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अध्याय - 144
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मैं अवाक सा देखता रह गया मां को। एकाएक ही मेरे मन मस्तिष्क में धमाके से होने लगे थे। अचानक ही ज़हन में वो बातें गूंजने लगीं जो चंदनपुर में कामिनी से हुईं थी और फिर भाभी से हुईं थी। भाभी का उदास और गंभीर चेहरा मेरी आंखों के सामने उजागर हो गया। उनकी बातें मेरे कानों में गूंजने लगीं।
अब आगे....
ऊपर वाले का खेल भी बड़ा अजब होता है। वो अक्सर कुछ ऐसा कर देता है जिसकी हम इंसान कल्पना भी नहीं किए होते। मैंने सपने में भी कभी ये नहीं सोचा था कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब मुझे अपनी ही भाभी से ब्याह करना होगा। अपनी उस भाभी से जिनके प्रति मेरे मन में आदर और सम्मान तो था ही किंतु एक श्रद्धा भाव भी था। एक वक्त था जब मैं उनके रूप सौंदर्य से सम्मोहित हो कर विचलित होने लगता था। मुझे डर लगने लगता था कि कहीं इस वजह से मुझसे कोई अनर्थ न हो जाए। यही वजह थी कि मैं हमेशा उनसे दूर दूर ही रहा करता था। उसके बाद कुछ ऐसा हो गया जिसने हम सबको हिला कर ही रख दिया।
बड़े भैया गुज़र गए और मेरी भाभी विधवा हो गईं। उन्हें विधवा के लिबास में देख कर हम सब दुखी हो जाते थे। मेरे अंदर ऐसा बदलाव आया कि उसके बाद कभी मेरे मन में उनके प्रति कोई ग़लत ख़याल नहीं उभरा। इसके बाद वक्त कुछ ऐसा आया कि मेरे अंदर का वो वैभव ही ख़त्म हो गया जो सिर्फ अय्याशियों में ही मगन रहता था।
"मैं अपनी रागिनी जैसी बेटी को नहीं खोना चाहती बेटा।" सहसा मां की इस आवाज़ से मैं चौंक कर ख़यालों से बाहर आया। उधर मां भारी गले से कह रहीं थी____"मैं उसे हमेशा के लिए इस हवेली की शान ही बनाए रखना चाहती हूं। उसे खुश देखना चाहती हूं। इस लिए मैं तेरे आगे हाथ जोड़ती हूं कि तू उससे ब्याह करने के लिए हां कह दे।"
"म...मां।" मैंने हड़बड़ा कर मां के हाथों को थाम लिया____"ये क्या कर रही हैं आप? हाथ जोड़ कर अपने बेटे को पापी मत बनाइए।"
"तो मान जा न मेरे लाल।" मां ने नम आंखों से मुझे देखा____"रागिनी से ब्याह करने के लिए हां कह दे।"
"क्या भाभी को भी पता है इस बारे में?" मैंने मां से पूछा।
"हां, उसके माता पिता ने उसे भी सब बता दिया होगा।" मां ने कहा।
"तो क्या वो तैयार हैं इस रिश्ते के लिए?" मैंने हैरानी से उन्हें देखा।
"जब वो तैयार हो जाएगी तो उसके पिता संदेश भिजवा देंगे तेरे पिता जी को।" मां ने कहा____"या फिर वो स्वयं ही यहां आएंगे ख़बर देने।"
"इसका मतलब भाभी इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं हैं अभी।" मैंने कहा____"और मुझे यकीन है कि वो तैयार भी नहीं होंगी। मेरी भाभी ऐसी नहीं हैं जो ऐसे रिश्ते के लिए हां कह देंगी।"
"और अगर उसने हां कह दिया तो?" मां ने कहा____"तब तो तू उससे ब्याह करेगा ना?"
