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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

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What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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वैभव ने मालती को उसकी जमीन वापिस करके बहुत अच्छा काम किया है वह अकेली बेचारी अपने परिवार का पेट भर सकेगी। शंकरलाल वैभव के जाने से डर गया था लेकिन अपनी हरकतों से बाज नहीं आया बाप बेटे फिर से ये आस लगाए हैं कि कोई और गरीब की जमीन हड़प लेंगे। खैर वैभव के बुरे होने का कुछ तो फायदा हुआ शंकरलाल इतना जल्दी मानने वालो में से नही था
वैभव अब पहले से बेहतर हो गया है ये सब रूपा के सच्चे प्यार के कारण हुआ सच में रूपा का प्रेम सच्चा और पवित्र है रूपा और वैभव के बीच प्यार भरी नोकझोक बहुत ही प्यारी और लाज़वाब थी
Thanks bro.....Jaldi jaldi read kar ke present me aaiye... :D
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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TheBlackBlood .... awesome update...kafi intersting mode pe AA gai hai story...jaldi he dono ka vivah dekhane ko milega....mere Dil ki hasrat Puri ho jayegi 🤭
Thanks

Bilkul, aapki hasrat ka pura khayaal rakhenge :hug:
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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मस्त update sir ji
Agla update de do jaldi intezaar nahi ho rha hai
Jaldi shadi karwao sir ji aur suhagrat bhi details me explain karo
Intezaar nahi ho rha hai thandi ka din hai kuchh to garma garam karwao😁😁😁😁😁
Bilkul bhai, :shag: mutth maarne ka pura scene create kiya jayega :consoling:
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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अध्याय - 143
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"मुझे ग़लत मत समझना वैभव।" रूपचंद्र ने कहा____"लेकिन इस बारे में मैं तुम्हें कुछ नहीं बता सकता।"

मैं मूर्खों की तरह देखता रह गया उसे। रूपचंद्र के चेहरे पर खेद पूर्ण भाव थे। कुछ देर वो ख़ामोशी से मुझे देखता रहा उसके बाद मेरे कंधे पर हल्के से हाथ की थपकी देने के बाद चला गया। मुझे समझ ना आया कि अब ये क्या चक्कर है?



अब आगे....


रसोई में रागिनी अपनी भाभी वंदना का खाना बनाने में हाथ बंटा रही थी। यूं तो घर में उसे कोई भी काम करने के लिए नहीं कहता था लेकिन उसे खुद ही अच्छा नहीं लगता था कि वो बैठ के सिर्फ खाना खाए। पहले भी उसे काम करना बेहद पसंद था और आज भी वो खाली बैठना पसंद नहीं करती थी।

कुछ समय पहले तक सब ठीक ही था लेकिन फिर एक दिन उसके ससुर यानि दादा ठाकुर यहां आए। उन्होंने उसके पिता से उसके ब्याह के संबंध में जो भी बातें की उसके बारे में जान कर उसे बड़ा झटका लगा था। पहले तो ये बात उसे अपनी भाभी वंदना ने ही बताया और फिर रात में उसकी मां ने बताया। रागिनी के लिए वो सारी बातें ऐसी थीं कि उसके बाद से जैसे उसका हंसना मुस्कुराना ही बंद हो गया था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसके ससुर उसका फिर से ब्याह करने की चर्चा करने उसके पिता के पास आए थे। बात अगर सिर्फ इतनी ही होती तो कदाचित उसे इतना झटका नहीं लगता किंतु झटके वाली बात ये थी कि उसके ससुर उसका ब्याह उसके ही देवर से करने की बात बोले थे।

रागिनी के लिए ये बात किसी झटके से कम नहीं थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसके ससुर ऐसा कैसे चाह सकते थे और उसके खुद के पिता भी उनकी इस बात को मंजूरी कैसे दे सकते थे? अब क्योंकि वो खुद किसी से इस बारे में कुछ कह नहीं सकती थी इस लिए अंदर ही अंदर वो इस बात से परेशान हो गई थी। दो तीन दिन तक यही आलम रहा लेकिन फिर उसकी मां के समझाने पर वो थोड़ा सामान्य होने लगी थी। हालाकि अंदर से वो अभी भी बेचैन थी।

वैभव को उसने देवर के साथ साथ हमेशा ही अपना छोटा भाई समझा था। वो अच्छी तरह जानती थी कि वैभव कैसे चरित्र का लड़का है इसके बाद भी वो ये समझती थी कि वैभव ने कभी उसे ग़लत नज़र से नहीं देखा था। हालाकि ये सिर्फ उसका सोचना ही था क्योंकि कोई भी व्यक्ति किसी के अंदर की बात पूर्ण रूप से नहीं जान रहा होता है, ये तो बस उसका विश्वास था।

"अब इतना भी मत सोचो रागिनी।" वंदना ने उसे ख़ामोशी से काम करते देखा तो बोल पड़ी____"तुम भी अच्छी तरह समझती हो कि तुम्हारे ससुर जी और तुम्हारे पिता जी तुम्हारी भलाई के लिए ही ऐसा चाहते हैं। सच कहूं तो इस रिश्ते के लिए किसी को भी कोई आपत्ति नहीं है। तुम्हें पता है, तुम्हारे भैया से हर रोज़ मेरी इस बारे में बात होती है। उनका भी यही कहना है कि तुम्हारा वैभव के साथ ब्याह कर देने का फ़ैसला बिल्कुल भी ग़लत नहीं है। देवर से भाभी का ब्याह हो जाना कोई ग़लत नहीं है। ऐसा तो हमेशा से होता आया है।"

"मैं दुबारा ब्याह करने से इंकार नहीं कर रही भाभी।" रागिनी ने गंभीर भाव से कहा____"मैं सिर्फ ये कह रही हूं कि वैभव से ही क्यों? जिसे अब तक मैं अपने देवर के साथ साथ अपना छोटा भाई समझती आई हूं उसे एकदम से पति की नज़र से कैसे देखने लगूं? आप लोगों ने तो कह दिया लेकिन आप लोग ये नहीं समझ रहे हैं कि इस बारे में मैं क्या महसूस करती हूं।"

"ऐसा नहीं है रागिनी।" वंदना ने कहा____"हम सबको एहसास है कि इस रिश्ते के बारे में तुम इस समय कैसा महसूस करती होगी। तुम्हारी जगह मैं होती तो मेरा भी यही कहना होता लेकिन जीवन में हमें इसके अलावा भी कई सारी बातें सोचनी पड़ती हैं। तुम्हारा कहना है कि वैभव से ही क्यों? यानि तुम्हें वैभव से ब्याह करने में आपत्ति है, जबकि नहीं होनी चाहिए। ऐसा इस लिए क्योंकि तुम उसके बारे में पहले से ही सब कुछ जानती हो। तुम जानती हो कि वो तुम्हारी कितनी इज्ज़त करता है और कितनी फ़िक्र करता है। तुम्हीं ने बताया था कि वो तुम्हारे होठों पर मुस्कान लाने के लिए क्या क्या करता रहता है। सोचने वाली बात है रागिनी कि जो व्यक्ति तुम्हारी खुशी के लिए इतना कुछ करता हो और तुम्हें इतना चाहता हो उससे ब्याह करने से इंकार क्यों? किसी दूसरे व्यक्ति से ब्याह करने का सोचती हो तो बताओ क्या वो व्यक्ति वैभव की तरह तुम्हें मान सम्मान देगा? क्या वो वैभव की तरह तुम्हें चाहेगा और क्या उसके घर वाले तुम्हें अपने घर की शान बना लेंगे?"

रागिनी कुछ बोल ना सकी किंतु चेहरे से स्पष्ट नज़र आ रहा था कि उसके मन में बहुत कुछ चल रहा था। वंदना कुछ देर तक उसे देखती रही।

"मैं जानती हूं कि तुमने अपने जीवन में कभी किसी लड़के का ख़याल भी अपने मन में नहीं लाया था।" फिर उसने रागिनी के दोनों कन्धों को पकड़ कर बड़े स्नेह से कहा____"तुम्हारे जीवन में जो आया वो सिर्फ तुम्हारा पति ही था। यही वजह है कि तुम किसी और के बारे में ऐसा सोचना ही नहीं चाहती, ख़ास कर वैभव के बारे में। तुम भी जानती हो कि शादी से पहले लड़का लड़की एक दूसरे के लिए अजनबी ही होते हैं। दोनों के मन में एक दूसरे के प्रति कई तरह की आशंकाएं रहती हैं। ख़ास कर लड़की ये सोच कर परेशान हो जाती है कि जाने कैसा होगा उसका होने वाला पति और फिर आगे जाने क्या होगा? लेकिन जब दोनों की शादी हो जाती है और दोनों साथ रहने लगते हैं तो मन की सारी आशंकाएं अपने आप ही दूर होती चली जाती हैं। एक वक्त ऐसा आता है जब दोनों को एक दूसरे से बेहद लगाव हो जाता है और फिर दोनों को ये भी लगने लगता है जैसे वो दोनों एक दूसरे के लिए ही बने थे। तुम्हारे लिए तो सबसे अच्छी बात यही है कि तुम अपने होने वाले पति के बारे में पहले से ही सब कुछ जानती हो। सबसे बड़ी बात ये जानती हो कि वो तुम्हें कितना चाहता है और तुम्हारी कितनी फ़िक्र करता है। एक औरत को इससे ज़्यादा और क्या चाहिए होता है? भूल जाओ कि तुम वैभव की भाभी हो या वैभव तुम्हारा देवर है। मन में सिर्फ ये रखो कि वो एक ऐसा लड़का है जिससे तुम्हारा ब्याह होना है।"

"यही तो नहीं कर पा रही भाभी।" रागिनी ने जैसे आहत हो कर कहा____"उसके बारे में एक पल में सब कुछ भूल जाना आसान नहीं है। मेरा तो ये सोच कर हृदय कांप जाता है कि जब उसे सच का पता चलेगा तो क्या सोचेगा वो मेरे बारे में? अगर उसने एक पल के लिए भी मेरे बारे में ग़लत सोच लिया तो कैसे नज़रें मिला पाऊंगी उससे?"

"ऐसा सिर्फ तुम सोचती हो रागिनी।" वंदना ने कहा____"ऐसा भी तो हो सकता है कि वो तुम्हारे बारे में ऐसा कुछ सोचे ही नहीं बल्कि ये सोच ले कि वो कितना किस्मत वाला है जो उसके जीवन में तुम जैसी लड़की पत्नी के रूप में मिलने वाली है। आख़िर तुम्हारी अच्छाईयां और तुम्हारी खूबियों के बारे में तो उसे पता ही है। मुझे पूरा यकीन है कि जब उसे इस सच का पता चलेगा तो वो सपने में भी तुम्हारे बारे में ग़लत नहीं सोचेगा। बल्कि यही सोचेगा कि अब वो पूरे हक़ से और पूरी आज़ादी के साथ तुम्हें खुश रखने का प्रयास कर सकेगा। हां रागिनी, जितना कुछ तुमने उसके बारे में मुझे बताया है उससे मैं पूरे यकीन के साथ कह सकती हूं कि वैभव इस रिश्ते को ख़ुशी से स्वीकार करेगा और ब्याह के बाद तुम्हें बहुत खुश रखेगा।"

रागिनी के समूचे बदन में झुरझूरी सी दौड़ गई। उसे बड़ा अजीब लग रहा था। चेहरे पर अभी भी पहले जैसी गंभीरता और उदासी छाई हुई थी।

"एक बार अपने सास ससुर के बारे में भी सोचो रागिनी।" वंदना ने कुछ सोचते हुए कहा____"तुम्हीं बताया करती थी ना कि वो दोनों तुम्हें बहू नहीं बल्कि अपनी बेटी मानते हैं और तुम्हें अपनी हवेली की शान समझते हैं। इसी से ज़ाहिर होता है कि वो तुम्हें कितना चाहते हैं। वैभव से तुम्हारा ब्याह करवा देने के पीछे उनकी यही भावना है कि तुम हमेशा उनकी बेटी बन कर उनकी हवेली की शान ही बनी रहो और साथ ही फिर से सुहागन बनने के बाद एक खुशहाल जीवन जियो। मानती हूं कि इतनी कम उमर में तुम्हें विधवा बना कर ऊपर वाले ने तुम्हारे साथ अच्छा नहीं किया है लेकिन मैं ये भी मानती हूं कि तुम बहुत भाग्यशाली हो जो तुम्हें इतने अच्छे सास ससुर मिले हैं जो सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे हितों के बारे में सोचते हैं। वरना मैंने ऐसे भी लोग देखे और सुने हैं जो अपनी बहू के विधवा हो जाने पर उसे नौकरानी बना कर सारा जीवन उसे दुख देते रहते हैं। शायद यही सब पिता जी ने और तुम्हारे भैया ने भी सोचा होगा। माना कि तुम्हारे सास ससुर ऐसे नहीं हैं लेकिन कोई भी माता पिता ये नहीं चाहते कि उनकी बेटी विधवा के रूप में जीवन भर कष्ट सहे। तुम्हारा फिर से ब्याह करने की बात तुम्हारे अपने सास ससुर ने की है। ज़ाहिर है वो भी ऐसा नहीं चाहते और फिर जब उन्होंने यहां आ कर पिता जी से इस रिश्ते की बात कही तो पिता जी भी झट से मान गए थे। इस डर से नहीं कि तुम्हारा क्या होगा बल्कि इस खुशी में कि अपनी बेटी का जिस तरह से भला वो खुद चाहते थे वैसा उनकी बेटी के सास ससुर खुद ही चाहते हैं। तुम्हीं सोचो कि आज के युग में ऐसे महान सास ससुर कहां मिलते हैं जो अपनी बहू के बारे में इतना कुछ सोचें?"

"हां ये तो आप सही कह रही हैं।" रागिनी ने सिर हिलाते हुए धीमें से कहा____"इस मामले में मेरे सास ससुर बहुत अच्छे हैं। उन्होंने कभी भूल से भी किसी तरह का मुझे कोई कष्ट नहीं दिया। इतना कुछ हो जाने के बाद भी उन्होंने मुझे किसी बात का ताना नहीं मारा बल्कि मेरे दुख से दुखी हो कर हमेशा मुझे अपने सीने से लगाए रखा था।"

"इसी लिए तो कहती हूं रागिनी कि तुम बहुत भाग्यशाली हो।" वंदना ने कहा____"पूर्व जन्म में तुमने ज़रूर बहुत अच्छे कर्म किए थे जिसके चलते इस जन्म में तुम्हें इतने अच्छे सास ससुर मिले हैं। पति में भी कोई ख़राबी नहीं थी, वो तो उन बेचारे की किस्मत ही ख़राब थी जिसके चलते ऊपर वाले ने उन्हें अपने पास बुला लिया। तुम्हारे देवर के बारे में तुमसे बेहतर कौन जान सकता है? सच तो ये है कि तुम्हारे ससुराल में हर कोई बहुत अच्छा है। इस लिए मैं तो यही कहूंगी कि तुम अब कुछ भी मत सोचो, ईश्वर ने तुम्हारी खुशियां छीनी थी तो उसने फिर से तुम्हें खुशियां देने के लिए इस तरह का रिश्ता भेज दिया है। इसे ख़ुशी ख़ुशी क़बूल करो और वैभव के साथ जीवन में आगे बढ़ जाओ।"

अभी रागिनी कुछ कहने ही वाली थी कि तभी रसोई में कामिनी आ गई। उसने बताया कि पिता जी और भैया खेतों से आ गए हैं और हाथ मुंह धोने के बाद जल्दी ही बरामदे में खाना खाने के लिए आ जाएंगे। कामिनी की इस बात के बाद वंदना और रागिनी जल्दी जल्दी थाली सजाने की तैयारी करने लगीं।

✮✮✮✮

रूपचंद्र के जाने के बाद मेरे मन में विचारों का जैसे बवंडर सा उठ खड़ा हुआ था। वो तो चला गया था लेकिन मुझे उलझा गया था। मैं सोचने लगा था कि आख़िर कौन से सच की बात कर रहा था वो और तो और वो ख़ुद क्यों नहीं बता सकता था? आख़िर ऐसा कौन सा सच होगा जिसे मैं अपने माता पिता से ही जान सकता था?

