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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

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What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
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TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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अब वाक़ई कोई ख़ून क़त्ल वाली कहानी लिखनी पड़ेगी, जल्दी ही।
सस्पेंस, सनसनी, और रहस्यों से भरपूर!!
Waah! Aaj hi ye nek kaam kar dijiye bhaiya ji....Bheja faad dene wali kahani likhiye. Bahut hua romance, ab khoon kharaba dekhna hai hame :yo:
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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वैभव को अब पता चला है (उसी माँ ने बताया)। हमको उल्लू मत बनाईये।
पढ़ रहे हैं हम सब कुछ. 😂
Main vaibhav ki nahi gauri shankar aur rupchandra ki baat kar raha tha :roll:
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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TheBlackBlood भाई दो और बढ़िया अपडेट्स के साथ हाज़िर हुए! तो हम भी आ गए, अपना ज्ञान बघारने एक बार फिर से!
Thanks 🙏
यह तो सच ही है कि समाज में प्रत्येक प्राणी की एक पहचान होती है - किसी की संतान, किसी का भाई/बहन, किसी का पति/पत्नी, इत्यादि। बच्चा जन्म लेने से पहले ही अनेकों संबंधों में जुड़ा रहता है। यही समाज है, और एक तरह से देखें, तो मानव-प्रेम का एक उदाहरण भी!

लिहाज़ा, पहले से निर्धारित पहचान को, जब अलग करने की स्थिति आती है, तब अनेक प्रकार की दिक्कतें आने लगती हैं। लेकिन हर समाज में नहीं। दक्षिण में सदियों से लड़कों की शादी मामा की लड़की से होती आई है। कहने को भाई-बहन का रिश्ता होता है, लेकिन वो कब पति-पत्नी के रिश्ते में बदल जाए, कहना कठिन है। ऐसे ही कुछ धर्मों में भी चाचा/मामा/बुआ/मामी इत्यादि की संतानों से विवाह की व्यवस्था है। और उस स्थिति में दोनों को बहुत दिक्कत भी नहीं होती - क्योंकि इस व्यवस्था को उन समाजों से मान्यता प्राप्त होती है।
Bilkul sahi kaha aapne...
भाभी-देवर के विवाह को भी सामाजिक मान्यता प्राप्त है, लेकिन वो बहुतायत से नहीं होता। लेकिन रागिनी और वैभव के केस में दिक्कत यह है कि दोनों के मन में कभी इस सम्भावना के बारे में कोई बात ही नहीं आई (वैभव को आई थी, जब उसकी नीयत एक बार रागिनी पर खराब हुई थी)! इसीलिए दिक्कत है। रागिनी स्वयं को, और वैभव भी उसको - सम्मान के इतने ऊँचे तल पर रखता है, जहाँ वो उसके साथ अंतरंग होने का सोच भी नहीं सकता। दोनों सोच रहे हैं कि अगर उन्होंने इस सम्बन्ध को स्वीकृति दे दी, तो अगला उसके बारे में क्या सोचेगा!

इसका सीधा उपाय यह है कि एक दूसरे से बात कर लें। यूँ छुपा दबा कर विवाह जैसे संबंधों की बातें नहीं की जातीं। यह उत्साह वाली बात है - उसको यूँ निकृष्ट कार्य जैसा सोच कर दोनों ही विवाह की व्यवस्था का अपमान कर रहे हैं। अच्छी बात नहीं है। और दोनों को ही चाहिए कि बिना किसी और का सोचे, केवल एक दूसरे के बारे में सोच कर, पूरी समझ के साथ कोई निर्णय लें।
Bilkul aapki baato se sahmat hu, dono ki situation aisi hi hai, khaas kar ragini ki. Khair fikra mat kijiye, aage dono ki fir se mulakaat dekhne ko milegi...
लेकिन एक बात जो मुझे सबसे अधिक अखरी (और अखर रही है), और वो यह कि पूरे प्रकरण में बहुत ही लम्बा वाला कट रहा है रूपा का! सच में, किसी को इतना अच्छा नहीं होना चाहिए कि उसको चटाई की तरह, ज़मीन पर बिछा कर, जिसका भी मन करे, उसको रौंद कर चल दे। उसने अपना सब त्याग कर दिया, ऐसे चूतिया परिवार के लिए, जो इस अहम समय पर उसको इस बात का संज्ञान देने, जानकारी देने, और इस बात में अपना मत देने लायक ही नहीं समझता। उसको फिर से सोचना चाहिए कि वो इस परिवार में आना भी चाहती है या नहीं। ये लोग उसके योग्य नहीं है।
Hahaha aap to rupa ke prati zyada hi serious ho gaye lagte hain... :D

Agar ye situation aaj ke time ki hoti to kya hota. Pahli baat to yaha tak naubat hi nahi aati aur agar aati to yakeenan rupa apna ghar baar tyaag kar vaibhav ke paas chali jati, halaaki sawaal abhi bhi hai ki kya wo sach me aisa karti? Jiska hriday prem ke chalte aisa ho gaya ho kya wo koi negative kaarya karti...?

Baaki is baat se main puri tarah sahmat hu ki uske ghar walo ne usse is rishte ke sambandh me nahi bataya to ye galat hai...
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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अध्याय - 145
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थोड़ी देर रूपचंद्र से और इसी संबंध में बातें हुईं उसके बाद मैं उसे यहीं रहने का बोल कर अपने खेतों की तरफ निकल गया। रूपचंद्र से इस बारे में बातें कर के थोड़ा बेहतर महसूस करने लगा था मैं।


अब आगे....


हवेली के बाहर गांव के कुछ लोग आए हुए थे। दादा ठाकुर बैठक से निकल कर बाहर आ गए थे। उनके साथ मुंशी किशोरी लाल भी था। गांव के लोग अक्सर अपनी समस्या ले कर दादा ठाकुर के पास हवेली आ जाया करते थे। गांव वालों की समस्या दूर करने के लिए दादा ठाकुर हमेशा तत्पर रहते थे।

"प्रणाम दादा ठाकुर।" सामने खड़े लोगों में से एक आदमी ने अपने हाथ जोड़ कर जब ये कहा तो बाकी लोगों ने भी हाथ जोड़ कर अपना सिर झुकाया। जवाब में दादा ठाकुर ने हाथ उठा कर सबको शांत किया।

"कहिए आप लोगों को क्या परेशानी है?" फिर उन्होंने हमेशा की तरह उनसे पूछा____"बेझिझक हो कर हमें अपनी समस्या बताएं। हमसे जो हो सकेगा आप लोगों के लिए करेंगे।"

"आप बहुत दयालू हैं दादा ठाकुर।" एक दूसरे व्यक्ति ने अधीरता से कहा____"हमारे भगवान हैं आप। आपके रहते भला हमें किस बात की समस्या हो सकती है? हमारी भलाई के लिए आप इस गांव में अस्पताल बनवा रहे हैं। हमारे बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए गांव में विद्यालय बनवा रहे हैं। आप सच में बहुत महान हैं दादा ठाकुर।"