"आप बेवजह उनके ऊपर इस रिश्ते को थोप रही हैं मां।" मैंने हताश भाव से कहा____"उन पर ऐसा ज़ुल्म मत कीजिए आप लोग।"
"इस वक्त भले ही तुम्हें या रागिनी को ये ज़ुल्म लग रहा है।" मां ने अधीरता से कहा____"लेकिन मुझे यकीन है कि ब्याह के बाद तुम दोनों इस रिश्ते से खुश रहोगे।"
मुझे समझ ना आया कि क्या कहूं अब? बड़ी अजीब सी परिस्थिति बन गई थी। मुझे तो अब भी यकीन नहीं हो रहा था कि इतने दिनों से मेरे माता पिता ये सब सोच रहे थे और इतना ही नहीं ऐसा करने का फ़ैसला भी कर चुके थे। हैरत की बात ये कि मुझे इस बात की भनक तक नहीं लगने दी थी।
"ऐसे चुप मत बैठ बेटा।" मां ने मुझे चुप देखा तो कहा____"मुझे बता कि अगर रागिनी इस रिश्ते के लिए मान जाती है तो तू उसके साथ ब्याह करेगा ना?"
"मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा मां।" मैंने हैरान परेशान भाव से कहा____"इस वक्त इस बारे में मैं आपसे कुछ नहीं कहूंगा। मुझे सोचने के लिए समय चाहिए।"
"ठीक है तुझे सोचने के लिए जितना समय चाहिए ले ले।" मां ने कहा____"लेकिन ज़्यादा समय भी मत लगाना।"
"एक बात बताइए।" मैंने कुछ सोचते हुए कहा____"क्या इस बारे में गौरी शंकर को पता है?"
"हां।" मेरी उम्मीद के विपरीत मां ने जब हां कहा तो मैं हैरान रह गया।
मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि इस बारे में सबको पता है लेकिन मुझे ही पता नहीं था। अचानक मुझे रूपा का ख़याल आया तो मैंने मां से कहा____"फिर तो रूपा को भी पता होगा ना इस बारे में?"
"नहीं।" मां ने एक बार फिर मुझे हैरान किया_____"उसको अभी इस बारे में नहीं बताया गया है।"
"ऐसा क्यों?" मैं पूछे बगैर न रह सका।
"असल में हम चाहते थे कि पहले तुम और रागिनी दोनों ही इस रिश्ते के लिए राज़ी हो जाओ।" मां ने कहा____"उसके बाद ही रूपा को इस बारे में बताएंगे। हम जानते हैं कि रूपा एक बहुत ही अच्छी लड़की है, बहुत समझदार है वो। जब उसे इस बारे में बताएंगे तो वो इस बात की गहराई को समझेगी। ख़ास कर रागिनी के बारे में सोचेगी। यही सब सोच कर हमने सिर्फ गौरी शंकर को इस बारे में बता रखा है।"
"बड़े आश्चर्य की बात है।" मैंने गहरी सांस ली____"इतना कुछ सोचा हुआ था आप दोनों ने और मुझसे छुपा के रखा, क्यों?"
"डरते थे कि कहीं तू इस बारे में जान कर नाराज़ ना हो जाए।" मां ने कहा____"दूसरी वजह ये भी थी कि तू अनुराधा की वजह से इस हालत में भी नहीं था कि तू शांति से इस बारे में सुन सके।"
मां के मुख से अनुराधा का नाम सुन कर मेरे अंदर एकाएक टीस सी उठी। आंखों के सामने उसका मासूम चेहरा चमक उठा। पलक झपकते ही मेरे चेहरे पर पीड़ा के भाव उभर आए। सीने में दर्द जाग उठा। फ़ौरन ही आंखें बंद कर के मैंने उस दर्द को जज़्ब करने की कोशिश में लग गया।
"क्या रूपचंद्र को भी इस बारे में बताया था पिता जी ने?" फिर मैंने खुद को सम्हालते हुए पूछा।
"नहीं तो।" मां ने हैरानी ज़ाहिर की____"लेकिन तू ऐसा क्यों कह रहा है?"
