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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

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What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

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  • Poll closed .

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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354
अध्याय - 144
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



मैं अवाक सा देखता रह गया मां को। एकाएक ही मेरे मन मस्तिष्क में धमाके से होने लगे थे। अचानक ही ज़हन में वो बातें गूंजने लगीं जो चंदनपुर में कामिनी से हुईं थी और फिर भाभी से हुईं थी। भाभी का उदास और गंभीर चेहरा मेरी आंखों के सामने उजागर हो गया। उनकी बातें मेरे कानों में गूंजने लगीं।


अब आगे....


ऊपर वाले का खेल भी बड़ा अजब होता है। वो अक्सर कुछ ऐसा कर देता है जिसकी हम इंसान कल्पना भी नहीं किए होते। मैंने सपने में भी कभी ये नहीं सोचा था कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब मुझे अपनी ही भाभी से ब्याह करना होगा। अपनी उस भाभी से जिनके प्रति मेरे मन में आदर और सम्मान तो था ही किंतु एक श्रद्धा भाव भी था। एक वक्त था जब मैं उनके रूप सौंदर्य से सम्मोहित हो कर विचलित होने लगता था। मुझे डर लगने लगता था कि कहीं इस वजह से मुझसे कोई अनर्थ न हो जाए। यही वजह थी कि मैं हमेशा उनसे दूर दूर ही रहा करता था। उसके बाद कुछ ऐसा हो गया जिसने हम सबको हिला कर ही रख दिया।

बड़े भैया गुज़र गए और मेरी भाभी विधवा हो गईं। उन्हें विधवा के लिबास में देख कर हम सब दुखी हो जाते थे। मेरे अंदर ऐसा बदलाव आया कि उसके बाद कभी मेरे मन में उनके प्रति कोई ग़लत ख़याल नहीं उभरा। इसके बाद वक्त कुछ ऐसा आया कि मेरे अंदर का वो वैभव ही ख़त्म हो गया जो सिर्फ अय्याशियों में ही मगन रहता था।

"मैं अपनी रागिनी जैसी बेटी को नहीं खोना चाहती बेटा।" सहसा मां की इस आवाज़ से मैं चौंक कर ख़यालों से बाहर आया। उधर मां भारी गले से कह रहीं थी____"मैं उसे हमेशा के लिए इस हवेली की शान ही बनाए रखना चाहती हूं। उसे खुश देखना चाहती हूं। इस लिए मैं तेरे आगे हाथ जोड़ती हूं कि तू उससे ब्याह करने के लिए हां कह दे।"

"म...मां।" मैंने हड़बड़ा कर मां के हाथों को थाम लिया____"ये क्या कर रही हैं आप? हाथ जोड़ कर अपने बेटे को पापी मत बनाइए।"

"तो मान जा न मेरे लाल।" मां ने नम आंखों से मुझे देखा____"रागिनी से ब्याह करने के लिए हां कह दे।"

"क्या भाभी को भी पता है इस बारे में?" मैंने मां से पूछा।

"हां, उसके माता पिता ने उसे भी सब बता दिया होगा।" मां ने कहा।

"तो क्या वो तैयार हैं इस रिश्ते के लिए?" मैंने हैरानी से उन्हें देखा।

"जब वो तैयार हो जाएगी तो उसके पिता संदेश भिजवा देंगे तेरे पिता जी को।" मां ने कहा____"या फिर वो स्वयं ही यहां आएंगे ख़बर देने।"

"इसका मतलब भाभी इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं हैं अभी।" मैंने कहा____"और मुझे यकीन है कि वो तैयार भी नहीं होंगी। मेरी भाभी ऐसी नहीं हैं जो ऐसे रिश्ते के लिए हां कह देंगी।"

"और अगर उसने हां कह दिया तो?" मां ने कहा____"तब तो तू उससे ब्याह करेगा ना?"

"आप बेवजह उनके ऊपर इस रिश्ते को थोप रही हैं मां।" मैंने हताश भाव से कहा____"उन पर ऐसा ज़ुल्म मत कीजिए आप लोग।"

"इस वक्त भले ही तुम्हें या रागिनी को ये ज़ुल्म लग रहा है।" मां ने अधीरता से कहा____"लेकिन मुझे यकीन है कि ब्याह के बाद तुम दोनों इस रिश्ते से खुश रहोगे।"

मुझे समझ ना आया कि क्या कहूं अब? बड़ी अजीब सी परिस्थिति बन गई थी। मुझे तो अब भी यकीन नहीं हो रहा था कि इतने दिनों से मेरे माता पिता ये सब सोच रहे थे और इतना ही नहीं ऐसा करने का फ़ैसला भी कर चुके थे। हैरत की बात ये कि मुझे इस बात की भनक तक नहीं लगने दी थी।

"ऐसे चुप मत बैठ बेटा।" मां ने मुझे चुप देखा तो कहा____"मुझे बता कि अगर रागिनी इस रिश्ते के लिए मान जाती है तो तू उसके साथ ब्याह करेगा ना?"

"मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा मां।" मैंने हैरान परेशान भाव से कहा____"इस वक्त इस बारे में मैं आपसे कुछ नहीं कहूंगा। मुझे सोचने के लिए समय चाहिए।"

"ठीक है तुझे सोचने के लिए जितना समय चाहिए ले ले।" मां ने कहा____"लेकिन ज़्यादा समय भी मत लगाना।"

"एक बात बताइए।" मैंने कुछ सोचते हुए कहा____"क्या इस बारे में गौरी शंकर को पता है?"

"हां।" मेरी उम्मीद के विपरीत मां ने जब हां कहा तो मैं हैरान रह गया।

मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि इस बारे में सबको पता है लेकिन मुझे ही पता नहीं था। अचानक मुझे रूपा का ख़याल आया तो मैंने मां से कहा____"फिर तो रूपा को भी पता होगा ना इस बारे में?"

"नहीं।" मां ने एक बार फिर मुझे हैरान किया_____"उसको अभी इस बारे में नहीं बताया गया है।"

"ऐसा क्यों?" मैं पूछे बगैर न रह सका।

"असल में हम चाहते थे कि पहले तुम और रागिनी दोनों ही इस रिश्ते के लिए राज़ी हो जाओ।" मां ने कहा____"उसके बाद ही रूपा को इस बारे में बताएंगे। हम जानते हैं कि रूपा एक बहुत ही अच्छी लड़की है, बहुत समझदार है वो। जब उसे इस बारे में बताएंगे तो वो इस बात की गहराई को समझेगी। ख़ास कर रागिनी के बारे में सोचेगी। यही सब सोच कर हमने सिर्फ गौरी शंकर को इस बारे में बता रखा है।"

"बड़े आश्चर्य की बात है।" मैंने गहरी सांस ली____"इतना कुछ सोचा हुआ था आप दोनों ने और मुझसे छुपा के रखा, क्यों?"

"डरते थे कि कहीं तू इस बारे में जान कर नाराज़ ना हो जाए।" मां ने कहा____"दूसरी वजह ये भी थी कि तू अनुराधा की वजह से इस हालत में भी नहीं था कि तू शांति से इस बारे में सुन सके।"

मां के मुख से अनुराधा का नाम सुन कर मेरे अंदर एकाएक टीस सी उठी। आंखों के सामने उसका मासूम चेहरा चमक उठा। पलक झपकते ही मेरे चेहरे पर पीड़ा के भाव उभर आए। सीने में दर्द जाग उठा। फ़ौरन ही आंखें बंद कर के मैंने उस दर्द को जज़्ब करने की कोशिश में लग गया।

"क्या रूपचंद्र को भी इस बारे में बताया था पिता जी ने?" फिर मैंने खुद को सम्हालते हुए पूछा।

"नहीं तो।" मां ने हैरानी ज़ाहिर की____"लेकिन तू ऐसा क्यों कह रहा है?"

"क्योंकि आज वो मुझसे कुछ अजीब सी बातें कर रहा था।" मैंने कहा____"जब मैंने पूछा तो कहने लगा कि वो खुद मुझे कुछ नहीं बता सकता लेकिन हां इस बारे में मैं अपने माता पिता से पूछ सकता हूं।"

"अच्छा तो इसी लिए तू वहां से आते ही मुझसे इस बारे में ऐसा कह रहा था?" मां को जैसे अब समझ आया था____"ख़ैर हो सकता है कि गौरी शंकर ने अपने घर में इस बात का ज़िक्र किया हो जिसके चलते उसे भी इस बारे में पता चल गया होगा।"

"फिर तो रूपा को भी पता चल ही गया होगा।" मैंने जैसे संभावना ब्यक्त की।

"नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।" मां ने मजबूती से इंकार में सिर हिला कर कहा____"तेरे पिता जी ने गौरी शंकर से स्पष्ट शब्दों में कहा था कि वो इस बारे में रूपा को पता न चलने दें।"

"और ऐसा कब तक रहेगा?" मैंने पूछा।

"उचित समय आने पर उसे भी बता दिया जाएगा।" मां ने पलंग से उतर कर कहा____"फिलहाल हमें चंदनपुर से तेरी भाभी के राज़ी होने की ख़बर की प्रतीक्षा है। उसकी हां के बाद ही हम रूपा को इस बारे में बताएंगे।"

कहने के साथ ही मां मुझे आराम करने का बोल कर कमरे से चली गईं। वो तो चली गईं थी लेकिन मुझे सोचो के भंवर में फंसा गईं थी। मैं बड़ी अजीब सी दुविधा और परेशानी में पड़ गया था।

✮✮✮✮

"आपको क्या लगता है काका?" रूपचंद्र ने गौरी शंकर से मुखातिब हो कर कहा____"सच जानने के बाद वैभव की क्या प्रतिक्रिया होगी?"

"कुछ कह नहीं सकता।" गौरी शंकर ने गहरी सांस ले कर कहा____"लेकिन तुम्हें उससे ऐसे बात नहीं करनी चाहिए थी। तुम्हें समझना चाहिए था कि अभी अभी वो उस लड़की के सदमे से बाहर आया है। ऐसे में उसके सामने इस तरह की बातें करना उचित नहीं था।"

"मैं मानता हूं काका कि उचित नहीं था।" रूपचंद्र ने कहा____"इसी लिए मैंने अपने मुख से उसको सच नहीं बताया।"

"हां लेकिन उसके मन में सच जानने की जिज्ञासा तो डाल ही दी थी ना तुमने।" गौरी शंकर ने कहा____"ऐसे में वो ये सोच कर नाराज़ हो जाएगा कि उसके माता पिता ने उससे कोई सच छुपा के रखा। उसकी नाराज़गी हम सबके लिए भारी पड़ सकती है।"

"आप बेवजह ही इतना ज़्यादा सोच रहे हैं काका।" रूपचंद्र ने कहा____"जबकि मुझे पूरा यकीन है कि ऐसा कुछ नहीं होगा। वैसे भी मुझे लगता है कि उसके मन में सच जानने की उत्सुकता डाल कर मैंने अच्छा ही किया है। इसी बहाने अब वो अपने माता पिता से सच जानने का प्रयास करेगा। उसके माता पिता को भी उसे सब कुछ सच सच बताना ही पड़ेगा। मेरा ख़याल है कि जब वो वैभव को सच बताएंगे तो उसके साथ ही उसे परिस्थितियों का भी एहसास कराएंगे। वो उसे समझाएंगे कि वो जो कुछ भी करना चाहते हैं उसी में सबका भला है, ख़ास कर उसकी भाभी का। इतना तो वो लोग भी जानते हैं कि वैभव अपनी भाभी को कितना मानता है और उनकी ख़ुशी के लिए कुछ भी कर सकता है।"

"शायद रूप ठीक कह रहा है गौरी।" ललिता देवी ने कहा____"मानती हूं कि उसे सच बताने का ये सही वक्त नहीं था लेकिन अब जो हो गया उसका क्या कर सकते हैं? वैसे भी मुझे पूर्ण विश्वास है कि अगर वैभव को सच का पता उसकी अपनी मां के द्वारा चलेगा तो ज़्यादा बेहतर होगा। ठकुराईन बहुत ही प्यार से अपने बेटे को इस सबके बारे में समझा सकती हैं और वैभव भी उनकी बातों को शांत मन से सुन कर समझने की कोशिश करेगा।"

"ललिता सही कह रही है।" फूलवती ने कहा____"मेरा भी यही मानना है कि वैभव की मां इस बारे में अपने बेटे को बहुत अच्छी तरह से समझा सकती हैं और उसे अपनी भाभी से ब्याह करने के लिए मना भी सकती हैं।"

"अगर ऐसा हो जाए तो अच्छा ही है।" गौरी शंकर ने कहा____"मैं आज शाम को दादा ठाकुर से मिलने हवेली जाऊंगा और ये जानने का प्रयास करूंगा कि इस बारे में उन्होंने वैभव से बात की है या नहीं?"

"इस बारे में तो मैं खुद ही पता कर लूंगा काका।" रूपचंद्र ने झट से कहा____"कुछ देर में वैभव वापस काम धाम देखने आएगा तो मैं किसी बहाने उससे इस बारे में पता कर लूंगा।"

"हां ये भी ठीक है।" गौरी शंकर ने कहा____"लेकिन उससे कुछ भी पूछने से पहले ये ज़रूर परख लेना कि उसकी मानसिक अवस्था कैसी है? ऐसा न हो कि वो तुम्हारे द्वारा कुछ पूछने पर बिगड़ जाए।"

"फ़िक्र मत कीजिए काका।" रूपचंद्र ने कहा____"मैं इस बात का अंदाज़ा लगा लेने के बाद ही उससे इस बारे में बात करूंगा।"

कुछ देर और इसी संबंध में उनकी बातें हुईं उसके बाद दोनों औरतें अंदर चली गईं जबकि रूपचंद्र और गौरी शंकर पलंग पर लेट कर आराम करने लगे। दोनों चाचा भतीजे खाना खा चुके थे।

✮✮✮✮

मैं हवेली से आराम करने के बाद वापस उस जगह पर आ गया था जहां पर अस्पताल और विद्यालय का निर्माण कार्य चल रहा था। सारे मज़दूर और मिस्त्री भी अपने अपने घरों से लाया हुआ खाना खा चुके थे और अब फिर से काम पर लग गए थे। निर्माण कार्य बड़े उत्साह से और बड़ी तेज़ गति से चल रहा था।

मैं देवी मां के मंदिर के पास ही एक पेड़ के पास रखी एक लकड़ी की कुर्सी पर बैठा हुआ था। मेरी नज़रें ज़रूर लोगों पर टिकी हुईं थी लेकिन मेरा मन कहीं और ही उलझा हुआ था। बार बार ज़हन में मां की बातें गूंजने लगती थीं और मैं ना चाहते हुए भी उन बातों के बारे में सोचने लगता था।

मैंने सपने में भी ये उम्मीद अथवा कल्पना नहीं की थी कि ऐसा भी कभी होगा। बार बार आंखों के सामने भाभी का उदास और गंभीर चेहरा उजागर हो जाता था। मैं सोचने पर मजबूर हो जाता कि क्या इसी वजह से कल भाभी इतना उदास और गंभीर नज़र आ रहीं थी? मतलब उन्हें भी इस रिश्ते के बारे में पता चल चुका था और इसी लिए वो मेरे सामने इतनी उदास अवस्था में खड़ी बातें कर रहीं थी।

अचानक ही मेरे मन में सवाल उभरा कि अगर उन्हें पहले से ही इस बारे में पता था तो उन्होंने कल मुझसे इस बारे में कुछ कहा क्यों नहीं? वो उदास तथा गंभीर ज़रूर थीं लेकिन मुझसे सामान्य भाव से ही बातें कर रहीं थी, ऐसा क्यों? अपने इन सवालों का जवाब मैं सोचने लगा। जल्दी ही जवाब के रूप में मेरे ज़हन में सवाल उभरा____'क्या वो उस समय मेरे मन की टोह ले रहीं थी?'

