगा कर वो खुद भी सिसक उठे। पास में ही उनके छोटे भाई बलभद्र जी खड़े थे। रागिनी भाभी उनसे भी लिपट गईं और चाचा चाचा कहते हुए रोने लगीं। बलभद्र जी भी खुद को सम्हाल न सके। दोनों परिवार में रागिनी ही एक ऐसी लड़की थी जिसमें इतने सारे गुण थे और वो हमेशा से ही सबकी चहेती रही थी।

वीर सिंह, बलवीर सिंह और वीरेंद्र सिंह कुछ ही दूरी पर खड़े आंसू बहाए जा रहे थे। अपनी बहन को यूं रोते देख उनकी आंखें भी बरसने लगीं थी और फिर जब रागिनी उनके पास आ कर उनसे लिपट कर रोने लगी तो उनकी हिचकियां भी निकल गईं। पूरा वातावरण गमगीन सा हो गया। यहां तक कि पिता जी की आंखों में भी आंसू भर आए।

बेटी की विदाई का ये पल घर वालों के लिए बड़ा ही भावुक और संवेदनशील होता है। पत्थर से पत्थर दिल इंसान भी भावनाओं में बह जाता है और मोम की तरह पिघल कर रो पड़ता है। यही हाल था सबका। औरतों का तो पहले से ही रुदन चालू था। भाभी की मां सुलोचना देवी को बार बार चक्कर आ जाता था। यही हाल उनकी देवरानी पुष्पा देवी का भी था। उनकी बहुएं और गांव की औरतें उन्हें सम्हालने लगतीं थी।

रागिनी भाभी की छोटी बहनें, सभी भाभियां और सहेली शालिनी सभी के चेहरे आंसुओं से तर थे। आख़िर भाइयों के बहुत समझाने बुझाने पर रागिनी भाभी उनसे अलग हुईं। शालिनी और कामिनी भाग कर आईं और उन्हें कार की तरफ ले चलीं। उनके पीछे औरतें भी आ गईं। ऐसा लगा जैसे एक बार फिर से भाभी पलट कर सबसे जा लिपटेंगी और रोने लगेंगी किंतु तभी शालिनी और वंदना ने उन्हें सम्हाल लिया और दुखी भाव से समझाते हुए उन्हें कार के अंदर बैठ जाने के लिए ज़ोर देने लगीं। इधर कार के अंदर बैठा मैं अपनी भाभी....नहीं नहीं अपनी पत्नी का रुदन देख खुद भी दुखी हो उठा था। मेरे अंदर एक तूफ़ान सा उठ गया था। उन्हें इस तरह तकलीफ़ से रोते देख मुझसे सहन नहीं हो रहा था लेकिन क्या कर सकता था। ये वक्त ही ऐसा था।

आख़िर किसी तरह वो कार के अंदर आ कर मेरे बगल से बैठ ही गईं लेकिन उनका रोना अब भी कम नहीं हो रहा था। कार की खिड़की से अपने हाथ बार बार बाहर निकाल कर रो ज़ोरों से रोने लगती थीं और बाहर निकलने को उतारू हो जातीं थी। कार के बाहर तरफ शालिनी, कामिनी, वंदना, सुषमा और उनकी मां चाची वगैरह खड़ी सिसक रहीं थी और साथ ही तरह तरह की बातें उन्हें समझाए जा रहीं थी।

कुछ समय बाद सबकी सहमति मिलते ही कार के ड्राइवर ने कार को स्टार्ट कर आगे बढ़ाना शुरू कर दिया लेकिन थोड़ी ही दूर जा कर वो रुक गया। अगले ही पल एक रस्म यहां भी हुई उसके बाद ड्राइवर ने कार को आगे बढ़ा दिया। कार के अंदर भाभी का रोना अभी भी चालू था। वो कभी बाबू जी कह कर रोती तो कभी मां कह कर। कभी भैया कह कर तो कभी भाभी कह कर। मेरे दूसरी तरफ बैठी कुसुम उन्हें इस तरह रोते देख खुद भी आंसू बहाने लगी थी। उससे अपनी भाभी का रोना देखा नहीं जा रहा था। पहले तो वो चुपचाप बस आंसू ही बहाए जा रही थी किंतु जब कार कुछ दूर आ गई तो वो भाभी को न रोने के लिए कहने लगी। आख़िर उसके बहुत कहने पर उनका रोना बंद हुआ लेकिन सिसकियां तब भी बंद न हुईं।