दोपहर तक मैं इसी तरह विचारों में उलझा रहा और मजदूरों को काम करते हुए देखता रहा। उसके बाद मैं खाना खाने के लिए मोटर साईकिल में बैठ कर हवेली की तरफ चल पड़ा। मन ही मन फ़ैसला कर लिया कि मौका मिलते ही मां से पूछूंगा कि अभी ऐसा क्या है जिसे उन्होंने मुझे नहीं बताया है?

हवेली पहुंचा तो देखा पिता जी खाना खाने बैठ चुके थे। मुंशी किशोरी लाल भी बैठा हुआ था। मुझे आया देख मां ने मुझे भी हाथ मुंह धो कर बैठ जाने के लिए कहा। मैं फ़ौरन ही हाथ मुंह धो के आया और कुर्सी पर बैठ गया। कुसुम और कजरी खाना परोसने लगीं। खाना खाने के दरमियान हमेशा की ही तरह ख़ामोशी रही। पिता जी को खाते वक्त बातें करना बिल्कुल भी पसंद नहीं था।

खाना पीना कर के जब पिता जी और मुंशी जी चले गए तो मैंने मां की तरफ देखा। मुझे पिता जी और मुंशी जी की तरह कुर्सी से उठ कर न गया देख मां समझ गईं कि कोई बात है जिसके चलते मैं अभी भी कुर्सी पर बैठा हुआ था।

"क्या हुआ बेटा?" मां ने मेरे क़रीब आ कर बड़े स्नेह से कहा____"भोजन तो कर चुका है तू, फिर बैठा क्यों है? आराम नहीं करना है क्या तुझे?"

"आराम बाद में कर लूंगा मां।" मैंने कहा____"इस वक्त मुझे आपसे कुछ जानना है और उम्मीद करता हूं कि आप मुझे सब कुछ सच सच बताएंगी।"

मेरी बात सुन कर मां मेरी तरफ बड़े ध्यान से देखने लगीं। कजरी तो जूठे बर्तन उठा कर चली गई थी लेकिन कुसुम मेरी बात सुन कर ठिठक गई थी और उत्सुक भाव से हमारी तरफ देखने लगी थी।

"क्या जानना चाहता है तू?" इधर मां ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा____"तेरी भाभी के बारे में तो मैंने तुझे कल ही बता दिया था, फिर अब क्या जानना चाहता है?"

"वही जो आपने नहीं बताया।" मैंने मां की तरफ ध्यान से देखते हुए कहा____"और मुझे लगता है कि अभी भी आपने मुझसे कुछ छुपा रखा है।"

"अपने कमरे में जा।" मां ने गहरी सांस ले कर कहा____"मैं आती हूं थोड़ी देर में।"

"ठीक है।" मैंने कुर्सी से उठते हुए कहा____"जल्दी आइएगा।"

कहने के साथ ही मैं तो अपने कमरे की तरफ चला गया किंतु पीछे मां एकदम से परेशान हो उठीं थी। कुछ पलों तक जाने वो क्या सोचती रहीं फिर खुद को सम्हालते हुए अपने कमरे की तरफ बढ़ चलीं। जल्दी ही वो कमरे में पहुंच गईं। कमरे में पिता जी पलंग पर आराम करने के लिए लेट चुके थे। कमरे में आते ही मां ने कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया। ये देख पिता जी के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे।

"क्या हुआ?" वो पूछ ही बैठे____"आपको भोजन नहीं करना क्या?"

"बाद में कर लेंगे।" उन्होंने पिता जी के क़रीब जा कर कहा____"इस वक्त एक समस्या हो गई है।"

"स...समस्या??" पिता जी चौंके____"ये क्या कह रही हैं आप?"

"लगता है हमारे बेटे को शक हो गया है।" मां ने चिंतित भाव से कहा____"अभी अभी वो हमसे कोई बात जानने की बात कह रहा था और ये भी कह रहा था कि हमने अभी भी उससे कुछ छुपाया है।"

"क्या उसने स्पष्ट रूप से आपसे ऐसा कुछ कहा है?" पिता जी ने पूछा____"क्या आपको लगता है कि वो रागिनी बहू के बारे में आपसे जानने की बात कह रहा था?"

"पता नहीं।" मां ने कहा____"लेकिन जिस अंदाज़ में बोल रहा था उससे तो यही लगता है कि वो रागिनी बहू के बारे में ही जानना चाहता है।"

मां की इस बात पर पिता जी फ़ौरन कुछ ना बोले। उनके चेहरे पर सोचने वाले भाव उभर आए थे। मां बेचैनी से उन्हें ही देखे जा रहीं थी।

"क्या सोचने लगे आप?" फिर उन्होंने कहा____"कुछ बोल क्यों नहीं रहे हैं? हमने उसे कमरे में जाने को कह दिया है और ये भी कहा है कि आते हैं थोड़ी देर में। ज़ाहिर है वो हमारी प्रतीक्षा करेगा। समझ में नहीं आ रहा कि अगर उसने रागिनी बहू के बारे में ही पूछेगा तो क्या बताएंगे उसे?"

"हमें लगता है कि सच बताना ही पड़ेगा उसे।" पिता जी ने गहरी सांस ले कर कहा____"इस बात को ज़्यादा समय तक उससे छुपा के भी नहीं रख सकते। वैसे भी जो कुछ उसे बताया गया है उससे वो परेशान और दुखी ही होगा। इस लिए बेहतर है कि उसे सच ही बता दिया जाए।"

"क्या आपको लगता है कि सच जानने के बाद वो चुप बैठेगा?" मां ने कहा____"पहले ही वो अनुराधा की मौत हो जाने से टूट सा गया था और बड़ी मुश्किल से उसके सदमे से बाहर आया है। अगर उसे ये बात बताएंगे तो जाने क्या सोच बैठे वो और फिर जाने क्या करने पर उतारू हो जाए?"

"हम मानते हैं कि उसको सच बताना ख़तरा मोल लेने जैसा है।" पिता जी ने कहा____"लेकिन एक दिन तो उसे बताना ही पड़ेगा इस सच को। वैसे हमारा ख़याल है कि अगर आप उसे बेहतर तरीके से समझाएंगी तो शायद वो समझ जाएगा। आप उसे ये भी बता सकती हैं कि ये सब कुल गुरु की भविष्यवाणी के अनुसार ही हो रहा है।"

"कुल गुरु का नाम लेंगे तो वो भड़क जाएगा।" मां ने झट से कहा____"पहले भी वो अपने बड़े भाई की भविष्यवाणी वाली बात से उन पर बिगड़ गया था।"

"तो फिर आप उसे समझाइएगा कि इसी में सबका भला है।" पिता जी ने कहा____"ख़ास कर उसकी भौजाई का। अगर वो चाहता है कि उसकी भौजाई हमेशा खुश रहे और इसी हवेली में रहे तो उसे इस रिश्ते को स्वीकार करना ही होगा।"

पिता जी की इस बात पर मां कुछ देर तक उन्हें देखतीं रहीं। इतना तो वो भी समझती थीं कि एक दिन सच का पता वैभव को चलेगा ही तो बेहतर है आज ही बता दिया जाए। वैसे उन्हें यकीन था कि अपनी भाभी की ख़ुशी के लिए उनका बेटा ज़रूर इस रिश्ते को स्वीकार कर लेगा।

"ठीक है फिर।" मां ने जैसे निर्णायक अंदाज़ से कहा____"हम जा कर उसे सच बता देते हैं। अब जो होगा देखा जाएगा।"

✮✮✮✮

मैं पलंग पर लेटा बड़ी शिद्दत से मां का इंतज़ार कर रहा था। मन में तरह तरह के ख़याल उभर रहे थे जिसकी वजह से मेरी बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी। तभी खुले दरवाज़े पर मां नज़र आईं। उन्हें देखते ही मैं उठ कर बैठ गया। उधर वो कमरे में दाख़िल हो कर मेरे पास आईं और पलंग पर बैठ गईं। उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंची हुई थीं।

"आने में बड़ी देर लगा दी आपने?" मैंने व्याकुल भाव से कहा____"ख़ैर अब बताइए कि मुझसे और क्या छुपाया है आपने?"

"मैं तुझे सच बता दूंगी।" मां ने कहा____"लेकिन उससे पहले मैं तुझसे कुछ पूछना चाहती हूं। मैं चाहती हूं कि मैं तुझसे जो भी पूछूं उसका तू पूरी ईमानदारी से सच सच जवाब दे।"

"बिल्कुल दूंगा मां।" मैंने एकदम दृढ़ हो कर कहा____"आप पूछिए, मैं आपको वचन देता हूं कि आप जो कुछ भी मुझसे पूछेंगी मैं उसका सच सच जवाब दूंगा।"

"ठीक है।" मां ने एक लंबी सांस ली____"मैं तुझसे ये जानना चाहती हूं कि तू अपनी भाभी के बारे में क्या सोचता है?"

"य...ये कैसा सवाल है मां?" मैंने हैरानी से उन्हें देखा____"आप अच्छी तरह जानती हैं कि मेरी नज़र में भाभी की क्या अहमियत है। वो इस हवेली की शान हैं। उनके जैसी बहू और भाभी हमारे पास होना बड़े गौरव की बात है।"

"ये मैं जानती हूं।" मां ने कहा____"मैं तुझसे इसके अलावा जानना चाहती हूं। जैसे कि, क्या तू चाहता है कि तेरी भाभी हमेशा इस हवेली की शान बनी रहे? क्या तू चाहता है कि तेरी भाभी अपने जीवन में हमेशा खुश रहे?"

"मुझे समझ नहीं आ रहा कि आप ये कैसे सवाल कर रही हैं?" मैंने थोड़ा परेशान हो कर कहा____"आप अच्छी तरह जानती हैं कि ऐसा इस हवेली में हर कोई चाहता है।"

"मैं हर किसी की नहीं।" मां ने कहा____"बल्कि तेरी बात कर रही हूं। तू अपनी बता कि तू क्या चाहता है?"

"सबकी तरह मैं भी यही चाहता हूं कि मेरी भाभी हमेशा खुश रहें।" मैंने कहा____"उनके जीवन में कभी कोई दुख न आए। भैया के गुज़र जाने के बाद मेरी यही कोशिश थी कि मैं हर वक्त उनके चेहरे पर मुस्कान ला सकूं।"

"सिर्फ इतना ही?" मां ने अजीब भाव से मेरी तरफ देखा।

"और क्या मां?" मैंने कहा____"हम सबसे जितना हो सकता है उतना ही तो कर सकते हैं। काश! इससे ज़्यादा कुछ करना मेरे बस में होता तो मैं वो भी करता उनकी खुशी के लिए।"

"क्या तुझे लगता है कि तेरे बस में सिर्फ इतना ही था?" मां ने बड़े ध्यान से मेरी तरफ देखते हुए पूछा____"अगर मैं कहूं कि तू उसकी खुशी के लिए और भी बहुत कुछ कर सकता है तो क्या तू करेगा?"

"बिल्कुल करूंगा मां।" मैंने झट से कहा____"अगर मुझे पता चल जाए कि जिस चीज़ से भाभी खुश हो जाएंगी वो दुनिया के फला कोने में है तो यकीन मानिए मैं उस कोने में जा कर वो चीज़ ले आऊंगा और भाभी को दे कर उन्हें खुश करूंगा। अब इससे ज़्यादा क्या कहूं?"

"क्या तू उसकी खुशी के लिए कुछ भी कर सकता है?" मां ने जैसे मुझे परखा।

"हां, अगर मेरे बस में हुआ तो कुछ भी कर जाऊंगा।" मैंने पूरी दृढ़ता से कहा____"आज मैं जो कुछ भी हूं उसमें मेरी भाभी का बहुत बड़ा हाथ है मां। इस लिए अपनी भाभी को खुश करने के लिए कुछ भी कर सकता हूं लेकिन अब शायद ऐसा नहीं कर सकूंगा क्योंकि उनके माता पिता उनका फिर से कहीं ब्याह करने का फ़ैसला कर चुके हैं। अब वो ना आपकी बहू रहेंगी और ना ही मेरी भाभी। इस हवेली से हमेशा के लिए उनका नाता टूट जाएगा।"

"क्या तू चाहता है कि तेरी भाभी कहीं न जाए और इसी हवेली में बहू बन कर रहे?" मां ने पूछा।

"मैं अपने स्वार्थ के लिए उनका जीवन बर्बाद नहीं कर सकता मां।" मैंने सहसा गंभीर हो कर कहा____"उनके लिए यही बेहतर है कि उनका फिर से ब्याह हो जाए ताकि वो अपने पति के साथ जीवन में हमेशा खुश रह सकें।"

"अगर वो फिर से सुहागन बन कर इस हवेली में आ जाए तो क्या वो खुश नहीं रहेगी?" मां ने धड़कते दिल से कहते हुए मेरी तरफ देखा।

"य...ये क्या कह रही हैं आप?" मैं एकदम से चकरा सा गया____"ऐसा भला कैसे हो सकता है?"

"क्यों नहीं हो सकता?" मां ने जैसे तर्क़ दिया____"अगर तू उसे ब्याह करके इस हवेली में ले आएगा तो क्या वो फिर से खुश नहीं हो जाएगी?"

तीव्र झटका लगा मुझे। ऐसा लगा जैसे आसमान से मैं पूरे वेग से धरती पर आ गिरा था। हैरत से आंखें फाड़े मैं देखता रह गया मां को। उधर वो भी चहरे पर हल्के घबराहट के भाव लिए मेरी तरफ ही देखे जा रहीं थी।

"क...क्या हुआ?" फिर उन्होंने कहा____"क्या तू अपनी भाभी की खुशी के लिए उससे ब्याह नहीं कर सकता?"

"य...ये आप क्या बोल रही हैं मां?" मैं सकते जैसी हालत में था____"आप होश में तो हैं? आप ऐसा सोच भी कैसे सकती हैं?"

"वक्त और हालात इंसान को और भी बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देते हैं बेटा।" मां ने जब देखा कि मैं उनकी इस बात से भड़का नहीं हूं तो उन्होंने राहत की सांस लेते हुए कहा____"तुझे बताने की ज़रूरत नहीं है कि रागिनी हमारे लिए क्या मायने रखती है। तू भी जानता है और मानता भी है कि इस हवेली में उसके रहने से हम सब कैसा महसूस करते हैं? ये तो उस बेचारी की बदकिस्मती थी कि उसे इतनी कम उमर में विधवा हो जाना पड़ा लेकिन सोचने वाली बात है कि क्या हम उसे ऐसे ही सारी जिंदगी यहां रखेंगे और उसे दुख सहता देखेंगे? नहीं बेटा, ऐसा ना हम चाह सकते हैं और ना ही तू। यही सब बातें मैं और तेरे पिता जी अक्सर अकेले में सोचते थे। तब हमने फ़ैसला किया कि हम अपनी बहू को हमेशा खुश रखने के लिए उसका फिर से ब्याह करेंगे। हम ये भी चाहते थे कि वो हमेशा हमारी ही बहू बन कर इस हवेली में रहे और ऐसा तो तभी संभव होगा जब उसका ब्याह हम अपने ही बेटे से यानि तुझसे करें।"

"बड़ी अजीब बातें कर रही हैं आप।" मैंने चकित भाव से कहा____"आप सोच भी कैसे सकती हैं कि मैं अपनी भाभी से ब्याह करने का सोच भी सकता हूं? मैं उनकी बहुत इज्ज़त करता हूं और मेरे लिए वो किसी देवी की तरह पूज्यनीय हैं।"

"मैं जानती हूं बेटा।" मां ने सिर हिलाते हुए कहा____"और उसके प्रति तेरी भावनाओं को भी समझती हूं लेकिन तुझे भी समझना होगा कि ज़रूरत पड़ने पर सबकी भलाई के लिए हमें ऐसे भी काम करने पड़ते हैं जिसे करने के लिए पहली नज़र में हमारा दिल नहीं मानता।"

"लेकिन मां वो मेरी भाभी हैं।" मैंने पुरज़ोर भाव से कहा____"उनके बारे में ऐसा सोचना भी मेरे लिए गुनाह है।"

"देवर का भाभी से ब्याह होना ऐसी बात नहीं है बेटा जिसे समाज मान्यता नहीं देता।" मां ने जैसे मुझे समझाते हुए कहा____"दुनिया में ऐसा पहले भी हुआ है और आगे भी ज़रूरत पड़ने पर होता रहेगा। इस लिए तू इस बारे में व्यर्थ की बातें मत सोच। तू जानना चाहता था न कि मैंने तुझसे अभी और क्या छुपाया है तो वो यही है। असल में जब मैंने और तुम्हारे पिता जी ने रागिनी का फिर से ब्याह करने का सोच लिया और ये भी सोच लिया कि हम उसका ब्याह तुझसे ही करेंगे तो हमने इस बारे में सबसे पहले रागिनी के पिता जी से भी चर्चा करने का सोच लिया था। कुछ दिन पहले तेरे पिता जी चंदनपुर गए थे समधी जी से इस बारे में बात करने। जब उन्होंने रागिनी के पिता जी से इस बारे में चर्चा की तो वो भी इस रिश्ते के लिए खुशी खुशी मान गए। उन्हें तो इसी बात से खुशी हुई थी कि हम उनकी बेटी की भलाई के लिए इतना कुछ सोचते हैं।"

मैं अवाक सा देखता रह गया मां को। एकाएक ही मेरे मन मस्तिष्क में धमाके से होने लगे थे। अचानक ही ज़हन में वो बातें गूंजने लगीं जो चंदनपुर में कामिनी से हुईं थी और फिर भाभी से हुईं थी। भाभी का उदास और गंभीर चेहरा मेरी आंखों के सामने उजागर हो गया। उनकी बातें मेरे कानों में गूंजने लगीं।



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अध्याय - 143
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"मुझे ग़लत मत समझना वैभव।" रूपचंद्र ने कहा____"लेकिन इस बारे में मैं तुम्हें कुछ नहीं बता सकता।"

मैं मूर्खों की तरह देखता रह गया उसे। रूपचंद्र के चेहरे पर खेद पूर्ण भाव थे। कुछ देर वो ख़ामोशी से मुझे देखता रहा उसके बाद मेरे कंधे पर हल्के से हाथ की थपकी देने के बाद चला गया। मुझे समझ ना आया कि अब ये क्या चक्कर है?