जवाब के रूप में ज़हन में उभरा ये सवाल ऐसा था जिसने मेरे समूचे जिस्म में झुरझुरी सी पैदा कर दी। मैं सोचने लगा कि क्या सच में वो ये देखना चाहती थीं कि मेरे मन में क्या है?

अचानक मेरे मन में ख़याल उभरा कि क्या वो मुझसे ब्याह करने के लिए राज़ी हो गई होंगी? इस ख़याल के एहसास ने एक बार फिर से मेरे समूचे जिस्म में झुरझुरी सी पैदा कर दी। मेरे मन में फिर से सवाल उभरा कि क्या सचमुच मेरी भाभी मुझसे यानि अपने देवर से शादी करने का सोच सकती हैं?

मैं अपने मन में उभरते सवालों और ख़यालों के चलते एकाएक बुरी तरह उलझ गया था। मुझे पता ही न चला कि कब वक्त गुज़रा और रूपचंद्र आ कर मेरे पास ही खड़ा हो गया था। होश तब आया जब उसने मेरा कंधा पकड़ कर मुझे हिलाया।

"क्या हुआ भाई?" रूपचंद्र ने मुस्कुराते हुए एकाएक मज़ाकिया भाव से पूछा____"मेरी बहन के अलावा और किसके ख़यालों में खोए हुए हो तुम?"

"न...नहीं तो।" मैं बुरी तरह बौखला गया, खुद को सम्हालते हुए कहा____"ऐसी तो कोई बात नहीं है। तुम बताओ कब आए?"

"मुझे आए हुए तो काफी समय हो गया।" रूपचंद्र ने मुझे बड़े ध्यान से देखते हुए कहा____"तुम्हारे पास ही खड़ा था और ये देखने में लगा हुआ था कि तुम बैठे तो यहीं पर हो लेकिन तुम्हारा मन जाने कहां था। मैं सही कह रहा हूं ना?"

"ह...हां वो मैं कुछ सोच रहा था।" मैंने काफी हद तक खुद को सम्हाल लिया था____"मैं सोच रहा था कि जब हमारे गांव में अस्पताल और विद्यालय बन कर तैयार हो जाएंगे तो लोगों को बहुत राहत हो जाएगी। ग़रीब लोग सहजता से इलाज़ करा सकेंगे। उनके बच्चे विद्यालय में पढ़ने लगेंगे तो उनके बच्चों का जीवन और व्यक्तित्व काफी निखर जाएगा।"

"ये तो तुमने बिल्कुल सही कहा।" रूपचंद्र ने सिर हिलाते हुए कहा____"लेकिन जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा है कि तुम ये सब नहीं सोच रहे थे।"

रूपचंद्र की इस बात पर मैं चकित भाव से उसे देखने लगा। उधर वो भी कम्बख़्त मुझे ही देखे जा रहा था। कोई और परिस्थिति होती तो मैं हर्गिज़ उससे नज़रें चुराने वाला नहीं था लेकिन इस वक्त मैंने ख़ुद महसूस किया कि मेरी हालत उससे कमज़ोर है।

"मेरी बात का बुरा मत मानना वैभव।" फिर उसने थोड़ा संजीदा हो कर कहा____"असल में जिस तरह तुम यहां बैठे कहीं खोए हुए थे उससे मैं समझ गया था कि तुम्हें वो सच पता चल चुका है जिसे मैं खुद तुम्हें नहीं बता सकता था। ख़ैर, अगर सच में ही तुम्हें सच का पता चल चुका है तो तुम्हें मुझसे कुछ भी छुपाने की ना तो ज़रूरत है और ना ही मुझसे नज़रें चुराने की।"

मुझे समझ ना आया कि क्या कहूं उससे? बड़ा अजीब सा महसूस करने लगा था मैं। सबसे ज़्यादा मुझे ये सोच कर अजीब लगने लगा था कि वो और उसके घर वाले क्या सोच रहे होंगे इस रिश्ते के बारे में।

"ऐसे उतरा हुआ चेहरा मत बनाओ यार।" रूपचंद्र ने मेरे कंधे को हल्के से दबाते हुए जैसे दिलासा दी____"अब तुम्हारे और हमारे बीच कुछ भी पराया नहीं है। तुम्हारा दुख हमारा दुख है और तुम्हारा सुख हमारा सुख है। तुमसे ही सब कुछ है, तुम जो भी करोगे उसका हम पर भी असर होगा। इस लिए व्यर्थ का संकोच छोड़ दो और जो भी मन में हो खुशी मन से साझा करो। एक बात मैं तुम्हें बता देना चाहता हूं कि मैं और मेरे घर वालों को अब किसी भी बात से कोई एतराज़ नहीं है। यूं समझो कि तुम्हारी खुशी में ही हम सबकी खुशी है। अब इससे ज़्यादा क्या कहूं?"

"मतलब तुम्हें या तुम्हारे घर वालों को इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि मेरे माता पिता मेरा ब्याह तुम्हारी बहन के साथ साथ मेरी ही भाभी से कर देना चाहते हैं?" मैंने जैसे एक ही सांस में सब कह दिया।

"सच कहूं तो पहली बार जब इस बारे में काका से पता चला था तो हम सबको थोड़ा बुरा लगा था।" रूपचंद्र ने गंभीर हो कर कहा____"लेकिन काका ने जब इस रिश्ते के संबंध में पूरी बात विस्तार से बताई तो हम सबको एहसास हुआ कि ऐसा होना कहीं से भी ग़लत नहीं है। पहले भी तो तुम अनुराधा से ब्याह करना चाहते थे। हमें अनुराधा से भी कोई समस्या नहीं थी, ये तो फिर भी तुम्हारी अपनी भाभी हैं। अगर तुम्हारे द्वारा उनका जीवन संवर सकता है और वो अपने जीवन में हमेशा खुश रह सकती हैं तो ये अच्छी बात ही है।"

"बात तो ठीक है रूपचंद्र।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा____"लेकिन अपनी भाभी से ब्याह करने की बात सोच कर ही मुझे बड़ा अजीब सा लगता है। तुम तो जानते हो कि सबको मेरे चरित्र के बारे में पता है और इस वजह से लोगों को जब ये पता चलेगा कि मेरे माता पिता मेरा ब्याह तुम्हारी बहन के साथ साथ अपनी ही बहू से कर देना चाहते हैं तो जाने वो लोग क्या क्या सोच बैठेंगे। मुझे अपने ऊपर लोगों द्वारा खीचड़ उछाले जाने पर कोई एतराज़ नहीं होगा लेकिन अगर लोग मेरी भाभी के चरित्र पर कीचड़ उछालने लगेंगे तो मैं बर्दास्त नहीं कर सकूंगा। तुम अच्छी तरह जानते हो कि मेरी भाभी का चरित्र गंगा मैया की तरह स्वच्छ और पवित्र रहा है। ये उनकी बदकिस्मती ही थी कि उनके पति गुज़र गए और वो विधवा हो गईं, लेकिन मैं ये हर्गिज़ सहन नहीं करूंगा कि लोग इस रिश्ते के चलते उनके चरित्र पर सवाल उठाने लगें।"

"लोग तो भगवान पर भी कीचड़ उछाल देते हैं वैभव।" रूपचंद्र ने कहा____"इंसानों की तो बात ही मत करो। मैं तो यही कहूंगा कि तुम लोगों के बारे में मत सोचो बल्कि सिर्फ अपनी भाभी के बारे में सोचो। उनकी ज़िंदगी संवारने के बारे में सोचो। अगर तुम्हें भी लगता है कि तुमसे ब्याह हो जाने के बाद उनका जीवन संवर जाएगा और वो खुश रहने लगेंगी तो तुम इस रिश्ते को स्वीकार कर लो। सच कहूं तो मैं भी चाहता हूं कि उनका जीवन संवर जाए। विधवा के रूप में इतना लंबा जीवन गुज़ारना बहुत ही कठिन होगा उनके लिए।"

"और तुम्हारी बहन का क्या?" मैंने धड़कते दिल से उससे पूछा____"पहले भी अनुराधा की वजह से उसने खुद को समझाया था और अब फिर से वही किस्सा? पहले तो मैंने अपनी मूर्खता के चलते उसके साथ नाइंसाफी की थी लेकिन अब जान बूझ कर कैसे उसके साथ अन्याय करूं? आख़िर और कितना उसे अपने प्रेम के चलते समझौता करना पड़ेगा?"

"मेरी बहन के बारे में तुम्हारा ऐसा सोचना ही ये साबित करता है कि तुम्हें उसके प्रेम का और उसकी तकलीफ़ों का एहसास है।" रूपचंद्र ने कहा____"और सच कहूं तो तुम्हारे मुंह से अपनी बहन के लिए ये फिक्रमंदी देख कर मुझे बहुत अच्छा लगा है। लेकिन तुम शायद अभी भी मेरी बहन को अच्छे से समझे नहीं हो। अगर समझे होते तो ये भी समझ जाते कि उसे इस रिश्ते से भी कोई समस्या नहीं होगी। जैसे उसने अनुराधा को ख़ुशी ख़ुशी क़बूल कर लिया था वैसे ही अब वो रागिनी दीदी को भी ख़ुशी से क़बूल कर लेगी।"

"तुम्हारी बहन बहुत महान है रूपचंद्र।" मैंने सहसा संजीदा हो कर कहा____"इतना कुछ होने के बाद भी उसके दिल से मेरे प्रति उसका प्रेम नहीं मिटा। अनुराधा की मौत के बाद जब मैं गहरे सदमे में चला गया था तो उसने जिस तरह से मुझे उसके दुख से निकाला उसे शब्दों में बयान नहीं कर सकता मैं। मेरे लिए उसने जितना त्याग और जितना समझौता किया है उतना इस संसार में दूसरा कोई नहीं कर सकता। मैं इस जन्म में ही नहीं बल्कि अपने हर जन्म में उसका ऋणी रहूंगा। अक्सर सोचता हूं कि मेरे जैसे इंसान के नसीब में ऊपर वाले ने इतनी अच्छी लड़कियां क्यों लिखी थी? भला मैंने अपने जीवन में कौन से ऐसे अच्छे कर्म किए थे जिसके चलते मुझे रूपा और अनुराधा जैसी प्रेम करने वाली लड़कियां नसीब हुईं?"

"ऊपर वाले की लीला वही जाने वैभव।" रूपचंद्र ने कहा____"हम इंसान तो बस यही कह सकते हैं कि ये सब किस्मत की ही बातें हैं। ख़ैर छोड़ो और ये बताओ कि अब क्या सोचा है तुमने? मेरा मतलब है कि क्या तुम अपनी भाभी से ब्याह करने के लिए राज़ी हो?"

"सच कहूं तो मुझे कुछ समझ में ही नहीं आ रहा भाई।" मैंने बेचैन भाव से कहा____"जब से मां के द्वारा इस सच का पता चला है तब से मन में यही सब चल रहा है। कल तक मुझे इस बारे में कुछ भी पता नहीं था और शायद यही वजह थी कि कल चंदनपुर में मैं अपनी भाभी से बात भी कर सका था। मगर अब ये सब जानने के बाद उनसे बात करने की तो दूर उनसे नज़रें मिलाने की भी हिम्मत नहीं कर पाऊंगा। जाने क्या क्या सोच रहीं होंगी वो मेरे बारे में?"

"मुझे लगता है कि तुम बेकार में ही ये सब सोच रहे हो।" रूपचंद्र ने कहा____"मैं ये मानता हूं कि उनको भी इस रिश्ते के बारे में सोच कर तुम्हारी तरह ही अजीब लग रहा होगा लेकिन यकीन मानों देर सवेर वो भी इस रिश्ते को स्वीकार कर लेंगी। उनके घर वाले उन्हें भी तो समझाएंगे कि उनके लिए क्या सही है और क्या उचित है।"

थोड़ी देर रूपचंद्र से और इसी संबंध में बातें हुईं उसके बाद मैं उसे यहीं रहने का बोल कर अपने खेतों की तरफ निकल गया। रूपचंद्र से इस बारे में बातें कर के थोड़ा बेहतर महसूस करने लगा था मैं।



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Game888

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अध्याय - 143
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"मुझे ग़लत मत समझना वैभव।" रूपचंद्र ने कहा____"लेकिन इस बारे में मैं तुम्हें कुछ नहीं बता सकता।"

मैं मूर्खों की तरह देखता रह गया उसे। रूपचंद्र के चेहरे पर खेद पूर्ण भाव थे। कुछ देर वो ख़ामोशी से मुझे देखता रहा उसके बाद मेरे कंधे पर हल्के से हाथ की थपकी देने के बाद चला गया। मुझे समझ ना आया कि अब ये क्या चक्कर है?



अब आगे....


रसोई में रागिनी अपनी भाभी वंदना का खाना बनाने में हाथ बंटा रही थी। यूं तो घर में उसे कोई भी काम करने के लिए नहीं कहता था लेकिन उसे खुद ही अच्छा नहीं लगता था कि वो बैठ के सिर्फ खाना खाए। पहले भी उसे काम करना बेहद पसंद था और आज भी वो खाली बैठना पसंद नहीं करती थी।

कुछ समय पहले तक सब ठीक ही था लेकिन फिर एक दिन उसके ससुर यानि दादा ठाकुर यहां आए। उन्होंने उसके पिता से उसके ब्याह के संबंध में जो भी बातें की उसके बारे में जान कर उसे बड़ा झटका लगा था। पहले तो ये बात उसे अपनी भाभी वंदना ने ही बताया और फिर रात में उसकी मां ने बताया। रागिनी के लिए वो सारी बातें ऐसी थीं कि उसके बाद से जैसे उसका हंसना मुस्कुराना ही बंद हो गया था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसके ससुर उसका फिर से ब्याह करने की चर्चा करने उसके पिता के पास आए थे। बात अगर सिर्फ इतनी ही होती तो कदाचित उसे इतना झटका नहीं लगता किंतु झटके वाली बात ये थी कि उसके ससुर उसका ब्याह उसके ही देवर से करने की बात बोले थे।

रागिनी के लिए ये बात किसी झटके से कम नहीं थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसके ससुर ऐसा कैसे चाह सकते थे और उसके खुद के पिता भी उनकी इस बात को मंजूरी कैसे दे सकते थे? अब क्योंकि वो खुद किसी से इस बारे में कुछ कह नहीं सकती थी इस लिए अंदर ही अंदर वो इस बात से परेशान हो गई थी। दो तीन दिन तक यही आलम रहा लेकिन फिर उसकी मां के समझाने पर वो थोड़ा सामान्य होने लगी थी। हालाकि अंदर से वो अभी भी बेचैन थी।

वैभव को उसने देवर के साथ साथ हमेशा ही अपना छोटा भाई समझा था। वो अच्छी तरह जानती थी कि वैभव कैसे चरित्र का लड़का है इसके बाद भी वो ये समझती थी कि वैभव ने कभी उसे ग़लत नज़र से नहीं देखा था। हालाकि ये सिर्फ उसका सोचना ही था क्योंकि कोई भी व्यक्ति किसी के अंदर की बात पूर्ण रूप से नहीं जान रहा होता है, ये तो बस उसका विश्वास था।