"हम तो सिर्फ माध्यम हैं भाईयो।" दादा ठाकुर ने कहा____"सच तो ये है कि ये जो कुछ भी बन रहा है वो आप लोगों के ही भाग्य से बन रहा है।"

"हमारे भाग्य विधाता तो आप ही हैं दादा ठाकुर।" एक अन्य ने कहा____"ये सब आपकी ही कृपा से हमें मिलने वाला है। आपने हमेशा हमारा भला चाहा है और हमेशा हमारे दुख दर्द को दूर करने का प्रयास किया है। आप सच में हमारे लिए देवता हैं।"

"अरे! ऐसा कुछ नहीं है।" दादा ठाकुर ने कहा____"आप लोगों की दुआओं से ऊपर वाले ने हमें इस क़ाबिल बनाया है कि हम आप लोगों के लिए कुछ करने में सफल होते हैं। वैसे आप लोगों की जानकारी के लिए हम ये बताना चाहते हैं कि इस गांव में अस्पताल और विद्यालय बनवाने का विचार हमारा नहीं था बल्कि हमारे बेटे वैभव का था। उसी ने हमसे ज़ोर दे कर कहा था कि गांव के लोगों की भलाई के लिए हमें अपने गांव में अस्पताल और विद्यालय बनवाना चाहिए। हमें भी उसका ये सुझाव अच्छा लगा इस लिए हमने सरकार को पत्र भेजा और इसके लिए मंजूरी प्राप्त की।"

"छोटे कुंवर की जय हो....छोटे कुंवर की जय हो।" दादा ठाकुर की बात सुनते ही एक के बाद सब खुशी से जयकारा लगाने लगे। ये देख दादा ठाकुर ने फिर से हाथ उठा कर सबको शांत कराया।

"हमें माफ़ कर दीजिए दादा ठाकुर।" एक ने थोड़ा दुखी हो कर कहा____"हम छोटे कुंवर के बारे में अब तक जाने क्या क्या सोचते रहे थे जबकि वो तो हमारी भलाई के लिए इतना कुछ कर रहे हैं।"

"आप लोगों को हमसे माफ़ी मांगने की ज़रूरत नहीं है।" दादा ठाकुर ने कहा____"हम समझते हैं कि आप लोग उसके बारे में जो कुछ सोचते थे वो अपनी जगह उचित ही था किंतु अब आप लोगों को हम इस बात का यकीन दिलाते हैं कि जिस तरह अब तक हम आप लोगों का दुख दर्द समझते आए हैं उसी तरह आपके छोटे कुंवर भी आप लोगों का दुख दर्द समझेंगे।"

"दादा ठाकुर की जय हो।" एक बार फिर से सब के सब जयकारा लगाने लगे____"छोटे कुंवर की जय हो।"

"अब से आप लोग अपने छोटे कुंवर के सामने भी अपनी समस्याएं रख सकते हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"वो आप लोगों की समस्याओं को वैसे ही दूर करने की कोशिश करेंगे जैसे अब तक हम करते आए हैं।"

दादा ठाकुर की इस बात को सुन कर सबके चेहरे खिल उठे। वो सब एक दूसरे को देखते हुए अपनी खुशी का इज़हार करते नज़र आए।

"ख़ैर अब आप लोग बताएं कि इस वक्त हम आप लोगों के लिए क्या कर सकते हैं?" दादा ठाकुर ने उन सबकी तरफ देखते हुए पूछा।

दादा ठाकुर के पूछने पर सब अपनी अपनी समस्याएं बताने लगे। ज़्यादातर लोगों की समस्याएं पैसा ही था। ग़रीब लोग थे वो जिनके पास अपनी आर्थिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पैसे नहीं होते थे। घर का कोई सदस्य बीमार पड़ जाता था तो इलाज़ के लिए पैसा नहीं होता था। बहुत तो कर्ज़े से परेशान थे। खेतों में फसल उगा कर भी वो अपना कर्ज़ नहीं चुका पाते थे। बहुत से ऐसे थे जो कई बार दादा ठाकुर से कर्ज़ ले चुके थे और दादा ठाकुर उनके कर्ज़ को माफ़ भी कर चुके थे। इस चक्कर में वो दुबारा दादा ठाकुर से कर्ज़ मांगने पर हद से ज़्यादा संकोच करते थे। ऐसी नौबत आने पर वो दूसरे गांव के साहूकारों से कर्ज़ ले लेते थे। दूसरे गांव के साहूकार दादा ठाकुर जैसे नेक दिल नहीं थे। वो कर्ज़ वसूलने के लिए किसी भी हद तक जा सकते थे।

बहरहाल, दादा ठाकुर ने मुंशी किशोरी लाल को हुकुम दिया कि वो अंदर से पैसा ले कर आएं और जिनको जितनी ज़रूरत हो दे दें। किशोरी लाल ने फ़ौरन ही अमल किया। पैसा मिल जाने पर वो सब लोग बड़ा खुश हुए और फिर जयकारा लगाते हुए खुशी खुशी चले गए।

गांव वालों को गए हुए अभी थोड़ा ही समय हुआ था कि हाथी दरवाज़े से एक जीप अंदर दाख़िल होती नज़र आई। कुछ ही पलों में वो जीप हवेली के पास आ कर रुकी। जीप से महेंद्र सिंह अपने छोटे भाई ज्ञानेंद्र सिंह के साथ नीचे उतरे।

"आइए मित्र।" दादा ठाकुर ने हल्की सी मुस्कान होठों पर सजा कर महेंद्र सिंह से कहा और फिर उनको साथ ले कर ही अंदर बैठक में आ गए।

"कल परसों से आपसे मिलने का सोच रहे थे हम।" बैठक में एक कुर्सी पर बैठने के बाद महेंद्र सिंह ने कहा____"लेकिन व्यस्तता के चलते आ ही नहीं पाए।"

"हां काम धाम के चलते व्यस्तता तो रहती ही है मित्र।" दादा ठाकुर ने कहा____"ख़ैर कहिए कैसे आना हुआ यहां?"

कहने के साथ ही उन्होंने नौकरानी को आवाज़ दे कर बुलाया और फिर उसे सबके लिए जल पान लाने के लिए कहा।

"कोई विशेष बात तो नहीं है ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने कहा____"बस उड़ती हुई कुछ बातें हमने सुनी हैं जिसकी पुष्टि के लिए आपसे मिलने चले आए।"

"उड़ती हुई बातें?" दादा ठाकुर के माथे पर शिकन उभरी____"ये क्या कह रहे हैं आप?"

"मानते हैं कि आपको ये सुन कर अजीब लगा होगा।" महेंद्र सिंह ने कहा____"लेकिन बात क्योंकि सफ़ेदपोश से संबंधित थी इस लिए हम उसे नज़रअंदाज़ नहीं कर सके।"

महेंद्र सिंह की इस बात से दादा ठाकुर के साथ साथ किशोरी लाल भी चौंका। उधर दादा ठाकुर के चेहरे पर एक ही पल में कई तरह के भाव उभरे और फिर लोप होते नज़र आए।

"बड़ी दिलचस्प बात है।" फिर उन्होंने खुद को सम्हालते हुए कहा____"ख़ैर बताइए, कैसी बातें सुनी हैं आपने जो सफ़ेदपोश से संबंधित थी?"