कार के पीछे पीछे अन्य लोग वाहनों में चले आ रहे थे। कच्ची सड़क पर एक लंबा काफ़िला नज़र आ रहा था। बीच में एक बस थी। सबसे पीछे ट्रैक्टर था जिसमें सामान लदा हुआ था।

क़रीब आधा घंटा समय गुज़रा था कि पीछे से एक जीप आई। उसमें अमर मामा बैठे थे। वो बोले कि आगे एक जगह कार रोक देना क्योंकि बहू को पानी पिलाना है जोकि उसका देवर पिलाएगा। ऐसा ही हुआ, कुछ दूर आने के बाद एक अनुकूल जगह पर ड्राइवर ने कार रोक दी।

थोड़ी ही देर में एक जीप हमारे पास आ कर रुकी। उसमें से विभोर और अजीत उतर कर हमारे पास आए। कुछ और लोग भी आ गए। थोड़ी ही दूर एक गांव दिख रहा था। सड़क के किनारे किसी का घर था जहां पर एक कुआं भी था। मामा विभोर को कुएं पर ले गए। विभोर ने कुएं से पानी खींचा और फिर मामा के दिए लोटे में पानी भर कर हमारे पास आया।

अजब और विचित्र संयोग था। एक वक्त था जब मैंने देवर के रूप में रागिनी भाभी को इसी तरह पानी पिलाया था और नेग में उन्होंने मुझे एक सोने की अंगूठी दी थी। आज वही भाभी मेरी पत्नी बन चुकीं थी और उनके देवर के रूप में विभोर उन्हें पानी पिलाने आया था। कितनी कमाल की बात थी कि उनके जीवन में ये रस्म अजीब तरह से दो बार हो रही थी।

बहरहाल, विभोर पानी ले कर आया और बहुत ही खुशी मन से उसने कार का दरवाज़ा खोल कर रागिनी भाभी की तरफ पानी से भरा लोटा बढ़ाया। रागिनी भाभी ने घूंघट के अंदर से एक नज़र विभोर को देखा और अपना हाथ बढ़ा कर उससे लोटा ले लिया। उसके बाद एक हाथ से उन्होंने अपने घूंघट को उठाया और लोटे को अपने मुंह के पास ले जा कर पानी पीने लगीं। मैं और कुसुम उन्हीं को देख रहे थे।

थोड़ी देर बाद रागिनी भाभी ने लोटा वापस विभोर को दे दिया और अपने गले से सोने की चैन उतार कर विभोर को पहना दिया। विभोर बड़ा खुश हुआ और उनके पैर छू कर मुस्कुराते हुए चला गया।

काफ़िला फिर से चल पड़ा। रागिनी भाभी घूंघट किए अब शांति से बैठी हुईं थी। इधर जैसे जैसे रुद्रपुर क़रीब आ रहा था मेरी धड़कनें बढ़ती जा रहीं थी। यूं तो कार में ड्राइवर के अलावा सिर्फ कुसुम ही थी इस लिए मैं उनसे बात कर सकता था लेकिन जाने क्यों उनसे बात करने की हिम्मत नहीं हो रही थी।

"वैसे भैया।" अचानक कुसुम मुस्कुराते हुए बोल पड़ी____"विभोर भैया को तो बड़ा फ़ायदा हुआ। भाभी को उन्होंने बस पानी पिलाया और उन्हें सोने की चैन मिल गई। मुझे और अजीत को तो कुछ दिया ही नहीं भाभी ने। हमारे साथ ये नाइंसाफी क्यों?"