अब आगे....


रसोई में रागिनी अपनी भाभी वंदना का खाना बनाने में हाथ बंटा रही थी। यूं तो घर में उसे कोई भी काम करने के लिए नहीं कहता था लेकिन उसे खुद ही अच्छा नहीं लगता था कि वो बैठ के सिर्फ खाना खाए। पहले भी उसे काम करना बेहद पसंद था और आज भी वो खाली बैठना पसंद नहीं करती थी।

कुछ समय पहले तक सब ठीक ही था लेकिन फिर एक दिन उसके ससुर यानि दादा ठाकुर यहां आए। उन्होंने उसके पिता से उसके ब्याह के संबंध में जो भी बातें की उसके बारे में जान कर उसे बड़ा झटका लगा था। पहले तो ये बात उसे अपनी भाभी वंदना ने ही बताया और फिर रात में उसकी मां ने बताया। रागिनी के लिए वो सारी बातें ऐसी थीं कि उसके बाद से जैसे उसका हंसना मुस्कुराना ही बंद हो गया था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसके ससुर उसका फिर से ब्याह करने की चर्चा करने उसके पिता के पास आए थे। बात अगर सिर्फ इतनी ही होती तो कदाचित उसे इतना झटका नहीं लगता किंतु झटके वाली बात ये थी कि उसके ससुर उसका ब्याह उसके ही देवर से करने की बात बोले थे।

रागिनी के लिए ये बात किसी झटके से कम नहीं थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसके ससुर ऐसा कैसे चाह सकते थे और उसके खुद के पिता भी उनकी इस बात को मंजूरी कैसे दे सकते थे? अब क्योंकि वो खुद किसी से इस बारे में कुछ कह नहीं सकती थी इस लिए अंदर ही अंदर वो इस बात से परेशान हो गई थी। दो तीन दिन तक यही आलम रहा लेकिन फिर उसकी मां के समझाने पर वो थोड़ा सामान्य होने लगी थी। हालाकि अंदर से वो अभी भी बेचैन थी।

वैभव को उसने देवर के साथ साथ हमेशा ही अपना छोटा भाई समझा था। वो अच्छी तरह जानती थी कि वैभव कैसे चरित्र का लड़का है इसके बाद भी वो ये समझती थी कि वैभव ने कभी उसे ग़लत नज़र से नहीं देखा था। हालाकि ये सिर्फ उसका सोचना ही था क्योंकि कोई भी व्यक्ति किसी के अंदर की बात पूर्ण रूप से नहीं जान रहा होता है, ये तो बस उसका विश्वास था।

"अब इतना भी मत सोचो रागिनी।" वंदना ने उसे ख़ामोशी से काम करते देखा तो बोल पड़ी____"तुम भी अच्छी तरह समझती हो कि तुम्हारे ससुर जी और तुम्हारे पिता जी तुम्हारी भलाई के लिए ही ऐसा चाहते हैं। सच कहूं तो इस रिश्ते के लिए किसी को भी कोई आपत्ति नहीं है। तुम्हें पता है, तुम्हारे भैया से हर रोज़ मेरी इस बारे में बात होती है। उनका भी यही कहना है कि तुम्हारा वैभव के साथ ब्याह कर देने का फ़ैसला बिल्कुल भी ग़लत नहीं है। देवर से भाभी का ब्याह हो जाना कोई ग़लत नहीं है। ऐसा तो हमेशा से होता आया है।"

"मैं दुबारा ब्याह करने से इंकार नहीं कर रही भाभी।" रागिनी ने गंभीर भाव से कहा____"मैं सिर्फ ये कह रही हूं कि वैभव से ही क्यों? जिसे अब तक मैं अपने देवर के साथ साथ अपना छोटा भाई समझती आई हूं उसे एकदम से पति की नज़र से कैसे देखने लगूं? आप लोगों ने तो कह दिया लेकिन आप लोग ये नहीं समझ रहे हैं कि इस बारे में मैं क्या महसूस करती हूं।"

"ऐसा नहीं है रागिनी।" वंदना ने कहा____"हम सबको एहसास है कि इस रिश्ते के बारे में तुम इस समय कैसा महसूस करती होगी। तुम्हारी जगह मैं होती तो मेरा भी यही कहना होता लेकिन जीवन में हमें इसके अलावा भी कई सारी बातें सोचनी पड़ती हैं। तुम्हारा कहना है कि वैभव से ही क्यों? यानि तुम्हें वैभव से ब्याह करने में आपत्ति है, जबकि नहीं होनी चाहिए। ऐसा इस लिए क्योंकि तुम उसके बारे में पहले से ही सब कुछ जानती हो। तुम जानती हो कि वो तुम्हारी कितनी इज्ज़त करता है और कितनी फ़िक्र करता है। तुम्हीं ने बताया था कि वो तुम्हारे होठों पर मुस्कान लाने के लिए क्या क्या करता रहता है। सोचने वाली बात है रागिनी कि जो व्यक्ति तुम्हारी खुशी के लिए इतना कुछ करता हो और तुम्हें इतना चाहता हो उससे ब्याह करने से इंकार क्यों? किसी दूसरे व्यक्ति से ब्याह करने का सोचती हो तो बताओ क्या वो व्यक्ति वैभव की तरह तुम्हें मान सम्मान देगा? क्या वो वैभव की तरह तुम्हें चाहेगा और क्या उसके घर वाले तुम्हें अपने घर की शान बना लेंगे?"

रागिनी कुछ बोल ना सकी किंतु चेहरे से स्पष्ट नज़र आ रहा था कि उसके मन में बहुत कुछ चल रहा था। वंदना कुछ देर तक उसे देखती रही।

"मैं जानती हूं कि तुमने अपने जीवन में कभी किसी लड़के का ख़याल भी अपने मन में नहीं लाया था।" फिर उसने रागिनी के दोनों कन्धों को पकड़ कर बड़े स्नेह से कहा____"तुम्हारे जीवन में जो आया वो सिर्फ तुम्हारा पति ही था। यही वजह है कि तुम किसी और के बारे में ऐसा सोचना ही नहीं चाहती, ख़ास कर वैभव के बारे में। तुम भी जानती हो कि शादी से पहले लड़का लड़की एक दूसरे के लिए अजनबी ही होते हैं। दोनों के मन में एक दूसरे के प्रति कई तरह की आशंकाएं रहती हैं। ख़ास कर लड़की ये सोच कर परेशान हो जाती है कि जाने कैसा होगा उसका होने वाला पति और फिर आगे जाने क्या होगा? लेकिन जब दोनों की शादी हो जाती है और दोनों साथ रहने लगते हैं तो मन की सारी आशंकाएं अपने आप ही दूर होती चली जाती हैं। एक वक्त ऐसा आता है जब दोनों को एक दूसरे से बेहद लगाव हो जाता है और फिर दोनों को ये भी लगने लगता है जैसे वो दोनों एक दूसरे के लिए ही बने थे। तुम्हारे लिए तो सबसे अच्छी बात यही है कि तुम अपने होने वाले पति के बारे में पहले से ही सब कुछ जानती हो। सबसे बड़ी बात ये जानती हो कि वो तुम्हें कितना चाहता है और तुम्हारी कितनी फ़िक्र करता है। एक औरत को इससे ज़्यादा और क्या चाहिए होता है? भूल जाओ कि तुम वैभव की भाभी हो या वैभव तुम्हारा देवर है। मन में सिर्फ ये रखो कि वो एक ऐसा लड़का है जिससे तुम्हारा ब्याह होना है।"

"यही तो नहीं कर पा रही भाभी।" रागिनी ने जैसे आहत हो कर कहा____"उसके बारे में एक पल में सब कुछ भूल जाना आसान नहीं है। मेरा तो ये सोच कर हृदय कांप जाता है कि जब उसे सच का पता चलेगा तो क्या सोचेगा वो मेरे बारे में? अगर उसने एक पल के लिए भी मेरे बारे में ग़लत सोच लिया तो कैसे नज़रें मिला पाऊंगी उससे?"

"ऐसा सिर्फ तुम सोचती हो रागिनी।" वंदना ने कहा____"ऐसा भी तो हो सकता है कि वो तुम्हारे बारे में ऐसा कुछ सोचे ही नहीं बल्कि ये सोच ले कि वो कितना किस्मत वाला है जो उसके जीवन में तुम जैसी लड़की पत्नी के रूप में मिलने वाली है। आख़िर तुम्हारी अच्छाईयां और तुम्हारी खूबियों के बारे में तो उसे पता ही है। मुझे पूरा यकीन है कि जब उसे इस सच का पता चलेगा तो वो सपने में भी तुम्हारे बारे में ग़लत नहीं सोचेगा। बल्कि यही सोचेगा कि अब वो पूरे हक़ से और पूरी आज़ादी के साथ तुम्हें खुश रखने का प्रयास कर सकेगा। हां रागिनी, जितना कुछ तुमने उसके बारे में मुझे बताया है उससे मैं पूरे यकीन के साथ कह सकती हूं कि वैभव इस रिश्ते को ख़ुशी से स्वीकार करेगा और ब्याह के बाद तुम्हें बहुत खुश रखेगा।"

रागिनी के समूचे बदन में झुरझूरी सी दौड़ गई। उसे बड़ा अजीब लग रहा था। चेहरे पर अभी भी पहले जैसी गंभीरता और उदासी छाई हुई थी।

"एक बार अपने सास ससुर के बारे में भी सोचो रागिनी।" वंदना ने कुछ सोचते हुए कहा____"तुम्हीं बताया करती थी ना कि वो दोनों तुम्हें बहू नहीं बल्कि अपनी बेटी मानते हैं और तुम्हें अपनी हवेली की शान समझते हैं। इसी से ज़ाहिर होता है कि वो तुम्हें कितना चाहते हैं। वैभव से तुम्हारा ब्याह करवा देने के पीछे उनकी यही भावना है कि तुम हमेशा उनकी बेटी बन कर उनकी हवेली की शान ही बनी रहो और साथ ही फिर से सुहागन बनने के बाद एक खुशहाल जीवन जियो। मानती हूं कि इतनी कम उमर में तुम्हें विधवा बना कर ऊपर वाले ने तुम्हारे साथ अच्छा नहीं किया है लेकिन मैं ये भी मानती हूं कि तुम बहुत भाग्यशाली हो जो तुम्हें इतने अच्छे सास ससुर मिले हैं जो सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे हितों के बारे में सोचते हैं। वरना मैंने ऐसे भी लोग देखे और सुने हैं जो अपनी बहू के विधवा हो जाने पर उसे नौकरानी बना कर सारा जीवन उसे दुख देते रहते हैं। शायद यही सब पिता जी ने और तुम्हारे भैया ने भी सोचा होगा। माना कि तुम्हारे सास ससुर ऐसे नहीं हैं लेकिन कोई भी माता पिता ये नहीं चाहते कि उनकी बेटी विधवा के रूप में जीवन भर कष्ट सहे। तुम्हारा फिर से ब्याह करने की बात तुम्हारे अपने सास ससुर ने की है। ज़ाहिर है वो भी ऐसा नहीं चाहते और फिर जब उन्होंने यहां आ कर पिता जी से इस रिश्ते की बात कही तो पिता जी भी झट से मान गए थे। इस डर से नहीं कि तुम्हारा क्या होगा बल्कि इस खुशी में कि अपनी बेटी का जिस तरह से भला वो खुद चाहते थे वैसा उनकी बेटी के सास ससुर खुद ही चाहते हैं। तुम्हीं सोचो कि आज के युग में ऐसे महान सास ससुर कहां मिलते हैं जो अपनी बहू के बारे में इतना कुछ सोचें?"

"हां ये तो आप सही कह रही हैं।" रागिनी ने सिर हिलाते हुए धीमें से कहा____"इस मामले में मेरे सास ससुर बहुत अच्छे हैं। उन्होंने कभी भूल से भी किसी तरह का मुझे कोई कष्ट नहीं दिया। इतना कुछ हो जाने के बाद भी उन्होंने मुझे किसी बात का ताना नहीं मारा बल्कि मेरे दुख से दुखी हो कर हमेशा मुझे अपने सीने से लगाए रखा था।"

"इसी लिए तो कहती हूं रागिनी कि तुम बहुत भाग्यशाली हो।" वंदना ने कहा____"पूर्व जन्म में तुमने ज़रूर बहुत अच्छे कर्म किए थे जिसके चलते इस जन्म में तुम्हें इतने अच्छे सास ससुर मिले हैं। पति में भी कोई ख़राबी नहीं थी, वो तो उन बेचारे की किस्मत ही ख़राब थी जिसके चलते ऊपर वाले ने उन्हें अपने पास बुला लिया। तुम्हारे देवर के बारे में तुमसे बेहतर कौन जान सकता है? सच तो ये है कि तुम्हारे ससुराल में हर कोई बहुत अच्छा है। इस लिए मैं तो यही कहूंगी कि तुम अब कुछ भी मत सोचो, ईश्वर ने तुम्हारी खुशियां छीनी थी तो उसने फिर से तुम्हें खुशियां देने के लिए इस तरह का रिश्ता भेज दिया है। इसे ख़ुशी ख़ुशी क़बूल करो और वैभव के साथ जीवन में आगे बढ़ जाओ।"

अभी रागिनी कुछ कहने ही वाली थी कि तभी रसोई में कामिनी आ गई। उसने बताया कि पिता जी और भैया खेतों से आ गए हैं और हाथ मुंह धोने के बाद जल्दी ही बरामदे में खाना खाने के लिए आ जाएंगे। कामिनी की इस बात के बाद वंदना और रागिनी जल्दी जल्दी थाली सजाने की तैयारी करने लगीं।

✮✮✮✮

रूपचंद्र के जाने के बाद मेरे मन में विचारों का जैसे बवंडर सा उठ खड़ा हुआ था। वो तो चला गया था लेकिन मुझे उलझा गया था। मैं सोचने लगा था कि आख़िर कौन से सच की बात कर रहा था वो और तो और वो ख़ुद क्यों नहीं बता सकता था? आख़िर ऐसा कौन सा सच होगा जिसे मैं अपने माता पिता से ही जान सकता था?

दोपहर तक मैं इसी तरह विचारों में उलझा रहा और मजदूरों को काम करते हुए देखता रहा। उसके बाद मैं खाना खाने के लिए मोटर साईकिल में बैठ कर हवेली की तरफ चल पड़ा। मन ही मन फ़ैसला कर लिया कि मौका मिलते ही मां से पूछूंगा कि अभी ऐसा क्या है जिसे उन्होंने मुझे नहीं बताया है?