"क्योंकि आज वो मुझसे कुछ अजीब सी बातें कर रहा था।" मैंने कहा____"जब मैंने पूछा तो कहने लगा कि वो खुद मुझे कुछ नहीं बता सकता लेकिन हां इस बारे में मैं अपने माता पिता से पूछ सकता हूं।"
"अच्छा तो इसी लिए तू वहां से आते ही मुझसे इस बारे में ऐसा कह रहा था?" मां को जैसे अब समझ आया था____"ख़ैर हो सकता है कि गौरी शंकर ने अपने घर में इस बात का ज़िक्र किया हो जिसके चलते उसे भी इस बारे में पता चल गया होगा।"
"फिर तो रूपा को भी पता चल ही गया होगा।" मैंने जैसे संभावना ब्यक्त की।
"नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।" मां ने मजबूती से इंकार में सिर हिला कर कहा____"तेरे पिता जी ने गौरी शंकर से स्पष्ट शब्दों में कहा था कि वो इस बारे में रूपा को पता न चलने दें।"
"और ऐसा कब तक रहेगा?" मैंने पूछा।
"उचित समय आने पर उसे भी बता दिया जाएगा।" मां ने पलंग से उतर कर कहा____"फिलहाल हमें चंदनपुर से तेरी भाभी के राज़ी होने की ख़बर की प्रतीक्षा है। उसकी हां के बाद ही हम रूपा को इस बारे में बताएंगे।"
कहने के साथ ही मां मुझे आराम करने का बोल कर कमरे से चली गईं। वो तो चली गईं थी लेकिन मुझे सोचो के भंवर में फंसा गईं थी। मैं बड़ी अजीब सी दुविधा और परेशानी में पड़ गया था।
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"आपको क्या लगता है काका?" रूपचंद्र ने गौरी शंकर से मुखातिब हो कर कहा____"सच जानने के बाद वैभव की क्या प्रतिक्रिया होगी?"
"कुछ कह नहीं सकता।" गौरी शंकर ने गहरी सांस ले कर कहा____"लेकिन तुम्हें उससे ऐसे बात नहीं करनी चाहिए थी। तुम्हें समझना चाहिए था कि अभी अभी वो उस लड़की के सदमे से बाहर आया है। ऐसे में उसके सामने इस तरह की बातें करना उचित नहीं था।"
"मैं मानता हूं काका कि उचित नहीं था।" रूपचंद्र ने कहा____"इसी लिए मैंने अपने मुख से उसको सच नहीं बताया।"
"हां लेकिन उसके मन में सच जानने की जिज्ञासा तो डाल ही दी थी ना तुमने।" गौरी शंकर ने कहा____"ऐसे में वो ये सोच कर नाराज़ हो जाएगा कि उसके माता पिता ने उससे कोई सच छुपा के रखा। उसकी नाराज़गी हम सबके लिए भारी पड़ सकती है।"
"आप बेवजह ही इतना ज़्यादा सोच रहे हैं काका।" रूपचंद्र ने कहा____"जबकि मुझे पूरा यकीन है कि ऐसा कुछ नहीं होगा। वैसे भी मुझे लगता है कि उसके मन में सच जानने की उत्सुकता डाल कर मैंने अच्छा ही किया है। इसी बहाने अब वो अपने माता पिता से सच जानने का प्रयास करेगा। उसके माता पिता को भी उसे सब कुछ सच सच बताना ही पड़ेगा। मेरा ख़याल है कि जब वो वैभव को सच बताएंगे तो उसके साथ ही उसे परिस्थितियों का भी एहसास कराएंगे। वो उसे समझाएंगे कि वो जो कुछ भी करना चाहते हैं उसी में सबका भला है, ख़ास कर उसकी भाभी का। इतना तो वो लोग भी जानते हैं कि वैभव अपनी भाभी को कितना मानता है और उनकी ख़ुशी के लिए कुछ भी कर सकता है।"
"शायद रूप ठीक कह रहा है गौरी।" ललिता देवी ने कहा____"मानती हूं कि उसे सच बताने का ये सही वक्त नहीं था लेकिन अब जो हो गया उसका क्या कर सकते हैं? वैसे भी मुझे पूर्ण विश्वास है कि अगर वैभव को सच का पता उसकी अपनी मां के द्वारा चलेगा तो ज़्यादा बेहतर होगा। ठकुराईन बहुत ही प्यार से अपने बेटे को इस सबके बारे में समझा सकती हैं और वैभव भी उनकी बातों को शांत मन से सुन कर समझने की कोशिश करेगा।"
"ललिता सही कह रही है।" फूलवती ने कहा____"मेरा भी यही मानना है कि वैभव की मां इस बारे में अपने बेटे को बहुत अच्छी तरह से समझा सकती हैं और उसे अपनी भाभी से ब्याह करने के लिए मना भी सकती हैं।"
"अगर ऐसा हो जाए तो अच्छा ही है।" गौरी शंकर ने कहा____"मैं आज शाम को दादा ठाकुर से मिलने हवेली जाऊंगा और ये जानने का प्रयास करूंगा कि इस बारे में उन्होंने वैभव से बात की है या नहीं?"