"इस बारे में भला मैं क्या कहूं गुड़िया?" मैंने भाभी पर एक नज़र डालने के बाद उससे कहा____"मैंने तो ऐसा कुछ किया नहीं है। जिन्होंने किया है तुझे उनसे ही पूछना चाहिए।"

"मतलब आप कुछ नहीं कहेंगे?" कुसुम ने हैरानी से मेरी तरफ देखा____"वाह! क्या कहने आपके। भाभी के आते ही आप अपनी लाडली बहन को नज़रअंदाज़ करने लगे। बड़ी मां से शिकायत करूंगी आपकी, हां नहीं तो।"

"अरे! ये क्या कह रही है तू?" मैं उसकी बातों से चौंका____"तू मुझ पर गुस्सा क्यों होती है गुड़िया? मैंने तो कुछ किया ही नहीं है।"

"हां यही तो बात है कि आपने कुछ किया ही नहीं।" कुसुम ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा____"वैसे तो बड़ा कहते हैं कि तू मेरी गुड़िया है, मेरी जान है, मेरा सब कुछ है।"

मुझे समझ ना आया कि अब क्या करूं? भाभी भी कुछ बोल नहीं रहीं थी और गुड़िया थी कि मुझे घूरे ही जा रही थी। मैं सोचने लगा कि अब कैसे अपनी गुड़िया का पक्ष ले कर उसकी नाराज़गी दूर करूं?

"इ...इन पर क्यों गुस्सा होती हो कुसुम?" सहसा भाभी ने धीरे से कुसुम की तरफ देखते हुए कहा____"मुझे बताओ क्या चाहिए तुम्हें?"

"अरे वाह!" भाभी की बात सुनते ही कुसुम का चेहरा खुशी से खिल उठा। फिर मुझे देखते हुए बोली____"देखा भैया, आपने तो अपनी गुड़िया के लिए कुछ नहीं किया लेकिन मेरी सबसे अच्छी वाली भाभी ने झट से पूछ लिया कि मुझे क्या चाहिए। इसका मतलब आपसे ज़्यादा भाभी मुझे मानती हैं।"

"वाह! क्या बात है।" मैंने उसे घूरा____"कुछ मिलने की बात आई तो बड़ा जल्दी पाला बदल लिया तूने। अभी तक तो मैं ही तेरा सबसे अच्छे वाला भैया था और तुझे अपनी जान मानता था और अब ऐसा बोल रही है तू? चल कोई बात नहीं, अब से मैं भी तुझे नहीं विभोर और अजीत को सबसे ज़्यादा प्यार करूंगा और उन्हें अपनी जान कहूंगा।"

"अरे अरे! ये क्या कह रहे हैं आप?" कुसुम बुरी तरह बौखला गई____"नहीं नहीं ऐसा नहीं करेंगे आप। मुझसे ग़लती हो गई, अपनी गुड़िया को माफ़ कर दीजिए ना। आप तो मेरे सबसे अच्छे वाले भैया हैं ना?"

"अच्छा।" मैं मुस्कुराया____"बड़ा जल्दी समझ आ गया तुझे।"

"क्यों मेरी मासूम सी ननद को सता रहे हैं?" भाभी ने लरजते स्वर में धीरे से कहा____"इसका हम दोनों पर बराबर हक़ है। इसे हमसे जो भी चाहिए वो देना हमारा फर्ज़ है।"

"ये, देखा आपने।" कुसुम खुशी से मानों उछल ही पड़ी____"भाभी को आपसे ज़्यादा पता है। अब बताइए, क्या अब भी कुछ कहेंगे आप मुझे?"

"अरे! मैंने तो पहले भी तुझे कुछ नहीं कहा था पागल।" मैंने उसके चेहरे को प्यार से सहला कर कहा____"ख़ैर चल बता अब, क्या चाहिए तुझे?"

"मुझे।" कुसुम सोचने लगी, फिर जैसे उसे कुछ समझ आया तो बोली____"मुझे ना आप दोनों से सिर्फ एक ही चीज़ चाहिए। मैं आप दोनों से बस यही मांगती हूं कि आप दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करें और जैसे अब तक आप दोनों मुझे इतना ज़्यादा प्यार देते आए हैं वैसे ही हमेशा देते रहें।"

कुसुम की बात सुन कर मैं दंग रह गया। मैंने रागिनी भाभी की तरफ देखा। उन्होंने भी गर्दन घुमा कर मुझे देखा। घूंघट के अंदर उनके चेहरे पर लाज की सुर्खी छा गई नज़र आई और होठों पर शर्म से भरी हल्की मुस्कान।

"क्या हुआ?" हमें कुछ न बोलता देख कुसुम बोल पड़ी____"आप दोनों कुछ बोल क्यों नहीं रहे? क्या आप दोनों मेरी ये मांग पूरी नहीं करेंगे?"