हवेली पहुंचा तो देखा पिता जी खाना खाने बैठ चुके थे। मुंशी किशोरी लाल भी बैठा हुआ था। मुझे आया देख मां ने मुझे भी हाथ मुंह धो कर बैठ जाने के लिए कहा। मैं फ़ौरन ही हाथ मुंह धो के आया और कुर्सी पर बैठ गया। कुसुम और कजरी खाना परोसने लगीं। खाना खाने के दरमियान हमेशा की ही तरह ख़ामोशी रही। पिता जी को खाते वक्त बातें करना बिल्कुल भी पसंद नहीं था।

खाना पीना कर के जब पिता जी और मुंशी जी चले गए तो मैंने मां की तरफ देखा। मुझे पिता जी और मुंशी जी की तरह कुर्सी से उठ कर न गया देख मां समझ गईं कि कोई बात है जिसके चलते मैं अभी भी कुर्सी पर बैठा हुआ था।

"क्या हुआ बेटा?" मां ने मेरे क़रीब आ कर बड़े स्नेह से कहा____"भोजन तो कर चुका है तू, फिर बैठा क्यों है? आराम नहीं करना है क्या तुझे?"

"आराम बाद में कर लूंगा मां।" मैंने कहा____"इस वक्त मुझे आपसे कुछ जानना है और उम्मीद करता हूं कि आप मुझे सब कुछ सच सच बताएंगी।"

मेरी बात सुन कर मां मेरी तरफ बड़े ध्यान से देखने लगीं। कजरी तो जूठे बर्तन उठा कर चली गई थी लेकिन कुसुम मेरी बात सुन कर ठिठक गई थी और उत्सुक भाव से हमारी तरफ देखने लगी थी।

"क्या जानना चाहता है तू?" इधर मां ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा____"तेरी भाभी के बारे में तो मैंने तुझे कल ही बता दिया था, फिर अब क्या जानना चाहता है?"

"वही जो आपने नहीं बताया।" मैंने मां की तरफ ध्यान से देखते हुए कहा____"और मुझे लगता है कि अभी भी आपने मुझसे कुछ छुपा रखा है।"

"अपने कमरे में जा।" मां ने गहरी सांस ले कर कहा____"मैं आती हूं थोड़ी देर में।"

"ठीक है।" मैंने कुर्सी से उठते हुए कहा____"जल्दी आइएगा।"

कहने के साथ ही मैं तो अपने कमरे की तरफ चला गया किंतु पीछे मां एकदम से परेशान हो उठीं थी। कुछ पलों तक जाने वो क्या सोचती रहीं फिर खुद को सम्हालते हुए अपने कमरे की तरफ बढ़ चलीं। जल्दी ही वो कमरे में पहुंच गईं। कमरे में पिता जी पलंग पर आराम करने के लिए लेट चुके थे। कमरे में आते ही मां ने कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया। ये देख पिता जी के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे।

"क्या हुआ?" वो पूछ ही बैठे____"आपको भोजन नहीं करना क्या?"

"बाद में कर लेंगे।" उन्होंने पिता जी के क़रीब जा कर कहा____"इस वक्त एक समस्या हो गई है।"

"स...समस्या??" पिता जी चौंके____"ये क्या कह रही हैं आप?"

"लगता है हमारे बेटे को शक हो गया है।" मां ने चिंतित भाव से कहा____"अभी अभी वो हमसे कोई बात जानने की बात कह रहा था और ये भी कह रहा था कि हमने अभी भी उससे कुछ छुपाया है।"

"क्या उसने स्पष्ट रूप से आपसे ऐसा कुछ कहा है?" पिता जी ने पूछा____"क्या आपको लगता है कि वो रागिनी बहू के बारे में आपसे जानने की बात कह रहा था?"

"पता नहीं।" मां ने कहा____"लेकिन जिस अंदाज़ में बोल रहा था उससे तो यही लगता है कि वो रागिनी बहू के बारे में ही जानना चाहता है।"

मां की इस बात पर पिता जी फ़ौरन कुछ ना बोले। उनके चेहरे पर सोचने वाले भाव उभर आए थे। मां बेचैनी से उन्हें ही देखे जा रहीं थी।

"क्या सोचने लगे आप?" फिर उन्होंने कहा____"कुछ बोल क्यों नहीं रहे हैं? हमने उसे कमरे में जाने को कह दिया है और ये भी कहा है कि आते हैं थोड़ी देर में। ज़ाहिर है वो हमारी प्रतीक्षा करेगा। समझ में नहीं आ रहा कि अगर उसने रागिनी बहू के बारे में ही पूछेगा तो क्या बताएंगे उसे?"

"हमें लगता है कि सच बताना ही पड़ेगा उसे।" पिता जी ने गहरी सांस ले कर कहा____"इस बात को ज़्यादा समय तक उससे छुपा के भी नहीं रख सकते। वैसे भी जो कुछ उसे बताया गया है उससे वो परेशान और दुखी ही होगा। इस लिए बेहतर है कि उसे सच ही बता दिया जाए।"

"क्या आपको लगता है कि सच जानने के बाद वो चुप बैठेगा?" मां ने कहा____"पहले ही वो अनुराधा की मौत हो जाने से टूट सा गया था और बड़ी मुश्किल से उसके सदमे से बाहर आया है। अगर उसे ये बात बताएंगे तो जाने क्या सोच बैठे वो और फिर जाने क्या करने पर उतारू हो जाए?"

"हम मानते हैं कि उसको सच बताना ख़तरा मोल लेने जैसा है।" पिता जी ने कहा____"लेकिन एक दिन तो उसे बताना ही पड़ेगा इस सच को। वैसे हमारा ख़याल है कि अगर आप उसे बेहतर तरीके से समझाएंगी तो शायद वो समझ जाएगा। आप उसे ये भी बता सकती हैं कि ये सब कुल गुरु की भविष्यवाणी के अनुसार ही हो रहा है।"

"कुल गुरु का नाम लेंगे तो वो भड़क जाएगा।" मां ने झट से कहा____"पहले भी वो अपने बड़े भाई की भविष्यवाणी वाली बात से उन पर बिगड़ गया था।"

"तो फिर आप उसे समझाइएगा कि इसी में सबका भला है।" पिता जी ने कहा____"ख़ास कर उसकी भौजाई का। अगर वो चाहता है कि उसकी भौजाई हमेशा खुश रहे और इसी हवेली में रहे तो उसे इस रिश्ते को स्वीकार करना ही होगा।"

पिता जी की इस बात पर मां कुछ देर तक उन्हें देखतीं रहीं। इतना तो वो भी समझती थीं कि एक दिन सच का पता वैभव को चलेगा ही तो बेहतर है आज ही बता दिया जाए। वैसे उन्हें यकीन था कि अपनी भाभी की ख़ुशी के लिए उनका बेटा ज़रूर इस रिश्ते को स्वीकार कर लेगा।

"ठीक है फिर।" मां ने जैसे निर्णायक अंदाज़ से कहा____"हम जा कर उसे सच बता देते हैं। अब जो होगा देखा जाएगा।"

✮✮✮✮

मैं पलंग पर लेटा बड़ी शिद्दत से मां का इंतज़ार कर रहा था। मन में तरह तरह के ख़याल उभर रहे थे जिसकी वजह से मेरी बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी। तभी खुले दरवाज़े पर मां नज़र आईं। उन्हें देखते ही मैं उठ कर बैठ गया। उधर वो कमरे में दाख़िल हो कर मेरे पास आईं और पलंग पर बैठ गईं। उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंची हुई थीं।

"आने में बड़ी देर लगा दी आपने?" मैंने व्याकुल भाव से कहा____"ख़ैर अब बताइए कि मुझसे और क्या छुपाया है आपने?"

"मैं तुझे सच बता दूंगी।" मां ने कहा____"लेकिन उससे पहले मैं तुझसे कुछ पूछना चाहती हूं। मैं चाहती हूं कि मैं तुझसे जो भी पूछूं उसका तू पूरी ईमानदारी से सच सच जवाब दे।"

"बिल्कुल दूंगा मां।" मैंने एकदम दृढ़ हो कर कहा____"आप पूछिए, मैं आपको वचन देता हूं कि आप जो कुछ भी मुझसे पूछेंगी मैं उसका सच सच जवाब दूंगा।"

"ठीक है।" मां ने एक लंबी सांस ली____"मैं तुझसे ये जानना चाहती हूं कि तू अपनी भाभी के बारे में क्या सोचता है?"

"य...ये कैसा सवाल है मां?" मैंने हैरानी से उन्हें देखा____"आप अच्छी तरह जानती हैं कि मेरी नज़र में भाभी की क्या अहमियत है। वो इस हवेली की शान हैं। उनके जैसी बहू और भाभी हमारे पास होना बड़े गौरव की बात है।"

"ये मैं जानती हूं।" मां ने कहा____"मैं तुझसे इसके अलावा जानना चाहती हूं। जैसे कि, क्या तू चाहता है कि तेरी भाभी हमेशा इस हवेली की शान बनी रहे? क्या तू चाहता है कि तेरी भाभी अपने जीवन में हमेशा खुश रहे?"

"मुझे समझ नहीं आ रहा कि आप ये कैसे सवाल कर रही हैं?" मैंने थोड़ा परेशान हो कर कहा____"आप अच्छी तरह जानती हैं कि ऐसा इस हवेली में हर कोई चाहता है।"

"मैं हर किसी की नहीं।" मां ने कहा____"बल्कि तेरी बात कर रही हूं। तू अपनी बता कि तू क्या चाहता है?"

"सबकी तरह मैं भी यही चाहता हूं कि मेरी भाभी हमेशा खुश रहें।" मैंने कहा____"उनके जीवन में कभी कोई दुख न आए। भैया के गुज़र जाने के बाद मेरी यही कोशिश थी कि मैं हर वक्त उनके चेहरे पर मुस्कान ला सकूं।"

"सिर्फ इतना ही?" मां ने अजीब भाव से मेरी तरफ देखा।

"और क्या मां?" मैंने कहा____"हम सबसे जितना हो सकता है उतना ही तो कर सकते हैं। काश! इससे ज़्यादा कुछ करना मेरे बस में होता तो मैं वो भी करता उनकी खुशी के लिए।"

"क्या तुझे लगता है कि तेरे बस में सिर्फ इतना ही था?" मां ने बड़े ध्यान से मेरी तरफ देखते हुए पूछा____"अगर मैं कहूं कि तू उसकी खुशी के लिए और भी बहुत कुछ कर सकता है तो क्या तू करेगा?"

"बिल्कुल करूंगा मां।" मैंने झट से कहा____"अगर मुझे पता चल जाए कि जिस चीज़ से भाभी खुश हो जाएंगी वो दुनिया के फला कोने में है तो यकीन मानिए मैं उस कोने में जा कर वो चीज़ ले आऊंगा और भाभी को दे कर उन्हें खुश करूंगा। अब इससे ज़्यादा क्या कहूं?"

"क्या तू उसकी खुशी के लिए कुछ भी कर सकता है?" मां ने जैसे मुझे परखा।

"हां, अगर मेरे बस में हुआ तो कुछ भी कर जाऊंगा।" मैंने पूरी दृढ़ता से कहा____"आज मैं जो कुछ भी हूं उसमें मेरी भाभी का बहुत बड़ा हाथ है मां। इस लिए अपनी भाभी को खुश करने के लिए कुछ भी कर सकता हूं लेकिन अब शायद ऐसा नहीं कर सकूंगा क्योंकि उनके माता पिता उनका फिर से कहीं ब्याह करने का फ़ैसला कर चुके हैं। अब वो ना आपकी बहू रहेंगी और ना ही मेरी भाभी। इस हवेली से हमेशा के लिए उनका नाता टूट जाएगा।"

"क्या तू चाहता है कि तेरी भाभी कहीं न जाए और इसी हवेली में बहू बन कर रहे?" मां ने पूछा।

"मैं अपने स्वार्थ के लिए उनका जीवन बर्बाद नहीं कर सकता मां।" मैंने सहसा गंभीर हो कर कहा____"उनके लिए यही बेहतर है कि उनका फिर से ब्याह हो जाए ताकि वो अपने पति के साथ जीवन में हमेशा खुश रह सकें।"

"अगर वो फिर से सुहागन बन कर इस हवेली में आ जाए तो क्या वो खुश नहीं रहेगी?" मां ने धड़कते दिल से कहते हुए मेरी तरफ देखा।

"य...ये क्या कह रही हैं आप?" मैं एकदम से चकरा सा गया____"ऐसा भला कैसे हो सकता है?"

"क्यों नहीं हो सकता?" मां ने जैसे तर्क़ दिया____"अगर तू उसे ब्याह करके इस हवेली में ले आएगा तो क्या वो फिर से खुश नहीं हो जाएगी?"

तीव्र झटका लगा मुझे। ऐसा लगा जैसे आसमान से मैं पूरे वेग से धरती पर आ गिरा था। हैरत से आंखें फाड़े मैं देखता रह गया मां को। उधर वो भी चहरे पर हल्के घबराहट के भाव लिए मेरी तरफ ही देखे जा रहीं थी।

"क...क्या हुआ?" फिर उन्होंने कहा____"क्या तू अपनी भाभी की खुशी के लिए उससे ब्याह नहीं कर सकता?"

"य...ये आप क्या बोल रही हैं मां?" मैं सकते जैसी हालत में था____"आप होश में तो हैं? आप ऐसा सोच भी कैसे सकती हैं?"

"वक्त और हालात इंसान को और भी बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देते हैं बेटा।" मां ने जब देखा कि मैं उनकी इस बात से भड़का नहीं हूं तो उन्होंने राहत की सांस लेते हुए कहा____"तुझे बताने की ज़रूरत नहीं है कि रागिनी हमारे लिए क्या मायने रखती है। तू भी जानता है और मानता भी है कि इस हवेली में उसके रहने से हम सब कैसा महसूस करते हैं? ये तो उस बेचारी की बदकिस्मती थी कि उसे इतनी कम उमर में विधवा हो जाना पड़ा लेकिन सोचने वाली बात है कि क्या हम उसे ऐसे ही सारी जिंदगी यहां रखेंगे और उसे दुख सहता देखेंगे? नहीं बेटा, ऐसा ना हम चाह सकते हैं और ना ही तू। यही सब बातें मैं और तेरे पिता जी अक्सर अकेले में सोचते थे। तब हमने फ़ैसला किया कि हम अपनी बहू को हमेशा खुश रखने के लिए उसका फिर से ब्याह करेंगे। हम ये भी चाहते थे कि वो हमेशा हमारी ही बहू बन कर इस हवेली में रहे और ऐसा तो तभी संभव होगा जब उसका ब्याह हम अपने ही बेटे से यानि तुझसे करें।"

"बड़ी अजीब बातें कर रही हैं आप।" मैंने चकित भाव से कहा____"आप सोच भी कैसे सकती हैं कि मैं अपनी भाभी से ब्याह करने का सोच भी सकता हूं? मैं उनकी बहुत इज्ज़त करता हूं और मेरे लिए वो किसी देवी की तरह पूज्यनीय हैं।"

"मैं जानती हूं बेटा।" मां ने सिर हिलाते हुए कहा____"और उसके प्रति तेरी भावनाओं को भी समझती हूं लेकिन तुझे भी समझना होगा कि ज़रूरत पड़ने पर सबकी भलाई के लिए हमें ऐसे भी काम करने पड़ते हैं जिसे करने के लिए पहली नज़र में हमारा दिल नहीं मानता।"

"लेकिन मां वो मेरी भाभी हैं।" मैंने पुरज़ोर भाव से कहा____"उनके बारे में ऐसा सोचना भी मेरे लिए गुनाह है।"

"देवर का भाभी से ब्याह होना ऐसी बात नहीं है बेटा जिसे समाज मान्यता नहीं देता।" मां ने जैसे मुझे समझाते हुए कहा____"दुनिया में ऐसा पहले भी हुआ है और आगे भी ज़रूरत पड़ने पर होता रहेगा। इस लिए तू इस बारे में व्यर्थ की बातें मत सोच। तू जानना चाहता था न कि मैंने तुझसे अभी और क्या छुपाया है तो वो यही है। असल में जब मैंने और तुम्हारे पिता जी ने रागिनी का फिर से ब्याह करने का सोच लिया और ये भी सोच लिया कि हम उसका ब्याह तुझसे ही करेंगे तो हमने इस बारे में सबसे पहले रागिनी के पिता जी से भी चर्चा करने का सोच लिया था। कुछ दिन पहले तेरे पिता जी चंदनपुर गए थे समधी जी से इस बारे में बात करने। जब उन्होंने रागिनी के पिता जी से इस बारे में चर्चा की तो वो भी इस रिश्ते के लिए खुशी खुशी मान गए। उन्हें तो इसी बात से खुशी हुई थी कि हम उनकी बेटी की भलाई के लिए इतना कुछ सोचते हैं।"

मैं अवाक सा देखता रह गया मां को। एकाएक ही मेरे मन मस्तिष्क में धमाके से होने लगे थे। अचानक ही ज़हन में वो बातें गूंजने लगीं जो चंदनपुर में कामिनी से हुईं थी और फिर भाभी से हुईं थी। भाभी का उदास और गंभीर चेहरा मेरी आंखों के सामने उजागर हो गया। उनकी बातें मेरे कानों में गूंजने लगीं।



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Awesome update tha bhai ekdamm lallantop bhai. Ab maja aayga bhai 👌👌👌👌👌👍👍👍👍👍👍
 

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"मुझे ग़लत मत समझना वैभव।" रूपचंद्र ने कहा____"लेकिन इस बारे में मैं तुम्हें कुछ नहीं बता सकता।"

मैं मूर्खों की तरह देखता रह गया उसे। रूपचंद्र के चेहरे पर खेद पूर्ण भाव थे। कुछ देर वो ख़ामोशी से मुझे देखता रहा उसके बाद मेरे कंधे पर हल्के से हाथ की थपकी देने के बाद चला गया। मुझे समझ ना आया कि अब ये क्या चक्कर है?