"इस बारे में तो मैं खुद ही पता कर लूंगा काका।" रूपचंद्र ने झट से कहा____"कुछ देर में वैभव वापस काम धाम देखने आएगा तो मैं किसी बहाने उससे इस बारे में पता कर लूंगा।"
"हां ये भी ठीक है।" गौरी शंकर ने कहा____"लेकिन उससे कुछ भी पूछने से पहले ये ज़रूर परख लेना कि उसकी मानसिक अवस्था कैसी है? ऐसा न हो कि वो तुम्हारे द्वारा कुछ पूछने पर बिगड़ जाए।"
"फ़िक्र मत कीजिए काका।" रूपचंद्र ने कहा____"मैं इस बात का अंदाज़ा लगा लेने के बाद ही उससे इस बारे में बात करूंगा।"
कुछ देर और इसी संबंध में उनकी बातें हुईं उसके बाद दोनों औरतें अंदर चली गईं जबकि रूपचंद्र और गौरी शंकर पलंग पर लेट कर आराम करने लगे। दोनों चाचा भतीजे खाना खा चुके थे।
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मैं हवेली से आराम करने के बाद वापस उस जगह पर आ गया था जहां पर अस्पताल और विद्यालय का निर्माण कार्य चल रहा था। सारे मज़दूर और मिस्त्री भी अपने अपने घरों से लाया हुआ खाना खा चुके थे और अब फिर से काम पर लग गए थे। निर्माण कार्य बड़े उत्साह से और बड़ी तेज़ गति से चल रहा था।
मैं देवी मां के मंदिर के पास ही एक पेड़ के पास रखी एक लकड़ी की कुर्सी पर बैठा हुआ था। मेरी नज़रें ज़रूर लोगों पर टिकी हुईं थी लेकिन मेरा मन कहीं और ही उलझा हुआ था। बार बार ज़हन में मां की बातें गूंजने लगती थीं और मैं ना चाहते हुए भी उन बातों के बारे में सोचने लगता था।
मैंने सपने में भी ये उम्मीद अथवा कल्पना नहीं की थी कि ऐसा भी कभी होगा। बार बार आंखों के सामने भाभी का उदास और गंभीर चेहरा उजागर हो जाता था। मैं सोचने पर मजबूर हो जाता कि क्या इसी वजह से कल भाभी इतना उदास और गंभीर नज़र आ रहीं थी? मतलब उन्हें भी इस रिश्ते के बारे में पता चल चुका था और इसी लिए वो मेरे सामने इतनी उदास अवस्था में खड़ी बातें कर रहीं थी।
अचानक ही मेरे मन में सवाल उभरा कि अगर उन्हें पहले से ही इस बारे में पता था तो उन्होंने कल मुझसे इस बारे में कुछ कहा क्यों नहीं? वो उदास तथा गंभीर ज़रूर थीं लेकिन मुझसे सामान्य भाव से ही बातें कर रहीं थी, ऐसा क्यों? अपने इन सवालों का जवाब मैं सोचने लगा। जल्दी ही जवाब के रूप में मेरे ज़हन में सवाल उभरा____'क्या वो उस समय मेरे मन की टोह ले रहीं थी?'