"यही कि सफ़ेदपोश को पकड़ लिया गया है।" महेंद्र सिंह ने कहा____"क्या वाकई में ये बात सच है ठाकुर साहब?"

महेंद्र सिंह की इस बात से दादा ठाकुर फ़ौरन कुछ बोल ना सके। असल में उन्हें फ़ौरन कुछ सूझा ही नहीं कि क्या कहें? उन्हें ये सोच कर भी हैरानी हुई कि सफ़ेदपोश के पकड़े जाने वाली बात कैसे फैल गई? उन्हें समझ न आया कि इस संबंध में वो महेंद्र सिंह को क्या जवाब दें? वो ये भी जानते थे कि सच को उनसे छुपाना भी उचित नहीं है लेकिन ये भी सच था कि सफ़ेदपोश का सच बताना भी उनके लिए बहुत मुश्किल कार्य था। भला वो ये कैसे बताते कि सफ़ेदपोश कोई और नहीं बल्कि उनका अपना ही छोटा भाई जगताप था और उसकी मौत के बाद सफ़ेदपोश का नक़ाब उसकी पत्नी ने पहन लिया था। वो ये कैसे बताते कि उनके भाई और भाई की पत्नी ने ही ये सब किया था जिसका पता चलने के बाद उनकी ही क्या बल्कि उनकी पत्नी और बेटे की भी हालत बहुत ख़राब हो गई थी।

"क्या बात है ठाकुर साहब?" उन्हें एकदम से ख़ामोश हो गया देख महेंद्र सिंह ने सहसा फिक्रमंद हो कर पूछा____"आप अचानक से ख़ामोश क्यों हो गए हैं? सब ठीक तो है ना?"

तभी बैठक में नौकरानी दाख़िल हुई। उसके हाथ में एक ट्रे था जिसमें उसने सबके लिए नाश्ता रखा हुआ था। उसने ट्रे को सबके बीच रखी टेबल पर रखा और फिर एक एक कर के सबकी तरफ प्लेटें बढ़ा दी। उसके बाद वो चली गई।

"हम जानते हैं कि इस बारे में आपको सच न बताना बहुत ही अनुचित होगा मित्र।" दादा ठाकुर ने गहन गंभीर भाव से कहा____"लेकिन यकीन मानिए हमारे लिए सच बताना बहुत ही ज़्यादा मुश्किल है।"

"ये क्या कह कर रहे हैं आप?" महेंद्र सिंह के साथ साथ उनका भाई ज्ञानेंद्र सिंह भी चकित भाव से देखने लगा दादा ठाकुर को। इधर महेंद्र सिंह ने कहा____"आपकी इन बातों से ऐसा लगता है जैसे सब ठीक नहीं है। हमें बताइए मित्र कि आख़िर ऐसी क्या बात हो गई है जिसके चलते आप अचानक से ही इस वक्त इतने गंभीर और हताश से नज़र आने लगे हैं?"

"अगर आप सच में सच्चे दिल से हमें अपना मित्र मानते हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"तो हमसे सफ़ेदपोश के बारे में मत पूछिए। बस इतना जान लीजिए कि सफ़ेदपोश के पकड़े जाने वाली बात सच है।"

महेंद्र सिंह और उनका भाई ज्ञानेंद्र सिंह भौचक्के से देखते रह गए उन्हें। चेहरों पर कई तरह के भाव आते जाते नज़र आए। इधर दादा ठाकुर के चेहरे पर भी गहन गंभीरता और अवसाद के भाव उभरे हुए थे।

"अगर आप ऐसा ही चाहते हैं तो ठीक है।" महेंद्र सिंह ने फिर गहरी सांस लेते हुए गंभीरता से कहा____"हम बिल्कुल भी आपसे उसके बारे में जानने का प्रयास नहीं करेंगे और ना ही आपको किसी भी तरह से परेशान और हताश होते हुए देख सकते हैं।"

"आपका बहुत बहुत धन्यवाद मित्र।" दादा ठाकुर ने राहत की लंबी सांस ले कर कहा____"हम आपको बता नहीं सकते कि आपकी इन बातों से हमें कितनी राहत मिली है।"

"आपको धन्यवाद कहने की ज़रूरत नहीं ठाकुर साहब।" महेंद्र सिंह ने अपनेपन से कहा____"आप हमारे मित्र हैं और मित्र का तो धर्म ही यही होता है कि वो हर परिस्थिति में अपने मित्र के कुशल मंगल की ही कामना करे और उसका भला चाहे। इस लिए हम बस यही चाहते हैं कि आप और आपसे जुड़े हर व्यक्ति हमेशा खुश रहें। आपसे अब बस इतना ही जानना चाहते हैं कि सफ़ेदपोश के पकड़े जाने के बाद क्या हर तरह के ख़तरे से मुक्ति मिल गई है?"

"सबसे बड़ा ख़तरा उसी से था मित्र।" दादा ठाकुर ने कहा____"अतः जब वो पकड़ा गया तो उसके ख़तरे से भी मुक्ति मिल गई। एक बात और...आपको भी अब रघुवीर के हत्यारे को कहीं खोजने की ज़रूरत नहीं है। ऐसा इस लिए क्योंकि सफ़ेदपोश ही असल में रघुवीर का हत्यारा था।"

"ओह! ये तो सच में हैरत की बात है।" महेंद्र सिंह ने कहा____"आपने पहले भी इसी बात की आशंका व्यक्त की थी। ख़ैर जो भी हो, अच्छी बात यही हुई कि अब सब कुछ ठीक हो चुका है। एक लंबे समय से जो घटनाक्रम चल रहा था आख़िर उसमें अब पूर्ण विराम लग गया। उम्मीद है आगे भविष्य में किसी के भी साथ ऐसा नहीं होगा।"

"हम इंसानों की चाहत तो यही होती है मित्र।" दादा ठाकुर ने गंभीरता से कहा____"लेकिन आप भी जानते हैं कि ऐसा होता नहीं है। ऊपर बैठा विधाता हम इंसानों के साथ कोई न कोई खेल खेलता ही रहता है।"

"हां ये तो सही कह रहे हैं आप।" महेंद्र सिंह ने सिर हिला कर कहा____"हर चीज़ का कर्ता धर्ता तो वही है लेकिन कभी कभी वो अन्याय भी कर बैठता है। किसी मासूम और निर्दोष का जीवन छीन कर उसके चाहने वालों पर दुखों का पहाड़ गिरा बैठता है वो।"

"क्या कर सकते हैं मित्र।" दादा ठाकुर ने बेचैन भाव से कहा____"विधाता पर किसी का ज़ोर कहां चलता है किसी का?"