अब आगे....


रसोई में रागिनी अपनी भाभी वंदना का खाना बनाने में हाथ बंटा रही थी। यूं तो घर में उसे कोई भी काम करने के लिए नहीं कहता था लेकिन उसे खुद ही अच्छा नहीं लगता था कि वो बैठ के सिर्फ खाना खाए। पहले भी उसे काम करना बेहद पसंद था और आज भी वो खाली बैठना पसंद नहीं करती थी।

कुछ समय पहले तक सब ठीक ही था लेकिन फिर एक दिन उसके ससुर यानि दादा ठाकुर यहां आए। उन्होंने उसके पिता से उसके ब्याह के संबंध में जो भी बातें की उसके बारे में जान कर उसे बड़ा झटका लगा था। पहले तो ये बात उसे अपनी भाभी वंदना ने ही बताया और फिर रात में उसकी मां ने बताया। रागिनी के लिए वो सारी बातें ऐसी थीं कि उसके बाद से जैसे उसका हंसना मुस्कुराना ही बंद हो गया था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसके ससुर उसका फिर से ब्याह करने की चर्चा करने उसके पिता के पास आए थे। बात अगर सिर्फ इतनी ही होती तो कदाचित उसे इतना झटका नहीं लगता किंतु झटके वाली बात ये थी कि उसके ससुर उसका ब्याह उसके ही देवर से करने की बात बोले थे।

रागिनी के लिए ये बात किसी झटके से कम नहीं थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसके ससुर ऐसा कैसे चाह सकते थे और उसके खुद के पिता भी उनकी इस बात को मंजूरी कैसे दे सकते थे? अब क्योंकि वो खुद किसी से इस बारे में कुछ कह नहीं सकती थी इस लिए अंदर ही अंदर वो इस बात से परेशान हो गई थी। दो तीन दिन तक यही आलम रहा लेकिन फिर उसकी मां के समझाने पर वो थोड़ा सामान्य होने लगी थी। हालाकि अंदर से वो अभी भी बेचैन थी।

वैभव को उसने देवर के साथ साथ हमेशा ही अपना छोटा भाई समझा था। वो अच्छी तरह जानती थी कि वैभव कैसे चरित्र का लड़का है इसके बाद भी वो ये समझती थी कि वैभव ने कभी उसे ग़लत नज़र से नहीं देखा था। हालाकि ये सिर्फ उसका सोचना ही था क्योंकि कोई भी व्यक्ति किसी के अंदर की बात पूर्ण रूप से नहीं जान रहा होता है, ये तो बस उसका विश्वास था।

"अब इतना भी मत सोचो रागिनी।" वंदना ने उसे ख़ामोशी से काम करते देखा तो बोल पड़ी____"तुम भी अच्छी तरह समझती हो कि तुम्हारे ससुर जी और तुम्हारे पिता जी तुम्हारी भलाई के लिए ही ऐसा चाहते हैं। सच कहूं तो इस रिश्ते के लिए किसी को भी कोई आपत्ति नहीं है। तुम्हें पता है, तुम्हारे भैया से हर रोज़ मेरी इस बारे में बात होती है। उनका भी यही कहना है कि तुम्हारा वैभव के साथ ब्याह कर देने का फ़ैसला बिल्कुल भी ग़लत नहीं है। देवर से भाभी का ब्याह हो जाना कोई ग़लत नहीं है। ऐसा तो हमेशा से होता आया है।"

"मैं दुबारा ब्याह करने से इंकार नहीं कर रही भाभी।" रागिनी ने गंभीर भाव से कहा____"मैं सिर्फ ये कह रही हूं कि वैभव से ही क्यों? जिसे अब तक मैं अपने देवर के साथ साथ अपना छोटा भाई समझती आई हूं उसे एकदम से पति की नज़र से कैसे देखने लगूं? आप लोगों ने तो कह दिया लेकिन आप लोग ये नहीं समझ रहे हैं कि इस बारे में मैं क्या महसूस करती हूं।"

"ऐसा नहीं है रागिनी।" वंदना ने कहा____"हम सबको एहसास है कि इस रिश्ते के बारे में तुम इस समय कैसा महसूस करती होगी। तुम्हारी जगह मैं होती तो मेरा भी यही कहना होता लेकिन जीवन में हमें इसके अलावा भी कई सारी बातें सोचनी पड़ती हैं। तुम्हारा कहना है कि वैभव से ही क्यों? यानि तुम्हें वैभव से ब्याह करने में आपत्ति है, जबकि नहीं होनी चाहिए। ऐसा इस लिए क्योंकि तुम उसके बारे में पहले से ही सब कुछ जानती हो। तुम जानती हो कि वो तुम्हारी कितनी इज्ज़त करता है और कितनी फ़िक्र करता है। तुम्हीं ने बताया था कि वो तुम्हारे होठों पर मुस्कान लाने के लिए क्या क्या करता रहता है। सोचने वाली बात है रागिनी कि जो व्यक्ति तुम्हारी खुशी के लिए इतना कुछ करता हो और तुम्हें इतना चाहता हो उससे ब्याह करने से इंकार क्यों? किसी दूसरे व्यक्ति से ब्याह करने का सोचती हो तो बताओ क्या वो व्यक्ति वैभव की तरह तुम्हें मान सम्मान देगा? क्या वो वैभव की तरह तुम्हें चाहेगा और क्या उसके घर वाले तुम्हें अपने घर की शान बना लेंगे?"

रागिनी कुछ बोल ना सकी किंतु चेहरे से स्पष्ट नज़र आ रहा था कि उसके मन में बहुत कुछ चल रहा था। वंदना कुछ देर तक उसे देखती रही।

"मैं जानती हूं कि तुमने अपने जीवन में कभी किसी लड़के का ख़याल भी अपने मन में नहीं लाया था।" फिर उसने रागिनी के दोनों कन्धों को पकड़ कर बड़े स्नेह से कहा____"तुम्हारे जीवन में जो आया वो सिर्फ तुम्हारा पति ही था। यही वजह है कि तुम किसी और के बारे में ऐसा सोचना ही नहीं चाहती, ख़ास कर वैभव के बारे में। तुम भी जानती हो कि शादी से पहले लड़का लड़की एक दूसरे के लिए अजनबी ही होते हैं। दोनों के मन में एक दूसरे के प्रति कई तरह की आशंकाएं रहती हैं। ख़ास कर लड़की ये सोच कर परेशान हो जाती है कि जाने कैसा होगा उसका होने वाला पति और फिर आगे जाने क्या होगा? लेकिन जब दोनों की शादी हो जाती है और दोनों साथ रहने लगते हैं तो मन की सारी आशंकाएं अपने आप ही दूर होती चली जाती हैं। एक वक्त ऐसा आता है जब दोनों को एक दूसरे से बेहद लगाव हो जाता है और फिर दोनों को ये भी लगने लगता है जैसे वो दोनों एक दूसरे के लिए ही बने थे। तुम्हारे लिए तो सबसे अच्छी बात यही है कि तुम अपने होने वाले पति के बारे में पहले से ही सब कुछ जानती हो। सबसे बड़ी बात ये जानती हो कि वो तुम्हें कितना चाहता है और तुम्हारी कितनी फ़िक्र करता है। एक औरत को इससे ज़्यादा और क्या चाहिए होता है? भूल जाओ कि तुम वैभव की भाभी हो या वैभव तुम्हारा देवर है। मन में सिर्फ ये रखो कि वो एक ऐसा लड़का है जिससे तुम्हारा ब्याह होना है।"

"यही तो नहीं कर पा रही भाभी।" रागिनी ने जैसे आहत हो कर कहा____"उसके बारे में एक पल में सब कुछ भूल जाना आसान नहीं है। मेरा तो ये सोच कर हृदय कांप जाता है कि जब उसे सच का पता चलेगा तो क्या सोचेगा वो मेरे बारे में? अगर उसने एक पल के लिए भी मेरे बारे में ग़लत सोच लिया तो कैसे नज़रें मिला पाऊंगी उससे?"

"ऐसा सिर्फ तुम सोचती हो रागिनी।" वंदना ने कहा____"ऐसा भी तो हो सकता है कि वो तुम्हारे बारे में ऐसा कुछ सोचे ही नहीं बल्कि ये सोच ले कि वो कितना किस्मत वाला है जो उसके जीवन में तुम जैसी लड़की पत्नी के रूप में मिलने वाली है। आख़िर तुम्हारी अच्छाईयां और तुम्हारी खूबियों के बारे में तो उसे पता ही है। मुझे पूरा यकीन है कि जब उसे इस सच का पता चलेगा तो वो सपने में भी तुम्हारे बारे में ग़लत नहीं सोचेगा। बल्कि यही सोचेगा कि अब वो पूरे हक़ से और पूरी आज़ादी के साथ तुम्हें खुश रखने का प्रयास कर सकेगा। हां रागिनी, जितना कुछ तुमने उसके बारे में मुझे बताया है उससे मैं पूरे यकीन के साथ कह सकती हूं कि वैभव इस रिश्ते को ख़ुशी से स्वीकार करेगा और ब्याह के बाद तुम्हें बहुत खुश रखेगा।"

रागिनी के समूचे बदन में झुरझूरी सी दौड़ गई। उसे बड़ा अजीब लग रहा था। चेहरे पर अभी भी पहले जैसी गंभीरता और उदासी छाई हुई थी।

"एक बार अपने सास ससुर के बारे में भी सोचो रागिनी।" वंदना ने कुछ सोचते हुए कहा____"तुम्हीं बताया करती थी ना कि वो दोनों तुम्हें बहू नहीं बल्कि अपनी बेटी मानते हैं और तुम्हें अपनी हवेली की शान समझते हैं। इसी से ज़ाहिर होता है कि वो तुम्हें कितना चाहते हैं। वैभव से तुम्हारा ब्याह करवा देने के पीछे उनकी यही भावना है कि तुम हमेशा उनकी बेटी बन कर उनकी हवेली की शान ही बनी रहो और साथ ही फिर से सुहागन बनने के बाद एक खुशहाल जीवन जियो। मानती हूं कि इतनी कम उमर में तुम्हें विधवा बना कर ऊपर वाले ने तुम्हारे साथ अच्छा नहीं किया है लेकिन मैं ये भी मानती हूं कि तुम बहुत भाग्यशाली हो जो तुम्हें इतने अच्छे सास ससुर मिले हैं जो सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे हितों के बारे में सोचते हैं। वरना मैंने ऐसे भी लोग देखे और सुने हैं जो अपनी बहू के विधवा हो जाने पर उसे नौकरानी बना कर सारा जीवन उसे दुख देते रहते हैं। शायद यही सब पिता जी ने और तुम्हारे भैया ने भी सोचा होगा। माना कि तुम्हारे सास ससुर ऐसे नहीं हैं लेकिन कोई भी माता पिता ये नहीं चाहते कि उनकी बेटी विधवा के रूप में जीवन भर कष्ट सहे। तुम्हारा फिर से ब्याह करने की बात तुम्हारे अपने सास ससुर ने की है। ज़ाहिर है वो भी ऐसा नहीं चाहते और फिर जब उन्होंने यहां आ कर पिता जी से इस रिश्ते की बात कही तो पिता जी भी झट से मान गए थे। इस डर से नहीं कि तुम्हारा क्या होगा बल्कि इस खुशी में कि अपनी बेटी का जिस तरह से भला वो खुद चाहते थे वैसा उनकी बेटी के सास ससुर खुद ही चाहते हैं। तुम्हीं सोचो कि आज के युग में ऐसे महान सास ससुर कहां मिलते हैं जो अपनी बहू के बारे में इतना कुछ सोचें?"

"हां ये तो आप सही कह रही हैं।" रागिनी ने सिर हिलाते हुए धीमें से कहा____"इस मामले में मेरे सास ससुर बहुत अच्छे हैं। उन्होंने कभी भूल से भी किसी तरह का मुझे कोई कष्ट नहीं दिया। इतना कुछ हो जाने के बाद भी उन्होंने मुझे किसी बात का ताना नहीं मारा बल्कि मेरे दुख से दुखी हो कर हमेशा मुझे अपने सीने से लगाए रखा था।"

"इसी लिए तो कहती हूं रागिनी कि तुम बहुत भाग्यशाली हो।" वंदना ने कहा____"पूर्व जन्म में तुमने ज़रूर बहुत अच्छे कर्म किए थे जिसके चलते इस जन्म में तुम्हें इतने अच्छे सास ससुर मिले हैं। पति में भी कोई ख़राबी नहीं थी, वो तो उन बेचारे की किस्मत ही ख़राब थी जिसके चलते ऊपर वाले ने उन्हें अपने पास बुला लिया। तुम्हारे देवर के बारे में तुमसे बेहतर कौन जान सकता है? सच तो ये है कि तुम्हारे ससुराल में हर कोई बहुत अच्छा है। इस लिए मैं तो यही कहूंगी कि तुम अब कुछ भी मत सोचो, ईश्वर ने तुम्हारी खुशियां छीनी थी तो उसने फिर से तुम्हें खुशियां देने के लिए इस तरह का रिश्ता भेज दिया है। इसे ख़ुशी ख़ुशी क़बूल करो और वैभव के साथ जीवन में आगे बढ़ जाओ।"

अभी रागिनी कुछ कहने ही वाली थी कि तभी रसोई में कामिनी आ गई। उसने बताया कि पिता जी और भैया खेतों से आ गए हैं और हाथ मुंह धोने के बाद जल्दी ही बरामदे में खाना खाने के लिए आ जाएंगे। कामिनी की इस बात के बाद वंदना और रागिनी जल्दी जल्दी थाली सजाने की तैयारी करने लगीं।

✮✮✮✮

रूपचंद्र के जाने के बाद मेरे मन में विचारों का जैसे बवंडर सा उठ खड़ा हुआ था। वो तो चला गया था लेकिन मुझे उलझा गया था। मैं सोचने लगा था कि आख़िर कौन से सच की बात कर रहा था वो और तो और वो ख़ुद क्यों नहीं बता सकता था? आख़िर ऐसा कौन सा सच होगा जिसे मैं अपने माता पिता से ही जान सकता था?

दोपहर तक मैं इसी तरह विचारों में उलझा रहा और मजदूरों को काम करते हुए देखता रहा। उसके बाद मैं खाना खाने के लिए मोटर साईकिल में बैठ कर हवेली की तरफ चल पड़ा। मन ही मन फ़ैसला कर लिया कि मौका मिलते ही मां से पूछूंगा कि अभी ऐसा क्या है जिसे उन्होंने मुझे नहीं बताया है?