"मुझे तो तेरी ये मांग मंज़ूर है गुड़िया।" मैंने धड़कते दिल से कहा____"बाकी तेरी भाभी का मुझे नहीं पता।"

"म...मुझे भी मंज़ूर है कुसुम।" रागिनी भाभी ने थोड़े झिझक के साथ कहा____"बाकी तुम्हें तो मैं पहले भी बहुत मानती थी और आगे भी मानूंगी। तुम सच में हमारी गुड़िया हो।"

भाभी की बात सुनते ही जहां कुसुम खुशी से झूम उठी वहीं मेरी धड़कनें ये सोच कर तेज़ हो गईं कि क्या सच में रागिनी भाभी वही करेंगी जो अभी उन्होंने कहा है? यानि क्या सच में वो मुझसे प्यार करेंगी? पलक झपकते ही ज़हन में न जाने कैसे कैसे ख़याल उभर आए। मैंने फ़ौरन खुद को सम्हाला। ख़ैर ऐसी ही हंसी खुशी के साथ बाकी का सफ़र गुज़रा और हम रुद्रपुर में दाख़िल हो कर हवेली पहुंच गए।

✮✮✮✮

हवेली में मां और चाची हमारे स्वागत के लिए पहले से ही तैयार थीं। जैसे ही हम सब वहां पहुंचे तो आगे का कार्यक्रम शुरू हो गया।

कार मुख्य द्वार के सामने खड़ी थी। मां बाकी औरतों के साथ हमारा परछन करने के लिए आगे बढ़ीं। सब एक साथ गीत गा रहीं थी। एक तरफ बैंड बाजा वाले लगे पड़े थे। हवेली के बाहर विशाल मैदान में भारी भीड़ इकट्ठा हो गई थी। इधर मां मेरी और अपनी नई नवेली बहू की गाते हुए आरती उतार रहीं थी। कुछ देर परछन की उनकी क्रियाएं चलती रहीं उसके बाद हम दोनों कार से उतरे।

एक बार फिर से वातावरण में बंदूकें गरज उठीं थी। एक बार फिर से नाच गाना शुरू हो गया था। इस बार ऐसा हुआ कि जल्दी थमा ही नहीं। मामा लोग नाचने वालियों पर रुपए उड़ा रहे थे। महेंद्र सिंह, अर्जुन सिंह और संजय सिंह भी पीछे नहीं हटे। वो भी पैसे उड़ाने लगे। बैंड बाजा वाले अपना गाना बजाना भूल कर रुपए पैसे बिनने लगे। गांव के कुछ छोटे बच्चे घुस आए थे वो भी बिनने लगे।

काफी देर तक नाच गाना चलता रहा। इस बीच मैं और रागिनी भाभी वापस कार में बैठ कर नाच गाना देखने लगे थे। जब वो सब बंद हुआ तो मां और मेनका चाची मेरे पास आईं और हम दोनों को अंदर चलने को कहा।

मुख्य द्वार की दहलीज़ पर पहुंचते ही मां ने रुकने का इशारा किया। डेढी के अंदर पीतल का एक लोटा रखा हुआ था जिसमें चावल थे। मां के कहने पर रागिनी भाभी ने अपने एक पांव से उस लोटे को ठेला तो वो आगे की तरफ लुढ़क गया। सभी मुस्कुराते हुए आगे बढ़ीं। कुछ ही क़दम पर एक बड़ी सी थाली रखी हुई थी जिसमें रंग घुला हुआ था। चाची के कहने पर भाभी ने उसमें अपने दोनों पैर रखे और फिर आगे बढ़ चलीं। मैं उनके साथ ही चल रहा था।

कुछ ही समय में हम सब अंदर आ गए। उसके बाद अंदर कुछ परंपरा के अनुसार रस्में और रीतियां होने लगीं, पूजा वगैरह हुई। एक तरफ सबके भोजन की व्यवस्था शुरू हो गई।