कुछ देर और इसी संबंध में बातें हुईं उसके बाद महेंद्र सिंह अपने छोटे भाई के साथ चले गए। दादा ठाकुर वापस बैठक में आ कर अपने सिंहासन पर बैठ गए।

"किशोरी लाल जी।" फिर उन्होंने किशोरी लाल से मुखातिब हो कर पूछा____"क्या लगता है आपको, हमने महेंद्र सिंह को सफ़ेदपोश के बारे में ना बता कर ठीक किया है अथवा ग़लत?"

"इस बारे में मैं आपसे क्या कहूं ठाकुर साहब?" किशोरी लाल ने उलझन पूर्ण भाव से कहा____"वैसे मैं तो यही समझता हूं कि आपने अपने हिसाब से ये अच्छा ही किया है लेकिन...!"

"लेकिन??"

"आप भी जानते हैं कि हर व्यक्ति के सोचने का अपना अपना नज़रिया होता है।" किशोरी लाल ने कहा____"आपने उन्हें सफ़ेदपोश के बारे में ना बता कर ठीक किया, ये आपके हिसाब से ठीक था लेकिन यही बात उनके नज़रिए में उन्हें एक दूसरा ही अर्थ समझा गई होगी। माना कि वो आपके मित्र हैं और आपकी मानसिक अवस्था को अच्छे से समझते हैं लेकिन कहीं न कहीं वो ये भी सोच सकते हैं कि मित्र होने के बाद भी आपने उन्हें सफ़ेदपोश के बारे में क्यों नहीं बताया?"

"आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ली____"हम भी इस बारे में ऐसा ही सोचते हैं लेकिन क्या करें? ये हमारी मजबूरी थी कि हम उन्हें सफ़ेदपोश का सच नहीं बता सकते थे। हम नहीं चाहते थे कि वो सच जानने के बाद हम में से किसी के भी बारे में ग़लत धारणाएं बना लें। वैसे सच तो हमने आपको भी नहीं बताया, क्या आप भी हमारे बारे में ऐसा ही सोचते हैं?"

"बिल्कुल भी नहीं।" किशोरी लाल ने मजबूती से इंकार में सिर हिला कर कहा____"यकीन मानिए, मैं आपके बारे में ऐसा कुछ भी नहीं सोचता क्योंकि मैं आपकी मजबूरी को बखूबी समझता हूं। इस दुनिया में सबके जीवन में इस तरह की कोई न कोई मजबूरी हो ही जाती है जिसके बारे में वो किसी दूसरे को बता नहीं सकता।"

"हम्म्म्म।" दादा ठाकुर ने कुछ सोचते हुए कहा____"वैसे हैरानी की बात है कि सफ़ेदपोश को पकड़ लिए जाने वाली बात इस तरह फैल गई है जबकि हमें यही लगता था कि ऐसा होना संभव नहीं है। इस बात से अब हमें ये भी आभास हो रहा है कि महेंद्र सिंह को सफ़ेदपोश का सच भी पता चल गया होगा।"

"ये क्या कह रहे हैं आप?" किशोरी लाल के चेहरे पर हैरत के भाव उभर आए____"भला ऐसा कैसे हो सकता है?"

"सीधी सी बात है किशोरी लाल जी।" दादा ठाकुर ने कहा____"अगर सफ़ेदपोश के पकड़े जाने की बात उड़ती हुई महेंद्र सिंह के कानों तक पहुंची है तो उन्होंने अपने तरीके से इस बारे में पता भी किया होगा। अब ऐसा तो हो नहीं सकता कि जिसने ये अफवाह उड़ाई हो उसे ये भी न पता हो कि सफ़ेदपोश असल में कौन था?"

"बात तो सही है ठाकुर साहब।" किशोरी लाल ने चकित भाव से कहा____"लेकिन क्या ज़रूरी है कि अफवाह उड़ाने वाले को सफ़ेदपोश का सच भी पता रहा होगा? ऐसा भी तो हो सकता है कि उसे सिर्फ इतना ही पता चल पाया हो कि सफ़ेदपोश पकड़ लिया गया है। जब आपके साथ रहते हुए मुझे खुद ही सच का पता नहीं है तो इस बारे में बाहर किसी को कैसे पता हो सकता है?"

"हां ये भी ठीक कहा आपने।" दादा ठाकुर ने ग़ौर से किशोरी लाल की तरफ देखा____"लेकिन हम ये बात नहीं मान सकते कि आपको सच का पता नहीं चल सका है अब तक?"

"ठ..ठाकुर साहब।" किशोरी लाल एकदम से झेंपते हुए बोला____"ये क्या कह रहे हैं आप?"

"तो अब आप भी हमसे झूठ बोलने लगे?" दादा ठाकुर ने सहसा गंभीर हो कहा____"आपसे ये उम्मीद नहीं थी हमें।"

"गुस्ताख़ी माफ़ ठाकुर साहब।" किशोरी लाल ने फ़ौरन ही हाथ जोड़ते हुए कहा____"लेकिन यकीन मानिए, मुझे पूरी तरह से अब भी सच का पता नहीं है। मुझे बस शक है कि सफ़ेदपोश कौन हो सकता है।"

"तो फिर बताइए।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमें बताइए कि किस पर और क्यों शक है आपको?"

"उसी रात शक हुआ था मुझे।" किशोरी लाल ने कहा____"जिस रात आप और छोटे कुंवर सफ़ेदपोश के पकड़े जाने की ख़बर सुन कर हवेली से गए थे। आप और छोटे कुंवर तो चले गए थे लेकिन मुझे देर से पता चला था। ख़ैर उसके बाद जब मझली ठकुराईन अपनी बेटी का पता करने उनके कमरे में गईं और फिर एकदम से ग़ायब ही गईं तो मैं समझ गया कि कुछ गड़बड़ है। मैं समझ गया था कि कुसुम बिटिया शायद अपने कमरे में नहीं थीं और इसी लिए उन्हें खोजने के चलते मझली ठकुराईन भी हवेली से ग़ायब हो गईं हैं। उसके बाद जब मैंने आपके और छोटे कुंवर के साथ उन दोनों को भी आया देखा और साथ ही आप सबकी ऐसी हालत देखी तो मेरा शक यकीन में बदलने लगा। हालाकि दिल तब भी नहीं मान रहा था क्योंकि ऐसी उम्मीद ही नहीं कर सकता था मैं। उसके बाद जिस तरह से हवेली में आप सब गुमसुम से नज़र आने लगे थे उससे मुझे ये लगने लगा था कि हो न हो ऐसा इसी लिए होगा क्योंकि कुसुम बिटिया ही सफ़ेदपोश के रूप में पकड़ी गई रही होगी। उसके बाद जब आपने मेरे पूछने पर मुझे इस बारे में पूछने से मना कर दिया तो यकीन हो गया कि जो मैं अनुमान लगा रहा था वो सच है। बस इतना ही जानता हूं मैं। हालाकि अभी भी मुझे यह लगता है कि कुसुम बिटिया वो हो ही नहीं सकती हैं।"

किशोरी लाल की इन बातों के बाद दादा ठाकुर फ़ौरन कुछ बोल ना सके। उनके चेहरे पर सोचो के भाव नुमायां हो उठे थे। इधर किशोरी लाल भी धड़कते दिल के साथ उन्हें देखे जा रहा था।

"ख़ैर छोड़िए इन बातों को।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"चलिए ज़रा वहां का काम धाम भी देख लें। उसके बाद वहीं से कुंदनपुर (मेनका चाची का मायका) चले जाएंगे।"

"कु...कुंदनपुर???" किशोरी लाल के माथे पर शिकन उभरी____"वहां कोई ख़ास काम है क्या ठाकुर साहब?"