हवेली पहुंचा तो देखा पिता जी खाना खाने बैठ चुके थे। मुंशी किशोरी लाल भी बैठा हुआ था। मुझे आया देख मां ने मुझे भी हाथ मुंह धो कर बैठ जाने के लिए कहा। मैं फ़ौरन ही हाथ मुंह धो के आया और कुर्सी पर बैठ गया। कुसुम और कजरी खाना परोसने लगीं। खाना खाने के दरमियान हमेशा की ही तरह ख़ामोशी रही। पिता जी को खाते वक्त बातें करना बिल्कुल भी पसंद नहीं था।

खाना पीना कर के जब पिता जी और मुंशी जी चले गए तो मैंने मां की तरफ देखा। मुझे पिता जी और मुंशी जी की तरह कुर्सी से उठ कर न गया देख मां समझ गईं कि कोई बात है जिसके चलते मैं अभी भी कुर्सी पर बैठा हुआ था।

"क्या हुआ बेटा?" मां ने मेरे क़रीब आ कर बड़े स्नेह से कहा____"भोजन तो कर चुका है तू, फिर बैठा क्यों है? आराम नहीं करना है क्या तुझे?"

"आराम बाद में कर लूंगा मां।" मैंने कहा____"इस वक्त मुझे आपसे कुछ जानना है और उम्मीद करता हूं कि आप मुझे सब कुछ सच सच बताएंगी।"

मेरी बात सुन कर मां मेरी तरफ बड़े ध्यान से देखने लगीं। कजरी तो जूठे बर्तन उठा कर चली गई थी लेकिन कुसुम मेरी बात सुन कर ठिठक गई थी और उत्सुक भाव से हमारी तरफ देखने लगी थी।

"क्या जानना चाहता है तू?" इधर मां ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा____"तेरी भाभी के बारे में तो मैंने तुझे कल ही बता दिया था, फिर अब क्या जानना चाहता है?"

"वही जो आपने नहीं बताया।" मैंने मां की तरफ ध्यान से देखते हुए कहा____"और मुझे लगता है कि अभी भी आपने मुझसे कुछ छुपा रखा है।"

"अपने कमरे में जा।" मां ने गहरी सांस ले कर कहा____"मैं आती हूं थोड़ी देर में।"

"ठीक है।" मैंने कुर्सी से उठते हुए कहा____"जल्दी आइएगा।"

कहने के साथ ही मैं तो अपने कमरे की तरफ चला गया किंतु पीछे मां एकदम से परेशान हो उठीं थी। कुछ पलों तक जाने वो क्या सोचती रहीं फिर खुद को सम्हालते हुए अपने कमरे की तरफ बढ़ चलीं। जल्दी ही वो कमरे में पहुंच गईं। कमरे में पिता जी पलंग पर आराम करने के लिए लेट चुके थे। कमरे में आते ही मां ने कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया। ये देख पिता जी के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे।

"क्या हुआ?" वो पूछ ही बैठे____"आपको भोजन नहीं करना क्या?"

"बाद में कर लेंगे।" उन्होंने पिता जी के क़रीब जा कर कहा____"इस वक्त एक समस्या हो गई है।"

"स...समस्या??" पिता जी चौंके____"ये क्या कह रही हैं आप?"

"लगता है हमारे बेटे को शक हो गया है।" मां ने चिंतित भाव से कहा____"अभी अभी वो हमसे कोई बात जानने की बात कह रहा था और ये भी कह रहा था कि हमने अभी भी उससे कुछ छुपाया है।"

"क्या उसने स्पष्ट रूप से आपसे ऐसा कुछ कहा है?" पिता जी ने पूछा____"क्या आपको लगता है कि वो रागिनी बहू के बारे में आपसे जानने की बात कह रहा था?"

"पता नहीं।" मां ने कहा____"लेकिन जिस अंदाज़ में बोल रहा था उससे तो यही लगता है कि वो रागिनी बहू के बारे में ही जानना चाहता है।"

मां की इस बात पर पिता जी फ़ौरन कुछ ना बोले। उनके चेहरे पर सोचने वाले भाव उभर आए थे। मां बेचैनी से उन्हें ही देखे जा रहीं थी।

"क्या सोचने लगे आप?" फिर उन्होंने कहा____"कुछ बोल क्यों नहीं रहे हैं? हमने उसे कमरे में जाने को कह दिया है और ये भी कहा है कि आते हैं थोड़ी देर में। ज़ाहिर है वो हमारी प्रतीक्षा करेगा। समझ में नहीं आ रहा कि अगर उसने रागिनी बहू के बारे में ही पूछेगा तो क्या बताएंगे उसे?"

"हमें लगता है कि सच बताना ही पड़ेगा उसे।" पिता जी ने गहरी सांस ले कर कहा____"इस बात को ज़्यादा समय तक उससे छुपा के भी नहीं रख सकते। वैसे भी जो कुछ उसे बताया गया है उससे वो परेशान और दुखी ही होगा। इस लिए बेहतर है कि उसे सच ही बता दिया जाए।"

"क्या आपको लगता है कि सच जानने के बाद वो चुप बैठेगा?" मां ने कहा____"पहले ही वो अनुराधा की मौत हो जाने से टूट सा गया था और बड़ी मुश्किल से उसके सदमे से बाहर आया है। अगर उसे ये बात बताएंगे तो जाने क्या सोच बैठे वो और फिर जाने क्या करने पर उतारू हो जाए?"

"हम मानते हैं कि उसको सच बताना ख़तरा मोल लेने जैसा है।" पिता जी ने कहा____"लेकिन एक दिन तो उसे बताना ही पड़ेगा इस सच को। वैसे हमारा ख़याल है कि अगर आप उसे बेहतर तरीके से समझाएंगी तो शायद वो समझ जाएगा। आप उसे ये भी बता सकती हैं कि ये सब कुल गुरु की भविष्यवाणी के अनुसार ही हो रहा है।"

"कुल गुरु का नाम लेंगे तो वो भड़क जाएगा।" मां ने झट से कहा____"पहले भी वो अपने बड़े भाई की भविष्यवाणी वाली बात से उन पर बिगड़ गया था।"

"तो फिर आप उसे समझाइएगा कि इसी में सबका भला है।" पिता जी ने कहा____"ख़ास कर उसकी भौजाई का। अगर वो चाहता है कि उसकी भौजाई हमेशा खुश रहे और इसी हवेली में रहे तो उसे इस रिश्ते को स्वीकार करना ही होगा।"

पिता जी की इस बात पर मां कुछ देर तक उन्हें देखतीं रहीं। इतना तो वो भी समझती थीं कि एक दिन सच का पता वैभव को चलेगा ही तो बेहतर है आज ही बता दिया जाए। वैसे उन्हें यकीन था कि अपनी भाभी की ख़ुशी के लिए उनका बेटा ज़रूर इस रिश्ते को स्वीकार कर लेगा।

"ठीक है फिर।" मां ने जैसे निर्णायक अंदाज़ से कहा____"हम जा कर उसे सच बता देते हैं। अब जो होगा देखा जाएगा।"

✮✮✮✮

मैं पलंग पर लेटा बड़ी शिद्दत से मां का इंतज़ार कर रहा था। मन में तरह तरह के ख़याल उभर रहे थे जिसकी वजह से मेरी बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी। तभी खुले दरवाज़े पर मां नज़र आईं। उन्हें देखते ही मैं उठ कर बैठ गया। उधर वो कमरे में दाख़िल हो कर मेरे पास आईं और पलंग पर बैठ गईं। उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंची हुई थीं।

"आने में बड़ी देर लगा दी आपने?" मैंने व्याकुल भाव से कहा____"ख़ैर अब बताइए कि मुझसे और क्या छुपाया है आपने?"

"मैं तुझे सच बता दूंगी।" मां ने कहा____"लेकिन उससे पहले मैं तुझसे कुछ पूछना चाहती हूं। मैं चाहती हूं कि मैं तुझसे जो भी पूछूं उसका तू पूरी ईमानदारी से सच सच जवाब दे।"

"बिल्कुल दूंगा मां।" मैंने एकदम दृढ़ हो कर कहा____"आप पूछिए, मैं आपको वचन देता हूं कि आप जो कुछ भी मुझसे पूछेंगी मैं उसका सच सच जवाब दूंगा।"

"ठीक है।" मां ने एक लंबी सांस ली____"मैं तुझसे ये जानना चाहती हूं कि तू अपनी भाभी के बारे में क्या सोचता है?"

"य...ये कैसा सवाल है मां?" मैंने हैरानी से उन्हें देखा____"आप अच्छी तरह जानती हैं कि मेरी नज़र में भाभी की क्या अहमियत है। वो इस हवेली की शान हैं। उनके जैसी बहू और भाभी हमारे पास होना बड़े गौरव की बात है।"

"ये मैं जानती हूं।" मां ने कहा____"मैं तुझसे इसके अलावा जानना चाहती हूं। जैसे कि, क्या तू चाहता है कि तेरी भाभी हमेशा इस हवेली की शान बनी रहे? क्या तू चाहता है कि तेरी भाभी अपने जीवन में हमेशा खुश रहे?"

"मुझे समझ नहीं आ रहा कि आप ये कैसे सवाल कर रही हैं?" मैंने थोड़ा परेशान हो कर कहा____"आप अच्छी तरह जानती हैं कि ऐसा इस हवेली में हर कोई चाहता है।"

"मैं हर किसी की नहीं।" मां ने कहा____"बल्कि तेरी बात कर रही हूं। तू अपनी बता कि तू क्या चाहता है?"

"सबकी तरह मैं भी यही चाहता हूं कि मेरी भाभी हमेशा खुश रहें।" मैंने कहा____"उनके जीवन में कभी कोई दुख न आए। भैया के गुज़र जाने के बाद मेरी यही कोशिश थी कि मैं हर वक्त उनके चेहरे पर मुस्कान ला सकूं।"

"सिर्फ इतना ही?" मां ने अजीब भाव से मेरी तरफ देखा।

"और क्या मां?" मैंने कहा____"हम सबसे जितना हो सकता है उतना ही तो कर सकते हैं। काश! इससे ज़्यादा कुछ करना मेरे बस में होता तो मैं वो भी करता उनकी खुशी के लिए।"

"क्या तुझे लगता है कि तेरे बस में सिर्फ इतना ही था?" मां ने बड़े ध्यान से मेरी तरफ देखते हुए पूछा____"अगर मैं कहूं कि तू उसकी खुशी के लिए और भी बहुत कुछ कर सकता है तो क्या तू करेगा?"

"बिल्कुल करूंगा मां।" मैंने झट से कहा____"अगर मुझे पता चल जाए कि जिस चीज़ से भाभी खुश हो जाएंगी वो दुनिया के फला कोने में है तो यकीन मानिए मैं उस कोने में जा कर वो चीज़ ले आऊंगा और भाभी को दे कर उन्हें खुश करूंगा। अब इससे ज़्यादा क्या कहूं?"

"क्या तू उसकी खुशी के लिए कुछ भी कर सकता है?" मां ने जैसे मुझे परखा।

"हां, अगर मेरे बस में हुआ तो कुछ भी कर जाऊंगा।" मैंने पूरी दृढ़ता से कहा____"आज मैं जो कुछ भी हूं उसमें मेरी भाभी का बहुत बड़ा हाथ है मां। इस लिए अपनी भाभी को खुश करने के लिए कुछ भी कर सकता हूं लेकिन अब शायद ऐसा नहीं कर सकूंगा क्योंकि उनके माता पिता उनका फिर से कहीं ब्याह करने का फ़ैसला कर चुके हैं। अब वो ना आपकी बहू रहेंगी और ना ही मेरी भाभी। इस हवेली से हमेशा के लिए उनका नाता टूट जाएगा।"

"क्या तू चाहता है कि तेरी भाभी कहीं न जाए और इसी हवेली में बहू बन कर रहे?" मां ने पूछा।

"मैं अपने स्वार्थ के लिए उनका जीवन बर्बाद नहीं कर सकता मां।" मैंने सहसा गंभीर हो कर कहा____"उनके लिए यही बेहतर है कि उनका फिर से ब्याह हो जाए ताकि वो अपने पति के साथ जीवन में हमेशा खुश रह सकें।"

"अगर वो फिर से सुहागन बन कर इस हवेली में आ जाए तो क्या वो खुश नहीं रहेगी?" मां ने धड़कते दिल से कहते हुए मेरी तरफ देखा।

"य...ये क्या कह रही हैं आप?" मैं एकदम से चकरा सा गया____"ऐसा भला कैसे हो सकता है?"

"क्यों नहीं हो सकता?" मां ने जैसे तर्क़ दिया____"अगर तू उसे ब्याह करके इस हवेली में ले आएगा तो क्या वो फिर से खुश नहीं हो जाएगी?"

तीव्र झटका लगा मुझे। ऐसा लगा जैसे आसमान से मैं पूरे वेग से धरती पर आ गिरा था। हैरत से आंखें फाड़े मैं देखता रह गया मां को। उधर वो भी चहरे पर हल्के घबराहट के भाव लिए मेरी तरफ ही देखे जा रहीं थी।

"क...क्या हुआ?" फिर उन्होंने कहा____"क्या तू अपनी भाभी की खुशी के लिए उससे ब्याह नहीं कर सकता?"

"य...ये आप क्या बोल रही हैं मां?" मैं सकते जैसी हालत में था____"आप होश में तो हैं? आप ऐसा सोच भी कैसे सकती हैं?"

"वक्त और हालात इंसान को और भी बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देते हैं बेटा।" मां ने जब देखा कि मैं उनकी इस बात से भड़का नहीं हूं तो उन्होंने राहत की सांस लेते हुए कहा____"तुझे बताने की ज़रूरत नहीं है कि रागिनी हमारे लिए क्या मायने रखती है। तू भी जानता है और मानता भी है कि इस हवेली में उसके रहने से हम सब कैसा महसूस करते हैं? ये तो उस बेचारी की बदकिस्मती थी कि उसे इतनी कम उमर में विधवा हो जाना पड़ा लेकिन सोचने वाली बात है कि क्या हम उसे ऐसे ही सारी जिंदगी यहां रखेंगे और उसे दुख सहता देखेंगे? नहीं बेटा, ऐसा ना हम चाह सकते हैं और ना ही तू। यही सब बातें मैं और तेरे पिता जी अक्सर अकेले में सोचते थे। तब हमने फ़ैसला किया कि हम अपनी बहू को हमेशा खुश रखने के लिए उसका फिर से ब्याह करेंगे। हम ये भी चाहते थे कि वो हमेशा हमारी ही बहू बन कर इस हवेली में रहे और ऐसा तो तभी संभव होगा जब उसका ब्याह हम अपने ही बेटे से यानि तुझसे करें।"

"बड़ी अजीब बातें कर रही हैं आप।" मैंने चकित भाव से कहा____"आप सोच भी कैसे सकती हैं कि मैं अपनी भाभी से ब्याह करने का सोच भी सकता हूं? मैं उनकी बहुत इज्ज़त करता हूं और मेरे लिए वो किसी देवी की तरह पूज्यनीय हैं।"

"मैं जानती हूं बेटा।" मां ने सिर हिलाते हुए कहा____"और उसके प्रति तेरी भावनाओं को भी समझती हूं लेकिन तुझे भी समझना होगा कि ज़रूरत पड़ने पर सबकी भलाई के लिए हमें ऐसे भी काम करने पड़ते हैं जिसे करने के लिए पहली नज़र में हमारा दिल नहीं मानता।"

"लेकिन मां वो मेरी भाभी हैं।" मैंने पुरज़ोर भाव से कहा____"उनके बारे में ऐसा सोचना भी मेरे लिए गुनाह है।"

"देवर का भाभी से ब्याह होना ऐसी बात नहीं है बेटा जिसे समाज मान्यता नहीं देता।" मां ने जैसे मुझे समझाते हुए कहा____"दुनिया में ऐसा पहले भी हुआ है और आगे भी ज़रूरत पड़ने पर होता रहेगा। इस लिए तू इस बारे में व्यर्थ की बातें मत सोच। तू जानना चाहता था न कि मैंने तुझसे अभी और क्या छुपाया है तो वो यही है। असल में जब मैंने और तुम्हारे पिता जी ने रागिनी का फिर से ब्याह करने का सोच लिया और ये भी सोच लिया कि हम उसका ब्याह तुझसे ही करेंगे तो हमने इस बारे में सबसे पहले रागिनी के पिता जी से भी चर्चा करने का सोच लिया था। कुछ दिन पहले तेरे पिता जी चंदनपुर गए थे समधी जी से इस बारे में बात करने। जब उन्होंने रागिनी के पिता जी से इस बारे में चर्चा की तो वो भी इस रिश्ते के लिए खुशी खुशी मान गए। उन्हें तो इसी बात से खुशी हुई थी कि हम उनकी बेटी की भलाई के लिए इतना कुछ सोचते हैं।"

मैं अवाक सा देखता रह गया मां को। एकाएक ही मेरे मन मस्तिष्क में धमाके से होने लगे थे। अचानक ही ज़हन में वो बातें गूंजने लगीं जो चंदनपुर में कामिनी से हुईं थी और फिर भाभी से हुईं थी। भाभी का उदास और गंभीर चेहरा मेरी आंखों के सामने उजागर हो गया। उनकी बातें मेरे कानों में गूंजने लगीं।



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"मुझे ग़लत मत समझना वैभव।" रूपचंद्र ने कहा____"लेकिन इस बारे में मैं तुम्हें कुछ नहीं बता सकता।"

मैं मूर्खों की तरह देखता रह गया उसे। रूपचंद्र के चेहरे पर खेद पूर्ण भाव थे। कुछ देर वो ख़ामोशी से मुझे देखता रहा उसके बाद मेरे कंधे पर हल्के से हाथ की थपकी देने के बाद चला गया। मुझे समझ ना आया कि अब ये क्या चक्कर है?