जवाब के रूप में ज़हन में उभरा ये सवाल ऐसा था जिसने मेरे समूचे जिस्म में झुरझुरी सी पैदा कर दी। मैं सोचने लगा कि क्या सच में वो ये देखना चाहती थीं कि मेरे मन में क्या है?
अचानक मेरे मन में ख़याल उभरा कि क्या वो मुझसे ब्याह करने के लिए राज़ी हो गई होंगी? इस ख़याल के एहसास ने एक बार फिर से मेरे समूचे जिस्म में झुरझुरी सी पैदा कर दी। मेरे मन में फिर से सवाल उभरा कि क्या सचमुच मेरी भाभी मुझसे यानि अपने देवर से शादी करने का सोच सकती हैं?
मैं अपने मन में उभरते सवालों और ख़यालों के चलते एकाएक बुरी तरह उलझ गया था। मुझे पता ही न चला कि कब वक्त गुज़रा और रूपचंद्र आ कर मेरे पास ही खड़ा हो गया था। होश तब आया जब उसने मेरा कंधा पकड़ कर मुझे हिलाया।
"क्या हुआ भाई?" रूपचंद्र ने मुस्कुराते हुए एकाएक मज़ाकिया भाव से पूछा____"मेरी बहन के अलावा और किसके ख़यालों में खोए हुए हो तुम?"
"न...नहीं तो।" मैं बुरी तरह बौखला गया, खुद को सम्हालते हुए कहा____"ऐसी तो कोई बात नहीं है। तुम बताओ कब आए?"
"मुझे आए हुए तो काफी समय हो गया।" रूपचंद्र ने मुझे बड़े ध्यान से देखते हुए कहा____"तुम्हारे पास ही खड़ा था और ये देखने में लगा हुआ था कि तुम बैठे तो यहीं पर हो लेकिन तुम्हारा मन जाने कहां था। मैं सही कह रहा हूं ना?"
"ह...हां वो मैं कुछ सोच रहा था।" मैंने काफी हद तक खुद को सम्हाल लिया था____"मैं सोच रहा था कि जब हमारे गांव में अस्पताल और विद्यालय बन कर तैयार हो जाएंगे तो लोगों को बहुत राहत हो जाएगी। ग़रीब लोग सहजता से इलाज़ करा सकेंगे। उनके बच्चे विद्यालय में पढ़ने लगेंगे तो उनके बच्चों का जीवन और व्यक्तित्व काफी निखर जाएगा।"
"ये तो तुमने बिल्कुल सही कहा।" रूपचंद्र ने सिर हिलाते हुए कहा____"लेकिन जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा है कि तुम ये सब नहीं सोच रहे थे।"
रूपचंद्र की इस बात पर मैं चकित भाव से उसे देखने लगा। उधर वो भी कम्बख़्त मुझे ही देखे जा रहा था। कोई और परिस्थिति होती तो मैं हर्गिज़ उससे नज़रें चुराने वाला नहीं था लेकिन इस वक्त मैंने ख़ुद महसूस किया कि मेरी हालत उससे कमज़ोर है।
"मेरी बात का बुरा मत मानना वैभव।" फिर उसने थोड़ा संजीदा हो कर कहा____"असल में जिस तरह तुम यहां बैठे कहीं खोए हुए थे उससे मैं समझ गया था कि तुम्हें वो सच पता चल चुका है जिसे मैं खुद तुम्हें नहीं बता सकता था। ख़ैर, अगर सच में ही तुम्हें सच का पता चल चुका है तो तुम्हें मुझसे कुछ भी छुपाने की ना तो ज़रूरत है और ना ही मुझसे नज़रें चुराने की।"
मुझे समझ ना आया कि क्या कहूं उससे? बड़ा अजीब सा महसूस करने लगा था मैं। सबसे ज़्यादा मुझे ये सोच कर अजीब लगने लगा था कि वो और उसके घर वाले क्या सोच रहे होंगे इस रिश्ते के बारे में।
"ऐसे उतरा हुआ चेहरा मत बनाओ यार।" रूपचंद्र ने मेरे कंधे को हल्के से दबाते हुए जैसे दिलासा दी____"अब तुम्हारे और हमारे बीच कुछ भी पराया नहीं है। तुम्हारा दुख हमारा दुख है और तुम्हारा सुख हमारा सुख है। तुमसे ही सब कुछ है, तुम जो भी करोगे उसका हम पर भी असर होगा। इस लिए व्यर्थ का संकोच छोड़ दो और जो भी मन में हो खुशी मन से साझा करो। एक बात मैं तुम्हें बता देना चाहता हूं कि मैं और मेरे घर वालों को अब किसी भी बात से कोई एतराज़ नहीं है। यूं समझो कि तुम्हारी खुशी में ही हम सबकी खुशी है। अब इससे ज़्यादा क्या कहूं?"
