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Sab kuch natural hi hoga bhai...और अच्छी हैपी एंडिंग देना bro
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Sab kuch natural hi hoga bhai...और अच्छी हैपी एंडिंग देना bro
Waah! Aaj hi ye nek kaam kar dijiye bhaiya ji....Bheja faad dene wali kahani likhiye. Bahut hua romance, ab khoon kharaba dekhna hai hameअब वाक़ई कोई ख़ून क़त्ल वाली कहानी लिखनी पड़ेगी, जल्दी ही।
सस्पेंस, सनसनी, और रहस्यों से भरपूर!!
Main vaibhav ki nahi gauri shankar aur rupchandra ki baat kar raha thaवैभव को अब पता चला है (उसी माँ ने बताया)। हमको उल्लू मत बनाईये।
पढ़ रहे हैं हम सब कुछ.![]()
ThanksTheBlackBlood भाई दो और बढ़िया अपडेट्स के साथ हाज़िर हुए! तो हम भी आ गए, अपना ज्ञान बघारने एक बार फिर से!
Bilkul sahi kaha aapne...यह तो सच ही है कि समाज में प्रत्येक प्राणी की एक पहचान होती है - किसी की संतान, किसी का भाई/बहन, किसी का पति/पत्नी, इत्यादि। बच्चा जन्म लेने से पहले ही अनेकों संबंधों में जुड़ा रहता है। यही समाज है, और एक तरह से देखें, तो मानव-प्रेम का एक उदाहरण भी!
लिहाज़ा, पहले से निर्धारित पहचान को, जब अलग करने की स्थिति आती है, तब अनेक प्रकार की दिक्कतें आने लगती हैं। लेकिन हर समाज में नहीं। दक्षिण में सदियों से लड़कों की शादी मामा की लड़की से होती आई है। कहने को भाई-बहन का रिश्ता होता है, लेकिन वो कब पति-पत्नी के रिश्ते में बदल जाए, कहना कठिन है। ऐसे ही कुछ धर्मों में भी चाचा/मामा/बुआ/मामी इत्यादि की संतानों से विवाह की व्यवस्था है। और उस स्थिति में दोनों को बहुत दिक्कत भी नहीं होती - क्योंकि इस व्यवस्था को उन समाजों से मान्यता प्राप्त होती है।
Bilkul aapki baato se sahmat hu, dono ki situation aisi hi hai, khaas kar ragini ki. Khair fikra mat kijiye, aage dono ki fir se mulakaat dekhne ko milegi...भाभी-देवर के विवाह को भी सामाजिक मान्यता प्राप्त है, लेकिन वो बहुतायत से नहीं होता। लेकिन रागिनी और वैभव के केस में दिक्कत यह है कि दोनों के मन में कभी इस सम्भावना के बारे में कोई बात ही नहीं आई (वैभव को आई थी, जब उसकी नीयत एक बार रागिनी पर खराब हुई थी)! इसीलिए दिक्कत है। रागिनी स्वयं को, और वैभव भी उसको - सम्मान के इतने ऊँचे तल पर रखता है, जहाँ वो उसके साथ अंतरंग होने का सोच भी नहीं सकता। दोनों सोच रहे हैं कि अगर उन्होंने इस सम्बन्ध को स्वीकृति दे दी, तो अगला उसके बारे में क्या सोचेगा!
इसका सीधा उपाय यह है कि एक दूसरे से बात कर लें। यूँ छुपा दबा कर विवाह जैसे संबंधों की बातें नहीं की जातीं। यह उत्साह वाली बात है - उसको यूँ निकृष्ट कार्य जैसा सोच कर दोनों ही विवाह की व्यवस्था का अपमान कर रहे हैं। अच्छी बात नहीं है। और दोनों को ही चाहिए कि बिना किसी और का सोचे, केवल एक दूसरे के बारे में सोच कर, पूरी समझ के साथ कोई निर्णय लें।
Hahaha aap to rupa ke prati zyada hi serious ho gaye lagte hain...लेकिन एक बात जो मुझे सबसे अधिक अखरी (और अखर रही है), और वो यह कि पूरे प्रकरण में बहुत ही लम्बा वाला कट रहा है रूपा का! सच में, किसी को इतना अच्छा नहीं होना चाहिए कि उसको चटाई की तरह, ज़मीन पर बिछा कर, जिसका भी मन करे, उसको रौंद कर चल दे। उसने अपना सब त्याग कर दिया, ऐसे चूतिया परिवार के लिए, जो इस अहम समय पर उसको इस बात का संज्ञान देने, जानकारी देने, और इस बात में अपना मत देने लायक ही नहीं समझता। उसको फिर से सोचना चाहिए कि वो इस परिवार में आना भी चाहती है या नहीं। ये लोग उसके योग्य नहीं है।
ThanksSuper apdet