अब आगे....


रसोई में रागिनी अपनी भाभी वंदना का खाना बनाने में हाथ बंटा रही थी। यूं तो घर में उसे कोई भी काम करने के लिए नहीं कहता था लेकिन उसे खुद ही अच्छा नहीं लगता था कि वो बैठ के सिर्फ खाना खाए। पहले भी उसे काम करना बेहद पसंद था और आज भी वो खाली बैठना पसंद नहीं करती थी।

कुछ समय पहले तक सब ठीक ही था लेकिन फिर एक दिन उसके ससुर यानि दादा ठाकुर यहां आए। उन्होंने उसके पिता से उसके ब्याह के संबंध में जो भी बातें की उसके बारे में जान कर उसे बड़ा झटका लगा था। पहले तो ये बात उसे अपनी भाभी वंदना ने ही बताया और फिर रात में उसकी मां ने बताया। रागिनी के लिए वो सारी बातें ऐसी थीं कि उसके बाद से जैसे उसका हंसना मुस्कुराना ही बंद हो गया था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसके ससुर उसका फिर से ब्याह करने की चर्चा करने उसके पिता के पास आए थे। बात अगर सिर्फ इतनी ही होती तो कदाचित उसे इतना झटका नहीं लगता किंतु झटके वाली बात ये थी कि उसके ससुर उसका ब्याह उसके ही देवर से करने की बात बोले थे।

रागिनी के लिए ये बात किसी झटके से कम नहीं थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसके ससुर ऐसा कैसे चाह सकते थे और उसके खुद के पिता भी उनकी इस बात को मंजूरी कैसे दे सकते थे? अब क्योंकि वो खुद किसी से इस बारे में कुछ कह नहीं सकती थी इस लिए अंदर ही अंदर वो इस बात से परेशान हो गई थी। दो तीन दिन तक यही आलम रहा लेकिन फिर उसकी मां के समझाने पर वो थोड़ा सामान्य होने लगी थी। हालाकि अंदर से वो अभी भी बेचैन थी।

वैभव को उसने देवर के साथ साथ हमेशा ही अपना छोटा भाई समझा था। वो अच्छी तरह जानती थी कि वैभव कैसे चरित्र का लड़का है इसके बाद भी वो ये समझती थी कि वैभव ने कभी उसे ग़लत नज़र से नहीं देखा था। हालाकि ये सिर्फ उसका सोचना ही था क्योंकि कोई भी व्यक्ति किसी के अंदर की बात पूर्ण रूप से नहीं जान रहा होता है, ये तो बस उसका विश्वास था।

"अब इतना भी मत सोचो रागिनी।" वंदना ने उसे ख़ामोशी से काम करते देखा तो बोल पड़ी____"तुम भी अच्छी तरह समझती हो कि तुम्हारे ससुर जी और तुम्हारे पिता जी तुम्हारी भलाई के लिए ही ऐसा चाहते हैं। सच कहूं तो इस रिश्ते के लिए किसी को भी कोई आपत्ति नहीं है। तुम्हें पता है, तुम्हारे भैया से हर रोज़ मेरी इस बारे में बात होती है। उनका भी यही कहना है कि तुम्हारा वैभव के साथ ब्याह कर देने का फ़ैसला बिल्कुल भी ग़लत नहीं है। देवर से भाभी का ब्याह हो जाना कोई ग़लत नहीं है। ऐसा तो हमेशा से होता आया है।"

"मैं दुबारा ब्याह करने से इंकार नहीं कर रही भाभी।" रागिनी ने गंभीर भाव से कहा____"मैं सिर्फ ये कह रही हूं कि वैभव से ही क्यों? जिसे अब तक मैं अपने देवर के साथ साथ अपना छोटा भाई समझती आई हूं उसे एकदम से पति की नज़र से कैसे देखने लगूं? आप लोगों ने तो कह दिया लेकिन आप लोग ये नहीं समझ रहे हैं कि इस बारे में मैं क्या महसूस करती हूं।"

"ऐसा नहीं है रागिनी।" वंदना ने कहा____"हम सबको एहसास है कि इस रिश्ते के बारे में तुम इस समय कैसा महसूस करती होगी। तुम्हारी जगह मैं होती तो मेरा भी यही कहना होता लेकिन जीवन में हमें इसके अलावा भी कई सारी बातें सोचनी पड़ती हैं। तुम्हारा कहना है कि वैभव से ही क्यों? यानि तुम्हें वैभव से ब्याह करने में आपत्ति है, जबकि नहीं होनी चाहिए। ऐसा इस लिए क्योंकि तुम उसके बारे में पहले से ही सब कुछ जानती हो। तुम जानती हो कि वो तुम्हारी कितनी इज्ज़त करता है और कितनी फ़िक्र करता है। तुम्हीं ने बताया था कि वो तुम्हारे होठों पर मुस्कान लाने के लिए क्या क्या करता रहता है। सोचने वाली बात है रागिनी कि जो व्यक्ति तुम्हारी खुशी के लिए इतना कुछ करता हो और तुम्हें इतना चाहता हो उससे ब्याह करने से इंकार क्यों? किसी दूसरे व्यक्ति से ब्याह करने का सोचती हो तो बताओ क्या वो व्यक्ति वैभव की तरह तुम्हें मान सम्मान देगा? क्या वो वैभव की तरह तुम्हें चाहेगा और क्या उसके घर वाले तुम्हें अपने घर की शान बना लेंगे?"

रागिनी कुछ बोल ना सकी किंतु चेहरे से स्पष्ट नज़र आ रहा था कि उसके मन में बहुत कुछ चल रहा था। वंदना कुछ देर तक उसे देखती रही।

"मैं जानती हूं कि तुमने अपने जीवन में कभी किसी लड़के का ख़याल भी अपने मन में नहीं लाया था।" फिर उसने रागिनी के दोनों कन्धों को पकड़ कर बड़े स्नेह से कहा____"तुम्हारे जीवन में जो आया वो सिर्फ तुम्हारा पति ही था। यही वजह है कि तुम किसी और के बारे में ऐसा सोचना ही नहीं चाहती, ख़ास कर वैभव के बारे में। तुम भी जानती हो कि शादी से पहले लड़का लड़की एक दूसरे के लिए अजनबी ही होते हैं। दोनों के मन में एक दूसरे के प्रति कई तरह की आशंकाएं रहती हैं। ख़ास कर लड़की ये सोच कर परेशान हो जाती है कि जाने कैसा होगा उसका होने वाला पति और फिर आगे जाने क्या होगा? लेकिन जब दोनों की शादी हो जाती है और दोनों साथ रहने लगते हैं तो मन की सारी आशंकाएं अपने आप ही दूर होती चली जाती हैं। एक वक्त ऐसा आता है जब दोनों को एक दूसरे से बेहद लगाव हो जाता है और फिर दोनों को ये भी लगने लगता है जैसे वो दोनों एक दूसरे के लिए ही बने थे। तुम्हारे लिए तो सबसे अच्छी बात यही है कि तुम अपने होने वाले पति के बारे में पहले से ही सब कुछ जानती हो। सबसे बड़ी बात ये जानती हो कि वो तुम्हें कितना चाहता है और तुम्हारी कितनी फ़िक्र करता है। एक औरत को इससे ज़्यादा और क्या चाहिए होता है? भूल जाओ कि तुम वैभव की भाभी हो या वैभव तुम्हारा देवर है। मन में सिर्फ ये रखो कि वो एक ऐसा लड़का है जिससे तुम्हारा ब्याह होना है।"

"यही तो नहीं कर पा रही भाभी।" रागिनी ने जैसे आहत हो कर कहा____"उसके बारे में एक पल में सब कुछ भूल जाना आसान नहीं है। मेरा तो ये सोच कर हृदय कांप जाता है कि जब उसे सच का पता चलेगा तो क्या सोचेगा वो मेरे बारे में? अगर उसने एक पल के लिए भी मेरे बारे में ग़लत सोच लिया तो कैसे नज़रें मिला पाऊंगी उससे?"

"ऐसा सिर्फ तुम सोचती हो रागिनी।" वंदना ने कहा____"ऐसा भी तो हो सकता है कि वो तुम्हारे बारे में ऐसा कुछ सोचे ही नहीं बल्कि ये सोच ले कि वो कितना किस्मत वाला है जो उसके जीवन में तुम जैसी लड़की पत्नी के रूप में मिलने वाली है। आख़िर तुम्हारी अच्छाईयां और तुम्हारी खूबियों के बारे में तो उसे पता ही है। मुझे पूरा यकीन है कि जब उसे इस सच का पता चलेगा तो वो सपने में भी तुम्हारे बारे में ग़लत नहीं सोचेगा। बल्कि यही सोचेगा कि अब वो पूरे हक़ से और पूरी आज़ादी के साथ तुम्हें खुश रखने का प्रयास कर सकेगा। हां रागिनी, जितना कुछ तुमने उसके बारे में मुझे बताया है उससे मैं पूरे यकीन के साथ कह सकती हूं कि वैभव इस रिश्ते को ख़ुशी से स्वीकार करेगा और ब्याह के बाद तुम्हें बहुत खुश रखेगा।"

रागिनी के समूचे बदन में झुरझूरी सी दौड़ गई। उसे बड़ा अजीब लग रहा था। चेहरे पर अभी भी पहले जैसी गंभीरता और उदासी छाई हुई थी।

"एक बार अपने सास ससुर के बारे में भी सोचो रागिनी।" वंदना ने कुछ सोचते हुए कहा____"तुम्हीं बताया करती थी ना कि वो दोनों तुम्हें बहू नहीं बल्कि अपनी बेटी मानते हैं और तुम्हें अपनी हवेली की शान समझते हैं। इसी से ज़ाहिर होता है कि वो तुम्हें कितना चाहते हैं। वैभव से तुम्हारा ब्याह करवा देने के पीछे उनकी यही भावना है कि तुम हमेशा उनकी बेटी बन कर उनकी हवेली की शान ही बनी रहो और साथ ही फिर से सुहागन बनने के बाद एक खुशहाल जीवन जियो। मानती हूं कि इतनी कम उमर में तुम्हें विधवा बना कर ऊपर वाले ने तुम्हारे साथ अच्छा नहीं किया है लेकिन मैं ये भी मानती हूं कि तुम बहुत भाग्यशाली हो जो तुम्हें इतने अच्छे सास ससुर मिले हैं जो सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे हितों के बारे में सोचते हैं। वरना मैंने ऐसे भी लोग देखे और सुने हैं जो अपनी बहू के विधवा हो जाने पर उसे नौकरानी बना कर सारा जीवन उसे दुख देते रहते हैं। शायद यही सब पिता जी ने और तुम्हारे भैया ने भी सोचा होगा। माना कि तुम्हारे सास ससुर ऐसे नहीं हैं लेकिन कोई भी माता पिता ये नहीं चाहते कि उनकी बेटी विधवा के रूप में जीवन भर कष्ट सहे। तुम्हारा फिर से ब्याह करने की बात तुम्हारे अपने सास ससुर ने की है। ज़ाहिर है वो भी ऐसा नहीं चाहते और फिर जब उन्होंने यहां आ कर पिता जी से इस रिश्ते की बात कही तो पिता जी भी झट से मान गए थे। इस डर से नहीं कि तुम्हारा क्या होगा बल्कि इस खुशी में कि अपनी बेटी का जिस तरह से भला वो खुद चाहते थे वैसा उनकी बेटी के सास ससुर खुद ही चाहते हैं। तुम्हीं सोचो कि आज के युग में ऐसे महान सास ससुर कहां मिलते हैं जो अपनी बहू के बारे में इतना कुछ सोचें?"

"हां ये तो आप सही कह रही हैं।" रागिनी ने सिर हिलाते हुए धीमें से कहा____"इस मामले में मेरे सास ससुर बहुत अच्छे हैं। उन्होंने कभी भूल से भी किसी तरह का मुझे कोई कष्ट नहीं दिया। इतना कुछ हो जाने के बाद भी उन्होंने मुझे किसी बात का ताना नहीं मारा बल्कि मेरे दुख से दुखी हो कर हमेशा मुझे अपने सीने से लगाए रखा था।"

"इसी लिए तो कहती हूं रागिनी कि तुम बहुत भाग्यशाली हो।" वंदना ने कहा____"पूर्व जन्म में तुमने ज़रूर बहुत अच्छे कर्म किए थे जिसके चलते इस जन्म में तुम्हें इतने अच्छे सास ससुर मिले हैं। पति में भी कोई ख़राबी नहीं थी, वो तो उन बेचारे की किस्मत ही ख़राब थी जिसके चलते ऊपर वाले ने उन्हें अपने पास बुला लिया। तुम्हारे देवर के बारे में तुमसे बेहतर कौन जान सकता है? सच तो ये है कि तुम्हारे ससुराल में हर कोई बहुत अच्छा है। इस लिए मैं तो यही कहूंगी कि तुम अब कुछ भी मत सोचो, ईश्वर ने तुम्हारी खुशियां छीनी थी तो उसने फिर से तुम्हें खुशियां देने के लिए इस तरह का रिश्ता भेज दिया है। इसे ख़ुशी ख़ुशी क़बूल करो और वैभव के साथ जीवन में आगे बढ़ जाओ।"

अभी रागिनी कुछ कहने ही वाली थी कि तभी रसोई में कामिनी आ गई। उसने बताया कि पिता जी और भैया खेतों से आ गए हैं और हाथ मुंह धोने के बाद जल्दी ही बरामदे में खाना खाने के लिए आ जाएंगे। कामिनी की इस बात के बाद वंदना और रागिनी जल्दी जल्दी थाली सजाने की तैयारी करने लगीं।

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रूपचंद्र के जाने के बाद मेरे मन में विचारों का जैसे बवंडर सा उठ खड़ा हुआ था। वो तो चला गया था लेकिन मुझे उलझा गया था। मैं सोचने लगा था कि आख़िर कौन से सच की बात कर रहा था वो और तो और वो ख़ुद क्यों नहीं बता सकता था? आख़िर ऐसा कौन सा सच होगा जिसे मैं अपने माता पिता से ही जान सकता था?

दोपहर तक मैं इसी तरह विचारों में उलझा रहा और मजदूरों को काम करते हुए देखता रहा। उसके बाद मैं खाना खाने के लिए मोटर साईकिल में बैठ कर हवेली की तरफ चल पड़ा। मन ही मन फ़ैसला कर लिया कि मौका मिलते ही मां से पूछूंगा कि अभी ऐसा क्या है जिसे उन्होंने मुझे नहीं बताया है?

हवेली पहुंचा तो देखा पिता जी खाना खाने बैठ चुके थे। मुंशी किशोरी लाल भी बैठा हुआ था। मुझे आया देख मां ने मुझे भी हाथ मुंह धो कर बैठ जाने के लिए कहा। मैं फ़ौरन ही हाथ मुंह धो के आया और कुर्सी पर बैठ गया। कुसुम और कजरी खाना परोसने लगीं। खाना खाने के दरमियान हमेशा की ही तरह ख़ामोशी रही। पिता जी को खाते वक्त बातें करना बिल्कुल भी पसंद नहीं था।

खाना पीना कर के जब पिता जी और मुंशी जी चले गए तो मैंने मां की तरफ देखा। मुझे पिता जी और मुंशी जी की तरह कुर्सी से उठ कर न गया देख मां समझ गईं कि कोई बात है जिसके चलते मैं अभी भी कुर्सी पर बैठा हुआ था।

"क्या हुआ बेटा?" मां ने मेरे क़रीब आ कर बड़े स्नेह से कहा____"भोजन तो कर चुका है तू, फिर बैठा क्यों है? आराम नहीं करना है क्या तुझे?"