"अब इतना भी मत सोचो रागिनी।" वंदना ने उसे ख़ामोशी से काम करते देखा तो बोल पड़ी____"तुम भी अच्छी तरह समझती हो कि तुम्हारे ससुर जी और तुम्हारे पिता जी तुम्हारी भलाई के लिए ही ऐसा चाहते हैं। सच कहूं तो इस रिश्ते के लिए किसी को भी कोई आपत्ति नहीं है। तुम्हें पता है, तुम्हारे भैया से हर रोज़ मेरी इस बारे में बात होती है। उनका भी यही कहना है कि तुम्हारा वैभव के साथ ब्याह कर देने का फ़ैसला बिल्कुल भी ग़लत नहीं है। देवर से भाभी का ब्याह हो जाना कोई ग़लत नहीं है। ऐसा तो हमेशा से होता आया है।"

"मैं दुबारा ब्याह करने से इंकार नहीं कर रही भाभी।" रागिनी ने गंभीर भाव से कहा____"मैं सिर्फ ये कह रही हूं कि वैभव से ही क्यों? जिसे अब तक मैं अपने देवर के साथ साथ अपना छोटा भाई समझती आई हूं उसे एकदम से पति की नज़र से कैसे देखने लगूं? आप लोगों ने तो कह दिया लेकिन आप लोग ये नहीं समझ रहे हैं कि इस बारे में मैं क्या महसूस करती हूं।"

"ऐसा नहीं है रागिनी।" वंदना ने कहा____"हम सबको एहसास है कि इस रिश्ते के बारे में तुम इस समय कैसा महसूस करती होगी। तुम्हारी जगह मैं होती तो मेरा भी यही कहना होता लेकिन जीवन में हमें इसके अलावा भी कई सारी बातें सोचनी पड़ती हैं। तुम्हारा कहना है कि वैभव से ही क्यों? यानि तुम्हें वैभव से ब्याह करने में आपत्ति है, जबकि नहीं होनी चाहिए। ऐसा इस लिए क्योंकि तुम उसके बारे में पहले से ही सब कुछ जानती हो। तुम जानती हो कि वो तुम्हारी कितनी इज्ज़त करता है और कितनी फ़िक्र करता है। तुम्हीं ने बताया था कि वो तुम्हारे होठों पर मुस्कान लाने के लिए क्या क्या करता रहता है। सोचने वाली बात है रागिनी कि जो व्यक्ति तुम्हारी खुशी के लिए इतना कुछ करता हो और तुम्हें इतना चाहता हो उससे ब्याह करने से इंकार क्यों? किसी दूसरे व्यक्ति से ब्याह करने का सोचती हो तो बताओ क्या वो व्यक्ति वैभव की तरह तुम्हें मान सम्मान देगा? क्या वो वैभव की तरह तुम्हें चाहेगा और क्या उसके घर वाले तुम्हें अपने घर की शान बना लेंगे?"

रागिनी कुछ बोल ना सकी किंतु चेहरे से स्पष्ट नज़र आ रहा था कि उसके मन में बहुत कुछ चल रहा था। वंदना कुछ देर तक उसे देखती रही।

"मैं जानती हूं कि तुमने अपने जीवन में कभी किसी लड़के का ख़याल भी अपने मन में नहीं लाया था।" फिर उसने रागिनी के दोनों कन्धों को पकड़ कर बड़े स्नेह से कहा____"तुम्हारे जीवन में जो आया वो सिर्फ तुम्हारा पति ही था। यही वजह है कि तुम किसी और के बारे में ऐसा सोचना ही नहीं चाहती, ख़ास कर वैभव के बारे में। तुम भी जानती हो कि शादी से पहले लड़का लड़की एक दूसरे के लिए अजनबी ही होते हैं। दोनों के मन में एक दूसरे के प्रति कई तरह की आशंकाएं रहती हैं। ख़ास कर लड़की ये सोच कर परेशान हो जाती है कि जाने कैसा होगा उसका होने वाला पति और फिर आगे जाने क्या होगा? लेकिन जब दोनों की शादी हो जाती है और दोनों साथ रहने लगते हैं तो मन की सारी आशंकाएं अपने आप ही दूर होती चली जाती हैं। एक वक्त ऐसा आता है जब दोनों को एक दूसरे से बेहद लगाव हो जाता है और फिर दोनों को ये भी लगने लगता है जैसे वो दोनों एक दूसरे के लिए ही बने थे। तुम्हारे लिए तो सबसे अच्छी बात यही है कि तुम अपने होने वाले पति के बारे में पहले से ही सब कुछ जानती हो। सबसे बड़ी बात ये जानती हो कि वो तुम्हें कितना चाहता है और तुम्हारी कितनी फ़िक्र करता है। एक औरत को इससे ज़्यादा और क्या चाहिए होता है? भूल जाओ कि तुम वैभव की भाभी हो या वैभव तुम्हारा देवर है। मन में सिर्फ ये रखो कि वो एक ऐसा लड़का है जिससे तुम्हारा ब्याह होना है।"

"यही तो नहीं कर पा रही भाभी।" रागिनी ने जैसे आहत हो कर कहा____"उसके बारे में एक पल में सब कुछ भूल जाना आसान नहीं है। मेरा तो ये सोच कर हृदय कांप जाता है कि जब उसे सच का पता चलेगा तो क्या सोचेगा वो मेरे बारे में? अगर उसने एक पल के लिए भी मेरे बारे में ग़लत सोच लिया तो कैसे नज़रें मिला पाऊंगी उससे?"

"ऐसा सिर्फ तुम सोचती हो रागिनी।" वंदना ने कहा____"ऐसा भी तो हो सकता है कि वो तुम्हारे बारे में ऐसा कुछ सोचे ही नहीं बल्कि ये सोच ले कि वो कितना किस्मत वाला है जो उसके जीवन में तुम जैसी लड़की पत्नी के रूप में मिलने वाली है। आख़िर तुम्हारी अच्छाईयां और तुम्हारी खूबियों के बारे में तो उसे पता ही है। मुझे पूरा यकीन है कि जब उसे इस सच का पता चलेगा तो वो सपने में भी तुम्हारे बारे में ग़लत नहीं सोचेगा। बल्कि यही सोचेगा कि अब वो पूरे हक़ से और पूरी आज़ादी के साथ तुम्हें खुश रखने का प्रयास कर सकेगा। हां रागिनी, जितना कुछ तुमने उसके बारे में मुझे बताया है उससे मैं पूरे यकीन के साथ कह सकती हूं कि वैभव इस रिश्ते को ख़ुशी से स्वीकार करेगा और ब्याह के बाद तुम्हें बहुत खुश रखेगा।"

रागिनी के समूचे बदन में झुरझूरी सी दौड़ गई। उसे बड़ा अजीब लग रहा था। चेहरे पर अभी भी पहले जैसी गंभीरता और उदासी छाई हुई थी।

"एक बार अपने सास ससुर के बारे में भी सोचो रागिनी।" वंदना ने कुछ सोचते हुए कहा____"तुम्हीं बताया करती थी ना कि वो दोनों तुम्हें बहू नहीं बल्कि अपनी बेटी मानते हैं और तुम्हें अपनी हवेली की शान समझते हैं। इसी से ज़ाहिर होता है कि वो तुम्हें कितना चाहते हैं। वैभव से तुम्हारा ब्याह करवा देने के पीछे उनकी यही भावना है कि तुम हमेशा उनकी बेटी बन कर उनकी हवेली की शान ही बनी रहो और साथ ही फिर से सुहागन बनने के बाद एक खुशहाल जीवन जियो। मानती हूं कि इतनी कम उमर में तुम्हें विधवा बना कर ऊपर वाले ने तुम्हारे साथ अच्छा नहीं किया है लेकिन मैं ये भी मानती हूं कि तुम बहुत भाग्यशाली हो जो तुम्हें इतने अच्छे सास ससुर मिले हैं जो सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे हितों के बारे में सोचते हैं। वरना मैंने ऐसे भी लोग देखे और सुने हैं जो अपनी बहू के विधवा हो जाने पर उसे नौकरानी बना कर सारा जीवन उसे दुख देते रहते हैं। शायद यही सब पिता जी ने और तुम्हारे भैया ने भी सोचा होगा। माना कि तुम्हारे सास ससुर ऐसे नहीं हैं लेकिन कोई भी माता पिता ये नहीं चाहते कि उनकी बेटी विधवा के रूप में जीवन भर कष्ट सहे। तुम्हारा फिर से ब्याह करने की बात तुम्हारे अपने सास ससुर ने की है। ज़ाहिर है वो भी ऐसा नहीं चाहते और फिर जब उन्होंने यहां आ कर पिता जी से इस रिश्ते की बात कही तो पिता जी भी झट से मान गए थे। इस डर से नहीं कि तुम्हारा क्या होगा बल्कि इस खुशी में कि अपनी बेटी का जिस तरह से भला वो खुद चाहते थे वैसा उनकी बेटी के सास ससुर खुद ही चाहते हैं। तुम्हीं सोचो कि आज के युग में ऐसे महान सास ससुर कहां मिलते हैं जो अपनी बहू के बारे में इतना कुछ सोचें?"

"हां ये तो आप सही कह रही हैं।" रागिनी ने सिर हिलाते हुए धीमें से कहा____"इस मामले में मेरे सास ससुर बहुत अच्छे हैं। उन्होंने कभी भूल से भी किसी तरह का मुझे कोई कष्ट नहीं दिया। इतना कुछ हो जाने के बाद भी उन्होंने मुझे किसी बात का ताना नहीं मारा बल्कि मेरे दुख से दुखी हो कर हमेशा मुझे अपने सीने से लगाए रखा था।"

"इसी लिए तो कहती हूं रागिनी कि तुम बहुत भाग्यशाली हो।" वंदना ने कहा____"पूर्व जन्म में तुमने ज़रूर बहुत अच्छे कर्म किए थे जिसके चलते इस जन्म में तुम्हें इतने अच्छे सास ससुर मिले हैं। पति में भी कोई ख़राबी नहीं थी, वो तो उन बेचारे की किस्मत ही ख़राब थी जिसके चलते ऊपर वाले ने उन्हें अपने पास बुला लिया। तुम्हारे देवर के बारे में तुमसे बेहतर कौन जान सकता है? सच तो ये है कि तुम्हारे ससुराल में हर कोई बहुत अच्छा है। इस लिए मैं तो यही कहूंगी कि तुम अब कुछ भी मत सोचो, ईश्वर ने तुम्हारी खुशियां छीनी थी तो उसने फिर से तुम्हें खुशियां देने के लिए इस तरह का रिश्ता भेज दिया है। इसे ख़ुशी ख़ुशी क़बूल करो और वैभव के साथ जीवन में आगे बढ़ जाओ।"

अभी रागिनी कुछ कहने ही वाली थी कि तभी रसोई में कामिनी आ गई। उसने बताया कि पिता जी और भैया खेतों से आ गए हैं और हाथ मुंह धोने के बाद जल्दी ही बरामदे में खाना खाने के लिए आ जाएंगे। कामिनी की इस बात के बाद वंदना और रागिनी जल्दी जल्दी थाली सजाने की तैयारी करने लगीं।

✮✮✮✮

रूपचंद्र के जाने के बाद मेरे मन में विचारों का जैसे बवंडर सा उठ खड़ा हुआ था। वो तो चला गया था लेकिन मुझे उलझा गया था। मैं सोचने लगा था कि आख़िर कौन से सच की बात कर रहा था वो और तो और वो ख़ुद क्यों नहीं बता सकता था? आख़िर ऐसा कौन सा सच होगा जिसे मैं अपने माता पिता से ही जान सकता था?

दोपहर तक मैं इसी तरह विचारों में उलझा रहा और मजदूरों को काम करते हुए देखता रहा। उसके बाद मैं खाना खाने के लिए मोटर साईकिल में बैठ कर हवेली की तरफ चल पड़ा। मन ही मन फ़ैसला कर लिया कि मौका मिलते ही मां से पूछूंगा कि अभी ऐसा क्या है जिसे उन्होंने मुझे नहीं बताया है?

हवेली पहुंचा तो देखा पिता जी खाना खाने बैठ चुके थे। मुंशी किशोरी लाल भी बैठा हुआ था। मुझे आया देख मां ने मुझे भी हाथ मुंह धो कर बैठ जाने के लिए कहा। मैं फ़ौरन ही हाथ मुंह धो के आया और कुर्सी पर बैठ गया। कुसुम और कजरी खाना परोसने लगीं। खाना खाने के दरमियान हमेशा की ही तरह ख़ामोशी रही। पिता जी को खाते वक्त बातें करना बिल्कुल भी पसंद नहीं था।

खाना पीना कर के जब पिता जी और मुंशी जी चले गए तो मैंने मां की तरफ देखा। मुझे पिता जी और मुंशी जी की तरह कुर्सी से उठ कर न गया देख मां समझ गईं कि कोई बात है जिसके चलते मैं अभी भी कुर्सी पर बैठा हुआ था।

"क्या हुआ बेटा?" मां ने मेरे क़रीब आ कर बड़े स्नेह से कहा____"भोजन तो कर चुका है तू, फिर बैठा क्यों है? आराम नहीं करना है क्या तुझे?"

"आराम बाद में कर लूंगा मां।" मैंने कहा____"इस वक्त मुझे आपसे कुछ जानना है और उम्मीद करता हूं कि आप मुझे सब कुछ सच सच बताएंगी।"

मेरी बात सुन कर मां मेरी तरफ बड़े ध्यान से देखने लगीं। कजरी तो जूठे बर्तन उठा कर चली गई थी लेकिन कुसुम मेरी बात सुन कर ठिठक गई थी और उत्सुक भाव से हमारी तरफ देखने लगी थी।

"क्या जानना चाहता है तू?" इधर मां ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा____"तेरी भाभी के बारे में तो मैंने तुझे कल ही बता दिया था, फिर अब क्या जानना चाहता है?"

"वही जो आपने नहीं बताया।" मैंने मां की तरफ ध्यान से देखते हुए कहा____"और मुझे लगता है कि अभी भी आपने मुझसे कुछ छुपा रखा है।"

"अपने कमरे में जा।" मां ने गहरी सांस ले कर कहा____"मैं आती हूं थोड़ी देर में।"

"ठीक है।" मैंने कुर्सी से उठते हुए कहा____"जल्दी आइएगा।"

कहने के साथ ही मैं तो अपने कमरे की तरफ चला गया किंतु पीछे मां एकदम से परेशान हो उठीं थी। कुछ पलों तक जाने वो क्या सोचती रहीं फिर खुद को सम्हालते हुए अपने कमरे की तरफ बढ़ चलीं। जल्दी ही वो कमरे में पहुंच गईं। कमरे में पिता जी पलंग पर आराम करने के लिए लेट चुके थे। कमरे में आते ही मां ने कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया। ये देख पिता जी के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे।

"क्या हुआ?" वो पूछ ही बैठे____"आपको भोजन नहीं करना क्या?"

"बाद में कर लेंगे।" उन्होंने पिता जी के क़रीब जा कर कहा____"इस वक्त एक समस्या हो गई है।"

"स...समस्या??" पिता जी चौंके____"ये क्या कह रही हैं आप?"