"हां ऐसा ही कुछ समझ लीजिए।" दादा ठाकुर ने कुछ सोचते हुए कहा____"चलिए चलते हैं।"

कहने के साथ ही वो अपने सिंहासन से उठ गए तो किशोरी लाल ने भी अपनी कुर्सी छोड़ दी। कुछ ही देर में दादा ठाकुर तैयार होने के बाद हवेली से बाहर आ गए। उन्होंने शेरा को जीप लाने का हुकुम दिया। कुछ देर में जब शेरा जीप ले आया तो दादा ठाकुर उसमें बैठ गए और उनके साथ किशोरी लाल भी। उसके बाद उनके कहने पर शेरा ने जीप को आगे बढ़ा दिया।



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TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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अध्याय - 146
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रूपा अपनी मां ललिता देवी के साथ जीप में बैठी सरोज के घर पहुंची। जीप को गौरी शंकर का केशव नाम का एक नौकर चला कर लाया था। बहरहाल जीप सरोज के घर के बाहर रुकी तो दोनों मां बेटी जीप से नीचे उतर आईं। ललिता देवी केशव को जीप में ही बैठे रहने का बोल कर रूपा के साथ दरवाज़े की तरफ बढ़ीं।

रूपा कई दिनों से अपनी मां को सरोज के घर चलने को कह रही थी। उसने अपनी मां को सब कुछ बता दिया था। ललिता देवी उसके मुख से सब कुछ जान कर बड़ा हैरान हुई थी और फिर उसे ये सोच कर रोना आ गया था कि उसने अब तक अपनी उस बेटी को दुख दिया था जिसके अंदर हर किसी के लिए सिर्फ और सिर्फ प्रेम की ही भावना थी। सरोज उसकी बेटी की कुछ नहीं लगती थी इसके बावजूद उसने उसको अपनी मां कहा और एक बेटी का फर्ज़ निभाया। ये सोच कर ही ललिता देवी का सीना गर्व से फूल उठा था और फिर उसने रूपा को अपने कलेजे से लगा लिया था। बहरहाल काम की व्यस्तता के चलते आज ही वो अपनी बेटी के साथ यहां आ पाई थी।

रूपा ने दरवाज़े की शांकल बजाई तो कुछ ही पलों में सरोज ने दरवाज़ा खोला। बाहर रूपा के साथ एक औरत को खड़ा देख उसके चेहरे पर सोचने वाले भाव उभर आए थे, ये अलग बात है कि रूपा को देखते ही उसका मुरझाया चेहरा खिल उठा था और उसकी आंखें नम सी हो गईं थी।

"कैसी हैं मां?" सरोज को देखते ही रूपा ने बड़े ही अपनेपन से कहा____"अपनी बेटी को अंदर आने को नहीं कहेंगी आप?"

"अरे! क्यों नहीं कहूंगी भला?" सरोज ने झट से कहा____"तुझे देख के मेरे अंदर इतनी खुशी भर गई कि तुझे अंदर आने के लिए कहना ही भूल गई मैं। आ जा बेटी, जल्दी से आ कर मेरे कलेजे से लग जा। बहुत दिन हो गए तुझे देखे हुए। बहुत याद आ रही थी तेरी।"

"मुझे भी आपकी बहुत याद आ रही थी मां।" रूपा ने झट से अंदर आ कर सरोज के गले से लग कर कहा_____"कई दिनों से मां से कह रही थी कि मुझे अपनी मां से मिलना है और उनका हाल चाल पूछना है।"

ललिता देवी इस अद्भुत नज़ारे को देखने में जैसे खो ही गई थी। उसे पता ही नहीं चला कि कब उसकी आंखों में आंसू भर आए और फिर छलक भी पड़े। उधर सरोज ने जोरों से रूपा को अपने कलेजे से लगा लिया था। ना चाहते हुए भी उसकी सिसकियां छूट गईं थी।

"तुझे अपने कलेजे से लगा लिया तो ऐसा लग रहा है जैसे मैंने अपनी अनू को कलेजे से लगा लिया है।" सरोज ने रुंधे गले से कहा____"अब जा कर ठंडक मिली है मेरे कलेजे को।"

"चलिए अब रोइए मत।" रूपा ने सरोज से अलग हो कर कहा____"आप जानती हैं ना कि मैं अपनी मां की आंखों में आंसू नहीं देख सकती।"

"अरे! कहां रो रही हूं मैं?" सरोज झट आंचल से अपने आंसू पोंछते हुए जबरन मुस्कुराई____"ये तो खुशी के आंसू हैं। मेरी बेटी जो मिलने आई है मुझसे।"

"अगर ऐसा है तो फिर ठीक है।" रूपा ने मुस्कुराते हुए कहा____"अच्छा अब आप इनसे मिलिए। ये मेरी मां हैं....ललिता देवी।"

"प्रणाम बहन जी।" सरोज ने ललिता की तरफ देखते हुए झट से हाथ जोड़ कर उसे प्रणाम किया तो जवाब में ललिता देवी ने भी हाथ जोड़ लिए।

"सच कहती हूं बहन।" फिर उसने अधीरता से कहा____"आज अपनी आंखों से आप दोनों मां बेटी का ये मिलन देख कर धन्य सी हो गई हूं मैं। काश! ऐसा प्रेम और ऐसी ममता मेरे भी सीने में होती तो मैं कभी अपनी बेटी को दुख देने का न सोचती।"

"ऐसी बातें मत कहिए मां।" रूपा ने पलट कर अपनी मां से कहा____"जो हुआ उसे भूल जाइए। मैं तो अब इसी बात से खुश हूं कि मुझे मेरे इस एक ही जन्म में दो दो मां मिल गई हैं। मैं चाहती हूं मेरी दोनों माएं खुश रहें और मुझ पर अपनी ममता लुटाती रहें।"

"बहुत नेक दिल बिटिया है आपकी।" सरोज ने कहा____"बिल्कुल मेरी बेटी अनू के जैसी है ये। तभी तो ये मुझे एक पल के लिए भी मायूस या दुखी नहीं होने देती। अक्सर सोचती हूं कि अगर ये मेरी बेटी बन कर न आई होती तो क्या होता मेरा? मैं तो हर वक्त अपनी बेटी के वियोग में ही घुटती रहती थी लेकिन इसने आ कर जादू किया और मेरे ठहर गए जीवन को फिर से चलायमान कर दिया।"

"मैंने इसे जन्म ज़रूर दिया है लेकिन इसके बावजूद मैं इसे कभी समझ नहीं सकी बहन।" ललिता देवी ने कहा____"इसने वैभव से प्रेम किया जिसके चलते मैंने हमेशा इसे कोसा और दुख दिया। मुझसे बेहतर तो आप हैं जो इसे समझती हैं और इस पर अपनी ममता लुटाती हैं।"