"मतलब तुम्हें या तुम्हारे घर वालों को इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि मेरे माता पिता मेरा ब्याह तुम्हारी बहन के साथ साथ मेरी ही भाभी से कर देना चाहते हैं?" मैंने जैसे एक ही सांस में सब कह दिया।
"सच कहूं तो पहली बार जब इस बारे में काका से पता चला था तो हम सबको थोड़ा बुरा लगा था।" रूपचंद्र ने गंभीर हो कर कहा____"लेकिन काका ने जब इस रिश्ते के संबंध में पूरी बात विस्तार से बताई तो हम सबको एहसास हुआ कि ऐसा होना कहीं से भी ग़लत नहीं है। पहले भी तो तुम अनुराधा से ब्याह करना चाहते थे। हमें अनुराधा से भी कोई समस्या नहीं थी, ये तो फिर भी तुम्हारी अपनी भाभी हैं। अगर तुम्हारे द्वारा उनका जीवन संवर सकता है और वो अपने जीवन में हमेशा खुश रह सकती हैं तो ये अच्छी बात ही है।"
"बात तो ठीक है रूपचंद्र।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा____"लेकिन अपनी भाभी से ब्याह करने की बात सोच कर ही मुझे बड़ा अजीब सा लगता है। तुम तो जानते हो कि सबको मेरे चरित्र के बारे में पता है और इस वजह से लोगों को जब ये पता चलेगा कि मेरे माता पिता मेरा ब्याह तुम्हारी बहन के साथ साथ अपनी ही बहू से कर देना चाहते हैं तो जाने वो लोग क्या क्या सोच बैठेंगे। मुझे अपने ऊपर लोगों द्वारा खीचड़ उछाले जाने पर कोई एतराज़ नहीं होगा लेकिन अगर लोग मेरी भाभी के चरित्र पर कीचड़ उछालने लगेंगे तो मैं बर्दास्त नहीं कर सकूंगा। तुम अच्छी तरह जानते हो कि मेरी भाभी का चरित्र गंगा मैया की तरह स्वच्छ और पवित्र रहा है। ये उनकी बदकिस्मती ही थी कि उनके पति गुज़र गए और वो विधवा हो गईं, लेकिन मैं ये हर्गिज़ सहन नहीं करूंगा कि लोग इस रिश्ते के चलते उनके चरित्र पर सवाल उठाने लगें।"
"लोग तो भगवान पर भी कीचड़ उछाल देते हैं वैभव।" रूपचंद्र ने कहा____"इंसानों की तो बात ही मत करो। मैं तो यही कहूंगा कि तुम लोगों के बारे में मत सोचो बल्कि सिर्फ अपनी भाभी के बारे में सोचो। उनकी ज़िंदगी संवारने के बारे में सोचो। अगर तुम्हें भी लगता है कि तुमसे ब्याह हो जाने के बाद उनका जीवन संवर जाएगा और वो खुश रहने लगेंगी तो तुम इस रिश्ते को स्वीकार कर लो। सच कहूं तो मैं भी चाहता हूं कि उनका जीवन संवर जाए। विधवा के रूप में इतना लंबा जीवन गुज़ारना बहुत ही कठिन होगा उनके लिए।"
"और तुम्हारी बहन का क्या?" मैंने धड़कते दिल से उससे पूछा____"पहले भी अनुराधा की वजह से उसने खुद को समझाया था और अब फिर से वही किस्सा? पहले तो मैंने अपनी मूर्खता के चलते उसके साथ नाइंसाफी की थी लेकिन अब जान बूझ कर कैसे उसके साथ अन्याय करूं? आख़िर और कितना उसे अपने प्रेम के चलते समझौता करना पड़ेगा?"