"लगता है हमारे बेटे को शक हो गया है।" मां ने चिंतित भाव से कहा____"अभी अभी वो हमसे कोई बात जानने की बात कह रहा था और ये भी कह रहा था कि हमने अभी भी उससे कुछ छुपाया है।"

"क्या उसने स्पष्ट रूप से आपसे ऐसा कुछ कहा है?" पिता जी ने पूछा____"क्या आपको लगता है कि वो रागिनी बहू के बारे में आपसे जानने की बात कह रहा था?"

"पता नहीं।" मां ने कहा____"लेकिन जिस अंदाज़ में बोल रहा था उससे तो यही लगता है कि वो रागिनी बहू के बारे में ही जानना चाहता है।"

मां की इस बात पर पिता जी फ़ौरन कुछ ना बोले। उनके चेहरे पर सोचने वाले भाव उभर आए थे। मां बेचैनी से उन्हें ही देखे जा रहीं थी।

"क्या सोचने लगे आप?" फिर उन्होंने कहा____"कुछ बोल क्यों नहीं रहे हैं? हमने उसे कमरे में जाने को कह दिया है और ये भी कहा है कि आते हैं थोड़ी देर में। ज़ाहिर है वो हमारी प्रतीक्षा करेगा। समझ में नहीं आ रहा कि अगर उसने रागिनी बहू के बारे में ही पूछेगा तो क्या बताएंगे उसे?"

"हमें लगता है कि सच बताना ही पड़ेगा उसे।" पिता जी ने गहरी सांस ले कर कहा____"इस बात को ज़्यादा समय तक उससे छुपा के भी नहीं रख सकते। वैसे भी जो कुछ उसे बताया गया है उससे वो परेशान और दुखी ही होगा। इस लिए बेहतर है कि उसे सच ही बता दिया जाए।"

"क्या आपको लगता है कि सच जानने के बाद वो चुप बैठेगा?" मां ने कहा____"पहले ही वो अनुराधा की मौत हो जाने से टूट सा गया था और बड़ी मुश्किल से उसके सदमे से बाहर आया है। अगर उसे ये बात बताएंगे तो जाने क्या सोच बैठे वो और फिर जाने क्या करने पर उतारू हो जाए?"

"हम मानते हैं कि उसको सच बताना ख़तरा मोल लेने जैसा है।" पिता जी ने कहा____"लेकिन एक दिन तो उसे बताना ही पड़ेगा इस सच को। वैसे हमारा ख़याल है कि अगर आप उसे बेहतर तरीके से समझाएंगी तो शायद वो समझ जाएगा। आप उसे ये भी बता सकती हैं कि ये सब कुल गुरु की भविष्यवाणी के अनुसार ही हो रहा है।"

"कुल गुरु का नाम लेंगे तो वो भड़क जाएगा।" मां ने झट से कहा____"पहले भी वो अपने बड़े भाई की भविष्यवाणी वाली बात से उन पर बिगड़ गया था।"

"तो फिर आप उसे समझाइएगा कि इसी में सबका भला है।" पिता जी ने कहा____"ख़ास कर उसकी भौजाई का। अगर वो चाहता है कि उसकी भौजाई हमेशा खुश रहे और इसी हवेली में रहे तो उसे इस रिश्ते को स्वीकार करना ही होगा।"

पिता जी की इस बात पर मां कुछ देर तक उन्हें देखतीं रहीं। इतना तो वो भी समझती थीं कि एक दिन सच का पता वैभव को चलेगा ही तो बेहतर है आज ही बता दिया जाए। वैसे उन्हें यकीन था कि अपनी भाभी की ख़ुशी के लिए उनका बेटा ज़रूर इस रिश्ते को स्वीकार कर लेगा।

"ठीक है फिर।" मां ने जैसे निर्णायक अंदाज़ से कहा____"हम जा कर उसे सच बता देते हैं। अब जो होगा देखा जाएगा।"

✮✮✮✮

मैं पलंग पर लेटा बड़ी शिद्दत से मां का इंतज़ार कर रहा था। मन में तरह तरह के ख़याल उभर रहे थे जिसकी वजह से मेरी बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी। तभी खुले दरवाज़े पर मां नज़र आईं। उन्हें देखते ही मैं उठ कर बैठ गया। उधर वो कमरे में दाख़िल हो कर मेरे पास आईं और पलंग पर बैठ गईं। उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंची हुई थीं।

"आने में बड़ी देर लगा दी आपने?" मैंने व्याकुल भाव से कहा____"ख़ैर अब बताइए कि मुझसे और क्या छुपाया है आपने?"

"मैं तुझे सच बता दूंगी।" मां ने कहा____"लेकिन उससे पहले मैं तुझसे कुछ पूछना चाहती हूं। मैं चाहती हूं कि मैं तुझसे जो भी पूछूं उसका तू पूरी ईमानदारी से सच सच जवाब दे।"

"बिल्कुल दूंगा मां।" मैंने एकदम दृढ़ हो कर कहा____"आप पूछिए, मैं आपको वचन देता हूं कि आप जो कुछ भी मुझसे पूछेंगी मैं उसका सच सच जवाब दूंगा।"

"ठीक है।" मां ने एक लंबी सांस ली____"मैं तुझसे ये जानना चाहती हूं कि तू अपनी भाभी के बारे में क्या सोचता है?"

"य...ये कैसा सवाल है मां?" मैंने हैरानी से उन्हें देखा____"आप अच्छी तरह जानती हैं कि मेरी नज़र में भाभी की क्या अहमियत है। वो इस हवेली की शान हैं। उनके जैसी बहू और भाभी हमारे पास होना बड़े गौरव की बात है।"

"ये मैं जानती हूं।" मां ने कहा____"मैं तुझसे इसके अलावा जानना चाहती हूं। जैसे कि, क्या तू चाहता है कि तेरी भाभी हमेशा इस हवेली की शान बनी रहे? क्या तू चाहता है कि तेरी भाभी अपने जीवन में हमेशा खुश रहे?"

"मुझे समझ नहीं आ रहा कि आप ये कैसे सवाल कर रही हैं?" मैंने थोड़ा परेशान हो कर कहा____"आप अच्छी तरह जानती हैं कि ऐसा इस हवेली में हर कोई चाहता है।"

"मैं हर किसी की नहीं।" मां ने कहा____"बल्कि तेरी बात कर रही हूं। तू अपनी बता कि तू क्या चाहता है?"

"सबकी तरह मैं भी यही चाहता हूं कि मेरी भाभी हमेशा खुश रहें।" मैंने कहा____"उनके जीवन में कभी कोई दुख न आए। भैया के गुज़र जाने के बाद मेरी यही कोशिश थी कि मैं हर वक्त उनके चेहरे पर मुस्कान ला सकूं।"

"सिर्फ इतना ही?" मां ने अजीब भाव से मेरी तरफ देखा।

"और क्या मां?" मैंने कहा____"हम सबसे जितना हो सकता है उतना ही तो कर सकते हैं। काश! इससे ज़्यादा कुछ करना मेरे बस में होता तो मैं वो भी करता उनकी खुशी के लिए।"

"क्या तुझे लगता है कि तेरे बस में सिर्फ इतना ही था?" मां ने बड़े ध्यान से मेरी तरफ देखते हुए पूछा____"अगर मैं कहूं कि तू उसकी खुशी के लिए और भी बहुत कुछ कर सकता है तो क्या तू करेगा?"

"बिल्कुल करूंगा मां।" मैंने झट से कहा____"अगर मुझे पता चल जाए कि जिस चीज़ से भाभी खुश हो जाएंगी वो दुनिया के फला कोने में है तो यकीन मानिए मैं उस कोने में जा कर वो चीज़ ले आऊंगा और भाभी को दे कर उन्हें खुश करूंगा। अब इससे ज़्यादा क्या कहूं?"

"क्या तू उसकी खुशी के लिए कुछ भी कर सकता है?" मां ने जैसे मुझे परखा।

"हां, अगर मेरे बस में हुआ तो कुछ भी कर जाऊंगा।" मैंने पूरी दृढ़ता से कहा____"आज मैं जो कुछ भी हूं उसमें मेरी भाभी का बहुत बड़ा हाथ है मां। इस लिए अपनी भाभी को खुश करने के लिए कुछ भी कर सकता हूं लेकिन अब शायद ऐसा नहीं कर सकूंगा क्योंकि उनके माता पिता उनका फिर से कहीं ब्याह करने का फ़ैसला कर चुके हैं। अब वो ना आपकी बहू रहेंगी और ना ही मेरी भाभी। इस हवेली से हमेशा के लिए उनका नाता टूट जाएगा।"

"क्या तू चाहता है कि तेरी भाभी कहीं न जाए और इसी हवेली में बहू बन कर रहे?" मां ने पूछा।

"मैं अपने स्वार्थ के लिए उनका जीवन बर्बाद नहीं कर सकता मां।" मैंने सहसा गंभीर हो कर कहा____"उनके लिए यही बेहतर है कि उनका फिर से ब्याह हो जाए ताकि वो अपने पति के साथ जीवन में हमेशा खुश रह सकें।"

"अगर वो फिर से सुहागन बन कर इस हवेली में आ जाए तो क्या वो खुश नहीं रहेगी?" मां ने धड़कते दिल से कहते हुए मेरी तरफ देखा।

"य...ये क्या कह रही हैं आप?" मैं एकदम से चकरा सा गया____"ऐसा भला कैसे हो सकता है?"

"क्यों नहीं हो सकता?" मां ने जैसे तर्क़ दिया____"अगर तू उसे ब्याह करके इस हवेली में ले आएगा तो क्या वो फिर से खुश नहीं हो जाएगी?"

तीव्र झटका लगा मुझे। ऐसा लगा जैसे आसमान से मैं पूरे वेग से धरती पर आ गिरा था। हैरत से आंखें फाड़े मैं देखता रह गया मां को। उधर वो भी चहरे पर हल्के घबराहट के भाव लिए मेरी तरफ ही देखे जा रहीं थी।

"क...क्या हुआ?" फिर उन्होंने कहा____"क्या तू अपनी भाभी की खुशी के लिए उससे ब्याह नहीं कर सकता?"

"य...ये आप क्या बोल रही हैं मां?" मैं सकते जैसी हालत में था____"आप होश में तो हैं? आप ऐसा सोच भी कैसे सकती हैं?"

"वक्त और हालात इंसान को और भी बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देते हैं बेटा।" मां ने जब देखा कि मैं उनकी इस बात से भड़का नहीं हूं तो उन्होंने राहत की सांस लेते हुए कहा____"तुझे बताने की ज़रूरत नहीं है कि रागिनी हमारे लिए क्या मायने रखती है। तू भी जानता है और मानता भी है कि इस हवेली में उसके रहने से हम सब कैसा महसूस करते हैं? ये तो उस बेचारी की बदकिस्मती थी कि उसे इतनी कम उमर में विधवा हो जाना पड़ा लेकिन सोचने वाली बात है कि क्या हम उसे ऐसे ही सारी जिंदगी यहां रखेंगे और उसे दुख सहता देखेंगे? नहीं बेटा, ऐसा ना हम चाह सकते हैं और ना ही तू। यही सब बातें मैं और तेरे पिता जी अक्सर अकेले में सोचते थे। तब हमने फ़ैसला किया कि हम अपनी बहू को हमेशा खुश रखने के लिए उसका फिर से ब्याह करेंगे। हम ये भी चाहते थे कि वो हमेशा हमारी ही बहू बन कर इस हवेली में रहे और ऐसा तो तभी संभव होगा जब उसका ब्याह हम अपने ही बेटे से यानि तुझसे करें।"

"बड़ी अजीब बातें कर रही हैं आप।" मैंने चकित भाव से कहा____"आप सोच भी कैसे सकती हैं कि मैं अपनी भाभी से ब्याह करने का सोच भी सकता हूं? मैं उनकी बहुत इज्ज़त करता हूं और मेरे लिए वो किसी देवी की तरह पूज्यनीय हैं।"

"मैं जानती हूं बेटा।" मां ने सिर हिलाते हुए कहा____"और उसके प्रति तेरी भावनाओं को भी समझती हूं लेकिन तुझे भी समझना होगा कि ज़रूरत पड़ने पर सबकी भलाई के लिए हमें ऐसे भी काम करने पड़ते हैं जिसे करने के लिए पहली नज़र में हमारा दिल नहीं मानता।"

"लेकिन मां वो मेरी भाभी हैं।" मैंने पुरज़ोर भाव से कहा____"उनके बारे में ऐसा सोचना भी मेरे लिए गुनाह है।"

"देवर का भाभी से ब्याह होना ऐसी बात नहीं है बेटा जिसे समाज मान्यता नहीं देता।" मां ने जैसे मुझे समझाते हुए कहा____"दुनिया में ऐसा पहले भी हुआ है और आगे भी ज़रूरत पड़ने पर होता रहेगा। इस लिए तू इस बारे में व्यर्थ की बातें मत सोच। तू जानना चाहता था न कि मैंने तुझसे अभी और क्या छुपाया है तो वो यही है। असल में जब मैंने और तुम्हारे पिता जी ने रागिनी का फिर से ब्याह करने का सोच लिया और ये भी सोच लिया कि हम उसका ब्याह तुझसे ही करेंगे तो हमने इस बारे में सबसे पहले रागिनी के पिता जी से भी चर्चा करने का सोच लिया था। कुछ दिन पहले तेरे पिता जी चंदनपुर गए थे समधी जी से इस बारे में बात करने। जब उन्होंने रागिनी के पिता जी से इस बारे में चर्चा की तो वो भी इस रिश्ते के लिए खुशी खुशी मान गए। उन्हें तो इसी बात से खुशी हुई थी कि हम उनकी बेटी की भलाई के लिए इतना कुछ सोचते हैं।"

मैं अवाक सा देखता रह गया मां को। एकाएक ही मेरे मन मस्तिष्क में धमाके से होने लगे थे। अचानक ही ज़हन में वो बातें गूंजने लगीं जो चंदनपुर में कामिनी से हुईं थी और फिर भाभी से हुईं थी। भाभी का उदास और गंभीर चेहरा मेरी आंखों के सामने उजागर हो गया। उनकी बातें मेरे कानों में गूंजने लगीं।




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Jo unexpected se vo baat sune toh shocking reaction he hoga...
Time lagega situation ke hisab se sochne ke liye aur apne aap ko dalne ke liye.
 