"हे भगवान! पता नहीं आप दोनों ये कैसी बातें ले कर बैठ गईं हैं?" रूपा ने जैसे तुनक कर झूठी नाराज़गी दिखाई____"अरे! कोई और बात कीजिए जिससे किसी को कोई दुख तकलीफ़ न हो।"

रूपा की ये बात सुन कर ललिता देवी और सरोज दोनों ही मुस्कुरा उठीं। तभी दूसरे वाले दरवाज़े से भागता हुआ अनूप आ गया। उसके एक हाथ में खिलौना था। आंगन में रखी चारपाई पर अपनी मां के अलावा एक अन्य अंजान औरत को देख वो एकदम से ठिठक गया। एकाएक उसकी नज़र रूपा पर पड़ी तो उसके चेहरे पर खुशी के भाव उभर आए।

"अले! दीदी तुम आ दई।" अनूप ने अपनी तोतली भाषा में खुशी ज़ाहिर की, फिर सहसा चेहरे पर अजीब से भाव ला कर कहा____"ना मुधे तुमथे बात न‌ई कलना।"

"अरे! ये क्या कह रहा है मेरा बेटू।" रूपा झट से उसके क़रीब जा कर बड़े प्रेम भाव से बोली____"भला मुझसे क्यों बात नहीं करेगा मेरा बेटू...हां?"

"त्योंती तुम पता न‌ई तहां तली द‌ई थी?" अनूप ने मुंह फुलाए कहा____"त्या तुम मेली अनू दीदी तो धूधने द‌ई थी?"

अनूप की ये बात सुनते ही रूपा की आंखें भर आईं। उसके अंदर ये सोच कर हुक सी उठी कि इतना छोटा होने पर भी वो अब तक अपनी अनू दीदी को भूल नहीं पाया है, बड़ों की तो बात ही क्या थी।

"अले! त्या हुआ तुमतो?" रूपा को चुप देख उसने एकाएक मासूम सी शक्ल बना कर पूछा____"तुम लो त्यों ल‌ई हो? त्या अनू दीदी न‌ई मिली तुमे?"

रूपा ने झपट कर उसे अपने गले से लगा लिया। उसके जज़्बात बुरी तरह मचल उठे थे। उसने अपने जज़्बातों को तो काबू कर लिया था लेकिन आंखें छलक पड़ने से रोक न सकी थी। उधर चारपाई पर बैठी ललिता देवी और सरोज की भी आंखें छलक पड़ीं थी। ललिता देवी ने आज पहली बार ऐसा दृश्य देखा था और उसे आत्मा की गहराई से महसूस किया था। उसे एकदम से एहसास हुआ कि वाकई में अनू के जाने से इस घर में दोनों मां बेटों की क्या हालत रही होगी।

"अले! मत लो दीदी।" उधर अनूप की आवाज़ वातावरण में गूंजी____"न‌ई तो मैं भी लो दूंगा।"

"नहीं, मेरा बेटू बिल्कुल नहीं रोएगा।" रूपा ने झट से उसे अपने से अलग कर के कहा____"मेरा बेटू बहुत अच्छा है ना। अच्छा देखो, मैं अपने सबसे अच्छे बेटू के लिए क्या लाई हूं।"

रूपा की बात सुन अनूप बड़ी उत्सुकता से देखने लगा। रूपा ने अपने कुर्ते को थोड़ा सा उठा कर अपनी कमर से एक छोटी सी थैली निकाली। थैली की गांठ खोल कर उसने उसमें से कागज़ में लिपटा हुआ कुछ निकाला। अनूप बहुत ही ज़्यादा उत्सुकता से उसे देखे जा रहा था। इधर सरोज भी नम आंखों से देख रही थी। रूपा ने जल्दी ही कागज़ को चारो तरफ से खोल दिया। कागज़ के खुलते ही उसमें जो कुछ नज़र आया उसे देख जहां अनूप खुशी से उछल पड़ा वहीं सरोज की आंखों से आंसू का एक कतरा छलक गया।

"अले अले! ये तो दुल है औल नम्तीन भी।" अनूप मारे ख़ुशी के उछलते हुए बोल पड़ा____"ये थब मेले लिए लाई ओ ना दीदी? दो दल्दी थे दो मुधे।"

"हां ये लो।" रूपा ने सारा का सारा ही उसे पकड़ाते हुए कहा____"ये मैं अपने बेटू के लिए ही लाई हूं। मुझे पता था कि मेरा बेटू मुझसे गुड़ मांगेगा इस लिए ले आई थी मैं।"

अनूप कुछ ज़्यादा ही खुश हो गया था। उसकी मनपसंद चीज़ जो मिल गई थी उसे। खिलौने को उसने पहले ही ज़मीन पर फेंक दिया था और अब गुड़ नमकीन लिए आंगन के एक तरफ बनी पट्टी पर बैठ कर खाने लगा था। ये सारा मंज़र देख ललिता देवी को अपनी बेटी पर अत्यधिक लाड़ आ रहा था। उसे ये सोच कर आत्मिक खुशी हो रही थी कि उसकी बेटी सिर्फ अपनों का ही नहीं बल्कि दूसरों का भी दुख दर्द समझती थी और उस दुख दर्द को दूर करने का प्रयत्न भी करती थी। आज के युग में कहां लोगों के अंदर ऐसी पवित्र भावनाएं होती है?

"ये बस खेलता ही रहता है मां या पढ़ता भी है?" रूपा ने सरोज के पास आ कर पूछा।

"शुरू शुरू में एक दो दिन इसने पढ़ाई की थी।" सरोज ने बताया____"उसके बाद फिर से खेल में लग गया। मैंने जब इसे पढ़ने को कहा तो कहने लगा जब रूपा दीदी आएगी तो पढूंगा। मैं तो अनपढ़ गंवार हूं। उसके पहाड़े में क्या लिखा है मुझे कुछ पता ही नहीं है। तूने जो कुछ उसे पढ़ाया था और सिखाया था उसे भी भूल गया होगा वो।"

"कोई बात नहीं मां।" रूपा ने कहा____"अभी बच्चा ही तो है। आपको पता है, हमारे गांव में विद्यालय बन रहा है। अगले साल से ये उसी विद्यालय में पढ़ने जाया करेगा।"

"देखा आपने बहन जी।" सरोज ने ललिता देवी से कहा____"मेरी ये बेटी जाने क्या क्या करने का सोच रखी है। इसे कैसे समझाऊं कि मैं एक बहुत ही मामूली किसान की औरत हूं। हमारे जैसे लोगों के लिए पढ़ाई लिखाई शोभा नहीं देती बल्कि हमारा धर्म है बड़े लोगों की ज़मीनों पर मेहनत मज़दूरी करना और उनकी सेवा करना।"