"आराम बाद में कर लूंगा मां।" मैंने कहा____"इस वक्त मुझे आपसे कुछ जानना है और उम्मीद करता हूं कि आप मुझे सब कुछ सच सच बताएंगी।"

मेरी बात सुन कर मां मेरी तरफ बड़े ध्यान से देखने लगीं। कजरी तो जूठे बर्तन उठा कर चली गई थी लेकिन कुसुम मेरी बात सुन कर ठिठक गई थी और उत्सुक भाव से हमारी तरफ देखने लगी थी।

"क्या जानना चाहता है तू?" इधर मां ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा____"तेरी भाभी के बारे में तो मैंने तुझे कल ही बता दिया था, फिर अब क्या जानना चाहता है?"

"वही जो आपने नहीं बताया।" मैंने मां की तरफ ध्यान से देखते हुए कहा____"और मुझे लगता है कि अभी भी आपने मुझसे कुछ छुपा रखा है।"

"अपने कमरे में जा।" मां ने गहरी सांस ले कर कहा____"मैं आती हूं थोड़ी देर में।"

"ठीक है।" मैंने कुर्सी से उठते हुए कहा____"जल्दी आइएगा।"

कहने के साथ ही मैं तो अपने कमरे की तरफ चला गया किंतु पीछे मां एकदम से परेशान हो उठीं थी। कुछ पलों तक जाने वो क्या सोचती रहीं फिर खुद को सम्हालते हुए अपने कमरे की तरफ बढ़ चलीं। जल्दी ही वो कमरे में पहुंच गईं। कमरे में पिता जी पलंग पर आराम करने के लिए लेट चुके थे। कमरे में आते ही मां ने कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया। ये देख पिता जी के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे।

"क्या हुआ?" वो पूछ ही बैठे____"आपको भोजन नहीं करना क्या?"

"बाद में कर लेंगे।" उन्होंने पिता जी के क़रीब जा कर कहा____"इस वक्त एक समस्या हो गई है।"

"स...समस्या??" पिता जी चौंके____"ये क्या कह रही हैं आप?"

"लगता है हमारे बेटे को शक हो गया है।" मां ने चिंतित भाव से कहा____"अभी अभी वो हमसे कोई बात जानने की बात कह रहा था और ये भी कह रहा था कि हमने अभी भी उससे कुछ छुपाया है।"

"क्या उसने स्पष्ट रूप से आपसे ऐसा कुछ कहा है?" पिता जी ने पूछा____"क्या आपको लगता है कि वो रागिनी बहू के बारे में आपसे जानने की बात कह रहा था?"

"पता नहीं।" मां ने कहा____"लेकिन जिस अंदाज़ में बोल रहा था उससे तो यही लगता है कि वो रागिनी बहू के बारे में ही जानना चाहता है।"

मां की इस बात पर पिता जी फ़ौरन कुछ ना बोले। उनके चेहरे पर सोचने वाले भाव उभर आए थे। मां बेचैनी से उन्हें ही देखे जा रहीं थी।

"क्या सोचने लगे आप?" फिर उन्होंने कहा____"कुछ बोल क्यों नहीं रहे हैं? हमने उसे कमरे में जाने को कह दिया है और ये भी कहा है कि आते हैं थोड़ी देर में। ज़ाहिर है वो हमारी प्रतीक्षा करेगा। समझ में नहीं आ रहा कि अगर उसने रागिनी बहू के बारे में ही पूछेगा तो क्या बताएंगे उसे?"

"हमें लगता है कि सच बताना ही पड़ेगा उसे।" पिता जी ने गहरी सांस ले कर कहा____"इस बात को ज़्यादा समय तक उससे छुपा के भी नहीं रख सकते। वैसे भी जो कुछ उसे बताया गया है उससे वो परेशान और दुखी ही होगा। इस लिए बेहतर है कि उसे सच ही बता दिया जाए।"

"क्या आपको लगता है कि सच जानने के बाद वो चुप बैठेगा?" मां ने कहा____"पहले ही वो अनुराधा की मौत हो जाने से टूट सा गया था और बड़ी मुश्किल से उसके सदमे से बाहर आया है। अगर उसे ये बात बताएंगे तो जाने क्या सोच बैठे वो और फिर जाने क्या करने पर उतारू हो जाए?"

"हम मानते हैं कि उसको सच बताना ख़तरा मोल लेने जैसा है।" पिता जी ने कहा____"लेकिन एक दिन तो उसे बताना ही पड़ेगा इस सच को। वैसे हमारा ख़याल है कि अगर आप उसे बेहतर तरीके से समझाएंगी तो शायद वो समझ जाएगा। आप उसे ये भी बता सकती हैं कि ये सब कुल गुरु की भविष्यवाणी के अनुसार ही हो रहा है।"

"कुल गुरु का नाम लेंगे तो वो भड़क जाएगा।" मां ने झट से कहा____"पहले भी वो अपने बड़े भाई की भविष्यवाणी वाली बात से उन पर बिगड़ गया था।"

"तो फिर आप उसे समझाइएगा कि इसी में सबका भला है।" पिता जी ने कहा____"ख़ास कर उसकी भौजाई का। अगर वो चाहता है कि उसकी भौजाई हमेशा खुश रहे और इसी हवेली में रहे तो उसे इस रिश्ते को स्वीकार करना ही होगा।"

पिता जी की इस बात पर मां कुछ देर तक उन्हें देखतीं रहीं। इतना तो वो भी समझती थीं कि एक दिन सच का पता वैभव को चलेगा ही तो बेहतर है आज ही बता दिया जाए। वैसे उन्हें यकीन था कि अपनी भाभी की ख़ुशी के लिए उनका बेटा ज़रूर इस रिश्ते को स्वीकार कर लेगा।

"ठीक है फिर।" मां ने जैसे निर्णायक अंदाज़ से कहा____"हम जा कर उसे सच बता देते हैं। अब जो होगा देखा जाएगा।"

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मैं पलंग पर लेटा बड़ी शिद्दत से मां का इंतज़ार कर रहा था। मन में तरह तरह के ख़याल उभर रहे थे जिसकी वजह से मेरी बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी। तभी खुले दरवाज़े पर मां नज़र आईं। उन्हें देखते ही मैं उठ कर बैठ गया। उधर वो कमरे में दाख़िल हो कर मेरे पास आईं और पलंग पर बैठ गईं। उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंची हुई थीं।

"आने में बड़ी देर लगा दी आपने?" मैंने व्याकुल भाव से कहा____"ख़ैर अब बताइए कि मुझसे और क्या छुपाया है आपने?"

"मैं तुझे सच बता दूंगी।" मां ने कहा____"लेकिन उससे पहले मैं तुझसे कुछ पूछना चाहती हूं। मैं चाहती हूं कि मैं तुझसे जो भी पूछूं उसका तू पूरी ईमानदारी से सच सच जवाब दे।"

"बिल्कुल दूंगा मां।" मैंने एकदम दृढ़ हो कर कहा____"आप पूछिए, मैं आपको वचन देता हूं कि आप जो कुछ भी मुझसे पूछेंगी मैं उसका सच सच जवाब दूंगा।"

"ठीक है।" मां ने एक लंबी सांस ली____"मैं तुझसे ये जानना चाहती हूं कि तू अपनी भाभी के बारे में क्या सोचता है?"

"य...ये कैसा सवाल है मां?" मैंने हैरानी से उन्हें देखा____"आप अच्छी तरह जानती हैं कि मेरी नज़र में भाभी की क्या अहमियत है। वो इस हवेली की शान हैं। उनके जैसी बहू और भाभी हमारे पास होना बड़े गौरव की बात है।"

"ये मैं जानती हूं।" मां ने कहा____"मैं तुझसे इसके अलावा जानना चाहती हूं। जैसे कि, क्या तू चाहता है कि तेरी भाभी हमेशा इस हवेली की शान बनी रहे? क्या तू चाहता है कि तेरी भाभी अपने जीवन में हमेशा खुश रहे?"

"मुझे समझ नहीं आ रहा कि आप ये कैसे सवाल कर रही हैं?" मैंने थोड़ा परेशान हो कर कहा____"आप अच्छी तरह जानती हैं कि ऐसा इस हवेली में हर कोई चाहता है।"

"मैं हर किसी की नहीं।" मां ने कहा____"बल्कि तेरी बात कर रही हूं। तू अपनी बता कि तू क्या चाहता है?"

"सबकी तरह मैं भी यही चाहता हूं कि मेरी भाभी हमेशा खुश रहें।" मैंने कहा____"उनके जीवन में कभी कोई दुख न आए। भैया के गुज़र जाने के बाद मेरी यही कोशिश थी कि मैं हर वक्त उनके चेहरे पर मुस्कान ला सकूं।"

"सिर्फ इतना ही?" मां ने अजीब भाव से मेरी तरफ देखा।

"और क्या मां?" मैंने कहा____"हम सबसे जितना हो सकता है उतना ही तो कर सकते हैं। काश! इससे ज़्यादा कुछ करना मेरे बस में होता तो मैं वो भी करता उनकी खुशी के लिए।"

"क्या तुझे लगता है कि तेरे बस में सिर्फ इतना ही था?" मां ने बड़े ध्यान से मेरी तरफ देखते हुए पूछा____"अगर मैं कहूं कि तू उसकी खुशी के लिए और भी बहुत कुछ कर सकता है तो क्या तू करेगा?"

"बिल्कुल करूंगा मां।" मैंने झट से कहा____"अगर मुझे पता चल जाए कि जिस चीज़ से भाभी खुश हो जाएंगी वो दुनिया के फला कोने में है तो यकीन मानिए मैं उस कोने में जा कर वो चीज़ ले आऊंगा और भाभी को दे कर उन्हें खुश करूंगा। अब इससे ज़्यादा क्या कहूं?"

"क्या तू उसकी खुशी के लिए कुछ भी कर सकता है?" मां ने जैसे मुझे परखा।

"हां, अगर मेरे बस में हुआ तो कुछ भी कर जाऊंगा।" मैंने पूरी दृढ़ता से कहा____"आज मैं जो कुछ भी हूं उसमें मेरी भाभी का बहुत बड़ा हाथ है मां। इस लिए अपनी भाभी को खुश करने के लिए कुछ भी कर सकता हूं लेकिन अब शायद ऐसा नहीं कर सकूंगा क्योंकि उनके माता पिता उनका फिर से कहीं ब्याह करने का फ़ैसला कर चुके हैं। अब वो ना आपकी बहू रहेंगी और ना ही मेरी भाभी। इस हवेली से हमेशा के लिए उनका नाता टूट जाएगा।"

"क्या तू चाहता है कि तेरी भाभी कहीं न जाए और इसी हवेली में बहू बन कर रहे?" मां ने पूछा।

"मैं अपने स्वार्थ के लिए उनका जीवन बर्बाद नहीं कर सकता मां।" मैंने सहसा गंभीर हो कर कहा____"उनके लिए यही बेहतर है कि उनका फिर से ब्याह हो जाए ताकि वो अपने पति के साथ जीवन में हमेशा खुश रह सकें।"

"अगर वो फिर से सुहागन बन कर इस हवेली में आ जाए तो क्या वो खुश नहीं रहेगी?" मां ने धड़कते दिल से कहते हुए मेरी तरफ देखा।

"य...ये क्या कह रही हैं आप?" मैं एकदम से चकरा सा गया____"ऐसा भला कैसे हो सकता है?"

"क्यों नहीं हो सकता?" मां ने जैसे तर्क़ दिया____"अगर तू उसे ब्याह करके इस हवेली में ले आएगा तो क्या वो फिर से खुश नहीं हो जाएगी?"

तीव्र झटका लगा मुझे। ऐसा लगा जैसे आसमान से मैं पूरे वेग से धरती पर आ गिरा था। हैरत से आंखें फाड़े मैं देखता रह गया मां को। उधर वो भी चहरे पर हल्के घबराहट के भाव लिए मेरी तरफ ही देखे जा रहीं थी।

"क...क्या हुआ?" फिर उन्होंने कहा____"क्या तू अपनी भाभी की खुशी के लिए उससे ब्याह नहीं कर सकता?"

"य...ये आप क्या बोल रही हैं मां?" मैं सकते जैसी हालत में था____"आप होश में तो हैं? आप ऐसा सोच भी कैसे सकती हैं?"

"वक्त और हालात इंसान को और भी बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देते हैं बेटा।" मां ने जब देखा कि मैं उनकी इस बात से भड़का नहीं हूं तो उन्होंने राहत की सांस लेते हुए कहा____"तुझे बताने की ज़रूरत नहीं है कि रागिनी हमारे लिए क्या मायने रखती है। तू भी जानता है और मानता भी है कि इस हवेली में उसके रहने से हम सब कैसा महसूस करते हैं? ये तो उस बेचारी की बदकिस्मती थी कि उसे इतनी कम उमर में विधवा हो जाना पड़ा लेकिन सोचने वाली बात है कि क्या हम उसे ऐसे ही सारी जिंदगी यहां रखेंगे और उसे दुख सहता देखेंगे? नहीं बेटा, ऐसा ना हम चाह सकते हैं और ना ही तू। यही सब बातें मैं और तेरे पिता जी अक्सर अकेले में सोचते थे। तब हमने फ़ैसला किया कि हम अपनी बहू को हमेशा खुश रखने के लिए उसका फिर से ब्याह करेंगे। हम ये भी चाहते थे कि वो हमेशा हमारी ही बहू बन कर इस हवेली में रहे और ऐसा तो तभी संभव होगा जब उसका ब्याह हम अपने ही बेटे से यानि तुझसे करें।"

"बड़ी अजीब बातें कर रही हैं आप।" मैंने चकित भाव से कहा____"आप सोच भी कैसे सकती हैं कि मैं अपनी भाभी से ब्याह करने का सोच भी सकता हूं? मैं उनकी बहुत इज्ज़त करता हूं और मेरे लिए वो किसी देवी की तरह पूज्यनीय हैं।"

"मैं जानती हूं बेटा।" मां ने सिर हिलाते हुए कहा____"और उसके प्रति तेरी भावनाओं को भी समझती हूं लेकिन तुझे भी समझना होगा कि ज़रूरत पड़ने पर सबकी भलाई के लिए हमें ऐसे भी काम करने पड़ते हैं जिसे करने के लिए पहली नज़र में हमारा दिल नहीं मानता।"

"लेकिन मां वो मेरी भाभी हैं।" मैंने पुरज़ोर भाव से कहा____"उनके बारे में ऐसा सोचना भी मेरे लिए गुनाह है।"

"देवर का भाभी से ब्याह होना ऐसी बात नहीं है बेटा जिसे समाज मान्यता नहीं देता।" मां ने जैसे मुझे समझाते हुए कहा____"दुनिया में ऐसा पहले भी हुआ है और आगे भी ज़रूरत पड़ने पर होता रहेगा। इस लिए तू इस बारे में व्यर्थ की बातें मत सोच। तू जानना चाहता था न कि मैंने तुझसे अभी और क्या छुपाया है तो वो यही है। असल में जब मैंने और तुम्हारे पिता जी ने रागिनी का फिर से ब्याह करने का सोच लिया और ये भी सोच लिया कि हम उसका ब्याह तुझसे ही करेंगे तो हमने इस बारे में सबसे पहले रागिनी के पिता जी से भी चर्चा करने का सोच लिया था। कुछ दिन पहले तेरे पिता जी चंदनपुर गए थे समधी जी से इस बारे में बात करने। जब उन्होंने रागिनी के पिता जी से इस बारे में चर्चा की तो वो भी इस रिश्ते के लिए खुशी खुशी मान गए। उन्हें तो इसी बात से खुशी हुई थी कि हम उनकी बेटी की भलाई के लिए इतना कुछ सोचते हैं।"

मैं अवाक सा देखता रह गया मां को। एकाएक ही मेरे मन मस्तिष्क में धमाके से होने लगे थे। अचानक ही ज़हन में वो बातें गूंजने लगीं जो चंदनपुर में कामिनी से हुईं थी और फिर भाभी से हुईं थी। भाभी का उदास और गंभीर चेहरा मेरी आंखों के सामने उजागर हो गया। उनकी बातें मेरे कानों में गूंजने लगीं।



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Awesome update, akhir vaibhav par bumb fod hi diya thakurain ne ab kaise vaibhav is bat ko sweekar kar payega
 
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