आज खिचड़ी भी थी जिसमें बहू के हाथों सबको खिचड़ी परोसी जानी थी। खाने वाले अपनी स्वेच्छा से उपहार अथवा रुपए पैसे बहू को देते थे। कुछ समय बाद ऐसा ही हुआ। सबने अपनी अपनी तरफ से अनेकों उपहार और रुपए पैसे उन्हें दिए जिन्हें कुसुम कजरी सुमन और सुषमा पकड़ती जा रहीं थी।

आख़िर इस सबके संपन्न होने के बाद थोड़ी राहत मिली। पिता जी के मित्रगण अपने अपने घरों को लौट गए। अब हवेली में सिर्फ नात रिश्तेदार ही रह गए थे। मैं गुसलखाने में नहा धो कर मामा के पास आ कर बैठ गया था। रात भर का थका था और अब मुझे बिस्तर ही दिखाई दे रहा था लेकिन कमरे में जाने से झिझक रहा था क्योंकि मेरे कमरे में रागिनी भाभी पहुंच चुकीं थी। हालाकि दुल्हन को देखने वालों का आगमन शुरू हो गया था जोकि गांव की औरतें ही थीं किंतु उन्हें कुछ देर आराम करने के लिए कमरे में पहुंचा दिया गया था।

"क्या हुआ भांजे?" मैं जैसे ही मामा के पास बैठा तो मामा ने कहा____"थक गया होगा ना तू? रात भर बैठे रहना आसान बात नहीं होती। एक काम कर कमरे में जा के आराम कर।"

"थक तो गया हूं मामा।" मैंने कहा____"लेकिन कमरे में कैसे जाऊं? वहां तो....।"

"ओह! समझ गया।" मामा हल्के से मुस्कुराए____"तो किसी दूसरे कमरे में जा कर आराम कर ले। हवेली में कमरों की कमी थोड़ी ना है। या फिर तू अपने कमरे में ही आराम करना चाहता है?"

"नहीं, ऐसी बात नहीं है।" मैं थोड़ा झेंप गया____"ठीक है मैं किसी दूसरे कमरे में आराम करने चला जाता हूं।"

अभी मैं जाने ही लगा था कि तभी रोहिणी मामी आ गईं। शायद उन्होंने हमारी बातें सुन लीं थी। अतः मुस्कुराते हुए बोलीं____"क्या हुआ वैभव? अपने कमरे में आराम करने में क्या समस्या है?"

"क...कोई समस्या नहीं है मामी।" मैं हकलाते हुए बोला____"लेकिन बात ये है कि फिलहाल मैं अकेले स्वतंत्र रूप से कहीं आराम कर लेना चाहता हूं।"

"हां ज़रूरी भी है।" मामी ने गहरी मुस्कान के साथ कहा____"क्या पता बाद में आराम करने का मौका मिले न मिले।"

"अरे अरे! ये कैसी बातें कर रही हो तुम?" मामा एकदम से चौंक कर बोल पड़े____"भांजे से थोड़ा तो लिहाज करो, जाओ यहां से।"

मामी हंसते हुए चली गईं। मामा ने मुझे आराम करने को कहा तो मैं ये सोचते हुए एक कमरे की तरफ बढ़ चला कि मामी भी मौका देख कर व्यंग बाण चला ही देती हैं। ख़ैर मैं नीचे ही एक कमरे में जा कर पलंग पर लेट गया। बड़ा ही सुखद एहसास हुआ। पहली बार एहसास हुआ कि गद्देदार बिस्तर कितना आरामदायक और सुखदाई होता है। कुछ ही देर में मुझे नींद ने अपनी आगोश में ले लिया। बंद पलकों में एकदम से एक हसीन ख़्वाब चलचित्र की तरह दिखने लगा। उसके बाद शाम तक मैं सोता ही रहा।