"हां तो ठीक है ना।" रूपा ने कहा____"आप अपना धर्म निभाते रहना लेकिन मेरा भाई किसी के भी यहां मेहनत मज़दूरी नहीं करेगा। वो खूब पढ़ेगा लिखेगा और फिर एक दिन बहुत ही क़ाबिल इंसान बनेगा।"

"देख रही हैं आप बहन जी।" सरोज ने ललिता देवी से कहा____"आप ही समझाइए इसे कि ये सब हम जैसों को शोभा नहीं देता।"

"नहीं बहन जी।" ललिता देवी ने कहा____"इस बात पर तो मैं भी यही कहूंगी कि रूपा सही कह रही है। युग बदल रहा है, समय बदल रहा है और इस लिए समय के साथ साथ लोगों की विचारधारा भी बदलनी चाहिए। छोटे बड़े का लिहाज करना, समाज के नियमों का पालन करना और साथ ही अच्छे संस्कार रखना बहुत ही अच्छी बात है लेकिन बदलते समय के साथ व्यक्ति का शिक्षित होना भी बेहद महत्वपूर्ण है। हमारे समय में तो ये सब सोचता भी नहीं था कोई लेकिन जब हमें भी शिक्षा का महत्व समझ आया तो हमने भी शिक्षित होना ज़रूरी समझा। इसी तरह बाकी सबको भी समझना चाहिए। मैंने सुना है कि छोटे छोटे कस्बों में भी आज कल हर कोई शिक्षा के पीछे भाग रहा है। ज़ाहिर है वो सब भी समझते हैं कि आज के युग में शिक्षा का क्या महत्व है।"

सरोज को समझ ना आया कि क्या कहे। ख़ैर उसके बाद काफी देर तक तीनों एक दूसरे से बातें करती रहीं। इस बीच सरोज जब सबके लिए चाय बनाने जाने लगी तो रूपा ने उसे रोक दिया और खुद चाय बना कर ले आई। ललिता देवी काफी हद तक सरोज से घुल मिल गईं थी। सरोज को भी बहुत अच्छा महसूस हो रहा था कि वो अपनी बेटी के साथ उससे मिलने और उसका हाल चाल पूछने आई थी।

कुछ समय बाद ललिता देवी ने सरोज से जाने की इजाज़त मांगी और फिर ये कह कर चलने लगी कि वो फिर से किसी दिन समय निकाल कर आएगी। ललिता देवी ने सरोज से भी कहा कि वो उसके घर आ जाया करें। बहरहाल, रूपा और ललिता देवी एक एक कर के सरोज से गले मिलीं और फिर जीप में बैठ कर चली गईं। सरोज उन्हें तब तक देखती रही जब तक कि जीप उसकी आंखों से ओझल नहीं हो गई।

✮✮✮✮

मैं भुवन के साथ खेतों पर था। धूप तो खिली हुई थी लेकिन दिन ढलने की वजह से ठंड का असर होने लगा था। रूपचंद्र से हुई बातों के बाद मैं और भी उलझ गया था। मैं बहुत कोशिश करता था कि मेरे मन में भाभी से ब्याह होने वाली बातें ना आएं लेकिन ऐसा हो नहीं रहा था। भुवन के साथ मैं खेतों पर कोई न कोई काम करने के बहाने खुद को बहलाने की कोशिश करता रहा था लेकिन मन था कि कमबख़्त बार बार वहीं जा कर अटक जाता था।

कुछ समय बाद मैं वापस मकान में आया और बाहर ही एक चारपाई रख कर बैठ गया। अभी कुछ ही पल गुज़रे थे कि तभी मेरी नज़र सुनील और चेतन पर पड़ी। वो दोनों मेरी तरफ ही चले आ रहे थे। इतने समय बाद दोनों को देख कर मैं थोड़ा चौंक सा गया था। मन में अचानक से ये ख़याल भी उभर आया कि आज ये दोनों यूं खुले आम मेरी तरफ क्यों चले आ रहे हैं? क्या इन्हें सफ़ेदपोश का डर नहीं है?

मैं सोचने लगा कि जिस तरह ये दोनों निडरता से चले आ रहे थे उससे तो यही लगता है जैसे अब इन्हें सफ़ेदपोश का डर नहीं है। अगर ऐसा ही है तो क्या इसका मतलब ये हो सकता है कि दोनों को सफ़ेदपोश के पकड़े जाने का पता चल चुका है? पर सवाल है कि कैसे? जब बाकी किसी को उसके पकड़े जाने का पता नहीं है तो इन दोनों को कैसे हो सकता है? मैं ये सब सोच ही रहा था कि वो दोनों मेरे पास ही आ गए।

"तुम दोनों नमूने आज यहां कैसे भटकते हुए आ गए?" मैंने दोनों को बारी बारी से देखते हुए पूछा____"तुम्हारे उस आका को पता चला तो क़यामत आ जाएगी तुम दोनों के ऊपर।"

"क़यामत आनी है तो अभी आ जाए भाई।" चेतन ने आहत भाव से कहा____"बेटीचोद फ़क़ीरों जैसी ज़िंदगी हो गई है हमारी। उसके डर से मारे मारे फिर रहे हैं हम और एक वो है कि मादरचोद जाने कहां ग़ायब हो गया है?"

"अरे! ये कैसी बहकी बहकी बातें कर रहे हो तुम?" मैंने थोड़ी हैरानी से पूछा____"बताओ तो कि आख़िर हुआ क्या है और आज यहां कसे?"

"जान हथेली पर रख के आए हैं यार।" सुनील ने कहा____"साला बहुत डर डर के भटक लिए, अब और नहीं। अब तो सोच लिया है कि चाहे वो हमारी जान ही क्यों न ले ले लेकिन अब उसके डर से कहीं छिपने नहीं जाएंगे। तुम्हें पता है हम दोनों के घर वालों का कितना बुरा हाल है? हम तो डर के मारे जी ही रहे हैं वो लोग भी ऐसे ही जी रहे हैं। एक तो हमारे ऊपर मंडराने वाले ख़तरे का डर, दूसरे हमारी वजह से कुछ हो जाने का डर। इसी लिए भाई, हम दोनों ने सोच लिया है कि वो चाहे आज ही हमें मार दे लेकिन अब हम उसके डर से अपने घर वालों से दूर नहीं रहेंगे।"

मैं समझ गया कि इन दोनों को सफ़ेदपोश के पकड़े जाने का पता नहीं है। होता भी कैसे? सफ़ेदपोश के पकड़े जाने की ख़बर किसी को दी ही नहीं गई थी। बहरहाल, मैं सोचने लगा कि अब इनका क्या किया जाए? सफ़ेदपोश के पकड़े जाने का सच बता नहीं सकता था लेकिन मैं ये भी नहीं चाहता था कि वो दोनों सफ़ेदपोश के डर से ही जिएं।

"आज के बाद तुम दोनों को अपने आका से डरने की ज़रूरत नहीं है।" मैंने कहा____"और ना ही उसके डर से कहीं छिपने की ज़रूरत है। बेफ़िक्र हो कर अपने अपने घर जाओ और बिल्कुल वैसे ही बिना डर के अपने घर वालों के साथ रहो जैसे कभी कुछ हुआ ही नहीं था।"

"भाई ये तुम क्या कह रहे हो?" चेतन की आंखें फैली____"क्या तुम हमारी मौत का प्रबंध कर रहे हो?"