Ajammy

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Super awesome update finally pura sach bhar agya aur vaibhav ko sb pta lg gya waise Ragini aur uski bhabhi ki bate jrur Ragini ki pareshani kuch had tk kaam krengi ab to bas wait he Ragini aur vaibhav ki mulakat ka kaise react krte he dono aur unke phle hug ka eagerly waiting for your next update brother luvd this one pls do cont asap take care
 

S M H R

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अध्याय - 142
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"क्या हुआ?" सुगंधा देवी ने कमरे में आने के बाद दादा ठाकुर की तरफ देखते हुए पूछा____"क्या सोचने में लगे हुए हैं?"दादा ठाकुर अपने कमरे में पलंग पर अधलेटे से थे और किसी सोच में डूबे हुए थे। सुगंधा देवी की बात पर उनका ध्यान भंग हुआ।"कुछ नहीं, बस ऐसे ही।" दादा ठाकुर ने जैसे बात को टालते हुए कहा____"आप बताएं कि बेटे से बात हुई आपकी? चंदनपुर में क्या हुआ इसके बारे में उसने कुछ बताया आपसे?""हां बात हुई उससे।" सुगंधा देवी ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"पहले तो बड़ा नाराज़ दिखाई दिया था और उसी नाराज़गी में हमसे पूछ भी रहा था कि हमने उससे उसकी भाभी के ब्याह के बारे में पहले क्यों नहीं बताया था?""अच्छा।" दादा ठाकुर के चेहरे पर थोड़े फिक्रमंदी के भाव उभर आए____"फिर आपने क्या कहा उससे?"सुगंधा देवी ने अपनी रेशमी साड़ी को अपने बदन से निकाल कर उसे अलमारी के पास दीवार में दिख रही लकड़ी की खूंटी पर टांग दिया। उसके बाद वो पलट कर पलंग के पास आईं। दादा ठाकुर अपने सवाल के जवाब के लिए उन्हीं की तरफ अपलक देखे जा रहे थे।"कहना क्या था।" फिर उन्होंने पलंग पर उनके बगल से लेटते हुए कहा____"उसको बताना पड़ा कि क्यों हमने उससे ये बात छुपाई थी।""आपने उससे पूछा नहीं कि चंदनपुर में उन लोगों से उसकी क्या बातें हुईं हैं?" दादा ठाकुर ने उत्सुक भाव से पूछा____"इतना तो हम जानते हैं कि सच का पता उसे वहां पर चल ही गया होगा किंतु अब हम ये जानना चाहते हैं कि सच जानने के बाद उसने वहां पर कोई हंगामा तो नहीं किया?""नहीं हंगामा नहीं किया उसने।" सुगंधा देवी ने कहा____"और कहीं न कहीं हमें उससे ये उम्मीद भी थी क्योंकि ये कोई ऐसी बात तो थी नहीं जिसके चलते उसे अपनी भाभी के ब्याह होने से कोई एतराज़ होता। हमने उसे अपनी भाभी की फ़िक्र करते और उसको उसके दुख से उबारने के लिए जाने कैसे कैसे प्रयास करते देखा था। ज़ाहिर है अगर वो अपनी भाभी को हमेशा खुश होते हुए ही देखना चाहता है तो वो ये भी समझता ही होगा कि एक औरत हमेशा किस तरीके से खुश रह सकती है? ऐसे में जब उसे अपनी भाभी के फिर से ब्याह होने की बात पता चलेगी तो उसे इससे एतराज़ नहीं होगा और जब एतराज़ ही नहीं होगा तो वो कोई हंगामा क्यों करेगा?""हम्म्म्म ये तो सही कहा आपने।" दादा ठाकुर ने सिर हिलाया____"ख़ैर तो उसने क्या बताया आपको? हम वो सब कुछ जानना चाहते हैं जो वहां पर उसने सुना और फिर जो कुछ उसने कहा।"सुगंधा देवी ने सारी बातें क्रम से बता दीं। सारी बातें सुनने के बाद दादा ठाकुर के चेहरे पर सोचो के भाव उभर आए। इधर सुगंधा देवी कुछ देर तक उन्हें देखती रहीं।"क्या लगता है आपको?" फिर उन्होंने उनकी तरफ ही देखते हुए पूछा____"इन सब बातों के बाद क्या नतीजा निकलेगा? हमारा मतलब है कि हमारी बहू ने वैभव से जो कुछ कहा क्या वही उसका फ़ैसला होगा? दूसरी बात उसको अभी पूरे सच का पता नहीं चला है।""रागिनी बहू का चरित्र बहुत ही उत्तम रहा है सुगंधा।" दादा ठाकुर ने कहा____"और इस बात से हमें उस पर हमेशा से गर्व भी रहा है। हम अच्छी तरह जानते हैं कि उसके जैसी उत्तम चरित्र वाली औरत इतना जल्दी इस बात को स्वीकार नहीं कर सकती। ज़ाहिर सी बात है कि जिसे अब तक वो अपना देवर और छोटा भाई ही मानती आई है उसको अचानक से अपने पति की नज़र से देखने लगना उसके लिए बेहद ही मुश्किल होगा। शायद इसी लिए उसने वैभव को सच नहीं बताया है।""हम भी ऐसा ही समझते हैं।" सुगंधा देवी ने गंभीरता से कहा____"और सच कहें तो यही सोच कर हमें चिंता भी होती है कि क्या रागिनी अपने देवर से ब्याह करने को राज़ी होगी?""हम मानते हैं कि ये इतना आसान नहीं है।" दादा ठाकुर ने कहा____"और इसके लिए ना हम कोई ज़ोर ज़बरदस्ती करना चाहते हैं और ना ही उसके माता पिता। हमने उसके माता पिता को साफ शब्दों में कह दिया था कि इस रिश्ते के लिए वो अपनी बेटी पर किसी भी तरह का दबाव नहीं डालेंगे। उसको सिर्फ यही बताएंगे कि हम सब ऐसा करने की इच्छा रखते हैं। उसकी तरफ से रिश्ते को मंजूरी मिलने के बाद ही हम ये ब्याह करेंगे।""बात तो ठीक है आपकी।" सुगंधा देवी ने कहा____"लेकिन रागिनी ने तो वैभव को अपना फ़ैसला सुना दिया है कि वो किसी से ब्याह नहीं करेगी बल्कि हमेशा वो उसकी भाभी ही बनी रहेगी।""उम्मीद पर ही दुनिया क़ायम है सुगंधा।" दादा ठाकुर ने गहरी सांस ली____"हम भी उम्मीद लगाए रहेंगे। हमें यकीन है कि एक दिन हमारी बहू इस रिश्ते को स्वीकार कर लेगी। इतना तो वो भी जानती है कि हम उसे हमेशा खुश ही देखना चाहते हैं। हमारे द्वारा ऐसे रिश्ते की बात जानने के बाद वो ये भी समझने की कोशिश करेगी कि हम ऐसा क्यों चाहते हैं? देर से ही सही लेकिन उसको समझ आ ही जाएगा कि वैभव से उसका ब्याह करवाने के पीछे हमारी मंशा सिर्फ ये नहीं है कि हम ज़बरदस्ती उसको किसी की पत्नी बनाने पर तुले हैं बल्कि ऐसा करने के पीछे एक सच्ची भावना ये है कि हम उसके जैसी संस्कारवान बहू को खोना भी नहीं चाहते हैं। ख़ैर मौजूदा समय में भले ही उसके अंदर द्वंद सा छिड़ा होगा लेकिन हमें यकीन है कि उसको एक दिन हमारे अंदर की सच्ची भावनाओं का एहसास हो जाएगा और वो समझ जाएगी कि हम उसके बारे में ऐसा कर के ग़लत नहीं कर रहे हैं।""हम तो ऊपर वाले से यही प्रार्थना करते हैं कि वो जल्द से जल्द इस बात को समझ जाए।" सुगंधा देवी ने कहा____"उसके बाद हम उसको फिर से सुहागन बना कर इस हवेली में ले आएं। आपको पता है हम एक एक दिन गिन रहे हैं कि कितने दिन हो गए हैं उसे गए हुए। इस हवेली में वो नहीं है तो बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता है हमें।""फ़िक्र मत कीजिए।" दादा ठाकुर ने कहा____"हमारी बहू इसी हवेली में आएगी और नई नवेली दुल्हन बन के आएगी। उसके बाद फिर से इस हवेली में रौनक आ जाएगी। आपको पता है हमने ख़ास तौर पर अपनी समधन जी से गुज़ारिश की थी कि वो अपनी बेटी को समझाएं और इस रिश्ते को स्वीकार करने के लिए उसे मनाएं।""क्या आपको लगता है कि सुलोचना जी के समझाने का असर होगा रागिनी पर?" सुगंधा देवी ने आशंकित भाव से पूछा।"फ़ौरन तो नहीं होगा और ये आप भी जानती हैं।" दादा ठाकुर ने कहा____"लेकिन हमें यकीन है कि उनके समझाने का असर धीरे धीरे ज़रूर होने लगेगा। समधन जी भी तो अपनी बेटी का भला ही चाहती हैं। उन्हें भी एहसास है कि उनकी बेटी सबसे ज़्यादा हमारे ही यहां खुश रहेगी और हमेशा वो एक रानी की तरह रहेगी।""ईश्वर करे ऐसा ही हो।" सुगंधा देवी ने कहा____"रागिनी बहू इस रिश्ते को स्वीकार कर ले तो फिर हम भी अपने बेटे को वास्तविकता बता दें और फिर उसे इसके लिए राज़ी करें। वैसे क्या आपको लगता है कि हमारा बेटा अपनी भाभी से ब्याह करने को राज़ी होगा?""सच कहें तो हमें सबसे ज़्यादा चिंता रागिनी बहू की तरफ से ही है।" दादा ठाकुर ने कहा____"वैभव के मामले में हमें इतनी फ़िक्र नहीं है।""ऐसा आप कैसे कह सकते हैं?" सुगंधा देवी के माथे पर शिकन उभर आई____"कहीं आप ये तो नहीं सोच रहे हैं कि हमारे बेटे के मन में अपनी भाभी के प्रति पहले से ही ऐसी वैसी भावना रही होगी?""नहीं सुगंधा।" दादा ठाकुर ने मजबूती से इंकार में सिर हिलाया____"हम मानते हैं कि वैभव का चरित्र बेहद ही निम्न स्तर का रहा है लेकिन हमें यकीन है कि वो इतने भी गिरे हुए चरित्र का नहीं हो सकता था कि वो अपनी ही भाभी के बारे में कभी ग़लत सोच ले।""तो फिर ऐसा आपने किस आधार पर कहा था?" सुगंधा देवी ने पूछा।"उसका अपनी भाभी के प्रति इतनी फ़िक्र करने के आधार पर।" दादा ठाकुर ने कहा____"और सबसे ज़्यादा उसके मर्द होने के आधार पर। आप भी जानती हैं कि मर्द और औरत में बहुत फ़र्क होता है। औरत, कभी कोई बात खुले दिल से इतना जल्दी स्वीकार नहीं करती है जबकि मर्द कर लेता है। औरत शर्म और संकोच की वजह से पहल नहीं करती जबकि मर्द हमेशा पहले पहल करता है। रागिनी जैसी औरत से हम ऐसी ही उम्मीद करते हैं जबकि वैभव से नहीं। वो हमेशा ही इस मामले में बहुत आगे रहा है। हालाकि अपनी भाभी के प्रति ऐसा सोचना भले ही उसके लिए भी मुश्किल हो लेकिन अंततः वो फ़ौरन ही इस बात को समझ लेगा कि अगर सब ऐसा ही चाहते हैं और अगर ऐसा करने से उसकी भाभी का जीवन संवर सकता है तो ठीक है। हमें यकीन है कि वैभव जब रागिनी बहू को भाभी की जगह एक पत्नी की नज़र से देखेगा तो उसे इस बात को स्वीकार कर लेने में रागिनी बहू की तरह ज़्यादा वक्त नहीं लगेगा।""पता नहीं आप क्या क्या अंदाज़े लगाए जा रहे हैं।" सुगंधा देगी ने कहा____"क्या आप ये भूल गए कि अभी अभी वो उस लड़की के सदमे से उबरा है जिसे वो बहुत ज़्यादा चाहता था। क्या ये सचमुच इतना आसान नज़र आता है आपको कि वो एकदम से अपनी भाभी के साथ ब्याह करने को तैयार हो जाएगा?""हम मानते हैं कि वो उस लड़की की वजह से गहरे सदमे में चला गया था।" दादा ठाकुर ने कहा____"लेकिन रूपा ने अपने प्रेम और स्नेह के द्वारा उसको उस सदमे से निकाल लिया है। दूसरी बात, आप ही से हमें ये भी पता चला था कि हमारे बेटे को सदमे से बाहर निकालने वाली सिर्फ रूपा ही बस नहीं थी बल्कि हमारी रागिनी बहू भी थी। उसको अच्छा इंसान बनने के लिए उस पर ज़ोर डालने वाली हमारी बहू ही थी।""आप कहना क्या चाहते हैं?" सुगंधा देवी एकाएक बीच में ही बोल पड़ीं।"यही कि इंसान के जीवन में इंसानी भावनाओं का बहुत महत्व होता है।" दादा ठाकुर ने कहा____"ये भावनाएं ही होती हैं जो इंसान को क्या से क्या बना देती हैं। हमारा बेटा आज उन भावनाओं की वजह से ही ऐसा बना हुआ है।""बहुत अजीब बातें कर रहे हैं आप।" सुगंधा देवी ने गहरी सांस ली।"हां हो सकता है।" दादा ठाकुर ने कहा____"वैसे हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि कुल गुरु की भविष्यवाणी क्या थी? याद कीजिए, उनके अनुसार हमारे बेटे की दो पत्नियां होंगी। उसकी पहली पत्नी तो यकीनन रूपा ही थी। दूसरी के बारे में हमें नहीं पता था किंतु अनुराधा के रूप में हमें उसका भी पता चला। ये अलग बात है कि उस बेचारी के साथ ऐसा भयानक हादसा हो गया। उसके गुज़र जाने से वैभव की दूसरी पत्नी का स्थान रिक्त नज़र आया लेकिन तभी हमें अपनी बहू रागिनी का ख़याल आ गया। स्पष्ट है कि वो रागिनी ही है जो वैभव की दूसरी पत्नी बनेगी। अब अगर हम कुल गुरु की भविष्यवाणी को सच मान कर चलें तो हमें इस बात का भी यकीन कर ही लेना चाहिए रागिनी बहू इस रिश्ते को यकीनन स्वीकार करेगी। थोड़ी देर ज़रूर लग सकती है लेकिन अंततः वो वैभव की पत्नी ज़रूर बनेगी।"सुगंधा देवी को भी एहसास हुआ कि कुल गुरु की भविष्यवाणी के अनुसार वास्तव में ऐसा हो सकता है। इस बात का एहसास होते ही उनके चेहरे पर खुशी की चमक उभर आई। बहरहाल थोड़ी देर और इसी संबंध में बातें हुईं उसके बाद दोनों ही सोने का प्रयास करने लगे।✮✮✮✮सुबह हुई।