"मेरी बहन के बारे में तुम्हारा ऐसा सोचना ही ये साबित करता है कि तुम्हें उसके प्रेम का और उसकी तकलीफ़ों का एहसास है।" रूपचंद्र ने कहा____"और सच कहूं तो तुम्हारे मुंह से अपनी बहन के लिए ये फिक्रमंदी देख कर मुझे बहुत अच्छा लगा है। लेकिन तुम शायद अभी भी मेरी बहन को अच्छे से समझे नहीं हो। अगर समझे होते तो ये भी समझ जाते कि उसे इस रिश्ते से भी कोई समस्या नहीं होगी। जैसे उसने अनुराधा को ख़ुशी ख़ुशी क़बूल कर लिया था वैसे ही अब वो रागिनी दीदी को भी ख़ुशी से क़बूल कर लेगी।"
"तुम्हारी बहन बहुत महान है रूपचंद्र।" मैंने सहसा संजीदा हो कर कहा____"इतना कुछ होने के बाद भी उसके दिल से मेरे प्रति उसका प्रेम नहीं मिटा। अनुराधा की मौत के बाद जब मैं गहरे सदमे में चला गया था तो उसने जिस तरह से मुझे उसके दुख से निकाला उसे शब्दों में बयान नहीं कर सकता मैं। मेरे लिए उसने जितना त्याग और जितना समझौता किया है उतना इस संसार में दूसरा कोई नहीं कर सकता। मैं इस जन्म में ही नहीं बल्कि अपने हर जन्म में उसका ऋणी रहूंगा। अक्सर सोचता हूं कि मेरे जैसे इंसान के नसीब में ऊपर वाले ने इतनी अच्छी लड़कियां क्यों लिखी थी? भला मैंने अपने जीवन में कौन से ऐसे अच्छे कर्म किए थे जिसके चलते मुझे रूपा और अनुराधा जैसी प्रेम करने वाली लड़कियां नसीब हुईं?"
"ऊपर वाले की लीला वही जाने वैभव।" रूपचंद्र ने कहा____"हम इंसान तो बस यही कह सकते हैं कि ये सब किस्मत की ही बातें हैं। ख़ैर छोड़ो और ये बताओ कि अब क्या सोचा है तुमने? मेरा मतलब है कि क्या तुम अपनी भाभी से ब्याह करने के लिए राज़ी हो?"
"सच कहूं तो मुझे कुछ समझ में ही नहीं आ रहा भाई।" मैंने बेचैन भाव से कहा____"जब से मां के द्वारा इस सच का पता चला है तब से मन में यही सब चल रहा है। कल तक मुझे इस बारे में कुछ भी पता नहीं था और शायद यही वजह थी कि कल चंदनपुर में मैं अपनी भाभी से बात भी कर सका था। मगर अब ये सब जानने के बाद उनसे बात करने की तो दूर उनसे नज़रें मिलाने की भी हिम्मत नहीं कर पाऊंगा। जाने क्या क्या सोच रहीं होंगी वो मेरे बारे में?"
"मुझे लगता है कि तुम बेकार में ही ये सब सोच रहे हो।" रूपचंद्र ने कहा____"मैं ये मानता हूं कि उनको भी इस रिश्ते के बारे में सोच कर तुम्हारी तरह ही अजीब लग रहा होगा लेकिन यकीन मानों देर सवेर वो भी इस रिश्ते को स्वीकार कर लेंगी। उनके घर वाले उन्हें भी तो समझाएंगे कि उनके लिए क्या सही है और क्या उचित है।"
थोड़ी देर रूपचंद्र से और इसी संबंध में बातें हुईं उसके बाद मैं उसे यहीं रहने का बोल कर अपने खेतों की तरफ निकल गया। रूपचंद्र से इस बारे में बातें कर के थोड़ा बेहतर महसूस करने लगा था मैं।
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