"अबे ऐसा कुछ नहीं है।" मैंने कहा____"बल्कि सच कह रहा हूं।"

"लेकिन सफ़ेदपोश का क्या?" सुनील बोल पड़ा।

"अभी तो बड़ा डींगें मार रहे थे कि अब और नहीं।" मैंने घूरते हुए कहा___"फिर अब क्या हुआ? सालो एक तरफ तो कहते हो कि चाहे आज ही मौत आ जाए तुम लोग अब छिप के नहीं रहोगे, दूसरी तरफ उसके डर से गांड़ भी फट रही है तुम दोनों की।"

"मौत से किसे डर नहीं लगता यार?" चेतन ने कहा____"सच कहता हूं भाई, मां चुद गई है इतने समय से ऐसी जिंदगी जीते जीते। अब तो बस यही दिल करता है कि थोड़ी सी शांति मिल जाए।"

"अबे कहा तो मैंने कि आराम से अपने अपने घर जाओ और अपने घर वालों के साथ खुशी खुशी रहो।" मैंने कहा____"अब तुम लोगों के साथ कोई कुछ नहीं करेगा। यूं समझ लो कि सफ़ेदपोश का अंत हो चुका है।"

"क्या सच में?" दोनों बुरी तरह चौंके।

"हां सच में।" मैंने कहा____"उसका एक तरह से अंत ही हो चुका है। ख़ुद सोचो कि महीने भर से तुम दोनों को वो कहीं नज़र क्यों नहीं आया? मतलब साफ है कि उसका किस्सा ख़त्म हो चुका है।"

"वैसे सच कहूं भाई तो हमें भी अब यही आभास होने लगा था।" सुनील ने कहा____"साला इतना समय गुज़र गया मगर एक दिन भी वो हमें नहीं मिला और ना ही किसी माध्यम से उसका संदेश हम तक पहुंचा है। इस वजह से अब हमें भी यही आभास होने लगा था कि वो साला कहीं मर खप गया होगा और इसी लिए हम दोनों यहां चले भी आए हैं।"

"अच्छा किया जो चले आए।" मैंने कहा____"तुम दोनों अब बेफ़िक्र हो जाओ और खुशी खुशी अपने घर वालों के साथ रहते हुए अपनी अपनी ज़िम्मेदारी निभाओ।"

"वो तो अब हम निभाएंगे ही भाई।" चेतन ने कहा____"हमारे ना रहने पर हमारे घर वाले बहुत परेशान और चिंतित थे। हालात बहुत बिगड़ गए हैं। अब हमें सब कुछ सम्हालना है। बहुत हुआ ये लुका छिपी का खेल। हमने इस सब के चक्कर में तुम्हारे विश्वास को भी तोड़ा और तुम्हारे साथ गद्दारी भी की। सच तो ये है कि सच्चे दोस्त के नाम पर कलंक हो चुके हैं हम। हर वक्त यही ख़याल आता है कि जिस दोस्त की वजह से हम दोनों की पहचान थी और जिसकी वजह से हम वो सब सहजता से पा लेते थे जो अपने दम पर कभी पा ही नहीं सकते थे उसके साथ हमने क्या किया है।"

"भूल जाओ सब कुछ।" मैंने कहा____"मैं जानता हूं कि तुम दोनों ने ये सब अपनी मर्ज़ी से नहीं किया है। ख़ैर अब सब ठीक हो चुका है इस लिए अगर तुम लोग वास्तव में मुझे अपना समझते हो तो जो मैं कहता हूं वही करो।"

"बिल्कुल भाई।" सुनील ने अधीरता से कहा____"हम पहले भी तुम्हारा कहा मानते थे और अभी भी तुम्हारा कहा मानेंगे। तुम जो कहोगे वही करेंगे हम।"

"ठीक है।" मैंने दोनों को बारी बारी से देखते हुए कहा____"मेरा तुम दोनों से यही कहना है कि अब से तुम दोनों कोई भी ग़लत काम नहीं करोगे। एक अच्छे इंसान बनोगे और अच्छे इंसानों की ही तरह अपने घर परिवार की ज़िम्मेदारी निभाओगे। अब से कभी किसी की बहू बेटी पर नीयत ख़राब नहीं करोगे बल्कि सबके बारे में अच्छा ही सोचोगे और अच्छा ही आचरण करोगे।"

"अब से हम ऐसा ही करेंगे भाई।" सुनील ने सिर हिलाते हुए कहा____"इतना कुछ होने के बाद अब हमें भी एहसास हो गया है कि ग़लत तो ग़लत ही होता है और ग़लत कर्म करने का बहुत बुरा परिणाम भी भोगना पड़ता है। इस लिए हम दोनों ने यही फ़ैसला किया था कि सब कुछ ठीक हो जाने के बाद हम तुम्हारी ही तरह अच्छे इंसान बनेंगे। आज तुमने भी हमें यही सब करने को कह दिया है तो यकीन मानो अब से हमारा लक्ष्य एक अच्छा इंसान बनना ही रहेगा।"

"बहुत बढ़िया।" मैंने कहा____"अब जाओ और अपने घर वालों से मिलो। वो सब तुम लोगों के लिए बहुत चिंतित होंगे। बाकी कभी किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो मुझसे बोल देना।"

मेरी बात सुन कर दोनों की आंखें भर आईं। दोनों झपट कर मुझसे लिपट गए। मैंने भी दोनों की पीठ थपथपाई। कुछ देर बाद वो दोनों चले गए। उनके जाने के बाद मैं सोचने लगा कि चलो इनका भी बुरा वक्त टल गया और अब से ये दोनों भी एक अच्छा इंसान बनने की राह पर चल पड़े हैं। ख़ैर कुछ देर मैं वहीं बैठा रहा और फिर भुवन को बता कर अपनी मोटर साईकिल से हवेली की तरफ चल पड़ा।



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Sanjuhsr

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Awesome update, Thakur mehander Singh ne apni dosti ka parichay diya aur thakur ke mnobhavo ko samjh kar safedposh ke bare me jyada puchh tach nahi ki lekin dada Thakur ka sandeh bhi sahi hai ki Mahender ko shayad sach malum ho gya hoga, kyonki munshi me bhi anuman laga liya kuchh had tak,
Thakur sahab shayad menka ke bhai ko saja dene kundan Pur ja rahe hai
 

Sanjuhsr

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Awesome update, rupa aur saroj ka milan ka adbhut varnan aur Anuradha ke liye chhote bhai ka avismarniya prem adbhut,
Sunil aur chetan phir se vaibhav ke pas pahunch gaye vaibhav ne unhen safedposh ke dar se bahar nikal kr jine ko kah diya hai lekin ye vichar ki safedposh ke pakadne ka sach kisi ko nahi malum shayad jaldi hi vaibhav ke samne aayega ki thakur mehander Singh tak pahunch gya hai
 
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