एक नया दिन शुरू हुआ।
चाय नाश्ता कर के मैं सीधा उस जगह पर आ गया जहां पर अस्पताल और विद्यालय का निर्माण कार्य चल रहा था। रूपचंद्र पहले से ही वहां मौजूद था। मुझे देखते ही वो मेरे पास आया।"कल कहां चले गए थे तुम?" उसने पूछा____"सब ठीक तो है ना?""हां, वो असल में कल मैं भाभी को लेने चंदनपुर चला गया था।" मैंने कहा____"इसी लिए यहां नहीं आ पाया था।""ओह! तो क्या तुम रागिनी दीदी को ले आए वहां से?" रूपचंद्र ने उत्सुक भाव से पूछ्ते हुए कहा____"काफी समय हो गया उन्हें देखे हुए। आज दोपहर को तुम्हारे साथ हवेली चलूंगा दीदी से मिलने के लिए।""ज़रूर चलना।" मैंने थोड़ा उदास भाव से कहा____"लेकिन हवेली में तुम्हें भाभी नहीं मिलेंगी।""अरे! ऐसा क्यों?" रूपचंद्र चौंका____"कुछ हुआ है क्या? मेरा मतलब क्या वो मुझसे नाराज़ हैं?""नहीं ऐसी बात नहीं है।" मैंने कहा____"बात ये है कि मैं उन्हें लेने ज़रूर गया था लेकिन वो मेरे साथ नहीं आईं। उनके घर वालों ने भेजने से मना कर दिया था।""ये क्या कह रहे हो तुम?" रूपचंद्र ने हैरानी ज़ाहिर की____"उनके घर वालों ने उन्हें भेजने से भला क्यों मना कर दिया? जहां तक मेरा अनुमान है उन्हें यहां से गए लगभग दो महीना हो चुका है। अब तो उन्हें भेज ही देना चाहिए था उन लोगों को।"मैंने रूपचंद्र की इस बात पर आगे कुछ नहीं कहा। असल में कुछ समझ ही नहीं आया कि उससे अब क्या कहूं? मेरे मन में भाभी के ब्याह वाली बातें गूंजने लगीं थी और इस वजह से मेरा मन थोड़ा मायूस और उदास सा हो गया था। शायद रूपचंद्र को भी इसका आभास हो गया था।"क्या हुआ?" फिर उसने मेरी तरफ गौर से देखते हुए पूछा____"तुम ठीक तो हो ना? तुम्हें देख के ऐसा लग रहा है जैसे किसी बात से मायूस या उदास हो।""ऐसी कोई बात नहीं है।" मैंने बात को टालने की गरज से कहा____"मैं ठीक हूं।""नहीं तुम ठीक नहीं लग रहे।" रूपचंद्र थोड़ा गंभीर हो कर बोला____"कोई बात ज़रूर है जिसके चलते तुम ऐसे नज़र आ रहे हो। तुम मुझे बता सकते हो यार। अब भला मुझसे किस बात का पर्दा? मेरी बहन से भले ही तुम्हारा ब्याह होने में अभी समय है लेकिन मैं अभी से तुम्हें अपना बहनोई मानता हूं। तुम्हारा साला हूं मैं, इस लिए तुम मुझसे बेझिझक हो कर अपने अंदर की बात बता सकते हो।"रूपचंद्र की बात सुन कर मैं उसकी तरफ देखने लगा। उसकी आंखों में मुझे सच्चाई नज़र आई। वो बड़े ही अपनेपन से देखे जा रहा था मुझे। इसमें कोई शक नहीं कि वो मुझे दिल से अपना बहनोई मान चुका था लेकिन जाने क्यों मैं अभी भी इस रिश्ते से झिझक रहा था।"समझ गया।" जब मैं कुछ न बोला तो रूपचंद्र ने सहसा निराश भाव से कहा____"मैं समझ गया वैभव कि तुम अभी भी मुझ पर और मेरे घर वालों पर पूरी तरह भरोसा नहीं करते हो। तभी तो तुम मुझसे अपने अंदर की बात बताने के लिए झिझक रहे हो। ख़ैर कोई बात नहीं, मैं समझ सकता हूं। इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है। असल में हम लोग वाकई में ऐसे नहीं हैं जिन पर इतना जल्दी तुम भरोसा करने लगो।""ऐसी बात नहीं है रूपचंद्र।" मैंने एकाएक उसकी आंखें नम होते देखा तो उसके कंधे पर हाथ रख कर बोल पड़ा____"मुझे तुम पर और तुम्हारे घर वालों पर पूर्ण भरोसा है। अगर ऐसा न होता तो आज हमारे बीच ऐसे दोस्ताना संबंध न होते। ख़ैर तुम जानना चाहते हो ना कि मैं किस वजह से मायूस और उदास सा हूं तो सुनो।"कहने के साथ ही मैंने एक गहरी सांस ली और फिर बोला____"बात दरअसल ये है कि भाभी के माता पिता उनका फिर से ब्याह कर देना चाहते हैं। ज़ाहिर है वो नहीं चाहते कि उनकी बेटी सारी ज़िंदगी विधवा बन कर बिताए और दुख दर्द सहे। बात भी सही है, मैं खुद भी यही चाहता हूं कि मेरी भाभी अपने जीवन में हमेशा खुश रहें। इसके पहले मुझे आभास नहीं हुआ था लेकिन अब समझ चुका हूं कि एक औरत अपने जीवन में तभी खुश रह सकती है जब उसका भी कोई अपना हो। अपने के रूप में सबसे बढ़ कर उसका पति ही होता है। हां रूपचंद्र, एक औरत का पति चाहे जैसा भी हो, अगर वो इस संसार में जीवित रहता है तो औरत पूर्ण होती है और यही पूर्णता उसके खुश और संतुष्ट होने की वजह बनती है। मेरी भाभी का पति तो ईश्वर को प्यारा हो चुका है और वो विधवा हो चुकी हैं। मैं या मेरे घर वाले उन्हें खुश करने के लिए भले ही चाहे लाख जतन करें लेकिन उन्हें सच्ची खुशी नहीं दे सकते। यही बात मुझे अब समझ आई है। चंदनपुर में जब मुझे पता चला कि उनके माता पिता उनका फिर से ब्याह कर देना चाहते हैं तो पहले तो मुझे धक्का सा लगा किंतु भाभी से बात करने के बाद समझ आया कि उनके माता पिता उनके लिए जो करना चाहते हैं वो वास्तव में उचित है।""तो क्या दीदी फिर से ब्याह करने को तैयार हैं?" रूपचंद्र ने पूछा____"क्या तुम्हारी उनसे इस संबंध में बातें हुईं थी?""बात तो हुई थी।" मैंने कहा____"लेकिन वो यही कह रही थीं कि वो किसी से शादी नहीं करेंगी। वो दादा ठाकुर की बहू थीं, हैं और हमेशा रहेंगी।""उनकी इस बात का क्या मतलब हुआ?" रूपचंद्र जैसे उलझ सा गया____"क्या ये कि वो जीवन भर विधवा ही बनी रहेंगी और हवेली में तुम्हारे माता पिता की बहू बन कर रहेंगी?""ऐसा वो मेरी वजह से कह रहीं थी।" मैंने गहरी सांस ली____"असल में मैं उन्हें देख कर और ये सोच कर दुखी हो गया था कि अगर सच में उनके माता पिता उनका ब्याह कहीं कर देंगे तो ब्याह के बाद वो मेरी भाभी नहीं रह जाएंगी। अपने भैया की तरह मैं हमेशा के लिए अपनी भाभी को भी खो दूंगा। मेरी इसी बात से शायद उन्होंने ये कहा था कि वो किसी से ब्याह नहीं करेंगी। हालाकि मैंने उनसे कह दिया है कि वो मेरे खातिर अपना जीवन बर्बाद न करें। मैं ख़ुद भी नहीं चाहता कि मेरी भाभी का जीवन मेरी वजह से वीरान और बेरंग बना रहे।""बिल्कुल सही कहा तुमने।" रूपचंद्र ने कहा____"ख़ैर उसके बाद क्या हुआ? मेरा मतलब है कि क्या तुम्हें लगता है कि दीदी तुम्हारी बात मान कर ब्याह करने को राज़ी हो जाएंगी?""भाभी को खोने का दुख तो रहेगा रूपचंद्र।" मैंने संजीदा भाव से कहा____"लेकिन मैं दिल से चाहता हूं कि भाभी अपने माता पिता की बात मान कर फिर से ब्याह करने को राज़ी हो जाएं। यार मैं अपनी भाभी को हमेशा खुश देखना चाहता हूं। विधवा के लिबास में जब भी उन्हें देखता था तो बहुत पीड़ा होती थी। ये सोच कर और भी ज़्यादा तकलीफ़ होती थी कि उन्हें इतनी कम उमर में विधवा हो जाना पड़ा और अब जीवन भर उन्हें इस सबके लिए दुखी ही रहना पड़ेगा।"मैं इतना कह कर चुप हुआ तो इस बार रूपचंद्र कुछ न बोला। वो ख़ामोशी से मुझे ही देखे जा रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वो किसी सोच में डूब गया था।"अच्छा एक बात बताओ।" फिर उसने सोचो से बाहर आ कर मुझसे पूछा____"क्या तुमने दीदी के माता पिता से पूछा नहीं कि वो उनका ब्याह कहां और किससे करना चाहते हैं?""नहीं।" मैंने इंकार में सिर हिलाया____"असल में इतना कुछ सुनने के बाद मुझे उनसे ये पूछने का ख़्याल ही नहीं आया। वैसे भी ये पूछने का अब मतलब भी क्या था? ये तो उनकी मर्ज़ी की बात है कि वो अपनी बेटी का ब्याह कहां और किससे करना चाहते हैं?""यानि तुम्हें इस बारे में कुछ पता नहीं है?" रूपचंद्र ने अपलक मेरी तरफ देखते हुए कहा____"वैसे दादा ठाकुर को पता ही होगा इस बारे में। क्या तुमने पूछा नहीं उनसे?""चंदनपुर से आने के बाद मां से पूछा था।" मैंने कहा____"असल में मैं तब तक समझ चुका था कि इस बारे में मेरे माता पिता को पहले से ही पता था।""क..क्या मतलब??" रूपचंद्र चौंका____"भला उन्हें कैसे पता था और तुम ये बात कैसे समझ गए थे?""असल में जब भी मैं मां से भाभी को वापस लाने की बात करता था तो वो मुझे चंदनपुर जाने से मना कर देती थीं।" मैंने बताया____"पूछने पर यही कहती थीं कि बड़े भैया की मौत के बाद वो पहली बार ही अपने माता पिता के घर गईं है इस लिए उन्हें वहां पर कुछ समय के लिए रहने दूं। ख़ैर कल जब मैं चंदनपुर गया और वहां मुझे इस बारे में पता चला तो ये समझ गया कि क्यों हर बार मां मुझे चंदनपुर जाने से मना कर देती थीं। यानि भाभी के ब्याह वाली बात उन्हें पहले से ही पता थी और मुझसे इस लिए छुपाया कि कहीं मैं इस बात से गुस्सा ना हो जाऊं या फिर चंदनपुर में हंगामा करने ना पहुंच जाऊं।""हम्म्म्म।" रूपचंद्र ने कुछ सोचने के बाद कहा____"तो जब तुम ये समझ गए थे कि ये बात तुम्हारी मां को पहले से ही पता थी तो क्या फिर तुमने उनसे पूछा नहीं कि रागिनी दीदी के माता पिता उनका ब्याह कहां और किससे करने वाले हैं?""वैसे तो मैंने उनसे ये बात पूछी नहीं।" मैंने उलझनपूर्ण भाव से कहा____"लेकिन समझ सकता हूं कि मां को ये बात भला क्यों पता होगी? सीधी सी बात है कि भाभी के माता पिता जहां चाहेंगे वहां अपनी बेटी का ब्याह करेंगे। इस बारे में वो हमें बताना क्यों ज़रूरी समझेंगे?""क्यों नहीं समझेंगे?" रूपचंद्र ने जैसे तर्क़ दिया____"रागिनी दीदी अभी भी हवेली की बहू हैं। अब अगर उनकी बहू का फिर से कहीं ब्याह होगा तो उनकी मर्ज़ी के बिना तो होगा नहीं। भले ही वो विधवा हैं लेकिन हैं तो अब भी वो उनकी ही बहू।""तुम कहना क्या चाहते हो?" मैं जैसे उलझ सा गया।"यही कि दादा ठाकुर को अच्छी तरह पता है कि उनकी बहू का ब्याह कहां और किससे होने वाला है।" रूपचंद्र ने पूरे आत्मविश्वास से कहा____"और ये बात तुम्हारी मां को भी पता है और तुम्हें इस लिए नहीं बताया क्योंकि तुमने पूछा ही नहीं।""बड़ी अजीब बातें कर रहे हो तुम?" मैं रूपचंद्र की बात से चकित सा हो गया था। मुझे उससे ऐसी बातों की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी। मुझे बड़ा अजीब भी लगा, इस लिए पूछा____"तुम्हारी इन बातों से मुझे ऐसा क्यों लग रहा है जैसे तुम भी इस बारे में जानते हो, है ना?""मैं तुमसे झूठ नहीं बोलूंगा वैभव।" रूपचंद्र ने खुद को सम्हालते हुए कहा____"तुमने बिल्कुल सही कहा, मुझे इस बारे में सचमुच पता है लेकिन....।""लेकिन???""बताऊंगा नहीं।" उसने अजीब भाव से कहा____"बल्कि यही कहूंगा कि या तो तुम अपने माता पिता से पूछो या फिर खुद ही सच का पता लगाओ।""भला ये क्या बात हुई?" मैं हैरान होने के साथ साथ बुरी तरह चकरा भी गया____"अगर तुम्हें पता है तो तुम खुद क्यों नहीं बता सकते मुझे?""मुझे ग़लत मत समझना वैभव।" रूपचंद्र ने कहा____"लेकिन इस बारे में मैं तुम्हें कुछ नहीं बता सकता।"मैं मूर्खों की तरह देखता रह गया उसे। रूपचंद्र के चेहरे पर खेद पूर्ण भाव थे। कुछ देर वो ख़ामोशी से मुझे देखता रहा उसके बाद मेरे कंधे पर हल्के से हाथ की थपकी देने के बाद चला गया। मुझे समझ ना आया कि अब ये क्या चक्कर है?