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रूपा खा पी कर अपने कमरे में बिस्तर पर लेटी हुई थी। पिछले कुछ दिनों से उसे अकेले रहने का बहुत ही कम अवसर मिला था। जैसे जैसे विवाह का दिन क़रीब आ रहा था उसकी धड़कनें बढ़ती जा रहीं थी। मन में तो बहुत पहले ही उसने न जाने कैसे कैसे ख़्वाब बुन लिए थे जिनके बारे में सोच कर ही उसके अंदर एक सुखद अनुभूति होने लगती थी लेकिन आज का दिन बाकी दिनों से बहुत अलग महसूस हो रहा था उसे। आज उसका होने वाला पति अपनी पहली पत्नी को ब्याह कर ले आया था। हवेली में बैंड बाजा बजने की गूंज उसके कानों तक भी पहुंची थी। कल उसकी बड़ी मां यानि फूलवती और चाची सुनैना देवी हवेली गई हुईं थी जब वैभव की बारात हवेली से निकलने वाली थी।

बिस्तर पर लेटी रूपा के मन में बहुत सी बातें चल रहीं थी। उन सब बातों को सोचते हुए कभी उसकी धड़कनें तेज़ हो जातीं तो कभी थम सी जातीं। आंखों के सामने कभी वैभव का चेहरा उभर आता तो कभी रागिनी का तो कभी दोनों का एक साथ। वो कल्पना करने लगती कि उसका प्रियतम आज अपनी पहली पत्नी के साथ एक ही कमरे में रहेगा, उसके साथ एक ही बिस्तर पर होगा और....और फिर दोनों एक साथ प्रेम में डूब जाएंगे। इस एहसास के साथ ही रूपा को थोड़ा झटका सा लगता और वो एकदम से वर्तमान में आ जाती। फिर वो खुद को समझाने लगती कि बहुत जल्द वो भी अपने प्रियतम की पत्नी बन कर हवेली में पहुंच जाएगी और रागिनी दीदी की ही तरह वैभव उसे भी प्रेम करेंगे।

"अरे! रूपा सुना तुमने?" सहसा कमरे में उसकी बड़ी भाभी कुमुद दाख़िल हुई और उससे बोली____"तुम्हारे होने वाले पतिदेव अपनी पहली दुल्हन ले आए। हमारे घर के सामने से ही वो सब निकले हैं। अब तक तो परछन भी हो गया होगा।"

"हां बैंड बाजा बजने की आवाज़ें मैंने भी सुनी हैं भाभी।" रूपा बिस्तर से उठ कर बोली____"क्या बड़ी मां नहीं गईं वहां?"

"गईं हैं।" कुमुद ने कहा____"उनके साथ राधा भी गई है।"

"रूप भैया आ गए क्या?" रूपा ने पूछा____"वो भी तो उनकी बारात में गए थे।"

"जब बारात आ गई है तो वो भी आ ही गए होंगे।" कुमुद ने कहा____"फिलहाल घर तो अभी नहीं आए वो। आ जाएंगे थोड़ी देर में। ख़ैर तुम बताओ, अकेले में किसके ख़यालों में गुम थी?"

"किसी के तो नहीं।" रूपा एकदम से शरमाते हुए बोली____"मैं तो बस ऐसे ही लेटी हुई थी।"

"झूठ ऐसा बोलो जिसे सामने वाला यकीन कर ले।" कुमुद ने मुस्कुराते हुए कहा____"मुझे अच्छी तरह पता है कि इस वक्त तुम अपने होने वाले पतिदेव के बारे में ही सोचने में गुम थी। ज़रा बताओ तो कि क्या क्या सोच लिया है तुमने?"

"ऐसा कुछ नहीं है भाभी।" रूपा ने शर्म से मुस्कुराते हुए कहा____"मैं भला क्यों कुछ सोचूंगी?"

"क्या सच में?" कुमुद ने अपनी भौंहें उठा कर उसे देखा____"क्या सच में तुम आज की स्थिति के बारे में नहीं सोच रही थी? मैं मान ही नहीं सकती कि तुम्हारे मन में अपने होने वाले पति और अपनी सौतन के संबंध में कोई ख़याल ही न आया होगा।"

"उन्हें मेरी सौतन मत कहिए भाभी।" रूपा ने सहसा अधीर हो कर कहा____"वो तो मेरी दीदी हैं, सबसे अच्छी वाली बड़ी दीदी। मैं बहुत खुश हूं कि उनका फिर से विवाह हो गया और अब उनका जीवन खुशी के रंगों से भर जाएगा। मैं यही दुआ करती हूं कि आज की रात वो उन्हें खूब प्यार करें और उनके सारे दुख को भुला दें।"