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अध्याय - 143
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"मुझे ग़लत मत समझना वैभव।" रूपचंद्र ने कहा____"लेकिन इस बारे में मैं तुम्हें कुछ नहीं बता सकता।"

मैं मूर्खों की तरह देखता रह गया उसे। रूपचंद्र के चेहरे पर खेद पूर्ण भाव थे। कुछ देर वो ख़ामोशी से मुझे देखता रहा उसके बाद मेरे कंधे पर हल्के से हाथ की थपकी देने के बाद चला गया। मुझे समझ ना आया कि अब ये क्या चक्कर है?



अब आगे....


रसोई में रागिनी अपनी भाभी वंदना का खाना बनाने में हाथ बंटा रही थी। यूं तो घर में उसे कोई भी काम करने के लिए नहीं कहता था लेकिन उसे खुद ही अच्छा नहीं लगता था कि वो बैठ के सिर्फ खाना खाए। पहले भी उसे काम करना बेहद पसंद था और आज भी वो खाली बैठना पसंद नहीं करती थी।

कुछ समय पहले तक सब ठीक ही था लेकिन फिर एक दिन उसके ससुर यानि दादा ठाकुर यहां आए। उन्होंने उसके पिता से उसके ब्याह के संबंध में जो भी बातें की उसके बारे में जान कर उसे बड़ा झटका लगा था। पहले तो ये बात उसे अपनी भाभी वंदना ने ही बताया और फिर रात में उसकी मां ने बताया। रागिनी के लिए वो सारी बातें ऐसी थीं कि उसके बाद से जैसे उसका हंसना मुस्कुराना ही बंद हो गया था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसके ससुर उसका फिर से ब्याह करने की चर्चा करने उसके पिता के पास आए थे। बात अगर सिर्फ इतनी ही होती तो कदाचित उसे इतना झटका नहीं लगता किंतु झटके वाली बात ये थी कि उसके ससुर उसका ब्याह उसके ही देवर से करने की बात बोले थे।

रागिनी के लिए ये बात किसी झटके से कम नहीं थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसके ससुर ऐसा कैसे चाह सकते थे और उसके खुद के पिता भी उनकी इस बात को मंजूरी कैसे दे सकते थे? अब क्योंकि वो खुद किसी से इस बारे में कुछ कह नहीं सकती थी इस लिए अंदर ही अंदर वो इस बात से परेशान हो गई थी। दो तीन दिन तक यही आलम रहा लेकिन फिर उसकी मां के समझाने पर वो थोड़ा सामान्य होने लगी थी। हालाकि अंदर से वो अभी भी बेचैन थी।

वैभव को उसने देवर के साथ साथ हमेशा ही अपना छोटा भाई समझा था। वो अच्छी तरह जानती थी कि वैभव कैसे चरित्र का लड़का है इसके बाद भी वो ये समझती थी कि वैभव ने कभी उसे ग़लत नज़र से नहीं देखा था। हालाकि ये सिर्फ उसका सोचना ही था क्योंकि कोई भी व्यक्ति किसी के अंदर की बात पूर्ण रूप से नहीं जान रहा होता है, ये तो बस उसका विश्वास था।

"अब इतना भी मत सोचो रागिनी।" वंदना ने उसे ख़ामोशी से काम करते देखा तो बोल पड़ी____"तुम भी अच्छी तरह समझती हो कि तुम्हारे ससुर जी और तुम्हारे पिता जी तुम्हारी भलाई के लिए ही ऐसा चाहते हैं। सच कहूं तो इस रिश्ते के लिए किसी को भी कोई आपत्ति नहीं है। तुम्हें पता है, तुम्हारे भैया से हर रोज़ मेरी इस बारे में बात होती है। उनका भी यही कहना है कि तुम्हारा वैभव के साथ ब्याह कर देने का फ़ैसला बिल्कुल भी ग़लत नहीं है। देवर से भाभी का ब्याह हो जाना कोई ग़लत नहीं है। ऐसा तो हमेशा से होता आया है।"

"मैं दुबारा ब्याह करने से इंकार नहीं कर रही भाभी।" रागिनी ने गंभीर भाव से कहा____"मैं सिर्फ ये कह रही हूं कि वैभव से ही क्यों? जिसे अब तक मैं अपने देवर के साथ साथ अपना छोटा भाई समझती आई हूं उसे एकदम से पति की नज़र से कैसे देखने लगूं? आप लोगों ने तो कह दिया लेकिन आप लोग ये नहीं समझ रहे हैं कि इस बारे में मैं क्या महसूस करती हूं।"

"ऐसा नहीं है रागिनी।" वंदना ने कहा____"हम सबको एहसास है कि इस रिश्ते के बारे में तुम इस समय कैसा महसूस करती होगी। तुम्हारी जगह मैं होती तो मेरा भी यही कहना होता लेकिन जीवन में हमें इसके अलावा भी कई सारी बातें सोचनी पड़ती हैं। तुम्हारा कहना है कि वैभव से ही क्यों? यानि तुम्हें वैभव से ब्याह करने में आपत्ति है, जबकि नहीं होनी चाहिए। ऐसा इस लिए क्योंकि तुम उसके बारे में पहले से ही सब कुछ जानती हो। तुम जानती हो कि वो तुम्हारी कितनी इज्ज़त करता है और कितनी फ़िक्र करता है। तुम्हीं ने बताया था कि वो तुम्हारे होठों पर मुस्कान लाने के लिए क्या क्या करता रहता है। सोचने वाली बात है रागिनी कि जो व्यक्ति तुम्हारी खुशी के लिए इतना कुछ करता हो और तुम्हें इतना चाहता हो उससे ब्याह करने से इंकार क्यों? किसी दूसरे व्यक्ति से ब्याह करने का सोचती हो तो बताओ क्या वो व्यक्ति वैभव की तरह तुम्हें मान सम्मान देगा? क्या वो वैभव की तरह तुम्हें चाहेगा और क्या उसके घर वाले तुम्हें अपने घर की शान बना लेंगे?"

रागिनी कुछ बोल ना सकी किंतु चेहरे से स्पष्ट नज़र आ रहा था कि उसके मन में बहुत कुछ चल रहा था। वंदना कुछ देर तक उसे देखती रही।

"मैं जानती हूं कि तुमने अपने जीवन में कभी किसी लड़के का ख़याल भी अपने मन में नहीं लाया था।" फिर उसने रागिनी के दोनों कन्धों को पकड़ कर बड़े स्नेह से कहा____"तुम्हारे जीवन में जो आया वो सिर्फ तुम्हारा पति ही था। यही वजह है कि तुम किसी और के बारे में ऐसा सोचना ही नहीं चाहती, ख़ास कर वैभव के बारे में। तुम भी जानती हो कि शादी से पहले लड़का लड़की एक दूसरे के लिए अजनबी ही होते हैं। दोनों के मन में एक दूसरे के प्रति कई तरह की आशंकाएं रहती हैं। ख़ास कर लड़की ये सोच कर परेशान हो जाती है कि जाने कैसा होगा उसका होने वाला पति और फिर आगे जाने क्या होगा? लेकिन जब दोनों की शादी हो जाती है और दोनों साथ रहने लगते हैं तो मन की सारी आशंकाएं अपने आप ही दूर होती चली जाती हैं। एक वक्त ऐसा आता है जब दोनों को एक दूसरे से बेहद लगाव हो जाता है और फिर दोनों को ये भी लगने लगता है जैसे वो दोनों एक दूसरे के लिए ही बने थे। तुम्हारे लिए तो सबसे अच्छी बात यही है कि तुम अपने होने वाले पति के बारे में पहले से ही सब कुछ जानती हो। सबसे बड़ी बात ये जानती हो कि वो तुम्हें कितना चाहता है और तुम्हारी कितनी फ़िक्र करता है। एक औरत को इससे ज़्यादा और क्या चाहिए होता है? भूल जाओ कि तुम वैभव की भाभी हो या वैभव तुम्हारा देवर है। मन में सिर्फ ये रखो कि वो एक ऐसा लड़का है जिससे तुम्हारा ब्याह होना है।"

"यही तो नहीं कर पा रही भाभी।" रागिनी ने जैसे आहत हो कर कहा____"उसके बारे में एक पल में सब कुछ भूल जाना आसान नहीं है। मेरा तो ये सोच कर हृदय कांप जाता है कि जब उसे सच का पता चलेगा तो क्या सोचेगा वो मेरे बारे में? अगर उसने एक पल के लिए भी मेरे बारे में ग़लत सोच लिया तो कैसे नज़रें मिला पाऊंगी उससे?"

"ऐसा सिर्फ तुम सोचती हो रागिनी।" वंदना ने कहा____"ऐसा भी तो हो सकता है कि वो तुम्हारे बारे में ऐसा कुछ सोचे ही नहीं बल्कि ये सोच ले कि वो कितना किस्मत वाला है जो उसके जीवन में तुम जैसी लड़की पत्नी के रूप में मिलने वाली है। आख़िर तुम्हारी अच्छाईयां और तुम्हारी खूबियों के बारे में तो उसे पता ही है। मुझे पूरा यकीन है कि जब उसे इस सच का पता चलेगा तो वो सपने में भी तुम्हारे बारे में ग़लत नहीं सोचेगा। बल्कि यही सोचेगा कि अब वो पूरे हक़ से और पूरी आज़ादी के साथ तुम्हें खुश रखने का प्रयास कर सकेगा। हां रागिनी, जितना कुछ तुमने उसके बारे में मुझे बताया है उससे मैं पूरे यकीन के साथ कह सकती हूं कि वैभव इस रिश्ते को ख़ुशी से स्वीकार करेगा और ब्याह के बाद तुम्हें बहुत खुश रखेगा।"

रागिनी के समूचे बदन में झुरझूरी सी दौड़ गई। उसे बड़ा अजीब लग रहा था। चेहरे पर अभी भी पहले जैसी गंभीरता और उदासी छाई हुई थी।

"एक बार अपने सास ससुर के बारे में भी सोचो रागिनी।" वंदना ने कुछ सोचते हुए कहा____"तुम्हीं बताया करती थी ना कि वो दोनों तुम्हें बहू नहीं बल्कि अपनी बेटी मानते हैं और तुम्हें अपनी हवेली की शान समझते हैं। इसी से ज़ाहिर होता है कि वो तुम्हें कितना चाहते हैं। वैभव से तुम्हारा ब्याह करवा देने के पीछे उनकी यही भावना है कि तुम हमेशा उनकी बेटी बन कर उनकी हवेली की शान ही बनी रहो और साथ ही फिर से सुहागन बनने के बाद एक खुशहाल जीवन जियो। मानती हूं कि इतनी कम उमर में तुम्हें विधवा बना कर ऊपर वाले ने तुम्हारे साथ अच्छा नहीं किया है लेकिन मैं ये भी मानती हूं कि तुम बहुत भाग्यशाली हो जो तुम्हें इतने अच्छे सास ससुर मिले हैं जो सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे हितों के बारे में सोचते हैं। वरना मैंने ऐसे भी लोग देखे और सुने हैं जो अपनी बहू के विधवा हो जाने पर उसे नौकरानी बना कर सारा जीवन उसे दुख देते रहते हैं। शायद यही सब पिता जी ने और तुम्हारे भैया ने भी सोचा होगा। माना कि तुम्हारे सास ससुर ऐसे नहीं हैं लेकिन कोई भी माता पिता ये नहीं चाहते कि उनकी बेटी विधवा के रूप में जीवन भर कष्ट सहे। तुम्हारा फिर से ब्याह करने की बात तुम्हारे अपने सास ससुर ने की है। ज़ाहिर है वो भी ऐसा नहीं चाहते और फिर जब उन्होंने यहां आ कर पिता जी से इस रिश्ते की बात कही तो पिता जी भी झट से मान गए थे। इस डर से नहीं कि तुम्हारा क्या होगा बल्कि इस खुशी में कि अपनी बेटी का जिस तरह से भला वो खुद चाहते थे वैसा उनकी बेटी के सास ससुर खुद ही चाहते हैं। तुम्हीं सोचो कि आज के युग में ऐसे महान सास ससुर कहां मिलते हैं जो अपनी बहू के बारे में इतना कुछ सोचें?"

"हां ये तो आप सही कह रही हैं।" रागिनी ने सिर हिलाते हुए धीमें से कहा____"इस मामले में मेरे सास ससुर बहुत अच्छे हैं। उन्होंने कभी भूल से भी किसी तरह का मुझे कोई कष्ट नहीं दिया। इतना कुछ हो जाने के बाद भी उन्होंने मुझे किसी बात का ताना नहीं मारा बल्कि मेरे दुख से दुखी हो कर हमेशा मुझे अपने सीने से लगाए रखा था।"

"इसी लिए तो कहती हूं रागिनी कि तुम बहुत भाग्यशाली हो।" वंदना ने कहा____"पूर्व जन्म में तुमने ज़रूर बहुत अच्छे कर्म किए थे जिसके चलते इस जन्म में तुम्हें इतने अच्छे सास ससुर मिले हैं। पति में भी कोई ख़राबी नहीं थी, वो तो उन बेचारे की किस्मत ही ख़राब थी जिसके चलते ऊपर वाले ने उन्हें अपने पास बुला लिया। तुम्हारे देवर के बारे में तुमसे बेहतर कौन जान सकता है? सच तो ये है कि तुम्हारे ससुराल में हर कोई बहुत अच्छा है। इस लिए मैं तो यही कहूंगी कि तुम अब कुछ भी मत सोचो, ईश्वर ने तुम्हारी खुशियां छीनी थी तो उसने फिर से तुम्हें खुशियां देने के लिए इस तरह का रिश्ता भेज दिया है। इसे ख़ुशी ख़ुशी क़बूल करो और वैभव के साथ जीवन में आगे बढ़ जाओ।"

अभी रागिनी कुछ कहने ही वाली थी कि तभी रसोई में कामिनी आ गई। उसने बताया कि पिता जी और भैया खेतों से आ गए हैं और हाथ मुंह धोने के बाद जल्दी ही बरामदे में खाना खाने के लिए आ जाएंगे। कामिनी की इस बात के बाद वंदना और रागिनी जल्दी जल्दी थाली सजाने की तैयारी करने लगीं।

✮✮✮✮

रूपचंद्र के जाने के बाद मेरे मन में विचारों का जैसे बवंडर सा उठ खड़ा हुआ था। वो तो चला गया था लेकिन मुझे उलझा गया था। मैं सोचने लगा था कि आख़िर कौन से सच की बात कर रहा था वो और तो और वो ख़ुद क्यों नहीं बता सकता था? आख़िर ऐसा कौन सा सच होगा जिसे मैं अपने माता पिता से ही जान सकता था?

दोपहर तक मैं इसी तरह विचारों में उलझा रहा और मजदूरों को काम करते हुए देखता रहा। उसके बाद मैं खाना खाने के लिए मोटर साईकिल में बैठ कर हवेली की तरफ चल पड़ा। मन ही मन फ़ैसला कर लिया कि मौका मिलते ही मां से पूछूंगा कि अभी ऐसा क्या है जिसे उन्होंने मुझे नहीं बताया है?

हवेली पहुंचा तो देखा पिता जी खाना खाने बैठ चुके थे। मुंशी किशोरी लाल भी बैठा हुआ था। मुझे आया देख मां ने मुझे भी हाथ मुंह धो कर बैठ जाने के लिए कहा। मैं फ़ौरन ही हाथ मुंह धो के आया और कुर्सी पर बैठ गया। कुसुम और कजरी खाना परोसने लगीं। खाना खाने के दरमियान हमेशा की ही तरह ख़ामोशी रही। पिता जी को खाते वक्त बातें करना बिल्कुल भी पसंद नहीं था।

खाना पीना कर के जब पिता जी और मुंशी जी चले गए तो मैंने मां की तरफ देखा। मुझे पिता जी और मुंशी जी की तरह कुर्सी से उठ कर न गया देख मां समझ गईं कि कोई बात है जिसके चलते मैं अभी भी कुर्सी पर बैठा हुआ था।

"क्या हुआ बेटा?" मां ने मेरे क़रीब आ कर बड़े स्नेह से कहा____"भोजन तो कर चुका है तू, फिर बैठा क्यों है? आराम नहीं करना है क्या तुझे?"

"आराम बाद में कर लूंगा मां।" मैंने कहा____"इस वक्त मुझे आपसे कुछ जानना है और उम्मीद करता हूं कि आप मुझे सब कुछ सच सच बताएंगी।"

मेरी बात सुन कर मां मेरी तरफ बड़े ध्यान से देखने लगीं। कजरी तो जूठे बर्तन उठा कर चली गई थी लेकिन कुसुम मेरी बात सुन कर ठिठक गई थी और उत्सुक भाव से हमारी तरफ देखने लगी थी।

"क्या जानना चाहता है तू?" इधर मां ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा____"तेरी भाभी के बारे में तो मैंने तुझे कल ही बता दिया था, फिर अब क्या जानना चाहता है?"

"वही जो आपने नहीं बताया।" मैंने मां की तरफ ध्यान से देखते हुए कहा____"और मुझे लगता है कि अभी भी आपने मुझसे कुछ छुपा रखा है।"

"अपने कमरे में जा।" मां ने गहरी सांस ले कर कहा____"मैं आती हूं थोड़ी देर में।"

"ठीक है।" मैंने कुर्सी से उठते हुए कहा____"जल्दी आइएगा।"

कहने के साथ ही मैं तो अपने कमरे की तरफ चला गया किंतु पीछे मां एकदम से परेशान हो उठीं थी। कुछ पलों तक जाने वो क्या सोचती रहीं फिर खुद को सम्हालते हुए अपने कमरे की तरफ बढ़ चलीं। जल्दी ही वो कमरे में पहुंच गईं। कमरे में पिता जी पलंग पर आराम करने के लिए लेट चुके थे। कमरे में आते ही मां ने कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया। ये देख पिता जी के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे।

"क्या हुआ?" वो पूछ ही बैठे____"आपको भोजन नहीं करना क्या?"

"बाद में कर लेंगे।" उन्होंने पिता जी के क़रीब जा कर कहा____"इस वक्त एक समस्या हो गई है।"

"स...समस्या??" पिता जी चौंके____"ये क्या कह रही हैं आप?"

"लगता है हमारे बेटे को शक हो गया है।" मां ने चिंतित भाव से कहा____"अभी अभी वो हमसे कोई बात जानने की बात कह रहा था और ये भी कह रहा था कि हमने अभी भी उससे कुछ छुपाया है।"

"क्या उसने स्पष्ट रूप से आपसे ऐसा कुछ कहा है?" पिता जी ने पूछा____"क्या आपको लगता है कि वो रागिनी बहू के बारे में आपसे जानने की बात कह रहा था?"

"पता नहीं।" मां ने कहा____"लेकिन जिस अंदाज़ में बोल रहा था उससे तो यही लगता है कि वो रागिनी बहू के बारे में ही जानना चाहता है।"

मां की इस बात पर पिता जी फ़ौरन कुछ ना बोले। उनके चेहरे पर सोचने वाले भाव उभर आए थे। मां बेचैनी से उन्हें ही देखे जा रहीं थी।

"क्या सोचने लगे आप?" फिर उन्होंने कहा____"कुछ बोल क्यों नहीं रहे हैं? हमने उसे कमरे में जाने को कह दिया है और ये भी कहा है कि आते हैं थोड़ी देर में। ज़ाहिर है वो हमारी प्रतीक्षा करेगा। समझ में नहीं आ रहा कि अगर उसने रागिनी बहू के बारे में ही पूछेगा तो क्या बताएंगे उसे?"

"हमें लगता है कि सच बताना ही पड़ेगा उसे।" पिता जी ने गहरी सांस ले कर कहा____"इस बात को ज़्यादा समय तक उससे छुपा के भी नहीं रख सकते। वैसे भी जो कुछ उसे बताया गया है उससे वो परेशान और दुखी ही होगा। इस लिए बेहतर है कि उसे सच ही बता दिया जाए।"

"क्या आपको लगता है कि सच जानने के बाद वो चुप बैठेगा?" मां ने कहा____"पहले ही वो अनुराधा की मौत हो जाने से टूट सा गया था और बड़ी मुश्किल से उसके सदमे से बाहर आया है। अगर उसे ये बात बताएंगे तो जाने क्या सोच बैठे वो और फिर जाने क्या करने पर उतारू हो जाए?"

"हम मानते हैं कि उसको सच बताना ख़तरा मोल लेने जैसा है।" पिता जी ने कहा____"लेकिन एक दिन तो उसे बताना ही पड़ेगा इस सच को। वैसे हमारा ख़याल है कि अगर आप उसे बेहतर तरीके से समझाएंगी तो शायद वो समझ जाएगा। आप उसे ये भी बता सकती हैं कि ये सब कुल गुरु की भविष्यवाणी के अनुसार ही हो रहा है।"

"कुल गुरु का नाम लेंगे तो वो भड़क जाएगा।" मां ने झट से कहा____"पहले भी वो अपने बड़े भाई की भविष्यवाणी वाली बात से उन पर बिगड़ गया था।"

"तो फिर आप उसे समझाइएगा कि इसी में सबका भला है।" पिता जी ने कहा____"ख़ास कर उसकी भौजाई का। अगर वो चाहता है कि उसकी भौजाई हमेशा खुश रहे और इसी हवेली में रहे तो उसे इस रिश्ते को स्वीकार करना ही होगा।"

पिता जी की इस बात पर मां कुछ देर तक उन्हें देखतीं रहीं। इतना तो वो भी समझती थीं कि एक दिन सच का पता वैभव को चलेगा ही तो बेहतर है आज ही बता दिया जाए। वैसे उन्हें यकीन था कि अपनी भाभी की ख़ुशी के लिए उनका बेटा ज़रूर इस रिश्ते को स्वीकार कर लेगा।

"ठीक है फिर।" मां ने जैसे निर्णायक अंदाज़ से कहा____"हम जा कर उसे सच बता देते हैं। अब जो होगा देखा जाएगा।"

✮✮✮✮

मैं पलंग पर लेटा बड़ी शिद्दत से मां का इंतज़ार कर रहा था। मन में तरह तरह के ख़याल उभर रहे थे जिसकी वजह से मेरी बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी। तभी खुले दरवाज़े पर मां नज़र आईं। उन्हें देखते ही मैं उठ कर बैठ गया। उधर वो कमरे में दाख़िल हो कर मेरे पास आईं और पलंग पर बैठ गईं। उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंची हुई थीं।

"आने में बड़ी देर लगा दी आपने?" मैंने व्याकुल भाव से कहा____"ख़ैर अब बताइए कि मुझसे और क्या छुपाया है आपने?"

"मैं तुझे सच बता दूंगी।" मां ने कहा____"लेकिन उससे पहले मैं तुझसे कुछ पूछना चाहती हूं। मैं चाहती हूं कि मैं तुझसे जो भी पूछूं उसका तू पूरी ईमानदारी से सच सच जवाब दे।"

"बिल्कुल दूंगा मां।" मैंने एकदम दृढ़ हो कर कहा____"आप पूछिए, मैं आपको वचन देता हूं कि आप जो कुछ भी मुझसे पूछेंगी मैं उसका सच सच जवाब दूंगा।"

"ठीक है।" मां ने एक लंबी सांस ली____"मैं तुझसे ये जानना चाहती हूं कि तू अपनी भाभी के बारे में क्या सोचता है?"

"य...ये कैसा सवाल है मां?" मैंने हैरानी से उन्हें देखा____"आप अच्छी तरह जानती हैं कि मेरी नज़र में भाभी की क्या अहमियत है। वो इस हवेली की शान हैं। उनके जैसी बहू और भाभी हमारे पास होना बड़े गौरव की बात है।"

"ये मैं जानती हूं।" मां ने कहा____"मैं तुझसे इसके अलावा जानना चाहती हूं। जैसे कि, क्या तू चाहता है कि तेरी भाभी हमेशा इस हवेली की शान बनी रहे? क्या तू चाहता है कि तेरी भाभी अपने जीवन में हमेशा खुश रहे?"

"मुझे समझ नहीं आ रहा कि आप ये कैसे सवाल कर रही हैं?" मैंने थोड़ा परेशान हो कर कहा____"आप अच्छी तरह जानती हैं कि ऐसा इस हवेली में हर कोई चाहता है।"

"मैं हर किसी की नहीं।" मां ने कहा____"बल्कि तेरी बात कर रही हूं। तू अपनी बता कि तू क्या चाहता है?"

"सबकी तरह मैं भी यही चाहता हूं कि मेरी भाभी हमेशा खुश रहें।" मैंने कहा____"उनके जीवन में कभी कोई दुख न आए। भैया के गुज़र जाने के बाद मेरी यही कोशिश थी कि मैं हर वक्त उनके चेहरे पर मुस्कान ला सकूं।"

"सिर्फ इतना ही?" मां ने अजीब भाव से मेरी तरफ देखा।

"और क्या मां?" मैंने कहा____"हम सबसे जितना हो सकता है उतना ही तो कर सकते हैं। काश! इससे ज़्यादा कुछ करना मेरे बस में होता तो मैं वो भी करता उनकी खुशी के लिए।"

"क्या तुझे लगता है कि तेरे बस में सिर्फ इतना ही था?" मां ने बड़े ध्यान से मेरी तरफ देखते हुए पूछा____"अगर मैं कहूं कि तू उसकी खुशी के लिए और भी बहुत कुछ कर सकता है तो क्या तू करेगा?"

"बिल्कुल करूंगा मां।" मैंने झट से कहा____"अगर मुझे पता चल जाए कि जिस चीज़ से भाभी खुश हो जाएंगी वो दुनिया के फला कोने में है तो यकीन मानिए मैं उस कोने में जा कर वो चीज़ ले आऊंगा और भाभी को दे कर उन्हें खुश करूंगा। अब इससे ज़्यादा क्या कहूं?"

"क्या तू उसकी खुशी के लिए कुछ भी कर सकता है?" मां ने जैसे मुझे परखा।

"हां, अगर मेरे बस में हुआ तो कुछ भी कर जाऊंगा।" मैंने पूरी दृढ़ता से कहा____"आज मैं जो कुछ भी हूं उसमें मेरी भाभी का बहुत बड़ा हाथ है मां। इस लिए अपनी भाभी को खुश करने के लिए कुछ भी कर सकता हूं लेकिन अब शायद ऐसा नहीं कर सकूंगा क्योंकि उनके माता पिता उनका फिर से कहीं ब्याह करने का फ़ैसला कर चुके हैं। अब वो ना आपकी बहू रहेंगी और ना ही मेरी भाभी। इस हवेली से हमेशा के लिए उनका नाता टूट जाएगा।"

"क्या तू चाहता है कि तेरी भाभी कहीं न जाए और इसी हवेली में बहू बन कर रहे?" मां ने पूछा।

"मैं अपने स्वार्थ के लिए उनका जीवन बर्बाद नहीं कर सकता मां।" मैंने सहसा गंभीर हो कर कहा____"उनके लिए यही बेहतर है कि उनका फिर से ब्याह हो जाए ताकि वो अपने पति के साथ जीवन में हमेशा खुश रह सकें।"

"अगर वो फिर से सुहागन बन कर इस हवेली में आ जाए तो क्या वो खुश नहीं रहेगी?" मां ने धड़कते दिल से कहते हुए मेरी तरफ देखा।

"य...ये क्या कह रही हैं आप?" मैं एकदम से चकरा सा गया____"ऐसा भला कैसे हो सकता है?"

"क्यों नहीं हो सकता?" मां ने जैसे तर्क़ दिया____"अगर तू उसे ब्याह करके इस हवेली में ले आएगा तो क्या वो फिर से खुश नहीं हो जाएगी?"

तीव्र झटका लगा मुझे। ऐसा लगा जैसे आसमान से मैं पूरे वेग से धरती पर आ गिरा था। हैरत से आंखें फाड़े मैं देखता रह गया मां को। उधर वो भी चहरे पर हल्के घबराहट के भाव लिए मेरी तरफ ही देखे जा रहीं थी।

"क...क्या हुआ?" फिर उन्होंने कहा____"क्या तू अपनी भाभी की खुशी के लिए उससे ब्याह नहीं कर सकता?"

"य...ये आप क्या बोल रही हैं मां?" मैं सकते जैसी हालत में था____"आप होश में तो हैं? आप ऐसा सोच भी कैसे सकती हैं?"

"वक्त और हालात इंसान को और भी बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देते हैं बेटा।" मां ने जब देखा कि मैं उनकी इस बात से भड़का नहीं हूं तो उन्होंने राहत की सांस लेते हुए कहा____"तुझे बताने की ज़रूरत नहीं है कि रागिनी हमारे लिए क्या मायने रखती है। तू भी जानता है और मानता भी है कि इस हवेली में उसके रहने से हम सब कैसा महसूस करते हैं? ये तो उस बेचारी की बदकिस्मती थी कि उसे इतनी कम उमर में विधवा हो जाना पड़ा लेकिन सोचने वाली बात है कि क्या हम उसे ऐसे ही सारी जिंदगी यहां रखेंगे और उसे दुख सहता देखेंगे? नहीं बेटा, ऐसा ना हम चाह सकते हैं और ना ही तू। यही सब बातें मैं और तेरे पिता जी अक्सर अकेले में सोचते थे। तब हमने फ़ैसला किया कि हम अपनी बहू को हमेशा खुश रखने के लिए उसका फिर से ब्याह करेंगे। हम ये भी चाहते थे कि वो हमेशा हमारी ही बहू बन कर इस हवेली में रहे और ऐसा तो तभी संभव होगा जब उसका ब्याह हम अपने ही बेटे से यानि तुझसे करें।"

"बड़ी अजीब बातें कर रही हैं आप।" मैंने चकित भाव से कहा____"आप सोच भी कैसे सकती हैं कि मैं अपनी भाभी से ब्याह करने का सोच भी सकता हूं? मैं उनकी बहुत इज्ज़त करता हूं और मेरे लिए वो किसी देवी की तरह पूज्यनीय हैं।"

"मैं जानती हूं बेटा।" मां ने सिर हिलाते हुए कहा____"और उसके प्रति तेरी भावनाओं को भी समझती हूं लेकिन तुझे भी समझना होगा कि ज़रूरत पड़ने पर सबकी भलाई के लिए हमें ऐसे भी काम करने पड़ते हैं जिसे करने के लिए पहली नज़र में हमारा दिल नहीं मानता।"

"लेकिन मां वो मेरी भाभी हैं।" मैंने पुरज़ोर भाव से कहा____"उनके बारे में ऐसा सोचना भी मेरे लिए गुनाह है।"

"देवर का भाभी से ब्याह होना ऐसी बात नहीं है बेटा जिसे समाज मान्यता नहीं देता।" मां ने जैसे मुझे समझाते हुए कहा____"दुनिया में ऐसा पहले भी हुआ है और आगे भी ज़रूरत पड़ने पर होता रहेगा। इस लिए तू इस बारे में व्यर्थ की बातें मत सोच। तू जानना चाहता था न कि मैंने तुझसे अभी और क्या छुपाया है तो वो यही है। असल में जब मैंने और तुम्हारे पिता जी ने रागिनी का फिर से ब्याह करने का सोच लिया और ये भी सोच लिया कि हम उसका ब्याह तुझसे ही करेंगे तो हमने इस बारे में सबसे पहले रागिनी के पिता जी से भी चर्चा करने का सोच लिया था। कुछ दिन पहले तेरे पिता जी चंदनपुर गए थे समधी जी से इस बारे में बात करने। जब उन्होंने रागिनी के पिता जी से इस बारे में चर्चा की तो वो भी इस रिश्ते के लिए खुशी खुशी मान गए। उन्हें तो इसी बात से खुशी हुई थी कि हम उनकी बेटी की भलाई के लिए इतना कुछ सोचते हैं।"

मैं अवाक सा देखता रह गया मां को। एकाएक ही मेरे मन मस्तिष्क में धमाके से होने लगे थे। अचानक ही ज़हन में वो बातें गूंजने लगीं जो चंदनपुर में कामिनी से हुईं थी और फिर भाभी से हुईं थी। भाभी का उदास और गंभीर चेहरा मेरी आंखों के सामने उजागर हो गया। उनकी बातें मेरे कानों में गूंजने लगीं।



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Suraj13796

💫THE_BRAHMIN_BULL💫
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मुझे लगता है की वैभव और रागिनी को आमने सामने बैठा कर बात करवानी चाहिए, क्योंकि दोनो एक ही जैसे उलझन का सामना कर रहे है,

लेकिन यह भी तय की अगर दोनों में से किसी एक ने भी हां कह दी तो दूसरे को हां करने में देरी नही लगेगी। दोनों बस इंतजार करेंगे की कोई पहले हां कर दे।

पहले लगा था की वैभव के लिए ज्यादा मुश्किल होगा लेकिन लग रहा ये decison रागिनी के लिए ज्यादा कठिन हैं।
अब भले ही ये दादा ठाकुर और सुगंधा ठकुराइन का स्वार्थ बोल लो या रागिनी के लिए फिक्र, लेकिन इतना जरूर है की वो वैभव को रागिनी से शादी करने के लिए मना ही लेंगे चाहे उसके लिए emotional blackmail ही क्यों न करना पड़े।

मुझे तो रागिनी और वैभव के बीच का adult scene पढ़ना हैं, आखिर दोनो के बीच की शर्म की दीवार कैसे गिरती है।

उम्दा अपडेट भाई, अगले अपडेट की प्रतीक्षा में ❣️
 
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