"तुम सच में बहुत अद्भुत हो रूपा।" कुमुद ने पास आ कर रूपा के कंधे को दबाते हुए कहा____"दुनिया की हर औरत अपने पति की दूसरी पत्नी को अपनी सौतन ही मानती है और ये भी सच ही है कि वो कभी उस औरत को पसंद नहीं करती लेकिन तुम इसका अपवाद हो मेरी ननद रानी। तुम अपने पति की उन नव विवाहिता पत्नी को सच्चे दिल से अपनी दीदी कहती हो और उनकी खुशियों की कामना कर रही हो। ऐसा तुम्हारे अलावा शायद ही कोई सोच सकता है।"

"मैं ये सब नहीं जानती भाभी।" रूपा ने कहा____"मैं तो बस इतना चाहती हूं कि उनसे जुड़ा हर व्यक्ति खुश रहे। ईश्वर से यही कामना करती हूं कि मेरे दिल में भी हमेशा उनसे जुड़े हर व्यक्ति के लिए आदर, सम्मान और प्रेम की ही भावना रहे।"

"तुम प्रेम की मूरत हो रूपा।" कुमुद ने कहा____"तुम कभी किसी के बारे में कुछ बुरा सोच ही नहीं सकती हो। काश! दुनिया की हर औरत का हृदय तुम्हारे जैसा हो जाए।"

"मैं सोच रही हूं कि इस वक्त रागिनी दीदी सुहागन के पूरे श्रृंगार में कैसी दिखती होंगी?" रूपा ने कहा____"उनकी सुंदरता के बारे में मैंने पहले भी बहुत सुना था। विधवा के लिबास में उन्हें देखा भी है। वो सादगी और सौम्यता से भरी हुई हैं। उनका हृदय बहुत साफ और निश्छल है। मेरा बहुत मन कर रहा है कि मैं उन्हें दुल्हन के रूप में सजा हुआ देखूं। फिर आपसे आ कर कहूं कि आप भी मुझे उस दिन उनके जैसा ही सजाना।"

"पागल हो तुम।" कुमुद ने प्यार से उसका चेहरा सहलाया____"चिंता मत करो, मैं तुम्हें तुम्हारी रागिनी दीदी से भी ज़्यादा अच्छे तरीके से सजाऊंगी। तुम अपनी दीदी से कम सुंदर नहीं लगोगी देख लेना।"

"नहीं भाभी।" रूपा ने झट से कहा____"मैं उनसे ज़्यादा नहीं सजना चाहती। मैं चाहती हूं कि मेरी दीदी को मुझसे ज़्यादा उनका प्यार मिले। मैं तो बस अपनी दीदी के साथ रह कर उनके जैसा बनने की कोशिश करूंगी। मैं चाहती हूं कि जैसे वो कुसुम को अपनी गुड़िया कहते हैं और उसे जी जान से प्यार करते हैं वैसे ही मेरी दीदी मुझे अपनी छोटी सी गुड़िया मान कर मुझे प्यार करें। जब ऐसा होगा तो कितना अच्छा होगा ना भाभी?"

"ओह! रूपा बस करो।" कुमुद ने भावना में बह कर उसे अपने सीने से लगा लिया। उसकी आंखें भर आईं थी, बोली____"किस मिट्टी की बनी हुई हो तुम? तुम्हारे हृदय में क्यों ऐसी अनोखी भावनाएं जन्म ले लेती हैं? मेरी प्यारी ननद, मेरी प्यारी रूपा। भगवान तुम्हें हमेशा ऐसा ही बनाए रखे। हमेशा तुम्हें खुश रखे। हमेशा तुम्हें तुम्हारे प्रियतम के प्रेम का उपहार दे।"

कुमुद सच में रूपा की बातों से भाव विभोर सी हो गई थी। उसका बस चलता तो वो रूपा को अपने सीने के अंदर समा लेती। उधर रूपा के सुर्ख होठों पर हल्की सी मुस्कान उभर आई और आंख से आंसू का एक कतरा छलक गया।




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